Saturday 31 August 2019

प्रश्न - *लेखन क्यों और कैसे?*


प्रश्न - *लेखन क्यों और कैसे?*
उत्तर- कवि व लेखक दो प्रकार के होते हैं?
प्रभावित(Impress) करने वाले और प्रकाशित(Inspire) करने वाले
प्रभावित करने के लिए काव्य एवं लेखन कुशलता के साथ शब्द संग्रह पर्याप्त है।
लेकिन प्रकाशित करने के लिए जीवन साधना करनी पड़ेगी व  साधना द्वारा अर्जित दिव्य प्राण ऊर्जा से निःस्वार्थ सेवा भाव से लेखन करना होगा। तब तुम्हारा लेखन जीवन बदलने में सक्षम होगा और समाधान दे सकेगा।
अतः स्वयं से प्रश्न करो?
1- क्यों लिखना चाहती हो?
2- लिखने का उद्देश्य क्या है?
3- यदि कोई अपमान करे तो भी अनवरत लिख सकोगी?
4- यदि कोई सम्मान दे तो भी सहज सरल होकर उसे ईश्वर के चरणों मे सौंप सकोगी
5- जब भाव सागर में उठता है तो उसकी प्रेरणा का स्रोत क्या होता है?
लेखन स्वतः उतपन्न स्वयं से हो इसलिए उस चेतना के लिए चैनल बन जाओ। तब लेखन दिव्य होगा।
शब्द वही होंगे  लेकिन उनका प्रकाश का प्रभाव पढ़ने वाले के अंतर्जगत में बड़ा होगा।
🙏🏻श्वेता, DIYA

बलिवैश्व देव यज्ञ महात्म्य - गर्भस्थ शिशु का निर्माण - गर्भ ज्ञान विज्ञान - गर्भ सम्वाद(भाग 7) (कुल 30 भाग हैं)*

*"बलिवैश्व देव यज्ञ महात्म्य - गर्भस्थ शिशु का निर्माण - गर्भ ज्ञान विज्ञान - गर्भ सम्वाद(भाग 7) (कुल 30 भाग हैं)*

📯 गर्भ में गायत्री मंत्र अभिमंत्रित जल स्पर्श करवाते और प्यार से हाथ फेरते हुए बोलें- मेरे बच्चे, जानते हो यह मम्मी क्या करने जा रही है? इसे बलिवैश्व यज्ञ कहते हैं। चलो आज पापा और मेरे प्यारे बच्चे को बलिवैश्व यज्ञ के बारे में समझाते हैं और साथ साथ *बलिवैश्व देव यज्ञ* करते हैं।

*बलिवैश्व देव यज्ञ* - अर्थात *बलि -* उपहार , *वैश्व-* समस्त विश्व के लिए,  *देव-* दिव्य व श्रेष्ठ प्रयोजनों के लिए , *यज्ञ* - अग्नि के माध्यम से सूक्ष्मीकृत कर पहुंचाना। *दिव्य व श्रेष्ठ प्रयोजनों के लिए समस्त विश्व को  अग्नि देवता की मदद से सूक्ष्मीकृत करके उपहार पहुंचाना। कण कण में शुभ मन्त्रो की वाइब्रेशन पहुंचाना*।

जब मनुष्य की रचना हुई तो उसे समृद्ध व सुखी बनाने का एक उपक्रम यज्ञ सौंपा गया। ब्रह्मा जी ने कहा यदि यज्ञ नित्य करोगे तो सृष्टि का कल्याण व पोषण होगा। जिससे घर घर में सर्वत्र शुभ मन्त्रो की वाइब्रेशन फैलेगी जो शुभ तत्वों को चुम्बक की तरह आकर्षित करेगी और मानव मात्र का कल्याण करेगी। जब तक घर घर में नित्य यज्ञ मनुष्य के जीवन का अंग था मनुष्य सुखी था, जब यज्ञ जीवन मे बन्द हो गया डिप्रेशन(तनाव) एवं अवसाद ने घर में डेरा डाल दिया। प्रेम सहकार घर से विदा हो गया और बिखरते रिश्ते व टूटते मन की समस्या घर घर हो गयी।

जानते हो बेटे, पृथ्वी की तरह हमारे विचारो में भी गुरुत्वाकर्षण होता है। निरन्तर मंन्त्र जप व बलिवैश्व यज्ञ से हमारे अंदर सद्बुद्धि, विवेकदृष्टि जागृत होती है। घर मे भगवान को यज्ञ द्वारा भोग लगाने से भोजन प्रसाद बन जाता है जो सत्कर्म और भावों की पवित्रता के लिए हमारे दिमाग़ में गुरुत्वाकर्षण-चुम्बकत्व पैदा होता हैं। जिसके प्रभाव से ब्रह्मांड में व्याप्त सादृश्य विचार, शक्ति और प्रभाव हमारे भीतर प्रवेश करते हैं। हम जैसे विचारों का गुरुत्वाकर्षण-आकर्षण-चुम्बकत्व पैदा करते है, धीरे धीरे हम वैसा करने लगते है और एक दिन हम वैसे बन जाते है। इसलिए अच्छे मंन्त्र जप से हम अच्छे इंसान बनते हैं। यह ब्रह्माण्ड गूगल सर्च की तरह है, जैसे विचार मंन्त्र जप द्वारा सर्च करोगे वैसे समान विचार-प्रभाव-शक्तियां तुम तक पहुंचेगा।

इस तरह गायत्री मन्त्र की वाइब्रेशन व बलिवैश्व यज्ञ से घर की नकारात्मक ऊर्जा का शमन होता है।  *हृदय के भावों की शुद्धि का उपक्रम व शशक्त माध्यम - बलिवैश्व यज्ञ है*,परिवार निर्माण की महत्त्वपूर्ण कड़ी है। *युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने यह एक तरह से सुखी सम्पन्न आत्मीयता से भरे परिवार का रिमोट कंट्रोल - बलिवैश्व यज्ञ के रूप में गृहणी के हाथ मे थमाया है।*

बेटे! वैसे तो यज्ञ का ज्ञान विज्ञान गहन है, लेकिन संक्षेप में तुम्हें इसका मर्म समझाती हूँ।

*गीता में भगवान श्री कृष्ण ने* आहार के सूक्ष्म गुणों को लक्ष्य करके उसे तीन श्रेणियों में (सात्विक, राजसिक एवं तामसिक) में विभाजित किया गया है । *अन्न के स्थूल भाग से शरीर के रस, रस से रक्त रक्त से माँस, माँस से अस्थि और मजा, मेद, वीर्य आदि बनते हैं । इसलिए शरीर शास्त्री और मनोवैज्ञानिक इस सम्बन्ध में प्राय: एक मत हैं कि जैसा आहार होगा वैसा ही मन बनेगा ।*

अन्न के भी तीन शरीर मनुष्यो की तरह ही होते है- स्थूल, सूक्ष्म और कारण।

*स्थूल अन्न से स्थूल शरीर बनता है, और सूक्ष्म अन्न सूक्ष्म शरीर का पोषण करता और कारण शरीर भाव शरीर अर्थात मन का निर्माण करता है। जिसे क्रमशः क्रियाशक्ति, विचारशक्ति(IQ) और भावना शक्ति(EQ) भी कहते है।*

जैसे खाना बनाने से पहले हम अन्न, फ़लों और सब्ज़ियों को अच्छे से धोते है, उसकी स्थूल सफाई के लिए, ठीक उसी प्रकार *अन्न की पुराने सूक्ष्म विचारों व भावों-संस्कारो की धुलाई करके उसे अच्छे संस्कारो से युक्त बनाने के लिए हम बलिवैश्व यज्ञ करते है।* क्योंकि हमारे घर में पहुंचने से पहले यह अन्न किसान से लेकर व्यापारी के नौकर तक अनेक हाथों से होकर गुजरा है और उन सबके भाव इसके अंदर हैं। अब यदि इस अन्न के भाव  संस्कारित न किये गए तो उनके अच्छे-बुरे भाव निश्चयतः मन में हमारे विकार उतपन्न करेंगे।

इस यज्ञ में हम अन्न को भगवान को अर्पित करते हैं मन्त्रों द्वारा, तो अन्न अग्नि में वायुभूत मन्त्र के साथ हो जाता है। और मन्त्र की वाइब्रेशन/तरंगे भोजन में प्रवेश कर जाती है और पुराने सभी के भाव सँस्कार मिटाकर नए शुभ सँस्कार व भगवान के भोग भाव से अन्न को संस्कारित कर देती हैं।

*बेटे, चलो बलिवैश्व यज्ञ विधि देखते हैं* -

मैने दो छोटी तस्तरी लें, एक में घर की बनी रोटी या चावल में शुद्ध देशी गाय का घी और ऑर्गेनिक(जिसमें सोडे की मिलावट न हो) गुड़ मिला लिया और चने के बराबर की पांच भाग बना लिया।

दूसरी तस्तरी में यह वो हवन सामग्री  शांतिकुंज हरिद्वार या तपोभूमि मथुरा से मंगवायी है। दोनों जगह की हवन सामग्री कई सारी जड़ी बूटियों का मिश्रण होती है। उसमें देशी गाय का घी और ऑर्गेनिक गुड़ मिलाकर रख लिया है। ये मिश्रण डिब्बे में हमेशा तैयार करके एक सप्ताह के लिए रख लेती हूँ।

यह एक छोटा बलिवैश्व ताम्बे के पात्र है, हम इस को गैस जलाकर उसके ऊपर रख देंगे। गर्म होने देंगे-

देखो, यह गर्म व लाल हो गया।

*अब पहले बलिवैश्व यज्ञ निम्नलिखित मन्त्रों से घर की बनी रोटी,घी,गुड़ मिश्रित सामान से 5 आहुति अर्पण करेंगे*:-स्वाहा बोलते हुए  मध्यमा, तर्जनी और अंगूठे से भोजन सामग्री बलिवैश्व पात्र में डाल देंगे):-

( *प्रथम आहुति- सभी सूक्ष्म-स्थूल ब्रह्म और श्रेष्ठ जन के शांति-तुष्टि के लिए अर्पित करेंगे*)

ॐ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्। स्वाहा, इदं *ब्रह्मणे* इदं न मम।

( *द्वितीय आहुति - सभी सूक्ष्म-स्थूल देवताओं के शांति-तुष्टि के लिए अर्पित करेंगे*)

ॐ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्। स्वाहा, इदं *देवेभ्यः* इदं न मम

( *तृतीय आहुति - सभी सूक्ष्म-स्थूल ऋषियों के शांति-तुष्टि के लिए अर्पित करेंगे*)

ॐ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्। स्वाहा, इदं *ऋषिभ्यः* इदं न मम।

( *चतुर्थ आहुति - सभी सूक्ष्म-स्थूल मनुष्यों के शांति-तुष्टि के लिए अर्पित करेंगे* )

ॐ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्। स्वाहा, इदं *नरेभ्यः* इदं न मम

( *पांचवी आहुति - प्राणी का पर्यायवाची भूत है, सभी सूक्ष्म-स्थूल जीव के शांति-तुष्टि के लिए अर्पित करेंगे*)

ॐ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्। स्वाहा, इदं *भूतेभ्यः* इदं न मम।
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*This is optional- नित्य दैनिक यज्ञ हो नहीं पाता अतः बलिवैश्व देव यज्ञ के बाद दैनिक यज्ञ की कुछ आहुतियां भी जोड़ ली है, यह अनिवार्य नहीं है लेक़िन हम कर लेते हैं।* अतः इसके बाद हवन सामग्री, गुड़, और घी मिश्रित सामग्री से 3 बार गायत्री मन्त्र की, एक बार महामृत्युंजय मन्त्र की, एक सूर्य मन्त्र की, एक रूद्र मन्त्र की, एक लक्ष्मी मन्त्र की, एक गणेश मन्त्र की आहुति उसी बलिवैश्व पात्र में अर्पित करेंगे। ध्यान रखेंगे सामग्री थोड़ी थोड़ी लेंगे, क्योंकि बेटा यह बलिवैश्व पात्र आकार में छोटा जो होता है।

*तीन गायत्री मन्त्र आहुति मन्त्र*(हम सब की सद्बुद्धि के लिए अर्पित करेंगे)

ॐ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्। स्वाहा, इदं गायत्र्यै इदं न मम

*एक महामृत्युंजय आहुति मन्त्र*(हम सबकी दीर्घायु व निरोगी जीवन की प्रार्थना के लिए अर्पित करेंगे)

ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टि वर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्, स्वाहा, इदं महामृत्यंज्याय इदं न मम।

*एक सूर्य गायत्री आहुति मन्त्र*(स्वस्थ शरीर व स्वस्थ मन की कामना  के लिए अर्पित करेंगे)

ॐ भाष्कराय विद्महे, दिवाकराय धीमहि, तन्नो सूर्यः प्रचोदयात्, स्वाहा, इदम् सूर्याय इदं न मम

*एक रूद्र गायत्री आहुति मन्त्र*(अनिष्ट निवारण एवं अभीष्ट सम्वर्धन के लिए अर्पित करेंगे)

ॐ पञ्चवक्त्राय विद्महे, महाकालाय धीमहि, तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्, स्वाहा, इदम् रुद्राय इदं न मम

*एक गणेश गायत्री आहुति मन्त्र*(विघ्न हरण के लिए अर्पित करेंगे)

ॐ एक दन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो बुद्धिः प्रचोदयात्, स्वाहा, इदम्  गणेशाय इदं न मम

*एक सौभाग्य लक्ष्मी गायत्री मंत्र आहुति मन्त्र*(सौभाग्य और धन धान्य के लिए)

ॐ महालक्ष्म्यै विद्महे, विष्णुप्रियायै धीमहि, तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्, स्वाहा, इदम् सौभाग्य लक्ष्म्यै इदं न मम

*एक सरस्वती गायत्री मंत्र आहुति मन्त्र*(बुद्धिबल के लिए अर्पित करेंगे)

ॐ सरस्वत्यै विद्महे, ब्रह्मपुत्र्यै धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात्, स्वाहा, इदम् सरस्वत्यै इदं न मम

*एक दुर्गा गायत्री मंत्र आहुति मन्त्र*(अतुलित बल के लिए समर्पित करेंगे)

ॐ गिरिजायै विद्महे शिवप्रियायै धीमहि। तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्। स्वाहा, इदम् दुर्गा देव्यै इदं न मम

*ॐ शांति ॐ शांति ॐ शांति* तीन बार बोलेंगे। भावना करेंगे कि आहुतियां स्वीकार हो गयी।

गैस में हवन सामग्री के भष्म बनने तक जलने देंगे। उसके बाद गैस बन्द कर देंगे, भष्म/राख के ठंडे होने पर जल में मिलाकर गमले में डाल देंगे। एक नंन्ही चुटकी दाल व सब्जी में मिक्स कर देंगे। सबको प्रसाद मिल जाएगा।

*प्राचीन आध्यात्मिक वैज्ञानिक रिसर्चर को ऋषि कहते हैं वो इतने गहन बुद्धिशाली थे, कि उन्होंने दिव्यता व प्रेरणाओं को प्राप्त करने के लिए दिव्य मन्त्र हमे दिए, इन मन्त्र शक्ति व यज्ञ से ब्रह्माण्ड से आदान-प्रदान का ज्ञान विज्ञान दिया है। जब आप बड़े हो जाना तो आप भी यज्ञ व गायत्री मंत्र अपनाना। हम प्रत्येक सप्ताह 6 दिन बलिवैश्व यज्ञ करते हैं और प्रत्येक रविवार को घर के सभी सदस्य मिलकर गोमय समिधा व नारियल के टुकड़ों को समिधा की तरह उपयोग करके यज्ञ करते हैं। तुम जब बड़े होंगे तो तुम भी यज्ञ में सम्मिलित होंगे।*

क्रमशः....(अगली कड़ी - भाग 8 में)

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

*सभी गर्भ सम्वाद निम्नलिखित ब्लॉग पर उपलब्ध हैं:-*
http://awgpggn.blogspot.com/

डिप्रेशन या किसी भी समस्या के लिए काउंसलिंग में मेरा नम्बर देने से पहले यह प्रश्न लिस्ट भेज दीजिये

*अनुरोध- आत्मीय भाइयों व बहनों, किसी भी भाई बहन को डिप्रेशन या किसी भी समस्या के लिए काउंसलिंग में मेरा नम्बर देने से पहले यह प्रश्न लिस्ट भेज दीजिये, उसके बाद मेरा नम्बर काउंसलिंग के लिए शेयर कीजिये। क्योंकि इन प्रश्नों के उत्तर के बिना काउंसिलिंग की प्रोसेस सम्भव नहीं है। युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव कहते हैं, प्रश्न मन से पूँछेगे नहीं तो समाधान मिलेगा नहीं...*

कुछ प्रश्न स्वयं से पूंछो और इनका उत्तर काउंसलिंग के वक्त देने के लिए पूर्व तैयार रहें?

1- क्या तुमने किसी अपने को खोया है? जिसे तुम दिल से ज्यादा चाहते थे?

2- क्या इश्क में तुम्हे धोखा मिला है?

3- क्या तुम जो बनना चाहते थे या जो करना चाहते थे? नहीं हो पाया?

4- तुम कब जन्मोगे और किसके घर जन्मोगे तुम्हे पता था?

5- तुम कब और कहां मरोगे तुम्हे पता है?

6- कल दुनियाँ में कब कहाँ क्या होगा? क्या तुम बता सकते हो?

7- क्या तुम्हारा एक्सीडेंट हुआ है? क्या तुम अपाहिज़ हो?

8- तुम्हारे इस शरीर को यदि  मेडिकली तलाशा जाय तो लाखों के अंग तुम्हारे भीतर उपलब्ध है। किडनी, लिवर, हार्ट, आई, पैंक्रियाज इत्यादि। तुम अपनी कीमत गूगल सर्च करके लगाओ और बताओ कि कितने लाख के अंग तुम्हारे भीतर हैं?

9- यदि थोड़ी देर के लिए मान लो तुम्हारी याददाश्त पिछले 5 वर्ष की चली जाय तो क्या कोई गम या डिप्रेशन बचेगा?

10- कभी भगवान को चिड़िया के घर खाना होम डिलीवरी करते देखा? क्या   शेर के मांद में कभी भगवान को मांस के टुकड़े भेजते देखा? क्या किसी भी मनुष्य के घर कोई आसमान से गिफ्ट आते देखा है?

11- तुम्हारी नजर में कौन बेहतर है, तुम क्या बनना चाहोगे? असुरक्षित जंगल का शेर या सुरक्षित सर्कस का शेर? बिना सेक्योरिटी गार्ड के आसमान में उड़ता तोता या सुरक्षित गार्ड के साथ पिंजरे में बंद तोता?


12- तुम जब जन्मे थे तो कुछ दिन बाद तुम्हारा नामकरण हुआ था, जब तक घरवालों ने तुम्हारा नामकरण नहीं किया था तो क्या तुम अस्तित्व में नहीं थे? माता के गर्भ में आने से पहले कहाँ थे? यह शरीर छोड़ने के बाद कहाँ जाओगे,? तुम कौन हो शरीर या आत्मा?

13- डिप्रेशन में कौन है? तुम्हारा शरीर या तुम्हारा मन या तुम्हारी आत्मा?

14- मन क्या है? मन का अस्तित्व क्या है? मन की प्रोग्रामिंग कब और कैसे हुई? *A* for *Apple* का ज्ञान कैसे मन तक पहुंचा?

15- कोई हमें अच्छा या बुरा क्यों लगता है? इसकी वजह उस व्यक्ति का अस्तित्व है या वह हमारे लिए कितना उपयोगी है?

16- एक ग्लास में आधा जल भरा है व आधा खाली? तो आप की नजर में ग्लास आधी ख़ाली है या आधी भरी?

17- अपने घर के आसपास अपने जानने वाले व्यक्तियों में सर्व सुखी कौन है? क्या उसका नाम आप जानते हैं?

18- सुख का मापदंड क्या है? धन या परिवार या अध्यात्म या प्रेमी

उपरोक्त प्रश्नों को पढ़िए, उत्तर जब मिल जाये तब अपॉइंटमेंट लेकर फोन कीजिये। हम लोग काउंसलिंग डिप्रेशन की करेंगे।

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *मेरा 12 वर्षीय पुत्र बहुत बुद्धिमान है और ओलम्पियाड में प्राइज़ मनी भी पाया, लेकिन वाहवाही के बाद उसका व्यवहार बदल गया, अब पढ़ाई में मेहनत भी नहीं करता और उद्दण्ड हो गया है क्या करें?*

प्रश्न - *मेरा 12 वर्षीय पुत्र बहुत बुद्धिमान है और ओलम्पियाड में प्राइज़ मनी भी पाया, लेकिन वाहवाही के बाद उसका व्यवहार बदल गया, अब पढ़ाई में मेहनत भी नहीं करता और उद्दण्ड हो गया है क्या करें?*

उत्तर - आत्मीय बहन, नित्य बच्चे के लिए गायत्री मंत्र जपें व उससे कम से कम 24 गायत्रीमन्त्र जपवाएँ। बलिवैश्व यज्ञ करें और नमक मिले जल से घर मे पोछा लगवाएं।

बच्चे से प्यार से बात करके उसके भीतर क्या चल रहा है जानने की कोशिश करें एवं कुछ नैतिक शिक्षा की कहानी सुनाएँ:-

*कहानी 1*-👉🏻  एक प्रसिद्ध चित्रकार जिसकी पेंटिंग उस जमाने मे सबसे महंगी बिकती थी, उस ने अपने बेटे को पेंटिंग करना सिखाया। बच्चे की पेंटिंग 100 रुपये में बिकी, बच्चा खुश नहीं था क्योंकि उसे तो पापा जैसी महँगी पेंटिंग 500 रुपये वाली बनानी थी। मन लगाकर पुनः पिता से सीखा, इस बात 200 रुपये की पेंटिंग बिकी, लेकिन फिर भी वो बच्चा ख़ुश न था, लगातार मेहनत की व पिता से सीखता रहा, अबकी उसने मेहनत रंग लाई व जो पेंटिंग बनाई वो 700 रुपये की बिकी। बेटा घर आया व पिता ने ख़ुशी सेलेब्रेट किया, पुनः उसे सिखाने बैठ गया लेकिन बेटे ने कुछ सीखने व पढ़ने से मना कर दिया। बोला मेरी पेंटिग 700 की बिकी और आपकी 500 रुपये की बिकती है। अतः अब आपके पास कुछ नहीं मुझे सिखाने को। पिता ने आंखों में आँशु भरकर कहा तुम्हारी तरह मैं भी था, मेरे पिता की पेंटिंग 300 रुपये की बिकती थी और जिस दिन मेरी 500 रुपये की बिकी। मुझे घमंड हो गया और मैंने उनसे सीखने से मना कर दिया। मेरी तरक़्क़ी अटक गई और आज तक मैं पूरी उम्र 500 रूपये से ज्यादा की पेंटिंग न बना सका। अब तय तुम्हे करना है कि घमण्ड में अपनी तरक्की को यहीं रोकना है या आगे 1000 से करोड़ो रुपये की पेंटिंग बनानी है। द्रोणाचार्य विश्व के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर नहीं थे लेक़िन अर्जुन जैसा विश्व का धनुर्धर गढ़ सके। मैं सर्वश्रेष्ठ चित्रकार नहीं हूँ लेकिन मैं गुरुरूप में तुम्हे बना सकता हूँ। लड़के को अपनी गलती का अहसास हुआ और वो पुनः घमण्ड त्याग के सीखने लग गया।

*घटनाक्रम 2-* 👉🏻 सन 2007 में *सचिन तेंदुलकर* को क्लीन बोल्ड करके विकेट लेने वाले नए ऑस्ट्रेलिया के क्रिकेटर *ब्रैड हॉग* मैच खत्म होने के बाद सचिन के पास एक फोटो लेकर ऑटोग्राफ लेने के लिए पहुंचे और ये वही फोटो था जिसमें हॉग ने सचिन को क्लीन बोल्ड किया था। सचिन ने उस फोटो पर अपने ऑटोग्राफ के नीचे एक ऐसी लाइन लिखी जिसे हॉग आज भी नहीं भूले होंगे। सचिन ने उस फोटो पर अपने ऑटोग्राफ के साथ लिखा, ' *This will never happen again, Hoggy*' मतलब 'ये दोबारा कभी नहीं होगा, हॉगी।'
सचिन के इस ऑटोग्राफ का मतलब ये था कि हॉग दोबारा कभी भी सचिन को आउट नहीं कर पाएंगे और मैदान पर बिल्कुल ऐसा ही हुआ। उस मैच के बाद हॉग और सचिन का सामना कई बार हुआ, लेकिन ये ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाज सचिन को कभी भी आउट नहीं कर पाया। क्योंकि सचिन ने नित्य कठिन अभ्यास किया, शतक बनाने पर सचिन तेंदुलकर घमंड नहीं किया और आउट होने पर कभी शोक नहीं मनाया। दोनो ही परिस्थितियों में लगातार अनवरत गुरु(कोच) के मार्गदर्शन में कल से आज को और बेहतर करने का प्रयास किया।

*कहानी 3-* 👉🏻 एक युवा बच्चे रवि ने एंट्रेंस टॉप किया, अच्छे कॉलेज में एडमिशन हुआ। इंजीनियरिंग कॉलेज जाते ही वो घमण्ड में ऐसा फूल गया कि पढ़ने का कर्तव्य भूल गया। लेट नाइट पार्टी व मस्ती होने लगी। फर्स्ट सेमेस्टर में मार्क्स बिलो एवरेज आये, पिता हॉस्टल आकर काफी समझाए पर बेटा नही समझा। फिर वही ढर्रा चलने लगा।

एक बार दोस्तों के साथ दूर पार्टी से लौटते वक़्त बहुत देर रात हो गयी, कोई ओला उबेर मिल नहीं रहा। बड़ी मुश्किल से एक ऑटो मिला जो 200 रुपये के किराए की जगह 800 रुपये का किराया मांगा। लड़के इंग्लिश में डिसकस करने लगे, जिससे ऑटो वाला न समझ पाए। पर जब जवाब में फ्लुएंटली व उनसे बेहतर इंग्लिश में उन्हें रिप्लाई देते हुए ऑटो वाला बोला, इंग्लिश बोलने का कोई फायदा नहीं मुझे आपलोगो से अच्छी इंग्लिश आती है, चलना है तो चलो वरना मैं जा रहा हूँ। वह और उसके दोस्त हक्के बक्के रह गए। ऑटो में उत्सुकता वश उसका परिचय मांगा, उसने बताया कि जिस कॉलेज में आप पढ़ते हो मैं उस कॉलेज में आज से 10 वर्ष पहले पढ़ता था। मुझे अपने ज्ञान का इतना अहंकार हो गया कि मैं जोश में होश खो बैठा और आपकी तरह लेट नाइट पार्टी व मस्ती में टाइम पास करने लगा। मेरा रिजल्ट बिगड़ गया और मैं फेल हो गया। पिता सदमे में आ गए। कुछ वर्षों बाद मेरा विवाह हो गया। आज मैं साधारण सी नौकरी दिन में करता हूँ और रात को ऑटो चलाता हूँ, घर के लिए एक्स्ट्रा इनकम के लिए, क्योंकि मुझे पता अपना सुनहरा भविष्य घमण्ड में बर्बाद करने वाले आप जैसे लोगो को ऑटो चाहिए होगा।

रवि व उनके दोस्तों का सारा नशा उतर गया, उस दिन से उन्होनें मेहनत करना शुरू कर दिया। ऐसा नहीं कि पार्टी व मस्ती नहीं की, लेकिन किया लिमिट में और पढ़ाई ज्यादा किया।

🙏🏻 बेटे, यह जीवन का सफर चल रहा है, मंजिल अभी बहुत दूर है। तुम्हारा कम्पटीशन भारत के समस्त इंटेलिजेंट बच्चों से होगा जो जॉब के लिए आएंगे। उन्हें कम्पीट करने के लिए अनवरत प्रयास चाहिए। तय कर लो जो इनाम के पैसे मिले हैं उससे  वृद्धावस्था तक काम चल जाएगा, अपने पत्नी बच्चे पाल लोगे। तो मत पढ़ो, यदि इतने पैसे से नहीं चलेगा और कुछ बनना है तो पढ़ने में जुट जाओ।

दादा दादी जैसे नहीं कमाते, वैसे ही वृद्धावस्था में हम भी रिटायर हो जाएंगे। तुम्हारे पास 10 साल है, जितनी जल्दी कमा सको कमा लो, अन्यथा हमें एक पेपर पर लिख के दे दो *मैं अपनी बर्बादी के लिए स्वयं जिम्मेदार हूँ, मेरें मम्मी पापा ने समझाया था और मैं नही सुधरा।* जिससे भविष्य में तुम्हारे बच्चे व दोस्त तुम्हारी असफल जिंदगी के लिए तुम्हे चिढाएंगे तो तुम हमें ब्लेंम न कर सको। हम तुम्हे यह कागज तुम्हारा साइन करा हुआ दिखा देंगे।

अब देख लो भाई, 20 साल के जिस दिन हो जाओगे अपनी रोजी रोटी तुम्हे खुद कमानी है। क्या प्लान है सोच लो और हमें समझा दो।

कुछ बनना है तो जो मदद चाहो हम करने को तैयार हैं।

बच्चों को लॉजिकली हैंडल कीजिये, चिखिये चिल्लाइये मत। बुद्धि प्रयोग से और ढेर सारे प्यार से बच्चे को सन्मार्ग दिखाइए। बच्चे को नित्य गायत्री जप, ध्यान व स्वध्याय करवाइये।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Friday 30 August 2019

प्रश्न - *बहिन जी प्रणाम, कृपया सर्वधर्म समभाव के आधारभूत तत्व विषय पर नोटस भेजने की कृपा करे।*

प्रश्न - *बहिन जी प्रणाम, कृपया सर्वधर्म समभाव के आधारभूत तत्व विषय पर नोटस भेजने की कृपा करे।*

उत्तर - आत्मीय भाई,

हम सभी वैदिक सनातन धर्म की डालियाँ है, हम सबकी जड़ में वैदिक संस्कृति है। एक ही लक्ष्य है मानव जाति का कल्याण एवं भारतीय संस्कृति की घर घर मे स्थापना है। धर्म की स्थापना के तरीके अलग अलग हो सकते हैं, लेकिन लक्ष्य अलग नहीं है।

आइये हम सब अपने अपने तरीको के कॉमन पॉइंट्स ढूँढे जो एक दूसरे से मिलते हैं, और उन कॉमन वैज्ञानिक अध्यात्मवाद के सूत्रों पर मिलकर काम करते हैं।

स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन व सभ्य समाज के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आइये एकजुट हो जाएं। भारत को विश्वगुरु बनाएं।

*"संस्कृति" का अर्थ है वह कृति- कार्य पद्धति जो संस्कार संपन्न हो*।। व्यक्ति की उच्छृंखल मनोवृत्ति पर नियंत्रण स्थापित कर कैसे उसे संस्कारी बनाया जाय यह सारा अधिकार क्षेत्र संस्कृति के मूर्धन्यों का है एवं इसी क्षेत्र पर हमारे ऋषिगणों ने सर्वाधिक ध्यान दिया है ।।

भारतीय संस्कृति हमारी मानव जाति के विकास का उच्चतम स्तर कही जा सकती है ।। इसी की परिधि में सारे विश्वराष्ट्र के विकास के- वसुधैव कुटुम्बकम् के सारे सूत्र आ जाते हैं ।। हमारी संस्कृति में जन्म के पूर्व से मृत्यु के पश्चात् तक मानवी चेतना को संस्कारित करने का क्रम निर्धारित है ।। मनुष्य में पशुता के संस्कार उभरने न पायें, यह इसका एक महत्त्वपूर्ण दायित्व है ।। भारतीय संस्कृति मानव के विकास का आध्यात्मिक आधार बनाती है और मनुष्य में संत, सुधारक, शहीद की मनोभूमि विकसित कर उसे मनीषी, ऋषि, महामानव, देवदूत स्तर तक विकसित करने की जिम्मेदारी भी अपने कंधों पर लेती है ।। सदा से ही भारतीय संस्कृति महापुरुषों को जन्म देती आयी है व यही हमारी सबसे बड़ी धरोहर है ।।

भारतीय संस्कृति की अन्यान्य विशेषताओं सुख का केन्द्र आंतरिक श्रेष्ठता, अपने साथ कड़ाई, औरों के प्रति उदारता, विश्वहित के लिए स्वार्थों का त्याग, अनीतिपूर्ण नहीं- नीतियुक्त कमाई पारस्परिक सहिष्णुता, स्वच्छता- शुचिता का दैनन्दिन जीवन में पालन, परिवार- व राष्ट्र के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारी का परिपालन, अनीति से लड़ने संघर्ष करने का साहस- मन्यु, पितरों की तृप्ति हेतु तथा पर्यावरण संरक्षण हेतु स्थान- स्थान पर वृक्षारोपण कर हरीतिमा विस्तार तथा अवतारवाद का हेतु समझते हुए तदनुसार अपनी भूमिका निर्धारण सभी पक्षों का बड़ा ही तथ्य सम्मत- तर्क विवेचन पूज्यवर ने इसमें प्रस्तुत किया है ।।

वर्णाश्रम पद्धति हमारी संस्कृति की विशेषता है एवं समाज की सुव्यवस्था की एक सुदृढ़ आधार शिला है ।। आज इस संबंध में अनेकानेक भ्रान्तियाँ फैला दी गयी हैं पर वस्तुतः यह सारी विधि व्यवस्था मानवी जीवन को व उसकी सामाजिक जिम्मेदारियों को एक निर्धारित क्रम में बाँधने के लिए बनी थीं ।। इसी सामाजिक पक्ष में संस्कृति के खान- पान, जाति- पाँति, ऊँच- नीच, भाषा वेश, गुण- कर्म की परिष्कार से समाज की आराधना जैसे अनेकानेक पक्ष आ जाते हैं इनका वर्णन विस्तार से हुआ है ।। गुरु, गायत्री, गंगा, गौ व गीता ये पाँच हमारी संस्कृति के महत्त्वपूर्ण आधारस्तंभ माने जाते हैं ।। इनके प्रति श्रद्धा रख हम अपनी सांस्कृतिक गौरव गरिमा का अभवर्धन करते हैं एवं इनके माध्यम से अनेकानेक अनुदान भी दैनन्दिन जीवन में पाते हैं ।।

संक्षेप में,  हमारी भारतीय संस्कृति मनुष्य को निम्नलिखित बनाती है:-


*आस्तिक* - स्वयं पर और स्वयं को बनाने वाले परमात्मा पर भरोसा करना। सर्वशक्तिमान परमात्मा के हम सर्वशक्तिमान सन्तान हैं।

*धार्मिक* - धर्म अर्थात कर्तव्य पालन - स्वयं के प्रति, परिवार के प्रति समाज के प्रति व राष्ट्र के प्रति कर्तव्यों और उत्तरदायित्व का पालन करना।

*गायत्री मन्त्र की दीक्षा* - श्रेष्ठता का वरण, सही मार्ग पर आरूढ़ रहना। स्वयं की बुद्धि में परमात्मा को धारण करना और उनके अनुशासन में श्रेष्ठ जीवन जीना। आत्म अनुशासन पालना और स्वयं के विचारों का प्रबंधन करना।

गौ, गंगा, गीता व गायत्री यह वह चार स्तम्भ हैं जिन पर भारतीय संस्कृति खड़ी है, इन चारों आधारों को मजबूत करने के लिए हम सबको एकजुट होकर प्रयास करना चाहिए।

गायत्री व यज्ञ एक दूसरे के पूरक हैं, एक सद्बुद्ध व दूसरा क्रमशः सत्कर्म की प्रेरणा देता है। दोनो के ही वैज्ञानिक आधार व आधुनिक रिसर्च भी उपलब्ध है, AIIMS में, देवसंस्कृति विश्विद्यालय में औऱ देशविदेश में आयोजित प्रायोगिक रिसर्च सर्वत्र सिद्ध हो चुका है कि गायत्री मंत्र जप से बुद्धि का विकास होता है और अच्छे हार्मोन्स रिलीज़ होते हैं। यज्ञ से रोगोपचार व पर्यावरण प्रदूषण नियन्त्रण भी सिद्ध हो चुका है। यह मान्य चिकित्सा प्रणाली है।

चन्द्रयान 2 हो या मंगलयान हो, ISRO भारतीय ऋषि आर्यभट्ट व रामानुजम की गणित पर काम कर रहा है न कि NASA की नकल कर रहा है, NASA भी प्राचीन वैदिक ग्रंथो को पढ़कर उन सूत्रों पर कार्य कर रहा है। क्या हम सब मिलकर अपने बच्चों को आधुनिक विज्ञान व प्राचीन ज्ञान नहीं पढ़ा सकते? जिससे उनका बहुमुखी विकास हो, हमारा देश विश्व गुरु बने। देश हम सबका समूह है, देश को विश्व गुरु बनाने के लिए हम सभी को ज्ञान के मूल स्रोत से जुड़ना होगा। हमारे परमपूज्य युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य ने सभी वैदिक ग्रंथों का हिंदी भावार्थ विभिन्न पुस्तको में उपलब्ध करवा दिया है। हम सब मिलकर इन पुस्तकों को पढ़कर एक जुट होकर भारत के उत्थान में मदद कर सकते हैं। बच्चों को गौरान्वित महसूस करवा सकते है, उन्हें यह देवसंस्कृति भारतीय संस्कृति की धरोहर उनके हाथों में सौंप सकते है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

माँ को धन्यवाद

*जिनकी भी वृद्ध माता इस संसार में हैं उन्हें उनके जन्मदिन पर इन शब्दों के साथ अपना प्यार व्यक्त करें, गिफ्ट दें या दें लेकिन एक पूरा दिन माँ के साथ बिताएँ*:-

माँ शब्द में दुनियाँ सारी,
माँ हमको है सबसे प्यारी,
माँ ने ही तो दिए हैं प्राण,
माँ ही मेरा भगवान,
हम सब करते तेरी पूजा,
तेरे आगे कोई न दूजा।

माँ यह कविता नहीं हक़ीकत है, तुम्हारे प्यार अहसास की झलक है।

माँ तेरे गर्भ में 9 महीने व्यतीत किये, तेरे ही रक्त मांस से बने शरीर में हूँ, तेरे ही दूध को पीकर बड़ी हुई, तेरे ही आँचल में खेली बढ़ी, कितनी रातों मैंने तुझे सोने नही दिया, न जाने कितनी बार तुझे परेशान किया।

पर तुमने कभी कोई शिकायत नहीं की, कभी अहसान जताया नहीं।

लोग थोड़े से गिफ़्ट देकर अहसान जताते हैं, लेक़िन तुमने तो पूरा का पूरा मेरा शरीर मुझे गिफ्ट किया फिर भी कभी जताया नहीं।

हम ऑफिस में 5 दिन जॉब करते हैं और शनिवार रविवार छुट्टी चाहते हैं। मगर माँ तुमने तो घर गृहस्थी से कभी छुट्टी ली ही नहीं, जिस दिन सब रविवार मनाते थे, उस दिन तो पूरा दिन तुम किचन में ही फरमाइश पूरी करते बिताते थे। न कोई सैलरी न कोई प्रमोशन न कोई अवार्ड। सिर्फ हम सबकी खुशी के लिए जीते रहे।

आज आपके जन्मदिन पर मैं आपको ढेर सारे प्यार के साथ धन्यवाद बोलना चाहती हूँ। वर्ल्ड की सबसे बेस्ट माँ के चरणों मे शीश नवाना चाहती हूँ।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Thursday 29 August 2019

गणेशचतुर्थी महात्म्य - गर्भस्थ शिशु का निर्माण - गर्भ ज्ञान विज्ञान - गर्भ सम्वाद(भाग 6) (कुल 30 भाग हैं)*

*"गणेश चतुर्थी महात्म्य - गर्भस्थ शिशु का निर्माण - गर्भ ज्ञान विज्ञान - गर्भ सम्वाद(भाग 6) (कुल 30 भाग हैं)*

📯 गर्भ में गायत्री मंत्र अभिमंत्रित जल स्पर्श करवाते और प्यार से हाथ फेरते हुए बोलें- मेरे बच्चे, जानते हो आज क्या है? आज गणेश चतुर्थी अर्थात गणेश जी का जन्मदिन है। गणेश जी भगवान शंकर व पार्वती जी के पुत्र हैं। सभी देवताओं में प्रथम पूज्य हैं। जानते हो कैसे?

एक बार सभी देवताओं कि सभा ब्रह्मा-विष्णु-महेश जी की अध्यक्षता में कैलाश में हुई। यह तय करना था प्रथम पूज्य देवता कौन होगा? शर्त यह रखी गयी जो पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगा के पहले आएगा वही विजेता होगा। सब अपने अपने वाहन लेकर निकल पड़े। लेकिन भगवान गणेश ने अपने चूहे से अपने माता-पिता शंकर पार्वती की सात प्रदक्षिणा की अर्थात सात बार परिक्रमा की। बोले - माता पिता मेरा पूरा ब्रह्मांड मेरे माता पिता हैं यही प्रकृति व पुरुष हैं। इनमें समस्त विश्व समाहित है। इस बुद्धि कुशलता व तत्वज्ञान के कारण उन्हें प्रथमपूज्य देवता ब्रह्मा जी ने घोषित किया।

जानते हो बेटे, पृथ्वी की तरह हमारे विचारो में भी गुरुत्वाकर्षण होता है। निरन्तर गणेश मंन्त्र जप से हमारे अंदर सद्बुद्धि, विवेकदृष्टि, सत्कर्म और भावों की पवित्रता के लिए अपने दिमाग़ में गुरुत्वाकर्षण-चुम्बकत्व पैदा होता हैं। जिसके प्रभाव से ब्रह्मांड में व्याप्त सादृश्य विचार, शक्ति और प्रभाव हमारे भीतर प्रवेश करते हैं। हम जैसे विचारों का गुरुत्वाकर्षण-आकर्षण-चुम्बकत्व पैदा करते है, धीरे धीरे हम वैसा करने लगते है और एक दिन हम वैसे बन जाते है। इसलिए अच्छे मंन्त्र जप से हम अच्छे इंसान बनते हैं। यह ब्रह्माण्ड गूगल सर्च की तरह है, जैसे विचार मंन्त्र जप द्वारा सर्च करोगे वैसे समान विचार-प्रभाव-शक्तियां तुम तक पहुंचेगा।

🙏🏻 *आओ गणेश जी के प्रतीक स्वरूप की व्याख्या समझते हैं, पूजन स्थल में रखी यह गणेश मूर्ति देखो* 🙏🏻

*गणेश जी का यह बड़ा सर* - विवेक-सद्बुद्धि का प्रतीक है। ज्ञानर्जन हेतु सबसे ज़्यादा समय-साधन खर्च करने की हमें प्रेरणा देता है। मानसिक आहार - स्वाध्याय और ध्यान द्वारा सद्बुद्धि-विवेक और अंतर्दृष्टि प्राप्त होती है।

*यह दो बड़े कान* - कहते हैं कि हमेशा सतर्क रहो, और कान के पक्के बनो। सुनी सुनाई बातों पर भरोसा मत करो। किसी के कान भरने पर बहको मत।

*यह लम्बी सूड़* - परिस्थिति को सूंघ लो दूर से ही। अर्थात भविष्य की घटनाओं का पुर्वानुमान करके योजना बनाओ। ऐसे कार्य करो जिनके दूरगामी लाभ और परिणाम हों।

*गणेश जी का यह एक दांत* -गणेशजी एकदन्त हैं , जिसका अर्थ है एकाग्रता। जो यह कहता है कि डबल थॉट/दोहरे विचारो में मत उलझो। एक लक्ष्य निर्धारित करो और एक निष्ठ होकर उस पर डटे रहो। उठो आगे बढ़ो और तब तक मत रुको, जबतक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये।

*गणेशजी का यह बड़ा पेट* -  उदारता और आत्मीयता का प्रतीक है। अपने अंदर इतनी आत्मीयता रखो कि सर्वत्र बांटो।

*गणेशजी का ऊपर उठा हुआ हाथ* रक्षा का प्रतीक है – अर्थात, ‘घबराओ मत, मैं तुम्हारे साथ हूँ’ और उनका झुका हुआ हाथ, जिसमें हथेली बाहर की ओर है,उसका अर्थ है, अनंत दान, और साथ ही आगे झुकने का निमंत्रण देना – यह प्रतीक है कि हम सब एक दिन इसी मिट्टी में मिल जायेंगे ।

*ये अपने हाथों में अंकुश लिए हैं*, जिसका अर्थ है – जागृत होना , और पाश – अर्थात नियंत्रण । जागृति के साथ, बहुत सी ऊर्जा उत्पन्न होती है और बिना किसी नियंत्रण के उससे व्याकुलता हो सकती है । मन पर नियंत्रण हेतु मन की वृत्तियों पर अंकुश लगाना अनिवार्य है।

*तुम सोचते होंगे- गणेशजी, हाथी के सिर वाले भगवान क्यों एक चूहे जैसे छोटे से वाहन पर चलते हैं? क्या यह बहुत अजीब नहीं है?*

बेटे, इसका एक गहरा रहस्य है । एक चूहा उन रस्सियों को काट कर अलग कर देता है जो हमें बांधती हैं| चूहा उस मन्त्र के समान है जो अज्ञान की अनन्य परतों को पूरी तरह काट सकता है, और उस परम ज्ञान को प्रत्यक्ष कर देता है जिसके भगवान गणेश प्रतीक हैं ।

*हमारे प्राचीन ऋषि इतने गहन बुद्धिशाली थे, कि उन्होंने दिव्यता व प्रेरणाओं को शब्दों के बजाय इन प्रतीकों के रूप में दर्शाया, क्योंकि शब्द तो समय के साथ बदल जाते हैं, लेकिन प्रतीक कभी नहीं बदलते । तो जब भी हम उस सर्वव्यापी गणेश जी का ध्यान करें, हमें इन गहरे प्रतीकों को अपने मन में रखना चाहिये, जैसे हाथी के सिर वाले भगवान, और उसी समय यह भी याद रखें, कि गणेशजी हमारे भीतर ही हैं । यही वह ज्ञान है जिसके साथ हमें यह गणेश चतुर्थी मनानी चाहिये ।*

चलो गणेश जी की बताई शिक्षा व प्रेरणा को ध्यान में रखते हुए चलो 5 बार गणेश गायत्री मंत्र का उच्चारण करते हैं:-

*गणेश गायत्री मन्त्र*—ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।

*विद्महे का भावार्थ है, अपनी बुद्धि(Key skill) में धारण करने को।*

*‘धीमहि’ कहते हैं–ध्यान(Meditation) को*।

*'तन्नो' या 'तन्न:'* - वह हमारे लिए (That for us)

*प्रचोदयात कहते है पवित्र(Proliferation) बनाने को*

भावार्थ - *उस मंगलमय प्रकाशवान परमात्मा गणेश जी का ध्यान हम करते है, जिन्हें मन बुद्धि और हृदय में धारण करने पर सब प्रकार की सुख-शान्ति, ऐश्वर्य, प्राण-शक्ति और परमपद की प्राप्ति होती है। वह हमारे हृदय को निर्मल और पवित्र बनाये। हमारा जीवन श्रेष्ठ बने, और हमारी बुद्धि और हृदय पवित्र-निर्मल बने, हम सन्मार्ग पर चले।*


क्रमशः....(अगली कड़ी - भाग 7 में)

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

*सभी गर्भ सम्वाद निम्नलिखित ब्लॉग पर उपलब्ध हैं:-*
http://awgpggn.blogspot.com/

*"देवात्मा हिमालय तीर्थ सेवन महात्म्य - गर्भस्थ शिशु का निर्माण - एक मनोविज्ञान - गर्भ सम्वाद(भाग 5) (कुल 30 भाग हैं)*

*"देवात्मा हिमालय तीर्थ सेवन महात्म्य - गर्भस्थ शिशु का निर्माण - एक मनोविज्ञान - गर्भ सम्वाद(भाग 5) (कुल 30 भाग हैं)*

👉🏻 *गर्भ सम्वाद की पूर्व तैयारी*

शांत चित्त होकर सर्वप्रथम लम्बी व गहरी श्वांसों द्वारा प्राणाकर्षण प्राणायाम करें।

यह प्रक्रिया टहलते हुए, या आराम से बैठकर या लेटकर भी कर सकते हैं।

गर्मी का वक्त हो ठंडे जल का प्रयोग करें, और ठंडी का वक्त हो तो गुनगुने जल का प्रयोग करें। हाथ में कांच की ग्लास में जल लेकर 3 गायत्री मंत्र और 1 महामृत्युंजय मंत्र बोलते हुए उसे एकटक देखें, घर में यज्ञ भष्म हो तो एक चुटकी से भी कम उसमें मिला लें।  अभिमंत्रित जल पेट मे लगा लें और थोड़ा सा पी लें।

गर्भ पर प्यार से हाथ फेरे और निम्नलिखित बोलें

👉🏻 मेरे प्यारे बच्चे तुम्हारी माँ तुमसे बात करने आई है, मम्मा से बात करेगा मेरा बच्चा। हाँजी, ओके..

बताओ आप पेट मे कैसे हो? मम्मी पापा और घर मे सब आपको बहुत प्यार करते हैं, सब आपसे मिलने के लिए बेकरार हैं। क्योंकि तुम तो मेरे भीतर हो इसलिए तुम्हारी मम्मा तुमसे कभी भी मिल सकती है।

👉🏻 *गर्भ सम्वाद-5* - देवात्मा हिमालय

📯 चलो बेटा आज हम तुम और तुम्हारे पापा ध्यान में देवात्मा हिमालय चलते हैं, भावना करो कि एक दिव्य रथ में  मम्मा, पापा और प्यारा मेरा बच्चा बादलों के बीच हवा में उड़ते हुए दिव्य सुंदर हंस के पंखों युक्त रथ में गंगोत्री पहुंच रहे हैं। देखो कितनी ऊंची ऊंची यह उत्तराखंड की पहाड़ियां है, पिघलते ग्लेशियर से कितने सारे खूबसूरत झरने पहाड़ो से नीचे गिर रहे हैं, अद्भुत मनोरम दृश्य है,  अरे ध्यान से सुनो कल कल करते इन झरनों की मधुर ध्वनि कितनी मन भावन है, कितनी शांति व दिव्य देवात्मा हिमालय क्षेत्र में है।

मम्मा गाइड की तरह तुम्हें और पापा को तीर्थ यात्रा ध्यान में कराएगी। तो तीर्थयात्री तैयार?

जानते हो, मनुष्य को अच्छे संस्कार व प्रेरणाये देकर सुसंस्कृत बनाने ज्ञान, विज्ञान व विधान को *संस्कृति* कहते हैं। जिस स्थान में इस लोकल्याण की भावना से देव संस्कृति को गढ़ने हेतु अनेकों तप साधन किये गए हों, जहां के वातावरण में वो तप ऊर्जा व दिव्य चेतना सर्वाधिक सक्रिय, जीवन्त व मुखर अनुभव हो उस स्थान को *तीर्थ* कहते हैं। तीर्थ चेतना पारस की तरह है इसके स्पर्श से *हमारी चेतना उर्ध्वगामी बनती है*।

जानते हो बेटे, यहां स्थूल नेत्रों से देखने में बहुत कम दिखेगा। मग़र यदि तुम भावना क्षेत्र से यहाँ श्रद्धा भाव से प्रवेश करोगे तो तुम्हें कई हिमालय के तीर्थ क्षेत्र दिखेंगे जो आम जनता के लिए दृश्य नहीं है।

चलो हम श्रद्धा-भावना के साथ प्रार्थना करते हैं कि देवात्मा हिमालय का ज्ञानगंज सिद्धक्षेत्र दिखने लगे।

वो देखो, हमारी प्रार्थना स्वीकार हो गयी, यह वह सिद्ध क्षेत्र है जहाँ ऋषि सत्ताएं सूक्ष्म शरीर से तप कर रही हैं।

यहां की हिमालय श्रृंखला इन तपस्वियों के प्राण ऊर्जा से नीले रंग की दिख रही है, ऐसा लग रहा है मानो हिमालय की यह बर्फ में किसी ने हल्के नीले रंग को घोल दिया है। चारों तऱफ बर्फ़ ही बर्फ़ है और पूर्णिमा के चाँद ने इसे चांदी वर्क में मानो ढक दिया है। कितना सुंदर दृश्य है बर्फ़ के हिमालय व गहरे नीले आकाश में चमकते यह तारे और सुंदर चन्द्रमा का मनोहर दर्शन। ऐसा लग रहा है यही समाधिस्थ हो जाये, बस बैठ कर इस मनोरम दृश्य को अपलक देखते रहें।

यह देखो बर्फ़ के शिवलिंग इन्हें स्पर्श करो,  कितने ऊर्जावान व ठंडे है।  चलो जलाभिषेक करें, जल चढ़ाएं। प्रणाम करो🙏🏻

इस तीर्थ क्षेत्र की तप ऊर्जा से जुडो मेरे बेटे, इस तप ऊर्जा के प्राण को अपने प्राणों में घोलो। इन सबसे आशीर्वाद लो और इनके श्री चरणों के ध्यान में खो जाओ। यहां वेदमन्त्रों की गूंज है इन्हें ध्यान से सुनो और हृदय तक पहुंचाओ।

हिमालय की पवित्रता   शांति यदि मष्तिष्क में रखोगे तो जीवन मे जो चाहोगे हासिल कर सकोगे।

चलो मेरे साथ मंत्रराज वेदों का सार गायत्री मन्त्र 5 बार बोलो

*ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योन: प्रचोदयात !*

चलो प्रणाम करो, अब तुम दोनों हाथ रगड़ो जैसे मम्मा रगड़ रही है। अब मम्मा पहले बच्चे को लगाएगी गर्भ में हाथ फेरिये। बेटे आप अपने मुंह मे लगाइए। अब मम्मा  अपने मुंह मे लगाएगी। शाबास अब आप आराम करो पेट में और मम्मा कुछ घर का काम कर लेती है।  चलो अब घर चलते है।

क्रमशः....(अगली कड़ी - भाग 6 में)

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

*सभी गर्भ सम्वाद निम्नलिखित ब्लॉग पर उपलब्ध हैं:-*
http://awgpggn.blogspot.com/

*"गंगोत्री तीर्थ महात्म्य - गर्भस्थ शिशु का निर्माण - एक मनोविज्ञान - गर्भ सम्वाद(भाग 4) (कुल 30 भाग हैं)*

*"गंगोत्री तीर्थ महात्म्य - गर्भस्थ शिशु का निर्माण - एक मनोविज्ञान - गर्भ सम्वाद(भाग 4) (कुल 30 भाग हैं)*

👉🏻 *गर्भ सम्वाद की पूर्व तैयारी*

शांत चित्त होकर सर्वप्रथम लम्बी व गहरी श्वांसों द्वारा प्राणाकर्षण प्राणायाम करें।

यह प्रक्रिया टहलते हुए, या आराम से बैठकर या लेटकर भी कर सकते हैं।

गर्मी का वक्त हो ठंडे जल का प्रयोग करें, और ठंडी का वक्त हो तो गुनगुने जल का प्रयोग करें। हाथ में कांच की ग्लास में जल लेकर 3 गायत्री मंत्र और 1 महामृत्युंजय मंत्र बोलते हुए उसे एकटक देखें, घर में यज्ञ भष्म हो तो एक चुटकी से भी कम उसमें मिला लें।  अभिमंत्रित जल पेट मे लगा लें और थोड़ा सा पी लें।

गर्भ पर प्यार से हाथ फेरे और निम्नलिखित बोलें

👉🏻 मेरे प्यारे बच्चे तुम्हारी माँ तुमसे बात करने आई है, मम्मा से बात करेगा मेरा बच्चा। हाँजी, ओके..

बताओ आप पेट मे कैसे हो? मम्मी पापा और घर मे सब आपको बहुत प्यार करते हैं, सब आपसे मिलने के लिए बेकरार हैं। क्योंकि तुम तो मेरे भीतर हो इसलिए तुम्हारी मम्मा तुमसे कभी भी मिल सकती है।

👉🏻 यदि पापा या दादी या बुआ को गर्भस्थ से बात करनी है तो  पेट पर हाथ रखकर प्यार से बोल सकते हैं। 

👉🏻 *गर्भ सम्वाद-4*

📯 चलो बेटा आज तुम्हें हम गंगोत्री मां गंगा के तीर्थ लेकर चलते हैं, भावना करो कि एक दिव्य रथ में मम्मा और प्यारा मेरा बच्चा बादलों के बीच हवा में उड़ते हुए दिव्य सुंदर हंस के पंखों युक्त रथ में गंगोत्री पहुंच रहे हैं। देखो कितनी ऊंची ऊंची यह उत्तराखंड की पहाड़ियां है, पिघलते ग्लेशियर से कितने सारे खूबसूरत झरने पहाड़ो से नीचे गिर रहे हैं, अद्भुत मनोरम दृश्य है,  अरे ध्यान से सुनो कल कल गंगा जल की मधुर ध्वनि कितनी मन भावन है, कितनी शांति व दिव्य वातावरण यहाँ गंगोत्री में है। चलो थोड़ा सा गंगा जल हम अपने मुंह और बेबी के मुंह मे लगा लेते हैं, देखो बहुत ठंडा है न। अरे यह तो कितना अमृत जैसा मीठा जल है।

जानते हो, पहले पृथ्वी पर गंगा जी नहीं थी, वो केवल स्वर्ग में थीं। चलो तुम्हें गंगा जी के धरती पर अवतरण की कहानी सुनाते हैं। ध्यान से सुनना।

कई हज़ार वर्ष पहले भारत में एक राजा थे साग़र, उनकी दो पत्नी थीं। एक बुद्धिमती व दूसरी चंचल मति थी। दोनों ने तपस्या की और ब्रह्मा जी प्रकट हुए। बुद्धिमति रानी ने केवल एक बुद्धिमान और कुशल पुत्र मांगा। चन्छलमती रानी ने ढेर सारे लगभग 60 हज़ार अपने जैसे चंचल पुत्र मांगे।

एक बार राजा सागर ने *अश्वमेध यज्ञ किया* और यज्ञ का घोड़ा छोड़ दिया। भगवान इंद्र ने परीक्षा लेने के लिए यज्ञ के घोड़े को *कपिल ऋषि* के आश्रम में छुपा दिया। चंचल मन वाली रानी के 60 हज़ार पुत्रो ने कपिल ऋषि को घोड़ा चोर समझकर परेशान करना शुरू कर दिया। क्रोध में कपिल ऋषि ने अभिमंत्रित जल उनपर छिड़क कर श्राप देकर उन्हें भष्म कर दिया और वो नर्क गामी पतित हो गए। अपने भाई की मृत्यु से बुद्धि युक्त मन वाली रानी के पुत्र ने तपस्या की और उनके खानदान में राजा भागीरथ का जन्म हुआ। पिता के आदेश से वो 60 हज़ार पूर्वजों की मुक्ति के लिए गंगा को धरती पर लाने के लिए कई वर्षों तक कठोर तप करके भगवान शंकर व गंगा माता को प्रशन्न किया।

माता गंगा स्वर्ग से नीचे पृथ्वी की ओर बढ़ी, उनका जल पाताल लोक न चला जाय इसलिए भगवान शिव ने उन्हें अपनी विशाल जटाओं में धारण किया। और एक धारा धरती पर गोमुख से छोड़ी, माता गंगा भागीरथ के साथ कपिल आश्रम आई और 60 हज़ार भगीरथ के पूर्वजों को मुक्ति प्रदान किया। तब से गंगा जी धरती पर हैं। इनका जल कभी सड़ता नहीं है, कई महीनों तक स्टोर करके रखा जा सकता है। इनके जल में पवित्र मन व श्रद्धा भाव से स्नान करने पर मुक्ति मिलती है।

चलो हम तुम इस पवित्र जल में स्नान करते है और इस अमृत जल का को पीते हैं।

चलो मेरे साथ माता गंगा का यह मन्त्र 5 बार बोलो

*ॐ भागीरथ्ये विद्महे, विश्नुपत्न्ये च धीमहि ! तन्नो गंगा प्रचोदयात !*

अर्थात- पवित्र माँ गंगा जिनका भागीरथ के प्रयास से धरती पर अवतरण हुआ उनकी पवित्रता को हम अपनी मन व बुद्धि में धारण करते है व उनका ध्यान करते हैं, वह भगवान विष्णु की अर्धांगिनी माँ गंगा हमें सन्मार्ग की ओर ले चलें।

चलो प्रणाम करो, अब तुम दोनों हाथ रगड़ो जैसे मम्मा रगड़ रही है। अब मम्मा पहले बच्चे को लगाएगी गर्भ में हाथ फेरिये। बेटे आप अपने मुंह मे लगाइए। अब मम्मा  अपने मुंह मे लगाएगी। शाबास अब आप आराम करो पेट में और मम्मा कुछ घर का काम कर लेती है।  चलो अब घर चलते है।

क्रमशः....(अगली कड़ी - भाग 5 में)

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

*सभी गर्भ सम्वाद निम्नलिखित ब्लॉग पर उपलब्ध हैं:-*
http://awgpggn.blogspot.com/

ब्रह्मलोक ध्यान - गर्भस्थ शिशु का निर्माण - एक मनोविज्ञान - गर्भ सम्वाद(भाग 3) (कुल 30 भाग हैं)

*गर्भस्थ शिशु का निर्माण - एक मनोविज्ञान - गर्भ सम्वाद(भाग 3) (कुल 30 भाग हैं)*

👉🏻 *गर्भ सम्वाद की पूर्व तैयारी*

शांत चित्त होकर सर्वप्रथम लम्बी व गहरी श्वांसों द्वारा प्राणाकर्षण प्राणायाम करें।

यह प्रक्रिया टहलते हुए, या आराम से बैठकर या लेटकर भी कर सकते हैं।

गर्मी का वक्त हो ठंडे जल का प्रयोग करें, और ठंडी का वक्त हो तो गुनगुने जल का प्रयोग करें। हाथ में कांच की ग्लास में जल लेकर 3 गायत्री मंत्र और 1 महामृत्युंजय मंत्र बोलते हुए उसे एकटक देखें, घर में यज्ञ भष्म हो तो एक चुटकी से भी कम उसमें मिला लें।  अभिमंत्रित जल पेट मे लगा लें और थोड़ा सा पी लें।

गर्भ पर प्यार से हाथ फेरे और निम्नलिखित बोलें

👉🏻 मेरे प्यारे बच्चे तुम्हारी माँ तुमसे बात करने आई है, मम्मा से बात करेगा मेरा बच्चा। हाँजी, ओके..

बताओ आप पेट मे कैसे हो? मम्मी पापा और घर मे सब आपको बहुत प्यार करते हैं, सब आपसे मिलने के लिए बेकरार हैं। क्योंकि तुम तो मेरे भीतर हो इसलिए तुम्हारी मम्मा तुमसे कभी भी मिल सकती है।

👉🏻 यदि पापा या दादी या बुआ को गर्भस्थ से बात करनी है तो  पेट पर हाथ रखकर प्यार से बोल सकते हैं। 

👉🏻 *गर्भ सम्वाद-3*

📯 चलो बेटा आज तुम्हें हम ब्रह्मलोक लेकर चलते हैं, जहां सृष्टि का संचालन करने वाले भगवान ब्रह्मा जी व बुद्धि की देवी सरस्वती की का वास है। भावना करो कि एक दिव्य रथ में मम्मा और प्यारा मेरा बच्चा बादलों के बीच हवा में उड़ते हुए दिव्य सुंदर हंस के पंखों युक्त रथ में ब्रह्मलोक पहुंचे हैं। अरे ध्यान से सुनो वीणा की मधुर ध्वनि कितनी मन भावन है, कितनी शांति व दिव्य वातावरण यहाँ है। यहां ब्रह्मसरोवर है चलो थोड़ा सा जल हम अपने मुंह और बेबी के मुंह मे लगा लेते हैं। अरे यह तो कितना अमृत जैसा मीठा जल है। देखो कितने सुंदर कमल के फूल, रंगबिरंगे फूल। चलो कुछ पुष्प भगवान परमपिता ब्रह्मा और माता सरस्वती जी को चढाते हैं।

ब्रह्मा जी की उत्तपत्ति विष्णु जी के नाभि कमल से हुई थी, जैसे कि तुम मेरे नाभि कमल नाल से उत्तपन्न हुए हो। ब्रह्मा जी को सृष्टि करने का आदेश भगवान विष्णु ने दिया। तब ब्रह्मा जी ने कई वर्षों तक कठोर तप माता गायत्री के मन्त्रो का जप करके किया। माता प्रकट हुईं और सृष्टि करने की शक्ति प्रदान की। ब्रह्मा जी ने  सृष्टि की और मानव जाति को वेदों का   ज्ञान दिया। माता सरस्वती ब्रह्मा जी की अर्धांगिनी है, वो हमें बुद्धि देती है इसलिए हम सोच समझ सकते हैं और समस्त जीवों में मानव श्रेष्ठ बना। चलो पुनः दोनो शक्तियों को प्रणाम करो।

चलो तुम जल डालो और मैं भगवान  के चरण धोती हूँ। सम्हाल के मेरे बच्चे धीरे धीरे जल डालो। ओह हो मेरे प्यारे बच्चे आपको तो भगवान ब्रह्मा जी ने और माता सरस्वती ने गोद मे ले लिया, इतना प्यार दुलार दोनो से मिल रहा है। देखो तुम्हारे अंदर दिव्य शक्ति का प्राण संचार कर रहे हैं, तुम नीले नीले प्रकाश से भर उठे हो, देखो  मम्मा को भी भगवान ब्रह्मा एव माता सरस्वती का प्यार आशीर्वाद मिल रहा है।

चलो बेटा पुष्प जो हम लाये थे भगवान को दो, मुंह खोलो चरणामृत जल का प्रसाद ग्रहण करो। हम भी पी लेते हैं।

देखो जो ब्रह्मा हैं वही हम हैं, हम उन्हीं का अंश हैं। शेर का बच्चा शेर होता है न, तो सत चित आनन्द स्वरूप सृष्टिकर्ता भगवान ब्रह्मा का अंश सृजनकर्ता ही होगा। तुम भगवान ब्रह्मा के समान बुद्धिमान, शक्तिमान, ऐश्वर्यवान हो। तुम सर्वशक्तिमान हो। इसे याद रखना। जानते हो इसे याद रखने का मन्त्र क्या है?

*सो$हम* अर्थात जो भगवान ब्रह्मा है उसी का अंश मैं भी हूँ। मैं वही हूँ।

चलो मम्मा के साथ 5 बार बोलो *सो$हम*

चलो प्रणाम करो और घर चलते हैं, अब तुम दोनों हाथ रगड़ो जैसे मम्मा रगड़ रही है। अब मम्मा पहले बच्चे को लगाएगी गर्भ में हाथ फेरिये। बेटे आप अपने मुंह मे लगाइए। अब मम्मा  अपने मुंह मे लगाएगी। शाबास अब आप आराम करो पेट में और मम्मा कुछ घर का काम कर लेती है।

क्रमशः....(अगली कड़ी - भाग 4 में)

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 28 August 2019

प्रश्न - *दी, मेरी जॉब की व्यस्तता है, ज्यादा से ज्यादा आधे घण्टे ही पूजन के समक्ष बैठकर जप कर सकता हूँ, मेरे लिए जो उत्तम हो वह दैनिक साधना बताइये जिससे जॉब व्यस्तता के बावजूद अपनी आत्मिक उन्नति का मार्ग प्रसस्त कर सकूं।*

प्रश्न - *दी, मेरी जॉब की व्यस्तता है, ज्यादा से ज्यादा आधे घण्टे ही पूजन के समक्ष बैठकर जप कर सकता हूँ, मेरे लिए जो उत्तम हो वह दैनिक साधना बताइये जिससे जॉब व्यस्तता के बावजूद अपनी आत्मिक उन्नति का मार्ग प्रसस्त कर सकूं।*

उत्तर - आत्मीय भाई, आप एक वर्ष तक की नियमित उपासना व्रत जिसे *सहस्त्रांशु साधना* कहते हैं, करना शुरू कीजिए। *एक वर्ष बाद* अपने अनुभव साझा कीजिये तब आप दूसरे वर्ष से उच्चस्तरीय साधना क्रम करने में समर्थ होंगे।

*सहस्त्रांशु साधना के नियम इस प्रकार हैं:-*

👉🏻 पूजन चौकी में दीपक जलाकर, दैनिक षट कर्म करें, उसके बाद देव आह्वाहन करके जप प्रारम्भ कर दें। एक स्थान व एक आसन प्रयोग करें तो उत्तम होगा। समय कोशिश करें कि एक ही हो यदि सम्भव न हुआ तो कोई बात नहीं।

👉🏻 कम से कम 10 माला नित्य गायत्री मंत्र जपना है, अब यह जितना पूजन गृह में जप सकते हैं उतना उपांशु जप(होठ हिलते रहेंगे व अत्यंत धीमा भीतर ही भीतर स्वर) वहाँ सुबह जप लें। कुछ मौनमानसिक शाम को जप लें। कुछ यात्रा के दौरान मौनमानसिक जप लें। कुछ ऑफिस में मौनमानसिक जप लें। यह माला सर्वत्र नहीं ले जाया जा सकता। अतः घड़ी देखकर जप लें। टोटल यह मान लें आपके दिन रात के 24 घण्टे में से मात्र एक घण्टा गायत्री जप होना चाहिए। 10 माला गायत्री के साथ 24 महामृत्युंजय मंत्र जप होना चाहिए।

👉🏻 प्रत्येक रविवार या गुरुवार में जो आप को सुविधा लगे उस दिन व्रत रखें। कम से कम बोलें और कुछ घण्टों या मिनटों जो सधे उतना मौन रखें।
(यदि फ़लाहार व दूध लेकर केवल व्रत न रह सकें, तो शाम को एक वक़्त गेहूं से बने मिष्ठान्न व चपाती खाकर अर्ध्य उपवास रख लें)

👉🏻पूर्णिमा या अंतिम रविवार को कम से कम 24 गायत्री मंत्र, 5 महामृत्युंजय मंत्र, 3 सूर्य गायत्री मंत्र, 3 चन्द्र गायत्री मंत्र, 3 रुद्र गायत्री मंत्र की आहुतियाँ अर्पित करते हुए यज्ञ करें।
आप सक्षिप्त यज्ञ गोमयकुण्ड से या नारियल के टुकड़ों से या आम की समिधा से जिससे सम्भव हो कर लें।

निम्नलिखित पुस्तक में घर में यज्ञ व साधना की विधि है और साथ ही हवन सामग्री व दुप्पटा भी इसे ऑनलाइन मंगवा लें, या नजदीकी शक्तिपीठ से खरीद लें:-

http://literature.awgp.org/book/gayatri_ki_dainik_sadhna/v1

https://www.awgpstore.com/

4- गायत्री मन्त्रलेखन कम से कम 24 बिस्तर में सोने से पूर्व कभी भी घर मे या बाहर या ट्रेन-बस यात्रा में कर लें। इसमें कोई निश्चित समय की आवश्यकता नहीं।मन्त्रलेखन पुस्तिका तकिया के नीचे रख के सोएं जिससे मन्त्र की शुभ व दिव्य वाइब्रेशन आपके मष्तिष्क में पहुंचे।

5- स्वाध्याय में  युगसाहित्य कोई भी पुस्तक 15 मिनट पढ़ लें। इसके लिए मोबाईल में ब्राउज़र ओपन करके ऑनलाइन भी पढ़ सकते हैं या खरीद के बुक पढ़ सकते है। हमसे पूँछेगे कि प्रथम पुस्तक कौन हो तो हम निम्नलिखित वांग्मय 57 - *मनस्विता, प्रखरता एवं तेजस्विता* पढ़ने की सलाह देंगे। इसे एक वर्ष में पूरा पढ़ लीजिये:-

https://www.awgpstore.com/gallery/product/init?id=380

6- व्हाट्सएप या अपने फ़ेसबुक में जो पढ़ा उसकी समरी बनाकर पोस्ट कर दीजिये। जिससे दुसरो का भी भला हो।

7- सुबह आत्मबोध और रात को तत्वबोध की साधना करनी है। सुबह भगवान को धन्यवाद दीजिये, स्वयं से कहिए उस सर्वशक्तिमान परमात्मा का मैं सर्वशक्तिमान पुत्र हूँ। मैं उसके जैसा ही बुद्धिमान, ऐश्वर्यवान, शक्तिमान बनने के लिए पूरे दिन प्रयत्नशील रहूंगा, आज क्या क्या करना है कि अग्रिम रिपोर्ट भगवान को मानसिक तौर पर बता दीजिए। रात को दिनभर का मानसिक लेखा जोखा भगवान को रिपोर्ट देकर सो जाइये।
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यह *सहस्त्रांशु साधना* शुरू करने से पहले एक पत्र या ईमेल शान्तिकुंज श्रद्धेया शैल जीजी को प्रेषित कर दें। जिससे गुरु सत्ता का सूक्ष्म संरक्षण व दोषपरिमार्जन हो जाये।
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*शांतिकुंज पत्र व्यवहार का पता:-*
Gayatri  Teerth Shantikunj, Haridwar,
Uttaranchal, India – 249411
Phone no : 91-1334- 260602, 260403, 260309, 261955, 261485
E-mail : shantikunj@awgp.org, webadmin@awgp.org,visitors@awgp.in

Reference Book👉🏻 📖 *गायत्री की दैनिक एवं विशिष्ठ अनुष्ठान-परक साधनाएं*, पेज - 4.46, शीर्षक - *सहस्त्रांशु साधना*

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संक्षिप्त यज्ञ - विचारक्रांति चलचित्र अभियान की यूट्यूब लिंक में समझें:-

https://youtu.be/3ONVThXZB9g

संक्षिप्त यज्ञ - आदरणीय भाई श्री प्रकाश मूरजानी जी से यूट्यूब लिंक में समझें:-

https://youtu.be/xgGlpv7f7WY

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *क्या प्रणीता पात्र का जल व यज्ञ भष्म घुटने के दर्द की जगह लगाया जा सकता है?*

प्रश्न - *क्या प्रणीता पात्र का जल व यज्ञ भष्म घुटने के दर्द की जगह लगाया जा सकता है?*

उत्तर - जब यज्ञ भेषज और औषधीय उपचार के लिए किया जाता है, तो उसे औषधी रूप में प्रणाम कर यज्ञ भष्म व प्रणीता पात्र का जल अपने पैर के घुटनों में लगाया जाता है। यही नियम तुलसी पत्र व गंगाजल से बने औषधीय लेप के साथ भी है। लेकिन ध्यान रहे मन ही मन भगवान से अनुमति प्राप्त कर लें।

धर्म व युगधर्म में अंतर समझना यहाँ जरूरी है। धर्म सामान्य परिस्थिति में पालन होता है, लेकिन युगधर्म विशेष परिस्थिति में पालन होता है।

जब आप रोगी है और पिता चिकित्सक तो आपके घुटनो में उनका हाथ लगे बगैर उपचार किस कदर सम्भव होगा। लेकिन साधारण परिस्थिति में तो आप पिता को अपने घुटनों में हाथ लगाने नहीं देंगे। यज्ञ भगवान भी पिता स्वरूप चिकित्सक हैं।

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *दी, क्या अखण्ड जप की तरह हम अखण्ड यज्ञ का आयोजन कर सकते हैं?*

प्रश्न - *दी, क्या अखण्ड जप की तरह हम अखण्ड यज्ञ का आयोजन कर सकते हैं?*

उत्तर - आत्मीय बहन, अखण्डजप में स्थूल कर्मकांड नहीं होता, मात्र दीपक की उपस्थिति में उपांशु जप चलता है।

यज्ञ एक स्थूल कर्मकांड है, और इसमें सावधानी अत्यंत आवश्यक है।

📖 *गायत्री विषयक शंका समाधान*, *यज्ञ का ज्ञान विज्ञान* और *यग्योपैथी- एक समग्र उपचार* इत्यादि पुस्तकों सूर्य किरणों की उपस्थिति में ही यज्ञ करने की सलाह दी गयी है।

यज्ञ के दौरान सूर्य रश्मियाँ भी यज्ञ धूम्र में अपना प्रभाव उपस्थित करती हैं। सूर्य की उपस्थिति में यज्ञ में निकली अन्य गैसें वृक्ष वनस्पतियों द्वारा प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। जो कि प्रकाश के अभाव में सम्भव नहीं है।

प्रकृतिनुसार सूर्यास्त के बाद कीट पतंगे रात्रि में जहां प्रकाश देखेंगे आकृष्ट होकर उसमें स्वयं आहूत हो जाएंगे। हिंसा की सम्भावना बढ़ जाती है। रात्रि में सतर्कता कम होता है। अतः रात्रि में यज्ञ करने का औचित्य नहीं है। रात्रि में अखण्डजप के दौरान अखण्ड दीपक भी हो सके तो कांच के आवरण में ढक कर ही जलाएं।

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *भारतीय संस्कृति के मूल भूत तत्व एवं भारतीय संस्कृति का आधार क्या है?*

प्रश्न - *भारतीय संस्कृति के मूल भूत तत्व एवं भारतीय संस्कृति का आधार क्या है?*

उत्तर - आत्मीय भाई,

*"संस्कृति" का अर्थ है वह कृति- कार्य पद्धति जो संस्कार संपन्न हो*।। व्यक्ति की उच्छृंखल मनोवृत्ति पर नियंत्रण स्थापित कर कैसे उसे संस्कारी बनाया जाय यह सारा अधिकार क्षेत्र संस्कृति के मूर्धन्यों का है एवं इसी क्षेत्र पर हमारे ऋषिगणों ने सर्वाधिक ध्यान दिया है ।।

भारतीय संस्कृति हमारी मानव जाति के विकास का उच्चतम स्तर कही जा सकती है ।। इसी की परिधि में सारे विश्वराष्ट्र के विकास के- वसुधैव कुटुम्बकम् के सारे सूत्र आ जाते हैं ।। हमारी संस्कृति में जन्म के पूर्व से मृत्यु के पश्चात् तक मानवी चेतना को संस्कारित करने का क्रम निर्धारित है ।। मनुष्य में पशुता के संस्कार उभरने न पायें, यह इसका एक महत्त्वपूर्ण दायित्व है ।। भारतीय संस्कृति मानव के विकास का आध्यात्मिक आधार बनाती है और मनुष्य में संत, सुधारक, शहीद की मनोभूमि विकसित कर उसे मनीषी, ऋषि, महामानव, देवदूत स्तर तक विकसित करने की जिम्मेदारी भी अपने कंधों पर लेती है ।। सदा से ही भारतीय संस्कृति महापुरुषों को जन्म देती आयी है व यही हमारी सबसे बड़ी धरोहर है ।।

भारतीय संस्कृति की अन्यान्य विशेषताओं सुख का केन्द्र आंतरिक श्रेष्ठता, अपने साथ कड़ाई, औरों के प्रति उदारता, विश्वहित के लिए स्वार्थों का त्याग, अनीतिपूर्ण नहीं- नीतियुक्त कमाई पारस्परिक सहिष्णुता, स्वच्छता- शुचिता का दैनन्दिन जीवन में पालन, परिवार- व राष्ट्र के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारी का परिपालन, अनीति से लड़ने संघर्ष करने का साहस- मन्यु, पितरों की तृप्ति हेतु तथा पर्यावरण संरक्षण हेतु स्थान- स्थान पर वृक्षारोपण कर हरीतिमा विस्तार तथा अवतारवाद का हेतु समझते हुए तदनुसार अपनी भूमिका निर्धारण सभी पक्षों का बड़ा ही तथ्य सम्मत- तर्क विवेचन पूज्यवर ने इसमें प्रस्तुत किया है ।।

वर्णाश्रम पद्धति हमारी संस्कृति की विशेषता है एवं समाज की सुव्यवस्था की एक सुदृढ़ आधार शिला है ।। आज इस संबंध में अनेकानेक भ्रान्तियाँ फैला दी गयी हैं पर वस्तुतः यह सारी विधि व्यवस्था मानवी जीवन को व उसकी सामाजिक जिम्मेदारियों को एक निर्धारित क्रम में बाँधने के लिए बनी थीं ।। इसी सामाजिक पक्ष में संस्कृति के खान- पान, जाति- पाँति, ऊँच- नीच, भाषा वेश, गुण- कर्म की परिष्कार से समाज की आराधना जैसे अनेकानेक पक्ष आ जाते हैं इनका वर्णन विस्तार से हुआ है ।। गुरु, गायत्री, गंगा, गौ व गीता ये पाँच हमारी संस्कृति के महत्त्वपूर्ण आधारस्तंभ माने जाते हैं ।। इनके प्रति श्रद्धा रख हम अपनी सांस्कृतिक गौरव गरिमा का अभवर्धन करते हैं एवं इनके माध्यम से अनेकानेक अनुदान भी दैनन्दिन जीवन में पाते हैं ।।

संक्षेप में,  हमारी भारतीय संस्कृति मनुष्य को निम्नलिखित बनाती है:-


*आस्तिक* - स्वयं पर और स्वयं को बनाने वाले परमात्मा पर भरोसा करना। सर्वशक्तिमान परमात्मा के हम सर्वशक्तिमान सन्तान हैं।

*धार्मिक* - धर्म अर्थात कर्तव्य पालन - स्वयं के प्रति, परिवार के प्रति समाज के प्रति व राष्ट्र के प्रति कर्तव्यों और उत्तरदायित्व का पालन करना।

*गायत्री मन्त्र की दीक्षा* - श्रेष्ठता का वरण, सही मार्ग पर आरूढ़ रहना। स्वयं की बुद्धि में परमात्मा को धारण करना और उनके अनुशासन में श्रेष्ठ जीवन जीना। आत्म अनुशासन पालना और स्वयं के विचारों का प्रबंधन करना।

🙏🏻श्वेता, DIYA

*वैदिक हरतालिका पूजन विधि व मुहूर्त* - 21 अगस्त 2020🌺

🌺 *वैदिक हरतालिका पूजन विधि व मुहूर्त*  - शान्तिकुंज के कैलेंडर अनुसार - 21 अगस्त 2020, शुक्रवार



*प्रदोष काल शुभ मुहूर्त -हरतालिका तीज व्रत का शुभ पूजन मुहूर्त-*

हरतालिका तीज मुहूर्त

प्रातःकाल मुहूर्त : 05:53:39 से 08:29:44 तक

अवधि : 2 घंटे 36 मिनट

प्रदोष काल मुहूर्त :18:54:04 से 21:06:06 तक


इस व्रत को स्त्री,पुरुष,कुँवारी कन्या जो चाहे वो अपने सुख-सौभाग्य और सुखी दाम्पत्य जीवन की प्राप्ति के लिए कर सकता है।


हरतालिका दो शब्द से बना है *हर* अर्थात् अगवा/हरण करना आउट *तालिका* अर्थात् सखी। पार्वती जी की सखी ने पार्वती जी को उनके पिता के घर से निकाल कर जंगल तप हेतु पहुँचाया था।

👉🏻 *कथा* 👈🏻

*इस व्रत को सर्वप्रथम माँ पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में वरण हेतु किया था। माता ने निर्जला व्रत किया था और प्रदोष संध्याओं में शिव जी का रुद्राभिषेक किया। दिन-रात महामृत्युंजय का अखण्ड जप करते हुए ध्यानस्थ रहीं। व्रत के दूसरे दिन शिव ब्राह्मण का रूप धरकर पानी में डूबने लगे और मगरमच्छ उनके पीछे पड़ा था। उनके आवाज़ देने पर माँ पार्वती ने अपना बाँया हाथ बचाने हेतु बढ़ाया, लेकिन ब्राह्मण ने दाहिना हाथ माँगा, तो माता ने कहा यह शिव के ही हाथ में दूँगी। तब शिव प्रकट हुए और वरदान मांगने हेतु कहा,तब माता ने कहा आज के दिन जो स्त्री आपका रुद्राभिषेक द्वारा पूजन कर व्रत रहेगी और रूद्र अष्टाध्यायी का पाठ करेगी। साथ ही निरन्तर पुरे दिन महामृत्युंजय मन्त्र का जप करेगी, आप उसे इस व्रत स्वरूप सुख सौभाग्य का आशीर्वाद दें।*

सुखमय दाम्पत्य की इच्छाओं और आवश्यकताओं को पूरा करने में तथा बहुत से दाम्पत्य जीवन के अनिष्टों को टालने में यह व्रत उपयोगी सिद्ध होता हैं।

इस पूजन में माता पार्वती, भगवान शंकर और गणेश जी की पूजा की जाती है। सुबह से निर्जला, या जलाहर या रसाहार लेकर यह पुनीत व्रत स्त्री पुरुष दोनों कर सकते हैं। कोई ठोस आहार लेना वर्जित है।

इस दिन सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए तीन बार पूजन करना चाहिए, सुबह सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए तीन माला गायत्री मन्त्र की, एक माला महामृत्युंजय मन्त्र की और एक माला सूर्य गायत्री मन्त्र की अवश्य करनी चाहिए और उसके बाद आरती।

दिन में कम से कम एक बार सामूहिक घर परिवार के साथ रुद्राभिषेक अवश्य करें। दिन भर मौन मानसिक महामृत्युंजय मन्त्र जपें। टीवी सीरियल और अनर्थ कारी चिंतन वाला साहित्य न पढ़े न देखें।

शाम को प्रदोष समय रुद्राभिषेक के बाद दीपयज्ञ करना चाहिए। साथ में कलश में जल भरकर रखें। पूजन में फ़ल फूल प्रसाद एक थाल में अर्पित करना चाहिए। दीपयज्ञ में 24 गायत्री मन्त्र, 11 महामृत्युंजय मन्त्र और 11 सूर्य गायत्री मन्त्र की आहुति दें, फ़िर सुबह का इंतज़ार करें।

दूसरे दिन सुबह पति पत्नी साथ में सूर्य दर्शन करें। दोनों साथ में पांच बार गायत्री मन्त्र, 3 बार महामृत्युंजय मन्त्र, 3 बार सूर्य गायत्री का मन्त्र पढ़कर सूर्य को कलश के जल से अर्घ्य देंवें। शांति पाठ करें।

👉🏻ये optional है,  पति का को तिलक चन्दन कर आरती उतारें। यहां भाव करें क़ि हम पार्वती है और हमारे पति शिवस्वरूप हैं, अपने भीतर की बुराइयों को त्याग के अच्छाईयां ग्रहण करेंगे। साथ में हम पति की अच्छाइयों पर फ़ोकस करेंगे न क़ि उनकी बुराईयों पर। फ़िर पति पत्नी को मीठा खिलाकर जल पिलाएंगे। भावना करेंगे मन वचन कर्म से पत्नी के जीवन में माधुर्य और शीतलता बनी रहे ऐसा हर सम्भव प्रयास करेंगे। पत्नी पति के चरण स्पर्श करेगी और पति उसे सौभाग्य का आशीर्वाद देंगें।

फ़िर जो पूजन के वक्त एक थाली फ़ल प्रसाद भगवान को चढ़ाया था उसी थाली में पति पत्नी एक साथ भोजन करते हैं ऐसा वैदिक विधान कहता है, दूसरे दिन एक दूसरे का जूठा खाने से दाम्पत्य जीवन सुखमय बनता है।

*गायत्री मन्त्र*- ॐ भूर्भूवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्।

*महामृत्युंजय मन्त्र*- ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टि वर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।

*सूर्य मन्त्र*- ॐ भाष्कराये      विद्महे, दिवाकराय धीमहि, तन्नो सूर्यः  प्रचोदयात्।


*चन्द्र मन्त्र*- ॐ क्षीरपुत्राय    विद्महे, अमृतत्वाय धीमहि, तन्न: चन्द्र:  प्रचोदयात्।

*पति के उद्धार हेतु मृत्युंजय मन्त्र* - ॐ जूं स: माम् पति पालय पालय स: जूं ॐ।

रुद्राभिषेक के लिए सुगम शिवार्चन विधि पढ़कर करें


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *यज्ञ के दौरान आज्याहुति के दौरान टपकाये प्रणीता पात्र के जल की ऊर्जा बोविस मीटर पर उच्च यूनिट पर प्रदर्शित होता है, इसके पीछे रहस्य क्या है?*

प्रश्न - *यज्ञ के दौरान आज्याहुति के दौरान टपकाये प्रणीता पात्र के जल की ऊर्जा बोविस मीटर पर उच्च यूनिट पर प्रदर्शित होता है, इसके पीछे रहस्य क्या है?*


उत्तर- स्वर-विज्ञान कहता है मन्त्र की नाद लहरियों में इतना सामर्थ्य होता है कि वह प्राकृतिक परमाणुओं में शब्द तरंगों से हलचल उतपन्न करके इच्छित परिणाम ला सकती है।

घी ऊर्जा व तरंग दोनों का वाहक है, जब आहुति के साथ मन्त्र का शब्द प्रहार होता है तो अग्नि के ऑक्सीकरण विधि में अग्नि व मन्त्र के सँयुक्त सम्पर्क से घी के प्राकृतिक परमाणुओं में विस्फोट होता है, उसी विस्फोटक अवस्था मे उसे जल में टपका दिया जाता है। जो जल के प्राकृतिक परमाणुओं में भी अपेक्षित विस्फोट करती है।

आयुर्वेद, होमियोपैथी व आधुनिक विज्ञान जानता है कि जितना परमाणुओं को तोड़ेंगे उतनी ज्यादा ऊर्जा को कई गुना बढ़ा सकेंगे। यही क्रम इसमें भी कार्य करता है क्योंकि घी के परमाणुओं में विष्फोट हुआ व उसने जल के परमाणुओं में विष्फोट कर दिया साथ ही मन्त्र के नाद की अल्ट्रा साउंड तरंगे उच्च ऊर्जा का उत्पादन करती हैं। जल उस उच्च दाब की ऊर्जा को डाइल्यूट भी करता है और मनुष्य के सहने योग्य बनाता है।

इसे यज्ञ के पश्चात पुनः हाथों में लगाकर अग्नि के समक्ष  घृतावघ्राण मन्त्र द्वारा पुनः अभिमंत्रित करके हाथों की रगण द्वारा प्राण प्रवाह मिलाकर पुनः रगण से उसे और तोड़ा जाता है फिर तुरन्त तेज़ी से सूंघा जाता है। जिससे वह सूक्ष्म ऊर्जा श्वांस में मिलकर फेफड़ों तक फ़िर वहाँ से रक्त में मिलकर पूरे शरीर में पहुंचकर रक्त के लौह कणों को तरंगित व ऊर्जा  वान कर देती है। एक प्रकार के करंट का संचार करती है।

यदि इस जल को क्रिलियन फोटो कैमरे से देखेंगे तो सहज प्रकाश किरणों को नोटिस कर सकेंगे।

इस जल को डायरेक्ट पीने की सलाह न देने के पीछे दो कारण होते हैं:-

1- सभी मनुष्य की आंते वर्तमान में इतनी सक्षम नहीं कि उच्च ऊर्जा के द्रव्य को पचा सके। यदि वह व्यक्ति साधक लेवल का न हुआ तो इस शक्ति को सम्हाल न सकेगा। अब यह अत्यंत कठिन कार्य है कि यज्ञ पूर्व साधक की स्थिति को जांचना। अतः उत्तम यह है कि इसे सहज ही प्राणवायु में मिश्रित करने की विधि घ्राण से लिया जाय।

2- जल जो यज्ञ कुंड के पास रखा होता है, यज्ञ के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड के साथ अन्य गैसें जो ऑक्सीज़न से भारी होने के कारण पहले नीचे फिर ऊपर उठती हैं, यज्ञकुण्ड के पास रखा जल  कार्बन व अन्य जल को अवशोषित करता है, जो वृक्षों वनस्पतियों के लिए तो उत्तम है, मग़र मनुष्यो के लिए नहीं।  अतः यज्ञकुण्ड के बिल्कुल पास रखा जल पीने के लिए मना किया जाता है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *दी, तुलसी की कितनी प्रजातियां होती है? कौन कौन सी प्रजाति घर में गमले में लगाई जा सकती है? औषधीय लाभ बताएं?*

प्रश्न - *दी, तुलसी की कितनी प्रजातियां होती है? कौन कौन सी प्रजाति घर में गमले में लगाई जा सकती है? औषधीय लाभ बताएं?*

उत्तर- आत्मीय भाई,

*तुलसी की सामान्यतः निम्न प्रजातियाँ पाई जाती हैं:*

1- ऑसीमम सैक्टम (इसमें दो प्रजातियां है रामा/श्वेताभ तुलसी हरी पत्ते की व कृष्णा/श्यामा तुलसी गहरी बैगनी आभा वाली)

2- ऑसीमम अमेरिकन (काली तुलसी) गम्भीरा या मामरी।

3- ऑसीमम वेसिलिकम (मरुआ तुलसी) मुन्जरिकी या मुरसा।

4- ऑसीमम वेसिलिकम मिनिमम।

5- आसीमम ग्रेटिसिकम (राम तुलसी / वन तुलसी / अरण्यतुलसी)।

6- ऑसीमम किलिमण्डचेरिकम (कर्पूर तुलसी)।

7- ऑसीमम विरिडी।

*इनमें ऑसीमम सैक्टम को प्रधान या पवित्र तुलसी माना गया जाता है, इसकी भी दो प्रधान प्रजातियाँ हैं- श्री तुलसी जिसकी पत्तियाँ हरी होती हैं तथा कृष्णा तुलसी जिसकी पत्तियाँ निलाभ-कुछ बैंगनी रंग लिए होती हैं। श्री तुलसी के पत्र तथा शाखाएँ श्वेताभ होते हैं जबकि कृष्ण तुलसी के पत्रादि कृष्ण रंग के होते हैं। गुण, धर्म की दृष्टि से काली तुलसी को ही श्रेष्ठ माना गया है, परन्तु अधिकांश विद्वानों का मत है कि दोनों ही गुणों में समान हैं। तुलसी का पौधा हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है और लोग इसे अपने घर के आँगन या दरवाजे पर या बाग में लगाते हैं। भारतीय संस्कृति के चिर पुरातन ग्रंथ वेदों में भी तुलसी के गुणों एवं उसकी उपयोगिता का वर्णन मिलता है। इसके अतिरिक्त ऐलोपैथी, होमियोपैथी और यूनानी दवाओं में भी तुलसी का किसी न किसी रूप में प्रयोग किया जाता है।*

घर में गमलों में इन्हें ही लगाएं। तुलसी के औषधीय लाभ जानने के लिए पढ़ें पुस्तक:-

📖 *तुलसी के चमत्कारिक गुण*

*Book URL* - http://literature.awgp.org/book/Tulsi_Ke_Chamatkari_Gun/v2

तुलसी की खेती कैसे करें और व्यवसाय के रूप में कैसे अपनाएं?

*Youtube URL* -
https://youtu.be/aGS8H1nS_PQ

तुलसी के प्रजातियों के बारे में और जानकारी के निम्नलिखित लिंक विजिट करें:-

http://hi.vikaspedia.in/agriculture/crop-production/91593e93094d92f92a94d93092393e93293f92f94b902-91593e-938902915941932/91493792794092f-92a94c92794b902-915940-916947924940/924941932938940

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *दी, मैं Symbiosis से BBA कर रही हूँ, मुझे नोट बनाकर लिख लिख कर पढ़ती हूँ। मेरे दोनो हाथों में बहुत दर्द होता है। डॉक्टरों का कहना है मुझे टेंडन इंफ्लेम हो गया और पेनकिलर दे दिए। सभी टेस्ट करा लिए। मैं सिविल सर्विसेज की भी नेक्स्ट ईयर तैयारी करूंगी। लेकिन हाथ दर्द को लेकर कैसे सम्भव होगा?

प्रश्न - *दी, मैं Symbiosis से BBA कर रही हूँ, मुझे नोट बनाकर लिख लिख कर पढ़ती हूँ। मेरे दोनो हाथों में बहुत दर्द होता है। डॉक्टरों का कहना है मुझे टेंडन इंफ्लेम हो गया और पेनकिलर दे दिए। सभी टेस्ट करा लिए। मैं सिविल सर्विसेज की भी नेक्स्ट ईयर तैयारी करूंगी। लेकिन हाथ दर्द को लेकर कैसे सम्भव होगा? मार्गदर्शन करें*

उत्तर- आत्मीय बेटी,

कम्पटीशन हाथ से नहीं दिमाग़ और आत्मशक्ति-इच्छाशक्ति से पास किया जाता है। अरुणिमा सिन्हा एक नकली पैर से जब एवरेस्ट फतह की तो लोगो ने पूंछा यह कैसे सम्भव हुआ? तो वह बोली पहाड़ आत्मशक्ति से चढ़ा जाता है पैरों से नहीं। अन्यथा सभी पैर वाले एवरेस्ट पर होते।

सोहंग स्वामी जिन्हें टाईगर बाबा बंगाल में कहते हैं, वो मुट्ठी के प्रहार से बाघों को जमीन में धूल चटा देते थे, उस समय राजा व पत्रकारों ने उनसे पूंछा तो वो बोले मैं बाघ को हाथ व शरीर बल से नहीं अपनी आत्मशक्ति-इच्छाशक्ति से गिराता हूँ।

अतः पुत्री अपनी इच्छाशक्ति-आत्मशक्ति बढ़ाने हेतु कम से कम 3 माला गायत्रीमन्त्र जप, उगते सूर्य का ध्यान और 11 रविवार व्रत करो। उगते सूर्य को जल चढ़ाओ। रोज सोमवार को माता तुलसी को प्रणाम करके तीन तुलसी पत्र रोग उपचार के लिए खाओ।

नित्य 3 गायत्रीमंत्र, 1 महामृत्युंजय मंत्र और एक चुटकी से भी कम यज्ञ भष्म मिलाकर अभिमंत्रित जल हाथों में लगाओ और थोड़ा पी भी लो।

नित्य खाली पेट एक कली देशी लहसन बारीक ऐसा काटो जिसे  सुबह गुनगुने गर्म पानी मे एक चुटकी सेंधा नमक मिलाकर दवा की तरह गटक सको। चबाना नहीं अन्यथा मुंह से दुर्गंध आएगी, इसीलिए दवा की गोली की तरह गटक लो।

दिन में एक बार सरसों के दो दाने बराबर चूना दाल के पानी या साधारण पानी मे डाइल्यूट करके पी लो।

रात को गुनगुने दूध में हल्दी मिलाकर पीकर सो जाओ।

सन्तुलित आहार और अच्छे विचार ग्रहण करो। जब भी दिन में माला जपो, जप के बाद हथेली रगड़कर गायत्रीमंत्र जपते हुए दोनों हाथों में जहां जहां दर्द हैं प्राण संचार करो। भावना करो हाथों में दिव्य शक्ति जागृत हो रही है।


*हाथ के दर्द के लिए कुछ प्राकृतिक उपचार भी अपनाओ जो अपना सको :*

हाथ के दर्द के इलाज के लिए कई प्राकृतिक तरीके मौजूद हैं। इन्हें ठीक करने के लिए पेन किलर जैसी दवा खाने की जरूरत नहीं पड़ती है। वास्तव में ऐसे कई प्राकृतिक उपचार हैं जिनसे काफी लाभ होता है।

👉🏻 *ब्रेसिंग या स्पिलिंटिंग :*
 ब्रेस या स्पलिंट पहनकर आप कुछ ही देर में हाथ के दर्द से छुटकारा पा सकते हैं। हालांकि यह इस पर भी निर्भर करता है कि आपके हाथ में किस तरह का दर्द है। यह चोट लगे हिस्से को ठीक करता है और घाव या दर्द बढ़ने से रोकता है। यह सूजन को भी कम करने में मदद करता है।
जैसे छोटा और हल्का ट्रिगर थंब ब्रेस पहनने से यह आपके अंगूठे और उंगलियों को सीधा रखता है और उन्हें दोबारा लॉक नहीं होने देता है। ठीक उसी तरह कार्पल टनल ब्रेस नर्व के दबाव को कम कर पूरी कलाई और हाथ के निचले हिस्से को खींचता है और दर्द से राहत देता है।

👉🏻 *आइस थेरेपी:*

सूजे हुए टेंडन, ज्वाइंट या मसल्स पर आइस पैक रखने से यह उस हिस्से को अस्थायी रूप से सुन्न ही नहीं करता बल्कि ब्लड वेसल्स को भी संकुचित कर देता है जिससे सूजन कम होता है और दर्द से राहत मिलता है।
बर्फ हटा लेने पर ब्लड वापस आ जाता है और खराब बाइप्रोडक्ट और विषाक्त पदार्थ बाहर निकलने लगते हैं और ये हाथ और ज्वाइंट के कमजोर टिश्यू को जरूरी पोषक तत्व प्रदान करते हैं जिससे धीरे-धीरे दर्द से राहत मिलने लगती है।

👉🏻 *मलहम :*

विशेषरूप से आर्थराइटिस के दर्द के लिए क्रीम, जेल, मलहम आदि लगाने से यह एनाल्जेसिक प्रभाव उत्पन्न करता है और दर्द से राहत देता है। कभी-कभी प्राकृतिक पौधों से बनी सामग्री जैसै ऑर्निका, मेंथॉल और कैप्सैसिन लगाने से यह ज्वाइंट और मसल्स के दर्द से राहत देता है। लेकिन यह दर्द से लंबे समय तक राहत नहीं देता। आइस थेरेपी और स्पलिंटिंग के साथ अगर इनका उपयोग किया जाए तो ये ज्यादा प्रभावी होते हैं।

👉🏻 *मसाज :*

मसाज करने से पीठ से पैर और पैर से गर्दन सहित पूरे शरीर पर दबाव पड़ता है और राहत महसूस होती है। इसी प्रकार हाथ से मसाज करने पर आपको दर्द से राहत औऱ काफी आराम मिलता है।

हाथ के ज्वाइंट और मसल्स की मालिश करने से ब्लड सर्कुलेशन बढ़ता है और जोड़ों की जकड़न और टेंडन के दर्द को कम करता है। आइस थेरेपी के जरिए हैंड मसाज करने से ओस्टियोआर्थराइटिस से संबंधित समस्या दूर हो जाती है।

👉🏻 *एक्सरसाइज व योग व्यायाम:*

हाथ और पैरों के अलावा अपनी उंगलियों को भी फैलाने की एक्सरसाइज करें। यह हाथ और उंगलियां के अलावा कमजोर टिश्यू और हाथ के टेंडन को भी मजबूत बनाता है। इसके अलावा स्टिफ ज्वाइंट और मसल को लंबा और ढीला बनाता है। मजबूत हाथों का मतलब है कि अगर आपके हाथ में हल्की चोट भी लगी हो तो आप किसी वस्तु को आसानी से पकड़, उठा, संभाल और छोड़ सकें।

हाथों के लिए मणिबन्ध योग:-

https://youtu.be/RHp0Ek57g6M

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दीदी, युवा 23-24 साल के जो ध्यान से जुड़ना चाहते हैं उनको सबसे पहले किस प्रकार के ध्यान से जोड़ना चाहिए।*

प्रश्न - *दीदी, युवा 23-24 साल के जो ध्यान से जुड़ना चाहते हैं उनको सबसे पहले किस प्रकार के ध्यान से जोड़ना चाहिए।*

उत्तर - आत्मीय भाई,

👉🏻 *ध्यान की पूर्व तैयारी*

जैसे कुछ भी बोने से पूर्व खेत की तैयारी व निराई व गुणाई अनिवार्य है, वैसे ही ध्यान से पूर्व मन की सफाई जरूरी है।

तुमने सुना होगा कि आज़कल अल्ट्रासाउंड वेव के उपयोग ने चिकित्सा जगह में क्रांति पैदा कर दी है, पेट के अंदर की तस्वीरें बिना चीर भाड़ के इन सूक्ष्म ध्वनियों को भेजकर और उनकी लौटती प्रतिध्वनियों को चित्र रूप में प्राप्त की जा रही है। इन ध्वनियों में प्रकाश परावर्तित करके ऑपरेशन जैसे कार्य भी किये जा रहे हैं। हम सब भी दिमाग़ में जमें ख़र पतवारों की सफाई व निराई गुणाई के लिए गायत्री मंत्र जप से उतपन्न अल्ट्रासाउंड फ्रीक्वेंसी की ध्वनियों का प्रयोग करेंगे। इन ध्वनियों के वाइब्रेशन से एकाग्रता बढ़ेगी और दिमाग चैतन्य जागरूक व एक्टिव होगा।

इसके लिए सर्वप्रथम ॐ 5 बार दीर्घ स्वर में बुलवाइए, फ़िर कम से कम 24 बार उपांशु जप उगते हुए सूर्य की कल्पना करते हुए जपने को बोलिये।

फिर तीन बार *सो$हम* बोलने को बोलिये, फिर हिंदी निम्नलिखित वाक्य दोहराने को बोलिये।

1- हम उस सर्वशक्तिमान परमात्मा के सर्वशक्तिमान सन्तान हैं।
2- हम उस समुद्र रूपी परमात्मा की बूंद आत्मा है, हम सत चित आनन्दस्वरूप हैं।
3- हम बुद्धिमान, ऐश्वर्यवान, शक्तिमान  हैं।
4- हम संसार के सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति है, आज का दिन हमारा है, आज सब अच्छा होगा।
5- हम जो चाहें वो प्राप्त कर सकते हैं, हम ऐसा आत्मविश्वास व साहस रखते हैं।

👉🏻 *ध्यान का चयन व ध्यान विधि*

कम्पटीशन की तैयारी करने वाले बच्चों को ऊर्जा अधिक मात्रा में चाहिए, तो उन्हें उगते सूर्य का निम्नलिखित ध्यान करवाएं, इस वीडियो के अंत मे जो 5 से 7 मिनट का ध्यान है वह करवाएं:-

https://youtu.be/04Dl89YWTYU
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सप्ताह में कम से कम एक बार या दो बार तनाव को कम करने और दिमाग को रिलैक्स करने के लिए चन्द्र का निम्नलिखित इस वीडियो के अंत मे जो 5 से 7 मिनट का ध्यान करवाया गया है वो करवाएं।

https://youtu.be/umAfVbaGWhw
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बच्चों को दिमाग़ की साउंड थैरेपी से मालिश व व्यायाम के लिए बोलिये सोते वक़्त या सोने से पूर्व सुनकर सो जाएं निम्नलिखित ओडियो ध्वनि पर ध्यान केंद्रित करते हुए सुनते हुए सो जाएं:-

https://youtu.be/zGKtxvlrwI0
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कभी भी युवा बच्चे अनिर्णय या कन्फ्यूजन जीवन मे महसूस करें तो हमेशा अपने पास पुस्तक - *हारिये न हिम्मत रखें* और उसे पढ़े या निम्नलिखित लिंक पर जाकर सुन लें:-

https://youtu.be/dLSgT02V6LM
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कभी भी ज्यादा पढ़ने से ऊर्जा विहीन व थकान लगे तो एक कांच के ग्लास में जल हाथ में लें। भावना करें कि यह जल गंगा जी का जल है। तीन बार गायत्री मंत्र व एक बार महामृत्युंजय मंत्र उस जल को देखते हुए जपें। फिर वह अभिमंत्रित जल घूंट घूंट कर पीते हुए गहरी श्वांस लेते हुए भाव करें कि यह जल आपकी ऊर्जा को बढ़ा रहा है, स्फूर्ति बढ़ रही है, मन व मष्तिष्क तरोताज़ा हो रहा है। इससे दिमाग रिलैक्स होगा। हम पँच तत्वों से बने हैं जिनमे एक तत्व जल है जिसे अभिमंत्रित कर स्वयं को ऊर्जावान बनाया जा सकता है।
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प्रत्येक 50 मिनट पढ़ने पर या जॉब करने पर अपनी सीट से उठे पलक झपकाएं और दूर देखें। हाथ पैर से फैलाएं और पुनः 3 बार गायत्री मंत्र व एक बार महामृत्युंजय मंत्र जपकर पढ़ने या जॉब करने बैठे। यह छोटा सा ब्रेक शरीर व मन को आराम देगा।
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निम्नलिखित तीन पुस्तक ध्यान के सम्बन्ध में तुम्हारा मार्गदर्शन करेगी:-

📖 ब्रह्मवर्चस की ध्यान धारणा
📖 अंतर्जगत का ज्ञान विज्ञान
📖 विचारों की सृजनात्मक शक्ति

यह वीडियो ऑफलाइन सुनने के लिए इसे डाऊनलोड कर लें, फिर बिना इंटरनेट के भी इसे चला के सुन सकेंगे।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 27 August 2019

विष्णु लोक दर्शन - *गर्भस्थ शिशु का निर्माण - एक मनोविज्ञान - गर्भ सम्वाद(भाग 2) (कुल 30 भाग हैं)*

*गर्भस्थ शिशु का निर्माण - एक मनोविज्ञान - गर्भ सम्वाद(भाग 2) (कुल 30 भाग हैं)*

आइये इसी में से दो शरीर- सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर को माता किस प्रकार गर्भ सम्वाद के माध्यम से  आहार दे सकती है उसे समझते हैं:-

👉🏻 *गर्भ सम्वाद की पूर्व तैयारी*

शांत चित्त होकर सर्वप्रथम लम्बी व गहरी श्वांसों द्वारा प्राणाकर्षण प्राणायाम करें।

यह प्रक्रिया टहलते हुए, या आराम से बैठकर या लेटकर भी कर सकते हैं।

गर्मी का वक्त हो ठंडे जल का प्रयोग करें, और ठंडी का वक्त हो तो गुनगुने जल का प्रयोग करें। हाथ में कांच की ग्लास में जल लेकर 3 गायत्री मंत्र और 1 महामृत्युंजय मंत्र बोलते हुए उसे एकटक देखें, घर में यज्ञ भष्म हो तो एक चुटकी से भी कम उसमें मिला लें।  अभिमंत्रित जल पेट मे लगा लें और थोड़ा सा पी लें।

गर्भ पर प्यार से हाथ फेरे और निम्नलिखित बोलें

👉🏻 मेरे प्यारे बच्चे तुम्हारी माँ तुमसे बात करने आई है, मम्मा से बात करेगा मेरा बच्चा। हाँजी, ओके..

बताओ आप पेट मे कैसे हो? मम्मी पापा और घर मे सब आपको बहुत प्यार करते हैं, सब आपसे मिलने के लिए बेकरार हैं। क्योंकि तुम तो मेरे भीतर हो इसलिए तुम्हारी मम्मा तुमसे कभी भी मिल सकती है।

👉🏻 यदि पापा या दादी या बुआ को गर्भस्थ से बात करनी है तो  पेट पर हाथ रखकर प्यार से बोल सकते हैं।

👉🏻 *गर्भ सम्वाद-2*

📯 चलो बेटा आज तुम्हें हम बैकुंठ  लेकर चलते हैं, इसे विष्णुलोक भी कहते हैं। भावना करो कि एक दिव्य रथ में मम्मा और प्यारा मेरा बच्चा बादलों के बीच हवा में उड़ते हुए बैकुंठ पहुंचे। अरे देखो क्षीर सागर से बहती हुई ठंडी हवा हमें लग रही है, देखो मम्मा के बाल उड़ रहे हैं और प्यारे बेबी के भी। चलो थोड़ा सा जल हम अपने मुंह और बेबी के मुंह मे लगा लेते हैं। अरे यह तो कितना अमृत जैसा मीठा जल है, और हमारी पृथ्वी का समुद्र तो नमकीन एवं खारा होता है। देखो कितने सुंदर कमल के फूल, रंगबिरंगे फूल। चलो कुछ पुष्प भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी जी को चढाते हैं।

जानते हो, यह संसार में देवता और दावन दोनो मौजूद हैं, हमें आसुरी शक्ति से बचाने के लिए भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी सतत सृष्टि के पालन पोषण व असुरता के निवारण में लगे रहते हैं। यह धरती पर भी धर्म स्थापना के लिए जन्म लेते हैं। इनके 24 अवतार हुए हैं, जिनमें श्रीराम व श्री सीता और श्रीकृष्ण व श्रीराधा बहुत लोकप्रिय हैं।

देखो, सामने जो क्षीरसागर में बड़े से पांच मुंह वाले शेषनाग हैं, यह जब भगवान अवतार लेते हैं तो यह भी उनके भाई रूप में जन्म लेते हैं, जैसे राम के साथ लक्ष्मण रूप में और कृष्ण के साथ बलराम रूप में जन्म लिया। क्षीर सागर में इन्हीं शेषनाग के शरीर से बनी नाग शय्या पर विष्णु भगवान माता लक्ष्मी के साथ रहते हैं,

तीन देव और तीन देवियां मिलकर सृष्टि को सम्हालते हैं। ब्रह्मा सृष्टि करते हैं, सरस्वती  बुद्धि शक्ति देती हैं। विष्णु पालन पोषण करते हैं और माता लक्ष्मी धन शक्ति देती हैं। भगवान भोलेनाथ असुरता का विध्वंस करते हैं, और माता शक्ति समस्त जग को बल की शक्ति देती हैं। वस्तुतः शिव-शक्ति, विष्णु-लक्ष्मी, ब्रह्मा-सरस्वती एक ही हैं।

चलो तुम जल डालो और मैं भगवान  के चरण धोती हूँ। सम्हाल के मेरे बच्चे धीरे धीरे जल डालो। ओह हो मेरे प्यारे बच्चे आपको तो भगवान विष्णु ने और माता लक्ष्मी ने गोद मे ले लिया, इतना प्यार दुलार दोनो से मिल रहा है। देखो तुम्हारे अंदर दिव्य शक्ति का प्राण संचार कर रहे हैं, तुम नीले नीले प्रकाश से भर उठे हो, देखो  मम्मा को भी भगवान विष्णु एव माता लक्ष्मी का प्यार आशीर्वाद मिल रहा है।

चलो बेटा पुष्प जो हम लाये थे भगवान को दो, मुंह खोलो क्षीर सागर जल का प्रसाद ग्रहण करो। हम भी पी लेते हैं।

देखो गर्भ में जिस जल में तुम हो वो भी क्षीर सागर ही है, गर्भ नाल से पोषण मिल रहा है। माता प्रकृति रूप में मुझमे ही विराजमान होकर तुम्हारा पालन पोषण कर रही हैं।

देखो जो सच्चिदानंद भगवान विष्णु हैं वही हम हैं, हम उन्हीं का अंश हैं। शेर का बच्चा शेर होता है न, तो सत चित आनन्द स्वरूप सच्चिदानंद भगवान विष्णु का अंश सत चित आनन्द स्वरूप ही होगा। तुम भगवान विष्णु के समान बुद्धिमान, शक्तिमान, ऐश्वर्यवान हो। तुम सर्वशक्तिमान हो। इसे याद रखना। जानते हो इसे याद रखने का मन्त्र क्या है?

*सच्चिदानंदो$हम* अर्थात जो सच्चिदानंद भगवान विष्णु है उसी का अंश मैं सत चित आनन्द स्वरूप हूँ। मैं वही हूँ।

चलो मम्मा के साथ 5 बार बोलो *सच्चिदानंदो$हम*

चलो प्रणाम करो और घर चलते हैं, अब तुम दोनों हाथ रगड़ो जैसे मम्मा रगड़ रही है। अब मम्मा पहले बच्चे को लगाएगी गर्भ में हाथ फेरिये। बेटे आप अपने मुंह मे लगाइए। अब मम्मा  अपने मुंह मे लगाएगी। शाबास अब आप आराम करो पेट में और मम्मा कुछ घर का काम कर लेती है।

क्रमशः....(अगली कड़ी - भाग 3 में)

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

कैलाश दर्शन - गर्भस्थ शिशु का निर्माण - एक मनोविज्ञान - गर्भ सम्वाद(भाग 1) (कुल 30 भाग हैं)*

*गर्भस्थ शिशु का निर्माण - एक मनोविज्ञान - गर्भ सम्वाद(भाग 1) (कुल 30 भाग हैं)*

युगऋषि कहते हैं कि मनुष्य गर्भ में गर्भस्थ शिशु का शिक्षण गर्भ से ही प्रारम्भ वैसे ही करता है जैसे किसान खेत में करता है।

बीज बोने से पहले खेत की तैयारी आवश्यक है, इसी तरह गर्भ स्थापना से पहले माता पिता के तीनों शरीरों की तैयारी तीनों चरणों मे जरूरी है। बच्चा माता के स्थूल गर्भ में और पिता के सूक्ष्म गर्भ में पलता है। जबरजस्त तीनों स्तर पर माता पिता का सीधा सम्बन्ध गर्भस्थ बच्चे के साथ होता है।

अतः सकारात्मक विचारों की वाइब्रेशन से गर्भस्थ का सूक्ष्म शरीर, शुभ व दिव्य भावनाओं से गर्भस्थ के कारण शरीर, और सन्तुलित आहार से गर्भस्थ के स्थूल शरीर को मजबूत करने की जिम्मेदारी माता पिता की होती है।  स्थूल, सूक्ष्म, कारण तीनों के लिए प्रयत्न पुरुषार्थ करना होता है:-

आइये इसी में से दो शरीर- सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर को माता किस प्रकार गर्भ सम्वाद के माध्यम से  आहार दे सकती है उसे समझते हैं:-

👉🏻 *गर्भ सम्वाद की पूर्व तैयारी*

शांत चित्त होकर सर्वप्रथम लम्बी व गहरी श्वांसों द्वारा प्राणाकर्षण प्राणायाम करें।

यह प्रक्रिया टहलते हुए, या आराम से बैठकर या लेटकर भी कर सकते हैं।

गर्मी का वक्त हो ठंडे जल का प्रयोग करें, और ठंडी का वक्त हो तो गुनगुने जल का प्रयोग करें। हाथ में कांच की ग्लास में जल लेकर 3 गायत्री मंत्र और 1 महामृत्युंजय मंत्र बोलते हुए उसे एकटक देखें, घर में यज्ञ भष्म हो तो एक चुटकी से भी कम उसमें मिला लें।  अभिमंत्रित जल पेट मे लगा लें और थोड़ा सा पी लें।

गर्भ पर प्यार से हाथ फेरे और निम्नलिखित बोलें

👉🏻 मेरे प्यारे बच्चे तुम्हारी माँ तुमसे बात करने आई है, मम्मा से बात करेगा मेरा बच्चा। हाँजी, ओके..

बताओ आप पेट मे कैसे हो? मम्मी पापा और घर मे सब आपको बहुत प्यार करते हैं, सब आपसे मिलने के लिए बेकरार हैं। क्योंकि तुम तो मेरे भीतर हो इसलिए तुम्हारी मम्मा तुमसे कभी भी मिल सकती है।

👉🏻 यदि पापा या दादी या बुआ को गर्भस्थ से बात करनी है तो  पेट पर हाथ रखकर प्यार से बोल सकते हैं।

👉🏻 *निम्नलिखित गर्भ सम्वाद में से कोई ही एक दिन में सुनाएं, इसे दूसरे दिन भी सुना सकते हैं।*

📯 चलो बेटा आज तुम्हें हम कैलाश पर्वत लेकर चलते हैं, भावना करो कि एक दिव्य रथ में मम्मा और प्यारा मेरा बच्चा बादलों के बीच हवा में उड़ते हुए कैलाश पहुंचे। अरे देखो हमें हिमालय की ठंडी हवा लग रही है, देखो मम्मा के बाल उड़ रहे हैं और प्यारे बेबी के भी। देखो कितने सुंदर कमल के फूल, रंगबिरंगे फूल। चलो कुछ पुष्प शंकर भगवान और पार्वती जी को चढाते हैं।

जानते हो, यह संसार में देवता और दावन दोनो मौजूद हैं, हमें आसुरी शक्ति से बचाने के लिए शिव एवं पार्वती सतत सृष्टि के पालन पोषण व असुरता के निवारण में लगे हैं।

देखो, सामने शिव शक्ति बैठे हैं, चलो तुम जल डालो और मैं भगवान के चरण धोती हूँ। सम्हाल के मेरे बच्चे धीरे धीरे जल डालो। ओह हो मेरे प्यारे बच्चे आपको तो भगवान शिव ने गोद मे ले लिया, इतना प्यार दुलार दोनो से मिल रहा है। देखो तुम्हारे अंदर शिव शक्ति प्राण संचार कर रहे हैं, तुम नीले नीले प्रकाश से भर उठे हो, देखो  मम्मा को भी भगवान शिव एव माता शक्ति का प्यार आशीर्वाद मिल रहा है।

चलो बेटा पुष्प जो हम लाये थे भगवान को दो, मुंह खोलो माता गंगा आपको अपने जल का प्रसाद दे रही हैं। हम भी पी लेते हैं।

देखो जो शिव हैं वही हम हैं, हम उन्हीं का अंश हैं। शेर का बच्चा शेर होता है न, तो शिव का अंश शिव होगा। तुम शिव के समान बुद्धिमान, शक्तिमान, ऐश्वर्यवान हो। तुम सर्वशक्तिमान हो। इसे याद रखना। जानते हो इसे याद रखने का मन्त्र क्या है?

शिवो$हम अर्थात जो शिव है उसी का अंश शिवांश में हूँ। मैं वही हूँ।

चलो मम्मा के साथ 5 बार बोलो *शिवो$हम*

चलो प्रणाम करो और घर चलते हैं, अब तुम दोनों हाथ रगड़ो जैसे मम्मा रगड़ रही है। अब मम्मा पहले बच्चे को लगाएगी गर्भ में हाथ फेरिये। बेटे आप अपने मुंह मे लगाइए। अब मम्मा  अपने मुंह मे लगाएगी। शाबास अब आप आराम करो पेट में और मम्मा कुछ घर का काम कर लेती है।

क्रमशः....(अगली कड़ी - भाग 2 में)

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday 26 August 2019

प्रश्न- *दी, जब मैं दुबई में बिजनेस करता था, मैंने मेरे एक भाई को घर और एक भाई को गाड़ी दी थी, लेकिन दोनों मेरे नाम है। माता-पिता को तीर्थ यात्रा के साथ साथ देश विदेश घुमाया था। मेरा बिज़नेस डूब गया क्योंकि मेरे पार्टनर ने मुझे धोखा दिया।

प्रश्न- *दी, जब मैं दुबई में बिजनेस करता था, मैंने मेरे एक भाई को घर  और एक भाई को गाड़ी दी थी, लेकिन दोनों मेरे नाम है। माता-पिता को तीर्थ यात्रा के साथ साथ देश विदेश घुमाया था। मेरा बिज़नेस डूब गया क्योंकि मेरे पार्टनर ने मुझे धोखा दिया। केस चल रहा है, मेरी समझ नहीं आ रहा कि मैं उनसे गाड़ी वापस लूँ और अपने भाइयों से घर खाली करवाऊँ या नहीं? वो दोनों बहुत साधारण सेल्समैन की जॉब करते हैं, उनकी इतनी कमाई नहीं कि घर खरीद सकें।*

उत्तर- आत्मीय भाई, आपकी विशाल हृदय से किये गए परिवार हेतु उपकार सराहनीय है।

लेक़िन किसी को बेघर करके अपने घर में आप सुखी कैसे रह पाओगे? किसी से वाहन छीन के कैसे वाहन सुख भोग पाओगे?
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पौराणिक कथा में राजा हरिश्चंद्र ने स्वप्न में देखा कि उन्होंने समस्त राज्य का दान महर्षि विश्वामित्र को कर दिया। सुबह महर्षि विश्वामित्र प्रकट हुए और बोले मेरा राज्य मुझे दो क्योंकि तुमने यह स्वप्न में दान दिया था। राजा ने तुरंत अविलम्ब दान दे दिया। कितनी ही विपत्ति सही लेक़िन धर्म नहीं छोड़ा, उनकी नाम व कीर्ति अमर हुई। तुमने तो स्वप्न में नहीं हकीकत में दान दिया जिसमें कई वर्षों से वह फैमिली रह रही है, अतः उन्हें बेघर मत करो।

*सत्य घटना*- एक गुजराती भाई बिजनेसमैन थे, सब भगवान की दया से जब अच्छा चल रहा था तो उन्होंने अपने उन भाई- बहनों को घर व गाड़ी दी थी जो आर्थिक रूप से कमज़ोर थे, उनके बिजनेस में लॉस हुआ तो उन्होंने भाई-बहनों से घर व गाड़ी वापस ले ली और उसे बेंच कर उसका पैसा बिजनेस में लगा दिया। वाहन वापस लिए दो महीने भी नहीं बीते थे कि उनकी मर्सिडीज का बुरी तरह एक्सीडेंट हुई, उनका गाड़ी इंश्योरेंस के बाद भी ऐसा खर्च हुआ कि वो आज तक गाड़ी नहीं खरीद पाए व वर्तमान में किराए के मकान में रह रहे हैं। जितना उन्होंने भाई बहनों से वापस लिए घर और गाड़ी को बेंच के पैसा लिया था उससे कहीं ज्यादा उनका ख़र्च हो गया।

🙏🏻 अतः मेरी आपको सलाह यह है कि दान किया हुआ घर व गाड़ी वापस लेने का विचार त्याग दीजिये। यह मानिए कि वह आपने उनकी किस्मत का कमाया था, पिछले जन्मों का उधार चुकाया था।

🙏🏻हमारा दिमाग़ एक गूगल की तरह है, जो टाइप करोगे उससे सम्बंधित रिजल्ट देगा।

👉🏻 कहोगे मेरा जीवन समस्या से भरा है, तो उत्तर में हज़ारो समस्या की लिस्ट एवं तनावग्रस्त करने के कारण रिजल्ट में दे देगा।

👉🏻 कहोगे वर्तमान समस्याओं का मुझे समाधान करना है, हां मैं कर सकता हूँ तो दिमाग समस्याओं के समाधान के उपाय एवं रास्ता देगा। आप समस्या से उबर पाओगे।

🙏🏻 ईश्वर पर और अपनी भुजाओं पर भरोसा रखो, यह मांगने के लिए नहीं दान देने के लिए हैं। जैसे शेर का बच्चा शेर होता है वैसे ही तुम ईश्वर के पुत्र सर्वशक्तिमान बुद्धिमान हो। पुनः प्रयास करो और पहले से बड़ा बिजनेस खड़ा कर सकोगे। तुम्हारे पास कनेक्ट व बिजनेस का ज्ञान है, तुम्हारा पार्टनर धन चुरा सकता है तुम्हारा ज्ञान नहीं।
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*स्टीव जॉब्स* के बिना *एप्पल मोबाइल एवं कम्प्यूटर* की कल्पना नहीं की जा सकती, वो मध्य १९७४, में आध्यात्मिक ज्ञान की खोज में जॉब्स अपने कुछ रीड कॉलेज के मित्रो के साथ कारोली बाबा से मिलने भारत आए, तब करोली बाबा की मृत्यु हो चुकी थी व अन्य उनके शिष्यों से मिले। *7 महीने भारतीय ऋषियों के सान्निध्य में बिताया और वहाँ से अमेरिका आकर 1976 में एप्पल कम्पनी खोली*। जब एप्पल बुलन्दियों पर थी तो उन्हें धोखाधड़ी का शिकार होना पड़ा, जिस कम्पनी को इतनी मेहनत से बुलन्दियों पर पहुंचाया उससे ही निकाल दिए गए। तब उन्होंने भारतीय ऋषियों की कही बात स्मरण की *विपत्तियों में टूटना नहीं चाहिए, विपत्तियों में नए मुक़ाम बनाने में जुटना चाहिए* । अतः रोने में वक्त नहीं बिताया अपितु नई दो कम्पनी *पिक्सर* एवं *नेक्स्ट* खड़ी कर दी। लोग उनका धन व कम्पनी छीन सके, लेकिन क्या स्टीव जॉब्स का *ज्ञान, साहस व धैर्य* छीन सके? एप्पल कम्पनी डूबने लगी तो पुनः स्टीव जॉब्स को कम्पनी में लिया। बुद्धि कोई चुरा सकता है क्या?

अतः इस विपत्ति में प्राचीन ऋषियों के जिस ज्ञान को स्टीव जॉब्स ने जीवन मे अपनाया, वही तुम भी अपनाओ। ईश्वर पर भरोसा करके पुनः नए सृजन में जुट जाओ।

कभी भीख देने पर भिखारी के कटोरे से पैसे वापस लेने की मत सोचना, कभी मंदिर में चढ़ाए दान को वापस लेने की मत सोचना, कभी किसी की मदद की तो उससे वापस मत माँगना।

इसकी जगह यह सोचना और ज्यादा कमाऊंगा तो पुनः और ज्यादा दान दक्षिणा दूँगा, ग़रीबों की मदद करूँगा। विपत्ति मुझे और मजबूत बनाने आई है, *मैं विजेता था, विजेता हूँ और विजेता रहूंगा। कुछ न कुछ पुनः बेहतर कर ही लूँगा। धन गया है, लेकिन धन कमाने का ज्ञान, बुद्धिबल, साहस व धैर्य हमारे पास है।* जिस पार्टनर ने मुझे धोखा दिया उससे बड़ा अम्पायर पुनः खड़ा करूंगा।

🙏🏻दस दिन ब्रेक लीजिये, 24 हज़ार गायत्री मंत्र जप तीर्थ स्थल - शान्तिकुंज हरिद्वार या तपोभूमि मथुरा  जाकर कीजिये। इस दौरान अपने दिमाग की सर्विसिंग निम्नलिखित पुस्तक पढ़ते हुए कीजिये। नई तप ऊर्जा और नए दृष्टिकोण से पुनः नया बिजनेस खड़ा करने में जुट जाइये।

1- हारिये न हिम्मत
२- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
3- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
4- सफलता के सात सूत्र साधन
5- दृष्टिकोण ठीक रखें

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
प्रश्न - *गायत्री मंत्र का जप का उचित समय कब है?*

उत्तर- आत्मीय भाई, सूर्यास्त के दो घण्टे बाद और सूर्योदय के दो घण्टे पहले तक उपांशु जप किया जाता है, सूर्यास्त के बाद सूर्य की किरणों के अभाव में उपांशु जप की जगह मौन मानसिक जप करना चाहिए।

सूर्य के प्रकाश की अनुपस्थिति में उपांशु जप नही  करना चाहिए।

सूर्य की उपस्थिति में और किसी अन्य मनुष्य के अन्य बातों के स्वर की अनुपस्थिति में उपांशु जप किया जाता है।

सूर्य की उपस्थिति में, यज्ञाग्नि की उपस्थिति हो तो सस्वर जोर से उच्चारण किया जाता है।

सूर्य की उपस्थिति में और अनेकों मनुष्य जब गायत्री मंत्र में स्वर मिलाने के इच्छुक हों तो सस्वर जप किया जासकता है।

समूह शक्ति के प्रयोग हेतु मौन मानसिक गायत्री मंत्र जप या उपांशु जप एक वक़्त में एकउद्देष्य हेतु करके उसे समूहिककृत किया जा सकता है।

गाड़ी चलाते वक्त व यात्रा के वक्त मौन मानसिक मन्त्र जरूर जपें जिससे सूक्ष्मप्राण मन्त्र संचार के माध्यम से प्रकृति के कण कण में हो जहाँ से आप गुजरे।

👏श्वेता, DIYA


प्रश्न - *दीदी जी सादर प्रणाम, एक असमंजस को दूर करने की कृपा करेंगे, वह यह कि, वाट्स ऐप में कभी ख़बर आता है कि नहाते समय पहले सिर में पानी डालना चाहिए। फिर कोई कहता है कि पैर में पहले डालना चाहिए। कृपया सही जानकारी देने का कष्ट करें।

प्रश्न - *दीदी जी सादर प्रणाम, एक असमंजस को दूर करने की कृपा करेंगे, वह यह कि, वाट्स ऐप में कभी ख़बर आता है कि नहाते  समय पहले सिर में पानी डालना चाहिए। फिर कोई कहता है कि पैर में पहले डालना चाहिए। कृपया सही जानकारी देने का कष्ट करें।*

उत्तर - आत्मीय भाई,

नहाते समय सबसे पहले सिर पर पानी डालना चाहिए और फिर पूरे शरीर पर। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि इस प्रकार नहाने से हमारे सिर की गर्मी/ऊष्णता शरीर से होते हुए पैरों से निकल जाती है। शरीर को अंदर तक शीतलता मिलती है।

यदि पैर में और शरीर में पहले पानी डाला तो उष्णता आंखों में और सिर मे चढ़ती है जो नुकसानदायक होती है।

नहाने के समस्त नियम विस्तार से निम्नलिखित अखण्डज्योति के फरवरी 1956 के लेख में पढ़ सकते हैं।

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1956/February/v2.16

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *श्वेता बेटा, मेरे पतिदेव स्वयं चिकित्सक हैं और उन्हें "कैंसर" डिटेक्ट हुआ है। मुर्झा से गये हैं, गुमसुम रहते हैं, जिंदगी रिपोर्ट आने के बाद थम सी गयी है। तुम्हारा नम्बर मेरी एक पेशेंट ने दिया है। कृपया बताओ क्या करूँ*

प्रश्न - *श्वेता बेटा, मेरे पतिदेव स्वयं चिकित्सक हैं और उन्हें "कैंसर" डिटेक्ट हुआ है। मुर्झा से गये हैं, गुमसुम रहते हैं, जिंदगी रिपोर्ट आने के बाद थम सी गयी है। तुम्हारा नम्बर मेरी एक पेशेंट ने दिया है। कृपया बताओ क्या करूँ*

उत्तर- नमस्ते आँटी, रोगों की समस्त जड़ पेट व मन में होती है। मन में जमीं गांठो के कारण कैंसर शरीर की कोशिकाओं का विद्रोह है।

एलोपैथी इलाज के साथ साथ अंकल जी का *"यग्योपैथी"* द्वारा इलाज़ करवाइये, एक बार *युगतीर्थ शान्तिकुंज हरिद्वार जाइये व डॉक्टर वंदना से वहाँ देवसंस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार परिसर में मिलकर कैंसर की हवन सामग्री ले लीजिये*। उससे हवन कीजिये। *औषधीय युक्त मन्त्रऊर्जा की तरंग उनके मष्तिष्क कोशों में पहुंच के उनकी मन की गांठो को खोलेगी, मन के रिलैक्स होते ही विद्रोही सेल शरीर को सहयोग देने लगेंगे। पुनः जीवन के अस्तित्व को स्वस्थ करने के लिए औषधियों को स्वीकारने लगेंगे।*

कीमोथेरेपी विद्रोह को दबाने के लिए सैन्य प्रयोग है, यग्योपैथी विद्रोह को सन्धि व मित्रता द्वारा विद्रोह खत्म करने की विधि है।

👉🏻 *अंकल के मन के इलाज़ व उन्हें मोटिवेट करने के लिए निम्नलिखित बातें समझाएं।*

आशा ही जीवन है और निराशा ही मौत है। हमने व तुमने चिकित्सक जीवन में देखा कि आशावादी व्यक्ति क्लिनिकल कठिनाई के बाद भी बच गया और निराशावादी साधारण क्लिनिकल परिस्थिति में भी मर गया। कुछ घटनाओं से इसे समझिए:-

👉🏻 एक बार यमराज ने दस हज़ार व्यक्तियों की आत्माओं को लाने के लिए यमदूत भेजा। यमदूत बीस हज़ार से ज्यादा ले आया। पूछने पर दूत ने बताया कि महामारी पैदा करके मैंने मात्र दस हज़ार व्यक्तियों को आपके आदेशानुसार मारा। लेकिन अतिरिक्त दस हज़ार से ज्यादा भयभीत होकर, साहस व सन्तुलन गंवाकर बेमौत मर गए। लेकिन मेरे द्वारा मृत्यु फांस फेंके जाने पर भी कुछ दृढ़ मनोबल, अदम्य साहस, मानसिक सन्तुलन व प्रचण्ड ईश्वर विश्वास के साथ भीषण महामारी में भी नहीं मरे। वो अभी भी जीवित हैं।

अब तय आप करो कि भयभीत होकर समय से पहले जल्दी मरना है या मिलकर अदम्य साहस व प्रचण्ड ईश्वर विश्वास से इस महामारी से बहादुरी से लड़ना है।

👉🏻 सन 1981, इंग्लैंड में "पैट्रिक मेरी" नामक महिला को सीने का कैंसर हुआ। परीक्षण के वक्त पता चला कि कैंसर इतना फ़ैल चुका है कि बचना नामुमकिन है। अधिक से अधिक छः महीने बचे हैं। डॉक्टर ने कहा कैंसर परीक्षण की मशीन "कैट स्केनिंग" एक ही इंग्लैंड में मौजूद है, इसलिए प्रतीक्षा करनी पड़ी आपको। यदि हमारे शहर में कई मशीन होती तो आप जैसे कई लोग रोग का पता शुरुआती स्तर पर पता करके बच सकते थे।

महिला ने विचार किया, मैं तो मर रही हूँ। लेकिन छः महीने में यदि मैं तीन करोड़ विभिन्न शो करके कमा लूँ या डोनेशन मिल जाये तो कम से कम दो मशीनें कैंसर स्केनिंग की और लग जायेगी और हज़ारो की जान बच सकती है।  टेलिविजन व अन्य प्रचार प्रसार, शो व डोनेशन के माध्यम से दो मशीनें खरीद के हॉस्पिटल में इंस्टाल करवा दी। वह लोगों को कैंसर से जीवन बचाने के इस मुहिम इतनी तन्मय-तल्लीन व मनोयोग से जुट गई कि उसे स्वयं के शरीर व बीमारी का ध्यान ही न रहा। संकल्पित कार्य पूरा करने की ख़ुशी मना रही थी तो उसकी पुरानी दोस्त ने स्वास्थ्य पूंछा। जिस रोग वो भुलाए बैठी थी उसका पुनः परीक्षण करवाया तो कैंसर रोग नदारद था। रोग का नामोनिशान उसके शरीर में नहीं था।

इस घटना ने सिद्ध किया कि औषधियों, ऑपरेशन व चिकित्सक की कुशलता से ज्यादा मनोबल व सङ्कल्प बल ज्यादा प्रभावी है। बशर्ते उसे उभारा जा सके। अब आप तय करो कि आपको हमारे लिए स्वस्थ होना है तो मनोबल बढ़ाने में जुटिये।

👉🏻 जर्मनी के लेफ्टिनेंट कर्ट एंजिल जो कि विंग कमांडर थे, जुलाई 1957 में एक जहाज पर थे जिसमें आग लग गयी और पैराशूट काम नहीं कर रहा था। 1500 फीट की ऊंचाई से बिना पैराशूट से उन्होंने अपने आत्मबल के सहारे छलांग लगा दी, और अपने मन से कहा मैं बिना प्रयास किये नहीं हार मान सकता। जलकर मरने में कोई बहादुरी नहीं, कूदकर प्रयास किया तो मरा तो यह अफसोस नहीं होगा कि मैंने प्रयास नहीं किया। अधिक गति से गिरने के कारण पृथ्वी पर दो फीट गहरे धंस गए। उन्हें जब हॉस्पिटल लाया गया तब सीने की पसली व रीढ़ की हड्डी टूट चुकी थी, एक फेफड़ा फट गया था, गुर्दे खराब हो चुके थे, दर्द असहय था। जब डॉक्टर ने कहा बचना मुश्किल है तो एंजिल ने कहा जब इतनी ऊंचाई से कूदने में मैंने हार नहीं मानी तो आप इलाज में हार मत मानो। मैं बिना प्रयास किये मर नहीं सकता। वो दो महीने मृत्यु से लड़कर बच गए।

👉🏻 अरुणिमा सिन्हा का अप्रैल 2011 को लखनऊ से dehradun जाते समय उसके बैग और सोने की चेन खींचने के प्रयास में कुछ अपराधियों ने बरेली के निकट पदमवाती एक्सप्रेस से अरुणिमा को बाहर फेंक दिया था, जिसके कारण वह अपना एक पैर गंवा बैठी थी। उसने मनोबल से न सिर्फ़ मृत्यु पर विजय पाई अपितु एक नकली टांग से एवरेस्ट विजय की। अब आप तय करो मनोबल से इतिहास रचना है या टूटे मनोबल से रोग का रोना रोना है। आप एक तुच्छ रोग से हार नहीं सकते, मैं जानती हूँ आप विजेता है।

👉🏻 *कुछ तो कर यूँ ही मत मर,मरते दम तक प्रयास कर, विजेता की मौत मर* - एक रानी अपने पुत्र को एक ही मन्त्र देकर बड़ा किया "कुछ कर यूँ ही मत मर", "मरते दम तक प्रयास कर, विजेता की मौत मर"। राजकुमार जब राजा बना तो प्रत्येक युद्ध मे अजेय रहा। अन्य देश के राजाओं ने कहा इसे युद्ध मे हरा नहीं सकते। छल प्रयोग करो, रसोइया को और उनके दरबारी को रिश्वत देकर, बेहोशी की दवा देकर हाथ पैर बंधवा के गहन जंगल की एक अंधेरी गुफा में तड़फ तड़फ के मरने के लिए बंद कर दिया। जब बेहोशी से राजा उठा, तो देखा न जाने वो कहाँ है। समझ गया लेकिन करे तो क्या करे। तभी माता की बात याद आयी - *कुछ कर यूँ ही मत मर* , अतः वो रस्सी को काटने के लिए अनवरत नुकीले पत्थर से काटने लगा 4 घण्टे में रस्सी कटी तो जहरीले सर्प ने डस लिया। दूसरी विपत्ति में भी उसने मनोबल बनाये रखा और कमर की कटार निकाल के सर्प डंस का हिस्सा काटकर निकाल दिया। अब एक और नया दर्द और गुफा के पत्थर को धकेलना वो भी भूखा प्यासा। उसने कपड़ा फाड़ के घाव का रिश्ता खून बन्द किया और लहूलुहान होते हुए भी अनवरत प्रयास से उसने पत्थर को हिला दिया गुफा से बाहर निकला। पुनः सेना खड़ी की और राज्य पर अधिकार प्राप्त किया।

उपरोक्त सभी कथानक दो पुस्तकों - 📖 *युग की मांग प्रतिभा परिष्कार* और 📖 *मनस्विता, प्रखरता और तेजस्विता* (वांगमय 57) से आपको सुनाया। इन्हें ऑनलाइन मंगवा लीजिये और स्वयं पढ़िए तथा अंकल जी को पढवाईये:-

https://www.awgpstore.com/

आप मेरे फेसबुक पेज से समस्या समाधान की पोस्ट सीरीज से जुड़ जाइये

https://m.facebook.com/sweta.chakraborty.DIYA/?ref=bookmarks

शान्तिकुंज जाने से पहले ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करवा लीजियेगा, यदि शिविर अटेंड कर सकें तो और भी अच्छा रहेगा। तीर्थ चेतना भी लाभ देती है:-

http://www.awgp.org/social_initiative/shivir

अंत मे डॉक्टर अंकल से बोलिये- नहीं पता कि हमारे पास कितना समय है? लेकिन जितना समय है क्या उस प्रत्येक पल में जीवन को पूर्णता से जी सकते हैं क्या? प्रत्येक पल सुखद स्मृतियो से भर सकते हैं क्या? जीवन लम्बा उदास जीने से अच्छा, छोटा मग़र आनन्द से भरा होना चाहिए।

आत्मा अनन्त यात्री है, जीवन एक सराय है। यह यात्रा सुखद होगी या दुःखद यह हमारी मनःस्थिति तय करती है।

सुबह खाली पेट एक चम्मच नींबू का रस पानी के साथ पियें, साथ ही उन निम्बू के छिलको की चटनी बनाकर खा लीजिये। ऑर्गेनिक हल्दी का सेवन कीजिए। इन दो उपाय से कैंसर बढ़ना रुकता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न- *दुनियाँ में अनेक धार्मिक संगठन हैं, फिर उनकी भी अनेक शाखाएं है, उदाहरण हिंदुओं में भी अनेक धार्मिक संगठन है जो एक दूसरे की बुराई करते हैं और अलग अलग देवताओ को पूजते हैं, ऐसे में किसका अनुसरण करें? कृपया बताएं*

प्रश्न- *दुनियाँ में अनेक धार्मिक संगठन हैं, फिर उनकी भी अनेक शाखाएं है, उदाहरण हिंदुओं में भी अनेक धार्मिक संगठन है जो एक दूसरे की बुराई करते हैं और अलग अलग देवताओ को पूजते हैं,  ऐसे में किसका अनुसरण करें? कृपया बताएं*

उत्तर - आत्मीय बहन, सनातन धर्म की मूल विचार धारा से जुड़े धार्मिक संगठन कभी किसी के विरुद्ध नहीं बोलते, क्योंकि जब सनातन धर्म के अस्तित्व का उद्भव हुआ था तब कोई अन्य धार्मिक संगठन व सम्प्रदाय उतपन्न ही नहीं हुए थे।

सनातन धर्म एक वट वृक्ष है और अन्य धर्म उनकी डालियाँ। जो धार्मिक संगठन एक डाली के ज्ञान में पारंगत हुए वो दूसरी डाली के ज्ञान को हेय अल्पबुद्धि का परिचय देते हुए बताने लगे।

एक डाली दूसरी डाली की वैसे ही बुराई करती है जैसे एक ही घर के दो बच्चे लड़ते हैं और स्वयं को श्रेष्ठ बताते हैं। एक ही मार्ग की विभिन्न  *टूर एन्ड ट्रेवेल* एजेंसी स्वयं को बेस्ट बताती हैं।

मंजिल अध्यात्म की एक ही है, ईश्वर की मूल सत्ता व शक्ति केंद्र एक ही है। उस तक ही पहुंचना है। रास्तों की सुगमता व कठिनता के कारण उन में विरोधाभास हो सकता है। वाहन की स्पीड व सुविधा के कारण वाहन में विरोधाभास हो सकता है।

*उदाहरण* - यदि अपनी मम्मी से मिलने जाना है तो ध्यान मम्मी से मिलन पर केंद्रित कीजिये, मार्ग व वाहन का चयन अपनी सुविधा, धन, समय के अनुसार कर लीजिए।

इसी तरह अध्यात्म मार्ग व कर्मकांड वाहन के चयन में उलझकर मत रह जाइये, परमात्मा से मिलन रूपी मंजिल पर ध्यान केंद्रित कीजिये। जो राह व वाहन आपको समझ मे आये उसे चुन लीजिये औऱ अनवरत अध्यात्म पथ पर आगे बढिये। मंजिल तक जरूर पहुंचेंगे। वह मिलन आनन्ददायक होगा।

जीसस, पैगम्बर, बुद्ध, महावीर इत्यादि ने कभी नहीं कहा कि केवल उन्हें पूजो और केवल उनका अनुसरण करो। बल्कि उन्होंने तो स्वयं को भगवान का पुत्र माना व सबको उस शक्ति से जुड़ने को कहा। लेकिन जिन शिष्यों ने उनपर ग्रन्थ लिखे, उन्होंने अपनी श्रद्धा के अनुसार केवल उन्हें पूजने की नसीहत दी और केवल उन्हें ही अनुसरण करने को मोक्ष और स्वर्ग का मार्ग बताया।

सनातन धर्म किसी काल्पनिक स्वर्ग के लिए अध्यात्म से जुड़ने को नही कहता, सनातन धर्म नर से नारायण बनने की प्रक्रिया है। चेतना का रूपांतरण है। स्वयं को पूर्णता प्रदान करने की विधा है। स्वयं देवता बनो और जहाँ हो वहीँ स्वर्ग बसाओ यही सनातन धर्म की मूल परम्परा, लक्ष्य व उद्देश्य है। स्वयं के अंतर्जगत में शांति सुकून ऐश्वर्य स्थापित करने की विधा है। यहाँ सभी के लिए नर से नारायण बनने का द्वार सदैव खुला है।

इसी बात को युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं - *मनुष्य में देवत्व का उदय व धरती पर स्वर्ग का अवतरण* ।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Sunday 25 August 2019

प्रश्न - *आंगनबाड़ी में गर्भोत्सव प्रशिक्षण का कार्यक्रम कैसे शुरू करें?मार्गदर्शन करें*

प्रश्न - *आंगनबाड़ी में गर्भोत्सव प्रशिक्षण का कार्यक्रम कैसे शुरू करें?मार्गदर्शन करें*

उत्तर - आत्मीय दी,

सर्वप्रथम आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व उनके प्रमुख से मिलने का वक्त लेकर उन्हें पॉवर पॉइंट प्रेसेंटेशन दिखाइए। साथ ही बताइए कि हमारे अखिलविश्व गायत्री परिवार, शान्तिकुंज, हरिद्वार के मार्गदर्शन में देश के विभिन्न हिस्सों में यह कार्यक्रम सफलतापूर्वक चलाया जा रहा है। इस  कार्यक्रम को पूर्व मेडिकल डायरेक्टर जनरल *डॉक्टर गायत्री शर्मा* द्वारा मार्गदर्शित किया जा रहा है। उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र इत्यादि लगभग सभी राज्यों में आंगनबाड़ियों में यह कार्यक्रम चल रहे हैं, उनकी कुछ तस्वीरें न्यूज पेपर कटिंग की फोटो के साथ संलग्न हैं।

मध्यप्रदेश में अखिलविश्व गायत्री परिवार की *डॉक्टर अमिता सक्सेना के मार्गदर्शन में* सभी मेडिकल कॉलेज में इस पर रिसर्च चल रही है कि कैसे गर्भ में माता बच्चे में मनचाहा सँस्कार गढ़ सकती है व उसे आरोग्य प्रदान कर सकती है। इन्होंने अंतराष्ट्रीय मेडिकल कॉन्फ्रेंस में Ancient Wisdom & Present Womb Science और Epigenetic पर लेक्चर व रिसर्च प्रस्तुत की।

उत्तरप्रदेश में अखिलविश्व गायत्री परिवार की *डॉक्टर संगीता सारस्वत* ने कई मेडिकल कॉन्फ्रेंस में यह सिद्ध किया कि गर्भ सँस्कार के ज्ञान विज्ञान को समझकर गर्भिणी शिशु को शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक रूप से कैसे स्वस्थ रख सकती है। इन्होंने सफ़लता पूर्वक कई गर्भोत्सव सँस्कार से जन्में बच्चों पर रिसर्च किया है।

इसी तरह हज़ारों डॉक्टर व मेडिकल फील्ड से जुड़े लोग इस ज्ञान विज्ञान से जन जन को उपलब्ध करवा रहे हैं। जो मेडिकल फील्ड के नहीं है उन्हें भी ट्रेनिंग देकर इसके प्रति अवेयरनेस जगाने के लिए *शान्तिकुंज हरिद्वार में प्रशिक्षित स्त्री, बालक व प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉक्टरों द्वारा ट्रेंनिग* दी जा रही है।

हम *गर्भ के ज्ञान विज्ञान की ट्रेनिंग - गर्भोत्सव सँस्कार* के माध्यम से आपकी आंगनबाड़ी में भी शुरू करने की अनुमति चाहते हैं। जिसमे विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों अनुसार शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक व सामाजिक रूप से स्वस्थ सन्तान के जन्म को प्राचीन ऋषियों के ज्ञान व आधुनिक विज्ञान की मदद से सुनिश्चित किया जा सके। इस सम्बंध में एक पत्र भी उन्हें दें, व अनुमति उनसे ले लें।

👉🏻 जब अनुमति मिल जाये तो सप्ताह में किसी दिन आंगनवाड़ी के कार्यकर्ता सभी आसपास की गर्भिनियो व उनके परिजनों को एकत्र कर लें।

👉🏻 पॉवरपॉइंट प्रेजेंटेशन से गर्भ का ज्ञान विज्ञान समझाएं

👉🏻 गर्भिणी क्या क्या योग व्यायाम करें वह बताये

👉🏻 गर्भिणी का आहारक्रम क्या होगा यह बताये

👉🏻 गर्भिणी कौन कौन से आध्यात्मिक उपचार गर्भ के सन्तुलित मानसिक विकास के लिए करे जैसे जप थैरेपी, ध्यान, स्वाध्याय, गर्भ सम्वाद, संगीत थैरेपी इत्यादि

👉🏻 वीडियो चलाकर दिखाएं कि कैसे बच्चा गर्भ में सुनता है और रेस्पॉन्स देता है। कैसे सुख व दुख को गर्भ में ही महसूस कर सकता है इत्यादि इत्यादि

इस तरह किसी भी आंगनबाड़ी में *गर्भसंस्कार प्रशिक्षण* शुरू किया जा सकता है।

आपको पेन ड्राइव में शान्तिकुंज से समस्त डेटा गर्भ सँस्कार का मिला हुआ होगा ही। उसे प्रोजेक्टर या टीवी में चलाकर दिखा दें या लिंक उन्हें भेज दें वो लोग अपने अपने मोबाईल में देख लेंगे।

कुछ वीडियो क्लिप आप मोबाईल में भी भेज सकते हो।

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *गर्भ के ज्ञान विज्ञान की ट्रेनिंग देने जाने से पूर्व कार्यकर्ता को क्या क्या अपनी मानसिक तैयारी करनी चाहिए, और किसी भी "गर्भ ज्ञान विज्ञान" की दो घण्टे की वर्कशॉप का स्वरूप क्या होगा?*

प्रश्न - *गर्भ के ज्ञान विज्ञान की ट्रेनिंग देने जाने से पूर्व कार्यकर्ता को क्या क्या अपनी मानसिक तैयारी करनी चाहिए, और किसी भी "गर्भ ज्ञान विज्ञान" की दो घण्टे की वर्कशॉप का स्वरूप क्या होगा?*

उत्तर - आत्मीय बहन, उत्तम तो यह होगा कि ट्रेनिंग देने दो से तीन लोग ग्रुप में जाएं, सब अलग अलग टॉपिक पर बोलें। वैसे कोई एक भी बोल सकता है।

जो भी स्पीकर बनने जा रहा है, वह स्वयं को माइक समझे और गुरुदेव की आवाज को जन जन तक पहुंचाने का माध्यम निमित्त समझे। घर में 15 मिनट का ध्यान व सम्बंधित विषय का  स्वाध्याय करके जाए। स्वयं के शरीर मे गुरु का आह्वाहन करें, यज्ञ भष्म माथे पर गायत्री मंत्र बोलकर लगाए तब घर से बाहर निकले।

दो घण्टे अर्थात आपके पास कंटेंट बोलने वाला एक घण्टे का और करने वाला कर्मकांड 15 मिनट, वीडियो दिखाना 15 मिनट, बाकी आधे घण्टे का समय प्रश्नोत्तरी के लिए छोड़ दें।

जाते ही सबको बिठाए और बोलें कि आइये पहले उस परमात्म चेतना से जुड़े जिसने गर्भ में आपके चेतना को स्थापित किया है, जो मेरे मुंह से बोलेगी और आपके कानो से सुनेगी। जो सन्देश गर्भस्थ तक पहुंचाएगी।

सभी को नेत्र बन्द करके कमर सीधी करने को कहें जितना आसानी से सम्भव हो। गुरु का आह्वाहन करके निम्नलिखित करवाएं:-

पांच बार दीर्घ स्वर में ॐ बुलवाइए, तीन बार गायत्री मंत्र व एक बार महामृत्युंजय मंत्र बुलवाइए। उनसे कहिए वो ध्यान में देखें कि उगते हुए सुर्य से एक प्रकाश का प्रकाशित गोला उनकी तरफ आ रहा है। वह प्रकाश उनके गर्भ में प्रवेश कर गया। उनका गर्भ नीली नीली रौशनी से हज़ारो वाट के बल्ब जैसा प्रकाशित हो गया। सूर्य का अंश उनके गर्भ में है। अब उनसे कहें वो मन ही मन दोहराएं:-

मेरी सन्तान लड़का हो या लड़की, जो भी है मैं उसको स्वीकार करती हूँ।

यह सूर्य का अंश है, यह सूर्य के समान ओजस्वी तेजस्वी वर्चस्वी है। इसके जन्म व इसके कर्म से दुनियां प्रकाशित होगी।

मेरी सन्तान सूर्य के समान ऐश्वर्यवान, बलवान,  बुद्धिमान व मास्टर सर्वशक्तिमान होगी।

गायत्री मंत्र बोलते हुए सबसे हाथ रगड़ने को बोलें, और फिर उस हाथ की ऊर्जा को गर्भ पर हाथ फेरने को बोले और स्वयं के चेहरे पर लगाएं।

बोलने का क्रम इस प्रकार होगा:-

1-  गर्भ ज्ञान विज्ञान पीपीटी से प्रेजेंटेशन - 20 मिनट,
2- गर्भिणी हेतु ध्यान व गर्भ सम्वाद - 15 मिनट,
3- गर्भिणी हेतु योग प्राणायाम - 15 मिनट
4- गर्भिणी का आहार क्रम कब कब, क्या और कैसे? - 10 मिनट
5- वीडियो इधर चलाकर दीपयज्ञ की तैयारी कर लें।

(खीर सबको अपने घर से बनवाने का निर्देश आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से पहले ही करवा दें। या आंगनबाड़ी में बनवा लें।)

संक्षिप्त पुंसवन सँस्कार का कर्मकांड पुस्तक *आओ गढ़े सँस्कार वान पीढ़ी भाग दो के अनुसार* करवाएं।

भजन चाहे तो एक अंत मे बोल लें। यदि सास या कोई बड़ा परिजन हो गोद भरवाई में फल व गिफ्ट भी गर्भिणी को दे सकता है। सभी गर्भिणी की गोद में कार्यकर्ता आंगनवाड़ी प्रतिनिधियों से युग साहित्य(बुद्धि निर्माण के लिए), एक रुपये का सिक्का(धनशक्ति निर्माण के लिए) एवं फ़ल (शरीर के बल के निर्माण) के लिए डलवा दे।

अंत मे शांतिपाठ के बाद प्रश्नोत्तरी लें। जिससे जिन्हें जल्दी हो वो जा सकें, जो सुनना चाहे वो बैठे रहें।

मन्त्र लेखन के लिए बता दें कि मन्त्र लेखन कोशिश करें कि लिखकर उसे तकिए के नीचे रखकर सोये। जिससे मन्त्र की वाइब्रेशन मष्तिष्क को ऊर्जावान बनाये। दिन में जब दोपहर को लेटे तो मन्त्रलेखन गर्भ के ऊपर रखकर उसकी मन्त्र ऊर्जा वाइब्रेशन गर्भ को दें।

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...