*समय की मांग - सामाजिक एकजुटता*
एक अंकल जी जो गुड़गांव में ही रहते है, उनका मेदांता हॉस्पिटल गुरुग्राम में घुटनों का ऑपरेशन हुआ। बेडरेस्ट पर ही थे और घर आये, उनकी पत्नी जो कि 60 वर्ष के आसपास थीं बाथरूम में फिसली और पैर फ़्रैक्चर हो गया। दोनों बहु बेटे बाहर रहते है, अब कल्पना कीजिये कि अपार्टमेंट वाले कल्चर में पड़ोस में कोई हाल चाल पूंछने भी नहीं आता। अतः अत्यंत दर्द और मुश्किल से दरवाजा खोलकर बाहर से लोगो को बुलाया, आंटी को उठाया। हॉस्पिटल ले के गए।
यह दर्दनाक हादसा बहुतों के साथ होता है।
एक गाना आपने कभी सुना होगा, खुद बेसहारा हो तो भी किसी का सहारा बनो।
एक वृद्ध को एक दूसरा वृद्ध नहीं उठा सकता, लेकिन वृद्धों का समूह तो सहायता कर सकता है। स्वयं समूह सहायता ग्रुप तो बना सकता है। एक दूसरे का सहारा बन सकते है।
उस सोसायटी के यूथ लोग भी इनकी मदद कर सकते हैं।
लेकिन स्वार्थकेन्द्रित दृष्टिकोण हमें आज़कल अकेला कर दिया है। अरे अभी भी न सम्हले और अहंकार में जिये तो मुश्किल बढ़ेगी, घटेगी नहीं।
सभी वृद्ध प्रत्येक दिन या सप्ताह में एक बार आसपास के एक जगह मिलें, किसी न किसी के घर आधे घण्टे उगते हुए सूर्य का ध्यान करते हुए गायत्री जप, 15 मिनट से 30 मिनट अखण्डज्योति पत्रिका या अन्य धार्मिक पत्रिका का स्वाध्याय कर लें, 5 दीपक जलाकर दीपयज्ञ करके भजन कीर्तन कर लें।
रोग की जड़ मन और पेट में होती है, जब आप साथ मिलकर हंसेंगे बोलेंगे और जप-ध्यान-स्वाध्याय करेंगे 50% रोग तो बिन दवाओं के ठीक हो जाएंगे। मन हल्का रहेगा तो तन में स्फूर्ति भी आएगी।
जब संगठन से जुड़े रहेंगे तो बीमारी या मुसीबत के समय लोग हालचाल पूंछते रहेंगे और जरूरत पड़ने पर मदद भी कर सकते हैं।
आपके बच्चो को आपकी सेवा करनी चाहिए, यह तो आवश्यक है ही, लेकिन आपको स्वयं अपनी सेवा हेतु व्यवस्था करनी चाहिए यह भी उतना ही आवश्यक है। आपने अपनी वृद्धावस्था की पूर्व तैयारी नहीं की तो पछतावे के अलावा कुछ हाथ न लगेगा।
धन के घमंड में युवावस्था खराब कर ली, अब उसी झूठे घमंड में वृद्धावस्था खराब न करें। आसपास लोगो से दोस्ती करें, स्वयं पहल करें, संगठन बनाये।
भगवान भी उसकी मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करते हैं:-
कुछ पुस्तकें अवश्य पढ़िये :-
👉🏼सार्थक एवं आंनन्दमय वृद्धावस्था
👉🏼जो पचपन के हो चले
👉🏼बुढा़पे से टक्कर लीजिए
👉🏼मरें तो सही पर बुद्धिमत्ता के साथ
👉🏼 अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
👉🏼 मैं क्या हूँ?
👉🏼 मित्रभाव बढ़ाने की कला
👉🏼 दृष्टिकोण ठीक रखे
👉🏼 भाव सम्वेदना की गंगोत्री
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
एक अंकल जी जो गुड़गांव में ही रहते है, उनका मेदांता हॉस्पिटल गुरुग्राम में घुटनों का ऑपरेशन हुआ। बेडरेस्ट पर ही थे और घर आये, उनकी पत्नी जो कि 60 वर्ष के आसपास थीं बाथरूम में फिसली और पैर फ़्रैक्चर हो गया। दोनों बहु बेटे बाहर रहते है, अब कल्पना कीजिये कि अपार्टमेंट वाले कल्चर में पड़ोस में कोई हाल चाल पूंछने भी नहीं आता। अतः अत्यंत दर्द और मुश्किल से दरवाजा खोलकर बाहर से लोगो को बुलाया, आंटी को उठाया। हॉस्पिटल ले के गए।
यह दर्दनाक हादसा बहुतों के साथ होता है।
एक गाना आपने कभी सुना होगा, खुद बेसहारा हो तो भी किसी का सहारा बनो।
एक वृद्ध को एक दूसरा वृद्ध नहीं उठा सकता, लेकिन वृद्धों का समूह तो सहायता कर सकता है। स्वयं समूह सहायता ग्रुप तो बना सकता है। एक दूसरे का सहारा बन सकते है।
उस सोसायटी के यूथ लोग भी इनकी मदद कर सकते हैं।
लेकिन स्वार्थकेन्द्रित दृष्टिकोण हमें आज़कल अकेला कर दिया है। अरे अभी भी न सम्हले और अहंकार में जिये तो मुश्किल बढ़ेगी, घटेगी नहीं।
सभी वृद्ध प्रत्येक दिन या सप्ताह में एक बार आसपास के एक जगह मिलें, किसी न किसी के घर आधे घण्टे उगते हुए सूर्य का ध्यान करते हुए गायत्री जप, 15 मिनट से 30 मिनट अखण्डज्योति पत्रिका या अन्य धार्मिक पत्रिका का स्वाध्याय कर लें, 5 दीपक जलाकर दीपयज्ञ करके भजन कीर्तन कर लें।
रोग की जड़ मन और पेट में होती है, जब आप साथ मिलकर हंसेंगे बोलेंगे और जप-ध्यान-स्वाध्याय करेंगे 50% रोग तो बिन दवाओं के ठीक हो जाएंगे। मन हल्का रहेगा तो तन में स्फूर्ति भी आएगी।
जब संगठन से जुड़े रहेंगे तो बीमारी या मुसीबत के समय लोग हालचाल पूंछते रहेंगे और जरूरत पड़ने पर मदद भी कर सकते हैं।
आपके बच्चो को आपकी सेवा करनी चाहिए, यह तो आवश्यक है ही, लेकिन आपको स्वयं अपनी सेवा हेतु व्यवस्था करनी चाहिए यह भी उतना ही आवश्यक है। आपने अपनी वृद्धावस्था की पूर्व तैयारी नहीं की तो पछतावे के अलावा कुछ हाथ न लगेगा।
धन के घमंड में युवावस्था खराब कर ली, अब उसी झूठे घमंड में वृद्धावस्था खराब न करें। आसपास लोगो से दोस्ती करें, स्वयं पहल करें, संगठन बनाये।
भगवान भी उसकी मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करते हैं:-
कुछ पुस्तकें अवश्य पढ़िये :-
👉🏼सार्थक एवं आंनन्दमय वृद्धावस्था
👉🏼जो पचपन के हो चले
👉🏼बुढा़पे से टक्कर लीजिए
👉🏼मरें तो सही पर बुद्धिमत्ता के साथ
👉🏼 अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
👉🏼 मैं क्या हूँ?
👉🏼 मित्रभाव बढ़ाने की कला
👉🏼 दृष्टिकोण ठीक रखे
👉🏼 भाव सम्वेदना की गंगोत्री
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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