Wednesday 31 July 2019

प्रश्न - *आज़कल स्कूल एवं कॉलेज में बच्चे गंदे, अभद्र, अश्लील, घृणित एवं वासनात्मक अभिव्यक्ति युक्त गालियां बोलचाल में, मैसेज में, व्हाट्स एप में बोलते हैं। यदि मेरी बेटी के साथ कोई लड़का या लड़की ऐसे गन्दे व्हाट्सएप मैसेज करे तो क्या एक्शन लेना चाहिए।*

प्रश्न - *आज़कल स्कूल एवं कॉलेज में बच्चे गंदे, अभद्र, अश्लील, घृणित एवं वासनात्मक अभिव्यक्ति युक्त गालियां बोलचाल में, मैसेज में, व्हाट्स एप में बोलते हैं। यदि मेरी बेटी के साथ कोई लड़का या लड़की ऐसे गन्दे व्हाट्सएप मैसेज करे तो क्या एक्शन लेना चाहिए।*

उत्तर - आत्मीय भाई, युवा लड़के व लड़की यह अच्छी तरह जानते हैं कि किससे उन्हें क्या बात करना है? किस हद तक जाना है? कौन किस टाइप का है? एक दो बार उन्हें टोंक दो तो वो नहीं बोलते। युवा लड़के लड़कियों की आँखों मे स्कैनर फिट है, वो समझ जाते है कौन किस टाइप है ? किसके साथ फ्लर्ट कर सकते हैं और किसके साथ नहीं?

रावण भी श्री सीता जी का अपहरण तब कर सका जब उन्होंने लक्ष्मण रेखा पार की। दुर्योधन भी पांडवों के साथ छल तब कर सका, जब पांडवों ने जुआ खेलने की सहमति दी। सतर्क चैतन्य और होश में रहना जरूरी है। धर्मग्रथ पढ़ो तो मार्गदर्शन मिलता है, इसलिए यह लीला चरित्र लिखे जाते हैं। लोग इन भूलों को समझें और न दोहराएँ।

मेरी दी की बेटी इस वक्त दिल्ली के डीयू कॉलेज से MBA फाइनल ईयर में है, इससे पहले उसने चार वर्ष गुरुग्राम के कॉलेज से B Tech किया है। उसे कभी किसी लड़के या लड़की ने व्हाट्सएप या मेसेज में गन्दे अभद्र शब्दो का प्रयोग नहीं किया। आपसे में गन्दे बोलने वाले लड़के लड़कियां भी उसके समक्ष सभ्य शब्द में ही बात करते हैं। उसने अपने कॉलेज के मेस में गुरूदेव के सदवाक्य लगवाए हैं, साथ ही डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन की वह मेम्बर है उसने कॉलेज की शुरुआत में ही सबको बता दिया था। उसके सभ्य वस्त्र, अच्छी ज्ञानयुक्त बातों ने, पढ़ाई के प्रति सीरियस व्यवहार ने सबको क्लियर मैसेज दे दिया था कि वो किस प्रकार की लड़की है। अतः गन्दे बच्चो ने उससे स्वयंमेव दूरी बना ली थी।

उसे हमने और उसकी मम्मी ने एक बात समझाई थी, बेटे चींटी को बुलाना हो तो इनविटेशन कार्ड  छपवाने की जरूरत नहीं है, मात्र गुड़ या मीठा रख दो वो चींटियां स्वयं आ जाएंगी। कॉकरोच के लिए गन्दगी काफ़ी है बुलाने के लिए, चिड़ियों के लिए रोज आंगन में दाने डालना काफ़ी है, उन्हें बुलाने के लिए। अतः जब तक तुम्हारे तरफ से कुविचार, अभद्र वस्त्र व व्यवहार का इंडिकेशन गन्दे लोगों को नहीं मिलेगा, तब तक को तुम्हारे नजदीक नहीं आएंगे।

यदि कोई लड़का या लड़की आपकी बेटी से गन्दे शब्दों में व्हाट्सएप कर रहा है, तो पहली गलती आपकी है कि आपने बेटी को टोंकना एवं ऐसी चीज़ों को हैंडल करना नहीं सिखाया। कहीं न कही आपकी बेटी ने उस गन्दे लड़के या लड़की को उसकी अभद्रता के लिए मना नहीं किया। तथा आपकी बेटी के व्यवहार में दबंगई नहीं है, आत्मविश्वास की कमी है। आपकी बेटी परम पूज्य गुरूदेव लिखित युगसाहित्य नहीं पढ़ती और उसके जीवन में अध्यात्म नहीं है।

दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि आपकी बेटी इन गन्दे लोगों की मित्र है, इसे गम्भीरता से नहीं ले रही, उसके लिए अश्लील गन्दे शब्दों का प्रयोग कोई बड़ी बात नहीं है, ये सब कॉलेज में चलता है। its ok, no big deal। जो शब्द आपको चुभ रहे हैं हो सकता है उससे आपकी बेटी को कोई फर्क ही न पड़ रहा हो, वह उसे केसुअल ले रही है। कहीं न कहीं आपकी बेटी के मन में कुविचारों का संग्रह है, इसलिए गन्दे लोग उसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं।

*युगऋषि परमपूज्य गुरूदेव कहते हैं, कि यदि बदलाव चाहते हो तो उस बदलाव का स्वयं हिस्सा बनो (If you want change be the change). हम सुधरेंगे युग सुधरेगा। हम बदलेंगे युग बदलेगा।*
👇🏻
लड़के के माता-पिता या टीचर-प्रोफेसर से उसकी शिकायत करने का आज के जमाने मे कोई लाभ नहीं है। टीचर लड़को से डरते है। जो बच्चा गन्दे अभद्र शब्द का प्रयोग कर रहा है इसका शिक्षण कहीं न कहीं उसने घर से ही लिया है। उसे माता पिता से अच्छे सँस्कार मिले नहीं है, बड़ा हो चुका है तो उससे उसके माता-पिता भी घर में दुःखी होंगे, उससे ही डरते होंगे। वो आउट ऑफ कंट्रोल होगा। टीचर-प्रोफेसर तब तक एक्शन में नहीं आएंगे जब तक दुर्घटना न हो जाये। कोई समझदार टीचर हुआ तो ही वो आपकी मदद करेगा अन्यथा आपकी शिकायत का उल्टा असर ही सामने आएगा।

पुलिस एवं कानून बर्बादी के बाद एक्शन में आते हैं, बर्बादी को रोकने के लिए अत्यंत कोई बिरला   नेकनीयत पुलिस ही आपकी मदद करेगा। अन्यथा यदि आप आर्थिक रूप से सक्षम व दबंग न हुए तो बाकी पुलिस वाले आपको ही परेशान करेंगे।

*समस्या जहां है समाधान वहीं है।* आपकी बेटी ही स्वयं बड़े आसानी से इस मामले से निपट सकती है। स्वयं को मानसिक तौर पर मजबूत बनाकर उन गन्दे लड़के लड़कियों को टोंक सकती है, मना कर सकती है। देखो, मुझे ऐसे अपशब्द पसन्द नहीं है। यदि मुझसे बात करनी है तो ठीक से बात करो।

*गांधीगिरी की तरह युगऋषि गिरी अपना सकती है, फेसबुक एवं व्हाट्सएप पर रोज अच्छे सदवाक्य शेयर कर सकती है, स्कूल कॉलेज में अच्छे साहित्य बाँट सकती है, अच्छे अच्छे आठ दस प्रवचन झाड़ना मनोबल के साथ सीख जाए तो स्वयंमेव गन्दे लड़के लड़की उससे या तो दूर हो जाएंगे या सभ्य शब्दो से बात करने लगेंगे।*

बेटियों को दुर्गा व लक्ष्मीबाई बनाइये, उन्हें अपनी लड़ाई स्वयं लड़ने के लिए तैयार कीजिये। बेटियों को मानसिक अपाहिज न बनाये, अन्यथा कब तक उसके लिए कितने लोगों से लड़ते रहेंगे? स्कूल, कॉलेज, ऑफिस, ससुराल सर्वत्र उसे देवता व दानव दोनों प्रवृत्ति के लोग मिलेंगे। उन्हें हैंडल करना उसे आना चाहिए। कृष्ण बनिये व सलाह दीजिये, उसके साथ हर पल रहिए, लेकिन बेटी को अर्जुन की तरह अपना युद्ध स्वयं लड़ने दीजिये। गीता का ज्ञान बेटी को दीजिये, उसे गीता के 18 अध्याय पढ़ाईये, जीवन युद्ध को लड़ने के लिए तैयार कीजिये।
👇🏻
*जीवन संघर्ष है, यह आपके दिए विचार, सँस्कार व मनोभाव तय करेंगे कि आपकी बेटी विजयी होंगी या पराजित। दुसरो को दोष देने में वक्त नष्ट मत कीजिये, स्वयं की बेटी को दुर्गा व लक्ष्मीबाई बनाने में जुट जाईये।*

👉🏼 *आपकी बेटी को चयन करना पड़ेगा कि वो किसे चुनेगी देगी:-* 👈🏻
😈👇🏻
*असुरता युक्त उपाधि* - (Modern Hot Girl, Sexy Girl) , चार दिन की ज़िंदगी है ऐश करो, लड़के लड़कियों एक दूसरे को डेट करो। *कोई लड़का या लड़की अपनी बॉडी दिखाते फेसबुक या व्हाट्सएप पर फोटो भेजे तो रिप्लाई में बोलना - You are looking cool, Hot, etc*

या
😇👇🏻
*दैवीय युक्त उपाधि* - माते, बहनजी, ओल्ड फ़ैशन, प्राचीन विचार धारा, भाई कॉलेज पढ़ने आये हैं ऐश करने नहीं। यह पढ़ाई नींव है मेरे सुखमय भविष्य की। *कोई लड़का या लड़की अपनी बॉडी दिखाते फेसबुक या व्हाट्सएप पर फोटो भेजे तो रिप्लाई में बोलना - ईश्वर को धन्यवाद दो कि उसने तुम्हरा शरीर सुंदर बनाया। लेकिन याद रखो शरीर नश्वर है और आत्मा शाश्वत है, जितनी मेहनत चिता में जलने वाले इस नश्वर शरीर के लिए कर रहे हो, उतनी मेहनत अपनी आत्मा के लिए भी कर लो तो धन्य हो जाओगे।*

*आपकी बेटी दूसरे के बहकावे में गलत राह पर तभी आएगी जब उसके दिमाग़ में युगऋषि के विचार व कृष्ण की गीता नहीं होगी*। *युगऋषि गिरी* करोगे तो कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकेगा।

*अन्य सांसारिक उपाय* - किसी अच्छे वकील के पास जाईये, उसकी मोटी फीस दीजिये। उससे एक सम्मन लेटर लड़के के माता पिता के नाम लिखवाइए जिसमे वार्निंग मेसेज हो कि आपका बेटा अश्लील शब्दों को मेरी बेटी के मोबाइल में भेजता है। कारण बताओ नोटिस- कि आपके बेटे को जेल क्यों न भेजा जाए। माता-पिता व उनका बेटा वक़ील से डर जायेगा।

ऐसे केस में डायरेक्ट पुलिस के पास बिना वकील के कभी न जाएं, अन्यथा आपकी बेटी परेशान हो जाएगी। मामला बिगड़ेगा औऱ नई नई परेशानी खड़ी करेगा।

लेक़िन यदि बेटी स्वयं दुर्गा न बनी तो यह सांसारिक उपाय कितने लड़कों के लिए करेंगे और कब तक? यह भी विचार लें।

जब पुलिस, वक़ील व कानून किसी भी घटना में सम्मिलित हो जाते हैं, तो कोई भी साधारण घटना असाधारण बन जाती है। इसका लाभ भी है और बड़ी हानि भी। बदले की भावना में बिगड़ैल लड़के और बिगड़ जाते हैं।

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, लगन एवं आसक्ति में क्या अंतर है? मम्मी कहती हैं कि पढ़ने व पूजा में लगन लगाओ, साथ ही गीता में एक जगह मैंने पढ़ा जिसमें आसक्ति नहीं करने की सलाह दी गयी है। कृपया समझाएं।*

प्रश्न - *दी, लगन एवं आसक्ति में क्या अंतर है? मम्मी कहती हैं कि पढ़ने व पूजा में लगन लगाओ, साथ ही गीता में एक जगह मैंने पढ़ा जिसमें आसक्ति नहीं  करने की सलाह दी गयी है। कृपया समझाएं।*

उत्तर - आत्मीय बेटे, लगन अर्थात प्रेम(love) और आसक्ति(attachment) अर्थात मोह।

आसक्ति एक तरह से लगाव(प्रेम) का ही पर्याय लोग समझते है । जब किसी भी अमुक वस्तु या व्यक्ति से इतना अधिक लगाव हो जाता है कि बिना उसके उसे कुछ भी अच्छा न लगे , यह आसक्ति(मोह) का द्योतक है । आसक्ति एक तरह का नशा है । नशे में व्यक्ति की जो मनोदशा होती है वही आसक्ति मे भी होती है । होश नहीं रहता, अच्छा बुरा सोचने की समझ इंसान खो देता है। प्रेम(लगन) व्यक्ति होश में करता है, मोह(आसक्ति) में वह मदहोश रहता है। प्रेम में बुद्धि चलती है, मोह में बुद्धि काम नहीं करती। मोह को राग कहते हैं और प्रेम को अनुराग भी कहते हैं।

आसक्ति मानसिक भाव है । हमारे अंत: पटल में सारी क्रियायें दो कारकों से संचालित होती हैं , एक मष्तिष्क की तर्क शक्ति से और दूसरा मन की बेलगाम इच्छाओं से । मष्तिष्क तर्क द्वारा संचालित क्रियायें गुण और दोष के विवेचना के उपरांत ही होती हैं । जब कि मन के द्वारा संचालित क्रियाओं पर गुण दोष का कोई असर नही होता है । इसे इस तरह भी कह सकते हैं कि मन के द्वारा संचालित क्रियायें समय काल परिस्थितियों से अनभिज्ञ रहती हैं ।

👉🏼 *उदाहरण:-* माँ बालक से मोह करेगी, बच्चे पर आसक्त रहेगी तो दिनभर उसे अपने पास रखेगी, उसकी गन्दी आदतें भी उसे न दिखेगी, मोह में बच्चे की अनर्गल डिमांड भी मानेगी।

👉🏼 लेकिन यदि मां बच्चे से सच्चा प्रेम करेगी तो उसे अपने से दूर उसके भले के लिए पढ़ने भी भेजेगी औऱ उसको अच्छा व्यक्ति बनाने का प्रयास भी करेगी। गलती करने पर पीटेगी भी।
👇🏻
प्रेम इंसान किसी से तभी कर सकता है, जब उसे पाने के लिए वह स्वयं की समस्त सुख सुविधाओं का त्याग कर दे। जिससे प्रेम करता है उसकी खुशी ही प्रथम प्रायोरिटी होती है। प्रेम की पूर्ति के लिए सबकुछ त्यागने में हिचक नहीं करता। जैसे पढ़ाई से प्रेम, पढ़ाई की लगन लगी तो नींद व आलस्य इंसान छोड़ देता है, पढ़ने में जुट जाता है।
👇🏻
आसक्त/मोहग्रस्त इंसान भटकता है, क्योंकि वो कर्म के फल से चिपकता है। प्रेम/लगन में व्यक्ति कर्म करता है फल ईश्वर पर छोड़ देता है।

क्लास में नम्बर 1 और उच्च अंक प्राप्त करने की चाह कर्मफ़ल की आसक्ति है। पढ़े हुए सब्जेक्ट में मास्टर बनने की चाह प्रेम है। सब्जेक्ट मैटर एक्सपर्ट बनना प्रेम है।

आसक्त रिजल्ट को लेकर तनावग्रस्त होता है, प्रेम करने वाला पढ़ने में व्यस्त रहता है, उसे सम्बन्धित विषय की जानकारी को और गहराई से पढ़ने में जुटा रहता है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Tuesday 30 July 2019

प्रश्न - *क्या युवतियों और युवाओं का आधुनिक कपड़े और फ़ैशन करना ग़लत है? क्या मेकअप करना ग़लत है? सौंदर्यीकरण के लिए आपकी क्या राय है दी?*

प्रश्न - *क्या युवतियों और युवाओं का आधुनिक कपड़े और फ़ैशन करना ग़लत है? क्या मेकअप करना ग़लत है? सौंदर्यीकरण के लिए आपकी क्या राय है दी?*

उत्तर - आत्मीय बेटी, सौंदर्यीकरण के लिये मेरी एक राय है, जो आदिकाल से शिव-शक्ति के लिए बोला जाता है  - *सत्यम, शिवम, सुंदरम*

1- जिसके आचरण में सत्य है और जो झूठ फ़रेब नहीं है।

2- जो शिव की तरह कल्याणकारी व लोकसेवी है और अशिव तत्त्वों (अनीति, काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ) से परे है।

3- जिसका हृदय प्रेम, सेवा, सद्भावना, सम्वेदना और आत्मियता से लबालब भरा है।

वास्तव में ऐसा वही सुंदर है, वही दिव्य है, वही मानव कहलाने योग्य है।
👇🏻
सुंदरता का तात्पर्य किसी दैहिक या प्राकृतिक सौंदर्य से नहीं है। वह तो क्षणभंगुर है। बचपन से वृद्धावस्था तक बदल रहा है। सुंदरता वास्तव में पवित्र मन, कल्याणकारी आचार और सुखमय व्यवहार है। इस सुंदरता का चिरंतन स्रोत शिवत्व गुण अर्थात गुण, कर्म एवं स्वभाव ही है।

इस सत्य को ज्ञान, बुद्धि एवं विवेक से समझा व जा सकता है।  हम भी तो किसी का सम्मान उसके गुणों, वह क्या करता है तथा उसका स्वभाव कैसा  है इस आधार पर ही तो करते हैं। एक सुंदर फैशन किये लड़की और एक सादे वस्त्र में कलेक्टर लड़की में आप किसको सम्मान देंगे? कलेक्टर को है न.. क्या आप सहमत नहीं है?

रूप की जगह गुण संचय पर वक्त खर्च कीजिये, महान बनेंगे व सम्मान पाएंगे। मोमबत्ती की इज्जत प्रकाश से होती है उसके कलरफ़ुल होने से नहीं होती। पेंसिल का अंदर के ब्लैक लेड कागज पर इम्पेक्ट डालता है, पेंसिल का बाह्य सौन्दर्य नहीं। अतः अंतरंग के सौंदर्यीकरण पर ध्यान दीजिए, बाहर स्वयंमेव लाभ होगा।
👇🏻
*उचित फ़ैशन निम्नलिखित है:-*

👉🏼 चेहरे से अनावश्यक बाल हटाना वो चाहे दाढ़ी मूँछ हो या आईब्रो(भौंह) का हो। सर्वदा उचित है। सर के बालों की आवश्यक काट-छांट उचित है।

👉🏼 चेहरे व शरीर की आवश्यक साफ-सफ़ाई, चेहरे व शरीर की मालिश सरसों के तेल या आयुर्वेदिक क्रीम से रक्त संचार के लिए उचित है।

👉🏼वस्त्र जो आरामदायक व स्वस्थकर हो और कटे-फटे न हो वो उचित है।

👉🏼जूते चप्पल आरामदायक और स्वास्थ्यकर उचित है।

👉🏼 शरीर को स्वस्थ व सुंदर बनाने के लिए योग-व्यायाम उचित है।स्वस्थ शरीर ही सुंदरता का परिचायक है।

👉🏻 ध्यान में उगते सूर्य के 15 मिनट नित्य ध्यान से चेहरे की कांति व ओज बढ़ जाता है। ध्यान में पूर्णिमा के चांद के ध्यान से चेहरे में आकर्षण उत्तपन्न होता है।


*आईए अब अनुचित व अभद्र फैशन व मैकअप के बारे में समझते हैं*

👉🏼 शरीर का रंग बदलने वाला कोई भी डार्क मैकअप अप्राकृतिक व अनुचित है। चेहरे पर रंगों का प्रयोग न करें।

👉🏼 ऐसे वस्त्र जो किसी की काम इच्छाओं को भड़काएं, उन्हें पहनना अनुचित है। आप जिनके साथ स्कूल कॉलेज में पढ़ते हैं या ऑफिस में जॉब करते हैं वो कोई सिद्ध साधक व ब्रह्मचारी नहीं है। वो सभी कमज़ोर मानसिकता के असंयमी लोग है। आपके वस्त्र-परिधान-मैकअप यदि उन्हें कामोत्तेजक भावनाएं उतपन्न करने में मदद कर रहा है, तो दोषी आप होंगी या होंगे।

👉🏼 हम केवल शरीर से सांस नहीं लेते, हमारे समस्त रोम छिद्र एवं नाखून भी श्वांस लेते हैं। यदि किसी के शरीर को वैक्स या चासनी इस तरह कवर कर दिया जाय कि रोमछिद्र से व सांस न ले सके तो नाक खुली होने के बावजूद व दमघुटने से 6 घण्टे के अंदर मर जायेगा। अतः यदि कोई ऐसी क्रीम जो गाढ़ी हो वो आप शरीर व चेहरे पर लगा रहे हैं जो रोम छिद्र को सांस लेने में बाधा पहुंचा रहे, वो आपको विभिन्न चर्म रोग, रक्त सम्बन्धी रोग, हृदय रोग और फेफड़ों के रोग को आमंत्रण देंगे।

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

गुलाब का फूल या अन्य कोई फूल, जीव वनस्पति में जो जैसा है, वैसा रहता है और प्राकृतिक रूप से सुंदर लगता है।

मनुष्य ने सभ्यता विकसित किया और ऋषियों ने रिसर्च करके पाया कि मनुष्य की सेंसटिव चमड़ी ठण्ड, गर्मी, बरसात में बिना वस्त्रों के सुरक्षित नहीं है। स्थान विशेष की जलवायु के अनुसार वस्त्र का निर्माण हुआ। ठंड प्रदेश में गले बन्द, टाइट व गर्म कपड़े उपयोग में लिए गए। तथा गर्म प्रदेश में सूती व रेशम के कपड़े उपयोग में लिए गए, जो पसीने को आरपार होने दें, हवादार हों जिससे रोम छिद्र श्वांस ले सके।

वस्त्र विज्ञान व ज्योतिष के अनुसार फ़टे व छेद युक्त कपड़े अशुभ होते हैं, नकारात्मकता और मानसिक अशांति को बढ़ाते हैं।

नकल + अक्ल = सफल

युवा - युवतियां टीवी या फ़िल्म एक्टर से प्रभावित होकर अभद्र व कामोत्तेजक कपड़े फैशन के नाम पर पहन कर घूमते हैं। लेक़िन अक्ल का प्रयोग नहीं करते और परेशानी का कारण बनता है।

*इसे कहानी के माध्यम से समझते हैं*, 👉🏼 एक नमक का बोरा पीठ पर लिए घोड़ा था और रुई पीठ पर लिए गधा था। घोड़ा पानी में घुसा और नमक गल गया। वो ख़ुश हुआ। गधे ने सोचा जल में घुसने से सुख मिलता है, तभी तो घोड़ा ख़ुश हुआ। बिना विवेक बुद्धि का प्रयोग किये व जल में प्रवेश कर गया, और रुई पानी भरने से भारी हो गयी। मूर्खता में गधे को क़ीमत चुकानी पड़ी।

यही हाल हमारे देश की युवतियों और युवक का है। गधे की तरह विवेक का फिल्टर प्रयोग नहीं करते।  स्वयं से प्रश्न नहीं करते  कि इस फैशन से मुझे क्या लाभ होगा? कुछ दोस्तों की कमेंट के लिए कामोत्तेजक अभद्र फैशन जरूरी है?

हीरो-हिरोइन सुरक्षित वातावरण में है, कामोत्तेजक वस्त्र और अंग प्रदर्शन के उन्हें पैसे मिलते हैं। समाज शास्त्र में हीरो-हीरोइन को इज्जतदार वैश्या कहा जाता है, जो पैसे कमाने के लिए अर्धनग्न होकर कामोत्तेजक नृत्य या अभिनय करते हैं। वो गाड़ी में सुरक्षा गार्ड के साथ घूमते हैं।

लेक़िन गधी लड़कियां व गधे लड़के बिना विवेक का प्रयोग किये, बिना किसी लाभ के नकल करके कामोत्तेजक अर्द्धनग्न वस्त्र पहनकर पैदल रोड पर घूमती/घूमते है, स्कूल कॉलेज और ऑफिस जो कि सर्वथा असुरक्षित है वहां जाती/जाते हैं। परेशानी का सबब बनते हैं।

👉🏼 *सभ्य वस्त्र के साथ सभ्य व श्रेष्ठ विचार ही सुरक्षित हैं। यदि सभ्य वस्त्र है लेक़िन असभ्य व कामोत्तेजक विचार मन में चल रहे हैं तो भी कामोत्तेजक औरा बनेगा, और परेशानी का सबब बनेगा।*

👉🏼 *अतः सभ्य वस्त्र के साथ श्रेष्ठ विचार धारण करें।* 👈🏻

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

सुपरस्टार गोविंदा ने किया 24 लाख का महापुरयश्चरन, जीवन मे शक्ति एवं सफ़लता का स्रोत माता गायात्री

सुपरस्टार गोविंदा ने किया 24 लाख का महापुरयश्चरन, जीवन मे शक्ति एवं सफ़लता का स्रोत माता गायात्री

https://youtu.be/R-ZVj9sKytk

Monday 29 July 2019

प्रश्न - *मेरी नीचे लिखी एक समस्या है कृपया इसका समाधान करें :-* *मैं कभी-कभी आत्म विश्वास से परिपूर्ण अपने आप को सत्य के निकट पाता हूँ तो देखता हूं कि मेरा जीवन झूठ छ्ल फरेब व्यभिचार भ्रष्टाचार लालच आदी न जाने कितने अवगुणो से भरा पड़ा है

प्रश्न - *मेरी नीचे लिखी एक समस्या है कृपया इसका समाधान करें :-*
*मैं कभी-कभी आत्म विश्वास से परिपूर्ण अपने आप को सत्य के निकट पाता हूँ तो देखता हूं कि मेरा जीवन झूठ छ्ल फरेब व्यभिचार भ्रष्टाचार लालच आदी न जाने कितने अवगुणो से भरा पड़ा है जिनको ना लिख सकता हूँ ना ही सुना सकता हूं । सबसे बड़ी विडम्बना तो ये है कि मेरा आत्म सम्मान,इज्ज़त इतना है की मेरे सामने भगवान भी छोटे हैं ।कोई सुई की नोक जितनी बात मेरी इच्छा के विरुद्ध कुछ कह दे तो मेरे अन्दर बाहर आग लग जाती है। बस ये है मेरा सब से बड़ा कष्ट ।*

उत्तर - आत्मीय भाई, आपका प्रश्न यह बताता है कि जन्मजात मिली सम्पत्ति और कुसंस्कारी साथियों की गलत संगति में आपका नैतिक पतन हो गया।

लेकिन राजा जनक की तरह आपकी आत्मा कोई पूर्वजन्म की श्रेष्ठ आत्मा है जो इस कीचड़ से ऊपर आने के लिए व्याकुल है।

वर्तमान स्टेट्स व पद के साथ अय्याशी भरा वर्तमान जीवन आपकी आत्मा को रास नहीं आ रहा है, आपकी आत्मा आपको कचोट रही है। आपकी आत्मा सांसारिक भोग-विलास से संतुष्ट नहीं हो सकती। जिस प्रकार शरीर व मन की जरूरतों में अंतर है, वैसे ही मन एवं आत्मा की जरूरतों में अंतर है। इसके कारण बाहर से आप जितने सांसारिक रूप से सुखी दिख रहे हो अंदर से उतने ही अशांत, व्याकुल एवं व्यग्र हैं। क्रोध व तन मन में आग अंतर्जगत की अशांति को दर्शाते हैं।

अजामिल, अंगुलिमाल, रत्नाकर, विश्वरथ(विश्वामित्र) सबके सब आत्मबोध होने के बाद एक ही जन्म में निकृष्ट से महान बन गए। यह आत्मबोध पाने की प्यास दिन ब दिन आपकी बढ़ रही है। आत्मबोध एवं आत्मशांति के लिए निम्नलिखित प्रयास करें:-

आपको वर्तमान व्यस्तता से 10 दिन की छुट्टी लेकर अपना वक़्त किसी जागृत तीर्थ में व्यतीत करना होगा। ऐसा ही एक दिव्य जागृत तीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार है, जिसके संस्थापक परमपूज्य गुरुदेव श्रीराम शर्मा आचार्य जी हैं। यहां 24 लाख गायत्री मंन्त्र जप नित्य होते हैं। जैसे ही आप आश्रम में पहुंचे अपनी चप्पल व जूते निकाल दें। पैदल 9 दिन वहां की मिट्टी में चलें, 9 दिन आश्रम के बने अत्यंत साधारण बिना लहसन प्याज का भोजन करें। कुछ भी बाहर का न खाएं। यहां अपने सांसारिक जीवन को भूलकर 9 दिन शिष्यभाव से बिताएं। आने से पूर्व 9 दिन की साधना शिविर का रजिस्ट्रेशन ऑनलाइन करके आएं:-

http://www.awgp.org/social_initiative/shivir

इस दिव्य ऊर्जा क्षेत्र में 9 दिवसीय जीवन संजीवनी साधना करके आपकी आत्मा 9 दिन में बलवती हो जाएगी। आपको क्लियर हो जाएगा कि कैसे धन, संपदा, पद, प्रतिष्ठा एवं ऐश्वर्य के बीच रहते हुए भी अपने आत्मकल्याण के लिए कैसे प्रयास करना है।

कुछ पुस्तक ऑनलाईन निम्नलिखित साइट से मंगवा लें, जो आपका पथ प्रदर्शन करेंगी:-

URL - https://www.awgpstore.com

1- अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
2- मैं क्या हूँ?
3- जीवन जीने की कला
4- मानसिक संतुलन
5- हारिये न हिम्मत

मेरा एक विनम्र अनुरोध है कि आप हमारे गुरुभाई बन जाइए, एवं शीघ्रातिशीघ्र गुरुदीक्षा लेकर स्वयं में देवत्व जगाकर, आत्मशांति व आत्मतृप्ति हेतु प्रयास कीजिये। आत्मकल्याण के साथ साथ कृपया मातृभूमि के कल्याण में जुट जाइये।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *कृपया बतायें, कि कावरिये शिव भक्त होते है, ये कहते है कि भोले भांग सुलफा पीते थे तो हम भी ऐसा कर उनके भक्ति का एहसास करते हैं, कृपया समझायें।*

प्रश्न - *कृपया बतायें, कि कावरिये शिव भक्त होते है, ये कहते है कि भोले भांग सुलफा पीते थे तो हम भी ऐसा कर उनके भक्ति का एहसास करते हैं, कृपया समझायें।*

उत्तर - आत्मीय भाई, ऐसे विवेक से अँधे व्यक्ति को कहिये, आकृति और बाह्य व्यवहार की नकल उतार रहे हैं तो भाई पूरी नकल उतारे। भाई आधी अधूरी नकल क्यों? आधा अधूरा शिव अनुभव क्यों? पूरा पूरा लो।

👉🏼 जंगल से काले कोबरा नाग लाएं गले में लटकाएं,चन्द्र रुद्राक्ष बाघम्बर धारण करें, श्मशान जाएं  मनुष्य की चिता की भष्म शरीर पर लगाएं, जीवन नश्वर है भान करें, बैल की सवारी करें। अर्धांगिनी से सिंह की सवारी करने को कहें। दोनों मिलकर आतंकियों राक्षसों का नाश करें, जम्मू कश्मीर में आतंकी मिल जाएंगे। हिमालय के रक्त जमा देने वाले बर्फ़ीली गुफाओं में ध्यान करें। शिव ने संसार को अमृत दिया एवं स्वयं विषपान किया। ये शिवभक्त भी ऐसा करें, शिव की पूर्णता का फिंर पूरी तरह शिव का अहसास हो जाएगा।

🤣🤣🤣🤣🤣😂😂😂😂😂🤔😂🤔😂😂

नकल के साथ अक्ल मिलाने से सफ़लता मिलती है। गधे अगर घोड़े की नकल करते हैं, तो मात्र पछताने के अलावा कुछ हाथ नहीं आता। ठंड प्रदेश की नकल गर्म प्रदेश में करने पर शरीर ही नष्ट होगा।

बर्फ़ीली सर्द हवाओं एवं ठंडे प्रदेश में शरीर को गर्म रखने के लिए औषधियों का मिश्रण पिया जाता है। अब कोई गधा इसे भांग या नशीली वस्तु समझे तो यह उसकी समस्या है। देवता सोमरस लता को दूध या दही मिलाकर पीते थे, यह शरीर मे रोगों का नाश करती थी।

सुरा अर्थात शराब का सेवन कोई देवता नहीं करते थे, यह शल्य चिकित्सा के वक्त प्रयुक्त होता था क्योंकि पहले एनिस्थिशिया का इंजेक्शन मरीज को बेहोश करने के लिए उपलब्ध नहीं था।

👉🏼 *सच्चा कावड़िया शिव भक्ति में लीन होकर शिवत्व धारण करता है। वो शिव से जीवन प्रबंधन व तनाव प्रबन्धन भगवान शंकर से सीखता है। लोकसेवा करता है।*

1- जटा में गंगा और त्रिनेत्र में अग्नि (जल और आग की दुश्मनी)

2- चन्द्रमा में अमृत और गले मे जहर (अमृत और जहर की दुश्मनी).

3- शरीर मे भभूत और भूत का संग ( भभूत और भूत की दुश्मनी)

4- गले मे सर्प और पुत्र गणेश का वाहन चूहा और पुत्र कार्तिकेय का वाहन मोर ( तीनो की आपस मे दुश्मनी)

5- नन्दी (बैल) और मां भवानी का वाहन सिंह ( दोनों में दुश्मनी)

6- एक तरफ तांडव और दूसरी तरफ गहन समाधि ( विरोधाभास)

7- देवाधिदेव लेकिन स्वर्ग न लेकर हिमालय में तपलीन

8- भगवान विष्णु इन्हें प्रणाम करते है और ये भगवान विष्णु को प्रणाम करते है।

इत्यादि इतने विरुद्ध स्वभाव के वाहन और गणों के बाद भी, सबको साथ लेकर चिंता से मुक्त रहते है। तनाव रहित रहते हैं।

और हम लोग विपरीत स्वभाव वाले सास-बहू, दामाद-ससुर, बाप-बेटे , माँ-बेटी, भाई-बहन, ननद-भाभी इत्यादि की नोकझोंक में तनावग्रस्त हो जाते है। ऑफिस में विपरीत स्वभाव के लोगों के व्यवहार देखकर तनावग्रस्त हो जाते हैं।

भगवान शंकर बड़े बड़े राक्षसों से लड़ते है और फिर समाधि में ध्यानस्थ हो जाते है, हम छोटी छोटी समस्या में उलझे रहते है और नींद तक नहीं आती।

युगनिर्माण में आने वाली कठिनाई से डर जाते है, सँगठित विपरीत स्वभाब वाले एक उद्देश्य के लिए रह ही नहीं पाते है।

भगवान शंकर की पूजा तो करते है, पर उनके गुणों को धारण नहीं करते। शिव लोककल्याण करते थे तो हम भी करें यह भाव होना चाहिए। लेकिन आकृति की नकल करते हैं पर प्रकृति को समझने की कोशिश नहीं करते। शिक्षण(गुण ग्राहकता) को भूलकर भक्षण(खाने पीने) की नकल में व्यस्त है। ये कैसी अंध भक्ति है? स्वयं विचार करें..

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *विदेशों में लोग हम भारतीयों की तरह आध्यात्मिक नहीं होते व अच्छे कर्म नहीं करते, फ़िर भी वो हम भारतीयों से श्रेष्ठ व सुखी जीवन कैसे जीते हैं? शंका का समाधान करें.*

प्रश्न - *विदेशों में लोग हम भारतीयों की तरह आध्यात्मिक नहीं होते व अच्छे कर्म नहीं करते, फ़िर भी वो हम भारतीयों से श्रेष्ठ व सुखी जीवन कैसे जीते हैं? शंका का समाधान करें.*

उत्तर - बेटे, आपके प्रश्न अनुसार आप आर्थिक संपन्नता को श्रेष्ठ जीवन मानते हैं। यह प्रश्न यह भी बताता है कि आप मध्यमवर्गीय परिवार के हैं जो आर्थिक तंगी से त्रस्त है। इसलिए आपको दूर के ढोल सुहावने लग रहे हैं, दूसरे की प्लेट का भोजन स्वादिष्ट दिख रहा है।

साथ ही आपका प्रश्न यह भी बताता है कि आप अध्यात्म क्या है नहीं जानते। पूजन के कर्मकांड को सबकुछ समझते है।

सुख को धन से जोड़ना ही गलत है। धार्मिक कर्मकांड को अध्यात्म   समझना ही गलती है। स्वार्थ व मनोकामना पूर्ति हेतु दिए दान दक्षिणा को अच्छे कर्म समझना गलत हैं।

👉🏼 बेटे, तुम्हारी सोच ऐसी है इसमें तुम्हारी गलती नहीं है। गलती माता पिता की है जिन्होंने   तुम्हे अध्यात्म से जोड़ा नहीं। अध्यात्म का स्वाद चखाया ही नहीं।

👉🏼 जानते हो मनुष्य के स्वर्ग की कल्पना भी कुछ ऐसी ही है, वर्तमान जीवन में जिनके जो अभाव है काल्पनिक स्वर्ग में उनके वो सब उपलब्ध होगा। गर्म प्रदेश वासी के लिए जम्मू-कश्मीर की ठंडक स्वर्ग लगेगा। और जम्मू कश्मीर के लोगों को गर्म प्रदेश स्वर्ग लगेगा। जिसके पास जो नहीं वही स्वर्ग।

👉🏼 *आइये आपको कुछ उदाहरण देकर समझाती हूँ।* 👈🏻

मजदूर एवं रिक्शेवाले जिनकी आय अत्यंत कम है, उनके लिए महीने के दस हज़ार कमाने वाला श्रेष्ठ व सुखी जीवन जी रहा है।

दस हज़ार महीने के कमाने वाला सोचता है कि पचास हज़ार कमाने वाला श्रेष्ठ व सुखी जीवन जी रहा है।

पचास हज़ार महीने के कमाने वाले के लिए लाख रुपये महीने का कमाने वाला श्रेष्ठ व सुखी जीवन जी रहा है। कहने का अर्थ यह है कि सभी अपने से उच्च पद वाले और अपने से दोगुने कमाने वाले को सुखी मान रहे हैं।
👇🏻
इसी तरह भारत जैसे विकासशील में रहने वाले युवाओं के लिए अमेरिका व यूरोप देश मे रहने वाले लोग श्रेष्ठ व सुखी जीवन जी रहे हैं। इसलिए वो इन देशों में जाकर रहना व जॉब करने का ख्वाब देखते हैं, यह देश इनके लिए स्वर्ग समान है।
🤔🤔🤔
बस यही भ्रम है, जाकर उन लोगों से पूँछो जो क्रमशः दस हज़ार या बीस हज़ार या पचास हज़ार या एक लाख या दस लाख इत्यादि महीने का कमा रहे हैं वो क्या सुखी हैं? सभी का जवाब नहीं होगा...क्योंकि सभी वर्तमान से और बेहतर बनने के लिए दुःखी है।

अमेरिका व यूरोपियन देश मे रहने वालों को पूँछो क्या आप अपने देश में स्वर्ग का अनुभव कर रहे हैं, श्रेष्ठ व सुखी जीवन जी रहे हैं? तो वो भी बताएंगे कि कितने दुःखी है।

सबसे ज्यादा मानसिक रोगी, आत्महत्याएं, टूटते रिश्ते और अशांत लोग इन्ही विकसित देशों में रहते हैं। आये दिन लोग मनोचिकित्सक के पास मानसिक उलझनों को लेकर पहुंचे रहते है।

इन देशों में भी वही सुखी है जो आध्यात्मिक है। वहाँ के लोग भी ईश्वर पर विश्वास रखकर अपने तरीके से उनके अनुसार जीवन जीते है और लोकल्याण के कार्य करते हैं।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻
*सत्य घटना* - आदरणीय डॉक्टर चिन्मय पंड्या जिन दिनों लंदन में मनोचिकित्सक की सेवाएं दे रहे थे, उस समय उनके पास बड़े अमीर घरों के लोग मानसिक समस्या लेकर आते थे। उनके अनुभव अनुसार अमीरी और धन जिन्हें भारतीय गरीब व्यक्ति सुखी जीवन का टिकट समझता है वो वास्तव में एक भ्रम के अतिरिक्त कुछ नहीं। यदि धन ही सबकुछ होता तो धनी व्यक्ति सुखी होता लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है।
👇🏻
संसार में सुखी वह है जिसके पास अध्यात्म है, जो जीवन के प्रति समझ रखता है। जीवन जीना जानता है। आध्यात्मिक होने का अर्थ है स्वयं के अस्तित्व को पूर्णता से जानना और जन्म और मृत्यु के बीच के समय को सुव्यवस्थित जीना। स्वयं की चेतना का विस्तार करना, वर्तमान में जीना। जो जिस वक्त जहां शरीर से उपलब्ध है वहां मन से भी उपस्थित रहने की कला जानना। आत्मा व परमात्मा को तत्व से अनुभूत करना।

वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि कुछ परसेंट भारतीयों का आर्थिक जीवन पाश्चात्य यूरोपीय एवं अमरीकन लोगो से अधिक है। फिंर भी वो सब आध्यात्मिक है।

यूरोपीय एवं अमेरिकन देशों में भी  लोग आध्यात्मिक है और अच्छे कर्म कर रहे हैं।

आइंस्टीन, न्यूटन, कलाम इत्यादि सभी बड़े नामी देश विदेश के आध्यात्मिक हैं।
👇🏻
निम्नलिखित पुस्तकें पढ़िये व अध्यात्म के मूलभूत सिद्धांत समझिए।
👇🏻

1- जीवन जीने की कला
2- हम सुख से वंचित क्यों है
3- गहना कर्मणो गति: (कर्मफ़ल का सुनिश्चित सिद्धांत)

👇🏻

हांजी एक और बात👉🏼, संसार में भौतिक सम्पन्नता पूजा-पाठ करने से नहीं आती। कोई डॉक्टर इंजीनियर मन्दिर में भजन करके नहीं बन सकता। संसार मे सांसारिक उपलब्धि सांसारिक प्रयास से मिलती है।

जिस तरह तन व मन की भूख में अंतर है, उसी तरह मन व आत्म सुख में अंतर है।

अध्यात्म तन, मन, आत्मा के व्यवस्थित सन्तुलन के लिए होता है। अध्यात्म का प्रकाश जीवन को रौशनी देने के लिए है, दिशा धारा देने के लिए है। सांसारिक गति तो सांसारिक प्रयास व विज्ञान से ही मिलेगी। अध्यात्म को जीवन में दिशा ज्ञात करने के लिए अपनाओ और सांसारिक प्रयास उस दिशा में शीघ्रता से पहुंचने के लिए करो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Sunday 28 July 2019

प्रश्न - *पाप का गुरु कौन है? अर्थात पाप का जन्मदाता या आदिस्रोत कौन है?*

प्रश्न - *पाप का गुरु कौन है? अर्थात पाप का जन्मदाता या आदिस्रोत कौन है?*

उत्तर - आत्मीय भाई,

*भगवान कृष्ण गीता में कहते हैं:-*

त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्।।16.21।।

*भावार्थ* - *काम(इच्छाएँ, वासना, कुछ पाने की चाह) क्रोध और लोभ* ये अहंकार व पाप की जड़ है, आदिस्रोत है। ये आत्मनाश के त्रिविध नरक द्वार हैं? इसलिए इन तीनों को त्याग देना चाहिए।।

*तुलसीदास जी कहते है:-*

दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान | तुलसी दया न छांड़िए ,जब लग घट में प्राण ||

*भावार्थ* - तुलसीदास जी ने दया - भावसम्वेदना को धर्म की जड़ अर्थात आदिस्रोत बताया है, और अहंकार को पाप की जड़-आदिस्रोत बताया है।

दो कहानी के माध्यम से इसे प्रेक्टीकली समझते हैं:-

1- मेरी माताजी मालती तिवारी धार्मिक प्रवृत्ति की थीं, उनका मानना था भूखे को भोजन कराने से ज्यादा पुण्य मिलता है। मन्दिर में पंडितों को दान-दक्षिणा की जगह वो गरीबो को भोजन देने को वरीयता देती थीं। अतः प्रत्येक सप्ताह वो अन्न दान भिखारी को करती थीं। एक भिखारी को प्रत्येक सोमवार वो अन्न दान में एक किलो चावल, दाल, सब्जी वगैरह दान करती थीं। ऐसा क्रम कई महीनों तक चला। एक बार पिताजी शहर से बाहर थे और घर मे दाल खत्म हो गयी थी। अतः उस दिन उस भिखारी को केवल चावल व सब्जी दान में दी। वो भिखारी क्रोध से भर उठा और मम्मी से दाल के लिए लड़ने लगा। बात यहाँ तक पहुंच गई कि वो गाली गलौज पर उतर आया। फिंर नौकरों की मदद से उसे भगाया गया। उस भिखारी ने स्वयं क्रोध करके अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली, एक घर जो उसे प्रत्येक सप्ताह दान देता था वो बन्द हो गया।

इस घटना में उस भिखारी के पाप का मूल यह था कि वो लोभ से भरा हुआ आता था। उसे यह अहंकार था कि उसके कारण मेरी माताजी पुण्य कमा रही हैं। उसकी दुआ व श्राप दोनों असरकारक होंगे। नित्य दान पाने से वह स्वयं को पण्डित से कम नहीं समझ रहा था।


2- एक बार एक विद्वान पण्डित से किसी ने पूँछा *पाप का गुरु* कौन है अर्थात पाप का आदिस्रोत क्या है? समझाइए। वो बता न सके तो जगह जगह अन्य पंडितों से पूँछा। तब किसी ने उन पण्डित को बताया इस नगर की प्रधान वैश्या बहुत ज्ञानी है, उससे पूँछिए। पण्डित ने वैश्या के पास जाकर प्रश्न किया, वैश्या ने कहा इसका उत्तर तीन महीने में दूंगी। उनके ठहरने का प्रबन्ध बाहर कुछ दूरी पर कर दिया। वैश्या रोज उस पण्डित के पास जाती, सत्संग करती और उनसे ज्ञान सुनती। दक्षिणा में कुछ चांदी के सिक्के देती, साथ ही उनके ज्ञान व वैराग्य की ढेर सारी प्रसंशा वो और उसके बंदे करते थे। उन्हें सबसे बेस्ट ज्ञानी बताते। इससे पण्डित जी को महानता का अहंकार होता चला गया । यह क्रम एक से दो महीने चला। एक दिन वैश्या ने कहा यदि आप अनुमति दें तो हम नहाधोकर पवित्रता के साथ आपका भोजन बना लाया करेंगे और दक्षिणा में 5 स्वर्ण मुद्राएं देंगे। पण्डित जी स्वपाकी थे, लेक़िन स्वर्णमुद्रा के लोभ में आकर उसका भोजन खाना स्वीकार कर लिया। रोज स्वादिष्ट भोजन व नित्य 5 स्वर्ण मुद्राएं पण्डित जी को मिलने लगी।

एक दिन वैश्या ने पण्डित जी के सामने से भोजन की थाली यह कहते हुए खींच ली, कि पण्डित जी लगता है मेरे भोजन से आपका तेज नष्ट हो रहा है, अब आपके ज्ञान में वो बात नहीं रही, अतः भोजन व दक्षिणा हम दोनों बन्द कर रहे हैं। पण्डित जी आग बबूला हो गए, और वैश्या को अपशब्द बोलने लगे गए और हाथ तक उठा दिया। तभी वैश्या ने उन्हें संयत स्वर व गम्भीर वाणी में टोकते हुए बोला - अपनी वाणी को विराम दीजिये पण्डित जी, आप ही मेरे पास पाप का गुरु(मूल आदिस्रोत) जानने आये थे। इसलिए इसका प्रैक्टिकल ज्ञान करवाने के लिए यह सब मैंने किया।

आपके लोभ ने आपकी इच्छाओं को बलवती किया, हमारी प्रसंशा ने आपके अहंकार को पुष्ट किया। आज आपके लोभ और अहंकार ने आपकी सद्बुद्धि का हरण कर लिया और क्रोध को जन्म दिया। और आपको पाप करने के लिए प्रेरित कर दिया।

आप यहां क्या लेकर आये थे? और क्यों आये थे? आप मुझे ज्ञानी मानकर मेरे ज्ञान से स्वयं की जिज्ञासा का समाधान लेने आये थे। अपनी नित्य प्राप्त होती प्रसंशा ने आपने स्वयं को सर्वज्ञानी मानकर अहंकार कर लिया। मेरे दिए भोजन व दक्षिणा को दान न समझकर लोभियों की तरह उसे अपना अधिकार व हक समझ लिया। यही पाप का मूल है। पण्डित जी वैश्या के चरणों मे गिर गए और क्षमा मांगते हुए वहां से चले गए।

पण्डित जी शर्मिंदा तो थे, लेकिन उन्हें जीवन के सत्य ज्ञान की प्राप्ति का ज्ञान भी हो गया था। पाप की जड़ - लोभ, मोह व अहंकार और उससे उतपन्न क्रोध,  और क्रोध से होते पाप के रहस्य बारे में जान चुके थे।

उम्मीद है आपको भी यह क्लियर हो गया होगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Saturday 27 July 2019

प्रश्न - *मानव का सहज धर्म क्या है? यह बताने की कृपा करें ताकि आगे की यात्रा में गति आ सके*

प्रश्न - *मानव का सहज धर्म क्या है? यह बताने की कृपा करें ताकि आगे की यात्रा में गति आ सके*

उत्तर - आत्मीय भाई, *मानव का सहज धर्म समझने से पहले आइये समझते हैं कि धर्म शब्द का वास्वविक अभिप्राय क्या है? धर्म संस्कृत भाषा का शब्द है। इसकी परिभाषा है कि जो वस्तु जिन गुण व गुणों को धारण करती है वह उसका धर्म कहलाता है*।

अग्नि रूप, दाह, ताप, प्रकाश आदि को धारण करती है तथा सदैव ऊपर की ओर ही गति करती है। यह सब अग्नि के गुण व धर्म कहलाते हैं। अग्नि मित्र हो शत्रु, कोई भी वस्तु हो कचरा या मिष्ठान्न दोनों को बिना भेदभाव के जलायेगी। अमीर हो या गरीब सबके घर जलने पर ऊष्मा देगी जो भी रखोगे पका देगी।

इसी प्रकार से वायु, पृथिवी, आकाश, जल आदि के गुण हैं। सबके लिए एक समान।

अच्छा जी क्या मनुष्य का धर्म मानव मात्र का कल्याण है, जियो और जीने दो, भगवान की सृष्टि में सहायक बनो।

इस हेतु मनुष्य को किन व क्या-क्या गुण धारण करना चाहिये? मनुष्य का सहज धर्म क्या है?

संसार में सत्य व असत्य दो प्रकार के गुण हैं। मनुष्यों द्वारा सत्य भी बोला जाता है और असत्य भी। दोनों परस्पर विरोधी गुण हैं। अब इनमें से किसको धर्म व किसको अधर्म माना जाये? संसार में ऐसा कोई मनुष्य नहीं है जो यह चाहता हो कि दूसरे लोग उसके साथ असत्य का व्यवहार करें। सभी मनुष्य यह चाहते हैं कि उनके साथ दूसरे लोग सदैव सत्य का ही व्यवहार करें। सत्य उसे कहते हैं कि जो पदार्थ जैसा है उसका वैसा ही वर्णन करना। उसके विपरीत यदि वर्णन किया जाये तो वह सत्य न होकर असत्य कहलाता है। अग्नि में जलाने का गुण होता है। यदि कोई यह कहे कि अग्नि जलाता नहीं है तो यह असत्य होगा। यदि कहें कि अग्नि में दाह वा जलाने का गुण होता है तो यह सत्य माना जायेगा। इसी प्रकार से सत्य व्यवहार वा सत्याचरण धर्म व इसके विपरीत असत्य का व्यवयहार अधर्म व असत्य कहलाता है। अब यह विचार करें कि सत्य क्या किसी स्थान विशेष के लोगों का गुण हैं या यह सार्वभौमिक सभी मनुष्यों का गुण है। भारत के लोग सत्य बोलें तो धर्म और इसी प्रकार से अन्य देश के लोगों पर भी यह लागू होता है। संसार में सभी स्थानों वा देशों में सत्य व्यवहार ही मान्य है। इससे यह ज्ञात होता है कि सत्य बोलना व व्यवहार में सत्य का पालन व आचरण ही उचित व मान्य है। अतः सत्य धर्म का आवश्यक व प्रमुख अंग सिद्ध होता है। । इसे सत्य धर्म या मानव धर्म कह सकते हैं। सत्य सार्वभौमिक धर्म होने से ही सर्वत्र सभी लोगों द्वारा इसका व्यवहार अनादि काल से किया जा रहा है। मनुष्य ने सत्य धर्म का पालन नहीं किया इसलिए संसार मे दुःख व्याप्त है। मनुष्य अपने परिवार और प्रियजनों के साथ ईमानदारी और अच्छा व्यवहार करता है लेक़िन गैरों के साथ बुरा व्यवहार और कमाने के लिए बेईमानी करने से नहीं चूकता। जो भी दो नाव की सवारी करेगा वो असहज रहेगा औऱ कष्ट पायेगा।

*सत्यम शिवम सुंदरम* - मनुष्य को सत्य का आचरण करना चाहिए, शिव के कल्याणकारी गुणों को धारण करना चाहिए तभी उसके जीवन मे ईश्वरीय सुंदर जीवन का समावेश होगा।

👉🏼 *उदाहरण* - अगर रोड में आपके बच्चे के साथ पड़ोसी का बच्चा गिरता है तो दोनों के लिए उतना ही प्यार और सम्वेदना आपके हृदय में होगी। तभी आप *सहज मानव धर्म* पालन कर पाएंगे।

*तुलसीदास* की चौपाई में जानिए भगवान आपसे कौन सा *सहज मानव धर्म* चाहते हैं।

निर्मल मन जन सो मोहि पावा,
मोहि कपट छल छिद्र न भावा।

परहित सरिस धर्म नहीं भाई,
परपीड़ा सम नहीं अधमाई।।

🙏🏻🎊🎊🎊🎊🎊🎊🙏🏻
*सत्य आचरण करते हुए निर्मल मन और भाव सम्वेदना से लोककल्याण करना और आत्मियता का विस्तार करना ही मानव का सहज धर्म है।*
☝🏻🌸🌸🌸🌸🌸🌸☝🏻

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न- *दी, मौन साधना क्या है? इससे मिलने वाले लाभ बताइये?*

प्रश्न- *दी, मौन साधना क्या है? इससे मिलने वाले लाभ बताइये?*

उत्तर - आत्मीय भाई, *मौन शक्तिसंचय का एक अनूठा तरीका है। यह व्यक्ति को आध्यात्मिक दृष्टि से संपन्न बनाती है। मौन केवल आंतरिक दृष्टि से ही व्यक्ति को शक्ति संपन्न नहीं बनाता बल्कि व्यावहारिक जीवन में भी यह शक्ति के अपव्यव को रोकता है।*

*वार्तालाप में मात्र जिव्हा ही गतिशील नहीं रहती। मुख के भीतरी और बाहरी अवयव भी क्रियाशील रहते हैं। मस्तिष्क क्षेत्र के अनेक घटकों को उत्तेजित, सक्रिय बनाये रहना पड़ता है। यह अस्थिरता आवश्यक होती है। वक्तृता स्नायु संस्थान को झकझोर देती है। तनाव उत्पन्न करती है और पाचन तंत्र को अस्त व्यस्त करने से लेकर रक्ताभिषरण तक को प्रभावित करती है। वाचालों को अक्सर रक्तचाप की शिकायत रहने लगती है।* उत्तेजनाजन्य तनाव से दाह और अनिद्रा जैसे विकार उठ खड़े होते हैं।

मौन के अभ्यास से वाणी का असंयम रुकने से जीवनी शक्ति के अपव्यय से होने वाली क्षति में कमी आती है। बचत से सम्पन्नता बढ़ती है और आड़े समय में काम आती है। मौन साधना का यत्किंचित् प्रयास भी हर किस के लिए लाभदायक सिद्ध होता है। उससे जीवनी शक्ति का भण्डार बढ़ता चला जाता है, भले ही वह सीमित प्रयास के कारण स्वल्प मात्रा में ही उपलब्ध क्यों न हो?

जिन्हें अवसर और अवकाश है, उन्हें मौन की अवधि भी बढ़ानी चाहिए और उसमें गम्भीरता भी लानी चाहिए। इस आधार पर मौन मात्र संयम ही नहीं रखता वरन् तपश्चर्या स्तर तक जा पहुँचता है और साधना से सिद्धि के सिद्धान्त को प्रत्यक्ष चरितार्थ कर दिखाता है। इसीलिए परमपूज्य गुरूदेव ने *अंत:ऊर्जा जागरण साधना* के लिए *मौन साधना अनिवार्य* कर दिया।

*चार प्रकार की वाणियाँ होती है- बैखरी, मध्यमा, परा और पश्यन्ती।*

1- *जिव्हा से उच्चरित होने वाली वाणी को “वैखरी” कहते हैं*। इसमें मुँह बोलता है और कान सुनते हैं। मस्तिष्क उसका निष्कर्ष निकालता है। 

2- *"मध्यमान" में मन बोलता है उसका परिचय चेहरे की भावभंगिमा से अंग संचालन पर आधारित संकेतों से समझा जा सकता है*

3-  *"परा" अन्तःकरण से भव संवेदनाओं के रूप में प्रकट होती है।* उसे प्रसन्नता, खिन्नता, उदासी के रूप में क्रियान्वित होते देखा जाता है। इसका प्रभाव एक व्यक्ति से उठ कर दूसरे में प्रवेश करता है। इसके सहारे एक के विचार दूसरे के मस्तिष्क में प्रवेश करते हैं और उसका सम्प्रेषण की प्रतिक्रिया बटोर कर प्रेषक के पास वापस लौटते हैं। इसे मौन वार्तालाप भी कह सकते हैं इसमें चेहरे को देखकर अन्तराल को समझने के लिए प्रयास नहीं करना पड़ता।

4- *"पश्यन्ती विशुद्धतः आध्यात्मिक है*। इसे देव वाणी भी कह सकते हैं। इसे आकाश वाणी, ब्रह्म वाणी भी कह सकते हैं। यह परा, चेतना के साथ टकराती है और वापस लौट कर उन समाचारों को देती है जो अदृश्य जगत के विभिन्न क्रिया-प्रतिक्रियाओं के रूप में सक्रिय रहते हैं। इसे अदृश्य दर्शन भी कह सकते हैं। इसी के माध्यम से देवतत्वों की पूरा चेतना के साथ सम्भाषण एवं आदान-प्रदान होता है।

🙏🏻👉🏼 *अस्तित्व की हर वो चीज जिसको पांचों इंद्रियों से महसूस किया जा सके वह दरअसल ध्वनि की एक गूंज है। हर चीज जिसे देखा, सुना, सूंघा जा सके, जिसका स्वाद लिया जा सके या जिसे स्पर्श किया जा सके, ध्वनि या नाद का एक खेल है। मनुष्‍य का शरीर और मन भी एक प्रतिध्वनी या कंपन ही है।* लेकिन शरीर और मन अपने आप में सब कुछ नहीं हैं, वे तो बस एक बड़ी संभावना की ऊपरी परत भर हैं, वे एक दरवाजे की तरह हैं। बहुत से लोग ऊपरी परत के नीचे नहीं देखते, वे दरवाजे की चौखट पर बैठकर पूरी ज़िंदगी बिता देते हैं। लेकिन दरवाजा अंदर जाने के लिए होता है। इस दरवाजे के आगे जो चीज है, उसका अनुभव करने के लिए चुप रहने का अभ्यास ही मौन कहलाता है स।
अंग्रेजी शब्द ‘साइलेंस’ बहुत कुछ नहीं बता पाता है। संस्कृत में ‘मौन’ और ‘नि:शब्द’ दो महत्वपूर्ण शब्द हैं। मौन का अर्थ आम भाषा में चुप रहना होता है-यानी आप कुछ बोलते नहीं हैं। ‘नि:शब्द’ का मतलब है जहां शब्द या ध्वनि नहीं है - शरीर, मन और सारी सृष्टि के परे। ध्वनि के परे का मतलब ध्वनि की गैरमौजूदगी नहीं, बल्कि ध्वनि से आगे जाना है।

*अंतरतम में मौन ही है यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि पूरा अस्तित्व ही ऊर्जा की एक प्रतिध्वनि या कंपन है*, इंसान हर कंपन को ध्वनि के रूप में महसूस कर पाता है। सृष्टि के हर रूप के साथ एक खास ध्वनि जुड़ी होती है। ध्वनियों के इसी जटिल संगम को ही हम सृष्टि के रूप में महसूस कर रहे हैं। सभी ध्वनियों का आधार ‘नि:शब्द’ है। सृष्टि के किसी अंश का सृष्टि के स्रोत में रूपांतरित होने की कोशिश ही मौन है। अनुभव और अस्तित्‍व की इस निर्गुण, आयामहीन और सीमाहीन अवस्‍था को पाना ही योग है। नि:शब्द का मतलब है: शून्यता।

*ध्वनि सतह पर होती है, मौन अंतरतम में होता है। अंतरतम में ध्वनि बिल्कुल नहीं होती है।*
ध्वनि सतह पर होती है, मौन अंतरतम में होता है। अंतरतम में ध्वनि बिल्कुल नहीं होती है। ध्वनि की अनुपस्थिति का मतलब कंपन और गूंज, जीवन और मृत्यु, यानी पूरी सृष्टि की अनुपस्थिति। अनुभव में सृष्टि के अनुपस्थित होने का मतलब है – सृष्टि के स्रोत की व्यापक मौजूदगी की ओर बढ़ना। इसलिए, ऐसा स्थान जो सृष्टि के परे हो, ऐसा आयाम जो जीवन और मृत्यु के परे हो, मौन या नि:शब्द कहलाता है। इंसान इसे कर नहीं सकता, इसे सिर्फ हुआ जा सकता है।

*मौन का अभ्‍यास करने और मौन होने में अंतर है। अगर आप किसी चीज का अभ्यास कर रहे हैं, तो निश्चित रूप से आप वह नहीं हैं। अगर आप पूरी जागरूकता के साथ मौन में प्रवेश करने की चेष्‍टा करते हैं तो आपके मौन होने की संभावना बनती है।*

कालचक्र से परे जाने का एक अवसर है मौन होकर ध्यानस्थ होना। यह मौन बाहर ही नहीं भीतर भी होना चाहिए। चारों वाणियो को विश्राम दो, भीतर की ध्वनि के साक्षी बनो। अंतर्नाद से जुडो। तब मौन घटेगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday 26 July 2019

प्रश्न -1:- *मुझसे कई लोग बहुत ईर्ष्या करते हैं?*

प्रश्न - *दी, कुछ मेरे साथ हो रही परेशानियों का उत्तर दे दीजिए। प्रश्न कई सारे हैं?*

उत्तर- बहन, एक एक करके पूँछिए।

प्रश्न -1:- *मुझसे कई लोग बहुत ईर्ष्या करते हैं?*

उत्तर- तो ख़ुश हो जाइए, भगवान को धन्यवाद दीजिये कि भगवान ने आपको इस योग्य बनाया है कि लोग आपसे ईर्ष्या कर सकें।क्योंकि आप उनसे किसी न किसी चीज़ में बेहतर है। ईर्ष्या अपने से श्रेष्ठ से की जाती है, अपने से कमज़ोर व्यक्ति से कोई ईर्ष्या नहीं करता।

प्रश्न 2- *मेरी पीठ पीछे कई लोग मेरी चुगली करते हैं, जब मुझे पता चलता है तो मुझे गुस्सा आता है।*

उत्तर - व्यर्थ गुस्सा करती हो, तुम्हे भगवान को धन्यवाद देना चाहिए कि भगवान ने तुम्हें इतना प्रभावशाली बनाया है कि लोग तुम्हारे मुंह पर तुम्हें कुछ बोलने की हिम्मत नहीं कर पाते। चुगली करने वाले लोगों को धन्यवाद दो, क्योंकि वो तुम्हारा प्रारब्ध अपने ऊपर ले रहे हैं। चुगलखोर सबके पाप अपने सर पर लेता है। अतः उस पर दया करो क्योंकि उसकी नरक में एंट्री पक्की है।

प्रश्न -3- *मुझे मेरे मिशन के लोग मुख्य मीटिंग में शामिल नहीं करते, समस्त श्रेय आगे बढ़कर लेते हैं लेक़िन जब काम करने की बारी आती है तो मुझ पर डाल देते हैं।*

उत्तर - मिशन का कार्य अर्थात सद्गुरु की सेवा का सौभाग्य। अगर वो लोग झूठा श्रेय लेकर मुख्य सेवा का सौभाग्य और पुण्य कमाने का अधिक अवसर आपको दे रहे हैं। तो आपको उन्हें हृदय से धन्यवाद देना चाहिए। जिन लोगो से वो वाहवाही लूट रहे हैं वो नश्वर मनुष्य हैं। शाश्वत ईश्वर और सद्गुरु अंतर्यामी हैं उनसे झूठ बोलकर उनसे श्रेय लेना सम्भव नहीं है। नश्वर मनुष्य की वाहवाही चाहिए या शाश्वत ईश्वर की कृपादृष्टि व पुण्य? निर्णय लीजिये। जिस बच्चे पर दबाव डालकर अन्य बच्चे अपना होमवर्क करवाते हैं, वो क्षणिक लाभ लेते हैं। लेक़िन दूरगामी प्रभाव में उस बच्चे का भला कर देते हैं, क्योंकि होमवर्क करने वाला बच्चा ज़्यादा बुद्धिकुशल बनेगा।

प्रश्न - 4:- *कई लोग राजनीति करके मुझे फँसा देते हैं, क्या करूँ*

उत्तर - धन्यवाद उन लोगो का कीजिये जो राजनीति कर रहे हैं, वो आपके समक्ष चुनौती खड़ी करके आपको बेहतर बनाने में मदद कर रहे हैं। राजनीति की बॉल वो फेंक रहे हैं, आप बुद्धि का बल्ला उठाइये और कुशल बल्लेबाज की तरह उनकी फेंकी बॉल पर चौका छक्का लगाइये। समस्या मत गिनिए, कमर कस के समस्या के समाधान में जुटिये। आपको गिराने के लिए उनने मेहनत से गड्ढे खोदे हैं, तो आप बुद्धि का प्रयोग कर स्वयं सम्हलिये और उनके बुरी नियत से खोदे गड्ढों में भी कुछ अच्छाई के बीज बो दीजिये, पौधे बन जाएंगे और सबका भला होगा। उनकी बुरी नियत से की मेहनत को सही ढंग से उपयोग में ले लीजिए।

प्रश्न - 5- *कुछ लोग मुझ पर व्यग्य कसते रहते हैं, क्या करूँ?*

उत्तर - उनके व्यग्य का हृदय से स्वागत कीजिये, स्वयं को विश्वास दिलाइए कि आपको कुछ ऐसा करना है, एक इतनी बड़ी लकीर बननी है कि आप इनकी पहुँच से बहुत ऊपर हो जाएं। व्यग्य अर्थात अभी आप उनकी पहुंच में हैं। इन्हें मुंह से जवाब देने की गलती मत कीजिये, सूर्य की तरह सतकर्मो का प्रकाश फैलाइये। आपके प्रकाश को बोलने दीजिये। मुंह को कष्ट मत दीजिये।

प्रश्न 6 - *अन्य मिशन के लोगो को मेरे ख़िलाफ़ भड़काते हैं उनका कान भरते हैं*

उत्तर -  जो मिशन के श्रेष्ठ कार्यकर्ता हैं वो जानते हैं चुगली करने वाला स्वयं के कार्यो से मति भ्रम में मोहित है,  और स्वयं को बेस्ट साबित करने के लिए मुंह का सहारा ले रहा है, क्योंकि इसके पास इसके कर्मो का प्रकाश नहीं है। इसे ईश्वर के अंतर्यामी होने में संदेह है।

अन्य दूसरे जो कान के कच्चे हैं तो उन्हें भड़कने दीजिये। चिंता केवल तब कीजियेगा जब आपके खिलाफ कोई कान भरने प्रधानमंत्री मोदी या अमेरिकन राष्ट्रपति ट्रम्प के पास जाए।

प्रश्न - 7:- *मिशन में मेरे किये काम का श्रेय कभी मुझे नहीं देते*

उत्तर - यदि आप किसी का पर्सनल कार्य जैसे उसके घर का काम या उसके बच्चो को स्कूल ड्राप कर रहे हैं तो श्रेय लेने की अपेक्षा उस मनुष्य से कीजिये। लेक़िन यदि आप मिशन का कार्य कर रहे हैं वो तो गुरु की सेवा का सौभाग्य है, उसका श्रेय गुरूदेव देंगे जो अंतर्यामी है। अगर आपको गुरु और परमात्मा के अंतर्यामी होने में संदेह नहीं है तो चिंता की कोई बात नहीं है।

प्रश्न 8 - *कई लोग मेरी राह में रोड़ा अटकाते है, बाधा उतपन्न करते हैं, क्या करूं?*

उत्तर - बधाई हो अभी आप जीवित हैं, साथ ही कुछ ऐसा कर रहे हैं जिसे लोग नोटिस कर रहे हैं। अतः वो आपकी तरह कुछ करने में अपनी असमर्थता को स्वीकारते हुए आपकी राह में बाधा उतपन्न कर रहे है। देखिए इस दुनियाँ में लाश को रास्ता दिया जाता है, और मरने के बाद ही तारीफ़ मिलती है। लोगों के मुंह से अच्छा सुनने के लिए मरने में कोई अक्लमंदी नहीं है।

प्रश्न 9:- *लोग मेरा फ़ायदा उठाते हैं, मुझसे मदद लेते हैं। काम निकलने के बाद सीधे मुंह बात भी नहीं करते।*

उत्तर - ख़ुश हो जाइए और भगवान को धन्यवाद दीजिये, कि भगवान ने आपको इस योग्य बनाया है कि आप उसके निमित्त बनकर दूसरों की मदद कर सकें। *जापर कृपा तुम्हारी होई, तापर कृपा करें सब कोई।* यह गायत्री चालीसा में लाइन पढ़ी होगी, यदि आपने किसी की मदद की अर्थात उस पर भगवान की कृपा दृष्टि हुई और आपके माध्यम से उसकी मदद हुई। जब भगवान कर्ता है औऱ आप निमित्त तो वो भगवान के निमित्त का एहसान नहीं मानेगा तो भगवान उससे निपटेगा अगली बार उसे मदद नहीं देगा। अतः अहसान पाने के चक्कर मे अपनी ऊर्जा और विचार खर्च मत कीजिये। स्वयं किसी का किया अहसान मत भूलिए जिससे भगवान की कृपा दृष्टि सदैव आप पर बनी रहे।

प्रश्न 10 - *मुझे स्वयं को बेहतर बनाने के लिए क्या करना चाहिए*

उत्तर - दास भक्ति व सेवक भक्ति कीजिये, बिना पद प्रतिष्ठा सम्मान की चाह में निष्काम गुरु का कार्य, मिशन का कार्य गुरु की सेवा का सौभाग्य समझकर कीजिये। बिना पूजन के भोजन मत किजिये और बिना स्वाध्याय शयन मत कीजिये। स्वयं को भगवान के अनुशासन में ढालिये।

🎊🎊🎊🎊

🙏🏻 क्षमा करना उपरोक्त में से कोई भी प्रश्न या समस्या पर तनाव(टेंशन) लेने का कोई कारण मुझे नहीं दिख रहा है। हां, मेरे विचार में आपके दृष्टिकोण मे अत्यंत थोड़ी समस्या हैं, आपने अब तक आधी ग्लास खाली देखी, अब उपरोक्त पोस्ट पढकर आधी ग्लास भरी देखिए। प्रत्येक घटना के दोनों पहलुओं को समझने की कोशिश शुरु कीजिये। अतः आपकी जिंदगी सुखमय है, आप जीवित है इस योग्य है कि लोग आपसे ईर्ष्या करे । इस उपलब्धि का आनन्द लीजिये🙏🏻

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Thursday 25 July 2019

प्रश्न - *भारतीय सनातन संस्कृति एवं हिन्दू संस्कृति के बीच बड़ा फर्क क्या है ?

प्रश्न - *भारतीय सनातन संस्कृति एवं हिन्दू संस्कृति के बीच बड़ा फर्क क्या है  ? पू.गुरूदेवने हमेशा भारतीय संस्कृति शब्द प्रयोजा है, कभी हिन्दू संस्कृति शब्दका इस्तेमाल नही किया है । भारतीय संस्कृति "वसुधैव..." मे मानती है, जैसे पू.  गुरूदेव द्वारा व्याख्यायित किया गया है लेकिन हिन्दू संस्कृति, जो भीषण पीडावाले भारतीय मध्यकालकी देन है, संकुचित, केवल भारत देश एवं हिन्दू प्रजा तक सीमित व्याख्यायित है, ये एक दिग्भ्रान्ति समान एवं दुनियाको भ्रमित करने वाली फिलासफी है तो उस पर आप विस्तृत जानकारी दे ।*

उत्तर - आत्मीय भैया, जब समस्त विश्व में कोई पढ़ना लिखना भी नहीं जानता था, उस वक़्त आध्यात्मिक वैज्ञानिक रिसर्चर ऋषियों ने तप करके वेदों का ज्ञान प्राप्त किया। उसे लिपिबद्ध किया। उस ज्ञान को पढ़ने व समझने के लिए देवभाषा संस्कृत का प्रयोग हुआ।

वेद ही वैदिक सनातन धर्म की नींव है, जिसे ऋषियों ने तपकरके पाया। धर्म का अर्थ होता है, धारण, अर्थात जिसे धारण किया जा सके, धर्म ,कर्म प्रधान है। जब मानव सभ्यता ने जन्म लिया तो ऋषि संसद ने ईश्वरीय आदेश से अध्यात्म एवं विज्ञान के आधार पर वैदिक सनातन धर्म जो कि मानवीय जीवन और समाज का आध्यात्मिक संविधान था की स्थापना की, इसमें मनुष्य कद कर्तव्य औऱ अधिकारों की विवेचना की गई। मनुष्य की जीवन शैली, समाज की संरचना पर विचार किया गया। मनुष्य के कल्याण हेतु स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था, अध्यात्म इत्यादि विषयों की पूर्ण विवेचना किया गया। जिसका लक्ष्य था प्राणी मात्र का कल्याण। ऐसी विधिव्यस्था बनाई जिसके पालन से प्रकृति में सन्तुलन और मनुष्यों में देवत्व रहे। यह धरती स्वर्ग के समान सुंदर हो और मनुष्य सुखपूर्वक रहे। *वसुधैव कुटुम्बकम - पूरी पृथ्वी एक परिवार का भाव* स्थिर सदा है। क्योंकि यह विश्व को तत्व दृष्टि से देखते हैं। परमार्थ दृष्टि है क्योंकि यह जानते हैं यह संसार प्रतिध्वनि है सुख-प्रेम बांटोगे तो सुख-प्रेम स्वयं तक लौट के आएगा और दुःख-पीड़ा बांटोगे तो दुःख-पीड़ा स्वयं तक लौटकर आयेगी। हम सभी तत्वतः एक दूसरे से जुड़े हैं।


वैदिक सनातन धर्म 90 हज़ार वर्षों से भी अधिक वर्षों से पुराना है।

हिंदू कोई धर्म नहीं है यह प्राचीन भारत में रहने वाले लोगों की जीवनशैली है। इसी तरह  मुस्लिम, ईसाई, जैन या बौद्ध आदि धर्म नहीं है यह सम्प्रदाय या समुदाय मात्र हैं, ये कुछ हजार वर्ष पुराने ही हैं। “सम्प्रदाय” एक परम्परा के मानने वालों का समूह है। इन सभी सम्प्रदाय के स्थापकों ने अपने ज्ञान और प्रभाव से कुछ नियम, विधिव्यस्था और परंपराएं मन मुताबिक बनाई। जिसका नामकरण किया औऱ उन सभी नियम, विधिव्यस्था, परम्पराओं को अपने अपने ग्रन्थों में लिखा। ये मेरा तेरा भाव और अलगाववादी भावना से प्रेरित है। संकुचित व स्वार्थी दृष्टिकोण है क्योंकि ये तत्वदर्शी नहीं है।

अतः मेरे विचार से जब हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी, यहूदी सम्प्रदायों, इनके ग्रन्थों और  संस्कृति से भारतीय वैदिक संस्कृति की तुलना करना उचित ही न होगा। क्योंकि ये सब सम्प्रदाय वैदिक मूल्य व संस्कृति के आगे कहीं ठहरते ही नहीं है।

परमपूज्य गुरूदेव ने अपने सभी ग्रन्थों में वैदिक सनातन भारतीय संस्कृति को ही महत्त्व दिया है। क्योंकि यह मानव मात्र के कल्याण एवं प्रकृति के सन्तुलन व संरक्षण की विधिव्यवस्था है। अतः यहां हमें अपनी जड़ों से जुड़ते हुए वैदिक भारतीय संस्कृति को ही वरीयता देना चाहिए।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *क्या उपासना(गायत्री जप एवं ध्यान), यज्ञ, विविध तप, स्वाध्याय करने से अकाल मृत्यु, बीमारियों से बचाव होगा, कभी कोई जीवन में परेशानी नहीं होगी। ऐसी कोई गारण्टी संभव है?*

प्रश्न - *क्या उपासना(गायत्री जप एवं ध्यान), यज्ञ, विविध तप, स्वाध्याय करने से अकाल मृत्यु, बीमारियों से बचाव होगा, कभी कोई जीवन में परेशानी नहीं होगी। ऐसी कोई गारण्टी संभव है?*

उत्तर - आत्मीय बेटी,

जिस प्रकार कुशल गाड़ी चालक बनने पर इस बात की कोई गारण्टी नहीं दी जा सकती कि रास्ते में गढ्ढे नहीं मिलेंगे, और एक्सीडेंट जीवन मे कभी नहीं होगा,
👇🏻
जिस प्रकार कुशल डॉक्टर बनने पर यह गारण्टी नहीं दी जा सकती कि कभी स्वयं को या परिवार को रोग नहीं होगा और कोई बीमारी से नहीं मरेगा,
👇🏻
ठीक इसी प्रकार ऊपरोक्त उपासना-साधना-आराधना करने वाले व्यक्ति के जीवन मे अकाल मृत्यु, दुर्घटना या बीमारी नहीं होगी इसकी कोई गारंटी नहीं दी जा सकती।
👇🏻
तो प्रश्न यह उठता है कि🤔 *उपासना(गायत्री जप एवं ध्यान), यज्ञ, विविध तप, स्वाध्याय करने से क्या फिंर कोई लाभ है भी या नहीं?*
👇🏻
जिस प्रकार कुशल वाहन चालक अधिकतर एक्सीडेंट से कुशलता पूर्वक बच जाता है, गड्ढों से गाड़ी निकाल लेता है। सफ़र का आनन्द ले सकता है।
👇🏻
जिस प्रकार कुशल डॉक्टर अधिकतर बीमारियों से स्वयं और परिवार को बचा सकता है, घरवालों को स्वस्थ रखने का प्रयास कर सकता है।
👇🏻
ठीक इसी प्रकार उपासना(गायत्री जप एवं ध्यान), यज्ञ, विविध तप, स्वाध्याय करने से अधिकतर समस्याओं का समाधान, अधिकतर दुर्घटनाओं से बचाव, अधिकतर बीमारियों से बचाव सम्भव है। स्वयं एवं परिवार वालो का शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक स्वास्थ्य पाया जा सकता है।  मन मे उत्साह एवं उमंग बना रहेगा, कार्य की कुशलता बढ़ेगी, अधिकतर समय हर क्षेत्र में सफलता मिलेगी। जीवन जीने की कला में अध्यात्म कुशल बनाएगा। जीवन के सफर का आनन्द ले सकेंगे। वस्तुतः अध्यात्म के अभ्यास से तुम जिंदगी का कुशल ड्राइवर बनोगी और आध्यात्मिक उपचार में माहिर बनोगी।
👇🏻
अपवाद सर्वत्र है, इसलिए कोई वाहन चलाना या चिकित्सक बनना नहीं छोड़ता। जो कर सकता है वैसे करता है। वैसे ही आध्यात्मिक बनने के कई प्रत्यक्ष और कई अप्रत्यक्ष लाभ मिलेंगे। अनुभूति होगी। अतः आओ जीवन की कुशल ड्राइवर बनो, अभी तुम्हारे जीवन की गाड़ी का ड्राइवर चंचल मन है जो तुम्हारे जीवन के सफर के आनन्द में बाधा पहुंचा रहा है। आओ आध्यात्मिक उपचार सीखो स्वयं के मन के उपचार के साथ साथ लोगो के मानसिक उपचार में उनकी मदद करो।

पहले कुछ वर्ष जीवन की गाड़ी बताई गई विधि से आध्यात्मिक कुशलता से चलाकर देखो, यदि लाभ न हो तो पुनः आकर हमसे मिलो। और पूरे विश्वास से आकर मुझे चैलेंज भरी सभा मे करो कि मैंने आपकी बताई विधि से तीन वर्ष आध्यात्मिक जीवन जिया लेकिन मुझे जीवन मे आनन्द नहीं मिला? अभी जिस पथ का ज्ञान नहीं उस पर तर्क कुतर्क करने से कोई लाभ नहीं।

👉🏼 स्वर्ग नर्क एक स्वचालित प्रक्रिया है, जिसका रिमोट कंट्रोल मानव मष्तिष्क में उठते विचार, उन पर विश्वास और भावनाओं का प्रवाह ही है। इसी धरती पर कोई स्वर्गीय आनन्द में साधारण आय में एन्जॉय कर रहा है और कोई बहुत आय होने पर भी नारकीय शारीरिक-मानसिक यातना सह रहा है।👈🏻
😇
भावनाएं एवं चेतन जगत देखा नहीं जा सकता, मगर इसके प्रत्यक्ष प्रभाव की अनुभूति सब कर सकते है।

*इसे और बेहतर तरीके से समझने के लिए निम्नलिखित तीन पुस्तक पढ़िये*:-

1- अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
2- गहना कर्मणो गति:(कर्मफ़ल का सिंद्धान्त)
3- स्वर्ग नरक की स्वचालित प्रक्रिया

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *बेटे, भगवान की कृपादृष्टि के लिये उनका मंन्त्र जप व तप साधना की जाती है, फ़िर गुरु दीक्षा की क्या आवश्यकता? गुरु दीक्षा की आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक अनिवार्यता पर प्रकाश डालें..*

प्रश्न - *बेटे, भगवान की कृपादृष्टि के लिये उनका मंन्त्र जप व तप साधना की जाती है, फ़िर गुरु दीक्षा की क्या आवश्यकता? गुरु दीक्षा की आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक अनिवार्यता पर प्रकाश डालें..*

उत्तर - बाबूजी प्रणाम,

अध्यात्म जगत में प्रवेश हेतु एवँ आत्म चेतना विज्ञान के गहन अध्ययन हेतु शिष्य को उन सद्गुरू की आवश्यकता होती है जो तपस्वी व उस मंन्त्र के दृष्टा ज्ञाता व तपस्वी हों। सद्गुरु देहधारी भी हो सकते हैं और सूक्ष्म शरीरधारी भी।

*मन्त्र सिद्धि में चार तथ्य सम्मिलित रूप से काम करते हैं* -

(1) ध्वनि विज्ञान के आधार पर विनिर्मित शब्द शृंखला का चयन और उसका विधिवत् उच्चारण। यह ज्ञान सद्गुरु ही करवाता है।

 (2) साधक की संयम द्वार, निग्रहित प्राण शक्ति और मानसिक एकाग्रता का संयुक्त समावेश, चेतना का परिमार्जन एवं चेतन जगत की समझ, यह ज्ञान सद्गुरु ही करवाता है।

(3) उपासना प्रयोग में प्रयुक्त होने वाले पदार्थ उपकरणों की भौतिक किन्तु सूक्ष्म शक्ति का ज्ञान व विधिवत प्रयोग, यह ज्ञान सद्गुरु ही करवाता है।

(4) भावना प्रवाह, श्रद्धा, विश्वास एवं उच्चस्तरीय लक्ष्य दृष्टिकोण। लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग में आने वाली बाधाओं का पूर्व ज्ञान और उनके निराकरण के उपाय। यह ज्ञान भी सद्गुरु ही करवाता है।

इन चारों का जहाँ जितने अंश में समावेश होगा वहाँ उतने ही अनुपात से मन्त्र शक्ति का प्रतिफल एवं चमत्कार दिखाई पड़ेगा। इन तथ्यों की जहाँ उपेक्षा की जा रही होगी और ऐसे ही अन्धाधुन्ध गाड़ी धकेली जा रही होगी- जल्दी -पल्दी वरदान पाने की धक लग रही होगी वहाँ निराशा एवं असफलता ही हाथ लगेगी। अज्ञानता ही असफलता का कारण है, औऱ ज्ञान ही सफलता का आधार है। ज्ञान का आदि श्रोत सद्गुरु ही है।

वाद्य यंत्र खरीद लेने मात्र से कोई संगीतज्ञ नहीं बन जाता, उसी तरह मंन्त्र के अक्षर ज्ञान को पाकर कोई मन्त्रज्ञ नहीं बन पाता।  वाद्य यंत्र कुशल गुरु के मार्गदर्शन में कठिन निरन्तर अभ्यास से ही सीखा जा सकता है। उसी तरह मंन्त्र एक चेतन वाद्य यंत्र है, इससे प्रभु को रिझाया भी जा सकता है और इससे चर अचर को वश में भी किया जा सकता है। इसकी अनन्त शक्तियों से परिचय  व इसके उपयोग की विधा व साधना मात्र सद्गुरु ही करवा सकता है।

मंन्त्र से आध्यात्मिक शल्यक्रिया व उपचार भी संभव है, इसका ज्ञान भी सद्गुरु कृपा से ही मिलता है।

गुरुदीक्षा में गुरु का ज्ञान एवं मार्गदर्शन तो मिलता ही है, साथ ही गुरुदीक्षा में गुरु के किये तप का एक अंश शिष्य को मिलता है। शिष्य को गुरु एक आध्यात्मिक गर्भ प्रदान करता है जिसमें जब तक उसकी चेतना परिमार्जित नहीं हो जाती तब तक संरक्षण व पोषण देता है। शरीर को जन्म माता जिस प्रकार देती है, वैसे ही चेतन जगत में दूसरा जन्म गुरु देता है।
👇🏻
*एक कहानी से समझें* - संत नामदेव को भगवान विट्ठल दिखते थे व उनके हाथों भोजन करते थे। मित्रवत थे। एक बार संत कुम्हार गोरा ने उन्हें कच्चा मटका कह दिया क्योंकि वो निगुरे(बिना गुरु के थे)। नामदेव परेशान हो गए और शाम को साधना में उन्होंने विट्ठल से कहा कि लोग गुरु धारण  तो लोग प्रभु आपको पाने के लिए करते हैं। आप तो मुझे मिले हुए हो फिंर मुझे गुरु धारण की क्या आवश्यकता? भगवान विट्ठल बोले नामदेव जब तक सद्गुरु से दीक्षित नहीं होंगे तब तक तुम्हारी चेतना परिमार्जित नहीं होगी, और परमलक्ष्य को समझ न सकोगे। मेरे अनन्त स्वरूप का ज्ञान व भान तुम्हारे सद्गुरु ही तुम्हे करवाएंगे। नामदेव ने कहा कौन होंगे मेरे सद्गुरु? भगवान विठ्ठल ने उन्हें *विसोबा खेचर* सदगुरु बनाने को कहा। जब गुरु का आगमन उनके जीवन मे हुआ तो *नामदेव* धन्य हो गए।
👇🏻
9 वर्ष की कठिन साधना संत भूरी बाई कर रही थीं, लेकिन आत्मज्ञान से वंचित थी। 9 वर्ष बाद उन्हें सद्गुरु महाराजा चतुर सिंह मिले। उनकी कृपा और मार्गदर्शन में तीन दिन में ही आत्मज्ञान हो गया।
👇🏻
ऐसे अनेक उदाहरण व गुरु महिमा गुरुगीता में पढ़ सकते हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन



🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 24 July 2019

प्रश्न - *दी, वशीकरण होता है क्या? यदि किसी ने किसी पर वशीकरण किया हो तो उससे मुक्ति पाने का उपाय बताये।*

प्रश्न - *दी, वशीकरण होता है क्या? यदि किसी ने किसी पर वशीकरण किया हो तो उससे मुक्ति पाने का उपाय बताये।*

उत्तर- आत्मीय बहन,

*पहले तरह का वशीकरण तंत्र प्रयोग*- प्राचीन समय में अघोरी एवं तांत्रिक तंत्र प्रयोग से मनुष्य को वश में करके रोबोट जैसे कार्य लेते थे।

लेक़िन वर्तमान समय में न ऐसे सिद्ध तांत्रिक व अघोरी उपलब्ध नहीं हैं, यदि कोई तांत्रिक व अघोरी अपनी विद्या का दुरुपयोग करता है तो उसके कपाल के दो टुकड़े एक महीने के अंदर हो जाते हैं। अतः इसके दुरुपयोग से वो बचते हैं।

👉🏼 *दूसरे तरह का वशीकरण है प्रेम* - सच्चे प्रेम से किसी को भी वश में किया जा सकता है। इंसान तो इंसान साक्षात परमात्मा भी प्रेम के वश में हो जाता है।

👉🏼 *तीसरे तरह का वशीकरण है हिप्नोसिस* - इसमें किसी कुशल चिकित्सक या इस विद्या के ज्ञाता की मदद से किसी मनुष्य के दिमाग़ को वश में किया जाता है।
☝🏻👇🏻
उपरोक्त के अलावा अन्य कोई विधि से वशीकरण का दावा करने वाले झूठ व फ़रेब करते है। उनके दावे खोखले होते हैं कि अमुक खिला दो अमुक दिन तो सामने वाला वश में हो जाएगा, यह सब एक बकवास के अलावा कुछ नहीं है।

*कमज़ोर मानसिकता वाले या अच्छी पुस्तको का स्वाध्याय करके मनोबल न बढ़ाने वाले या नित्य गायत्री मंत्र न जपने वाले लोग इन मूर्खता पूर्ण बातों पर भरोसा कर लेते हैं कि अमुक ने वशीकरण किया है अमुक पर।*

वास्तव में गाँव के ओझा और गुनिया इन लोगों की मूर्खता का फ़ायदा उठाते हैं, झूठ मूठ का तंत्र मंन्त्र दिखा के इन्हें विश्वास दिलाते हैं कि वशीकरण हो गया या वशीकरण उन्होंने तोड़ दिया।

*वास्तव में ओझा और गुनिया ने कुछ परिवर्तन नहीं किया, परिवर्तन का कारण उस व्यक्ति के विश्वास से हुआ। जैसा हम विश्वास(belief) कर लेंगे वैसा सब कुछ कल्पना में, आसपास के साथ साथ शरीर मे भी घटने लगता है।*

🙏🏻 *भगवान के मंन्त्र जप से कृपा प्राप्ति हो या तंत्र प्रयोग का नुकसान सबकुछ का आधार विश्वास ही है।*
Belief System(दृढ़ विश्वास) play key role in your life.🙏🏻

👉🏼 *इसे सिद्ध करने के लिए मनोवैज्ञानिको की टीम ने एक प्रयोग किया।* उन्होंने एक कैदी जिसे मृत्युदंड मिला हुआ था उस पर प्रयोग किया। उसकी आँखों के सामने एक काले कोबरा नाग को लाया और उसे बताया कि इस नाग से तुम्हें कटवा के मारेंगे। हम यह प्रयोग तुम्हारी आँखों पर पट्टी बांध कर करेंगे जिससे हम यह पता लगा सकें कि सांप के काटने के कितने देर बाद एक मनुष्य की मृत्यु होती है। आठ दस मनोवैज्ञानिको की टीम थी। सपेरे और सांप को वापस भेज दिया।

*अब एक झूठ मूठ का नाटक शुरू हुआ। उस कैदी व्यक्ति की आंख पर पट्टी बांध दी। कमरे में नकली प्लास्टिक का सांप मंगवाया गया। उसके मुंह मे दो पिन लगाकर झूठ बोलते हुए कि सांप ने काट लिया सुई चुभोई। अब सब बारी बारी बोलने लगे जहर चढ़ रहा है, हाथ मे चढ़ गया, अब रक्त में घुल गया,  हृदय तक पहुंच गया, शरीर काला पड़ रहा है, इस तरह यह सब सुनते सुनते उस कैदी व्यक्ति जिसकी आंख में पट्टी बंधी थी मर गया। जब पोस्ट मार्टम हुआ तो उसके अंदर काले कोबरे का जहर पाया गया और शरीर नीला था।*

मनोवैज्ञानिक ने बताया -- विचार अपने सदृश्य भावनाओं को जन्म देते हैं -- भावनाएं सदृश्य हार्मोन का स्राव करती हैं -- एक ही विचार कई बार सुनने पर उसकी स्मृति विश्वास में बदल जाती है -- शरीर मे वैसे ही रसायनिक परिवर्तन शुरू हो जाते हैं --- विश्वास के साथ किया विचार  आसपास वैसे ही वातावरण को आकर्षित करने लगता है। उस कैदी ने सांप पर विश्वास किया, भय की भावना ने बुरे हार्मोन का स्राव किया, जहर उसी के शरीर ने उत्तपन्न कर दिया। और वह मर गया।

*अब निर्णय आपको करना है कि बुरे लोगों की संगति से---बुरे विचार सोचकर -- बुरी भावनाएं -- और बुरे हार्मोन का स्राव करके -- शरीर को ज़हर का रसायन उतपन्न करने का आदेश देना है...*

या

*स्वाध्याय सत्संग, गायत्री मंत्र जप व ध्यान द्वारा -- अच्छे विचार सोचकर -- अच्छी भावनाएं -- और अच्छे हार्मोन का स्राव करके -- शरीर को अमृत रसायन उतपन्न करने का आदेश देना है...*

*जैसा निर्णय लोगे व जिस पर विश्वास दृढ़ करोगे , वैसा सबकुछ आपके साथ घटेगा।*

अपनी प्रबल मानसिक शक्तियों से नए अच्छे विश्वास को जन्म देकर सभी प्रकार के वशीकरण के भ्रम से स्वयं को  व परिवार को मुक्त कर सकते हो।

दृढ़पूर्वक विश्वास व सच्चे प्रेम से किये शशक्त विचारों से शरीर मे वह रसायन उतपन्न किया जा सकता है जो जिसे चाहे उसे वश में कर सकता है।

प्रबल मानसिक शक्ति के लिए नित्य कम से कम 10 माला गायत्री का जप, आधे घण्टे उगते सूर्य का ध्याम, नित्य अच्छी पुस्तको का स्वाध्याय जरूरी है।

भ्रम के मायाजाल से बाहर आने में निम्नलिखित पुस्तक 📖 *वशीकरण की सच्ची सिद्धि* आपकी मदद करेगा:-

http://literature.awgp.org/book/Vashikaran_Ki_Siddhi/v2.2

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, हमारे हॉस्टल के मेस में शाकाहारी व मांसाहारी दोनों पकता है। मैं शाकाहारी हूँ और साधना भी करता हूँ। लेक़िन बर्तन तो मिक्स हो जाते होंगे, जिस बर्तन में एक दिन पहले किसी ने मांस खाया उसी बर्तन को माँज के वर्कर रख देते हैं। हम लोग पहचान नहीं पाते और कोई भी प्लेट लेकर भोजन कर लेते हैं।

प्रश्न - *दी, हमारे हॉस्टल के मेस में शाकाहारी व मांसाहारी दोनों पकता है। मैं शाकाहारी हूँ और साधना भी करता हूँ। लेक़िन बर्तन तो मिक्स हो जाते होंगे, जिस बर्तन में एक दिन पहले किसी ने मांस खाया उसी बर्तन को माँज के वर्कर रख देते हैं। हम लोग पहचान नहीं पाते और कोई भी प्लेट लेकर भोजन कर लेते हैं। इससे हमारा धर्म भ्रष्ट तो नहीं होता, हमारी साधना नष्ट तो न होगी?*

उत्तर - बेटे, एक धर्म होता है जो सामान्य परिस्थिति में होता है और दूसरा युगधर्म होता है जो कठिन व विपरीत परिस्थितियों में पालन किया जाता है।

तुम क्योंकि घर से बाहर हो और होस्टल में रह रहे हो, अतः तुम पर समय, परिस्थिति व जगह के कारण युगधर्म लागू होगा। बर्तन अलग करने का नियम यदि सभी शाकाहारी बच्चे मिलकर करवा सकें तो अति उत्तम है जैसे बड़े होटल में ग्रीन प्लेट शाकाहारी व ब्लेक प्लेट मांसाहारी के लिए होती है।

लेकिन यदि प्लेट अलग करवाना संभव नही है, फ़िर ऐसी परिस्थिति में उन बर्तनों पर कुछ जल की बूंदे डालते हुए एक बार गायत्री मंत्र पढ़कर पवित्रीकरण का भाव कर लो।

फिंर थाली में भोजन लेकर बैठ जाओ, और भोजन से पहले तीन बार गायत्री मंत्र पढ़कर मन ही मन भोजन को भगवान को भोग लगाओ। अब तुम्हारा भोजन भगवान का प्रसाद बन गया है, ऐसे भावों को मन मे धारण करते हुए प्रेमपूर्वक भोजन करो। तुम्हारे धर्म की रक्षा होगी एवं तुम्हारी साधना भी नष्ट न होगी।

किन्हीं कारणवश या जॉब के कारण यदि आपको होटल में खाना मजबूरी हो तो उपरोक्त विधि से शाकाहारी भोजन को भगवान को भोग लगाकर उसे पवित्र प्रसाद मान करके ग्रहण कर सकते हैं। जिससे आपकी साधना व धर्म का रक्षण हो सके।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Tuesday 23 July 2019

प्रश्न - *अकाल एक्सीडेंट से मृत्यु, हत्या द्वारा मृत्यु, घात प्रतिघात से होने वाली मृत्यु के प्रारब्ध को क्या वर्तमान जन्म में अच्छे कर्म करके टाला जा सकता है?*

प्रश्न - *अकाल एक्सीडेंट से मृत्यु, हत्या द्वारा मृत्यु, घात प्रतिघात से होने वाली मृत्यु के प्रारब्ध को क्या वर्तमान जन्म में अच्छे कर्म करके टाला जा सकता है?*

उत्तर - ज‌िंदगी और मौत का रहस्य ऐसा है ज‌िसे आज तक कोई सुलझा नहीं पाया है क्योंक‌ि ये दो चीजें ऐसी हैं जो ईश्वर के हाथों में और व्यक्त‌ि के अपने कर्मो पर न‌िर्भर होते हैं। फ‌िर भी जीवन और मृत्यु पर ऋष‌ि मुन‌ियों और ज्योत‌िष‌ियों ने जो शोध क‌िए हैं उनसे कुछ चीजें तो सामने आए ही हैं। यही वजह है क‌ि कुछ लोग अपनी मृत्यु को लेकर भव‌िष्यवाणी करते रहे हैं और यह सच भी हुए हैं जैसे नस्‍त्रेदमस ने अपनी मौत को पहले ही जान ल‌िया था। दरअसल कुछ बातों पर ध्यान द‌िया जाए तो मृत्यु कब और कैसे आएगी इसकी काफी कुछ जानकरी ह‌ास‌िल कर सकते हैं।

लेकिन यहां हम ज्योतिष और परामनोविज्ञान को नहीं समझाने जा रहे हैं। यहां हम आपको कुछ मूलभूत सिद्धांत बताते हैं।

जिस प्रकार फ़ूड प्रोडक्ट बनते ही उसी पैकेट में बनने की तिथि व उस प्रोडक्ट की एक्पायरी(नष्ट) होने की तिथि लिख दी जाती है। इसी तरह जन्म के समय ही मृत्यु का कारण एवं तिथि समय लिख दिया गया होता है। जिस व्यक्ति या कारण से मृत्यु होगी वो भी निर्धारित प्रारब्ध के अनुसार हो जाता है।

उदाहरण -
1- भगवान कृष्ण के कुल की मृत्यु युद्ध से होना।
2- भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु के वक़्त पूर्व जन्म के बाली रूपी का आह्वान एवं उसके तीर से मृत्यु होना।
3- भगवान बुद्ध की मृत्यु जहर दिए जाने से होना।
4- श्रीसीता जी का भूमि समाधि, श्री लक्ष्मण जी का त्याग व उनकी मृत्यु, श्रीराम जी, श्रीभरत, श्रीशत्रुघ्न की जल समाधि।
5- एक संत गाड़ी से प्रवचन देने जा रहे थे, पीछे बैठे थे तभी गाड़ी रोक के ड्राइवर की सीट पर बैठ गए बाकी को उतार दिया। थोड़ी देर में एक ट्रक ने गाड़ी का एक्सीडेंट कर दिया।
6- वृंदावन के संत ने शिष्यों से कहा आज मेरी मृत्यु एक व्यक्ति के हाथ होगी। लेक़िन उसे कुछ कहना मत। मैं पिछले जन्म में कसाई था। अनेकों वध किये थे, मुझे उस पीड़ा से गुजरना होगा। बोले महाराज आप ने तो पिछले 30 वर्ष से घोर तप किया है। संत बोले बेटे प्रारब्ध मेरे संत बनने से पहले जन्म ले चुका था। संत बनने से मेरे जीवन का कल्याण हुआ और जो कष्ट कई जन्म भुगतना पड़ता वो एक जन्म में ही चुक जाएगा। संचित कर्म तो मैंने क्लियर कर लिए, अगले जन्मों में जो वध करने वाली आत्माएं थी उनसे अकाउंट क्लियर हो गया, लेकिन जो प्रारब्धवश मेरे संत बनने से पहले जन्म ले चुका है, वो मेरी मृत्यु का कारण जाने अनजाने में बनेगा। अगले दिन एक किसान एक चोर को कुल्हाड़ी फेंक के मारता है वो गलती से संत को लगती है और उनकी मृत्यु हो जाती है।
7- मृत्यु केवल शरीर बदलने का माध्यम है, हम मोहग्रस्त अज्ञानी मनुष्य शरीर को सबकुछ मानते हैं इसलिए मृत्यु को बहुत बड़ी चीज़ समझते हैं, भयग्रस्त रहते हैं।

आत्मा की यात्रा जन्म जन्मांतर के लिए चलती है। सराय रूपी शरीर तो वो बदलती रहती है।

एक बार शिव जी से मिलने कैलाश मानसरोवर श्री भगवान विष्णु गरुण सहित गए। तभी वहां यमराज भी आये, एक चिड़िया को उन्होंने प्रश्न भरी दृष्टि से देखा। गरुण के पूंछने पर बताया बिल्ली के द्वारा यह चिड़िया के मरने का क्षण आ गया है। वो आगे बोल ही रहे थे कि गरुण ने पूरी बात सुने बिना चिड़िया को बचाने हेतु उठाया और गरुण लोक पहुंचा दिया। और वापस आकर बैठ गए। यमराज लौटे तो चिड़िया को वहां न देख, आंखे बंद किया। फिंर जोर से हँसे। तब गरुण ने पूँछा आप अब क्यों हंसे। बोले गरुण तुमने मेरी पूरी बात सुने बिना उस चिड़िया को यहां से ले गए। मैं इसलिए हँसा कि जब मैंने चिड़िया को यहां देखा तो सोचा कि यह तो यहां बैठी है, इसकी मृत्यु का समय आ गया है। बिल्ली तो गरुण लोक में मारेगी। यह वहां तक पहुंचेगी कैसे? देखो गरुण तुम इसका माध्यम बने। गरुण लोक में उस चिड़िया की मृत्यु दूसरे गरुण द्वारा पकड़ी बिल्ली ने कर दिया है।

यमराज ने कहा, गरुण जन्म के साथ ही मृत्यु निश्चित हो जाती है।

मृत्यु से भय नहीं करना चाहिए, उसे जीवन की एक अनिवार्य घटना के रूप में बोध पूर्वक स्वीकारना चाहिए।

मृत्यु का स्वरूप बीमारी, दुर्घटना, हत्या, जल से डूबने इत्यादि जो भी माध्यम होगा तो होगा। अभी जो जीवन है उसे बेहतरीन जियें।

सभी पूर्वज मृत्यु को प्राप्त हुए, हम भी जाएंगे। अतः स्वयं के आत्मउत्कर्ष के लिए जियें, व्यवस्थित जियें।

ज्यादा जानकारी के लिए निम्नलिखित पुस्तकें पढ़िये

1- प्रज्ञा पुराण
2- मरने के बाद क्या होता है
3- गरुण पुराण

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *कल की पोस्ट में आपने शराब छुड़ाने की होमियोपैथी की दवा का जिक्र किया था, उसका नाम व डोज बताने का कष्ट करें।*

प्रश्न - *कल की पोस्ट में आपने शराब छुड़ाने की होमियोपैथी की दवा का जिक्र किया था, उसका नाम व डोज बताने का कष्ट करें।*

उत्तर- आत्मीय बहन,

 होमियोपैथी दवा -  " *नक्स वोमिका 200*" - दवा उन रोगियों को आराम देती है, जो क्रोधी, ईर्ष्यालु, कलहप्रिय, गाली-गलौज, दुबला-पतला, शराबी तथा आलसी होते हैं। ऐसे रोगी मानसिक अशांति का शिकार होते हैं। ऐसे रोगी का पेट व मन दोनों ही गड़बड़ रहता है। कुछ को बवासीर तथा कब्ज से ग्रस्त होते है।

Nux vomica Q
5 बून्द आधे कप पानी मे मिलाकर दिन में 1 बार रोगी को देना होता है।

ध्यान रहे, यह दवा बहुत ही कड़वी होती है।

इस दवा को अपने पति या बेटे को पिलाने के लिए उन्हें प्रेम और सहानुभूति से तैयार करें। भगवान से प्रार्थना करें।

*किसी भी शराबी से शराब छुड़ाने में सफ़ल होने के तीन ही नियम-*

*खुद से वादा*
*मेहनत ज़्यादा*
*और*
*मज़बूत इरादा.!!*

सङ्कल्प का कोई विकल्प नहीं होता, जहां चाह होती है वहां राह मिल ही जाती है।

स्त्री का संकल्पबल तो यमराज से पति व पुत्र की जान वापस ला सकती है, फ़िर भला शराब की क्या औकात जो स्त्री के सङ्कल्प बल के आगे टिक सके।

लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिस करने वालों की कभी हार नहीं होती।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Monday 22 July 2019

प्रश्न - *बहना, यह बताओ कि हम ऑफिस में अपने जूनियर्स से कैसा व्यवहार(behave) करें? क्या उनको उनकी गलतियों पर डाँटना गलत है? प्लीज़ मार्गदर्शन करें..*

प्रश्न - *बहना, यह बताओ कि हम ऑफिस में अपने जूनियर्स से कैसा व्यवहार(behave) करें? क्या उनको उनकी गलतियों पर डाँटना गलत है? प्लीज़ मार्गदर्शन करें..*

उत्तर - आत्मीय भाई, नेतृत्व एक नैसर्गिक और महत्त्वपूर्ण दैवीय गुण है, जिससे लीडर अपने जूनियर को सही दिशा धारा देकर कार्य करवाता है। इसे निरन्तर अभ्यास से बढ़ाया जा सकता है।

*टीम का नेतृत्व करते वक्त आपका का व्यवहार समय, स्थान एवं परिस्थिति के अनुसार होना चाहिए। कोई एक नियम सब जगह लागू नहीं होगा।*

*बुद्धि क्रोध में ठीक से कार्य नहीं करती, वो समस्या के समाधान की जगह समस्या को और बड़ी समस्या बना देती है। अतः नेतृत्व करते वक़्त दिमाग़ को शांत और एक्टिव होना चाहिए। जप,ध्यान व प्राणायाम से स्वयं पर नियंत्रण रखने में सहायता मिलती है।*

उद्योग/कम्पनी में नेता/सीनियर लीडर की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वह अपने व्यवहार में कुछ मूलभूत नियमों को भी शामिल करे। इससे कर्मचारी और नेता/मैनेजर के बीच सन्तुलन बना रहता है। कुछ नियम इस प्रकार हैं-

👉🏼 1- *समस्याओं को धैर्यपूर्वक सुनना*- कर्मचारियों की अपनी समस्याएं होती हैं जिन्हें मैनेजर के सम्मुख रखते हैं। ऐसे में यदि मैनेजर उत्तेजित हो जाता है तो कर्मचारी अपनी बात को पूरा नहीं बता पाता है। इससे कर्मचारी हतोत्साहित हो जाता है। इसलिए जूनियर कर्मचारी को बात करते समय बीच में भी नहीं टोकना चाहिए या उसे रोकना नहीं चाहिए। इससे कर्मचारी के मन में उपेक्षा का भाव पैदा होता है। इसके विपरीत कर्मचारी की बातों को शांतिपूर्वक एवं धैर्यता से सुनना चाहिए। इससे जूनियर कर्मचारी का विश्वास अपने मैनेजर के प्रति बना रहता है। वे नेता की अवहेलना भी नहीं करते हैं।

👉🏼 2- *सोच समझकर निर्णय लेना* - मैनेजर को चाहिए कि वह कोई भी निर्णय लेने में जल्दबाजी न करे। सोच-समझकर लिया हुआ निर्णय बाधक नहीं बनता है। इससे कई समस्याओं को उचित तरीके से सुलझाया जा सकता है।

👉🏼 3- *जूनियर कर्मचारियों को हतोत्साहित न करना* - यदि मैनेजर कर्मचारियों को हतोत्साहित करेगा तो निश्चित ही उसका प्रभाव उद्योग/प्रोजेक्ट में पड़ेगा।

👉🏼 4- *Award & Recognitions, Appreciation* - *जूनियर कर्मचारियों को समय-समय पर उत्साहित करना चाहिए* -  ताकि जूनियर कर्मचारी अपने कार्य के प्रति जागरूक रह सकें। यदि कर्मचारी अपनी समस्या लेकर आता है तो भी उसे डांट-फटकार नहीं देनी चाहिए। वरन् उनका मनोबल  बढ़ाना चाहिए। कभी कभी अवार्ड देकर उन्हें सम्मानित भी करना चाहिए।

👉🏼 5 - *नेतृत्वकर्ता मैनेजर को कम से कम संवेदनशील(emotional) व कम संवेगशील(Impulsive) होना चाहिए* - उद्योग/प्रोजेक्ट में प्रायः मैनेजर के सामने सम तथा विषम परिस्थिति आती रहती है। यदि मैनेजर इन परिस्थितियों में ही अपने को समाहित/दिल से लगा कर ले तो वह उद्योग/प्रोजेक्ट के लिए अच्छा नहीं होगा। मैनेजर की शिकायत अधिकतर संवेगपूर्ण होती है। *ऐसे में यदि मैनेजर स्वयं पर नियंत्रण न रखकर कर्मचारियों के साथ संवेगपूर्ण ढंग से व्यवहार करे तो समस्या और भी उलझ सकती है। *इसके विपरीत यदि कर्मचारी पर आवश्यकता से अधिक संवेदना(emotional behave) करता है तो भी कर्मचारी इसका लाभ उठा सकते हैं। इसलिए नेता को विवेकपूर्ण व्यवहार करना चाहिए।*

👉🏼 6- *मैनेजर को स्वयं वाद-विवाद से बचा रहना चाहिए* - प्रायः देखा जाता है कि वाद-विवाद वैमनस्यता पैदा करता है। इसलिए मैनेजर को जूनियर कर्मचारियों के साथ वाद-विवाद से बचना चाहिए। अधिक वाद-विवाद से जूनियर कर्मचारी भी अपने को असुरक्षित महसूस करने लगते हैं। जूनियर कर्मचारियों को आज्ञाएं दी जा सकती हैं। उन्हें थोपने का प्रयास नहीं करना चाहिए, इससे कर्मचारी एक अतिरिक्त बोझ समझने लगता है।

👉🏼 7 - *जूनियर कर्मचारियों की प्रशंसा करना*- जूनियर कर्मचारी उद्योग/प्रोजेक्ट में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। मैनेजर को चाहिए कि वह समय आने पर उसकी प्रशंसा करे। प्रशंसा सबके सामने हो। इससे कर्मचारी प्रसन्नता का अनुभव करता है। उसका मनोबल इससे बढ़ता है। वह अपने कार्य को मेहनत तथा लगन से करने लगता है। इसके विपरीत यदि कर्मचारी की बुराइयों को सबके सामने कहा जाय तो कर्मचारी की स्थिति तनावपूर्ण होगी। उसका प्रभाव उद्योग पर पड़ेगा। इसलिए नेता कर्मचारी की बुराइयों को एकान्त में कहे इससे कर्मचारी का अहम सुरक्षित रहता है। *प्रशंशा सबके सामने करनी चाहिए, अनुसंशा एवं डाँटना one to one meeting करके करना चाहिए।*

👉🏼 8- *कुशल मैनेजर को सब जूनियर की योग्यता-क्षमता को समझते हुए काम लेना आना चाहिए* - प्रत्येक व्यक्ति में कुछ विशेष गुण होते हैं। कुछ विशेष स्किलसेट रखते हैं। उन्हें पहचानो और उसका बेहतरीन प्रयोग करो।

👉🏼 9- *अयोग्य जूनियर कर्मचारियों को जॉब से निकाल दें, जिनका attitude ख़राब हो।* - जो आपके निर्देशन में बार बार समझाने पर भी अपेक्षित कार्य नहीं कर रहा। उससे झगड़ने के बजाय उसे स्ट्रांग फीडबैक देकर प्रोजेक्ट से निकाल दें। अपर मैनेजमेंट के सामने तथ्य तर्क प्रमाण प्रस्तुत करें कि क्यों इसे निकाला जा रहा है।

👉🏼 10 - *जूनियर कर्मचारी के कम आउटपुट की जड़ समझें, समस्या उसे नहीं आता है यह है या वो करना नहीं चाहता है यह है।* - यदि जूनियर को कार्य नहीं आता तो उसे सिखाया जा सकता है। ट्रेनिंग देकर उसका आउटपुट निखारा जा सकता है। लेक़िन यदि उसे कार्य आता है और वो करना नहीं चाहता, सीखना भी नहीं चाहता। तो ऐसे attitude problem में उसे स्ट्रांग फीडबैक दीजिये। एक से दो सुधरने का मौका दीजिये। तीसरी बार उसे स्ट्रांग फीडबैक देकर निकाल दें, वो चाहे कितना भी योग्य हो अगर काम ही नहीं करेगा तो उसकी योग्यता का कम्पनी के लिए कोई फ़ायदा नहीं है।

👉🏼 11 - *मेहनती जूनियर कर्मचारियों को प्रोजेक्ट की सफ़लता का श्रेय दें। कभी असफलता मिले तो बहादुरी से उसकी जिम्मेदारी स्वयं पर ले लें।* - कुशल नेतृत्व उसे कहते हैं कि जूनियर आपके व्यक्तित्व के मुरीद बन जाएं। वो आप पर भरोसा करें। एक कुशल मैनेजर कम योग्य से भी ज्यादा काम करवा के प्रोजेक्ट की क़्वालिटी डिलीवरी सुनिश्चित कर सकता है। एक अयोग्य मैनेजर अधिक योग्य जूनियर कर्मचारियों से भी अपेक्षित कार्य नहीं करवा पाता।

👉🏼 12 - *स्वयं के अंतर नेतृत्व के गुण विकसित कीजिये।* - स्वयं के अंदर कुशल नेतृत्व के गुण विकसित करने के लिए सफल लोगों की जीवनियां पढ़िये,  और उनसे समझिए सफ़लता का राज़। असफ़ल लोगो के बारे में भी पढ़िये और जानिए उनकी असफलता का कारण। अपनी स्वयं की do & don't की लिस्ट बनाइये। स्वयं की भावनाओं को काबू कीजिये, एक कुशल नेतृत्व का परिचय दीजिये।

👉🏼🙏🏻 *निम्नलिखित साहित्य पढ़िये जिससे कुशल नेतृत्व स्वयं में विकसित करने में सहायता मिले।* 🙏🏻

📖 प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
📖 व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
📖 भाव सम्वेदना की गंगोत्री
📖 मित्रभाव बढ़ाने की कला
📖 मानसिक संतुलन
📖 निराशा को पास न फटकने दें
📖 हारिये न हिम्मत
📖 सफ़लता आत्मविश्वासी को मिलती है
📖 सफ़लता के सात सूत्र साधन

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, क्या तुलसी के पौधे की सूखी लकड़ियों को समिधा की तरह या कूटकर हवनसामग्री में मिलाकर हवन कर सकते हैं? एक पण्डित जी ने तुलसी की सूखी लकड़ी को हवन में जलाने से मना किया है। बोले कि पाप लगता है।*

प्रश्न - *दी, क्या तुलसी के पौधे की सूखी लकड़ियों को समिधा की तरह या कूटकर हवनसामग्री में मिलाकर हवन कर सकते हैं? एक पण्डित जी ने तुलसी की सूखी लकड़ी को हवन में जलाने से मना किया है। बोले कि पाप लगता है।*

उत्तर - आत्मीय दी, पण्डित जी यज्ञ विज्ञान से और तुलसी के औषधीय लाभ से अपरिचित मालूम पड़ते हैं।

देश विदेश के वैज्ञानिक प्राचीन ऋषियों द्वारा प्रतिपादित तुलसी के औषधीय लाभ को विभिन्न लैब प्रयोगों द्वारा जांच कर सिद्ध कर चुके हैं कि रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली और कफ, कोल्ड, बुखार, खाँसी, चर्म रोग इत्यादि का सर्वोत्तम इलाज़ तुलसी है।

पुस्तक यज्ञ के ज्ञान विज्ञान में तुलसी के सुखी लकड़ियों को अन्य विभिन्न औषधियों में मिलाकर विभिन्न रोगोपचार में उपयोग करने की सलाह दी गयी है।

तुलसी, नीम एवं गिलोय इन तीनों को जलाने से एंटी बैक्टीरियल/रोगाणु नाशक धुंआ निकलता है, जो मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है।

जिस तुलसी के पेड़ में रोज जल चढ़ाते हों या अन्य तुलसी के पौधे की , सबके पत्ते व लकड़ी रविवार के दिन नहीं तोड़ने चाहिए। अन्य दिनों में उस पौधे की भी मञ्जरी, पत्ते व सूखी लकड़ियां पहले उन्हें प्रणाम कर मन ही मन उनसे आदेश लेकर तोड़ी जा सकती हैं। आवश्यक रोगोपचार हेतु यग्योपैथी में उपयोग हेतु समिधा या सामग्री में मिक्स करके उपयोग ली जा सकती है। कोई पाप नहीं लगता, तुलसी माता स्वयं बच्चो के स्वास्थ्य के लिए अपने पत्ते, मञ्जरी व लकड़ियों को उपयोग करने की अनुमति देती हैं।

संदर्भ के लिए निम्नलिखित आर्टिकल *अखण्डज्योति* के और *यज्ञ का ज्ञान विज्ञान* पुस्तक के पढें।
 http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1946/July/v2.11

http://literature.awgp.org/book/yagya_ka_gyan_vigyan/v1.64

🙏🏻श्वेता, DIYA

Sunday 21 July 2019

प्रश्न - *मेरी मित्र, अपने पति के अत्यधिक शराब सेवन, उल्टियों, गृह कलह एवं मारपीट से त्रस्त है। उन दोनों की तलाक़ होने की नौबत आ चुकी है। मार्गदर्शन करें।*

प्रश्न - *मेरी मित्र, अपने पति के अत्यधिक शराब सेवन, उल्टियों, गृह कलह एवं मारपीट से त्रस्त है। उन दोनों की तलाक़ होने की नौबत आ चुकी है। मार्गदर्शन करें।*

उत्तर - बहन, अपनी मित्र को बोलिये अपने पति का घर छोड़ने से पहले उनके साथ अपनी जन्म जन्मांतर की शत्रुता का अंत करके जायें, अपने प्रारब्ध का समाधान करके जाएं। अपने जीवन के कुपित चन्द्र को शांत करके जाएं। अन्यथा बचा हुआ प्रारब्ध उन्हें दूसरी शादी में भोगना पड़ेगा या बच्चों द्वारा उन्हें कष्ट भविष्य में मिलेगा।

चन्द्रमा को *रसाधिप* कहा गया है, उससे ही पृथ्वी पर रस और वनस्पतियों की उतपत्ति होती है। चन्द्रमा से ही जीवन में *प्रेम* की उतपत्ति होती है। *जिससे चन्द्रमा कुपित होगा उसे इस संसार में कहीं भी सुख, चैन, आनन्द और प्रेम नहीं मिलेगा।*

*उपाय* - चांदी के आभूषण कम से कम दो से तीन महीने धारण करें, जिनमें पैर में बिछिया, चांदी की पायल, कान में चांदी का कोई आभूषण, गले में कोई चांदी की चैन व हाथ में चांदी की अँगूठी में मोती धारण करें। चन्द्रमा को चांदी की कटोरी या चम्मच से कच्चा दूध का अर्घ्य दें। पूर्णिमा व सोमवार या गुरुवार का व्रत रखें।

नित्य 10 माला गायत्री मंत्र की 40 दिन तक, एक माला चन्द्र गायत्री मंन्त्र में गायत्री मंत्र का सम्पुट लगाकर, एक माला शिव के भाग्योदय मंन्त्र का जप करें। नित्य दैनिक यज्ञ में या बलिवैश्व यज्ञ में चन्द्र गायत्री की आहुति दें। प्रत्येक शुक्रवार को खीर बनाये और उसकी आहुति दें। प्रत्येक शनिवार की शाम को सरसों के तेल के एक दिये में चार बाती वाला दिया जलाएँ। सूर्य भगवान को जल चढ़ाकर बचे जल से गूंथे आँटे की रोटियाँ समस्त परिवार को प्रेमपूर्वक खिलाएं।

गायत्री माता व परम पूज्य गुरुदेव के समक्ष सङ्कल्प लेते हुए बोलें, माता आप मेरी विपत्ति जानते हो। मेरे जीवन में सुख शांति व प्रेम वर्षा हो, ऐसी कृपा कीजिये। मुझे मेरे जीवन हेतु सही निर्णय लेने में मदद कीजिये। मेरे पति से मेरी जन्म जन्मांतर की शत्रुता समाप्त कीजिये।

तीन बार संभव हो तो अमावस्या को अपने घर में पूर्वजों का तर्पण करवा दें। पूर्वज-पितर तृप्त हुए तो वो आपको आशीर्वाद देंगे।

मानसिक उत्तेजना, क्रोध, अंतरदाह,  शरीर व मन के विषों के निष्काशन के लिए, पारिवारिक क्लेश, द्वेष, वैमनस्य आदि को शांत कर प्रेम और सुख की वर्षा के लिए पूर्णाहुति के दिन हज़ार आहुति यदि सम्भव हो तो कर लें अन्यथा 108 आहुति ही चन्द्र गायत्री मंत्र की दे लें। चन्द्र की आहुति साबुत अक्षत में, गुड़ एवं देशी गाय का घी मिलाकर दें।
👇🏻👇🏻👇🏻

याद रखें, पति एक तुच्छ पतित मानव है जो स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख पा रहा है। जो शराब द्वारा पिछले 20 वर्षों से स्वयं के शरीर को नष्ट कर रहा है, वह अपना भला बुरा सोचने की क्षमता खो चुका है। कमाई के अहंकार में वह आपको तुच्छ समझ रहा है और शराब को श्रेष्ठ समझ रहा है। अतः उस पर दया दृष्टि रखिये। उसके साथ रहना है या उसे छोड़ना है जो भी निर्णय लें सोच समझकर लें। बिना किसी शत्रुता के भाव के लें। पाप से घृणा कीजिये पापी से नहीं।

जब उपरोक्त साधना पूरी हो जाये, तब सुबह सुबह गायत्री माता व परमपूज्य गुरूदेव के समक्ष समस्या दोहराइये और सर पर पांच बार हाथ फेरिये। आपको स्वयं विचार आएगा कि आगे क्या कदम उठाएं।

यदि साथ कुछ दिन और रहने का विचार आता है तो पति को होमियोपैथी की सल्फ़र युक्त शराब छोड़ने वाली दवाई भोजन में मिलाकर दें। हो सकता है वो सुधर जाएं।

अन्यथा यदि विचार आता है कि घर और पति को छोड़ देना चाहिए, तो अच्छे वकील से सलाह लेकर सांसारिक तलाक की कार्यवाही पूरी करें। बिना किसी क्रोध द्वेष एवं शत्रुता के सहज भाव से उन्हें तलाक देकर अपने जीवन मे आगे बढ़ जाएं।

जीवन आपका है निर्णय आपका ही होना चाहिए। लेकिन जो भी निर्णय हो वो शांत मन और विवेक दृष्टि से लिये निर्णय होना चाहिए। जल्दबाजी व क्रोध में लिए निर्णय सर्वनाश का कारण बनते हैं।
👇🏻👇🏻
गयात्री मंन्त्र की 10 माला - *ॐ भूर्भुवः स्व: तत् स्वितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात*

चन्द्र गायत्री की 1 माला - *ॐ भूर्भुवः स्व: क्षीर पुत्राय विद्महे, अमृत तत्वाय धीमहि, तन्न: चन्द्र: प्रचोदयात*

भगवान शिव के भाग्योदय मंन्त्र की 1 माला - *ॐ जूं स: माम् भाग्योदयं कुरु कुरु स: जूं ॐ*

अपने बच्चों से भी गायत्री मंत्र, चन्द्र गायत्री मंत्र व शिव भाग्योदय मंन्त्र जपने को बोलिये। 40 दिन तक निम्नलिखित वीडियो के अनुसार 15 मिनट का *चन्द्र गायत्री ध्यान कीजिये* ।

https://youtu.be/umAfVbaGWhw

शत्रुता मिटने पर, प्रारब्ध कटने पर जीवन मे जो होगा अच्छा होगा। गुरु कृपा से जो भी निर्णय लेगी वो निर्णय सही होगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *संसार में और गृहस्थ जीवन में रहकर विदेह योगी जनक कैसे बनें?

प्रश्न - *संसार में और गृहस्थ जीवन में रहकर विदेह योगी जनक कैसे बनें?ऐसा कैसे हो कि रिश्तेदार लोगों के कड़वे वचन सुनकर भी हम पर असर न हो? ऑफिस की कड़वाहट को हम इग्नोर कर सकें, मन आनन्द से भरा रहे।*

उत्तर - आत्मीय बहन,

जब तक स्वयं को शरीर से जुड़ी पहचान मानोगे दुःखी व संतप्त रहोगे। जब स्वयं की आत्मा के अस्तित्व व पहचान से जुड़ोगे तब आनन्द में रहोगे। कीचड़ में कमल की तरह खिलोगे। जन्म से पहलर भी तुम थी, जब गर्भ में थी तब भी तुम थी, जब तक नामकरण नहीं हुआ तब भी तुम्हारा अस्तित्व था। फ़िर नाम से जुड़ी पहचान से झूठी पहचान से लगाव क्यों?
👇🏻
*कहानी* - अष्टावक्र जी जब जनक जी के विद्वानों से भरी समाज में पहुंचे तो लोग उनका मज़ाक उड़ाकर कर हंसने लगे।

प्रतिउत्तर में अष्टावक्र जी हंसते हुए बोले लगता है क़ि मैं ग़लत सभा में आ गया, यह तो चर्मकार(चमार जो मृत जीव के चमड़े का व्यवसाय करते हैं) की सभा है। जो ज्ञान के आकाश को न देखकर बाह्य चर्म पर दृष्टि रखते हैं। बाह्य रूप को मैं समझ रहे हैं।🤣🤣🤣

जनक जी ने माफ़ी मांगी, और सम्मान से बिठाया। और सभी के समक्ष योगीराज जनक ने आत्मज्ञान प्राप्त करने की ईच्छा प्रकट की। 🙏🏻

अष्टावक्र ने कहा आत्मज्ञान प्राप्ति के लिए तुम्हे मुझे गुरु रूप में स्वीकार करना पड़ेगा।  लेकिन तुम मुझे गुरु दीक्षा में क्या दोगे?🤔

जनक ने कहा- मेरा साम्राज्य, धन सम्पदा और यह शरीर जो चाहे सो ले लेवें।

अष्टावक्र ने कहा - जो तेरा नहीं है और अस्थायी है दूसरों का दिया हुआ है, साम्राज्य प्रजा का है और शरीर माता-पिता का दिया हुआ। देना चाहता है कुछ मुझे तो अपना मन दे दे। पूर्ण रूप से मुझमें ध्यानस्थ हो आत्मज्ञान सुनो।

फ़िर अष्टावक्र जी ने कहा, सत्य की ख़ोज के दो उपाय हैं।
👇🏻
*उदाहरण* - कई रंग की बॉल में से यदि पीले रंग की बॉल छांटना है। तो पहला तरीका सभी प्रकार की बालों में से पीले रंग की बाल छाँट लो। या सभी अन्य रंग की बालों को हटाते जाओ जो बचेगा वही पीले रंग की बॉल होगी।

इसी तरह या तो असत्य में सत्य ढूंढ लो, या असत्य को हटाते चलो और जो बचेगा वो सत्य होगा।

आत्मा रुपी बूँद परमात्मा रुपी समुद्र का ही हिस्सा है। इन दोनों के मिलन में यह शरीर, धन-साम्राज्य और गृहस्थ की जिम्मेदारी बाधक नहीं हैं। आत्मा से परमात्मा के मिलन में चित्त-अन्तःकरण-मन की अशुद्धि और अज्ञानता बाधक है। जो हम नहीं हो हम सोचते हो हम वही है। हमने शरीर, शरीर के नाम को, शरीर की पद प्रतिष्ठा को अपनी पहचान मान रखा है।

सास या जिठानी या देवरानी की कड़वी बातें इसलिए दुःख दे रही हैं कि तुम स्वयं को उनकी बहू या जिठानी देवरानी या किसी की पत्नी की पहचान से जोड़े हुए हो। मृत्यु उन सबकी आएगी, साथ ही तुम्हारी भी आएगी। कुछ क्षण के लिए संसार के रंगमंच पर अभिनय चल रहा है। जो अस्थायी और नश्वर है। फिंर इन सबकी बातों की परवाह क्यों? इन्हें इग्नोर क्यों नहीं कर सकते? इन्हें समय परिस्थिति अनुसार केवल हैंडल करना सीखना है।
👇🏻
कहानी- *एक बार संत तुकाराम से शिष्य ने पूँछा, कि जीवन कैसे जियें। वो बोले तुमने पूंछने में बहोत देर कर दी। 7 दिन में तो तुम मर जाओगे जाओ इन सात दिनों को बेहतर जियो, मृत्यु जानकर वह अपने उत्तरदायित्व को पूरा किया। अहंकार तिरोहित हो गया। सबसे प्रेम व्यवहार किया। वह शिष्य अंतिम सातवें दिन प्रणाम करने व विदा लेने तुकाराम के पास आया। संत मुस्कुराए और बोले, कैसे जिया सात दिन? तुकाराम ने कहा बेटे मृत्यु कभी भी किसी की भी आ सकती है। कोई अमर नहीं है यहां। जब मृत्यु को याद रखोगे तो शरीर के मोह में नहीं बंधोगे। बस्तुतः यही जीवन जीने की कला है। यह प्रैक्टिकल में स्वरूप में सिखाने के लिए तुम्हें यह 7 दिन की मृत्यु का झूठ बोला।*

मरने के बाद सुई तक नहीं ले जा सकते? फ़िर किस सम्पत्ति के लिए इनसे उलझें? स्वयं के निर्माण के लिए जुटे, जो कर सकते हैं अपने व परिवार के लिए कर लें। जो न हो सका इग्नोर करें। हमारी थाली की रोटी पर ध्यान केंद्रित करके खाएं, दूसरे की थाली देखने का क्या लाभ?
👇🏻
*उदाहरण* - मेरी शरीरगत पहचान - मेरा नाम श्वेता चक्रवर्ती, किसी की बेटी किसी की पत्नी और किसी की माँ, किसी कम्पनी की एम्प्लाई और पद सब कुछ शरीरगत पहचान है। अध्यात्म में शरीर की पहचान का कोई अस्तित्व नहीं, शरीर जिस एनर्जी से जीवित है उस आत्मतत्व की पहचान ही सबकुछ है। मेरी मृत्यु के बाद लोग कहेंगे, श्वेता चक्रवर्ती की मृत्यु हो गयी। शरीर जला देंगे। लेक़िन जिस आत्मतत्व का अस्तित्व सदा सर्वदा के लिए है, उसका नामकरण *श्वेता चक्रवर्ती* एक झूठ नहीं तो और क्या है? शरीर से जुड़ी पहचान और रिश्ते तो चिता में जल जाएंगे? फिर न मैं किसी की बेटी रहूंगी न किसी की माता और न किसी की सम्बन्धी और न ही कोई एम्प्लॉयी। मुझे किसने क्या कहा क्या फर्क पड़ता है?

जिस दिन हम चित्त की अशुद्धि त्याग के, मन निर्मल करके, शरीरगत मोहबन्धनो के अज्ञानता को त्याग के और स्वयं को आत्म स्वरूप अनुभव कर लेते हैं। उस क्षण पर्दा हट जाता है। आत्मा का परमात्मा से मिलन हो जाता है। समस्त जग आत्मभूतेषु अनुभव होता है। जो यह अनुभूति करने लगता है कि मैं परमात्म तत्व समुद्र की एक बूँद मैं हूँ, वही समुद्र की बूँद मुझे जड़ चेतन सर्वत्र प्रतीत होती है, दिखती है। उसे फ़िर न कोई अपना दिखता है और न ही कोई पराया। सब में परमतत्व देखते और अनुभव करते हुए हम योगी की तरह जी सकते हैं, शरीर के होते हुए भी विदेह जनक की तरह अनुभव कर सकते है। परमानन्द में रम सकते हैं।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन

प्रश्न - *क्या यग्योपैथी-यज्ञ चिकित्सा से पंचतत्वों में सन्तुलन संभव है? यदि हाँ तो कैसे? इससे क्या हमारा स्वास्थ्य भी प्रभावित होगा?*

प्रश्न - *क्या यग्योपैथी-यज्ञ चिकित्सा से पंचतत्वों में सन्तुलन संभव है? यदि हाँ तो कैसे? इससे क्या हमारा स्वास्थ्य भी प्रभावित होगा?*

उत्तर - आत्मीय दीदी जी, बिल्कुल वायु, जल, भूमि, आकाश व अग्नि ((पंच तत्व))को शुद्ध करने व सन्तुलित करने का एक ही उपाय यज्ञ है। ये पांचों तत्व दूषित नहीं होंगे तो वर्तमान की पर्यावरण प्रदूषण की समस्या समाप्त हो जाएगी। पर्यावरण में प्रदूषण नहीं होगा तो मनुष्य को स्वास्थ्य लाभ मिलेगा।

*मित्रावरुणौ वृष्ट्याधिपाति तो मा$वताम्*

*मित्र* वायु अर्थात *हाइड्रोजन* गैस की सूक्ष्म सत्ता और *वरुण* वायु अर्थात *ऑक्सीजन* गैस की सूक्ष्म सत्ता जो *जलतत्व* के निर्माण में सहायक हैं। आधुनिक विज्ञान भी ऑक्सीजन और हाइड्रोजन वायु के मिश्रण को ही जल तत्व का मिश्रण है।

जो कार्य जलवर्षा चक्र में सूर्य करता है, इनदोनो के सम्मिश्रण से जल के बादलों का निर्माण, वही कार्य सूर्य की शक्ति का यज्ञ में आह्वाहन करके उसी शक्ति(सविता शक्ति ऊर्जा) का उपयोग ऋषिगण भी करते हैं,  । अतः यह चेतन विज्ञान 100% प्रभावी है।

अग्नि में डाली हुई आहुति सूर्य किरणों में उपस्थित होती है, उनके संसर्ग प्राण पर्जन्य के मेघों का संग्रह होता है। यह वर्षा जल यज्ञद्वारा प्रेषित औषधीय गुणों से परिपूर्ण होता है। इस जल के प्रभाव से उत्तपन्न, अन्न, वनस्पति, सब्जी, फल सब आरोग्यवर्धक व पुष्टि वर्धक होते हैं।

यज्ञ से समस्त देवगण भी तुष्ट होते हैं, अतः वे भी सम्पूर्ण वातावरण में जीवनी शक्ति प्रवाहित करते हैं। ये जीवनी शक्ति अग्नि, वायु, वरुण, पृथ्वी, आकाश, सूर्य चन्द्र इत्यादि के प्रभाव से ही उत्तपन्न हो पाता है।

यदि हम यज्ञ का बराबर अनुष्ठान करते हैं तो समस्त देवताओं के साथ साथ पंच तत्वों के अधिष्ठाता देवताओं को भी पुष्ट बनने में पूरा सहयोग प्राप्त होता है। यज्ञ से जल, थल, वायु, आकाश शुद्धि एवं पुष्टि का यही अभिप्राय है। इनकी पुष्टि व शुद्धि से वातावरण को संरक्षण मिलता है और  रोगाणु नष्ट होते हैं। पंच तत्वों से यह मानव शरीर भी बना हुआ है। अतः जब पंच तत्व पुष्ट होंगे तो सर्वत्र होंगे वातावरण के साथ शरीर के पंच तत्व भी शुद्ध व पुष्ट होंगे।

*यज्ञ में मंत्रों द्वारा अग्नि का मंथन किया जाता है। यज्ञाग्नि को भौतिक अग्नि ही न समझा जाये। इसके अंतर्निहित अन्य भी अग्नि है, जिसकी ओर वेद इंगित करता है। श्रद्धा युक्त मंन्त्र वह चाबी है जो यज्ञाग्नि की महाशक्ति के द्वार को खोलती है, पञ्च तत्वों को तुष्ट कर उनकी महा ऊर्जा को उद्वेलित कर सकते हैं। असम्भव को संभव बना सकती है।*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Saturday 20 July 2019

प्रश्न - *दी, जीवन में अध्यात्म कितना आवश्यक है? इसकी वाकई कोई ज़रूरत है भी या नहीं? आस्तिक के साथ साथ कई नास्तिक लोग भी सफल जीवन जीते देखे गए हैं, आस्तिक के साथ साथ नास्तिक भी कई दुःखी है।*

प्रश्न - *दी, जीवन में अध्यात्म कितना आवश्यक है? इसकी वाकई कोई ज़रूरत है भी या नहीं? आस्तिक के साथ साथ कई नास्तिक लोग भी सफल जीवन जीते देखे गए हैं,  आस्तिक के साथ साथ नास्तिक भी कई दुःखी है।*

उत्तर - प्रिय आत्मीय बेटी,

*आस्तिक* - मानता है कि कोई सत्ता है जो सृष्टि का संचालन कर रही है। उसके ध्यान पूजन से वो प्रशन्न होगा और मनोकामना पूर्ति कर देगा। आत्मा व परमात्मा के अस्तित्व पर भरोसा करता है।

*नास्तिक* - मानता है कि कोई सत्ता नहीं है जो सृष्टि का संचालन कर रही है, सब  अपने आप हो रहा है।  ध्यान पूजन से कुछ नहीं होगा और एक ही जन्म मिला है चार दिन की जिंदगी ऐश करो। आत्मा व परमात्मा के अस्तित्व पर भरोसा नहीं करता है।

बेटे, एक कर्मकांड में उलझता है और दूसरा संसार मे उलझता है। बस्तुतः वैज्ञानिक अध्यात्मवाद के अभाव में दोनों के जीवन मे उतार चढ़ाव होते रहते हैं।

*तुम मेरे कहने से अध्यात्म से मत जुड़ो, स्वयं से पहले अध्यात्म क्या है इसे समझो, इसका महत्त्व समझ आये तो ही जुड़ना। हम कोई पंडे पुजारी नहीं है, जो कर्मकांड में तुम्हें उलझाएँगे। हम सॉफ्टवेयर इंजीनियर है, जो पिछले 17 वर्ष से जॉब कर रहे हैं। हमने युगऋषि परमपूज्य गुरूदेव "पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य" के सूक्ष्म मार्गर्दशन में उनकी बताई साधना व स्वाध्याय से जो "जीवन में वैज्ञानिक अध्यात्मवाद का महत्त्व" समझा बस वही तुम्हें बता रहे हैं।*

👉🏼 *कहानी*- पाषाण युग में अग्नि न होने के कारण लोग पशुवत जीते थे। रात के बाद रौशनी के अभाव में किसी को कुछ नहीं दिखता था, पेट खराब हुआ तो गिरते पड़ते बाहर जाते। चोटिल होकर लौटते या जानवर उनका शिकार कर लेते, सुबह दर्द से कराहते, दुःखी होते। कोई चीज़ रात को गुम हुई तो मिलती नहीं। रात को आंख होते हुए भी रौशनी के अभाव में अंधे थे।

अग्नि की खोज हुई, अब रात को भी लोगों को अग्नि के प्रकाश में दिखने लगा। अब किसी का पेट ख़राब होता तो भी उसे बाहर जाने में भय न रहा। अग्नि से जानवर डरकर दूर भाग जाते, लोग सकुशल लौट पाते। कुछ भी रात को गुम हो तो उसे अग्नि की रौशनी में ढूंढ लेते।

👉🏼 अब तुम बताओ, अग्नि के बिना भी जीवन था और अग्नि के प्रकाश के साथ भी जीवन है। दोनों में फ़र्क़ क्या है?

👉🏼 बेटे, अनपढ़ लोग भी जीते हैं और पढेलिखे लोग भी ज्ञान के प्रकाश में भी जीते हैं, बताओ दोनों में फर्क क्या है?

🙏🏻 बेटे अध्यात्म, स्वयं का अध्ययन है, और स्वयं के जीवन में अध्यात्म की रौशनी में जीना है।

दुनियाँ में जितनी भी वैज्ञानिक खोज़ हुई है, उसका आधार था प्रश्न का मानव मन में उठना।

👉🏼 अपने स्वर्गवासी पूर्वजों की फ़ोटो देखो, और स्वयं से प्रश्न पूँछो कि ये कहाँ गए? घर या आसपड़ोस में जन्में बच्चों को देखो और प्रश्न करो यह कहाँ से आये। स्वयं की बचपन की फ़ोटो देखो और बड़े की फ़ोटो देखो, और प्रश्न पूँछो मैं तो मैं ही हूँ पर मेरा शरीर तो पूरी तरह बदल गया? यदि शरीर मैं होती तो बदलाव न होता। ऐसा क्या है जो सबके शरीर मे है, जब तक वह ऊर्जा जिसे आत्मा हम कहते है तो जीवन है, नहीं तो शरीर रूपी मशीन बन्द, चिता में शरीर जला दिया जाएगा।

👉🏼 गूगल में विदेशी और भारतीय अनेकों लोगों की पुनर्जन्म की सत्य घटनाएं मिल जाएंगी। जो यह सिद्ध करती है, मृत्यु के बाद भी और जन्म से पहले भी आत्मा का अस्तित्व है। इसकी पढ़ाई करने वाले विज्ञान को *परामनोविज्ञान(Parapsychology)* कहते हैं।

👉🏼 ऋषियों की बात को आइंस्टीन ने भी सिद्ध कर दिया कि पदार्थ को ऊर्जा में और ऊर्जा को पदार्थ में बदला जा सकता है।

👉🏼 बेटे, वैदिक रश्मि थ्योरी पढ़ोगे तो समस्त ब्रह्माण्ड का विज्ञान समझ आएगा, वैदिक गणित पढ़ोगे तो गणितीय सिद्धांत में माहिर बनोगे। वेद, उपनिषद, गीता एवं युगसाहित्य पढ़ोगे तो जीवन के सिद्धांत समझ मे आएंगे। इसे ही *स्वाध्याय* कहते हैं।

👉🏼 युगऋषि ने सभी प्राचीन ग्रंथों का हिंदी अनुवाद, उनके मूलभूत सिद्धांत को विभिन्न पुस्तकों में सरल हिंदी में लिखकर दे दिया है। किसी भी पुस्तक से शुरू करो पहुँचोगी उसी मूल ज्ञान की जड़ तक ही।

👉🏼 संसार में प्रत्येक घटना के पीछे कारण होता है, किसी भी कार्य के पीछे कोई न कोई कर्ता होता है। अतः किसी के मानने या न मानने से सृष्टि के रचयिता परमात्मा के अस्तित्व को कोई फर्क नहीं पड़ता। ठीक उसी तरह जैसे सूर्य ऊर्जा के लिए सोलर पैनल छत पर लगाओ या न लगाओ, सूर्य तो उगेगा ही। सोलर पैनल लगाया है तो ऊर्जा मिल जाएगी। नहीं लगाया तो न मिलेगी। बेटे अंतर्जगत में परमात्मा का सूर्य उगा हुआ है, लेक़िन समस्या यह है कि आपने ध्यान रूपी सोलर पैनल नहीं लगाया। इसलिए उसकी ऊर्जा को महसूस नहीं कर पा रहे। यही *उपासना(ध्यान)* है।

👉🏼 बेटे जैसे मछली जल में और जल मछली के भीतर है। वैसे ही हवा के भीतर हम और हमारे भीतर हवा है। लेकिन स्वयं सोचो कितने क्षण तुम आसपास हवा के समुद्र को महसूस करती हो। गर्मी लगती है तो कहती हो पंखा चलाओ। क्या पंखे ने हवा उतपन्न की?  नहीं न.. पंखे ने मात्र हवा में हलचल उतपन्न की औऱ आपको हवा महसूस हुई। इसी तरह ब्रह्म हमारे भीतर और हम ब्रह्म के भीतर हैं। लेकिन वह परब्रह्म परमात्मा हवा की तरह हमें तबतक महसूस नहीं होता जबतक हम भी पंखे की रोटेशन की तरह उसके मंन्त्र जप का पंखा मन में न चलाये। जैसे ही आध्यात्मिक प्रक्रिया कर्मकांड करते हो तो जो परमात्म तत्व आसपास मौजूद है उसमें हलचल होती है उसे तुम पंखे की हवा की तरह महसूस करने लगते हो। यही *उपासना(जप)* है।

👉🏼 बेटे, कठिन अभ्यास से पहलवान हो या जिम्नास्ट शरीर को साधता है। तब उस खेल में जीतता है। इसी तरह मन को साधने के लिए *आत्मशोधन, आत्मबोध, तत्त्वबोध, योग, प्राणायाम, स्वाध्याय* जैसे उपक्रम अपनाए जाते है। यही *साधना* कहलाती है।

👉🏼 आइंस्टीन की *पेन वेव थ्योरी* ऋषियों की दी थ्योरी को प्रतिपादित करती है। कि दूसरों को कष्ट दोगे तो उस आह से स्वयं भी बच न सकोगे और दूसरों को सुख दोगे तो स्वयंमेव सुख पाओगे। यही *आराधना* है।

🙏🏻 *अध्यात्म का प्रकाश और अग्नि का प्रकाश तर्क कुतर्क करने की विषयवस्तु नहीं है। यह जलाकर देखने और प्रकाश को अनुभूति करने की विषयवस्तु है। उसे व्यवस्थित उपयोग करके जीवन जीना आसान करना लक्ष्य है।*

🙏🏻 *अध्यात्म कोई अंधेरे में गुमी वस्तु ढूंढकर आपको नहीं देता। अपितु यह प्रकाश देता है, जिससे उस प्रकाश की सहायता से आपको वस्तु ढूंढने में आसानी हो। इसीतरह अध्यात्म के प्रकाश में समस्या का समाधान ढूंढना आसान हो जाता है।*

🙏🏻 *तुम पढ़ीलिखी हो, अतः इस मूर्खता में मत पड़ना कि भगवान की पूजा मनोकामना पूर्ति का साधन है। भगवान की आराधना से ऊर्जा/ईंधन मिलता है, उससे गाड़ी चलाना है या घर रौशन करना है। यह मनुष्य का विवेक तय करता है।*

🙏🏻 *गायत्री मंत्र जप हाई स्पीड उस पंखे की तरह है जो ब्रह्माण्ड में व्याप्त ऊर्जा में तरंग तो उत्तपन्न करता ही है, साथ ही उस ऊर्जा से आपके बुद्धिकौशल को बढ़ा देता है। आपकी आत्मा को प्रकाशित कर देता है। जिसकी रौशनी में आप अपने जीवन को सुव्यवस्थित करने में सक्षम बन जाते हैं।*

🙏🏻 *यज्ञ एक आध्यात्मिक ऊर्जा उतपन्न करने का शशक्त माध्यम है, जो न सिर्फ़ मानव एवं पर्यावरण को पोषण देता है, अपितु उसका उपचार भी करता है। यज्ञ ब्रह्मांडीय ऊर्जा को किये गए यज्ञ स्थान पर आरोपित करने की शक्ति रखता है। यह एक सम्पूर्ण आध्यात्मिक विज्ञान है।*

🙏🏻 विज्ञान गति देता है और अध्यात्म दिशा। दिशा के अभाव में गति मंजिल तक नहीं पहुंचा सकती।

🙏🏻 उम्मीद है आपको अध्यात्म की जीवन में उपयोगिता क्यों है यह क्लियर हो गया होगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न- *क्रांतिधर्मी साहित्य की पुस्तकों का नाम बताइये।*

प्रश्न- *क्रांतिधर्मी साहित्य की पुस्तकों का नाम बताइये।*

उत्तर- युगऋषि कहते हैं कि

*बेटे, ये २० किताबें सौ बार पढ़ना और कम से कम १०० लोगों को पढ़ाना और वो भी सौ लोगों को पढ़ाएँ। हम लिखें तो असर न हो, ऐसा न होगा।*’’.....

‘‘आज तक हमने सूप पिलाया, अब क्रान्तिधर्मी के रूप में भोजन करो।’’.....
‘‘ *प्रत्येक कार्यकर्ता को नियमित रूप से इसे पढ़ना और जीवन में उतारना युग-निर्माण के लिए जरूरी है। तभी अगले चरण में वे प्रवेश कर सकेंगे*। ’’.....

क्रान्तिधर्मी साहित्य की पुस्तको के नाम—

1. इक्कीसवीं सदी बनाम उज्ज्वल भविष्य-भाग १
2. इक्कीसवीं सदी बनाम उज्ज्वल भविष्य-भाग २
3. युग की माँग प्रतिभा परिष्कार-भाग १
4. युग की माँग प्रतिभा परिष्कार-भाग २
5. सतयुग की वापसी
6. परिवर्तन के महान क्षण
7. जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
 8. महाकाल का प्रतिभाओं को आमंत्रण
 9. प्रज्ञावतार की विस्तार प्रक्रिया
 10. नवसृजन के निमित्त महाकाल की तैयारी
11. समस्याएँ आज की समाधान कल के
12. मन: स्थिति बदले तो परिस्थिति बदले
13. स्रष्टा का परम प्रसाद-प्रखर प्रज्ञा
14. आद्य शक्ति गायत्री की समर्थ साधना
 15. शिक्षा ही नहीं विद्या भी
 16. संजीवनी विद्या का विस्तार 17. भाव संवेदनाओं की गंगोत्री
 18. महिला जागृति अभियान 19. जीवन देवता की साधना-आराधना
20. समयदान ही युग धर्म
21. नवयुग का मत्स्यावतार
 22. इक्कीसवीं सदी का गंगावतरण
23. प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
24. व्यवस्था बुद्धि की गरिमा

इन पुस्तकों को पढ़कर *युगनिर्माण की पृष्ठभूमि, हमें करना क्या है, जीवन ऊंचा कैसे उठेगा। यह सब समझ आ जायेगा।*

🙏🏻श्वेता, दिया

Friday 19 July 2019

प्रश्न - *दी, समय के प्रबंधन की आवश्यकता क्यों है?*

प्रश्न - *दी, समय के प्रबंधन की आवश्यकता क्यों है?*

उत्तर - आत्मीय भाई, प्रबन्धन अर्थात मैनेजमेंट की प्रत्येक क्षेत्र में आवश्यकता है। सबसे ज्यादा आवश्यकता समय प्रबन्धन की है।

यदि आपको कोई कहे कि रोज आपके अकाउंट में 86400 रुपये डाले जाएंगे जो पूरे एक दिन के लिए होंगे। शर्त यह है कि यदि आपने इसका सही उपयोग नहीं किया तो यह रात को 12 बजे पुनः 0 हो जाएंगे। तो आप कितना दिमाग़ लगा के उसे ख़र्च करोगे?

अफ़सोस यह है कि आपके धन प्रबन्धन के लिए बैंकों और फाइनेंस की कम्पनियां सलाह प्रदान करती हैं। लेकिन धन से महत्त्वपूर्ण समय के प्रबंधन के लिए कोई आधिकारिक एजेंसी उपलब्ध नहीं।

यह समय रूपी धन वास्तव में 86400 सेकण्ड है, जो प्रत्येक दिन आपके समय अकाउंट में क्रेडिट हो जाते हैं। (24 घण्टे×60 मिनटx 60 सेकण्ड)

आपने इसे जहाँ खर्च किया वह वस्तु आपको मिल जाएगी। यदि ईश्वर आराधना में समय ख़र्च किया ईश्वर की कृपा मिल जाएगी। पढ़ाई में खर्च किया विद्या मिल जाएगी। खेलकूद के अभ्यास में खर्च किया वहां सम्बन्धित कुशलता मिल जाएगी। किचन में समय खर्च किया तो भोजन मिल जाएगा। खेत किसानी में खर्च किया तो फसल मिलेगी। जॉब व व्यवसाय में खर्च किया तो वहां सफ़लता मिलेगी।

आलस्य में खर्च किया तो आलसी बन जाओगे, टीवी के समक्ष सीरियल व फ़िल्म देखने मे खर्च किया तो एंटरटेनमेंट पाओगे। निठल्ले पन और गपशप में खर्च किया तो चुगली चपाटी में एक्सपर्ट बन जाओगे।

समय धन है, जो चाहो वो पा लो। पैसे से जहर से मृत्यु भी खरीद सकते हो और दवा से जीवन भी खरीद सकते हो। इसी तरह सही जगह समय खर्च करके सफ़लता भी खरीद सकते हो और गलत जगह समय खर्च करके असफलता भी खरीद सकते हो। यह तो आपके निर्णय पर निर्भर करता है। आप कर्म करने में स्वतन्त्र हैं।

पास होने के लिए पढ़ाई के टाइमटेबल की आवश्यकता है, फेल होने के लिए कुछ भी पढ़ने की जरूरत नहीं। असफ़ल होने के लिए कुछ भी करने या पढ़ने की जरूरत नहीं है।

अतः सफल होने के लिए निम्नलिखित समय प्रबन्धन के सूत्र अपनाइए, युगऋषि की लिखी पुस्तक - *समय का सदुपयोग* पढ़िये।

1- Do & Don't list - क्या करना है व क्या नहीं करना है। यह पहले क्लियर कर लीजिये। बिना इसके समय प्रबन्धन का कोई महत्त्व नहीं।

2- Todo list - सुबह उठकर या एक रात पहले ही नित्य की क्या करना है आज के दिन की लिस्ट *आत्मबोध* के वक्त बना लीजिए। उस लिस्ट के अनुसार दिनचर्या बनाइये। रात को सोते वक्त *तत्त्वबोध* के समय todo list आज की पूरी हुई या नहीं जांच ले।

3- एक दिन के समय को 4 मुख्य भागों में विभाजित करें:-

👉🏼 1. *महत्वपूर्ण और तत्काल (Important & Urgent)*-  तत्काल और महत्वपूर्ण गतिविधियों के दो अलग-अलग प्रकार हैं: वे जिन्हें आप आगे नहीं बढ़ा सकते थे, और अन्य जो आपने अंतिम मिनट तक छोड़ दिए हैं। आगे की योजना बनाकर और विलंब से बचकर आप अंतिम समय की गतिविधियों को समाप्त कर सकते हैं। हालाँकि, आप हमेशा कुछ मुद्दों और संकटों की भविष्यवाणी या उससे बच नहीं सकते। यहां, अप्रत्याशित मुद्दों और अनियोजित महत्वपूर्ण गतिविधियों को संभालने के लिए अपनी अनुसूची में कुछ समय छोड़ने के लिए सबसे अच्छा तरीका है। (यदि कोई बड़ा संकट उत्पन्न होता है, तो आपको अन्य कार्यों को फिर से करने की आवश्यकता होगी।) यदि आपके पास बहुत सी जरूरी और महत्वपूर्ण गतिविधियां हैं, तो पहचानें कि इनमें से कौन आपको पूर्वाभास करा सकता है, और इस बारे में सोचें कि आप समय से पहले इसी तरह की गतिविधियों को कैसे शेड्यूल कर सकते हैं, ताकि वे तत्काल न बनें।

👉🏼 2. *महत्वपूर्ण लेकिन तत्काल नहीं(Important but not urgent)* - ये ऐसी गतिविधियाँ हैं जो आपके व्यक्तिगत और व्यावसायिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करती हैं, और महत्वपूर्ण काम पूरा करती हैं। सुनिश्चित करें कि आपके पास इन चीजों को ठीक से करने के लिए पर्याप्त समय है, ताकि वे जरूरी न हो जाएं। इसके अलावा, अप्रत्याशित समस्याओं से निपटने के लिए अपने शेड्यूल में पर्याप्त समय छोड़ना याद रखें। यह ट्रैक पर रखने के आपके अवसरों को अधिकतम करेगा, और आपको काम के तनाव को आवश्यकता से अधिक जरूरी होने से बचाने में मदद करेगा।

👉🏼3. *महत्वपूर्ण नहीं बल्कि तत्काल(Not Important but Urgent)* - तत्काल लेकिन महत्वपूर्ण कार्य ऐसी चीजें हैं जो आपको अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने से रोकती हैं। अपने आप से पूछें कि क्या आप उन्हें पुनर्निर्धारित कर सकते हैं या उन्हें सौंप सकते हैं। इस तरह की गतिविधियों का एक सामान्य स्रोत अन्य लोग हैं। कभी-कभी लोगों को विनम्रता से "ना" कहना उचित होता है, या स्वयं समस्या को हल करने के लिए प्रोत्साहित करना।

वैकल्पिक रूप से, जब आप उपलब्ध हों तो टाइम स्लॉट्स का प्रयास करें, ताकि लोगों को पता हो कि वे तब आपके साथ बोल सकते हैं। ऐसा करने का एक अच्छा तरीका उन लोगों के साथ नियमित बैठकों की व्यवस्था करना है जो आपको अक्सर बाधित करते हैं, ताकि आप एक ही बार में उनके सभी मुद्दों से निपट सकें। तब आप अपनी महत्वपूर्ण गतिविधियों पर अधिक समय तक ध्यान केंद्रित कर पाएंगे।

👉🏼4. *महत्वपूर्ण नहीं और तत्काल नहीं (Not Important and also not urgent)* ये गतिविधियां सिर्फ एक व्याकुलता हैं - यदि संभव हो तो उनसे बचें। आप बस उनमें से कई को अनदेखा या रद्द कर सकते हैं। हालांकि, कुछ ऐसी गतिविधियां हो सकती हैं, जो अन्य लोग चाहते हैं कि आप करें, भले ही वे आपके स्वयं के वांछित परिणामों में योगदान न करें। फिर से, "नहीं" विनम्रता से कहें, यदि आप कर सकते हैं, और समझाएं कि आप ऐसा क्यों नहीं कर सकते। यदि लोग देखते हैं कि आप अपने उद्देश्यों और सीमाओं के बारे में स्पष्ट हैं, तो वे अक्सर आपसे भविष्य में "महत्वपूर्ण नहीं" गतिविधियाँ करने के लिए कहने से बचेंगे।

🙏🏻 *जितने भी महापुरुष हुए हैं, उनमें एक ही बात कॉमन है कि, उन्होंने जीवन लक्ष्य प्राप्ति में समय के प्रत्येक पल को नियोजित किया है। युगऋषि परमपूज्य गुरूदेव ने 3200 से अधिक क्रांतिकारी साहित्य/पुस्तकों के लेखन को सम्भव समय प्रबन्धन से ही बनाया है।*🙏🏻

आइंस्टीन हो या न्यूटन या पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम इत्यादि इनकी वैज्ञानिक खोज़ की सफ़लता का आधार धैर्य पूर्वक केंद्रित होकर एक लक्ष्य पर समय का सही नियोजन ही है।

समय को साध लो तो जीवन स्वतः सध जाएगा।

समय ही धन है, जो पल खर्च हो जाएगा वो पुनः जीवन मे कभी लौटकर नहीं आएगा।

जो समय को नष्ट करते हैं समय उन्हें नष्ट कर देता है। जो समय को सावधानी पूर्वक जतन करके खर्च करते हैं समय उन्हें महान बना देगा।

*सर आइजनहावर का अर्जेंट / महत्वपूर्ण सिद्धांत* आपको उन गतिविधियों की शीघ्रता से पहचान करने में मदद करता है जिन पर आपको ध्यान केंद्रित करना चाहिए, साथ ही साथ जिन लोगों को आपको अनदेखा करना चाहिए।

जब आप अपने समय को प्राथमिकता देने के लिए इस उपकरण का उपयोग करते हैं, तो आप वास्तव में जरूरी मुद्दों से निपट सकते हैं, उसी समय जब आप महत्वपूर्ण, दीर्घकालिक लक्ष्यों की ओर काम करते हैं।

टूल का उपयोग करने के लिए, अपने सभी कार्यों और गतिविधियों को सूचीबद्ध करें, और प्रत्येक को निम्नलिखित श्रेणियों में से एक में रखें:

👉🏼महत्वपूर्ण/जरूरी और जरूरी(Important & Urgent)।
👉🏼जरूरी लेकिन तत्काल नहीं (Important but not urgent)।
👉🏼जरूरी नहीं लेकिन तत्काल ( Not Important but Urgent)
👉🏼जरूरी नहीं और तत्काल नहीं(Not Import & Not Urgent)

फिर कार्यों और गतिविधियों को उनके महत्व और तात्कालिकता के आधार पर निर्धारित करें।
👇🏻👇🏻👇🏻
🌸 सफल व्यक्ति की सफलता का राज जानने के लिए देखिए कि वो सबसे ज्यादा समय कहाँ खर्च कर रहा है।
🐷 असफ़ल व्यक्ति की असफलता का कारण जानने के लिए भी देखिए कि वो सबसे ज्यादा समय अपना कहाँ खर्च कर रहा है।
😇 यदि कोई आपको गिफ्ट दे रहा है तो वो आपको प्रेम करता है या नहीं इसकी गारंटी नहीं। लेकिन कोई यदि आपके साथ समय व्यतीत कर रहा है तो आपसे 100% प्रेम करता है।
🎊 हम केवल वहीं समय नियोजित करते हैं जिस कार्य से या व्यक्ति से हम प्रेम करते हैं। यही कार्य व रिश्तों में सफलता का आधार है।
🤔 यदि आपके पास ईश्वर के पास उपासना में बैठने का वक्त नहीं है। तो आप ईश्वर से प्रेम नहीं करते, जब प्रेम ही नहीं तो ईश्वर की कृपा आप पर बरसेगी भी नहीं। अतः ईश्वर से प्रेम करने के लिए उपासना के लिए वक्त निकालिए।
🎯 लक्ष्य की पूर्ति के लिए लक्ष्य प्राप्ति में सहायक कार्यो को करने में ज्यादा वक्त खर्च कीजिये।
👨‍👩‍👦‍👦 परिवार के साथ वक्त व्यतीत कीजिये अन्यथा रिश्ते मजबूत नहीं होंगे।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

(हम सब गुरूदेव के अंग अवयव व परिवार के सदस्य है। मोबाइल में लिमिट है। हम सभी ग्रुप के सदस्य नहीं बन सकते, लेक़िन आपके सहयोग से सभी ग्रुप तक  विचारक्रांति यह पोस्ट जरूर पहुँच सकती है। घर मे भोजन कोई बनाता है और परोसता कोई और है। यही कार्य्रकम यहां भी अपनाए और पोस्ट को फ़ारवर्ड व शेयर करना न भूलें)

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...