Sunday 30 January 2022

बाल निर्माण की कहानियां -अपनी बाल्टी में क्या भरोगे?अपने मन मे क्या भरोगे?

 बाल निर्माण की कहानियां -अपनी बाल्टी में क्या भरोगे?अपने मन मे क्या भरोगे?


पड़ोस में रहने वाले प्रायमरी क्लास के बच्चे आपस में लड़ते व न जाने कैसे कहाँ से सीखे अपशब्द बोलते। दोनो की मम्मी परेशान थीं कि आख़िर इन्हें कैसे सुधारें। एक बार बच्चे के जन्मदिन पर जन्मदिन संस्कार का आयोजन श्वेता जी ने अपने घर पर करवाया, जहां पर आस पड़ोस के सभी बच्चों को बुलाया।


सभी बच्चों को छोटी छोटी बाल्टी दी गयी और एक एक्टिविटी करवाई गई। एक तरफ सुंदर आकर्षक हरे पत्ते व फूल रखे थे और दूसरी तरफ  कुछ सड़े सूखे पत्तों के कचरे रखे गए थे। पूंछा गया यह बताओ आप अपनी बाल्टी में क्या भरना चाहोगे?


सब बच्चों ने उंगली दिखाया और कहा कि हरे व सुंदर पत्ते व फूल भरना चाहेंगे। कचरे को भरने को कोई रेडी नहीं हुआ।


तब सविता जी ने कहा जब बच्चों आप अपनी बाल्टी में अच्छी चीजें भरना चाहते हो तो फ़िर बताओ अपने मन में गंदी आदतों और शब्दों का कचरा क्यों भरते हो? 


जिस बाल्टी में कचरा हो उसे कोई पसन्द नहीं करता, वैसे जिस बच्चे के अंदर गंदी आदतों को कचरा होगा बताओ भला उस बच्चे को कौन पसन्द करेगा?


अच्छी भली यह दो नई बाल्टी है, यदि एक में कचरा भरा व एक में फूल भरे। तो इन बाल्टी की पहचान बदल जाएगी जो इसमें भरा है वह इसकी पहचान बन जाएगी, एक को कहा जायेगा 'कचरे की बाल्टी' व दूसरे को कहा जायेगा 'फूलों की बाल्टी', ऐसे ही अच्छी आदतों, शुभ संस्कारों व शुभ विचारों के बच्चे को 'अच्छा बच्चा-Good boy/Good girl' बोला जाएगा, व बुरी आदतों, कुसंस्कारों व कुविचारों बच्चे को 'बुरा बच्चा-bad boy/bad girl' बोला जाएगा। 


अतः अब आप सब निर्णय लो कि आपको अपनी क्या पहचान बनानी है? जो बनना है बस वह ही मन में, आदतों में व संस्कारो में होना चाहिए।


बच्चे समझ गए, जन्मदिवस संस्कार में दीपयज्ञ के बाद दक्षिणा में बच्चे व उनके माता पिता ने यह बुराई छोड़ी कि घर में व आसपास कहीं भी कभी भी गाली व अपशब्दों का प्रयोग नहीं करेंगे।


💐श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Sunday 23 January 2022

लड़की की कमाई खाओगे? जो लड़की को पढा रहे हो?

 लड़की की कमाई खाओगे? जो लड़की को पढा रहे हो?


एक परिवार का छोटा लड़का जो अपनी तीन बहनों के विवाह में अपने पिता को कर्ज़ उठाते देखता है, इतने दान दहेज़ से शादी के बाद भी अपनी बहन को नित्य ससुराल में अपमानित होते देखता है। उसे बहुत कष्ट होता है, वह सङ्कल्प लेता है कि वह अपनी पत्नी को यह कष्ट नहीं देगा। साथ ही जब उसकी पुत्री होगी तो वह उसे इस योग्य बनाएगा कि वह समर्थ लक्ष्मीबाई की तरह बने।


समय चक्र बीतता है, उसके विवाह का समय आता है व माता पिता उसके विवाह के लिए दहेज माँगने की बात करते हैं तो वह मना कर देता है। वह कहता है पिताजी आप व हमारी बहने जिस दहेज कुप्रथा का शिकार होकर कष्ट पा रहे हो, अब वही कष्ट व पीड़ा दूसरे परिवार को देना चाहते हैं? क्यों? पिता ने कहा जो कर्ज लिया है वह कैसे चुकेगा? लड़के ने कहा वह मैं कमाकर चुकाऊंगा। जो अपमान आपकी बेटी झेल रही हैं क्या वही आप अपनी बहू को देना चाहते हैं? हम इंसान तब ही दर्द समझते हैं जब घर अपना जलता हो, दूसरे के जलते घर का तो हम तमाशा देखते हैं।


पिताजी हमारे गुरुदेव कहते हैं कि हम सुधरेंगे तब युग सुधरेगा। यदि परिवर्तन चाहते हैं तो परिवर्तन का हमें हिस्सा बनना होगा।


बिन दहेज़ के आदर्श विवाह ग़ायत्री शक्तिपीठ में हुआ। दहेज के लोभी जीजाजी व रिश्तेदार लोग इससे नाराज़ हुए लेक़िन उसकी बहनों ने भाई का साथ दिया।


समय चक्र बिता वह लड़का पिता बना, परिवार ने उस पर  दो बेटियों के बाद तीसरी सन्तान पैदा करने की ज़िद की, उसने इन्कार कर दिया। वह बेटियों को पढ़ाने लगा, तो नाते रिश्तेदार ताना देते व कहते - बेटियों को पढा रहा है तो क्या बेटियों की कमाई खायेगा। बिना दहेज तूने तो शादी कर ली, पर तेरी बेटियों का क्या होगा? वह लोगों की परवाह किये बिना दोनो बेटियों को पढ़ाता रहा, साथ ही बेटियों से कहा सही योग्य वर न मिले तो सन्यासियों की तरह कुंवारा रहना अच्छा है, दहेज लोभी व्यक्ति से कभी विवाह मत करना। जो तुम्हारा सम्मान करें उससे विवाह करना। बड़ी बेटी गर्ल्स कॉलेज में प्रोफेशर बनी और छोटी बेटी आई पी एस ऑफिसर बनी। पिता की इच्छा थी कि दहेजमुक्त समाज बने तो इसके लिए उन्होंने जागरूकता फ़ैलानी शुरू किया। युवा लड़के व लड़कियां इस मुहिम में जुटते गए। व कई आदर्श विवाह उन बेटियों ने करवाये। आये दिन उनके समाज सेवा की उपलब्धियों की न्यूज पेपर में खबरें छपती और प्रत्येक इंटरव्यू में वह दोनो पिता को इसका श्रेय देती।  माता को भी पिता के साथ साथ श्रेय देती। रिश्ते नातेदार चिढ़ते कुढ़ते मग़र कर भी क्या सकते थे?


दोनो बेटियों ने अपनी मन पसन्द लड़के से आदर्श विवाह ग़ायत्री शक्तिपीठ में किया और एक बार अपनी गाड़ी से वह गाँव आयी। पिता के दहेज लोभी जीजाजी लोगों ने बेटियो को पढ़ाया नहीं व न योग्य बनाया, इसलिए उनके पाप कर्मों की उनकी बेटियों को भुगतनी पड़ी। दहेज देकर विवाह किया फिर भी आये दिन उनकी बेटियों को ससुराल वाले परेशान करते। तब उन्होंने शालिनी जो कि आई पी एस ऑफिसर थी से मदद माँगी, साथ ही पूरे परिवार से क्षमा माँगी। शालिनी की मदद से दहेज उत्पीड़न की समस्या समाप्त हुई।


दहेज की समस्या की जड़ हम सबकी घटिया सोच है, यदि यह समस्या मिटाना है तो इसकी शुरूआत हम सभी को अपने अपने घरों से करनी होगी।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

मरना तो एक न एक दिन सबको है, बस चयन करो कायरता में डरकर मरना है या बहादुरी से लड़कर मरना है?

 मरना तो एक न एक दिन सबको है, बस चयन करो कायरता में डरकर मरना है या बहादुरी से लड़कर मरना है?


मुगलों के आतंक का वक्त था, ग्रामीण स्त्रियों की सुरक्षा हेतु पुरुष पहरा देते थे, स्त्रियों को मुंह ढक कर रखना पड़ता था और आदेश था यदि संकट दिखे तो जौहर कर लेना अर्थात जलकर मरना। क्योंकि मुग़ल मृत स्त्रियों के साथ भी दुराचार करते थे क्योंकि यह उनके धर्म में स्वीकार्य था। जो धर्म ही उन्हें दूसरे धर्म की स्त्रियों को लूटने, बलात्कार करने, हत्या करने और यदि जीवित न मिले तो मृत लाश के साथ सहवास व दुष्कर्म करने की इजाज़त देता हो तो ऐसे विधर्मी लोगों से निपटने का यही उपक्रम उस नगर के स्त्री पुरुषों को दिखा।


उसी ग्राम में एक कन्या का जन्म हुआ, जब वह 14 वर्ष की हुई तो उसे भी यही शिक्षा दी गयी। उसने पिता से पूंछा आप मुझे कायरों की तरह मरने की शिक्षा क्यों दे रहे हैं? जिस तरह भाइयों को हथियार चलाना सिखाया मुझे भी सिखाइए जिससे मैं स्वयं की रक्षा के साथ साथ दूसरों की रक्षा कर सकूं। पिता ने कहा बेटी वो लाशों के साथ दुष्कर्म करते है यदि तू शहीद हुई तो भी तेरी देह को अपवित्र कर देंगे। उसने कहा पिताजी मेरे पास उसका भी उपाय है। मैं विषधर सर्प के ज़हर को अपने पास रखूंगी व मृत्यु की आशंका  या पकड़े जाने के वक्त उसे खाकर ज़हर से नीली हो जाऊंगी, आप सब भी तरकश में विष बुझे यह नन्हे तीर रखें यदि कोई स्त्री सैनिक पर खतरा दिखे तो चला दें, तब कोई मुगल आततायी मुझे और उन जहर से सनी स्त्री स्पर्श करने से भी डरेगा।


फ़िर क्या ग्राम का नियम ही बदल गया, स्त्रियों को पुरुषों के समान सैन्य प्रशिक्षण मिला। अब ग्राम की शक्ति दोगुनी हो गयी। मुगल आतताई के सामने स्त्रियां मुख ढकने की जगह आंख के अंगारों व हाथ लिए हथियारों से उनका अंत करने लगी। शिकार हिरणियों का आसान है शेरनियों के झुंड का नहीं। मुगलों को जब बहुत जानमाल का नुक्सान हुआ तो उन्होंने उस ग्राम को तंग करना छोड़ दिया। उधर कभी न गए।


कायरता की रणनीति से जान बचाने की न सोचें, अपितु बहादुरी से लड़कर जब तक जियें शान से जियें व मरकर शहीद होने की रणनीति बनाएं।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

संगठन में ही शक्ति है, यह संगठित बल ही दुर्गा शक्ति है।

 संगठन में ही शक्ति है, यह संगठित बल ही दुर्गा शक्ति है।


एक समय की बात है कि एक जगह केकड़ो का भरा पूरा समूह रहता था। एक बगुले जब उस स्थान की जानकारी हुई तो वह बहुत खुश हुआ। वह बगुला वहां जाता और उसे देख जान बचाने लिए केकड़े इधर उधर भागते। भागते भयभीत केकड़ो में से कई को पकड़कर वह खा जाता था, केकड़े समूह को बहुत जानमाल की हानि हो रही थी।


केकड़े समूह की मीटिंग हुई व कहा यदि संगठित हो तो हम बगुले को हरा सकते हैं। वो सब सहमत हुए व रणनीति बनाई कि बगुले से डरकर भागने की जगह हम सब एकजुट होकर उस पर हमला करेंगे व उसके पंखों को नष्ट करेंगे। इस युद्ध में जो केकड़े शहीद होंगे उन्हें सम्मान दिया जाएगा व उसके परिवार जन को सब मिलकर सम्हालेंगे। बगुला जैसे आया वैसे ही जान हथेली पर लेकर केकड़े उस पर हमला कर दिए। इस आकस्मिक हमले को बगुला झेल न सका और उसके पँखो को केकड़ो द्वारा काट दिए जाने पर उड़ भी न सका। उस अधमरे बगुले को सारे केकड़े अपने समूह में लाये और उसे मारकर खा गए।


डर के आगे जीत है, संगठित प्रयास से बड़ी से बड़ी समस्या हल हो सकती है। यदि सब संगठित हो जाओ तो नशे के राक्षस ड्रग्स माफ़िया को भारत से समाप्त कर भारतीय युवाओं को तबाह होने से बचा सकते हो।


🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

मन को साधना कठिन है, किंतु असम्भव नहीं।

 *मन को साधना कठिन है, किंतु असम्भव नहीं।*


मन बुद्धू है,

मक्खी की तरह रस लेता है, 

गंदगी भी रस देती है,

गुड़ भी रस देता है।


मन को बिना रस नहीं रख सकते,

इसलिए तो,

संत भक्ति में रस लेते हैं,

चोर चोरी में रस लेते हैं,

पुरुषार्थी पुरुषार्थ में रस लेते हैं,

आलसी आलस्य में रस लेते हैं।


मन जिस पर रस लेता है,

जीवन उस ओर गति करता है,

इसलिए रस लेने से पूर्व,

विवेक की कसौटी पर उसे कसो,

मन पर विवेक बुद्धि से लगाम कसो..


आसक्त मन को,

विवेक की सँगति में रखो,

मन को सही ग़लत का निरंतर अभ्यास करवाओ,

चालीस दिन मन को चालीसा सुनाओ,

बलपूर्वक उसे सही राह पर लाओ...


चित्त में जमी वासना की गंदगी सफ़ाई करो,

किसी नए शुभ सङ्कल्प की चित्त में स्थापना करो,

बुद्धि रूपी द्वारपाल से मन पर निगरानी रखो,

मन को बार बार नए संकल्पों से बांधो,

निरंतर ज्ञान-वैराग्य के अभ्यास से,

मन एक दिन सुधर जाएगा,

शुभ सङ्कल्प से वह निखर जाएगा।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

कविता - मेरे सपनों का भारत

 *मेरे सपनों का भारत*


मेरे दिल में बसा है,

मेरे सपनों का भारत,

वह सोने की चिड़िया,

वह विश्वगुरु मेरा भारत।


जहां युगानुकूल गुरुकुल परंपरा हो,

जहाँ विज्ञान व अध्यात्म का समन्वय हो,

जहां गुरु चाणक्य सा हो,

और शिष्य चंद्रगुप्त सा हो,

ऐसा है मेरे सपनों का भारत।


प्रदूषण मुक्त वातावरण हो,

बिना मिलावट का अन्न व औषधि हो,

पीने को शुद्ध जल हो,

श्वसन के लिए शुद्ध हवा हो,

ऐसा है मेरे सपनों का भारत।


प्रत्येक नागरिक में राष्ट्रचरित्र हो,

गौ, गंगा, गीता व ग़ायत्री का सम्बल हो,

सेवा भावी पुरुषार्थी हर युवा हो,

कर्मयोगी उपयोगी हर युवा हो,

ऐसा है मेरे सपनों का भारत।


स्त्री- पुरुष में अधिकारों की समानता हो,

स्त्री- पुरुष एक दूसरे के पूरक हो,

प्रत्येक व्यक्ति में उत्तम चरित्र हो,

प्रत्येक परिवार में प्यार-सहकार व संस्कार हो,

ऐसा है मेरे सपनों का भारत।


आधुनिकीकरण की अंधी दौड़ न हो,

प्रकृति संरक्षण व संवर्धन सबके लिए जरूरी हो,

दो सन्तान का सब पर कानून लागू हो,

कानून व संविधान सबके लिए समान हो,

ऐसा है मेरे सपनों का भारत।


सामाजिक समरसता हो,

अस्पृश्यता का नामो निशान ना हो,

आर्थिक असमानता का,

समाज मे स्थान ना हो

ऐसा हो मेरा सपनो का भारत।


🙏🏻श्वेता, DIYA

Sunday 16 January 2022

प्रश्न - *यज्ञ में देशी गाय के घी की आहुति देना सर्वोत्तम है। लेकिन आधुनिक समय में देशी गाय का घी अधिकतम मात्रा में बड़े यज्ञ कार्यक्रम के लिए जुटाना दुष्कर कार्य है। क्या बाज़ार में मिलने वाला पैकेट का घी हम यज्ञ हेतु उपयोग ले सकते हैं?*

 प्रश्न - *यज्ञ में देशी गाय के घी की आहुति देना सर्वोत्तम है। लेकिन आधुनिक समय में देशी गाय का घी अधिकतम मात्रा में बड़े यज्ञ कार्यक्रम के लिए जुटाना दुष्कर कार्य है। क्या बाज़ार में मिलने वाला पैकेट का घी हम यज्ञ हेतु उपयोग ले सकते हैं?*


उत्तर - धर्म ग्रंथ के अनुसार 'देशी गाय', 'स्वर्ण' और 'जौ' ब्रह्मा जी की सृष्टि है। जो सर्वोत्तम है। 'भैंस', 'चांदी' व 'गेंहू' 'ब्रह्मर्षि विश्वामित्र' जी की सृष्टि है। 


अतः पूजन व भोजन में देशी गाय का दूध व घी, पूजन व भोजन में जौ ही सर्वोत्तम है। शरीर में आभूषण हेतु स्वर्ण सर्वोत्तम है।


द्वितीय श्रेणी में इनके अभाव में पूजन व भोजन में भैंस का घी और पूजन व भोजन में गेंहू उपयोग में लिया जाता है। आभूषण हेतु चांदी का प्रयोग किया जाता है। इनकी श्रेणी द्वितीय है, अतः इनका फर्स्ट श्रेणी से तुलना न की जाय। इनके लाभ द्वितीय श्रेणी के मिलेंगे। ज़रूरत समस्त पूरी होगी।

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देशी गाय पूजनीय है उसमें 33 कोटि देवताओं का वास है, व A2 क्वालिटी के देशी गाय का घी से यज्ञ रोगनाशक है, पुष्टिकारक है व वातावरण को शुद्ध करता है। यह ब्रह्म सत्य है।


देशी गाय के दूध में अत्यंत कम फैट होता है, अतः 20 से 25 लीटर दूध में एक किलो घी निकलता है। इसलिए देशी गाय के बिलौने वाले घी की कीमत 1500 रुपये प्रति किलो है।


देशी गौ संवर्धन व संरक्षण का अपने क्षेत्र में प्रयास करें, जिससे देशी गाय के घी की आपूर्ति सर्वत्र पूजन व यज्ञ हेतु हो सके। स्वर्ण की कीमत चांदी से अधिक होगी है, अतः देशी गाय का घी महंगा होना स्वभाविक है।

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मार्किट में पूजा के घी के नाम पर सस्ता 150 रुपये में मिलने वाला घी नकली होता है जो कि मृत पशुओं की चर्बी को गलाकर निकाला जाता है, जो हिन्दू धर्म विरोधी विधर्मियों द्वारा तैयार किया जाता है। इसे पूजा में उपयोग कर आप धर्म की हानि करते हैं, व यज्ञ विध्वंस निज हाथों से ही करते हैं।


अतः यदि घी बाजार से लेना है तो सही जगह व सही ब्रांड का ही लें, हिन्दू धर्म को मानने वाले जो गाय का घी बेचते हैं वह वस्तुतः मिल्क क्रीम से बना होता है। जो सेफ है।


यह अलग बात है कि कुछ ब्रांड में  जर्सी गाय व भैंस के मिल्क क्रीम की मिलावट हो सकती है, साथ ही वनस्पति तेल की मिलावट भी हो सकती है। मग़र यह 100% श्योर है कि उसमें चर्बी नहीं है। इस घी के यज्ञ व पूजन से न धर्म भ्रष्ट होता है और न ही यज्ञ में हानि होती है। यह घी पूजन व यज्ञ में प्रयोग किया जा सकता है।


देशी गाय का घी सर्वोत्तम है, लेक़िन आज के समय मे देशी गाय का घी अधिक मात्रा में बड़े यज्ञ के लिए मिलना कठिन है अतः सही ब्रांड का बाज़ार में उपलब्ध विश्वनीय घी पूजन व यज्ञ हेतु ले सकते हैं।


जौ की रोटी सर्वोत्तम गुणों युक्त है लेकिन गेंहू की रोटी भी खाकर पेट भरा जाता है। इसी तरह देशी गाय का घी सर्वोत्तम है, मग़र उसके अभाव में बाजार में अच्छे ब्रांड का उपलब्ध गाय का घी या भैंस का घी यज्ञ में उपयोग में लिया जा सकता है। 100% लाभ देशी गाय के घी जितना नहीं मिलेगा, मग़र 60 से 70% इस घी से भी  लाभ मिल जाता है। स्वर्ण का लाभ है तो चांदी का भी अपना लाभ है। 

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यज्ञ में समिधा, घी व आहुति के समिश्रण से मन्त्र शक्ति व स्वाहा के विस्फोट से ऊर्जा वलय का निर्माण होता है। यह इतनी सूक्ष्म होती है कि ऊपर आकाश तक व मनुष्य के डीएनए तक भी पहुंचती है। जैसे मन्त्र व भावनाएं होंगी वैसी ही ऊर्जा का निर्माण होगा व तद्नुसार लाभ भी होगा।


घी की चिकनाई हविष्य की बाइंडिंग करती है जो कि मन्त्र शब्द प्रवाह हवा व तरंग के माध्यम से उसे दूर तक ले जाने में सक्षम होते हैं। इनका गुण संयोजन से लाभ मिलता है।


वहम किसी भी चीज में न पालें, अपितु विवेक से काम लें। जीवन में दैवीय अनुकम्पा प्राप्ति के लिए, प्रकृति संरक्षण व संवर्धन हेतु यज्ञीय परंपरा के ज्ञान विज्ञान को समझें। यज्ञ को जीवन का अभिन्न अंग बनाये। दैनिक यज्ञ के साथ साथ सामूहिक यज्ञ भी करें।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Saturday 15 January 2022

सुखी रहने का फार्मूला

 सुखी रहने का फार्मूला


सुखी रहने का फार्मूला,

मैंने पूँछा चहकती चिड़िया से...

वह बोली मेरे पास जो है,

उससे मैं खुश हूँ,

मेरी ख़ुशी,

दूसरों की दी प्रशंशा पर निर्भर नहीं करती,

मुझे दुःख किसी दूसरे की दी गाली नहीं देती,

मुझे न कुछ खरीदना है,

न कुछ बेचना है,

मुझे कोई झूठा दिखावा भी नहीं करना है,

मुझे खुद से ऊंचा उड़ने वालो से कोई ईर्ष्या नहीं,

मुझे ख़ुद से कम ऊंचाई में उड़ने वालों को,

चिढ़ाना भी नहीं,

मेरी खुशी का रिमोट किसी के पास नहीं,

मेरी ख़ुशी बस मुझपे निर्भर है...


घोंसला आंधी गिरा दे,

तो मैं रोती नहीं,

फिर से घोंसला बनाने में जुटती हूँ,

भोजन की तलाश में नित्य निकलती हूँ,

जो भी मिल जाये बस उसी में संतुष्ट रहती हूँ,

हम पेट भरते है, मन नहीं..

हम जीने के लिए खाते है, खाने के लिए जीते नहीं..

जो जैसा है उसे वैसा स्वीकार करती हूँ,

इसलिए मैं सदा ख़ुश रहती हूँ...

☺️☺️☺️


तुम इंसानों के दुःख का कारण,

तुम्हारा बढ़ा हुआ अहम है,

तुम पेट नहीं भरते अपितु मन भरने की कोशिश करते हो,

मन भी भला कभी भरा है? इसलिए तुम निराश रहते हो..


जो जैसा है उसे स्वीकारने में तुम्हे कठिनाई है,

सबकुछ नियंत्रण में लेने की तुमने ठानी है,

प्रत्येक रिश्ता अपने मन मुताबिक चाहते हो,

प्रत्येक रिश्ते में रिमोट कंट्रोल ढूंढते हो,

इसलिए सदा निराश रहते हो...


खुद से अधिक कमाने वाले से ईर्ष्या करते हो,

खुद से कम कमाने वाले को शो ऑफ कर चिढ़ाते हो,

अपने लिए तो कभी जीते ही नहीं,

दुसरो को दिखाने व स्टेटस मेंटेन करने हेतु जीते हो,

इसलिए सदा निराश रहते हो..


तुम्हारे मन का कंट्रोल तो,

दुसरो के हाथ मे है,

दुसरो द्वारा की निंदा या स्तुति से,

तुम प्रभावित हो,

निज प्रशंशा सुन फूल कर कुप्पा बनते हो,

निंदा सुनकर निराशा के गर्त में गिरते हो,

तभी तो सदा निराश रहते हो..


जो पास है उसकी कद्र नहीं करते,

जो नहीं है उसका रोना रोते हो,

दुसरो इतनी ज्यादा उम्मीद बांधते हो कि,

ख़ुद उन उम्मीदों में उलझकर रह जाते हो,

इसलिए तुम सदा निराश रहते हो...


जिस दिन स्वयं को इस विराट अस्तित्व का,

एक नन्हा सा कण स्वीकार करोगे,

अहंकार का मुखौटा उतार फेंकोगे,

निंदा स्तुति से प्रभावित न होंगे,

दूसरों से उम्मीद न बाँधोगे,

जो जैसा है उसे वैसा स्विकारोगे,

बस स्वयं को ही सुधारोगे,

स्वयं के मन पर नियंत्रण करोगे,

तब तुमभी मेरी तरह आनन्दमग्न हो चहकोगे,

सदा आत्म भाव में विचरोगे,

सदा सर्वदा ख़ुश रहोगे।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - 1- गायत्री मंत्र कितने प्रकार के होते हैं? 2- जो गायत्री मंत्र प्रचलन में है वो किस देवता का हैं? किसको समर्पित है व किस देव का ग़ायत्री मन्त्र कहा जायेगा?

 प्रश्न - 1-  गायत्री मंत्र कितने प्रकार के होते हैं?

 2- जो गायत्री मंत्र प्रचलन में है वो किस देवता का हैं? किसको समर्पित है व किस देव का ग़ायत्री मन्त्र कहा जायेगा?


उत्तर - गायत्री मूल मंत्र जिसे विश्वामित्र जी ने जागृत किया व जनसामान्य के लिए उपलब्ध करवाया वह निराकार ब्रह्म शक्ति को समर्पित है।


वह मूल 24 अक्षर का मन्त्र था - "तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।"


ऋषियों की ब्रह्म संसद ने मन्त्र में तीन व्याहृतियाँ जोड़ी - "ॐ भूर्भुवः स्व:"


👉🏼 *गायत्री मंत्र* - *ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।*


भावार्थ:- उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।


*यह सार्वभौम मन्त्र है, इसे किसी भी ईष्ट की शक्ति का दोहन करके स्वयं में धारण किया जा सकता है। वह शक्ति स्वयं में जागृत किया जा सकता है। यह निराकार ब्रह्म शक्ति को समर्पित है।*

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बाद में ऋषियों की संसद ने इस निराकार मन्त्र को किसी विशेष देवता से संयुक्त कर साकार मन्त्र बनाने हेतु विधि व्यवस्था दी - मन्त्र का फॉर्मूला दिया।



👉🏻 *निराकार ग़ायत्री मन्त्र को किसी देवता का साकार ग़ायत्री मन्त्र बनाने का नियम(फार्मूला)* - देवताओं के गायत्री मंत्र बनाने के लिए सम्बन्धित देवता के दो या तीन नाम लिए जाते हैं। *उदाहरण विष्णु जी के नाम* - नारायण, वासुदेवाय, विष्णु


अब इसे क्रमशः ॐ, विद्महे, धीमहि, तन्नो, प्रचोदयात के बीच मे जोड़ा जाएगा।


ॐ *नारायणाय* विद्महे, *वासुदेवाय* धीमहि, तन्नो *नारायण:* प्रचोदयात


या


ॐ *नारायणाय* विद्महे, *वासुदेवाय* धीमहि, 

तन्नो *विष्णु:* प्रचोदयात


👉🏼 *ॐ* - सर्वशक्तिमान कण कण में व्यापत परमात्मा

👉🏼 *विद्महे(विद + महे)* - विद्  अर्थात जानते हैं व उनकी उपस्थिति मानते हैं।

👉🏼 *धीमहि(धी + महि)* - धी - अर्थात बुद्धि, मन । महि अर्थात ध्यान। तो अर्थ हुआ हम उनका मन में ध्यान करते है, बुद्धि में आह्वाहन करते हैं।

👉🏼 *तन्नो* - वह हमारे लिए

👉🏼 *प्रचोदयात* - प्रकाशित करें, प्रेरणा दें, बुद्धि को प्रेरित करें।


*नारायण गायत्री मंत्र का अर्थ हुआ* - हम नारायण को सर्वशक्तिमान जानते और मानते हैं। ऐसे सर्वशक्तिमान नारायण वासुदेव का हम मन में ध्यान करते हैं। नारायण हमारी बुद्धि को प्रेरणा दें और सन्मार्ग को बढ़ाने हेतु उसका पथ प्रदर्शन करें।


ऐसे ही समस्त देवताओं के मन्त्रों का अर्थ होगा।

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👉🏻 👉🏼 *बीज मंन्त्र* - जैसा की इसके नाम से स्पष्ट है कि यह बड़े मंन्त्र का बीज (सूक्ष्म) स्वरूप है। यदि खाना हो तो हम सेव का फल खरीद कर खाते हैं, लेक़िन यदि खेती करनी हो तो हम बीज लेकर आएंगे और उसे बोएंगे।


इसी तरह नित्य साधना हेतु, मनोकामना और कृपा प्रप्ति के लिए मंन्त्र जपे जातें हैं। लेक़िन यदि सम्बन्धित देवता के देवत्व को स्वयं में एकाकार करना हो तो उनके बीज मंन्त्र की जरूरत पड़ती है। इनके मंन्त्र जप में सावधानी खेती की तरह बरतनी पड़ती है। निश्चित समय औऱ संख्या में अनुष्ठान करने पर ही इनका फल मिलता है। बीज बिना मिट्टी और अन्य सहायता के पनप नहीं सकता। इसी तरह बीज मंन्त्र किसी मंन्त्र की सहायता से ही जपे जा सकते हैं। बीज का वही अर्थ है जो उस देवता का है जिस देवता का बीज मंन्त्र है।


उदाहरण -

*माँ महाकाली का बीज मंत्र* :-

जीवन से सभी भय , ऊपरी बाधाओं , शत्रुओं के छूटकारा दिलाने में माँ काली के बीज मंत्र द्वारा उनकी आराधना विशेष रूप से लाभ प्रदान करने वाली है | माँ काली का बीज मंत्र है : ” क्लीं ” |


*उदाहरण* - ॐ भूर्भुवः स्वः  *क्लीं क्लीं क्लीं*  तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् *क्लीं क्लीं क्लीं* ॐ


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अतः संक्षेप में यह समझे मूल ग़ायत्री मंत्र निराकार ब्रह्म शक्ति को समर्पित है। लेकिन इस निराकार मन्त्र से साकार देवताओं के मन्त्र निर्मित किये जा सकते हैं। साथ ही मूल ग़ायत्री मंत्र में बीज मंत्र प्रयोग कर इसे उस बीज मन्त्रयुक्त कर जपा जा सकता है। ग़ायत्री मन्त्र को महामृत्युंजय मंत्र के संयोजन करके मृतसञ्जीवनी मन्त्र बनाकर भी जपा सकता है।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...