Wednesday 1 April 2020

शांति, सुकून व आत्मतृप्ति पाने का मार्ग

*शांति, सुकून व आत्मतृप्ति पाने का मार्ग*

अनुभव की कलम से📝

पढ़ने में रुचि हमारी बचपन से थी, रोजी रोटी हेतु जॉब प्राथमिकता में होने के कारण वर्ष 2004 तक  इंजीनियरिंग पढ़ते रहे। ग्रेजुएशन व पोस्ट ग्रेजुएशन तक समाजशास्त्र और मनोविज्ञान पढ़ने का भी अवसर मिला क्योंकि यह मेरे पाठ्यक्रम का ही हिस्सा था।

परम् पूज्य गुरुदेव युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी का लिखा साहित्य बचपन से मुझे विरासत में मिला था। नित्य स्वाध्याय में था। जॉब मिलने के बाद युगऋषि का साहित्य का स्वाध्याय मेरी प्राथमिकता बन गयी। घर बनने के बाद प्रथम कार्य गुरुदेव के लिखे समस्त साहित्य की एक एक प्रति खरीदकर लाइब्रेरी बना ली।

सभी जगह लोगों को डिप्रेशन व अशांति में देखती थी, सोचा जो पढ़ नहीं पा रहे है साहित्य, उन तक युगऋषि का ज्ञान अमृत व उन पुस्तको के पॉइंट्स पहुंचा दूँ, कि अमुक समस्या का समाधान अमुक पुस्तक में मिलेगा। डॉक्टर तो गुरुदेब हैं कम्पाउंडर की जॉब कर लेती हूँ, उनके साहित्य के समाधान जन जन तक पहुँचा देती हूँ। कहते हैं दूसरों को मेहंदी लगाते हैं तो ख़ुद के हाथ में भी मेहंदी लगती है। दुसरो की सेवा करते हैं तो स्वतः की आत्म सेवा भी हो जाती है।

मुझे सांसारिक सुख का मार्ग तो नहीं मिला, लेकिन मुझे *शांति व आत्मतृप्ति पाने का मार्ग* मिल गया। पिछले 7 साल से व्यक्तिगत व पारिवारिक समस्याओं की निःशुल्क सलाहकार कब बन गयी पता ही नहीं चला। हज़ारों लोगों से जान पहचान बन गयी पता ही नहीं चला।

जब युगऋषि के दिखाए मार्ग में निःश्वार्थ बिना कुछ पाने की चाह में सेवा में निकले तो ऐसी अच्छी आत्माओं का सहयोग मिलने लगा कि हम हतप्रभ रह गए। परमात्मा किन किन रूपों में मदद करने लगा हमें पता ही नहीं चला, सब काम बनते चले गए।

गुरुग्राम सरकारी लाइब्रेरी का प्रोजेक्ट एक बिटिया लेकर आयी, पता नहीं था कि लाखों खर्च होने वाले इस प्रोजेक्ट को कैसे करेंगे? सिर्फ़ परमात्मा से प्रार्थना की और सबको रिकवेस्ट पोस्ट की, एक महीने के अंदर ढाई लाख का प्रोजेक्ट ढेर सारी दिल्ली एनसीआर में मानव शरीर बसने वाली देवताओं की मदद से पूरा हो गया।

ऐसे अनेक सेवा व साहित्य विस्तार के कार्य हैं, जो परमात्मा के अंग अवयवों की मदद से पूरे होते गए। लेकिन अभी वर्तमान कोरोना आपदा के वक्त की समस्या का जिक्र करना चाहती हूँ। लाकडाउन हुआ तो सोमवार को मन बैचेन हुआ कि भगवान हम क्या और कैसे करें? सबकी मदद तो नहीं कर सकते लेकिन कुछ की तो कर सकते हैं। कठिन प्रश्न यह था कि रियल में सही जरूरतमंद की लिस्ट जानना और उन तक आवश्यक मदद पहुंचाना। आर्त स्वर में प्रार्थना की, परमात्मा ने तुरन्त पुकार सुन ली। उन अच्छी आत्माओं के नाम उभरे जो झुग्गी झोपड़ी में बाल सँस्कार शाला चलाते हैं और उन्हें फोन किया। जैसे वो पहले से ही तैयार बैठे हों जनसेवा के लिए ऐसा प्रतीत हुआ। एक दिन में लिस्ट बन गयी। आश्चर्यजनक बात तो तब और हुई कि जितना खर्च था उतना डोनेशन देने को मदद करने वाली अच्छी देवात्माओं ने स्वयं मुझसे संपर्क किया। तीन दिन के अंदर 246 जरूरतमंद लोगों के घरों में लाकडाउन के दूसरे दिन ही मदद पहुँच गयी। तीन दिन के अंदर सब कार्य हो गया, मुझे पता भी नहीं चला कि कैसे इतनी जल्दी सब हो गया?

*निःश्वार्थ सेवा ही वह मार्ग है*, जिससे *शांति, सुकून व आत्मतृप्ति* सहज पायी जा सकती है। परिवार की हो या ऑफिस में हो या गली मोहल्ले में हो या कोई भी समाज हो। सर्वत्र यदि सेवाभाव से कार्य किया जाय तो शांति, सुकून व आत्मतृप्ति मिलती है।

कुछ भाई बहन मुझे सलाह देते हैं कि मुझे व्यक्तितगत व परिवार सलाहकार का कार्य अपने प्रोफेशन की तरह करना चाहिए। क्योंकि नियमित इसमें दो से ढाई घण्टे ख़र्च होते हैं, पर मैं उन्हें समझा नहीं पाती कि जब निःश्वार्थ निःशुल्क ईश्वरीय सेवा के रूप में सलाहकार का कार्य करते हैं, जब सामने वाले की समस्या हल हो जाती है, और वह मुझे हृदय से तृप्त हो कर धन्यवाद देता है। तो उसकी प्रशन्नता व तृप्ति वस्तुतः मुझे महसूस होती है। मेरे भीतर जो आनन्द महसूस होता है, जो शान्ति, तृप्ति, सुकून व आत्मतृप्ति मिलती है। वह अवर्णीय है। यह गूँगे द्वारा खाये गुड़ तरह है, जिसका स्वाद तो लिया जा सकता है मगर शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता।

दुनियां इतने सारे अच्छे लोगों से भरी है, यह मुझे सेवा कार्य करने के दौरान पता चल रहा है। इतने अच्छे लोग हैं जो स्वतः फोन करके मदद करते हैं और जब उन्हें धन्यवाद दो तो वह धन्यवाद व आभार लेना भी पसन्द नहीं करते। कहते हैं कोई ऐसा अच्छा कार्य हो तो बताना।

धरती पर ही स्वर्ग है, देवता जैसे लोग धरती पर उपलब्ध हैं, यह मैं पूरे विश्वास और अनुभव के साथ तथ्य तर्क व प्रमाण देकर कह सकती हूँ। मुझे ऐसे नर रूप के देवी देवता तुल्य भाई बहनों का अनवरत सहयोग मिलता है। मेरे ऑफिस में बहुत ही अच्छे लोग मेरे सहकर्मी है, मेरे परिवारजन इतने अच्छे हैं,  हम जहाँ अभी नई जगह शिफ्ट हुए हैं वहाँ भी दो देवतुल्य बहने मिल गयी हैं, मेरे तो आसपास स्वर्ग जैसी सृष्टि हो गयी है, मै गदगद हृदय से प्रशन्न मन से भगवान का धन्यवाद देती हूँ। मेरे जीवन को धन्य करने के लिए प्रभु धन्यवाद। मेरे प्रभु ने कलियुग में भी सतयुग की सृष्टि मेरे आसपास कर दी है। बाहर की तप्त परिस्थितियों में भी मन मे शीतल झरने की व्यवस्था कर दी है।

युगऋषि की पुस्तक *भाव सम्वेदना की गंगोत्री* में बताए सूत्रों को अपनाकर और जीकर आनन्द आ गया है। शांति, सुकून व आत्मतृप्ति का जो मार्ग इस पुस्तक में गुरुबर ने बताया था उसे अपनाकर सचमुच हम धन्य हो गए हैं। इस पुस्तक को कई बार पढ़े, इसके एक एक सूत्र को समझकर अपना लें। आपको भी शांति, सुकून व आत्मतृप्ति मिल जायेगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

4 comments:

  1. आपके प्रेरणादायक जीवन का सफर सुनकर बहुत अच्छा लगा। दीदी आपसे एक अनुरोध था:::अगर आप इस समस्या पर एक ब्लोग लिख दे तो मुझे बहुत मदद मिलेगी और आपका एहसान मुझ पर सदा बना रहेगा।बात यह है की मैं ICSE की 9 कक्षा ‌में हूं।सब कहते हैं कि अगर पूजा करते रहोगे तो पढ़ाई निचे गिर जाएगी। क्या आप मुझे ऐसा कुछ बता सकते हैं जिससे कि मैं परिक्षा में सबसे अधिक अंक प्राप्त कर सकूं---और साथ ही साथ अध्यात्म को भी साथ लेकर चल सकूं और अपने राह से न भटकूं और गुरुकार्य भी कर सकूं। आप और आपका परिवार सदा सुखी रहें।

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  2. M bhi kuch parshan hu. Apse advise chahta hu. Please help. ye mera email nhi h. ye phn meri mother ki email h my email is deepd0772@gmail.com and my number is 7210196629 m kese apse sampark kar sakta hu mam?

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    1. 8299117291 पर सम्पर्क कर लो

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