Thursday 30 April 2020

प्रश्न - *मैं जब जब साधना करता हूँ, मेरा स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है, कृपया उपाय बताइये।*

प्रश्न - *मैं जब जब साधना करता हूँ, मेरा स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है, कृपया उपाय बताइये।*

उत्तर- आत्मीय भाई, मनुष्य अचेतन जगत में बहुत से उन घावों, कड़वी बातों, झल्लाहट और बुरे अनुभवों को स्टोर किये रहता है, जिन्हें वह समय काल मे भूल चुका है। जिनके सँस्कार बीज रूप में चित्त में जमे हुए हैं।

जब जब साधना करते हो तो चेतना अंतर्जगत में प्रवेश करती है, और उसके प्रवेश करने के कारण भीतर भरे हुए अवांछनीय विचार बाहर आते हैं जिनसे हम वस्तुतः पीछा छुड़ाना चाहते हैं। जो हम बोलना व सोचना नहीं चाहते वह पुनः स्मृतिपटल में आने के चिड़चिड़ापन  उतपन्न करते हैं।

तुम साधना से पूर्व गुरुगीता में वर्णित विनियोग, कर न्यास व हृदय न्यास करो। एवं जल हाथ मे लेकर सङ्कल्प लो कि हे परमात्मा पिछले से अभी तक के जन्म में जिन जिन आत्माओं ने मुझे जाने व अनजाने में कष्ट दिया है, मैं उन्हें क्षमा करता हूँ। जिनको मैंने जाने व अनजाने में कष्ट दिया है, वह मुझे क्षमा कर दें।

हे परमात्मा कण कण में जन जन में मुझे सिर्फ़ आप ही महसूस हों, मुझमें आपके प्रेम व आत्मियता के गुण उभरे। मेरे व्यक्तित्व में देवत्व उभारने के लिए मैं यह साधना कर रहा हूँ, मुझे शक्ति व सामर्थ्य दीजिये। सफल बनाइये।

इस तरह साधना कीजिये, स्वभाव का चिड़चिड़ा पन तिरोहित हो जाएगा और प्रेम व सुंदर भावों से हृदय भर उठेगा।

अंधेरे से लड़कर उसे दूर नहीं किया जा सकता, मात्र प्रकाश की व्यवस्था करके उसे दूर भगाया जा सकता है।

चिड़चिड़ापन से लड़ा नहीं जा सकता, मात्र प्रेम व भाव संवेदना के विचारों को अंतर्जगत में उतपन्न कर इससे मुक्ति पाई जा सकती है।

पुस्तक- *भावसम्वेदना की गंगोत्री* जरूर पढ़ो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday 27 April 2020

प्रश्न - *समर्पित कार्यकर्ता को लोग दूध में से मक्खी की तरह निकाल देते हैं, उनके कार्य का यश स्वयं ले लेते हैं।*

प्रश्न - *समर्पित कार्यकर्ता को लोग दूध में से मक्खी की तरह निकाल देते हैं, उनके कार्य का यश स्वयं ले लेते हैं।*

उत्तर - आत्मीय भाई, समर्पित कार्यकर्ता पहली बात लालची मक्खी हो ही नहीं सकता। अपितु वह तो परोपकारी मधुमक्खी होता है, वह दूध व मलाई के लिए गुरु सेवा या समाजसेवा में नहीं जाता, वह स्वयं को खोकर गुरु को, ईश्वर को पाने जाता है। वह मान अपमान से परे है। वह तो मधुमक्खी होता है, जनकल्याण के लिए शहद इकठ्ठा करता है, किसी के उड़ा देने व उसके शहद लेने पर वो पुनः नए छत्ते के निर्माण में जुट जाता है। आप मधुमक्खी से शहद छीन सकते हो, उसका शहद बनाने का हुनर नहीं।

शहद छीनकर कम्पनी का लेवल लगा लेने से लोग मूर्ख नहीं बनते, सब जानते हैं कि मधुमक्खी ने मेहनत से इसे बनाया है, कम्पनी वाला तो उसका श्रेय खा रहा है। तो क्या अंतर्यामी गुरु व भगवान आपके कार्य को नहीं जानेंगे।

जो गुरु पर समर्पित होता है, उसे श्रेय, माइक, मान चाहिए ही नहीं तो वो दुःखी हो ही नहीं सकता। वह तो गुरु चरणों मे रमा जोगी होता है। जब दूध चाहिए ही नहीं तो दूध मलाई के छूटने का गम भी नहीं हो सकता।

दुःखी वह होता है जो स्वयं को कर्ता व अपने कार्य का अहंकार करता है। अहंकार पर चोट पड़ना तो तय होता है।

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी देशहित गोली खा सकते हैं, और हम और आपको तो मात्र गालियाँ ही गुरु के लिए खानी है तो खाने में मुझे कोई दिक्कत नहीं लगती। लोग आपके या हमारे कार्य का श्रेय खा सकते हैं, लेकिन हमारे या आपके हुनर, व्यक्तित्व व कृतित्व को तो नहीं खा सकते।

अतः मन्दिर हो या गुरुधाम चप्पल और अहंकार को त्याग के ही प्रवेश करना उचित है। संसार के जॉब में पद प्रतिष्ठा के लिए संघर्ष सर्वथा उचित है, अध्यात्म में तो इन दास भाव, समर्पण और स्वयं को खोकर उसे पाने के लिए आये हो। तो जब स्वयं को खोना है, *मैं* - *अहंकार*  खोना है, फ़िर कुछ सम्मान व श्रेय पाने का मोह क्यों? भामाशाह बनो, श्रेय व सम्मान दान कर दो। मान-अपमान से परे हाथी की तरह हो जाओ, कोई गणेश समझ के प्रणाम करे या कोई कुत्ते की तरह पीछे से गाली देकर भौंके तुम्हें फर्क नहीं पड़ना चाहिए। तुमने तो स्वयं के ऊपर जिस महावत गुरु को स्वीकार किया है, उसके अंकुश व अनुशासन में कार्य करो। आनन्दित मस्ती में रहो।

विवेकानंद जी कहते हैं, गुरु के पास कुछ पाने नहीं अपितु स्वयं को विलीन करने जाओ। जब मैं विलीन होगा तो भीतर गुरु ही शेष बचेगा। अब गुरु को तुम्हारे भीतर से और तुम्हे गुरु के हृदय से कोई नहीं निकाल सकता😇😇😇😇😇 स्मरण रखो।

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - समर्पित कार्यकर्ता को लोग दूध में से मक्खी की तरह निकाल देते हैं, उनके कार्य का यश स्वयं ले लेते हैं।

प्रश्न - समर्पित कार्यकर्ता को लोग दूध में से मक्खी की तरह निकाल देते हैं, उनके कार्य का यश स्वयं ले लेते हैं।
उत्तर - समर्पित कार्यकर्ता पहली बात मक्खी नहीं अपितु मधुमक्खी होता है, वह दूध व मलाई के लिए गुरु सेवा में नहीं जाता, वह स्वयं को खोकर गुरु को पाने जाता है। वह मान अपमान से परे है। वह तो मधुमक्खी होता है, जनकल्याण के लिए शहद इकठ्ठा करता है, किसी के उड़ा देने व उसके शहद लेने पर वो पुनः नए छत्ते के निर्माण में जुट जाता है। वह गुरु पर समर्पित होता है। जब उसे श्रेय, माइक, मान चाहिए ही नहीं तो वो दुःखी हो ही नहीं सकता। वह तो गुरु चरणों मे रमा जोगी होता है।

दुःखी वह होता है जो स्वयं को कर्ता व अपने कार्य का अहंकार करता है। अहंकार पर चोट पड़ना तो तय होता है।

~श्वेता, DIYA

प्रश्न- *मुझे बहुत नींद आती है, लगता है दिन भर सोता रहूं। जानता हूँ कैरियर बनाने के लिए पढ़ना जरूरी है फिर भी नींद से परेशान हूँ क्या करूं?*

प्रश्न- *मुझे बहुत नींद आती है, लगता है दिन भर सोता रहूं। जानता हूँ कैरियर बनाने के लिए पढ़ना जरूरी है फिर भी नींद से परेशान हूँ क्या करूं?*

उत्तर- आत्मीय बेटे, अत्यधिक निद्रा का जनक दो प्रकार का आलस्य होता है, पहला शारिरिक और दूसरा मानसिक।

मानसिक आलस्य को प्रमाद कहते हैं, जो मनुष्य को लापरवाह व जीवन मूल्यों के प्रति इग्नोरेंस की ओर ले जाता है।

शरीर के आलस्य को नित्य उचित भोजन, विश्राम, योग व व्यायाम से दूर करो।

मानसिक आलस्य को नित्य कुछ अच्छे मोटिवेशनल विचारों का भोजन,  ध्यान के द्वारा मन को विश्राम, मन्त्र जप योग और प्राणायाम करो।

तन मन जब स्वस्थ होगा,  तब भी एक्टिव रहने के लिए उसे एक और चीज़ चाहिए चाहिए जिसे कहते हैं जीवन लक्ष्य। जीवन लक्ष्य का एक पड़ाव है - कैरियर लक्ष्य (क्या बनना है और उसके लिए क्या, कब और क्यों पढ़ना है यह पता होना चाहिए)

कैरियर लक्ष्य - सीमाबद्ध होना चाहिए,  अब यदि तीन वर्ष में अमुक रिजल्ट चाहिए तो कितनी तैयारी प्रत्येक वर्ष, प्रत्येक महीने, प्रत्येक सप्ताह, प्रत्येक दिन व प्रत्येक घण्टे करना होगा। इसका क्लियर रोडमैप दिमाग़ के समक्ष प्रस्तुत होना चाहिए। मन सँकल्प से बन्धता है, सङ्कल्प का फिर कोई विकल्प नहीं होता। मन तय किये संकल्पों अनुसार कार्य करता है।

रोज का टाइम टेबल तुम्हें पता होना चाहिए कि आज क्या करना है, कितना और कब कब पढ़ना है? साथ ही यदि कोई समस्या हुई व टाइम टेबल अनुसार उस दिन की पढ़ाई न हो पाई तो नेक्स्ट दिन उसे कैसे एक्स्ट्रा पढ़कर पुनः ट्रैक पर आना है यह पता होना चाहिए।

मनुष्य अपनी औक़ात ख़ुद तय करता है, औकात से ज्यादा न वह कुछ बन सकता है और न कमा सकता है। तो यह औक़ात आपके संकल्पों की बनाई सीमा होती है। छोटी सोच और पैर की मोच जीवन मे आगे बढ़ने नहीं देती। कुछ बड़ा करना है तो बड़ा सोचना होगा। बड़ी सोच के अनुसार बड़ी मेहनत भी करनी होगी। अपनी शारीरिक मानसिक क्षमता को भी बढाना होगा। कुछ न कुछ तो विशेष करने दिखाना होगा, जिससे स्वयं पर गर्व करने के लिए कुछ तो हो, स्वयं की नज़रों में स्वयं को प्रतिष्ठित तो पाओ। जिसके जीवन मे कुछ कर गुजरने का जुनून उत्साह उमंग नहीं, वह जॉम्बी की तरह है। दुनियां की नज़रों में युवा परन्तु भीतर से यौवन उसका मृत है।

अतः स्वयं के प्रतिस्पर्धी बनो, बीते कल से आज बेहतर बनो। कल जितना ज्ञान कोष था उसमें +1% की वृद्धि होनी चाहिये। कुछ कर गुजरने के लिए संकल्पित हो जाओ।

युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं - *गृहणी जिस प्रकार भोजन को मनचाहा स्वाद देने के लिए स्वतंत्र है, वैसे ही मनुष्य अपना मनचाहा भाग्य बनाने के लिए स्वतंत्र है। मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता है। उसके सुनहरे भविष्य के जीवन की डोर उसी के हाथों में है। भगवान उसी की मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करता है। जिसकी मनःस्थिति उसका साथ देगी, उसी का साथ परिस्थिति भी देगी।*

*पुरुषार्थी, कर्मठ व चैतन्य व्यक्ति और सुअवसर के मिलन को भाग्य कहते हैं।*

*लापरवाह, अकर्मण्य व सुस्त व्यक्ति और सुअवसर के मिलन को दुर्भाग्य कहते हैं।*

मन को बलिष्ठ और पोषण देने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाओ जिससे दिमाग़ की थकान रोज की रोज उतर जाए, एक्टिव होकर वो तुम्हारा पढ़ाई करने में सहयोग करे:-

एक कहानी पहले सुनो कि मानसिक थकान उतारने और पोषण देने की आवश्यकता क्यों है? दो बलिष्ठ लड़के थे(श्याम औऱ बलि) दोनो में कम्पटीशन हुआ, कि कौन सबसे ज्यादा लकड़ी काट सकता है? दोनों को नई कुल्हाड़ी मिली। बलि बिना रुके पेड़ काट रहा था, श्याम प्रत्येक घण्टे रुकता पानी पीता और कुल्हाड़ी में धार देता, फिर काटने लगता। रिजल्ट जब आया तो श्याम विजयी हुआ। क्योंकि बलि रुककर कुल्हाड़ी को धार देकर पैना नही किया तो बलप्रयोग ज्यादा करना पड़ा और थकान भी ज्यादा हुई।

इसी तरह डियर, दिमाग़ को धार देकर तेज बनाने के लिए निम्नलिखित उपाय करो:-

👉🏼- सुबह उठकर प्रथम गायत्री मंत्र बोलते हुए माथे पर जैसे तिलक लगाते है वैसे अंगूठे से दोनों भौंहों के बीच लगाओ। पूरे सर में हल्के हाथों से मसाज कर लो। और भगवान को 5 चीज़ों के लिए धन्यवाद बिस्तर पर ही बैठे बैठे दो, उदाहरण - तुम जो बोल-सुन-सोच-चल-देख सकते हो इसके लिए, इस जीवन के लिए ।

👉🏼 फ़िर स्वयं से बोलो-  I am the best. 2. I can learn IAS course, yes I can do it. 3. God is always with me. 4. I am a winner, I will be IAS. 5. Today is my day.

3- नित्यकर्म और जो भी शेड्यूल बनाया है उसके हिसाब से कार्य करो।

4- जब भी नहाओ, भगवान के समक्ष बैठकर षठ-कर्म के साथ प्राणायाम करो, उगते सूर्य का ध्यान करते हुए कम से कम 108 बार गायत्री जप करो, एक बार इस वीडियो को देखकर श्रद्धेय की बताई विधि सीख लो:-
https://youtu.be/04Dl89YWTYU

प्राचीन ऋषियों और आधुनिक विज्ञान, आल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन(AIMS) ने यह सिद्ध कर दिया है कि बुद्धि कौशल(Intellect power) और याददाश्त(Memory power) के लिए गायत्री मंत्र जप अत्यंत सहायक है।

5- जब भी पढ़ाई में ब्रेक लो गायत्री मंत्र जप कर पानी पियो, भावना करो यह ब्रेन टॉनिक है जिसे गंगा माता ने दिया है। यह जल तुम्हारे दिमाग़ को रिलैक्स्ड और एक्टिव बनाएगा। तीन बार डीप ब्रीदिंग करो, सांस लेते समय *सो* मन ही मन बोलो और छोड़ते समय *हम* बोलो। यह *सो$हम* गायत्री का अजपा जप है। यह प्राणों को चार्ज करता है।

6- कुछ भी खाओ या पियो गायत्री मंत्र मन ही मन बोलते हुए उसे स्पर्श करके खाओ, इससे उस भोजन की ऊर्जा बढ़ जाएगी तुम्हे शक्ति सामर्थ्य देगा।

7- रात को सोते वक्त गायत्री मंत्र जपो, गुरुदेव से प्रार्थना करो, परमात्मा हमें अपने आदर्शों पर चला दो, आप गूंगे को बुलवा सकते हो लँगड़े को दौड़ा सकते हो, कंकड़ पत्थर से भी युगनिर्माण करवा सकते हो, आप सर्वसमर्थ हो, तो हे परमपिता मुझसे भी युगनिर्माण करवा लो, मुझे अच्छा प्रतिष्ठित व सफल युगनिर्माण हेतु बना दो, मुझसे अपना कार्य करवा लो। आप सर्वसमर्थ हो मुझे अपनी शरण में लो। मुझे सुबह जल्दी ** इस समय उठा देना। फ़िर स्वयं को बालक की तरह महसूस करते हुए गुरूदेव माता जी के गोद मे सोने का भाव करो, आंख बंद करके गोदी में सो जाओ। एक बात और - हथेलियों, पैर और नाभि में सरसों या नारियल का तेल लगाकर सोना। इससे सुबह तरोताज़ा उठोगे।

तुम सच्चे दिल से पूर्ण समर्पण के साथ प्रार्थना करो, वो स्वयं तुम्हें अपने आदर्शों पर चला लेंगे, निश्चिंत रहो। अंतर्जगत में बैठी गुरु सत्ता तुम्हारा सतत मार्गदर्शन करेगी।

कुछ साहित्य जो लक्ष्य प्राप्ति में सहायक है इन्हें पढो:-

1- सफलता आत्मविश्वासी को मिलती है
2- दृष्टिकोण ठीक रखे
3- सफलता के सात सूत्र साधन
4- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
5- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
6- सफल जीवन की दिशा धारा
7- आगे बढ़ने की तैयारी
8- अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
9- सङ्कल्प शक्ति की प्रचंड प्रक्रिया

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
Https://awgpggn.blogspot.com

Sunday 26 April 2020

प्रश्न - *आज़कल नींद नहीं आती व सरदर्द होता है?*

प्रश्न - *आज़कल नींद नहीं आती व सरदर्द होता है?*

उत्तर- आत्मीय बहन, सर पर विचारों का कबाड़ रखोगी तो नींद कैसे आएगी? आजकल ज़्यादा पढ़े लिखे लोग ज़्यादा विचारों के कबाड़ के भार से ग्रसित हैं।

कबाड़ी भी जानता है कि सोने से पहले कबाड़ नीचे साइड में रख दो और सुबह पुनः उठा लेना काम कर लेना।

अफ़सोस यह है कि यह साधारण सी बात हम जैसे पढ़े लिखे कबाड़ी नहीं समझते। विचारों का कबाड़ सर पर रखकर सोने की व्यर्थ चेष्टा करते हैं।

विचारों का कबाड़ तो सम्हालना हमारा उत्तरदायित्व ही है, लेकिन कितने घण्टे यह हमें तय करना आना चाहिए। क्या कब सोचना है और क्या कब नहीं सोचना इतना नियंत्रण तो स्वयं पर होना ही चाहिए डियर।

तनाव का अर्थ है मन के घोड़े का बेलगाम होना।

साधारण ग्लास भी यदि पीने के वक्त उठाओ और फिर रख दो तो कोई समस्या नहीं। मग़र वही ग्लास कई घण्टे तक उठाकर रखो तो स्ट्रेश होगा ही। ग्लास को उठाना व ग्लास को रखना आना चाहिए तभी हाथ मे स्ट्रेश नहीं होगा।

इसी तरह विचार को चिंतन में लाना और चिंतन के प्लेटफार्म से हटाना सीखना पड़ेगा।

गीता में भगवान ने इसीलिए सतत अभ्यास और वैराग्य अपनाने के लिए कहा है। मन की घुड़सवारी करना जो सीख जाए वो घोड़े से भयभीत नहीं होता। उसे स्ट्रेश नहीं होता।

शाम को सोने से पूर्व गायत्री मंत्र लेखन व जप करके, किसी अच्छी पुस्तक व गीता का स्वाध्याय करके मन का कचरा साफ करके सोने की आदत डालो बड़ी मीठी नींद आएगी। भगवान से बोलो हे भगवान मुझे मेरे विचारों को सम्हालने की शक्ति दीजिये। मैं रात्रि को आपकी गोद मे विश्राम करने आ रही हूँ, तब तक इन विचारों को अपने चरणों मे स्थान दीजिये और मुझे विचार मुक्त करके गहन निंद्रा में शांति दीजिये।

या देवी सर्वभूतेषु *मातृ- रूपेण* संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।

या देवी सर्वभूतेषु *निद्रा- रूपेण* संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।

या देवी सर्वभूतेषु *मानसिक शांति- रूपेण* संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।

नेत्र बन्द कर माता के चरणों का ध्यान करते हुए सो जाइये। माता के स्वरूप को मन ही मन निहारिये स्मरण करते हुए सो जाइये।

विचारों पर नियंत्रण आसान है कोशिश करने वालो के लिए, क्योंकि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Saturday 18 April 2020

प्रश्न - *वर्तमान विश्व आपदा कोविड 19 - कोरोना वायरस संक्रमण के सम्बंध में श्रीमद्भगवद्गीता के सांख्य योग के आधार पर विवेचना करके मोहग्रस्त हम मनुष्यो की स्थिति को उबरने हेतु भगवान कृष्ण के वचन स्पष्ट कर दीजिए।*

प्रश्न - *वर्तमान विश्व आपदा कोविड 19 - कोरोना वायरस संक्रमण के सम्बंध में श्रीमद्भगवद्गीता के सांख्य योग के आधार पर विवेचना करके मोहग्रस्त हम मनुष्यो की स्थिति को उबरने हेतु भगवान कृष्ण के वचन स्पष्ट कर दीजिए।*

उत्तर - आत्मीय भाई, मोहग्रस्त अर्जुन को मोह से उबारने के लिए और उसके विषाद को दूर करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने अध्याय 2 में सांख्यिकीय विश्लेषण (spiritual and psychology statistics) से समझाया है। उसे ही वर्तमान कोरोना संक्रमण के समय फैले मोह, विषाद व दुःख के शमन के लिए सुनो:-

1- वस्त्र का निर्माण व उसका नष्ट होना एक स्वभाविक प्रक्रिया है। अब वह वस्त्र जलकर नष्ट हुआ या कीड़े-मकोड़ो ने उसे नष्ट किया या चूहे ने कुतर कर नष्ट किया। माध्यम कोई भी हो वस्त्र तो नष्ट होना ही था। वस्त्र के नष्ट होने से उसे जिसने कुछ दिन पहना था वह नष्ट नहीं होता।

2- इसी तरह शरीर रूपी वस्त्र का निर्माण व उसका नष्ट होना एक स्वभाविक प्रक्रिया है। अब यह शरीर रूपी वस्त्र जलकर नष्ट हुआ या जहरीले कीड़े-मकोड़ो के काटने से नष्ट हुआ या विषाणु जनित रोग कोरोना के संक्रमण ने इसे नष्ट किया। माध्यम कोई भी हो शरीर रूपी वस्त्र को तो नष्ट होना ही था। वस्त्र के नष्ट होने से उसे जिस आत्मा ने कुछ दिन इसे पहना था वह नष्ट नहीं होता।

3- आत्मा अजर अमर अविनाशी है, इसका जन्म लेना(वस्त्र धारण करना),   मृत्यु होना (वस्त्र त्यागना) और पुनः नया वस्त्र पहनना (पुनर्जन्म) यह स्वभाविक प्रक्रिया है जो अनवरत चल रही है।

4- अतः इसके सामूहिकता से नष्ट होने के दृश्य व खबरों से स्वयं के मन को विचलित मत होने दो। इस समय दुःख, शोक, विषाद जैसी कोई भावना मन मे उतपन्न करने की जरूरत नहीं है। जिसका जब समय आएगा वह निश्चयत: शरीर का त्याग करेगा अब वह त्यागने का बहाना कोई भी हो सकता है।

5- भारत सरकार के अनुशासन और लाकडाउन को पालन करते हुए व साफ-सफ़ाई से स्वयं व परिवार जन के जीवन रक्षण का कर्म योग आसक्ति रहित होकर करो। जीवन बचना या जीवन न बचना यह कर्मफ़ल भगवान के हाथ मे छोड़ दो। तुम सिर्फ कर्म करो एवं फल की चिंता मत करो।

6- यदि तुम चिकित्सा जगत से जुड़े हो तो उत्तम सेवा करो और प्रत्येक जीवन को बचाने का कर्मयोग करो।लेकिन रोगी के जीवन से आशक्त मत हो, उसका जीवन बचेगा या नहीं इस कर्मफ़ल में मत उलझो।

7- यदि चिकित्सा जगत के अन्वेषक हो तो जुट जाओ वैक्सीन व दवा ढूंढने में, कर्मयोग करो, पुरुषार्थ करो। बिना इस बात की परवाह किये कि सफल होंगे या नहीं।

8- यदि पुलिस व सेना में हो, ड्यूटी पर हो अपना अपना पुरुषार्थ निर्देशित नियम पालन करते हुए करो, बिना इस बात की चिंता किये कि कहीं हम स्वयं न संक्रमित हो जाएं। जीवन-मरण कर्मफ़ल है वह ईश्वर के आधीन है, हमें कर्म करना है।

9- यदि किसान हो या भोजन सम्बन्धी व्यवस्था में जुटे हो तो भोज्य आपूर्ति में जुट जाओ, पुरुषार्थ करो कर्मफ़ल की परवाह मत करो।

10- यदि साधारणजन हो तो भूखे ग़रीब एक या दो या जितनी सामर्थ्य हो उनकी क्षुधा निवारण में जुट जाओ। पूरे विश्व के भूखों की चिंता मत करो। जो कर सकते हो वो कर डालो। पी एम केयर या जिस भी संस्था से जुड़े हो जो भी सेवा कार्य कर रहा है उसमें सामर्थ्य अनुसार दान दे दो। दान का उपयोग कहाँ व कैसे होगा इसकी चिंता मत करो।

11- यह जीवन ईश्वरीय निमित्त बनकर जियो। न सुख के क्षणों में भगवान को भूलो और न ही दुःख के क्षणों में भगवान को भूलो। प्रत्येक जीवन की घटना को साक्षी भाव से देखो और सुनो, मग़र उन घटनाओं से व्यथित मत हो। क्योंकि जो तुम्हारे हाथ में नहीं उसका शोक करके कोई लाभ नहीं है।

12- महाकाल का सामूहिक संघार का उदघोष उसी वक्त हो गया था जब चतुर्ग्रही योग नबम्बर 2019 में बना था, 21 नवंबर को चार ग्रहों की युति बनी थी जिसमें शनि,केतु, शुक्र और बृहस्पति थे। शनि और केतु के धनु राशि में होने से अशुभ परिणाम मिलता है जबकि शुक्र और बृहस्पति के धनु राशि में आने पर शुभ फल की प्राप्ति होती है। भारत के कई ज्योतिष पंचाग में विषाणु महामारी की ग्रह गणना अनुसार भविष्यवाणी कर दी गयी थी। अतः जो नियति है जिसमें पूरे विश्व की आबादी का 20% नष्ट होगा तो होगा। अब यह इस वर्ष नबम्बर 2020 तक ही ठीक होगा तो होगा। अर्थ व्यवस्था में मंदी होगी तो होगी। अतः चिंता न करके पुरुषार्थ सभी को अपने अपने स्तर पर करना है जिससे कम से कम क्षति हो और पुनः भारत के जनता के जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए आर्थिक प्रयास करें। प्रत्येक जीवन को बचाने का प्रयास व पुरुषार्थ करे। बस फ़ल की चिंता न करें, जो करें साक्षी भाव से फल की चिंता किये बगैर करें।

जब तक परमात्मा की इच्छा न होगी या उस व्यक्ति की स्वयं की इच्छा न होगी, किसी भी व्यक्ति की मृत्यु नहीं हो सकती। मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र है उसके फल के चुनाव में नहीं।

भगवान उसी की मदद करता है, जो अपनी मदद स्वयं करता है। भगवान को ढूढ़ना नहीं होता है, भगवान को पहचानना होता है। जिस प्रकार मछली जल में है और जल मछली के भीतर भी है, वैसे ही हम सब परमात्मा के भीतर हैं और परमात्मा हमारे भीतर हैं। मछली ही जल नहीं है, वैसे ही हम सब परमात्मा नहीं है। मछली के भीतर जल है, हमारे भीतर भी परमात्मा है। अतः सुख दुःख से परे स्थितप्रज्ञ बनो, हे अर्जुनों मोह त्यागो, सांख्य योग समझो औऱ शुद्ध चित्त व शांत मन से अपने अपने कर्म करो और ईश्वरीय निमित्त बनकर निष्काम कर्म करो।

हम सब अजर अमर अविनाशी आत्मा हैं, जब हम जन्में ही नहीं तो मृत्यु कैसे हो सकती है। हमने तो मात्र शरीर रूपी वस्त्र धारण किया है, यदि यह जब भी जिस उम्र में भी फटा, देहत्याग किया तो दूसरा पहन लेंगें, पुनर्जन्म ले लेंगे। चिंता की क्या बात है। आनन्दित जियो, परमानन्द में झूमों।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday 17 April 2020

सांख्ययोग व सांख्यदर्शन

प्रश्न - *श्वेता दीदी प्लीज मुझे बताइए सांख्य योग क्या है सांख्य योग का सरल भाषा में इस तरीके से बताइए कि मुझे समझ में आ जाए यानी आम आदमी को समझ में आ जाए सांख्य योग क्या है प्लीज दीदी 4:00 बजे तक आंसर लिख दे तो आपकी मेहरबानी होगी*

उत्तर- आत्मीय बहन, लाकडाउन में ऑफिस का वर्कफ़्रॉम होम और मेड के बिना गृहकार्य हो रहा है। अतः प्रश्न का उत्तर जल्दी व तय टाइम में मत मांगिये। थोड़ा वक़्त दीजिये।

अध्यात्म में 6 प्रकार के दर्शन है, उनमें से एक दर्शन - सांख्य दर्शन है। इसी सांख्य में जो योग वर्णित है उसे सांख्य योग कहते हैं।

सांख्य शब्द संख्या से बना है जिसका अर्थ होता है गणना युक्त विश्लेषण करना।

*विज्ञान हो या मनोविज्ञान या गृहविज्ञान या अध्यात्म विज्ञान  सब में सांख्यिकी आँकड़े महत्वपूर्ण हैं?* सबसे पहले, आइए सामान्य रूप से आंकड़ों के महत्व के बारे में सोचें। सांख्यिकी हमें जानकारी का एक बड़ा हिस्सा बनाने और व्याख्या करने की अनुमति देती है। एक निश्चित दिन में आपके द्वारा सामना किए जाने वाले डेटा की सरासर मात्रा पर विचार करें। आप कितने घंटे सोए थे? आज सुबह आपके कक्षा के कितने छात्रों ने नाश्ता खाया? आपके घर के एक मील के दायरे में कितने लोग रहते हैं? आंकड़ों का उपयोग करके, हम इस जानकारी को सार्थक तरीके से व्यवस्थित और व्याख्या कर सकते हैं।

यदि सांख्यकी गणना व अनुपात की समझ रखकर, कौन कौन से तत्व को किस मात्रा में मिलाकर क्या पकवान बनाना है, सांख्यकीय विश्लेषण के साथ भोजन बनाया जाय तो भूल की कम सम्भावना रहती है। निश्चित परिणाम मिलने की अधिकतम सम्भावना रहती है।

इसी तरह दिन के प्रत्येक समय को सांख्यकीय आधार पर कैलकुलेट करके टाइम टेबल बनाकर कार्य किया जाय तो अपेक्षित व्यवस्थित दिन व कार्य परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं।

इसी तरह अध्यात्म को परिभाषित करने के लिए 25 तत्वों को आंकड़ा परक सांख्यकीय विश्लेषण किया गया है। यह तत्व इस प्रकार हैं:-

सांख्य दर्शन के २५ तत्व

*आत्मा*
*अंतःकरण (3)* : मन, बुद्धि, अहंकार
*ज्ञानेन्द्रियाँ (5)* : नासिका, जिह्वा, नेत्र, त्वचा, कर्ण
*कर्मेन्द्रियाँ (5)* : पाद, हस्त, उपस्थ, पायु, वाक्
*तन्मात्रायें (5)* : गन्ध, रस, रूप, स्पर्श, शब्द
*महाभूत (5)* : पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश

*सत्कार्यवाद सिद्धांत सांख्य योग का मुख्य अंग है।*

सांख्य-दर्शन का मुख्य आधार सत्कार्यवाद है। इस सिद्धान्त के अनुसार, बिना कारण के कार्य की उत्पत्ति नहीं हो सकती।

कपिल मुनि के अनुसार - "कार्य" अपनी उत्पत्ति के पूर्व "कारण" में विद्यमान रहता है(Every action must have intention either known or unknown)। कार्य अपने कारण का सार है। कार्य तथा कारण वस्तुतः समान प्रक्रिया के व्यक्त-अव्यक्त रूप हैं।

*सत्कार्यवाद के दो भेद हैं- परिणामवाद तथा विवर्तवाद*।
👉🏻परिणामवाद से तात्पर्य है कि कारण वास्तविक( Real) रूप में कार्य में परिवर्तित हो जाता है। जैसे तिल तेल में, दूध दही में रूपांतरित होता है।

👉🏻विवर्तवाद के अनुसार परिवर्तन वास्तविक न होकर आभास( illusion) मात्र होता है। जैसे-रस्सी में सर्प का आभास होना।


भारतीय संस्कृति में किसी समय सांख्य दर्शन का अत्यंत ऊँचा स्थान था। देश के उदात्त मस्तिष्क सांख्य की विचार पद्धति से सोचते थे। महाभारतकार ने यहाँ तक कहा है कि ज्ञानं च लोके यदिहास्ति किंचित् सांख्यागतं तच्च महन्महात्मन् ( *शांति पर्व 301.109*)। वस्तुत: महाभारत में दार्शनिक विचारों की जो पृष्ठभूमि है, उसमें सांख्यशास्त्र का महत्वपूर्ण स्थान है।

श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कर्म योग, भक्ति योग के साथ ही सांख्य योग को भी परिभाषित किया है। जब जब अध्यात्म व योग को तत्वतः परिभाषित किया जाता है वह सांख्ययोग के अन्तर्गत आता है। आत्मतत्व, जीवात्मा, शरीर, त्रिगुणात्मक प्रकृति (सत, रज, तम) इत्यादि की विवेचना सबकुछ सांख्य दर्शन व योग का ही अंग है। ज्ञानी भक्त जो तत्वतः परमात्मा, जीवात्मा और संसार को जानता है, वह स्थितप्रज्ञ होता है। वह सुख में न सुखी होता है, और न ही दुःख में दुःखी होता है। दुनियाँ को साक्षी भाव से देखते हुए, कर्म के पीछे उसे करने का जो कारण है उस पर ही परिणाम पुण्य या पाप होगा वह जानता है। अतः वह निर्विकार रहता है, उसमें विकार नहीं जन्मता है, आसक्ति में सांख्य योग समझने वाला नहीं बंधता है। प्रत्येक घटना के पीछे के कारण व परिणाम की तत्वतः विवेचना करता है, व तद्नुसार कार्य करता है।

इसे विस्तार से निम्नलिखित पुस्तक - "सांख्य एवं योग दर्शन" पुस्तक पढ़ें, जिसे युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है।
http://literature.awgp.org/book/sankhyaaevamyogdarshan/v1


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 15 April 2020

नाद आधीनम जगत सर्वम्

*नाद आधीनम जगत सर्वम्*

यदि जीवन को मधुर सकारात्मक संगीत लहरियों से वंचित रखोगे तो डिप्रेशन को स्वतः आमंत्रित करोगे। यह समस्त जगत नाद के आधीन है।

The impact of musical sounds

वाद्यस्य शब्देन हि यान्ति नाशं बिषाणि घोराण्यपि यानि सन्ति।

 By the musical sounds, the terrible poisonous elements get killed. - Sushruta-samhita

अतः दिव्य मन्त्र नाद से घर मे सकारात्मक तरंगे उत्तपन्न कीजिये। गायत्री मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र, बजरंग बाण, देवी कवच, ॐ ध्वनि, नाद योग इत्यादि मोबाइल से या घर के साउंड सिस्टम से नित्य सुबह या शाम 5 से 7 के बीच कम से कम 20 से 30 मिनट बजाईये, नेत्र बन्द कर उसकी सुमधुर नाद तरङ्ग व शब्दो की ऊर्जा से अपनी चेतना एकाकार कीजिये।

नित्य दैनिक कार्य करते हुए भी मधुर उत्तम मन्त्रों युक्त सुमधुर ध्वनियों को सुनिए।

अपनी अपनी सोसायटी में गार्ड की मदद से, ग्रुप कॉल करके सभी को प्रेरित कर प्रत्येक रविवार 5 बजे सामूहिक मंत्रजप, शँखनाद, घण्टी इत्यादि अपनी अपनी बालकनी में खड़े होकर सभी बजाइये। एक समय एक साथ अपने अपने घरों से, दिव्य नाद और मन्त्र का गुंजार कीजिये।

हनुमानजी की हुंकार से लँका की राक्षसी स्त्रियों का गर्भपात हो गया था, सामूहिक मंत्रजप और शँखनाद से विषाणुओं-रोगणुओं की वृद्धि रुकती है वो नष्ट होते हैं। शब्द नाद  सङ्गीत का महत्त्व समझिए।

Clanging utensils, ringing bells, conch-blowing, beating drums, clapping - all this will surely help.

कुछ लिंक आपके लिए:-

नाद सङ्गीत-
https://youtu.be/vkhJY0wEpu8

ॐ ध्वनि तरङ्ग -

https://youtu.be/EPMq0lQKPYI

गायत्री मंत्र -
https://youtu.be/zREK6bp6L9c

महामृत्युंजय मंत्र -
https://youtu.be/adyjwFgXRNY

बजरंग बाण
https://youtu.be/h1lT6cxwsPw

देवी चंडी कवच
https://youtu.be/06syfbH6ooI

श्रीराम रक्षा स्त्रोत
https://youtu.be/-_axSlApc98

इत्यादि जो अच्छा लगे सुनें व नाद ब्रह्म से जुड़े रहें स्वयं को चैतन्य व उत्साह-उमंग जीवनीशक्ति से भरें।

अपने सभी इष्टमित्रों के साथ zoom कॉल करके सामूहिक ऑनलाइन सङ्गीत कीर्तन भजन मन्त्र जप का आयोजन करें।

भारत के समस्त जन जन के जनजीवन को शिथिल व उदास होने से बचाएं। कोरोना संक्रमण को दिव्य प्राण ऊर्जा मन्त्र तरङ्ग से निश्तेज कर दें। उत्साहसंचार करें, जीवनी शक्ति का शब्द ब्रह्म -नाद ब्रह्म से संचार करें। वाद्य यंत्र जिन्हें बजाना आता है वह जरूर बालकनी में मधुर स्वर लहरियां बजाएं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 14 April 2020

प्रश्न - *दूरस्थ प्रियजन तक ऊर्जा का संचार प्राणिक चिकित्सा/टेलीपैथी/रेकी/प्रार्थना द्वारा कैसे करें?*

प्रश्न - *दूरस्थ प्रियजन तक ऊर्जा का संचार प्राणिक चिकित्सा/टेलीपैथी/रेकी/प्रार्थना द्वारा कैसे करें?*

उत्तर - आत्मीय बहन, सबसे पहले हमें यह समझना होगा ....की हमारा शरीर किस तरह काम करता है ? मनुष्य का शरीर कई तरह की उर्जाओ यानी एनर्जी का सोत्र है और हम जीवन निर्वाह के लिए इन एनेर्जी को भिन्न भिन्न तरीको से जाने अनजाने ग्रहण करते है .....

इक एनर्जी का दूसरी एनर्जी में बदलाव ...हमारे शरीर में निरंतर होता रहता है.... जिसे साइंस की भाषा में एनर्जी ट्रांसफॉर्मेशन या रुपंतार्ण कहते है ....

मनुष्य के शरीर में मैकेनिकल , इलेक्ट्रिकल ,चुम्बकीय ,बायो केमिकल ,प्रकाश ,ध्वनि , हीट और कॉस्मिक उर्जा का प्रवेश, रुपंतार्ण और निर्माण अलग लग तरीको से और शरीर की भिन्न  भिन्न अंगो द्वारा होता है ....


एक दिन में ....इक आम इन्सान भोजन,पानी ,वायु ,ध्वनि और प्रकाश का ग्रहण खाने, देखने, सुनना, सूंघना , सोचना और महसूस करना आदि भिन्न भिन्न कार्य द्वारा करता है.....

भोजन शरीर में जाकर अलग अलग उर्जा का निर्माण करता है ...जिससे शरीर सुचारू रूप से चलता रहे ...भोजन के अलावा बाकी क्रियाये भी हमारे शरीर पे अपना प्रभाव डालती है ....जिसे हम अधिकतर हलके तौर पे लेते है ....पर कभी कभी इनके आकस्मिक प्रभाव भी हमारे मन , मस्तिष्क पर पड़ते है ...

जैसे किसी सड़े-मरे हुए जानवर को देख उलटी का जी होना या किसी आम आदमी का ऑपरेशन थिएटर में बेहोस हो जाना या किसी बहुत ही सुन्दर स्त्री को देख किसी व्यक्ति का अपना होस-हवास खो देना... या सिनेमा हाल में किसी पे अत्याचार देख खून का खौलना या किसी की दयनीय दशा देख आंसू आना आदि ....

ऐसा ही कुछ असर हमारे शरीर में कुछ सुनने और सूंघने से भी होता है ...इन सब क्रियाओं में मष्तिष्क का इक अहम् रोल है ..जो मानव शरीर को सिग्नल भेज उसे निर्देश देता है ...की उसकी प्रतिक्रिया क्या हो ....जैसे शरीर में कम्पन , हाई/लो ब्लड प्रेशर , दिमाग का कुंद होना और शरीर का जडवत हो जाना आदि शामिल है .....

ऐसा ही कुछ प्रभाव हम तब महसूस करते है ..जब कोई आपको छूता है .... इसे समझाने की जरूरत नहीं ...ऐसे ही इक बच्चे के लिए माँ का स्पर्श दोनों के बीच में इक मजबूत बंधन का निर्माण करता है ...जिसे दोनों बिना भाषा के समझ लेते है ....

स्पर्श की महत्ता तो हम सब जानते है ..पर यह किसी रोग को ठीक कर दे ..यह समझना थोडा टेढ़ा काम है और उससे भी कठिन यह समझना की कोई व्यक्ति कंही दूर दराज से ऐसी कोई उर्जा भेज दे...जो किसी रोगी को ठीक कर दे...किसी के मानसिक और शारिरिक पीड़ा को दूर करना...मनोबल बढ़ाना..इत्यादि

मानव शरीर के इर्द गिर्द कई तरह की एनेर्जी उपस्थित होती है जिन्हें हम आम अवस्था में महसूस नहीं कर पाते...यह एनेर्जी पूरे ब्रह्मांड से... या..दुसरे ग्रहों से उत्सर्जित उर्जा... किसी साधक मनुष्य के शरीर से उत्सर्जित ऊर्जा... या अत्यंत सूक्ष्म (ना दिखने वाले) जीवो से या इंसानी शरीर को ना सुनने , दिखाई औए महसूस होने वाली धाराओ के प्रवाह के कारण होती है....पर हमारी इन्द्रिया इन्हें संचित करती रहती है ...

 ऊर्जा का संचार प्राणिक हिंलिंग चिकित्सा/टेलीपैथी/रेकी/प्रार्थना द्वारा की हीलिंग में साधक/मास्टर इक खास तरीके से अपने आस पास की धारायो को इकटठा कर उनको इक दिशा दे कर सम्बन्धित व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कराता है ... इसके लिए साधक/मास्टर को पहले उस व्यक्ति का नाम लेकर या उस व्यक्ति के स्थान के कोण का या किसी भी तरह उसका स्मरण तीव्र भावनाओ द्वारा करना होता है ...

जैसे मेने ऊपर लिखा कि ..हमारे शरीर में भीं भिन्न प्रकार की उर्जाओ का निर्माण होता है ...अगर इसे हम ऐसे समझे जैसे की हमारा शरीर इक ऑफिस है ..जिसमे कई डिपार्टमेंट है और उनके काम करना का अपना इक तरीका..उसी तरह शरीर की अलग अलग क्रियाएं भीं एनर्जी का उपयोग ,रुपंतार्ण या निर्माण करती है ...

अतः ऊनी वस्त्र या कम्बल के आसन पर कमर सीधी और नेत्र बन्द कर शांत चित्त दोनों हाथ गोद में रखकर बैठ जायें...

🙏🏻🇮🇳मौन मानसिक देववाहन और गुरु का आह्वाहन करें। प्राणायाम करें। मौन मानसिक 24 गायत्री मंत्र, पाँच महाकाली गायत्री मंत्र और 5 महामृत्युंजय मंत्र जपें।

🇮🇳👉🏼भावना करें कि कण कण में व्यापतं ब्राह्मण शक्ति नीले बादल के रूप में आपके सर के ऊपर एकत्रित हो गयी है। अब वो सहस्त्रार से रीढ़ की हड्डी के आस पास स्थित इड़ा-पिंगला नाड़ी से समस्त चक्रों में प्रवेश कर गयी है। अब स्वयं को ऊर्जा का ट्रांसफॉर्मर सा महसूस करें।

👉🏼🇮🇳अब उस प्रियजन का  ध्यान करें और बाएं हाथ की हथेली को कंधे से ऊपर आसमान की तरफ ऐसे रखें मानो ऊर्जा ग्रहण कर रहे हैं, दूसरे  हाथ को  आशीर्वाद की मुद्रा में ऐसे रखें जैसे देवता आशीर्वाद देते हैं। अब भावना करें कि उस प्रियजन को आप अपने दाहिने हाथ से ऊर्जा भेज रहे हैं। आकाशवाणी जैसे ध्वनि को ईथर में ब्रॉडकास्ट करता है, वैसे ही आप ऊर्जा और आशीर्वाद की ऊर्जा किरणों उस प्रियजन तक भेज रहे हैं। वह उसके दोनों भौंहों के मध्य आज्ञाचक्र जहाँ तिलक लगाते है वहां से प्रवेश कर रहा है। वह ऊर्जावान और प्रकाशवान बन रहा है। शारीरिक और मानसिक पीड़ा मिट रही है। उसके अंदर वीर शिवाजी, विवेकानंद, लक्ष्मीबाई और महाराणा प्रताप की तरह साहस व वीरता  हिलोरें ले रही है।

👉🏼🇮🇳निम्नलिखित बातें मन ही मन दोहराएं:-

1- हे मेरे प्रियजन(उनका नाम लें), तुम यशस्वी हो, यशस्वी हो, यशस्वी हो।

2- तुम दीर्घायु हो, दीर्घायु हो, दीर्घायु हो।

3-तुम चिरंजीवी हो, चिरंजीवी हो, चिरंजीवी  हो।

तुम्हारा उज्ज्वल भविष्य हो, तुममें देशभक्ति आलोकित रहे, तुम्हारा तन और मन मजबूत रहे, तुम्हारा मनोबल बढ़ता रहे। तुम्हारे भीतर रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती रहे। विजेता की तरह जीवन जियो।

स्वस्थ हो, स्वस्थ हो, स्वस्थ हो
विजयी भव, विजयी भव, विजयी भव
मन शांत भव, मन शांत भव, मन शांत भव

ॐ शांति

फ़िर शांतिपाठ करें और दोनों हाथों को रगड़े और चेहरे पर लगा लें। कुछ क्षण रुककर नेत्र खोले और फिर उठ जाएं।

इसमें समस्त प्रक्रिया मौनमानसिक और नेत्रबन्द करके होगी। केवल हाथों का मूवमेंट उपरोक्त नियमानुसार होगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

गायत्री मंत्र - *ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात*

महाकाली दुर्गा गायत्री मंत्र - *ॐ भूर्भुवः स्व: क्लीं क्लीं क्लीं तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात क्लीं क्लीं क्लीं ॐ*

महामृत्युंजय मंत्र - *ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥*

शांतिपाठ - *ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:,*

*पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।*

*वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,*

*सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥*

*ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥*

सबको सद्बुद्धि दो परमात्मा, हमारे देश को विश्व आपदा कोरोना वायरस संक्रमण(कोविड19) से बचाओ, सभी धर्म सम्प्रदाय के लोगों को सद्बुद्धि दो कि वह इस समस्या को समझें व देशहित कार्य करें, देशभक्ति का लोगों के भीतर संचार हो, भटके लोग आतंकवाद की राह छोड़ दें, प्रेम और सौहार्द से रहें। विश्व मे शांति हो ऐसी कृपा करो।

सभी स्वस्थ रहें, सबका उज्ज्वल भविष्य हो।

Tuesday 7 April 2020

श्री हनुमान जन्मोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं* 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

*श्री हनुमान जन्मोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं*
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

हनुमत गायत्रीमंत्र - *ॐ अंजनी सुताय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि तन्नो मारुति: प्रचोदयात्।*

श्री हनुमान जी केवल शारीरिक बल, ओज, वीर्य, तेज, बुद्धि, विद्या प्रदान करने वाले ही देव नहीं हैं, वह तो समस्त प्रकार की पीड़ानाशक देव हैं। जब भी पीड़ा आती है तो उसका प्रभाव शरीर, मन और कार्य, तीनों पर ही पड़ता है। इस कारण प्रत्येक व्यक्ति को  नित्य प्रति नहीं तो मंगलवार को हनुमान मंत्र जप अवश्य ही करना चाहिए।

हनुमानजी की साधना की अनेक विधियां, मंत्र, ध्यान, स्तोत्र, चालीसा, कवच, हनुमान बाहुक, सुन्दरकाण्ड आदि हैं। कलियुग में सर्वाधिक मन्दिर हनुमान जी के हैं वह सर्वाधिक पूजे जाने वाले देवता हैं। वह शक्ति के पुंज और साहस के प्रतीक हैं। उनका नाम लेते ही सब संकट टल जाते हैं।

सर्वश्रेष्ठ सुपर हिरो और साहस के स्रोत के रूप में बच्चों को हनुमान जी के चरित्र कथा को सुनाना चाहिए। जिससे बच्चे काल्पनिक सुपर हीरो - सुपरमैन, बैट्समैन, हीमैन इत्यादि की जगह रियल सुपर हीरो की परमात्म चेतना से जुड़े।

यदि रोग हो, या शारीरिक - मानसिक पीड़ा हो, नकारात्मक ऊर्जा महसूस हो तो 40 दिन तक रोज हनुमान बाहुक का एक पाठ नित्य करना चाहिए, एक हनुमान चालीसा, एक बजरंग बाण और साथ ही तीन माला हनुमान गायत्री मंत्र की नित्य जपनी चाहिए। मंगलवार या शनिवार का व्रत रखना चाहिए।

गृहक्लेश और मन मुटाव हो या अन्य कोर्ट मुकद्दमा का संकट हो तो 40 दिन तक नित्य एक सुंदरकांड का पाठ, हनुमान अष्टक का पाठ, हनुमान चालीसा का पाठ व पांच माला नित्य हनुमान गायत्री का जप करना चाहिए।मंगलवार या शनिवार का व्रत रखना चाहिए।

गृह क्लेश में श्वेत वस्त्र धारी हनुमानजी का ध्यान करें, कोर्ट कचहरी के मुकद्दमें हेतु पीले या लाल वस्त्रों में हनुमानजी का ध्यान करें। घर की नकारात्मक शक्ति के शमन के लिए हनुमानजी का लाल वस्त्रों में ध्यान करें। रोग-पीड़ा के वक़्त हनुमानजी का पीले वस्त्रों में ध्यान करें।

हनुमानजी की साधना के साथ श्रीराम रक्षास्त्रोत का पाठ भी श्रेयस्कर है।

अँधेरे से युद्ध लड़ा नहीं जा सकता, उसे तो मात्र एक दीपक जला कर दूर किया जा सकता है। दीपक अग्नि को तभी धारण कर सकता है जब उसकी बाती कसी हुई हो और एक पात्र में रखा हो साथ ही जिसमें समुचित घी ईंधन रूप में हो।

इसी तरह भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए, उनकी अग्निवत ज्योति को आत्मा में धारण करने के लिए भी  पात्रता चाहिए, संयमित जीवन और तप की शक्ति का ईंधन चाहिए। जिससे जीवन के अंधकार को दूर किया जा सके।

हनुमानजी के कुछ विशिष्ट मंत्र इस प्रकार हैं। आप इनमें से कोई एक मंत्र चुन सकते हैं। यह सभी समान रूप से शक्तिशाली हैं। इनका 24 हज़ार जप या सवा लाख मन्त्र का जप का अनुष्ठान कर सकते हैं।

ॐ नमो भगवते आंजनेयाय महबलाय स्वाहा।

ॐ हां सर्वदुष्टग्रह निवारणाय स्वाहा।

ॐ हं केसरीपुत्राय रामभक्ताय नम:।

ॐ हं पवननंदनाय स्वाहा।

ॐ अंजनी सुताय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि तन्नो मारुति: प्रचोदयात्।

ॐ हनुमते नम:।

ॐ हां संकट मोचनाय नम:।

ॐ हं हनुमते रुद्रात्माय हुं फट्।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

वैराग्य व आसक्ति त्याग का ध्यान

*वैराग्य व आसक्ति त्याग का ध्यान*

मेरा पसंदीदा ध्यान, जब मुझे वक्त मिलता है यह मैं करती हूँ। इससे आसक्ति व मोह बन्धन से ऊपर उठने में मुझे मदद मिलती है।

दीपक को जलने के लिए घी की आवश्यकता होती है, आत्मा को भी प्रकाशित होने के लिए तप-साधना की शक्ति रूपी ईंधन की आवश्यकता होती है।

ध्यानस्थ हो कमर सीधी करके कम्बल के आसन पर बैठ जाती हूँ। मोबाइल  में मधुर हल्की आवाज़ में बांसुरी युक्त नाद योग चला देती हूँ।

ध्यान में कल्पना के माध्यम से धारणा करती हूँ कि मैंने मेरा शरीर कम्बल के आसन पर ध्यानस्थ छोड़ दिया है। अब मैं शरीर से अलग होकर स्वयं को देखती हूँ, अच्छा तो अभी मेरा वास इस शरीर में है। अब मैं मेरे आदिस्रोत सद्गुरु से मिलने खिड़की से निकलती हूँ। आत्मा हूँ हल्की होती हूँ और हवा में गमन में कोई परेशानी होती नहीं तो बादलों के साथ उड़ते हुए गुरुग्राम से शान्तिकुंज कल्पना करते हुए पहुंचती हूँ, बड़े आराम से पूरे शान्तिकुंज का दर्शन क्रमशः समाधिदर्शन, दैनिक यज्ञ में आहुति, सप्तऋषि दर्शन, गायत्री मन्दिर दर्शन, अखण्डदीप दर्शन व परमपूज्य गुरुदेव व माताजी के दर्शन करती हूँ। 

वहाँ से कल्पना करते हुए उनके साथ कैलाश मानसरोवर की ओर बढ़ती हूँ। वहां जाकर मैं कल्पना करती हूँ, कि शिव में गुरुदेव समा गए और आद्यशक्ति पार्वती में माता जी समा गई।

दोनों के चरण वंदन करती हूँ, पुनः ध्यान करती हूँ कि शिव और पार्वती भी अर्ध नारीश्वर होकर पुनः एक शिव में हो गए।

अब शिव जी के साथ मैं श्मशान ध्यान में जाती हूँ। जलती लाशों के बीच आदियोगी शिव के मार्गदर्शन में ध्यान करती हूँ। मेरे कई जन्मों के शरीर को जलता हुआ अनुभव करती हूँ, प्रत्येक शरीर के मिटने व नये शरीर मे जन्मने के अनुभवों को अनूभूत करती हूँ। प्रत्येक शरीर के साथ उससे जुड़े रिश्तों के जलने व मिटने का अनुभव करती हूँ, नए शरीर मे नए रिश्ते अनुभूत करती हूँ। मेरी अनन्त यात्रा के विभिन्न पड़ाव मेरे प्रत्येक शरीर व जन्म अनुभूत करती हूँ।

पुनः शिवो$हम का आती जाती श्वांस के माध्यम से ध्यान करती हूँ, स्वयं को एक अग्निवत ज्योति रूप में ध्यान करते हुए आदियोगी शिव में ही समाहित हो जाती हूँ। वर्षा की बूंद का समुद्र में गिरकर समुद्र ही हो जाना, समिधा का अग्नि में प्रवेश कर अग्नि हो जाना, स्वयं का शिव में समाकर शिव ही हो जाना अनुभूत करती हूँ। कुछ क्षण बिना कुछ सोचे ध्यानस्थ होती हूँ इतनी ध्यामस्थ की कुछ सुनाई दिखाई व अनुभुत व कल्पना सब बन्द हो जाता है।

पुनः शिव से बाहर ज्योति आती है, शिव आज्ञा से पुनः शिव के साथ गुरुग्राम वापस आती हूँ। मुझे स्वयं से निकालकर शिव मेरे शरीर में प्रवेश करा देते हैं। शिव गुरुदेब की तस्वीर में समा जाते हैं।

पुनः मैं धीरे धीरे सामान्य होती हूँ, हाथों को गायत्री मंत्र पढंकर रगड़ कर पूरे चेहरे पर घुमा कर शांति पाठ करके उठ जाती हूँ।

इस ध्यान के बाद मुझे मेरे घर के सभी सदस्य व संसार के सदस्य एक आत्मा दिखती व अनुभूत होती हैं, जो अपनी अपनी यात्रा में हैं। फिर कोई राग द्वेष मोह इत्यादि की जकड़ महसूस नहीं होती। मन शांत व स्थिर होता है। बड़ा अच्छा महसूस होता है।

कल्पना से धारणा और धारणा से स्वतः ध्यान घटना कुछ ऐसा होता है मानो दूध में दही का जामन डालकर छोड़ देना। कल्पना युक्त धारणा एक जामन का कार्य करती है। ध्यान के घटित होने में मदद करती है।

जहां ध्यान जाएगा उसी ओर ऊर्जा प्रवाहित होगी। उसी क्षेत्र की अनुभूति बढ़ेगी।

आपकी बहन
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Saturday 4 April 2020

प्रश्न - *रविवार 5 अप्रैल को रात 9 बजे 9 मिनट के पीछे आध्यात्मिक रहस्य क्या है? घर की समस्त लाईट बन्द कर दीपक की ऊर्जा में 9 मिनट गुजारने का रहस्य क्या है?*

प्रश्न - *रविवार 5 अप्रैल को रात 9 बजे 9 मिनट के पीछे आध्यात्मिक रहस्य क्या है? घर की समस्त लाईट बन्द कर दीपक की ऊर्जा में 9 मिनट गुजारने का रहस्य क्या है?*

उत्तर- आचार्य मनीषी बेकन ने कहा कि संसार सार में मनुष्य अद्भुत प्राणी है और उससे भी अनूठा है उसका मस्तिष्क-ज्योतिष ग्रह सभी कुछ क्रम, संतुलन नियम एवं लयबद्ध कार्य कलाप से संचालित होते हैं। फलदायक गणना का क्रम भी निश्चित सिद्धांत और गुणा से अपना कार्य करता है। अंक शास्त्री भी अपना कार्य करता है। अंक शास्त्री भी अपना कार्य कुछ नियम से ही करता है नौ के अंक के स्वामी मंगल है। संसार सागर वसुंधरा पृथ्वी का पर्यायवाची है।

मोदी जी आध्यात्मिक ज्ञान रखते हैं, हिमालय में ऋषियों की शरण मे वह रह चुके हैं व ज्योतिष से भी परिचित हैं। साथ ही मानसोपचार और आध्यात्मिक उपचार में आध्यात्मिक प्रयोग कैसे करें व समूह की शक्तियों को कैसे नियोजित करें। अतः इस हेतु रविवार में प्रदोषकाल का चयन किया है व अंक ज्योतिष के अनुसार 9 बजे से 9 मिनट तक वक़्त राष्ट्र के आध्यात्मिक उपचार और भारत को सुरक्षा चक्र प्रदान करने हेतु निर्धारित किया है। पूरे देश को एकता व अखंडता के सूत्र बांधना है।

चराचर पृथ्वी मां पर आधार लेकर अपनी गति निर्धारित करते हैं। शब्द ही ब्रह्मा है प्रत्येक शब्द या अंक अपना-अपना प्रभाव डालते हैं। नौ का अंक चमत्कार का अंक माना जाता है यह पूर्णांक है वेदांक भी है यथा 9, 18, 27, 36, 54, 63, 72, 81, 90 आदि। मुख्य ग्रह नौ होते हैं शुभ नवरात्रि, संपूर्ण मंत्र वाममार्गीय दक्षिण पंथी 108 के अंकों को आधार मानकर अपना कार्य करते हैं तथा साधना आराधना भी करते हैं।
महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला 18 अक्षौहिणी सेना को संचालित करते रहे। गीता 18 अध्याय पर आधारित है। राम-रावण युद्ध 9 दिन तक चला। ¬ - अ - म के क्रमशः 3x3=9 ऋचा है शब्द ब्रह्म को संगीतवद्ध करता है भारतीय संस्कृति नौ के अंक की अत्यंत शुभ मानती है। महात्मा तुलसीदास जी ने भी राम शलाका का निर्माण नौ अंकों के आधार पर ही किया। श्रीराम ने परशुराम जी को कहा देव एक गुण धनुष हमारे नवगुण पर परम पुनीत तुम्हारे। सीता राम स्वयं बीजाक्षर है यथा सं. 32, ई=4, व= 6, आ=2, योग= 54 इसी प्रकार के र=27 आ=2 म=25=योग 54=9 कुल 108=9, आदि संदर्भ भारतीय वर्ण क्रम आगे--आंग्ल--क्रम। तुलसी अपने राम को रीझ भजे या खीज-- विवाह के समय श्री राम जी की उम्र = 27 = 9 थी जबकि सीता जी भी 18 = 9 वर्ष की राधे श्याम राधे कृष्ण का मूलांक = 9 है। महिलाओं की पुरानी अंतर्राष्ट्रीय संस्था है।

जानिए आपकी कुंडली पर ग्रहों के गोचर की स्तिथि और उनका प्रभाव, अभी फ्यूचर पॉइंट के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्यो से परामर्श करें।

उसका नाम = 99 है। दुर्गण को त्यागने हेतु गांधी जी ने 9 को आधार माना और कहा कि 9, 8, 7, 6, 5, 4, 3, 2, 1 के क्रमशः से ही दुर्गण को कीजिजए सफलता मिलेगी। मनुष्य भी 14 जन्म जात प्रवृत्ति से संचलित है। 9 प्रवृत्तियां मानसिकता (भौतिक) प्रधान होती है। ज्योतिष शास्त्र में 9 वां स्थान बड़ा महत्वपूर्ण माना जाता है। ज्योतिष सीखने के लिए नौ का पहाड़ा बड़ा महत्वपूर्ण माना जता है। 1$8=9 मेष$वृश्चिक 2$7 वृषभ-तुला 3$6=मिथुन-कन्या, पुरुष प्रधान राशि स्वामी सूर्य=5 एवं कन्या प्रधान राशि चंद्र=4= 9 योन 12 राशियों के मूल आधार सर्यू चंद्र = पुरुष-कन्या आदि, मार्गी अतिचारी वक्री प्रणाली से शनि गुरु महत्व-पूर्ण योग प्रदान करते हैं
धनु-मीन (गुरु) 9$12=3, 3ग्3=9 मकर-कुंभ 10$11=21 =3ग्3=9 मंगल का तो 9 से प्रभाव रहता है। छाया मंदी ग्रहों राहू महादशा भी 18 वर्ष की है वह भी 9 से प्रभावित है। तारा द्वारा भविष्य भी नौ पर आधारित है। माया-एक्का=11 बेगम=12 बादशा=13 कुल अंक 36 = 9, 1 से लेकर 9 अंक भी अपना योग 45 = 9 रखते हैं। दहला 10 = का अंक ईश्वर परक हैं। जगन्नाथपुरी की पूजा अर्चना प्रक्रिया क्रिया नौ दिनों तक चलती है।

कहा जाता है कि श्री राम की भौतिक आयु 306 वर्ष पूर्ण करके पूरी हुई इसी प्रकार योगीराज कृष्ण की आयु भी 207 वर्ष संत तुलसी जी की भी भौतिक आयु=126 वर्ष यानि नौ से पूर्ण होकर पूरी हुई । 27 नक्षत्र के बिना हमारा कोई काम पूरा नहीं होता जबकि विवाह राशि मिलाप में भी 36 का अंक अपना महत्वपूर्ण योगदान देता है।

🙏🏻 अध्यात्म में 9 अंक की महत्ता को जानते समझते हुए 9 ग्रहों की शांति हेतु अभिनव प्रयोग में योगदान दीजिये। 5 अप्रैल 2020 को 9 बजे से 9 मिनट तक दीपक से सकारात्मक ऊर्जा व शुभता का संचरण कीजये।🙏🏻

🙏🏻श्वेता, DIYA

Wednesday 1 April 2020

शांति, सुकून व आत्मतृप्ति पाने का मार्ग

*शांति, सुकून व आत्मतृप्ति पाने का मार्ग*

अनुभव की कलम से📝

पढ़ने में रुचि हमारी बचपन से थी, रोजी रोटी हेतु जॉब प्राथमिकता में होने के कारण वर्ष 2004 तक  इंजीनियरिंग पढ़ते रहे। ग्रेजुएशन व पोस्ट ग्रेजुएशन तक समाजशास्त्र और मनोविज्ञान पढ़ने का भी अवसर मिला क्योंकि यह मेरे पाठ्यक्रम का ही हिस्सा था।

परम् पूज्य गुरुदेव युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी का लिखा साहित्य बचपन से मुझे विरासत में मिला था। नित्य स्वाध्याय में था। जॉब मिलने के बाद युगऋषि का साहित्य का स्वाध्याय मेरी प्राथमिकता बन गयी। घर बनने के बाद प्रथम कार्य गुरुदेव के लिखे समस्त साहित्य की एक एक प्रति खरीदकर लाइब्रेरी बना ली।

सभी जगह लोगों को डिप्रेशन व अशांति में देखती थी, सोचा जो पढ़ नहीं पा रहे है साहित्य, उन तक युगऋषि का ज्ञान अमृत व उन पुस्तको के पॉइंट्स पहुंचा दूँ, कि अमुक समस्या का समाधान अमुक पुस्तक में मिलेगा। डॉक्टर तो गुरुदेब हैं कम्पाउंडर की जॉब कर लेती हूँ, उनके साहित्य के समाधान जन जन तक पहुँचा देती हूँ। कहते हैं दूसरों को मेहंदी लगाते हैं तो ख़ुद के हाथ में भी मेहंदी लगती है। दुसरो की सेवा करते हैं तो स्वतः की आत्म सेवा भी हो जाती है।

मुझे सांसारिक सुख का मार्ग तो नहीं मिला, लेकिन मुझे *शांति व आत्मतृप्ति पाने का मार्ग* मिल गया। पिछले 7 साल से व्यक्तिगत व पारिवारिक समस्याओं की निःशुल्क सलाहकार कब बन गयी पता ही नहीं चला। हज़ारों लोगों से जान पहचान बन गयी पता ही नहीं चला।

जब युगऋषि के दिखाए मार्ग में निःश्वार्थ बिना कुछ पाने की चाह में सेवा में निकले तो ऐसी अच्छी आत्माओं का सहयोग मिलने लगा कि हम हतप्रभ रह गए। परमात्मा किन किन रूपों में मदद करने लगा हमें पता ही नहीं चला, सब काम बनते चले गए।

गुरुग्राम सरकारी लाइब्रेरी का प्रोजेक्ट एक बिटिया लेकर आयी, पता नहीं था कि लाखों खर्च होने वाले इस प्रोजेक्ट को कैसे करेंगे? सिर्फ़ परमात्मा से प्रार्थना की और सबको रिकवेस्ट पोस्ट की, एक महीने के अंदर ढाई लाख का प्रोजेक्ट ढेर सारी दिल्ली एनसीआर में मानव शरीर बसने वाली देवताओं की मदद से पूरा हो गया।

ऐसे अनेक सेवा व साहित्य विस्तार के कार्य हैं, जो परमात्मा के अंग अवयवों की मदद से पूरे होते गए। लेकिन अभी वर्तमान कोरोना आपदा के वक्त की समस्या का जिक्र करना चाहती हूँ। लाकडाउन हुआ तो सोमवार को मन बैचेन हुआ कि भगवान हम क्या और कैसे करें? सबकी मदद तो नहीं कर सकते लेकिन कुछ की तो कर सकते हैं। कठिन प्रश्न यह था कि रियल में सही जरूरतमंद की लिस्ट जानना और उन तक आवश्यक मदद पहुंचाना। आर्त स्वर में प्रार्थना की, परमात्मा ने तुरन्त पुकार सुन ली। उन अच्छी आत्माओं के नाम उभरे जो झुग्गी झोपड़ी में बाल सँस्कार शाला चलाते हैं और उन्हें फोन किया। जैसे वो पहले से ही तैयार बैठे हों जनसेवा के लिए ऐसा प्रतीत हुआ। एक दिन में लिस्ट बन गयी। आश्चर्यजनक बात तो तब और हुई कि जितना खर्च था उतना डोनेशन देने को मदद करने वाली अच्छी देवात्माओं ने स्वयं मुझसे संपर्क किया। तीन दिन के अंदर 246 जरूरतमंद लोगों के घरों में लाकडाउन के दूसरे दिन ही मदद पहुँच गयी। तीन दिन के अंदर सब कार्य हो गया, मुझे पता भी नहीं चला कि कैसे इतनी जल्दी सब हो गया?

*निःश्वार्थ सेवा ही वह मार्ग है*, जिससे *शांति, सुकून व आत्मतृप्ति* सहज पायी जा सकती है। परिवार की हो या ऑफिस में हो या गली मोहल्ले में हो या कोई भी समाज हो। सर्वत्र यदि सेवाभाव से कार्य किया जाय तो शांति, सुकून व आत्मतृप्ति मिलती है।

कुछ भाई बहन मुझे सलाह देते हैं कि मुझे व्यक्तितगत व परिवार सलाहकार का कार्य अपने प्रोफेशन की तरह करना चाहिए। क्योंकि नियमित इसमें दो से ढाई घण्टे ख़र्च होते हैं, पर मैं उन्हें समझा नहीं पाती कि जब निःश्वार्थ निःशुल्क ईश्वरीय सेवा के रूप में सलाहकार का कार्य करते हैं, जब सामने वाले की समस्या हल हो जाती है, और वह मुझे हृदय से तृप्त हो कर धन्यवाद देता है। तो उसकी प्रशन्नता व तृप्ति वस्तुतः मुझे महसूस होती है। मेरे भीतर जो आनन्द महसूस होता है, जो शान्ति, तृप्ति, सुकून व आत्मतृप्ति मिलती है। वह अवर्णीय है। यह गूँगे द्वारा खाये गुड़ तरह है, जिसका स्वाद तो लिया जा सकता है मगर शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता।

दुनियां इतने सारे अच्छे लोगों से भरी है, यह मुझे सेवा कार्य करने के दौरान पता चल रहा है। इतने अच्छे लोग हैं जो स्वतः फोन करके मदद करते हैं और जब उन्हें धन्यवाद दो तो वह धन्यवाद व आभार लेना भी पसन्द नहीं करते। कहते हैं कोई ऐसा अच्छा कार्य हो तो बताना।

धरती पर ही स्वर्ग है, देवता जैसे लोग धरती पर उपलब्ध हैं, यह मैं पूरे विश्वास और अनुभव के साथ तथ्य तर्क व प्रमाण देकर कह सकती हूँ। मुझे ऐसे नर रूप के देवी देवता तुल्य भाई बहनों का अनवरत सहयोग मिलता है। मेरे ऑफिस में बहुत ही अच्छे लोग मेरे सहकर्मी है, मेरे परिवारजन इतने अच्छे हैं,  हम जहाँ अभी नई जगह शिफ्ट हुए हैं वहाँ भी दो देवतुल्य बहने मिल गयी हैं, मेरे तो आसपास स्वर्ग जैसी सृष्टि हो गयी है, मै गदगद हृदय से प्रशन्न मन से भगवान का धन्यवाद देती हूँ। मेरे जीवन को धन्य करने के लिए प्रभु धन्यवाद। मेरे प्रभु ने कलियुग में भी सतयुग की सृष्टि मेरे आसपास कर दी है। बाहर की तप्त परिस्थितियों में भी मन मे शीतल झरने की व्यवस्था कर दी है।

युगऋषि की पुस्तक *भाव सम्वेदना की गंगोत्री* में बताए सूत्रों को अपनाकर और जीकर आनन्द आ गया है। शांति, सुकून व आत्मतृप्ति का जो मार्ग इस पुस्तक में गुरुबर ने बताया था उसे अपनाकर सचमुच हम धन्य हो गए हैं। इस पुस्तक को कई बार पढ़े, इसके एक एक सूत्र को समझकर अपना लें। आपको भी शांति, सुकून व आत्मतृप्ति मिल जायेगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...