Saturday 29 August 2020

मुझे जानना है...पहचानना है, मैं हूँ कौन? मैं हूँ कौन?

 मुझे जानना है...पहचानना है,

मैं हूँ कौन? मैं हूँ कौन?

कहाँ से आया हूँ, कहाँ जाऊँगा?

स्वयं से प्रश्न पूँछता रहता हूँ..

मैं हूँ क्या? मैं हूँ कौन?

इस शरीर में रहने वाला,

मैं हूँ कौन? मैं हूँ कौन?


अरे दर्पण में जो दिखता है,

वह मैं नहीं हूँ,

दुनियाँ ने मुझे जिस नाम से पहचाना है,

वह मैं नहीं हूँ,

अब तक जो सोचा है समझा है,

 वो मैं नहीं हूँ

लोगों की नज़रों ने,

मुझको यहाँ जो भी माना है,

 वो मैं नहीं  हूँ,

यह शरीर "मैं" नहीं हूँ, 

यह मन भी "मैं" नहीं हूँ,

माता-पिता की दी पहचान भी "मैं" नहीं हूँ,

मुझे जानना है...मैं हूँ कौन? मैं हूँ कौन?


"मैं"अनन्त यात्री हूँ,

शरीर बदलता रहता हूँ,

शरीर में रहता हूँ, पर शरीर "मैं" नहीं हूँ,

मन से सोचता हूँ, पर मन "मैं" नहीं हूँ,

जो दर्पण में दिखता नहीं, "मैं" वही हूँ,

जिसके शरीर छोड़ने पर,

चिकित्सक शरीर को मृत घोषित कर देते हैं,

वह ऊर्जा जिससे शरीर जीवित है, "मैं" वही हूँ, 

जो श्वांस के बन्धन शरीर को चलाता है, "मैं" वही हूँ,

इसे जानो या ना जानो, यह है तभी जीवन है

मुझे जानना है...मैं हूँ कौन? मैं हूँ कौन?



मैंने कई शरीर कई जन्मों में बदला है,

यह "शरीर" दृश्य है, "मैं" अदृश्य हूँ, 

जैसे "बल्ब" दृश्य है, "विद्युत" अदृश्य है,

दुनिया ने जो समझाया मुझे,

वह "मैं" नहीं हूँ, 

जो इंद्रियों से परे है,

हां "मैं" वही हूँ,

जैसे जल के अंदर मछली,

मछली के अंदर जल है,

वैसे "ब्रह्म" के अंदर "मैं" हूँ,

और मेरे अंदर वह "ब्रह्म" है,

उसे जाना तो भी स्वयं को जान जाऊंगा,

यदि स्वयं को जाना तो उसे भी जान जाऊँगा,


यदि मैं वही हूँ तो वह कौन है?

इस शरीर के भीतर वह ब्रह्म अंश कौन है?

जीवन का अब एक ही लक्ष्य है,

मुझे जानना है...पहचानना है,

मैं हूँ कौन? मैं हूँ कौन?



🙏🏻श्वेता, DIYA

Friday 28 August 2020

ध्यान के 11 मानसिक लाभ |11 Mental Benefits of Meditation

 *नादयोग ध्यान रिमाइंडर - 6:00 PM to 6:15 PM*


*ध्यान के 11 मानसिक लाभ |11 Mental Benefits of Meditation*


ध्यान, मस्तिस्क की तरंगों के स्वरुप को अल्फा स्तर पर ले आता है जिससे चिकित्सा की गति बढ़ जाती है| मस्तिस्क पहले से अधिक सुन्दर, नवीन और कोमल हो जाता है| ध्यान मस्तिस्क के आतंरिक रूप को स्वच्छ व पोषण प्रदान करता है| जब भी आप व्यग्र, अस्थिर और भावनात्मक रूप से परेशान होते हैं तब ध्यान आपको शांत करता है| ध्यान के सतत अभ्यास से होने वाले लाभ निम्नलिखित हैं:


👉🏻व्यग्रता का कम होना

👉🏻भावनात्मक स्थिरता में सुधार

👉🏻रचनात्मकता में वृद्धि

👉🏻प्रसन्नता में संवृद्धि

👉🏻सहज बोध का विकसित होना

👉🏻मानसिक शांति एवं स्पष्टता

👉🏻परेशानियों का छोटा होना

👉🏻ध्यान मस्तिस्क को केन्द्रित करते हुए कुशाग्र बनाता है तथा विश्राम प्रदान करते हुए विस्तारित करता है|

👉🏻बिना विस्तारित हुए एक कुशाग्र बुद्धि क्रोध, तनाव व निराशा का कारण बनती है|

👉🏻एक विस्तारित चेतना बिना कुशाग्रता के अकर्मण्य/ अविकसित अवस्था की ओर बढ़ती है|

👉🏻कुशाग्र बुद्धि व विस्तारित चेतना का समन्वय पूर्णता लाता है|


👉🏻ध्यान आपको जागृत करता है कि आपकी आतंरिक मनोवृत्ति ही प्रसन्नता का निर्धारण करती है|

😇

*ये सब फ़ायदे पढ़ने से नहीं, वरन् नियमित करने से मिलेंगे। यदि स्वयं और परिवार का कल्याण चाहते हैं तो नियमित ध्यान करें। जिस प्रकार शरीर के पोषण हेतु भोजन आवश्यक है, उसी प्रकार दिमाग के पोषण हेतु ध्यान आवश्यक है*😇

Thursday 27 August 2020

मैं गर्भ व गर्भ से पूर्व भी अस्तित्व में था, बिना सांसारिक नाम के भी अस्तित्व में था।

 जब मेरे शरीर का जन्म हुआ,

दुसरों ने गोद में उठाया,

जब मैं शरीर छोड़ूंगा - मृत्यु होगी,

तब भी दूसरे ही उठाएंगे।


नए शरीर में जब जन्मा, मुझे कुछ ज्ञान न था,

जब मृत्यु होगी तब भी कुछ ज्ञान न रहेगा,

जब जन्मा दूसरों से मुझे नाम मिला व पहचान मिला,

जो सर्वथा झूठी व कपोलकल्पना आधारित था।


मेरे माता पिता स्वयं भी नहीं जानते थे,

कि वस्तुतः वह कौन हैं,

उन्हें भी उनके माता पिता ने,

एक कपोल कल्पित पहचान व नाम दिया था।


मैं भी नहीं जानता,

कि मैं कौन हूँ व कहाँ से आया हूँ?

इसलिए मैं भी झूठी परम्परा का निर्वहन करूंगा,

अपने पुत्र को भी एक कपोल कल्पित नाम व पहचान दूंगा।


मैं गर्भ व गर्भ से पूर्व भी अस्तित्व में था,

बिना सांसारिक नाम के भी अस्तित्व में था।


मैं वस्तुतः कौन हूँ? इस शरीर में क्यूँ हूँ?

इन प्रश्नों के उत्तर ढूढ़ना है,

स्वयं से परे जाकर स्वयं को देखना है।


अब और झूठी पहचान को ओढ़ सकता नहीं,

जब मैं जन्मा ही नहीं तो मैं मर सकता नहीं,

शरीर नया लिया था इसे पुनः छोड़ूंगा,

इस अनन्त सफर से अब अनभिज्ञ न रहूंगा।


इस बार मैं चैतन्य जागृत होकर ही,

शरीर बदलूँगा,

प्रत्येक पल चैतन्य जागरूक रहकर ही,

योगियों की तरह अनन्त यात्रा करूँगा।


💐श्वेता, DIYA

मेरे मित्रों आपका! हृदय से धन्यवाद है, आपकी शुभकामनाओं से, आपके आशीर्वाद से, मेरे जीवन में वसंत है, बहार है।

 मेरे मित्रों आपका! हृदय से धन्यवाद है,

आपकी शुभकामनाओं से, आपके आशीर्वाद से,

मेरे जीवन में वसंत है, बहार है।


प्रत्येक क्षण प्रत्येक पल,

आपका मेरे जीवन मे योगदान है,

आपका साथ ईश्वर का साक्षात वरदान है।


सतत आपके प्रोत्साहन का ईंधन मिलता रहा,

जिससे जीवन में प्राण ऊर्जा का संचार होता रहा,

आप मेरे मित्र रूप में हैं,

यह ईश्वर की कृपा का ही परिणाम है।


आपने सदा मेरा उत्साहवर्द्धन किया,

मेरे मनोबल को ऊंचा रखने में सदा सहयोग किया,

प्रत्यक्ष - अप्रत्यक्ष रूप में,

आप ही मेरे लिए ईश्वर का कृपा प्रसाद है।


मेरे मित्रों आपका! हृदय से धन्यवाद है,

आपकी शुभकामनाओं से, आपके आशीर्वाद से,

मेरे जीवन में वसंत है, बहार है।


💐श्वेता, DIYA

मेरे विरोधियों को, सादर चरण स्पर्श कर नमस्कार करता हूँ,

 मैंने उन पत्थरों से घर बनाया,

जो मेरे विरोधियों ने मुझ पर फेंके,

मैंने उन अवरोधों को सीढ़ियां बनाई,

जो मेरे विरोधियों ने मेरे मार्ग में खड़ी की।


मैंने उन अपशब्दों व गालियों को प्रोत्साहन ध्वनि समझा,

जो मेरे विरोधियों ने मुझे दी,

प्रत्येक विरोधियों ने मुझे निरन्तर,

आगे बढ़ने की वज़ह दी।


मेरे मार्ग को चुनौतियों से भरकर,

मेरे विरोधियों ने जीवन रोमाँचक बना दिया,

प्रत्येक बाधा को पार करने पर,

खेल की तरह इक नई बाधा का पुरस्कार दिया।


मेरे विरोधियों को,

सादर चरण स्पर्श कर नमस्कार करता हूँ,

यदि वो न होते तो जीवन बहुत नीरस होता,

अवरोधों के मसाले व अपशब्दों के तड़के से,

जिन्होंने जीवन को सतत रोमाँचक किया,

उनके चरणों में नमन वंदन सौ बार करता हूँ।


💐श्वेता, DIYA

Wednesday 26 August 2020

ठान लो और पुरुषार्थ करो तो, निश्चयत: विजय तुम्हारी है

 सरल है भूमि में पड़े रहना,

कठिन है भूमि में खड़े होना सीखना,

सरल है धारा के वेग में बहना,

कठिन है धारा के विपरीत तैरना।


ठान लो और पुरुषार्थ करो तो,

निश्चयत: विजय तुम्हारी है

अब "मैं" का अवशेष भी शेष नहीं

 तुम मुझे हरा या विजय दिला सकते नहीं,

यदि मैं लड़ूंगा ही नहीं,

तुम मुझे गिरा सकते नहीं,

यदि मैं किसी भी युद्ध मे खड़ा होऊंगा ही नहीं।


तुम मुझसे कुछ छीन ही सकते नहीं,

यदि मैंने कुछ संग्रह किया ही नहीं,

तुम मुझे अपमानित या सम्मानित कर सकते नहीं,

यदि भीतर "मैं" के होने का अहसास नहीं।


द्वंद तो तब है जब दो हैं,

जब एक ही शेष तो द्वंद ही नहीं,

जब "मैं" का बीज गल गया,

तो अब "वह परमात्मा" शेष है, अब "मैं" का अवशेष भी शेष नहीं।


💐श्वेता,  DIYA

तुम यदि ठान लो कि जीवनसाथी से युद्ध नहीं करोगे, तो युद्ध न होगा। बस मन की तैयारी इस प्रकार कर लो:-

 तुम यदि ठान लो कि जीवनसाथी से युद्ध नहीं करोगे, तो युद्ध न होगा। बस मन की तैयारी इस प्रकार कर लो:-


1- मेरा जीवनसाथी ऐसा ही है, इसे मैं जैसा है वैसा ही स्वीकारती/स्वीकारता हूँ। मैं कभी भी मन में यह प्रश्न न उठने दूंगी/दूंगा कि यह ऐसा क्यों? यह गुलाब है तो भी स्वीकार्य है और यदि यह कांटा है तो भी स्वीकार्य है। मैं यह कभी नहीं कहूंगा/कहूंगी कि क्या मेरे मन मुताबिक यह सुधर नहीं सकता? जब मेरा मन ही मेरे वश में नहीं, फिर मैं अपने जीवनसाथी के मन को वश में करने की कुचेष्टा क्यों करूँ? इससे अच्छा यह न होगा कि स्वयं के मन को साधने में जुट जाऊँ और उसे स्थिर कर लूं। निज वश में कर लूं।


2- जीवनसाथी मेरे लिए जो कर दे, उसके लिए ईश्वर को धन्यवाद। यह जो मेरे लिए न करे, उसके लिए भी ईश्वर को धन्यवाद। यह इंसान है, रोबोट नहीं है। अतः इसका रिमोट कंट्रोल ढूंढने में समय व्यर्थ नहीं करूंगा/करूंगी।


3- ईश्वर तुम कण कण में हो। मुझमें भी हो और मेरे जीवनसाथी में भी हो। तुम तो पत्थर की मूर्ति में भी पूजन  से जीवंत हो जाते हो। मैं आपका आह्वाहन इस जीवंत प्रतिमा मेरे जीवनसाथी में करता/करती हूँ। मुझे शक्ति व सामर्थ्य दें कि जीवनसाथी के रूप में आपका सान्निध्य व सेवा को प्राप्त कर सकूँ। मेरे जीवन साथी के भीतर विद्यमान उस पर ब्रह्म को मैं प्रणाम करता/करती हूँ।

Sunday 23 August 2020

देवासुर संग्राम क्यों? किसी के घर में शांति तो किसी के घर मे अशांति क्यों?

 *देवासुर संग्राम क्यों? किसी के घर में शांति तो किसी के घर मे अशांति क्यों?*


आज ध्यान की गहराईयों में देवासुर संग्राम के विषय में चिंतन उभरा, विचार आया कि क्या विधाता ने असुरों के साथ अन्याय किया? देवो को स्वर्ग और असुरों को नर्क दिया? 


फिर गहराई से चिंतन किया तो एक पौराणिक घटना का स्मरण हो आया। दानव(असुर) यह शिकायत लेकर ब्रह्मा जी के पास गए कि एक ही पिता कश्यप ऋषि  की सन्तान देवता(सुर) व दानव(असुर) दोनों है। फिर एक को स्वर्ग व दूसरे को नरक क्यों? ब्रह्मा ने कहा - आप देव व दानवो को भोज पर आमंत्रित किया जाता है। वहीं इसका उत्तर मिलेगा।


भोज में देव व दानव दोनो समूह आ गए, दोनों को दो अलग कमरों में भोजन हेतु बिठाया गया। भोजन की साधारण सी शर्त थी कि हाथ की कुहनी नहीं मुड़ सकती। 


देवता मुस्कुराए वह समझ गए कि बिना कुहनी मोड़े स्वयं को नहीं खिलाया जा सकता है लेकिन दूसरे को खिलाना सम्भव है व एक दूसरे को खिलाकर पेट भर लिया। कोई गंदगी न फैली और अन्न का एक दाना भी फर्श पर न फैला।


देवता अर्थात जो दूसरे को देने का भाव रखता हो, जो देने में खुशी महसूस करता हो।


दानव जिनके भीतर कभी दूसरे को देने का भाव ही नहीं है, जो केवल स्वयं की संतुष्टि के अतिरिक्त कुछ सोचते नहीं। भला उनके दिमाग मे दूसरे को भोजन कराने का चिन्तन किस कदर उभरता। हाथ ऊपर कर कर स्वयं के मुख में भोजन डालने की कुचेष्टा करते कुछ मुंह मे और कुछ बाहर गिरता। इस तरह सबके कपड़े खराब हो गए, मुंह मलिन हो गया। आसपास गंदगी फैल गयी। 


तब ब्रह्मा ने दोनों पार्टियों को एक दूसरे के कमरों को देखने के लिए बीच में लगा पर्दा हटा दिया। वस्तुतः वह दो अलग कमरे नहीं थे एक कमरे के दो भाग थे। देवताओ के कमरे वाला भाग पूर्ववत सुंदर व व्यवस्थित था। वह सलीके से कतारबद्ध बैठे थे। सब भोजन ख़ाकर तृप्त थे। वहीं दानवों वाले कमरे का हिस्सा अस्तव्यस्त हो गया था। सबके मुंह मलिन थे, पेट नहीं भरा था। सर्वत्र अन्न बिखरा पड़ा था।


तब ब्रह्मा ने कहा - इस कमरे की तरह हमने तुम दोनों समूहों को एक जैसा संसार दिया था। देवताओं की परमार्थ में देने की प्रवृत्ति व प्रेम-सहयोग की मनोवृत्ति ने उस स्थान को स्वर्ग सा सुंदर बना दिया। तुम दानवों की आसुरी स्वार्थ में मात्र स्वयं लेने की  प्रवृत्ति व दुसरो को सहयोग न करने की मनोवृत्ति ने उस स्थान को नर्क सा विभत्स बना दिया।


यही प्रत्येक परिवार व समाज का हाल है। जिस घर मे देवताओ की मनोवृत्ति के लोग रहते हैं वह परिवार स्वर्ग सा सुंदर व व्यवस्थित रहता है, वहां सुख-शांति का निवास होता है। वहां का समाज शोभनीय व प्रेम-सहकार से भरा होता है।


 जिस घर मे दानवों की मनोवृत्ति के लोग रहते हैं वह परिवार नर्क सा विभत्स व अस्त-व्यस्त रहता है, वहाँ दुःख व अशांति का वास होता है। वहां का समाज अशोभनीय व हिंसा से भरा होता है।


युगऋषि कहते हैं - परिवार धरती का स्वर्ग है तब जब वहां देवताओं की मनोवृत्ति के लोगो का वास हो।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

देवता बनो तो सही, स्वर्ग स्वयंमेव आसपास निर्मित हो जाएगा

 *देवता बनो तो सही, स्वर्ग स्वयंमेव आसपास निर्मित हो जाएगा।*


हम स्वयं को कितना समझते हैं? स्वयं की योग्यता व पात्रता को निखारने में कितना समय साधन खर्च करते हैं? हमारी सोच की गहराई व ऊंचाई कितनी है? हमारे तृतीय नेत्र - आध्यात्मिक ज्ञान दृष्टि कितनी विकसित है? इन सब पर हमारा जीवन व परिणाम निर्भर करता है।


सुगंधित पुष्प व घाव-रक्त-पीव की पट्टी रखी हो, मधुमक्खी और मक्खी दोनों को वहाँ छोड़ दें तो मधुमक्खी पुष्प का चयन करेगी और मक्खी घाव-रक्त-पीव की पट्टी का प्रयोग करेगी। 


ऐसा नहीं कि चयन का अधिकार आपने उन दोनों को समान नहीं दिया, फिर भी दूर से देखने वाला जो मक्खी व मधुमक्खी की मनोदशा से अनभिज्ञ हो वह आप पर आरोप लगाएगा कि आपने पक्षपात किया। मधुमक्खी को सुंदर सुगंधित सुरभित पुष्प दिया और मक्खी को दुर्गंध व रोगाणुओं से भरा रक्त घाव की पट्टी दी।


यही संसार में हो रहा है, विधाता ने कर्म में सबको स्वतंत्र कर रखा है। हमारे दृष्टिकोण, विचारों व कर्म अनुसार हम प्रत्येक क्षण चयन कर रहे हैं तदनुसार परिणाम भुगत रहे हैं। धूल सीसे में जमी हुई है और दोष संसार को दे रहे हैं।


त्रिगुणात्मक सत, रज, तम तीनों तत्व युक्त विचारधारा व कर्म का चयन करने हेतु सभी स्वतंत्र हैं। निर्णय तो हम सबको करना पड़ेगा।


धरती का गुरुत्वाकर्षण बल चलने में सहायक है व गिराने में भी सहायक है। अब खड़े रहने का प्रयत्न पुरुषार्थ हमें स्वयं करना पड़ेगा।


स्वर्ग सभी को चाहिए, लेकिन उनके मन व हृदय के भीतर यदि झाँक सकें तो पाएंगे कि इतनी मलिनता है कि नर्क का साम्राज्य विकसित हो रखा है। आकर्षण के सिद्धांत अनुसार उनके भीतर आसुरी चिंतन विराजमान है तो दैवीय सम्राज्य स्वर्ग मिलेगा कैसे?


युगऋषि ने स्पष्ट घोषणा की है - स्वर्ग तो धरा पर उतरने को तैयार है, मग़र क्या हम देवता बन सकें है जो स्वर्ग के सुख को भोग सकें? स्वर्ग तो देवताओ के लिए सुरक्षित है। देवता बनो और स्वर्ग भोगो। 


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 18 August 2020

स्वप्न जगत को अनुभव करने के लिए सोना पड़ेगा। ध्यान जगत को अनुभव करने के लिए जागना पड़ेगा।

 स्वप्न जगत को अनुभव करने के लिए सोना पड़ेगा। ध्यान जगत को अनुभव करने के लिए जागना पड़ेगा। 


स्वप्न हो या ध्यान दोनो में चेतना के दूसरे आयाम में पहुंचा जा सकता है। स्वप्न  हो या ध्यान दोनों में बाहर विचरण करने के लिए दरवाजा कुंडी खोलने की जरूरत नहीं। दोनो ही स्थूल से परे स्व का अनुभव है।


वर्तमान में तुम अर्द्ध जगे हो या यूं कहो अर्द्ध सोए हुए हों। दोनो जगह आराम मिलेगा - चाहे नींद में पूर्ण सो जाओ या ध्यान द्वारा पूर्ण जाग जाओ।


बाज भीगने से बचने के लिए बादलों से ऊपर उठ कर उड़ता है। साधारण पशु-पक्षी परेशान होकर छुपने की तलाश करते हैं। लेकिन मछली जो जल में ही है उसे भला भीगने का क्या डर?


हम और तुम बीच मे खड़े हैं - अर्द्ध चेतन अवस्था मे है। निर्णय तो करना पड़ेगा। प्रत्येक निंर्णय पर भविष्य टिका हुआ है।


💐श्वेता, DIYA

मोक्ष - ईच्छाओं वासनाओं से हो मुक्त, कर्ता भाव से हो मुक्त, होश में जीना मोक्ष है

 *मोक्ष - ईच्छाओं वासनाओं से हो मुक्त, कर्ता भाव से हो मुक्त, होश में जीना मोक्ष । अच्छे कर्म करना लेकिन कर्म फ़ल के बन्धन से मुक्ति मोक्ष है। जो जहाँ जिस परिस्थिति में हो उसी में आनंदित रहना मोक्ष है। मनःस्थिति बदलना ही मोक्ष है। शरीर में रहकर आत्मभाव में स्थित रहना मोक्ष है।*


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाईन इंडिया यूथ एसोसिएशन

स्वतन्त्रता दिवस व आध्यात्मिक सूत्र युवाओ के लिए

 स्वतन्त्रता दिवस व आध्यात्मिक सूत्र युवाओ के लिए


https://youtu.be/d9WXdRVLayg

जानकारियों के ढेर को(lots of information) को बुद्धि (Intellect) समझने की भूल न करें।

 जानकारियों के ढेर को(lots of information) को बुद्धि (Intellect) समझने की भूल न करें। Google के पास जानकारी है बुद्धि नहीं। बुद्धि बढ़ाने के लिए एकाग्रता से एक विषय वस्तु पर मनन चिंतन का अभ्यास कीजिये। स्वयं को इतना योग्य बनाइये कि कम से कम 5 से 15 मिनट तक एकाग्र होकर एक ही विषय वस्तु पर चिंतन कर उसका समाधान स्वयं के भीतर खोज सकें।


💐श्वेता, DIYA

Friday 14 August 2020

स्त्रियों को गुलामी के बन्धन में किसने डाला?

 *स्त्रियों को गुलामी के बन्धन में किसने डाला?*


त्रिदेव व त्रिदेवियाँ - ब्रह्मा जी को सृजन हेतु सहयोग करती ज्ञान बल से माँ  सरस्वती, भगवान विष्णु को सृष्टि के संचालन में धनबल से सहयोग करती माँ लक्ष्मी और देवाधिदेव महादेव को संसार के परिवर्तन चक्र और असुरता के विध्वंस हेतु शक्तिबल से सहयोग करती माँ दुर्गा।


याज्ञवल्कय ऋषि को यज्ञ अनुसंधान में सहायता करती उनकी महा विदुषी  पत्नियां मैत्रेयी व गार्गी।


हिन्दू सनातन धर्म में कभी भी लड़कियों अयोग्य नहीं रखा गया था, फ़िर ऐसा क्यों हुआ कि मध्यकाल में स्त्रियों की इतनी दुर्गति हुई। दहेज प्रथा जैसी कुवृत्तियों व कुप्रथाओं की शुरुआत हुई?


केवल पुत्रो को योग्य बनाया और उन्हें शस्त्र व शास्त्र दिया। किंतु लड़कियों के हाथ से शास्त्र व शस्त्र दोनों क्यों छीन लिया।


हमारा देश तो कभी भी कायर नहीं था, सभी देवी देवता शस्त्र व शास्त्र दोनो से सुसज्जित थे। हमारा देश 41% विश्वव्यापार में हिस्सेदार था। किस षड्यंत्र कर्ता ने हमारे देश की आधी जनसंख्या स्त्रियों को पिछड़ा व अयोग्य बनाने की साजिश रची?


सँस्कार व योग्यता स्त्री व पुरुष दोनों को बराबर दिया जाना चाहिए। दोनों योग्य होंगे तभी परिवार व देश दोनो तरक़्क़ी कर सकेंगे।


भावनात्मक रूप से आत्मनिर्भर, योग्य व आर्थिकनिर्भर लड़की के मातापिता को उसके विवाह व विवाह के बाद उसके जीवन की चिंता करने की जरूरत नहीं पड़ती। 


बड़ी सोच व प्रयास से समस्या हल होगी। समस्त समाज को लड़कियों के प्रति अपने दृष्टिकोण की मरम्मत करनी होगी। लड़कियों को स्वयं अपने लिए मेहनत करनी होगी तभी समाज व्यवस्थित हो सकेगा।


चार मनचले लड़के और सुनसान रोड में खड़ी लड़की समस्या नहीं है। आम लड़की को वो मनचले लूटेंगे। जबकि सैनिक लड़की हुई तो वो उन चार लड़कों को कुटेगी, पिटेगी और पिसेगी। थाने ले जाकर ठोकेगी। 


समस्या की जड़ लड़कों के माता पिता है जिन्होंने लड़को को शुभ सँस्कार नहीं दिए। ऐसे मनचलों के माता पिता से ज्यादा ग़लती उस लड़की के माता पिता की है जिन्होंने अपनी बेटी को स्वयं की सुरक्षा हेतु मजबूत दुर्गा जैसे नहीं बनाया।


वस्तुतः गाली और सामाजिक बहिष्कार तो लूटेरों का होना चाहिए, जो लूट का शिकार हुए उन्हें तो समाज को सहयोग करना चाहिए। मग़र वर्तमान समाज की समस्या यह है कि यदि लड़की की इज्जत लूटी गई लोग उस लड़की को ही दोष देते हैं व अपमानित करते हैं, लेक़िन समाज उन इज्जत के लुटेरों को सामाजिक दण्ड नहीं देता, उन्हें अपमानित नहीं करता।


समाज के दृष्टिकोण के मरम्मत की जरूरत है, लड़की के माता पिता को बेटी को दुर्गा समान सर्वसमर्थ गढ़ने की जरूरत है। लड़की को स्वयं को योग्य बनाने के लिए मेहनत करने की जरूरत है। समाज को लड़की की मदद के लिए एकजुट होना होगा।


जो लड़का कुकर्म करे उसके लिए कानूनी कार्यवाही जब होगी तब होगी, समाज पहले कार्यवाही करते हुए उसका हुक्का पानी बन्द कर दें।


यदि कोई लड़की किसी लड़के पर झूठा आरोप लगाए व ब्लैकमेल करे तो उस लड़की पर भी सामाजिक कार्यवाही हो। 


राजा विक्रमादित्य के समय की तरह समाज को जागरूक होना पड़ेगा। तभी कोई भी अत्याचार किसी पर कर न सकेगा।


 तभी देश पुनः सुखी व समृद्ध बन सकेगा।


🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *दी, कृपया मुझे एक फ़्लैग होस्टिंग भाषण लिख कर दे दीजिए।*

 प्रश्न - *दी, कृपया मुझे एक फ़्लैग होस्टिंग भाषण लिख कर दे दीजिए।*


उत्तर - आत्मीय बहन, इसमें कुछ और जोड़कर या सुधार कर अपने हिसाब से कल सुबह फ्लैग होस्टिंग में बोल सकती हैं।


प्रिय बच्चों,


आज हम लोग  *flag hoisting के लिए यहां एकत्रित हुए हैं। वास्तव में यह दिन फ़्लैग होस्टिंग के साथ साथ फ्लैग होल्डिंग (Flag Holding) के लिए है। देश का झंडा फहराने के साथ साथ देश का सम्मान बढाने के लिए है। आज देश के लिए संकल्प लेने के का दिन है। क्या हमारे हाथों में इतनी ताकत और हृदय में इतना साहस है कि हम इस देश के सम्मान को होल्ड(उठा) सकें। इस देश का सम्मान बढ़ा सकें।


हम लोगों के पास दो ऑप्शन है, किस्मत को, परिस्थितियों को, समस्याओं को, नेताओं को इत्यादि को दोषी बताकर अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लें। खूब बहाने बनाये और लोगों को बताएं क़ि क्यों हम नहीं कुछ कर पाए?


या दूसरा ऑप्शन यह है कि हम जिम्मेदारी उठाने के लिए आगे आये, देश का सम्मान बढ़ाने के लिए और देश को सम्मान दिलाने के लिए कमर कस लें। विपरीत परिस्थितियों से लड़कर उस पर विजय पाएं।


हम जो भी कैरियर अपने लिए चुने तो सोचें कि, इसमें ऐसा क्या बेहतर करें कि हमारे देश का नाम हो। जॉब या व्यवसाय के साथ साथ देश की सेवा भी हो जाये। 


यदि प्लेयर बन रहे हो, तो उस खेल के सबसे बेस्ट इंटरनेशनल प्लेयर से कम्पटीशन करो। हाँ मैं इस खेल के द्वारा देश का झंडा विश्व मे लहराना चाहता हूँ।


यदि आर्मी चुन रहे तो सोचो जिस जगह मैं होऊंगा वहां से दुश्मन के छक्के छुड़ा दूंगा।


 पुलिस ज्वाइन करो तो सोचो देश के अंदर पनपने वाले दीमकों भ्रष्टाचारियों का जड़ से सफाया कर दूंगा। 


डॉक्टर इंजीनियर साइंटिस्ट जो भी बनूँगा तो विदेशों से बेस्ट सर्विस देश को दूंगा। व्यवसायी बनूंगा तो देश मे इतने रोजगार के अवसर पैदा करूंगा कि जिससे कुछ तो बेरोजगारी दूर हो। 


मैं इस देश मे परिवर्तन चाहता हूँ, तो मैं इस परिवर्तन का स्वयं हिस्सा बनूँगा। 


हमारे परमपूज्य गुरुदेव कहते हैं कि *हम सुधरेंगे, युग सुधरेगा। हम बदलेंगे, युग बदलेगा।।*


बदलाव की शुरुआत स्वयं से करेंगे। देश की सबसे बड़ी सेवा होगी स्वयं का सुधार। 


 हमारे अंदर इतनी देशभक्ति तो होनी ही चाहिए, कि यदि हम देश की समस्याओं के समाधान का हिस्सा न बन सके,


 तो कम से कम हम देश के लिए समस्या तो न बनें। समस्या का हिस्सा न बनें।


देश की आज़ादी के लिये न जाने कितनों ने अपनी जान दी, भगत सिंह, सुभाष, गांधी करोड़ो स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों इत्यादि ने न जाने कितनी यातनाएं सही, उन्होंने स्वयं से पहले इस देश को रखा। अब हमारी बारी है। क्या हम देश के इस फ़्लैग की होस्टिंग और फ्लैग होल्डिंग के लिए तैयार हो। क्या देश का झंडा फहराने के साथ साथ देश का सम्मान बढ़ाने को तैयार हम तैयार हैं?


यदि हाँ, तो बोलो मेरे साथ,

भारत माता की जय!

भारत माता की जय!

भारत माता की जय!

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🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

क्या शिव से विवाह करने हेतु पार्वती ने तप किया?

 बचपन से मैं सुनते आ रही थी कि पार्वती ने शिव को पाने के लिए कठिन तप किया, जो पूर्ण सत्य नहीं था।


कल जब मैं ध्यान कर रही थी, तब मुझे पूर्ण सत्य का अहसास हुआ कि पार्वती ने स्वयं के मूल अस्तित्व आद्यशक्ति को स्वयं में उभारने व पाने के लिए कठोर तप किया। साधारण स्त्री से आद्य शक्ति बनने के लिए तप किया। 


शिव केवल आद्यशक्ति को मिल सकते थे, किसी साधारण स्त्री को नहीं।

अतः पार्वती ने साधारण स्त्री से आद्यशक्ति बनने के लिए साधना की।


वह दोनों से एक दूसरे के लिए ही बने हैं, शिव ने मात्र स्वयं से विवाह हेतु पार्वती से तप नहीं करवाया था। वह तो पार्वती को उनकी शक्तियों से परिचय करवाना चाहते थे। 


तप से विधाता सृष्टि रचता है, कठोर तप से ही शिव स्वयं को महाकाल की शक्तियों से ओत-प्रोत रखकर जगत को सम्हालता है। सभी देवशक्तियाँ स्वयं की शक्तियों को अर्जित करने हेतु तपलीन रहती हैं।


कठिन तप द्वारा पार्वती माता ने शरीर की पहचान से  ऊपर उठकर आदिशक्ति स्वरूप में बदल गयी। आदिशक्ति बनते ही शिव स्वतः उनके समक्ष प्रकट हो गए। इस तरह दो देव शक्तियों शिव और शक्ति का मिलन हो गया।


🙏🏻श्वेता, DIYA

Thursday 13 August 2020

स्वयं पर आत्मशक्ति का प्रयोग करना व स्वयं की चेतना को ऊपर उठाना

 *स्वयं पर आत्मशक्ति का प्रयोग करना व स्वयं की चेतना को ऊपर उठाना*


🙏🏻 स्वयं में देवत्व की प्राण प्रतिष्ठा करने के उपक्रम हेतु शांत चित्त प्रशन्न मुद्रा में सुखासन में बैठ जाएं🙏🏻


स्वयं से स्वयं को अलग कर ध्यान के माध्यम से विचारों व कल्पनाओं की सहायता से स्वयं को स्वयं से अलग हो 15 मिनट देखिए। यदि इसमें असुविधा हो रही है तो दर्पण में स्वयं के दो भौं के बीच आज्ञाचक्र वाले स्थान को करीब  15 मिनट अपलक देखिए।


स्वयं से कहिए - मैं अनुभव कर रहा हूँ कि मैं शरीर नहीं हूँ, मैं यह मन भी नहीं हूँ। मैं परम पवित्र आत्मा हूँ जो कि परमात्मा का अंश है। इस शरीर मे वह आत्मा परमात्मा के संग रह रही है। यह शरीर तो मन्दिर है। 


मैं जाग गया हूँ, मोह की निंद्रा टूट गयी है। वर्षो से बन्द मेरी अंतर्दृष्टि खुल रही है। अब तक मैं बाह्य नेत्रों से द्विआयामी दुनियाँ देख रहा था, अब मैं त्रिआयामी दुनियाँ तृतीय नेत्र की सहायता से देखने में सक्षम बन रहा हूँ। दर्पण में जो दिखता है वह शरीर है, वह मैं नहीं हूँ। कोई भी सांसारिक दर्पण मुझे दिखाने में सक्षम नहीं। 


मैं वही हूँ - सो$हम, वह मैं हूँ, तुम भी मैं हो और तुम ही मैं हूँ। सर्वत्र एक ही आत्मद्रव्य विभिन्न पात्रों - शरीर में विद्यमान है। एक ही परमात्मा रूपी सागर का आत्म द्रव्य सर्वत्र भरा है।


अब मै जाग गया हूँ, दुनियाँ के क्षुद्र विचारों से ऊपर उठ गया हूँ। अब मैं क्षुद्र कामनाओं व वासनाओं में अमूल्य जीवन नष्ट नहीं करूंगा। अब मुझे कोई भी सांसारिक प्रलोभन निम्नगामी नहीं बना सकता। कोई सांसारिक घटना, परिस्थति व विचार मुझे मानसिक पीड़ा नहीं दे सकता। काम , क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव, द्वेष इत्यादि मुझे व्यथित नहीं कर सकते। मेरे समस्त कुविचार व बुरी आदत नष्ट हो गए हैं। अब मेरे अंदर शुद्ध विवेक बुद्धि  जग गयी है, मेरा निष्पाप हृदय हो गया है, मेरा मन निर्मल व पवित्र गंगा जल की तरह हो गया है।


परमपिता परमेश्वर की कृपा से मैं नर से नारायण बनने के मार्ग में अग्रसर हो रहा हूँ। मुझमें देवत्व जग रहा है।  मैं आत्म ज्ञान से प्रकाशित हो रहा हूँ। 


मैं परमात्मा के सन्निध्य में, उस ईश्वर को स्वयं में धारण कर.. उनकी तरह ही..

मैं प्राणस्वरूप बन रहा हूँ, 

मैं दुःखनाशक बन रहा हूँ,

मैं सुख स्वरूप बन रहा हूँ,

मैं श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप बन रहा हूँ, 


मेरे प्रज्ञा चक्षु खुल रहे हैं, 

अब मैं परमात्मा के संग..

सत्य की ओर गमन कर रहा हूँ..

प्रकाश की ओर गमन कर रहा हूँ...

अमरत्व की ओर गमन कर रहा हूँ...


अब मैं नर से नारायण बनने की ओर अग्रसर हूँ...


हाथ में जल लेकर तीन बार स्वयं पर छिड़क कर मार्जन करें। थोड़ी देर नेत्र बन्द कर परमात्मा से योग अनुभव करें। 


गायत्री मंत्र जपकर हाथ रगड़े व पूरे चेहरे पर लगा लें।


ॐ शांति मन्त्र बोलकर उठ जाएं।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 12 August 2020

मेरे बुद्धि रथ के सारथी बन जाओ

 जब भगवान कृष्ण ने,

अर्जुन से यह नहीं कहा कि तुम मेरा नाम जपो, और मैं तुम्हारा युद्ध व कार्य कर दूंगा। अपितु यह कहा - गांडीव उठाओ और अपना युद्ध करो, मैं तुम्हारे लिए हथियार नहीं उठाऊंगा। केवल तुम्हारा मार्गदर्शन करूंगा व सारथी बनूँगा।


फिर हम तुम यह मूर्खता क्यों करें कि भगवान से कहें कि आप मेरी समस्या का समाधान कीजिये या मेरी अमुक मनोकामना पूरी कर दीजिए। हम बस बैठकर आपका नाम जपेंगे और खुद कुछ न करेंगे।


हमें अर्जुन की तरह कृष्ण से कहना चाहिए, प्रभु हम आपकी शरण मे है, आपका नाम जपते हैं व आपका ध्यान करते हैं। मेरे बुद्धि रथ के सारथी बन जाओ और मेरा मार्गदर्शन करो कि मैं किस तरह योग्य बनूँ और अपने जीवन की समस्या का समाधान खुद कर सकूँ। स्वयं के लक्ष्य को प्राप्त कर सकूं।

कठिन कम्पटीशन और जटिल समाज के लिए बचपन से बच्चे तैयार करो,

 सात से दस वर्ष की लड़की हो या लड़का ग्रामीण संवेदनशील हो जाती है, माता के साथ घर में हाथ बंटातें है और पिता को खेत मे सहयोग करने लगते है, पशु पालन करते हैं, व ग्रामीण में यदि अच्छा स्कूल मिल जाये तो बिना कोचिंग बड़ी बड़ी परीक्षा भी पास कर लेते हैं। ग्रामीण बच्चे बड़ी जल्दी समझदार बनते हैं। कोई आकस्मिक विप्पति से निकलने के लिए दिमाग़ चला लेते हैं।


शहरी बच्चे सात से दस वर्ष के लड़का हो या लड़की दूसरे को भोजन परोसने की बात छोड़ ही दो, ढंग से खुद परोसकर खाना तक नहीं आता। घर के कार्य व माता पिता के प्रति इतने असंवेदनशील होते हैं कि मनपसंद गिफ्ट न मिलने पर तोड़ फोड़ मचा देते हैं। शहरी बच्चों को पढ़ने के लिए बैठाने के लिए भी माता पिता को झल्लाना पड़ता है। आकस्मिक विपत्ति पर वह केवल रो सकते हैं, क्योंकि उन्हें बड़ा व समझदार बनने हेतु कभी प्रेरित ही नहीं किया गया। 


अरे मेरे शहर वाले भाइयों बहनों, छोटी छोटी जिम्मेदारी बच्चों को दो, तुम्हारी नजर में जो बच्चे हैं वह समाज के लिए हमेशा बच्चे न रहेंगे। ओवर प्रोटेक्शन और ओवर लाड़ प्यार में बच्चे मत बिगाड़ो। लास्ट आने पर भी तुम गिफ्ट दे सकते हो, समाज तो सेकण्ड आने पर भी नहीं पूँछेगा। कठिन कम्पटीशन और जटिल समाज के लिए बच्चे तैयार करो, क्योंकि तुम्हारी गोद कुछ वर्ष तक ही संरक्षण दे सकती है ताउम्र नहीं। समझदार बनो और बच्चों को समझदार बनाओ।

आत्मज्ञान वस्तुतः तृतीय नेत्र का विकसित होना है, तत्वदृष्टि से दुनियाँ देखना व समझना ही तो है। स्वयं के आत्म तत्व को जानना व अनुभूत करना ही तो है।

 अंतर्दृष्टि को तृतीय नेत्र कहते हैं, जो भगवान शिव के पास है, साथ ही हम सबके पास भी है।


अंतर इतना है कि भगवान शिव के तृतीय नेत्र पूर्ण विकसित हैं और हमारे तृतीय नेत्र जन्मों से बन्द हैं। कभी खोलने का प्रयास ही नहीं किया। यह वस्तुतः ज्ञान चक्षु हैं।


बाह्य संसार के मूल स्रोत को ज्ञान दृष्टि -तृतीय नेत्र देखते व समझते है।  


लकड़ी के फ़र्नीचर की दुकान में दो बाह्य नेत्र अलग अलग फर्नीचर देखते हैं, तृतीय नेत्र उसके मूल तत्व लकड़ी को देखता है। इस लिए तत्त्वतः देखने के कारण ज्ञान दृष्टि को तत्व दृष्टि भी कहते हैं।


स्वर्ण की दुकान में बाह्य दो नेत्र को विभिन्न आभूषण दिखेंगे, तृतीय नेत्र - तत्वदृष्टि - ज्ञान दृष्टि से देखो तो केवल स्वर्ण ही दिखेगा। स्वर्ण का ही तो अलग आकार प्रकार है। 


मिट्टी के विभिन्न बर्तन व खिलौने वस्तुतः तृतीय नेत्र से देखने पर केवल मिट्टी ही दिखेंगे।


बाह्य नेत्र से सब अलग अलग जाति पाती, ऊंच नीच, स्त्री व पुरुष के भेद दिखेंगे। तृतीय नेत्र अन्तर्दृष्टि से देखो सबमें एक ही तत्व दिखेगा आत्मा, वह आत्मा जो परमात्मा का ही अंश है।


तत्वदृष्टि अंतर्दृष्टि से देखने पर सो$हम, वह ही मैं हूँ, मैं ही वह है, तुम ही मैं हूँ और मैं ही तुम हो। कोई भेद नहीं सब वस्तुतः एक ही तो हैं।


आत्मज्ञान वस्तुतः तृतीय नेत्र का विकसित होना है, तत्वदृष्टि से दुनियाँ देखना व समझना ही तो है। स्वयं के आत्म तत्व को जानना व अनुभूत करना ही तो है।


अध्यात्म बस इसी तृतीय नेत्र ज्ञान चक्षु -तत्वदृष्टि को विकसित करने की विधिव्यवस्था है।

Monday 10 August 2020

*गणेश चतुर्थी पूजन विधि एवं प्रतिमाओं की स्थापना का शुभ मुहूर्त - 2020*

*गणेश चतुर्थी पूजन विधि एवं प्रतिमाओं की स्थापना का शुभ मुहूर्त - 2021*

इस बार गणेश चतुर्थी 10 सितंबर, शुक्रवार को है.  पूजा एवं गणपति स्‍थापना का शुभ मुहर्त दोपहर 12:17 बजे से लेकर रात 10 बजे तक रहेगा.

गाय के गोबर से गणेश जी की शिव लिंग की तरह गणेश की गोलाकार प्रतिमा बनांकर धूप में सुखा लें व उनकी ही स्थापना करें।

या

सुपारी की गणेश प्रतीक प्रतिमा स्थापित कर सकते हैं।

या

मिट्टी व प्राकृतिक रँग व सामान से बनी प्रतिमा उपयोग में लें।

या

धातु की बनी गणेश प्रतिमा स्थापित करें, विसर्जन के दिन जल छिड़कर विदा कर दें और बॉक्स में बन्द कर सुरक्षित रख लें, पुनः अगले साल उस प्रतिमा को धोकर व पॉलिश करके पुनः स्थापित नहला धुलाकर कर लें, विसर्जन के बाद पुनः बॉक्स में सुरक्षित रख लें।

अप्राकृतिक सामान से प्लास्टिक ऑफ पेरिस से बनी गणेश प्रतिमा न खरीदें, जो विसर्जन के बाद जल में घुलती नहीं। प्रदूषण करती है।

आज के दिन के साथ ही दस दिवसीय गणेशोत्सव शुरू हो जाएगा। हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी का त्योहार मनाया जाता है। इसी तिथि पर भगवान गणेश का जन्म हुआ था। गणेश चतुर्थी पर बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता भगवान गणेश की विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है


गणेश चतुर्थी के दिन गणपति की पूजा दोपहर के समय करना शुभ माना जाता है, क्योंकि मान्यता है कि भाद्रपद महीने के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को मध्याह्न के समय गणेश जी का जन्म हुआ था। *गणेश चतुर्थी पर मध्याह्न काल में अभिजित मुहूर्त के संयोग पर गणेश भगवान की मूर्ति की स्थापना करना शुभ रहेगा। ।* इसके अलावा पूरे दिन शुभ संयोग होने से सुविधा अनुसार किसी भी शुभ लग्न या चौघड़िया मुहूर्त में गणेश जी की स्थापना कर सकते हैं।


सभी पर्व सामूहिक रूप से मनाये जाते हैं, परन्तु पूजन के लिए किसी प्रतिनिधि को पूजा चौकी के पास बिठाना पड़ता है, इसी परिप्रेक्ष्य में पास बिठाये हुए प्रतिनिधि को षट्कर्म कराया जाए, अन्य उपस्थित परिजनों का सामूहिक सिंचन से भी काम चलाया जा सकता है। फिर सर्वदेव नमस्कार, स्वस्तिवाचन आदि क्रम सामान्य प्रकरण से पूरे कर लिये जाएँ। तत्पश्चात् श्रीगणेश एवं लक्ष्मी के आवाहन- पूजन प्रतिनिधि से कराए जाएँ।


👉🏻॥ *गणेश आवाहन*॥


गणेश जी को विघ्ननाशक और बुद्धि- विवेक का देवता माना गया है।


*ॐ एकदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि।*

*तन्नो दन्ती प्रचोदयात्॥* - गु०गा०

*ॐ विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय,*

*लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय।*

*नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय,*

*गौरीसुताय गणनाथ! नमो नमस्ते॥*

*ॐ श्री गणेशाय नमः॥ आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।*


👉🏻॥ *दीपयज्ञ से गणेशोत्सव*॥


दीप, ज्ञान के- प्रकाश के प्रतीक हैं। ज्ञान और प्रकाश के वातावरण में ही लक्ष्मी बढ़ती है, फलती- फूलती है। अज्ञान और अन्धकार में वह नष्ट हो जाती है, इसलिए प्रकाश और ज्ञान के प्रतीक साधन दीप जलाये जाते हैं।

एक थाल में कम से कम ५ या ११ घृत- दीप जलाकर उसका निम्न मन्त्र से विधिवत् पूजन करें। तत्पश्चात् गणेश जी के जन्मोत्सव के रूप में जितने चाहें, उतने दीप तेल से जलाकर विभिन्न स्थानों पर रखें।


*ॐ अग्निर्ज्योतिर्ज्योतिरग्निः स्वाहा। सूर्यो ज्योतिर्ज्योतिः सूर्यः स्वाहा। अग्निर्वर्च्चो ज्योतिर्वर्च्चः स्वाहा। सूर्यो वर्च्चो ज्योतिर्वर्च्चः स्वाहा। ज्योतिः सूर्यः सूर्यो ज्योतिः स्वाहा*॥ ३.९


सभी के हाथ मे अक्षत पुष्प देकर नेत्र बन्द कर भावनात्मक आहुति देने को बोलिये।


*गायत्री मन्त्र*- ॐ भूर्भूवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्।


*गणेश गायत्री मन्त्र*- ॐ एकदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।


*दुर्गा गायत्री मन्त्र*- गिरिजायै विद्महे शिवप्रियायै धीमहि। तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्।


*रुद्र गायत्री मन्त्र*- ॐ पञ्चवक्त्राय विद्महे, महाकालाय धीमहि, तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्


*चन्द्र गायत्री मन्त्र*- ॐ क्षीरपुत्राय    विद्महे, अमृतत्वाय धीमहि, तन्न: चन्द्र:  प्रचोदयात्।


*महामृत्युंजय मन्त्र*- ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टि वर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।

👇🏻

*||गणेश जी की आरती||*


जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

एकदन्त दयावन्त चारभुजाधारी। माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी॥


पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा। लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा॥

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥


अन्धे को आँख देत, कोढ़िन को काया। बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥

‘सूर’ श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥


*||शान्तिपाठ||*


ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्षं शान्तिः

पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः ।

वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः

सर्वं शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ॥

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती, DIYA

वैदिक हरतालिका पूजन विधि व मुहूर्त* - शान्तिकुंज के कैलेंडर अनुसार - 21 अगस्त 2020, शुक्रवार

 🌺 *वैदिक हरतालिका पूजन विधि व मुहूर्त*  - शान्तिकुंज के कैलेंडर अनुसार - 21 अगस्त 2020, शुक्रवार




*प्रदोष काल शुभ मुहूर्त -हरतालिका तीज व्रत का शुभ पूजन मुहूर्त-*

हरतालिका तीज मुहूर्त

प्रातःकाल मुहूर्त : 05:53:39 से 08:29:44 तक

अवधि : 2 घंटे 36 मिनट

प्रदोष काल मुहूर्त :18:54:04 से 21:06:06 तक


इस व्रत को स्त्री,पुरुष,कुँवारी कन्या जो चाहे वो अपने सुख-सौभाग्य और सुखी दाम्पत्य जीवन की प्राप्ति के लिए कर सकता है।


हरतालिका दो शब्द से बना है *हर* अर्थात् अगवा/हरण करना आउट *तालिका* अर्थात् सखी। पार्वती जी की सखी ने पार्वती जी को उनके पिता के घर से निकाल कर जंगल तप हेतु पहुँचाया था।

👉🏻 *कथा* 👈🏻

*इस व्रत को सर्वप्रथम माँ पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में वरण हेतु किया था। माता ने निर्जला व्रत किया था और प्रदोष संध्याओं में शिव जी का रुद्राभिषेक किया। दिन-रात महामृत्युंजय का अखण्ड जप करते हुए ध्यानस्थ रहीं। व्रत के दूसरे दिन शिव ब्राह्मण का रूप धरकर पानी में डूबने लगे और मगरमच्छ उनके पीछे पड़ा था। उनके आवाज़ देने पर माँ पार्वती ने अपना बाँया हाथ बचाने हेतु बढ़ाया, लेकिन ब्राह्मण ने दाहिना हाथ माँगा, तो माता ने कहा यह शिव के ही हाथ में दूँगी। तब शिव प्रकट हुए और वरदान मांगने हेतु कहा,तब माता ने कहा आज के दिन जो स्त्री आपका रुद्राभिषेक द्वारा पूजन कर व्रत रहेगी और रूद्र अष्टाध्यायी का पाठ करेगी। साथ ही निरन्तर पुरे दिन महामृत्युंजय मन्त्र का जप करेगी, आप उसे इस व्रत स्वरूप सुख सौभाग्य का आशीर्वाद दें।*

सुखमय दाम्पत्य की इच्छाओं और आवश्यकताओं को पूरा करने में तथा बहुत से दाम्पत्य जीवन के अनिष्टों को टालने में यह व्रत उपयोगी सिद्ध होता हैं।

इस पूजन में माता पार्वती, भगवान शंकर और गणेश जी की पूजा की जाती है। सुबह से निर्जला, या जलाहर या रसाहार लेकर यह पुनीत व्रत स्त्री पुरुष दोनों कर सकते हैं। कोई ठोस आहार लेना वर्जित है।

इस दिन सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए तीन बार पूजन करना चाहिए, सुबह सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए तीन माला गायत्री मन्त्र की, एक माला महामृत्युंजय मन्त्र की और एक माला सूर्य गायत्री मन्त्र की अवश्य करनी चाहिए और उसके बाद आरती।

दिन में कम से कम एक बार सामूहिक घर परिवार के साथ रुद्राभिषेक अवश्य करें। दिन भर मौन मानसिक महामृत्युंजय मन्त्र जपें। टीवी सीरियल और अनर्थ कारी चिंतन वाला साहित्य न पढ़े न देखें।

शाम को प्रदोष समय रुद्राभिषेक के बाद दीपयज्ञ करना चाहिए। साथ में कलश में जल भरकर रखें। पूजन में फ़ल फूल प्रसाद एक थाल में अर्पित करना चाहिए। दीपयज्ञ में 24 गायत्री मन्त्र, 11 महामृत्युंजय मन्त्र और 11 सूर्य गायत्री मन्त्र की आहुति दें, फ़िर सुबह का इंतज़ार करें।

दूसरे दिन सुबह पति पत्नी साथ में सूर्य दर्शन करें। दोनों साथ में पांच बार गायत्री मन्त्र, 3 बार महामृत्युंजय मन्त्र, 3 बार सूर्य गायत्री का मन्त्र पढ़कर सूर्य को कलश के जल से अर्घ्य देंवें। शांति पाठ करें।

👉🏻ये optional है,  पति का को तिलक चन्दन कर आरती उतारें। यहां भाव करें क़ि हम पार्वती है और हमारे पति शिवस्वरूप हैं, अपने भीतर की बुराइयों को त्याग के अच्छाईयां ग्रहण करेंगे। साथ में हम पति की अच्छाइयों पर फ़ोकस करेंगे न क़ि उनकी बुराईयों पर। फ़िर पति पत्नी को मीठा खिलाकर जल पिलाएंगे। भावना करेंगे मन वचन कर्म से पत्नी के जीवन में माधुर्य और शीतलता बनी रहे ऐसा हर सम्भव प्रयास करेंगे। पत्नी पति के चरण स्पर्श करेगी और पति उसे सौभाग्य का आशीर्वाद देंगें।

फ़िर जो पूजन के वक्त एक थाली फ़ल प्रसाद भगवान को चढ़ाया था उसी थाली में पति पत्नी एक साथ भोजन करते हैं ऐसा वैदिक विधान कहता है, दूसरे दिन एक दूसरे का जूठा खाने से दाम्पत्य जीवन सुखमय बनता है।

*गायत्री मन्त्र*- ॐ भूर्भूवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्।

*महामृत्युंजय मन्त्र*- ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टि वर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।

*सूर्य मन्त्र*- ॐ भाष्कराये      विद्महे, दिवाकराय धीमहि, तन्नो सूर्यः  प्रचोदयात्।


*चन्द्र मन्त्र*- ॐ क्षीरपुत्राय    विद्महे, अमृतत्वाय धीमहि, तन्न: चन्द्र:  प्रचोदयात्।

*पति के उद्धार हेतु मृत्युंजय मन्त्र* - ॐ जूं स: माम् पति पालय पालय स: जूं ॐ।

रुद्राभिषेक के लिए सुगम शिवार्चन विधि पढ़कर करें


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *श्राद्ध पक्ष 2022 कब शुरू हो रहा है और उस में तर्पण की क्या प्रक्रिया होती है? जिस दिन पिता जी देह छोड़ गए सिर्फ उस दिन करना होता है या रोज़? दादी,बाबा का ब्रह्म तर्पण पिता जी गया जा कर कर आये थे।उनके लिए भी कुछ करना होगा क्या। श्राद्ध के बारे में संक्षिप्त विवेचन करता हुआ नोट शेयर कीजिये।।*

 प्रश्न - *श्राद्ध पक्ष 2022 कब शुरू हो रहा है और उस में तर्पण की क्या प्रक्रिया होती है? जिस दिन पिता जी देह छोड़ गए सिर्फ उस दिन करना होता है या रोज़? दादी,बाबा का ब्रह्म तर्पण पिता जी गया जा कर कर आये थे।उनके लिए भी कुछ करना होगा क्या। श्राद्ध के बारे में संक्षिप्त विवेचन करता हुआ नोट शेयर कीजिये।।*


उत्तर- *पितृ-पक्ष - श्राद्ध पर्व तिथि व मुहूर्त 2022* - शान्तिकुंज प्रकाशित कैलेंडर के अनुसार

पितृ पक्ष 2022 की सभी तिथियां:
10 सितंबर दिन शनिवार - पूर्णिमा का श्राद्ध एवं तर्पण
11 सितंबर दिन रविवार - प्रतिपदा का श्राद्ध एवं तर्पण
12 सितम्बर दिन सोमवार - द्वितीया का श्राद्ध एवं तर्पण
13 सितंबर दिन मंगलवार - तृतीया का श्राद्ध एवं तर्पण
14 सितंबर दिन बुधवार - चतुर्थी का श्राद्ध एवं तर्पण
15 सितंबर दिन गुरुवार - पंचमी का श्राद्ध एवं तर्पण
16 सितंबर दिन शुक्रवार - षष्ठी का श्राद्ध एवं तर्पण
17 सितंबर दिन शनिवार - सप्तमी का श्राद्ध एवं तर्पण
18 सितंबर दिन रविवार - अष्टमी का श्राद्ध एवं तर्पण
19 सितंबर दिन सोमवार - नवमी का श्राद्ध एवं तर्पण
20 सितंबर दिन मंगलवार - दशमी का श्राद्ध एवं तर्पण
21 सितंबर दिन बुधवार - एकादशी का श्राद्ध तर्पण
22 सितंबर दिन गुरुवार - द्वादशी का श्राद्ध एवं तर्पण
23 सितंबर दिन शुक्रवार - त्रयोदशी का श्राद्ध एवं तर्पण
24 सितंबर दिन शनिवार - चतुर्दशी का श्राद्ध एवं तर्पण
25 सितंबर दिन रविवार - अमावस्या का श्राद्ध एवं तर्पण

पिता जी या माता जी की मृत्यु जिस दिन हुई हो, यदि उन्हें विशेष श्रद्धा अर्पण करना चाहते हैं तो प्रत्येक महीने साल भर उसी तारीख को प्रत्यक्ष दान पुण्य करते हुए गरीब को भोजन करवा दें व वस्त्र देकर तृप्त करें।

शास्त्र के अनुसार मातृ नवमी - को माताजी के लिए विशेष श्राद्ध अर्पण करें, और पितृमोक्ष अमावस्या- को पिताजी के लिए विशेष श्राद्ध अर्पण करें। *"अर्पण" शब्द जब "तृप्ति" हेतु किया जाता है तब यह "तर्पण" बन जाता है। "श्राध्द" का अर्थ "श्रद्धा भावना" ही है। माता-पिता और समस्त पूर्वजो का श्राद्ध-तर्पण एक दिन में ही भी कर सकते हैं।*

युगऋषि के बताए विधान से श्राद्ध-तर्पण जब भी करेंगे तो वो पितर मुख्य होंगे जिनकी मृत्यु इसी वर्ष हुई है। इस श्राद्ध-तर्पण में तीन पीढ़ी माता पक्ष की, तीन पीढ़ी पिता पक्ष की व एक पीढ़ी वर्तमान की टोटल 7 पीढ़ी का श्राद्ध-तर्पण एक साथ करवाया जाता है। इसका विवरण आपको पुस्तक - *कर्मकांड भाष्कर* में मिल जाएगा।

श्राद्ध - तर्पण पुत्रों की तरह पुत्रियां भी कर सकती हैं यह योगवशिष्ठ में वर्णित है।

श्राद्ध-तर्पण के साथ साथ पंच बलि कर्म भी किया जाता है- (1) गौ बलि पत्ते पर(गाय को आहार), (2) श्वान बलि पत्ते पर,(कुत्ते को आहार) (3) काक बलि (कौए के लिए आहार) पृथ्वी पर, (4) देव बलि पत्ते पर(देवों को आहार) तथा (5) प‍िपलिका बलि (कीड़े-चींटी इत्यादि के लिए आहार) पत्ते पर किया जाता है। ब्राह्मण के लिए संकल्प लेकर भोजन करवाया जाता है या गरीबों को दान दिया जाता है।

पितृपक्ष में किसी भी दिन नजदीकी शक्तिपीठ, गायत्री युगतीर्थ शान्तिकुंज, और गायत्री तपोभूमि मथुरा जाकर विधिवत श्राद्ध तर्पण कर सकते हैं।

यदि किन्ही कारण से मन्दिर या तीर्थ स्थल में जाकर तर्पण न कर सकें। तो इन 15 दिनों में घर पर ही गायत्री यज्ञ कर लें, खीर का स्विष्टीकृत होम करें और पितरों को श्रद्धा अर्पण कर दें।

निम्नलिखित मन्त्र की तीन आहुतियां दैनिक यज्ञ में देना उत्तम है:-
ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः । शं नो भवत्वर्यमा । शं नो इन्द्रो बृहस्पतिः । शं नो विष्णुरुरुक्रमः स्वाहा । इदम दिवंगतात्मानाम शांत्यर्थम इदम न मम

यदि यह भी संभव न हो तो 15 दिन नित्य बलिवैश्व यज्ञ में खीर की आहुति देकर श्रद्धा अर्पित करें।

यदि यह भी सम्भव न हो, तो एक ग्लास जल में थोड़ा गुड़ और काला तिल लेकर उस जल को अंजुलि में लेकर - तीन बार निम्नलिखित बोलकर सूर्य को साक्षी मानकर किसी तुलसी के गमले में डाल दें, गुड़ और तिल न हो तो इसे साधारण जल लेकर ही तीन बार कर लें:-
1- पितर शांत हों शांत हों शांत हों
2- पितर तृप्त हों तृप्त हों तृप्त हों
3- पितर मुक्त हों मुक्त हों मुक्त हों।

अश्वनि माह में पितृ पक्ष और नवरात्र माह पड़ता है। अतः इस महीने किसी भी हालत में जो हिन्दू मांसाहारी है जैसे बंगाल प्रान्त और पंजाब प्रांत के उन्हें मांस भक्षण नहीं करना चाहिए। साथ ही पितृ पक्ष में यदि मजबूरी न हो तो कोई नई वस्तु खरीदकर स्वयँ उपयोग नहीं करना चाहिए। नई वस्तु दान हेतु खरीद के दे सकते हैं।

पितृपक्ष में पितरों को ऑटोमैटिक दान उम्रभर चलता रहे इस हेतु वृक्षारोपण सबसे उत्तम है:-

पांच पिंडदान के प्रतीक- पांच वृक्ष (पीपल, बरगद, नीम, बेलपत्र, अशोक) के लगा दें। इन वृक्षों के द्वारा दिया ऑक्सीज़न दान का पुण्य आपके पूर्वजों को सदैव मिलता रहेगा।इतना भी न सम्भव न हो तो कम से कम एक जोड़ा अर्थात दो तुलसी के पौधे घर पर गमलों में लगा लें।

हम सब जीवित हों या मृत, दोनों ही अवस्था मे हमारे पास सूक्ष्म शरीर होता है। सूक्ष्म शरीर हमें जीवित हों या मृत दोनों ही अवस्था में प्राप्त होता है जो भावनाओं का आदान-प्रदान करने में सक्षम होता है। प्राचीन धर्म ग्रन्थ और आधुनिक परामनोविज्ञान मरने के बाद भी आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करता है, भावनात्मक आदान-प्रदान को स्वीकार्य करता है।

पुष्प प्रेम नहीं है, अपितु प्रेम प्रदर्शन में सहायक है। पुष्प द्वारा भक्त भगवान को प्रेम अर्पित करता है और प्रेमी प्रेमिका को प्रेम अर्पित करता है। यहां पुष्प कर्मकांड है और प्रेम भावना ही प्रधान है। *इसी तरह श्राद्ध और पिंडदान एक कर्मकांड है, लेकिन मूलतः पितरों के प्रति प्रेम और श्रद्धा भावना ही प्रधान है। पितरों का आशीर्वाद सदा फलदायी है। पितर हमारे अदृश्य सहायक होते हैं।*

अध्यात्म एक विज्ञान है, जो टैलीपैथी-सूक्ष्म संवाद मन्त्रों के माध्यम से सूक्ष्म जगत से करने में सक्षम होता है। जो इस विद्या से अंजान है उनके कुतर्क करने पर उनसे व्यर्थ न उलझें। जंगल मे निवास करने वाले वो लोग  जिन्होंने कभी मोबाइल देखा ही नहीं और इसके बारे में कोई जानकारी न हो, तो वो मोबाइल की बात करने पर इसे या तो कुतर्क करके असम्भव बताएंगे या इसे चमत्कार की संज्ञा देंगे। छोटी सी बुद्धि जिसे समझ न सके उसे वो दो ही बातें उस सम्बंध में कह सकती है 1- अंधविश्वास या 2- चमत्कार। वास्तव में श्रद्धा अर्पण करना न अंधविश्वास है और न ही चमत्कार। यह एक अध्यात्म विज्ञान है, जो भावनात्मक आदान-प्रदान पर निर्भर है। सभी धर्मों में इसका प्रतीक पूजन और प्रेयर का विधान मौजूद है।

भारत से अमेरिका जाना हो तो करेंसी तो बदलना पड़ेगा- रुपयों को डॉलर में बदलना पड़ेगा। इसी तरह अमेरिका से भारत आना है तो डॉलर को रूपयों में बदलना पड़ता है। *सूक्ष्म जगत की करेंसी पुण्य होती है, जिसे हम दान-तप द्वारा अर्जित करते है। वह पुण्य करेंसी सूक्ष्म जगत में हस्तांतरित की जा सकती है।*

*गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों से उत्पन्न शब्द तरंग ब्रह्मांड से दिव्य सकारात्मक ऊर्जा आकर्षित करके हमारे मस्तिष्क के महत्त्वपूर्ण भाग - "हाइपोथैलेमस जो कि पीयूष ग्रन्थि के माध्यम से अन्तःस्रावी तंत्र को जोड़ने का कार्य करती है" उसे प्रभावित करके अच्छे हॉर्मोन्स (DHEA, GABA, Endorphins, Growth Hormone, and Melatonin etc) का स्राव करती है साथ ही सभी 24 ग्रंथियां, जो हमें मानसिक रूप से और शारीरिक रूप से, भावनात्मक रूप से स्वास्थ्य प्रदान करती हैं।*

पितृ पक्ष में अधिक से अधिक पूजा पाठ और दान पुण्य करना चाहिए।
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Optional - जिन्हें यदि अपने घर में नकारात्मक ऊर्जा महसूस हो रही हो वो पितृ पक्ष के पहले या बाद में यह उपाय अपना लें, वो बेल पत्र जो शिव जी को चढ़ती है उसकी पतली पतली लकड़ी 24 सूखा लें। एक दिन घर में सामूहिक कई सारे परिजन  बुलवाकर 24 हज़ार गायत्री जप एक ही दिन में कर लें, ततपश्चात 108 गायत्री मंत्र की यज्ञ में आहुति हवन सामग्री से दें, और 24 महामृत्युंजय मंत्र की आहुति बेलपत्र की पतली लकड़ियों और हवन सामग्री से दें। 11 आहुतियां क्लीं बीज मंत्र के साथ गायत्री की दें। 3 आहुतियां परमपूज्य गुरुदेव व 3 आहुतियां वन्दनीया माता जी की दें। 
निम्नलिखित मन्त्र की तीन आहुतियां दैनिक यज्ञ में देना उत्तम है:-
ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः । शं नो भवत्वर्यमा । शं नो इन्द्रो बृहस्पतिः । शं नो विष्णुरुरुक्रमः स्वाहा । इदम दिवंगतात्मानाम शांत्यर्थम इदम न मम

इस प्रयोग से नकारात्मक शक्ति सकारात्मक शक्ति में परिवर्तित होगी। साथ ही नित्य बलिवैश्व यज्ञ अवश्य करें।
                   
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

दो नाव में पैर रखेंगे तो डूबने का खतरा रहेगा।

 दो नाव में पैर रखेंगे तो डूबने का खतरा रहेगा। एक ही लक्ष्य केलिए एक से अधिक सहायक चीज़ें अलग अलग  जगहों से पढ़िये व सीखिए। लेकिन दो विपरीत धारा के लक्ष्य निश्चयत: परेशानी का सबब बनेंगे।  एक साधे सब सधत है सब साधे सब जाय। एक बड़े लक्ष्य के मार्ग के अन्य छोटे लक्ष्य तो सध सकते हैं, मग़र विपरीत दिशा के लक्ष्य पूरे करने जाएंगे तो मुख्य बड़े लक्ष्य तक न पहुंच सकेंगे।  सौ छोटे गड्ढे खोदने पर पानी न निकलेगा, एक ही जगह अनवरत गड्ढे खोदेंगे तो जल अवश्य निकलेगा।

बहु के सर पर पल्ला हो न हो इसकी परवाह मत करो, बहु के सर पर तुम्हारा प्यार भरा हाथ है कि नहीं उसकी परवाह करो।

 बहु के सर पर पल्ला हो न हो इसकी परवाह मत करो, बहु के सर पर तुम्हारा प्यार भरा हाथ है कि नहीं उसकी परवाह करो। यदि तुमने बहु को अपनी सन्तान की तरह प्रेम नहीं किया तो उसके अंदर तुम्हारे लिए प्रेम कैसे पनपेगा। मन से मन की राह होती है। प्रेम से तो भगवान भी बन्धता है, तो भला बहु किस कदर प्रेम से बन्ध न सकेगी। किचन का मोह त्याग दो, तभी तुम झगड़ो से बच सकोगी। माना तुम अपने पुत्र की पसन्द -नापसन्द समझती हो, लेकिन अब वह बहु को समझने दो। बच्चे पहले गिरा सम्हला तभी तो चला, ऐसे ही बहु को गलतियाँ कुछ करने दो व स्वतः सम्हलने दो। मित्र बनो और खुशियां बिखेरो। तुम्हारा पुत्र तभी तक तुम्हारी हाँ में हाँ मिलाएगा जब तक वह पिता नहीं बन जाता। पिता बनते ही वह सन्तान के मोह में इस क़दर बंधेगा कि वह भूल जाएगा कि वह खुद भी तुम्हारी सन्तान है। अतः सभी रिश्ते समय के साथ बदलते हैं, यह संसार परिवर्तन शील है। परिवर्तन स्वीकार लें, यदि थोड़ी समझदारी व संयम से काम लें तो घर में महाभारत होने से रोक सकती हैं। जो निर्णय पहले घर मे आप लेती थीं वह अब बहु की सहमति से लें। स्वयं को घर मे गृहस्थ से सन्यासी की भूमिका में ढालना शुरू कर दें। मोह के अत्यधिक बन्धन में न पड़े। घर को बहु को सम्हालने दें। बेटे बहु के झगड़े के बीच में कदापि न बोलें। वह दोनों लड़ेंगे और दूसरे दिन पुनः एक हो जाएंगे। लेकिन आपके बोलने से आप ही बेवजह फंस जाएंगी।  बेटे को और स्वयं को बेटे के विवाह से पूर्व मानसिक रूप से निम्नलिखित परिस्थितियों के लिए तैयार कर लें:-


1- यदि बहु झगड़ालू हुई तो क्या करना है कैसे सम्हालना है?

2- यदि बहु अच्छे स्वभाव की हुई तो कैसे रहना है?

3- यदि बहु सास ससुर से अलग रहने की जिद की तब क्या करना है?

4- यदि बहु साथ रहेगी तो कैसे रहना है?

5- किन मामलों में कैसे व क्या हैंडल घर की सुख शांति के लिए करना है। यह पूर्वयोजना बना लें तो बेहतर रहेगा।


सोचो और भगवान से अच्छे के लिए प्रार्थना करो, लेकिन मन को बुरे वक्त के लिए भी तैयार रखो। 


सफर में होटल में खानां मिल जाएगा यह सोचना अच्छा है, लेकिन साथ मे लंबे सफर में हमेशा विपरीत परिस्थिति की तैयारी करके चलनी चाहिए, घर से ही भोजन की व्यवस्था कर लेनी चाहिए।


जीवन के सफर में सोचो कि बहु व बेटे सेवा करेंगे वृद्धावस्था में ठीक है, लेकिन यदि उन्होंने सेवा करने से इंकार कर दिया तो वृद्धावस्था हेतु इतना धन अवश्य रखें कि दो समय का भोजन, दवा और रहने के लिए मकान की व्यवस्था अवश्य कर लें। 


फौज की तरह प्रत्येक परिस्थति के लिए स्वयं को मानसिक रूप से मजबूत बनाएं।


बहु चीनी हुई तो दूध में चीनी की तरह रिश्ते मिठास बढ़ाएगी। बहु यदि निम्बू हुई तो दूध में निम्बू पड़ने की तरह रिश्तों को फाड़ देगी। तब वही सास वृद्धावस्था में सुखी रह पाएगी जो फटे दूध का पनीर बनाना जानती है, अर्थात जो रिश्ते फटने व टूटने पर अब क्या करना है जानती है। जिसके लिये वह पूर्व तैयार थी।


💐श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Sunday 9 August 2020

आधी ग्लास भरी व आधी ग्लास खाली है,

 आधी ग्लास भरी व आधी ग्लास खाली है,

सृष्टि में कहीं रेत तो कहीं हरियाली है,

सुख दुःख तो लहरों की तरह आते व जाते हैं,

फ़िर भी कर्मयोगी यहाँ हरपल मुस्कुराते हैं।


दूसरों की थाली का भोजन मत देखो,

जो है अपनी थाली में बस उसके स्वाद में डुबो,

दूसरे की थाली से भूख न मिटेगी,

अपनी ही थाली से भाइयों-बहनों शक्ति मिलेगी।


स्वयं के सामर्थ्य व बुद्धि को बढ़ाओ,

अपने लक्ष्य की ओर बस बढ़ते जाओ,

हमेशा हंसते मुस्कुराते चले जाओ,

जीवन सङ्गीत को गाते गुनगुनाते जाओ।


कोई कितना आगे या कोई कितना पीछे,

इसमें मत उलझो,  दूसरों को देख मत जलो,

बस कल से आज स्वयं को बेहतर बनाओ,

कुछ न कुछ रोज नया सीखते चले जाओ।


💐श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Saturday 8 August 2020

उपवास से एकाग्रता का अभ्यास करवा दो।

 शिकार में एकाग्रता न हो तो,

बगुला भूखा मर जायेगा,

पढ़ाई में एकाग्रता न हो तो,

विद्यार्थी फेल हो जायेगा।


बगुला अपने बच्चे को,

एकाग्रता का गुण सिखाने में सफ़ल रहता है,

फिर माता-पिता व शिक्षक विद्यार्थी को,

एकाग्रता का गुण सिखाने में क्यों असफल रहते है?


मन और पेट का अटूट रिश्ता जान लो,

पढ़ाई को पेट की भूख से जोड़ दो,

एकाग्रता जो मन से न आये तो,

भूख वह एकाग्रता जरूर सिखा देगी,

बिन पढ़े जो भोजन न मिले तो,

पेट मन को एकाग्रता हेतु विवश कर देगा।


मन पर पेट की भूख का अंकुश लगा दो,

पढ़ने की एकाग्रता हेतु बच्चे को उपवास करवा दो,

ऋषि परम्परा को पुनः अपना लो,

उपवास से एकाग्रता का अभ्यास करवा दो।


💐श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

वह दृष्टि हमें दो दया निधे, सूक्ष्म जगत भी देख पाएँ,

 वह दृष्टि हमें दो दया निधे,

सूक्ष्म जगत भी देख पाएँ,

वह बुद्धि हमें दो दया निधे,

सूक्ष्म जगत भी समझ पाएँ।


वह क्या है जो मैं हूँ?

वह क्या है जो मैं नहीं हूँ?

वह क्या है जो शाश्वत है?

वह क्या है जो नश्वर है?


वह दृष्टि दो दया निधे,

दृश्य व दृष्टा का भेद देख पाऊँ,

वह बुद्धि दो दया निधे,

जो बुद्धि से परे जगत है, उसे समझ पाऊँ..


जगत का दृश्य कौन देख रहा है?

यह दो आँखे..

जगत को कौन समझ रहा है?

यह मन-बुद्धि...

लेक़िन आँखों को कौन धारण कर रहा है?

आंखों का कौन दृष्टा है?

मन-बुद्धि को कौन धारण कर रहा है?

मन-बुद्धि का कौन साक्षी है? 


इस शरीर की प्राण ऊर्जा का स्रोत कौन?

जिससे शरीर चलायमान है?

कौन है? वह क्या है?

जिसके निकल जाने पर यह देह मृत समान है?


वह क्या है? जो मैं हूँ..

जो दर्पण में दिखता नहीं,

वह क्या है? जो मैं हूँ..

जो बुद्धि की समझ मे आता नहीं...


हे प्रभो! वह दृष्टि हमें दो दयानिधे,

जिससे अर्जुन ने तुम्हें देखा था,

वह बुद्धि हमें दो दयानिधे,

जिससे अर्जुन ने तुम्हें समझा था।


वह दृष्टि हमें दो दयानिधे,

जो तेरे विराट स्वरूप को और मेरे शाश्वत अस्तित्व को दिखा सके,

वह बुद्धि हमें दो दयानिधे,

जो तेरे विराट अस्तित्व को और तेरा ही अंश आत्मस्वरूप को समझा सके।


💐😊 श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Thursday 6 August 2020

परमात्मा को ढ़ूढ़ना नहीं है, बस जानना-पहचानना है कि, हम उसमें हैं वह हममें है।

नंन्ही मछली बोली,
माँ मुझे सागर देखना है,
माँ मुस्कुराई और बोली,
मेरी नंन्ही बेटी तू साग़र में ही तो है।

माँ यह तो जल है,
यह बताओ,
पूरा सागर कैसे देखूँ?
मछली माँ बोली,
सागर तो जल श्रोत ही है,
जल से बाहर, बिन जल तो,
हम मछलियों का जीवन नहीं,
फ़िर सागर से बाहर निकलकर,
साग़र को तुम कैसे देख सकोगी?
जल से बाहर जाकर,
सागर को कैसे जान सकोगी?

तुम सागर के जल में हो,
और वह साग़र का जल तुम्हारे भीतर भी है,
तुम सागर में हो और साग़र तुममें है,
उसे अनुभूत करो,
भीतर या बाहर केवल वह ही है।

ऐसे ही हम सब परमात्मा में है,
वह परमात्मा हमारे भीतर भी है,
वह अंदर बाहर सर्वत्र है,
वह ही कण कण में समाया है,
परमात्मा से बाहर जाकर,
उसे भला कैसे जान सकोगे?
परमात्मा में रमकर ही,
उसे स्वयं में पा सकोगे?


मछली को साग़र ढ़ूढ़ना नहीं है,
बस जानना-पहचानना है कि वह सागर में ही है,
नंन्ही मछली को तो बस,
जल को अनुभूत करना है,
इसी तरह हमें भी,
परमात्मा को ढ़ूढ़ना नहीं है,
बस जानना-पहचानना है कि,
हम उसमें हैं वह हममें है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 4 August 2020

भीतर अंतर्जगत में आओ, आत्मानन्द के झरने से, अपनी प्यास बुझाओ।

सुख-शांति की प्यास में,
अत्यंत त्रास में व्यथित हो तो,
बाहर मत भटको,
भीतर अंतर्जगत में आओ,
आत्मानन्द के झरने से,
अपनी प्यास बुझाओ।

ओश की बूंद से जैसे प्यास नहीं बुझती,
वैसे ही किसी भी नशे से सुख-शांति नहीं मिलती,
कोई भी बाह्य आनन्द का उपक्रम,
मात्र मृगतृष्णा है,
भटकाव और छलावा है,
प्यास बुझानी है,
तो अंतर्जगत में प्रवेश करो,
आत्मानन्द के झरने से,
अपनी प्यास बुझाओ।

ओह स्वयं की प्रसिद्धि चाहते हो,
सोचते हो जब प्रसिद्ध होंगे तो सुख शांति मिलेगी,
तो यह भ्रम अपने मन से निकाल दो,
जो प्रसिद्ध है उनके जीवन में झाँको,
वह भी सुख-शांति की तलाश में है।

ओह बहुत अमीर बनना चाहते हो,
सोचते हो जब अमीर होंगे तो सुख शांति मिलेगी,
तो यह भ्रम अपने मन से निकाल दो,
जो बहुत अमीर है उनके जीवन में झाँको,
वह भी सुख-शांति की तलाश में है।

बाह्य जगत की वस्तु व लाभ से,
सुख शांति भीतर न मिलेगी,
प्यास व त्रास बिल्कुल न मिटेगी,
सुख-शांति की प्यास में,
अत्यंत त्रास में व्यथित हो तो,
बाहर मत भटको,
भीतर अंतर्जगत में आओ,
आत्मानन्द के झरने से,
अपनी प्यास बुझाओ।

माना सहज आसान नहीं,
स्वयं के भीतर के आत्मानन्द के झरने को पाना,
निरन्तर अभ्यास व वैराग्य से,
निरन्तर मंत्रजप, ध्यान व स्वाध्याय से,
उस झरने तक अवश्य पहुंच जाओगे,
स्वयं के आनन्द स्त्रोत को जान पाओगे,
जन्म जन्मांतर की प्यास बुझ जाएगी,
जब आत्मानन्द के झरने से प्यास बुझाओगे।

🙏🏻श्वेता, DIYA

एको$हम - सो$हम- शिवो$हम

*एको$हम - सो$हम- शिवो$हम*

एको$हम - सो$हम - शिवो$हम,
वही मैं हूँ, वही तुम हो,
तुम ही मैं हूँ, मैं ही तुम हो,
तत्व दृष्टि से देखो,
तुम ही मैं हूँ, मैं ही तुम हो,
एक ही आत्मद्रव्य भरा है सबमें,
एक ही ज्योति का प्रकाश उतरा है सबमें,
जागोगे तो पाओगे,
हम तुम समस्त जीव एक ही तो हैं।

सुनार की दुकान में,
ग्राहक के लिए,
सब अलग अलग आभूषण हैं,
उनके अलग अलग नाम है,
क्रमशः अँगूठी, चैन, पायल, हार, कमरबंद इत्यादि है,
सोनार की तत्वदृष्टि से देखो,
सब मात्र स्वर्ण है, 
सबके भीतर एक ही तत्व है,
सब वस्तुतः एक ही तो हैं,
सब स्वर्ण ही तो हैं।

कुम्हार की दुकान में,
ग्राहक के लिए,
सब अलग अलग बर्तन हैं,
उनके अलग अलग नाम है,
क्रमशः मटका, अंगीठी, खिलौना इत्यादि है,
कुम्हार की तत्वदृष्टि से देखो,
सब मात्र मिट्टी के सूखे लोंदे है, 
सबके भीतर एक ही तत्व है,
सब वस्तुतः एक ही तो हैं,
सब मिट्टी ही तो हैं।

प्लास्टिक की दुकान में,
ग्राहक के लिए,
सब अलग अलग फर्नीचर हैं,
उनके अलग अलग नाम है,
क्रमशः कुर्सी, टेबल इत्यादि है,
 तनिक तत्वदृष्टि से देखो,
सब मात्र प्लास्टिक ही तो है, 
सबके भीतर एक ही तत्व है,
सब वस्तुतः एक ही तो हैं।

सन्त जब जाग जाता है,
तब उसकी आंख में जमा,
मोह का कीचड़ साफ़ हो जाता है,
तब मेरा - पराया मिट जाता है,
तब तत्वदृष्टि के नेत्र खुल जाते हैं,
फ़िर सब एक ही नज़र आते हैं,
एको$हम - सो$हम - शिवो$हम,
सब तत्वतः दिखते है,
फिर भला किससे प्रेम व किससे नफ़रत,
जब कोई अलग ही नहीं है।

एको$हम - सो$हम - शिवो$हम,
वही मैं हूँ, वही तुम हो,
तुम ही मैं हूँ, मैं ही तुम हो,
तत्व दृष्टि से देखो,
तुम ही मैं हूँ, मैं ही तुम हो,
एक ही आत्मद्रव्य भरा है सबमें,
एक ही ज्योति का प्रकाश उतरा है सबमें,
जागोगे तो पाओगे,
हम तुम समस्त जीव एक ही तो हैं।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Sunday 2 August 2020

लड़के हों या लड़कियों जिनके रिश्ते कड़वे हों व दिल टूटे हों। यदि ऐसे लोग कवि या साहित्यकार बन जाएं तो अपने दृष्टिकोण से लेख व काव्य लिखेंगे

लड़के हों या लड़कियों जिनके रिश्ते कड़वे हों व दिल टूटे हों। यदि ऐसे लोग कवि या साहित्यकार बन जाएं तो अपने दृष्टिकोण से लेख व काव्य लिखेंगे। टूटे दिल की कवियत्री को मर्द अत्याचारी व महामारी दिखेगा, और टूटे दिल वाले लड़के कवि को लड़की नरक का द्वार और मोक्ष में बाधक दिखेगी, वस्तुतः दुनियाँ की समस्त समस्या की जड़ लड़की दिखेगी। क्योंकि ये ज्ञानी होते हैं तो जैसे कोर्ट में वकील जीतने के लिए कुछ भी करते हैं वैसे ही यह भ्रमित कवि-लेखक वकीलों की तरह तथ्यों को तोड़मरोड़ कर अपनी बात साबित करने की कुचेष्टा करते हैं।

अतः ऐसे लोगों के काव्य व लेख से प्रभावित होने से पहले एक बार उनकी जीवनी पढ़ लें, यदि टूटा दिल है तो वह लेख व काव्य में 100% पक्षपात करेगा।

स्त्री व पुरुष एक दूसरे के सहयोगी हैं व पूरक हैं। प्रतिद्वंद्वी बनकर केवल विनाश हो सकता है, सृष्टि का भला करना है तो सहयोगी बनना पड़ेगा।

दादा, जन्मदाता पिता, भाई, पुत्र, पोता, मित्र, पति इत्यादि रूप में लड़की के चारो तरफ पुरुष हैं। जन्मदात्री माता, दादी, बहन, पुत्री, पोती, मित्र, पत्नी इत्यादि रूप में लड़के के चारो तरफ स्त्री ही हैं।

अतः दिल टूटे लोगों के लेख पढंकर भ्रमित न हों, अच्छाई व बुराई दोनो में पाई जाती है।आधी ग्लास खाली और आधी भरी है। अच्छे लड़के भी दुनियाँ में हैं और बुरे लड़के भी दुनियाँ में हैं। अच्छी लड़कियां भी दुनियाँ में है और बुरी लड़कियां भी दुनियाँ में है।

सत रज तम से यह दुनियाँ बनी है, अतः यहां तीनो गुण के लोग मिलना स्वभाविक है।

दुर्योधन के चश्मे-दृष्टिकोण से देखने पर इस सृष्टि में कोई पूरा अच्छा न मिलेगा, और युधिष्ठिर के चश्मे-दृष्टिकोण से देखने पर इस सृष्टि में कोई पूरा बुरा न मिलेगा। दुर्योधन सबमें बुराई ढूढ लेगा, युधिष्ठिर सबमें अच्छाई ढूढ लेगा।

Saturday 1 August 2020

पुत्री को लिखा पत्र - विवाह से पूर्व उसके आध्यात्मिक माता पिता द्वारा*

*पुत्री को लिखा पत्र - आध्यात्मिक माता पिता द्वारा*

प्रिय पुत्री,
सदा सफल रहो, समाधान परक दृष्टिकोण विकसित करो

अब तुम विवाह योग्य हो गयी हो, लेकिन विवाह के पवित्र बंधन की पवित्रता का 50% उत्तरदायित्व तुम्हारा है और 50% उत्तरदायित्व तुम्हारे पति का होगा। मग़र वर्तमान कलियुग में लड़के के माता पिता व लड़की के माता पिता दोनो ही इस उत्तरदायित्व को अपनी संतानों को समझाने में विफ़ल रहे हैं।

सोचो हमेशा अच्छा और अच्छे समय की कामना भी करो, मग़र बुरे समय के लिए तैयार रहना चाहिए।

यदि तुम्हारा होने वाला पति स्वाध्यायी हुआ और धार्मिक प्रवृत्ति का चरित्रवान हुआ तो तुम्हारा जीवन सुंदर व सुखमय होगा।

जिस लड़के से तुम्हारा विवाह होगा, उसे कुछ दिनों के मेल मिलाप में जानना सम्भव नहीं है। बचपन से लेकर अब तक उसमें किन संस्कारो को उनके माता पिता ने भरा है, और किन संस्कारो व धारणाओं को उसने स्वयं दोस्तों की संगति में, साहित्य पढंकर और फिल्में देखकर सीखें हैं। जब उसके माता पिता ही उसके वर्तमान व्यक्तित्व से अंजान है तो भला तुम कैसे जान सकती हो? पति चरित्रवान मिलेगा या चरित्रहीन होगा यह कोई विवाह से पूर्व नहीं जान सकता।

लड़के की माता खुले विचारों व अच्छे पुस्तकों की स्वाध्यायी हुई तो वह तुम्हारी मित्र बनेगी। अन्यथा वह रूढ़िवादी परम्पराओं के अनुसार क्रूर सास बनने में रुचि लेगी व पुत्र की माँ होने के गौरव को प्रदर्शित करेगी। तुम्हें परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। क्योंकि वह चाहेगी कि जितने अपमान के घूंट व यातनाएं उसे बहु रूप में मिली, वह ब्याज सहित तुम्हें भी दे।

सास, ससुर, जेठ, देवर व ननद यदि धार्मिक प्रवृत्ति के, अच्छी पुस्तको के स्वाध्यायी व अच्छे स्वभाव के हुए तो घर स्वर्ग सा सुंदर होगा।

इन सबके के व्यवहार की कोई निश्चित गारण्टी वारंटी नहीं है। ससुर, जेठ, देवर यदि चरित्रहीन हुआ तो ये सब तुम्हारे लिए तूफान खड़े करेंगे। सास व ननद यदि स्वार्थी हुई तो तुम्हारी मुसीबतों को बढाएंगे। यदि चरित्रहीन हुए तो तुम्हारा जीवन नर्क बना देंगे।

यदि सब अच्छे हुए और तुम नासमझ और चरित्रहीन हुई तो तुम इन सबके जीवन को नरकमय बना दोगी। इनके जीवन को ज़हरीला बना दोगी।

बेटी, विवाह सुख पाने के उद्देश्य से मत करना। विवाह सुख बांटने व आत्मीयता का विस्तार करने के लिए करना।

पति पर और उसकी कमाई 100% अधिकार मत माँगना। तुमने पति को न ही उतपन्न किया है न ही पढ़ा लिखाकर बड़ा किया है। केवल विवाह किया है इसलिए पति 100% तुम्हारे हिसाब से चले यह बेवकूफी मत करना। उस पर उसके माता पिता का भी अधिकार है। उसे स्वयं निर्णय लेने देना। बस उसे निर्णय लेने में मदद करना। उसके हृदय पर अधिकार जरूर 100% लेना। उसका हर कदम में साथ देना। पति का रिमोट मत ढ़ूढ़ना व कंट्रोल करने की मूर्खता मत करना। उसे उसके हिस्से की स्वतंत्रता जरूर देना। पति की नज़र से केवल उसे मत आंकना। वह पुत्र भी है, भाई भी है, व एक पुरुष इंसान भी है। उसकी स्वयं के अस्तित्व में भी रहने देना।

लड़की पैदा होना कोई गुनाह नहीं है, अपितु लड़की होकर पैदा होना एक गर्व की बात है। पृथ्वी के बाद सृजन का कार्य स्त्री के अलावा कोई कर नहीं सकता।  अतः लड़की होकर हीनता भी बुरी बात है, साथ ही लड़की होने का अहंकार भी बुरा है।

तुम सेवा, प्रेम व सहकार का सीमेंट बनकर घर जोड़ना, हथौड़ी बनकर उसके घर को तोड़ने की कोशिश मत करना।

यदि तुम समझदार और बुद्धिमान हुई, सेवा व प्रेम से भरी हुई तो 90% केस में गृहस्थी संवार लोगी। कुछ वर्षों के प्रयत्न से सब ठीक कर सकोगी। यदि ठीक न कर पाई तो 10% केस में विवाह बंधन से एग्जिट कर स्वयं के जीवन को संवार सकोगी।

कभी यदि विवाह से एग्जिट भी करना हो तो पूरे प्लानिंग व सही सोच के साथ करना।

जीवन तुम्हारा है, इसे सुखमय व आनंदमय बनाने का उत्तरदायित्व भी तुम्हारा ही है।

यह श्रीमद्भागवत गीता लो, इसके नित्य एक अध्याय का पाठ विवाह से पूर्व 108 दिन तक पढ़ो, नित्य गायत्री जप और ध्यान-प्राणायाम करो। गृहस्थी में प्रवेश के पूर्व प्रेम, सेवा, सहकार, शुभ सँस्कार व योद्धा की रणनीति सब सीखो। विजेता का दृष्टिकोण विकसित करो।

*गृहस्थ में प्रवेश से पूर्व यह पांच पुस्तक भी अवश्य पढ़ो:*-

1- गृहस्थ में प्रवेश से पूर्व जिम्मेदारी समझें
2- गृहस्थ एक तपोवन
3- भाव सम्वेदना की गंगोत्री
4- मित्रभाव बढाने की कला
5- शक्ति संचय के पथ पर या शक्तिवान बनिये।

बेटी, अर्जुन को अपना युद्ध स्वयं लड़ना पड़ा था। इसीतरह तुम्हे भी अपना युद्ध स्वयं लड़ना पड़ेगा। तुम युद्ध के भय से मैदान छोड़कर नहीं भाग सकती। ससुराल की कठिनाइयां सुनकर कायरों की तरह विवाह करने से इंकार नहीं कर सकती। जब तुम स्वयं की मदद करोगी, तभी भगवान भी तुम्हारी मदद कर सकेगा। हम इंसान भी तुम्हारी मदद कर सकेंगे।

कहते हैं, शादी ऐसा लड्डू जो खाये तो भी पछताए और जो न खाए तो भी पछताए। इसलिए ख़ाकर पछताना उत्तम है। बिना प्रयास हार मानना कायरता है। क्या पता तुम बुद्धि विवेक से पछताने की जगह आनन्द मय जीवन जियो? आनन्दमय जीवन और पछताना दोनो के 50% 50% चांस है। तो बहादुर कन्या को चांस लेना चाहिए।

हम उन कायर माता पिता की तरह नहीं, जो यह कहें ससुराल डोली में जा रही हो और अर्थी से निकलना। हम उन पाश्चात्य प्रभावित घर तोड़ू माता पिता भी नहीं जो यह कहें, न ससुराल जमें तो कोई नहीं छोड़कर चली आना और उन्हें सबक सिखाना।

हम आध्यात्मिक माता पिता है। हम कहते हैं तुम ससुराल में व्यवस्थित रहने के लिए 100% प्रयास करना। यदि बहुत प्रयास के बाद भी यदि तुम विवाह के रिश्ते को व्यवस्थित करने असफल हो जाओ, क्योंकि पति चरित्रहीन हो या ससुराल अपराधिक प्रवृत्ति का हो तो तुम ससुराल व विवाह सम्बन्ध से एग्जिट हो जाओ। न सफलता तुम्हारे हाथ में है और न असफ़लता तुम्हारे हाथ में है। गृहस्थ जीवन को सम्हालने का 50% तुम्हारे हिस्से का प्रयास तुम्हारे हाथ में है। नेक्स्ट 50% प्रयास तुम्हारे पति के हाथ मे है। तो असफ़लता का 50% कारण तुम होगी और 50% उत्तरदायी तुम्हारा पति होगा। यदि वैवाहिक जीवन सफल हुआ तो भी तुम्हे 50% ही श्रेय मिलेगा, यहां भी सफलता का 50% श्रेय तुम्हारे पति का होगा।

यदि किन्ही अपरिहार्य कारणों से विवाह से एक्जिट करना पड़े, तलाक लेना पड़े। तो चिंता मत करना। तुम पढ़ी लिखी समझदार हो। पुनः नए सिरे से जिंदगी की प्रोग्रामिंग करना। इच्छा हो तो दोबारा शादी करना, यदि इच्छा न हो तो दोबारा शादी मत करना और सन्यास लेकर जीवन को ईश्वर सेवा में लगा देना। जो भी तुम्हारा निर्णय होगा वह हमें स्वीकार्य होगा। इसकी परवाह मत करना कि लोग क्या कहेंगे? यदि जिस चीज़ की तुम्हारी आत्मा गवाही दे व ईश्वर की नज़र में जो ठीक है। बस उस पर तुम अडिग रहना। युद्ध अपने जीवन का तुम्हें ही लड़ना होगा, हम तो बस सदैव तुम्हारे सहयोगी बने रहेंगे।

मेरी विजेता पुत्री के माता पिता होने के गौरव को हासिल करेंगे। वैवाहिक जीवन के सफलता के क्षणों व असफ़लता के क्षणों दोनो की ममसिक तैयारी करके तब गृहस्थी में प्रवेश करना।

तुम्हारे
आध्यात्मिक माता व पिता

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

पूर्णाहुति

*मास परायण - पूर्णाहुति - कोरोना वैश्विक महामारी को समूल नष्ट करने हेतु पूर्णाहुति घर पर ही करें- चैत्र शुक्लपक्ष रामनवमी, सम्वत्सर 2077, सोमवार श्रावणी पुर्णिमा  3 अगस्त को करना है, यदि रक्षाबंधन को कहीं बाहर जा रहे हैं तो पूर्णाहुति 2 अगस्त को कर लें।*

स्नानादि करके धुले स्वच्छ वस्त्रो में देवमन्दिर में दीपक लगाये । षट कर्म करके व देवावाहन कर लें और यज्ञ की तैयारी कर लें।

वर्तमान समय में जो उपलब्ध हो वही सामान पूर्णाहुति हेतु उपयोग करें।

*समय* - अपने अपने घर में सुबह 7 से 11 के बीच यज्ञ करें

*समिधा*
आम की लकड़ी या नारियल के टुकड़े या गोमय दीपक या बलिवैश्व पात्र

*हवन सामग्री*
शान्तिकुंज की हवन सामग्री या गुड़-घी या मात्र घी

*नारियल गोला या सुपाड़ी या कोई साबुत ड्राई फ्रूट अंतिम पूर्णाहुति आहुति*

पुस्तक - सरल हवन विधि पढ़कर यज्ञ कर लें

यज्ञ के दौरान यह सङ्कल्प लें।


विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य, अद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीये प्ररार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे, वैवस्वतमन्वन्तरे, भूर्लोके, जम्बूद्वीपे, भारतवर्षे, भरतखण्डे, आर्यावर्त्तैकदेशान्तर्गते, < *अपने अपने देश का नाम यदि कोई इस संकल्प में भारत के बाहर से भी जो साधक भाई बहन जुड़ रहे हो। फिर उस राज्य (स्टेट)फिर क्षेत्र का स्थान नाम यहां जोड़ें*> क्षेत्रे,  स्थले 2077 विक्रमसंवत्सरे मासानां मासोत्तमेमासे *श्रावणमासे* *शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिधि.....अब अपना नाम गोत्र या (गुरुगौत्र भरद्वाज) के साथ बोलें*>..... गोत्रोत्पन्नः .. < *अपना नाम बोलें*>........ नामाऽहं  सत्प्रवृत्ति- संवर्द्धनाय, दुष्प्रवृत्ति- उन्मूलनाय, लोककल्याणाय, आत्मकल्याणाय, वातावरण -परिष्काराय,  उज्ज्वल भविष्यकामनापूर्तये च प्रबलपुरुषार्थं करिष्ये, अस्मै प्रयोजनाय च कलशादि- आवाहितदेवता- पूजनपूर्वकम् ...                * *कोरोना वैश्विक महामारी को समूल नष्ट करने हेतु सभी की सुरक्षा व स्वस्थ जीवन हेतु राष्ट्र की अर्थ व्यवस्था को सुदृढ़ करनी हेतु   भारत की सुरक्षा हेतु,  और सबकी सद्बुद्धि, सबके उज्ज्वल भविष्य  निमित्तकम मास परायण अनुष्ठान पूर्णाहुति** > कर्मसम्पादनार्थं सङ्कल्पम् वयम् करिष्ये।🙏🇮🇳

*सङ्कल्प जल को पूजन की तश्तरी में जपकर अर्पित कर दें। ततपश्चात निम्नलिखित मंत्रो से पूर्णाहुति में आहुति अर्पित करें*

कितना भी श्रेष्ठ मंन्त्र हो यदि बिना श्रद्धा-अविश्वास युक्त बिना भावना के जपा जाएगा।वो निष्प्राण और अप्रभावी होगा। अतः पूर्ण श्रद्धा भावना से मन्त्र जपें।


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👉🏼 *24 या 108 आहुति गायत्री मंत्र की* - *ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।*

भावार्थ:- उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

👉🏼 *24 आहुति महामृत्युंजय मंत्र की* - *ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।*
*उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥*

भावार्थ - हे त्रिनेत्रधारी महादेव, आपकी कृपा से हम भी त्रि-नेत्रीय वास्तविकता का चिंतन करते हैं, दो नेत्रों से बाह्य दृष्टि विकसित करें और  तीसरे नेत्र से विवेकदृष्टि/अन्तः दृष्टि विकसित करें। त्रिगुणात्मक सृष्टि के प्रति गहरी समझ विकसित करें, हे महादेव आपकी कृपा से जीवन हमारा मधुर और परिपूर्णता को पोषित करता हुआ और वृद्धि करता हुआ हो। ककड़ी की तरह, एक फल की तरह हम मृत्यु के समय इसके तने रूपी शरीर से अलग ("मुक्त") हों, और आत्मता की अमरता और शरीर की नश्वरता का हमें सदा भान रहे। मृत्यु से अमरत्व की ओर गमन करें।

👉🏼 *3 आहुति महाकाली बीज मंन्त्र की* -
ॐ भूर्भुवः स्वः  क्लीं क्लीं क्लीं  तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् क्लीं क्लीं क्लीं ॐ

👉🏼 *3 आहुति प्रखर प्रज्ञा श्री सद्गुरु मंन्त्र*-
ॐ प्रखरप्रज्ञाय विद्महे महाकालाय धीमहि। तन्नो श्रीराम: प्रचोदयात्।
👉🏼 *3 आहुति सजल श्रद्धा माँ भगवती मंन्त्र*-
ॐ सजलश्रद्धाय विद्महे महाशक्तयै धीमहि। तन्नो भगवती प्रचोदयात्।

*यज्ञ के बाद दान 121 रुपये या 501 या 1001 ऑनलाईन PayTM या Google Pay या क्रेडिट कार्ड या ऑनलाइन ट्रांसफर करें। ऑनलाइन पेमेंट के लिए निम्नलिखित लिंक विजिट करें, बहुत आसान है ऑनलाइन पेमेंट:-

https://www.awgp.org/contribute/online_donation


कोरोना वायरस विश्व आपदा के इस दौर मे समूह में एकत्र होना वर्जित है। सामूहिक भजन कीर्तन व यज्ञ नहीं होंगे। लेकिन व्हाट्सएप ग्रुप द्वारा जुड़कर अखण्डजप व अखंड स्वाध्याय या अखंड रामायण राम नवमी के दिन कर सकते हैं उसके बादभी कर सकते हैं।

वर्चुअल ऑनलाइन ही सामूहिक सङ्कल्प, व्रत, अखण्डजप इत्यादि के कार्यक्रम चलेंगे।

कोई भी व्रत जब तक लाकडाउन रहेगा हमें यह ध्यान रखना है कि शरीर को वह आहार मिलता है रहे जिससे हमारी इम्युनिटी बढ़े। जगह जगह लाकडाउन में कब क्या उपलब्ध  रहेगा यह तय नहीं है। अतः फल सब्जियां जो मिल जाये वह अवश्य खायें। सेंधानमक व गुड़ नवरात्र व्रत में लेना अनिवार्य है। नित्य कम से कम 5 से 6 ग्लास पानी घूंट घूंट कर पीना अनिवार्य है।

शरीर मे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए व अधिक शरीर की मजबूती हेतु योग व प्राणायाम अधिक करना है। कम से कम 15 मिनट प्राणायाम करें। श्वांस को होल्ड करके चेक करें कि आप कितने सेकंड्स तक होल्ड कर सकते हैं। यदि 30 सेकण्ड से 1 मिनट तक होल्ड कर पाते हैं तो फेफड़े स्वस्थ हैं।☝

जब तक कोरोना संक्रमण पूरे विश्व से समाप्त नहीं हो जाता, तब तक सुबह व शाम दोनो समय पीने योग्य चाय की तरह घूंट घूंट गर्म पानी अवश्य पियें।

श्रावणी स्नान

श्रावणी स्नान समय - ब्रह्मुहूर्त - सूर्योदय से पहले। तीर्थ नदी में या घर में निम्नलिखित विधि से..

जाने-अंजाने में हुई गलतियां के पापों से मुक्ति के लिए दस स्नान निम्नलिखित इन 10 चीजों से करे स्नान करें- मिट्टी, गाय का गोबर, गाय का दूध, गाय का घी, गाय का पंचगव्य, भस्म, अपामार्ग, कुशा+दूर्वा, शहद एवं गंगाजल आदि 10 पदार्थो से स्नान किया जाता है। आयुर्वेद में मृतिका, भस्म, गोमय, कुशा, दूर्वा आदि सभी स्वास्थ्यवर्द्धक एवं रोगनाशक मानी गई है।

स्नान के वक्त निम्नलिखित मन्त्र पढ़े :-

स्नान मंत्र - गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।। नर्मदे सिन्धु कावेरि जलऽस्मिन्सन्निधिं कुरु।।
कहा जाता है इस मंत्र का जाप नहाते समय करना चाहिए और इस मंत्र का अर्थ ये है कि, ''हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु, कावेरी नदियों! मेरे स्नान करने के इस जल में आप सभी पधारिए।''

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...