Saturday 28 December 2019

प्रश्न - *शिक्षकों के लिए नित्य गायत्री मंत्र जप व ध्यान क्यों आवश्यक है?*

प्रश्न - *शिक्षकों के लिए नित्य गायत्री मंत्र जप व ध्यान क्यों आवश्यक है?*

उत्तर - हमारे देश में 99% उद्विग्न, व्यग्र व अशांत होकर, बेमन से पढ़ने छात्र-छात्रा स्कूल आते हैं।

उनकी व्यग्रता को शांत एक स्थिर मन का शांतचित्त व प्रशन्न चित्र शिक्षक ही कर सकता है। वह स्वयं की मानसिक स्थिरता से बच्चों के मन में स्थिरता का संचार कर सकता है।

गायत्री मंत्र जप व ध्यान शारीरिक व मानसिक फिटनेस बढ़ाता है, एकाग्रता बढ़ाता है, स्पष्टता बढ़ाता है, अवेयरनेस/जागरूकता बढ़ाता है, अवलोकन/ऑब्जर्वेशन के कौशल में सुधार करता है। आपको हल्का महसूस कराता है, सकारात्मक पॉजिटिव कंपन/वाइब्रेशन पैदा करता है। आपकी मन की शांति व स्थिरता बच्चों को प्रभावित करती है। नित्य ध्यान करने वाले शिक्षकों को बच्चों के मनोभावों को समझने में आपको आसानी होती है। यह मेडिकली भी अब प्रूव हो चुका है।

पढ़ाना अर्थात वक्ता की तरह विषय वस्तु को बोलना लेकिन यदि श्रोता गण सुनने को तैयार ही न हों, उनके मनोभाव रिसीव ही न करें तो मेहनत आपकी व्यर्थ हो जाती है। अतः पढ़ाने से पूर्व पढ़ने व सुनने की मनःस्थिति बच्चों की तैयार करवाना अति अनिवार्य है।

यदि 45 मिनट की क्लास में शुरू में 3 से 5 मिनट उन छात्र छात्राओं को 1 मिनट गायत्री मंत्र जप, 2 मिनट डीप ब्रीथिंग और अत्यंत छोटे से 2 मिनट के ध्यान द्वारा एकाग्र कर दिया जाय तो अगले 40 मिनट को वो ग्रहण करने, सुनने को तैयार हो जाते हैं।

शिक्षक व छात्र-छात्राओं की चित्त की स्थिरता शिक्षण की गुणवत्ता को कई गुना बढ़ा देता है। शुरू शुरू में थोड़ी कठिनाई होगी, मगर एक बार अभ्यस्त हो गए तो कमाल हो जाएगा। यह प्रयोग एक बार करके देखें व 6 महीने में स्वयं परिणाम सुखद अनुभव करेंगे।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday 27 December 2019

कविता - *तन-मन को स्वस्थ रखने का, हर सम्भव प्रयास कीजिये*

कविता - *तन-मन को स्वस्थ रखने का, हर सम्भव प्रयास कीजिये*

निज अस्तित्व के लिए संघर्ष,
हर जीव वनस्पति करती है,
सबके जीवन की सफ़लता,
उनकी कर्मठता पर निर्भर करती है,
जन्म से लेकर मृत्यु तक,
सभी आत्माएं संघर्षरत ही रहती हैं।

मानव शरीर की,
सबसे क़ीमती धरोहर,
मन मष्तिष्क ही होता है,
जिसका जितना मष्तिष्क चलता है,
उसका जीवन उतना ही सफ़ल बनता है।

जब हम किसी चीज़ का,
उपयोग करना बंद कर देते हैं,
तब उस वस्तु में धीरे धीरे,
जंग लगने लगती है,
जिसके अंदर नया सीखने की,
ललक नहीं होती है,
उसके जीवन की प्रगति,
सदा अवरुद्ध ही रहती है।

सफ़ल जीवन जीना है तो,
कुछ रोज नया सीखिए,
चिंता से नाता तोड़कर,
चिंतन करना सीखिए,
जीवन की पहेली को,
बुद्धि प्रयोग से हल कीजिये,
जीवन के खेल का,
खिलाड़ी बन आनन्द लीजिये।

एकाग्रता का नित्य,
थोड़ा थोड़ा अभ्यास कीजिये,
मन स्थिर व कमर सीघी करके,
नित्य ध्यान में बैठा कीजिये,
लयबद्ध श्वांसों से,
भ्रामरी व नाड़ीशोधन,
प्राणायाम कीजिये,
स्वयं की चेतना का योग,
परमात्म चेतना से कीजिये।

अपने अस्तित्व के लिए,
नित्य संघर्ष कीजिये,
तन मन को स्वस्थ रखने का,
हर सम्भव प्रयास कीजिये,
मनुष्य ही अपने भाग्य का निर्माता है,
मनुष्य ही अपने भाग्य का विधाता है,
इस पर विश्वास रखते हुए,
निज जीवन की कमान,
स्वयं सम्हाल लीजिये,
तन-मन को स्वस्थ रखने का,
हर सम्भव प्रयास कीजिये।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Thursday 26 December 2019

क्या आप शिक्षक है? और शिक्षण को गम्भीरता से लेते हुए शिक्षण में गुणवत्ता सुधार हेतु प्रयत्नशील है और मार्गदर्शन चाहते है?

*क्या आप शिक्षक है? और शिक्षण को गम्भीरता से लेते हुए शिक्षण में गुणवत्ता सुधार हेतु प्रयत्नशील है और मार्गदर्शन चाहते है?*🙏

*पूर्व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी* कहते हैं कि - *शिक्षा से तातपर्य मूलतः व्यक्तित्व के समग्र विकास व प्रतिभा का पूर्णतया निखार है। जिससे व्यक्ति स्वयं के निर्माण व समाज उत्थान में अहम भूमिका निभा सके।*

*स्वामी विवेकानंद जी कहा है कि मनुष्य की अंतर्निहित पूर्णता को अभिव्यक्त करने वाली प्रक्रिया का नाम शिक्षा है।*

*आ• वीरेश्वर उपाध्याय जी कहते हैं,  मनुष्य में मानवता गढ़ने व उसमें देवत्व उभारने की प्रक्रिया विद्या है, शिक्षा से मिले ज्ञान को उपयोग कहाँ करना है यह विद्या सिखाती है। कोई भी शक्ति वह चाहे शिक्षा हो, हथियार हो, विज्ञान हो या बुद्धि हो स्वयं में अच्छा बुरा नहीं होता। उसका उपयोगकर्ता चेतना मनुष्य के अच्छे बुरे होने पर उसका उपयोग अच्छा बुरा होता है।*

*शिक्षण जगत से जुडी कई समस्याओं का समाधान और प्रश्नों को हल पुस्तक - वांगमय 41 "शिक्षा एवं विद्या" से पा सकते है।*


इस वांगमय के कुछ महत्वपूर्ण चैप्टर जो आपके कई प्रश्नों को सुलझा सकते हैं ?

१. शिक्षा का सही स्वरूप क्या हो? - पृष्ठ 1.1

२. क्या शिक्षा का उद्देश्य व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास ? - पृष्ठ 1.3

३. क्या शिक्षा ऐसी हो जो जीवन की समस्या सुलझाए? - पृष्ठ 1.17

४. क्या शिक्षा के साथ शिक्षा प्राप्ति का उद्देश्य जोड़ा जाना चाहिए ? - पृष्ठ 1.25

५. लोग आज की उच्च शिक्षा को एक जाल-जंजाल क्यों मानते हैं ? - पृष्ठ 1.49

६. आधुनिक शिक्षा की विचारणीय समस्याएं ? - पृष्ठ 1.58

७. प्राचीन शिक्षा पद्धति की उपयोगिता ? - पृष्ठ 1.51

८. भारतीय शिक्षा पद्धति में क्या परिवर्तन आवश्यक है ? - पृष्ठ 1.59

९. कठिनाइयों की पाठशाला में साहस व पुरुषार्थ का शिक्षण क्यों जरूरी है? - पृष्ठ 1.133

१०. बौद्धिक कायाकल्प में समर्थ शिक्षा कैसे बने ? - पृष्ठ 2.1

११. शिक्षितो की नैतिक जिम्मेदारी क्या है ? - पृष्ठ 2.14

१२. बच्चों को शिक्षा के साथ साथ सुसंस्कार भी दें.. पृष्ठ 2.24

१३. सोवियत विद्यार्थी का जीवनक्रम  - पृष्ठ 2.22

१४. सेवा साधना के सहारे व्यक्तित्व का उत्कर्ष कैसे हो ? - पृष्ठ 2.59

१५. छात्र निर्माण एक टीम वर्क है, छात्र निर्माण में शिक्षको व अभिवावकों की भूमिका ? -  पृष्ठ 3.1

१६. शिक्षको के महान उत्तरदायित्व क्या है? - पृष्ठ 3.7

१७. शिक्षण प्रशिक्षण उपयुक्त सही वातावरण क्या हो ? - पृष्ठ 3.47

१८. अनुशासित छात्र ही प्रगतिशील समाज के कर्णधार ? - पृष्ठ 3.52

१९. आस्तिकता क्यों आवश्यक है? - 3.67

२०. अभिवावकों का सहयोग क्यों आवश्यक है? - पृष्ठ 3.68

२१. स्कूल भेजने के साथ यह भी ध्यान रखे? - पृष्ठ 3.81

२२. शिक्षा-विस्तार ही समाज की प्रगति का मूल आधार क्या है ? - पृष्ठ 4.1

२३. शिक्षण का लक्ष्य हो - सोये को जगाना ? - पृष्ठ 4.5

२४. अशिक्षा की तरह दुर्बुद्धि भी विघातक है ? - पृष्ठ 4.54

२५. व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास शिक्षा और विद्या के समन्वय से ? - पृष्ठ 5.1

२६. जीवन विद्या का विस्तार - जिसे किये बिना कोई गति नहीं - पृष्ठ 5.44

२७. एक लाख अध्यापकों द्वारा विद्या विस्तार का श्री गणेश - पृष्ठ 5.45

28. लोकमानस-परिष्कार का प्रशिक्षण - 5.52

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मैकाले की शिक्षा नीति आज भी पढ़ाई तथा दिखाई जाती है। जब उसका 17 साल का प्रवास पूरा हुआ तो वह व्रिटेन की संसद में हाउस आफ कामन में 2 फरवरी 1835 को कुछ इस प्रकार एक लम्बा भाषण दिया था। उसके प्रमुख अंश इस प्रकार हैं –

I have travelled across the length and breadth of India and have not seen one person who is a beggar, who is a thief, such wealth i~ have seen in this country, such high moral values, people of such caliber, that i~ do not think we would ever conquer this country, unless we break the very backbone of this nation, which is her spiritual and cultural heritage, and, therefore, i~ propose that we replace her old and ancient education system, her culture, for if the Indians think that all that is foreign and English is good and greater than their own, they will lose their self esteem, their native culture and they will become what we want them, a truly dominated nation’

इसी भाषण के अन्त में वह कहता है – ‘‘ भारत में जिस व्यक्ति के घर में मैं कभी भी गया तो मैंने देखा कि वहां सोनों के सिक्को का ढ़ेर एसे लगा रहता है जैसे कि चने या गेहूं का ढ़ेर किसानों के घरों में लगा रहता है।’’ वह कहता है कि भारतवासी कभी इन सिक्कों को गिन नहीं पाते, क्योकि उन्हें गिनने की फुर्सत नहीं होती है। इसलिए वे इसे तराजू पर तौलकर रखते हैं। किसी के घर पर 100 किसी के 200 तो किसी के यहां 500 किलो सोना रहता है। इस तरह भारत के घरों में सोने का भंडार भरा हुआ था।

*स्वयं विचार कीजिये ... शिक्षा जगत में परिवर्तन व शिक्षा की गुणवत्तापूर्ण में सकारात्मक सुधार की कितनी आवश्यकता है।*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 25 December 2019

प्रश्न- *दी, हम सरकारी शिक्षक हैं, एक क्लास में 80 से 100 बच्चे हैं। यह सब ग्रामीण बच्चे हैं, मजदूरों के बच्चे हैं या झुग्गी झोंपड़ी के बच्चे हैं। इनके माता-पिता से कोई सपोर्ट नहीं मिलता। घर पर पढ़ने का माहौल ही नहीं है। सम्हालना व पढ़ाना अति दुष्कर कार्य है। जबकि प्राइवेट स्कूल में एक शिक्षक को मात्र 20 से 40 बच्चों को सम्हालना होता है, और उन्हें माता-पिता का भी सपोर्ट मिलता है। मार्गदर्शन करें...*

प्रश्न- *दी, हम सरकारी शिक्षक हैं, एक क्लास में 80 से 100 बच्चे हैं। यह सब ग्रामीण बच्चे हैं, मजदूरों के बच्चे हैं या झुग्गी झोंपड़ी के बच्चे हैं। इनके माता-पिता से कोई सपोर्ट नहीं मिलता। घर पर पढ़ने का माहौल ही नहीं है। सम्हालना व पढ़ाना अति दुष्कर कार्य है। जबकि प्राइवेट स्कूल में एक शिक्षक को मात्र 20 से 40 बच्चों को सम्हालना होता है, और उन्हें  माता-पिता का भी सपोर्ट मिलता है। मार्गदर्शन करें...*

उत्तर- आत्मीय दी, एक प्रश्न स्वयं से पूंछो क्या गवर्नमेंट टीचर की नौकरी छोड़कर प्राइवेट टीचर बनना चाहोगी?
उत्तर में नहीं बोलोगी, क्योंकि एक सरकारी टीचर की सैलरी में तीन से चार प्राइवेट टीचर मिल जाएंगे। वो भी  अत्यंत क्वालिफाइड और डेडिकेटेड, क्योंकि प्राइवेट जॉब में परफॉर्म नहीं करोगे तो तुरंत निकाल दिए जाओगे।

सरल कार्य के लिए कम सैलरी और कठिन कार्य के लिए ज्यादा सैलरी संसार में मिलती है। कठिन व चुनौतीपूर्ण कार्य है इसलिए तो आपको सरकार ने चुना है। ख़ुद से सवाल कीजिये यदि मैं प्राइवेट टीचर से ज्यादा चार गुना सैलरी ले रही हूँ तो मुझे प्राइवेट टीचर से चार गुना काम करना है।

एक सूर्य इतना चुम्बकत्व पैदा करता है कि पूरे ग्रह नक्षत्रों को उनकी धुरी से हटने नहीं देता। उन्हें नियंत्रित करता है। कोई उसे जल चढ़ाएं या न चढ़ाए व सुबह नियम से उठता है।

समस्या जहां है समाधान वहीं है। यदि समाधान ढूंढेंगी तो समाधान मिलेगा, समस्या गिनेंगी तो समस्या बड़ी दिखेगी।

🙏🏻 *मेरे पिताजी बहुत बड़े सरकारी शिक्षा अधिकारी थे, उनका ट्रांसफर होता रहता था। एक बार उन्हें मीटिंग में चैलेंज किया गया कि सरकारी शिक्षा ऑफिसर अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में नहीं डालते व भाषण देते हैं। सीधी मध्यप्रदेश की घटना है, हमको प्राइवेट स्कूल से निकालकर सरकारी स्कूल में डाल दिया गया। उस वक्त हम 6th क्लास में थे। 30 बच्चों के एक क्लास में पढ़ते थे अब समुद्र में पहुंच गए। 80 से 85 बच्चे थे, ऐसा लगा मानो समुद्र में पहुंच गए। पिताजी सभी सरकारी स्कूल के उत्थान में जुट गए थे, संसाधन सीमित थे लेकिन उनका मोटिवेशन हाई था।*
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*उन्होंने कुछ निम्नलिखित सुझाव सभी सरकारी स्कूल के टीचर व प्रिंसीपल को बुलाकर शिक्षण गुणवत्ता सुधार हेतु दिया था:-*

1- प्रत्येक क्लास में कुछ बच्चे होशियार होते हैं, अतः 5 बच्चों को विभिन्न पदों के लिए मॉनिटर बनाओ। उनसे क्विक अटेंडेंस लेने में मदद लो।

2- कुछ एक्स्ट्रा एफर्ट लगा के उन बच्चों को ऐसा तैयार करो कि जब तुम रिपोर्ट वगैरह बनवा रहे हो तो वह बच्चे तुम्हारा कराया रिविजन वर्क बच्चों को करवा दें।

3- पूरे स्कूल में चुनाव करवाओ और क्लास लेवल का और स्कूल लेवल अध्यक्ष उपाध्यक्ष खेल व इनोवेशन का बनवाओ।

4- उन्हें समस्या दो व उनके समाधान ढूंढने के लिए प्रेरित करो।

5- बच्चों का हथेली पेपर पर रख के उसके चारों तरफ पेन घुमाओ। जब हथेली का प्रिंट बनकर तैयार हो जाये तो उसमें लिखवाओ, मेरी किस्मत मेरे हाथ मे है। मैं अपने भाग्य का निर्माता हूँ। मैं मेरा भाग्य अच्छा लिखूंगा। जो मैं बोउंगा वही काटूँगा।

6- कठिन परिस्थिति से निकले और गरीबी की जंजीरों को तोड़कर महान बने महापुरुषों की कहानियाँ प्रत्येक शनिवार को सांस्कृतिक प्रोग्राम में बच्चों को एकत्र करो और उन बच्चों से बुलवाओ।

7- वीररस की कविताओं का सांस्कृतिक कार्यक्रम में पाठ करवाओ।

8- बच्चों को सेल्फ मोटिवेटेड करो।

9- तुम अपने कर्तव्यों का पालन करो आगे फल ईश्वर पर छोड़ दो। मेरे बच्चे भी आपके स्कूल में पढ़ रहे हैं, मुझे रिपोर्ट मिलती रहेगी।

10- प्रिंसिपल सर आप केवल शिक्षकों का भी सांस्कृतिक कार्यक्रम रखेंगे, उनसे मोटिवेशनल टाक सुनेंगे, उन्होंने इस महीने क्या प्रश्न उत्तर बैंक बच्चों के लिए तैयार किये? क्या पढ़ाने के लिए इनोवेशन सोचा? जो बेहतर करे उसे पुरस्कृत करें। कम्पटीशन करवाएं।

11- सभी अध्यापक गण ध्यान रखें कि घर की टेंशन स्कूल नहीं पहुंचनी चाहिए और स्कूल की टेंशन घर नहीं जाना चाहिए। यह शिक्षक बनने का निर्णय आपका था, अतः यह जिम्मेदारी निष्ठा से निभाएं।

12- चिकित्सक की ग़लती कब्र में या तो दफ़न हो जाती है या चिता में जल जाती है। वकील की गलती थोड़ी तबाही लाती है। मिस्त्री की ग़लती भवन में कुछ को दिखती है। इंजीनियर की गलती से पुल टूटते हैं और कुछ मरते हैं। मग़र शिक्षक की ग़लती पूरे समाज में तबाही लाती है।

13- माता पिता द्वारा की गलती को शिक्षक सम्हाल सकता है। लेकिन शिक्षक द्वारा की गलती को कोई नहीं सम्हाल सकता है।

14- अब हमें तय करना है कि बैठकर समस्या का रोना रोएं या महामानव की फैक्ट्री गढ़ने की टकसाल - स्कूल में पूरे मनोयोग से कार्य करने में जुटे।

15- आपके हाथों में मैंने मेरे बच्चों को भी सौंप दिया है। विश्वास किया है, इस विश्वास की रक्षा कीजिये, सैनिक व चिकित्सक से भी कठिन कार्य शिक्षण को पूर्ण निष्ठा व जिम्मेदारी से कीजिये।

16- पंद्रह अगस्त व 26 जनवरी को ग्राम पंचायत के सरपंच व आसपास के अधिकारियों को न्योता दो। ग्रामीणों को और पेरेंट्स को बुलाओ, उनमें देशभक्ति जगाने के लिए कार्यक्रम आयोजित करो।

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*आप बच्चों को प्रतियोगी परीक्षाओं व वार्षिक एग्जाम के लिए तैयार इस तरह करें* :-

1. *पढ़ाई का समय छोटे-छोटे भागों में बाट लें* : सबसे पहली और महत्वपूर्ण बात यह हैं कि जब भी आप पढ़ने बैठे काफी लंबे समय तक पढ़ाई करने की बजाय 30-45min तक ही पढ़े। क्योंकि लगातार पढ़ने की जगह टुकड़ों में की गई पढ़ाई ज्यादा फायदेमंद होती है। आप अपनी पढ़ाई करने के समय को छोटे-छोटे हिस्सों में बाट लें। कभी भी बहुत ही लंबे समय तक ज्यादा पढ़ाई ना करें, क्योंकि हमारा दिमाग छोटे छोटे हिस्सों में की गई पढ़ाई को एक बड़े हिस्से में की गई पढ़ाई की तुलना में ज्यादा जल्दी याद रख पाता है।

2. *एक दिन में 2-3 विषय ज़रूर पढ़ें :* ज्यादातर छात्र एग्जाम के समय एक ही विषय को पूरा दिन पढ़ने में लगा देते हैं जबकि ऐसा करने से आप जल्दी ही उस विषय से बोर हो जाते हैं| इसलिए कोशिश करें की हमेशा एक दिन में दो या तीन विषय पढ़ें ताकि आपकी रूचि पढ़ाई के प्रति बनी रहे|

3. *पढ़ने के लिए उद्देश्य भी है ज़रूरी:* बिना किसी उद्देश्य के अध्ययन करने की बजाय किसी भी टॉपिक को पढ़ने से पहले उसके प्रश्न तथा महत्वपूर्ण बिन्दुओं को चैप्टर के अंत में एक बार पढ़ लें, अब जब आप पढ़ाई करेंगे तो आपको अच्छी तरह पता होगा की आपके लिए क्या और कितना पढ़ना लाभदायक है|

4. *तनावरहित रहें :* कभी भी पढ़ाई एग्जाम के तनाव में नहीं बल्किं तनावरहित रह कर पढ़ने की कोशिश करें|
*उदाहरण के तौर पर*- एक बार एक स्कूल में छात्रों को दो ग्रुप में बाट दिया गया| दोनों ग्रुप को एक ही टॉपिक दिया गया। लेकिन एक ग्रुप के छात्रों को कहा गया की आपको इस विषय का एग्जाम देना होगा और दूसरे ग्रुप के छात्रों को बताया गया की आपको इस विषय को दूसरे छात्रों को समझाना है। दोनों में से जिस ग्रुप के छात्रों को पढ़ाने के लिए बोला गया था उनकी उस विषय में तैयारी काफी अच्छी थी, क्योंकि जब आप किसी विषय को बिना तनाव के पढ़ते हैं तो आपकी तैयारी और अच्छी होती है|

5. *प्रैक्टिस भी है ज़रूरी :* जब हम किसी भी टॉपिक की प्रैक्टिस करते हैं तो हमें पता चलता है कि वह टॉपिक हमें कितना समझ आया है या हम कहाँ गलतियाँ कर सकते हैं| तो छात्र जितना ज़्यादा पढ़े हुवे टॉपिक्स पर प्रैक्टिस करेंगे उतना ही ज़्यादा आपको उस टॉपिक का कांसेप्ट क्लियर होगा| एग्जाम से पहले जितने भी टॉपिक्स आपने पढ़ा है या पढ़ने वालें हैं उसके लिए प्रैक्टिस का भी समय ज़रूर निकालें|

6. *पढ़ाई के लिए सही जगह का चुनाव भी है ज़रूरी :* आप जब भी पढ़ाई करने बैठे हमेशा ऐसी जगह का चुनाव करें जहाँ आपके पढ़ाई के लिए उपयुक्त वातावरण हो तथा अन्य गतिविधियों के कारण आप पढ़ाई से भटकें नहीं| पढ़ते समय जिस भी चीज़ की आवश्यकता हो उसे अपने साथ लेकर बैठे ताकि आपको पढ़ते समय कोई परेशानी ना हो| फोन तथा अन्य इलेक्ट्रॉनिक गजेट्स को पढ़ते समय खुद से दूर रखें|

7- *घर के कार्य में भी हाथ बंटाये* - पढ़ना भी जरूरी है व परिवार की मदद भी जरूरी है। कुछ समय मदद जरूर करें।

8- *यदि घर में कलह व किच-किच ज्यादा है, तो उस लड़ाई को दिमाग़ में प्रवेश मत दो* - ख़ुद से कहो, मेरे घर में लड़ाई की वज़ह ग़रीबी है और दुर्बुद्धि है। मैं घर के सभी सदस्यों की सद्बुद्धि के लिए भगवान से प्रार्थना करूंगा और ग़रीबी को जड़ से मिटाने के लिए पढ़ाई करूँगा। अंधकार से युद्ध करके हराया नहीं जा सकता, बल्कि प्रकाश के लिए प्रयत्न करके एक छोटे से दीप को जलाया जा सकता है। ग़रीबी को हराना है तो कमाना पड़ेगा। अधिक धन दिमाग़ी कार्य करने पर मिलता है, और दिमागी कार्य के लिए पढ़ना जरूरी है।

निष्कर्ष- बच्चों हमने आपको बड़े ही आसान टिप्स बताएं हैं जिनको फॉलो कर आप भी बोर्ड एग्जाम में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं|

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, रूद्राक्ष धारण करने के फायदे बताये, कुछ लोग कहते हैं कि रूद्राक्ष धारण नहीं करना चाहिए ?*

प्रश्न - *दी, रूद्राक्ष धारण करने के फायदे बताये, कुछ लोग कहते हैं कि रूद्राक्ष धारण नहीं करना चाहिए ?*

उत्तर - आत्मीय बहन,

जिस तरह यग्योपवीत(जनेऊ) माता गायत्री की धागे की प्रतिमा है, उसे विधिवत मन्त्र द्वारा प्राण प्रतिष्ठा करके धारण करने के बाद गायत्री मंत्र नित्य जपना अनिवार्य है।

 इसी तरह रुद्राक्ष को शिव का प्रत्यक्ष अंश माना गया है,  पुराणों के अनुसार ऐसा कहा गया है कि ये रुद्राक्ष शिव के आंसुओं से बने हैं। रुद्राक्ष विभिन्न तरह के होते हैं और इसी के आधार पर इनक महत्व और उपयोगिता भी भिन्न-भिन्न होती है। लेकिन *रुद्राक्ष धारण करने के कुछ नियम हैं जो समान हैं।*

*रुद्राक्ष* कई तरह के होते हैं एक मुखी, दो मुखी, पँच मुखी इत्यादि।

आप किसी भी तरह का रुद्राक्ष क्यों ना धारण करने जा रहे हों, या किसी विशेष उद्देश्य के तहत रुद्राक्ष धारण करना हो...सभी के लिए कुछ नियम हैं जिनका पालन करना अत्यंत आवश्यक है। इन नियमों का पालन किए बिना रुद्राक्ष का सही फल प्राप्त नहीं होता।
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*रुद्राक्ष धारण करने के नियम*
सबसे पहले तो आपको इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि रुद्राक्ष धारण करने से पहले उसकी जांच अत्यंत आवश्यक है। अगर रुद्राक्ष असली है ही नहीं तो इसे धारण करने का कोई लाभ आपको प्राप्त नहीं होगा। खंडित, कांटों से रहित या कीड़ा लगा हुआ रुद्राक्ष कदापि धारण ना करें।
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*रुद्राक्ष का प्रयोग अनुसार आकर चुने*
अगर आपने रुद्राक्ष का प्रयोग जाप के लिए करना है तो छोटे रुद्राक्ष ही आपके लिए सही हैं, लेकिन अगर रुद्राक्ष धारण करना है तो बड़े रुद्राक्ष का ही चयन करें।
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*रुद्राक्ष माला के दानों की सँख्या*
रुद्राक्ष के आकार की तरह उसके दानों की संख्या का भी अपना महत्व है। अगर आपको रुद्राक्ष का जाप तनाव मुक्ति के लिए करना है तो 100 दानों की माला का प्रयोग करना चाहिए। अगर आपकी मनोकामना अच्छी सेहत और स्वास्थ्य से जुड़ी है तो आपको 140 दानों की माला का प्रयोग करना चाहिए।

धन प्राप्ति के लिए 62 दानों की माला का प्रयोग करें और संपूर्ण मनोकामना पूर्ति के लिए 108 दानों की माला का प्रयोग करें।
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*महत्वपूर्ण नियम जप में उपयोग माला न पहनें*
रुद्राक्ष से संबंधित एक महत्वपूर्ण नियम के अनुसार आप जिस भी माला से जाप करते हैं उस माला को कदापि धारण ना करें और जिस माला को धारण करते हैं उसे कभी भी जाप के प्रयोग में ना लाएं।
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*प्राण प्रतिष्ठा आवश्यक है*
रुद्राक्ष को बिना शुभ मुहूर्त के भी धारण ना करें। सर्वप्रथम उसकी प्राण प्रतिष्ठा करवाएं और उसके बाद ही रुद्राक्ष धारण करें। नित्य महामृत्युंजय जप आवश्यक है।
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*महत्त्वपूर्ण समय*
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार कर्क और मकर संक्रांति के दिन, पूर्णिमा और पूर्णा तिथि पर रुद्राक्ष धारण करने से  पापों से मुक्ति मिलती है।
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*तामसिक भोजन निषेध है*
जिन लोगों ने रुद्राक्ष धारण किया है, उनके लिए मांस, मदिरा या किसी भी प्रकार के नशे को करना वर्जित है। इसके अलावा लहसुन और प्याज के सेवन से भी बचना चाहिए।
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*अंगूठी में ना धारणा करें*
रुद्राक्ष धारण करने से पूर्व उसे भगवान शिव के चरणों से स्पर्श करवाएं। वैसे तो शास्त्रों में विशेष स्थिति में कमर पर भी रुद्राक्ष धारण करने की बात कही गई है लेकिन सामान्यतौर पर इसे नाभि के ऊपरी हिस्सों पर ही धारण करें। रुद्राक्ष को कभी भी अंगूठी में धारण नहीं करना चाहिए, ऐसा करने से इसकी पवित्रता नष्ट हो जाती है।
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*नियम - स्त्री व पुरूष दोनों रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं*
रुद्राक्ष धारण किए हुए कभी भी प्रसूति गृह, श्मशान या किसी की अंतिम यात्रा में शामिल ना हों। मासिक धर्म के दौरान स्त्रियों को रुद्राक्ष उतार देना चाहिए, मासिक धर्म के छठे दिन शुद्धि के बाद गंगा जल स्वयं पर और रुद्राक्ष पर छिड़क कर धारण करें। इसके अलावा रात को सोने से पहले भी रुद्राक्ष उतार दें। सुबह स्नान करके पुनः पहन लें।
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*दिव्य औषधि*
रुद्राक्ष को दिव्य औषधि कहा गया है, जो सकारात्मक ऊर्जा और प्रभावी तरंगों से बनी है। इस औषधि का पूर्ण लाभ लेने के लिए नियमित तौर पर इसकी साफ-सफाई अनिवार्य है। जब कभी रुद्राक्ष शुष्क प्रतीत होने लगे तो इसे तेल में डुबोकर कुछ देर के लिए रख दें।
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*सोने या चांदी के आभूषण*
मूलत: रुद्राक्ष को सोने या चांदी के आभूषण में ही धारण करें, लेकिन अगर किसी कारणवश यह उपलब्ध नहीं है तो आपको ऊनी या रेशमी धागे की सहायता से रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।

रुद्राक्ष धारण करने से पूर्व पूजाकर्म और जाप करना होता है, लेकिन सामान्य हालातों में इसे संभव कह पाना मुश्किल है इसलिए जब भी आपको रुद्राक्ष धारण करने का मन करे या ज्योतिष आपको सलाह दे तो सर्वप्रथम यह ध्यान रखें कि धारण करने का दिन सोमवार ही हो।
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*धारण करने से पहले*
नए रुद्राक्ष को खरीद कर घर जब लाएं तो पहनने से पहले रुद्राक्ष को कच्चे दूध, गंगा जल, से पवित्र करें और फिर केसर, धूप और सुगंधित पुष्पों से शिव पूजा करने के बाद ही इसे धारण करें।

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*कैसे करें असली रुद्राक्ष की पहचान*
सही व विश्वनीय जगह से रुद्राक्ष खरीदें, व निम्नलिखित तरीक़े से असली नकली की पहचान करें:-

 1.रुद्राक्ष की पहचान के लिए रुद्राक्ष को कुछ घंटे के लिए पानी में उबालें यदि रुद्राक्ष का रंग न निकले या उस पर किसी प्रकार का कोई असर न हो, तो वह असली होगा। इसके अलावा आप रुद्राक्ष को पानी में डाल दें अगर वह डूब जाता है तो असली नहीं नहीं नकली। 
2. रुद्राक्ष सरसों के तेल मे डालने पर रुद्राक्ष अपने रंग से गहरा दिखे तो समझो वो एक दम असली है।
3. प्रायः गहरे रंग के रूद्राक्ष को अच्छा माना जाता है और हल्के रंग वाले को नहीं। असलियत में रूद्राक्ष का छिलका उतारने के बाद उस पर रंग चढ़ाया जाता है। बाजार में मिलने वाली रूद्राक्ष की मालाओं को पिरोने के बाद पीले रंग से रंगा जाता है। रंग कम होने से कभी- कभी हल्का रह जाता है। काले और गहरे भूरे रंग के दिखने वाले रूद्राक्ष प्रायः इस्तेमाल किए हुए होते हैं, ऐसा रूद्राक्ष के तेल या पसीने के संपर्क में आने से होता है।
4.   रूद्राक्ष की पहचान के लिए उसे सुई से कुरेदें। अगर रेशा निकले तो असली और न निकले तो नकली होगा।
5. नकली रूद्राक्ष के उपर उभरे पठार एकरूप हों तो वह नकली रूद्राक्ष है। असली रूद्राक्ष की उपरी सतह कभी भी एकरूप नहीं होगी। जिस तरह दो मनुष्यों के फिंगरप्रिंट एक जैसे नहीं होते उसी तरह दो रूद्राक्षों के उपरी पठार समान नहीं होते। हां नकली रूद्राक्षों में कितनों के ही उपरी पठार समान हो सकते हैं।
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*जानिए किस राशि के जातकों को पहनना चाहिए कौन सा रुद्राक्ष*:-
👉🏻 *मेष राशि :* मंगल ग्रह मेष राशि का स्वामी है। इस राशि के जातकों पर मंगल ग्रह का व्यापक प्रभाव होता है, ऐसे में उन्हें 3 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
👉🏻 *वृषभ राशि :* इस राशि के स्‍वामी शुक्र देव हैं और ये भौतिक सुख और ऐश्‍वर्य प्रदान करते हैं। वहीं शुक्र ग्रह के प्रभाव वाले वृषभ राशि के जातकों के लिए 6 मुखी रुद्राक्ष काफी लाभदायक माना जाता है।
👉🏻 *मिथुन राशि :* राशि स्‍वामी बुध है और बुध को बुद्धि का कारक माना जाता है। मिथुन राशि के लोग परिवर्तन और गतिशील स्‍वभाव के होते हैं। मिथुन राशि के जातकों को सफलता और धन की प्राप्‍ति के लिए 4 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। यह उनके लिए शुभाशुभ फल प्रदान करता है।
👉🏻 *कर्क राशि :* राशि स्‍वामी चंद्रमा होता है जोकि मन का कारक है। चंद्रमा मन को स्थिरता प्रदान करता है। ये लोग अपने कार्यों को पूरी निपुणता से करते हैं और इसीलिए इन्‍हें उसमें सफलता भी मिलती है। कर्क राशि के जातकों को 4 मुखी और गौरी शंकर रुद्राक्ष धारण करने से लाभ होगा।
👉🏻 *सिंह राशि :* राशि स्‍वामी सूर्य देव हैं, वहीं सिंह राशि पर सूर्य का व्यापक प्रभाव होता है। सिंह राशि के जातकों को 5 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। यह उनके स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक साबित होता है।
👉🏻 *कन्या राशि :* राशि का स्‍वामी भी बुध ग्रह है। बुध के शुभ प्रभाव में जातक बुद्धिमान बनता है और उसके द्वारा लिए गए सभी निर्णय सही साबित होते हैं। इस राशि के जातकों के लिए 14 रुद्राक्ष शुभ फलदायक माना जाता है।
👉🏻 *तुला राशि :* राशि का स्‍वामी शुक्र है जोकि जीवन में भौतिक सुख प्रदान करते हैं।इस राशि के लोग हर निर्णय से पूर्व बहुत सोच-विचार करते हैं। तुला राशि के जातकों को 7 मुखी रुद्राक्ष पहनने से सर्वसुख की प्राप्‍ति होगी।
👉🏻 *वृश्चिक राशि :* राशि का स्‍वामी मंगल ग्रह है जोकि बहुत आक्रामक माना जाता है, इस राशि के लोग बहुत बुद्धिमान होते हैं। मंगल ग्रह से संचालित वृश्चिक राशि के जातकों को 8 मुखी और 13 मुखी रुद्राक्ष धारण करने से शुभ फल की प्राप्‍ति होती है
👉🏻 *धनु राशि :* राशि का स्‍वामी बृहस्‍पति है इस राशि के जातकों पर बृहस्पति ग्रह का व्यापक प्रभाव पड़ता है, इस राशि के लोग साहसी और उग्र स्‍वभाव के होते हैं। इन्हें पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
👉🏻 *मकर राशि :* राशि का स्‍वामी शनि देव हैं जिस पर शनि देव की कृपा हो जाए उसके वारे न्‍यारे हो जाते हैं अर्थात् उसके सारे बिगड़े काम बन जाते हैं। इन्हें 7 मुखी और 14 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
👉🏻 *कुंभ राशि :* राशि का स्‍वामी भी शनि देव है। कुंभ राशि के लोग बहुत ऊंचे और बड़े सपने देखते हैं लेकिन ये उन सपनों को पूरा करने का दम भी रखते हैं। इस राशि के जातकों के लिए 7 मुखी रुद्राक्ष बहुत फायदेमंद रहता है।
👉🏻 *मीन राशि :* राशि का स्‍वामी बृहस्‍पति है, इस राशि के जातकों का स्‍वास्‍थ्‍य अकसर खराब रहता है। मीन राशि के जातकों को 5 मुखी रुद्राक्ष पहनना चाहिए।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday 23 December 2019

प्रश्न - *परिवार के लोग काफ़ी झगड़ते हैं और घर मे इतनी अशांति है कि रहने का मन नहीं करता। कैसे इन्हें सुधारें?*

प्रश्न - *परिवार के लोग काफ़ी झगड़ते हैं और घर मे इतनी अशांति है कि रहने का मन नहीं करता। कैसे इन्हें सुधारें?*

उत्तर- परिवार में सभी आत्माएं स्वतंत्र सत्ता व अपने कर्म फलानुसार है। जिनके पुर्व जन्म के अकाउंट आपस मे शत्रुता के हैं वह एक दूसरे को कष्ट दे लड़ रहे हैं, जिनके पूर्व जन्म के अकाउंट आपस में मित्रता के हैं वह प्रेम से एक दूसरे को सुख दे रही हैं।

उन्हें सुधारने में लगोगे तो स्वयं उबर न सकोगे, क्योंकि तुम्हारे पास तप की इतनी पूंजी नहीं कि सबके कर्ज उतार सको।

स्वयं को रौशन करो जिससे तुम्हारी रौशनी में वो सब अंधेरे से प्रकाश की ओर आने का मार्ग ढूँढ़ सकें, स्वयं तप का अर्जन करो। परिवार सुधारने में तब तक नहीं जुटना चाहिए जब तक तुम स्वयं सक्षम व सबल न बन जाओ। सांसारिक व आध्यात्मिक रूप से सफ़ल बनो तब ही उपदेश परिवार वालो को देना। अन्यथा मौन रहकर स्वयं को सबल व सक्षम बनाने में जुट जाओ।

💫 *आध्यात्मिक उपाय*💫

👉🏻 मित्रभाव स्वयं में सही तरीके से जगाने के ज्ञान विज्ञान को समझने लिए निम्नलिखित दो पुस्तक पढ़िए, सबके पहले मित्र बनो जिससे सब तुम्हारी सुनें:-

📖 भाव सम्वेदना की गंगोत्री
📖 मित्रभाव बढाने की कला

👉🏻 *आध्यात्मिक उपाय* - नित्य 3 माला गायत्री की जपें और साथ ही कम से कम 24 मन्त्र व अधिकतम एक माला निम्नलिखित *मित्रभाव बढ़ाने* वाले मन्त्र की जपें।

ॐ दृते दृन्द मा मित्रस्य मा,
चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षन्ताम्।
‘मित्रस्याहं चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे।
मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे।’

(यजुर्वेद 36/18 )

‘हमें विश्व के सारे प्राणी मित्र दृष्टि से नित देखें,
और सभी जीवों को हम भी मित्र दृष्टि से नित पेखें।
प्रभो!आप ऐसी सद्बुद्धि व विवेक हमें  प्रदान करने की कृपा करें कि हम समस्त विश्व को अपना गुरु बना सकें।

(वेदार्थ पदांजलि,पृ.82)

👉🏻 24 मन्त्र गुरु मंत्र जपें, जिससे आपके भीतर आनन्द व आत्मियता का भाव उभरे

*ॐ ऐं श्रीराम आनन्दनाथाय गुरुवे नमः ॐ*

👉🏻तुम नित्य यज्ञ करके सबकी सद्बुद्धि हेतु आहुतियां लगाओ, जिससे उनकी बुद्धि पर चढ़े मैल को यज्ञ का दिव्य धूम्र साफ करने में सहायता करे। सबकी सद्बुद्धि के लिए और हो सके तो शुक्रवार को चावल की खीर से बलिवैश्व यज्ञ करो।

👉🏻 पूजा के बाद सुबह शाम निम्नलिखित मन्त्र सबके कल्याण के लिए अवश्य बोलें

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।

*अर्थ*- "सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।" सर्वत्र शांति ही शांति हो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Sunday 22 December 2019

प्रश्न - *दी, मुझे भूलने की बीमारी है। अक्सर इस कारण मुझसे गलती होती है। हॉस्पिटल जाते वक्त प्रिस्क्रिप्शन ले जाना भूल जाती हूँ, जो दवा का नाम याद रहता है वो भी डॉक्टर के समक्ष बता नहीं पाती। दूध उबालने को रखकर भूल जाती हूँ। दैनिक कार्य में भी भूलने की समस्या के कारण हंसी का पात्र बनना पड़ता है, लोगों से अपमानित होना पड़ता है। मार्गदर्शन करें कि मैं क्या करूँ?*

प्रश्न - *दी, मुझे भूलने की बीमारी है। अक्सर इस कारण मुझसे गलती होती है। हॉस्पिटल जाते वक्त प्रिस्क्रिप्शन ले जाना भूल जाती हूँ, जो दवा का नाम  याद रहता है वो भी डॉक्टर के समक्ष बता नहीं पाती। दूध उबालने को रखकर भूल जाती हूँ। दैनिक कार्य में भी भूलने की समस्या के कारण हंसी का पात्र बनना पड़ता है, लोगों से अपमानित होना पड़ता है। मार्गदर्शन करें कि मैं क्या करूँ?*

उत्तर- आत्मीय बहन, कुछ लोग जन्मजात चांदी की चम्मच मुंह मे लेकर पैदा होते हैं व पिता द्वारा बनाये मकान व सम्पत्ति के मालिक होते हैं, लेकिन अधिकतर लोगों को मेहनत करके अपने लिए मकान व सम्पत्ति बनाना पड़ता है।

इसी तरह डियर कुछ लोग जन्मजात अच्छी यादाश्त लेकर जन्मते हैं लेकिन अधिकतर लोगों को मेहनत करके अच्छी यादाश्त बनानी पड़ती है।

मुझे बचपन से भूलने की समस्या है, लोगों से मैं भी अपमानित हुई। बड़ो से कईं बार डाट खाई, क्योंकि दूध उबालने को रखती तो कभी खोया तो कभी राख बन जाता। घर वाले कहते थे इस लड़की का क्या होगा?

एक समय में एक ही काम अभी भी कर पाती हूँ। फिर भी जॉब 17 साल से कर रही हूँ, घर गृहस्थी चल रही है, आप सबके प्रश्नों के उत्तर भी दे लेती हूँ।

यह चमत्कार भूलने की समस्या होते हुए भी जीवन सम्हालने का युगऋषि की पुस्तक - *बुद्धि बढाने के वैज्ञानिक उपाय* को पढ़कर किया और औषधि में शान्तिकुंज फ़ार्मेसी की *सरस्वती पंचक वटी* खाया। इस पोस्ट के साथ पुस्तक की पीडीएफ भेज रही हूँ। जिसे नहीं मिला वह निम्नलिखित लिंक से ऑनलाइन पढ़ लीजिये:-
http://literature.awgp.org/book/Buddhi_Badane_Ki_Vaigyanik_Vidhi/v1.1

*सरस्वती पंचक वटी* - जो कि वस्तुतः स्मृति वर्धक ब्राह्मी वटी के साथ अन्य मानसिक औषधियों से बनी है, ऑनलाइन निम्नलिखित लिंक से मंगवा सकते हैं:-
https://www.awgpstore.com/gallery/product/init?id=803

यदि सरस्वती पंचक वटी की जगह आप चाहें तो नजदीकी किसी अन्य फ़ार्मेसी की ब्राह्मी वटी या सिरप भी ले सकते हैं।

मानते हैं इंटेलिजेंट को एक बार में याद हो जाएगा, हम कम इंटेलिजेंट हैं तो 7 बार में याद होगा। बस सात गुना ज्यादा मेहनत व सतर्कता की मुझे जरूरत थी। मुझे जन्मजात अच्छी याददाश्त नहीं मिली तो परेशानी क्या बात है? जुट गई यादाश्त को बेहतर बनाने में..
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*इस तरह से मैंने भूलने की समस्या से बचाव किया*

*बीमारी पर नियंत्रण पाने के लिए  बौद्धिक गतिविधियों पढ़ाई, खेलकूद जैसे क्रास वर्ड व अन्य दिमागी शक्ति लगने वाली गतिविधियों से जुड़ी रही।

*चेस खेलती हूँ, दिमागी पहेली वाले गेम खेलती हूँ।

*बादाम व ड्राई फ्रूट खाने से दिमाग तेज होता है व याददाश्त बढ़ती है। अतः इनका सेवन रात को भिगो के सुबह 5 बादाम खाया।

*फूलगोभी के सेवन से दिमाग तेज होता है, इससे हड्डियां भी मजबूत होती हैं।

*भूलने की बीमारी के दौरान दिमाग में बढ़ने वाले जहरीले बीटा-एमिलॉयड नामक प्रोटीन के प्रभाव को ग्रीन टी के सेवन से कम किया जा सकता है। ग्रीन टी की जगह तुलसी के पत्तो को उबालकर पीएं। ग्रीन टी कभी पिया नहीं, उसकी जगह तुलसी के पत्तों की चाय पिया।

*हरी पत्तेदार सब्जियां, फलियां, साबुत अनाज अंकुरित करके खाने से भूलने की बीमारी के रोग से लड़ने में मदद करता है। हरी सब्जी खाई।

*रोजाना व्यायाम व योग करके भूलने की बीमारी के प्रभाव को कम किया जा सकता है। नित्य भ्रामरी प्राणायाम,  अनुलोम विलोम, नाड़ीशोधन प्राणायाम अत्यंत लाभकारी है। सर्वांगासन भी लाभकारी है।
भ्रामरी प्राणायाम निम्नलिखित वीडियो से सीखें:-
https://youtu.be/rd590U_4fII

*नित्य उगते हुए सूर्य का ध्यान(मेडीटेशन) करने से भूलने की समस्या पर काबू पा सकते हैं, ठीक कर सकते हैं। उगते सूर्य का ध्यान श्रद्धेय डॉक्टर प्रणव पंड्या से निम्नलिखित वीडियो से सीखें:-

https://youtu.be/04Dl89YWTYU

*नित्य गणेश योग(सुपर ब्रेन योगा) भी बुद्धि बढ़ाता है। निम्नलिखित वीडियो से गणेश योग सीखें:-

https://youtu.be/N_lPqsHymw4

*नित्य 2 मिनट तक हाथ ऊपर कर ताली बजाने से बुद्धि व स्मृति बढ़ती है।
https://youtu.be/hH_N7j6tID8

*ढोलक ताली से हार्मोनल बैलेंस होता है, मष्तिक ऊर्जावान बनता है, शरीर स्वस्थ रहता है।
https://youtu.be/bFjI3YhJQqw

*नित्य एक पेज गायत्रीमंत्र लेखन से बुद्धि व स्मृति बढ़ती है।
http://literature.awgp.org/book/gayatree_kee_param_kalyanakaree_sarvangapoorn_sugam_upasana_vidhi/v1.25

*उगते सूर्य का ध्यान करते हुए नित्य सुबह कम्बल या ऊनी वस्त्र के आसन में बैठकर 3 माला गायत्रीमंत्र जपने से बुद्धि व स्मृति बढ़ती है।

*इस पर रिसर्च AIIMS में हुआ था, निम्नलिखित वीडियो में AIIMS की डॉक्टर रमाजयसुंदर की रिपोर्ट व लेक्चर सुनें:-*

https://youtu.be/zfJdBT8QkJo
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*इससे रहें दूर, न खाएँ*

अगर अल्जाइमर रोग हो तो तिल, सूखे टमाटर, कद्दू, मक्खन, चीज, फ्राइड फूड, जंकफूड, रेड मीट, पेस्टीज और मीठे का सेवन न करें। अत्यधिक मीठा आपको नुकसान करेगा।
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*अत्यधिक सतर्क व जागरुक रहती हूँ*

*ऑफिस के समस्त कार्य नोट करती हूँ कि कल मुझे क्या करना है।

*घर मे भी डायरी बना रखी है कि मुझे आज व कल क्या करना है। सब नोट है। यह डायरी हमेशा मेरे पर्स में रहती है।

*अगर मुझे हॉस्पिटल जाना है, तो चेकलिस्ट बनाती हूँ कि साथ क्या ले जाना है। वह पहले सामने पर्स के साथ रखती हूं, क्योंकि निकलते समय याद नहीं रहेगा।

*जो चीज़ मुझे याद नहीं होती, बिना झिझक के स्वीकार लेती हूँ मुझे याद नहीं। सामने वाला हंसी उड़ाए या भला बुरा कहे इसके भय से मैं ग्रसित नहीं होती।

*अगर कोई काम करने जाती हूँ तो अच्छा सोचती हूँ और बुरे वक्त को हैंडल करने के लिये स्वयं को मानसिक रूप से तैयार रखती हूँ।

*मुझे औरों से सात गुना ज्यादा मेहनत करना है, अच्छी यादाश्त के लिए अतः इसके लिए मैं तैयार रहती हूँ। अफसोस नहीं मनाती हूँ।

*कहीं जाना है या किसी वक्त पर कुछ करना है तो उसके लिए मोबाइल में अलार्म सेट करती हूँ।

🙏🏻 *आप भी मेरे द्वारा अपनाए उपचार अपनाओ और बुद्धि बढ़ाओ, अत्यधिक सतर्क व जागरूक बनकर खुशी खुशी सात गुना मेहनत अधिक करो।अच्छी याददाश्त पाओ और बुद्धिमान कहलाओ*।🙏🏻

डियर समस्या से भागो मत, बल्कि समस्या से जीतने के लिए योजना बनाओ और उसका बहादुरी से सामना करो। जहां समस्या है वहीं समाधान भी है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न- *क्या लोगों का व्यवहार हमारे प्रति कैसा होगा यह हम पर निर्भर करता है? कुछ लोग कहते हैं कि लोग आपके साथ कैसा बर्ताव करते हैं, वह आपका प्रतिबिंब है..लेकिन कई बार..क्योंकि आप जिससे प्यार करते है वह आप आपको सिर्फ नफरत करे तो फिर गलती किसकी है?*

प्रश्न- *क्या लोगों का व्यवहार हमारे प्रति कैसा होगा यह हम पर निर्भर करता है? कुछ लोग कहते हैं कि लोग आपके साथ कैसा बर्ताव करते हैं, वह आपका प्रतिबिंब है..लेकिन कई बार..क्योंकि आप जिससे प्यार करते है वह आप आपको सिर्फ नफरत करे तो फिर गलती किसकी है?*

उत्तर- आत्मीय बहन, लोगों का व्यवहार हमारे साथ कैसा होगा यह 50% हम पर निर्भर करता है और 50% सामने वाले पर निर्भर करता है।

यदि आप करोड़पति हैं या दबंग हैं तो अधिकतर लोग आपसे अच्छा ही व्यवहार करेंगे, आपसे लोग काफी ईर्ष्या भी करेंगे, लेकिन इससे आपके मन के भाव का 50% कोई लेना देना नहीं है।

यदि आप दरिद्र हैं व कमज़ोर हैं, तो अधिकतर लोग आपसे बुरा ही व्यवहार करेंगे, आपको लोग काफी परेशान भी करेंगे, लेकिन इससे आपके मन के भाव का 50% कोई लेना देना नहीं है।

आप सन्त हैं कोई कम्पटीशन आपका लोगों से नहीं, तो लोग आपसे अच्छा व्यवहार करेंगे, लेकिन आपके समकक्ष सन्त आपसे ईर्ष्या कर सकते हैं, आपको नीचा दिखाने का प्लान भी कर सकते हैं। ध्यान रखिये कि सत्ता, पॉवर और सम्मान की लड़ाई केवल कॉरपोरेट में नहीं है यह धर्म क्षेत्र में भी पर्याप्त है। एक ही गुरु के शिष्य आपस मे लड़ते भिड़ते देखे जा सकते हैं।

परिवार के समस्त रिश्तों को देखें जो कहते हैं हम प्यार करते हैं वो वस्तुतः प्यार नहीं व्यापार करते हैं, स्वार्थ साधते हैं। माता-पिता पुत्र से बहुत प्यार करते है, लेकिन कभी पसन्द नहीं करती कि बेटा उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ प्रेम विवाह करे। पत्नी पति से बहुत प्यार करती है, लेक़िन कभी पसन्द नहीं करती क़ि पति माता-पिता को उससे ज्यादा प्रेम करे। यदि स्वार्थ न सधा तो माता-पिता सन्तान को घर से निकाल देते हैं, पत्नी पति को तलाक़ दे देती है।

भगवान श्री राम कितने भी अच्छे व मर्यादा पुरुषोत्तम हों रावण उनसे जलेगा ही, उनके साथ व्यवहार बुरा करेगा ही। अतः यहां राम के मन में कोई दुर्भाव न होते हुए भी उन्हें दुर्व्यवहार झेलना पड़ेगा।

जब लोग बुद्ध बनते हैं, समस्त सांसारिक वस्तुओं मान सम्मान धन वैभव सबका त्याग कर के, लोककल्याण में जुटते व स्वयं में पूर्ण और आत्मज्ञान से रौशन बनते हैं तभी हमारे मन के भाव से लोगों का हृदय परिवर्तित होता है। बुद्ध अंगुलि माल को अहिंसक बना सके, लेकिन बुद्ध उन लोगो को नहीं बदल सके जिन्होंने उन्हें जहर दिया, जीवन भर उनके ख़िलाफ़ षड्यंत्र करते रहे। दयानंद सरस्वती और विवेकानंद से लाखों लोग प्रभावित हुए मग़र उनके भी विरोधियों की कमी नहीं थी।

युगऋषि परम्पपूज्य गुरुदेव के इतने सहृदय व दया के सागर होने के बावजूद उन्हें विरोध सहना पड़ा। अपने रिश्तेदार व अन्य धार्मिक संगठनों का दुर्व्यवहार सहना पड़ा। उन शिष्यों से भी विरोध मिला जो स्वार्थवश उनसे जुड़े थे, स्वार्थसिद्धि न होने पर विरोधी बन गए।

अतः उपरोक्त समस्त उदाहरण से यह सिद्ध होता है कि हमारे मन के भाव से सामने वाले प्रभाव पड़ता भी है और नहीं भी। 50-50 असर रहता है।

निर्मल मन व अच्छे स्वभाव के लोगों के साथ अच्छा व्यवहार मिलने की अधिक संभावना होती है, लेक़िन कोई दुर्व्यवहार नहीं करेगा यह सत्य नहीं है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Saturday 21 December 2019


*दैनिक उपासना व यज्ञ*
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दैनिक उपासना में मन्त्र जप, ध्यान, स्वाध्याय के बाद अगर कॉमन यज्ञ में यह निम्नलिखित गुरुदेव द्वारा वर्णित 11 सामग्री सही मात्रा में हो और उसमें घर मे यज्ञ से पूर्व मिलाने वाली 5 सामग्री मिली हों। 24 गायत्री मंत्र व 5 महामृत्युंजय मंत्र से श्रद्धा विश्वास से  भाव पूर्वक आहुति दैनिक हो, तो उस घर मे रोग व शोक नहीं रह सकते, बुखार और भूत नहीं टिक सकते, नकारात्मकता व अभाव नहीं टिकेगा।

*कॉमन हवन सामग्री पैकिंग में मिलने वाली औषधियाँ (यह रोग प्रतिरोधक क्षमता शरीर में बढ़ाती है, तन मन को स्वास्थ्य देता है व वायु शोधन करता है)*
1- अगर
2- तगर
3- देवदार
4- चंदन
5- लाल चंदन
6- जायफ़ल
7- लौंग
8- गूगल
9- चिरायता
10- अश्वगंधा
11- गिलोय

*इससे बनी हवन सामग्री में यज्ञ से पहले उपरोक्त बनी कॉमन हवन सामग्री में निम्नलिखित समान घर में मिला के यज्ञ किया जाता है*:-
1- जौ
2- तिल
3- चावल
4- देशी गाय (जो चरने जाती हैं) का गो घृत
5- खांडसारी गुड़ या खांड की बनी देशी शक्कर

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

कविता - *प्रत्येक पल में जिंदगी भर लो*

कविता - *प्रत्येक पल में जिंदगी भर लो*

यदि पैसों से जिंदगी मिलती,
तो कोई अमीर कभी मरता नहीं,
यदि अस्पतालों में जिंदगी मिलती,
तो डॉक्टरों के घर कोई मरता नहीं।

जिस दिन जिंदगी मिली थी,
उस दिन ही,
उसकी एक्सपायरी डेट भी,
साथ साथ मिली थी,
आने की टिकट के साथ साथ,
वापस जाने की टिकट भी मिली थी।

इस जीवन यात्रा का,
भरपूर आनन्द ले लो,
लम्बी उम्र मांगने की जगह,
हर पल में जिंदगी भर लो।

कुछ ऐसा कर जाओ,
कोई चाहकर भी,
तुम्हें भूल न पाएं,
मरने के बाद भी,
तुम्हारे योगदान,
उन्हें तुम्हारी याद दिलाये।

दीपावली में,
किसी अंधेरे घर मे उजाला कर दो,
होली में,
किसी बेरंग जीवन में रँग भर दो।

धरती को हरी चुनर ओढ़ा दो,
जितनी श्वांस ली उतने पेड़ लगा दो,
जितना समाज से लिया,
उससे ज्यादा समाज को लौटा दो।

परमात्मा के दिये जीवन का,
सही ढंग से उपयोग करो,
आत्मकल्याण के साथ साथ,
समाजकल्याण में भी निरत रहो।

मरते वक़्त खुद पर गर्व कर सको,
कुछ तो जीवन में ऐसा कार्य करो,
परमात्मा से नज़रे मिला सको,
ऐसा शानदार जीवन जियो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

नकली प्लास्टिक के वृक्ष से असली क्रिसमस कैसे मनेगा

*नकली प्लास्टिक के वृक्ष से असली क्रिसमस कैसे मनेगा?*
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*झूठ व नक़ली वातावरण बना के असली ख़ुशी व आनन्द नहीं मिलता*

*नक़ली पुष्पों से असली ख़ुशबू नहीं मिलती*

*आओ गमले में असली रूम फ्रेशनर वाला पौधा या औषधीय पौधा लगाएं, घी या तिल तेल का दीप जलाएं। असली पौधे की अरोमा में और असली दिए की रौशनी में क्रिसमस मनाएं*

लाखों टन प्लास्टिक का कूड़ा प्रत्येक वर्ष क्रिसमस में होता है। प्रत्येक नए वर्ष के स्वागत में लाखों टन पटाखे फोड़कर वायु प्रदूषण किया जाता है। शराब जो कि धीमा जहर है उसे पीकर  हो हल्ला मचाना? क्या यह सही है?

क्या ईसामसीह जी ने बाइबल में कहीं किसी जगह भी प्लास्टिक के पेड़ और प्लास्टिक की पन्नी की सजावट, पटाखों को फोड़ने व शराब पीने को लिखा है। नहीं न...

स्वयं विचार करें... दिमाग़ का उपयोग करें... प्लास्टिक का कूड़ा न फैलाएं...

भारतीय संस्कृति अप्राकृतिक जीवन जीने व अप्राकृतिक त्यौहार मनाने के सख़्त ख़िलाफ़ है। यदि भारत में है तो प्लास्टिक कूड़ो को क्रिसमस के नाम पर घर न लाएं और न ही क्रिसमस के बाद इन कूड़ो को पृथ्वी को गन्दा बनाने दें।

क्रिसमस मनाना है तो माली के पास जाएं सुंदर गमलों को घर लाएं, साथ ही दीपक जलाएं व क्रिसमस व नववर्ष स्वस्थ व प्राकृतिक समान से मनाएं।

*स्कूल व कॉलेज को सख्त हिदायत है कि प्लास्टिक का कूड़ा व अप्राकृतिक सामान से स्कूल में क्रिसमस न सजाएं*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *यह कैसे पता करें कि जो वर्तमान जीवन का कष्ट है वो पिछले जन्म का प्रारब्ध है या वर्तमान जन्म का? कष्ट किन कर्मों के फल से मिला है?*

प्रश्न - *यह कैसे पता करें कि जो वर्तमान जीवन का कष्ट है वो पिछले जन्म का प्रारब्ध है या वर्तमान जन्म का? कष्ट किन कर्मों के फल से मिला है?*

उत्तर- आत्मीय भाई,

केवल वनस्पति शास्त्र का ज्ञाता ही वनस्पति की प्रॉपर्टी की जानकारी रखता है, आम आदमी केवल उन वनस्पतियों और फलों को दूसरे की जानकारी अनुसार उपयोग में लेता है।

वैसे ही केवल आत्मज्ञानी व तत्वदर्शी  पूर्वजन्म के कर्मो को जान सकते हैं, आम आदमी तो केवल कर्म फ़ल को भोगता है।

वर्तमान जीवन के कष्टों का एनालिसिस पिछले जन्म का है या इस जन्म का करने से अच्छा है कि यह एनालिसिस किया जाय कि क्या मैं निज प्रयत्न से इस समस्या से मुक्ति पा सकता हूँ? यदि नहीं तो कोई मेरी मदद कर सकता है? किससे मदद माँगूँ?

इस समस्या की मुक्ति के सांसारिक व आध्यात्मिक कौन कौन से उपाय अपनाऊं?

यदि कोई ऐसी समस्या है जिसका कोई हल ही नहीं है, तो इस समस्या को ही अपनी ताकत कैसे बनाऊ? इस समस्या के साथ आगे जीवन कैसे जियूँ?

What next... आगे क्या करना है हमें इस पर विचार करना चाहिए...

न पास्ट हमारे हाथ में है और न ही फ्यूचर हमारे हाथ मे है। हमारे हाथ में केवल प्रेजेंट है। आज जो करेंगे वही हमारा कुछ दिनों बाद बीता हुआ कल होगा। आज जो करेंगे उसी पर निर्भर हमारा भविष्य होगा। अतः वर्तमान में क्या करना है उस पर ध्यान एकाग्र करना चाहिए।

मनःस्थिति बदलेंगे तो परिस्थिति बदलेगी।

कुछ पुस्तक मदद करेंगी मेरी बात को समझने में...

1- स्वर्ग नरक की स्वचालित प्रक्रिया
2- बोया काटा का अकाट्य सिद्धांत

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday 20 December 2019

प्रश्न - *प्रिय दीदी.....किसी के प्रारब्ध के बीच में आना या किसी के लिये प्रार्थना करना क्या एक ही बात है?? हम यह उदाहरण सुनते हैं कि दूसरे के फटे में पैर मत डालो। क्या मुहावरा है यह कृपया समझाएँ*

प्रश्न - *प्रिय दीदी.....किसी के प्रारब्ध के बीच में आना या किसी के लिये प्रार्थना करना क्या एक ही बात है?? हम यह उदाहरण सुनते हैं कि दूसरे के फटे में पैर मत डालो। क्या मुहावरा है यह कृपया समझाएँ*

उत्तर- आत्मीय बहन,

किसी के फटे में टाँग डालकर उसे सही नहीं किया जा सकता, उसी तरह किसी के प्रारब्ध में प्रवेश करके उसके साथ प्रारब्ध झेलना बेवकूफ़ी है। जब तुम दर्जी नहीं और तुम्हें यह पता नहीं कि सामने वाले का कपड़ा कितना फटा है कितना सिलना पड़ेगा, कितना समय लगेगा तो दूसरे के फटे को सिलने की गारन्टी वारंटी नहीं लेनी चाहिए। यदि तुम दूसरे का कपड़ा सिलोगे तो तुम्हारा कौन सिलेगा? तुम ऑफिस में दूसरे का काम करोगे तो तुम्हारा कार्य कौन करेगा? तुम दूसरे के प्रारब्ध में प्रवेश करोगे तो फिर तुम्हारा प्रारब्ध कौन काटेगा?

प्रारब्ध कभी कभी आइसबर्ग की तरह  होता है, आपको लगता है छोटा मग़र वह आपको टाइटेनिक की तरह डूबा सकता है। केवल गुरु ही प्रारब्ध की गहराई जानता है, वही शिष्य के प्रारब्ध में प्रवेश कर सकता है। डूबने से वही बचाये जो तैरना जानता हो, हम और आप जो तैराकी में कुशल नहीं, उन्हें मदद के लिए बड़े को बुलाना चाहिए।

इसका अर्थ यह है कि किसी दूसरे के फटे कपड़े सिलने से अच्छा है, उसके हाथ में सुई-धागा दे दो, दूसरे के लिए प्रार्थना भी तब करो जब वह भी स्वयं के लिए प्रार्थना करे। किसी के लिए अखण्डजप व यज्ञ भी तब करो जब वह स्वयं साथ मे अखण्डजप व यज्ञ कर रहा हो। ऑफिस में दूसरे का कार्य करने से अच्छा है दूसरे को कार्य करने का तरीका बता दो, उचित सलाह दे दो। प्रारब्ध किसी का काटने से अच्छा है उसे प्रारब्ध शमन का तरीका बता दो, उसका उचित मार्गदर्शन कर दो।

📖 *गहना कर्मणो गति:* (कर्मफ़ल का सिद्धांत) पढ़िये और इसे गहराई से समझिए।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *"वेद पढ़ना आसान है, वेदना पढ़ना मुश्किल है"। इस मैसेज के बारे में आपकी क्या राय है?*

प्रश्न - *"वेद पढ़ना आसान है, वेदना पढ़ना मुश्किल है"। इस मैसेज के बारे में आपकी क्या राय है?*

उत्तर- क्षमा करना हमारी युवा पीढ़ी अनजाने में स्वयं के धर्म ग्रन्थों का अपमान कर रही है-

 वस्तुतः *न वेद पढ़ना आसान है न वेदना पढ़ना आसान है।*

जो वेद पढ़ेगा उसमे वेदना पढ़ने की भी क्षमता आ जायेगी, साथ ही वेदना दूर कैसे करना है यह भी समझ मिलेगी, आत्मबल मिलेगा। हमारे हिंदू भाई बहन, अनजाने में अपने ही धर्म का उपहास कर रहे हैं। क्या लिख व शेयर कर रहे हैं उन्हें नहीं पता, कोई। कभी कुरान या बाइबल के लिए ऐसा बोलते किसी को देखा या सुना है?

वेदों में प्रत्येक प्राणी के कल्याण की कामना है, और प्राणी मात्र के कल्याण के लिए प्रयत्नशील रहने को कहा गया है। जब तक वेद पढ़े जाते थे देश सोने की चिड़िया था विदेशी सैलानी अपने यात्रा वृतांत में लिख गए थे कि कोई भिखारी उन्हें नहीं मिला।

भिखारी पाश्चत्य सभ्यता की देन है, वृद्धाश्रम पाश्चात्य सभ्यता की देन है, पर्दा प्रथा स्त्रियों की मुगलों की देन है।

कृपया ऐसे पोस्ट लाइक करने से बचें तो उत्तम होगा। वेद भी पढो और वेदना भी पढो के मेसेज करें। आत्मा भी पढ़ो और आत्मीयता भी पढो के मैसेज भेजें। जो लोग इस मैसेज को लाइक कर रहे हैं, 100% न वेद पढ़ा है न उपनिषद पढ़ा है न ही पुराण पढा है।

हमारा देश व्यवसाय में सोने की चिड़िया व अध्यात्म में विश्व गुरु था। भविष्य में भी ज्ञान में विश्वगुरु और आर्थिक समृद्धि व व्यापार में सोने की चिड़िया हो भी सकता है। यदि भारतीय युवा भावनाओं में न बह कर थोड़ा दिमाग़ लगाकर चीज़ों को समझें व जानने की कोशिश करें।

युगऋषि परम्पपूज्य गुरुदेव कहते हैं - *एक दिन कईं व्यक्तियों को भीख देना कोई बहुत बड़ी महानता नहीं है, अपितु कम से कम कुछ एक व्यक्ति को ज्ञान व रोजगारपरक शिक्षण देकर उसके पैरों पर खड़ा करना महानता है। उसके भोजन व सम्मान की वह स्वयं व्यवस्था कर सके, स्वाभिमान से जी सके यही धार्मिक जन का उद्देश्य होना चाहिए।*

*वृद्धाश्रम में वृद्धों को सामान देना पुण्य देता है, लेकिन सबसे बड़ा पुण्य वह है जिसमें कि उनके बच्चों को समझाबुझाकर वृद्धों की सेवा के लिए प्रेरित कर उनके घर पुनः सम्मान पूर्वक रहने हेतु व्यवस्था की जाय।*

याद रखिये, वेद पढ़ने वाला कभी भिखारी नहीं होता और न ही उसके माता पिता को वृद्धाश्रम जाने की जरूरत पड़ती है। वेद पढ़ने वाला लोगों को सम्मान व रोजगार से जोड़ने की पहल करता है। आत्मियता विस्तार करता है। *वेद पढ़ने वाला वेदना पढ़ने के साथ साथ वेदना से मुक्त करने का स्थायी प्रयास करता है*।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Thursday 19 December 2019

कविता - *मुझमें भी शिवत्व जगा दो*

कविता - *मुझमें भी शिवत्व जगा दो*

हे भोलेनाथ,
मुझे सरल निर्मल बना दो,
मुझमें भी शिवत्व जगा दो,
शिवो$हम सा भाव जगा दो,
मुझमें सेवाभाव जगा दो।

चाहतों की चिता जला दूं,
इच्छाओं से नाता तोड़ लूँ,
मान - अपमान से परे होकर,
तुमसा वैराग्य धारण कर लूँ,
अपने जैसा ज्ञानी-वैरागी बना दो,
मुझमें भी शिवत्व जगा दो।

कोई मुझे अपमानित करे,
या कोई मुझे सम्मानित करे,
दोनों को प्रति मेरी समदृष्टि रहे,
दोनों के कल्याण के भाव मुझमें जगे,
मान-अपमान से परे पहुंचा दो,
मुझमें भी शिवत्व जगा दो।

न किसी के मोह में पडूँ,
न किसी के बिछोह में रोऊँ,
न किसी के चाह में पडूँ,
न किसी के मिलन में हंसू,
सुख और दुःख से परे पहुंचा दो,
मुझमें भी शिवत्व जगा दो।

ख़ुद के शरीर को शव मान लूँ,
इसपर आत्मचेतना का आसन लगा लूँ,
कामनाओं वासनाओं को भष्मीभूत करके,
उनकी भष्म को अंग पे लगा लूँ,
ऐसा मुझे ध्यानी-योगी बना दो,
मुझमें भी शिवत्व जगा दो।

कण कण में व्याप्त शिवतत्व में,
सत्कर्मो की आहुतियां दूँ,
यज्ञमय जीवन बनाकर,
प्रत्येक श्वांस में तुम्हें सुमिरूं,
मेरे *मैं* को खाली कर दो,
मुझमें कल्याणकारी शिवत्व भर दो।

जो तू है वो मैं हूँ,
यह शिवो$हम अनुभूत करा दो,
शिव सा कल्याणकारी बना दो,
मुझमें भी शिवत्व जगा दो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *रक्तदान से लोगों की जान बचती है यह पता है, लेकिन रक्तदान करने वाले को क्या आध्यात्मिक व स्वास्थ्य का फ़ायदा होता है? यह बताइये रक्तदान महादान क्यों है?*

प्रश्न - *रक्तदान से लोगों की जान बचती है यह पता है, लेकिन रक्तदान करने वाले को क्या आध्यात्मिक व स्वास्थ्य का फ़ायदा होता है? यह बताइये रक्तदान महादान क्यों है?*

उत्तर- आध्यात्मिक भाई,

वेद, उपनिषद व पुराणों में जीवनदान को अति पुण्यदायी बताया है। अब यह जीवनदान आप निम्नलिखित तरीक़े से कर सकते हैं और पुण्य और दुआएं प्राप्त करते हैं:-

1- किसी प्यास से मर रहे व्यक्ति को जल देकर जान बचाना
2- भूख से मर रहे व्यक्ति को भोजन देकर जान बचाना
3- किसी ठण्ड में मर रहे व्यक्ति को कम्बल दान देना
4- किसी अस्पताल में एक्सीडेंट या ऑपरेशन के दौरान रक्त की कमी से मर रहे व्यक्ति को अपना रक्त देकर उसका जीवन बचाना

*रक्तदान महादान इसलिए है क्योंकि अन्न, जल, वस्त्र बाह्य वस्तु है जिसके दान के पुण्य से स्वयं के भीतर की वस्तु रक्त का दान बड़ा है। यह रक्त उस व्यक्ति को नया जीवन दान देता है। वह ईश्वर देखता है कि आप अपने जीवन में से जीवन दूसरे को दे रहे हैं, अतः यह अत्यंत पुण्यदायी है।*

प्राचीन समय में जब धर्मग्रन्थ लिखे गए थे, तब आधुनिक हॉस्पिटल व ब्लड बैंक नहीं हुआ करते थे। उस वक़्त शल्यक्रिया के दौरान रक्त ट्रांसफर कैसे होता था उसका कोई उल्लेख नहीं है। परन्तु उस वक्त भी रक्तदान व अंगदान होता था, शल्यक्रिया विकसित थी।
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*आधुनिक युग में रक्तदान के बाद रक्तदाता को होने वाले फायदे*

जैसे ही रक्तदान करके आप किसी का जीवन बचाएंगे आपको एक आत्म संतुष्टि व आत्म गौरव की अनुभूति होगी। आपके भीतर देवत्व जगता है, कुछ अच्छा करने के बाद हमारे अंतःकरण में आनन्द की अनुभूति होती है।

मरीज़ व परिवार वालों की दुआएं मिलती है, रक्तदान से जीवनदान देने पर जीवनीशक्ति बढ़ती है।

एक वयस्क व्यक्ति के शरीर में औसतन 10 यूनिट रक्त होता है, जिसमें से व्यक्ति एक यूनिट blood donate कर सकता है | लेकिन जागरूकता की कमी की वजह से व्यक्ति Blood Donation करने से डरता है या हिचकिचाता है | जरा सोचिए हमारे देश को हर साल करीब 120 लाख यूनिट ब्लड की आवश्यकता होती है लेकिन केवल 90 लाख यूनिट ब्लड ही उपलब्ध हो पाता है | ऐसे में देश 30 लाख यूनिट ब्लड की कमी से जूझता है | जबकि 38000 से अधिक ब्लड यूनिट की हर रोज जरुरत होती है |

*विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़ो के अनुसार केवल दो प्रतिशत और अधिक रक्तदाताओं का blood donate के लिए आगे आना कई लोगों की जान बचा सकता है* | लेकिन खून देने के फायदे के बारे में जानकारी न होने से व्यक्ति blood donate करने नहीं चाहता है साथ ही व्यक्ति के मन में ब्लड डोनेशन से जुड़े कई भ्रम भी होते है इस वजह से लोग रक्तदान नहीं करते | पर शायद आप यह नहीं जानते है कि आप के द्वारा जो ब्लड डोनेशन किया जाता है वह किसी को जीवनदान देता ही है साथ ही इससे आप भी स्वस्थ रहते है |
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*रक्तदान के फायदे मरीज के साथ – साथ रक्तदाता को भी होता है |*

एक वयस्क व्यक्ति के शरीर में 5 – 6 लीटर ब्लड होता है और अच्छी बात यह है कि अपने ब्लड की इस मात्रा से साल में कम से कम चार बार रक्तदान किया जा सकता है बिना किसी शारीरिक नुकसान के | दूसरे शब्दों में कहे तो एक स्वस्थ शरीर के इंसान में लगभग 10 unit रक्त होता है जिसमें से वह एक यूनिट रक्त (350 मिली) आराम से दान कर सकता है | एक नियमित रक्तदाता तीन महीने बाद फिर से अगला रक्तदान कर सकता है |
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*रक्त चार प्रकार के तत्वों से निर्मित होता है – रेड ब्लड सेल्स, व्हाइट ब्लड सेल्स, प्लेटलेट्स और प्लाज्मा*| जब कोई व्यक्ति ब्लड डोनेशन करता है, तो दो से तीन दिनों के भीतर उसके शरीर में प्लाज्मा का दोबारा निर्माण हो जाता है | जबकि रेड ब्लड सेल्स को बनने में एक से दो महीने लग सकते है | इस तरह कोई व्यक्ति तीन महीने बाद दुबारा रक्तदान कर सकता है |
आज मैं आप से blood donation के लाभ व इससे जुड़ी कुछ गलत धारणाओं के बारे में जानकारी शेयर करने जा रही हूँ, जिससे आप किसी को रक्तदान दे सके | अगर आप की वजह से किसी को जीवनदान मिलता है तो इससे बड़ी खुशी की बात और क्या हो सकती है | इसलिए रक्तदान के फायदे को जानना बहुत ही जरुरी है |


*रक्तदान के फायदे*
*रक्तदाताओं को  रक्तदान के फायदे / खून देने के फायदे निम्न होते है* –

👉🏻खून देने से हार्ट-अटैक का जोखिम कम होता है

👉🏻आमतौर जब व्यक्ति के लीवर या किडनी में आयरन संचित होने लगता है, तो उससे हार्ट – अटैक की आशंका बढ़ जाती है | दरअसल आयरन खून को गाढ़ा बना देता है, जिससे ह्रदय रोग होने का जोखिम बढ़ता है | रक्त-दान करने से शरीर में आयरन का संतुलन बना रहता है और ह्रदय रोग का खतरा कम होता है |

👉🏻डिमेंशिया या अल्जाइमर जैसी बिमारियों के होने की आशंका को कम करता है

👉🏻उम्र बढ़ने के साथ – साथ व्यक्ति  में आयरन की अधिकता के कारण डिमेंशिया या अल्जाइमर जैसी बिमारियों के होने की आशंका भी बढ़ जाती है | नियमित तौर पर रक्त-दान करने से आयरन नियंत्रित रहता है जो कि बृद्धावस्था में होने वाली बीमारी डिमेंशिया या अल्जाइमर से आपकी सुरक्षा करता है |

👉🏻स्ट्रोक का खतरा कम

👉🏻रक्त-दान से स्ट्रोक का खतरा भी 33 प्रतिशत तक कम हो जाता है |

👉🏻कैंसर का जोखिम कम करता है

👉🏻शरीर में आयरन के अनियंत्रित रहने से कैंसर का खतरा बढ़ जाता है | व्यक्ति के शरीर से आयरन निकलने की प्रक्रिया बहुत धीमी होती है | ऐसे में रक्त दान करने से इसका सही संतुलन बना रहता है |
रक्तदान से पुरानी आरबीसी से निकल जाती है | दोबारा खून तेजी से बनता है |

👉🏻नियमित रक्तदान से व्यक्ति में बीमारी से लड़ने की ताकत बढ़ती है |
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*ये लोग रक्तदान कर सकते है* –

*50 किलो से अधिक वजन के लोग रक्तदान कर सकते हैं |
*रक्त में 12.5 ग्राम या इससे अधिक हीमोग्लोबिन का स्तर हो |
*18 से 65 साल का कोई भी व्यक्ति रक्तदान कर सकता है |

*रक्तदान से जुड़े प्रश्नोत्तर*

रक्तदान के फायदे की वजह से रक्तदान महादान कहा जाता है, लेकिन लोग खून देने में तमाम भ्रम के चलते हिचकते है जैसे –
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*क्या रक्तदान से सेहत को नुकसान है?*

रक्त-दान से सेहत को किसी भी प्रकार से नुकसान नहीं होता | रक्त-दान के दौरान केवल 350 एमएल खून ही लिया जाता है जिसकी पूर्ति दो – तीन दिन में हो जाती है |
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*क्या शाकाहारी व्यक्ति रक्तदान नहीं कर सकता?*

तमाम लोगों को यह भ्रम होता है कि शाकाहारी व्यक्ति के शरीर में आयरन नहीं बनता | यह सच नहीं है | शाकाहारी व्यक्ति भी रक्त-दान कर सकता है |
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*क्या खून देनें समय तकलीफ होती है?*

रक्त-दान पूरी तरह से सुरक्षित प्रक्रिया है | इसमें सुई की हल्की चुभन के अलावा कोई दर्द नहीं होता है | यह एक साधारण कष्टरहित प्रकिया है |
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*क्या खून देने में बहुत समय लगता है?*

रक्तदान में मात्र 5 से 10 मिनट ही लगता है |
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*क्या खून देने से संक्रमण हो सकता है?*

यह सच नहीं है | जैसा कि मैनें पहले भी कहा कि यह पूरी तरह से सुरक्षित प्रक्रिया है और सभी सवास्थ्य केद्रों पर खून लेने के मानक तरीके अपनाएं जाते है |
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*रक्तदान से पहले होने वाले टेस्ट*

रक्त-दान से पहले रक्तदाता की हेल्थ स्क्रीनिंग की जाती है | इसमें पांच प्रमुख टेस्ट होते है

*हेपेटाइटिस बी
*हेपेटाइटिस सी
*सिफलिस
*एचआईवी
*मलेरिया

उपर्युक्त के अतिरिक्त एचबी लेवल टेस्ट और ब्लडप्रेशर की भी जांच की जाती है |
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*रक्तदान के बाद क्या खाएं ? *

रक्तदाताओं को अपने आहार में आयरन, विटामिन बी व सी युक्त आहार लेना चाहिए | इसके लिए पालक, संतरे का जूस फलियां व डेरी उत्पाद को अपने नियमित आहार में ले |
रक्दान ( Blood Donation) करने से दो – तीन घंटे पूर्व पर्याप्त मात्रा में पानी जरुर पिए व भरपेट भोजन करें | इससे खून में सुगर की मात्रा स्थिर होती है |

युगऋषि कहते हैं - *जीवनदान सबसे बड़ा दान है, सबसे बड़ा पुण्यफ़ल है। साथ ही ज्ञान दान देकर जीवन को सन्मार्ग पर लाना भी अति पुण्यदायी है।*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
स्वास्थ्य आंदोलन - रक्तदान महादान

Wednesday 18 December 2019

स्वास्थ्य आंदोलन - युगनिर्माण हेतु

*स्वास्थ्य आंदोलन - युगनिर्माण हेतु*

स्वच्छ-स्वस्थ शरीर में ही स्वच्छ-स्वस्थ मन रह सकता है, स्वच्छ-स्वस्थ मन ही स्वच्छ-स्वस्थ शरीर को रखने के लिए प्रेरित करेगा। दोनों एक दूसरे के अनन्य आश्रित हैं।

*हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है।*      - युगऋषि वेदमूर्ति तपनिष्ठ परम्पूज्य  गुरुदेव पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य

*मनुष्य के शरीर में दो चीजें हैं- एक उसकी "रचना" अर्थात् काया और दूसरी "चेतना"*। मनुष्य के पास जो कुछ भी विशेषता और महत्ता है, जिसके कारण वह स्वयं उन्नति करता जाता है और समाज को ऊँचा उठा ले जाता है वह उसके अंतर की विचारधारा है। जिसको हम चेतना कहते हैं, अंतरात्मा कहते हैं, विचारणा कहते हैं। यही एक चीज है, जो मनुष्य को ऊँचा उठा सकती है और महान बना सकती है। शांति दे सकती है और समाज के लिए उसे उपयोगी बना सकती है। मनुष्य की चेतना, जिसको हम विचारणा कह सकते हैं, किस आदमी का विचार करने का क्रम कैसा है? बस, असल में वही उसका स्वरूप है। आदमी लंबाई-चौड़ाई के हिसाब से छोटा नहीं होता, वरन जिस आदमी के मानसिक स्तर की ऊँचाई कम है, वह आदमी ऊँचे सिद्धांत और ऊँचे आदर्शों को नहीं सुन सकता। जो व्यक्ति सिर्फ पेट तक और संतान पैदा करने तक सीमाबद्ध रहता है, वह छोटा आदमी है। उसे अगर एक इंच का आदमी कहें तो कोई अचंभे की बात नहीं है। उसकी तुलना कुएँ के मेंढक से करें, तो कोई अचंभे की बात नहीं है। कीड़े-मकोड़ों में उसकी गिनती करें तो कोई बात नहीं है।

युगनिर्माण का मूलभूत सिद्धांत है, जो क्रमशः स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन और सभ्य समाज है।  यह आंदोलन मनुष्य के आसपास जो संसाधन मौजूद हैं उन्हीं का उपयोग  कर उन्हें स्वस्थ रहने का सूत्र देगा।

ज़्यादातर रोग के जन्मदाता हम सब स्वयं है, हमारी अस्तव्यस्त दिनचर्या, अव्यवस्थित आहार-विहार, असंयम हम सबको रोगी बना रहा है।

रोगी केवल वह नहीं जो अस्पताल जाकर इलाज करवा रहे हैं, रोगी वह भी हैं जिनको अपच, थकान, निद्रा की कमी, चिंताएं, बदन दर्द इत्यादि व्यथाएँ घेरे रहती है। समय रहते इनका उपचार न किया गया तो इन्हें बड़े रोगों में बदलते देर नहीं लगती।

Prevention is better than cure. उपचार से बचाव ज्यादा अच्छा होता है।

स्वास्थ्य संवर्द्धन के सूत्र - उचित रहन सहन, आहार-विहार, जप-तप-ध्यान-योग-व्यायाम, जिह्वा संयम, विचार संयम, जड़ी-बूटियों का ज्ञान जानकर, मसाला वाटिका का ज्ञान अपनाकर स्वस्थ रहा जा सकता है।

बीमारी किचन से ही शुरू होती है, तला-भुना गड़बड़ खानपान रोग देता है। अब इस किचन को ही स्वास्थ्यकेंद्र बना दीजिये, सही सब्जी व उपयोगी मसालों को ही औषधि बना लीजिए, स्वयं को स्वयं का चिकित्सक बना लीजिए, अपना स्वास्थ्य अपने हाथों से सम्हाल लीजिये।

विश्व इंडेक्स में भारत को सबसे स्वस्थ व व्यवस्थित लोगों का देश बनाने में मदद कीजिये। शपथ लीजिये कि मैं भारत का देशभक्त नागरिक हूँ व स्वयं स्वस्थ रहूँगा, परिवार को स्वस्थ रखूंगा व आसपास के लोगों को स्वस्थ रहने के लिए प्रेरित करूँगा। रोगमुक्त-योगयुक्त स्वस्थ भारत के निर्माण में सहयोग दूंगा।

स्वास्थ्य आंदोलन के बारे में जानकारी के लिए निम्नलिखित लिंक विजिट करिये:-

http://literature.awgp.org/book/Hamare_Saat_Andolan/v1.6

स्वास्थ्य संवर्द्धन के साहित्य पढ़िये व लोगों को पढ़ाईये:-

* जीवेम शरद: शतम
* चिकित्सा उपचार के विविध आयाम
* निरोग जीवन के महत्त्वपूर्ण सूत्र
* प्रज्ञायोग
* मसाला वाटिका
* जड़ी बूटियों का दिव्य ज्ञान
* मांसाहार कितना उपयोगी, मनोशारीरिक एवं वैज्ञानिक विश्लेषण
* श्वास-प्रश्वास-विज्ञान
* रोग - औषधि आहार- विहार एवं उपवास
* दीर्घ जीवन की प्राप्ति
* निरोगी जीवन का राजमार्ग
* स्वस्थ रहने के सरल उपाय
* खाते समय इन बातों का ध्यान रखें
* स्वस्थ और सुंदर बनने की विद्या

अन्य और भी समस्त साहित्य निम्नलिखित लिंक पर पढ़ सकते हैं:-

http://literature.awgp.org/book

आइये देश को स्वस्थ बनाने के लिए जन जन को स्वस्थ बनाने की मुहिम पर कार्य करें।

आइये हमारे साथ कुछ नारे लगाइये:-

संयम रखिये - स्वस्थ रहिये
हमारा स्वास्थ्य - हमारे हाथ
हमारा रसोईघर- हमारा स्वास्थ्य केंद्र
अपनाएँगे योग - रहेंगे निरोग
स्वस्थ जीवन का आधार - हरी शाक युक्त जीवनदायी आहार

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 17 December 2019

अखण्डज्योति पत्रिका क्या है ? अखण्डज्योति पत्रिका क्यूँ नित्य पढ़ना चाहिये?

*अखण्डज्योति पत्रिका क्या है ? अखण्डज्योति पत्रिका क्यूँ नित्य पढ़ना चाहिये?*

Importance of Akhand jyoti & Its feature.

उत्तर- अखण्डज्योति मात्र एक पत्रिका नहीं यह नए युग की सन्देश वाहिका है।

अखण्डदीपक जला कर 24 वर्षों 24-24 लाख के गायत्री महापुरश्चरण निरन्तर कठोर साधना संकल्प के साथ लेखन शुरू करने के कारण इसका नाम अखण्डज्योति रखा गया।

यह अध्यात्म का तात्विक और वैज्ञानिक विश्लेषण है।

विज्ञान ने आज समाज को स्पीड और सुख-सुविधा सम्पन्न कर दिया, लेकिन मानव मन को विक्षिप्त कर नशे के दलदल में धकेल दिया। टूटा मन और बिखरते रिश्ते परेशानी का सबब बन गए हैं।

घर बड़ा हो गया और हृदय छोटा हो गया, रहन सहन हाई फाई और सोच घटिया हो गयी। मानसिक रोगों की भरमार हो गयी। उच्च क़्वालिटी के अस्पताल और मानव सेहत निम्न क़्वालिटी का हो गया है। फेसबुक, व्हाट्सएप पर इतने ज्यादा सोशल हो गए कि पूरे समाज से अन शोशल हो गए। फेसबुक में हज़ार दोस्त और असली जिंदगी में एक भी सच्चा दोस्त नहीं है। भोगवादी सोच ने सर्वत्र तबाही मचा रखी है और समाज सामूहिक आत्महत्या की ओर बढ़ रहा है।

ऐसे समुद्र जैसे भँवर में एक दिशा सूचक यन्त्र की आवश्यकता है। एक GPS सिस्टम की जरूरत है जिससे मनुष्य सही दिशा प्राप्त कर अपनी जीवन दशा सुधार सके।

अखण्डज्योति एक सही दिशा सूचक यन्त्र है, जो इसका स्वाध्याय करने वाले के जीवन मे आमूल चूल परिवर्तन कर देती है।

अखण्डज्योति शब्दों में पिरोई महाकाल की चेतना है, इसकी छुअन प्राणों की पीर वेदना हर लेती है। मुरझाये जीवन इसके नियमित पाठन से मुस्कुरा उठते हैं। इसके अक्षरों के अमृत कलश जहां झरते हैं वहीं आध्यात्मिक चेतना के अंकुर फूट पड़ते हैं। इसके शब्दो के ज्ञान दीप जहां भी रखे जाते है, वह जीवन पथ हो या अंतर्मन हो, दोनो ही प्रकाशित हो जाता है। भ्रांति, संशय, अज्ञान के धूल कण अंतर्दृष्टि से हट जाते है और सुनहरे जीवन का मार्ग दृष्टिगोचर हो जाता है।

अनेकों जटिल समस्याओं के सहज सुलभ समाधान इसमें मिल जाते हैं, जब इन्हें कोई भी व्यक्ति पढ़ता है तो ऐसा लगता है मानो परम् पिता ने उसके लिए पत्र लिखा हो, जिसमें उसकी समस्त समस्याओं का समाधान लिखा हो।

जब सपरिवार इसका स्वाध्याय करते हैं तो परिवार में बड़ो को सम्मान और छोटो को प्यार मिलता है। परिवार में प्यार, सहकार, और शुभ संस्कार का वातावरण निर्मित होता है। रूढ़िवादी परम्पराओ के जाल से मुक्ति मिलती है। किशोरों में शुभ भाव और सकारात्मक सोच विनिर्मित होती है।

अभिवावकों को इससे पारिवारिक और सामाजिक दायित्व निभाने की समुचित और सुखद मार्गदर्शन मिलता है। अध्यापकों को देश का भविष्य गढ़ने के सूत्र मिलते हैं, इसे पढ़के चिकित्सकों को मनोभाव जनित रोग समझने में आसानी होती है। वकीलों को पारिवारिक समस्याओं को सुलझाने के सरल सूत्र मिलते हैं, विद्यार्थीयों को सफल जीवन की दिशा धारा मिलती है, गृहणियों को घर संसार सम्हालने के सूत्र मिलते है, जॉब करने वालों को परिवार और जॉब के बीच संतुलन के सूत्र मिलते हैं। स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन और सभ्य समाज के सूत्र यहां सरल सहज भाषा मे मिल जाते हैं।

योगियों और अध्यात्म के खोजियों के लिए इसमें उच्च साधनाओ के सूत्र इसमे है।

पाखण्डियों और योग के नाम पर मायाचार करने वाले लोगों के भ्रम जाल से बाहर आने के सूत्र हैं।

मनुष्य में देवत्व और धरती पर ही स्वर्ग अवतरण करने के सूत्र और सन्देश देने वाली इस पत्रिका का परिचय इसीलिए इस पत्रिका के आदि प्रवर्तक परम् पूज्य गुरुदेव वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने इसका परिचय देते हुए लिखा था-

*सन्देश नहीं मैं स्वर्ग लोक का लाई, मैं तो इस धरती को ही स्वर्ग बनाने आई।।*

ईन पक्तियों में ही इसकी आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और वैचारिक पृष्ठमूमि का प्रकाश है।

*इसकी उपरोक्त उपयोगिता को समझ कर ही अखण्डज्योति प्रत्येक स्कूलों में पढ़ाई जाए इसके लिए राजस्थान सरकार ने अध्यादेश जारी किया है।*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

षट चक्र ध्यान - प्राण ऊर्जा के संचार के लिए

*षट चक्र ध्यान - प्राण ऊर्जा के संचार के लिए*

गुरुगीता में वर्णित मन्त्र जप से पूर्व का विनियोग, कर न्यास, हृदय न्यास, गुरु आह्वाहन, गायत्री माता का ध्यान व आह्वाहन करके कम से कम तीन माला गायत्री की जप लें।

अब निम्नलिखित पूरी ध्यान साधना के दौरान कमर सीधी व नेत्र बन्द रखें।

भावना कीजिये कि इड़ा पिंगला शुशुम्ना नाड़ियां एक्टिवेट हो गयी हैं।

*मूलाधार चक्र* - मेरुदंड के मूल में, सबसे नीचे। एक विद्युतीय करंट नीली रौशनी का मूलाधार से ऊपर क्रमशः आ रहा है।

*स्वाधिष्ठान चक्र* - मूलाधार से आकर नीली विद्युत करंट स्वाधिष्ठान चक्र को एक्टिवेट कर दिया है। अब वहाँ लाइट जल गई है। वहां से करंट ऊपर उठ रहा है।

*मणिपुर चक्र* - स्वाधिष्ठान से ऊपर आकर नीली विद्युत करंट मनिपुर चक्र को एक्टिवेट कर दिया है। अब वहाँ लाइट जल गई है। वहां से करंट ऊपर उठ रहा है।

*अनाहत चक्र* - मणिपुर से आकर नीली विद्युत करंट अनाहत चक्र को एक्टिवेट कर दिया है। अब वहाँ लाइट जल गई है। वहां से करंट ऊपर उठ रहा है।

*विशुद्धि चक्र* - अनाहत से आकर नीली विद्युत करंट विशुद्धि चक्र को एक्टिवेट कर दिया है, यह चक्र गले में स्थित है। यह जागृत हो गया, गला पूरा रौशनी से भर गया है। गला  पूर्ण स्वस्थ हो गया है। अब वहाँ लाइट जल गई है। वहां से करंट ऊपर उठ रहा है।

*आज्ञा चक्र* -  विशुद्धि चक्र से आकर नीली विद्युत करंट आज्ञा चक्र को एक्टिवेट कर दिया है। अब वहाँ लाइट जल गई है। वहां से करंट ऊपर उठ रहा है। आज्ञा चक्र मेरुदण्ड की समाप्ति पर भ्रूमध्य के पीछे है।

*सहस्त्रार चक्र* - आज्ञा चक्र से आकर नीली विद्युत करंट जैसे ही सहस्त्रार चक्र में पहुंचता है तो वह कमल की तरह खिल गया है। अब वहाँ सूर्य का प्रकाश जगमगा रहा है। वहां से करंट ऊपर उठ कर ब्रह्माण्ड से कनेक्ट हो गया है। मूलाधार से सहस्त्रार फिर ब्रह्माण्ड तक आपका कनेक्शन हो गया है।  विद्युत प्रवाह पूरी रीढ़ की हड्डियों में और चक्रों में महसूस कीजिये। गायत्री के प्राण प्रवाह से स्वयं को जुड़ा हुआ महसूस कीजिये। चार्ज होता हुआ स्वयं को महसूस कीजिये। ब्रह्माण्ड से प्राण प्रवाह आपके भीतर प्रवेश कर आपको निरोगी व स्वस्थ बना रहा है। प्राणवान बना रहा है।

स्वयं को हाल ही जन्मे स्वस्थ बच्चे की तरह चैतन्य और तरोताज़ा महसूस कीजिये। ऊर्जा का अनन्त प्राण प्रवाह आपकी नस नाड़ियों में बह रहा है। आप स्वस्थ पूर्णतया स्वस्थ व चैतन्य हो रहे हैं।

थोड़ी देर इस ध्यान में खोइए, धीरे धीरे दोनो हाथ रगड़िये, प्रभावी अंगों में ऊर्जा दीजिये और चेहरे पर लगा लीजिए।

नेत्र खोलकर थोड़ी देर भगवान को देखिए, फिर सहज होकर शांतिपाठ करके आराम से उठिए।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday 16 December 2019

प्रश्न - *दी वास्तविकता यह है कि जब जब हम हर बार उठने की कोशिश करते हैं, तो मदद को तो एक भी हाथ नहीं आता, गिराने को हज़ार हाथ आ जाते है। मनोबल तोड़ने को लोग खड़े रहते हैं।

प्रश्न - *दी वास्तविकता यह है कि जब जब हम हर बार उठने की कोशिश करते हैं, तो मदद को तो एक भी हाथ नहीं आता, गिराने को हज़ार हाथ आ जाते है। मनोबल तोड़ने को लोग खड़े रहते हैं। "नहीं, आप नहीं कर सकते, रहने दो बस" यही शब्द मुझे तोड़कर रख देते हैं। फिर भी प्रयासरत हूँ, 2 वर्ष हो गया अब नहीं होता मुझसे...😞😞*

उत्तर - जीवन के खेल के मैदान में चियर आपके लिए करने वाले, मनोबल बढ़ाने वाले केवल कुछ मुट्ठी भर लोग होते हैं - परम्पिता परमेश्वर, माता-पिता, सदगुरु,  सन्त प्रकृति के अच्छे लोग इत्यादि

बाकी सब तो आपकी अपोज़िट टीम होती है, जो हूटिंग करके, चिढ़ा के, मनोबल तोड़ के आपको हराना चाहती है।

वास्तविकता मात्र शब्द है, कोई हकीकत नहीं। जैसी हमारी मनःस्थिति वही वस्तुतः बनती है हक़ीक़त। आपकी मनःस्थिति अच्छी है तो किसी के अप्रिय बोल आपको जीवन के खेल में प्रभावित नहीं कर सकते।

विपरीत परिस्थिति में कोई रिकॉर्ड तोड़ता है, कोई विपरीत परिस्थिति में स्वयं टूटता है।

इस संसार में केवल आत्मबल के सहारे ही जिया जा सकता है व विपत्तियों से लड़ा जा सकता है। आधी ग्लास भरी व आधी खाली है, रोना है तो ख़ाली के तरफ देखो, हंसना है तो भरा की तरफ देखो।

मेरी दृष्टि में जो मानसिक रूप से अपाहिज है वही वस्तुतः अपाहिज है। यदि बुद्धि चल रही है तो व्यक्ति कैसा भी शरीर हो जीवन चला सकता है।

जिस दिन आत्मबल टूटा जीवन छूट जाता है। जप,तप, ध्यान स्वाध्याय से आत्मबल प्राप्त होता है।

तुलसीदास जी कहते हैं:-

करहि जाइ तपु सैलकुमारी। नारद कहा सो सत्य बिचारी।।
मातु पितहि पुनि यह मत भावा। तपु सुखप्रद दुख दोष नसावा।।
तपबल रचइ प्रपंच बिधाता। तपबल बिष्नु सकल जग त्राता।।
तपबल संभु करहिं संघारा। तपबल सेषु धरइ महिभारा।।
तप अधार सब सृष्टि भवानी। करहि जाइ तपु अस जियँ जानी।।
सुनत बचन बिसमित महतारी। सपन सुनायउ गिरिहि हँकारी।।
मातु पितुहि बहुबिधि समुझाई। चलीं उमा तप हित हरषाई।।
प्रिय परिवार पिता अरु माता। भए बिकल मुख आव न बाता।।

तपना व संघर्षरत रहना ही जीवन है। यह सांसारिक जीव अपनों का ही भार नहीं उठाता फ़िर गैरों की तो बात वो बात भी नहीं करता।

फ़िल्म बनने से पहले स्क्रिप्ट बनती है, उसी तरह जीवन मिलने से पहले नियति लिखी जाती है। यह नियति वस्तुतः हमारे पूर्वजन्मों के कर्मफ़ल से प्रेरित होती है।

कल ही एक सत्य घटना बेटे को वांग्मय 57 - *तेजस्विता, प्रखरता, मनस्विता*  से सुनाई थी। अमेरिका का ट्रक ड्राइवर दुर्घटना में दोनों आंख, एक कान पूरा खो चुका था।  पैरालिसिस दुर्घटना के बाद जब हुआ तो दाहिना हाथ व दाहिना पैर अंग खो चुका था। तब भी वह भगवान को धन्यवाद देता अपने जीवन बचने के लिए व मशीन से घास काटने का काम करता। जब लोग पूँछते कैसे हो तो वह बोलता, परमात्मा ने मेरा दिमाग़ बचाये रखा इसके लिए धन्यवाद।

मेरा दिमाग़ जब तक चल रहा है मैं जीवन का आनन्द ले सकता हूँ। मैं जीवन हूँ। जीवित हूँ। यह मेरे लिए आनन्द की विषयवस्तु है।

लोग जब उसे डिमोटिवेट करते कि - *तुम यह नहीं कर सकते* - तब वह उन्हें धन्यवाद देता कि मुझे चुनौती देने के लिए धन्यवाद। फ़िर वह अक्ल लगाता व उसे करके दिखाता।

घास के लिए वह रस्सी बांधता घेरा चेक अंदाजे से करता वह खूबसूरती से घास काटता। पत्नी जब बाहर कार्य करने जाती तो घर के सारे कार्य कर देता। लोगों की समस्याएं सुलझाता व यथासम्भव मदद करता।

आत्मीय बेटी, तुम स्वयं से पूंछो कि लोगों के ताने तुम्हारे लिए *चुनौती* हैं या *समस्या*?

*समस्या* मनोगी तानों को तो टूट जाओगी।

*चुनौती* मनोगी तो कठिन से कठिन चुनौती लोगी। कुछ न कुछ बेहतर करती रहोगी, दिमाग़ चलाते रहोगी। अंतिम श्वांस तक दिमाग़ी रूप से सुपर एक्टिव हो जाओ। स्वयं पर और स्वयं को बनाने वाले पर भरोसा रखो। यह प्रायश्चित शरीर है इस शरीर से भी जीवन की रेस जीत लो।

किसी वृद्ध से कहो फ़ास्ट दौड़ो, तो कहेगा घुटनो में दर्द है। यदि उसके पीछे खूँखार शेर छोड़ दो तो वो वृद्ध युवा धावक का रिकॉर्ड दौड़ने में तोड़ देगा। ऐसा नहीं कि यह दौड़ने की क्षमता उसमें पहले नहीं थी, पहले भी थी मग़र *जीवन बचाने की बर्निंग डिज़ायर* ने वह असम्भव कार्य भी करवा दिया जो वह सोचता था कि वह न कर सकेगा।

*तुम्हारे पास बर्निंग डिज़ायर होना चाहिए कि अपने जैसों के लिए तुम प्रेरणा स्रोत बनो, तुम्हे देखकर लोग जीवन जीने की कला सीखें। मनःस्थिति बदलो परिस्थिति बदलने लगेगी।*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, यदि कोई मेरी शारीरिक बनावट को देखकर हँसे व मुझे अपमानित करे तो ऐसी अवस्था मे अपना आत्मविश्वास और कॉन्फिडेंस को टूटने से कैसे बचाऊँ?*

प्रश्न - *दी, यदि कोई मेरी शारीरिक बनावट को देखकर हँसे व मुझे अपमानित करे तो ऐसी अवस्था मे अपना आत्मविश्वास और कॉन्फिडेंस को टूटने से कैसे बचाऊँ?*

उत्तर- आत्मीय बेटे, यदि कोई आपकी शारीरिक संरचना पर हंस रहा है व मज़ाक उड़ा रहा है तो वस्तुतः वह आपके रचनाकार भगवान का मज़ाक उड़ा रहा है। तो ऐसे मूर्ख अज्ञानी पर आपको दया आनी चाहिए, क्योंकि भगवान की हँसी उड़ाना उसको महंगा पड़ेगा व दण्ड कालांतर में उसे अवश्य मिलेगा।

अच्छा यह बताओ, यदि मूर्ति सुंदर है तो श्रेय किसका? मूर्तिकार का है न..

यदि मूर्ति कुरूप हुई तो उसके लिए जिम्मेदार कौन? मूर्तिकार है न...

तुम भी परमात्मा द्वारा बनाई मूर्ति हो, अतः तुम्हारा मूर्तिकार परमात्मा है। तो मज़ाक परमात्मा का उड़ाया गया, तुम्हारा नहीं।

तुम बिजनेस के दौरान कस्टमर हैंडल करो या इंटरव्यू देने जाओ या बच्चों को पढ़ाओ, किसी भी अवस्था मे मज़ाक उड़ाने वाले तुम्हारे अस्तित्व से अपरिचित हैं, बाह्य तुम्हारा शरीर जो कि परमात्मा द्वारा बनाया है, वही दृश्य है। तो तुम्हें कॉन्फिडेंस लूज करने की आवश्यकता नहीं।

तुम्हें जो बुद्धि परमात्मा ने दी है, उसे तराशने की आवश्यकता है। भगवान ने जो भी शरीर हमें हमारे पूर्व जन्म के  कर्म फल अनुसार दिया है, उसे सहर्ष स्वीकारो, इस शरीर का बेहतरीन उपयोग कैसे कर सकते हो यह सोचो।

गाड़ी की क़ीमत उसके बाह्य आकर और लुक से तय नहीं होती, उसकी असली क़ीमत और वर्चस्व उसके भीतर का इंजन, माइलेज और सुविधाएं तय करती हैं।

मनुष्य के सफ़लता और वर्चस्व को उसका लुक और बाह्य आकर तय नहीं करता, उसकी असली पहचान, वर्चस्व व सफ़लता उसके भीतर का बुद्धि इंजन, उसके कार्य व गुण तय करते हैं। जितने भी महापुरुषों को आपने अब तक अपनी पाठ्यपुस्तक में पढ़ा उन सबके कार्य, बुद्धि व उपलब्धि को पढ़ा। किसी को लुक और बाह्य आकार के लिए महापुरुष की संज्ञा नहीं मिली।

वांग्मय 57 - *मनस्विता, प्रखरता और तेजस्विता* नित्य पढ़ो, उन रियल हीरो व हीरोइन को जानो जिनके कार्य से उन्हें सम्मान मिला। अतः बुद्धि के इंजन पर फोकस करो, अब यदि कोई हँसे तो तुम भी जोर से हंसना और अपने आत्मविश्वास और कॉन्फिडेंस को *आचार्य अष्टावक्र* की तरह दोगुना बढ़ाना।

इस 13 मिनट के वीडियो को पूरा देखना व इस तथ्य को समझना।

https://youtu.be/BAHZ8mTxAv8

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

गायत्री-मन्त्रलेखन एक महान साधना


*गायत्री मन्त्रलेखन एक महान साधना*
मंत्र जप के समय हाथ की माला के मनके फिराने वाली उँगलियाँ और उच्चारण करने वाली जिह्वा ही प्रयुक्त होती है किन्तु मन्त्र लेखन में हाथ, आँख, मन, मस्तिष्क आदि अवयव व्यस्त रहने से चित्त वृत्तियाँ अधिक एकाग्र रहती हैं तथा मन भटकने की सम्भावनायें अपेक्षाकृत कम होती हैं। मन को वश में करके चित्त को एकाग्र करके मंत्रलेखन किया जाय तो अनुपम लाभ मिलता है। इसी कारण मंत्र लेखन को बहुत महत्त्व मिला है।
मंत्र लेखन साधना में जप की अपेक्षा कुछ सुविधा रहती है। इसमें षट्कर्म आदि नहीं करने पड़ते। किये जायें तो विशेष लाभ होता है, किन्तु किसी भी स्वच्छ स्थान पर हाथ मुँह धोकर, धरती पर तखत या मेज- कुर्सी पर बैठ कर भी मंत्र लेखन का क्रम चलाया जा सकता है। स्थूल रूप कुछ भी बने पर किया जाना चाहिए परिपूर्ण श्रद्धा के साथ। पूजा स्थली पर आसन पर बैठ कर मंत्र लेखन जप की तरह करना सबसे अच्छा है। मंत्र लेखन की कॉपी की तरह यदि उस कार्य के लिए कलम भी पूज उपकरण की तरह अलग रखी जाय तो अच्छा है। सामान्य क्रम भी लाभकारी तो होता ही है।
संक्षेप में गायत्री मंत्र लेखन के नियम निम्न प्रकार हैं-
१. गायत्री मंत्र लेखन करते समय गायत्री मंत्र के अर्थ का चिन्तन करना चाहिए।
२. मंत्र लेखन में शीघ्रता नहीं करनी चाहिए।
३. स्पष्ट व शुद्ध मंत्र लेखन करना चाहिए।
४. मंत्र लेखन पुस्तिका को स्वच्छता में रखना चाहिए। साथ ही उपयुक्त स्थान पर ही रखना चाहिए।
५. मंत्र लेखन किसी भी समय किसी भी स्थिति में व्यस्त एवं अस्वस्थ व्यक्ति भी कर सकते हैं।
गायत्री मंत्र लेखन से लाभ-
१. मंत्र् लेखन में हाथ, मन, आँख एवं मस्तिष्क रम जाते हैं। जिससे चित्त एकाग्र हो जाता है और एकाग्रता बढ़ती चली जाती है।
२. मंत्र लेखन में भाव चिन्तन से मन की तन्मयता पैदा होती है इससे मन की उच्छृंखलता समाप्त होकर उसे वशवर्ती बनाने की क्षमता बढ़ती है। इससे आध्यात्मिक एवं भौतिक कार्यों में व्यवस्था व सफलता की सम्भावना बढ़ती है।
३. मंत्र के माध्यम से ईश्वर के असंख्य आघात होने से मन पर चिर स्थाई आध्यात्मिक संस्कार जम जाते हैं जिनसे साधना में प्रगति व सफलता की सम्भावना सुनिश्चित होती जाती है।
४. जिस स्थान पर नियमित मंत्र लेखन किया जाता है उस स्थान पर साधक के श्रम और चिन्तन के समन्वय से उत्पन्न सूक्ष्म शक्ति के प्रभाव से एक दिव्य वातावरण पैदा हो जाता है जो साधना के क्षेत्र में सफलता का सेतु सिद्ध होता है।
५. मानसिक अशान्ति चिन्तायें मिट कर शान्ति का द्वार स्थायी रूप से खुलता है।
६. मंत्र योग का यह प्रकार मंत्र जप की अपेक्षा सुगम है। इससे मंत्र सिद्धि में अग्रसर होने में सफलता मिलती है।
७. इससे ध्यान करने का अभ्यास सुगम हो जाता है।
८. मंत्र लेखन का महत्त्व बहुत है। इसे जप की तुलना में दस गुना अधिक पुण्य फलदायक माना गया है।
साधारण कापी और साधारण कलम स्याही से गायत्री मंत्र लिखने का नियम उसी प्रकार बनाया जा सकता है जैसा कि दैनिक जप एवं अनुष्ठान का व्रत लिया जाता है। सरलता यह है कि नियत समय पर- नियत मात्रा में करने का उसमें बन्धन नहीं है और न यही नियम है कि इसे स्नान करने के उपरान्त ही किया जाय। इन सरलताओं के कारण कोई भी व्यक्ति अत्यन्त सरलता पूर्वक इस साधना को करता रह सकता है।
मंत्र लेखन में सबसे बड़ी अच्छाई यह है कि उसमें सब ओर से ध्यान एकाग्र रहने की व्यवस्था रहने से अधिक लाभ होता है। जप में केवल जिह्वा का ही उपयोग होता है और यदि माला जपनी है तो उंगलियों को काम करना होता है। ध्यान साथ- साथ न चल रहा हो तो पन इधर- उधर भटकने लगता है ।। किन्तु मंत्र लेखन से सहज ही कई इन्द्रियों का संयम निग्रह बन पड़ता है ।। हाथों से लिखना पड़ता है। आंखें लेखन पर टिकी रहती हैं। मस्तिष्क का उपयोग भी इस क्रिया में होता है। ध्यान न रहेगा तो पंक्तियाँ टेढ़ी एवं अक्षर सघन विरत एवं नीचे- ऊँचे, छोटे- बड़े होने का डर रहेगा। ध्यान न टिकेगा तो मंत्र अशुद्ध लिखा जाने लगेगा। अक्षर कुछ से कुछ बनने लगेंगे। लेखन में सहज ही ध्यान का समावेश अधिक होने लगता है। जप और ध्यान के समन्वय से ही उपासना का समुचित फल मिलने की बात कही गई है। यह प्रयोजन मंत्र लिखने में अनायास ही पूरा होता रहता है।  
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *क्या आयुर्वेद में ऐसी कोई रक्तशोधक व संक्रमण(विभिन्न ज्वर-फ़ीवर) के लिए औषधि है, जो एलोपैथी एंटीबायोटिक की तरह संक्रमण खत्म करे, किंतु जिसका साइडइफेक्ट न हो।*

प्रश्न - *क्या आयुर्वेद में ऐसी कोई रक्तशोधक व संक्रमण(विभिन्न ज्वर-फ़ीवर) के लिए औषधि है, जो एलोपैथी एंटीबायोटिक की तरह संक्रमण खत्म करे, किंतु जिसका साइडइफेक्ट न हो।*

उत्तर- *रक्तशोधन व संक्रमण* - जब जब जीवनी शक्ति क्षीण होती है, तब तब रक्त में विकारों से अशुद्धि व जीवाणु-विषाणु से लड़कर शरीर की सुरक्षा में विघ्न पैदा होता है। शरीर बीमार होता है। अंतिम प्रयास के रूप में शरीर अपना तापमान बढ़ाता है और अवांछनीय *जीवाणु-विषाणु* को शरीर के ताप से जलाने की कोशिश करता है, जिसे ज्वर कहते हैं। अत्यधिक ऊर्जा ख़र्च होती है, शरीर कमज़ोर होता है।

एलोपैथी की एंटीबायोटिक जीवाणु-विषाणु नष्ट करता है, लेकिन वह आरोग्यवर्धक व बलवर्धक नहीं होता। इसके साइडइफेक्ट भी काफी होते हैं।

निम्नलिखित चार आयुर्वेद की औषधियों के द्रव्य मिलकर एंटीबायोटिक (संक्रमण निवारक द्रव्य) बनाते हैं, यह रक्त शोधन, यकृत झिल्ली की सफाई, संक्रमण के कारण जीवाणु-विषाणु को नष्ट करके शरीर के रोग प्रतिरोधी(इम्मयून सिस्टम) को शशक्त भी बनाते हैं।

युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव ने कहा था, *जो ढूढ़ेगा उसे मिलेगा(जिन खोजा तिन पाईयाँ गहरे पानी पैठ)*, मैं भी बहुत दिनों से आयुर्वेद में एंटीबायोटिक औषधि ढूंढ रही थी, जिसका पता मुझे युगऋषि की लिखी पुस्तक - 📖 *जीवेम शरद: शतम* (वांग्मय 41) में पेज नम्बर 9.23 से 9.27 पर मिला।

1- *गिलोय* - जिसका अंग्रेजी वनस्पति नाम है - Tinospora cordifolia.
एक बहुवर्षीय लता होती है, जिसके पत्ते पान के पत्ते की तरह हृदय के आकार के होते हैं। आयुर्वेद में इसको कई नामों से जाना जाता है यथा अमृता, गुडुची, छिन्नरुहा, चक्रांगी, आदि। 'बहुवर्षायु तथा अमृत के समान गुणकारी होने से इसका नाम अमृता है।' आयुर्वेद साहित्य में इसे ज्वर की महान औषधि माना गया है एवं जीवन्तिका नाम दिया गया है।

यह त्रिदोषहर(कफ़, वात, पित्त), रक्तशोधक, रोगाणु-विषाणुओं के सक्रमण नष्ट करता है। यह साधारण ज्वर, विषम ज्वर, मलेरिया ज्वर, टायफाइड इत्यादि सभी ज्वरो में लाभप्रद है।

वात रोगी को गिलोय घी के साथ, पित्तज को शक्कर(गुड़ वाली खांड) , कफ़ रोगियों को मधु के साथ दिया जाता है।

यह वृद्ध न होने की चाह रखने वालों के लिए यौवन और सौंदर्य का प्रदाता है। वृद्धावस्था को दूर रखता है। अमृतारिष्ट, अमृतावटी, गिलोयवटी इसके प्रयोग के लिए प्रयुक्त होते हैं।

2- *सारिवा* - जिसे अनंतमूल (अंग्रेज़ी: Indian Sarsaparilla (Hemidesmus indicus)) एक बेल है जो लगभग सारे भारतवर्ष में पाई जाती है। को संस्कृत में सारिवा, गुजराती में उपलसरि, कावरवेल इत्यादि, हिंदी, बँगला और मराठी में अनंतमूल तथा अंग्रेजी में इंडियन सार्सापरिला कहते हैं। लता का रंग मालामिश्रित लाल तथा इसके पत्ते तीन चार अंगुल लंबे, जामुन के पत्तों के आकार के, पर श्वेत लकीरोंवाले होते हैं।

यह त्रिदोषशामक, रक्तशोधक, ज्वरनाशक औषधि है।

सारिवादिवटी, सरिवादयासव नाम से इसका औषधि प्रयोग होता है।

3- *खदिर*  - एक प्रकार का बबूल। कथकीकर। सोनकीकर।

अंग्रेजी नाम - catechu,  Assamese
 यह चीन, भारत, पाकिस्तान, नेपाल, श्री लंका, भूटान, म्यांमार में पाया जाता है।

विशेष—इसका पेड़ बहुत बड़ा होता है और प्राय; समस्त भारत में से पाया जाता है लेकिन उत्तर प्रदेश के खैर शहर मे ये अधिक मात्रा मे पाया जाता है। इसके हीर की लकड़ी भूरे रंग की होती हैं, घुनती नहीं और घर तथा खेती के औजार बनाने के काम में आती है। बबूल की तरह इसमें भी एक प्रकार का गोंद निकलता है और बड़े काम का होता है।
*इस वृक्ष की लकड़ी के टुकड़ों को उबालकर निकाला और जमाया हुआ रस जो पान में चूने के साथ लगाकर खाया जाता है, खैर या कत्था कहलाता है।* इसे खैर, रक्त सार, दंत धावन, कंटकी व यज्ञीय भी कहते हैं।

यह त्रिदोषशामक, रक्तशोधक, ज्वरनाशक औषधि है। यह रक्त स्तम्भक है, रक्त स्त्राव व रक्त विकार में यह मुख्यतः उपयोग होता है।

खदिरादिवटी, खदिरारिष्ट इत्यादि नाम से इसका औषधि प्रयोग होता है।

4- *चिरायता* - (अंग्रेजी नाम - Swertia chirata) ऊँचाई पर पाया जाने वाला पौधा है। इसके क्षुप 2 से 4 फुट ऊँचे एक-वर्षायु या द्विवर्षायु होते हैं। इसकी पत्तियाँ और छाल बहुत कडवी होती और वैद्यक में ज्वर-नाशक तथा रक्तशोधक मानी जाती है। इसकी छोटी-बड़ी अनेक जातियाँ होती हैं; जैसे- कलपनाथ, गीमा, शिलारस, आदि। इसे जंगलों में पाए जानेवाले तिक्त द्रव्य के रूप में होने के कारण किराततिक्त भी कहते हैं। किरात व चिरेट्टा इसके अन्य नाम हैं। चरक के अनुसार इसे तिक्त स्कंध तृष्णा निग्रहण समूह में तथा सुश्रुत के अनुसार अरग्वध समूह में गिना जाता है।

यह मूलतः जीवाणु-विषाणु रोधी, ज्वर को जड़ से उखाड़ने वाली एवं जीवनी वर्धक रसायन है। यह त्रिदोष शामक है एवं आधुनिक आयुर्विज्ञान(इंडियन, अमेरिकन, ब्रिटिश) द्वारा भी ज्वर के लिए मान्यता प्राप्त है।

आयुर्वेदिक दवा बनाने वाली कम्पनियां इसे सुरदर्शन चूर्ण, महा सुर्दशन घनवटी , किराताधि नाम से उपयोग करते है।

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यज्ञोपैथी में उपरोक्त चार औषधियों के अतिरिक्त कालमेघ, तुलसीपत्र, कुटकी, चित्रक, लाल चंदन,  नीम छाल इत्यादि को मिश्रित करके औषधीय हवन सामग्री बनाई जाती है जो जड़ से ज्वर को दूर करता है।

📖 पुस्तक - *यज्ञचिकित्सा* के पेज नम्बर 45 से 56 तक विभिन्न ज्वर में कौन सी औषधियों का मिश्रण होगा, यह सब वर्णित है। उपरोक्त पुस्तक - *जीवेम शरद: शतम* एवं *यज्ञ चिकित्सा*  नजदीकी शक्तिपीठ से या ऑनलाइन निम्नलिखित लिंक से पुस्तक खरीद सकते हैं:-

https://www.awgpstore.com/

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Sunday 15 December 2019

बुखार, फ़ीवर, ज्वर के कारण व निवारण

*बुखार, फ़ीवर, ज्वर के कारण व निवारण*

यह पोस्ट आपके ज्ञानवर्धक व ज्वर के कारण निवारण की जानकारी हेतु है। सबके शरीर की प्रकृति अलग अलग होती है, अतः दवाओं के प्रयोग से पूर्व आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह अवश्य लीजिये।

यदि बुखार किसी इन्फेक्शन के कारण होता है तो ऐलोपौथिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार रोगी को एण्टीबायोटिक दवाई दी जाती है और कोर्स के रूप में तब तक दवा दी जाती है, जब तक इनफेक्शन समाप्त नहीं हो जाता।

*आयुर्वेद की चिकित्सा पद्धति रोग को दबाने की नहीं, रोग को कारण सहित जड़ से उखाड़कर फेंकने की है। आयुर्वेद ने ज्वर के 8 भेद बताए हैं यानी ज्वर होने के 8 कारण माने हैं*।

1. वात 2. पित्त 3. कफ 4. वात पित्त 5. वात कफ 6. पित्त कफ 7. वात पित्त कफ। इनके दूषित और कुपित होने से तथा 8. आगन्तुक कारणों से बुखार होता है।

निज कारण शारीरिक होते हैं और आगंतुक कारण बाहरी होते हैं। निज एवं आगन्तुक ज्वर के भेद निम्नलिखित हैं-

*निज द्वारा उत्तपन्न*  : 1. मिथ्या आहार-विहार करने से हुआ ज्वर। 2. शरीर में दोष पहले कुपित होते हैं लक्षण बाद में प्रकट होते हैं। 3. दोष भेद से ज्वर 7 प्रकार का होता है। 4. चिकित्सा दोष के अनुसार होती हैं।

*आगन्तुक* : 1. अभिघात, अभिषंग, अभिचार और अभिशाप के कारण ज्वर का होना। 2.शरीर में पहले लक्षण प्रकट होते हैं, बाद में दोषों का प्रकोप होता है। 3. कारण भेद से अनेक प्रकार का होता है। 4. चिकित्सा का निर्णय कारण के अनुसार होता है।

*ज्वर 104 या अधिक डिग्री तक पहुंच गया हो तो सिर पर ठंडे पानी की पट्टी बार-बार रखने, पैरों के तलुओं में लौकी का गूदा पानी के छींटे मारते हुए घिसने और बाद में दोनों तलुओं में 1-1 चम्मच शुद्ध घी मसलकर सुखा देने से ज्वर उतर जाता है या हल्का तो होता ही है।*

*सामान्य ज्वर के लिए आयुर्वेदिक औषधियाँ*

*ज्वरनाशक चिकित्सा* :
साधारण ज्वर के लिए पतञ्जलि दिव्य फार्मेसी की - मृत्यंजय रस 2 गोली, महासुदर्शन घनवटी 2 गोली, महाज्वरांकुश रस 2 गोली (सब गोलियां 1-1 रत्ती वाली) सुबह, दोपहर और शाम को पानी के साथ लेना चाहिए। बच्चों को (12 वर्ष से ऊपर) 1-1 गोली और इससे कम उम्र वाले छोटे बच्चों को आधी-आधी गोली देना चाहिए। तीनों गोलियों को एक साथ लेना होगा। इन गोलियों को लेने के एक घंटे बाद अमृतारिष्ट 2 चम्मच और महासुदर्शन काढ़ा 2 चम्मच आधा कप पानी में डालकर पी लेना चाहिए। छोटी उम के बच्चों को मात्रा कम करके पिलाएँ।

*पथ्य(ज्वर के दौरान भोजन में क्या खाना है?* : मूँग की दाल और दाल का पानी, परवल, लौकी, अनार, मौसम्बी का रस, दूध, पपीता आदि हल्के पदार्थों का सेवन करना चाहिए।

*अपथ्य(ज्वर के दौरान भोजन में क्या नहीं खाना है?* : भारी अन्न, तेज मिर्च-मसालेदार, तले हुए पदार्थ, खटाई, अधिक परिश्रम, ठण्डे पानी से स्नान, मैथुन, ठण्डा कच्चा पानी पीना, हवा में घूमना और क्रोध करना यह सब वर्जित है।

*जीर्ण ज्वर चिकित्सा* : बहुत दिनों तक बुखार बना रहे तो इसे जीर्ण ज्वर कहते हैं। ऐसे जीर्ण की चिकित्सा के लिए अयमंगल रस 2 ग्राम, स्वर्ण मालिनी वसन्त 2 ग्राम और प्रवाल पिष्टी 5 ग्राम सबको मिलाकर बराबर वजन की 30 पुड़िया बना लें। 1-1 पुड़िया सुबह-शाम थोड़े से शहद के साथ मिलाकर चाट लें। पुराने बुखार को ठीक करने के लिए यह प्रयोग उत्तम है।

*शिशु ज्वर चिकित्सा* : संजीवनी वटी 1 गोली और महासुदर्शन घन वटी आधी गोली दोनों को पीसकर 1-1 पुड़िया सुबह-शाम शहद से मिलाकर चटा दें।

Saturday 14 December 2019

नाटक की घटना - *घर की RO मशीन का बिगड़ना व स्वयं की मनःस्थिति को सम्हालना, जीवन जीने की कला*

नाटक की घटना - *घर की RO मशीन का बिगड़ना व स्वयं की मनःस्थिति को सम्हालना, जीवन जीने की कला*

( *सूत्रधार* - बच्चे के वार्षिकोत्सव प्रोग्राम से सभी शनिवार रात्रि को 9 बजे घर पहुंचते हैं। सभी थके होते हैं, डिनर की व्यवस्था डिनर टेबल पर हो रही होती है कि तभी बच्चे की दादी सबको यह सूचना देती हैं कि RO मशीन बिगड़ गयी है, उसमें लाइट नहीं जल रही व पानी नहीं आ रहा। सबके चेहरे पर चिंता की रेखाएं अंकित होती हैं औऱ एक और ख़र्च। बच्चे के पापा RO सर्विस वाले को फोन करते हैं, वहाँ से सूचना मिलती है कि रविवार को इंजीनियर छुट्टी पर है, सोमवार को आएंगे ।)

*बच्चे की दादी* -  हे भगवान, एक नई परेशानी। ख़र्च तो कभी कम हो ही नहीं सकते, जितना सोचो कुछ न कुछ परेशानी आ ही जाती है।

*बच्चा* - अब पानी हम लोग कल तक कैसे पियेंगे?

*बच्चे के दादा* - आज़कल इतनी महंगे महंगे RO आते हैं, पानी की अच्छी क़्वालिटी के लिए हम खरीदते हैं। इनका मेंटिनेंस कितना महंगा है अभी छह महीने पहले ही 5000 का बिल बनाया था सर्विस के नाम पर..हे भगवान समझ नहीं आता न खर्चो को कैसे कंट्रोल करेंगे।

*बच्चे के पापा* - यह सर्विस वाले भी, रविवार को इमरजेंसी सर्विस नहीं देते। अब यह भाई साहब सोमवार को आएंगे। हे भगवान! मतलब दो दिन के लिए पानी की व्यवस्था करनी है।

*बच्चे की माँ* - हम सभी समस्या को गिन रहे हैं व समाधान के पार्ट को नहीं सोच रहे। जो होना था वो हो चुका। हमारे तनावग्रस्त होने से RO मशीन शुरू नहीं होगी। न ही तनाव लेने से इंजीनियर कल RO की सर्विस देकर जाएगा। हमें तो भगवान को धन्यवाद देना चाहिए कि दुकान बंद होने के एक घण्टे पहले हमें समस्या पता चल गई। हम सभी के पास बुद्धि व पैसे हैं जिससे RO के न चलने पर दो दिन की समस्या का समाधान कर सकें। जब पार्टी वगैरह आयोजित करते हैं तो 20 लीटर का जल लाते हैं 80 रुपये का व उसे उपयोग करते हैं। चलो दुकान जल्दी जिससे दुकान बंद होने से पहले बिसलेरी का जल ले आये।

( *सूत्रधार* - बच्चे के पापा मम्मी दुकान जाते हैं व 20 लीटर का जल दुकान से लाते हैं। दुकान से आया सर्वेंट जल को सेट कर देता है, कंटेनर व जल की टोटी की व्यवस्था हो जाती है। सब पुनः डायनिंग टेबल पर डिनर की टेबल पर बैठते हैं।)

*बच्चे की दादी* - बहु, तुझे कभी तनावग्रस्त नहीं देखती, न ऑफिस जॉब में न घर गृहस्थी के काम में। जब भी समस्या आती है तू शांत कैसे रहती है?

*बच्चे की माँ* - माता जी, मैं गायत्री परिवार से हूँ, हमारे परम्पपूज्य गुरुदेव ने तीन पुस्तक लिखी है -📖 *व्यवस्था बुद्धि की गरिमा*,📖 *प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल ,📖 दृष्टिकोण ठीक रखिये*। इन्हीं तीनों पुस्तको के सूत्र मैं ऑफिस हो या घर अपनाती हूँ।

*बच्चे के पापा* - जब ऑफिस में लोग ब्लेम गेम में आरोप लगाते हैं, तुम्हें गुस्सा नहीं आता?

*बच्चे की मम्मी* - गुरुदेव कहते हैं कि अगर अपने ही दृष्टिकोण से देखोगे तो झगड़ोगे और अगर दूसरे के दृष्टिकोण को भी समझोगे तो समस्या सुलझाओगे। सबको अपनी जॉब बचानी है, अतः स्वयं की गलती कोई नहीं मानेगा। कम्पनी को कोई लाभ नहीं मिलेगा किसी को दोषी साबित करने पर, कम्पनी को तो समस्या का समाधान चाहिए व काम होने से मतलब है। हम शांत दिमाग से दूसरे टीम के बंदों से चैट व कॉल में बात करते हैं उनको लाइट मूड में साथ काम करने को तैयार करते हैं। मिलकर काम करने पर समस्या का समाधान होता है, नए मित्र बनते हैं। वो भी सुखी, हम भी सुखी, कम्पनी भी सुखी।

*बच्चा* - मम्मी, आपको गुस्सा नहीं आया जब सर्विस इंजीनियर ने रविवार को सर्विस करने से मना कर दिया।

*बच्चे की माँ* - बेटा, जब तुम रविवार को स्कूल जाना पसन्द नहीं करते, तुम्हारे पापा और मैं भी रविवार को ऑफिस जाना पसंद नहीं करते तो उस सर्विस इंजीनियर को क्या परिवार व बच्चों के साथ रविवार की छुट्टी मनाने का हक नहीं है। अतः इसमें गुस्से की कोई बात नहीं।

*बच्चे की दादी* - सच बताओ, क्या RO मशीन के बिगड़ने की खबर पर गुस्सा या क्षोभ नहीं हुआ।

*बच्चे की माँ* - मम्मी जी, RO मशीन व वर्तमान परिस्थिति निर्जीव है उन पर गुस्से या प्रशन्नता से कोई लाभ नहीं, उन पर फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन उन पर गुस्सा करने से हमारी मनःस्थिति क्षत-विक्षिप्त जरूर होगी। *युगऋषि परम्पपूज्य गुरुदेव कहते हैं, बुद्धिमान मनुष्य वह है जो अप्रिय घटना घटने पर उसका शोक नहीं मनाता, अपितु यह सोचता है कि अब आगे क्या करना है? इसे कैसे सम्हालना है? इस पर मेरा स्टैंड क्या होगा? मेरा प्लान ऑफ एक्शन क्या होगा?*...अच्छी भली बुद्धि पर ताला गुस्सा मार देता है। गुस्सा वह अंगार है जो दूसरे पर हम करते हैं व जलते भी हम ही हैं। अतः गुस्से से बुद्धि बन्द करने से अच्छा है, बुद्धि के इंजन को चला कर समस्या का समाधान ढूंढा जाय।

*बच्चे के दादा* - बहु, क्या आगामी RO मशीन की सर्विस पर लगने वाले खर्च से तुम चिंतित नहीं हो?

*बच्चे की माँ* - पिताजी, यदि हमारी चिंता से सर्विस वाला कोई डिस्काउंट देगा। तो हमें चिंता जरूर करनी चाहिए, यदि चिंता करने से कोई फायदा नहीं तो उसे करने का क्या फ़ायदा?

अतः पिताजी, *हमारे परमपूज्य गुरुदेव कहते हैं कि चिंता की चिता में जलने से अच्छा है, चिंतन की बारिश में भीगना और समाधान ढूँढना*। हम यह योजना बना रहे हैं कि इस खर्च को कैसे व्यवस्थित करेंगे, व आगे क्या करना है।

*बच्चे की दादी* - तुम्हारे गुरुदेव वास्तव में अद्भुत तरीक़े के कुशल घर गृहस्थी मैनेजर गढ़ रहे हैं, तनावमुक्त गृहणी व गृहस्वामी गढ़ रहे है। जो मुसीबत में भी मुस्कुरा सकते हैं, योद्धा की तरह विजेता की तरह सोच सकते हैं।

*बच्चे की माँ* - मानव गढ़ने की टकसाल है, हमारा गायत्री परिवार। युगऋषि ने वर्षो तपस्या करके इसे बनाया है, जीवन जीने की कला सिखाने हेतु साहित्य खज़ाना दिया है। स्वर्ग किसी जगह का नाम नहीं है माँ, स्वर्ग तो मनुष्य की मनःस्थिति का नाम है।

( *सूत्रधार* - सब हंसते हैं, व भोजन करते हैं। दादा व दादी तीनों पुस्तक - मांगते है पढ़ने के लिए - 📖  *व्यवस्था बुद्धि की गरिमा*, 📖 *प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल , 📖 दृष्टिकोण ठीक रखिये* )

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

नाटक- *खेलते वक्त बच्चे को चोट लग गयी*

नाटक - *माँ बेटे का सम्वाद - जीवनजीने की कला*

घटना- *खेलते वक्त बच्चे को चोट लग गयी*

*बेटा* - रोते हुए, मम्मी मम्मी चोट लग गई। पुनः रोते हुए।

( *सूत्रधार* - माता दौड़कर फर्स्ट एड बॉक्स लाती है और दवा लगाती है। बच्चा 8 साल का है फुटबॉल खेल कर आया है, खेलते हुए गिर गया है। घुटने छिल गए हैं। माँ चुप कराती है लेकिन वह फिर भी रोता है। बेटे को गोद में लेते हुए बोलती है।)

*माँ* - यह बताओ, क्या रोने से दर्द ठीक हो जाएगा।

*बेटा* - नहीं

*माँ* - क्या मैंने या किसी दोस्त ने तुम्हें धक्का जानबूझ कर दिया था?

*बेटा* - नहीं..

*माँ* - क्या आज के बाद तुम कभी फुटबॉल नहीं खेलोगे?

*बेटा* - खेलूँगा, जब दर्द ठीक हो जाएगा।

*माँ* - जब रोने से दर्द ठीक नहीं होगा, किसी ने धक्का नहीं दिया। और ठीक होने के बाद पुनः खेलोगे। फिर रो क्यों रहे हो। रोने की यह आदत रही तो बड़े होकर जब दिल पर चोट लगेगी या ऑफिस, जॉब, व्यवसाय में आओगे तो परिस्थिति का रोना रोवोगे।  अतः रोना बन्द करके ध्यान अपना चोट के बाद उपचार पर केंद्रित करो। समस्या के बाद समाधान पर केंद्रित करो। दुबारा चोट न लगे इसके लिए प्लान ऑफ एक्शन बनाओ।

*बेटा* - दर्द हो रहा है तो रोना तो आएगा।

*माँ* - जानते हो, तुम्हारी उम्र के हमारे देश के *लौह पुरुष सरदार भाई बल्लभ पटेल ने बिना एनेस्थीसिया के नासूर का ऑपरेशन करवाया था, ऑपरेशन के वक्त वह धार्मिक पुस्तक पढ़ रहे थे*। डॉक्टर चकित थे, उन्होंने कहा - मानसिक मजबूती हो और ध्यान को केंद्रित कहीं अन्य किया जाय तो दर्द को सम्हाला जा सकता है।

देश के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बच्चे अंग्रेजो के कोड़े खाते थे मगर कभी भी उनके आगे नहीं झुकते थे। पीठ से रक्त बहता और वो भारत माता की जय बोलते।

हमारे देश के वीर सैनिक युद्ध के मैदान में जान की बाज़ी लगा देते हैं, घावों के बाद भी मैदान छोड़कर नहीं भागते। डटे रहते हैं कर्तव्य पथ पर।

चोट खेल का हिस्सा है, जैसे खेल एन्जॉय करते हो वैसे चोट भी एन्जॉय करो। न सुख को स्वयं पर हावी होने दो और न दुःख को स्वयं पर हावी होने दो।

*बेटा* - ठीक है माँ, नहीं रोऊंगा लेकिन दर्द से ध्यान हटाने के लिए मैं क्या करूँ।

*माँ* - दर्द को बोलो, ठीक है दर्द है। मेरे रोने से दर्द ठीक न होगा। न हंसने से दर्द बढ़ेगा। दर्द तो ठीक होने के लिए अपना वक्त लेगा। मन को बोलो - जरूरी उपचार मम्मी ने कर दिया है, अब मैं नहीं रोऊंगा।

*बेटा* - ठीक है माँ, क्या आप मुझे कहानी सुना दोगे। मैं भी सरदार वल्लभभाई पटेल की तरह लौह पुरुष बनूँगा। मैं नहीं रोऊंगा। मानसिक बजबूत बनूँगा।

*माँ* - मेरा राजा बेटा, मेरा बहादुर बेटा, अभी सुनाती हूँ कहानी।

( *सूत्रधार* - माँ गर्म हल्दी दूध दर्द के निवारण के लिए लाती है, व वीर बालको की वीरता की सच्ची कहानियां वांग्मय 57 - *"तेजस्विता मनस्विता प्रखरता" से सुनाती है।* यह माँ तो अपने बालक में वीरता गढ़ रही है, आप कैसे बच्चों की चोट पर समझा रहे हैं? उन्हें वीर बना रहे हो या कायर? स्वयं विचार करें।)

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

गर्भवतियो का वैदिक पद्धति द्वारा गर्भसंस्कार

*गर्भवतियो का वैदिक पद्धति द्वारा गर्भ संस्कार करते समय उन्हें  गर्भ में शिशु का विकास कैसे होता है इसका विज्ञान भी समझाना बहुत जरूरी है*।

इसी से संबंधित विडियो लिया  गया है उसी विडियो को अलग अलग पार्ट में भेज रहे है।
आप भी समझे ,अनेकों गर्भवतियों को समझाए तो आपके द्वारा एक देश सेवा हो जावेगी।🙏🙏
विनीत -
*आओ गढ़े संस्कारवान पीढ़ी अभियान*

पार्ट - 1

https://youtu.be/tIvLYcnKOT4

पार्ट - 2

https://youtu.be/THZXdkVNHRc

पार्ट - 3

https://youtu.be/lt7UMxOAaDc

पार्ट - 4
https://youtu.be/ntmzeHD7xaY

पार्ट - 5
https://youtu.be/ZNKU6JXUfbk

पार्ट - 6
https://youtu.be/-dWXPAItmN8

पार्ट - 7

https://youtu.be/VTxGa7hTZzE

पार्ट - 8

https://youtu.be/m2-mzv86cvY

पार्ट - 9

https://youtu.be/tdGlNK7NhtA

पार्ट - 10

https://youtu.be/W4ySXIKVbnA

पार्ट - 11

https://youtu.be/b2djn0zpcTo

पार्ट - 12
https://youtu.be/XuyGakW9K_I


पार्ट - 13
https://youtu.be/fVEchCGYBUQ

पार्ट - 1 (द्वारका)
https://youtu.be/d8UOaw68og4

पार्ट - 2 (द्वारका)
https://youtu.be/4SyM6WL3anQ

पार्ट -3 (द्वारका)
https://youtu.be/5V8-0cAXHvQ

पार्ट -4 (द्वारका)
https://youtu.be/4GsitK96iSk

प्रश्न - *दी, कुछ माह पूर्व मुझे टायफाइड हुआ, उसके ठीक होने के कुछ दिन बाद मुझे मष्तिष्क ज्वर हो गया व मेरी यादाश्त तक चली गयी। बड़ी मुश्किल से यादाश्त वापस आई मगर कमज़ोरी है। अप्रैल में मेरी शादी है। मेरा मार्गदर्शन करिये*

प्रश्न - *दी, कुछ माह पूर्व मुझे टायफाइड हुआ, उसके ठीक होने के कुछ दिन बाद मुझे मष्तिष्क ज्वर हो गया व मेरी यादाश्त तक चली गयी। बड़ी मुश्किल से यादाश्त वापस आई मगर कमज़ोरी है। अप्रैल में मेरी शादी है। मेरा मार्गदर्शन करिये*

उत्तर- आत्मीय भाई, चिंता मत करो, शरीर है तो रोग होता रहेगा, रोग होगा तो इलाज भी मिलता है। स्वास्थ्य लाभ पुनः सबकुछ सही कर देगा।

एलोपैथी दवाएं जो चल रही है चलने दो साथ में निम्नलिखित उपाय अपनाओ:-

ब्राह्मी (जिसका वानस्पतिक नाम : Bacapa monnieri) का एक औषधीय पौधा है जो भूमि पर फैलकर बड़ा होता है। हरिद्वार के गंगा नदी के किनारे पाया जाने वाला सबसे ज्यादा गुणकारी है।

यह औषधि मष्तिष्क व मज़्ज़ा तंतुओं का पौष्टिक टॉनिक है। यह मष्तिष्क की थकान उतारकर उसे बल प्रदान करती है, स्नायुकोषों का पोषण करती है।

*रसायन संगठन*- ब्राह्मी में पाए जाने वाले मुख्य जैव सक्रिय पदार्थ हैं - एल्केलाइड और सेपोनिन।

*आधुनिक मत एवं वैज्ञानिक प्रयोग निष्कर्ष*

युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव पुस्तक - जीवेम शरद: शतम (वांग्मय 41) में लिखते हैं कि ब्राह्मी तनाव(stress) समाप्त करके प्रशन्नता का भाव लाता है। सीखने की क्षमता बढ़ाता है। देर तक याद रखने की क्षमता बढ़ाता है। व्यक्ति की सम्वेदना तंतुओं में बाह्य संदेशों को ग्रहण करने की क्षमता कई गुना बढ़ जाती है।

"ब्राह्मी" का एक रासायनिक घटक "हर्पेपोनिन" सीधे "पीनियल ग्रन्थि" पर प्रभाव डालकर "न्यूरोकेमिकल" का उत्सर्जन करके सचेतन चैतन्यता को बढ़ाता है जो मष्तिष्क की क्रियाओं के लिए अनिवार्य है। यह मानसिक बल वर्धक रसायन है, इसलिए गम्भीर मष्तिष्क बुखार , व्याधि ज्वर के बाद निर्बलता निवारण के लिए इसका प्रयोग करते हैं।

ब्राह्मी अनिंद्रा को भी दूर करता है, तुम्हारे रक्त विकार को भी दूर करेगा।

*ब्राह्मी वटी के साथ साथ अमृता(गिलोय) वटी का भी सेवन तीन महीने तक आयुर्वेद के चिकित्सक से पूंछ कर ले लो।*

*यह ब्राह्मी व अमृता वटी तुम्हारे मन मष्तिष्क व शरीर की क्षति पूर्ति करके पुनः ज्वर न आये यह सुनिश्चित करेगी। साथ ही तुम्हे चैतन्य व एक्टिव रखेंगी। ऑनलाइन भी उपलब्ध है- निम्नलिखित साइट से मंगवा लो-  https://www.awgpstore.com/*

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🔥 मष्तिष्क के कोषों तक डायरेक्ट दवा पहुंचाने का सर्व उपयोगी व उत्तम मार्ग है यगयोपैथी। एक बार शान्तिकुंज चले जाओ या देवसंस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार से मानसिक मजबूती की हवन सामग्री मंगवा लो। सुबह नित्य यज्ञ करो यह तुम्हारा मन मष्तिष्क चुस्त दुरुस्त कर देगा। ज्यादा जानकारी के लिए - पुस्तक - *यज्ञ चिकित्सा* पढ़ो

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चन्द्रमा का मन का स्वामी है व औषधियों को बल चन्द्रमा ही प्रदान करता है। अतः पूर्णिमा के चन्द्र का ध्यान तुम्हें बहुत मानसिक मजबूती देगा। निम्नलिखित वीडियो के अंत के 15 मिनट में श्रद्धेय ने चन्द्रमा का ध्यान बताया है:-

https://youtu.be/umAfVbaGWhw

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*20 मिनट प्राणायाम नित्य*- भ्रामरी, अनुलोम-विलोम, नाड़ीशोधन प्राणायाम मष्तिष्क की मजबूती, अच्छी याददाश्त व बुद्धिकुशलता बढाते है। शरीर निरोग रखते हैं।

*सूर्य नमस्कार के तीन चक्र नित्य करो* - बीमारी आने नहीं देता , सम्पूर्ण स्वास्थ्य का आधार है।

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नित्य 3 माला गायत्री मंत्र, 1 माला महामृत्युंजय मंत्र व 24 चन्द्र गायत्रीमंत्र की जपो। स्वयं की प्राण ऊर्जा बढ़ाओ, इम्म्युनिटी बढ़ाओ व निरोग रहो। घर मे सुख शांति लाओ।

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पुस्तक - *जीवेम शरद: शतम(वांग्मय 41)* एवं *यज्ञ चिकित्सा* खरीद लो। अपनी स्वास्थ्य प्रॉब्लम को समझते हुए व उनका उपचार करते हुए सौ वर्षों तक निरोगी जीवन जियो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *मुश्लिम बहन गम्भीर रोग से परेशान है, उनके आत्मकल्याण हेतु क्या सलाह दूँ? उन्हें मोटिवेट कैसे करूँ?*

प्रश्न - *मुश्लिम बहन गम्भीर रोग से परेशान है, उनके आत्मकल्याण हेतु क्या सलाह दूँ? उन्हें मोटिवेट कैसे करूँ?*

उत्तर - यदि मनुष्य का वैज्ञानिक तरीके से लैब परीक्षण किया जाय तो ज्ञात होगा कि रक्त, मांस, हड्डी इत्यादि से यह पता नहीं लगा सकते कि कौन किस धर्म का है? सूर्य चन्द्रमा ग्रह नक्षत्र और तारे, जल स्रोत और वायु सबके लिए समान है। तो इससे यह सिद्ध होता है भगवान ने जाति-सम्प्रदाय नहीं बनाए, ये इंसान द्वारा बनाया गया है।

यह सृष्टि कर्म प्रधान है, जहर हिन्दू खाये या मुश्लिम या क्रिश्चन या सिख या पारसी मरेंगे सभी। इसी तरह अच्छी चीज़े खाने पर सबकी सेहत बनेगी। ठीक यही नियम मन्त्र जप, योग-प्राणायाम, ध्यान और स्वाध्याय पर काम करता है, जो करेगा उसे पूर्ण लाभ देगा। देवता अर्थात सद्गुण-सत्कर्मो का समुच्चय, मन्त्र अर्थात देवता बनने की ओर अग्रसर होने के लिए विचारो का सशक्त फार्मूला। इसे अपनाओ और स्वयं में देवत्व जगाओ।

हिंदुओ में देवता बनने और देवत्व जगाने का मन्त्र - *गायत्री मंत्र* है। मुश्लिम इसी तरह का भाव बनाने वाले *सूरह अल फातिहा* को नित्य कई बार दोहराएं। 

1:1  بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ

अल्लाह के नाम से जो अत्यंत कृपाशील तथा दयावान है|

1:2  الْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ

सारी प्रशंसाएँ अल्लाह ही के लिए हैं, जो सारे संसार का रब है।

1:3  الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ

बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान है।

1:4  مَالِكِ يَوْمِ الدِّينِ

बदला दिए जाने के दिन का मालिक है।

1:5  إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ

हम तेरी ही बन्दगी करते हैं और तुझी से मदद माँगते हैं।

1:6  اهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِيمَ

हमें सीधे/सत्य मार्ग पर चला। 

1:7  صِرَاطَ الَّذِينَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ غَيْرِ الْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ وَلَا الضَّالِّينَ

उन लोगों के मार्ग पर जो तेरे कृपापात्र हुए, जो न प्रकोप के भागी हुए और न पथभ्रष्ट। श्रेष्ठ लोगों का अनुसरण करें और उनके दिखाए मार्ग पर चलें।

इसे रोज अपनी प्रार्थना में शामिल करें। जितनी बार कर सकें उतना अच्छा है।

गलतियां इंसान से होती है, हम सोचते हैं क्रोध में कि हम दूसरों को दण्ड दे रहे हैं। लेकिन असल में दण्ड के पात्र हम स्वयं बनते चले जाते हैं।

हम बीच में खड़े हैं, जन्नत(स्वर्ग) और दोज़ख(नर्क) के, अल्लाह ने हमें अपने मन मुताबिक जीने की छूट तो दी है, अपने हिसाब से काम करने की छूट दी है लेकिन उसका फ़ल/रिज़ल्ट/परिणाम अपने हाथ में रखा है। इसलिए जो भी करें पहले हमें सोचना समझना चाहिए।

हमें रोग कुछ प्रारब्ध/पिछले जन्म के कर्मफ़ल से बनी परिस्थिति के कारण भी होते है ।

रोग हमे जीवन मे अपनी भूलो के प्रायश्चित करने का तरीका मात्र होता है, जहां हम नित्य *सूरह अल फ़ातिहा* कम से 108 बार पढ़कर इस पर चिंतन करें। इसके एक एक शब्द को स्वयं में अंकित करें और ख़ुदा की बताई नेक राह पर चलने को स्वयं को प्रेरित करें।

सूर्य जो वृक्ष-वनस्पति और जीवों को प्राण देता है उससे हृदय से प्रार्थना करें कि वो भी अपनी रॉशनी से हमारे भीतर का अंधकार दूर करे, ख़ुदा का नूर बरसे, उजाला ही उजाला मन के अंदर हो। बुराइयां जलकर खाक हो जाएं और नेकनीयत हममें आ जाये। हर जीव वनस्पति मनुष्य औऱ कण कण में हमे ख़ुदा दिखे। और हमारे चेहरे पर ख़ुदा का नूर रहे।

इस ध्यान का लाभ अपने आपको अच्छा इंसान बनाने में ख़र्चे, उस ख़ुदा की इबादत में समय ख़र्चे, सूरह अल फ़ातिहा का अर्थ चिंतन करते हुए, उस ख़ुदा के ध्यान में खोए रहें।

मनोबल बढ़ाने के लिए निम्नलिखित साहित्य की पीडीएफ, युगनिर्माण सत्संकल्प(बराय तामीरे जमाना, हमारा मजमे मुसम्मम), उन्हें व्हाट्सएप कर दें जो मैं इस पोस्ट के साथ ही दे रही हूँ। यह सभी स्वस्थ व्यक्ति के लिए भी समान उपयोगी है।

1- निराशा को पास न फटकने दें
2- युग परिवर्तन इस्लामी दृष्टिकोण
3- बराय तामीरे जमाना, हमारा मजमे मुसम्मम(युगनिर्माण सत्संकल्प)
4- दृष्टिकोण ठीक रखें
5- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
6- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
7- मानसिक संतुलन
8- मैं क्या हूँ?
9- अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...