Tuesday, 4 December 2018

प्रश्न - 1- *प्रणाम दी* *व्यास पीठ का महत्व बताएं व क्या मर्यादा है ? उपवस्त्र के बारे मे जानकारी दीजिए ।*

प्रश्न - 1-  *प्रणाम दी*
*व्यास पीठ का महत्व बताएं व क्या मर्यादा है ? उपवस्त्र के बारे मे जानकारी दीजिए ।*

उत्तर - *वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिता:* - हम सब राष्ट्र को जगाने वाले पुरोहित है। जिसे गुरूदेव ने बनाया है। हम सबने स्वयं तप करके तो सिद्धि प्राप्त की नहीं है, इसलिए हम गुरूदेव के प्रतिनिधि रूप में व्यास पीठ पर बैठते हैं। गुरु की बिजली से स्वयं को जोड़कर स्वयं की चेतना प्रकाशित करते है, यज्ञ आयोजन में प्रवचन और गुरुसन्देश के माध्यम से जन चेतना जगाते है, उनकी चेतना में प्रकाश किरण पहुंचाते हैं। ध्यान रखिये- *हमारे मिशन का उद्देश्य लोगों को पांडित्य से प्रभावित करना नहीं है, हमारा उद्देश्य लोगों की चेतना को जप-ध्यान-जीवन साधना-स्वाध्याय से जोड़कर उन्हें सदा सर्वदा के लिए प्रकाशित करना है।*

अतः जिस प्रकार के लोगो के बीच यज्ञ करवाने जा रहे हैं, उनकी मानसिकता के अनुरूप उन्हें गुरु चेतना से जोड़ने हेतु एक पुस्तक पढ़कर उसके नोट्स बनाकर जाना चाहिए। 15 से 20 मिनट से ज्यादा प्रवचन नहीं होना चाहिए, अन्यथा जनता बोर हो जाएगी। कर्मकांड के बीच मे कहानियों के माध्यम से भी कुछ सन्देश दिए जा सकते हैं। पूर्ण यज्ञ प्रवचन सहित दो घण्टे के अंदर हो जाये ऐसी व्यवस्था करें। जिससे जिसके घर यज्ञ हो वो समय प्रबंधन कर सके।

बिन पढ़े डॉक्टर बनने की कल्पना करना भी बेकार है, उसी तरह बिना गहन युगसाहित्य के स्वाध्याय के यज्ञ पुरोहित बनकर सफ़लता की आशा बेकार है। डॉक्टर शरीर का चिकित्सक है और पुरोहित मानसिक चिकित्सक दोनों का सम्बन्धित विषय का गहन अध्ययन अनिवार्य है।

बल्ब फ्यूज हो तो न जलेगा, अर्थात श्रद्धा समर्पण न हुआ तो बात न बनेगी। दूसरों को सिखाना चाहते है उन नियमों का स्वयं के जीवन पर भी प्रभाव दिखना चाहिए।

यज्ञ से पूर्व व्यासपीठ पर बैठकर स्वयं के शरीर मे गुरु का आह्वाहन करें, यज्ञ के बाद मन ही मन विदाई कर दे।

पीले वस्त्र पहनकर और गायत्री मंत्र दुपट्टे को कंधे में रखकर ही यज्ञ करवाएं।

प्रश्न - 2-  *कुछ लोग विसर्जन के बाद व्यास पीठ पर बैठ कर खाना खा लेते हैं क्या ये उचित है ?*

उत्तर - व्यासपीठ पर बैठकर भोजन प्रसाद करना वर्जनीय है। व्यासपीठ कभी भी जूठी न करें। व्यासपीठ से उठकर अन्य जगह भोजन प्रसाद खाये।

डॉक्टर जिस तरह ऑपेरशन थियेटर में भोजन नहीं कर सकता, उसी तरह व्यासपीठ में बैठकर आप मानसोपचार हेतु युगशक्ति गायत्री और गुरुचेतना से जुड़े होते है। अतः उस स्थान से उठकर वह व्यासपीठ आसन हटाकर अन्यत्र जगह और दूसरे आसन में भोजन करें।

प्रश्न - 3- *कई लोग उपवस्त्र को ओढ़ कर सो जाते है पैरों में लगता रहता है क्या ये उचित है?*

उत्तर - गायत्री मंत्र दुपट्टा का उपवस्त्र पैर पर किसी भी हालत में स्पर्श नहीं करना चाहिए। कमर से ऊपर मंन्त्र लिखे उपवस्त्र का प्रयोग कर सकते हैं।

गायत्री मंत्र उपवस्त्र लेकर सोना सर्वथा अनुचित है, क्योंकि सोते वक्त असावधानी से मंन्त्र का चरण से स्पर्श हो सकता है।

प्रश्न - 4 - *दीदी प्रणाम🙏*
*क्या उपवस्त्र(गायत्री मंत्र दुपट्टा) पहनकर भोजन करना चाहिए और भोजन के पश्चात उससे हाथ मुंह पोछना चाहिए?*
*हमने बहुत से लोगो को देखा है ऐसे करते हुए..*

उत्तर - कंधे में सम्मान जिस तरह यग्योपवीत (जनेऊ) धारण करते है, उसी तरह मंन्त्र दुप्पटे रूपी उपवस्त्र की मर्यादा का पालन करना चाहिए। दोनों ही युग शक्ति गायत्री की शक्ति मंन्त्र शक्ति है।

अतः दोनों को धारण करके भोजन किया जा सकता है।

दुप्पटा किसी भी हालत में तौलिए की तरह मुंह पोंछने और हाथ पोंछने में प्रयोग नहीं किया जा सकता। इससे मन्त्रशक्ति का अपमान होता है।

अतः यदि किसी को ऐसा हाथ मुंह पोंछते देखे, तो मंन्त्र लिखित दुपट्टे के उपवस्त्र की महत्ता समझाते हुए उन्हें मना कर दें।

गुरूदेव ने मंन्त्र दुप्पटा सुरक्षा कवच हेतु उपवस्त्र रूप में दिया है। इसका सम्मान करें, क्योंकि इसमें मंन्त्र लिखा हुआ है।

उपवस्त्र धारण करना मतलब साक्षात महाकाल महाशक्ति (गुरुदेव माताजी) को अपने कंधे पर धारण करना । अपने आप को हनुमान की तरह अनुभव करना है ।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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