Thursday 31 October 2019

प्रश्न - *वातावरण(Atmosphere) और पर्यावरण(Environment) में क्या अंतर है?वातावरण और पर्यावरण में क्या अंतर है।।

प्रश्न - *वातावरण(Atmosphere) और पर्यावरण(Environment) में क्या अंतर है? यज्ञ के प्रचार प्रसार में अक्सर कहते हैं कि यज्ञ से वातावरण संशोधित होता है और पर्यावरण संरक्षित व संवर्द्धित होता है। इसे समझाएं..*

उत्तर - वातावरण और पर्यावरण के बीच महत्वपूर्ण अंतर यह है कि, वातावरण पृथ्वी के चारों ओर गैसों की परत है और पर्यावरण हमारे आसपास की जीवित या गैर-जीवित चीजें हैं।
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*वातावरण दो शब्दों से मिलकर बना है- ‘वात + आवरण‘*। ‘वात‘ का अर्थ है- ‘वायु या हवा’ एवं ‘आवरण‘ का अर्थ है-‘ढकने वाला‘।  इस प्रकार  वातावरण वह वायुमंडल है जो चारों ओर से पृथ्वी व मनुष्य को ढके हुए है।

वायुमंडल में ऑक्सीजन, नाइट्रोजन और अन्य गैसें तो हैं ही, साथ ही ईथर से कम्युनिकेशन करने वाली और हवा की उपस्थिति में होने वाले हर कार्य भी वातावरण का हिस्सा हैं। जैसे भाषा, भावनाएं, विचार, ध्वनियां, व्यवहार, स्वभाव इत्यादि।

*वातावरण का उदाहरण* - आजकल तुम्हारे घर का वातावरण कैसा है? हमारे आसपास का वातावरण संशोधित होना जरूरी है, बहुत निगेटिव हो गया है।

यज्ञ द्वारा वायु प्रदूषण नियंत्रित होता है, औऱ वैचारिक प्रदूषण भी नियन्त्रित होता है। इसीलिए कहते हैं कि यज्ञ करवाइये वातावरण संशोधित होगा। घर मे सुख-शांति आएगी। मन्त्र तरंगे यज्ञ की औषधीय धूम्र द्वारा सीधे मष्तिष्क के कोषों में प्रवेश करती हैं साथ ही घर में व्याप्त नकारात्मकता का शमन करके सकारात्मक तरंगों को उतपन्न करती हैं। जहां भी यज्ञ होता है वहाँ मनुष्य शांति व सुकून अनुभव करता है।

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*पर्यावरण दो शब्दों से मिलकर बना है- ‘परि + आवरण‘*। ‘परि‘ का अर्थ है- ‘चारों ओर’ एवं ‘आवरण‘ का अर्थ है-‘ढकने वाला‘।  इस प्रकार पर्यावरण या वातावरण वह वस्तु है जो चारों ओर से ढके हुए है।

प्राकृतिक हवा, पानी, जानवर, जीव, वनस्पति और हमारे आसपास के लोग वो सबकुछ जो प्रकृति प्रदत्त व मनुष्यकृत है प्रकृति व मनुष्य को प्रभावित कर रहा है, हमारे पर्यावरण को बनाते हैं। हवा की लेयर और वातावरण भी पर्यावरण का हिस्सा है।

*पर्यावरण का उदाहरण* - पर्यावरण प्रदूषण से जीना दूभर हो गया है। जंगलों की कटाई हो रही है, पर्यावरण के संरक्षण व संवर्द्धन हेतु अधिक से अधिक वृक्ष लगाना होगा। फैक्ट्री व कलकारखाने पर्यावरण(जल, थल, नभ) प्रदूषण के मुख्य कारक है।

यज्ञ द्वारा प्रकृति का संतुलन, संरक्षण, संवर्धन व पोषण मिलता है। यज्ञ के औषधीय व मन्त्र तरंग युक्त धूम्र वायु प्रदूषण दूर करके ओज़ोन लेयर की रिपेयरिंग करता है। पोषण व प्राण पर्जन्य युक्त बादल का निर्माण करता है। बादलों का जल मन्त्र के कारण ऊर्जावान बनता है। ऐसे जल से जल प्रदूषण नियंत्रित होता है व पृथ्वी की उर्वरता बढ़ती है। वृक्ष-वनस्पति सभी लाभान्वित होते है। पूरा का पूरा वर्षा चक्र यज्ञ से प्रभावित होता है। खेतों में यज्ञ से फसल की सेल्फ लाइफ व गुणवत्ता बढ़ जाती है। पर्यावरण के सन्तुलन संवर्धन व संरक्षण का यज्ञ एक समग्र उपचार है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Wednesday 30 October 2019

प्रश्न- *दीदी आजकल मासूम कन्याओं के साथ होते दुर्व्यवहार से मन बहुत द्रवित होता है। एक शिक्षक होने के नाते मै अपने विद्यार्थियों को इस खतरे से किस तरह समझाऊँ कि वो उपदेश ना मानकर बात को समझें ।*

प्रश्न- *दीदी आजकल मासूम कन्याओं के साथ होते दुर्व्यवहार से मन बहुत द्रवित होता है। एक शिक्षक होने के नाते मै अपने विद्यार्थियों को इस खतरे से किस तरह समझाऊँ कि वो उपदेश ना मानकर बात को समझें  ।*

उत्तर- यह समझना आपकी बहुत बड़ी भूल है कि मासूम कन्या व मासूम  लड़कों के साथ दुर्व्यवहार, देहव्यापार व आपराधिक मामले नई बात है और मात्र वर्तमान समस्या है। वस्तुतः यह समस्या प्राचीन है और हज़ारों साल से चली आ रही है।

राक्षस पहले मासूम लड़कियों पर अत्याचार किये, फ़िर ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य-शूद्र सब मासूम लड़कियों पर अत्यचार किये, फ़िर मुगल अत्याचार किये , फ़िर अंग्रेज अत्याचार किये, अब भी दिलोदिमाग से अंग्रेज व मुगल अत्याचार कर रहे हैं।

बल्कि वर्तमान समय लड़कियों के लिए ज़्यादा सुरक्षित है, यदि वो पढ़ी लिखी, कानून समझने वाली व बहादुर हुई तो इस देश का कानून व्यवस्था उनके साथ खड़ा है।

क्या बिना अस्त्रशस्त्र का कभी कोई भगवान किसी ने देखा है? स्वयं की सुरक्षा व संसार की सुरक्षा हेतु ततपर है? सभी देवी देवताओं की बायोडेटा चेक कीजिये, उनके पुराण पढ़िये पता चलेगा कि असुरों और आतताइयों के विनाश में पीछे नहीं हटते, वीरता के ही कथानक मिलेंगे। फ़िर उन्हें पूजने वाले कायर क्यों?

नवदुर्गा तो धूमधाम से मनाई जाती है, लेकिन अपनी पत्नी, बहु, बेटी को दुर्गा सी शक्तिशाली बनाने में कितने लोग ततपर है? बेटियों के दिमाग़ को बचपन से ही जन्मदाता माता पिता अपाहिज़ बना देते हैं और उसे पुरुष से डरने की प्रवृत्ति भर देते हैं। साथ ही  अच्छी पुस्तकों पढ़ाते लिखाते भी नहीं। जिस कन्या के पंख व पैर उसके माता पिता ही काट दें, उसके साथ दुर्व्यवहार तो होगा ही।

 जैसे किसान ट्रक में ओवरलोड करके भूसा भरता है, वैसे ही शिक्षण संस्थाये बच्चों के दिमाग़ में ठूस ठूस कर इन्फॉर्मेशन विभिन्न सब्जेक्ट के भरते हैं। दिमाग़ की गाड़ी चलाना व नियंत्रित करना तो बच्चों को कोई सिखाता ही नहीं।

परमात्मा ब्रह्माण्ड से सतत ऊर्जा का अनन्त प्रवाह सभी के भीतर भेज रहा है। अब इस ऊर्जा की शक्ति को क्या कोई व्यवस्थित ढंग से स्टोर भी कर रहा है? इसे संरक्षित करने की कोई योजना है क्या?

कोई इस ऊर्जा से षट चक्र जागृत कर महान बनता है, कोई इस ऊर्जा से सेक्स का चिंतन कर व्यभिचारी बनता है। कोई इस ऊर्जा को पढ़ाई में केंद्रित कर शिक्षाविद बनता है, कोई इस ऊर्जा को सही दिशा में न लगाने के कारण खाली मन शैतान का घर बनता है।

*Where attention goes energy flows - जिधर ध्यान को एकाग्र करेंगे ऊर्जा उस ओर जाकर उस विचार को बलवती बना देगी। वहीं स्टोर होना शुरू हो जाएगी।*

*एक ही ऊर्जा - विद्युत से एयरकंडीशनर व हीटर दोनों चलता है। इसी तरह भीतर की ऊर्जा से सकारात्मक चिंतन व नकारात्मक चिंतन दोनों को प्रभावी किया जा सकता है।*

यदि लड़की भयग्रस्त होने के विचार करेगी, भीतर की ऊर्जा उसे और भयग्रस्त करेगी और उसे विनाश की ओर अग्रसर कर देगी। यदि लड़की साहस के विचार लाएगी, भीतर की ऊर्जा उसे और साहसी बनाएगी और उसे महानता की ओर अग्रसर कर देगी।

जिन बच्चों को दुर्व्यवहार से बचाना चाहती हैं उनके हाथ में दो छोटी पुस्तको के वैचारिक हथियार - *शक्तिवान बनिए* या *शक्ति संचय के पथ पर* और *हारिये न हिम्मत* दे दीजिए। बच्चियों से कहिए व एकाग्रता से कई बार उन दोनों पुस्तको को पढ़ें व उस पर चिंतन करें। मृत्यु का भीतर से भय निकाल कर फेंक दें। लोग क्या कहेंगे पर से ध्यान हटा लें। स्वयं को साहसी व हिम्मती बनाने हेतु गहन चिंतन करें। विश्वास मानिए लगातार साहसी व हिम्मती चिंतन से उनके भीतर साहस के हार्मोन्स का रिसाव होने लगेगा, उनके भीतर की ऊर्जा साहस में संरक्षित होने लगेगी। वह लक्ष्मीबाई और किरणबेदी की तरह न सिर्फ़ स्वयं की सुरक्षा करने में सक्षम होगी अपितु दुसरो को भी संरक्षण दे देंगी।

*संगठन में ही शक्ति है।* उन्हें अच्छी सोच व भली नियत वाली स्त्रियों का संगठन तैयार करने की प्रेरणा दीजिये। आप चाणक्य की भूमिका निभाइये, सभी चन्द्रगुप्त स्वयं विजयी बन जाएंगे।

शक्ति जेंडर में नहीं होती, अतः पुरुष को बलवान समझना सबसे बड़ी भूल है। असली शक्ति का स्रोत मन में जन्में साहसी दृष्टिकोण में होती है, असली बल बुद्धिबल है।

*मेरे स्वर्गीय पिता श्री गिरिजाशंकर तिवारी जी और स्वर्गीय माता जी ने कहा था - "डर दूर है तो डरो और यदि पास आ गया है तो मुकाबला करो"। बहादुर एक बार मरता है और कायर बार बार मरता है। कभी कायर की मौत मत मरना। तुम अबला नारी बनकर कभी मेरे पास तुम रोते हुए मत आना, बल्कि उन असुर लड़कों को रोते हुए आने देना जिन्होंने तुम्हारी अस्मिता को भंग करने का दुस्साहस किया और जिसका दण्ड उन्हें तुमने दुर्गा बनकर दिया। "वीर भोग्या वसुंधरा" - यह धरती केवल वीरों व वीरांगनाओं के लिए ही सुरक्षित व भोगने योग्य है। ईश्वर उसी की मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करता है। कुछ ऐसा जीवन में जरूर करना जिससे किसी भी लड़की के माता-पिता तुम्हारी तरह अपनी बेटी को बनाना चाहे। कन्याएं तुमसे प्रेरणा लें। कन्या भ्रूण हत्या को वीरांगना माताएं ही रोक सकेंगी। याद रखना - "शरीर बल से बुद्धि बल बड़ा होता है। बुद्धि बल के लिए नित्य गायत्री जप व परमपूज्य गुरुदेव युगऋषि श्रीराम शर्मा आचार्य जी के साहित्य जरूर पढ़ना"।* विश्वास मानिए स्कूल, कॉलेज, ऑफिस व समाज में किसी की भी हिम्मत आजतक न हुई कि लड़की होते हुए भी बचपन से लेकर आजतक मेरे साथ दुर्व्यवहार करने की सोच भी सके। मेरे माता पिता के श्रेष्ठ विचारों का राज था कि वो जप के साथ साथ नित्य स्वाध्याय करते थे। मेरे माता पिता ने मुझे कोई अस्त्र-शस्त्र नहीं दिया था, बल्कि शशक्त विचार व सँस्कार दिए थे जिसने मुझे सर्वत्र सुरक्षित रखा।

अतः अपनी कक्षा में साहस व आत्मविश्वास से भरे विचारों का संचरण करके मासूम कन्याओं को वीरांगना कन्याओं में बदल दो। समस्या हल हो जाएगी।

🙏🏻श्वेता, DIYA

इस बार दीपावली में मैंने प्रियजनों को यह गिफ़्ट दिया

🌹इस बार दीपावली में मैंने प्रियजनों को यह गिफ़्ट दिया 🌹

*सबने गिफ़्ट में संसारी सामान दिया*
*मैने तो गिफ्ट में 'सत्साहित्य व सद्विचार' दिया*

*सपनों को सभी पूरा कर सकें*
*इसलिए उन्हें 'सफ़लता के सात सूत्र साधन' दिया*

*मुसीबत में वो कभी हिम्मत न हारें*
*इसलिए उन्हें 'हारिये न हिम्मत' दिया*

*'शौक- ए- जिन्दगी' कम करके*
*'सुकून-ए-जिन्दगी' बना सकें*
*इसलिए उन्हें 'मैं क्या हूँ? व 'जीवन जीने की कला' दिया*

*स्वस्थ जीवन निरोगी जीवन जी सकें*,
*इसलिए 'स्वस्थ रहने के सरल सूत्र' व 'प्रज्ञा योग' दिया*

*जन्म-जन्मान्तर के अंधेरे मिटा सकें*
*व आत्मा को प्रकाशित कर सकें*
*इसलिए उन्हें 'गायत्री की सर्व समर्थ साधना' दिया*


*साथ में माँ लक्ष्मी से हम सबके लिए एक ही प्रार्थना किया..*

*हमारे मन में आशा का दीप जलाए रखना*
*सद्बुद्धि देकर हमें सन्मार्ग पर टिकाए रखना*
*हम सभी देवता बने न बने*
*कम से कम हमें इंसान बनाये रखना*
*दिलोदिमाग की दरिद्रता मिटाए देना*
*दिल व विचारों से अमीर बनाये देना।*


🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *क्या यह सत्य है कि खाने के पदार्थ में मन्त्र भी मिलाया जा सकता है, नमक व चीनी की तरह?*

प्रश्न - *क्या यह सत्य है कि खाने के पदार्थ में मन्त्र भी मिलाया जा सकता है, नमक व चीनी की तरह?*

उत्तर- जी, 100% सत्य है कि खाने के पदार्थ या पीने के पदार्थ में मन्त्र या विचार या भावना को ठीक वैसे ही मिलाया जा सकता जैसे कि चीनी या नमक को मिलाते हैं। फ़र्क़ यह है कि नमक व चीनी का स्वाद आप स्थूल इन्द्रिय से महसूस करते हैं और मन्त्र या विचार या भावना का स्वाद/प्रभाव आप सूक्ष्म इन्द्रियों से महसूस करते हैं। नमक मिलने पर नमकीन स्वाद, मीठा मिलने पर मधुर स्वाद और मन्तरतरँगे मिलने संतुष्टि-शांति-तृप्ति की अनुभूति होती है।
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एक प्रयोग घर पर कीजिये,
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लड़ते झगड़ते व कुढ़ते हुए एक निश्चित रेसिपी के अनुसार आलू टमाटर की सब्जी, पूड़ी व खीर बनाइये। फिर कुछ चयनित मित्रों को बुलाकर खिलाइए व खाइए। उस दिन निज मन में उठ रहे भावों के अनुसार सबको भोजन को 1 से लेकर 10 में रेटिंग देने को बोलिये।
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एक सप्ताह बाद घर में टीवी पर फ़िल्म देखते हुए व हाई बीट पर फिल्मी गाने सुनते हुए वही सेम रेसिपी से आलू, टमाटर, खीर की सब्ज़ी बनाईये, वही मित्र मंडल के सदस्यों सहित खाइये। भोजन को रेटिंग दीजिये और तृप्ति-शांति कितनी मिली नोट कीजिये।
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एक सप्ताह बाद पुनः घर में भजन सन्ध्या रखिये व दीप जलाईये और भजनों को गुनगुनाते हुए व भजन सुनते हुए वही सेम रेसिपी से आलू, टमाटर, खीर की सब्ज़ी बनाईये, पहले भगवान को भोग लगाइये फिर वही मित्र मंडल के सदस्यों सहित खाइये। भोजन को रेटिंग दीजिये और तृप्ति-शांति कितनी मिली नोट कीजिये।
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एक सप्ताह बाद पुनः घर में एक घण्टे का गायत्री मंत्र जप कीजिये व यज्ञ कीजिये, दीपक जलाईये और गायत्री मंत्र मन में जपते हुए भक्तिभाव से वही सेम रेसिपी से आलू, टमाटर, खीर की सब्ज़ी बनाईये, पहले खीर-पूड़ी की आहुति देकर भोग लगाइये, फिर वही मित्र मंडल के सदस्यों सहित खाइये। भोजन को रेटिंग दीजिये और तृप्ति-शांति कितनी मिली नोट कीजिये।
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भोजन वही रेसिपी वही खाने वाले लोग भी वही। फ़िर भोजन के स्वाद, और उसे खाने के बाद मिलने वाली संतुष्टि, शांति, तृप्ति भिन्न क्यों हुई?
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इससे सिद्ध होता है कि खाद्य पदार्थ व पेय पदार्थ में मन्त्र/विचार/भाव घुलते हैं। इसका प्रभाव आप भोजन करने के बाद मिली शांति-तुष्टि-तृप्ति की मात्रा से समझ व अनुभूति कर सकते हैं।

इसे आधुनिक युग में वाटर मेमोरी के नाम से जाना जाता है। गूगल कीजिये और स्वयं निम्नलिखित यूट्यूब में देखिए कि कैसे भिन्न भिन्न विचार व मन्त्र पानी के भीतर के मॉलिक्यूल व उनकी आकृति को बदल देते हैं।

https://youtu.be/ILSyt_Hhbjg

https://youtu.be/Pao9Q80EmMg

मन्त्र को खाद्य या पेय पदार्थ में मिलाने की विधि को अध्यात्म की भाषा में अभिमंत्रित करना कहते हैं। खाद्य पदार्थ व पेय पदार्थ में मन्त्र संचरण द्वारा उसके कारण तत्व व सूक्ष्म ऊर्जा को बढ़ाया जा सकता है व अपेक्षित परिणाम पाया जा सकता है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Water and food can be easily charged, as water is a good conductor of electricity, every vegetables has some content of water.       Now let's understand something about human behaviour. Why they behave in a particular manner, is due to the karma of our's pastlife and the genes of 7 generation where we take our birth, in this past 7 generation we donot know how many would have been a generous, good, helpful, criminal, revolutionaries etc all genes accomodate themselves into our DNA and becomes the reason for the behaviour........ Few steps if we follow through water charging we can rectify many patterns of our behaviour as well as cure for many ailments. This patterns helps us in speeding treatment of yagyopathy. 1) charge your water before bath.. write 9 times Om/ AUM in the water before bath. Close your mouth while bathing and take bath chanting any mantra, internally. You can see the results in 15 days.  When doing balivaishwa, some people says we do with full of belief but still, changes are difficult, here also you can change the food fully charged before cooking , all raw material. Then balivaishwa works with great force.

Tuesday 29 October 2019

प्रश्न - *आयुर्वेद कहता है कि घी और शहद मिलाकर खाना नहीं चाहिए, यह विष के समान है। फ़िर पंचामृत, मधुपर्क इत्यादि में दोनो का मिश्रण क्यों?*

प्रश्न - *आयुर्वेद कहता है कि घी और शहद मिलाकर खाना नहीं चाहिए, यह विष के समान है। फ़िर पंचामृत, मधुपर्क इत्यादि में दोनो का मिश्रण क्यों?*

उत्तर- सत्य है, केवल घी और शहद का मिश्रण विषकारक होता है। क्योंकि दोनों ही गर्म प्रवृत्ति के हैं। अतः इन दोनों की उष्ण प्रवृत्ति को सही तरीके से शरीर के लिए उपयोगी और गुणकारी बनाने के लिए दही का उपयोग किया जाता है। दही की खटास, ठंडक व गुणकारी बैक्टीरिया व वेदमन्त्रों की तरंगें इन्हें डाइल्यूट करती हैं और पेट के लिए सर्वाधिक उत्तम औषधि बनाती है।

आयुर्वेद में विष का तातपर्य यहां दो गर्म प्रवृत्ति की वस्तुओं घी व शहद के मिलन से उतपन्न गर्मी को शरीर बर्दास्त नहीं कर पायेगा से ही है।

यह बात हमारे ऋषिमुनि भी भली भांति जानते थे कि दो तारों के मिलन से करंट उतपन्न होगा अर्थात दो गर्म प्रवृत्ति की वस्तुएं अत्यधिक गर्मी उतपन्न करेंगी, लेकिन यदि सही उपकरण लगा दिया जाय तो जैसे विद्युत से प्रकाश, एयरकंडीशनर, हीटर जो चाहे चलाया जा सकता है वैसे ही यदि दही की अधिक मात्रा में इनका मिश्रण बारी बारी से किया जाय तो दोनों पदार्थों की उष्ण ऊर्जा दही की शीतल ऊर्जा के संयोग से पेट के लिए उपयोग वेद मन्त्र की तरंग युक्त शीतल पेय का निर्माण करती है।

हमेशा  जब भी पंचामृत या मधुपर्क बनाये मन्त्र जपते हुए बनाये और  पहले बर्तन में दही डालें, फिर उसमें थोड़ी शहद को डालकर मिक्स करें, पुनः थोड़े ड्राइफ्रूट्स डालें व अंत मे थोड़ा घी डालकर मिक्स करें।

🙏🏻श्वेता, DIYA

छठ महापर्व - सूर्योपासना का महापर्व* - *तत्सवितुर्वरेण्यं-सूर्य की सविता शक्ति का पूजन*

*छठ महापर्व - सूर्योपासना का महापर्व* - *तत्सवितुर्वरेण्यं-सूर्य की सविता शक्ति का पूजन*
(चार दिवसीय छठ पूजन उत्सव, 31 अक्टूबर कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से 3 नवम्बर कार्तिक शुक्ल सप्तमी तक)
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*महत्‍वपूर्ण तिथि व मुहूर्त*
👉🏻नहाय-खाए (31 अक्टूबर)
👉🏻खरना का दिन (1 नवंबर)
👉🏻संध्या अर्घ्य का दिन (2 नवंबर)
👉🏻उषा अर्घ्य का दिन (3 नवंबर)
शुभ मुहूर्त
👉🏻 *छठ पूजा का दिन- 2 नवंबर, शनिवार*
👉🏻पूजा के दिन सूर्योदय का शुभ मुहूर्त- 06:33
👉🏻छठ पूजा के दिन सूर्यास्त का शुभ मुहूर्त- 17:35
👉🏻षष्ठी तिथि आरंभ- 00:51 (2 नवंबर 2019)
👉🏻षष्ठी तिथि समाप्त- 01:31 (3 नवंबर 2019)
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लोक आस्था के महापर्व के रूप में प्रसिद्ध महापर्व छठ पूजा 2019 दिवाली के 6 दिन बाद मनाया जाता है. पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में छठ पूजा बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. ये त्योहार साल में दो बार आता है. इस व्रत को पारिवारिक सुख और समृद्धि के लिए किया जाता है. ये त्योहार चार दिन तक मनाया जाता है. इस दौरान महिलाएं नदी या तालाब में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देती हैं. इस साल छठ पूजा 2 नवम्बर 2019 को है।

👉🏻 *छठ की शुरुआत* - ऐसी मान्यता है कि जब पांडव जुए में अपना सारा राज-पाट हार गए, तब द्रौपदी बहुत दुःखी थीं। तब श्रीकृष्ण भगवान ने उन्हें सूर्योपासना गायत्री मन्त्र अनुष्ठान के साथ करने की सलाह दी। इसी सूर्य उपासना से उन्हें अक्षय भोजन पात्र मिला जिसमे भोजन कभी कम नहीं पड़ता था। सूर्य की सविता शक्ति गायत्री को ही छठी मईया भी कहा जाता है। गायत्री कल्पवृक्ष है, इससे असम्भव भी सम्भव है।  सर्वप्रथम दौपदी ने छठ का व्रत किया, तब से मान्यता है कि व्रत के साथ गायत्री अनुष्ठान और सूर्योपासना  करने से दौपद्री की तरह सभी व्रती की मनोकामना पूरी हो होती है, तभी से इस व्रत को करने प्रथा चली आ रही है।

👉🏻 *छठ पूजा विधि*

छठ पूजा 4  दिनों तक की जाती है, इस व्रत की शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को और कार्तिक शुक्ल सप्तमी तक चलता है। इस दौरान व्रत करने वाले लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं, इस दौरान वे अन्न नहीं ग्रहण करते है, जिससे प्राणवायु अन्न पचाने में ख़र्च न हो और प्राण ऊर्जा ज्यादा से ज्यादा शरीर के 24 शक्ति केंद्रों तक पहुंचे और उन्हें जागृत कर शक्ति का संचार करे। जल प्रत्येक एक एक घण्टे में पीते रहना चाहिए जिससे पेट की सफ़ाई हो, और आंते दूषित और पेट में जमा हुआ अन्न और चर्बी उपयोग में न ले सकें। जो लोग जल नहीं पीते उनकी आंते उनकी शरीर की चर्बी पचाते हैं, और पेट में संचित मल और अपच भोजन से शक्ति लेते है, उससे प्राणवायु शक्ति केन्द्रो तक नहीं पहुंचती।

यदि जलाहार में असुविधा हो रही हो तो एक या दो वक़्त रसाहार अर्थात् फ़ल के जूस ले लेवें। कोई तलाभुना या ठोस आहार लेना वर्जित है।

👉🏻 *छठ महापर्व पर अनुष्ठान मन्त्र एवं विधि*

व्रत के दौरान ब्रह्मचर्य के पालन के साथ भूमि पर शयन अनिवार्य है। कम से कम सोयें और उगते हुए सूर्य का ध्यान करें।

दिन में तीन बार पूजन होगा, पहला पूजन सूर्योदय के समय, सूर्य के समक्ष जप करने के बाद अर्ध्य देना होगा।

दूसरा समय दोपहर का, गायत्री जप के बाद तुलसी को अर्घ्य देना होगा।

शाम के गायत्री जप के बाद नित्य शाम को पांच दीपकों के साथ दीपयज्ञ होगा।

इन चार दिनों में 108 माला गायत्री जप की पूरी करनी होती है। अर्थात् 27 माला रोज जप करना होगा। इसे अपनी सुविधानुसार दिनभर में जप लें।

पूजन के वक़्त पीला कपड़ा पहनना अनिवार्य है, उपवस्त्र गायत्री मन्त्र का दुपट्टा ओढ़े। आसन में ऊनी कम्बल या शॉल उपयोग में लें।

👉🏻सूर्योपासना अनुष्ठान मन्त्र - *ॐ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्*

👉🏻दीपदान के समय महामृत्युंजय मन्त्र-
*ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टि वर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्*

सूर्य गायत्री मन्त्र - *ॐ भाष्कराय विद्महे, दिवाकराय धीमहि, तन्नो सूर्यः प्रचोदयात्*

 👉🏻 *सूर्य अर्घ्य देने की विधि*

यदि घर के आसपास नदी तलाब या कोई जलाशय हो तो पानी में कमर तक पानी में खड़े होकर अर्घ्य दें, यदि नहीं है तो घर की छत पर या ऐसी जगह अर्घ्य दें जहाँ से सूर्य दिखें।  सूर्योदय के प्रथम किरण में अर्घ्य देना सबसे उत्तम माना गया है।सर्वप्रथम प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व  नित्य-क्रिया से निवृत्त्य होकर स्नान करें।उसके बाद उगते हुए सूर्य के सामने आसन लगाए।पुनः आसन पर खड़े होकर तांबे के पात्र में पवित्र जल लें।रक्तचंदन आदि से युक्त लाल पुष्प, चावल आदि तांबे के पात्र में रखे जल या हाथ की अंजुलि से तीन बार जल में ही मंत्र पढ़ते हुए जल अर्पण करना चाहिए।जैसे ही पूर्व दिशा में  सूर्योदय दिखाई दे आप दोनों हाथों से तांबे के पात्र को पकड़कर इस तरह जल अर्पण करे की सूर्य तथा सूर्य की किरण जल की धार से दिखाई दें।ध्यान रखें जल अर्पण करते समय जो जल सूर्यदेव को अर्पण कर रहें है वह जल पैरों को स्पर्श न करे।सम्भव हो तो आप एक पात्र रख लीजिये ताकि जो जल आप अर्पण कर रहे है उसका स्पर्श आपके पैर से न हो पात्र में जमा जल को पुनः किसी पौधे में डाल दे।यदि सूर्य भगवान दिखाई नहीं दे रहे है तो कोई बात नहीं आप प्रतीक रूप में पूर्वाभिमुख होकर किसी ऐसे स्थान पर ही जल दे जो स्थान शुद्ध और पवित्र हो।जो रास्ता आने जाने का हो भूलकर भी वैसे स्थान पर अर्घ्य (जल अर्पण) नहीं करना चाहिए।

👉🏻 *सूर्य अर्घ्य मन्त्र* -

*‘ॐ सूर्य देव सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते। अनुकंपये माम भक्त्या गृहणार्घ्यं दिवाकर:।।*
*ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय, सहस्त्रकिरणाय। मनोवांछित फलं देहि देहि स्वाहा :।।ऊँ सूर्याय नमः।ऊँ घृणि सूर्याय नमः।*
*‘ऊं भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात।*

👉🏻 *छठ पूजा 2019 का प्रसाद*

छठ पूजा में कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं. इस दौरान छठी मैया को लड्डू, खीर, ठेकुआ, फल और कष्ठा जैसे व्यंजन के भोग लगाए जाते हैं. छठ पर कई प्रकार के पारंपरिक मिठाई भी बनाई जाती हैं. प्रसाद में लहसुन और प्याज का उपयोग नहीं किया जाता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन

गर्भसंस्कार डॉक्युमेंटरी फिल्म

https://youtu.be/KxvRWfcCRZs

*अच्छी सन्तान सब चाहते हैं, मग़र उसके निर्माण व शिक्षण की शुरुआत गर्भ से करने में चूक जाते हैं। और फ़िर बाद में पछताते हैं। स्वयं भावी माता पिता इसे देखें, स्कूल व कॉलेज में इसे दिखाएं, अस्पताल व आशा वर्क को इसे दिखाएँ, समग्र रूप से स्वस्थ व संस्कारी मनचाही सन्तान पाने का उपक्रम समझे*

*गर्भ संस्कार* विषय पर 45 मिनट की  डॉक्युमेंटरी फिल्म का विमोचन आदरणीया शैल जीजी एवं डॉ. साहब के कर कमलों से शांतिकुंज में संपन्न हुआ है।

*विचार क्रान्ति चलचित्र अभियान की ओर से इस दीपावली में सबके लिए  भेंट (तोहफा)*

*गर्भ संस्कार* ( डॉक्युमेंटरी फिल्म )

....स्वयं देखें सबको दिखाएँ ...

मस्सा (wart)

मस्से शरीर पर कहीं भी हों खूबसूरती को कम कर देते हैं, विशेषकर चेहरे पर होने वाले मस्से। मस्सा (wart) शरीर पर कहीं कहीं काले रंग का उभरा हुआ मांस का छोटा दाना जो चिकित्सा विज्ञान के अनुसार एक प्रकार का चर्मरोग माना जाता है। यह प्रायः सरसों अथवा मूँग के आकार से लेकर बेर तक के आकार का होता है। यह प्रायः हाथों और पैर पर होता है किन्तु शरीर के अन्य अंगों पर भी हो सकता है। त्वचा पर पेपीलोमा वायरस के कारण छोटे खुरदरे कठोर गोल पिण्ड बन जाते हैं जिसे मस्सा कहते हैं।
मस्से विषाणु संक्रमण से पैदा होते हैं। प्रायः ‘मानव पेपिल्लोमैविरस’ नामक विषाणु की कोई प्रजाति इसका कारण होती है। लगभग दस प्रकार के मस्से होते हैं। मस्से संक्रमण (छुआछूत) से हो सकते हैं और शरीर में वहाँ प्रवेश करते हैं जहाँ त्वचा कटी-फटी हो। प्रायः ये कुछ माह में स्वयं समाप्त हो जाते हैं, किन्तु कभी-कभी वर्षों तक बने रह सकते हैं या पुनः हो सकते हैं। शरीर पर अनचाहे मस्सों के उग जाने से मन से बार बार यही आवाज आती है कि इन मस्सों से छुटकारा कैसे पाया जा सकता है। ये मस्से हमारी सुन्दरता में धब्बा बन कर परेशान कर रहे हों तो इन आसान उपायों की सहायता से इनसे छुटकारा पाया जा सकता है।
          १. रोज दो तीन बार प्याज का लेप मस्सों पर करने से ये मस्से जड़ से खत्म हो जाएंगे। प्याज को काट कर मस्से पर घिसना भी लाभप्रद है।
          २. शरीर की त्वचा पर यदि छोटे-छोटे काले मस्से हो गए हों तो उन पर काजू के छिलकों का लेप लगाने से मस्से साफ हो जाते हैं।
           ३. चूना और घी एक समान मात्रा में लेकर दोनों को खूब फेंटकर सुरक्षित रखें। उसे दिन में 3-4 बार मस्सों पर लगाएं। उससे मस्से जड़ से हट जाएंगे और दुबारा नहीं होंगे।
           ४. सोडा कास्टिक ६ ग्राम को २५० ग्राम की बोतल में घोलकर सुरक्षित जगह पर रख दें। सावधानी से रूई की सहायता से मस्सों पर लगाएं। मस्सों को दूर करने की यह रामबाण दवा है।
            ५. बी काम्पलेक्स, विटामिन ए, सी, ई युक्तआहार के सेवन से मस्सों को दूर किया जा सकता है। मस्सों से छुटकारा पाने के लिए पोटेशियम बहुत लाभदायक है। पोटेशियम बहुत सी साग-सब्जी और फलों में पाया जाता है। जैसे – सेब, केला, अंगूर, आलू, मशरूम, टमाटर, पालक इत्यादि।
          ६. खट्टी सेब का रस मस्सों पर लगाने से मस्सों के छोटे-छोटे टुकड़े होकर गिर जाएंगे।
           ७. मुहासे या मस्से हों तो फिटकरी और काली मिर्च आधा-आधा ग्राम पानी में पीसकर मलने से लाभ होता है।
          ८. बरगद के पेड़ के पत्तों का रस मस्सों के उपचार के लिए बहुत ही असरदार होता है। इस प्रयोग से त्वचा सौम्य हो जाती है और मस्से अपने आप गिर जाते हैं।
           ९. कच्चे आलू का एक स्लाइस नियमित रूप से दस मिनट तक मस्से पर लगाकर रखने से मस्सों से छुटकारा मिल जायेगा।
            १०. मस्सा खत्म करने के लिए एक अगरबत्ती जला लें और अगरबत्ती के जले हुए गुल को मस्से का स्पर्श कर तुरन्त हटा लें। ऐसा ८-१० बार करें, इस उपाय से मस्सा सूखकर झड़ जाएगा।
           ११. ताजा अंजीर लें। इसे कुचलकर -मसलकर इसकी कुछ मात्रा मस्से पर लगावें और ३० मिनिट तक लगा रहने दें फ़िर गरम पानी से धोलें। ३-४ हफ़्ते में मस्से समाप्त होंगे।
            १२. केले के छिलके को अंदर की तरफ से मस्से पर रखकर उसे एक पट्टी से बांध लें। और ऐसा दिन में दो बार करें और लगातार करते रहें जब तक कि मस्से ख़तम नहीं हो जाते।
            १३. अरंडी का तेल नियमित रूप से मस्सों पर लगायें। इससे मस्से नरम पड़ जायेंगे, और धीरे धीरे गायब हो जायेंगे। अरंडी के तेल के बदले कपूर के तेल का भी प्रयोग कर सकते हैं।
             १४. कलौंजी के कुछ दाने सिरके में पीस कर मस्सों पर लगा कर सो जाएं, कुछ दिनों में मस्से कट जायेंगे।
            १५. लहसुन के एक टुकड़े को पीस लें, लेकिन बहुत महीन नहीं और इस पीसे हुए लहसुन को मस्से पर रखकर पट्टी से बांध लें। इससे भी मस्सों के उपचार में सहायता मिलती है।
           १६. एक बूँद ताजे मौसमी का रस मस्से पर लगा दें और इसे भी पट्टी से बांध लें। ऐसा दिन में लगभग ३ या ४ बार करें। ऐसा करने से मस्से गायब हो जायेंगे।
            १७. पान में खाने का चूना मिलाकर घिसने से भी मस्से झड़ जाते हैं।
            १८. आंवला को मस्सों पर तब तक मलते रहें जब तक मस्से उसके रस को सोख न लें या आंवला के रस को मस्से पर मल कर पट्टी से बांध लें।
          १९. थूहर का दूध या कार्बोलिक एसिड सावधानीपूर्वक लगाने से मस्से निकल जाते हैं।मस्सों पर एलोवीरा को दिन में तीन बार लगायें। ऐसा एक सप्ताह तक करते रहें, मस्से गायब हो जायेंगे।
           २०. बेकिंग सोडा और अरंडी तेल को बराबर मात्रा में मिलाकर इस्तेमाल करने से मस्से धीरे-धीरे खत्म हो जाते हैं।
           २१. हरे धनिए को पीसकर उसका पेस्ट बना लें और इसे रोजाना मस्सों पर लगाएं।
           २२. चेहरे को अच्छी तरह धोएं और कॉटन को सिरके में भिगोकर तिल-मस्सों पर लगाएं। दस मिनट बाद गर्म पानी से फेस धो लें। कुछ दिनों में मस्से गायब हो जाएंगे।
          २३. रात को सोते वक्त और सुबह के समय मस्सों पर शहद लगाने के लाभकारी परिणाम मिले हैं।
           २४. ग्वार पाठा (एलोवीरा) से मस्से की चिकित्सा की जा सकती है। एलोवीरा के रस में रूई का फाया एक मिनट के लिये भिगोएं फिर इसे मस्से पर रखें और चिपकने वाली पटी से स्थिर कर दें। यह प्रक्रिया दिन में कई बार करना उचित है। ३-४ हफ्ते में मस्से साफ हो जाएंगे।
          २५. ताजा अंजीर मसलकर इसकी कुछ मात्रा मस्से पर लगाएं। ३० मिनट तक लगा रहने दें, फिर गुनगुने पानी से धो लें। मस्से खत्म हो जाएंगे।
प्रस्तुति - जितेन्द्र रघुवंशी, प्रज्ञाकुंज, हरिद्वार

Monday 28 October 2019

प्रश्न - *प्रणाम ! मधुपर्क किसे कहते हैं ? यह पंचामृत से कैसे भिन्न है?*

प्रश्न - *प्रणाम  !  मधुपर्क किसे कहते हैं  ? यह पंचामृत से कैसे भिन्न है?*

उत्तर - मधुपर्क व पंचामृत दोंनो ही देवताओं का अत्यंत प्रिय भोग माना जाता है।

*मधुपर्क* - समान मात्रा में तीन पदार्थ का मिश्रण - शहद, दही और घी मिलाकर देवताओं के पवित्र वेद मंत्रों का उच्चारण करते हुए बनाया जाता है, उन्हें अर्पित किया जाता है।

*पंचामृत* - पाँच पदार्थ का मिश्रण - दूध, दही, मधु, घृत और गन्ने के रस से बने द्रव्य को  ही पंचामृत कहा जाता है। गन्ने के रस के अभाव में गुड़ उपयोग किया जाता है। गुड़ न मिले तो चीनी प्रयोग किया जा सकता है।
देवताओं के पवित्र वेद मंत्रों का उच्चारण करते हुए इसे बनाया जाता है, उन्हें अर्पित किया जाता है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Saturday 26 October 2019

॥ श्रीसूक्त (ऋग्वेद) ॥ ॐ ॥

*शुभ दीपावली*

आपको और आपके परिवार को दीपावली पर्व की अनन्त शुभकामनाएं। आत्मा प्रकाशित हो, हृदय आनन्दित हो, नेत्रों में शुभता हो और जीवन में खुशियां ही खुशियाँ हो।

निम्नलिखित लक्ष्मी जी स्तुति ऋग्वेद से है, इसके दीपावली में एक बार पाठ से मां लक्ष्मी प्रशन्न होती हैं। यज्ञ के दौरान गायत्री मंत्र आहुति के दौरान प्रत्येक सूक्ति की आहुति होती है, अतः 16 आहुति होगी।
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*॥ श्रीसूक्त (ऋग्वेद) ॥ ॐ ॥*

ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥ १॥

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥ २॥

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम् ।
श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मादेवीर्जुषताम् ॥ ३॥

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।
पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥ ४॥

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् ।
तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥ ५॥

आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥ ६॥

उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥ ७॥

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात् ॥ ८॥

गंधद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरीꣳ सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥ ९॥

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥ १०॥

कर्दमेन प्रजाभूता मयि सम्भव कर्दम ।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥ ११॥

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे ।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥ १२॥

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥ १३॥

आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥ १४॥

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान्विन्देयं पुरुषानहम् ॥ १५॥

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्य मन्वहम् ।
श्रियः पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ॥ १६॥

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday 25 October 2019

प्रश्न - *धनतेरस पर धन पूजा क्यों करते हैं, दीपावली में बच्चों को कैसे समझाएं??*

प्रश्न - *धनतेरस पर धन पूजा क्यों करते हैं, दीपावली में बच्चों को कैसे समझाएं??*

उत्तर - कार्तिक माह (पूर्णिमान्त) की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन समुद्र-मंन्थन के समय भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है। भारत सरकार ने धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है।

भारतीय दर्शन कहता है:-
धन गया तो कुछ नहीं गया,
स्वास्थ्य गया तो थोड़ा सा गया,
अगर चरित्र गया तो सब कुछ चला गया।

जीवन लक्ष्य देवता - *नारायण*
धन देवता - *लक्ष्मी*
स्वास्थ्य देवता - *धन्वंतरि*
चरित्र व बुद्धि के देवता - *गणेश*
धन प्रबन्धन देवता - *कुबेर*

अर्थात तीनों धनों को संवारने की सद्बुद्धि देने के देवता गणेश और तीनों धनों की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी की हम सब पूजा करते हैं।

माता लक्ष्मी की पूजा (जिनको धन की देवी के नाम से जाना जाता है) को बहुत आदर-सम्मान से धनतेरस व दिवाली के पर्व पर पूरे भारत-वर्ष में पूजा जाता है।

 *नर से नारायण बनना हम सबका जीवन लक्ष्य है। लक्ष्मी जी उन तक पहुँचने का एक साधन और गणेश उस लक्ष्य तक पहुँचाने हेतु सद्बुद्धि व चरित्र निर्माण के स्रोत हैं। भगवान कुबेर धन प्रबन्धन को प्रेरित करते हैं- धन कब कहाँ कैसे क्यों उपयोग लेना है? भगवान धनवंतरी जो आयुर्वेद के देवता हैं उनकी उत्तपत्ति भी समुद्रमंथन से हुई थी। धन्वंतरि कहते हैं कि - स्वास्थ्य पाने हेतु भी प्राथमिकता दी जाए*।

*अष्टलक्ष्मी नाम*

1-आदि लक्ष्मी
२-धन लक्ष्मी
3- विद्या लक्ष्मी
4- धान्य लक्ष्मी
5- धैर्य लक्ष्मी
6- संतान लक्ष्मी
7- विजय लक्ष्मी
8- राज(सौभाग्य) लक्ष्मी

ये आठ प्रकार के धन सभी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं प्रत्येक व्यक्ति में इन आठ धन अधिक या कम मात्रा में होते हैं। हम उन्हें कितना सम्मान करते हैं, उनका उपयोग करते हैं, हमारे ऊपर निर्भर है। इन आठ लक्ष्मी की अनुपस्थिति को- अष्ट दरीद्रता कहा जाता है। चाहे लक्ष्मी है या नहीं, नारायण को अभी भी अनुकूलित किया जा सकता है। नारायण दोनों के हैं - लक्ष्मी नारायण और दरिद्र नारायण!
दरिद्र नारायण परोसा जाता है और लक्ष्मी नारायण की पूजा की जाती है। पूरे जीवन का प्रवाह दरिद्र नारायण से लक्ष्मी नारायण तक - दुख से समृद्धि तक, जीवन में सूखेपन से दैवीय अमृत तक जा रहा है।

स्वर्ण या चाँदी की वस्तु जो सौभाग्य सूचक है वह लक्ष्मी जी का प्रतीक माना गया है। समुद्रमंथन में लक्ष्मी जी स्वर्ण,चांदी व मनीमणिक्य लेकर प्रकट हुई थी, अतः यह सब उन्हीं का स्वरूप माना गया। अतः इनका प्रतीक पूजन कर उनका आभार व्यक्त किया जाता है।

उपरोक्त ज्ञान का सार ही त्रिपदा गायत्री मंत्र है, जो नर से नारायण बनने का मार्गदर्शन है।

गायत्री मंत्र : *ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥*

उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

धनतेरस पर्व की शुभकामनाएं

*धनतेरस पर्व की शुभकामनाएं*
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इस धनतेरस,

आत्मगौरव रूपी धन मिले,
हृदय में सुकून रूपी धन मिले,

आत्मज्ञान रूपी धन मिले,
परमानन्द रूपी धन मिले,

मधुर रिश्ते रूपी धन मिले,
घर में प्रेम-सहकार रूपी धन मिले,

जॉब व्यवसाय ख़ूब फले फूले,
बुद्धि के रथ पर जगतगुरु श्रीकृष्ण मिले,

जीवन को देखने हेतु प्रज्ञाचक्षु मिले,
जीवन को जीने में आनन्द ही आनन्द मिले।

संसार रूपी जल में,
कमल की तरह खिले,
सही गलत में अंतर कर सकें,
ऐसी वह हँस बुद्धि मिले।

सबको मित्रवत देखें, सब आपको मित्रवत देखें,
कण कण में परमात्मा को अनुभूत करे।

🙏🏻शुभकामनाओं और धन्यवाद सहित
आपकी बहन,
श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दीदी क्या भगवान जी की मूर्ति लेते समय मोल भाव करना चाहिए। कभी कभी दो दूकानों में रेट में बोहुत फर्क होता है। ऐसे में क्या करें*

प्रश्न - *दीदी क्या भगवान जी की मूर्ति लेते समय मोल भाव करना चाहिए। कभी कभी दो दूकानों में रेट में बोहुत फर्क होता है। ऐसे में क्या करें*

उत्तर- मूर्ति में जब तक मन्त्र से प्राण प्रतिष्ठा नहीं करते तब तक वह मात्र मूर्ति है। मोलभाव कर सकते हैं।

प्राण प्रतिष्ठा व देवआवाहन के बाद ही मूर्ति पूजनीय बनती है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

धनतेरस - पर्व पर गुरूमहिमा*

*धनतेरस - पर्व पर गुरूमहिमा*

हे सद्गुरु!
जिस तुमने हमें शिष्य रूप में अपना लिया,
उस दिन तुमने हमें महा धनवान बना दिया,
इस जीवन को श्रेष्ठ उद्देश्यों में लगा दिया,
युगनिर्माण में हमारा भी एक रोल लिख दिया।

उस दिन तुमने हमें महा धनवान बना दिया....

कृपण बन के आया था,
तूने दाता बना दिया,
जिस दिन एक लेवता को तूमने,
देवता बनने का हुनर सिखा दिया।

उस दिन तुमने हमें महा धनवान बना दिया...

हर व्यथा दूर करने हेतु,
गायत्री मंत्र दे दिया,
जिस दिन रोग-शोक मिटाने हेतु,
समग्र उपचार यज्ञ दे दिया।

उस दिन तुमने हमें महा धनवान बना दिया...

नकारात्मकता के विचारों में,
मन उलझा हुआ था,
जिस दिन हर उलझन सुलझाने को,
युग साहित्य का ख़ज़ाना थमा दिया।

उस दिन तुमने हमें महा धनवान बना दिया...

नवरात्र के अनुष्ठान करवा के,
हममें नवशक्तियों को उतारा,
दशहरा में हमारी बुद्धि रथ पर बैठकर,
जिस दिन हमारे दुर्गुणों को संघारा।

उस दिन तुमने हमें महा धनवान बना दिया...

दीपावली में गुरु की चेतना,
हम सबमें उतरेगी,
हम सभी के अन्तस् में,
इस बार दीपावली सजेगी।

उस दिन तुमने हमें महा धनवान बना दिया...

गौ गंगा गीता व गायत्री का,
पुनः अवलम्बन जगत लेगा,
देवसंस्कृति का ध्वज पुनः,
जन जन में, घर घर मे फहरेगा।

जिस दिन गुरु चरणों में तुमने सहारा दे दिया,
उस दिन तुमने हमें महा धनवान बना दिया।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Wednesday 23 October 2019

प्रश्न - 1 - *क्या स्त्रियों वेदों के अध्ययन व वेदमन्त्रों के उच्चारण का अधिकार है?* -स्त्रियों का गायत्रीमंत्र, यज्ञ, वेदाध्ययन, यग्योपवीत अधिकार सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

*स्त्रियों का गायत्रीमंत्र, यज्ञ, वेदाध्ययन, यग्योपवीत अधिकार सम्बन्धी प्रश्नोत्तर*

प्रश्न - 1 - *क्या स्त्रियों वेदों के अध्ययन व वेदमन्त्रों के उच्चारण का अधिकार है?*

उत्तर - काशी हिंदू विश्व विद्यालय में पण्डित मदन मोहन मालवीय जी की अध्यक्षता में पूरे देश विदेश के प्रकाण्ड पंडितों का शास्त्रार्थ हुआ तथा वेदों के अध्ययन के प्राचीन ग्रंथो के इस सम्बंध में उल्लेख ढूढ़े गये एवं सर्व सम्मति व ध्वनिमत से प्रस्ताव - *22 अगस्त 1946* पारित हुआ। प्रथम वेदाध्ययन करने वाली छात्रा का नाम - *कुमारी कल्याणी देवी* था। तब से अब तक हज़ारों स्त्रियां वेद अध्ययन कर चुकी हैं। स्वयं वेदों में अनेक ऐसे सौभाग्य के मन्त्र हैं जो पति के दीर्घायु होने, घर गृहस्थी व सन्तान प्राप्ति के हैं। तथा कई ऐसे वेद मन्त्र हैं जिसे स्त्री ऋषिकाओ ने लिखा है।

प्रश्न - 2 - *क्या स्त्रियों को गायत्री मंत्र जप का अधिकार है?*

उत्तर- श्री सीता जी, द्रौपदी, सुग्रीव की पत्नी तारा, राधा जी, सती अनुसुइया, अपाला, घोषा जैसी अनेक स्त्रियों के उदाहरण हैं जो गायत्री जप करती थीं।  तब प्रश्न उठता है जब पहले गायत्री जप का अधिकार था तो फ़िर लोग यह  क्यों कहते हैं कि अब अधिकार नहीं। मध्यकाल के अंधकार युग में मुस्लिम आतंकियों के स्त्री चुराने व बालात्कार की घटना आम हो गयी थी। हिंदू राजा संगठित नहीं थे, यथा राजा तथा प्रजा। वो भी संगठित नहीं थे। गुरुकुल को सुरक्षा देने की जगह स्त्रियों को घर से बाहर निकलने पर ही प्रतिबंध लगा दिया। घूंघट में चेहरे ढँक दिए। शिक्षा का ही जब अधिकार बन्द कर दिया गया। तो वेद व मन्त्रो से भी उनको दूर कर दिया गया। लोभी व्यसनियों ने स्त्रियों के विरोध को कुचलने के लिए मनमाना संस्कृत में श्लोक लिखवाया और उनके हृदय में यह भय उपजा दिया कि यदि मन्त्र जपा तो अनिष्ट होगा, पति व पुत्र नहीं रहेंगे। इत्यादि इत्यादि। एक से अधिक स्त्रियों को बलवान रखने लगे जो सुरक्षा प्रदान कर सकें। क्योंकि स्त्री न शिक्षित थी न हथियार चला सकती थी तो दहेज़ प्रथा शुरू हुआ। क्योंकि पूरी उम्र सुरक्षा व खाना-खर्चा का वहन पुरुष को करना था।

अब थोड़ा अक्ल ख़र्च करके सोचो, जिस बर्तन की बनी खीर भगवान को भोग लग रही है, और उसी बर्तन को अपवित्र कहना उचित है। वृक्ष अपवित्र और उसका फल पवित्र ऐसा कभी हो सकता है? इसी तरह जिस स्त्री के रक्त-मांस से पुरुष पैदा हुआ, पुरुष पवित्र तो स्त्री अपवित्र किस तरह हुई?

प्रश्न -3- *क्या स्त्रियों को यज्ञ का अधिकार है?*

उत्तर- कोई भी धर्म ग्रन्थ उठा लो, सर्वत्र स्त्री व पुरुष यज्ञ करते मिलेंगे। श्री सीता जी की अनुपस्थिति में श्रीराम ने स्वर्ण की मूर्ति सीता जी का बनाकर अश्वमेध यज्ञ किया था। सभी ऋषि पत्नियां व गृहस्थ दैनिक यज्ञ करते थे। यह अधिकार है तभी तो यज्ञ के कर्मकांड में बताया जाता है कि यज्ञ के वक्त स्त्री किधर बैठेगी। यज्ञ का अधिकार न होता तो विवाह जो कि यज्ञ ही है, जिसके चारों ओर सात फेरे लिए जाते हैं, सम्भव ही नहीं होता है। क्योंकि हिन्दू धर्म में कोई भी सँस्कार हो वो बिना यज्ञ हो ही नहीं सकता।

प्रश्न - 4 - *क्या स्त्रियों को यग्योपवीत धारण करने का अधिकार है?*

उत्तर- जिस प्रकार मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा की हुई देव प्रतिमा  होती है, उसके समक्ष पूजन करना ज्यादा प्रभावशाली होता है। वैसे ही धागों की देवप्रतिमा यग्योपवीत(जनेऊ) होता है। तीन लड़ियां त्रिपदा गायत्री और 9 लड़े नवदुर्गा की नवशक्तियों का प्रतीक हैं। तीन गांठें गायत्री मन्त्र की तीन व्याहृतियाँ है, सबसे बड़ी वाली गांठ ब्रह्मग्रन्थि ॐ कार का प्रतिनिधित्व करती है।

जिस प्रकार मंदिर में भी पूजा किया जा सकता है और बिना मंदिर के भी पूजा किया जा सकता है। इसी तरह यग्योपवीत पहनकर भी साधना होती है और इसको पहने बिना भी जप हो सकता है।

यग्योपवीत पुरुषों के समान स्त्रियाँ भी पहन सकती हैं। रजोदर्शन(मासिक धर्म) की शुरुआत में उतार दें,मासिक धर्म की निवृत्ति के बाद जिस दिन से पुनः पूजन प्रारम्भ करें उस दिन नया धारण कर लें। अर्थात प्रत्येक महीने नया सूत्र धारण करना होगा।

प्रश्न - 5- *स्त्रियां मासिक धर्म में आती हैं तो अपवित्र होती हैं, तो वो भला गायत्री साधना कैसे कर सकती हैं?*

उत्तर- स्त्रियां 365 दिन नित्य मासिक धर्म मे नहीं होती। केवल प्रत्येक माह 5 दिन की छुट्टी में होती हैं क्योंकि शरीर थोड़ा अस्वस्थ होता है और ऊर्जा ग्रहण करने की स्थिति में नहीं होता, क्योंकि ऊर्जा भी पचाने के लिए  मांसपेशियों का रिलैक्स होना जरूरी है । जैसे पेट खराब हो तो गरिष्ठ नहीं खाया जा सकता। कठिन परिश्रम नहीं किया जा सकता। ठीक वैसे ही यह वक्त उनके आराम का है। अब दौड़ते हुए टोमेटो सूप तो नहीं पी सकते, इसी तरह शरीर यदि सफाई के कार्य में दौड़ रहा है तो उसे ऊर्जा ग्रहण व उसके पाचन में नहीं लगाया जा सकता। मग़र जो कार्य पाँच दिन का है उसके लिए बाकी बचे 25 दिन जिसमें शरीर ऊर्जा ग्रहण को तैयार है, साधना से वंचित क्यों किया जाय भला?

वैसे भी जो भाई यह कुतर्क करें कि मासिक धर्म में स्त्रियां अपवित्र होती हैं, तो उनसे कहें जब 9 महीने वही मासिक धर्म रुकता है तो उसी रक्त मांस से बेटी-बेटे रूपी सन्तान का सृजन होता है। यदि आपकी माँ अपवित्र है तो आप तो महा अपवित्र हैं। आपका तो स्पर्श भी नहीं किया जाना चाहिए और आपको भी गायत्री अधिकार नहीं होना चाहिए। जिसे अपवित्र कह रहे हो उसी से तो बने हो।

प्रश्न - 6- *क्या स्त्रियां पुरुष के बराबर धर्म क्षेत्र में अधिकार रखती हैं?*

उत्तर- शिव के 100% रूप के दो भाग 50% पुरूष व 50% प्रकृति बनी। शिव का अर्धनारीश्वर रूप इसी बात का प्रतीक है। अब एक ही बर्तन की आधी दही पवित्र और आधी अपवित्र कैसे हो सकती है? एक ही शक्ति के दो भाग में एक पवित्र व दूसरा अपवित्र कैसे हो सकता है? स्त्री पुरूष एक दूसरे के पूरक हैं। गृहस्थ जीवन के सभी धर्म ऋण से उऋण होने के लिए स्त्री का साथ तो चाहिए ही।

प्रश्न - 7- *स्त्रियों के गायत्री अधिकार के सम्बंध में किन किन पुस्तकों में उल्लेख किया है?*

उत्तर- पुस्तकों के नाम:-
1- स्त्रियों के गायत्री अधिकार
2- गायत्री विषयक शंका समाधान
3- गायत्री महाविज्ञान
4- यत्र नारयन्ते पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता
5- यज्ञ का ज्ञान विज्ञान

प्रश्न - 8 - *क्या आप गायत्री जपती हैं? कब से? आपके गृहस्थ जीवन में इसका क्या प्रभाव है?*

उत्तर- हमारे माता पिता गायत्री जपते थे, हमारे पूरे खानदान में सभी स्त्रियाँ गायत्री जपती हैं। माता गायत्री की अनुकम्पा व कृपा से मैं जॉब करती हूँ, मेरे पति व बेटा स्वस्थ प्रशन्न है।वो दोनों भी गायत्री साधना करते हैं। हमारे गायत्री परिवार की हज़ारों स्त्रियां नियमित गायत्री जप कर रही हैं।

प्रश्न -9 - *क्या स्त्रियां जोर से मन्त्र उच्चारण कर सकती हैं?*
उत्तर- स्त्री हो या पुरूष किसी को भी पूजन स्थल, समूह जप उच्चारण और यज्ञ के अतिरिक्त जोर से मन्त्र नहीं बोलना चाहिए। दैनिक उपासना में और अनुष्ठान के वक्त उपांशु(होठ हिले मगर पड़ोस में बैठा व्यक्ति भी मन्त्र सुन न सके) ऐसे जपना चाहिए। अशुद्धि, सूतक, रजोदर्शन, घर से बाहर यात्रा के दौरान मात्र मौनमानसिक जप करना चाहिए। यज्ञ के दौरान गायत्री मंत्र का शुद्ध उच्चारण व लय के साथ जोर से बोलते हुए आहुति देनी चाहिए। स्कूलों में प्रेयर के वक़्त भी उच्चारण करते हुए मन्त्र बोलना चाहिए।

प्रश्न - 10 - *गायत्री ब्राह्मण की कामधेनु है, उसी की फ़लित होती है। इसका फिर क्या आशय है?*

उत्तर- चिकित्सा क्षेत्र में सफलता डॉक्टर(चिकित्सक) को ही मिलेगा। यहां जो आशय है वही ब्राह्मण का भी आशय है। ब्राह्मण डिग्री उपाधि है जो कर्म द्वारा प्राप्त की जाती है। चिकित्सक स्त्री व पुरुष दोनों बन सकते हैं। उसी तरह ब्राह्मण स्त्री व पुरुष दोनों बन सकते हैं। चिकित्सक जन्म से नहीं बना जा सकता ठीक उसी तरह ब्राह्मण जन्म से नहीं बना जा सकता। चिकित्सक की सन्तान बिन पढ़े चिकित्सक नहीं बन सकता, उसी तरह ब्राह्मण की सन्तान बिन ब्राह्मणोचित जीवन क्रम अपनाए ब्राह्मण स्वयं को घोषित नहीं कर सकती।

*चिकित्सक* - औषधियों का गहन अध्ययन कर उसकी विधिवत शिक्षा लेना व उस ज्ञान का पीड़ित मानवता की सेवा के लिए प्रयोग करना।

*ब्राह्मण* - वेदों व धर्मग्रंथों का गहन अध्ययन करना, उस ज्ञान से पीड़ित मानवता की सेवा करना व उन्हें मुक्ति का मार्ग बताना। अपनी चेतना को ब्रह्म में रमाना और चरित्र-चिंतन-व्यवहार-आचरण से लोगों को शिक्षण देना।

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*देखिये एकांत में बैठकर कुछ प्रश्न स्वयं से पूँछिये व चिंतन कीजिये, आपका अन्तःकरण आपको उत्तर देगा*:-

1- जो भोजन पका सकता है तो उसे खाने का अधिकार क्यों नहीं होगा? जब स्त्रियां वेदमंत्रों की रचना कर सकती हैं तो भला उन्हें वेद का अधिकार क्यों नहीं होगा?

2- यदि स्त्रियों को वेद व यज्ञ का अधिकार नहीं होता तो समस्त षोडश सँस्कार व यज्ञ में पत्नी भला कैसे सम्मिलित होती?

3- स्त्रियां यदि अपवित्र होती तो नवरात्र में कन्या पूजन क्यों होता? धर्मग्रन्थ में *यत्र नारयन्ते पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता* क्यों कहा जाता? माता पूजनीय कैसे होती? अर्धांगिनी प्रत्येक धर्म कर्म में साथ कैसे होती?

4- स्त्री को यदि यज्ञ का अधिकार नहीं होता तो भला विवाह में वेदमन्त्र बोलकर यज्ञ कैसे करती? पुरुषों का तो कभी विवाह ही नहीं होता।

5- यदि स्त्रियों को वेद का अधिकार नहीं होता तो यज्ञ आदि ऋषि याज्ञवल्कय व वेदज्ञाता मैत्रेयी का शास्त्रार्थ कैसे सम्भव हुआ?

6- अनुसुइया, अरुंधति, मदालसा, मैत्रेयी, घोषा, अपाला, अहिल्या वेदज्ञाता स्त्रियां थीं। यदि स्त्रियों को वेद का अधिकार नहीं होता तो ये वेदज्ञाता कैसे बनी?

7- क्या नारी को अध्यात्म में अयोग्य ठहरा कर उससे उतपन्न सन्तान को अध्यात्म के योग्य भला किस तरह मान सकते हो?

8- जिस मासिक धर्म को अपवित्र बताकर स्त्रियों को कोषते हो और अध्यात्म के अयोग्य ठहराते हो, उसी मासिक धर्म के रुकने से 9 महीने में उसी गर्भ में उसी रक्त व मांस से जन्मी पुरुष सन्तान पवित्र कैसे????

9- जब अन्य जीव वनस्पति में नर मादा का कोई भेद नहीं। फिर मनुष्य किस हक से भेद करता है?

10- सरस्वती, लक्ष्मी, काली को पूजने वाले स्त्री को अध्यात्म के अयोग्य कैसे ठहरा सकते हैं भला?

11- जब स्त्रियों को वेदों का अधिकार नहीं था तो उनके लिए वेदमन्त्र वेदों में क्यों लिखे गए?

उपरोक्त प्रश्न स्वयं से पूँछिये उत्तर आपको आपका अन्तःकरण अवश्य देगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 22 October 2019

हम सभी के मन में प्रश्न उठता है कि हमने तो किसी का बुरा नहीं किया फिर हमारे साथ बुरा क्यों हो रहा है? क्यों मेरे जीवन में विविध दुःख है?

हम सभी के मन में प्रश्न उठता है कि हमने तो किसी का बुरा नहीं किया फिर हमारे साथ बुरा क्यों हो रहा है? क्यों मेरे जीवन में विविध दुःख है?

हमारे तन में बीमारी,मन मे अशांति, धन की हानि व बिगड़ते सम्बन्धों की परेशानी क्यों झेलनी पड़ रही है?

इन समस्त प्रश्नों को प्रैक्टिकल सहित, विभिन्न मरीज़ो की केस स्टडी सहित इस वीडियो को देख समझें।

अनुरोध है अपने जीवन के 25 मिनट ध्यानस्थ हो खुले मन से इस वीडियो को देखने में ख़र्च करिये, कम से कम इसके बताये समाधान से 25 परेशानियां तो कम कर ही लेंगें। ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है।

https://youtu.be/xGDkEbSXk8Q

Monday 21 October 2019

कविता - *मैं* की जगह *हम*

कविता - *मैं* की जगह *हम*

😞😞😞😞😞😞
तुम वो सुनने आये थे,
जो मैं कह न सकी,
तुम वो कहने आये थे,
जो मैं सुन न सकी।

जब एक छत के नीचे,
सपने दोनों के अलग अलग हों,
अपनी अपनी ख्वाइशों को,
पूरी करने की कठिन ज़िद हो,
तब घर घर नहीं रहता ज़नाब,
बस दो अंजान लोगों के,
साथ रहने का स्थान होता है,
जब बात बात पर हम की जगह,
 *मैं* और सिर्फ़ *मैं* होता हैं,
वहाँ वैवाहिक रिश्ता,
अंतिम श्वांस ले रहा होता है,
ऐसा गृहस्थ जीवन ही,
सदा असफ़ल होता है।

🌹🌹🌹🌹
😇😇😇😇
जब तुम वो भी समझ गए,
जो मैं कह न सकी,
तुम वो कहने आये,
जिससे मुझे ख़ुशी मिली।

जब एक छत के नीचे,
दोनों के सपने एक हुए,
अपनी अपनी ख्वाइशों को भूल,
जब एक दूजे के लिये ही जिये,
तब घर एक मंदिर होता है जनाब,
वहाँ दो शरीर और एक होता है प्राण,

जब बात बात पर *मैं* की जगह,
 *हम* और सिर्फ़ *हम* होता हैं,
वहाँ ही वैवाहिक रिश्ता,
आनन्दमय-प्रेममय होता है,
ऐसा गृहस्थ जीवन ही,
सदा सफ़ल होता है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *किसी भी मिशन का पतन कैसे होता है? और कौन करता है?*

प्रश्न - *किसी भी मिशन का पतन कैसे होता है? और कौन करता है?*

उत्तर - जिस प्रकार मिशन का उत्थान शिष्य करते हैं, वैसे ही मिशन का पतन भी शिष्य ही करते हैं।

सत्य घटना से समझें.....भगवान बुद्ध ने शुरुआत में स्त्रियों का भिक्षुक बनना निषेध किया था, क्योंकि बीहड़ जंगल व असुरक्षित माहौल स्त्रियों के लिए सर्वथा अनुचित था।

लेक़िन महान स्त्रियों ने कहा क्या उन्हें मुक्ति का अधिकार नहीं? उनकी सत्य निष्ठा देखकर उन्हें भिक्षुणी बनने की आज्ञा दे दी गयी।

भिक्षुक या भिक्षुणी बनने का निर्णय व्यक्ति का स्वतंत्र निर्णय होता है, कोई उन्हें विवश नहीं करता था।

अब सोने को आप चेक कर सकते हो,   लेकिन मनुष्य के हृदय में क्या छिपा भला कैसे चेक करोगे? कौन किस उद्देश्य से भिक्षुक या भिक्षुणी बन रहा है? यह जानना सम्भव ही न था।

कुछ अकर्मण्य लोग जो संसारी मेहनत से बचना चाहते थे वो भी भिक्षुक स्वार्थ में बनने लगे, कुछ प्रवचन सुनकर बिना गहराई से आत्मा की पुकार समझे बहती गंगा में भावुकता में प्रवेश कर गए, कुछ एक दूसरे के देखा देखी बिना मर्म समझें प्रवेश कर गये। कुछ कन्याओं का विवाह नहीं हो रहा था तो समाज की लांछना व परिवार के तानों से बचने के लिए संघ में आ गए। कुछ युवक जॉब व्यवसाय न कर सके तो वो भी आ गए। कुछ धनी लोग संसारी विषाद में टूट गए या प्रियजन का बिछोह में उन्हें संसार न भाया और वो भी भिक्षुक बन गए।

जब बटखरा ही खोटा हो तो सौदा सच्चा कैसे होगा? जब नियत में ही खोट हो तो मन साधना में कैसे लगेगा?

ऐसे लोगों के परिवार भी तो खोटे ही होंगे, गालियाँ देने लगे बुद्ध को और उनके अनुयायियों को... हमारे बच्चों पर जादू करके उन्हें भिक्षुक बना दिया। जिनके शरीर बीहड़ की कठिनाई न झेल पाते तो बीमार होकर जब वो मृत्यु की गोद में जाते तो परिवार वाले बुद्ध को गालियाँ देते, जब सम्हाल नहीं सकते थे तो भिक्षु क्यों बनाया। अमीर आदमी जब तक दस 15 दिन शोक में था, भिक्षुक जीवन भाया। लेकिन जैसे जैसे प्रियजन की याद धूमिल हुई, शोक मिटा तो भिक्षुक बनने का अफसोस हुआ।

नियत खोटी वाले भिक्षु व भिक्षुणी प्रेम बन्धन में बंध जाते। बड़ी दुविधा थी कि संसार में वापस जाएंगे तो पतित जमाना कहेगा, यहां रहना सम्भव नहीं हो रहा। तो वो भी लोगों को उकसाते व भड़काते कि लोग बौद्ध स्तूप के निर्माण हेतु दान देते हैं अमुक भिक्षुक घोटाला कर रहे हैं। कुछ पैसे के लोभी भी इसमें हाथ सेंकते।

कुछ बुद्ध सा प्रतिष्ठित व नाम पाने को  संघ में प्रवेश करते, उचित पद प्रतिष्ठा न मिलने पर लड़ाई झगड़े करते।

कुछ ने बौद्ध धर्म में ध्यान को चुना और गुरु के पद चिन्हों पर चले, कुछ ने तंत्र को चुनकर भय दिखाकर जनता से कमाना शुरू कर दिया।

जब बुद्ध ने रोका, तो साजिश के तहत के किसान से उन्हें ज़हर ही भोजन में दिलवा दिया।

बुद्ध को किसी और ने नहीं मारा, उनके ही भिक्षुक शिष्यों ने मरवाया जो स्वयं की इच्छा से भिक्षुक बनने आये और स्वयं की इच्छा से भिक्षुक से संसार मे लौट न सके।

किसी भी मिशन को बर्बाद बाहर का व्यक्ति नहीं कर सकता, भीतर का व्यक्ति करता है, जो प्रवचन सुनकर या  भावनाओं के ज्वार भाटे में प्रतिष्ठित जॉब छोड़कर आया था। लेकिन कठिन आश्रम और मामूली ख़र्च में अब रह नहीं पा रहा। संसार मे लौटना चाहता है, लौट नहीं पा रहा। अपना फ्रस्ट्रेशन मिशन में निकाल रहा है। वो चाहता है कि वो सब छोड़कर आया है तो मिशन उसका अहसान माने और उसे सर आंखों पर बिठा के रखे, पद प्रतिष्ठा दे।

शिष्य भूल जाते हैं कि संसार छोड़कर अध्यात्म में प्रवेश की पहली शर्त है, गुरु को व्यक्ति नहीं शक्ति मानना। गुरुचेतना को धारण करना। दीक्षा अर्थात - अपनी इच्छा का त्याग। मैं की भावना का त्याग। जो *मैं* को बिना त्यागे केवल जॉब-धन-एशोआराम छोड़कर मिशन में प्रवेश करेगा।उसकी फ्रस्ट्रेशन व पुराने जीवन की याद उसे तबाह करेगी और वो मिशन को दीमक की तरह खा जाएगा। खोखला कर देगा, वो कभी आधा ग्लास भरा नहीं देख पायेगा। वो सदैव आधा ग्लास ख़ाली का रुदाली गैंग तैयार करेगा। फ़ेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, पब्लिक मीटिंग में कभी भी आधे ग्लॉस भरे की भूलकर भी चर्चा नहीं करेगा और नए शिष्यों के मन में आधा ग्लास ख़ाली का दृष्टिकोण जमा देगा।

वो कहते हैं कि आधा ग्लास खाली है,
हम कहते हैं कि आधा भरा काफ़ी है,

वो कहते हैं कि दिये के नीचे का अँधेरा  देखो,
जो स्वयं के नीचे का अंधेरा न मिटा सका वो हमारे किस काम का?
हम कहते हैं कि दिये के ऊपर का प्रकाश देखो,
उस प्रकाश से तुम भी जल उठो एक दिया बन जाओ,
वो तुम्हारे नीचे का अंधकार मिटा दे,
तुम उसके नीचे प्रकाश फैला दो।

वो कहते हैं कि चाँद में दाग है,
हम कहते है कि उसकी चाँदनी ख़ास है।

वो कहते हैं कि देखो मेरे घर का आधा छप्पर उड़ गया,
हम कहते है कि देखो मेरे गुज़र बसर को आधा छप्पर बच गया।

गुरु व्यक्ति है, यह भी सही है,
गुरु शक्ति है, यह भी सही है,

वो भी सही कह रहे हैं,
हम भी सही कह रहे हैं,
चयन आपको विवेक से करना है,
कि किसकी बात आपको मानना है।

अंगअवयव में कोई पैर, कोई, हाथ, कोई गुर्दा, कोई किडनी, कोई दिमाग, कोई तलवा इत्यादि बनता है। कोई दृश्य अंग है और अदृश्य अंग है। फूलों की माला गले मे ही पड़ती है, तो क्या पैरों का महत्त्व कम हो जाता जिसपर वह व्यक्तित्व खड़ा है? क्या हृदय का महत्त्व कम हो जाता है जिससे वो जिंदा है? अरे माला के सम्मान के लिये गले से युद्ध दिमाग़ और पैर का क्या जायज है?????स्वयं विचार करें....

या इस बात से आनन्दित हों कि अहोभाग्य मैं चरण हूँ मुझ पर मिशन खड़ा है, अहोभाग्य मैं दिमाग़ हूँ बहुत कार्य कर सकता हूँ, अहोभाग्य में हृदय हूँ, स्वयं विचार करें...

🙏🏻श्वेता, DIYA

जो चाहो परिवार बसाना, कभी नशे को हाथ न लगाना।



आप अपने बच्चे के प्यार में यदि नशे का प्यार मल्टीप्लाई करेंगे तो रिजल्ट में बच्चे के भविष्य की बर्बादी मिलेगी।

जो बच्चे से करे प्यार,
वो नशे को कभी न लगाए हाथ,
मन को करे नियंत्रित,
जीवन भर दे बच्चे का साथ।
नशा नाश की जड़ है भाई,
नशे ने सदा बर्बादी ही लाई।
जो चाहो परिवार बसाना,
कभी नशे को हाथ न लगाना।
जब होश में स्वयं रह सकोगे,
तभी बच्चे का सुनहरा भविष्य गढ़ सकोगे।
🙏🏻श्वेता, DIYA
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=368391247149984&id=250256018963508

Sunday 20 October 2019

भाई दूज(यम द्वितीया),Bhaiya Dooj, भैयादूज- कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया उत्सव मनाने की विधि

*भाई दूज(यम द्वितीया)- कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया उत्सव मनाने की विधि*
29 अक्टूबर, 2019, मंगलवार
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भाई दूज, भाई- बहन के अटूट प्रेम और स्नेह का प्रतीक माना जाता है, जिसे यम द्वितीया या भैया दूज (Bhaiya Dooj) भी कहते हैं। यह हिन्दू धर्म के प्रमुख त्यौहारों में से एक है, जिसे कार्तिक माह की शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है।

भाई दूज देश के बाहर भी मनाया जाता है। यह भाइयों और बहनों के बीच प्यार के बंधन को बढ़ाने के लिए रक्षा बंधन त्योहार की तरह है। इस शुभ दिन की बहनें अपने विशेष भाइयों की भलाई और कल्याण के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं, जबकि भाई अपनी बहनों के प्रति प्रेम दिखाने और उनकी देखभाल करने के लिए अपनी ताकत के अनुसार उपहार पेश करते हैं। ​

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पंचम दिन - *भैया दूज* , 29 अक्टूबर, 2019

*भाई दूज तिलक का समय* : 13:11:34 से 15:25:13 तक
*अवधि* : 2 घंटे 13 मिनट

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*भाई दूज पूजा विधि* (Bhai Dooj Puja Vidhi)

इस दिन सुबह पहले स्नान करके गायत्री, लक्ष्मी-विष्णु और गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। बहन अपने हाथों से बना कुछ मीठा हलवा या मिठाई या खीर सर्वप्रथम तुलसी पत्र डालकर ईश्वर को भोग लगाएगी, और भाई बहन एक दूसरे के सद्बुद्धि के लिए, उज्जवल भविष्य के लिए, धन धान्य के लिए पांच घी के दीपक जलाकर पूजन करेगें और साथ साथ निम्नलिखित मन्त्र का पूजन घर में दोहराएंगे:-

24 गायत्री मन्त्र - *ॐ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्*

5 महामृत्युंजय मन्त्र - *ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टि वर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्*

3 बार गणेश मन्त्र - *ॐ एक दन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्*

3 बार लक्ष्मी मन्त्र - *ॐ महालक्ष्म्यै विद्महे, विष्णु प्रियायै धीमहि। तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्*

3 बार विष्णु मन्त्र - *ॐ नारायणाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्*

मन्त्र जप के बाद आरती करके, बहन पूजा के थाल में तिलक, कलावा, और मीठा भोग लेगी। भाई के माथे पर टीका निम्नलिखित मन्त्र के साथ लगा कर उसकी लंबी उम्र और सद्बुद्धि की कामना करेगी। साथ में हल्दी वाले अक्षत भी माथे में लगाएगी।

*ॐ चन्दनस्य महत्पुण्यं, पवित्रं पापनाशनम्।*
*आपदां हरते नित्यम्, लक्ष्मीस्तिष्ठति सर्वदा॥*

फ़िर बहन भाई के हाथ में निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए कलावा(रक्षासूत्र बांधेगी)।

*ॐ व्रतेन दीक्षामाप्नोति, दीक्षयाऽऽप्नोति दक्षिणाम्।*
*दक्षिणा श्रद्धामाप्नोति, श्रद्धया सत्यमाप्यते॥* 

फिर बहन भाई को खीर/मीठा खिलायेगी।

भाई बहन को इसी तरह टीका लगाकर, कलावा बांधकर खीर/मीठा खिलायेगा।

दोनों एक दूसरे को वादा करेंगे, हम सुख दुःख में एक दूसरे का साथ देंगें, किसी भी कारण से भाई बहन के पवित्र रिश्ते को कलुषित नहीं होने देंगें।

इस दिन भाई को बहन के घर जाकर भोजन करना चाहिए। अगर बहन की शादी ना हुई हो तो उसके हाथों का बना भोजन करना चाहिए। अपनी सगी बहन न होने पर चाचा, भाई, मामा आदि की पुत्री अथवा पिता की बहन के घर जाकर भोजन करना चाहिए। साथ ही भोजन करने के पश्चात बहन को गहने, वस्त्र आदि उपहार स्वरूप देना चाहिए इस दिन यमुनाजी में स्नान का विशेष महत्व है।

गिफ़्ट से प्यार को तौल कर इस रिश्ते का अपमान न करें, तथाकथित आधुनिकता में इसे लड़की लड़के का युद्ध मैदान न बनाएं। हाथ की पांचो अंगुलियां बराबर न होने पर सभी महत्त्वपूर्ण है। इसी तरह परिवार में सब बराबर हैं एक दूसरे के पूरक है। अध्यात्म में ठहराव और धैर्य की शक्ति की जरूरत होती है, इसलिए इस कठिन दायित्व को स्त्रियों ने उठाया हुआ है। अध्यात्म बल से पति और भाई को समुन्नत बनाने के लिये वो इसे ख़ुशी से करती हैं। घर के बाहर के शरीरिक बल के कठोर कार्य पुरुष ख़ुशी से अपने परिवार के लिए करते हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन
Email:- sweta.awgp@gmsil.com

भाई बहन दोनों सुखी जीवन जीने के लिए निम्नलिखित पुस्तकें युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी की एक दूसरे को गिफ्ट में दें:-

1- सफलता के सात सूत्र साधन
2- आगे बढ़ने की तैयारी
3- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
4- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
5- गृहस्थ एक तपोवन

गोबर्धन पूजा, अन्नकूट पूजा- कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा* 28 अक्टूबर 2019, सोमवार

*गोबर्धन पूजा, अन्नकूट पूजा- कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा*
28 अक्टूबर 2019, सोमवार
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गाय का गोबर वास्तव में किसानों के लिए और सारे संसार के लिए धन है। *गोबर्धन अर्थात् गोबर ही धन का श्रोत है।*
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चतुर्थ दिन - *गोवर्धन पूजा/अन्नकूट पूजा* , 28 अक्टूबर 2019, सोमवार

*गोवर्धन पूजा सायंकाल मुहूर्त* :15:25:46 से 17:39:44 तक
अवधि :2 घंटे 13 मिनट

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*गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है*। शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती जैसे नदियों में गंगा। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। इनका बछड़ा खेतों में अनाज उगाता है। इस तरह गौ सम्पूर्ण मानव जाती के लिए पूजनीय और आदरणीय है। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की।

स्वामी दयानन्द सरस्वती कहते हैं कि एक गाय अपने जीवनकाल में 4,10,440 मनुष्यों हेतु एक समय का भोजन जुटाती है

गाय की रीढ़ में स्थित सूर्यकेतु नाड़ी सर्वरोगनाशक, सर्वविषनाशक होती है।

*सूर्यकेतु नाड़ी सूर्य के संपर्क में आने पर स्वर्ण का उत्पादन करती है। गाय के शरीर से उत्पन्न यह सोना गाय के दूध, मूत्र व गोबर में मिलता है। यह स्वर्ण दूध या मूत्र पीने से शरीर में जाता है और गोबर के माध्यम से खेतों में। कई रोगियों को स्वर्ण भस्म दिया जाता है।*

*वैज्ञानिक कहते हैं कि गाय एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो ऑक्सीजन ग्रहण करता है और ऑक्सीजन ही छोड़ता है, ‍जबकि मनुष्य सहित सभी प्राणी ऑक्सीजन लेते और कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते हैं। पेड़-पौधे इसका ठीक उल्टा करते हैं।*

*देशी गाय के एक ग्राम गोबर में कम से कम 300 करोड़ पौधों को पोषण देने वाले जीवाणु होते हैं। धरती की नमी बचाये रखते है।*

*रूस में गाय के घी से हवन पर वैज्ञानिक प्रयोग किए गए हैं।*

*एक तोला (10 ग्राम) गाय के घी से यज्ञ करने पर ऑक्सीजन बनती है।*

जब कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उँगली पर उठाकर रखा और गोप-गोपिकाएँ उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे। सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और हर वर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा।

*इस पर्व का सन्देश है, क़ि यदि मानवजाति और भोजन को जहर से बचाना चाहते हो तो कीटनाशक और अन्य रासायनिक खादों को बन्द करके, गौ मूत्र और गुड़ को मिलाकर अमृत जल से खेती में छिड़काव करो। गाय के गोबर की कम्पोस्ट खाद बना, अमृत मिट्टी गाय के गोबर, अमृत जल और वृक्षों के सूखे पत्तों को मिलाकर अमृत मिट्टी से खेती करे।*

*पूजन विधि, निरोगी जीवन और धन धान्य के लिए* -

गाय को नहला कर पूजन करे, और खेत से उपजे अन्न से बने पकवान का भोग लगाएं।

शहर में रहने वाले गाय की डेरी में जाकर चना और गुड़ दान दें, गाय को खिलाएं। गाय का तिलक चन्दन करें। और घर आते वक़्त थोड़ा सा गाय का ताज़ा गोबर घर ले आएं। साथ ही गाय के गोबर से बने सूखे उपले(कण्डे) भी ले आएं।

पूजन वेदी में गाय के गोबर को सुपारी जैसा गोल बना के एक तस्तरी में रख कर उसका पूजन करें।

एक छोटे मिट्टी के बर्तन में सूखे उपलों को तोड़कर, उसे कपूर और घी बाती की सहायता से जला कर, गाय के घी, जौ, तिल, हवन सामग्री से हवन करें, उसके बाद अंतिम एक आहुति  घर के बने मीठे पकवान खीर या हलवा से स्विष्टिकृत आहुति देकर यज्ञ पूरा करें।

यज्ञ में 11 आहुति गायत्री मन्त्र की दें -

*ॐ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्*
.
तीन आहुति महामृत्युंजय मन्त्र की - *ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टि वर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्*

तीन आहुति कृष्ण गायत्री मन्त्र की

*ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि। तन्नः कृष्णः प्रचोदयात्॥* - कृ० गा०.

एक आहुति माँ कामधेनु गौ माता को

*त्वं माता सर्वदेवानां त्वं च यज्ञस्य कारणम्।*
*त्वं तीर्थ सर्व तीर्थानां नमस्तेदस्तु सदानघे।।*

यज्ञ के बाद हाथ जोड़कर प्रार्थना कीजिये निम्नलिखित मन्त्र से,

*या देवी सर्वभूतेषु गौ रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इंडिया यूथ एसोसिएशन
Email- sweta.awgp@gmail.com

गौ सम्वर्द्धन और पर्यावरण हेतु प्रयास कीजिये, देशी गाय एकमात्र समस्त समस्याओं का समाधान है। गौ गंगा गीता और गायत्री यही हमारे भारतीय संस्कृति और धर्म का आधार है।

दीपावली पूजन विधि एवं महत्त्व* - *24 अक्टूबर 2022 रविवार

🔥💥 *दीपावली पूजन विधि एवं महत्त्व* - *24 अक्टूबर 2022 रविवार*
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 *मुख्य दीपावली पूजन*


लक्ष्मी-गणेश पूजन का शुभ मुहूर्त -शाम 06 बजकर 54 मिनट से 08 बजकर 16 मिनट तक 
लक्ष्मी पूजन की अवधि-1 घंटा 21 मिनट
प्रदोष काल - शाम 05 बजकर 42 मिनट से रात 08 बजकर 16 मिनट तक
वृषभ काल - शाम 06 बजकर 54 मिनट से रात 08 बजकर 50 मिनट तक 

दिवाली लक्ष्मी पूजा महानिशीथ काल मुहूर्त
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त्त - रात 11 बजकर 40 मिनट से लेकर 12 बजकर 31 मिनट तक
अवधि - 50 मिनट तक

दिवाली शुभ चौघड़िया मुहूर्त 2022
सायंकाल मुहूर्त्त (अमृत,चल):17:29 से 19:18 मिनट तक
रात्रि मुहूर्त्त (लाभ)               :22:29 से 24:05 मिनट तक
रात्रि मुहूर्त्त (शुभ,अमृत,चल):25:41 से 30:27 मिनट तक
 

इस साल *दीपावली 24 अक्टूबर 2022* को मनाई जाएगी।  
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दीपावली लक्ष्मी का पर्व माना गया है। लक्ष्मी से तात्पर्य है- अर्थ- धन। यह अर्थ का पर्व है। दीपावली पर हम अपनी आर्थिक स्थिति का लेखा- जोखा लेते हैं, उसका चिट्ठा बनाते हैं, लाभ- हानि पर विचार करते हैं, लेकिन केवल हिसाब- किताब तक ही यह पर्व सीमित नहीं है, वरन् इस अवसर पर आर्थिक क्षेत्र में अपनी बुराइयों को छोड़कर अच्छाइयाँ ग्रहण करने का पर्व है। अर्थ अर्थात् लक्ष्मी जीवन की साधना का, विकास की ओर बढ़ने का सहारा है, लेकिन ठीक उसी तरह जैसे माँ का दूध। हम लक्ष्मी को माँ समझ कर उसे अपने जीवन को विकसित- सामर्थ्यवान् बनाने के लिए उपयोग करें, न कि भोग- विलास तथा ऐशो- आराम के लिए ।। इसलिए माँ लक्ष्मी के रूप में अर्थ की पूजा करना दीपावली का एक विशेष कार्यक्रम है। आवश्यकतानुसार खर्च करना, उपयोगी कार्यों में लगाना, नीति और श्रम तथा न्याय से धनोपार्जन करना, बजट बनाकर उसकी क्षमता के अनुसार खर्च करना, आर्थिक क्षेत्र में सन्तुलन बनाये रखना, ये दीपावली पर्व के सन्देश हैं।

गणेश, दीप पूजन और गो- द्रव्य पूजन इस पर्व की विशेषताएँ हैं। इनसे तात्पर्य यह है कि धन की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी का अर्थात् अर्थ का सद्बुद्धि, ज्ञान, प्रकाश और पारमार्थिक कार्यों से विरोध नहीं होना चाहिए, वरन् अर्थ का सद्बुद्धि, ज्ञान, प्रकाश और पारमार्थिक कार्यों से विरोध नहीं होना चाहिए, वरन् अर्थ का उपयोग इनके लिए हो और अर्थोपार्जन भी इन्हीं से प्रेरित हो।

लक्ष्मी पूजन प्रारम्भ करने से पूर्व पूजा वेदी पर लक्ष्मी- गणेश के चित्र या मूर्ति, बहीखाता, कलम- दवात आदि भली प्रकार सजाकर रखने चाहिए तथा आवश्यक पूजा की सामग्री तैयार कर लेनी चाहिए।

यों तो सभी पर्व सामूहिक रूप से मनाये जाते हैं, परन्तु पूजन के लिए किसी प्रतिनिधि को पूजा चौकी के पास बिठाना पड़ता है, इसी परिप्रेक्ष्य में पास बिठाये हुए प्रतिनिधि को षट्कर्म कराया जाए, अन्य उपस्थित परिजनों का सामूहिक सिंचन से भी काम चलाया जा सकता है। फिर सर्वदेव नमस्कार, स्वस्तिवाचन आदि क्रम सामान्य प्रकरण से पूरे कर लिये जाएँ। तत्पश्चात् श्रीगणेश एवं लक्ष्मी के आवाहन- पूजन प्रतिनिधि से कराए जाएँ।

👉🏻॥ *गणेश आवाहन*॥

गणेश जी को विघ्ननाशक और बुद्धि- विवेक का देवता माना गया है। दीपावली पर गणेश पूजन से तात्पर्य यह है कि हम धन को खर्च करने और कमाने में बुद्धि- विवेक से काम लें। अविवेकी ढंग से बुद्धिहीनता के साथ उसे गलत ढंग से न तो अर्जन करें, न खर्च ही करें।

*ॐ एकदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि।*
*तन्नो दन्ती प्रचोदयात्॥* - गु०गा०
*ॐ विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय,*
*लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय।*
*नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय,*
*गौरीसुताय गणनाथ! नमो नमस्ते॥*
*ॐ श्री गणेशाय नमः॥ आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।*

👉🏻॥ *लक्ष्मी आवाहन॥*

लक्ष्मी को विष्णु भगवान् की पत्नी अर्थात् जगन्माता माना गया है। जीवन को भली प्रकार विकसित होने में अर्थ प्रधान साधनों की महती आवश्यकता होती है, लेकिन स्मरण रहे हम इनका उपयोग माता की तरह ही करें। जिस तरह माता का पयपान हम जीवन धारण करने एवं भूख बुझाने के लिए करते हैं, उसी तरह धन आदि साधनों का सदुपयोग करें।

इसी तथ्य को हृदयंगम करने के लिए दीपावली पर महालक्ष्मी का पूजन किया जाता है। निम्न मन्त्र से माँ लक्ष्मी का भावभरा आवाहन करें-

*ॐ महालक्ष्म्यै विद्महे, विष्णुप्रियायै धीमहि। तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्॥* - ल० गा०
*ॐ आद्यन्तरहिते देवि, आद्यशक्ति महेश्वरि। योगजे योगसम्भूते, महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥*
*स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे, महाशक्ति महोदरे। महापापहरे देवि, महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥*
*पद्मासनस्थिते देवि, परब्रह्म- स्वरूपिणि। परमेशि जगन्मातः, महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥*
*श्वेताम्बरधरे देवि, नानालङ्कारभूषिते। जगत्स्थिते जगन्मातः, महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥*
ॐ श्री लक्ष्म्यै नमः। आवाहयामि स्थापयामि, ध्यायामि॥

पुरुष सूक्त (पृष्ठ ९६) से सभी आवाहित देवताओं का षोडशोपचार पूजन करें।

👉🏻॥ *बहीखाते एवं कलम दवात का पूजन*॥

बही, बजट बनाने एवं हिसाब रखने का साधन है, आय- व्यय को बताने वाली है। इसलिए दीपावली पर बही का पूजन किया जाता है। कलम- दवात भी हिसाब लिखने के काम में आते हैं। लक्ष्मी के अर्थात् धन के हिसाब- किताब में इनका उपयोग होने से इन सबकी भी पूजा की जाती है। नये वर्ष के लिए प्रयुक्त की जाने वाली बही तथा कलम- दवात का पूजन- विधिवत् निम्न मन्त्रों के साथ करें। पूजन करने के समय उन्हें, अक्षत, चन्दन, पुष्प, धूप, दीप आदि समर्पित करके प्रणाम करें।

👉🏻॥ *बहीखाता पूजन*॥

*ॐ प्रसवे त ऽ उदीरते,* *तिस्रो वाचो मखस्युवः।*
*यदव्य एषि सानवि*॥ - ऋ० ९.५०.२

॥ *कलम- दवात/लैपटॉप पूजन*॥

ॐ शिशुर्न जातोऽव चक्रदद्वने, स्व१र्यद्वाज्यरुषः सिषासति।
दिवो रेतसा सचते पयोवृधा, तमीमहे सुमती शर्म सप्रथः॥ - ऋ ० ९.७४.१

👉🏻॥ *दीपदान*॥

दीप, ज्ञान के- प्रकाश के प्रतीक हैं। ज्ञान और प्रकाश के वातावरण में ही लक्ष्मी बढ़ती है, फलती- फूलती है। अज्ञान और अन्धकार में वह नष्ट हो जाती है, इसलिए प्रकाश और ज्ञान के प्रतीक साधन दीप जलाये जाते हैं।
एक थाल में कम से कम ५ या ११ घृत- दीप जलाकर उसका निम्न मन्त्र से विधिवत् पूजन करें। तत्पश्चात् दीपावली के रूप में जितने चाहें, उतने दीप तेल से जलाकर विभिन्न स्थानों पर रखें।

*ॐ अग्निर्ज्योतिर्ज्योतिरग्निः स्वाहा। सूर्यो ज्योतिर्ज्योतिः सूर्यः स्वाहा। अग्निर्वर्च्चो ज्योतिर्वर्च्चः स्वाहा। सूर्यो वर्च्चो ज्योतिर्वर्च्चः स्वाहा। ज्योतिः सूर्यः सूर्यो ज्योतिः स्वाहा*॥ ३.९

👉🏻॥ *सङ्कल्प॥*

सभी परिजनों से सङ्कल्प करवाया जाए। वही सङ्कल्प के पुष्पाक्षत पुष्पाञ्जलि मन्त्र बोलते हुए, पूजा की चौकी पर चढ़ाते हुए, क्रम समाप्त करें।
.................... *नामाहं महालक्ष्मीपूजनपर्वणि अर्थशक्तिं महालक्ष्मीप्रतीकं विज्ञाय अपव्ययादिदोषं दूरीकरणस्य संकल्पमहं करिष्ये॥*

🙏🏻आपको और आपके परिवार को दीपावली की बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं🙏🏻 विनम्र अनुरोध दीपावली में मिठाई के साथ युगसहित्य जरूर मित्र रिश्तेदारों को बांटे, ताकि युगसाहित्य के ज्ञान के प्रकाश से उनके जीवन का अन्धकार मिट जाए, और सद्बुद्धि के साथ जीवन में मिठास सदा बनी रहे।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती, DIYA
Email:- sweta.awgp@gmail.com
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रेफरेंस पुस्तक - कर्मकांड भाष्कर

नर्क चतुर्दशी/रूप चतुर्दशी पूजनविधि एवं महत्त्व 👉🏻 द्वितीय दिन - *रुप चतुर्दशी/नरक चौदस* 26 एवं 27 अक्टूबर

*नर्क चतुर्दशी/रूप चतुर्दशी पूजनविधि एवं महत्त्व*

👉🏻 द्वितीय दिन - *रुप चतुर्दशी/नरक चौदस* 26 एवं 27 अक्टूबर

*अभ्यंग स्नान समय (27 अक्टूबर, रविवार)* : 05:15:59 से 06:29:14 तक
*अवधि* : 1 घंटे 13 मिनट

कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन चंद्र उदय या अरुणोदय (सूर्य उदय से सामान्यत: 1 घंटे 36 मिनट पहले का समय) होने पर नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। हालांकि अरुणोदय पर चतुर्दशी मनाने का विधान सबसे ज्यादा प्रचलित है।

चतुर्दशी तिथि 26 अक्टूबर दोपहर से 27 अक्टूबर 12:25:25 तक है।
सूर्योदय चतुर्दशी तिथि में 27 अक्टूबर रविवार को होगा।

मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी ( Naraka Chaturdashi 2019 date ) के दिन ब्रह्ममुहूर्त में तिल(तिल्ली) के तेल लगाकर स्नान करने से नरक से मुक्ति मिलती है। वहीं इस दिन शाम को दीपदान की प्रथा है, जिसे यमराज के लिए किया जाता है।

अतः चतुर्दशी का दीपदान 26 अक्टुबर को करें और सुबह वाला तिल का तेल लगाकर सूर्योदय पूर्व अभ्यंग स्नान 27 अक्टूबर रविवार को करें।

इस दिन सूर्योदय से पूर्व नहाना अनिवार्य है और सूर्य को जल चढ़ा कर सूर्योपासना अनिवार्य है।

नहाते समय मन ही मन माँ गंगा का निम्न मन्त्र जपें-
*ॐ ह्रीं गंगायै, ॐ ह्रीं स्वाहा*

नरक चतुर्दशी पूजन विधि (Narak chaturdashi puja vidhi)

इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान का महत्व होता हैं। इस दिन स्नान करते वक्त तिल एवम तेल से नहाया जाता है, इसके साथ नहाने के बाद सूर्य देव को अर्ध्य अर्पित निम्नलिखित मन्त्रों से करते हैं।

👉🏻 सूर्य अर्घ्य मन्त्र- *ॐ सूर्य देव सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते। अनुकंपये माम भक्त्या गृहणार्घ्यं दिवाकर:।।ॐ सूर्याय, आदित्याय नमः*

*ऊं भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात।*

आज के दिन शरीर पर चंदन लेप लगाकर स्नान किया जाता हैं एवम भगवान कृष्ण की उपासना की जाती हैं.रात्रि के समय घर की दहलीज पर दीप लगाये जाते हैं और दीपयज्ञ किया जाता है। एवम यमराज की पूजा भी की जाती हैं।
इस दिन हनुमान जी का जन्म भी मान जाता है और उनकी अर्चना भी की जाती हैं।

शाम की पूजन विधि -
👉🏻1- गुरु आवाहन मंत्र - *ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु, गुरुरेव महेश्वरः । गुरुरेव परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः ।।*

👉🏻2 - कृष्ण आवाहन मन्त्र - *ॐ देवकी नन्दनाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि । तन्नो कृष्ण प्रचोदयात ।*

राधा आवाहन मंत्र - *ॐ वृषभानुजायै विद्महे, कृष्ण प्रियायै धीमहि। तन्नो राधा प्रचोदयात*

👉🏻3- हनुमान आह्वाहन- *ॐ अंजनीसुताय विद्महे, वायुपुत्राय धीमहि, तन्नो मारुति: प्रचोदयात्*

👉🏻४ -दीपदान मंत्र ( कम से कम 5 या 11 या 21 घी के दीपकों को प्रज्वल्लित करें )-

*ॐ अग्निर्ज्योतिर्ज्योतिरग्नी: स्वाहा । सूर्यो ज्योतिर्ज्योतिः सूर्यः स्वाहा । अग्निर्वर्च्चो ज्योतिर्वर्च्चो स्वाहा । सूर्यो वर्च्चो ज्योतिर्वर्च्च: स्वाहा । ज्योतिः सूर्य्यः सूर्यो ज्योतिः स्वाहा ।।*

👉🏻5 - चौबीस(२४) बार गायत्री मंत्र का जप करें - *ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् , भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् ।*

👉🏻6- तीन बार महामृत्युंजय मंत्र का जप करें - *ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टि वर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।*

👉🏻7 - तीन बार लक्ष्मी गायत्री मंत्र का जप करें - *ॐ महा लक्ष्म्यै विद्महे, विष्णु प्रियायै धीमहि । तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॥*

👉🏻8 - तीन बार गणेश मंत्र का जप करें - *ॐ एक दन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि । तन्नो दंती प्रचोदयात् ॥*

👉🏻 तीन बार उपरोक्त कृष्ण गायत्री मन्त्र, राधा गायत्री मन्त्र और तीन बार हनुमान गायत्री मन्त्र

👉🏻9 - तीन बार यमराज गायत्री का मंत्र जप करें - *ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे महाकालाय धीमहि ! तन्नो यम: प्रचोदयात।*


👉🏻10-  तीन बार आरोग्य देवता सूर्य गायत्री मन्त्र का जप करें- *ऊँ आदित्याय विदमहे, दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्यः प्रचोदयात्*

👉🏻11 - शान्तिपाठ - *ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।*

दीपक नकारात्मकता का शमन कर सकारात्मक दैवीय शक्तियों को घर में प्रवेश देता है। इसलिए दीपक की जगह विद्युत् से जलने वाली led या किसी भी प्रकार की लाईट नहीं ले सकती। घर के मुख्य् द्वार पर दो घी या सरसों या तिल के तेल के रुई बाती वाले दीपक, एक तुलसी के पास, एक रसोईं में और एक बड़ा मुख्य् दीपक सूर्यास्त के बाद जलाकर रख दें। फिर कलश स्थापना कर पूजन करें। दीपयज्ञ/दीपदान के बाद  सब घर के लोग मिलकर भजन गायें, और रात्रि का सब साथ में भोजन करें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन
Email:- sweta.awgp@gmail.com
रूप चतुर्दशी के दिन श्रद्धेय डॉक्टर साहब का जन्म दिन चेतना दिवस के रूप में मनाया जाता है। अतः युवाओं को जागृत करें।

पुस्तक -
 📖 *गहना कर्मणो गतिः*(कर्मफ़ल का सिद्धांत) और
📖 *स्वर्ग नरक की स्वचालित प्रक्रिया* युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य रचित का आज के दिन स्वाध्याय करें।

*धनतेरस पूजन विधि - 22 अक्टूबर 2012, शनिवार*

*धनतेरस पूजन विधि - 22 अक्टूबर 2012, शनिवार*

( घर में धन धान्य वृद्धि और सुख शांति के लिए )
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दिवाली से पहले धनतेरस पर पूजा का विशेष महत्व होता है. इस दिन धन और आरोग्य के लिए भगवान धन्वंतरि- भगवान महामृत्युंजय शिव और लक्ष्मी- कुबेर की पूजा की जाती है, साथ में धन को कमाने और उसके सदुपयोग की सद्बुद्धि के लिए गायत्री और गणेश के मन्त्रों से पूजा की जाती है।

👉🏻1- गुरु आवाहन मंत्र - *ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु, गुरुरेव महेश्वरः । गुरुरेव परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः ।।*

👉🏻2 - गणेश आवाहन मन्त्र - *ॐ एक दन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि । तन्नो दंती प्रचोदयात ।।*

👉🏻3- लक्ष्मी आवाहन मंत्र - *ॐ महा लक्ष्म्यै विद्महे, विष्णु प्रियायै धीमहि । तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ।*


👉🏻४ -दीपदान मंत्र ( कम से कम 5 या 11 या 21 घी के दीपकों को प्रज्वल्लित करें )-

*ॐ अग्निर्ज्योतिर्ज्योतिरग्नी: स्वाहा । सूर्यो ज्योतिर्ज्योतिः सूर्यः स्वाहा । अग्निर्वर्च्चो ज्योतिर्वर्च्चो स्वाहा । सूर्यो वर्च्चो ज्योतिर्वर्च्च: स्वाहा । ज्योतिः सूर्य्यः सूर्यो ज्योतिः स्वाहा ।।*

👉🏻5 - चौबीस(२४) बार गायत्री मंत्र का जप करें - *ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् , भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् ।*

👉🏻6- तीन बार महामृत्युंजय मंत्र का जप करें - *ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टि वर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।*

👉🏻7 - तीन बार लक्ष्मी गायत्री मंत्र का जप करें - *ॐ महा लक्ष्म्यै विद्महे, विष्णु प्रियायै धीमहि । तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॥*

👉🏻8 - तीन बार गणेश मंत्र का जप करें - *ॐ एक दन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि । तन्नो दंती प्रचोदयात् ॥*

👉🏻9 - तीन बार कुबेर का मंत्र जप करें - *ॐ यक्ष राजाय विद्महे, वैश्रवणाय धीमहि, तन्नो कुबेराय प्रचोदयात्॥*

👉🏻10-  तीन बार आरोग्य देवता धन्वन्तरि गायत्री मन्त्र का जप करें- *ॐ तत् पुरुषाय विद्महे, अमृत कलश हस्ताय धीमहि, तन्नो धन्वन्तरि  प्रचोदयात्*

👉🏻11 - शान्तिपाठ - *ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।*

दीपक नकारात्मकता का शमन कर सकारात्मक दैवीय शक्तियों को घर में प्रवेश देता है। इसलिए दीपक की जगह विद्युत् से जलने वाली led या किसी भी प्रकार की लाईट नहीं ले सकती। घर के मुख्य् द्वार पर दो घी या सरसों या तिल के तेल के रुई बाती वाले दीपक, एक तुलसी के पास, एक रसोईं में और एक बड़ा मुख्य् दीपक सूर्यास्त के बाद जलाकर रख दें। फिर कलश स्थापना कर पूजन करें। दीपयज्ञ/दीपदान के बाद घर की तिज़ोरी/लेपटॉप/बैंक की पासबुक इत्यादि का पूजन अवश्य करें।
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👉🏻प्रथम दिन - *धनतेरस पूजा व दीपदान मुहूर्त*- 22 अक्टूबर 2022,  शनिवार

*धनतेरस मुहूर्त* : शाम 7 बजकर 1 मिनट से शुरू होकर रात्रि 8 बजकर 17 मिनट तक रहेगा

उपरोक्त में लाभ समय में पूजन करना लाभों में वृ्द्धि करता है. शुभ काल मुहूर्त की शुभता से धन, स्वास्थय व आयु में शुभता आती है. सबसे अधिक शुभ अमृ्त काल में पूजा करने का होता है.

*Optional*- घर में बना हलवा या खीर प्रसाद में चढ़ाएं। यदि बजट है तो चांदी या स्वर्ण का कुछ भी सामान ख़रीद ले शाम 6:30 से पहले, उसे दूध में नहला के पूजन स्थल में साफ़ स्टील की कटोरी में लाल वस्त्र के ऊपर रख लें। उसका तिलक चन्दन कर पूजन के पश्चात् तिज़ोरी में रख दें, दीपावली के दिन पुनः उसका पुजन होगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन

इतने दिनों पूर्व भेजने से आप सभी अपने ईष्ट मित्रों को समय से पूर्व फारवर्ड कर दें। इतनी विधिवत् जानकारी सभी देवताओं के मन्त्र के साथ धनतेरस की अन्यत्र मिलना मुश्किल है। अतः शठ कर्म और कलश पूजन हेतु 📖 *कर्मकाण्ड प्रदीप्त* शांतिकुंज पब्लिकेशन की पुस्तक की मदद ले।

कुछ युगनिर्माण योजना मथुरा  प्रकाशन की पुस्तकें जिनके स्वाध्याय से अमीर बनने के रहस्य पता चलेंगे, जरूर धनतेरस के दिन पढ़े:-
1- धनवान बनने के गुप्त रहस्य
2- सफलता के सात सूत्र साधन
3- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
4- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
5- आगे बढ़ने की तैयारी

पांच दिन दीपावली उत्सव (धनतेरस, रुपचतुर्दशी, दीपावली, भैया दूज, गोबर्धन पूजन)

*पांच दिन दीपावली उत्सव (धनतेरस, रुपचतुर्दशी, दीपावली, भैया दूज, गोबर्धन पूजन)*


👉🏻प्रथम दिन - *धनतेरस पूजा व दीपदान मुहूर्त*- 25 अक्टूबर 2019,  शुक्रवार

*धनतेरस मुहूर्त* : 19:10:19 से 20:15:35 तक
*अवधि* : 1 घंटे 5 मिनट
*प्रदोष काल* :17:42:20 से 20:15:35 तक
*वृषभ काल* :18:51:57 से 20:47:47 तक

दीपावली से दो दिन पूर्व धनतेरस होता है। इस वर्ष कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी तिथि 25 अक्टूबर को दिन में 04:32 PM से प्रारंभ हो रही है, जो अगले दिन 26 अक्टूबर को दिन में 02:08 PM तक रहेगी। ऐसे में धनतेरस 25 अक्टूबर को होगा।
धनतेरस पर खरीदारी का मुहूर्त 04:32 PM से रात्रि तक है। आप चाहें तो 26 अक्टूबर को 02:08 PM तक धनतेरस की खरीदारी कर सकते हैं।

धनतेरस में शाम की पूजा का महत्त्व है।

👉🏻 द्वितीय दिन - *रुप चतुर्दशी/नरक चौदस* 26 एवं 27 अक्टूबर

*अभ्यंग स्नान समय (27 अक्टूबर)* : 05:15:59 से 06:29:14 तक
*अवधि* : 1 घंटे 13 मिनट

कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन चंद्र उदय या अरुणोदय (सूर्य उदय से सामान्यत: 1 घंटे 36 मिनट पहले का समय) होने पर नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। हालांकि अरुणोदय पर चतुर्दशी मनाने का विधान सबसे ज्यादा प्रचलित है।

चतुर्दशी तिथि 26 अक्टूबर दोपहर से 27 अक्टूबर 12:25:25 तक है।
सूर्योदय चतुर्दशी तिथि में 27 अक्टूबर रविवार को होगा।

मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी ( Naraka Chaturdashi 2019 date ) के दिन ब्रह्ममुहूर्त में तिल(तिल्ली) के तेल लगाकर स्नान करने से नरक से मुक्ति मिलती है। वहीं इस दिन शाम को दीपदान की प्रथा है, जिसे यमराज के लिए किया जाता है।

अतः चतुर्दशी का दीपदान 26 अक्टुबर को करें और सुबह वाला तिल का तेल लगाकर सूर्योदय पूर्व स्नान 27 अक्टूबर रविवार को करें।

👉🏻तृतीय दिन - *मुख्य दीपावली पूजन*

*लक्ष्मी पूजा मुहूर्त्त* : 18:44:04 से 20:14:27 तक
*अवधि* : 1 घंटे 30 मिनट
*प्रदोष काल* :17:40:34 से 20:14:27 तक
*वृषभ काल* :18:44:04 से 20:39:54 तक

*दिवाली महानिशीथ काल मुहूर्त लक्ष्मी पूजा मुहूर्त्त* :23:39:37 से 24:30:54 तक
*अवधि* :0 घंटे 51 मिनट

*महानिशीथ काल* :23:39:37 से 24:30:54 तक
*सिंह काल* :25:15:33 से 27:33:12 तक

*दिवाली शुभ चौघड़िया मुहूर्त*

*अपराह्न मुहूर्त्त (शुभ)*:13:28:49 से 14:52:44 तक
*सायंकाल मुहूर्त्त (शुभ, अमृत, चल)*:17:40:34 से 22:29:05 तक
*रात्रि मुहूर्त्त (लाभ)*:25:41:26 से 27:17:36 तक
*उषाकाल मुहूर्त्त (शुभ)*:28:53:46 से 30:29:57 तक


इस साल *दीपावली 27 अक्टूबर* को मनाई जाएगी। इस दीपावली पर सर्वार्थ सिद्धि का योग बन रहा है। दीपावली पर देव, गुरु, बृहस्पति और न्याय के देवता शनि कृपा दृष्टि बरसाएंगे। दो पुष्य नक्षत्र का योग इस दीपावली को बेहद खास और शुभदायी बनाने जा रहा है।

👉🏻चतुर्थ दिन - *गोवर्धन पूजा/अन्नकूट पूजा* , 28 अक्टूबर 2019, सोमवार

*गोवर्धन पूजा सायंकाल मुहूर्त* :15:25:46 से 17:39:44 तक
अवधि :2 घंटे 13 मिनट

👉🏻 पंचम दिन - *भैया दूज* , 29 अक्टूबर, 2019

*भाई दूज तिलक का समय* : 13:11:34 से 15:25:13 तक
*अवधि* : 2 घंटे 13 मिनट


🙏🏻श्वेता, DIYA

पूजन विधि अगली पोस्ट में भेजूंगी, पांच दिन की पांच पूजन विधि पोस्ट।

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Saturday 19 October 2019

कविता - हे मेरे मन, उलझना बड़ा सरल है, सुलझना बड़ा कठिन है,

हे मेरे मन,
उलझना बड़ा सरल है,
सुलझना बड़ा कठिन है,
अशांत होना बड़ा सरल है,
शांत होना बड़ा मुश्किल है,
तू बहादुर बन,
थोड़ा कठिन चुन,
विपरीत परिस्थितियों में भी,
शांत होना सीख।

हे मेरे मन,
तू एक सॉफ्टवेयर है,
जो शरीर के हार्डवेयर में इंस्टॉल है,
तू आत्मा की
विद्युत ऊर्जा से चल रहा है,
आत्म ऊर्जा ख़त्म,
तो शरीर रूपी हार्डवेयर ऑफ़,
मन तेरा अस्तित्व भी ऑफ,
हार्डवेयर का तो तू ध्यान रखता है,
लेकिन अक्सर आत्म ऊर्जा के बिल का,
भुगतान भूल जाता है।

हे मेरे मन,
तू मेरा सच्चा मित्र बन,
और मेरे उद्धार की सोच,
ज़रा भागदौड़ कम कर,
सही दिशा की ओर सोच,
कभी ठहर कर,
थोड़ा ध्यान में बैठ,
मुझे मेरे अंतर्जगत में ले चल,
प्राणऊर्जा से मुझे रिचार्ज कर।

हे मन,
तू है मेरा दर्पण,
मेरे व्यक्तित्व की तू है झलक,
तू यदि शांत है तो,
मेरा व्यक्तित्व निखरेगा,
तू यदि उद्विग्न है तो,
मेरा व्यक्तित्व बिखरेगा,
पढ़ना भी मेरे मन,
तुझको ही है,
याद सब कुछ करना तुझको ही है,
जॉब भी मेरे मन,
तू ही करेगा,
व्यवसाय भी मेरा मन,
तू ही सम्हालेगा,
रिश्ते भी मेरे मन,
तू ही बनाएगा,
यह शरीर तो बस,
तेरा साथ निभायेगा।

हे मेरे मन,
तू मजबूत बन,
स्वयं में अदम्य साहस भर,
बुद्धि की तलवार में,
तेज धार कर,
मेरा हर वक़्त साथ दे तू,
मुझे मेरे मन सम्हाल ले तू।

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *यज्ञ क्या एक विज्ञान है?*

प्रश्न - *यज्ञ क्या एक विज्ञान है?*

उत्तर- समस्या यह है कि आधुनिक जगत में यह प्रश्न पूंछने वाले *विज्ञान* क्या है यह नहीं जानते। यदि वो विज्ञान शब्द की समझ रखेंगे तब ही *यज्ञ एक विज्ञान* है समझ सकेंगे।

इस जगत में प्रकृति के किसी भी विषय के क्रमबद्ध ज्ञान विशेष व्यवस्थित ज्ञान को विज्ञान (Science) कहते हैं।
विज्ञान वह व्यवस्थित ज्ञान या विद्या है जो विचार, अवलोकन, अध्ययन और प्रयोग से मिलती है, जो किसी अध्ययन के विषय की प्रकृति या सिद्धान्तों को जानने के लिये किये जाते हैं। विज्ञान शब्द का प्रयोग ज्ञान की ऐसी शाखा के लिये भी करते हैं, जो तथ्य, सिद्धान्त और तरीकों को प्रयोग और परिकल्पना से स्थापित और व्यवस्थित करती है। इस प्रकार कह सकते हैं कि किसी भी विषय के क्रमबद्ध ज्ञान को विज्ञान कहते है। ऐसा कहा जाता है कि विज्ञान के 'ज्ञान-भण्डार' के बजाय वैज्ञानिक विधि विज्ञान की असली कसौटी है। Or प्रकृति मे उपस्थित वस्तुओं के क्रमबध्द अध्ययन से ज्ञान प्राप्त करने को ही विज्ञान कहते हैं। या किसी भी वस्तु के बारे मे विस्तृत ज्ञान को ही विज्ञान कहते हैं ।

औषधीय धूम्र चिकित्सा, ध्वनि चिकित्सा, मन्त्र चिकित्सा, ऊर्जा चिकित्सा का सँयुक्त रूप यज्ञ है। क्योंकि इसका विधिवत, व्यवस्थित विशेष क्रमबद्ध ज्ञान हमारे पास उपलब्ध है, इसे हज़ारों वर्षो से लेकर आज तक प्रकृति के सन्तुलन, पर्यावरण संवर्धन और रोगोपचार के लिए उपयोग में लिया गया है।

इसका परीक्षण कभी भी कहीं भी किया जा सकता है। इसके प्रभाव 90% चेतन स्तर के सूक्ष्म हैं तो 10% स्थूल स्तर के भी हैं। स्थूल स्तर को आधुनिक मशीनों से जांचा परखा जा सकता है जैसे पॉल्युशन पर प्रभाव और रोगाणुओं की हवा में कमी इत्यादि तो हवा का यज्ञ से पूर्व सैम्पल लेकर और यज्ञ के चार से आठ घण्टे बाद के हवा के सैम्पल लेकर उसकी जांच की जा सकती है। परिणाम देखा जा सकता है।

90% चेतन स्तर को परखने के लिए यज्ञ चिकित्सा से पहले रोगियों का स्ट्रेस लेवल, रक्त जांच व अन्य आंकड़े ले लिए जाते हैं, यज्ञ चिकित्सा के बाद पुनः स्ट्रेस लेवल, रक्त जांच व अन्य आंकड़े लिए जाते हैं। दोनों के अंतर की जांच व स्वास्थ्य लाभ रिपोर्ट से यज्ञ का चेतन प्रभाव भी जांचा व परखा जाता है।

मनुष्य की आंखे जितने कलर देख सकती हैं उतने कलर मशीन नहीं देख सकता हैं। जितनी ध्वनियों की वैरायटी कान सुन सकता है, जितनी ख़ुशबू की वैरायटी कान सुन सकता है, जितनी कल्पनायें मन बुन सकता है, और जो मनुष्य महसूस कर सकता है। यह सब कोई मशीन नहीं कर सकती। मनुष्य से बड़ी चलती फिरती लैब कोई नहीं। अतः स्वयं यज्ञ करके घर परिवार पर पड़ रहे प्रभाव को स्वयं महसूस करें। मन की शांति को स्वयं जांचे। स्वयं प्रमाणित करें कि यज्ञ से कितने लाभान्वित हुए।

*कुछ पुस्तक पढ़ें* :-

यज्ञ एक समग्र उपचार (वांग्मय 26)
यज्ञ का ज्ञान विज्ञान (वांग्मय 25)
यज्ञचिकित्सा

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
दिवाणी इंडिया यूथ असोसिएशन

बेहतर जीवन के सिद्धांत क्या हैं?परिवार में मूल्य अपनाना

Didi,
My four questions
♦value adoption for self development
♦value adoption in family
♦value adoption in professional life
♦principle of better living

♦आत्म विकास के लिए मूल्य अपनाना
♦परिवार में मूल्य अपनाना
♦व्यवसायी जीवन में मूल्य अपनाना
♦बेहतर जीवन का सिद्धांत

Didi pls provide my questions answer with reference of gurudev literature only.
🙏

उत्तर - आत्मीय भाई,

भारतीय संस्कृति में *मूल्य* वह अवधारणा है जो मानव को पशुता से दूर लाकर, उसे उन्नति की ओर अग्रसर करती है । नर पशु से मानव 👉🏻 फिर देव मानव की ओर अग्रसर करता है।

1- *आत्म विकास के लिए कौन सा मूल्य अपनाना चाहिए?*

सर्वप्रथम देह की परिधि से परे जाना होगा, स्वयं को देह नहीं आत्मा मानना होगा। अगले क्रम में आत्मा को तत्व से जानना होगा, क्योंकि उसे तत्व से जाने बिना उसका विकास सम्भव ही नहीं है। तत्व से आत्मा को जानने के लिए सच्चे प्रयास की जरूरत है। यह प्रयास बाहर की प्रयोगशाला में नहीं अपितु अंतर्जगत की प्रयोगशाला में करना है।     पुस्तक - *मैं क्या हूँ?* और  *जीवन की सर्वोपरि आवश्यकता - आत्म ज्ञान* पढ़िये। इनमें वर्णित व्रतों का पालन कीजिये। विचार साधना कीजिये, चिंतन इस दिशा में गहन कीजिये।

2- *परिवार में कौन से मूल्य अपनाने चाहिए?*

अक्सर लोगों को झगड़ते देखा होगा कि मैंने अपने जीवनसाथी को इतना सुख दिया लेकिन उसने मुझे समझा ही नहीं, उसने मुझे सुख दिया नहीं।

एक बात बताइये जो आपके पास है ही नहीं वह दूसरों को दे कैसे सकते है? धन होगा तभी तो दूसरे को दे सकते हैं, इसी तरह जब सुखी होंगे तभी तो दूसरे को सुख दे सकेंगे, जब मन में शांति होगी तभी तो परिवार में शांति बाँट सकोगे। दो मानसिक भिखारी जिनके मन मे न सुख है न शांति वो सुखी गृहस्थी नहीं बना सकते। यदि इनमें से एक भी साधक हुआ व उसके मन में सुख-शांति होगी तो वो दूसरे को दे सकेगा, बच्चे को भी सँस्कार दिए जा सकेंगे।

पुस्तक - *भाव सम्वेदना की गंगोत्री* , *गृहस्थ एक तपोवन* , *मित्रभाव बढ़ाने की कला*, *अपना सुधार ही संसार की सबसे बड़ी सेवा है*  इत्यादि पुस्तको को पढ़कर उनके सूत्र/मूल्य अपनाकर परिवार को सुखी व्यवस्थित बनाया जा सकता है।

3- *व्यवसायी जीवन में क्या मूल्य अपनाना चाहिए?*

अवव्यवस्थित मन से व्यवस्थित जॉब या व्यवसाय सम्भव नहीं है। समय प्रबन्धन के बिना व्यवसाय का प्रबंधन सम्भव नहीं है। क्या, कब, कैसे करना यह मन में गहन चिंतन से उभरना चाहिए? तब वह बाह्य संसार में एक्शन प्लान अनुसार होना चाहिए तभी सफलता मिलती है।

पुस्तक - *प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल* , *व्यवस्था बुद्धि की गरिमा* , *समय का सदुपयोग* ,  *सफलता के सात सूत्र साधन*

4- *बेहतर जीवन के सिद्धांत क्या हैं?*

बेहतर जीवन का एक वृक्ष है, जो बेहतर इंसान के भीतर से जन्म लेता है।

बेहतर जीवन क्या है? इसकी कोई सार्वभौमिक परिभाषा आप तय नहीं कर सकते। अक्सर यह सैद्धांतिक कम होता है तुलनात्मक ज्यादा होता है। इसे एक कहानी के माध्यम से समझें -

एक अमीर व्यक्ति के गाड़ी से जा रहा था, उसने चिलचिलाती धूप में बाईक वाले को देखा और भगवान को शुक्रिया अदा करते हुए कहा - *आपने मुझे बेहतर जीवन दिया*। बाइक वाले ने साइकिल वाले को देखा और भगवान को शुक्रिया अदा करते हुए कहा - *आपने मुझे बेहतर जीवन दिया*।

साइकिल वाले ने चिलचिलाती धूप में जूते पहने पैदल चलने वाले को देखा और भगवान को शुक्रिया अदा करते हुए कहा - *आपने मुझे बेहतर जीवन दिया*।

जूते वाले पैदल व्यक्ति ने चिलचिलाती धूप में बिन जूते पैदल चलने वाले को देखा, जिसके पैर में छाले पड़ गए थे और भगवान को शुक्रिया अदा करते हुए कहा - *आपने मुझे बेहतर जीवन दिया*।

उस पैदल चलने वाले चिलचिलाती धूप में लँगड़े को देखा और भगवान को शुक्रिया अदा करते हुए कहा - *आपने मुझे बेहतर जीवन दिया*।

उस लँगड़े ने एक मृतक को देखा और भगवान को शुक्रिया अदा करते हुए कहा - *आपने मुझे बेहतर जीवन दिया*। कम से कम मैं जिंदा तो हूँ।

केवल मुर्दे के पास शुक्रिया कहने को कुछ नहीं था क्योंकि उसके पास तो जीवन ही नहीं था। जो लोग जीवित होते हुए भी भगवान को धन्यवाद नहीं कहते वो वस्तुतः मृत प्रजाति के लोग है। जिनका शरीर जिंदा है और मन मृतक।

ईमानदार लोग के लिए ईमानदार जीवन बेहतर है, धन लिप्सा में ग्रस्त व्यक्ति के लिए धनी होना बेहतर जीवन है, शरीर को सबकुछ समझने वाले के लिए सुंदर शरीर बेहतर जीवन  का पर्याय है, और आत्मा को सबकुछ समझने वाले के लिए *आत्मज्ञान* प्राप्त करना सफल व बेहतर जीवन का पर्याय है। आपका जीवन के प्रति जो दृष्टिकोण होगा वही सफ़ल जीवन के आंकड़ों को तय करेगा। जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि।

पुस्तक - *दृष्टिकोण ठीक रखें* , *मनःस्थिति बदले तो परिस्थिति बदले*, *निराशा को पास न फटकने दें* , *जीवन जीने की कला* , *सफल जीवन की दिशा धारा* इत्यादि पुस्तक का स्वाध्याय आपकी बेहतर जीवन जीने के मूल्य प्राप्त करने में मदद करेगा।

🙏🏻मुझसे प्रश्न तीन तरह के मानसिकता के लोग पूँछते हैं, पहला वो जो सच में जिज्ञासु होते हैं और जो कुछ समस्या का समाधान चाहते हैं, दूसरे वो जो अपना मात्र ज्ञान बढ़ाना चाहते हैं, तीसरा वो जो मुझे परखना चाहते हैं।

आपके प्रश्न सूची यह बताती है कि आप समस्या का समाधान नहीं ढूढ रहे, मात्र ज्ञान में वृद्धि कर रहे है। आपका एक ज्ञानी का चिंतन है।

भाई, हम ह्यूमन साइकोलॉजी से पोस्ट ग्रेजुएट हैं, और गुरुदेव के लिखे ज्ञानमृत से जन जन के जीवन की समस्या के समाधान के रूप में दवा के रूप में वितरित करना चाहते हैं। अध्यात्म किसी के जीवन में उपचार कैसे करे उस पर केंद्रित हैं।

*आप जैसे ज्ञानी स्वतः स्वाध्याय करके ज्ञान बढ़ा सकते हैं, आपको मेरी मदद की जरूरत नहीं है।* अतः उन परिजनों की  *सेवा का सौभाग्य* करने में, काउंसलिंग करने में मुझे फोकस करने दीजिए जो मानसिक रूप से व्यथित व परेशान हैं। जो साधना मार्ग में सहायता चाहते हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday 18 October 2019

अहोई अष्टमी/अहोई आठे(कार्तिक कृष्णपक्ष अष्टमी- सन्तान लक्ष्मी व्रत)

*अहोई अष्टमी/अहोई आठे(कार्तिक कृष्णपक्ष अष्टमी- सन्तान लक्ष्मी व्रत)*
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कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी  के इस शुभ दिन सन्तान वाली माताएं अपने सभी सन्तानो के उज्जवल भविष्य, उनके शारीरिक-मानसिक-आध्यात्मिक स्वास्थ्य और विकास के लिए, उनकी सद्बुद्धि और दीर्घायु जीवन के लिए माँ सन्तान लक्ष्मी(अहोई माता) का पूजन करती हैं। माता अपनी सन्तानों को देश का रक्षक, परिवार का संरक्षक और समाज का उद्धारक बनाने के लिए माँ सन्तान लक्ष्मी से मदद मांगती है।

*अहोई अष्टमी व्रत: पूजा मुहूर्त*

अष्टमी तिथि का प्रारंभ 21 अक्टूबर को सुबह 06:44 बजे से हो रहा है, जिसका समापन 22 अक्टूबर को सुबह 05:25 बजे हो रहा है।

*अहोई अष्टमी को पूजा मुहूर्त 21 अक्टूबर की शाम को 05:46 बजे से रात 07:02 बजे तक है।*


पति एक होता है अतः करवा चौथ में आकाश में एक चन्द्र दर्शन का महत्त्व होता है, और सन्तान एक से अधिक हो सकती हैं इसलिए इस व्रत में तारों के दर्शन का महत्त्व है।

प्राचीन काल में स्त्रियां पढ़ी लिखी नहीं होती थीं, इस दिन के महत्त्व को बताने हेतु स्याह(सेई) और साहूकार की बहु की कहानी गढ़ी गयी ताकि कहानी के माध्यम से पर्व को याद रखा जा सके। जैसे पञ्चतन्त्र की कहानियाँ गढ़ी गयी थीं। इस कारण एक ने कही दूसरे ने सुनी, कोई कुछ भूला तो कुछ का कुछ जुड़ता गया। तो विश्वास की जगह अन्धविश्वास की बातें भी व्रत में जुड़ गयी। सभी जातियों में अलग अलग तरीके से व्रत मनाया जाने लगा।

क्यूंकि स्मार्ट फ़ोन उपयोग में लाने वाली महिलाएं पढ़ी लिखी है अतः उनके लिए इस व्रत के वैज्ञानिक और आध्यात्मिक पक्ष को ही रखूँगी। सार्वभौम व्रत विधि बता रही हूँ। आपके लड़की हो या लड़का दोनों ही आपकी सन्ताने हैं अतः व्रत करें।

*व्रत विधि* - व्रत के एक दिन पूर्व कच्चे चावल थोड़े से पानी में भिगो लें। सुबह मिक्सी में एक छोटा चम्मच हल्दी के साथ पीस लें। घर के दरवाजे और पूजन घर में स्वास्तिक इससे बनाएं, साथ ही घर के समस्त सदस्य को इससे तिलक लगाएं। इससे घर और मष्तिष्क की नकारात्मक ऊर्ज़ा नष्ट होगी।

व्रत निर्जल, जलाहार, रसाहार, फलाहार करके किसी भी विधि रह सकते हैं। कारण यह होता है क़ि पेट में अन्न सारी प्राणऊर्जा को पाचन प्रक्रिया में ख़र्च कर देता है। इसलिए अन्न न खाने के कारण प्राणऊर्जा तप में लगती है और जिसके लिए व्रत किया जाता है उसको लाभान्वित करती है।

कलश स्थापना पूजन गृह में सुबह होगी, पीसे हल्दी मिले चावल के पेस्ट से ही कलश पर भी स्वास्तिक बनेगा। कलश के समक्ष कम से कम दो वक़्त या तीन वक़्त पूजन होगा। शाम को दीपयज्ञ के बाद कलश उठेगा और इसी से चन्द्र को अर्घ्य दिया जायेगा रात में।

सन्तान के लिए 10 माला गायत्री मन्त्र की , और जितनी सन्तान हों उतनी ही माला सन्तान लक्ष्मी मन्त्र की और महामृत्युंजय मन्त्र की जपनी है।

*उदाहरण* - किसी के दो सन्तान(बच्चे हैं) तो वो 10 गायत्री मन्त्र की, 2 सन्तान लक्ष्मी मन्त्र की, 2 महामृत्युंजय मन्त्र की जपेगा।

गायत्री मन्त्र - *ॐ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्*

महामृत्युंजय मन्त्र- *ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टि वर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्*

सन्तान लक्ष्मी मन्त्र - *ॐ महालक्ष्म्यै विद्महे, विष्णु प्रियायै धीमहि, तन्नो सन्तान लक्ष्मीः प्रचोदयात्*

शाम को जितनी सन्ताने हैं उतनी कटोरी में चावल की खीर का भोग लगाएं। यदि चांदी की चम्मच का ख़र्च वहन कर सकें तो सब कटोरी में चांदी की चम्मच डाल दें। एक अलग बड़े बर्तन में समस्त परिवार के लिए खीर का भोग लगेगा।

सन्तानो के हाथ में हल्दी और पीसे चावल से निम्नलिखित मन्त्र से तिलक करें-

*ॐ चन्दनस्य महत्पुण्यं, पवित्रं पापनाशनम् । आपदां हरते नित्यं, लक्ष्मीस्तिष्ठति सर्वदा॥*

 ततपश्चात रक्षा सूत्र बांधे निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए-

*येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।*

एक मुख्य् दीपक सरसों के तेल का होगा, जिसमें चारो तरफ़ X के आकार में दो लम्बी बाती लगेगी। चार लौ एक ही दीपक में जलेंगी। इससे घर की नकारात्मकता का शमन होगा।

दीपयज्ञ हेतु 5 या 11 दीपक घी के जलाएंगे। एक एक दीपक घर का समस्त सदस्य जलायेगा। 5 गायत्री मन्त्र, 3 महामृत्युंजय मन्त्र, 3 चन्द्र गायत्री मन्त्र, 3 सन्तान लक्ष्मी मन्त्र सभी सदस्य मिलकर जपेंगे।

इसके बाद तीन बार हाथ में सभी परिवार जन पुष्प अक्षत लेकर सन्तान लक्ष्मी प्रार्थना मन्त्र जपें और मन्त्र के पश्चात् हथेली(अंजुली) में रक्षा पुष्प माँ लक्ष्मी के चरणों में अर्पित कर दें।- *या देवी सर्वभूतेषु, सन्तान लक्ष्मी रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः*

 फ़िर शांतिपाठ के बाद सभी सन्तानो को पहले खीर की कटोरी में प्रसाद उनके हाथ देंकर निम्नलिखित मन्त्र से खीर अभिमन्त्रित करेंगे। कटोरी में उतनी ही खीर रखें जितना आपका बच्चा पूरा खा सके।

*ॐ पयः पृथ्वियां पय औषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः ।पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम् ॥*

बच्चे माता पिता का चरण स्पर्श करेंगे, थोड़े पुष्प लेकर माता पिता अपनी सन्तानो पर पुष्पवर्षा करते हुए निम्नलिखित मन्त्र बोलते हुए आशीर्वाद देंगें।

*मंगलम भगवान विष्णु, मंगलम गरुड़ ध्वज। मंगलम पुण्डरीकाक्ष, मंगलाय तनो हरि।।*

खीर के प्रसाद को चन्द्र के समक्ष रात को थोड़ी देर के लिए रखना होगा। चन्द्र गायत्री मन्त्र तीन बार बोलकर अर्घ्य देंगें,

चन्द्र गायत्री मन्त्र - *ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे, अमृतत्वाय धीमहि। तन्नः चन्द्रः प्रचोदयात्*

उसके बाद कलश के जल के एक एक बूँद खीर पर डालेंगे। अब खीर का प्रसाद और बचा हुआ जल लेकर भोजन कक्ष में आ जाएँ।

प्रत्येक कटोरी की खीर सन्तान खायेगी। और बड़े बर्तन में लगा खीर का भोग अन्य सदस्य को मिलेगा।

यदि आर्थिक स्थिति अच्छी है, तो चांदी के गोल या अर्ध चन्द्रमा के अंदर स्वास्तिक का लॉकेट बना के कम से कम एक महीने पहन लें। इससे मन शांत होगा, नकारात्मकता का शमन होगा और माँ सन्तान लक्ष्मी की कृपा होगी।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन

पोस्ट लम्बी है, क्यूंकि पूजन विधि थोड़ी बड़ी है। कर्मकांण्ड प्रदीप्त से शठ कर्म और कलश पुजन मन्त्र पढ़ें।

Thursday 17 October 2019

कविता - *आओ साथ निभाओ ना*

कविता - *आओ साथ निभाओ ना*

कभी किचन में आकर तुम भी,
मेरा साथ निभाओ ना,
कभी मेरे साथ मिलकर तुम भी,
कुछ रोटियां पकाओ ना।

कभी मुझे अपने पास बुलाकर,
अपना प्रोजेक्ट समझाओ ना,
कभी मुझे भी अपने सपनों की उड़ान में,
शामिल कर लो ना।

कभी मेरे सर पर भी,
प्यार भरा हाथ फेरो ना,
कभी मेरे हृदय के भाव,
बिन बोले भी समझ लो ना।

हर क्षण हर पल इक मीठा रिश्ता,
दोस्ती के साथ बनाओ ना,
बराबरी व सम्मान के साथ,
गृहस्थ जीवन बिताओ ना।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Wednesday 16 October 2019

कविता - *पाश्चात्य की रेगिस्तानी मरीचिका में खोओ ना*

कविता - *पाश्चात्य की रेगिस्तानी मरीचिका में खोओ ना*

भारतीय संस्कृति की खूबसूरत वादियां छोड़कर,
पाश्चात्य के बंजर में जाओ ना,
गृहस्थ जीवन के सुमधुर अनुभवों को छोड़कर,
पाश्चात्य की रेगिस्तानी मरीचिका में खोओ ना।

सुकून की रोटी घर की छोड़कर,
कई दिनों की बासी ब्रेड खाओ ना,
घर की लक्ष्मी को ठुकराकर,
वैश्या के चरणों मे सुख ढूढो ना।

दूध छाछ मख्खन घर का छोड़कर,
पेप्सी कोला का जहर पियो ना,
यज्ञीय परम्परा घर की छोड़कर,
नशे व व्यसन के दलदल में फँसो ना।

लौट आओ पुनः भारतीय संस्कृति में,
रिश्तों की अहमियत पुनः समझ लो ना,
करवा चौथ के चाँद से कर वादा,
जीवन में चाँद सी शीतलता ला दो ना।

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *महिलाओं को मासिक शौच में करवा चौथ व्रत व पूजन करना चाहिए या नहीं ?*

प्रश्न - *महिलाओं को मासिक शौच में करवा चौथ व्रत व पूजन करना चाहिए या नहीं ?*

उत्तर - महिलाओं के रजोदर्शन काल में भी कई प्रकार के प्रतिबन्ध प्राचीन धर्मग्रन्थों में वर्णित हैं। भोजन आदि नहीं पकाती। उपासनागृह में भी नहीं जातीं।

इसका कारण मात्र अशुद्धि ही नहीं, यह भी है कि उन दिनों उन पर कठोर श्रम का दबाव न पड़े। अधिक विश्राम मिल सके। नस-नाड़ियों में कोमलता बढ़ जाने से उन दिनों अधिक कड़ी मेहनत न करने की व्यवस्था स्वास्थ्य के नियमों को ध्यान में रखते हुए बनी है। नाक की घ्राण शक्तिं कमज़ोर होती है और पूरा शरीर उस वक्त कमज़ोरी झेलता है। पहले आटा चक्की नहीं थी अतः रसोई में भोजन का अर्थ होता था चक्की पीसना और धान कूटना, तब चूल्हे में लकड़ी काटकर भोजन पकाना। अत्यधिक श्रम साध्य होता था भोजन पकाना, अतः विश्राम हेतु भोजन पकाना मना था।

आध्यात्मिक शक्ति को धारण करने के लिए नसों और उपत्यिकाओं का एक्टिव होना अनिवार्य है। कमर सीधी रखना उपासना के दौरान अनिवार्य है। प्राण शक्ति/ ऊर्जा को धारण करने हेतु रजोदर्शन/अशौच के समय शरीर सक्षम नहीं होता। उपासना गृह प्राणऊर्जा को संग्रहित रखता है और सूक्ष्म प्राण ऊर्जा संग्रहित रखता है। अतः दुर्घटना से बचाव हेतु उपासना गृह में जाना और उपासना करना वर्जित है।

स्त्री को यदि मात्र इस कारण अशुद्ध माना जाय कि उनका मेंटिनेंस पीरियड आता है, तो उस मेंटिनेंस के रक्तमांस से बने बच्चे - पुरुष भला किस तरह पवित्र हो सकते हैं? अतः स्त्री प्रकृति की तरह नई सृष्टि को जन्मदेने की क्षमता धारण करने हेतु चन्द्र कलाओं, सूर्य की कलाओं और प्रकृति की कलाओं से 5 दिन तक जुड़कर स्वयं के मेंटेनेंस दौर से गुजरती है। इस दौरान किसी भी कारण से कोई व्यवधान किसी को उतपन्न नहीं करना चाहिए। स्त्री को पर्याप्त विश्राम देना चाहिए।

इन प्रचलनों को जहां माना जाता है वहां कारण को समझते हुए भी प्रतिबन्ध किस सीमा तक रहें इस पर विचार करना चाहिये। रुग्ण व्यक्ति प्रायः स्नान आदि के सामान्य नियमों का निर्वाह नहीं कर पाते और ज्वर, दस्त, खांसी आदि के कारण उनकी शारीरिक स्थिति में अपेक्षाकृत अधिक मलीनता रहती है। रोगी परिचर्या के नियमों से अवगत व्यक्ति जानते हैं कि रोगी की सेवा करने वालों या सम्पर्क में आने वालों को सतर्कता, स्वेच्छा के नियमों का अधिक ध्यान रखना पड़ता है। रोगी को भी दौड़-धूप से बचने और विश्राम करने की सुविधा दी जाती है। उसे कोई चाहे तो छूतछात भी कह सकते हैं। ऐसी ही स्थिति रजोदर्शन के दिनों में समझी जानी चाहिए और उसकी सावधानी बरतनी चाहिए।

तिल को ताड़ बनाने की आवश्यकता नहीं है। कारण और निवारण का बुद्धिसंगत ताल-मेल विवेकपूर्वक बिठाने में ही औचित्य है। शरीर के कतिपय अंग द्रवमल विसर्जन करते रहते हैं। पसीना, मूत्र, नाक, आंख आदि के छिद्रों से निकलने वाले द्रव भी प्रायः उसी स्तर के हैं जैसा कि ऋतुस्राव। चोट लगने पर भी रक्त निकलता रहता है। फोड़े फूटने आदि से भी प्रायः वैसी ही स्थिति होती है। इन अवसरों पर स्वच्छता के आवश्यक नियमों का ध्यान रखा जाना चाहिए। बात का बतंगड़ बना देना अनावश्यक है। प्रथा-प्रचलनों में कई आवश्यक हैं कई अनावश्यक। कइयों को कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए और कइयों की उपेक्षा की जानी चाहिए। सूतक और अशुद्धि के प्रश्न को उसी दृष्टि से देखा जाना चाहिए जिससे कि प्रचलन कर्ताओं ने उसे आरम्भ किया था। उनका उद्देश्य उपासना जैसे आध्यात्मिक नित्यकर्म से किसी को विरत, वंचित करना नहीं वरन् यह था कि अशुद्धता सीमित रहे और स्त्री को उचित शारीरिक-मानसिक विश्राम मिले। आज भी जहां अशौच का वातावरण है वहीं सूतक माना जाय और शरीर से किये जाने वाले कृत्यों पर ही कोई रोकथाम की जाय। मन से उपासना करने पर तो कोई स्थिति बाधक नहीं हो सकती। इसलिए नित्य की उपासना मानसिक रूप से जारी रखी जा सकती है। पूजा-उपकरणों का स्पर्श न करना हो तो न भी करे।
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*करवा चौथ में मासिक आशौच है तो दिन का पूजन व संकल्प मानसिक करें व मानसिक स्तर पर शान्तिकुंज में रखे शक्ति कलश का ध्यान करके मौन मानसिक जप प्रारम्भ कर दें। रात्रि में चन्द्रोदय के ठीक आधे घण्टे पूर्व घर के किसी सदस्य से तुलसी के पेड़ के नीचे की मिट्टी, गंगाजल व गौ अर्क बाल्टी जल में मिलाकर सर धोकर नहा लें, नहाते/स्नान करते समय गंगा जी का ध्यान करते हुए बोलें:-*

*गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ।*
*नर्मदे सिन्धु कावेरि जलऽस्मिन्सन्निधिं कुरु ।। *

*फिर साफ सुथरे धुले वस्त्र पहन कर चन्द्र दर्शन पति के साथ करें। पति से पूजन की थाली तैयार करवा लें व दीपक प्रज्ज्वलित करवा लें। चन्द्रोदय पर चन्द्र को अर्घ्य दें, व पिछले पोस्ट में बताई विधि से चन्द्र का पूजन करें व करवा चौथ व्रत विधि सम्पन्न करें। नहाने के बाद दो घण्टे के अंदर समस्त पूजन क्रम कम्प्लीट कर लीजिए। केवल चन्द्र के समक्ष का समस्त पूजन करना है, घर के पूजन स्थल का स्थूल पूजन सुबह शाम का पतिदेव को ही करने को कहे। आप मौन मानसिक जप सम्पन्न करें।*
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*माता भगवती ने ही सृष्टि की रचना की है, स्त्री के कॉम्प्लेक्स प्रजनन सिस्टम का सॉफ्टवेयर उन्होंने ही स्थापित किया है, जिससे सृजन चलता रहे। अतः उन्हें आपकी मनःस्थिति व परिस्थितियों का भान है। आप से तो माता चेतन स्तर पर स्वयं जुड़ी हैं, शरीर पर आशौच लागू होता है, मन व आत्मस्तर पर नहीं।*

अतः मन्त्र जप, यज्ञ और मन्त्रलेखन भी न करें, केवल मौन मानसिक जप करें। कोई दूसरी माला लेकर भी जप न करें। ज्यादा से ज्यादा चन्द्रमा का ध्यान करें या हिमालय का ध्यान करें और शरीर को पर्याप्त आराम दें।

मोनोपोज़ के दौरान मेंटेनेंस अनियमित होता है, स्त्री से सन्तान उत्पादन सृजन/सृष्टि शक्ति प्रकृति वापस लेती है। अतः मानसिक और शारीरिक कमजोरी से स्त्री गुजरती है। चिड़चिड़ापन आम होता है। अतः पूरे परिवार को स्त्री का ध्यान रखना चाहिए, ख़ासकर पति को स्त्री के इस बिगड़ते स्वभाब को आत्मीयता और प्यार से सम्हालना चाहिए। उपासना का 5 दिन वाला ब्रेक लेते रहना चाहिए। मौन मानसिक जप और ज्यादा से ध्यान करना चाहिए।

पीरियड्स/मासिक आशौच के दौरान व्रत करना है तो व्रत शुरू होने से पहले पर्याप्त मात्रा में पानी पियें। क्योंकि पूरे दिन हाइड्रेट यानि शरीर में जल की मात्रा संतुलित रहने से आपको पीरियड्स के दौरान पेट में दर्द नहीं होगा। सुबह सरगी में सेब और नट्स जरूर खाएं। इससे पेट में गैस की समस्‍या नहीं बनेगी और आप में एनर्जी भी बनी रहेगी। कम से कम तीन बार जल सिप कर करके पी लीजिये। 

पीरियड के दौरान शरीर का एनर्जी लेवल कई गुना तक कम हो जाता है। इस वजह से शरीर में थकान और कमजोरी आना जाहिर सी बात है। अपने शरीर को रिपेयर करने के ल‍िए जरुरी है कि आप एक भरपूर नींद दोपहर को लें लें। इससे थोड़ा रिफ्रेश सा महसूस होगा। मौन मानसिक जप करते रहें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...