Thursday 26 July 2018

कविता - अन्तस् में गुरुपूर्णिमा - पूरे माह सद्गुरु के श्री चरणों में*

*अन्तस् में गुरुपूर्णिमा - पूरे माह सद्गुरु के श्री चरणों में*

जीवन एक समुद्र है,
सतह में लहरों का शोर है,
समस्याओं का रोर है,

सतह पर झंझावात है,
अनवरत द्वंद्व और संघर्ष है,
संघर्षरत लहर उन्मत्त है।

अन्तर्मन समुद्र का केंद्र है,
यहां गहन शांति और मौन है,
अन्तस् सब खोज़ो का अंत है।

जब बाह्य सतह से मन का तादात्म्य रहता है,
तब मन संघर्षरत अशांत संतप्त रहता है,
जब अन्तस् केंद्र से मन का तादात्म्य रहता है,
तब मन शांत सन्तुष्ट और तृप्त रहता है।

भीतर मौन हो तो,
जीवन मधुर संगीतमय होता है,
अन्तस् केंद्र में ध्यान स्थित हो तो,
धरती पर ही स्वर्ग अनुभूत होता है।

श्रावण माह हर रोज़ गुरुपूर्णिमा मनाना है,
अन्तस् में सद्गुरु के साथ बिताना है,
चन्द्रायण व्रत में स्वयं को तपाना है,
हर रोज़ परम् सत्य को अनुभूत करना है।

🙏🏻 *गुरुपूर्णिमा 27 जुलाई से 26 अगस्त श्रावणी पूर्णिमा तक अन्तस् में ध्यानस्थ हो आइये हम सब गहन विश्राम करें और चांद्रायण साधना में ज्यादा से ज्यादा वक्त मौन रहें। इसलिए एक माह तक शोशल मीडिया व्हाट्सएप फेसबुक से यथासम्भव दूर रहें। साधना के समय फोन स्विचऑफ या साइलेंट करके साधना करें। अन्तस् से तादात्म्य स्थापित करें । पिछले 11 महीनों में इतनी सारी पोस्ट पढ़ी, साहित्य पढ़ा, अब उस पर एकांत में मनन चिंतन का सही वक्त  चांद्रायण साधना माह-श्रावण माह है ।*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - व्रत उपवास के फायदे बतायें

प्रश्न - *दी, अनुष्ठान और उपवास के दिनों में घर वाले मज़ाक उड़ाते है, तथा लोग कहते है कि भगवान ने कभी नहीं कहा है कि स्वयं को भूखा रख के कष्ट दो। ज़िंदगी चार दिन की है हंसते खेलते खाते पीते जियो, कहाँ व्रत के चक्कर में पड़ी हो। इन लोगों को कैसे हैंडल करूँ, कि यह व्रत के दौरान मुझपर अनावश्यक दबाव भोजन और पार्टी इत्याफी के लिए न करें।*

उत्तर - प्रिय आत्मीय बहन, आजकल सभी लोग फेसबुक में और पर्सनल फ़ैमिली व्हाट्सएप ग्रुप रखते हैं। अतः आप यह पोस्ट अपने फेसबुक और व्हाट्सएप ग्रुप में डाल दीजिए।

प्रिय व्रत-उपवास का मज़ाक उड़ाने वाले भाइयों एवं बहनों, यदि आप पढ़े लिखे है तो गूगल पर उपवास/Fasting के फ़ायदे सर्च कीजिये लम्बी लिस्ट मिल जाएगी।

उपवास शरीर शोधन और प्राण ऊर्जा बढ़ाने की अति महत्त्वपूर्ण प्रणाली है, इस लेख को निम्नलिखित लिंक पर जाकर पढ़े:-
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1969/January/v2.25

*व्रत-उपवास से आयुर्वेद कहता है कि हमें निम्नलखित लाभ मिलेंगे,आयुर्वेद में बीमारी को दूर करने के लिए शरीर के विषैले तत्वों को दूर करने की बात कही जाती है और उपवास करने से इन्हें शरीर से निकाला जा सकता है। इसीलिए 'लंघन्‌म सर्वोत्तम औषधं' यानी उपवास को सर्वश्रेष्ठ औषधि माना जाता है। :-*

* मानसिक स्पष्टता में वृद्धि होती है तथा मस्तिष्क का धुंधलका छँट जाता है।
* तत्काल एवं सुरक्षित तरीके से वजन घटता है।
* तंत्रिका तंत्र में संतुलन कायम होता है।
* ऊर्जा का स्तर बढ़ने से संवेदी क्षमताओं में वृद्धि होती है।
* शरीर के सभी अवयवों में ऊर्जा का संचार होता है।
* सेल्युलर बायोकेमेस्ट्री में संतुलन कायम होता है।
* त्वचा संवेदनशील, नर्म और रेशमी हो जाती है।
* आपके हाथ-पैरों का संचालन सरलता से होने लगता है।
* पाचन तंत्र ठीक होकर सुचारु रूप से काम करने लगता है।
* आंतों में भोजन से रस सोखने की क्रिया में वृद्धि होती है।

*Japanese scientist Dr Yoshinori Oshsumi’s Nobel prize-winning* work on autophagy has shown how damaged cells self-eat or self-destruct — keeping the body in good condition. The other benefit is that when the self-destruction occurs, there is the inducement of the growth hormone which allows for the generation of new cells.

Autophagy of the body means it cleanses itself of damaged, dead and unrepaired cells.

इसे निम्नलखित लिंक पर पूरा पढ़ लें:-
https://www.google.co.in/amp/s/www.deccanchronicle.com/amp/lifestyle/health-and-wellbeing/161016/cell-strategy-how-fasting-makes-the-human-body-better.html

अनुरोध हैं कि भगवान के नाम पर झूठ न बोलें, मनगढ़ंत सुनी सुनाई आधारहीन बातों पर किसी को ज्ञान न दें।, मनुष्य का आज का खान-पान पूर्णतया अप्राकृतिक है जो मनुष्य ने स्वाद लिप्सा हेतु स्वास्थ्य मानकों की धज्जियां उड़ाते हुए बनाई है। स्वयं के शरीर का ही टेस्ट करवाये और स्वयं चेकलिस्ट बना लें कि शरीर कितना स्वस्थ है और कितना नहीं।

भगवान ने क्या कहा है, यदि यह आपको पता होता तो आप किसी व्रत करने वाले का कभी मज़ाक नहीं उड़ायेंगे। अध्यात्म, आयुर्वेद, आधुनिक चिकित्सा पद्धति और आज का विज्ञान भी उपवास को महत्तव देता है।

उपवास अनुष्ठान के दौरान करने से प्राण ऊर्जा उर्ध्वकेन्द्रों में गमन करती है, और मनःसंस्थान सन्तुलित और एक्टिव बनता है। यह EEG मशीन से भी चेक किया जा सकता है।

अतः बुद्धिमत्ता यह कहती है कि किसी को कुछ कहने से पहले स्ट्रॉग एविडेन्स/सबूत के आधार पर कुछ कहना चाहिए। अन्यथा दूसरों की जगह अपना मज़ाक उड़ता है।

यह पार्टी का होटल का खान पान शरीर और मन दोनों के लिए विषैला है, एक शारीरिक-मानसिक-आध्यात्मिक स्वास्थ्य की ओर अग्रसर अनुष्ठान करने वाले व्यक्ति को बेवजह पार्टी के खान-पान रूपी अस्वास्थ्यकर भोजन को करने के लिए प्रेरित करके कौन सा ज्ञान प्रदर्शित कर रहे हैं? किसका भला कर रहे हैं?

अतः अनुरोध है, आप सब भी उपवास और अनुष्ठान करके रोगमुक्त और प्रशन्नचित्त बने, आध्यात्मिक मनोविज्ञान को समझें। अनुरोध है, कुतर्क नहीं केवल तर्क करें वो भी सबूत के साथ।🙏🏻

एक बार एक मासीय चन्द्रायण स्वयं हिम्मत करके देखें, और अपने शारिरिक,मानसिक, आध्यात्मिक स्वास्थ्य का आनन्द लें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 25 July 2018

स्कूल जाने वाले सभी बच्चों के अभिभावकों से एक अपील*

*स्कूल जाने वाले सभी बच्चों के अभिभावकों से एक अपील*

1. शाम 8:00 बजे तक टीवी बंद कर दें। टीवी पर आठ बजे के बाद आपके बच्चे से ज्यादा महत्वपूर्ण कुछ नहीं होता है।
2. अपने बच्चे की स्कूल डायरी देखने के लिए 30-45 मिनट निकालिए। उसके गृहकार्य पूरे कराइए।
3. रोज सभी विषयों में उनका प्रदर्शन देखिए। उन विषयों का खास ध्यान रखिए जिसमें वह कमजोर है / अच्छा नहीं कर रहा है।
4. उनकी बुनियादी शिक्षा भविष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
5. उन्हें सुबह जल्दी उठने की आदत डालिए 5:30 बजे तक। उन्हें मेडिटेशन ध्यान लगाने का प्रशिक्षण दीजिए।
6. अगर आप पार्टी / सामाजिक आयोजन में जाते हैं और बच्चों के साथ इसमें देर रात तक मजे करते हैं तो अगले दिन बच्चे को आराम करने दीजिए (स्कूल मत भेजिए) अगर आप चाहते हैं कि बच्चा अगले दिन स्कूल जाए तो रात 10:00 बजे तक घर लौट आइए।
7. अपने बच्चे में पौधे लगाने और उनका ख्याल रखने की आदत का विकास कीजिए।
8. सोने के समय अपने बच्चों को पंचतंत्र, अकबर-बीरबल, तेनाली राम आदि की कहानी सुनाइए।
9. हर साल गर्मी की छुट्टी में (अपने बजट के अनुसार) कहीं घूमने जाइए। इससे वे अलग लोगों के साथ और अलग जगहों पर रहना सीखते हैं।
10. अपने बच्चे की प्रतिभा का पता लगाइए और उसे इसे निखारने में सहायता कीजिए (वह किसी विषय, संगीत, खेल, अभिनय, चित्रांकन, नृत्य आदि में दिलचस्पी रख सकता है)। इससे उसका जीवन आनंददायक हो जाएगा।
11. उसे सीखाइए कि प्लास्टिक का उपयोग नहीं करना चाहिए (कम से कम गर्म चीजें प्लास्टिक में उपयोग न करें)।
12. हर इतवार कोशिश कीजिए कि खाने की कोई ऐसी चीज बनाएं जो उन्हें पसंद है। उन्हें इसमें अपनी मदद करने के लिए कहिए। (उन्हें अच्छा लगेगा)
13. प्रत्येक बच्चे जन्म से वैज्ञानिक होते हैं उनके पास ढेरों सवाल होते हैं मुमकिन है हम जवाब न दें पर जानकारी न होने के कारण हमें सवाल पर गुस्सा नहीं दिखाना चाहिए। (उत्तर पता करने की कोशिश कीजिए औऱ उन्हें बताइए)
14. उन्हें अनुशासन और जीने के बेहतर तरीकों के बारे में बताइए। ( सही गलत के बारे में समझाइए )
15. दाखिले के लिए किसी स्कूल के सर्वश्रेष्ठ होने संबंध में निर्णय (कॉरपोरेट स्कूल या पास प्रतिशत ज्यादा होने या परिचितों, पड़ोसियों की सिफारिश या सरकारी स्कूल या कम बजट वाला स्कूल होने के आधार पर मत कीजिए)। सबसे अच्छा स्कूल वह है जो आपके बजट के लिहाज से उपयुक्त हो। भविष्य में आपको बच्चे की शिक्षा पर ज्यादा खर्च करने की जरूरत है। इसलिए आपको आज कुछ पैसे बचाने की जरूरत है। इसके अलावा दूसरे खर्चे तो हैं ही। इसलिए योजना सोच समझकर बनाइए।
16. उनमे खुद पढ़ने और सीखने की आदत डालिए।
17.  उन्हें मोबाइल फोन का उपयोग न करने दिया जाए, आवश्यक होने पर अपनी देखरेख में ही मोबाइल का उपयोग करने दिया जाए।
18. बच्चे को अपने काम में सहायता करने के लिए कहिए। (इसमें खाना बनाना, सफाई, चीजों को व्यवस्थित करना शामिल है।)
19. और सबसे महत्त्वपूर्ण कि हमें अपने बच्चों को शिक्षा के साथ अच्छे संस्कार भी देने चाहिए ताकि वो जीवन में सफल और सही इन्सान बन सके। हमें अपने अनुभव के आधार पर अपने बच्चों का जीवन सुंदर और स्वस्थ बनाने में उनकी सहायता करना चाहिए।
20. 🙏 Good night ji🙏🙏

प्रश्न - *उम्र ज्यादा होने की वजह से कमर और घुटने में दर्द है। बेटा मासपरायण में जप कैसे करूँ? और क्या नियम अपनाऊँ*

प्रश्न - *उम्र ज्यादा होने की वजह से कमर और घुटने में दर्द है। बेटा मासपरायण में जप कैसे करूँ? और क्या नियम अपनाऊँ*

उत्तर - माता जी एक साफ कम्बल ले लीजिए उसे बैठने वाली चेयर या मूढढे पर कुछ इस तरह बिछाएं कि आधा चेयर पर हो और आधा निचे। जिससे जब आप उस पर बैठें तो आपके शरीर का कोई भी अंग पैर सहित सबकुछ कम्बल पर ही रहे। अब कोई शॉल या सोफ़े की तकिया से कमर को सहारा दे दें। अब आराम से भगवान के समक्ष मन्दिर में चेयर लगा के या मूढढे में बैठ के जप क्रम पूरा कर लें।

माता जी रात का भोजन गैस बनाता है, और वो जोड़ो में जमा होता है। इससे ही जोड़ो और कमर में दर्द रहता है। अतः सुबह सूक्ष्म व्यायाम जरूर करें, इससे जोड़ो में जमी गैस निकल जायेगी। शरीर चुस्त दुरुस्त रहेगा। वाक जरूर करें।

सुबह खाली पेट दो ग्लास गुनगुना पानी पियें।

भोजन दोनों वक़्त 4-4 ग्रास लें। दूध दही छाछ और फल का जूस लेते रहें।

स्वाध्याय में चेतना की शिखर यात्रा पढ़े। बहु बेटे या पोता पोती कोई गलती भी करें, तो क्रोध मत करना, अन्यथा पुण्यफ़ल आपका खर्च हो जाएगा। याद रखिए आप घर पर होकर भी घर पर नहीं है, आपकी चेतना शान्तिकुंज में ही है।

दवा रेगुलर वाली लेते रहें। अंकल जी को भी मासपारायण के लिए प्रेरित करें।

सोते वक़्त गोल तकिए पर पैर रख के सोए, और पैर में और नाभि में सरसों का तेल लगा के सोएं। आत्मबोध -तत्त्वबोध के साथ योगनिद्रा लें।

चरण स्पर्श कर प्रणाम🙏🏻

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, जॉब का शेड्यूल बड़ा टाइट है, मैं क्या नियम चन्द्रायण में अपनाऊँ*

प्रश्न - *दी, जॉब का शेड्यूल बड़ा टाइट है, मैं क्या नियम चन्द्रायण में अपनाऊँ*

उत्तर - प्रिय भाई, माला कोशिश करो कि 30 कर लो, यदि सम्भव न हो तो कम से कम 12 तो करो ही। जहां चाह वहां राह होती है। शुभ संकल्पों से ही मन को बल मिलता है। जॉब करने वाले तो ऑलरेडी प्रेशर झेलने के आदी होते हैं😂😂😂😂 उनके लिए माला जप का प्रेशर कुछ भी नहीं।

सुबह ऑफिस जल्दी निकलना होता है, तो सुबह कम माला जपो और शाम को आकर जप पूरा कर लो। शनिवार-रविवार ज्यादा माला जपना, जिससे कोई ऑफिस की इमरजेंसी लगे तो जप का टेंशन न हो। स्वाध्याय थोड़ा बहुत सोने से पहले कर लेना। चेतना के शिखर यात्रा की एक घटनाक्रम रोज।

रात का भोजन गैस बनाता है, और वो जोड़ो में जमा होता है। इससे ही जोड़ो और कमर में दर्द भविष्य में हो सकता है। अतः सुबह सूक्ष्म व्यायाम जरूर करें, इससे जोड़ो में जमी गैस निकल जायेगी। शरीर चुस्त दुरुस्त रहेगा। वाक जरूर करें।

सुबह खाली पेट दो ग्लास गुनगुना पानी पियें।

भोजन एक वक़्त 8 ग्रास लें। और एक वक्त रसाहार ले लेवें। दूध दही छाछ और फल का जूस लेते रहें। एक वक्त 8 ग्रास के क्रम को *यति चन्द्रायण* कहते है।

अपशब्द मत बोलना और क्रोध एक माह मत करना, अन्यथा पुण्यफ़ल आपका खर्च हो जाएगा। याद रखिए कि आपकी चेतना शान्तिकुंज में ही है।

सोते वक़्त गोल तकिए पर पैर रख के सोए, और पैर में और नाभि में सरसों का तेल लगा के सोएं। आत्मबोध -तत्त्वबोध के साथ योगनिद्रा लें। पैरों का ध्यान रखेंगे तो सुबह जब जमीन पर पैर मोड़कर जप करेंगे तो ज्यादा देर तक बैठ पाएंगे।

आपकी चेतना शिखर पर पहुंचे, यही शुभकामनाएं है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी मैं मां बनने वाली हूँ। 5 माह हो गए है। मासपरायण में जप कैसे करूँ? और क्या आहार नियम अपनाऊँ*

प्रश्न - *दी मैं मां बनने वाली हूँ। 5 माह हो गए है। मासपरायण में जप कैसे करूँ? और क्या आहार नियम अपनाऊँ*

उत्तर - सबसे पहले तो बधाई, दूसरा गर्भ को संस्कारवान बनाने में अत्यंत सहायक है। मासपरायण साधना।

जैसा कि पिछली पोस्ट में आंटी जी को बताया था, वही क्रम आप भी अपनाएं। एक साफ कम्बल ले लीजिए उसे बैठने वाली चेयर या मूढढे पर कुछ इस तरह बिछाएं कि आधा चेयर पर हो और आधा निचे। जिससे जब आप उस पर बैठें तो आपके शरीर का कोई भी अंग पैर सहित सबकुछ कम्बल पर ही रहे। अब कोई शॉल या सोफ़े की तकिया से कमर को सहारा दे दें। अब आराम से भगवान के समक्ष मन्दिर में चेयर लगा के या मूढढे में बैठ के जप क्रम पूरा कर लें।

रात का भोजन गैस बनाता है, और वो जोड़ो में जमा होता है। इससे ही जोड़ो और कमर में दर्द रहता है। अतः सुबह *आओ गढ़ें संस्कारवान पीढ़ी* पुस्तक के आसान सरल योग व्यायाम जरूर करें, इससे जोड़ो में जमी गैस निकल जायेगी। जच्चा बच्चा दोनों चुस्त दुरुस्त रहेगा। वाक जरूर करें।

सुबह खाली पेट दो ग्लास गुनगुना पानी पियें। सुबह नारियल और दूध ले सकें तो बहुत अच्छा रहेगा। ये मैं अपने बच्चे के समय लेती थी।

भोजन दोनों वक़्त 8 ग्रास लें। दाल में लौकी जैसा सुपाच्य सब्जी मिला के बना लें। आपके एक ग्रास की साइज़ मुर्गी के अंडे के साइज की होगी। तो पेट बड़े आराम से भर जाएगा।  दूध दही छाछ और फल का जूस लेते रहें। सलाद और  थोड़े से ड्राईफ्रूइट्स जब भी भूख असहनीय हो तब खाये। बिना भूख के जबजस्ती न खाएं।

स्वाध्याय में चेतना की शिखर यात्रा जोर से अपनी सहज आवाज में बोल बोल कर पढ़े, मानो गर्भ से आप संवाद कर रहे हो, अच्छे अच्छे दिव्य भजन सुने, संस्कृत के ज्यादा से ज्यादा मन्त्र बोलें और दोनों हाथ से मन्त्रलेखन करें। भावना करिये की आप शान्तिकुंज में ही हो, सुबह नित्य ध्यान में शान्तिकुंज के दर्शन करें।

दवा रेगुलर वाली लेते रहें और टीके भी जरूरी लगवाते रहें। पतिदेव को भी मासपारायण के लिए प्रेरित करें।

सोते वक़्त गोल तकिए पर पैर रख के सोए, और पैर में और नाभि में और पूरे पेट मे सरसों या नारियल के तेल की हल्की मालिश करके सोएं। आत्मबोध -तत्त्वबोध के साथ योगनिद्रा लें।

*एक स्वस्थ सुंदर प्रशन्नचित्त दिव्यात्मा ऋषिआत्मा युगनिर्माणि को जन्म दें, यही शुभकामनाएं हैं।*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, मैं ग्रेजुएशन के साथ UPSC कम्पटीशन की तैयारी कर रही हूँ, मुश्किल से 4 घण्टे ही सो पाती हूँ। मासपरायण में जप कैसे करूँ? और क्या आहार नियम अपनाऊँ*

प्रश्न - *दी, मैं ग्रेजुएशन के साथ UPSC कम्पटीशन की तैयारी कर रही हूँ, मुश्किल से 4 घण्टे ही सो पाती हूँ। मासपरायण में जप कैसे करूँ? और क्या आहार नियम अपनाऊँ*

उत्तर -बेटा, जहां चाह वहां राह। मन मष्तिष्क को शार्प और चुस्त दुरुस्त रखने में अत्यंत सहायक है- मासपरायण साधना।

एक कहानी सुनो- दो लड़कों के बीच पेड़ काटने की कम्पटीशन हुई, एक बिन रूके पूरे दिन पेड़ काटता रहा और दूसरा बीच मे रुककर कुछ खा-पीकर और आरी में धार लगा लगा कर पुनः पेड़ काटने में जुटता रहा। शाम हुई तो विजयी दूसरा वाला हुआ जिसने स्वयं को भी चार्ज की ख़ाकर, और आरी को भी धार दिया। ज्यादा पेड़ काट सका।

बेटा, जॉब मैं भी करती हूँ। एक वक्त था जब कई ढेर सारे एग्जाम, जॉब, और पोस्ट ग्रेजुएशन एक साथ एक वर्ष में की थी। हज़ारो लोगों को आपसे मिलवा सकती हूँ जो 4 घण्टे सोते है और अनवरत कठिन कार्य करते हुए भी साधना करते हैं।

अतः 24 घण्टे पढ़ना आसान है, लेकिन पूरा पढ़ा हुआ याद रख पाना मुश्किल। लेकिन यदि हल्के नन्हे ब्रेक लेकर पढ़ोगी तो ज्यादा सफलता मिलेगी।

शरीर को भोजन देती हो, मोबाइल को चार्ज करती हो, लेकिन दिमाग़ को चार्ज नहीं करोगी तो पढ़ेगा कौन? दिमाग़ ही है न..

कम्बल का आसन बिछा के आराम से भगवान के समक्ष मन्दिर में बैठ के कम से कम 5 माला का जप क्रम पूरा कर लें। ध्यान उगते हुए सूर्य का करें। यह आधे घण्टे का क्रम पूरे दिन को बेहतर बना देगा।

रात का भोजन गैस बनाता है, और वो जोड़ो के साथ साथ दिमाग मे भी चढ़ता है, जिससे पढ़ने वाले बच्चो के सर में दर्द की शिकायत रहती है। अनुलोम विलोम, भ्रामरी और अन्य आसान प्राणायाम और योग व्यायाम जरूर करें, शरीर और दिमाग़ दोनों चुस्त दुरुस्त रहेगा। वाक जरूर करें।

सुबह खाली पेट दो ग्लास गुनगुना पानी पियें। सुबह सुबह जो भी बनना चाहते हो उस लक्ष्य को जरूर याद कर लें। प्लान बना के पढ़ाई करें।

भोजन दोनों वक़्त 8 ग्रास लें। दाल में लौकी जैसा सुपाच्य सब्जी मिला के बना लें। आपके एक ग्रास की साइज़ मुर्गी के अंडे के साइज की होगी। तो पेट बड़े आराम से भर जाएगा।  दूध दही छाछ और फल का जूस लेते रहें। सलाद और  थोड़े से ड्राईफ्रूइट्स जब भी भूख असहनीय हो तब खाये। बिना भूख के जबजस्ती न खाएं।

स्वाध्याय में चेतना की शिखर यात्रा जोर से अपनी सहज आवाज में बोल बोल कर पढ़े, जिससे घर मे अच्छे शब्दो से सकारात्मक वातावरण विनिर्मित हो और पढ़ाई में मन लगे,  टेंशन बढ़े तो अच्छे अच्छे दिव्य भजन सुने, दोनों हाथ से मन्त्रलेखन करें। भावना करिये की आप शान्तिकुंज में ही हो, सुबह नित्य ध्यान में शान्तिकुंज के दर्शन करें।

पढ़ाई के वक्त ज्यादा न झुके, कमर सीधी रख के पढ़ने की कोशिश करें। पढ़ते समय चैतन्य होकर पढ़े।

सोते वक़्त गोल तकिए पर पैर रख के सोए, और पैर में और नाभि में और सर में नारियल के तेल की हल्की मालिश करके सोएं। आत्मबोध -तत्त्वबोध के साथ योगनिद्रा लें।

दो मिनट की पहले से तली और सुखाई नुकसानदायक मैगी की जगह, भविष्य में दो मिनट में तैयार होने वाला जौ और चने वाला सत्तू खाना, प्रोटीन और गुणवत्ता से भरपूर, मोटापा नहीं बढ़ाएगा और स्किन भी सुंदर रखेगा। यूट्यूब में अनेकों तरह से इसे बनाने के तरीके उपलब्ध है। अच्छा खाओ शरीर के लिये, अच्छा स्वाध्याय करो मन के लिए, अच्छी साधना करो आत्मा के लिए। जिससे क्रमशः क्रियाशक्ति, विचारशक्ति और भावशक्ति की गुणवत्ता  बनी रहे।

*शीघ्रातिशीघ्र मनपसंद जॉब पाएं, यही शुभकामनाएं हैं।*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *भगवान को कैसे जाने? स्वयं को कैसे जाने?*

प्रश्न - *भगवान को कैसे जाने? स्वयं को कैसे जाने?*

उत्तर - पानी की बूंद समुद्र को कैसे जानेगी? पानी का बुलबुला समुद्र को कैसे जानेगा? लहर समुद्र को कैसे जानेगी? सबका श्रोत एक ही है।

विभिन्न स्वर्ण आभूषण चूड़ी, कंगन, अंगूठी, मुकुट इत्यादि स्वर्ण को कैसे जानेंगे?

समुद्र की कुछ बूंदे सूर्य ने भाप बना के उड़ा दी, वही बूंदे बादल से बरसी, वही नदी तालाब नहर से होती हुई पुनः समुद्र तक पहुंची। कुछ ठंड के कारण ओले के रूप में भी बरसी।

वह एक उसकी अभिव्यक्ति अनेक, कैसे जानोगे उसे स्वयं से अलग जबकि तुम बने ही उससे हो।

उसे जान लोगे तो स्वयं को स्वतः जान जाओगे कि *मैं क्या हूँ?* और यदि स्वयं को जान गए कि *मैं क्या हूँ?* तो उसे भी स्वतः जान जाओगे।

बूंद स्वयं के मूल जल रूप को पहचान गयी तो समुद्र को भी जान जाएगी। स्वर्णाभूषण स्वयं के मूल स्वर्ण को जान गए, एटम को जान गए तो स्वयं को जान जाएंगे।

बाहर की बज़ाय खोज भीतर करो, जिस भगवान को ढूंढ रहे हो वो भीतर ही मिलेगा। मैं का अस्तित्व भी भीतर ही मिलेगा। 

बाहर से मौन होकर, नेत्रबन्द कर इंद्रियों से परे जाओ, स्वयं ध्यानस्थ हो रोज हर पल उसके नज़दीक और नज़दीक पहुंचो। उसमें स्वयं को और स्वयं में उसको अनुभूत करो।

यही सो$हम है, मैं वही हूँ।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday 23 July 2018

प्रश्न - *ईर्ष्या और अपेक्षाओं से मुक्ति के लिए कौन सी साधना करूँ? स्वयं को संसार मे भटकने से कैसे बचाऊं?मार्गदर्शन करें...*

प्रश्न - *ईर्ष्या और अपेक्षाओं से मुक्ति के लिए कौन सी साधना करूँ? स्वयं को संसार मे भटकने से कैसे बचाऊं?मार्गदर्शन करें...*

उत्तर - आत्मीय बहन, आपका श्रेष्ठ मन उच्च आत्मिक स्थिति तक पहुंचना चाहता है, इसलिए यह श्रेष्ठ प्रश्न पूंछ रहा है।

*सबसे पहले यह समझते है कि ईर्ष्या और अपेक्षाओं का जन्म ही मन में क्यों होता है? इसकी जड़ क्या है? आइये इसका root cause analysis करते हैं*...

ईर्ष्या तन नहीं कर सकता क्योंकि यह जड़ है। ईर्ष्या आत्मा भी नहीं कर सकती क्योंकि वो सबसे परे है। *ईर्ष्या मन की उपज तो है, अब मन में ईर्ष्या उपजी भी तो क्यों?*

*मन तो बचपन से दी गयी परवरिश और दिए सँस्कार से बना है।* सांसारिक शिक्षा से मिला सँस्कार गला तोड़ प्रतियोगिता और ईर्ष्या का गुण बचपन मे ही विकसित कर देता है। अपनी कमी देखना सिखाता नहीं और दूसरों पर दोष मढ़ना सिखाता है। हमें झूठी पहचान और मुखौटे में कैद कर देता है, उदाहरण टॉपर, इंजीनियर, वकील, डॉक्टर, सैनिक, व्यवसायी इत्यादि न जाने क्या क्या बनने को ही सबकुछ बनना बता देता है, सफलता का पैमाना बताता है। साथ ही अधिकार मांगना सिखाता है, कर्तव्यपरायणता तो कोई सिखाता ही नहीं। शारीरिक रखरखाव सफाई सिखाई जाती है लेकिन अन्तःकरण की सफ़ाई तो किसी ने सिखाया ही नहीं।

कभी किसी ने  हमें *अच्छा इंसान बनने को प्रेरित* ही नहीं किया, कभी *आत्मा सर्वभूतेषु* समझाया ही नहीं।

*पाश्चात्य शिक्षा ने हमें दुनियां को बाज़ार बताया और हमें व्यवसायी , लूटो खाओ और आगे बढ़ो यही सिखाया।*

अध्यात्म शिक्षा का पहला शिक्षण ही *गायत्री मंत्र* है, जिसके माध्यम से पूरे विश्व को कुटुंब - *वसुधैव कुटुम्बकम* और स्वयं को परिवार का सदस्य बताया। परिवार में तो आत्मीयता और प्रेम सहकार मांगता है। अधिकारों की उपेक्षा और कर्तव्यों का पालन जरूरी है। इंसानियत और भाव सम्वेदना जरूरी है। इसलिए धरती हो या घर आध्यात्मिक व्यक्ति उसे स्वर्ग समान सुंदर बनाने में जुट जाता है।

*अब समस्या यह भी है कि बचपन से मिला उल्टा ज्ञान हमारे आध्यात्मिक सफ़र में बाधा उतपन्न कर रहा है। अब हम ईर्ष्या और अपेक्षा से मुक्त होना चाहते तो है, लेकिन पुराने संस्कारो के कारण वो छूटता नहीं।*

*तो समस्या गहन यह है कि करें तो करें क्या? ईर्ष्या से मुक्त होवें कैसे? आध्यात्मिक दृष्टि को सदैव बनाये कैसे रखें? मन को स्थित प्रज्ञ कैसे रखें?*

इसके लिए बहन आपको तात्विक विश्लेषण की जरूरत पड़ेगी, जिससे आपकी विवेक अंतर्दृष्टि जागृत हो। एक कहानी सुनो:-

एक अमीर आदमी को बिजनेस में घाटा हुआ तो वो सोनार के पास स्वर्ण आभूषण के साथ स्वर्ण के गणेश और उनके वाहन स्वर्ण के चूहे को भी बेचने गया।

सोनार ने सबका रेट एक जैसा लगाया। तो अमीर आदमी भड़क गया, बोला भाई गणेश जी की मूर्ति और गणेश जी के वाहन चूहे का एक रेट कैसे लगा सकते हो? गणेश जी का ज्यादा रेट और चूहे का कम होना चाहिए।

सोनार हंस कर बोला - *महाराज आप सोनार की दृष्टि से इन वस्तुओं को देखोगे तो मुझे सब स्वर्ण के अतिरिक्त कुछ नहीं दिख रहा। अंगूठी हो या मुकुट या गले का हार या चूड़ी या करधन या गणेश जी की मूर्ति या चूहे की मूर्ति। मेरे लिए सब स्वर्ण है क्योंकि ये सब स्वर्ण से बना है और मैं स्वर्ण की कीमत अदा कर रहा हूँ उसके आकार प्रकार की नहीं।*

इसी तरह यदि हम अध्यात्म की दृष्टि से संसार को देखेंगे तो सब हमें आत्मा ही दिखेंगे। हम भी आत्मा ही है। तो स्वतः आत्मा सर्वभूतेषु का भाव आ जायेगा। कण कण में परमात्मा भी दिखेगा क्योंकि आत्मा तो परमात्मा का ही अंश है।

मूर्खता तो तब होती है जब स्वर्ण का मुकुट घमंड में स्वर्ण की पायल को बोले मैं तुमसे श्रेष्ठ हूँ। पायल मुकुट से ईर्ष्या करे। या अंगूठी गले के हार से ईर्ष्या करे। जबकि सुनार के लिए तो सब समान है, केवल स्वर्ण है। स्वर्ण हटा दो सब  गहने गायब। इसी तरह आत्मा हटा दो सब मनुष्य गायब,इसलिए आध्यात्मिक दृष्टि सम्पन्न सन्त के लिए सब केवल आत्मा है। आत्मा के न रहने पर तो शरीर जला दिया जाएगा या कब्र में दफना दिया जाएगा। डॉक्टर , इंजीनियर , वकील, अमीर, ग़रीब कोई भी हो एक मुट्ठी राख भर बचेगी।  उसी तरह जैसे आभूषण गलाने पर केवल स्वर्ण ही बचेगा। उसे यदि और अधिक जलाया तो मात्र स्वर्ण भष्म ही बचेगा।

कुल मिलाकर संक्षेप में यह समझो बहन कि जब भी किसी को देखो तो उसके मूल को देखो, उसे आध्यात्मिक दृष्टि से देखो। गहने देखो तो सुनार की दृष्टि से देखो - उसे करधन, अंगूठी, मुकुट या हार के रूप में न देख के केवल स्वर्ण रूप में देखो। इसी तरह मनुष्य को अमीर, गरीब, डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, स्त्री, पुरुष इत्यादि रूप में न देख के उसके मूल आत्मा के रूप में देखो, आध्यात्मिक दृष्टि से देखो।

अब यदि कोई पुरूष किसी सुंदर स्त्री को आध्यात्मिक दृष्टि से देखे तो वो क्या देखेगा उसके अंदर की आत्मज्योति और भविष्य में एक मुट्ठी राख। वासना उसकी तत्क्षण इस विचार से राख हो जाएगी। इसी तरह *जब आप भी किसी भी व्यक्ति को आत्मज्योति, उसकी देह और वैभव को एक मुट्ठी राख के रूप में देखेंगी तो स्वतः इर्ष्या राख हो जाएगी, अपेक्षाएं तिरोहित हो जाएगा।*

*सो$हम साधना* इसी आध्यात्मिक दृष्टि को विकसित करने के लिए किया जाता है। यहां भाव करते है कि *मैं शरीर नहीं हूँ, मैं मन नहीं हूँ,  मैं केवल अजर अमर सच्चिदानंद स्वरूप आत्मा हूँ। यह शरीर सराय है और मैं अनन्त यात्री हूँ*। इस जगत में भी सभी आत्मस्वरूप है।

पुस्तक - *मैं क्या हूँ?* और *अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार* जरूर पढ़ें

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *पूजन और जप के वक़्त जब तन्मयता बढ़ती है, तो मन में गुरुदेब के बताए सत सूत्रीय कार्यक्रम के बहुत से कार्य करने का साहस और योजना उभरती है।

प्रश्न - *पूजन और जप के वक़्त जब तन्मयता बढ़ती है, तो मन में गुरुदेब के बताए सत सूत्रीय कार्यक्रम के बहुत से कार्य करने का साहस और योजना उभरती है। लेकिन जप के बाद अन्य समय मे जब उन योजना पर विचार करती हूँ, तो कभी समयाभाव तो कभी सहयोगियों के अभाव में उन योजनाओं पर कार्य करना सम्भव नहीं दिखता। मार्गदर्शन करें कि क्या इन विचारों को इग्नोर करूँ या इन पर कार्य करने का प्रयास करूँ?*

उत्तर - आत्मीय बहन, साधनात्मक स्थिर मन में साफ़ पानी की तरह मन क्रिस्टल क्लियर हो जाता है। जैसे साफ स्थिर नदी या तालाब के पानी में ज़मीन तक क्लियर दिखता है कि नीचे क्या क्या है? इसी तरह शांत स्थिर मन में हमारी असीम संभावनाएं दिखती हैं। लेकिन जैसे ही हम साधना क्षेत्र से बाहर आते है सांसारिक विचार की गाड़ी उसे फ़िर से गन्दा कर देती है जैसे मानो साफ़ उथली नदी में या तालाब में बड़ा ट्रैक्टर या घोड़ा गाड़ी गुजर जाए और पुनः गन्दा और अनक्लियर कर दें।

सम्भावनाये एक कुशाग्र विद्यार्थी में कितनी ही क्यों न हो वो एक साथ डॉक्टर, इंजीनियर, वक़ील, खिलाड़ी, व्यवसायी, सैनिक इत्यादि नहीं बन सकता। उसे अपने कैरियर की एक निश्चित विचारधारा/दिशाधारा चुननी ही पड़ेगी। उस के मार्ग में जो साथ चल सके उन् पर ही कार्य करना होगा। कॉलेज में बहुत सारी स्ट्रीम होने पर भी सबमे एक साथ एडमिशन नहीं ले सकते। इसी तरह शत सूत्रीय मिशन का कार्यक्रम होने पर भी सब कार्य कोई एक व्यक्ति नहीं कर सकता। हमें अपनी योग्यता क्षमता अनुसार कुछ का चयन करना है और उसे बेहतरीन करना है।

इसी तरह अब जब भी जप में बैठना ध्यानस्थ होना, तो उससे पूर्व अपनी योग्यता क्षमता को सोच लेना। अब जब मन में क्रिस्टल क्लियर सम्भावनाये दिखें तो मन को कम्प्यूटर की तरह उस सम्भावना में फोकस कर zoom/जूम करना/केंद्रित करना जिसे तुम कर सकती हो। जिसे तुम लीड कर सकती हो, जिसके लिए तुम सहयोगी बना सकती हो।

अब जैसे ही एकाग्र एक योजना पर होगी, बाकी अन्य धुंधले हो जायेगे और वो एक योजना और क्लियर रोड मैप की तरह दिखेगी। देवतागण उस योजना से सम्बंधित क्लियर इंडिकेशन और मार्गदर्शन प्रस्तूत करेंगे।

मन की सम्भावनाओ को देखने की जो क्षमता जागृत हो रही है अब उस पर और ज्यादा काम करो और उस एक को ढूढ निकालो जिसे तुम सबसे बेहतर ढंग से कर सकती हो। प्रयास करो सफलता जरूर मिलेगी। गुरुदेब से प्रार्थना है तुम्हें तुम्हारा गुरुकार्य का लक्ष्य, योजना, सहयोगी और उस हेतु समय प्रबंधन की क्षमता मिले।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *विद्यार्थियों को गायत्री मंत्र जप साधना के लिए मोटिवेट कैसे करें?*

प्रश्न - *विद्यार्थियों को गायत्री मंत्र जप साधना के लिए मोटिवेट कैसे करें?*

उत्तर - कुछ इस तरह समझाएं:-

दुनियां में जब हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई जैसा कोई सम्प्रदाय नहीं था। तब एक ही सनातन धर्म था, जो मानव कल्याण के लिए बना था। एक ही संस्कृति थी वैदिक संस्कृति।

दुनियाँ की पहली पुस्तक ऋग्वेद है, फिर अन्य वेद सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद लिखे गए।

आध्यात्मिक वैज्ञानिक रिसर्चर को  ऋषि कहा जाता था, जैसे अभी साइंटिस्ट लोग होते हैं।

अब ऋषि संसद ने विचार किया कि कोई ऐसा मन्त्र अर्थात फार्मूला मनुष्य को दिया जाय जिससे मानव जाति का कल्याण हो और वो मन्त्र वेदों का सार हो। एक मास्टर चाबी समस्त समस्याओं के समाधान के लिए...

जैसे कठिन से कठिन गणित के सवाल उसके फ़ार्मूले से हल हो जाते है, ठीक वैसे ही मनुष्य की कठिन से कठिन मानव जीवन की समस्या को हल करने के लिए मन्त्र दिया गया है - *गायत्री मंत्र*। इस मन्त्र के दृष्टा विश्वामित्र जी थे और सहयोगी वशिष्ठ जी थे।

अब ये मन्त्र मानव जीवन मे काम कैसे करेगा? यह प्रश्न आप सबके दिमाग मे आ रहा होगा? भला एक मन्त्र और समस्त समस्या का समाधान...कुछ ज्यादा नहीं बोल रहे..., मानो मास्टर चाबी (Key) दी जा रही हो...क्या ऐसा सम्भव है????

हांजी बिल्कुल सम्भव है, क्योंकि इस मन्त्र में उन अक्षरों और शब्दों का इस्तेमाल किया गया है जिसके उच्चारण से 24 प्रमुख शरीर के ऊर्जा केंद्र जागृत हो जाएं, 72000 नाड़ियां सक्रिय हो जाएं और इड़ा-पिंगला नाड़ी प्राण ऊर्जा को निम्न केंद्रों से ऊपर सहस्त्रार की ओर प्रवाहित करे। स्थूल - सूक्ष्म और कारण तीनो शरीर एक्टिव हो जाये। जिन्हें क्रमशः क्रियाशक्ति, विचारशक्ति और भावशक्ति भी कहते है। संक्षेप में गायत्री मंत्र प्राण ऊर्जा के उत्पादन का सशक्त टूल है।

मनुष्य के उत्थान हो या पतन दोनों के लिए उत्तरदायी मन ही होता है। मन पढ़ने में लग गया तो पास, नहीं पढ़ने में लगा तो फ़ेल। मन व्यसन और आवारागर्दी में लगा तो जिंदगी में जीते जी नर्क और मन यदि आत्मकल्याण और लोकसेवा में लग गया तो जीते जी स्वर्ग।

अब मन कोई दृश्य वस्तु तो है नहीं, यह तो एक सॉफ्टवेयर है जो दिमाग रूपी हार्डवेयर में इंस्टाल है।  मन एक अदृश्य घोड़ा है जिस पर बैठकर जीवन की यात्रा करते हो, अगर इसे नियंत्रित करना है और इस पर लगाम लगाना है तो केवल इसे प्रचण्ड संकल्पों से ही बांध सकते है, इस पर लगाम लगा सकते है।

अब यह मन रूपी घोड़ा *अंधेरे से प्रकाश की ओर* यात्रा करे, सन्मार्ग पर चले तो संकल्प की लगाम तो चाहिए ही। वह संकल्प की लगाम मन रूपी घोड़े के लिए तैयार करता है गायत्री मंत्र जप।

गायत्री मंत्र जप के निरन्तर जप से मन सधता है। जब मन जिसका सध जाए तो वो उस मन से कुछ भी हांसिल कर सकोगे। पढ़ाई में मन लगा सकेगा, व्यवसाय में कुशलता हांसिल कर सकेगा, सबकुछ सम्भव हो सकेगा।

स्थूल दृष्टि से जल में बिजली है माना नहीं जा सकता, लेकिन टरबाइन जैसे यंत्रों पर जल के तीव्र वेग से बिजली उतपन्न की जा सकती है। यही सिस्टम मन के विचारों से बिजली उतपन्न करने के लिए गायत्री मंत्र रूपी टरबाइन के प्रयोग का है।

इसलिए बचपन से गुरुदीक्षा में प्राचीन समय मे गायत्री मंत्र देकर ही शिक्षा प्रारम्भ की जाती थी।

गायत्री मंत्र - *ॐ भूर्भुवः स्व: तत सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात।*
एक मन्त्र अनेक लाभ है:-

भावार्थ - ईश्वर प्रार्थना
*उस प्राणस्वरूप दुःखनाशक सुख स्वरूप श्रेष्ठ तेजस्वी पापनाशक देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अंतरात्मा में धारण करते हैं। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करे।*

इस जप से स्वयं के मन को निम्नलखित संकल्प से बांधना है, उसे जीवन लक्ष्य और उद्देश्य बार बार बताना और याद दिलाना है, ऐसा करने के लिए मन की प्रोग्रामिंग कर उसे आगे बढ़ाना है:-

*हमें स्वयं को उस सर्वशक्तिमान ईश्वर का सच्चा उत्तराधिकारी बनाना है, हमें स्वयं को प्राणवान,  दुःख- परपीड़ा-युगपिड़ा मिटाने वाला, सुख बांटने वाला/आत्मीयता विस्तार करने वाला, श्रेष्ठ और तेजस्वी व्यक्ति बनाना है। साथ ही देवता बनकर अनीतियों, कुरीतियों,व्यसनों से लोहा लेना है। उस परमात्मा को हमेशा अपनी अंतरात्मा में धारण करते हुए बुद्धि को सन्मार्ग की ओर बलपूर्वक चलाना है। इंद्रियों को वश में करना है और श्रेय मार्ग का चयन करना है। भगवान की बनाई सृष्टि को व्यवस्थित करना है।*

एक मन्त्र में समस्त ज्ञान और उज्ज्वल भविष्य की सम्भावनाये समाई हुई है। क्योंकि जब यह मन्त्र मनुष्य जाति को दिया गया था तो कोई हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई जैसा कोई धर्म सम्प्रदाय exist ही नहीं करता था, इसलिए यह मन्त्र सबके लिए है, और सबका है।

जैसे बर्फ़ से ठण्डक और अग्नि से  गर्मी कोई भी जाति का हो उसे मिलेगा ही, वैसे ही गायत्री मंत्र जप का लाभ कोई भी जाति का व्यक्ति करे, उसे लाभ समान ही मिलेगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी मेरी जॉब के चलते हमेशा आये दिन यात्रा में रहता हूँ। चन्द्रायण/मासपरायन करने की तीव्र इच्छा है, आहारक्रम में क्या लूँ? कैसे व्रत रहूँ..*

प्रश्न - *दी मेरी जॉब के चलते हमेशा आये दिन यात्रा में रहता हूँ। चन्द्रायण/मासपरायन करने की तीव्र इच्छा है, आहारक्रम में क्या लूँ? कैसे व्रत रहूँ..*

उत्तर - जहाँ चाह वहां राह, चन्द्रायण के समय सत्तू लिया जा सकता है। पकाने की झंझट नहीं है। किसी की सेवा लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी। सत्तू में जौ और चना होता है। इसमें दही या छाछ मिला के सेंधा नमक के साथ ले लो। सत्तू की मात्रा ग्रास की तरह चम्मच से माप सकते हो। घटते बढ़ते क्रम में ले सकते हो या फिक्स 4 ग्रास सुबह और 4 ग्रास शाम को ले सकते हो।

1- गर्मी के दिनों में सत्तू का सेवन करना आपको गर्मी के दुष्प्रभाव एवं लू की चपेट से बचाता है। सत्तू का प्रयोग करने से लू लगने का खतरा कम होता है क्योंकि यह शरीर में ठंडक पैदा करता है।

2- अगर आपको बार-बार भूख लगती है या फिर आप लंबे समय तक भूखे नहीं रह सकते, तो सत्तू आपके लिए लाभदायक है। इसे खाने या फिर इसका शर्बत पीने के बाद लंबे समय तक आपको भूख का एहसास नहीं होगा।

3- सत्तू प्रोटीन का बढ़िया स्त्रोत है और य‍ह पेट की गड़बड़ियों को भी ठीक करता है। इसे खाने से लिवर मजबूत होता है और एसिडिटी की समस्या दूर होती है  आसानी से पचने के कारण कब्जियत भी नहीं होती।

4- जौ और चने से बनाया गया सत्तू डाइबिटीज में फायदेमंद है। अगर आप डाइबिटीज के मरीज हैं तो रोजाना इस सत्तू का प्रयोग आपके लिए फायदेमंद है। इसे पानी में घोलकर शर्बत के रूप में या फिर नमकीन बनाकर भी लिया जा सकता है।

5- शरीर में ऊर्जा की कमी होने पर सत्तू तुरंत ऊर्जा देने का कार्य करता है। यह कमजोरी को दूर कर आपको ऊर्जावान बनाए रखने में कारगर है। इसमें कई तरी के पोषक तत्व भी मौजूद होते हैं जो पोषण देते हैं।

6- मोटापे से परेशान लोगों के लिए सत्तू एक रामबाण उपाय है। जौ से बना सत्तू प्रतिदिन खाने से पाचन तंत्र भी सुचारु रूप से कार्य करता है और मोटापा कम होता है।

7- ब्लडप्रेशर के मरीजों के लिए सत्तू का सेवन काफी लाभदायक होता है। इसके लिए सत्तू में नींबू, नमक, जीरा और पानी मिलाकर सेवन करना चाहिए।

माला का जप हेतु, एक साफ ऊनी शॉल, माला, गुरुदेब माताजी की फ़ोटो, दो पीले दुपट्टे, गंगा जल एक छोटी शीशी में, मिश्री, दो ग्लास , दो कटोरी, दो चम्मच और दिए का इंतज़ाम हो तो अच्छा न हो तो अगरबत्ती जला लें। ये समान एक बैग में साथ रखें।  होटल में यदि अगरबत्ती भी न जला सकें तो कोई बात नहीं, अखण्डदीप शान्तिकुंज का ध्यान करके, एक ग्लास जल रख के जप पूर्ण कर लें।

होटल में नहा धो कर, ऊनि शॉल बिछा के बैठ जाएं। टेबल को हल्का जल से पोंछ लें। उस पर देवप्रतिमा रख के पूजन कर लें।
और जप पूर्ण कर लें।

रास्ते मे जहां नहाना सम्भव न हो उस दिन का बचा जप नेक्स्ट दिन कर लें। गंगा जल छिड़क के अपने ऊपर सत्तू भगवान को अर्पित कर ट्रेन में ले लें। मौन मानसिक जप करते चले। नादयोग हेडफोन लगा के कर लें। गुरुदेव की आवाज में भी जप हेडफोन लगा के सुविधानुसार कर लें। स्वाध्याय करते रहें।

संकल्पों से मन बंधता है, असम्भव भी सम्भव होता है।

🙏🏻श्वेता, दिया

समस्या - *सौतेली माता के दुर्व्यवहार से हम भाई बहन दुःखी हैं, घर मैंने छोड़ दिया है लेकिन मन अशांत है। मार्गदर्शन कीजिये।*

समस्या - *सौतेली माता के दुर्व्यवहार से हम भाई बहन दुःखी हैं, घर मैंने छोड़ दिया है लेकिन मन अशांत है। मार्गदर्शन कीजिये।*

समाधान - *प्रिय आत्मीय बेटे, आपकी समस्या मन से है तन से नहीं।* क्योंकि दुर्व्यवहार से उपजा कष्ट मन में पीड़ा दे रहा है। घर के त्यागने से मन की पीड़ा शांत नहीं होती। मन में तो वो बातें और व्यवहार टीवी चैनल और रेडियो की तरह निरन्तर बज रहा है। शोर तो मन के भीतर है, बाहर नहीं।

*अब थोड़ा ध्यानस्थ होकर, समय यात्रा करो मन से, और उस समय पहुंचो जब तुम्हारे पिता दूसरी शादी करने जा रहे हैं।*

तुम्हारी दूसरी माता जो कि अभी कुँवारी कन्या है, उसके मन में सपनों को पढ़ो। उसका मन चाहता है कि उसे खूब प्यार करने वाला श्रेष्ठ और कुँवारा वर मिले। विवाह एक ऐसी चीज़ है जहाँ चाहे लड़की हो या लड़का दोनों फ्रेशर चाहते है एक्सपीरियंस होल्डर नहीं।

अब तुम्हारी दूसरी माता के स्वप्न टूट रहे है और मन चीत्कार कर रहा है, वो तुम्हारे पिता से जबरजस्ती विवाहबन्धन में बन्ध रही है। उसके माता-पिता और उसका भाग्य उसे इस बन्धन में बांध रहा है और सांसारिक मन इस रिश्ते को जिसमें पति विधुर और कई बच्चो का पिता है उसे नकार रहा है।

जब दुःख, विक्षोभ, ग्लानि, क्रोध, प्रताड़ना से भरी लड़की, दूसरी माता के रूप में माता जैसा पवित्र प्रेम कैसे तुम सब पर उड़ेले? घृणा भरे मन से प्रेम कैसे उपजेगा? जिसके पास जो होगा वो वही तो तुम्हे देगा।

*तीन गुब्बारे लो एक में हवा, दूसरे में सादा जल और तीसरे में रंगीन पानी भरो।* अब तीनो में पिन चुभोकर देखो। जिसमें जो भरा था वो निकला। इसी तरह मनुष्य के मन मे जो भरा होगा वो वही स्वभाव और व्यवहार द्वारा निकालेगा।

*ज़रा सोचो, तुम्हारे  पिता यदि कुँवारे होते और उनका पहला विवाह ऐसी लड़की से होता जिसके पति की मृत्यु हो गयी हो और उनके कुछ बच्चे हों। तो क्या तुम्हारे सांसारिक पिता वैसी ही हरकत न करते जैसी तुम्हारी दूसरी माता कर रही है? स्वयं विचार करो..*

बेटे *अपनी सगी मां इसलिए हमें प्रेम कर पाती है क्योंकि उसके रक्त मांस से हम जन्मते हैं, हमे जन्म देने से पूर्व ही उसका भावनात्मक रिश्ता जुड़ जाता है। उसका प्रेम ही उसके रक्त को दूध में बदल देता है।* प्रेम मां के हृदय का 9 महीने गर्भ धारण का कष्ट, प्रसव पीड़ा का कष्ट और दो वर्ष तक पॉटी साफ करने और लालन पालन का कष्टसाध्य कर्मो को करने का बल देता है।

यदि तुम्हारी माँ को ही *दूसरे का बच्चा पालन पोषण को दे देते* तो वो भी उतने उमंग उत्साह से उन बच्चों को न पाल पाती जितने उमंग-उत्साह से स्वयं का बच्चा पालन किया।

केवल सन्त हृदय और आध्यात्मिक दृष्टिकोण वाले लोग ही दूसरे के बच्चे को भी सच्चा मातृत्व या पितृत्व का प्रेम दे पाते है। अन्यथा तो घृणास्पद बोझ समझ कर व्यवहार ही करते देखे जाते है।

प्रिय बेटे, अपनी सौतेली माता पर दया करो न कि उस पर घृणा करो। वो सांसारिक स्त्री है उससे उच्च आत्मीयता और मातृत्व व्यवहार जैसे अमूल्य निधि की अपेक्षा करना व्यर्थ मानो। उसके मानसिक घावों का अवलोकन करके उसे उसके कुव्यवहार के लिये क्षमा कर दो और उससे सहजता और निःस्वार्थ भाव से क्षमा मांग लो।

अपनी नई जिंदगी नए स्वस्थ दृष्टिकोण के साथ प्रारम्भ करो, और जिंदगी में आगे बढ़ो।

जब हम बीमार होते है तो हम दोषारोपण में समय नष्ट न करके, बीमारी के इलाज़ हेतु प्रयत्नशील हो जाते हैं। इसी तरह तुम्हारे घर के सम्बंध बीमार है तो इनके उपचार हेतु प्रयत्नशील हो जाओ। यदि गाय सींग मारने वाली हो तो उसे चारा दूर से ही खिलाना चाहिए। यदि माता का व्यवहार अति कष्टदायी है तो उनसे रिश्ता तो भी न तोड़े, दूर से ही सही रिश्ता जरूर निभाएं।

बिगड़े रिश्ते गन्दे पानी की तरह कभी कभी हो जाते हैं, उसे प्योरिफाई आत्मीयता से करने की कोशिश करें।यदि पानी स्वच्छ न भी हुआ तो भी उसे फेंकना नहीं चाहिए, पीने के काम न भी आया तो आग बुझाने के काम जरूर आता है।

सर्वप्रथम स्वयं को सक्षम और आत्मनिर्भर बनाओ और जल्दी से जल्दी अपने भाई बहनों का उत्तरदायित्व स्वयं उठा लो। घर से दूर जॉब करो। फोन द्वारा, पत्र व्यवहार और SMS द्वारा निरंतर माता-पिता के सम्पर्क में रहो। उनको जब भी जरूरत हो उनकी मदद करने के लिए तैयार रहो।

इसे पढ़कर समझकर जिंदगी में अमल लाओगे, स्वयं का आध्यात्मिक दृष्टिकोण विकसित कर आत्मीयता का विस्तार आत्मविश्वास के साथ करोगे। तो मन स्वतः शांत हो जाएगा। जीवन में आनन्द ही आनंद रहेगा।

दूसरों से लड़ने पर और उसे हरा देने पर अहंकार जरूर सँतुष्ट हो सकता है लेकिन आत्मा कभी सन्तुष्ट नहीं होती, इससे उसका भार कभी नहीं जाता। लेकिन यदि किसी को भगवान बुद्ध की तरह करुणा से क्षमा कर दो तो आत्मा का बोझ उतर जाता है। आत्म सन्तुष्टि मिलती है। मन शांत और हल्का महसूस होता है।

बेटा आप ये  पुस्तकें जरूर पढ़ें:-

1- भावसम्वेदना की गंगोत्री
2- मित्रभाव बढ़ाने की कला
3- दृष्टिकोण ठीक रखें
4- गहना कर्मणो गतिः
5- हम सुख से वंचित क्यों है?

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Thursday 19 July 2018

प्रश्न - *दी, यदि कोई हमारी टीम के किये सामाजिक आध्यात्मिक कार्य का श्रेय रिपोर्ट में ख़ुद का बता कर ले, तो ऐसी परिस्थिति में हमे क्या करना चाहिए?*

प्रश्न - *दी, यदि कोई हमारी टीम के किये सामाजिक आध्यात्मिक कार्य का श्रेय रिपोर्ट में ख़ुद का बता कर ले, तो ऐसी परिस्थिति में हमे क्या करना चाहिए?*

उत्तर - उस व्यक्ति को इग्नोर करना चाहिए, क्योंकि हम सब ईश्वर के कार्यकर्ता हैं। ईश्वर के लिए काम कर रहे हैं और फाइनल रिपोर्ट महाकाल गुरुदेब के पास जाएगी। जो अंतर्यामी हैं।

एक काम और कर सकते हो कि अपनी टीम की रिपोर्ट सम्बन्धित जगह स्वयं भी भेजें, कार्य की फोटो शोशल मीडिया में पोस्ट करें... लेकिन इसका उद्देश्य मात्र लोगो को प्रेरणा देने के लिए और ऐसे ही अच्छे कार्य करने के लिए प्रेरित करने के लिए होना चाहिए,
इसका उद्देश्य कार्य का श्रेय लेने के लिए नहीं होना चाहिए, क्योंकि हम सब गुरुसत्ता के निमित्त मात्र हैं... सांसारिक इंसान पुण्यकर्म का लेखा जोखा करने में अक्षम है वो मात्र ताली बजा सकता है। लेकिन असली हिसाब तो ईश्वर करेगा।
👉🏼👉🏼👉🏼

*आओ इसे एक कहानी के माध्यम से समझते हैं*- एक राजा रोज रात को वेश बदल के अपनी प्रजा का हाल चाल लेने निकलता।

राह में एक लाश पड़ी देख के उसने आसपास गाँव वालों से कहा, अरे इसे अभी तक मुखाग्नि क्यों नहीं दी गयी? क्या इस व्यक्ति का कोई नहीं है?

लोगों ने कहा, यह शराबी और व्यभिचारी है। इसकी लाश के स्पर्श से हम अपवित्र हो जाएंगे। अगर आपको ज्यादा दया आ रही हो तो इस लाश को इसके घर पहुंचा दो, हम पता बता देते हैं।

दयालु राजा उस लाश को लेकर उस व्यक्ति के घर पहुंचा, पत्नी विलाप करने लगी। बोली मेरे महान पुण्यात्मा पति की लाश को घर तक पहुंचाने के लिए धन्यवाद।

राजा बोला- लोग तो कह रहे हैं यह व्यभिचारी और शराबी है। और तुम कह रही हो महान और पुण्यात्मा। या तो लोग सही है या तुम...मुझे बताओ माज़रा क्या है?

स्त्री बोली, हम निम्न जाति के गरीब लोग हैं। मेरा पति सन्तों की संगति में यह बात सीखा कि कोई कर्मो को देखे न देखे भगवान सब देख रहा है। क्योंकि वो हमारे ही भीतर है। भगवान की बनाई इस सृष्टि में जो बन पड़े जरूर करें और युगपिड़ा हरने/निवारण का हर सम्भव प्रयास करें।

मेरे पति ने यहां के लोगों को व्यसन और वेश्यावृत्ति छोड़ने को बहुत समझाया लेकिन लोग न माने। अत्यंत गरीब कन्याओं को उनके अपने ही चंद पैसे के लिए  कोठों पर वेश्यावृत्ति हेतु बेंच देते हैं। फिर दबंग उन कन्याओं का शोषण करते हैं।

मेरे पति ने यह सब रोकने का बहुत प्रयास किया, लेकिन यहां के दबंगो ने सब प्रयास व्यर्थ कर दिए। फ़िर भी इसने हार नहीं मानी। दिन भर कमाता और जरूरत के भोजन व्यवस्था से बचे पैसे से शराब खरीद के नाली में बहा देता तो गांव के युवकों को शराब न मिलती...धीरे धीरे गाँव के कुछ युवकों को निरन्तर शराब न मिलने के कारण उनकी शराब छूट गयी, और हर महीने एक वेश्या लड़की को पैसे से खरीद के मुक्त करवाता और उसे गांव से कई कोस दूर उसका व्याह करवा देता। इसका मानना था कुछ तो इस गांव को पापमुक्त बनाने में और कुछ कन्याओं की जान बचाने का जो कार्य मैं कर सकता हूँ जरूर करूंगा।

मैं जब इससे कहती कि तुझे लोग शराबी और व्यभिचारी समझेंगे। तेरी मौत पर कोई कंधा देने न आएगा। तूने सन्तान भी लोकसेवा में उतपन्न न की। तो तुझे और मुझे मरने पर कोई मुखाग्नि भी न देगा।

तो मेरा पति जोर से हँसता, बोलता भाग्यवान मैं जिस भगवान के लिए काम कर रहा हूँ, वो मेरी लाश को कंधा देने के लिए बड़े राजा को भेजेगा। मुझे मुखाग्नि इस देश का राजा 24 तोपों की सलामी के साथ देगा।

राजा फूट फूट कर रोने लगा, बोला माई तेरा पति सही कहता था। भगवान ने राजा को तेरे पति की लाश को न सिर्फ कंधा देने बल्कि राजकीय सम्मान के साथ मुखाग्नि देने भेज दिया है। इसे 24 तोपो की सलामी के साथ मुखाग्नि दी जाएगी। आज से मैं तुझे राजमाता बनाता हूँ। और तेरे पति का छोड़ा कार्य अब मैं पूरा करूंगा, यह गांव ही नहीं पूरा का पूरा राज्य वेश्यावृत्ति और व्यसन से मुक्त कर दूंगा। माई मैं इस देश का राजा हूँ।
💐💐💐💐💐💐💐💐
आत्मीय बहनों भाईयों यदि आप गुरुकार्य और युग पीड़ा पतन निवारण का कार्य पूरी निष्ठा लगन से कर रहे हो तो वो महाकाल गुरुदेब से छिपा नहीं है। वो सब देख रहे है और सबकुछ नोट कर रहे है। निश्चिंत रहें भगवान के यहां कोई किसी के पुण्य का श्रेय नहीं ले सकता। और भगवान के यहां अन्तर्मन में भी किया पाप नहीं छुप सकता, तो भला सांसारिक हेराफेरी कैसे छुप सकेगी।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

उसका ही अस्तित्व सर्वत्र शेष बच रहा है

*उसका ही अस्तित्व सर्वत्र शेष बच रहा है*

अहा! ध्यान का नया अनुभव हो रहा है,
जैसे भीतर से सो कर कोई उठ रहा है,
भीतर समय जैसे ठहर सा गया है,
मानो शहर का शोर थम सा गया है।

नज़ारे कुछ बदले बदले से लग रहे हैं,
सब अपने अपने से दिख रहे है,
कोई पराया नज़र न आ रहा है,
मानो पूरा ब्रह्मांड मुझमें समा रहा है।

कानों में कोई शोर नहीं है,
शब्दो का कोई रोर नहीं है,
ख़ुद से परे जाने का अनुभव नया नया है,
बिन पंखों के उड़ने का अनुभव नया नया है।

रुई सा मन हल्का हो गया है,
भारमुक्त मन ध्यानस्थ हो गया है,
धरती पर रहकर भी,
बादलों में चलने का अनुभव हो रहा है।

मानो मुझमेँ ही सूर्य का उदय हो रहा है,
मुझसे ही जगत प्रकाशित हो रहा है,
मानो सबकुछ उसमें विलय हो रहा है,
अब उसका ही अस्तित्व सर्वत्र शेष बच रहा है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, हम लोग जितना सम्भव होता पूरी निष्ठा लगन से गुरुकार्य करते है। फ़िर हमें विभिन्न कठिन परीक्षाओं और मनोशारीरिक कष्टों से क्यों गुजरना पड़ता है? मार्गदर्शन करें..*

प्रश्न - *दी, हम लोग जितना सम्भव होता पूरी निष्ठा लगन से गुरुकार्य करते है। फ़िर हमें विभिन्न कठिन परीक्षाओं और मनोशारीरिक कष्टों से क्यों गुजरना पड़ता है? मार्गदर्शन करें..*

उत्तर - बहन, अध्यात्म बड़ा जटिल और गूढ़ रहस्यों से भरा सफर है, जो आसान बुद्धि से परोक्ष बुद्धि से परे की चीज़ है।

 जन्म हमें दो प्रकार से मिलता है एक भोग शरीर और दूसरा प्रायश्चित शरीर, भोग वाले शरीर मे तो नॉर्मल आधी व्याधि होती है,  लेकिन प्रायश्चित शरीर के रोग डॉक्टर नहीं पकड़ सकते हैं क्योंकि जो दिख रहा है वास्तव में वो रोग ही नहीं है, मनोशारीरिक प्रायश्चित विधिव्यवस्था है।

उदाहरण - ठाकुर रामकृष्ण और विवेकानन्द जी,  दोनों रिद्धि सिद्धि से भरे हुए थे जनकल्याण करते थे।

ठाकुर को गले का कैंसर था और विवेकानन्द जी को 31 बीमारी थी।

श्रद्धेय डॉक्टर साहब बहुत सारे एक्सीडेंट और ऑपरेशन से गुजर चुके हैं।

सन्त और भगवान जिनके आशीर्वाद से लोगों का कष्ट छू मन्तर हो जाता है, उनके जीवन में उपजे कष्टों को देखकर आश्चर्य नहीं होता कि ऐसा क्यों?

अहिल्या का चरण से स्पर्श कर उद्धार करने वाला, न जाने कितनों का उद्धार करने वाला, स्वयं के पुत्रो के जन्म का साक्षी न बन सका और सीता जी के वियोग में ही जीवन बीता।

महावीर स्वामी को तब तक निर्वाण नहीं मिला जबतक कि ग्वाले ने आकर उनके कानों में खूंटी गाड़कर रक्त न बहा दिया हो।

 भगवान कृष्ण की मृत्यु चरवाहे के तीर से हुआ, तो राम जी को जल समाधि लेनी पड़ी। भगवान लक्ष्मण के शरीर को चिता भी नसीब नही हुई उसे चील कौवे ने खाया। भगवान कृष्ण के आंखों के समक्ष समस्त यादवकुल लड़कर नष्ट हो गया।


भगवान के किस अवतार का जीवन सुखमय था? ज़रा रामायण, महाभारत और अन्य धर्म ग्रन्थ पढ़कर देखो। दुःख और कष्टों से भरा जीवन, लेकिन इन कठिनाइयों को पार करते हुए भी महानता की चरम सीमा पर पहुंचे। निजी लाइफ़ में भले असफल हो लेकिन लोककल्याण में सर्वस्व लगा दिया। इसलिये देवता-भगवान कहलाये, क्योंकि वो सद्गुणों और सत्कर्मो का समुच्चय थे।

फ़िर प्रश्न उठता है  धार्मिक क्यों बने और अध्यात्म क्यों चुने जब दर्द सहना ही है। प्रारब्ध भुगतना ही है तो....

यहां एक बात समझ लें .....वास्तव में अध्यात्म संकट पूर्ण नहीं टालता, बल्कि प्रारब्ध को भोगना ही पड़ता है। अध्यात्म केवल संकट में धर्मी को सम्हालता है। भगवान राम की तरह मर्यादित रखता है, भगवान कृष्ण की तरह कुशलता देता है, भगवान बुद्ध की तरह कष्ट में भी स्थिर बुद्धि देता है और भगवान शंकर की तरह उदार चरित्र बनाता है जो लोककल्याण के लिए विष पीने से भी पीछे नहीं हटते। धर्म देवता बनाता है।


जानती हो बहन...अग्निपरीक्षा सतीयों को देनी पड़ती है वेश्याओं को नहीं,

उपसर्ग/आरोप सन्तो पर लगते हैं,
डाकुओं को पर नहीं।

कसौटी पर सोने को कसा जाता है लोहे को नहीं...

धर्मी विपन्न रह सकता है खिन्न नहीं। धर्मी का बीमार शरीर हो सकता है, लेकिन कभी बीमार मन औऱ चित्त नहीं होता। महंगा बिस्तर हो न हो, लेकिन चैन ही नींद सोता है।

अधर्मी सम्पन्न रह सकता है अन्तः से प्रशन्न नहीं। अधर्मी का स्वस्थ शरीर हो सकता है, लेकिन कभी स्वस्थ मन औऱ चित्त नहीं होता। महंगा बिस्तर हो सकता है, लेकिन चैन ही नींद कभी नहीं सोता है। क्योंकि पाप हमेशा संताप लेकर आता है।

अच्छा ये बताओ किसी को फूल माला पहनाकर जनसमूह लिए चला आ रहा हो तो तुम क्या कहोगी, यही न कि जरूर इसने कुछ बहुत अच्छा किया इसलिए इसका स्वागत हो रहा है।

इसी तरह यदि जनसमूह किसी एक व्यक्ति को अपमानित कर रहा है, तो तुम यही कहोगी न कि जरूर इसने कुछ बुरा किया होगा।

जब उपरोक्त परिस्थिति में सही समझ से सोच सकते है, तो यदि हमारे साथ कुछ अच्छा हुआ तो पूर्व जन्म का फ़ल, कुछ बुरा हुआ तो भी पूर्व जन्म का फल क्यों नहीं मान लेते। समस्या के समाधान में स्वस्थ चित्त से जुट जाते हैं। जन्म मृत्यु विधाता को ही हैंडल करने देते है, हम तो प्रत्येक पल में जीवन को जोड़ने में जुटते है। प्रत्येक पल को हज़ार गुना आनन्द के साथ मनाते है।

कुल मिलाकर संक्षेप में यह समझो कि *भगवान जब स्वयं कर्मफ़ल से बंधा है तो भला उसका भक्त कर्मफ़ल से कैसे मुक्त हो सकेगा। भक्त हो या भगवान, सन्त गुरु हो या सच्चा शिष्य अपने अपने कर्मफ़ल और प्रारब्ध सबको स्वयं झेलने पड़ते है। गुरु और भगवान केवल साथ मे पीड़ा बंटाता है और दुःख और कष्ट की घड़ी में भक्त को सम्हालता है, उसे मन से कभी टूटने नहीं देता। उसके साथ साथ उसकी पीड़ा बंटाता रहता है।*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 18 July 2018

प्रश्न - *मुश्लिम बहन गम्भीर रोग से परेशान है, उनके आत्मकल्याण हेतु क्या सलाह दूँ? उन्हें मोटिवेट कैसे करूँ?* उत्तर

प्रश्न - *मुश्लिम बहन गम्भीर रोग से परेशान है, उनके आत्मकल्याण हेतु क्या सलाह दूँ? उन्हें मोटिवेट कैसे करूँ?*

उत्तर - यदि मनुष्य का वैज्ञानिक तरीके से लैब परीक्षण किया जाय तो ज्ञात होगा कि रक्त, मांस, हड्डी इत्यादि से यह पता नहीं लगा सकते कि कौन किस धर्म का है? सूर्य चन्द्रमा ग्रह नक्षत्र और तारे, जल स्रोत और वायु सबके लिए समान है। तो इससे यह सिद्ध होता है भगवान ने जाति-सम्प्रदाय नहीं बनाए, ये इंसान द्वारा बनाया गया है।

यह सृष्टि कर्म प्रधान है, जहर हिन्दू खाये या मुश्लिम या क्रिश्चन या सिख या पारसी मरेंगे सभी। इसी तरह अच्छी चीज़े खाने पर सबकी सेहत बनेगी। ठीक यही नियम मन्त्र जप, योग-प्राणायाम, ध्यान और स्वाध्याय पर काम करता है, जो करेगा उसे पूर्ण लाभ देगा। देवता अर्थात सद्गुण-सत्कर्मो का समुच्चय, मन्त्र अर्थात देवता बनने की ओर अग्रसर होने के लिए विचारो का सशक्त फार्मूला। इसे अपनाओ और स्वयं में देवत्व जगाओ।

हिंदुओ में देवता बनने और देवत्व जगाने का मन्त्र - *गायत्री मंत्र* है। मुश्लिम इसी तरह का भाव बनाने वाले *सूरह अल फातिहा* को नित्य कई बार दोहराएं।

1:1  بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ

अल्लाह के नाम से जो अत्यंत कृपाशील तथा दयावान है|

1:2  الْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ

सारी प्रशंसाएँ अल्लाह ही के लिए हैं, जो सारे संसार का रब है।

1:3  الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ

बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान है।

1:4  مَالِكِ يَوْمِ الدِّينِ

बदला दिए जाने के दिन का मालिक है।

1:5  إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ

हम तेरी ही बन्दगी करते हैं और तुझी से मदद माँगते हैं।

1:6  اهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِيمَ

हमें सीधे/सत्य मार्ग पर चला।

1:7  صِرَاطَ الَّذِينَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ غَيْرِ الْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ وَلَا الضَّالِّينَ

उन लोगों के मार्ग पर जो तेरे कृपापात्र हुए, जो न प्रकोप के भागी हुए और न पथभ्रष्ट। श्रेष्ठ लोगों का अनुसरण करें और उनके दिखाए मार्ग पर चलें।

इसे रोज अपनी प्रार्थना में शामिल करें। जितनी बार कर सकें उतना अच्छा है।

गलतियां इंसान से होती है, हम सोचते हैं क्रोध में कि हम दूसरों को दण्ड दे रहे हैं। लेकिन असल में दण्ड के पात्र हम स्वयं बनते चले जाते हैं।

हम बीच में खड़े हैं, जन्नत(स्वर्ग) और दोज़ख(नर्क) के, अल्लाह ने हमें अपने मन मुताबिक जीने की छूट तो दी है, अपने हिसाब से काम करने की छूट दी है लेकिन उसका फ़ल/रिज़ल्ट/परिणाम अपने हाथ में रखा है। इसलिए जो भी करें पहले हमें सोचना समझना चाहिए।

हमें रोग कुछ प्रारब्ध/पिछले जन्म के कर्मफ़ल से बनी परिस्थिति के कारण भी होते है ।

रोग हमे जीवन मे अपनी भूलो के प्रायश्चित करने का तरीका मात्र होता है, जहां हम नित्य *सूरह अल फ़ातिहा* कम से 108 बार पढ़कर इस पर चिंतन करें। इसके एक एक शब्द को स्वयं में अंकित करें और ख़ुदा की बताई नेक राह पर चलने को स्वयं को प्रेरित करें।

सूर्य जो वृक्ष-वनस्पति और जीवों को प्राण देता है उससे हृदय से प्रार्थना करें कि वो भी अपनी रॉशनी से हमारे भीतर का अंधकार दूर करे, ख़ुदा का नूर बरसे, उजाला ही उजाला मन के अंदर हो। बुराइयां जलकर खाक हो जाएं और नेकनीयत हममें आ जाये। हर जीव वनस्पति मनुष्य औऱ कण कण में हमे ख़ुदा दिखे। और हमारे चेहरे पर ख़ुदा का नूर रहे।

इस ध्यान का लाभ अपने आपको अच्छा इंसान बनाने में ख़र्चे, उस ख़ुदा की इबादत में समय ख़र्चे, सूरह अल फ़ातिहा का अर्थ चिंतन करते हुए, उस ख़ुदा के ध्यान में खोए रहें।

मनोबल बढ़ाने के लिए निम्नलिखित साहित्य की पीडीएफ, युगनिर्माण सत्संकल्प(बराय तामीरे जमाना, हमारा मजमे मुसम्मम), उन्हें व्हाट्सएप कर दें जो मैं इस पोस्ट के साथ ही दे रही हूँ। यह सभी स्वस्थ व्यक्ति के लिए भी समान उपयोगी है।

1- निराशा को पास न फटकने दें
2- युग परिवर्तन इस्लामी दृष्टिकोण
3- बराय तामीरे जमाना, हमारा मजमे मुसम्मम(युगनिर्माण सत्संकल्प)
4- दृष्टिकोण ठीक रखें
5- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
6- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
7- मानसिक संतुलन
8- मैं क्या हूँ?
9- अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, मैंने अपने जीवन में कुछ ऐसी गलतियां की है जो मुझे नहीं करनी चाहिए थी। जिनका अब मुझे पश्चाताप है। जब भी उन गलतियों की याद आती है मन खिन्न हो जाता है, नकारात्मक विचारों से मन भर जाता है और लगता है कि मेरा तो नरक जाना निश्चित है तो पूजा पाठ करके क्या फ़ायदा... क्या करूँ...मार्गदर्शन करें*

प्रश्न - *दी, मैंने अपने जीवन में कुछ ऐसी गलतियां की है जो मुझे नहीं करनी चाहिए थी। जिनका अब मुझे पश्चाताप है। जब भी उन गलतियों की याद आती है मन खिन्न हो जाता है, नकारात्मक विचारों से मन भर जाता है और लगता है कि मेरा तो नरक जाना निश्चित है तो पूजा पाठ करके क्या फ़ायदा... क्या करूँ...मार्गदर्शन करें*

उत्तर - *रत्नाकर और अंगुलिमाल दोनों डाकू थे। जिस पल उन्होंने नारद और बुद्ध की प्रेरणा से स्वयं को बदलने का निश्चय किया। उस पल से उन्होंने अंधेरे से प्रकाश की ओर आध्यात्मिक यात्रा और तपस्या प्रारंभ कर दी। अथक परिश्रम और तपबल से डाकू रत्नाकर महर्षि बाल्मीकि बन गए, और अंगुलिमाल बौद्ध भिक्षुक अहिंसक बन गए।*

जब सीता जी के गर्भ में लवकुश थे तब उन्होंने उस समय के श्रेष्ठ तपस्वियों की तुलना में महर्षि बाल्मीकि का आश्रम चुना रहने के लिए। अर्थात वो उस समय सबसे महर्षि की चेतना इतनी सर्वश्रेष्ठ हो चुके थी कि स्वयं आद्यशक्ति ने उन्हें चुना।

ऐसे अनेक कुख्यात डाकू परमपूज्य गुरुदेब की प्रेरणा से बदल गए। सरकार को आत्मसमर्पण करके, सज़ा काट के अब वो पीले साधारण कपड़ो में घर घर अखण्डज्योति पत्रिका बांटते हैं।

तो *जब ये लोग पश्चाताप और तपस्या से इतनी बड़ी गलती करने वाले बदल सकते हैं तो फिर हम और आप जैसे लोग भी अपनी गलतियों से उबर सकते हैं। प्रायश्चित कर सकते हैं। महान बन सकते है।*

परीक्षा हेतु पढ़कर एग्जाम दोगे तो पास भी हो सकते हो और फेल भी, तो 50-50% चांसेस हैं। लेकिन यदि पढोगे ही नहीं और एग्जाम दोगे ही नहीं तो 100% फेल ही हो। अतः अंधेरे में निराश होकर बैठने का कोई फ़ायदा नहीं, जब तक श्वांस है प्रकाश की ओर बढ़ते रहो।

*तपस्वी के पास आत्मसंतुष्टि होती है और चैन की नींद। तपस्वी विपन्न हो सकता है लेकिन कभी खिन्न नहीं होता। तप के साथ अंतर प्रशन्न रहता ही है।*

*पापी सम्पन्न हो सकता है लेकिन कभी अंतर से प्रशन्न नहीं हो सकता, पाप के साथ संताप रहता ही है। बिस्तर आलीशान होता है लेकिन चैन की नींद नहीं होती।*

हम सभी मनुष्य चार प्रकार की यात्राएं कर रहे हैं:-

1- अंधेरे से प्रकाश की ओर
2- अंधेरे से अंधेरे की ओर
3- प्रकाश से प्रकाश की ओर
4- प्रकाश से अंधेरे की ओर

*अब यदि हमें पता चल गया कि हम अँधेरे में है तो प्रकाश की ओर गुरुचरणों में समर्पित होकर निरन्तर चलना प्रारम्भ कर दो, एक न एक दिन कभी न कभी प्रकाश तक पहुंच जाओगे ही।* कहते है *कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती*। क्या पता तुम्हारी चेतना के ग्रो करने की स्पीड कितनी है, हो सकता है कुछ वर्षों में तुम हम सबसे आगे चेतना के शिखर तक पहुंच जाओ।

चलो फ़िर सैड मूड का त्याग करो और लग जाते है अपनी प्रारब्ध की कडाहियो को मांजने में, पापकर्मो को जलाने में, एक न एक दिन सफल होंगे ही। मन ही मन गीत गाते रहो - *हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब एक दिन, मन में पूरा है विश्वास हम होंगे कामयाब एक दिन।*😊

साधारण अग्नि हो या और तप की अग्नि हो, जो भी कुछ चाहो उसमें जला सकते हो। सामान कम होगा तो कम अग्नि में जल जायेगा और ज्यादा होगा तो ज्यादा अग्नि चाहिए और ज्यादा देर तक चाहिए। तो तप की अग्नि अनवरत जलाते रहो और पापों को जलाते रहो। उपसना-साधना-आराधना करते रहो।

हो सके तो 9 दिवसीय जीवन सँजीवनी साधना शान्तिकुंज हरिद्वार या गायत्री तपोभूमि मथुरा में करके आओ। दोनों तीर्थ क्षेत्र में रहना और भोजन निःशुल्क है। *तीर्थ क्षेत्र की तप ऊर्जा से कनेक्ट होने के बाद आत्मबल स्वतः बढ़ जाता है। पुण्य के बढ़ने पर पाप स्वतः घटने लगता है।*

तुम चेतना के शिखर तक शीघ्र पहुंचो, तुम्हारा अन्तःकरण शीघ्र प्रकाशित हो यही शुभकामनाएं है, इसके लिए सबसे पहले गुरुदेब के प्रति भक्ति और समर्पण बढ़ाना आवश्यक है और निम्नलिखित साहित्य भी पढ़ो और अपना आत्मज्ञान बढ़ाओ:-

1- चेतना की शिखर यात्रा भाग 1 से 3
2- ऋषि युग्म की झलक झांकी
3- अद्भुत आश्चर्य किंतु सत्य
4- पापनाशिनी चन्द्रायण कल्प साधना
5- मैं क्या हूँ?
6- निराशा को पास न फटकने दें
7- प्रसुप्ति से जागृति की ओर
8- अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
9- दृष्टिकोण ठीक रखें

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
 डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी कभी कभी आत्महत्या करने का मन करता है, समस्या एक सुलझाओ कि दूसरी खड़ी। मैं अपने जीवन से तंग आ गयी हूँ, कब तक और कैसे स्वयं को समझाऊँ?मार्गदर्शन करें..*

प्रश्न - *दी कभी कभी आत्महत्या करने का मन करता है, समस्या एक सुलझाओ कि दूसरी खड़ी। मैं अपने जीवन से तंग आ गयी हूँ, कब तक और कैसे स्वयं को समझाऊँ?मार्गदर्शन करें..*

उत्तर - आत्मीय प्यारी बहन, तुरन्त अविलम्ब आत्महत्या कर लो यदि निम्नलिखित कंडीशन आ गई हो और अपनाओ आत्महत्या का सरल उपाय - आज से ही कर दो अन्न-जल का त्याग:-

1- सोचने समझने की शक्ति चली गयी हो।

2- हाथ, पैर, आंख, कान और त्वचा ने काम करना बंद कर दिया हो।

3- मन की समस्त इच्छाओं का अंत हो गया हो, और आत्मसंतुष्ट महसूस कर रहे हो।

4- लौकिक सभी जिम्मेदारी पूर्ण हो गयी हो और मोह माया का आपने त्याग कर दिया हो।

5- मरने के बाद आपको किसी भी चीज़ का अफ़सोस नहीं हो।

यदि उपरोक्त में से एक भी कंडीशन फेल हो रही है, तो आपको मरना नहीं चाहिए बल्कि परेशानियों से मनोबल एकत्र करके निपटना चाहिए।

मरने के बाद शरीर नष्ट होगा, प्रारब्ध कर्म और परेशानियां खत्म नहीं होती। इसे ऐसे समझो कि लोन लिया था और चुका न सकने पर अपना वस्त्र-हुलिया बदल लिया तो क्या लोन चुक जायेगा नहीं न। इसी तरह शरीर रूपी वस्त्र बदलने से प्रारब्ध रूपी लोन न चुकेगा, उसके लिए परिश्रम करके लोन स्वयं को चुकाना ही पड़ेगा। *शाश्वत सत्य यह है कि हम(आत्मा) कभी मर ही नहीं सकते, केवल शरीर को मार/नष्ट कर सकते है*। शरीर से पूर्व भी हम थे, इस शरीर मे भी हम(आत्मा) हैं और इस शरीर के जाने के बाद भी रहेंगे। प्रारब्ध हो या पुण्यफ़ल का अकाउंट हमारी आत्मा से जुड़ा है, शरीर से नहीं हमेशा ध्यान रखना। तो बुद्धिमानी इसमें है कि प्रारब्ध के शमन हेतु प्रयास किया जाय।

*समस्या हेतु एक कहानी सुनो:-*

एक सन्त समुद्र के किनारे बैठे थे, तभी एक मछुआरा आया बोला आप नज़ारे देख रहे हो या आपको समुद्र में नहाना भी है?

सन्त बोले जब समुद्र की सभी लहरें शांत होंगी तब नहाऊंगा। मछुआरा बोला, ऐसा कभी न होगा। लहरों के बीच ही नहाना पड़ेगा। *सन्त बोले तुम लोग भी तो कहते हो समस्या शांत होंगी तभी जियोगे, समुद्र की लहर की तरह समस्या कभी शांत न होंगी और इन लहरों के बीच ही जीना भी पड़ेगा, और इन लहरों में ही नौकाएं भी उतारनी पड़ेगी।*

*लहरों से डरकर नौकाएं पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।*

*मनुष्य अपने सत्प्रयासों से अन्तःकरण में विवेक और संतोष जागृत कर स्थायी सुख-शांति और प्रशन्नता प्राप्त कर सकता है।*

दुनियाँ में सभी ताले चाबीयों के साथ ही बनते हैं, समस्या है तो समाधान भी होगा, तो समस्याओं के समाधान हेतु भी सांसारिक प्रयास और आध्यात्मिक प्रयास कीजिये। क्रिकेट खिलाड़ी की तरह प्रत्येक समस्या रूपी बॉल पर कभी एक रन, कभी दो, कभी चौका, कभी छक्का और कभी डॉट बॉल लेते रहें। जीवन का खेल खेलते रहें।

मरने की उतावली न करें, जीवन के खेल को एन्जॉय करें।

*निम्नलिखित पुस्तको का स्वाध्याय जीवन के खेल में दक्षता प्रदान करेगा*:-

1- निराशा को पास न फटकने दें
2- हम अशक्त क्यों? शशक्त बने
3- जीवन जीने की कला
4- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
5- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा

याद रखिये, *मृत्यु आत्मा के एक और नए सफर की यात्रा है, तो इसकी भी तैयारी आवश्यक है।* जिस प्रकार एक देश से दूसरे देश जाने पर इस देश की करेंसी को दूसरे देश की करेंसी में बदलना पड़ता है, ठीक उसी प्रकार इस संसार मे अध्यात्म और दान-पुण्य से हम करेंसी बदल लेते हैं, मृत्यु के बाद पुण्य रूपी करेंसी उपयोग में आती है।

मेरी प्यारी बहना, *समझ तो गए होंगे आत्मा कभी मर ही नहीं सकती। तो आत्महत्या तो सम्भव ही नहीं है। स्वयं के शरीर हत्या मात्र से समस्या का अंत नहीं होता।* तो यदि हत्या करने का मन हो रहा है, तो समस्याओं की हत्या समाधान द्वारा करें, मनोविकारों और कुविचारों की हत्या ध्यान-स्वाध्याय के हथियार से करें, उतावली की हत्या धैर्य के हथियार से करें, क्रोध की हत्या शांत मन से करें करें, असंतोष और इच्छाओं-वासनाओं की हत्या   आध्यात्मिक मूल्यों से करें।

नित्य उपासना-साधना-आराधना द्वारा जीवन को सुव्यवस्थित बना के आत्म सन्तुष्टि और सुकून प्राप्त करें। ज्यादा से ज्यादा ध्यान और ज्यादा से ज्यादा स्वाध्याय करें। समस्याओं की लहरों के बीच ही जीवन का आनन्द लें, जैसे समुद्र की लहरों के बीच नहाते है।।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, मेरी पत्नी वैसे तो बहुत अच्छी है, लेकिन किच किच बहुत करती है। कोई न कोई बात पर घर में या मुझसे बिना लड़े उसका दिन नहीं बीतता। बताइये उसके स्वभाव में मैं परिवर्तन कैसे लाऊँ?*

प्रश्न - *दी, मेरी पत्नी वैसे तो बहुत अच्छी है, लेकिन किच किच बहुत करती है। कोई न कोई बात पर घर में या मुझसे बिना लड़े उसका दिन नहीं बीतता। बताइये उसके स्वभाव में मैं परिवर्तन कैसे लाऊँ?*

उत्तर - प्रिय आत्मीय भाई, *गुलाब के पौधे में फूल के साथ कांटा भी होता ही है* 😂😂😂😂। बिना कांटो का कोई गुलाब का पौधा कभी देखा है?

अच्छा एक बात बताओ, गुलाब के पौधे में कांटे अधिक होते है कि गुलाब? कांटे राइट... फिर कांटे ज्यादा होने पर भी हम उसे कांटे का पेड़ नहीं बोलते बल्कि कम फूल होने पर भी गुलाब ही कहते हैं..ऐसा जब पौधे के साथ व्यवहार कर सकते है तो फिर जीवनसाथी के साथ क्यों नहीं????

इसी तरह भाभी जी के व्यक्तित्व के कांटो की जगह उनके व्यक्तित्व के गुलाब पर दृष्टि जमाइए। आपके लिए कुछ न कुछ अच्छा तो करती होंगी। कुशल माली की तरह गुण दृष्टि रखिये, गुण ग्राहक बनिये और गृहस्थ एक तपोवन तथा धरती का स्वर्ग उनके व्यक्तित्व के कांटो को इग्नोर करते हुए बनाइये।

ज़रा विचार करो, *स्वयं के मन को सुधारना और बदलना कितना मुश्किल कार्य है? मन को एक घण्टे पूर्णतया ध्यानस्थ और शांत रख पाना मुश्किल है। जब स्वयं का मन ही कंट्रोल में नहीं है, और आप चाहते हैं कि भाभीजी का मन आपके कंट्रोल में आ जाये*...भला ये कैसे आसानी से सम्भव होगा?

स्वयं के भीतर आध्यात्मिक दृष्टिकोण का विकसित करके पहले झगड़ा उतपन्न होने वाले ट्रिगर हो पहचानिये, आखिर झगड़ा शुरू कैसे होता है पहचानिए, और स्वयं के भीतर से वो बुराई का अवसर निकाल फेंकिये जो झगड़े की जड़ बनता है, फिर भाभीजी के अवगुणों को शनैः शनैः हटाने का प्रयास कीजिये। *भाई उनके क्रोध और झगड़े की आग बुझानी है तो धैर्य और भावसम्वेदना का जल बन जाइये।*

भाभीजी के मन के टीवी में कौन सा चैनल चलेगा ये आपके द्वारा दिए रिमोट के कमांड पर भी निर्भर करता है।

गायत्री परिवार की आधारशिला ही निम्नलिखित दो वाक्य है:-

1- *अपना सुधार ही संसार की सबसे बड़ी सेवा है।*

2- *हम सुधरेंगे युग सुधरेगा। हम बदलेंगे युग बदलेगा।*

इसमें कहीं नहीं लिखा कि तुम सुधरोगे तो युग सुधरेगा। तुम सुधरोगे तो परिवार सुधरेगा। समझ ही गए होंगे कि सुधरना पहले स्वयं को ही पड़ेगा, फिर भाभीजी तक सुधार पहुंचेगा।

निम्नलिखित पुस्तको का स्वाध्याय करो और अपने गृहस्थ जीवन में सुकून और शांति लाओ:-

1- गृहस्थ एक तपोवन
2- मित्रभाव बढ़ाने की कला
3- भाव सम्वेदना की गंगोत्री
4- दृष्टिकोण ठीक रखें
5- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
6- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
7- जीवन जीने की कला

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

हम चारो तरफ से समस्याओं से घिरे होते हैं और कोई निर्णय नहीं ले पाते

जंगल में एक गर्भवती हिरनी बच्चे को जन्म देने को थी। वो एकांत जगह की तलाश में घुम रही थी, कि उसे नदी किनारे ऊँची और घनी घास दिखी। उसे वो उपयुक्त स्थान लगा शिशु को जन्म देने के लिये।

वहां पहुँचते  ही उसे प्रसव पीडा शुरू हो गयी।
उसी समय आसमान में घनघोर बादल वर्षा को आतुर हो उठे और बिजली कडकने लगी।

उसने दाये देखा, तो एक शिकारी तीर का निशाना, उस की तरफ साध रहा था। घबराकर वह दाहिने मुडी, तो वहां एक भूखा शेर, झपटने को तैयार बैठा था। सामने सूखी घास आग पकड चुकी थी और पीछे मुडी, तो नदी में जल बहुत था।

मादा हिरनी क्या करती ? वह प्रसव पीडा से व्याकुल थी। अब क्या होगा ? क्या हिरनी जीवित बचेगी ? क्या वो अपने शावक को जन्म दे पायेगी ? क्या शावक जीवित रहेगा ?

क्या जंगल की आग सब कुछ जला देगी ? क्या मादा हिरनी शिकारी के तीर से बच पायेगी ?क्या मादा हिरनी भूखे शेर का भोजन बनेगी ?
वो एक तरफ आग से घिरी है और पीछे नदी है। क्या करेगी वो ?

हिरनी अपने आप को शून्य में छोड, अपने बच्चे को जन्म देने में लग गयी। कुदरत का कारिष्मा देखिये। बिजली चमकी और तीर छोडते हुए, शिकारी की आँखे चौंधिया गयी। उसका तीर हिरनी के पास से गुजरते, शेर की आँख में जा लगा,शेर दहाडता हुआ इधर उधर भागने लगा।और शिकारी, शेर को घायल ज़ानकर भाग गया। घनघोर बारिश शुरू हो गयी और जंगल की आग बुझ गयी। हिरनी ने शावक को जन्म दिया।

*हमारे जीवन में भी कभी कभी कुछ क्षण ऐसे आते है, जब हम चारो तरफ से समस्याओं से घिरे होते हैं और कोई निर्णय नहीं ले पाते। तब सब कुछ नियति के हाथों सौंपकर अपने उत्तरदायित्व व प्राथमिकता पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।अन्तत: यश, अपयश ,हार ,जीत, जीवन,मृत्यु का अन्तिम निर्णय ईश्वर करता है।हमें उस पर विश्वास कर उसके निर्णय का सम्मान करना चाहिए।*

कुछ लोग हमारी *सराहना* करेंगे,
कुछ लोग हमारी *आलोचना* करेंगे।

दोनों ही मामलों में हम *फायदे* में हैं,

एक हमें *प्रेरित* करेगा और
दूसरा हमारे भीतर *सुधार* लाएगा।।

       *अच्छा सोचें*👌🏽👍

Monday 16 July 2018

Que- How to handle Negative Energy?

Que- How to handle Negative Energy?

https://youtu.be/9GNN89aoHmI

There is still simpler ways I observe. It's true that the thought anchors itself from where it has been spoken. As a counsellor, I come across   many people with negativity in my place.
 I wipe my house on daily basis salt ( Crystal sea salt) , a pinch of Kapoor and haldi powder. Wipe the floor with this water. It removes / prevents negative energy, also clears vastu griha dosh.
The added advantage is no mosquitoes, no cockroaches. I'm doing this for past 15 years.
Keep salt in small glass cups in the corners of your house. I keep it over switch board, it will absorb all moisture in the atmosphere so no allergies, fever. Every Saturday I add a table spoon full of salt in bathing water, and in the washing machine with my detergent. Our body will ward off negative energy , and absorb the mantra energy during Jap/ Yagya. Tie a small bundle of Kapoor and place it where flow of wind is there. I put camphor ( Kapoor) in the old good night mat machine and plug it.
Those who knows me personally wonders for my energy level. This the way I follow.

According to purana, salt is abode of Lakshmi.  She came out during Sagar manthan.( Samudra tanaya, samudra vasane ,sagarambuja are few names of goddess Lakshmi) . If we use salt in this way we can prevent unwanted expenses. Dhan ki vriddhi hoti Hai.

Dr Rajeshwari Tyagrajan

प्रश्न - *पितरों की तृप्ति और मुक्ति के लिए क्या उपाय करें?किसी को जीवन पर्यन्त याद रखने का तरीका क्या है?*


प्रश्न - *पितरों की तृप्ति और मुक्ति के लिए क्या उपाय करें? किसी को जीवन पर्यन्त याद रखने का तरीका क्या है?*

उत्तर- मृतात्मा की शांति और सदगति के लिए, पितरों के नाम से ज्यादा से ज्यादा वृक्ष लगवाएं, किसी पास के सरकारी गरीब स्कूल में बिस्किट के पैकेट और सत्साहित्य  बंटवा दें। बच्चे 12 वर्ष के कम उम्र के निष्पाप होते है और इन पर किया दान पुण्य फलित होगा।

वृक्ष प्रतिक्षण ऑक्सीज़न छोड़ेंगे, वो श्वांस लोगों को मिलेगी। तो यह ऑटोमेटिक दान जीवन भर चलेगा और मृतात्मा को पुण्य इसका सदैव मिलता रहेगा।कितने सारे पशु पक्षियों को भोजन एवं छाया इसके आश्रय मे मिलेगी। प्रत्येक पितर की तृप्ति और मुक्ति के लिए कम से कम 5 पेड़- बरगद, पीपल, नीम, बेलपत्र और अशोक सीता के ये पांच वृक्ष जरूर लगाएं।
जो ज्ञान साहित्य आप बांटेगे, जो लोग पढ़ेंगे तो उनका कल्याण होगा। वो आगे भी बांटेंगे तो यह भी ऑटोमैटिक कई गुणा हमेशा पुण्य देता रहेगा।

वृक्षों के माध्यम से जीवन पर्यन्त पूर्वजों को याद रखने का सबसे उत्तम तरीका है। वृक्ष पूर्वजो का सबसे खूबसूरत व उपयोगी स्मारक है। जब चाहो वृक्ष को गले लगाकर अपने पूर्वजों से मिलने की अनुभूति होगी। उस वृक्ष की छाया आपको उनका आशीर्वाद अनुभव होगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती, DIYA

Sunday 15 July 2018

प्रश्न - *मुझे लगता है मैं व्यर्थ में कमाने में पड़ा हूँ, मुझे नौकरी छोड़ कर गुरुकार्य करना चाहिए।मेरा काम मे आजकल बिल्कुल मन नहीं करता और सबकुछ छोड़कर बस गुरुकार्य/मिशन में समर्पित होने का मन करता है। मार्गदर्शन करें।*

प्रश्न - *मुझे लगता है मैं व्यर्थ में कमाने में पड़ा हूँ, मुझे नौकरी छोड़ कर गुरुकार्य करना चाहिए।मेरा काम मे आजकल बिल्कुल मन नहीं करता और सबकुछ छोड़कर बस गुरुकार्य/मिशन में समर्पित होने का मन करता है। मार्गदर्शन करें।*

उत्तर- *सर्वप्रथम आपकी गुरुनिष्ठा को प्रणाम* 🙏🏻

*नौकरी तुरन्त छोड़ दें यदि*:-

1- आपके ऊपर घर परिवार का कोई सदस्य डिपेंडेंट नहीं है और भूखों नहीं मरेगा।

2- आप अविवाहित हों।

3- वृद्ध माता पिता की सेवा और देख रेख हेतु कोई अन्य भाई बहन हों।

4- यदि आपके मन में सन्यास सुदृढ है और भविष्य में कभी भी विवाह नहीं करेंगे, इसके लिए निश्चय अडिग है।

5- एक वक्त भोजन, भूमि शयन और कम से कम सुविधा में सन्यासियों की तरह जीवन व्यतीत कर सकते हो। विवेकानन्द की तरह योगी बन तप की अग्नि में नित्य स्नान करने को मन सुदृढ हो। भूखा कई दिनों तक रहना पड़े तो भी गम न करे।

यदि उपरोक्त में से एक भी कंडीशन फेल होती है। तो आपको जॉब नहीं छोड़नी चाहिए।

*गुरुकार्य हेतु सद्गृहस्थ स्वावलम्बी लोकसेवी की भूमिका निभानी होगी, जो अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।*

देखिए, बचपन मे कभी भी खेल छोड़कर किसी का भी मन स्कूल जाने का नहीं करता था। बड़े होने पर कभी मन घण्टों पढ़ने का भी नहीं करता था। जॉब भी एक जगह 8 बन्ध कर, इतने सारे तनावपूर्ण प्रेशर/दबाव में भला कौन ख़ुश होकर करता है? रोज सुबह दाढ़ी ब्लेड से बनाने का बोरिंग काम भला कौन आदमी ख़ुशी से करता होगा? सुबह किचन में रोज रोज खाना-बर्तन करने में कौन सी गृहणी मन से ख़ुशी महसूस करती होगी? खिलाड़ी भी क्या अत्यधिक दबाव वाले गेम को आनंद से खेलते होंगे जिसमे न परफॉर्म करने पर निकाले जाने का भय विद्यमान है। कौन सा सैनिक ख़ुशी ख़ुशी गर्म रेत पर, या हड्डी जमाने वाली ठंड में दुश्मनों और आतंकियों के बीच परिवार से दूर ड्यूटी निभाने में आनन्द महसूस कर रहा होगा? सांसारिक दृष्टि से देखें तो ऐसा लगेगा कि भला कौन से सन्यासी का मन हिमालय की हड्डी गलाने वाली ठंड में, एक पैर पर खड़ा होकर, भूखे प्यासे घण्टों तप करने पर आनन्दित होता होगा?

सत्य यह है, कि आनंदमय खुशियां देने वाला बिन दबाव का कोई कार्य इस दुनियां में है ही नहीं।

परिस्थिति सर्वत्र कठिन है, लेकिन आध्यात्मिक दृष्टिकोण का व्यक्ति मनःस्थिति बदल के इतने दबाव में भी आनन्द के पल और कारण ढूंढ ही लेता है। तपस्वी ईश्वर सेवा का भाव लाकर और सैनिक देश सेवा का भाव लाते है तो ही उस काम मे गौरव अनुभव करके आनन्दित हो सकेंगे। हम सभी अन्य जॉब करने वाले भी जहां है वहीं दिया बन प्रकाशित हो अंधेरा दूर कर सकते है। घर, परिवार, ऑफिस और आसपास स्कूलों-अस्पतालों में अपना समय गुरुकार्य के लिये समयदान-अंशदान-प्रतिभादान दे सकते हैं। सकारात्मक बदलाव ला सकते है और गौरान्वित हो सकते है। इस सेवा भाव मे आनन्दित रह सकते है।

🙏🏻 *जरूरी नहीं वही दिया सराहा जाएगा जो मन्दिर में जलता है। अरे भगवान तो उस दिए ही ज्यादा सराहता है जो कहीं दूर अंधियारी गली में जलता है और लोगो को राह भटकने से बचाता है।*

जरूरी नहीं कि हर कोई ईश्वर द्वारा तभी सराहा जाएगा जब वो सन्यासी बन आश्रम में रहे और हिमालय में तप करे। उसे ईश्वर और परमपूज्य गुरुदेब द्वारा ज्यादा सराहा जाएगा जो ऑफिस के दबाव को झेलते हुए, बाह्य तप्त परिस्थिति में भी हिमालय सी शांति अपने मन मे उतारेगा, हर मनुष्य में देवत्व जगायेगा, उसे उपासना-साधना-आराधना से जोड़ेगा और हर घर मे देवस्थापना करवाएगा। धरती को हरी चुनर बृक्षारोपण द्वारा ओढायेगा और धरती को साफ स्वच्छ और सुंदर बनाएगा।

यदि आप जैसी सभी देवात्मा हिमालय में तपलीन हो जाएंगी, तो धरती का भार कौन उठाएगा और युगनिर्माण में कौन स्वयं को आहुत करेगा? कौन परमपूज्य गुरुदेव का अंग अवयव बनकर उनकी युगपिड़ा मिटायेगा?

ध्यान रखिये....गुरुकार्य युग निर्माण हेतु तप दान भी चाहिए, समयदान भी चाहिए, अंशदान भी चाहिए और प्रतिभादान भी चाहिए। सभी का महत्त्व बहुत है कोई भी दान और कार्य छोटा नहीं है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, मुझे लगता है जो मैं जॉब कर रहा हूँ उसमें पूर्णतया दक्ष नहीं हूँ। मुझे अपने ऑफिस में दूसरों से सहायता लेनी पड़ती है। इस कारण मेरा मन काम से उचट जाता है और मैं अपसेट हो जाता हूँ। मार्गदर्शन करें कि क्या मुझे जॉब छोड़ देनी चाहिए या नहीं। यदि करनी चाहिए तो मैं परफ़ेक्ट कैसे बनूँ, और अपना आत्मविश्वास कैसे वापस पाऊँ? मार्गदर्शन करें...*

प्रश्न - *दी, मुझे लगता है जो मैं जॉब कर रहा हूँ उसमें पूर्णतया दक्ष नहीं हूँ। मुझे अपने ऑफिस में दूसरों से सहायता लेनी पड़ती है। इस कारण मेरा मन काम से उचट जाता है और मैं अपसेट हो जाता हूँ। मार्गदर्शन करें कि क्या मुझे जॉब छोड़ देनी चाहिए या नहीं। यदि करनी चाहिए तो मैं परफ़ेक्ट कैसे बनूँ, और अपना आत्मविश्वास कैसे वापस पाऊँ? मार्गदर्शन करें...*

उत्तर - प्यारे आत्मीय भाई, यदि तुम योग्य न होते तो कम्पनी तुम्हें कभी जॉब पर नहीं रखती। पिछले कई वर्षों से तुम्हारी जॉब सलामत हैओ इसका अर्थ तुम योग्य भी हो और तुम पर गुरु कृपा भी है।

इस संसार मे कोई भी परफ़ेक्ट नहीं है, किसी को कुछ आता है और किसी को कुछ। तो सहायता ऑफिस में लेना कोई बुरी बात नहीं। इस कारण आत्मग्लानि का कोई कारण नहीं। सुई और तलवार दोनों का अपना अपना महत्त्व है। मदद करो भी और मदद बिंदास लो भी।

*काम मे दक्षता और मैच्योरिटी प्राप्त करने के उपाय*:-

1- जो कर रहे हो अभी जॉब उसकी पुनः नए सिरे से तैयारी करो।

2- टेक्नोलॉजी हो या बीमारी हो या केस हो या फ़सल उगाना हो या आतंकी संगठन को रोकना हो सर्वत्र कठिनाई बढ़ रही है क्योंकि परिवर्तन संसार का नियम है। मोबाइल का ही उदाहरण देख लें आज से 5 वर्ष पूर्व मोबाइल जिन फीचर के साथ आता था और आज के दिन लेटेस्ट मोबाइल जिन फीचर के साथ आ रहे हैं उनमें हेल एंड हेवन का डिफरेंस है।

3- इसी तरह तुमने जब पढ़ाई की थी और अब जो बच्चे पढ़कर आ रहे है, उनके ज्ञान और स्पीड में भी अंतर है।

4- तो क्या करें...इन फास्ट ग्रोइंग और हाइली एजुकेटेड बन्दों के बीच अपना स्वाभिमान बचाते हुए जॉब कैसे करें? बड़ा आसान तरीका है, अहंकार त्याग के इनसे दोस्ती कर लें। इनसे सीखें और इनसे बड़े प्यार से मदद लें, इनकी बीच बीच मे प्रसंशा करते चलें। इसमे आत्मसम्मान गिराने वाली कोई बात ही नहीं है।

5- अपनी जीत का जश्न मनाना अच्छी बात है, लेकिन किसी की हार का मज़ाक बनाना बुरी बात है। और उससे भी ज्यादा बुरा स्वयं की हार की आत्मग्लानि मनाना है।

6- सबसे पहले दो चीज़ों को अलग कीजिये, पहला आप एक अलग वजूद हैं और इंजीयर, डॉक्टर, वकील, सैनिक, टीचर, वेब डिज़ाइनर, तपस्वी या गृहणी एक मुखौटा है। जो आप धारण करके नित्य जीवन मे अभिनय और कर्म करते हैं। आप जॉब से पहले भी थे और रिटायरमेंट के बाद भी रहेंगे। जन्म से पहले भी थे और मृत्यु के बाद भी रहेंगे। क्यूंकि आप अजर अमर परमात्मा के अंश और आत्मस्वरूप है।

7- मुखौटे में गड़बड़ी आपमें गड़बड़ी नहीं ला सकती। आपके वजूद को नहीं हिला सकती। अतः आत्मग्लानि और जॉब से पलायनवाद की आवश्यकता नहीं है।

8- सुबह आधे घण्टे माइंडफुलनेस ध्यान/विपश्यना ध्यान या चन्द्रमा का ध्यान करें। श्रद्धेय डॉक्टर साहब के ध्यान के वीडियो आपको यूट्यूब पर मिल जायेंगे। योग, प्राणायाम, नाड़ी शोधन प्राणायाम और डीप ब्रीदिंग के द्वारा पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीज़न दिमाग तक पहुंचाए जिससे दिमाग मे यौवन-फुर्ती लौट आये।

9- रोज आत्मविश्वास जागृत करने वाले गुरुदेब के निम्नलिखित साहित्य पढें:-

📖मानसिक संतुलन
📖दृष्टिकोण ठीक रखे
📖निराशा को पास न फटकने दें
📖व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
📖प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
📖मन के हारे हार है, मन के जीते जीत
📖संकल्प शक्ति की प्रचण्ड प्रक्रिया
📖प्रगति की प्रशन्नता की जड़े अपने ही भीतर
📖आगे बढ़ने की तैयारी
📖बुद्धि बढ़ाने की वैज्ञानिक विधि
📖अधिकतम अंक कैसे पाएं
📖मन की प्रचण्ड शक्ति और मनोविज्ञान
📖मनोबल अनेकानेक सफलताओं की कुंजी
📖अति भावुकता से सावधान

इन पुस्तकों का नित्य थोड़ा थोड़ा स्वाध्याय और योग-प्राणायाम-ध्यान आपके मष्तिष्क को मैच्योरिटी देगा। बालकबुद्धि जैसे तुनकपन और नाराज़गी मिट जाएगी। फ़िर कहावत अनुसार - *आप दुधारू गाय के पैर मारने पर भी दूध निकालने में सक्षम हो जाएंगे*। दूध देने वाली गाय से रोज दूध लेने हेतु उसका गोबर और मूत्र भी साफ करना पड़ता है, चारा खिलाने और देखरेख का श्रम साध्य कष्ट भी उठाना पड़ता है। साथ ही दूध दुहते समय गाय जब पैर झटकती है तो उन पैरों की चोट भी खानी पड़ती है। मैच्योर ग्वाला यह काम मजे से कर लेता है, लेकिन उसका बालक गाय की हरकत पर गुस्सा निकालता है। *अर्थात पढ़ाई बोरिंग होने पर भी पढ़ लेंगे, जॉब बोरिंग पकाऊ होने पर मजे से जॉब कर लेंगे, क्योंकि ज्ञान रूपी अमृत हो या सैलरी रूपी अमृत दोनों हेतु कष्ट साध्य श्रम तो करना पड़ेगा, मैच्योरिटी होगी तो मज़े से करोगे और बालकपन बुद्धि में होगा तो रोज नाराज़गी और टेंशन झेलते हुए जॉब या पढ़ाई करोगे।*

अब एक और काम करिये कि अपने जॉब से सम्बंधित नई नई जानकारी इंटरनेट पर ढूँढिये, इन्फो पढ़िये और तत्सम्बन्धी उसके यूट्यूब वीडियो देखिए। स्वयं को हमेशा अप टू डेट और एक्टिव रखिये। स्वयं का अध्यापन स्वयं कीजिये। स्वयं को मैच्योर लेवल पर ले जाइए, आत्मविश्वास के साथ परिस्थितियों का मैच्योरिटी के साथ सामना कीजिये। आनन्दमय जीवन व्यतीत कीजिये।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *बलिवैश्व यज्ञ का लाभ क्या है?

प्रश्न - *बलिवैश्व यज्ञ का लाभ क्या है?*

उत्तर - *भावों की शुद्धि का उपक्रम - बलिवैश्व यज्ञ है।*

एक कहानी के माध्यम से इसका उत्तर समझिए-

सीमा बहू की शादी के बाद आज पहली रसोई थी। तो मीठे में आज खीर बनी।

जैसे ही खीर बन गयी उनकी सास आयी और एक छोटा सा ताम्र पात्र उनके हाथ मे दिया और बोला इसे गैस पर चढ़ाओ बहु और गर्म करो।

थोड़ी सी खीर कटोरी में ले लो, और एक किचन में लगे बलिवैश्व यज्ञ के स्टीकर की ओर इशारा करके कहा कि, इस स्टिकर में गायत्री मंत्र को पढ़ो और पांच आहुतियाँ इस ताम्रपात्र पर दे दो। ऐसे ही जब रोज आज के बाद से भोजन बनेगा, केवल मीठे से आहुति लगेगी। नमक सोडियम क्लोराइड जलने पर जहरीली गैस और नकारात्मक ऊर्जा उतपन्न करता है। अतः यज्ञ में नमक प्रयोग नहीं होगा। जिस दिन किचन में मीठा न बने उस दिन गुड़ और घी पके थोड़े से चावल या थोड़ी सी रोटी में मिलाकर पांच आहुति दे देना।

सीमा ने आहुति दे दी और सब खाने की टेबल पर पहुंच गए। सीमा ने भोजन और खीर सबको परोसी।

सीमा बहु ने खाने की टेबल पर अपनी सास नीलम जी से पूँछा, मांजी एक प्रश्न है,

*बलिवैश्व यज्ञ जो अभी आपने करवाया वो क्या है? और इसके करने से क्या लाभ है?*

बेटे! वैसे तो यज्ञ का ज्ञान विज्ञान गहन है, लेकिन भोजन की टेबल पर संक्षेप में समझाती हूँ।

जैसे खाना बनाने से पहले हम अन्न, फ़लों और सब्ज़ियों को अच्छे से धोते है, उसकी स्थूल सफाई के लिए, ठीक उसी प्रकार *अन्न की पुराने सूक्ष्म भावों-संस्कारो की धुलाई करके उसे अच्छे संस्कारोयुक्त बनाने के लिए हम बलिवैश्व यज्ञ करते है।*

इस यज्ञ में हम अन्न को भगवान को अर्पित करते हैं मन्त्रों द्वारा, तो अन्न अग्नि में वायुभूत मन्त्र के साथ हो जाता है। और मन्त्र की वाइब्रेशन/तरंगे भोजन में प्रवेश कर जाती है और उस अन्न को संस्कारित कर देती हैं।

ससुर महेश ने कहा, बेटा हमें नहीं पता की जब अन्न किसान ने उपजाया गया तो किसान किस भाव दशा मे था( भाव- क्रोध, लोभ, मोह, दम्भ, दुःख या सुख)

हमें यह भी नहीं पता को इस अन्न को स्पर्श करने वाले किसान से लेकर दुकानदार तक हज़ारो हाथों  से होते हुए यह अन्न हम तक पहुंचा। अब यदि इस अन्न के भाव  संस्कारित न किये गए तो यह भाव निश्चयतः मन में हमारे विकार उतपन्न करेंगे।

पति रवि ने कहा- सीमा एक कहावत है- जैसा खाओ अन्न , वैसे होवें मन। अन्न के भी तीन शरीर मनुष्यो की तरह ही होते है- स्थूल, सूक्ष्म और कारण।

स्थूल अन्न से स्थूल शरीर बनता है, और सूक्ष्म अन्न सूक्ष्म शरीर का पोषण करता और कारण शरीर भाव शरीर अर्थात मन का निर्माण करता है। जिसे क्रमशः क्रियाशक्ति, विचारशक्ति(IQ) और भावना शक्ति(EQ) भी कहते है।

सास नीलम ने कहा - सीमा बेटे ! तुम मुझे मां और मैं तुम्हे बेटी के रूप में स्वीकारु, तुम इस घर को अपना और सब तुम्हे अपना स्वीकारे, हम सब अधिकारों की उपेक्षा करके और कर्तव्यों को महत्तव दें, इसके लिए हम सबका सद्बुद्धि युक्त और भाव सम्वेदना युक्त होना और विकार मुक्त होना जरूरी है।

परमपूज्य गुरुदेब ने इसी हेतु यह बलिवैश्व यज्ञ की शृंखला घर घर चलाई है। *यह एक तरह से सुखी सम्पन्न आत्मीयता से भरे परिवार का रिमोट कंट्रोल है, जिसे परमपूज्य गुरुदेब ने बलिवैश्व यज्ञ के रूप में गृहणी के हाथ मे थमाया है।*

सीमा बहु यह घर स्वर्ग सा सुंदर रहेगा या कलहयुक्त नारकीय यह हमारी मनःस्थिति और हमारा दृष्टिकोण तय करेगा। अब EQ-भाव तो बलिवैश्व यज्ञ संस्कारित कर देगा, लेकिन कहीं बुद्धि(IQ) बाहर किसी के बहकावे में न भटके इसके लिए घर मे सभी सदस्यों को नित्य स्वाध्याय भी करना पड़ेगा।

सीमा बहु बोली मां आप सही कह रहे हो, मैं बलिवैश्व यज्ञ और स्वाध्याय नियमित करूँगी। अपने परिवार में आत्मीयता और प्रेम सहकार की भावना विनिर्मित करूंगी।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Thursday 12 July 2018

सम्हलो, ये वक़्त गुज़र जाएगा

*सम्हलो, ये वक़्त गुज़र जाएगा*

वक्त अच्छा हो या बुरा,
दोनों वक़्त गुज़र जायेगा,
कोई गोरा हो या काला,
इक मुट्ठी भर राख बन जायेगा।

कोई धनवान हो या कंगाल,
दोनों ख़ाली हाथ ही जायेगा,
इस दुनियाँ का कमाया धन,
इस दुनियां में ही रह जायेगा।

पूर्णिमा हो या अमावस्या,
दोनों रात ढल जायेगी,
सूरज के उगने पर,
सुनहरी धूप घर आएगी।

आने जाने का क्रम,
यूँ ही चलता रहेगा,
केवल अच्छे-बुरे कर्मो का वजूद,
युगों तक बना रहेगा।

समय बड़ा बलवान है,
इससे दोस्ती कर लो,
एक एक पल का सदुपयोग कर,
एक नया इतिहास रच दो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

यू टर्न ले लीजिए

*यू टर्न ले लीजिए*

यदि कोई जीवन लक्ष्य चुना था, उदाहरण सरकारी जॉब के लिए कम्पटीशन हेतु बहुत तैयारी की उसमें सफलता नहीं मिली तो क्या हुआ उसके लिए की गई तैयारी में ढेर सारी शिक्षा तो मिली है। पढ़ना कभी बेकार नहीं जाता। जानते है 34+ उम्र भी ज्यादा हो गयी तो क्या हुआ, इतिहास भरा पड़ा है कि बहुत लोगों ने लेट शुरुआत करके भी बड़े लक्ष्य हांसिल किये। सफल बने।

देखो जॉब कम है और अभ्यर्थी ज्यादा, अब केवल अधिक मेंहनत और बेस्ट होने भर से काम नहीं चलता। सुपर डुपर बेस्ट के साथ किस्मत का भी साथ देना जरूरी है, क्योंकि कई बार लॉटरी सिस्टम में किस्मत लगती है।

अब जॉब नहीं लगी तो क्या करें, *अपने जीवन मे यू टर्न* ले लीजिए। इसके लिए *गायत्री तपोभूमि मथुरा या शान्तिकुंज हरिद्वार* में से किसी भी जगह जाकर घर से दूर एकांत में *9 दिवसीय जीवन संजीवनी साधना* कीजिये। जो हुआ सो हुआ, अब वर्तमान स्टेटस से आगे प्राइवेट जॉब की ओर कैसे बढ़े और क्या करें? इस पर गहन चिंतन मनन करके 9 दिन के बाद नए सिरे से जिंदगी के सफर में आगे बढिये। स्वयं की योग्यता क्षमता का सकारात्मक आंकलन कीजिये।

*याद रखिये-*

 सरकारी हो प्राइवेट नौकरी कोई भी आज के जमाने मे स्थायी नहीं

जब जिंदगी का ही कोई भरोसा नहीं तो नौकरी का क्या भरोसा करना

महंगी फ़रारी गाड़ी में चलो या मारुति अल्टो गाड़ी में रोड, मंजिल और रिश्ते वही रहते है।

घड़ी महंगी हो या सस्ती वक्त नहीं बदलता

जिंदगी में सुकून, मस्ती और शांति से जीने के लिए जीवन कम संसाधनों में भी आराम से जिया जा सकता है।

एक बार फ़ोर्ड के मालिक ने कहा था कि मैं अगले जन्म में मजदुर बनना चाहता हूँ, क्योंकि मैं बिना दवा के न सो सकता हूँ और न कुछ खा सकता हूँ। मेरा जीवन खोखला है, जबकि इन मजदूरों को देखो मोटे अन्न भी बड़े मजे से  खा के चैन से सो सकते हैं। एक दिन मरना इन्हें भी है और मुझे भी। साथ मे ये भी कुछ नहीं ले जा पाएंगे और साथ मे मैं भी कुछ नहीं ले जा पाऊँगा।

अतः *क्या कहेंगे लोग वाली बीमारी से छुटकारा* पाइये, क्योंकि *कुछ तो लोग कहेंगे* और *लोगों का तो काम ही है कहना*। सफल हुए तो बोलेंगे मैं तो जानता था तुम कुछ न कुछ करोगे ही, असफ़ल हुए तो तुम्हारे रंग ढंग देख के ही मुझे पता लग गया था कि तुम कुछ कर नहीं सकते।

एडिसन स्कूल से निकाला गया बुद्धू बच्चा था, आज उसी बच्चे ने बड़े होकर दुनियां को रौशन किया। साथ मे सभी स्कूलों की पुस्तक में उसके आविष्कार को जरूर पढ़ाया जा सकता है।

अब या तो यू टर्न लो और सफर में आगे बढ़ो और सफल होने के लिए *जान लगा दो* या स्वयं को निराश हताश मानकर गाड़ी बन्द करके बैठ जाओ और *जाने दो*।

निर्णय तुम्हारा है, *जब जागो तभी सवेरा है।*

निम्नलिखित पुस्तक पढो और यूटर्न लाइफ में लो:-

1- निराशा को पास न फटकने दें
2- दृष्टिकोण ठीक रखें
3- शक्तिमान बनिये
4- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
5- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
6- सफलता के सात सूत्र
7- आगे बढ़ने की तैयारी

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *जब कोई अपनी सुंदरता का शो ऑफ बहुत ज्यादा करे और दूसरों का मज़ाक उड़ाए तो इसे कैसे हैंडल करें?*

प्रश्न - *जब कोई अपनी सुंदरता का शो ऑफ बहुत ज्यादा करे और दूसरों का मज़ाक उड़ाए तो इसे कैसे हैंडल करें?*

उत्तर - जब मेरे सामने ऐसा कोई करता था तो सबसे एक प्रश्न पूंछती थी। ये बताओ मूर्ति की सुंदरता हेतु हमें मूर्तिकार की प्रसंसा करनी चाहिए या नहीं? घड़े की सुंदरता के लिए कुम्हार की राइट।

इसी तरह यदि मूर्ति ठीक ठाक नहीं है तो इसमें भर्त्सना किसकी होगी मूर्तिकार की, घड़े के टेढेमेढे होने पर कुम्हार को ही अकुशल ठहराया जाएगा।

तो यदि कोई सुंदर है तो उसे सुंदर भगवान ने बनाया है और यदि कोई सुंदर नहीं है तो भी भगवान ही जिम्मेदार है। क्योंकि जहाँ तक मुझे पता है कि हमने स्वयं को नहीं गढ़ा है।

अतः मज़ाक तुम किसी व्यक्ति के चेहरे का नहीं उड़ा रहे, बल्कि भगवान का मज़ाक उड़ा रहे हो, क्योंकि प्रत्येक मनुष्य उनकी ही कृति है। यदि किसी को सुंदर बोल रहे हो तो भी भगवान की ही प्रसंशा हो रही है।

इतने लेक्चर के बाद कोई सुंदरता का शो ऑफ आपके समक्ष नहीं करेगा।😂😂😂😂

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *ऑफिस या कॉलेज में धन और महँगे सामान का शो ऑफ करने वालों को कैसे हैंडल करें?*

प्रश्न - *ऑफिस या कॉलेज में धन और महँगे सामान का शो ऑफ करने वालों को कैसे हैंडल करें?*

उत्तर - हमारे सामने जब कोई शो ऑफ करता था, तो हम पूंछते थे कि आप खानदानी अमीर है या इस अमीरी के लिए आपके घर मे किसी ने मेहनत ज्यादा की है।

उत्तर में कोई कहता मेरे पिता ने बड़ी मेहनत से व्यवसाय खड़ा किया है या मेरे दादाजी ने बड़ी मेहनत की।

तो मैं कहती थी, मेरी कम्पटीशन तुम्हारे दादाजी या पिताजी से है। मैं उनकी तरह खूब मेहनत करना चाहती हूँ, जिससे मेरा बच्चा भी मेरा नाम गर्व से ले सके और वो आर्थिक और सामाजिक सुविधा का आनन्द उठा सके, जैसे तुम अपने पिताजी और दादाजी की मेहनत को एन्जॉय कर रहे हो। लेकिन अगर तुमने और ज्यादा मेहनत नहीं की तो तुम्हारी सन्तान तुम्हारा नाम गर्व से न ले सकेगी। यह धन बासी है क्योंकि बाप दादा ने कमा के दिया है, तुम और मेहनत करो और अपने दम पर यह सुविधा अपनी सन्तानो को देना, जिससे वो तुम पर गर्व कर सकें।

इतने लेक्चर के बाद दुबारा शान पट्टी दिखाने मेरे पास कोई नहीं आता था।😂😂😂😂😂

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

नकारात्मक सोच एक संक्रामक बीमारी

*नकारात्मक सोच एक संक्रामक बीमारी*

चिकित्सक परिवार के व्यक्तियों को संक्रमक रोग से ग्रसित रोगी से दूर रहने की सलाह देता है, क्योंकि संक्रमण से स्वस्थ व्यक्ति भी बीमार हो सकता है।

*इसी तरह नकारात्मक चिंतन करने वाला और नकारात्मक बोलने वाला व्यक्ति एक संक्रमित रोगी है*, उसके साथ ज्यादा देर व्यतीत करने पर संक्रमण का शिकार होने की सम्भावना होती है। ऐसे व्यक्ति एनर्जी वैम्पायर्स होते है, जिस तरह वैम्पायर्स खून चूसके जीवन समाप्त कर देते है, इसी तरह ये एनर्जी वैम्पायर्स किसी की भी सुनहरे भविष्य की योजना, साहसिक योजना से एनर्जी चूस लेते है। अतः इनसे बच के रहना चाहिए।

*एनर्जी वैम्पायर्स- नकारात्मक संक्रमित रोगी की पहचान* - उसके पास कुछ न करने हेतु बहानो की लिस्ट होती है। वो यह जानता है कि देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को देश के विकास के लिए क्या करना चाहिए। मगर वो ये नहीं जानता कि उसे स्वयं के विकास के लिए क्या करना चाहिए। चुम्बक की तरह बुरे विचार और न्यूज को संग्रहित करता है। पूरा मख्खी होता है उड़कर भी गन्दगी ढूंढकर उस पर ही बैठता है। मुंह खुला नहीं कि कुछ न कुछ निगेटिव बोलेगा ही। इनका पहली बात जीवन का कोई लक्ष्य होता नहीं, और ये सुअवसर को भी हाथ से जाने देते है।

यदि जीवन मे आगे बढ़ना चाहते हो तो ऐसे एनर्जी वैम्पायर्स से दूर रहें, इनसे न दोस्ती अच्छी और न हीं दुश्मनी अच्छी। इन्हें केवल इग्नोर करें।।

*हमेशा एनर्जी एन्हांसर - सकारात्मक चिंतन करने वाले, बोलने वाले, साहसी और उद्यमी* लोगों से मिलने जुलने, बात करने और इनसे सत्संग करने का अवसर कभी न हाथ से जाने दें। इनसे मिलकर दो मिनट में स्वयं को चार्ज हुआ महसूस करेंगे। इन्हें राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को क्या करना चाहिए ये मालूम हो या न हो, लेकिन इन्हें ये मालूम होता है कि इन्हें अपने जीवन मे क्या करना चाहिए। इनका जीवन स्वयंमेव मार्गदर्शन करता है। हज़ार प्रॉब्लम के बाद भी ये कोई एक वजह ढूंढ ही लेते है मुस्कुराने की और कुछ कर गुज़रने की। इनके जीवन का मूल मंत्र होता है कि कोई लक्ष्य पाना है तो जान लगा दो पाने में। यह सही समय पर सही कार्य करते है।

तो यदि जीवन मे किसी मीटिंग या इंटरव्यू में जा रहे हो, या कम्पटीशन एग्जाम देने जा रहे हो, तो उस दिन एनर्जी वैम्पायर्स वो चाहै आपका क्लोज रिश्तेदार ही क्यों न हो या मित्र ही क्यों न हो उससे बात न करें। कुछ वक्त किसी एनर्जी एनहांसर व्यक्ति के साथ समय बिताएं, कोई अच्छा साहित्य पढ़ लें। कोई व्रत अनुष्ठान करने जा रहे हो तो भी केवल एनर्जी एन्हासर से सलाह लें। अपना जीवन सफल बनायें।

एनर्जी बूस्टर साहित्य यहां से फ्री डाऊनलोड कर पढ़ें:-

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🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 11 July 2018

5 दिनों की सृजन शक्ति हेतु सर्विसिंग छुट्टी के दौरान क्या स्थूल माला लेके जप कर सकते हैं

प्रश्न - *5 दिनों की सृजन शक्ति हेतु सर्विसिंग छुट्टी के दौरान क्या स्थूल माला लेके जप कर सकते हैं?*

उत्तर - नहीं, स्थूल जप माला द्वारा नहीं करना चाहिए।

स्त्रियाँ सदा सर्वदा पवित्र होती है, प्रकृति के बाद सृजन केवल स्त्री ही करने में सक्षम होती है।

बड़ी जिम्मेदारी सृजन की उठाने के लिए शरीर को तैयारी और एक्स्ट्रा पॉवर की जरूरत होती है। इसलिए जगदम्बा प्रकृति अपनी जूनियर शक्ति स्त्री से 5 दिनों के लिए कनेक्ट होती है।

मोबाईल चार्जिंग के दौरान फोन उठाकर बात नहीं करना चाहिए, उसी तरह सृजन शक्ति की चार्जिंग 5 दिनों के दौरान स्थूल साधना नहीं करनी चाहिए। सारी मांसपेशियां ढीली होती हैं, जो साधना की स्थूल शक्ति हेतु उपयुक्त नहीं होती।

अतः जब कोई अनुष्ठान कर रहे हों, तो स्त्री का प्री अप्रूव्ड(पहले से स्विकृत) छुट्टी और लोन मिलना तय होता है।

तो उतने दिन का साधनात्मक लोन उसे मिल जाता है, अतः उसे छुट्टी खत्म होने के बाद उतना जप करके मां जगदम्बा प्रकृति को लौटाना होता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *कम्पटीशन की पढ़ाई और चन्द्रायण साधना अनुष्ठान के दौरान एक्टिव कैसे रहें? साधना के दौरान नींद और आलस्य न आये इसके लिए क्या करें?*

प्रश्न - *कम्पटीशन की पढ़ाई और चन्द्रायण साधना अनुष्ठान के दौरान एक्टिव कैसे रहें? साधना के दौरान नींद और आलस्य न आये इसके लिए क्या करें?*

उत्तर - बड़े अनुष्ठान हो या कम्पटीशन की पढ़ाई, जहां दो घण्टे बैठकर स्थिर होने की बात आई, कि नींद हमारी मनोकामना को बर्बाद करने पहुंच जाती है।

नींद - आने का सिग्नल मनोवैज्ञानिक कहते है तब मष्तिष्क को मिलता है, जब स्थिर और सुस्त शरीर से लेक्टिक एसिड का रिसाव होता है और वो ऑक्सीजन-प्राणवायु को ज़्यादा consume कर लेता है। कम ऑक्सीज़न दिमाग़ में पहुंचते ही दिमाग़ सुस्त होता है और नींद आ जाती है।

आपने ध्यान दिया होगा अगर कमर सीधी हो और आप जागरूक बैठे हों तो नींद नहीं आती। लेकिन जैसे ही कमर हल्की सी मुड़ी शरीर रिलैक्स हुआ कि 15 मिनट के अन्दर नींद आने लग जायेगी।

तो क्या करें चन्द्रायण अनुष्ठान की 30 माला हो या कम्पटीशन की पढ़ाई, दोनों में दिमाग़ का चैतन्य होना और उस तक अधिक ऑक्सीज़न पहुंचना अनिवार्य है।

तो टिप्स चैतन्य जागने के:-

1- जप से पूर्व पानी पी कर बैठें
2- जप से पूर्व डीप ब्रीथिंग और प्राणायाम अधिक ऑक्सीजन दिमाग़ में पहुंचाने हेतु करें।
3- कमर कोशिश करके सीधी रखें, बीच बीच पर नज़र रखें
4- ध्यान करते वक़्त बीच बीच में मुख्य ऑब्जेक्ट के साथ सहायक दृश्य की भी कल्पना करते रहें। इससे चैतन्यता बनी रहेगी।
5- जप के समय अनामिका, मध्यमा और अंगूठे की सहायता से जप करें। अनामिका की माला की मोती रगड़ना से हृदय तक सन्देश पहुंचेगा। और चैतन्यता बनी रहेगी रक्त ऑक्सीज़न अधिक लेकर दिमाग़ तक भेजेगा। पढ़ते समय पेन अनामिका और मध्यमा के बीच फंसा के हिलाये। या मष्तिष्क को आंख के आसपास हल्के हाथों से प्रेशर देते हुए दबाएं।
6- जैसे ही नींद आने लगे खड़े हो जाएं, थोड़ा पूजन कक्ष में चल लें। फिर थोड़ा जल पी लें। तीन बार डीप ब्रीथिंग और प्राणायाम करके दिमाग में ऑक्सीज़न पहुंचा दें।
7- तीन बार जोर से गम्भीर आवाज में ॐ दीर्घ स्वर में बोल लें। फ़िर जप में या पढ़ने बैठ जाएं।

नींद आना कोई समस्या नहीं है,मात्र मनोशारीरिक व्यवस्था है। टिप्स एंड टेक्निक अपनाएं और चन्द्रायण साधना को सफ़ल बनाएं।

सुबह उठकर सूक्ष्म व्यायाम, walk और अन्य योग द्वारा शरीर का ब्लड सर्कुलेशन बढ़िया रखें। सुबह उठ कर जल घूंट घूंट कर पीना न भूलें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - धरती में सुख कैसे पाएं

अपनी अपनी ख़ुशी पति-पत्नी ढूंढेगे तो कलह होगी, पति-पत्नी एक दूसरे की ख़ुशी ढूंढेगे तो आनंदमय जीवन और धरती का स्वर्ग पाएंगे।

अपनी ख़ुशी आत्मा ढूंढेगी तो कष्ट और पीड़ा में होगी, परमात्मा की ख़ुशी ढूंढेगी तो परमानन्द पायेगी।

शिष्य मिशन में अपनी ख़ुशी तलाशेगा तो कलह और कष्ट पायेगा , गुरु की ख़ुशी तलाशेगा तो बड़े से बड़ा काम सहज कर पायेगा, परमानन्द पायेगा।

Tuesday 10 July 2018

प्रश्न - कर्कशा-झगड़ालू-स्वार्थी बहू को कैसे हैंडल करें

समस्या - *एक साधक के प्यार भरे परिवार में दो बेटे और एक बेटी है। बड़े बेटे की पत्नी स्वार्थ से प्रेरित और कुसंस्कारी है। बड़े बेटे को भड़का के घर नर्कमय बना दिया है, ऐसी परिस्थिति को कैसे हैंडल करें?*

उत्तर - चन्दन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग। पिता जैसे साधना बड़े बेटे के अंदर नहीं है। बेटा साधक नहीं है, इसलिए भड़काऊ बातों में आ जाता है।

बच्चो को सही ग़लत की परवरिश के साथ नित्य उपासना-साधना-आराधना से जोड़ना चाहिए, अच्छी पुस्तकों के स्वाध्याय की आदत बचपन से ही विकसित कर दें। बिन पूजन भोजन नहीं और बिन स्वाध्याय शयन नहीं। ऐसा बच्चा बड़ा होकर चन्दन की तरह मन वाला होगा और वो किसी के बहकावे में नहीं आएगा।

लड़की के माता पिता ने उसके अंदर कुसंस्कार और स्वार्थ बचपन से गढ़ा है, ससुराल के प्रति ईर्ष्या और पति की कमाई सिर्फ मेरी वाला भाव उसके मन मे बैठा हुआ है। वो भड़काने का कार्य सास ससुर से अलग होकर पति के साथ रहने के लिये कर रही है। जब तक वो अलग होने में सफलता प्राप्त नहीं कर लेती घर को नर्कमय बनाने का अनवरत प्रयास चलता रहेगा।

अतः सुख शांति चाहते है तो बड़े बेटे और बहू को आत्मीयता के साथ अलग कर दें। मन में कोई क्षोभ न रखें कि मैं तो इतनी साधना करता था, मेरे घर मे ऐसी बहु कैसे आ गयी। मेरे प्यार भरे परिवार को किसकी नज़र लग गयी, इत्यादि बातें सोचने और चिंता करने का कोई फ़ायदा नहीं।

प्रसिद्ध सन्त सुकरात की पत्नी उन्हें भरे समाज मे गाली देती थी, उनपर और उनके शिष्यों पर कचड़ा डाल देती थी। प्रसिद्ध सन्त तुकाराम की पत्नी जीजाबाई बड़ी कर्कशा और झगड़ालु थीं और उन्हें पीट भी देती थीं।

जब इतने बड़े सन्त अपनी पत्नियों को उनके प्रारब्ध के कारण नहीं सुधार सके, तो वो तो आपकी बहु है, जो आपकी सुनने को तैयार नहीं। उसको अलग कर देने में ही समझदारी है। बड़े बेटे को वो सुख दे रही है चाहे वो स्वार्थवश ही क्यों न हो, ठीक है।

प्रत्येक आत्मा को पिछले जन्मों के कर्मो के अनुसार रिश्तेदार के रूप में लेनदार या देनदार, शत्रु या मित्र मिलते है। देनदार और मित्र सुख देते हैं, लेनदार और शत्रु दुःख देते हैं।

ज्यादा विस्तृत जानकारी के लिए निम्नलिखित तीन पुस्तकें पढ़िये:-

1- प्रज्ञा पुराण कथामृतम
2- हम सुख से वंचित क्यों है?
3- गहना कर्मणो गतिः

अब रिश्तेदारी से उतपन्न विपरीत परिस्थिति से निपटने के लिए पढ़िये:-

1- मैं क्या हूँ?
2- अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
3- मित्र भाव बढ़ाने की कला
4- भाव सम्वेदना की गंगोत्री
5- गृहस्थ एक तपोवन
6- मानसिक संतुलन
7- मन के हारे हार है, मन के जीते जीत
8- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
9- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
10- स्वर्ग नरक की स्वचालित प्रक्रिया

यह संसार मे हम मोहवश और मायावश सुख दुःख का अनुभव करते है। क्योंकि जब रिश्तों और संसार से मोह में आशक्त होंगे और शरीर को सबकुछ मानेंगे हमेशा पीड़ा और दुःख झेलेंगे। जिस क्षण मोह बन्धन तोड़ देंगे, स्वयं को आत्म स्वरूप मांनेगे। मैं तो अजर अमर आत्मा हूँ, शरीर से जुड़े रिश्ते तो चिता के साथ जल जाएगा। मेरी यात्रा तो अनन्त है।

तो वो मोहबन्धन से मुक्त इंसान सन्त अरस्तू और सन्त तुकाराम की तरह कर्कशा-झगड़ालु-स्वार्थ पत्नी हो या कर्कशा-झगड़ालु-स्वार्थी पति हो या कर्कशा-झगड़ालु-स्वार्थी बहु या अन्य रिश्तेदार हो। सबके साथ सबके बीच रहते हुए भी कीचड़ में कमल के फूल की तरह निर्विकार और परमानन्द में रहता है। आत्मज्ञान को प्राप्त करने में सफल होता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *जब पूरे प्रयास पर भी इच्छित सफ़लता न मिले, सुअवसर हाथ से निकल जाए तो कैसे स्वयं को सम्हालें?*

प्रश्न - *जब पूरे प्रयास पर भी इच्छित सफ़लता न मिले, सुअवसर हाथ से निकल जाए तो कैसे स्वयं को सम्हालें?*

उत्तर - कुछ सत्य घटना से इस प्रश्न का समाधान समझते हैं:-

टायटेनिक जहाज में सफर हेतु एक परिवार ने लाखों रुपये का टिकट खरीदा, लेकिन यात्रा के दो दिन पहले कुत्ते ने बच्चे को काट लिया और वो जा न सके। पूरा परिवार कुत्ते पर क्रोधित हुआ।😡😡😡😡

लेकिन जब जहाज डूब गया, तो वही परिवार कुत्ते की पूजा किया।😂😂😂

कभी कभी तुरन्त देखने पर किसी के टोकने या मना करने पर बुरा लगता है, लेकिन क्या पता वो भविष्य के लिए अच्छा हो?

कभी कभी कुछ झगड़े रगड़े तुरन्त के लिए बुरे लगते है लेकिन क्या पता भविष्य के लिए वो लाभदायी हो।

कभी कभी व्यवसाय नौकरी और पढ़ाई में हुआ नुकसान बुरा लगता है लेकिन क्या पता भविष्य के लिए अच्छा हो।

एडिसन को स्कूल से न निकाला गया होता तो हो सकता है वो मामूली जॉब करके गुज़ारा करते और बल्ब का अविष्कार कभी न होता।

अतः जब कुछ चीज़ों पर हमारा बस न चले तो उसे भगवान पर छोड़ दो और ध्यानस्थ हो भगवान से कनेक्ट हो। और आगे बढ़े, विपरीत परिस्थिति को कुशलता से हैंडल करें। जो कर सकते है वो करें बाकी का बोझ आत्मा पर न लें। यदि हम परम् गुरुदेब के सच्चे भक्त है और हमने ईमानदारी से उनकी सेवा की है तो हमारे साथ कभी कुछ बुरा हो ही नहीं सकता। अभी जो बुरा और विपरीत दिख रहा है वो शायद हो सकता है भविष्य के सुनहरे भवन की नींव हो जो खोदी जा रही हो।

अतः ईश्वर पर भरोसा रखिये, हम सबका गुरु की कृपा से काम हो रहा है, करते हैं सब गुरुजी और हम लोगों का नाम हो रहा है।

समर्पित शिष्य के सर पर हमेशा परमपूज्य गुरुदेब का आशीर्वाद और माताजी के आँचल की छाया होती है, हमे बस पूर्ण समर्पण पर ध्यान देना है, परेशानी पर नहीं।

ये मत कहो गुरुदेब से कि मुश्किलें बड़ी है,
मुश्किलों से कह दो मेरा गुरु बड़ा है, वो साक्षात महाकाल है। मैं उनका साधक शिष्य हूँ मुश्किलों मैं गुरु कृपा से आज नहीं तो कल तुमसे निपट लूँगा। कभी हार नहीं मानूँगा और मुश्किलों तुम पर तो विजय प्राप्त करके रहूंगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, ऑफिस की टेंशन में मन व्यथित होता है आज़कल, सुबह पूजन करने बैठती तो हूँ लेकिन मेरा मन ऑफिस में होता है क्या करूँ?*

प्रश्न - *दी, ऑफिस की टेंशन में मन व्यथित होता है आज़कल, सुबह पूजन करने बैठती तो हूँ लेकिन मेरा मन ऑफिस में होता है क्या करूँ?*

उत्तर - प्यारी आत्मीय बहन ऑफिस हमे सैलरी ही टेंशन और व्यथा सह कर काम करने की देता है। यदि घर स्वतः साफ होगा तो कोई घर मे झाड़ू पोछे की बाई क्यों रखेगा? यदि ऑफ़ीस में भसड़/टेंशन/व्यथा/संघर्ष/ढेर सारा काम न होगा तो दूसरे दिन ही ऑफिस से हमेशा के लिए विदा कर दिया जाएगा।

आत्म बोध -तत्व बोध की रोज साधना करो, हर रात मौत और हर सुबह नया जन्म मानो, कोई अच्छा भजन रात को सुनकर और कुछ अच्छा साहित्य पढ़कर सोने की आदत डालो। सुबह भगवान को जीवन के लिए धन्यवाद दो। हाथ पैर आंख मुंह सलामत है इसकी खुशी मनाओ। सुबह घर मे एक अच्छा सा भजन लगाकर सुबह का काम निपटाओ। फिर नहा धोकर जब पूजा करने बैठोगी तो भजन सहज़ ही भाव निर्मल बना देगा। आराम से पूजा कर सकोगी।

जब कभी मुझे ऑफीस के काम के चक्कर मे दिन रात जागना पड़ता है, टेंशन का माहौल बनता है। तब भजन ही एक मात्र सहारा होता है।

मेरा प्रिय भजन है:-

1- मेरा आपकी कृपा से सब काम हो रहा है

2- जीवन तुमने दिया है सम्हालोगे तुम , आशा हमें है विश्वास है

3- जब कभी हारे थके अनुभव करोगे, पीठ पर थपकी लगाता हाथ होगा।

4- ये मत कहो ख़ुदा से मेरी मुश्किलें बड़ी है, मुश्किलों से कह दो मेरा खुदा बड़ा है।

5- कंधों से कंधे जब मिलते है(लक्ष्य फ़िल्म)

ऐसे भजन मुझे रिचार्च कर देते हैं और पुनः नई ऊर्जा के साथ पूजन करती हूँ। योग प्राणायाम ध्यान जप और स्वाध्याय करती हूँ।

नए उत्साह के साथ ऑफिस के काम मे जुटती हूँ। जीवन में पुनः नयापन आ जाता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday 9 July 2018

चलो गुरुपूर्णिमा में मिलके कुछ लक्ष्य बनायें

*चलो गुरुपूर्णिमा में मिलके कुछ लक्ष्य बनायें*,
आओ प्राणपण से उसे पूरा करके दिखाएं।

पसीने की स्याही से इतिहास रच डालें,
पूरे विश्व-ब्रह्मांड को समुद्र सा मथ डालें ।

तकलीफों - संघर्षों से लड़ के दिखाएं,
चलो गुरुवर का लक्ष्य पूर्ण करके दिखाएं।

चलो अपने अपने क्षेत्रों में इतिहास रच डालें,
गर्भ में ही युगनिर्माण की नींव भर डालें।

चलो बच्चे बच्चे में संस्कार गढ़ दें,
युवाओं को युग सृजन से जोड़ दें।

चलो घर घर में जप-ध्यान और योग पहुंचा दें,
आओ मनुष्य मात्र में देवत्व जगा दें।

चलो जन जन को स्वाध्याय-सत्संग करा दें,
आओ घर घर में अखण्डज्योति पहुंचा दें।

व्यसनमुक्त और योगयुक्त भारत बनाएं,
ज्यादा से ज्यादा धरती को हरा भरा बनाएं।

असम्भव को चलो सम्भव करके दिखाएं,
कलियुग को सतयुग में बदल के दिखाएं।

चलो गुरुपूर्णिमा में मिलके कुछ लक्ष्य बनायें,
आओ प्राणपण से उसे पूरा करके दिखाएं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *उपासना के बाद क्रोध बहुत आता है? खुद को सम्हाल नहीं पाती, और शर्मिंदगी उठानी पड़ती है। मार्गदर्शन करें..*

प्रश्न - *उपासना के बाद क्रोध बहुत आता है? खुद को सम्हाल नहीं पाती, और शर्मिंदगी उठानी पड़ती है। मार्गदर्शन करें..*

उत्तर - प्यारी आत्मीय बहन, उपासना के समय जप हेतु शरीर आपका बैठता है और मन आपके मानसिक घावों को कुरेदता है। पुरानी यादें और बातें आपको दुःखी करती हैं, इसलिए ध्यान नहीं लगता। उपासना के बाद क्रोध आता है। जब ध्यान लगा ही नहीं तो उपासना पूरी कैसे हुई? भगवान के पास बैठा शरीर लेकिन चित्त तो पूजन कक्ष में था ही नहीं, वो तो घटनाओं को कुरेदने में टाइम ट्रैवेल कर रहा था।

मुझे नहीं पता कि आपके जीवन की क्या कठिनाई है, लेकिन क्योंकि मैं human psychology से ग्रेजुएट हूँ और गुरुदेब का मनोविज्ञान पर लिखा साहित्य पढ़ा है, इसलिए दावे के साथ बता सकती हूँ कि आप अपने वर्तमान जीवन से असंतुष्ट है। जो और जिस प्रकार का जीवन आप चाहती थी ठीक उसके विपरीत जीवन जी रही हैं। इसलिए बहुत सारा अन्तर्मन में फ्रस्ट्रेशन का कूड़ा करकट भरा है, उपासना के वक्त वो ऊपर उठता है और जो क्रोध रूप में बाहर आता है।

याद रखिये...हम जो चाहते है वो नहीं मिलता, हम जिस योग्य होते हैं वो हमें मिलता है।

अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है, आनंदमय जीवन का राजमार्ग आप अभी भी प्राप्त कर सकती हैं, लेकिन इसके लिए आपको अपना नकारात्मक दृष्टिकोण(attitude) बदलकर सकारात्मक दृष्टिकोण जीवन के प्रति अपनाना होगा।

*सत्य घटना के द्वारा उदाहरण देकर समझाती हूँ*:-

परिस्थिति और प्रारब्ध ने *अरुणिमा सिन्हा* से उससे एक पैर छीन लिया, असीम कष्ट पूरी रात झेला, बिना बेहोशी के इंजेक्शन के ऑपरेशन करवाया।

लेकिन इस दुःखद घटना पर उसकी *प्रतिक्रिया और दृष्टिकोण सकारात्मक* था, इसलिए उसने एवरेस्ट की चोटी पर पर्वतारोहण जिसे दो पैर वाले नहीं कर पाते, उसे उसने एक नकली पैर से करके दिखाया। उच्च मनोबल और मनःस्थिति से सुनहरा भविष्य स्वर्ग रच डाला।

यदि वो इस घटना पर नकारात्मक प्रतिक्रिया देती, नकारात्मक दृष्टिकोण रखती तो उम्र भर भगवान, इंसान और दुनियाँ को कोसने में निकाल देती, frustrate रहती, किच किच करती, गुस्सा निकालती। निम्न मनोबल और कमज़ोर मनःस्थिति से स्वयं के लिए अपाहिज़ होने का रोना रोती, अपने लिए नर्क रच डालती।

जब मधुमक्खी भी फूलों से पराग निकाल सकती है तो हम मनुष्य इतने दिमागदार होकर दोषरोपण में क्यों व्यस्त हैं?, गुस्सा स्वयं के नकारापन, मानसिक दिवालियापन और अक्षमता की निशानी है। संक्षेप में कहें तो नकारात्मक दृष्टिकोण से उपजी मानसिक विकृति गुस्सा है। क्रोध एक ऐसी आग है जो दूसरों से पहले स्वयं को जलाती है। अतः जिंदगी में बदलाव चाहती है और सचमुच अरुणिमा सिन्हा की तरह विपरीत परिस्थिति में भी स्वयं के लिए आनन्दमय स्वर्ग का निर्माण करना चाहती है तो निम्नलिखित पुस्तकें पढ़े और जीवन मे अपनाएं:-

1- निराशा को पास न फटकने दें
2- दृष्टिकोण ठीक रखें
3- मनःस्थिति बदले तो परिस्थिति बदले
4- मन के हारे हार है मन के जीते जीत
5- मानसिक संतुलन
6- हम अशक्त क्यों? शशक्त बनें
7- शक्तिवान बनिये
8- गहना कर्मणो गतिः
9- आवेशग्रस्त होने से अपार हानि
10- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
11- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
12- भाव सम्वेदना की गंगोत्री
13- मित्रभाव बढ़ाने की कला
14- गृहस्थ एक तपोवन
15- जीवन लक्ष्य और उसकी प्राप्ति

बिना जीवन लक्ष्य के जीने का अर्थ नीरस जीवन है, ऐसी यात्रा है कि जाना कहाँ है पता नहीं और बस पर बैठ गए हैं। लक्ष्य जीवन मे होना बहुत जरूरी है।

*न संघर्ष न तकलीफें फिर क्या मजा है जीने में*
तूफान भी रूक जाएगा जब लक्ष्य रहेगा सीने में

*पसीने की स्हायी से लिखे पन्ने कभी कोरे नहीं होते*
जो करते है मेहनत दर मेहनत उनके सपने कभी अधूरे नहीं होते
       
बिना विलेन और कठिनाई को कोई फ़िल्म हिट नहीं होती, कोई जीवन निखरता नहीं है।

देखो प्यारी बहन मैं एक चिकित्सक की तरह दवा बता सकती हूँ और राह दिखा सकती हूँ। लेकिन दवा बिन खाये रोग खत्म न होगा, उपरोक्त पुस्तको को पढ़े बिना आप फ्रस्ट्रेशन से मुक्त न हो सकेंगी। मानसिक स्वास्थ्य और आनंदमय जीवन का कोई शॉर्टकट इस संसार मे उपलब्ध नहीं है, अतः स्वाध्याय तो करना ही पड़ेगा।

*आपका शीघ्र जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण बनें यही महाकाल से प्रार्थना है*, समस्त पुस्तक निम्नलिखित लिंक पर जाकर फ्री डाउनलोड कर पढ़े:-

http://vicharkrantibooks.org/vkp_ecom/Aaveshgrast_Hone_Se_Apar_Hani_Hindi

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...