Tuesday, 1 January 2019

प्रश्न - *क्या गुरूदेव के प्रतिनिधी को कभी अंहकारी होनी चाहिए?*

प्रश्न - *क्या गुरूदेव के प्रतिनिधी को कभी अंहकारी होनी चाहिए?*
*अगर कोई अपने आदर्श योग्य गुरूदेव का प्रतिनिधी हो लेकिन उनके अंदर कुट कुट कर अहम भरा हो तो वैसे व्यक्ती को आदर्श मानना उचित है या अनुचित|*
*कृप्या मार्गदर्शन दे|*

उत्तर - आत्मीय बहन, जब अहंकार का अंत होता है तब ही आत्मा में प्रकाश होता है। गुरु की कृपा बरसती है। *विद्या ददाति विनयम्* अर्थात ज्यों ज्यों अविद्या का नाश होता है और विद्या का प्रकाश प्रवेश करता है। व्यक्ति विनयी होता है। कच्चा आम अहंकार में तना होता है और स्वभाव में खट्टा होता है, लेकिन जैसे जैसे उसके अंदर परिपक्वता आती है, डाली झुक जाती है, और स्वभाव में मिठास आती है।

गुरूदेव से जुड़कर अनगढ़ ही सुगढ़ बनते है, सबमें परिवर्तन चल रहा है,   विनयी बनने में और अहंकार को छोड़ने में किसी को ज्यादा तो किसी को कम वक्त लगेगा। लेकिन परिवर्तन होगा जरूर ऐसा हमारा विश्वास है। फ़ल से लगा आम पकेगा जरूर यदि डाली से जुड़ा रहा तो..

छोटे बच्चे पिता के कंधे में चढ़कर  हाइट में ऊंचा होने का अहंकार करते हैं, क्योंकि उनके लिए वो ही बहुत बड़ी बात होती है, बड़े होने पर समझ विकसित होने पर उन्हें अपनी ही मूर्खता पर हंसी आती है।

इसी तरह परिजन प्रतिनिधि बच्चों  जैसी हरकत करते है, गुरुदेव के कंधे पर बैठे है और सर्वत्र निमित्त बनकर सम्मान पा रहे है, और गुरुदेव को भूलकर स्वयं को ही कर्ता समझ बैठते हैं, और श्रेय पाने पर अहंकार में कुप्पा हो जाते है। यह उनकी अविद्या का प्रतीक है।

जो लोग शक्तिपीठों में पद प्रतिष्ठा के लिए मन मुटाव करते है, वो वास्तव में बच्चो जैसी अज्ञानता करते है, क्योंकि भक्ति तो दास भाव मे ज्यादा लाभ देती है, काम करने वाले को पद प्रतिष्ठा की क्या जरूरत। पूरा विश्व युगनिर्माण के लिए उपलब्ध है, जहां चाहो वहां गुरु के निमित्त बनकर विनयी बनकर कार्य किया जा सकता है।

👉🏼 केला खाते वक्त उसे छीलकर खा लेते हो, और चावल के कंकड़ निकालकर उसे उपयोग में ले लेते हो। ऐसे ही यदि अहंकारी प्रतिनिधि योग्य है और बहुत एक्टिव है, बहुत कार्य कर रहा है। केवल उसमें एक कमी है कि वह अहंकारी है तो आप उसके अच्छे गुणों को आदर्श जरूर बनाये और अहंकारी पार्ट को न अपनाएं। उसकी तकनीक, कार्य करने की लगन, निष्ठा और कार्य को पूर्णता तक पहुंचाने की योग्यता वाले गुणों को उससे सीखिए और उसे अपना प्रेरणा स्रोत बनाइये। केवल अच्छे गुणों को अपनाइये और बुरे गुणों को छोड़ दीजिए।

ऐसा विनयी व्यक्ति किसी काम का नहीं जो अकर्मण्य और कामचोर हो।

विनयी के साथ युगनिर्माण में पूर्ण समर्पण के सतत कर्मठ और प्रयत्नशील होना ही सच्चे शिष्य की निशानी है। गुणग्राहक बनिये, जिसमे जो अच्छा हो अपनाइये और जो बुरा है उसे छोड़ दीजिए।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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