*दौलत का सदुपयोग करो भाई*
ऐ दौलत! तुझे पाने की चाह में,
न जाने कितने लोग रोज़ निकलते हैं,
कुछ लोग भूख मिटाने निकलते हैं,
कुछ लोग भूख बढ़ाने निकलते हैं।
ऐ दौलत! तुझे पाने की चाह में,
न जाने कितने क़त्ल रोज होते है,
कुछ क़त्ल अरमानों के होते है,
कुछ क़त्ल भावनाओं के होते हैं।
ऐ दौलत! तुझे पाने की चाह में,
न जाने कितने रिश्ते रोज़ टूटते हैं,
कुछ रिश्ते स्वजनों से टूटते हैं,
कुछ रिश्ते व्यवसायिक टूटते हैं।
ऐ दौलत! तुझे पाने की चाह में,
न जाने कितने लोग रोज़ गिरते हैं,
कुछ अपनी ही नज़रों में गिरते हैं,
कुछ सामाजिक नज़रों में गिरते हैं।
ऐ दौलत! तुझे पाने की चाह में,
न जाने लोग क्या क्या बेंच देते हैं,
कुछ तो अपना ज़मीर बेंच देते हैं,
कुछ तो अपना वजूद ही बेंच देते हैं।
ऐ दौलत! तुझे पाने की चाह में,
न जाने लोग क्या क्या भूल जाते हैं,
कुछ तो जीवन जीना भूल जाते हैं,
कुछ तो इंसानियत से रहना भूल जाते हैं।
ऐ दौलत, तेरी जरूरत
हर किसी को है,
केवल उतनी ही,
जितनी एक गाड़ी के इंजन को,
डीज़ल या अन्य ईंधन की है।
लेकिन ईंधन के संग्रह में,
कोई इतना व्यस्त हो जाये,
कि कोई उम्र भर केवल,
ईंधन संग्रह ही करता जाए,
और जिंदगी के सफऱ में,
गाड़ी चलाना भूल जाए,
और उस ईंधन का सही उपयोग,
कर ही न पाए,
तो उसे क्या कहोगे?
ऐसे ईंधन या धन संग्रह को,
क्या कहोगे?
हम अमर नहीं हैं,
इस संसार मे आने की,
और जाने की तारीख़,
निश्चित है मेरे भाई,
ईंधन और धन खूब कमाओ भाई,
लेकिन जीवन के सफ़र का भी,
खूब आनन्द लो भाई,
अनन्त यात्री उस आत्मा का भी,
सदा सर्वदा ध्यान रखो भाई।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
ऐ दौलत! तुझे पाने की चाह में,
न जाने कितने लोग रोज़ निकलते हैं,
कुछ लोग भूख मिटाने निकलते हैं,
कुछ लोग भूख बढ़ाने निकलते हैं।
ऐ दौलत! तुझे पाने की चाह में,
न जाने कितने क़त्ल रोज होते है,
कुछ क़त्ल अरमानों के होते है,
कुछ क़त्ल भावनाओं के होते हैं।
ऐ दौलत! तुझे पाने की चाह में,
न जाने कितने रिश्ते रोज़ टूटते हैं,
कुछ रिश्ते स्वजनों से टूटते हैं,
कुछ रिश्ते व्यवसायिक टूटते हैं।
ऐ दौलत! तुझे पाने की चाह में,
न जाने कितने लोग रोज़ गिरते हैं,
कुछ अपनी ही नज़रों में गिरते हैं,
कुछ सामाजिक नज़रों में गिरते हैं।
ऐ दौलत! तुझे पाने की चाह में,
न जाने लोग क्या क्या बेंच देते हैं,
कुछ तो अपना ज़मीर बेंच देते हैं,
कुछ तो अपना वजूद ही बेंच देते हैं।
ऐ दौलत! तुझे पाने की चाह में,
न जाने लोग क्या क्या भूल जाते हैं,
कुछ तो जीवन जीना भूल जाते हैं,
कुछ तो इंसानियत से रहना भूल जाते हैं।
ऐ दौलत, तेरी जरूरत
हर किसी को है,
केवल उतनी ही,
जितनी एक गाड़ी के इंजन को,
डीज़ल या अन्य ईंधन की है।
लेकिन ईंधन के संग्रह में,
कोई इतना व्यस्त हो जाये,
कि कोई उम्र भर केवल,
ईंधन संग्रह ही करता जाए,
और जिंदगी के सफऱ में,
गाड़ी चलाना भूल जाए,
और उस ईंधन का सही उपयोग,
कर ही न पाए,
तो उसे क्या कहोगे?
ऐसे ईंधन या धन संग्रह को,
क्या कहोगे?
हम अमर नहीं हैं,
इस संसार मे आने की,
और जाने की तारीख़,
निश्चित है मेरे भाई,
ईंधन और धन खूब कमाओ भाई,
लेकिन जीवन के सफ़र का भी,
खूब आनन्द लो भाई,
अनन्त यात्री उस आत्मा का भी,
सदा सर्वदा ध्यान रखो भाई।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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