Sunday 30 June 2019

प्रश्न - 119- *चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण में सूतक लगता है, क्या उस दौरान यज्ञ कर सकते हैं?*

प्रश्न - 119- *चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण में सूतक लगता है, क्या उस दौरान यज्ञ कर सकते हैं?*

उत्तर - शास्त्रों के अनुसार चंद्रग्रहण या सूर्यग्रहण के ग्रहण का सूतक लग जाने के बाद मंदिरों में पूजा ही नहीं घर के मंदिरों में भी भगवान की स्थूल कर्मकांड युक्त पूजा नहीं करनी चाहिए। ग्रहण सूतक से लेकर ग्रहण मोक्ष तक देव प्रतिमाओं का स्पर्श भी नहीं करना चाहिए। यज्ञ इत्यादि ऐसे पूजनकर्म जिसमें स्थूल वस्तुओं को हाथ से स्पर्श करके चढ़ाया जा रहा हो वो वर्जित है।

सूतक के दौरान - सूक्ष्म पूजन जैसे मौन मानसिक जप, ध्यान इत्यादि जरूर करना चाहिए। ये हज़ार गुना फ़ल देते हैं।

ग्रहण का सूतक जब समाप्त होता है उसे *मोक्ष* कहते हैं। सूतक समाप्ति पर स्वयं नहाएं, देवप्रतिमाओं को नहलाएं। घर मे गंगा जल छिड़कें। फ़िर यज्ञ करके  घर की शुद्धि करें, सूतक समाप्ति पर किये यज्ञ में खीर या हलवे की आहुति देने पर रोगों से मुक्ति मिलती है और पितृ दोष समाप्त होता है।

प्रश्न- 120- *जन्म या मरण में लगे सूतक लगने पर क्या यज्ञ कर सकते हैं? यदि यज्ञ चल रहा हो उसके मध्य सूतक लग जाए तो क्या यज्ञ बीच मे बन्द कर देना चाहिए?*

उत्तर - जन्म मरण आदि के कारण सूतक लगता हैं उनमें शुभ कर्म निषिद्ध है। सूतक प्रायः दस (10) दिन का होता है। जब तक शुद्धि न हो जाय तब तक यज्ञ, ब्रह्म भोजन आदि नहीं किये जाते। परन्तु यदि वह शुभ कार्य प्रारंभ हो जाय तो फिर सूतक उपस्थिति होने पर उस कार्य का रोकना आवश्यक नहीं। ऐसे समयों पर शास्त्रकारों की आज्ञा है कि उस यज्ञादि कर्म को बीच में न रोककर उसे यथावत चालू रखा जाय। इस सम्बंध में कुछ शास्त्रीय अभिमत नीचे दिये जाते हैं-

यज्ञे प्रवर्तमाने तु जायेतार्थ म्रियेत वा।
पूर्व संकल्पिते कार्ये न दोष स्तत्र विद्यते।
यज्ञ काले विवाहे च देवयागे तथैव च।
हूय माने तथा चाग्नौ नाशौचं नापि सतकम्।

दक्षस्मृति 6।19-20

यज्ञ हो रहा हो ऐसे समय यदि जन्म या मृत्यु का सूतक हो जाए तो इससे पूर्व संकल्पित यज्ञादि धर्म में कोई दोष नहीं होता। यज्ञ, विवाह, देवयोग आदि के अवसर पर जो सूतक होता है उसके कारण कार्य नहीं रुकता।

प्रश्न - 121- *सूतक- आशौच है क्या?*

उत्तर - सूर्य या चंद्रग्रहण के दौरान सूतक का समय सूतक अशौच(अशुद्धि) है, या किसी घर में किसी शिशु का जन्म या किसी का निधन हो जाता है उस परिवार के सदस्यों को सूतक या अशुचि (अशुद्धि) की स्थिति में बिताने होते हैं।। धर्म ग्रन्थों में इस स्थिति को आशौच, आशुच्य तो सूतक कहा गया है। निधारित अवधि के बाद शुद्धि कर्म करने पर वे सहज स्थिति  में आते हैं।। शुद्धि के बाद ही परिजन वेदविहित अथवा धार्मिक कृत्यों को सम्पन्न कर सकते है।

🙏🏻श्वेता, दिया

रिफरेन्स - http://l iterature. awgp. org/akhandjyoti/1954/February/v2.14

Thursday 27 June 2019

प्रश्न - *हम बचपन से आत्मविश्वास के बारे में सुनते आए हैं लेकिन ये आत्मविश्वास (Self-confidence) होता क्या है? इसे define कैसे करेंगे?*

प्रश्न - *हम बचपन से आत्मविश्वास के बारे में सुनते आए हैं लेकिन ये आत्मविश्वास (Self-confidence) होता क्या है? इसे define कैसे करेंगे?*

उत्तर- आत्मविश्वास (Self-confidence) वस्तुतः एक मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्ति है। आत्मविश्वासी व्यक्ति ईश्वर विश्वासी होता है। वह स्वयं की योग्यता-पात्रता/काबिलियत पर विश्वास रखता है।

आत्मविश्वास से ही विचारों की स्वाधीनता प्राप्त होती है और इसके कारण ही महान कार्यों के सम्पादन में सरलता और सफलता मिलती है। इसी के द्वारा आत्मरक्षा होती है। जो व्यक्ति आत्मविश्वास से ओत-प्रोत है, उसे अपने भविष्य के प्रति किसी प्रकार की चिन्ता नहीं रहती। उसे कोई चिन्ता नहीं सताती। दूसरे व्यक्ति जिन सन्देहों और शंकाओं से दबे रहते हैं, वह उनसे सदैव मुक्त रहता है। यह प्राणी की आंतरिक भावना है। इसके बिना जीवन में सफल होना अनिश्चित है।

आत्मविश्वास युक्त व्यक्ति न किसी की प्रसंशा का मोहताज़ होता है, और न हीं किसी की निदा करने से हताश होता है।

आत्मविश्वासी अपने जीवन में जो भी घट रहा है उसके लिए स्वयं को ही जिम्मेदार मानता है। समस्या को चुनौती की तरह लेता है, समाधान केंद्रित दृष्टिकोण रखता है।

आत्मविश्वास युक्त व्यक्ति को यह पता होता है कि जीवन मे उसे क्या करना है, जीवन की दिशा धारा क्या होगी? अतः जीवन मे इनके बिखराव नहीं होता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 26 June 2019

प्रश्न - *अपना तेजोवलय(औरा एवं आत्मबल कैसे बढ़ाएं?*

प्रश्न - *अपना तेजोवलय(औरा एवं आत्मबल कैसे बढ़ाएं?*

उत्तर - आत्मीय भाई, जिस प्रकार धनी बनने के लिए पहला हमें उपार्जन/कमाई बढ़ाना होता है और दूसरा अनावश्यक ख़र्च/धन का ह्रास नियंत्रित करना होता है। ठीक इसी तरह तेजोवलय एवं आत्मबल के लिए उपासना-साधना द्वारा प्राणऊर्जा कमानी होगी और आवश्यक प्राणऊर्जा का ह्रास(ख़र्च) रोकने के लिए चित्त वृत्तियों को नियंत्रण में करना होगा।

अध्यात्म विज्ञान के अनुसार जिस व्यक्ति में जीवनी शक्ति, जिस अनुपात में घटती जाती है, वह उतना ही दीन−दुर्बल बनता जाता है। सबसे अधिक रोग−शोक ऐसे ही लोगों को सताते हैं। उत्तेजना और उन्माद इन्हीं में सर्वाधिक देखे जाते हैं। शरीर बाहर से फूला दीख पड़ने पर भी उस विद्युत का अभाव होता है, जिसे ‘जीवट’ कहा गया है। ऐसी दशा में उससे न तो कोई कहने लायक काम बन पड़ता है, न किसी में पूर्ण सफलता मिल पाती है। यदा−कदा मिलती भी है, तो वह ऐसी अधूरी और अधकचरी होती है, जिससे असंतोष ही बढ़ता है। आत्मबल और मनोबल इस कदर घट जाते हैं, कि कोई श्रेष्ठ कार्य करने का साहस नहीं जुट पाता और कर्ता निरन्तर पतनोन्मुख बनता जाता है।

👉🏼 *तेजोवलय एवं आत्मबल बढ़ाने हेतु प्राणऊर्जा कमाने के दो तरीके हैं*−
👉🏼 *उपासना और साधना*।
उपासना के दौरान गायत्री जप और उगते हुए सूर्य के ध्यान के माध्यम से हम सविता इष्ट से प्राण−ऊर्जा ग्रहण−धारण करने की प्रबल भावना करते हैं। हममें प्राण ऊर्जा प्रवेश करने लगती है। हम प्राणवान बनने लगते हैं।

👉🏼और साधना के माध्यम से उन तत्वों को नष्ट−भ्रष्ट करना, जो प्राण−संचय में विघ्न−उपस्थित करते और उसके भण्डार को निरन्तर खाली करते रहते हैं। ईर्ष्या, द्वेष, असंयम आदि ऐसे ही अवाँछनीय तत्व हैं, जो हमारे शरीर चुम्बकत्व को−जीवनी शक्ति को लगातार घटाते रहते हैं। हम साधना(योग- प्राणायाम, स्वाध्याय, सत्संग, भजन, समर्पण, आत्मशोधन) के माध्यम से हम प्राण ऊर्जा के संचय हेतु अपनी योग्यता-पात्रता बढ़ाते हैं।

यदि इस प्राणऊर्जा को बढ़ाया जा सके, तो कोई कारण नहीं कि हमारी शारीरिक−मानसिक स्वस्थता न बढ़ सके हम अक्षुण्ण स्वास्थ्य न प्राप्त कर सकें। तेजोवलय और आत्मबल से स्वयं को परिपूर्ण बना सकते हैं।

*तेजोवलय एवं आत्मबल के ह्रास(घटने) को रोकने के दो तरीके हैं*-  👉🏼 *पहला चित्तवृत्तियों को रोकना और दूसरा श्रेष्ठ चिंतन करना*|
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 यदि मनुष्य अपने मन में उठने वाली अनेक प्रकार की कामनाओं और वासनाओं को रोक लेता है और उनका प्रयोग इन्द्रियों की इच्छा से नहीं अपनी इच्छा से उस तरह कर सकता है जिस प्रकार सारथी रथ में जुते हुए घोड़ों को तो वह निश्चय ही अपनी शक्तियों का ऊर्ध्वगामी विकास करके परमात्मा की उपलब्धि कर सकता है।

*अर्जुन जैसा महारथी कृष्ण भगवान से कहता है, भगवान! यह मन बड़ा चंचल है॥ मस्तिष्क को मथ डालता है, यह बहुत दृढ़ और शक्तिशाली है। इसलिये इसको वश में करना वायु की तरह बहुत कठिन है। तब भगवान कृष्ण कहते हैं कि अभ्यास और वैराग्य से मन पर नियंत्रण संभव है।*

👉🏼 *मन को नियंत्रित करने की मनोवैज्ञानिक अभ्यास  की सर्वोपयोगी दो विधियाँ है*

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पहला अभ्यास सर्वप्रथम किसी समतल और कोलाहल रहित शांत स्थान में कोई वस्त्र बिछाकर सीधे चित्त लेट जाना चाहिये। ध्यान रहे दोनोँ पैर सीधे मिलाकर रखे जाय। साथ ही दोनों हाथ सीने के ऊपर हों। इसके पश्चात शरीर को निश्चेष्ट एवं बिलकुल शिथिल छोड़ दिया जाय और प्रगाढ़ भावना की जाय कि मानो प्राण शरीर में से निकलकर प्रकाश के एक गोले की तरह हवा में स्थिर हो गया है और शरीर मृत अवस्था में बेकार पड़ा है। अब यही बात प्रत्येक अंग अवयव के बारे में ध्यान पूर्वक सोची जाय कि कल तक यही आंखें अच्छी अच्छी वस्तुयें देखने का हठ करती थी। अब आज क्यों नहीं देखती और यह मुख जो बढ़िया बढ़िया स्वादिष्ट वस्तुयें खाने को माँगता था, कैसा बेकार पड़ा है।

नाक, आँख, मुंह, कंठ, छाती, हाथ, पैर सहित उन सभी अंगों को बार बार ध्यान पूर्वक देखा जाय जिनमें कफ, थूक, माँस-मज्जा मल-मूत्र के अतिरिक्त और कुछ भी तो नहीं रह गया है। यथार्थ वस्तु जो कि आत्म चेतना थी वह तो अभी भी मेरे ही साथ है क्या मैंने इस शरीर के लिये ही अपने इस प्रकाश शरीर को आत्मा को भुला दिया था? क्या अब तक इसी शरीर के लिये जो पाप कर रहा था, वह उचित था? आदि ऐसे अनेक प्रश्न मन में उठाये जा सकते जिससे साँसारिक भाव नष्ट हो और मन यह मानने को विवश हो जाय कि हम अब तक भूल में थे। वस्तुतः मनुष्य का यथार्थ जीवन शरीर नहीं आत्मा है।

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दूसरा अभ्यास इसमें किसी शांत एकान्त स्थान में कुश आदि का कोई पवित्र आसन बिछाकर ध्यान मुद्रा में बैठना पड़ता है। आसन सदैव समतल स्थान पर बिछाया जाता है। ऊंचा नीचा होने पर शरीर को कष्ट होगा और ध्यान नहीं जमेगा। ध्यान मुद्रा का आरंभ शरीर, सिर एवं ग्रीवा को सीधा रखकर अध खुले नेत्रों से नासिका के अगले भाग को देखने से होता है। दृष्टि और मन कहीं दूसरी ओर न जाय इस ओर विशेष ध्यान रखना पड़ता है यदि जाता है तो उसे बार-बार अपने मूल अभ्यास की याद दिलाकर एकाग्र किया जाता है।


जब मन शांत हो जाय तब भावनापूर्वक ध्यान किया जाय कि मैं प्रकाश के एक कण तारा या जुगनूँ की तरह हूँ और नीले आकाश में घूम रहा हूं। सूर्य की तरह का इससे भी हजारों गुना बड़ा और तेज चमक वाला एक प्रकाश पिण्ड आकाश में दिखाई दे रहा है। उसी की प्रकाश किरणें फूटकर निखिल ब्रह्मांड में व्याप्त हो रही है। हजारों सूर्य उसके आस पास चक्कर काट रहे है। मैं जो अभी तक एक लघु प्रकाश कण के रूप में अशक्त अज्ञानग्रस्त और सीमाबद्ध पड़ा था अब धीरे धीरे उस परम प्रकाश पुँज में हवन हो रहा है। अब मैं रह ही नहीं गया या तो करोड़ों अरबों किलोमीटर के विस्तार वाला गहरा नीला आकाश है या फिर वही दिव्य प्रकाश जिसमें घुलकर मैं अपने आप को सर्वव्यापी सर्वदर्शी सर्वज्ञ और सर्व समर्थ अनुभव कर रहा है।

🙏🏻यह दोनों ही अभ्यास चित्तवृत्तियों को रोकने और वैराग्य तथा ईश्वर प्राप्ति की कामना को बढ़ाने में बहुत ही सहायक सिद्ध हो सकते है। भावप्रवणता की गहराई में प्रवेश करने पर थोड़े दिनों के अभ्यास से ही उसके प्रतिफल सामने आने लगते है। अपनी सुविधानुसार कोई भी व्यक्ति इन साधनाओं का अभ्यास कर सकता है और अध्यात्म साधना की दिशा में वाँछित प्रगति कर सकता है।

व्रत उपवास सङ्कल्प बल बढाते है, औऱ संकल्पबल आत्मबल में वृद्धि करता है।

गायत्री मन्त्रलेखन भी प्राणऊर्जा उपार्जन और मन को नियंत्रण करने में सहायक है।

👉🏼 यदि घर में मन को उपासना-साधना में अभ्यस्त करने और चित्त वृत्तियों को नियंत्रित करने में असुविधा हो रही हो तो गायत्री के दिव्य तीर्थ में 9 दिन का सत्र कर लें। मन अभ्यस्त हो जायेगा और घर पर फिंर साधना होने लग जायेगी।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दैवी अनुकम्पा कैसे व किन्हें मिलती है?*

प्रश्न - *दैवी अनुकम्पा कैसे व किन्हें मिलती है?*
*हम शान्तिकुंज गए, वहाँ श्रद्धेया जीजी व डॉक्टर साहब के सामने परीक्षा में पास होने की मनोकामना बताकर प्रार्थना की। लेकिन मेरा पेपर अच्छा नहीं गया। क्यों?*

उत्तर - आत्मीय बहन, महापुरुषों के दर्शन के वक्त आशीर्वाद सूर्य के प्रकाश की तरह सब पर पड़ता है, लेक़िन जो सुपात्र सोलर ऊर्जा उपकरण की तरह होता है वही उसका लाभ ले पाता है।

सिद्ध महापुरुषों की चेतना से जुड़कर उनका एक तप अंश आशीर्वाद रूप में प्राप्त करके फ़लित करने के लिए उत्कृष्ट, चरित्रवान, संयमी, तपस्वी, संतोषी और परमार्थपरायण होना पड़ता है।

महापुरुष उसी सत्पात्र को अपने अतिमहत्त्वपूर्ण तप सम्पदा का एक अंश देते है, जो निजी सामर्थ्य कम पड़ने के कारण कोई जनकल्याण के कार्य को करने में अक्षम हो रहा है, उसे तप का एक अंश देकर बड़े पुण्य परमार्थ करवाने में मदद करते हैं।

लेन देन सृष्टि का नियम है, बैंक में मैनेजर आपका मित्र या सगा भाई ही क्यों न बैठा हो, वो तब तक आपको लोन नहीं दे सकता जब तक आप अपनी योग्यता-पात्रता लोन चुकाने की सिद्ध न कर दें।

आप जब श्रद्धेया जीजी व डॉक्टर साहब के समक्ष मनोकामना लेकर गयी तो क्या आपने सङ्कल्प मन ही मन बोला था कि यदि मैं यह परीक्षा पास हो गयी तो युगनिर्माण में अहम भूमिका निभाने हेतु इस पद का का उपयोग करूंगी। मैंने नित्य एक घण्टे युगनिर्माण की गतिविधियों में नियम से खर्च किये हैं। नित्य एक घण्टे की मेरी उपासना व साधना है, जिसमें नित्य आधे घण्टे का जप और आधे घण्टे उगते हुए सूर्य का ध्यान करती हूँ। बिना स्वाध्याय किये सोती नहीं हूँ। मैं दिन के 24 घण्टे में कोई भी समय स्वार्थ में व्यर्थ नहीं करती। पूर्ण निष्ठा से 100% तैयारी एग्जाम की तैयारी कर रही हूँ। पिछले 7 वर्षों के संभावित प्रश्न पत्रों का अभ्यास किया है। मैंने अपना 100% प्रयास किया है आगे आप सम्हाल लेना।

बहन उपरोक्त आध्यात्मिक फ़ाइल आपकी पूरी होगी तभी आप महापुरुष के तप का अंश गृहण कर पाएंगी। तभी आशीर्वाद फ़लित होंगे। आप भविष्य नहीं देख सकती मगर परमात्मा सब देख सकता है, कि तप के अंश से प्राप्त ऊर्जा का आप कहाँ और कैसे उपयोग करेंगीं।

द्रौपदी को भी भगवान कृष्ण की सहायता उनकी योग्यता व पात्रता के आधार पर मिली थी, जब उन्होंने चीरहरण के वक्त पुकारा तो उनका पुण्य अकाउंट चेक हुआ। जिसमे पाया गया कि - वो गरीबों-दीन दुखियों की निःश्वार्थ सेवा करती हैं, साधु संतों को भोजन करवा कर ही भोजन ग्रहण करती हैं। एक साधु के वस्त्र नदी में बह जाने पर आधी साड़ी फाड़कर दान दे दी। कृष्ण भगवान के उंगली पर चोट लगने पर चुनरी फाड़कर बांध दी। नित्य सूर्य उपासना करती थी। इतने पुण्य थे अतः उनकी मदद भगवान कर सके।

भगवान और सद्गुरु सृष्टि की न्यायव्यवस्था के विरुद्ध नहीं जा सकते। केवल सत्पात्र और योग्य परमार्थी मनुष्य पर ही दैवी अनुग्रह बरसा सकते हैं।

अतः दैवी अनुग्रह चाहिए तो नित्य उपासना के साथ परमार्थ में जुट जाओ। वादा करो परमात्मा से कि यदि यह परीक्षा पास करके मैं यह बन गयी तो वादा करती हूँ आपके दैवी अनुसाशन में जीवन जियूँगी और महापुरुषों सा जीवन जीते हुए इस पद और आय से स्वयं के परिवार के साथ साथ  लोककल्याण में समयदान व अंशदान करूंगी।

बैंक की तरह पिछला सत्कर्म, वर्तमान सत्कर्म और भविष्य में किये जाने वाले सत्संकल्प और योग्यता प्रमाणित होते ही आप पर स्वतः दैवीय अनुग्रह बरसने लगेगा। जिस भी सिद्ध महापुरुष के दर्शन में अपनी लोकहित मनोकामना रखेंगी, उसकी तपशक्ति स्वतः आप पर दृष्टिपात करते ही आप मे प्रवेश कर जाएगी। आशीर्वाद फलीभूत हो जाएगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 25 June 2019

प्रश्न - *तनावमुक्ति के उपाय बताइये*

प्रश्न - *तनावमुक्ति के उपाय बताइये*

उत्तर - आत्मीय बहन, तनाव की जड़ में दो कारक होते हैं
1- *भय* - अपेक्षित के न होने या कुछ खोने का भय
2- *अज्ञानता या अकुशलता* जिस हेतु तनाव हो रहा है उस कार्य करने की योग्यता न होना या  उसे करना न आना

जैसे विद्यार्थी अगर पढ़ाई के और परीक्षा के दौरान तनावग्रस्त है, तो इसका अर्थ है कि या तो उसे फेल होने का भय है या अपेक्षित मार्क्स न मिलने का भय है। या फिर पढ़े तो पढ़े कैसे या परीक्षा की बेहतरीन तैयारी कैसे करें इसका ज्ञान न होना।

जॉब करने वाला यदि नौकरी के दौरान तनावग्रस्त है तो जो वह कार्य कर रहा है वो उसमें अकुशल है या उसे अपनी अयोग्यता के कारण नौकरी खोने का भय है।

माता पिता यदि बच्चो के भविष्य को लेकर तनावग्रस्त है, तो इसका अर्थ है वो बच्चे पालने में अकुशल है या उन्हें बच्चों के बिगड़ने या गलत राह में जाने का भय है।

तनाव कोई जीवित जीव या वस्तु नहीं जिसे किसी अन्य के हस्तक्षेप से हटाया जा सके। तनाव एक नकारात्मक विचारों की सेना का आक्रमण है जो भयग्रस्त मानसिकता को जन्म दे रहा है।

तनाव से मुक्ति के लिए सकारात्मक विचारों की सेना और उच्च मनोबल चाहिए जो इस अंतर्द्वद्व में आपको विजयी बना सके।

गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है- कर्म करने पर ध्यान केंद्रित करो, उसकी कुशलता पर कार्य करो। कर्मफ़ल के बारे में विचार न करो।

यदि खेती ठीक करोगे, वक्त पर खाद पानी वृक्ष को दोगे तो फल स्वतः अच्छा आएगा।

अतः एकांत में बैठिए और स्वयं से निम्नलिखित प्रश्न पूँछिये:-

1- अच्छा जी मैं तनावग्रस्त हूँ चिंताग्रस्त हूँ तो किसलिये हूँ। वह कारण क्या है?

2- यदि जवाब में परीक्षा में फेल होने भय मिले, तो स्वयं से पूँछो कि क्या मैंने ईमानदारी और पूर्ण निष्ठा से बेहतरीन पढ़ाई की है। अपना 100% दिया है। क्या मेरे नोट्स सम्बन्धित विषय के क़वीक रेकैप के लिए तैयार हैं? क्या मैंने पिछले 7 सालों के प्रश्न बैंक से पेपर लेकर उन्हें सॉल्व करने का अभ्यास कर लिया है? यदि हाँ तो मैं अवश्य पास होऊंगा यदि नहीं तो मुझे पढ़ने में फोकस करना चाहिए और पिछले कई वर्षों के प्रश्न पत्रों को सॉल्व करना चाहिए। अनुमानित प्रश्नो को तैयार करना चाहिए।

3- यदि जवाब में नौकरी खोने का भय मिले, तो स्वयं से पूँछो क्या मैं जॉब को पूरी कुशलता और अन्य लोगो से ज्यादा बेहतर तरीके से कर रहा हूँ। यदि हाँ तो मुझे जॉब खोने का भय नहीं होना चाहिए। यदि नहीं तो मुझे मेरी जॉब से सम्बंधित कुशलता को बढ़ाने में मेहनत करनी चाहिए न कि फ़ालतू बैठकर टेंशन करनी चाहिए। इस कार्य मे इतनी कुशलता होनी चाहिए कि कोई भी कम्पनी में जॉब ट्राइ करूँ तो बेहतरीन साबित हो जाऊं।

4- यदि जवाब में कोई रिश्ता टूटने का भय है, तो उस रिश्ते में मरम्मत की कितनी गुंजाइश है यह तलाशिये। गुंजाइश है तो उस पर कार्य कीजिये, उस रिश्ते को बचाने में 100% जुट जाइये। यदि गुंजाइश नहीं बची तो उस रिश्ते के टूटने के बाद स्वयं को कैसे सम्हालना है उस पर कार्य कीजिये।

5- यदि जवाब में बच्चो के बिगड़ने का भय है, तो उन्हें चंदन वृक्ष जैसा बनाइये, जिससे सर्प भी मिले तो उनका उनपर प्रभाव न हो। ऐसे अच्छे संस्कार गढिये। बच्चो को नित्य ध्यान, गायत्री जप और स्वाध्याय से जोड़ दीजिये। बिन पूजन भोजन नहीं और बिन स्वाध्याय शयन नहीं। बच्चे नहीं बिगड़ेंगे।

मनोबल बढ़ाने के लिए गायत्री मंत्र जप और ध्यान कीजिये। सकारात्मक विचारों की सेना में तैयार करने के लिए नित्य अच्छी पुस्तको का स्वाध्याय कीजिये।

उदाहरण कुछ पुस्तको के:-
1- हारिये न हिम्मत
2- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
3- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
4- विचारों की सृजनात्मक शक्ति
5- भयग्रस्त होने की अपारहानि

 जिस कारण से तनाव हो रहा है उसका पता लगाइए और सम्बन्धित क्षेत्र में कुशलता बढ़ाइए। जो खुद कर सकते हो केवल उसे करने में ध्यान केंद्रित करो, जो आपके हाथ मे नहीं और नियंत्रण के बाहर है उसका चिंतन करने से कोई लाभ नहीं है।

भय के अंधकार में तनाव होता है, अतः मनोबल के सूर्य की रौशनी भीतर पैदा कीजिये और भय के अंधकार को मिटाइये। उपासना गायत्री की कीजिये, साधना स्वयं की कीजिये, स्वयं को कुशल, योग्य और सुपात्र बनाने में जुट जाइये। स्वयं की सफलता और असफलता के लिए स्वयं ही जिम्मेदारी लीजिये। स्वयं से कहिये मैं नित्य अपनी किस्मत अपने हाथ से लिख रही हूँ, मैं अपनी श्रेष्ठ और उत्तम किस्मत कुशलता और योग्यता की पेन से लिखूँगी। मेरे साथ मेरा ईश्वर है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday 24 June 2019

प्रश्न - *गायत्री मंत्र वेदों का सार है, यह अखण्डज्योति में पढ़ा है। कृपया बताएं गायत्री मंत्र वेदों का सार क्यों और कैसे है?*

प्रश्न - *गायत्री मंत्र वेदों का सार है, यह अखण्डज्योति में पढ़ा है। कृपया बताएं गायत्री मंत्र वेदों का सार क्यों और कैसे है?*

उत्तर - आत्मीय बहन,
*सार* का शाब्दिक अर्थ होता है- मूल अंश, तत्त्व, essence

*वेदों का  मूल उद्देश्य है* -  उस सत चित आनन्द परमात्म चेतना से जनमानस को जोड़ना, उन्हें सत्य राह दिखाना औऱ उन्हें दैवीय अनुसाशन में जीवन जीने हेतु प्रेरित करना, मनुष्य में देवत्व और धरती को स्वर्ग सा सुंदर बनाना है।

उपरोक्त समस्त उद्देश्यों की पूर्ति *गायत्री मंत्र* से भी होती है। इसीलिए गायत्री मंत्र को *वेदों का सार* कहा जाता है।

यदि आपने *गायत्री जयंती की पूर्व संध्या* पर *आदरणीय उपाध्याय बाबूजी* का गायत्री मंत्र पर उद्बोधन सुना हो और नवरात्र अनुष्ठान के अवसर पर  *चिन्मय भैया के गायत्री मंत्र विवेचना* सुनी हो तो निम्नलिखित सार क्लियर हो जाएगा।

*ॐ भुर्भुवः स्व:* - वह परमात्मा जो धरती, आकाश , पाताल अर्थात समस्त ब्रह्माण्ड में एक साथ एक समय में विद्यमान है। यत्र तत्र सर्वत्र है। मछली जिस तरह जल में है और वह जल भी मछली के भीतर है। ठीक इसी तरह हम भी ब्रह्म के भीतर है और वह ब्रह्म भी हमारे भीतर है।

*तत् सवितुर्वरेण्यं* - ऐसे सर्वव्यापी न्यायकारी सर्वशक्तिमान *अखण्डमंडलाकारं* परमात्मा का हम वरण करते हैं। जैसे सती स्त्री स्वयं के अस्तित्व को भूलकर पति के अस्तित्व और पहचान को अपना लेती है। वो पति के जीवन और संपत्ति सबकी अधिकारी बन जाती है। वो दो से एक हो जाते है। मैं मिटने पर केवल वह शेष रह जाता है।

*भर्गो देवस्य धीमहि* - जैसे यज्ञ में समिधा डालने पर वह अग्नि ही बन जाती है। उसी तरह मुझ साधक को सविता में आहूत करता हूँ, अब साधक और सविता एक हो गए हैं।  उस सविता के *भर्ग* अर्थात तेज़ में प्रवेश कर उसके समस्त गुण मुझमें अवतरित हो गए हैं। अब हमारी बुद्धि सद्बुद्धि में परिवर्तित हो गई, मुझमें देवत्व उदय हो गया। अज्ञान का अंधकार छंट गया। सविता के समस्त गुणों को मैंने धारण कर लिया।

*धियो योनः प्रचोदयात* - क्योंकि मैंने सर्वव्यापी परमात्मा का वरण कर लिया, उस पर समर्पित होकर उसको अपनी बुद्धि में धारण कर लिया, उसके अनुसाशन में जीना स्वीकार कर लिया।
तो अब वह मेरे बुद्धि रथ पर विराजमान होगा और...
मेरा  सतत मार्गदर्शन करेगा,
मुझे सन्मार्ग पर बलपूर्वक ले जाएगा,
मुझे अंधेरे से प्रकाश की ओर ले जाएगा,
मुझे असत्य से सत्य की ओर ले जाएगा,
मुझे मृत्यु से अमरत्व की ओर ले जाएगा।

आदरणीय उपाध्याय बाबूजी का लेक्चर निम्नलिखित वीडियो लिंक पर सुने:-

https://youtu.be/BQ883o3d8TU

*आदरणीय चिन्मय पंड्या भैया का गायत्री के ज्ञान व विज्ञान की व्याख्या*

https://youtu.be/saalKt6EPZw

*गायत्री मंत्र वेदों का सार है, अखण्डज्योति आर्टिकल*:-

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1948/July/v2.5

गायत्री मंत्र लगातार जपने से व्यक्तित्व का परिष्कार होता है। माइंडसेट देवताओं वाला बनने लगता है, परोपकार का भाव मन में जगने लगता है। मनुष्य देवताओं जैसा व्यवहार करने लगता है, स्वयं के, परिवार के, समाज के, देश के, संसार के कल्याण में योगदान देता है। इस धरती को स्वर्ग बनाने में जुट जाता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *हड्डी जल्दी से जुड़े, इसके लिए कोई special हवन सामग्री बनी है क्या?*

प्रश्न - *हड्डी जल्दी से जुड़े, इसके लिए कोई special हवन सामग्री बनी है क्या?*

उत्तर - हड्डियों को जोड़ने में वही औषधियों की हवन सामग्री उपयोगी व सहायक है जो जोड़ो के दर्द में विशिष्ट सामग्री सहायक होती है।  इसमें वो समस्त औषधियाँ है जो हड्डी को जोड़ने, मज़बूत बनाने और स्वास्थ्य के लिए जरूरी हैं।

हड्डियों की मजबूती, स्वास्थ्य के लिए विशिष्ट हवन सामग्री के लिए 📖  यज्ञ चिकित्सा पेज नम्बर 120 और 130 देखें।

👉🏼 *जब तक प्लास्टर न उतरे तब तक नित्य निम्नलिखित खाने से भी लाभ मिलेगा:-*

1- लहसन देशी को अत्यंत बारीक काट के गर्म गुनगुने पानी से सुबह एक बार दवा की तरह ले लें।

2- हमारे शरीर को 1% कैल्शियम की जरूरत होती है, शरीर के दैनिक कार्य हेतु। यदि यह आपूर्ति आप बाहर कैल्शियम युक्त भोजन से नहीं करेंगे, तो शरीर आपकी हड्डियों से वो कैल्शियम लेता जाएगा। कैल्शियम की कमी  से हड्डियां कमजोर बनेगी। दुनियाँ में जितनी भी कैल्शियम की दवाई है उसके मूल में चूना ही होता है। पान की दुकान से चूना ले आइये। सरसों के दो दाने बराबर (अत्यंत थोड़ा) नित्य गर्म पानी मे मिलाकर या दाल के पानी मे मिलाकर पीने को दीजिये। टूटी हड्डियों को जोड़ने और उन्हें पुनः स्वास्थ्य प्रदान करने और दर्द मिटाने में सहायक है।

👉🏼 *निम्नलिखित ध्यान व प्राणायाम हड्डी जल्दी जोड़ने और उस स्थान में प्राण संचार करने में सहायक है।*

1-  प्राणाकर्षण एवं नाड़ी शोधन प्राणायाम नित्य करें;*(कम से कम 10 से 20 बार)

2- शरीर के रोगों की जड़ पेट और मन मे होती है, अतः दोनों को साफ़ रखें। पेट के लिए सन्तुलित आहार लें, और मन के लिए सन्तुलित विचार(स्वाध्याय) द्वारा लें। नित्य स्वाध्याय अवश्य करें। रात को सोने से पूर्व गुनगुना पानी पीकर और अच्छे विचार स्वाध्याय द्वारा पढ़कर सोएं। सुबह पेट और मन दोनों हल्का रहेगा। पेट में कब्ज ज्यादा हो तो त्रिफला वटी या लघु हरीतकी वटी दो गोली रात को लेकर सोएं।

3- ध्यान मन चित्रों की कल्पना के सहारे करता है। प्राणिक हीलिंग, रेकी व समस्त प्राण ऊर्जा के उपचार का आधार विचार और एकाग्रचित्त कल्पनाएं ही हैं। विचार और कल्पना तत्सम्बन्धी भावनाएं/इमोशन निर्मित करेंगे। इन इमोशन के कारण तत्सम्बन्धी हार्मोन्स का स्त्राव होगा। हार्मोन्स के स्राव से प्राण ऊर्जा निकलेगी और स्वास्थ्य ठीक करने में मदद मिलेगी।  जो पिंड में है वही ब्रह्माण्ड में है। ऊर्जा का स्रोत आपके भीतर ही है , ध्यान में आप इसी श्रोत से जुड़ते है।

ध्यान में बैठिए, और नेत्र बन्द करके ध्यान कीजिये कि नीले ब्रह्मांडीय आकाश में गुरूदेव प्रकट हुये, और उन्होंने ब्रह्माण्ड से तीव्र नीली रौशनी जिस जगह चोट लगी है उस जगह प्रेषित की। जिससे चोटिल भाग नीले नीले प्रकाश से भर गया। यह प्राण ऊर्जा तुम्हारी चोट ठीक कर रही है, हाथ को स्वास्थ्य प्रदान कर रही है। हाथ स्वस्थ हो रहा है।

4- दिन में कम से कम 324 बार अर्थात 3 माला गायत्री मंन्त्र की हाथ के स्वास्थ्य के लिए जरूर जपें।

5- खुशियां बांटने से बढ़ती है, ख़ुशी की लहर जहां हो तो वहां दर्द की लहर नहीं टिकती।

6- स्वयं के साथ एकांत में एक घण्टे बिताएं, बिना फ़ोन और टीवी के, स्वयं के भीतर जगत को समझने की कोशिश करें। युगऋषि कहते हैं कि अंतर्जगत की ऊर्जा से जुड़ने के बाद पके नारियल की तरह शरीर में रहते हुए भी योगियों की तरह आत्मचेतना में स्थित रहना सम्भव होगा।

7- तपस्वियों और योगियों को कभी कभी अनायास विशेष दर्द और दुर्घटना का सामना करना पड़ता है। यह कुछ विशेष शिक्षण देने के लिए आता है और बड़ी दुर्घटना जो प्रारब्ध में लिखी थी वो छोटे से घटनाक्रम में क़ट जाती है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Sunday 23 June 2019

प्रश्न - 119 - *क्या गोघृत के हवन से सबसे सुगंधित एवं वायुमंडल का आयतन सबसे अधिक बनता है? क्या कोई ऐसा तत्व है जो देशी गाय के घी उपलब्ध न होने पर उसकी जगह यज्ञ में उपयोग लाया जा सके?*

प्रश्न - 119 - *क्या गोघृत के हवन से सबसे सुगंधित एवं वायुमंडल का आयतन सबसे अधिक बनता है? क्या कोई ऐसा तत्व है जो देशी गाय के घी उपलब्ध न होने पर उसकी जगह यज्ञ में उपयोग लाया जा सके?*

उत्तर - देशी गाय का दूध *A2* कैटेगरी का होता है, अतः इससे बने देशी घी की गुणवत्ता अन्य किसी भी पशु के दूध और उससे बने घी में यह गुणवत्ता नहीं है।

जितने भी हवनीय द्रव्य हैं उनमें देशी गाय के गो घृत के हवन द्वारा बने हुए सुगंधित वायु मंडल का आयतन सबसे अधिक होता है। जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव सर्वत्र देखा गया है। वायु शुद्धिकरण में सहायक है।

गोघृत के अभाव में भैंस के दूध के घी के साथ गुड़ के खाँड की शक्कर सुगन्धित आयतन दूसरे नम्बर पर बनता है। जो वायु शुद्धिकरण में सहायक है।

गोघृत के योगवाही तथा विशद होने के कारण अन्य द्रव्य भी इसके संयोग से हवन द्वारा प्राणरूप होकर  वायुमण्डल में विशद या बृहद आयतन धारण कर लेते हैं।

हलाकिं कपूर, गुग्गल, राल, देवदारु, चंदन, अगरू, खस, नागरमोथा, पान, सुपारी, नारियल, खजूर, जटामांसी, केशर, कस्तूरी, सुगन्धवाला लौंग, इलायची, तेजपत्र, कपूरकचरी, मखाना, छुआरा, अंगूर सेवादी फल, जौ, तिल और धान्य इत्यादि इनमें भी न्यूनाधिक तैलीय तत्व होता है, इनके हवन से भी वायु मंडल में अधिकाधिक सुगन्धित आयतन बनाया जा सकता है। लेकिन यदि इनमें गौघृत मिला दिया जा तो इनका प्रभाव अनेकों गुना बढ़ाया जा सकता है।

गोघृत हवन शास्त्र इतना वृहद था कि उसमें बीजरूप प्राण बनाने का भी विधिविधान था। लेकिन समय के फेर से व्यवहार नष्ट हो जाने के कारण साहित्य लुप्त हो जाने के कारण यह क्रमबद्ध शास्त्र नष्ट हो गया।

*नोट:-* पूजन में देशी गाय का घी ही उपयोग में लें।

यदि न मिले तो भैंस इत्यादि के शुद्ध देशी घी उपयोग में लें और शक्कर(गन्ने की खाँड से बना) मिला लें।

यदि घी न मिले तो उपर्युक्त बताई औषधियों से हवन कर लें।

किसी भी कीमत पर सस्ता 150 रुपये वाला घी न उपयोग में लें, ऐसा घी मृत पशुओं को गर्म करके प्रोसेस फैट से बनाया जाता है। इनके जलने से ज़हरीली गैस निकलती है जो प्रदूषण और रोग वृद्धिकारक और नुकसानदायक होती है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - 118 - *क्या यज्ञ से वर्षा करवाना संभव है? क्या यज्ञ से पृथ्वी के नीचे का जल स्तर बढ़ाया जा सकता है?*

प्रश्न - 118 - *क्या यज्ञ से वर्षा करवाना संभव है? क्या यज्ञ से पृथ्वी के नीचे का जल स्तर बढ़ाया जा सकता है?*

उत्तर - वेदों में *मित्र* और *वरुण* को वृष्टि का अधिपति कहा गया है।

*मित्रावरुणौ वृष्ट्याधिपाति तो मा$वताम्*

*मित्र* वायु अर्थात *हाइड्रोजन* गैस की सूक्ष्म सत्ता और *वरुण* वायु अर्थात *ऑक्सीजन* गैस की सूक्ष्म सत्ता जो *जलतत्व* के निर्माण में सहायक हैं। आधुनिक विज्ञान भी ऑक्सीजन और हाइड्रोजन वायु के मिश्रण को ही जल तत्व का मिश्रण है।

अतः प्राचीन तत्त्ववेत्ता आध्यात्मिक वैज्ञानिक ऋषिगण जब देश मे वृष्टि का अभाव देखते थे तो तब मित्र और वरुण को प्रशन्न करने के लिए 40 दिन का कठोर अनुष्ठान ब्रह्मचर्य पालन करते हुए ऋषिगण समूह में करते थे।  तथा प्रत्येक दिन ऐसे तत्वों और औषधियों को  गोघृत में मिश्रित करके मित्र और वरुण के वेदमन्त्रों से यज्ञ में आहुतियाँ देते थे। जो सूक्ष्मरूप में शक्तिसम्पन्न होकर अंतरिक्ष मे जाकर इन दोनों गैसों को मिलाने का कार्य करते थे। इस संगतिकरण के परिणामस्वरूप जल के बादलों का निर्माण आसमान में होता था और जो पृथ्वी पर बरसता था। ऋषिगण *मानसून* के जल को भी कई गुना इस यज्ञ प्रयोग से बढ़ा लेते थे। पृथ्वी के नीचे के जलस्तर को भी यह यज्ञ प्रयोग बढ़ाने में सक्षम होता था।

*नोट:-* *मित्र* और *वरुण* दो अलग अलग हिन्दू देवता है। ऋग्वेद में दोनों का अलग और प्राय: एक साथ भी वर्णन है, अधिकांश पुराणों में ' *मित्रावरुण* ' इस एक ही शब्द द्वारा उल्लेख है।। *ये द्वादश आदित्य में भी गिने जाते हैं*। इनका संबंध इतना गहरा है कि इन्हें द्वंद्व संघटकों के रूप में गिना जाता है। इन्हें गहन अंतरंग मित्रता या भाइयों के रूप में उल्लेख किया गया है। ये दोनों कश्यप ऋषि की पत्नी अदिति के पुत्र हैं।

*जो कार्य जलवर्षा चक्र में सूर्य करता है, इनदोनो के सम्मिश्रण से जल के बादलों का निर्माण, वही कार्य सूर्य की शक्ति का यज्ञ में आह्वाहन करके उसी शक्ति(सविता शक्ति ऊर्जा) का उपयोग ऋषिगण भी करते हैं, इनदोनो शक्तियो के सम्मिश्रण और जल के बादलों के निर्माण और जल वर्षा के लिए । अतः यह चेतन विज्ञान 100% प्रभावी है।*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न -117 - *यग्योपैथी में यदि प्राणाकर्षण और डीप ब्रीथिंग द्वारा यग्योपैथी इलाज करना है तो क्या सावधानियां बरतनी चाहिए, जिससे औषधीय धूम्र का अधिक लाभ मिले?*

प्रश्न -117 - *यग्योपैथी में यदि प्राणाकर्षण और डीप ब्रीथिंग द्वारा यग्योपैथी इलाज करना है तो क्या सावधानियां बरतनी चाहिए, जिससे औषधीय धूम्र का अधिक लाभ मिले?*

उत्तर - औषधीय धूम्र के उचित निर्माण औऱ अतिरिक्त कार्बन के शमन के लिए निम्नलिखित सावधानियां बरतें:-

1- आम की लकड़ी धुली हुई होनी चाहिए या गौमय समिधा सुखी हुई लें
2- हवन सामग्री और घी का रेशियो 3:1 का होना चाहिए
3- हवनकुण्ड के चारो तरफ खुले बर्तन में जल रखें, कार्बन नीचे की तरफ़ पहले फैलती है और जिसे जल सोख लेता है। यह जल पौधों के लिए अमृत का कार्य करता है।
4- हवन में आहुति स्वाहा शब्द के दौरान ही डालें जिससे हवन का सूक्ष्मीकरण व ऑक्सीकरण प्रक्रिया उत्तम तरीक़े से हो सके।
5- आहुतियाँ समाप्त होने पर, घृतावघ्राणम् और भष्मधारण के ततपश्चात कम से कम 5 प्राणायाम और अधिक से 15 मिनट तक करें। मेरुदण्ड सीधा रखें व नेत्र बन्द रखे।
6- विचार(thought) से भावनाएं(emotion) , और भावनाओं से अच्छे स्वास्थ्यकर हार्मोन्स का रिसाव और उन हार्मोन्स से तन एवं मन के स्वास्थ्य का निर्माण होता है। अतः प्राणायाम करते वक़्त *हम पूर्ण स्वस्थ हो रहे हैं* यह विचार अवश्य करें।
7- दवा और दुआ विश्वास पर असर करती है। जितना गहरी श्रद्धा एवं विश्वास यज्ञ देवता पर करेंगे उतनी जल्दी स्वास्थ्य लाभ पाएंगे।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday 21 June 2019

प्रश्न - *देहधारी और अदेहधारी गुरु मे अंतर बतायें यह भी समझाये कि अदेहधारी गुरु से कैसे संपर्क किया जाय?*

प्रश्न - *देहधारी और  अदेहधारी  गुरु मे अंतर बतायें यह भी समझाये  कि अदेहधारी गुरु से कैसे संपर्क  किया जाय?*

उत्तर - आत्मीय भाई, जब सद्गुरु सशरीर विद्यमान हों औऱ सांसारिक गतिविधियों का पालन करते हुए युगनिर्माण कर रहे हों औऱ शिष्यों की आत्मचेतना का जागरण कर रहे हों, ऐसे सद्गुरु देहधारी सद्गुरु कहलाते हैं।

जब यही देहधारी सद्गुरु विभिन्न सूक्ष्मीकरण साधना द्वारा अपने सूक्ष्म शरीर को साध लेते हैं। अपनी चेतना को परमात्म चेतना से एकाकार कर लेते हैं और स्वेच्छा से स्थूल देह का त्याग करके जागृत सूक्ष्म तरंगों से युक्त सूक्ष्मशरीर में सूक्ष्मजगत में रहने लगते हैं। सूक्ष्म शरीर में रहते हुए आत्मचेतना का विस्तार करते हैं, सूक्ष्म संशोधन एवं युगनिर्माण कर रहे हों औऱ शिष्यों की आत्मचेतना का जागरण कर रहे हों, ऐसे सूक्ष्मशरीर धारी सद्गुरु को अदेहधारी सद्गुरु कहलाते हैं।

सूक्ष्मशरीर धारी सद्गुरु से सम्पर्क  साधना श्रद्धा एवं विश्वास के सहारे  बहुत आसान है।  ध्यान का अभ्यास कीजिए औऱ सद्गुरु के श्रीचरणों का सतत ध्यान कीजिये। आपके प्रश्नो के उत्तर गुरुचेतना आपके भीतर ही देने लग जायेगी। आपका संवाद गुरुचेतना से होने लगेगा।

सूर्य अगर न भी दिख रहा हो तो उसकी रौशनी बता देती है कि सूर्योदय हो गया है। इसीतरह अदेहधारी सद्गुरु स्थूल नेत्रों से न भी दिख रहा तो भी आपके अन्तःकरण की शांति और ज्ञान का प्रकाश यह अनुभूति करवा देता है कि गुरुचेतना से सम्पर्क हो गया है।

युगऋषि की अदेहधारी चेतना से सम्पर्क निम्नलिखित उपाय से करें:-

1- पूजन स्थल पर शांतचित्त होकर बैठ जाएं
2- अब जिस प्रश्न का समाधान चाहते हो उसे सोचो
3- अब भक्तिपूर्वक गुरु का चिंतन करो और आह्वाहन करो। स्वयं की चेतना का गुरु चेतना से योग कीजिये।
4- गायत्री मंत्र 11 बार जपो
5- कम से कम 5 से 10 बार अपने सर पर हाथ फेरिये
6- अब आतिजाती श्वांस पर ध्यान केंद्रित कीजिये, निर्विचार हो जाइये औऱ श्वांस पर ध्यान केंद्रित कीजिये।
7- पहला जो उत्तर अंतर्जगत में उभरेगा वो सद्गुरू का उत्तर होगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *क्या मनुष्य का स्वभाविक आहार शाकाहार है? क्या केवल शाकाहार से समग्र स्वास्थ्य मिलता है? शाकाहार मनुष्य के लिए अनिवार्य क्यों है?*

प्रश्न - *क्या मनुष्य का स्वभाविक आहार शाकाहार है? क्या केवल शाकाहार से समग्र स्वास्थ्य मिलता है? शाकाहार मनुष्य के लिए अनिवार्य क्यों है?*

उत्तर - *समग्र स्वास्थ्य का आधार- शाकाहार*

भोजन केवल पेट भरने के लिए नहीं होता, स्वादलिप्सा के लिए भी नहीं होता। वस्तुतः भोजन तो जीवन को गति देने के लिए जरूरी ईंधन को पाने का माध्यम है।

जब हम भोजन ग्रहण करते तो उसके बाद सप्त स्थूल धातुएं और तीन सूक्ष्म धातुएं बनती है:-

भोजन

स्थूल धातु👉🏼रस👉🏼 रक्त👉🏼मांस👉🏼 मज्जा👉🏼अस्थि👉🏼वीर्य

सूक्ष्म धातु 👉🏼तेजस👉🏼ओजस👉🏼वर्चस

मांस खाने से मनुष्य के अंदर तीन सूक्ष्म धातुएँ नहीं बनती।

भोजन के सूक्ष्म भाग से मन का भी निर्माण होता है, जैसा खाये अन्न वैसा होवे मन।

मांस खाने वाले हिंसक स्वभाव के होने लगते हैं, गुस्सा, चिड़चिड़ापन अधिक होता है। मन पर नियंत्रण खोने लगते हैं।जिस पशु का मांस खाया है उसकी भावनाएं मन मे उठती रहती हैं।

विश्वभर के डॉक्टरों ने यह साबित कर दिया है कि शाकाहारी भोजन उत्तम स्वास्थ्य के लिए सर्वश्रेष्ठ है। फल-फूल, सब्ज़ी, विभिन्न प्रकार की दालें, बीज एवं दूध से बने पदार्थों आदि से मिलकर बना हुआ संतुलित आहार भोजन में कोई भी जहरीले तत्व नहीं पैदा करता। इसका प्रमुख कारण यह है कि जब कोई जानवर मारा जाता है तो वह मृत-पदार्थ बनता है। यह बात सब्ज़ी के साथ लागू नहीं होती। यदि किसी सब्ज़ी को आधा काट दिया जाए और आधा काटकर ज़मीन में गाड़ दिया जाए तो वह पुन: सब्ज़ी के पेड़ के रूप में हो जाएगी। क्यों कि वह एक जीवित पदार्थ है। लेकिन यह बात एक भेड़, मेमने या मुरगे के लिए नहीं कही जा सकती। अन्य विशिष्ट खोजों के द्वारा यह भी पता चला है कि जब किसी जानवर को मारा जाता है तब वह इतना भयभीत हो जाता है कि भय से उत्पन्न ज़हरीले तत्व उसके सारे शरीर में फैल जाते हैं और वे ज़हरीले तत्व मांस के रूप में उन व्यक्तियों के शरीर में पहुँचते हैं, जो उन्हें खाते हैं। हमारा शरीर उन ज़हरीले तत्वों को पूर्णतया निकालने में सामर्थ्यवान नहीं हैं। नतीजा यह होता है कि उच्च रक्तचाप, दिल व गुरदे आदि की बीमारी मांसाहारियों को जल्दी आक्रांत करती है। इसलिए यह नितांत आवश्यक है कि स्वास्थ्य की दृष्टि से हम पूर्णतया शाकाहारी रहें।

फ़ल सब्जी को डायनिंग टेबल पर काटकर बच्चो और परिवार के समक्ष आराम से खाया जा सकता है, लेक़िन पशुओं की हत्या मांसाहारी भोजन हेतु डायनिंग टेबल पर बच्चो और परिवार के समक्ष नहीं कर सकते। पशु की पीड़ा और दर्द की भावना से बाल मन तो विचलित हो ही जायेगा और सम्वेन्दनशील बड़े भी उस दृश्य को देखने बाद भोजन न कर सकेंगे।

पोषण :

अब आइए, कुछ उन तथाकथित आँकड़ों को भी जाँचें जो मांसाहार के पक्ष में दिए जाते हैं। जैसे, प्रोटीन की ही बात लीजिए। अक्सर यह दलील दी जाती है कि अंडे एवं मांस में प्रोटीन, जो शरीर के लिए एक आवश्यक तत्व है, अधिक मात्रा में पाया जाता है। किंतु यह बात कितनी ग़लत है यह इससे साबित होगा कि सरकारी स्वास्थ्य बुलेटिन संख्या ''२३'' के अनुसार ही ''१०० ग्रा''. अंडों में जहाँ ''१३ ग्रा.'' प्रोटीन होगा, वहीं पनीर में ''२४ ग्रा.'', मूंगफल्ली में ''३१ ग्रा.'', दूध से बने कई पदार्थों में तो इससे भी अधिक एवं सोयाबीन में ''४३ ग्रा.'' प्रोटीन होता है। अब आइए कैलोरी की बात करें। जहाँ ''१०० ग्रा.'' अंडों में ''१७३ कैलोरी'', मछली में ''९१ कैलोरी'' व मुर्गे के गोश्त में ''१९४ कैलोरी'' प्राप्त होती हैं वहीं गेहूँ व दालों की उसी मात्रा में लगभग ''३३० कैलोरी'', सोयाबीन में ''४३२ कैलोरी'' व मूंगफल्ली में ''५५० कैलोरी'' और मक्खन निकले दूध एवं पनीर से लगभग ''३५० कैलोरी'' प्राप्त होती है। फिर अंडों के बजाय दाल आदि शाकाहार सस्ता भी है। तो हम निर्णय कर ही सकते हैं कि स्वास्थ्य के लिए क्या चीज़ ज़रूरी है। फिर कोलस्ट्रोल को ही लीजिए जो कि शरीर के लिए लाभदायक नहीं है। ''१०० ग्राम'' अंडों में कोलस्ट्रोल की मात्रा ''५०० मि.ग्रा.'' है और मुरगी के गोश्त में ''६०'' है तो वहीं कोलस्ट्रोल सभी प्रकार के अन्न, फलों, सब्ज़ियों, मूंगफली आदि में 'शून्य' है। अमरीका के विश्व विख्यात पोषण विशेषज्ञ डॉ.माइकेल क्लेपर का कहना है कि अंडे का पीला भाग विश्व में कोलस्ट्रोल एवं जमी चिकनाई का सबसे बड़ा स्रोत है जो स्वास्थ्य के लिए घातक है। इसके अलावा जानवरों के भी कुछ उदाहरण लेकर हम इस बात को साबित कर सकते हैं कि शाकाहारी भोजन स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है। जैसे गेंडा, हाथी, घोड़ा, ऊँट। क्या ये ताकतवर जानवर नहीं हैं? यदि हैं, तो इसका मुख्य कारण है कि वे शुद्ध शाकाहारी हैं। इस प्रकार शाकाहारी भोजन स्वास्थ्यप्रद एवं पोषण प्रदान करनेवाला है।

मनुष्य की आंतो का पाचन सॉफ्टवेयर शाकाहार के लिए बना है और शाकाहार ही उसका स्वाभाविक भोजन है:-

मनुष्य की संरचना की दृष्टि से भी हम देखेंगे कि शाकाहारी भोजन हमारा स्वाभाविक भोजन है। गाय, बंदर, घोड़े और मनुष्य इन सबके दाँत सपाट बने हुए हैं, जिनसे शाकाहारी भोजन चबाने में सुगमता रहती हैं, जबकि मांसाहारी जानवरों के लंबी जीभ होती है एवं नुकीले दाँत होते हैं, जिनसे वे मांस को खा सकते हैं। उनकी आँतें भी उनके शरीर की लंबाई से दुगुनी या तिगुनी होती हैं जबकि शाकाहारी जानवरों की एवं मनुष्य की आँत उनके शरीर की लंबाई से सात गुनी होती है। अर्थात, मनुष्य शरीर की रचना शाकाहारी भोजन के लिए ही बनाई गई हैं, न कि मांसाहार के लिए।

अहिंसा और जीव दया :

आज विश्व में सबसे बड़ी समस्या है, विश्व शांति की और बढ़ती हुई हिंसा को रोकने की। चारों ओर हिंसा एवं आतंकवाद के बादल उमड़ रहे हैं। उन्हें यदि रोका जा सकता हैं तो केवल मनुष्य के स्वभाव को अहिंसा और शाकाहार की ओर प्रवृत्त करने से ही। महाभारत से लेकर गौतम बुद्ध, ईसा मसीह, भगवान महावीर, गुरुनानक एवं महात्मा गांधी तक सभी संतों एवं मनीषियों ने अहिंसा पर विशेष ज़ोर दिया है। भारतीय संविधान की धारा ''५१ ए (जी)'' के अंतर्गत भी हमारा यह कर्तव्य है कि हम सभी जीवों पर दया करें और इस बात को याद रखें कि हम किसी को जीवन प्रदान नहीं कर सकते तो उसका जीवन लेने का भी हमें कोई हक नहीं हैं।

संसार के महान बुद्धिजीवी, उदाहरणार्थ अरस्तू, प्लेटो, लियोनार्दो दविंची, शेक्सपीयर, डारविन, पी.एच.हक्सले, इमर्सन, आइन्सटीन, जार्ज बर्नार्ड शा, एच.जी.वेल्स, सर जूलियन हक्सले, लियो टॉलस्टॉय, शैली, रूसो आदि सभी शाकाहारी ही थे।

शाकाहारी भोजन में पीड़ा और क्रंदन की भावनाएं नहीं होती। अतः इनसे बनने वाली ऊर्जा हमारे शरीर को पोषित करती है। शाकाहारी मांसाहारियों की अपेक्षा कम बीमार पड़ते हैं। पेट और मन शाकाहारियों का ज्यादा बेहतर होता है।

शाकाहारी स्वभाव से मांसाहारी लोगों से कम हिंसक होते है। कत्लेआम करने वाले लोगों में 90% लोग मांसाहारी होते है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Thursday 20 June 2019

प्रश्न - *योग के लाभ बतायें, साथ ही यह भी बताएं कि यदि योग इतना आवश्यक है तो प्रत्येक भारतीय योग नित्य क्यों नहीं करता। ऋषि मुनियों और प्रधानमंत्री जी के इतने प्रचार प्रसार के बाद भी मात्र 10% से 20% ही लोग योग नित्य करते हैं। स्कूलों में नित्य योग की क्लास भी शुरू नहीं हुई क्यों?*

*21 जून योगदिवस की बधाई*

प्रश्न - *योग के लाभ बतायें, साथ ही यह भी बताएं कि यदि योग इतना आवश्यक है तो प्रत्येक भारतीय योग नित्य क्यों नहीं करता। ऋषि मुनियों और प्रधानमंत्री जी के इतने प्रचार प्रसार के बाद भी मात्र 10% से 20% ही लोग योग नित्य करते हैं। स्कूलों में नित्य योग की क्लास भी शुरू नहीं हुई क्यों?*

उत्तर - भारतीय समाज भले ही पुरुष प्रधान है, लेक़िन घर के सँस्कार गढ़ने में माता का ही योगदान होता है।

जब तक भारतीय स्त्रियाँ योग के लिए जागरूक नहीं होंगी। योग प्रत्येक घर मे नहीं हो सकेगा। घर के पुरुष और बच्चे सुबह योग तब तक नहीँ करेंगे जब तक महिला उन्हें नित्य प्रेरित न करेगी।

*कुछ निम्नलिखित कारणों से मध्यम वर्गीय एवं ग्रामीण स्त्रियाँ योग नहीं करती:-*

1- पहनावा - जो स्त्रियां साड़ी या घाघरा वग़ैरह पहनती हैं, घूंघट प्रथा है। वो योग नहीं करती।

2- स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही - स्त्रियाँ स्वयं के स्वास्थ्य के प्रति न जागरूक हैं और न जागरूक होने में रुचि रखती हैं।

3- स्वाध्याय न करना और नया कुछ न सीखना - 80% ग्रामीण व मध्यमवर्गीय महिलाएँ पुस्तक नित्य पढ़ती ही नहीं। अतः ज्ञान से वंचित रहती हैं।

4- धार्मिक पारिवारिक परम्परा रीतिरिवाजों में योग का शामिल न होना।

5- धर्मगुरूओं का योग की अनिवार्यता न बताना

*कुछ निम्नलिखित कारणों से उच्च वर्गीय एवं शहरी स्त्रियाँ योग नहीं करती:-*

1- पाश्चात्य की नक़लची - जो पाश्चात्य विदेशी अपनाते हैं उनकी नकल को हाई फाई क्लास मानना। जिम वग़ैरह करना और योग की अवहेलना करना।

2- चंचल अस्थिर चित्त व नशेड़ी - अस्थिर चित्त और नशेड़ी स्त्रियाँ योग नहीं करती।

3- कॉस्मेटिक औऱ बाह्य उत्पादों से सुंदर बनने की होड़ - आतंरिक सौंदर्य की उपेक्षा।

🙏🏻 *वही स्त्रियाँ आपको योग में रुचि लेती मिलेंगी, जो पढ़ी लिखी समझदार और भारतीय अध्यात्म में रुचि रखती हैं। या बो जो पिछले पाँच वर्षों से मोदी गवर्नमेंट के प्रयासों से प्रेरित होकर योग कर रही हैं।*🙏🏻

👉🏼 फ़िल्मी हीरो एवं हिरोइन, टीवी सीरियल एवं विज्ञापन द्वारा वैसे ही मुहिम चलानी होगी जैसे पोलियो अभियान की सरकार ने की थी। स्कूल एवं कॉलेज, सभी स्वास्थ्य संगठन जब अथक प्रयास करेंगे तब महिलाएं योग से जुड़ेंगी। जब महिला योग से जुड़ेगी तब जाकर घर घर योग होगा। नई जनरेशन को योगी महिला ही बनाएगी।

*जीवन में योग का महत्व और लाभ*
1. शरीर को लचीला और मजबूत बनाता है – जिम में आप किसी खास अंग का ही व्यायाम कर पाते है जबकि योग से शरीर के संपूर्ण अंग प्रत्यंगों, ग्रंथियों का व्यायाम होता है। जिस वजह से हमारे सारे अंग सुचारू रूप से अपना कार्य करते है क्योंकि योग से हमारे शरीर के अंगों को बल मिलता है जिससे हमारा शरीर दिन-प्रतिदिन लचीला और मजबूत होता जाता है।

2. तरो-ताजा और स्फूर्ति बनाए रखता है – नियमित योग से आप खुद को प्रकृति के नजदीक महसूस करते हैं जिससे आप पूरे दिन तरोताजा और स्फूर्ति महसूस करते है। मानसिक तौर पर भी आप शांत रहेंगे जिससे तनाव भी दूर होगा।

3. मन को रखे शांत – जब मन-मस्तिष्क शांत होंगे तो तनाव भी दूर होगा। नियमित योग आसनों और ध्यान से मस्तिष्क शांत होता है और शरीर संतुलित रहता है। योग से दिमाग के दोनों हिस्से दुरुस्त काम करते है जिससे आंतरिक संचार ठीक होता है। नियमित योग से सोचने की क्षमता और सृजनात्मकता वाले हिस्सों में संतुलन बढ़ता है। इससे बुद्धि तेज और शार्प होती है साथ ही आत्मनियंत्रण की शक्ति में भी तेजी से वृद्धि होती है।

4. रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाए – योगाभ्यास से चेहरे पर चमक आती है। शरीर में दिन-प्रतिदिन रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती हैं। बुढ़ापे में भी स्वस्थ बने रहते हैं। शरीर निरोग, बलवान और स्वस्थ बनता है।

5. तनाव से रखे दूर – योग के नित्य अभ्यास से मांसपेशियों की अच्छी कसरत होती है। जिस कारण तनाव दूर होता है, ब्लड प्रेशर-कॉलस्ट्रॉल कंट्रोल होता है, नींद अच्छी आती है, भूख भी अच्छी लगती है और पाचन भी सही रहता है। इसके नियमित अभ्यास से तनाव धीरे-धीरे पूर्णरूप से खत्म हो जाता है।

6. दर्द और मोटापा से रखे दूर – योग से शरीर फ्लेक्सिबल होता है और शरीर को शक्ति मिलती है। इसके नियमित अभ्यास से पीठ, कमर, गर्दन, जोड़ों के दर्द की समस्या तो दूर होती ही है साथ ही योग आपके शरीर की खराब मुद्रा की संरचना को ठीक करता है जिससे भविष्य में होने वाले दर्द से बचा जा सकता है। नियमित योगा से शरीर की कैलोरी बर्न होती है और मोटापा घटते जाता है जिससे शरीर का वजन नियंत्रित रहता है।

7. रोग रखे दूर – योग से श्वास की गति पर नियंत्रण बढ़ता है जिससे श्वास सम्बन्धित रोगों में बहुत लाभ मिलता है जैसे दमा, एलर्जी, साइनोसाइटिस, पुराना नजला, सर्दी-जुकाम आदि रोगों में तो योग का ही अंग प्राणायाम बहुत फायदेमंद है। ऐसे आसन जिनमें कुछ समय के लिये सांस को रोक कर रखा जाता है।

जो हृदय, फेफड़े और धमनियों को स्वस्थ रखने में सहायक होता है। ऐसे आसन आपके दिल को फिट रखते हैं। इससे फेफड़ों को ऑक्सीजन लेने की क्षमता बढ़ती है जिससे शरीर की कोशिकाओं को ज्यादा ऑक्सीजन मिलता है। जिससे शरीर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

8. रक्त-संचार को सही करता है – विभिन्न प्रकार के योग और प्राणायाम से शरीर में रक्त का प्रभाव ठीक होता है। नित्य योग से मधुमेह का लेवल घटता है। यह बैड कोलेस्ट्रोल को कम करता है इस कारण मधुमेह के रोगियों के लिए योगा बेहद आवश्यक है। सही रक्त-संचार से शरीर को ऑक्सीजन और पोषक तत्वों का संवहन अच्छा होता है जिससे त्वचा और आन्तरिक अंग स्वस्थ बनते हैं।

9. प्रेगनेंसी में लाभ – गर्भावस्‍था के दौरान नियमित योगा करने से शरीर स्वस्थ रहता है। शरीर से थकान और तनाव दूर होता है जो माँ और बच्चे के स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है। गर्भावस्‍था में होने वाली कोई भी समस्या जैसे- पीठ दर्द, कमर दर्द, पैरों में खिचाव, नींद ना आना, चिड़चिड़ापन, अपच, श्वास संबंधित सभी समस्यायों से मुक्ति मिल जाती है।

गर्भावस्‍था के दौरान किस महीने में कौन-कौन से योगा कर सकते है इसकी सलाह अपने चिकित्सक से जरूर ले और योगा एक्सपर्ट की निगरानी में ही योगा करें।

10. मासिक धर्म में – योग के नित्य अभ्यास से मासिक धर्म में होने वाली पीड़ा से महिलाओं को मुक्ति मिलती है। पीरियड में नियमितता रहती है, शरीर में इस दौरान आलस, घबराहट, चक्कर आना जैसी समस्याओं से भी निजात मिलती है। शरीर में फुर्ती और चुस्ती बनी रहती है।


🎊 देश का स्वास्थ्य अच्छा चाहते हैं तो देश की रीढ़ की हड्डी महिलाओं को योग के लिए प्रेरित करिये। 🎊

या तो सरकार कानून बनाकर स्कूलों में नित्य योग की एक क्लास अनिवार्य कर सकती है, या देश के बच्चों के माता-पिता जागरूक होकर स्कूलों में योग शुरू करवा सकते हैं।

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *सभी को प्रणाम, गुरुदेव की सूक्ष्मीकरण का विशिष्ट प्रयोग के बारे मैं समझा दीजिए*

प्रश्न - *सभी को प्रणाम, गुरुदेव की सूक्ष्मीकरण का विशिष्ट प्रयोग के बारे मैं समझा दीजिए*

उत्तर - अणु से विभु बनने की प्रक्रिया को सूक्ष्मीकरण कहते हैं, इस हेतु की गई विशेष तप साधना  के विशिष्ट प्रयोग से निज चेतना का परमात्म चेतना से एकाकार करके उसका विस्तार किया जाता है।

स्थूल की सीमाएं निर्धारित हैं लेक़िन सूक्ष्म का विस्तार अनन्त तक किया जा सकता है।

आइंस्टीन की अंतर्दृष्टि से बताई थ्योरी है जिसको विज्ञान भी मानता है कि *पदार्थ और ऊर्जा एक ही चीज़ के अलग अलग रूप हैं. पदार्थ उर्ज़ा में, और ऊर्जा पदार्थ में बदल सकता है।*

*आइंस्टीन थ्योरी सूत्र E=mc^2* - इस सूत्र के अनुसार इस मास या वज़न (m) को प्रकाश की गति (c) के वर्ग या एस्कवायर से गुना करना पड़ेगा। तब जाकर हम किसी पदार्थ की सारे कणों की ऊर्जा प्राप्त कर सकते है। एटम बम इसी फार्मूले पर बना है।

उदाहरण- साधारण पेट्रोल साधारण रूप में जलने पर मात्र थोड़ी ही ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है और कुछ किलोमीटर की यात्रा संभव है, लेक़िन यदि इसी पेट्रोल के एक एक कण की ऊर्जा प्राप्त करके उपयोग कर सकें तो दिल्ली की सारी गाड़ियां महीने भर उस ऊर्जा से चल सकेंगी। गाड़ियों का माईलेज बढ़ाने में भी इसी तकनीक पर इंजीनियर काम कर रहे हैं।

*भगवत गीता और वेदों में भी यही इस तरह कहा गया है* - यथा पिंडे तथा ब्रह्माण्डे। ऊर्जा मरती नहीं रूप बदलती है। परिवर्तन संसार का नियम है।

यग्योपैथी और होमियोपैथी तथा अन्य पैथी वाले भी इसको जानते हैं कि *पदार्थ को जितना सूक्ष्म तोड़ोगे उतनी एनर्जी प्राप्त करोगे। साधारण शब्दों में होमियोपैथी विद्वान हैनिमैन के अनुसार औषधियों को सूक्ष्मीकृत करके औषधि का वह तत्व बाहर निकाला जा सकता है जिसे कारण तत्व कहते हैं। इसे वे पोटेंटाइज़ेशन कहते हैं।*

यज्ञ द्वारा सूक्ष्मीकृत औषधियों का अद्भुत सामर्थ्य भी इस नियम के अनुसार कार्य करता है औषधियों को सूक्ष्मीकृत करके उनकी अनन्त क्षमता से इलाज किया जाता है, उन्हें मात्र नासिका, रोमकूपों, मुख्यद्वार, आंखों की श्लेष्मा झिल्ली मात्र से स्पर्श करवा के शरीर मे प्रवेश करवाया जासकता है।

गुरूदेव की सूक्ष्मीकरण साधना के विशिष्ट प्रयोग में भी अणु से विभु की शक्तिधाराओं को प्रवाहित करना था। स्वयं को स्थूल शरीर की सीमा से बाहर निकालकर सूक्ष्म जगत की रिपेयरिंग औऱ शुद्धिकरण करण के लिए युगनिर्माण के लिए सूक्ष्म शरीर के वलय में प्रभावी रूप से कार्य करने योग्य बनाना था।

जो जीवित रहते सूक्ष्म शरीर को नहीं साधते वो देह त्याग के बाद सूक्ष्म शरीर से कार्य नहीं कर पाते। गुरूदेव जानते थे कि स्थूल शरीर से सूक्ष्म शरीर की कार्यक्षमता ज्यादा है। बस इसे उच्च लेवल पर साधना है। अतः विभीन्न गूढ़ योग क्रियाओं, ध्यान की उच्चस्तरीय साधनाओं और यज्ञ के माध्यम से उन्होंने सूक्ष्म शरीर को साध लिया। स्थूल देहत्याग के बाद भी सूक्ष्म शरीर से गुरुदेब अब भी अनन्त गुना कार्य कर रहे हैं। शिष्यों की चेतना में उतर रहे हैं। परिवर्तन कर रहे हैं।

सूक्ष्मीकरण में स्थूल कर्मकांड नाममात्र का होता है, समस्त साधनाएं चेतना स्तर पर ही होती है और सूक्ष्म ध्यान, तप एवं योग स्तर पर ही होती हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 19 June 2019

प्रश्न- *धर्म से क्या समझते है और सभी धर्मों का समन्वय क्या हो सकता है इस विषय पर मुझे कुछ बोलना है दीदी इस विषय के बारे में कुछ मार्ग दर्शन कीजिये*

प्रश्न- *धर्म से क्या समझते है और सभी धर्मों का समन्वय क्या हो सकता है इस विषय पर मुझे कुछ बोलना है दीदी इस विषय के बारे में कुछ मार्ग  दर्शन कीजिये*

उत्तर-  वेद ही वैदिक सनातन धर्म की नींव है, जिसे ऋषियों ने तपकरके पाया। धर्म का अर्थ होता है, धारण, अर्थात जिसे धारण किया जा सके, धर्म ,कर्म प्रधान है। जब मानव सभ्यता ने जन्म लिया तो ऋषि संसद ने ईश्वरीय आदेश से अध्यात्म एवं विज्ञान के आधार पर वैदिक सनातन धर्म जो कि मानवीय जीवन और समाज का आध्यात्मिक संविधान था की स्थापना की, इसमें मनुष्य कद कर्तव्य औऱ अधिकारों की विवेचना की गई। मनुष्य की जीवन शैली, समाज की संरचना पर विचार किया गया। मनुष्य के कल्याण हेतु स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था, अध्यात्म इत्यादि विषयों की पूर्ण विवेचना किया गया। जिसका लक्ष्य था प्राणी मात्र का कल्याण। ऐसी विधिव्यस्था बनाई जिसके पालन से प्रकृति में सन्तुलन और मनुष्यों में देवत्व रहे। यह धरती स्वर्ग के समान सुंदर हो और मनुष्य सुखपूर्वक रहे।

वैदिक सनातन धर्म 90 हज़ार वर्षों से भी अधिक वर्षों से पुराना है।

हिंदू कोई धर्म नहीं है यह प्राचीन भारत में रहने वाले लोगों की जीवनशैली है। इसी तरह  मुस्लिम, ईसाई, जैन या बौद्ध आदि धर्म नहीं है यह सम्प्रदाय या समुदाय मात्र हैं। “सम्प्रदाय” एक परम्परा के मानने वालों का समूह है। इन सभी सम्प्रदाय के स्थापकों ने अपने ज्ञान और प्रभाव से कुछ नियम, विधिव्यस्था और परंपराएं बनाई। जिसका नामकरण किया औऱ उन सभी नियम, विधिव्यस्था, परम्पराओं को अपने अपने ग्रन्थों में लिखा।

जंगल औऱ अच्छी जलवायु में रहने के कारण और वैदिक सनातन धर्म को अपनाने के कारण हिंदुओ ने चिताअग्नि के माध्यम से अंतिम संस्कार को वरीयता दी। रेगिस्तान में पनपे साम्प्रदायों ने लकड़ी की कमी होने के कारण रेगिस्तान व बंजर ज़मीन में दफन करने को वरीयता दी। जो सम्प्रदाय बर्फ़ीले जगहों में थे जहाँ भोजन पकाने के लिए लकड़ी भी बड़ी मुश्किल से मिलता था उन्होंने भी अंतिम सँस्कार के लिए दफ़नाने का उपक्रम अपनाया। जहाँ जल पर्याप्त मात्रा में था वहां पूजन पूर्व  स्नान द्वारा पवित्र होना अनिवार्य हुआ और जहां जल की कमी थी वहाँ मात्र हाथ पैर धोने(वजू) को पवित्र होने की विधि मान ली गयी। जहां ठण्ड बर्फ अधिक थी वहाँ चेयर कुर्सी में प्रार्थना हुई और कसे हुए वस्त्र और गलाबन्द(टाई) उपयोग हुआ। जहाँ खुशनुमा मौसम था वहां हल्के सूती वस्त्र परिधान बने। जहाँ तपती चमड़ी जला देने वाली धूप थी उन्होंने सर से लेकर पांव तक लबादा (बुर्का/सर ढँकने) का वस्त्र ईजाद किया। सबने अपनी सुविधानुसार बोली और लिपि बनाई।

*आइये जानते हैं , सम्प्रदाय जिसे लोग भ्रमवश धर्म समझते हैं। कौन सा कितना पुराना है? कुछ वर्षों पहले जिन सम्प्रदाय ने जन्म लिया हो वो वैदिक सनातन धर्म के समकक्ष कैसे हो सकेंगे?*

1- *हिन्दू धर्म* : स्वायंभुव मनु हुए 9057 ईसा पूर्व, वैवस्वत मनु हुए 6673 ईसा पूर्व, श्रीराम का जन्म 5114 ईसा पूर्व और श्रीकृष्ण का जन्म 3112 ईसा पूर्व हुआ। इस मान से 12 से 15 हजार वर्ष प्राचीन वर्तमान शोधानुसार ज्ञात रूप से लगभग 24 हजार वर्ष पुराना धर्म। हालांकि पौराणिक मान्यताओं अनुसार 90 हजार वर्ष प्राचीन है।

2. *जैन धर्म* : जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ स्वायंभुव मनु (9057 ईसा पूर्व) से पांचवीं पीढ़ी में इस क्रम में हुए- स्वायंभुव मनु, प्रियव्रत, अग्नीघ्र, नाभि और फिर ऋषभ। 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी ने इस धर्म को एक नई व्यवस्‍था दी।

3. *यहूदी धर्म* : आज से लगभग 4 हजार साल पुराना यहूदी धर्म वर्तमान में इसराइल का राजधर्म है। हजरत आदम की परंपरा में आगे चलकर हजरत इब्राहिम हुए और फिर हजरत मूसा। ईसा से लगभग 1500 वर्ष पूर्व हुए ह. मूसा ने यहूदी धर्म की स्थापना की थी।


4. *पारसी धर्म* : पौराणिक इतिहास अनुसार ईसा से लगभग 1200 से 1500 वर्ष पूर्व ईरान में महात्मा जरथुस्त्र हुए थे। उन्होंने ही पारसी धर्म की स्थापना की थी। यह धर्म कभी ईरान का राजधर्म हुआ करता था। हालांकि इतिहासकारों का मत है कि जरथुस्त्र 1700-1500 ईपू के बीच हुए थे।

5.. *बौद्ध धर्म* : ईसाई और इस्लाम धर्म से पूर्व बौद्ध धर्म की उत्पत्ति हुई थी। गौतम बुद्ध का जन्म ईसा से 563 साल पहले जब कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी अपने नैहर देवदह जा रही थीं, तो रास्ते में लुम्बिनी वन में हुआ।

6. *ईसाई धर्म* : हजरत इब्राहिम की परंपरा में ही आगे चलकर 5वीं ईसा पूर्व ईसा मसीह हुए। उनका जन्म फिलिस्तीन के बेथलेहम में नाजारेथ के एक यहूदी बढ़ई के यहां हुआ था। ईसा मसीह के 12 शिष्यों ने ईसाई धर्म की नींव रखी थी।

7. *इस्लाम धर्म* : हज. मुहम्मद अलै. का जन्म सन् 571 ईस्वी. में मक्का में पीर के दिन हुआ था। आपने इस्ला‍म धर्म की स्थापना की। आगे चलकर खलिफाओं ने इस धर्म को फैलाया।

8. *सिख धर्म* : सिख धर्म के दस गुरुओं की कड़ी में प्रथम हैं गुरु नानक जिनका जन्म 1469 को तलवंडी, पंजाब में हुआ था। अब यह हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में है। सिख धर्म में कुल 10 गुरु हुए हैं। अंतिम गुरु गोविंदसिंह जी थे।

दुनिया में शिंतो, ताओ, जेन, यजीदी, पेगन, वूडू, बहाई धर्म, अहमदिया, कन्फ्यूशियस, काओ दाई आदि अनेक धर्म हैं लेकिन ये सभी उपरोक्त धर्मों से निकले ही धर्म हैं।


ईश्वर एक है, और धर्म भी एक ही है। धर्म इंसान को अच्छाई के मार्ग पर लेकर जाता है।

ये विभिन्न संप्रदाय के लोग धर्म के नाम पर वही लड़ते हैं, जो धर्म का मर्म नहीं समझते। अरे अच्छे मौसम और पर्याप्त जल की व्यवस्था होने पर बुर्के से समस्त शरीर ढँकने की क्या आवश्यकता? गर्मी में कोट टाई की क्या आवश्यकता? अत्यधिक ढंड में धोती कुर्ता व साड़ी कैसे चलेगा? अक्ल का प्रयोग करके गहन चिंतन करेंगे तो समन्वय हो जायेगा।

वैज्ञानिक अध्यात्मवाद को अपनाएं औऱ अपने मूल वैदिक सनातन धर्म का गहन अध्ययन करें तो समन्वय हो जाएगा।

सभी धर्म के लोग सभी धर्मों की पुस्तकों का अध्ययन कर लें, उनकी वैज्ञानिकता जांच लें। विचार मंथन करके एक मंच पर एकजुट हो जाये। समन्वय हो जाएगा। प्राचीन समय मे सब शास्त्रार्थ करते थे। जो हारता था वो जीतने वाले की विचारधारा अपना लेता था। धर्म के नाम पर ज्ञान से शास्त्र से वाक युद्ध-शास्त्रार्थ होता था। क्योंकि अब ज्ञान तो लोगों को है, वो सभी साहित्य पढ़ते नहीं।  इसलिए आतंकवाद और शस्त्र का सहारा लेते है और जबरन धर्म परिवर्तन बन्दूक की नोक पर करवाते हैं।

सूर्य, चन्द्रमा, तारे, जल, पृथ्वी, आकाश इत्यादि एक ही है। नाम बदलने से या किसी भाषा केबोलने पर यह नहीं बदलते। फिंर इंनको बनाने वाले उस परमेश्वर को विभिन्न नाम रखने से वो कैसे बदलेगा। वो भी तो एक ही है। भेदबुद्धि रखने वाले अज्ञानी है।जो ज्ञानी है वो जानता है, ईश्वर एक है और मानव धर्म एक ही है।

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 18 June 2019

प्रश्न- *कहते हैं पुत्र कुपुत्र हो सकता है, लेकिन माता कुमाता नहीं होती। लेकिन मेरे घर में मेरी सास जी अपने ही पुत्रों और उनके बच्चों में भेदभाव करती हैं।

प्रश्न- *कहते हैं पुत्र कुपुत्र हो सकता है, लेकिन माता कुमाता नहीं होती। लेकिन मेरे घर में मेरी सास जी अपने ही पुत्रों और उनके बच्चों में भेदभाव करती हैं। मेरे जेठ अमीर हैं कम्पनी के मालिक औऱ मेरे पति उनकी कम्पनी में जॉब करते हैं। ससुर जी की मृत्यु के बाद मेरे जेठ जी सब कर रहे हैं। मेरी जिठानी घमण्डी व दुर्व्यवहार करने वाली है। इनके दुर्व्यवहार के बावजूद मेरी सासु माँ उन्हीं का पक्ष लेती हैं, मेरे पति व बच्चों को अपमानित करती रहती हैं। मार्गदर्शन करें।*

उत्तर - आत्मीय बहन, सास कोई देवी या उच्च कोटि की ऋषि आत्मा नहीं है, और न ही यह सतयुग है। इस कलियुग में वह सास एक साधारण स्त्री है जो दिन ब दिन बूढ़ी हो रही है। उसका पति है नहीं औऱ छोटे बेटे अर्थात तुम्हारे पति का कोई स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं है। वो भी बड़े बेटे का एम्प्लोयी है। एम्प्लॉयी अर्थात गुलाम ही होता है।

बीमारी हजारी में पैसे ख़र्च होंगे, जो बड़ा बेटा ख़र्च कर सकता है लेकीन छोटा बेटा नहीं। अतः वो अपना फ़ायदा देखते हुए और अपनी वृद्धावस्था को काटने के लिए बड़ी बहू की हां में हाँ मिला रही हैं। अपना भला सोच रही है।

तुम्हारा जेठ तुम्हारे पति का कम्पनी में बॉस है। तो इस तरह जिठानी तुम्हारे पति के बॉस की पत्नी हुई। अतः वो एक बॉस की पत्नी की तरह घमण्डी व्यवहार कर रही है। अतः तुम जिठानी में बड़ी बहन ढूंढने की गलती मत करो। उसे बॉस की पत्नी की तरह  ही मानो औऱ व्यवहार की अपेक्षा करो। सास को बॉस की माँ समझ के व्यवहार करो औऱ उसमें दिव्यगुणों युक्त माँ की तलाश मत करो। तुम्हारे बच्चे एम्प्लोयी की बच्चे हैं और जिठानी के बच्चे कम्पनी मालिक के बच्चे हैं। अतः जो पक्षपाती व्यवहार तुम्हारी  सास तुम्हारे बच्चो के साथ कर रही है वो पिता की आर्थिक स्थिति में अंतर के कारण है। तुम और जिठानी में भी व्यवहार का अंतर तुम दोनों के पति की आर्थिक स्थिति के अंतर के कारण सास कर रही है। अतः इसे इग्नोर करो।

किसी तुच्छ नारकीय सांसारिक मनुष्य से देवत्वगुण अच्छाई और समानता के व्यवहार की अपेक्षा ही संसार मे दुःख का कारण है।

सर्वप्रथम अपने पति से खुलकर बात करो कि ऐसा हो रहा है। अतः हमारे पास तीन ऑप्शन हैं:-

1- तुम उम्र भर भाई की कम्पनी में कार्य करो औऱ जो भेदभाव मालिक एम्प्लोयी के बच्चों का घर मे चल रहा है चलने दो। बच्चों को भी यह अंतर समझा के उन्हें मानसिक रूप से तैयार कर दो। अन्यथा यह झगड़ा बड़े होने पर परेशानी का कारण बनेगा।

2- तुम अलग रहने की व्यवस्था बना लो, औऱ भाई की कम्पनी में जॉब करते रहो। दूरी के कारण बड़े पारिवारिक झगड़ो को टाला जा सकता है।

3- तुम अलग जगह जॉब करके या अपना व्यवसाय स्थापित करके हम लोगों को यहां से ले चलो। हमें वो अपमानित करके घर से निकाले इससे अच्छा होगा हम स्वयं ही घर से निकल जाएं। वो भी अपनी जिंदगी में सुखी रहें औऱ हम भी सुखी रहें। मुझे भीख की मलाई-मिश्री नहीं चाहिए, मुझे सम्मान की और सुख की दो रोटी चाहिए।

अपना मन्तव्य अपने पति को क्लियर करके उन्हें स्वतन्त्र निर्णय लेने दें। व्यवस्था को समझकर अपनी अवस्था का निर्णय करने दो। जो भी निर्णय पति ले, उसी अनुसार स्वयं को और अपने बच्चों को मानसिक रूप से तैयार कर लो।

मनःस्थिति बदलते ही परिस्थिति बदल जाएगी। स्वयं को एक एम्प्लॉयी की पत्नी मान लो जो किन्ही कारणवश कम्पनी बॉस के घर उनकी माँ और पत्नी के आश्रय में उनके घर रह रहे हैं। यह भाव आते ही परेशानी तिरोहित हो जाएगी। तुम्हें उनका घमंड और व्यवहार में कोई बुराई नहीं दिखेगी।

मान-अपमान के चक्कर में दुःखी होने में समय व्यर्थ मत करो। सास औऱ जिठानी के दुर्व्यवहार की जड़ आर्थिक अंतर के उपचार की व्यवस्था करो। क्रोध में अपना खून मत जलाओ, इन पर दया करो क्योंकि यह संसारी नारकीय जीव हैं।

रही बात *माता कुमाता न भवति* की, यह सतयुग में लिखा गया था। तब प्रत्येक स्त्री देवी और पुरुष देवता के गुणों से सम्पन्न हुआ करते थे।

लेकीन कलियुग में उपरोक्त कथन में कंडीशन लगी हुई है जो सुंस्कारी औऱ आध्यात्मिक लड़की है वह ही भविष्य में देवत्वगुण मातृत्व से अलंकृत माता बनती है। जो कुसंस्कारी और स्वार्थी लड़की है वह भविष्य में कुमाता ही बनेगी।

कुमाता के कुकर्मों की खबरों में जन्मजात शिशु को कूड़ेदान में फेंकना, शादी के बाद अपने बच्चों को छोड़कर अन्य किसी पुरुष के साथ घर छोड़कर भाग जाना या एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर करना। ग़रीबी से तंग आकर बच्चों और पति को छोड़कर अमीर आदमी से शादी कर लेना। स्वार्थप्रेरित होकर आर्थिक आधार पर अपने बच्चों में भेद करना औऱ उनसे दुर्व्यवहार करना इत्यादि शामिल है।

स्वयं का सुधार ही संसार की सबसे बड़ी सेवा है। तुम और तुम्हारे पति योग्य बनो औऱ यह सिद्ध करो कि कलियुग में माता कुमाता हो सकती है लेकिन पुत्र कुपुत्र नहीं होगा। जब तुम्हारी सास अशक्त और निःसहाय हो तो उसे मदद करो और उनके चरणों की निःश्वार्थ सेवा करो। मातृ ऋण से उऋण होने का जब भी अवसर मिले उसके लिए प्रस्तुत व तैयार रहो। अपने अंदर के देवत्व को जागृत करो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday 17 June 2019

प्रश्न - *पति की मेहनत की कमाई से खरीदे घर के लिए सास ससुर पर कोर्ट केस करूँ या नहीं?*

प्रश्न - *दी, मेरे पति तीन भाई हैं। तीनों जॉब करते हैं। ससुर की सरकारी नौकरी थी तो उन्हें सरकारी क़वार्टर मिला था। हमारे पति ने अपनी मेहनत की कमाई से घर बनवाया। औऱ जमीन खरीदी। माता-पिता के प्रति प्रेम व भक्ति भाव के कारण घर माता के नाम कर दिया और जमीन पिता के नाम। कुछ वर्षों बाद मेरी जिठानी ने षड्यंत्र करके घर मे कलह किया व मेरे सास-ससुर को ऐसा भड़काया कि उन्होंने मेरे पति को अत्यंत कटु शब्द बोले। जिसके कारण इन्होंने ख़ुद का खरीदा और बनवाया घर छोड़कर किराए में रहने लगे।  कई वर्षों अपने ही बनवाये घर नहीं गए। सास जी के बीमार होने पर हम सब उनको देखने उसी घर मे गए। अब जिठानी हमारे बनवाये घर को सामने से तोड़कर हमारी ही जमीन पर कंस्ट्रक्शन करवा रहीं हैं। मेरा औऱ मेरे पति की मेहनत के स्वप्न के घर को मुझे बचाना चाहिए, उसके लिए लड़ाई लड़नी चाहिए या उसे छोड़ देना चाहिए। मार्गदर्शन करें।*

उत्तर - आत्मीय बहन, जब हम आरती की थाली में 100 रुपये चढ़ाएं या 10, उसे वापस नहीं लेते। भगवान हमें कितना लौटाता है या कितना आशीर्वाद देते हैं ये हम भगवान पर छोड़ देते हैं। अतः यहां भी माता-पिता पर निर्णय छोड़ दें।

जिस श्रद्धा व प्रेम से आपके पति और आपने जमीन व घर माता पिता के चरणों मे समर्पित किया। उसे अब वापस मत लीजिये। यह निर्णय माता-पिता पर छोड़ दीजिए कि वो घर आपको लौटाते हैं या नहीं।

वस्तुओं का मोह मत कीजिये। जब समर्पयामि कर दिया तो वापस मत मांगिये। उनको मरते दम तक यह अहसास रहने दीजिए कि उनके पास घर व जमीन बेटे का दिया हुआ है। घर व जमीन की लालच में जिठानी व देवरानी आपके सास ससुर को अपने पास रखेंगी और उनकी सेवा करेंगी। क्यूंकि इस सेवा के पीछे कारण आपके पति बने अतः उन्हें पुण्य फल प्राप्त होगा।

बड़े भाग्यशाली वो बच्चे होते हैं जो माता पिता को घर व जमीन दे सकने योग्य होते हैं।नहीं तो अक्सर माता-पिता ही बच्चो को घर व जमीन देते हैं।

अपनी महान उपलब्धि को  प्रॉपर्टी मोह में नष्ट न करें। पुनः स्वयं के लिए घर बनाने में जुट जाएं।

कोर्ट कचहरी और न्याय व्यवस्था भारत देश में अच्छी नहीं है। हमारे गाँव मे प्रत्येक 5 में से 4 लोग जमीन के कोर्ट केस में उलझे हैं। तारीख़ पर तारीख़ मिलती है, न्याय नहीं मिलता। दिन ब दिन कोर्ट फीस में जेब खाली होती है, कोर्ट के चक्कर मे वक़्त बर्बाद होता है, चप्पल घिस जाती है। इससे कटुता रिश्तों में चरम सीमा तक पहुंच जाती है।

एक बार भाई से कोर्ट केस कर सकते हो, लेकिन माता-पिता से कोर्ट केस कभी मत करो यदि वो कुछ जमीन और प्रोपर्टी से सम्बंधित हो तो...उन्हें मत परेशान करो...जिठानी द्वारा कान भरे जाने के कारण आपके सास ससुर की हालत धृतराष्ट्र और गांधारी की तरह हो गयी है। वो मोह में अंधे हैं।वो किसी भी प्रवचन या कृष्ण भगवान के शांति प्रस्ताव से न समझने वाले हैं।जिठानी महाभारत के लिए प्रस्तुत है।

महाभारत जनकल्याण के लिए जरूर लड़नी चाहिए।महाभारत भाई से भी एक बार लड़ सकते हो। लेकिन माता-पिता से घर और जमीन के लिए लड़ना मेरे हिसाब से उचित नहीं है। दोनों तरफ तुम ही हारोगे क्योंकि केस जीतोगे तो भी माता-पिता को हार जाओगे। नहीं तो घर-जमीन हारोगे।

महाभारत होगा तो विनाश दोनों तरफ होगा। सुख चैन दोनों तरफ छिनेगा। द्रौपदी ने केवल दुर्योधन के रक्त से बाल नहीं धोए थे अपितु उस रक्त में द्रौपदी के पांच पुत्र औऱ समस्त संतानों के भी रक्त थे। लाशों की ढेर में साम्राज्य द्रौपदी औऱ पांच पांडव को मिला था। कोर्ट कचहरी में भी पैसे खर्च दोनों तरफ से होंगे, सुख चैन दोनों तरफ छिनेगा।

जिंदगी छोटी है, आपके पति की कमाई से आपका घर ख़र्च बड़े प्यार से चल रहा है और बच्चे पढ़ लिख रहे हैं। अभी आप लोग शाम को आप सपरिवार सुखपूर्वक भोजन करके चैन की नींद सोते हैं।

विश्वास मानिये, यह सुख चैन सब छीन जाएगा जैसे ही आप कोर्ट केस करेंगे। वकील और आसपड़ोस आपको इतने ज़हरीले विचार देंगे कि आप बदले की भावना से भर उठेंगे। हो सकता है कि हाथापाई की कोर्ट से बाहर नौबत आ जाये। गुस्से में दिमाग़ ज़हरीला हो जाएगा और हृदय कलुषित तो ऐसे जहरीले दिमाग़ और कलुषित हृदय से उपासना कैसे सधेगी? पूजा में मन लगेगा क्या?

निर्णय आपके हाथ मे है कि मोहग्रस्त होकर प्रॉपर्टी के लिए लड़ते हुए सुख चैन खोना है या प्रॉपर्टी को मोह छोड़कर नए सिरे से सृजन का विचार करते सुख चैन से रहना है।

माता के गर्भ की 9 महीने रहने का ऋण, माता व पिता की बचपन से लेकर युवावस्था तक पालने पोषने पढ़ाने लिखाने ऋण से उऋण होने का जो आपको और आपके पति को सौभाग्य मिला ये बहुत कम लोगों को मिलता है।आप दोनों धन्य है। इस  सेवा के सौभाग्य को घर व जमीन के लिए नष्ट मत कीजिये।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दीदी, मेरा 8 साल का बेटा है वह थोड़ा कमज़ोर है डॉक्टर ने अण्डे खाने के लिए कहा लेकिन हम अंडे नही खाते तो ऐसा कोई शाकाहारी फ़ूड बताओ जो अंडे की कमी को पूरा कर सके।*

प्रश्न - *दीदी, मेरा 8 साल का बेटा है वह थोड़ा कमज़ोर है डॉक्टर ने अण्डे खाने के लिए कहा लेकिन हम अंडे नही खाते तो ऐसा कोई शाकाहारी फ़ूड बताओ जो अंडे की कमी को पूरा कर सके।*

उत्तर - आत्मीय बहन, प्रोटीन शरीर के निर्माण करने वाले सबसे महत्वपूर्ण तत्वों मे से एक है।

एक स्वस्थ मानव शरीर मे लगभग 62% पानी, 16% वसा, 16% प्रोटीन, 6% खनिज, 1 प्रतिशत से कम कार्बोहाइड्रेट, थोड़ी मात्रा में विटामिन और कुछ अन्य पदार्थ होते है।

मानव शरीर का 16% भाग प्रोटीन होता है। प्रोटीन हमारे शरीर मे बालों, मांसपेशियों, त्वचा, हड्डियों, नाखूनों और रक्त कोशिकाओं में पाया जाता है।

प्रोटीन शरीर की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है, साथ ही शरीर के संतुलन को बनाए रखने के लिए ज़रूरी है। प्रोटीन की पर्याप्त मात्रा हमारे बेहतर स्वास्थ्य के लिए बहुत जरुरी है।

अक्सर मांसाहारी डॉक्टर लोग मानते हैं प्रोटीन के लिए अंडा सबसे बेहतर जरिया है लेकिन यह बहुत बड़ा भ्रम है। मनुष्य की छोटी आँते और शारिरिक संरचना मांसाहार के लिए है ही नहीं। अंडों से प्राप्त प्रोटीन लाभदायक कम और नुकसानदेह ज्यादा है। अंडे खाने से ब्लड कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है, हृदय औऱ किडनी की बीमारी सबसे ज्यादा होती है।

अंडा एक मांसाहारी प्रोडक्ट है, जो लोग अंडे को शाकाहारी बोलते हैं वो सरासर झूठ बोलते हैं।

सबसे ज्यादा प्रोटीन वाले शाकाहारी खाद्य पदार्थ जाने और इसे बच्चे को खिलाकर उसका स्वास्थ्य बढ़ाएं:-

1. *सोयाबीन* – सोयाबीन, मीट और अंडे से भी ज्यादा प्रोटीनयुक्त आहार है, प्रोटीन के अलावा सोयाबीन विटामिन ‘बी’ कॉप्लेक्स विटामिन ‘ई’ और खनिज पदार्थों से भरपूर होता है। इसके अलावा सोयाबीन फाइबर से भी भरपूर होता है। 100 ग्राम सोया चंक्स में करीब 50 ग्राम प्रोटीन होता है।

2. *पनीर* – दूध से बने सभी प्रोडक्ट स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी होते हैं जो हमारे शरीर में कैल्शियम की कमी पूरी करते हैं। पनीर भी दूध से ही तैयार होता है और इसमें प्रोटीन, कार्ब और फैट पाया जाता है। 100 ग्राम पनीर में 18 ग्राम के आस पास प्रोटीन होता है।

3. *मूंग की दाल* – मूंग की दाल प्रोटीन की कमी पूरी करने का एक सस्ता साधन है क्योंकि मूंग की दाल प्रोटीन से भरपूर होती है। सिर्फ 100 ग्राम मूंग की दाल में करीब 24 ग्राम प्रोटीन पाया जाता है।

4. *बादाम* – बादाम बेहतरीन किस्म के फैट के साथ साथ भरपूर प्रोटीन से युक्त होता है। 100 ग्राम बादाम में लगभग 21 ग्राम प्रोटीन पाया जाता है।

5. *काजू* – यूँ तो काजू के कई फायदे हैं और ये वजन बढ़ाने के लिए भी सहायक है साथ ही ये प्रोटीन से भरपूर होता है। सिर्फ 100 ग्राम काजू में करीब 553 कैलोरी, 44 ग्राम फैट और करीब 18 ग्राम प्रोटीन होता है।

6. *दूध* – दूध ना सिर्फ शरीर में कैल्शियम की कमी पूरी कर हड्डियां मजबूत करता है बल्कि ये प्रोटीन से भी भरपूर होता है। एक लीटर दूध में करीब 40 ग्राम प्रोटीन पाया जाता है।

7. *अंकुरित अनाज* – अंकुरित अनाज भी प्रोटीन सेवन का एक बेहतरीन जरिया है। एक कप अंकुरित अनाज में करीब 15 ग्राम प्रोटीन होता है। इसे खाने के बाद खेलकूद के लिए बच्चे को प्रेरित करें।

8. *मूंगफली* – यूँ तो मूंगफली में फैट पाया जाता है लेकिन ये प्रोटीन से भरपूर होती है। सिर्फ 100 ग्राम मूंगफली में करीब 26 ग्राम प्रोटीन होता है।

9. *चना* – चना ना सिर्फ प्रोटीन बल्कि फाइबर से भी भरपूर होता है, इसे भिगोकर, उबाल कर या फ्राई करकर भी खा सकते हैं। 100 ग्राम चने में करीब 15 ग्राम प्रोटीन पाया जाता है।

10. *दही* – दूध से बनी हर चीज़ में भरपूर प्रोटीन पाया जाता है और इसीलिए दही भी प्रोटीन का एक बेहतर जरिया है। 100 ग्राम दही में करीब 11 ग्राम प्रोटीन होता है।

11- *देशी गाय का घी* - अगर अधिक कमजोरी लगे, तो एक गिलास दूध में एक चम्मच गाय का घी और मिश्री डालकर पिलाएं। कमज़ोरी दूर होगी और रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी। आपका बच्चा जल्दी बीमार नहीं होगा।

12- *24 गायत्री मंत्र और 11 हनुमान गायत्री का मंन्त्र के जप एवं व्यायाम करें* - इससे शरीर बलिष्ठ बनता है। मानसिक एवं शारीरिक मजबूती आती है।

बिना सोचे ज़्यादा प्रोटीन के सेवन से नुकसान हो सकता है। रोज प्रोटीन का कितना सेवन करना चाहिए ये आपकी उम्र, वजन और दिनचर्या पर निर्भर करता है। सही मात्रा मे प्रोटीन के सेवन से जुड़ी जानकारी अपने डायटीशियन चिकित्सक से लें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Sunday 16 June 2019

प्रश्न - *युवाओं में बढ़ती नशे की लत के पीछे कारण क्या है? इससे बचाव के उपाय बताएं?*

प्रश्न - *युवाओं में बढ़ती नशे की लत के पीछे कारण क्या है? इससे बचाव के उपाय बताएं?*



उत्तर - आत्मीय भाई, कुछ निम्नलिखित कारण युवाओं को नशे की ओर खींचते हैं:-



👉🏼मनुष्य की प्रकृति कुछ इस तरह बनी हुई है कि वो सुख की चाह करता है और दुःख से छुटकारा पाना चाहता है, जब भी वो असफ़ल होता है या दुःखी होता है, तो वर्तमान परिस्थिति से पलायन करना चाहता है भूलना चाहता है। दो मार्ग है उसे दुःख को कुछ क्षण भुलाने का एक है अध्यात्म और दूसरा नशा।   अध्यात्म तो समस्या का समाधान देता है, लेकिन यदि बच्चा अध्यात्म की शरण मे नहीं है तो वो नशा चुनेगा।



नशे से वो कुछ क्षणों के लिए वर्तमान से दूर हो जाता है, अतः बार बार भूलने के लिए बार बार नशा करता है। बच्चे के घर मे माता पिता जब अत्यधिक झगड़ते हो या उन्हें समय नही देते तो भी बच्चे नशे की तरफ झुकते है।



👉🏼 मनुष्य के अंदर बंदर के समान नक़लची स्वभाव होता है, मन जिसे पसन्द करता है उसका नकल करने लगता है। उदाहरण माता के चाल चलन और साज सृंगार की नकल लड़कियां और पिता के चाल चलन व्यवहार और नशे की नकल बच्चे स्वयंमेव करने लग जाते है। प्रिय दोस्त की नकल करते हुए भी नशे के प्रति झुकाव होता है।



👉🏼 फिल्में और टीवी सीरियल नशे की ओर युवाओं को प्रेरित करते हैं। वो बच्चों को सिखाते है कि दुःख है तो नशा करो, ख़ुश हो तो नशा करो, पार्टी है तो नशा करो, कोई भी अवसर हो नशा करो। बच्चो को लगता है हीरो बोल रहा है और हीरोइन बोल रहे है तो यह ज़िंदगी जीने का सबसे बेहतर तरीका होगा। लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य कोकोकोला पेप्सी का विज्ञापन देने वाले इसे नहीं पीते, शराब और नशे का विज्ञापन करने वाले खुद इसका सेवन नहीं करते। नशे का व्यापारी और कार्यकर्ता इनका सेवन नहीं करते।



👉🏼 बच्चे बुरी संगति में पड़कर भी दोस्तों के दबाव में नशा करना शुरू कर देते है।



👉🏼 कभी कभी बच्चो के अंदर की जिज्ञासा और कौतूहल भी उन्हें नशे के प्रति आकर्षित करता है।



👉🏼कुछ पढ़े लिखे मूर्खो ने नशे को हाई फाई सोसायटी का स्टेटस सिंबल मान लिया है। कॉरपोरेट में बैठे नशेड़ियों ने इसे और ज्यादा बढ़ावा दिया है।



🙏🏻 *नशा युवा पीढ़ी को बर्बाद कर रहा है, सरकार इसे रोकती क्यों नहीं।* 🙏🏻



👉🏼 देश के 80% कानून बनाने वाले नेता और नौकरशाह स्वयं नशेड़ी है, अतः जो ख़ुद ही गलत कर रहा है वो भला उसे रोकने का प्रावधान क्यूँ लाएगा? जनता मरती है तो मरने दो। नोट छापने में व्यस्त है।



👉🏼 नशे के समान से  टैक्स सरकार को जितना मिलता है, उससे दुगुना-तिगुना नशे के कारण लोगो के मरने, विभिन्न बीमारियों और एक्सीडेंट्स में सरकार का खर्च होता है। फिर भी सरकार टैक्स की लालच में नशा बन्द नहीं करती।



👉🏼 नशे के व्यापारी विभिन्न राजनीतिक पार्टियों को चुनाव लड़ने के लिए मोटा फंड सिर्फ इसलिए देते है, जिससे नशे के व्यापार में सरकार रोक न लगा सके।



👉🏼 नशे के व्यापारी समस्त नौकरशाहों को भी भरपूर पैसा खिलाते है, जिससे उनका धंधा चलता रहे।



🙏🏻 *फ़िर नशा रुकेगा कैसे?* 🙏🏻

👉🏼 घर परिवार में बच्चों को ध्यान, योग एवं स्वाध्याय से जोड़कर उन्हें समाधान ढूंढने वाली मानसिकता का बनाइये। पलायनवादी  समस्या केंद्रित मानसिकता नशा ढूंढती है, समाधान केंद्रित वीर मानसिकता हमेशा होश चुनती है।

👉🏼 जनजागृति से नशा रुकेगा, बचपन से घर मे बच्चो को अध्यात्म से जोड़कर अच्छे संस्कार दिए जाएं, उनके मन मजबूत बनाये जाएं। जिससे समाजिक दबाव को वो झेल सकें, और नशा न करें। सँस्कार से मनुष्य चंदन बन जाता है- *चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग*। कुसंग का प्रभाव आध्यात्मिक संस्कारी व्यक्ति पर नहीं पड़ता।

👉🏼 स्कूलों में एक पीरियड योग औऱ जीवन जीने की कला पर करवाइये। बच्चो को सिखाइये *सोचने की कला और समाधान ढूंढने की कला*

👉🏼 जगह जगह यज्ञादि अनुष्ठान और जनजागृति कैम्प लगाकर योग प्राणायाम मंन्त्र चिकित्सा से लोगों का मनोबल मजबूत करें जिससे नशा उनका छूट जाए।



👉🏼 बच्चे घर पर हड़ताल कर दें, माता पिता को नशा न करने दें।



👉🏼 जब डिमांड ही नहीं होगी तो सप्पलाई करने वाले स्वतः गायब हो जाएंगे। जैसे गधे के सर पर से सींग।



👉🏼 केवल जनजागृति से मतदाता जागरूक होकर सही नेता चुने और उसे तभी वोट दे जब नशे की दुकानें बंद हो। तो राम राज्य आ जायेगा।



🙏🏻 *हमारे देश मे प्रति वर्ष हज़ारों मौतें नशे के कारण हो रही है, प्रति दिन नशे के कारण कई जाने जाती है।* अखिलविश्व गायत्री परिवार के व्यसनमुक्ति अभियान से जुड़िये और व्यसनमुक्त और योगयुक्त भारत बनाइये 🙏🏻



अखिलविश्व गायत्री परिवार

 व्यसनमुक्ति अभियान

यूट्यूब लिंक:-

https://youtu.be/G2MON3WVhnI

https://youtu.be/_m98pZ1JW8A



https://youtu.be/G2MON3WVhnI


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

नशे पर प्रेजेंटेशन चाहिए स्कूल एवं कॉलेज के लिए तो मुझे ईमेल करें - sweta.awgp@gmail.com

प्रश्न - *दी, ज़मीन के अंदर जलस्तर लगातार कम हो रहे हैं, मेरे भाई के यहाँ 6 जगहों पर बोरवेल की खुदाई हुई असफ़ल रही। कोई आध्यात्मिक उपाय बतायें।*

प्रश्न - *दी, ज़मीन के अंदर जलस्तर लगातार कम हो रहे हैं, मेरे भाई के यहाँ 6 जगहों पर बोरवेल की खुदाई हुई असफ़ल रही। कोई आध्यात्मिक उपाय बतायें।*

उत्तर - बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग और इंसानों द्वारा किये जा रहे प्राकृतिक संसाधनों के दुरुपयोग औऱ अंधाधुंध पेड़ की कटाई से ज़मीन के अंदर के भी जलस्त्रोत सूख रहे हैं। कुछ फ़सलें कम जलस्तर की जगह लगाना वर्जित है जैसे धान, कपास और यूकेलिप्टस के पेड़। लोग बेपरवाही में इन्हें लगाकर भी जल स्त्रोत कम कर रहे हैं।

प्राचीन भारत के ग्रामीण लोग जिनके पास आधुनिक मशीनें नहीं थीं, वो भी इतने समझदार थे कि जल है तो जीवन है।इसलिए प्रत्येक गाँव वर्षा का जल सालभर सुरक्षित रहे और पीने योग्य रहे। इस हेतु गहरा तालाब खोदते थे औऱ उस तालाब के चारों तरफ नीम, आम, जामुन, बेल, पीपल, बरगद जैसे कई प्रकार के ऐसे पेड़ लगाते थे जिनकी छाया घनी हो औऱ जिनकी नमी से जलस्रोत जल्दी सूखे नहीं। प्रत्येक  ग्रामवासियों का सामूहिक योगदान गहरी तालाब की खुदाई में होता था।

लोग सामूहिक यज्ञादि द्वारा अपने घर के आसपास वर्षा का आह्वाहन करते थे, वृक्ष उनका साथ देते थे। जल स्रोत की कमी न रहती थी।

अब आज़कल के पढ़े लिखे लोग मशीनों औऱ कॉन्क्रीट के जंगल अर्थात बड़े घर बनाने में व्यस्त हैं।लेक़िन जीने के लिए वर्षा के जल का संग्रहण करने में किसी को रुचि नहीं। सोचते हैं बोरवेल लगाके अपना काम चला लेंगे, यही सबसे बड़ी भूल है।

नासा ने भारत के ज़मीन स्तर पर जल की स्थिति की जो फोटो भेजी है, वो अत्यंत डरावनी है। जल जितना चाहिए उसका केवल एक चौथाई शेष रह गया है।

अतः पुनः सब आसपड़ोस के लोगों को एकत्र करके सबके अंशदान व सहयोग से बड़े जलाशय का निर्माण कर वर्षा का जल संग्रह करें, जल संरक्षित करें।

आत्मबल से बोरवेल के लिए जलस्त्रोत का पता करने के लिए 40 दिन तक सवा लाख गायत्री मंन्त्र का अनुष्ठान करें। 108 वृक्षारोपण का सङ्कल्प लें और पृथ्वी को वादा करें कि 108 वृक्ष लगाएंगे। ततपश्चात यज्ञ करें जल स्त्रोत का पता मिलेगा।

सामूहिक प्रयोग से जलस्त्रोत का पता करने के लिए 9 दिन नित्य लगातार 12 घण्टे गायत्री मंत्र का अखण्डजप करें, नित्य 8 दिन एक कुंडीय यज्ञ करें जिसमें वरुण गायत्री मंत्र की आहुतियाँ गायत्री मंत्र के साथ दें और नवें दिन 5 कुंडीय यज्ञ करें। 108 वृक्षों के वृक्षारोपण का सङ्कल्प लीजिये औऱ पृथ्वी से वादा कीजिये। जल का अवश्य स्त्रोत मिलेगा।

कलश वाला कच्चा पानी वाला नारियल की जटा हटाकर हाथ में लेकर अपने एरिया में घूमें। कलश  के नारियल के भीतर का जल लगातार अखण्डजप जप से अभिमंत्रित होगा और जमीन के नीचे जहां जल स्त्रोत होगा उसके गुरुत्वाकर्षण बल से नारियल ऊपर की ओर उठेगा। जहां नारियल उठे वहां खुदाई करें जल मिलेगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, मीनोपॉज(menopause) का समय चल रहा है, दिन भर घबराहट होती है, खाना अच्छा नहीं लगता औऱ दिमाग़ गर्म रहता है, थोड़ी थोड़ी बात पर गुस्सा आता है? स्वयं पर नियंत्रण कैसे करूँ, स्वयं को इस स्थिति में कैसे सम्हालूँ?

प्रश्न - *दी, मीनोपॉज(menopause) का समय चल रहा है, दिन भर घबराहट होती है, खाना अच्छा नहीं लगता औऱ दिमाग़ गर्म रहता है, थोड़ी थोड़ी बात पर गुस्सा आता है?  स्वयं पर नियंत्रण कैसे करूँ, स्वयं को इस स्थिति में कैसे सम्हालूँ? मार्गदर्शन करें!*

उत्तर - आत्मीय बहन,
हालाँकि मीनोपॉज (menopause in hindi) एक कुदरती प्रक्रिया है, कोई रोग नहीं, लेकिन कई महिलाओं के शरीर में हो रहें बदलाव उनके रोज़-मर्रा की ज़िन्दगी में समस्याएं खड़ी कर सकते हैं|

एक उम्र के बाद, ovaries में ovulation, यानि की अंडे का उत्पादन, बंद हो जाता है| इस कारण से शरीर में एस्ट्रोजन की कमी होती है और कई लक्षण (menopause symptoms) महसूस होते हैं जैसे की –

👉🏼अनियमित ढंग से periods का होना
👉🏼अचानक से तेज गर्मी लगना (hot flushes)
नींद में समस्या आना
👉🏼वज़न का बढ़ना
👉🏼बालों का झड़ना
👉🏼योनि का सूखापन (vaginal dryness)
👉🏼मनो-दशा में बदलाव (mood swings)
👉🏼त्वचा में परिवर्तन जैसे रूखी त्वचा

हालाँकि मीनोपॉज का diagnosis माहवारी के 12 महीनें न होने पर ही किया जाता है, लेकिन आप ultrasound और ब्लड टेस्ट करवा कर भी मीनोपॉज प्रमाणित कर सकतें हैं|

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने इस बारे में कहा कि पेरीमीनोपॉज के लक्षण हर किसी में अलग होते हैं, जिनमें अनियिमित अत्यधिक रक्तस्राव, अनिद्रा, रात को पसीना आना, खराब पीएमएस, माइग्रेन, वेजीनल ड्राइनेस और पेट का मोटापा बढ़ना आदि समस्याएं होती हैं. इसके अलावा महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य में भी बदलाव आते हैं."

उन्होंने कहा कि हार्मोन में बदलाव से बेचैनी, अवसाद, चिड़चिड़ापन और तेजी से मूड बदलने जैसे लक्षण हो सकते हैं. कई महिलाओं को सीने में दर्द या धुड़की लगना आदि समस्याएं होती हैं. ऐसा लगातार होने पर डॉक्टर से राय लेना आवश्यक होता है."

डॉ. अग्रवाल कहते हैं, "सेहतमंद खानपान और अच्छी नींद इसका सबसे बेहतर हल है. गंभीर मामलों में गोली, स्किन पैच, जैल या क्रीम के रूप में एस्ट्रोजिन थैरेपी से इलाज किया जाता है. आम तौर पर पेरीमेनोपॉजल और मेनूपॉजल हॉट फ्लैशेस और रात को आने वाले पसीने के इलाज के लिए इनका प्रयोग किया जाता है. उचित तरीके से हड्डियों के नुकसान को रोकने में एस्ट्रोजन मदद करता है."

उन्होंने बताया कि योग और सांस की क्रियाएं कम खतरे वाले इलाज हैं, जो इन स्थितियों में तनाव घटाते हैं और इस बीमारी को रोकने में मदद करते हैं. इन स्थितियों में हर्बल और डाईट्री सप्लीमेंट लेने से पहले डॉक्टर से सलाह लेना चाहिए."

इन बातों पर करें गौर  और  अपनाएं:

👉🏼 *प्राणाकर्षण औऱ नाड़ीशोधन प्राणायाम अवश्य करें*

👉🏼 *पूर्णिमा के चांद का ध्यान करते हुए गायत्री मंत्र का जप करें, चन्द्र गायत्री मंत्र की एक माला नित्य पूजन में सम्मिलित कर लें ।*

👉🏼 *रोज नादयोग अवश्य सुने शीतल चन्द्रमा की किरणों से स्वयं को स्नान करते हुए महसूस करें।हार्मोन असंतुलन में यह अवसाद से राहत देने में मददगार होगा*

👉🏼 *हर रोज 10 मिनट प्राणायाम और 20 मिनट तक व्यायाम करें. हार्मोन असंतुलन में यह अवसाद से राहत देने में मददगार होगा*

👉🏼 *20 मिनट अच्छी पुस्तको का स्वाध्याय करें*

👉🏼 *अगर धूम्रपान करते हैं तो छोड़ दें, क्योंकि इससे रक्तचाप बढ़ता है और दिल की समस्याओं को प्रोत्साहित करता है*

👉🏼 *हर रोज अच्छी नींद लें, योगनिद्रा का अभ्यास करें*

👉🏼 *संतुलित वजन बनाए रखें*

👉🏼 *आहार में कैल्शियम की उचित मात्रा लें. केला, पालक और नट्स काफी अच्छे विकल्प हैं, नित्य दूध अवश्य पियें*

👉🏼 *कोई भी सप्लीमेंट या मल्टीविटामिन लेने से पहले डॉक्टर की सलाह लें*

👉🏼 मीनोपॉज में कभी भी अनजाने रिसाव हो जाता है, यदि मान लो पूजा के वक्त ध्यान में खोए हो और उठे तो ज्ञात होने पर पाप का बोध करने की आवश्यकता नहीं। ज्ञात होने पर नियम का पालन कर लें।

👉🏼 जब जब छोटी छोटी बातों पर गुस्सा आये तो यदि बैठ सकें तो चेयर पर बैठ जाएं। या नहीं बैठने की सुविधा है तो खड़े खड़े पैरों में अंतर कर लें। गहरी श्वांस लें औऱ स्वयं से बात करके स्वयं को बताएं कि सामने वाला आपकी मनःस्थिति से अंजान है। आपको अपना नियंत्रण नहीं खोना है। इस परिस्थिति को विवेक पूर्वक हैंडल करना है।

👉🏼 थोड़ी किशमिश साथ रखें जब भी घबराहट हो गहरी श्वांस ले और किशमिश को धीरे धीरे खायें।

🙏🏻 परिवार के अन्य सदस्यों को इस समय स्त्री का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इस समय  बदलते हार्मोन्स और बदलती शारीरिक स्थिति  उस स्त्री उग्र, अशांत और व्यग्र कर देती है, जिसके  कारण चिड़चिड़ापन  होता है,  इस कारण स्वयं को सम्हालने में कभी कभी असमर्थ हो जाती है। अतः धैर्य के साथ स्त्री को सम्हाले।  स्त्री अपने पति के सहयोग से ही इस अवस्था में सम्हलना सम्भव हो पाता है।🙏🏻

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दीदी, गुरुदेव से जुड़ने के बाद माला जप तो कर लेते हैं, लेकिन साहित्य खोलते ही जबर्दस्ती पढ़ना पड़ता है, क्योंकि गुरुदेव ने स्वाध्याय करने को बोला है इसलिए पढ़ते तो हैं

प्रश्न - *दीदी, गुरुदेव से  जुड़ने के बाद माला जप तो कर लेते हैं, लेकिन साहित्य खोलते ही जबर्दस्ती पढ़ना पड़ता है, क्योंकि गुरुदेव ने स्वाध्याय करने को बोला है इसलिए पढ़ते तो हैं लेकिन स्वाध्याय करना अच्छा नही लगता। ऐसा उपाय बताएं जैसे सिरियल देखने का इंतज़ार रहता हैं वैसे स्वाध्याय का भी इंतजार हो..*

उत्तर - आत्मीय बहन, शरीर की उम्र कितनी है इस बात से फ़र्क नहीं पड़ता, फ़र्क़ इस बात से पड़ता है कि हम आत्म बोध और आत्म ज्ञान के लिये कितने वर्षों से प्रयासरत हैं वास्तव में वो ही हमारी असली उम्र है। अब स्वयं की आत्मज्ञान प्राप्ति में प्रयासरत होने का वर्ष कैलकुलेट कर लीजिए और अपनी उम्र समझिए और उम्र के अनुसार मन के बालपन या मैच्योरिटी का आंकलन कीजिये।

स्वयं से कुछ प्रश्न कीजिये:-

🤔 क्या खाई में गिरने की तरह पहाड़ में चढ़ने का कार्य आसान हो सकता है?

🤔 क्या आलस्य में सोने की तरह सुबह उठ कर व्यायाम करने का कार्य आसान हो सकता है?

🤔 क्या निर्रथक टीवी सीरियल देखने(entertainment) की तरह अच्छी ज्ञानवर्धक पुस्तकों का स्वाध्याय(edutainment) की तरह रुचिकर(interesting) हो सकता है?

नहीं न, यह आप भी जानते हैं कि एंटरटेनमेंट और एडुटेन्मेन्ट समान नहीं हैं।

अब जिस सीरियल को आप जिस टीवी में देख रहे हैं, उस टीवी को बनाने वाले नें कितनी पढ़ाई की होगी ज़रा सोचो?

टीवी जिस बिजली से चल रहा है, उसे बनाने वाले एडिसन और निकोला टेस्ला ने कितनी पढ़ाई औऱ मेहनत की होगी ज़रा सोचो?

मुम्बई से ऑन एयर करने पर घर बैठे जो डिस आपको टीवी सीरियल दिखा रहा है, उस ईथर सिस्टम को बनाने वाले को सोचो कितना पढ़ना पड़ा होगा?

टीवी सीरियल को जो कैमरे शूट करते हैं औऱ जिस कम्प्यूटर सिस्टम में वो एडिट किया जाता है, वो कैमरे बनाने और कम्प्यूटर-इंटरनेट बनाने वालों ने कितनी पढ़ाई की होगी ज़रा सोचो?

एक टीवी सीरियल आप तक पहुंचने में हज़ारों पढ़े लिखे लोगों के प्रयत्न शामिल होते हैं तब जाकर आप एक सीरियल एन्जॉय करते हैं।

अतः पुस्तकों के बिना ज्ञान पाना असम्भव है। चेतन हो या अचेतन, संसार हो या अध्यात्म स्वाध्याय तो सभी क्षेत्र में सफ़लता के लिये पढ़ना तो पड़ेगा।

पढ़ाई में एन्जॉय न ढूंढ के पढ़ाई व स्वाध्याय में लाभ ढूँढिये। उसका महत्व समझिए। और पढ़ने में जुट जाइये।

पहले खाना बनाना कठिन लगता था, अब अभ्यस्त होने पर सरल हो गया न....पहले बाइक चलाना लड़कों को कठिन लगता है, अभ्यस्त होने पर वही सरल हो जाता है....

इसी तरह अभ्यस्त न होने के कारण साहित्यिक भाषा समझने में कठिनाई होती है, जब समझ कुछ नहीं आता और गहरे मन तक वह नहीं पहुंचता, इसलिए पढ़ने में रुचि नहीं जग रही।

 लेकिन निरन्तर पढ़ते रहने पर अभ्यस्त होने पर यह साहित्यिक भाषा समझ मे आने लगेगी और जिस दिन ज्ञान समझ मे आने लगा तब स्वाध्याय भी आपके लिए आसान और ज्ञानवर्धक हो जाएगा। अतः मन को अच्छा लगे या नहीं, मन लगे या नहीं नित्य पढ़िये, जिस दिन साहित्यिक भाषा पर आपकी पकड़ हो गयी कमाल हो जाएगा। स्वाध्याय में रुचि जग जाएगी।

मन को सङ्कल्प से बांधिए, बिन पूजन भोजन नहीं और बिन स्वाध्याय शयन नहीं। सङ्कल्प से बंधा मन जल्दी अभ्यस्त होगा।

नित्य पढ़कर कुछ लिखने पर जल्दी साहित्यिक भाषा पर पकड़ बनती है। जब साहित्य की रिदम समझ आ गयी फिंर साहित्य पढ़कर आत्मानंद की अनुभूति होगी।

आपका स्वाध्याय में मन लगने लगे ऐसी ईश्वर से प्रार्थना है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday 14 June 2019

प्रश्न - *लक्ष्य प्राप्ति में यदि वासना अवरोध उत्पन्न करे तो योग अथवा सन्यासी जीवन जीना कैसे संभव करें?*

प्रश्न - *लक्ष्य प्राप्ति में यदि वासना अवरोध उत्पन्न करे तो योग अथवा सन्यासी जीवन जीना कैसे संभव करें?*

उत्तर - आत्मीय बेटे, दो कहानी सुनो:-
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*कहानी - 1*
एक बार नारद जी की एक सुअर🐷 ने मदद की, नारद जी प्रशन्न होकर सुअर को गंगा में नहलाधुला कर विष्णु जी के बैकुंठ धाम ले गए। 56 भोग और नर्म आलीशान बिस्तर सुअर को उपलब्ध करवाया गया। जब सुअर का पेट भर गया तो आदतन ख़ुशी में उसे कीचड़ में लोटने की इच्छा हुई। उसने नारद से पूँछा बैकुंठ में कीचड़ और गंदगी कहाँ है मुझे लोटना है। नारद जी ने कहा, सुअर तुम कैसी बात करते हो? इतने साफ सुंदर दिव्यगुणों से भरपूर बैकुण्ठ में कीचड़ व गन्दगी नहीं होती। तुम इस आरामदायक देव दुर्लभ बिस्तर पर विश्राम करो। सुअर ने कहा मुझे तुरन्त पृथ्वी लोक भेज दें, मैं बिना कीचड़ और गन्दगी के नहीं रह सकता। सुअर को पृथ्वीलोक भेज दिया गया।

दुःखी नारद को भगवान विष्णु ने समझाया, कि यदि सुअर का कल्याण चाहते हो तो उसे सुख सुविधा की जगह आत्मज्ञान दो, उसके कुसंस्कारों को शुभ संस्कारो में बदलो। वो अपने लिए बैकुंठ स्वयं निर्मित कर लेगा।

मन सुअर की तरह इन्द्रीयसुखों की कीचड़ में लोटेगा जब तक मन के संस्कारों पर तुम कार्य नहीं करोगे। आध्यात्मिक योग(बैकुण्ठ) की जगह मन सांसारिक भोग(कीचड़) में ही सुख ढूंढेगा।
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*कहानी 2* -
एक गाड़ी में मालिन(फूलों का व्यवसाय करने वाली🌹🎊) और मछुआरिन(मछली का व्यवसाय करने वाली🐟🦐) सपरिवार जा रही थी। एक्सीडेंट हुआ, मछुआरों का परिवार मारा गया और मालिन का भी। मछुआरों की 11 साल की बेटा बचा और मालिन बची। मालिन दया करके मछुआरे की बेटे को घर ले आई। शाकाहारी पकवान उसे बेटे को न भाए क्योंकि उसे मछली चावल खाने की आदत थी। शुरू शुरू में रात को फूलों की खुशबू में उस लड़के को नींद न आये क्योंकि सड़ी सुखी मछलियों के दुर्गंध के बीच उसे सोने की आदत थी, अतः वो माँ की मछली की टोकरी वाला कपड़ा साथ लाया था वो नाक पर रखता और दुर्गंध सूंघते हुए सोता। लेक़िन मालियों के साथ निरन्तर रहने और उनका आहार-विहार अपनाने से उसके मछुआरे के सँस्कार कमज़ोर पड़ने लगे और नए मालियों के सँस्कार उसमें चढ़ने लगे। 21 वर्ष की उम्र में किन्ही कारण वश उसे मछुआरों की बस्ती में जाना पड़ा। पहले जिन सड़ी मछलियों की दुर्गंध का वो आदी था आज वो उसे बर्दास्त न कर सका और उल्टियां करता हुआ वो वहाँ से भागकर घर आ गया। फूलों की सुगंध में उसे शांति मिली।

*निष्कर्ष* - सुअर मन को देवत्व में ढालना है तो मन के आसपास देवत्व का वातावरण औऱ चिंतन उत्तपन्न करो। उसे आत्मज्ञान मिले इस हेतु नित्य निम्नलिखित पुस्तकों का स्वाध्याय करो:-

👉🏼 *अभ्यास(निरन्तर स्वाध्याय करो)*
युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य लिखित
1- प्रसुप्ति से जागृति की ओर
2- व्यक्तित्व विकास की उच्चस्तरीय साधनाएं
3- मैं क्या हूँ?
4- अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
5- भगवान श्रीराम के जीवन का सोलहवां वर्ष (मर्यादा पुरुषोत्तम बनने का रहस्य)
6- आध्यात्मिक काम विज्ञान
7- चेतन अचेतन एवं सुपरचेतन

एक इंग्लिश पुस्तक है, यदि इसे पढ़ सको तो पढ़ो-  Practice of brahmachary (swami sivanad )

👉🏼 *वैराग्य (दूर रहो)*

1- गन्दे कामुकता को बढ़ाने वाले टीवी सीरियल फिल्में मत देखो। जो मन को कीचड़ की याद दिलाएं।
2- गन्दे कामुकता को बढ़ाने वाली पत्रिकाएं और न्यूज आर्टिकल मत पढ़ो

👉🏼 *भक्ति में ही शक्ति छुपी है*

माता आदिशक्ति गायत्री की माता रूप में भक्ति करो। रोज़ एक भजन सुनो और उसे गुनगुनाओ।

👉🏼 *गायत्री मंत्र जपते हुए यह अर्थ चिंतन करो:-*

 🙏🏻 *ॐ भुर्भुवः स्व: तत्* - हे आद्य शक्ति भगवती तू धरती आकाश पाताल कण कण में विद्यमान है। जैसे मछली जल में और जल मछली के भीतर है वैसे ही माता मैं तुझ ब्रह्म के अंदर हूँ और तुम ब्रह्म भी मेरे अंदर हो।

🙏🏻 *सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि* - हे आद्य शक्ति हम आपका वरण करते हैं, अपने भर्ग-तेज से मेरे समस्त - काम-क्रोध-मद-लोभ-दम्भ को जलाकर नष्ट कर दो। औऱ मुझमें देवत्व जगा दो। मेरी बुद्धि के रथ पर बैठकर मेरे जीवन का मार्गदर्शन करो माँ।

🙏🏻 *धियो योनः प्रचोदयात्* - माता मेरे पूर्व जन्म के कुसंस्कार बार बार मुझे परेशान कर रहे हैं।माता इन कुसंस्कारों का शमन करके मुझमें शुभ सँस्कार जगाओ। मुझे बलपूर्वक सन्मार्ग पर चलाओ। मुझमें योग जगाओ। मुझे विवेकानंद जी जैसा योगी बनाओ।

😇निरन्तर भक्ति पूर्वक विह्वल होकर माता से प्रार्थना करो कि इस संसार में मेरी अर्धांगिनी को छोड़कर जितनी भी अन्य स्त्रियाँ है वो चाहे किसी भी उम्र की क्यों न हों उनमें माता मुझे आपकी अनुभूति हो। मेरे मन मे पुत्र भाव जगे मुझे हर स्त्री जाति में मातृत्व का भाव जगे।

भगवान से सच्चे मन से और पूर्ण विश्वास से निरन्तर प्रार्थना करो। छः महीने में कुसंस्कार कमज़ोर पड़ कर कटने लगेंगे और तुममें देवत्व जगने लगेगा।

जिस ओर विचार और चिंतन करोगे उस ओर के सम्बन्धित शक्तियां तुममें स्वतः प्रवेश करती चली जाएंगी।

तुम योग मार्ग पर सफल हो, यही प्रार्थना है। इस संसार रुपी कीचड़ से कमल पुष्प की तरह विरक्त हो ऊपर उठो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *बच्चे का जन्म तो ख़ुशी और उत्सव मनाने वाली बात है तो फ़िर सूतक क्यों लगता है? घर में 10 दिन पूजन क्यों नहीं करते। मृत्यु दुःख का कारण है और इसमें सूतक लगे तो बात समझ मे आती है। कृपया समाधान दें।*

प्रश्न - *बच्चे का जन्म तो ख़ुशी और उत्सव मनाने वाली बात है तो फ़िर सूतक क्यों लगता है? घर  में 10 दिन पूजन क्यों नहीं करते। मृत्यु दुःख का कारण है और इसमें सूतक लगे तो बात समझ मे आती है। कृपया समाधान दें।*

उत्तर - आत्मीय बहन,

50 रुपये का मटका और 100 रुपये का फूलों का गुलदस्ता लिया। दूसरे दिन फूल मुरझाए 100 रुपये व्यर्थ हुए तो दुःख न हुआ लेकिन दूसरे दिन 50 रुपये का मटका टूटा तो दुःखी हो गए। मटका के टूटने की अपेक्षा न थी और फूलों के मुरझाने की बात मन में पहले से क्लियर थी। दोनों ही घटनाएं है सुख और दुःख तो आपकी सोच की और अपेक्षा की उपज है। सुख और दुःख वास्तव में मन की उपज है इसका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं, जन्म-मृत्यु से कोई लेना देना नहीं।

कोई घर में आये या कोई घर से बाहर जाए मुख्य दरवाजा घर का तो खोलना ही पड़ेगा।

अब किसी के आने या किसी के जाने पर आपको दुःख या सुख की अनुभूति आपकी व्यक्तिगत है और भावनात्मक है। इससे किसी के आने(बच्चे के जन्म) और किसी के जाने(किसी की मृत्यु) से   दरवाज़े (स्थूल से सूक्ष्म के बीच) के खुलने के कार्य  तो होगा ही। अतः सूतक तो दोनों ही परिस्थिति में लगेगा। यज्ञ द्वारा सूक्ष्म के शुद्धिकरण दोनों ही परिस्थिति में होगा।

बाहर यदि हवा चल रही हो तो दरवाजा खोलकर घर मे झाड़ू तो नहीं लगा सकते। इसी तरह सूक्ष्म और स्थूल के बीच का दरवाजा जन्म या मृत्यु के कारण किसी भी घर में खुला हो पूर्ण बन्द होंने में 10 दिन लगते है। सूक्ष्म की हलचल और तरंगों के प्रवेश के वक़्त (सूतक में) आध्यात्मिक अनुष्ठान एवं पूजन एवं यज्ञ करना मना किया जाता है।

यह सत्य भारत सरकार भी समझती है, जन्म और मृत्यु रजिस्ट्रेशन का एक ही ऑफिस और डिपार्टमेंट है। जन्म से कोई सुखी हो या किसी अपने की मृत्यु के कारण दुःखी हो, दोनों ही परिस्थिति में रजिस्ट्रेशन तो करवाना ही पड़ेगा।

अतः सुख एवं दुःख मन की स्थिति है। जबकि जन्म और मृत्यु मात्र एक घटना है। एक में आत्मा नया शरीर धारण करती है और दूसरे में आत्मा शरीर छोड़ती है। एक ही आत्मा जहाँ से जाती है वहाँ लोग दुःखी और वही आत्मा जब दूसरी जगह जन्मती है तो लोग उत्साह मनाते हैं।

उम्मीद है आपकी शंका का समाधान हो गया होगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *क्या ऊंची जगह बैठकर बिना आधार के हवा में पैर हिलाने से लक्ष्मी नाराज़ होती हैं? धन का नाश होता है?*

प्रश्न - *क्या ऊंची जगह बैठकर बिना आधार के हवा में पैर हिलाने से लक्ष्मी नाराज़ होती हैं? धन का नाश होता है?*

उत्तर- आत्मीय बहन, ऊंची जगह बैठकर हवा में लटकाते हुए पैर हिलाने से पैर के लिगामेंट कमज़ोर होते हैं, घुटने की दोनों हड्डियां आपस मे टकराती है और इससे घिसाव होता है। लेकिन पैर को ज़मीन पर रखकर आधार के साथ हिलाने पर कोई समस्या नहीं होती। अर्थात टेबल पर पैर रख लें  और हिलाएं कोई दोष नहीं।

अतः पैर को लटकाकर बिना आधार हिलाने पर पैर में दर्द बढ़ेगा, वृद्धावस्था में परेशानी होगी। डॉक्टर को फ़ीस देंगे, पैर दर्द से कई महत्त्वपूर्ण कार्य कर न सकेंगे तो अवश्य धनहानि होगी।

इसलिए ही पूर्वजो ने कहा, लटकाकर पैर हिलाने से लक्ष्मी नाराज़ अर्थात स्वास्थ्य एवं धन की हानि होगी।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *पितृ दोष सत्य या भ्रम? विश्वास या अंधविश्वास? कैसे पता करें पितृ दोष है या नहीं? यदि है तो उसका निवारण कैसे करें?*

प्रश्न - *पितृ दोष सत्य या भ्रम? विश्वास या अंधविश्वास? कैसे पता करें पितृ दोष है या नहीं? यदि है तो उसका निवारण कैसे करें?*

उत्तर - अध्यात्म से रिश्ता
कथित तौर पर मॉडर्न होती आजकल की जनरेशन का अध्यात्म से रिश्ता टूटता जा रहा है जिसके चलते वे सभी घटनाओं और परिस्थितियों को विज्ञान के आधार पर जांचने और परखने लगे हैं। वैसे तो इस बात में कुछ गलत भी नहीं है क्योंकि ऐसा कर वे रूढ़ हो चुकी मानसिकता से किनारा करते जा रहे हैं परंतु कभी-कभार कुछ घटनाएं और हालात ऐसे होते हैं जिनका जवाब चाह कर भी विज्ञान नहीं दे पाता।

*ज्योतिष विद्या*
- ये घटनाएं सीधे तौर पर ज्योतिष विद्या से जुड़ी है, जो अपने आप में एक विज्ञान होने के बावजूद युवापीढ़ी के लिए एक अंधविश्वास सा ही रह गया है। खैर आज हम आपको ज्योतिष विद्या में दर्ज पितृ दोष के विषय में बताने जा रहे हैं, जो किसी भी व्यक्ति की जीवन को प्रभावित कर सकता है।

जब परिवार के किसी पूर्वज की मृत्यु के पश्चात उसका भली प्रकार से अंतिम संस्कार संपन्न ना किया जाए, या जीवित अवस्था में उनकी कोई इच्छा अधूरी रह गई हो या पूर्वजों ने कोई शुभकर्म स्वयं के उद्धार के लिए न किया हो तो उनकी आत्मा अपने घर और आगामी पीढ़ी के लोगों से अपने उद्धार के लिए कुछ प्रयास करने को कहती है। क्यूंकि पूर्वजों की भटक रही  होती है। मृत पूर्वजों की अतृप्त आत्मा पहले संकेत देकर अपने उद्धार के लिए प्रयास करने को कहती है, जब परिवारजन उसे अनसुना कर देते है तो पितर अपना सुरक्षा करना छोड़ देते हैं। ऐसे परिवार के लोगों को कष्ट देकर अपनी इच्छा पूरी करने के लिए दबाव डालती है और यह कष्ट पितृदोष के रूप में जातक की जीवन में झलकता है।

*पितृदोष* -
पितृ दोष के कारण व्यक्ति को बहुत से कष्ट उठाने पड़ सकते हैं, जिनमें विवाह ना हो पाने की समस्या, विवाहित जीवन में कलह रहना, परीक्षा में बार-बार असफल होना, नशे का आदि हो जाना, नौकरी का ना लगना या छूट जाना, गर्भपात या गर्भधारण की समस्या, बच्चे की अकाल मृत्यु हो जाना या फिर मंदबुद्धि बच्चे का जन्म होना, निर्णय ना ले पाना, परिवार जनों का अत्याधिक क्रोधी होना, मष्तिष्क शांत न रहना।

*सूर्य और मंगल*
ज्योतिष विद्या में सूर्य को पिता का और मंगल को रक्त का कारक माना गया है। जब किसी व्यक्ति की कुंडली में ये दो महत्वपूर्ण ग्रह पाप भाव में होते हैं तो व्यक्ति का जीवन पितृदोष के चक्र में फंस जाता है।

*पितृदोष निवारण के उपाय* -
पितृ दोष को शांत करने के उपाय तो हैं लेकिन आस्था और आध्यात्मिक झुकाव की कमी के कारण लोग अपने साथ चल रही समस्याओं की जड़ तक ही नहीं पहुंच पाते।

*नित्य घर में बलिवैश्व यज्ञ करें* -

नित्य पाँच बलिवैश्व की आहुतियाँ देवताओं सहित पितरों को भी तृप्त करती हैं। गृहणियाँ जो स्वयं भोजन बनाती हैं घर की बनी रोटी या चावल में गुड़ और देशी घी मिलाकर चने के बराबर पाँच गोली बना लें। अतिव्यस्त लोग जो ख़ुद खाना नहीं बनाते वो जौ, काला तिल, गुड़, देशी घी को हवन सामग्री में मिला कर ये पांच आहुतियाँ दें।

गैस के ऊपर तांबे के बर्तन(बलिवैश्व वाला) गर्म कर उसमें आहुतियाँ समर्पित करें या गोमयकुण्ड में आहुतियां दें।

मंन्त्र -
1- ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् स्वाहा(आहुतियाँ डालें) इदं *ब्रह्मणे* इदं न मम्
2- ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् स्वाहा(आहुतियाँ डालें) इदं *देवेभ्य:* इदं न मम्
3- ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् स्वाहा(आहुतियाँ डालें) इदं *ऋषिभ्य:* इदं न मम्
4- ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् स्वाहा(आहुतियाँ डालें) इदं *नरेभ्यः* इदं न मम्
5- ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् स्वाहा(आहुतियाँ डालें) इदं *भूतेभ्यः* इदं न मम्

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*अमावस्या को श्राद्ध* -
अगर कोई व्यक्ति पितृदोष से पीड़ित है और उसे अप्रत्याशित बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है तो उसे अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर्म संपन्न करना चाहिए। वे भले ही अपने जीवन में कितना ही व्यस्त क्यों ना हो लेकिन उसे अश्विन कृष्ण अमावस्या को श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।


*पीपल को जल*

सात पीपल के वृक्षों का वृक्षारोपण और शनिवार के दिन शाम के समय पीपल के पेड़ की जड़ में जल चढ़ाने और फिर सात बार उसकी परिक्रमा करने से जातक को पितृदोष से राहत मिलती है।

*सूर्य को जल*
प्रत्येक रविवार को तीन माला गायत्री मंत्र पितरों की मुक्ति के लिए जपकर सूर्यदेव को प्रतिदिन तांबे के पात्र में जल, गुड़ और कला तिल मिलाकर अर्घय देना चाहिए। थोड़ा जल बचाकर उसे दोनों हाथों की अंजुली बनाकर तीन अंजुली जल का अर्घ्य देते समय निम्नलिखित मंन्त्र बोलें:

ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् - (जल अंजुली से छोड़े और बोलें) पितर शांत हों शांत हों शांत हों।

ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् - (जल अंजुली से छोड़े और बोलें) पितर मुक्त हों मुक्त हों मुक्त हों।

ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् - (जल अंजुली से छोड़े और बोलें) पितर तृप्त हों तृप्त हों तृप्त हों।


*पूर्वजों से आशीर्वाद* -
जल स्रोत की सफ़ाई में समयदान करें और उसका पुण्य पूर्वजों को अर्पित कर दें। शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार को शाम के समय पानी वाला नारियल अपने ऊपर से सात बार स्वयं पर वारकर, उसे फोड़कर नारियल का पानी बहते जल में मिला दें और तांबे का सिक्का जो जल शुद्ध करता है पूर्वजो को प्रणाम कर बहते जल में प्रवाहित कर दें और अपने पूर्वजों से मांफी मांगकर उनसे आशीर्वाद मांगे।

*गाय को गुड़*
महीने में एक बार गौशाला में समयदान करें, गौ सेवा करें। नज़दीकी गौ शाला में हरा चारा ख़रीदकर दान करें। गुरुवार को समस्त परिवार से स्पर्श करवाकर चना और गुड़ गौ माता को खिलाएं और अपने कुलदेवी या देवता की पूजा अवश्य करते रहें। रविवार के दिन विशेषतौर पर गाय को गुड़ खिलाएं और जब स्वयं घर से बाहर निकलें तो यज्ञभष्म(जिस हवन कुंड में कम से कम 24 या इससे अधिक आहुतियाँ डली हो) को माथे में लगाकर और थोड़ा मुँह में डालकर साथ ही अत्यंत थोड़ा गुड़ खाकर ही निकलें।

*पूर्वजों के उद्धार के लिए 40 दिन का गीता पाठ*
पूर्वजों के उद्धार के लिए नित्य 40 दिन तक एक माला गायत्री जप और गीता के सातवें अध्याय का पाठ बोलकर पढ़ें। जिससे घर की वाइब्रेशन में गीता गूँजे। रसोईघर में गायत्री मंत्रबॉक्स लगाएं।


*पूर्वजन्म* -
हिन्दू धर्म में पूर्वजन्म और कर्मों का विशेष स्थान है। मौजूदा जन्म में किए गए कर्मों का हिसाब-किताब अगले जन्म में भोगना पड़ता है इसलिए बेहतर है कि अपने मन-वचन-कर्म से किसी को भी ठेस ना पहुंचाई जाए। स्वयं के उद्धार हेतु खूब पुण्य कमाइए।

*घर के शुभकर्म और उत्सव में देवताओं, कुलदेवता और पितरों को श्रद्धा सबसे पहले अर्पित करें। फिंर सबका आशीर्वाद लेकर घर मे उत्सव निर्विघ्न मनाना चाहिए।*

न आत्मा मरती है और न जन्म लेती है, जो जीवित रहते जिस गुण स्वभाव कर्म का होता है वो मरने के बाद भी वैसा ही होता है। ये गुण स्वभाव कर्म सँस्कार बनकर अगले जन्म में भी प्रभावित करते हैं। कर्मफ़ल जीवित रहते हुए भी भुगतने पड़ते हैं और शरीर छूटने के बाद भी भुगतना पड़ता है। अध्यात्म जिस आत्मा की अमरता का सिद्धांत मानता है उसे विज्ञान भी मानता है। कि ऊर्जा कभी नष्ट नहीं होती केवल रूप बदलती है।

पदार्थ को सूक्ष्मीकरण करके सूक्ष्म जीवों तक पहुंचाने का उपक्रम भावों और यज्ञ के माध्यम से संभव है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 12 June 2019

प्रश्न - *दी जब है गायत्री मंत्र में ही सारे देवी, देवता का वास मानते हैं तो वासुदेव भगवान या गणेश भगवान या अन्य देवी देवताओं का पर्व विशेष पर अलग से जप क्यों?*

प्रश्न - *दी जब है गायत्री मंत्र में ही सारे देवी, देवता का वास मानते हैं तो वासुदेव भगवान या गणेश भगवान या अन्य देवी देवताओं का पर्व विशेष पर अलग से जप क्यों?*

उत्तर - सूर्य की एक किरण में 7 रँग विद्यमान हैं। लेकिन जब रंगों के माध्यम से चिकित्सा करनी होती है तो उस रँग की बोतलों में जल भरकर उस रँग विशेष की ऊर्जा सूर्य के प्रकाश से अवशोषित करके उपयोग में लिया जाता है।

इसीतरह गायत्री मंत्र सूर्य के प्रकाश की तरह है, उसमें सभी देवी देवताओं की शक्तियों का समावेश है। लेक़िन पर्व विशेष के दिन हम गायत्री मंत्र के साथ जिस देवता का पर्व होता है उसका दशांश मंन्त्र जपकर उस विशेष शक्ति धारा से जुड़कर लाभान्वित होते हैं।

*उदाहरण - 1* - आज निर्जला एकादशी है जो भगवान वासुदेव को समर्पित है। अतः आज के दिन दस माला गायत्री और एक माला वासुदेव गायत्री जप होगा। इसी के अनुसार यज्ञ आहुति में भी गायत्री मंत्र के साथ साथ वासुदेव मंन्त्र से आहुतियां भी होंगी।

*उदाहरण 2-* जो महिलाएं गणेश चतुर्थी व्रत रखती हैं, वो दिन गणेश जी का विशेष होता है। अतः इस दिन दस माला गायत्री और एक माला गणेश गायत्री मंत्र का जपा जाएगा। यज्ञ में भी गायत्री मंत्र के साथ गणेश मंन्त्र से आहुतियां डलेंगी। रात को चन्द्र अर्घ्य के समय तीन मंन्त्र क्रमशः गायत्री मंत्र, चन्द्र गायत्री मंत्र और गणेश गायत्री बोला जाएगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

निर्जला एकादशी व्रत

*निर्जला एकादशी व्रत* -

गंगा दशहरा के बाद होने वाली एकादशी को निर्जला एकादशी कहते हैं। इस बार यह 13 जून यानी गुरुवार को मनाई जाएगी। Nirjala ekadashi 2019 पूरे साल की 24 एकादशियों में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसे भीम एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू कैलेंडर के मुताबिक हर साल ज्‍येष्‍ठ महीने की शुक्‍ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी या भीम एकादशी का व्रत किया जाता है। यह व्रत बिना पानी के रखा जाता है इसलिए इसे निर्जला एकादशी कहते हैं।

*निर्जला एकदशी का महत्‍व*
साल में पड़ने वाली 24 एकादशियों में निर्जला एकादशी का सबसे अधिक महत्व है। इसे पवित्र एकादशी माना जाता है। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत रखने से सालभर की 24 एकादशियों के व्रत का फल मिल जाता है, इस वजह से इस एकादशी का व्रत बहुत महत्व रखता है।


*निर्जला एकादशी की पूजा विधि* -
निर्जला एकादशी के दौरान भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। सुबह व्रत की शुरुआत पवित्र नदियों में स्नान करके किया जाता है। अगर नदी में स्नान ना कर पाएं तो घर पर ही नहाने के बाद दस माला गायत्री जप *ॐ भूर्भुवः  स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्* और एक माला   *'ऊँ नमो वासुदेवाय'* मंत्र का जाप करें, ततपश्चात दैनिक यज्ञ या बलिवैश्व यज्ञ अवश्य करें और गायत्री मंत्र के साथ उसका दशांश वासुदेव मंन्त्र की आहुति अवश्य दें।

भगवान विष्णु की पूजा करते समय उन्हें लाल फूलों की माला चढ़ाएं, धूप, दीप, नैवेद्य, फल अर्पित करके उनकी आरती करें।

*निर्जला एकादशी का शुभ मुहूर्त*
एकादशी तिथि प्रारंभ: 12 जून शाम 06:27
एकादशी तिथि समाप्‍त: 13 जून 04:49


*व्रत का नियम* -  24 घंटे बिना अन्न एवं फलों व्रत रखें, केवल जल भगवान का चरणामृत मानकर पीएं और अगले दिन विष्णु जी की पूजा कर व्रत खोलें। इस व्रत के दौरान ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देना शुभ माना जाता है। सिर्फ और सिर्फ जल पीकर रहें, कोई अन्नाहार नहीं और न ही किसी प्रकार का फ़ल ग्रहण करें। जल को हल्का गुनगुना करके खूब सारा जल पियें जिससे वह जल आपके शरीर की सफ़ाई करें, आपकी आंतों को साफ कर आपको रोगमुक्त कर दे। पेट पर जो अत्याचार हम पूरे वर्ष करते हैं उन अत्याचार और अनर्गल खान पान से एक दिन छुट्टी दें। सिर्फ जल पी कर व्रत रहें और शरीर को रोगमुक्त पाप मुक्त करें। 10 माला गायत्री जप के साथ ध्यान स्वाध्याय करके अपने मन को साफ़ करें, चित्त की गन्दगी साफ़ करें।

ठंडे प्रदेश के लोग बिन जल के रह सकते हैं, साथ ही जड़ी बूटी को सूँघकर प्राचीन ऋषि अपने शरीर को कठोर तप के लिए तैयार करते थे। उस वक़्त वनों से धरती हरी भरी रहती थी और मौसम में आद्रता रहती थी। अब न वो प्राचीन मौसम है न वायु शुद्ध है। न ही आपके पास वो प्राचीन जड़ी बूटियां हैं जिनको सूँघकर आप अपनी आँतों में जरूरी वाष्प पहुंचा सकें और वोक्यूम कर के औषधीय हवा से पेट को साफ़ रख सकें। *इसलिए युगऋषि परम पूज्य गुरुदेव ने बिना जल के व्रत करने के लिए मना किया है।* एक दिन के व्रत से पाप मुक्त नहीं हुआ जा सकता उसी प्रकार जैसे एक दिन पढ़कर पास नहीं हुआ जा सकता, और एक दिन के स्नान से शरीर को लाभ होगा।

हाँ एक बात और, एक दिन रूहअफजा या ठण्डा जल पिलाने से भी पुण्य नहीं मिलेगा, पुण्य उसे मिलेगा जो पूरी गर्मी मटकों में शीतल जल उपलब्ध करवाएगा। प्लास्टिक की ग्लास की गन्दगी पाप और चढ़ायेगी। धरती माता श्राप और देंगी।

नियमित गायत्री उपासना-साधना-आराधना मुक्ति मार्ग प्रसस्त करेगा और नियमित चित्त को साफ़ करेगा।

श्वेता चक्रवर्ती
दिया, गुरुग्राम

Tuesday 4 June 2019

प्रश्न - *गायत्री मंन्त्र सिद्धि से क्या तात्पर्य है? मंन्त्र सिद्धि के लिए कैसे प्रयास करें? मंन्त्र सिद्धि के क्या लक्षण हैं? मंन्त्र सिद्धि के बाद जप के क्या लाभ हैं?*

प्रश्न - *गायत्री मंन्त्र सिद्धि से क्या तात्पर्य है? मंन्त्र सिद्धि के लिए कैसे प्रयास करें? मंन्त्र सिद्धि के क्या लक्षण हैं? मंन्त्र सिद्धि के बाद जप के क्या लाभ हैं?*

उत्तर - *गायत्री मंत्र* एक प्रकार का आध्यात्मिक वाद्य यंत्र है, जिसके सतत जप अभ्यास से प्राण ऊर्जा को बढ़ाया जा सकता है और ऊर्जा केंद्रों जगाया जा सकता है, इसके जप से मन पर नियंत्रण पाया जा सकता, सूक्ष्म जगत से सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है, सृजन एवं विध्वंस सबकुछ संभव है। उपचार भी संभव है और मारण प्रयोग भी संभव है। सबकुछ लौकिक, पारलौकिक जगत से प्राप्त करना संभव है।

👉🏼 योगसिद्धि और मंत्रसिद्धि के समान परिणाम है।

👉🏼 मंन्त्र के जितने अक्षर होते हैं उतने लाख संख्या का का जप मंन्त्र सिद्धि की प्रथम सीढ़ी है। गायत्री मंत्र में 24 अक्षर हैं, अतः कम से कम 24 लाख जप पर यह सिद्ध प्रभाव प्रकट करेगा। छोटे मोटे उद्देश्य की पूर्ति हेतु 24 हज़ार का जप भी लाभान्वित करेगा।

👉🏼 मंन्त्र जप के दौरान सात्विक आहार और शुद्ध निर्मल विचार होने चाहिए।

👉🏼 मंन्त्र सिद्धि की तीन बाधाएं जिन्हें क्रमशः ब्रह्मा, वशिष्ठ और विश्वामित्र का श्राप कहा जाता है, केवल स्वार्थियों के साधना मार्ग में आती हैं। ऐसे साधक जो गुरु से दीक्षा प्राप्त हैं और स्वयं, समाज और सृष्टि के कल्याण के लिए गायत्री मंत्र सिद्धि कर रहे हैं उन्हें इन बाधाओ का सामना नहीं करना पड़ता।

👉🏼 जिस प्रकार संगीत वादक को अपने वाद्य यंत्र पर नित्य अभ्यास से कुशलता मिलती है और मनचाही स्वरलहरियों को निकाल सकता है। उसी तरह मंन्त्र रूपी आध्यात्मिक वाद्य यंत्र का भी नित्य जप और अभ्यास अनिवार्य है।

👉🏼 वाद्य यंत्र में संगीत ध्वनियों को निकालने के लिए राग पर ध्यान केंद्रित करना होता है। ठीक इसी तरह मंन्त्र से शक्तिधाराओं को प्रवाहित करने के लिए उस शक्ति का ध्यान अनिवार्य है।

*मन्त्र सिद्धि में चार तथ्य सम्मिलित रूप से काम करते हैं* -
(1) ध्वनि विज्ञान के आधार पर विनिर्मित शब्द शृंखला का चयन और उसका विधिवत् उच्चारण
 (2) साधक की संयम द्वार, निग्रहित प्राण शक्ति और मानसिक एकाग्रता का संयुक्त समावेश
(3) उपासना प्रयोग में प्रयुक्त होने वाले पदार्थ उपकरणों की भौतिक किन्तु सूक्ष्म शक्ति
(4) भावना प्रवाह, श्रद्धा, विश्वास एवं उच्चस्तरीय लक्ष्य दृष्टिकोण। इन चारों का जहाँ जितने अंश में समावेश होगा वहाँ उतने ही अनुपात से मन्त्र शक्ति का प्रतिफल एवं चमत्कार दिखाई पड़ेगा। इन तथ्यों की जहाँ उपेक्षा की जा रही होगी और ऐसे ही अन्धाधुन्ध गाड़ी धकेली जा रही होगी- जल्दी -पल्दी वरदान पाने की धक लग रही होगी वहाँ निराशा एवं असफलता ही हाथ लगेगी।

मन्त्र विज्ञान भी अन्यान्य विज्ञानों की तरह ही एक सुव्यवस्थित प्रक्रिया है, जिसे धैर्य एवं सावधानी के साथ अपनाना पड़ता है। उसके हर अंग उपाँग को यथास्थान नियोजित करना पड़ता है। घड़ी का हर कलपुर्जा अपने स्थान पर सही रूप से फिट हो तभी वह ठीक तरह चलती और समय बताती है। इसी प्रकार मन्त्र विज्ञान के उपरोक्त तीनों आधार यदि सतर्कता पूर्वक व्यवस्थित किये जा सकें तो कोई कारण नहीं कि अभीष्ट परिणाम प्राप्त न किया जा सके। मन्त्र विद्या निष्फल एवं उपहासास्पद इसीलिए बनती जाती है कि कुपात्र, उतावले और अवैज्ञानिक दृष्टि वाले लोग साधना की विडम्बना रचते हैं और हथेली पर सरसों न जमे तो तरह - तरह के लाँछन लगाते हैं।

*मंन्त्र सिद्धि के लक्षण*

1- मंन्त्र सिद्ध साधक की प्राण ऊर्जा बढ़ने के कारण चेहरा शांत और कान्तियुक्त तेज लिए होता है।

2- मंन्त्र सिद्ध साधक के सान्निध्य में 15 मिनट बैठने पर असीम शांति मिलती है।

3- मंन्त्र सिद्ध साधक उत्साह, उमंग, उल्लास से भरा होता है।

4- किसी बच्चे या बड़े को नज़र वग़ैरह लगने पर मंन्त्र सिद्ध साधक यदि यज्ञ भष्म को 3 बार गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित करके लगा देने पर नजर का प्रभाव तत्काल समाप्त हो जाएगा।

5- मंन्त्र सिद्ध साधक द्वारा किसी भी मनोरथ की पूर्ति के लिए की गई साधना का फल अवश्य मिलता है।

मंन्त्र सिद्ध साधक यदि सिद्धि का दुरुपयोग करता है, तो सिद्धि का क्षय हो जाएगा। लेकिन यदि मंन्त्र सिद्ध साधक उस शक्ति से युगपिड़ा पतन निवारण का कार्य करेगा तो सिद्धि की पावर बढ़ती जाएगी।

यदि शिष्य समर्पित होकर गुरु चेतना से जुड़ जाए और शिष्य के अंदर *करिष्ये वचनम तव* का भाव उभर जाए तो ऐसे शिष्य की मंन्त्र सिद्धि तत्काल गुरूकृपा से हो जाती है।

आप मंन्त्र सिद्धि का यह अखण्डज्योति आर्टिकल भी पढ़ें

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1975/March/v2.9

और आदरणीय चिन्मय पंड्या जी का यह यूट्यूब वीडियो लिंक मंन्त्र के ज्ञान विज्ञान का देखिए:-

https://youtu.be/saalKt6EPZw

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...