Thursday 23 May 2019

प्रश्न - *दी, मेरा MBA फाइनल ईयर है, कम्पनियाँ यूनिवर्सिटी में विजिट करने आ रही हैं। अतः मार्गदर्शन करें।*

प्रश्न - *दी, मेरा MBA फाइनल ईयर है, कम्पनियाँ यूनिवर्सिटी में विजिट करने आ रही हैं। अतः मार्गदर्शन करें।*

उत्तर - बेटा, यह जानकर ख़ुशी हुई कि आप की यूनिवर्सिटी प्लेसमेंट के लिए कम्पनियों को बुला रही है। अतः कुछ बातें जो हम चाहते हैं आप ध्यान रखें:-

1- जब आप इंटरव्यू में बैठने जाएं तो उस कम्पनी की वेबसाईट को अच्छी तरह पढ़कर उसके बारे में जान लें, कि वास्तव में उसे क्या क़्वालिटी चाहिए अपने इंटरव्यू में।

2- फ्रेशर कोई नहीं होता, यह शब्द ही ग़लत है। फ्रेशर वो हाल में जन्मा बच्चा भी नहीं होता। क्योंकि आरंभिक दुनियाँ में कम्युनिकेट किस भाषा मे करना है वो गर्भ में ही सीख लेता है। आप तो जन्म से अब तक हज़ारों इन्फॉर्मेशन और नॉलेज ले चुके हो। 20 वर्ष से ज्यादा का अनुभव आपके पास है। अतः स्वयं को फ्रेशर समझ के लापरवाही न करें, 20 वर्ष के मैच्योर अनुभवी ज्ञान के साथ इंटरव्यू में प्रस्तुत हों।

3- शुरुआत के 5 इंटरव्यू आप सीखने के लिए दीजिये। पैटर्न समझिए कि किस प्रकार के प्रश्न पूँछे जा रहे हैं। उन 5 इंटरव्यू में पूँछे प्रश्नों के उत्तर तैयार कीजिये। छठा और सातवां इंटरव्यू आपको पाने के लिए देना है।

4- रटना चीज़ों को बेवकूफी होती है। आइंस्टीन कहता था जो चीज़ें मुझे जरूरत नहीं उन्हें मैं अपने दिमाग़ में नहीं रखता। मैनेजमेंट में चीज़ों के कॉन्सेप्ट समझना और उन कॉन्सेप्ट को पॉइंट टू पॉइंट प्रस्तुत करना तुम्हे आना चाहिए। डिटेल्स गूगल और पुस्तकों में उपलब्ध है, बस आपको यह पता होना चाहिए कि आपको ढूंढना क्या है?

5- कम शब्दों में प्रभावी तरीके से बात करना आपको आना चाहिए। शुरुआत में किस टॉपिक को बोलने जा रहे हैं उसे क्लियर करें, बीच मे डिटेल दें और अंत मे  जो कुछ बोला उसकी समरी दो से तीन लाइन में बोलकर अपनी बात को विराम दें।

6- सब अभ्यर्थी को सबकुछ आना जरूरी नहीं है। लेकिन सब अभ्यर्थी को कुछ न कुछ सम्बन्धित विषय का विशेष आना बहुत जरूरी है। यह विशेषता ही आपको सबसे बेहतर साबित करके आपका चयन सुनिश्चित करेगी।

7- सैलरी पैकेज के पीछे मत भागिए, 16 वर्षो के मलिटीनेशनल कम्पनी में काम करने के अनुभव से बता रही हूँ। कम्पनियां जितनी तेजी से हायर(कम्पनी में जॉब देती है) करती हैं उतनी तेजी से फ़ायर(कम्पनी से निकालती हैं) भी करती है। प्लेसमेंट जॉब की गारंटी नहीं है, आपका सम्बन्धित विषय मे दक्षता और मेहनत जॉब की गारण्टी है।

8- जितना बुरा आत्महीनता(under confidence) है, उससे ज्यादा बुरा महानता का व्यामोह(over confidence) है। दोनों ही परिस्थितियों में कैरियर का जहाज डूबना तय है।

9- आत्मविश्वास (confidence)  हमेशा मजबूत आधार पर टिका होना चाहिए सन्तुलित होना चाहिए। घबराहट बैचेनी कैरियर के नाव के छेद हैं, यह आमबात है, जिन्हें पता करके उनकी मरम्मत जल्दी से कर लें। घबराहट को स्वीकार लें बोलें मन को पता है तुम घबराओगे। हो गया अब शांत हो जाओ जो होगा बेहतर होगा, या तो आज मैं इंटरव्यू में सफल होउंगी या कुछ सीखकर तैयारी और बेहतर करने में यह इंटरव्यू मददगार होगा। लम्बी गहरी श्वांस लो। आत्मविश्वास के साथ अपने नॉलेज को उनके केवल प्रश्न से सम्बंधित प्रस्तुत करो। आपको ज्यादा आता है, उसने कम पूंछा तो ज्यादा बोलने की गलती मत करो। जो पूँछा केवल उसके प्रत्युत्तर में सम्बन्धित ज्ञान प्रस्तुत करो। जो प्रश्न का उत्तर न आये उसे आत्मविश्वास के साथ बोलें अभी इसका उत्तर मुझे याद नहीं आ रहा। गोल गोल बोलकर इंटरव्यूअर को घुमाएं नहीं। क्योंकि जिस सीट पर आप बैठकर उत्तर दे रहें है, वह भी अनुभव कर चुका है।

10- कुछ युगऋषि के साहित्य पढो आत्मा की शक्ति बढ़ाने के लिए -
📖 सफ़लता आत्मविश्वासी को मिलती है
📖 प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
📖 व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
📖 निराशा को पास न फटकने दो
📖 हारिये न हिम्मत

11- नित्य 3 माला गायत्री जप और उगते सूर्य का ध्यान करो। यह तुम्हे प्राण ऊर्जा से भर देगा।

12- आजकल के बच्चे हो तो  फ़िल्म जरूर देखते होंगे। अतः तीन फ़िल्म जरूर देखो, यह यूट्यूब पर फ्री उपलब्ध हैं :- 1 - अक्षय कुमार एवं परेश रावल फ़िल्म - *ओह माय गॉड* (इस फ़िल्म में यह समझो कि भगवान किसी न किसी रूप में मदद करता है, फिंर भी अपनी लड़ाई स्वयं लड़नी पड़ती है) , 2- राजकुमार हिरानी फ़िल्म - *थ्री इडियट* (इस फ़िल्म में यह सीखो कि रटने से बेहतर स्वयं को कॉन्सेप्ट समझने में लगाओ, एक्सलेंस पर ध्यान दो, सैलरी स्वयं पीछे आएगी) , 3 - साउथ इंडियन हिंदी डब फ़िल्म - *रिटर्न ऑफ़ अभिमन्यु*(इन्फॉर्मेशन इस पॉवर, वर्तमान दुनियाँ का खेल इन्फॉर्मेशन की एनालिसिस पर निर्भर है, थोड़ी चूक हुई लूट लिए जाओगे। यहां वही सफल है जो इन्फॉर्मेशन को एनालिसिस करके उपयोग कर सके ) जरूर देखो।

13- तुम शरीर नहीं हो और न ही यह यादाश्त और अनुभव युक्त मन हो। तुम एक आत्मा हो, जो महान ज्ञान के भंडार को जब चाहे तब प्राप्त कर सकती है।

14- तुम पढ़लिखकर इस संसार और अपनी मातृभूमि का उद्धार करने के लिए यह इंटरव्यू देकर जॉब करने जा रहे हो।

15- तुम नारकीय पेट-प्रजनन तक सीमित जीव नहीं हो। तुम एक श्रेष्ठ सशक्त आत्मा हो, स्वयं को पहचानो।

16- तुम स्वयं को सम्बन्धित विषय में योग्य बनाने में उद्यम करो, लक्ष्मी स्वतः तुम्हारे पीछे आयेंगी, उद्यमी पुरुषः बपुतः लक्ष्मी।

17- धन किरण है, जिसे योग्यता-पात्रता के सूर्य की रौशनी में पाया जा सकता है। अतः योग्यता-पात्रता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करो, सैलरी पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत नहीं, सैलरी योग्यता-पात्रता का बाई प्रोडक्ट है, स्वयं मिलेगा।

18- हार कर जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं, वही जीवन मे सफल है जिसने जीतने के बाद कैसे स्वयं को सम्हालना है यह सीख लिया, और कभी हार हुई तो कैसे स्वयं को सम्हालना है यह सीख लिया। दोनों ही परिस्थिति को हैंडल करने वाला बाज़ीगर ही इतिहास रचता है। बाकी तो उसके लिखे इतिहास को पढ़ते हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *ध्यान करते वक्त जो धारणा चुनते हैं। उस पर एकाग्र होने की कोशिश करते हैं, लेकिन मन भटक जाता है। क्या करें?*

प्रश्न - *ध्यान करते वक्त जो धारणा चुनते हैं। उस पर एकाग्र होने की कोशिश करते हैं, लेकिन मन भटक जाता है। क्या करें?*

उत्तर - ध्यान धारणा का शुरुआती आधार कल्पना है। कल्पना करने के लिए कुछ विचारों की शुरुआत में सूची चाहिए। मन के घोड़े को विचारों के सङ्कल्प की लग़ाम बांधनी होगी।

जो भी धारणा चुनी है, उसके बारे में छोटी सी छोटी बात लिखिए, दिमाग़ में वह पैटर्न बिठाइए फिंर ध्यान में बैठिए। जिस धारणा को करना है उससे सम्बन्धित चित्र एकटक अपलक निहारिये। फिंर उस चित्र के अनुसार कोई कहानी जैसी बातें लिख डालिये। फिंर ध्यान करने बैठिए मन जरूर लगेगा।

जैसे साइकिल शुरू शुरू चलाना सीखने वक्त बड़ा ध्यान देना पड़ता है, कहीं गिर न जाएं, अभ्यास होने पर साइकिल एक खिलौना बन जाती है। शुरू शुरू में रोटी बनाते वक्त बड़ा ध्यान देना पड़ता है कहीं हाथ जल न जाये। लेकिन बाद में रोटी बनाना एक खेल हो जाता है।इसी तरह शुरू शुरू में ज्यादा मेहनत ध्यान जमाने के लिए करनी पड़ती है, कहीं ध्यान टूट न जाये। अभ्यास होने पर ध्यान भी सहजता से मनचाही अवधि के लिए किया जा सकता है।

दो उदाहरण ध्यान के बता रही हूँ:-

1- *उगते सूर्य का ध्यान* :- सर्वप्रथम कम से कम 5 दिन उगता हुआ सूर्य अपलक निहारिये। या उगते हुए सूर्य की फोटो को अपलक निहारिये। उस समय बादल के सिंदूरी रँग और वह सूर्य जिस स्थान से उदित हो रहा है उसकी सुंदरता को देखिए। चिड़ियों की चहचहाना और पुष्पों का खिलना अनुभव कीजिये। यदि नदी के ऊपर सूर्योदय देखा है तो नदी की कल कल ध्वनि अनुभव कीजिये। जब 5 दिन में वह सूर्य की इमेज आपका दिमाग़ रजिस्टर कर लेगा, और उससे सम्बन्धित कहानी गढ़ लेगा तो ध्यान लगेगा।
सम्बन्धित कहानी अगर आप स्वयं न गढ़ पाएं तो यह वाली कई बार पढ़ लें और कल्पना में स्वयं को इस कहानी से असोसिएट कर लें।

कल्पना कीजिये कि सुबह सुबह आप नहाधोकर अपनी माला लेकर एक सुंदर रमणीय स्थान पर आसन बिछा के बैठे हैं। सुबह सूर्योदय का समय है। सारे जीव-पशु-पक्षी और वृक्ष-वनस्पति सूर्योदय का इंतजार कर रहे हैं। सूर्योदय धीरे धीरे हुआ और सूर्य की प्रथम किरणे आपके आज्ञा चक्र में प्रवेश कर गयी। आपको मानो दिव्य शक्ति हनुमानजी की तरह उड़ने की मिल गयी। सूर्य की किरणें आपके समस्त शरीर को नहला रही है। पहले आप कच्चे नारियल की तरह शरीर से चिपके थे, अब सूखे नारियल की तरह शरीर से अलग हो गए हैं। स्थूल शरीर से आप निकल गए और बाहर खड़े होकर आप अपना शरीर देख रहे हो। अब आप सूर्य की तरफ यात्रा अपने सूक्ष्म शरीर से कर रहे हो। जितना वक्त रॉकेट को सूर्य तक पहुंचने में लगेगा उतनी स्पीड स्वयं की अनुभव कीजिये। पहले धरती से ऊपर उठिए, फ़िर अंतरिक्ष में पहुंचिये, फिंर ग्रह नक्षत्रों को पार करते हुए सूर्य तक पहुंचिये। सूक्ष्म शरीर से प्रकाशित सूर्य में प्रवेश कर जाइये। कल्पना कीजिये सूर्यलोक में सूर्य देव का आप पैर छू रहे और वो आपको ढेर सारा आशीर्वाद दे रहे हैं। सूर्य ने ज्यों ही आपका सूक्ष्म शरीर स्पर्श किया वो भी सूर्य जैसा हो गया। अब आप और सूर्य में कोई अंतर नहीं है। यदि सूर्य यज्ञ है तो आप उस यज्ञ से प्रज्ज्वलित ज्योति बन गए हो। अब पुनः जैसे गए थे वैसे सूर्य से आशीर्वाद लेकर लौटो। अंतरिक्ष से ग्रह नक्षत्र गैलेक्सी, फिंर पृथ्वी ढूंढो, फ़िर पृथ्वी में अपना द्वीप ढूंढो, फिंर देश, राज्य और फिर स्थान में आकर अपने शरीर मे प्रवेश कर जाओ। जैसे हम अलमारी से कपड़े निकालकर पहनते हैं। वैसे ही तुम अपने शरीर को पहन लो। कल्पना करो क्योंकि तुम भी अब सूर्य की ज्योति हो तो तुम्हारा प्रकाश शरीर से बाहर आ रहा है। हज़ारो वाट का बल्ब तुम्हारे भीतर प्रकाशित हो रहा है। कुछ देर इन्हीं कल्पना में खोए रहो। फ़िर हथेली दोनों आंखों के ऊपर रखो।  हथेली को देखो। फिंर गायत्री मंत्र बोलते हुए दोनों हाथ रगड़ो और चेहरे पर लगा लो।

अब यह कल्पना नित्य अभ्यास से 6 महीने में इतनी प्रगाढ़ हो जाएगी, मन में यह चित्र इतने क्लियर बन जाएंगे कि 6 महीने बाद जब आप ध्यान करोगे तो यह सब दिखेगा और अनुभव होगा। ऐसा लगेगा मानो अभी अभी अंतरिक्ष जाकर सूर्य से ऊर्जा लेकर लौटे हो। काफ़ी उर्जावान स्वयं को महसूस करोगे।

*उदाहरण - 2* शान्तिकुंज का ध्यान

यूट्यूब में शान्तिकुंज दर्शन ओपन करो, कम से कम 5 दिन लगातार क्रमबद्ध तरीक़े से उसे देखो, उन चित्रों को दिमाग़ में स्टोर कर लो और उसमें अपनी कल्पना जोड़कर उसके लिए स्वयं की कहानी लिखो। जैसे अमुक वस्त्र पहन के अमुक समय तुम टाइम मशीन से शान्तिकुंज सुबह सुबह पहुंचे, जिस वक़्त गुरूदेव माता जी शशरीर थे। अब गुरूदेव माता जी से मिले दर्शन किये चरण छुए और ढेर सारी बातें उनसे सुनी, उनके साथ हिमालय यात्रा की। सुनसान के सहचर पढ़ सकते हो, उन दृश्यों में स्वयं को गुरुदेव के साथ अनुभव करो। नित्य 6
महीने के अभ्यास के बाद ऐसा लगेगा मानो अभी अभी गुरूदेव एवं माताजी से मिलकर आये हो। वो समस्त लाभ मिलेंगे या यूं कहो स्थूल दर्शन जिन्होंने किया उनसे भी ज्यादा लाभ तुम्हें मिलेगा। आनन्द आ जायेगा।

😇 हमारी टूर एंड ट्रैवेल एजेंसी सूक्ष्म शरीर में जहां चाहे वहाँ यात्रा करवा सकती है। धरती, हिमालय, अंतरिक्ष, सूर्यलोक एवं बैकुंठ तक जा सकती है। साथ ही टाइम ट्रैवेल की सुविधा उपलब्ध है, समय यंत्र से पीछे जाकर गुरूदेव माताजी के दर्शन संभव करवाती है।

इस यात्रा में यात्री गणों से अनुरोध है, अहंकार, ईर्ष्या, लोभ सामान लेकर न आएं और शरीर रूपी वस्त्र लेकर न आएं। श्रद्धा, भक्ति, समर्पण समान के साथ सूक्ष्म कलेवर शरीर रूपी वस्त्र ही पहनकर आएं।

ब्रह्माण्ड के ट्रैवेल एजेंट की फ़ीस - ढेर सारा हमें आशीर्वाद देना न भूलें। आशीर्वाद आप हमें व्हाट्सएप, ईमेल और फ़ेसबुक कमेंट में भी दे सकते हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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Monday 20 May 2019

यज्ञ विषयक शंका समाधान (प्रश्न - 116), एयरप्योरिफायर

🔥 *यज्ञ विषयक शंका समाधान (प्रश्न - 116)* 🔥

प्रश्न - 116 - *वायु प्रदूषण पूरे विश्व में चरम पर है, ऐसे में हम पारम्परिक प्रदूषण नियंत्रण विधि और एयर प्योरीफायर दैनिक यज्ञ अपनाएं या बाजारों में मिलने वाले एयरप्योरिफायर? कौन सा बेहतर है?*

 उत्तर -
🔥 *पारम्परिक एयरप्योरिफायर यज्ञ एवं पौधे*

यज्ञ एक विज्ञान है, यह वायु प्रदूषण दूर करने के साथ साथ विचारों का प्रदूषण भी दूर करने में सक्षम हैं। यह रोगों की रोकथाम करता है और वातावरण में विद्यमान रोग उत्तपन्न करने वाले रोगाणुओं को नष्ट करता है। यज्ञ करने से अस्थमा अटैक से बच सकते हैं और फेफड़े स्वस्थ रख सकते है।

अनगढ़ तरीक़े औषधियों के मिश्रण से दवा नहीं बनती, अनगढ़ तरीक़े से पकाने में भोजन में स्वाद नहीं आता। इसीतरह यज्ञ के पूर्ण लाभ के लिए सही औषधियों के मिश्रण से बनी हवन सामग्री, शुद्ध घी, सही समिधा एवं सही मंन्त्र का उपयोग बताये गए नियमानुसार करना चाहिए। जो सरल एवं सुगम है।

यज्ञ के साथ साथ घर के अंदर वो पौधे लगाए जो हवा को साफ करके ऑक्सीजन देते है। घर के अंदर सुंदरता के साथ स्वास्थ्य देते हैं।

घर के आंगन में अधिक से अधिक तुलसी लगाएं। रोज घर में शुद्ध घी का दीपक जलाएं और गायत्री मंत्र जपें।

स्वस्थ शरीर एवं स्वच्छ मन का पारंपरिक तरीके के कोई साइड इफेक्ट नहीं है। आधुनिक मशीनों से यज्ञ के बाद के इम्पेक्ट को जांचा परखा जा सकता है। स्वयं भी एयरवेदा या अन्य किसी ब्रांड का PM मीटर घर लाकर यज्ञ के पूर्व और बाद की एयर क्वालिटी को चेक कर सकते हैं। PM 2.5 एवं PM 2.10 चेक कर सकते हैं। अफ़सोस यह कि आधुनिक विज्ञान अभी भी PM 2.5 से भी सूक्ष्म PM को चेक नहीं कर पाता, लेकिन यज्ञ उसे भी दूर करने में सक्षम है।

डॉक्टर ममता सक्सेना(पी एच डी इन यग्योपैथी, देवसंस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार, उत्तराखंड) ने दिल्ली पॉल्यूशन बोर्ड के साथ मिलकर इस पर रिसर्च किया है, उनकी रिसर्च यग्योपैथी वेबसाइट और dsvv की वेबसाइट पर देख सकते हैं।

👉🏼 *आधुनिक एयरप्योरिफायर जिनके फ़ायदे कम नुकसान अधिक हैं।*

*एयर प्यूरीफायर के फायदे के साथ नुकसान के बारे में भी जानिए*

देश की हवा में प्रदूषण बढने के साथ ही एयर प्यूरीफायर चर्चा में आ गए हैं. उनकी बिक्री बढ गई है. घरों से लेकर दफ्तर तक के लिए कॉम्पैक्ट से बड़े एयर प्यूरीफायर खरीद रहे हैं. यहां तक कि पूरी कॉलोनी की हवा साफ़ करने के लिए विशाल एयर प्यूरीफायर की बात भी होने लगी है. इनका बाजार तो बढ़ रहा है लेकिन ये कितने सुरक्षित हैं, इसपर बहुत कम बात हो रही है।

हवा को साफ़ करने की प्रक्रिया में एयर प्यूरीफायर जिस तरह उत्सर्जन करते हैं या जिस तरह हवा साफ़ करते हैं, वो तरीका कितना सुरक्षित है, उसकी ज्यादा पड़ताल नहीं हुई है. कहीं ऐसा तो नहीं कि आप जो एयर प्यूरीफायर खरीद रहे हैं, उसके नुकसान अधिक हों।

👉🏼 *ओज़ोन एयर प्यूरीफायर*

बाजार में बिकने वाले बहुत सारे एयर प्यूरीफायर ओजोन जेनरेटर नाम से होते हैं. ये ओजोन जेनरेटर हवा साफ़ करने के दौरान ओजोन का उत्सर्जन करते हैं. रिसर्चर कहते हैं कि ओजोन बैक्टीरिया और वायरस को मारता है. खराब गंध भी हटा देता है लेकिन तथ्य ये है कि ओजोन की छोटी मात्रा बैक्टीरिया या वायरस को नहीं मार सकती. बड़ी मात्रा में वो ऐसा जरूर कर सकती है.

ओजोन का ऐसा स्तर हमारे शरीर के लिए बहुत खतरनाक होगा. यूएस एफडीए ने घोषित किया हुआ है कि चिकित्सा उपचार में ओजोन का उपयोग नहीं किया जा सकता. इसका व्यापार करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी. लेकिन भारत में यह धड़ल्ले से बिक रहा है. ओजोन फेफड़े को नुकसान तो पहुंचता ही है, साथ ही चिड़चिड़ाहट, अस्थमा, छाती में भारीपन और अन्य हानिकारक स्वास्थ्य प्रभाव पैदा कर सकता है।

👉🏼 *वायु आयोनाइजर एयर प्यूरीफायर के साइड इफेक्ट्स*

वायु आयोनाइजर एयर प्यूरीफायर चार्ज्ड आयन हवा में छोड़ता है, जिससे बैक्टीरिया और वायरस दीवार से चिपक जाते हैं. लेकिन ये कितना असरदार है, इसपर लगातार सवाल खड़े होते रहे हैं. साथ ही इसमें चार्ज आयनों को उत्पन्न करने की प्रक्रिया में ओजोन भी उत्सर्जित होता है. लिहाजा एयर आयोनाइज़र से सतर्क रहें. इसे लेने पर तभी विचार करें यदि एयर प्यूरीफायर उत्पाद विवरण 'जीरो ओजोन' का उल्लेख करता है।

👉🏼 *यूवी एयर प्यूरीफायर के साइड इफेक्ट्स*

यूवी एयर प्युरीफायर भी ओजोन छोड़ते हैं लेकिन ज़रा भी क्षतिग्रस्त यूवी एयर प्यूरीफायर हवा में मरकरी प्रदूषण कर सकते हैं जो बेहद हानिकारक होता है. इसलिए यूवी एयर प्यूरीफायर लेने से बचना बेहतर है. आमतौर पर यूवी फिल्टर और एयर आयोनाइज़र को एचपीए फ़िल्टर के रूप में जोड़ा जाता है।

एयर प्यूरीफायर की लगातार सर्विसिंग बहुत ज़रूरी है. आपको फ़िल्टर नियमित अंतराल पर बदलने की ज़रूरत होती है. अगर आप ऐसा नहीं करते तो एयर प्यूरीफायर होते हुए भी जहरीली हवा में सांस लेने लगते हैं. HEPA फ़िल्टर की सफाई करते समय बहुत सावधान रहना चाहिए. अगर कंटेनर को सील नहीं किया गया तो बैक्टीरिया और वायरस फिर हवा में प्रवेश कर सकते हैं.

👉🏼 *एयर प्यूरीफायर का बाजार*

भारत में एयर प्यूरीफायर का बाजार 2016 में लगभग 100 करोड़ रुपये (46 मिलियन डॉलर) से अधिक का था. 2022 तक इसके 2000 करोड़ रुपए (270 मिलियन डॉलर) तक होने की उम्मीद की जा रही है. . "इसका उद्योग 45% सीएजीआर (संयुक्त वार्षिक वृद्धि दर) बढ़ रहा है, जो अगले चार वर्षों में 55-60% सीएजीआर तक बढ़ जाएगा. भारत में एयर प्यूरीफायर 15,000 रुपये से लेकर 95,000 रुपए तक मिल जाते हैं.

डॉक्टर और चिकित्सा विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि ये मशीनें लोगों को स्वच्छ हवा प्रदान कर रही हैं यह निश्चित नहीं है,  यह भी निश्चित नहीं है कि एयर प्यूरीफायर वास्तव में लोगों को अस्थमा अटैक जैसी घटनाओं से बचा सकते हैं या नहीं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

👧🏻👶🏻 *बाल सँस्कार शाला - कहानी - बच्चों का पढ़ने में मन नहीं लगता*👶🏻👧🏻

👧🏻👶🏻 *बाल सँस्कार शाला - कहानी - बच्चों का पढ़ने में मन नहीं लगता*👶🏻👧🏻

एक राजा युद्ध में हार गया, और मृत्यु हो गयी। रानी पुत्र को लेकर और साथियों को लेकर जंगल में चली गयी। बड़ी कठिनाई से जीवननिर्वहन हुआ, कई कई रात भूखे सोने की नौबत आ गयी। बच्चे बड़े हुए तो गुरु की तलाश की, पढ़ाया लिखाया और अस्त्र शस्त्र सिखाया। बड़े होकर उन्होंने पुनः राज्य पाया। घर संसार बसाया।

सबने बहुत दिनों तक दुःख भोगे थे अतः आनन्द और उल्लास की कमी न हो इसलिए स्वादिष्ट भोजन, खेल-कूद, नृत्य-नाटक, नट-नटी को बुलाकर तरह तरह के मनोरंजन की व्यवस्था की गई।

अब राजा सहित सभी मंत्री एवं सैनिकों के बच्चे हुए। जब वो सब तो चांदी की चम्मच मुंह मे लेकर पैदा हुए। कोई परेशानी न थी।

👶🏻👧🏻लेकिन एक नई समस्या पैदा हो गई, कि कोई बच्चा पढ़ता ही नहीं, सब मस्ती में व्यस्त रहते। गुरु पर गुरु बदले गए, गुरुकुल बदले गए कोई लाभ न हुआ।

🧚‍♀रानी माँ की सलाह से जंगल के उन्हीं गुरु जी को बुलाया गया जिन्होंने बुरे वक़्त में मदद की थी और वर्तमान राजा और उनके सैन्यदल और मंत्रियों को पढ़ाया था। उन्हें बताया कि बच्चे पढ़ते नहीं क्या करें?

👉🏼गुरु जी ने कहा, बच्चो से पहले माता-पिता की एक सप्ताह की क्लास होगी, उसके बाद बच्चो को पढाऊँगा। बेमन के सब माता-पिता क्लास में पढ़ने बैठे।

👉🏼 सबको एक कील दी गयी और बोला पहला टास्क इसे दीवार में प्रेम से घुसाओ। सब एक स्वर में बोले बिना हथौड़ी की चोट के अंदर नहीं प्रवेश करेगी। ठीक है हथौड़ा दिया गया लेकिन कहा गया एक हाथ माता का कील पकड़े और एक हाथ पिता का हथौड़ा चलाये। काम हो गया।

👉🏼फिंर दूसरे टास्क में एक ढलान सी दीवार पर ऊपर से आलू गिराने को बोला गया। बड़े आराम से लुढ़क के नीचे गिर गया। अब वही आलू को नीचे से ऊपर लकड़ी की सहायता से चढ़ाने को बोला गया। बड़ी मेहनत लगी ऊपर चढ़ाने में।

👉🏼तीसरे टास्क में माता-पिता को 15 मिनट खूब गरिष्ठ पेट भर के खाने के बाद ध्यान लगाने को बोला गया। बड़ी कठिनाई हुई, दूसरी बार हल्के आहार के बाद ध्यान लगाने को बोला गया। बड़ी आसानी हुई।

👉🏼चौथे टास्क में नृत्य नायक आयोजन देखने के बाद कुछ श्लोक याद करने को बोला गया, बड़ी कठिनाई हुई। दूसरी बार सुबह उठते ही स्नान-पूजन के बाद कुछ श्लोक याद करने को बोला गया। आसानी से याद हो गया।

👉🏼पाँचवे टास्क में खूब आलस्य पूर्वक सुलाया गया, फ़िर दूसरे दिन कुछ श्लोक याद करने को कहा गया, बड़ी कठिनाई हुई। दूसरे दिन सुबह उठाकर योग-व्यायाम करवाया गया फिंर श्लोक याद करने को दिये गए। बड़ी आसानी से याद हो गए।

*पाँचों टास्क के बाद उन सबसे पूँछा गया कि क्या सीख मिली:*-

1- बिना प्यार के सहारे के और साथ ही बिना प्रहार के  दीवार में कील नहीं घुस सकती। इसलिए बच्चों को पढ़ाने के लिए एक आंख से प्यार और दूसरी से फटकार का सहारा लेना पड़ेगा।

2- आलू को ऊपर चढ़ाने के लिए मेहनत लगी, और उसे नीचे गिराने में कोई मेहनत नहीं लगी। बच्चे के पास होने के लिए मेहनत करनी पड़ेगी। फेल होने के लिए मेहनत की आवश्यकता नहीं है।

3- गरिष्ठ आहार के बाद आलस्य उपजता है, हल्का आहार आलस्य उतपन्न नहीं करता। बच्चों के लिए स्वास्थ्यकर हल्के आहार की व्यवस्था करें।

4- पढ़ाई के पूर्व मनोरंजन करने से ध्यान भटकता है। अतः पढ़ने से पूर्व पूजन एवं ध्यान करने से पढ़ाई में मन लगता है।

5- सुबह जल्दी उठने और योग-व्यायाम से मन मे उत्साह जगता है और पढ़ने में मन लगता है।

👉🏼 गुरुजी ने कहा, बिल्कुल ठीक समझा। बेटा तुम लोगों ने कष्ट सहे और पुनः राजगद्दी पर आसीन हुए। तुम लोगों की मानसिकता यह है कि जो कठिनाई हमने सही वो बच्चो को नहीं सहने देंगे। अत्यधिक मनोरंजन के साधनों से बच्चो को भर दिया।

👉🏼अब परिणामस्वरूप तुम्हारे बच्चे पढ़ नहीं रहे, भोग-विलास-मनोरंजन में डूबे हैं। ये स्वयं को नहीं बन पाएंगे, तुम सब के बूढ़े होते ही पुनः राज्य छीन जाएगा, क्योंकि तुम अमर नहीं हो, पूरी उम्र इनके साथ नहीं रह सकते और यह युवावस्था में दुःख पाएंगे। तुम्हारा अत्यधिक लाड़ प्यार इन्हें बर्बाद कर रहा है। इनका यौवन और वृद्धावस्था बर्बाद हो जाएगी, यह जीवन जी ही नहीं पाएंगे।

👉🏼अतः मनोरंजन और भोग-विलास भोजन में नमक जितना जरूरी है, उतना ही उपलब्ध करवाओ। इन्हें थोड़ी कठिनाई दो, थोड़ा डांट-फटकार दो, जिससे यह सचेत हो जाएं। तुम सब भी भोग विलास में मत डूबो और आत्म उद्धार में लगो। जब तक राज्य नहीं मिला तुमने रोज गायत्री साधना करके स्वयं को सक्षम बनाया। राज्य मिलते ही भोग-विलास-आनन्द में डूब गए। बच्चे तो कठिनाई के वक्त तुम्हे देखे नहीं और वो तो तुम्हारे वर्तमान का अनुसरण कर रहे हैं। बच्चो को बनाना है तो भोग-विलास-मनोरंजन कम करना पड़ेगा।

👉🏼तुम माली की तरह बच्चे पालो, नित्य प्यार का पानी दो लेकिन इतना भी मत दो कि पेड़ ही गल कर नष्ट हो जाये। थोड़ा बाहर का आंधी तूफान भी झेलने दो ताकि यह मजबूत बने।

*सब माता-पिता को भूल समझ आ गयी, अनावश्यक भोग-विलास-मनोरंजन बन्द कर दिया। कभी प्यार से कभी फटकार का सहारा लिया। रोज बच्चो के साथ स्वयं भी योग-प्राणायाम-ध्यान-गायत्री जप और स्वाध्याय किया और उन्हें भी प्रेरित कर अनुशासन में बांध दिया। थोड़ी बहुत कठिनाई का उन्हें सामना करवाया और बच्चे पढ़ने लगे।*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Sunday 19 May 2019

बाल सँस्कार शाला - कहानी - सुख का भोजन एवं चैन की नींद का राज़

*बाल सँस्कार शाला - कहानी - सुख का भोजन एवं चैन की नींद का राज़*

एक युवा राजकुमार जो सुख समृद्धि वैभव की खान में रह रहा था।  उसे महल के स्वादिष्ट भोजन भी अरुचि कर लगते और नींद भी ठीक से न आती।

राजा ने बहुत इलाज़ करवाया पर कोई लाभ न हुआ। उसने घोषणा कर दी कि जो राजकुमार को सुख  का स्वादिष्ट भोजन और चैन की नींद दिलवाएगा हज़ार स्वर्ण मुद्राएं पाएगा।

बहुत लोग आए और हारकर चले गए, अंत में एक किसान आया उसने राजा से एकांत में भेंट की और अपनी योजना समझाई।

राजकुमार के समक्ष किसान एक अंगरक्षक के रूप में नियुक्त हो गया, दो दिन बाद राजकुमार एक जंगल में शिकार के लिये गए। गहन जंगल मे मार्ग भटक गए और उनका सैन्यदल पीछे छूट गया। भूख प्यास से त्रस्त हो गए।

थोड़ी देर में उनका घोड़ा न जाने कैसे बेहोश हो गया, समान सब डाकुओं ने लूट लिया। अब फटेहाल पैदल चलने के अलावा कोई रास्ता न था। केवल वह किसान रूपी अंगरक्षक साथ बचा, किसी तरह दोनों जंगल से बाहर आये और 6 किलोमीटर पैदल चलकर दूर गाँव मे एक घर पर पहुंचे और दरवाजा खटखटाया। दरवाजा खुला तो एक युवती निकली, उसने उन्हें मटके का शीतल जल दिया, 12 घण्टे के प्यासे राजकुमार को वो जल किसी स्वर्ग के अमृत सा मीठा लगा। भोजन में सुखी रोटी और गुड़ दिया। राजकुमार को वो भोजन किसी फाइव स्टार के होटल के भोजन से भी स्वादिष्ट लगा। शरीर थक कर टूट चुका था, किसान के घर चारपाई तो थी नहीं अतः जमीन पर चटाई पर सोना पड़ा। लेकिन वह बिस्तर किसी महल के बिस्तर से कम न था। राजकुमार चैन की नींद सो गया।

उठा, तो युवती ने कहा शाम के भोजन हेतु जंगल से लकड़ियां ले आइये जिससे भोजन बन सके, कुएं से जल भर लाइये, तब तक मैं आटा पीस लेती हूँ। दोनों ने महल का मार्ग पूँछा तो उसने बताया महल तो जंगल के उस पार है अतः बिना घोड़े के जाना खतरे से खाली नहीं है।

इस गाँव में एक व्यक्ति घोड़ा बेचता है, उससे जाकर खरीद लो। दोनों वहां गए उसने घोड़े का मूल्य मांगा तो उनके कुछ था नहीं। राजकुमार ने कहा वो राजकुमार है, लेक़िन राजकुमार के फटे कपड़े पर उसने विश्वास नहीं किया। अंततः राजकुमार और अंगरक्षक उसके यहां मज़दूरी करने लगे। राजकुमार रोज़ थककर घर आता, कड़ी भूख लगने पर वही सुखी रोटी उसे आनन्द देती और थकान में टूटते शरीर को वही चटाई सुख चैन की नींद देती। कुछ महीनों में अपनी कमाई से घोड़ा ख़रीदा और महल वापस आये।

राजा ने राजकुमार का स्वागत किया, महल का भोजन महीनों बाद मिलने के कारण राजकुमार को अति स्वादिष्ट लगा, महल के मुलायम बिस्तर पर पड़ते ही सो गया। राजा ने किसान को पुरस्कृत किया और राजकुमार ने कड़ी मेहनत की कमाई से मिला  भोजन स्वादिष्ट होता है और कड़ी मेहनत के बाद थकान को उतारने के लिए चैन की नींद का राज जान लिया।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न 114 से 115, यज्ञ प्रश्नोत्तर , स्वाहा

[5/20, 8:26 AM] .: 🔥 *यज्ञ सम्बन्धी प्रश्ननोत्तर(प्रश्न 114)* 🔥

प्रश्न - 114 - *यज्ञ के अंत में "स्वाहा" क्यों बोलते हैं?*

उत्तर - आइये जानते हैं यज्ञ में *स्वाहा* का महत्त्व:-

यज्ञ का अर्थ मात्र अग्नि में आहुतियां होमने मात्र का नहीं हैं, शास्त्रों में जीवन अग्नि की दो शक्तियाँ मानी गई है - एक 'स्वाहा' दूसरी 'स्वधा'। *'स्वाहा' का अर्थ है- आत्म- त्याग और अपने से लड़ने की क्षमता।* 'स्वधा' का अर्थ है- जीवन व्यवस्था में 'आत्म- ज्ञान' को धारण करने का साहस।

लौकिक अग्नि में ज्वलन और प्रकाश यह दो गुण पाये जाते हैं। इसी तरह जीवन अग्नि में उत्कर्ष की उपयोगिता सर्वविदित है। आत्मिक जीवन को प्रखर बनाने के लिए उस जीवन अग्नि की आवश्यकता है। अतः 'स्वाहा' और 'स्वधा' के नाम से, प्रगति के लिए संघर्ष और आत्मनिर्माण के नाम से पुकारा जाता है।

👉🏼 *दो पौराणिक कथाएं* :-

1- पौराणिक कथाओं के अनुसार, 'स्वाहा' दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं, जिनका विवाह अग्निदेव के साथ किया गया था. अग्निदेव को हविष्यवाहक भी कहा जाता है. ये भी एक रोचक तथ्य है कि अग्निदेव अपनी पत्नी स्वाहा के माध्यम से ही हवन ग्रहण करते हैं तथा उनके माध्यम यही हवन आह्वान किए गए देवता को प्राप्त होता है.

2- इसके अलावा भी एक अन्य रोचक कहानी भी स्वाहा की उत्पत्ति से जुड़ी हुई है. इसके अनुसार, स्वाहा प्रकृति की ही एक कला थी, जिसका विवाह अग्नि के साथ देवताओं के आग्रह पर सम्पन्न हुआ था. भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं स्वाहा को ये वरदान दिया था कि केवल उसी के माध्यम से देवता हवन सामग्री को ग्रहण कर पाएंगे।

👉🏼 *विज्ञान* - जब मंन्त्र बोलते हैं तब थोड़ा स्वयं के मुँह पर ध्यान दीजिए, ऐसा लगता है मानो मुँह के अंदर की ओर आप मंन्त्र शक्ति ध्वनितरँग तैयार कर रहे हों, और फिर *स्वाहा* बोलते वक्त मुँह और नाभि के पास पेट पर ध्यान दीजिए ऐसा लगता है मानो उस तरंगित ध्वनि शक्ति को आपने अग्नि की ओर मुँह खोलकर पेट से खींचते हुए फोर्स के साथ बाहर की ओर प्रेषित किया। *स्व* में मुँह खुलता है और *हा* बोलते वक्त पेट अंदर की ओर जाता है, मंन्त्र वायु तरंग नाभि से उठकर छाती फ़िर कंठ फिंर मुंह से तेज़ी बाहर की ओर निकलती है । वस्तुतः कई प्रकार की *अल्ट्रासाउंड तरंगों* का निर्माण मुँह की मानव मशीन में करके अग्नि की ओर आहुति डालते समय प्रेषित करने पर वह वेगवान तरंगे *औषधियों* को सूक्ष्म से सूक्ष्म तोड़ देती हैं। औषधि के फोटॉन उत्सर्जित करके उसके ऊर्जा परमाणुओ को सम्बन्धित व्यक्ति, स्थान और वातावरण में विकिरण के माध्यम से प्रवेश करवा देती हैं।

मनुष्य की आँखों से बढ़िया और हज़ारो रंगों को देखने वाला कोई कैमरा धरती पर नहीं बना, फ़ल-सब्जी ख़ाकर रक्त बनाने की आंतो जैसी कोई मशीन धरती पर नहीं। इसी तरह मनुष्य के मुँह से मंन्त्र जपकर अल्ट्रासाउंड वेव से औषधियों के कारण जगाने वाली( यज्ञ के दौरान परमाणु लेवल पर तोड़कर सूक्ष्मतम करने वाली) कोई मशीन दुनियाँ में नहीं है। स्वाहा के समानांतर कोई शब्द नहीं जो मुँह के अग्निचक्र की ऊर्जा को यज्ञ की अग्निचक्र में प्रेषित कर सके और ठीक उसी समय पूरक कुम्भक रेचक प्राणायाम एक साथ होता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
[5/20, 8:43 AM] .: 🔥 *यज्ञ सम्बन्धी प्रश्नोत्तर(प्रश्न 115)* 🔥

प्रश्न - 115 - *यज्ञ के दौरान "इदं न मम" क्यों बोलते हैं?*

उत्तर - 'इदं न मम' अर्थात यह मेरा नही है, कुछ भी मेरा नहीं है यही भारतीय दर्शन है। सब परमात्मा आपका ही है, धन संपदा भी आपकी और हम भी आपके ही हैं। तेरा तुझको अर्पण।

एक कहानी के माध्यम से समझिए इसे:-

एक स्त्री जो कि होममेकर है अपने पति के जन्मदिन पर उसे एक पर्स गिफ़्ट करती है, और प्यार से कहती है तुम जो पैसे मुझे देते हो उसी की बचत से यह गिफ़्ट तुम्हारे लिए है। यहाँ *इदं न मम* का भाव है। क्योंकि पैसे पति द्वारा कमाए और दिए हुये हैं, फिंर भी पति अत्यंत ख़ुश होगा क्योंकि निरहंकारिता के साथ पत्नी ने बचत कर उसे खुश करने के लिए गिफ़्ट दिया। वो उसे रिटर्न गिफ्ट में सबकुछ देगा।

यह सृष्टि परमात्मा की है, कण कण उसका दिया हुआ है। जिस बुद्धिकुशलता से आप कमाते है, बुद्धि भी उसी की दी हुई है। अध्यात्म में आत्मा को स्त्री और परमात्मा को पुरूष की संज्ञा दी गयी है। आत्मा कहती है *तेरा तुझको अर्पण* , *इदं न मम* यह मेरा नहीं हैं।

परमात्मा इस निरहंकारी और समर्पित प्रेम से ख़ुश हो जाता है, अनुदान वरदान से आत्मा को भर देता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *गायत्री मंत्र से मोक्ष मिलेगा?*

प्रश्न - *मैं पाप तो नष्ट करना चाहता हूँ लेकिन कोई पुण्य अर्जित करना नहीं चाहता। मैंने रामायण में पढ़ा है कि पाप करो तो उसे दण्ड रूप में भोगने के लिए पुनः जन्म लेना पड़ता है। यदि पुण्य करो तो भी उसे सुख-वैभव रूप में भोगने के लिए जन्म लेना पड़ता है। जन्म-मरण से मुक्त मोक्ष चाहता हूँ।*

*गायत्री मंत्र से पाप नष्ट होता है, और जप से पुण्य मिलता है। फिर इसके जप से मोक्ष किस प्रकार मिलेगा क्योंकि पुण्य भोगने के लिए पुनः जन्म नहीं लेना चाहता?*

उत्तर - *सूर्योपनिषद* उपनिषदों की 108 श्रृंखला में एक उपनिषद  है और *साधना खण्ड* का अंग है। इसमें गायत्री मंत्र का जो भावार्थ लिखा है उसे सुने:-

ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात

*भावार्थ* - वह प्रणव सच्चिदानंद परमात्मा जो भू: भुवः स्व: (धरती आकाश पाताल) सर्वत्र कण कण में व्यापत है। समस्त सृष्टि के उत्पादन कर्ता उन सविता देव के सर्वोत्तम तेज़ का हम ध्यान करते हैं। जो सविता देव हमारी बुद्धि को सद्बुध्दि में बदल दें, सन्मार्ग की ओर प्रेरित करे।

ऐसा ध्यान करने वाला ब्राह्मण ब्रह्म निष्ठ विदेहमुक्त हो जाता है। अर्थात जनक की तरह संसार में हो जाता है। संसार रूपी कीचड़ में कमल के फूल की तरह खिल जाता है।

गायत्री मंत्र वह माध्यम है जिससे भौतिक आध्यात्मिक जगत में जो इच्छा हो वो प्राप्त कर सकते हैं।

ध्यान रहे, मोक्ष भी एक इच्छा है। साथ ही यह मात्र स्वयं के कल्याण से जुड़ी है।

अतः इस श्लोक के माध्यम से समझें कि सबकुछ गायत्री उपासना से प्राप्य है।

ॐ स्तुता मया वरदा वेदमाता प्रचोदयन्तां पावमानी द्विजानाम्।
आयुः प्राणं प्रजां पशुं कीर्तिं द्रविणं ब्रह्मवर्चसम्। मह्यं दत्तवा व्रजत ब्रह्मलोकम्।।

भावार्थ - मैं वेदों की माता गायत्री की स्तुति करता हूँ, जो पापों से उद्धार करने वाली है, सद्बुद्धि देकर जीवन पवित्र करने वाली हैं। आप इसी जन्म में द्विजत्व प्रदान करने वाली हैं।

आपकी अराधना से (आयुः) स्वास्थ्य और दीर्घ आयु, (प्राणम्) प्राणविद्या, (प्रजाम्) उत्तम सन्तानों, (पशुम्) पशुपालन, (कीर्तिम्) पुण्य और यश, (द्रविणम्) धनोपार्जनविद्या, (ब्रह्मवर्चसम्) ब्रह्म के तेजस्वरूप, (ब्रह्मलोकम्) आलोकमय ब्रह्म लोक एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है।


माता गायत्री औघड़ दानी है, उनकी आराधना से सबकुछ प्राप्य है। आप जिस उद्देश्य से तप करेंगे वो तप की सिद्धि होने पर अवश्य मिलेगा, अब वह उद्देश्य चाहे मोक्ष प्राप्ति का हो या ऐश्वर्य प्राप्ति का या कुछ और तप की सिद्धि होने पर जरूर मिलेगा। अतः गायत्री साधना अवश्य करें।

गीता में वर्णित विधि द्वारा उम्र भर निष्काम कर्म सेवा भाव से साथ मे करते रहें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Saturday 18 May 2019

प्रश्न 113 -यज्ञ का ज्ञान

🔥 *यज्ञ का ज्ञान विज्ञान - प्रश्नोत्तर ( प्रश्न 113)* 🔥

प्रश्न -113- *औरा क्या है? क्या यज्ञ से औरा शुद्ध (Aura Cleansing) होता है?*

उत्तर - औरा का अर्थ होता है प्राणों का तेजोवलय। बल्ब की रौशनी की तरह स्थूल शरीर के बाहर भी प्राणों का तेजोवलय/औरा होता है। जो आधुनिक औरा उपकरणों के माध्यम से देखा या मापा जा सकता है। शरीर कारखाना मानो तो प्राण इस शरीर के मोटर को चलाने वाली विद्युत है।

शरीर में तापमान भी होता है और हलचल भी। इन्हीं के आधार पर जीवनचर्या चलती है। इन दोनों प्रयोजनों को साधने वाली शक्ति का नाम है (बायो इलैक्ट्रिसिटी) जैव विद्युत। इसका भण्डार जिसमें जितना अधिक है वह उतना ही ओजस्वी, तेजस्वी माना जाता है। सूक्ष्म शरीर का प्रतीक तेजोवलय/प्राण ऊर्जा/औरा होती है।

जीवित व्यक्ति के चारों ओर इसे छाया हुआ देख सकना अब सम्भव हो गया है। यह चेहरे के इर्द-गिर्द अधिक स्पष्ट और घनीभूत होता है। हाथों की उंगलियों और हथेली और पैरों के आसपास भी इसका घनत्त्व अधिक होता है।

देवी देवताओं के चित्रों में उनके चेहरों के इर्द-गिर्द यह तेजस् आभा मण्डल के रूप में देखा जा सकता है। महामानवों- ऋषियों के चेहरे पर एक विशेष ज्योति छाई रहती है। इसका प्रभाव क्षेत्र दूर-दूर तक होता है। वे उसके द्वारा दूसरों को प्रभावित कर लेते हैं, आकर्षित एवं सहमत भी। विरोधियों को सहयोगी बना लेना इनके बाँये हाथ का खेल होता है। आक्रमणकारी उनके निकट पहुँचते-पहुँचते हक्का-बक्का हो जाते हैं।

इस तेजस् को अध्यात्मवादी साधक अपनी खुली आँखों से भी देख सकते हैं और उसका स्तर देखकर किसी के व्यक्तित्व एवं मनोभावों का पता लगा लेते हैं। अब नई वैज्ञानिक खोजों के आधार पर इस तेजोवलय के आधार पर मनुष्य की शारीरिक और मानसिक रुग्णता का पता लगाने और तद्नुरूप उपचार करने लगे हैं। अध्यात्मवादी इसी तेजोवलय को देखकर उसके चिन्तन, चरित्र एवं स्तर का पता लगा लेते हैं।

प्राण विश्वव्यापी है। उसी का एक अंश जब जीवधारी को मिल जाता है तो वह प्राणियों की तरह अपनी क्षमता का परिचय देने लगता है। यह प्राण प्रत्यक्ष शरीर में तो होता ही है उसे यन्त्र उपकरणों से जैव विद्युत के रूप में आँका और मापा जा सकता है। इसकी घट-बढ़ भी विदित होती रहती है। घटने पर दुर्बलता आ दबोचती है। इन्द्रियों में तथा उत्साह में शिथिलता प्रतीत होती है। इसकी पर्याप्त मात्रा रहने पर मन और बुद्धि अपना काम करती है। उत्साह और साहस- पराक्रम और पुरुषार्थ- अपनी प्रदीप्त गतिविधियों का परिचय देने लगता है।

शरीर जल, अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी से बना है। अतः प्राण के तेजोवलय में वृद्धि इनमें से किसी भी माध्यम से किया जा सकता है।

1- पहाड़ो की शुद्ध वायु स्नान से तेजोवलय बढ़ता है।

2- खुले आकाश को निहारने से उसके नीचे बैठने से भी यह चार्ज होता है।

3- स्वच्छ जल में स्नान या शॉवर से स्नान पर भी तेजोवलय स्थिर होता है, अच्छा महसूस होता है। गंगा नदी जैसी पवित्र और औषधीय गुण सम्पन्न नदियों में स्नान से भी प्राणों का तेजोवल बढ़ता है।

4- शुद्ध मिट्टी से स्नान से भी प्राण के तेजोवलय में वृध्दि होती है।

5- लेकिन उपरोक्त में से सबसे ज्यादा प्रभावी और प्राण विद्युत चार्ज करने का माध्यम अग्नि है। इसलिए यज्ञ में सम्मिलित होने से औषधीय धूम्र वायु स्नान और अग्नि के ताप का स्नान और घी का ऑक्सीकरण स्नान और मन्त्र तरंगों का प्रभाव प्राण का तेजोवलय रिचार्ज करता है। इसलिए यज्ञ एक समग्र उपचार के साथ साथ प्राण के तेजोवलय को बढ़ाने और क्लिनिग/शुद्ध करने का उत्तम माध्यम है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - 64 से 66, बाल सँस्कार शाला, सोचने का तरीका

👧🏻👶🏻 *बाल सँस्कार शाला - सोचने का तरीका सीखें(प्रश्न 64 से 66)* 👶🏻👧🏻

प्रश्न - 64 - *किसी चीज़ को देखकर सोचने का सही तरीका क्या है?*

उत्तर - मूर्ख व्यक्ति कुछ देखता है और तुरन्त उसके बारे में पूर्व अनुभव के अनुसार राय बना लेता है।

बुद्धिमान व्यक्ति जब कुछ देखता है, थोड़ा ठहर कर उसकी छान-बीन(explore) करता है। तब वर्तमान साक्ष्य तर्क तथ्य प्रमाण के अनुसार ही अपनी राय प्रेषित करता हैं।

अतः बच्चों आपको पूर्वाग्रह को त्याग कर जो जैसा है उसे वैसा देख के एक्स्प्लोर करके तब अपनी राय देनी चाहिए। यही बाल सँस्कार शाला में सिखाया जाता है।

प्रश्न - 65 - *चतुराई(Cleverness) और बुद्धिमानी(wisdom) में क्या अंतर है?*

उत्तर - चतुराई कैमरा का शार्प फ़ोकस लेंस है जो केंद्रित होकर काम निकालता है। बुद्धिमानी एक वाइड रेंज कैमरा है। जो वर्तमान कार्य के साथ साथ बिफोर इफेक्ट्स और आफ्टर इफेक्ट्स की विस्तृत जानकारी के साथ कार्य करता है। चतुराई से हो सकता है त्वरित लाभ मिल जाये और बाद में परेशानी उठानी पड़े। बुद्धिमानी में हो सकता है देर से लाभ मिले लेक़िन लंबे समय तक लाभान्वित होगा।

गायत्री मंत्र जप और ध्यान से बुद्धिमानी बढ़ती है, चीज़ों को गहराई से समझने की क्षमता बढ़ती है।

प्रश्न - 66 - *प्रतिक्रियात्मक(Reactive) और सक्रिय(Pro-Active) सोच में क्या अंतर है?*

उत्तर - दुर्भाग्यवश पूरे स्कूल कॉलेज और सर्वत्र हमें प्रतिक्रियात्मक सोच सिखाई जाती है। घटना घटने पर प्रतिक्रिया देंगे और कैसे इस पर पूरा पाठ्यक्रम बना है।

वस्तुतः जिंदगी में सफलता हमें सक्रिय (pro-active way) में सोचने पर मिलती है। बाल सँस्कार शाला का मुख्य उद्देश्य ही है बच्चो में सक्रिय सोच विकसित करना।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

कविता - बुद्ध पूर्णिमा - 18 मई

*बुद्ध पूर्णिमा - 18 मई*

बीमार और वृद्ध को देखकर,
उनके मन में प्रश्न उठ गया,
लाश को मरघट की ओर जाते देखकर,
उनके मन में प्रश्न उठ गया।

ऐसा क्यों? ऐसा क्यों?
बार बार मन पूँछ रहा था,
राज्य पुरोहित भी,
इस प्रश्न का उत्तर देने में,
सँकोच कर रहा था।

महल छोड़ कर,
प्रश्नों के उत्तर की तलाश में निकल गए,
स्वयं को भूलकर,
गहन ध्यान में उतर गए।

स्वयं से कहा,
जब तक उत्तर न मिलेगा,
मैं यहां से,
किंचित मात्र भी न हिलूँगा,
उस परमात्मा के लिए,
अनन्त प्रतीक्षा करूँगा।

जब उन प्रश्नो पर,
ध्यान आत्म केंद्रित हुआ,
आत्म ऊर्जा का,
उस प्रश्नों पर सम्प्रेषण हुआ,

फ़िर भीतर एक विष्फोट हुआ,
अनन्त चेतना से,
उनकी चेतना का मिलन हुआ।

स्थूल जगत का,
सूक्ष्म जगत से सम्पर्क हुआ,
समस्त प्रश्नों का,
सूक्ष्म जगत से समाधान मिला,

बुद्धत्व जाग गया,
अंतर्गत प्रकाशित हो गया,
दुनियाँ के समस्त प्रश्नों का,
समाधान स्वतः मिल गया।

लेक़िन क्या यह बुद्धत्व,
हममें भी जग सकता है?
क्या हमारा सम्पर्क भी,
उस परा चेतना से हो सकता है?

बिल्कुल हो सकता है,
परा चेतना से सम्पर्क,
बस उसे पाने के लिए,
ले लो एक दृढ़ संकल्प।

बस बुद्ध सी विकलता को,
स्वयं में उभार लो,
उसे पाने के लिए,
अपना सबकुछ दाँव पर लगा दो।

जब तक न मिले,
ध्यानस्थ हो जाओ,
उसे पाने के लिए,
स्वयं को भूल जाओ।

जब "मैं" न रहेगा,
तब "वह" ही शेष बचेगा,
तुम्हारे अस्तित्व में से ही,
फ़िर "बुद्धत्व" उभरेगा।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday 17 May 2019

प्रश्न - 111, यज्ञ ज्ञान विज्ञान

🔥 *यज्ञ ज्ञान विज्ञान - प्रश्नोत्तर(प्रश्न 111)* 🔥

प्रश्न -111- *नित्य यज्ञ करने वाले लोगों के चेहरे की दिव्य आभा का राज़ क्या है?*

उत्तर - ऊर्जा का प्रकाश में बदलना एक जटिल प्रक्रिया है, लेकिन वैज्ञानिक यह जान चुके है कि - जब यह ऊर्जा किसी वस्तु में प्रवेश करती है तो उसके परमाणु उत्तेजित हो उठते हैं। फिंर थोड़ा शांत होकर जब वे अपने मूल स्थान में लौटते हैं तो उस सोखी हुई ऊर्जा को प्रकाश में बदल देते हैं। इस क्रिया को *संदीप्त* कहते हैं।

यज्ञ के दौरान वातावरण के परमाणु ऊर्जावान होते हैं, सूक्ष्म प्रकाश ऊर्जा युक्त तरंगों का प्रचण्ड वेग होता है। यह तरंगे मनुष्य के अंदर की 72 हज़ार नाड़ियों को झंकृत करती है। *घृतावघ्राण* एवं *प्राणायाम* द्वारा इस ऊर्जा को यज्ञकर्ता सोख लेता है। धीरे धीरे यह ऊर्जा प्रकाश में बदलती है। इसलिए यज्ञकर्ता के चेहरे में दिव्य आभा जिसे तेजस-ओजस-वर्चस कहा जाता है दिखने लगती है।

*नोट:*- गड्ढा जितना गहरा होता है उतनी ज्यादा मिट्टी लगती है उसे पाटने के लिए। इसी तरह यज्ञकर्ता के अंदर ऊर्जा कोष कितने खाली है, इस पर निर्भर करेगा कि चेहरे में दिव्य आभा कितने दिनों में दिखेगी।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - 112 -यज्ञ ज्ञान विज्ञान - प्रश्नोत्तर(प्रश्न 112)

🔥 *यज्ञ ज्ञान विज्ञान - प्रश्नोत्तर(प्रश्न 112)* 🔥

प्रश्न - 112 - *यज्ञ हमें भयमुक्त कैसे बनाता है?*

उत्तर - प्रेम और क्रोध की तरह भय भी एक भावना है। लेकिन यह नकारात्मक भाव है, भय के मन मे प्रकट होते ही हमारे ग्लैंड्स से जहरीला रसायन निकलता जो खून में मिलता है। जो शरीर को कमज़ोर बना देता है, भयग्रस्त इंसान ठीक से खड़ा होकर कोई कार्य नहीं कर पाता।

भय के दो कारण है, अनिष्ट की आशंका और अज्ञात का भय। इन दोनों के केंद्र में अज्ञानता होती है।

अंधेरे में जब डरते हो, तो भी यही कारक काम करते हैं। भूत से जब डरते हो तब भी यही कारक काम करते हैं।

जब आँख से दिखाई न दे, उसे अंधापन कहते हैं। जब दिमाग़ से दिखाई न दे उसे अज्ञानता कहते हैं।

आंखे होते हुए भी प्रकाश के अभाव में अंधेरे में अंधापन हो जाता है। दिमाग़ होते हुए भी सम्बन्धित ज्ञान के अभाव में अज्ञानता वश दिमागी अंधापन आ जाता है।

यज्ञ केवल अंतर्जगत ज्ञान का प्रकाश की मोमबत्ती जला देता है। प्रकाश से रस्सी में सांप का भय तिरोहित हो जाता है। मंन्त्र ध्वनितरँग भय से उतपन्न जहरीले रसायन के प्रभाव को तत्काल प्रभाव से रोककर एंटीडोड दे देती हैं।यज्ञ का प्रकाश शरीर के अग्नितत्व को जागृत करता है। बन्द पड़े मनोमय कोष में ऊर्जा पहुंचाकर ज्ञान के श्रोत से मन को जोड़ता है। इस तरह यज्ञ हमे भयमुक्त करता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न 110, यज्ञ ज्ञान विज्ञान - प्रश्ननोत्तर

🔥 *यज्ञ ज्ञान विज्ञान - प्रश्ननोत्तर* 🔥

👉🏼 प्रश्न - 110 - *यज्ञ चिकित्सा के बाद प्राणायाम क्यों करवाया जाता है?*

उत्तर - शरीर के ऊर्जा‌-कोष में, जिसे प्राणमयकोष कहा जाता है, 72,000 नाड़ियां होती हैं। ये 72,000 नाड़ियां तीन मुख्य नाड़ियों- बाईं, दाहिनी और मध्य यानी इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना से निकलती हैं। ‘नाड़ी’ का मतलब धमनी या नस नहीं है। नाड़ियां शरीर में उस मार्ग या माध्यम की तरह होती हैं जिनसे प्राण का संचार होता है। इन 72,000 नाड़ियों का कोई भौतिक रूप नहीं होता। यानी अगर आप शरीर को काट कर इन्हें देखने की कोशिश करें तो आप उन्हें नहीं खोज सकते। लेकिन जैसे-जैसे आप अधिक सजग होते हैं, आप देख सकते हैं कि ऊर्जा की गति अनियमित नहीं है, वह तय रास्तों से गुजर रही है। प्राण या ऊर्जा 72,000 अलग-अलग रास्तों से होकर गुजरती है। ये नाड़ीयाँ नाक के बाहर आठ अंगुल तक फैली हुई हैं।

इनमें गड़बड़ी रोगों को जन्म देती है, इनका स्वास्थ्य जीवनी शक्ति को बढ़ा कर शरीर मे ऊर्जा का संचरण करता है।

एंजाइम एक प्रकार का नाड़ी तंतु है, जो श्वांस द्वारा प्राप्त ऑक्सीजन से प्राण ऊर्जा को समस्त शरीर के साथ साथ मष्तिष्क कोषों तक पहुंचाता है। रक्त में डायरेक्ट दवा इंजेक्शन के द्वारा पहुंचाया जा सकता है। इसी तरह यज्ञ से उत्तपन्न औषधीय- -ध्वनियुक्त-प्रकाश ऊर्जा तरंगों  को इन 72 हज़ार नाड़ियों में इंजेक्ट केवल प्राणायाम से किया जा सकता है। अतः प्राणाकर्षण प्राणायाम जरूर करें जिससे अधिक लाभ मिले।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - 1 से 10, मंन्त्र विज्ञान - प्रश्नोत्तर

🎼 *मंन्त्र विज्ञान - प्रश्नोत्तर* 🎼

👉🏼 प्रश्न - 1 से 10

प्रश्न -1- *वाणी का स्वरूप एवं प्रकार बताइये?*

उत्तर - हमारे यहां वाणी विज्ञान का बहुत गहराई से विचार किया गया। ऋग्वेद में एक ऋचा आती है-

चत्वारि वाक्‌ परिमिता पदानि
तानि विदुर्व्राह्मणा ये मनीषिण:
गुहा त्रीणि निहिता नेङ्गयन्ति
तुरीयं वाचो मनुष्या वदन्ति॥
ऋग्वेद १-१६४-४५

अर्थात्‌ वाणी के चार पाद होते हैं, जिन्हें विद्वान मनीषी जानते हैं। इनमें से तीन शरीर के अंदर होने से गुप्त हैं परन्तु चौथे को अनुभव कर सकते हैं। इसकी विस्तृत व्याख्या करते हुए पाणिनी कहते हैं, वाणी के चार पाद या रूप हैं-

१. परा, २. पश्यन्ती, ३. मध्यमा, ४. वैखरी

प्रश्न - 2- *वाणी कहां से उत्पन्न होती है?*

उत्तर - पाणिनी कहते हैं, आत्मा वह मूल आधार है जहां से ध्वनि उत्पन्न होती है। वह इसका पहला रूप है। यह अनुभूति का विषय है। किसी यंत्र के द्वारा सुनाई नहीं देती। ध्वनि के इस रूप को परा कहा गया।

आगे जब आत्मा, बुद्धि तथा अर्थ की सहायता से मन: पटल पर कर्ता, कर्म या क्रिया का चित्र देखता है, वाणी का यह रूप पश्यन्ती कहलाता है। हम जो कुछ बोलते हैं, पहले उसका चित्र हमारे मन में बनता है। इस कारण दूसरा चरण पश्यन्ती है।

इसके आगे मन व शरीर की ऊर्जा को प्रेरित कर न सुनाई देने वाला ध्वनि स्वर तरंग उत्पन्न करता है। वह  स्वर तरंग ऊपर उठता है तथा छाती से नि:श्वास की सहायता से कण्ठ तक आता है। वाणी के इस रूप को मध्यमा कहा जाता है। ये तीनों रूप सुनाई नहीं देते हैं।

इसके आगे यह ध्वनि तरंग कंठ के ऊपर पांच स्पर्श स्थानों की सहायता से सर्वस्वर, व्यंजन, युग्माक्षर और मात्रा द्वारा भिन्न-भिन्न रूप में वाणी के रूप में अभिव्यक्त होता है। यही सुनाई देने वाली वाणी वैखरी कहलाती है और इस वैखरी वाणी से ही सम्पूर्ण ज्ञान, विज्ञान, जीवन व्यवहार तथा बोलचाल की अभिव्यक्ति संभव है।

प्रश्न -3 - *वाणी से व्यजन की अभिव्यक्ति मुख से किस प्रकार होती है?*

उत्तर - मुख से निकलने वाली वाणी का निरीक्षण किया तथा क से ज्ञ तक वर्ण किस अंग की सहायता से निकलते हैं, इसका  जो विश्लेषण किया वह इतना विज्ञान सम्मत है कि उसके अतिरिक्त अन्य ढंग से आप वह ध्वनि निकाल ही नहीं सकते हैं।

*क, ख, ग, घ, ङ*- 'कंठव्य' कहे गए, क्योंकि इनके उच्चारण के समय ध्वनि कंठ से निकलती है।

*च, छ, ज, झ,ञ*- 'तालव्य' कहे गए, क्योंकि इनके उच्चारण के समय जीभ लालू से लगती है।

*ट, ठ, ड, ढ , ण*- 'मूर्धन्य' कहे गए, क्योंकि इनका उच्चारण जीभ के मूर्धा से लगने पर ही सम्भव है।

*त, थ, द, ध, न*- 'दंतीय' कहे गए, क्योंकि इनके उच्चारण के समय जीभ दांतों से लगती है।

*प, फ, ब, भ, म*,- 'ओष्ठ्य' कहे गए, क्योंकि इनका उच्चारण ओठों के मिलने पर ही होता है।

प्रश्न - 4 - *स्वर कितने प्रकार के होते हैं?*

उत्तर - सभी वर्ण, संयुक्ताक्षर, मात्रा आदि के उच्चारण का मूल ‘स्वर‘ हैं। अत: उसका भी गहराई से अध्ययन तथा अनुभव किया गया। इसके निष्कर्ष के रूप में प्रतिपादित किया गया कि स्वर तीन प्रकार के हैं।

उदात्त-उच्च स्वर
अनुदात्त-नीचे का स्वर
स्वरित- मध्यम स्वर

इनका और सूक्ष्म विश्लेषण किया गया, जो संगीत शास्त्र का आधार बना। संगीत शास्त्र में सात स्वर माने गए जिन्हें *सा रे ग म प ध नि* के प्रतीक चिन्हों से जाना जाता है। इन सात स्वरों का मूल तीन स्वरों में विभाजन किया गया।

उच्चैर्निषाद, गांधारौ नीचै ऋर्षभधैवतौ।
शेषास्तु स्वरिता ज्ञेया:, षड्ज मध्यमपंचमा:॥

अर्थात्‌ निषाद तथा गांधार (नि ग) स्वर उदात्त हैं। ऋषभ और धैवत (रे, ध) अनुदात्त। षड्ज, मध्यम और पंचम (सा, म, प) ये स्वरित हैं।

इन सातों स्वरों के विभिन्न प्रकार के समायोजन से विभिन्न रागों के रूप बने और उन रागों के गायन में उत्पन्न विभिन्न ध्वनि तरंगों का परिणाम मानव, पशु प्रकृति सब पर पड़ता है। इसका भी बहुत सूक्ष्म निरीक्षण हमारे यहां किया गया है।

प्रश्न - 5 - *मंन्त्र का गुम्फ़न/बनावट में किन बातों का ध्यान रखा जाता है?*

उत्तर - मन्त्रों के गुम्फ़न बनावट के वक्त उसकी शब्द रचना के साथ उसकी स्वर लहरियाँ गहराई से निरीक्षण की जाती हैं।

किस ध्वनि तरंग का क्या प्रभाव होगा, उसके आधार रिसर्च करके मंन्त्र का निर्माण होता है।

विशिष्ट मंत्रों के विशिष्ट ढंग से उच्चारण से वायुमण्डल में विशेष प्रकार के कंपन उत्पन्न होते हैं, जिनका विशेष परिणाम होता है। यह मंत्रविज्ञान का आधार है। इसकी अनुभूति वेद मंत्रों के श्रवण या मंदिर के गुंबज के नीचे मंत्रपाठ के समय अनुभव में आती है।

हमारे यहां विभिन्न रागों के गायन व परिणाम के अनेक उल्लेख प्राचीनकाल से मिलते हैं। सुबह, शाम, हर्ष, शोक, उत्साह, करुणा-भिन्न-भिन्न प्रसंगों के भिन्न-भिन्न राग हैं। दीपक से दीपक जलना और मेघ मल्हार से वर्षा होना आदि उल्लेख मिलते हैं।

प्रश्न -6- *भारतीय संगीत और पाश्चात्य संगीत में मूलभूत अंतर क्या है?*

उत्तर - भारतीय संगीत मानव की नाभि के ऊपर की भावनाएं विकसित करता है और पाश्चात्य पॉप म्यूजिक नाभि के नीचे की भावनाएं बढ़ाता है जो मानव के आन्तरिक व्यक्तित्व को विखंडित कर देता है।

जब आप भारतीय संगीत और नाद सुनते हैं मन को सुकून और दिमाग़ रिलैक्स हो जाता है।  जैसे ही पॉप संगीत सुनेंगे आपके पैर में थिरकन जरूर होगी, शांति नहीं मिलती।

प्रश्न - 7- *घण्टी और शँख बजने पर आवाज़ गूँजती क्यों है?*

उत्तर - ध्वनि कम्पन - किसी घंटी पर प्रहार करते हैं तो उसकी ध्वनि देर तक सुनाई देती है, इसीतरह शँख से ध्वनि देर तक गूंजती है। इसकी प्रक्रिया क्या है? इसकी व्याख्या में वात्स्यायन तथा उद्योतकर कहते हैं कि आघात में कुछ ध्वनि परमाणु अपनी जगह छोड़कर और संस्कार जिसे कम्प संतान-संस्कार कहते हैं, से एक प्रकार का कम्पन पैदा होता है और वायु के सहारे वह आगे बढ़ता है तथा मन्द तथा मन्दतर इस रूप में अविच्छिन्न रूप से सुनाई देता है। इसकी उत्पत्ति का कारण स्पन्दन है।

प्रश्न -8- *प्रतिध्वनि किसे कहते हैं?*


उत्तर - विज्ञान भिक्षु अपने प्रवचन भाष्य अध्याय १ सूत्र ७ में कहते हैं कि प्रतिध्वनि क्या है? इसकी व्याख्या में कहा गया कि जैसे पानी या दर्पण में चित्र दिखता है, वह प्रतिबिम्ब है। इसी प्रकार ध्वनि टकराकर पुन: सुनाई देती है, वह प्रतिध्वनि है। जैसे जल या दर्पण का बिम्ब वास्तविक चित्र नहीं है, उसी प्रकार प्रतिध्वनि भी वास्तविक ध्वनि नहीं है।

रूपवत्त्वं च न सामान्य त: प्रतिबिम्ब प्रयोजकं
शब्दास्यापि प्रतिध्वनि रूप प्रतिबिम्ब दर्शनात्‌॥
विज्ञान भिक्षु, प्रवचन भाष्य अ. १ सूत्र-४७

प्रश्न - 9 - *क्या वायु के बिना शब्द ध्वनि बोली या सुनी जा सकती है?*

उत्तर - नहीं, बिना वायु की उपस्थिति के शब्द ध्वनि बोली या सुनी नहीं जा सकती।

वाचस्पति मिश्र के अनुसार ‘शब्दस्य असाधारण धर्म:‘- शब्द के अनेक असाधारण गुण होते हैं। गंगेश उपाध्याय जी ने ‘तत्व चिंतामणि‘ में कहा- ‘वायोरेव मन्दतर तमादिक्रमेण मन्दादि शब्दात्पत्ति।‘ वायु की सहायता से मन्द-तीव्र शब्द उत्पन्न होते हैं।

वाचस्पति, जैमिनी, उदयन आदि आचार्यों ने बहुत विस्तारपूर्वक अपने ग्रंथों में ध्वनि की उत्पत्ति, कम्पन, प्रतिध्वनि, उसकी तीव्रता, मन्दता, उनके परिणाम आदि का हजारों वर्ष पूर्व किया जो विश्लेषण है, वह आज भी चमत्कृत करता है।

प्रश्न - 10 - *मंदिरों में शंख ध्वनि और घण्टा क्यों बजाते हैं?*

उत्तर - शँख से सकारात्मक ऊर्जा उतपन्न होती है, विषाणु-रोगाणु नष्ट होते है, भूमि के शुभ सँस्कार जगते है, स्वास्थ्य पर शुभ प्रभाव पड़ता है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि जब घंटी बजाई जाती है तो वातावरण में कंपन पैदा होता है, जो वायुमंडल के कारण काफी दूर तक जाता है। इस कंपन का फायदा यह है कि इसके क्षेत्र में आने वाले सभी जीवाणु, विषाणु और सूक्ष्म जीव आदि नष्ट हो जाते हैं जिससे आसपास का वातावरण शुद्ध हो जाता है।

अत: जिन स्थानों पर घंटी बजने और शँख ध्वनि की आवाज नियमित आती है वहां का वातावरण हमेशा शुद्ध और पवित्र बना रहता है। इससे नकारात्मक शक्तियां हटती हैं। नकारात्मकता हटने से समृद्धि के द्वार खुलते हैं। सकारात्मक शक्ति जागृत होती है। भूमि और वातावरण संस्कारित होता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Thursday 16 May 2019

प्रश्न - 1 से 10, दिव्य चेतन गर्भ विज्ञान परश्नोत्तर (Divine conscious womb science Q & A)* 👨‍👨‍👧

[5/16, 11:06 PM] .: 👨‍👨‍👧 *दिव्य चेतन गर्भ विज्ञान परश्नोत्तर (Divine conscious womb science Q & A)* 👨‍👨‍👧

👉🏼 प्रश्न 1 से 5

प्रश्न -1- *पुंसवन सँस्कार क्या है?*

उत्तर- युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने गर्भ से ही सँस्कार गढ़कर मनचाही सन्तान पाने की विधिव्यस्था बनाई। इस दिव्य चेतन गर्भ विज्ञान को गर्भवती को समझाने के लिए और इस गर्भ को संस्कारों में ढालने हेतु माता को यज्ञ-दीपयज्ञ द्वारा संकल्पित करने, उसे गर्भविज्ञान समझाने के लिए, टिप्स और तकनीक समझाने के लिए एक आध्यात्मिक सँस्कार शुरू किया जिसका नाम *पुंसवन सँस्कार* रखा। यह सँस्कार शुरू करने का दिन है और भगवान से प्रार्थना करते हैं कि वो गर्भ को संरक्षण प्रदान करें, श्रेष्ठ दिव्य आत्मा का प्रवेश गर्भ में सुनिश्चित करवाएं। इसे आध्यात्मिक टीकाकरण भी कह सकते हैं, क्योंकि गर्भस्थ शिशु की चेतना को परमात्म चेतना से जोड़ने का आध्यात्मिक एवं भावनात्मक उपक्रम किया जाता है। यह एडमिशन का दिन है, अतः केवल एक दिन सँस्कार करवाने से ज्यादा कुछ नहीं होगा, बताई गई विधिव्यस्था को 9 महीने तक पालन करने पर उत्तम परिणाम मिलेगा।

प्रश्न - 2- *पुंसवन सँस्कार कब करवाना चाहिए?*

उत्तर - भ्रूण अत्यंत प्रारंभिक अवस्था में अपना पोषण प्राथमिक अंडाणु के द्वारा लाए गए पोषक द्रव्यों से पाता है। इसके पश्चात्‌ ब्लास्टोसिस्ट गर्भाशय की ग्रंथियों तथा वपन की क्रिया में हुए ऊतकलयन के फलस्वरूप एकत्रित रक्त से पोषण लेता है। भ्रूणपट्ट (embryonic disc), उल्व (amnion), देहगुहा (coelom) तथा पीतक (yolk) थैली में भरे द्रव्य से पोषण लेता है। अंत में अपना तथा नाभि नाल के निर्माण के पश्चात्‌ माता के रक्तपरिवहन के भ्रूणरक्त का परिवहनसंबंध स्थापित होकर, भ्रूण का पोषण होता है।निषेचन के आठ सप्ताह तक (मतलब एलएमपी के 10वें सप्ताह तक) भ्रूण कहा जाता है और उसके बाद से भ्रूण की बजाय इसे गर्भस्थ शिशु (फेटस) कहा जता है। अतः लगभग माता और चेतन शिशु में सम्पर्क नाभि नाल द्वारा लगभग तीसरे महीने स्थापित हो जाता है, तन से तन का पोषण व निर्माण और मन से मन का पोषण और निर्माण प्रारम्भ होता है। तीसरे महीने से चौथे महीने के बीच गर्भ सँस्कार सर्वोत्तम माना जाता है। अगर किन्ही कारणवश नहीं करवा पाए तो बाद में भी करवा सकते हैं।

प्रश्न - 3 - *भ्रूण का दिमाग, रीढ़ की हड्डी, हृदय और जठरांत्र संबंधी मार्ग बनने शुरू हो जाते हैं?*

उत्तर - 1 से 3 सप्ताह अर्थात 5-7 दिनों के निषेचन के बाद, ब्लास्टुला गर्भाशय की दीवार (गर्भकला) से जुड़ जाता है। जब यह गर्भकला के संपर्क में आता है, यह आरोपण करता है। नाभि रज्जु के साथ ही माता और भ्रूण के बीच आरोपण संपर्क बनने शुरू हो जाते हैं। भ्रूण का विकास एक धुरी पर केन्द्रित होता है, जो रीढ़ और रीढ़ की हड्डी बन जाता है। दिमाग, रीढ़ की हड्डी, हृदय और जठरांत्र संबंधी मार्ग बनने शुरू हो जाते हैं। अतः इस वक्त से ही गांयत्री मंन्त्र जप शुरू कर देना चाहिए जिससे बच्चे के अंगों का समुचित विकास हो।

प्रश्न - 4 - *गर्भाधान के बाद मासिक चक्र कब रुकता है?*

उत्तर -  गर्भ धारण के 4 से 5 सप्ताह में भ्रूण के द्वारा उत्पादित रसायन औरतों के मासिक चक्र को रोक देता है।

प्रश्न - 5- *बच्चे के दिल की धड़कन कब आती है और भावनात्मक विकास कब होता है?*

उत्तर - लगभग 6 ठवें सप्ताह में मस्तिष्क की गतिविधि शुरू हो जाती है, न्युरोजेनेसिस चल रहा होता है। "दिल का धड़कना इसी समय शुरू होता है। अंग अंकुरित होते हैं, जहां बाद में हाथ और पैर विकसित होंगे. ऑर्गेनोजेनेसिस शुरू होता है। सिर भ्रूण की अक्षीय लंबाई के आधे भाग और उसके मास के आधे से अधिक भाग का प्रतिनिधित्व करता है। मस्तिष्क पांच क्षेत्रों में विकसित होता है। ऊतक का गठन होता है जो रीढ़ की जोड़ और कुछ अन्य हड्डियों को विकसित करता है। दिल धड़कना और रक्त प्रवाहित होना शुरू हो जाता है। "दिल का धड़कना इसी समय शुरू होता है। अंग अंकुरित होते हैं, जहां बाद में हाथ और पैर विकसित होंगे. ऑर्गेनोजेनेसिस शुरू होता है। सिर भ्रूण की अक्षीय लंबाई के आधे भाग और उसके मास के आधे से अधिक भाग का प्रतिनिधित्व करता है। मस्तिष्क पांच क्षेत्रों में विकसित होता है। ऊतक का गठन होता है जो रीढ़ की जोड़ और कुछ अन्य हड्डियों को विकसित करता है। दिल धड़कना और रक्त प्रवाहित होना शुरू हो जाता है। इस समय यदि माता ने तनाव लिया तो बुरे हार्मोन्स उदाहरण कॉर्टिसोल इत्यादि बच्चे के हृदय की धड़कन को प्रभावित करते हैं और सर में पानी भरने लगता है। गन्दे व हिंसक टीवी सीरियल नहीं देखना चाहिए अन्यथा बच्चे को हृदय रोग भी हो सकता है।

माता को इस समय मधुर भजन संगीत, वेद मंन्त्र अधिक से अधिक सुनने और जपना चाहिए। ध्यान लगाना चाहिए, यज्ञ करना चाहिए और भजन गुनगुनाते रहना चाहिए। जिससे अच्छे हार्मोन्स निकले और बच्चे का सन्तुलित विकास हो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
[5/16, 11:42 PM] .: 👨‍👨‍👧 *दिव्य चेतन गर्भ विज्ञान परश्नोत्तर (Divine conscious womb science Q & A)* 👨‍👨‍👧

👉🏼 प्रश्न  5 से 10

प्रश्न -5- *गर्भ सँस्कार - पुंसवन सँस्कार की आवश्यकता क्यों है?*

उत्तर - आधुनिक चिकित्सा विज्ञान चेतना के स्तर पर कार्य करने में अक्षम हैं।

दर्जी जिस प्रकार वस्त्र का कुशल कारीगर और ज्ञाता होता है, वैसे ही गायनी चिकित्सक शरीर रूपी वस्त्र के कुशल कारीगर और ज्ञाता हैं। वो शरीर के निर्माण का विज्ञान समझा सकते हैं, उसके लिए जरूरी टीके/इंजेक्शन, दवा, सन्तुलित भोजन व व्यायाम बता सकते हैं। शरीर का वजन और दिल की धड़कन के अतिरिक्त और कुछ चेक करने में अक्षम हैं।

बच्चे के मन का विकास, बुद्धि का विकास, उसकी प्राण ऊर्जा, उसकी चेतना लेवल को न जांच सकते हैं, न उसके निर्माण की प्रक्रिया में मदद कर सकते हैं।

प्राचीन ऋषि शरीर के साथ साथ आत्म चेतना विज्ञान के ज्ञाता थे, उत्तम श्रेष्ठ सन्तान के लिए माता की दिनचर्या, शारिरिक आहार के साथ मानसिक आहार में क्या हो उसे सुनिश्चित करते थे। रोगों की रोकथाम के लिए जिस प्रकार टीके लगते हैं, वैसे ही मानसिक विकारों की रोकथाम के लिए आध्यात्मिक टीके संस्कारो के माध्यम से लगाये जाते थे। उसी ऋषि परम्परा को पुनर्जीवित किया युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने, दिव्यगुणों के विकास और मनोविकारों की रोकथाम के लिए दिव्य चेतन स्तर का गर्भ का ज्ञान विज्ञान जन जन तक पुंसवन सँस्कार के माध्यम से पहुंचाया। जब आप पुंसवन सँस्कार करवाएंगे तभी तो दिव्य चेतना से जुड़कर यह विधिव्यस्था अपना पाएंगे। मनचाही सन्तान पाएंगे।

प्रश्न - 6 - *यह गर्भ सँस्कार काम कैसे करता है?*

उत्तर - चिकित्सा विज्ञान के अनुसार गर्भ में शिशु किसी चैतन्य जीव की तरह व्यवहार करता है - वह सुनता और ग्रहण भी करता है। माता के गर्भ में आने के बाद से गर्भस्थ शिशु को संस्कारित किया जा सकता है। हमारे पूर्वज इन सब बातों से भली भॉंति परिचित थे इसलिए उन्होंने गर्भाधान संस्कार को हमारी भारतीय संस्कृति में कराए जाने वाले सोलह संस्कारों में से एक संस्कार मान कर उसे पूर्ण पवित्रता के साथ संपन्न करने की प्रथा प्रचलित की थी।

बालक के अवतरण और उसकी विकास यात्रा में योगदान देना माता-पिता की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है । पिता गर्भधारण में केवल सहयोग प्रदान करता है, किंतु बाद में उस गर्भ को पकाने का कार्य माता के माध्यम से ही संपन्न होता हैं इसलिए पिता की अपेक्षा माता का उत्तरदायित्व अधिक है । बिना उचित ज्ञान एवं स्थिति की जानकारी लिए माता इस कर्तव्य का भली भॉति पालन कर सकेगी, यह असंभव जैसा है
माता का एक-एक क्षण व बच्चे का एक-एक कण एक-दूसरे से जुड़ा है। माता का खाना-पीना, विचारधारा, मानसिक परिस्थिति इन सभी का बहुत गहरा परिणाम गर्भस्थ शिशु पर होता है। गर्भस्थ शिशु को संस्कारित व शिक्षित करने का प्रमाण हमें धर्म ग्रंथों में मिलता ही है। कई वैज्ञानिक भी इस बात से सहमत हैं व उन्होंने इसे सिद्ध भी किया है।

हर माता-पिता अपने बच्चे के उज्जवल भविष्य के लिए धन-संपदा को एकत्रित करते हैं, उसके विकास के लिए बहुत चिंता करते हैं । लेकिन यदि माता-पिता अपने बच्चे को विरासत में अच्छे संस्कार दे सकें, तो फिर उन्हें कुछ और खास चीज देने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी, क्योंकि ऐसी संताने न केवल अपना भविष्य सुधार लेंगी, बल्कि औरों के लिए भी साधन-सुविधांए जुटा लेंगी।

प्रश्न - 7 - *स्वामी विवेकानंद जी का गर्भ सँस्कार के बारे में क्या मत है?*

उत्तर - संतान उत्पति के संदर्भ में स्वामी विवेकानंद का कथन है कि यदि माता-पिता बिना प्रार्थना किए संतानोत्पति करते हैं तो ऐसे संतान ‘अनार्य’ है और समाज पर भारस्वरूप है । ‘आर्य’ संतानें वे ही हैं, जो माता-पिता द्वारा भगवान से की गई निर्मल प्रार्थना के फलस्वरूप उत्पन्न होती हैं। वे ही परिवार, समाज का हितसाधन कर सकती है। समाजोपयोगी सन्तान ऋषिपरम्परा और आज्ञा का गर्भावस्था में पालन से बन सकती हैं।

प्रश्न - 8- *बच्चे को खुशमिज़ाज़ और सकारात्मक दृष्टिकोण का बनाने के लिए माता को क्या करना चाहिए?*

उत्तर - यदि मां खुश है तो उसके मस्तिष्क से निकलने वाले न्यूरो हार्मोस प्लेसेंटा के जरिए बच्चे में पहुंचते हैं और केमिकल सिग्नलिंग के माध्यम से बच्चे की कोशिकाओं पर असर करते हैं। ये विशिष्ट न्यूरो हार्मोस झाइगोट की सेंसेटिव कोशिकाओं को बढ़ाने व खुलकर विकसित करने में सहायक होते हैं जिससे बच्चे का स्वभाव खुशमिजाज बनता है।

सकारात्मक दृष्टिकोण और
पॉजिटिव फिलिंग बच्चे में लाने के लिए सकारात्मक विचार धारा की श्रेष्ठ पुस्तकें पढ़ें, ऐसे ही संगीत व प्रवचन सुने । सोच पॉजिटिव रखें और आसपास खुशनुमा माहौल रखें। गर्भस्थ शिशु से बात करें। मेडिटेशन करें। सूदिंग मधुर संगीत, राग, वेद के मंत्रोच्चार व श्लोक आदि सुने। किसी एक्सपर्ट के सुपरविजन में प्रीनेटल योग करें। ध्यान करें।

प्रश्न - 9 - *नाभि नाल से आहार के साथ साथ क्या विचार भी गर्भस्थ तक पहुंचते है?*

उत्तर - हाँजी, तन के साथ साथ मन भी गर्भस्थ शिशु और माता की नाभि नाल से जुड़ा जाता है। यह नाभि नाल वस्तुतः तीन हिस्सों में बांटी जा सकती है। स्थूल, सूक्ष्म व कारण - जिसे क्रमशः क्रियाशक्ति, विचारशक्ति व भावशक्ति कहते हैं। बच्चे के स्थूल शरीर की क्रिया को शक्ति गर्भिणी माता द्वारा किये भोजन व जल से मिलती है। बच्चे के विचार को शक्ति माता द्वारा स्वाध्याय कर अच्छे विचारों के चिंतन मनन से मिलती है, बच्चे की भावनाओं को शक्ति माता के हृदय में उठने वाले भावो से मिलती है।

 गर्भस्थ शिशु का मस्तिष्क व हृदय अपनी माता के मस्तिष्क व हृदय से जुड़ा होता है इसलिए  स्वथ्य विचारों के साथ साथ अच्छे भावो से युक्त होकर बच्चे से गर्भसंवाद स्थापित करें। गर्भकाल में हमेशा अच्छे विचार और भाव ही अपने मन में ध्यान करें।

भले ही गर्भस्थ शिशु को भाषा का ज्ञान नहीं होता लेकिन वह माता के मस्तिष्क में आने वाली हर जानकारी का अर्थ ग्रहण कर सकता है। इसलिए गर्भ के शिशु के साथ अर्थपूर्ण बातें करें। अच्छे साहित्य पढ़े।

गर्भ के दौरान आदर्श संतुलित आहार ग्रहण करें ताकि उसके मस्तिष्क का अच्छा विकास हो सके। उसके मस्तिष्क में ज्यादा जानकारियां इकट्ठा हो सकें, स्मरण शक्ति तीक्ष्ण हो सके तथा त्वरित निर्णय लेने में सक्षम हो। गर्भसंस्कार सही अर्थों में गर्भस्थ शिशु के साथ माता का स्वस्थ संवाद है।

प्रश्न -10- *गर्भावस्था में क्या ज्यादा आराम करना चाहिए?*

उत्तर - गर्भावस्था कोई बीमारी नहीं है जिसमे की अतिरिक्त आराम की आवश्यकता हो। थकान लगने पर आराम कर लें। बाक़ी थोड़ी सावधानी सहित वही दिनचर्या रखें जो गर्भावस्था से पहले थी। जितना आप चलेंगी, घूमेंगी आपका बच्चा भी उतना ही गर्भ में एक्टिव रहेगा और डिलीवरी आसान होगी। आप आलस्य और सुस्ती दिखाएंगी तो बच्चा भी आलसी और सुस्त गर्भ में बनेगा जिससे डिलीवरी के वक्त परेशानी हो सकती है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - 51 से 63 तक, बाल सँस्कार शाला- क्या भारत प्राचीन समय में विज्ञान के क्षेत्र में आगे था?

👶🏻👧🏻 *बाल सँस्कार शाला- क्या भारत प्राचीन समय में विज्ञान के क्षेत्र में आगे था?* 👧🏻👶🏻

👉🏼 प्रश्न - 51 से 63 तक

आइये ऐसे वैज्ञानिकों के बारे जाने जो उच्च कोटि के साधक थे और महान रिसर्चर भी।


प्रश्न - 51- *बिजली के आविष्कार में महर्षि अगस्त्य का योगदान क्या वास्तव में था?*

उत्तर - हांजी, महर्षि अगस्त्य एक वैदिक ॠषि थे। निश्चित ही बिजली का आविष्कार थॉमस एडिसन ने किया लेकिन एडिसन अपनी एक किताब में लिखते हैं कि *एक रात मैं संस्कृत का एक वाक्य पढ़ते-पढ़ते सो गया। उस रात मुझे स्वप्न में संस्कृत के उस वचन का अर्थ और रहस्य समझ में आया जिससे मुझे मदद मिली।*

महर्षि अगस्त्य राजा दशरथ के राजगुरु थे। इनकी गणना सप्तर्षियों में की जाती है। ऋषि अगस्त्य ने 'अगस्त्य संहिता' नामक ग्रंथ की रचना की। आश्चर्यजनक रूप से *इस ग्रंथ में विद्युत उत्पादन से संबंधित सूत्र मिलते हैं*-

संस्थाप्य मृण्मये पात्रे
ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्‌।
छादयेच्छिखिग्रीवेन
चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥
दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:।
संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्‌॥
-अगस्त्य संहिता

अर्थात : *एक मिट्टी का पात्र लें, उसमें ताम्र पट्टिका (Copper Sheet) डालें तथा शिखिग्रीवा (Copper sulphate) डालें, फिर बीच में गीली काष्ट पांसु (wet saw dust) लगाएं, ऊपर पारा (mercury‌) तथा दस्त लोष्ट (Zinc) डालें, फिर तारों को मिलाएंगे तो उससे मित्रावरुणशक्ति (Electricity) का उदय होगा।*

अगस्त्य संहिता में विद्युत का उपयोग इलेक्ट्रोप्लेटिंग (Electroplating) के लिए करने का भी विवरण मिलता है। उन्होंने बैटरी द्वारा तांबा या सोना या चांदी पर पॉलिश चढ़ाने की विधि निकाली अत: अगस्त्य को कुंभोद्भव (Battery Bone) कहते हैं।
अगले पन्ने पर छठा आविष्कार...

प्रश्न -52- *क्या बटन अविष्कार सर्वप्रथम भारत मे हुआ था?*

उत्तर :- हाँजी, आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि शर्ट के बटन का आविष्कार भारत में हुआ। इसका सबसे पहला प्रमाण मोहन जोदड़ो की खुदाई में प्राप्त हुआ। खुदाई में बटनें पाई गई हैं। सिन्धु नदी के पास आज से 2500 से 3000 पहले यह सभ्यता अपने अस्तित्व में थी।

प्रश्न -53- *ज्यामिति के क्षेत्र में भारत का योगदान बताये?*

उत्तर :- बौधायन भारत के प्राचीन गणितज्ञ और शुल्व सूत्र तथा श्रौतसूत्र के रचयिता हैं। पाइथागोरस के सिद्धांत से पूर्व ही बौधायन ने ज्यामिति के सूत्र रचे थे लेकिन आज विश्व में यूनानी ज्या‍मितिशास्त्री पाइथागोरस और यूक्लिड के सिद्धांत ही पढ़ाए जाते हैं।

दरअसल, 2800 वर्ष (800 ईसापूर्व) बौधायन ने रेखागणित, ज्यामिति के महत्वपूर्ण नियमों की खोज की थी। उस समय भारत में रेखागणित, ज्यामिति या त्रिकोणमिति को शुल्व शास्त्र कहा जाता था।

शुल्व शास्त्र के आधार पर विविध आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाई जाती थीं। दो समकोण समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी उतने क्षेत्रफल का ‘समकोण’ समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान के वृत्त में परिवर्तन करना, इस प्रकार के अनेक कठिन प्रश्नों को बौधायन ने सुलझाया।

प्रश्न -54- *रेडियो के आविष्कार के क्षेत्र में भारत का योगदान बतायें?*

उत्तर:- इतिहास की किताब में बताया जाता है कि रेडियो का आविष्कार जी. मार्कोनी ने किया था, लेकिन यह सरासर गलत है। अंग्रेज काल में मार्कोनी को भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु के लाल डायरी के नोट मिले जिसके आधार पर उन्होंने रेडियो का आविष्कार किया। मार्कोनी को 1909 में वायरलेस टेलीग्राफी के लिए नोबेल पुरस्कार मिला। लेकिन संचार के लिए रेडियो तरंगों का पहला सार्वजनिक प्रदर्शन मिलीमीटर तरंगें और क्रेस्कोग्राफ सिद्धांत के खोजकर्ता जगदीश चंद्र बसु ने 1895 में किया था।

इसके 2 साल बाद ही मार्कोनी ने प्रदर्शन किया और सारा श्रेय वे ले गए। चूंकि भारत उस समय एक गुलाम देश था इसलिए जगदीश चंद्र बसु को ज्यादा महत्व नहीं दिया गया। दूसरी ओर वे अपने आविष्कार का पेटेंट कराने में असफल रहे जिसके चलते मार्कोनी को रेडियो का आविष्कारक माना जाने लगा। संचार की दुनिया में रेडियो का आविष्कार सबसे बड़ी सफलता है। आज इसके आविष्कार के बाद ही टेलीविजन और मोबाइल क्रांति संभव हो पाई है।

प्रश्न -55- *गुरुत्वाकर्षन का नियम के बारे में भारत का योगदान बतायें?*

उत्तर : हलांकि वेदों में गुरुत्वाकर्षन के नियम का स्पष्ट उल्लेख है लेकिन प्राचीन भारत के सुप्रसिद्ध गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री भास्कराचार्य ने इस पर एक ग्रंथ लिखा 'सिद्धांतशिरोमणि' इस ग्रंथ का अनेक विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुआ और यह सिद्धांत यूरोप में प्रचारित हुआ।

न्यूटन से 500 वर्ष पूर्व भास्कराचार्य ने गुरुत्वाकर्षण के नियम को जानकर विस्तार से लिखा था और उन्होंने अपने दूसरे ग्रंथ 'सिद्धांतशिरोमणि' में इसका उल्लेख भी किया है।

गुरुत्वाकर्षण के नियम के संबंध में उन्होंने लिखा है, 'पृथ्वी अपने आकाश का पदार्थ स्वशक्ति से अपनी ओर खींच लेती है। इस कारण आकाश का पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है।' इससे सिद्ध होता है कि पृथ्वी में गुत्वाकर्षण की शक्ति है।

भास्कराचार्य द्वारा ग्रंथ ‘लीलावती’ में गणित और खगोल विज्ञान संबंधी विषयों पर प्रकाश डाला गया है। सन् 1163 ई. में उन्होंने ‘करण कुतूहल’ नामक ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ में बताया गया है कि जब चन्द्रमा सूर्य को ढंक लेता है तो सूर्यग्रहण तथा जब पृथ्वी की छाया चन्द्रमा को ढंक लेती है तो चन्द्रग्रहण होता है। यह पहला लिखित प्रमाण था जबकि लोगों को गुरुत्वाकर्षण, चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण की सटीक जानकारी थी।

प्रश्न - 56- *भाषा का व्याकरण के क्षेत्र में भारत का योगदान बतायें?*

उत्तर :- दुनिया का पहला व्याकरण पाणिनी ने लिखा। 500 ईसा पूर्व पाणिनी ने भाषा के शुद्ध प्रयोगों की सीमा का निर्धारण किया। उन्होंने भाषा को सबसे सुव्यवस्थित रूप दिया और संस्कृत भाषा का व्याकरणबद्ध किया। इनके व्याकरण का नाम है अष्टाध्यायी जिसमें 8 अध्याय और लगभग 4 सहस्र सूत्र हैं। व्याकरण के इस महनीय ग्रंथ में पाणिनी ने विभक्ति-प्रधान संस्कृत भाषा के 4000 सूत्र बहुत ही वैज्ञानिक और तर्कसिद्ध ढंग से संग्रहीत किए हैं।

अष्टाध्यायी मात्र व्याकरण ग्रंथ नहीं है। इसमें तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्र मिलता है। उस समय के भूगोल, सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा और राजनीतिक जीवन, दार्शनिक चिंतन, खान-पान, रहन-सहन आदि के प्रसंग स्थान-स्थान पर अंकित हैं।

प्रश्न - 57 - *उस भारतीय वैज्ञानिक का नाम बताएं जिन्हें 1930 में भौतिकी शास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था?*

उत्तर - सी.वी. रमन जी जिनका पूरा नाम चंद्रशेखर वेंकटरमन था और उनका जन्म 7 नवंबर, 1888 को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्‍ली नामक स्थान में हुआ था। सी.वी. रमन भारत के पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें 1930 में भौतिकी शास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. सी.वी. रमन के महान आविष्कारों में से एक प्रकाश पर गहन (Studied at the light) था. बाद में सी.वी. रमन द्वारा किए गए अविष्‍कार को “रमण प्रभाव” के रूप में जाना गया. 1954 ई. में उन्हें भारत सरकार द्वारा भारत रत्न से सम्मानित किया गया था 1957 में उन्हें लेनिन शान्ति पुरस्कार (Lenin Peace Prize) दिया गया था.

प्रश्न - 58 - *भारत मे 'आर्किटेक्ट ऑफ इंडियन एटॉमिक एनर्जी प्रोग्राम' किसे कहा जाता है?*

उत्तर - होमी जहांगीर भाभा, भारत के एक प्रमुख वैज्ञानिक थे जिन्होंने भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की कल्पना की थी. भाभा का जन्म अक्टूबर 1909 को मुंबई में हुआ था. उनके द्वारा किए गए महान आविष्कारों में से एक क्वांटम थ्योरी (Quantum Theory) है. होमी जहांगीर भाभा भारतीय परमाणु ऊर्जा के पिता के रूप में भी विख्यात हुए हैं.  होमी जहांगीर भाभा ने भारत के महान वैज्ञानिक संस्थानों की स्थापना की हैं जैसे कि भाभा परमाणु अनुसंधान संस्थान (Bhabha Atomic Research Institute) और टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान (Tata Institute of Fundamental Research). उन्हें ‘आर्किटेक्ट ऑफ इंडियन एटॉमिक एनर्जी प्रोग्राम‘ भी कहा जाता है.

प्रश्न - 59 - *भारत में अभियंता की याद में अभियंता दिवस (Engineer Day) मनाया जाता है?*

उत्तर - विश्वेश्वरैया जी, 1955 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित विश्वेश्वरैया का जन्म मैसूर (कर्नाटक) के कोलार जिले में 15 सितंबर 1860 को एक तेलुगु परिवार में हुआ था. विश्वेश्वरैया भारत के महानतम, विद्वान और एक कुशल राजनेता थे। विश्वेश्वरैया के प्रसिद्ध आविष्कारों में Automatic Sluice Gates’ और Block Irrigation System’ हैं जिन्हें आजकल भी इंजीनियरिंग क्षेत्र में चमत्कार माना जाता है. उन्होंने 1895 में ‘कलेक्टर’ वेल्स के माध्यम से पानी फिल्टर करने का एक कारगर तरीके की खोज की थी जो कि शायद ही कभी दुनिया में कहीं देखा गया था. विश्वेश्वरैया की जन्म तिथि 15 सितंबर को उनकी यादगार के लिए भारत में अभियंता दिवस (Engineer Day) के रूप में मनाया जाता है.

प्रश्न - 60 - *श्रीनिवास रामानुजन् को किस क्षेत्र में योगदान के लिए जाने जाते हैं?*

उत्तर - श्रीनिवास रामानुजन जिनका जन्म 22 दिसम्बर1887 को हुआ था। रामानुजन एक महान भारतीय गणितज्ञ थे। उनका गणितीय विश्लेषण (mathematical analysis), संख्या सिद्धांत (number theory) और अनंत श्रृंखला (Infinite series), के क्षेत्र में असाधारण योगदान रहा हैं. रामानुजन ने शुरू में अपने ही गणितीय शोध विकसित कि और इसे जल्द ही भारतीय गणितज्ञों द्वारा मान्यता दी गई थी।

प्रश्न - 61- *क्वांटम फिजिक्स में किस भारतीय के अनुसंधान ने “बोस-आइंस्टीन स्टैटिस्टिक्स” और “बोस-आइंस्टीन कंडनसेट” सिद्धांत की नींव रखी थी?*

उत्तर - सत्येन्द्र नाथ बोस का जन्म 1 जनवरी 1894 को कोलकाता में हुआ था। बोस भारतीय गणितज्ञ और भौतिक शास्त्री हैं. बोस को “क्वांटम फिजिक्स” में महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है. क्वांटम फिजिक्स में उनके अनुसंधान ने “बोस-आइंस्टीन स्टैटिस्टिक्स” और “बोस-आइंस्टीन कंडनसेट” सिद्धांत की नींव रखी थी. भौतिक शास्त्र में दो प्रकार के अणु माने जाते हैं – बोसान और फर्मियान. इनमे से बोसान सत्येन्द्र नाथ बोस के नाम पर हैं।

प्रश्न -62- *किस भारतीय ऋषि वैज्ञानिक ने शून्य और दशमलव का अविष्कार करके गणित के क्षेत्र में क्रांति लाई? किसने बीजगणित, त्रिकोणमिति के सिद्धांत दिए?*

उत्तर - आर्यभट्‍ट भारत व् दुनिया के सबसे महान खगोलशास्त्रीयों (Kgolshastriyon) और गणितज्ञों में से एक थे। वर्तमान में भी उनके द्वारा किये गए आविष्कार (विज्ञान और गणित के क्षेत्र में) वैज्ञानिकों को प्रेरणा देते हैं. आर्यभट्‍ट का नाम उन व्यक्तियों में आता हैं जिन्होंने बीजगणित (एलजेबरा) का आविष्कार किया था. आर्यभट्‍ट ने अपनी प्रसिद्ध रचना ‘आर्यभटिया’ (गणित की पुस्तक) को कविता के रूप में लिखा. यह प्राचीन भारत की बहुचर्चित पुस्तकों में से एक है. आर्यभट्‍ट द्वारा लिखित आर्यभटिया’ पुस्तक में ज्यादातर जानकारी खगोलशास्त्र और गोलीय त्रिकोणमिति से सम्बंधित है. ‘आर्यभटिया’ पुस्तक में अंकगणित (Arithmetic), बीजगणित (algebra) और त्रिकोणमिति (trigonometry) के 33 नियम भी दिए गए हैं.

प्रश्न - 63 - *भारत के किस राष्ट्रपति को 'मिसाइल मैन' भी कहा जाता है और क्यों?*

उत्तर - डॉ ए. पी. जे. अब्दुल कलाम भारतीय वैज्ञानिक और भारत के 11वें राष्ट्रपति थे। अब्दुल कलाम ने भारत के सबसे महत्वपूर्ण संगठनों (डीआरडीओ और इसरो) में कार्य किया. उन्होंने वर्ष 1998 के पोखरण द्वितीय परमाणु परीक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. डॉ कलाम भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम और मिसाइल विकास कार्यक्रम के साथ भी जुड़े थे. इसी कारण उन्हें ‘मिसाइल मैन’ भी कहा जाता है.

यज्ञ सम्बन्धी प्रश्नोत्तरी (प्रश्न 109)

🔥 *यज्ञ सम्बन्धी प्रश्नोत्तरी (प्रश्न 109)* 🔥

प्रश्न - 109 - *यज्ञ के दौरान मन्त्रों को वेदोक्त ध्वनि ताल लय में गाकर उच्चारण करना बेहतर है या डायरेक्ट साधारण पढ़ने जैसा उच्चारण करना उत्तम है?*

उत्तर - इस प्रश्न का उत्तर समझने से पूर्व आपको पराश्रव्य ध्वनि का सिद्धांत समझना पड़ेगा।

पराश्रव्य (ultrasound) शब्द उन ध्वनि तरंगों के लिए उपयोग में लाया जाता है जिसकी आवृत्ति इतनी अधिक होती है कि वह मनुष्य के कानों को सुनाई नहीं देती। साधारणतया मानव श्रवणशक्ति का परास २० से लेकर २०,००० कंपन प्रति सेकंड तक होता है। इसलिए २०,००० से अधिक आवृत्तिवाली ध्वनि को पराश्रव्य कहते हैं। क्योंकि मोटे तौर पर ध्वनि का वेग गैस में ३३० मीटर प्रति सें., द्रव में १,२०० मी. प्रति सें. तथा ठोस में ४,००० मी. प्रति से. होता है, अतएव पराश्रव्य ध्वनि का तरंगदैर्घ्य साधारणतया १० - ४ सेंमी. होता है। इसकी सूक्ष्मता प्रकाश के तरंगदैर्घ्य के तुल्य है। अपनी सूक्ष्मता के ही कारण ये तरंगें उद्योग-धंधों तथा अन्वेषण कार्यों में अति उपयुक्त सिद्ध हुई हैं और आजकल इनका महत्व अत्यधिक बढ़ गया है। गर्भस्थ शिशु को चेक करने के लिए और पेट के अंदर के विकारों की जांच के लिए अल्ट्रासाउंड का प्रयोग आम बात है। इन ध्वनितरँग से ऑपरेशन, हीरे जैसे ठोस पदार्थ को काटना, ऑपेरशन सबकुछ संभव है। यह ध्वनि तरंग वेव मेकनेकिल मशीन से उतपन्न किया जाता है।

अब इसके साथ साथ आपको प्रकाश के तरंग का सिद्धांत भी समझना होगा। न्यूटन के ही समकालीन जर्मन विद्वान हाइगेंज (Huyghens) ने,सन् 1678 ई. में 'प्रकाश का तरंग सिद्धान्त' (wave theory of light) का प्रतिपादन किया था। इसके अनुसार समस्त संसार में एक अत्यंत हलका और रहस्यमय पदार्थ ईथर (Ether) भरा हुआ है : तारों के बीच के विशाल शून्याकाश में भी और ठोस द्रव्य के अंदर तथा परमाणुओं के अभ्यंतर में भी। प्रकाश इसी ईश्वर समुद्र में अत्यंत छोटी लंबाईवाली प्रत्यास्थ (Elastic) तरंगें हैं। लाल प्रकाश की तरंगें सबसे लंबी होती हैं और बैंगनी की सबसे छोटी। यह भी एक नियम पर काम करता है।

क्वांटम सिद्धान्त का प्रतिपादन 1900 ई. में ऊष्मा विकिरण के संबंध में हुआ था। प्रकाश विद्युत (Photo electricity) की घटना का, जिसमें कुछ धातुओं पर प्रकाश के पड़ने से इलैक्ट्रॉन उत्सर्जित हो जाते हैं और तत्वों के रेखामय स्पेक्ट्रम (Line spectrum) की घटना का, जिसमें परमाणु में से एकवर्ण प्रकाश निकलता है, स्पष्टतया संकेत किसी नवीन प्रकार के कणिकासिद्धांत की ओर है। आइन्स्टाइन ने इन कणिकाओं का नाम फ़ोटान (Photon) रख दिया है। ये कणिकाएँ द्रव्य की नहीं हैं, पुंजित ऊर्जा की हैं। प्रत्येक फ़ोटोन में ऊर्जा E का परिमाण प्रकाश तरंग की आवृत्ति n का अनुपाती होता है, E = hn (जहाँ h प्लांक का नियतांक है)। कॉम्पटन प्रभाव (Compton effect) कहते हैं।

अब इन सिद्धांतों को यज्ञ भी उपयोग में लेता है, वेदमन्त्र की ध्वनि लहरियां और उच्चारण इस तरह बनाएं गए है जिससे अपेक्षित पराश्रव्य ध्वनितरँग निकले, जो औषधियों के होमिकृत के दौरान अग्नि के प्रकाश किरण औषधि पर पड़ते ही उत्सर्जित होने वाले फोटान(photon) अर्थात औषधीय ऊर्जा को ईथर मार्ग से सम्बंधित व्यक्ति, स्थान, वातावरण तक पहुंचा दे। यह पराश्रव्य ध्वनितरँग मनुष्य के शरीर में बिना किसी अवरोध के श्वांस और रोम कूपों से प्रवेश करके अपना प्रभाव दिखाती है।

आपने यज्ञ रिसर्च डॉक्टर ममता सक्सेना की पढ़ी होगी, जिसमें यज्ञ और साधारण धुंए की केस स्टडी बताई गई थी। कि मंत्रोक्त यज्ञ कर प्रभाव से विषाणु नष्ट हुए, जबकि साधारण तरीक़े से जलाए गए अग्नि से वो प्रभाव नहीं पड़ा। इसका मुख्य कारण मन्त्रों की पराश्रव्य ध्वनियों का था जिन्होंने प्रकाश तरंगों की मदद से औषधियों अति सूक्ष्म कणों के साथ उन विषाणुओं पर प्रहार कर उन्हें नष्ट कर दिया। रोगमुक्ति में भी यही ध्वनितरँग अत्यंत सहायक है।

साधारण मंन्त्र उच्चारण में वह पराश्रव्य ध्वनितरँग नहीं निकलती जिससे अपेक्षित लाभ मिल सके। अतः यज्ञ के सम्पूर्ण लाभ के लिए श्रद्धा भाव के साथ मंन्त्र का वेदोक्त उच्चारण लय ताल सुर के साथ करना आवश्यक है, जिससे अपेक्षित पराश्रव्य ध्वनितरँग मुँह से सही तरंगधैर्य(Wavelength), वेग (speed), आवृति (frequency), आयाम (Amplitude) के साथ निकलकर अपेक्षित परिणाम दे सकें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 15 May 2019

यज्ञ सम्बन्धी जिज्ञासा समाधान (प्रश्न 107 एवं 108)

[5/15, 8:45 PM] .: 🔥 *यज्ञ सम्बन्धी जिज्ञासा समाधान (प्रश्न 107)* 🔥

प्रश्न - 107-  *एक प्रश्न और है कि यदि कोई व्यक्ति एक से अधिक रोगों से पीड़ित है तो क्या उसे प्रत्येक रोग के लिए अलग अलग यज्ञ करना होगा या रोग विशेष हवन सामग्रियों को मिला कर यज्ञ करना होगा। यदि मिलाना हो तो किस अनुपात में।*

उत्तर - वात, पित्त, कफ - ये तीन शारीरिक दोष माने गये हैं। ये दोष असामान्य आहार-विहार से विकृत या दूषित हो जाते है इसलिए इसे 'दोष' कहा जाता है। शरीरगत् अन्य धातु आदि तत्व इन्हे दोषों के द्वारा दूषित होता है। इन तीनो दोषों को शरीर का स्तम्भ कहा जाता है। इनके प्राकृत अवस्था एवं सम मात्रा ही शरीर को स्वस्थ रखता है, यदि इनका क्षय या वृद्धि होती है, तो शरीर में विकृति या रोग उत्पन्न हो जाती है। सभी विभिन्न रोग किसी न किसी ग्रुप से सम्बंधित होता है।

एक से अधिक रोग यदि किसी एक ग्रुप से सम्बंधित है, तो आयुर्वेद के अनुसार कई रोगों के लिए एक ही हवन सामग्री बनाई जा सकती है।

लेकिन यदि एक से अधिक रोग अलग ग्रुप से हों, साथ मे उनके उपचार की औषधि के प्रभाव यदि एक दूसरे के विरोधी हुए तो उन्हें एक साथ न मिलाया जा सकता है। न हीं उनकी औषधि एक साथ खाई जा सकती है।

अतः रोग के ग्रुप के अनुसार और उपचार की औषधि पर आयुर्वेद और यग्योपैथी चिकित्सक निर्णय लेंगा कि एक साथ उपचार करना है, या अलग अलग या एक के बाद एक। यह निर्णय जिन्हें औषधियों का ज्ञान न हो नहीं लेना चाहिए।

यज्ञ के उपचार के मंन्त्र भी रोग के ग्रुप अनुसार होते हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
[5/15, 9:03 PM] .: 🔥 *यज्ञ सम्बन्धी जिज्ञासा समाधान (प्रश्न - 108)* 🔥

प्रश्न - 108 - *मैं कॉमन हवन सामग्री से यज्ञ करता हूँ, गायत्री मंत्र, सूर्य गायत्री मंत्र, रुद्र गायत्री मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र की आहुति देता हूँ, तो क्या मुझे स्वास्थ्य लाभ मिलेगा?*

उत्तर - समस्त रोगों की जड़ पेट और मन होता है। यज्ञ से पेट एवं मन दोनों स्वस्थ होते हैं। समस्त मंन्त्र आरोग्यवर्धक और बुद्धिकुशलता देने वाले हैं। सुख सौभाग्य जगाने वाले हैं। शांतिकुंज की कॉमन हवन सामग्री भी औषधियों का ही मिश्रण है। अतः आपको आध्यात्मिक लाभ के साथ स्वास्थ्य लाभ भी अवश्य मिलेगा।

*गायत्री मंत्र* - 24 केंद्रों को जागृत कर प्राण ऊर्जा से भरेगा।
*सूर्य गायत्री मंत्र* - सूर्य तेज से रोग नष्ट करेगा
*रुद्र गायत्री मंत्र* - मनोमानसिक विकार नष्ट करेगा
*महामृत्युंजय मंत्र* - अकाल मृत्यु से रक्षा करेगा और आरोग्यता का लाभ देगा
*शान्तिकुंज की कॉमन हवन सामग्री* - पेट और मन के विकारों का शमन करके स्वास्थ्य लाभ देगी।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न 1 से 201 तक गीता सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

👶🏻👧🏻           *बाल सँस्कार शाला -   केवल श्री मद भगवत गीता सम्बन्धी प्रश्नोत्तर*

👉🏼 *प्रश्न 1 से 201 तक*                                         

प्रश्न १--- धृतराष्ट्र ने संजय से क्या पूंछा ?
उत्तर --- धृतराष्ट्र ने संजय पूंछा कि धर्म क्षेत्र कुरुक्षेत्र में पाण्डव और दुर्योधन क्या कर रहे हैं ?
प्रश्न २ --- संजय ने धृतराष्ट्र को क्या उत्तर दिया ?
उत्तर ---- संजय ने उत्तर दिया की दुर्योधन द्रोणाचार्य के पास जाकर उनका ध्यान दोनों सेनाओं के अवलोकन
                  की तरफ आकर्षित करना चाह रहा है।
प्र्शन ३ ----  संख्या और बल से संपन्न होते हुए भी वह अपनी सेना को पाण्डव की सेना से अपर्याप्त यानी
                  कमजोर क्यों समझता है ?
उत्तर ----- संख्या और बल में संपन्न होते हुए भी वह अपनी सेना को अपर्याप्त इसलिए समझता है क्योकि
                  उसके सेना पति उभय पक्षी भीष्मपितामह हैं जबकि पाण्डव सेना में स्वपक्षी भीम हैं।
प्रश्न  ४ -- श्री कृष्ण के रथ में किस रंग के घोड़े जुते हुए हैं ?
उत्तर --- श्री कृष्ण के घोड़े में सफ़ेद रंग के घोड़े जुते हुए हैं।
प्रश्न ५ --- श्री कृष्ण के शंख का नाम क्या था ?
उत्तर ---- श्री कृष्ण के शंख का नाम पाञ्चजन्य थ है।
प्रश्न ६ --  अर्जुन के शंख का नाम क्या था ?
उत्तर ---- अर्जुन के शंख का नाम देवदत्त था।
प्रशन ७ --- भीम के शंख का नाम क्या था ?
उत्तर ----- भीम के शंख का नाम पौंड्र था।
प्रश्न  ८ ----भीम को बृकोदर क्यों कहा गया ?
उत्तर -------भोजन अधिक करने के कारण।
प्रश्न  ९ ---- युधिष्ठिर के शंख का नाम क्या था ?
उत्तर ---- युधिष्ठिर के शंक का नाम अनंत विजय थ.
प्रश्न १० -- नकुल के शंख का नाम क्या था ?
उत्तर --- नकुल के शंख का नाम सुघोष था।
प्रश्न ११ ----सहदेव के शंक का नाम क्या था ?
उत्तर ----- सहदेव के शंख का नाम मणिपुष्पक था।
प्रश्न १२ --- अर्जुन के झंडे में किसका चिन्ह अंकित था।
उत्तर -----अर्जुन के झंडे में हनुमान का चिन्ह अंकित था।
 प्रश्न १३ ---- अर्जुन को विरित क्यों हो जाती है ?
उत्तर --दोनों सेनाओं में अपने ही सगे सम्बं सम्बन्धियों को देखकर अर्जुन का दिल दहल जाता है। और उन्हें युद्ध से विरित हो जाती है।
प्रश्न १४ ---  स्वजनों के मरने और मारने से किस बात का भय अर्जुन को सर्वाधिक विचलित करता है ?
उत्तर ---  स्वजनों के मरने और मरने से कुलधर्म के नष्ट होने और वर्णशंकर की उतपत्ति का भय अर्जुन को
                विचलित करता है।
प्रश्न १५ --  श्री कृष्ण के समझाने पर भी युद्ध न करने का कारणं अर्जुन क्या बताते हैं ?
उत्तर ---    श्री कृष्ण के समझाने पर भी युद्ध न करने का कारण  अर्जुन बताते हैं कि भीष्मपितामह और       
                  द्रोणाचार्य दोनों ही  पूज्यनीय हैं , जिनसे युद्ध करना होगा। 
प्रश्न १६ ---  यह शरीर यानी देह कैसा है ?
उत्तर ---     यह शरीर परिवर्तन शील और नश्वर है।
प्रश्न १७ --  मोक्ष के योग्य कौन होता है ?
उत्तर --    मोक्ष के योग्य वह होता है जो दुःख -सुख को समान समझे इन्द्रिय और विषय के संयोग से व्याकुल
                 न हो।
प्रश्न १८ -- नाशरहित कौन है ? अथवा  नष्ट  कौन नहीं होता ?
उत्तर ---   नाश रहित जीवात्मा है।
प्रश्न १९ --  नाशवान कौन है ? अथवा नष्ट कौन होता है ?
उत्तर ---  नाशवान शरीर है।
प्रश्न २० --  श्री कृष्ण अर्जुन को पृथा पुत्र क्यों कहते हैं ?
उत्तर ---- श्री कृष्ण अर्जुन को पृथा पुत्र इसलिए कहते हैं क्योंकि अर्जुन कुन्ती के पुत्र हैं और कुन्ती का एक नाम
                पृथा भी है।
प्रशन २१ -- ऐसी कौन सी चीज है जिसे शस्त्र काट नहीं सकते , अग्नि जला नहीं सकती , जल गीला नहीं कर
                   सकता , वायु सुखा नहीं सकती।
उत्तर ---  आत्मा।
प्रश्न २२ --  योग क्या कहलाता है ?
उत्तर ---   फल- अफल , सुख - दुःख , सिद्धि - असिद्धी ,में समत्व ही योग कहलाता है।
प्रश्न २३ --- क्षेम क्या है ?
उत्त्तर --प्राप्त वस्तु की रक्षा का नाम क्षेम है।
प्रश्न २४ -- समत्वं क्या है ?
उत्तर ---- पूर्ण -अपूर्ण एवं फल -अफल में सम भाव ही समत्व है।
प्रश्न २५ --कैसा कर्म निम्न श्रेणी का माना जाता है ?
उत्तर --- सकाम कर्म।
प्रश्न  २६ -- गीता में दल -दल किसे कहा गया है ?
उत्तर ---- मोह को।
प्रश्न २७ --- स्थित प्रज्ञ कौन है ?
उत्तर ------समस्त कामनाओं को त्याग देने वाला , आत्म संतुष्ट व्यक्ति स्थित प्रज्ञ है।
प्रश्न २८ --- स्थिर बुद्धि मनुष्य के क्या लक्षण हैं ?
उत्तर ---- दुःख में उद्विग्न नहीं होने वाला , सुख में निःस्पृह रहने वाला , राग , भय , क्रोध से मुक्त मुनि स्थिर
               बुद्धि  जाता है।
प्रश्न २९ --- स्थिर बुद्धि किसकी हो सकती है ?
उत्तर ------जिसने इन्द्रियों को वश में कर लिया हो।
प्रश्न ३० --- क्रोध कब उत्पन्न होता है ?
उत्तर ------- कामना में विध्न उत्पन्न होने पर।
प्रश्न ३१ ---क्रोध होने पर इंशान पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर ---- ज्ञान (बुद्धि ) का नाश होता है।
प्रश्न ३२ -- दुःख की उत्तपत्ति कब होती है ?
 उत्तर --- निश्चयात्मिका बुद्धि के आभाव में शांत रहित मनुष्य में दुःख की उत्तपत्ति होती है।
प्रश्न ३३ -- शांति किसे प्राप्त होती है ?
उत्तर --- कामना,  ममता , अहंकार , स्पृहा (लालच ) रहित व्यकित को शान्ति प्राप्त होती है।
प्रश्न ३४ --  निष्ठा (पराकाष्ठा ) क्या है ?
 उत्तर ----- साधन की परिपक्व अवस्था अर्थात पराकाष्ठा  नाम निष्ठा है।
प्रश्न ३५ --- सम्पूर्ण निष्ठा किस योग के द्वारा प्राप्त होती है ?
 उत्तर ---- कर्म योग के द्वारा।
 प्रश्न ३५ -- समत्व योग , बुद्धि योग , कर्म योग , तदर्थ कर्म , मदर्थ कर्म , आदि किसे कहा गया है ?
उत्तर ----- निष्काम कर्म योग को।
प्रश्न ३६ -- समत्व योग किसे कहते हैं ?
उत्तर ---- समबुद्धि युक्त पुरुष पाप-पुण्य से ऊपर उठ कर कर्म वन्धन से छूट जाते हैं , और सभी कार्यों में रुचि                लेते हैं तब उसे समत्व योग कहा जाता है।  (सम बुद्धि को )

प्रश्न ३७ ---- निष्ठा कितने प्रकार की होती है ? और कौन - कौन सी होती है ?
उत्तर ------ निष्ठा दो प्रकार की होती है।  सांख्य योग ( भक्ति योग ) ज्ञान योग , कर्म योग।
प्रश्न ३८ -- श्रेष्ठ योग कौन सा मन गया है ?
उत्तर ---- कर्म योग।
प्रश्न३९  --- सर्व प्रथम योग की बात किसने - किससे की थी ?
उत्तर --- कृष्ण ने सूर्य से विष्णु रूप में।
प्रश्न४० -- श्री कृष्ण इस पृथ्वी पर कब - कब आने की बात किससे कहते हैं ?
उत्तर -----  कृष्ण अधर्म की बृद्धि पर आने की बात अर्जुन से कहते हैं।
प्रश्न ४१ --- युद्ध कहाँ हुआ था ?
उत्तर ----- कुरुक्षेत्र में।
प्रश्न ४२ -- कौरव कौन थे ?
उत्तर ----- कुरु के वंशज।
प्रश्न ४३ -- कुरु क्षेत्र का नाम कुरु क्षेत्र क्यों पड़ा ?
उत्तर ----- राजा कुरु के तपो भूमि के कारण।
प्रश्न ४४ -- धृतराष्ट्र कौन थे ?
 उत्तर ---- हस्तिना पुर के राजा।
प्रश्न ४५ -- संजय कौन थे ?
उत्तर ----- धृतराष्ट्र के मुख्य सचिव।
प्रश्न ४६ -- दुर्योधन कौन था ?
उत्तर ---- धृतराष्ट्र का ज्येष्ठ पुत्र।
प्रश्न ४७ -- भीष्म पितामह कौन थे ?
उत्तर ---- कौरव - पांडव पर दादा।
प्रश्न ४८ -- पांडव कौन थे ?
उत्तर ---- राजा पाण्डु के पांच पुत्र।
प्रश्न ४९ -- कर्ण कौन था ?
उत्तर --- सूर्य पुत्र कुंती का बेटा।
प्रश्न ५० -- भीष्म पितामह के माता - पिता का नाम क्या था ?
उत्तर ---  माता का नाम गंगा और पिता का नाम शान्तनु था।
प्रश्न ५१ --  शान्तनु कौन थे ?
उत्तर ---- कुरु के वंशज , हस्तिना पुर के राजा , तथा कौरव - पाण्डव के पूर्वज।
प्रश्न ५२ -- विदुर कौन थे ?
उत्तर ---- कुरु वंश के दासी पुत्र , तथा  धृतराष्ट्र के धार्मिक सलाह कार।
प्रश्न ५३  --- द्वारिका धीश कौन थे ?
उत्तर ---  श्री कृष्ण।
प्रश्न   ५४ -  दुर्योधन - द्रोणाचार्य के पास जाकर क्या कहता है ?
उत्तर ----- कौरव - पाण्डव की सेना पर ध्यान आकृष्ट करने के लिए - दोनों सेनाओं को देखने के लिए कहता है।
प्रश्न ५५ -- द्रोणाचार्य कौन थे ?
उत्तर --- कौरव - पाण्डव के गुरु।
प्रश्न ५६ -- कृपाचार्य कौन थे ?
उत्तर ----- कौरव वंश के कुलगुरु।
प्रश्न ५७ -- विकर्ण कौन था ?
 उत्तर --- दुर्धोधन का भाई।
प्रश्न ५८ --- अश्वत्थामा  कौन था ?
उत्तर ------- द्रोणाचर्य का पुत्र।
प्रश्न ५९ -- अश्वत्थामा एवं द्रोणाचार्य किसके तरफ से युद्ध कर रहे थे ?
उत्तर ---- दुर्योधन के तरफ से (कौरव के तरफ से )
प्रश्न ६० -- दुर्योधन अपनी सेना को कमजोर क्यों समझता है ?
उत्तर ----- क्योंकि उसके सेना पति उभय पक्षी भीष्मपितामह हैं।  जो पांडवों का पक्ष लेते हैं।
प्रश्न ६१ -- पांडव सेना के सेना पति कौन हैं ?
उत्तर ---- धृष्टद्युम्न।
प्रश्न ६२ -- अर्जुन सेना के मध्य में क्यों जाते हैं ?
उत्तर ---- दोनों सेनाओं को देखने के लिए।
प्रश्न ६३ -- अर्जुन के सारथि कौन थे ?
उत्तर ---- श्री कृष्ण।
प्रश्न ६४ -- अर्जुन को युद्ध से सन्यास ( विरति ) क्यों हो जाती है ?
उत्तर --- क्योंकि दोनों पक्षों में उन्ही के कुटुम्बी थे , जिन्हे देखकर उन्हें विरति हो जाती है।
प्रश्न ६५ -- गीता का उपदेश कौन - कहाँ - किसे सुनते हैं ?
उत्तर --- श्री कृष्ण कुरु क्षेत्र में अर्जुन को।
प्रश्न ६६ -- श्री कृष्ण सेना के बीच में जाकर अर्जुन से क्या कहते हैं ? और क्यों ?
उत्तर ---  सुहृदों को देखने के लिए।  क्योंकि वह अर्जुन के अन्तर का मोह जगाना चाहते थे।
प्रश्न ६७ -- श्री कृष्ण कौन सा शंख बजाते हैं ?
उत्तर --- पाञ्चजन्य।
प्रश्न ६८ -- भीम कौन सा शंख बजाते हैं ?
उत्तर -- पौण्ड्र।
प्रशन ६९ -- अर्जुन कौन सा शंख बजाते हैं ? या अर्जुन के शंख का नाम क्या है ?
उत्तर -- देवदत्त।
प्रश्न ७० -- नकुल के शंख का नाम क्या है ?
उत्तर --  सुघोष।
प्रश्न ७१ -- सहदेव के शंख का नाम क्या है ?
उत्तर -- मणिपुष्पक।
प्रश्न ७२ -- संजय - पाण्डव का विस्तार में कौरव का संक्षेप में वर्णन क्यों करते हैं ?
उत्तर -- क्योंकि संजय की आस्था न्याय के तरफ है।
प्रश्न ७३ -- शिखण्डी कौन था ?
 उत्तर -- शिखंडी राजा द्रुपद की पुत्री था , जो तप - बल से पुरुष बनी थी।
प्रश्न ७४ -- युधिष्ठिर के शंख का नाम क्या था ?
उत्तर --- अनन्त विजय।
प्रश्न ७५ -- सेना पति न होते हुए भी सर्व प्रथम युद्ध घोष शंख श्री कृष्ण क्यों बजाते हैं ?
उत्तर --- क्योंकि पाण्डव पक्ष में वही सर्वश्रेष्ठ थे।
प्रश्न ७६ -- द्रुपद कौन थे ?
उत्तर --- द्रुपद - द्रोपदी के पिता एवं पाण्डवों के स्वसुर थे।
प्रश्न ७७ -- जनार्दन कौन थे ?
उत्तर -- श्री कृष्ण।
प्रश्न ७८ --  कितने प्रकार के होते हैं ?नाम बताइये -
उत्तर ----- तीन प्रकार के होते हैं।  नाम है -- भक्ति योग।, कर्म योग , ज्ञान योग।
प्रश्न ७९ --- विभूति क्या कहलाती है ?
उत्तर ----- ऐश्वर्य , अलौकिक शक्ति ही विभूति कहलाती है।
प्रश्न ८० -- स्थित प्रज्ञ किसे कहते हैं ?
उत्तर -----  इन्द्रियों को वश में करने वालों को  स्थित प्रज्ञ कहते हैं।
प्रश्न ८१ --- गीता उपदेश में  कृष्ण ने सबसे बड़ा योग  कौन सा बताया है ?
उत्तर --- निष्काम कर्म योग।
प्रश्न ८२ -- गुण कितने और कौन - कौन से होते हैं ?
उत्तर --- गुण तीन होते हैं - १ - सात्विक २- राजस ३- तामस।
प्रश्न ८३ -- त्रिलोकी क्या है ? उसके नाम कौन - कौन से हैं ?
उत्तर --- त्रिलोकी तीनों लोक हैं - उनके नाम हैं -- मृत्यु लोक २ - स्वर्ग लोक ३ पाताल लोक।
प्रश्न ८४ -- विराट दर्शन किसने किसे दिया ?
उत्तर --- श्री कृष्ण ने अर्जुन को।
प्रश्न ८५ -- सूर्य ने योग विद्या किसे सिखाई थी ?
उत्तर -- मनु को।
प्रश्न ८६ -- मनु ने योग विद्या किसे सिखाई ?
उत्तर --- राजा इक्ष्वाकु को।
प्रश्न ८७ -- चातुष्य वर्ण( चार वर्णों) का उल्लेख गीता में किसके लिए किया गया है ?
उत्तर --- चार वर्णों का उल्लेख - १ ब्राम्हण २ -  क्षत्रिय  ३ - शूद्र के लिए किया गया है।
प्रश्न ८८ -- पंचेन्द्रियों का नाम बताइये --
उत्तर -- पांच इन्द्रियाँ  १- नाक २- कान ३- आँख ४- जीव्हा ५- त्वचा हैं
प्रश्न ८९ -- महाभारत संग्राम का नाम महाभारत क्यों पड़ा ?
उत्तर --- क्योंकि कौरव - पाण्डव राजा  भरत के वंशज थे , इसलिए उन्हें भारत कहा गया।  महा युद्ध कौरव और              पाण्डव के ही बीच हुआ , इसीलिये इस युद्ध का नाम महाभारत पड़ा।
प्रश्न ९० -- भारत शब्द सम्बोधन किसने - किसके लिए किया ?
उत्तर --- श्री कृष्ण ने अर्जुन के लिए।
प्रश्न ९१ --- युद्ध में विजय श्री किसे और क्यों मिलेगी ? यह उद्गार किसने किससे किया ?
उत्तर --- युद्ध में विजय श्री अर्जुन को मिलेगी क्योंकि योगेश्वर  कृष्ण उन्ही के तरफ हैं.
प्रश्न ९२ -- श्री कृष्ण योगेश्वर शब्द पर बल क्यों दिया गया है ?
 उत्तर -- क्योंकि वह महान योगी थे।  योग वल से गीता उपदेश के समय उन्होंने कुरु क्षेत्र में सूर्य की गति को                     रोक दिया था।
प्रश्न ९३ -- वेद कितने होते हैं ? नाम बताइये।
उत्तर -- वेद चार होते हैं -- १ - ऋगवेद २ - सामवेद  ३ - यजुर्वेद  ४ - अथर्ववेद।
प्रश्न ९४ -- श्री कृष्ण के कुल कितने भाव हैं ?
उत्तर -- २० ( बीस )
प्रश्न ९५ -- संसार में प्रभव (मूल कारन ) कौन है ?
 उत्तर -- श्री कृष्ण (अनादि )
प्रश्न ९६ --  प्रकाश में श्री कृष्ण कौन हैं ?
उत्तर ----- सूरज।
प्रश्न ९७ -- वामन रूप में श्री कृष्ण किसके पुत्र थे ?
उत्तर --  अदिति के।  ( वृष्णु )
प्रश्न ९८ -- भूतों (जीव ) के ह्रदय में स्थित आत्मा  कौन है ?
उत्तर ---- श्री कृष्ण।
प्रश्न ९९ --- गीता के अनुसार श्री कृष्ण किस - किस तत्व में क्या - क्या हैं ?
उत्तर --- १- नक्षत्रों में चन्द्रमा हैं   २- वेदों में सामवेद  ३ - देवों में इन्द्र ४- इन्द्रियों में मन ५- ग्यारह रुद्रों में शिव
            ६ - धन के स्वामी कुवेर - आठों वसुओं में   ७- तेज में  अग्नि ८ - पर्वतों में सुमेरु ९ --पुरोहितों में                          बृहस्पति  १० -  सेनापति में स्कन्द ११ -- जलाशयों में समुद्र  १२ - महर्षियों में भृगु  १३ - अक्षर (प्रणव)              में ओंकार  १४ - यज्ञों में जप यज्ञ   १५ - स्थिर में हिमालय  १६ - वृक्षों पीपल  १७ -  देवर्षियों में नारद
             १८ - गन्धर्वों में चित्ररथ  १९ - सिद्धों में कपिल  २० - घोड़ों में उच्चैः श्रवा  २१ हंथियों में ऐरावत  २२-
            मनुष्यों में राजा २३ - शास्त्रों में दंड  २४- गौ में कामधेनु  २५ - सर्पों में वासुकि  २६ - नागों में शेषनाग
           २७ - जलचरों के देवता में  वरुण २८ - पितरों में  अर्यमा  २९ - शाशक में यमराज  ३० - दैत्यों में प्रह्लाद
            ३१ - गणना ( गिनती ) में समय  ३२ - पशुओं में सिंह  ३३ - पक्षियों में गरुण  ३४ - मछलियों ( जलजीवों             में  मगर  ३५ - नदियों गंगा ३६ - शास्त्र धारियों में श्री राम  ३७ - समास में द्वन्द समास  ३८ - छंद में                 गायत्री छंद  ३९ - महीनें में उत्तम मार्गशीर्ष  ४० - ऋतुओं में वसंत  ४१ - कवियों में शुक्राचार्य  ४२ -                 वृष्ण वंश में वासुदेव  ४३ - गुप्त भाव में मौन भाव  ४४-  सबका पालक पोषक में  , चारों तरफ मुख वाला                 विराट  स्वरूप  ४५ -  नष्ट करने वाला मृत्यु  ४६ - उत्पत्ति का कारण  ४७ - स्त्रियों में कीर्ति  , श्री ,वाक् ,             स्मृति ,   मेधा , धृति , क्षमा , ४८ - गायन श्रुतियों में वृहत्साम  ५० - छल में जुआं ५१ - पुरुषों में प्रभाव              ५२ -   जीतने वालों में विजय  ५३ - निश्चय करने वालों में निश्चय  ५४ -  भावों में सात्विक भाव  ५५ -                पाण्डवों में धनञ्जय  ( अर्जुन )  ५६ - मुनियों में वेद व्यास  ५७ - दमन करनेमें दमन शक्ति।  ये सभी श्री            कृष्ण के स्वरूप   हैं।
प्रश्न १००---- विराट रूप किसने और कहाँ धारण किया ?
उत्तर --- श्री कृष्ण ने कुरु क्षेत्र में।
प्रश्न १०१ --अर्जुन के  अतिरिक्ति गीता  उपदेश किसने  देखा और सुना ?
उत्तर ------ संजय ने।
प्रश्न १०२ -- संजय को  कुरुक्षेत्र  दृश्य कैसे दिखाई दिया ?
उत्तर ----- दिव्य दृष्टि से।
प्रश्न १०३ -- संजय को दिव्य दृष्टि कैसे मिली ?
 उत्तर ---- वेद व्यास से।
प्रश्न १०४ -- महाभारत का आँखों देखा वर्णनं किसने किया ?
उत्तर ------ संजय ने।
प्रश्न १०५ - वेद व्यास ने कितने वेद लिखे ?
उत्तर -------चार
प्रश्न १०६ - श्री कृष्ण ने अर्जुन को पार्थ क्यों कहा ?
उत्तर ------ राजा पृथु की पुत्री कुंती का नाम पृथा था , अर्जुन कुंती यानि पृथा के पुत्र थे अतः उनका नाम पार्थ                       पड़ा।
प्रश्न १०७ - वर्णों का विभाजन किस आधार पर किया गया ?
उत्तर ----- गुण और कर्म के आधार पर।
प्रश्न १०८ -- गीता का जन्म कब हुआ ?
उत्तर --- मार्ग शीर्ष माह के शुक्ल पक्ष एकादशी को हुआ।  यह एकादशी मोक्षदा एकादशी के नाम विख्यात है।
प्रश्न १०९ - पुराण कुल कितने हैं ?
उत्तर -------- १८ ( अट्ठारह )
प्रश्न ११० -- पुराणों के रचयिता कौन हैं ?
उत्तर ------ हर्ष लोमश और उग्रश्रवा हैं।
प्रश्न १११ -- किरीटी कौन हैं ?
उत्तर ------ अर्जुन।
प्रश्न ११२ -- अर्जुन का नाम किरीटी क्यों पड़ा ?
 उत्तर ---- इंद्र के द्वारा दिए गए किरीट (मुकुट ) के कारण।
प्रश्न ११३ -- सव्यसांची कौन   हैं ?
उत्तर ----- अर्जुन।
प्रश्न ११४ -- अर्जुन को सव्यसांची क्यों कहा गया।
उत्तर ------ दायें - बाएं दोनों हांथों  धनुष - वान चलाने के   कारण।
प्रश्न ११५ -- विश्वरूप कौन   हैं ?
उत्तर ------ श्री कृष्ण।
प्रश्न ११६ -- चतुर्भुज  किसने धारण किया ?
उत्तर ----- श्री कृष्ण ने।
प्रश्न ११७ -- अस्वत्थ वृक्ष क्या है ?
उत्तर ----- पीपल।
प्रश्न ११८ -- अर्जुन के धनुष का नाम क्या था ?
उत्तर ---- गाण्डीव।
प्रश्न ११९ --- अधिभूत क्या है ?
उत्तर ---- सृष्टि।
प्रश्न १२० - अधिदैव कौन है ?
उत्तर ----- ब्रम्हा।
प्रश्न १२१ - अधियज्ञ कौन है ?
उत्तर ---- श्री कृष्ण।
प्रश्न १२२ - श्री कृष्ण के विश्व रूप का वर्णन किसने - किससे किया ?
उत्तर ------ संजय ने धृतराष्ट्र से।
प्रश्न १२३ -- अर्जुन को गुडाकेश क्यों कहा गया ?
उत्तर ---- नींद पर विजय पाने के कारण तथा घुंघराले बालों के कारण।
प्रश्न १२४ - श्री कृष्ण को ऋषकेश क्यों कहा गया ?
उत्तर ---- जीवों के  ह्रदय में निवास  करने के कारण।
प्रश्न १२५ - अर्जुन ध्वज में किसका चिन्ह है ?
उत्तर ------ हनुमान का।  जिसे कपिध्वज भी कहा गया।
प्रश्न १२६ -- गीता  में कुल कितने श्लोक हैं ?
उत्तर ----७०० (700 ) श्लोक  .
प्रश्न १२७ --  कितने अध्याय हैं ?
उत्तर ------ 18 अध्याय।
प्रश्न १२८ --- पहला शब्द धर्मक्षेत्रे किसने - किससे कहा था ?
उत्तर ------- धृतराष्ट्र ने संजय से।
प्रश्न १२९ -- पहला श्लोक कौन सा था ?
उत्तर ------ धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः। मामकाः पाण्डवश्चैव किम कुर्वत संजयः। .
प्रश्न १३० -- पहला श्लोक किसने - किससे कहा था ?
उत्तर  ------ धृतराष्ट्र ने संजय से।
प्रश्न १३१ -- विषाद होने पर अर्जुन रथ के किस भाग में बैठ गए थे ?
उत्तर ------ मध्य भाग में।
प्रश्न १३२ --  भीम  की बृकोदर क्यों कहा गया है ?
उत्तर ----- अधिक भोजन करने के कारण।
प्रश्न १३३ -- पृथ्वी पर श्री कृष्ण कब -कब आने की बात किससे कहते हैं ?
उत्तर --------अधर्म की बृद्ध होने पर अर्जुन से।
प्रश्न १३४ ---- अश्वत्थ वृक्ष की जड़ कहाँ है ?
उत्तर -------- ऊपर।
प्रश्न १३५ --- अश्वत्थ वृक्ष की शाखा कहाँ है ?
उत्तर ------ नीचे।
प्रश्न १३६ -- श्री मद भगवद् गीता का संवाद किसके बीच होता है।?
उत्तर ------ श्री कृष्ण और अर्जुन के बीच।
प्रश्न १३७ -- ब्रम्हा जी का दिन और रात कितने युग का होता है ?
उत्तर --- 1000 चतुर्युग का।
प्रश्न १३८ -- सत्व गुण , रजो गुण , एवं तमों गुण से कौन गति प्राप्त होती है ?
उत्तर ----- क्रमशः उर्ध्व गति (स्वर्ग लोक ) मध्यम गति ( मृत्यु लोक) , अधो गति ( निम्न योनि -- जैसे कीड़े -                  मकोड़े )
प्रश्न १३९ --- विराट रूप का प्रकाश अर्जुन ने कितने सूर्य के प्रकाश के अधिक बताया ?
उत्तर ---- 1000 करोड़ सूर्य के प्रकाश से अधिक।
प्रश्न १४० -- यम कितने और कौन - कौन से होते हैं ?
उत्तर -----यम पांच होते हैं --- १ - सत्य  २- अहिंसा  ३ - अस्तेय ४ - अपरिग्रह  ५ - ब्रम्हचर्य।
प्रश्न १४१ --- धृतराष्ट्र के कितने पुत्र थे ?
उत्तर ------- 100 .
प्रश्न १४२ ---- चतुर्भुज रूप का दर्शन कैसे होता है ?
उत्तर ------- निर्विकार भाव से भजन करने पर।
प्रश्न १४३ -- गीता का उपदेश श्री कृष्ण के अतिरिक्ति किसने -किसे सुनाया ?
उत्तर ---- संजय ने धृतराष्ट्र को।
प्रश्न १४४ -- अक्षर क्या है , और कौन हैं।
उत्तर --- जिसका क्षरण न हो अर्थात जो नष्ट न हो , वह श्री कृष्ण (वृष्णु ) हैं।
प्रश्न १४५ -- धर्म रक्षक योद्धा के मरने पर उसे क्या प्राप्त होता है ?
उत्तर ---- स्वर्ग लोक।
प्रश्न १४६ -- युद्ध में विजय प्राप्त करने पर योद्धा को क्या प्राप्त होता है ?
उत्तर ----- राज्य।
प्रश्न १४७ -  नरक के कितने द्वार हैं ?
उत्तर ---- नरक के तीन द्वार हैं --१- काम (इक्षा )  २- क्रोध  ३ - मोह  (माया ) .
प्रश्न १४८ -- ईश्वर  प्रिय भक्त  है ?
उत्तर ---- सुख - दुःख , लाभ -हानि , जय - पराजय में समान रहने वाला।
प्रश्न १४९ -- श्री विजय  विभूति कहाँ है ,? यह उद्गार किसका है ?
प्रश्न १५० -- जहाँ श्री कृष्ण और अर्जुन  हैं श्री , विजय , विभूति वहीं है।  यह उद्गार संजय का है।
प्रश्न १५१ -- पहले अध्याय में कौन सा योग है ?
उत्तर --- विषाद योग।
प्रश्न १५२ -- मन कैसा है ?
उत्तर ----- चंचल।
प्रश्न १५३ --संपत्ति कितनी होती हैं ? और कौन - कौन सी होती हैं ?
उत्तर --- संपत्ति दो तरह की होती हैं।  १ -- दैवी  २ -- आसुरी।
प्रश्न १५४ -- विषाद होने पर अर्जुन के हाथ  क्या छूट गया ?
उत्तर ----- धनुष।
प्रश्न १५५ -- प्रवित्ति कितनी और कौन - कौन सी होती हैं ?
उत्तर ---- प्रवित्ति तीन होती हैं  - १ - सात्विक  २ - राजस ३ - तामस
प्रश्न १५६ - श्री मद भगवद् गीता का विवेचन (उपदेश ) किस ग्रन्थ  हुआ ?
उत्तर ---- महाभारत में।
प्रश्न १५७ -- प्रथम क्रम में शंख नाद किसने किया ?
उत्तर ------ भीष्म पितामह ने।
प्रश्न १५८ -- द्वितीय क्रम  शंख किसने वजाया ?
उत्तर ---- श्री कृष्ण नें।
प्रश्न १५९-- कौरव - पाण्डव दोनों एक ही परिवार के थे , फिर भी धृतराष्ट्र पाण्डु पुत्र और मामकाः क्यों कहते हैं ?
उत्तर ----- क्योंकि धृतराष्ट्र के मन में भेद - भाव और पक्षपात था।
प्रश्न १६० --  श्री कृष्ण को मधुषूदन अर्जुन के द्वारा  क्यों कहा गया ?
उत्तर ----- मधु दैत्य  वध करने के कारण।
प्रश्न १६१ -- शरीरी , देहि , क्षेत्रज्ञ , आदि शब्दों का प्रयोग किसके लिए किया गया है ?
उत्तर ----- आत्मा के लिए।
प्रश्न १६२ ---  क्षेत्र , देह , शरीर शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है ?
उत्तर ------ शरीर के लिए।
प्रश्न १६३ -- श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश किस मुद्रा में दिया ?
उत्तर ------ मुश्कुराते हुए।
प्रश्न १६४ -- शरीर कैसा है ?
 उत्तर --- परिवर्तन शील।
प्रश्न १६५ -- मृत्यु केबाद आत्मा कहाँ चली जाती है।
उत्तर ----- एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में प्रविष्ट हो जाती है।
प्रश्न १६६ -- आत्मा  कैसी है ?
उत्तर ----- अजर - अमर।  इसे न काटा जा सकता है , न जलाया जा सकता है , न गीला किया जा सकता है ,
                  न ही सुखाया जा सकता है।
प्रश्न १६७ -- गीता में पार्थ शब्द का प्रयोग कितने बार किया गया है ?
उत्तर ----- 38 बार .
प्रश्न १६८ ---- अष्टांग योग क्या है ?
उत्तर ------- यम , नियम , आसन , प्राणायाम , प्रत्याहार , धारणा , ध्यान , समाधि यही आठों योग अष्टांग                          योग कहलाते हैं।
प्रश्न १६९ - यम कितने होते हैं ?
उत्तर ----- यम  पांच होते हैं।
प्रश्न १७० -- योगी कितने प्रकार होते हैं ?
उत्तर ------ योगी आठ प्रकार के होते हैं --- १ - कर्म योगी  २- ज्ञान योगी  ३- ध्यान योगी  ४- लय योगी
                 ५- हठ योगी  ६- राज योगी  ७-  मंत्र योगी  ८-  अनाशक्त योगी।
प्रश्न १७१ --- भक्त के लक्षण कौन -कौन से हैं ?
उत्तर -------  १ - समत्व बुद्धि और मनन शील  २- निष्काम कर्म करने वाला  ३- सबका प्रेमी
                    ४- राग द्वेष भाव रहित   ५-  सर्व संकल्पों का आभाव  ६-  इन्द्रिय भोगों में अनाशक्ति
                     ७-  सर्दी - गर्मी , सुख - दुःख , मान - अपमान , में सम भाव रखने वाला।  ८ - हेतु रहित दयालु
                     ९ -  परमात्मा के शिवाय अन्य कुछ भी नहीं है , यह भावना मन में रखने वाला ,  १० -  विकार
                      रहित स्थिति  ११- मिट्टी - पत्थर , स्वर्ण को एक समान मनाने वाला  १२ -  संग्रह रहित ,                                वासना - मन और इन्द्रियों पर काबू रखने वाला ममता , अहंकार , काम - क्रोध , मद - मत्सर
                    रहित हो।  यही सब भक्त के लक्षण होते हैं।
प्रश्न १७२ -- भक्ति के उपाय क्या -क्या हैं ?
उत्तर ----------- १ भगवान की उपाशना ,  २- कर्म करने के बाद फल भगवान को अर्पण कर देना  ३-  धंधा या
                        नौकरी करने के बाद प्राप्त धन राशि का कुछ भाग जन कल्याणार्थ उपयोग करना ,४- ज्ञान
                        बढ़ाना ५ - सत्संग करना ६- फल की अपेक्षा न करना  आदि भक्ति के उपाय हैं।
प्रश्न १७३ --- गीता के पूरे १८ ( अट्ठारह ) अध्याय में कौन - कौन से योग का वर्णन है /
उत्तर ---------- प्रथमं अर्जुन विषाद योगं ,  द्वितीयं च सांख्य योगं।
                      कर्म योगम् तृतीयकम् , चतुर्थकम् ज्ञान - कर्म - सन्यास च।

                      पंचमम कर्म -सन्यास योगं , षष्टम आत्मसयंमम च।  .
                     ज्ञान -विज्ञान योगं सप्तमम्, अक्षर ब्रम्ह अष्टमम् च।

                     नवमम् राज विद्या - राज गुह्यं , दसमम विभूति योगं।
                     एकादशः विश्वदर्शनम् , भक्ति योगं च द्वादशः।

                     त्रयोदशः क्षेत्र - क्षत्रज्ञ विभाग , गुण त्रय विभाग च चतुर्दशः।
                    पुरुषोत्तम योग पंचदशः , दैवा सुर सम्पद्विभाग च षोडशः।

                   सप्त श्रद्धा त्रय विभाग , मोक्ष - सन्यास च अष्टदशः।
                  इति अष्टादशः योगं , गीतोपनिषद वर्णनम्। .
         
             १ - अर्जुन विषाद योग  २-  सांख्य योग  ३-  कर्म योग  ४-  ज्ञान - कर्म सन्यास योग  ५ -  कर्म सन्यास               योग     ६ -  आत्म संयम योग  ७-  ज्ञान - विज्ञानं योग  ८-  अक्षर ब्रम्ह योग  ९ -  राज विद्द्या -
              - राज गुह्य योग  १० -  विभूति योग  ११ -  विश्वरूप दर्शन योग  १२ - भक्ति योग  १३-  क्षेत्र - क्षत्रज्ञ
               विभाग योग  १४-  गुण त्रय विभाग योग  १५-  पुरुषोत्तम योग  १६ - दैवा सुर सम्पद विभाग योग
               १७ -  श्रद्धा त्रय विभाग योग  १८ -  मोक्ष - सन्यास योग।

प्रश्न १७४ -- अर्जुन के विषाद ग्रस्त होने पर  क्या अवस्था हुई ?
उत्तर ----     अंग शिथिल होने लगे , मुख सूखने लगा , शरीर में कम्पन होने लगा , रोंगटे खड़े होने लगे , हाथ से
                   गाण्डीव छूटने लगा , त्वचा में जलन होने लगी।
प्रश्न १७५ --   नरक में ले जाने वाला कौन होता है।
उत्तर ---------- वर्ण संकर।
प्रश्न १७६ ---श्री मद भगवद् गीता के प्रत्येक अध्याय की समाप्ति पर महर्षि वेदव्यास ने क्या पुष्पिका लिखी है
उत्तर -------- ओम तत शत श्री मद भगवत् गीता शूपनिषत्सु ब्रम्ह विद्यायां योग शास्त्रे श्री कृष्ण अर्जुन संवादे
                    -------- अध्यायः कहते हैं।
प्रश्न १७७ -----  श्री मद भगवद् गीता को गीता क्यों कहा गया है ?
उत्तर ---------   क्योंकि भगवान  कृष्ण ने इसे आनंद में आकर गया है इसलिए गीता कहा गया।  इसके                                     अतिरिक्ति  संस्कृत व्याकरण के अनुसार गीत होना चाहिए , उपनिषद् स्वरूप होने से स्त्री लिंग                        गीता कहा गया।
प्रश्न १७८ --   गीता  उपनिषद् क्यों कहा गया ?
उत्तर ---------  गीता में समस्त उपनिषदों का सार तत्व संग्रहीत है , और यह भागवत वाणी है इसलिए इसे                               उपनिषद् कहा गया।
प्रश्न १७९ ---   श्री मद भगवद् गीता को श्री कृष्ण अर्जुन संबाद क्यों कहा गया ?
उत्तर --------- क्योंकि गीता में अर्जुन निःसंकोच भाव से प्रश्न किये और भगवान ने उदारता पूर्वक उत्तर दिया
                     इस कारण इन दोनों नाम की विशेष महिमा है अतः इसे श्री कृष्ण अर्जुन संबाद कहा गया।
प्रश्न १८० --- प्रथम अध्याय में कितने श्लोक हैं ?
उत्तर ---------४७  (47 )
प्रश्न १८१ ---    सबसे अधिक श्लोक किस अध्याय में हैं ?
उत्तर ---------- १८ (अट्ठारह ) ७८ (78 )
प्रश्न १८२ ---  विद्वान या पंडित लोग किस बात का शोक नहीं मानते ?           (  २ /११ )
उत्तर ----------   जिनके प्राण चले गए हों , या नहीं गए हों , किसी  लिए भी विद्वन या पंडित  शोक नहीं मानते। प्रश्न १८३ ----  श्री मद भगवद् गीता के अनुसार अविनाशी किसे मानना चाहिए ?
उत्तर --------- जिनसे सम्पूर्ण संसार व्याप्त है , जिसका कोई विनाश नहीं कर सकता , उसे अविनाशी मानना                          चाहिए।
प्रश्न १८४ --श्री मद भगवद् गीता किस महाग्रंथ के अंतर्गत वर्णित है ?
उत्तर ------ महाभारत।
प्रश्न १८५ --- श्री मद भगवत् गीता किस पर्व के अंतर्गत कही गयी है ?
उत्तर ------- भीष्म पर्व।
प्रश्न १८६ --- श्री मद भगवद् गीता भीष्म पर्व के अंतर्गत किस अध्याय से आरम्भ होकर किस अध्याय में                             समाप्त होती है ?
 उत्तर ------- भीष्म पर्व 13 अध्याय से प्रारम्भ होकर 42 अध्याय में पूर्ण होती है।
प्रश्न १८७ --- अत्र शूरा महेश्वासा शब्द का अर्थ क्या है ?                                     ( १/४ )
उत्तर --------- जिनसे वान चलाये या फेके जाते हैं , उसे ईश्वास अर्थात धनुष कहते हैं।  अतः बड़ा और विशेष                            धनुष को धारण करने वाले को महेश्वासा कहते हैं।
प्रश्न १८८ -- सेनयोर्मध्ये गीता में कितनी बार आया है ?
उत्तर -------- तीन बार -- १ -- सेनाओं की विशालता ( विस्तार ) देखने के लिए , २ -- उपस्थित कुटुम्बियों के
                   परिवार भाव से ,   ३-- विषाद मग्न अर्जुन को गीता उपदेश के भाव से।
प्रश्न १८९ --  श्री कृष्ण को अर्जुन के द्वारा माधव क्यों कहा गया ?                     
उत्तर ----------    माधव का अर्थ माँ लक्ष्मी , धव का अर्थ पति  लक्ष्मी पति यानि श्री कृष्ण विष्णु का पूर्ण                                   अवतार होने के कारन  माधव कहा गया।
प्रश्न १९० --- अमरत्वं किसे मिलता है ?                                          २/१५
उत्तर ----------- दुःख - सुख में सम रहने वालों को।
प्रश्न १९१ --- अविनाशी कौन है ?                                                         २/१७
उत्तर --------- जो न मरता, न नष्ट होता , सम्पूर्ण जगत में हरदम व्याप्त रहता है।
प्रश्न १९२ --- गीता के अनुसार अर्जुन ( मनुष्य ) का अधिकार क्या है ?                         २/४७
 उत्तर ------- कर्तव्य का पालन।
प्रश्न १९३ ---स्थित प्रज्ञ व्यक्ति के लक्षण क्या हैं ?                                                        २/ ५५ , २ /५६
उत्तर ------  कामनाओं को त्याग देता है , स्वतः संतुष्ट रहने वाला , सुख - दुःख राग , क्रोध रहित व्यक्ति
                  स्थित प्रज्ञ होता है।
प्रश्न १९४ -- शांति किसे प्राप्त हो सकती है ?                                                         २/७१
उत्तर ------   ममता , अहंता , स्पृहा , कामनाओं के त्यागी को शांति मिल सकती है।
प्रश्न १९५ --- परमार्थ मार्ग में विध्न डालने बाले शत्रु कौन होते हैं ?                                 ३/३४
उत्तर ----      सभी विषयों में रत  इन्द्रयाँ , और राग -द्वेष।
प्रश्न १९६ --  श्री मद भगवद् गीता में कौन सा धर्म सर्वश्रेष्ठ बताया गया है ?                           ३/३५
उत्तर -------    अपना।
प्रश्न १९७ ---   पाप कर्म करने वाला  किससे प्रेरित होकर पाप करता है ?                                     ३/ ३६ , ३/ ३७
उत्तर -------      कामनाओं से।  ( क्रोध और रजोगुण बढ़ने के कारण )
प्रश्न १९८ --- कल कितने होते हैं ?                                                            ७/२६
उत्तर ------ तीन   १ - वर्त्तमान काल  २-- भूत काल   ३--- भविष्य काल।
प्रश्न १९९ -- भक्ति के मार्ग कितने हैं ?                                                            १२/१
उत्तर ------     दो --  १ --  निर्गुण  २ -- सगुण।
प्रश्न २०० -- वैदिक नियम को ग्रहण करने वाले कार्य का प्रारम्भ किस शब्द के उच्चारण से करते हैं ?    १७/२४
उत्तर --------  ॐ।
प्रश्न २०१ -- कर्म - अकरम के पांच हेतु ( कारण ) कौन -कौन से हैं ?                    १८/१३
उत्तर ------- -१   --  अधिष्ठान (शरीर ) ,   २ --- करता ,  ३-- कारण  ४-  (पांच कर्मेन्द्रियाँ , पांच ज्ञानेंद्रियाँ , और मन -बुद्धि , अहंकार , 13 कारण )   ४ -- कारणों की अलग - अलग चेष्टाएँ   ५ -- स्वाभाव।

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...