Sunday 17 October 2021

प्रश्न - परमपूज्य गुरुदेव के साहित्य मे एक तरफ *अनीति से लोहा लेना* लिखा है, और दूसरी जगह *सहनशीलता के गुणों व उनके लाभ पर* लिखा है। कृपया बताएं यदि किसी जगह हमारे सम्मान को कोई ठेस पहुंचाए तो अनीति से लोहा लें या सहनशील बनकर चुपचाप सह लें?

 प्रश्न - परमपूज्य गुरुदेव के साहित्य मे एक तरफ *अनीति से लोहा लेना* लिखा है, और दूसरी जगह *सहनशीलता के गुणों व उनके लाभ पर* लिखा है। कृपया बताएं यदि किसी जगह हमारे सम्मान को कोई ठेस पहुंचाए तो अनीति से लोहा लें या सहनशील बनकर चुपचाप सह लें?


उत्तर - गाड़ी में रेस, ब्रेक व गियर बदलना सबकुछ होता है, ड्राइविंग स्कूल वाला सबकुछ सिखाएगा। इसीतरह जीवन की गाड़ी व जीवन की कला सिखाने वाले *परमपूज्य गुरुदेव पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी* ने भी हमें समस्त गुणों की उपयोगिता सिखाएंगे। 


कब लोहा लेना है(रेस दबाना है) और कब शहनशीलता(ब्रेक दबाना है) यह निर्णय कब कहाँ किस परिस्थिति में है उसका आंकलन करके निर्णय लेना होता है। उसके लिए विवेक की आवश्यकता पड़ती है। 


*विवेक का जागरण सतत ग़ायत्री मन्त्र जप, स्वाध्याय व ध्यान से सम्भव होता है।*


गाड़ी पार्क करनी है अर्थात घर के नित्य के छोटे मोटे झगड़ो को निपटाने में ब्रेक(सहनशीलता) का आश्रय लो। लेकिन यदि आप किसी सही कार्य को करने जा रहे हैं व परिवार बाधक बन रहा है तो रेस(अनीति से लोहा) लेना पड़ेगा।


*लोहा लेने का उदाहरण* - दहेज़ लेने को परिवार विवश करे तो उनसे लोहा लेकर दहेजमुक्त शादी करो। यदि बहु- बेटी को जॉब करना है आगे पढ़ना है, परिवार विरोध करे तो उनके विरुद्ध जाकर लोहा लो। समाजसेवा में परिवार बाधक बने तो उनसे लोहा लो। यदि कोई आपके अस्तित्व पर व आपके माता-पिता को अपमानित करे तो आक्रोश दिखाएं।


ऑफिस- कार्यक्षेत्र में - खेल में सभी जगह लोग आपको लोग आउट करने के लिये प्रयास करेंगे, तो आप भी खेल भावना व ऑफिस भावना का परिचय देते हुए लोहा लें। जीतने के लिए प्रयासरत रहें, मग़र किसी को हराने या नीचा दिखाने में समय व्यर्थ न करें। वह आपको आउट करने के लिए बॉल फेंकेंगे लेकिन आपको उसी गेंद में रन बनाने हैं। चारो तरफ लोग कैच करने के लिए तैयार है आपको उनके बीच से गेंद निकालनी है। गंदी ईमेल व ब्लेम गेम वह बॉल है जो आपको क्रोधित कर आपको आउट करने की मंशा से फेंकी गई है। लेकिन आपको आउट नहीं होना, अपितु उसका रिप्लाई इस ढंग से करना है कि सांप मरे मग़र लाठी न टूटे।


*सहनशीलता का उदाहरण* - सास व ननद ताने दें, क्योंकि इनसे व्यर्थ में उलझकर कुछ हासिल नहीं होने वाला सहनशीलता(ब्रेक) का सहारा लें।  आपके भोजन पकाने पर कोई उसकी बुराई जानबूझकर करे तो सहनशीलता(ब्रेक) का सहारा लें। जिस युद्ध मे केवल हानि हो व कुछ निर्णय नहीं निकलने वाला उस युद्ध मे पड़ने से कोई फायदा नहीं।


ऑफिस- कार्यक्षेत्र में - कोई आपके कार्य मे मीन मेख निकाले व आपको नीचा दिखाने का प्रयास करे तो सहनशीलता का उस वक्त अवलम्बन लें। धैर्यपूर्वक विचार करें कि इसे कैसे हैंडल करें, राजनीति का जवाब राजनीति से कूटनीति से दें, मुँह से क्रोध कदापि न करें।


रास्ते का ज्ञान व ड्राइविंग की दक्षता हो कि कब ब्रेक व कब रेस देना है तो कोई भी ड्राइवर सफर का आनन्द ले सकता है। इसी तरह विवेक जागरण (ग़ायत्री मन्त्र जप-ध्यान-स्वाध्याय) से जीवन के रास्ते का ज्ञान हो और जीवन की ड्राइविंग की दक्षता हो कि कब ब्रेक-शहनशीलता अपनानी है और कब रेस-अनीति से लोहा लेना है। तो जीवन जीने का आनन्द लिया जा सकता है।


अध्यात्म कायर नहीं बनाता, अध्यात्म तो साहसी व बुद्धिकुशल कूटनीतिज्ञ बनाता है। किंतु अध्यात्म का अभ्यास नित्य आवश्यक है, जैसे ओलंपिक में दो मिनट में रेस जीतने के लिए लाखो किलोमीटर दौड़ने का घण्टों अभ्यास करना पड़ता है। अध्यात्म का त्वरित बुद्धि प्रयोग(presence of mind) को अप्पलाई करने के लिए नित्य का अभ्यास (ग़ायत्री मन्त्र जप-स्वाध्याय-ध्यान) अनिवार्य है।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Thursday 7 October 2021

माँ मुझे अपने जैसा ही बना दो

 💐इस नवरात्रि में माँ ग़ायत्री, 

मुझे गायत्रीमय बना दो,

माँ मुझे अपने जैसा ही बना दो,

अपने सदगुणों से मुझे ओतप्रोत कर दो,


माँ मुझे अपने जैसा बना दो..


तुम प्राणस्वरूप हो माँ जगजननी,

मुझे भी प्राणवान बना ददो,

तुम दुःख नाश करती हो मां जगजननी,

मुझे भी समस्या का समाधान सीखा दो..


माँ मुझे अपने जैसा बना दो..


तुम सुखस्वरूप हो मां जगतजननी,

मुझे भी सुखस्वरूप बना दो,

तुम सर्व श्रेष्ठ हो मां जगतजननी,

मुझे भी श्रेष्ठता का भान करा दो...


माँ मुझे अपने जैसा बना दो...


तुम तेजस्वी हो मां जगतजननी,

मुझमें भी तेजस्विता मनस्विता भर दो,

तुम पापों नाश करती हो मां जगतजननी,

मुझमें भी पुण्यशीलता भर दो..


माँ मुझे अपने जैसा बना दो...


तुम देवस्वरूप हो मां जगतजननी,

मुझमें भी देवत्व जगा दो,

तुम आद्य शक्ति हो मां जगतजननी,

मुझे भी शक्ति स्रोत से जोड़ दो..


माँ मुझे अपने जैसा बना दो...


मुझे बलपूर्वक सन्मार्ग पर चला दो,

मुझे बिल्कुल अपने जैसा बना दो,

अपने सद्गुणों को मुझमें भर दो,

अपनी ज्योति से मेरी आत्मज्योति रौशन कर दो..


माँ मुझे अपने जैसा बना दो...


पीड़ित मानवता की सेवा सीखा दो,

हृदय में भाव संवेदना जगा दो,

मां मुझमें देवत्व जगा दो,

माँ मुझे अपने जैसा बना दो....


लेखिका - श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 6 October 2021

वृक्ष लगाके पितरों को सच्ची श्रद्धा अर्पण करे

 ✨ *वृक्ष लगाके पितरों को सच्ची श्रद्धा अर्पण करे*✨


चलो श्रद्धा अर्पण करें,

आओ पितरों का तर्पण करें।

श्रद्धा भाव से सतकर्म करें,

वृक्ष लगाके पितरों का नाम अमर करें।


चलो सातों कुल तारें,

बनकर प्रकृति के प्यारे।

पितरों के नामपर वृक्ष लगाके,

बनें उनकी आँखों के तारें।


पेड़ो की प्राणवायु से,

लाखों लोग लाभान्वित होंगें।

जब जब बालक वृद्ध श्वांस लेंगें,

इन पुण्यकर्मों से पितर प्रशन्न होंगें।


पितर के नाम का वृक्ष,

उन्हें सदा ही पुण्य देगा,

सदा वायु शोधन करेगा,

पंछी-पथिक को बसेरा देगा।


फ़ल फूल से लोगों की भूख मिटेगी,

सूखे पत्तों से जमीन को खाद मिलेगी।

बरसात के बादल को वृक्ष आकृष्ट करेगा,

जिससे धरती की प्यास बुझेगी।


आओ मिलकर श्रद्धा सुमन अर्पित करें,

चलो मिलकर धरती हरी भरी करें।

पितरों के नाम पर वृक्ष लगा के,

उनकी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करें।

पितृदेवता की प्रार्थना

 *पितृदेवता की प्रार्थना*


हे पितृदेवता! हम आपको श्रद्धा अर्पण करते हैं,

हम तुम्हारा हृदय से तर्पण करते हैं,

यह जीवन तुम्हारा ही उपकार है,

तुम्हारे ही आशीर्वाद से यह भरा पूरा परिवार है।


हम तुम्हारा ही अंश हैं हम तुम्हारे ही वंश है,

तुमसे ही बना यह परिवार है यह वंश है,

हम पर कृपा दृष्टि सदा बनाये रखना,

अपनी कृपा की छांव देते रहना।


यह कच्चा दूध तिल व जल स्वीकार करो,

हमारी श्रद्धा भावना स्वीकार करो,

यह तर्पण पितृपक्ष में स्वीकार करो,

हमारे हाथों से यह जल स्वीकार करो।


हे पितृ देवता! तृप्त हो तृप्त हो तृप्त हो,

हे पितृ देवता! मुक्त हो मुक्त हो मुक्त हो,

हे पितृ देवता! शांत हो शांत हो शांत हो,

हे पितृ देवता! हम पर कृपा करो, कृपा करो, कृपा करो।


हे पितर हमारे,

आप सुखपूर्वक पितृलोक में वास करें,

अर्यमा देव आपको उच्च स्थान दें,

आप सभी शांत व तृप्त रहें,

आपकी कृपा की छांव में हम सब रहें।


हे अर्यमा देव आप पितरों के देव हैं,

आप हमारा प्रणाम स्वीकार करे,

हे पिता, पितामह, और प्रपितामह,

आप हमारा प्रणाम स्वीकार करें,

हे माता, मातामह और प्रमातामह,

आप हमारा प्रणाम स्वीकार करें।


आप हमें मृत्यु से अमृत की ओर ले चलें,

आप हमें असत्य से सत्य की ओर ले चलें,

आप हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलें,

आप हमें सांसारिक सुख व आध्यात्मिक सुख सम्पदा दें,

अपने चरणों में हमारा प्रणाम स्वीकार करें,

हमें शुभ आशीर्वाद दे धन्य करें।


लेखिका - श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

नवरस (नौ रस)

 नवरस (नौ रस) - श्रृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स, अद्भुत और शांत 


नवरसों से युक्त ज़िंदगी,

या नवरसों में उलझी ज़िंदगी?

नवरसों में बंधी जिंदगी,

या नवरसों से मुक्त ज़िंदगी?


*श्रृंगार* बिना सौंदर्य नहीं,

अत्यधिक *श्रृंगार* में कृत्रिम ज़िंदगी,

*हास्य* बिना नीरस ज़िंदगी,

अत्यधिक *हास्य* में फूहड़ ज़िंदगी...


*करुणा* बिना हृदयहीन ज़िंदगी,

अत्यधिक *करुणा* में भावुक जिंदगी,

*रौद्र* बिना बेबस जिंदगी,

अत्यधिक *रौद्र* में विध्वंसक ज़िंदगी...


*वीरता* बिना कायर ज़िंदगी,

अत्यधिक *वीरता* में दूसरों को पराजित करती जिंदगी,

*भयानक* बिना बेख़ौफ़ जिंदगी,

अत्यधिक *भयानक* में डरती छिपती ज़िन्दगी...


*वीभत्सता* बिना सुकूनमय ज़िन्दगी,

अत्यधिक *वीभत्सता* में घृणित अप्रिय जिंदगी,

*अद्भुत* बिना औसत ज़िंदगी,

अत्यधिक *अद्भुत* में अप्रतिम ज़िंदगी...


*शांति* बिना अशांत बेचैन ज़िंदगी,

अत्यधिक *शांति* में,

कभी सुकूनमय तो कभी नीरस ज़िंदगी,

नवरस में संतुलन है तो,

नवरस से युक्त ज़िंदगी,

नवरस में असंतुलन है तो,

नवरस के बंधन में जिंदगी।


लेखिका- श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

मां के नवगुण धारण करने की प्रार्थना

 *मां के नवगुण धारण करने की प्रार्थना*


प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।

तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।

पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।

सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।

उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।


नवरात्रि में माता मुझमें,

अपने जैसे गुणों का भंडार दो,

मां जैसी सन्तान वैसी,

यह कथन चरितार्थ करो...


मां तुम शैलपुत्री हो,

मुझमें भी पर्वत सी दृढ़ता दो,

मां तुम ब्रह्मचारिणी हो,

मेरा मन भी तपलीन ब्रह्मलीन करो...


मां तुम चन्द्रघण्टा हो,

मेरे मन में भी चन्द्र सी शीतलता दो,

माँ तुम कुष्मांडा हो,

मुझमें भी सृजन की क्षमता भरो...


माँ तुम स्कंदमाता हो,

मुझमें भी भगवान कार्तिकेय से गुण भरो,

माँ तुम कात्यायनी हो,

मुझमें भी शोधकर्ता बनने की क्षमता दो...


माँ तुम कालरात्रि हो,

मुझमें भी दुष्टदमन की क्षमता दो,

माँ तुम महागौरी हो,

मुझमें भी सेवाभाव भरो...


मां तुम सिद्धिदात्री हो,

मुझमें भी कार्यसिद्धि की क्षमता दो,

माँ तुम नवगुण नवरुपा हो,

मुझे भी नवगुण सम्पन्न करो...


नवरात्रि में माता मुझमें,

अपने जैसे गुणों का भंडार दो,

मां जैसी सन्तान वैसी,

यह कथन चरितार्थ करो...


मुझे अपनी सन्तान होने का गौरव दो,

मुझे अपने चरणों की सेवा का सौभाग्य दो,

तुम्हारे दिखाए मार्गपर चलकर तुम तक पहुंच सकूं,

ऐसी शक्ति सामर्थ्य मनोबल दो...


लेखिका - श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया असोसिएशन

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...