Saturday 18 September 2021

हे गुरुदेव, छू कर मेरे मन को, तेरे विचारों ने दिया मुझे सहारा,

 हे गुरुदेव,

छू कर मेरे मन को,

तेरे विचारों ने दिया मुझे सहारा,

पढ़कर तेरा लिखा साहित्य, 

बदल गया मेरा जीवन सारा,

मन का मिट गया अंधेरा, 

मानो रौशन हो गया जग सारा,

छू कर मेरे मन को, 

तेरे विचारों ने दिया मुझे सहारा।


छू कर मेरे मन को, 

तेरे विचारों ने दिया मुझे सहारा

बदला स्वार्थकेन्द्रित नजरिया, 

लगे  प्यारा जग सारा

छू कर मेरे मन को, 

तेरे विचारों ने दिया मुझे सहारा

जगी भाव संवेदना, 

लगे प्यारा जग सारा

छू कर मेरे मन को, 

तेरे विचारों ने दिया मुझे सहारा।


तू अब जो कहे, 

जीवन भर तेरे लिये मैं वही अब करूँ

तेरे दिखाए रास्ते पर,

बस चलता चला जाऊँ,

तेरे बताए अनुशासन में,

जीवन ढालता चला जाऊं,

मेरे शिष्यत्व में,

तेरी झलक पाये जग सारा..

छू कर मेरे मन को, 

तेरे विचारों ने दिया मुझे सहारा

जगी आत्मीयता,

लगे प्यारा जग सारा...

छू कर मेरे मन को, 

तेरे विचारों ने दिया मुझे सहारा।


तेरे कदमों के निशान के पीछे पीछे,

अनवरत चलूं, 

सदा गुरु कार्य करूँ..

पीड़ित मानवता की सेवा में, 

यह जीवन अर्पित कर दूँ, 

समर्पित कर दूं..

तू जो चाहे, अब वही मेरे जीवन मे हो,

तुझ पर ही जीवन वार दूँ..

छू कर मेरे मन को, 

तेरे विचारों ने दिया मुझे सहारा..

जगी आत्मीयता, 

लगे प्यारा जग सारा..

छू कर मेरे मन को,

तेरे विचारों ने दिया मुझे सहारा।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती ✨विचारक्रांति

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

चेतना की शिखर यात्रा

 

*चेतना की शिखर यात्रा*


*बिन पात्रता के कैसे करोगे,*

*चेतना की शिखर यात्रा।*

*बिन साधना के कैसे पूरी करोगे,*

*जीवन की सुखमय यात्रा।*


*ख़ुद से कुछ प्रश्न पूँछ लो,*

*ख़ुद से सच्ची बातें कर लो।*

*ख़ुद से मिलने के लिए,*

*रोज़ थोड़ा वक्त निकाल लो।*


*ख़ुद के होने की वज़ह ढूढ़ लो,*

*कौन हो! कहाँ से आये! ये जान लो।*

*जब जन्में थे तब कोई नाम नहीं था,*

*उस समय का वज़ूद पहचान लो।*


*अहंकार को गला लो,*

*सुविचार को अपना लो।*

*दुर्भाव को उखाड़कर,*

*सद्भाव को अपना लो।*


*खाली हाथ आये थे,*

*लाखों दुआएं लेके जाआगे।*

*रोते हुए आये थे,*

*हँसते मुस्कुराते हुए जाओगे।*


*मरकर भी लाखों दिलों की,*

 *धड़कन बन जाओगे।*

*जब सद्विचारों औ सत्कर्मों के सहारे,*

*चेतना की शिखर यात्रा कर पाओगे।*


श्वेता चक्रवर्ती - *विचारक्रांति*

Thursday 9 September 2021

यह 'अघमर्षण' क्या है?

 प्रश्न - ब्रह्मसंध्या के आरंभिक पंचकोशों की क्रिया में 'अघमर्षण'....लिखा है...

यह 'अघमर्षण' क्या है?


उत्तर - अघमर्षण अर्थात चित्त का मैल उतारना व पापों से मुक्ति की प्रार्थना करना व पवित्र होने का भाव

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ऋग्वेद के  दशम मण्डल में माधुच्छन्दस ऋषि के 

इस अघमर्षण सूक्त का महत्व यह  है कि सन्ध्या-

काल में प्राणायाम के बाद इसी सूक्त के विनियोग 

का विधान है ।  इस सूक्त के मंत्रोच्चार के बाद ही 

सूर्य को अर्घ्य देने की  पात्रता बताई गई है। अघम-

र्षण का अर्थ  ही है - पाप से निवृत्ति । मार्जन की 

प्रक्रिया  में इस सूक्त की  ऋचाओं के विनियोग के 

पीछे  तथ्य  यह है  कि सृष्टि के आरम्भ को स्मरण 

करना हमारी संस्कृति में अतिपावन माना गया है ।


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ऋतं च सत्यं चाभीद्धात्तपसोऽध्यजायत।

ततो  रात्र्यजायत  तत:  समुद्रो  अर्णव:।।

समुद्रादर्णवादधि   संवत्सरो    अजायत।

अहोरात्राणि विदधद्विश्वस्य मिषतो वशी।।

सूर्याचन्द्रमसौ धाता  यथापूर्वमकल्पयत्।

दिवं   च   पृथिवीं   चान्तरिक्षमथो  स्व:।।

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ऋग्वेद.10.190.1-3.

Tuesday 7 September 2021

प्रश्न - जब हमारा किसी ने दिल दुखाया हो , जिससे हम बहुत प्यार करते हो आपने उससे उतना ही प्यार किया यह जानते हुए भी कि आप उनके बराबर नहीं है और ना पैसे में फिर भी आपने उन्हें पूरा सम्मान वा सच्चा प्यार दिया .

 प्रश्न - जब हमारा किसी ने दिल दुखाया हो , जिससे हम बहुत प्यार करते हो 

आपने उससे उतना ही प्यार किया यह जानते हुए भी कि आप उनके बराबर नहीं है और ना पैसे में फिर भी आपने उन्हें पूरा सम्मान वा सच्चा प्यार दिया .


फिर एक दिन उनके बीच सब बातचीत बंद हो गई क्योंकि उन्होंने आपका दिल दुखाया।।


 फिर अचानक उन्होंने आप के पास दोबारा आने की कोशिश कर रहे हो , यह जानते हुए कि आप उनके बराबर नहीं है . किसी भी चीज में।।



इस स्थिति में हमें क्या करना चाहिए?🙏


उत्तर-  याद रखो, प्रेम के बदले प्रेम ही मिले यह सच्चे प्रेम में प्रेमी परवाह नहीं करते। वह तो अपने प्रेम के लिए सर्वस्व त्यागने को तैयार रहते हैं।


वह प्रेम ही क्या जिसमे त्याग व देने का भाव न हो, तराजू लेकर बदले में कुछ पाने की चाह में न प्यार में होता है न ही भक्ति...


तराजू लेकर तो मात्र व्यापार होता है।


प्रेम में एक दूसरे को सम्मान देना अनिवार्य है व जो जैसा है उसे वैसा स्वीकार किया जाता है, प्रेम की नींव सम्मान व एक दूसरे को समझने में होती है।


आज की जनरेशन फिल्मी प्रेम करती है व मात्र हार्मोनल चेंज व एक दूसरे को अच्छा लगना ही प्रेम मान लेती है। एक दूसरे से मनचाहा व्यवहार व प्रेम चाहती है, जो प्रेम के मूल सिद्धांत ही नहीं। 


प्रेम चांद से किया जा सकता है, लेक़िन चांद को पाने के लिए विधिव्यवस्था अपनाना होगा, रॉकेट से वहां पहुंचना होगा।


अब यह समझो, कि प्रेम करना अलग चीज है व उसे पाना अलग चीज है।


कलेक्टर के पद से प्रेम करना अलग चीज है, मग़र कलेक्टर के पद व कुर्सी को हासिल करना अलग चीज है। कलेक्टर बनने के लिए पढ़ना पड़ेगा व योग्य बनना पड़ेगा।


किसी लड़की को प्रेम करना अलग चीज है, उसका जीवनभर साथ पाने के लिए हासिल करने के लिए योग्यता चाहिए। कोई पिता आपको अपनी बेटी क्यों दे? इसका उत्तर आपको पता होना चाहिए।


जिस स्तर की राजकुमारी चाहिए बस उस स्तर से ऊंची व्यवस्था बनानी पड़ेगी। अन्यथा उसे छोड़ने में ही भलाई है। राजकुमारियां भाग कर शादी तो कर सकती हैं मगर यदि सच्चा प्रेम न हो तो विवाह निभा नहीं पाती। क्योंकि ऐशोआराम की चाहत जगते ही जीवन नरक बना देती हैं। आपके लिए कष्ट वही सहेगा जो आपसे सच्चा प्रेम करेगा व बदले में कुछ नहीं चाहेगा।


प्रेम करने के लिए योग्यता व स्टेटस मायने नहीं रखता। मग़र उस प्रेम को हासिल करने के लिए कलियुग में योग्यता व स्टेटस जरूरी है।


जिसने एक बार दिल दुखाया है, वह आगे भी निरंतर दिल दुःखायेगा। अतः इस प्रेम सम्बन्ध को पुनः आगे बढाने से पहले विचार कर लो।


तुम अनाथ नहीं हो तुम्हारा परिवार है, माता पिता भी हैं।उनके प्रति भी तुम्हारी जिम्मेदारी है।


तुम स्वयं को इतना योग्य बना लो कि शान से उसके पिता से उसका हाथ मांग सको। अन्यथा उसे अभी भूलकर स्वयं को योग्य बनाने में जुट जाओ। क्योंकि वर्तमान समय चूक गया तो मुश्किल होगी।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

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