Tuesday 29 January 2019

*10 सदवाक्य - जीवन के सौंदर्यीकरण के लिए*..

*10 सदवाक्य - जीवन के सौंदर्यीकरण के लिए*..


1- गुलाब का फूल किसी को सुगंध और किसी को दुर्गंध नहीं दे सकता। क्योंकि उसमें केवल सुगंध भरी है, सुगंध ही बाँट सकता है। यदि तुम्हारे अंदर सिर्फ़ प्रेम भरा है तो तुम किसी से नफ़रत कर ही न सकोगे। जिस हृदय रूपी कप में जो भरा है वो छलकेगा।

2- मिस्टर परफेक्ट और मिस परफेक्ट विवाह के लिए ढूंढने वाले इस जन्म में कुंवारे ही रहेंगे, क्योंकि परफेक्ट प्रजाति इस संसार में पाई नहीं जाती। परफेक्शन एक अपेक्षा है न कि कोई हक़ीक़त, एक व्यक्ति के अनुसार जो परफेक्ट है दूसरे के लिए वही अयोग्य हो सकता है।

3- तीन शरीर - स्थूल, सूक्ष्म और कारण सबके पास है। अच्छी बात यह है कि स्थूल शरीर की तरह दोनों अन्य शरीर में आँख हैं, बस फ़र्क़ इतना है कि दोनों शरीर सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर की आँखें बंद हैं। इसलिए सूक्ष्म जगत और कारण जगत पहेली बना हुआ है।

4- जिन्हें अपने जीवनसाथी में बुराईयों की खाई के अतिरिक्त कुछ नहीं दिखता और स्वयं में अच्छाइयों का पहाड़ दिखता है, उन्हें मनःचिकित्सक की सख्त जरूरत है।

5- कुछ लोग मक्खी होते हैं, सर्वत्र गंदगी ढूँढकर उसपर बैठते हैं, कुछ मधुमक्खी होते हैं, पुष्प ढूढ़कर उसपर बैठते हैं?आप क्या हो स्वयं विचारो? आप जिस प्रकार के प्रोग्राम, फ़िल्म, साहित्य पसन्द करते हैं, जैसा चिंतन करते है, जैसे फेसबुक और व्हाट्सएप पर पोस्ट लिखते,पढ़ते और फारवर्ड करते हैं, वो आपके मक्खी या मधुमक्खी के व्यक्तित्व को बताते है।

6- पूजन, तप, भोजन, पढ़ाई, स्नान, जॉब, आत्मकल्याण के कार्य, लोककल्याण के कार्य, बच्चे के प्रति उत्तरदायित्व और जीवनसाथी के प्रति उत्तरदायित्व सब अलग हैं, जब जो कर रहे हो उसमें दूसरे की मिक्सिंग मत करो। ऑफिस को घर और घर को ऑफिस मत बनाओ। पूजन और भोजन मिक्स मत करो। जीवनसाथी के प्रति उत्तरदायित्व और अध्यात्म के प्रति उत्तरदायित्व दोनों के निर्वहन को अलग अलग पूर्ण निष्ठा से करो। मिक्स मत करो। किसी को उपेक्षित मत करो।

7- टाटा बिड़ला हो या अम्बानी, दुःखी दरिद्र हो या भिखारी सबको प्रत्येक दिन 86400 second वक्त ही मिलता है।सही उपयोग से सफल बना जा सकता है। समय धन है, इसे व्यर्थ मत जाने दो। इसके प्रत्येक पल का सदुपयोग करो।

8- मोक्ष वो है कि शरीर जिंदा रहे और इच्छाएँ मर जाएं, कुशल ड्राइवर वो है जो मन की गाड़ी का स्टीयरिंग स्वयं सम्हाले।

9- सदा युवा और आत्मिक सौंदर्यीकरण का उपाय - रोज कुछ अच्छा पढ़ो, कुछ नया सीखो, कुछ अच्छा सुनो और देखो, रोज किसी अच्छी बात का चिंतन करो। पुष्प की तरह खुशियां बिखेरो। रोज़ ध्यान करो, स्वयं के जीवन को साक्षी भाव से देखो और स्वयं की पूर्णता के लिए प्रयत्नशील रहो।

10- जिस दिन स्वयं को जीत लोगे, जिस दिन स्वयं को जान लोगे। यह संसार स्वतः तुम्हारे कदमों में होगा और दुनियाँ स्वतः जीत लोगे।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *महापुरूषों और संतों के जीवन का अंत बीमारियों से क्यों?*

प्रश्न - *महापुरूषों और संतों के जीवन का अंत बीमारियों से क्यों?*

उत्तर - आत्मीय बहन, आईए इसे प्राचीन धर्म ग्रन्थों से समझते हैं:-

श्रीराम स्वयं भगवान थे, उनकी धर्म पत्नी श्रीसीता जी और उनके अनन्य सेवक श्रीलक्ष्मण जी दोनों का ही उन्होंने त्याग किया। धोबी और राजनीतिक परिस्थिति के कारण श्री सीता जी का त्याग करना पड़ा, यमराज और दुर्बासा ऋषि के श्राप के घटनाक्रम के कारण लक्ष्मण जी का त्याग करना पड़ा। सभी को मृत्यु वरण के लिए विभिन्न समाधि लेनी पड़ी, किसी को जल तो किसी को थल समाधि।

भगवान श्री कृष्ण पूर्व जन्म के बलि रूपी बहेलिए के तीर से मृत्यु वरण किया। पूरा खानदान उनका गृहयुद्ध में मृत्यु को पाया।

भगवान बुद्ध की मृत्यु जहर से हुई।

महर्षि रमण, ठाकुर रामकृष्ण, विवेकानंद, भगवान आदि शंकराचार्य इत्यादि गम्भीर बीमारियों के माध्यम से मृत्यु का वरण किये।

मृत्यु को कोई बहाना चाहिए होता है शरीर रूपी वस्त्र को नष्ट करके आत्मा को मुक्त करने के लिए।

यह सभी पूजनीय हैं, इन्होंने जो श्रेष्ठ जीवन जिया और श्रेष्ठ कर्म किया उसके लिए इन्हें पूजा जाता है। मृत्यु कैसे और किस कारण से हुई इसकी परवाह इन्होंने नहीं की और आप भी मत कीजिये।

मौत अटल सत्य है, आध्यात्मिक हो या संसारी दोनों को आएगी। संसारी अपने प्रारब्ध भुगतते हैं और आध्यात्मिक महापुरुष दूसरों के प्रारब्ध भुगतते हैं। लोन यदि दुसरो का चुकाओगे तो अपना पैसा तो देना पड़ेगा। इसी तरह दूसरों को आशीर्वाद देकर दुःख दूर करोगे तो स्वयं का तप तो ख़र्चना पड़ेगा। कुछ अंश तकलीफ़ को झेलना पड़ेगा। कभी कभी महापुरुष सन्तों के अत्यंत प्रिय शिष्यों को भी गम्भीर बीमारियों को झेलना पड़ता है क्योंकि वो गुरु की पीड़ा बंटाने में मदद करते है। गुरु सबकी पीड़ा हरते है और ऐसे शिष्य गुरु की पीड़ा हरते हैं।

अतः महापुरुषों के जीवन का अंत कैसे हुआ इससे फ़र्क़ नहीं पड़ता, वो जब तक जिये रौशन रहे और दूसरों के जीवन के अंधेरे को मिटाते रहे इस बात से फ़र्क़ पड़ता है। आत्मा ने जिस शरीर रूपी वस्त्र को पहना उसका सदुपयोग किया। अब यह फट गया इसका समय पूरा हुआ, इसे छोड़ दिया अब नए सफ़र को नए शरीर रूपी वस्त्र के साथ करने के लिए चली गयी।

जीवन के रंगमंच पर आपके कार्य को हमेशा याद किया जाता है। चाहे रोल छोटा हो या बड़ा, वो प्रकाशित करने वाला प्रभावी होना चाहिए। लम्बी उम्र के साथ निकृष्ट कार्य और निकृष्ट जीवन से उत्तम है कम उम्र के साथ श्रेष्ठ कार्य और श्रेष्ठ जीवन।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

महापुरुषों का प्रारब्ध = साधना से अर्जित शक्ति +निष्काम कर्म - दूसरे के कष्टों को दूर करने में खर्च की साधना की जमा पूंजी।

*उदाहरण के लिए ठाकुर रामकृष्ण परमहंस का गले में कैंसर*

Sunday 27 January 2019

प्रश्न - *क्या हमें प्राचीन आदर्शों को मानते हुए पति को परमेश्वर समझना चाहिए,

प्रश्न - *क्या हमें प्राचीन आदर्शों को मानते हुए पति को परमेश्वर समझना चाहिए, और उनपर समस्त जीवन न्योछावर करके उनके बुरे व्यवहार और प्रताड़ना को मौन सहना चाहिए? उनकी अनुमति हो तो ही जॉब करें और न हो तो पढ़े लिखे होने के बावजूद क्या घर ही सम्हालना चाहिए? क्या अनैतिक पर प्रतिवाद करने पर पाप लगेगा? लम्बी आयु के लिए व्रत वगैरह करना चाहिए? वर्तमान युग के लिए समाधान दीजिये*

उत्तर - आत्मीय बहन, युगऋषि परम पूज्य गुरूदेव ने नारियों के उत्थान और जागरण पर दो वांगमय *इक्कसवीं सदी नारी सदी(62)* और *यत्र नारयन्ते पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता(47)* लिखे हैं। गृहस्थी और विवाह पर अनेक पुस्तक के साथ दो वांगमय *गृहस्थ एक तपोवन(61) और   विवाहोंन्माद समस्या और समाधान(60)* लिखा है।

प्राचीन आदर्श उस वक्त के परिस्थिति के अनुसार लिखे गए थे, जब पत्नी गृह लक्ष्मी और अर्धांगिनी की तरह पहले प्रतिष्ठित होती थी तब पुरुष गृह स्वामी और परमेश्वर की तरह माना जाता था। बिन आधुनिक मशीनों के खेत खलिहान और व्यापार मात्र ही उपार्जन के माध्यम थे, यातायात के वाहन न के बराबर थे और पुलिस व्यवस्था भी न थी। कठोर शारीरिक श्रम पुरुष ने अपने हाथ में लिया और कठोर आध्यात्मिक श्रम और गृह व्यवस्था का उत्तरदायित्व स्त्री ने लिया, सतयुग था और घर प्रेम सहकार से बना गृहस्थाश्रम था, एक तपोवन था, केवल भोजन और जरूरी जीने के साधन जुटाए जाते थे, कोई दिखावा नहीं होता था। दोनों एक दूसरे के पूरक बने। तब कोई अन्य धर्मों मुस्लिम, क्रिश्चियन, बौद्ध इत्यादि का जन्म भी नहीं हुआ था।

मध्ययुगीन काल मे नए नए धर्मों का उदय हुआ और धर्म के नाम पर युद्ध और अनाचार बढ़ गया। जिसके कारण असुरक्षा बढ़ी और पर्दा प्रथा जैसी कुरीति ने हिंदू धर्म मे प्रवेश किया, और लड़कियों की शिक्षा पर रोक लगा दिया। वह मात्र घर गृहस्थी तक प्रतिबंधित कर दी गईं। अतः स्त्री को पुरुष की अर्द्धांगिनी के पद से डिमोट करके पति की दासी बना दिया गया। केवल नारियल लेकर यज्ञ की पवित्र अग्नि के समक्ष पवित्र शुभविवाह को दहेज़ प्रथा का श्राप और ग्रहण लग गया।

वर्तमान युग में आर्थिक उपार्जन के अनेक साधन है, यातायात की अत्याधुनिक व्यवस्था है, कृषि में भी आधुनिक मशीनों ने अपना वर्चस्व स्थापित किया है। अब लड़के पहले की तुलना में आर्थिक उपार्जन हेतु कम शारीरिक मेहनत और ज्यादा बौद्धिक मेहनत करते हैं, बौद्धिक मेहनत स्त्रियां पुरुषों के बराबर बड़े आराम से कर सकती हैं। स्त्रियां भी घर गृहस्थी आटा पीसने, धानकूटने और जलसरोवर से लाने जैसे कष्टसाध्य श्रम नहीं करती, अतः अब किचन पुरुष भी बड़े आराम से सम्हाल सकते हैं। 

*प्राचीन ग्रन्थ रामायण के संदर्भ के अनुसार*-
1- यदि पति मर्यादापुरुषोत्तम राम की तरह है और श्रेष्ठ कर्म कर रहा है तो श्रीसीता जी बन जाओ अपना सर्वस्व न्योछावर कर दो और हर कदम पर उसका साथ दो, ऐसे पति को परमेश्वर मानो।

2- यदि पति राक्षस रावण की तरह है और निम्न कर्म कर रहा है तो मन्दोदरी बनो और उसका सदा विरोध करो। उसे पति परमेश्वर कदापि मत मानो। जो पर स्त्री पर नजर रखता हो उस पर सर्वस्व कभी न्योछावर मत करो। पहले उसे साम-दाम-दण्ड-भेद से सुधारो, राक्षस से देवता  बनाओ। जब वो सुधरकर देवता बन जाये तब रूल नम्बर 1 अप्पलाई करो।

3- यदि पति महान तपस्वी है तो पत्नी अनुसुइया की तरह सती और तपस्विनी बनो और केवल पति की पूजा से सब कुछ हासिल कर लो, उस पर सर्वस्व न्योछावर कर दो। क्योंकि समर्पित सती बनते ही पति के पास का समस्त तपबल तुमतक स्वतः पहुंच जाएगा।

4- यदि पति आम नागरिक है और साधारण कर्म कर रहा है। तो उसे साधारण सिर्फ पति मानो और उसे परमेश्वर की तरह मत पूजो। साधारण घर गृहस्थी प्रेम सहकार से चलाओ। पत्नी को पति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर बाहर जॉब करना चाहिए और पति को पत्नी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर घर गृहस्थी में हाथ बटाना चाहिए। पति को पत्नी के लिए तप-व्रत करना चाहिए और पत्नी को पति के लिए तप-व्रत करना चाहिए।

पति की आकृति पुरुष की है, केवल इस आधार पर परमेश्वर की उपाधि नहीं दी जा सकती। पति के प्रकृति स्वभाव और कर्म से देवता जैसा है, तब ही वह परमेश्वर की तरह स्वीकृत करके पूजनीय होता है।

पत्नी को पुरुषार्थ से गृहस्थ एक तपोवन बनाना चाहिए और पति को मर्यादा पुरुषोत्तम राम बनाना चाहिए तभी पत्नी को सती सीता बनकर अपना सर्वस्व न्योछावर करना चाहिए।

अतः यह नियम पतियों पर भी लागू होता है, *यत्र नारयन्ते पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता* ये वाली कहावत आंख बंद करके नहीं मानना चाहिए। पत्नी आकृति से स्त्री है केवल इसलिए उसे श्री लक्ष्मी की तरह पूजना नहीं चाहिए और उस पर सर्वस्व न्योछावर नहीं करना चाहिए। यदि स्त्री प्रकृति-स्वभाव और कर्म से देवी है, त्याग प्रेम सेवा और सहयोग की मूर्ति है तो ही लक्ष्मी रूप में स्वीकृत है और पूजनीय है। ऐसी तपस्विनी कर्मयोगी देवी स्त्री की पूजा से देवता वास करते है, इनका अपमान दुःख और दरिद्रता लाता है।

स्वयं तप करके अग्निवत देवता जैसे बनिये औऱ जीवनसाथी को प्रेम और अपने तपबल से अपने जैसा बनाइये। जिस प्रकार कैसी भी और किसी भी वृक्ष की समिधा हो अग्नि में पड़कर वह केवल अग्नि ही हो जाती है। बदल ही जाती है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

विवाह दिवस सँस्कार, पुस्तक- युग सँस्कार पद्धति से और दीप यज्ञ पुस्तक - युग यज्ञ पद्धति से

विवाह दिवस सँस्कार, पुस्तक- युग सँस्कार पद्धति से और दीप यज्ञ पुस्तक - युग यज्ञ पद्धति से


पार्ट 1

https://youtu.be/Y_7VUX1oHMA

पार्ट 2

https://youtu.be/yqX-0pxtTQQ

पार्ट 3

https://youtu.be/aQUuVKlHFtw

Thursday 24 January 2019

प्रश्न - *प्रणाम दीदी है बहुत से लोग अध्यात्म और राजनीति को मिला देते हैं क्या यह सही है

प्रश्न - *प्रणाम दीदी है बहुत से लोग अध्यात्म और राजनीति को मिला देते हैं क्या यह सही है मैं मानती हूं कि माला जाप इत्यादि के बाद राष्ट्र निर्माण के लिए कामना करना उचित है एक पार्टी का अत्याधिक प्रमोशन गायत्री मंत्र के साथ क्या यह सही है क्या यह गायत्री मंत्र और गुरुदेव का डीवैल्युएशन नहीं है?*


उत्तर - *आत्मीय बहन,*

गायत्री मंत्र ब्रह्मशक्ति एक ब्रह्मांडीय ऊर्जा  है, इस शक्ति के प्रयोग से आत्मउत्थान, परिवार निर्माण, समाज निर्माण और देशनिर्माण इत्यादि सबकुछ संभव है। अब बिजली/ऊर्जा के प्रयोग से किचन को रौशन करो या पूजन गृह को या महल को या झोपड़ी को, इससे बिजली/ऊर्जा की महत्ता कैसे कम होगी? इसी तरह यदि कोई गायत्री शक्ति के प्रयोग से राजीनीतिक शक्ति बढ़ाना और सांसारिक लाभ लेना चाहता है तो इससे गायत्री की ब्रह्मशक्ति की महत्ता कैसे कम हो सकती है? वह तो महाशक्ति है, जो श्रद्धा से जप करेगा लाभ पायेगा।

बहन, धर्मनीति और राजनीति दोनों अनिवार्य है। लेकिन दोनों में सन्तुलन अनिवार्य है।

ध्यान रखें, एक के प्लेटफार्म में दूसरे के उपयोग और प्रचार प्रसार से बचना चाहिए।

व्हाट्सएप ग्रुप जिस उद्देश्य से बना है उसमें केवल तत्सम्बन्धी पोस्ट डालना चाहिए।

मंच धार्मिक हो तो धर्म से सम्बंधित ही बाते होंनी चाहिए।

यदि धर्म की स्थापना प्रत्येक हृदय में हो गयी और देवत्व जग गया तो देश की राजनीति स्वतः सुधर जाएगी। नींव तो धर्म ही है।

देश के नागरिक होने के कारण धर्म उत्तदायित्व के साथ राजनीतिक उत्तरदायित्व भी निभाना अनिवार्य है।

जनजागृति धर्म क्षेत्र में जितनी अनिवार्य है उतनी ही महत्त्वपूर्ण राजनीति क्षेत्र में भी है।

युगऋषि ने कई सारे साहित्य मतदाता जागरूकता पर लिखा है। समय समय पर अखण्डज्योति में इस पर आर्टिकल भी लिखे हैं। इसे जरूर पढ़ें।

जब धार्मिक  पांडु और भीष्म लोग राज्य का त्याग कर देते है, तो धृतराष्ट्र और कौरव जैसे गलत लोगों के हाथ देश चला जाता है जो विनाश को आमंत्रित करता है। हमारा देश धर्म में उन्नत होने के बावजूद ग़ुलाम इसलिए हुआ क्योंकि राजनीतिक एकता और सुरक्षा पर काम नहीं किया गया। जय किसान के साथ जय जवान नहीं हुआ, धर्म की जय के साथ मातृभूमि की सुरक्षा और व्यवस्था की जय न हुई। गीता को रटा गया लेकीन गीता को समझा नहीं गया।

मनुष्य हो और संसार मे हो और जंगल या हिमालय मे एकांत वास नहीं कर रहे हो तो अपने हिस्से की राजनीतिक जिम्मेदारी भी उठाना भी स्वधर्म है। राजनीतिक प्रचार प्रसार पर्सनल लेवल पर पर्सनल या राजनीतिक ग्रुप या one to one करो। लेकिन धार्मिक व्हाट्सएप ग्रुप में अपनी धर्म सम्बन्धी जिम्मेदारी का ही वहन करो। पूजन और भोजन दोनों जिस तरह अलग अलग किया जाता है वैसे ही धर्म और राजनीति को एक साथ मिक्स न करके अलग अलग करो।

उम्मीद है कि आपकी शंका का समाधान हो गया होगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

कैंसर हेतु कीमोथेरेपी के साथ साथ प्रारब्ध का भी इलाज़ भी करिये

*कैंसर हेतु कीमोथेरेपी के साथ साथ प्रारब्ध का भी इलाज़ भी करिये*

प्रारब्ध जन्य रोगों के त्वरित इलाज़ के उपाय:-

1- यग्योपैथी - भेषजयज्ञ और प्राणायाम। यज्ञीय औषधीय धूम्र  मनुष्य के रोगों के कारण को समाप्त करता है, उस की प्राण ऊर्जा चार्ज करता है औऱ प्रारब्ध काटता है।
2- सवा लाख महामृत्युंजय मंन्त्र या गायत्री मंत्र जप करिये या करवाइये,  मनुष्य की प्राण ऊर्जा चार्ज करता है औऱ प्रारब्ध काटता है।
3- कम से कम सरकारी स्कूल के प्रायमरी क्लास हज़ारो बच्चों को पेंसिल रबर और कुछ मीठा बाँट दें। जब वो ख़ुश होंगे तो उनके अंदर की विद्युत ऊर्जा प्रवाहित होगी जो रोगी व्यक्ति के प्राण ऊर्जा को चार्ज करेगा। बच्चों की ख़ुशी और सान्निध्य मनुष्य की प्राण ऊर्जा चार्ज करता है औऱ प्रारब्ध काटता है।
4- कुछ घण्टे गौशाला में गोसेवा करते हुए बिताएं, अपने हाथों गुड़ और चना खिलाएं। गाय का सान्निध्य मनुष्य की प्राण ऊर्जा चार्ज करता है औऱ प्रारब्ध काटता है।
5- तुलसी के वृक्ष के साथ समय बिताएं, तुलसी का सान्निध्य मनुष्य की प्राण ऊर्जा चार्ज करता है औऱ प्रारब्ध काटता है।
6- अच्छी पुस्तको का स्वाध्याय मन को ऊर्जावान बनाता है।
7- आत्मसम्मोहन (self hypnosis) और शशक्त संकेत से रोगोपचार में मदद मिलती है।

प्रारब्धजन्य रोग के उपचार में पुण्यजनित उपचार लाभकारी हैं।

प्रश्न - *मेरी एक दोस्त को एक लड़का परेशान कर रहा है, उसे ब्लैकमेल कर रहा है। जिसके साथ उसका ब्रेकअप हो चुका है। वो उससे पीछा कैसे छुड़ाये?प्लीज़ कुछ रास्ता बतायें।

प्रश्न - *मेरी एक दोस्त को एक लड़का परेशान कर रहा है, उसे ब्लैकमेल कर रहा है।  जिसके साथ उसका ब्रेकअप हो चुका है। वो उससे पीछा कैसे छुड़ाये?प्लीज़ कुछ रास्ता बतायें।*

उत्तर - आत्मीय बेटी अपनी दोस्त को मेरा यह पोस्ट फारवर्ड कर दो।

बेटे, सबसे पहले लड़कियों को विवाह से पूर्व किसी लड़के के साथ तस्वीरें ऐसी नहीं खिंचवानी चाहिए जिसका सहारा लेकर बाद में कोई तुम्हें ब्लैकमेल कर सके। अपने सीक्रेट बिना विवाह के कितना भी अच्छा दोस्त क्यों न हो उसके साथ शेयर न करें। Prevention better than cure, बचाव से सावधानी बेहतर है।

अगर मान लो युवा उम्र में तुमने कुछ ऐसी नादानी या भूल कर दी है जो तुम्हें नहीं करनी चाहिए, जिसके कारण लड़का तुम्हें ब्लैकमेल कर रहा है तो निम्नलिखित उपाय करो:-

*सांसारिक उपाय* -
1- माता पिता से उस लड़के की समस्या को शेयर करो, माता-पिता तुमपर गुस्सा होंगे, थोड़ा बहुत चिल्लायेंगे और गालियां देंगे उसे सह लो। लेक़िन इससे तुम्हारा एक भय निकल जायेगा, अब माता पिता को सब पता है।

2- उस लड़के का जब फोन आये तो उसे बता दो कि मैंने सारी तुम्हारी बात अपने माता पिता को बता दी है, अब यदि दुबारा तुमने फोन किया तो पुलिस को फोन करूंगी। देखो मेरा जो होना है वो मैं देख लूँगी लेकिन यदि तुमने कुछ उल्टा सीधा करने की कोशिश की तो तुम्हे  छोड़ूंगी नहीं।

3- मीडिया और पुलिस को लेकर सीधे तुम्हारे माता पिता के पास  लेकर जाऊँगी। जितनी तुम मेरी बदनामी करोगे उससे ज्यादा तुम्हारे इज्जत के फलूदे निकालूंगी। तुम्हारे कर्मो को तुम्हारे परिवार को भुगतना पड़ेगा।

4- पुलिस को 100 नम्बर थाने में फोन करके उस लड़के का नाम, मोबाइल नम्बर और ठिकाना जो भी पता हो बता दो। उसके ब्लैकमेल की रिपोर्ट कर दो। उसके साथ हुई बातचीत की कॉल को मोबाइल में रिकॉर्ड करो और पुलिस को दे दो।

लड़के से निपटने से पहले स्वयं के भय से निपटो, स्वयं के माता पिता को विश्वास में लो, और निर्भय होकर उससे निपटो।

आज़कल साइबर क्राइम की सज़ा बड़ी कड़ी है, कानून लड़कियों का साथ देता है।

कुत्ते, भूत और बुरे लड़के उसी लड़की को डराते है जो डरता है। निर्भय लड़की को कुत्ते, भूत और बुरे लड़के परेशान नहीं कर पाते।

*आध्यात्मिक उपाय* :- इस समस्या के समाधान हेतु एक 24 हज़ार गायत्री मंत्र का अनुष्ठान करो, ध्यान में उस लड़के को समाधि पर ले जाओ और समस्या के समाधान की रिकवेस्ट परमपूज्य गुरुदेब से करो।

देखो, कभी किसी से डरना मत। जो भी हो उसका बहादुरी से सामना करना। तुम्हारी निर्भयता से वो स्वयंमेव भयग्रस्त हो जाएगा। लड़को की कमज़ोरी उनका परिवार होता है, जहां तुमने यह बोला कि मेरा जो होगा वो मैं देख लूँगी, तुम अपनी और अपने परिवार की सोचो।  बस उसकी हवा निकल जायेगी।

सांसारिक रूप से किसी से पीछा छुड़ाने का एक मात्र उपाय है उसके पीछे पड़ जाओ।

 संसार में गन्दी लड़कियां भी है और अच्छी लड़कियां भी, इसी तरह कुछ गन्दे लड़कों के कारण दुनियाँ के समस्त लड़कों को शक की निगाह  से देखना बेवकूफी होती है। संसार मे अच्छे लड़को की कमी नहीं है, अच्छे जीवनसाथी को चुनो और विवाह करो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 23 January 2019

प्रश्न - *क्या धर्म के अनुसार समलैंगिक (homosexual) रिलेशनशिप वर्जनीय है और पाप है?

प्रश्न - *क्या धर्म के अनुसार समलैंगिक (homosexual) रिलेशनशिप वर्जनीय है और पाप है? क्षमा करें कि यह प्रश्न आपसे पूंछना पड़ रहा है क्योंकि कॉलेज में ऐसी बाते होती है तो मन प्रश्न से भर उठता है, मम्मी पापा से पूंछ नहीं सकते। अतः आप से पूंछ लिया, यह पश्न बहुतों के मन मे है।*

उत्तर - आत्मीय बेटे, भगवान ने संसार में स्त्री पुरुष को समस्त अन्य जीवों की तरह प्रजनन अंग (reproduction organ) दिए हैं। जिसकी सहायता से वंश वृद्धि की जा सके। हमारा और आप का जन्म भी इसी सृष्टि के दिये वरदान के कारण हुआ है।

पशु-पक्षी, जीव-वनस्पति की संतानें सोचने समझने की क्षमता लेकर पैदा नहीं होती और उनके दिमाग़ का सॉफ्टवेयर पहले से लिमिटेड और ऑटो प्रोग्रामिंग में होता है। बच्चे जन्म के तुरन्त बाद या कुछ महीनों में आत्मनिर्भर बन जाते हैं। उसके बाद उनकी माता पिता पर निर्भरता समाप्त हो जाती है। लेक़िन मनुष्य के बच्चों के दिमाग़ का सॉफ्टवेयर कॉम्प्लेक्स होता है और सोचने समझने की शक्ति से भरपूर होता है। गर्भ से ही माता पिता और समाज के हाथों से उसकी प्रोग्रामिंग शुरु हो जाती है। जिस भाषा के माता पिता होते है वो सीख लेता है। बहुत ज्यादा वक्त लग जाता है एक बच्चे को आत्मनिर्भर बनने में और पूर्ण विकसित होने में, लेक़िन जब वह पूर्ण बन जाता है तो समस्त जीव वनस्पति पशु पक्षी से भी ज्यादा होशियार बन जाता है।

ऋषि गण यह जानते थे, अतः बच्चे के दिमाग़ की प्रोग्रामिंग सही  ढंग से उचित हो इसलिए विवाह और परिवार व्यवस्था बनाया। धर्म के नाम पर do & don't की लिस्ट बनाकर व्यक्तित्व निर्माण से परिवार निर्माण और समाज निर्माण की विधिव्यवस्था गढ़ दी।

समलैंगिक (homosexual) रिलेशनशिप एक मानसिक रोग है। जिसका सन्तान के प्रजनन (reproduction) से कोई लेना देना नहीं है। यह काल्पनिक दुनियाँ में काल्पनिक सुख को काल्पनिक तरीक़े से प्राप्त करने के लिए आर्टिफिशियल तरीक़े से क्षणिक ख़ुशी पाने विधिव्यवस्था है, जो एक प्रकार के मनोरोगियों में ही देखी जाती है।

प्रकृति, पशु, पक्षी, जीव, वनस्पति और मानसिक रूप से स्वस्थ स्त्री पुरुषों में यह विकृति नहीं देखी जाती। भगवान की सृष्टि में स्त्री के अंदर निगेटिव आकर्षण और पुरुष के अंदर पॉजिटिव विकर्षण की मानवीय विद्युत ऊर्जा प्रवाहित की है। जो वंश वृद्धि के साथ साथ भावनात्मक रूप से एक दूसरे के जीवन में सहयोगी बनकर पूर्णता  को प्राप्त होते हैं। सृष्टि के संचालन में भगवान के सहयोगी की भूमिका निभाते हैं।

ब्रेन वाश एक प्रकार से स्वस्थ दिमाग़ की हैकिंग है, जो मनुष्य को आतंकी भी बना सकती है और समलैंगिक भी बना सकती है। गर्भिणी माता या गर्भस्थ शिशु का पिता या बच्चा किसी भी परिस्थिति वश या किन्ही कारण से स्त्री या पुरुष से नफ़रत करता है या विकृत चिंतन करता है तो बच्चे के दिमाग़ के कॉप्लेक्स प्रोग्रामिंग डिस्टर्ब हो जाती है और वह प्रकृति विरुद्ध आचरण करने लगता है। इसे कोई भी मनोवैज्ञानिक चिकित्सक या आध्यात्मिक चिकित्सक से लगातार काउंसलिंग और स्वयं ध्यान करके आध्यात्मिक शल्य चिकित्सा द्वारा ठीक किया जा सकता है।

प्रत्येक व्यक्ति के अंदर स्त्रीत्व और पुरुषत्व दोनों के गुण होते हैं, जिसमें जो ज्यादा होता है उसके अनुसार रूप और शरीर बन जाता है। गहन ध्यान साधना और भाव सम्प्रेषण से कोई भी व्यक्ति कुछ भी मानसिक स्तर पर बन सकता है।

सुप्रीम कोर्ट या सरकार किसी के व्यक्तिगत निर्णय और वह क्या खायेगा और किन माध्यमों से स्वयं को मनोरंजन(Entertain) करेगा में हस्तक्षेप नहीं करता। कानून कोई बड़ी दुर्घटना घटने के बाद ही काम करता है। अतः आप बेतहाशा खा कर रोगी बनो या असंयमित दिनचर्या अपनाकर रोगी बनकर मरो या अस्वस्थ रिलेशनशिप में झगड़ो या समलैंगिक (homosexual) रिलेशनशिप करके रोगी बनो उसे कोई मतलब नहीं है। आप अपनी गाड़ी पेड़ में ठोंक दो या स्वयं को नुकसान पहुंचाओ, इससे कानून को कोई लेना देना नहीं। कानून तब कार्यवाही करेगा जब गाड़ी से आप दूसरे मनुष्य को नुकसान पहुंचाओगे। पशु पक्षी जीव वनस्पति में भी जीवन है यह कानून की नज़र में मायने नहीं रखता।

लेकिन धर्म क्योंकि आपका, परिवार का, समाज का और सृष्टि का भला चाहता है, इसलिए प्रकृति अनुसार आचरण करने को कहता है, संयमित जीवन और अल्पाहार को बढ़ावा देता है, अप्राकृतिक रिलेशनशिप को न बनाने हेतु प्रेरित करता है।  जीव वनस्पति और पशु पक्षी में जीवन है, यह धर्म मानता है, इनको बेवजह नुकसान पहुंचाने को वर्जनीय और पाप बताता है।

धर्म का पालन या न पालन करना यह मनुष्य के विवेक पर और उनके बड़ो द्वारा दिये अच्छे संस्कारो पर निर्भर करता है।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दीदी प्रणाम, मैंने M.A in yoga cousrs किया है। अभी yoga studio चला रहा हूँ। दीदी अभी दो तीन महीने से मेरे मन मे उहापोह मची रहती है ।कि मैं गुरु जी का काम नही कर पा रहा हूं।

प्रश्न - *दीदी  प्रणाम, मैंने M.A in yoga cousrs किया है। अभी yoga studio चला रहा हूँ। दीदी अभी दो तीन महीने से मेरे मन मे  उहापोह मची रहती है ।कि मैं गुरु जी का काम नही कर पा रहा हूं। जब भी स्वध्याय करता हु तो लगता है कि जो अभी कर हूँ ।उसे छोड़ दू। केवल परिव्राजक बनकर गुरु जी का काम करू। मेरी आत्मा बार बार यही कहती है कि सारी दुनिया काम कर रही है ।फिर मैं क्यों अपने स्वार्थ के लिए योग सेंटर चला रहा हूं। कुछ समझ नही आता है। और कभी कभी ये भी विचार आते है कि गुरु जी ने स्वावलंबी युग सृजेता की बात कही है तो स्वावलंबी  होना जरूरी है। मार्गदर्शन करें...*

उत्तर- आत्मीय भाई, श्रेष्ठ आत्मा का ही चिंतन श्रेष्ठ होता है और लोकसेवा और गुरु के प्रति निष्ठा उसके आचरण से झलकती है। तुम श्रेष्ठ आत्मा हो और गुरुदेव के प्रिय शिष्य भी।

तीन तरह के मिशन में लोग है, एक बोलते ज्यादा है करते कुछ नहीं। गरजते है पर बरसते नहीं। कुछ पूंछने पर बहाने बनाते है कि अमुक कारण से यह न हो पाया।

दूसरे बोलते भी है और करते भी है, बादल गरजते औऱ बरसते भी है। इनके कार्य सर्वत्र दिखते है।

तीसरे नींव के पत्थर होते है, जो बरसते है लेकिन गरजते नहीं। जिनके बिना यह मिशन खड़ा ही नहीं हो पाता। समर्पित शिष्य - *करिष्ये वचनम तव* का भाव लिए।

शिष्यों को यह क्लियर होना चाहिए कि कौन सा कार्य वो अकेले कर सकते हैं और किन कार्यों के लिए टीम वर्क चाहिए। कहाँ टीम का हिस्सा बनना है और कहाँ अकेले लीड लेकर कार्य किया जा सकता है।

1- *व्यक्तिगत लेवल द्वारा किये गए कार्य* - उपासना-साधना स्वयं करना और दूसरों को करवाना, बालसँस्कार शाला स्कूलों में, कॉरपोरेट में कार्यशाला, जन सम्पर्क से युगऋषि के विचारों से जोड़ना, रोगपचार की योग और औषधि टिप्स और तकनीक बताना, झोला पुस्तकालय, छोटे साहित्य स्टॉल इत्यादि।

2- *टीम द्वारा किये जाने वाले कार्य* - सामूहिक साधना, वृक्षारोपण, बड़े स्तर की बाल सँस्कार शाला, दिया की विभिन्न गति विधि, बड़े यज्ञ आयोजन, बड़े स्तर के संघर्षात्मक-प्रचारात्मक आयोजन, बड़े पुस्तक मेले इत्यादि।

रथ के दो पहियों की तरह व्यक्तिगत लेवल पर मिशन के कार्य और टीम का हिस्सा बनकर कार्य दोनों होना चाहिए। लेकिन यदि व्यस्तता ज्यादा है तो व्यक्तिगत लेवल पर तो कुछ न कुछ कर ही लेना चाहिए।

जिस तरह भरत जी ने भगवान राम का प्रतिनिधि बनकर अयोध्या का राज्यभार सम्हाला था, ठीक उसी तरह योग सेंटर को आप युगऋषि श्रीराम का प्रतिनिधि बनकर सम्हालिये।

अब मालिक युगऋषि है, तो अपना बेस्ट प्रयास सेंटर को चलाने में करिये और रोगियों को योगियों में बदल दीजिये। लोगों को तीनों स्तर स्थूल, सूक्ष्म और कारण का योग करवाइये।

योग अर्थात जोड़ना, इलेक्ट्रिशियन बनकर उनकी चेतना को गुरु चेतना से जोड़ने का कार्य करिये।

जहां कहीं भी कार्यशाला योग की लेने जाते हैं उसके प्रचार प्रसार में अपने रजिस्टर्ड सेंटर/संस्था के नाम के साथ साथ डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन के ज्वाइंट प्रयास को दर्शाईये। क्योंकि आप दोनों का हिस्सा है, और दोनों कार्य आपको सम्हालना है। आप जहाँ खड़े हो वहां दिया और आपका योग सेंटर दोनों को समान प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। न्यूज पेपर में जब अपने प्रोग्राम की खबर छपवाएं तो गुरुदेव के एक विचार और उनकी प्रेरणा जरूर उसमें डाल दें। तुम्हारा योग सेंटर युगनिर्माण योजना का एक गेट बन जाये। सबको यह पता होना चाहिए कि तुम युगनिर्माण योजना की महत्त्वपूर्ण इकाई हो।

कुछ निम्नलिखित पुस्तक पढ़ो औऱ कई सारी उपयोगी बातें कण्ठस्थ कर लो, जगह जगह कार्यशाला में इनका उपयोग करो:-

1- जीवेम शरदः शतम
2- व्यक्तित्व विकास की उच्चस्तरीय साधनाएं
3- प्रबन्धव्यवस्था एक विभूति एक कौशल
4- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा।
5- बुद्धि बढ़ाने के वैज्ञानिक उपाय
6- निराशा को पास न फटकने दें
7- मानसिक संतुलन
8- दृष्टिकोण ठीक रखें
9- अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
10- मैं क्या हूँ?

विवेकानंद की तरह तुम गुरुयन्त्र बन जाओ, तुम्हारे मुख से उपरोक्त साहित्य का ज्ञानगंगा लोगों तक पहुंचे। युगसाहित्य से लोगो को जोड़ते चले जाओ।

योग के साथ साथ प्राकृतिक चिकित्सा और प्राचीन औषधियों का ज्ञान लोगों को करवाओ।

बुद्ध ने भिक्षुकों को एक जगह नहीं रखा था, उन्हें सर्वत्र बिखेर दिया था ताकि सर्वत्र ज्ञान पहुँच सके। इसी तरह गुरुदेव सबको शांतिकुंज में नहीं रखे हैं, सबको सर्वत्र बिखेर दिया है जिससे युगनिर्माण सर्वत्र पहुंच सके। गुरुदेव कण कण में है जहाँ सच्चा शिष्य है वहां गुरु सदैव रहता है। गुरु का प्रथम परिचय उसका शिष्य होता है। तुम गुरु का शानदार परिचय बनने में जुट जाओ।

विकलता छोड़ो, जहां हो वहां क्या कर सकते हो यह सोचो। व्यक्तिगत लेवल पर क्या कर सकते हो, टीम वर्क में क्या कर सकते हो। लिस्ट बनाओ, फिर समय का उसी हिसाब से विभाजन करो। जुट जाओ।

काम बनेंगे और बिगड़ेंगे भी, ध्यान रखो कि अपने प्रयास में, कार्ययोजना के निर्माण में और कार्ययोजना के क्रियान्वयन में कोई कमी न रह जाये। गुरु के निमित्त बनकर कर्म करो और फल गुरु के हाथों में छोड़ दो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Saturday 19 January 2019

The Bovis Biometer

The Bovis Biometer
The Bovis biometer, also called Bovis Scale, is a tool that measures the life force energy level of any substance, food, medicine, living beings, objects or geographic places.

Bovis was a French physician, whose research was oriented towards creating a tool to find out if food is nurturing for the human body or not.

Together with engineer Simoneton he created the Bovis Biometer or Scale.

The original scale was graduated from 1000 to 10000 units. Today we use a larger scale going from 1000 to 50000 units.

An intensity or vibrational quality of 6500 units on the Bovis scale is considered neutral, this is the only point on the scale with any correspondence to Angstrom units, and corresponds to the wavelength of red light.

From 0 to 6,500, the charge is negative, or life detracting, while above the 6,500 point the energy is considered positive, or life enhancing.

The minimal energy level for humans should be around 8,000 Bovis Units.

Places on Earth should be between 7,000 to 18,000 units, the necessary level for the maintenance of life.

Scientific research has shown that a positive or life enhancing value on the Bovis Scale relates to an anti-clockwise direction of the spin of atoms, and a clockwise spin atoms and molecules gives a Bovis reading below 6,500 which is weakening.

Our DNA and living water have a left or anti-clockwise turning spiral, while cancer cells and “dead” water have a right turning spin.

Use of the Bovis Biometer
Geobiologists use the Bovis Scale as a common language to communicate about energy levels of places.

Readings below 6,500 show the presence of geopathy, underground water veins, geological cracks and earth’s magnetic grids, or negative memories, which are harmful to human beings, animals and plants.

Readings above 6,500 are considered health enhancing. Some Vortexes and Power places on earth show extremely high results on the Bovis Scale.

These last years have shown a shift of the average, neutral energy level from 6500 units to 8500 units, probably related to the consciousness shift of mother earth.

The scale itself can be one that you buy.

Or you can draw a straight line graduated with units going from 1000 to 50000, by yourself on a piece of paper or wood.

You can also work on a mental scale, concentrating on the range in your head.

The graphic below shows a radial Bovis Meter.

bovis biometer, radiesthesy, dowsing, bovis scale
Measures are taken using radiesthesy and each level corresponds to a certain wavelength and color.
To measure energy level on the Biometer, you need to concentrate on the place, person, substance or object, you want to measure.

Then ask the question: “what is the energy level of this place, person, plant, food or medicine?”

There are two dowsing techniques to get results:

The first one is to give the pendulum a back and forth swing, lengthwise along the baseline, moving progressively along the numbers, concentrating on the object to measure and asking “Is it 1000, is it 2000…?” When you approach the number that is the result, the pendulum will change direction and swing back and forth perpendicularly to the line. The number above which the movement is the strongest is your result.

The second technique is to swing the pendulum back and forth perpendicularly to the baseline, moving progressively along the numbers, concentrating on the object to measure and asking “Is it 1000, is it 2000…?” When you approach the number that is the result, the pendulum will start turning clockwise. The number above for which the clockwise movement is the strongest is your result. If you pass the result, the pendulum will show an anti- clockwise movement.

Michel Burdet describes in his book called “Stumbling Down the Shamanic Path: Mystic Adventures and Misadventures“, how he uses the Bovis Scale on Power Places around the globe.
https://www.google.com/url?sa=t&source=web&rct=j&url=https://whitemagicway.com/bovisbiometer.html%3Famp&ved=2ahUKEwj0paz-rvvfAhURaI8KHT1qCoQQFjAAegQIAhAB&usg=AOvVaw0hvHfKTYkPxAmAcqdibVHC&ampcf=1

Thursday 17 January 2019

प्रश्न - *पति या पुत्र की शराब की लत कैसे छुड़वाएँ?*

प्रश्न - *पति या पुत्र की शराब की लत कैसे छुड़वाएँ?*

उत्तर - आत्मीय बहन, हज़ारों तरीक़े और दवाईयां अब नशा छुड़ाने के लिए मौजूद हैं।

जिनमें से एक होमियोपैथी की विधि है:- शराब की लत से मुक्ति हेतु-एक भाग सल्फ्यूरिक एसिड-क्यू और तीन भाग अल्कोहल मिलाकर 3-4 सप्ताह तक दिन में तीन बार लेने से लत छूट जाती है।

इसे जल में भी दे सकते हो। किशमिश चबाने से भी लत शराब की छूटती है।

आयुर्वेद दवाइयों के सेवन से भी लाभ मिलता है। अपने नज़दीकी शक्तिपीठ में व्यसनमुक्ति कार्यक्रम से जुड़े परिजनों से भी मदद ले सकते है। युगऋषि परमपूज्य गुरूदेव के साहित्य भी पढ़ने के लिए दे सकते हैं।

https://youtu.be/5V0lXeA4WL0

https://goo.gl/images/oHeFD8

ये सब तब काम आएगा जब वह व्यक्ति स्वयं शराब छोड़ना चाहेगा।

शराब की शुरुआत जिज्ञासा-कौतूहल वश, टीवी-फ़िल्म-विज्ञापन से प्रेरित होकर, दोस्तों के दबाव में, कॉरपोरेट के झूठे अहंकार में शुरू होता है। स्वयं को  कुछ क्षण भूलने और वर्तमान समस्याओं से कुछ क्षण मानसिक रूप से हटने का कारगर उपाय होता है।

ध्यान करने पर शराब पीने से हज़ार गुना आनन्द ज्यादा मिलता है।

पहले इंसान शराब पीता है, फिर बाद में शराब इंसान को पीती है।

जो इंसान स्वयं की जिंदगी से सुखी और संतुष्ट होता है वो शराब नहीं पीता। जिन इंसानों को अपनों से प्रेम होता है वो भी शराब नहीं पीते। जो लोग मानसिक रूप से सुदृढ़ और उच्च मनोबल के होते हैं वो भी शराब नहीं पीते है।

शराब की लत से ग्रसित व्यक्ति का मनोबल टूट जाता है, अपनी कमज़ोरी को छुपाने हेतु वो शराब रोकने वालों से लड़ता है और कुतर्क करता है।

केवल पत्नी या माँ प्रेम और तप शक्ति से मनोबल और इच्छाशक्ति पति या पुत्र की बढ़ा सकती है और शराब छोड़ने हेतु प्रेरित कर सकती है। प्रेरणा मिलने पर और शराब छोड़ने को तैयार व्यक्ति को एक सप्ताह या 15 दिन के लिए किसी देवस्थान जहां तप ऊर्जा का भंडार हो वहां जाना चाहिए। उदाहरण के तौर पर युग गायत्री तीर्थ शान्तिकुंज हरिद्वार जाएं, समाधि, गायत्री मन्दिर, सप्तऋषि और अखण्डदीप के समक्ष शराब छोड़ने हेतु मनोबल मांगना चाहिए। वहाँ कम से कम 5 तपस्वी गायत्री साधकों के समक्ष शराब छोड़ने का संकल्प लेना चाहिए और आशीर्वाद लेना चाहिए। उनसे मन की व्यथा कहकर ख़ाली हो जाना चाहिए। किसी भी हालत में एक सप्ताह तक दोनों वक्त केवल मन्दिर परिसर में बने माता भगवती भोजनालय से ही भोजन करना चाहिए। मन्दिर परिसर के बाहर एक सप्ताह तक न जाएं और न बाहर का कुछ खाएं। ज्यादा से ज़्यादा तप करें।

करोड़ो गायत्री मन्त्रों का जप वहाँ निरन्तर चलता है और नित्य गायत्री यज्ञ वहाँ होता है। अतः ऐसे वातावरण मनोबल बढ़ाते है, देवत्व जगाते है और असुरता मिटाते हैं। मनुष्य स्वतः शराब की लत छोड़ देता है।

घर में यह प्रभाव उतपन्न करने में अतिरिक्त ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी। असम्भव इस संसार मे कुछ भी नहीं। प्रेम और समर्पण से भगवान को वश में बांधा जा सकता है तो भला इंसान को काबू करना कौन सी बड़ी बात है। उसकी बुराई छुड़ाई जा सकती है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 16 January 2019

प्रश्न - *स्वयं से मत भागो। जैसे हो वैसे स्वयं को स्वीकारो।* *ये क्या हैं? विस्तार से बताएं।*

प्रश्न - *स्वयं से मत भागो। जैसे हो वैसे स्वयं को स्वीकारो।*  *ये क्या हैं? विस्तार से बताएं।*
उत्तर - आत्मीय भाई, वास्तव में प्रत्येक संसारी मनुष्य स्वयं से भाग रहा है। जो जैसा है वह स्वयं को वैसा नहीं स्वीकारता। स्वयं की कम्पनी को एन्जॉय नहीं करता। एकांत में कुछ पल बिना मोबाइल टीवी और बाहरी गजेट्स के गुजार ही नहीं पा रहा। अपने ऊपर मेकअप का मुखौटा लगाता है। स्वयं को बाह्य चीज़ों में इतना व्यस्त रखता है कि स्वयं के अस्तित्व हो ही भूल जाये। स्वयं को भूलने के लिए नशे इत्यादि का सेवन करता है। जितना स्वयं से भागोगे उतना ही दुःख में उलझोगे। जब स्वयं के साथ एक घण्टे बिताकर स्वयं की कम्पनी ध्यान और गहन चिंतन द्वारा नहीं गुजार सकते, तो फ़िर ऐसे व्यक्ति के साथ दूसरा व्यक्ति कैसे उसकी कम्पनी को एन्जॉय कर सकेगा? जो सर से लेकर पांव तक झूठ के मुखौटे और नक़ली हँसी को लिए हो।

स्वयं से प्रश्न करो कि मैं क्या हूँ? क्या मैं शरीर हूँ? या आत्मा हूँ?

शरीर किससे बनता है? भोजन- अन्न, फ़ल, जल इत्यादि से, जब यह पचता है तो रस-रक्त-माँस-मज़्ज़ा-हड्डी इत्यादि बनता है। बचपन की अपनी फ़ोटो देखो और अब वर्तमान शरीर को दर्पण में देखो। क्या यह बचपन वाला शरीर है? उत्तर मिलेगा नहीं...यह तो बदल गया...जब यह शरीर जिस भोजन-जल से बना यदि भोजन और जल हम नहीं है तो उससे बनने वाला शरीर हम कैसे हो सकते हैं? विज्ञान कहता है कि प्रत्येक 7 वर्ष में शरीर का कण कण पूर्णतया नया हो जाता है।

उदाहरण- अच्छा जब हम मरेंगे तो बोला जाएगा श्वेता चक्रवर्ती मर गयी, इनकी बॉडी को चलो जला दो वरना सड़ने पर दुर्गंध आएगी। यही आपके पूर्वजों को भी बोला गया होगा। यही आपको भी बोला जाएगा। श्मशान में जलती चिता के समक्ष सभी मनुष्य आत्मबोध को प्राप्त हो जाते हैं, शरीर नश्वर और आत्मा अमर समझते है, बड़े बड़े सङ्कल्प लेते हैं, लेकिन जैसे ही अपने अपने घर आते है सब आत्मबोध दरवाज़े पर ही छोड़ आते हैं। पुनः स्वयं को शरीर समझ कर दिनचर्या में लग जाते हैं।

कपड़े में यदि होल हो गया तो शरीर को फर्क नहीं पड़ता। इसी तरह आत्मा का वस्त्र शरीर है। शरीर में रोग हो गया तो आत्मा को फ़र्क नहीं पड़ता। रोग में दुःखी वह होगा जो शरीर केंद्रित होगा। रोग में भी सुखी वो होगा जो आत्म केंद्रित होगा।

कैंसर जैसे रोग को लेकर भी ठाकुर रामकृष्ण दुःख से परे थे, महर्षि रमण और विवेकानंद इत्यादि दुःख से परे आनन्दित थे। श्रद्धेय डॉक्टर साहब कई बार एक्सीडेंट और कई सारे ऑपरेशन से गुज़र चुके हैं, लेक़िन उनके चेहरे में दुःख नहीं दिखेगा क्योंकि वो भी आत्मकेंद्रित हैं। ऋषिसत्ताएँ जानती है शरीर रूपी वस्त्र रोगग्रस्त है तो उपचार करवाओ, जैसे कपड़ा फ़टने पर सिलाई करवाओ। लेकिन इसमें दुःखी होने जैसी कोई बात नहीं क्योंकि यह शरीर तो कुछ दिनों के लिए पहना है। इसे यहीं छोड़कर जाना है, फिर नया शरीर रुपी वस्त्र मिल जाएगा। चिंता की क्या बात है।

ऋषिसत्ताएँ स्वयं से भागती नहीं, कोई मुखौटा धारण नहीं करती। स्वयं को जैसे का तैसा स्वीकार करती है। ऋषिसत्ताएँ अपनी तुलना किसी से अन्य से नहीं करते, ये रोना कभी नहीं रोते कि ऐसा मेरे साथ ही क्यों हुआ? अरे हो गया तो हो गया, अब आगे क्या करना है उस पर विचार करते हैं। अपनी कम्पनी एन्जॉय करते है, परमात्मा की कम्पनी एन्जॉय करते हैं। ऋषियों को जंगल या हिमालय में अकेला छोड़ दो तो भी आनन्दित रहेंगे और संसार मे रख दो तो भी आनन्दित रहेंगे। क्योंकि संसार रूपी कीचड़ में भी वो कमल की तरह खिलना जानते हैं।

मेरे भाई, तुम्हारा शरीर रोगग्रस्त है, उससे ज्यादा मन रोगग्रस्त हो गया है क्योंकि शरीर से जुड़ी घटनाओं के निरन्तर चिंतन में हो, जो हो गया उसे स्वीकार नहीं कर रहे, स्वयं की वर्तमान स्थिति से भाग रहे हो और शरीर को ही मैं समझ रहे हो। यदि थोड़ा आत्मबोध जगा के डॉक्टर को एक दर्जी समझ के शरीर को वस्त्र समझ के उपचार करवाने जाओ। अन्य दिनों की तरह दर्द तो होगा लेकिन दुःख नहीं होगा। मन बीमार नहीं होगा। उपचार को साक्षी भाव से होते हुए देखोगे तो बिल्कुल दर्जी की तरह डॉक्टर दिखेगा जो तुम्हारे शरीर रूपी वस्त्र की मरम्मत कर रहा होगा।

शरीर के रोग डॉक्टर ठीक कर सकता है, क्योंकि स्थूल शरीर उपकरण से देखकर ऑपरेशन द्वारा ठीक किया जा सकता है।मन में इंजेक्शन लगाना या मन के विचारों को पकड़कर ऑपरेशन करना डॉक्टर के लिए संभव नहीं है।

अतः मन के रोग व्यक्ति स्वयं ठीक कर सकता है। मन के रोग अर्थात अनियंत्रित ग़लत अश्लील ऊटपटांग विचारों का प्रवाह, जो नहीं सोचना चाहते वो रूक नहीं रहा। गन्दे विचार को अच्छे विचारों से बदल सकते हैं। इसके लिए गायत्री महामंत्र का जप, ध्यान, स्वाध्याय, प्राणायाम और यग्योपैथी कारगर है। यह स्वयं प्रयत्नों द्वारा किया जा सकता है।

कभी कभी हॉस्पिटल के मुर्दाघर को देखो और दूसरी तरफ जच्चा बच्चा वार्ड देखो, एक ही अस्पताल एक तरफ आत्मा शरीर छोड़ रही है और दूसरी तरफ नया शरीर धारण कर रही हैं। कभी श्मशान को देखो नित्य जलते शरीर को देखो, ऐसे ही कई जन्मों  से हमारे शरीर जलते आ रहे हैं, पुनः हम जन्मते आ रहे हैं। यह क्रम चलता रहेगा।

शरीर और मन में कितने रोग हैं गिनने का कोई फ़ायदा नहीं है। शरीर और मन के रोगों में से जो स्वयं ठीक किया उसे स्वयं ठीक करो, जो डॉक्टर ठीक कर सकता है उसे डॉक्टर से ठीक करवा लो। समाधान केंद्रित होकर जियो।

जो दूसरों को खुशियां बांटता है, उस पर ब्रह्माण्डीय जीवनउर्जा और आनन्द स्वयं बरसता है।

स्वयं को और दूसरों को ओरिजिनल रूप में स्वीकारने लगोगे तो मैकअप के मुखौटों की जरूरत नहीं पड़ेगी। स्वयं को सुधारने और बदलने में जुटोगे तो दूसरों से उलझने की जरूरत नहीं पड़ेगी। आज अभी इसी वक्त से आनंद में जियोगे। जो होगा देखा जाएगा, मेरे हिस्से का मैं प्रयास करूंगा। बस यही जीवन जीने की कला है, साक्षी भाव से जीना।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, मुझे लगता है, मैं पागल हो जाऊँगा। बचपन मे पिता के देहांत के बाद लोगों द्वारा यौन शोषण का शिकार बना। हाई डिप्रेशन में पढ़ न सका। किसी तरह नौकरी की और शादी की वो भी सम्हाल न सका। क्योंकि पुरानी घृणित यादों से स्वयं को बाहर नहीं निकाल पाया। मल्टीपल बीमारी से ग्रसित हो गया हूँ। साथ में O. C. D. और M.D.D. भी है। मेरी दवाईयों का प्रत्येक माह बहुत बड़ा ख़र्च है, एक वर्ष से जॉबलेस हूँ। मेरा क्या होगा, समझ नहीं आ रहा।*

प्रश्न - *दी, मुझे लगता है, मैं पागल हो जाऊँगा। बचपन मे पिता के देहांत के बाद लोगों द्वारा यौन शोषण का शिकार बना। हाई डिप्रेशन में पढ़ न सका। किसी तरह नौकरी की और शादी की वो भी सम्हाल न सका। क्योंकि पुरानी घृणित यादों से स्वयं को बाहर नहीं निकाल पाया। मल्टीपल बीमारी से ग्रसित हो गया हूँ। साथ में O. C. D.  और  M.D.D. भी है। मेरी दवाईयों का प्रत्येक माह बहुत बड़ा ख़र्च है, एक वर्ष से जॉबलेस हूँ। मेरा क्या होगा, समझ नहीं आ रहा।*

उत्तर - आत्मीय भाई, आपका असीम कष्ट है और बहुत कठिन प्रारब्ध है। यह आपका प्रायश्चित शरीर है। इससे उबरने का उपाय बताने से पहले आप जैसे कठिन प्रारब्ध को झेलने वाले लोगों की महान गाथा सुनिये:-

दुनिया में ऐसे कई लोग हैं जिनकी पहचान उनके शरीर से नहीं काम से होती है। फिजिकल डिसएबल हुए तो क्‍या हुआ इन्‍होंने काम ऐसा किया है कि आप तारीफ करते नहीं थकेंगे। अगर आप चाहें तो इनसे प्रेरणा लेकर अपनी जिदंगी की नई शुरुआत कर सकते हैं। आइए जानें कौन हैं वो 11 महान शख्‍सियतें जिन्‍होंने शारीरिक कमजोरी के बावजूद सफलता के झंडे गाड़े।

1. *Stephen Hawking* :
दुनिया के महान भौतिकशास्‍त्री स्‍टीफन हॉकिंग किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। फिजिक्‍स के क्षेत्र में स्‍टीफन हॉकिंग ने काफी काम किया है। ऑक्सफोर्ड में अपने अंतिम वर्ष के दौरान हॉकिंग अक्षमता के शिकार होने लगे। उन्हें सीढ़ियाँ चढ़ने और नौकायन में कठिनाइयों का समाना करना पड़ा। धीरे-धीरे यह समस्याएं इतनी बढ़ गयीं कि उनकी बोली लड़खड़ाने लगी। अपने 21 वें जन्मदिन के शीघ्र ही बाद, उन्हें Amyotrophic Lateral Sclerosis (ALS) नामक बीमारी से ग्रसित पाया गया। फिलहाल वह कुछ भी बोल या चल पाने में अक्षम हैं लेकिन सिर्फ दिमाग चलता है।
2. *Helen Keller* :
हेलन केलर अमेरिका की मशहूर लेखक और एक्‍टीविस्‍ट थीं। हेलन केलर जन्‍म से अंधी और बहरी थीं। इसके बावजूद उन्‍होंने कभी हार नहीं मानी। हेलन पहली अंधी और बहरी महिला थीं जिन्‍होंने आर्ट्स में बैचलर डिग्री हासिल की थी।
3. *John Nash* :
जॉन नेश अमेरिका के जाने-माने गणितज्ञ थे। जॉन का पिछले साल ही निधन हुआ था। जॉन paranoid schizophrenia बीमारी से ग्रसित थे। यह बीमारी सीधे दिमाग पर असर डालती है और पीड़ित के सोचने और महसूस करने के तरीकों पर प्रभाव डालती है। इसके बावजूद जॉन गणित के सवालों में डूबते गए। जॉन को जियोमेट्री और कैलकुलस का ज्ञाता माना जाता है। इन पर फ़िल्म भी बनी है, A beautiful mind.
4. *Christy Brown* :
क्रिस्‍ट्री ब्राउन महान आइरिश लेखक थे। क्रिस्‍ट्री मस्‍तिष्‍क पक्षाघात (cerebral palsy) से ग्रसित थे। इसके बावजूद क्रिस्‍ट्री ने लिखना नहीं छोड़ा। वह पैरों से टाइप किया करते थे। यही नहीं क्रिस्‍ट्री को ऑटोबॉयोग्रॉफी 'My Left Foot' के लिए भी काफी सराहा जाता है।
5. *Demosthenes* :
एथेंस के महान वक्‍ता डेमोस्‍थेंस का जन्‍म 384 बीसी में हुआ था। डेमोस्‍थेंस की स्‍पीच सुनने के लिए लोग घंटो खड़े रहते थे। उनकी बातें लोगों को बहुत प्रभावित करती थीं। लेकिन डेमोस्‍थेंस को stammer नामक बीमारी थी, यानी कि वह हकलाते थे। फिर भी दुनिया उन्‍हें महान वक्‍ता के रूप में पहचानती है।
6. *Vincent van Gough* :
विन्‍सेंट वैन एक महान पेंटर थे। उनके द्वारा बनाई गई पेंटिंग्‍स लोगों के दिमाग से उतरनी नहीं थी। हालांकि जिंदगी के आखिरी पडाव में उनका दिमाग कमजोर होने लगा और वह डिप्रेशन में चले गए थे। इसके बावजूद उनका पेंटिंग्‍स बनाने का शौक कम नहीं हुआ।
7. *Beethoven* :
जर्मनी के महान संगीतकार बीथोवेन के म्‍यूजिक की दुनिया दीवानी थी। हालांकि बीथोवेन जन्‍म से बहरे थे। इसके बावजूद उन्‍होंने एक से बढ़कर एक धुनें ईजाद की थीं।
8. *Frida Kahlo* :
अक्‍सर आपने किसी दूसरे की पेंटिंग या पोट्रेट बनते देखा होगा। लेकिन मैक्‍िसको में रहने वाली महान चित्रकार फ्रीडा काहलो को अपनी पोट्रेट बनाने में महारत हासिल थी। वैसे आपको बता दें कि फ्रीडा पोलियो से पीड़ित थीं। फिर भी उनका पेंटिंग करने का शौक खत्‍म नहीं हुआ।
9. *Marla Runyan* :
अमेरिका की मशहूर धावक मारला रुनयान 9 साल की उम्र में Stargardt’s Disease रोग से पीड़ित हो गई थीं। जिसके बाद उनके आंखों की रोशनी चली गई। इसके बावजूद मारला एक महान रनर और उन्‍होंने ओलिंपिक में भी हिस्‍सा लिया। मारला तीन बार महिला 5000 मीटर वर्ग में नेशनल चैंपियन भी रहीं।
10. *Sudha Chandran* :
सुधा चंद्रन इंडियन एक्‍ट्रेस और क्‍लॉसिकल डांसर हैं। सुधा का जन्‍म केरल में हुआ था। वह जब 16 साल की थीं, तब एक दुर्घटना का शिकार हो गईं थी। डॉक्‍टर्स ने पैर का ऑपरेशन किया लेकिन घाव पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाए। जो बाद में इंफेक्‍शन का कारण बना और सुधा को अपना एक पैर खोना पड़ा। सुधा ने इसे अपनी कमजोरी नहीं माना और नकली पैर की बदौलत एक बेहतरीन डांसर बनकर उभरीं।
11- *अमृता एक हिजड़ा भी और एक अफ़सर भी* - बचपन से यौन शोषण का शिकार हुई, इतनी बेइज्जती और अपमान को सहते हुए पढ़ाई पूरी की। भीख न मांगने की जिद और कुछ कर गुजरने की चाहत ने उसे हज़ारो का सहारा बना दिया। इस वीडियो लिंक में जाकर अमृता का दर्द और उसके संघर्ष की कहानी स्वयं सुनो।

https://youtu.be/-bYHed7PM1o

🙏🏻 *अब स्वयं से पूंछो कि कब तक समस्या गिनोगे? रोना है या कुछ कर गुज़रना है।*

पापी लोग जिन्होंने तुम्हें परेशान किया उन्हें उनके पाप का दण्ड परमात्मा देगा। खौलते तेल में यमराज उन्हें तलेगा। एक बालक के यौन शोषण का उन्हें घोर दण्ड मिलेगा।

लेकिन मेरे भाई, अपनी कमज़ोरी से तो तुम्हें स्वयं ही लड़ना होगा। अपनी बीमारियों और तकलीफों से लड़ना होगा। भगवान भी उसी की सहायता करता है जो अपनी सहायता स्वयं करता है।

बीज से पौधा भगवान निकालेगा, लेकिन खेत को तैयार करके, खाद पानी देकर और बुआई का श्रम तो मनुष्य को ही करना पड़ेगा। बिना फ़सल बोए बीज से पौधे न निकलने पर भगवान को दोष देना व्यर्थ है।

*ख़ुद बेसहारा हो तो किसी का सहारा बनो, किसी NGO को जॉइन करो और फ़्री में कुछ समय समाज के दुःखी पीड़ितों की सेवा करो। वृद्धों और पीड़ितों की सेवा करो। सेवा से प्रारब्ध कटेंगे।*

पूर्ण विश्वास के साथ तुलसी माता से नित्य प्रार्थना करो और अपने रोग को सुनाओ। सुबह तीन पत्ती तोड़कर खा लो और तीन पत्ती तकिए के नीचे रखकर सोना।

यदि सम्भव हो तो देवसंस्कृति विश्वविद्यालय से OCD के उपचार की यज्ञ सामग्री लाकर सुबह शाम यज्ञ करो। यदि यह न हो सके तो एक खाली कटोरी में एक एक चम्मच जल डालकर यज्ञ करो और सूर्य भगवान को वो जल चढ़ा दो।

अधिक से अधिक गायत्री जप और महामृत्युंजय मंत्र जपो। यदि बड़े मंन्त्र को दिनभर न जप सको तो गायत्री का अजपा जप *सो$हम* जपो। श्वांस लेते समय *सो* और छोड़ते वक्त *हम* मन ही मन बोलो। ज्यादा से ज्यादा ध्यान करो। नज़दीकी गायत्री शक्तिपीठ मे यज्ञ में सम्मिलित हो, स्वाध्याय ज्यादा से ज्यादा करो। साहित्य स्टॉल में समयदान करो। निःश्वार्थ सेवा से ही प्रारब्ध कटेंगे।

*अपनी समस्या स्वयं को ही हल करनी होती है, राह स्वयं को ही तलाशना होता है।*

स्वयं से नित्य बोलो कि हार नहीं मानोगे। कुछ करके दिखाओगे। जो बुरा होना था हो गया, अब सब अच्छा होगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, विवाह को आजकल के युवा मात्र रिलेशनशिप को लीगल करवाना समझते हैं, इससे ज़्यादा कुछ नहीं। लिव इन रिलेशनशिप और वेश्यागमन में कोई बुराई नहीं समझते। इस पर क्या गुरूदेव ने प्रकाश डाला है।*

प्रश्न - *दी, विवाह को आजकल के युवा मात्र रिलेशनशिप को लीगल करवाना समझते हैं, इससे ज़्यादा कुछ नहीं। लिव इन रिलेशनशिप और वेश्यागमन में कोई बुराई नहीं समझते। इस पर क्या गुरूदेव ने प्रकाश डाला है।*

उत्तर - आत्मीय बेटे, आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टि से विवाह जितना जरूरी है उससे ज्यादा जरूरी वैज्ञानिक दृष्टि है।

युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव ने विवाह के महत्त्व का वर्णन अनेक पुस्तको में किया है, गृहस्थ एक तपोवन वांगमय भी लिखा है। क्योंकि तुम कॉलेज में पढ़ने वाले युवा हो इसलिए तुम्हें विज्ञान पक्ष ज्यादा समझाऊंगी।

बेटे, प्रत्येक मनुष्य के पास तीन शरीर होते है जिसे स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर कहते हैं। विवाह में इन तीनों का मेल होना आवश्यक है। बिना तीनो के मेल के ऊर्जा चक्र पूर्ण नहीं बनता।

*युगऋषि परमपूज्य गुरूदेव* अपनी पुस्तक - *मानवीय विद्युत के चमत्कार* में लिखते है कि *लिव इन रिलेशनशिप और वेश्यागमन या गिगलोगमन ऐसा है मानो दावत में सैकड़ों आदमियों या औरतों की बची-खुची, थूक-लार लगी हुई गन्दी जूठन चाटना।* इससे स्थूल शरीर को जितनी ज्यादा क्षति होती है उससे ज्यादा कई गुना क्षति मानसिक सूक्ष्म ऊर्जा शरीर को होती है। एक स्त्री वेश्या(कॉल गर्ल) या एक पुरुष वेश्या(गिगलो) कई निम्न चरित्र लोगों की पाप ऊर्जा को स्वयं में संग्रहित करते हैं, इस कारण इनका वैचारिक प्रदूषण और विषैला ऊर्जा का वायुमंडल होता है। असंख्य लोगों की दुर्वासनाएँ लिए होती हैं। इनसे शारीरिक सम्बंध बनाने पर शरीर का ओजस-तेजस नष्ट हो जाता है। इनके वायुमंडल में फंसा व्यक्ति उस ख़ालीपन को नशे से भरने की कोशिश करता है। यह जन्म भी खराब करता है और कई जन्मों तक पाप भुगतता है। इससे उतपन्न हुई सन्तान समाज मे नाजायज़ कहलाती हैं। बिना भावनात्मक प्रेम से उतपन्न हुई सन्तान सम्वेदना शून्य और अच्छे सँस्कार से विहीन होती है, जो बदले की भावना से प्रेरित होकर समाज मे तबाही लाती है।

ऋषि और आधुनिक विज्ञान यह सिद्ध कर चुका है कि संतानोत्पत्ति के लिए उत्तम आयु 20 वर्ष से 30 वर्ष के बीच होती है। 30 वर्ष के बाद शरीर ऊर्जा घटती है, इसके बाद स्त्रियों और पुरुषों के हार्मोनल परिवर्तन के कारण बच्चे किसी न किसी कमी को लेकर जन्म लेते हैं। इसलिए विवाह सम आयु में किशोरावस्था के अंतिम और युवावस्था के प्रारम्भ में करने की सलाह दी जाती है।

स्त्री और पुरुषों में अलग अलग प्रकार की विद्युत धाराओं का विशेष प्रवाह होता है। जिस प्रकार  बैटरी में निगेटिव और पॉजिटिव दो धाराएं जब मिलती हैं तब टॉर्च या बल्ब जलता है। इसी तरह भगवान ने सृष्टि के सृजन हेतु निगेटिव आकर्षण स्त्री के शरीर मे और पॉजिटिव विकर्षण पुरुष के शरीर में दिया।

विवाह द्वारा इन दोनों शक्तियों को एक साथ मिलाया जाता है। जिससे स्त्री पुरुष स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर से जुड़कर अपनी शारीरिक और मानसिक शक्तियों का विकास करते हैं। भावनात्मक और आध्यात्मिक मिलन मन्त्रशक्ति से होता है जिससे इनके ऊर्जा शरीर का भी विकास होता है। जब इन्हें पूर्णता मिलती है तो यह अधिक स्वस्थ प्रशन्न उमंग और उल्लास से भर उठते हैं। ओजस और तेजस में भी वृद्धि होती है। नवविवाहित जोड़े के चेहरे पर दमक सहज ही देखी जा सकती है। जिस घर में प्रेम सहकार युक्त गृहस्थी हो तो वह घर धरती का स्वर्ग होता है। ऐसे दम्पत्ति जब सन्तान धरती पर लाते है तो सन्तान उच्च गुणवत्ता की होती है।

विधुर या विधवा या अविवाहित अक्सर गृहस्थों की अपेक्षा ज्यादा मानसिक रूप से बीमार पाए जाते हैं। जिसके कारण उनका शरीर भी रोगग्रस्त हो जाता है। आप अपने घर के आसपास के वातारण में देख सकते हो।

पिता के नाम से ही सन्तान के गोत्र का निर्धारण इसलिए होता है क्योंकि स्त्री के गुणसूत्र XX होते हैं, जिसमें एक X पिता और एक X माता का होता है।वंश की अलग पहचान पुरूष के XY के आधार पर हो सकती है। क्योंकि इसमें से Y गुणसूत्र पिता से और X माता से मिलता है। Y की यूनिक संरचना पीढ़ियों को पहचानने में काम करती है। तो यदि गोत्र भरद्वाज है तो Y गुणसूत्र भरद्वाज ऋषि का ही उनकी वंश परम्परा में यूनिक होगा।

धर्म में स्त्री के व्रत तप के ज्यादा करने के पीछे विज्ञान यह था कि स्त्री के 23 गुणसूत्र प्रकट और एक और गुणसूत्र अप्रकट होता है। जिससे स्त्री धर्म क्षेत्र में पुरुष से कई गुना अधिक स्पीड से आध्यात्मिक शक्ति अर्जित कर सकती है।

जिस प्रकार दो तालाब के बीच नाली बना दी जाए तो अधिक भरे तालाब से पानी कम वाले तालाब में जाकर दोनों बराबर हो जाते हैं। इसी तरह स्त्री और पुरुष में जो भी ज्यादा आध्यात्मिक शक्ति से सम्पन्न हो, वो अपने भावनात्मक रूप से जुड़े समर्पित अर्धांगिनी या अर्धांग को अपनी आध्यात्मिक उर्जा स्वतः ट्रांसफर कर देता है। *उदाहरण* - ठाकुर रामकृष्ण और मां शारदा, अरविंद घोष और श्री माँ, परमपूज्य गुरुदेव और माता वन्दनीया।

एक या दो वर्ष छोटे बड़े या समान आयु के स्त्री पुरुष समवय कहलाते हैं। ऐसे विवाह सफल होते है और इनकी मानवीय ऊर्जा सन्तुलित होती है।

अधिक आयु वाले की मानवीय विद्युत शोषक शक्ति कम आयु के जीवन साथी की ऊर्जा खींच लेता है। अतः इस कारण कम आयु का जीवनसाथी अक्सर बीमार और निश्तेज पाया जाता है। जैसे बड़े और छोटे पौधे पास पास हों तो बड़ा पौधा मिट्टी का पोषक तत्व ज्यादा खींचता है।

प्राचीन समय में पुरुष यह बात जानते थे, इसलिए राजा-महाराजा और धनाढ्य जानबूझकर एक से अधिक शादियां और वो भी कम उम्र की स्त्रियों से शादी करते थे, वो विवाह के पश्चात ऊर्जावान होते जाते थे और स्त्रियां बीमार और निश्तेज। अतः फ़िर स्त्रियों को अतिरिक्त ऊर्जा देने हेतु स्वर्ण, चांदी और मणियों की मदद ली जाती थी। आभूषण के रूप में उन्हें पहना दिया जाता था।

एक बात और मात्र कोर्ट मैरिज भी लाभप्रद नहीं है। इससे रिलेशनशिप लीगल तो हो जाती है, लेकिन वो भावनाएं और ऊर्जा शरीर मे कनेक्शन वैसा नहीं बनता जैसा वैदिक मंत्रों और यज्ञ अग्नि के समक्ष बनता है। यज्ञ ऊर्जा मंन्त्र और संकल्पों को मष्तिष्क के सूक्ष्म कोषों और तीनों शरीर के रोम रोम तक पहुंचा देता है। वैदिक विधि विधान से किया विवाह पूर्णता लाता है। अतः युवा पीढ़ी को वैदिक मंत्रों के साथ यज्ञ करते हुए वैदिक विधि से ही विवाह करना चाहिए।

प्रेम हमेशा जिम्मेदार होता है, अतः सच्चे प्रेमी विवाह बंधन में बंधकर एक होना चाहते हैं।

व्यभिचारी प्रेम एक के साथ बंधना नहीं चाहता, बल्कि मात्र टाइम पास करना चाहता है।

लिव इन रिलेशनशिप वाले लोगों की कभी भी घर गृहस्थी नहीं बसती, नाजायज़ औलादों का या तो अबॉर्शन होता है, जिसमें शरीर तो बच्चे का मरता है और आत्मा भटकती है, पाप भी लगता है। यदि ऐसे बच्चे जन्मते है तो वो अनाथों की तरह अनाथालय में पलते हैं। अगर स्त्री ने हिम्मत करके उस बच्चे को पाल भी लिया तो वो बच्चा बिना पिता के नाम के  कदम कदम पर नाज़ायज होने का अपमान का दंश झेलते हुए पलता और बढ़ता है। पाश्चात्य देश की सरकारें ऐसे नाज़ायज और अनाथ बच्चों की बाढ़ से त्रस्त और परेशान हैं।

अतः लिव इन रिलेशनशिप वाले कपल को गर्भ का ऑपरेशन करवा के बिना जिम्मेदारी के रिलेशनशिप में जाना चाहिए।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday 14 January 2019

प्रश्न - *प्रणाम दी, मैं एक प्रायमरी स्कूल में टीचर हूँ। अपने क्लास के बच्चो में सँस्कार गढ़ना चाहती हूँ। मुझे 10 मिनट बच्चों को सुबह ध्यान करवाने की अनुमति स्कूल से मिल गयी है। कृपया मार्गदर्शन करें कि संक्षिप्त विधि के तौर पर ध्यान कैसे करवाऊँ।*

प्रश्न - *प्रणाम दी, मैं एक प्रायमरी स्कूल में टीचर हूँ। अपने क्लास के बच्चो में सँस्कार गढ़ना चाहती हूँ। मुझे 10 मिनट बच्चों को सुबह ध्यान करवाने की अनुमति स्कूल से मिल गयी है। कृपया मार्गदर्शन करें कि संक्षिप्त विधि के तौर पर ध्यान कैसे करवाऊँ।*

उत्तर - आत्मीय बहन, निम्नलिखित विधि अपनाएं:-

1- बच्चों को चेयर पर कमर सीधी करके बिठाएं, वो चाहे चेयर हो या जमीन हो।

2- दोनों हाथ को दोनों घुटनों में ज्ञानमुद्रा में रखवाएं, तर्जनी और अँगूठे को जोड़कर आसमान की तरफ ऊपर की ओर हाथ घुटनो पर रखवाएं।

3- तीन बार गहरी श्वांस लेने को बोलिये और धीरे धीरे छोड़ने को बोलिये। एक बार में 15 सेकंड लगते है बच्चो को तो कुल मिलाकर 45 सेकंड में यह हो जाएगा।

4- पंच कोषों के जागरण के लिए पांच बार ॐ दीर्घ स्वर में नाभि से बुलवाएं। एक बार ॐ बच्चे 15 सेकंड में बोलते है, 75 सेकंड(1 मिनट और 15 सेकंड) में यह हो जाएगा।

5- तीन बार गायत्री मंत्र बुलवाइए, यह 1 से डेढ़ मिनट में हो जाता है। एक महामृत्युंजय मंत्र बुलवाइए, यह 30 सेकंड में हो जाएगा।

6- अगले क्रम में आंखे बंद करके उगते हुए सूर्य का ध्यान करने को बोलिये और आती जाती श्वांस की आवाज सुनने और उसे महसूस करने को बोलिये। यह ध्यान का क्रम पांच मिनट करवाइये।

7-प्रार्थना मंन्त्र बुलवाइए
असतो मा सदगमय ॥
तमसो मा ज्योतिर्गमय ॥
मृत्योर्मामृतम् गमय ॥
ॐ शांतिः ॐ शांतिः ॐ शांतिः
मंत्र बोलते हुए हाथ रगड़ने को बोलिये और उसे बन्द आखों के ऊपर और चेहरे पर मसाज करने को बोलिये। धीरे धीरे पलको को खोलने को बोलिये।

यह उपरोक्त प्रक्रिया 10 मिनट में हो जाती है। बाल सँस्कार शाला में हम यह करवाते हैं। 3 डीप ब्रीदिंग, 5 ॐ, 3 गायत्री और 1 महामृत्युंजय के साथ 5 मिनट का ध्यान करवाना है।

रोज़ महापुरुषों के छोटे छोटे एक सदवाक्य उनकी कॉपी में नोट करवाये और उन्हें याद करवाएं।

सप्ताह में एक बार मूल्यपरक कहानी सुना दें।

यदि आप कर सकें तो, शान्तिकुंज हरिद्वार द्वारा बताई बालकों की आदर्श दिनचर्या की चेकलिस्ट की फोटोकॉपी उन्हें वितरित कर दें।जिससे वो बच्चे स्वयं के वक्त का प्रबंधन और मूल्यांकन कर सकें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Thursday 10 January 2019

प्रश्न - *गर्भवती स्त्री ऐसा कौन सा काम पूजा या जप करे जिससे उनका होने वाला बच्चा तेजस्वी प्रखर बुद्धि ,वर्चस्वी एवं ओजस्वी बने और खानपान में क्या परहेज करे साथ ही गुरुदेव की कौन सी पुस्तक का स्वाध्याय करे? मार्गदर्शन करें*

प्रश्न - *गर्भवती स्त्री ऐसा कौन सा काम पूजा या जप करे जिससे उनका होने वाला बच्चा तेजस्वी प्रखर बुद्धि ,वर्चस्वी एवं ओजस्वी बने और खानपान में क्या परहेज करे साथ ही गुरुदेव की कौन सी पुस्तक का स्वाध्याय करे? मार्गदर्शन करें*

उत्तर - आत्मीय भाई,

*गर्भस्थ शिशु का समग्र निर्माण उसके - स्थूल शरीर, भाव शरीर और बौद्धिक शरीर तीनों के सन्तुलित निर्माण पर निर्भर करता है*। गर्भिणी माता के हाड़-मांस और लिए हुए आहार से स्थूल शरीर बनेगा। माता के समझयुक्त चिंतन और पढ़े-सुने विचारो से बौद्धिक शरीर बनेगा। माता के मन में उठ रहे भावों औऱ घर परिवार द्वारा दी गए प्रेम-स्नेह या घृणा-तिरस्कार  या दुःख-सुख की फीलिंग्स/भावनाओं से बच्चे का भाव शरीर बनेगा। तीनों स्तर पर सावधानी बरतनी पड़ेगी।

👉🏼 *गर्भस्थ शिशु के स्थूल शरीर हेतु* - प्राण ऊर्जा से भरे सन्तुलित और सुपाच्य भोजन। गाय के घी दूध से बने समान, फ़ल, हरी सब्जियों और अँकुरित अनाज प्राण ऊर्जा से भरपूर होता है।  बलिवैश्व यज्ञ करने से और भोजन या जल ग्रहण करने से पहले गायत्री मंत्र बोलने से अन्न संस्कारित हो जाता है और प्राण ऊर्जा बढ़ जाती है। *पके हुए भोजन की ऊर्जा केवल साढ़े तीन घण्टे तक ही रहती है, चौथे घण्टे से वो प्राणहीन हो जाता है अतः गर्भ के लिए उपयुक्त नहीं है*। शरीर के व्यायाम और आहार विहार की विस्तृत जानकारी के लिए पुस्तक 📖 *आओ गढ़े संस्कारवान पीढ़ी* पढ़ें।

*परहेज़* - मृत पशुओं की लाश अर्थात नॉनवेज पशु के मरने के 30 से 40 मिनट के अंदर यदि जंगली पशु की तरह कच्चा खा लिया तो ही उपयोगी है, अन्यथा वो पकाने पर सड़न-गलन की प्रक्रिया से गुजरने के कारण अत्यंत नुकसान    दायक होती हैं। पशुओं की पीड़ा और आह मांस में होती है, अतः ऐसे आहार गर्भस्थ शिशु को हिंसक और सम्वेदना शून्य बना देते है। गर्भस्थ शिशु का भाव शरीर विकृत कर देता है।

👉🏼 *गर्भस्थ शिशु के भाव शरीर हेतु* - गर्भस्थ शिशु लम्बी यात्रा के बाद पूर्व जन्म के लोगों को छोड़ कर नए परिवार में सम्मिलित होने आता है। माता-पिता और परिवारजन का प्यार उसे अपनेपन की फीलिंग देता है, जिससे वो दर्द से उबर पाता है। लेक़िन जब गर्भस्थ शिशु के सामने माता-पिता यह डिस्कसन करते है कि मुझे लड़का या लड़की चाहिए तो आत्मा को पीड़ा पहुंचती है। गर्भ में यदि लड़की हुई और आपने लड़के की चाहत व्यक्त की तो वो सोचेगी इन्हें तो मैं चाहिए ही नहीं। इसी तरह लड़का गर्भ में हुआ और आपने लड़की की चाहत की वो भी निराश हो जाएगा कि इन्हें तो मैं चाहिए ही नहीं। गर्भस्थ शिशु की पीड़ा में आते ही उसका भाव शरीर बिगड़ जाएगा। बाहर जन्म लेने पर कितना ही प्यार क्यों न करो, उस शिशु से सम्बन्ध अच्छा नहीं बनेगा।

गर्भिणी के साथ किया अच्छा व्यवहार या बुरा व्यवहार गर्भस्थ शिशु समझता है उसके साथ हो रहा है। अतः माता के कष्ट पर वह पीड़ित होगा और माता को कोई ख़ुशी देगा तो वो आनन्दित होगा। इसलिए गोदभराई, गर्भसंस्कार इत्यादि उत्सव के माध्यम से गर्भ को सूचित कयक जाता है कि हम तुम्हारे आगमन से प्रशन्न है।माता को आशीर्वाद और उपहार देते है, जिससे शिशु आनन्दित होता है।

इस समय माता के अच्छी भावनाओ के चिंतन, भक्ति गीतों के गायन और श्रवण, प्रकृति के पंच तत्वों का ध्यान, उगते हुए सूर्य का ध्यान यह सब गर्भस्थ शिशु के भाव शरीर का निर्माण करेगा।

गरीबों की सेवा, पीड़ित मानवता की सेवा और घर के वृद्ध जनों की  सेवा से भाव शरीर शुद्ध होता है। ऊर्जावान होता है।

*परहेज़* - गर्भिणी पर घर के सदस्य क्रोध न करें, गर्भिणी स्वयं किसी अन्य पर क्रोध और घृणा का भाव उतपन्न न करे। लड़का लड़की मे भेद न करे।

👉🏼 *गर्भस्थ शिशु के बौद्धिक शरीर हेतु* - एक बार ठाकुर रामकृष्ण से एक स्त्री ने पूँछा मेरे बच्चे की चार वर्ष की उम्र हो गयी है, इसे कब से पढ़ाऊ। ठाकुर बोले आपने पाँच वर्ष की देरी कर दी माँ। इसका शिक्षण तो गर्भ में ही प्रारम्भ हो जाना चाहिए था। अर्जुन पुत्र अभिमन्यु और सती मदालसा के पुत्र की कहानी तो सबको पता है वो गर्भ से सीख के आये थे।

यदि चाहते हो कि, बच्चा स्कूल की पढ़ाई में अच्छा हो, प्रखर तेजस्वी हो तो कम से कम दो से तीन घण्टे अच्छी पुस्तकों का स्वाध्याय माता नित्य करे। पिता और परिवार जन गर्भिणी को अच्छी अच्छी बातें बतायें।

निम्नलिखित पुस्तकें गर्भिणी के लिए उपयोगी है:-

1- आओ गढ़े संस्कारवान पीढ़ी
2- मानसिक संतुलन
3- दृष्टिकोण ठीक रखें
4- भाव सम्वेदना की गंगोत्री
5- मित्र भाव बढ़ाने की कला
6- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
7- प्रबन्धव्यवस्था एक विभूति एक कौशल
8- मानवीय विद्युत के चमत्कार
9- हमारी भावी पीढ़ी और उसका नवनिर्माण
10- महापुरुषों की जीवनियां
11- अकबर बीरबल और तेनालीराम के बौद्धिक कुशलता के किस्से
12- जिस क्षेत्र में बच्चे का रुझान चाहते हो उस क्षेत्र से सम्बंधित पुस्तको का अध्ययन

श्रद्धेय के भगवत गीता और ध्यान पर दिए वीडियो लेक्चर सुने। मोटिवेशनल वीडियो देंखें।

😇 *भारतीय ऋषियों ने बताया है कि गायत्री मंत्र का अर्थ चिंतन करते हुए गायत्री जप करने से गर्भस्थ शिशु के बौद्धिक कौशल का विकास होता है। AIIMS ने भी रिसर्च में यह सिद्ध कर दिया है कि गायत्री मंत्र जप से बौद्धिक कुशलता का विकास होता है।*

*प्राचीन ऋषिसत्ताएँ गर्भ के दौरान नियमित यज्ञ या साप्ताहिक यज्ञ की सलाह देते हैं।*

*परहेज़* - अश्लील, हिंसक, भद्दे साहित्य न पढें और ऐसी फ़िल्म न देखें।

*ज्यादा से ज्यादा भगवान को आभार दें, मैं क्या हूँ? पर चिंतन करें, जागरूक चैतन्य रहें। खुश रहे और खुशियां बाँटे। स्वयं की आत्मा के प्रकाश के लिए प्रयत्न करें।*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 9 January 2019

प्रश्न - *दी, प्रणाम! मैं शरीर से दुबला हूँ, शाकाहारी हूँ, लेकिन कुछ दोस्त मुझे नॉनवेज खाने के लिए प्रेरित करते हैं, लेक़िन मैं उनकी बात नहीं मानता हूँ क्योंकि गायत्री साधना में आहार शुद्धि चाहिए। मेरा मार्गदर्शन करें कि शाकाहारी रहते हुए मैं मोटा हो जाऊँ।*

प्रश्न - *दी, प्रणाम! मैं शरीर से दुबला हूँ, शाकाहारी हूँ, लेकिन कुछ दोस्त मुझे नॉनवेज खाने के लिए प्रेरित करते हैं, लेक़िन मैं उनकी बात नहीं मानता हूँ क्योंकि गायत्री साधना में आहार शुद्धि चाहिए। मेरा मार्गदर्शन करें कि शाकाहारी रहते हुए मैं मोटा हो जाऊँ।*

उत्तर - आत्मीय बेटे, तुम युवाओं को ग़लत सलाह सर्वत्र आपके दोस्त मुफ़्त में देते हैं। जैसे टेंशन हो रही हैं- नशा कर लो, दुबले पतले हो- नॉनवेज खा लो, मन अच्छा नहीं- चलो फ़िल्म देख लो इत्यादि इत्यादि।

बेटे, मूवी देखने और नशा करने से गम कुछ क्षण भूला जाता है, नशे से समस्या का समाधान नहीं होता। इसीतरह नॉनवेज खाने से सेहत नहीं बनती बल्कि रोगों की शरीर में एंट्री होती है।

बेटे दुबले होने के कई कारण होते हैं, जिनमें मानसिक अवसाद मुख्य है।

इसे समझने के लिए कहानी सुनो,  *अकबर ने दरबार मे पूँछा स्वस्थ मोटे होने के लिए क्या ज़रूरी है?*
सभी दरबारियों ने अच्छा भोजन कहा लेकिन केवल *बीरबल ने कहा- मानसिक निश्चिंतता और चैन की नींद*। अकबर ने कहा सिद्ध करके दिखाओ। प्रयोग हेतु दो बकरी एक ही माँ की जनी चुनी गई। शाही कोष से एक के उत्तम चारे की व्यवस्था की गई। बीरबल ने एक कसाई को पैसे दिए और बोला तुम केवल बकरी के समक्ष अपना काम करते रहो और उसे बीच बीच में डराते रहो।शाही नौकर बकरी को खूब खिलाते और देखरेख करते। कई महीनों बाद भी बकरी मोटी नहीं हुई। क्योंकि कसाई की उपस्थिति और डराने के कारण कभी बकरी निश्चित न रह सकी, प्रत्येक वक़्त भय के कारण न सेहत बनी और न मोटी हुई।

दूसरी बकरी साधारण चारे को ख़ाकर भी मोटी हो गयी। क्योंकि वो दिन भर चैन से खेलती कूदती और खाती।

तो इससे यह सिद्ध हुआ कि तुम ज्यादा विचारशील हो, और अपने कैरियर को लेकर चिंतित हो। जिस दिन मनचाही जॉब और आर्थिक स्थिति मिल जाएगी। मानसिक निश्चिंतता आते ही साधारण दाल का पानी और रोटी भी तुम्हें हृष्टपुष्ट और सेहतमंद बना देगा।

👉🏼 *मानसिक रूप से स्वस्थ-सन्तुलित और शारिरिक रूप से हृष्टपुष्ट एवं सेहतमंद बनने के उपाय*

1- नित्य नहाने के बाद गायत्री जप करो और उगते हुए सूर्य का ध्यान सुबह करो। रात को सोते वक़्त गायत्री मंत्र जपते हुए और पूर्णिमा के चाँद का हृदय में ध्यान करते हुए सो जाओ। योग-प्राणायाम करो।

2- समय प्रबंधन अपनाओ कार्य को व्यवस्थित ऐसे करो कि उसके लिए तनाव न उपजे।

3- कुछ साहित्य गुरुदेव के पढो जो मानसिक स्वास्थ्य पर आधारित हैं:-

- मानसिक संतुलन
- प्रबन्धव्यवस्था एक विभूति एक कौशल
- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
- शक्तिवान बनिये
- दृष्टिकोण ठीक रखिये
- हारिये न हिम्मत

4- कम्पटीशन की तैयारी कर रहे बच्चो की दिनचर्या कैसी हो, उस पोस्ट को तुमने पढ़ा था? वही दिनचर्या अपनाओ और आनन्दित रहो।

5- कुछ औषधीय प्रयोग वैद्य के परामर्श से लो, अमृता(गिलोय) के फ़ायदे तो पुरानी पोस्ट में बताया था। इसका सेवन मनुष्य के अंदर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। सरस्वती पंचक वटी दिमाग़ी स्वास्थ्य के लिए उत्तम टॉनिक है। अश्वगंधा मानसिक अवसाद दूर करता है:-

*अश्वगंधा के चमत्कारिक फायदे* -
📍*इम्युन सिस्टमः*
अश्वगंधा में मौजूद ऑक्सीडेंट आपके इम्युन सिस्टम को मजबूत बनाने का काम करता है. जो आपको सर्दी-जुकाम जैसी बीमारियों से लडने की शक्ति प्रदान करता है. अश्वगंधा वाइट ब्लड सेल्स और रेड ब्लड सेल्स दोनों को बढ़ाने का काम करता है. जो कई गंभीर शारीरिक समस्याओं में लाभदायक है.

📍 *स्ट्रेस - मानसिक तनावः*
अश्वगंधा मानसिक तनाव जैसी गंभीर समस्या को ठीक करने में लाभदायक है. एक रिर्पोट के अनुसार तनाव को 70 फिसदी तक अश्वगंधा के इस्तेमाल से कम किया जा सकता है. दरअसल आपके शरीर और मानसिक संतुलन को ठीक रखने में असरकारी है. इससे अच्छी नींद आती है.अश्वगंधा कई सम्स्याओं से छुटकारा दिलाने का काम कर सकता है।

गुरुदेव के लिखे वांगमय *जीवेम शरदः शतम* में इसके कई अन्य फ़ायदे भी लिखे है। अपना एक बार चिकित्सक से जांच करवाने के बाद ही उसकी सलाह से अमृता और अश्वगंधा शुरू करना। युगतीर्थ शान्तिकुंज हरिद्वार जाओ, वहाँ फ्री चिकित्सा परामर्श मिलता है। साथ ही वहां की साहित्य स्टाल के साथ लगे फ़ार्मेसी से अमृता वटी, अश्वगंधा वटी और सरस्वती पंचक वटी ले आओ। मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य बढ़ाओ।

🙏🏻 बेटा, बाज़ार से खड़ी मूंग, मूँगफली, चने इत्यादि ख़रीदो। रोज रोज थोड़ा थोड़ा एक बर्तन में पानी डालकर भिगो दो, सुबह उससे पानी निकाल दो। एक बड़ी कटोरी में थोड़ा सा पानी रख लो और ऊपर बड़ी चाय की छन्नी में वही भीगे हुए आइटम डाल दो। पानी की वाष्प ऊपर उन्हें मिलती रहेगी, दूसरे दिन अंकुरित हो जाने पर काला नमक और काली मिर्च डालकर खा लो। अंकुरित अनाज के फायदे यूट्यूब पर सर्च कर लो मिल जाएंगे।

थोड़ा देशी गुड़ और घी रोज खाओ। दूध के साथ हल्दी मिलाकर पियो। नित्य स्वास्थ्यकर आहार खाओ, कोई न कोई एक मौसमी फल रोज खाओ।

बस इतना काफ़ी है उत्तम स्वास्थ्य के लिए, आनन्दित रहोगे। यह खानपान देशी शाकाहारी पहलवानों का बताया है।

रोज यूट्यूब पर श्रद्धेय डॉक्टर साहब के वीडियो से ध्यान सीख सकते हो। संदीप माहेश्वरी के वीडियो से मोटिवेट हो सकते हो। अकबर बीरबल या तेनालीराम के यूट्यूब पर रोज एक कार्टून देखकर बीरबल-तेनालीराम जैसी चतुरता सीख सकते हो। महापुरुषों के जीवनचरित्र पढ़कर उनसे प्रेरणा ले सकते हो।

👉🏼फ़िल्मे देखने और मृत पशु की लाश अर्थात नॉनवेज खाने से जीवन ऊर्जा घटती है और शरीर रोगों का घर बनता है।

👉🏼नित्य उपासना करने और अंकुरित अनाज खाने से जीवन ऊर्जा बढ़ती है और शरीर मजबूत होता है और चेहरे की कांति बढ़ती है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *मेरी एक बहन से गाड़ी चलाते समय दुर्घटना हो गयी थी उसके बाद से वो बहुत डरने लग गयी है नींद भी ढंग से नहीं आती और मोटरसाइकिल पर बैठने में भी डरती है। उसका डर कैसे दूर करे। मन्त्र लेखन भी करती है।बहुत चिड़चिड़ी हो गयी है।*

प्रश्न - *मेरी एक बहन से गाड़ी चलाते समय दुर्घटना हो गयी थी उसके बाद से वो बहुत डरने लग गयी है नींद भी ढंग से नहीं आती और मोटरसाइकिल पर बैठने में भी डरती है। उसका डर कैसे दूर करे। मन्त्र लेखन भी करती है।बहुत चिड़चिड़ी हो गयी है।*

उत्तर - आत्मीय बहन अपनी बहन को यह पोस्ट फारवर्ड कर दीजिए:-

आत्मीय बहन, कभी कभी दिमाग़ में कोई घटना ऐसे बुरी तरह से फंस जाती है कि उससे बाहर निकलना संभव नहीं हो पाता है। यह एक प्रकार का दिमाग़ी कब्ज़ होता है जिसके कई इलाज़ इस संसार मे मौजूद है।

1- यदि पहली रोटी बनाते वक़्त रोटी जलने या हाथ जलने पर स्त्री भयग्रस्त होकर हाल छोड़ दे तो वो कभी भोजन न बना पाएगी।

2- यदि साइकल, बाइक या गाड़ी चलाते वक़्त कोई छोटी या बड़ी दुर्घटना हो जाये तो भयग्रस्त होकर यदि कोई गाड़ी चलाना छोड़ दे तो वो कभी वाहन चलाने में कुशल न हो पायेगा।

3- डॉक्टर सर्जन से पूंछो कभी कभी मरीज़ की रिपोर्ट परफेक्ट होती है, लेकिन फिर भी मरीज़ मर जाता है। कभी कभी डॉक्टर जानता है कि यह मरीज़ नहीं बचेगा, लेकीन वह बच जाता है। डॉक्टर यदि भयग्रस्त हो जाये तो इलाज कैसे करेगा?

4- सैनिक के जीवन में दुबारा कोई चांस ही नहीं मिलता, अनिश्चितता से भरा जीवन होता है, फिर भी वो अंतिम श्वांस तक बहादुरी से जीता है। 26/11 आतंकी हमले में रेस्क्यू ऑपरेशन करने गए कमांडो ने जीवन में कभी फ़ाइव स्टार होटल नहीं देखा था। फ़िर भी लोगों बचाया और आतंकियों को मारा।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
बहन, *तुम्हारे दिमाग़ में फँसी बात तो तुम स्वतः ही निकाल सकती हो, कोई और तुम्हारे दिमाग़ में प्रवेश कैसे करेगा? तुम्हारे द्वारा मन की सृष्टि बनी है उसे केवल तुम जब चाहोगी तब ही बदल सकती हो। भय का निर्माण तुमने किया है सोच सोच कर के, अब उसी भय का संघार भी तुम ही करोगी साहस के विचार सोच सोच करके..*

दुर्घटना हो गयी, तो हो गयी। प्रारब्ध घट गया। बीमारी होती है तो उसके लिए कोई जिम्मेदार नहीं होता, हम किसी को नहीं ढूंढते दोषारोपण के लिए, केवल डॉक्टर सही ढूंढकर इलाज करवाते है। जीवन में हुई दुर्घटना जीवन की एक बीमारी/अवरोध है इसे बुद्धिमत्ता से समझकर इसे दूर करो और आगे बढ़ जाओ।

👉🏼 *प्रत्येक दिन  स्वयं का नया जन्म मानो, प्रत्येक रात स्वयं की मौत मानो। जो वर्तमान दिन है उसे पूरे जिंदादिली से जियो, बेहतर जियो।*

*जो बीत गया वो भी तुम्हारे अब कंट्रोल में नहीं है, और जो भविष्य है वो भी तुम्हारे कंट्रोल में नहीं है। केवल वर्तमान तुम्हारे हाथ मे है। इसे तुम्हें निज प्रयत्नों और विवेक से ही संवारना है।*

मनुष्य ने ऐसी कोई मशीन नहीं बनाने में सफलता पाई, जिसमें अन्न, सब्जी और फ़ल डालें और वो रक्त बना दे। ऐसी भी कोई मशीन नहीं बनाई जिसमें चारा डाले और दूध निकल आवे। इसी तरह कोई इंजेक्शन इस संसार में नहीं बना है जो किसी के अंदर से भय के विचार निकाल दे और साहस के विचार भर दे।

👉🏼 *इसलिए भगवान की बनाई सृष्टि को समझो और मन में स्वयं द्वारा बनाई सृष्टि को समझो और उसे हैंडल करना/प्रबंधन करना सीखो।*

अतः भगवान के बनाये ब्रह्माण्ड की लाखों गैलेक्सी की एक गैलेक्सी, उस एक गैलेक्सी के लाखों ग्रहों में से एक ग्रह में, उस ग्रह के कई सारे देश मे से एक देश भारत में, इस भारत देश के कई राज्यों में से एक राज्य, उसके कई शहरों में से एक शहर में, उस शहर के भी एक स्थान में, अरबों जनसँख्या में से एक इंसान तुम हो। लेकिन यह शरीर भी तो तुम नहीं हो। यह शरीर रूपी वस्त्र तुम पहने हो और एक दिन यह यही छूट जाएगा और नए जन्म मे नया शरीर मिलेगा।

👉🏼 *उदाहरण* - मेरा नाम श्वेता चक्रवर्ती है, जब मृत्यु होगी और आत्मा यह शरीर त्याग देगी।  तो मेरे जिस शरीर को तुम श्वेता कहते हो, उसे बॉडी कहना शुरू हो जाएगा। लोग कहेंगे श्वेता चक्रवर्ती जी की मृत्यु हो गयी, चलो इनके पार्थिव शरीर को अग्नि में समर्पित कर दें। चिता तो ऐसी कई बार सजी होगी, कई जन्मों में कई बार...हैं न...फिर मृत्यु से कैसा भय?

*जब मैं(आत्मा) कभी मर ही नहीं सकती, तो फिर शरीर रुपी वस्त्र के फ़टने या छूटने के गम या भय क्यों मनाऊँ?*

अतः बहन भय त्याग के मुक्त और योगियों सा जीवन जियो। निर्भय रहो और आनन्दित रहो। न परिस्थिति तुम्हारे हाथ मे है और न ही प्रारब्ध, तुम्हारे हाथ में केवल प्रयास है। अतः बेहतर जीवन जीने का प्रयास करो और ईश्वर के निमित्त बन कार्य करो। रोज गायत्री जप, ध्यान, स्वाध्याय और लोकसेवा करो और वीरांगनाओं के जीवन चरित्र पढ़ो।

*भय को पकड़ा तुमने है तो छोड़ोगी भी तुम ही। पुरानी बीती हुई यादों के खंडहर में जीने का कोई लाभ नहीं, इससे बाहर आओ। मन के भीतर कुछ भी स्थूल नहीं और तुम्हारे मन मे कोई प्रवेश भी नहीं कर सकता। अतः भय को समझो, जो हुआ उसे स्वीकारो, अब आगे क्या करना है? उस पर विचार करो।*

पढ़ कर ही पास हुआ जा सकता है, टेंशन करके नहीं। इसी तरह जितनी मात्रा में भूल हुई है अर्थात गड्ढा हुआ है, उतनी मात्रा में तप और पुण्य कर्म करके उस गड्ढे को भर दो। प्रायश्चित कर लो, और नए सिरे से जीवन जियो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, चेहरे पर ओज और तेज दिखे, आध्यात्मिक सौंदर्य की कुछ टिप्स एवं तकनीक बताइये?*

प्रश्न - *दी, चेहरे पर ओज और तेज दिखे, आध्यात्मिक सौंदर्य की कुछ टिप्स एवं तकनीक बताइये?*

उत्तर - 😂😂😂, बेटा यह प्रश्न सुनकर हंसी आ गयी। लेक़िन प्रश्न जरूरी है, अतः उत्तर ध्यान से सुनो:-

शरीर(body) + मन(mind) + आत्मा(Soul)  तीनों के स्वस्थ और सन्तुलित होने पर हमें पूर्ण  सुंदरता प्राप्त होती है। विद्युत बल्ब की सुंदरता उसकी बाह्य डिज़ाइन और कलर पर 10% निर्भर करती है और 40% उसकी भीतर विद्युत पॉवर की क्षमता और 50% विद्युत शक्ति की सप्पलाई पर निर्भर करता है।

👉🏼 *अतः इसी तरह 10% अपने शरीर के सौंदर्य पर ध्यान दो, और निम्नलिखित कार्य करो*:-

1- मुल्तानी मिट्टी या गोमय फेसपैक(शान्तिकुंज) का चेहरे के लिए प्रयोग करो।मुल्तानी मिट्टी से ही बाल धोना। मिट्टी गन्दगी साफ करने के साथ साथ पोषण करती है। साथ में ऑप्शनल नींबू या दही का प्रयोग करो।

शरीर में साधारण सफ़ेद नमक लगाकर नहाओ, त्वचा मुलायम होगी और उसमें निखार आएगा। नकरात्मक एनर्जी घटेगी। तुम्हारी मानवीय विद्युत (ऊर्जा शरीर) स्वस्थ होगा।

2- कुकर में चावल जैसे पकता है, वैसे ही पेट में खाना पकता है। अतः जिस प्रकार कुकर में आधा चावल, और उससे थोड़ा ज्यादा पानी  भरते हो और एक चौथाई हवा के लिए छोड़ते हो। इसी तरह  भूख से आधा स्वास्थ्यकर भोजन, करना एक चौथाई जल और एक चौथाई हवा के लिए छोड़ना। पेट स्वस्थ रहा तो खून साफ रहेगा, चेहरे पर रंगत खिलेगी। स्वादलोलुपता और सौंदर्य-स्वास्थ्य दोनों एक साथ संभव नहीं।

3- बिस्तर और सोफे के नीचे झाड़ू न लगने पर गंदगी जम जाती है, इसी तरह गहरी श्वांस न लेने पर फेफड़े के उन कोनो में गन्दी हवा हो जाती है जहां तक श्वांस नहीं पहुंचती। अतः दिन में कई बार गहरी श्वांस लें, जिससे रक्त में और दिमाग़ उचित मात्रा में ऑक्सीज़न पहुंचे और स्वास्थ्य लाभ मिले और रंगत खिले।

 4- नई हो या पुरानी मशीन जो नित्य न चलेगी तो जंग खाएगी। अतः नित्य कम से कम 2 से तीन किलोमीटर टहलो जिससे पूरे शरीर में रक्तसंचार हो।

5- योग-व्यायाम नित्य थोड़ा बहुत करो, स्वस्थ शरीर ही सुंदर होता है।

6- सप्ताह में कम से कम 12 घण्टे केवल रसाहार पर व्रत रहें। व्रत करने से विकार पचते हैं और प्रारब्ध कटते हैं।

👉🏼 *टोटल का 40% सुंदरता और स्वास्थ्य का आधार मन होता है। अतः मन की सुंदरता के लिए निम्नलिखित कार्य करें।*

1- नित्य कम से कम तीस मिनट निर्विचार या किसी एक विचार पर केंद्रित हों। इस हेतु ध्यान धारणा अपनाएं।

2- कोई सकारात्मक शक्ति युक्त मंन्त्र जप उदाहरण गायत्री मंत्र जप कम से कम 108 बार नित्य करें।

3- मन को सकारात्मक विचारों से भरने के लिए अच्छी पुस्तकों का स्वाध्याय करें।

4- भगवान को इस जीवन के लिए धन्यवाद देते रहें।

5- एक श्रेष्ठ जीवन लक्ष्य का चयन करना और उस ओर अग्रसर रहना।

6- पशुओं को रस्सी बांधती है, और मनुष्य के मन को लोभ-मोह और उच्च महत्वाकांक्षाओं इत्यादि के बंधन बांधते है। अतः इन रस्सियों के बंधन से मुक्त हो साक्षी भाव से जीवन आनन्द से जियो।

7- Need(आवश्यकता) और Greed (स्वार्थपूरित ख्वाहिशें) के बीच का अंतर समझें।

👉🏼 *टोटल का 50% सुंदरता और स्वास्थ्य का आधार आत्मा का प्रकाश होता है। अतः आत्म ऊर्जा की वृद्धि के लिए निम्नलिखित कार्य करें।*

1- नित्य उपासना - भगवान के पास बैठने से आत्म ऊर्जा में वृद्धि होती है। विभिन्न तप साधनाओ को करना।

2- पीड़ितों और गरीबों की सहायता करने से आत्म ऊर्जा में वृद्धि होती है।

3- भगवान से लोककल्याण की प्रार्थना करने से और सेवा भाव मन में रखने से आत्म ऊर्जा में वृद्धि होती है।

4- पशु पक्षी जीव वनस्पतियों की देखरेख और सेवा से आत्म ऊर्जा में वृद्धि होती है।

5- बच्चों के साथ हँसने-खिलखिलाने से खेलने से आत्म ऊर्जा में वृद्धि होती है। क्योंकि बच्चे निश्छल देव स्वरूप होते है और प्राणऊर्जा से भरे होतें है।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 8 January 2019

प्रश्न - *अन्याय के प्रतिकार में उपजा हुआ क्रोध वीरता कहलाती है, हद से ज्यादा विनम्रता कायरता कहलाती है। क्या आप इससे सहमत हैं?*

प्रश्न - *अन्याय के  प्रतिकार में उपजा हुआ क्रोध वीरता कहलाती है, हद से ज्यादा विनम्रता कायरता कहलाती है। क्या आप इससे सहमत हैं?*

उत्तर - आत्मीय भाई क्रोध कभी भी वीरता का परिचायक नहीं होता और न ही कायरता का प्रदर्शन विनम्रता कहलाता हैं।

अगर तुम सही हो तो भी क्रोध की आवश्यकता नहीं, यदि तुम गलत हो तो क्रोध करने का तुम्हें अधिकार नहीं। क्रोध वह अग्नि है जो करने वाले को जलाता है।

अन्याय के प्रतिकार में आक्रोश उपजता है, जिसे बुद्धि बल और शक्तिप्रदर्शन से अन्याय को मिटाकर न्याय की स्थापना की जाती है।

लेकिन जिसे आप अन्याय समझ रहे हो क्या वास्तव में वो अन्याय है भी या नहीं? यह अन्याय किसके विरुद्ध हुआ और कितना?

उदाहरण - श्रीराम चन्द्र जी विनयी थे, लेकिन वीरता से भरे थे। एक रात पहले जब युवराज़ पद की घोषणा हुई तो भी अहंकार नहीं हुआ। वही विनय भाव रहा। दूसरे सुबह वनवास मिला तो भी क्रोधित नहीं हुए और वही विनय भाव को लिए रहे।

ऋषियों की हड्डियां देखी तो अन्याय के प्रति सङ्कल्प/प्रण लिया कि निशिचर विहीन धरती को कर दूंगा। लेकिन यह आक्रोश  स्वार्थकेन्द्रित नहीं था परमार्थ के लिए था।

समुद्र से पहले विनम्रता से रास्ता मांगा, जब  समुद्र ने पुकार अनसुना किया तो धनुष उठा कर समुद्र को सुखाने खड़े हो गए। रावण को पहले संधि सन्देश दिया नहीं माना तो संघार कर दिया।

अतः प्रत्येक व्यक्ति को तलवों तक के पानी को इग्नोर करना चाहिए, घुटनों तक पानी के आते ही प्लान ऑफ एक्शन तैयार रखना चाहिए, और क़मर तक पानी आते ही एक्शन ले लेना चाहिए।

कब कैसे कहाँ प्रतिकार करना है या नहीं यह स्वविवेक पर निर्भर करता है।

क्रोध में बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है, और बदले की भावना से सही गलत की समझ चली जाती है। इस बदले की भावना में स्वयं का, मिशन का और देश का अहित भी व्यक्ति कर डालता है। क्रोध में होश नहीं होता। जैसे क्रोध में कुछ लोग घर का सामान तोड़ देते है, बच्चो को बुरी तरह पीट देते है और बाद में पछताते रहते हैं।

आक्रोश में बुद्धिप्रयोग सम्भव होता है, क्योंकि आक्रोश में पाप से घृणा की जाती है पापी से नहीं। जिस प्रकार मैडम क्लास में बच्चों के न पढ़ने पर आक्रोश करती है, लेक़िन बच्चे के प्रति मन मे कोई दुर्व्यवहार नहीं रखती। पूरे होश-हवाश में आक्रोश का प्रदर्शन करती है, पहले प्यार से पढ़ने को कहती है, न पढ़ने पर सज़ा देती है।

 सेना और पुलिस भी आक्रोश व्यक्त करते हैं, क्योंकि उन्हें अपने वर्तमान पद मर्यादा का होश रहता है। पहले हथियार फेंकने की गुजारिश और आत्मसमर्पण को कहते है, न मानने पर ही गोली चलाते हैं।

अपने हक का छोड़ो मत और दूसरे के हक का छीनो मत। अपनी मर्यादा का पालन करो, मतभेद रखो लेकिन मन भेद मत रखो।

प्रेम में हमें सामने वाले की बुराई नहीं दिखती और क्रोध में सामने वाले की अच्छाई नहीं दिखती।

अहंकार ऐसा नेत्रदोष उतपन्न करता है, जिससे सच्चाई और अच्छाई औरों का दिखता नहीं।

विनयी/विनम्र होना अर्थात स्वयं का आत्म समीक्षक होना, बिना द्वेष दुर्भाव के समस्या का समाधान ढूंढना।

अकर्मण्य व्यक्ति को भी विनम्र/विनयी नहीं कहा जाता, जिसका कोई समाज के लिए योगदान नहीं है।

बुद्धिमान और बलशाली व्यक्ति यदि उदारचरित्र होकर अदब से बात करता है, उसे ही विनयी/विनम्र कहा जाता है।

सरल शब्दों में, विवेक के साथ लिया एक्शन आक्रोश है। बिना विवेक के लिया एक्शन क्रोध है। बुद्धि और बल होते हुए भी विनम्रता का प्रदर्शन करना महानता है, अति आवश्यकता पड़ने पर अन्याय के प्रतिकार स्वरूप आक्रोश प्रदर्शित करना और हथियार उठाना भी धर्म है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday 7 January 2019

प्रश्न - *दी मैं ग्रेजुएशन फाइनल ईयर में हूँ? मार्गदर्शन करें कि तनाव को कैसे मिटाएँ? how to remove my tension?*

प्रश्न - *दी मैं ग्रेजुएशन फाइनल ईयर में हूँ? मार्गदर्शन करें कि तनाव को कैसे मिटाएँ? how to remove my tension?*

उत्तर - आत्मीय बेटे, सबसे पहले यह समझो कि जिसे तुम मिटाना चाहते हो उस टेंशन का वजूद क्या है?

*टेंशन कोई स्थूल व्यक्ति या वस्तु नहीं है, जिसे स्थूल रूप से जीवन से हटाया या मिटाया जा सके।*

*टेंशन ऐसे विचारों का समूह है जो किसी वस्तु या घटना को सम्हाल न पाने के  कारण होता है। या जानबूझकर अस्वीकरण के कारण होता है। उम्मीद के पहाड़ खड़े करने के कारण होता है।*

*टेंशन को हैंडल करने के लिए सकारात्मक विचारों के शशक्त समूह और सकारात्मक रवैये(positive attitude) विकसित करने की जरूरत है, जो केवल नित्य अच्छी युग साहित्य को पढ़ने और संघर्ष मय जीवन जीकर सफ़लता पाने वाले व्यक्तियों के जीवनियाँ पढ़ने से मिलती है।*

उदाहरण - दो व्यक्ति राम और श्याम घर से एक ही ऑफिस के लिए निकले। किसी एक्सीडेंट के कारण जाम मिल गया, दोनों की गाड़ी जाम में फंसी है।

राम ने एक्सीडेंट की घटना को समझा और स्वीकार लिया, अब जब तक जाम नहीं हटेगा जाना सम्भव तो होगा नहीं, अतः गाड़ी में बैठे बैठे उसने सोचना शुरू किया कि इस देरी को वो कैसे हैंडल करेगा? द्वतीय उसने ऑफिस और घर फोन करके जाम की सूचना दे दी। गाना लगाया और सुनने लगा, गुनगुनाने लगा। समाधान केंद्रित सोच, और समझदारी भरे चिंतन ने सकारात्मक एनर्जी का बादल आसपास क्रिएट कर दिया और उसकी प्राण ऊर्जा को बढ़ा दिया।

श्याम ने एक्सीडेंट की घटना को जानने के बावजूद समझने और स्वीकार करने से मन ही मन इन्कार कर दिया, जब तक जाम नहीं हटेगा जाना सम्भव तो होगा नहीं यह जानते हुए भी चिल्लाने और गुस्सा करने लगा। अतः गाड़ी में बैठे बैठे उसने उल्टा सोचना शुरू किया कि इस देरी के कारण उसे क्या क्या परेशानी होगी? द्वतीय उसने ऑफिस और घर फोन करके जाम की सूचना देने में भी देर दी। गाड़ी में बैठे इतनी नकारात्मक बातें सोची कि उन नकारात्मक बातों और समस्या केंद्रित सोच ने नकारात्मक एनर्जी का बादल आसपास क्रिएट करके उसकी प्राण ऊर्जा को घटा दिया।मन तनाव से भर गया।

*परिस्थिति एक थी परिणाम अलग निकले, क्योंकि दोनों का रवैया(attitude) अलग था।*

इसी तरह तुम सब युवा हो, यदि जीवन की वर्तमान समस्याओं के प्रति समझ विकसित कर लो, जिन समस्याओं को हल कर सकते हो उसे हल करो। जो तुम्हारे हाथ मे है केवल उस पर फ़ोकस करो तो तनाव होगा ही नहीं।

*तनाव में पीड़ित होकर जीवन जीने के उपाय* :-

1- दूसरों को सुधारने का प्रयत्न करो और दूसरों को प्रभावित करने की कोशिश करो
2- दूसरे औऱ परिस्थिति जब ठीक रहेगी तब ही ख़ुश हो सकते है, अतः अपने मन का रिमोट कंट्रोल दुसरो हाथ में अपना रिमोट दे दो।
3- वर्तमान जीवन की परेशानियों के लिए दूसरों को उत्तरदायी मानो
4- उम्मीद का पहाड़ खड़ा करो- उदाहरण घर से निकलते समय मख्खन जैसी रोड, सुहाने मौसम और डिसेंट पब्लिक की उम्मीद करो। इंटरव्यू जाते वक्त 100% सेलेक्ट हो जाओगे इसकी उम्मीद करो।
5- स्वयं की योग्यता और पात्रता बढ़ाने में ध्यान मत दो, केवल उलाहने देने में समय खर्च करो।
अतः परफेक्ट ऑफिस के लोग, परफेक्ट फैमिली मेम्बर और परफेक्ट जीवन साथी की उम्मीद करते रहो।
6- कभी सोने से पूर्व अच्छी पुस्तकों का स्वाध्याय मत करो।

👉🏼 *तनावरहित आनन्दित जीवन जीने के उपाय* :-

1- स्वयं को सुधारने का प्रयत्न करो और स्वयं की आत्मा में प्रकाश के लिए उपासना, साधना, आराधना करो
2- दूसरे की प्रकृति को औऱ परिस्थिति को समझ के उसे कैसे हैंडल करें इस पर विचार करें, अतः अपने मन का रिमोट कंट्रोल अपने हाथ में रखो, मनःस्थिति बदलकर परिस्थितियों को सम्हालो।
3- वर्तमान जीवन की परेशानियों के लिए स्वयं को उत्तरदायी मानो, खिलाड़ी की तरह इसे चुनौती के रूप में लो, इन परेशानी के समाधान में जुट जाओ।
4- उम्मीद किसी से मत करो, जो जैसा है उसे वैसा स्वीकारो- उदाहरण घर से निकलते समय  जैसी भी रोड मिले उस पर प्रश्नचित्त ड्राइविंग करो, मौसम बाहर कैसा भी हो, मन मे सुहाने वातावरण का निर्माण करो और लोगों की प्रकृति समझकर उन्हें हैंडल करो।
5- इंटरव्यू में जाते वक्त कम्पनी की आवश्यकता समझो और 100% अपनी तैयारी करो। कम्पनी आपको क्यों नौकरी पर रखे? आप क्या क्या अन्य प्रतियोगी से बेहतर कर सकते है उसकी तैयारी करके जाएं।
6- स्वयं की योग्यता और पात्रता बढ़ाने में ध्यान केंद्रित करो, इस संसार मे कोई परफेक्ट नहीं है। अतः परफेक्ट ऑफिस के लोग, परफेक्ट फैमिली मेम्बर और परफेक्ट जीवन साथी की उम्मीद ही मत करो।
7- रोज़ सोने से पूर्व अच्छी पुस्तकों का स्वाध्याय करो।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Sunday 6 January 2019

प्रश्न - *नमस्ते स्वेता बेटा. एक बच्चे के प्रश्न का जवाब मेरे पास नही था, इसलिए मै तुमसे जानना चाह रही हूं। रितेश नाम के bache ka अपने दादाजी से बहस हुई और उसके दादा जी ने कहा कि आज का युवा एक दम खराब है, रितेश ने कहा कि

प्रश्न - *नमस्ते स्वेता बेटा. एक बच्चे के प्रश्न का जवाब मेरे पास नही था, इसलिए मै तुमसे जानना चाह रही हूं। रितेश नाम के bache ka अपने दादाजी से बहस हुई और उसके दादा जी ने कहा कि आज का युवा एक दम खराब है, रितेश ने कहा कि आप गलत बोल रहे हो कल भी युवा की सोच और उनके बड़ो की सोच में फर्क था और आज भी फर्क है ।पहले के दादा भी अपने पोते को खराब बोलते थे, कल जो दादा होंगे वो भी खराब बोलेंगे।आप लोग खाली सुंन सुन कर बोलते हो कि समय खराब है, कुछ समय खराब नहीं है ।आप सब खाली नेगेटिविटी फेला रहे हो, अपनी बात रखने के लिए और मुझसे समाधान चाहता है कि दादा सही है या वो सही है?*

उत्तर - आत्मीय दी उसे यह पोस्ट फारवर्ड कर दीजिए:-

आत्मीय बेटे, एक बार एक कॉलेज में दो ग्रुप अक्सर लड़ता रहता था, उनमें काफ़ी मतभेद था। प्रोफ़ेसर ने एक दिन उन दोनों ग्रुप के एक एक प्रतिनिधी को अपने पास बुलाया। और बाकी ग्रुप सदस्यों को सामने बैठाया और चुप रहने को बोला।

जेब से बॉल निकाल कर टेबल पर रखते हुए दोनों प्रतिनिधियों राम और श्याम से पूँछा कि बॉल का कलर बताओ। राम ने ब्लैक और श्याम ने व्हाइट बताया। पुनः दोनों प्रतिनिधि का जगह बदल दिया गया। अब श्याम ने ब्लैक बताया और राम ने व्हाइट। दोनों के साथ साथ सबको समझ आया कि दोनों अपने लिए तो सही थे लेकिन दूसरे के लिए गलत थे। वो बॉल दो कलर की थी, आधी सफ़ेद और आधी काली।

ऐसे ही बेटे, दादा के दृष्टिकोण से जमाना खराब है, और तुम्हारे दृष्टिकोण से जमाना तरक्क़ी के साथ अच्छा है। अब सही आँकलन के लिए दादा की जगह तुम्हे और तुम्हारी जगह रहकर दादा को सोचने की आवश्यकता है। किन पैरामीटर/बिंदुओं को दादा जी जमाना और युवा के एनालिसिस हेतु प्रयोग कर रहे है, और किन पैरामीटर/बिंदुओं को तुम जमाने और युवाओं के आधार पर जज कर रहे हो यह समझना होगा।

आज का युवा ज्यादा समझदार और एक्टिव है एकतरफ तो दूसरी तरफ बहुत बड़ा बेवकूफ और मदहोश भी।

एक पोस्ट ग्रेजुएट - नशे के समस्त दुष्परिणामों को पढ़कर भी जानबूझकर नशा कर रहा है। देहव्यापार अब बच्चों का भी हो रहा है। दरिंदगी का आलम यह है कि 8 महीने की बच्ची के रेप की घटनाएं भी हो रही है। लाखों की सँख्या में रेप और मर्डर पिछले पांच वर्षों में हो चुके है। एक लड़की दस लड़को को एकत्र कहीं खड़ा देख ले तो भयग्रस्त हो जाये और एक लड़का यदि शहरों में दस लड़कियों को खड़ा देख ले तो भयग्रस्त हो जाता है। पोर्न साइट और फिल्में मर्डर और क्राइम की ट्रेनिंग घर बैठे मुहैया करवा रहे हैं।


टूटते रिश्ते और बिखरता जीवन सर्वत्र है। युवा मन की अशांति का मुख्य कारण घटते जॉब अवसर और बढ़ती जनसंख्या है। न आज पीने को साफ पानी है और न लेने को साफ हवा और खाने को शुद्ध भोजन।

लेकिन इन सबके लिए जिम्मेदार कौन है, तुम्हारे दादा जी की और पापा के उम्र के सभी लोग। जिन्होंने आने वाली पीढ़ी के लिए नारकीय वातावरण तैयार करके दिए। दादी ने बड़े गले का ब्लाउज का फैशन किया, मम्मी ने सलवार सूट फ़ैशन में कुछ कपड़े कम किया, बेटी ने दादी और मम्मी का टोटल कपड़ा कम किया अब पोती अत्यंत कम कपड़ो के फैशन तक पहुंच गई।

दादा ने मस्ती की और पाश्चात्य का अंधानुकरण किया, पापा अंध भक्त बने और अब पोता पाश्चात्य का दास/ग़ुलाम बन चुका है।

जिस ज़हर का बीजारोपण पहले की जनरेशन ने किया अब वो वृक्ष बन गया है। अतः दादा को लगता है अरे हमारे जमाने मे तो जहर/वैचारिक प्रदूषण का पौधा तो छोटा था, नई जनरेशन के युवा तो जहर/वैचारिक प्रदूषण के वृक्ष बन गए है। बेतहाशा जनसँख्या वृद्धि की, कभी किसी ने बढ़ती जनसंख्या, घटते संसाधन और बढ़ता वैचारिक प्रदूषण के बारे मे कभी सोचा ही नहीं।

बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय।

अतः बेटा, अब अगर हम लोग कुछ नहीं किये तो सामूहिक मौत को निमन्त्रण देँगे। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, अलग फ्लैट खरीद के अपने बच्चों को दे सकते हो लेकिन बेटा शुद्ध हवा, शुद्ध पानी, शुद्ध अन्न कहाँ से दोगे?

समय अब लड़ने का नहीं है, समस्या के समाधान करने का समय है।

बेटा, कोई इंसान आजकल अपनी गलती और भूलो को नहीं देखता। केवल बाहर दूसरों की गलती और भूलो को देखता है। इसलिए युद्ध होता है।

तुम्हें मैच्योर बनकर ऊंची दृष्टि से वर्तमान समस्या को समझना होगा और समाधान में जुटना होगा। क्योंकि करना तुम्हे है तो समझना भी तुम्हे होगा। सभी युवाओं को समझ विकसित करनी होगी और समाज के प्रति जिम्मेदारी उठानी होगी।

अब दादा जी समझ भी गए तो कुछ करने की अब उनमें उतनी ताकत नहीं है। जिस ओर युवा चलेगा उस ओर जमाना चलेगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

यूट्यूब लिंक - कन्या कौशल की आवश्यकता क्यों और कैसे

*कन्या कौशल की आवश्यकता क्यों और कैसे?*

https://youtu.be/ARVOk66ld-8

*भारतीय संस्कृति का आधार - यज्ञ और गायत्री मंत्र*

https://youtu.be/dwSCqp8sc-A

*कविता - मां, मुझ अजन्मी को जन्म लेने दो, पापा मुझे गर्भ में मत मारो*

https://youtu.be/kWTiG73L4lI


*कविता - स्वयं की रक्षा का भार स्वयं सम्हालो*

https://youtu.be/8S4YVSgTEj4

*कविता - बेटी पैदा हुई है तो दहेज मत जुटाओ*

https://youtu.be/F24MxOrS2zQ

कविता - मां, मुझ अजन्मी को जन्म लेने दो, पापा मुझे गर्भ में मत मारो, कन्या भ्रूण हत्या

*मां, मुझ अजन्मी को जन्म लेने दो, पापा मुझे गर्भ में मत मारो*
😭😭😭😭😭😭😭
मां, मैं तुम सी एक नारी हूँ,
क्या ये खता भारी है,
इसलिए मुझे गर्भ में ही मारने की,
चल रही तैयारी है।

मां,मुझे भी जन्म लेने दो,
मां, मुझे भी संसार देखने दो,
पापा, मुझे भी जन्म लेने दो,
पापा, मुझे भी संसार देखने दो।

क्या स्त्री के बिना,
जीवन सृष्टि हो सकती है?
क्या स्त्री के बिना,
किसी की घर गृहस्थी बस सकती है?

मां, मेरी हत्या मत करो,
पापा, इस डॉक्टर को रोक लो,
मुझे दर्द हो रहा है,
मेरा रक्त भीतर बह रहा है।

मेरे टुकड़े टुकड़े ये डॉक्टर,
कसाई बनके कर रहा है,
मां अब बेहोश है,
और पिता मेरी हत्या होते देख रहा है।

मुझसे मेरा शरीर छीन लिया,
मुझे भटकती आत्मा बना के छोड़ दिया,
मेरा अस्तित्व मुझसे छीन लिया,
एक बेटी को उसके माता-पिता ने,
गर्भ में ही मार दिया।😭😭

कोई जेल न होगी,
कोई सज़ा संसार न देगा,
लेकिन वो ऊपर वाला,
तुम्हारे कर्मों का,
तुमसे जरूर हिसाब लेगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ एसोसिएशन

Saturday 5 January 2019

प्रश्न - *गायत्री उपासना क्यों जरूरी है?*

प्रश्न - *गायत्री उपासना क्यों जरूरी है?*

उत्तर -  ऐसा ही पश्न एक कॉलेज गोइंग युवा ने पूँछा।

हमने उससे कहा, तर्क से हम तुम्हें समझाएंगे, तो तर्क से ज्ञान मिलेगा भावना नहीं। जिस तरह प्रेम तर्क युक्त नहीं है वैसे ही उपासना तर्क युक्त नहीं है।

 आजकल तुम्हारे जैसे अधिकतर युवा पढ़ाई के बोझ और घर की प्रॉब्लम के कारण शांति की तलाश में है। दिमाग़ को रिलैक्स करने का उपाय ढूँढ़ रहे है। अच्छे लोग तुम्हें गायत्री उपासना(जप और ध्यान) की सलाह देंगे और बुरे लोग नशा करने की सलाह देंगे। नशा ग़म भुलायेगा और गम के कारण का निदान नशा नही देगा। उपासना गम को भुलायेगा नहीं बल्कि गम के कारण को मिटाएगा।

उदाहरण स्वरूप घर के फर्श पर कचड़ा है, अब उसे नशा कुछ पल के लिए ढँक देगा। ढंकना आसान है कम वक्त लेगा। लेकिन कचड़ा वहीं है, वो सड़ेगा और दुर्गंध और कीड़े सब पनपेंगे।

उपासना अर्थात सफ़ाई करना, झाड़ू-पोछा करके साफ सफाई में वक्त भी लगेगा और मेहनत भी लगेगी। लेकिन स्वास्थ्य तो मिलेगा।

अब चयन तुम्हारे हाथ मे है, कि गम भुलाना है या गम मिटाना है? कचड़ा साफ करना है या मात्र कुछ देर के लिए ढंकना है?

बेटे गुड़ की व्याख्या से उसका स्वाद समझना मुश्किल है, इसी तरह उपासना के लाभ भी अनुभूति जन्य है। क्योंकि दुनियाँ अनुभूति जन्य चीज़ें शब्दो द्वारा विस्तार से बताना मुश्किल है। एक काम करो तुम उगते हुए सूर्य का ध्यान करो, भावना करने कि तुम्हारा सूक्ष्म शरीर सूर्य के पास गया और चार्ज हो गया। अब तुम सूर्य से मिलकर सूर्य हो गए जैसे आग में मिलकर लकड़ी आग हो जाती है। अब तुम प्रकाश के गोले की तरह अपने शरीर में प्रवेश कर गए। ऐसा ध्यान एक वर्ष तक गायत्री जप के साथ करके देखो, 3 माला रोज अर्थात 324 मंन्त्र रोज। अच्छी पुस्तक से थोड़ा स्वाध्याय करके रोज सोना।

एक वर्ष तक करो, यदि लाभ न मिले तो छोड़ देना। बेटा, इतना समझ लो यह वो जीवन अमृत है जो तुम्हें हमेशा चैतन्य और दिव्य ऊर्जा से भर देगा।

वह युवा थोड़ा व्यथित, हैरान, अशांत और परेशान था, अतः उसने इसे चैलेंज की तरह लिया और करने लगा। 3 महीने बाद ही आकर उसने बताया कि दी मन बहुत शांत हो गया है, समस्या वही है लेकिन उन्हें सम्हालना थोड़ा थोड़ा सीख रहा हूँ। एक वर्ष बाद जब दिसम्बर 2018 में उससे मिली तो देखकर हतप्रभ रह गई। उसके चेहरे की कांति/ओज बढ़ गया था और वह बड़ा शांत भाव मे था। हमने उससे पूँछा कि बेटा क्या विचार है, गायत्री उपासना अगले वर्ष करना है या छोड़ना है? वो बोला दी, आपने सत्य कहा था, यह गुड़ है, इसका स्वाद और अनुभूति निराली है। मेरे जैसे लड़के जो व्यथित थे उनमें से कुछ ने नशे का मार्ग अपनाया और आज उनकी हालत दयनीय है। मेरे दो दोस्त जो मेरी बात मानकर उपासना किये आज वो बड़े खुश है, और भी बहुत ख़ुश हूँ।

 धन्यवाद दी, आज समझ भी आ गया कि गायत्री उपासना क्यों करें? और लोगो को समझा भी रहा हूँ। जीवन की रोड वही है, यह शरीर रूपी गाड़ी वही है, गायत्री उपासना ने हमें ड्राइविंग सिखा दी साथ ही अनलिमिटेड जीवनउर्जा का ईंधन दे दिया है, इसलिए जीवन के सफर को एन्जॉय कर रहे हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday 4 January 2019

प्रश्न - *विपश्यना साधना के दौरान हमे बताया गया था कि कर्मो मे ९०% भूमिका हमारे अवचेतन की रहती है, केवल १०% भूमिका चेतन मन की होती है, परंतु अपने मिशन मे ही कही पुरुषार्थपरायणता की व्याख्या-विवेचना के प्रसंग मे हमने सुना था

प्रश्न - *विपश्यना साधना के दौरान हमे बताया गया था कि कर्मो मे ९०% भूमिका हमारे अवचेतन की रहती है, केवल १०% भूमिका चेतन मन की होती है, परंतु अपने मिशन मे ही कही पुरुषार्थपरायणता की व्याख्या-विवेचना के प्रसंग मे हमने सुना था कि कर्मो मे हमारे पुरुषार्थ की भूमिका ७०% व भाग्य की भूमिका १०% होती है | इन दोनो मे असमंजस होता है, समाधान कीजिये|*

उत्तर - आत्मीय बहन, असमंजस इसलिए हो रहा है क्योंकि आप दो अलग चीज़ों को एक समझ रही है।

चेतन को कर्म और अवचेतन को भाग्य समझने की भूल के कारण असमंजस है।

विपश्यना में बिल्कुल सही बताया गया था कि 90% अवचेतन मनुष्य के कर्म को प्रभावित करता है और 10% चेतन मनुष्य के कर्म को प्रभावित करता है।

लेकिन अवचेतन तक सूचना पहुंचाने का कार्य तो चेतन ही करता है। चेतन ही वह द्वार है जिससे अवचेतन तक सूचनाएं और भावनायें जाकर संग्रहित होती है। जो एक बार संग्रहित हो गया तो जन्मजन्मांतर तक चलेगा। जो अवचेतन में पहुंच गया वो ऑटो पायलट मोड में चला जाता है। वो अवचेतन की जमा आदतें और सँस्कार स्वतः मनुष्य के जीवन मे अपना असर दिखायेंगी। उदाहरण - लोकसेवी बनना हो या डाकू बनना हो। एक बार अभ्यस्त हो जाने पर जो अवचेतन में जमा हो गया अब वो स्वभाव बन जाता है।

भाग्य अर्थात जमा हुआ अच्छा कर्मफ़ल, प्रारब्ध अर्थात जमा हुआ बुरा कर्मफ़ल। यह भी जन्मजन्मांतर तक चलता है, आत्मा से सम्बंधित होता है।

मिशन मे ही कही पुरुषार्थपरायणता की व्याख्या-विवेचना के प्रसंग में कर्म 70% जीवन मे प्रभाव डालता है और भाग्य 30% यह भी सत्य है। इसे कहानी के माध्यम से समझते हैं।

दो व्यक्ति थे, वर्तमान जीवन मे एक पापी और एक पुण्यात्मा दोनों राजा के दरबार मे आयोजित भोज में सम्मिलित होने गए। राजा स्वर्ण आभूषण लुटा रहा था, पापी को बहुमूल्य हार मिला और वो ख़ुशी से उछल पड़ा। पुण्यात्मा को जिस बड़े थाल में स्वर्णाभूषण रख के बांटा जा रहा था उससे गम्भीर चोट लग गयी। रक्त की धारा बह गई, वो दर्द से तड़फ उठा।

जितने लोग उतनी मुंह बातें शुरू हो गई। बोलने लगे भगवान कितनी नाइंसाफी करता है। पापी को पुरस्कार और पुण्यात्मा को दण्ड इत्यादि इत्यादि।

राजा ने अपने तपस्वी, पुरोहित और महान ज्योतिषि से पूँछा।

 ज्योतिषी ने बताया, वर्तमान जन्म का पापी पिछले जन्म का पुरोहित था। पुरोहित अच्छे कर्म करता लेकिन हमेशा धन का चिंतन करता, किसी भी तरह चाहे वो अनैतिक तरीक़े से ही क्यों न हो कमाने का चिंतन करता। इस कारण उसके लगातार दुश्चिंतन ने उसके अवचेतन में कुसंस्कार गढ़ दिए। लेकिन उसके अच्छे कर्मों ने उसका अच्छा भाग्य गढ़ दिया। इस जन्म में अच्छे घर मे जन्मा और आज के दिन उसे राज्य मिलना था। लेकिन उसके अवचेतन मन के कुंसंस्कारो ने उसे पापी बना दिया और पाप कर्म करने लगा। पाप ने भाग्य के प्रभाव को कम कर दिया और उसे केवल बहुमूल्य हार देकर छोड़ दिया।

ज्योतिषी ने आगे बताया, वर्तमान जन्म का पुण्यात्मा पिछले जन्म का कसाई था। कसाई बुरे कर्म करता लेकिन हमेशा अपने बुरे कर्म से घृणा करता, साथ ही पुरोहितं जैसे तपशील बनने और लोकसेवी बनने का चिंतन करता, किसी भी तरह वो पुण्यात्मा बनने का चिंतन करता। इस कारण उसके लगातार सद्चिन्तन ने उसके अवचेतन में सुसंस्कार गढ़ दिए। लेकिन उसके बुरे कर्मों ने उसका बुरा प्रारब्ध गढ़ दिया। इस जन्म में जन्म लेते ही अनाथ हो गया  और आज के दिन उसे मृत्युदंड मिलना था। लेकिन उसके अवचेतन मन के सुसंस्कारो ने उसे पुण्यात्मा बना दिया और अच्छे कर्म करने लगा। पुण्य कर्मों ने कठिन प्रारब्ध के प्रभाव को कम कर दिया और उसे केवल थोड़ी सी चोट देकर छोड़ दिया।

कर्म भाग्य को बदल सकता है, इसलिये यह सिद्ध हुआ कि 70% कर्म और 30% भाग्य असरकारक है। भाग्य ने ग़रीब घर मे पैदा किया लेकिन कर्म से अमीर बना जा सकता है।

अवचेतन प्रेरित करता है उसे स्वीकार और अस्वीकार किया जा सकता है। यह सूक्ष्म है। भाग्य एक स्थूल परिणाम है जैसे कुछ अच्छी परिस्तियाँ बनना, अच्छे घर में जन्मना, लॉटरी लगना इत्यादि।

*गुरुदेव कहते हैं, जीवन में  परिस्थिति हमारे हाथ में नहीं है और भाग्य भी अपने हाथ में नहीं है। हमारे हाथ में केवल और केवल पुरुषार्थ है और कुछ भी नहीं। अवचेतन में जमें कुसंस्कारों को पुरुषार्थ द्वारा हटाया जा सकता है और सुसंस्कारों को उभारा जा सकता है।*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 2 January 2019

प्रश्न - *दी, ये बताओ कौन से व्यक्ति के लिए कौन सा ध्यान उपयुक्त रहेगा? कौन से वक्त ध्यान करना चाहिए? कितने समय तक ध्यान करना चाहिए? किस आसान और शारीरिक स्थिति में ध्यान करना चाहिए?*

प्रश्न - *दी, ये बताओ कौन से व्यक्ति के लिए कौन सा ध्यान उपयुक्त रहेगा? कौन से वक्त ध्यान करना चाहिए? कितने समय तक ध्यान करना चाहिए? किस आसान और शारीरिक स्थिति में ध्यान करना चाहिए?*

उत्तर - आत्मीय भाई,

*ईश्वरीय उपासना और ईश्वरीय चेतना से जुड़ने के दो माध्यम है, जप और ध्यान। यहां केवल ध्यान पर चर्चा करेंगे।*

जप के साथ ध्यान जरुरी है, और ध्यान बिना किसी माध्यम या विचार के  निर्विचार भी किया जा सकता है। अब जैसे निराकार उपासना से साकार उपासना सहज़ होती है। वैसे ही मुख्य ध्यान तक पहुंचने के लिए धारणा के जरिये आसान होता है।
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👉🏼 *धारणा* - एक प्रकार का बीजारोपण है, जिसे आप नेत्र बन्द करके शरीर स्थिर करके कल्पना करते हुए सोचते हैं।

👉🏼 *ध्यान* - ध्यान एक तरह से बीज से पौधा निकलने की तरह है, बीज से आप जबरजस्ती पौधा बाहर नहीं निकाल सकते, लेकिन मिट्टी में बोकर समय समय पर खाद पानी देते रहेंगे तो बीज से पौधा स्वतः निकलेगा। ध्यान स्वतः होता है किया नहीं जाता।

👉🏼 *समाधि* - पौधे से फ़ल निकलना ही समाधि है। यह भी स्वतः होगी।

आपके हाथ में न ध्यान करना है और न ही समाधि। केवल धारणा में एक लक्ष्य पर आप कल्पना करते हुये एकाग्र हो सकते है। बाकी स्वतः होगा।

*दही जमाने के लिए जामन डालकर छोड़ देना होता है। इसी तरह एक विचार लक्ष्य पर एकाग्र हो स्वयं को स्थिर कर देना होता है।*

👉🏼 प्रश्न - *कौन से व्यक्ति के लिए कौन सा ध्यान उपयुक्त रहेगा?*

उत्तर - ध्यान व्यक्ति के हिसाब से नहीं बल्कि रुचि या उसकी समस्या के अनुसार किया जाता है, जैसे किसके किचन में क्या पकेगा यह उसकी रुचि पर निर्भर करता है और उसकी समस्या पर निर्भर करता है।

*स्वास्थ्य लाभ के लिए* - जैसे किचन में स्वास्थ्यकर भोजन पकता है, वैसे ही स्वास्थ्य लाभ के लिए प्राणशक्ति वर्धक (रेकी) वाले ध्यान करते हैं, उदाहरण - चक्रों पर ध्यान, ऊर्जा शरीर की सफाई का ध्यान, आकाश-धरती-वायु-अग्नि-जल से ऊर्जा लेने का ध्यान, रोग मुक्ति के भाव और उसमें प्राणशक्ति ब्रह्माण्ड से संचार का ध्यान।

*चेतना की शिखर यात्रा के लिये और भीतर के ख़ज़ानों की खोज के लिए* - पंचकोश जागरण ध्यान, प्राणाकर्षण ध्यान, उगते हुए सूर्य में समाने का ध्यान, ईष्ट देवता या गुरु से जुड़ने का ध्यान।

*Where attention goes, Energy flows* - आप जिधर विचारों को केन्द्रीभूत करेंगे उसी ओर ऊर्जा प्रवाहित भी होती है और उस ऊर्जा की ग्रहणशीलता भी बढ़ती है। *उदाहरण* - सूर्य की धारणा युक्त ध्यान करने पर सूर्य की शक्तियां, तेज़, प्रखरता, गति और गुण आपमें प्रवेश करेंगे। यदि चन्द्र की धारणा युक्त ध्यान करने पर सूर्य की शक्तियां, शीतलता, स्थिरता और गुण आपमें प्रवेश करेंगे। साधारण शब्दो मे जिसका ध्यान करोगे वैसे हो जाओगे।

👉🏼 प्रश्न - *कौन से वक्त ध्यान करना चाहिए?*

उत्तर - जैसे उत्तम नियम के अनुसार किचन में कम से कम सुबह शाम दो वक्त भोजन बनना ही चाहिए। नहीं तो एक वक्त ही सही बने जरूर। इसी तरह कम से कम दो वक्त सुबह- शाम ध्यान करना चाहिए। न बन पड़े तो एक वक्त जरूर करें। किचन में दोपहर या किसी भी वक्त भोजन तो बन ही सकता है, जब भी बनेगा भूख मिटाएगा। इसी तरह ध्यान भी किसी भी वक्त किया जा सकता है, जब भी करोगे लाभ तो मिलेगा ही।

👉🏼 प्रश्न - *कितने समय तक ध्यान करना अनिवार्य है?*

उत्तर - जिस तरह भोजन में कितनी कैलोरी चाहिए, ये मनुष्य की उम्र, मनुष्य की भूख और उसके वज़न पर निर्भर करता है। इसी तरह ध्यान कम से कम कितनी देर करना आवश्यक है - यह मनुष्य की उम्र, शरीर के वज़न, शरीर का स्वास्थ्य पर निर्भर करेगा। *साधारणतया जो भी आपकी उम्र हो उतनी मिनट का ध्यान दो वक्त अनिवार्य है।*

👉🏼 प्रश्न - *ध्यान किस आसन और शारीरिक स्थिति में करना चाहिए?*

उत्तर - ध्यान हमेशा ढीले और आरामदायक वस्त्र पहन कर करना चाहिए। आसन में ऊनि वस्त्र बिछाकर करना चाहिए। दिशा पूर्व और उत्तर सर्वोत्तम है। बैठकर नेत्र बन्द, कमर सीधी और सुखासन या पद्मासन सर्वोत्तम है। दोनों हाथ एक के ऊपर एक गोदी में या ध्यान मुद्रा दोनों अच्छा है।

 लेटकर भी ध्यान किया जा सकता है। बस कमर सीधी और मुंह आसमान की ओर होना चाहिए।

ध्यान में हथेली हमेशा आकाश की ओर होनी चाहिए।

ध्यान हल्के पेट मे होना चाहिए, कम से कम ध्यान से पूर्व एक घण्टे तक कुछ गरिष्ठ न खायें। जितना हल्का पेट होगा उतना बढ़िया ध्यान लगेगा।

ध्यान की जगह शांत होनी चाहिए, शांत जगह न मिले तो कान में ईयर प्लग या हेडफोन लगा के ध्यान कर लें।

अभ्यस्त हो जाने पर चलते फिरते भी ध्यान होने लगता है, चलते फिरते ध्यान शुरू करने के लिए तीन बार गहरी श्वांस के साथ *सो$हम* बोलते हैं। फिर स्वयं से कहते हैं शरीर चैतन्य है और मन चैतन्य है। मन स्थिर है और शांत है। मैं अवेयर/जागरूक हूँ। अब जिसकी चाहे उसकी धारणा/कल्पना करते हुए ध्यान ऑफिस/यात्रा कहीं भी कर सकते है।

दुनियाँ का कोई भी धर्म हो, उसकी साधना की जड़ ध्यान ही है। सूक्ष्म अंतर्जगत में प्रवेश केवल ध्यान के वाहन द्वारा ही किया जा सकता है। गुह्य से गुह्य दिव्यचेतना युक्त साधनाएं, प्राणस्वरूप उच्चस्तरीय साधनाएं, रेकी, ज़ेन योगा, जैन-बौद्ध-क्रिश्चन-सूफ़ी सबका केंद्र ध्यान ही तो है।

प्रश्न - *ध्यान कैसे और कहाँ सीखने जाएँ? क्या घर बैठे ध्यान सीख सकते है?*

उत्तर - हाँजी, आप गायत्री तपोभूमि मथुरा या युग गायत्री तीर्थ शान्तिकुंज जाकर ध्यान सीख सकते हो। या घर बैठे यूट्यूब पर शान्तिकुंज वीडियो में श्रद्धेय डॉक्टर साहब द्वारा कराए ध्यान के वीडियो से सीख कर घर मे प्रैक्टिस कर सकते हो।

https://youtu.be/04Dl89YWTYU

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

रेकी - प्राणशक्ति विज्ञान

प्राणिक हिंलिंग एक भावनात्मक क्रिया है जिसमें प्रारम्भिक शिक्षा में स्थूल क्रिया कलाप और विभिन्न पॉश्चर द्वारा भावनात्मक संप्रेषण सिखाया जाता है।

ऊर्जा शरीर स्थूल शरीर के चारों तरफ़ फैला मानवीय विद्युत ही है, जिसके प्रत्येक कण ऊर्जा से भरे है, जिसे केवल भावना से उद्दीप्त किया जा सकता है और भावना से ही इसे नियंत्रित किया जा सकता है।

इसे विस्तार से समझने के लिए दो पुस्तक - *मानवीय विद्युत के चमत्कार* और *प्राण चिकित्सा* अवश्य पढ़ें।

साधना की उच्च अवस्था और मन को ध्यानस्थ करने की कुशलता हासिल होने पर दूरस्थ व्यक्ति तक भी प्राण प्रवाह पहुंचाकर उसे स्वस्थ किया जा सकता है।


रेकी एक जापानी शब्द है जिसका अर्थ होता है दिव्य चेतना या ईश्वरीय ब्रह्माण्डीय शक्ति। जिसे भारत में प्राणशक्ति और दिव्यचेतना दोनों नाम से जाना जाता है।

प्राचीनतम ग्रन्थों में जो सिद्ध महापुरुषों द्वारा स्पर्श द्वारा रोगमुक्ति के आख्यान मिलते है, वो वास्तव में प्राणशक्ति का सम्प्रेषण (रेकी) ही होता था।

सिद्ध रेकी मास्टर बनने के लिए मन की स्थिरता आवश्यक है और विचारों पर नियंत्रण आवश्यक है। जापानी शब्द ज़ेन योगा जिसका अर्थ ध्यान योग है इसमें सहायक है। स्वयं का शरीर ऊर्जा चैनल तभी बनेगा जब मन पवित्र, हृदय निर्मल और लोकसेवा की भावना मन में सुदृढ हो। इसके बिना केवल छुटपुट ही कार्य और प्रभाव  संभव है।

21 दिन या 40 दिन के ध्यान योग द्वारा इसमें इतनी सफ़लता पाई जा सकती है कि स्वयं का इलाज़ करना और स्वयं के ऊर्जा शरीर को नियंत्रित करना संभव हो सकेगा।

श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *यदि कई महीनों से खाली मकान में किसी नकारात्मक शक्ति और ऊर्जा का आभास हो, पुश्तैनी मकान हो तो क्या करें?*

प्रश्न - *यदि कई महीनों से खाली मकान में किसी नकारात्मक शक्ति और ऊर्जा का आभास हो, पुश्तैनी मकान हो तो क्या करें?*

उत्तर - आत्मीय भाई, मकान उस घर में रहने वाले लोगों की ऊर्जा और विचारों को संग्रहित रखता है।

यदि आपसे पूर्व उस मकान में कुत्सित विचारो के लोग रह रहे होंगे तो आपको उस घर मे अशांति महसूस होगी।

भूत प्रेत की कल्पना और दिखना 99% कपोल काल्पनिक होता है। केवल 1% ही इसमें सच्चाई होती है। यदि उस घर में आगज़नी, अकाल मृत्यु, हत्याकाण्ड या कोई जघन्य अपराध और मर्डर हुआ होगा तो ही भूत-प्रेत की संभावना बनती है। अतः आसपास उस घर के लोगों का इतिहास तलाशिये फिर निर्णय पर पहुंचिए। केवल 1% मनुष्य वही प्रेत बनता है जो प्रचंड मोह में लालच में या बदले की भावना में होता है। अन्यथा सब मुक्त हो जाते हैं। मनुष्य का शरीर स्थूल हो या सूक्ष्म विद्युतीय एटम(परमाणु) से बना है और प्रत्येक कण स्वतन्त्र सृष्टि करने में सक्षम है। कभी कभी ऐसे ही कण  एक्टिवेट हो जाते है और स्वतन्त्र सृष्टि करके अपनी उपस्थिति का अहसास देते हैं।

बन्द पड़े कमरे ऊर्जा युक्त शब्दों के अभाव में, प्रकाश के अभाव में भी थोड़े अशान्त और डरावने लगते है। कुछ हमारी कल्पना भी होती है।

किसी मृत व्यक्ति की सूक्ष्म प्रतिमा या नकारात्मक ऊर्जा ज्यादा कठोर न हुई तो इसे आसानी से हटाया जा सकता है। ऐसे मकानों में उर्जावान अधिक मनुष्यों के साथ रहने और ऊर्जा युक्त शब्दों को बोलने से और उनके मानवीय विद्युत की गर्मी से स्वतः घर की ऊर्जा ठीक हो जाती है, नकारात्मकता का शमन हो जाता है। दिव्य ऊर्जा युक्त गायत्री मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र से 40 दिन लगातार यज्ञ करने से किसी भी मकान की ऊर्जा को शुद्ध किया जा सकता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...