Friday 31 August 2018

प्रश्न - *मुझे मेरे कॉलेज में आत्मबोध पर प्रेजेंटेशन देना है? आत्मबोध अध्यापक और सहपाठियों को कैसे समझाऊं? मार्गदर्शन करें..*

प्रश्न - *मुझे मेरे कॉलेज में आत्मबोध पर प्रेजेंटेशन देना है? आत्मबोध अध्यापक और सहपाठियों को कैसे समझाऊं? मार्गदर्शन करें..*

उत्तर - आत्मीय भाई, मंच पर खड़े हो एक बार गायत्री मंत्र बोलो और गुरुदेब का आह्वाहन अपने शरीर मे करो, माँ भगवती का आह्वाहन जिह्वा में करो फिर पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी बात कुछ इस तरह प्रस्तुत करो।

आदरणीय शिक्षकगण और प्रिय सहपाठियों, आत्मबोध का जो यह दर्शन मैं प्रस्तुत करने जा रहा हूँ। वो कुछ ऐसा है:-
(एक ग्लास में पिसी हुई चीनी डालकर कांच के ग्लास में मिक्स करके दिखाएं, दूसरी ग्लास में सादा पानी रखें)
इस ग्लास में चीनी घुली हुई है, और इसमें नहीं। लेकिन क्या आप में से कोई मुझे बता सकता है?  चीनी कहाँ है? यदि मैं ग्लास अदल बदल कर दूं तो क्या आप देख के बता सकते हैं?

(सबका उत्तर नहीं आएगा, कोई बोलेगा चखना पड़ेगा)

जी हाँ, मित्रों जिस तरह घुली हुई चीनी दिख नहीं रही लेकिन विद्यमान है। इसी तरह हम सब में आत्मतत्व है लेकिन किसी भी मनुष्य की बनाई मशीन से देखा जाना सम्भव नहीं है। लेकिन अनुभव जन्य है।

आत्मबोध - दो शब्दों का युग्म है। आत्म + बोध , आत्मा अर्थात वह ऊर्जा जिससे हम जीवित है, देख सुन बोल सकते है और श्वांस ले रहे है। जिसके न रहने पर हम लाश बन जाएंगे। बोध अर्थात इस आत्म ऊर्जा का ज्ञान।

(अब एक ग्लास कांच की ग्लास में दूध दिखाते हुए पूँछिये)

यह दूध है लेकिन आप मे से कोई बता सकता है, कि इसमें घी कहाँ है?

(लोग अपनी बातें बोलेंगे, रुककर उन्हें सुनिये, फिर बोलिये)

मित्रों, जब तक लोगों को इस बात का बोध(ज्ञान) नहीं था कि इसमें घी विद्यमान है। तब भी इसमें घी तो था ही। लेकिन जब बोध हुआ तो दूध को प्रोसेस करके क्रीम निकाला, फिर उस क्रीम को प्रोसेस करके घी निकाला, उसे निश्चित मात्रा में गर्म करके घी प्राप्त किया।

मित्रों जो प्राणतत्व-आत्मऊर्जा आपके और हमारे भीतर है उसे अनुभवजन्य करने हेतु हमें हमारे शरीर और मन को विभिन्न तप साधनाओं और ध्यान द्वारा प्रोसेस करना होगा। तब मंथन द्वारा आत्म बोध प्राप्त होगा।

मित्रों, स्वप्न तो आप सभी देखते होंगे। स्वप्न में मान लो हमारा एक्सीडेंट हो गया, हम दर्द में रो रहे हैं और जब जगे तो दुःख गायब हुआ। ओह वो तो स्वप्न था, मैं स्वस्थ हूँ। लेकिन यदि आप स्वप्न में जाग सको तो अर्थात जान सको यह तो स्वप्न मात्र है...तब न तड़फोगे और स्वप्न को दृष्टा की भांति देख सकोगे, जैसे टीवी सिरियल चल रहा हो...सही कहा न..

मित्रों इसी तरह यह संसार आत्मा का स्वप्न है, एक मिथ्या है। स्वप्न जागने पर दृश्य और स्वप्न दोनों गायब हो जाता है। उदाहरण तौर पर अपने पूर्वज जिनकी मृत्यु हो चुकी है। क्या अब उनका कोई वजूद बचा नहीं, वो इस स्वप्न लोक से परे हो गए।

 इसी तरह जब आत्मबोध होता है तो वास्तव में एक प्रकार का जागरण होता है, इस संसार रूपी स्वप्न का भान।  मैं तो अजर अमर अविनाशी आत्मा हूँ, इस संसार रूपी स्वप्न में कुछ क्षण के लिए एक नश्वर शरीर को धारण किये अभिनय कर रहा हूँ। यह स्वप्न मिथ्या है। इसलिए आत्मबोध प्राप्त योगी इस सुख-दुःख से परे होकर आनन्द में जीते हैं। क्योंकि वो इस संसार रूपी स्वप्न और जागरण को अनुभव कर चुके होते हैं।

मित्रो, आत्मबोध के लिए योगी दो तरीके अपनाते है,
👉🏼पहले मार्ग में -  *मैं क्या हूँ*? प्रश्न उठता है। और उसकी खोज में अंतर्जगत में प्रवेश करते है। ध्यानस्थ होते हैं। संसार मे लोग डिस्टर्ब बहुत करते हैं, अतः कोई डिस्टर्ब न करे इसलिए योगी ऐसी एकांत जगह ढूंढते है जहां कोई उन्हें डिस्टर्ब न करे, जैसे हिमालय या जंगल। दही जमाने के लिए दूध में दही का जामन डालकर कई घण्टों के लिए स्थिर छोड़ देना पड़ता है। हिलाते रहोगे तो दही न जमेगी। इसी तरह प्रश्न *मैं क्या हूँ?* का जामन डालकर शरीर और मन को स्थिर कर देना पड़ता है। बस भीतर ज्ञान मार्ग स्वतः खुलता जाता है। ध्यान स्वतः घटित होता है, जिस तरह दही स्वतः जमती है।

👉🏼दूसरे तरीक़े में - *मैं क्या नहीं हूँ?* प्रश्न उठता है। फिर अलग अलग लॉजिक और अन्य तप साधनाओ से जो नहीं हूँ उसे हटाते चलते हैं। फिर जो बचता है। वह आत्मबोध होता है।

दोनों ही मार्ग में पता चल जाता है कि अरे मैं तो परमात्मा का अंश अजर अमर परमात्मा हूँ। ठीक उसी तरह जैसे समुद्र के जल को विभिन्न पात्र में रखा हुआ होना। अब जिन्हें बोध नहीं वो सब जल को अलग अलग समझेंगे। लेकिन जिन्हें बोध हो जाएगा, वो बोलेगा अरे सब मे एक ही जल है। इसी तरह योगी को अनुभूत होता है अरे सबके शरीर रूपी मटके में एक ही आत्मतत्व रूपी जल भरा है। मटका फूटते ही जल समुद्र में मिल जाना है, शरीर छूटते ही आत्मा का परमात्मा में मिलन हो जाना है। जब यह बोध हो जाता है तब कोई अपना पराया नहीं रह जाता। योगी विश्वामित्र अर्थात विश्व का मित्र बन जाता है। किसी को भी पीड़ा में देखता हो तो भावविह्वल हो उसकी सेवा में जुट जाता है। क्योंकि कण कण में परमात्मा की अनुभूति करता है। जिसमें भी प्राण-जीवन झलक रहा है वो अंश तो परमात्मा का ही है।

अब अभी जो मैंने चर्चा की वो कुछ इस तरह है कि मैंने किसी मिठाई को वर्णित किया हो। या ऐसे भी कह सकते है किसी प्रकाश के बारे में जानकारी दी। लेकिन जानकारी से न भूख मिटेगी न स्वाद मिलेगा। उसके लिए स्वयं उसे चखना पड़ेगा। प्रकाश की बातों से और मोमबत्ती प्रकाश के चित्र अंधेरा नहीं छटेगा। उसके लिए प्रकाश के समीप जाना होगा, मोमबत्ती को जलाना और उसे अनुभूत करना होगा।

*जो आत्मबोध को अनुभूत कर लेता है, जो अमृत चख लेता है वो जन जन में इस अमृत के प्रचार-प्रसार में लग जाता है। यही योगी और सच्चे सन्त करते है। लेकिन जिन मनुष्यों की प्रवृत्ति(attitude)-मानसिकता मक्खी की तरह निम्न होती है वो आत्मज्ञान के अमृत परागकण को छोड़कर सांसारिक गन्दगी-व्यसन ही चुनते हैं। लेकिन जो मधुमक्खी जैसी उच्च प्रवृत्ति(attitude)-मानसिकता के होते है, वो ऐसे प्रचार-प्रसार के ज्ञान से प्राप्त अमृत परागकण की खोज में निकलते हैं। और तप करके उसका पान करते है।*

आत्मबोध परक और साधना के कुछ साहित्य हम आपको उपलब्ध करवा सकते है, जो हमारे परमपूज्य गुरुदेब युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है।

1- अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
2- मैं क्या हूँ?
3- ईश्वर कौन है?कैसा है? और कहां है?
4- प्रसुप्ति से जागृति की ओर
5- ब्रह्मवर्चस की ध्यान धारणा
6- अंतर्जगत का ज्ञान विज्ञान
7- पंचकोशिय साधना

शान्तिकुंज हरिद्वार और तपोभूमि मथुरा में विभिन्न आत्मबोध परक साधनाये करवाई जाती है। जिसे निःशुल्क आप ज्वाइन कर सकते है।

आप सभी का धन्यवाद

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *मूल्यों के आधार पर शिक्षण कला कैसे विकसित करें? स्कूल को ही श्रेष्ठ मानव निर्माण की फैक्ट्री कैसे बनाएं। आजके आधुनिकता में प्राचीन गुणवत्ता कैसे मिलाएं?*

प्रश्न - *मूल्यों के आधार पर शिक्षण कला कैसे विकसित करें? स्कूल को ही श्रेष्ठ मानव निर्माण की फैक्ट्री कैसे बनाएं। आजके आधुनिकता में प्राचीन गुणवत्ता कैसे मिलाएं?*

उत्तर - हमारी मनोवृत्ति का निर्माण हमारे जीवन, हमारे आचरण के अनुरूप ही होता है। हमारे जीवन तथा आचरण का मूल आधार है हमारी शिक्षा। कहा गया है “जैसा खावे अन्न वैसा बने मन।” यहाँ पर अन्न का अर्थ भोजन है, जो शारीरिक और मानसिक दोनों ही प्रकार का होता है। जैसे मिले विचार वैसे बने आचार, यहां आचार का अर्थ आचरण और चरित्र से है। अतः बच्चों को जो भी विचार हम परोस रहे है वो बहुत ही उपयोगी और मूल्यपरक होने चाहिए। इसलिए यह सिद्ध होता है कि आजकल मानव समाज में जो तरह-तरह के छोटे-बड़े दोष दिखलाई पड़ रहे हैं उनका मूल हमारी शिक्षा ही है।

आजकल हर जगह शिक्षा प्रसार की नई-नई योजनाएं बन रही हैं। हमारी राष्ट्रीय सरकार इस बात की घोषणा कर चुकी है कि वह शीघ्र ही देश से निरक्षरता को मिटा देगी। परन्तु विचार यह करना है कि हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली कैसी है और वह किस प्रकार के जीवन का निर्माण कर रही है तथा हमारी शिक्षा वास्तव में कैसी होनी चाहिए।

हमारी वर्तमान शिक्षा पद्धति को सात आततायी या शत्रु बुरी तरह से जकड़े हुए हैं। मस्तिष्क, दण्ड, परीक्षा, कुरूप भवन, अत्यधिक कार्य, स्वाभिमान रहित अध्यापक तथा संकुचित मनोवृत्ति के माता-पिता। बेचारे विद्यार्थी को इतनी अधिक पुस्तकें पढ़नी पड़ती हैं, इतने प्रकार के विषयों का अध्ययन करना पड़ता है कि उनका दिमाग, शरीर और मन सब कुछ बुरी तरह से पिस जाता है। भाँति-भाँति के दण्ड और हर समय प्रस्तुत परीक्षाओं का भय उसे खाये जाता है। सिवाय पढ़ने और पढ़कर परीक्षा पास करने के वह कुछ और सोच ही नहीं सकता। गन्दे और तंग मकानों में गन्दे टाटों या गन्दी और भद्दी मेज-कुर्सियों पर बैठकर उसे पढ़ना पड़ता है,  या आलीशान रूम और सुंदर कुर्सियों में पढ़ने हेतु अत्यधिक मूल्य देना पड़ता है। लेकिन सुंदर आलीशान भवन हो या तंग-गन्दा भवन पढ़ने लिए, दोनों ही सूरत में बंद कमरा ही है, बच्चो के लिए स्वच्छ वायुमण्डल और खुली प्राकृतिक हवा एक दुर्लभ पदार्थ है। स्कूल में पढ़ाने वाले मास्टर विद्यार्थी को केवल इसलिए पढ़ाते हैं कि उसकी नौकरी बनी रहे, 90% अध्यापक गण को बच्चे के भले-बुरे भविष्य से उन्हें कोई मतलब नहीं। वे हमेशा अपने ट्यूशन की चिन्ता में लगे रहते हैं और धन कमाने के लालच में अपने स्वाभिमान, गुरुत्व और शिक्षक पदवी के महत्व को गंवा बैठते हैं। विद्यालय के बाहर घर पर भी विद्यार्थी का यही हाल रहता है? घर पर वह जब तक कम से कम चार घण्टे नित्य नियमपूर्वक न पढ़ें, तब तक अध्यापक द्वारा बताया घर पर किया जाने वाला काम पूरा नहीं होता और फिर इन सबके ऊपर है उस पर सवारा नौकरी का भूत। बालक को दिन-रात किताबों से चिपके देखकर माता-पिता को पूरा विश्वास हो जाता है कि उनकी साधना तथा बच्चे की तपस्या दोनों ही सफल है। बड़ा होने पर उसे अवश्य ही कोई अच्छी नौकरी मिल जायेगी। अच्छी नौकरी पाना ही जब सब प्रकार से जीवन का उद्देश्य हो जाय तो मानसिक विकास का प्रश्न ही कहाँ रहा? आजकल तो विद्या और नौकरी पर्यायवाची शब्द बन गये हैं। ऐसी हालत में प्रत्येक मनुष्य स्वार्थ-साधन में तल्लीन रहेगा, इसके सिवाय उससे और किस बात की आशा की जा सकती है? ऐसा व्यक्ति समाज के कल्याण की ओर क्या ध्यान दे सकता है?

*देश में शिक्षा को समाज सेवा और राष्ट्र सेवा समझ के करने वाले शिक्षक 10% अल्पसंख्यक ही हैं, ऐसे शिक्षकों का सान्निध्य जिन भाग्यशाली बच्चो को मिलता है वो महामानव-देवमानव बनते है।* जो स्वेच्छा से सेवा करने शिक्षा के क्षेत्र में आये हों। नहीं तो अधिकतर 90% कमाकर घर चलाने हेतु मजबूरी में शिक्षक बनते है, ऐसे शिक्षकों के सान्निध्य में पढ़ने वाले मात्र संवेदनहीन पढ़े लिखे रोबोट बनते हैं।

तो सबसे पहले शिक्षकों को शिक्षक रूपी महान जिम्मेदारी का अहसास करवाना, उनके भीतर शिक्षण के प्रति महान उत्तदायित्व को जगाना अनिवार्य है। सैनिक, कानून और पुलिस अपराधी को दण्ड दे सकते हैं सुधार नहीं सकते। लेकिन शिक्षक अपराध को मिटा सकता है।

डॉक्टर की गलती कब्र में दब जाएगी, इंजीनियर की गलती से कुछ जाने जाएंगी। लेकिन शिक्षक की गलतियां जीवंत इंसानों के रूप में भयंकर तबाही मचाएगी। अतः शिक्षक से महत्त्वपूर्ण और कठिन कोई अन्य पद नहीं।

*आजकल हमारी शिक्षा की व्यवस्था वास्तव में बहुत दोषयुक्त हो गई है। इसको मिटाकर हमें ऐसी शिक्षा-दीक्षा का विधान करना होगा जो हमें स्वयं अपने ऊपर विजय प्राप्त कर सकने में समर्थ बना सके। ज्ञान का अन्तिम लक्ष्य चरित्र निर्माण ही होना चाहिये। इसलिए हमारी शिक्षा को तीन भागों में विभाजित किया जाना चाहिए-शारीरिक शिक्षा, मानसिक शिक्षा और आध्यात्मिक शिक्षा। हम स्वस्थ हों, हमारे स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क हो और हमारा स्वस्थ मन जीवन के स्वास्थ्य पर विचार कर सकने में समर्थ हो।* संक्षेप में हमारा आशय यही हैं कि शिक्षा के द्वारा हमारा समाज सचमुच स्वस्थ बने। *स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन और सभ्य समाज इसका निर्माण करे शिक्षा व्यवस्था*।

👉🏼1- *शारीरिक शिक्षा का ध्येय शरीर की सुव्यवस्था और रक्षा होना चाहिए। इसमें बतलाया जाय कि हम कब कितना खायें, कब कितना सोयें, कब और कितना तथा किस प्रकार अपना मनोरंजन करें, कब कितना और किस प्रकार व्यायाम करें। मनोरंजन तथा व्यायाम की शिक्षा व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों रूपों में दी जानी चाहिए, ताकि हमारे भीतर सहयोग की भावना का विकास हो और हम समाज में मिलकर काम करना सीखें।योग-ध्यान-व्यायाम शिक्षण का अनिवार्य अंग हो।*

👉🏼2- *मानसिक शिक्षा का उद्देश्य है हमारे दिमाग का उचित रीति से विकास होना। इसका अर्थ यह नहीं है कि हम केवल अपनी पाठ्य पुस्तकों तथा अन्य पुस्तकों को भली प्रकार समझकर याद कर सकें। वरन् इसका उद्देश्य यह है कि हम अपने शरीर-रक्षा की विधि को जानकर तद्नुकूल आचरण करें। हम में सेवा भाव उत्पन्न हो, हमारे हृदय में बन्धुभाव जागृत हो, हम नई बात जानने को उत्सुक हों और निरन्तर अपनी ज्ञान वृद्धि करते रहें। हम में कार्य क्षमता आवे और हम में भले बुरे का विवेक उत्पन्न हो। नई नई तकनीक देश और समाज की उन्नति और मनुष्य जीवन को आसान बनाने हेतु सीखें।*

👉🏼3- *आध्यात्मिक शिक्षा का उद्देश्य यह है कि हम में सम्मान तथा आदर का भाव उत्पन्न हो, अपने आस-पास वालों के प्रति बन्धुत्व की भावना का उदय हो और दया तथा करुणा के भावों की वृद्धि हो।भावनाओ के बिना मनुष्य मंन्त्र एक जिंदा लाश रोबोट/जॉम्बी है।*

मनुष्य में जब तक अपनी राष्ट्रीय, धार्मिक, जातीय, सामाजिक और पारिवारिक मान्यताओं अथवा परम्पराओं के प्रति समान बुद्धि नहीं होगी तब तक व्यक्तिगत अथवा सामूहिक उन्नति की आशा दुराशा मात्र है। मानुषी और दैवी कार्यों की महत्ता के सम्मुख भी हमको नतमस्तक होना चाहिये। वयोवृद्ध जनों का सम्मान तथा दुर्बल और बालकों को अपना वरद्हस्त प्रदान करना हमारा कर्तव्य है। सद्गुणों और सद्व्यवहारों के प्रति भी हमको श्रद्धा का भाव रखना आवश्यक है, क्योंकि ये सब मनुष्यत्व के चिन्ह हैं।

शिक्षा का यह भी प्रभाव होना चाहिये कि हम विश्व के प्रत्येक पदार्थ में अपने स्वरूप आदर्श न पावें तथा उसके प्रति प्रेम भाव रखें। प्रत्येक जाति, प्रत्येक समुदाय, प्रत्येक धर्म तथा प्रत्येक राष्ट्र के लिए हमारे हृदय में प्रेम का भाव हो। हम किसी को न तो बुरे समझें न किसी से घृणा करें। सबको अपने ही समान स्वाभिमानी समझें। हमारी शिक्षा हमें इस योग्य बनावे कि हम प्रत्येक बात को निष्पक्ष भाव से समझ सकें। अपने निजी विचारों के अनुरूप अपनी धारणाएं निर्धारित कर सकें। सिद्धान्त के पीछे मर मिटने को तैयार हो जायें। हमारी आत्मा इतनी शक्तिशाली हो कि हम समाज-द्रोहियों का खुलकर विरोध कर सकें। बुरे को बुरा न कह सकना हमारी नैतिक निर्बलता का परिचायक है। जब तक व्यक्ति की अपेक्षा सिद्धान्त की महत्ता स्वीकार न की जायगी तब तक बन्धुत्व की भावना दूर का स्वप्न है।

आध्यात्मिक शिक्षा का एक परिणाम यह भी होना चाहिए कि हमारे अन्दर संसार के सभी असहाय, निरुपाय, दलित, पीड़ित, शोषित, दुखी, निर्धन व्यक्तियों के प्रति दया एवं करुणा के भाव हों। क्रोध और घृणा के पात्र न समझकर हम उनके प्रति दया रखें। निर्धन और दुखी होना एक दुर्भाग्य है और उसके साथ हमारी उदारता का संयोग होना ही उचित है। इतना ही नहीं हम दीन दुखियों पर दया करके ही रह जायें, वरन् परिस्थिति तथा अपनी शक्ति के अनुसार उनके दुःख दर्द में हाथ बंटाना भी आवश्यक है।

साराँश यही है कि हमारी शिक्षा केवल कामचलाऊ वस्तु न हो, वह केवल परीक्षा पास करने और आर्थिक रूप से कमाने का माध्यम केवल न हो, वरन् हमें भली प्रकार जीवन जीना सिखाये, जीवन प्रबंधन सिखाये। विद्या वही है जो हमें इस दुनिया की चिन्ता से मुक्त करके हमारी जीवन नैया को भवसागर से पार लगाने में समर्थ हो-’स विद्या या विमुक्तये।’

ऐसी मूल्यों आधारित शिक्षा व्यवस्था का प्रारूप, देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार और प्रज्ञा विद्यापीठ स्कूल में देखने जरूर जाएं। और यह प्रारूप अपने स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी में लागू करवाएं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

सन्दर्भ - http:// literature .awgp. org/akhandjyoti/1958/February/v2.19

Thursday 30 August 2018

प्रश्न - *क्या लोग धर्म और तंत्र के नाम पर पागलपन का शिकार होते है? अपना होश खो बैठते हैं? यदि ऐसा कोई हो जाये तो उन्हें पुनः होश में कैसे लायें?*

प्रश्न - *क्या लोग धर्म और तंत्र के नाम पर पागलपन का शिकार होते है? अपना होश खो बैठते हैं? यदि ऐसा कोई हो जाये तो उन्हें पुनः होश में कैसे लायें?*

उत्तर - मनुष्य का दिमाग़ बड़ी अजीबोगरीब संरचना लिए हुए है, किसी भी मनुष्य के सबसे शक्तिशाली दिमाग़ को भी बेक़ाबू और पागल किया जाना आसानी से सम्भव है।

 जिस पर मनुष्य की अंध श्रद्धा-प्रेम-विश्वास टिक जाए, वो उसके आगे दिमाग़ की दुकान बंद कर देता है। कुछ सोचने समझने की शक्ति खो देता है।

*उदाहरण* - यदि एक लड़के का पत्नी पर अंध श्रद्धा-प्रेम-विश्वास हो तो पत्नी के भड़काने पर अपनी जन्मदेने वाली वृद्ध माता और जन्मदाता पिता के साथ मारपीट कर उन को बेदर्दी से वृद्धाश्रम छोड़ आते है या घर से निकाल देते हैं।

इसी तरह यदि इन लडकों की अंध श्रद्धा-प्रेम-विश्वास माता-पिता पर हो तो दहेज के लिए पत्नी को प्रताड़ित करने या जीवित जलाने में संकोच नहीं करते।

जब स्त्री प्रेमी पर अंध श्रद्धा-प्रेम-विश्वास कर लेती है तो घर से भाग जाती है, प्रेमी को पाने के लिए पागलपन की किसी भी हद को पार कर सकती है।

जब यह अंध श्रद्धा-प्रेम-विश्वास तांत्रिक को समर्पित होता है तो उल्टी सीधी हरक़त करने में अनपढ़ तो अनपढ़ पढ़े लिखे लोग  भी नहीं हिचकते।

जब यही अंध श्रद्धा-प्रेम-विश्वास धार्मिक नेता पर, पीर मौलवी पर हो जाती है तो तीन तलाक़, हलाला, आतंकवाद, हत्या, लूटपाट जैसी अमानवीय आतंकी घटनाओं को करने से ये लोग नहीं झिझकते।

*Root Cause Analysis*:- अब अगर आप गौर से जड़ समझेंगे तो पाएंगे कि अंध श्रद्धा के पीछे मुख्य कारण उस व्यक्ति की कोई न कोई चाहत होती है, अब वो चाहत सांसारिक भी हो सकती है और स्वर्ग-मुक्ति की आध्यात्मिक चाहत भी हो सकती है। व्यक्ति जिस पर अंध श्रद्धा करता है वो किसी भी हालत में उसे नाराज़ नहीं करना चाहता। उसके हाथों की कठपुतली बन जाता है।

आप जेलों में अपराधियों/आतंकियों की प्रोफ़ाइल चेक कीजिये तो आप पाएंगे कई सारे तो बहोत पढ़े लिखे लोग हैं।

*आइये प्राचीन उदाहरण* - दुर्योधन और रावण का देखते हैं, वो बहुत ज्यादा पढ़े लिखे लोग और धर्म के ज्ञाता थे। रावण का अपनी माता के प्रति अंध श्रद्धा-प्रेम-विश्वास और दुर्योधन का अपने मामा शकुनि के प्रति अंध श्रद्धा-प्रेम-विश्वास उनकी बुद्धि पर पर्दा डलवा देते है। मदान्ध करके पूरे समाज को कलंकित करने वाली दो घटनाएं सीता हरण और द्रौपदी चीर हरण जैसी घटनाओं को अंजाम दे डालते हैं।

*देखिए* - ब्रेन वाश तो आज़कल टीवी सीरियल मीडिया फ़िल्मे युवाओं का कर रहे हैं, उनपर अंध श्रद्धा का असर यह है कि आजकल की युवा लड़की फैशन के नाम पर अर्द्ध नग्न घूम रही है, युवा नशे का ज़हर नशों में भर रहे हैं।

आजकल आस्था चैनल और अन्य धार्मिक चैनल को कुछ ज्यादा ही सुनने वाले धार्मिक पागलपन का शिकार हो रहे हैं। इनमें परोसे जाने वाले कंटेंट को फ़िल्टर नहीं किया जाता। यह एक बहुत बड़ा खतरा है।

*तो बचाव क्या है?*- घर में धार्मिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक माहौल विनिर्मित करना। आध्यात्मिक और धार्मिक दोनों में अंतर करना बहुत आसान है, अध्यात्म दवा के फार्मूले की बात करता है यदि इन साल्ट का कम्पोज़िशन किसी भी ब्रांड की दवा में है तो अमुक बुखार रोग ठीक हो जाएगा। धर्म कम्पनी ब्रांड की तरह विज्ञापन करता है अमुक बुखार है तो हमारे ब्रांड की दवा से ही ठीक होगा।

बच्चा कोरे दिमाग़ को लेकर गर्भ मे आता है उसके दिमाग़ की सही प्रोग्रामिंग और ब्रेनवाशिंग वैज्ञानिक आध्यात्मिक संस्कारो और विचारों से हुई तो वह कभी पागलपन का शिकार न होगा। बच्चे के जीवन मे यह ब्रेन प्रोग्रामिंग माता-पिता, दादा-दादी या क्लोज रिश्तेदार, अध्यापक गण और वातावरण करता है।

*यदि कोई बड़ा हो गया है और धार्मिंक अंधविश्वास और पागलपन का शिकार है तो उसके लिए क्या करें?* - आपके हाथ में सिर्फ़ प्रयास है, उसे अच्छे विचार दें, साधक बनने हेतू प्रेरित करें। नित्य ध्यान और अच्छी पुस्तको का स्वाध्याय करवाएं। यदि वो आपकी बात मान लेता है तो बदलाव होगा और नहीं मानता, ध्यान-स्वाध्याय नहीं करेगा तो इस पागलपन से उबरना बड़ा मुश्किल है।

कुछ पुस्तकें ऐसे धार्मिक पागलपन से लोगों को उबार सकती है यदि कोई ढंग से पढ़ कर समझ ले:-

1- अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
2- ईश्वर कौन है? कहाँ है? कैसा है?
3- योग के नाम पर मायाचार
4- क्या धर्म एक अफ़ीम की गोली है?
5- मैं क्या हूँ?
6- महाकाल की युग प्रत्यावर्तन प्रक्रिया
7- सतयुग की वापसी

ये सभी पुस्तक निम्नलिखित लिंक से फ्री डाउनलोड करके पढ़े:-

http://literature.awgp.org
http://www.vicharkrantibooks.org

भगवान कृष्ण ने लाखों को उबारा और ज्ञान दिया। लेकिन दुर्योधन ने उनको सुनने से ही इंकार कर दिया तो उसका उद्धार सम्भव न हो पाया।

भगवान का नाम लेकर प्रयास कीजिये। कर्म करिये फल की चिंता मत कीजिये।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *भगवान कृष्ण की जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर लोग हिंदू होकर भी भद्दे मेसेज भेजते हैं? ऐसा क्यों है?*

प्रश्न - *भगवान कृष्ण की जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर लोग हिंदू होकर भी भद्दे मेसेज भेजते हैं? ऐसा क्यों है?*

उत्तर - जो जैसी प्रवृत्ति रखता है, वो उसी प्रकार के मैसेज की ओर आकृष्ट होता है।

*उदाहरण* - *क्या आप मक्खी की प्रवृत्ति के हैं गन्दगी ढूंढ़ते है और गन्दगी संग्रहित करते हैं? या मधुमक्खी की प्रवृत्ति के हैं अच्छाई ढूँढते है और अच्छाई ही संग्रहित करते है? संसार की समस्त वस्तुओं को उपयोग करने की एक जैसा अवसर दोनों के पास है, पुष्प और गन्दगी दोनों के लिए उपलब्ध हैं।*

*भगवान कृष्ण को भगवान की उपाधि - राक्षसों के वध, दुष्टता का अंत, पीड़ितों के उद्धार, धर्म स्थापना और गीता जैसे दिव्य ग्रन्थ के उपदेश हेतु दिया गया था।*

स्वयं विचार करो 13 वर्ष तक की बाल्यावस्था में कौन कितना रसिक हो सकता है, जहां के बच्चे इंटरनेट और टीवी भी उपयोग न करते हो। अपने बचपन को याद करो और अपने वर्तमान में आसपास के बच्चो को देखो। किशोरावस्था शुरू होते ही भगवान कृष्ण मथुरा पहुंच गए थे, फिर वृंदावन कभी लौटे ही नहीं। तो जो इतनी रसिक कहानियां बनी है वो लोगों ने गढ़ी हैं।

कंस समस्त दूध दही मक्खन कर के रूप में मथुरा मंगवा लेता था, राजा, मंत्री, रानियां दूध-दही-माखन खाने के साथ साथ उनसे स्नान करती थीं। और दूध दही मक्खन के अभाव में ग्रामीण बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे थे। अतः भगवान कृष्ण मथुरा तक दूध-दही-मक्खन न पहुंच सके इस हेतु मटकी फोड़ना और ग्वाल वालो बच्चो मक्खन खिला के उन्हें कुपोषण से बचाना लक्ष्य था।

राक्षस आतंकी सर्वत्र सुंदर स्त्रियों का अपहरण कर लेते थे, तो स्त्रियों का सार्वजनिक में नदी में नहाना खतरे से खाली नहीं था। अतः बाल कृष्ण उन्हें परेशान करके घर भेज देते थे।

भगवान कृष्ण कुशल कूटनीतिज्ञ थे, जहां बुद्धि से काम चलता हो वहां व्यर्थ में बल प्रदर्शित नहीं करते थे। शेर को मारने के लिए मल्लयुद्ध मूर्खता है, उसे जाल में फँसाना बुद्धिमानी है। अतः उन्हें छलिया और रणछोड़ कहा गया।

*संगठन में शक्ति होती है यही दिखाने हेतु दही-हांडी जैसे उत्सव जन्माष्टमी में मानायें जाते हैं।* कितना भी ऊंचा और कठिन दही हांडी का लक्ष्य हो अगर ग्रुप सँगठित है और तालमेल उचित है तो लक्ष्य मिलकर रहता है। देश के लोगों को एकता में शक्ति और संगठन में शक्ति का संदेश देता यह पर्व है।

गोवर्धन पूजन - स्वरोज़गार और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन स्वदेशी अपनाने का संदेश देता है।

*श्रीमद्भागवत गीता जीवन प्रबंधन, व्ययसाय प्रबंधन, मन प्रबंधन, अध्यात्म इत्यादि की अद्भुत पुस्तक है,  A Greatest Management book to provide solution of all professional & Personal problems. विश्व की समस्त भाषाओं में इसका अनुवाद हुआ है। लेकिन दुर्भाग्यवश प्रत्येक घर, प्रत्येक शिक्षण संस्थान और प्रत्येक ग्रुप में इसका अनिवार्य स्वाध्याय नहीं होता। कृष्ण जन्माष्टमी जगतगुरु द्वारा दिये जीवन प्रबंधन के फार्मूलों के स्वाध्याय का दिन है।*

भगवान कृष्ण के समस्त विवाह या तो राक्षसों से वध के बाद छुड़ाई स्त्रियों को उनका सम्मान लौटाने हेतु विवशता में किये विवाह है, या राजनैतिक विवशता थी। जिससे वो प्रेम करते थे राधा रानी उन्हें तो विवाह कर वो द्वारिका ला भी न सके। प्रभु ने त्याग और कष्टमय जीवन लोकहित जिया।

*अब इतने विराट प्रभु के चरित्र में जन्म से 13 वर्ष की आयु पर रसिक कथाएं गाने वाले गुरु और भक्त यदि श्रीमद्भागवत गीता के वीरता जगाने वाले और कर्तव्यबोध जगाने वाले सन्देश गाते और सुनाते तो हमारा देश कभी गुलाम नहीं बनता। हज़ारो अर्जुन की सेना खड़ी हो जाती।देश सदा स्वतन्त्र रहता।*

आस्था टीवी पर बड़े बड़े बाबाजी को भौड़ी रसिक कथाएं और भक्ति गीत के नाम पर मनोरंजन के गीत गाते सुनती हूँ। *तो मुझे केवल एक बड़ी मक्खी स्टेज पर और मख्खियों के झुंड मैदान में भक्त रूप में दिखाई देते हैं।*

*जब व्हाट्सएप और फेसबुक में कोई अभद्र मेसेज भेजता या फारवर्ड करता है, तो वह मक्खी प्रवृत्ति की गंदगी का परिचय देता है।*

जो स्त्रियाँ और पुरुष समूह में भौंडे रसिक भजन गाती और उन पर नृत्य करते है वो भी मुझे मक्खियों के समूह ही नजर आती हैं। ऐसी मक्खियां समाज को दूषित कर कायरता का पाठ पढ़ाती हैं।

*जो स्त्री-पुरूष श्रीमद्भागवत गीता के सन्देश, साहस और वीरता के जागरण, संगठन में शक्ति, यज्ञ आयोजन इत्यादि करते हैं वही सच्चे भक्त और मधुमक्खी प्रवृत्ति के दिखते हैं।*

*श्रीमद्भागवत गीता से ज्ञान के परागकण को स्वयं ग्रहण करने वाले गुरु मधुमक्खी और ज्ञानी वीरों की सेना मधुमक्खियो का झुंड तो युगनिर्मनियो के कार्यो में ही देखने और सुनने को मिलता है। जो युगनिर्माणि अर्जुन की सेना को पुनः धर्मस्थापना, देश की सुरक्षा और पीड़ितों के उद्धार हेतु खड़ा कर रही है।*

अब जब किसी का भद्दा मेसेज जन्माष्टमी पर आए तो रिप्लाई में यह मैसेज पोस्ट करके भेज दें। और मक्खी जरूर बोल दें, इतनी वीरता तो उतपन्न करें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 28 August 2018

कविता - जीने का आनंद लेना ही अध्यात्म है।

*जीवन जीने की कला,*
*इसी का नाम है,*
*कठिन परिस्थितियों में भी,*
*मुस्कुराना हमारा काम है,*
*जीवन की कठिनाइयों में भी*,
*जीने का आनंद लेना ही अध्यात्म है।*

आजकल बड़े,
उलझे उलझे से हालात हैं,
कहीं जॉब तो कहीं व्यवसाय में,
सर्वत्र बिगड़े हालात हैं।
कहीं स्वास्थ्य तो कहीं रिश्तों में,
बिगड़े बिगड़े हालात हैं।

कुछ भी स्थिर नहीं यहां,
न जॉब और न ही व्यवसाय,
न रिश्ता और न ही स्वास्थ्य,
कुछ दिन नोटों की बरसात,
तो कुछ दिन निरन्तर घटती आय,
कुछ दिन बढ़ता सौंदर्य-स्वास्थ्य,
तो कुछ दिन घटता सौंदर्य-स्वास्थ्य,
कभी नए बनते रिश्ते,
तो कभी बिगड़ते पुराने रिश्ते।

वही टिकेगा यहां,
जो निरन्तर अपडेटेड रहेगा,
बदलती सामाजिक डिमांड के प्रति,
दूरदर्शी दृष्टिकोण रखेगा,
बदलते मौसम के अनुसार,
स्वास्थ्य ठीक रखेगा,
मनुष्य के बदलते स्वभाव पर,
पैनी नज़र रखेगा।

सुखमय जीवन के लिए,
नित्य निम्न प्रयास करो,
आध्यात्मिकता से,
मन को बूस्ट करो,
नित्य ध्यान स्वाध्याय से,
मन को चुस्त दरुस्त रखो,
नई नई टेक्नोलॉजी से,
जॉब और व्यवसाय को अपडेटेड रखो,

घर और जॉब-व्यवसाय में,
समुचित सन्तुलन रखो,
और आय से आधा,
जीवन मे ख़र्च करो,
जॉब-व्यवसाय में सबसे ज़्यादा,
स्वयं काम करो,

भूख से आधा,
भोजन करो,
आराम से ज़्यादा,
व्यायाम करो।

रिश्तों में लेने से ज़्यादा,
देने में विश्वास रखो,
किसी से कोई कभी,
अपेक्षा मत रखो,

क्या कहेंगे लोग,
इस की परवाह मत करो,
इस जहान में,
निर्भय-साहसी बनकर जियो।

व्यर्थ के क्रोध से,
क्या कोई काम बनेगा?
क्या कोई लाभ मिलेगा?
क्या कोई रिश्ता सुधरेगा?
जूनियर,पत्नी, बच्चो पर गुस्सा करके,
क्या जॉब और व्यवसाय सुधरेगा?
क्या स्वास्थ्य और सौंदर्य बढ़ेगा?
ठंडे मन से स्थिर चित्त से प्रयास करने पर ही,
हर समस्या का समाधान मिलेगा।

जब तक जियोगे,
विपरीत परिस्थिति से रूबरू होते रहोगे,
जब तक सफर करोगे,
तब तक सफर की कठिनाई को झेलोगे,
कुशल ड्राइवर की तरह,
जीवनमार्ग की कठिनाई से मत डरो,
एक विजेता की तरह,
विपरीत परिस्थितियों का सामना करो,
कुशल नाविक की तरह,
ऊंची नीची लहरों पर जीवन नौका  चलाओ,
मनपसंद गीत गुनगुनाते जाओ,
जीवन के हर पल का आनन्द लेते जाओ।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *कालसर्प योग क्या है? इससे मुक्ति के उपाय बताएं?*

प्रश्न - *कालसर्प योग क्या है? इससे मुक्ति के उपाय बताएं?*

उत्तर - आत्मीय बहन, कालसर्प योग से गायत्री साधको को डरने की आवश्यकता नहीं है। जिनके घर नित्य गायत्री उपासना, सप्ताह या महीने में एक बार यज्ञ और नित्य बलिवैश्व यज्ञ होता है। उनकी कुंडली में बैठा कालसर्प योग निष्क्रिय हो जाता है।

काल सर्प योग महज कुछ ग्रहों का योग है, जो कुडली में बनता है। नवग्रहों में राहु और केतु दोनों ही छाया ग्रह हैं। ज्‍योतिष की दृष्टि से इनके प्रभाव काफी कम होते हैं। राहु के जन्‍म के नक्षत्र के देवता यम यानी काल हैं और केतु के जन्‍म नक्षत्र आश्‍लेषा के देवता सर्प हैं। राहु के गुण और अवगुण शनि की तरह ही होते हैं। यही कारण है कि यह शनि ग्रह के जैसे ही प्रभाव डालता है।

इन्‍हीं दोनों ग्रहों के स्‍थान काल सर्प योग बनाते हैं, जिस कारण संतान अवरोध, घर में रोज-रोज कलह, शारीरिक विकलांगता, मानसिक दुर्बलता, नौकरी में परेशानी आदि बनी रहती है। जाने अंजाने में इस दौरान अशुभ कामों के चलते इनके फल काफी कष्‍ट दायक हो जाते हैं। राहु के देवता काल (मृत्‍यु) हैं, इसलिये राहु की शांति के लिये कालसर्प शांति आवश्‍यक है। असल में जब सभी ग्रह राहु और केतु के बीच में विचरण करते हैं, तब उस योग को काल सर्प योग कहा जाता है। व्‍यक्ति के भाग्‍य का निर्माण करने में राहु और केतु का महत्‍वपूर्ण योगदान रहता है।

कालसर्प योग के निदान हेतु तपसाधना और पुण्यकर्म करने होते हैं, निम्नलिखित में से कोई भी उपाय अपनाएं और कालसर्प योग से मुक्ति पाएं:-

1- 40 रुद्राभिषेक और साथ ही रुद्र अष्टध्यायी का पाठ करें।

2- सवा लाख गायत्री मंत्र जप का अनुष्ठान करें। पूर्णाहुति के दिन रुद्राभिषेक और यज्ञ करें।

3- सवा लाख महामृत्युंजय मंत्र जप का अनुष्ठान करें। पूर्णाहुति के दिन रुद्राभिषेक और यज्ञ करें।

4- गुरुगीता का पाठ 40 दिन तक करें, पूर्णाहुति के दिन रुद्राभिषेक और यज्ञ करें।

5- 40 दिन तक सुंदरकांड का पाठ करें, पूर्णाहुति के दिन रुद्राभिषेक और यज्ञ करें।

6- 40 दिन तक रोज़ 5 गायत्री चालीसा पढें, पूर्णाहुति के दिन रुद्राभिषेक और यज्ञ करें।

7- 40 दिन तक रोज़ 5 हनुमान चालीसा पढ़े, पूर्णाहुति के दिन रुद्राभिषेक और यज्ञ करें।

8- 40 दिन तक रोज़ शिवतांडव स्त्रोत का पाठ करें, पूर्णाहुति के दिन रुद्राभिषेक और यज्ञ करें।

9- 40 दिन तक रोज रुद्राभिषेक और रोज महामृत्युंजय मंत्र से यज्ञ करें।

उपरोक्त में से जो सुगम लगे अपना लें, कालसर्प योग से मुक्ति पा लीजिये। यदि किसी सपेरे के बंधन से सर्प मुक्त करवा के उसे जंगल मे छोडवा दें। तो भी सर्प का आशीर्वाद मिलता है।

काल सर्प योग महज़ कुछ विपरीत परिस्थिति उतपन्न करता है, उपरोक्त विधि से उस व्यक्ति का आत्मबल-ब्रह्मबल-प्राणबल जगता है। जिससे विपरीत परिस्थितियों का सामना कर उसका समाधान करने में वह महारत हासिल करता है।

अतः यदि कोई पण्डित यह दावा करता है कि अमुक उपाय से विपरीत परिस्थिति उतपन्न होगी ही नहीं तो वो सरासर झूठ बोल रहा है।

*भगवान कृष्ण साथ हों तो भी प्रारब्ध का महाभारत होगा ही नहीं ऐसा कोई उपाय नहीं है। भगवान कृष्ण साथ होंगे तो महाभारत जीतोगे यह निश्चित है।*

अध्यात्म आपको विपरित परिस्थितियों में कुशलता पूर्वक निकलने का और समस्याओं का समाधान देता है। *अध्यात्म अपनाने से जीवन मे समस्या उतपन्न होगी ही नहीं ऐसा कोई दावा नहीं करता। हाँ, अध्यात्म दावा करता है कि अध्यात्म के जीवन मे होने से हर समस्या का समाधान मिलेगा और जीत मिलेगी।*


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, हम लोग यज्ञ करवाते हैं। इसकी जानकारी आस-पड़ोस में सबको हो गयी है। अतः सब घर में सुख-शांति के लिए और अन्य अवसरों पर हमसे यज्ञ तो करवाते हैं। लेकिन नियमित गायत्री साधना और युगसाहित्य का स्वाध्याय नहीं करते। किसी समस्या पर कोई शॉर्टकट समाधान चाहते हैं। आत्मकल्याण के लिए कुछ नहीं करते और न हीं लोकहित कुछ करना चाहते हैं। घण्टों टीवी देखने और अन्य पर्सनल कार्यो में खर्च करते है। इन्हें प्रेरित करने का और सही राह पर लाने का कोई उपाय है तो बताइए।*

प्रश्न - *दी, हम लोग यज्ञ करवाते हैं। इसकी जानकारी आस-पड़ोस में सबको हो गयी है। अतः सब घर में सुख-शांति के लिए और अन्य अवसरों पर हमसे यज्ञ तो करवाते हैं। लेकिन नियमित गायत्री साधना और युगसाहित्य का स्वाध्याय नहीं करते। किसी समस्या पर कोई शॉर्टकट समाधान चाहते हैं। आत्मकल्याण के लिए कुछ नहीं करते और न हीं लोकहित कुछ करना चाहते हैं। घण्टों टीवी देखने और अन्य पर्सनल कार्यो में खर्च करते है। इन्हें प्रेरित करने का और सही राह पर लाने का कोई उपाय है तो बताइए।*

उत्तर - आत्मीय भाई, आपकी चिंता जायज है।

आप एक आध्यात्मिक चिकित्सक की तरह रोग समझ रहे हो और समाधान भी आपके पास है। लेकिन समाधान क्योंकि टाइम टेकिंग है और थोड़ा शुरू में बोरिंग इसलिए जनता उसे स्वीकार नहीं कर रही।

उदाहरण - एक योग के प्रशिक्षक के पास कुछ स्त्रीयां और कुछ पुरुष आये और उन्होंने बताया कि घुटनों में दर्द शुरू हो गया है। तो योग प्रशिक्षक ने बताया कि बहन भाइयो रात को आंतो में भोजन पचता है और बड़ी देर जमा रहने के कारण उसमें गैस उठती है। और पूरे शरीर में फैलती है। जोड़ो में वो गैस स्टोर होती है और खून का संचरण रोक देती है। अतः यदि आप प्रज्ञा योग और पैरों के योग सुबह दो ग्लास जल खाली पेट पीकर करेंगी तो आपके घुटने का दर्द ठीक हो जाएगा। अब नियमित यह अभ्यास डाल लें।

अब जो बुद्धमती स्त्री और बुद्धिमान पुरूष थे उन्होंने बात मानी और रोगमुक्त हो गए।

कुछ ओवर स्मार्ट और शॉर्टकट की चाह रखने वाले और सुबह देर तक सोना और सुबह बेड टी पीने वालों को यह सुबह योग-व्यायाम की बात नहीं जमी। लेकिन दर्द से छुटकारा तो चाहते थे, एलोपैथी के पास गए। भरपेट पेनकिलर खाया। फिर स्थिति बिगड़ने पर घुटना बदलवाया। घोर कष्ट पाया।

योग-व्यायाम अपनाने वालों को केवल आलस्य और देर तक सोने की आदत छोड़नी पड़ी, और अन्यो को जीवन भर अपने पैरों पर चलने की चाहत छोड़नी पड़ी। बिस्तर पर ही पड़े रहना पड़ा।

यही हाल मानसिक स्वास्थ्य और सांसारिक समस्या का है। जब हम गायत्री परिवार के परिजन योग प्रशिक्षक की तरह आसान उपाय सुखी रहने का और आनन्दमय जीवन व्यतीत करने का लोगों को बताते हैं:- उन्हें नित्य गायत्री जप, ध्यान, प्राणायाम और स्वाध्याय करने को कहते है। उत्तम क्वालिटी का मानसिक आहार - युगसाहित्य के रूप में देते हैं। तो उन्हें यह योग की तरह टाइम टेकिंग और बोरिंग प्रोसेस लगता है।

उन्हें किसान की तरह खेत में सरसों बोने की प्रोसेस नहीं सीखनी। उन्हें तो हथेली में जादूगर की तरह क्विक सरसों उगाना है। खुद ही विचार करो क्या जादू के सरसों से तेल निकलेगा और किचन में खाना पक सकेगा? क्या एलोपैथी के पेनकिलर से घुटने का इलाज संभव है? क्या ढोंगी बाबाओं के जादुई शॉर्टकट से आध्यात्मिक सफलता मिलेगी? पेप्सी की जगह कोला पीने से ××× बाबा के कहने पर कृपा बरसेगी? नहीं न...

हमारा काम है लोगों को ज्ञान गंगा तक ले जाना, जल को हम जबरजस्ती नहीं पीला सकते। पीना तो उन्हें ही पड़ेगा। योग प्रशिक्षक योग सिखा सकता है, लोगों को योगाभ्यास रोज स्वयं ही करना पड़ेगा। हम गायत्री साधना-जप और ध्यान सीखा सकते है, लोगों को नित्य साधना तो स्वयं ही करना पड़ेगा। हम अखण्डज्योति पत्रिका और युग साहित्य लोगों तक पहुंचा सकते है, पढ़ने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। लेकिन पढ़ना तो उन्हें ही पड़ेगा।

हमारे हाथ मे केवल प्रयास है, लोगों के भले के लिए उन्हें प्रत्येक तथ्यों को प्रमाण सहित समझाइए। इसके बाद भी वो नहीं करते तो उन्हें उनके हाल पर छोड़ दीजिए। अपनी आत्मा में बोझ मत लीजिये।

आप यदि 100 लोगों तक भी आध्यात्मिक मानसिक स्वास्थ्य के , आनन्दमय जीवन का फार्मूला पहुंचाते हैं यदि उसमे से 10 भी आपकी बात मानकर अपना आत्मकल्याण करते हैं। तो आपकी मेहनत सफल है। 10 की खुशी मनाइए और 90 लोगों के न जुड़ने का शोक मत मनाइए। आपने ज्ञान गंगा तक 100 लोगों को ले गए, तो आपको 100 के प्रयास का पुण्यफ़ल मिलेगा। 10 ने पिया तो उनका भला हुआ, जिन्होंने नहीं पिया तो उसके लिए हम कुछ नहीं कर सकते।

एक सत्य घटना एक ऑफिस में मेडीक्लेम पॉलिसी ऑप्शनल थी, HR ने सबको प्रेरित किया, लेकिन कुछ लोग 6000 रुपये सालाना खर्च नहीं करना चाहते थे नहीं लिए। बहुत से लोगों ने लिया। जिन्होंने नहीं लिया वो बोले हम तो स्वस्थ है हमे क्या जरूरत। फिर क्या उनमें से एक को हार्ट अटैक आया, यदि मेडीक्लेम पॉलिसी ली होती तो ख़र्च कम्पनी उठाती। लेकिन 6 लाख रुपये हॉस्पिटल का खर्च और ऑपरेशन के बाद का ख़र्च घर गिरवी रख के दिया।

गायत्री साधना एक आध्यात्मिक मेडीक्लेम पॉलिसी है, जो स्वस्थ है और सुखी है उनके लिए भी लेना जरूरी है। साधना जरूरी है, जिससे यदि भविष्य में कोई प्रारब्ध आना हो तो उसका भी सहज समाधान हो सके। गायत्री उपासना एक मानसिक योग भी है, अभी यदि स्वस्थ है तो भी नित्य मानसिक योग करें। जिससे भविष्य में कभी रोगी न हों।

यह चयन ऑप्शनल है, आप केवल प्रेरित कर सकते हैं। जबजस्ती किसी को फ़ोर्स करके नहीं करवा सकते।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

कविता - एक पिता का अपनी बेटी को दिया वादा* मुट्ठी बांध के आई थी, ढ़ेरों खुशियां लाई थी, अपने पापा की नन्हीं परी, पापा को देख मुस्कुराई थी।

*एक पिता का अपनी बेटी को दिया वादा*

मुट्ठी बांध के आई थी,
ढ़ेरों खुशियां लाई थी,
अपने पापा की नन्हीं परी,
पापा को देख मुस्कुराई थी।

बाहों में थी जब वो मेरे,
एक विजेता सा महसूस कर रहा था,
एक नए अहसास को लिए,
मन खुशियों से झूम रहा था।

तभी अचानक कुछ याद आ गया,
मन में एक भय सा उतपन्न हो गया,
ऐसे समाज मे,
अपनी राजकुमारी को पालना है,
जो लड़कियों के लिए,
अब सुरक्षित ही न रहा।

क्या करूँ कैसे करूँ?
अपनी बेटी के लिए,
समाज को कैसे सुधारूं?
एक सुरक्षित समाज,
मेरी बिटिया रानी के लिए,
 कैसे बनाऊं?

बिटिया रानी, एक वादा है आपके पापा का आपसे......

आपका पापा हार नहीं मानेगा,
अपनी गली मोहल्ले में बाल संस्कारशाला खोलेगा,
आसपास पड़ोसियों से सम्पर्क करेगा,
सबको भावी पीढ़ी के नवनिर्माण से जोड़ेगा।

घर घर देवस्थापना करवाऊंगा,
युगनिर्माणियों के साथ काम करूंगा,
स्त्री सुरक्षा हेतु संगठन बनाऊंगा,
उसमें हर स्त्री को जुडो कराते सिखाऊंगा।

मेरी बिटिया रानी मैं तुम्हें,
माँ सरस्वती सा ज्ञानवान बनाऊंगा,
माँ लक्ष्मी सा आर्थिक आत्म निर्भर बनाऊंगा,
माँ दुर्गा सा स्व सुरक्षा के गुण सिखाऊंगा।

ताकि मैं निश्चिंत रह सकूं,
और गर्व से कह सकूं,
मेरी बिटियाँ रानी होगी जहाँ,
समस्त स्त्रियां सुरक्षित होगी वहां।

अब मैं भयमुक्त हूँ,
और प्रशन्नचित्त हूँ,
सर्वसमर्थ बनेगी मेरी बेटी,
इसलिए अब मैं निश्चिंत हूँ।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
*आप सभी से अनुरोध है, बेटियों को मानसिक और शारीरिक अपाहिज न बनायें*। उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से सक्षम बनाएं। वैचारिक और मानसिक बल की तैयारी हेतु सत्साहित्य पढ़ाएं, शारीरिक बल हेतु जुडो/कराते/योग/प्राणायाम/व्यायाम करवाएं। आर्थिक बल हेतु आर्थिक आत्मनिर्भरता हेतु विभिन्न उसकी रुचि अनुसार कोर्स करवाये।

केवल दान दहेज देकर विवाह करने मात्र से पिता का फ़र्ज़ पूरा नहीं होता। जो लड़का-लड़की भेद करता है और अपनी कन्या को आत्मनिर्भर नहीं बनाता वो पाप का भागीदार होता है।

*अपने पिता होने का फर्ज निभाएं,*
*पुत्री को सर्व समर्थ सक्षम बनाएं,।*
*दहेजप्रथा और ख़र्चीली शादी का अंत करें,*
*अपनी बिटिया रानी में*
*एक शक्तिशाली श्रेष्ठ वजूद गढ़ें।*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *मूल क्या है? मूल में जन्मे बच्चे के लिए मूल शांति क्यों अनिवार्य है? मूल शांति कैसे करें? कृपया विधि-विधान बतायें।*

प्रश्न - *मूल क्या है? मूल में जन्मे बच्चे के लिए मूल शांति क्यों अनिवार्य है? मूल शांति कैसे करें? कृपया विधि-विधान बतायें।*

उत्तर - *आत्मीय बहन, सबसे पहले मूल में यदि बच्चा पैदा होता है तो भय की कोई बात नहीं है। आइये वास्तव में मूल होता क्या है इसे समझते हैं:-*

यह सृष्टि त्रिआयामी, त्रिगुणात्मक है। नक्षत्र २७ हैं। इन्हें तीन समान वर्गों में बाँटें, तो

 (१) १ से ९,

(२) १० से १८ तथा

 (३) १९ से २७


 यह वर्ग बनते हैं। *इन तीनों वर्गों की सन्धि वाले नक्षत्रों को मूल संज्ञक नक्षत्र माना गया है।वे हैं २७वाँ रेवती एवं प्रथम अश्विनी ९वाँ श्लेषा एवं १०वाँमघा तथा १८वाँ ज्येष्ठा एवं १९वाँ मूल।* यह तीन नक्षत्र युग्म ऐसे हैं, जहाँ दो संलग्न नक्षत्र अलग- अलग राशियों में हैं;  किन्तु किसी का कोई  चरण दूसरी राशि में नहीं जाता। इसलिए इन्हें नक्षत्र चक्र के 'मूल' अर्थात् प्रधान नक्षत्र माना गया है। ऐसे महत्त्वपूर्ण नक्षत्रों को अशुभ मानने की परम्परा न जाने कहाँ सं चल पड़ी? *वस्तुतः तथ्य यह है कि नक्षत्रों का सम्बन्ध मानवी प्रवृत्तियों से है। नक्षत्र चक्र के तीन मूल बिन्दुओं पर स्थित नक्षत्रों में मानव की 'मूल' वृत्तियों को तीव्रता से उछालने की चिशेष क्षमता है। मूल वृत्तियों में शुभ- अशुभ दोनों ही प्रकार की वृत्तियों होती हैं। अस्तु, विचारकों ने सोचा कि हीनवृत्तियाँ विकास पाकर परेशानी का कारण भी बन सकती हैं। उन्हें निरस्त करने वाले, कुछ उपचार पहले ही किए जाएँ तो अच्छा है*। इसलिए हीन, पाशविक संस्कारों को निरस्त करने वाले, श्रेष्ठ संस्कारों को उभारने में सहयोग कर सकने वाले  कुछ जप- यज्ञादि उपचार किए जायें तो अच्छा है। *जिन घरों में गायत्री उपासना, यज्ञ, बलिवैश्व आदि सुसंस्कार जनक क्रम सहज ही होते रहते  हैं, वहाँ मूल शान्ति के निमित्त अलग से कुछ करना आवश्यक नहीं।* जिन परिजनों में ऐसे कुछ नियमित क्रम नहीं हैं, उनमें मूल शान्ति के नाम  पर कुछ उपचारों की लकीर पीटने मात्र से जातक की वृत्तियों पर कुछ उल्लेखनीय प्रभाव पड़ता नहीं है। इसीलिए शास्त्र मत है कि जिन परिवारों में ऋषि प्रणीत चर्चाएँ नियमित रूप से होती हों, उनमें मूलशान्ति की आवश्यकता नहीं पड़ती। मानवोचित गुणों के विकास के लिए जिन परिवारों में योजनाबद्ध प्रयास होते हों, वहाँ मूल युक्त जातक विशेष सौभाग्य के कारण बनते हैं।


👉🏼 *नोट - मूल की शान्ति के लिए सुविधानुसार जन्म के ११ वें या २७वें दिन रुद्रार्चन, शिवाभिषेक व महामृत्युञ्जय की विधि सहित जप व गायत्री महामन्त्र का जप, हवन कराने से अभुक्त मूल शान्ति होती है। गायत्री महामन्त्र के २७,००० मन्त्र जप व महामृत्युञ्जय मन्त्र के ११०० मन्त्र जप करना अनिवार्य है।* 👈🏻  *अनुष्ठान का संकल्प 27 वें दिन लेकर शीघ्रातिशीघ्र जप अनुष्ठान किसी भी महीने के शुक्लपक्ष की प्रथमा तिथि से शुरू करके नवमी तक पूर्ण कर लेना चाहिए।*


👉🏼 *गण्ड मूल के नक्षत्र व उनका फल*
 
मूलवास- मनुष्य की योनि पाठशाला के छात्र जैसा है। चराचर जगत् पाठ्यपुस्तक है। नाना योनियाँ इस पाठ्यपुस्तक के नाना अध्याय अथवा पाठ्यक्रम है, जिन्हें जीवरूपी छात्र यथा योनि पढ़ता, परीक्षा (इम्तहान )) के लिये मानव योनि में प्रवेश पाता है। मानव योनि पूरक परीक्षा के क्षण हैं। जिस प्रकार परीक्षा स्थल पर परीक्षक ही प्रश्नपत्र तथा उत्तर पुस्तिका छात्र को प्रदान करता है, उसी प्रकार आत्मा रूपी परीक्षक भी परिस्थितियों का प्रश्नपत्र तथा जीवन उत्तरपुस्तिका स्वंय जीवरूपी छात्र को प्रदान करता है। मनुष्य की योनि परीक्षा के क्षण हैं। परीक्षा का समय जन्म से मृत्युपर्यन्त है। जिस प्रकार परीक्षाफल तीन प्रकार का होता है, यथा उत्तीर्ण (पास) होना, अनुत्तीर्ण होना अथवा कुछ थोड़ी कमी के कारण उसे थोड़े समय उपरान्त पुनः परीक्षा में फिर से परीक्षा में आना। इस जीवन परीक्षा में भी जीवरूपी छात्र को इन्हीं अवस्थाओं से होकर गुजरना पड़ेगा। उत्तीर्ण होने पर अनन्त की राह है। उसे अगली कक्षा में प्रवेश मिलेगा, यदि उत्तीर्ण नहीं हो पाया और फेल हो गया तो उसे पुनः सारा पाठ्यक्रम दुहराने के लिये यथा योनियों से गुजरना होगा। इसके उपरान्त ही पुनः परीक्षा के लिये मानव योनि में प्रवेश मिलेगा। अल्प त्रुटियों की अवस्था में उसे लगभग कतिपय योनियों के उपरान्त ही पुनःपरीक्षा हेतु मनुष्य की योनि प्रदान की जायेगी।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
*इसीलिये जब भी घर में शिशु का जन्म होता है, घर में सूतक (छूत) का वास होता है। मन्दिर,पूजा आदि बन्द कर दिये जाते हैं, बरहा मनाया जाता है इसका पृष्ठ रहस्य यही है कि जन्मने वाला शिशु हमारा ही पूर्वज है अल्प त्रुटियों से रह गया था,फिर अपने घर लौट आया। बरहा पूजन  में प्रायश्चित पूजन भी करते है उसी में मूल शान्ति विधि भी पूरी कर लेते हैं। यद्यपि मूल का वास- माघ,आषाढ़,आश्विन, और भाद्रपद माह- आकाश में, कार्तिक, चैत, श्रावण और पौष माह- पृथ्वी में, फाल्गुन, ज्येष्ठ, मार्गशीर्ष और वैशाख माह- पाताल में होता है। 'भूतले वर्तमाने तु ज्ञेयो दोषोऽन्यथा न हि।' अर्थात् जब पृथ्वी में मूल का वास हो तभी मूलपूजन का क्रम करना चाहिये अन्यथा सामान्य यज्ञादि से भी बारह (बरहा) पूजन का क्रम पूरा कर लेना चाहिये।*


प्रारम्भिक कर्मकाण्ड मंगलाचरण से रक्षाविधान तक पूर्ण करें। तत्पश्चात् संकल्प करें।


👉🏼🙏🏻 *॥ सङ्कल्प॥*


ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य

विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्रीब्रह्मणो

 द्वितीये परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे

भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्त्तैकदेशान्तर्गते..........क्षेत्रे..........मासानां मासोत्तमेमासे..........मासे..........पक्षे..........तिथौ..........वासरे

..........गोत्रोत्पन्नः.......... नामाऽहं सत्प्रवृत्ति- संवर्द्धनाय,

दुष्प्रवृत्ति- उन्मूलनाय, लोककल्याणाय, आत्मकल्याणाय, वातावरण -

परिष्काराय, उज्ज्वलभविष्यकामनापूर्तये च प्रबलपुरुषार्थं करिष्ये,

अस्मै प्रयोजनाय च कलशादिआवाहितदेवता- पूजनपूर्वकम् गण्डान्त नक्षत्रजनित दोषोपसमानार्थं गण्डदोष मूलशान्ति कर्मसम्पादनार्थं सङ्कल्पं  अहं करिष्ये।

👉🏼🙏🏻 *पञ्चकलशों में पञ्चद्रव्यों के सहित पूजन करें।*


👉🏼 *मध्य कलश-*

ॐ मही द्यौः पृथिवी च नऽ इमं यज्ञं मिमिक्षताम्।

पिपृतां नो भरिमभिः। -८.३२,१३.३२

👉🏼 *पूर्व-*

ॐ त्वं नोऽ अग्ने वरुणस्य विद्वान् देवस्य हेडो अव यासिसीष्ठाः।

यजिष्ठो वह्नितमः शोशुचानो विश्वा द्वेषा*सि प्र मुमुग्ध्यस्मत्। -२१.३

👉🏼 *दक्षिण-*

ॐ स त्वं नो अग्नेवमो भवोती

नेदिष्ठो अस्याऽ उषसो व्युष्टौ।

अव यक्ष्व नो वरुण*रराणो वीहि मृडीक*सुहवो नऽ एधि। -२१.४

👉🏼 *उत्तर-*

ॐ इमं मे वरुण श्रुधी हवमद्या च मृडय। त्वामवस्युरा चके।- २१.१

👉🏼 *पश्चिम-*

ॐ या वां कशा मधुमत्यश्विना सूनृतावती। तया यज्ञं मिमिक्षतम्।

उपयामगृहीतोस्यश्विभ्यां त्वैष ते योनिर्माध्वीभ्यां त्वा। -७.११

*नमस्कार- दोनों हाथ जोड़ कर नमन- वन्दन करें।*

ॐ नमस्ते सुरनाथाय, नमस्तुभ्यं शचीपते।

गृहाणं स्नानं मया दत्तं, गण्डदोषं प्रशान्तये॥

👉🏼 *षोडशमातृका पूजन*-

गौरी पद्मा शची मेधा, सावित्री विजया जया।

देवसेना स्वधा स्वाहा, मातरो लोकमातरः॥

धृतिः पुष्टिस्तथा तुष्टिः,आत्मनः कुलदेवता।

गणेशेनाधिका ह्येता, वृद्धौ पूज्याश्च षोडश॥

ॐ षोडशमातृकाभ्यो नमः। आ०स्था०,पू०

👉🏼 *वास्तुपूजन-* अनन्तं पुण्डरीकाक्षं, फणीशत विभूषितम्।

विद्युद्बन्धूक साकारं, कूर्मारूढं प्रपूजयेत्॥

नागपृष्ठं समारूढं, शूलहस्तं महाबलम् ।

पातालनायकम् देवं, वास्तुदेवं नमाम्यहम्॥

ॐ वास्तुपुरुषाय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥

👉🏼 *नागपूजनम्-*

ॐ नमोऽस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथ्वीमनु। ये अन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः।

वासुक्यादि अष्टकुल नागेभ्यो नमः॥आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥

👉🏼 *चौंसठयोगिनीपूजनम्-*

दिव्यकुण्डलसंकाशा, दिव्यज्वाला त्रिलोचना।

मूर्तिमती ह्यमूर्ता चे,

उग्रा चैवोग्ररूपिणी॥

अनेकभावासंयुक्ता, संसारार्णवतारिणी।

यज्ञे कुर्वन्तु निर्विघ्नं, श्रेयो यच्छन्तु मातरः॥

दिव्ययोगी महायोगी, सिद्धयोगी गणेश्वरी।

प्रेताशी डाकिनी काली, कालरात्री निशाचरी॥

हुङ्कारी सिद्धवेताली, खर्परी भूतगामिनी।

ऊर्ध्वकेशी विरूपाक्षी, शुष्काङ्गी धान्यभोजनी॥

फूत्कारी वीरभद्राक्षी, धूम्राक्षी कलहप्रिया।

रक्ता च घोररक्ताक्षी, विरूपाक्षी भयङ्करी॥

चौरिका मारिका चण्डी, वाराही मुण्डधारिणी।

भैरव चक्रिणी क्रोधा, दुर्मुखी प्रेतवासिनी॥

कालाक्षी मोहिनी चक्री, कङ्काली भुवनेश्वरी।

कुण्डला तालकौमारी, यमूदूती करालिनी॥

कौशिकी यक्षिणी यक्षी, कौमारी यन्त्रवाहिनी।

दुर्घटे विकटे घोरे, कपाले विषलङ्घने॥

चतुष्षष्टि समाख्याता, योगिन्यो हि वरप्रदाः।

त्रैलोक्ये पूजिता नित्यं, देवामानुष्योगिभिः॥ १०॥

ॐ चतुःषष्टियोगिनीभ्यो नमः॥ आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥

👉🏼 *ब्रह्मापूजनम्-*

ॐ ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्वि सीमतः सुरुचो वेनऽआवः।

सबुध्न्याऽउपमाअस्य विष्ठाःसतश्च योनिमसतश्च वि वः॥- १३.३

ॐ ब्रह्मणे नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।

👉🏼 *विष्णुपूजनम्*-

ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा नि दधे पदम्।

समूढमस्य पा * सुरे स्वाहा॥ ॐ विष्णवे नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि। -५.१५

👉🏼 *शिव पूजनम्-*

ॐ नमस्ते रुद्र मन्यवऽ, उतो त ऽ इषवे नमः। बाहुभ्यामुत ते नमः।

ॐ रुद्राय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥- १६.१


👉🏼 *नवग्रहपूजनम्*-

*सूर्य-* ॐ जपाकुसुमसंकाशं, काश्यपेयं महाद्युतिम ।

तमोऽरिं सर्वपापघ्नं, प्रणतोऽस्मि दिवाकरम्॥

ॐ आदित्याय विद्महे, दिवाकराय धीमहि। तन्नः सूर्यः प्रचोदयात्। ॐ सूर्याय नमः।

*चन्द्र-*

ॐ दधिशङ्खतुषाराभं, क्षीरोदार्णवसम्भवम्। नमामि शशिनं सोमं, शम्भोर्मुकुटभूषणम्॥

ॐ अत्रिपुत्राय विद्महे, सागरोद्भवाय धीमहि। तन्नः चन्द्रः प्रचोदयात्। ॐ चन्द्राय नमः।

*मङ्गल-*

ॐ धरणीगर्भसम्भूतं, विद्युत्कान्तिसमप्रभम्॥

कुमारं शक्तिहस्तं च, मङ्गलं प्रणमाम्यहम्॥

ॐ क्षितिपुत्राय विद्महे, लोहिताङ्गाय धीमहि। तन्नो भौमः प्रचोदयात्। ॐ भौमाय नमः।

*बुध-*

ॐ प्रियङ्गु कलिकाश्यामं, रूपेणाप्रतिमं बुधम्।

सौम्यं सौम्यगुणोपेतं, तं बुधं प्रणमाम्यहम्॥

ॐ चन्द्रपुत्राय विद्महे, रोहिणीप्रियाय धीमहि।

तन्नो बुधः प्रचोदयात्। ॐ बुधाय नमः।

*गुरु-* ॐ देवानां च ऋषीणां, च गुरुं काञ्चनसन्निभम्।

बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं, तं नमामि बृहस्पतिम्॥

ॐ अङ्गिरोजाताय विद्महे, वाचस्पतये धीमहि।

तन्नो गुरुः प्रचोदयात्। ॐ बृहस्पतये नमः।

*शुक्र-*

ॐ हिमकुन्द मृणालाभं, दैत्यानां परमं गुरुम्।

सर्वशास्त्रप्रवक्तारं, भार्गवं प्रणमाम्यहम्॥

ॐ भृगुवंशजाताय विद्महे, श्वेतवाहनाय धीमहि। तन्नः कविः प्रचोदयात्। ॐ शुक्राय नमः।

*शनि*- ॐ नीलाञ्जन समाभासं, रविपुत्रं यमाग्रजम्।

छायामार्त्तण्डसम्भूतं, तं नमामि शनैश्चरम्॥

ॐ कृष्णाङ्गाय विद्महे, रविपुत्राय धीमहि। तन्नः शौरिः प्रचोदयात्। ॐ शनये नमः।

*राहु*- ॐ अर्धकायं महावीर्यं, चन्द्रादित्यविमर्दनम्।

सिंहिकागर्भसम्भूतं, तं राहुं प्रणमाम्यहम्॥

ॐ नीलवर्णाय विद्महे, सैंहिकेयाय धीमहि। तन्नो राहुः प्रचोदयात्। ॐ राहवे नमः।

*केतु*- ॐ पलाशपुष्पसङ्काशं, तारकाग्रहमस्तकम्।

रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं, तं केतुं प्रणमाम्यहम्॥

ॐ अन्तर्वाताय विद्महे, कपोतवाहनाय धीमहि। तन्नः केतुः प्रचोदयात्। ॐ केतवे नमः।

👉🏼 *।। पञ्चगव्यपूजन एवं सवत्सगोपूजनम्।।*

गोदुग्धं गोमयक्षीरं, दधि सर्पिः कुशोदकम्।

निर्दिष्टं पञ्चगव्यं, पवित्रं मुनिः पुङ्गवैः॥

👉🏼 *॥ नक्षत्र पूजन॥*

जातक जिस नक्षत्र में जन्मा हो, उसी नक्षत्र के मन्त्र के साथ नक्षत्र पूजन करें।

👉🏼 *1 अश्विनी*-

ॐ या वां कशा मधुमत्यश्विना सूनृतावती।

तया यज्ञं मिमिक्षितम्॥ ॐ अश्विनीभ्यां नमः॥- २०.८०

👉🏼 *2 आश्लेषा*-

ॐ नमोऽस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथ्वीमनुयेऽन्तरिक्षे ये दिवितेभ्यः सर्पेभ्यो नमः।

ॐ सर्पेभ्यो नमः॥- १३.६

👉🏼 *3 मघा*-

ॐ पितृभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधानमः पितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः

  प्रपितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः। अक्षन् पितरोऽ मीमदन्त पितरोऽतीतृपन्त पितरः पितरः सुन्धध्वम्।

ॐ पितृभ्यो नमः॥- १९.३६

👉🏼  *4 ज्येष्ठा*-

ॐ सजोषाऽ इन्द्र सगणो मरुद्भिः सोमं पिब वृत्रहा शूर विद्वान्। जहि शत्रूँ२ऽ रप मृधोनुदस्वाथाभयं कृणुहि विश्वतो नः।

ॐ इन्द्राय नमः- ७.३७

👉🏼 *5 मूल*-

ॐ मातेव पुुत्रं पृथिवी पुरुषमग्नि* स्वे योनावभारुखा। तां विश्वै- र्देवैऋतुभिः संविदानः

प्रजापतिर्विश्वकर्मा वि मुञ्चतु।

ॐ नैऋतये नमः॥- १२.६१

👉🏼 *6 रेवती*-

ॐ पूषन् तव व्रतेवयंन रिष्येम कदा चन।

स्तोतारस्तऽ इह स्मसि। ॐ पूष्णे नमः॥- ३४.४१

👉🏼 *सप्तधान्य पूजन(कोई भी सात अनाज रख ले)*-

ॐ अन्नपतेन्नस्य नो देह्यनमीवस्य शुष्मिणः।

प्रप्र दातारं तारिषऽ ऊर्जं नो धेहि द्विपदे चतुष्पदे। -११.८३

तत्पश्चात् सभी आवाहित देवताओं का षोडशोपचार विधि से पूजन पुरुषसूक्त (पृ० १८६-१९८) से करें।

👉🏼 *।। पञ्चकलशों से सिञ्चन।।*

*पञ्चकलशों को पाँच सम्भ्रान्त व्यक्ति (महिला- पुरुष) ले लें तथा निम्न मंत्र के साथ जातक और उनके माता- पिता का सिञ्चन अभिषेक करें।*

ॐ आपो हि ष्ठा मयोभुवः तानऽ ऊर्जे दधातन। महे रणाय चक्षसे।

ॐ यो वः शिवतमो रसः तस्य भाजयतेह नः। उशतीरिव मातरः।
ॐ तस्माऽ अरंगमाम वो यस्यक्षयाय जिन्वथ। आपो जनयथा च नः।  

तत्पश्चात् यज्ञ का क्रम पूर्ण करें। गायत्री मन्त्र की २४ आहुतियाँ एवंं महामृत्युञ्जय मन्त्र से ५ आहुति दें, फिर विशेष आहुतियाँ समर्पित करें।

🙏🏻 👉🏼 *विशेष आहुति*

👉🏼 *नक्षत्र मन्त्राहुति*-

ॐ नमस्ते सुरनाथाय नमस्तुभ्यं शचीपते। गृहाणामाहुति मया दत्तं गण्डदोषप्रशान्तये, स्वाहा॥ इदं इन्द्राय इदं न मम। (तीन बार)

🙏🏻 👉🏼 *नवग्रह मन्त्राहुति*

👉🏼 *१ सूर्य गायत्री*-

 ॐ आदित्याय विद्महे, दिवाकराय धीमहि। तन्नः सूर्यः प्रचोदयात्, स्वाहा। इदं सूर्याय, इदं न मम।

👉🏼 *२ चन्द गायत्री*- ॐ अत्रिपुत्राय विद्महे सागरोद्भवाय धीमहि। तन्नः चन्द्रः प्रचोदयात्, स्वाहा। इदं चन्द्राय, इदं न मम।

👉🏼 *३ मङ्गल गायत्री*-

ॐ क्षितिपुत्राय विद्महे लोहिताङ्गाय धीमहि। तन्नो भौमः प्रचोदयात्, स्वाहा। इदं भौमाय, इदं न मम।

👉🏼 *४ बुध गायत्री*-

 ॐ चन्द्रपुत्राय विद्महे रोहिणीप्रियाय धीमहि। तन्नो बुधः प्रचोदयात्, स्वाहा। इदं बुधाय, इदं न मम।

👉🏼 *५ गुरु गायत्री*-

 ॐ अङ्गिरोजाताय विद्महे वाचस्पतये धीमहि। तन्नो गुरुः प्रचोदयात्, स्वाहा। इदं बृहस्पतये, इदं न मम।

👉🏼 *६ शुक्र गायत्री*-

ॐ भृगुवंशजाताय विद्महे श्वेतवाहनाय धीमहि। तन्नः कविः प्रचोदयात्, स्वाहा। इदं शुक्राय, इदं न मम।


👉🏼 *७ शनि गायत्री*-

ॐ कृष्णांगाय विद्महे रविपुत्राय धीमहि। तन्नः शौरिः प्रचोदयात्, स्वाहा। इदं शनये, इदं न मम।


👉🏼 *८ राहु गायत्री*-

 ॐ नीलवर्णाय विद्महे सैंहिकेयाय धीमहि। तन्नो राहुः प्रचोदयात्, स्वाहा। इदं राहवे, इदं न मम।

👉🏼 *९ केतु गायत्री*- ॐ अन्तर्वाताय विद्महे कपोतवाहनाय धीमहि। तन्नः केतुः प्रचोदयात्, स्वाहा। इदं केतवे, इदं न मम।


तत्पश्चात् यज्ञ का शेष क्रम स्विष्टकृत्, पूर्णाहुति आदि सम्पन्न करें। उपस्थित सभी परिजन अभिषेक मन्त्र के साथ जातक और उनके माता- पिता को आशीर्वाद दें। मूल शांति कार्यक्रम पूर्ण हुआ।

सन्दर्भ पुस्तक - *कर्मकांड प्रदीप्त, शान्तिकुंज हरिद्वार प्रकाशन*

दान-पुण्य हेतु बच्चे के वजन की चने की दाल और गुङ माता-पिता स्पर्श कर गौशाला में दान दे दें। युगसाहित्य दान दें। माता भगवती भोजनालय में दान दें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday 27 August 2018

प्रश्न - *दीदी गणेश महोत्सव पर मिशन का क्या काम कर सकते है?*

प्रश्न - *दीदी गणेश महोत्सव पर मिशन का क्या काम कर सकते है?*

उत्तर- इस वर्ष *गणेश महोत्सव भाद्रपद कृष्णपक्ष चतुर्दशी(13 सितंबर 2018) से अनन्त चतुर्दशी(23 सितम्बर 2018)* तक मनाया जाएगा।

रीति रिवाजों और परंपराओं के अनुसार 2018 में गणपति विसर्जन तिथियाँ निम्नलिखित हैं, *विसर्जन के बाद मूर्ति का जल में घुल जाना आवश्यक है, विसर्जन के बाद "विलय" अर्थात घुलकर मिल जाना आवश्यक है। यदि ऐसी किसी चीज की प्रतिमा जो जल में घुलेगी नहीं उसका विसर्जन करने से पाप लगता है, और पूजा खंडित मानी जाती है*।:

13 सितंबर, 2018 को गणेश विसर्जन डेढ़ दिन पर होगा।

14 सितंबर, 2018 को गणेश विसर्जन तीसरे दिन होगा।

16 सितंबर, 2018 को गणेश विसर्जन 5 वें दिन होगा।

18 सितंबर, 2018 को गणेश विसर्जन 7 वें दिन होगा।

10 वें दिन गणेश विसर्जन 21 सितंबर, 2018 को होगा।

11 वें दिन (अनंत चतुर्दशी) गणेश विसर्जन 22 सितंबर, 2018 को होगा।

इतिहास के अनुसार, यह अनुमान लगाया गया है कि गणेश चतुर्थी 1630-1680 के दौरान शिवाजी (मराठा साम्राज्य के संस्थापक) के समय में एक सार्वजनिक समारोह के रूप में मनाया जाता था। शिवाजी के समय, यह गणेशोत्सव उनके साम्राज्य के कुलदेवता के रूप में नियमित रूप से मनाना शुरू किया गया था। पेशवाओं के अंत के बाद, यह एक पारिवारिक उत्सव बना रहा, यह 1893 में लोकमान्य तिलक (एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक) द्वारा पुनर्जीवित किया गया।

शिवाजी महाराज और लोकमान्य तिलक जी ने अंधविश्वास  को मिटाने, मनुष्यो में दैवीय गुण साहस जगाने और जनसामान्य को एकजुट करने हेतु, राष्ट्रनिर्माण हेतु लोगों को संगठित करने हेतु यह महोत्सव मनाना शुरू किया था। यह गणेश जी का 10 दिन का सामूहिक अनुष्ठान होता था। जिसे हम सब पुनः शुरू कर सकते हैं, इसके नियम इस प्रकार हैं:-

1- मिट्टी या भुने हुए आटे या भुने हुए सत्तू या गाय के गोबर या सुपाड़ी के गणेश जी बनाये जाते हैं। उन पर कच्ची हल्दी का लेप लगाया जाता है। एक चौकी पर आसन बिछा कर पान के हरे पत्ते के ऊपर उन्हें बिठाया जाता है।

2- रोज दो वक्त प्रेरक प्रज्ञा गीत और राष्ट्रभक्ति गीतों का सामूहिक गान होता है। फ़िर पूजन आरती होती है।

3- गणेश जी को नित्य हल्दी का अभिषेक होता है, और 21 हरे दूब चढ़ाए जाते हैं, और रोज प्रसाद में मोदक या लड्डू चढ़ाते है।

4- देश, समाज और परिवार की विपत्तियों के निवारण हेतु नित्य सामूहिक *गणेश गायत्री मंत्र*, *गायत्री मंत्र* और *महामृत्युंजय मंत्र* का जप और लेखन किया जाता है।

एक दिन सामूहिक अखण्डजप भी किया जा सकता है।

5- नशा रूपी विपत्ति के निवारण हेतु नशा करने वाले गणेश स्थापना के दिन नशा न करने का संकल्प लेते हैं। दस दिन तक कठोर व्रत, तप और प्राणायाम द्वारा नशे से मुक्ति प्राप्त करते है। बालको की गणेश उत्सव टीम से नशामुक्ति रैली और नशे पर नुक्कड़नाटक आयोजित कर सकते हैं। नशे से बुद्धि भ्रष्ट होती है अतः गणेश जो कि सद्बुद्धि के देवता है उनका पूजन करने वालो को नशा नहीं करना चाहिए।

6- गणेश उत्सव के समय ज्यादा से ज्यादा विद्यारम्भ सँस्कार करवाएं और घर घर में तुलसी स्थापना करवाएं।

7- *अधिकतम अंक कैसे पाएं*, *आगे बढ़ने की तैयारी* और *बुद्धि बढ़ाने की वैज्ञानिक विधि* तीनों पुस्तकों का पूजा पंडाल में बच्चो से सामूहिक स्वाध्याय करवाएं। ध्यान, गणेश योग के साथ साथ अन्य बुद्धि बढ़ाने वाले योग का प्रदर्शन बालकों की टीम से करवाएं। माता-पिता में भी अवेयरनेस लाएं।

8- कुशल माता-पिता कैंसे बनें? बालको में राष्ट्रचरित्र कैसे गढ़ें? बच्चो में बुद्धि का सही विकास कैसे सुनिश्चित करें इस पर कार्यशाला आयोजित करें।

9- दस दिन के गणेश महोत्सव में युगनिर्माण के शत सूत्रीय कार्यक्रम से लोगों को अवगत करवाएं। सामूहिक गणेश उत्सव पंडाल में साहित्य स्टॉल जरूर लगाएं। पुरानी अखण्डज्योति कलेक्ट करके फ्री बांटे। पम्पलेट बांटे।

10- यूट्यूब पर देवसंस्कृति विश्विद्यालय में ज्ञानदिक्षा/उन्नयन समारोह के जनजागृति जगाने वाले नृत्य, नाटक, भाषण इत्यादि उपलब्ध हैं। सम्भव हो तो उनका मंचन अपने यहां के बालकों की टीम द्वारा करवाये। वीर शिवाजी और उनके पुत्र सम्भाजी राव की वीरता की कहानियां बच्चो को सुनाये। बच्चो और बड़ो में वीरता के गुण विकसित करें।

11- वृक्ष रूपी गणेश की स्थापना हेतु विराट वृक्षारोपण अभियान दस दिनों तक चलायें। प्रत्येक वृक्ष को गणेश प्रतिमा की तरह हल्दी लगाकर पूजन करें।

12- सभी लोगों को बोलें अपने अपने घर से सब 5 दीपक, 5 कपूर की डली, 21 दूब, अक्षत, पुष्प, दो सुपाड़ी और दो पान का पत्ता और हल्दी लेकर पूजा की थाल सजाकर आएं। दो कटोरी, दो प्लेट और दो चम्मच भी साथ लाएं।

सबसे पहले गणेश उत्सव का महत्त्व और सदबुद्धि प्राप्ति हेतु ध्यान-स्वाध्याय का महत्त्व लोगों को बताएं।

सबसे कहें कि एक कटोरी में जल भर लें, और एक प्लेट में दो पान के पत्तो में दो सुपारी रख दें, जो गौरी और गणेश के प्रतीक होंगे। उनको एक पुष्प से जल सिंचन कर अभिषेक करवाएं, अक्षत-पुष्प-हल्दी से अभिषेक करवाये। यदि गाय का शुद्ध दूध हो तो उसे भी कुछ बूंद चढ़ाकर अभिषेक करवाएं।

अभिषेक के बाद दीपयज्ञ करवाये। आरती के बाद प्रसाद रूप में एक एक वृक्ष वितरित करें, जिसे सभी को अपने अपने घर के आसपास लगाना है। उस वृक्ष लगाने के बाद उस वृक्ष के पास ही सुपाड़ी और पान का पत्ता भी मिट्टी में दबा कर विसर्जन कर दें।

मिट्टी के गणेश जिसने स्थापित किये हों वो बड़े से गमले या एक गड्ढा बनाकर उसमें पानी भरकर गणेश जी विसर्जित कर दें। फिर उस गमले या गड्ढे में तुलसी का पौधा या पीपल का पेड़ लगा दे।

मंन्त्र के लिए कर्मकाण्ड भाष्कर की मदद लें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, मैंने एक मनोकामना पूर्ति हेतु तप साधना की थी, लेकिन वह मनोकामना पूरी नहीं हुई। गलती कहाँ हुई, कृपया मार्गदर्शन करें।*

प्रश्न - *दी, मैंने एक मनोकामना पूर्ति हेतु तप साधना की थी, लेकिन वह मनोकामना पूरी नहीं हुई। गलती कहाँ हुई, कृपया मार्गदर्शन करें।*

उत्तर - आत्मीय भाई, आपके प्रश्न का उत्तर देने से पूर्व आपको एक कहानी सुनाती हूँ।

एक किसान बैल गाड़ी लेकर जा रहा था, चक्का कीचड़ में फंस गया। और वो मदद के लिए पुकार करने हेतु हनुमान चालीसा पढ़ने लगा। घण्टों बीत गए और कुछ न हुआ। एक अत्यंत वृद्ध सन्त अपनी झोपड़ी से यह नजारा देख रहे थे, वो उस किसान के पास पहुंचे। पूँछा क्या कर रहे हो। किसान ने बताया हनुमानजी को बुला रहा हूँ अपनी गाड़ी का चक्का निकालने के लिए। सन्त ने कहा, हनुमानजी ने अपना बल तो तुम्हारी भुजाओं में भेज दिया लेकिन तुम जब तक उन भुजाओं का प्रयोग ही नहीं करोगे चक्का निकालने में तो भला चक्का कैसे निकलेगा? किसान ने ज़ोर लगाया और चक्का निकल गया।

लक्ष्मी जी की केवल पूजा मात्र से बिज़नेस नहीं बढ़ता। उसके लिए प्रयास भी करना पड़ता है।

सरस्वती जी की केवल पूजा करने से ज्ञान नहीं मिलता, उसके लिए सम्बन्धित विषय की पढ़ाई और ध्यान भी करना पड़ता है। पूजन के साथ पढ़ने पर ही पास हुआ जा सकेगा।

अर्जुन को भी अपना युद्ध स्वयं ही लड़ना पड़ा था, भगवान ने मार्गदर्शन किया था। भगवान की मदद न मिलती तो द्रोण/भीष्म/कृपाचार्य से हारना भी तय था। इसलिए भगवान की कृपा भी जरूरी है और अर्जुन सा पुरूषार्थ भी जरूरी है।

भगवान एक शक्ति है और उसे धारण करने हेतु आपको स्वयं की पात्रता सिद्ध करनी पड़ती है। गंगाजल को घर तक लाने के लिए पात्र की जरूरत पड़ेगी। जितना बड़ा पात्र उतना जल। पाइप लाइन भी बिछा सकते हो। माध्यम तो चाहिए ही।

भगवान डायरेक्ट धन नहीं देता, भगवान बुद्धिबल, साहस, धैर्य और कुशलता देता है जिससे धन कमाने में हम समर्थ बनते है।

भगवान केवल तभी मदद कर सकता है जब इंसान स्वयं अपनी मदद करने के लिए प्रयासरत हो। ईश्वर का प्रवेश आपके प्रयासों में ही होता है।

अब जिस भी मनोकामना के लिए आपने तप साधना की, पहले उस मनोकामना का एनालिसिस कीजिये। कि उस कार्य के प्रति आप कितने जागरूक थे। उसके लिए प्लानिंग करने और एक्सीक्यूट करने में कहां त्रुटि रह गई? क्या 100% प्रयास हुआ था? किन कारणों से मनोकामना पूरी न हुई? इन सब पर गहन चिंतन कर अपने प्रयासों का विश्लेषण कीजिये, आपको स्वतः उत्तर मिल जाएगा। अपनी भूल सुधारिये और मंजिल/लक्ष्य को प्राप्त कीजिये।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Sunday 26 August 2018

प्रश्न- *दी, मेरी भाभी को मेरा मायका आना अच्छा नहीं लगता। रक्षाबंधन में जब भी जाते हैं किसी न किसी बात पर कलह करती है। भैया और मम्मी परेशान हो जाते हैं। समझ नहीं आता कि क्या करूँ?*

प्रश्न- *दी, मेरी भाभी को मेरा मायका आना अच्छा नहीं लगता। रक्षाबंधन में जब भी जाते हैं किसी न किसी बात पर कलह करती है। भैया और मम्मी परेशान हो जाते हैं। समझ नहीं आता कि क्या करूँ?*

उत्तर- आत्मीय बहन, पूर्वजन्म के शत्रु या मित्र हमारे रिश्तेदार बनते हैं। जिनसे पूर्व जन्म की मित्रता होती है वो अच्छा व्यवहार करते हैं, जिनसे शत्रुता होती है वो बुरा व्यवहार करते हैं।

*रक्षाबंधन पर्व तो खुशियां बांटने का पर्व है, और द्विजत्व - ब्राह्मणोचित गुण अपनाने का पर्व है।* लेकिन विडम्बना यह है कि लोगों ने इस पर्व को महंगे गिफ्ट के लेंन-देंन से जोड़ दिया है। बहन का आना मतलब घर का बजट बिगड़ना और एक अंश ख़ातिरदारी और दूजा फ़िर गिफ्ट में ख़र्च इत्यादि।

अब जो त्योहार घर का बजट बिगाड़ दे या पैसे ऐसे किसी  ननद पर खर्च हों जिसे भाभी पसन्द ही नहीं करते तो कलह मचना स्वभाविक हैं।

*गायत्री परिजन आध्यात्मिक चिकित्सक होने चाहिए, तुम भी गायत्री परिजन हो तो समस्या की जड़ ढूढो कहाँ है। अर्थात धन का ख़र्च।*

🙏🏻👉🏼 *उपाय हैं तीन, जो पसन्द आये अपना लो* 😇😇😇😇:-

1- राखी कोरियर कर दो, वीडियो कॉल भाई और मम्मी से कर लो। जी भर बातें कर लो। इस तरह दूर रहो सुखी रहो।

तुलसीदास जी कहते हैं:-
*आवत ही हरसे नहीं, नैनन नहीं सनेह।*
*तुलसी तहाँ न जाइये, चाहे कंचन बरसे मेह।।*
(अर्थात जहां जाने पर कोई खुश न हो, आंखों में प्रेम न हो। वहां नहीं जाना चाहिए।)

2- भाभी और उनके बच्चों के लिए महंगे गिफ़्ट ले जाओ। याद रखो जितना खर्च तुम पर हो उससे डबल खर्च करके तुम वहां मायके में भाभी पर करो, उस पर खूब प्यार लुटाओ। अगली बार से तुम्हारी भाभी आरती की थाल लिए खड़ी दरवाजे पर तुम्हारे स्वागत के लिए  मिलेगी।😂😂😂😂
(लक्ष्मीमाता सारी नफ़रत मिटा देती हैं। धन खर्चने पर सर्वत्र सांसारिक लोग पूजते हैं।)

3- भाभी और अपने घरवालों को धीरे धीरे गायत्री साधक बना दो, सबसे बोलो हम रक्षाबंधन पर तभी आएंगे जब आप हमें कोई गिफ्ट वगैरह नहीं देंगे। प्रेम का बन्धन है इसे प्रेम से निभाइये। सहज गायत्रीमय सादगी से रक्षबन्धन मनाइए। सुबह जाइये और शाम को या दूसरे दिन वापस घर आ जाइये। केवल एक दिन ही मायके में रुकिए, भारमुक्त हो अपने काम स्वयं कीजिये।
(गायत्री माता सद्बुद्धि की देवी हैं, वो बैर मिटा देती हैं)

*हमारे कारण किसी भी व्यक्ति को भावनात्मक कष्ट न पहुंचे इसका ध्यान रखें। आपकी भाभी सांसारिक है, छोटी सोच रखती है। लेकिन आप तो आध्यात्मिक हो, बड़ी सोच रख सकते हो। अतः भाभी को उसके दुर्व्यवहार के बाद भी हृदय से प्रेम कीजिये। कलह को इग्नोर कीजिये।*

*हमारा अन्तर्मन भगवान का मंदिर है, इसमें कोई भी कुविचारो का कचड़ा प्रवेश करने मत दीजिये। केवल प्रेम कीजिये। पाप से घृणा कीजिये पापी से नहीं। स्वयं अच्छी भाभी का रोल अपने घर मे निभाते रहिये।*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

आज का मानसिक आहार-मन के भीतर क्या चल रहा विचार-यह जान

*आज का मानसिक आहार*

प्रत्येक घण्टे निज मन मे झांके कि आख़िर क्या चल रहा है? कौन से विचार चल रहे हैं? फ़िर जिन विचारों से स्वयं का कल्याण हो या किसी का भी कल्याण हो उन्हें चलने दें। जिन विचारों की आवश्यकता नहीं उन्हें स्वयं का नाम लेकर बोलो कि यह विचार तुम्हारे काम का नहीं इसका प्रवाह रोको, इस हेतु उन विचारों पर ध्यान केंद्रित करो जो तुम्हारे लिए जरूरी है।

सुबह से लेकर शाम तक प्रत्येक क्षण होश में रहो, चैतन्य जागरूक रहो। जल पी रहे हो तो पूरी तन्मयता से जल ग्रहण करो, पूजा कर रहे हो तो पूरी तन्मयता से होशपूर्वक पूजन करो। आज तन और मन एक जगह रखने की साधना करो। जहां जिस काम में तन(शरीर) लग रहा है, उसी में मन(तत्सम्बन्धी विचार) होने चाहिए।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, कृष्णजन्माष्टमी के व्रत कब है? पूजन मुहूर्त का वक्त कब है? पूजन विधि बताइये। साथ ही व्रत के बाद पारण(अन्न) कब खाएंगे?*

प्रश्न - *दी, कृष्णजन्माष्टमी के व्रत  कब है? पूजन मुहूर्त का वक्त कब है? पूजन विधि बताइये। साथ ही व्रत के बाद पारण(अन्न) कब खाएंगे?*

उत्तर - आत्मीय बहन, कृष्ण जन्माष्टमी रविवार 2 सितम्बर, भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी को है, इसी दिन कृष्ण जन्माष्टमी व्रत किया जाएगा और जन्म का उत्सव भी मनाया जाएगा। कृष्ण भगवान का जन्म अर्धरात्रि में रोहणी नक्षत्र में हुआ था। अतः मुख्य पूजन उसी शुभ मुहूर्त पर होता है। टोटल 45 मिनट तक रोहणी नक्षत्र रहेगा जो कि मुख्य पूजन काल भी है, रात 11:57 बजे से 12:43 बजे तक रहेगा।

*कृष्ण जन्माष्टमी व्रत, भोग और पूजा विधि*

अष्टमी के व्रत वाले दिन भगवान कृष्ण के भक्त केवल फलों, दूध, छाछ और रसाहार का सेवन करते हैं।  कृष्ण जन्माष्टमी के दिन सभी लोग विधि-विधान के साथ व्रत रखकर कृष्ण जी की पूजा करते हैं और अगले दिन अष्टमी तिथि समाप्त होने के बाद ही सुबह नहा धोकर अपना उपवास तोड़ते हैं(अन्न खाते हैं), जिसे पारण कहते है। कुछ लोग पूजन के तुरंत बाद रात को भोजन कर लेते है जो कि धर्म शास्त्र के विरुद्ध है। हिन्दू धर्म में रात्रि पारण वर्जित है। दूसरा दिन और तिथि तभी माना जाता जब उस तिथि में सूर्य उदय हो। यदि सूर्योदय से पहले किसी ने भोजन किया तो जन्माष्टमी का व्रत पूर्ण नहीं माना जाता।

कृष्ण जन्माष्टमी के दिन भगवान कृष्ण का पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। अभिषेक के बाद सबको उसका प्रसाद बांटा जाता है।

*पंचामृत का अर्थ है 'पांच अमृत' इसलिये मुख्‍यरूप से पंचामृत मेंं पॉच सामग्री हाेती है*, थोड़ा आइडिया निम्नलिखित से ले लें -

1- दूध 1 कप
2- दही 1 कप
3- शहद 1/4 चम्मच
4- शुद्ध घी 1/4 चम्‍मच
5- चीनी या  बूरा (स्वादानुसार)

वैसे तो पंचामृत मुख्यतः ऊपर दी गई 5 सामग्री को मिलाकर ही बनाया जाता है, साथ मे नीचे दी गई सामिग्री भी डाल दीजिये:-

👉🏼तुलसी के पत्ते- 4 या 5
👉🏼बारीक कटे हुए मखाने- 1 कप
👉🏼चिरौंजी- 1 चम्मच कप
👉🏼गंगाजल 1 चम्मच

भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी की रात्रि को कृष्ण का जन्मदिन मनाते हैं और प्रसाद का सेवन करते हैं। भगवान कृष्ण को  दूध से  बनी रबड़ी, फल और खीरा का भोग लगाना बहुत ही शुभ माना जाता हैं।  धनियां को भूनकर उसमे चीनी/बुरा मिक्स करके  उसका पंजीरी बनाकर  कृष्ण भगवान को भोग लगाएं। ये सभी प्रसाद व्रत में खाने योग्य होते हैं।

।। *पर्वपूजन क्रम*॥

प्रारम्भ में प्रेरणा संचार के लिए गीत/भजन एवं संक्षिप्त उद्बोधन करके पूजन क्रम आरम्भ करें। यदि सामूहिक कर रहे हैं तो सबको अपने अपने घर से पूजन थाल और 5 घी के दीपक लाने को बोलें। षट्कर्म से रक्षा विधान तक का क्रम अन्य पर्वों की तरह चले। विशेष पूजन में भगवान् कृष्ण का आवाहन, सखा आवाहन एवं गीता आवाहन करें। तीनों का संयुक्त पूजन षोडशोपचार से करें। भगवान् कृष्ण को नैवेद्य के रूप में विशेष रूप से गो द्रव्य चढ़ायें जाएँ। अन्त में यज्ञ- दीपयज्ञ ,समापन देव दक्षिणा सङ्कल्प, संगीत आदि का क्रम रहे।

॥ *श्री कृष्ण आवाहन*॥

ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि। तन्नः कृष्णः प्रचोदयात्॥ - कृ० गा०.
ॐ वंशी विभूषितकरान्नवनीरदाभात्, पीताम्बरादरुणविम्बफलाधरोष्ठात्।
पूर्णेन्दुसुन्दरमुखादरविन्दनेत्रात्, कृष्णात्परं किमपि तत्त्वमहं न जाने॥
ॐ श्रीकृष्णाय नमः, आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।

॥ *श्रीकृष्ण- सखा आवाहन*॥

ॐ सखायः सं वः सम्यञ्चमिष œ स्तोमं चाग्नये।
वर्षिष्ठाय क्षितीनामूर्जो नप्त्रे सहस्वते॥ - १५.२९
ॐ श्रीकृष्ण- सखिभ्यो नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।

॥ *गीता आवाहन*॥

ॐ गीता सुगीता कर्त्तव्या, किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः।
या स्वयं पद्मनाभस्य, मुखपद्माद्विनिःसृता॥

गीताश्रयेऽहं तिष्ठामि, गीता मे चोत्तमं गृहम्।
गीताज्ञानमुपाश्रित्य, त्रींल्लोकान्पालयाम्यहम्॥

सर्वोपनिषदो गावो, दोग्धा गोपालनन्दनः।
पार्थो वत्सः सुधीर्भोक्ता, दुग्धं गीतामृतं महत्॥
ॐ श्री गीतायै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥

आवाहन के पश्चात्

कृष्णभगवान की मूर्ति हो तो उसे पंचामृत से नहलाये/अभिषेक करें, फ़िर साफ़ जल से नहलाकर वस्त्र आभूषण पहनाए। यदि फोटो है तो यह अभिषेक भावनात्मक मन मे ध्यान में करें।। पंचामृत थोड़ा सा अलग प्रसाद हेतु भी अर्पित करने हेतु रखें। पूजन के बाद  अभिषेक  का  पंचामृत और प्रसाद का पंचामृत मिला दें। फिर प्रसाद रूप में सबको वही बांटे। नहलाते समय *ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः* दोहराते रहें।

पुरुषसूक्त से षोडशोपचारपूजन करें।

॥ *गोद्रव्य- /पंचामृत अर्पण- भोग लगाएं॥*
मन्त्र के साथ पंचामृत भगवान् कृष्ण को अर्पित करें।
ॐ माता रुद्राणां दुहिता वसूनां, स्वसादित्यानाममृतस्य नाभिः।
प्र नु वोचं चिकितुषे जनाय, मा गामनागामदितिं वधिष्ट॥ - ऋ० ८.१०१.१५

।। *दीप यज्ञ*।।
सभी से कहें दीप प्रज्वलित  कर लें और  निम्नलिखित मन्त्रों  के साथ भावनात्मक आहुति दें।
👉🏼  *11 गायत्री मंत्र* - *ॐ भूर्भुवः स्व: तत सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात।*

👉🏼5 कृष्ण गायत्री मंत्र - *ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि। तन्नः कृष्णः प्रचोदयात्॥*
👉🏼3 महामृत्युंजय मंत्र -  *ॐ त्र्यम्‍बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्‍धनान् मृत्‍योर्मुक्षीय मामृतात्*
👉🏼3 चन्द्र गायत्री मंत्र - *ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृतत्त्वाय धीमहि। तन्नो चन्द्र: प्रचोदयात्।*

॥ *सङ्कल्प*॥

अंत मे निम्नलिखित  सङ्कल्प बोलकर अक्षत पुष्प माथे  में लगाकर  कृष्ण भगवान के चरणों मे अर्पित करें।

.< *यहाँ अपना नाम बोलें*>....... नामाहं कृष्णजन्मोत्सवे/ गीताजयन्तीपर्वणि स्वशक्ति- अनुरूपं न्यायपक्षवरणं तत्समर्थनं च करिष्ये। तत्प्रतीकरूपेण....< *यहां धर्म स्थापना और युगपिड़ा शमन हेतु सङ्कल्प बोलें* >.....नियमपालनार्थं संकल्पयिष्ये।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Saturday 25 August 2018

रक्षाबंधन की शुभकामनाएं

🙏🏻🌹 *रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं* 🌹🙏🏻

जिनके हाथ लोगों की मदद को,
सतत बढ़ रहे,
जिनके कदम लोकहित,
सतत मीलों चल रहे।

ऐसे भाईयों की कलाईयों में,
राखी बांधना है एक सौभाग्य।

जो युगपिड़ा शमन हेतु,
नित सत्प्रयास कर रहे ,
जो टूटे मन में सद्चिन्तन दे,
जीने की एक आस भर रहे,

ऐसे भाईयों की कलाईयों में,
राखी बांधना है एक सौभाग्य।

जो राष्ट्र प्रहरी बनकर,
आंधी तूफ़ान औऱ गोलाबारी सह रहे,
देश की सीमा की सुरक्षा में,
अपना जीवन न्यौछावर कर रहे,

ऐसे भाईयों की कलाईयों में,
राखी बांधना है एक सौभाग्य।

जो जन जन में देवत्व जगा रहे,
जो मन मन में राष्ट्र सेवा भाव जगा रहे,
जो प्रकाश के सिपाही बनकर,
युगनिर्माण में अपनी अहम भूमिका निभा रहे,

ऐसे भाईयों की कलाईयों में,
राखी बांधना है एक सौभाग्य।

जो नशामुक्ति अभियान सर्वत्र चला रहे,
युवाओं को नशे के दलदल से उबार रहे,
जो वृक्षारोपण से धरती को हरी चुनर ओढा रहे,
जलस्रोतो की सफ़ाई का अभियान चला रहे,

ऐसे वीर भाईयों की, कलाईयों में,
राखी बांधना है एक परम् सौभाग्य।

🙏🏻सभी भाइयों को रक्षाबंधन की  बहुत बहुत शुभकामनाएं

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday 24 August 2018

प्रश्न- *दी, रक्षा बंधन की विधि और शुभमुहूर्त बतायें* उत्तर - आत्मीय बहन *राखी बांधने के मुहूर्त- रविवार 26

प्रश्न- *दी, रक्षा बंधन की विधि और शुभमुहूर्त बतायें*

उत्तर -  आत्मीय बहन *राखी बांधने के मुहूर्त- रविवार 26 अगस्त 2018* इस प्रकार है:-

सुबह 7:43 बजे से 9:18 बजे तक चर

सुबह 9:18 बजे से लेकर 10:53 बजे तक लाभ

सुबह 10:53 बजे से लेकर 12:28 बजे तक अमृत

दोपहर 2:03 बजे से लेकर 3:38 बजे तक शुभ

सायं 6:48 बजे से लेकर 8:13 बजे तक शुभ

रात्रि 8:13 बजे से लेकर 9:38 बजे तक अमृत

रात्रि 9:38 बजे से लेकर 11:03 बजे तक चर

👉🏼👉🏼🙏🏻 *राखी बांधने की विधि*

सबसे पहले बहनों का सुबह- सुबह पूजा की थाल तैयार कर लेनी चाहिए। उपरोक्त मुहूर्त में से किसी भी मुहूर्त में सुविधानुसार राखी बांधे।

इस थाल में रोली, मिठाई, कुमकुम,रक्षा सूत्र, अक्षत, पीला सरसों ,दीपक और राखी हो यह सुनिश्चित कर लें।

🙏🏻 भाई बहन एक साथ गायत्री मंत्र बोलते हुए, भाई बहन सद्बुद्धिं की प्रार्थना करे।

*ॐ भूर्भुवः स्व: तत सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात*

👉🏼इस दौरान दीप जरूर जला लें।

 निम्नलिखित मंन्त्र बोलते हुए सबसे पहले भाई को तिलक लगाएं, फिर भाई अपनी बहन को तिलक लगाएं।

*ॐ चन्दनस्य महत्पुण्यं, पवित्रं पापनाशनम्।*
*आपदां हरते नित्यम्, लक्ष्मीस्तिष्ठति सर्वदा॥*

फिर दाहिने हाथ में रक्षा सूत्र बांधें, निम्नलिखित मंन्त्र के साथ बांधे:-

*ॐ व्रतेन दीक्षामाप्नोति, दीक्षयाऽऽप्नोति दक्षिणाम्।*
*दक्षिणा श्रद्धामाप्नोति, श्रद्धया सत्यमाप्यते॥*

उसके बाद राखी को बांधें निम्नलिखित मंन्त्र के साथ बांधे।

*ॐ येन बद्धो बलीराजा, दानवेन्द्रो महाबलः।*
*तेन त्वां प्रति बध्नामि, रक्षे मा चल मा चल॥ *

अर्थात्- जिस रक्षासूत्र से दानवेन्द्र, महाबली राजा बलि बाँधे गये थे, उसी से तुम्हें बाँधती हूँ। हे रक्षे (रक्षासूत्र) यहाँ से (अपने प्रयोजन से) विचलित न होना अर्थात् अपनी बहन की सदैव रक्षा करना।धर्मपरायण होकर अपनी बहन की रक्षा करना।

फिर राखी और रक्षा सूत्र बांधने के बाद, भाई की आरती उतारें।और पुष्पवर्षा उस पर निम्नलिखित मन्त्रों के साथ करें:-

*मंगलम भगवान विष्णु, मंगलम गरुड़ ध्वज।*
*मंगलम पुण्डरीकाक्ष, मंगलाय तनो हरि।।*

फिर भाई को मिठाई खिला दें।

भाई आपसे बड़ा हो या छोटा आज कर दिन भाई बहन का  चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेगा।
फिर  निम्नलिखित  वचन भाई अपनी  बहन  को देगा, बड़ा भाई अपनी बहन के सर पर हाथ रखके आशीर्वाद भी देगा :-

1- जीवन में कभी कोई ऐसा कार्य नही करूंगा जिससे मेरे परिवार को शर्मिंदा होना पड़े।
2- कभी किसी को भी माँ-बहन की गाली नहीं दूंगा और न ही किसी को देने दूंगा।
3- स्त्रियों को सम्मान दूंगा।
4- नशा न करूंगा और न ही किसी को करने दूंगा।
5- बहन की सुरक्षा करूंगा और राष्ट्र की सुरक्षा हेतु भी ततपर रहूंगा।

अंत में पूजा की थाल को आप कुछ देर के लिए पूजा स्थान पर रख सकते हैं। भाई बहन के लिए जो गिफ्ट लाया है दे सकता है। बहन जो भाई के लिए गिफ्ट लाई है दे सकती है।

दीप को अंत तक जलने दें उसे बुझाए नहीं।

*एक सन्देश* - बहन जिस तरह तुम्हें तुम्हारा भाई प्यारा है, वैसे ही आपकी ननद को आपका पति प्यारा है। जो आदर सम्मान आप अपने भाई और भाभी से चाहती है वही आपको अपनी ननद को भी देना चाहिए। आपकी भाभी को आपके माता-पिता का ख्याल रखना चाहिए, वैसे ही आपको भी अपने सास ससुर का ख्याल रखना चाहिए। इस त्यौहार की ख़ुशी तभी निखर के आएगी जब प्रेम और सौहार्द के साथ इसे मनाया जाएगा। कन्या के जन्म को भी स्वीकार किया जाएगा। अन्यथा भाईयों की कलाई सुनी ही रहेगी। आज जब एक बच्चे अधिकतर लोग रखते है तो विश्व कुटुम्बकम का भाव रखते हुए, नाते रिश्तेदार, आस-पड़ोस में मिलकर भाई बहन का यह पवित्र त्योहार मनाये। कुछ ऐसा करें कि आज के दिन कोई कलाई सुनी न हो।

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *हमें किसी की प्रतिक्रिया को कितना महत्त्व देना चाहिए? और कब इग्नोर करना चाहिए। मार्गदर्शन करें*

प्रश्न - *हमें किसी  की प्रतिक्रिया को कितना महत्त्व देना चाहिए? और कब इग्नोर करना चाहिए। मार्गदर्शन करें*

उत्तर - प्रिय आत्मीय भाई, एक कहानी सुनो:-

एक गुरु के दो शिष्यों में एक चित्रकार ने बहुत सुंदर पेंटिंग बनाई, और एक कथाकार ने उस पर आधारित बहुत सुंदर कहानी लिखी। अब दोनों को अपनी अपनी कला पर लोगों की प्रतिक्रिया/लाइक्स/कमेंट जानना था।

अतः दोनों ने रेलवे स्टेशन पर अपनी अपनी कला को प्रदर्शित किया। साथ ही लिखा कि यदि कहीं कोई गलती/त्रुटि लगे तो टिक मार्क्स कर दें। सुबह से शाम तक लोगों ने प्रतिक्रिया दी। शाम को जब दोनों ने अपनी अपनी कला देखी तो रो पड़े। हज़ारों जगह ग़लती/त्रुटि के टिक लगे थे। कहानी में भी कुछ यही हाल था। दोनों गुरुजी के पास पहुंचे और सब हाल सुनाया।

गुरुदेब ने कहा, बेटा कल जैसा मैं बोलूं वैसा करना। अपनी पेंटिंग के साथ तीन खाली फ्रेम और कलर ले जाकर वहां रख देना। और लिखना यदि मेरी पेंटिग में कहीं गलती/त्रुटि लगे तो सही पेंटिंग इन फ़्रेम में बना दें। यही तुम अपनी कहानी के साथ करो। दूसरे दिन दोनों ने ऐसा ही किया। आश्चर्य आज प्रशंशा के बोल ही लिखे थे। कहीं कोई गलती/त्रुटि का टिक नहीं लगा था। सभी खाली फ़्रेम ज्यों के त्यों थे। साथ ही पेंटिंग और कहानी दोनों अनछुई साफ़ सुथरी ज्यों की त्यों थी।

इसका कारण गुरुदेव से शिष्यों ने पूँछा, तो गुरुदेब ने बताया जो ज्ञानी उस सब्जेक्ट का होता है केवल उसी की प्रतिक्रिया को हमें महत्तव देना चाहिए। अन्यथा इग्नोर करना चाहिए।

इसी तरह भाई यदि कभी किसी की अपने काम मे प्रतिक्रिया चाहते हो तो केवल उस सब्जेक्ट के एक्सपर्ट से सलाह लेना/प्रतिक्रिया लेना। लेकिन यह भी याद रखना वो एक्सपर्ट आपका कम्पटीटर नहीं होना चाहिए।

बाकी सब को इग्नोर करो और आगे बढ़ो। जिंदगी में केवल सद्गुरु, माता-पिता, दादा-दादी और आपको प्यार करने वाले लोगों के अतिरिक्त कोई आप की उन्नति बर्दाश्त नहीं कर सकता। अतः अपने लक्ष्य पर केंद्रित रहें, क्या कहेंगे लोग उसे इग्नोर करें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 22 August 2018

प्रश्न - *क्या बकरे को हलाल कर मारने और फिर उस मांस की दावत खाने पर अल्लाह ख़ुश होगा और मरने पर जन्नत देगा?*

प्रश्न - *क्या बकरे को हलाल कर मारने और फिर उस मांस की दावत खाने पर अल्लाह ख़ुश होगा और मरने पर जन्नत देगा?*

उत्तर - कुछ धर्म मे प्रश्न करने पर सर धड़ से अलग कर दिया जाता है, वहां धर्म मे ऐसा क्यों है इसका लॉजिक आप नहीं पूंछ सकते।

देखिए किसी और जीव को मौत के घाट उतार देने से जन्नत मिलेगी यह सम्भव नहीं है। क्योंकि अगर अल्लाह ने पूरी दुनियां बनाई है तो उसके लिए इंसान भी उसकी सन्तान है और एक बकरा भी उसकी सन्तान है।

काफिर इंसान को मारने पर भी जन्नत मिलती है यह भी जन्नत जाने का शॉर्टकट बताया गया है।

साहब जन्नत कब मिलेगी, भई जब तुम मरोगे। जब हम मरेंगे तो हम क्रॉस क़वेशचन तो कर नहीं पाएंगे कि जन्नत है भी या नहीं। अब तक कितनो को जन्नत मिली और कितनों को नहीं इसका कोई प्रमाण नहीं प्राप्त किया जा सकता।

चलो जन्नत न सही, बकरे के हलाल करने कर बाद किसी का ध्यान ही लग गया हो या आध्यात्मिक अनुभूति हुई हो। कि अल्लाह ने कुबूल किया, इसका भी कोई प्रमाण नहीं।

जब ऐसी धार्मिक क्रिया जिसका रिज़ल्ट केवल मरने के बाद मिलता हो अप्रमाणिक ही होती है।

प्रमाणिक धार्मिक क्रिया वो है जिसका कुछ असर तुरन्त मिले, जैसे प्रार्थना करना, ध्यान करना, मंन्त्र जप करना, भजन करना, यज्ञ करना इत्यादि। इन सभी को करने के बाद और दौरान मन में शांति, वातारण में सुकून व्याप्त होता है।

*पढ़ें तुलसीदास जी ने भी बाबरी मस्जिद का उल्लेख किया है!*

*पढ़ें तुलसीदास जी ने भी बाबरी मस्जिद का उल्लेख किया है!*

आम तौर पर हिंदुस्तान में ऐसे परिस्थितियां कई बार उत्पन्न हुई जब राम -मंदिर और बाबरी मस्जिद (ढांचा ) एक विचार-विमर्श का मुद्दा बना और कई विद्वानों ने चाहे वो इस पक्ष के हो या उस पक्ष के अपने विचार रखे . कई बार तुलसीदास रचित रामचरित मानस पर भी सवाल खड़े किये गए की अगर बाबर ने राम -मंदिर का विध्वंश किया तो तुलसीदास जी ने इस घटना का जिक्र क्यों नही किया .
सच ये है कि कई लोग तुलसीदास जी की रचनाओं से अनभिज्ञ है और अज्ञानतावश ऐसी बातें करते हैं . वस्तुतः रामचरित्रमानस के अलावा तुलसीदास जी ने कई अन्य ग्रंथो की भी रचना की है . तुलसीदास जी ने तुलसी शतक में इस घंटना का विस्तार से विवरण दिया है .

हमारे वामपंथी विचारको तथा इतिहासकारो ने ये भ्रम की स्थति उतपन्न की,कि रामचरितमानस में ऐसी कोई घटना का वर्णन नही है . श्री नित्यानंद मिश्रा ने जिज्ञाशु के एक पत्र व्यवहार में "तुलसी दोहा शतक " का अर्थ इलाहाबाद हाई कोर्ट में प्रस्तुत किया है | हमनें भी उन दोहों के अर्थो को आप तक पहुँचाने का प्रयास किया है | प्रत्येक दोहे का अर्थ उनके नीचे दिया गया है , ध्यान से पढ़ें |

*(1) मन्त्र उपनिषद ब्राह्मनहुँ,*
*बहु पुरान इतिहास ।*
*जवन जराये रोष भरि,*
*करि तुलसी परिहास ॥*

श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि क्रोध से ओतप्रोत यवनों ने बहुत सारे मन्त्र (संहिता), उपनिषद, ब्राह्मणग्रन्थों (जो वेद के अंग होते हैं) तथा पुराण और इतिहास सम्बन्धी ग्रन्थों का उपहास करते हुये उन्हें जला दिया ।

*(2) सिखा सूत्र से हीन करि,*
*बल ते हिन्दू लोग ।*
*भमरि भगाये देश ते,*
*तुलसी कठिन कुजोग ॥*

श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि ताकत से हिंदुओं की शिखा (चोटी) और यग्योपवित से रहित करके उनको गृहविहीन कर अपने पैतृक देश से भगा दिया ।

(3) *बाबर बर्बर आइके,*
*कर लीन्हे करवाल ।*
*हने पचारि पचारि जन,*
*जन तुलसी काल कराल ॥*

श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि हाँथ में तलवार लिये हुये बर्बर बाबर आया और लोगों को ललकार ललकार कर हत्या की । यह समय अत्यन्त भीषण था ।

*(4) सम्बत सर वसु बान नभ,*
*ग्रीष्म ऋतू अनुमानि ।*
*तुलसी अवधहिं जड़ जवन,*
*अनरथ किय अनखानि ॥*

(इस दोहा में ज्योतिषीय काल गणना में अंक दायें से बाईं ओर लिखे जाते थे, सर (शर) = 5, वसु = 8, बान (बाण) = 5, नभ = 1 अर्थात विक्रम सम्वत 1585 और विक्रम सम्वत में से 57 वर्ष घटा देने से ईस्वी सन 1528 आता है ।)
श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि सम्वत् 1585 विक्रमी (सन 1528 ई) अनुमानतः ग्रीष्मकाल में जड़ यवनों अवध में वर्णनातीत अनर्थ किये । (वर्णन न करने योग्य) ।

*(5) राम जनम महि मंदरहिं,*
*तोरि मसीत बनाय ।*
*जवहिं बहुत हिन्दू हते,*
*तुलसी कीन्ही हाय ॥*

जन्मभूमि का मन्दिर नष्ट करके, उन्होंने एक मस्जिद बनाई । साथ ही तेज गति उन्होंने बहुत से हिंदुओं की हत्या की । इसे सोचकर तुलसीदास शोकाकुल हुये ।

*(6)दल्यो मीरबाकी अवध,*
 *मन्दिर राम समाज ।*
*तुलसी रोवत ह्रदय हति,*
*त्राहि त्राहि रघुराज ॥*

मीरबकी ने मन्दिर तथा रामसमाज (राम दरबार की मूर्तियों) को नष्ट किया । राम से रक्षा की याचना करते हुए विदिर्ण ह्रदय तुलसी रोये ।

*(7) राम जनम मन्दिर जहाँ,*
*तसत अवध के बीच ।*
*तुलसी रची मसीत तहँ,*
*मीरबकी खल नीच ॥*

तुलसीदास जी कहते हैं कि अयोध्या के मध्य जहाँ राममन्दिर था वहाँ नीच मीरबकी ने मस्जिद बनाई ।

*(8)रामायन घरि घट जहाँ,*
*श्रुति पुरान उपखान ।*
*तुलसी जवन अजान तँह,*
*करत कुरान अज़ान ॥*

श्री तुलसीदास जी कहते है कि जहाँ रामायण, श्रुति, वेद, पुराण से सम्बंधित प्रवचन होते थे, घण्टे, घड़ियाल बजते थे, वहाँ अज्ञानी यवनों की कुरआन और अज़ान होने लगे।

अब यह स्पष्ट हो गया कि गोस्वामी तुलसीदास जी की इस रचना में जन्मभूमि विध्वंस का विस्तृत रूप से वर्णन किया किया
है !

यह लेख मुझे एक ग्रुप में आया है,आप लोग भी पढ़िये । और आगें प्रचार  भी करिए। सभी से विनम्र निवेदन है कि सभी देशवासियों को  अपने  सभ्यता के  स्वर्णीम  युग के गौरवशाली  अतीत के  बारे में बताइये  ।

Tuesday 21 August 2018

प्रश्न - *हम पिछले कई वर्षों से आर्थिक दिवालियेपन को झेल रहे हैं, मेरे पति का व्यवसाय घाटे में चल रहा है। मेरी एक सन्तान भी है। शादी से पूर्व मैं एक बड़े ओहदे पर जॉब करती थी। लेक़िन मेरे पति को मेरा जॉब करना पसंद नहीं था इसलिए मैंने छोड़ दिया। मैं साधक हूँ नियमित साधना करती हूँ और स्वाध्याय भी। मेरे पति ज्योतिषियों के चक्कर मे पड़े है किसी ने उन्हें बताया है कि उनकी कुलदेवी उनसे नाराज़ हैं। मार्गदर्शन करें।*

प्रश्न - *हम पिछले कई वर्षों से आर्थिक दिवालियेपन को झेल रहे हैं, मेरे पति का व्यवसाय घाटे में चल रहा है। मेरी एक सन्तान भी है। शादी से पूर्व मैं एक बड़े ओहदे पर जॉब करती थी। लेक़िन मेरे पति को मेरा जॉब करना पसंद नहीं था इसलिए मैंने छोड़ दिया। मैं साधक हूँ नियमित साधना करती हूँ और स्वाध्याय भी। मेरे पति ज्योतिषियों के चक्कर मे पड़े है किसी ने उन्हें बताया है कि उनकी कुलदेवी उनसे नाराज़ हैं। मार्गदर्शन करें।*

उत्तर - आत्मीय बहन,

तुम्हारी समस्या का समाधान बताने से पहले एक कहानी सुनाती हूँ।

एक चिड़िया और एक चिड़वा प्रेम करते थे, *एक दिन चिड़वा ने पूँछा कि तुम मुझसे ईतना प्रेम करती हो कि मेरे लिए अपने खूबसूरत पंखों को काट सको। चिड़िया ने पूँछा कि फिर मेरे भोजन की व्यवस्था कैसे होगी?।चिड़वा ने कहा वो हम करेंगे। चिड़िया ने पंख प्रेम में और चिडवे के लिए कुर्बान कर दिए*। चिड़वा जो भी भोजन लाता उसे वो चुपचाप खा लेती। पहले घोसला दोनों मिलकर बनाते थे मरम्मत करते थे। लेकिन चिड़िया उड़ न सकने के कारण बाहर से मरम्मत भी न कर पाती। पहले दोनों मिलकर लाते तो तरह तरह के अनाज आता था। अब एक के कमाने से आमदनी आधी हो गयी। फिर भी किसी तरह सबकुछ सही चल रहा था। *एक दिन जंगल मे आग लग गयी। सब अपनी जान बचाने को भागने लगे। घोसले में चिड़िया और उसका बच्चा जल गया। क्योंकि वो दोनों उड़ न सके।*

*ऐसे ही हमारे भारत देश के कई मर्द हैं जो पढ़ी लिखी लड़कियों की जॉब उनके सुंदर पंखों को उनके स्वप्नों को प्रेम के नाम पर कटवा देते हैं। उन्हें प्रेम के नाम पर अपाहिज बनाकर घर बिठा देते हैं।* विपरीत परिस्थिति आने पर भी सुधरते नहीं और पूरे घर को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। युगऋषि कहते हैं- *जो पति अपनी पत्नी से प्रेम करते हैं वो उन्हें कमाने योग्य अवश्य बनाएं। जीवन मे कब किस क्षण क्या अनहोनी घट जाए कोई गारंटी वारण्टी नहीं। कभी आग लगे तो जीवन साथ स्वयं उड़कर जान तो बचा सके।*

*तुम्हारे पति से कुलदेवी नहीं बल्कि उनकी गृहलक्ष्मी यानि तुम नाराज़ हो, तुम्हे घर मे दुःखी रखकर वो कभी धन नहीं प्राप्त कर सकेंगे। तो यदि वो पुनः सफल होना चाहते हैं तो अपनी पुरुषत्व के अहंकार को त्यागकर आपको अपने जीवन का सलाहकार बनाये और आपको सम्मान के साथ स्वतंत्रता दें।*

लड़कियों को योग्य होने पर जॉब जरूर करनी चाहिए, घर और बाहर दोनों सम्हालना चाहिए। प्रेम पति से करें, लेकिन अंधा प्रेम चिड़िया की तरह न करें कि विपत्ति आने पर उड़ भी न सकें। *प्रेम और अन्धप्रेम में फर्क समझिए।*

कुलदेवी के दर्शन करने जा रहे हैं आपके पति तो आप भी साथ जाइये। माता से पति की सद्बुद्धि के लिए प्रार्थना कीजिये। *कुलदेवी की पूजा जरूर करनी चाहिए।*

*अपने परिवार के उद्धार के लिए और घर मे धनधान्य की व्यवस्था के सवा लाख गायत्री मंत्र का अनुष्ठान कीजिये*। साथ ही स्वयं पुनः कमाने निकलिए। अपना रिज्यूम अपडेट कीजिये। अब आप केवल पत्नी नहीं एक मां भी हैं। बेटी के लिए कमाना आपका भी उत्तरदायित्व है।

काम्य कर्मों के लिये, सकाम प्रयोजनों के लिये अनुष्ठान करना आवश्यक होता है। सवालक्ष का पूर्ण अनुष्ठान, चौबीस हजार का आंशिक अनुष्ठान अपनी- अपनी मर्यादा के अनुसार फल देते हैं। ‘ *जितना गुड़ डालो उतना मीठा* ’ वाली कहावत इस क्षेत्र में भी चरितार्थ होती है। साधना और तपश्चर्या द्वारा जो आत्मबल संग्रह किया गया है, उसे जिस काम में भी खर्च किया जायेगा, उसका प्रतिफल अवश्य मिलेगा। बन्दूक उतनी ही उपयोगी सिद्ध होगी, जितनी बढिय़ा और जितने अधिक कारतूस होंगे। गायत्री की प्रयोग विधि एक प्रकार की आध्यात्मिक बन्दूक है। तपश्चर्या या साधना द्वारा संग्रह की हुई आत्मिक शक्ति कारतूसों की पेटी है। दोनों के मिलने से ही निशाना साधकर शिकार को मार गिराया जा सकता है। सवा लाख गायत्री मंत्र जप अनुष्ठान के दौरान यदि चाहे तो निम्नलिखित मन्त्रों की माला भी एक्स्ट्रा जप सकती है, यह ऑप्शनल है:-

1- गुरुमंत्र - *ॐ ऐं श्रीराम आनन्दनाथय गुरुवे नमः ॐ*

2- गणेश ऋण मुक्ति मंन्त्र- *ॐ गणेश ऋणं छिन्धि वरेण्यं हुं नमः फट्॥*

3- शिव भाग्योदय मंन्त्र - *ॐ जूं स: माम् भाग्योदयं कुरु कुरु स: जूँ ॐ।।*

4- पति संरक्षण शिव मंन्त्र - *ॐ जूँ स: माम् पति पालय पालय स:  जूँ ॐ।।*

व्यवसाय में सफलता और दरिद्रता नाश के लिये गायत्री की ‘श्रीं’ शक्ति की उपासना करनी चाहिये। मन्त्र के अन्त में तीन बार ‘श्रीं’ बीज का सम्पुट लगाना चाहिये। साधना काल के लिये *पीत वस्त्र, पीले पुष्प, पीला यज्ञोपवीत, पीला तिलक, पीला आसन प्रयोग करना चाहिये और रविवार या गुरुवार को उपवास करना चाहिये। शरीर पर शुक्रवार को हल्दी मिले हुए तेल की मालिश करनी चाहिये। पीताम्बरधारी, हाथी पर चढ़ी हुई गायत्री का ध्यान करना चाहिये। पीतवर्ण लक्ष्मी का प्रतीक है। भोजन में भी पीली चीजें प्रधान रूप से लेनी चाहिये। इस प्रकार की साधना से धन की वृद्धि और दरिद्रता का नाश होता है।*

*भगवान उसकी मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करते हैं, क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण की तरह हथियार नहीं उठाते, केवल अर्जुन रूपी समर्पित शिष्य का मार्गदर्शन करते हैं। उनके सारथी बनते हैं।*

 नारी आंदोलन के लिए गुरुदेब माताजी ने अथक प्रयास किये। स्त्रियों को वेद, गायत्री जप और यग्योपवीत का अधिकार दिया। उन्हें समाज मे आगे बढ़ने हेतु प्रोत्साहित किया। गायत्री परिवार की स्त्री होकर असहाय नहीं बैठना चाहिए, परिस्थिति का सामना करिये। किसी को ख़ुश करने में अपने पंख और पैर मत काटिये, शारीरिक-मानसिक अपाहिज़ मत बनिये। स्वयं के दुर्गा-शक्ति, सरस्वती और लक्ष्मी रूप को जागृत कीजिये, अपने घर की आर्थिक डूबती नैया को कैप्टन बनकर सम्हालिये। प्यार से पति को समझाइए, दोनों मिलकर आर्थिक जिम्मेदारी उठाइये।

 एक बात और उन्हें क्षमा कर दीजिए, उन्होंने जो आपको कड़वे वचनों से दुःख दिए हैं उसके कारण आपके हृदय में घाव बने हुए हैं। यदि आप अपने पति को हृदय से क्षमा कर देंगी। तो उनका सौभाग्य पुनः लौट आएगा। स्त्री रूपी गृह लक्ष्मी को दुःखी करके कोई भी पुरुष मां लक्ष्मी को प्रशन्न नहीं कर सकेगा। अतः आर्थिक हानि झेलेगा ही।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *मेरे पिता सफ़ल बिजनेस मैन, अच्छे पति, अच्छे पिता और अच्छे इंसान है। उनके दोस्तों की संगति में खैनी(सुर्ती) खाना शुरू कर दिए हैं। वो इस नशे से मुक्ति चाहते हैं पर सफल नहीं हो रहे। साथ मेरे घर मे सब साधक है, मैं 26 वर्ष का हूँ मैं कभी कभी यह सोचता हूँ जब मैं अपने पिता को इस छोटे से नशे से व्यसनमुक्त न कर सका तो भला समाज मे कैसे व्यसनमुक्ति आंदोलन चलाऊंगा? स्वयं को बेबस लाचार महसूस कर रहा हूँ...मार्गदर्शन करें..*

प्रश्न - *मेरे पिता सफ़ल बिजनेस मैन, अच्छे पति, अच्छे पिता और अच्छे इंसान है। उनके दोस्तों की संगति में खैनी(सुर्ती) खाना शुरू कर दिए हैं। वो इस नशे से मुक्ति चाहते हैं पर सफल नहीं हो रहे। साथ मेरे घर मे सब साधक है, मैं 26 वर्ष का हूँ मैं कभी कभी यह सोचता हूँ जब मैं अपने पिता को इस छोटे से नशे से व्यसनमुक्त न कर सका तो भला समाज मे कैसे व्यसनमुक्ति आंदोलन चलाऊंगा? स्वयं को बेबस लाचार महसूस कर रहा हूँ...मार्गदर्शन करें..*

उत्तर - आत्मीय भाई, आप जैसे युवा हमारे देश के लिए गौरव हैं। आपके परिवार में साधनामय वातावरण धरती के स्वर्ग का प्रतीक है।

*कोई भी जीवन मे सफ़लता बिना संघर्ष के नहीं मिलता। कुछ तप करना पड़ता है। उच्चमनोबल और दृढ़निश्चयी के लिए कुछ भी असम्भव नहीं।*

आपको भावनात्मक संघर्ष हेतु कुछ शारीरिक कष्ट झेलने पड़ेंगे, आपकी माताजी को भी इसमें सहयोग करना पड़ेगा। यदि आप तैयार हैं तो निम्नलिखित उपाय अपनाएं:-

1- पिता जी साधक है लेकिन जो साधना वो कर रहे हैं उससे प्राप्त ऊर्जा की खपत बिज़नेस के सफल संचालन में खर्च हो जाती है। व्यसन को छोड़ने के लिए जो अतिरिक्त सङ्कल्प युक्त मनोबल चाहिये और प्राण ऊर्जा चाहिए उसके लिए उन्हें अतिरिक्त साधना करनी पड़ेगी।

2- पिताजी पूजा तो करते हैं लेकिन अभी उनका ध्यान एकाग्र नहीं है। कहने का मतलब शरीर नित्य पूजन स्थल पर होता है लेकिन मन को वो ज्यादा देर तक पूजन स्थल पर नहीं रख पाते।

3- तो पिताजी के लिए अतिरिक्त मनोबल सप्पलाई करने के लिए आपको और आपकी माताजी को कुछ निम्नलिखित आध्यात्मिक उपाय करने हैं।

जब भी कोई भी घर में उन्हें भोजन या पानी दें, मंन्त्र पढ़कर अभिमंत्रित करके देवे। पिताजी को भी बोले मंन्त्र जप कर ही कुछ भी खाए या पिये। खैनी खाने से पहले तीन बार गायत्री मंत्र जपें ।

आप और आपकी माताजी रोज पूजन के वक्त ध्यान में पिताजी को शान्तिकुंज हरिद्वार ले जाएं और गुरुदेब माताजी से उन्हें व्यसनमुक्त करने की प्रार्थना करें। ध्यान में उन्हें नशा छोड़ने हेतु प्रेरित करें।

रोज बलिवैश्व यज्ञ करें।

रोज सूर्य के अर्घ्य दें और थोड़े से बचे जल से आटा गूंधकर रोटियां खिलाएं।

नशामुक्ति की पुस्तकों का घर मे सामूहिक स्वाध्याय करें।

4- संघर्षात्मक उपाय - पिताजी को बोलिये जबतक आप नशा नहीं छोड़ेंगे तब तक मैं केवल एक वक्त भोजन करूंगा। अपने शरीर को कष्ट दूंगा और आपके लिए तप करूंगा। यदि आप एक माह बाद भी नशा नहीं छोड़े तो मैं दोनों वक्त खाना छोड़ दूंगा।

 *देखो इससे तुम्हारे पिता पर भावनात्मक दबाव पड़ेगा, और नशा छोड़ने में जुट जाएंगे।*

अब पिताजी को बोलें कि आप मेरे पिता है, मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ और आपके जीवन में नशे जैसे ज़हर को नित्य प्रवेश करता हुआ मैं सहन नहीं कर सकता। अतः इस हेतु मैं स्वयं को ही ही दंडित करूंगा और तब तक करता रहूंगा जबतक आप नशे से मुक्त नहीं हो जाते।

*घर मे अनशन, असहयोग आंदोलन बड़ा कारगर उपाय है। 100% काम करता है। कोई भी पिता पुत्र को भूखा नहीं देख सकता, उसके अंदर अतिरिक्त मनोबल जगता है।*

सुबह एक वक्त फल और जूस, और एक वक्त भोजन से महीनों बड़े आराम से रहा जा सकता है। हम सब 2400 से ज्यादा साधक इस वर्ष गुरुपूर्णिमा से श्रावणी पूर्णिमा तक व्रत हैं। देखो कुछ पाने के लिए कुछ तो डिफरेंट उपाय करना पड़ेगा। व्रत का पुण्यफ़ल नित्य पिता को व्यसनमुक्त होने हेतु जल लेकर दान करते चले।

व्रत के साथ जप में नित्य 3 माला गायत्री की और एक माला निम्नलिखित शिव मंन्त्र की जपें:-

*ॐ जूं स: माम् पिता पालय पालय स: जूँ ॐ*

आपकी माता जी भी 3 माला गायत्री मंत्र की एक्स्ट्रा अपने पति के लिए जपेंगी और साथ ही निम्नलखित मंन्त्र में पिता की जगह *पति* बोलकर यह मंन्त्र पढेंगी।

*ॐ जूं स: माम् पति पालय पालय स: जूँ ॐ*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday 20 August 2018

समस्या - *मेरी पुत्री ने विवाह से पूर्व किसी पूर्व विवाहित लड़के के प्रेम में पड़कर उससे सम्बन्ध बनाया। जिसकी हमें जानकारी नहीं थी। हमने उसका विवाह सम्भ्रांत परिवार में कर दिया। जहाँ हमारे वर्तमान दामाद को जैसे ही उसके पूर्व सम्बन्धो की जानकारी हुई, मेरी पुत्री द्वारा या अन्य माध्यम से मुझे नहीं पता। उसने मेरी बेटी को छोड़ दिया। पूर्व प्रेमी ने भी उससे पल्ला झाड़ लिया। मानती हूँ मेरी ही परवरिश में कोई कमी रही होगी और सँस्कार न दे पाई। लेकिन अब क्या करूँ? लड़की मरने पर उतारू है, मेरे पति गुस्से में आग बबूला है और घर मे तनावपूर्ण माहौल है। मेरी नींद उड़ गई है। मार्गदर्शन करें।*

समस्या - *मेरी पुत्री ने विवाह से पूर्व किसी पूर्व विवाहित लड़के के प्रेम में पड़कर उससे सम्बन्ध बनाया। जिसकी हमें जानकारी नहीं थी। हमने उसका विवाह सम्भ्रांत परिवार में कर दिया। जहाँ हमारे वर्तमान दामाद को जैसे ही उसके पूर्व सम्बन्धो की जानकारी हुई, मेरी पुत्री द्वारा या अन्य माध्यम से मुझे नहीं पता। उसने मेरी बेटी को छोड़ दिया। पूर्व प्रेमी ने भी उससे पल्ला झाड़ लिया। मानती हूँ मेरी ही परवरिश में कोई कमी रही होगी और सँस्कार न दे पाई। लेकिन अब क्या करूँ? लड़की मरने पर उतारू है, मेरे पति गुस्से में आग बबूला है और घर मे तनावपूर्ण माहौल है। मेरी नींद उड़ गई है। मार्गदर्शन करें।*

समाधान - आत्मीय बहन, समस्या बड़ी गहन और विकट है।

काम वासना का उद्वेग युवा लड़के लड़की सम्हाल नहीं पाते, इसका मुख्य कारण उनका आध्यात्मिक साधक न होना है। मन को साधने की एक मात्र प्रक्रिया है कि बच्चों को बचपन से गायत्री मंत्र जप-ध्यान-स्वाध्याय-प्राणायाम से जोड़ा जाय। इन माध्यमों से इंसान का मन पर नियंत्रण होता है, विवेक जागृत होता है तो वो स्वयं की कामनाओं-भावनाओं को नियंत्रित कर पाता है, किसी के बहकावे में नहीं आता। मन की गाड़ी की ड्राइविंग सिखा देंगे तो जीवन में ऐसी दुर्घटना बच्चो के साथ कभी न होगी।

📚 *आध्यात्मिक काम विज्ञान* , *मानसिक संतुलन* , *दृष्टिकोण ठीक रखें*, *निराशा को पास न फटकने दें* , *व्यवस्था बुद्धि की गरिमा* , *प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल* , *आवेश ग्रस्त होने से अपार हानि* , *जीवन लक्ष्य और उसकी प्राप्ति*, *आगे बढ़ने की तैयारी* - प्रत्येक युवाओं को अवश्य पढ़ा दें। अपने अन्य बच्चो को पढ़ा दीजिये उनसे यह भूल न हो।

अपने पति और अपनी पुत्री दोनों से बिना शर्माए बात कीजिये कि जो बुरा होना था, वो हो गया। बदनामी होनी थी हो गई। दामाद ने छोड़ दिया। जितना बुरा से बुरा हो सकता था वो हो चुका है। जितनी मानसिक यातना हमें मिलनी थी मिल गयी। अब इससे ज्यादा कुछ बुरा नहीं होगा। अब सब अच्छा होगा, यदि हम साथ मिलकर इस समस्या से उबरने की कोशिश करेंगे। हमारे पास दो रास्ते है या तो हम रोज रोएं लड़ाई झगड़े करें और दोषरोपन एक दूसरे पर करें। या मिल बैठकर समाधान निकाले। चुनाव जैसा होगा आगे की जिंदगी वैसी ही होगी। एक आशा का दीपक यह गहन अंधेरा मिटा देगा।

देखो, कोई भी ससुराल वाले जानबूझकर कर मख्खी नहीं निगलेंगे। यदि किसी भी तरह हमने इसे दोबारा वहां भेजा तो स्थिति बद से बदतर होगी और कुछ नहीं। अतः अब तलाक़ फाइल करो। नई जिंदगी शुरू करो।

बेटी को कहें, आप अपनी मनमानी का खामियाजा तो देख ही रहे हो। सब जगह बदनामी और अपमान हो रहा है। एक शादीशुदा से आपने प्रेम करते वक्त तुमने अपने विवेक से कम नहीं लिया, उसकी पत्नी के बारे में नहीं सोचा था, कभी सोचा था कि जो व्यक्ति अग्नि के समक्ष फेरे जिस लड़की से लिये उस पत्नी को धोखा दे रहा है तो भला उसे तुम्हें धोखा देने में कितना वक्त लगायेगा?

बेटी, मनुष्य से ग़लती होती है, लेकिन जो बार बार गलती करे उसे आदत कहते हैं गलती नहीं। अब तुम्हारे पास दो रास्ते हैं अपनी भूल का प्रायश्चित करो या पुनः नई गलती करने की करो तैयारी करो।

40 दिन में या दो महीने के अंदर सवा लाख गायत्री जप  का अनुष्ठान शुरू करो, जिससे हमें इस समस्या से उबरने का मार्ग मिले। साथ ही इस दौरान उपरोक्त साहित्य पढ़ो। तुम्हारी मानसिक स्थिति सुधरेगी। पुनः पढ़ाई करो और इस शहर से दूर दूसरे शहर में जॉब करो।

मेनका ने विश्वामित्र की तपस्या भंग कर दी थी, उस समय विश्वामित्र जी को तपस्वियों के समाज में बड़ा अपमान सहना पड़ा। सबने उनका मज़ाक उड़ाया। बड़े आये थे तपस्या करने, काम वासना तो सम्हलती नहीं और चले हैं तपस्वी बनने।

विश्वामित्र को जिस क्षण बोध हुआ कि उन्होंने भारी ग़लती कर दी है, उनके पास दो रास्ते थे कि ग्लानि में डूबकर आत्महत्या कर लेते या उस भूल को सुधार कर पुनः तपस्या करते।

उन्होंने भूल सुधारने का मार्ग चुना, अपनी कन्या को एक ऋषि को गोद में दे दिया। मेनका को विदा कर दिया । और पुनः तपस्या में लग गए। थोड़ा ज्यादा वक्त लग गया लक्ष्य प्राप्ति और गायत्री सिद्धि में, लेकिन हासिल कर ही लिया। आज उन्हें सब पूजते है, देवताओं के समान उन्हें सम्मान प्राप्त है।

अतः यदि तुम कुछ बन गयी, लोकसेवा में लग गयी। तो एक न एक दिन तुम्हारे श्रेष्ठ कार्यो में मिला सम्मान आज का अपमान भूला देगा। तुम्हारे नए सफ़ल व्यक्तित्व से नया अच्छा रिश्ता तुम्हे मिलेगा। तुम्हारे अच्छे कार्यो से तुम्हारे माता-पिता को भी पुनः सम्मान मिलेगा।

यदि तुम इस परिस्थिति में आत्महत्या करके मर गयी। तो आत्मा पर बोझ लेकर मरोगी और प्रेतावस्था में तड़पोगी। जब तक उम्र पूरी न होगी तब तक नया शरीर तुम्हे नहीं मिलेगा। साथ तुम्हारी मृत्यु से यह कलंक सदा हमारे माथे में लग जायेगा, सब बोलेंगे देखो ये वही है जिनकी लड़की को उसके पति ने छोड़ दिया था और आत्महत्या कर ली। अब तुम्हारे हाथ मे यह निर्णय है कि जीवनभर के लिए अपने माता-पिता को कलंक देना है, या माता-पिता के साथ मिलकर पुनः उज्ज्वल भविष्य बनाना है।

मैं और तुम्हारे पापा भी तुम्हारे लिए साधना करेंगे, तुम अब अपने भविष्य के पुनर्निर्माण में जुट जाओ। विश्वामित्र जी की तरह इसी जन्म में नए सफ़ल व्यक्तित्व के साथ सम्मान पाओ। पुनः हिम्मत जुटाओ और कुछ ऐसा करो कि हमे तुम पर गर्व हो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *मेरे पति अपने परिवार खानदान में सबसे ज्यादा पढेलिखे और उच्च कमाई करने वाले हैं। इस बात का उन्हें अत्यधिक घमंड है। मेरे विवाह को 17 वर्ष हो गए, मैं होम मेकर हूँ। ऐसा एक दिन भी नहीं होता जिस दिन वो अपने IITian होने का गुणगान न करें और मुझे मेरे मात्र BA होने के लिए ज़लील करने में कोई कसर छोड़े।

प्रश्न - *मेरे पति अपने परिवार खानदान में सबसे ज्यादा पढेलिखे और उच्च कमाई करने वाले हैं। इस बात का उन्हें अत्यधिक घमंड है। मेरे विवाह को 17 वर्ष हो गए, मैं होम मेकर हूँ। ऐसा एक दिन भी नहीं होता जिस दिन वो अपने IITian होने का गुणगान न करें और मुझे मेरे मात्र BA होने के लिए ज़लील करने में कोई कसर छोड़े। घर पर जिस दिन वो होते हैं मुझे चैन से बैठने तक नहीं देते, एक ग्लास पानी भी स्वयं उठ कर नहीं पीते, नौकरानी को कम से कम सैलरी तो मिलती है मुझे तो पिछले 17 वर्ष से केवल गालियां मिल रही है। सुख नाम की कोई चीज़ होती है मुझे पता नहीं, बच्चो को जब कुछ बोलो या समझाओ तो खुद बीच मे आकर मुझे पुनः जलील कड़वे वचनों से करके चुप करवा देते हैं। जब सुबह मैं पूजा के लिए नहा लूंगी तब ही उन्हे XXX के लिए परेशान करना होता है। मैं एक बार सुसाइड अटेम्प कर चुकी हूँ, लेकिन दुर्भाग्यवश बच गयी।यज्ञ और जप दोनों में विघ्न उतपन्न करते हैं। मुझे इस नर्क में जीने का हौसला दे दीजिए या जल्दी मृत्यु आ जाये ऐसी कोई साधना बता दीजिए।*

उत्तर - *आत्मीय बहन, मृत्यु अगर समस्त समस्या का समाधान होता तो सारी दुनियाँ मृत्यु का वरण कर लेती। मृत्यु के बाद केवल शरीर मरता है, प्रेतावस्था में तबतक रहना पड़ता है जबतक उम्र पूरी न हो इस जन्म की, मन नही मरता तो मन मे दुःख का कारण अत्यंत पीड़ा देता ही रहता है। अतः मृत्यु की इच्छा त्याग दो।*

पति अहंकारी के साथ कुसंस्कारी भी है, इसके लिए आपके सास-ससुर जिम्मेदार है उन्होंने एक भावसम्वेदना शून्य पढ़ा लिखा रोबोट बनाया दिया है आपके पति को, स्त्री का सम्मान करना नहीं सिखाया। उसके अहंकार को बढ़ावा दिया।

*कभी सोचा है 🤔 सर्प, कुत्ता, बिल्ली, गाय, भैंस, हिंसक जानवर के साथ कुशल किसान कैसे रह लेता है? अग्नि जैसी ज्वलंत वस्तु और चाकू जैसी धारदार वस्तु को कुशल गृहणी रोज उपयोग में लेकर भोजन पकाती है। सावधानी हटी और दुर्घटना घटी।*

हिंसक, अहंकारी और कड़वे बोल के कुसंस्कारी पति आपकी सासु मां और ससुर जी के बनाये हुए है। एक दिन में सुधार का कोई फार्मूला मेरे पास नहीं है। लेकिन *यदि धैर्यपूर्वक उन्हें पुनः भावसम्वेदना युक्त इंसान और अच्छा इंसान बनाना है, घर को नर्क से स्वर्ग बनाना है तो सवा साल का वक्त लगेगा। इसके लिए निम्नलिखित साधना अपनाएं:-*

1- जिस दिन आपके पति घर पर होंगे वो बैठकर पूजन स्थल पर वो आपको जप करने नहीं देते तो आप उस दिन केवल मौन मानसिक गायत्री जप करें। सोते वक्त पूर्णिमा के चाँद का ध्यान करें। जब वो घर से बाहर हों तब पूजन स्थल पर ऊनी वस्त्र पर बैठकर *10 माला गायत्री मंत्र की 1 माला गुरुदेब मंन्त्र और 1 माला चन्द्र गायत्री मंत्र की जप साधना पूर्णिमा के चाँद का ध्यान करके करें।*

2- *मानसिक विक्षिप्त व्यक्ति को कुशल नर्स जिस तरह पागलखाने में  हैंडल करती हैं*, उसकी बात को सही ठहराती है। उसी तरह *आप भी पति के गुणगान की निम्नलिखित चालीसा रट लें और सुबह शाम सुना कर उनके अहंकार की तुष्टि करें:-*

मैं कितनी सौभाग्यशाली हूँ कि मुझे पूरे खानदान का सबसे पढ़ा लिखा- IITian पति मिला है, यदि आप मुझे न मिलते तो मैं कुँवारी मरती। भूखों मरती। भगवान का लाख लाख शुक्र है, पिछले जन्म के पुण्यफ़ल स्वरूप  मेरा सौभाग्य जग गया और आप मिल गए। लेकिन आपने पिछले जन्म में जरूर कुछ पाप किये होंगे इसलिए मुझ जैसी अनपढ़, गंवार,  अयोग्य पत्नी आपको मिल गयी। कम से कम इस जन्म में कुछ पूण्य कर लीजिए जिससे अगले जन्म में आपको पत्नी के रूप में ऐश्वर्या राय सी खूबसूरत सर्वगुणसम्पन्न IITian लड़की मिले। इत्यादि इत्यादि😂😂😂😂 अच्छे एक्टर की तरह चेहरे के भाव भंगिमा बना के रोज यह नाटकीय अभिनय और संवाद आपको करना है। वो जलील करने के लिए आपको मुंह खोलें इससे पहले ख़ुद को जलील करना शुरू कर दें।

सुबह जब नहाने जाएं तो दो सेट कपड़े लेकर जायें, जब नहाके निकलें यदि परेशान आपको करने हेतु, पति की मानसिक पॉटी आये। तो उन्हें करने दें, पुनः नहा के बिना कोई प्रतिक्रिया दिए पुनः पूजा करने चली जाएं।

सैडिस्ट/कुसंस्कारी पति जानबूझकर पत्नी को परेशान करते है, अब यदि उनकी हरकतों से आप परेशान होना बंद कर दें तो वो परेशान हो जाते हैं। यदि वो गाली दें और आप प्रतिक्रिया न दें तो वो परेशान होते है।

*हमको कोई जब गाली में मान लो जब गधा बोलता है तब हम गधे नहीं बनते। हम गधे तब बनते है जब उस गाली को स्वीकार करके प्रतिक्रिया स्वरूप लड़ते हैं।*

3- *एक महान विद्वान ने कहा है कि मुझे कोई कभी हरा नहीं सकता, मेरे साथ किसी की लड़ाई 1 मिनट से ज्यादा नहीं चल सकती। क्योंकि ज्यों ही कोई मुझसे लड़ने आएगा मैं स्वयं हार स्वीकार कर लूँगा। हारे हुए को भला कौन हराएगा? मेरी खुशियों और आनन्द को कोई कैद नहीं कर सकता क्योंकि मेरे मन तक मैं किसी को पहुंचने ही नहीं देता। मेरे मन के विचारों पर केवल मेरा अधिकार है। मैं इसलिए आनन्दित रहता हूँ।*

*मूर्ख और अहंकारी से विवाद का कोई फ़ायदा नहीं, इन्हें इग्नोर करने में भलाई है। अतः वो हरायें कड़वे वचन बोलकर उससे पहले ही हार स्वीकार लो।*

पति को अपने मन मे एंट्री मत दो,  *मन मे एंट्री देने के दो द्वार होते हैं- 1 प्रेम द्वार और 2 घृणा द्वार।* घृणा द्वार बंद कर दो। उनसे घृणा करना छोड़ दो। उनके प्रति उदासीन हो जाओ। जैसे घर मे तमाम वस्तु होती है लेकिन वो हमारे मन मे प्रवेश तभी करती है जब उनके प्रति हम लगाव/प्रेम रखे या उन वस्तुओं से घृणा करें। घृणा द्वार बंद करने का एक मात्र उपाय है अपने पति को उनके कुकर्मो और दुष्ट व्यवहार के लिए क्षमा कर दें। *क्षमा करते ही आपका मन मे स्वर्ग निर्मित हो जाएगा।*

4- भगवान के समक्ष ध्यान में बैठिए, गुरुदेब माताजी या जो कोई भी आपके ईष्ट हों उनका गहरे नीले आकाश और हिमालय के दिव्य क्षेत्र में ध्यान कीजिये। और ध्यान में अपने पति की आत्मा का आह्वाहन कीजिये।

हे गुरुदेब-माताजी मुझे पता है पिछले जन्म में मैने इस आत्मा का जरूर कुछ बुरा किया था जिस प्रारब्ध के कारण मेरा यह शत्रु मुझे पति के रूप में मिला और पिछले 17 वर्ष से घोर नरक की यातना दे रहा है। इस आत्मा से मैं अपने पूर्व जन्मों के गुनाहों की क्षमा मांगती हूँ। मेरी और इसकी शत्रुता समाप्त कर दीजिए। हे गुरुदेव, हे माताजी मुझे अपनी शरण मे ले लीजिए। आज के बाद से *मैं इसे मित्रवत देखूं और यह मुझे मित्रवत देखे*। मेरे हृदय में बसी इसके प्रति घृणा निकाल दो, और इसके हृदय में बसी मेरे प्रति घृणा निकाल दो। मित्रता प्रदान करो।

5- *भोजन बनाते वक्त भाव कीजिये कि आप भगवान के लिए भोजन रूपी प्रसाद पका रही हैं*।
फिर बलिवैश्व यज्ञ कीजिये और बड़े प्यार से भोजन परसिये। जब पति पुनः किसी बात के कड़वे वचन बोलना शुरू करें आप भीतर से कर्ण बन्द करके ध्यान को पूर्णिमा के चाँद पर स्थिर कर दें। चन्द्र गायत्री मंत्र पढ़े।

6- जब भी वक्त मिले स्वाध्याय करें। पढ़ा हुआ चिंतन करो और फिर उसे डायरी में नोट करो।।

7- मानसिक सन्यास घर गृहस्थी पति सबसे ले लें, और भक्ति भाव मे भजन गुनगुनाते रहें। रोज रात को मौत और रोज सुबह नया जन्म। 17 वर्ष की यातना भूल जाएं। भाव करें कि अब आप शरीर भाव से ऊपर उठ चुके हो। आपके मन और आपकी आत्मा तक अब किसी की पहुंच नहीं है। अब आपको आनन्दित रहने से कोई नहीं रोक सकता।

शरीर घर में रहने दो, और मन से अब विश्व यात्रा पर निकल पड़ो। सुंदर सुंदर जगहों की कल्पना करो और उन जगहों पर अपने इष्ट का ध्यान करो। मन ही मन कल्पना जगत में दिव्य तीर्थ स्थलों का तीर्थाटन करें।

सवा वर्ष में सबकुछ बदल जायेगा, गुरुमय आनन्दमय सृष्टि की रचना आपके आसपास हो जाएगी।

गायत्री मंन्त्र - *ॐ भूर्भुवः स्व: तत सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात।*

चन्द्र गायत्री मंत्र - *ॐ क्षीर पुत्रायै विद्महे, अमृतत्वाय धीमहि। तन्नो चन्द्रः प्रचोदयात।*

गुरुदेब मंन्त्र - *ॐ ऐं श्रीराम आनन्दनाथय गुरुवे नमः ॐ*

प्रत्येक गुरुवार व्रत रखना है, चना गुड़ गौशाला में दान दे देना। नजदीकी गायत्री शक्तिपीठ में एक घण्टे सप्ताह में जरूर जाना जब भी वक्त मिले।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...