Thursday 28 February 2019

प्रश्न - *किशोर वय के बच्चों को गीता का कौन सा अध्याय अध्ययन हेतु श्रेष्ठ है। अथवा कौन सा अध्याय पहले पढ़ना चाहिए?*

प्रश्न - *किशोर वय के बच्चों को गीता का कौन सा अध्याय अध्ययन हेतु श्रेष्ठ है। अथवा कौन सा अध्याय पहले पढ़ना चाहिए?*

उत्तर - आत्मीय भाई, किशोरावस्था के बच्चों को गीता के समस्त 18 अध्याय पढ़ने चाहिए। यह लाइफ मैनेजमेंट पुस्तक है। इसे एक पाठ रोज़ पढ़ना चाहिए। जब कम्प्लीट हो जाये तो पुनः प्रथम से प्रारम्भ करना चाहिए। या 5 से 10 श्लोक और उनका भावार्थ पढ़ना चाहिए।

गीता के स्वाध्याय के साथ कम से कम एक गायत्री मंत्र की माला का जप अत्यंत अवश्यक है और कम से कम 15 मिनट उगते हुए सूर्य का ध्यान और प्राणायाम।

श्रद्धेय द्वारा दिया गीता का लेक्चर युवा यूट्यूब में सुन सकते हैं।

https://youtu.be/mn11PQDKRas

छोटे छोटे कदम नित्य चलने पर मनुष्य मंजिल तक पहुंच जाता है। बूंद बूंद से गागर भर जाता है। यह ज्ञानामृत युवा नित्य ग्रहण करेगा तो जीवन में हमेशा सफल रहेगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *श्वेता दी, एक प्रश्न आपके सम्बंध में है कि आप प्रत्येक प्रश्नोत्तर में समस्या का एक अलग एंगल और एक अलग ही प्रकार समाधान और सोच कैसे देते हो? प्रत्येक पोस्ट में "तत्वदृष्टि" की बात करते हो ये वास्तव में क्या है?*

प्रश्न - *श्वेता दी, एक प्रश्न आपके सम्बंध में है कि आप प्रत्येक प्रश्नोत्तर में समस्या का एक अलग एंगल और एक अलग ही प्रकार समाधान और सोच कैसे देते हो? प्रत्येक पोस्ट में "तत्वदृष्टि" की बात करते हो ये वास्तव में क्या है?*

उत्तर - आत्मीय बहन, गुरूकृपा ही केवलम। गुरु ने कृपा करके 3200 से ज्यादा पुस्तकों का ज़खीरा/खज़ाना दे रखा है। अतः सभी गहन स्वाध्याय करने वाले स्वाध्याय करते करते और गायत्री जपते जपते एक अलग ही दृष्टि से संसार देखने लगते है। अब कुछ हद तक यह तत्वदृष्टि से दुनियाँ और समस्या देखने जैसा कुछ होता है।

कुछ उदाहरण देखें:-

1- आम जनता के लिए स्वर्णाभूषण अलग अलग उनके पहनने के स्थान और उनकी कीमत पर वर्गीकृत होते हैं। लेकिन सुनार के लिए खरीद फ़रोख्त के वक्त वह मात्र सोना है। यह तत्वदृष्टि है।

2- आम जनता के लिए मनुष्य की वैल्यू उसकी सांसारिक आर्थिक संपन्नता पर निर्भर करता है। लेकिन सन्त की दृष्टि में वह मात्र एक आत्मा है जो एक निश्चित समयावधि के लिए एक शरीर धारण कर बैठी है। सन्त की तत्वदृष्टि है।

3- आम जनता के लिए बादल बादल है, वैज्ञानिक के लिए यह मात्र हवा और जल के वाष्प का संयुक्त रूप है। यह तत्वदृष्टि है। इसी तरह दुनियाँ को देखने का वैज्ञानिकों का तरीका आम जनता से भिन्न है।

4- आम जनता के लिए जो सुख दुःख क्रोध घृणा का कारण है, वह एक तरफा सोच है। सन्त की दृष्टि में यह मोहमाया है। यह तत्वदृष्टि है।

5- घटना स्थल पर आम जनता केवल दुर्घटना देखती है, लेकिन डिटेक्टिव दुर्घटना के पीछे का कारण देखता है। यह उसकी तत्वदृष्टि है।

6- आम जनता फ़िल्म को एन्जॉय करती है, लेकिन फ़िल्म रिव्यू करने वाले वह फ़िल्म कैसे बनी यह देखते हैं। यह इनकी तत्वदृष्टि है।

7- आमजनता के लिए जीवनसाथी, सन्तान, अपने स्वजन से घनिष्ठता और दूसरों से उपेक्षा, अपना पराया है। सन्त के लिए पूर्व जन्मों और आगे जन्मों का लेखा जोखा और आत्मा की अनन्त यात्रा का सत्य विदित है। अतः न कोई अपना न कोई पराया, कर्तव्य पथ का निर्वहन मात्र है। सभी एक ही समुद्र(परमात्मा) की बूंदे(आत्मा) हैं जो कि अलग अलग पात्र(शरीर) में भरी हैं। जब पात्र फूटेगा(शरीर छूटेगा) तो पुनः समुद्र(परमात्मा) में मिल जाएगा। अतः सब आत्मस्वरूप होने के कारण अपने हैं और सबमें परमात्मा का ही वास है। यह तत्वदृष्टि है। इसी तरह सन्तों का दुनियाँ देखने का तरीका आम जनता से भिन्न है।

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वास्तव में मनुष्य को कोई दुःख दे ही नहीं सकता, मनुष्य की अपनी सोच और सँस्कार यह तय करते है कि उसे उस घटना पर दुःखी होना है या नहीं। चोट पर रोना या सैनिक की तरह गर्व करना यह सोच से ही तो प्रेरित है। परिस्थिति से भाग लेना(पलायन करना है) या परिस्थिति में भाग लेना(समाधान ढूंढना है) यह मनुष्य की सोच पर ही तो निर्भर करता है। यदि परिस्थिति बड़ी होती तो सब पर एक जैसा प्रभाव डालती, लेकिन वास्तव में तो मनःस्थिति ही तो बड़ी है इसलिए तो एक ही परिस्थिति में कोई बन(make)  जाता है और कोई टूट(break) जाता है।

युगऋषि के साहित्य का तीन वर्षों तक गहन कम से कम दो घण्टे स्वाध्याय कीजिये और नित्य 5 या 11 माला गायत्री की जपिये और उगते सूर्य का ध्यान कीजिये। यह तत्वदृष्टि आपमें भी विकसित हो जाएगी। वास्तव में फिर आप भी मेरी तरह घटना का दूसरा एंगल देखकर समाधान दे सकेंगी। समस्या लेकर जो आता है उसका ध्यान आधी ग्लास खाली पर होता है, समाधान देने वाला केवल उसका ध्यान आधी ग्लास भरे की ओर भी प्रेरित कर देता है। जब साधक साधना करके तत्वदृष्टि विकसित करता है तो उसे ग्लास आधी हवा से भरी और आधी पानी से भरी दिखती है।

क्योंकि विचारों में गहराई तो बहन स्वाध्याय से ही आएगा, तत्वदृष्टि से दुनियाँ देखने का हुनर तो गायत्री जप और ध्यान ही सिखलायेगा। प्राचीन ऋषियों, युगऋषि ने गायत्री जप की जो  महिमा बतलाई, उसके एक अंग गायत्री मंत्र से बुद्धिकुशलता बढ़ती है का रिसर्च AIIMS की डॉक्टर रामा जयसुन्दर ने भी दुनियाँ को बतला दिया है।
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*कीचड़ में रहकर कमल सा खिलना सम्भव है, संसार मे रहकर संसार को तत्वदृष्टि से देखना भी सम्भव है।*

*मनुष्य और मकड़ी में ज्यादा फ़र्क़ नहीं है, मकड़ी जाला बिनकर उस बन्धन में रहती है, जब चाहे तो जाला निगल कर मुक्त भी हो सकती है। इसी तरह मनुष्य अपने विचारों से बुने जाले के बंधन में रहता है। जिस क्षण चाहे उसे निगल कर बंधनमुक्त हो सकता है। मोह युक्त विचार ही माया का बन्धन है, आत्म ज्ञान युक्त विचार ही माया के बंधन से मुक्ति है।*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 27 February 2019

प्रश्न - *दीदी प्रणाम, दीदी मेरे हस्बैंड ने मुझे फंसाया था, शादी से पहले उनका अफेयर था, शादी के बाद भी कुछ दिन चला, अब है या नहीं मुझे पता नहीं। पहले मुझे इस बात पर बहुत गुस्सा आता था अभी मैंने गुस्सा कम कर दिया है अभी घर में झगड़े नहीं होते लेकिन हस्बैंड को माफ नहीं कर पा रही हूं तो मैं क्या करूं मैं

प्रश्न - *दीदी प्रणाम, दीदी मेरे हस्बैंड ने मुझे फंसाया था, शादी से पहले उनका अफेयर था, शादी के बाद भी कुछ दिन चला, अब है या नहीं मुझे पता नहीं। पहले मुझे इस बात पर बहुत गुस्सा आता था अभी मैंने गुस्सा कम कर दिया है अभी घर में झगड़े नहीं होते लेकिन हस्बैंड को माफ नहीं कर पा रही हूं तो मैं क्या करूं मैं नियमित गायत्री माता की माला जप करती हूं हवन करती हूं  गायत्री मंत्र का अनुष्ठान भी किया था।*

उत्तर- आत्मीय बहन, इसका समाधान समझने के लिए आपको अपने जीवन और पति के जीवन को तत्वदृष्टि से देखना और समझना पड़ेगा।

1- सभी आत्माएं अकेले जन्म लेती हैं और अकेले ही मृत्यु के माध्यम से शरीर त्याग करती है। आत्मा का वास्तव में कोई सम्बन्धी नहीं, या यूं कहें तो आत्मा देह से जुड़े रिश्ते से मुक्त है। पिछले जन्म में न जाने कौन जीवनसाथी था, अगले जन्म में न जाने कौन जीवनसाथी बनेगा पता नहीं।

2- देह अन्न से बना है, उसे दर्द हो सकता है लेकिन देह को प्रेम नहीं हो सकता और न ही दुःख की अनुभूति होती है। अर्थात देह को गाड़ी समझो जो कि पहाड़ी की खूबसूरती महसूस नहीं कर सकती और न ही नाले की गंदगी देख के कोई भावना महसूस कर सकती है। उसे केवल ईंधन चाहिए चलने के लिए, ड्राइवर जहां चाहे वहां बिना कोई प्रश्न किये चली जायेगी।

3- सुख,दुःख, प्रेम, घृणा, गुस्सा, वात्सल्य इत्यादि यह न तो शरीर समझता है और न हीं आत्मा का इससे कोई लेना देना हैं। यह भावनाएं वस्तुतः मन की प्रॉपर्टी है।

4- मन क्या है? मन एक सॉफ्टवेयर की तरह है जो इस शरीर के हार्डवेयर का उपयोग करता है। मन वस्तुतः मनुष्य की अच्छी बुरी आदतों, विचारो, अनुभूतियों, कल्पनाओं, यादों का ग्रुप/संग्रह है। यदि एक्सीडेंट हो जाये और दिमाग मे चोट लगकर याददाश्त चली जाए तो प्रेम भी मिट जाएगा।

5- शरीर में हार्मोनल परिवर्तन अपोज़िट सेक्स के व्यक्ति को आकर्षित करते हैं। जिसका मुख्य कारण होता है कि ये हार्मोनल परिवर्तन पुरुषों में पॉजिटिव विकर्षण मानवीय विद्युत ऊर्जा उतपन्न करते है और लड़कियों में निगेटिव आकर्षण मानवीय विद्युत ऊर्जा उतपन्न करते हैं। यदि बचपन से घर में विभीन्न सँस्कार और विद्यालय में मन का प्रबंधन न सिखाया गया। इस विद्युत ऊर्जा को जीवन लक्ष्य/कैरियर निर्माण में नहीं लगाया तो भटकाव निश्चित है।

6- किशोर और प्रारम्भिक युवावस्था में लड़के लड़कियों में स्वयं का भला बुरा सोचने की क्षमता नहीं होती। मैच्योरिटी का अभाव होता है। वो जीवन की गहराई नहीं समझते और भूल कर बैठते हैं।

7- किशोरावस्था और प्रारम्भिक युवावस्था में युवा जिससे प्रेम करते हैं उसी से विवाह करना चाहते हैं। क्योंकि उनकी आर्थिक स्टेबिलिटी और कैरियर बिल्ट नहीं हुआ होता, उन्हें मजबूरी में पारिवारिक दबाव में उससे विवाह करना पड़ता है जिससे विवाह वो करना नहीं चाहते।

8- पुरानी प्रेम की यादें वर्तमान गृहस्थी को प्रभावित करती हैं, झगड़े इत्यादि होना आम बात होती है। माता-पिता का क्रोध जीवनसाथी पर निकालते हैं।

9- वन्दनीया माता जी के अखण्डज्योति में लिखे लेख के अनुसार विवाह से पूर्व किसी भी भूल के लिए विवाह के पश्चात झगड़े नहीं करने चाहिए। जिस पल विवाह हुआ उसके बाद कि जिंदगी साझी है और उस पर आप अधिकार रखते हो। अतः उससे पहले की जिंदगी डिसकस न करें और न हीं विवाहपूर्व हुए सम्बन्धो को लेकर वर्तमान वैवाहिक जीवन मे झगड़े करें। अतः विवाहपूर्व के लिए माफ़ी देने या माफ़ी मांगने की जीवनसाथी से जरूरत नहीं है। केवल भगवान से माफ़ी मांगे और आगे के जीवन को ईमानदारी से जिये। माता-पिता का गुस्सा जीवनसाथी पर उतारने का आपको कोई हक नहीं है। अतः जीवनसाथी को प्रेम और सम्मान दें।

10- अगर मनुष्य की ज़िंदगी एवरेज 80 वर्ष माने, और मान लो जाने अनजाने उसका विवाह से पूर्व अफेयर किसी और से और विवाह किसी और से हो गया तो एक वर्ष की गलती के लिए 60 वर्ष उसके खराब करना कहाँ की अक्लमंदी है।

11- जिससे शादी हुई है उसकी मानसिक पीड़ा भी समझें कि कितने दुःख-पीड़ा-दबाव में उसने आपसे शादी की है, उधर दूसरी तरह उस व्यक्ति को भी सोचना चाहिए कि एक उत्साह उमंग और स्वप्न लिए कोई आपके साथ जीवन बिताने आया है। जो आपके पास्ट से अनजान है। अतः उसका दिल और स्वप्न तोड़ने का आपको कोई अधिकार नहीं है। विवाह के बाद निर्दोष जीवन साथी को दंडित करना-मानसिक प्रताड़ना देना गुनाह है और घोर पाप है। आपकी अकर्मण्यता और अकुशलता थी कि आप अपनी पसंद से शादी न कर सके, इसके लिए जो दूसरा आपके जीवन में आया है वो दंडित नहीं होना चाहिए।

12- मनुष्य गलतियों का पुतला होता है। शरीर बीमार हो तो इलाज़ करना चाहिए। उसी तरह  आपसी  रिश्ते बीमार हों तो इलाज करें। पास्ट को भूलकर वर्तमान पर फोकस करें, खुले दिल से एक दूसरे से बात करे और वर्तमान और भविष्य को सुखमय बनाएं।

13- किसी को विवाह से पूर्व प्रेम हुआ तो वो आपका गुनाहगार नहीं है। लेकिन यदि कोई विवाह के बाद प्रेम(एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर) करता है, तो यह गुनाह है। इसके लिए आप खुलकर बात करें।

14- जिससे विवाह हुआ है उस आत्मा को पीड़ा से मुक्त करने और उसका उद्धार करने के लिए सर्वप्रथम प्रेम, आत्मियता विस्तार और सद्बुद्धि का सहारा लें। धैर्य के साथ कुछ समय प्रतीक्षा करें, सुधार न आये तब लड़ाई भी सुधार के उद्देश्य से करें। जब तब भी बात न बने तो घर के बड़ो को इन्वॉल्व करें। जब सभी प्रयास विफ़ल हो तब ही अलग रहने या अलगाव पर विचार करें।

15- क्षमा देना आसान नहीं होता, लेकिन नामुमकिन भी नहीं है। बड़े हृदय से माफ़ करके अपनी आत्मा से बोझ उतार लो। क्योंकि विवाह से पूर्व किये अफेयर के लिए वो गुनाहगार नहीं है। विवाह के बाद उससे संर्पक रखना उसका गुनाह है। लेकिन यह उसके मन की कमज़ोरी का भी प्रतीक है। उसके कमज़ोर मन को अपने प्रेम से मजबूती दें, और सद्बुद्धि से सही राह पर लाएँ।

जब भी जीवनसाथी को देखे, मन ही मन बोलें हे भगवान हम दोनों को सद्बुद्धि दो, और हमारी घर गृहस्थी सुखमय बनाओ।

भगवान सबको देख रहा है, सबके कर्मो का हिसाब कर रहा है। अतः हम भगवान नहीं है अतः किसी के जीवन का निर्णय नहीं कर सकते, इस दुनियां के रंगमंच पर इस देह रुपी ड्रेस और मेकअप में जीवन रूपी नाटक में अपना रोल कर रहे हैं। रोल खत्म पर्दा गिर जाएगा, मृत्यु हो जाएगी। दूसरा जीवन-दूसरा जन्म मिलेगा, दूसरा कॉस्ट्यूम-दूसरा शरीर, दूसरे एक्टर/एक्ट्रेसेस- जीवनसाथी और परिवार के साथ काम करना होगा। यह अनवरत चलने की बात है। हमेशा याद रखो कि तुम रंगमंच पर कोई किरदार निभा रहे हो, वास्तव में वो किरदार तुम नहीं हो।

निम्नलिखित पुस्तक अवश्य पढ़े:-
1- दृष्टिकोण ठीक रखे
2- भाव सम्वेदना की गंगोत्री
3- निराशा को पास न फटकने दे
4- गृहस्थ एक तपोवन
5- मैं क्या हूँ?
6- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
7- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
8- मित्रभाब बढ़ाने की कला
9- शक्तिवान बनिये

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *भारतीय वायु सेना के सैनिकों तक ऊर्जा का संचार प्राणिक चिकित्सा/टेलीपैथी/रेकी/प्रार्थना द्वारा कैसे करें?*

प्रश्न - *भारतीय वायु सेना के सैनिकों तक ऊर्जा का संचार प्राणिक चिकित्सा/टेलीपैथी/रेकी/प्रार्थना द्वारा कैसे करें?*

उत्तर - आत्मीय भाई, सबसे पहले हमें यह समझना होगा ....की हमारा शरीर किस तरह काम करता है ? मनुष्य का शरीर कई तरह की उर्जाओ यानी एनर्जी का सोत्र है और हम जीवन निर्वाह के लिए इन एनेर्जी को भिन्न भिन्न तरीको से जाने अनजाने ग्रहण करते है .....

इक एनर्जी का दूसरी एनर्जी में बदलाव ...हमारे शरीर में निरंतर होता रहता है.... जिसे साइंस की भाषा में एनर्जी ट्रांसफॉर्मेशन या रुपंतार्ण कहते है ....

मनुष्य के शरीर में मैकेनिकल , इलेक्ट्रिकल ,चुम्बकीय ,बायो केमिकल ,प्रकाश ,ध्वनि , हीट और कॉस्मिक उर्जा का प्रवेश, रुपंतार्ण और निर्माण अलग लग तरीको से और शरीर की भिन्न  भिन्न अंगो द्वारा होता है ....


एक दिन में ....इक आम इन्सान भोजन,पानी ,वायु ,ध्वनि और प्रकाश का ग्रहण खाने, देखने, सुनना, सूंघना , सोचना और महसूस करना आदि भिन्न भिन्न कार्य द्वारा करता है.....

भोजन शरीर में जाकर अलग अलग उर्जा का निर्माण करता है ...जिससे शरीर सुचारू रूप से चलता रहे ...भोजन के अलावा बाकी क्रियाये भी हमारे शरीर पे अपना प्रभाव डालती है ....जिसे हम अधिकतर हलके तौर पे लेते है ....पर कभी कभी इनके आकस्मिक प्रभाव भी हमारे मन , मस्तिष्क पर पड़ते है ...

जैसे किसी सड़े-मरे हुए जानवर को देख उलटी का जी होना या किसी आम आदमी का ऑपरेशन थिएटर में बेहोस हो जाना या किसी बहुत ही सुन्दर स्त्री को देख किसी व्यक्ति का अपना होस-हवास खो देना... या सिनेमा हाल में किसी पे अत्याचार देख खून का खौलना या किसी की दयनीय दशा देख आंसू आना आदि ....

ऐसा ही कुछ असर हमारे शरीर में कुछ सुनने और सूंघने से भी होता है ...इन सब क्रियाओं में मष्तिष्क का इक अहम् रोल है ..जो मानव शरीर को सिग्नल भेज उसे निर्देश देता है ...की उसकी प्रतिक्रिया क्या हो ....जैसे शरीर में कम्पन , हाई/लो ब्लड प्रेशर , दिमाग का कुंद होना और शरीर का जडवत हो जाना आदि शामिल है .....

ऐसा ही कुछ प्रभाव हम तब महसूस करते है ..जब कोई आपको छूता है .... इसे समझाने की जरूरत नहीं ...ऐसे ही इक बच्चे के लिए माँ का स्पर्श दोनों के बीच में इक मजबूत बंधन का निर्माण करता है ...जिसे दोनों बिना भाषा के समझ लेते है ....

स्पर्श की महत्ता तो हम सब जानते है ..पर यह किसी रोग को ठीक कर दे ..यह समझना थोडा टेढ़ा काम है और उससे भी कठिन यह समझना की कोई व्यक्ति कंही दूर दराज से ऐसी कोई उर्जा भेज दे...जो किसी रोगी को ठीक कर दे...किसी के मानसिक और शारिरिक पीड़ा को दूर करना...मनोबल बढ़ाना..इत्यादि

मानव शरीर के इर्द गिर्द कई तरह की एनेर्जी उपस्थित होती है जिन्हें हम आम अवस्था में महसूस नहीं कर पाते...यह एनेर्जी पूरे ब्रह्मांड से... या..दुसरे ग्रहों से उत्सर्जित उर्जा... किसी साधक मनुष्य के शरीर से उत्सर्जित ऊर्जा... या अत्यंत सूक्ष्म (ना दिखने वाले) जीवो से या इंसानी शरीर को ना सुनने , दिखाई औए महसूस होने वाली धाराओ के प्रवाह के कारण होती है....पर हमारी इन्द्रिया इन्हें संचित करती रहती है ...

 ऊर्जा का संचार प्राणिक हिंलिंग चिकित्सा/टेलीपैथी/रेकी/प्रार्थना द्वारा की हीलिंग में साधक/मास्टर इक खास तरीके से अपने आस पास की धारायो को इकटठा कर उनको इक दिशा दे कर सम्बन्धित व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कराता है ... इसके लिए साधक/मास्टर को पहले उस व्यक्ति का नाम लेकर या उस व्यक्ति के स्थान के कोण का या किसी भी तरह उसका स्मरण तीव्र भावनाओ द्वारा करना होता है ...

जैसे मेने ऊपर लिखा कि ..हमारे शरीर में भीं भिन्न प्रकार की उर्जाओ का निर्माण होता है ...अगर इसे हम ऐसे समझे जैसे की हमारा शरीर इक ऑफिस है ..जिसमे कई डिपार्टमेंट है और उनके काम करना का अपना इक तरीका..उसी तरह शरीर की अलग अलग क्रियाएं भीं एनर्जी का उपयोग ,रुपंतार्ण या निर्माण करती है ...

अतः ऊनी वस्त्र या कम्बल के आसन पर कमर सीधी और नेत्र बन्द कर शांत चित्त दोनों हाथ गोद में रखकर बैठ जायें...

🙏🏻🇮🇳मौन मानसिक देववाहन और गुरु का आह्वाहन करें। प्राणायाम करें। मौन मानसिक 24 गायत्री मंत्र, पाँच महाकाली गायत्री मंत्र और 5 महामृत्युंजय मंत्र जपें।

🇮🇳👉🏼भावना करें कि कण कण में व्यापतं ब्राह्मण शक्ति नीले बादल के रूप में आपके सर के ऊपर एकत्रित हो गयी है। अब वो सहस्त्रार से रीढ़ की हड्डी के आस पास स्थित इड़ा-पिंगला नाड़ी से समस्त चक्रों में प्रवेश कर गयी है। अब स्वयं को ऊर्जा का ट्रांसफॉर्मर सा महसूस करें।

👉🏼🇮🇳अब उस भारतीय युवा सैनिक का  ध्यान करें और बाएं हाथ की हथेली को कंधे से ऊपर आसमान की तरफ ऐसे रखें मानो ऊर्जा ग्रहण कर रहे हैं, दूसरे  हाथ को  आशीर्वाद की मुद्रा में ऐसे रखें जैसे देवता आशीर्वाद देते हैं। अब भावना करें कि उस वायु सेना के पायलट विंग कमांडर को आप अपने दाहिने हाथ से ऊर्जा भेज रहे हैं। आकाशवाणी जैसे ध्वनि को ईथर में ब्रॉडकास्ट करता है, वैसे ही आप ऊर्जा और आशीर्वाद की ऊर्जा किरणों उस सैनिक तक भेज रहे हैं। वह उसके दोनों भौंहों के मध्य आज्ञाचक्र जहाँ तिलक लगाते है वहां से प्रवेश कर रहा है। वह ऊर्जावान और प्रकाशवान बन रहा है। शारीरिक और मानसिक पीड़ा मिट रही है। उसके अंदर वीर शिवाजी और महाराणा प्रताप की तरह देशभक्ति हिलोरें ले रही है।

👉🏼🇮🇳निम्नलिखित बातें मन ही मन दोहराएं:-

1- हे मेरे वीर सैनिक भाई, तुम यशस्वी हो, यशस्वी हो, यशस्वी हो।

2- हे मेरे वीर सैनिक भाई, तुम दीर्घायु हो, दीर्घायु हो, दीर्घायु हो।

3- हे मेरे वीर सैनिक भाई, तुम चिरंजीवी हो, चिरंजीवी हो, चिरंजीवी  हो।

तुम्हारा उज्ज्वल भविष्य हो, तुममें देशभक्ति आलोकित रहे, तुम्हारा तन और मन मजबूत रहे, तुम्हारा मनोबल बढ़ता रहे।

विजयी भव, विजयी भव, विजयी भव

वंदे मातरम

फ़िर शांतिपाठ करें और दोनों हाथों को रगड़े और चेहरे पर लगा लें। कुछ क्षण रुककर नेत्र खोले और फिर उठ जाएं।

इसमें समस्त प्रक्रिया मौनमानसिक और नेत्रबन्द करके होगी। केवल हाथों का मूवमेंट उपरोक्त नियमानुसार होगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

गायत्री मंत्र - *ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात*

महाकाली दुर्गा गायत्री मंत्र - *ॐ भूर्भुवः स्व: क्लीं क्लीं क्लीं तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात क्लीं क्लीं क्लीं ॐ*

महामृत्युंजय मंत्र - *ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥*

शांतिपाठ - *ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:,*

*पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।*

*वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,*

*सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥*

*ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥*

सबको सद्बुद्धि दो परमात्मा, हमारी सेना को विजयी बनाइये प्रभु, लोग आतंकवाद की राह छोड़ दें, प्रेम और सौहार्द से रहें। विश्व मे शांति हो ऐसी कृपा करो।

गायत्री मंत्र अखण्डजप सङ्कल्प व विधि

*आत्मीय भाई प्रणाम*,

*जिस दिन अखण्ड जप करना हो अपने नियत समय पर जप से पूर्व साधक निम्नलिखित  संकल्प ले--*



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*प्रारब्ध काटने के लिए- *गायत्रीमंत्र अखंड जप* *सहायक है*।


*साधक जप पे बैठने से पहले पवित्रता को ध्यान में रखते हुए स्नान या धूलेस्वच्छ वस्त्र पहने । देव मंदिर में दिया जलाए व् अखण्ड जप के निम्मित संकल्प लेने हेतु अपने दाहिने हाथ की हथेली में एक आचमनी जल अक्षत -पुष्प रखे कमर सीधी मन को संकल्प पर एकाग्र करते हुए निचे लिखे संकल्प को दोहराएं*।। 🙏🙏

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विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य, अद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीये प्ररार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे, वैवस्वतमन्वन्तरे, भूर्लोके, जम्बूद्वीपे, भारतवर्षे, भरतखण्डे, आर्यावर्त्तैकदेशान्तर्गते, < *अपने अपने देश का नाम यदि कोई इस संकल्प में भारत के बाहर से भी जो साधक भाई बहन जुड़ रहे हो। फिर उस राज्य (स्टेट)फिर क्षेत्र का स्थान नाम यहां जोड़ें*> क्षेत्रे,  स्थले 2075 विक्रमसंवत्सरे मासानां मासोत्तमेमासे *फाल्गुनमासे* *कृष्ण पक्षे ..  नवमी तिथौ . गुरुवार शुभवासरे .....अब अपना नाम गोत्र (गुरुगौत्र भरद्वाज) के साथ बोलें*>..... गोत्रोत्पन्नः .. < *अपना नाम बोलें*>........ नामाऽहं सत्प्रवृत्ति- संवर्द्धनाय, दुष्प्रवृत्ति- उन्मूलनाय, लोककल्याणाय, आत्मकल्याणाय, वातावरण -परिष्काराय,  उज्ज्वलभविष्यकामनापूर्तये च प्रबलपुरुषार्थं करिष्ये, अस्मै प्रयोजनाय च कलशादि- आवाहितदेवता- पूजनपूर्वकम् ...                *मेरी अच्छी जॉब के लिए, मेरी और मेरे परिवार की सद्बुद्धि और आर्थिक खुशहाली के लिए ,हम सबके उज्ज्वलभविष्य निमित्तकम* *8 घण्टे का अखंड जप* > कर्मसम्पादनार्थं सङ्कल्पम् अहं करिष्ये।

*व देव मन्दिर में अपने इष्ट के समक्ष रखे पात्र में (श्री सद्गुरु अर्पणमस्तु /श्री हरीअर्पण मस्तु )बोल के समर्पित कर दें*🙏


भगवान और सद्गुरु को काम बताने वाले बहुत लोग हैं उनपर मनोकामना का बोझ लादने वाले बहुत हैं, लेकिन उनका साझेदार कोई नहीं बनता। भाग्यशाली हैं हम है कि भगवान से काम मांगने वाले, उनका हाथ बंटाने वाले बनेंगे है। अतः भगवान के साथ साझेदारी कीजिये और अपनी कमाई का ताउम्र 2% दान करने का सङ्कल्प लीजिये।

सङ्कल्प के बाद टाइम नोट कर लें, और जप शुरू कर दें। अखण्डजप में कलश स्थापित अवश्य करें। जप में कोई न कोई व्यक्ति बैठा रहेगा। एक घण्टी वहां रख दें, जो उठना चाहे वो घण्टी बजा के दूसरे को बुला ले। दूसरा जब जप शुरू कर दें 5 मिनट दोनों साथ जप करें फिर पहला व्यक्ति उठ सकता है। इस तरह आठ घण्टे जप करें। जप के बाद यज्ञ या दीपयज्ञ करके पूर्णाहुति कर दें।

जो जहाँ है वहाँ पर, देश के सिपाही बन जाओ, देश की सुरक्षा में, उनका आंख कान बन जाओ।

🇮🇳 *सृजन सैनिक* 🇮🇳

जो जहाँ है वहाँ पर,
देश के सिपाही बन जाओ,
देश की सुरक्षा में,
उनका आंख कान बन जाओ।

ट्रेन या बस में चल रहे हो तो,
हमेशा सतर्क रहो,
संदिग्ध समान और एक्टिविटी पर,
हमेशा ध्यान रखो,
जरूरत पड़ने पर,
100 नम्बर पर फ़ोन करो,
देश की सुरक्षा में,
अहम भागीदारी करो।

नया किराएदार,
जांच पड़ताल करके रखो,
पुलिस वेरिफिकेशन का,
क्लॉज इन्क्लूड करो,
आसपड़ोस में कोई नया पड़ोसी आये,
उस पर भी थोड़ी नज़र रखो।

टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट हो तो,
अपना हुनर देशहित प्रयोग करो,
इंटरनेट पर हो रही,
संदिग्ध एक्टिविटी को रिपोर्ट करो,

डॉक्टर हो तो पेशेंट की बीमारी के साथ,
उसके हावभाव को भी थोड़ा नोट करो,
संदिग्ध तनिक भी लगे तो,
पुलिस को रिपोर्ट करो।

दुकानदार हो तो,
cctv दुकान में जरूर रखो,
खरीदार के हावभाव संदिग्ध लगे तो,
पुलिस को रिपोर्ट करो,

वकील हो तो,
देशहित ही केस लड़ो,
आतंकी को कोई वकील न मिले,
 यह सुनिश्चित करो,

महिलाएं देश की
आँख और कान बनो,
आसपास क्या चल रहा है,
उस पर भी तनिक ध्यान रखो।

बच्चे देश के नन्हे वीर सैनिक बने,
अजनबियों से हमेशा दूरी बना के रखें,
उनके हाथ का दिया कुछ न खाएँ,
बिना जान पहचान किसी के साथ न जायें।

कुछ भी संदिग्ध लगे तो,
माता-पिता को जरूर बताएं,
थोड़ी सी सतर्कता और बुद्धि से,
अपना देश बचाएं।

साधक है तो,
देशहित कुछ जप तप करें,
गायत्री मंत्र से,
देश को मनोबल और सुरक्षाकवच दें।

यह देश है हमारा,
आओ अपना अपना कर्तव्य निभाएं,
जो जहाँ है वहीं से,
देशहित अपना फ़र्ज़ निभाएं,
जब भी वीर सैनिक कोई,
पास से गुजरे,
खड़े होकर सम्मान दें,
और उसके लिए तालियाँ बजाएं।

🙏🏻🇮🇳 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *पाकिस्तान भारत के ख़िलाफ़ आतंकवाद को क्यों प्रश्रय देता है?वो अपने देश के विकास पर क्यों ध्यान नहीं देता?*

प्रश्न - *पाकिस्तान भारत के ख़िलाफ़ आतंकवाद को क्यों प्रश्रय देता है?वो अपने देश के विकास पर क्यों ध्यान नहीं देता?*

उत्तर - *भारत से अलग होने का निर्णय वास्तव में जिन्ना का नहीं था, वो तो मात्र कठपुतली था उस वक़्त के मुस्लिम नवाबों का जो देश के आज़ाद होने के बाद स्वयं के हाथ से सत्ता और पद जाने के भय से आतंकित थे। वे जानते थे जो जनता अंग्रेजों को उखाड़ फेंकी अब उस पर अत्याचार करना और गुलाम बनाना संभव न होगा। अतः उन्हें ऐसे चेहरे की तलाश थी जिसे खड़ा करके वो अपना स्वार्थ साध सकें। पाकिस्तान वास्तव में सबसे बड़ा ज़मीन धोखाधड़ी(land laundry) का मामला था। 5% से 7% अमीर नवाबों और सूबेदार ने अलग पाकिस्तान की मांग किया। 95% ग़रीब मुस्लिम परिवार से तो पूँछा भी नहीं कि उन्हें अलग मुल्क चाहिए भी या नहीं, उसने मुस्लिमों को धर्म के नाम पर भड़काया। ख़ैर आगे सब जानते हैं देश बंट गया। पाकिस्तान एक दिन पहले आज़ाद हुआ।*

*लेकिन उस वक्त के वो मुस्लिम जो इस गन्दी नियत को समझ गए थे उन्होंने जिन्ना और पाकिस्तान दोनों को मानने से इनकार कर दिया और भारत में ही रहने का फैसला किया।*

*भारत विकास पथ पर हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई, पारसी इत्यादि अनेकों जातियों को लेकर विकास पथ पर बढ़ निकला। इसकी तरक्क़ी और समृद्धि देखकर पाकिस्तान को बहुत बुरा लगा। वो स्वयं की ख़स्ता आर्थिक कंगाली से पाकिस्तान की जनता का ध्यान भटकाने के लिए पुनः मुस्लिम धर्म भावना, जिहाद और अन्य माध्यम से कश्मीर का मुद्दा जीवित रखा। कोई न कोई धमाके करके पाकिस्तानियों के अंदर भारत के विरुद्ध जहर भरा*।

*कर्जों के घनचक्कर में पाकिस्तान*

*रोजनामा ‘एक्सप्रेस’ के संपादकीय का शीर्षक है-* पाकिस्तान पर विदेशी कर्जों का बढ़ता हुआ बोझ. अखबार ने पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान की रिपोर्ट का हवाला देते हुए लिखा है कि सितंबर तक कर्ज 85 अरब डॉलर तक पहुंच गया और एक साल में इसकी वृद्धि दर 12.3 फीसदी रही.

अखबार लिखता है कि एक डॉलर 110.54 पाकिस्तानी रूपए के बराबर है और जानकार इसमें और गिरावट की आशंका देख रहे हैं. स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान का कहना है कि जुलाई से सितंबर तक की तिमाही में दो अरब दस करोड़ डॉलर विदेशी कर्जों की अदायगी में खर्च किए गए. अखबार की राय में, ये आंकड़े बताते हैं कि 'हमारे आर्थिक मैनेजरों की नीतियां दुरुस्त नहीं थी और अगर देश पर कर्जों का भार यूं ही बढ़ता रहा तो देश की अर्थव्यवस्था को संभालना मुश्किल होता जाएगा.'

पाकिस्तान की खस्ता आर्थिक हालत के लिए सरकार और हुकमरानों को जिम्मेदार करते हुए अखबार लिखता है कि मौजूदा कानून के तहत कर्जे देश की जीडीपी के 60 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होने चाहिए लेकिन इस वक्त कर्जे जीडीपी के 65 प्रतिशत तक जा पहुंचे हैं.

अखबार लिखता है कि सरकारों ने इतना कर्ज लिया है कि इस वक्त हर पाकिस्तानी एक लाख रुपए के कर्ज में दबा है और देश कर्जों के घनचक्कर में फंसता जा रहा है. अखबार के मुताबिक पाकिस्तान पर घरेलू कर्जों का बोझ 16,200 अरब रुपए है तो विदेशी कर्जों का बोझ 9000 अरब रुपए.

इसी विषय पर रोजनामा 'आज' लिखता है कि पाकिस्तान का व्यापारिक घाटा बढ़ कर 15 अरब डॉलर तक जा पहुंचा और न तो बेगलाम आयात को रोका जा सका है और न ही खुले आम हो रही तस्करी पर कोई रोक लगाई जा सकी है.

अखबार कहता है कि डॉलर के मूल्य में इजाफे की वजह से जब महंगाई का सैलाब आएगा तो सरकार से पास उसे काबू करने का कोई तरीका नहीं होगा. अखबार कहता है कि इन हालात में अर्थव्यवस्था पर जो नकारात्मक असर पड़ रहा है उस पर नीति निर्माताओं को ध्यान देने की जरूरत है.

पाकिस्तान में 40% कम पीने का पानी है, क्योंकि कई नदियों में बांध बन ही न सका।

प्रत्येक पाकिस्तान पर आज की डेट में एक लाख रुपये का विदेशी  कर्जा है।

भारत हर मामले में पाकिस्तान से दुगुने से ज्यादा पावरफुल है।

1- भारत के एक रुपये पाकिस्तान के दो रुपये बराबर है। अर्थात अठन्नी की औकात है।

2- भारत के पास युद्ध हथियार, सेना, जल-थल-वायु में दुगुने हैं।

3- भारत विश्व में एक शक्ति के रूप में उभर रहा है।

4- भारत विदेशी मुद्रा भंडार लगभग 417 अरब डॉलर का है, पाकिस्तान के पास 17 अरब डॉलर भी नहीं है।

5- भारतिय सेना विश्व की सबसे ताकतवर, देशभक्त और कुशाग्र बुद्धि सेना है।

6- पाकिस्तान में अशिक्षा 50% से ज्यादा है।

7- विकासदर कुछ है ही नहीं।

पाकिस्तान उपरोक्त बातों को जानता है, इसलिए वो कभी सामने से नहीं लड़ता। तीन दिन से ज्यादा युद्ध लड़ने की आर्थिक योग्यता न होने के कारण वो पाकिस्तान की सेना के हाथों की कठपुतली बना हुआ है। आतंकी वास्तव में पाकिस्तानी सैनिक ही हैं, जो उनके लिए कार्य करते हैं। यह आतंक पूरा का पूरा बिज़नेस है। अपनी देश न चला पाने की नाकामी को वो इस तरह आतंकवाद के नाम पर छुपाने का प्रयास करते हैं।

भारत मे पहले कोई हिम्मती नेता नहीं था, जो आतंकवाद का ऑपरेशन करने के लिए सेना को छूट दे सके और अंतरराष्ट्रीय दबाव को सम्हाल सके। समस्या पहले भी थी, हम रोते और मोमबत्तियाँ जलाते थे। आज के समय में फ़र्क़ इतना है कि इस बार उपचार हो रहा है, अब हम विजय के घी के दीप जला रहे हैं। भारतीय सेना को फ्री हैंड मिल गया, इसलिए देश के बाहर जाकर भी आतंकवाद का उपचार(सर्जिकल स्ट्राइक/एयरस्ट्राइक) हो रहा हैं। हम सब भारतीयों को अपने देश की सेना और प्रधानमंत्री के साथ सपोर्ट में खड़ा रहना चाहिए।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 26 February 2019

प्रश्न - भाव साधना क्या है? कैसे करें?

प्रश्न - *श्वेता दी, इन सब में क्या भाव होना श्रेष्ट है?* 👇👇
" *जैसे जॉब करना, विवाह करना, प्रेम करना, बच्चे पैदा करना और उनका पालन पोषण, बच्चो की शिक्षा दीक्षा, उन्हें योग्य बनाना, घर सम्हालना, उपासना, समाजसेवा इत्यादि। अब इन समस्त कार्यों के केंद्र में कौन सा भाव केंद्रित है वो जीवन का परिणाम तय करता है*।"

उत्तर - आत्मीय बहन, इस प्रश्न का उत्तर समझने के लिए आपको  भाव साधना के बेसिक्स समझने होंगे।

सही साधनामय जीवन के लिए भावों को साधना बहुत महत्त्वपूर्ण है। भगवान की सभी तप की विधियों, कर्मकांड, साधना में भी भाव ही सबसे महत्वपूर्ण है। हमारे भाव बहुत ताकतवर होते हैं। वे हमें और दूसरों के प्रति हमारी सोच को पूरी तरह बदलने की ताकत रखते हैं। अंसत के भाव हमें ठीक वैसे ही डुबो देते हैं, जैसे वर्षा सद्गजगत को। हममें किसी के प्रति क्रोध का भाव हो, तो पहली बार उसका प्रभाव उतना नहीं होता, जितना दूसरी बार। हर बार उसकी तीव्रता बढ़ती जाती है। हम उसके जाल में ऐसे फंस जाते हैं कि उसे काबू करने की जगह उसके काबू में हो जाते हैं। धीरे-धीरे उसका प्रभाव और तीव्रता, हमारे विवेक और व्यक्तित्व पर पूरी तरह छा जाती है। नकारात्मक भाव हमारे मन का सहारा पाकर जीवित रहे आते हैं। पर यह बात यहां खत्म नहीं होती। जो हमारा भाव है, वही अब दूसरे का भी जाता है। जो गुस्सा पैदा हममें हुआ था, वह अब दूसरे का भी हिस्सा बन जाता है। पर हम जो देते हैं, वह वापिस लेना नहीं चाहते। क्योंकि हमें अपना गुस्सा सही और दूसरे का गलत लगता है।

हमारी भगवान की साधना कितनी भी सशक्त क्यों न हो, जब तक यह नकारात्मक भाव पीछा नहीं छोड़ते, तब तक लक्ष्य पर पहुंचना संभव नहीं होगा। हमारा लक्ष्य है आंतरिक सुख और ज्ञानलोक के स्रोत को ढूंढ़ना, पर उसे पाने के लिए भावों को साधना जरूरी होगा।

हमें अपने अंतर में वह भाव जगाने होंगे, जिन्हें हम दूसरों से पाना चाहते हैं। हमें यह मानना पड़ेगा कि जो हम दूसरों को देते हैं, वह हम तक लौटकर जरूर आयेगा।

ब्रह्माण्ड की शक्तियों से जुड़ने के लिए ही भाव ही एक मात्र उपाय है। भावनाएं परिणाम बदल देती हैं।

तुलसीदास जी कहते हैं:-
*जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत तिन देखी तैसी।*

हम सभी एक ही प्रकार के एटम से बनें हैं, आपस में भावों के माध्यम से और घनिष्ठता से जुड़ जाते हैं। मूर्ति पत्थर की भगवान तब बनती है जब मनुष्य में उसके प्रति भगवान की भावना की प्राण प्रतिष्ठा होती है।

जब पत्थर की मूर्ति में ईश्वर भावनात्मक प्राणप्रतिष्ठा की अनुभूति संभव है, फ़िर उस ईश्वर की भावनात्मक प्राणप्रतिष्ठा एक जीवित इंसान में करके उस अनुभूति से क्यों नहीं जुड़ा जा सकता। भारत की प्राचीन ऋषि पत्नियां भगवान की भावनात्मक प्राण प्रतिष्ठा अपने पतियों में कर देती थीं। उनके भाव निष्ठ सतीत्व के आगे ब्रह्मा-विष्णु-महेश नतमस्तक हो जाते थे।

यदि आपको कोई एक लड्डू दे तो उसे आप जस्ट मिठाई समझ के खाएंगे। लेकिन यदि वही लड्डू भगवान का प्रसाद बोलकर  दिया जाय तो आप एक हाथ के ऊपर दूसरा हाथ रखकर उसे ग्रहण करेंगे और भगवान का आशीर्वाद समझकर खाएंगे। उसका असर आप में दिखेगा।

उच्च और अच्छे भाव से भोजन करेंगे तो इसकी ऊर्जा शरीर पर लगेगा, हीन भाव से किया भोजन उर्जाविहीन हो जाएगा। इसी तरह मानव जगत से जिस भाव से रिश्ते बनाएंगे वैसे परिणाम पाएंगे।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻
*ऐसे भाव साधें -  जॉब-व्यवसाय भगवान के लिए कर रहे हैं , विवाह में ईश्वरीय शक्ति से विवाह हो रहा है यह भाव बनाएं, प्रेम आप प्रकृति के कण कण से करें क्योंकि यह क़ण कण में उपस्थित परमात्मा से प्रेम कर रहे हो, बच्चे पैदा करना और उनका पालन पोषण भगवान की इस सृष्टि का अभिन्न अंग बनकर कर रहे हो, बच्चो की शिक्षा दीक्षा वास्तव में भगवान के सृष्टि में सहयोग हेतु कुशल इंसान गढ़ने में सहयोग कर रहे हो , उन्हें योग्य बनाकर ईश्वर की सेवा कर रहे हो, घर भगवान का मंदिर है इसे सम्हालना ईश्वर की आराधना है, उपासना भगवान की, साधना स्वयं की, समाजसेवा भगवान की आराधना करना है, इत्यादि। अब इन समस्त कार्यों के केंद्र में भगवत भक्ति का भाव केंद्रित है, यह जीवन  का प्रत्येक कार्य ईश्वरीय निमित्त बनकर करना। कुछ भी करने से पहले भगवान का स्मरण करना और भगवान की साक्षी में कार्य करना। भाव बदलते ही जीवन बदल जायेगा*।

पुस्तक - *भाव सम्वेदना की गंगोत्री* अवश्य पढ़ें

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday 25 February 2019

प्रश्न - *हमारे जीवन का लक्ष्य क्या होना चाहिये?*

प्रश्न - *हमारे जीवन का लक्ष्य क्या होना चाहिये?*

उत्तर - आत्मीय बहन, यह शरीर सराय है और आत्मा अनन्त यात्री। अतः जीवन लक्ष्य चुनते वक्त दोनों की उन्नति पर समान फ़ोकस रखना होगा। संसार और आत्मा के बीच सन्तुलन का नाम ही अध्यात्म है। कभी भी यह गलती नहीं करनी चाहिए कि एक मिल जाएगा तब दूसरे पर ध्यान देंगे, आत्मज्ञान और सांसारिक सफ़लता दोनों को साथ साथ मेहनत करनी  है।

👉🏼👉🏼वस्तुतः प्रथम वरीयता तो हम सबको आत्मउत्कर्ष और आत्मज्ञान पाने का लक्ष्य बनाने की करनी चाहिए। अंतर्जगत में प्रवेश कर स्वयं की आत्मा क्या चाहती है। यह गहराई से समझना चाहिए। नित्य ध्यान की गहराई में जाकर *मैं क्या हूँ? मैं कौन हूँ? मैं कहाँ से आया हूँ? इस शरीर को छोड़ने के बाद कहाँ जाऊंगा? मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है?* इन प्रश्नों पर गहराई से चिंतन कुछ पल करें। फिर 20 से 30 मिनट थोड़ी हल्का सा आसमान की तरफ़ ऊंचा सर   करके नेत्र बन्द, कमर सीधी और दोनों हाथ गोद में रखकर करके बैठ जायें। आती जाती श्वांस पर चौकीदार की तरह नज़र रखें। यह कुछ ऐसा होगा मानो चेतना के दूध में उपरोक्त प्रश्नों का जामन डालकर जमने के लिए छोड़ देना। जब बिना हिले डुले आधे घण्टे से एक घण्टे बैठने का अभ्यास सध जाएगा तो ब्रह्माण्ड से आप सीधे जुड़ जाएंगे और प्रश्नों के समाधान आपके भीतर उभरने लगेंगे। एक से दो घण्टे नित्य पर्याप्त है, इस क्षेत्र में सफलता के लिए।

निम्नलिखित कुछ पुस्तकें इसमें सहायक होंगी:-
1- अंतर्जगत का ज्ञान विज्ञान भाग 1 और 2
2- चेतन, अचेतन और सुपर्चेतन
3- ब्रह्मवर्चस की ध्यानधारणा
4- मैं क्या हूँ
5- अध्यात्म विद्या का प्रवेशद्वार

👉🏼👉🏼द्वितीय बात संसार रूपी सराय में जब तक हैं तबतक संसार मे हैं। अतः सांसारिक लक्ष्य क्या चुना जाय यह समझना भी जरूरी है? अच्छा तो यह है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन का लक्ष्य स्वयं चुने। वह अपनी सहज नैसर्गिक शक्तियों, रुचियों, सामर्थ्यों और अर्जित योग्यताओं के विषय में जितना अधिक जानता है, उतना अन्य जन नहीं जानते। कहने का तात्पर्य यह है कि प्रत्येक नवयुवक/नवयुवती को अपने जीवन का लक्ष्य चुनने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए।

*कुछ प्रश्न स्वयं से पूंछो*:-

1- वर्तमान मेरी योग्यता क्या है? इस योग्यता को और आगे बढ़ा कर क्या कुछ अच्छा हासिल हो सकता है? वो क्या है?

2- मेरी रुचि क्या है? मुझे क्या करना अच्छा लगता है? ऐसे कामों की(passion) लिस्ट बनाये जो आपको अच्छा लगता है। अब उनमें से देखें क्या किसी passion को प्रोफेशनली किया जा सकता है क्या? क्या ये लक्ष्य बन सकता है?

3- उन कामों की लिस्ट बनाये जो आपको महत्त्वपूर्ण लगता है, अब सोचें क्या इन कामों से किसी कार्य को करने हेतु क्या मैं अपनी योग्यता पात्रता बढ़ा सकती हूँ क्या?

4- मैं नैचरली सहजता से क्या बेहतर सबसे कर सकती हूँ? मेरी सामर्थ्य किस चीज़ में सबसे बेहतर है? क्या इनमें से किसी को लक्ष्य बना सकती हूँ क्या?

5- मेरे शुभ चिंतक, मेरे मम्मी-पापा या मित्रो ने मुझे जो सलाह दी थी उनमें से क्या मैं अपना जोवन लक्ष्य बना सकती हूँ क्या?

उपरोक्त प्रश्नों पर थोड़ा थोड़ा नित्य गहन चिंतन अवश्य करें, नित्य लक्ष्य चिंतन से मन को मथें कुछ न कुछ लक्ष्य मक्खन की तरह मन और हृदय में उभर कर जरूर आएगा।

जब लक्ष्य चुन लें तो ध्यान रखें लक्ष्य एक ही होना चाहिए, वो या तो आपकी रुचि का होना चाहिए, या आपकी सामर्थ्य में होना चाहिए या दिल से उसे महत्त्वपूर्ण मानते हुए उसे any how प्राप्त करना चाहते हो।

प्रत्येक मनुष्य को यह स्मरण रखना चाहिए कि लक्ष्य निश्चित कर लेने के बाद भी उसके मार्ग में बड़े बड़े प्रलोभन आयेंगे। लक्ष्य दूर होता ही है और उससे होने वाला लाभ भी दूरस्थ होता है। बीच में ऐसे अनेक काम आ सकते हैं, जिनसे तात्कालिक लाभ होने की संभावना रहती है। ऐसे लाभ को देखकर मनुष्य का मन डगमगाने लगता है। वह विचलित होकर पथभ्रष्ट हो जाता है। ऐसे अवसरों पर मन को दृढ़ रखने की आवश्यकता है। अपने जीवन के लक्ष्य के प्रति मनुष्य को हर दशा में सजग रहना चाहिए। इसका एक उत्तम उपाय यह है कि प्रतिमास या प्रतिवर्ष अपने कार्यों और उपलब्धियों की अवश्य जाँच करनी चाहिए। इससे अपनी प्रगति का अनुमान हो जाता है, उत्साह बढ़ता है और लक्ष्य पर दृष्टि जमी रहती है। मनुष्य को किसी ऐसे क्षेत्र में पदार्पण नहीं करना चाहिए, जिससे अपने निश्चित लक्ष्य का विरोध हो। ऐसे मित्रों या संगति से भी दूर रहना चाहिए जिनके प्रभाव से लक्ष्य विमुख होने की संभावना हो। यदि आपने संगीत में नैपुण्य प्राप्त करने को अपने जीवन का लक्ष्य चुना है तो क्रिकेट खेलने या बटेर लड़ाने वाले के साथ मैत्री रखने में पथ भ्रष्ट हो जाना सम्भव है। अपना अध्ययन, चिन्तन और मनोरंजन सभी कुछ लक्ष्य के अनुकूल हृदय मंदिर में जलती रहे और उसका कोना-कोना प्रकाशित रहे, इस बात को स्मरण रखना है।

अन्त में, आप यह भी स्मरण रखें कि जो आपका लक्ष्य स्थिर है, तो आप सैकड़ों व्याधी से दूर रहेंगे। आपका मन अनिश्चित और अन्तर्द्वन्द्व से मुक्त रहेगा। दुविधापूर्ण परिस्थितियों में निर्णय ले सकेंगे और आपकी इच्छा शक्ति बनेगी। आप समय का सदुपयोग करना सीख सकें क्योंकि जब फालतू बातों की ओर आपका ध्यान न जायेगा तो समय का अपव्यय अपने आप रुक जायेगा। प्रायः आप अपनी शक्ति की संपदा का भारी अपव्यय करते रहते हैं परन्तु लक्ष्य के निश्चय से आपकी शक्ति का एक एक कण उसी की पूर्ति में लगेगा। आपको तभी अपनी शक्ति का अनुमान होगा। *सूर्य की किरणों में यों साधारण गर्मी ही है परन्तु जब बहुत सी किरणें आतिशी शीशे द्वारा एक केन्द्र बिन्दु पर इकठ्ठा करली जाती हैं, तो उनमें भस्म कर देने की शक्ति आ जाती है।* *आप निर्बलता का अनुभव इसलिए करते हैं कि आप की शक्तियाँ बिखरी रहती हैं। आपका लक्ष्य ही आपकी शक्तियों को समेटने वाला आतिशी शीशा है। अब यह स्मरण रखें कि आत्मज्ञान जीवन का मुख्य लक्ष्य हो और सांसारिक सफ़लता उसका पूरक हो।*

 मंजिल एक होती है, पड़ाव कई हो सकते हैं। *विवाह और बच्चे जीवन लक्ष्य नहीं होते, ये जीवन का पड़ाव है। जीवन लक्ष्य निर्धारित कर आगे बढ़ने वाला न भगवान पर बोझ बनता है और न ही इंसान पर, वो सदैव भारमुक्त होता है*। स्वयं भी लक्ष्य प्राप्ति की  ओर बढ़ता रहता है और दूसरों को भी आगे बढ़ाता है।

नित्य 8 से 10 घण्टे पर्याप्त है, इस क्षेत्र में सफलता के लिए..

बच्चों को महंगे गिफ़्ट दें या न दें, उत्तराधिकार में धन संपत्ति दें या न दें, लेकिन एक मुख्य जीवन लक्ष्य जरूर दें, साथ ही उसी से जुड़े छोटे छोटे लक्ष्य जरूर दें। उनके मन को श्रेष्ठ संकल्पों से अवश्य बांध दें। अन्यथा सबकुछ रहते हुए भी बच्चा/युवा बोर होंगे और दिशाहीन होकर भटकेंगे और ज़िंदगी ढोएंगे, उदास रहेंगे।

जिस व्यक्ति को यह न पता हो कि जाना कहाँ है, वो भला सफ़र कैसे एन्जॉय कर सकता है? इसी तरह जिस व्यक्ति को जीवनलक्ष्य न पता न हो वो भला जीवन कैसे एन्जॉय कर पायेगा?

जरूरी नहीं है प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में लक्ष्य कमाने के लिए ही हो, कमाये तो अच्छा है, लेकिन उत्तम आर्थिक व्यवस्था है तो वो लक्ष्य भी चुना जा सकता है जिससे समाज की सेवा हो या किसी हुनर को निखारकर कला क्षेत्र में सफल हुआ जाय।

आज़ादी की लड़ाई के वक्त पति पत्नी में से एक घर चलाता था और दूसरा स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी करता था। यही अब भी करने की जरूरत है, एक घर के लिए कमाएं दूसरा देश उत्थान के लिए समय दे।

*लक्ष्य निर्धारण में सहायक कुछ पुस्तकें*:-
1- विद्यार्थी जीवन में अपना लक्ष्य निर्धारित करें
2- जीवन लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
3- सफल जीवन की दिशा धारा

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, मेरे पति और मेरे बच्चे सभी इंग्लिश मीडियम से पढ़ें हैं, मेरे हसबैंड की प्रारंभिक शिक्षा ही विदेशों में हुई है। घर में भी इंग्लिश बोलते है

प्रश्न - *दी, मेरे पति और मेरे बच्चे    सभी इंग्लिश मीडियम से पढ़ें हैं, मेरे हसबैंड की प्रारंभिक शिक्षा ही विदेशों में हुई है। घर में भी इंग्लिश बोलते है और मुझे कुछ समझ नहीं आता। जब कोई शब्द मैं बोलती हूँ तो मज़ाक बन जाता है। मैं दसवीं पास हूँ, जल्दी विवाह हो गया था, मेरे पिता और इनके पिता की गहरी दोस्ती थी। मेरी उम्र 45 वर्ष है, यह बताओ क्या इस उम्र में क्या इंग्लिश मैं पढ़ सकती हूँ?*

उत्तर - आत्मीय दीदी, उम्र के किसी भी पड़ाव में कभी भी कुछ भी सीखा जा सकता है। केवल दृढ़ संकल्प और जुनून होना चाहिए।

अंग्रेजी महज़ एक भाषा है, विदेशों के भिखारी हमारे यहां के कॉन्वेंट स्कूल के बच्चो से अच्छी अंग्रेजी बोलते हैं। अर्थात अंग्रेजी किसी को अमीर नहीं बनाती। अतः इसे अपने दिमाग में महानता के शिखर से नीचे उतार कर ज़मीन पर लाओ।

अब इसे भारत की अन्य भाषाओं की तरह महज़ एक भाषा मानो, इससे ज्यादा कुछ नहीं।

अब थोड़ा विचारो कि तुमने हिंदी कैसे सीखी? या बंगाली या कन्नड़ घर में पैदा बच्चा बंगाली और कन्नड़ कैसे सीखता है? या अंग्रेज का बच्चा बचपन से अंग्रेजी कैसे सीखता है?

1- गर्भ से लेकर जन्म तक वो जो भाषा सुनता है उसे धीरे धीरे समझने लगता है।

2- फिर तोतली और अशुद्ध भाषा बोलता है, धीरे धीरे सही बोलने लगता है।

3- फिर उस भाषा पर अधिकार प्राप्त करने के लिये वो उसे लिखता है, उसकी वर्णमाला(लेटर) और व्याकरण(ग्रामर) समझता है।

4- कहानियाँ, लेख, न्यूज पेपर इत्यादि पढ़ता और सुनता है।

5- अपने भावों को अपनी भाषा मे व्यक्त और दूसरे के भावों को अपनी भाषा मे समझ लेता है। इसी को communication skill कहते हैं।

युगऋषि परमपूज्य गुरूदेव ने इंग्लिश इत्यादि अनेक भाषा जेल में तसले और कोयले की मदद से सीख ली थी। लगन हो तो कुछ भी मुश्किल नहीं है।

आपको अपने आसपास जिस भाषा को सीखना चाहती हैं उस भाषा का वातावरण अपने आसपास उपलब्ध करना पड़ेगा। इंटरनेट और यूट्यूब आपकी इसमें मदद करेगा।

शुरुआत में बच्चो की इंग्लिश कार्टून देखिए, समझ मे आये या न आये रोज देखिए

https://youtu.be/KHzJVnY2egA

फ़िर यूट्यूब पर अनेकों इंग्लिश सिखाने वाले कोचिंग वीडियो हैं उन्हें देखना शुरू कीजिए और नोट्स बनाइये

https://youtu.be/nWE-qmDmy20

कुछ इंग्लिश अच्छे साहित्य ले आइये और रोज पढ़िये। रोज उन्हें लिखिए भी। बिना इस बात की परवाह किये कि कब इंग्लिश आएगी।

धीरे धीरे इंग्लिश की क्लासिकल फ़िल्म और न्यूज़ देखना यूट्यूब पर शुरू कीजिए। इंग्लिश अच्छी कविता याद कीजिये और दोहराइये।

बार बार दिमाग़ में इंग्लिश का वातावरण देंगी तो दिमाग इंग्लिश समझने लगेगा। टूटी फूटी बोलिये मज़ाक उड़े तो उड़ने दीजिये बोलिये। हिंदी भी पहले अशुद्ध ही बोली थी।

एक डायरी बनाइये उसमें रोज कितने नए शब्द सीखे उसे नोट करते चलिए। अपनी प्रोग्रेस रिपोर्ट पर कड़े नजर रखिये।

जब आपकी डायरी में दस हज़ार नए इंग्लिश के शब्द हो और करीब 5 हज़ार नित्य बोले जाने वाले वाक्य लिख लिए जाएंगे और उन्हें कण्ठस्थ कर लेंगी तो आपको एक नए आत्मविश्वास की अनुभूति होगी।

इंग्लिश उच्चारण सीखने के लिए यूट्यूब की मदद लीजिये और गूगल की, साइट पर स्पीकर जैसे चिन्ह पर क्लिक करेंगी तो वो बोलकर भी बताता है। सुनिये और दोहराइये।

जब आपके बच्चे और पति बातें करें तो उनके दो चार शब्द नोट कर लीजिए। गूगल में उनका हिंदी अर्थ सर्च कीजिये। बूंद बूंद से घड़ा भर जाएगा। धीरे धीरे आप नोटिस करेंगी कि आपको इंग्लिश समझ आने लगी है। फिर सहज ही आप उसे कुशलता से बोलने भी लगेंगी।

कुछ पुस्तकें जो आपके मनोबल को पढ़ाएंगी और इसमें सहायता करेंगी:-

1- अधिकतम कैसे पाएं?
2- बुद्धि बढ़ाने की विधि
3- आगे बढ़ने की तैयारी
4- सङ्कल्प शक्ति की प्रचंड प्रक्रिया
5- दृष्टिकोण ठीक रखें
6- सफलता आत्मविश्वासी को मिलती है
7- मनःस्थिति बदले तो परिस्थिति बदले

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती,
लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती।

जो चलते रहते हैं वो मंजिल तक जरूर पहुंचते हैं।

इंग्लिश भाषा जरूर सीखिए लेकिन उसे अपने सर पर मत चढ़ने देना। अँग्रेजियत मत अपनाना, हिंदुस्तानी होने का गर्व हृदय में रखते हुए इस भाषा पर अधिकार प्राप्त कीजिये। इंग्लिश ही क्यों जर्मन, फ्रेंच इत्यादि अनेक भाषा सीखिए। इतना अधिकार प्राप्त कीजिये, कि गुरूदेव के साहित्य का विदेशी भाषाओं में अनुवाद कीजिये। विदेशों में गुरु सन्देश उन्हीं की भाषा मे दीजिये।

खुदी को कर बुलंद इतना, कि खुद खुदा आकर पूँछे ए बन्दे तेरी रज़ा क्या है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी सप्ताह में एक दिन व्रत रखना चाहती हूँ, लेक़िन रख नहीं पाती।

प्रश्न - *दी सप्ताह में एक दिन व्रत रखना चाहती हूँ, लेक़िन रख नहीं पाती। भूख बहुत लगती है, मैंने देखा है कि मेरे गाँव बिहार में स्त्रियाँ बड़े कठिन कठिन व्रत रख लेती है, लेक़िन मैं नहीं रख पाती। कैसे व्रत करूँ?*

उत्तर - आत्मीय बहन, व्रत तभी सम्भव होगा जब व्रत रखने के पीछे तुम्हारा उद्देश्य क्लियर और महत्त्वपूर्ण होगा।

ग्रामीण स्त्रियाँ अपने परिवार के लिए समर्पित होकर जीती हैं। पति और बच्चों के उज्ज्वल भविष्य और दीर्घायु जीवन का लक्ष्य-उद्देश्य उन्हें दिमाग़ में क्लियर है और यह उनके लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इसलिए वो व्रत सहजता से कर लेती हैं।

शहरी औरतें, मॉडल, टीवी- सीरियल-फ़िल्म ऐक्ट्रेस/एक्टर शरीर की सुंदरता के लिए समर्पित है। सुंदर दिखने के लिए और मोटापे से बचने के लिए फास्टिंग/उपवास करना पड़ता है। अतः वो भी फास्टिंग कर लेती हैं।

चिकित्सा का ज्ञान रखने वाले जानते हैं, कि उपवास चिकित्सा पद्धति रोगमुक्त जीवन की अनिवार्य शर्त है। अतः यह भी उपवास कर लेते हैं।

साधक आत्मउत्थान, संकल्पबल और साधना की सफ़लता में व्रत-उपवास के फ़ायदे जानते हैं, आत्मउत्थान और ईश्वरिय कृपा प्राप्ति करने का लक्ष्य क्लियर है और ये इनके लिए महत्त्वपूर्ण बहुत है। अतः यह भी व्रत-उपवास अनुष्ठान के वक्त कर लेते हैं।

गांधी जी और अन्ना हज़ारे जी इत्यादि ने समय समय पर जब भी अनशन किया किसी न किसी लक्ष्य के लिए किया।

🙏🏻 *मन के हाथ में पेट का रिमोट कंट्रोल है। मन खराब तो पेट खराब, जीभ में टेस्ट लेने की क्षमता समाप्त। मन को यदि लक्ष्य क्लियर कर दो, उसका महत्त्व समझा दो। तो व्रत रखना तुम्हारे लिए आसान हो जाएगा। जब तक मन को सङ्कल्प से नहीं बाँधोगि व्रत नहीं कर पाओगी। सङ्कल्प की खूँटी में मन बंधता है, मन सधता है। मन के सधते ही शरीर स्वतः सध जाता है।*

ऐसा नहीं है कि व्रत के दिन भूख किसी को नहीं लगती, लेक़िन क्योंकि मन को लक्ष्य क्लियर होता है तो आवश्यक निर्देश शरीर को देकर सम्हाल लेता है। ध्यान दूसरी तरफ केंद्रित कर देता है। व्रत निभ जाता है।

👉🏼 संकल्पबल बढ़ाने के लिए पढें 📖 *सङ्कल्प शक्ति की प्रचंड प्रक्रिया*

http://literature.awgp.org/book/Sankalp_Shakti_Ki_Prachand_Prakriya/v1

व्रत उपवास के फायदे जानने के लिए  निम्नलिखित आर्टिकल पढ़ें:-

https://awgpggn.blogspot.com/2018/07/blog-post_26.html?m=1

https://awgpggn.blogspot.com/2019/02/blog-post_71.html?m=1

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दीदी। कृपया ये बताए की कब ऐसा समझे कि मन सध अथवा नियंत्रित हो गया है। कई बार लगा कि मन संतुलित हो गया है पर फिर भटक जाता है।*

प्रश्न - *दीदी। कृपया ये बताए की कब ऐसा समझे कि मन सध अथवा नियंत्रित हो गया है। कई बार लगा कि मन संतुलित हो गया है पर फिर भटक जाता है।*

उत्तर - आत्मीय भाई,

जब मन को ऑन और ऑफ करने की क्षमता विकसित हो जाये तब समझ लेना मन सध गया है।

उदाहरण - एक दिनचर्या बनाओ, उसे मन को समझा दो। अगर एक महीने उस दिनचर्या को तुम्हारा मन बिना किसी विरोध और भटकाव के पालन कर ले तो समझना सध रहा है।

यदि एक घण्टे बिना हिले डुले बैठकर किसी एक विचार पर ध्यान केंद्रित कर सको तो समझना मन सध गया है।

विचार शून्य लगभग 10 से 15 मिनट हो सको तो समझना मन सध गया है।

👉🏼 मन में विचारों का अनवरत प्रवाह है और यह एक सफर की तरह है।

👉🏼मन कोई सीमेंट नहीं कि एक बार घर बना दिया तो बस रहने लग जाओ। बस एक बार मेहनत करनी पड़ेगी बस सध गया मन। ऐसा सोचना भी मत।

👉🏼मन साधना कुछ ऐसा है कि घुड़सवारी करना या बाइक चलाना। अर्थात हर वक्त घोड़े की लगाम पकड़े रहना, या बाइक का हर वक्त हैंडल पकड़े रहना और चैतन्य होकर बैलेंस बनाये रखना।

👉🏼घोड़े या बाइक पर बैठकर सो नहीं सकते, चैतन्य रहना पड़ता है। उसी तरह मन की साधना करते वक्त भी आपको चैतन्य रहना पड़ता है।

👉🏼सोने से पूर्व घोड़े को खूँटी से, बाइक को स्टैण्ड पर खड़ा करना और मन को संकल्पों से बांधना पड़ता है।

👉🏼ऊर्जा के लिए घोड़े को घास, बाइक को पेट्रोल और मन को सद्विचार/स्वाध्याय का चारा देना पड़ता है।

👉🏼घोड़े को नहलाना, बाइक को धोना और मन का आत्मशोधन जरूरी है।

👉🏼ध्यान हटा, लगाम छूटी, सन्तुलन बिगड़ा तो दुर्घटना निश्चित है। भटकाव निश्चित है।

👉🏼अतः जब तक सफर है तब तक घोड़े की लगाम थामना पड़ेगा। जब तक सफर है तब तक बाइक पर सन्तुलन बनाना पड़ेगा। जब तक जियोगे तब तक मन को साधना पड़ेगा।

👉🏼सफ़र में गड्ढे न मिलें या उतार चढ़ाव न मिले यह सम्भव नहीं है। इसी तरह जीवन के सफर में विपत्तियां और उतार-चढ़ाव न आएगा यह भी संभव नहीं। अतः कुशल ड्राइवर की तरह मन की गाड़ी को चैतन्य और जागरूक होकर सम्हालो। कब ब्रेक और कब रेस देना है इस पर ध्यान दो, सन्तुलन बनाये रखो। यह अनवरत प्रयास मांगता है।

*मन की ड्राइविंग सीखने के लिए निम्नलिखित पुस्तक पढ़े:*-

1- अंतर्जगत का ज्ञान विज्ञान भाग 1 एवं 2
2- ब्रह्मवर्चस की ध्यान धारणा
3- चेतन, अचेतन एवं सुपरचेतन

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Sunday 24 February 2019

प्रश्न - पत्नी कर्कशा(खराब भाषा शैली), क्रोधी और झगड़ालु है..कैसे हैंडल करें..

प्रश्न -  *दीदी जी मेरी पत्नी को बाणी दोष है उसकी बातों से मुझे मानसिक तनाव होता हैं उसकी बातों में मिठास नहीं है। उसकी भाषा शैली भी खराब है। उपाय बतायें बहुत जल्दी नराज व रूठ जाती हैं। मुझे कम बोलना पसंद है और उसे बक बक करना।*

उत्तर - आत्मीय भाई, यदि पत्नी कर्कशा(खराब भाषा शैली), क्रोधी और झगड़ालु है। तो इसका अर्थ यह है कि अब तुम्हें महान दार्शनिक और सन्त बन जाना चाहिए। यह मार्ग इस गृहस्थ जीवन को व्यतीत करने का उत्तम मार्ग है। इस बात को दो महान संत और दार्शनिक के जीवन दृष्टांत से समझो।

👉🏼सुकरात का एक शिष्य इस पशोपेश में था कि उसे विवाह करना चाहिए या नहीं करना चाहिए। वह सुकरात से इस विषय पर सलाह लेने के लिए आया। सुकरात ने उससे कहा कि उसे विवाह कर लेना चाहिए।शिष्य यह सुनकर हैरान था। वह बोला – *“आपकी पत्नी तो इतनी झगड़ालू है कि उसने आपका जीना दूभर किया हुआ है, फ़िर भी आप मुझे विवाह कर लेने की सलाह दे रहे हैं?”*

*सुकरात ने कहा – “यदि विवाह के बाद तुम्हें बहुत अच्छी पत्नी मिलती है तो तुम्हारा जीवन संवर जाएगा क्योंकि वह तुम्हारे जीवन में खुशियाँ लाएगी। तुम खुश रहोगे तो जीवन में उन्नति करोगे और रचनाशील बनोगे। यदि तुम्हें जेंथीप की तरह पत्नी मिली तो तुम भी मेरी तरह दार्शनिक तो बन ही जाओगे! किसी भी परिस्तिथि में विवाह करना तुम्हारे लिए घाटे का सौदा नहीं होगा।”*

👉🏼 सुकरात पश्चिमी विद्वानों में सबसे बड़े दार्शनिक और ज्ञानी विद्वान थे, उनकी पत्नी जेंथीप बहुत झगड़ालू और कर्कशा थी। एक दिन सुकरात अपने शिष्यों के साथ किसी विषय पर चर्चा कर रहे थे। वे घर के बाहर धूप में बैठे हुए थे। भीतर से जेंथीप ने उन्हें कुछ कहने के लिए आवाज़ लगाई। सुकरात ज्ञानचर्चा में इतने खोये हुए थे कि जेंथीप के बुलाने पर उनका ध्यान नहीं गया। दो-तीन बार आवाज़ लगाने पर भी जब सुकरात घर में नहीं आए तो जेंथीप भीतर से एक घड़ा भर पानी लाई और सुकरात पर उड़ेल दिया। वहां स्थित हर कोई स्तब्ध रह गया लेकिन सुकरात पानी से तरबतर बैठे मुस्कुरा रहे थे। वे बोले:

“मेरी पत्नी मुझसे इतना प्रेम करती है कि उसने इतनी गर्मी से मुझे राहत देने के लिए मुझपर पानी डाल दिया है।”

👉🏼महान संत तुकाराम की पत्नी जीजाबाई बड़ी कर्कशा, झगड़ालु, क्रोधी थीं।

संत तुकाराम एक बार शहर से लौट रहे थे। रास्ते में गन्ने के खेत के मालिक ने तुकाराम जी को देखा। प्रसन्न होकर उन्हें प्रणाम और तुकाराम जी को अपने खेत से गन्ने भेंट किए। तुकराम जी को रास्ते में कुछ गरीब भूखे लोगों मिले जिन्‍हें वो गन्ने दान देते गए। घर पहुंचते-पहुंचते उनके पास एक ही गन्ना रह गया। संत तुकाराम की पत्नी झगड़ालू थी। जैसे ही तुकाराम को आते देखा घर के बर्तनों का गंदा पानी सीधा तुकाराम जी के ऊपर डाल दिया। तुकाराम जी ने शांत चित्त से हंसते हुए घर में प्रवेश किया।

धर्मपत्नी की तरफ गन्ना बढ़ाते हुए कहा आज शहर से लौट रहा था तब गन्ने के खेत के मालिक ने मुझे दो-चार गन्ने थमा दिए। इसलिए ले आया हूं। यह बात सुनते ही धर्मपत्नी को क्रोध आ गया व तुरंत बोली दो-चार दिए और आप तो एक ही गन्ना लेकर आए हो बाकी के गन्ने कहां हैं। तुकाराम ने उत्तर दिया कि वे तो रास्ते में कुछ भूखे और गरीब लोगों में बांट दिए। धर्मपत्नी को गुस्सा आ गया। उसी गन्ने से तुकाराम को पीटने लगी। गन्ने के 2 टुकड़े हो गए। तुकाराम ने हंसते हुए उत्तर दिया अच्छा हुआ पहले एक ही गन्ना था अब 2 हो गए। दोनों आराम से खा सकते हैं।

🙏🏻 सबके जीवनसाथी पिछले जन्मों के कर्मानुसार मिले हैं। अतः जो मिला है उसे स्वीकार के रिश्ता निभाएं। कोई जादू की उम्मीद न करें, कि रातों रात उनके सँस्कार बदल जाएंगे।

आपकी पत्नी को यह आभास भी नहीं है कि वो कर्कशा, झगड़ालु और क्रोधी है। वो स्वयं को नहीं जानती। उसके अनुसार वो बुद्धिमान और सुपर बेस्ट पत्नी है।

पत्नी की कर्कशा वाणी की बॉल पर कब विवेक की बैट से चौका-छक्का लगाना है, कब छोड़ देना है और कब केवल एक रन लेना है। यह कुशलता सीखने की आवश्यकता है। कुशल बैट्समैन के लिए कोई भी बॉल खेलना मुश्किल नहीं है। इसी तरह कुशल और सुदृढ़ मानसिक कुशल व्यक्ति के लिए विपरीत स्वभाब के जीवनसाथी को सम्हालना मुश्किल नहीं है।🙏🏻

*कुशलता हासिल करने के लिए निम्नलिखित पुस्तक पढें:-*

1- मित्रभाव बढ़ाने की कला
2- दृष्टिकोण ठीक रखें
3- गृहस्थ एक तपोवन
4- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
5- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
6- मानसिक संतुलन
7- निराशा को पास न फटकने दें

लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

सबसे पहले अपने को कुशल बनाओ, उसे हैंडल करने का मार्ग शांत दिमाग़ से ढूंढो। रोज ध्यान में उसके ऊर्जा शरीर और आत्मा का आह्वाहन करो और उसे गायत्री मंत्र पढ़ते हुए शुद्ध करने का भाव करो।

खाली दिमाग़ शैतान का घर होता है, अतः पत्नी को व्यस्त रखने हेतु कुछ उपाय सोचिए।

पाप से घृणा करो, पापी से नहीं। अपने जीवनसाथी का उद्धार करो। उसने पिछले जन्म में कुछ पुण्य किया था जिसके कारण उसे जीवनसाथी के रूप में अच्छे स्वभाव वाले तुम मिले हो, तुमने पिछले जन्म में कुछ पाप किया था जिसके बुरे स्वभाव की वो मिली है। अपने पुण्यकर्म बढ़ाओ और अपने प्रारब्ध को काटो। उसके पुण्यफल को उसे एन्जॉय करने दो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Saturday 23 February 2019

प्रश्न - *दीदी मेरा एक प्रश्न था। गुरुदेव कहते हैं की इंसान को सिम्पल रहना चाहिए और वे खुद भी बहुत ही साधारण जीवन जीते थे। आज के समय में सिम्पल की क्या डेफिनेशन हैं*

प्रश्न - *दीदी मेरा एक प्रश्न था। गुरुदेव कहते हैं की इंसान को सिम्पल रहना चाहिए और वे खुद भी बहुत ही साधारण जीवन जीते थे। आज के समय में सिम्पल की क्या डेफिनेशन हैं*

उत्तर - आत्मीय भाई, सिम्पल अर्थात जीवन में सादगी।

युगऋषि कहते हैं,
*सादा जीवन उच्च विचार,*
 *तभी मिटेगा भ्रष्टाचार।*

अंधेरे को दूर करने के लिए मोमबत्ती की रौशनी का महत्त्व होता है न कि उसके बाह्य मैकअप की। इसी तरह मनुष्य का उत्तम चरित्र-व्यक्तित्व ही उसके जीवन में प्रकाश देता है, अंधेरा दूर करता है, उसका बाह्य मेकअप नहीं।

अज्ञानता से ग्रसित समाज इसको भूल गया है, निज चरित्र-व्यक्तित्व में निखार की जगह बाह्य मैकअप में उलझ गया है। इसलिए भ्रष्ट आचार व्यवहार सर्वत्र दिखाई दे रहा है। सर्वत्र दिखावा है।

आप स्वयं देखो, इस संसार में जितने भी लोगों ने अपना व्यक्तित्व ऊंचा उठा लिया है, उच्च विचार है, जो आत्मा के शाश्वत होने और शरीर के नश्वर होने से परिचित हैं, उनका जीवन सादगी से भरा है और उनके विचारों में प्रखरता है।

दिखावा किसके लिए और क्यों करें, उन लोगों के लिए जिनके अगले पल का कुछ पता नहीं। सबके सब जिनका वजूद एक मुट्ठी राख होगा या कब्र में दफन हो कर एक मुट्ठी मिट्टी बनेंगे, उनके सामने शो ऑफ का क्या फ़ायदा?

छिछोरापन, फ़टी जीन्स, चमक-धमक, दिखावा इत्यादि वो ही करते हैं जिनका व्यक्तित्व-चरित्र और विचार निम्न होते है।

👉🏼 *सादगी की परिभाषा आज के परिप्रेक्ष्य में* - मूल रूप में (ओरिजिनल) रहें। ज़रूरत और अय्याशी में फ़र्क़ समझें। जरूरतें पूरी करें - रोटी, कपड़ा और मकान की अपने लिए व्यवस्था करें। बच्चों को पढ़ाएं लिखाएँ और योग्य बनाएं। खूब कमाए लेकिन अय्याशी में धन खर्च न करें। धन का सदुपयोग करें, लोगों की मदद करें। स्वयं को प्रकाशित आत्मज्ञान से रखें। इतनी सद्बुध्दि रखें यह शरीर एक वस्त्र की तरह है और आत्मा इस शरीर को पहने है। इस शरीर को स्वस्थ रखें और सुरक्षित रखें, लेकिन जिसके कारण यह शरीर जीवित है उस आत्मा के कल्याण के लिए प्रयत्नशील रहें। जिस समाज का हिस्सा हैं उसके कल्याण के लिए प्रयत्नशील रहें।

👉🏼 *जब विचारों में प्रखरता आएगी तो व्यक्तित्व ऊंचा स्वतः उठेगा और जीवन में सादगी(सिम्पलीसिटी) स्वतः आएगी। अतः विचारों में प्रखरता के लिए नित्य ध्यान एवं स्वाध्याय करें।*

जितना सत्य जीवन में उतरेगा उतनी सादगी जीवन मे स्वतः आती जाएगी।

सत्य को धारण करने के मार्गदर्शन हेतु निम्नलिखित सहित्य पढ़े:-
1- मैं क्या हूँ?
2- अखण्डज्योति पत्रिका
3- युगनिर्माण पत्रिका
4- चेतना की शिखर यात्रा
5- आत्मोत्कर्ष का आधार - ज्ञान

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *पूजन और जीवन में फूलों का क्या महत्त्व है? आशीर्वाद देते वक़्त भी पुष्पवर्षा क्यों करते हैं? चरणामृत में गुलाब की पंखुड़ियों का क्या महत्त्व है?*

प्रश्न - *पूजन और जीवन में फूलों का क्या महत्त्व है? आशीर्वाद देते वक़्त भी पुष्पवर्षा क्यों करते हैं? चरणामृत में गुलाब की पंखुड़ियों का क्या महत्त्व है?*

उत्तर - आत्मीय बहन, जिस प्रकार पत्र(letter) प्रेषित(send) करने के लिए हम लिफ़ाफ़े(Envelope) का प्रयोग करते हैं, ठीक वैसे ही हृदय की भावनाएं, प्रेम, विश्वास, शुभवचन, मन्त्रपूरित भावनाओ को प्रेषित करने के लिए हम पुष्प का प्रयोग करते हैं। यह भावनाओं की कोरियर सर्विस भी है।

*उदाहरण* - भक्त को भगवान को पुष्प अर्पित करना, जन्मदिन-विवाहदिवस पर पुष्पवर्षा से आशीर्वाद देना, प्रेमी-प्रेमिका द्वारा एक दूसरे को पुष्प देना इत्यादि।

👉🏼फूल बहुत ही शुभ और पवित्र होते हैं. ज्योतिष के जानकारों की मानें तो सुंदरता और सुगंध से भरपूर फूलों के इस्तेमाल से मन में उत्साह उमंग उल्लास का संचार होता है. जिस घर में फूल होते हैं, नकारात्मक ऊर्जा वहां के इर्द-गिर्द भी नहीं भटक पाती है.

फूलों के इस्तेमाल से आप अपने जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार बढ़ा सकते हैं. इसीलिए घर के आस-पास फुलवारी की परंपरा सदियों से चली आ रही है. धार्मिक मान्यताओं में फूलों का प्रयोग पूजा और उपासना के लिए किया जाता है. मान्यता है कि इससे ईश्वर तक भक्त की भावनाएं पहुंचती है. आइए जानते हैं उपासना में फूल क्यों हैं इतने महत्वपूर्ण:

*उपासना में फूलों का महत्व*
- फूल इंसान की श्रद्धा और भावना को स्वयं में समेटे प्रतीक रूप में पहुंचाते हैं।
- इसके साथ ही फूल इंसान की मानसिक स्थितियों के बारे में भी बताते हैं।
- फूलों के अलग-अलग रंग और सुगंध अलग तरह के प्रभाव पैदा करते हैं।
- पूजा में वास्तविक फूल भी अर्पित कर सकते हैं और मानसिक रूप से पुष्प का स्मरण करके भी पुष्प अर्पित कर सकते हैं।.
🌹🌹🌹🌹🌹🌼
*चरणामृत में गुलाब के पुष्प की पंखुड़ियों को देने के पीछे कारण*

- गुलाब का फूल एक अद्भुत और चमत्कारी फूल है, जो रिश्तों पर सीधा असर डालता है.

- गुलाब के फूल की ढेर सारी किस्में पाई जाती हैं, परन्तु ज्योतिष और पूजा में लाल गुलाब का ही प्रयोग किया जाता है.

- लाल गुलाब मंगल से सम्बन्ध रखता है और इसकी खुश्बू का सम्बन्ध शुक्र से होता है.

- इसके प्रयोग से प्रेम, आकर्षण, रिश्तों और आत्मविश्वास का वरदान मिलता है.

- जिस तरह भक्त भगवान तक पुष्प के माध्यम से अपने भाव पहुंचाता है। ठीक उसी प्रकार पुष्प पंखुड़ियों में भगवत कृपा और वरदान की भावनाएं चरणामृत के साथ भक्त तक पहुंचती है।

💐💐💐💐💐
*आशीर्वचन बोलते हुए किसी पर पुष्प वर्षा करने पर वह पुष्प उस व्यक्ति के शरीर पर गिरते हैं, जो आपकी भावनाओं और मन्त्रों को उसके ऊर्जा शरीर मे प्रवेश करवा देते हैं। प्राणऊर्जा को बढ़ाते हैं।*
💐💐💐💐💐💐

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday 22 February 2019

अध्यात्मज्ञान थोड़े से मज़ाकिया घटनाक्रम में

*अध्यात्मज्ञान थोड़े से मज़ाकिया घटनाक्रम में..*
😂😂😂😂
जब मैंने विजयमाल्या के 9000 करोड़ रुपये लेकर देश छोड़ के भागने की खबर पढ़ी, साथ में मोदी सरकार द्वारा उसकी देश विदेश की प्रॉपर्टी नीलाम करके 13000 करोड़ वसूलने की खबर पढ़ी। साथ ही ट्विटर पर विजय माल्या के रोने की खबर कि अगर लौटा दिया होता तो कम से कम 4000 करोड़ बच जाते।

मेरे आध्यात्मिक मन ने इसे आध्यात्मिक दृष्टि से देखा। देश अर्थात हमारा जीवन, कर्मभोग अर्थात परेशानियां - शारीरिक, मानसिक, आर्थिक प्रारब्ध

अब यदि इन परेशानियों से उकता कर कोई आत्महत्या(वस्तुतः शरीर हत्या होती है, क्योंकि आत्मा को कोई मार नहीं सकता) कर लेता है अर्थात देश छोड़ देता है। तो भी विजयमाल्या की तरह उसे मुक्ति नहीं मिलती। नए शरीर में पुनः उन प्रारब्ध से रुबरु होना पड़ता है।

कम से कम विजयमाल्या देश मे कर्ज चुकाता तो केवल 9 हज़ार करोड़ चुकाने पड़ते, लेकिन देश छोड़कर भागने पर 13 हज़ार करोड़ चुकाने पड़े। 4 हज़ार करोड़ ज्यादा।

अतः अपने प्रारब्ध को इसी देश या जन्म में निपट लो, प्रायश्चित का सुनिश्चित कायाकल्प विधान अपना लो। मरने पर मुक्ति नहीं मिलती 😍😍😍😍 अतः जीवन त्यागने का कोई फायदा नहीं। कमर कसो और अपना युध्द लड़ो।

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *जिह्वा पर नियंत्रण कैसे करें?*

प्रश्न - *जिह्वा पर नियंत्रण कैसे करें?*

उत्तर - आत्मीय भाई, युगऋषि कहते हैं कि जिह्वा रूपी टीवी का रिमोट कण्ट्रोल मन के हाथ में है। अतः मन को साधो, तो जिह्वा स्वतः सध जाएगी।

मन खराब हो तो भोजन में स्वाद नहीं मिलता, और मन अच्छा हो तो साधारण भोजन भी स्वादिष्ट लगता है।

मन में जब कुछ बातें घर कर जाती हैं कि इससे मुझे आनन्द मिलेगा, तो मन उसे खाने के लिए मचलने लगता है। अब वह नित्य गाज़र का हलवा खाने की इच्छा हो या खीर, या नित्य सिगरेट पीने की इच्छा हो या शराब। यह लत मुख्यतः मन की ही देन है।

*मन को नियंत्रित करने के लिए अभ्यास और वैराग्य का तरीका श्रीमद्भागवत गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया था।*

🙏🏻 *अभ्यास* - मन को मजबूत करने वाले विचारों को जैसे बच्चे पहाड़े याद करते है वैसे ही मन ही मन दोहराओ

👉🏼 मैं आत्मा रूपी यात्री हूँ यह शरीर सराय है।
👉🏼 आत्मज्ञान प्राप्त करना मेरा जीवन उद्देश्य है।
👉🏼 आत्मउद्धार करना मेरी वरीयता है।
👉🏼 शरीर को स्वास्थ्यकर भोजन दूंगा।
👉🏼 मन मेरा नौकर है, मैं इसका स्वामी हूँ।
👉🏼 मेरा मन मेरे नियंत्रण में है।
👉🏼 हे परमात्मा मुझे सद्बुद्धि दो और सन्मार्ग पर चलाओ
👉🏼 गायत्री मंत्र जप

🙏🏻 *वैराग्य* - मन को साक्षी भाव से देखना और मन मे उठने वाले विचारों पर पैनी नज़र रखना।
👉🏼 नित्य आधे घण्टे ध्यान करने बस बैठ जाना और कुछ मत करना, कुछ मत सोचना, केवल आती जाती श्वांस को महसूस करना।
👉🏼 सप्ताह में कुछ न ख़ाकर केवल फलों के रस पर एक दिन व्रत/उपवास रहना
👉🏼 दिन में दो घण्टे मौन रहना या संभव हो तो सप्ताह में एक दिन मौन रहना
👉🏼 जब भी कुछ खाने की इच्छा हो उसे तुरन्त पूरी न करें, कुछ घण्टों के लिए टाल दें। फिर विचार करें, यदि स्वास्थ्यकर हो तो खाएं।
👉🏼भोजन करते समय स्वाद का मामला जीभ से जुड़ा है और हम यह मान लेते हैं कि खान-पान की वस्तुओं में ही जीभ का स्वाद है। इसीलिए जीभ की दूसरी उपयोगिता पर ध्यान ही नहीं देते।
👉🏼 जीभ के दो स्वाद और हैं, जिनका अन्न से कोई लेना-देना नहीं है। उसका संबंध शब्दों से है, वाणी से है। जीभ को किसी बात में निंदा, शिकायत और बढ़ाचढ़ाकर बोलने में बड़ा स्वाद आता है। किसी की झूठी तारीफ करना हो तो भी जीभ तुरंत सहमति दे देती है। किसी के प्रति आभार जताने में, उसकी सच्ची तारीफ करने में कुछ लोगों की जीभ को भारी तकलीफ होती है। इसलिए हमें अपनी जिह्वा को भी अभ्यास में डालना होगा। मन तो ऊटपटांग विचार करने में माहिर होता ही है। वह ऐसे निगेटिव विचार फेंकता ही रहता है। जीभ को इसमें स्वाद आता है तो वह तुरंत लपककर बाहर कर देती है। हमें जीभ पर लगाम कसनी होगी।
👉🏼 इसके लिए दो काम करने पड़ेंगे- खूब सुनें और मौन रखें। जितना मौन रखेंगे, उतना जिह्वा को काबू में रखने की आदत होगी। किसी की बात सुनें तो पूरी तन्मयता से सुनें। सुनते कान हैं, पर जीभ भी कुछ सुन रही होती है। वरना जीभ को बोलने में ही रुचि है। इसीलिए लोग दूसरों की सुनते नहीं हैं। जब भी किसी को सुनें, भीतर से पूरी तरह वहीं रहें। मन के विचार जीभ पर आकर रुक जाएंगे। धीरे-धीरे मन को लगेगा मेरा भेजा सामान ब्लॉक हो रहा है, मुझे भी रुकना पड़ेगा। यहीं से आपके व्यक्तित्व में एक शांति उतरेगी। आपके पास बैठने वाले व्यक्ति को लगेगा कि वह आपसे कुछ लेकर जा रहा है। संभवत: वह उसके लिए शांति ही होगी।


🙏🏻 अपने मन को नियन्त्रित करके ही जीभ को नियंत्रित किया जा सकता है। मन को शशक्त विचारों से नियंत्रित किया जा सकता है। यह शशक्त विचारों की सेना सतत स्वाध्याय, ध्यान, साधना और उपासना से बनेगी। 📖 *अखण्डज्योति पत्रिका* और 📖 *युगनिर्माण योजना पत्रिका* जरूर पढ़ें, इससे विचार पैने होंगे, शशक्त विचारों की मन मे सेना तैयार होगी, जो मन पर नियंत्रण की शक्ति देगा। मन पर नियंत्रण हुआ तो जिह्वा स्वतः नियंत्रित हो जाएगी।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Thursday 21 February 2019

भय का समूल नाश आत्मज्ञान से करूंगा

*भय का समूल नाश आत्मज्ञान से करूंगा।*
🔥🔥🔥🔥🔥🔥
भय का कारण समझ लो तो,
भय का अस्तित्व ही मिट जाता है,
भय का रहस्य जान लो तो,
भय को जीतने का रास्ता मिल जाता है।

इंसान ने पहले आग से,
बहुत ही ज्यादा भय खाया,
जब उसका रहस्य बूझा तो,
उसी आग पर रोटी सेककर खाया।

पहले देख सांप जहरीला,
सपेरे का बालक भय से घबराया,
पर जब सांप का रहस्य समझा तो,
उसी को बीन बजाकर खूब नचाया।

भय से भय जो करोगे,
भय बड़ा होता जाएगा
तब तो हर झाड़ियों में भूत का साया,
और हर रस्सी में सांप नजर  आएगा।

परीक्षा का भय,
केवल उन्हें ही सताता है,
जो वर्षभर आवारागर्दी में,
अपना बहुमूल्य समय गंवाता है।

रिश्ते के टूटने का भय,
केवल उसे ही सताता है,
जो स्वार्थ साधने के लिए,
रिश्ते बनाना चाहता है।

नौकरी छूटने का भय,
केवल उसे ही सताता है,
जो स्वयं की काबिलियत पर,
भरोसा नहीं कर पाता है।

अपने भय को समझो,
उसकी जड़ तक जाओ,
उस को जीतने हेतु,
प्राणपण से जुट जाओ।

स्वयं से प्रश्न पूँछो,
मैं क्यूँ, किसलिए डर रहा हूँ?
क्या किसी घटना के होने की,
आशंका से डर रहा हूँ?
या जो हुआ ही नहीं,
जिसका अस्तित्व ही नहीं है,
उन बातों से डर रहा हूँ?
स्वयं की कल्पना से बने भूत,
या अनहोनी से ही तो,
कहीं मैं नहीं डर रहा हूँ?

जो भय दिन में है,
वो ही भय तो रात को होगा,
जिसका अस्तित्व दिन में ही नहीं,
वो रात को कहाँ से आएगा?

शरीर है तो बीमारी भी होगी,
रिश्ते है तो तक़रार भी होगी,
घर गृहस्थी है तो झंझट भी होगी,
जीवन है तो परेशानी भी होगी।

खेल का मैदान है,
तो विरोधी टीम भी होगी,
देश है,
तो दुश्मन सेना भी होगी।

संघर्ष ही जीवन है,
तो भाई अब भय कैसा?
बहादुरी से लड़ने में ही है,
केवल मज़ा ही मज़ा।

बीमारी का इलाज़ करेंगे,
रिश्तों के लिए बात करेंगे
परेशानियों का समाधान ढूंढेंगे,
विरोधियों को बहादुरी से हराएंगे।

भूतकाल भी,
कभी न कभी वर्तमान में बीता होगा,
भविष्य के अस्तित्व का बीज भी,
वर्तमान में ही बोया होगा।

तुम न भविष्य में जी सकते हो,
न ही भूतकाल में कुछ कर सकते हो,
जो कुछ कर सकते हो,
वो वर्तमान में ही कर सकते हो,
छोड़ो भूतकाल का पछतावा,
छोड़ो भविष्य की चिंता का छलावा,
वर्तमान में बेहतर करने को,
स्वयं को दो प्रोत्साहन और बढ़ावा।

स्वयं से बोलो,
अब डर-डर के नहीं जीना है,
अपने भय को,
आत्मविश्वास से मिटाना है,
अपने भय का,
बहादुरी से करना सामना है ।
जो होगा भाई,
आगे देखा जाएगा,
अब भय करने में यह मन,
इक पल भी न गंवाएगा।

आओ लें यह प्रण आज से!
मैं विजेता हूँ! विजेता था! विजेता ही रहूँगा,
किसी भी कीमत पर भय से न डरूँगा,
अपने भय की जड़ को समझूंगा,
भय का समूल नाश आत्मज्ञान से करूंगा।

अँधेरा कितना भी गहरा हो,
उसे नन्हा सा दीपक भगा देता है,
भय कितना ही क्यों न हो बड़ा हो,
उसे एक छोटा सा आत्मविश्वास हरा देता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 20 February 2019

प्रश्न - *दीदी, इक्षानुरुप नहीं होने पर मन दुःखी क्यों होता है?* *क्या अपेक्षाएं रखना गलत है?*

प्रश्न - *दीदी, इक्षानुरुप नहीं होने पर मन दुःखी क्यों होता है?*
*क्या अपेक्षाएं रखना गलत है?*

उत्तर - आत्मीय भाई, यह संसार जिन एटम से बना है उसी एटम से प्रत्येक मनुष्य और तुम भी बने हो। सब जुड़कर भी सबकी अपनी अपनी स्वतन्त्र सत्ता है।

तत्व दृष्टि से यदि जीव, वनस्पति, पशु, पक्षी और मनुष्य को देखोगे तो सबमें वह एटम है, उस एटम(परमाणु/कण) में एक ऊर्जा है औऱ वो ऊर्जा ही परमात्मा है। जिससे यह जगत चलायमान है।

इच्छा यदि विवेकपूर्वक किया जाय तो कभी दुःखी न होगा इंसान। यदि जो जैसा उसे वैसा स्वीकार कर लो।

एक खिलाड़ी की तरह स्वयं की योग्यता और काबिलियत पर भरोसा रखते हुए जीवन जियो। क्रिकेट के मैदान में यदि बैट्समैन बॉलर्स से उम्मीद करेगा कि वो अच्छी बॉल फेंके तो हमेशा दुःखी होगा। लेकिन यदि बैट्समैन केवल स्वयं से उम्मीद करे कि ख़ुद बेहतर खेलना है, तो कभी निराश नहीं होगा।

अपेक्षाएं स्वयं से रखना सही है, अपेक्षाएं दूसरे से रखना सर्वथा ग़लत है। अब वह दूसरा तुम्हारा प्रिय स्वजन जीवनसाथी, मित्र रिश्तेदार ही क्यों न हो... तुम अपेक्षाएं न रख के ऐसे सोचो कि यदि यह मेरी इच्छानुसार कार्य करता है तब मेरा अगला कदम यह होगा, यदि मेरी इच्छानुसार कार्य नहीं करता तब मेरा कदम यह होगा। उस व्यक्ति की स्वतन्त्र आत्मसत्ता का सम्मान करो, उसके किसी भी क्रिया पर तुम क्या प्रतिक्रिया करोगे यह तैयार रखो।

मोह सकल व्याधिन कर मूला- मोहबन्धन में मत बन्धो। सुख से मोह करोगे तो दुःख में पड़ोगे। दुःख का दूसरा नाम इच्छा है। सुख-दुःख दिन और रात की तरह अनवरत आते जाएंगे, तुम अपने जीवन की प्रोग्रामिंग जैसे दिन में क्या करोगे और रात में क्या करोगे के लिए करते हो, ठीक वैसे ही प्रोग्रामिंग सुख में क्या करोगे और दुःख में क्या करोगे के लिए कर लो।

यह शरीर भी तुम्हारा हमेशा नहीं रहेगा, यह शरीर सराय है, यह परिवर्तनशील है, इसके रोगी या बूढ़े होने के कई कारण तुम कंट्रोल नही कर सकते हो। तो इस शरीर का ही मोह/अपेक्षा नहीं करना है। इस शरीर मे बीमारी हो तो इलाज करना है और यह शरीर स्वस्थ है तो इसके स्वास्थ्य को मेंटेन करना है।

इसी तरह इस शरीर से जुड़े रिश्ते बीमार है तो उन रिश्तों का इलाज़ करो। बातचीत करके हल करने की कशिश करो। यदि रिश्ते स्वस्थ हैं तो उसे मेंटेन करो।

उलझो कहीं मत, तत्वदृष्टि से संसार में सबको देखो।यहां न कोई अपना है और न कोई पराया।जिंदगी के रंगमंच पर सब अपना रोल कर रहे हैं, तुम केवल अपने रोल को जानदार शानदार करने में जुट जाओ। रोल खत्म पर्दा गिर जाएगा और गेटअप से व्यक्ति मुक्त हो जाएगा। वह नाटक/फ़िल्म ख़त्म, नए जन्म में दूसरी शुरू...यह क्रम चलता रहेगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 19 February 2019

प्रश्न - *दी, जब लोग ज्यादा परेशान करें तब क्या करना चाहिए?*

प्रश्न - *दी, जब लोग ज्यादा परेशान करें तब क्या करना चाहिए?*

उत्तर - आत्मीय बहन,

ये बताओ निम्नलिखित परिस्थिति में हमे क्या करना चाहिए?
1- बरसात में छत टपके तो..
2- शरीर पर मख्खी बैठे तो..
3- बैंक में चोरी हो तो...
4- क्रिकेट ग्राउंड में बैट्समैन आउट हो रहा हो तो..

 उत्तर होगा:-
1- छत की मरम्मत करवाओ, क्योंकि बरसात को रोकना हमारे बस में नहीं।
2- शरीर को स्वस्थ और साफ रखो, फोड़े न होने पाएं यदि हो गए हों तो उन पर दवाई लगाओ क्योंकि मख्खी बिना घाव और गन्दगी आएगी नहीं। हम मख्खी को नियंत्रित नहीं कर सकते।
3- चोरों को पूर्णतया समाप्त करना हमारे बस में नहीं, लेकिन हम अपने बैंक की सिक्योरिटी इतनी बढ़ा सकते हैं कि चोर चोरी कर ही न पाएं।
4- बॉलर को हम अपनी इच्छानुसार बॉलिंग करने के लिए नहीं कह सकते, लेकिन हम स्वयं को इस तरह अभ्यास द्वारा तैयार कर सकते हैं कि कोई भी गेंद खेल सकें।

बहन इसी तरह, लोग को आप नियंत्रित नहीं कर सकती। लोगों के मुंह मे ढक्कन लगाना संभव नहीं। आपको स्वयं पर काम करने की जरूरत है।

1- अपना आत्मविश्वास और मनोबल बढ़ाएं, क्या कहेंगे लोग परवाह मत करो
2- हीनता का फोड़ा मन से हटा दो, अपनी तुलना किसी से मत करो। तुम सर्वश्रेष्ठ हो और अपनी कठिनाइयों का सामना सैनिकों की तरह करो।
3- अपनी ऊर्जा स्वयं की बैंक की तरह मन की सिक्योरिटी बढ़ाने में करो, कि कोई लोग तुम्हें परेशान कर ही न पाएं।
4- जिंदगी के क्रिकेट के मैदान में तुम लोगों को परेशानी की बॉल तुम्हारी तरफ फेंकने से रोक नहीं सकती, लेकिन तुम उन बॉल पर चौके, छक्के लगा सकती हो, इस गेम में जबतक तुम मन से नहीं हरोगी ब्रह्माण्ड की कोई शक्ति तुम्हे हरा नहीं सकती। दूसरों को उन्ही के गेम में परास्त कर सकती हो।

यह जिंदगी युद्ध का मैदान है, जो सैनिक मनोवृत्ति का है वो लड़ रहा है, जो खिलाड़ी मनोवृत्ति का है वो खेल रहा है, जो अनाड़ी है वो रो रहा है, जो डरपोक मनोवृत्ति का है वो भय से मर रहा है। Attitude(मनोवृत्ति) is everything.

रोज जंगल मे शेर भी दौड़ता है और हिरन भी, जो शेर जीता भोजन मिलेगा, जो हिरन जीता तो उसका जीवन बचेगा। प्रकृति और यह धरा को वीरों के लिए है(वीर भोग्या वसुंधरा)। संघर्ष ही जीवन है, सबको अपने हिस्से का युद्ध लड़ना पड़ेगा।

कुछ पुस्तकें स्वयं की मनोवृत्ति(attitude) की मरम्मत(Maintenance) के लिए पढ़ें:-

1- सफलता आत्मविश्वासी को मिलती है
2- दृष्टिकोण ठीक रखें
3- शक्तिवान बनिये
4- प्रबंधव्यवस्था एक विभूति एक कौशल
5- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
6- हारिये न हिम्मत
7- आगे बढ़ने की तैयारी
8- निराशा को पास न फटकने दें

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *श्वेता दीदी सब कह रहे हैं आज के चाँद में गुरुदेव दिख रहे हैं????*

प्रश्न - *श्वेता दीदी सब कह रहे हैं आज के चाँद में गुरुदेव दिख रहे हैं????*

उत्तर - आत्मीय बहन, पूर्णिमा का चाँद हृदय का दर्पण बन जाता है। हृदय में बैठे ईष्ट या सद्गुरु की ब्लैक एंड व्हाइट(पुराने जमाने की निगेटिव) की तरह तस्वीर दिखती है। जो पूर्णतया स्पष्ट नहीं होती, जिस प्रकार स्वप्न में हम प्रियजन और गुरूदेव को देखते हैं ठीक वैसे ही खुली आँखों से चंद्रमा में दिखते हैं। यह सबकुछ भावना प्रधान होता है।

बुद्धि से गुलाब के पुष्प में प्रेम नहीं दिखता, गुलाब में छुपे प्रेम को महसूस करने के लिए भावदृष्टि चाहिए। ठीक इसी तरह प्रियतम ईष्ट को चंद्रमा में देखने के लिए भाव दृष्टि चाहिए।

जैसी भाव दृष्टि वैसी सृष्टि चंद्रमा में दिखती है, जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत तिन देखी तैसी। यह 100% सत्य है कि हृदय में बसे भगवन चंद्रमा के दर्पण में दिखते है।

यह भी सत्य है यदि कोई प्रेमी किसी से दिलोजान से प्रेम करता है तो वो अपनी प्रेमिका को चंद्रमा के दर्पण में देखेगा।

हम जब एकटक पूर्णिमा के चंद्रमा को मध्यरात्रि में कुछ मिनटों तक देखते हैं, तो थोड़ी देर में कुछ अस्पष्ट पहले आकृति उभरती है, फिर ब्लैक एंड व्हाइट सिल्वर आकृति केवल गुरूदेव की दिखती है। अब आधुनिक विज्ञान इसे इल्यूजन(भ्रम) समझ सकता है, लेकिन मनोविज्ञान में यह उस व्यक्ति के भाव चित्र की सच्चाई है। चंद्रमा की प्रोजेक्टर स्क्रीन पर हृदय में स्टोर स्ट्रांग फीलिंग्स/मनोभाव प्रोजेक्ट हो रहा है। जो उस व्यक्ति के लिए सच्चाई है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday 18 February 2019

प्रश्न - *दी, जीवन में सत्संग का क्या महत्व है!? मेरे बेटे ने मुझे पूँछा है? मार्गदर्शन करें*

प्रश्न - *दी, जीवन में सत्संग का क्या महत्व है!? मेरे बेटे ने मुझे पूँछा है? मार्गदर्शन करें*

उत्तर - आत्मीय बहन, सत्संग अर्थ होता है- सत्य के साथ संगति करना।

👉🏼 *जैसी संगत वैसी रंगत* वाली कहावत आपने सुनी होगी..तो जब आप सत्य का संगत बनाएंगे तो सत्य आपके भीतर प्रवेश करेगा।

👉🏼 *बच्चे को एक प्रयोग घर में सत्संग पर करके दिखाएं - एक सफेद/हल्के पीले मटर के दाने को सौंफ़ वाली डिबिया बन्द करके 15 दिन रख दो। 15वें दिन तक वो मटर हरी हो जाएगी, उसमें सौंफ की खुशबू आएगी। अर्थात जिस तरह सौंफ की संगत ने मटर की रंगत बदल दी, ऐसे ही जिस प्रकार के *व्यक्तियों/दोस्तों के समूह में आप संगत(उठते-बैठते-गपशप)* करते हो, या जिस प्रकार के *टीवी सीरियल फ़िल्म की आप संगत(देखते-सुनते)* करते हो या जिस प्रकार के *साहित्य की आप संगत(पढ़ते)* हो, उनके गुण अच्छे या बुरे स्वतः भीतर प्रवेश करने लगते हैं।

👉🏼 *सत्संग(सत्य की संगत) करने के उपाय* -

1- अच्छी जीवनोपयोगी और सही मार्गदर्शन करने वाली पुस्तको का स्वाध्याय करना।

2- अच्छी सोच और नेक नियत लोगों का समूह ज्वाइन करना, उनके साथ जीवनोपयोगी और समस्या समाधान परक स्वाध्याय करना या कोई एक पढ़े तो बाकी लोग सुनें। अच्छे अच्छे शब्दों और प्रेरणादायक प्रज्ञा गीत गाना। ब्रह्म सत्य है और आत्मज्ञान पाना ही लक्ष्य है इस पर चर्चा परिचर्चा करना।

3- आत्मउत्थान और राष्ट्रचरित्र निर्माण हेतु योजना बनाना और उन पर चर्चा करना।

4- देवपूजन - श्रेष्ठता का वरण करना, सत्संकल्प बोलना और दोहरवाना। भली सोच और नेकनीयत लोगो का संगठन बनाकर आसपास समाज सेवा की गतिविधियां चलाना।

5- सामूहिक योग-ध्यान-प्राणायाम और आयुर्वेदिक ज्ञान की अवेयरनेस बढ़ाना और लोगों को सिखाना।

ऐसे कार्य जो जीवन मे ऊर्जा का संचार करें, किसी के जीवन को सही राह बतायें इनकी चर्चा परिचर्चा को सत्संग कहते हैं।

👉🏼 *सत्संग के फ़ायदे*:-
1- जीवन में भटकोगे नहीं
2- जीवन मे प्रकाश रहेगा
3- तनावमुक्त रहोगे
4- मन हल्का प्रफुल्लति रहेगा
5- उमंग उल्ल्लास जगेगा तो स्वास्थ्य लाभ मिलेगा
6- घर को व्यवस्थित ज्ञान के माध्यम से मैनेज कर सकोगे
7- जीवन प्रबंधन से जीवन सुखमय होगा
8- कभी भी किसी के गलत बहकावे में नहीं आओगे
9- घर के रिश्ते बेहतर बनेंगे
10- मन का सुकून ऑफिस के कार्य को अच्छे से करने में मदद करेगा
11- आध्यात्मिक उन्नति होगी, तो सर्वत्र खुशहाली होगी
12- सत्संग की महिमा यह है कि यह मनुष्य का चरित्र बदलने की क्षमता रखता है।

👉🏼 *क्या सत्संग नहीं है*
1- फ़िल्मी धुनों पर अर्थहीन भजन गाना
2- बेमतलब की बिन सर पैर की धार्मिक कहानियां बोलना
3- जिस बात से किसी को लाभ न हो उसे दोहराना
4- धार्मिक भावना से लोगो को एकजुट करके वहां चुगली चपाटी करना
5- किटी पार्टी करना

सत्संग के जितने फायदे हैं, उतने ही कुसंग(बुरी संगत/असत्य के संगत) से हानि है। अतः संगत अच्छी पुस्तको, अच्छे वेबसाइट, अच्छे यूट्यूब कंटेंट, अच्छे टीवी फ़िल्म और अच्छे लोगों की करें।

नोट:- जीवनोपयोगी साहित्य ऑनलाइन पढ़े या घर बैठे मंगवाएं:- http://literature.awgp.org

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Sunday 17 February 2019

प्रश्न - *मेरा एक प्रश्न यह है दी कि क्या मन ही मन बिना मुंह से बोले टेलीपैथी द्वारा अपनी बात दूसरे तक पहुंचाई जा सकती है? दूरस्थ व्यक्ति एनर्जी/ऊर्जा ट्रांसमिट हो सकता है?*

प्रश्न - *मेरा एक प्रश्न यह है दी कि क्या मन ही मन बिना मुंह से बोले टेलीपैथी द्वारा अपनी बात दूसरे तक पहुंचाई जा सकती है? दूरस्थ व्यक्ति एनर्जी/ऊर्जा ट्रांसमिट हो सकता है?*

उत्तर - आत्मीय भाई, हाँजी यह संभव है।

बेले डांस में दोनों पंजो को इस क़दर मजबूत औऱ अभ्यस्त बनाया जाता है कि ऊंची जम्प के बाद भी उस पर बैलेंस बना के घूमा जा सके। यह यदि आम जनता करे तो गिर जाएगी लेक़िन एक विशेष प्रक्रिया और विधिविधान से निरन्तर म्यूजिक पर अभ्यास करने पर सध जाता है।

टेलीपैथी भी कुछ इसी तरह का अभ्यास मांगता है बस फ़र्क यह है कि यहाँ म्यूज़िक बाहरी नहीं अंतर्जगत में गूँजरित ब्रह्मनाद होता है, नृत्य साधना स्थूल नहीं सूक्ष्म शरीर करता है, पंजे पर बैलेंस अर्थात एक विचार पर एकाग्र होने की कुशलता हासिल करनी पड़ती है।

टैलीपैथी अर्थात विचारों का संप्रेषण। यह सम्प्रेषण कुशलता पूर्वक करना होता है। यह कुशलता तब आती है जब ध्यानस्थ एकाग्र होने की क्षमता विकसित हो जाती है और हम भीतर गूँजरित ब्रह्मनाद सुन सकने में सक्षम होते है। अब कुशल मन में जो विचार अमुक व्यक्ति को सम्प्रेषित करना है उस विचार पर कम से कम दस मिनट एकाग्र होना होता है, फिर अमुक व्यक्ति की चेतना का आह्वाहन अपने अंतर्जगत में करके उसे वो विचार सम्प्रेषित कर देते हैं। जब किसी व्यक्ति को बुला ही लिया तो उससे बात करो या उसे समान दो  सबकुछ सम्भव है। अब उसे सन्देश भी दे सकते हो और ऊर्जा भी ट्रांसफर कर सकते हो। जो चाहो वो करो, वो तुम्हारे नियंत्रण में होगा। इससे उपचार भी दूरस्थ व्यक्ति का कर सकते हो, अपनी बात भी मनवा सकते हो, कुछ भी करवा सकते हो।

इसे और अच्छे से निम्नलिखित अखण्डज्योति के आर्टिकल में समझो:- http://literature.awgp.org/akhandjyoti/2000/July/v2.13

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, हमने सुना है कि गायत्री मंत्र कीलित/शापित है, क्या श्रापविमोचन किये बिना गायत्री साधना फ़लित नहीं होती? मार्गदर्शन करें*

प्रश्न - *दी, हमने सुना है कि गायत्री मंत्र कीलित/शापित है, क्या श्रापविमोचन किये बिना गायत्री साधना फ़लित नहीं होती? मार्गदर्शन करें*

उत्तर - आत्मीय बहन, बैंक में यदि होम लोन लेने जाओगी, तो वह आपकी पात्रता चेक करेगा।कम्पनी में उच्च जॉब के लिए जाओगे तो भी योग्यता चेक होगा।

पुलिस, सेना, IB और RAW सबमें पदानुसार योग्यता चाहिए। इन महत्त्वपूर्ण पदों में योग्यता के साथ साथ देशभक्ति होना जरूरी है।

*प्राचीन समय में चेकलिस्ट कम होने की वजह से राक्षस तप करते और बड़े बड़े वरदान प्राप्त करके सृष्टि के विनाश में जुट जाते। देवताओं के लिए बड़ा सरदर्द हो गया। अच्छी बात यहाँ यह थी कि यह समस्त साधनाएं बलवान शरीर और अस्त्रशस्त्रो के लिए होती थीं। देवता गायत्री साधना से बुद्धिबल अर्जित करके उन्हें अंततः हराने में सफल हो जाते थे। अब राक्षस देवताओं को बुद्धिबल से हराने का उपाय ढूंढने लगे।*

*जब राक्षसों को बुद्धिबल की देवी गायत्री शक्ति का पता चला तो वो इसको भी हासिल करने को दौड़े। तब वशिष्ठ और विश्वामित्र ऋषियों ने गायत्री साधना करने से पूर्व चेकलिस्ट/योग्यता निर्धारित कर दी, और ऐसी कड़ी व्यवस्था बना दी कि कुत्सित मानसिकता और स्वार्थकेन्द्रित व्यक्ति गायत्री को सिद्ध ही न कर पाए। इन दोनों ऋषियों ने तप किया और गायत्री को सिद्ध किया। वशिष्ठ ऋषि ने माता से वर मांगा कि जब तक कोई योग्य(वशिष्ठ) न हो उसे गायत्री शक्ति का अधिकार न मिले। ऋषि विश्वामित्र ने वर मांगा कि जिसके अंदर विश्वकल्याण की भावना न हो और जो विश्व का मित्र(विश्वामित्र) न हो उसकी गायत्री साधना सिद्ध न हो। माता ने तथास्तु कह दिया। साथ ही यह भी वचन लिया कि कोई वशिष्ठ और विश्वामित्र की कंडीशन को पूरा करने वाला सद्गुरु गारण्टी ले तो ही उसके शिष्य को इस मार्ग में प्रवेश मिले।*

अब देवताओं में यह नियम है कि First come First serve, जिसने पहले तप किया और वचन ले लिया। उसे दूसरा तोड़ नहीं सकता। इस तरह वशिष्ठ और विश्वामित्र ने राक्षसों के हाथ गायत्री शक्ति जाने से बचा लिया। राक्षस न योग्य होते हैं और न ही विश्वकल्याण की भावना उनके मन मे होती है। अतः इस मार्ग में अयोग्य होने के कारण आगे बढ़ न सके।

बैंक लोन के लिए एक गारंटर लगता है, यदि वो गारंटी ले ले तो भी लोन पास हो जाता है। लेकिन वो गारंटर योग्य होना चाहिए।

*गायत्री पूर्ण सिद्धि के लिए गारंटर वही सद्गुरु बन सकता है जिसने सवा करोड़ गायत्री जप किया हो और 1008 से ज्यादा गायत्री यज्ञ किया हो। कम से कम 12 वर्ष तप के साथ लोकल्याण हेतु कार्य किया हो। यह उपरोक्त प्रोफ़ाइल से ज्यादा योग्यता हमारे युगऋषि परमपूज्य गुरूदेव पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी का है। उन्होंने उपरोक्त कंडीशन को दो से ज्यादा बार एक ही जन्म में कर लिया।*

अतः वशिष्ठ और विश्वामित्र के दोनों श्रापविमोचन अर्थात साधना मार्ग की एंट्री पास गुरु आह्वाहन से ही हो जाता है। गुरु को हम वचन देते हैं कि *करिष्ये वचनम तव* आपके अनुसाशन में जीवन जिएंगे और साधना करेंगे। यदि शिष्य मर्यादा भंग करेगा तो शिष्य के साथ साथ उस दण्ड का एक भाग गुरु को भी भुगतना पड़ेगा। क्योंकि शिष्य की उसने गारण्टी ली थी।

अतः समर्पित गायत्री साधक गुरु आह्वाहन करके गायत्री अनुष्ठान प्रारम्भ कर सकते हैं। क्योंकि अध्यात्म के सफ़र में वो अकेले नहीं है गुरु उनके साथ है।

 जिन्होंने गुरु धारण नहीं किया और गुरु दीक्षा नहीं ली है। वो अध्यात्म के सफर में अकेले हैं, अतः उन्हें अपना प्रोफ़ाइल चेक करवाना पड़ेगा। श्रापविमोचन और उत्कीलन मंन्त्र के माध्यम से शपथ पत्र पूर्व में ही भरना पड़ेगा कि यदि मैं गायत्री के लिए योग्यता साबित करने में वशिष्ठ और विश्वामित्र जी की निर्धारित की हुई गाइडलाइन में फेल होता हूँ तो इसकी पूरी जिम्मेदारी मेरी होगी और मुझे साधना का फ़ल न दिया जाय।

 (यह एक प्रकार का शपथ पत्र है, यदि योग्यता सिद्ध नहीं कर पाऊं तो मेरी साधना यात्रा समाप्त कर दी जाय। यदि सिद्धि का दुरुपयोग करूँ तो मेरी सिद्धि वापस ले लिया जाय।)

पुस्तक 📖 *गायत्री महाविज्ञान* में श्रापविमोचन और उत्कीलन विस्तार से दिया गया है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *एक आम जनता को भड़काकर उन्हें आतंकी कैसे बनाते हैं? उनके दिमाग़ में जहर कैसे भरते हैं?*

प्रश्न - *एक आम जनता को भड़काकर उन्हें आतंकी कैसे बनाते हैं? उनके दिमाग़ में जहर कैसे भरते हैं?*

*इन आतंकियों के ज़ाल में अपने बच्चों को फँसने से कैसे बचायें? अपने बच्चों में राष्ट्रचरित्र कैसे गढ़ें?*

उत्तर - आत्मीय बहन, बच्चे गीली मिट्टी होते हैं उन्हें जिस साँचे में उन्हें डालोगे वो उसके अनुसार ढल जाते हैं। *उदाहरण* - बच्चे का शाकाहारी या मांसाहारी होना।

*बड़े लोग भी ब्रेन वाश का शिकार होते हैं*:-
*आतंक और ब्रेनवाश का छोटा उदाहरण* - यदि आतंकी और कुसंस्कारी बहु आ जाये तो अच्छे भले माँ की सेवा करने वाले लड़के को बार बार माँ के विरुद्ध बोलकर उसी के हाथों माता पिता को घर से बाहर निकलवा देती है।

दूसरी तरफ यदि आतंकी और कुसंस्कारी सास हो तो अपने बेटे को लगातार भड़काकर बहु को जिंदा दहेज के लिए जलवा देती है।

अत्यधिक टीवी सीरियल देखने वाले स्त्री पुरुष में टीवी सीरियल जैसा पहनावा, बोली और शक करते हुए देखा जा सकता है।

दुर्योधन का ब्रेनवाश शकुनि ने इस कदर कर दिया कि उसने स्वयं का सर्वनाश कर लिया।

संगत से रंगत बदलती है, लगातार संपर्क से वो चरित्र में रच बस जाती है।

*इसका ही बड़ा रूप धर्म के नाम पर साम्प्रदायिक आतंकवाद है।*

आतंकवाद एक बहुत बड़ा बिज़नेस है, जिसे हथियारों का कारोबार करने वाली कम्पनियां और बिजनेसमैन लोग चलाते हैं। अमन शांति में हथियार नहीं बिकते, अतः आतंक का ख़ौफ़ यह फैलाते हैं फिर हथियार बिक़वाते हैं।

वो धर्म वाले जल्दी भड़काने पर भड़कते नहीं हैं क्योंकि जिनमे साक्षरता का दर अधिक है। इस्लाम मानने वाले अमीर और पढ़े लिखे लोग भी नहीं बहकावे में आते।

इस्लाम मे जो पढ़े लिखे नहीं है और गरीबी रेखा के नीचे जी रहे हैं उनकी ग़रीबी और मजबूरी का ये आतंकी फायदा उठाते हैं, दूसरा अनपढ़ होने के कारण उर्दू अरबी में बोला कोई भी भड़काऊ ज्ञान को धर्म मान लेते हैं।

जिहाद और इस्लाम के रक्षण के झूठे प्रोपेगैंडा के लिए फंडिंग भी यही बिजनेसमैन करते हैं। क्योंकि यह उनके बिजनेस का इन्वेस्टमेंट है।

आतंकी निम्नलिखित तरीक़े नए आतंकी बनाने के लिए उपयोग में लेते हैं:-

1- ग़रीब सर्वत्र गरीबी से परेशान हैं, इनके बच्चों को कुछ पैसे देकर  ट्रेनिंग कैंप ले आते हैं। बचपन से उन्हें इस्लाम के नाम पर शहीद होने को तैयार करते हैं।

2- कत्लेआम, दहशतगर्दी इत्यादि  पहले जानवरों पर प्रैक्टिकल करके करवाते हैं। फ़िर आसपास के आम नागरिकों पर या कैद किये हुए दूसरी जनता पर।

3- मनोवैज्ञानिक तरीक़े से उन्हें आतंकी वाक्य सुनवाये, दोहरवाये, दिखाए, करवाये और लिखवाए जाते हैं। आज्ञा पालन न करने पर भयंकर शारीरिक मानसिक पीड़ा से गुज़ारते हैं।

4- उन्हें मनगढ़ंत इस्लामी खतरे की बात बताई जाती है। जब करीब पांच से 7 वर्ष में आतंकवाद में बच्चा रच बस जाता है तो उसमें से होशियार बच्चो को पढ़ाई के लिए फंडिंग की जाती है। पढ़लिखकर यह युवा कहीं आतंकवाद छोड़ न दें, इसलिए इनके परिवार वालों को बंधक बना कर रखा जाता है।

5- मनुष्य की लालच स्वर्ग जाने की सदियों से रही है। अब जप-तप और अच्छे कर्मों से आत्मकल्याण को यह टाइम टेकिंग प्रोसेस बताते हैं। अतः शॉर्टकट बताते है कि इस्लाम न मानने वाले का कत्ल करो तो जन्नत और 72 हूरें मिलेंगी। इसमें दूध, दही, शहद और 56 पकवान का लालच देते हैं। इस लालच के चक्रव्यूह में आमजनता फंस जाती है।

6- मनुष्य को एक बार में जहर दो तो वो मर जायेगा, लेकिन नित्य थोड़ा थोड़ा जहर दो तो वो पचने लगेगा और एक दिन विषपुरुष/विषकन्या बन जायेगा। यही आतंकवाद अपनाता है। जैसी संगत वैसी रंगत चढ़ जाती है।

7- पढ़े लिखे मुस्लिम युवाओं को टारगेट करने के लिए उन्हें ईमेल, फोन मेसेज, सोशल मीडिया के जरिये भड़काऊ बातें भेजते हैं। इस्लाम खतरे में है और इस्लाम मानने वालों को अन्य धर्म वाले परेशान कर रहे हैं, ऐसे झूठ फरेब के क्लिप्स वगैरह भेजी जाती है।

8- मनुष्य का दिमाग़ कुछ इस तरह बना है कि यदि कोई बात बार बार उसके दिमाग को बताई जाय, उससे दोहरवाई जाय, उसे पढ़वाया और लिखवाया जाय तो वह उसे ही सच मान लेता है। वो वैसा ही बन जायेगा।

9- आतंकी के ज़ाल में कभी कभी उपरोक्त प्रयास से भी जब नहीं फँसता तब वो अंतिम तरीका अपनाते हैं, उनके प्रियजनों किडनैप करके बंधक बनाकर उन्हें मजबूर करके आतंकी गतिविधि करवाते है।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

*यदि आप चाहते हो कि आपका बच्चा किसी के भड़काने पर न भड़के, किसी आतंकी ज़ाल में न फंसे तो उसे आज से ही गायत्री जप, ध्यान, योग, प्राणायाम और अच्छी पुस्तकों का स्वाध्याय करवाइये। उसके भीतर स्वतन्त्र चिंतन विकसित कीजिये। उसके अंदर विवेकबुद्धि जगाइए।*

देशभक्त वीरों की कहानियां और गीत बच्चे को सुनाइये, पढवाईये, लिखवाइए, बुलवाइए।

*प्रत्येक स्कूल और घर मे निम्नलिखित नारे बच्चो से बुलवाइए*:-

भारत माता की- जय
भारतीय संस्कृति की - जय
जन्म जहाँ पर - हमने पाया
अन्न जहां का - हमने खाया
ज्ञान जहां से - हमने पाया
वस्त्र जहाँ के - हमने पहने
वो है प्यारा - देश हमारा
प्यारा प्यारा - देश हमारा
देश की रक्षा कौन करेगा- हम करेंगे हम करेंगे
देश की ख़ातिर कौन मरेगा- हम मरेंगे हम मरेंगे
देश निर्माण कैसे होगा - व्यक्ति के निर्माण से
भारत माँ का मस्तक ऊंचा होगा- हमारे त्याग और बलिदान से
भारत माता की जय


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Saturday 16 February 2019

मानो तो शंकर और न मानो तो कंकर।

मानो तो शंकर और न मानो तो कंकर।

मूर्ति में ईश्वर की प्राणप्रतिष्ठा और विश्वास करने पर वह मूर्ति ईश्वर हो जाती है, यदि ईश्वर की प्राणप्रतिष्ठा अपने सद्गुरु में श्रद्धा और विश्वास से कर लें तो गुरु पूजा ही सर्वफ़लदायी हो जाएगी। गुरु में ही परब्रह्म मिल जाएंगे।

गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु , गुरुर देवो महेश्वरः।
गुरुरेव परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः।।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *यदि हम मुसीबत में हों तो किसे पुकारे गुरूदेव को या भगवान को? मार्गदर्शन करें.*

प्रश्न - *यदि हम मुसीबत में हों तो किसे पुकारे गुरूदेव को या भगवान को? मार्गदर्शन करें.*

उत्तर - आत्मीय बहन, ये प्रश्न कुछ ऐसा है कि माता पिता में से किससे मदद मांगे? मुसीबत में किसे पुकारें? इसका सहज जवाब है जिसे मन करे उसे पुकारो।

एक तरह से गुरु माँ की तरह है और भगवान परम् पिता की तरह है। देखने मे दोनों दो अलग इकाई दिखते हैं लेकिन वास्तव में दोनों एक ही तरह से ख़्याल रखते है। माँ को पुकारो तो भी पिता साथ आएगा और पिता को पुकारो तो भी माँ साथ आएगी।

शारीरिक जन्म माता देती है ठीक उसी तरह आध्यात्मिक जन्म गुरु देता है। माता की तरह अध्यात्म क्षेत्र में सम्हालता है।

अतः आपका मन जिसे चाहे पुकारे उस पर छोड़ दो, जैसे चोट लगने पर *ओ माँ* और तीव्र भय लगने पर *बाप रे बाप* आता है। वैसे ही हृदय से जो पुकार उठे उठने दो, यह भाव क्षेत्र है यहाँ बुद्धि न लगाओ तो ज्यादा अच्छा है। भगवान और गुरु दोनों से जुड़ने का एक ही माध्यम है वह है उन पर श्रद्धा और विश्वास  रखना, उनके अनुसाशन पर जीवन जीना।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday 15 February 2019

प्रश्न - *नर को पाँच श्रेणियों में रखा जाता है, इनकी व्याख्या कृपया भेजे।*

प्रश्न - *नर को पाँच श्रेणियों में रखा जाता है, इनकी व्याख्या कृपया भेजे।*

उत्तर - प्रणाम दी, मानव की चेतना की उन्नति की अवस्था, स्वभाव और आचरण के  आधार पर उसे नर-पक्षु, नर-पिशाच, मानव, महामानव और देवमानव इन पाँच श्रेणियों में रखा जाता है।

आकृति से यह मनुष्य होते है, लेकिन अंतः प्रकृति इनकी चेतना की अवस्था के आधार पर अलग अलग होती है।

किसी भी बालक को गर्भ से इनमें से मनचाही श्रेणी में माँ प्रवेश करवा सकती है। जन्म के बाद और लालन पालन से मनचाहा स्तर पाया जा सकता है। माँ के लिए भोजन से बच्चे की आकृति बनती है और माँ के पढ़े, सुने, लिखे और चिंतन किये गए विचारों से बच्चे की प्रकृति बनती है। जैसी सन्तान चाहिए वैसा ही मां को 9 माह चिंतन करना है।

1- *नर-पशु* - ऐसा व्यक्ति पशुओं की तरह जीवन जीता है, पेट-प्रजनन तक सीमित इनकी जिंदगी होती है। खाने के लिए जीते हैं, इसके लिए ही कमाते है।

2- *नर-पिशाच* - ऐसा व्यक्ति स्वार्थ की पराकाष्ठा में दुसरों को कष्ट पहुंचाता है। कोई धन प्राप्ति के लिए अन्याय करता है, कोई हवस मिटाने को अन्याय करता है और मिथ्या भ्रम में जन्नत पाने के लिए आतंकवादी जिहाद करते हैं। जम्मूकश्मीर में पुलवामा का अटैक नरपिशाच(नरराक्षस) ने ही किया है। आतंकी आकृति से मनुष्य और प्रकृति से पिशाच होते हैं। निर्भया रेप कांड भी नर पिशाच का कृत्य है।

3- *मानव* - जिसे अहसास है कि वो मनुष्य है। स्वयं को बेहतर बनाने में जुटा है। अपने कर्तव्यों का पालन कर रहा है और व्यवस्थित जी रहा है।

4- *महामानव* - जिनका जीवन लोकसेवा में लग रहा है, जो स्वयं के कल्याण के साथ साथ लोककल्याण में निरत हैं। ऐसे महामानव है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, लोकसेवक, सन्त, सुधारक, शहीद सब इस केटेगरी में आते हैं।

5- *देवमानव* - जिन्होंने अपना सर्वस्व लोकहित खपा दिया, स्वयं के जीवन को ईश्वरीय अनुसासन में जिया। जिनका रोम रोम परोपकार कर रहा, जो लोगों की चेतना को प्रकाशित कर दिए वो देवमानव है। उदाहरण - ठाकुर रामकृष्ण, विवेकानंद, महर्षि अरविंद, महर्षि रमण, परमपूज्य गुरुदेव, वन्दनीया माताजी इत्यादि।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

तुलसी पूजनविधि

🌱 *तुलसी पूजनविधि* 🌱

सुबह स्नानादि के बाद घर के स्वच्छ स्थान पर तुलसी के गमले को जमीन से कुछ ऊँचे स्थान पर रखें। उसमें यह मंत्र बोलते हुए जल चढ़ायें-

महाप्रसादजननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी।

आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं  नमोस्तुते।।[10][11]

फिर तुलस्यै नमः मंत्र बोलते हुए तिलक करें, अक्षत (चावल) व पुष्प अर्पित करें तथा कुछ प्रसाद चढ़ायें। दीपक जलाकर आरती करें और तुलसी जी की 7,11, 21, 51 या 111 परिक्रमा करें। उस शुद्ध वातावरण में शांत हो के भगवत्प्रार्थना एवं भगवन्नाम या गुरुमंत्र का जप करें। तुलसी के पास बैठकर प्राणायाम करने से बल, बुद्धि और ओज की वृद्धि होती है।[10][12]

तुलसी पत्ते डालकर प्रसाद वितरित करें। तुलसी के समीप रात्रि 12 बजे तक जागरण कर भजन, कीर्तन, सत्संग-श्रवण व जप करके भगवद्-विश्रांति पायें। तुलसी नामाष्टक का पाठ भी पुण्यकारक है। तुलसी पूजन अपने घर या तुलसी वन में अथवा यथा अनुकूल किसी भी पवित्र स्थान पर कर सकते हैं।

तुलसी नामाष्टक:

वृन्दां वृन्दावनीं विश्वपावनीं विश्वपूजिताम्।

पुष्पसारां नन्दिनीं च तुलसीं कृष्णजीवनीम्।।

एतन्नामष्टकं चैतस्तोत्रं नामार्थसंयुतम्।

यः पठेत्तां च संपूज्य सोऽश्वमेधफलं लभेत्।।[13]

5 दीपक जलाकर दीपयज्ञ करें, जिसमें गायत्री मंत्र,महामृत्युंजय मंत्र के साथ तुलसी गायत्री और विष्णु गायत्री मंत्र की भी आहुति दें।

गायत्री मंत्र 5 आहुति- *ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात* स्वाहा इदं गायत्र्यै इदं न मम

महामृत्युंजय मंत्र 3 आहुति- *ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥* स्वाहा इदं महामृत्युंजयायै इदं न मम

तुलसी गायत्री मंत्र 3 आहुति-
*ॐ श्रीतुलस्यै विद्महे विष्णुप्रियायै धीमहि। तन्नो वृन्दा प्रचोदयात्* स्वाहा इदं श्रीतुलस्यै इदं न मम

विष्णु गायत्री मंत्र 3 आहुति-
*ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु: प्रचोदयात्* स्वाहा इदं नारायणाय इदं न मम

भगवान नारायण देवर्षि नारदजी से कहते हैं- "वृंदा, वृंदावनी, विश्वपावनी, विश्वपूजिता, पुष्पसारा, नंदिनी, तुलसी और कृष्णजीवनी – ये तुलसी देवी के आठ नाम हैं। यह सार्थक नामवली स्तोत्र के रूप में परिणत है। जो पुरुष तुलसी की पूजा करके इस नामाष्टक का पाठ करता है, उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।"

*वैज्ञानिक तथ्य*
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डिफेन्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन के वैज्ञानिकों द्वारा किये गये अनुसंधानों से यह सिद्ध हुआ है कि ‘तुलसी में एंटी ऑक्सीडंट गुणधर्म है और वह आण्विक विकिरणों से क्षतिग्रस्त कोशों को स्वस्थ बना देती है। कुछ रोगों एवं जहरीले द्रव्यों, विकिरणों तथा धूम्रपान के कारण जो कोशों को हानि पहुँचानेवाले रसायन शरीर में उत्पन्न होते हैं, उनको तुलसी नष्ट कर देती है।' [23][24]
तुलसी संक्रामक रोगों, जैसे – यक्ष्मा (टी.बी.), मलेरिया इत्यादि की चिकित्सा में बहुत उपयोगी है। [25]
तिरुपति के एस.वी. विश्वविद्यालय में किये गये एक अध्ययन के अनुसार तुलसी का पौधा उच्छ्वास में ओजोन वायु छोडता है, जो विशेष स्फूर्तिप्रद है।
आभामंडल नापने के यंत्र ‘यूनिवर्सल स्केनर' के माध्यम से तकनीकी विशेषज्ञ श्री के.एम. जैन द्वारा किये गये परीक्षणों से यह बात सामने आयी कि ‘यदि कोई व्यक्ति तुलसी के पौधे की ९ बार परिक्रमा करे तो उसके आभामंडल के प्रभाव-क्षेत्र में ३ मीटर की आश्चर्यकारक बढोतरी होती है।
फ्रेच डॉक्टर विक्टर रेसीन ने कहा है- "तुलसी एक अदभुत औषधि है।"
इम्पीरियल मलेरियल कॉन्फ्रेंस का दावा है कि 'मलेरिया की विश्वसनीय, प्रामाणिक दवा है – तुलसी।'
''तुलसी के नियमित सेवन से शरीर में विद्युतीय शक्ति का  प्रवाह नियंत्रित होता है और व्यक्ति की जीवन-अवधि में वृद्धि होती है।" - वनस्पति वैज्ञानिक डॉक्टर जी.डी. नाडकर्णी[26]

*आध्यात्मिक महत्त्व*
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पद्म पुराण के अनुसार
संपादित करें
या दृष्टा निखिलाघसंघशमनी स्पृष्टा वपुष्पावनी।

रोगाणामभिवन्दिता निरसनी सिक्तान्तकत्रासिनी।।

प्रत्यासत्तिविधायिनी भगवतः कृष्णस्य संरोपिता।

न्यस्ता तच्चरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नमः।।

जो दर्शन करने पर सारे पाप-समुदाय का नाश कर देती है, स्पर्श करने पर शरीर को पवित्र बनाती है, प्रणाम करने पर रोगों का निवारण करती है, जल से सींचने पर यमराज को भी भय पहुँचाती है, आरोपित करने पर भगवान श्रीकृष्ण के समीप ले जाती है और भगवान के चरणों में चढ़ाने पर मोक्षरूपी फल प्रदान करती है, उस तुलसी देवी को नमस्कार है। (पद्म पुराणः उ.खं. 56.22) [27]

गरुड़ पुराण (धर्म काण्ड – प्रेत कल्पः 38.11) में आता है कि तुलसी का पौधा लगाने, पालन करने, सींचने तथा ध्यान, स्पर्श और गुणगान करने से मनुष्यों के पूर्व जन्मार्जित पाप जलकर विनष्ट हो जाते हैं।[28]

ब्रह्मवैवर्त पुराण (प्रकृति खण्डः 21.43) में आता है कि मृत्यु के समय जो तुलसी  पत्ते सहित जल का पान करता है, वह सम्पूर्ण पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक में जाता है।

स्कन्द पुराण के अनुसारः जिस घर में तुलसी का बग़ीचा होता है (एवं प्रतिदिन पूजन होता है), उसमें यमदूत प्रवेश नहीं करते।

बासी फूल और बासी जल पूजा के लिए वर्जित हैं परन्तु तुलसीदल और गंगाजल बासी होने पर भी वर्जित नहीं हैं। (स्कन्द पुराण, वै. खं. मा.मा. 8.9)

घर में लगायी हुई तुलसी मनुष्यों के लिए कल्याणकारिणी, धन पुत्र प्रदान करने वाली, पुण्यदायिनी तथा हरिभक्ति देने वाली होती है। प्रातःकाल तुलसी का दर्शन करने से (सवा मासा अर्थात् सवा ग्राम) सुवर्ण दान का फल प्राप्त होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खंडः 103.62-63)

अपने घर से दक्षिण की ओर तुलसी-वृक्ष का रोपण नहीं करना चाहिए, अन्यथा यम-यातना भोगनी पड़ती है। (भविष्य पुराण)

तुलसी की उपस्थितिमात्र से हलके स्पंदनों, नकारात्मक शक्तियों एवं दुष्ट विचारों से रक्षा होती है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Thursday 14 February 2019

प्रश्न - *जीवन में अटल-स्थितप्रज्ञ होने के क्या लक्षण होते हैं? राम राम!*

प्रश्न - *जीवन में अटल-स्थितप्रज्ञ होने के क्या लक्षण होते हैं? राम राम!*

उत्तर - आत्मीय बहन, अटल अर्थात जिसे टाला न जा सके। योगियों की भाषा में स्थितप्रज्ञ कहते हैं।

स्थितप्रज्ञ व्यक्ति होने के लक्षण:-

1- जब इच्छाएं मर जायें और शरीर जीवित रहकर समस्त सांसारिक कर्मो को करता हुआ भी मन मे स्थिर रहे।

उदाहरण - जिस प्रकार नवजात शिशु की माता संसार के समस्त कार्यो को करते हुए भी केवल मन में शिशु के चिंतन में ध्यानस्थ होती है और उस पर केंद्रित रहती है। कोई वस्तु या व्यक्ति या कार्य उसे शिशु चिंतन से विचलित नहीं कर सकता। इसी तरह स्थितप्रज्ञ ऑफिस में हो या घर में या युध्द के मैदान में उसके चिंतन में परमात्मा होता है, कोई भी बाह्य घटना उसे विचलित नहीं कर सकती।

2- स्थितप्रज्ञ इस संसार को तत्व दृष्टि से देखता है:-

उदाहरण - आम जनता की दृष्टि में स्वर्णाभूषण कंगन, पायल, मुकुट इत्यादि भिन्न भिन्न है। स्वर्ण से बनी राजा की प्रतिमा में और स्वर्ण से उसकी जनता की मूर्ति का स्थान भिन्न है। लेकिन सोनार की तत्व दृष्टि में सब एक ही तत्व है और वह है स्वर्ण।

इसलिए जब स्थितप्रज्ञ राजा को देखे या रंक को, पक्षु को देखे या वनस्पति को उसे सबमें एटम(परमाणु) दिखता है जिससे सब बने है और सबको बनाने वाले की ऊर्जाकण दिखता है। इसलिए वो मोहबन्धन से मुक्त है।

3- स्थितप्रज्ञ जीवन का सार देखता है और असार छोड़ देता है।

उदाहरण - प्रेमी द्वारा गुलाब का पुष्प देने पर प्रेमिका को गुलाब अनुभूत नहीं होता अपितु केवल प्रेम अनुभूत होता है। इसी तरह स्थितप्रज्ञ को यह संसार अनुभूत नहीं होता केवल परमात्मा अनुभूत होता है।

4- दासभक्ति सती स्त्री की तरह करता है

उदाहरण - सती स्त्री जिस तरह स्वयं की पहचान को मिटा कर पति की पहचान अपनाती है। स्वयं को समर्पित कर देती है, पूरा जीवन पति की सेवा में बिना किसी स्वार्थ के अर्पित कर देती है। ऐसे ही *करिष्ये वचनम तव* को हृदय में स्वीकार करके, जो ईश्वरीय अनुशासन में और ईश्वर आज्ञा होगी वही स्थितप्रज्ञ करता है।

5- कर्ताभाव त्याग के ईश्वरीय निमित्त बन कार्य करता है।

उदाहरण - पोस्टमैन कर्म करता है, तो निमित्त बन चिट्ठियां पहुंचाता है। चिठ्ठी में सुख की खबर हो या दुःख की खबर या मनीऑर्डर हो इन बातों से वो न सुखी होता है और न दुःखी। क्योंकि वो कर्ता नहीं है केवल निमित्त है। सेना देश के निमित्त बनकर दुश्मनों को मारती है। इसलिए उसके द्वारा की हत्या का पाप उसे नहीं लगता।

इसी तरह स्थितप्रज्ञ कर्मयोगी कर्ता भाव और इच्छाओं का त्यागकर ईश्वरीय निमित्त बन कार्य करता है। तो कर्मफ़ल से मुक्त होता है।

पूजा और ध्यान के वक्त मन में भटकाव मन में विद्यमान मनोकामना के कारण होता है।

 ध्यान लगे या न लगे स्थित प्रज्ञ परवाह नहीं करता, उसे तो शांति पाने की भी इच्छा नहीं है, वो तो बस भगवान के पास बैठता है और स्वयं को परमात्मा में विलय कर देने के लिए ध्यान में बैठता है, जैसे नदी स्वयं को समुद्र में विलय करने को मिलती है, इसी तरह स्वयं को परमात्मा में खोने को जो बैठा है वो निर्बाध निर्बीज समाधि तक पहुंचता है। इसलिए वो शांत स्थिर और अटल रहता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *हम आम जनता इस पुलवामा आतंकी हमला की करो या मरो की स्थिति में देश के सम्मान और सुरक्षा के लिए, हमारी सेना की सुरक्षा के लिए क्या और कैसे सहयोग करें?*

प्रश्न - *हम आम जनता इस पुलवामा आतंकी हमला की करो या मरो की स्थिति में देश के सम्मान और सुरक्षा के लिए, हमारी सेना की सुरक्षा के लिए क्या और कैसे सहयोग करें?*
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उत्तर - हम सभी देशवासी एकजुट होकर देश और सेना के साथ खड़े है।

जब प्राचीन वक्त में युध्द जैसा कोई संकट होता था, तो आम जनता महाकाली की साधना, जप और यज्ञ के द्वारा सेना और सरकार की शक्ति बढाते थे। स्थूल युद्ध सेना लड़ती है और सूक्ष्म युध्द ऋषिमुनि और आमजनता लड़ती थी। इसलिए राक्षस सबसे पहले यज्ञ और तप बन्द करवाते थे। क्योंकि तप की शक्ति से वो भी परिचित थे।

हम सबको भी महाकाली की साधना करना है, कुछ देर में मीटिंग होने वाली है, सही निर्णय सरकार और सेना ले सके, और सबको सद्बुद्धि मिले इसके लिए निम्नलिखित जप तप यज्ञ जो कर सकें अवश्य करें:-

1- असुरता और आतंकवाद के नाश के लिए कम से कम 108 बार महाकाली मंन्त्र या इससे ज्यादा मौन मानसिक जपें  -
महाकाली गायत्री मंत्र - *ॐ भूर्भुवः स्व: क्लीं क्लीं क्लीं तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात क्लीं क्लीं क्लीं ॐ*

2- यज्ञ में उपरोक्त महाकाली मंन्त्र के साथ साथ गायत्री मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र की भी आहुति असुरता और आतंकवाद के नाश के लिए दें।
गायत्री मंत्र - *ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात*
महामृत्युंजय मंत्र- *ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥*

3- जो *दुर्गाशप्तशती* या *गुरुगीता का -खण्ड बी* का या *सुंदरकांड* का पाठ कर सकते हैं वो अवश्य करें, यह भी संकट की परिस्थिति में मनोबल बढ़ाता है और असुरता और आतंकवाद के नाश के लिए सहायक है।

4- गायत्री चालीसा या हनुमान चालीसा का सामूहिक पाठ असुरता और आतंकवाद के नाश के लिए करें।

5- ध्यान में देवशक्तियों का आह्वाहन और प्रार्थना असुरता और आतंकवाद के नाश के लिए करें। रुद्राष्टाध्यायी पाठ एवं रुद्राभिषेक असुरता और आतंकवाद के नाश के लिए करें।

रामायण की एक कथा में गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं कि राजा प्रतापभानु एक तपस्वी की तंत्र-मंत्र शक्तियों की निपुणता देख चकित हो जाते हैं। तब वह तपस्वी राजा को कहते हैं:

*जनी अचरजु करहु मन माहीं। सुत तप तें दुर्लभ कछु नाहीं*।।

*तपबल तें जग सृजइ बिधाता। तपबल बिष्नु भए परित्ताता*।।
*तपबल संभु करहिं संघारा। तप तें अगम न कछु संसारा।। (तुलसी रामायण*, १.१६२.१-२)

श्रीराम ने युध्द से पहले यज्ञ किया और सभी पांडवों ने भी श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन में किया था। सेना के लिए यह कार्य हम सबको करना है, आइये मिलकर सेना और देश को दुर्गा शक्ति प्रदान करें, आतंकवाद और असुरता का नाश करें।

स्वयं भी देश की सुरक्षा और सेना के लिए प्रार्थना और तपदान करें, साथ ही अन्यदेशवासियो को प्रेरित करें।

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
जय हिंद जय भारत
जय जवान  जय किसान

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

वेलेंटाइन - सेलेब्रेशन

*वेलेंटाइन - सेलेब्रेशन*
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आज युवाओं को चाहिए,
प्रेम बिना बन्धन का,
और बिना जिम्मेदारी का,
मौज मस्ती और पार्टी,
बिना किसी बाधा का,
पाश्चात्य का अंधानुकरण,
सोशल सिक्योरिटी नम्बर के बिना ,
विकसित देश की नकल,
आर्थिक मजबूती के बिना।

प्रेम में आस्था संकट उतपन्न हो गया है, शारीरिक भूख मिटाने को प्रेम की संज्ञा मिल गयी है।

त्याग- सेवा- सहकारिता- जिम्मेदारी उठाना यह प्रेम के वृक्ष की जड़ थी, जिसकी छांव में पूरा जीवन आनन्द से बीतता था। अब यह जड़ ही खोखली हो गयी है। भावनात्मक जुड़ाव और आत्मियता का सर्वथा अभाव हो गया है। गृहस्थी की नींव हिल गयी है।

*प्रेम से गोद मे लिया 10 किलो का बच्चा माता-पिता को भार नहीं लगता, लेक़िन बिना प्रेम के 10 किलो का अन्य सामान भार लगता है। प्रेम किसी से होगा तो विवाह का यह बन्धन, जिम्मेदारी और एडजस्टमेंट भार नहीं लगेगा। प्रेम के अभाव में यही भार स्वरूप हो जाएगा।*

*जो लोग लिव इन रिलेशनशिप की डिमांड करते है और विवाह से बचते है वो वास्तव में प्रेम नहीं करते, केवल शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति का माध्यम तलाशते है, वेश्यालय जाने में खर्च अधिक है, उससे कम पैसों में लिवइन उपलब्ध हो जाता है। मन भर जाए तो छोड़ दो कोई कानून या सामाजिक उत्तरदायित्व नहीं है।*

*हम वेलेंटाइन के विरोध में नहीं है, लेकिन इसके परिणाम से चिंतित जरूर है*।

भारतीय लड़कियां विदेशों की तरह सुरक्षित नहीं है, न ही उन्हें सामाजिक सुरक्षा, अधिकार और सम्मान विदेशों की तरह प्राप्त है।

नकल + अक्ल = सफ़ल
नकल + बिना अक्ल = असफ़ल

एक लड़की की लिव इन रिलेशनशिप और कुँवारी मां बनना विदेशों में सामाजिक रूप से स्वीकार्य है। लेकिन भारत मे मान्यता है ही नहीं। तो विदेशों में लड़कियां कुँवारी मां बनने पर गर्भपात नहीं करवाती, और दूसरा और तीसरा जीवनसाथी प्राप्त करने में उन्हें कोई प्रॉब्लम नहीं होती। अनन्त रिश्ते जीवन के किसी भी उम्र में बनाना सम्भव है। नाजायज़ बच्चों का भार सरकारी संस्थाएं उठाती है उन बच्चों को पिता के नाम की जरूरत नहीं होती।

भारतीय पाश्चत्य प्रभावित मॉडर्न लड़के, धोबी के कुत्तों की तरह न घर के होते हैं न घाट के। दूसरी लड़कियों के चरित्र में दाग लगाने को बेताब होते हैं।लेकिन अपनी माँ,बेटी, बहन और पत्नी दूध से धुले चरित्र वाली बेदाग़ चाहिए। गर्लफ्रेंड हॉट चाहिए लेकिन पत्नी चरित्र की साफ़ चाहिए।

ऐसे में वर्तमान के वेलेंटाइन मज़ा बाद में भारतीय लड़कियों को बहुत भारी पड़ता है।

विदेशों में जनसंख्या कम है और क्षेत्रफल ज्यादा, रोज़गार के अवसर ज़्यादा है। भारत मे क्षेत्रफल कम और रोजगार के अवसर अत्यंत कम हैं।

ऐसे में प्रति व्यक्ति आय और संसाधन जीने खाने के लिए 7 गुना विदेशियों से कम हैं।

पाश्चत्य की नकल करने से पहले अपनी जीवन निर्वहन की योग्यता पर विचार करें, जिससे आप प्रेम कर रहे हो क्या वो हम सफर बनने योग्य है भी या नहीं। जो वादे आप कर रहे हो वो निभाने की योग्यता खुद में है या नहीं। स्वयं पहले आर्थिक, मानसिक, आध्यात्मिक और सामाजिक रूप से योग्य बने तब ही प्रेम बन्धन में बंधे।

वेलेंटाइन मनाने जाने से पूर्व, rethink mode में बैठे, जीवन को प्लान करें। पूरी जिंदगी के आनन्द प्राप्ति का प्लान करें। किसी के बहकावे में न आयें। स्वयं की जिंदगी की प्रॉपर प्लानिंग करें।जो जीव आपके गर्भ से जन्म ले या जिस जीव के पिता आप हों उसे बेमौत मरना न पड़े। स्वयं की संतान के हत्यारे और जीव हत्या का कारण आप न बनें। प्रेम जिम्मेदारी से करें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

🙏🏻किसी को बुरा लगा हो तो क्षमा करें🙏🏻

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...