Saturday 30 March 2019

प्रश्न - *दी, मेरे परिवार में कोई गायत्री नहीं जपता। आपका फ़ेसबुक लिंक मेरे एक दोस्त ने शेयर किया था। मैं अभी कम्पटीशन की तैयारी कर रहा हूँ।

प्रश्न - *दी, मेरे परिवार में कोई गायत्री नहीं जपता। आपका फ़ेसबुक लिंक मेरे एक दोस्त ने शेयर किया था। मैं अभी कम्पटीशन की तैयारी कर रहा हूँ। हॉस्टल में शेयरिंग में रहता हूँ, पूजा करने की कोई जगह नीचे बैठकर नहीं है। मैं किसी के बहकावे में न आऊँ और कैरियर का लक्ष्य प्राप्त कर लूँ इसके लिए मार्गदर्शन कीजिये। कोर्स की किताबें बहुत है इसलिए कुछ और अच्छी पुस्तकें पढ़ने का वक्त नहीं मिलता, केवल शाम को आपका फ़ेसबुक पोस्ट पढ़ लेता हूँ।*

उत्तर - आत्मीय भाई, दिमाग़ को शांत करने के लिए और पढ़ाई में मन लगाने के लिए तुम निम्नलिखित शांतिकुंज वीडियो देखते हुए सुबह 10 से 15 मिनट मौन मानसिक गायत्री जप बिस्तर पर ही बैठे- बैठे ही कर लो।

सुबह - सुबह शान्तिकुंज लाइव  दर्शन कीजिये, अखण्डदीप, समाधि दर्शन और प्रज्ववलित यज्ञ कुंड देखिए। यह मन को रिलैक्स करेगा।
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https://youtu.be/uf3J58glh-o


शाम को या रात को नादयोग नेत्र बंद के ध्यानस्थ होकर सुनिये

https://youtu.be/zGKtxvlrwI0

जब भी मन उद्विग्न हो शांतिपाठ सुन लो
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https://youtu.be/Z7IbAoIeQu4

आंखे पढ़ पढ़ कर थक जाती हैं तो सुनकर स्वाध्याय कर लो, कम से कम एक गीता की या ध्यान की क्लास रोज या साप्ताहिक सुन लो। ध्यान और गीता के कई सारे वीडियो इंटरनेट पर उपलब्ध हैं, तुम उन्हें सुन सकते हो।
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ध्यान (उगते हुए सूर्य का)
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https://youtu.be/04Dl89YWTYU

गीता(कर्मफ़ल का सिंद्धान्त)
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https://youtu.be/wMPe_TkFVJk

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गायत्री मन्त्रलेखन का अनुभव एक सफल चार्टेड अकाउंटेंट से सुनें, रोज़ एक कॉपी में एक पेज गायत्री मंत्र लिख लो, चाहो तो गायत्री मन्त्रलेखन पुस्तिका ऑनलाइन खरीद लो:-
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https://youtu.be/Y2RBv01uJU4

रविवार के दिन नहाधोकर बिस्तर पर बैठकर, दो कटोरी ले लेना, एक खाली और दूसरी भरी। अब भरी कटोरी से एक चम्मच जल उठाना और गायत्री मंत्र बोलकर स्वाहा के साथ खाली कटोरी में डाल देना। ऐसा 24 बार करना, सूर्य को जल चढ़ा देना और थोड़ा जल बचाकर फिर उस जल को माथे पर लगा लेना।

तुम्हे कोई भटका न सकेगा, किसी के बहकावे में तुम नहीं आओगे। गायत्री मंत्र जप और लेखन से बुद्धिकुशलता बढ़ेगी। गायत्रीमंत्र जप बुद्धि को हँस की तरह बना देता है जो हमारे लिए सही क्या है? और कौन सा मार्ग ग़लत है? इसके निर्णय में मदद करता है।

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https://awgpggn.blogspot.com/2018/12/ias-ias.html


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, रिश्तेदारी और दोस्ती में दोहरे चरित्र के लोगों से कैसे बचें? उनके अंतर्मन में क्या चल रहा है, अनुमान कैसे लगाएं? कौन सही है और कौन गलत कैसे पता लगाए*

प्रश्न - *दी, रिश्तेदारी और दोस्ती में दोहरे चरित्र के लोगों से कैसे बचें? उनके अंतर्मन में क्या चल रहा है, अनुमान कैसे लगाएं? कौन सही है और कौन गलत कैसे पता लगाए*

उत्तर - आत्मीय बहन, किसी के अंतर्मन को पढ़ना केवल दिव्यदृष्टि से ही संभव है। हम और तुम यह काम नहीं कर सकते। लेक़िन थोड़ा बहुत अंदाजा लगाकर इनसे बच सकते हैं।

अगर आलमारी के पीछे चूहा मरा हो और दिख न रहा हो। तो उसकी दुर्गंध बताती है कि चूहा घर में कहीं मरा है। ऐसे ही दोहरे चरित्र वाले काले मन के लोगों के अंतर्मन का कूड़ा भी दुर्गंध देता है। अतः उसे छुपाने के लिए उन्हें अतिरिक्त प्रयास करना पड़ता है।

उसी तरह यदि महकते फूलों का गुलदस्ता कहीं भी नज़रों से ओझल जगह में भी रखा हो तो उसकी खुशबू उसके होने का अहसास करवा देती है।

👉🏼उदाहरण अच्छे लोगों को पहचानने  के तौर पर मम्मी-पापा, अच्छे दोस्तो को लो, उन के मन में तुम्हारे लिए अच्छी भावना है। तो अगर तुम कुछ गलत करो या नशा करो, तो ये मख्खन नहीं लगाएंगे, बल्कि तुम्हें खरी खरी सुनाएंगे। जरूरत पड़ी तो पीटेंगे लेकिन तुम्हें सही राह पर लाएंगे। अक्सर सौम्य होते हैं लेक़िन कभी कभी कड़वे करेले साबित होते हैं लेक़िन स्वास्थ्य और जीवन संवार देते है।

लेक़िन यदि कभी तुम किसी कार्य में असफ़ल हुए तो ये मज़ाक नहीं उड़ाएंगे। समझाएंगे और तुम्हें भावनात्मक सहारा देंगे।

यदि तुम सफ़ल हुए तो वो ऐसे ख़ुशी मनाएंगे मानो वही सफल हुए हैं। तुम्हें सफल बनाने में ऐसे सहयोग करेंगे मानो स्वयं के लिए मेहनत कर रहे हैं।

ये जब आसपास होते हैं, तो मन मे अच्छी अनुभूति होती है।इनके आसपास रहना अच्छा लगता है।

👉🏼उदाहरण दोहरे चरित्र और काले मन के लोगों को पहचानने  के तौर पर उन रिश्तेदारो और बुरे दोस्तो को लो जो केवल तुमसे अपना स्वार्थ साधना चाहते हैं,
*ये आस्तीन के साँप है, मौका मिलने पर डसेंगे*
क्योंकि उन के मन में तुम्हारे लिए बुरी भावना है, तो अगर तुम कुछ गलत करो या नशा करो, तो ये मख्खन लगाएंगे और तुम्हारा सपोर्ट करेंगे, साथ ही तुम्हें गलत राह पर चलाने की पूरी कोशिश करेंगे। तुमसे स्वार्थ साधने के लिए किसी भी हद तक नीचे गिर सकते हैं। व्यवहार कुशल और अत्यधिक मीठी चासनी वाला व्यवहार होता है।

लेक़िन यदि कभी तुम किसी कार्य में असफ़ल हुए तो ये मज़ाक  उड़ाने में पीछे नहीं रहेंगे। तुम्हें आर्थिक, सामाजिक औऱ भावनात्मक नुकसान देंने में पीछे नहीं रहेंगे।

यदि तुम सफ़ल हुए तो वो ऐसा दुःख मनाएंगे मानो कोई मर गया हो। तुम्हें असफल बनाने में और भटकाने में सहयोग करेंगे।

ये जब आसपास होते हैं, तो हमारे अंतर्मन मे अच्छी अनुभूति नहीं होती है। इनके आसपास रहना कहीं न कहीं हमारा अंतर्मन को कचोटता है।

🙏🏻 *बहन, दूसरे के अंतर्मन को पढ़ने में समय व्यर्थ मत करो। बल्कि उचित यह होगा कि अपने अंतर्मन को पढ़ो और थोड़ा ध्यानस्थ होकर उसकी अनुभूति जानने की कोशिश करो। अपनी अंतर्दृष्टि विकसित करो और रोज आधे घण्टे अपने साथ एकांत में होशपूर्वक समय व्यतीत करो, अपनी अनुभूतियों के प्रति जागरूक रहो। जिस प्रकार नाक सुगंध और दुर्गंध को सूंघकर अच्छा और बुरा क्या है बता सकता है, वैसे ही जब अपने अंतर्मन को सुनने लगोगी तो अंतर्मन अनुभूति के आधार पर बता देगा कि कौन अच्छा-उत्तम चरित्र है और कौन दोहरे चरित्र-काले मन का है*।🙏🏻

अच्छे और उत्तम चरित्र के लोगों के साथ रहो और उनके पास रहो, भले ही वो कड़वे करेले की तरह ही तुम्हे डांट- डपटकर अपना अनूठा प्यार जताएं। उनका फटकार ही वास्तव में प्यार है।

दोहरे चरित्र और काले मन के लोगों से दूर रहो, भले ही वो मीठी चीनी की चाशनी सा व्यवहार करें। इनका अत्यधिक मीठापन डायबटीज़ जरूर करेगा। इनके फैलाये मख्खन में गिरना निश्चित है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday 29 March 2019

प्रश्न - *साधु और सन्त को परमहंस की उपाधि कब दी जाती है? परमहंस के बारे में बताइये।*

प्रश्न - *साधु और सन्त को परमहंस की उपाधि कब दी जाती है? परमहंस के बारे में बताइये।*

उत्तर - आत्मीय बहन, परमहंस एक ऐसी अवस्था का नाम है जहां पर कोई भी जीव सांसारिक आसक्तियों से ऊपर उठ चुका होता है वो पहुँचता है। यह अवस्था सिर्फ और सिर्फ समाधि के मार्ग से होकर ही पायी जा सकती है, तथा समाधि में ध्यान के द्वारा ही प्रविष्ट हुआ जा सकता है।

 वैसे तो आज संसार में ध्यान के तरीकों की बाढ़ सी आ गई है परन्तु यह सारे तरीके क्षण भर के लिए हमारे मन को एकाग्र तो कर सकते हैं परन्तु इनसे हम अतल साधना की गहराइयों में नहीं जा सकते।

 हमारे शास्त्रों में वर्णित है कि कोई पूर्ण गुरु और सिद्ध सद्गुरु ही शिष्य की मानसिकता और जीवन को समझकर उसके कल्याण हेतु असल ध्यान का तरीका बता सकता है। ध्यान एक सहज अवस्था है बस जरूरत है तो एक ऐसे पूर्ण गुरु की जो इस अवस्था को उपलब्ध करा दे। ऐसे गुरु की यही पहचान है कि वह दीक्षा के माध्यम से हमारे अन्दर ही प्रभु का प्रकाश रूप में साक्षात्कार करा देता है। आज भी ऐसे गुरु हैं जो यह चमत्कार कर सकते हैं।  इतिहास में यदि एक सरसरी नजर दौड़ाएं तो ऐसे ही महापुरुषों में से राम, कृष्ण, जीसस, बुद्ध, महावीर स्वामी, गुरु साहिब, रामकृष्ण परमंहस, वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य आदि को सद्गुरु इस स्तर का माना जाता है जो शिष्य की चेतना को सहज उर्ध्वगामी अपने तपबल से करने में समर्थ थे।

परमहंस मानसिक रूप से समाधिस्थ रहते हैं और इनकी बुद्धि हँस की तरह होती है। नीर-क्षीर में अंतर कर लेते हैं। जैसे हंस जल के ऊपर तैरता है और साथ में ऊंचा उड़ता है। वैसे ही मात्र जीवनचर्या के निर्वहन को इनकी चेतना शारीरिक गतिविधियों का उपयोग करती, अन्यथा हर वक्त इनकी चेतना शिखर पर समाधिस्थ रहती है। जब यह समाधिस्थ होते हैं, इनके शरीर अरबों मच्छर या मधुमक्खी काटे तो भी इसका भान नहीं होता। धूप, गर्मी, ठण्ड इत्यादि का भान इन्हें समाधिवस्था में नहीं रहता। रूप, रस, गन्ध, शब्द और स्वाद से ये परे हो जाते हैं। इनके लिए शमशान और महल में कोई फर्क नहीं। कड़वे, मीठे, कसैले, खट्टे में कोई भेद नहीं। जो सन्त सूखे नारियल की तरह शरीर मे रहकर भी शरीर से जुदा/परे रहने की अवस्था में होते परमहंस कहलाते हैं, ऐसे सन्तों को ही परमहंस की संज्ञा/उपाधि दी जाती है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Thursday 28 March 2019

प्रश्न - *अघोरी कौन होते हैं? ये श्मशान में क्यों रहते है? क्या ये तांत्रिक होते हैं? कुछ इनके बारे में बताइये*

प्रश्न - *अघोरी कौन होते हैं? ये श्मशान में क्यों रहते है? क्या ये तांत्रिक होते हैं? कुछ इनके बारे में बताइये*

उत्तर - आत्मीय भाई, जैसे गुरुग्राम से दिल्ली पहुंचने के अनेक साधन, वाहन और मार्ग हैं। वैसे ही ईश्वर प्राप्ति के अनेक मार्ग हैं।

औघड़ का अपभ्रंष शब्द औघर और अघोर है। औघड़ (संस्कृत रूप अघोर) शक्ति का साधक होता है।

मान्यताओ के अनुसार अघोर पंथ के प्रणेता भगवान शिव माने जाते हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव ने स्वयं अघोर पंथ को प्रतिपादित किया था। अवधूत भगवान दत्तात्रेय को भी अघोरशास्त्र का गुरू माना जाता है। अवधूत दत्तात्रेय को भगवान शिव का अवतार भी मानते हैं। अघोर संप्रदाय के विश्वासों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और शिव इन तीनों के अंश और स्थूल रूप में दत्तात्रेय जी ने अवतार लिया। अघोर संप्रदाय के एक संत के रूप में बाबा किनाराम की पूजा होती है। अघोर संप्रदाय के व्यक्ति शिव जी के अनुयायी होते हैं। इनके अनुसार शिव स्वयं में संपूर्ण हैं और जड़, चेतन समस्त रूपों में विद्यमान हैं। इस शरीर और मन को साध कर और जड़-चेतन और सभी स्थितियों का अनुभव कर के और इन्हें जान कर मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है।

चंडी, तारा, काली यह सब शक्ति के ही रूप हैं, नाम हैं। यजुर्वेद के रुद्राध्याय में रुद्र की कल्याण्कारी मूर्ति को शिवी की संज्ञा दी गई है, शिवा को ही अघोरा कहा गया है। शिव और शक्ति संबंधी तंत्र ग्रंथ यह प्रतिपादित करते हैं कि वस्तुत: यह दोनों भिन्न नहीं, एक अभिन्न तत्व हैं। रुद्र अघोरा शक्ति से संयुक्त होने के कारण ही शिव हैं। संक्षेप में इतना जान लेना ही हमारे लिए यहाँ पर्याप्त है। बाबा किनाराम ने इसी अघोरा शक्ति की साधना की थी। ऐसी साधना के अनिवार्य परिणामस्वरूप चमत्कारिक दिव्य सिद्धियाँ अनायास प्राप्त हो जाती हैं, ऐसे साधक के लिए असंभव कुछ नहीं रह जाता। वह परमहंस पद प्राप्त होता है। कोई भी ऐसा सिद्ध प्रदर्शन के लिए चमत्कार नहीं दिखाता, उसका ध्येय लोक कल्याण होना चाहिए। औघड़ साधक की भेद बुद्धि का नाश हो जाता है। वह प्रचलित सांसारिक मान्यताओं से बँधकर नहीं रहता। सब कुछ का अवधूनन कर, उपेक्षा कर ऊपर उठ जाना ही अवधूत पद प्राप्त करना है।

*अघोर दर्शन और साधना*

अघोर साधनाएं मुख्यतः श्मशान घाटों और निर्जन स्थानों पर की जाती है। शव साधना एक विशेष क्रिया है जिसके द्वारा स्वयं के अस्तित्व के विभिन्न चरणों की प्रतीकात्मक रूप में अनुभव किया जाता है, जीवन की नश्वरता का और आत्मा की अमरता का तत्काल अनुभव श्मशान में जलती हुई लाशों को देखकर होता है।

*तंत्र साधना में शरीर की व्यवस्था को समझना महत्वपूर्ण है : साधारण अर्थ में तंत्र का अंर्थ तन से, मंत्र का अर्थ मन से और यंत्र का अर्थ किसी मशीन, उपकरण या वस्तु से होता है। तंत्र का एक दूसरा अर्थ होता है व्यवस्था। तंत्र मानता है कि हम शरीर में है यह एक वास्तविकता है। तंत्र में शव साधना के माध्यम से शरीर साधा जाता है। मंन्त्र में माला जप और ध्यान के माध्यम से मन साधा जाता है। यंत्र में आध्यात्मिक शक्तियों को एक उपकरण की तरह साधा जाता है।*

लोग शव देखकर डरते हैं, लेकिन बिन चेतना का शव किसी को नुकसान नहीं पहुंचा सकता। जीवित इंसान ही किसी को नुकसान पहुंचा सकता है। चोरी डकैती और जान-माल का भय तो वस्तुतः जीवित डकैतों से है, मुर्दों से भय की कोई जरूरत नहीं है।

अघोर विश्वास के अनुसार अघोर शब्द मूलतः दो शब्दों 'अ' और 'घोर' से मिल कर बना है जिसका अर्थ है जो कि घोर न हो अर्थात सहज और सरल हो। प्रत्येक मानव जन्मजात रूप से अघोर अर्थात सहज होता है। बालक ज्यों ज्यों बड़ा होता है त्यों वह अंतर करना सीख जाता है और बाद में उसके अंदर विभिन्न बुराइयां और असहजताएं घर कर लेती हैं और वह अपने मूल प्रकृति यानी अघोर रूप में नहीं रह जाता। अघोर साधना के द्वारा पुनः अपने सहज और मूल रूप में आ सकते हैं और इस मूल रूप का ज्ञान होने पर ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है। अघोर संप्रदाय के साधक समदृष्टि के लिए नर मुंडों की माला पहनते हैं और नर मुंडों को पात्र के तौर पर प्रयोग भी करते हैं। चिता के भस्म का शरीर पर लेपन और चिताग्नि पर भोजन पकाना इत्यादि सामान्य कार्य हैं। अघोर दृष्टि में स्थान भेद भी नहीं होता अर्थात महल या श्मशान घाट एक समान होते हैं।

जिस प्रकार नियत बिगड़ने और पथभ्रष्ट होने पर जनता की सेवा के लिए बने नेता, धर्माधिकारी, पुलिस, चिकित्सक, वकील इत्यादि जन सेवा भूलकर जनता लूटने लगते है। वैसे ही नियत बिगड़ने और पथभ्रष्ट होने पर कुछ लोग अघोर तंत्र साधना का दुरुपयोग करते हैं।

जिस प्रकार सद्बुद्धि युक्त नेता, धर्माधिकारी, पुलिस, चिकित्सक, वकील इत्यादि कर्तव्य पालन और जनसेवा करते हैं। वैसे ही सद्बुद्धि युक्त अघोर साधक जनसम्पर्क नहीं करते और एकांत में श्मशान साधना आत्मकल्याण और जनकल्याण के लिए करते हैं।

अतः इनसे भयभीत होने की जरूरत नहीं है, यह किसी का बुरा नहीं करते। डरावने प्रतीकात्मक हड्डियों के मुंड के साथ डरावनी वेशभूषा में इसलिए रहते हैं कि लोग इन्हें डिस्टर्ब न करें। यह बिना बाधा अपनी साधना करते रहें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

कविता - असफलता के कुछ कारण समझें, सफल बनने हेतु ज़रा सम्हले

*असफलता के कुछ कारण समझें, सफल बनने हेतु ज़रा सम्हले*

असफ़ल वो नहीं,
जो ग़लत निर्णय लेता है,
वस्तुतः असफ़ल वह है,
जो कोई निर्णय ही नहीं लेता है।

जो स्वयं को बदलने को,
तैयार नहीं हो रहा है,
वो वास्तव में पिछड़ने को,
तैयार हो रहा है।

जो कुछ नया,
रोज़ नहीं सीखता,
सम्बन्धित ज्ञान,
अर्जित नहीं करता,
वो वस्तुतः अपने कार्यक्षेत्र में,
असफ़ल होने की तैयारी कर रहा है,
जंग लगे हथियार से,
लड़ने की तैयारी कर रहा है।

बारिश भी उसी की मदद कर सकती है,
जिसका खेत तैयार हो,
और बीज बो दिया गया हो।
भगवान भी उसी की मदद कर सकता है,
जिसकी मनोभूमि तैयार हो,
औऱ प्रयत्न का बीज बो दिया गया हो।

तुम्हारी तरक्की,
सिर्फ तुम ही सुनिश्चित कर सकते हो,
तुम्हारी तरक्क़ी,
सिर्फ़ तुम ही रोक सकते हो,
रोड़ा तो सबकी राह में होता है,
असफ़ल रुक जाता है,
सफल व्यक्ति रोड़े से लड़ते हुए,
लक्ष्य तक पहुंच जाता है।

स्वयं को सफल बनाने के लिए,
जो इंसान कमर कस लेता है,
किसी भी हद तक जाने के लिए,
संकल्पित हो जाता है।

लक्ष्य पर,
जो पूर्ण केंद्रित हो जाता है,
उसे पाने को,
तन मन धन से जुट जाता है,
समय की गति को,
जो समझ पाता है,
चुने निर्णय को जो,
सही साबित कर पाता है,
दूरदर्शी, जुनूनी और दुस्साहसी,
बन जाता है,
सफ़लता का असली स्वाद,
वास्तव में वही चख पाता है।

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 27 March 2019

कविता - देश के लिए सही नेतृत्व चुनें,* *देशभक्त केवल देशहित वोट दें*

*देश के लिए सही नेतृत्व चुनें,*
*देशभक्त केवल देशहित वोट दें*
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
भगवान हमारे देश से,
भिक्षावृत्ति की मनोवृत्ति मिटाए,
लोगों का सोया,
आत्मस्वाभिमान जगाएं।

फेंके हुए मुफ्त के पैसे,
कोई न लें,
मेहनत की कमाई खाने में ही,
गर्व महसूस करें।

सभी मिलकर हमारे देश को,
ग़लत हाथों में जाने से बचाईये,
Venezuela जैसा भुखमरी से ग्रस्त देश,
भारत को बनने से बचाईये।

जब टीचर बिन पढ़े क्लास में,
कुछ बच्चों को पास करने लगेंगे,
तो अन्य बच्चे भी गुस्से में,
पढ़ना छोड़ देंगे।

जब नेता टैक्स पेयर के पैसे,
मुफ्तखोरी में वोट पाने की लालसा में लुटाएंगे,
तब टैक्स पेयर गुस्से में,
आगे से टैक्स नहीं चुकायेंगे।

देश फ़िर venezuela की तरह,
भिखारी बन जायेगा,
पाकिस्तान की तरह बर्बाद हो,
कर्जो में लद जाएगा।

विश्व बैंक के आगे,
कटोरा लेकर भीख मांगेगा,
देश के विकास का अस्तित्व,
मुफ्तखोरी में मिट जाएगा।

गलत ड्राईवर एक्सीडेंट करवाता है,
ग़लत नेतृत्व देश को डुबाता है।
मुफ्तखोरी की आदत जो नेता बढाते हैं,
वो देश को विनाश की गर्त में ले जाते हैं।

भारत का आत्मस्वाभिमान,
मुफ्तखोरी में डूबने न दें,
सोच समझ के मतदान करें,
सही नेतृत्व को देशहित चुनें।

भारतीय सेना के हथियार,
देश के बाह्य दुश्मन,
और आतंकवाद को खत्म करेगा,
हमारा एक वोट,
देश के भीतरी दुश्मन,
और गद्दारों को खत्म करेगा।

इसे राजनीतिक कविता न समझें,
किसी पार्टी के लिए वोट,
अपील न समझें,
इसे मात्र देश बचाने की मुहिम समझें,
सोचविचार के देशहित उम्मीदवार चुने,
अपने बच्चों के सुनहरे भविष्य के लिए,
वोट देने की,
एक सद्बुद्धि युक्त अपील समझें।

भूखा नँगा देश,
युवाओं के अकर्मण्यता,
और मुफ्तखोरी की निशानी है,
सुखी समृद्ध देश,
युवाओं के कर्मठशीलता,
और आत्मस्वाभिमानी की निशानी है।

जय हिंद🇮🇳
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *कलावे का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व बताइये?*

प्रश्न -  *कलावे का धार्मिक और  वैज्ञानिक महत्व बताइये?*

उत्तर - कलावा जिसे मौली, चन्द्रमौलि, मणिबन्ध इत्यादि नाम से भी जाना जाता है। मौली हमेशा कच्चे धागे या रेशम के धागे से ही बनाई जाती है। इसमें मूलतः तीन रँग लाल, पीला और हरा ही होता है। यह 3 या 5 धागों से बनती है जिसका अर्थ त्रिदेव की शक्तियां या पंचदेव की शक्तियां धारण करने से है। कहीं कहीं इसमें नीला और सफेद रंग भी उपयोग करते हैं। ब्रह्मा की कृपा से कीर्ति, विष्णु की कृपा से रक्षा बल और शिव की कृपा से दुर्गुणों के के विनाश की भावना की जाती है।


हमेशा हिंदू धर्म में कई रीति-रिवाज तथा मान्यताएं हैं | इन रीति-रिवाजों तथा मान्यताओं का सिर्फ धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक पक्ष भी है, जो वर्तमान समय में भी एकदम सटीक बैठता है | हिंदू धर्म में प्रत्येक धार्मिक कर्म यानि पूजा-पाठ, यज्ञ, हवन आदि के पूर्व ब्राह्मण द्वारा यजमान के दाएं हाथ में कलावा/मौली (एक विशेष धार्मिक धागा) बांधी जाती है |

किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत करते समय या नई वस्तु खरीदने पर हम उसे कलावा/मौली बांधते है ताकि वह हमारे जीवन में शुभता प्रदान करे | कलावा/मौली कच्चे सूत के धागे से बनाई जाती है। यह लाल रंग, पीले रंग, या दो रंगों या पांच रंगों की होती है | इसे हाथ गले और कमर में बांधा जाता है |

शंकर भगवान के सिर पर चंद्रमा विराजमान है इसीलिए उन्हें चंद्रमौली भी कहा जाता है | कलावा/मौली बांधने की प्रथा तब से चली आ रही है जब दानवीर राजा बली की अमरता के लिए वामन भगवान ने उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा था |


*आइये जाने कैसे शुरु हुई कलावा बांधने की परंपरा?*

वैज्ञानिक करणों पर बात करने से पहले आइये बात करते हैं इसके कुछ धार्मिक पहलुओं पर। शास्त्रों के अनुसार कलावा यानी मौली बांधने की परंपरा की शुरुआत देवी लक्ष्मी और राजा बलि ने की थी।

कलावा को रक्षा सूत्र भी कहा जाता है, माना जाता है कि कलाई पर इसे बांधने से जीवन पर आने वाले संकट से रक्षा होती है।

*कैसेगंभीर रोगों से रक्षा करता है कलावा*

शरीर विज्ञान के अनुसार शरीर के कई प्रमुख अंगों तक पहुंचने वाली नसें कलाई से होकर गुजरती है।

कलाई पर कलावा बांधने से इन नसों की क्रिया नियंत्रित रहती है। इससे त्रिदोष यानी वात, पित्त और कफ का सामंजस्य बना रहता है।

माना जाता है कि कलावा बांधने से रक्तचाप, हृदय रोग, मधुमेह और लकवा जैसे गंभीर रोगों से काफी हद तक बचाव होता है।

*कब कैसे धारण करें कलावा*

शास्त्रों के अनुसार पुरुषों एवं अविवाहित कन्याओं को दाएं हाथ में कलावा बांधना चाहिए। विवाहित स्त्रियों के लिए बाएं हाथ में कलावा बांधने का नियम है।


पर्व त्योहार के अलावा किसी अन्य दिन कलावा बांधने के लिए मंगलवार और शनिवार का दिन शुभ माना जाता है।

*कलावा के बारे आधुनिक उदाहरण से व्याख्या*

कलावा एक तरह से  मोबाइल चार्ज के पॉवर बैंक की तरह है, एक बार मंन्त्र से अभिमंत्रित करने पर वह 7 दिन तक मंन्त्र ऊर्जा और पॉजिटिव वाइब्रेशन को स्टोर करके रखता है।  7 दिन तक कलावा बांधने वाला लाभान्वित होता रहता है।

जल जिस तरह मंन्त्र वाइब्रेशन स्टोर कर सकता है, वैसे ही मंन्त्र ऊर्जा को स्टोर करने की ताक़त कलावे और यग्योपवीत में होता है।

*कलावा बांधने का मंन्त्र*

येन बद्धो बलिः राजा दानवेन्द्रो महाबलः ।
तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥

ॐ व्रतेन दीक्षामाप्नोति, दीक्षयाऽऽप्नोति दक्षिणाम् ।
दक्षिणा श्रद्धामाप्नोति, श्रद्धया सत्यमाप्यते ॥

ऐसी मान्यता हैं कि माताओं-बहनों के हाथ से, यज्ञ पुरोहित और पिता के हाथ से कलावा बंधवाने से नकारात्मक शक्ति एवं अन्य बाधाओं से रक्षा होती है ।  इस प्रकार कलावा बाँधकर दोनों एक दूसरे के कल्याण एवं उन्नति की कामना करते हैं । प्रकृति भी जीवन के रक्षक हैं इसलिए  कई स्थानों पर वृक्षों को भी कलावा या सूत बांधी जाती है । ईश्वर संसार के रचयिता एवं पालन करने वाले हैं अतः इन्हें भी रक्षा सूत्र अवश्य बांधना या चढ़ाना चाहिए ।

यह सृष्टि लेन-देन और कर्म के सिंद्धान्त पर आधारित है। देवता भी पहले समर्पण और भक्ति लेते हैं तब ही उनकी कृपा का मनुष्य अधिकारी बनता है।

कलावा ईश्वर  के साथ साझेदारी का भी प्रतीक है। ईश्वर के साथ यह मित्रता-साझेदारी नित्य उपासना, साधना, आराधना, समयदान और अंशदान पर आधारित होती है। जो कलावा बांधता है वो इन उपरोक्त नियमो को पालन करने का वचन देता है, बदले में उसे ईश्वर की कृपा और सुरक्षा का आश्वासन मिलता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 26 March 2019

कविता में - *अशांत मन और बैचैन मन को सम्हालने का फॉर्मूला*

कविता में - *अशांत मन और बैचैन मन को सम्हालने का फॉर्मूला*

मन और मौसम,
हमेशा बदलता रहता है,
इसे बदलने या बिगड़ने से,
रोका नहीं जा सकता है,
केवल उस वक्त क्या करना है,
यह तय किया जा सकता है,
तदनुसार कार्य किया जा सकता है,
या उस स्थान से हटा जा सकता है,
या उस स्थान पर डटा जा सकता है,
भाई स्थान से हटना या डटना सीख के,
मन और मौसम को सम्हाला जा सकता है।

बारिश के मौसम में,
सुरक्षित स्थान पर चले जाओ,
भीगने का मज़ा लो,
या छाता खोलकर,
ख़ुद को भीगने से बचाओ।

गर्मी में छांव और पंखा लो,
सर्दी में गुनगुनी धूप और कम्बल लो,
बदलते मौसम का रूख़ समझ के,
मौसम के अनुसार निर्णय लो।

ऐसे ही यदि मन परेशान है,
बेचैन और अशांत है,
हृदय में भावनाओं का उफान है,
तो मन का मौसम समझो,
औऱ उसके अनुसार निर्णय लो।

जब समस्या सम्हले,
तो कुशलता से सम्हाल लो,
जो समस्या न सम्हले,
तो उसे बहादुरी से स्वीकार लो।

कभी स्थान परिवर्तन कर लो,
तो कभी फ़ोकस परिवर्तित कर लो,
कभी कार्य क्षेत्र बदल लो,
तो कभी उसे करने का तरीका बदल लो।

समस्या पर फ़ोकस करोगे,
तो समस्या बड़ी होती जाएगी,
समाधान पर फ़ोकस करोगे,
तो समस्या घटती जाएगी।

attention जहाँ जाएगा,
साथ में energy flow लाएगा,
tension से attention हटाने पर,
बिन energy के tension मर जाएगा।

मन को तुरन्त शांत करने का,
बड़ा आसान उपाय है,
जलते घी के दीपक पर attention केंद्रित करो,
फ़िर नेत्र बन्द कर,
आती-जाती श्वांस पर focus करो।

कुछ देर में शांति महसूस होने लगेगी,
सहज समाधान मन में उभरेगा,
दीपक की रौशनी पर attention करने पर,
मन का अंधकार definitely छटेगा।

यदि जप सको,
गायत्री मंत्र इसके बाद,
फ़िर तो सोने पे सुहागा होगा,
और ज्यादा लाभ मिलेगा।

उपांशु गायत्री जप ऊर्जा का भंडार देगा,
यह मुँह का अग्निचक्र activate करेगा,
प्राण ऊर्जा का पूर्ण शरीर में संचार करेगा,
यह बुद्धिकुशलता को बढ़ा देगा,
और समस्त समस्या का समाधान प्रदान करेगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday 25 March 2019

कविता - चिन्मय भाई के आपके जन्मदिवस पर

चिन्मय भाई के आपके जन्मदिवस पर,
जन जन हर्षाया है,
देवताओं ने ख़ुश होकर,
आशीष फूल बरसाया है।

सद्गुरु की बगिया में,
आज के ही दिन,
एक देवात्मा,
नर रूप में आया।
ब्रह्माण्ड की ऊर्जा,
देवताओं का आशीर्वाद,
शान्तिकुंज में साथ लाया।

मुख में सूर्य सा तेज़ लिए,
चन्द्र सा मुस्काराया ,
सद्गुरु के रक्त का ओज लिए,
श्रद्धेया की गोद में आया।

उसके बुद्धि में जितनी,
सूर्य सी प्रखरता है,
उतनी ही स्वभाव में,
चन्द्र सी शीतलता है।

गुरूदेव और माताजी के चिन्मय वंशज है,
श्रद्धेय और श्रद्धेया जीजी का चिन्मय अंश है,
युगनिर्माण की वह ध्वज पीतवर्णीय है,
ज्ञान यज्ञ की वह मशाल लालवर्णीय है।

चिन्मय आनन्द स्वरूप,
आप हम सबके भाई है,
सूर्य से यूँ ही चमके सदा,
जन्मदिवस पर आपको,
कोटिशः बधाई है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

कहानी - एक व्यापारी से योगी तक का सफ़र

*एक व्यापारी से योगी तक का सफ़र*

बड़े अमीर घर में जन्मा था, स्वर्ण चाँदियो से खेला था, दुःख अभाव का उसे पता न था, जो मांगा वो सब कुछ पाया था।

इधर एमबीए पास हुआ, उधर योग्य कन्या से उसका विवाह हुआ। एक बेटी का पिता भी बन गया, ख़ानदानी स्वर्ण व्यापार सम्हालने भी लगा।

एक दिन उसके प्राणों से प्यारा दादा गुज़र गया, पहली बार उसने मौत का मंजर घर में देखा। दादा का शरीर ठंडा और निष्प्राण था, उसे करवाया जा रहा  स्नान था।

दादा को स्वर्णाभूषण का बहुत शौक था, अंगूठियों का उनकी उंगलियों में अंबार था।
लेक़िन यह क्या घर वालों ने समस्त आभूषण उतार लिए, चिता पर मात्र एक वस्त्र पहना के लिटा दिया। एक गायत्री परिवार के पुरोहित आये थे क्रिया कर्म करवाने के लिए...

*लड़के ने प्रश्न पूँछा*
- कि ऐसा क्यों किया, दादा जी के समस्त आभूषण क्यों उतारे?
*पण्डित(पुरोहित) ने कहा*
- तुम्हारा दादा यह शरीर छोड़ गया, मरने के बाद कोई कुछ नहीं ले जा सकता है, जो सांसारिक वस्तु है सब यहीं रह जाता। यद्यपि वो तो अपना शरीर भी नहीं ले जा सके। अब यह भी जलाकर नष्ट किया जाएगा।

*लड़का* - लेक़िन दादाजी तो यही है न? ये तो लेटे हैं?
*पुरोहित* - नहीं बेटे यह शव है,
यह मात्र उनका शरीर है, दादा जी शरीर छोड़कर गए,
वो भगवान के पास गए।

*लड़का* - मैं पुनः  दादा से कैसे मिल सकता हूँ?
*पण्डित* - अब असम्भव है, तुम उनसे नहीं मिल सकते।
बेटे, आत्मा शरीर धारण करती है, जन्म लेती है, समय पूरा होने पर इसे छोड़ देती है। पुनः जन्म लेती है।

*लड़का* - क्या आप बता सकते हैं? वो कहाँ जन्मेंगे?
*पण्डित* - नहीं, मुझे नहीं पता। भगवान ही जानता है।

*लड़का*- भगवान कहाँ मिलेंगे यह बताओ?
*पण्डित* - भगवान कण कण में है,  सर्वत्र हैं उनसे  मिलने के लिए बाहर नहीं भीतर अंतर्जगत में प्रवेश करना होगा? अंतर्जगत में जाकर ही उनसे संवाद किया जा सकता है।

*लड़का*- क्या मेरी भी मृत्यु होगी?
*पण्डित* - हाँ, जो जन्मा है वो मरेगा। जो मरेगा वो पुनः जन्मेगा। यह शरीर तुम नहीं हो वस्तुतः तुम एक आत्मा हो। तुम भी यह शरीर ले जा न सकोगे।

*लड़का* - क्या कहा आपने ...मैं आत्मा हूँ? मेरी यह पहचान तो मुझे किसी ने आज तक बताई नहीं। मुझे तो कहा गया, मैं अमुक का बेटा, अमुक गोत्र और अमुक जाति का हूँ। मेरा नाम अमुक है। लेकिन *मैं आत्मा हूँ*। यह तो न घर मे बताया गया और न स्कूल में और न हीं कॉलेज में? पण्डित जी तुम क्या हो? क्या तुम भी आत्मा हो? मेरे पिता भी मात्र आत्मा है?

*पण्डित*- हाँजी मैं भी आत्मा हूँ? यहाँ बैठे सभी आत्मा ही हैं।
*लड़का* - जन्म मरण के कई चक्रों में गुजरने वाला मैं आत्मा हूँ। मरने पर मैं कुछ साथ ले जा नहीं सकता। पूर्व जन्म में भी ऐसा कोई परिवार होगा, आगे के जन्म में भी ऐसा कोई परिवार होगा। आख़िर मैँ वास्तव में हूँ कौन? कहाँ से आया हूँ? कहाँ जाऊँगा? मुझे मेरी वास्तिविकता का स्मरण क्यों नहीं हैं?? अनेकों प्रश्नों से वो युवा लड़का भर उठा।

*पण्डित जी गायत्री परिवार के थे, उन्होंने उसे पाँच पुस्तकें दी*-
📖 मरणोत्तर जीवन
📖 मरने के बाद क्या होता है
📖 मैं क्या हूँ?
📖 अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
📖 ईश्वर कौन है? कहाँ है? कैसा है

दादा की अंतिम इच्छा थी कि पोता ही मुखाग्नि दे, उसने चिता को मुखाग्नि दी। लोगों का क्या अनुभव था पता नहीं लेकिन उस लड़के ने उस चिता में मानो स्वयं को मुखाग्नि दी, स्वयं का ही श्राद्ध तर्पण किया। कुछ उसके भीतर घट गया।

घर आया और श्वेत वस्त्रों को धारण किया और मौन हो गया। घण्टों ध्यानस्थ रहता। समस्त आभूषणों को उतार दिया। पण्डित जी द्वारा दी गयी पुस्तकों को पढ़ने लगा। घर में सब डर गए, कहीं वैराग्य में घर न छोड़ दे।

सब अपनी अपनी तरह से उसे समझा रहे थे, बूढ़े माता-पिता उसे अपनी दुहाई दे रहे थे, पत्नी उसे स्वयं की और अपनी बच्ची की दुहाई दे रही थी।

*लड़का बोला* - पिताजी *आपने मुझसे झूठ बोला और मुझे एक झूठी पहचान बताई। मुझे नहीं बताया कि मैं एक आत्मा हूँ,* आपसे पहले भी मेरे कई पिता कई जन्मों में हो चुके हैं, हे माता मैं कई गर्भो में जन्म ले चुका हूँ, कई जन्मों में कई परिवारों में रह चुका हूँ।

मैं वास्तव में कौन हूँ? मैं क्या हूँ? मैं किस यात्रा में हूँ? अब मुझे जानना है।

चिंता मत कीजिये, मैं आप सबको छोड़कर जंगल मे नही जाऊंगा और अपने कर्तव्य निभाऊंगा। लेक़िन *अब जब होश में आ गया हूँ तो अब तक का बेहोश जीवन भी जी न पाऊँगा*। यदि मुझे होश में जीने दें तो मैं यही रहकर स्वयं को जानने की अंतर्जगत की यात्रा प्रारम्भ करना चाहता हूँ।

*लड़के का शरीर, परिवार, घर और व्यापार सब कुछ वही था, लेक़िन उसकी मनःस्थिति बदल चुकी थी*। जो वो ले जा नहीं सकता अब उस धन के पीछे भागना उसने छोड़ दिया था। निर्लिप्त भाव से कीचड़ में कमल की तरह वो खिल उठा था। उसकी चेतना ऊपर उठ चुकी थी। वह कार्य निपटा कर सुबह शाम घण्टों ध्यानस्थ बैठा रहता, सप्ताह में एक दिन कण कण में विद्यमान परमात्मा की सेवा में लगाता। उसने अपने शहर के सभी अपंगों को जरूरी उपकरण दिए। नए रोजगार के अवसर दिए। रोज़ रात को जरूरतमंदों की मदद चुपके से कर देता। गरीब कन्याओं के सामूहिक विवाह करवाता।

*वह व्यापारी से योगी बन गया था, दीप बनकर जल गया था*। स्वयं प्रकाशित हो दूसरों के जीवन के अंधेरे दूर कर रहा था। आत्मज्ञान का जो आता उसे उपदेश देता। दुकान पर बैठे बैठे जब वो कोई टीवी पर जिहाद और आतंक की टीवी न्यूज देखता तो वो ज़ोर से हँसता था।  कर्मचारी जब पूंछते कि मालिक आप क्यों हँसे? तब वो बोलता, इनके पिता और समाज ने भी इनसे झूठ बोला है, अमुक का बेटा और अमुक जाति बताया। अरे यह मात्र आत्मा हैं और कुछ समय के लिए ही संसार में आये हैं यह इन्हें ज्ञात ही नहीं है। जिहाद मुल्लाओं का एक धर्म व्यापार है, जिसके ज़ाल में युवा को फंसा रहे हैं। वास्तव में सब हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई एक ही हैं उस परमात्मा का अंश आत्मा हैं। जब शरीर ही इन सबका नहीं तो धर्म-जाति इनकी कैसे हुई? जब जन्नत मुल्ला मौलवी ने स्वयं नहीं देखी, तो उसका मरने के बाद जन्नत देने का दावा क्या झूठ नहीं? जब शरीर मरने के बाद सांस तक नहीं ले सकता तो वो हूरों के साथ समय किस शरीर से और कैसे बिताएगा? जब इंसान को पिछला जन्म याद नहीं तो अगले जन्म में वो कैसे बता पायेगा कि हूर और जन्नत मिली थी?

इसलिए हँसता हूँ😂😂😂😂, पागलों की न्यूज़ देखता हूँ। जिन्हें स्वयं के अस्तित्व का पता नहीं उनके बिन सर पैर की बात पर हँसता हूँ। इसलिए मैं संसार में बहुत कम रहता हूँ, जब भी वक्त मिलता है अंतर्जगत में प्रभु के निकट चला जाता हूँ। ध्यानस्थ हो जाता हूँ। स्वयं को जानोगे तो छलावे में न पड़ोगे, इसी जीवन में सुख-दुःख से परे आनन्द में रहोगे।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Sunday 24 March 2019

प्रश्न - *यज्ञादि के दौरान संकल्प मंत्र में क्यों बोला जाता है - जम्बूद्वीपे भरतखण्डे....*?

प्रश्न - *यज्ञादि के दौरान संकल्प मंत्र में क्यों बोला जाता है - जम्बूद्वीपे भरतखण्डे....*?

उत्तर - हमारे सनातन धर्म में पूजा-पाठ व कर्मकाण्ड में संकल्प का विशेष महत्त्व होता है। ऐसी मान्यता है कि बिना संकल्प किए कोई पूजा-पाठ सफ़ल नहीं होता। इसलिए प्रत्येक कर्मकाण्ड से पूर्व यजमान का संकल्प करवाना आवश्यक है। लेकिन जब हम किसी कार्य हेतु संकल्प करवाते हैं या स्वयं करते हैं तब संकल्प के उच्चारण में ' *जम्बूद्वीपे भरतखण्डे* ' क्यों बोलते हैं? यह हममें से कईयों को पता नही होता।

आइये जानते हैं इसके पीछे का इतिहास :- भारत जिसका पूर्व नाम अजनाभ वर्ष था, जम्बूद्वीप में स्थित है, जिसके स्वामी महाराज आग्नीध्र थे। आग्नीध्र स्वायम्भुव मनु के पुत्र प्रियव्रत के ज्येष्ठ पुत्र थे। प्रियवत समस्त भू-लोक के स्वामी थे। उनका विवाह विश्वकर्मा की पुत्री बर्हिष्मती से हुआ था। महाराज प्रियव्रत के दस पुत्र व एक कन्या थी। महाराज प्रियव्रत ने अपने सात पुत्रों को सप्त द्वीपों का स्वामी बनाया था, शेष तीन पुत्र बाल-ब्रह्मचारी हो गए थे। इनमें आग्नीध्र को जम्बद्वीप का स्वामी बनाया गया था। आग्नीध्र के पुत्र महाराज नाभि एवं महाराज नाभि के पुत्र ऋषभदेव थे जिनके पुत्र चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा।

जिस द्वीप में भारत देश स्थित है उसका प्राचीन नाम जम्बूद्वीप है, जो एशिया महाद्वीप का एक भाग है, जिस पर अखण्डभारत स्थित है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *कलश यात्रा में केवल स्त्रियाँ ही कलश सर पर धारण क्यों करती हैं?*

प्रश्न - *कलश यात्रा में केवल स्त्रियाँ ही कलश सर पर धारण क्यों करती हैं?*

उत्तर - इस प्रश्न का उत्तर समझने से पहले कलश का आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक महत्त्व समझना जरूरी हैं।

वैज्ञानिक ज्ञान को प्रतीकों में बाँधकर धार्मिक आस्था में ओतप्रोत कर देना हिन्दू धर्म की विशेषता है।

 समुद्र मंथन की कथा बहुत प्रसिद्ध है। समुद्र जीवन और तमाम दिव्य रत्नों और उपलब्धियों का स्रोत है।
देवी अर्थात्‌ रचनात्मक और दानवी अर्थात्‌ ध्वंसात्मक शक्तियाँ इस समुद्र का मंथन मंदराचल शिखर पर्वत की मथानी और वासुकी नाग की रस्सी बनाकर करती हैं। पहली दृष्टि में यह एक कपोल कल्पना अथवा गल्पकथा लगती है, क्योंकि पुराणों में अधिकांश ऐसी ही कथाएँ हैं, किन्तु उनका मर्म बहुत गहरा है। *जीवन का अमृत तभी प्राप्त होता है, जब हम विषपान की शक्ति और सूझबूझ रखते हैं। अर्थात जो कठिनाईयाँ झेल सके वही सफ़लता का स्वाद चख सकता है।* यही श्रेष्ठ विचार इस कथा में पिरोया हुआ है, जिसे हम मंगल कलश द्वारा बार-बार पढ़ते हैं।

कलश का पात्र जलभरा होता है। जीवन की उपलब्धियों का उद्भव आम्र पल्लव, नागवल्ली द्वारा दिखाई पड़ता है। जटाओं से युक्त ऊँचा नारियल ही मंदराचल है तथा यजमान द्वारा कलश की ग्रीवा (कंठ) में बाँधा कच्चा सूत्र ही वासुकी है। यजमान और ऋत्विज (पुरोहित) दोनों ही मंथनकर्ता हैं। पूजा के समय प्रायः उच्चारण किया जाने वाला मंत्र स्वयं स्पष्ट है-
*'कलशस्य मुखे विष्णु कंठे रुद्र समाश्रिताः मूलेतस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मात्र गणा स्मृताः। कुक्षौतु सागरा सर्वे सप्तद्विपा वसुंधरा, ऋग्वेदो यजुर्वेदो सामगानां अथर्वणाः अङेश्च सहितासर्वे कलशन्तु समाश्रिताः।'*

अर्थात्‌ सृष्टि के नियामक विष्णु, रुद्र और ब्रह्मा त्रिगुणात्मक शक्ति लिए इस ब्रह्माण्ड रूपी कलश में व्याप्त हैं। समस्त समुद्र, द्वीप, यह वसुंधरा, ब्रह्माण्ड के संविधान चारों वेद इस कलश में स्थान लिए हैं। इसका वैज्ञानिक पक्ष यह है कि जहाँ इस घट का ब्रह्माण्ड दर्शन हो जाता है, जिससे शरीर रूपी घट से तादात्म्य बनता है, वहीं ताँबे के पात्र में जल विद्युत चुम्बकीय ऊर्जावान बनता है। ऊँचा नारियल का फल ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का ग्राहक बन जाता है। जैसे विद्युत ऊर्जा उत्पन्ना करने के लिए बैटरी या कोषा होती है, वैसे ही मंगल कलश ब्रह्माण्डीय ऊर्जा संकेंद्रित कर उसे बहुगुणित कर आसपास विकिरित करने वाली एकीकृत कोषा है, जो वातावरण को दिव्य बनाती है।

कच्चे सूत्रों का दक्षिणावर्ती वलय ऊर्जावलय को धीरे-धीरे चारों ओर वर्तुलाकार संचारित करता है। संभवतः सूत्र (बाँधा गया लच्छा) विद्युत कुचालक होने के कारण ब्रह्माण्डीय बलधाराओं का अपव्यय रोकता है। फिर भी अनुसंधान का खुला क्षेत्र है कि शोधकर्ता आधुनिक उपकरणों का प्रयोग भक्ति एवं सम्मानपूर्वक करें, ताकि कुछ और नए आयाम मिल सकें।

यह भी सत्य है कि भारतीय संस्कृति में कलश बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसमे सभी देव शक्तियों का वास एवं विश्व ब्रम्हांण्ड का प्रतीक माना जाता है। कलश के जल जैसी शीतलता एवं कलश जैसी पात्रता अनादि काल से मातृ शक्ति के ह‌दय मे  मानी जाती रही है। नारी का हृदय दया, करुणा, ममता एवं सेवा भाव से परिपूर्ण होता है।क्षमाशीलता, गंभीरता,एवं सहनशीलत  नारी शक्ति मे सबसे अधिक होती है। इसलिए देव शक्तियों को अपने मस्तक पर धारण कर सुख सौभाग्य समृद्धि की कामना समस्त मानव जाति के लीए सिर्फ मातृ शक्ति ही कर सकती है। यही कारण है कि धर्मिक आयोजन में कलश सिर्फ महिलाये  ही धारण करती है।

*हिन्दू रीति के अनुसार जब भी कोई पूजा होती है, तब मंगल कलश की स्थापना अनिवार्य होती है। बड़े अनुष्ठान यज्ञ यागादि में पुत्रवती सधवा महिलाएँ बड़ी संख्या में मंगल कलश लेकर शोभायात्रा में निकलती हैं। 👉🏼उस समय सृजन और मातृत्व दोनों की पूजा एक साथ होती है। पृथ्वी के बाद सृजन का उत्तरदायित्व मातृ शक्तियां निभाती हैं, कलश वह धारण करती है और यज्ञादि आयोजन में पुरुष के दाहिनी तरफ बैठकर धर्म के उत्तदायित्व को आगे बढ़कर सम्हालती है👈🏻।*

पूर्ण कलश चक्र के पाँच तत्वों को भी दर्शाता है -

*पृथ्वी* - कलश का चौड़ा तल पृथ्वी को दर्शाता है।
*जल* – कलश का विस्तारित केंद्र जल को दर्शाता है।
*अग्नि* - कलश का गला अग्नि को दर्शाता है।
*वायु* - कलश का मुख वायु को दर्शाता है।
*आकाश* - नारियल और आम के पत्ते आकाश को दर्शाते हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

कविता - *हमारे कर्म में प्रभु,* *अपनी कृपा मिला देना*।

कविता - *हमारे कर्म में प्रभु,*
 *अपनी कृपा मिला देना*।

कर्म मैं करूँ प्रभु,
कृपा तुम कर देना,
सङ्कल्प मैं लूँ प्रभु,
प्रभु शक्ति तुम दे देना।

विरोधी खड़े हैं,
मेरे काम मे रोड़ा अटकाने को,
आलोचक पीछे पड़े हैं,
मुझे राह से भटकाने को,
रोड़े का पत्थर जब तोड़ने का प्रयास करूँ,
शक्ति तुम दे देना,
नदी बन मैं निकलूँ,
प्रभु समुद्र तक तुम पहुंचा देना।

हज़ारों चीज़ें है प्रभु,
मेरा ध्यान भटकाने को,
हज़ारों विरोधी है मेरे,
मुझे बहकाने और भटकाने को,
मैं घण्टों ध्यान मैं बैठूँ,
बैठने की शक्ति तुम दे देना,
ध्यान का प्रयास मैं करूँ,
प्रभु ध्यान तुम लगवा देना।

खेत तैयार कर बीज मैं बोऊं
बीज को पौधा तुम बना देना,
कर्मों की खेती मैं करूँ,
उस फ़सल को तुम पका देना,
नित्य प्रयास मैं करूँ,
सफल तुम कर देना,
कर्म मैं करूँ प्रभु,
कृपा तुम कर देना।

उद्यम मैं करूँ प्रभु,
धन वैभव तुम दे देना,
पुरुषार्थ मैं करूँ प्रभु,
शक्ति तुम सतत दे देना,
भक्ति मैं करूँ प्रभु,
कृपा तुम कर देना,
प्रयास मैं करूँ प्रभु,
सफल तुम बना देना,
धन वैभव और जीवन के सदुपयोग की,
सद्बुद्धि तुम सतत देना।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Saturday 23 March 2019

कविता - सास, बहु और उनका झगड़ा

*सास, बहु और उनका झगड़ा*

सास बहू के शिकार को खड़ी है,
बहु सास के शिकार को अड़ी है,
दोनों के पास एक ही हथियार है,
दोनों चाहती उससे मनचाहा व्यवहार है।

यह हथियार कहलाता है,
माँ का बेटा और पत्नी का पति,
दोनों मानती है,
उसे अपनी अपनी सम्पत्ति।

यदि पुरुष माँ की सुनेगा,
तो *ममा ब्याय* कहलायेगा,
यदि पुरुष बीबी की सुनेगा,
तो *जोरू का गुलाम* कहलायेगा।

अब यदि माँ के घर बीबी के साथ रहेगा,
तो रोज़ तू तू मैं मैं सहेगा,
यदि वो बीबी के साथ माँ से अलग रहेगा,
तो आत्मग्लानि में तिल तिल मरेगा।

बड़ी कठिन परिस्थिति है,
एक तरफ़ कुआँ है,
और दूसरी तरफ़ खाई है,
एक तरफ़ बीबी है,
और दूसरी तरफ जन्म देने वाली माई है।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
😭😭😭😭😭😭

वह पुरुष भगवान की शरण मे गया,
बड़ी दयनीय अवस्था में गिड़गिड़ाया और रोया,
तब आकाशवाणी हुई,
और अंतर्जगत में प्रतिध्वनि हुई।

बुद्धिकुशलता का उपयोग कर बच्चा,
अनशन, असहयोग और धरने पर बैठ बच्चा,
अपना गृह युद्ध! हे मनुष्य! स्वयं लड़ो,
अपने कर्तव्यों को! दोनों तरफ़ निःश्वार्थ पालो।

बीबी के लिए माँ के प्रति कर्तव्यों को,
कभी मत छोड़ो,
माँ के लिए बीबी के प्रति कर्तव्यों को,
 कभी मत छोड़ो,
किसी एक की भावना में,
दूसरे की उपेक्षा मत करो,
बहादुरी और बुद्धिकुशलता से,
दोनों शेरनियों को पालो।

कह दो, दोनों को साफ़ साफ़,
मैं अब बंट गया हूँ, दोनों में हाफ हाफ,
हम तुम दोनों को नहीं सुधार सकते,
एक के कहने पर दूसरे को नही छोड़ सकते,
मुझे अब पूरा हथियाने की,
यह चाह छोड़ दो,
प्लीज़ मुझसे एक दूसरे की,
बुराई करना छोड़ दो।

तुम दोनों की नहीं बनती न बने,
रोज़ आपस मे ठनती है ठने,
मैं सुबह का भोजन माँ के साथ,
और शाम का भोजन पत्नी के साथ खाऊंगा,
मरते दम तक तुम दोनों से,
अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाऊंगा।

अब मैं निर्भय हूँ और निडर हूँ,
जो होगा अब देख लूँगा,
न तू तू मैं मैं सहूँगा,
और अब न हीं आत्मग्लानि में मरूँगा।

तुम दोनों को,
हमने अपना निर्णय सुना दिया है,
तुम दोनों ही मेरी ज़िंदगी हो,
अब यह भी बतला दिया है,
क्या मेरी ज़िंदगी और सुकून के लिए,
तुम दोनों आपस मे,
समझौता कर सकती हो?
हे मेरे जीवन की दोनों लाइफ़ लाइन!
मेरे लिए क्या साथ रह सकती हो?

अगर अलग अलग रहना है,
तो यह अलगाव तुम दोनों के बीच होगा,
मेरा समय हाफ माँ को,
और हाफ ही पत्नी तुम्हें मिलेगा।

मुझे रोकने का कोई प्रयास मत करना,
अन्यथा तुम दोनों में से किसी के,
हाथ नहीं आऊँगा।
मैं अब तुम दोनों के गुस्से से नहीं डरूँगा,
बहादुरी से निज धर्म का,
 दोनों तरफ पालन करूंगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

कविता - *तू संघर्ष से क्यूँ डरता है? तू मनोबल क्यूँ हारता है?*

*23 मार्च शहीद दिवस*

कविता - *तू संघर्ष से क्यूँ डरता है? तू मनोबल क्यूँ हारता है?*

पाषाण युग का समय था,
अंधकारमय जंगलों में जीवन था,
तब भी मनुष्य न हारा,
और संघर्ष को स्वीकारा,
फ़िर वर्तमान आधुनिक युग में जीने वाला,
तू मनोबल क्यूँ हारता?
फिंर तू संघर्ष से क्यूँ  डरता है?

किस युग में संघर्ष नहीं था?
किस युग में संघर्ष नहीं होगा?
किसके जीवन में कठिनाई नहीं है?
किसके जीवन में संघर्ष नहीं होगा?
जब बिना संघर्ष और दर्द के,
जन्म नहीं होता है,
फ़िर बिना संघर्ष और दर्द के,
तू जीने की क्यों सोचता है?

अपनी ज़िंदगी का रोना रोता है,
कभी सैनिकों के बारे में सोचा है?
उनकी ड्यूटी,
कहीं जमने वाली ठण्ड में होती है,
और कहीं जला देने वाली गर्मी में होती है,
अपनों और अपने परिवार से दूर,
दुश्मनों की गोलीयो और साजिशों के बीच,
वो ड्यूटी करता है,
फ़िर भी मौत से नहीं डरता है,
बड़ी बहादुरी से सरहद पर ड्यूटी करता है,
जब वो सरहद पर संघर्ष कर सकता है,
फ़िर तू संघर्ष से क्यों डरता है?

भगवान भोजन सबको देता है,
लेक़िन चिड़िया को घोंसले में,
और शेर को उसकी मांद में,
होम डिलीवरी नहीं देता है।
फ़िर तू संघर्ष से क्यूँ डरता है?
फ़िर तू मनोबल क्यूँ हारता है?

उठो! जागो! आगे बढ़ो,
निज जीवन में संघर्षों को स्वीकारो,
तप की अग्नि में,
जीवन को कुंदन सा निखारो,
वीर बनकर जियो,
संघर्षों से खेलो,
महाराणा प्रताप और वीर शिवाजी की,
अमर वीरता को न भूलो,
👉🏼 *भगत, विस्मिल, सुखदेव के जीवन चरित्र को*,
निज व्यक्तित्व में घोलो,
उच्च मनोबल से सर उठाकर जियो,
हिंद की ज़मीन पर सिंह सा दहाड़ो,
भारत की वीर भूमि में वीर ही पैदा होते हैं,
इस बात को बस अपने जीवन चरित्र से कह डालो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday 22 March 2019

कविता - एक सन्त बना दुकानदार

😊 *एक सन्त बना दुकानदार* 😊

एक संत ने,
किराने की दुकान खोली,
सामान के साथ ज्ञान,
फ़्री होने वाली बात भी बोली।

बड़े अचरज़ से कस्टमरों ने देखा,
सन्त के ज्ञान को टटोलने का सोचा।

एक कस्टमर ने नमक मांगा,
सन्त ने नमक के साथ ज्ञान भी दे डाला,
नमक के बिना,
भोजन में स्वाद न मिलेगा,
वैसे ही अध्यात्म के बिना,
जीवन में स्वाद न मिलेगा।

एक कस्टमर ने चीनी मांगा,
सन्त ने चीनी के साथ ज्ञान भी दे डाला,
चीनी के बिना,
खीर में मिठास न मिलेगा,
अपनो के साथ के बिना,
जीवन में मिठास न घुलेगा।

एक कस्टमर ने झाड़ू-पोछे का सामान मांगा,
सन्त ने उसके साथ ज्ञान भी दे डाला,
झाड़ू पोछा के बिना,
घर व्यवस्थित और साफ़ न होगा,
ध्यान-स्वाध्याय के बिना,
मन व्यवस्थित और साफ़ न होगा।

एक कस्टमर ने सब्जी मसाला मांगा,
सन्त ने उसके साथ ज्ञान भी दे डाला,
मसालों के बिना,
सब्जियों में स्वाद न चढ़ेगा,
लेक़िन अधिक मसालों से,
स्वास्थ्य भी बिगड़ेगा,
खराब पेट से - मन ख़राब होगा,
दोनों की ख़राबी से विभिन्न रोग जन्मेगा।
इसी तरह पेट-प्रजनन के बिना,
सृष्टि आगे न बढ़ेगी,
लेकिन इसकी अधिकता से,
समाज का स्वास्थ्य बिगड़ेगा,
समाज पर भार चढ़ेगा,
यह नई नई समस्याओं को जन्मेगा ।

एक कस्टमर ने अनुरोध किया,
आप केवल प्रवचन दें,
जीवन जीने की कला सिखाएं,
आप दुकान का व्यवसाय न करें,
एकांत स्थल पर तप करें,
और आश्रम में निवास करें,
वहाँ आने वालों को ज्ञान से कृतार्थ करें।

सन्त मुस्कुराए और बोले,
अब जंगल निर्जन और बीहड़ नहीं रहे,
फॉरेस्ट ऑफिसर से भर गए,
हिमालय भी अब निर्जन न रहे,
पर्वतारोहीयों से भर गए,
बड़े बड़े आश्रमों से तीर्थ सज गए हैं।
अब आकाश और समुद्र में भी एकांत नहीं,
जहाजों के शोर से यह भी भर गए हैं।
अब तीर्थों में,
वो बात नहीं रह गयी है,
यातायात की सुगमता से,
वो कइयों के लिए पिकनिक स्पॉट बन गए हैं।

अब महाभारत वाले संजय की नौकरी,
टीवी रेडियो इंटरनेट ने कर ली है,
कृष्ण के और सन्तों के प्रवचन,
और अन्य जानकारी,
प्रत्येक धृतराष्ट्र को,
घर बैठे ही मिल रही है।


बाहुबली की भी नौकरी,
बड़ी बड़ी मशीनों ने खा ली,
बुद्धिबली की भी नौकरी,
बड़े बड़े कम्प्यूटरों ने खा ली।

अभी केवल तप के लिए,
अंतर्जगत का एकांत क्षेत्र ही बाक़ी है,
जहां अभी भी मनुष्य और मशीनों का,
अनधिकृत प्रवेश नहीं है,
प्रेम सम्वेदना और भावनाओं के सम्प्रेषण के लिए,
मशीनों में अभी वो योग्यता नहीं है,
चेतना के स्तर पर भी,
मशीनों की अभी पहुंच नहीं है।

अतः श्रीमान, गुरु आदेश से,
दुकान पर बैठकर ही,
युगनिर्माण करूंगा,
स्वावलम्बी लोकसेवी,
सन्त बनूँगा,
अब जंगल के एकांत की जगह,
अंतर्जगत के एकांत में तप करूंगा,
गुरु की विचारों की चिंगारी से,
स्वयं दीप बनकर जलूँगा,
जो भी बुझा दीप आएगा यहाँ,
उसे भी प्रज्ज्वलित करने की कोशिश करूँगा,
दीप हूँ जलता रहूँगा,
जहां हूँ वहीं अँधेरे से लड़ता रहूँगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Thursday 21 March 2019

कविता - हॉस्पिटल और श्मशान में, सबको ब्रह्मज्ञान हो जाता है, जीवन की नश्वरता का, और आत्मा की अमरता का, सबको भान हो जाता है।।

*ज़रा विचारें...*

हॉस्पिटल और श्मशान में,
सबको ब्रह्मज्ञान हो जाता है,
जीवन की नश्वरता का,
और आत्मा की अमरता का,
सबको भान हो जाता है।।

हॉस्पिटल के बिस्तर पर,
जब ऑपेरशन के बाद,
जैसे ही दर्द उभर जाता है,
वैसे ही दर्द के साथ,
मन में ब्रह्मज्ञान भी उभर आता है।

जीवन के कितने सारे,
अमूल्य क्षणों को व्यर्थ किया,
ऐसा सोचते हैं और स्वयं को कोसते हैं,
नए नए सङ्कल्प उभरते हैं,
जीवन को अब नए ढंग से,
जीने की सोचते हैं,
और कल्पनाएं करते हैं।

गिड़गिड़ाते हुए प्रार्थना करते है,
हे भगवान! इस बार मुझे बचा लो,
इस विपत्ति से उबार लो,
अपना सर्वस्व अर्पण कर दूंगा,
जीवन तेरे अनुसाशन में जियूंगा,
हे प्रभु! तेरा अहसान नहीं भूलूँगा,
तेरी सेवा और समाज सेवा में,
अपना जी जान लगा दूँगा।

हॉस्पिटल से घर आते ही,
घाव भरने लगते हैं,
दर्द घटने लगते हैं,
मोह माया पुनः बढ़ने लगता हैं,
ब्रह्मज्ञान को बादल सा ढँकने लगता हैं।

अच्छे दिन आते ही,
पुनः पुराने ढर्रे वाली जिंदगी में लौट आते हैं,
प्रभु से किये वादे को भूलकर जाते हैं,
हॉस्पिटल का बिल भर देते हैं,
लेकिन भगवान का बिल भूल जाते हैं।

मनुष्य की फ़ितरत है,
अपनों और अपनों से किये वादों को भूलने की,
जिनसे स्वार्थ सधता है,
केवल उन्हें याद रखने की।

भगवान से किये वादे भूल गया,
माता-पिता से किये वादे भूल गया,
स्कूल में किये वादे भूल गया,
जिससे स्वार्थ सध रहा है,
बस केवल उसे ही याद रख रहा है।

अब जब तक पुनः,
दर्द और परेशानी का दौर न आएगा,
तब तक भगवान,
और भूला ब्रह्मज्ञान भी याद न आयेगा।

जब ठोकर लगेगी,
ओह माँ! की याद आएगी,
बड़ी चोट में,
बाप रे बाप! की याद आएगी,
बड़ी विपत्ति में,
हे भगवान! की पुनः याद आएगी।

दुःख में सुमिरन सब करें,
सुख में करे न कोय,
जो सुख में सुमिरन करे,
तो दुःख काहे को होय।

*अर्थात* - यदि भगवान और माता-पिता की सेवा सुख में करे और उनके अहसानो को सुख में हमेशा याद रखें तो जीवन में कभी दुःख आएगा ही नहीं।

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 20 March 2019

प्रश्न - *दी, आज़कल फ़ेसबुक में कुछ सरफिरे लोग है जो होली के विरोध में निम्नलिखित मैसेज के साथ फ़ोटो भेज रहे हैं?*

प्रश्न - *दी, आज़कल फ़ेसबुक में कुछ सरफिरे लोग है जो होली के विरोध में निम्नलिखित मैसेज के साथ फ़ोटो भेज रहे हैं?*
1- होलिका एक नारी थी, होलिका दहन की आड़ में नारी का अपमान बन्द करो
2- लैंगिक उत्पीड़न को सांस्कृतिक उत्सव न बनाएं
🔥🔥🔥🔥🔥
उत्तर - आत्मीय बहन, *ऐसे सरफिरों और नादानों को निम्नलिखित जवाब दें*
 😇😇😇:-

👉🏼1- भारतीय संस्कृति में बुराई अच्छाई की जीत के उत्सव मनाए जाते हैं। इसमें स्त्री-पुरुष का भेदभाव हम नहीं करते। प्रतीक रूप में दशहरा में रावण(पुरुष) और होली में होलिका(स्त्री) को जलाकर उसका धूमधाम से अंतिम क्रिया करते हैं।

👉🏼2- भारतीय संस्कृति में मरने पर ज़मीन में दफ़न करने/गाड़ने का रिवाज नहीं है।हमारे यहां 🔥 चिता जलाई जाती है। तो रावण हो या होलिका दोनों बुराइयों का अंतिम सँस्कार प्रतीक रूप में अग्नि से ही किया जाता है।

3- भारतीय संविधान में हो या भारतीय संस्कृति हो दोनों में मृत्यु दण्ड किये गए अपराध के आधार पर दिया जाता है, इसमें लैंगिक भेदभाव नहीं किया जाता।

4- अन्य धर्मों में स्त्रियों को पूजा नहीं जाता है वहां आपको मुख्य देवता या गुरु रूप में पुरुष ही मिलेंगे, 👉🏼🙏🏻 लेकिन भारतीय संस्कृति में त्रिदेव(ब्रह्मा, विष्णु, महेश) हैं तो त्रिदेवियाँ(सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा) है। जिसतरह देव शक्तियों को  पूजते वक्त हम भेदभाव नहीं करते, उसी तरह हम दुष्टशक्तियों के विनाश में भी भेदभाव नहीं करते। लैंगिक भेदभाव भारतीय संस्कृति में नहीं है।

5- मुस्लिमों में जन्नत और 72 हूर पुरुषों के लिए हैं और नारियों के लिए कुछ भी वर्णित नहीं है। हमारे भारतीय संस्कृति में स्वर्ग के सुख हों या नर्क के दुःख कर्मानुसार बिना लैंगिक भेदभाव के मिलते हैं।

6- परिवार में अर्धांगिनी और अर्धांग का कॉन्सेप्ट है। दो शरीर एक जान।

7- धर्म आयोजन में स्त्री पुरुष के दाहिने तरफ बैठकर धर्म क्षेत्र में उससे आगे ही होती है।

🤩अतः बिना भारतीय संस्कृति को समझे बिन सर पैर का ज्ञान हमें न बांटे।

हमारे सनातन धर्म के व्रत त्यौहार को समझने के लिए थोड़ा भारतीय संस्कृति का अध्ययन करें। स्त्री हो या पुरुष अच्छा कर्म करेगा तो पूजा जाएगा और बुरा कर्म करेगा तो पुरुष(रावण) हो या स्त्री(होलिका) जलाया जाएगा।

बुराई कितनी ही बड़ी क्यों न हो, उसका अंतिम संस्कार तो अच्छाई के हाथों ही होगा। अब हम अंतिम संस्कार 🔥अग्नि से ही करते हैं।😂😂😂😂😂

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 19 March 2019

कविता- होली में एक बुराई का दहन करें और अच्छाई का वरण करें

🌈 *होली में एक बुराई का दहन करें और अच्छाई का वरण करें*🌈
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

आओ एक बुराई का दहन करें,
चलो एक अच्छाई का वरण करें,
चलो सामाजिक बुराइयों का भी शमन करें,
अश्लीलता दहन और नशा का उन्मूलन करें।

चलो जन जन में आत्मियता का विस्तार कराएं,
चलो मिलकर खुशियों के रँगो भरा त्यौहार मनाएं,
चलो आज नेत्रों में शुभ दृष्टि लाएं ,
दूसरों की अच्छाइयाँ देखें और दिखाएं।

चलो नारद सी अहम भूमिका निभाएं,
ज्यादा से ज्यादा बाल सँस्कारशाला चलाएं,
घर घर में सुसंस्कारी और सर्वहितकारी,
प्रह्लाद सा व्यक्तित्व बनाएं।

आओ प्रेम सहकार भरा परिवार बनाएं,
मीठे मधुर बोल की गुझिया रोज़ खिलाएं,
एक दूसरे के जीवन में रंगीन खुशियों लाएं,
जीवन भर एक दूसरे का सदा साथ निभाएं।

🌈 *अश्लीलता दहन और नशा उन्मूलन पर्व होली की बधाई, ईश्वर से प्रार्थना है कि आपको और आपके परिवार में रँग बिरंगी खुशियां आएं। आपका परिवार और भारत देश सुखी समृद्ध बने*।🌈

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

🙏🏻😇सभी पोस्ट और प्रश्नोत्तरी/समस्या-समाधान का संग्रह फेसबुक और ब्लॉग में है। अतः निम्नलिखित फेसबुक पेज और ब्लॉग जरूर विजिट करें।😇🙏🏻

👉🏼फेसबुक पेज - https://m.facebook.com/sweta.chakraborty.DIYA/

👉🏼ब्लॉग साइट - http://awgpggn.blogspot.in

अनुष्ठान का नाम - * राष्ट्र पुष्टिकरण सामूहिक चांद्रायण साधना

*अनुष्ठान का नाम - * राष्ट्र पुष्टिकरण सामूहिक चांद्रायण साधना*🙏

*21 मार्च फाल्गुन पूर्णिमा से 19 अप्रैल चैत्र पूर्णिमा तक*🙏

*पापों के प्रायश्चित्त के लिए जिन तपों का शास्त्रों में वर्णन हैं उनमें चांद्रायण व्रत का महत्व सर्वोपरि वर्णन किया गया है*।

प्रायश्रित्त शब्द प्रायः+चित्त शब्दों से मिल कर बना है। इसके दो अर्थ होते है।

प्रायः पापं विजानीयात् चित्तं वै तद्विशोभनम्।

प्रायोनाम तपः प्रोक्तं चित्तं निश्चय उच्यते॥

(1) प्रायः का अर्थ है पाप और चित्त का अर्थ है शुद्धि। प्रायश्चित अर्थात् पाप की शुद्धि।

(2) प्रायः का अर्थ है पाप और चित्त का अर्थ है निश्चय। प्रायश्चित अर्थात् तप करने का निश्चय।

दोनों अर्थों का समन्वय किया जाये तो यों कह सकते हैं कि तपश्चर्या द्वारा पाप कर्मों का प्रक्षालन करके आत्मा को निर्मल बनाना। तप का यही उद्देश्य भी है। चान्द्रायण तप की महिमा और साथ ही कठोरता सर्व विदित है। चांद्रायण का सामान्य क्रम यह है कि जितना सामान्य आहार हो, उसे धीरे धीरे कम करते जाना और फिर निराहार तक पहुँचना। इस महाव्रत के कई भेद है जो नीचे दिये जाते हैं -

(1) पिपीलिका मध्य चान्द्रायण।

एकैकं ह्रासयेत पिण्डं कृष्ण शुलेच वर्धवेत।

उपस्पृशंस्त्रिषवणमेतच्चान्द्रायणं स्मृतम्॥

अर्थात्- पूर्णमासी को 15ग्रास भोजन करे फिर प्रतिदिन क्रमशः एक एक ग्रास कृष्ण पक्ष में घटाता जाए। चतुर्दशी को एक ग्रास भोजन करे फिर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से एक एक ग्रास बढ़ता हुआ पूर्णमासी को 15 ग्रास पर पहुँच जावे। इस व्रत में पूरे एक मास में कुल 240 ग्रास ग्रहण होते हैं।

(2) यव मध्य चान्द्रायण -

प्तमेव विधि कृत्स्न माचरेद्यवमध्यमे।

शक्ल पक्षादि नियतश्चरंश्चान्द्रायणं व्रतम्॥

अर्थात्- शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को एक ग्रास नित्य बढ़ाता हुआ पूर्णमासी को 15 ग्रास खावें। फिर क्रमशः एक एक ग्रास घटाता हुआ चतुर्दशी को 1 ग्रास खावें और अमावस को पूर्ण निराहार रहे। इस प्रकार एक मास में 240 ग्रास खावें।

(3) यति चान्द्रायण

अष्टौ अष्टौ समश्नीयात् पिण्डन् माध्यन्दिने स्थिते।

नियतात्मा हविष्याशी यति चान्द्रायणं स्मृतम्॥

अर्थात्- प्रतिदिन मध्यान्हकाल में आठ ग्रास खाकर रहें। इसे यति चांद्रायण कहते है। इससे भी एक मास में 240 ग्रास ही खाये जाते हैं।

(4) शिशु चान्द्रायण

बतुरः प्रातरश्नीयात् पिण्डान् विप्रः समाहितः।

चतुरोऽख्त मिते सूर्ये शुशुचान्द्रायणं स्मृतम्॥

अर्थात्- चार ग्रास प्रातः काल और चार ग्रास साँय काल खावें। इस प्रकार प्रतिदिन आठ ग्रास खाता हुआ एक मास में 240 ग्रास पूरे करे।

(5) मासपरायण - चन्द्रायण की कठोरता न सध पा रही हो तो अतिव्यस्त जॉब करने वाले एक खाने का और एक लगाने का(दाल या सब्जी) को एक माह के लिए तय कर लें। भूख से आधा उदाहरण- चार रोटी खाते हो तो दो रोटी सुबह और दो शाम को खा कर मासपरायण रह सकते है।

तिथि की वृद्धि तथा क्षय हो जाने पर ग्रास की भी बुद्धि तथा कमी हो जाती है। ग्रास का प्रमाण मोर के अड्डे, मुर्गी के अड्डे, तथा बड़े आँवले के बराबर माना गया है। बड़ा आँवला और मुर्गी के अंडे के बराबर प्रमाण तो साधारण बड़े ग्रास जैसा ही है। परन्तु मोर का अंडा काफी बड़ा होता है। एक अच्छी बाटी एक मोर के अंडे के बराबर ही होती है। इतना आहार लेकर तो आसानी से रहा जा सकता है। पिण्ड शब्द का अर्थ ग्रास भी किया जाता है और गोला भी। गोला से रोटी बनाने की लोई से अर्थ लिया जाता हैं यह बड़ी लोई या मोर के अंडे क प्रमाण निर्बल मन वाले लोगों के लिए भले ही ठीक हो। पर साधारणतः पिण्ड का अर्थ ग्रास ही लिया जाता है।

शाम को रोटी के साथ लौकी की सब्जी या दाल लें। सब्जी एवं दाल में केवल शुद्ध घी, सेंधा नमक, जीरा, धनिया और टमाटर डाल सकते हैं। एक वक़्त यदि ग्रास वाला भोजन ले रहे हैं दो दूसरे समय किसी एक फ़ल का रसाहार लें या दूध लें या छाछ लें।

जल कम से कम 6 से 8 ग्लास घूंट घूंट करके बैठ कर दिन भर में पीना ही है। अन्यथा कब्ज की शिकायत हो जाएगी।

चान्द्रायण व्रत के दिनों में सन्ध्या, स्वाध्याय, देव पूजा, गायत्री जप, हवन आदि धार्मिक कृत्यों का नित्य नियम रखना चाहिए। भूमि शयन, एवं ब्रह्मचर्य का विधान आवश्यक है।

अनुष्ठान - एक मास में एक सवा लाख जप अनुष्ठान करें या कम से कम तीन 24 हज़ार के अनुष्ठान करें तो उत्तम है। इतना न सधे तो कम से कम दो 24 हज़ार के या एक 24 हज़ार का अनुष्ठान एक महीने के अंदर कर ही लें।

यदि जप तप ध्यान प्राणायाम योग और स्वाध्याय सन्तुलित हुआ तो कमज़ोरी लगने का कोई सवाल ही उतपन्न न होगा। लेकिन यदि इसमें व्यतिक्रम हुआ अर्थात व्रत हुआ बाकी न हुआ किसी कारण वश किसी दिन तो कमज़ोरी आ सकती है। तो ऐसी अवस्था मे ग्लूकोज़ पानी पी लें या किसी फल का रसाहार ले लें।

प्रत्येक ग्रास का प्रथम गायत्री से अनुमंत्रण करे फिर ॐ। भूः। भूवः। स्वः। महः। जनः। तपः। सत्यं। यशः। श्रीः। अर्क। ईट। ओजः । तेजः। पुरुष। धर्म। शिवः इनके प्रारम्भ में ‘ॐ’ और अन्तः ‘नमः स्वाहा’ संयुक्त करके उस मंत्र का उच्चारण करते हुए ग्रास का भक्षण करें यथा- ‘ॐ सत्यं नमः स्वाहा’। ऊपर पंद्रह मंत्र लिखे हैं। इसमें से उतने ही प्रयोग होंगे जितने कि ग्रास भक्षण किये जायेंगे, जैसे चतुर्थी तिथि को चार ग्रास लेने हैं तो (1) ॐ नमः स्वाहा (2) ॐ भूः नमः स्वाहा (2) ॐ भूः नमः स्वाहा (3) ॐ भुवः नमः स्वाहा (4) ॐ स्वः नमः स्वाहा इन चार मंत्रों के साथ एक एक ग्रास ग्रहण किया जायगा।

व्रत की समाप्ति पर *मां भगवती भोजनालय में दान दें* तथा सत्साहित्य और मन्त्रलेखन पुस्तिका ज्ञान दान में बांटे है।

Reference Article - http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1951/November/v2.14

अश्लीलता दहन और नशा उन्मूलन पर्व होली की अग्रिम बधाई

*अश्लीलता दहन और नशा उन्मूलन पर्व होली की अग्रिम बधाई।*
🌈🌈🌈🌈🌈🌈❄❄❄
*होली के त्यौहार की बहुत बहुत बधाई*

👉🏼प्राचीन कथानुसार भक्त प्रह्लाद के पिता हरिण्यकश्यप स्वयं को भगवान मानते थे और प्रजा पर मनमाना अत्याचार करते थे। वह विष्णु के विरोधी थे जबकि प्रह्लाद विष्णु भक्त थे। उन्होंने प्रह्लाद को विष्णु भक्ति करने से रोका जब वह नहीं माने तो उन्होंने प्रह्लाद को मारने का प्रयास किया।

प्रह्लाद के पिता ने अपनी बहन होलिका से मदद मांगी। होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। होलिका अपने अधर्मी भाई की सहायता करने के लिए तैयार हो गई और एक निष्पाप बालक प्रह्लाद को लेकर चिता में जा बैठी, परन्तु विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे और होलिका जल कर भस्म हो गई।

🔥अधर्म और बुराई की हार हुई और धर्म और अच्छाई की जीत हुई।🔥

👉🏼एक वक़्त गांधी जी के आह्वाहन पर विदेशी सामानों की होली जलाई गई थी और स्वदेशी को अपनाने का संकल्प लिया गया था।

*प्रह्लाद ने उस वक्त फ़ैली बुराई से लोहा लिया, और अब वक़्त आ गया है कि हम सबको वर्तमान समाज में फ़ैली बुराइयों के दहन करना है। वर्तमान समय की दो भीषण समस्याएं हैं पहला अश्लीलता और दूसरा नशा। इन दोनों ने युवाओं को कुंठित कर दिया है और भारत माता को बेहाल कर दिया है।*

🙏🏻अखिलविश्व गायत्री परिवार आप सबका आह्वाहन करता है कि अश्लीलता दहन और नशे के उन्मूलन में जुट जाइये। 🙏🏻

होली के शुभ अवसर पर शक्तिपीठों, प्रज्ञा मंडलों पर होली मिलन समारोह आयोजित कीजिये। लोगों को आनन्द और ख़ुशी मनाने के सभ्य और सुसंस्कृत तरीक़े से आनन्द मनाना सिखाइये।

आज युवा कल्पना ही नहीं कर पाते कि बिना नशे और फ़ास्ट फ़ूड के भी पार्टी हो सकती है, उत्सव हो सकते हैं। भारतीय पकवानों और भारतीय संस्कृति से वो दूर हो गए हैं।

आप ऐसे होलीमिलन उत्सव का आयोजन करें जिसमें सबकुछ स्वदेशी हो, भारतीय व्यंजन और भारतीय वेशभूषा और भारतीय स्टाइल हो। गीत संगीत चुटकुले व्यग्य और संगीत के माध्यम से मस्ती भरी होली मनाईये। युगनिर्माण के सन्देश दीजिये। भारत की आत्मा से युवाओं को जोड़िये। ऐसा भारतीयता और युगनिर्माण का रँग लोगों के मन में लगाइए कि वो कभी भी न उतरे।

*अश्लीलता दहन और नशा उन्मूलन पर्व होली की अग्रिम बधाई।*

🔥 *होलिका दहन*  - होलिका गाय के गोबर के उपलों और आम की लकड़ी से बनाएं। उसमें विधिवत पूजन के बाद लोगों से गायत्री मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र की आहुति डलवाएं। पूजन विधि के लिए कर्मकांड भाष्कर की मदद लें। हवन सामग्री में कपूर, ईलायची, तेजपत्ते और गिलोय मिला कर हवन करने से रोगाणु मरेंगें और आसपास रोगमुक्त वातावरण बनेगा।🔥

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday 18 March 2019

प्रश्न - *दी, कल अंधविश्वास रोधक और आपके भेजे जादू वाले वीडियो देखे। हमारे भाई एक ओझा तांत्रिक के चक्कर में पड़ गए।

प्रश्न - *दी, कल अंधविश्वास रोधक और आपके भेजे जादू वाले वीडियो देखे। हमारे भाई एक ओझा तांत्रिक के चक्कर में पड़ गए। तांत्रिक ने उन्हें एक नारियल दिया, वो रात भर उस पर सर रख के सोए। सुबह तांत्रिक आया उसने नारियल फोड़ा उसमें से कुछ बाल और सिंदूर निकाला। बोला इस घर पर चुड़ैल का साया है। फिंर नींबू काटा उसमें रक्त निकला। फिंर उसने मंन्त्र पढ़कर नारियल में आग लगा दी और न जाने क्या क्या उपक्रम किये। मोटी फीस लेकर चला गया।*

*कल हमने आपकी पोस्ट भैया को दिखाई और वीडियो, पहले तो ओझा पर उन्हें बहुत गुस्सा आया। वो बोले काश यह पोस्ट हमें पहले मिल जाती तो हम उल्लू नहीं बनते। उन्होंने गांव के सभी भाईयों को वो पोस्ट भेज दी है। मार्गदर्शन करें और क्या कर सकते हैं। हमारे गांव में ओझाओं का व्यापार बहुत फल फूल रहा हैं।*

उत्तर - आत्मीय बहन, भैया को बोलो बीमारियां और व्यापार में घाटा दोनों काम कोई भूत प्रेत नहीं करवाता। कुछ हमारे पूर्व जन्म के प्रारब्ध होते हैं और कुछ हमारी असावधानी के कारण होते हैं।

आपने जाना कि बाबा लोग नारियल में सामान निकालने का जादू, आग लगाने का जादू और नींबू में खून निकालने का जादू ऐसे करते हैं और भूत प्रेत घर मे होने का दावा करते हैं:-
👉🏼https://youtu.be/nOAfLKJgU9o
 👉🏼https://youtu.be/wu8qGoFW9Es
 👉🏼https://youtu.be/NecjL15XxNQ

🙏🏻 लेक़िन बहन केवल ओझा के चक्कर से लोगों को बचाना पर्याप्त नहीं है। अपितु उन्हें स्वास्थ्य और समृद्धि पाने का मार्ग भी तो बताना पड़ेगा। घर घर जनजागृति भी लानी पड़ेगी।🙏🏻

*बहन, तुम लोग लोगों को घर घर यज्ञ विज्ञान से जोड़ो। यज्ञ करना अर्थात मुफ्त में बड़ा अस्पताल खोलना, वर्तमान रोगों के इलाज के साथ साथ भविष्य में होने वाले रोगों से बचाव का सामूहिक टीकाकरण करना। यज्ञ से घर की नकारात्मक शक्ति भी दूर होती है। घर मे समृद्धि आती है। बलिवैश्व यज्ञ भी लोगो को सिखाओ।*

*लोगों को घर घर सामूहिक गायत्री मंत्र जप, ध्यान और स्वाध्याय से जोड़ना जिससे वह हमेशा स्वस्थ रहें, स्वयं भी ओझा के मायाजाल से बचें और दूसरों को भी बचाये।*

मनुष्य अपनी जान से ज्यादा अपनो की जान के लिए डरता है। अतः बहन गिलोय और तुलसी गांव में घर घर लगवाओ। सप्ताह में एक या दो बार ज्वर हो या न हो, स्वस्थ भी हों तो भी गिलोय का रस, तुलसी का रस सपरिवार पीने को बोलो। काढ़ा जैसे पहले को लोग पीते थे वैसा कुछ बनाकर प्रत्येक सप्ताह जरूर पिये। तुलसी और गिलोय के सेवन से शरीर मे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाएं।

पानी हो सके तो उबालकर पियें या अन्य उपायों से साफ करके पियो। आज़कल अधिक कीटनाशक दवाओं के प्रयोग से ग्रामीण जगहों में भी जल केमिकल युक्त हो गए हैं। रोग की असली जड़ यह केमिकल युक्त अन्न और जल ही है।

ग्रामीणों को बोलो, अमीर हो या गरीब सबको 24 घण्टे ही मिले हैं। जो इन 24 घण्टे में गर्दन से ऊपर(ध्यान-स्वाध्याय) से ज्यादा कार्य करेगा वो सफल होगा। जो गर्दन से नीचे(पेट-प्रजनन) में जुटेगा वो गरीब रहेगा।

मोबाईल में पूरे विश्व का ज्ञान तुम्हारे हाथ मे है, अच्छे प्रवचन घर बैठे सुन सकते हो, गीता का ज्ञान घर बैठे पा सकते हो, योग एवं ध्यान सीख सकते हो, कोई भी सब्जेक्ट पढ़ सकते हो, घर बैठे इंग्लिश पढ़ सकते हो, घर बैठे बिजनेस के आइडिया ले सकते हो, खेती इत्यादि के बारे में जान सकते हो।बहुत कुछ कर सकते हो।

लेक़िन नशा करने, ताश पीटने और मोबाइल में गन्दी वीडियो देखने से समय बर्बाद केवल नहीं होता बल्कि वह व्यक्ति बर्बाद होता जाता है। जो समय को बर्बाद करता है उसे समय बर्बाद कर देता है।

कुछ पुस्तकें पढ़ो और अपने क्षेत्र में युगनिर्माण शुरू करो:-

1- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
2- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
3- जीवेम शरदः शतम
4- यज्ञ चिकित्सा विज्ञान
5- अंधविश्वास से लाभ कुछ नहीं अपार हानि
6- योग के नाम पर मायाचार
7- सफलता आत्मविश्वासी को मिलती है
8- गायत्री की सर्वसमर्थ साधना
9- प्रज्ञा योग

बहन एक बात और ध्यान रखना:- जब तुम युगनिर्माण का सन्देश लोगों तक लेकर जाओगी तुम्हें ताश के पत्तो के प्रकार की तरह चार प्रकार के लोग मिलेंगे:-

♦ - डायमंड या ईंट जैसे लोग, यह ओपन माइंडेड लोग यदि तुम्हारी बात समझ गए तो न सिर्फ़ स्वयं सुधरेंगे बल्कि तुम्हारे सहयोगी बनकर युगनिर्माण का कार्य करेंगे। अंधविश्वास और नशे के खिलाफ लड़ेंगे।
♥- रेड हार्ट या दिल - ऐसे टाइप के लोग चिकनी चुपड़ी बात करेंगे। जब जाओगे तुम पर प्यार बरसायेंगे। लेकिन युगनिर्माण में जब भी सहयोग की बात आएगी, टाल मटोल करेंगे।
♣- चिड़ी का पत्ता- ऐसे लोग चिड़ी बाज है। यह धर्म से और ज्ञान से दूर भागेंगे। तुम्हारा सामना नहीं कर पाएंगे। नशे में और ताश की पत्तियो में वक्त खराब करेंगे।
🖤-ब्लैक हार्ट या दिल- ऐसे व्यक्ति नकारात्मकता से भरे होंगे। इनके हृदय में अंधेरा कायम होगा। यदि गलती से तुम एक घण्टे भी इनके सान्निध्य में बैठ गए तो यह तुम्हारा भी युगनिर्माण बन्द करवा देंगे। इनका मुंह खुलता ही निगेटिव बातों के लिए है, यह ग्लास का हमेशा खाली हिस्सा देखते हैं। यह तुम्हें मिशन की बुराई गिन गिन कर बताएंगे।

👉🏼 *फैक्ट्री खोलोगे तो सामान बनेगा तो साथ ही उसका वेस्ट और धुंआ भी निकलेगा। बच्चा जन्मेगा तो केवल खुशियां नहीं देगा, साथ में मल-मूत्र विसर्जन और परेशानी भी देगा। इसी तरह गंगा जी गारंटी नहीं दे सकती कि सभी साधु ही मुझमें स्नान करने आये हैं। उसी तरह कोई भी मिशन यह गारंटी नहीं दे सकता कि उसमें केवल श्रेष्ठ आत्मा ही शिष्य बनने आयी है। गंगा और मिशन केवल सफाई का कार्य कर सकता है। किसी को पास आने से नहीं रोक सकता। अतः नकारात्मक मानसिकता के लोग केवल नकारात्मक बाते बोलेंगे और दिमाग तुम्हारा ख़राब करेंगे। तो जब वो नकारात्मक बोलना शुरू करें तो तुम मन ही मन जोर जोर से हंसना शुरू कर देना। कहना मिल गया एक ब्लैक हार्ट।*

काम बनेंगे भी बिगड़ेंगे भी, लेक़िन तुम अपने प्रयास में कोई कमी मत छोड़ना। गुरूदेव का नाम लेकर अंधविश्वास और नशे के ख़िलाफ़ अनवरत जंग जारी रखना।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Sunday 17 March 2019

कविता- जो साथ ले जाएगा उसे कब कमाएगा

जिस मिट्टी में मिलने से,
स्वयं को रोक न सकोगे,
जो शरीर साथ नहीं जाएगा,
फिंर उसे सजाने में क्या लाभ मिलेगा?
अरे किस मोह में पड़े हो,
क्यों ज़मीन-जायजाद लोभ में जकड़े हो,
तपोधन और पुण्य जो साथ जाएगा,
हे इंसान! उसे कब कमाएगा?

कविता - जो गया वो भी जलेगा* *जो बचा वो भी जलेगा* *जो गया वो चिता में जलेगा* *जो बचा वो चिन्ता में जलेगा*

*जो गया वो भी जलेगा*
*जो बचा वो भी जलेगा*
*जो गया वो चिता में जलेगा*
*जो बचा वो चिन्ता में जलेगा*
🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥

वो बेतहाशा रो रही थी,
उसका पति,
जो उसका सब कुछ था,
उसे छोड़ गया था।

तीन दिनों तक वो रोती रही,
निज शरीर का उसे होश न था,
किसी को ख़बर करने का भी,
उसे होश नहीं था।

शरीर तीन दिनों में सड़ने लगा,
दुर्गंध से वो घर भरने लगा,
तीव्र दुर्गंध ने उसको विचलित किया,
उसका ध्यान संसार की ओर उन्मुख किया।

अरे तीन दिन बीत गया,
पति का शरीर सड़ने लग गया,
अब तो सबको ख़बर करनी होगी,
पति के शरीर को मुखाग्नि देनी होगी।

स्वयं के शरीर पर ज्यों उसका ध्यान गया,
तीन दिन के भूखे शरीर ने भी,
तुरन्त भोजन का डिमांड किया,
कल जब सब आएंगे,
सबसे मिलने जुलने में समय लगेगा,
कल भोजन नहीं मिलेगा,
कल पुनः भूखा रहना पड़ेगा।
अब भूख बड़ी असहनीय थी,
रोते रोते उसकी हालत दयनीय सी थी।

अब दिमाग़ भी सक्रिय हुआ,
भोजन की तलाश में मन जुटा,
अगर कुछ पकाया तो बर्तनों की आवाज़ होगी,
भोजन की वाष्प दूसरों के घर तक जाएगी,
भूने चने कुछ पड़े थे,
रोते रोते,
और पति को देखते देखते,
वो खाये जा रही थी,
पिछले तीन दिनों में जो मरने को सोच रही थी,
वो ही चने ख़ाकर निज जीवन को बचा रही थी।

👉🏼 *संसार में दुःखदाई है जो मौत* 🙏🏻
खुद के चाहने पर नहीं आती है,
किसी के बुलाने पर नहीं आती है,
उसको जब आना हो तब ही आती है,
किसी के भगाने पर भी नहीं जाती है।

फ़िर भी मनुष्य,
मोह-माया में उलझा हुआ है,
वैराग्य उसका जगता ही नहीं है,
कभी परमात्मा की ओर,
समर्पित हो देखता ही नहीं है।

जो स्वयं का शरीर भी,
साथ ले जा नहीं सकता है,
उस शरीर के ऐशोआराम की,
वस्तुएं जोड़ने में ताउम्र जुटता है।

देख कर भी अनदेखा कर रहा है,
सुन कर भी अनसुना कर रहा है,
आत्मा की अमरता समझ न रहा है,
जो साथ ले जा न सकेगा,
केवल उसे ही पाने को ही भटक रहा है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Saturday 16 March 2019

कविता - तू ही अटल सत्य है-फ़िर भी संसार तुझसे भयभीत क्यों है?

*तू ही अटल सत्य है-फ़िर भी संसार तुझसे भयभीत क्यों है?*

तू तो आएगी,
लेक़िन कोई न कोई बहाना,
जरूर बनाएगी।

हमेशा दबे पाँव आएगी,
ग़ुमराह करने का कोई मंजर,
जरूर दिखाएगी।

जानती हूँ,
तू ही अटल सत्य है,
फ़िर तू कभी,
सीधे सीधे क्यों नहीं आती है?
लोगों को ग़ुमराह करके ही,
क्यों ले जाती है?

ग़रीब कहता है,
इलाज़ नहीं करवा पाया,
इसलिए तेरे साथ जाना पड़ा,
अमीर कहता है,
बहतेरा इलाज़ करवाया,
मगर कोई डॉक्टर,
रोग की जड़ समझ न पाया,
इसलिए तेरे साथ जाना पड़ा।

कोई कहता है,
साँप ने काटा,
इसलिए तेरे साथ जाना पड़ा,
कोई कहता है,
एक्सीडेंट हुआ,
इसलिए तेरे साथ जाना पड़ा।

सब डरते हैं तेरे साये से,
मौत से डरते है भरमाये से,
जन्म के साथ ही,
तेरे आने का दिन,
निश्चित हो गया था,
वो मौत का बहाना क्या होगा,
बस ये पता न था,
बाक़ी यह अहसास तो,
सभी को है,
जो आया है वो जाएगा,
जो जन्मा है वो मरेगा,
जो मरा है वो पुनः जन्मेगा।

लेकिन माया तू तो,
बड़ी ठगनी है,
लोगों के आँखों मे,
तूने पट्टी बांध रखी है,
जो मुट्ठी भर मिट्टी भी,
साथ ले जा न सकेगा,
उसे ही तूने जमीन-जायजाद कमाने में,
उलझा रखा है,
जिसका विग्रह निश्चित है,
उसके संग्रह में उलझा रखा है।

क्या कहूँ तुझे,
तेरे हमेशा साथ होने का,
अहसास है मुझे,
तेरी अटल सत्यता पर,
अटूट विश्वास है मुझे,
तू मेरी अनन्त यात्रा का,
एक पड़ाव मात्र है,
इस पड़ाव में कई बार पहले भी,
गुजरने का अहसास है मुझे,

मेरे लिए कृपया,
तू सीधे सीधे आना,
कोई गुमराह करने वाला,
बेवजह बहाना न बनाना,
तेरे साथ यात्रा में,
ठहरने का मुझे कोई भय नहीं है,
वैसे भी मैं हूँ अनन्त यात्री,
यह शरीर मेरा अंतिम सत्य नहीं है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, आर्थिक सदृढता के सूत्र बताइये? जिसे अपनाकर मैं आर्थिक रूप से सम्पन्न बन सकूँ। मैं अभी प्राइवेट छोटी सी जॉब कर रहा हूँ।*

प्रश्न - *दी, आर्थिक सदृढता के सूत्र बताइये? जिसे अपनाकर मैं आर्थिक रूप से सम्पन्न बन सकूँ। मैं अभी प्राइवेट छोटी सी जॉब कर रहा हूँ।*

उत्तर- आत्मीय भाई, मनुष्य अपनी सोच से अमीर या गरीब होता है। मनुष्य का माइंडसेट/एटीट्यूड उसकी जेब मे कितना धन होगा यह तय करता है। अतः बेटा कभी सोच में ग़रीब मत बनना और कभी गरीबो वाला एटीट्यूड मत रखना।

1- सफ़लता का रास्ता क़िताबों से ही होकर गुजरता है। जितने भी टॉप क्लास अमीर और सफल व्यक्ति हैं गूगल करो तो पाओगे कि वो सम्बन्धित पुस्तकों का कम से कम दो से चार घण्टों का नित्य स्वाध्याय करते हैं।

2- औसत जीवन मत जीना, जब औसत कपड़े और औसत दर्जे का भोजन पसन्द नहीं है। औसत जीवन भी मत जीना। शानदार जीवन जीना, और लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बनना।

3- सफल व्यक्ति हमेशा कुछ नया नहीं करते, बल्कि वो कार्य को अलग ढंग से बेहतरीन करते हैं।

4- Be better or best, otherwise be different then the rest...जो भी करना बेस्ट करना अन्यथा कुछ अलग करने का प्रयास करना।

5- वृक्ष की तरह परोपकारी जीवन जीना, जितना समाज से लेना उससे 5 गुना लौटाना।

6- कभी किसी के आगे हाथ मत फैलाना और केवल स्वयं की मेहनत से कमाना।

7- अमीर गर्दन से ऊपर(दिमाग़ और व्यक्तित्व निर्माण) पर वक्त और पैसा ज्यादा इन्वेस्ट करते हैं और गरीब गर्दन से नीचे (पेट और वासना) पर ज्यादा वक्त और पैसा इन्वेस्ट करते हैं। तुम्हें अमीर बनना है तो दिमाग़ की शक्ति बढाने पर इन्वेस्ट करो।

8- अमीर एटीट्यूड में गरीबों को टिप देते हैं और ग़रीब एटीट्यूड में दो रुपये बचाने के लिए भी घण्टों सब्जी वाले से झिकझिक करते हैं। अमीरी ज्यादा कमाने और गरीबों को देने से आती है। इसीलिए राजा महाराजा और बड़े बिजनेस मैन जिस दुकान में जाते हैं समान खरीदने के बाद सौ या पचास की टिप दे देते हैं। इससे जब लोग कहते हैं यह अमीर आदमी लगता है तो अमीरी का उसका औरा बढ़ता है। जिस नाई और जिस होटल में आप टिप देते हो वहाँ के राजा आप बन जाते हो और अन्य लोगों को छोड़कर आपकी सबसे ज्यादा आवभगत होता है।

9- गरीबों से दो रुपये कैसे बचाएं कि जगह दो लाख कैसे कमाए पर ध्यान और सोच केंद्रित करो। चिंदी सोच वाला कभी अमीर नहीं बनता।

10- पैसा संसार में उड़ रहा है, जैसे समुद्र में मछलियां तैर रही हैं। सही अप्रोच और बुद्धिकुशलता से समुद्र से मछलियां और संसार मे पैसा कमाया जा सकता है।

11- सबसे पहले स्वयं पर विश्वास होना चाहिए और स्वयं को बेहतर बनाने में जुटना चाहिए। मार्किट डिमांड को समझना और उसकी पूर्ति हेतु योग्यता को विकसित करने में जुटना चाहिए।

12- समय से रेस लगाना चाहिए व्यक्ति से नहीं, कम समय और ज़्यादा गुणवत्ता से जो किसी भी क्षेत्र में प्रोडक्शन करेगा और आफ्टर सेल अच्छी सर्विस देगा वही वर्तमान समय में जॉब हो या व्यवसाय टिकेगा।

13- भगवान उसी की मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करता है। क़िस्मत के लॉकर के ताले की दो चाबी हो तो ही खुलता है- एक भगवान के पास(आशीर्वाद) और दूसरा इंसान के पास(पुरुषार्थ) । अतः केवल भगवान भरोस बैठे रहने पर बिना पुरुषार्थ क़िस्मत का ताला नहीं खुलता।

14- पानी बरसने पर चील बादल से ऊपर उड़ जाता है और कबूतर कोटर में दुबक जाता है। समस्या एक होती है लेकिन उसे सॉल्व करने का एटीट्यूड सबका अपना अपना होता है। वास्तव में इंसान का एटीट्यूड/माइंडसेट ही उसकी औक़ात तय करता है।

15- जो रोज कुछ नया सीखता नहीं उसमें जंग लग जाता है। और वर्तमान में सफल होने के बावजूद मार्केट से बाहर  एक न एक दिन हो जाता है। जॉब करो या व्यवसाय कुछ न कुछ नया अपनी फील्ड से सम्बंधित पढ़ते रहें, सीखते रहें और तदनुसार कुछ न कुछ नया इन्वोवेशन अपने क्षेत्र में करते रहें।

16- सन्तुलन ही अध्यात्म है, सन्तुलन ही सुख की चाबी है। सांसारिक धन के साथ साथ तपोधन भी जुटाते चलें। इस जन्म में भी सुखी रहें और अगले जन्मों में भी सुख का मार्ग प्रशस्त करें।

17- तुमसे बेहतर तुम्हें कोई और नहीं जान सकता, तुमसे बेहतर तुम्हारा और कोई प्रशिक्षण और मोटिवेटर नहीं हो सकता। लिमिटलेस सफ़लता के लिए लिमिटलेस मेहनत करो। केवल तुम ही हो जो अपनी तरक्की का रोड़ा हो, और केवल तुम ही हो जो अपनी तरक्की के सबसे बड़े सहायक हो। स्वयं का साथ दो, दिमाग़ की शक्ति बढ़ाने के लिए नित्य ध्यान और स्वाध्याय करो।

18- मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है। जैसा चाहो स्वयं का भाग्य लिख सकते हो। *ईश्वर वह ब्रह्माण्ड का स्वामी सबकुछ देने को तैयार है, बस कुछ ऐसा मांगना जिसको पाने के लिए तुम अपना सर्वस्व दांव पर लगा सको, कुछ भी कर गुजरने का माद्दा रखो और किसी भी हद तक मेहनत करने से पीछे न हटो।*

19- एकाग्रता ईश्वरीय देन नहीं हैं और न वह वरदान की तरह किसी को प्राप्त होती है। उसे विशुद्ध रूप से एक ‘अच्छी आदत’ कहा जा सकता है जो अन्य आदतों की तरह चिरकाल तक नियमित रीति−नीति अपनाने के कारण स्वभाव का अंग बनती है, विकसित होती है और व्यक्तित्व के साथ घनिष्ठता पूर्वक जुड़ जाती हैं। बस उस लक्ष्य पर एकाग्र रहो और उसे पाने का प्रयास करो, जिसे पाना चाहते हो।

20- भगवान के बाद केवल मनुष्य ही सृजन कर सकता है। केवल स्वयं की अपरिमित शक्तियों को जानना और जगाना पड़ता है।

कुछ सहायक पुस्तकें पढ़ो:-
1- सफलता के सात सूत्र साधन
2- सफलता आत्मविश्वासी को मिलती है
3- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
4- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
5- धनवान बनने के गुप्त रहस्य

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Thursday 14 March 2019

प्रश्न - *मेरे दो बच्चे हैं, उनकी आपसी दुश्मनी बचपन से है। सोचा था जब बड़े और समझदार होंगे तो सब ठीक हो जाएगा।

प्रश्न - *मेरे दो बच्चे हैं, उनकी आपसी दुश्मनी बचपन से है। सोचा था जब बड़े और समझदार होंगे तो सब ठीक हो जाएगा। लेकिन अब तो यह दुश्मनी विकराल रूप ले चुकी है। बेटी बड़ी है और बेटा उससे छोटा है। घर मेरा युद्ध क्षेत्र बन गया है। इन दोनों का रोज रोज़ का झगड़ा न मेरे पति से सम्हल रहा है और न मुझसे सम्हल रहा है। समझ नहीं आता क्या करूँ?*

उत्तर- आत्मीय बहन, सर्वप्रथम हृदय को शांत करें और तीन बार लम्बी गहरी श्वांस लें।

एक घटना सुनें- एक बार एक बस में दो स्त्रियां अगल बगल बैठी थी,  एक को भूख लगी उसने टिफिन खोला और खाते वक्त असावधानी से पड़ोस में बैठी महिला के वस्त्र पर अचार लग गया। अब वो दूसरी महिला भड़क गई और काफ़ी मौखिक युद्ध हुआ।

कुछ दिन बात पुनः दोनों महिलाएं दूसरी बस में मिली, पिछले दिनों की कटु स्मृतियां साथ थीं और पुनः बहस शुरू हो गया। अन्य बस यात्री की समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर दोनों बेवजह लड़ क्यों रही हैं।

प्रत्येक आत्मा की अनन्त यात्रा चल रही है। पिछले जन्म में आप की दोनों संतानों की आत्मा दुश्मन थीं। उनकी पुरानी दुश्मनी के सँस्कार जन्मजात हैं। अन्य बस यात्रियों की तरह आप और आपके पति को यह समझ नहीं आ रहा कि आख़िर ये दोनों इतना लड़ते क्यों है, जबकि सच्चाई यह है कि यह दुश्मनी पिछले जन्मों से चली आ रही है।

हम 100% श्योर हैं कि जब यह आत्माएं गर्भ में थीं तो आपने गर्भ सँस्कार के माध्यम से इनके नए अच्छे सँस्कार गढ़ने का प्रयास नहीं किया होगा। आध्यात्मिक गर्भ विज्ञान अपनाकर इनके पूर्व संस्कारों को हटा कर नए सँस्कार गढ़े नहीं है। अतः इनके पूर्व जन्म के सँस्कार ज्यों के त्यों साथ चले आये हैं।

उदाहरण - यदि दूसरी बस में जब दोनों स्त्रियां चढ़ी तब कोई धार्मिक प्रवचन या वेद मंत्रों का उच्चारण हो रहा होता, ख़ुशनुमा माहौल होता और औषधीय हवन की सुगंध उस बस में फैला दी जाती तो उस बस में चढ़ते ही दोनों स्त्रियों का मन शांत हो जाता और हृदय में सुकून छा जाता। फ़िर वो लड़ना भूलकर उस दिव्य वातावरण में रम गयी होती।

अगर मन खुश हो और बच्चे से कप टूट जाएगा तो माँ कम डांटती है। लेक़िन मन में गुस्सा किसी के प्रति भरा हो और तब कप टूट जाये तो माँ बच्चे को पीट देती है।

अब केवल तीन उपाय आपके पास बचा हुआ है, इस समस्या से मुक्ति के लिए:-

1- दोनों बच्चों को अलग कर दें, बेटी की शीघ्रातिशीघ्र विवाह कर दें या बेटे को हॉस्टल भेज दें। दोनों को एक दूसरे से दूर कर दें।

2- बेटी के भीतर कोई कुण्ठा बैठी है, जो चाहे पिछले जन्म की हो या इस जन्म की हो। आप के घर मे जब वो गर्भ में होगी लोगो ने बेटा बेटा ही हो ऐसा मनाया या चिल्लाया होगा। कुछ न कुछ ऐसा घटा है जिसने बेटी को भीतर से दुःखी कर दिया है। अब बड़ी होने पर भीतर की वो कुंठा भाई को देखते ही भड़क उठती है। ऐसी कोई कुंठा बेटे के भीतर भी हो सकती है, बहन का कोई व्यवहार उसे बहुत बुरा लगता होगा। उसके भीतर की कुंठा भी बहन को देखते ही भड़कती होगी। दोनों को प्यार से समझाइए, एक दूसरे के व्यवहारगत दोष को दूर करके मित्रवत रहने को बोलिये।

3- घर में 80 दिन लगातार हवन कीजिये किसी छोटे तांबे के हवन कुंड में कीजिये।(40 दिन बेटी के नाम पर और 40 दिन बेटे के नाम पर) । हवन के लिए गोमय( गाय के गोबर से बनी) समिधा या सूखे नारियल के गोले के छोटे छोटे पीस करके बनाई हुई समिधा से हवन करें। हवन सामग्री शान्तिकुंज की या आर्य समाज वालों की लें। सुबह सुबह हवन करें, आजकल के बच्चे वैसे भी लेट सो कर उठते हैं। हवन के बाद पूरे घर में हवनकुंड स्टील प्लेट में रखकर घुमा दें। हवन की खुशबू दोनों की नाक में जाये। हवन करने के लिए *सरल हवन विधि* पुस्तक का प्रयोग करें, उसमें समस्त मंन्त्र लिखे हैं। किसी गायत्री परिजन की भी सहायता लेकर हवन सीख लें। 24 गायत्री मंत्र और 5 महामृत्युंजय मंत्र की नित्य आहुति देनी है। ज्यादा लाभ के लिए विशेष औषधि देवसंस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार के यग्योपैथी डिपार्टमेंट से तनावमुक्ति की मंगवा के भी प्रयोग कर सकते हैं। यज्ञ के समय तांबे का कलश रखें, यज्ञ के बाद सूर्य भगवान को जल चढ़ाकर थोड़ा जल बचा लें। आटा गूंधने में वही जल प्रयोग कर लें, एक तुलसी का पत्ता और उसमें  सरसों के दाने के बराबर यज्ञ भष्म डाल दें । भोजन में यज्ञ प्रसाद सभी घर वाले खाएं। शाम को 80 दिन तक तुलसी के समक्ष घी का दीपक जलाएं और बच्चो की सद्बुद्धि के लिए प्रार्थना करें। 11 गुरुवार का व्रत एक वक्त फलाहार और एक वक्त भोजन करके करें। किचन में गायत्री मंत्र बॉक्स हमेशा धीमे स्वर में बजाएं जिससे फ्रीज़ और RO का पानी मंन्त्र तरंगों को स्टोर कर ले। बच्चे जब भी पानी पिएं उनका मन शांत हो। आपका घर झगड़े से मुक्त हो जाएगा। पूर्व जन्म की दुश्मनी मिट जाएगी। दोनों बच्चे प्रशन्न रहने लगेंगे। सबसे बड़ी बात 80 दिन लगातार यज्ञ से आपकी आध्यात्मिक ऊर्जा इतनी  बढ़ जाएगी कि लोग आपसे पूँछेंगे आपके चेहरे के चमक का राज़ क्या है? ऐसा क्या कर रहे हो कि चेहरा इतना दिव्य लग रहा है?😊😊
80 दिन यज्ञ से घर में पारिवारिक के साथ आर्थिक लाभ भी मिलेंगे।

कुछ पुस्तकें बच्चो को हैंडल करने के लिए:-
1- भाव सम्वेदना की गंगोत्री
2- मित्रभाव बढ़ाने की कला
3- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
4- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
5- जीवन जीने की कला

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *ज़िंदगी में जब कुछ न समझ आये और हर रिश्ता बेगाना लगे तो क्या करना चाहिए?*

प्रश्न - *ज़िंदगी में जब कुछ न समझ आये और हर रिश्ता बेगाना लगे तो क्या करना चाहिए?*

उत्तर - आत्मीय बहन, आपको मनोचिकित्सक की आवश्यकता है। आपके नजरिये(दृष्टिकोण) को इलाज़ की ज़रूरत है।

👉🏼नज़र का इलाज़ डॉक्टर के पास है, लेक़िन नजरिये(दृष्टिकोण) का इलाज़ डॉक्टर कर नहीं सकता। मनोचिकित्सक थोड़ी बहुत मदद जरूर कर सकता है।

👉🏼क्योंकि जिंदगी कोई क़िताब नहीं है जिसे समझा जाय। रिश्ते कोई रोबोट नहीं जिन्हें मरम्मत किया जाय। समझना है तो स्वयं को समझो, जानना है तो स्वयं को जानो, मरम्मत करनी है तो स्वयं के दृष्टिकोण की करो। तुमने स्वयं को महत्त्वपूर्ण माना ही नहीं तो फिर दूसरे क्यों माने? तुम स्वयं के वजूद को बनाने में जुटी नहीं तो कोई तुम्हे क्यों भाव दें? तुम अपने निःश्वार्थ सच्चे प्रेम को प्रदर्शित करने में चूक गयी तो कोई रिश्ता तुमसे क्यों निभाये?

👉🏼 रिश्ता तब बेगाना लगता है जब उस रिश्ते से स्वार्थ पूर्ति में बाधा उतपन्न होती है। जब मन अशांत, उद्विग्न, उदास हैं, वो ही मन के भाव संसार मे प्रोजेक्ट हो रहा है, इसलिए सर्वत्र अशांति, उद्विग्नता और उदासी दिख रही है। आपका सम्पूर्ण ध्यान जीवन के ख़ालीपन पर केंद्रित है, आपके जीवन में किस चीज़ की कमी है केवल वही देख रही हैं। आप समस्या गिनने में इतनी व्यस्त हैं कि समस्या के समाधान ढूंढने का आपको वक्त ही नहीं मिल रहा है।

👉🏼 प्रेम में भरे मन को बरसात की बूंदे प्रेममय दिखेंगी, और अशांत अतृप्त मन को बरसात एक झंझट दिखेगी।

👉🏼दुर्योधन को राजसूय यज्ञ में कोई भला व्यक्ति नहीं मिला और उसी राजसूय यज्ञ में युधिष्ठिर को कोई बुरा व्यक्ति नहीं मिला। लोग वही थे लेक़िन ढूंढ़ने वाले लोगों के दृष्टिकोण अलग थे।

👉🏼एक राजा ने एक उद्यान बनवाया,  चोरों को वो चोरी का सामान बांटने की जगह दिखी, तो प्रेमी युगल को वह प्रेम करने की जगह दिखी, सन्तों को ध्यान लगाने की उत्तम जगह लगी, राहगीर को सुस्ताने की जगह लगी, जैसे लोग वैसी उद्यान के बारे में प्रतिक्रिया थी। क्योंकि सब अपने दृष्टिकोण से उद्यान देख रहे थे।

👉🏼सत, रज, तम तीनों गुणों से युक्त यह संसार रूपी उद्यान परमात्मा ने हमें दिया है। जिसका जैसा नजरिया है उसे वैसा यह संसार दिख रहा है। सत, रज, तम युक्त रिश्ते हमें मिलते हैं, हमारे दृष्टिकोण और क्रियाकलाप से रिश्ते बिगड़ते/बनते हैं। जिसको किसी से कुछ नहीं चाहिए, जो केवल सबसे प्रेम करता है, उसे भला कोई कैसे धोखा दे सकता है?

👉🏼 सन्त राबिया को कोठा/वैश्यावृत्ति चलाने वालों को बेंच दिया गया। वो शांत थीं, उनके रूम में कस्टमर भेजा गया, उनके नजरिये में भगवान ने उन्हें किसी का उद्धार करने का माध्यम बनने का मौका दिया माना। उन्होंने उसे आत्मज्ञान प्रदान कर शरीर की नश्वरता का भान कर दिया। ऐसे कई लोग उसके सम्पर्क में साधु-सन्त-फ़क़ीर हो गए। सबके सन्त होते देख उन लोगो ने उन्हें स्वतः मुक्त कर दिया। और उन्होंने ने स्वयं के साथ कई कन्याओं को मुक्त करवा दिया।

👉🏼 इस संसार में जो बाँटोगे वही वापस मिलेगा, जैसा सोचोगे और जैसा करोगे वैसा ही होता जाएगा। एक महीने सङ्कल्प लो निःश्वार्थ प्रेम बाँटने का, बिना किसी आशा अपेक्षा के दुसरो की मदद और सेवा करने का, फिंर देखो पूरी दुनियाँ तुम्हें अपनी लगेगी, सारे रिश्तों में प्राण संचार हो जाएगा।

👉🏼तीन पुस्तक पढो, और अपने दृष्टिकोण का स्वयं इलाज करो
📖दृष्टिकोण ठीक रखें
📖भाव सम्वेदना की गंगोत्री
📖मित्रभाव बढ़ाने की कला

👉🏼नज़रिया बदलने पर ही नजारे बदलेंगे ! जब निःश्वार्थ आत्मियता से सेवा का भाव जगेगा तभी कोई रिश्ता अपना मिलेगा। एक सत्य घटना सुनो

👉🏼अमेरिका में एक मनोचिकित्सक के पास एक हाई डिप्रेशन में ग्रस्त भारतीय मूल की एक महिला सुनीता गई,उसके भारतीय पति ने उससे सहमति से शादी की थी। लेकिन ग्रीन कार्ड के चक्कर में वो एक अमेरिकन अमीर महिला के साथ उसने विवाह कर लिया और उसे डिवोर्स दे दिया। वो स्त्री आत्महत्या करने की कोशिश किया,बचा ली गयी। पुलिस उसे मनोचिकित्सक के पास ले आई।

उसने जोर जोर से रोना शुरू किया कि कितनी मुश्किल से दहेज जोड़कर पिता ने शादी की, कर्जे में डूबे हुए हैं। भारत जाकर उनपर बोझ नहीं बन सकती,आस-पड़ोस गाँव वाले मुझे ताने देंगे मेरे जीवन मे जिंदा रहने का कोई मकसद नहीं बचा। मेरी जिंदगी शापित हो गयी है।

डॉक्टर ने कहा - तुम अभी से लेकर कल सुबह इसी वक्त तक मेरे ऑफिस में काम कंरने वाली मार्गरेट को ऑब्जर्व करो। हम कल सुबह बात करेंगे। मार्गरेट गुनगुनाते हुए ऑफिस की साफ सफाई का कार्य कर रही थी। शाम को 7 बजे वो ऑफ़ीस से निकली और ढेर सारा दूध, बिस्किट और कुछ सामान खरीदा। सुनीता उसके पीछे पीछे चल रही थी। जैसे ही वो घर पहुंची,कुत्ते बिल्ली के बच्चो ने उसे चाटना और प्यार करना शुरू कर दिया। उसने सबको दूध और बिस्किट दिए। सब खा पीकर सो गए। तब सुनीता ने मार्गरेट से पूँछा आपके चेहरे की शांति और खुशी का राज क्या है? आप इतने सारे जानवर क्यों पालती है? इत्यादि इत्यादि।

मार्गरेट ने बताया कि एक कार एक्सीडेंट में उसके पति, तीन बच्चे और माता पिता मारे गए और केवल वो बच गयी। हॉस्पिटल से लौटते वक्त वो सोच रही थी ऐसी शापित जिंदगी जीने का क्या फ़ायदा? अतः वो जहर और दूध लेकर लौट रही थी। कि अचानक उसने एक घायल कुत्ते के पिल्ले(बच्चे) को देखा जो दर्द से तड़फ रहा था। अतः वो मरना भूल गयी और दूध जो लाई थी उसे पिलाया और मरहम पट्टी की। सुबह काम पर आई पुनः रात को लौटते वक्त आत्महत्या का विचार किया और दूध ब्रेड लेकर लौटी तो उस पिल्ले के साथ दो और पिल्ले उसका घर पर इंतज़ार कर रहे थे। आते ही उसे चाटना प्यार करना शुरू कर दिया। तब मार्गरेट ने उनका उपचार किया दूध ब्रेड दिया और स्वयं भूखे सो गई। लेकीन उस रात न जाने क्या हुआ कि मरने का ख्याल छोड़ दिया। और आसपास गली मोहल्ले के बीमार पशुओं के इलाज और सेवा में जुट गई। जो सैलरी मिलती वो उनपर ख़र्च करती। इस निःश्वार्थ सेवा ने उसे शांति सुकून और आनन्द से भर दिया।

सुनीता यह सब सुनकर निःशब्द थी।

मार्गरेट ने कहा - *सुनीता मेरे पति भारतीय मूल के थे। वो भगवत गीता मुझे सुनाते थे।मनुष्य केवल स्वयं से प्रेम करता है, केवल सगे सम्बन्धियों के लिए ही जीता और मरता है। केवल उनसे ही मधुर सम्बन्ध रखता है जिससे उसका स्वार्थ सधता है। क्योंकि स्वार्थ भावना से कर्म बन्धन में बंधता है इसलिए कभी मुक्त नहीं हो पाता।*

 तुम्हारा पति एक स्वार्थी इंसान था जिसने एक और स्वार्थ में रिश्ता बना लिया तुम्हे धोखा दिया। तुम क्या सोचती हो,जिस पति ने नए रिश्ते की नींव स्वार्थ पर रखी हो उस पर आनन्द का भवन खड़ा हो सकेगा !! बबूल के बीज से क्या आम फलेगा? उसका अंत तो कष्टदायी होगा ही,क्योंकि बुरे कर्म का बुरा नतीजा होगा ही...

तुम आज अपने माता-पिता के बारे में सोच रही हो, समस्या गिन रही हो।लेकिन समाधान नहीं ढूँढ़ रही। क्या तुम्हारे अंदर कोई ऐसा गुण नहीं जिससे तुम कमा सको, स्वयं का वजूद बचा सको। क्या तुम अपाहिज़ हो जो पति की वैसाखी ढूँढ़ रही हो। जिसने तुम्हें छोड़ दिया तुमने उसे मन में क्यों जगह दे रखी है?
सुनीता खाना बनाना जानती थी,मार्गरेट की मदद से किसी के घर मे भोजन बनाने का काम मिल गया। कई वर्षों में मेहनत करके वो रेस्तरां की मालिक बनी और मार्गरेट के साथ उसने NGO खोला। लावारिस पशुओं के मुफ्त इलाज के लिए अस्पताल खोला। वो सफल बिजनेस वीमेन बनी,आज उसके पास उसकी सुखी गृहस्थी है।

👉🏼 बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिल्या कोय। जो दिल देखा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।

👉🏼पुष्प बनो, नदी के किनारे हो या किसी मन्दिर में हो या किसी शव पर चढ़ाया गया हो या गुलदस्ते में सजाया गया हो या रास्ते मे फेंका गया हो। जब तक अस्तित्व है उमंग-उल्लास-उत्साह से भरकर खिले रहो और आत्मियता-निःश्वार्थ प्रेम की खुशबू बिखेरते रहो। वास्तव में यही जीवन जीने की कला है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, हम जॉब करते हैं, दो बच्चे हैं। ऑफिस में वर्कलोड ज्यादा है। घर आने में अक्सर लेट होती है। घर पर सभी सुनाना शुरू कर देते हैं, बच्चों पर कोई ध्यान नहीं है सिर्फ़ जॉब की पड़ी है।मेरे पति के भी कान भर दिए जाते हैं उन्हें कुछ बोलो तो उल्टा मुझे ही सुना देते हैं। समझ नहीं आता जॉब छोड़ दूं या करूँ?

प्रश्न - *दी, हम जॉब करते हैं, दो बच्चे हैं। ऑफिस में वर्कलोड ज्यादा है। घर आने में अक्सर लेट होती है। घर पर सभी सुनाना शुरू कर देते हैं, बच्चों पर कोई ध्यान नहीं है सिर्फ़ जॉब की पड़ी है।मेरे पति के भी कान भर दिए जाते हैं उन्हें कुछ बोलो तो उल्टा मुझे ही सुना देते हैं। समझ नहीं आता जॉब छोड़ दूं या करूँ? आजकल खर्च इतना है, घर की EMI वग़ैरह सोचकर जॉब छोड़ने का ख्याल मन से निकाल देती हूँ। लेक़िन मेरे परिवार वाले मुझे इतना गिल्ट फील करवाते है ऑफ़िस से देर आने पर कि मन भारी हो जाता है। वही जब मेरे पति लेट ऑफिस से आते हैं उन्हें कोई कुछ नहीं कहता। क्या करूँ मार्गदर्शन करें*

उत्तर - आत्मीय बहन सबसे पहले अपनी परिस्थिति में खुलकर हंसो, अपने ऊपर हँसो
😂😂😂😂

सासु माँ को बहु दुर्गा माता की तरह चाहिए - अष्टभुजी। एक हाथ से जॉब करे, दूसरे हाथ से किचन में भोजन बनाये, तीसरे हाथ से घर की सफ़ाई करे, चौथे हाथ से बच्चों को होमवर्क करवाये, पांचवे हाथ से पति को सम्हाले, छठे हाथ से सास ससुर को सम्हाले, सातवें हाथ से रिश्तेदारी सम्हाले और आठवें हाथ से सर पर पल्लू रखे। क्योंकि बहु है...बहु वाले काम तो करने पड़ेंगे न...नया जमाना है तो जॉब भी करना पड़ेगा
😂😂😂😂😂😂

समस्या यह है कि तुम्हारे पास दो हाथ है, और छह(6) हाथ कम है, इसलिए तुम चाहकर भी ससुराल में सबको ख़ुश नहीं रख सकती।

अब मान लो, तुमने जॉब छोड़ दी। अर्थ व्यवस्था डगमगा गई तो इसका भी ब्लेम तो आएगा ही और साथ ही इससे तो केवल एक हाथ का कार्य कम हुआ, फिंर भी 7 हाथ तो तुम्हारे पास है नहीं तो 5 हाथ तो अभी भी कम है, तो सुनना तो तब भी पड़ेगा।
😂😂😂😂😂

अच्छा मज़ाक बहुत हुआ, अब सीरियस समाधान सुनो। सदा सफल हनुमान जी से गृहस्थी मैनेजमेंट सीखो, निरहंकारीता के साथ शक्ति प्रदर्शन सीखो।

सुंदरकांड याद करो, जब हनुमानजी सीता जी को ढूंढने जा रहे थे तो सुरसा आ गयी, हनुमानजी जी पहले विनयी होकर जाने की आज्ञा माँगी। सुरसा ने मना कर दिया,  और खाने के लिए एक योजन मुँह खोला हनुमानजी जी दुगुने हो गए। ऐसा चलता रहा, जब सत जोज़न(हज़ारो मील) मुँह बड़ा कर लिया तो अत्यंत छोटे होकर मुँह में प्रवेश करके बाहर आ गए और चरण स्पर्श किया।

अर्थात जब तुम सही हो, फिंर भी पहले विनयी बनकर काम चलाने की कोशिश करो, यदि सामने वाला तुम्हारे विनयी होने को कायरता समझे और कोई घर मे ह्यूमिलिएट करे, तो अपना पक्ष रखो और शब्दों से शक्ति प्रदर्शन करो, यदि बात बढ़ने लगे तो झट सॉरी बोल के बात खत्म करो और अपना काम करने निकल जाओ।

घर में इतना अहसास पति बच्चों और सास ससुर जी को करवा के रखो, कि बहु के रूप में शक्तिशाली हनुमान है जो विनयी है। यदि पूंछ में आग लगाओगे तो लँका जलेगी।

भगवान हनुमान दास भक्ति करते थे, लँका जला आये, राक्षसों का वध कर आये। लेकिन एक रुपये राम जी का खर्च नहीं किया। कपड़े किसके रावण का, तेल किसका रावण का, संसाधन किसके रावण का, अंत मे राख भी रावण के पास ही छोड़ आये। सीता जी और सुरक्षित कर आये। ठंडे दिमाग़ से लँका गए और उतने ही ठंडे दिमाग़ से श्रीराम के पास वापस लौट आये। इतने बड़े कार्य का भी कोई अहंकार प्रदर्शित नहीं किया। बोले प्रभु सब आपकी कृपा से हुआ। ऐसे ही ऑफीस का कार्य करके आओ और श्रेय पति-बच्चो और सास-ससुर को दे दो। आप सहयोग न करते तो जॉब न कर पाती।

हमारे वर्तमान समय में हनुमान जी लँका जलाकर आते, तो विरोधी पार्टी फ़िर भी लँका जलाने के सबूत मांगती जैसे एयर-स्ट्राइक सबूत मांग रही है। वो तो बोलेगी सबूत बताओ कितने राक्षस मरे? सबूत हनुमान जी भी न दे पाते। इसलिए घर वाले भी विपक्ष की तरह सबूत मांगेंगे और कुछ न कुछ बोलेंगे। ऑफीस के वर्कलोड का सबूत तुम भी नहीं दे पाओगी, अतः इसमें परेशान या इमोशनल होने की जरूरत नहीं हैं।

सफ़लता की तैयारी इतनी ख़ामोशी से करो कि जब सफल हो तो उसका शोर हो। ऑफिस में भी और घर मे भी।

बच्चों को क़्वालिटी टाइम में इतना साधकर रखो कि उनके रिजल्ट शोर मचाये, आपको कुछ कहना न पड़े। ऑफिस में मिलती सफलता सम्मान स्वतः शोर मचाये।

माता हो तो अपनी सन्तान में विश्वास का रिश्ता मजबूत करो और उनसे अपनी समस्या शेयर करो, उन्हें समझाओ कि उनके भविष्य के लिए मेहनत कर रहे हो। कछुआ कई मील दूर रहकर भी ध्यानस्थ होकर बच्चा पाल लेता है, तुम तो मात्र कुछ घण्टों की दूरी पर होती हो। बच्चो को कभी प्यार(पुरस्कार) से तो कभी फटकार(दण्ड) से सम्हालो।

पति अर्धांग है, उनसे one to one मैच्योर डिस्कसन करो। यदि किसी ने कान भरे हैं तो तुम्हारा प्रथम कार्य है कि उस कान की सफाई करना और अपनी बात उन तक पहुंचाना। पहले हनुमानजी की तरह विनयी होकर बोलो, जरूरत पड़ने पर शक्ति प्रदर्शन करो, अंत हमेशा सॉरी से बोलकर कर दो। उन्हें अंत मे यह अहसास हो कि आज के वाद विवाद के विजेता वही रहे, साथ ही आपकी शक्ति से परिचय हो गया। जैसे सुरसा को हुआ था, लेकिन हनुमान जी की शक्ति का भी अहसास हो गया था।

बहन जितनी अक्ल ऑफिस में चलाती हो, उतनी ही अक्ल या यूं कहो उससे ज्यादा अक्ल की जरूरत घर पर चलाने की जरूरत है।

अंग्रेजों का बनाया *सॉरी* शब्द का प्रयोग अवश्य करते रहो। हृदय से सबका सम्मान करो, उमंग उल्लास और उत्साह से भरी रहो।

पलीज़ इमोशनल ड्रामा मत करना, मैं इतना इन सबके लिए करती हूँ इन्हें तो मेरी कद्र ही नहीं है😭😭😭😭। I hate tears...दुर्गा शक्ति रोती नहीं है... तुम्हारी कद्र घर में इसलिए नहीं है क्योंकि तुमने सौम्य स्वरूप के साथ दुर्गा के शक्ति स्वरूप के दर्शन नहीं करवाये हैं। बहन यदि स्वयं को कम्पनी में साबित नहीं कर पाई तो वहां से आउट होंगे, वैसे ही यदि स्वयं को यदि घर मे साबित नहीं कर पाई तो घर से भी आउट होंगे।

केवल परमात्मा और सद्गुरु बिन बोले हृदय के भाव समझते हैं, कोई सांसारिक इंसान नहीं। यदि इंसानों से परमात्मा जैसे मन के भाव पढ़ने की उम्मीद करोगी तो गलती तुम्हारी है उनकी नहीं। इंसानों को स्वयं के मन के भाव स्वयं पढ़कर सुनाना होता है और दूसरों के सुनने होते हैं।

निम्नलिखित पुस्तक पढो और सदा सफल हनुमानजी जैसी ताक़तवर और विनम्र-निरहंकारी बनो:-

1- मित्रभाव बढ़ाने की कला
2- भाव सम्वेदना की गंगोत्री
3- आगे बढ़ने की तैयारी
4- गृहस्थ एक तपोवन
5- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
6- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
7- निराशा को पास न फटकने दें
8- दृष्टिकोण ठीक रखें
9- जीवन जीने की कला

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

याद रखना, पुष्पा आई हेट टियर्स रे!

Wednesday 13 March 2019

प्रश्न - *स्त्री परिवार की धुरी है, उसके कर्तव्य अनेक हैं...घर, गृहस्थी, पति, बच्चे, माता-पिता, ससुराल-मायका, रिश्तेदारी इत्यादि सब निभाना पड़ता है।

प्रश्न - *स्त्री परिवार की धुरी है, उसके कर्तव्य अनेक हैं...घर, गृहस्थी, पति, बच्चे, माता-पिता, ससुराल-मायका, रिश्तेदारी इत्यादि सब निभाना पड़ता है। ऊपर से यदि जॉब भी कर रहे हो तो ऑफिस और उससे जुड़ी जिम्मेदारियां भी निभानी होती है।*
*बच्चो के लिए लक्ष्य - बच्चों को एक अच्छा नागरिक, सफल इंसान और सफल व्यक्तित्व बनाना*
*पति के लिए लक्ष्य - पति को मानसिक सदृढता प्रदान करना और उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को निखारना*
*स्वयं के लिए लक्ष्य - स्वयं को जानना, स्वयं की कुशलता बढ़ाना। स्वयं के व्यक्तित्व और कृतित्व को प्रभावशाली बनाना*
*ये सभी तो मल्टीप्ल गोल्स ही हुए ना ? और ये गोल्स कुछ हद तक अस्पष्ट भी हैं । ऐसे में एनर्जी को किसी एक लक्ष्य पर फोकस कैसे रखें?*

उत्तर - आत्मीय बहन, हम सब अकेले जन्मते है और अकेले ही संसार से विदा आएंगे। न कोई गर्भ में साथ होता है और न ही कोई चिता में साथ जलता है। केवल श्मशान तक ही विदाई देने परिवार आता है। जीवन यात्रा के दौरान सफ़र में जन्मते ही माता-पिता और मायके के रिश्तेदार जुड़ते चले जाते हैं, विवाह के बाद पति और उससे जुड़े रिश्तेनाते दार जुड़ जाते हैं। फ़िर हम बच्चो को जन्मते हैं और उनसे सम्बंध जुड़ते हैं। लेकिन यह सभी सम्बन्ध शरीर से हैं, शरीर छूटते ही सब सम्बन्धो का अस्तित्व चिता के साथ जल जाएगा। जैसे पिछले जन्मों के सम्बंध/रिश्तेदार इस जन्म में याद नहीं वैसे ही इस जन्म के सम्बन्धी/रिश्तेदार अगले जन्म में भी याद नहीं रहेंगे।

प्रश्न ने पूँछे उपरोक्त लक्ष्य कार्य को मोटे मोटे तीन भागों में बाँटिये:-

1- स्व आत्मा से सम्बंधित लक्ष्य, जिसका प्रभाव इस जन्म में भी है और अगले जन्म में भी होगा। इस जन्म में आत्मा का वस्त्र शरीर इन लक्ष्यों को पूरा करने में सहायक हो।
(यहां आप मुख्य किरदार में हैं, यह यात्रा आपकी है। यहां क्या करना या नहीं करना है सबकुछ आप पर ही निर्भर है।)

2- शरीर से जुड़े सम्बन्धों के प्रति उत्तरदायित्व निभाना।
(यहाँ आप मुख्य किरदार नहीं है, यहां आप सहयोगी की भूमिका में हैं। क्योंकि आपकी ही तरह आपके स्वजन भी एक जीवनयात्रा में है, उनकी स्टार्ट स्टेशन और लास्ट स्टेशन नियत है। कौन कब तक आपका साथ देगा कुछ भी निश्चित नहीं है)

3- यदि जॉब कर रहे हो, तो जॉब से जुड़े कर्तव्यों को निभाना।
(यहां भी आप सहयोगी हैं मुख्य किरदार में नहीं है)

बहन किसी व्यक्ति के एक बच्चे हों या दस इन्ही 24 घण्टों में ही सम्हालना पड़ेगा। कोई एकल परिवार में रहे या संयुक्त 24 घण्टे ही मिले हैं। किसी व्यक्ति के पास एक कम्पनी हो या दस 24 घण्टे में ही सम्हालना होता है। एक व्यक्ति एकांत में जंगल मे तप करे या बड़ा आश्रम बनाकर करे, सबके पास 24 घण्टे ही हैं। एक मजदूर हो या देश का एक प्रधानमन्त्री हो सबको एक जीवन और दिन के 24 घण्टे ही मिले हैं।

*प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्येक दिन- 86400 सेकंड्स मिलते हैं। इनको आप कैसे ख़र्च करते हो इस जीवन की सफ़लता या असफलता निर्भर करती है।*

आप ईश्वर की आराधना में नित्य कितने सेकण्ड्स खर्च करते हैं? स्वयं पर कितने सेकण्ड्स खर्च करते हैं? पति पर नित्य कितने सेकण्ड्स खर्च करते हैं? बच्चों पर कितने सेकण्ड्स खर्च करते हैं? अन्य नाते रिश्तेदारों पर कितने सेकण्ड्स खर्च करते हैं? जॉब यदि कर रहे हो तो उस पर कितने सेकण्ड्स खर्च करते हैं?

कुछ स्त्रियाँ जो हाउस मेकर होती है पूरा दिन किचन में ही गुजार देती हैं। वहीं दूसरी तरफ कुशल स्त्रियां वही खाना उतने ही लोगों के लिए मुश्किल से दो घण्टे के भीतर तैयार कर लेती हैं। किचन समय नहीं खाता, व्यक्ति की अकुशलता ही समय खाती है।

बहन, मनुष्य को उचित समय प्रबंधन के द्वारा उपरोक्त सभी कार्य करने होंगें।

एक मुख्य लक्ष्य आत्मा से सम्बंधित हुआ, और बाकी अन्य की लक्ष्य पूर्ति में आप सहयोगी हुए। अब बुद्धिकुशलता से 86400 सेकंड्स को कब कहाँ कितना खर्च करना है यह तय कीजिये। यह समय को सोच समझ के ख़र्च प्रायॉरिटी के आधार पर कीजिये। प्रायोरिटी निर्धारण के लिए ध्यान पर बैठिए और इस विषय पर गहराई से सोचिए। इसमें अन्य कोई व्यक्ति मदद नहीं कर सकता। प्रायोरिटी सबकी अपनी अपनी होती है।

हम कभी व्यस्त नहीं होते, हम अक्सर अस्त व्यस्त होते है क्योंकि वक़्त को व्यवस्थित उपयोग करने में चूक जाते हैं।

सेना में प्रत्येक व्यक्ति केवल अपनी चौकी को सुरक्षित करता है और पूरी सीमा सुरक्षित हो जाती है। दीपावली में सब केवल अपने घर दिया जलाते है और पूरा देश रौशन हो जाता है। यदि परिवार में सब अपने अपने हिस्से की जिम्मेदारी बखूबी निभा लें तो घर सहज ही सम्हल जाता है। समय पर उठ जाएं, समय पर भोजन, स्वयं अपने बर्तन साफ कर लें और अपना अपना रूम साफ कर लें, समय पर पढ़ाई कर लें और एक दूसरे के सहयोगी बन जाये। एक दूसरे को थोड़ा वक्त दें तो प्रेम और सहकार से भरा घर धरती का स्वर्ग होता है।

कुछ पुस्तकें उपरोक्त लक्ष्य प्राप्ति में सहायक होंगी:-
1- समय का सदुपयोग
2- गृहस्थ एक तपोवन
3- मित्रभाव बढ़ाने की कला
4- बच्चो को उत्तराधिकार में धन नहीं गुण दें
5- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
6- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
7- जीवन जीने की कला

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *युगऋषि परम्पूज्य गुरूदेव का साहित्य नियमित पढ़ते हैं। बहुत सारी जीवनोपयोगी बातों को जीवन में उतारना चाहते हैं, पर संभव नहीं हो पाता। कृपया बताएं गुरूदेव के साहित्य को जीवन में कैसे उतारें।*

प्रश्न - *युगऋषि परम्पूज्य गुरूदेव का साहित्य नियमित पढ़ते हैं। बहुत सारी जीवनोपयोगी बातों को जीवन में उतारना चाहते हैं, पर संभव नहीं हो पाता। कृपया बताएं गुरूदेव के साहित्य को जीवन में कैसे उतारें।*

उत्तर - आत्मीय बहन,

सर्कस के शेर इत्यादि जानवरों को आपने देखा होगा, कि कैसे वो सर्कस मास्टर के इशारे पर नाचते गाते है। इसके पीछे सर्कस मास्टर ने कितनी ज्यादा मेहनत की होगी यह आप स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं। कभी दण्ड तो कभी पुरस्कार, कभी प्यार तो कभी फटकार लगाई होगी, घण्टों उन्हें अभ्यस्त कराया होगा। तब जाकर वो सर्कस में करतब दिखा सके।

हमारा मन किसी जंगली जानवर से कम नही है, उसे काबू करने और साधने के लिए सर्कस मास्टर से कम मेहनत नहीं लगेगी, बल्कि ज्यादा ही मेहनत करनी पड़ेगी। मन से बड़ा वक़ील और दलील करने वाला कोई होगा नहीं, जो स्वयं की गन्दी आदतों को भी दलील देकर सही ठहरा देता है। अच्छे पढ़े लिखे लोग भी मन के गुलाम बने रहते हैं।

याद रखिये, मन बहुत अच्छा नौकर है और मन बहुत बुरा मालिक है। अतः इसे नौकर की औकात में रखना जरूरी है।

भगवान श्रीकृष्ण से गीता में अर्जुन ने भी यही प्रश्न किया था कि मन को साधें कैसे? धार्मिक अनुसाशन में बांधे कैसे? जो ज्ञान की बातों को पढ़ा या सुना उसे आचरण में उतारें कैसे?

तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि, कोई ज्ञान को जीवन मे उतारने का माध्यम मन है। पढ़ना मन को होता है, और आचरण में लाने का काम भी मन का ही है। जबतक यह नहीं सधेगा तबतक बात नहीं बनेगी। यदि एक चार पहिया गाड़ी चलाना सीख लो तो दूसरे मॉडल की चार पहिया गाड़ी चलाना सीखना आसान हो जाता है। इसी तरह मन को किसी एक धारणा में  घण्टों पर स्थिर ध्यानस्थ करना आ गया तो कुछ दूसरा मन से करवाना कोई मुश्किल कार्य न होगा।

मन को साधने का उपाय है - *अभ्यास और वैराग्य* ।  अभ्यास घण्टे - आधे घण्टे एक जगह पर बिना हिले डुले स्थिर बैठने का। किसी एक विचार या धारणा पर अपना ध्यान केंद्रित करने का। जो मन का ध्यान भटकाये उन चीज़ों से उतने घण्टे दूरी बना के रखने का। मन को कभी प्यार से तो कभी फटकार के ध्यान पर बिठाना, कभी दण्ड तो कभी पुरस्कार का तरीका अपनाना।

गायत्री जप और उगते सूर्य का ध्यान वस्तुतः मन को नियंत्रित करने और साधने का ही तो उपक्रम है। एक ही मंन्त्र एक ही विचार से मन को बांधना और स्थिर एक आसन में बैठ कर जप करना यह उपासना वस्तुतः मन को साधना ही तो है।

जब मन एक बार सध गया, जैसे कलाकार का हाथ जब ब्रश में सध जाता है तो वो कोई भी पेंटिंग बना सकता है। जिसका एक बार किसी इंस्ट्रूमेंट में हाथ सध गया तो वो कोई भी धुन बजा सकता है। जिस सर्जन का एक बार ऑपरेशन में हाथ सध गया तो बच्चे बूढ़े जवान वो किसी का भी ऑपेरशन कर सकता है। इसी तरह जब मन आपकी मर्जी से आपके नियंत्रण में चलने लगेगा, आप जब चाहे जिस विषय को अपने आचरण में उतार सकेंगी। जिस भी सब्जेक्ट में चाहें मास्टर बन सकेंगी। बस मन को नियंत्रण करना आपको सीखना होगा।

फ़िर जब कोई साहित्य आप पढेंगी तो वस्तुतः वो साहित्य मन मथेगा और उसका मक्खन आपको देगा। वो मक्खन फ़िर आपके व्यक्तित्व में पचेगा। और फिंर आपके आचरण में वो ज्ञान दिखेगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...