Sunday 30 May 2021

जिससे दूरी बनानी हो, उससे उसकी प्रिय वस्तु माँग लो।

 जिससे दूरी बनानी हो, 

उससे उसकी प्रिय वस्तु माँग लो।


एक साधक जब सेवाकार्य करता तो कुछ तो उसका सहयोग करते व उसकी प्रसंशा करते मग़र कुछ उसके कार्य मे बेवजह मीनमेख निकालकर उसकी भर्त्सना करते। 


वह साधक बहुत परेशान हुआ कि क्या करे कि बिना लड़ाई झगड़े के उनसे दूरी बन जाये। वह गुरुजी के पास गया और व्यथा कह सुनाई।


गुरु जी बोले बेटा, जिस प्रकार पतित पावनी गंगा में नहाने से सबके पाप नहीं धुलते, केवल उनके पाप धुलते हैं जिनके मन मे प्रायश्चित होता है व सुधरने की सच्ची इच्छा होती है।


वैसे ही बेटे, इस आश्रम में आकर मुझसे गुरुदीक्षा लेने मात्र से सब साधक नहीं बनते, केवल वही बनते हैं जो स्वयं को मुझे समर्पित कर मेरे अनुशासन में चलना चाहते है, जो मेरे हाथों में मुझे सौंप देते हैं।


इसी तरह मेरे आश्रम में साधक व बाधक दोनो प्रकार के शिष्य हैं, जिस प्रकार गंगा किसी को स्वयं में प्रवेश हेतु नहीं रोक सकती वैसे ही मैं भी सभी शिष्यों का स्वागत करता हूँ।


लेक़िन तुम्हारी समस्या का हल अवश्य बताऊंगा जिससे तुम्हारा सेवा कार्य बाधित न हो:-

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एक सच्ची घटना सुनो,


एक सिद्ध शिष्य तपती गर्मी में भी  जब हिमालय के गहन ध्यान में डूबता तो उसके आसपास का क्षेत्र ठंडे वलय में परिवर्तित हो जाता। इस दौरान एक विषधर मणिधर नाग उसके वलय में बैठ कर ठंडक व शांति का लाभ लेता। मग़र बीच बीच मे फुफकारने की गंदी आदत के कारण उसका ध्यान भंग कर देता। शिष्य परेशान हो गया। गुरु के पास समाधान मांगने पहुंचा। गुरुदेब ने कहा जिसे स्वयं से दूर करना है उससे उसकी प्रिय वस्तु मांग लो। वह दूर हो जाएगा।


शिष्य दूसरे दिन जब ध्यान में बैठा तो वह मणिधर विषधर सर्प भी आ गया। उसने कहा मित्र तुम इतने दिनों से मेरी साधना का लाभ ले रहे हो, कुछ मित्रता के बदले तुम्हे भी उपहार मुझे देना चाहिए। उस सर्प ने कहा बोलो तुम्हे क्या चाहिए? शिष्य ने कहा तुम अपनी नागमणि मुझे उपहार में जब कल आओ तो दे देना। उस दिन के बाद वह सर्प पुनः कभी न आया।

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तुम अपने बाधक गुरुभाइयों से उनकी प्रिय वस्तु प्रेमपूर्वक अपने सेवाकार्य में मांगने लग जाओ, वह स्वतः तुमसे दूर हो जाएंगे। तुम्हारे बाधक गुरु भाइयों को उनके घर से लाया धन बहुत प्रिय है उसे माँग लो।


साधक शिष्य ने समस्त सहयोगी साधक गुरुभाइयों को अपनी योजना समझा दी, व बाधक गुरुभाइयों के समक्ष पहुंचे और प्रेमपूर्वक बोले आप सबकी मदद चाहिए, हम अमुक सेवाकार्य करने जा रहे हैं धन की कमी है आप सब जो घर से धन लाये हैं वह धन लेकर इस सेवा कार्य हेतु कल  सेवा क्षेत्र में पहुंच जाएं तो बड़ी कृपा होगी।


योजना कार्य कर गयी। सेवा क्षेत्र में सभी बाधक शिष्य बहाना बनाकर नहीं आये, व साधक शिष्य भाइयों ने निर्विघ्न सेवा कार्य खुशी खुशी पूर्ण कर लिया।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

परिवार में भी सम्हल कर रहो

 परिवार में भी सम्हल कर रहो


कॉलेज से पढ़कर आये,

सोचा बहुत ज्ञानी बन गए,

जब जॉब मिली तो,

सोचा महाज्ञानी बन गए।


परिवार को देना शुरू किया,

अपना पढ़ा हुआ ज्ञान,

दो की लड़ाई झगड़ो के बीच,

बेवज़ह दिया महा ज्ञान।


घमण्डी हो गए घोषित,

हुए ढेर सारे झगड़े,

कोई घर में न सुधरा,

हमारे ज्ञान का बन गया कचरा।


समेट के अपने किताबी ज्ञान का कचरा,

बैठे थे उदास लटकाए अपना चेहरा,

तब एक गायत्री परिजन ने समझी मेरी व्यथा,

दी पढ़ने को पुस्तक  - अपना सुधार ही संसार की सबसे बड़ी सेवा।


पुस्तक पढ़कर एक बात समझ आयी,

सही बात भी गलत समय मे न कहने में है भलाई,

पहले आचरण में वह ज्ञान ढालों,

जिसे तुम दूसरे को समझाना चाहो।


घर में भी वकील सी चतुराई अपनाओ,

घर के सभी जजों को सही दलील दे समझाओ,

बुद्धि की चाकू से जब ऑपरेशन करो,

भावसम्वेदना व प्यार का मरहम संग रखो।


जो समझना चाहे,

केवल उसे समझाने में समय लगाओ,

महानता के व्यामोह में जकड़े परिवारजन से,

ज्ञान चर्चा करने में व्यर्थ समय न गंवाओ।


घर में भी जॉब सी सतर्कता बरतो,

व्यर्थ की लड़ाई झगड़ो में उलझने से बचो,

गृह युद्ध जीतकर भी रिश्ते हार जाओगे,

गृहयुद्ध हारकर भी रिश्ते जीत पाओगे।


🙏🏻श्वेता, DIYA

कविता - प्राणवान शिष्यों को गुरु का आह्वाहन

 युगनिर्माण में जो आहूत कर सकें प्राण,

उसे सद्गुरु श्रीराम बुलाते हैं।

जो भाव संवेदना का कर सके जन जन में संचार,

उसे मां भगवती बुलाती है।


जो योग की अग्नि में कर सके स्नान,

उसे सद्गुरु श्रीराम बुलाते हैं,

जो जन जन से कर सके प्यार,

उसे माँ भगवती बुलाती है।


जो भटके हुओ को दिखा सके राह,

उसे सद्गुरु श्रीराम बुलाते हैं,

जो धो सके दूसरों के घाव,

उसे माँ भगवती बुलाती है।


हे शिष्य प्राणवान, 

तुम्हे हम याद दिलाते हैं,

सद्गुरु श्रीराम काज के लिए हो तुम जन्मे,

यह हम तुम्हें भान कराते हैं।


पहले था रावण एक ही धरा पे,

जिसको प्रभु श्रीराम ने संघारा।

तब नर वानर रूप में, 

सबने प्रभु का साथ था निर्वाहा।


जग में हे वीर सुजान सभी,

श्रीराम संग उनके भी गुण गाते हैं॥


है धरम संकट छाया,

कलियुग में फिर से, 

हैं लाखों रावण अब तो यहाँ पे, 

कब तक लड़े प्रज्ञावतार सद्गुरु अकेले।


जरा देख लगा के ध्यान, 

तुम्हे तुम्हारे सद्गुरु श्री राम बुलाते हैं।

जरा अंतर्मन की सुन गुहार,

तुम्हे माँ भगवती बुलाती है।


है भगवान जी भक्त तेरे बिन अधूरे, 

है सद्गुरु भी प्रिय शिष्य तेरे बिन अधूरे।

सद्गुरु के सपने करने को पूरे, 

आजा माँ भगवती गुरुदेव के दुलारे।


करने जग का कल्याण, 

तुम्हे सद्गुरु श्री राम बुलाते है,

करने भक्ति का संचार, 

तुम्हे मां भगवती बुलाती हैं।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Saturday 29 May 2021

प्रश्न - व्रत व उपवास में अंतर क्या है?

 प्रश्न - व्रत व उपवास में अंतर क्या है?

उत्तर-  *उपवास* - अर्थात निराहार रहकर उप अर्थात पास और वास अर्थात बैठना। निराहार ईश्वर के समीप वास करना - साधना करना।


*व्रत* -  अर्थात कुछ कठोर नियमावली ( Do & Don't list) को नियम पूर्वक सङ्कल्प के साथ पालन करना।  व्रत के अंतर्गत उपवास भी एक नियम है, अनुष्ठान व जप-ध्यान इत्यादि इसका अंग है। 


व्रत वस्तुतः आध्यात्मिक संकल्पित प्रोजेक्ट का नाम है जिसकी निश्चित नियमावली के साथ स्टार्ट टाइम व एंड टाइम होता है।


ब्राह्मणग्रंथ के आधार पर देवता सर्वदा सत्यशील होते हैं। यह लक्षण अपने त्रिगुणात्मक स्वभाव से पराधीन मानव में घटित नहीं होता। इसीलिए देवता मानव से सर्वदा परोक्ष रहना पसंद करते हैं। व्रत के परिग्रह के समय उपासक अपने आराध्य अग्निदेव से करबद्ध प्रार्थना करता है- "मैं नियमपूर्वक व्रत का आचरण करुँगा, मिथ्या को छोड़कर सर्वदा सत्य का पालन करूँगा।" इस उपर्युक्त अर्थ के द्योतक वैदिक मंत्र का उच्चारण कर वह अग्नि में समित् की आहुति करता है। उस दिन वह अहोरात्र में केवल एक बार हविष्यान्न का भोजन, तृण से आच्छादित भूमि पर रात्रि में शयन और अखंड ब्रह्मचर्य का पालन प्रभृति समस्त आवश्यक नियमों का पालन करता है।

कुछ समय के पश्चात् वही उपासक जब सोमयाग का अनुष्ठान प्रारंभ करता है तो उसके लिए अत्यंत कठोर व्रत और नियमों का पालन करना अनिवार्य हो जाता है। याग के प्रारंभ में याज्ञीय दीक्षा लेते ही उसे व्रत और नियमों के पालन करने का आदेश श्रौत सूत्र देते हैं। यागकालीन उन दिनों में सपत्नीक उस उपासक को आहार के निमित्त केवल गोदुग्ध दिया जाता है। यह भी यथेष्ट मात्रा में नहीं अपितु प्रथम दिन एक गौ के स्तन से, दूसरे दिन दो स्तनों से और तीसरे दिन तीन स्तनों से जितना भी प्राप्त हो उतना ही दूध पीने की शास्त्र की अनुज्ञा है। उसी दूध में से आधा उसको ओर आधा उसकी धर्मपत्नी को दिया जाता है। यही उन दोनों के लिए अहोरात्र का आहार होता है। शास्त्रकारों ने इस दुग्धाहार की व्रत संज्ञा कही है। व्रत के समय में अल्पाहार करने से शरीर में हलकापन और चित्त की एकाग्रता अक्षुण्ण रहती है। व्रती के लिए अनुष्ठान के समय मद्य, मांस प्रभृति निषिद्ध द्रव्यों का सेवन तथा प्रात:काल एवं सायंकाल के समय शयन वर्ज्य है। सत्य और मधुर भाषण तथा प्राणिमात्र के प्रति कल्याण की भावना रखना आवश्यक है।

वैदिक काल की अपेक्षा पौराणिक युग में अधिक व्रत देखने में आते हैं। उस काल में व्रत के प्रकार अनेक हो जाते हैं। व्रत के समय व्यवहार में लाए जानेवाले नियमों की कठोरता भी कम हो जाती है तथा नियमों में अनेक प्रकार के विकल्प भी देखने में आते हैं। उदाहरण रूप में जहाँ एकादशी के दिन उपवास करने का विधान है, वहीं विकल्प में लघु फलाहार और वह भी संभव न हो तो फिर एक बार ओदनरहित अन्नाहार करने तक का विधान शास्त्रसम्मत देखा जाता है। इसी प्रकार किसी भी व्रत के आचरण के लिए तदर्थ विहित समय अपेक्षित है। "वसंते ब्राह्मणोऽग्नी नादधीत" अर्थात् वसंत ऋतु में ब्राह्मण अग्निपरिग्रह व्रत का प्रारंभ करे, इस श्रुति के अनुसार जिस प्रकार वसंत ऋतु में अग्निपरिग्रह व्रत के प्रारंभ करने का विधान है वैसे ही चांद्रायण आदि व्रतों के आचरण के निमित्त वर्ष, अयन, ऋतु, मास, पक्ष, तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण तक का विधान है। इस पौराणिक युग में तिथि पर आश्रित रहनेवाले व्रतों की बहुलता है। कुछ व्रत अधिक समय में, कुछ अल्प समय में पूर्ण होते हैं।

मन भूल मत जाना, माँ गायत्री के चरण

 मन भूल मत जाना,

माँ गायत्री के चरण,

मन भूल मत जाना,

हंसवाहिनी की शरण।


हे मन मतवाले,

छोड़ दुनियां के द्वारे,

माँ गायत्री के सहारे,

सौंप जीवन मरण।

मन भूल मत जाना,

माँ गायत्री की शरण।


ॐ भूर्भुवः स्व:,

तत्सवितुर्वरेण्यं,

भर्गो देवस्य धीमहि,

धियो योनः प्रचोदयात,


हे मन मतवाले,

काट चिंता के जाले,

यह महामन्त्र जपके,

ले माँ की गायत्री की शरण,

मन भूल मत जाना,

माँ गायत्री की शरण।


हे मन मतवाले,

छोड़ भवबन्धन सारे,

कलियुग की कामधेनु माँ गायत्री के सहारे,

सौंप जीवन की डोर,

मन भूल मत जाना,

माँ गायत्री की शरण।


🙏🏻श्वेता, DIYA

Sunday 23 May 2021

शिष्य गुरु का परिचय पत्र है, परिचय पत्र कमज़ोर न हो, यह हमेशा ध्यान रखो,

 शिष्य गुरु का परिचय पत्र है,

परिचय पत्र कमज़ोर न हो,

यह हमेशा ध्यान रखो,

इसलिए शशक्त साधक बनो,

व्यक्तित्व व मनोबल ऊंचा रखो।


तुम्हारे गुरु के आगे,

अनजान नतमस्तक होगा,

जब शिष्य विवेकानंद की तरह,

अपने व्यक्तित्व व कृतित्व से,

गुरु का परिचय देगा।


गुरु मन्त्र जपने को,

अनजान व्यक्ति तैयार होगा,

जब उस मन्त्र का प्रभाव,

तुम्हारे जीवन में परिलक्षित होगा।


तुम्हारे गुरु से जुड़ने को,

अनजान व्यक्ति तैयार होगा,

जब गुरु से जुड़कर,

तुम्हारे भीतर देवत्व का उदय होगा।


गुरु व मिशन के प्रचार प्रसार का,

शिष्य का व्यक्तित्व व कृतित्व ही माध्यम है,

कुछ समझाने हेतु,

वाणी से अधिक आचरण ही कारगर है।


गुरु की सच्ची गुरुदक्षिणा यह होगी,

जब शिष्य के व्यक्तित्व में,

शिष्य के कृतित्व में,

गुरु के ज्ञान की अभिव्यक्ति होगी।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

साँसों का मोल समझ आया, जब कोविड में ऑक्सीजन का सिलेंडर लगाया।

 फेफड़ों का महत्त्व समझ पाया,

जब श्वांस लेने में स्वयं को असहज पाया।


साँसों का मोल समझ आया,

जब कोविड में ऑक्सीजन का सिलेंडर लगाया।


दिल धड़कने का सबब याद आया 

जब बीमारी ने रक्त में असर लाया।


जब मुश्किल था स्वास्थ्य का सँभलना, 

तब मुसीबत में सिर्फ़ परमात्मा तू ही तू याद आया।


दिन गुज़ारा था बड़ी मुश्किल से कोविड में,

फिर ज़िंदगी का महत्त्व बहुत याद आया।


जिंदगी की भाग दौड़ में भूले थे,

परमात्मा तुझे और तेरी दी इस अनमोल जिंदगी को, 

अब इस बीमारी में तू ही तू याद आया,

तेरी दी अनमोल जिंदगी का महत्त्व समझ आया।


इस बार मुझे मेरी गलतियों के लिए बख़्श दे,

मुझे कोविड से बचा पुनः नई जिंदगी दे,

वादा है अब एक पल भी व्यर्थ न करूंगा,

यह जीवन ईश्वर तेरे अनुशासन में लोकहित जियूँगा।


इस जिंदगी के लिए तेरा आभार,

यह जिंदगी है अब तेरी ही उधार,

यह नया जीवन तेरा ही होगा,

वादा है अब इंसानियत व नेकनीयत से भरा होगा।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

मेरा सद्गुरु मेरे लिए कई रूप रखता है,

 मेरा सद्गुरु मेरे लिए कई रूप रखता है,

कभी माता की तरह प्यार लुटाता है,

कभी पिता की तरह शासन करता है,

कभी गुरु की तरह मार्गदर्शन करता है।


मेरा सद्गुरु मेरे लिए कई रूप रखता है।।



जब मेरा मनोबल टूट जाता है,

मेरा सद्गुरु मोची बन जाता है,

मेरे मनोबल की मरम्मत करता है,

उसे पुनः ठीक कर देता है।


मेरा सद्गुरु मेरे लिए कई रूप रखता है।।


मेरा सद्गुरु माली बनता है,

मेरे अंदर सद्गुणों की खेती करता है,

रोज सद्विचारों का खाद पानी देता है,

मेरे अंदर संस्कारो की फसल लहलहाता है।


मेरा सद्गुरु मेरे लिए कई रूप रखता है।।


जब मेरा दिल टूटता है,

मेरा सद्गुरु दर्जी बन जाता है,

मेरे दिल को प्यार से सिलता है,

उसमें पुनः उत्साह उमंग के रँग भरता है।


मेरा सद्गुरु मेरे लिए कई रूप रखता है।।


मेरा सद्गुरु अंतर्जगत का गाइड बनता है,

मेरे अंतर्जगत की यात्रा करवाता है,

मेरे भीतर मेरे साथ रहता है,

हर पल मेरा मार्गदर्शन करता है।


मेरा सद्गुरु मेरे लिए कई रूप रखता है।।


मेरा सद्गुरु कुम्हार बनता है,

अनगढ़ से सुगढ़ बनाता है,

बाहर से चोट देता है,

भीतर से प्यार से सम्हालता है।



मेरा सद्गुरु मेरे लिए कई रूप रखता है,

कभी माता की तरह प्यार लुटाता है,

कभी पिता की तरह शासन करता है,

कभी गुरु की तरह मार्गदर्शन करता है।




🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday 21 May 2021

अपने भाग्य के निर्माता स्वयं बनो

 *अपने भाग्य के निर्माता स्वयं बनो*


माता पिता की कामयाबी को,

जब हम शान से कहते हैं,

या माता पिता की नाकामयाबी को,

जब हम क्रोध में गिनते हैं,

दोनों ही में हम स्वयं के,

अहंकार में रहते हैं।


माता पिता ने क्या किया,

यह उनका कर्म था,

हम जो करेंगे,

वो हमारा कर्म होगा।


माता पिता का चयन,

तुम नहीं कर सकते हो,

अमीर व सफल गर्भ व घर,

तुम नहीं चुन सकते हो।


तुम्हारे पूर्वजन्म के कर्मानुसार,

पूर्व जन्म के ऋणानुबंध अनुसार,

माता पिता तुम्हें मिले हैं,

वो जो हैं जैसे हैं, अमीर हैं या गरीब,

तुम्हारे लिए तो पूजनीय हैं।


उनके जीवन की उपलब्धियों को,

तुम जज करके समय व्यर्थ मत करो,

अपने जीवन को उनके आशीर्वाद और,

स्वयं की योग्यता से बेहतरीन बुनो।


एक ही विषम परिस्थिति,

किसी को तोड़ कर बिखेर देती है,

वही परिस्थिति किसी को,

जीवन संवारने की प्रेरणा देती है।


तुम भाग्यशाली हो,

यदि उत्तराधिकार में माता पिता ने तुम्हे कर्मठ बनाया,

शुभ संस्कारो से तुम्हारा जीवन भरा।

तुम भाग्यहीन व अभागे हो,

यदि उत्तराधिकार में माता पिता ने तुम्हे अकर्मण्य बनाया,

दुर्गुण व कुसंस्कारो से तुम्हारा जीवन भरा।


तुम यदि सुपुत्र/सुपुत्री हो,

तो भी उत्तराधिकार में धन की तुम्हे आवश्यकता नहीं,

क्योंकि निज योग्यता व कर्म से तुम कमा ही लोगे,

तुम यदि कुपुत्र/कुपुत्री हो,

तो भी उत्तराधिकार में धन की तुम्हे आवश्यकता नहीं,

क्योंकि निज अयोग्यता व कुकर्मों से तुम उसे गंवा ही दोगे।


किस्मत की लकीरें जानते हो,

हाथों में क्यों होती है?

जिससे तुम उसे मनचाहा,

अपने कर्म से बदल सको।


अपने जीवन के विधाता स्वयं बनो,

सही दिशा में पुरुषार्थ करो,

निज योग्यता को पहचानों,

स्वयं का जीवन उज्ज्वल गढ़ो।


कर्मफ़ल के अकाट्य सिद्धांत को समझो, 

विनयी व पुरुषार्थी बनो,

जो बोवोगे वही काटोगे,

यह सदा याद रखो,

अपने विचार व कर्मबीज पर पैनी नजर रखो,

अपने भविष्य के निर्माता स्वयं बनो।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 12 May 2021

वैवाहिक जीवन में प्रेम का अभाव हो

 जीवनसाथी से लड़कर वैवाहिक जीवन सुखी नहीं किया जा सकता। पति हो या पत्नी, रिमोट कंट्रोल के साथ नहीं आते। उन्हें नियंत्रित नहीं किया जा सकता। केवल निःश्वार्थ प्रेम व सेवा से ही जीवन साथी को वश में किया जा सकता है। प्रेम बन्धन में बांधा जा सकता है। अधिकार मत मांगिये, अपितु कर्तव्यों का पालन कीजिये और थोड़ा बहुत एडजस्ट कीजिये। दो अलग घरों में पले बढ़े लोग एक जैसी सोच व संस्कार के नहीं हो सकते। अतः जो जैसा है उसे वैसा स्विकारोगे तो सुखी रहोगे।


 जिनके वैवाहिक जीवन में प्रेम का अभाव हो या जो वैवाहिक जीवन को प्रेममय व सुखमय बनाना चाहते हैं उन्हें आज के दिन से प्रारम्भ करके 40 दिन तक लगातार नित्य ग्यारह माला गायत्री मंत्र, एक माला राधा गायत्री मन्त्र, एक माला कृष्ण गायत्री मन्त्र, एक माला चन्द्र गायत्री मन्त्र व एक माला भाग्योदय मृत्युंजय मन्त्र की जपकर अनुष्ठान करना चाहिए। अनुष्ठान पूर्णाहुति पर यज्ञ करके दान करना चाहिए।


।। *दीप यज्ञ*।।

शाम को 5 दीप प्रज्वलित  कर लें और  निम्नलिखित मन्त्रों  के साथ भावनात्मक आहुति दें।

👉🏼  *11 गायत्री मंत्र* - *ॐ भूर्भुवः स्व: तत सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात।*


👉🏼5 राधा गायत्री मंत्र - *ॐ वृषभानुजायै विद्महे कृष्णप्रियायै धीमहि। तन्नो राधा प्रचोदयात्।॥*


👉🏼5 कृष्ण गायत्री मंत्र - *ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि। तन्नः कृष्णः प्रचोदयात्॥*


👉🏼3 महामृत्युंजय मंत्र -  *ॐ त्र्यम्‍बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्‍धनान् मृत्‍योर्मुक्षीय मामृतात्*


👉🏼3 चन्द्र गायत्री मंत्र - *ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृतत्त्वाय धीमहि। तन्नो चन्द्र: प्रचोदयात्।*


👉🏻 3 भाग्योदय मृत्युंजय मन्त्र - *ॐ जूं स: माम् भाग्योदयं कुरु कुरु स: जूं ॐ*

तुम गायत्री देवी हो, मेरे प्राणों में बल भर दो,

 ॐ भूर्भुवः स्वः। तत् सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्॥


तुम गायत्री देवी हो,

मेरे प्राणों में बल भर दो,

मेरे प्राणों की रक्षा कर,

मुझे अपनी शरण मे ले लो।


हे प्राणस्वरूप देवी माँ,

मुझमें दिव्य प्राण भर दो, 

हे दुःखनाशनी देवी माँ,

मेरे समस्त दुःख दूर कर दो।


हे सुखस्वरूप देवी माँ,

मुझे जीवन सुख दे दो , 

हे श्रेष्ठता की मूर्ति माँ,

मुझे भी श्रेष्ठ गढ़ दो, 


हे दिव्य तेजोमयी माँ,

मुझमें भी दिव्य तेज भर दो, 

हे पापनाशनी देवी माँ, 

मेरे समस्त पाप हर लो।


हे दिव्य रूपणी देवी माँ,

मेरे अन्तःकरण में प्रवेश करो,

हे पथ प्रदर्शनी देवी माँ,

मुझे सन्मार्ग की ओर प्रेरित करो।


हे अग्निवत यज्ञमयी गायत्री माँ,

मुझे समिधा मान मेरी आहुति स्वीकार करो,

मुझे अपने जैसा अग्निवत बना,

मेरा सर्वथा कल्याण करो।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 11 May 2021

पुराने पापों के चिंतन व ग्लानि के बोझ के तले मत दबो

 पुराने पापों के चिंतन व ग्लानि के बोझ  के तले मत दबो,

उनसे उबरने हेतु प्रयत्न व पुरुषार्थ को करो।


तुम मनुष्य हो, जानकर या अनजाने में,

कुछ छोटी कुछ बड़ी ग़लती हुई होगी,

कुछ क्रोध के आवेश में कुछ लोभ के आवेग में,

जो नहीं करना था कर दिया होगा।


अब उन दुष्कर्मों की यादें,

पके घाव की तरह मन मे पीड़ा दे रही हैं,

भय ग्लानि का बोध करवा रही हैं।


ऋषि परंपरा में आध्यात्मिक उपाय उपलब्ध हैं,

पाप कर्मों से मुक्ति के उपाय संकलित हैं।


यदि किसी लड़की के शीलभंग का पाप किया है,

मन ही मन उस कन्या की आत्मा से व ईश्वर से क्षमा मांगों,

इस पाप से मुक्ति के लिए कन्या भ्रूण हत्या रोको,

कुछ गरीब कन्याओं के पढ़ने हेतु फीस दान करो,

गरीब कन्याओं के अच्छे घर में विवाह करवाओ,

कन्याओं के उत्थान हेतु प्रयास करो,

कन्या के शीलभंग के पाप को पुण्य कर्मों से नष्ट करो।


यदि किसी के धन हड़पने का पाप किया है,

तो दान ध्यान सौ गुना करके पाप से मुक्ति पाओ।


यदि किसी के दिल दुखाने का पाप किया है,

तो सैकड़ो को सुखी करने का पुण्य करो।


जिस क्षेत्र में पाप हुआ है,

उसी क्षेत्र में पुण्यप्रयास करो।


जितनी गलती की है उतने पीपल के वृक्ष लगाओ,

ज्यों ज्यों वृक्ष बढ़ेगा त्यों त्यों तुम्हारा वह पाप कटेगा,

ज्यों ज्यों पक्षी उस पर रैन बसेरा करेंगे,

त्यों त्यों तुम्हारे जीवन के अंधकार छटेंगे।


गायत्री मंत्र जप-ध्यान व स्वाध्याय करो,

नित्य अपनी आत्मा को प्रकाशित करो।


ऐसे अनेकों उपायों को अपनाओ,

अपने पापों के बोझ को कम करो,

न घबराओ न आंशू निज भूतकाल के लिए बहाओ,

वर्तमान में सुनहरे भविष्य के लिए आधार बनाओ।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

भय व अंधेरा एक ही तो हैं

 भय व अंधेरा एक ही तो हैं,

क्रमशः साहस व प्रकाश का अभाव ही तो हैं।


कितना भी गहन अंधेरा हो,

एक नन्हे से दिए से हार जाता है,

कितना भी बड़ा भय हो,

एक साहस के विचार से भाग जाता है।


अरे अंधेरे से लड़ने में समय नष्ट न करो,

केवल प्रकाश की व्यवस्था करो,

अरे भय से भयभीत न होओ,

साहस जगाने वाले विचारों का सेवन करो।


एक पेपर पर समस्त भय को लिख डालो,

पूजन के दिये की लौ में उसे जला डालो,

फिर पुनः एक नया पेपर ले लो,

उन भय को हैंडल करने वाले साहसी विचार लिखो।


नेत्र बन्द कर कुछ ध्यान करो,

स्वयं को शिवाजी व राणा महाराणा प्रताप सा वीर अनुभव करो,

कठिनाइयों व चुनौतियों को घूर कर देखो,

अपने साहसी विचारों के अस्त्रों से उन्हें काट फेंकों।


अंधेरे व भय से डरना मूर्खता है,

प्रकाश व साहस की व्यवस्था करना बुद्धिमत्ता है।

नित्य एक वीर की कहानी पढ़ो,

फिर नेत्र बंद कर वही वीरता स्वयं में अनुभव करो।


वीरों की वीरता का निरंतर स्वाध्याय,

तुम्हे वीर बना देगा,

तुम्हारा बढ़ा हुआ आत्मबल,

तुम्हें महान गढ़ देगा,

मानसिक मनोबल बढ़ाने का व्यायाम,

गायत्री मंत्र जप, तप व ध्यान तुम्हें ऊर्जा से भर देगा।


फिर तुम्हारे आगे कभी भय ठहर न सकेगा,

जैसे प्रकाश के समक्ष अंधेरा टिक नहीं सकता,

तुम साहस की मूर्ति बनोगे,

निज पुरुषार्थ से गौरवशाली इतिहास लिखोगे।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

असली व नकली अध्यात्म के अंतर को समझो*

 *असली व नकली अध्यात्म के अंतर को समझो*


अध्यात्म तो कर्म में कुशल बनाता है,

अध्यात्म से कोई कामचोर नहीं बनता,

अध्यात्म तो बड़े उत्तरदायित्व लेना सिखाता है,

अध्यात्म से कोई भगौड़ा नहीं बनता।


अध्यात्म तो तपना सिखाता है,

कष्टों दुखदर्द में मनोबल बढ़ाता है,

अध्यात्म तो साहसी बनाता है,

अध्यात्म तो बेहतरीन इंसान बनाता है।


जो कठिनाइयों से डरकर,

निज उत्तरदायित्व से बचकर,

अध्यात्म के नाम पर भगौड़े झूठे साधु बनते हैं,

ऐसे धर्म व्यापारी नकली अध्यात्म को अपनाते हैं।


असली व नकली अध्यात्म के अंतर को समझो,

जगतगुरु श्रीकृष्ण के गीता ज्ञान को समझो,

जीवन के महाभारत में..

एक हाथ में आत्मकल्याण हेतु माला,

दूसरे में जनकल्याण हेतु भाला उठाओ,

निज कर्म में कुशलता बढ़ाओ,

जीवन के युद्ध क्षेत्र में भी अध्यात्म को पाओ।


न घबराओ न आँसू बहाओ,

वीर व वीरांगना बनकर अध्यात्म क्षेत्र को अपनाओ,

निज उत्तरदायित्व को दृढ़ता से निभाओ,

कीचड़ में रहकर कमल सा खिल जाओ,

संसार में रहकर अध्यात्म की ऊंचाई पाओ,

गृहस्थी में रहकर भी आत्मज्ञान पाओ,

शुद्ध अन्तःकरण से ईश्वर की कृपा पाओ।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

जीवन को भार न समझो,

 जीवन को भार न समझो,

कठिनाइयों को हार न समझो,

जीवन को एक खेल समझो,

कठिनाइयों को एक गेंद समझो,

मनोबल का बैट उठाओ,

कठिनाइयों पर चौका छक्का जमाओ।


एक गेंद छूट गयी,

तो शोक न मनाओ,

एक बार आउट होने पर,

भयभीत न हो जाओ,

अभी तो बहुत मैच बाकी है,

अभी तो बहुत खेल बाकी है।


सद्गुरु से कोचिंग लेते रहो,

जप-तप-ध्यान व योग-प्रणायाम करते रहो,

नित्य स्वाध्याय करते रहो,

जीवन के खेल हेतु पात्रता बढाते रहो।


यह आध्यात्मिक अभ्यास,

तुम्हें कर्म में कुशल बनाएगा,

चित्त वृत्तियों का निरोध सिखाएगा,

लक्ष्य की ओर एकाग्रता बढ़ाएगा,

मन व शरीर में संतुलन लाएगा।


जीवन के खेल का आनन्द वही ले पायेगा,

जो अध्यात्म की नेट प्रैक्टिस में पसीना बहायेगा,

सद्गुरु के हिसाब से जीवन अनुशासन में ढालेगा,

निज कर्मो में कुशलता बढ़ाएगा।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *बहुत से लोग सुधरना तो चाहते है लेकिन उनके मन में हमेशा ग्लानि बनी रहती है कि पहले हम बहुत पाप कर चुके है क्या अब हम सुधरने के लायक है?*

 प्रश्न - *बहुत से लोग सुधरना तो चाहते है लेकिन उनके मन में हमेशा ग्लानि बनी रहती है कि पहले हम बहुत पाप कर चुके है क्या अब हम सुधरने के लायक है?*

*जैसे बहुत से लोग बोलते भी है कि सौ चूहे खाकर बिल्ली हज/तीर्थयात्रा को चली।*


उत्तर - हमारी ऋषि परंपरा कहती है, जिस दिन बोध हो कि हम गलत जीवन मार्ग पर हैं और हमें सुधरने-बदलने की आवश्यकता है। तो उसी क्षण यू टर्न ले लो, आध्यात्मिक सच्चाई का मार्ग अपना लो। आगे बढ़ो।


अंगुलीमाल दस्यु हो या आम्रपाली वैश्या या रत्नाकर डाकू या राजा विश्वरथ हो, जिस दिन इन्हें बोध हुआ उन्होंने अच्छाई की ओर यू टर्न ले लिया क्रमशः भिक्षु अहिंसक, भिक्षुणी,   ऋषि बाल्मीकि, महर्षि विश्वामित्र बन गए।


अतः यह सोचना कि बहुत पाप कर लिए, अब अध्यात्म साधना का क्या लाभ? यह भ्रांति धारणा है। ग्लानि मात्र करते रहने से कुछ लाभ न होगा।  सुधरने व बदलने हेतु प्रयास-पुरुषार्थ करना होगा, क्या कहेंगे लोग इसकी परवाह मत कीजिये। अध्यात्म पथ पर समर्पण के साथ बढिये ईश्वर पतित को भी शरण मे लेते हैं, उनका उद्धार करते हैं।


जिस दिन माता रत्नावली ने तुलसीदास को वासना के दलदल का बोध करवाया उन्होंने यू टर्न भक्ति की ओर ले लिया। स्वयं के जीवन के साथ साथ लाखो के जीवन में भक्ति की प्रेरणा दी।


गलत रास्ते पर हो, तो यू टर्न ले लो। सुधरने-बदलने व साधक बनने के लिए यू टर्न ले लो। अवश्य मेहनत दोगुनी लगेगी लेकिन मंजिल एक न एक दिन सच्चाई व ईश्वरीय अनुकम्पा की अवश्य मिलेगी।


अतः सौ चूहे खाने वाली बिल्ली को जिस दिन बोध हो जाये कि मांसाहार गलत है तो यू टर्न ले ले। दूध व शाकाहार लेते हुए जीवन व आत्मा के उत्थान के लिए साधना मार्ग की तीर्थयात्रा पर चलना प्रारम्भ कर दे, सैकड़ो चूहों की जान की रक्षा कर दे। पुण्य करे। लोग क्या कहेंगे इसकी परवाह मत करे, उसके पाप धुलेंगे व उसका कल्याण निश्चित होगा। आध्यात्मिक उपलब्धियों से जीवन भर उठेगा, आत्म संतुष्टि व आत्मा में शांति अनुभव होगा।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन


अखण्डज्योति व दीवार पर सदवाक्य लेखन पढ़कर, गायत्री परिजनों के बोध करवाने पर कई डाकुओं ने आत्मसमर्पण सरकार के पास किया। जेलों में गायत्री परिवार के परिजनों के प्रयास से कई खूंखार कैदी बदल गए। यह सब साधक बने और कई बन रहे हैं। संसार की मुख्यधारा में जुड़कर जेल से निकलकर एक साधारण साधक की तरह लोककल्याण और आत्म कल्याण का कार्य कर रहे हैं।

शुद्ध अन्तःकरण ईश्वरीय कृपा को आकर्षित करता है,

 गुड़ चींटी को आकर्षित करता है,

पुष्प भौरें को आकर्षित करता है,

गंदगी मक्खी-मच्छर को आकर्षित करता है,

प्रदूषण कीटाणु-रोगाणु को आकर्षित करता है।


ऐसे ही..


शुद्ध अन्तःकरण ईश्वरीय कृपा को आकर्षित करता है,

निर्मल भावनाएं ब्रह्मांडीय ऊर्जा को आकर्षित करती हैं।


कलुषित अन्तःकरण पिशाचों को आकर्षित करता है,

कलुषित भावनाएं असुरत्व को आकर्षित करता है।


देवत्व से जुड़ना है,

प्रथम शर्त है अन्तःकरण की शुद्धि,

निर्मल भावनाएं और सद्बुद्धि,

इसके बिना कोई साधना सध न पाएगी,

इसके बिना देवत्व उदय की घटना घट न पाएगी।


एक म्यान में दो तलवार रह नहीं सकती,

कलुषित भावनाओं के साथ ईश्वरभक्ति सध नहीं सकती।


आओ मन को प्रभु का मंदिर बनाएं,

अन्तःकरण की शुद्धि का अभियान चलाएं,

भावनाओं को शुद्ध करें व सद्बुद्धि का जागरण करें,

गुरुचेतना धारण करने योग्य स्वयं को समर्पित शिष्य बनाएं।


🙏🏻श्वेता, DIYA

Friday 7 May 2021

प्रश्न - हमको सबसे पहले सुधार किसका करना चाहिए स्वयं का या दूसरों का..

 प्रश्न - हमको सबसे पहले सुधार किसका करना चाहिए स्वयं का या दूसरों का..


उत्तर - बुझा हुआ दीपक दूसरे दीपक को जला नहीं सकता। इसी तरह जब तक  स्वयं में सुधार व बदलाव न आये आप किसी को सुधार व बदल नहीं सकते।


शब्द बल्ब की तरह हैं, वह तब तक अंधेरा दूर नहीं कर सकते जब तक उसमें आचरण व व्यक्तित्व की ऊर्जा प्रवाहित न हो।


इसलिए ही परमपूज्य गुरुदेब ने कहा है कि - *हम सुधरेंगे, युग सुधरेगा। हम बदलेंगे, युग बदलेगा।* परिवर्तन चाहते हो तो परिवर्तन का हिस्सा बनो।


सूर्य की तरह दुनियां रौशन करने के लिए स्वयं को तपाना पड़ेगा। अप्प दीपो भव - स्वयं को प्रज्ज्वलित करना होगा। स्वयं को सुधारना व स्वयं के मन को साधना होगा।


🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...