Thursday 4 January 2024

जयति जय गायत्री माता

 जयति जय गायत्री माता,

जयति जय गायत्री माता,

अज्ञानता के अंधेरे को हटा के,

कर दो माँ ज्ञान का उजियारा...


जयति जय गायत्री माता...


तेरी कृपा से इच्छाओं वासनाओं के,

जंगल को जड़ से उखाड़ सकूं,

निर्बीज समाधिस्थ होने के,

पथ पर अनवरत बढ़ सकूं..


जयति जय गायत्री माता...


संसार के कीचड़ से ऊपर उठकर,

कमल की तरह खिल जाऊं,

मोहबन्धन सारे काटकर,

तेरे भक्ति योग्य बन जाऊं...


जयति जय गायत्री माता...


मैं चांद की तरह तेरी रौशनी से रौशन हो जाऊं,

संसार में रहकर भी मैं तुझमें ही समाहित हो जाऊं ,

मेरी चेतना दर्पण की तरह परिष्कृत निर्मल हो जाए,

मुझमें माँ तेरा ही तेरा सिर्फ प्रतिबिंब नज़र आये....


जयति जय गायत्री माता...


कण कण में व्याप्त अग्निवत माता,

मेरी जीवन आहुति स्वीकार करो,

मेरी श्वांस प्रश्वास द्वारा,

हर पल प्राणों की आहुति स्वीकार करो..


जयति जय गायत्री माता...


मेरा मन ही तुलसी माला बन जाये,

मन के मनके से ही गायत्री जप हो जाये,

तेरे अनुशासन में मेरी जीवनचर्या चले,

मेरा रोम रोम भी गायत्रीमंत्र जपे..


जयति जय गायत्री माता...


मेरा मैं मिटकर ही,

बस तू ही तू शेष बचे,

मेरा मुझमें कुछ न दिखे,

बस तेरा ही प्रतिबिंब मुझमें दिखे...


जयति जय गायत्री माता...


💐विचारक्रांति, गुरुग्राम गायत्री परिवार

Tuesday 2 January 2024

निःशुल्क ज्योतिष - इंटरनेट यूजर्स भविष्य दर्शन स्वयं का करें कि आपकी चेतना किस ओर रूपांतरित हो रही है

 निःशुल्क ज्योतिष - इंटरनेट यूजर्स भविष्य दर्शन स्वयं का करें कि आपकी चेतना किस ओर रूपांतरित हो रही है...


मोबाईल इंटरनेट पर आप 24 घण्टों में से क्या सबसे अधिक देख रहे हैं, उस कंटेंट में से अधिक का प्रकार क्या है? उन कंटेंट को समय अनुसार % दे दीजिए, उदाहरण 


न्यूज़ - 1%

नेताओं के भाषण 1%

फ़िल्मी गॉसिप 0%

देश विदेश की चर्चा 3 %

भक्ति कथाएं 20%

भजन 20%

आध्यात्मिक प्रवचन 30%

बिज़नेस ज्ञान 10%

अपने कार्य क्षेत्र की पढ़ाई 10%

स्वास्थ्य के वीडियो 5%


जिस कंटेंट की मात्रा अधिक है, जिसमें आप रस ले रहे हो आपका मन उस ओर रूपांतरित हो रहा है, आपकी भाव दशा उस ओर बन रही है। उपरोक्त केस में व्यक्ति आध्यात्मिक रूपांतरित हो रहा है। जैसी संगति वैसी रंगत, जैसे कंटेंट इंटरनेट में देखोगे पढ़ोगे और सोचोगे वैसे बनते जाओगे। अतः इंटरनेट यूज़र्स सावधानी से स्मार्ट फोन चलाएं। फोन स्मार्ट है कृपया आप फोन चलाते समय होशपूर्वक विवेक के साथ फोन स्मार्ट यूजर्स बनकर चलाये। अन्यथा गलत कंटेंट का अधिक सेवन आपको तबाह और बर्बाद कर देगा, अच्छा कंटेंट आपको आबाद भी कर देगा।


इंटरनेट कंटेंट मानसिक भोजन है, इसे स्वास्थ्यकर एवं उपयोगिता समझ के लें।


💐विचारक्रांति, गुरुग्राम गायत्री परिवार

एक स्वप्न चितारोहण का.. जो एक न एक दिन सत्य अवश्य होगा...

 एक स्वप्न चितारोहण का..

जो एक न एक दिन सत्य अवश्य होगा...


एक दिन मैंने स्वप्न में,

मेरे शरीर की मृत्यु को देखा,

शरीर के बंधन से,

स्वयं को आज़ाद होते देखा...


शरीर से निकल कर,

बड़ा हल्का महसूस हो रहा था,

जितना भारी और उलझा शरीर में था,

उतना ही हल्का और सुलझा महसूस हो रहा था...


मैंने देखा मेरे परिवार वाले रो रहे थे,

एक एक करके मेरे नाते रिश्तेदार भी आ रहे थे,

आस पड़ोसी और जानने वालों का जमघट लग गया था,

जो आ न सका वह फ़ोन पर शोक संदेश दे रहा था...


जो मुझपर लोगों का क्रोध, ईष्र्या, जलन और डाह थी,

वो मेरे मृत शरीर के साथ ही मर गयी थी,

वह मुख भी बड़ा अच्छा अच्छा मेरे लिए बोल रहे थे,

जो कभी मुझे गाली देते देते न थकते थे...


पंडित जी ने क़फ़न मंगवाया,

मेरे शरीर को नहलाकर नए वस्त्र से सजाया,

ऊपर से क़फ़न ओढ़ाया,

राम नाम सत्य का सबने जयकारा लगाया...


राम नाम ही सत्य है, क्यों मरने के बाद ही बोलते हैं,

अरे यह ब्रह्म सत्य जीते जी क्यों नहीं सोचते है..

अर्थी उठाई गई और गाड़ी में डाल गंगा घाट ले जाई गई,

लकड़ी घी और अर्थी का सामान खरीदा गया..


ख़र्च कितना हुआ सब हिसाब लगा रहे थे,

आगे कितना होगा उसकी व्यवस्था भी बना रहे थे,

बेटे को बुलवाया गया और मुखाग्नि दिलवाया गया,

कई फ़ीट ऊंची आग की लपटें जली,

धूं धूं करते हुए शरीर की चमड़ी जली...


चमड़े का आवरण जलते ही,

हड्डियों के ढांचे दिखने लगे,

कमज़ोर शरीर के अंग जलकर खाक हो गए,

मजबूत हड्डियाँ शेष रह गयी...


अग्नि शांत हुई तो,

राख और हड्डियों को मटके में भरवाया,

वहीं पर पंडितों ने,

पिंडदान का उपक्रम करवाया...


राख और हड्डियों को,

गंगा जल में डाल दिया गया,

जल में राख तो घुल गयी,

मछलियों ने हड्डियों का स्वाद लिया...


घर पर तेरह दिन का शोक चला,

मेरी फ़ोटो पर पुष्प और माला चढ़ा,

दुःखी पतिदेव और बेटे के आंखों से,

धीरे धीरे आँशु सूखने लगे,

प्रियजनों के आँखों की नमी भी,

धीरे धीरे हटने लगी...


एक दीवार पर फ़ोटो कई महीनों तक टँगी रही,

पतिदेव के जाने के बाद वह फ़ोटो भी हट गई,

किसी अल्बम या कहीं स्टोर में कोई फ़ोटो शेष है,

मेरे अस्तित्व को अब याद करने की किसी को कोई फुर्सत नहीं...


जिस नाम, प्रसंशा और धन-धान्य की जिंदगी भर जोड़ा,

वह तो मेरे शरीर के मरने पर किसी काम न आई,

पति बच्चे परिवार भी श्मशान तक ही साथ आये,

मेरे शरीर को जलाकर वो फिर संसार में लौट आये...


अब पुनः नए शरीर में प्रवेश का आदेश हुआ है,

किसी माँ के गर्भ का नया पता मिला है,

मुझे पता है नए जन्म में पूर्व जन्म में क्या हुआ सब भूल जाऊंगी,

पुनः माया के जाल में फंस जाऊंगी...


आज जब नींद खुली तो बड़ा आंनद आया,

इस शरीर में रहकर भी बड़ा हल्का पन महसूस हुआ,

मैं आत्मा अनन्त यात्री हूँ, यह शरीर सराय है यह याद आया,

आत्मानुभूति में परम् आंनद आया. ..


💐विचारक्रांति, गुरुग्राम गायत्री परिवार

कच्ची भक्ति तेल सी होती है, दिखावे से भरी होती है,

 कच्ची भक्ति तेल सी होती है,

दिखावे से भरी होती है,

भक्ति सागर में ऊपर तैरती रहती है,

आत्मा को परमात्मा में मिलने नहीं देती है...


सच्ची भक्ति दूध सी होती है,

निःश्वार्थ प्रेम से भरी होती है,

भक्ति सागर में मिलते ही घुल जाती है,

आत्मा परमात्मा में विलीन हो जाती है...


सच्चा भक्त ईश्वरीय सागर को,

अपने सीमित कप में भरने की कोशिश नहीं करता,

वह तो उस असीमित में टूटकर,

विलीन होने में विश्वास रखता है...


ईश्वर का मिलना सरल है,

किंतु निर्मल मन की पात्रता पाना कठिन है,

ईश्वरीय चेतना का स्वयं में अवतरण सरल है,

किंतु स्वयं को इच्छाओं-वासनाओं से ख़ाली करना कठिन है...


ग्लास को वस्तु से खाली करो,

हवा भर जाएगी,

मन को इच्छाओं-वासनाओं से ख़ाली करो,

ईश्वरीय चेतना उतर जाएगी...


~ श्वेता चक्रवर्ती

गायत्री परिवार, गुरुग्राम हरियाणा

गुरु की शरण में मुक्ति है मोक्ष है

 *गुरु की शरण में मुक्ति है मोक्ष है*


हे गुरुदेव,


अब न कुछ पाने की चाह है,

अब न कुछ खोने का डर है,

तुम्हारी शरण में मिल गया अब सब कुछ है,

तुम्हारे चरणों में ही मिल गया आनन्द परम आनंद है..


अब न पूर्ण स्वास्थ्य की चाह है,

अब न गम्भीर बीमारी का भय है,

शरीर नश्वर और अब आत्मा ही सब कुछ है,

जीवन जीने की कला तुम्हारी ही शरण है..


अब न जीने की चाह है,

अब न मृत्यु का भय है,

तुम्हारी शरण में मिल गया अब सब कुछ है,

तुम्हारे चरणों में ही मिल गया जीवंत अमरत्व है..


अब न नाम व प्रशंशा पाने की चाह है,

अब न बदनाम होने का भय है,

तुम्हारी शरण में मिल गया अब सब कुछ है,

तुम्हारे शिष्य बनने का सुख ही सर्वोत्तम है..


जब तक श्वांस है,

तुम्हारे निमित्त बनकर अब हर कर्म है,

अब तुम्हें समर्पित यह जीवन है,

शिष्यों$म का भाव ही अब मुक्ति है मोक्ष है...


विचारक्रांति, गुरुग्राम गायत्री परिवार

मैं स्वार्थी बन गया हूँ, स्व के अर्थ को ढूंढने में लग गया हूँ,

 मैं स्वार्थी बन गया हूँ,

स्व के अर्थ को ढूंढने में लग गया हूँ,

मैं स्वाध्यायी हो गया हूँ,

स्व के अध्ययन में लग गया हूँ...


मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ,

यह सवाल हल कर रहा हूँ,

स्व के अध्ययन में इस कदर खो गया हूँ,

कि अब मैं पुनः विद्यार्थी हो गया हूँ...


मन की कंदराओं में बैठ गया हूँ,

बाहरी दुनियां से कट गया हूँ,

खुद में इस कदर खो गया हूँ,

कि मैं मेरी पहचान ही भूल गया हूँ...


अब कोई शिकवा गिला किससे करूं?

अब कुछ पाने की आस क्यों करूं?

जब *मैं* ही मर गया तो,

अब मान-सम्मान की आस किसके लिए करूँ?


पहले ब्रह्म समुद्र को अपने छुद्र पात्र में भरने निकला था,

दोबारा स्वयं को ब्रह्म समुद्र में विसर्जित होने को निकला था,

दोनों ही बार मैं ग़लती कर रहा था,

अरे क्योंकि मैं तो ब्रह्म समुद्र के भीतर ही रह रहा था...


मछली की तरह ही तो मैं भी हूँ,

मछली जल के अंदर और जल भी मछली के अंदर...

मैं ब्रह्म जल के अंदर और ब्रह्म जल भी मेरे अंदर,

मुझे ब्रह्म को ढूढ़ना नहीं है अरे मुझे तो बस उसे जानना है,


अब ब्रह्म को अनुभूति करने की साधना में लग गया हूँ,

हाँ अब मैं साधक बनने की साधना में लग गया हूँ,

अंतर्मन की यात्रा करने लग गया हूँ,

हाँ मैं शायद शरीर से संसार में हूँ मगर से बहुत दूर निकल गया हूँ...


💐विचारक्रांति, गुरुग्राम गायत्री परिवार

हे मन, तू सुधर जाए तो, मुझे मुक्ति इस जन्म में ही मिल जाये,

 हे मन, तू सुधर जाए तो,

मुझे मुक्ति इस जन्म में ही मिल जाये,

हे नज़र, तू बदल जाये तो,

मुझे इस धरती पर ही स्वर्ग नज़र आये...


इच्छाओं वासनाओं के जंजीरों से,

हे मन, तूने हमें बांध रखा है,

आशा अपेक्षाओं के मकड़जाल में,

हे मन, तूने हमें उलझा रखा है...


हे मन, तू इच्छाओं वासनाओं से मुक्त हो जाए तो,

मुझे मुक्ति इस जन्म में ही मिल जाये,

हे मन, तू देवता बन जाये तो,

मुझे इस धरती पर ही स्वर्ग नज़र आये...


यह शरीर गर्भ से जन्मा हैं,

अन्न जल से पोषित हुआ हैं,

पुनः शरीर एक मुट्ठी राख में बदल जाएगा,

जब चिता में मृत्यु पर्यंत जलाया जाएगा...


हे मन, यह शरीर मेरी सराय है,

इसके मोह में मत उलझना,

मैं अजर अमर अनन्त आत्मा हूँ,

तू सदा यह याद रखना....


हे मन, तू मेरा सेवक है,

हे शरीर, तू मेरा वाहन है,

इस संसार की यात्रा में,

तुम दोनों मेरा साथ देना...


हे मन, तू सुधर जाए तो,

मुझे मुक्ति इस जन्म में ही मिल जाये,

हे नज़र, तू बदल जाये तो,

मुझे इस धरती पर ही स्वर्ग नज़र आये...


💐विचारक्रांति , गुरुग्राम गायत्री परिवार

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...