Tuesday 24 March 2020

एक व्यापारी से योगी तक का सफ़र

*एक व्यापारी से योगी तक का सफ़र*

बड़े अमीर घर में जन्मा था, स्वर्ण चाँदियो से खेला था, दुःख अभाव का उसे पता न था, जो मांगा वो सब कुछ पाया था।

इधर एमबीए पास हुआ, उधर योग्य कन्या से उसका विवाह हुआ। एक बेटी का पिता भी बन गया, ख़ानदानी स्वर्ण व्यापार सम्हालने भी लगा।

एक दिन उसके प्राणों से प्यारा दादा गुज़र गया, पहली बार उसने मौत का मंजर घर में देखा। दादा का शरीर ठंडा और निष्प्राण था, उसे करवाया जा रहा  स्नान था।

दादा को स्वर्णाभूषण का बहुत शौक था, अंगूठियों का उनकी उंगलियों में अंबार था।
लेक़िन यह क्या घर वालों ने समस्त आभूषण उतार लिए, चिता पर मात्र एक वस्त्र पहना के लिटा दिया। एक गायत्री परिवार के पुरोहित आये थे क्रिया कर्म करवाने के लिए...

*लड़के ने प्रश्न पूँछा*
- कि ऐसा क्यों किया, दादा जी के समस्त आभूषण क्यों उतारे?
*पण्डित(पुरोहित) ने कहा*
- तुम्हारा दादा यह शरीर छोड़ गया, मरने के बाद कोई कुछ नहीं ले जा सकता है, जो सांसारिक वस्तु है सब यहीं रह जाता। यद्यपि वो तो अपना शरीर भी नहीं ले जा सके। अब यह भी जलाकर नष्ट किया जाएगा।

*लड़का* - लेक़िन दादाजी तो यही है न? ये तो लेटे हैं?
*पुरोहित* - नहीं बेटे यह शव है,
यह मात्र उनका शरीर है, दादा जी शरीर छोड़कर गए,
वो भगवान के पास गए।

*लड़का* - मैं पुनः  दादा से कैसे मिल सकता हूँ?
*पण्डित* - अब असम्भव है, तुम उनसे नहीं मिल सकते।
बेटे, आत्मा शरीर धारण करती है, जन्म लेती है, समय पूरा होने पर इसे छोड़ देती है। पुनः जन्म लेती है।

*लड़का* - क्या आप बता सकते हैं? वो कहाँ जन्मेंगे?
*पण्डित* - नहीं, मुझे नहीं पता। भगवान ही जानता है।

*लड़का*- भगवान कहाँ मिलेंगे यह बताओ?
*पण्डित* - भगवान कण कण में है,  सर्वत्र हैं उनसे  मिलने के लिए बाहर नहीं भीतर अंतर्जगत में प्रवेश करना होगा? अंतर्जगत में जाकर ही उनसे संवाद किया जा सकता है।

*लड़का*- क्या मेरी भी मृत्यु होगी?
*पण्डित* - हाँ, जो जन्मा है वो मरेगा। जो मरेगा वो पुनः जन्मेगा। यह शरीर तुम नहीं हो वस्तुतः तुम एक आत्मा हो। तुम भी यह शरीर ले जा न सकोगे।

*लड़का* - क्या कहा आपने ...मैं आत्मा हूँ? मेरी यह पहचान तो मुझे किसी ने आज तक बताई नहीं। मुझे तो कहा गया, मैं अमुक का बेटा, अमुक गोत्र और अमुक जाति का हूँ। मेरा नाम अमुक है। लेकिन *मैं आत्मा हूँ*। यह तो न घर मे बताया गया और न स्कूल में और न हीं कॉलेज में? पण्डित जी तुम क्या हो? क्या तुम भी आत्मा हो? मेरे पिता भी मात्र आत्मा है?

*पण्डित*- हाँजी मैं भी आत्मा हूँ? यहाँ बैठे सभी आत्मा ही हैं।
*लड़का* - जन्म मरण के कई चक्रों में गुजरने वाला मैं आत्मा हूँ। मरने पर मैं कुछ साथ ले जा नहीं सकता। पूर्व जन्म में भी ऐसा कोई परिवार होगा, आगे के जन्म में भी ऐसा कोई परिवार होगा। आख़िर मैँ वास्तव में हूँ कौन? कहाँ से आया हूँ? कहाँ जाऊँगा? मुझे मेरी वास्तिविकता का स्मरण क्यों नहीं हैं?? अनेकों प्रश्नों से वो युवा लड़का भर उठा।

*पण्डित जी गायत्री परिवार के थे, उन्होंने उसे पाँच पुस्तकें दी*-
📖 मरणोत्तर जीवन
📖 मरने के बाद क्या होता है
📖 मैं क्या हूँ?
📖 अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
📖 ईश्वर कौन है? कहाँ है? कैसा है

दादा की अंतिम इच्छा थी कि पोता ही मुखाग्नि दे, उसने चिता को मुखाग्नि दी। लोगों का क्या अनुभव था पता नहीं लेकिन उस लड़के ने उस चिता में मानो स्वयं को मुखाग्नि दी, स्वयं का ही श्राद्ध तर्पण किया। कुछ उसके भीतर घट गया।

घर आया और श्वेत वस्त्रों को धारण किया और मौन हो गया। घण्टों ध्यानस्थ रहता। समस्त आभूषणों को उतार दिया। पण्डित जी द्वारा दी गयी पुस्तकों को पढ़ने लगा। घर में सब डर गए, कहीं वैराग्य में घर न छोड़ दे।

सब अपनी अपनी तरह से उसे समझा रहे थे, बूढ़े माता-पिता उसे अपनी दुहाई दे रहे थे, पत्नी उसे स्वयं की और अपनी बच्ची की दुहाई दे रही थी।

*लड़का बोला* - पिताजी *आपने मुझसे झूठ बोला और मुझे एक झूठी पहचान बताई। मुझे नहीं बताया कि मैं एक आत्मा हूँ,* आपसे पहले भी मेरे कई पिता कई जन्मों में हो चुके हैं, हे माता मैं कई गर्भो में जन्म ले चुका हूँ, कई जन्मों में कई परिवारों में रह चुका हूँ।

मैं वास्तव में कौन हूँ? मैं क्या हूँ? मैं किस यात्रा में हूँ? अब मुझे जानना है।

चिंता मत कीजिये, मैं आप सबको छोड़कर जंगल मे नही जाऊंगा और अपने कर्तव्य निभाऊंगा। लेक़िन *अब जब होश में आ गया हूँ तो अब तक का बेहोश जीवन भी जी न पाऊँगा*। यदि मुझे होश में जीने दें तो मैं यही रहकर स्वयं को जानने की अंतर्जगत की यात्रा प्रारम्भ करना चाहता हूँ।

*लड़के का शरीर, परिवार, घर और व्यापार सब कुछ वही था, लेक़िन उसकी मनःस्थिति बदल चुकी थी*। जो वो ले जा नहीं सकता अब उस धन के पीछे भागना उसने छोड़ दिया था। निर्लिप्त भाव से कीचड़ में कमल की तरह वो खिल उठा था। उसकी चेतना ऊपर उठ चुकी थी। वह कार्य निपटा कर सुबह शाम घण्टों ध्यानस्थ बैठा रहता, सप्ताह में एक दिन कण कण में विद्यमान परमात्मा की सेवा में लगाता। उसने अपने शहर के सभी अपंगों को जरूरी उपकरण दिए। नए रोजगार के अवसर दिए। रोज़ रात को जरूरतमंदों की मदद चुपके से कर देता। गरीब कन्याओं के सामूहिक विवाह करवाता।

*वह व्यापारी से योगी बन गया था, दीप बनकर जल गया था*। स्वयं प्रकाशित हो दूसरों के जीवन के अंधेरे दूर कर रहा था। आत्मज्ञान का जो आता उसे उपदेश देता। दुकान पर बैठे बैठे जब वो कोई टीवी पर जिहाद और आतंक की टीवी न्यूज देखता तो वो ज़ोर से हँसता था।  कर्मचारी जब पूंछते कि मालिक आप क्यों हँसे? तब वो बोलता, इनके पिता और समाज ने भी इनसे झूठ बोला है, अमुक का बेटा और अमुक जाति बताया। अरे यह मात्र आत्मा हैं और कुछ समय के लिए ही संसार में आये हैं यह इन्हें ज्ञात ही नहीं है। जिहाद मुल्लाओं का एक धर्म व्यापार है, जिसके ज़ाल में युवा को फंसा रहे हैं। वास्तव में सब हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई एक ही हैं उस परमात्मा का अंश आत्मा हैं। जब शरीर ही इन सबका नहीं तो धर्म-जाति इनकी कैसे हुई? जब जन्नत मुल्ला मौलवी ने स्वयं नहीं देखी, तो उसका मरने के बाद जन्नत देने का दावा क्या झूठ नहीं? जब शरीर मरने के बाद सांस तक नहीं ले सकता तो वो हूरों के साथ समय किस शरीर से और कैसे बिताएगा? जब इंसान को पिछला जन्म याद नहीं तो अगले जन्म में वो कैसे बता पायेगा कि हूर और जन्नत मिली थी?

इसलिए हँसता हूँ😂😂😂😂, पागलों की न्यूज़ देखता हूँ। जिन्हें स्वयं के अस्तित्व का पता नहीं उनके बिन सर पैर की बात पर हँसता हूँ। इसलिए मैं संसार में बहुत कम रहता हूँ, जब भी वक्त मिलता है अंतर्जगत में प्रभु के निकट चला जाता हूँ। ध्यानस्थ हो जाता हूँ। स्वयं को जानोगे तो छलावे में न पड़ोगे, इसी जीवन में सुख-दुःख से परे आनन्द में रहोगे।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

नवरात्रि अनुष्ठान सङ्कल्प

*कोरोना वैश्विक महामारी को समूल नष्ट करने हेतु सामूहिक चैत्र नवरात्रि अनुष्ठान सङ्कल्प - चैत्र शुक्लपक्ष प्रथमा, नवसम्वत्सर 2077, -बुधवार 25 मार्च से रामनवमी  2 अप्रैल, गुरुवार तक*🇮🇳🤝🇮🇳

*सङ्कल्प मंत्र*🤛


स्नानादि करके धुले स्वच्छ वस्त्रो में देवमन्दिर में दीपक लगाये ।षट कर्म करके व देवावाहन करके हाथ मे जल अक्षत पुष्प लेकर निम्नलिखित सङ्कल्प बोलें ।


विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य, अद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीये प्ररार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे, वैवस्वतमन्वन्तरे, भूर्लोके, जम्बूद्वीपे, भारतवर्षे, भरतखण्डे, आर्यावर्त्तैकदेशान्तर्गते, < *अपने अपने देश का नाम यदि कोई इस संकल्प में भारत के बाहर से भी जो साधक भाई बहन जुड़ रहे हो। फिर उस राज्य (स्टेट)फिर क्षेत्र का स्थान नाम यहां जोड़ें*> क्षेत्रे,  स्थले 2077 विक्रमसंवत्सरे मासानां मासोत्तमेमासे *चैत्रमासे* *शुक्ल पक्ष प्रथमा तिधि.....अब अपना नाम गोत्र या (गुरुगौत्र भरद्वाज) के साथ बोलें*>..... गोत्रोत्पन्नः .. < *अपना नाम बोलें*>........ नामाऽहं  सत्प्रवृत्ति- संवर्द्धनाय, दुष्प्रवृत्ति- उन्मूलनाय, लोककल्याणाय, आत्मकल्याणाय, वातावरण -परिष्काराय,  उज्ज्वल भविष्यकामनापूर्तये च प्रबलपुरुषार्थं करिष्ये, अस्मै प्रयोजनाय च कलशादि- आवाहितदेवता- पूजनपूर्वकम् ...                * *कोरोना वैश्विक महामारी को समूल नष्ट करने हेतु सभी की सुरक्षा व स्वस्थ जीवन हेतु राष्ट्र की अर्थ व्यवस्था को सुदृढ़ करनी हेतु   भारत की सुरक्षा हेतु,  और सबकी सद्बुद्धि, सबके उज्ज्वल भविष्य  निमित्तकम  चैत्र नवरात्रि 9 दिवसीय लघु  अनुष्ठान ** > कर्मसम्पादनार्थं सङ्कल्पम् वयम् करिष्ये।🙏🇮🇳

*सङ्कल्प जल को पूजन की तश्तरी में जपकर अर्पित कर दें।  पूर्णाहुति रामनवमी में घर पर यज्ञ द्वारा करें। कन्या भोज इस बार नहीं होगा*।


कोरोना वायरस विश्व आपदा के इस दौर मे समूह में एकत्र होना वर्जित है। सामूहिक भजन कीर्तन व यज्ञ नहीं होंगे।

वर्चुअल ऑनलाइन ही सामूहिक सङ्कल्प, व्रत, अखण्डजप इत्यादि के कार्यक्रम चलेंगे।

व्रत में इस बार यह ध्यान रखना है कि शरीर को वह आहार मिलता है रहे जिससे हमारी इम्युनिटी बढ़े। जगह जगह लाकडाउन में कब क्या उपलब्ध  रहेगा यह तय नहीं है। अतः फल सब्जियां जो मिल जाये वह अवश्य खायें। सेंधानमक व गुड़ नवरात्र व्रत में लेना अनिवार्य है। नित्य कम से कम 5 से 6 ग्लास पानी घूंट घूंट कर पीना अनिवार्य है।

इस बात उपवास से अधिक शरीर की मजबूती हेतु योग व प्राणायाम अधिक करना है। कम से कम 15 मिनट प्राणायाम करें। श्वांस को होल्ड करके चेक करें कि आप कितने सेकंड्स तक होल्ड कर सकते हैं। यदि 30 सेकण्ड से 1 मिनट तक होल्ड कर पाते हैं तो फेफड़े स्वस्थ हैं।☝

जप संख्या बढ़ाएं, आहार जरूरी लेते रहें।🙏

नवरात्रि में नौ दिन के अंदर दुर्गाशप्तशती की पाठ विधि

*नवरात्रि में नौ दिन के अंदर दुर्गाशप्तशती की पाठ विधि*

*श्री दुर्गा सप्तशती*

श्री दुर्गा सप्तशती के पाठ करने का अलग विधान है। कुछ अध्यायों में उच्च स्वर, कुछ में मंद और कुछ में शांत मुद्रा में बैठकर पाठ करना श्रेष्ठ माना गया है। जैसे कीलक मंत्र को शांत मुद्रा में बैठकर मानसिक पाठ करना श्रेष्ठ है। देवी कवच उच्च स्वर में और श्रीअर्गला स्तोत्र का प्रारम्भ उच्च स्वर और समापन शांत मुद्रा से करना चाहिए। देवी भगवती के कुछ मंत्र यंत्र, मंत्र और तंत्र क्रिया के हैं। संपूर्ण दुर्गा सप्तशती स्वर विज्ञान का एक हिस्सा है।

*वाकार विधि: नौ दिन में किस दिन कौन सा पाठ करना है?*

1- प्रथम दिन एक पाठ प्रथम अध्याय,
2- दूसरे दिन दो पाठ द्वितीय, तृतीय अध्याय,
3- तीसरे दिन एक पाठ चतुर्थ अध्याय,
4- चौथे दिन चार पाठ पंचम, षष्ठ, सप्तम व अष्टम अध्याय,
5- पांचवें दिन दो अध्यायों का पाठ नवम, दशम अध्याय,
6- छठे दिन ग्यारहवां अध्याय,
7- सातवें दिन दो पाठ द्वादश एवं त्रयोदश अध्याय करके एक आवृति सप्तशती की होती है।

प्रथमा से सप्तमी तक ही पाठ पूर्ण करना होता है।

*संपुट पाठ विधि:*

किसी विशेष प्रयोजन हेतु विशेष मंत्र से एक बार ऊपर तथा एक नीचे बांधना उदाहरण हेतु संपुट मंत्र मूलमंत्र-1, संपुट मंत्र फिर मूलमंत्र अंत में पुनः संपुट मंत्र आदि इस विधि में समय अधिक लगता है। लेकिन यह अतिफलदायी है। अच्छा यह होगा कि आप संपुट के रूप में अर्गला स्तोत्र का कोई मंत्र ले लीजिए। या कोई बीज मंत्र जैसे ऊं श्रीं ह्रीं क्लीं दुर्गायै नम: ले लें या ऊं दुर्गायै नम: से भी पाठ कर सकते हैं। गायत्री मंत्र या महामृत्युंजय मंत्र का भी सम्पुट ले सकते हैं। यह ऑप्शनल है।

*नवरात्र पूजा विधि*

सर्वप्रथम- षट कर्म (पवित्रीकरण, आचमन, शिखा स्पर्श, प्राणायाम, न्यास व पृथ्वी पूजन करें) । फिर गुरु शिव और नवदुर्गा का आह्वाहन करें।

देवी भगवती को प्रतिष्ठापित करें। कलश स्थापना करें। दीप प्रज्ज्जवलन करें। ( अखंड ज्योति जलाएं यदि आप जलाते हों या जलाना चाहते हों)
ध्यान- सर्वप्रथम अपने गुरू का ध्यान करिए। उसके बाद गणपति, शंकर जी, भगवान विष्णु, हनुमान जी और नवग्रह का।

*पाठ विधि* -

*संकल्प*- श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से पहले भगवान गणपति, शंकर जी का ध्यान करिए। उसके बाद हाथ में जौ, चावल और दक्षिणा रखकर देवी भगवती का ध्यान करिए और संकल्प लीजिए...हे भगवती मैं.....( अमुक नाम)....सपरिवार...( अपने परिवार के नाम ले लीजिए...)...गोत्र.( अमुक गोत्र)....स्थान ( जहां रह रहे हैं)... पूरी निष्ठा, समर्पण और भक्ति के साथ आपका ध्यान कर रहा हूं। हे भगवती आप हमारे घर में आगमन करिए और हमारी इस मनोकामना... ( मनोकामना बोलें लेकिन मन ही मन) को पूरा करिए। श्रीदुर्गा सप्तशती के पाठ, जप ( गायत्री मंत्र की माला का उतना ही संकल्प करें जितनी नौ दिन कर सकें) और यज्ञादि को मेरे स्वीकार करिए। इसके बाद धूप, दीप, नैवेज्ञ के साथ भगवती की पूजा प्रारम्भ करें।

पाठ के बाद शांति मन्त्र व विसर्जन मन्त्र पढ़कर उठें।

सरल हवन विधि पुस्तक में शांति मन्त्र व विसर्जन मन्त्र है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

नए वर्ष और नव सम्वत्सर 2077 की कोटिशः बधाई।

Monday 23 March 2020

प्रधानमंत्री सहायता कोष

सभी कम्पनियों के मालिकों से अनुरोध है यथासम्भव सरकार की आर्थिक सहायता करें, सभी वेतनभोगी, प्राइवेट या सरकारी जॉब वाले, सांसद, विधायक, पार्षद इत्यादि सभी भारतीयों से अनुरोध है, अपनी एक दिन की सैलरी देशहित प्रधानमंत्री सहायता कोष में दें, हम और हमारे सभी मित्रगण परिजन यह कर रहे हैं। जो भाई बहन आर्थिक सहायता नहीं कर सकते वो कम से कम तीन माला गायत्री मंत्र या एक माला महामृत्युंजय मंत्र या हनुमान चालीसा या जिस भी धर्म सम्प्रदाय के हैं उसकी प्रार्थना करें। सरकार के आदेश का पालन करें।

Click here to donate - https://pmnrf.gov.in/en/online-donation

प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री का साथ भारतीयों ने दिया था और अन्न संकट से भारत उबर गया था।

प्रधानमंत्री मोदी का साथ वर्तमान भारतीय देंगे तो हम सबमिलकर कोरोना आपदा से मुक्त होंगे।

समस्त विश्व मे सभी लोग अपने अपने देश के लिए डोनेशन दे रहे हैं, हम भी दें और देश को मजबूत करें।

सभी को फारवर्ड जरूर करें, डोनेशन के लिए प्रेरित करें।

प्रश्न - *चैत्र नवरात्रि 2020 कब से कब तक है, कलश स्थापना मुहूर्त कब का है? गायत्री अनुष्ठान के लिए सङ्कल्प कब लें और पूर्णाहुति कब करें।*

प्रश्न - *चैत्र नवरात्रि 2020 कब से कब तक है, कलश स्थापना मुहूर्त कब का है? गायत्री अनुष्ठान के लिए सङ्कल्प कब लें और पूर्णाहुति कब करें।*

उत्तर - आत्मीय बहन,

हिदू धर्म में तिथि का निर्धारण सूर्योदय जिस तिथि में होता है उसे ही व्रत उपवास का दिन माना जाता है। यदि कोई आपको 24 मार्च अमावस्या से व्रत रहने की सलाह दे रहा है तो उसे प्रेम से अस्वीकृत कर दें। सायंकालीन तिथि व्रत उपवास के लिए मान्य नहीं है।

ब्रह्मुहूर्त कलश स्थापना के लिए सर्वोत्तम होता है।
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*चैत्र नवरात्र "बुधवार 25 मार्च" से "गुरुवार 2 अप्रैल" तक है, पूरे नौ दिन का है।*
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हिन्दू धर्म मे ब्रह्मुहूर्त सिद्ध माना जाता है। अतः जो साधक ब्रह्मुहूर्त में नित्य पूजन करते है, वो सुबह ब्रह्ममुहूर्त में गायत्री जप अनुष्ठान एवं व्रत का संकल्प ले सकते हैं। लेकिन यदि आप चाहें तो अनुष्ठान व्रत का सङ्कल्प एक दिन पूर्व मंगलवार 24 मार्च अमावस्या की शाम को नादयोग के बाद ले सकते हैं।

*चैत्र नवरात्रि 2020 कलश स्थापना मुहूर्त*

*घट स्थापना तिथि व मुहूर्त* -
ग्रह नक्षत्रों की गति के गणना  के अनुसार 25 मार्च सुबह 06 बजकर 19 मिनट से 07 बजकर 17 मिनट तक उत्तम माना गया है |
ब्रह्मुहूर्त स्वयं सिद्ध होता है, अतः सुबह 3 से 5 जिन्हें जप करने की आदत है। वो सुबह ब्रह्मुहूर्त में घट स्थापना कर सकते हैं।

*नौ देवियां और उनके दिन*
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*प्रथम - शैलपुत्री* - इसका अर्थ- पहाड़ों की पुत्री होता है। (बुधवार 25 मार्च), सभी को नववर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएं
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*द्वितीय -ब्रह्मचारिणी* - इसका अर्थ- ब्रह्मचारीणी।(गुरुवार 26 मार्च)
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*तृतीय - चंद्रघंटा* - इसका अर्थ- चाँद की तरह चमकने वाली।(शुक्रवार 27 मार्च), आज के दिन गणगौर पूजन भी है।
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*चतुर्थ - कूष्माण्डा* - इसका अर्थ- पूरा जगत उनके पैर में है।(शनिवार 28 मार्च)
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*पंचमी - स्कंदमाता* - इसका अर्थ- कार्तिक स्वामी की माता।(रविवार 29 मार्च )
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*षष्ठी - कात्यायनी* - इसका अर्थ- कात्यायन आश्रम में जन्मि।(सोमवार 30 मार्च  )
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*सप्तमी - कालरात्रि* - इसका अर्थ- काल का नाश करने वली।(मंगलवार  31 मार्च)
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*अष्टमी - महागौरी* - इसका अर्थ- गौर(सफेद कमल सी गोरी) वर्णीय मां।(बुधवार 1 अप्रैल )
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*रामनवमी - सिद्धिदात्री* - इसका अर्थ- सर्व सिद्धि देने वाली(गुरुवार 2 अप्रैल), *भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव*, श्रीराम नवमी। हम सबके *आदरणीय चिन्मय पंड्या का जन्मदिन*।

👉🏻 *विश्व आपदा कोरोना संक्रमण में युग धर्म पालन होगा*👇

🙏🏻 *पूर्णाहुति 2 अप्रैल रामनवमी  के दिन करें। श्रीराम जी की कथा सुने और सुनाएं। पूर्णाहुति घर पर ही करें।
सामूहिक यज्ञ आयोजित न करें, पूर्णाहुति करें। सामूहिक कन्या भोज आयोजित न करें।  पूर्णाहुति में औषधीय हवन सामग्री(शान्तिकुंज या आर्यसमाज वाली), स्विष्टकृत होम(मीठा) घर का बना हुआ हलवा, खीर या गुड़ ही होना चाहिए। केमिकल युक्त बाजारू मिठाई पूर्णाहुति में वर्जित है।*

माता कहती हैं:-

*निर्मल मन जन सो मोहिं पावा,*
*मोहि कपट छल छिद्र न भावा*

बेटी को जो पिता पुत्र के समान योग्य बनाने का प्रयास करता है, वही सच्चा  माता जगदम्बा का पुत्र होता है।

*कोरोना वायरस से बचाव हेतु औषधियों एवं देशी घी से यज्ञ करें, गर्म पानी पीने में प्रयोग करें। गले न मिले न ही हाथ मिलाएं। दूर से नमस्ते करें, इन दिनों चरण स्पर्श भी न करें। विटामिन सी वाले फ़ल अधिक मात्रा में खाएं, वृद्ध व बालक का ध्यान रखें*।

सामूहिक तौर पर एकत्रित भी न हों, किसी के घर पर भी सामूहिक यज्ञ पूजन के लिए एकत्र न हों।

साफ़ सफ़ाई का विशेष ध्यान दें,  नहाने से पूर्व थोड़ा साधारण खाने वाला नमक पानी में मिला लें। सोने से पूर्व घी का दीपक भगवान के समक्ष जला के कुछ क्षण उसे खुली आँखों से देखें व प्रणायाम करके फ़िर सोएं।

इस बार कोरोना वायरस की प्रकोप की वजह से कन्या भोजन नहीँ होगा। उसकी जगह प्रधानमन्त्री राहत कोष में दान देकर लोगों की जान बचाएं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

कृपया अधिक से अधिक लोगों तक इसे नवरात्रि शुरू होने से पूर्व पहुंचा दें। फारवर्ड कर दें।

Sunday 22 March 2020

परिवार व्यवस्था - शहर लाकडाउन - कोरोना संक्रमण से बचाव हेतु

*परिवार व्यवस्था - शहर लाकडाउन -   कोरोना संक्रमण से बचाव हेतु*

आत्मीय भाइयों बहनों, कई वर्षों से पति-पत्नी व बच्चे 24 घण्टे कभी भी साथ एक छत के नीचे नहीं बिताए हैं। छुट्टी के दिन मॉल चले जाते थे, अब घर पर ही रहना है। साथ ही शहरों में बिना मेड सर्वेंट के घर की व्यवस्था स्वयं सम्हालने की कल्पना शहरों में किसी ने नहीं किया था। अब अलग अलग मनःस्थिति के लोग 24 घण्टे साथ रहेंगे, यदि इस स्थिति को बुद्धि व प्रेम से नहीं सम्हाला तो कोरोना से अभी जितना हॉस्पिटल प्रभावित है, उतना ही तलाक के केसों से कोर्ट प्रभावित हो जाएंगे।

भाई व बहन एक दूसरे के ईगो को हर्ट न करें, एक दूसरे की तुलना किसी अन्य से करकर न समझाएं। एक दूसरे का सहयोग करें।

👉🏻 *अतः ऐसे कठिन समय में कोरोना संक्रमण से स्वयं को बचाने के साथ साथ घर को टूटने से भी बचाना है। परिवार को व्यवस्थित करना है।*

👉🏻 बच्चे घर पर बोर होंगे तो कुछ न कुछ हल्ला गुल्ला मचाएंगे।
👉🏻 घर का काम बढ़ेगा और मेड के न रहने पर बहने झल्लायेंगी। घर के कार्य का बोझ मन पर बढ़ेगा।
👉🏻 भाई व बहन जो जॉब के कारण घर से बाहर रहने की आदत है वह मनोवैज्ञानिक रूप से डिस्टर्ब महसूस करेंगे और घर पर बोर महसूस करेंगे।
👉🏻 भाई बहन लोग यदि दोनो निगरानी बच्चों पर करेंगे तो बच्चे चिढेंगे। पहले तो केवल मम्मी डांटती है, अब पापा भी शुरू हो गए, बच्चे जाएं तो जाएं कहाँ। बाहर लाकडाउन है, वे बाहर नहीं खेलने जा सकते।

👉🏻 पति पत्नी जिन्हें कम्पनी ने *Work from home* फैसिलिटी दी है, तो अब वह लोग दोहरा कार्य करेंगे, घर का भी कार्य और ऑफिस कभी कार्य करेंगे। घर मे यदि बच्चे हैं तो वह हल्ला गुल्ला मचाएंगे। हल्ले गुल्ले, गृह कार्य के साथ ऑफिस कार्य करना है, इसके लिए मनःस्थिति तैयार रखें।

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*संकट के समय धैर्य एवं प्रेम युक्त सहयोग से ही हम व्यवस्थित रह सकते हैं। अतः कुछ पॉइंट्स आपकी बहन होने के नाते युगऋषि द्वारा लिखी बता रही हूँ, कृपया उसे अपनाएं और घर पर युध्द टालें और आनन्दित पल धैर्य से गुजारें।*

👉🏻 बच्चों को घर पर 24 घण्टे बिना बाहर कैसे रखें इस पर दिमाग़ दौड़ायें, कुछ न कुछ व्यस्त रखने के उपाय सोचें और अपनाएं। उनसे वह जो कर सकें वह गृह कार्य अपने साथ करवाएं। बच्चे आपसे ज्यादा परेशान हैं, क्योंकि वह आपकी तरह कोरोना के कहर से अनजान है। उन्हें प्यार से हैंडल करें।

👉🏻 मेड नहीं है, तो घर पर दिन भर कुछ न कुछ खाने की इच्छा को दबाएँ,  ऋषि अनुशासन में व्यवस्थित टाइम पर रेगुलर स्वास्थ्यपरक हल्का आहार खाएं, दो या तीन जो भी समय खाते हों खाएं। पत्नी को पूरे दिन किचन में खड़ी करके बीमार करेंगे तो ख़ुद किचन में खड़ा होना पड़ेगा। डॉक्टर की सुविधाएं भी नहीं मिलने वाली हैं। अतः कुछ नमकीन बिस्किट व फल जैसे रेडीमेड ऑप्शन थोड़ा थोड़ा यदि बहुत आवश्यकता हो तो ही खाएं। पूड़ी, कचौड़ी और स्वादिष्ट गरिष्ठ भोजन की सोचना भी मत, पेट को हल्के आहार पर ही रखें। गरिष्ठ भोजन पेट में गैस बनाएगा और घर को दुर्गंध से भरेंगे तो घर वाले बेचारे बाहर भी न जा सकेंगे क्योंकि लॉक डाउन है।अतः घर वालों पर दया करें, पेट स्वस्थ रखें। पेट बीमार होगा तो मन बीमार होगा। पेट व मन दोनो स्वस्थ रखें।

👉🏻 घर के कार्य की सूची बना लें, उन कार्यो को घर के सदस्य आपस मे बाँट लें।सब मिलजुलकर कार्य करें। कोई भी बैठकर पानी या चाय का ऑर्डर नहीं देगा। ख़ुद उठकर जब भी प्यास लगे पानी पियें या बोतल भरकर पास रख लें।

👉🏻 मेड नहीं है, तो बहुत सारे बर्तन में बहुत सारा आइटम पकाकर ढेर सारा बर्तन जूठा करना बहुत बड़ी बेवकूफी साबित होगी। केवल एक या दो आइटम बनाये और उन्हें प्रेमपूर्वक खाएं। बर्तन खाने के बाद और चाय पानी के बाद सब आश्रम व्यवस्था का पालन करते हुए माँज लें। जिससे सिंक में बर्तन का ढेर न लगे।

👉🏻 बोरियत मिटाने के लिए कुछ इनोवेटिव सोचें, पुराने बचपन के खेलों को पुनः परिवार सहित मिलकर खेलें।

👉🏻 24 घण्टे TV से चिपके रहेंगे तो डिप्रेशन का शिकार होंगे। सुबह, दोपहर और शाम तीनबार news देखना काफ़ी है। दिनभर टीवी आपकी आंखों को और मन को कष्ट देगी।

👉🏻 यदि आप वयोवृद्ध हैं, तो बेटे बहु के वाद विवाद में मूक दर्शक की भूमिका निभाकर देखे व सुने। मुंह से कोई सलाह न दें, बिना जरूरत के न बोलें। माला लेकर मन्त्र जप करें, स्वाध्याय करें,मन्त्र लेखन करें। यदि चलने फिरने में असुविधा न हो, तो स्वयं के समस्त कार्य स्वयं करें। साथ ही घर की व्यवस्था में जो हाथ बंटा सकते हैं बंटाये।

👉🏻 सुबह व शाम घर पर सपरिवार प्रार्थना करें, भजन व गीत गाये। ध्यान व योग करें। मन को शांत व चित्त को शुद्ध रखना अनिवार्य है।

👉🏻 जब तक लाकडाउन चल रहा है, तबतक घर के किसी सदस्य को उसकी पुरानी गलतियां न गिनाएं, कोई पुरानी अप्रिय बातें न छेड़े। जो हुआ उसे भूलकर नई शुरुआत करें। किसी को गलती से भी ताने न मारें। अपशब्द न बोलें। स्वयं पर नियंत्रण रखें। निंदा करने से जिंदा रहना ज्यादा जरूरी है।

👉🏻 सुख बांटे व दुःख बंटाये, सबके भीतर परमात्मा है, उन्हें नमस्कार करके प्रेमपूर्वक रहें। कुछ वृद्ध जिनके वृद्धावस्था से मनोविकार के कारण ज़्यादा बोलने की आदत है उन्हें इग्नोर करें, कान में रुई डाल लें।कृपया जबतक लाकडाउन चल रहा है, उन्हें सुधारने का प्रयत्न न करें, आपत्तिकाल में स्वयं कैसे उन्हें हैंडल करें यह सोचें।

👉🏻 कोई मुझे समझता नहीं, इतना काम कर रही हूँ या कर रहा हूँ, यह सब इमोशनल डायलॉग न सोचें और न बोलें। घर के सदस्य इंसान है भगवान नहीं, जो आपके मन को समझेंगे। अतः अच्छे शब्दो मे अपनी परेशानी उन्हें बताएं।

*पति सुधार कार्यक्रम, पत्नी सुधार कार्यक्रम, बच्चे सुधार कार्यक्रम, बहु सुधार कार्यक्रम, सास सुधार कार्यक्रम तब तक स्थगित कर दें जब तक कोरोना का वैक्सीन और दवाएं संसार मे उपलब्ध न हो जाये। साथ ही निंदा-चुगली के समस्त डॉयलॉग की डिलीवरी लाकडाउन के कठिन वक्त में  बन्द कर दें।*

यदि दूरस्थ परिवार वाले एक साथ समस्त भाई बहन को एक जगह एकत्रित होने की सलाह दें, तो प्रेम से मना कर दें। जो जहां हैं कृपया वहीं रहे। यात्रा न करें।

👉🏻 जहां चाह है वहाँ राह है। मनुष्य का नज़रिया जैसा होगा वैसा ही नज़ारा होगा। अब इस लाकडाउन को अच्छी मनःस्थिति से परिवार के साथ रहने के सुनहरे अवसर और आनन्द का अवसर मानकर एन्जॉय कर सकते हैं।

देखो बुरी मनःस्थिति से लड़लड़कर घर को नर्क तो बना सकते हैं। लेकिन नरक से बाहर निकलने का ऑप्शन नहीं है, शहर में लाकडाउन है।

अक्लमंदी व भलाई तो घर को सद्बुद्धि से स्वर्ग बनाने में ही है।

👉🏻 विपत्ति में अच्छा दोस्त पुस्तकें होती हैं, उनका स्वाध्याय करें। शांत रहें व्यवस्थित रहें। धैर्य बनाये रखें।

👉🏻 इस संसार मे कोई परफेक्ट नहीं है, सभी अधूरे हैं। अतः परफेक्शन की उम्मीद न रखें। जो जैसा है उसे वैसा ही स्वीकारे।

👉🏻युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं - *प्रेम व सहकार से भरा घर ही धरती का स्वर्ग है।* परिवार में सुख शांति बनाए रखें।

👉🏻 निम्नलिखित वेबसाइट पर ऑनलाइन अच्छी पुस्तक पढ़ें:-

http://literature.awgp.org/

👉🏻 इस समय अकाल मृत्यु सर्वत्र हो रही है, जिसने सूक्ष्म में पीड़ा और दर्द का संचार कर दिया है। उन समस्त आत्माओं की शांति के लिए 24 गायत्रीमंत्र, 24 महामृत्युंजय मंत्र का जप करें और गीता के 7वें अध्याय का पाठ करें।

👉🏻 किसी भी शोशल प्लेटफार्म में अफवाह न फैलाएँ, सरकार के आदेश का पालन करें।हम एकजुट होकर कोरोना को हरा सकते हैं। परिवार की एकता ही शक्ति है।

कोई भी मनोवैज्ञानिक समस्या मन को या परिवार को हैंडल करने की हो तो आप व्हाट्सएप या फेसबुक पर मुझे कर लेना। जैसे वक्त मिलेगा उत्तर देने का प्रयास करेंगे।

हमारे घर में मेड नहीँ है, अतः भोजन पकाना, बर्तन मांजना, साफ सफ़ाई मुझे भी ऑफिस कार्य के साथ साथ करना पड़ेगा। इसलिए अब फ़ोन सेवा और फोन पर काउंसलिंग सोमवार से शुक्रवार सुबह 10 से 12 काउंसलिंग की 15 अप्रैल तक बन्द है। केवल व्हाट्सएप सेवा ही रहेगी। मात्र इमरजेंसी फोन उठाऊंगी।

 😍😍😍😍💃💃💃💃 *बर्तन भी मांजना है और झाड़ू पोछा भी करना है। आदत नहीं है इसलिए सामान्य से ज्यादा वक्त लगेगा। ऑफिस कार्य मे कुशलता है, अब गृहकार्य में कुशलता हासिल करने का लक्ष्य है*। 😂😂😂😍😍😍

हम पति पत्नी दोनों जॉब भी कर रहे हैं, अपनी अपनी कम्पनी की कॉल्स भी हैंडल कर रहे हैं।गृहकार्य में हम दोनों व बेटा सभी सहयोग कर रहे हैं। यही उम्मीद हम आपसे भी करते हैं, एक दूसरे का सहयोग करें, मित्रवत रहें।

*🙏वेद वाणी - प्रार्थना*🙏
 *शं नो मित्रः शं वरुणः शं नो भवत्वर्यमा।*
*शं न इन्द्रो बृहस्पतिः शं नो विष्णुरुरुक्रमः॥ ऋग्वेद १-९०-९।*

🌹🌹🌹🌹
१) *मित्र, सबको स्नेह करने वाला प्रभु हमें भी स्नेह करने वाला बनाए। २) वरुण, किसी से द्वेष ना करने वाला प्रभु हमें भी द्वेष रहित बनाए। ३) आर्यमा, सबके साथ न्याय करने वाला प्रभु हमें भी न्याय प्रिय बनाए। ४) इंद्र, परमैश्वर्य देने वाला प्रभु हमें भी सुख कारी बनाए। ५) बृहस्पति, सर्वोच्च ज्ञान देने वाला प्रभु हमें भी ज्ञानवान बनाए। ६) विष्णु, सर्वव्यापक सब को शांति देने वाला प्रभु हमें भी शांति प्रदान करें। ७) उरुक्रम,  सबको पराक्रम देने वाला प्रभु हमें भी इंद्रियों को नियंत्रित करने का पराक्रम दे। परमेश्वर हमें सभी प्रकार की जीवन में शांति प्रदान करें। (ऋग्वेद १-९०-९)*
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1) *Mitra, the lord who loves everyone bless us tendency to  love all.  2) Varuna, the lord who does not hate anyone should bless us the* *quality of not to hate anyone.  3) Aryama, the lord who does justice to all, makes us also dear to justice.  4) Indra, the lord who is the provider of happiness bless us with happiness.  5)* Brahspati, the lord who gives supreme* *knowledge also makes us knowledgeable.  6)  Vishnu, the omnipresent lord who gives peace to all, bestow peace upon us.  7) Urukram, the lord who gives power to all, also give us the power to control the senses.  May* *God having all these* *qualities grant us peace of every kind to us.  (Rig Veda 1-90-9)*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Saturday 21 March 2020

प्रश्न - *कोरोना की आपदा के वक्त अल्पबुद्धि अल्पज्ञान की उल्टी करने वाले लोग सक्रिय हो गए हैं। कोई अध्यात्म को मूर्खता बता रहा है तो कोई मन्दिर बन्द है और हॉस्पिटल चालू के पोस्ट कर रहे हैं।

प्रश्न - *कोरोना की आपदा के वक्त अल्पबुद्धि अल्पज्ञान की उल्टी करने वाले लोग सक्रिय हो गए हैं।  कोई अध्यात्म को मूर्खता बता रहा है तो कोई मन्दिर बन्द है और हॉस्पिटल चालू के पोस्ट कर रहे हैं। समझ नहीं आता इनको क्या उत्तर दूँ?*

उत्तर- अरे भाई, बहनों, मनुष्यो द्वारा बने मन्दिर बन्द है, मनुष्यों द्वारा बने सभी संस्थान बन्द है। मनुष्य सरकार के अधीन है, व सरकारी आदेश पालन के लिए बाध्य है।

धर्म के व्यापारी चुप व मौन हैं।

धर्म पालक लोकल्याण को आज भी सक्रीय हैं, सेवा कार्य कर रहे हैं।

ईश्वर के सम्बंध में एक कहानी सुनो..

*एक कहानी से इसे समझो, एक भाई ने प्रवचन में सुना कि कण कण में सभी जीव में भगवान है। बस फिर क्या छाती चौड़ी करके रोड के बीचों बीच चलने लगे, महावत चिल्लाया हट जाओ हाथी का मार्ग छोड़ो, हाथी चोट पहुंचा सकता है, उस भाई ने कहा हाथी के अंदर और मेरे अंदर परमात्मा है, कोई भय नहीं। हाथी ने उसे पटक दिया। चोटिल हालत में महात्मा से पूँछा कि ऐसा क्यों हुआ। तब महात्मा ने कहा, महावत के अन्दर का परमात्मा जब चेतावनी देकर हटने का मार्गदर्शन दे रहा था तो तूने उसे क्यों नहीं सुना? हाथी में परमात्मा दिखा और महावत में नहीं दिखा?*

*प्रत्येक जीव मे भगवान हैं, लेकिन प्रत्येक जीव भगवांन नहीँ है, ठीक वैसे ही जैसेप्रत्येक लकड़ी में आग है, लेकिन लकड़ी ही आग नहीं है। लकड़ी के भीतर की आग को निकालने में अग्नि से प्रज्वलित दूसरी लकड़ी सक्षम होगी। भाई जब तुझमें जब तक देवत्व की आग नहीं जलेगी, तू दूसरे के भीतर के देवत्व का प्रकटीकरण नहीं कर सकता। साधु संत ज्वलंत देवत्व की चिंगारी होते हैं, तो वह हिंसक पशु के भीतर का भी देवत्व जगा के उसे काबू में कर सकते हैं। तुम भी स्वयं को साधो और देवत्व यूँ उभारों कि हाथी तुम्हे प्रणाम कर रास्ता छोड़ दे, अभी तो महावत की ही सुन लो क्योंकि तुम्हारे भीतर का देवत्व सुषुप्त है।*

घट घट भगवान की प्रार्थना घर पर, मन्दिर में, श्मशान में, नदी तट पर खुले आकाश के नीचे कहीं भी कभी भी की जा सकती है।

मूर्खतापूर्ण वक्तव्य यह है कि ईश्वर विश्वास और उसको चुनौती देना।

*भोपाल गैस कांड मनुष्य द्वारा फैलाई त्रासदी में दो परिवार बचे थे जिनके घर मन्त्र जप और दैनिक यज्ञ होता था।*

*कोरोना में भी वह अवश्य बचेगा जिनके घर मन्त्र जप और दैनिक औषधीय यज्ञ होता है। यज्ञ की औषधीय धूम्र रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और किसी भी रोगाणु से निपटने के लिए शरीर को तैयार करता है। यज्ञ चिकित्सा - आयुर्वेद की औषधियों का धूपन प्रयोग है। ₹*

अतः बिना ज्ञान टीका टिप्पणी करने से बचें, उथली दृष्टि से देखने व स्पर्श करने पर सरसों में तेल और पौधा नहीं दिखता। उसे सही विधिव्यवस्था से मशीन में डालने पर तेल भी निकलेगा और सही ढंग से खेती करने पर पौधा भी निकलेगा।

उथली व अल्पबुद्धि का परिचय देते हुए भ्रामक व अल्पज्ञानी न बने। ऐसे पोस्ट से बचें जिसमें भगवान व अध्यात्म को चुनौती दे रहे हों। ध्यान रखें जब दवा नहीं कारगर होती तो डॉक्टर दुआ करने को कहते है। दवा व दुआ दोनो की जरूरत मनुष्य को है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Thursday 19 March 2020

आत्मबोध जागरण क्यों आवश्यक है?

*आत्मबोध जागरण क्यों आवश्यक है?*

दिन में आकाश भी है, नेत्र भी हैं और तारे भी हैं, फ़िर भी हम देख नहीं पाते, तो क्या तारे ग़ायब हो गए?

दिन में पॉल्यूशन का कुहरा हो और मेघों से सूर्य ढका हो, तो नेत्र होते हुए भी सूर्य नहीं दिखता है, धरती के घूमने के कारण रात्रि में भी सूर्य नहीं दिखता है? तो उस वक्त सूर्य गायब या अस्त होता है?

नहीं न... ऐसे ही मृत्यु के पश्चात मात्र देह नष्ट होने से हम उस जीवात्मा को नहीं देख पाते... तो क्या शोकाकुल सिर्फ़ इसलिए होना कि हमारे नेत्र पंचतत्व विहीन शरीर नहीं देख पाते हैं, क्या उचित है?

वस्तुतः यदि कोई जीवात्मा अभी पंचतत्वों में अभिव्यक्त नहीं तो क्या उसका अस्तित्व नहीं है?

हमें तुच्छ अपने नेत्रों और तुच्छ पदार्थ विद्या पर इतना गर्व व अहंकार है, और इस अहंकार में यूँ डूब गए हैं कि स्वयं के ज्ञान को सबकुछ समझ बैठे है?

मात्र द्विआयामी और त्रिआयामी स्थूल दृष्टि रखने वाला मनुष्य चतुर्थ आयाम और पंचम आयाम को देखने में सर्वथा असमर्थ है यह भूल गए हैं।

आइंस्टीन और न्यूटन जैसे बड़े वैज्ञानिक इन चतुर्थ व पंचम आयामों की चर्चा कर चुके हैं, मग़र अफ़सोस लोगों को समझ ही नहीं आया।

चतुर्थ आयाम और पंचम आयाम में देखने की क्षमता आ जाये तो दुनियाँ के नज़ारे ही बदल जाएंगे। वस्तुतः दुःख व सुख से परे हो जाएंगे। इस संसार की स्वप्न की भांति भ्रांति मिट जायेगी। जिस प्रकार स्वप्न में हमारा अस्तित्व होता है एक स्वप्न शरीर होता है। जागने के बाद स्वप्न के तिरोहित होने का गम नहीं होता है। इसीतरह आत्मबोध द्वारा जागने पर यह स्वप्नवत संसार व इससे जुड़े रिश्तों के बनने या तिरोहित होने पर न सुख होता है और न दुःख होता है।

साधना जगत में समय यात्रा सम्भव थी है और रहेगी। मग़र यह यात्रा स्थूल पंचतत्वों से नहीं होती, यह तो चेतन सत्ता हमारी आत्मा कर सकती है। पूर्वज हों या आने वाले भविष्य के परिजन किसी से भी सम्वाद सम्भव है। सूक्ष्म लोकों में आवागमन सम्भव है, दिव्य लोकों की झलक झाँकी सम्भव है।

हम रात्रि में यदि पृथ्वी की दूसरी ओर गमन करेंगे तो पता चल जाता है, सूर्य तो अस्त हुआ ही नहीं, अपितु पृथ्वी घूम रही है, दिन में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से बाहर आकर ब्रह्माण्ड में देख सकें तो समस्त तारों का अस्तित्व मिल जाएगा, साधना द्वारा आनंदमय कोष का अनावरण करके सहस्त्रार तक पहुंच सके तो पँच आयामी दृष्टि के मालिक बन जाएंगे। स्वप्नवत संसार में आत्मबोध जागरण हो जाएगा। तब मात्र आनन्द ही आनन्द जीवन में शेष रहेगा, सब कुछ दृष्टि व अनुभव में होगा, कहीं भी आवागमन सरल होगा। इसलिए आत्मबोध जागरण अत्यंत जरूरी है, स्वयं को मात्र साधना मार्ग से ही जगाया जा सकता है।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 18 March 2020

आज की बाल सँस्कारशाला के बिंदु*:- (बच्चों की उम्र 11 से 13 वर्ष)

*आज की बाल सँस्कारशाला के बिंदु*:-
(बच्चों की उम्र 11 से 13 वर्ष)
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1- *बच्चों को सरसों के दाने और सरसों का तेल और सरसों के पौधे की तस्वीर दिखाई*

बच्चों से पूँछा बताओ क्या सरसों के दाने में तेल दिख रहा है? क्या सरसों के दाने में सरसों का पौधा नज़र आ रहा है?

उन्हें बताया कि तेल के लिए ढेर सारी सरसों को तेल की मशीन में विधिव्यवस्था से पेरना पड़ेगा तब तेल निकलेगा।

सरसों को बुवाई और खेती की विधिव्यवस्था से गुजरना होगा तब पौधा निकलेगा।

अतः अध्यात्म में भगवान की प्राप्ति हो या संसार मे मनचाही जॉब व्यवसाय सबके लिए एक योजना बद्ध तरीके से अनवरत प्रयास चाहिए। जल्दबाज़ी में सरसों को देखकर उथले चिंतन की तरह तर्क-कुतर्क नहीं करना चाहिए कि इससे तेल नहीं निकल सकता, इससे पौधा नहीं निकल सकता। तर्क व वाद विवाद से ही समस्त बातों को नहीं समझाया जा सकता। परिणाम व समाधान चाहिए तो विधिव्यवस्था से प्रयास करना होगा।

विवेकानंद जी और युगऋषि परमपूज्य गुरुदेब कहते हैं कि मनुष्य के अंदर देवता बनने का बीज है, सम्भावना है। तो वह सही कह रहे हैं, बस सही दिशा में प्रयास की जरूरत है।
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2- *इस संसार में सभी यूनिक (कुछ अलग हट कर) विशेषता के साथ पैदा हुए हैं।*

इस बात को समझने के लिए उदाहरण में हम कछुए व खरगोश की रेस दो अलग स्थानों पर करते हैं।

यदि थल(ज़मीन) पर रेस होगी तो खरगोश जीतेगा यदि वह न सोया तो..

यदि जल में रेस हुई तो कछुआ जीतेगा, क्योंकि वह कुशल तैराक है।

यदि स्वयं की छुपी सम्भावनाओं को और विशेषताओं को जानना चाहते हो तो गहन चिंतन करो कि तुम किस क्षेत्र में बेहतर कर सकते हो? स्वयं से जब बार बार पूंछोगे तो समाधान उभरेगा।

मष्तिष्क को भोजन दोगे तो वह ताकतवर बनेगा, मष्तिष्क का आहार है स्वाध्याय और ध्यान।  जब मष्तिष्क ताकतवर बनेगा तब तुम्हारा व्यक्तित्व निखरेगा।
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3- *इंटेलिजेंट कोई जन्मजात नहीं होता, जो जितना बुद्धि का अनवरत उपयोग करता है और उसे बेहतर बनाने का प्रयास करता है वह बुद्धिमान बनता है।*

मान लो क्लास का इंटेलिजेंट बच्चा दो बार में कोई प्रश्नोत्तर याद करता है। और तुम्हें वही प्रश्नोत्तर याद करने में चार बार प्रयास करना पड़ता है। तो फ़िर यदि उससे आगे बढ़ना है तो दो और बार प्रयास कर लो। कुल 6 बार प्रयास में तुम उससे बेहतर कर सकते हो।

क्लास में जल्दी अन्य बच्चों की अपेक्षा समझ नहीं आता, तो तुम एक तरीका अपनाओ, क्लास में पढ़ाये जाने वाले लेशन को खुद दो बार पढंकर जाओ। देखो तुम सबसे बेहतर उस दिन समझोगे।

सैनिक युद्ध के दिन की तैयारी युद्ध के दिन केवल नहीं करता, वो युद्ध की तैयारी 365 दिन करता है। इसीतरह एग्जाम भी एक युद्ध है, यदि तैयारी बड़ी होगी तो सफलता बड़ी मिलेगी।

खाना बनाना कठिन है या खानां खाना कठिन है बताओ?

इसीतरह पुस्तक लिखना कठिन है या पुस्तक पढ़ना?

कठिन कार्य पुस्तक लिखने का तो कोई और कर गया है? तुम्हें तो मात्र सरल वाला पढ़ने का कार्य करना है तो पढ़ डालो।

नित्य प्रतिस्पर्धा स्वयं से करो कि कल से आज कितना बेहतर बने, क्या नया सीखा?

यदि रोज नए 10 शब्द सीखोगे तो सोचो 365 दिन में तुम्हारे पास कुल 3,650 नए शब्दो का सग्रह होगा।

रोज एक अच्छी ज्ञानपरक बात सीखोगे तो 365 दिन में कुल 365 नई अच्छी ज्ञानपरक बातों का संग्रह होगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 17 March 2020

*यौगिक परम्परायुक्त स्वास्थ्य संवर्द्धन से युवाओं का व्यक्तित्व परिष्कार*

*यौगिक परम्परायुक्त स्वास्थ्य संवर्द्धन से युवाओं का व्यक्तित्व परिष्कार*

यौवन ईश्वरीय वरदान है और अकूत शक्तियों का भण्डार है।

विद्युत की शक्ति को सही दिशा धारा में व्यवस्थित प्रवाहित किया जा सके तो विद्युत उपकरण चलेंगे और घर रौशन होगा। लेकिन यदि यही विद्युत अनियन्त्रित हुई व दिशा भटकी तो बिजली के झटके लगेंगे और घर भी जला कर राख कर सकती है।

इसी तरह युवा शक्ति को यदि सही दिशा देकर नियंत्रित नहीं किया गया तो यह तबाही लाती है और युवा व्यक्तित्व  को विखंडित कर देती है। जिस प्रकार परिष्कृत युवा शक्ति राष्ट्र के निर्माण और उत्थान में सहयोग देती है, वैसे ही विकृत युवा शक्ति राष्ट्र के विध्वंस व पतन का कारण बनती है।

वेदों में कहा गया है शरीर रूपी हार्डवेयर की क्षमता के अनुसार ही उस पर हाई कैपेसिटी का सॉफ्टवेयर इंस्टॉल किया जा सकता है। साधारण शब्दो मे स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन व स्वच्छ मन का वास होता है, परिष्कृत स्वस्थ व स्वच्छ मन ही ईश्वरीय अनुसाशन को स्वीकारता है और स्वयं के लिए अच्छा व बुरा सोचने का सामर्थ्य रखता है। स्वयं के मन को भटकने से रोक पाता है।व्यक्तित्व के बिखराव को रोककर परिष्कृत शानदार व्यक्तित्व गढ़ने में सक्षम होता है।

प्रश्न यह उठता है कि युवाओं के  व्यक्तित्व को परिष्कृत करने की शुरुआत कहाँ से व कैसे करें?

सभी आध्यात्मिक वैज्ञानिक रिसर्चर ध्वनि मत से इसबात पर सहमति प्रस्तुत करते हैं कि इसकी शुरुआत में सहायक है योग एवं प्राणायाम का नित्य अभ्यास

तिल में तेल और काष्ठ में अग्नि होती है, सभी जानते हैं इसे प्रयत्न पूर्वक विधिव्यवस्था अपनाकर तिल से तेल निकाला जाता है और काष्ठ से अग्नि निकाली जाती है। इसीतरह यौवन में दैवीय अखंड ऊर्जा विद्यमान है, डिवाइन पोटेंसी विद्यमान है, लेकिन इसे भी अनवरत प्रयत्न और यौगिक विधिव्यवस्था अपनाकर ही बाहर उभारा जा सकता है।

*स्वास्थ्य संवर्द्धन से परिष्कृत बुद्धि निखरेगी, जो स्वयं की क्षमता योग्यता का ठीक आंकलन करने में सक्षम होगी, साथ ही योग्यता व पात्रता कैसे निखारें उस पर कार्य करेगी। स्वयं के लिए सही कैरियर का चुनाव करने में सक्षम होगी। साथ ही उस कैरियर की ऊँचाई तक कैसे पहुंच सकते हैं उस पर योजनाबद्ध तरीके से कार्य करेगी। एक सफल व सुखी जीवन स्वयं के लिए निर्माण में बहुत मददगार होगी। हम जो कुछ भी जीवन मे प्राप्त करना चाहते हैं उसके लिए योग्य व सुपात्र बनने का भाव जगेगा। कुछ कर गुजरने के लिए आत्मविश्वास मिलेगा। कठिन चुनौतियों से मन नहीं डरेगा, विजेता की मनोभूमि की तैयारी बेहतर होगी।*

स्वास्थ्य संवर्द्धन में योग वस्तुतः विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) द्वारा वर्णित समग्र स्वास्थ्य की बात कर रहा है। जिसमें शारिरिक स्वास्थ्य, मानसिक सवास्थ्य, सामाजिक स्वास्थ्य और आध्यात्मिक स्वास्थ्य इन चारों की समग्रता समाहित हो।

कुछ दैनिक योग प्राणायाम का निरन्तर अभ्यास जैसे विपश्यना ध्यान योग, गायत्रीमंत्र जप योग, सहज प्रज्ञा योग, अनुलोमविलोम प्राणायाम, नाड़ी शोधन प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम, सूर्य नमस्कार यदि बच्चों और युवाओं के नित्य अभ्यास में लाया जाए तो उनका समग्र स्वास्थ्य का संवर्द्धन होगा। यौगिक परम्परायुक्त स्वास्थ्य संवर्द्धन से युवाओं का व्यक्तित्व परिष्कार होगा। उनके भीतर की शक्तियों का अपव्यय रुकेगा और नियंत्रित यौवन ऊर्जा समाज के सृजन व उत्थान में नियोजित होगी।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

हाँ, मैं वैरागी हूँ


*हाँ, मैं वैरागी हूँ*
*मन से गृह व संसार त्यागी हूँ*
वैराग्य गीत गाता हूँ,
वैराग्य की बात बताता हूँ,
क्या तुम मेरे साथ यह वैराग्य गीत,
गुनगुनाना चाहोगे?
क्या तुम आत्मज्ञान के मार्ग पर,
साथ चलना चाहोगे?
मनुष्य देह में यदि ज्ञान व वैराग्य न हो,
तो यह नर्क समान कष्टदायी है,
यदि ज्ञान भरा हो तो यही जीवन,
स्वर्ग सा सुखदायी है।

यह शरीर तो मलमूत्र के द्वार से निकला है,
यह शरीर रक्त, मांस, मलमूत्र से भरा है,
अस्थियों के ढांचे से निर्मित है,
मांसपेशियों से बंधा है,
उस पर माँस का लेपन चढ़ा है,
चमड़ी से पुनः तरीके से ढका है,
विष्ठा-मूत्र-वात-कफ-पित्त-मज्जा-मेद,
इत्यादि मलों से भरा पड़ा है,
तुम ही बताओ,
फ़िर जीव इस शरीर के मोह में क्यों पड़ा है,
जिसे चिता में जलकर मुट्ठी भर राख होना है।
क्यों न तप से ज्ञान प्राप्त करूँ,
क्यों न ज्ञान से मन पर लगाम लगाऊं,
क्यों न मन को आत्मज्ञान में रमाऊँ,
निज शाश्वत स्वरूप के दर्शन पाऊँ?
चित्त से संसार मिटाऊं,
चित्त शुद्धि हेतु घण्टों ध्यान लगाऊँ,
हृदय कमल के मध्य,
उस अविनाशी परमात्मा के दर्शन पाऊँ।
मैं सत चित आनन्द हूँ,
मैं ही धरती और आकाश हूँ,
मैं ही कण कण में हूँ,
क्योंकि मैं वही हूँ,
उसी से निर्मित हूँ,
उसी का अंश हूँ,
मैं उसमें समाया हूँ,
वह मुझमें समाया है,
यह जगत माया है,
शाश्वत तो उसी की कृपा छाया है।

वैराग्य गीत गाता हूँ,
वैराग्य की बात बताता हूँ,
क्या तुम मेरे साथ यह वैराग्य गीत,
गुनगुनाना चाहोगे?
क्या तुम आत्मज्ञान के मार्ग पर,
साथ चलना चाहोगे?
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday 16 March 2020

नवरात्रि के नवदिवसीय साधना - शान्तिकुंज युगतीर्थ में करने का महत्त्व

*नवरात्रि के नवदिवसीय साधना - शान्तिकुंज युगतीर्थ में करने का महत्त्व*

आत्मीय बहन भाइयों, आप सभी चैत्र नवरात्र के व्रत अनुष्ठान व नवदिवसीय साधना को लेकर उत्साहित होंगे। माता के साधनात्मक गर्भ में प्रवेश करेंगे। घर घर में साधना होगी।

लेकिन हम आपसे अनुरोध करेंगे कि एक बार नवरात्र में नवदिवसीय साधना युगतीर्थ शान्तिकुंज में अवश्य करें। युगऋषि की तपऊर्जा, तीर्थचेतना और शान्तिकुंज की भूमि में उच्च मनोभूमि का प्रतिपादन करके लाभ अवश्य उठाएं।

हमने नवरात्र में जब शान्तिकुंज में नवदिवसीय साधना की थी, वह दिव्य अनुभव गूंगे का गुड़ है जो शब्दों में व्यक्त तो नहीं हो सकता, फिर भी कोशिश करती हूँ, आपको तीर्थचेतना के लाभ से अवगत करवाने की एक छोटी सी कोशिश कर रही हूँ।

 *शान्तिकुंज युगतीर्थ क्यों है?*
 *युगतीर्थ की महिमा का आध्यात्मिक वैज्ञानिक महत्व*:-

*शांतिकुंज तीर्थ, हरिद्वार के कुछ अद्भुत शक्ति केंद्र/जगह जहां जप ध्यान द्वारा आप दिव्य शक्तियों के केंद्र से जुड़ सकते हैं:-*

1- *शांतिकुंज गायत्री तीर्थ* के ऊपर तपशक्ति से सूक्ष्म विद्युत् तारों का जाल है, जहां कोई भी असुर शक्ति बिना आवाह्न प्रवेश नहीं कर सकती। ऊर्जा के इस तीव्र प्रवाह से समर्पित हो श्रद्धा-विश्वास से जुड़ा जा सकता है।

2- *शांतिकुंज गायत्री युगतीर्थ* की जमीन मिट्टी अभिमन्त्रित है, इस जमीन पर हमेशा पैदल चलिए, इस मिटटी को माथे पर लगाइये। क्योंकि यहां करोड़ो मन्त्र जप नित्य होते हैं।

3-   *समाधि स्थल* - जिस शरीर द्वारा गुरुदेव और माताजी ने तप साधना किया, इसी शरीर से उन्होंने 24 वर्ष तक 24-24 लाख के गायत्री मन्त्र का अनुष्ठान गौ के दूध से बने छाछ और गोबर से परिष्कृत किये जौ की दो रोटी बिन नमक बिन शक्कर  के ग्रहण करके किया, कई वर्ष हिमालय में तप किया, 3200 से अधिक सत् साहित्य का सृजन किया  , उस शरीर के कण कण में अनन्त शक्ति थी, उस तप ऊर्जा को चिता यज्ञ द्वारा भष्मीभूत कर समाधिस्थ किया गया है। तो समाधि स्थल पर तप चेतना जागरण कई गुना स्पीड से होता है।

4- *यज्ञ स्थल*-, यहां यज्ञ हिमालय से लाई अखण्ड अग्नि में होता है, नियमित यज्ञ द्वारा यहां तीव्र दिव्य ऊर्जा केंद्र बन चूका है। तो यहाँ यज्ञ करके इस ऊर्जा से जुड़ने का लाभ ले। यह अग्नि अखंड है और मनोभूमि परिष्कृत करती है।

5- *सप्तर्षि मण्डल* - सिर्फ मूर्ती न समझें, साक्षात् सप्तर्षि की चेतना अनुभव कर उनका सूक्ष्म साक्षात्कार करें। यहाँ वह एक अंश से उपस्थित हैं व तपयुक्त हिमालय की प्राण ऊर्जा को प्रवाहित कर रहे हैं।

6- *माता गायत्री मन्दिर* - साधारण मन्दिर समझने की भूल न करें, खड़े खड़े दर्शन कर न निकल जायेंगे। यहां कुछ क्षण बैठ के जप करें और ऊर्जा से कन्नेक्शन बनाएं। नवदिवसीय साधना के वक्त 3 या 9 माला कम से कम यहां जपें

7- *अखण्डदीप* के पास काश बैठने की सुविधा होती पर ऐसा है नहीं, क्यूंकि वहां तीव्र दिव्य ऊर्जा का प्रवाह है 1926 से अखण्ड जप तप ने वहां दिव्यता भर दी है। अगर उपयोगी मनोभूमि न हुई तो वहां जप करने वाला स्वयं को सम्हाल न पायेगा, समाधिस्थ हो जाएगा और यदि उपयोगी मनोभूमि वाला महर्षि अरविन्द की तरह हुआ तो स्वयं को निहाल कर लेगा। इसलिए कुछ क्षण ही रुकने दिया जाता है वहां।

8- *गुरुदेव माता जी के दर्शन का कमरा* साक्षात्  देवात्मा हिमालय का तप क्षेत्र है, स्वयं की मनोभूमि परिष्कृत कर उससे एक पल में दिव्य चेतना से जुड़ा जा सकता है। उस रूम में गुरुचेतना का साक्षात्कार किया जा सकता है।

9- *देवात्मा हिमालय दर्शन* - ध्यान के लिए उत्तम क्षेत्र स्वयं को ख़ाली कर स्वयं में गुरुचेतना भरने का अद्भुत जगह। हिमालय स्वयं सूक्ष्म रूप में यहाँ वास करते हैं, वह अडिग भक्ति का पुण्यफल यहां जप करने से मिलता है, जो साक्षात हिमालय क्षेत्र में जपने पर मिलेगा।

10- *शिव मन्दिर* - स्वयं के शरीर को शव मानकर स्वयं की आत्मा को साधक मानकर शिवत्व को धारण करने की स्वयं को शिवो$हम जानने का स्थल। छोटा शिवमन्दिर शान्तिकुंज में स्थित है और बड़ा देवसंस्कृति यूनिवर्सिटी में स्थित है। दोनों स्थल शिवत्व की ऊर्जा से जुड़ने के लिए उत्तम हैं। कोई भी साधना किसी भी देवता की हो, उसे आधार शिव ही प्रदान करते हैं।

बिजली तारों में बहती है, सूर्य की किरणों में अनन्त ऊर्जा है। लेकिन कुचालक तत्व लकड़ी और प्लास्टिक उसका अनुभव नहीं कर सकते, जबकि सुचालक तत्व धातु और यन्त्र उस विद्युत् ऊर्जा को संगृहीत कर अनेको चमत्कारिक कार्य कर सकते हैं। *श्रद्धा-भक्ति वह द्वार है जिसके अंदर से अनन्त ऊर्जा हमारे हृदय में प्रवेश करती है।* जब बिना श्रद्धा-विश्वास के दवा असर नहीं करती तो सोचिए बिना श्रद्धा विश्वास के दुआ कैसे फ़लित होगी। अध्यापक के ज्ञान पर श्रद्धा और विश्वास होगा तभी उससे पढ़ने में मन लगेगा और कुछ सीख सकेंगे। इसी तरह युगतीर्थ पर श्रद्धा-विश्वास होगा तो झोली तीर्थ सेवन के फल से भर जाएगी। यहां आपको माता के साधनात्मक 9 दिन के गर्भ में रहने की दिव्य अनुभूति होकर रहती है। एक नूतनता स्वयं में अनुभव करेंगे।

वंदे भवानी शंकरौ, श्रद्धा विश्वास रूपिणौ।

तीर्थचेतना का लाभ क्या है, आदरणीय चिन्मय भैया के श्रीमुख से सुनिए👇

https://youtu.be/8-JZkhLgyXg

तीर्थचेतना क्या होती है? तीर्थ ऊर्जा क्या होती है? उसे महसूस करने एक बार  9 दिवसीय साधना हेतु शान्तिकुंज अवश्य जाएं। इनदिनों में केवल आश्रम के भोजनालय में ही भोजन कीजिये। स्वयं में बहुत ऊर्जा महसूस करेंगे, यह हमारा प्रत्यक्ष अनुभव है।

Location :-
https://g.co/kgs/5Uwo5v
Shantikunj, Sapt Rishi Rd, Motichur, Haridwar, Uttarakhand 249411

जाने से पूर्व ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करके अनुमति प्राप्त कर लें:-
http://www.awgp.org/social_initiative/shivir

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Email:- shivir@awgp.in

Call: 01334-260602 Ext: 187 or 188
Mob: 09258360655 / 9258369749

आश्रम में पूर्व सूचना देकर व अनुमति प्राप्त करने बाद ही साधना करने के लिए रुक सकते हैं। साधना के दौरान रहना, भोजन व साधना की व्यवस्था निःशुल्क है। जितने दिन की अनुमति मिली है केवल उतने दिन ही आप वहाँ रह सकते हैं।

दर्शनार्थी के रूप में दर्शन कभी भी कर सकते हैं।

 यदि आपकी इच्छा हो तो स्वेच्छा से वहाँ के डोनेशन काउंटर परदान दे सकते हैं।

युगऋषि व माताजी की तपशक्ति, अरबों खरबों गायत्री मन्त्रों की ऊर्जा व यज्ञीय ऊर्जा को महसूस करने व तीर्थ का सेवन करने शान्तिकुंज अवश्य जाएं।


शान्तिकुंज की एक झलक इस वीडियो में भी देख सकते हैं👇🏻
https://youtu.be/5BkosktAaPA.

धरती पर भी एक जगह शान्तिकुंज ऐसी है, जो जीवंत तीर्थ है, जहां स्वयं से परे और स्वयं के अस्तित्व को जानने में सहायता मिलती है। एक बार जरूर जाएं और 9 दिन की नवरात्र साधना तपस्वी की तरह करके आएं और अपने दिव्य अनुभव हमारे साथ शेयर जरूर करें।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती,
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Sunday 15 March 2020

शान्तिकुंज युगतीर्थ क्यों है? तीर्थचेतना का महत्त्व

युगतीर्थ शान्तिकुंज शुभ यात्रा,

आत्मीय बहन भाइयों आप सभी

 *शान्तिकुंज युगतीर्थ क्यों है?*
जानते ही होंगे, यदि यात्रा में कोई नया भाई बहन आपके साथ पहली बार शान्तिकुंज  जा रहा है तो उसे *इस युगतीर्थ की महिमा का आध्यात्मिक वैज्ञानिक महत्तव जरूर बताएं*:-

*शांतिकुंज तीर्थ, हरिद्वार के कुछ अद्भुत शक्ति केंद्र/जगह जहां जप ध्यान द्वारा आप दिव्य शक्तियों के केंद्र से जुड़ सकते हैं:-*

1- *शांतिकुंज गायत्री तीर्थ* के ऊपर सूक्ष्म विद्युत् तारों का जाल है, जहां कोई भी असुर शक्ति बिना आवाह्न प्रवेश नहीं कर सकती। ऊर्जा के इस तीव्र प्रवाह से समर्पित हो श्रद्धा-विश्वास से जुड़ा जा सकता है।

2- *शांतिकुंज गायत्री तीर्थ* की जमीन मिट्टी अभिमन्त्रित है, इस जमीन पर हमेशा पैदल चलिए, इस मिटटी को माथे पर लगाइये।

3-   *समाधि स्थल* - जिस शरीर द्वारा गुरुदेव और माताजी ने तप साधना किया, इसी शरीर से उन्होंने 24 वर्ष तक 24-24 लाख के गायत्री मन्त्र का अनुष्ठान गौ के दूध से बने छाछ और गोबर से परिष्कृत किये जौ की दो रोटी बिन नमक बिन शक्कर  के ग्रहण करके किया, कई वर्ष हिमालय में तप किया, 3200 से अधिक सत् साहित्य का सृजन किया  , उस शरीर के कण कण में अनन्त शक्ति थी, उस तप ऊर्जा को चिता यज्ञ द्वारा भष्मीभूत कर समाधिस्थ किया गया है। तो समाधि स्थल पर चेतना जागरण कई गुना स्पीड से होता है।

4- *यज्ञ स्थल*-, यहां यज्ञ हिमालय से लाई अखण्ड अग्नि में होता है, नियमित यज्ञ द्वारा यहां तीव्र दिव्य ऊर्जा केंद्र बन चूका है। तो यहाँ यज्ञ करके इस ऊर्जा से जुड़ने का लाभ ले।

5- *सप्तर्षि मण्डल* - सिर्फ मूर्ती न समझें, साक्षात् सप्तर्षि की चेतना अनुभव कर उनका सूक्ष्म साक्षात्कार करें।

6- *माता गायत्री मन्दिर* - साधारण मन्दिर समझने की भूल न करें, खड़े खड़े दर्शन कर न निकल जायेंगे। वहां कुछ क्षण बैठ के जप करें और ऊर्जा से कन्नेक्शन बनाएं।

7- *अखण्डदीप* के पास काश बैठने की सुविधा होती पर ऐसा है नहीं, क्यूंकि वहां तीव्र दिव्य ऊर्जा का प्रवाह है 1926 से अखण्ड जप तप ने वहां दिव्यता भर दी है। अगर उपयोगी मनोभूमि न हुई तो वहां जप करने वाला स्वयं को सम्हाल न पायेगा और उपयोगी मनोभूमि वाला महर्षि अरविन्द की तरह स्वयं को निहाल कर लेगा। इसलिए कुछ क्षण ही रुकने दिया जाता है वहां।

8- *गुरुदेव माता जी के रूम्* साक्षात्  देवात्मा हिमालय का तप क्षेत्र है, स्वयं की मनोभूमि परिष्कृत कर उससे एक पल में दिव्य चेतना से जुड़ा जा सकता है। उस रूम में गुरुचेतना का साक्षत्कार किया जा सकता है।

9- *देवात्मा हिमालय दर्शन* - ध्यान के लिए उत्तम क्षेत्र स्वयं को ख़ाली कर स्वयं में गुरुचेतना भरने का अद्भुत जगह।

10- *शिव मन्दिर* - स्वयं के शरीर को शव मानकर स्वयं की आत्मा को साधक मानकर शिवत्व को धारण करने की स्वयं को शिवो$हम जानने का स्थल।

बिजली तारों में बहती है, सूर्य की किरणों में अनन्त ऊर्जा है। लेकिन कुचालक तत्व लकड़ी और प्लास्टिक उसका अनुभव नहीं कर सकते, जबकि सुचालक तत्व धातु और यन्त्र उस विद्युत् ऊर्जा को संगृहीत कर अनेको चमत्कारिक कार्य कर सकते हैं। *श्रद्धा-भक्ति वह द्वार है जिसके अंदर से अनन्त ऊर्जा हमारे हृदय में प्रवेश करती है।* जब बिना श्रद्धा-विश्वास के दवा असर नहीं करती तो सोचिए बिना श्रद्धा विश्वास के दुआ कैसे फ़लित होगी। अध्यापक के ज्ञान पर श्रद्धा और विश्वास होगा तभी उससे पढ़ने में मन लगेगा और कुछ सीख सकेंगे। इसी तरह युगतीर्थ पर श्रद्धा-विश्वास होगा तो झोली तीर्थ सेवन के फल से भर जाएगी।

वंदे भवानी शंकरौ, श्रद्धा विश्वास रूपिणौ।

https://youtu.be/8-JZkhLgyXg

तीर्थचेतना क्या होती है? तीर्थ ऊर्जा क्या होती है? उसे महसूस करने एक बार 5 दिवसीय या 9 दिवसीय साधना हेतु शान्तिकुंज अवश्य जाएं। इनदिनों में केवल आश्रम के भोजनालय में ही भोजन कीजिये। स्वयं में बहुत ऊर्जा महसूस करेंगे, यह हमारा प्रत्यक्ष अनुभव है।

Location :-
https://g.co/kgs/5Uwo5v
Shantikunj, Sapt Rishi Rd, Motichur, Haridwar, Uttarakhand 249411

जाने से पूर्व ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करके अनुमति प्राप्त कर लें:-
http://www.awgp.org/social_initiative/shivir

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Email:- shivir@awgp.in

Call: 01334-260602 Ext: 187 or 188
Mob: 09258360655 / 9258369749

आश्रम में पूर्व सूचना देकर व अनुमति प्राप्त करने बाद ही साधना करने के लिए रुक सकते हैं। साधना के दौरान रहना, भोजन व साधना की व्यवस्था निःशुल्क है। जितने दिन की अनुमति मिली है केवल उतने दिन ही आप वहाँ रह सकते हैं।

दर्शनार्थी के रूप में दर्शन कभी भी कर सकते हैं।

 यदि आपकी इच्छा हो तो स्वेच्छा से वहाँ के डोनेशन काउंटर परदान दे सकते हैं।

युगऋषि व माताजी की तपशक्ति, अरबों खरबों गायत्री मन्त्रों की ऊर्जा व यज्ञीय ऊर्जा को महसूस करने व तीर्थ का सेवन करने शान्तिकुंज अवश्य जाएं।

🙏🏻 हम भी शान्तिकुंज, हरिद्वार जा रहे हैं, वहाँ की ऊर्जा से स्वयं को चार्ज करने के लिए, शाम (31 जनवरी 2020) तक शान्तिकुंज पहुंच जाएंगे।🙏🏻

शान्तिकुंज की झलक👇🏻
https://youtu.be/5BkosktAaPA.


~श्वेता चक्रवर्ती, दिया गुरुग्राम

Thursday 12 March 2020

आज के शिक्षा पद्धति में वैदिक पद्धति की प्रासंगिकता

*आज के शिक्षा पद्धति में वैदिक पद्धति  की प्रासंगिकता*

एक पिता की तीन सन्तान थी, पिता अंग्रेजियत के हिमायती थे और माता भारतीय संस्कृति की हिमायती थी। गांव में उनका स्वयं का स्कूल था।

तीनों बच्चों को पिता ने उच्च शिक्षा दी, और बड़ा बेटा पिता के नक्शेकदम में चला और उसने शहर का सबसे प्रतिष्ठित अंग्रेजी माध्यम से इंटरमीडिएट स्कूल खोला। छोटा बेटा मातृभक्ति व संस्कारो से ओतप्रोत होकर उसने *युगानुकूल गुरुकुल* खोला। पुत्री ने गावँ का पैतृक स्कूल सम्हाल लिया।

बहन के बेटी के विवाह में दोनों भाई आये, व दोनों अपनी अपनी शिक्षा पद्धतियों का गुणगान करने लगे। बहस हो गयी, तब बहन ने कहा क्यों न तुम दोनों अपने अपने स्कूल के दस दस विद्यार्थियों का समूह जिनकी उम्र 12 से 15 वर्ष के बीच की हो मेरे स्कूल में आयोजित समर कैंप में भेजो। हम परीक्षा लेते हैं। सर्वश्रेष्ठ स्कूल को अवार्ड देंगे। दोनों राजी हो गए।

नियत समय में बेस्ट अग्रेजी मीडियम के सूटेड बूटेड लड़के लड़कियाँ और युगानुकूल गुरुकुल के भारतीय वेशभूषा में छात्र छात्राएं आ गए।

दस दिन का कैम्प था, तो दस दिन की चुनौतियां बहन ने पहले ही सेट कर दी थी।

1- *चुनौती 1 - अँग्रेजी भाषा का ज्ञान व सामान्य ज्ञान*

इस प्रतियोगिता में बड़े भाई का स्कूल विजयी हुआ।

2- *चुनौती 2 - संस्कृत भाषा का ज्ञान व भारतीय संस्कृति का ज्ञान*

 इस प्रतियोगिता में छोटे भाई के युगानुकूल गुरुकुल के छात्र विजयी हुए।

3- *चुनौती 3 - कम्प्यूटर के प्रोग्राम के लॉजिक के निर्माण में*

इस प्रतियोगिता में छोटे भाई के युगानुकूल गुरुकुल के छात्र विजयी हुए।

4- *चुनौती 4 - मेंटल मैथ में, नई वैज्ञानिक खोज़ों में*

इस प्रतियोगिता में छोटे भाई के युगानुकूल गुरुकुल के छात्र वैदिक गणित के ज्ञान के कारण विजयी हुए।

5- *चुनौती 5 - पिकनिक में बाहर ले गए जहाँ भोजन के पश्चात हाथ धोने के लिए नल बच्चों की हाइट से ज़्यादा ऊंचा था*

बड़े भाई के स्कूल के बच्चों ने मैनेजमेंट से शिकायत की और नल को या तो नीचे करने की व्यवस्था करने को कहा या टेबल की व्यवस्था करने को कहा जिस पर चढ़ के बच्चे हाथ धो सके या बड़े लोग मदद को आएं।

छोटे भाई के युगानुकूल गुरुकुल के छात्र विपरीत परिस्थितियों को झेलने के लिए कुशल थे, एक बच्चा झुका दूसरा हल्का बच्चा उस पर चढ़ा, उसने पानी लिया और बाकी बच्चों को दिया। सबने हाथ धोए अंत मे जो बच्चा झुका था उसका हाथ धुलवा के वो लोग वापस आ गए। अतः युगानुकूल गुरुकुल विजयी रहा।


इस प्रतियोगिता में छोटे भाई के युगानुकूल गुरुकुल के छात्र वैदिक गणित के ज्ञान के कारण विजयी हुए।

6- *चुनौती 6 - एक दिन जंगल में अत्यंत थोड़ी सामग्री चावल, दाल व कुछ सब्जी व मसाले के साथ ले जाया गया। जंगल की लकड़ी लाकर मिलकर भोजन पकाना था और सबको खाना था।*

बड़े भाई के स्कूल के बच्चों ने कहा इतने थोड़े भोजन में सबकी भूख नहीं मिटेगी। फ़िर लकड़ी कौन लाएगा और  कैसे व्यवस्था होगी। इसमें भी आपस में उनमें लड़ाई हो गयी।

छोटे भाई के युगानुकूल गुरुकुल के छात्र व्यवहारिक ज्ञान के कारण विजयी हुए। उन्होंने प्रेम पूर्वक अनुशासन का पालन किया, काम बांटा। थोड़े चावल दाल सब्जी से अधिक पानी डालकर पतली खिचड़ी बनाई व आराम से सबने खा लिया। युगानुकूल गुरुकुल विजयी रहा।

7- *चुनौती 7 - एक घायल पक्षी का उपचार*

बड़े स्कूल के बच्चे फर्स्ट एड व मेडिसिन के अभाव में जंगल मे उस पक्षी की मदद नहीं कर पाए।

छोटे भाई के युगानुकूल गुरुकुल के छात्र रसोईघर एक उपचार केंद्र एवं मसाला औषधि के ज्ञान के कारण विजयी हुए। उन्होंने हल्दी तुरन्त पक्षी के घाव पर डाली, चम्मच से जल पक्षी को पिलाया। थोड़ा आराम दिया वह पक्षी को आराम मिल गया। युगानुकूल गुरुकुल के छात्र विजयी रहे।

8- *चुनौती 8 - देश विदेश के आधुनिक जानकारियों में*

इस प्रतियोगिता में बड़े भाई के स्कूल के छात्र इंटरनेट व पुस्तकीय ज्ञान के कारण विजयी हुए।

9- *चुनौती 9 - गणितीय पहेली व आउट ऑफ द बॉक्स समस्या समाधान में*

इस प्रतियोगिता में छोटे भाई के युगानुकूल गुरुकुल के छात्र वैदिक गणित ज्ञान व योग-ध्यान के अभ्यास  के कारण विजयी हुए।

10- *चुनौती 10 - देशभक्ति, देश की वर्तमान जमीन स्तर की समस्या व उनके समाधान में कुछ कर गुजरने के जुनून में*

इस प्रतियोगिता में छोटे भाई के युगानुकूल गुरुकुल के छात्र विजयी हुए। उन्हें देश की जमीनी हकीकत पता थी। देशभक्ति से ओतप्रोत थे।

11- *चुनौती 11 - शारीरिक खेल कूद और पंजा लड़ाने में*

इस प्रतियोगिता में छोटे भाई के युगानुकूल गुरुकुल के छात्र विजयी हुए। क्योंकि उन्हें नियमित योग व व्यायाम करवाया जाता था, उनके शरीर बलिष्ठ थे।

12- *चुनौती 12 - मानसिक एकाग्रता और मेमोरी गेम*

इस प्रतियोगिता में छोटे भाई के युगानुकूल गुरुकुल के छात्र विजयी हुए। क्योंकि उन्हें नियमित गायत्री मंत्र जप और उगते सूर्य का ध्यान करवाया जाता था, उन्हें चित्त एकाग्र करने की कला पता थी।

💫 *बहन ने युगानुकूल गुरुकुल को विजयी घोषित किया और बड़े भाई का स्कूल क्यों हारा इस पर निम्नलिखित टिप्पणी की*:-

1- बड़े भाई आपके स्कूल के बच्चे अच्छी नौकरी प्राप्त कर बेहतर ऐशोआराम की जिन्दगी के लिए पढ़ रहे हैं। इनके हृदय में द्वशभक्ति सर्वोपरि नहीं है।

2- यह बच्चे जानकारियों का भंडार को रट रखा हैं, लेकिन उनके व्यवहारिक उपयोग से अपरिचित हैं। यह सफ़लता के लिए इनकी परिस्थिति प्रोग्राम की गई है। असफ़लता व विपरीत परिस्थितियों में कैसे निर्णय लेना है इन्हें पता नहीं।

3- यह कल्पना की दुनियां में जी रहे हैं, जमीनी हक़ीक़त का इन्हें पता नही  है। यह शारीरिक व मानसिक रूप से बलिष्ठ नहीं है। यह *अंग्रेजी* से *अंग्रेजियत* सीख रहे हैं। अंग्रेजी इनकी प्रतिष्ठा व स्टेटस बन गया है।

बहन ने कहा, युगानुकूल गुरुकुल प्राचीन वैदिक पद्धति युक्त भारतीय ज्ञान व आधुनिक विज्ञान का अद्भुत समन्वय है। छोटे भैया ने पिता जी के संदेशों व माताजी के संदेशों दोनों को अपने स्कूल में शामिल किया। समाज की मुख्यधारा में भी बच्चे हैं जो कि किसी भी कॉलेज यूनिवर्सिटी में आगे की पढ़ाई पढ़ सकते हैं, व भारतीय संस्कृति की जड़ो से भी जुड़े हुए हैं। युगानुकूल गुरुकुल में सभी आधुनिक विषयों के साथ साथ  *अंग्रेजी* एक भाषा के रूप में पढ़ाई जाती है और *संस्कृत* भारतीय संस्कृति व जीवन मूल्यों पर आधारित पढ़ाई जाती है। मन प्रबन्धन व जीवन प्रबन्धन पढ़ाकर बच्चों के जीवन का समग्र विकास किया जा रहा है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 11 March 2020

प्रश्न - *सभी विद्यार्थियों के एक समान पंचकोशी साधना, एक समान संख्या में जप, एक जैसा ध्यान और एक समान उपवास पालन करने पर क्या सबको एक समान परिणाम प्राप्त होगा?*

प्रश्न - *सभी विद्यार्थियों के एक समान पंचकोशी साधना, एक समान संख्या में जप, एक जैसा ध्यान और एक समान उपवास पालन करने पर क्या सबको एक समान परिणाम प्राप्त होगा?*

उत्तर- नहीं, मात्र बाह्य क्रिया समान होने पर परिणाम एक जैसा नहीं मिलता। जैसे आप सभी का परीक्षा परिणाम में प्राप्तांक समान नहीं होता है।

क्योंकि तीन प्रकार के विद्यार्थी स्कूल आते हैं:-

1- एक विद्या का महत्त्व समझते हुए उसे अर्जन करने को लालायित-इच्छुक विद्यार्थी, विद्या के लिए आत्म-समर्पित और कुछ भी कर गुजरने के मानसिकता व भावना से स्कूल जाने वाला विद्यार्थी।

2- पढ़ना तो पड़ेगा ही, क्योंकि मम्मी-पापा चाहते हैं। अतः चलो पढ़ लेते हैं इस मानसिकता व भावना से स्कूल जाने वाला विद्यार्थी

3- स्कूल से भागने का अवसर न मिलने और माता-पिता व स्कूल के भय से बेमन स्कूल जाने वाला विद्यार्थी।

यद्यपि तीनों विद्यार्थी हैं, एक ही स्कूल वैन से एक ही स्कूल में एक जैसे वातावरण में एक ही कक्षा में एक जैसा सब्जेक्ट एक जैसे परिस्थिति में पढ़ने पर भी उनके रिज़ल्ट व ज्ञान का स्तर अलग होगा। उनकी मानसिक परिस्थिति अनुसार उन्हें क्रमशः उच्च, मध्यम व निम्न स्तर का विद्यार्थी कह सकते हैं।

इसी प्रकार एक जैसे पंचकोशी साधना, एक जैसे अनुष्ठान व एक जैसी साधना में भी एक जैसा बाह्य आचरण करने पर भी साधक की मनःस्थिति व श्रद्धा-विश्वास की भावना के कारण साधना का प्रतिफ़ल में भारी अंतर रहना स्वभाविक है।

*गीता में भगवान कृष्ण ने चार प्रकार के भक्त बताये हैं*:-

1- आपत्ति आने पर उसका निवारण हेतु भगवान को पुकारने वाले भक्त
2- जानकारी का कौतूहल पूरा करने के लिए परमात्मा की खोजबीन करने वाले भक्त
3- सिद्धियां, विभूतियां, मनोकामना पाने की लालच में जप, तप करने वाले भक्त
4- स्वयं को प्रभु का अंश मानने वाले, आत्मप्रगति के लिए सच्चे मन व निर्मल भावना से आत्मसमर्पण करने वाले ज्ञानी भक्त

मनोभूमि के अनुसार उपासना की श्रेष्ठता व निकृष्टता नापी जाती है। जो विद्यार्थी चेतना विज्ञान को जितना महत्त्व देकर सीखने को इच्छुक होगा और पूरी निष्ठा से प्रयास करेगा उसे उतना ज्यादा लाभ मिलेगा।

उपरोक्तनुसार तीनों प्रकार के विद्यार्थी और चारों प्रकार के भक्तों की बाह्य स्थिति में कोई अंतर नहीं होता। परन्तु अन्तःस्थति मनोभूमि में अंतर के कारण श्रेष्ठता व निकृष्टता का स्वरूप अलग अलग रहता है। फल भी उसी अनुसार मिलता है।

संक्षेप में... कर्मकांड(Action) + भावना(Intension) से अध्यात्म क्षेत्र में फ़ल(Result) निर्धारित होता है।

Reference book - *गायत्री की पँचकोशी साधना एवं उपलब्धियां, पेज़ 1.4*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

विद्यार्थियों के लिए पँचकोशिय साधना - बालसँस्कारशाला, भाग 2

*विद्यार्थियों के लिए पँचकोशिय साधना - बालसँस्कारशाला, भाग 2* 👇

जैसा कि हमने पिछली क्लास में डिसकस किया कि संपूर्ण ब्रह्मांड में जो भी है वह द्रव्य एवं ऊर्जा (Matter and energy) का संगम है। समस्त दृश्य एवं अदृश्य इन्ही दोनो के संयोग से घटित होता है। हम और हमारा मस्तिष्क इसके अपवाद नहीं हैं। सृष्टि के मूलभूत कणों के विभिन्न अनुपात में संयुक्त होने से परमाणु और क्रमशः अणुओं का निर्माण हुआ है।

आइये थोड़ा मष्तिक रूपी कम्प्यूटर के हार्डवेयर व सॉफ्टवेयर की थोड़ी जानकारी लेते हैं।

मस्तिष्क एवं इसके विभिन्न भाग, सूचनाओं के आदान-प्रदान एवं भंडारण के लिए इन्हीं अणुओं पर निर्भर रहते हैं। यह विशेष अणु न्यूरोकेमिकल कहलाते हैं। मस्तिष्क एक विशेष प्रकार की कोशिकाओं से मिल कर बना होता है जिन्हें तंत्रिका कोशा (Neuron) कहते हैं। ये मस्तिष्क की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई होतीं हैं। इनकी कुल संख्या 1 खरब से भी अधिक होती है। संरचनात्मक रूप से मस्तिष्क के तीन मुख्य भाग होते हैं। अग्र मस्तिष्क (Fore Brain), मध्य मस्तिष्क(Mid Brain) एवं पश्च मस्तिष्क (Hind Brain)। प्रमस्तिष्क(Cerebram) एवं डाइएनसीफेलॉन (Diencephalon) अग्र मस्तिष्क के भाग होते हैं। मेडुला, पोन्स एवं अनुमस्तिष्क(Cerebellum) पश्च मस्तिष्क के भाग होते हैं। मध्य मस्तिष्क एवं पश्च मस्तिष्क मिल कर मस्तिष्क स्तंभ (Brain Stem) का निर्माण करते हैं। मस्तिष्क स्तंभ मुख्यतः शरीर की जैविक क्रियाओं एवं चैतन्यता (Awareness) का नियंत्रण करता है। प्रमस्तिष्क गोलार्ध(Cerebral Hemisphere) प्रमस्तिष्क के दो सममितीय भाग होते हैं और आपस में मध्य में कॉर्पस कैलोसम (Corpus Callosum) द्वारा जुड़े होते हैं। इनकी सतह का भाग प्रमस्तिष्क वल्कुट(Cerebral Cortex) कहलाता है। मस्तिष्क के इन विभिन्न भागों की क्रियात्मक समरूपता वाली कोशिकाएं तंत्रिका संजाल (Neural Network) का निर्माण करती हैं। विभिन्न संजाल मिल कर प्रतिचित्र(Topographical Map) का निर्माण करते हैं।
मस्तिष्क में प्रतिचित्र के स्तर पर शरीर के सभी अंगो का संरचनात्मक निरूपण होता है। प्रमस्तिष्क वल्कुट का भाग समस्त संरचनात्मक निरूपण के लिए उत्तरदाई होता है। यह निरूपण प्रतिपार्श्विक(Contraleteral) अर्थात शरीर सममिति के दाहिने अक्ष का निरूपण बाएं प्रमस्तिष्क गोलार्ध एवं बाएं अक्ष का निरूपण दाहिनी ओर होता है। चित्र में शरीर की विरूपता इसके विभिन्न भागों एवं अंगो के मस्तिष्क में निरूपित भाग को प्रदर्शित करती है। मस्तिष्क में इस निरूपण के चिकित्सकीय प्रमाण भी मिलते हैं। जब मस्तिष्क का कोई भाग चोट या किसी अन्य कारण से प्रभावित हो जाता है तो उससे संबंधित अंग या अंग तंत्र भी स्पष्टतः प्रभावित होता है। यह घटना प्रायः पक्षाघात (Paralysis) के रूप में देखने को मिलती है।

मस्तिष्क में विभिन्न स्तरों पर इन सूचनाओं का संकलन एवं परिमार्जन किया जाता है। उदाहरण के लिए हम दृश्य (Vision) परिघटना को ले सकते हैं। किसी भी दृश्य का दिखाई देना उस पर पड़ रही प्रकाश की किरणों के प्रत्यावर्तन के कारण होता है। इस प्रत्यावर्तित प्रकाश की किरणें जब हमारी रेटिना पर पड़ती हैं तो उस दृश्य का एक उल्टा एवं द्विवीमीय प्रतिबिंब बनता है (क्योंकि रेटिना एक द्विवीमीय फोटोग्राफिक प्लेट की तरह कार्य करती है। परंतु जब मस्तिष्क के दृश्य क्षेत्र में रेटिना द्वारा प्राप्त संकेतो की व्याख्या होती है तो हम एक वास्तविक त्रिविमीय दृश्य का अनुभव करते हैं। ऐसा मस्तिष्क में विभिन्न स्तरों पर संयोजन, परिमार्जन एवं संसाधन (Processing) के कारण होता है।

*मनोविज्ञान-मस्तिष्क का क्रियात्मक निरूपण*

मानसिक संक्रियाएँ व्यवहार के रूप में परिलक्षित होतीं हैं और व्यवहार मन से उत्पन्न होता है। मनोविज्ञान में मानसिक संक्रियाओं और व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। मन का अध्ययन सदैव एक अबूझ पहेली रहा है। सबसे कठिनतम तो इसे परिभाषित करना ही है। सामान्यतः मन को मस्तिष्क का क्रियात्मक निरूपण मान लेते हैं। मन की तीन मुख्य क्रियाएँ होतीं हैं सोचना, अनुभव करना एवं चाहना (Thinking, Feeling and Willing)। संज्ञानात्मक क्रियाएँ जैसे कि स्मृति, अधिगम, मेधा, ध्यान, दृष्टि, श्रवण, स्वाद, गंध, स्पर्श इत्यादि मन के विभिन्न प्रभाग होते हैं।

मन और पेट आपस मे जुड़े हुए हैं, स्वस्थ शरीर मे स्वस्थ मन का वास होता है, स्वस्थ मन ही शरीर को आरोग्यता प्रदान करता है। मन खराब हो तो पेट को भूख नहीं लगती। पेट खराब हो तो कहीं भी मन नहीं लगता। अतः अन्नमय कोश व मनोमय कोश वस्तुतः एक दूसरे के पूरक हैं। इसलिए जानते हो मन को साधने के उपक्रम में व्रत-उपवास का समावेश भी किया जाता है। इसे आगे की कक्षा में और भी ज्यादा समझेंगे।

पँचकोशिय साधना में हम आपसे कोई चमत्कार का वादा नहीं कर रहे, यहां तो हम मष्तिष्क की प्रोग्रामिंग सीखेंगे, मष्तिष्क का बेहतरीन प्रयोग सीखेंगे। बुद्धि(IQ), स्मृति (Memory), प्रतिभा(Talent), दक्षता (Skills) बढ़ाने हेतु आध्यात्मिक प्रोग्रामिंग करेंगे। सबसे महत्त्वपूर्ण आत्मबल(Will power) और आध्यात्मिक शक्ति (Spiritual power) को प्राप्त करने हेतु विभिन्न साधनाएं करेंगे।

पँचकोशिय साधना से प्रत्यक्ष चमत्कार रूप से छप्पर फाड़कर कोई धन संपदा या बुद्धिकुशलता नहीं मिलती, जादूगरी की तरह हथेली पर सरसों नहीं उगता।

 अपितु इसकी साधना से हम सबके अंदर वह गुण, प्रतिभा, क्षमता, दक्षता व विभूतियां विकसित होती हैं, जो स्वयंमेव सुख-सम्पदा अर्जित करने की कला में हमें माहिर बनाता है। हमें सरसों की खेती करना सिखाता है।

लौकिक प्रत्यक्ष लाभ जो मिलेगा वह है:-
1- सद्बुद्धि, सद्ज्ञान
2- स्वास्थ्य में सुधार, तन व मन स्वस्थ
3- उत्साह व स्फूर्ति
4- सहयोग एवं मित्रता की अभिवृद्धि
5- अभावों की पूर्ति , साहस एवं तृप्ति

क्रमशः..
Reference - 📚गायत्री की पँचकोशी साधना एवं उपलब्धियां, पेज 1.7

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

होली का वास्तविक स्वरुप

*होली का वास्तविक स्वरुप*

इस पर्व का प्राचीनतम नाम वासन्ती नव सस्येष्टि है अर्थात् बसन्त ऋतु के नये अनाजों से किया हुआ यज्ञ, परन्तु होली होलक का अपभ्रंश है।

यथा–
*तृणाग्निं भ्रष्टार्थ पक्वशमी धान्य होलक: (शब्द कल्पद्रुम कोष) अर्धपक्वशमी धान्यैस्तृण भ्रष्टैश्च होलक: होलकोऽल्पानिलो मेद: कफ दोष श्रमापह।*(भाव प्रकाश)

*अर्थात्*―तिनके की अग्नि में भुने हुए (अधपके) शमो-धान्य (फली वाले अन्न) को होलक कहते हैं। यह होलक वात-पित्त-कफ तथा श्रम के दोषों का शमन करता है।

*(ब) होलिका*―किसी भी अनाज के ऊपरी पर्त को होलिका कहते हैं-जैसे-चने का पट पर (पर्त) मटर का पट पर (पर्त), गेहूँ, जौ का गिद्दी से ऊपर वाला पर्त। इसी प्रकार चना, मटर, गेहूँ, जौ की गिदी को प्रह्लाद कहते हैं। होलिका को माता इसलिए कहते है कि वह चनादि का निर्माण करती *(माता निर्माता भवति)* यदि यह पर्त पर (होलिका) न हो तो चना, मटर रुपी प्रह्लाद का जन्म नहीं हो सकता। जब चना, मटर, गेहूँ व जौ भुनते हैं तो वह पट पर या गेहूँ, जौ की ऊपरी खोल पहले जलता है, इस प्रकार प्रह्लाद बच जाता है। उस समय प्रसन्नता से जय घोष करते हैं कि होलिका माता की जय अर्थात् होलिका रुपी पट पर (पर्त) ने अपने को देकर प्रह्लाद (चना-मटर) को बचा लिया।

*(स)* अधजले अन्न को होलक कहते हैं। इसी कारण इस पर्व का नाम *होलिकोत्सव* है और बसन्त ऋतुओं में नये अन्न से यज्ञ (येष्ट) करते हैं। इसलिए इस पर्व का नाम *वासन्ती नव सस्येष्टि* है। यथा―वासन्तो=वसन्त ऋतु। नव=नये। येष्टि=यज्ञ। इसका दूसरा नाम *नव सम्वतसर* है। मानव सृष्टि के आदि से आर्यों की यह परम्परा रही है कि वह नवान्न को सर्वप्रथम अग्निदेव पितरों को समर्पित करते थे। तत्पश्चात् स्वयं भोग करते थे। हमारा कृषि वर्ग दो भागों में बँटा है―(1) वैशाखी, (2) कार्तिकी। इसी को क्रमश: वासन्ती और शारदीय एवं रबी और खरीफ की फसल कहते हैं। फाल्गुन पूर्णमासी वासन्ती फसल का आरम्भ है। अब तक चना, मटर, अरहर व जौ आदि अनेक नवान्न पक चुके होते हैं। अत: परम्परानुसार पितरों देवों को समर्पित करें, कैसे सम्भव है। तो कहा गया है–
*अग्निवै देवानाम मुखं* अर्थात् अग्नि देवों–पितरों का मुख है जो अन्नादि शाकल्यादि आग में डाला जायेगा। वह सूक्ष्म होकर पितरों देवों को प्राप्त होगा।

हमारे यहाँ आर्यों में चातुर्य्यमास यज्ञ की परम्परा है। वेदज्ञों ने चातुर्य्यमास यज्ञ को वर्ष में तीन समय निश्चित किये हैं―(1) आषाढ़ मास, (2) कार्तिक मास (दीपावली) (3) फाल्गुन मास (होली) यथा *फाल्गुन्या पौर्णामास्यां चातुर्मास्यानि प्रयुञ्जीत मुखं वा एतत सम्वत् सरस्य यत् फाल्गुनी पौर्णमासी आषाढ़ी पौर्णमासी* अर्थात् फाल्गुनी पौर्णमासी, आषाढ़ी पौर्णमासी और कार्तिकी पौर्णमासी को जो यज्ञ किये जाते हैं वे चातुर्यमास कहे जाते हैं आग्रहाण या नव संस्येष्टि।

*समीक्षा*―आप प्रतिवर्ष होली जलाते हो। उसमें आखत डालते हो जो आखत हैं–वे अक्षत का अपभ्रंश रुप हैं, अक्षत चावलों को कहते हैं और अवधि भाषा में आखत को आहुति कहते हैं। कुछ भी हो चाहे आहुति हो, चाहे चावल हों, यह सब यज्ञ की प्रक्रिया है। आप जो परिक्रमा देते हैं यह भी यज्ञ की प्रक्रिया है। क्योंकि आहुति या परिक्रमा सब यज्ञ की प्रक्रिया है, सब यज्ञ में ही होती है। आपकी इस प्रक्रिया से सिद्ध हुआ कि यहाँ पर प्रतिवर्ष सामूहिक यज्ञ की परम्परा रही होगी इस प्रकार चारों वर्ण परस्पर मिलकर इस होली रुपी विशाल यज्ञ को सम्पन्न करते थे। आप जो गुलरियाँ बनाकर अपने-अपने घरों में होली से अग्नि लेकर उन्हें जलाते हो। यह प्रक्रिया छोटे-छोटे हवनों की है। सामूहिक बड़े यज्ञ से अग्नि ले जाकर अपने-अपने घरों में हवन करते थे। बाहरी वायु शुद्धि के लिए विशाल सामूहिक यज्ञ होते थे और घर की वायु शुद्धि के लिए छोटे-छोटे हवन करते थे दूसरा कारण यह भी था।

*ऋतु सन्धिषु रोगा जायन्ते*―अर्थात् ऋतुओं के मिलने पर रोग उत्पन्न होते हैं, उनके निवारण के लिए यह यज्ञ किये जाते थे। यह होली हेमन्त और बसन्त ऋतु का योग है। रोग निवारण के लिए यज्ञ ही सर्वोत्तम साधन है। अब होली प्राचीनतम वैदिक परम्परा के आधार पर समझ गये होंगे कि होली नवान्न वर्ष का प्रतीक है।

*पौराणिक मत में कथा इस प्रकार है―होलिका हिरण्यकश्यपु नाम के राक्षस की बहिन थी। उसे यह वरदान था कि वह आग में नहीं जलेगी। हिरण्यकश्यपु का प्रह्लाद नाम का आस्तिक पुत्र विष्णु की पूजा करता था। वह उसको कहता था कि तू विष्णु को न पूजकर मेरी पूजा किया कर। जब वह नहीं माना तो हिरण्यकश्यपु ने होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को आग में लेकर बैठे। वह प्रह्लाद को आग में गोद में लेकर बैठ गई, होलिका जल गई और प्रह्लाद बच गया। होलिका की स्मृति में होली का त्यौहार मनाया जाता है l

होली उत्सव यज्ञ का प्रतीक है। स्वयं से पहले जड़ और चेतन देवों को आहुति देने का पर्व हैं।  आईये इसके वास्तविक स्वरुप को समझ कर इस सांस्कृतिक त्योहार को बनाये। होलिका दहन रूपी यज्ञ में यज्ञ परम्परा का पालन करते हुए शुद्ध सामग्री, तिल, मुंग, जड़ी बूटी आदि का प्रयोग कीजिये।

आप सभी को होली उत्सव की हार्दिक शुभकामनायें।

अन्न श्रोत पृथ्वी पूजन, 💫जल स्त्रोत कुँआ पूजन 💫फ़ल श्रोत पूजन व वृक्षारोपण

*कुछ भूले बिसरे पूजन जो प्राचीन समय में विवाह संस्कार का अंग थे, अब उनकी चर्चा तक लोग भूल गए हैं। शादी के कार्ड में उसका जिक्र भी नहीं होता, दादा-दादी से पूँछे तो पता चलेगा इनकी अनिवार्यता*

💫अन्न श्रोत पृथ्वी पूजन,
💫जल स्त्रोत कुँआ पूजन
💫फ़ल श्रोत पूजन व वृक्षारोपण

यह सँस्कार विवाह से दो दिन पूर्व कराया जाता है। खेत की मिट्टी का पूजन अन्न श्रोत के पूजन हेतु,  कुँआ का पूजन जल स्रोत पूजन हेतु, एक नए फलदार वृक्ष का रोपण और उसका पूजन फल स्त्रोत के रूप में किया जाता है।

वर-कन्या के घर मे सुख - समृद्धि, धन धान्य व फलने फूलने का आशीर्वाद मिलता है।

इसके मन्त्र इस प्रकार हैं:-

पृथ्वी पूजन मन्त्र :-

*पृथ्वी गायत्री*–ॐ पृथ्वीदेव्यै विद्महे सहस्त्रमूत्यै धीमहि। तन्नो पृथ्वी प्रचोदयात्।

या देवी सर्वभूतेषु पृथ्वी रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

कुँआ पूजन मन्त्र :-

*वरुण गायत्री*–ॐ जलबिम्वाय विद्महे नीलपुरुषाय धीमहि। तन्नो वरुण: प्रचोदयात्।

या देवी सर्वभूतेषु जल स्त्रोत रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

वृक्षारोपण व पूजन मन्त्र

ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योन: प्रचोदयात

या देवी सर्वभूतेषु प्रकृति रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 10 March 2020

प्रश्न - *दी, तत्वदृष्टि कैसे विकसित करें? मार्गदर्शन करें*

प्रश्न - *दी, तत्वदृष्टि कैसे विकसित करें? मार्गदर्शन करें*

उत्तर - आत्मीय भाई, सात दिन तत्व दृष्टि साधना कीजिये। निर्देशित कल्पना के आधार ध्यान कीजिये और गहराई से इसी पर चिंतन करके अपना दृष्टिकोण/नज़रिया उस दिन का तय कीजिये। एक तरह का निर्देशित विचारो का चश्मा लगाइए।

रंगीन चश्मे से दुनियाँ रंगीन दिखती है, जैसा नज़रिया तय करेंगे वैसे नज़ारे दिखने लगेंगे।

*नूतन दृष्टि-योग दृष्टि-तत्व दृष्टि साधना*

जैसा नज़रिया वैसे नज़ारे, जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि, तत्वदृष्टि के लिए दृष्टिकोण और विचारों के सोचने के स्तर पर निर्भर करेगी। उथले विचार व चिंतन होंगे तो उथले दृश्य होंगे। गहन विचार व चिंतन होंगे तो गहराई से विवेचन करते दृश्य होंगे।

चिंता न करें कोई व्रत वगैरह नहीं रहना है। केवल 7 दिन लगातार निर्देशित दृष्टि साधना करनी है वो भी भावात्मक और विचारों से युक्त। रविवार से रविवार तक यह साधना चलेगी। आठवें दिन प्रथम दिन वाला ध्यान केवल दोपहर 12 बजे तक दोहराना होगा।

बिस्तर से उठते ही नेत्र को सबसे पहले अपने हाथ पर केंद्रित कीजिये। भगवान को 5 चीज़ों के लिए धन्यवाद दीजिये।  फिंर धरती माता को प्रणाम करके ...

जिस प्रकार भवन छोटा हो या बड़ा वह तत्वदृष्टि से देखो तो पता चलता है ईंट, सीमेंट, बालू, जल और लोहे की सरिया इन पाँच से निर्मित है। इसी तरह तत्वदृष्टि से देखो तो यह शरीर कोशिकाओं ( Cells) से बना है। प्रत्येक कोशिका पँच तत्व से बनी है जो क्रमशः धरती, आकाश, जल, वायु और अग्नि से बना है। तत्व दृष्टि में हम भवन किससे बना उसे गहरे विचारों की तत्वदृष्टि से देखेंगे, इसी तरह प्रत्येक जीव जिससे बना है उस तत्वदृष्टि से उसे व स्वयं को देखेंगे।

*प्रथम दिन* 👉🏼ईश्वर का पृथ्वी रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिए और मिट्टी के कण  को दोनों भौं के बीच  बिंदी/तिलक जैसा ध्यान/कल्पना कीजिये। सुबह से लेकर शाम तक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सबमें वही मिट्टी तत्व की कल्पना दोनों भौं के बीच मष्तिष्क में कीजिये। परमात्मा के मिट्टी तत्व का आभास/कल्पना वृक्षों में पत्तो के बीच मे कीजिये। स्वयं को मिट्टी से बना पुतला महसूस कीजिये, स्वयं के माटी के शरीर का ध्यान कीजिए।

*द्वितीय दिन* 👉🏼 ईश्वर का समुद्र रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिए और उस परमात्मा रूपी समुद्र की एक बूंद जल(आत्मा) का दोनों भौं के बीच जल की बूँद की बिंदी/तिलक जैसा ध्यान/कल्पना कीजिये। सुबह से लेकर शाम तक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सबमें वही जल की बूँद की कल्पना दोनों भौं के बीच मष्तिष्क में कीजिये। परमात्मा की बूँद का आभास/कल्पना वृक्षों में पत्तो के बीच मे कीजिये।स्वयं को जल सा तरल महसूस कीजिये, स्वयं के जल शरीर का ध्यान कीजिए।

*तृतीय दिन* 👉🏼 ईश्वर का हवा रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिए और उस हवा के प्रवाह को दोनों भौं के बीच प्रकाश की बिंदी/तिलक जैसा ध्यान/कल्पना कीजिये। सुबह से लेकर शाम तक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सबमें वही हवा(आत्मा) की कल्पना दोनों भौं के बीच मष्तिष्क में कीजिये। परमात्मा का हवा के प्रवाह का आभास/कल्पना वृक्षों में पत्तो के बीच मे कीजिये। स्वयं को वायु सा हल्का व वेगवान महसूस कीजिये, स्वयं के वायु शरीर का ध्यान कीजिए।

*चतुर्थ दिन* 👉🏼 ईश्वर का अग्नि रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिए और उस परमात्मा रूपी अग्नि की एक ज्योति(आत्मा) का दोनों भौं के बीच अग्निवत बिंदी/तिलक जैसा ध्यान/कल्पना कीजिये। सुबह से लेकर शाम तक प्रत्येक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सबमें वही अग्निवत ज्योति की कल्पना दोनों भौं के बीच मष्तिष्क में कीजिये। परमात्मा की अग्निवत कण का आभास/कल्पना वृक्षों में पत्तो के बीच मे कीजिये। स्वयं को अग्नि सा प्रकाशित महसूस कीजिये, स्वयं के अग्नि रूपी प्रकाश शरीर का ध्यान कीजिए।

*पांचवा दिन* 👉🏼 ईश्वर का आकाश रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिये और अपने मष्तिष्क के भीतर झाँकने का प्रयास कीजिये, विचारो का प्रवाह आकाश तत्व है एसा ध्यान/कल्पना कीजिये। सुबह से लेकर शाम तक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सबके बीच आकाश तत्व को महसूस कीजिये। स्वयं को आकाश सा महसूस कीजिये, स्वयं के आकाश शरीर का ध्यान कीजिए।

*छठा दिन* 👉🏼 ईश्वर का तेजस्वी किरणों के रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिए, अपनी आँखों को देखिए और दोनों भौं के बीच तृतीय नेत्र के खुलने का ध्यान/कल्पना कीजिये। स्वयं के चेहरे को देखिए, फ़िर बिना मांस के हड्डियों की खोपड़ी के स्ट्रक्चर को देखिए। फ़िर उन हड्डियों को कैल्शियम के कणों से बना महसूस कीजिये। कल्पना कीजिये कि आपका तृतीय नेत्र X-ray मशीन की तरह व्यवहार कर रहा है और भीतर के हड्डियों के ढाँचे दिखा रहा है। सबके भीतर के कंकाल देखिये।
सुबह से लेकर शाम तक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सबको X-ray की दृष्टि से देखिए। आज के दिन आपको किसी के वस्त्र, आभूषण, सुंदरता कुछ नहीं देख पाएंगे। सर्वत्र चलते फिरते कंकाल आपके अंदर वैराग्य जगायेंगे।

*सातवां दिन* 👉🏼 ईश्वर को एक प्रकाशित कण/परमाणु(एटम) के रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिए। अरे यह क्या जिस परमाणु से मैं बना हूँ उसी से यह दर्पण बना है। सुबह से लेकर शाम तक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सभी उसी एटम से बने हैं। सजीव तो सजीव और सभी निर्जीव भी तो उसी एटम से बनी है। हम सब तो एक ही तत्व हैं। सबको अणुवत देखिये।

🙏🏻 परिणामस्वरूप, सात दिनों में आपको यह अनुभूति होगी कि कण कण में परमात्मा है। हम सब एक हैं। इन 7 दिनों तक चिंता, वासना और कामना समाधि ले लेंगी, वैराग्य जग जाएगा और 7 दिन तक तत्व दृष्टि से जगत देखने का आनन्द मिलेगा। जितना विश्वास पूर्वक गहन गहराई से विचार पूर्वक प्रयास करेंगे, उतनी शीघ्रता से सफ़लता मिलेगी।🙏🏻

सकल पदारथ हैं जग माहीं,
करम हीन नर पावत नाहिं।

आध्यात्मिक तत्वदृष्टि के उपाय उपलब्ध हैं, वही तत्वदृष्टि विकसित करेगा जो इसे विकसित करने का कर्म करेगा।

संसार हो या अध्यात्म सर्वत्र जिस क्षेत्र में पुरुषार्थ करेंगे सफलता निश्चित: मिलेगी।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday 9 March 2020

होली - सामूहिक रँग चिकित्सा विज्ञान

*होली - सामूहिक रँग चिकित्सा विज्ञान*
🧊💦🧊💦🧊💦🧊💦🧊
ऋषिगण मनुष्य जाति का उत्थान व समग्र स्वास्थ्य को विशेष महत्त्व देते थे। बदलते मौसम रोग उतपन्न करने वाले विषाणुओं और रोगाणुओं को बहुतायत उतपन्न करते हैं। ऋषिगण ने  ऐसे त्यौहार बनाये जो आरोग्य वर्द्धक हों। सामूहिक तौर पर होलिका दहन के शुभ अवसर पर होली यज्ञ के माध्यम से हवा में व्याप्त रोगाणुओं और विषाणुओं को नष्ट किया, दूसरे दिन सामूहिक कलर थैरेपी से शरीर, मन और आत्मोल्लास का प्रयोग रँग उत्सव के रूप में किया।

कलर थेरेपी वैकल्पिक चिकित्सा का एक रूप है, जिसमें शरीर, मन और आत्मा को स्वस्थ करने के लिए प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता है। रंगों द्वारा स्वास्थ्य विकारों की वजह से हमारे भावनात्मक, शारीरिक और मानसिक स्तर पर हुए ऊर्जा असंतुलन को बहाल करने काम किया जाता है। हम रोजाना विभिन्न प्रकार के बहुत सारे रंग देखते हैं। प्रत्येक रंग हमारे मन पर अलग ढंग का प्रभाव डालता है, जैसे- खुशी, उदासी , अवसाद , गर्मी , शांति , क्रोध और जुनून आदि।

पल-भर ठहरकर सोचिए और बताइये कि पृथ्वी पर जीवन के सभी रूपों के लिए ऊर्जा का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत क्या है? जी हां – यह सूर्य का प्रकाश है, जो कि अलग-अलग तरंग-दैर्ध्यों से निर्मित है। सूर्य के प्रकाश का हम पर चिकित्सकीय प्रभाव पड़ता है, खासकर सर्दियों के दौरान हम देख सकते हैं कि धूप में हमारे शरीर की प्रत्येक कोशिका पर कितना अच्छा प्रभाव पड़ता है। दृश्य प्रकाश के पूरे स्पेक्ट्रम में लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला, आसमानी और बैंगनी यानी सात प्रकार के रंगों का अलग-अलग तरंग दैर्ध्य होता है। हरेक रंग की अपनी अलग कंपन-आवृत्ति है और यह हमारे शरीर के अलग-अलग अंगों के साथ विशेष ढंग से जुड़ा होने के कारण उन सब पर विभिन्न संयोजनों में मिलकर विशेष प्रकार से प्रभाव भी डालता है।

आयुर्वेद के अनुसार मानव शरीर के चारों ओर एक प्रकार का प्रभामंडल होता है, जो वास्तव में शरीर के अंदर होने वाली जैव रासायनिक प्रतिक्रियाओं के परिणामस्वरूप बनाया गया एक चुंबकीय क्षेत्र है। रंगों में एक प्रकार की कंपन ऊर्जा पाई जाती है, जो स्वास्थ्य संबंधी विकारों के विभिन्न प्रकार के इलाज हेतु इस चुंबकीय क्षेत्र के साथ अंतक्रिया करती है। यह कंपन ऊर्ज़ा भीतर के ऊर्जा-संचलन को बहाल करने के लिए जैव रासायनिक प्रतिक्रियाएँ करती है।

कलर थेरेपी आजकल भावनात्मक और शारीरिक रोगों के उपचार तथा मानसिक रोगियों को विशेष रूप से ठीक करने के लिए इलाज का एक लोकप्रिय विकल्प बनता जा रहा है।

अपने विशिष्ट गुणों की वजह से प्रत्येक रंग का हमारे शरीर में अलग शारीरिक असर पड़ता है , उदाहरण के लिए, हरे रंग में एक संतुलनकारी प्रभाव पाया जाता है, इसलिए जब इसे थाइमस ग्रंथि पर टारगेट किया जाता है तो यह टी-सेल उत्पादन को विनियमित करने में मदद करता है पर जब इसे ट्यूमरों पर टारगेट करते हैं तो इसका प्रतिकूल प्रभाव लक्षित होता है।

नारंगी रंग से जहाँ पेशियों में सूजन बढ़ जाती है, जबकि बैंगनी से मांसपेशियों के दर्द में आराम मिलता है। जाहिर है, रंगों के विभिन्न प्रकार के संयोजनों का भी रोगों के इलाज में उपयोग किया जाता है, उदाहरण के लिए हरे, नीले और नारंगी का संयोजन गठिया के इलाज हेतु प्रयोग किया जाता है, हरे और पीले रंग का संयोजन मधुमेह के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है, बैंगनी और नीले रंग का संयोजन माइग्रेन के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है, लाल, नीला और हरा महिलाओं में बांझपन के लिए उपयोगी है तथा आसमानी और हरा कैंसर के इलाज के लिए है।

इस प्रकार आप देख सकते हैं कि हमारे ऊपर रंगों का विशिष्ट प्रभाव किस तरह काम करता है? वस्तुत: प्रत्येक व्यक्ति रंगों के प्रति अलग तरह की प्रतिक्रिया जाहिर करता है। रोग कुछ और नहीं, सिर्फ़ हमारे शरीर में कहीं पैदा हो चुकी अस्थायी रुकावट या जीवनी-शक्ति की अव्यवस्था है। रंग मानव शरीर में जैव रासायनिक और हार्मोनल प्रक्रियाओं को सक्रिय करने के लिए उत्प्रेरक का कार्य करते हैं, जिससे हमारा स्वास्थ्य पुन: अपनी उत्तम कार्यावस्था में आने लगता है। बीमारी की हालत में जब हमारे शरीर की कोशिकाएँ कमजोर हो जाती हैं तो एक अनुभवी रंग-चिकित्सक द्वारा रंगों का इस तरह प्रयोग किया जाता है कि मद्धिम ढंग से काम कर रही कोशिकाओं को ऊर्जा की एक अतिरिक्त खुराक मिलती है। रंग चिकित्सा कला और विज्ञान दोनों एक साथ है।

सभी तो चिकित्सा थेरेपी के लिए स्पेशलिस्ट के पास जाते नहीं, इसलिए वर्ष में एक बार होली के माध्यम से सभी रंगों को सामूहिक तौर पर रँग बिरंगे तरीके से होली खेलकर मनुष्य रँग चिकित्सा का लाभ लेता है।

यदि सनातन धर्म के त्योहारों का मर्म समझ के उन्हें तिथि अनुसार वैदिक परम्परा से मना लें, वैदिक परम्परा अनुसार खान-पान, रहन-सहन, वेशभूषा अपना लें तो रोगमुक्त जीवन का सार समझ आ जायेगा, आरोग्यता का लाभ सदा मिलता रहेगा।

आप और आपके समस्त परिवार जन को होली की शुभकामनाएं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

सोचा था आज कोई ज्ञान नहीं बांटूंगी होली में, क्योंकि होली में सभी मस्ती में होंगे, ज्ञान ग्रहण करने की स्थिति में न होंगे। मग़र क्या करें, आदत से मजबूर हैं, बेटे को होली का महत्त्व व ऋषियों का गहन विज्ञान समझा रही थी। सोचा लिख कर भेज देती हूँ, कोई एक भी पढ़ ले तो लिखना सफल हो जाएगा😂😂😂😂🌹🌹🌹🌹🌹😇😇😇😇😇

*🌸🌈🙏*बड़े भाई बहनों को चरण स्पर्श*🙏
 *छोटे भाई बहनों को ढेर सारा प्यार व आशीर्वाद🙏आप सभी को होलीपर्व की ढेरसारी शुभमंगल कामनाएं...🌈🌸*

Saturday 7 March 2020

महिलादिवस की बधाई

*महिलादिवस की बधाई*
🌹💫🌹💫🌹💫🌹

सैकड़ो "फूल" चाहिए,
एक माला बनाने के लिए,
हज़ारों "दीपक" चाहिए,
एक "दीपावली" मनाने के लिए,
अरबों "बूँद" चाहिए,
एक "समुद्र" बनाने के लिए,

परन्तु...

एक "सुसंस्कारी स्त्री" चाहिए,
घर परिवार को "स्वर्ग" बनने के लिए,
एक "कुसंस्कारी स्त्री" चाहिए,
घर परिवार को "नर्क" बनाने के लिए,

😇😇😇😇😇😇
💫🌹💫🌹💫🌹

सुसंस्कारी स्त्री "पारस"  की तरह "प्रेम" से भरी होती है, जिससे नि:स्वार्थ प्रेम करती है, उसके जीवन मे प्रेम भरती है, उसके प्रेम में ही बसती है। उसके जीवन मे अमृत भर देती है, प्राण संचार करती है।  घर को स्वर्ग सा सुंदर बना देती है।

🤢🤢🤢🤢🤢🤢🤢
🌑🌑🌑🌑🌑🌑🌑
कुसंस्कारी स्त्री भी कुसंस्कारी पुरुष की तरह पक्षपाती होती है, जिससे स्वार्थ सधता है केवल उसके लिए पारस होती है। केवल उसी के जीवन मे प्रेम भरती है। जिससे नफरत करती है उसके जीवन मे विष भर देती है। घर को नरक बना देती है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

महिला शशक्तिकरण कैसे होगा?

💫🤷‍♂️महिलदिवस की कोटिशः बधाई

*महिला शशक्तिकरण कैसे होगा?*
🌺💫🌺💫🌺💫🌺💫
जैसे..
लकड़ी को काटने में,
लोहे की कुल्हाड़ी में,
साथ लकड़ी ही देती है,
पेड़ को बढ़ाने में भी,
खुरपी कुदाली में भी,
साथ लकड़ी ही देती है।

ऐसे ही..
स्त्री की सबसे बड़ी मित्र स्त्री,
स्त्री की सबसे बड़ी दुश्मन भी स्त्री,
स्त्री के उत्थान का कारण स्त्री,
स्त्री के पतन का कारण भी स्त्री।

जन्मदात्री भी स्त्री,
पालनकर्ता भी स्त्री,
पति के साथ उत्थान में कारण भी,
सास व ननद रूपी स्त्री,
पति के साथ पतन का कारण भी,
सास व ननद रूपी स्त्री।

कहीं सास रूप में,
बहु को सताने देने वाली स्त्री,
कहीं बहु रूप में,
सास को सताने वाली स्त्री,
कहीं एक दूसरे को आगे बढ़ाने वाली ,
मित्रवत सहयोगी सास-बहू भी स्त्री।

पुरुष को स्त्री को सम्मान देना,
 सिखाने वाली भी स्त्री,
पुरूष से स्त्री का अपमान,
करवाने वाली भी स्त्री,
दहेज़ के लिए जलने वाली भी स्त्री,
दहेज के लिए जलाने वाली भी स्त्री।

स्त्री के उत्थान और सशक्तिकरण के लिए,
साथ निभाने वाली स्त्री,
स्त्रीत्व की रक्षा करने वाली,
स्वयं को सक्षम बनाने वाली स्त्री।

भ्रूण हत्या को बढ़ावा देने वाली भी स्त्री,
भ्रूण हत्या कराने वाली भी स्त्री,
गर्भ में मरने वाली भी स्त्री,
डॉक्टर-नर्स रूप में,
इस कुकृत्य में साथ देने वाली भी स्त्री।

जवान पत्नी रूप में अलग रहने की,
 ज़िद करने वाली भी स्त्री,
वृद्ध सास रूप में सँयुक्त परिवार में,
 रहने की जिद करने वाली भी स्त्री।

"अबला" बन दुःख सहती स्त्री,
"बला" बन दुःख देती स्त्री,
"सबला" बन सबका दुःख हरती स्त्री,
*संगिनी" बन जीवन संवारती स्त्री।

कहीं सिंह सी दहाड़ती स्त्री,
कहीं दुर्गा बन दुश्मनों को ललकारती स्त्री,
कहीं जीवन का रोना रोती स्त्री,
कहीं भागकर छुपने का स्थान ढूंढती स्त्री।

समस्या स्त्री बन पैदा होने में नहीं है,
समस्या सही परवरिश न मिलने की है,
जुझारूपन व बुद्धिकुशलता सिखाने की है,
जरूरत बचपन से ही दुर्गा भवानी गढ़ने की है।

आज महिला दिवस पर,
प्रत्येक माता पिता और समाज शुभ सङ्कल्प ले,
बेटी हो या बेटा,
दोनों को आगे बढ़ने का समान अवसर दें।

बेटा हो या बेटी,
दोनों को शुभ सँस्कार दें,
शस्त्र हो या शास्त्र,
दोनों को इन दोनों का समान ज्ञान दें।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
महिला शशक्तिकरण में, स्त्रियों को स्वयं जागरूक होकर एकजुट होना होगा, स्वयं को सक्षम-शशक्त बनाने के साथ अन्य स्त्रियों को भी सक्षम शशक्त बनाना होगा। ख़र्चीली शादी-दहेज़ प्रथा, गिफ़्टपैक की तरह सजकर होने वाली विदाई इत्यादि पर एकजुट हो रोक लगानी होगी। लड़का हो या लड़की दोनों सन्तानों को समान आगे बढ़ने का और पढ़ने का अधिकार और अवसर दें। दहेज़ लोभी और भ्रूण हत्या करवाने वाले आरोपियों का सामाजिक बहिष्कार करें।

स्त्री पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं विरोधी नहीं, पिता-भाई रूप में पुत्री-बहन का दर्द समझने वाला ससुर-पति रूप में दूसरी स्त्री का कष्ट क्यूँ नहीं समझता। अपनी बहन की इज्ज़त की रक्षा करने वाले हाथ दूसरे की बहन को छेड़ने के लिए कैसे उठ जाता है? इसका प्रमुख कारण है- खोखले दिखावे का प्रभाव और अच्छे संस्कारों का अभाव।

यूँ ही चलता रहा भ्रूणहत्या का घिनौना कर्म, तो शीघ्र ही सृष्टि स्वयंमेव समाप्त हो जाएगी, एक स्त्री से विवाह को हज़ारो पुरुषों के बीच तलवारें खींच जाएंगी, महाभारत हो जाएगा। जब बेटी का जन्म होगा ही नहीं, तो बेटे के संसार को बसाने के लिए बहु लाओगे कहाँ से?

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Thursday 5 March 2020

होली का त्योहार भयमुक्त मनाओ

*होली का त्योहार भयमुक्त मनाओ*
*कोरोना वायरस से बचो बचाओ*
✨✨✨✨✨✨✨✨

होलिका यज्ञ में औषधियाँ होमना,
सूर्य गायत्रीमंत्र समूह में बोलना,
देशी गाय का घी भी साथ होमना,
होलिका यज्ञ धूम्र से रोगाणुओं-विषाणुओं को मारना।

कुमकुम हल्दी चन्दन से होली खेलना,
यज्ञ भष्म भी माथे पर थोड़ी मल लेना,
रँग बिरंगी पुष्प पंखुड़ियों से,
जी भर के घर में होली खेलना।

चाइनीज़ अप्राकृतिक रंगों को,
घर में लाने की ग़लती मत करना,
अंजाने लोगों के समूह में,
इस बार होली मत खेलना।

थोड़ी मेहनत रसोईघर में भी करना,
मिष्ठान्न व भोजन घर में ही बनाना,
घर की बनी मिठाईयां खाना व खिलाना,
इस बार होली स्वास्थ्यकर ढंग से मनाना।

होली के रंगों से जीवन में खुशियाँ भरना,
स्वास्थ्य व स्वच्छता का पूरा ध्यान रखना,
होली के त्यौहार को जी भर के मनाना,
वैदिक पारंपरिक विधियों का पालन करना।

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🙏🏻 *आप और आपके परिवार को स्वास्थ्यकर वैदिक पारंपरिक होली पर्व की ढेर सारी बधाई। यह पर्व खुशियों के रँग आपके जीवन मे भरे यही शुभकामनाएं है*।🙏🏻

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

विश्व गुरु बने भारत माता

*विश्व गुरु बने भारत माता*
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भाग्य भरोसे जीना,
कभी सनातन धर्म नहीं सिखाता है,
गीता हो या रामायण,
कर्मयोग का ही पाठ पढ़ाता है।

हमारे देवी देवताओं को देखो,
सभी अस्त्र व शस्त्रों से सुसज्जित हैं,
दुष्टों-असुरों के सर्वनाश की गाथा,
प्रत्येक देवी- देवता के ग्रन्थों में वर्णित है।

कहीं भी सनातन धर्म में मुझे,
स्त्री पुरुष का लिंग आधारित भेद नहीं मिलता,
देवियों का अस्तित्व देवों से,
किसी भी तरह मुझे कम नहीं दिखता।

त्रिदेव - ब्रह्मा विष्णु महेश पूजनीय हैं तो,
त्रिदेवियाँ - सरस्वती लक्ष्मी दुर्गा भी समान पूजनीय है,
सब एक दूसरे को देते सम्मान,
सभी का जीवन दर्शन वंदनीय है।

फ़िर सोचो हमारे धर्म में,
घूँघट प्रथा कब और कैसे आया,
स्त्रियों की शिक्षा-दीक्षा,
किसने कब और क्यों रुकवाया?

कायरता व भगवान भरोसे जीना,
यह अज्ञानता का पाठ किसने पढ़ाया,
जिसका धर्मग्रन्थ गीता,
युद्ध के मैदान में लिखा हो,
उसे घर बैठ के अकर्मण्यता में,
किस्मत पर रोना किसने सिखाया?

जन्मजात जाति पाति ऊंच नीच का,
वेदों में तो कहीं वर्णन नहीं आया है,
फिर कर्म व्यवस्था पर आधारित वर्ण व्यवस्था को,
जन्म आधारित जाति व्यवस्था,
किसने कब और क्यों बनाया?

प्राचीन वीरों की गौरवगाथा को हटाकर,
भारत मे आये लुटेरों को महान किसने बताया?
हमारे बच्चों के इतिहास की पुस्तकों में,
लुटेरे कातिलों की वंशावली ही क्यों पढ़ाया?

भारतीय संस्कृति की मूल्यपरक शिक्षा को,
विद्यालयों में प्रवेश क्यों नहीं दिया?
देश की आज़ादी के बाद भी,
मानसिक मजबूती और अक्षुण्य स्वास्थ्य हेतु,
विद्यालयों में जप-तप, ध्यान-योग अनिवार्य क्यों न किया?

चलो अब ऐतिहासिक भूल सुधारें,
पुनः भारतीय शिक्षण पाठ्यक्रम हेतु विचारें,
भारतीय शूरवीर शेरों के विद्यालयों से,
चलो गीदड़ गुलाम बनने का पाठ्यक्रम हटा दें।

भारतीय संस्कृति मूल्य परक वेद व गीता के ज्ञान को,
पुनः विद्यालयों के पाठ्यक्रम में प्रवेश करवाये,
प्राचीन ज्ञान-विज्ञान को,
युगानुकूल बनाकर विद्यालयों में पढ़ाएं।

जन जन को योग्य व ज्ञानी बनाएं,
सूचना प्रद्योगिकी में,
चलो दुनियाँ को लोहा मनवाएँ,
ज्ञान - विज्ञान के समस्त क्षेत्रों में,
भारत का झण्डा फहराएं,
भारतीय शिक्षा से पुनः भारत माँ को,
विश्वगुरु पद पर बिठायें,
विश्व व्यापार में उन्नत बनकर,
पुनः चलो सोने की चिड़िया कहलाये।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 4 March 2020

गुरुवर तेरी कृपा से, जीवन आसान हो गया है।

*गुरुवर तेरी कृपा से, जीवन आसान हो गया है।*

हे सद्गुरु! तेरी शरण में आकर,
बहुत कुछ बदल गया है,
क्रोधित लोगों के बीच भी,
अब शांत रहना आ गया है।

हर कोई यहां बेवज़ह उबल रहा है,
हर कोई क्रोध में बिफर रहा है,
घर हो या बाहर,
जन जन रौब जमा रहा है।

पहले यह सब मुझे,
सम्हालना मुश्किल होता था,
अब यह सब सम्हालना,
बड़ा आसान हो गया है।

घर हो या ऑफिस,
सर्वत्र झगड़े का कारण,
समझ आ गया है,
सब सहयोग चाहते हैं,
स्वयं सहयोग करना नहीं चाहते,
दूसरा उन्हें समझे,
यह तो चाहते हैं,
लेक़िन ख़ुद दूसरों को समझना,
स्वयं नहीं चाहते हैं,
सब दूसरों को नियंत्रित करने की,
एक बड़ी होड़ में हैं,
दूसरों के रिमोट ढूँढने,
सभी व्यस्त हो रहे हैं,
स्वयं के अनियन्त्रित मन को,
नियंत्रित करना भूल गए हैं,
स्वयं के मन का रिमोट तो,
ढूँढ ही नहीं रहे हैं,
स्वयं की भावनाओं-विचारणाओं को,
ऑन-ऑफ कर नहीं पा रहे हैं,
दूसरों को दोष देने में,
व्यर्थ समय नष्ट कर रहे हैं,
महानता के व्यामोह में,
बेवज़ह जी रहे हैं,
स्वयं के कार्य को महान,
और दूसरों को गौड़ कह रहे हैं।

अब सद्गुरु तेरी कृपा से,
स्वयं के अस्तित्व से जुड़ गई हूँ,
सहयोग माँगना छोड़,
सहयोग करने में जुट गई हूँ,
स्वयं को समझाने की जगह,
दूसरों को समझने में जुट गई हूँ,
स्वयं के मन का रिमोट ढूँढ रही हूँ,
स्वयं की भावनाओं-विचारणाओं को,
ऑन-ऑफ करना सीख रही हूँ

स्वयं को परिस्थिति से अलग करके,
देखना आ गया है,
ऑफिस हो या घर या हो भीड़,
सबके बीच भी,
तुझ परमात्मा से जुड़ना आ गया है,
भीड़ में भी ध्यानस्थ,
अब होना आ गया है।

हे गुरुवर तेरी कृपा से,
जीवन आसान हो गया है,
स्वयं की उलझनों को,
सुलझाना आ गया है,
कौन कहाँ उलझा है,
यह देखना आ गया है।

अब दूसरों को सुधारने में,
अब नहीं जुटती हूँ,
अब स्वयं ही सुधरने में,
तन्मयता से ध्यान देती हूँ,
अब परिवर्तन का,
स्वयं हिस्सा बनती हूँ,
स्वयं को समाज की,
एक इकाई मानती हूँ।

जान गई हूँ कि
बिन भाव सम्वेदना के,
शब्द प्रभावहीन हैं,
बिन आत्मियता विस्तार के,
जीवन अर्थहीन है,
तुम तो प्रभु केवल,
प्रेम भरे निर्मल भावों से बंधते हो,
तुम तो भक्तों की,
चेतना में ही उतरते हो।

जान गई हूँ,
प्रभु तुम्हारी कृपा से,
भाव सम्वेदना की गंगोत्री का रहस्य,
कण कण में तुम्हें अनुभूत करने का रहस्य,
जन जन में भी प्रभु तुम ही तो हो,
भाव सम्वेदना से तुम उनमें उभरते हो।

बस भागीरथी बन कर,
अब तप कर रही हूँ,
स्वयं में भाव सम्वेदना के जागरण का,
हर सम्भव प्रयत्न कर रही हूँ।

पता नहीं मंज़िल,
कब तक मिलेगी,
मग़र यह परिवर्तन की राह भी,
बहुत हृदय में सुकून दे रही है।

तुम्हारी कृपा से सदगुरू,
मेरी तो दुनियाँ बदल गयी है,
तुमसे जुड़कर सद्गुरु,
एक पूर्णता मिल गयी है।

स्वर्ग की अब अलग से,
कोई इच्छा शेष नहीं है,
धरती पर ही स्वर्ग की,
दिव्यतम अनुभूति जो हो रही है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 3 March 2020

होली का त्यौहार क्यों मनाया जाता है?

*होली का त्यौहार क्यों मनाया जाता है?*

यह प्रश्न एक बच्चे ने अपनी माँ से पूँछा।

माँ इस त्यौहार के माध्यम से बच्चे को जीवनदर्शन व जीवन की कठिनाइयों से जूझने का संदेश दिया। माँ ने बताया...

वसन्त का मौसम चल रहा है, पेड़ो में देखो नई नई कोपलें आ रही है। पूरी प्रकृति आनन्द उत्सव मना रही है। यह देखो सरसों के पीले पीले फूलों से भरे खेत यह गुनगुना रहे हैं। गेहूं की बालियां मुस्कुरा रही हैं।

ऐसे में मनुष्य भी प्रकृति के साथ यह उत्सव मनाता है, जो फ़ाल्गुन पूर्णिमा से अष्टमी तक विविध रूपों में चलता है।

ऋषि जानते हैं कि ऋतु परिवर्तन रोगों को निमंत्रण देता है। इसलिए रोगों के रोगाणुओं को नष्ट करने के लिए ऐसे समय में होलिका दहन रूपी सामूहिक यज्ञ किया जाता है। इसमें औषधियों की हवन सामग्री, चन्दन, अगर, तगर, चिरायता, गिलोय, तेजपत्र, कपूर, गुग्गल, देशी गाय का घी इत्यादि जलाते हैं। सामूहिक रूप से लोग पूजन करते है और लोगों के श्वसन मार्ग से यह औषधियाँ भीतर प्रवेश करती हैं। भीतर के रोगाणु यह एंटीबायोटिक एंटीबैक्टीरियल धुंआ नष्ट करता है, साथ ही बाहर वातावरण में व्याप्त रोगाणुओं को भी नष्ट करता है। वायु प्रदूषण दूर करता है।

*नोट:*- यदि बिना औषधि के होलिका जलाई गई तो लाभ नहीं मिलता।

रंगों का त्योहार होली सभी के घर मे खुशियां लेकर आता है। यही वजह है कि इस त्योहार को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह त्यौहार दिन में सूर्य की रौशनी में खुले आसमान के नीचे प्राकृतिक रंगों से मनाया जाता था। जो कि सामूहिक कलर थैरेपी(रँग चिकित्सा) करता था। सभी खुशी को विकेन्द्रित साथ करते थे, इसलिए यह रोग व विषाद मिटाकर साइकोलॉजिकल ट्रीटमेंट मनःस्थिति को देता है। विभिन्न आमोद प्रमोद, गाने लोगों को खुशियों से भर देते हैं।

*नोट:-* नकली व अप्राकृतिक रँग नुकसानदेह हैं।

*जीवन दर्शन सिखाती होली की पौराणिक कथा*

जैसे खेल के मैदान में चुनौती न हो तो खेलने का मज़ा नहीं आता, वैसे ही मनुष्य के जीवन में चुनौती(समस्या) न हो तो उसका जीवन उबाऊ(बोरिंग) हो जाता है। होली की पौराणिक कहानी जिंदगी में बहादुरी से लड़ना सिखाती है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार राक्षस प्रवृत्ति वाला हिरण्यकश्यप अपने पुत्र प्रह्लाद की भगवान के प्रति भक्ति को देखकर बहुत परेशान था। उसने प्रह्लाद का ध्यान ईश्वर से हटाने के लिए हर संभव कोशिश की लेकिन उसे इसमें सफलता नहीं मिली। प्रह्लाद के गुरु नारद जी थे, उन्होंने जो सत्य ज्ञान व प्राणी मात्र के कल्याण की शिक्षा उसे दी थी। उस पर प्रह्लाद अडिग था। ईश्वर भक्ति उसकी अडिग थी। जिस राक्षस हिरण्यकश्यप से दुनियां डरती थी, उससे वह नहीं डरा। उसने कहा पिताजी मरना तो सबको एक दिन है, मैं कायरों की भांति जीना नहीं चाहता। मैं अपने गुरु के सिखाये सिद्धांत व निष्ठा से पीछे नहीं हटूंगा। आपको भी गरीब जनता को पीड़ा पहुंचाने नहीं दूंगा। आपको गलत नहीं करने दूंगा।

अंततः हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को जान से मारने का फैसला किया। उसने इसके लिए अपनी बहन होलिका से आग्रह किया। ऐसा कहा जाता है कि होलिका को भगवान भोलेनाथ ने यह वरदान में एक शाल दी थी जिसे पहनने से वो कभी भी आग में नहीं जलेगी।
इस वरदान को पाने वाली होलिका ने सोचा कि वह  प्रह्लाद को आग में जाएगी और खुद शाल ओढ़ लेगी। इस तरह प्रह्लाद की जलने से मृत्यु हो जाएगी जबकि शाल उसको सुरक्षित रखेगा।

हालांकि हुआ इसके ठीक विपरीत – ऐन मौके पर भगवान विष्णु ने हवा का ऐसा झोंका चलाया कि शाल उड़कर प्रहलाद के ऊपर आ गयी। भगवान ने प्रह्लाद की रक्षा की और होलिका का दहन हो गया। भगवान उसकी मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करता है। प्रह्लाद की सच्ची निष्ठा, भक्ति व लोककल्याण की भावना ने उसकी रक्षा की। धर्म उसकी रक्षा करता है जो धर्म पालन में अडिग रहता है।

इस तरह सभी ने अच्छाई पर बुराई की जीत के प्रतीक स्वरूप मिठाइयां बांटी और होली के त्योहार की शुरुआत हुई। होली के दिन गिले शिकवे भुलाकर सभी एक दुसरे को रंग लगाकर और मिठाई खिलाकर इस त्योहार को मनाते हैं। एक दूसरे को धर्म मार्ग के अनुसरण को प्रेरित करते हुए प्रतीक स्वरूप रँग लगाया जाता है, मिठाईयां खिलाई जाती है।

हिरण्यकश्यप ने कठोर तपस्या करके ब्रह्मा जी से वर मांगा था कि *वह  न दिन में मरे, न रात में मरे, न घर के अंदर मरे, न घर के बाहर मरे, न धरती पर मरे, न आकाश में मरे, न अस्त्र से मरे न ही प्राकृतिक आपदा से मरे, न देवता से मरे, न मनुष्य से मरे और न ही पशु मार सकें।* इसलिए स्वयं को अमर समझता था।

बेटा, जीवन मे ऐसी कई सारी समस्या तुम्हे दिखेंगी, लगेगा इसका तो कोई सॉल्यूशन हो ही नहीं सकता। तब यह कहानी याद रखना और पुनः विचार करना। जब समस्या सोचोगे तो समाधान नहीं दिखेगा। जब समाधान पर ध्यान केंद्रित करोगे तो समस्या नहीं बचेगी।

भगवान विष्णु को समाधान केंद्रित सोच के लिए जाना जाता है। उन्होंने इसका तोड़ निकाला। आधे नर और आधे सिंह रूप में प्रकट हुये। उसे अपने नाखूनों से अपनी गोद मे रखकर शाम के वक्त घर की देहरी में मारा। उसके अत्याचार का अंत किया। कभी भी हार न मानने का पर्व होली है। चुनौतियों से लड़ने का पर्व होली है। बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व होली है।


*यह त्योहार किसानों के रबी की फसल के तैयार होने के कारण भी मनाया जाता है।*

होली को मनाने का दूसरा मुख्य उद्देश्य केवल एक दूसरे से अच्छे संबंध बनाना और प्रेम और भाईचारे के साथ रहना है।

जीवन के अनेक रंगों से परिचित कराती होली गर्मी की शुरुआत में ही मनाई जाती है, जो जीवन के लिए नया आगाज लेकर आती है।

*होली का महत्व - उसकी प्रेरणा है*

जीवन की अनेक कठिनाइयों से लड़कर आगे बढ़ने में ही होली का महत्व है। अगर हम सही हैं तो ईश्वर हमारे साथ होते हैं और हमारी सहायता करते हैं। जैसा कि उन्होंने भक्त प्रह्लाद की मदद की थी। रंगों का उपयोग केवल खुशी के प्रतीक के रूप में किया जाता है। जीवन में कुछ ऐसा अच्छा कार्य जरूर करना जिससे किसी दूसरे जरूरतमंद के जीवन मे खुशियों के रँग भर जाएं।

खुशियां बांटोगे तो हज़ार गुना होकर वह तुम तक जरूर लौटेंगी। दूसरे के जीवन में समाजसेवा से खुशियों के रँग भरोगे तो तुम्हारे जीवन मे भी खुशियां अपना रँग बिखेरेंगी। अच्छे व्यवहार व आत्मियता की मिठास से दूसरों को मधुर व्यवहार दोगे तो तुम तक भी मिठास जरूर पहुंचेगी।

आओ चलो हम सब भी यह त्यौहार इसके पीछे के विज्ञान व जीवन दर्शन को समझते हुए होली के गीत गाते गुनगुनाते रँग उड़ाते मनाएँ।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday 2 March 2020

जीवन मे रंगों का त्यौहार होली की शुभकामनाएं

*जीवन मे रंगों का त्यौहार होली की शुभकामनाएं*

कैसे हुआ बुराई का नाश....
आओ जाने होली का इतिहास....

*आओ जाने होली का इतिहास*,
कैसे जन्मा नारायण भक्त प्रह्लाद?
कैसे हुआ दुष्ट हिरण्यकश्यप का नाश?
क्यूँ हुआ नरसिंह का अवतार?

कैसे हुआ बुराई का नाश....
आओ जाने होली का इतिहास....

राक्षस हिरण्यकश्यप ने किया तप,
मांगा एक अजब-गजब वरदान,
बोला दो ब्रह्मा जी ये वरदान,
न दिन में मरूं, न मरूं रात में,
न अस्त्र-शस्त्र से जाए मेरी जान,
न देवता मार सकें मुझे,
न ही पशु-पक्षी-नर ले सकें मेरी जान।
तप का तो मिलना ही था फल,
सो मिल गया उसे ये अनूठा वरदान।

कैसे हुआ बुराई का नाश....
आओ जाने होली का इतिहास....

ख़ुद को अमर समझ के हिरण्यकश्यप
करने लगा लोगों पर अत्याचार,
स्वयं को कर दिया ईश्वर घोषित,
और करने लगा सबको मनमाना शोषित,
जो न करता उसकी पूजा,
उसको देता वो भयंकर सज़ा,
जिंदा ऋषियों को जलाता,
अपनी बात जबरजस्ती मनवाता,
देवताओं को हरा के,
वो करने लगा तीनों लोकों पर राज,
मौत का सौदागर बनके,
ऋषियों से मांगने लगा यज्ञ का भाग।

कैसे हुआ बुराई का नाश....
आओ जाने होली का इतिहास....

हिरण्यकश्यप की पत्नी जब हुई गर्भवती,
तो क्रोधित इंद्र ने किया उसका अपहरण,
देवर्षि नारद ने उसे छुड़ाया,
और अपने आश्रम में लाया,
यहां हुआ प्रह्लाद की मां का,
श्रेष्ठ दिव्य गर्भ सँस्कार,
उत्तम भक्तिमय वातावरण में जन्मा,
श्रेष्ठ गुणों से सम्पन्न नारायण भक्त प्रह्लाद,
कुछ समय बाद माता सहित लौट,
जब वो पिता हिरण्यकश्यप के पास,
पिता ने पुत्र प्रह्लाद को गले लगाया,
और ख़ुद को सर्वशक्तिमान भगवान बताया।
लेकिन प्रह्लाद ने हिरण्यकश्यप पिता को,
भगवान मानने से इन्कार कर दिया,
श्री नारायण को हृदय से,
सर्वशक्तिमान भगवान सभा में घोषित कर दिया,
हिरण्यकश्यप ने इसे स्वयं का अपमान समझ के,
भक्त प्रह्लाद को तत्क्षण मृत्य दण्ड दे दिया।

कैसे हुआ बुराई का नाश....
आओ जाने होली का इतिहास....

होलिका हिरण्यकश्यप की थी बहन,
अग्नि में न जलने का उसे था वरदान प्राप्त,
प्रह्लाद को गोद मे लेकर अग्नि में बैठ गयी,
लेकिन भक्त प्रह्लाद की भक्ति जीत गयी,
और होलिका स्वयं जलकर ही ख़ाक हो गयी।

कैसे हुआ बुराई का नाश....
आओ जाने होली का इतिहास....

तब हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को ख़म्बे दिया बांध,
कत्ल करने को जैसे ही उसने तलवार लिया हाथ,
ख़म्बे को फाड़कर प्रकटे नरसिंह,
जो आधे थे नर और आधे थे सिंह,
हिरण्यकश्यप को उठाया,
और गोद मे लिटाया,
नाखूनों उस पर प्रहार किया,
और उसका अस्तित्व मिटा दिया।

कैसे हुआ बुराई का नाश....
आओ जाने होली का इतिहास....

अच्छाई की बुराई पर हुई जीत,
इस पर्व से सबको मिली सीख,
इस ख़ुशी में लोगों ने होली मनाया,
ख़ुशी में विभिन्न फागुन गीत गाया,
मीठी गुझिया से सबका मुंह मीठा करवाया,
ढ़ोल बाजे शंख नाद से आनन्द मनाया,
इस दिन की याद में प्रतिवर्ष होलिका जलाया,
और दूसरे दिन सुबह होली का त्योहार मनाया।
जीवन को उल्लास के रंग से रंग दिया,
मन को भक्ति के रंग में डुबो दिया।

कैसे हुआ बुराई का नाश....
आओ जाने होली का इतिहास....

🙏🏻श्वेता, दिया

आपको और आपके परिवार को होली की शुभकामनाएं, आपके हृदय में ईश्वर भक्ति जगमगाये, और भक्ति के रंग में जीवन रंग जाए।

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...