Sunday 27 February 2022

प्रश्न - दीदी हम गुरुकार्य कर रहे होते है, हमारी दिन चर्या में उसका समय fix भी हो गया होता है, फिर भी हमारे mission में परिजन हमे दूसरे कार्य मे जुड़ने को बोले तो क्या किया जाए ? कई बार 3-4 गुरुकार्य होते है जिसमे हमारी रुचि होती है, फिर भी हमे उसमे से 1 को ही चुनना पड़ता है ऐसे में सही निर्णय कैसे ले ?

 प्रश्न - दीदी हम गुरुकार्य कर रहे होते है, हमारी दिन चर्या में उसका समय fix भी हो गया होता है, फिर भी हमारे mission में परिजन हमे दूसरे कार्य मे जुड़ने को बोले तो क्या किया जाए ?

कई बार 3-4 गुरुकार्य होते है जिसमे हमारी रुचि होती है, फिर भी हमे उसमे से 1 को ही चुनना पड़ता है

ऐसे में सही निर्णय कैसे ले ?

कई बार गुरुकार्य के संकल्प का दबाव भी बढ़ जाता है, संकल्प लिया होता है  तो नींद भी नही आती और दूसरे सारे कार्य से पहले उन्हें priority देनी पड़ती है, जब तक वो खत्म ना हो तब तक चैन नही मिलता।


उत्तर- इस संसार में बहुत अलग तरह के फूल वनस्पति है। सबका महत्त्व है।


इसी तरह गुरुकार्य में शत सूत्रीय कार्यक्रम और सप्त आंदोलन है। यह पूरा प्रोजेक्ट है जो कि युगनिर्माण योजना व सतयुग की वापसी के लिए है। 


आप के पास 24 घण्टे ही है और आप एक इंसान भी है। आप स्वयं की योग्यता व रुचि देखिए कि किस गुरु कार्य मे आप ज्यादा कार्य कर सकते हैं। उसे चुन लीजिए और उसे पूरे समर्पण के साथ बेहतरीन कीजिये।


एक एक सैनिक एक ही पोस्ट अच्छे से सम्हाल ले तो भी देश की रक्षा हो जाती है। इसी तरह कोई एक गुरुकार्य भी आप बेहतरीन कर लें तो भी जीवन सार्थक है।


एक से अधिक गुरुकार्य तभी किये जा सकते हैं जब दोनो एक दूसरे से लिंक हों। जैसे सफाई आंदोलन और वृक्षारोपण दोनो साथ किये जा सकते हैं मग़र अलग अलग दिनों में.. एक ही दिन दोनो करने जाएंगे तो हो न पायेगा, किसी मे भी अच्छे से कार्य न होगा।


गुरुदेव ने अनेक साधनाएं बताई हैं। ऐसे ही आप कोई एक साधना कर रहे हैं और उसके साथ कोई दूसरी साधना भी करने की सलाह दे रहा है। यदि वह साधना उससे जुड़ी हुई हुई तो ठीक अन्यथा दोनो न हो पाएगी।


आप से बेहतर आपको कोई अन्य नहीं जानता। यदि समर्पण सच्चा है तो अंतरात्मा जो कहे उसे करें। लोग क्या कहेंगे उसकी परवाह न करें।


एक होता है रुचि और दूसरी चीज होती है योग्यता। तो गुरु कार्य चुनते समय अपनी योग्यता के आधार पर निर्णय लें न कि रुचि के अनुसार..


किसी की संगीत में रुचि है, मग़र योग्यता नहीं है, बालसंस्कार शाला चलाने की योग्यता है मगर उसमें रुचि नहीं है। तो उसे व्यर्थ में भजन-संगीत में अपना समय खर्च नहीं करना चाहिए। योग्यता क्योंकि बाल संस्कार शाला की है, तो वही करो।


दुसरे इंसानों के हाथ मे अपना रिमोट मत दो। सब निज योग्यता अनुसार तुम्हे काम बताएंगे, लेकिन कार्य का चयन दूसरे की योग्यता के आधार पर नहीं अपितु अपनी योग्यता के आधार पर करें।


काम बनेंगे भी, बिगड़ेंगे भी, आप तो बस यह देखो कि आपने अपना 100% दिया या नहीं? पूरी निष्ठा दिखाई या नहीं.. गुरुदेव आपकी निष्ठा व गुरुकार्य में लगाये समय-संसाधन को देखेंगे। सफलता व असफलता के परिणाम पर ईश्वर ध्यान नहीं देता, वह तो आपके नित्य प्रयास देखता है।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday 4 February 2022

प्रश्न - "आजकल जप करते समय मन स्थिर नहीं रहता । जप तो जिव्हा करती है पर मन पता नहीं क्या क्या सोचता रहता है व पता नहीं कहाँ कहाँ भाग जाता है ?? क्या करूँ, कैसे रूके यह सब ???"

 प्रश्न - "आजकल जप करते समय मन स्थिर नहीं रहता । जप तो जिव्हा करती है पर मन पता नहीं क्या क्या सोचता रहता है व पता नहीं कहाँ कहाँ भाग जाता है ?? क्या करूँ,  कैसे रूके यह सब ???"


उत्तर - मन व जल की प्रकृति है अनवरत बहना। ऊपर से नीचे की ओर...


 जल को उसके मूल रूप में नीचे से ऊपर ले जाने के लिए मोटर पम्प की जरूरत पड़ती है। जल को स्थिर रखने के लिए उसे शून्य तापमान के नीचे ले जाकर बर्फ के रूप में जमाकर उसे स्थिर किया जा सकता है। या उसका रूपान्तरण वाष्प के रूप में तप द्वारा किया जा सकता है।


मन को निर्विचार अर्थात शून्य तापमान के नीचे ले जाकर समाधिस्थ करने की विधि व्यवस्था है - समस्त अच्छी, बुरी, नेक, घृणित समस्त वासनाओं व इच्छाओं को मन से खत्म कर देना। बिना इच्छा-वासना(आग) के विचार का धुँआ उठेगा नहीं। यह गृहस्थ कामकाजी के लिए कठिन उपाय है।


मन को गहन भक्ति व कठिन तप की अग्नि से जल से वाष्प में रूपांतरित कर देना। साधक व सविता एक हो जाना, शिष्य व गुरु एक हो जाना। मन का अस्तित्व ही मिट जाना।सम्भव है लेकिन लंबा तप व पुरुषार्थ लगेगा।


तीसरा उपाय है, मन को मूल रूप से पूजन के वक़्त उसे उर्ध्वगामी बनाना। नीचे के केंद्र से ऊपर की केंद्र की ओर गमन कराना। आपको सङ्कल्प की बिजली और धारणा की मोटर उपयोग में लेनी होगी या अटूट गुरु पर श्रद्धा-विश्वास-समर्पण करके गुरुकृपा का मोटर उपयोग में ले। कुछ तैयारी पूर्व में करनी होगी। 


पूजन में बैठने से पहले एक पेन कॉपी लेकर महत्त्वपूर्ण बिंदु व प्लान जो मन मे आ सकते हैं उन्हें नोट कर लें। 


मन से बात करें कि कोई भी कार्य अच्छा हो या बुरा, भूल गयी हूँ या बहुत जरूरी हो। मेरे पूजन के इस समय से इस समय तक याद करवाने की आवश्यकता नहीं है। आज पूजन के वक्त की धारणा उगते सूर्य का ध्यान या गुरु चरणों का ध्यान या ग़ायत्री माता का ध्यान है। इस पर आपको स्थिर रहना है, कितना भी जरूरी काम क्यों न हो पूजन के वक्त याद दिलाने की जरूरत नहीं। यह पूर्व मन से बात आपको मदद करेगा। फिर गहरी श्वांस लेकर कम से कम 11 से 21 बार प्राणायाम करें। फिर जप मे बैठें, रोज की अपेक्षा मन कम भागेगा। यह निरंतर अभ्यास एक दिन सध जाएगा। 


ध्यान अक्रिया है, धारणा क्रिया है। बीज से पौधा जबरन नहीं निकाल सकते, बस उसे उगने योग्य नम वातावरण और उपजाऊ जमीन दे सकते हैं। दूध से दही ज़बरन हिला हिला कर नहीं जमा सकते, जामन डालकर स्थिर वातावरण देना पड़ता है। ऐसे ही मन में धारणा का जामन डालकर छोड़ दे, कुछ न करे बस साक्षी बन जाये।ध्यान को स्वतः घटने दें।


असम्भव कुछ भी नहीं, बस निरंतर अभ्यास की जरूरत है।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - किसी पराई स्त्री की सुंदरता पर मन मुग्ध हो और वासनात्मक विचार उसके प्रति बार बार उठें, तो उससे कैसे मुक्ति पाऊं? इन विचारों को कैसे आने से रोकूँ?

 प्रश्न - किसी पराई स्त्री की सुंदरता पर मन मुग्ध हो और वासनात्मक विचार उसके प्रति बार बार उठें, तो उससे कैसे मुक्ति पाऊं? इन विचारों को कैसे आने से रोकूँ?


उत्तर- विचार की गहराई में जाकर विश्लेषण करो, उस इच्छा-वासना को मिटा दो जो उस विचार को ट्रिगर कर रहा है।


एक पेज में वह इच्छा वासना लिखो, उसे पूजा के दीपक की लॉ में जला दो। स्वयं से कहो संकल्पित होकर मैं इसका त्याग करना चाहता हूँ, हे परमात्मा मुझे शक्ति व साहस दो।


उदाहरण - पराई स्त्री को देखकर या बिन देखे वासनात्मक विचार जन्म ले रहे हैं। अपनी वासना को पहचानो और स्वयं पर कार्य करो कि क्या हाड़ मांस रक्त व मलमूत्र भरे किसी शरीर के बाह्य आवरण पर मुझे आकर्षित होना चाहिए? क्या मुझे समझ नहीं है कि यह गलत वासनात्मक विचार है? मुझे मेरे विवाह के बाद या भविष्य में जिससे विवाह होगा उसके अतिरिक्त सभी स्त्रियों को मातृवत देखना है यह मेरा संस्कार है। सभी पराई स्त्रियां मेरे लिए जगन्माता का स्वरूप है, हे जगन्माता मुझे प्रत्येक पर स्त्री में आपके दर्शन हो और मेरी वासना मिट जाए ऐसी कृपा करें।मेरे अंदर आपके सन्यासी बालक की दृष्टि दे दो।मेरी मदद करो।


स्वयं को पत्र लिखो, और बार बार स्वयं को समझाओ।


उस स्त्री को दुर्गा ग़ायत्री माता मानकर उसके चरणों की मौन मानसिक पूजन करो। उसमें माता का रूप कल्पना करो। बार बार माता भाव जगाने की प्रार्थना माता जगतजननी से करो। जरूर तुम्हारे मनोभाव बदलेंगे, वासना उसके प्रति मिटेगी। वासनात्मक विचारों से मुक्ति मिलेगी।


ध्यान, सन्यास व वैराग्य के भाव निरंतर अभ्यास से तुम्हारे संस्कार बनेंगे। फिर ऐसी समस्या कभी नहिं जन्म लेगी।


💐श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Thursday 3 February 2022

कविता - हे जगतगुरु गुरुदेव, मुझे चाहिए बस तेरा साथ..

 हे जगतगुरु गुरुदेव, 

मुझे चाहिए बस तेरा साथ..


बन मेरे बुद्धिरथ के सारथी,

इस जीवन युद्ध मे बस तुम रहो मेरे साथ,

मत उठाओ हथियार अपने हाथ,

मत लड़ो मेरे लिए तुम, बस रहो मेरे साथ...


ज्ञानामृत पिलाते रहना,

मार्गदर्शन देते रहना,

मुझे सुख - दुख की नहीं परवाह,

मुझे किसी भोग की नहीं चाह,

मत करो मेरा दुःख दूर, बस रहो मेरे साथ...


मुझे कभी अकेला मत छोड़ना,

मेरे साथ सदा मित्र बन रहना,

मेरे बुद्धिरथ के सारथी बनना,

मुझे बलपूर्वक धर्मपथ पर चलाना,

मत करो मेरा कोई काम, बस रहो मेरे साथ...


मुझे रिद्धि सिद्धि का लालच मत देना,

अपने से दूर करने का कोई बहाना मत देना,

मैं भटकूँ तो सम्हाल लेना,

अपने चरणों की निर्मल भक्ति देना,

मत दो मुझे तुम स्वर्ग, बस रहो मेरे साथ...


💐श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - मैं इतनी पूजा करता हूँ फिर भी मेरा दुःख दूर नहीं हो रहा, पता नहीं कब समस्त दुःख दूर होंगे? मुझे आजकल बहुत गुस्सा भी आता है।

 प्रश्न - मैं इतनी पूजा करता हूँ फिर भी मेरा दुःख दूर नहीं हो रहा, पता नहीं कब समस्त दुःख दूर होंगे? मुझे आजकल बहुत गुस्सा भी आता है।


उत्तर - सुख व दुःख दिन व रात की तरह है, जो पृथ्वी पर जीवित है उसे दिन व रात की तरह सुख व दुःख भी झेलना पड़ेगा। समस्त दुःखों से मुक्ति के लिए पृथ्वी ग्रह का त्याग करना पड़ेगा, व समाज से दूर जाना पड़ेगा। दूसरा कोई उपाय नहीं। 


भगवान कृष्ण अर्जुन के साथ थे,मग़र उन्होंने अर्जुन से यह नहीं कहा कि तुम माला जपो हम तुम्हारा युद्ध करेंगे।


उन्होंने कहा, उठो और अपना युद्ध स्वयं लड़ो।


यह जीवन तुम्हारा युद्ध क्षेत्र है, अपने जीवन के दुःखों से युद्ध स्वयं तुम्हे करना है। अतः निराश न होकर उठो और बुद्धि प्रयोग से युद्ध करो और जीवन की समस्याओं के समाधान ढूँढो। जीवन को खेल की तरह खेलो, खिलाड़ी मानसिकता से जियो।


ईश्वरीय उपासना से प्राणों में बल मिलता है व जीवन के प्रारब्ध का शमन होता है। बुद्धिबल मिलता है।


भगवान व गुरु से प्रार्थना करो, कि हे प्रभु जीवन के दुःखों से निपटने की शक्ति व सामर्थ्य दो। बुद्धिबल दो जिससे जीवन को बेहतरीन व व्यवस्थित जी सकूं। मुझे मेरे जीवन के संघर्षों को हैंडल करने की शक्ति दो।


 सरसो में तेल होता है लेकिन बिना प्रयास मिलता नहीं। वैसे ही गुरु व ईश्वर साथ होता है मगर बिना प्रयास महसूस होता नहीं।


 सुख व दुःख के निर्माता हम स्वयं है, जैसे मकड़ी जाला बुनती है वैसे ही हम सब सुख व दुःख बुनते है। मकड़ी अपना जाला निगल के मिटा देती है, वैसे ही हम भी अपने सुख व दुःख को मिटाने की क्षमता रखते है। जरूरत है स्वयं की अंनत शक्तियों से जुड़ने की, गहन ध्यान में स्वयं को जानने की।


तुम्हारी व्यग्रता व बेचैनी यह बता रही है जप व यज्ञ तो हो रहा है मगर ध्यान नहीं हो रहा। स्वयं को जानने व स्वयं की असली ताकत उभारने का प्रयत्न अधूरा है।


 तुम सर्वसमर्थ सत्ता हो स्वयं के भाग्य विधाता हो। तुम्हारा भविष्य तुम्हारे ही हाथ मे है।


 गुस्सा करो मग़र होश में, गुस्से के कारण का एक जज की तरह विश्लेषण करो।


गुस्सा धुँआ है, गहराई में छुपी कोई इच्छा - वासना की आग है। उसे निकालना पड़ेगा।। तुम्हारा क्रोध यह कहता है कि अभी भी तुम दुसरो से नियंत्रित हो, स्वयं पर नियंत्रण नहीं।


त्वरित मन की राहत व बेचैनी शांत करने के लिए चन्द्र ग़ायत्री मन्त्र का जप पूर्णिमा के चांद के ध्यान करते हुए करो।


दूसरे की गलतियां , उनके उकसाने पर तुम भड़क रहे हो, अर्थात पशुवत कोई प्रवृत्ति भीतर है। स्वयं पर काम करो , ध्यान व स्वाध्याय करो।


स्वयं पर नियंत्रण रखो, तुम इंसान हो पशु नहीं। अतः अपने पर नियंत्रण करो, react - प्रतिक्रिया की जगह response - प्रति उत्तर सोचविचार कर देने का अभ्यास करो।


ज्यों ज्यों समझ बढ़ेगी, ध्यान तुम्हारे भीतर घटेगा, तुम योग्य समर्थ बनोगे। त्यों त्यों तुम जीवन को सम्हालने व हर समस्या के समाधान में सक्षम बनोगे। 


💐श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 2 February 2022

प्रश्न - *हमारे अंतर्मन में क्या क्या स्टोर है? क्या भरा है? कैसे जाने? अंतर्मन की सफाई कैसे करें?*

 प्रश्न - *हमारे अंतर्मन में क्या क्या स्टोर है? क्या भरा है? कैसे जाने? अंतर्मन की सफाई कैसे करें?*


उत्तर- मोटे तौर पर मन के दो भाग है, बाह्य चेतन मन (10%) जिसके प्रति आप अवेयर हैं। दूसरा भाग अंतर्मन (90%) जिसके प्रति आप अवेयर नहीं है।


स्मार्टफोन में आप सारे मेसेज पढ़ो या न पढ़ो, सारी इमेज देखो या न देखो, सब आप के फोन में सेव हो रही है। कुछ दिन याद रहा, फिर आप उनके बारे में भूल जाओगे। जब एक दिन समय निकालकर फ़ोन का पुराना डेटा चेक करोगे तब ही पुनः जानकारी ताज़ा होगी कि मेरे फोन की मेमोरी कार्ड में क्या क्या भरा है? 


अब अंतर्मन की मेमोरी कार्ड तो जन्म जन्मांतर का डेटा स्टोर करके बैठा है, नित्य के अनुभव स्टोर भी कर रहा है, मग़र मात्र वही अनुभव स्टोर करेगा जिससे आपकी भावनाएं - प्रेम, ईर्ष्या, क्रोध, घृणा, सम्मान, अपमान जुड़ा होगा। अंतर्मन कोई बात बिना भावनात्मक जुड़ाव के स्टोर करने में असमर्थ है। अंतर्मन की सफाई के वक्त यह भावनात्मक जुड़ाव विवेक और होश से तप से हटाना पड़ता है, तब सफाई होती है।


जितनी काली कड़ाई उतना ही डिटर्जेंट और मेहनत सफाई में लगेगा।जितने अधिक अंतर्मन में जमें कुसंस्कार उतना अधिक तपबल और ध्यान की मेहनत सफाई में लगेगी।


चेतन मन सांसारिक जीवन के कर्तव्य, उत्तरदायित्व व उद्देश्य के साथ उलझ कर दुखी भी रहता है, जो भी अच्छे बुरे अनुभव करता है वह अंतर्मन में भी स्टोर होता रहता है। कुछ दिन बाद चेतन मन से तो वह हट जाता है लेकिन अचेतन में भरा रहता है। कुछ उत्तेजना (ट्रिगर) मिलने पर एक्टिवेट हो जाता है। परंतु यदि ध्यान द्वारा होश में भीतर जो अंतर्मन होता है, वहां तक पहुंच जाएं और उसकी सफाई कर दें तो सारे दुखों का नाश हो जाता है। अंतर्मन में पहुंच जाना ही मुक्ति है, मोक्ष है। बाह्य मन हमें अंतर्मन तक पहुंचने से रोकता है। इसलिए बाह्य मन को अपनी सङ्कल्प शक्ति व अभ्यास द्वारा विवेक पूर्ण ज्ञान से वश में करना पड़ता है।


वैसे दु:ख-सु:ख तो केवल मन के नाटक हैं। आत्मा तो हमेशा आनंदित रहती है। इसलिए यदि अंतर्मन की सफाई कर दिया। अंतर्मन में अपने होश से सम्बंध स्थापित कर दिया फिर  सांसारिक दु:ख-सु:ख से कोई फर्क नहीं पड़ता। न अपमान का न सम्मान का, न किसी योग का न किसी के विछोह का। इसी स्थिति का नाम परमानंद को प्राप्त करना है अर्थात परमात्मा को प्राप्त करना है।


तुम्हारे भीतर तुम ही प्रवेश कर सकते हो, कोई चिकित्सक या अध्यात्मविद आपका मार्गदर्शन कर सकता है, लेकीन आपके अंतर्मन में प्रवेश कर उसकी सफाई नहीं कर सकता। अंतर्मन में प्रवेश कठिन है मगर असम्भव नहीं, निरंतर ध्यान व अभ्यास से अंतर्मन में क्या भरा है जान भी सकते हैं एवं कचरा साफ भी कर सकते हैं। नई शुभ आदतें व विचार डाल भी सकते हैं। स्वयं को पूर्णता से जानना है तो निज अंतर्मन को जानो।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *नमस्ते दीदी, कुछ विचार ऐसे होते है जो हम नही लाते वो अनायास ही आते है और समझ नही आता कि ऐसे विचार क्यो आ रहे है जिसमे दूसरो के प्रति बुरे भाव, ईर्ष्या, कटुता होते है जबकि वास्तव में हम तो ऐसा नही चाहते है और न सोचना।*

 प्रश्न - *नमस्ते दीदी, कुछ विचार ऐसे होते है जो हम नही लाते वो अनायास ही आते है और समझ नही आता कि ऐसे विचार क्यो आ रहे है जिसमे दूसरो के प्रति बुरे भाव, ईर्ष्या, कटुता होते है जबकि वास्तव में हम तो ऐसा नही चाहते है और न सोचना।*


उत्तर - धुँआ तभी उठेगा जब कहीं आग होगी। ऐसे विचार तभी उठते हैं जब कहीं न कहीं स्वार्थ बाधा का अनुभव होता है या हम उस व्यक्ति के प्रति कुछ अपेक्षाएं, चाहत रखते है जो पूरी नहीं होती।


उदाहरण - हम चाहते हैं सामने वाला हमारा सम्मान करें, और वह नहीं करता।


अब अंतर्मन में सम्मान पाने की चाहत है, मग़र चेतन मन को आपके यह चाहत ज्ञात नहीँ। सामने वाले व्यक्ति ने अपने स्वभाव अनुसार आपको सम्मान नहीं दिया और आप के अंदर उसके विरूद्ध विचार उमड़ने लगे। आप समझ ही नहीं पा रहे कि ऐसे विचार ईर्ष्या कटुता के क्यों आ रहे हैं, जिसे मैं नहीं चाहता। क्योंकि विचार उठने के बाद आप उन विचारों का विश्लेषण चेतन (10%) बाह्य बुद्धि से कर रहे हैं। लेक़िन उन विचारों को जन्म देने वाले अचेतन मन (90%) की चाहतों को आपकी बाह्य बुद्धि भूल चुकी है।


इन विचारों से मुक्ति हेतु अचेतन में उतरिये, ध्यान की गहराई में जाइये और उस व्यक्ति से जुड़ी चाहत, अपेक्षा या प्रिय/अप्रिय घटनाक्रम जो आपकी अचेतन मन की यादाश्त में छुपा हुआ है, उसे समझिए व उसे ध्यान में बाहर फेंकिये। बार बार मन को कम से कम 100 बार यह बात बोलिये इस व्यक्ति से मुझे कुछ नहीं चाहिए और इससे जुड़ी प्रिय/अप्रिय बात का हमपर कोई प्रभाव नहीं। 


मैं इसे माफ़ करता हूँ और इसकी आत्मा से मैं माफ़ी मांगता हूं। इस आत्मा के साथ लेन-देन यादों का समाप्त करता हूँ।


जब अंतर्मन क्लियर होगा, तो उससे सम्बंधित कोई विचार नहीं उभरेगा। न ईर्ष्या और न प्रेम, आप उदासीन हो जाओगे।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *“पोस्टपार्टम डिप्रेशन” क्या होता है? क्या है इसका इलाज!*

 प्रश्न - *“पोस्टपार्टम डिप्रेशन” क्या होता है? क्या है इसका इलाज!*


उत्तर- बच्चे  के जन्म के बाद आपके जीवन में एक आधारभूत परिवर्तन आता है और आपको कई प्रकार के नए अनुभव होते हैं. कई महिलाओं के लिए यह चिंता और अवसाद का कारण भी बन जाता है.

 

“पोस्टपार्टम डिप्रेशन” इस शब्द से भारत में अभी कुछ ही लोग परिचित है लेकिन इस गंभीर समस्या से अधिकतर लोग गुजरे हैं और गुजरते हैं. अमेरिका के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) के अनुसार डिलीवरी के बाद चार में से एक महिला को पोस्टपार्टम डिप्रेशन हो जाता है, इसे पोस्ट डिलीवरी स्ट्रेस भी कहा जाता है. बच्चे के जन्म के बाद आपके जीवन में एक आधारभूत परिवर्तन आता है और आपको कई प्रकार के नए अनुभव होते हैं. कई महिलाओं के लिए यह चिंता और अवसाद का कारण भी बन जाता है. नई जिम्मेदारियों के कारण कई मानसिक और शारीरिक उतार-चढ़ाव आते हैं. ये ज्यादातर डिलीवरी के 2-3 दिन बाद से शुरू होकर 1-2 हफ्ते तक चलते हैं. लेकिन कुछ महिलाओं में यह तनाव, डिप्रेशन का रूप ले लेता है. पोस्टपार्टम डिप्रेशन कोई कमजोरी या पर्सनैलिटी में कोई कमी नहीं है, इसका संबंध सिर्फ एक बच्चे को जन्म देने की जटिलता से है. शुरुआत में तो पोस्टपार्टम डिप्रेशन को ज्यादातर लोग बेबी ब्लूज समझ लेते हैं.

👉🏻👉🏻👉🏻 *"पोस्टपार्टम डिप्रेशन” के लक्षण*

👉🏻 *स्वयं की उपेक्षा*

अपर्याप्त आहार, नींद में कमी, नशीली दवाओं के दुरुपयोग और थायरॉइड हार्मोन के कम स्तर जैसे शारीरिक कारक भी पोस्टपर्टम डिप्रेशन का कारण बन सकते हैं. 

👉🏻 *शारीरिक बदलाव*

बच्चे के जन्म के बाद महिलाओं में एस्ट्रोजन (Estrogen)  और  प्रोजेस्टेरोन (Progesterone)  हॉर्मोन्स के स्तर में अधिक गिरावट के कारण यह तनाव होते हैं. थायरॉयड ग्रंथि से निकलने वाले हॉर्मोन्स का लेवल भी गिरने से तनाव,, थकान और सुस्ती महसूस होती है. डिलीवरी के बाद स्ट्रेच मार्क्स, बालों का झड़ना, वजन बढ़ना आदि भी महिला में तनाव बढ़ाते हैं.


👉🏻 *भावनात्मक अस्थिरता*

गर्भावस्था के दौरान और उसके बाद की स्वास्थ्य समस्याओं के कारण बीमारी, सामाजिक अलगाव, या अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से तनाव संभव है, जिसके कारण भावनात्मक अस्थिरता आ सकती है. 


👉🏻  *“पोस्टपार्टम डिप्रेशन” के उपाय*

👉🏻 *अनुभवी लोगों से सलाह लें*

अगर आप पहली बार माता - पिता बने हैं तो आपके पास किसी तरह इसका कोई अनुभन नहीं होगा. इसलिए ऐसे लोगों से सलाह करें जो पहले माता-पिता बन चुके हैं. वो आपको कुछ अच्छी सलाह दे सकेंगे. जरूरी नहीं कि आप माता-पिता बनने के बाद पोस्टपार्टम डिप्रेशन के शिकार हो जाएंगे या हो गए हों लेकिन अगर आप किसी अनुभवी से बात कर लेंगे तो आपका मन हल्का हो जाएगा. 


पोस्टपार्टम डिप्रेशन माता को भी हो सकता है और पिता को भी हो सकता है। अतः सावधानी से और एक दूसरे को सपोर्ट करके आप इस डिप्रेशन से बाहर आ सकते हैं।


👉🏻 *पोस्टपार्टम डिप्रेशन से उबरने के आध्यात्मिक मनोवैज्ञानिक उपाय*


👉🏻 सबसे पहले स्वीकारिये कि थोड़ी असुविधा कभी कभी ज्यादा असुविधा होती है और जिम्मेदारी बढ़ती  है जब नया मेहमान बच्चा घर में आता है। एकल फ़ैमिली और जॉब करने वाले दम्पत्ति के लिए तूफ़ान सा अनुभव होता है। अतः इस तूफ़ान को सम्हालने के लिए आपका शांत व धैर्यवान होना अति अनिवार्य है।


👉🏻 शुभ मंत्रों का जप ग़ायत्री मन्त्र व महामृत्युंजय मंत्र जप मन ही मन पहले करें जब ख़ुद खाये या बच्चे को कुछ खिलाये पिलाएं। इससे सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण होगा। दिन में एक बार धीमी आवाज में ग़ायत्री चालीसा या हनुमान चालीसा बच्चे को जरूर सुनाए व खुद भी सुनें।


👉🏻 जब भी थोड़ा वक्त मिले गहरी लंबी स्वांस ले स्वयं को भरोसा दिलाये कि इस नई जिम्मेदारी को आप अच्छे से सम्हाल लेंगे। आप भी छोटे थे तो ऐसे ही थे, कुछ समय की बात है बड़े होते ही यह भी स्वयं को सम्हाल लेगा। सुबह उगते सूर्य का ध्यान करें और शाम को पूर्णिमा के चांद का ध्यान करें।


👉🏻 मन को सम्हालने के लिए कुछ महापुरुषों की जीवनियां व प्रेरणादायक घटनाक्रम पढ़े। बच्चा समझे या न समझे उसे वह अपनी भाषा मे सुनाए। इससे बच्चा आपसे कनेक्ट होगा। आप का गुस्सा बच्चे के गुस्से को बढ़ाएगा। आपकी मन की शांति बच्चे को शांत रखेगी। बच्चे का रिमोट कंट्रोल नियंत्रण करने के लिए न ढूढे, अपितु धैर्य से समाधान ढूंढे।


👉🏻 स्वयं को अच्छा महसूस कराने के लिए कुछ स्वयं के लिए भी करें। थोड़ा स्वयं के आनन्द के लिए कुछ करें, अपनी पसन्द का कोई कार्यक्रम देखे, कुछ अपनी पसन्द का खाएं। बच्चे के साथ साथ अपना भी ख़्याल रखें।


👉🏻 बच्चे के लिए एक माँ व एक पिता बनकर सोचें तो एक साथ मिलकर सम्हालना आसान हो जाएगा। यदि स्वयं को स्त्री-पुरुष समझेंगे व एक दूसरे के ऊपर आरोप लगाएंगे तो झगड़ा होगा, डिप्रेशन बढ़ेगा, व समस्या बढ़ेगी। अतः थोड़ी समझदारी दिखाएं।


👉🏻 ईश्वर से प्रार्थना करें, कि हे ईश्वर हमें शक्ति, सामर्थ्य व धैर्य दो जिससे हम इस नए जीव जो सन्तान रूप में जन्मा है, उसका अच्छे से लालन पालन कर पाएं।


👉🏻 यदि कभी बहुत डिप्रेशन में आत्महत्या का विचार आये तो अपने मित्रगण को तुरंत फोन कर बात करें। पुनः विचार करें। यदि फिर भी डिप्रेशन नहीं जा रहा तो सोमवार से शुक्रवार को सुबह 10 से 12 के बीच निःशुल्क हमें फ़ोनकर आध्यात्मिक मनोवैज्ञानिक उपचारार्थ सलाह लें -( 9810893335- श्वेता चक्रवर्ती). एक दिन पूर्व व्हाट्सएप करके अपॉइंटमेंट जरूर ले लें।


थोड़ी सी समझदारी से बड़ी विपत्ति टल सकती है। यह नई जिम्मेदारी मातृत्व व पितृत्व की खुशी खुशी भी निभ सकती है।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 1 February 2022

कविता - ऐसी कृपा करो जगजननी, तुम्हारे रँग में मैं रँग जाऊं,

 ऐसी कृपा करो जगजननी,

तुम्हारे रँग में मैं रँग जाऊं,

तुम सङ्ग तुम सी बन जाऊं,

यज्ञ में समिधा सी आहूत हो जाऊं...


मेरे नेत्र तुम्हारी प्रेरणा से सत्य देखें,

कर्ण तुम्हारी प्रेरणा से सत्य सुनें,

मुंह तुम्हारी प्रेरणा से सत्य बोले,

हृदय तुम्हारी प्रेरणा से सत्य धारण करें...


श्वांस - श्वांस अजपा ग़ायत्री जप करे,

धड़कन - धड़कन ग़ायत्री भजन करें,

कण-कण में व्याप्त अग्निवत सविता में,

हर कर्म यज्ञ में आहुतियां प्रदान करे...


ऐसी कृपा करो जगजननी,

मैं मिटकर तू ही शेष बच जाए,

जीवन का प्रत्येक क्षण तेरे काम आए,

मरकर चेतना तुझमें ही समा जाये...


💐श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...