Sunday 30 September 2018

*तीन दिवसीय जीवित्पुत्रिका व्रत(अश्विन माह कृष्ण पक्ष की सप्तमी से नवमी तक), 1 अक्टूबर से 3 अक्टूबर 2018, 2 अक्टूबर - जीवित्पुत्रिका अष्टमी*

*तीन दिवसीय जीवित्पुत्रिका व्रत(अश्विन माह कृष्ण पक्ष की सप्तमी से नवमी तक), 1 अक्टूबर से 3 अक्टूबर 2018, 2 अक्टूबर - जीवित्पुत्रिका अष्टमी*

*कथा* - महाभारत काल में द्रौणाचार्य पुत्र अश्वस्थामा ने अंर्जुन के पुत्रवधु उत्तरा के गर्भ को नष्ट करने हेतु ब्रह्मास्त्र चलाया। उत्तरा समर्पित कृष्णभक्त थी, उन्होंने श्रीकृष्ण और माता रुक्मणी(लक्ष्मी) का ध्यान किया और गर्भस्थ शिशु की रक्षार्थ प्रार्थना की। श्रीकृष्ण ने ब्रह्मास्त्र रोका और माँ आद्यशक्ति सन्तान लक्ष्मी ने उत्तरा के गर्भ को अंदर से सुरक्षा कवच से ढँक दिया। जिस ब्रह्मास्त्र का पूरे ब्रह्माण्ड में कोई रोक नहीं सकता है, इसलिए उसका मान रखने हेतु ब्रह्मास्त्र ने उत्तरा का गर्भ नष्ट किया और पुनः उस गर्भ को भगवान कृष्ण और माँ आद्यशक्ति सन्तान लक्ष्मी ने जीवत किया। इसलिए इस घटनाक्रम को जीवित्पुत्रिका कहा गया। पांडवो और उत्तरा ने भगवान कृष्ण और आद्यशक्ति सन्तान लक्ष्मी की स्तुति की।  प्रशन्न होने पर उत्तरा ने कहा, माँ आद्यशक्ति सन्तान लक्ष्मी और जगत का पालन करने वाले कृष्ण रूप भगवान विष्णु से प्रार्थना किया क़ि, इस दिन की याद में जो पुत्रवती स्त्री आपका व्रत और तीन दिन का अनुष्ठान करें, उनके पुत्र को मेरे पुत्र की तरह आप संरक्षण प्रदान करें।

*विधि-*
महाभारत के बाद से यह व्रत मनाया जाने लगा। तीन दिन का यह व्रत माताएं अपनी सन्तान को दैवीय संरक्षण प्रदान करने हेतु करती हैं, जिससे सन्तान दीर्घायु यशस्वी हो, और उसका शारीरिक,मानसिक, आर्थिक और आध्यात्मिक विकास हो।

*आहार* - तीन दिन का विशेष अनुष्ठान में-  जल, नारियल, दूध, सफ़ेद रंग के फ़ल जैसे केला सेव छिलके उतार कर, सफ़ेद ड्राई फ्रूट जैसे मखाना और काजू) इत्यादि ग्रहण करते हैं। कोई भी काली वस्तु आहार में ग्रहण नहीं करते।

तीन दिन तला भुना खाना कढ़ाही में बना वर्जित होता है, पूर्णाहुति के बाद तीसरे दिन रात को पारण कर आहार ले सकते है या चौथे दिन पारण कर आहार लें। तीन दिन पानी खूब पियें। पूर्णाहुति के दिन सन्तान लक्ष्मी और भगवान विष्णु को मीठी मुठियां(गेहूँ के आटे में चीनी डालकर गूथें और उसे देशी घी में तल लें) प्रसाद में चढ़ती है, पूरी और आलू की लहसन प्याज बिना वैष्णव भोजन पारण के समय खाएं।

*तीन दिन के महालक्ष्मी-विष्णु से संरक्षण प्राप्ति हेतु जीवित्पुत्रिका व्रत अनुष्ठान की विधि:-*

प्रथम दिन(सप्तमी) - सुबह पूजन के वक़्त कलश स्थापना करते हैं।

फ़िर पुत्र हेतु
2700(9 माला रोज x 3 दिन तक) गायत्री मन्त्र,
 900 (3 माला रोज x 3 दिन तक) महामृत्युंजय मन्त्र,
900 (3 माला रोज x 3 दिन तक) सन्तान लक्ष्मी मन्त्र और  900 (3 माला रोज x 3 दिन तक) विष्णु मन्त्र
  जप का संकल्प लेते हैं, जिसे तीन दिन के भीतर पूरा करना होता है, तीन संध्याओं (सुबह, दोपहर, शाम) को पूजन करना होता है। घर में यदि भगवान विष्णु और लक्ष्मी की फ़ोटो या मूर्ती न हो तो पान के पत्ते में दो सुपाड़ी रख के प्रतीक रूप में उसका पूजन कर लें। तीन दिन बाद दोनों सुपाड़ी को तुलसी के पेड़ के नीचे रख दें।

अंतिम दिन यज्ञ या दीपयज्ञ से जीवित्पुत्रिका व्रत की पूर्णाहुति होती है। यज्ञ में पूर्णाहुति में 27 गायत्री मन्त्र की, 9 महामृत्युंजय मन्त्र की, 9 सन्तान लक्ष्मी मन्त्र की और 9 भगवान विष्णु मन्त्र की और 9 नवग्रह मन्त्र की आहुतियां डालें। यज्ञ पुरोहित न मिलने पर स्वयं भी घर पर निम्नलिखित पुस्तक *सरल सर्वपयोगी हवन विधि* से संकल्प और पूर्णाहुति कर सकते हैं। पूर्णाहुति में सूखे नारियल गोले को चढ़ाएं।

गायत्री मन्त्र - *ॐ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्*

महामृत्युंजय मन्त्र- *ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टि वर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्*

सन्तान लक्ष्मी गायत्री मन्त्र - *ॐ महालक्ष्म्यै विद्महे, विष्णुप्रियायै धीमहि, तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्।*

जगतपालनहार भगवान विष्णु मन्त्र - *ॐ नारायणाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि, तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्।*

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन

किसी भी पुराण, उपनिषद या महाभारत की पुस्तक में इस व्रत को निर्जल(बिना पानी के रहने का) वर्णन नहीं है।

Friday 28 September 2018

*कॉलेज की बच्चियों हेतु लेख प्रेषित करें, संस्कारशाला हेतू उद्बोधन लिख के दे दीजिये।*

*कॉलेज की बच्चियों हेतु लेख प्रेषित करें, संस्कारशाला हेतू उद्बोधन लिख के दे दीजिये।*

ॐ भूर्भुवः स्व: तत सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात।

सम्माननीय मंच एवं आत्मीय बेटियों,

हम यहां अपने देश की भाग्य निर्मात्रीयों से मिलने आये हैं, आप हमारे देश के सुनहरे भविष्य की आधारशिला हो। युगऋषि परमपूज्य गुरुदेब पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने इक्कीसवीं सदी उज्ज्वल भविष्य का नारा दिया है। उन्ही का संदेश हम यहां देने आए हैं।

1- बेटियों आपके मन अभी सुनहरे कल्पनाओं से भरे हुए है, कल्पना की दुनियां और हक़ीकत की दुनियां में फ़र्क़ होता है।

2- नारी आज कहीं भी सुरक्षित नहीं, सबसे बड़ी बात वो माँ के गर्भ में भी सुरक्षित नहीं और समाज मे भी सुरक्षित नहीं।

3- इसलिए आज नारी जागरण की महती/अत्यंत आवश्यकता है।

4- देश की आधी जनसँख्या स्त्री है, यदि स्त्री का विकास न हुआ तो देश का अधूरा ही विकास होगा।

5- बची हुई आधी जनसँख्या को जन्म देने वाली भी नारी है। यदि माता महान नहीं हुई तो भला सन्तान कैसे महान होगा?

6- समाज को सुधारना और बदलना है तो स्त्री का सुधरना और बदलना अति अनिवार्य है।

7- आजकल भ्रामक मान्यता फैली हुई है जो लड़की जॉब करने लगी और आर्थिक आत्म निर्भर बन गयी तो उसका जागरण हो गया। जी नहीं केवल आर्थिक निर्भरता से न परिवार का कल्याण होगा न देश का कल्याण होगा। बल्कि स्त्री को आत्मनिर्भर बनना होगा और स्वयं के अस्तित्व की पहचान करनी होगी।

8- आजकल भ्रामक मान्यता के कारण स्त्री पुरूषों की नकल करके अपने अंदर के पुरुषत्व को जगा रही है। यह तो घोर अनर्थ है, क्योंकि दो पुरुष मानसिकता का विवाह कभी सफल नहीं हो सकता। बच्चे को माता चाहिए - घर मे दो पिता नहीं। लड़ाई झगड़े कलह से ऐसे घर भर जाएंगे।

9- भ्रामक विज्ञापन  और टीवी सीरियल से प्रेरित होकर अर्धनग्न कपड़ों का फ़ैशन चल पड़ा है। जब बड़े बड़े ऋषिमुनियों का अप्सराओं ने अंगप्रदर्शन से तपस्या भंग कर दी, तो ये कॉलेज में पढ़ने वाले कमज़ोर चारित्रिक दृढ़ता के लड़के इन वस्त्रों से क्यूं न भूल करेंगे भला..। जो समाज पुरुषों का है जिनके बीच फैशन कर रहे हो वो सभ्य नहीं है, इनकी सोच ऊंची नहीं है। अतः इन पर दया करते हुए स्कर्ट बड़ी पहनो और अपनी सोच बड़ी करो।

10- फ़िल्म-टीवी-विज्ञापन में लड़कियों को अंगप्रदर्शन के ही पैसे मिलते हैं, साथ ही वो बड़ी गाड़ियों में घूमती हैं। लेकिन हमने देखा है कि वैसे ही छोटे अभद्र कपड़े पहन के लड़कियां पैदल या स्कूटी में भी चलती है। जो पूर्णतया असुरक्षित है। जमाना कितना भी बदल जाये, घोड़े और घास की दोस्ती शक की निगाह में ही रहेगी। लड़के लड़की की दोस्ती और पार्टी इसी तरह शक में ही रहती है।

11- बेटियों यह समय दुबारा नहीं मिलेगा, पढ़कर कुछ बनने का यही समय है। स्वयं की पहचान बनाना और अपने अस्तित्व को बनाने का यही समय है।

12- कुछ ऐसा क्यों नहीं करते कि तुम्हे देखकर लोग प्रेरणा लें। बेटियों को पैदा करके तुम्हारे जैसा बनाना चाहे। लड़कियों को सम्मान लड़कियां ही दिला सकती हैं।

13- अगर आप स्वयं को स्त्री समझते हुए स्त्री गौरव के लिए कुछ कर गुज़रने की चाहत रखेंगी तो ही सबका भला होगा।

14- मनःस्थिति बदलिए और स्वयं को श्रेष्ठ लक्ष्य से जोड़िए।

15- स्वयं अलर्ट जागरूक रखिये कोई भी आपका फ़ायदा न उठा सके।

16- किसी भी लड़के के बहकावे में कोई गलत कदम मत उठाइये।

17- इंटरनेट पर अपनी फ़ोटो असुरक्षित ढंग से अपलोड न करें।

18- इंटरनेट पर अजनबियों से दोस्ती करके उनसे अकेले मिलने न जाएं।

19- हमेशा ग्रुप में कही घूमने जाएं, अकेले जाने का खतरा न उठाएं।

20- अपने गुणों को बढ़ाइए, केवल रूप तक सीमित मत रह जाइये। रूप से पहचान और सम्मान मिले न मिले लेकिन गुणों से सदैव सम्मान मिलता है।

21- उठो!, जागो! तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य मिल न जाये।

22- अपने दिमाग़ के सन्तुलित विकास और तेज़ बुद्धि के लिए रोज ध्यान और स्वाध्याय कीजिये।

23- भगवान श्री कृष्ण ने गीता अर्जुन को युद्ध के मैदान में और युवावस्था में सुनाई थी। अतः गीता जैसी मैनेजमेंट की सबसे बड़ी पुस्तक युवावस्था में पढ़नी चाहिए। इसे रिटायरमेंट प्लान मत समझें।

24- बेटियों जिंदगी आपकी आपके हाथ मे है, मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है। अतः स्वयं के भविष्य निर्माण में जुट जाइये।

25- मनुष्य अपनी किस्मत डायरेक्ट नहीं बदल सकता। लेकिन किस्मत बदलने के लिए पहले अपनी सोच बदलिए, फिर सोच को मूर्त रूप में बदलने के लिए कर्म कीजिये, इससे भविष्य बदलेगा।

26- सोच बदलने के लिए स्वाध्याय कीजिये और ध्यान कीजिये। सकारात्मक सोच के साथ जीवन बदलने में जुट जाइये।

27- ऐसा वातावरण बनाइये कि लोग बेटियों को सम्मान की नज़र से देखें, ऐसा कुछ कीजिये कि प्रत्येक माता-पिता आप जैसी बेटियों को अपनी सन्तान रूप में पाकर धन्य महसूस करें।

28- बेटे अंत मे एक बात और कहना चाहती हूँ, नारियल यदि समुद्र के किनारे हो तो उसका पानी नमकीन हो जाता है, नदी के किनारे हो तो वही नारियल मीठा हो जाता है। इसी तरह मिट्टी की तरह माँ का गर्भ होता है, पिता से ज्यादा माता का असर बच्चे पर होता है। बच्चे का मीठा-अच्छा या खारा-बुरा स्वभाव माता पर निर्भर करता है। देश-समाज को अच्छा नागरिक देने में माता की अहम भूमिका रही है। शिवाजी जैसे वीर जीजाबाई की मेहनत की देन होते है। लक्ष्मीबाई जैसी वीरकन्या उनकी माता ही गढ़ती है।

29- देश का भविष्य आज भी आप के हाथ मे है और कल भी आपके हाथ मे ही होगा।

30- बेटियों आप सबके सँस्कार वान होने से और सही दिशा में प्रयास करने पर आपका उज्ज्वल भविष्य निश्चित बनेगा और देश का भी सुनहरा भविष्य सुनिश्चित होगा।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Thursday 27 September 2018

प्रश्न - *अजगर करे न चाकरी, पंक्षी करे न काम,* *दास मलूका कह गए,* *सबके दाता राम।*

प्रश्न - *अजगर करे न चाकरी, पंक्षी करे न काम,*
*दास मलूका कह गए,*
*सबके दाता राम।*
हमारे भैया शादीशुदा है , दिन भर गांव में लोगों के साथ तास खेलने में व्यस्त रहते हैं, कुछ उन्हें करने को बोलो तो उपरोक्त दोहा मुझे सुना देते हैं। मुझे इस दोहे के जवाब हेतु मार्गदर्शन कीजिये।

उत्तर - आत्मीय भाई, धैय और युक्ति से काम करके भईया का दिमाग़ ठीक करो।

अब जब तुम्हें वो दोहा सुनाएं तो उनसे पूँछो:-

भगवान चिड़िया को दाना जरूर देता है लेकिन कभी मैंने चिड़िया के घोंसले में होमडिलीवरी होते नहीं देखी। बेचारी चिड़िया दिन भर न जाने कहाँ कहाँ भोजन की तलाश में परिश्रम करके उड़ती है, तब जाकर भोजन मिलता है। अज़गर बेचारे को भी कीड़े मकोड़े पिज़्ज़ा डिलीवरी की तरह होमडीलीवरी भगवान नहीं करता, बड़े परिश्रम से जहां तहां जाकर शिकार करता है, तब पेट भर पाता है।

जंगल के जीव केवल जो प्राकृतिक है वही ज्यों का त्यों खा सकते है, उनके लिए कोई पकाकर नहीं देता। प्रकृति ने यदि शाकाहारी बनाया है तो केवल घास-पत्ते और शाक ख़ाकर जिएंगे। और यदि मांसाहारी बनाया है तो केवल कच्चा मांस खा के जिएंगे। वृद्ध या बीमार होने पर कोई सेवा नहीं मिलती, जंगल का राजा शेर हो या साधारण जीव तड़प तड़प कर भूखों अंत मे अशक्त होने पर मरता है।

मनुष्य के पास सोचने-समझने की शक्ति है, बुद्धिबल मनुष्य को समस्त जीवों में श्रेष्ठ बनाता है। हम सब भोजन पका कर खाते है, समाज की सुविधा का उपयोग करते हैं। चिकित्सा की सेवा हमे मिली हुई है।

भैया- *वीर भोग्या वसुंधरा* , जो वीर है वही इस पृथ्वी का उपभोग कर सकता है।

*कर्म प्रधान विश्व रचि राखा, जो जस करइ सो तस फल चाखा*

विधाता ने समस्त सृष्टि को कर्म प्रधान बनाया है, जैसा करोगे वैसा भरोगे। जो बोओगे वही काटोगे।

पिताजी का कमाया रोज खर्च हो रहा है, नया कमा नहीं रहे तो एक न एक दिन परिवार भूखों मरेगा। मेरी शादी के बाद मेरी पत्नी बच्चो की जिस तरह जिम्मेदारी मैं उठाऊंगा तो उसी तरह अपने पत्नी बच्चो के भरण-पोषण हेतु कमाइए और कुछ करिये। पिताजी की मृत्यु हुए दो वर्ष हो चुके है। माता को मिलने वाली पेंशन माता जी दवा ख़र्च में जायेगा।  अतः सुधर जाइये और मुफ्त खोर और कामचोरी के बहाने मत तलाशिये।

पहले प्यार से भाई को समझाओ, यदि फिर भी न समझें। तो निम्नलिखित युक्ति अपनाओ।

घर में सभी लोग गायत्री साधना करो, सूर्य भगवान से भाई की सद्बुद्धिं हेतु प्रार्थना करो, सूर्य भगवान को जल चढ़ा के बचे हुए जल से रोटी बनाओ। घर मे बलिवैश्व यज्ञ करो।

घर मे शांतिपुर्ण सत्याग्रह और असहयोग आंदोलन छेड़ दो, सब परिवार एकजुट हो जाओ। उन्हें जबतक सुधार न लो तबतक चैन से मत बैठना।

माताजी और भाभी से बोलो रात को भोजन में थाली में रोटी की जगह साबुत गेंहूँ, सब्जी की जगह साबुत सब्जी, चावल की जगह कच्चे चावल और दाल की जगह कच्ची दाल परोस दो।

साथ निम्नलिखित दोहा सुना देना:-

- *अजगर करे न पका भोजन*,
*पंक्षी भी न जलाए चूल्हा,*
*दास मलूका के भक्तों को,*
*दुनियाँ में कोई स्त्री न बनाए दूल्हा।*

*सकल पदारथ एही जग माही,*
 *कर्महीन नर पावत नाही।*

इस संसार मे समस्त पदार्थ और सुख सुविधा है लेकिन कर्महीन व्यक्ति को कुछ प्राप्त नही होता है । कर्महीन व्यक्ति परिवार के लिए समस्या बनता है।

या तो कमाओ, नहीं तो आज से कच्चा भोजन खाओ। मन ही मन गायत्री मंत्र जपते हुए उनका मानसिक उपचार करो। पूरा परिवार उनके लिए भगवान से प्रार्थना भी करते रहो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *यज्ञकर्त्ता ऋणि नही रहता, क्या सचमुच यज्ञ से ऐसा लाभ मिलता है?*

प्रश्न - *यज्ञकर्त्ता ऋणि नही रहता,  क्या सचमुच यज्ञ से ऐसा लाभ मिलता है?*

उत्तर - हाँजी, यह शत प्रतिशत कथन सही है, यज्ञकर्ता ऋणमुक्त होता है, लेकिन कुछ नियम शर्तों के पालन के बाद। (Term & Conditions applied)

*कर्म प्रधान विश्व करी राखा, जो जस करइ सो तस फल चाखा*
समस्त सृष्टि कर्म प्रधान है। जो जैसा करेगा वो वैसा भरेगा।

*उद्यमी पुरुषः बपुतः लक्ष्मी:*

उद्यमी पुरुष के पास लक्ष्मी स्वतः आती है।

*अतः ऋणमुक्त होने के लिए कर्म आपको स्वयं करना पड़ेगा और यज्ञ आपके अच्छे भाग्य निर्माण में सहायता करेगा, प्रारब्ध का शमन करेगा। मार्ग की बाधाओं को दूर करेगा, पुरुषार्थ-साहस और विवेक बढ़ाएगा। याद रखिये सुनहरे भविष्य का बैंक लॉकर दो चाबियों से खुलता है - एक कर्म और दूसरा भाग्य। कर्म हम स्वयं करते है और भाग्य निर्माण में देवता सहायता करते हैं। किसान की तरह बीज बोने का काम हमारा, और बीज से पौधा बनाने का कार्य ईश्वर का। दोनों एक दूसरे पर निर्भर हैं।*

*वेद भगवान् की प्रतिज्ञा है कि जो यज्ञ करेगा- उसे ऋणी नहीं रहने दूँगा ।।*

'सुन्वताम् ऋणं न'

इस प्रतिज्ञा के होते हुए भी देखा जाता है कि कई यज्ञ करने वाले भी ऋणी बने रहते हैं ।। इसका कारण भी आगे चलकर वेद भगवान् ने स्पष्ट कर दिया है ।।

''न नूनं ब्रह्मणामृणं प्रोशूनामस्ति सुन्वताम् न सोमोअप्रतापये ।'' ‍

अर्थात्- निश्चय ही यज्ञकर्त्ता ब्रह्म परायण मनुष्य कभी ऋणी नहीं हो सकते ।। किन्तु इन्द्र जिनको लाँघ कर चला जाता है, वह दरिद्र रह जाते हैं ।।

इन्द्र भगवान् समस्त ऐश्वर्य के देव तो हैं, वे सब को सुखी बनाना चाहते हैं, इंद्र अर्थात समष्टिगत सोच, विश्वकल्याण की भावना जिसके मन मे नहीं होगी, और जो कंजूस, स्वार्थी और नीच स्वभाव का होगा, उससे इंद्र भगवान  खिन्न होकर उनके समीप नहीं रुकते और उन्हें बिना कुछ दिये ही लाँघ कर चले जाते हैं ।। यह बात निम्न मन्त्र में भी स्पष्ट कर दी गई है ।।

अतीहि मन्युषविणं सुषुवां समुपारणे ।।
इतं रातं सुतं दिन॥ (ऋ.8/32/21)

क्रोध से यज्ञ करने वाले को अन्धा समझ कर इन्द्र भी उसे नहीं देखता ।। ईर्ष्या से प्रेरित होकर जो यज्ञ करता है, उसे बहरा समझकर इन्द्र भी उसकी पुकार नहीं सुनते ।। जो यश के लिए यज्ञ करता है उसे धूर्त समझ कर इन्द्र भी उससे धूर्तता करते हैं ।। जिनके आचरण निकृष्ट हैं, उनके साथ इन्द्र भी स्वार्थी बन जाते हैं, कटुभाषियों को इन्द्र भी शाप देते हैं ।। दूसरों का अधिकार मारने वालों की पूजा को इन्द्र हजम कर जाते हैं ।।

इससे प्रकट है कि जो सच्चे यज्ञकर्त्ता हैं और पुरुषार्थी है, उन्हीं के ऊपर इन्द्र भगवान् सब प्रकार की भौतिक और आध्यात्मिक सुख सम्पदाएँ बरसाते हैं ।। भगवान् भावना के वश में हैं ।। जिनकी श्रद्धा सच्ची है, जिनका अन्तःकरण पवित्र है, जिनका चरित्र शुद्ध है, जो परमार्थ की दृष्टि से हवन करते हैं, उनका थोड़ा सा सामान भी इन्द्र देवता सुदामा के तन्दुलों की भाँति प्रेम- पूर्वक ग्रहण करते हैं और उसके बदले में इतना देते हैं, जिससे अग्निहोत्री को किसी प्रकार की कमी नहीं रहती, वह किसी का ऋणी नहीं रहता ।।
रुपये पैसे का ऋण न रहे, सो बात ही नहीं ।। देवऋण, पितृऋण, ऋषिऋण आदि सामाजिक और आध्यात्मिक ऋणों से छुट्टी पाकर वह बंधन- मुक्त होकर मुक्ति- पद का सच्चा अधिकारी बनता है ।।

यज्ञ से तृप्त हुए इन्द्र की प्रसन्नता तीन प्रकार से उपलब्ध होती है-
(1) कर्मकाण्ड द्वारा आधिभौतिक रूप से भौतिक ऐश्वर्य का धन, वैभव देता है ।।
(2) साधना द्वारा पुरुषार्थियों को आधिदैविक रूप से राज्य, नेतृत्व- शक्ति और कीर्ति प्रदान करता है ।।
(3) योगाभ्यासी, आध्यात्म- हवन करने वाले को इन्द्रिय- निग्रह मन का निरोध का ब्रह्म का साक्षात्कार मिलता है ।।
यज्ञ से सब कुछ मिलता है ।। ऋण से छुटकारा भी मिलता है, पर याजक होना चाहिये सच्चा ! क्योंकि सच्चाई और उदारता में ही इन्द्र भगवान् प्रसन्न होकर बहुत कुछ देने को तैयार होते हैं ।।

(यज्ञ का ज्ञान- विज्ञान पृ.3.20- 21)

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *देवताओं को प्रसन्न करने का उपाय - यज्ञ है। यज्ञ से देवता और प्रकृति सन्तुष्ट होकर प्राण पर्जन्य की वर्षा करते हैं। इसकी वैज्ञानिकता पर प्रकाश डालिये।*

प्रश्न - *देवताओं को प्रसन्न करने का उपाय - यज्ञ है। यज्ञ से देवता और प्रकृति सन्तुष्ट होकर प्राण पर्जन्य की वर्षा करते हैं। इसकी वैज्ञानिकता पर प्रकाश डालिये।*

उत्तर - आत्मीय बहन, भोजन को जठराग्नि रूपी यज्ञ में आहुत करने से रक्त बनता है, शरीर में प्राण पर्जन्य बढ़ता है। लेकिन क्या विज्ञान ने ऐसा कोई यंत्र बनाया है जिसमें हम भोजन डालें और रक्त बनकर निकल आये? हम यह तो मानते है कि भोजन करने पर रक्त बनता है, लेकिन आधुनिक विज्ञान के पास ऐसा कोई उपकरण नहीं जो भोजन को रक्त में बदल सके।

इसी तरह यज्ञ में आहुत हविष्यान्न   सूक्ष्मीकृत होकर देवताओं को तुष्ट करता है और प्राण पर्जन्य की वर्षा होती है। इसे विज्ञान के किसी यंत्र द्वारा नहीं चेक किया जा सकता है।

बात यह है कि देवताओं को हमें उनका हव्य देना है ।। हम हैं स्थूल, पर देवता हैं सूक्ष्म ।। हम उन्हें हव्य देंगे, तो उन्हें कैसे प्राप्त होगा? उन्हें तो सूक्ष्म हव्य चाहिए, तभी वे प्रसन्न होंगे ।। इसका उपाय सोचा गया था 'यज्ञ' ।। इसका दृष्टांत भी समझ लेना चाहिए ।। हमें अपने आत्मा को भोजन भी स्थूल है, पर आत्मा हमारी सूक्ष्म है ।। उसे यह स्थूल भोजन कैसे मिल सकता है? उसे चाहिए सूक्ष्म भोजन ।। उसका उपाय यह सोचा गया था कि हम उस स्थूल भोजन को मुख में द्वारा अपनी जठराग्नि में होम करें ।। ऐसा करने से वह जठराग्नि उस स्थूल भोजन को सूक्ष्म कर देती है ।।

वहीं सूक्ष्म अन्न हमारे आत्मा को प्राप्त हो जाने से वह हमारे शरीर को स्वस्थ रखता है ।। यदि आत्मा को वह स्थूल अन्न न पहुँचाया जायेगा, तो हमारा शरीर, मन, इन्द्रियाँ आदि सभी अस्वस्थ हो जावेंगे ।। फिर हम न अपना कोई लाभ कर सकेंगे, न दूसरों को उपकार । न कुछ बुद्धि द्वारा दूसरों का, न अपना कुछ हित सोच सकेंगे ।जब हम अग्नि में हव्य डालते हैं, तब स्थूल अग्नि उस हवि को सूक्ष्म कर देती है और शांन्त होकर स्वं भी सूक्ष्म हो जाती है ।। तब वह सूक्ष्म अग्नि सूक्ष्म महाग्नि के साथ मिलकर उसे सूक्ष्म वायु की सहायता से आकाशाभिमुख आती हुई द्युलोक में पहुँचकर देवों को समर्पण करती है ।। वे देवता उस सूक्ष्म हवि से तृप्त होकर प्रजा के हित के लिये धान्य आदि की उत्पत्ति के लिये यथोचित वृष्टि कर देते हैं ।। जैसे कि मनुस्मृति में कहा गया है और उसी का बीज वेद में मिलता है-

'हविष्यान्तमजरं स्वविदि दिविस्पृशि आहुतं जुष्टमग्नौ'- ऋ.सं. 10/8/88

यहाँ श्री दुर्गाचार्य ने लिखा है- 'हवि पानतंदेवाना च पुरोडाशादि निर्दग्धस्थील भावमग्निता क्रियते ।। स्वः- आदित्यः, यं वेत्ति, यधाऽसौ वेदितव्यः- इति स्वविंद् अग्निः ।। दिविस्पर्शः- द्यामसौ स्पृशति हविरुपनयन् आदित्यम् ।' (निरुक्त 7/25/1)

इससे स्पष्ट हुआ कि जब हम देवताओं को प्रसन्न कर लेंगे, तो वह सम्पूर्ण चराचर स्थावर जङ्गमं पालित रहेगा, क्योंकि सभी का निर्वाह वृष्टि एवं अन्न पर है ।। उन देवताओं को प्रसन्न करने का उपाय है- यज्ञ तो यज्ञ से देवपूजा सिद्ध हुई, अतः यज्ञ का महत्त्व सिद्ध हुआ ।। तुष्ट और सन्तुष्ट देवता प्राण पर्जन्य की वर्षा करते हैं।।

Reference :- यज्ञ का ज्ञान-विज्ञान पृ.2.50-61

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की अहम भूमिका के तौर पर गर्भ सँस्कार के माध्यम से जच्चा और बच्चा दोनों को कैसे सुरक्षा प्रदान करें?*

प्रश्न - *आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की अहम भूमिका के तौर पर गर्भ सँस्कार के माध्यम से जच्चा और बच्चा दोनों को कैसे सुरक्षा प्रदान करें?*

उत्तर - *आंगनवाडी भारत में ग्रामीण माँ और बच्चों के देखा भाल केंद्र है। बच्चों के भूख और कुपोषण से निपटने के लिए एकीकृत बाल विकास सेवा कार्यक्रम के भाग के रूप में, 1985 में उन्हें भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया था। आंगनवाड़ी का अर्थ है "आंगन आश्रय"।*

इस प्रकार का आंगनवाड़ी केंद्र भारतीय गांवों में बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करता है। यह भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का एक हिस्सा है।

*कार्य* - आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं (ए डब्ल्यू डब्ल्यू) की ज़िम्मेदारी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। वे गर्भवती महिलाओं के लिए जन्मपूर्व और प्रसवपूर्व देखभाल सुनिश्चित करते हैं और नवजात शिशुओं और नर्सिंग माताओं के लिए तुरंत निदान और देखभाल करते हैं। वे 6 वर्ष से कम उम्र के सभी बच्चों के टीकाकरण का प्रबंध करते हैं।

इसके अलावा वे 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए पूरक पोषण के वितरण के साथ-साथ गर्भवती और नर्सिंग महिलाओं की निगरानी भी करते हैं। महिलाओं और बच्चों के लिए नियमित स्वास्थ्य और चिकित्सा जांच की निगरानी उनकी मुख्य जिम्मेदारियों में से एक है। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता अक्सर एक शिक्षक की भूमिका निभाते हैं और 3 से 5 साल के बीच के बच्चों को पूर्व-स्कूल शिक्षा प्रदान करना है।

*विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)* के अनुसार एक व्यक्ति का स्वास्थ्य *शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक* इन चार आधार स्तम्भो पर निर्भर करता है।

लेकिन आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को केवल शारीरिक स्वास्थ्य और देखभाल के लिए ही ट्रेनिंग मिली है। तो एक पाए की चेयर में जब हम बैठ नहीं सकते, तो एक स्वास्थ्य के पाए की देखरेख से बच्चे का सर्वांगीण समग्र स्वास्थ्य कैसे सुनिश्चित होगा?

*प्रसिद्ध पूर्व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के फाउंडर, गायत्री परिवार के संस्थापक और 3200 से अधिक शारीरिक-मानसिक-सामाजिक-आध्यात्मिक समस्याओं के समाधान हेतु साहित्य/पुस्तक लिखने वाले युगऋषि परमपूज्य गुरुदेब पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी* ने एक मुहिम चलाई है जिसमें *बच्चो के समग्र स्वास्थ्य (शारीरिक-मानसिक-सामाजिक-आध्यात्मिक) शिक्षण-प्रशिक्षण* का क्रम चलाया गया है। इस अभियान का नाम *आओ गढ़ें सँस्कारवान पीढ़ी* दिया गया है। इस अभियान को *गायत्री परिवार के हाई प्रोफ़ाइल डॉक्टरों की टीम* पूरे भारत वर्ष में संचालित कर रही है। उत्तराखंड में तो भारत सरकार के हम आधिकारिक पार्टनर भी हैं।

इसी के तहत हम यहां आज आप सबके समक्ष *आओ गढ़ें संस्कारवान पीढ़ी* की वर्कशॉप से प्रशिक्षण देने आए है। आइये हम और आप मिलकर इस देश की आने वाली पीढ़ी का सुनहरा भविष्य गढ़े, और मिलकर *आओ सँस्कारवान पीढ़ी गढ़ें*।

तो बताइए क्या आप तैयार हैं?...देश के सुनहरे भविष्य को गर्भ में ही संस्कारवान और बुद्धिमान बनाने के लिए...

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

*आओ गढ़े सँस्कार वान पीढ़ी* अभियान से समस्त आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को जोड़ें🙏🏻

Wednesday 26 September 2018

प्रश्न - *गर्भ सँस्कार करवाने की क्या आवश्यकता है?*

प्रश्न - *गर्भ सँस्कार करवाने की क्या आवश्यकता है?*

उत्तर - गर्भ सँस्कार - प्राचीन ऋषियों की बताई विधि परम्परा के पालन से स्वस्थ, बुद्धिमान और अच्छे संस्कारों से युक्त मनचाही सन्तान उतपन्न करने की विधि व्यवस्था है।

समुद्री तट के नारियल पानी नमकीन और नदियों के किनारे के नारियल मीठे होने का कारण है कि जमीन की मिट्टी के क्षारीय या नमकीन, वातावरण और आबोहवा के कारण नमकीन या मीठा होता है। देखने मे बाहर से नारियल एक जैसा होता है लेकिन मिट्टी और जल द्वारा प्राप्त सँस्कार उसके नारियल जल को मीठा या नमकीन बनाते है।

इसी तरह माता के गर्भकाल के दौरान माता द्वारा सोचे अच्छे या बुरे विचार, माता को मिला परिवार का वातावरण इत्यादि कई चीज़े बालक के मन और सँस्कार का निर्माण करती है। इन्ही सब गर्भ के ज्ञान और विज्ञान को समझने हेतु गर्भिणी माताओं को गर्भ सँस्कार करवाने की आवश्यकता है।

युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने गर्भ में ही श्रेष्ठ व्यक्तित्व गढ़ने की इस मुहिम को *आओ गढ़ें सँस्कार वान पीढ़ी* का नाम दिया है। जिसे कुशल डॉक्टरों की टीम संचालित कर रही है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *भगवान तो कण कण में है, फिर एक नियत स्थान पूजनगृह घर मे बनाकर पूजन की क्या आवश्यकता है?*

प्रश्न - *भगवान तो कण कण में है, फिर एक नियत स्थान पूजनगृह घर मे बनाकर पूजन की क्या आवश्यकता है?*

उत्तर - आत्मीय भाई, भोजन तो घर में कहीं भी बनाया जा सकता, कहीं भी खाया जा सकता है, इसी तरह शयन भी घर मे कहीं भी किया जा सकता है, पढ़ाई भी कही भी की जा सकती है। लेकिन आपने नोटिस किया होगा कि निश्चित स्थान पर भोजन बनाने और भोजन करने से व्यवस्था घर की सही बनती है। निश्चित स्थान और बिस्तर पर लेटने पर नींद अच्छी आती है। क्योंकि मन उसी तरह के विचार प्रवाह के साथ कंडिशन्ड हो जाता है। बिस्तर और स्थान परिवर्तन से मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ने के कारण नींद में समस्या उतपन्न होती है। स्टडी रूम में निश्चित स्थान पढ़ने में सहायक होता है।

इसी तरह जब तक योगी की तरह मन में ध्यानस्थ होकर स्थिर होने की कुशलता न विकसित हो जाये, तब तक घर में नियत स्थान पर शांतिपूर्वक बैठकर एक स्थान और एक पूजा गृह में पूजन सहायक होता है। मन पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है, मन अतिरिक्त मेहनत से बच जाता है। उस स्थान का ऊर्जा प्रवाह सकारात्मक रहता है और ध्यान पूजन में सहायक होता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

मंन्त्र विज्ञान सम्बन्धी शंका समाधान* प्रश्न - *मंन्त्र भी तो शब्द ही तो हैं, एक तरह से संस्कृत भाषा के वाक्य फ़िर इनके जप से हमें लाभ कैसे मिल सकता है? यज्ञ में भी मंन्त्र प्रयोग के बिना भी हवन करने पर क्या लाभ न मिलेगा?*

*मंन्त्र विज्ञान सम्बन्धी शंका समाधान*

प्रश्न - *मंन्त्र भी तो शब्द ही तो हैं, एक तरह से संस्कृत भाषा के वाक्य फ़िर इनके जप से हमें लाभ कैसे मिल सकता है? यज्ञ में भी मंन्त्र प्रयोग के बिना भी हवन करने पर क्या लाभ न मिलेगा?*

उत्तर - ध्वनि ही मूल है, ध्वनि का गुंथन वर्ण है, वर्ण स्वर और व्यंजन का संयोजन शब्द, और शब्द का संयोजन वाक्य बनता है। ठीक उसी तरह जैसे गेंहूँ मूल है लेकिन उसे पीस कर और विभिन्न गूंथने की प्रक्रिया और विभिन्न बनाने की प्रक्रिया अपनाने पर रोटी, पूड़ी, पराँठे, मालपुए इत्यादि बनते हैं। पकने पर उसका प्रभाव बढ़ जाता है।

ईंट का मूल मिट्टी ही है, लेकिन मिट्टी से मारने पर चोट न लगेगी। उसी मिट्टी को विधवत पकाकर ईंट बनाने पर उसका रूपांतरण ठोस में हो जाता है। इससे मजबूत घर भी बन सकता है और इससे मारने पर चोट भी लग सकती है।

यद्यपि यह सच है कि एक गेंहू के कण से रोटी नहीं बन सकती। एक मिट्टी के कण से ईंट नहीं बन सकती, निश्चित संख्या चाहिए। उसी तरह केवल एक बार मंन्त्र जप से प्रभाव नहीं दिखेगा। उसे विधिवत निश्चित संख्या में ध्यानपूर्वक जपना पड़ेगा।

*इसी तरह ध्वनियों के आध्यात्मिक वैज्ञानिक गुंथन, अर्थ, ध्वनि तरंग का वैज्ञानिक विश्लेषण करके और पर्यावरण, वातारण और अन्तःकरण पर पड़ने वाले प्रभाव, स्थूल-सूक्ष्म-कारण शरीर पर पढ़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण करके इसे ऋषियों ने बनाया है। अतः मंन्त्र अत्यंत प्रभावशाली होते है। तप द्वारा ये और अधिक ऊर्जावान बन जाते हैं।*

*शब्द शक्ति का महत्व विज्ञाननुमोदित है। स्थूल, श्रव्य, शब्द भी बड़ा काम करते हैं फिर सूक्ष्म कर्णातीत अश्रव्य ध्वनियों का महत्व तो और भी अधिक है। मंत्र का उच्चारण तो धीमा ही होता है उससे अतीन्द्रिय शब्द शक्ति को ही प्रचंड परिमाण में उत्पन्न किया जाता है।*

युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्यजी ने *शब्द ब्रह्म* और इसकी वैज्ञानिकता पर एक वांग्मय औऱ कई पुस्तको में इस पर लेख लिखा है। अखण्डज्योति पत्रिका में भी विभिन्न लेख लिखे है। उनके ही बिंदुओं का संकलन हम यहां करके मंन्त्र विज्ञान समझा रहे हैं।

टेलीफ़ोन, टेपरिकॉर्डर और रेडियो  इत्यादि ध्वनि यंत्र यह सिद्ध कर चुके हैं कि शब्द कभी मरता नहीं है। इसे कहीं भी भेजा जा सकता है और सुना जा सकता है। ध्वनि से उतपन्न ऊर्जा को यंत्रों के माध्यम से विद्युत ऊर्जा में बदलकर कोई भी उपकरण भी चलाया जा सकता है। विज्ञान यह भी सिद्ध कर चुका है कि एक प्रकार की एनर्जी को दूसरे प्रकार की एनर्जी में बदल सकते हैं।

विज्ञान ने ध्वनि तरंगों में सन्निहित असाधारण शक्ति को समझा है और उनके द्वारा विभिन्न प्रकार के क्रिया-कलापों को पूरा करना अथवा लाभ उठाना आरम्भ किया है। वस्तुओं की मोटाई नापने-धातुओं के गुण दोष परखने का काम अब ध्वनि तरंगें ही प्रधान रूप में पूरा करती है। कार्बन ब्लैक का उत्पादन वस्त्रों की धुलाई, रासायनिक सम्मिश्रण, कागज की लुगदी, गीलेपन को सुखाना, धातुओं की ढलाई, प्लास्टिक धागों का निर्माण प्रभृति उद्योगों में ध्वनि तरंगों के उपयोग से एक नया व्यावसायिक अध्याय आरम्भ हुआ है।

इलेक्ट्रोनिक्स के उच्च विज्ञानी ऐसा यंत्र बनाने में सफल नहीं हो सके जो श्रवण शक्ति की दृष्टि से कान के समान संवेदनशील हो। कानों की जो झिल्ली आवाज पकड़कर मस्तिष्क तक पहुँचाती है उसकी मुटाई एक इंच के ढाई हजारवें हिस्से के बराबर है, फिर भी वह कोई चार लाख प्रकार के शब्द भेद पहचान सकती है और उनका अंतर कर सकती है। अपनी, गाय की या मोटर की आवाज को हम अलग से पहचान लेते हैं और उनका अंतर कर सकते हैं यद्यपि लगभग वैसी ही आवाज दूसरी गायों की या मोटरों की होती है, पर जो थोड़ा सा भी अंतर उनमें रहता है, अपने कान के लिए उतने से ही अंतर कर सकना और पहचान सकना संभव हो जाता है। कितनी दूर से, किस दिशा से, किस मनुष्य की आवाज आ रही है, यह पहचानने में हमें कुछ कठिनाई नहीं होती। यह कान की सूक्ष्म संवेदनशीलता का ही चमत्कार है। टेलीफोन यंत्र इतनी बारीकियाँ नहीं पकड़ सकता है।

श्रवण शक्ति का पूरी तरह संबंध मानसिक एकाग्रता से है। जब ध्यान यदि कहीं गहरे चिंतन में डूबा हो या कोई मनोरंजक दृश्य देख रहा हो, तो ध्यान न होने पर हमें कोई पुकारे तो भी हमें कुछ भी सुनाई नहीं देता।

मनुष्य के कान केवल उन्हीं ध्वनि तरंगों को अनुभव कर सकते हैं जिनकी संख्या प्रति सैकिण्ड 20 से लेकर 20 सहस्र डेसिबल तक की होती है। इससे कम और अधिक संख्या वाले ध्वनि प्रवाह होते तो हैं, पर वे मनुष्य की कर्णेन्द्रिय द्वारा नहीं सुने जा सकते।

इस तथ्य को समझने पर उच्चारण का जितना महत्त्व है उससे ज्यादा मानसिक जप का महत्व समझ में आता है। सदैव उच्चारण आवश्यक नहीं। मानसिक शक्ति का प्रयोग करके ध्यान भूमिका में सूक्ष्म जिव्हा द्वारा मन ही मन जो जप किया जाता है, उसमें भी ध्वनि तरंगें भली प्रकार उठती रहती हैं। अपना प्रभाव दिखाती हैं।

अकेला गायत्री मंत्र ही सभी उपलब्धियाँ प्रदान करने में समर्थ है जो अन्य बहुत सी साधनाओं के करने से प्राप्त होती हैं। इस मंत्र की साधना को सफल बनाने में चार तथ्यों का समावेश है। 1-शब्द शक्ति 2-मानसिक एकाग्रता 3-चारित्रिक श्रेष्ठता और 4-अटूट श्रद्धा।

गायत्री मंत्र से कितने ही प्रकार के चमत्कार एवं वरदान उपलब्ध हो सकते हैं। यह सत्य है, पर उसके साथ यह तथ्य भी जुड़ा हुआ है। वह मंत्र उपरोक्त चार परीक्षाओं में उत्तीर्ण हुआ होना चाहिए।

गायत्री मंत्र का प्रथम आधार है शब्द शक्ति। इस में अक्षरों का गुँथन एक ऐसे विशिष्ट क्रम से किया गया है जो शब्द शास्त्र के गूढ़ सिद्धान्तों पर आधारित है। यों अर्थ की दृष्टि से गायत्री मंत्र सरल है। उसमें परमात्मा से सद्बुद्धि की याचना की गई है। इस शिक्षा को भी समझना चाहिए, पर मंत्र की शक्ति मात्र इस शिक्षा में नहीं, उसकी शब्द रचना से भी जुड़ी हुई है। वाद्य यंत्रों का अमुक क्रम से बजाने पर ध्वनि प्रवाह निस्सृत होता है। कण्ठ को अमुक आरोह-अवरोहों के अनुरूप उतार चढ़ाव के स्वरों से युक्त करके जो ध्वनि प्रवाह बनता है उसे गायन कहते हैं। ठीक इसी प्रकार मुख से उच्चारित मंत्र को अमुक शब्द क्रम के अनुसार बार-बार लगातार संचालन करने से जो विशेष प्रकार का ध्वनि प्रवाह विनिर्मित होता है वही मंत्र की भौतिक क्षमता है। मुख से उच्चारित मंत्राक्षर सूक्ष्म शरीर को प्रभावित करते हैं। उसमें सन्निहित तीन ग्रंथियों, षटचक्रों-षोडश मातृकाओं, चौबीस उपत्यिकाओं एवं चौरासी नाड़ियों को झंकृत करने में मंत्र का उच्चारण क्रम बहुत काम करता है। दिव्य शक्ति के प्रादुर्भूत होने में यह शब्दोच्चार भी एक बहुत बड़ा कारण एवं माध्यम है।

महर्षि पातंजलि के *सादृश्य और आन्तर्य* के सिद्धांत के अनुसार मंन्त्र जिस प्रकार का जपा जाता है वैसी ही सादृश्य ऊर्जा ब्रह्मांड से साधक की ओर आकर्षित होती है। यज्ञ में भी इसी सिद्धांत के अनुसार औषधियों की कारण शक्ति और ब्रह्माण्ड की सादृश्य एनर्जी को आकर्षित किया जाता है और लाभ उठाया जाता है। निश्चित संख्या में जप करना अनिवार्य होता है।

अत्यंत आधुनिक सरल शब्दों में ब्रह्मांड के गूगल से वही डेटा एनर्जी आपतक पहुंचेगा जो आप मंन्त्र द्वारा सर्च कमांड में भेजोगे।

उम्मीद करती हूं मंन्त्र जप से क्यों लाभ मिलता है यह आपको समझ आ गया होगा। और अधिक जानकारी के लिए युगऋषि का साहित्य पढ़िये।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

यज्ञोपैथी सम्बन्धी शंका समाधान* शंका - *भेषज यज्ञ किसे कहते हैं? रोगोपचार हेतु इसका विधि विधान क्या है?*

*यज्ञोपैथी सम्बन्धी शंका समाधान*

शंका - *भेषज यज्ञ किसे कहते हैं? रोगोपचार हेतु इसका विधि विधान क्या है?*

*समाधान* - *वनौषधि यज्ञ को वेदों में भैषज्य यज्ञ कहा है।* भैषजकृतो हवा एवं यज्ञो यत्रैवंविद ब्रह्मा भवति अर्थात् उनमें वैद्यक शास्त्रज्ञ ब्रह्मा होता है, वे भैषज्य यज्ञ हैं।

*भेषज यज्ञ का उद्देश्य* - यज्ञ चिकित्सा में औषधियों को होमीकृत कर उन्हें सूक्ष्मतम बनाना एवं उनके प्रभाव से व्यक्तियों, वातावरण एवं वनस्पतियों को विकारमुक्त/रोगमुक्त करना ही प्रमुख उद्देश्य है।

*औषधि उपचार के मार्ग* - मुखमार्ग(गोली खाना)- रक्तमार्ग(इंजेक्शन) तथा श्वांस(यग्योपैथी से औषधीय धूम्र) मार्ग द्वारा ली जाने वाली औषधि का अलग- अलग प्रभाव पड़ता है। सबसे ज्यादा प्रभावी श्वांस द्वारा ली औषधि होती है, जिसकी पहुंच मष्तिष्क के कोषों तक होती है, फेफड़े क्लीन करते हुए प्राणवायु में मिलकर रक्त में मिलकर समस्त शरीर तक पहुंचती है। यह रोगनाशक के साथ साथ बलवर्द्धक होती है।

*भेषज यज्ञ संक्षिप्त होता है* -
भेषज यज्ञ/हवन देवआह्वान के लिए नहीं, चिकित्सा प्रयोजन के लिए होते हैं, इसलिए इनको देव पूजन आदि की सर्वाङ्गपूर्ण प्रकियायें न बन पड़ें तो चिन्ता की बात नहीं है। ताँबे के हवन कुण्ड में अथवा भूमि पर १२ अँगुल चौड़ी १२ अँगुल लम्बी, ३ अँगुल ऊँची, पीली मिट्टी या बालू की वेदी बना लेनी चाहिए। हवन करने वाले उसके आस- पास बैठें। यदि रोगी भी हवन पर बैठ सकता हो तो उसे पूर्व की ओर मुख कराके बिठाना चाहिए। शरीर- शुद्धि, मार्जन,शिखाबन्धन, आचमन, प्राणायाम, न्यास आदि गायत्री मन्त्र से करके कोई ईश्वर प्रार्थना हिन्दी या संस्कृत की करनी चाहिए। वेदी और यज्ञ का जल, अक्षत आदि से पूजन करके गायत्री मन्त्र के साथ हवन आरम्भ कर देना चाहिए।

*आहुति संख्या एवं क्रम* -
👉🏼 7 आज्याहुति घी से
👉🏼 24 गायत्री मंत्र/सूर्य मंन्त्र/चन्द्र गायत्री मंत्र से
👉🏼 कम से कम 5 या 11 महामृत्युंजय मंत्र से
👉🏼 इसके बाद पूर्णाहुति, वसोधारा, घृतावग्रहाणम और भष्म धारण और शांतिपाठ करके यज्ञ समाप्त करना चाहिए
👉🏼 यज्ञ के पश्चात उतपन्न हुए औषधीय धूम्र वातावरण में रोगी को 10 मिनट गहरी श्वांस लेते हुए गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए। उसके ततपश्चात 20 मिनट अनुलोमविलोम या प्राणाकर्षण प्राणायाम करना चाहिए। इस 30 मिनट की प्रक्रिया में प्राणायाम के माध्यम से अधिक से अधिक धूम्र भीतर प्रवेश करता है जो रोगमुक्ति में सहायक है।
👉🏼 विशेष औषधियों का काढ़ा बनाकर दो वक्त लेना चाहिए।
👉🏼 शाम को एक और बार थोड़ी हवन सामग्री से धूम्र भी लिया जा सकता है।


🙏🏻पूर्णाहुति में सामान्य हवन सामग्री का नहीं वरन् किन्हीं विशिष्ट वस्तुओं का प्रयोग करना पड़ता है। पूर्णाहुति तीन भागों में विभक्त है।
१- स्विष्टकृत होम- जिसमें मिष्ठान्न होमे जाते है।
२- पूर्णाहुति- जिसमें फल होमना होता है।
३- बसोधारा- जिसमें घी की धारा छोडी़ जाती है। इन तीनों कृत्यों को मिलाकर पूर्णाहुति कहा जाती है। इस विधान को प्रधानतया पोषक प्रयोग के रूप में लिया जाता है। निरोधक सामग्री तो हविष्य के रूप में इससे पूर्व ही यजन हो चुकी होती है।

यज्ञ में गौ घृत उपयोग में लिया जाता है।

*यज्ञ चिकित्सा में कलश में रखे जल का भी वैज्ञानिक महत्त्व है।* यह जल यज्ञ प्रक्रिया में यज्ञ ऊर्जा से प्रभावित एवं वाष्पीकृत वनौषधियों के सूक्ष्म गुणों से युक्त होता रहता है। यूनानी चिकित्सा पद्धति द्वारा बनाये जाने वाले अर्क के पीछे भी यही सिद्धान्त है यह जल मंत्रोच्चार द्वारा अभिमन्त्रित किया जाता है। मंत्र की सामर्थ्य जल में होती हैं। इसे रोगी पर शान्तिमन्त्र पढ़ते हुए छिड़कना चाहिए। सूर्य को जल चढ़ाकर थोड़ा जल बचाकर रोगी को पिला भी देना चाहिए।

*यज्ञ में मंन्त्र क्यों बोलकर आहुति देते हैं?* यज्ञ प्रक्रिया में प्रायः हर पदार्थ के कारण शक्ति को उभारा जाता है तभी वह यजनकर्ता के मन और अन्तःकरण में अभीष्ट परिवर्तन ला सकती है। यज्ञ की विशिष्टता उसमें प्रयुक्त होने वाले पदार्थों की सूक्ष्म शक्ति पर निर्भर है। औषधि की कारण शक्ति का उत्पादन अभिवर्धन करने के लिए मंत्रविज्ञान का सहारा लिया जाता है। मंत्रों का चयन ध्वनि विज्ञान चयन ध्वनि के आधार पर किया जाता है। इस कसौटी पर गायत्री मंत्र की सामर्थ्य असामान्य आँकी गयी है। अर्थ की दृष्टि से तो यह मंत्र सामान्य है। उसमें भगवान से सद्बुद्धि की कामना भर की गयी है। पर मंत्र सृष्टाओं की दृष्टि में शब्दों का गुंथन सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। इस आधार पर गायत्री महामंत्र सर्वाधिक प्रभावशाली सिद्ध होता है। यज्ञ में प्रयुक्त अन्य वेद मंत्रों का महत्त्व भी कम नहीं है। वेदमंत्रों का उच्चारण उदात्त- अनुदात्त भावों एवं स्वरित क्रम से मध्यवर्ती उतार- चढ़ाव के साथ किया जाता है। ये सब विधान इस दृष्टि से बनाने पडे़ हैं कि इन मंत्रों का जप अभीष्ट उद्देश्य पूरा कर सकने वाला और शक्ति प्रवाह उत्पन्न कर सके। मंत्र शक्ति की असीम सामर्थ्य के कारण शरीर में यंत्र तत्र सन्निहित अनेकों चक्रों तथा उपत्यिकाओं- ग्रन्थियों में विशिष्ट स्तर का शक्ति संचार होता है।

यज्ञ प्रक्रिया अपने आप में एक समग्र विज्ञान है। इसका प्रत्येक पक्ष विशिष्ट है। यज्ञ समाप्त होने पर बचा अवशिष्ट, स्विष्टकृत के होम से बचा 'चरु' द्विव्य प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। आहुतियों से बचा 'इदन्नमम्' के साथ टपकाया हुआ तथा वसोधारा से बचा घी घृतावघ्राण के रूप में मुख, सिर तथा हृदय आदि पर लगाया व सुधां जाता है। होमीकृत औषधियों एवं अन्य हव्य पदार्थों से संस्कारित भस्म को मस्तक तथा हृदय पर धारण किया जाता है। ये सभी पदार्थ उतना ही प्रभाव डालते हैं जितनी कि हविष्य की आहुतियों से उत्पादित ऊर्जा।

यज्ञोपचार एक समग्र चिकित्सा विज्ञान है, जिसमें शरीर विज्ञान के अनगिनत आयाम, औषधियों के गुण, धर्मों का विवेचन, सूक्ष्मीकरण का सिद्धान्त, मनोविज्ञान एवं मनोचिकित्सा, ध्वनि विज्ञान एवं मंत्र चिकित्सा तथा आस्थाओं के जीवन में समावेश का एक अद्भुत समन्वय है। मनोविकारों और शारीरिक विकारों से पीडि़त असंख्यों मानवों के लिए आज ऐसी ही एक चिकित्सा पद्धति की आवश्यकता है। इन अप्रत्यक्ष रोगों की चिकित्सा हेतु यदि इस चिर- पुरातन पद्धति को आधुनिक सन्दर्भ में पुनर्जीवित किया जा सके। तो पीडि़त मानवता की यह सर्वोपरि सेवा होगी।

उपरोक्त कंटेंट सन्दर्भ पुस्तक युगऋषि परमपूज्य गुरुदेब पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा लिखित पुस्तक - *यज्ञ का ज्ञान विज्ञान* और *यज्ञ एक समग्र उपचार पद्धति* से लिया गया है।

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

शंका- अमुक ***** *सन्त और समाज सुधारक कहते हैं कि घी और मेवे यज्ञ में भष्म करने से अच्छा है उसे किसी गरीब को खिला दो कम से कम पेट तो भरेगा। इसके बारे में अपने विचार दें..*

*यज्ञ सम्बन्धी शंका समाधान*

शंका- अमुक ***** *सन्त और समाज सुधारक कहते हैं कि घी और मेवे यज्ञ में भष्म करने से अच्छा है उसे किसी गरीब को खिला दो कम से कम पेट तो भरेगा। इसके बारे में अपने विचार दें..*

उत्तर - आत्मीय भाई, सभी सन्त और सुधारक वैज्ञानिक भी हों यह जरूरी नहीं है। हर व्यक्ति की अपनी बुद्धि क्षमता है और उसने कितना क्या पढ़ा है और रिसर्च किया है इस बात के आधार पर उनकी बात मानने या न मानने का निर्णय स्वयं के विवेक से लेना चाहिए।

*उदाहरण*- जरूरी नहीं कि प्रसिद्ध कुशल डॉक्टर वक़ालत की समझ रखे और कुशल वक़ील बीमारी की समझ रखे। इसी तरह कुशल इंजीनियर फ़सल की इंजीनियरिंग में सही राय दे सके और किसान भवन निर्माण की इंजीनियरिंग बता सके। तो सबसे पहले किसी अमुक सन्त की बातों पर निर्णय लेने से पहले पता करिये कि इस सम्बंध में क्या उन्होंने कोई साहित्य रिसर्च परक लिखा है, यदि नहीं तो उनके कथन को इग्नोर कीजिये। क्योंकि सब सबकुछ नहीं कर सकते। किसी विशेष में ही कुशल हो सकते हैं।

आज विज्ञान और आधुनिक मशीनों की मदद से बहुत कुछ जांचा परख के समझा और निष्कर्ष निकाला जा सकता है।

कुछ प्रयोग आप स्वयं अपने घर पर करके देखें, मां लीजिये आपके परिवार में पांच सदस्य हैं। सभी सदस्यों का EEG, ब्लड रिपोर्ट और समस्त टेस्ट करवा लीजिये।

अब केवल 3 महीने तक घर के एक सदस्य को देशी घी, गुड़ और सूखे मेवे खिलाइए। पुनः रिजल्ट चेक कीजिये, तो आप पाएंगे कि एक व्यक्ति के खाने पर केवल उसे लाभ मिला। बाक़ी सबको कोई लाभ नहीं मिला।

अब दूसरा टेस्ट कीजिये। जो सामग्री एक व्यक्ति देशी घी, गुड़ और सूखे मेवे खा रहा था केवल उतना ही शान्तिकुंज हरिद्वार या गायत्री तपोभूमि मथुरा या आर्यसमाज से खरीदी हवन सामग्री में मिला लीजिए। आम की लकड़ी या सूखे गाय के गोबर के कंडे में या सूखे नारियल की गिरी को जलाकर 11 गायत्री मंत्र और 5 महामृत्युंजय मंत्र से सपरिवार यज्ञ कीजिये। तीन महीने बाद पुनः हॉस्पिटल में जाकर अपने अपने अपने चेकअप करवा लीजिये। आप पाएंगे कि उतना ही देशी घी, सूखा मेवा और गुड़ से सभी की सेहत सुधर गयी, मनोबल और शरीर बल दोनों बढ़ा, घर के पास के वृक्षों में ग्रोथ बढ़ गयी, एयर इंडेक्स मीटर से चेक करने पर पाएंगे कि घर का प्रदूषण मिट गया, सबको नींद अच्छी आयी, सबके चेहरे पर चमक आ गयी, घर मे सकारात्मक वातावरण बना, सकारात्मकता आप आयन मीटर से चेक कर लीजिए, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन जीरो हो गया इसे भी आप इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन मीटर से चेक कर लीजिए।

कहते हैं प्रत्यक्ष को प्रमाण देने में प्रॉब्लम नहीं होती। स्वयं चेक कर लीजिए या देवसंस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार में आकर चेक कर लीजिए। वैज्ञानिक रिसर्च के साक्षी बनिये। युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी की लिखी दो पुस्तक - *यज्ञ का ज्ञान विज्ञान* और *यज्ञ एक समग्र उपचार* पढ़ लीजिये। यग्योपैथी से रोगों का इलाज़ भी होता है और पर्यावरण का शोधन भी। इसके लिए एक्सपर्ट और यग्योपैथी पीएचडी होल्डर - डॉक्टर ममता सक्सेना, डॉक्टर वंदना इत्यादि डॉक्टर की टीम से मिल भी लीजिये।

अमुक **** सन्त और सुधारक के पास आज का आधुनिक विज्ञान नहीं था इसलिए वो परीक्षण न कर सके, लेकिन हम और आप तो कर सकते हैं।😇😇😇😇

उम्मीद है, आपकी शंका का समाधान हो गया होगा कि कोई पदार्थ नष्ट नहीं होता केवल रूप बदलता है, वायुभूत विधवत वैज्ञानिक तरीके से किया जाय तो अनेकगुणा फलदायी होता है। खिलाओगे तो एक का पेट भरेगा और हवन करोगे तो कईयों को पोषण मिलेगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, जब कर्म फल के अनुसार ही फ़ल भुगतना पड़ेगा, तो फिर हम भगवान की पूजा क्यों करें?*

प्रश्न - *दी, जब कर्म फल के अनुसार ही फ़ल भुगतना पड़ेगा, तो फिर हम भगवान की पूजा क्यों करें?*

उत्तर - आत्मीय भाई, मनुष्य कर्म करने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन कर्म का परिणाम उसके हाथ में नहीं है, ठीक बिल्कुल वैसे ही जैसे विद्यार्थी एग्जाम में कुछ भी कैसे भी लिखने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन परिणाम उसके हाथ में नहीं है। स्कूल में शिक्षक की मर्ज़ी कर बिना विद्यार्थी का स्कूल आनाजाना संभव नहीं उसी तरह भगवान की मर्जी बिना संसार में जीव का जन्म लेना और मृत्यु सम्भव नहीं। क्लास में भी लिखने को स्वतन्त्र हो, जीवन मे भी कर्म करने को स्वतन्त्र हो। स्कूल छूटने पर भी मार्कशीट साथ मिलती है उसी के आधार पर आगे की पढ़ाई या जॉब निर्भर करेगा। इसी तरह इस जन्म को छोड़ने पर भी कर्मफ़ल साथ होगा और आगे के जन्मों पर उसका प्रभाव दिखेगा।

विद्यार्थी पढ़ेगा तो ही पास होगा, तो क्या विद्यालय और शिक्षक की आवश्यकता नहीं? इसी तरह जीव सत्कर्म करेगा तो ही मुक्त होगा तो क्या सांसारिक व्यवस्था और ईश्वर की आवश्यकता नहीं?

अगर पिछले वर्ष फेल हो गए तो इस वर्ष पढ़कर पास हो जाओ, यदि कठिन प्रारब्ध है तो अच्छे कर्म से उसे इस जन्म में बदल दो। कर्म को केवल कर्म द्वारा ही बदला जा सकता है। न पढ़ने से फेल हुए थे तो पढ़कर ही पास दुबारा हुआ जा सकता है। कुकर्मो से प्रारब्ध जनित दुःख दायक कर्मफ़ल को सत्कर्मो से ही काटा जा सकता है। आनन्द पाया जा सकता है।

ईश्वरीय आराधना से मनोबल और सत्प्रवृत्तियां मनुष्य के अंदर बढ़ती है।

ईश्वर को सर्वव्यापी न्यायकारी मानकर उनके अनुशासन को अपने जीवन में उतारिये।
 ‘‘क्योंकि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है।’’
१.    *संसार को ईश्वर ने बनाया है। उसकी व्यवस्था एवं संचालन हेतु विधि-विधान भी उन्होंने बनाया है*। हर व्यक्ति सुखी रहना चाहता है। इस संसार में सुखपूर्वक रहने हेतु मानव को उन विधि विधानों की व्यवस्था को समझना अनिवार्य है।
२.    *अनेक ईश्वरीय विधानों में एक महत्वपूर्ण विधान कर्मफल का सिद्धाँत है। उपासना पद्धति एवं धार्मिक मान्यताएँ भले ही विभिन्न धर्म-सम्प्रदायों में अलग-अलग हों परन्तु सभी ने कर्मफल की अनिवार्यता को मान्यता दी है। *भारतीय संस्कृति के अनुसार मान्यताएँ*-
१. कर्मफल,
२. पुनर्जन्म,
३. आत्मा की अमरता आदि महत्वपूर्ण है।
३.    *कर्मफल का विधान अर्थात् जैसा कर्म वैसा फल। मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है।*
*कर्म प्रधान विश्वरचि राखा, जो जस करहिं सो तस फल चाखा।*
४.    कर्मों का फल तुरन्त नहीं मिलता इससे सदाचारी व्यक्तियों के दु:खी जीवन जीने एवं दुष्ट दुराचारी व्यक्तियों को मौज मजा करते देखा जाने पर कर्मफल के सिद्धाँत पर एकाएक विश्वास नहीं होता।
५.    *कर्मों का फल तत्काल नहीं मिलने के कारण*-
१. फल को परिपक्व होने में समय लगता है।
२. ईश्वर व्यक्ति के धीरज की तथा स्वभाव चरित्र की परीक्षा लेते हैं।
६.    *कर्मों का लेखा-जोखा रखने हेतु चित्रगुप्त (अन्त:करण में गुप्त चित्र) गुप्त रूप से चित्त में चित्रण करता रहता है।*
जैसे- (क)  ग्रामोफोन का बजना, (ख)  आशुलिपिक बहुत बड़ी सामग्री को छोटी रेखाओं में बदल देता है।
(ग)     फिल्मों में बड़े चित्रों को छोटे कैसेट में जैसे बदल दिया जाता है, वैसे ही अचेतन मन में प्रत्येक कर्म व सोच अंकित होती रहती है। निष्पक्ष न्यायाधीश की भाँति अन्तश्चेतना चित्त में ज्यों का त्यों कर्म रेखा को अंकित करती रहती है।
(घ)    *डॉ. बीवेन्स द्वारा शोध-मानव मस्तिष्क में ग्रे मेटर को सूक्ष्मदर्शी यन्त्र से देखने पर पता चलता है कि एक-एक परमाणु में अगणित रेखाएँ हैं*। अक्रिय आलसी एवं विचार शून्य प्राणियों में कम रेखाएँ तथा कर्मनिष्ठ एवं विचारवानों में अधिक कर्म रेखाएँ होती हैं। समझदार ज्ञानी व्यक्ति छोटे दुष्कर्म करके भी बड़े पाप का भागी होता है। अनजान और कम समझदार को उसी कर्म का फल हल्के स्तर का मिलता है। उदाहरण:-मजदूर, किसान व पेशेवर हत्यारा को एक ही कर्म (हत्या) की अलग-अलग सजा मिलना।
(ङ)     *अन्तश्चेतना देवता एवं बाह्य मन राक्षस की भाँति होते हैं*। चित्रगुप्त देवता के देश में रूपयों की गिनती, तीर्थयात्रा, कथावार्ता या भौतिक चीजों से कर्म का माप नहीं बल्कि इच्छा व भावना के अनुसार पाप-पुण्य का लेखा-जोखा होती है। अर्जुन को महाभारत के युद्ध में असंख्य लोगों को मार देने पर भी कोई पाप नहीं लगा क्योंकि उन्होंने धर्म युद्ध किया था।
७. इसी आधार पर *कर्मों का फल पाप और पुण्य के रूप में प्राप्त होता है।*
*कर्म के लेख मिटे न रे भाई, लाख करो चतुराई।*
*जैसी करनी वैसा फल, आज नहीं तो निश्चय कल।*
*एकादशी करो या तीजा, बुरे काम का बुरा नतीजा।*
८. लेकिन कर्मो का फल तुरन्त नहीं मिलता। जैस- फसल का पकना, अदालत का फैसला, पहलवान, विद्वान तुरंत नहीं बनते हैं। वैसे ही दूध से घी बनने की प्रक्रिया की भांति कर्मबीज पकता है तब फिर फल देता है। किन्तु फल मिलता अवश्य है।
९.   *कर्मों का फल अनिवार्य है।*
जैसे: - गर्भ के बालक का जन्म होना अनिवार्य है। भगवान राम ने बालि को छुपकर मारा था, फिर कृष्ण रूप में अवतरित हुए श्रीराम को बहेलिये के रूप में बालि ने मारा था। भीष्म पितामह का मृत्युशैय्या पर द्रौपदी के साथ संवाद में बताना कि शरीर में तीरों के द्वारा रक्त रिसना कर्मफल है। राजा दशरथ का पुत्र शोक में प्राण त्यागना भी उनका कर्मफल था। कर्मफल से भगवान भी नहीं बचते तो सामान्य मनुष्य की बात क्या?
१०. कर्मों की प्रकृति के आधार पर ही उसका फल सुनिश्चित होता है।
*कर्म तीन प्रकार के होते हैं* :-

 १. संचित, २. प्रारब्ध, ३. क्रियमाण।
👉🏼(१)  *संचित कर्म* :-जो दबाव में, बेमन से, परिस्थितिवश किया जाए ऐसे कर्मों का फल १००० वर्ष तक भी संचित रह जाता है। इस कर्म को मन से नहीं किया जाता। इसका फल हल्का धुंधला और कभी-कभी विपरीत परिस्थितियों से टकराकर समाप्त भी हो जाता है।
👉🏼(२) *प्रारब्ध कर्म* :-तीव्र मानसिकता पूर्ण मनोयोग से योजनाबद्ध तरीके से तीव्र विचार एवं भावनापूर्वक किये जाने वाले कर्म। इसका फल अनिवार्य है, पर समय निश्चित नहीं है। इसी जीवन में भी मिलता है और अगले जन्म में भी मिल सकता है।
👉🏼(३)  *क्रियमाण कर्म* :- शारीरिक कर्म जो तत्काल फल देने वाले होते हैं। जैसे- किसी को गाली देना, मारना। क्रिया के बदले में तुरंत प्रतिक्रिया होती है।

११.     *काहू न कोउ सुख दु:ख कर दाता।*
        *निज निज कर्म भोग सब भ्राता।*
    मानव अपने सुख दु:ख का कारण स्वयं ही होता है। धोखा देंगे तो धोखा खाएंगे-दो मित्रों की कहानी। हमारी वर्तमान परिस्थितियाँ दु:ख या सुख सबका कारण अंतत: हम ही हैं। अत: इसके लिए किसी को दोष देना व्यर्थ है।
👉🏼१२.      *तीन प्रकार के दु:ख* :-

(१)  दैहिक-शारीरिक,
(२)  दैविक-मानसिक,
(३)  भौतिक-सामूहिक आकस्मिक दुर्घटनाएँ दैवी प्रकोप आदि।

👉🏼१३. *दु:खों को हल्का करने का उपाय* :-

    मन्त्र जप, ध्यान, अनुष्ठान, साधना-उपासना से मानसिक व सूक्ष्म अन्त: प्रकृति व बाह्य प्रकृति का शोधन होती है। दु:खों, प्रतिकूलताओं को सहने की क्षमता बढ़ जाती है। दु:खों से घबराएँ नहीं, इससे हमारी आत्मा निष्कलुष, उज्जवल, सफेद चादर की भाँति हो जाती है।

*१४. विशेष :-*
१.    सार्वभौम पाप-अपनी क्षमताओं को बह जाने देना।
२.    अन्त:चेतना या ईश चेतना की अवहेलना बड़ा पाप है।
३.    कर्म के बन्धन तथा उससे मुक्ति के उपाय-सुख व दु:ख दोनों ही स्थिति में कोई प्रतिक्रिया न करके उस कड़ी को आगे बढ़ाने से रोकना। सुख को योग एवं दु:ख को तप की दृष्टि से देखें व उसके प्रति सृजनात्मक दृष्टि रखें। सुख के क्षण में इतराएँ नहीं। दु:ख के समय घबराएँ नहीं।
४. दु:ख या विपत्ति हमेशा कर्मों का फल नहीं होती बल्कि हमारी परीक्षा के लिए भी आती है। इनसे संघर्ष करके हमारा व्यक्तित्व चमकदार बनता है। इसलिए दु:खों व प्रतिकूलताओं के समय धीरज रखें डटकर उसका मुकाबला करें। इसके बाद ईश्वरीय न्याय के अनुसार आपको अनुकूलता रूपी प्रमोशन मिलेगा ही।
५. दु:ख, रोग, शोक हमारे जीवन की शुद्धि करके हमें पुन: तरोताजा कर देते हैं। अत: न उससे घबराएँ, न भागें, न ही किसी को कोसें।

*उपरोक्त कंटेंट को समझने हेतु सन्दर्भ पुस्तकें पढ़े जिसे युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है* :-

१. गहना कर्मणोगति:
२. मरने के बाद हमारा क्या होता है?
3. व्यक्ति निर्माण युवा शिविर

       ‘‘कर्म करना बहुत अच्छा है, पर विचारों से आता है। इसलिए अपने मस्तिष्क को उच्च विचारों और उच्चतम आदर्शों से भर लो, उन्हें रात-दिन अपने सामने रखो, उन्हीं में से महान कार्य का जन्म होगा।’’ - *स्वामी विवेकानन्द*

"विचारों पर दृष्टि रखो, यह विचार  कर्मबीज है, विचारों के अनुसार कर्म करने लगोगे, कर्म के अनुसार आदतें बनेगी, फ़िर आदतें चरित्र का निर्माण करेंगी। जैसा सोचोगे वैसा बनोगे.." - *युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 25 September 2018

प्रश्न - *शारदीय नवरात्र 2018 कब से कब तक है, कलश स्थापना मुहूर्त कब का है? गायत्री अनुष्ठान के लिए सङ्कल्प कल लें और पूर्णाहुति कब करें।*

प्रश्न - *शारदीय नवरात्र 2018 कब से कब तक है, कलश स्थापना मुहूर्त कब का है? गायत्री अनुष्ठान के लिए सङ्कल्प कल लें और पूर्णाहुति कब करें।*

उत्तर - आत्मीय भाई, हिन्दू धर्म मे ब्रह्मुहूर्त सिद्ध माना जाता है। अतः जो साधक ब्रह्मुहूर्त में नित्य पूजन करते है, वो सुबह ब्रह्ममुहूर्त में गायत्री जप अनुष्ठान एवं व्रत का संकल्प ले सकते हैं। लेकिन यदि आप चाहें तो अनुष्ठान व्रत का समूह में सङ्कल्प एक दिन पूर्व मंगलवार 9 अक्टूबर शाम को ले सकते हैं।

*नवरात्र व्रत बुधवार 10 अक्टूबर अश्वनि शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से प्रारम्भ है और  गुरुवार 18 अक्टूबर अश्वनि शुक्ल पक्ष नवमी तक है। दशहरा 19 अक्टूबर शुक्रवार को है।*

अश्वनि शुक्लपक्ष प्रतिपदा तो 9 अक्टूबर सुबह 9 बजकर 16 मिंनट पर ही लग जायेगा। लेकिन हिदू धर्म मे जिस तिथि में सूर्य का उदय होता है, उस तिथि की मान्यता और व्रत उसी दिन से माना जाता है। अतः इस नियमानुसार 10 अक्टूबर को सूर्योदय प्रतिपदा तिथि में है। व्रत 10 अक्टूबर से शुरू होगा शान्तिकुंज हरिद्वार पंचांग के अनुसार। नवरात्र 9 दिन का है इस बार और द्वितीया तिथि में सूर्योदय न होने के कारण वह तिथि नहीं है। पंचमी तिथि में दो बार सूर्योदय होने के कारण पंचमी तिथि दो दिन है।

*शारदीय नवरात्रि 2018 कलश स्थापना मुहूर्त*

घट स्थापना तिथि व मुहूर्त - 06:22 से 07:25 (10 अक्तूबर 2018)
प्रतिपदा तिथि प्रारंभ – 09:16 (09 अक्तूबर 2018)
प्रतिपदा तिथि समाप्त – 07:25 (10 अक्तूबर 2018)

*नौ देवियां और उनके दिन*

प्रथम - शैलपुत्री - इसका अर्थ- पहाड़ों की पुत्री होता है। (बुध 10 अक्टूबर)

द्वितीय -ब्रह्मचारिणी - इसका अर्थ- ब्रह्मचारीणी।(बुध 10 अक्टूबर)

तृतीय - चंद्रघंटा - इसका अर्थ- चाँद की तरह चमकने वाली।(गुरु 11 अक्टूबर)

चतुर्थ - कूष्माण्डा - इसका अर्थ- पूरा जगत उनके पैर में है।(शुक्र 12 अक्टूबर)

पंचमी - स्कंदमाता - इसका अर्थ- कार्तिक स्वामी की माता।(शनि 13 अक्टूबर एवं रवि 14 अक्टूबर)

षष्ठी - कात्यायनी - इसका अर्थ- कात्यायन आश्रम में जन्मि।(सोम 15 अक्टूबर)

सप्तमी - कालरात्रि - इसका अर्थ- काल का नाश करने वली।(मंगल 16 अक्टूबर)

अष्टमी - महागौरी - इसका अर्थ- सफेद रंग वाली मां।(बुध 17 अक्टूबर)

नवमी - सिद्धिदात्री - इसका अर्थ- सर्व सिद्धि देने वाली(गुरु 18 अक्टूबर)

गर्भ में कन्या भ्रूण हत्या करवाने वाले और कन्या के पिता को मजबूर करके दहेज लेकर बहु लाने वाले परिवार पर दुर्गा माता कुपित होती हैं। ऐसे पापियों की पूजा नहीं स्वीकारती।

बेटियों को गर्भ में मारोगे तो कन्यापूजन और भोजन हेतु कन्या कहाँ से लाओगे?

माता कहती हैं:-

*निर्मल मन जन सो मोहिं पावा,*
*मोहि कपट छल छिद्र न भावा*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, पितृपक्ष सम्बन्धी जानकारी दें*

प्रश्न - *दी, पितृपक्ष सम्बन्धी जानकारी दें*

उत्तर - आत्मीय बहन, इस वर्ष  25 सितंबर 2018 से 8 अक्टूबर 2018 तक है।

वैसे तो पितृपक्ष में किसी भी दिन नजदीकी शक्तिपीठ, गायत्री युगतीर्थ शान्तिकुंज, और गायत्री तपोभूमि मथुरा जाकर विधिवत श्राद्ध तर्पण कर सकते हैं।

यदि किन्ही कारण से मन्दिर या तीर्थ स्थल में जाकर तर्पण न कर सकें। तो इन 15 दिनों में घर पर ही गायत्री यज्ञ कर लें, खीर का स्विष्टीकृत होम करें और पितरों को श्रद्धा अर्पण कर दें।

यदि यह भी संभव न हो तो 15 दिन नित्य बलिवैश्व यज्ञ में खीर की आहुति देकर श्रद्धा अर्पित करें।

यदि यह भी सम्भव न हो, तो एक ग्लास जल में थोड़ा गुड़ और काला तिल लेकर उस जल को अंजुलि में लेकर - तीन बार निम्नलिखित बोलकर सूर्य को साक्षी मानकर किसी तुलसी के गमले में डाल दें, गुड़ और तिल न हो तो इसे साधारण जल लेकर ही तीन बार कर लें:-
1- पितर शांत हों शांत हों शांत हों
2- पितर तृप्त हों तृप्त हों तृप्त हों
3- पितर मुक्त हों मुक्त हों मुक्त हों।

अश्वनि माह में पितृ पक्ष और नवरात्र माह पड़ता है। अतः इस महीने किसी भी हालत में जो हिन्दू मांसाहारी है जैसे बंगाल प्रान्त और पंजाब प्रांत के उन्हें मांस भक्षण नहीं करना चाहिए। साथ ही पितृ पक्ष में यदि मजबूरी न हो तो कोई नई वस्तु खरीदकर स्वयँ उपयोग नहीं करना चाहिए। नई वस्तु दान हेतु खरीद के दे सकते हैं।

पितृ पक्ष में वस्तु दान, अन्नदान, ज्ञानदान का सबसे ज्यादा महत्त्व है, अतः यदि कहीं पास में कोई मन्दिर बन रहा हो वहां ईंटे या सीमेंट दान दे कर पुण्य का लाभ ले सकते हैं:-

मन्दिर निर्माण में वस्तु दान हेतु:-   *गायत्री शक्तिपीठ झटीकरा में निर्माणकार्य चल रहा है, कृपया ईंट,रेत बदरपुर, सीमेंट, लोहा(सरिया)आदि  साधन-सामग्री दान देकर निर्माणकार्य में देकर अक्षय पुण्य लाभ ले सकते हैं।*

अन्नदान हेतु - *Bank: STATE BANK OF INDIA*
*A/C -     VEDMATA GAYATRI TRUST*
*SBI A/C NO - 10876858311 (11 DIGIT )*
*Address : SHRAVAN NATH NAGAR, HARDWAR, UTTARAKHAND*
*State :       UTTARAKHAND*
*District     : HARIDWAR*
*Branch    : HARIDWAR*
*Contact   : STD:01334227672*
*IFSC Code : SBIN0002350 (used for RTGS and NEFT transactions)*

युगसाहित्य/ज्ञान दान हेतु- *BANK NAME-I.O.B.BANK,*
*BRANCH NAME-YUG NIRMAN YOJANA  TRUST MATHURA,*
*A/C -144102000002021,*
*A/C NAME- YUG NIRMAN YOJANA  VISTAR TRUST, MATHURA*
*I.F.S.CODE NO.- IOBA0001441*

पितृपक्ष में पितरों को ऑटोमैटिक दान उम्रभर चलता रहे इस हेतु वृक्षारोपण सबसे उत्तम है:-

पांच पिंडदान के प्रतीक- पांच वृक्ष (पीपल, बरगद, नीम, बेलपत्र, अशोक) के लगा दें। इन वृक्षों के द्वारा दिया ऑक्सीज़न दान का पुण्य आपके पूर्वजों को सदैव मिलता रहेगा।इतना भी न सम्भव न हो तो कम से कम एक जोड़ा अर्थात दो तुलसी के पौधे घर पर गमलों में लगा लें।

हम सब जीवित हों या मृत, दोनों ही अवस्था मे हमारे पास सूक्ष्म शरीर होता है। सूक्ष्म शरीर हमें जीवित हों या मृत दोनों ही अवस्था में प्राप्त होता है जो भावनाओं का आदान-प्रदान करने में सक्षम होता है। प्राचीन धर्म ग्रन्थ और आधुनिक परामनोविज्ञान मरने के बाद भी आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करता है, भावनात्मक आदान-प्रदान को स्वीकार्य करता है।

पुष्प प्रेम नहीं है, अपितु प्रेम प्रदर्शन में सहायक है। पुष्प द्वारा भक्त भगवान को प्रेम अर्पित करता है और प्रेमी प्रेमिका को प्रेम अर्पित करता है। यहां पुष्प कर्मकांड है और प्रेम भावना ही प्रधान है। इसी तरह श्राद्ध और पिंडदान एक कर्मकांड है, लेकिन मूलतः पितरों के प्रति प्रेम और श्रद्धा भावना ही प्रधान है। पितरों का आशीर्वाद सदा फलदायी है। पितर हमारे अदृश्य सहायक होते हैं।

पिता जी या माता जी की मृत्यु किसी भी दिन हुई हो, यदि उन्हें विशेष श्रद्धा अर्पण करना चाहते हैं। तो मातृ नवमी - 3 अक्टूबर को माताजी के लिए विशेष श्राद्ध अर्पण करें, और पितृमोक्ष अमावस्या- 8 अक्टूबर को पिताजी के लिए विशेष श्राद्ध अर्पण करें। अर्पण शब्द जब तृप्ति हेतु किया जाता है तब यह तर्पण बन जाता है। श्राध्द का अर्थ श्रद्धा भावना ही है। माता-पिता और समस्त पूर्वजो का श्राद्ध-तर्पण एक दिन में ही भी कर सकते हैं।

अध्यात्म एक विज्ञान है, जो टैलीपैथी-सूक्ष्म संवाद मन्त्रों के माध्यम से सूक्ष्म जगत से करने में सक्षम होता है। जो इस विद्या से अंजान है उनके कुतर्क करने पर उनसे व्यर्थ न उलझें। जंगल मे निवास करने वाले वो लोग  जिन्होंने कभी मोबाइल देखा ही नहीं और इसके बारे में कोई जानकारी न हो, तो वो मोबाइल की बात करने पर इसे या तो कुतर्क करके असम्भव बताएंगे या इसे चमत्कार की संज्ञा देंगे। छोटी सी बुद्धि जिसे समझ न सके उसे वो दो ही बातें उस सम्बंध में कह सकती है 1- अंधविश्वास या 2- चमत्कार। वास्तव में श्रद्धा अर्पण करना न अंधविश्वास है और न ही चमत्कार। यह एक अध्यात्म विज्ञान है, जो भावनात्मक आदान-प्रदान पर निर्भर है। सभी धर्मों में इसका प्रतीक पूजन और प्रेयर का विधान मौजूद है।

भारत से अमेरिका जाना हो तो करेंसी तो बदलना पड़ेगा- रुपयों को डॉलर में बदलना पड़ेगा। इसी तरह अमेरिका से भारत आना है तो डॉलर को रूपयों में बदलना पड़ता है। सूक्ष्म जगत की करेंसी पुण्य होती है, जिसे हम दान-तप द्वारा अर्जित करते है। वह पुण्य करेंसी सूक्ष्म जगत में हस्तांतरित की जा सकती है।

*गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों के साथ हम न केवल हाइपोथैलेमस का आह्वान करते हैं, बल्कि सभी 24 ग्रंथियां, जो हमें मानसिक रूप से और शारीरिक रूप से, वैश्विक ऊर्जा के माध्यम से* *भावनात्मक रूप से ठीक करती हैं।*

पितृ पक्ष में अधिक से अधिक पूजा पाठ और दान पुण्य करना चाहिए।
                    
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday 24 September 2018

प्रश्न - *क्या समस्त गायत्री साधकों के लिए उपवीत/यज्ञोपवीत/जनेऊ धारण आवश्यक है? सुना है इसे धारण के नियम बड़े कठिन हैं? इसे आज की भागदौड़ भरी जिंदगी और जॉब करते हुए भी कैसे धारण कर सकते हैं? मार्गदर्शन करें...*

प्रश्न - *क्या समस्त गायत्री साधकों के लिए उपवीत/यज्ञोपवीत/जनेऊ धारण आवश्यक है? सुना है इसे धारण के नियम बड़े कठिन हैं? इसे आज की भागदौड़ भरी जिंदगी और जॉब करते हुए भी कैसे धारण कर सकते हैं? मार्गदर्शन करें...*

उत्तर - आत्मीय भाई,  उत्तर थोड़ा ज्यादा बड़ा है, लेकिन इस विषय की गम्भीरता को देखते हुए इसे इसी रूप में *गायत्री महाविज्ञान* के रेफरेन्स से बता रही हूँ।

कई व्यक्ति सोचते हैं कि यज्ञोपवीत हमसे सधेगा नहीं, हम उसके नियमों का पालन नहीं कर सकेंगे, इसलिये हमें उसे धारण नहीं करना चाहिए। यह तो ऐसी ही बात हुई जैसे कोई कहे कि मेरे मन में ईश्वर भक्ति नहीं है, इसलिये मैं पूजा- पाठ नहीं करूँगा। पूजा- पाठ करने से तात्पर्य ही भक्ति उत्पन्न करना है। यह भक्ति पहले ही होती, तो पूजा- पाठ करने की आवश्यकता ही न रह जाती। यही बात जनेऊ के सम्बन्ध में है। यदि धार्मिक नियमों की साधना अपने आप ही हो जाए, तो उसको धारण करने की आवश्यकता ही क्या? चूँकि आमतौर से नियम नहीं सधते, इसलिये तो यज्ञोपवीत का प्रतिबन्ध लगाकर उन नियमों को साधने का प्रयत्न किया जाता है। जो लोग नियम नहीं साध पाते, उन्हीं के लिये सबसे अधिक आवश्यकता जनेऊ धारण करने की है। जो बीमार है, उसे ही तो दवा चाहिये, यदि बीमार न होता तो दवा की आवश्यकता ही उसके लिये क्या थी?

नियम क्यों साधने चाहिये? इसके बारे में लोगों की बड़ी विचित्र मान्यतायें हैं। कई आदमी समझते हैं कि भोजन सम्बन्धी नियमों का पालन करना ही जनेऊ का नियम है। बिना स्नान किये, रास्ते का चला हुआ, रात का बासी हुआ, अपनी जाति के अलावा किसी अन्य का बनाया हुआ भोजन न करना ही यज्ञोपवीत की साधना है- यह बड़ी अधूरी और भ्रमपूर्ण धारणा है। यज्ञोपवीत का मन्तव्य मानव जीवन की सर्वांगपूर्ण उन्नति करना है। उन उन्नतियों में स्वास्थ्य की उन्नति भी एक है और उसके लिये अन्य नियम पालन करने के साथ- साथ भोजन सम्बन्धी नियमों की सावधानी रखना उचित है। इस दृष्टि से जनेऊधारी के लिये भोजन सम्बन्धी नियमों का पालन करना ठीक है; परन्तु जिस प्रकार प्रत्येक द्विज, जीवन की सर्वांगीण उन्नति के नियमों का पूर्णतया पालन नहीं कर पाता, फिर भी कन्धे पर जनेऊ धारण किये रहता है, उसी प्रकार भोजन सम्बन्धी किसी नियम में यदि त्रुटि रह जाए, तो यह नहीं समझना चाहिये कि त्रुटि के कारण जनेऊ धारण का अधिकार ही छिन जाता है। यदि झूठ बोलने से, दुराचार की दृष्टि रखने से, बेईमानी करने से, आलस्य, प्रमाद या व्यसनों में ग्रस्त रहने से जनेऊ नहीं टूटता, तो केवल भोजन सम्बन्धी नियम में कभी- कभी थोड़ा- सा अपवाद आ जाने से नियम टूट जाएगा, यह सोचना किस प्रकार उचित कहा जा सकता है?

मल- मूत्र के त्यागने में कान पर जनेऊ चढ़ाने में भूल होने का अक्सर भय रहता है। कई आदमी इस डर की वजह से यज्ञोपवीत नहीं पहनते या पहनना छोड़ देते हैं। यह ठीक है कि नियम का कठोरता से पालन होना चाहिये, पर यह भी ठीक है के आरम्भ में इसकी आदत न पड़ जाने तक नौसिखियों को कुछ सुविधा भी मिलना चाहिये, जिससे कि उन्हें एक दिन में तीन- तीन जनेऊ बदलने के लिये विवश न होना पड़े। इसके लिये ऐसा किया जा सकता है कि जनेऊ का एक फेरा गर्दन में घुमा दिया जाय, ऐसा करने से वह कमर से ऊँचा आ जाता है। कान में चढ़ाने का मुख्य प्रयोजन यह है कि मल- मूत्र की अशुद्धता का यज्ञसूत्र से स्पर्श न हो। जब जनेऊ कण्ठ में लपेट दिये जाने से कमर से ऊँचा उठ जाता है, तो उससे अशुद्धता के स्पर्श होने की आशंका नहीं रहती, और यदि कभी कान में न चढ़ाने की भूल हो भी जाए, तो उसको बदलने की आवश्यकता नहीं होती। थोड़े दिनों में जब भली प्रकार आदत पड़ जाती है, तो फिर कण्ठ में लपेटने की आवश्यकता नहीं रहती।

छोटी आयु वाले बालकों के लिये तथा अन्य भुलक्कड़ व्यक्तियों के लिये तृतीयांश यज्ञोपवीत की व्यवस्था की जा सकती है। पूरे यज्ञोपवीत की अपेक्षा दो- तिहाई छोटा अर्थात् एक- तिहाई लम्बाई का तीन लड़ वाला उपवीत केवल कण्ठ में धारण कराया जा सकता है। इस प्रकार के उपवीत को आचार्यों ने ‘कण्ठी’ शब्द से सम्बोधित किया है। छोटे बालकों का जब उपनयन होता था, तो उन्हें दीक्षा के साथ कण्ठी पहना दी जाती थी। आज भी गुरु नामधारी पण्डित जी गले में कण्ठी पहनाकर और कान में मन्त्र सुनाकर ‘गुरु दीक्षा’ देते हैं।

इस प्रकार के अविकसित व्यक्ति उपवीत की नित्य की सफाई का भी पूरा ध्यान रखने में प्राय: भूल करते हैं, जिससे शरीर का पसीना उसमें रमता रहता है, फलस्वरूप बदबू, गन्दगी, मैल और रोग- कीटाणु उसमें पलने लगते हैं। ऐसी स्थिति में यह सोचना पड़ता है कि कोई उपाय निकल आये, जिससे कण्ठ में पड़ी हुई उपवीती- कण्ठी का शरीर से कम स्पर्श हो। इस निमित्त तुलसी, रुद्राक्ष या किसी और पवित्र वस्तु के दानों में कण्ठी के सूत्रों को पिरो दिया जाता है; फलस्वरूप वे दाने ही शरीर का स्पर्श कर पाते हैं, सूत्र अलग रह जाता है और पसीने का जमाव होने एवं शुद्धि में प्रमाद होने के खतरे से बचत हो जाती है, इसलिये दाने वाली कण्ठियाँ पहनने का रिवाज चलाया गया।

पूर्ण रूप से न सही, आंशिक रूप से सही, गायत्री के साधकों को यज्ञोपवीत अवश्य धारण करना चाहिये, क्योंकि उपनयन गायत्री का मूर्तिमान प्रतीक है, उसे धारण किये बिना भगवती की साधना का धार्मिक अधिकार नहीं मिलता। आजकल नये फैशन में जेवरों का रिवाज कम होता जा रहा है, फिर भी गले में कण्ठीमाला किसी न किसी रूप में स्त्री- पुरुष धारण करते हैं। गरीब स्त्रियाँ काँच के मनकों की कण्ठियाँ धारण करती हैं। इन आभूषणों के नाम हार, नेकलेस, जंजीर, माला आदि रखे गये हैं, पर यह वास्तव में कण्ठियों के ही प्रकार हैं। चाहे स्त्रियों के पास कोई अन्य आभूषण हो या न हो, परन्तु इतना निश्चित है कि कण्ठी को गरीब स्त्रियाँ भी किसी न किसी रूप में अवश्य धारण करती हैं। इससे प्रकट है कि भारतीय नारियों ने अपने सहज धर्म- प्रेम को किसी न किसी रूप मंप जीवित रखा है और उपवीत को किसी न किसी प्रकार धारण किया है।

जो लोग उपवीत धारण करने के अधिकारी नहीं कहे जाते, जिन्हें कोई दीक्षा नहीं देता, वे भी गले में तीन तार का या नौ तार का डोरा चार गाँठ लगाकर धारण कर लेते हैं। इस प्रकार चिह्न पूजा हो जाती है। पूरे यज्ञोपवीत का एक- तिहाई लम्बा यज्ञोपवीत गले में डाले रहने का भी कहीं- कहीं रिवाज है।

*जन्म से सभी प्राणी शुद्र है, कर्म से ही ब्राह्मण बनते हैं। ब्राह्मण बनने के लिए मनुष्य दूसरा जन्म/जीवनक्रम गुरू दीक्षा लेने के बाद अपनाता है, तो यह द्विज(दूसरा जन्म) कहलाता है। ब्राह्मण बनने की शर्त है कि ब्रह्म में रमने और स्वयं का आत्म साक्षात्कार हेतु साधक बनना। गायत्री की त्रिसंध्या करना और त्रिपदा गायत्री की मूर्ति (उपासना-साधना-आराधना) को जनेऊ के रूप में धारण कर हर वक्त उसकी प्रेरणा स्मरण रखना कि अब हम आध्यात्मिक है, हमें अब सत्प्रवृत्ति का वरण करना है, और सन्मार्ग पर चलना है। आत्मकल्याण के साथ लोककल्याणार्थ कर्म करने हैं।*

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

कविता - जीवन के देवता को, आओ तनिक संवारे,

जीवन के देवता को,
आओ तनिक संवारे,
स्वास्थ्य के लिए,
चलो छोड़ दें,
स्वाद के बड़े चटखारे।

जीवन के देवता को,
आओ तनिक संवारे,
श्वांसों को लयबद्ध करके,
प्राणों को चार्ज कर डालें,
योग-प्राणयाम अपनाके,
स्वस्थ बलिष्ठ शरीर बना लें।

जीवन के देवता को,
आओ तनिक संवारे,
मन के कुविचारों को,
चलो बाहर का रास्ता दिखा दें,
चलो स्वाध्याय सत्संग से,
अच्छे विचारो की सेना बना लें।

जीवन के देवता को,
आओ तनिक संवारे,
मन को थोड़ा ठहरा के,
चलो ध्यान में डूब जाएं,
मैं क्या हूँ? कौन हूँ?,
चलो ध्यान में पता लगाएं।

जीवन के देवता को,
आओ तनिक संवारे,
चलो मन से दुर्भाव उखाड़े,
आओ मन में सद्भाव उभारें,
चलो आत्मीयता विस्तार से,
पूरे विश्व को कुटुंब बनाएं।

जीवन के देवता को,
आओ तनिक संवारे।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

ब्रह्मांड की शासक सत्ता-मेरी गुरुसत्ता है

*ब्रह्मांड की शासक सत्ता-मेरी गुरुसत्ता है।*

कभी कभी खुद की किस्मत पर,
बहुत नाज़ होता है,
तुझ संग जुड़ने का,
जब अहसास होता है।

कभी कभी....

साक्षात महाकाल को,
मैंने गुरुरूप में पाया है,
जगतजननी का प्यार,
गुरुमां रूप में पाया है।

कभी कभी....

कभी अकेलापन और भय नहीं लगता है,
हर क्षण तेरे संग रहने का अहसास रहता है,
कण कण में समाई जो परम सत्ता है,
वही महाकाल मेरी गुरुसत्ता है।

कभी कभी....

ब्रह्माण्ड की शासक सत्ता,
हमारी गुरुसत्ता है,
इस बात का आभास,
बड़ा अच्छा लगता है।

कभी कभी खुद की किस्मत पर,
बहुत नाज़ होता है,
तुझ संग जुड़ने का,
जब अहसास होता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

रामायण में भोग नहीं त्याग है

रामायण में भोग नहीं त्याग है

भरतजी तो नंदिग्राम में रहते हैं, शत्रुघ्नलालजी महाराज उनके आदेश से राज्य संचालन करते हैं ।

एक एक दिन रात करते करते, भगवान को वनवास हुए तेरह वर्ष बीत गए ।

एक रात की बात है, कौशल्या जी को सोते में अपने महल की छत पर किसी के चलने की आहट सुनाई दी । नींद खुल गई । पूछा कौन है ?

मालूम पड़ा श्रुतिकीर्तिजी हैं । नीचे बुलाया गया ।

श्रुति, जो सबसे छोटी हैं, आईं, चरणों में प्रणाम कर खड़ी रह गईं ।

राममाता ने पूछा, श्रुति ! इतनी रात को अकेली छत पर क्या कर रही हो बिटिया ? क्या नींद नहीं आ रही ? शत्रुघ्न कहाँ है ?

श्रुति की आँखें भर आईं, माँ की छाती से चिपटी, गोद में सिमट गईं, बोलीं, माँ उन्हें तो देखे हुए तेरह वर्ष हो गए ।

उफ ! कौशल्या जी का कलेजा काँप गया ।

तुरंत आवाज लगी, सेवक दौड़े आए । आधी रात ही पालकी तैयार हुई, आज शत्रुघ्नजी की खोज होगी, माँ चलीं ।

आपको मालूम है शत्रुघ्नजी कहाँ मिले ?

अयोध्या के जिस दरवाजे के बाहर भरतजी नंदिग्राम में तपस्वी होकर रहते हैं, उसी दरवाजे के भीतर एक पत्थर की शिला है, उसी शिला पर, अपनी बाँह का तकिया बनाकर लेटे मिले ।

माँ सिराहने बैठ गईं, बालों में हाथ फिराया तो शत्रुघ्नजी ने आँखें खोलीं, माँ !

उठे, चरणों में गिरे, माँ ! आपने क्यों कष्ट किया ? मुझे बुलवा लिया होता ।

माँ ने कहा, शत्रुघ्न ! यहाँ क्यों ?

शत्रुघ्नजी की रुलाई फूट पड़ी, बोले- माँ ! भैया राम पिताजी की आज्ञा से वन चले गए, भैया लक्षमण भगवान के पीछे चले गए, भैया भरत भी नंदिग्राम में हैं, क्या ये महल, ये रथ, ये राजसी वस्त्र, विधाता ने मेरे ही लिए बनाए हैं ?

कौशल्याजी निरुत्तर रह गईं ।

देखो यह रामकथा है...

यह भोग की नहीं त्याग की कथा है, यहाँ त्याग की प्रतियोगिता चल रही है, और सभी प्रथम हैं, कोई पीछे नहीं रहा ।

चारो भाइयो का प्रेम और त्याग  एक दूसरे के प्रति अलौकिक है ।

रामायण जीवन जीने की सबसे उत्तम शिक्षा देती है ।

कविता - माँ वन्दनीया

*माँ वन्दनीया*

हमने तो तुम्हें देखा ही नहीं,
स्थूल रूप में,
चेतना शक्ति में ही तुम्हें जाना,
सूक्ष्म रूप में।

हमारे लिए तो तुम माँ,
जगतजननी हो,
वात्सल्य से भरी,
ममतामयी हो।

तुम्हें पुकारने को,
बस माँ माँ कहते हैं,
बिन मंन्त्र के भी तुमसे,
सहज़ दिल की बात करते हैं।

तुम तो कण कण में,
समाई हुई हो,
तुममें गुरुदेव और तुम गुरुदेव में,
समाई हुई हो।

जन्मतिथि और महाप्रयाण,
यह तो तुम्हारी लीला मात्र है,
शिव-शक्ति रूप में तो,
तुम्हारा कैलाश में ही वास है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

मन को सुकून देने के लिए आप क्या चुन रहे हैं? ध्यान या नशा?

*मन को सुकून देने के लिए आप क्या चुन रहे हैं? ध्यान या नशा?*

यदि जीवन की गाड़ी गड्ढे में फंसी है, और समस्या आ पड़ी है...

तो नशा करके अज्ञानी पशु बनो या राम नाम जपकर ध्यानी, दोनों ही केस में कुछ क्षण के लिए मन समस्या से हट जाएगा और मन भारमुक्त होगा, और शांति मिलेगी।

लेकिन नशे से बाहर आओ या ध्यान से बाहर आओ, दोनों ही केस में गाड़ी गड्ढे में फंसी ही मिलेगी। समस्या को कोई फर्क नहीं पड़ता की तुम ध्यान में हो या नशे में हो...

लेकिन यदि गाड़ी गड्ढे में फंसी है तो स्वयं के पुरुषार्थ से ही बाहर निकलेगी।

 राम नाम जप और ध्यान आपके पुरुषार्थ में और मनोबल में वृद्धि करेगा, दिमाग़ चलेगा और गाड़ी बाहर निकालने में शांत मन मदद करेगा। क्योंकि ध्यान से दिमाग और हृदय को ज्यादा ऑक्सीज़न सप्लाई होता है, सकारात्मक ऊर्जा शरीर और मन को अतिरिक्त बल देता है।

और नशा आपके पुरुषार्थ और मनोबल को कमज़ोर करेगा। नशा उतरने पर हैंगओवर होता है। जिसके कारण शरीर सुस्त और दिमाग़ अस्तव्यस्त होता है। ऐसी स्थिति में गाड़ी तो गड्ढे में पहले से ही थी नशा करने वाला मनुष्य भी उस गड्ढे में गिर जाता है। दिन ब दिन धँसता चला जाता है।

नशे से ज्यादा आनन्द ध्यान में है, बस फर्क इतना है नशा जल्दी असर करता है, मज़ा आता है लेकिन नशा उतरने पर हैंगओवर और सज़ा मिलता है। और ध्यान देर से असर करता है, ध्यान से बाहर आने पर भी मन आनन्दित रहता है। दूरगामी फ़ायदा तो ध्यान ही देता है। आनन्द और परमानन्द मिलता है।

अखिलविश्व गायत्री परिवार आप सबका आह्वाहन करता है, कि अपने अपने क्षेत्र के यूवाओ को नशामुक्त बनाएं। अपने अपने क्षेत्र में इस हेतु जागरूकता अभियान चलाए। युवाओं को योग-प्राणायाम और ध्यान अवश्य सिखाएं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *श्वेता बहन गायत्री मंत्र के साथ बीज मंन्त्र का जप कैसे करेंगे?*



प्रश्न - *श्वेता बहन गायत्री मंत्र के साथ बीज मंन्त्र का जप कैसे करेंगे?*

उत्तर - आत्मीय भाई, नीचे लिखे विधि से करेंगे बीज मंन्त्र का जप:-

ॐ भूर्भुवः स्व: {इस जगह बीजमन्त्र तीन बार बोलेंगे} तत सवितुर्वरेण्य भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात {इस जगह पुनः बीज मंन्त्र तीन बार बोलेंगे} ॐ

उदाहरण काली माता का बीज मंन्त्र *क्लीं* है।

तो मंन्त्र इस प्रकार बोलेंगे/जपेंगे


ॐ भूर्भवः स्व: क्लीं क्लीं क्लीं तत सवितुर्वरेण्य भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात क्लीं क्लीं क्लीं ॐ

उदाहरण- लक्ष्मी माता का बीज मंन्त्र *श्रीं* है।
तो मंन्त्र इस प्रकार बोलेंगे/जपेंगे


ॐ भूर्भवः स्व:  श्रीं श्रीं श्रीं तत सवितुर्वरेण्य भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात  श्रीं श्रीं श्रीं ॐ

इसी तरह आप किसी भी देवता के बीज मंन्त्र का प्रयोग गायत्री मंत्र में कर सकते हैं।

~श्वेता, दिया


Sunday 23 September 2018

स्वच्छता जागरूकता रैली -दिनांक 29 सितम्बर 2018, समय 3 से 6 बजे, कनॉट प्लेस दिल्ली*

*स्वच्छता जागरूकता रैली -दिनांक 29 सितम्बर 2018, समय 3 से 6 बजे, कनॉट प्लेस दिल्ली*

अखिलविश्व गायत्री परिवार आप सभी आत्मीय जनों का आह्वाहन कर रहा है, इस स्वच्छता जागरूकता अभियान में देशहित भागीदारी जरूर करें।

*जब जिस घर में हम रहते हैं वो घर हमें स्वच्छ और सुंदर चाहिए, तो जिस देश में हम रहते हैं वो देश स्वच्छ और सुंदर क्यों नहीं रखते?*

*आइये भारत में गन्दगी क्यों और कैसे फैली हुई है इसका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करते हैं:-*

1- जब तक भारत को मातृ भूमि औऱ जन्मभूमि का सम्मान देते हुए व्यक्ति के अंदर राष्ट्र भक्ति और राष्ट्रचरित्र समाया था। देश हमारा साफ़-स्वच्छ-सुंदर और आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न सोने की चिड़िया भारत कहलाया था। राष्ट्र भक्त देश को अपना घर और देशवासियों को परिवार मानते थे। व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर राष्ट्रहित और समाजहित होता था। इसलिए घर की गंदगी समाज मे नहीं फैलती थी।

2- वर्तमान युग मे व्यक्तिगत हित को सर्वोपरि माना जा रहा है, इसलिए समाजहित उपेक्षित हो रहा है। अतः घर का कचरा रोड पर बिखरा पड़ा है। पार्क और सार्वजनिक जगहों पर लोग कचरा इसलिए फैलाते है क्योंकि उस जगह को अपना और अपने देश का हिस्सा मानते हुए उससे जुड़ाव महसूस नहीं करते।

3- पहले भोजन स्टोर की व्यस्था नहीं थी, तो लोग ताज़ा बनाते थे, जितना खाना होता था केवल उतना बनाते थे और ताज़ा खाते थे। निरोग रहते थे, कूड़ा कम करते थे। प्लास्टिक और फ्रिज़ ने स्टोरिग पॉवर बढ़ा दिया। अब हर घर मे अधिक स्टोर होता है और प्रत्येक गृहणी सप्ताह में दो बार कम से कम कुछ न कुछ फ्रिज़ से निकालकर बाहर फेंकती ही है। पैकेट बन्द भोजन खुलता है, पूरा खाया जाता नहीं फिर आधा फिंकता है। कूड़े के ढेर को बढ़ाता है। प्लास्टिक जमीन को बंजर बना रहा है।

4- लोग आजकल हब्सि हो गए है इसलिए भूख से अधिक थाली में भोजन लेते हैं। बाद में उसे फेंकते हैं। क्योंकि अब कोई अन्न को भगवान का प्रसाद नहीं समझता।

5- केवल आध्यात्मिक दृष्टिकोण से मन में यह भाव उतपन्न होगा कि अन्न पैसे से नहीं ख़रीदा गया है केवल, इसे धरती माँ ने छाती चीर कर उपजाया है, किसान ने महीनों मेहनत की है, कई व्यापारियों का भी समय साधन लगा है, देश की अर्थ व्यवस्था का आधार यह अन्न बड़ी मुश्किल से प्लेट तक पहुंचा है, अतः अन्न हमें बर्बाद नहीं करना चाहिए। इतना न लो थाली में कि व्यर्थ जाए नाली में...

6- यदि कोई अनुष्ठान किसी समस्या का कारण बने तो पुण्य मिलेगा ही नहीं। शादी विवाह हो या शुभ कार्य प्लास्टिक की प्लेट, ग्लास और थर्मोकोल इनके बिना भी पहले शादियां होती थी और अब भी हो सकती हैं। लेकिन एक अनुष्ठान में इतना सारा प्लास्टिक का कूड़ा धरती को बंजर बनाने वाला उतपन्न करने पर धरती का श्राप तो मिलना स्वभाविक है।

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धरती को साफ स्वच्छ सुंदर रखने के लिए प्लास्टिक का प्रयोग बन्द करें, ताज़ा भोजन पकाकर खाएं, अन्न व्यर्थ न करे, प्लास्टिक रिसाइकल हो ऐसी व्यवस्था करें इत्यादि प्रयास तो करें ही। लेकिन सबसे पहले देश को अपना घर और धरती को अपनी माँ माने और स्वच्छ मन, स्वस्थ शरीर और सभ्य समाज के साथ स्वच्छता अभियान घर घर गली मोहल्ले चलाये। मन का स्वभाविक स्वभाब ही स्वच्छता बनाएं।

*दिनांक 29 सितम्बर 2018 को सायं 4 से 6 बजे सेंट्रल पार्क कनाट प्लेस दिल्ली मे एक स्वच्छता रैली/ plogging activity और संकल्प गोष्ठी का आयोजन नई दिल्ली नगरपालिका परिषद के संयोग से किया जा रहा है।सभी लोग 3 बजे हनुमान मंदिर बाबा खड़ग सिंह मार्ग कनाट प्लेस में एकत्रित होंगे। वहां से groups में संघबद्ध तरीके से गुरुद्वारा बंगला साहब के सामने से गोल चक्कर क्रॉस करते हुए पुनः बाबा खड़ग सिंह मार्ग में आ जाना होगा। वहां से चरखा पॉइंट आ कर सेंट्रल पार्क में प्रवेश करेंगे। वहां स्वच्छता ही सेवा विषय पर एक दो नुक्कड़ नाटक ,एक दो जन जागरण गीत के बाद सचिव NDMC सभी को स्वच्छता संकल्प दिलाएंगी। इसके पश्चात 6 बजे विसर्जन।।*

युगऋषि कहते हैं कि परिवर्तन यदि चाहिए तो स्वयं परिवर्तन का हिस्सा बनिए। हम इस महाअभियान में हिस्सेदारी सुनिश्चित करने जा रहे हैं और आपसे आने का अनुरोध करते हैं।

कृपया यदि  सम्भव हो तो कुछ साहित्य बांटने के लिए साथ जरूर लाएं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

जो लोग बूढ़े माता पिता का करें तिरस्कार, उन्हें नहीं मिलना चाहिए श्राद्ध-तर्पण का अधिकार

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जो लोग बूढ़े माता पिता का करें तिरस्कार,
उन्हें नहीं मिलना चाहिए श्राद्ध-तर्पण का अधिकार

समाज भी करे ऐसे लोगों का बहिष्कार,
जो अपने बूढ़े माता पिता का करें तिरस्कार।

जॉब देने वाली कम्पनियां,
प्रोफ़ाइल और बैकग्राउंड चेक करें,
जो अपने बूढ़े माता पिता को ओल्ड एज होम भेजे,
उन्हें नौकरी से तुरन्त मुक्त करें।

~श्वेता, दिया

दो अक्टूबर - व्यसनमुक्ति यज्ञ

*दो अक्टूबर - व्यसनमुक्ति यज्ञ*

अखिलविश्व गायत्री परिवार आप सबका जंतर-मंतर पर नशामुक्ति-व्यसनमुक्ति यज्ञ में आह्वाहन करता है। सभी  2 अक्टूबर दोपहर 12 बजे से 2 बजे तक कार्यक्रम में समय से पहुंचे। सभी धर्म सम्प्रदाय का आह्वाहन हैं।

सरकार नशे के निषेध के नियम और कानून बनाती, माता-पिता नशा न करने के लिए प्रेरित करते हैं, *लेकिन क्या कभी किसी ने युवामन के उस दर्द को समझा है या समझने की कोशिश की है? जिस कारण युवा नशे की गर्त में गिरता है?*

*आइये युवाओं में बढ़ती नशे के प्रति रुचि का कारण निवारण समझते हैं:-*

*कारण और निवारण* - बच्चा एक सुखद संसार का स्वप्न देखते हुए मस्ती करते हुए युवा होता है। बचपन में मात्र एक बार रोने पर जिद पूरी की जाती थी, और प्यार से चुप करवाया जाता था। लेकिन युवा होने पर अब तो पूरा संसार रुला रहा है। कम्पटीशन एग्जाम की टेंशन, जॉब मिलने में कठिनाई, व्यवसाय खड़े करने में कठिनाई, रिश्तों में बढ़ता स्वार्थ, बड़ी मछली छोटी मछली को खाने में जहां लगी हो वहां भयग्रस्त युवा इस विकट पीड़ादायक परिस्थिति से पलायन करना चाहता है।

यह हम सब जानते हैं कि हम देवत्व और पशुत्व के बीच के जीव हैं। अतः वर्तमान जीवन से दूर जाना है तो दो ही मार्ग हैं:- या तो कदम देवत्व की ओर बढ़ाएं या कदम पशुत्व की ओर बढ़ाएं।

देवत्व पहाड़ी है, और पशुवत खाई है, यह सभी जानते हैं ।

पशुवत बनना आसान है, गहरी खाई में गिरने में अत्यंत कम वक्त लगता है, पहाड़ी चढ़ने में वक्त लगता है। नशे में थोड़ी देर के लिए मनुष्यवत अवस्था से मन का पलायन हो जाता है। जिस प्रकार कुत्ते को जॉब और समाज की कोई टेंशन नहीं, वैसे ही नशे में डूबा पशुवत मन समाजिक व्यवस्था को भूलकर बुद्धि से परे चला जाता है। और केवल पशुवत शरीर के अनुभव में रहता है। तुरन्त पशुवत अवस्था में पहुंचकर युवा सोचता है कि वो टेंशनमुक्त हो गया। लेकिन टेंशन तो बढ़ती रहती है, टेंशन का कारण तो जहां था वहीं अभी भी है। जब नशा उतरने पर पुनः मनुष्यवत का बोध होता है तो पुनः पलायन हेतु नशे में डूबना चाहता है। इधर शरीर इस जहरीले रसायन को पचाने लगता है, तो पहले जो कम  मात्रा में नशे से काम चल जाता था, उसे बढाना पड़ता है। इस तरह नशे के सेवन से वो लाचार-बीमार होकर समाज से अलग थलग पड़ जाता है। अब खाई से पुनः मनुष्य की अवस्था मे आने हेतु चढ़ाई चढ़ने पड़ेगी। मनुष्य से देवत्व वाली यात्रा का ही नियम अपनाना पड़ेगा। अतः मनुष्यवत बनने में भी कठिनाई का सामना करना पड़ेगा। पुनः मातापिता, परिवारजन, समाज को टीमवर्क से दुर्गति में पड़े पशुवत युवा को मुख्यधारा में लाना होगा।

*पूर्व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, 3200 अनमोल साहित्य के लेखक, देवसंस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार के फाउंडर, अखिलविश्व गायत्री परिवार के संस्थापक - युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं*- पहाड़ी चढ़ना थोड़ा कठिन कार्य है लेकिन असम्भव नहीं। शुरू में बोरिंग लगता है, लेकिन कुछ समय पश्चात इसके परिणाम आने  लगते हैं और परमशान्ति मिलती है। देवत्व की ऊंचाई में चढ़कर मनुष्यत्व की कठिनाई को आसानी से अवलोकन करके हल किया जा सकता है। बालक निर्माण एक टीम वर्क है। इसके लिए माता-पिता, परिवारजन, शिक्षक और समाज को एकजुट होकर आध्यात्मिक वातावरण विनिर्मित करना पड़ेगा, युगनिर्माण करना होगा। बचपन से बच्चे को ध्यान और स्वाध्याय से जोड़ना होगा, जिससे बड़े होते होते वो देवत्व की चढ़ाई चढ़ने में अभ्यस्त हो जाये और उसे अध्यात्म के सुखद अनुभव मिलने लगे और मन को बेहतर तरीके से प्रबंधित कर सके। सन्तुलित आनन्दित और सद्बुध्दि युक्त युवा मन कभी नशे का सेवन नहीं करेगा।

युगऋषि ने मनुष्य से देवत्व की ओर बढ़ने की विधिव्यवस्था आसान तरीके से 3200 साहित्य के रूप में उपलब्ध करवाया है। अतः युवा के मनोविज्ञान को समझे और अपने बच्चे में देवत्व जगाने और उसके भावनात्मक निर्माण में आज से ही जुट जाएं। और समाज के सदस्य होने के नाते अपने आसपास के युवाओं को भी नशे से बचायें- उनकी भावनात्मक काउंसलिंग करें, ध्यान-योग-प्राणयाम-स्वाध्याय से जोड़े।

आइये नशामुक्ति यज्ञ हेतु जंतर मंतर में उपस्थित होकर अपनी भावनात्मक आहुति दीजिये। अच्छी सोच-भले लोगो को एकजुट होने का समय आ गया है।

*हम तो जा रहे हैं जंतर मंतर...और क्या आप आएंगे? हमे जरूर कन्फर्म करें...*

सभी जंतर मंतर पर कुछ पॉकेट पुस्तक यदि सम्भव हो तो बांटने हेतु जरूर लेकर आये:-

1- मानसिक संतुलन
2- सफल जीवन की दिशा धारा
3- प्राणघातक व्यसन
4- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
5- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
6- निराशा को पास न फटकने दें
7- कठिनाइयों डरे नहीं लड़े
8- शक्तिवान बनिये
9- दृष्टिकोण ठीक रखें
10- पुरानी अखण्डज्योति पत्रिका


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *बाल यौन शोषण* विषय पर अपने विचार दें, कारण और आध्यात्मिक निदान बतायें।

प्रश्न - *बाल यौन शोषण* विषय पर अपने विचार दें, कारण और आध्यात्मिक निदान बतायें।

उत्तर - एक चिकित्सा निदान के रूप में, बाल यौन शोषण *पीडोफिलिया* (या पेडोफिलिया), को आमतौर पर वयस्कों या बड़े उम्र के किशोरों (16 या उससे अधिक उम्र) में मानसिक विकार के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो गैर-किशोर बच्चों (आमतौर पर 13 साल या उससे कम उम्र, हालांकि किशोरवय का समय भिन्न हो सकता है) के प्रति प्राथमिक या विशेष यौन रूचि द्वारा चरितार्थ होता है। ऐसे मानसिक रोगी बच्चो का शोषण करते है, फ़िर भयाक्रांत होकर कभी कभी पकड़े जाने के डर से उनका मर्डर भी कर देते हैं।

*पीडोफिलिया* एक गम्भीर मानसिक बीमारी है, रिसर्च के अनुसार पुरुष इस रोग से ज्यादा प्रभावित होते है, इस रोग से प्रभावित महिलाओं के केस अत्यंत कम रजिस्टर हुए हैं। अमेरिका में इस सम्बंध में कई शोध हुए हैं। बाल यौन शोषण के रोगियों को बच्चे उपलब्ध कराने के लिए विदेशों में देहव्यापार हेतु बच्चो को बड़ी मात्रा में अगवा किया जाता है। गरीब देशों से बच्चे अपहरण किये जाते है।

ऐसे मरीज किसी भी उम्र के हो सकते हैं, ऐसे मरीजों के पास बच्चे भय वश जाना पसंद नहीं करते। ऐसे मरीज कुँवारे और शादीशुदा दोनों होते हैं। यह मरीज अगर कम आय के हुए तो आमतौर पर घर परिवार के बच्चों को अपना शिकार बनाते हैं।  अमीर हुए तो दलालों की मदद से अपनी इच्छा की पूर्ति करते हैं।

अतः यदि आपका छोटा बच्चा किसी रिश्तेदार के पास जाने से भयग्रस्त हो या डरे, तो उसे कभी भी जबरजस्ती न करें। स्कूल से आने पर बच्चे से पूरे दिन का हाल चाल लें। यदि कोई शक जैसी बात हो तो एक्शन लें।

ऐसे रोगी अश्लील साहित्य और वीडियो देखते रहते हैं, अश्लील कल्पना में खोए रहते हैं। यदि आपके घर के आसपास ऐसे रोगी हो तो सतर्क रहें।

अपने बच्चों को गुड टच और बैड  टच से अवगत करवाये। उन्हें सेफ सर्कल फ़ैमिली में कोई भी समस्या हो तो खुलकर बताने को प्रेरित करें। सावधानी से बचाव सम्भव है।

जिन बच्चों के साथ यौनशोषण होता है, वो डरे डरे -सहमे सहमे, गुमसुम रहते हैं। या अत्यधिक तोड़फोड़ और उद्दंडता किसी विशेष को देखकर क्रोध व्यक्त करने के लिए करते हैं।

ऐसे मानसिक रोगी को ठीक करने के उपाय:-

1- ऐसे रोगियों को सकारात्मक विचारों हेतु अच्छे साहित्य का स्वाध्याय करना चाहिए।

2- मानसिक विकारों के शमनार्थ जो यज्ञ औषधि होती है और कॉमन हवन सामग्री में मिलाकर सूर्य गायत्री मंत्र और हनुमान गायत्री मंत्र से करने पर फायदा होता है। गायत्री मंत्र के अनुष्ठान लाभदायक है। तीर्थ सेवन लाभदायक है।

3- हनुमानजी का मंगलवार व्रत और सुंदरकांड पाठ भी कर सकते हैं।

4- मनोचिकित्सक से उपचार करवाएं।

5-  मन के मानसिक विकार को उद्दीप्त करने वाली वस्तुओं और वातावरण से दूर रहना चाहिए।

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घर में यदि अच्छे संस्कार, स्वाध्याय-सत्संग की व्यवस्था रखेंगे, नित्य बलिवैश्व यज्ञ करेंगे, घर मे आध्यात्मिक माहौल रखेंगे। तो ऐसे मनोरोगी आपके घर मे कदम नहीं रख सकेंगे, या घर के भीतर आये भी तो आपके घर की सकारात्मक ऊर्जा और हवन की ऊर्जा उनके मनोविकारों को उद्दीप्त ही नहीं होने देगी।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

कविता - दृष्टि - सत, रज, तम के आधीन

*दृष्टि - सत, रज, तम के आधीन*

जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि,
का राज़ है बड़ा गहरा,
सत रज तम गुणों का,
दृष्टि पर है बड़ा पहरा।

तमोगुण से भरा मन,
मोह और प्रमाद में भटकता,
तम का गहन अंधेरा,
निज व्यक्तित्व में छाया रहता,

कितना भी बड़ा हो,
तम का गहन अंधेरा,
एक सात्विक कर्म के प्रकाश से,
मिट जाता है वह अंधेरा।

रजोगुण से भरा मन,
भोग विलास में रमता,
वासना-कामना के जाल में,
नित्य उलझता रहता।

कितना भी मन उलझा-बिखरा हो,
रज की मोह माया में,
इसका अस्तित्व भी मिट जाता है,
एक सात्विक कर्म प्रकाश से।

सतोगुण से भरे मन में,
सदा आनन्द निवास करता,
उच्चतर लोकों में निवास का,
सतोगुणी मन अधिकारी बन जाता।

परम जागरण का सूत्र,
जो मनुष्य जान जाता,
आत्मबोध कर वह योगी,
परमानन्द में रम जाता।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *श्वेता बेटा, मेरी माता जी 90 वर्ष की उम्र में महाप्रयाण की, वो बहुत धार्मिक और श्रेष्ठ आत्मा थीं। वृद्धावस्था के अंतिम दिनों में बच्चों की तरह जिद्दी हो गयी थीं। मैं उन्हें बहुत प्यार करती थी,

प्रश्न - *श्वेता बेटा, मेरी माता जी 90 वर्ष की उम्र में महाप्रयाण की, वो बहुत धार्मिक और श्रेष्ठ आत्मा थीं। वृद्धावस्था के अंतिम दिनों में बच्चों की तरह जिद्दी हो गयी थीं। मैं उन्हें बहुत प्यार करती थी, उनका ख़्याल रखती थी। मेरी उम्र भी 65+ है और मुझे बैक में स्लिप डिस्क की प्रॉब्लम है, मैं स्वभावतः शांत हूँ, लेकिन माताजी की मृत्यु के कुछ दिन पहले असहनीय बैक पेन के कारण माताजी पर झल्ला उठी, और उसके कुछ दिन बाद माताजी की मृत्यु हो गयी। यह बात मुझे असहनीय पीड़ा दे रही है कि मैंने माताजी से ऊँचे स्वर में बात कर उन्हें समझाया। बताओ इस ग्लानि से मुक्ति कैसे पाऊँ?*

उत्तर - दी चरण स्पर्श कर प्रणाम, आप आज के बच्चो के लिए प्रेरणास्रोत हो, कि अपने माता-पिता की सेवा में आप सदा ततपर थे।

दी, वृद्ध और बालक एक समान होते हैं। ज़िद स्वभाब में आ जाता है। आप भी एक इंसान हो, कोई देवता नहीं हो कि जिससे कोई भूल ही न हो।

एक मां बच्चे को जब प्यार करती है, देखभाल करती है तो बच्चे के समय असमय जिद करने पर डांट-फ़टकार भी लगा सकती है। क्योंकि यह डांट-फ़टकार भी भले के लिए होती है। वृद्धावस्था में भी जब आप सेवा कर रहे हो, उनका प्रेमपूर्वक ध्यान रख रहे हो, तो उनके बेसमय जिद करने पर डांट-फ़टकार उनके हितार्थ कर उन्हें गलत करने से रोककर आप उनका भला ही कर रहे हैं।

अत्यधिक चटपटा, अत्यधिक मीठा, देर रात को गरिष्ठ खाना और रात 10 के बाद दूध वृद्ध व्यक्ति के इच्छा के बाबजूद उन्हें देने पर उनके स्वास्थ्य को हानि होगी और उन्हें दर्द उठाना पड़ेगा। उन्हें सुबह और सप्ताह में एक बार चटपटा-मीठा खिला सकते हैं, याद रखें पाचन संस्थान कमज़ोर है और एक समय मे ज्यादा लोड नहीं ले सकता। *सेवा का सौभाग्य समझ के सेवा करें*, समय समय पर ही भोजन, दूध और दवा देना होगा। प्रत्येक डिमांड न बच्चे की पूरी करना चाहिए और न ही वृद्ध की और न ही जीवनसाथी की। क्योंकि इच्छाएं अनन्त है किसी भी इंसान तो क्या भगवान द्वारा भी उसकी पूर्ति सम्भव नहीं है।

अतः ग्लानि न करें, और स्वयं को सम्हालें, याद रखिये भगवान इंसान के कर्मकांड के पीछे भाव देखता है। इसी तरह मृत्यु पश्चात पितर भी कर्मकांड के पीछे के भाव को समझते हैं, उन्हें अनुभूति है कि आपने उन्हें प्यार से वृद्धावस्था में सम्हाला और किन परिस्थितियों में और क्यों और किस ग़लती के सुधार हेतु डांट-फ़टकार का उपयोग लिया। पितर योनि में पितरों को भगवान की तरह ही अपने बच्चों के हृदय के भाव महसूस हो जाते है, जो जीवित रहते हुए नहीं हो पाते। अतः आपकी माताजी आप पर प्रशन्न हैं।

 *निम्नलिखित तरीके से अपनी माताजी को पितृ पक्ष के शुभ अवसर पर या जब भी आपकी सुविधा हो श्राद्ध और तर्पण दें*:-

1- 5 साड़ियां और स्त्री का सृंगार जो आपके बजट में हो उसे खरीदकर घर लेकर आइये, पितृ पक्ष की मातृ नवमी को भोजन बनाकर सबसे पहले बलिवैश्व यज्ञ कीजिये उस भोजन का और प्रार्थना कीजिये। साड़ी अर्पित कीजिये और भोजन का प्रसाद लगाइए और फिर घर के सबसे बड़े सदस्य को भोजन करवाइये।

2- साड़ी और सामान किसी मंदिर में या किसी गरीब स्त्री को दान दे दीजिए।

3- सुविधानुसार *युग गायत्री तीर्थ शान्तिकुंज हरिद्वार* या *गायत्री तपोभूमि मथुरा* या पास के गायत्री शक्तिपीठ जाकर माता जी का तर्पण कर दीजिए, जो कि वहां निःशुल्क करवाया जाता है।

4- एक ध्यान कीजिये - जैसे बच्चे आरोही क्रम और अवरोही क्रम में गिनती पढ़ते है, वैसे ही स्वयं के घटते क्रम में जन्मदिन याद कीजिये- उदाहरण 65-64-63 से 3-2-1 इस तरह माता के गर्भ में प्रवेश कीजिये, फिर गर्भ से बाहर बिना शरीर के शून्य में स्वयं को महसूस कीजिये। बिना शरीर के भी आपका वजूद है। अब पिछले जन्म के शरीर को जलता हुआ महसूस कीजिये और फिर सोचिए वर्तमान शरीर भो इसी तरह जलेगा। अब पुनः माता के गर्भ में प्रवेश कीजिये, और बढ़ते क्रम में जन्मदिन याद करते हुए वर्तमान उम्र तक आ जाइये। मृत्यु औऱ जन्म वास्तव में क्षणिक है, जो जन्मा है वो मरेगा और मरा है वो पुनः जन्मेगा। अतः माताजी आपकी भी नए शरीर मे प्रवेश करेंगी। जिस तरह पिछला जन्म आपको याद नहीं वैसे ही यह नए जन्म में आपकी माता जी आपको और इस जन्म से जुड़े सब रिश्ते भूल जाएंगी। कर्मो का हिसाब सबका चित्रगुप्त और भगवान सम्हालेंगे।

5- दूसरे ध्यान में स्थूल शरीर को घर छोड़कर सूक्ष्म शरीर से *शान्तिकुंज समाधिस्थल* पर जाइये और गुरुदेब का आह्वाहन कीजिये। फिर गुरुदेब से अपनी माता जी को बुलाने की प्रार्थना कीजिये। माता जी की आत्मा के प्रकट होने पर उन्हें जो आप उनके जीते जी जो नहीं कह पाई वो कहिये, उनके चरण छू कर उनसे जाने-अनजाने में हुई भूल हेतु क्षमा मांगिये। उन्हें नए जीवन और नए शरीर की शुभकामनाएं दीजिये, उन्हें भावभरी विदाई दीजिये। और गुरुदेब को प्रणाम कर पुनः अपने शरीर मे वापस आ जाइये।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
जब आप इस सूक्ष्म ट्रैवेल एजेंसी से जाकर टाइम ट्रैवेल कर लें, माँ से मिलकर सभी गिले शिकवे दूर करके, मन हल्का हो जाये। तो गुरुदेव को धन्यवाद दें, और इस गुरुदेव की सूक्ष्म ट्रैवेल एजेंसी एजेंट श्वेता चक्रवर्ती को ढेर सारा-प्यार-और आशीर्वाद कमीशन में देना न भूलें।😇😇😇😇

हम आशीर्वाद रूपी चेक पेमेंट *व्हाट्सएप*, *टेक्स्ट मेसेज* , *फेसबुक कमेंट* में भी खुशी खुशी स्वीकार करते हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, जीवन में तनाव(टेंशन) ही न हो, यह कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं?*

प्रश्न - *दी, जीवन में तनाव(टेंशन) ही न हो, यह कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं?*

उत्तर- आत्मीय भाई,  *तनावप्रबन्धन - एक कला और एक अध्यात्म विज्ञान है*

किसी परिस्थिति जन्य घटना/समस्या को कुछ लोग समस्या की तरह लेते हैं और कुछ लोग चुनौती की तरह लेते हैं।

*चुनौती* की तरह समस्या को लेने वाला व्यक्ति *समाधान केंद्रित* हो समाधान ढूंढने में जुट जाता है। इसलिए *उसके विचार हल्के नीली और पीली आभा लिए समाधान की खोज ब्रह्माण्ड में विचरते हुए सम्बन्धित समस्या का समाधान ढूंढते हैं*, समस्या के समाधान से सम्बंधित विचार आकर्षित करता है । एक प्रकार से व्यक्ति एकाग्र और ध्यानस्थ हो जाता है। सकारत्मकता से भरा हुआ होता है।  व्यक्ति अंदर से मजबूत होता चला जाता है और आत्मविश्वास बढ़ता चला जाता है।

*समस्या को समस्या समझने वाला व्यक्ति, समस्या केंद्रित होकर चिंता करने लगता है।* इसलिए उसके *विचार समस्या का बोझ लिए भूरे और काले रंग लिए* ब्रह्मांड से समस्या से जुड़े नकारात्मक विचार आकर्षित करते हैं। नकारात्मक विचार दिमाग़ की नसों में खिंचाव/तनाव उतपन्न करके कार्टिसोल जैसे ज़हरीले हार्मोन्स रिलीज़ करवाता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व में बिखराव उतपन्न होता है और अंदर ही अंदर टूटने लगता है।

*तनाव का वास्तव में मतलब है कि समस्या से मानसिक प्रबंधन छोटा होना*

*तनावमुक्त होने का वास्तव में मतलब है कि समस्या से मानसिक प्रबन्धन बड़ा होना*

मानसिक प्रबंधन ही तनाव प्रबंधन है।  वास्तव में विचारो का प्रबंधन है- जिसके अंतर्गत हमें विचारो की सृजनात्मक शक्ति का प्रयोग करना आता है। हमें कौन से विचारो को रखना है और कौन से विचारो को छोड़ना है।

हमें विचारो को ऑन और ऑफ करने के साथ साथ, कौन से विचार को किस तरह सोचना है यह भी आना चाहिए।

👉🏼उदाहरण- जिस विद्यार्थी को पढ़ें तो कैसे पढ़े और सोचें तो कैसे सोचें का ज्ञान होगा, वो भला पढ़ाई को लेकर तनावग्रस्त क्यूं होगा भला?

👉🏼जिस कर्मचारी को यह पता हो कि भाई समस्या झेलने के लिए ही नौकरी मिली है, समस्या ही न होगी तो हमारी जॉब ही चली जायेगी। तो वो तो समस्या देख के कुछ कर गुजरने का सुअवसर, चुनौती रूप में स्वीकारेगा। जिसे समस्या को ठीक कैसे करना आता होगा, समस्या को पहचानना आता होगा, कैसे उस पर चिंतन करना है आता होगा वो भला समस्या के आने पर तनावग्रस्त क्यों होगा भला?

एक और सरल उदाहरण समझते हैं, टीवी घर की बिगड़ गयी, आपको ठीक करना नहीं आता आप तनावग्रस्त हो गए। अब बिगड़ी टीवी लेकर आप कुशल मैकेनिक के पास गए, तो वो क्या टेंशन लेगा? नहीं न...वो बड़े आराम से टीवी खोलेगा, उसे ठीक करेगा और आपको हैंडओवर कर देगा। क्योंकि उसे पता है टीवी कैसे ठीक करना है।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻😇😇😇😇🙏🏻🙏🏻🙏🏻
अतः यह सिद्ध होता है कि तनाव का अर्थ हमारी प्रबंधन क्षमता में अकुशलता है, जिस पर तुरन्त काम करने की आवश्यकता है। विचार प्रबंधन और अपने कार्य क्षेत्र में कुशलता से हम तनाव के अस्तित्व को ही मिटा सकते है। तनाव न हो यह सुनिश्चित कर सकते हैं।

👉🏼 विचारों का प्रबंधन सीखने हेतु निम्नलिखित पुस्तक पढ़िये(http:// literature. awgp. org):-

1- विचारों की सृजनात्मक शक्ति
2- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
3- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
4- दृष्टिकोण ठीक रखें
5- निराशा को पाद न फटकने दें
6- मानसिक संतुलन
7- शक्तिवान बनिये

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday 21 September 2018

बेटियां समाज का गौरव विषय पर उदबोधन के कुछ बिंदु

*बेटियां समाज का गौरव विषय पर उदबोधन के कुछ बिंदु*

प्यारी बेटियों,

1- जिस प्रकार बिना सीमेंट के घर नहीं बन सकता, उसी प्रकार बिना बेटी के घर नहीं बन सकता।

2- सीमेंट घर को मजबूती देता हैं, बेटी का प्यार घर को मजबूती देता है।

3- राष्ट्र की सबसे बड़ी सेवा है, अच्छी सुसंस्कारी बेटियों को बनाना। बेटियां राष्ट्र का गौरव है राष्ट्र निर्मात्री हैं।

4- जिस प्रकार सूखा सीमेंट घर नहीं बना सकता, उसमें जल मिलाने पर वह मजबूती से ईंटे जोड़ता है। उसी तरही स्त्री में भाव सम्वेदना, दया, ममता इत्यादि गुण होने आवश्यक हैं।

5- भगवान अपना सृजन का महान उत्तरदायित्य लड़कियों को दिया है, भगवान के बाद अपने जैसे इंसान को जन्म देना और गर्भ में उसका निर्माण करना केवल स्त्री ही कर सकती है। महान कष्ट उठाकर नया जीवन गढ़ सकती है।

6- पृथ्वी के बाद यदि कोई संसार का भार उठा सकता है तो वो स्त्री ही है।

7- सही अर्थों में बेटी समाज की धरोहर होती है और समाज व देश को बचाने के लिए बेटियों की रक्षा करना जरुरी है। यह तभी संभव हो सकेगा, जब बेटियों के प्रति समाज का नजरिया बदलेगा तथा भ्रूणहत्या, दहेज प्रथा और ख़र्चीली शादी जैसी सामाजिक बुराइयों को जड़ से खत्म किया जाएगा।

8-  बेटियों को स्वयं भी इस दिशा में मिलकर प्रयास करना चाहिए, कुछ ऐसा करना चाहिए कि उन्हें देखकर लोग प्रेरणा लें और बेटियों को पैदा करने पर गर्व महसूस करें।

9- स्त्री को स्त्री का मित्र बनना होगा, प्रत्येक गली शहर मोहल्ले में स्त्री सुरक्षा मंडल होना चाहिए, जिसमें स्त्रियों के अधिकार हेतु लड़कियां आगे आएं।

10- प्रत्येक सरकारी-गैर सरकारी स्कूल में जुडो कराटे स्त्रियों को स्व सुरक्षा हेतु मुफ्त सिखाना चाहिए। मिड डे मील की तरह मिड डे स्वसुरक्षा के गुण सिखाने चाहिए।

11- बेटियों न रूढ़िवादी लोहे की जंजीर में जकड़ो और न ही स्वर्ण-आभूषण और फैशन-व्यसन की सोने की जंजीर में जकड़ो। कैद तो कैद ही होती है, पिंजरा सोने का हो या लोहे का...

12- अपने मान-सम्मान और अधिकारों के लिए एकजुट हो जाओ, साथ ही घर-परिवार-समाज और देश के प्रति अपने कर्तव्य निभाओ।

13- नारी ही पुरुष की जन्मदात्री है, यदि नारी ठान ले तो दो पल में पूरा समाज बदल के रख दे।

14- संगठन में ही शक्ति है, स्त्रियों का सँगठित होकर अपनी ही स्त्री जाती के उद्धार हेतु आगे आकर नारी जागरण करना चाहिए।

15- बेटियों आप ही हमारे समाज का गौरव हो, आत्मनिर्भर और समुन्नत बनो और आगे बढ़ो।

16- पुरुष बनने की नकल मत करो क्योंकि तुम पुरुषों से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हो। पुरुष की नकल करना बेवकूफी है, बल्कि स्वयं को स्त्री के रूप में पूर्ण विकसित करना ही अक्लमंदी है। पुरुष बन गई तो सीमेंट का जोड़ने का गुण खत्म हो जाएगा, एक पुरूष जैसी ईंट बनोगी और न दो पुरुष का विवाह सफल हो सकता है, न दो ईंटे स्वयं जुड़ सकती हैं। घर और समाज दोनों बिखर जाएगा। अतः जिन मूल गुणों के साथ परमात्मा ने आपको बनाया है उन्ही गुणों के साथ उन्नति करो।

17- स्वयं पर पूर्ण विश्वास रखो, साहसी बनो और अपने आपको पूर्णता तक ले जाओ। उठो आगे बढ़ो और तबतक मत रुको जब तक मंजिल न मिल जाये।

18- स्वयं को समाज का अभिन्न अंग मानो, स्वयं को ईश्वर का अंश जानो, और समग्रता से स्वयं के निर्माण में जुट जाओ। तुम्हारे निर्माण से भारत का सुनहरा भविष्य जुड़ा है।

19- नित्य मेडिटेशन करो, स्वयं की सम्पूर्ण शक्तियों को पहचानो।

20- अंत मे आप सभी राष्ट्र की निर्मात्री शक्तियों को पुनः उनके गौरव शाली रूप में प्रतिष्ठित होता  हुआ देखू यही कामना है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Thursday 20 September 2018

नारी जागरण में उद्बोधन के कुछ बिंदु?

*नारी जागरण में उद्बोधन के कुछ बिंदु?*

देश आज़ाद 1947 में हुआ लेकिन क्या हम स्त्रियां आज़ाद हुई थीं? देश की आज़ादी के लिए लड़ाई तो अनेक वीरों ने लड़ी। क्या आप बता सकते हैं उस वीर का नाम जिसने हमें आज़ादी दिलवाई, अकेले इस मुहिम को शुरू किया? जो पुरुष होकर भी हमारे दर्द को समझ के हमारे लिए पूरे समाज और धार्मिक ठेकेदारों से लड़ गया? आइये जानते हैं कैसे?

1- बहनों जब हम में से 90% स्त्रियां जब पैदा हुई थी, तो उनके जन्म पर खुशियां नहीं बल्कि मातम मनाया गया था।

2- जन्मते ही हमें पराया कर दिया गया, और बोल दिया गया यह तो पराया धन है। ताने सुनाये गए कि हम बोझ हैं, दान दहेज़ जुटाना शुरू किया गया। हम अपने ही घर में बेघर थे।

3- घर मे ही भेदभाव लिंग के आधार पर हुआ, भाई को आज़ादी और हमारे ऊपर बंदिशें लगाई गई। हमें समान पढ़ने और बढ़ने के अवसर नहीं मिले।

4- धर्म के ठेकेदारों ने हमारे आध्यात्मिक पंखों को काट दिया यह कह कर के कि हमें मुक्ति का आधार नहीं और हमें गायत्री जप का अधिकार नहीं है। हम अपने ही धर्म में बेघर थे।

5- स्त्रियां ही स्त्रियों की दुश्मन बन गई, पुरुषो के हाथ की कठपुतली बन गयी।

6- कई तो बेनाम जन्म ली और बेनाम ही मर गई, कई तो बिना नाम और पहचान के ग़ुलाम ही रह गयी। बचपन में पिता के नाम से जानी गयी - अमुक की बेटी, विवाह के बाद - अमुक की पत्नी, बच्चे के जन्म के बाद - अमुक की मां।

7- आँवलखेड़ा में हम स्त्रियों का उद्धार करने एक देव महापुरुष जन्मा- पिता रूपकिशोर और माता दान कुँवरि नाम रखा - श्रीराम , पत्थर बनी अहिल्या का उद्धार श्रीराम ने किया, उसी तरह परम पूज्य युगऋषि गुरुदेव पण्डित श्रीराम आचार्य जी हम स्त्रियों की पत्थर बनी किस्मत को जीवनदान दिया। उनका साथ देने आई माता भगवती देवी शर्मा।

8-  90% स्त्रियां किसी न किसी गुलामी में दिखी, कोई रूढ़िवादिता की गुलाम, तो कोई फैशन-व्यसन की गुलाम, तो कोई मानसिक गुलाम। इस कारण वो अपनी प्रतिभा क्षमता का सही उपयोग नहीं कर पा रही थी।

9- आत्म उन्नति अधिकार से वंचित स्त्री नारकीय जीवन व्यतीत कर रही थीं। उनके उद्धार के लिए परमपूज्य गुरुदेब और माताजी पूरे धर्म समाज से स्त्रियों के सम्मान हेतु लड़ाई लड़े। पंडे पुजारी और धर्म के ठेकेदारों का विरोध सहा।

10- आज हम सब ऋणी है परमपूज्य गुरुदेब और माता जी के, जिस अधिकार को संविधान न दे सका उसे गुरुदेव ने हमें दिलवाया। न सिर्फ़ हमें गायत्री का अधिकार दिया, बल्कि हमसे उच्चस्तरीय साधनाएं करवाई। स्त्री को राष्ट्र पुरोहित और युग शिल्पी बनाया। कहाँ जप का अधिकार नहीं था, और अब गुरूकृपा से जप के साथ यज्ञ करने और कराने का अधिकार दिया।

11- एक उद्घोषणा तक कर दी, इक्कीसवीं सदी उज्ज्वल भविष्य और इक्कीसवीं सदी - नारी सदी। पुरुष प्रधान समाज में आपको अंदाजा भी है कि इतना बड़ा स्वप्न न सिर्फ देखा बल्कि नारी जागरण के विभिन्न आंदोलनों के माध्यम से इस स्वप्न को पूरा करने में जुट गए। क्या जो विश्वास हमारे गुरु ने हम पर रखा उस विश्वास की रक्षा करना हम स्त्रियों का कर्तव्य नहीं बनता है?  स्वयं को इस लायक बनाये और अन्य स्त्रियों को आगे बढ़ाएं जिससे इक्कीसवीं सदी-नारी सदी का गुरु सङ्कल्प पूरा हो सके।

12- पुरुष भाईयों को गुरुदेब ने स्त्रियों का सहयोगी बना दिया, उन्हें समझाया कि स्त्री पुरुष एक दूसरे के विरोधी नहीं अपितु एक दूसरे के पूरक हैं। उन्हें घर हो या बाहर दोनों जगह सम्मान मिले यह सुनिश्चित करो। गृहस्थ एक तपोवन बनाओ। स्त्री गुलाम नहीं बल्कि अर्धांगिनी है। आप पति परमेश्वर तब बनने के अधिकारी हो जब स्त्री को आप उतने ही अधिकार और सम्मान से गृह लक्ष्मी देवी के रूप में प्राणप्रतिष्ठा करते हो। एक दूसरे का सम्मान जरूरी है। जिसे ज्यादा भूख लगे वो पहले खा सकता है, पति को आने में ऑफिस के कार्यवश लेट हो रहा है तो पत्नी इंतज़ार में भूखे न मरे और भोजन कर ले। घर मे हो तो भी साथ भोजन करो, सबके खाने के बाद बचा खुचा खाने की परंपरा अनुचित है। कम हो या ज्यादा अपनी रोटी मिल बांटकर खाओ, प्यार सहकार से जीवन बिताओ।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
कभी कभी कुछ लोग मुझसे पूंछते हैं, श्वेता तुम रात को नाइट शिफ्ट में MNC में काम करती हो , देर रात 2 से 3 बजे सोती हो और सुबह गुरुकार्य में जुट जाती हो क्यों? इसलिए क्योंकि जिस गुरु ने स्त्रियों को घर मे इज्जत दिलाई, जिसने स्त्रियों को समाज मे इज्जत दिलाई, जिसने स्त्रियों को धर्म क्षेत्र में इज्जत दिलाई, जिसने स्त्रियों को राष्ट्र पुरोहित बनाया उनका स्त्री होने के नाते मुझपर ऋण है। जितना मेरे गुरु ने मुझे प्यार और स्नेह दिया उतना किसी ने नहीं दिया। स्त्री के दर्द को जो गुरु ने समझा वो किसी ने नहीं समझा। 😭😭😭😭😭😭 मैं 24 घण्टे भी नित्य जग के गुरु के लिए काम करूँ तो भी कम है। हम सभी स्त्रियां आज धर्म क्षेत्र मे मुक्त हुई केवल इन्ही गुरु कृपा से। जिन्होंने हमारे दर्द को समझा उनके लिए तो जान हाज़िर है। गुरुदेव ने जो विश्वास स्त्री जाति पर दिखाया है स्त्री होने के कारण उस विश्वास पर खरा उतरना मेरा कर्तव्य है। जीवन के अंतिम श्वांस तक इक्कीसवीं सदी-नारी सदी के   गुरु सङ्कल्प के लिए प्रयासरत रहूंगी। *आप सभी स्त्रियों पर भी गुरु ऋण है, उनके प्यार स्नेह का ऋण है, उठो स्त्रियों जागो, आगे बढ़ो, और तब तक मत रूकना जब तक - इक्कीसवीं सदी नारी सदी का लक्ष्य हांसिल न हो जाये।* लाखो ने मिलकर देश को आज़ादी दिलवाई उनके सम्मान में तो बहुत कुछ सोचते हो, आज उनके सम्मान में सोचो जो अकेले पूरी दुनियां से लड़ रहा था किसके लिए हमारे और आपके लिए, सबका विरोध झेल रहा था, वो प्यारा गुरु... अब भी कहोगे कि गुरुकार्य के लिए वक्त नहीं...😭😭😭😭

आंखों में आँशु है और हृदय भारी हो गया है..गुरुदेव के प्यार का ऋण इस जन्म में उतारना सम्भव नहीं...मेरे अधिकारों जब मेरे माता-पिता भी इग्नोर किये...उन अधिकारों को और सम्मान को गुरु ने दिलवाया... अब और आगे लिखना सम्भव नहीं हो रहा...आगे का विचार अपनी अन्तरात्मा से सुनिये...

हां... मुस्लिम स्त्रियां आज भी ट्रिपल तलाक और हलाला झेल रही हैं, धार्मिक अधिकारों से वंचित हैं...क्योंकि उनके धर्म मे हमारे गुरु जैसा कोई स्त्री का दर्द समझने वाला महापुरुष पैदा नहीं हुआ...हम बच गए और भाग्यशाली है क्योंकि हमें हमारे परमपूज्य गुरुदेब ने हमें उबार लिया। हम उनके ऋणी हैं।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

शिक्षकों के लिए उद्बोधन के कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदु*

*शिक्षकों के लिए उद्बोधन के कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदु*

 1- planned baby हो या unplanned baby हो पालना तो पड़ेगा। लेकिन यदि मन उसे स्वीकारेगा नहीं तो बच्चा तिरस्कार सहेगा। इसमें बच्चे की कोई गलती नहीं।

2- planned way में  teacher बने हो या unplanned  way में teacher बने हो, टीचर का कर्तव्य तो पालना पड़ेगा। लेकिन यदि मन उसे स्वीकारेगा नहीं तो क्लास का बच्चा तिरस्कार ही सहेगा।

3- टीचर का कितना प्रभाव पड़ता है उसका लेटेस्ट उदाहरण है कि एक अध्यापिका लेटर राइट टू लेफ्ट फार्म करती हैं। उनकी क्लास के समस्त बच्चे ऐसा ही करते हैं। जो करोगे वो बच्चे सीखेंगे।

 4- बच्चो के ऊपर महात्मा गांधी और विवेकानन्द जी का प्रभाव उतना नहीं पड़ता जितना प्रभाव उनके अध्यापक का उन पर पड़ता है। आप चलते फिरते रोल मॉडल हो।

5- बच्चे सुबह से दोपहर तक का सबसे ज्यादा कीमती वक्त स्कूल में आपके साथ बिताते हैं। आप उनकी माइंड प्रोग्रामिंग करते हैं।

6- बालक का निर्माण हालाकिं टीम वर्क है। लेकिन यदि माता पिता कैच छोड़ दें तो अध्यापक पकड़ लेता है। लेकिन अध्यापक की छोड़ी कैच माता पिता कभी नहीं पकड़ पाते।

7- पुलिस और सेना देश को केवल बाहरी सुरक्षा दे सकती है। लेकिन अध्यापक देश को अंदर से मजबूत कर सकता है।

 8- किसी देश की आबादी और बर्बादी उस देश की शिक्षा व्यवस्था पर निर्भर करती है।

9- आपके सहयोग के बिना राष्ट्र का निर्माण हो ही नहीं सकता।

10- चिकित्सक की गलती क़ब्र में दब जाएगी। इंजीनियर की गलती से भवन और पुल बिगड़ेगा। शिक्षक की गलती से समाज दबाह होगा। क्योंकि शिक्षक की गलती जीवित होती है

 11- हम यहां देशहित आये है, आपसे देश के उज्ज्वल भविष्य में सहयोग मांगने।

12- हम यहां इनर इंजीनियरिंग के माध्यम से एक नया दृष्टिकोण और ध्यान के माध्यम से तनाव प्रबंधन सिखाने आये हैं।

13- आप कितने भी बड़े स्कूल के टीचर या प्रिंसिपल हो, आपके बच्चे के लिए माता-पिता ही हो। और आपके बच्चे आपसे ज्यादा अपने शिक्षक को महत्त्व देंगे वो चाहे आपसे कम पढ़ा लिखा ही क्यों न हो।

14- गुरु शिष्य परम्परा पुनः शुरू करने की आवश्यकता है। पेरेंट्स और टीचर के बीच पुनः विश्वास जमाने की आवश्यकता है। क्योंकि बालक निर्माण टीम वर्क है।

15- युगऋषि परमपूज्य गुरुदेब ने कहा है मुझे 1000 निष्ठावान शिक्षक दे दो उस जगह का समाज में बदल के रख दूंगा।

16- आज पूरा देश विकृत चिंतन और कुसंस्कार से उपजी समस्या को झेल रहा है। रेयान इंटरनेशनल स्कूल में क्लास सेकंड के बच्चे का मर्डर सिर्फ इसलिए क्लास 11 के बच्चे ने कर दिया क्योंकि एग्जाम को टालना था।

17- दिल्ली के स्कूल की प्रिंसिपल  को अटेंडेंस कम होने पर एक बड़े बच्चे को एग्जाम में नहीं बैठने दिया। सिर्फ इसलिए उसने प्रिंसिपल को क्रोध में गोली मार दी।

18- छोटी बच्चियों और बच्चो को स्कूल में सेक्स अब्यूज से बचाना एक बड़ा कठिन कार्य बन चुका है।

19- आजकल माता पिता उस लापरवाह गड़रिये की तरह भेड़ो की सुरक्षा कर रहे, जिसने भेड़ो के साथ बाढ़ में भेड़िया भी बन्द कर दिया है। अनियंत्रित इंटरनेट का उपयोग वह भेड़िया है, जो कभी भी नुकसान पहुंचा सकता है।

20- मीडिया, टीवी औऱ फ़िल्म नकारात्मक गन्दी बाते बच्चो को परोस रहे हैं।

21- शिक्षक के रूप में वर्तमान समय मे सभी उपरोक्त जहर का आपको ही इलाज करना है।

22- सबका एंटीडोड राष्ट्रहित तैयार करना है,

23- माता-पिता सक्षम नहीं है बाल निर्माण में अब, तो यह जिम्मेदारी संस्कारो को भी अध्यापक को ही सम्हालनी है।

 24- अतः प्राचीन गुरुकुल परम्परा को वर्तमान शिक्षा प्रणाली में इंजेक्ट करना होगा। कस्टमर-वेंडर रिश्ता समाप्त करके, पुनः गुरु शिष्य परम्परा को स्थापित करना होगा। इसके लिए विचारों की क्रांति - विचारक्रांति करनी होगी।

 25- आधा ग्लास भरा और आधा ग्लास खाली , दोनों ही बाते सच है। लेकिन सुखी रहने हेतु आधा ग्लास भरा देखना और समझना पड़ेगा।

 26- आध्यात्मिक दृष्टिकोण में तो आधा ग्लास पानी से और आधा ग्लास हवा से भरा है। अतः सुख-दुःख दोनों से जीवन भरा है। इसी में जीना है। टेंशन झेलने के लिए ही सैलरी हमें मिलती है ऐसी कोई दुनियाँ में सर्विस नहीं जहां टेंशन न हो। हमारा इनर मैनेजमेंट अगर छोटा हुआ तो समस्या/टेंशन बड़ी लगेगी, यदि हमारा इनर मैनेजमेंट बड़ा हुआ तो समस्या छोटी दिखेगी।

 27- एक बच्चे हो या दस, 24 घण्टे ही मिलेंगे पालने के लिए। एक कम्पनी हो या 10, 24 घण्टे ही मिलेंगे सम्हालने के लिए। अतः समय प्रबंधन तो करना पड़ेगा।

28- शरीर न पढ़ा सकता है और न ही पढ़ सकता है। मन ही पढ़ायेगा और मन ही पढ़ेगा। अतः जितना जरूरी विद्यार्थी का मन से पढ़ना है तो उससे ज्यादा जरूरी अध्यापक का मन से पढ़ाना है। विद्यार्थी और शिक्षक जब दोनों का मन लगेगा तभी शिक्षा सधेगी।

29- नैतिक शिक्षा, सोचने की कला(How to think), पढ़े तो कैसे पढें, एकाग्रता, मन पर नियंत्रण, सोच को बदलना, सोच को छोड़ना इत्यादि गुण शिक्षकों स्वयं सीखना होगा और बालको को सिखाना होगा। तभी परिणाम अच्छे आएंगे।

 30- स्कूल की शानदार बिल्डिंग, स्कूल का अच्छा सेलेब्स शिक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकती। स्कूल के श्रेष्ठ शिक्षक अच्छी शिक्षा सुनिश्चित कर सकते है। स्कूल का नाम भी विद्यार्थियों के और शिक्षक के परफॉर्मेंस पर निर्भर करता है।

🙏🏻 राष्ट्रनिर्माता शिक्षकों को नमन 🙏🏻

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...