Wednesday, 7 August 2019

कविता - *क्या आप मानते बिना अच्छे सँस्कार के शिक्षा बेकार है?*

कविता - *क्या आप मानते बिना अच्छे सँस्कार के शिक्षा बेकार है?*

बिना अच्छे सँस्कार के,
जान लो शिक्षा बेकार है,
जैसे सही दिशा के बिना,
जीवन जीना बेकार है।

मोह में अंधे पिता धृतराष्ट्र ने,
और स्वार्थ में डूबे मामा कंस ने,
कौरवों में गढ़े नित्य कुसंस्कार,
उनके चरित्र चिंतन को दिया बिगाड़।

वहीं धर्मपालक माँ कुंती ने,
व धर्मरक्षक भगवान कृष्ण ने,
पांडवों में गढ़े नित्य शुभ सँस्कार,
उनके चरित्र चिंतन को दिया शुभ आकार।

एक ही गुरुकुल और,
एक ही गुरु द्रोणाचार्य से,
शस्त्र के साथ शास्त्र का,
ज्ञान पाया कौरवों औऱ पांडवों ने,
जाना धर्म क्या है?
और जाना अधर्म क्या है?
कर्मफ़ल का सुनिश्चित सिद्धांत क्या है?
विधि के विधान का मर्म क्या है?

लेक़िन शिक्षा धरी की धरी रह गयी,
और संस्कारों ने मन की प्रवृत्ति गढ़ दी,
दुर्योधन ने स्वीकार किया,
कि उसने पढ़ा है,
और वो जानता है,
कि धर्म क्या है? व अधर्म क्या है?
कर्मफ़ल का सुनिश्चित सिद्धांत क्या है?
फ़िर भी वह अधर्म चुन रहा है,
उसके बुरे परिणाम को भी समझ रहा है,
लेक़िन क्या करे,
घर पर मिले कुसंस्कार उस पर हावी है,
उसकी मनोवृत्ति,
उसकी प्रवृत्ति,
बरबस अधर्म को ही चुन रही है।

आज वर्तमान में,
मनुष्य शिक्षा दे रहा है,
अच्छे सँस्कार देने को भूल गया है,
इसलिए आज व्यक्ति,
एवं समाज की दुर्गति हो रही है,
दुर्योधन की तरह,
युवाओं की भी हालत बुरी है।

शिक्षित युवा जानते हैं,
नशा बुरा है, बहुत बुरा है,
यह एक हानिकारक ज़हर है,
फ़िर भी मनोवृत्ति कुत्सित हो गयी है,
बरबस युवा नशे को ही चुन रहे है,
बरबस स्वयं का विनाश ही चुन रहे हैं।

शिक्षित युवा जानते हैं,
वन है तो जीवन है,
जंगल है तो ही जीवन में मंगल है,
फ़िर भी कुसंस्कार उनपर हावी हैं,
प्रकृति संरक्षण में योगदान नहीं दे रहे हैं
बरबस केवल स्वार्थ चुन रहे हैं।

शिक्षित युवा जानते हैं,
माता-पिता से ही यह जीवन मिला है,
उनकी सेवा करना धर्म है,
उनका अनादर व उपेक्षा अधर्म है,
एक दिन हम भी बूढ़े होंगे,
जो बोयेंगे वही काटेंगे,
हम भी अपनी संतानों से,
 तभी सम्मान-सेवा पाएंगे,
जब हम सेवा-सम्मान,
 अपने माता-पिता को दे पाएंगे,
जब बूढ़े माता पिता की सेवा,
 हमसे न होगी,
तो हमारे बूढ़े होने पर सेवा,
हमारे बच्चो से कैसे होगी?
बच्चे जो देखेंगे,
वही तो सीखेंगे,
फ़िर भी कुसंस्कार उनपर हावी हैं,
बूढ़े माता-पिता को वृद्धाश्रम भेज रहे हैं,
स्वार्थी बन घोर पाप कर रहे हैं,
बरबस केवल अधर्म चुन रहे हैं।

शिक्षित युवा जानते हैं,
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है,
फ़िर भी समाज सेवा से विमुख है,
और स्वार्थ पूर्ति में लिप्त है,
स्वार्थी बन समाज भ्रष्ट कर रहे हैं,
बरबस केवल अधर्म चुन रहे हैं।

शिक्षित युवा जानते हैं,
जब पूर्वज मर गए,
तो हम भी अमर नहीं हैं,
एक न एक दिन हमें भी जाना है,
पूर्वज कुछ साथ ले जा न पाए,
हम भी कुछ ले जा न पाएंगे,
शरीर नश्वर है,
आत्मा शाश्वत है,
फ़िर भी ऐसे स्वार्थ में जी रहे हैं,
मानो सदा अमर हैं।
दोनों हाथों से सम्पत्ति ऐसे जोड़ रहे हैं,
मानो यह शरीर अमर है।
बरबस केवल अधर्म चुन रहे हैं,
बरबस केवल स्वार्थ में जी रहे हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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