Saturday 29 February 2020

प्रश्न - *क्या उत्तम ज्ञानी भक्त भी भगवान को नुकसान पहुंचा सकते हैं?*

प्रश्न - *क्या उत्तम ज्ञानी भक्त भी भगवान को नुकसान पहुंचा सकते हैं?*

उत्तर - हाँजी, यदि भक्त के भीतर भक्ति व ज्ञान का अहंकार हो गया तो वह सबसे बड़ा नुकसान भगवान को ही पहुंचाता है।

रामायण में एक प्रशंग आता है कि नारद जी ने तपस्या करके इंद्र जाल को काटकर काम देवता को हरा दिया। तब इंद्र व काम देवता ने अंतिम  प्रसंशा रूपी इंद्रजाल फैलाया और उनकी स्तुति की प्रशंसा किया कि आप शंकर जी के समान हो गए हैं। क्योंकि आप ने काम को परास्त कर दिया।

नारद जी अहंकार में भर उठे और शिव दरबार मे जाकर नारायण के गुणगान की जगह स्वयं का गुणगान किया। तब शिव ने अनुरोध किया कि जो मेरे समक्ष बोला नारद जी भगवान नारायण के समक्ष मत बोलना। लेकिन नारद नहीं माने। नारायण के समक्ष बोल दिया कि मैं शिव समान हो गया हूँ। तब भगवान नारायण ने उनकी और प्रसंशा की। लेकिन भक्त नारद के उद्धार हेतु और इंद्र के जाल को काटने हेतु माया रची। स्वयं मोहनी रूप में प्रकट हो गए। नारद भटक गए, उन्हें पाने के लिए झूठ तक बोल डाला। नारायण से उनका रूप मांगा। माया के अनुसार मोहिनी ने स्वयंवर में नारद को नहीं चुना। नारद क्रोध में भर उठे और भगवान नारायण को श्राप दे दिया। उनका श्रीलक्ष्मी जी जिन्हें वो माँ कहते थे उनसे वियोग लिख दिया। जय विजय नारायण दूतों को राक्षस बनने का श्राप दे दिया।

एक भक्त की विकृत हुई अहंकार में मानसिकता ने भगवान नारायण, पूरी पृथ्वी, पूरी मानवता और स्वयं लक्ष्मी के लिए यातनाएं किस्मत में लिख दी, रक्तपात लिख दिया।

जब नारद को होश आया तब तक देर हो चुकी थी। अब पछताने से नुकसान की भरपाई हो नहीं सकती। पुनः पछतावे में तपस्या में नारद चले गए।

भक्त को हनुमानजी की तरह होना चाहिए, तभी वह जीवन में कभी स्वयं के कारण भगवान को नुकसान नहीं पहुंचाएगा। वह तत्वदृष्टि से समझ पायेगा कि *लँका जलाई नहीं गयी थी, श्रीराम भगवान द्वारा जलवाई गयी थी।* लेकिन यह गूढ़ रहस्य समझने के लिए निर्मल भक्ति व निरहंकारी होना पड़ेगा।

जब समस्त वानर सेना व जामवंत प्रसंशा के पुल बांध रहे थे कि रावण की लंका हनुमानजी ने जलाई।

श्रीराम जी ने हनुमान जी की प्रसंशा कि तब हनुमानजी ने विनम्रता से इंकार करते हुए कहा, प्रभु लँका मैंने नहीं जलाई, प्रभु लँका तो आपने मुझसे जलवाई।मुझे निमित्त बनाने के लिए धन्यवाद।

जब आपने मुझे अंगूठी दी, तब मुझे मेरे बल का ज्ञान नहीं था। जामवंत तो प्रभु मेरे साथ पिछले कई वर्ष से थे उन्होंने मेरा बल पहले कभी याद नहीं दिलाया। जब आपकी इच्छा हुई मेरा बल मुझे याद आया। मेरे जन्म से पहले मेरी कार्य योजना की स्क्रिप्ट आपने लिख रखी थी, यह मुझे लंकिनी ने बताया  जब मैंने उसे एक घूसा मारा, वह जब होश में आई तो बताया कि ब्रह्मा जी ने बताया था तुम जब आकर मुझे घूसा मारकर बेहोश करोगे उस दिन से लँका के विनाश का क्रम शुरू होगा। मुझे लँका में क्या करना है यह त्रिजटा राक्षसी के स्वप्न देकर बताया। *सपने वानर लँका जारी, तेहि अशोक वाटिका उजारी।* तब मैंने माता सीता को प्रणाम कर जो मेसेज मुझे आपने दिया वही किया, अशोक वाटिका उजाड़ दिया। लेकिन मैं चिंतित था कि आग लगाने के लिए मशाल कहाँ मिलेगी। प्रभु आग का प्रबंध भी आपने रावण से ही करवा दिया, रावण ने ही मेरी पूंछ में आग लगवा दी।

*जिन जिन लोगों के घर से कपड़े तेल आया था, हमने तो बस उनके जलते हुए कपड़े उन्हीं के घर लौटा दिया। जिसने जिसने विभीषण की तरह अपना कपड़ा मेरी पूंछ में नहीं बांधा उनका घर हमने नहीं जलाया।*

अब प्रभु आप बताइए, लँका मैंने जलाई या आपने जलवाई? मैं नहीं निमित्त बनता तो कोई और बनता। क्योंकि आप तो कंकड़ पत्थर से भी अपना काम करवा लेते हो।

श्री भगवान हँस दिए, बोले हनुमान तुम मेरे अति प्रिय हो। मैं तुम्हारे हृदय में सदा श्री सीता सहित वास करूंगा।

अब तय कीजिये कि किसकी तरह भक्ति करनी है, नारद जी की तरह या हनुमानजी की तरह करनी है? दोनों की भक्ति ज्ञान व समर्पण अतुलनीय है। दोनों ही श्रेष्ठ व पूजनीय है।

ऐसे ही किसी भी मिशन में दोनों तरह के भक्त हैं, एक अहंकार में अज्ञानतावश अपने ही मिशन को नुकसान पहुंचाते हैं। दूसरे जानते हैं कि जो कार्य मुझसे बन पड़ा, वह ईश्वर की कृपा मुझपर हुई जो मैं इस कार्य के निमित्त बना।

यह पोस्ट सबके समझ मे नहीं आएगी, क्योंकि बड़ा गहन व गूढ़ प्रश्न है व इसका उत्तर उतना ही गूढ़ है। उम्र लग जायेगी यह समझने में कि लँका जलाई गई कि जलवाई गयी? मैंने अमुक मिशन का कार्य किया या मुझे निमित्त बनाया गया?

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 25 February 2020

हसरतें कुछ और हैं* *वक्त की इल्तजा कुछ और है*

*हसरतें कुछ और हैं*
*वक्त की इल्तजा कुछ और है*

*कौन जी सका है..ज़िन्दगी अपने मुताबिक*

*दिल चाहता कुछ और है!*
*होता कुछ और है!*

*दूसरे के मन को अपनी मर्ज़ी से चलाने की सोचते हैं*
*मग़र ख़ुद के मन पर नियंत्रण नहीं रख पाते, उसके ग़ुलाम बन जाते हैं*

*मन बहुत ख़तरनाक व नुकसानदेह स्वामी(मालिक) व शासक है, मग़र मन को यदि साध लो तो इससे बेहतर और उत्तम ग़ुलाम व नौकर कोई और नहीं।*

मन के स्वामी बनोगे तो हमेशा ख़ुश रहोगे,
मन के ग़ुलाम बनोगे तो हमेशा दुःख सहोगे।

स्वर्ग व नर्क परिस्थिति नहीं है ज़नाब,
यह तो आपकी मनःस्थिति है जो स्वर्ग व नरक के लिए जिम्मेदार है।

जीने के लिये खाओ, अतः खाने के लिए मत जियो।

जीने के लिए कमाओ, अतः कमाने के लिए मत जियो।

जीवन को समझो, जीवन को भरपूर आनन्द से जियो। स्वयं में पूर्ण रहो।

पुष्प की तरह मुस्कुराते रहो, स्वयं के जीवन से आत्मियता व प्रेम-सम्वेदना की खुशबू बिखेरते रहो।

जब खिला हुआ पुष्प चाहते हो, मुरझाया पुष्प पसन्द नहीं करते, फिर दूसरे भी तो तुम्हारा खिला हुआ मुस्कुराता चेहरा पसन्द करेंगे, तनावग्रस्त मुर्झाया चेहरा नहीं।

सबसे बड़ी सुंदरता, खिलता व मुस्कुराता निश्छल चेहरा।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Wednesday 19 February 2020

प्रश्न - *दी, जब लोग ज्यादा परेशान करें तब क्या करना चाहिए?*

प्रश्न - *दी, जब लोग ज्यादा परेशान करें तब क्या करना चाहिए?*

उत्तर - आत्मीय बहन,

ये बताओ निम्नलिखित परिस्थिति में हमे क्या करना चाहिए?
1- बरसात में छत टपके तो..
2- शरीर पर मख्खी बैठे तो..
3- बैंक में चोरी हो तो...
4- क्रिकेट ग्राउंड में बैट्समैन आउट हो रहा हो तो..

 उत्तर होगा:-
1- छत की मरम्मत करवाओ, क्योंकि बरसात को रोकना हमारे बस में नहीं।
2- शरीर को स्वस्थ और साफ रखो, फोड़े न होने पाएं यदि हो गए हों तो उन पर दवाई लगाओ क्योंकि मख्खी बिना घाव और गन्दगी आएगी नहीं। हम मख्खी को नियंत्रित नहीं कर सकते।
3- चोरों को पूर्णतया समाप्त करना हमारे बस में नहीं, लेकिन हम अपने बैंक की सिक्योरिटी इतनी बढ़ा सकते हैं कि चोर चोरी कर ही न पाएं।
4- बॉलर को हम अपनी इच्छानुसार बॉलिंग करने के लिए नहीं कह सकते, लेकिन हम स्वयं को इस तरह अभ्यास द्वारा तैयार कर सकते हैं कि कोई भी गेंद खेल सकें।

बहन इसी तरह, लोग को आप नियंत्रित नहीं कर सकती। लोगों के मुंह मे ढक्कन लगाना संभव नहीं। आपको स्वयं पर काम करने की जरूरत है।

1- अपना आत्मविश्वास और मनोबल बढ़ाएं, क्या कहेंगे लोग परवाह मत करो
2- हीनता का फोड़ा मन से हटा दो, अपनी तुलना किसी से मत करो। तुम सर्वश्रेष्ठ हो और अपनी कठिनाइयों का सामना सैनिकों की तरह करो।
3- अपनी ऊर्जा स्वयं की बैंक की तरह मन की सिक्योरिटी बढ़ाने में करो, कि कोई लोग तुम्हें परेशान कर ही न पाएं।
4- जिंदगी के क्रिकेट के मैदान में तुम लोगों को परेशानी की बॉल तुम्हारी तरफ फेंकने से रोक नहीं सकती, लेकिन तुम उन बॉल पर चौके, छक्के लगा सकती हो, इस गेम में जबतक तुम मन से नहीं हरोगी ब्रह्माण्ड की कोई शक्ति तुम्हे हरा नहीं सकती। दूसरों को उन्ही के गेम में परास्त कर सकती हो।

यह जिंदगी युद्ध का मैदान है, जो सैनिक मनोवृत्ति का है वो लड़ रहा है, जो खिलाड़ी मनोवृत्ति का है वो खेल रहा है, जो अनाड़ी है वो रो रहा है, जो डरपोक मनोवृत्ति का है वो भय से मर रहा है। Attitude(मनोवृत्ति) is everything.

रोज जंगल मे शेर भी दौड़ता है और हिरन भी, जो शेर जीता भोजन मिलेगा, जो हिरन जीता तो उसका जीवन बचेगा। प्रकृति और यह धरा को वीरों के लिए है(वीर भोग्या वसुंधरा)। संघर्ष ही जीवन है, सबको अपने हिस्से का युद्ध लड़ना पड़ेगा।

कुछ पुस्तकें स्वयं की मनोवृत्ति(attitude) की मरम्मत(Maintenance) के लिए पढ़ें:-

1- सफलता आत्मविश्वासी को मिलती है
2- दृष्टिकोण ठीक रखें
3- शक्तिवान बनिये
4- प्रबंधव्यवस्था एक विभूति एक कौशल
5- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
6- हारिये न हिम्मत
7- आगे बढ़ने की तैयारी
8- निराशा को पास न फटकने दें

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

देवताओ जैसा कर्मयोगी बनना*

🌺 *देवताओ जैसा कर्मयोगी बनना* 🌺

इच्छाओं-चाहतों से बड़ी,
बेटे, हमेशा योग्यता-पात्रता रखना,
सफ़लता के आसमान में,
सद्बुद्धि व सामर्थ्य रूपी पंख से उड़ना।

कभी भी चाहतों को,
योग्यता से बड़ी मत रखना,
योग्यता-पात्रता की ऊँचाई,
हमेशा चाहतों से दोगुनी रखना।

देवताओं सी हमेशा,
मेरे बेटे सोच रखना,
खुशियां व सम्मान बाँटने में,
कभी कंजूसी मत करना।

प्रेम व सम्मान,
एक दूसरे के पूरक हैं,
यह सदा याद रखना,
जिससे भी प्रेम करना,
उसके मान-सम्मान का भी,
सदैव ध्यान रखना।

जॉब या व्यवसाय तुम वह करना,
मेरे बेटे, जो तुम्हें हृदय से पसन्द हो,
जिसके लिए तुम्हारे अंदर,
कुछ कर गुजरने का जुनून हो।

या जो भी जॉब या व्यवसाय कर रहे हो,
बस उससे ही प्रेम करना शुरू कर दो,
उसमें भी कुछ नया करने का,
एक जुनून - एक इरादा कर लो।

मेरे बेटे,
विजेता व कायर में,
ठीक से अंतर समझ लो,
विजेता उसी विपरीत परिस्थितियों में बनता है,
जिस विपरीत परिस्थितियों में कायर टूटता है।

ज़िंदगी के खेल में,
स्वयं की जिम्मेदारी स्वयं उठाना,
दूसरे को बॉलिंग को दोष मत देना,
बस स्वयं की बैटिंग सुधारना।

परमात्मा से जुड़कर,
तुम स्वयं इतने पूर्ण बनाना,
कि उनके सान्निध्य सत्संग में,
स्वयं में ही सदा आनन्दित रहना।

प्रार्थना व पुरुषार्थ,
एक दूसरे के पूरक हैं,
यह याद रखना,
एक के बिना दूजा,
सदैव अर्थहीन है,
यह कभी मत भूलना।

भक्तियोग बिना कर्मयोग के,
सफ़ल नहीं होता है,
कर्मयोग बिना भक्तियोग के,
असफल ही सदा रहता है।

प्रार्थना और पुरुषार्थ का,
जीवन में सदा संतुलन रखना,
अपनी बुद्धिरथ का सारथी,
सदैव जगतगुरु श्रीकृष्ण रखना।

जब जब भी जीवन मे,
भटकन या परेशानी आये,
थोड़ी देर गायत्री मंत्र जपना,
उगते सूर्य का ध्यान करना।

साथ ही श्रीमद्भागवत गीता का,
कुछ श्लोकों का स्वाध्याय करना,
फिर गुरुचरणों का नेत्र बन्द कर,
थोड़ी देर निर्विचार ध्यान करना।

फिर देखना मेरे बेटे,
हर समस्या का समाधान,
तुम्हारे भीतर से ही उभरेगा,
दिव्यज्ञान के सूर्योदय से,
समस्याओं अंधकार छटेगा।

तुम ही अपने भाग्य के निर्माता हो,
यह सदा याद रखना,
अपनी क़िस्मत को लिखने में,
सदैव सावधानी बरतना।

तुम अपनी क़िस्मत को,
मेरे बेटे, सीधे नहीं बदल सकते हो,
तुम तो बस अपनी आदतों को बदलना,
वो आदतें तुम्हारी किस्मत स्वयंमेव बदल देंगी।

इच्छाओं-चाहतों से बड़ी,
बेटे, हमेशा योग्यता-पात्रता रखना,
सफ़लता के आसमान में,
सद्बुद्धि व सामर्थ्य रूपी पंख से उड़ना।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

आज 19 फरवरी को बेटे आदित्य का जन्मदिन है, वह आज 11 वर्ष का हो गया है। यह कविता उसके जन्मदिन के उपलक्ष्य पर लिखी है।

Tuesday 18 February 2020

महाशिवरात्रि पर्व - 21 फरवरी की शुभकामनाएं

*महाशिवरात्रि पर्व - 21 फरवरी की शुभकामनाएं*

रात्रि प्रहर का विशेष पूजन मुहूर्त रात्रि 6 बजकर 41 मिनट से 12 बजकर 52 मिनट तक है। 

प्रश्न - *भगवान शिव-शंकर का तत्व दर्शन और फिलॉसफी समझाएं...*

*क्यों शंकर जी की शक्ति / वरदान / चमत्कार हमें अब दिखाई नहीं पड़ते? कहाँ चूक रह जाती है, कहाँ भूल रह जाती है बतायें?*

*महाशिवरात्रि में रुद्राभिषेक/शिवाभिषेक क्यों करते हैं?*

उत्तर - युगऋषि परम् पूज्य गुरुदेव ने पुस्तक शिव-शंकर का तत्व दर्शन बहुत सरल शब्दों में समझाया है जो इस प्रकार है:-

*भवानि शङ्करौ वन्दे श्रध्दा विश्वास रूपिणौ |*
*याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम् ||*

'भवानीशंकरौ वंदे' भवानी और शंकर की हम वंदना करते है। 'श्रद्धा विश्वास रूपिणौ' अर्थात श्रद्धा का नाम पार्वती और विश्वास का शंकर। श्रद्धा और विश्वास- का प्रतीक विग्रह मूर्ति हम मंदिरों में स्थापित करते हैं। इनके चरणों पर अपना मस्तक झुकाते,जल चढ़ाते, बेलपत्र चढ़ाते, आरती करते है। 'याभ्यांबिना न पश्यन्ति' *श्रद्धा और विश्वास के बिना कोई सिद्धपुरुष भी भगवान को प्राप्त नहीं कर सकते।*

भगवत कृपा न मिलने में चूक और गलती वहाँ हो गई, जहाँ भगवान शिव और पार्वती का असली स्वरूप हमको समझ में नहीं आया। उसके पीछे की फिलॉसफी समझ में नहीं आई|

*आइये समझते है शिव शंकर का सही स्वरूप ताकि हम लोग भी शंकर भगवान के अनुदान प्राप्त कर सके* -

👉🏼 *शिव लिंग*

यह सारा विश्व ही भगवान है। शंकर की गोल पिंडी बताता है कि वह विश्व- ब्रह्माण्ड गोल है, एटम गोल है, धरती माता, विश्व माता गोल है। इसको हम भगवान का स्वरूप मानें और विश्व के साथ वह व्यवहार करें जो हम अपने लिए चाहते हैं। शिव का आकार लिंग स्वरूप माना जाता है। उसका सृष्टि साकार होते हुए भी उसका आधार आत्मा है। ज्ञान की दृष्टि से उसके भौतिक सौंदर्य का कोई बड़ा महत्त्व नहीं है। मनुष्य को आत्मा की उपासना करनी चाहिए, उसी का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए।

१ 👉🏼 *शिव का वाहन वृषभ / बैल “नंदी”*

शिव का वाहन वृषभ शक्ति का पुंज भी है सौम्य- सात्त्विक बैल शक्ति का प्रतीक है, हिम्मत का प्रतीक है।

२. 👉🏼 *चाँद - शांति, संतुलन* -

चंद्रमा मन की मुदितावस्था का प्रतीक है,चन्द्रमा पूर्ण ज्ञान का प्रतीक भी है, शंकर भक्त का मन सदैव चंद्रमा की भाँति प्रफुल्ल और उसी के समान खिला निःशंक होता है।

३. 👉🏼 *माँ गंगा की जलधारा* -

सिर से गंगा की जलधारा बहने से आशय ज्ञानगंगा से है|गंगा जी यहाँ 'ज्ञान की प्रचंड आध्यात्मिक शक्ति के रूप में अवतरित होती हैं।महान आध्यात्मिक शक्ति को संभालने के लिए शिवत्व ही उपयुक्त है |माँ गंगा उसकी ही जटाओं में आश्रय लेती हैं | मस्तिष्क के अंतराल में मात्र 'ग्रे मैटर' न भरा रहे, ज्ञान- विज्ञान का भंडार भी भरा रहना चाहिए, ताकि अपनी समस्याओं का समाधान हो एवं दूसरों को भी उलझन से उबारें। वातावरण को सुख- शांतिमय कर दें।अज्ञान से भरे लोगों को जीवनदान मिल सके| | शिव जैसा संकल्प शक्ति वाला महापुरुष ही उसे धारण कर सकता है| महान बौद्धिक क्रांतियों का सृजन भी कोई ऐसा व्यक्ति ही कर सकता है जिसके जीवन में भगवान शिव के आदर्श समाए हुए हों।वही ब्रह्मज्ञान को धारण कर उसे लोक हितार्थ प्रवाहित कर सकता है। ।

४. 👉🏼 *तीसरा नेत्र*

-ज्ञानचक्षु , दूरदर्शी विवेकशीलता . जिससे कामदेव जलकर भस्म हो गया। | यह तृतीय नेत्र स्रष्टा ने प्रत्येक मनुष्य को दिया है। सामान्य परिस्थितियों में वह विवेक के रूप में जाग्रत रहता है पर वह अपने आप में इतना सशक्त और पूर्ण होता है कि काम वासना जैसे गहन प्रकोप भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते। उन्हें भी जला डालने की क्षमता उसके विवेक में बनी रहती है।

५.  👉🏼 *गले में सांप*

-शंकर भगवान ने गले में पड़े हुए काले विषधरोंसाँप का इस्तेमाल इस तरीके से किया है कि,उनके लिए वे फायदेमन्द हो गए, उपयोगी हो गए और काटने भी नहीं पाए।

६.  👉🏼 *नीलकंठ - मध्यवर्ती नीति अपनाना*-

शिव ने उस हलाहल विष को अपने गले में धारण कर लिया, न उगला और न पीया। उगलते तो वातावरण में विषाक्तता फैलती, पीने पर पेट में कोलाहल मचता।शिक्षा यह है कि विषाक्तता को न तो आत्मसात् करें, न ही विक्षोभ उत्पन्न कर उसे उगलें। उसे कंठ तक ही प्रतिबंधित रखे। मध्यवर्ती नीति ही अपने जाये योगी पुरुष पर संसार के अपमान, कटुता आदि दुःख- कष्टों का कोई प्रभाव नहीं होता। उन्हें वह साधारण घटनाएँ मानकर आत्मसात् कर लेता है और विश्व कल्याण की अपनी आत्मिक वृत्ति निश्चल भाव से बनाए रहता है। खुद विष पीता है पर औरों के लिए अमृत लुटाता रहता है। यही योगसिद्धि है।

७.  👉🏼 *मुण्डों की माला -जीवन की अंतिम परिणति और सौगात*

राजा व रंक समानता से इस शरीर को छोड़ते हैं।वे सभी एकसूत्र में पिरो दिए जाते हैं। यही समत्व योग है । जिस चेहरे को हम बीस बार शीशे में देखते हैं, सजाते संवारते हैं , वह मुंडों की हड्डियों का टुकड़ा मात्र है। जिस बाहरी रंग के टुकड़ों को हम देखते हैं, उसे उघाड़कर देखें तो मिलेगा कि इनसान की जो खूबसूरती है उसके पीछे सिर्फ हड्डी का टुकड़ा जमा हुआ पड़ा है।

८.  👉🏼 *डमरु* –

शिव डमरू बजाते और मौज आने पर नृत्य भी करते हैं। यह प्रलयंकर की मस्ती का प्रतीक है। व्यक्ति उदास, निराश और खिन्न, विपन्न बैठकर अपनी उपलब्ध शक्तियों को न खोए, पुलकित- प्रफुल्लित जीवन जिए। शिव यही करते हैं, इसी नीति को अपनाते हैं। उनका डमरू ज्ञान, कला, साहित्य और विजय का प्रतीक है। यह पुकार- पुकारकर कहता है कि शिव कल्याण के देवता हैं। उनके हर शब्द में सत्यम्, शिवम् की ही ध्वनि निकलती है। डमरू से निकलने वाली सात्त्विकता की ध्वनि सभी को मंत्रमुग्ध सा कर देती है और जो भी उनके समीप आता है अपना सा बना लेती है।

९.  👉🏼 *त्रिशूल धारण – ज्ञान, कर्म और भक्ति*

लोभ, मोह, अहंता के तीनों भवबंधन को ही नष्ट करने वाला ,साथ ही हर क्षेत्र में औचित्य की स्थापना कर सकने वाला एक एसा अस्त्र – त्रिशूल. यह शस्त्र त्रिशूल रूप में धारण किया गया- ज्ञान, कर्म और भक्ति की पैनी धाराओं का है।

१०. 👉🏼 *बाघम्बर* -

वे बाघ का चर्म धारण करते है। जीवन में बाघ जैसे ही साहस और पौरुष की आवश्यकता है जिसमें अनर्थों और अनिष्टों से जूझा जा सके |

११.  👉🏼 *शरीर पर भस्म – प्ररिवर्तन से अप्रभावित*

शिव बिखरी भस्म को शरीर पर मल लेते हैं, ताकि ऋतु प्रभावों का असर न पड़े। मृत्यु को जो भी जीवन के साथ गुँथा हुआ देखता है उस पर न आक्रोश के आतप का आक्रमण होता है और न भीरुता के शीत का । वह निर्विकल्प निर्भय बना रहता है।

१२. 👉🏼 *मरघट में वास* -

उन्हें श्मशानवासी कहा जाता है। वे प्रकृतिक्रम के साथ गुँथकर पतझड़ के पीले पत्तों को गिराते तथा बसंत के पल्लव और फूल खिलाते रहते हैं। मरण भयावह नहीं है और न उसमें अशुचिता है। गंदगी जो सड़न से फैलती है। काया की विधिवत् अंत्येष्टि कर दी गई तो सड़न का प्रश्न ही नहीं रहा। हर व्यक्ति को मरण के रूप में शिवसत्ता का ज्ञान बना रहे, इसलिए उन्होंने अपना डेरा श्मशान में डाला है।

१३. 👉🏼 *हिमालय में वास*

जीवन की कष्ट कठिनाइयों से जूझ कर शिवतत्व सफलताओं की ऊँचाइयों को प्राप्त करता है | जीवन संघर्षों से भरा हुआ है | जैसे हिमालय में खूंखार जानवर का भय होता है वैसा ही संघर्षमयी जीवन है | शिव भक्त उनसे घबराता नहीं है उन्हें उपयोगी बनाते हुए हिमालय रूपी ऊँचाइयों को प्राप्त करता है |

१४. 👉🏼 *शिव -गृहस्थ योगी* -

गृहस्थ होकर भी पूर्ण योगी होना शिव जी के जीवन की महत्त्वपूर्ण घटना है। सांसारिक व्यवस्था को चलाते हुए भी वे योगी रहते हैं, पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। वे अपनी धर्मपत्नी को भी मातृ- शक्ति के रूप में देखते हैं। यह उनकी महानता का दूसरा आदर्श है। ऋद्धि- सिद्धियाँ उनके पास रहने में गर्व अनुभव करती हैं। यहाँ उन्होंने यह सिद्ध कर दिया है कि गृहस्थ रहकर भी आत्मकल्याण की साधना असंभव नहीं। जीवन में पवित्रता रखकर उसे हँसते- खेलते पूरा किया जा सकता है।

१५. 👉🏼 *शिव – पशुपतिनाथ*

शिव को पशुपति कहा गया है। पशुत्व की परिधि में आने वाली दुर्भावनाओं और दुष्प्रवृत्तियों का नियन्त्रण करना पशुपति का काम है। नर- पशु के रूप में रह रहा जीव जब कल्याणकर्त्ता शिव की शरण में आता है तो सहज ही पशुता का निराकरण हो जाता है और क्रमश: मनुष्यत्व और देवत्व विकसित होने लगता है।

१६.  👉🏼 *शिव के गण – शिव के लिए समर्पित व्यक्तित्व*

''तनु क्षीनकोउ अति पीन पावन कोउ अपावन तनु धरे।" – रामायण

शंकर जी ने भूत- पलीतों का, पिछड़ों का भी ध्यान रखा है और अपनी बरात में ले गए। शिव के गण भूत- पलीत जैसों का है। पिछड़ों, अपंगों, विक्षिप्तों को हमेशा साथ लेकर चलने से ही सेवा- सहयोग का प्रयोजन बनता है। शंकर जी के भक्त अगर हम सबको साथ लेकर चल नहीं सकते तो फिर हमें सोचने में मुश्किल पड़ेगी, समस्याओं का सामना करना पड़ेगा और फिर जिस आनंद में और खुशहाली में शंकर के भक्त रहते हैं हम रह नहीं पाएँगे।

२०. 👉🏼 *शिव के प्रधान गण – वीरभद्र*-

वीरता अभद्र-अशिष्ट न हो,भद्रता – शालीनता डरपोक न हो, तभी शिवत्व की स्थापना होगी |

२२. 👉🏼 *शिव परिवार – एक आदर्श परिवार*

शिवजी के परिवार में सभी अपने अपने व्यक्तित्व के धनी तथा स्वतंत्र रूप से उपयोगी हैं | अर्धांगनी माँ भवानी ज्येष्ठ पुत्र देव सेनापति कार्तिकेय तथा कनिष्ठ पुत्र प्रथम पूज्य गणपति हैं | सभी विभिन्न होते हुए भी एक साथ हैं | बैल -सिंह , सर्प -मोर प्रकृति में दुश्मन दिखाई देते हैं किन्तु शिवत्व के परिवार में ये एक दुसरे के साथ हैं |शिव के भक्त को शिव परिवार जैसा श्रेष्ठ संस्कार युक्त परिवार निर्माण के लिए तत्पर होना चाहिए |

२३. 👉🏼 *शिव को अर्पण-प्रसाद* - भांग-भंग अर्थात विच्छेद- विनाश। माया और जीव की एकता का भंग, अज्ञान आवरण का भंग, संकीर्ण स्वार्थपरता का भंग, कषाय- कल्मषों का भंग। यही है शिव का रुचिकर आहार। जहाँ शिव की कृपा होगी वहाँ अंधकार की निशा भंग हो रही होगी और कल्याणकारक अरुणोदय वह पुण्य दर्शन मिल रहा होगा।

👉🏼 *बेलपत्र*- बेलपत्र को जल के साथ पीसकर छानकर पीने से बहुत दिनों तक मनुष्य बिना अन्न के जीवित रह सकता है | शरीर भली भांति स्थिर रह सकता है | शरीर की इन्द्रियां एवं चंचल मन की वृतियां एकाग्र होती हैं तथा गूढ़ तत्व विचार शक्ति जाग्रत होती है |अतः शिवतत्व की प्राप्ति हेतु बेलपत्र स्वीकार किया जाता है |

२४. 👉🏼 *शिव-मंत्र “ ॐ नमः शिवाय*

“शिव' माने कल्याण। कल्याण की दृष्टि रखकर के हमको कदम उठाने चाहिए और हर क्रिया- कलाप एवं सोचने के तरीके का निर्माण करना चाहिए- यह शिव शब्द का अर्थ होता है। सुख हमारा कहाँ है? यह नहीं, वरन कल्याण हमारा कहाँ है? कल्याण को देखने की अगर हमारी दृष्टि पैदा हो जाए तो यह कह सकते हैं कि हमने भगवान शिव के नाम का अर्थ जान लिया। इसी भाव को बार बार याद करने की क्रिया है मन्त्र ।

२५. 👉🏼 *शिव- “ महामृत्युंजय मंत्र “*

महामृत्युञ्जय मंत्र में शिव को त्र्यंबक और सुगंधि पुष्टि वर्धनम् गाया है। विवेक दान भक्ति को त्रिवर्ग कहते हैं। ज्ञान, कर्म और भक्ति भी त्र्यंबक है। इस त्रिवर्ग को अपनाकर मनुष्य का व्यक्तित्व प्रत्येक दृष्टि से परिपुष्ट व परिपक्व होता है। उसकी समर्थता और संपन्नता बढ़ती है। साथ ही श्रद्धा, सम्मान भरा सहयोग उपलब्ध करने वाली यशस्वी उपलब्धियाँ भी करतलगत होती हैं। यही सुगंध है। गुण कर्म स्वभाव की उत्कृष्टता का प्रतिफल यश और बल के रूप में प्राप्त होता है। इसमंन तनिक भी संदेह नहीं। इसी रहस्य का उद्घाटन महामृत्युञ्जय मंत्र में विस्तारपूर्वक किया गया है। फ़िर वह खर्बुजे की तरह मृत्यु बन्धन, मृत्यु के भय से मुक्त हो मोक्ष के अमरत्व को प्राप्त करता है |

२६. 👉🏼 *महाशिवरात्रि* -

रात्रि नित्य- प्रलय और दिन नित्य- सृष्टि है। एक से अनेक की ओर कारण से कार्य की ओर जाना ही सृष्टि है |इसके विपरीत अनेक से एक और कार्य से कारण की ओर जाना प्रलय है। दिन में हमारा मन, प्राण और इंद्रियाँ हमारे भीतर से बाहर निकल बाहरी प्रपंच की ओर दौड़ती हैं | रात्रि में फिर बाहर से भीतर की ओर वापस आकर शिव की ओर प्रवृत्ति होती है। इसी से दिन सृष्टि का और रात्रि प्रलय की द्योतक है। समस्त भूतों का अस्तित्व मिटाकर परमात्मा से अल्प- समाधान की साधना ही शिव की साधना है। इस प्रकार शिवरात्रि का अर्थ होता है, वह रात्रि जो आत्मानंद प्रदान करने वाली है और जिसका शिव से विशेष संबंध है। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में यह विशेषता सर्वाधिक पाई जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार उस दिन चंद्रमा सूर्य के निकट होता है। इस कारण उसी समय जीव रूपी चंद्रमा का परमात्मा रूपी सूर्य के साथ भी योग होता है। अतएव फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को की गई साधना से जीवात्मा का शीघ्र विकास होता है।

३०. 👉🏼 *शिव उपासना उपासना का अर्थ है*-

मनन और उन्हें ग्रहण करने का प्रयत्न करना, उस पथ पर अग्रसर होने की चेष्टा करना। सच्चे शिव के उपासक वही हैं, जो अपने मन में स्वार्थ भावना को त्यागकर परोपकार की मनोवृत्ति को अपनाते हैं |

31- 👉🏼 *रुद्राभिषेक का महत्त्व*

अभिषेक शब्द का शाब्दिक अर्थ है –  स्नान (Bath) करना अथवा कराना। रुद्राभिषेक का अर्थ है भगवान रुद्र का अभिषेक अर्थात शिवलिंग पर रुद्र के मंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। यह पवित्र-स्नान रुद्ररूप शिव को कराया जाता है। वर्तमान समय में अभिषेक रुद्राभिषेक के रुप में  ही विश्रुत है। अभिषेक के कई रूप तथा  प्रकार होते हैं। शिव जी को प्रसंन्न करने का सबसे श्रेष्ठ तरीका है रुद्राभिषेक करना अथवा श्रेष्ठ ब्राह्मण विद्वानों के द्वारा कराना। वैसे भी अपनी  जटा में गंगा को धारण करने से भगवान शिव को जलधाराप्रिय  माना गया है।

32 - *रुद्राभिषेक क्यों करते हैं?*

रुद्राष्टाध्यायी के अनुसार शिव ही रूद्र हैं और रुद्र ही शिव है। रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र:  अर्थात रूद्र रूप में प्रतिष्ठित शिव हमारे सभी दु:खों को शीघ्र ही समाप्त कर देते हैं। वस्तुतः जो दुःख हम भोगते है उसका कारण हम सब स्वयं ही है हमारे द्वारा जाने अनजाने में किये गए प्रकृति विरुद्ध आचरण के परिणाम स्वरूप ही हम दुःख भोगते हैं।

33 👉🏼 *ऑनलाइन शिवाभिषेक/रुद्राभिषेक विधि एवं मंन्त्र*

 http:// literature. awgp. org/book/karmkand_pradip/v2.47

34- 👉🏼 *रुद्राष्टाध्यायी पाठ एवं रुद्राभिषेक पीडीएफ डाउनलोड लिंक*

http:// vicharkrantibooks. org/vkp_ecom/Sugam_Shivarchan_Vidhi_Hindi

आइये हम भी भगवान शंकर के भक्त बने उनके अनुदान वरदान पाएं ।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Saturday 15 February 2020

यज्ञचिकित्सा(यगयोपैथी)

*यज्ञ चिकित्सा(यगयोपैथी)* - युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी आयुर्वेद व यज्ञ को एक दूसरे का पूरक मानते हैं। सरल शब्दों में यदि किसी को यज्ञ चिकित्सा के बारे में कहना हो तो कह सकते हैं कि *यज्ञ चिकित्सा वह माध्यम है जिसमें रोगी को औषधि धूम्र तरङ्ग के साथ श्वांस मार्ग से पहुँचाई जाती है।*

मनुष्य केवल नाक से श्वांस नहीं लेता, वह अपितु शरीर के समस्त रोम छिद्रों से श्वांस लेता है। यदि नाक खुली हो और चासनी के लेप से मात्र शरीर के समस्त रोम छिद्र बन्द कर दिये जायें तो भी मनुष्य दम घुटने से मर जायेगा। पसीना जिस रोमछिद्र से निकलता है, उसी मार्ग से श्वसन भी रोम छिद्र द्वारा चलता है।

रोगों की जड़ पेट और मन होता है, मन भी दो प्रमुख भाग में बंटा रहता है, एक विचार क्षेत्र जिसकी स्पीड हज़ार गुना है और दूसरी भावना क्षेत्र जिसकी स्पीड बहुत कम है। विचारों की स्पीड के साथ भावनाओं को जब तक उद्वेलित न किया जाय तो अंतःस्रावी ग्रन्थियों में अपेक्षित रिसाव नहीं होता। मनुष्य का शरीर स्वयं को क्योर और हील करने की क्षमता रखता है, यह औषधि अंतः स्त्रावी ग्रन्थियों को छोड़ने के लिए विचारों और भावों का सकारात्मक उद्वेलन अनिवार्य है। शब्द ब्रह्म नाद ब्रह्म पुस्तक में शब्द से आष्फोट को बहुत गहराई से समझाया गया है।

लय बद्ध श्रद्धा के साथ मन्त्र जप शब्द शक्ति का वह हथियार है जिससे मनुष्यों की अंत:शक्ति तो जागृत करने की क्षमता तो है ही साथ ही वृक्षों व औषधीय वनस्पतियों की अंत:शक्ति को भी जागृत करने की क्षमता है। जिन्होंने नोबल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र वसु की रिसर्च पढ़ी होगी, वो जानते हैं कि वृक्ष वनस्पतियों में भी मनुष्यो की तरह जीवन है, मग़र मनुष्य चैतन्य ज्यादा है और वनस्पतियों की जीवन शक्ति सुषुप्त है। लेकिन उन्हें भी मन्त्र शक्ति से जगाकर उनकी उच्च क्षमता को पाया जा सकता है। मन्त्र शब्द शक्ति में जब श्रद्धा-भावना का समावेश किया जाय तो चुम्बकत्व भी पैदा किया जा सकता है, और ब्रह्मांड से भी अपेक्षित शक्ति को आकर्षित किया जा सकता है।

जड़-चेतन का यह उपरोक्त ज्ञान हमारे ऋषि मुनि बहुत गहराई से जानते थे। अतः वह रोगोपचार के लिए  यज्ञ चिकित्सा का उपयोग करते थे। साधारण अग्नि को प्रथम मन्त्रों द्वारा यज्ञाग्नि में बदलते थे, अग्नि की अन्तः शक्ति जागृत करते थे। फिर चयनित रोग सम्बन्धी औषधि को पोटेंसी औऱ बढाने के लिए चन्द्र गायत्री या सूर्य गायत्री का मन्त्र जपते थे। स्वाहा शब्द की ध्वनि तरङ्ग चोट से औषधि भष्मीभूत होकर वायुभूत मन्त्र तरङ्ग युक्त होती थी। जिन्होंने आइंस्टीन की थ्योरी पढ़ी है वो जानते हैं किसी भी पदार्थ को जितना सूक्ष्म स्तर परमाणु स्तर पर तोड़ेंगे उतना ही उसकी अधिक शक्ति प्राप्त कर सकेंगे। यही यज्ञ कर रहा है औषधि को मन्त्र शक्ति से सूक्ष्मतम स्तर पर तोड़कर धूम्र रूप में सीधे श्वसन मार्ग से मष्तिष्क के कोषों में पहुंचाकर उन्हें रिलैक्स करता है। साथ ही अपेक्षित अच्छे हार्मोन्स के श्राव के लिए मस्तिष्क से निर्देश देता है। तदुपरांत फेफड़े से होती हुई वायुभूत औषधि सीधे हृदय तक पहुंचकर रक्त में मिल जाती है। रक्त मार्ग से समस्त शरीर तक पहुंच जाती है। रोम छिद्रों से होती हुई औषधि तरङ्ग धूम्र सुरक्षा चक्र रोगी को प्रदान करता है।

आयुर्वेदिक औषधियाँ एलोपैथी की तरह फ़ास्ट असर नहीं करती। एलोपैथी रोग दबाता है, आयुर्वेद रोग को जड़ से ठीक करता है। थोड़ा वक्त लगता है, लेक़िन इलाज़ बेहतरीन होता है। रोगप्रतिरोधक क्षमता यज्ञ चिकित्सा से इस कदर बढ़ जाती है कि जल्दी रोग के विषाणु परेशान नहीं कर पाते।

हवा में व्याप्त संक्रमण फैलाने वाले विषाणु व रोगाणु को यह मन्त्र तरङ्ग युक्त औषधीय धूम्र नष्ट कर देता है। इस पर विभिन्न संस्थाओं ने रिसर्च किया है, डॉक्टर ममता सक्सेना की रिसर्च यगयोपैथी वेबसाइट और देवसंस्कृति विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर जाकर पढ़ सकते हैं। लखनऊ यूनिवर्सिटी की भी रिसर्च इसी से सम्बंधित उपलब्ध है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday 14 February 2020

प्रश्न - *प्रणाम दी, कल बेटे ने पूछा - हमेशा यज्ञ के बाद जयघोष क्यों लगाते है ?क्या कारण है ?*

प्रश्न - *प्रणाम दी, कल बेटे ने पूछा - हमेशा यज्ञ के बाद जय घोष क्यों लगाते है ?क्या कारण है ?*

उत्तर - आत्मीय बेटे, जय शब्द का अर्थ है कि हम जिसकी जय बोल रहे हैं उसके सर्वोच्च सत्ता को मानते हैं, उसकी कीर्ति और यश सर्वत्र फैले यह कामना करते हैं, जिसकी जय बोल रहे हैं उसके अनुशासन को मानेंगे, उसकी ध्वजा को सर्वत्र फैलाएंगे। उसके लिए समर्पित रहेंगे व उसके प्रति सच्ची कर्तव्य निष्ठा का पालन करेंगे।

अब यदि हमने किसी राजा या व्यक्ति की जय बोली तो भी उपरोक्त ही सन्देश दे रहे हैं, कि वह राजा व व्यक्ति की कीर्ति सर्वत्र फैले व हम उसका अनुशासन पालन करेंगे। उसके लिए सदैव समर्पित रहेंगे। उसके लिए समर्पित रहेंगे व उसके प्रति सच्ची कर्तव्य निष्ठा का पालन करेंगे।

युगऋषि मनुष्य की सच्ची कर्तव्य निष्ठा और समर्पण ईश्वर, धर्म, सत्य और राष्ट्र के प्रति लोगों की नियोजित करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने यज्ञ के बाद जो जयघोष का मनोवैज्ञानिक व आध्यात्मिक क्रम लिखा है वह बहुत गूढ़ व रहस्यमय है। सभी के मनोभावों की प्रोग्रामिंग युगनिर्माण की ओर कर रहा है।

अब हमने गायत्री, यज्ञ, गुरु, भारत माता, धर्म व सत्य की जय बोली तो भी उपरोक्त ही सन्देश दे रहे हैं, कि इन सभी देवशक्तियों की कीर्ति सर्वत्र फैले, धर्म स्थापना सर्वत्र हो व हम सब उसका अनुशासन पालन करेंगे। उनके लिए सदैव समर्पित रहें। उनके लिए समर्पित होकर उनपर श्रद्धा- निष्ठा रखते हुए उनके प्रति सच्ची कर्तव्य निष्ठा का पालन करें।

बेटे, जानते हों, हम जैसे लाखों लोग जयघोष बोलते हैं, मग़र इसके पीछे के मनोवैज्ञानिक आध्यात्मिक प्रभाव को अत्यंत स्वल्प लोग ही जानते हैं।

युगऋषि कितने बड़े अध्यात्म व मनोवैज्ञानिक है, उनके प्रत्येक कर्मकांड भाष्कर में क्या क्या प्रोग्रामिंग कर रखी है, वो जो समझता है वह नतमस्तक हो जाता है। यह मात्र कर्मकांड नहीं है यह तो जीवन का विज्ञान है। आध्यात्मिक मनोवैज्ञानिक तंत्र खड़ा कर दिया है।

बहुत अच्छा लगा कि तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर देने के माध्यम से यह विज्ञान का मर्म जय घोष के पीछे का विज्ञान जन जन तक पहुँचेगा।

प्रश्न पूँछकर, उत्तर लिखकर गुरुसन्देश जन जन तक पहुंचाने हेतु, मुझे गुरु की सेवा का सौभाग्य देने के लिए धन्यवाद🙏🏻

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *वन्दे वेद मातरम् , वन्दे देव मातरम् , वन्दे विश्व मातरम् ।(गायत्री परिजन) ये क्यों बोलते है ????*

प्रश्न - *वन्दे वेद मातरम् , वन्दे देव मातरम् , वन्दे विश्व मातरम् ।(गायत्री परिजन) ये क्यों बोलते है ????*

उत्तर - *वंदे* शब्द का अर्थ वंदना होता है। वंदना पूजना का समानार्थी है। जिसे हम पूजते हैं उसके आगे नतमस्तक होते हैं, उसके मान सम्मान व रक्षार्थ सर कटाने व जान देने से पीछे नहीं रहते। उसकी खुशी के लिए स्वयं मर मिटने को तैयार रहते हैं।

इसीलिए बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय ने आनन्द मठ में देशभक्ति के लिए क्रांतिकारियों के अंदर वीररस व कर्तव्य निष्ठा जगाने के लिए *वंदे मातरम* गीत लिखा था।

स्वतंत्रता संग्राम में - क्रांतिकारी वंदे मातरम बोलते थे - तो उसका अर्थ होता था कि मातृभूमि की रक्षार्थ जान देने से पीछे नहीं हटेंगे।

गायत्री परिजन - *वंदे विश्वमातरम* बोलते हैं, क्योंकि वो युगनिर्माण हेतु युग सृजन सैनिक हैं। जो पूरे विश्व ब्रह्माण्ड हेतु कार्यरत है। तो विश्व के कल्याण के लिए व रक्षार्थ जान देने से पीछे नहीं हटेंगे यह भाव दर्शाते हैं।वसुधैव कुटुम्बकम - पूरा विश्व एक परिवार है। पूरे विश्व का कल्याण गायत्री परिजन चाहते है व उसके लिए ततपर है, इसलिये वह *वंदे विश्वमातरम* कहते हैं, जो समय व धन व स्वार्थकेन्द्रित हो एन्जॉय कर सकते थे, वही अमूल्य समय व धन वो जनजागृति में लगाते हैं। अपना पर्सनल समय व धन विश्वकल्याण हेतु उत्सर्ग कर देते हैं। पूरे विश्व में शांति हेतु तप करते हैं। इसलिए वंदे विश्वमातरम बोलते हैं।

प्रश्न पूँछकर गुरुसेवा का सौभाग्य देने के लिए धन्यवाद।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

मोक्ष क्यूँ नहीं मिला?

*मोक्ष क्यूँ नहीं मिला?*

एक बार नारद जी पृथ्वी भ्रमण में निकले और एक व्यक्ति से मिले उसने आथित्य सत्कार किया व भोजन करवाया। नारद जी त्रिकालदर्शी थे तो बोले मित्र तुम्हारे बच्चे बड़े हो गए हैं चलो मैं तुम्हें गुरुमंत्र देता हूँ उसे जपो और मुक्ति के मार्ग पर चलो। परिवार का मोह छोड़ दो।

उस व्यक्ति ने कहा, सारा बिजनेस चौपट हो जाएगा, यदि मैं नहीं करूंगा। तब नारद बोले तुम अमर तो नहीं हो, कभी न कभी तो मरोगे तब तो उन्हें ही सम्हालना है, तो अभी समझा दो और तुम मुक्ति मार्ग पर चलो।

उस व्यक्ति ने कहा ठीक है महाराज जी, दोनों बेटों को व्यवसाय समझा दिया और घर में रहकर बच्चे सम्हालने लगा। कुछ दिन बाद नारद आये, बोले चलो मेरे साथ, तो वह बोला मैं बच्चे सम्हालता हूँ, तो बहुएं भी पतियों के साथ व्यवसाय सम्हाल रही हैं। नारद जी ने कहा - यह घर गृहस्थी तुम्हारे बहु बेटों की है, तुम्हारी मृत्यु के बाद तो सम्हालना उन्हें ही है, तो यह उन पर छोड़ दो। उसने कहा ठीक कुछ समय सारी जिम्मेदारी छोड़कर फिर आपके साथ आता हूँ।

कुछ महीनों बाद नारद आये तो देखा बहुओं ने बच्चों के लिए व्यवस्था बना दी, बहु बेटे मिलकर घर व व्यवसाय बहुत अच्छे से सम्हाल रहे हैं। उस व्यक्ति के बारे में पता किया तो वह खेत में मजदूरों का हिसाब किताब कर रहा था। नारद जी ने कहा - व्यवसाय व घर दोनो बहु बेटों ने सम्हाल लिया अब चलो। बोला ठीक है चलता हूँ कुछ दिन की मोहलत दीजिये इस फ़सल को कटवा के मंडी पहुंचवा दूं तब चलूंगा।

कुछ वर्षो बाद नारद जी आये, उसे ढूंढा तो वह मिल गया। लेकिन पता चला गम्भीर बीमारी के कारण वह मर गया और पुत्रमोह में कुत्ता बनकर वहीँ जन्म गया। कुत्ते रूप में जन्मे व्यक्ति से कहा अरे अब तो चलो, इंसान अब तुम रहे नहीं तो यह पुराने परिवार का मोह क्यों। कुत्ते ने कहा - बेटे विदेश में हैं और घर की रखवाली कर रहा हूँ। वो आते हैं तो मैं तपस्या को निकलूंगा।

कुछ वर्षो बाद पुनः नारद जी उधर उस व्यक्ति के पास गए तो देखा एक सांप को लोग मार रहे थे। मुंह उसका कुचला जा रहा था, तब नारद जी उसे देखकर करुणा में भर गए।

बोले यह दृश्य मैंने उसी दिन देख लिया था जिस दिन तूने मुझे भोजन करवाया था, तुझे बचाना चाहता था, मग़र तू तो पुत्र मोह में ऐसा उलझा था कि मेरी बात तुझे समझ ही नहीं आयी। तू रौरव नरक का टिकट कटा लिया, मेरे ज्ञान देने व समझाने पर भी नहीं सम्हला।

यही मोहग्रस्त सभी मनुष्यों का हाल है, आत्मउत्कर्ष व आत्मउत्थान हेतु उनके पास वक्त ही नहीं है। परिवार मोह में विभिन्न कष्ट उठा रहे हैं, लेकिन मोह छोड़ ही नहीं पा रहे हैं।

क्या हम अमर है? नहीं न... अपने युवा बच्चों को उनकी जिम्मेदारी सौंप के जीवन का उत्तरार्द्ध लोकहित में और आत्मकल्याण में वानप्रस्थी व सन्यासी की तरह जियें। अपने बच्चों को उनकी गृहस्थी स्वयं सम्हालने दें।

🙏🏻 पुस्तक - *जो पचपन के हो चले* जरूर पढ़ें।

आज ही जल लेकर भगवान के समक्ष सङ्कल्प लें, वानप्रस्थ धारण करें, परिवार का मोह त्यागें और जीवन के उत्तरार्ध को लोकहित लगाएं, आत्मकल्याण करें।

जब शरीर मर जाये और राग, द्वेष, परिवार से मोह, इच्छाएं व वासनाएं शेष रहे तो नरक है।

जब शरीर जीवित रहे औरऔर राग, द्वेष, परिवार से मोह, इच्छाएं व वासनाएं छूट जाए तो मोक्ष है।

पशु-पक्षी भी अपने बच्चों को बड़े होने पर उन्हें स्वयं का जीवन सम्हालने हेतु छोड़ देते हैं, मग़र हाय रे मनुष्य! मरते मरते भी परिवार मोह को नहीं छोड़ता, 30 वर्ष का भी बच्चे को उसके जीवन को स्वयं सम्हालने हेतु नहीं छोड़ता।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Thursday 13 February 2020

मेरा पहला प्यार - मेरी माँ और पापा


🌹 *मेरा पहला प्यार - मेरी माँ और पापा* 🌹

🌹🌹🌹🌹14 फरवरी 🌹🌹🌹🌹🌹

जब मुझे थोड़ी चेतना आई,
ख़ुद को पाया माँ के गर्भ में,
गर्भनाल से जुड़ा था उससे,
जिसके लिए था सर्वस्व मैं।

मेरे दिल में जब धड़कन आई,
वह मन ही मन मुस्कुराई,
जब मैंने अपना पैर चलाया,
उसका दिल ख़ुशी से हर्षाया।

जब मैं दुनियाँ में बाहर आया,
उसकी आँखों में,
मेरे लिए ढेर सारा प्यार पाया,
मेरे प्यार में,
उसका रक्त दूध में बदल दिया,
मेरे लिए उसने,
अपना सुख चैन सब छोड़ दिया।

उसकी गोदी में,
मेरा स्वर्ग सा सुख था,
माँ की गोदी में,
सुख चैन भरा मेरा हर पल था।

जब भी माँ मुझसे दूर जाती,
रों रो कर उसको पास बुलाता,
उसका मुझसे दूर जाना,
बिल्कुल भी मुझे नहीं भाता था।

पापा के संग खूब खेलता,
शाम को उनके आने की राह तकता,
वो दोनों अपना जीवन भूल गए थे,
वो तो बस मेरे लिए ही जी रहे थे।

अब मैं बड़ा हो गया हूँ,
तो क्या उनका अहसान भूला दूं,
जिनसे मेरा वजूद बना है,
क्या उनके प्रति बेपरवाह बन जाऊँ?

यूरोप अमेरिका की संस्कृति में,
क्या मैं अपनी संस्कृति भूला दूँ,
मातृ-पितृ दिवस को भूलकर,
क्या मैं वेलेन्टाइन मना लूँ?

जो मेरा पहला प्यार थे, 
जो मेरे वजूद के आधार हैं,
जो मेरे माता पिता हैं, 
जो मेरा प्यारा परिवार हैं।

प्यारे परिवार की,
इकाई को मैं टूटने नहीं दूंगा,
पाश्चत्य के प्रभाव में,
भारतीय संस्कृति मिटने नहीं दूंगा।

विवाह कर के जिसे,
माता-पिता के आशीर्वाद से घर लाऊंगा,
उसी जीवनसंगिनी के संग,
करवा चौथ मनाऊंगा।

नहीं चाहिए उद्दंडता भरी आजादी,
मुझे तो प्रेम का बन्धन स्वीकार है,
अपने माता पिता की तरह,
मुझे भी बसाना अपना घर संसार है।

मैं अपनी सन्तान को भी,
उसका प्यारा परिवार दूंगा,
पाश्चात्य के प्रभाव में,
उससे उसकी खुशियां नहीं छिनूँगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

कविता - मेरी सासु माता की स्तुति

*कविता - मेरी सासु माता की स्तुति*

हे पति की जननी,
हे सासु माता! तुम्हारी बलिहारी है,
तुम्हारे दिए संस्कारों से,
हमारी घर गृहस्थी न्यारी है।

तुम न होती तो,
हम कुँवारे मर जाते,
भारत भूमि में अपने लिए,
वर कहाँ से लाते।

हे जननी हे! हे जगदम्बा!,
हे मेरे पति की प्यारी अम्मा,
तुम जब प्रशन्न रहती हो,
मां पार्वती सी लगती हो,
जब तुम अप्रशन्न रहती हो,
साक्षात काली -दुर्गा लगती हो।

घर की सब सुख शांति,
हे माता! तुम पर निर्भर करती है,
तुम्हारे रुसने- रूठने पर,
यह दुनियाँ बेगानी लगती है।

तुम सिर्फ माता नहीं हो,
हमारे लिए तो भारत माता हो,
हे मेरे घर की गृहमंत्री,
तुम ही गृह कानून की ज्ञाता हो।

तुमको जब प्रशन्न रखती हूँ,
तो पूरा घर मुझ पर प्रशन्न रहता है,
उस दिन पूरा घर चैन से सोता है,
यह घर स्वर्ग सा सुंदर लगता है।

भारतीय संस्कृति की खूबसूरती,
तब ही समझ में आती है,
जब एक लड़की बहु बनकर,
एक नए घर में आती है।

सास बहू में अनजाना,
एक निज पहचान का युद्ध ठनता है,
मिसेज़ के साथ सरनेम से,
जब सास बहू दोनों को जाना जाता है।

इस युद्ध के कारण को,
हे सासु माँ! चलो समझते हैं,
मिसेज़ व सरनेम को छोड़कर,
चलो अपने नाम व काम से जाने जाते हैं।

हम तुम लड़ेंगे माँ तो,
नुकसान उनको पहुंचेगा,
जो तुमको सबसे प्यारा है,
जो मुझको भी सबसे प्यारा है।

तुम्हें छोड़कर भी,
वो सुखी नहीं रह पाएगा,
मुझे छोड़कर भी,
वही दुःख सबसे ज्यादा पायेगा।

क्यों न उसकी ख़ुशी के लिए हे माँ!
हम दोनों मित्रवत हो जाएं,
सांप नेवले की दुश्मनी छोड़कर,
माँ और बेटी बन जाएं।

जैसे तुम एक दिन सबकुछ छोड़कर,
दूसरे घर से इस घर में आई थी,
वैसे ही मैं भी अपनों को छोड़कर,
दूसरे घर से इस घर में आई हूँ।

तुमने जैसे प्यार से,
यह घर परिवार को सम्हाला,
पूरी श्रद्धा निष्ठा इसको अपनाया,
मैं भी तुम्हारी तरह,
इस घर को अपनाना चाहती हूँ,
तुम्हारी स्नेह व कृपा दृष्टि में,
यहां घर संसार बसाना चाहती हूँ।

युगऋषि कहते हैं,
जिनके भीतर देवत्व जग गया,
वह जहां है वही स्वर्ग बना लेंगे,
जिनके भीतर असुरत्व जग गया,
वह जहां हैं वहीं नर्क बसा लेंगे।

आओ हम तुम मिलकर,
भगवान से प्रार्थना करें,
हे प्रभु, उनसे वह सद्बुद्धि मांग लें,
जिससे हम प्रेमपूर्वक-मित्रवत रह सकें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

सास व बहु - "भारत देश मे एक ही तरह से पुकारी जाती हैं" उदाहरण - मेरा लो तो - मिसेज़ चक्रवर्ती मुझे भी बोला जाएगा और हमारी सास जी को भी। ऐसे ही कोई शुक्ला व मिश्रा हो तो उसकी भी पहचान बनती है - मिसेज शुक्ला व मिसेज़ मिश्रा। इस तरह सासु माँ को लगता है कि मुझसे मेरी पहचान छीन रही है। बहु को लगता है यह क्या मेरी नई पहचान है। अगर लड़कियां भी सिर्फ़ अपने नाम से व काम से जानी जाएं। एक दूसरे के अस्तित्व को स्वीकारें तो काफी घरों के युद्ध टल सकते हैं। घर नरक बनने से बच सकता है। यदि बेटे से है प्यार तो उसे जिस बहु से है प्यार उससे तुम भी करो प्यार। यदि पति से है प्यार तो उसका पहला प्यार उसकी माता से तुम भी करो प्यार। सास बहू दोनों के झगड़े में लड़के सैन्डविच बनकर पीसते हैं और उनका दम घुटता है। उन्हें बचाने की एक छोटी सी कोशिश में एक इस हास्य कविता व स्तुति में यही मैसेज दिया है।

Wednesday 12 February 2020

वैज्ञानिक समय

*इसे पढ़ें  ऐसी पोस्ट बहुत कम ही आती है।👇*
विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय  गणना तन्त्र (ऋषि मुनियों का अनुसंधान )

■ क्रति = सैकन्ड का  34000 वाँ भाग
■ 1 त्रुति = सैकन्ड का 300 वाँ भाग
■ 2 त्रुति = 1 लव ,
■ 1 लव = 1 क्षण
■ 30 क्षण = 1 विपल ,
■ 60 विपल = 1 पल
■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,
■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )
■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,
■ 7 दिवस = 1 सप्ताह
■ 4 सप्ताह = 1 माह ,
■ 2 माह = 1 ऋतू
■ 6 ऋतू = 1 वर्ष ,
■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी
■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग
■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,
■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,
■ 4 युग = सतयुग
■ सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग
■ 76 महायुग = मनवन्तर ,
■ 1000 महायुग = 1 कल्प
■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
■ महाकाल = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )

सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यही है। जो हमारे देश भारत में बना। ये हमारा भारत जिस पर हमको गर्व है l
दो लिंग : नर और नारी ।
दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।
दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।

तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।
तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।
तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।
तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।
तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।
तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।
तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।
तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।
तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।

चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।
चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।
चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।
चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।
चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।
चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।
चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।
चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।
चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।
चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।
चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।

पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
पाँच  उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।
पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।
पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।
पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।
पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।
पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।
पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।
पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।

छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।
छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच),  मोह, आलस्य।

सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।
सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।
सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।
सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।
सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।
सात ॠषि : वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव, शौनक।
सात ॠषि : वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, भारद्वाज।
सात धातु (शारीरिक) : रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य।
सात रंग : बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल।
सात पाताल : अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल।
सात पुरी : मथुरा, हरिद्वार, काशी, अयोध्या, उज्जैन, द्वारका, काञ्ची।
सात धान्य : उड़द, गेहूँ, चना, चांवल, जौ, मूँग, बाजरा।

आठ मातृका : ब्राह्मी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, ऐन्द्री, वाराही, नारसिंही, चामुंडा।
आठ लक्ष्मी : आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी।
आठ वसु : अप (अह:/अयज), ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभास।
आठ सिद्धि : अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व।
आठ धातु : सोना, चांदी, ताम्बा, सीसा जस्ता, टिन, लोहा, पारा।

नवदुर्गा : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।
नवग्रह : सुर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु।
नवरत्न : हीरा, पन्ना, मोती, माणिक, मूंगा, पुखराज, नीलम, गोमेद, लहसुनिया।
नवनिधि : पद्मनिधि, महापद्मनिधि, नीलनिधि, मुकुंदनिधि, नंदनिधि, मकरनिधि, कच्छपनिधि, शंखनिधि, खर्व/मिश्र निधि।

दस महाविद्या : काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्तिका, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला।
दस दिशाएँ : पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैॠत्य, वायव्य, ईशान, ऊपर, नीचे।
दस दिक्पाल : इन्द्र, अग्नि, यमराज, नैॠिति, वरुण, वायुदेव, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा, अनंत।
दस अवतार (विष्णुजी) : मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि।
दस सति : सावित्री, अनुसुइया, मंदोदरी, तुलसी, द्रौपदी, गांधारी, सीता, दमयन्ती, सुलक्षणा, अरुंधती।

उक्त जानकारी शास्त्रोक्त 📚 आधार पर... हैं ।
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प्रभु हर बालक में, देशभक्ति जगा देना

*प्रभु हर बालक में, देशभक्ति जगा देना*

हे भगवान! आप से बार बार,
और हर बार यही वर माँगूँगा-
हर माता के गर्भ में पुनः
वीर लक्ष्मी, राणा व शिवाजी ही देना।

आपसे भगत सिंह मांगूगा, बिस्मिल मागूँगा
सुखदेव व सरदार पटेल से देशभक्त मागूँगा,
जिसका देशहित खून खौल सके,
ऐसे वीर सावरकर और सुभाष मागूँगा।
हे भगवान, यह माँग मेरी नहीं ठुकरा देना-
इस धरती पर पुनः देशभक्तों को लौटा देना,
पुनः वीर लक्ष्मी, राणा व शिवाजी को,
भारत के हर घर में जन्मा देना।

वह यौवन भी क्या यौवन है
जिसमें देशहित कोई चाव नहीं,
भारत को विश्वगुरु पुनः बनाने का,
जिसमें कोई जुनून कोई भाव नहीं,
जो  मनुष्य देशभक्त बन न सका,
वह मुर्दा दिल है उसमें जीवन ही नहीं,
जिसका आदर्श व जीवन लक्ष्य,
वीर लक्ष्मी, राणा, सुभाष व शिवाजी नहीं!

कोई मुफ्त खा ले भले प्लेटों में
लेकिन अच्छी लगे सबको अपनी कमाई ही,
कोई घूमते रहे विदेशो में,
लेक़िन पहचान तो उसकी है भारत से ही,
कोई बड़े बड़े बोल बोल ले,
लेकिन भारत है तो हम सब हैं,
कमाओ देश मे या विदेशों में,
लेक़िन भारत है तो जीवन है।

जागो! जन्मभूमि का ऋण चुकाओ,
देशहित कुछ न कुछ करने की लगन लगाओ ,
भारत की उन्नति प्रगति में,
कुछ तो अपनी जिम्मेदारी उठाओ,
भारत के वीरों को ही,
अपना व अपने परिवार का आदर्श बनाओ,
वीर लक्ष्मी, राणा, शिवाजी गढ़ने का,
अपना अपना घर ही टकसाल बनाओ।

वीरों से यह भारत भूमि,
देखो कभी रिक्त न होने देना,
भारतीय सनातन संस्कृति का,
देखो गौरव कभी न खोने देना,
जन्म जहां पर हम सबने पाया है,
अन्न जहां का हम सबने खाया है,
वस्त्र जहां के हम सबने पहने हैं,
ज्ञान जहां से हम सब ने पाया है,
उस भारत की भूमि का,
उत्थान सुनिश्चित कर देना,
अपने अपने बच्चों में,
देशभक्ति का भाव जगा देना,
स्कूलों में वीररस भरकर,
वीरता व साहस का पाठ पढ़ा देना,
नई देशभक्त पीढ़ी से,
भारत का नवनिर्माण करा देना।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Tuesday 11 February 2020

इसे राजनीतिक पोस्ट न समझें, इसे नीतिगत पोस्ट समझें:- क्रूरशासक

इसे राजनीतिक पोस्ट न समझें, इसे नीतिगत पोस्ट समझें:-

एक बार एक क्रूर शासक से दूसरे राज्य के शासक मिलने आये, बोले तुम अपनी जनता के लिए कुछ भी नहीं करते फिर भी तुम्हारी सर्वत्र जय जयकार क्यों करते है? मैं अपनी जनता के लिए इतना कुछ करता हूँ फिर भी वो मेरी कद्र नहीं करते।

क्रूर शासक मुस्कुराया और बोला शब्दो से क्या समझाऊं चलो कुछ डेमो प्रेक्टिकल करके दिखाता हूँ?

उसने कुछ पशु पक्षी मंगवाए:-

पहले उसने कुछ मुर्गे और पक्षियों के सारे पँख क्रूरता से नोचे फिर उन के आगे दाने डालने लगा। मुर्गे व पक्षी अपमान भूल गए और दाने के लिए क्रूर शासक के पीछे पीछे दौड़ने लगे।

पुनः उसने कुछ पशुओं को बेतरतीब पीटा और कुछ देर बाद में बोटी डाली सब पूंछ हिलाकर खाने लगे।

क्रूरशासक बोला मैं जनता को नोचता हूँ, उनको लूटता हूँ। फ़िर उसी लूट का कुछ अंश इन्हें दान में मुफ्त देता हूँ। यह मेरे पीछे पीछे जयकारे लगाते हैं।

तुम उन्हें यह बताते हो कि तुम उन्हें अधिकार दे रहे हो, मैं उन्हें यह बताता हूँ कि मैं तुम्हे मुफ़्त दे रहा हूँ। उन्हें जताता हूँ, उन्हीं को पहले लूटकर फिर भीख दे देता हूँ।

यह फर्क है

आइये आज की क्लास में युगऋषि की पुस्तकों से जीवन गणित में अंकित मूल्य और स्थान का मूल्य (face value and place value) पढ़ते हैं

*आइये आज की क्लास में युगऋषि की पुस्तकों से जीवन गणित में अंकित मूल्य और स्थान का मूल्य (face value and place value) पढ़ते हैं।*

रिश्तों में प्यार व सम्मान एक दूसरे के पूरक हैं, प्यार बिना सम्मान अधूरा है, सम्मान बिना प्यार लंगड़ा व लूला है।

*सांसारिक जीवन व आध्यात्मिक सफ़र में सुकून प्राप्ति के लिए स्वयं के चरित्र में व्याप्त - दोहरा चरित्र(जिसे आम भाषा में दोगलापन) कहते हैं छोड़ दीजिये। अन्यथा जीवन नर्क बनेगा।*

*बहु* -  यदि सास व ससुर से नफरत है तो पति से भी नफ़रत कीजिये। क्योंकि पति सास ससुर के दिये रक्त-मांस पिंड से बना है। वह आज जो कुछ भी है सास-ससुर द्वारा बनाया गया है। पति से प्यार और उनके जन्मदाताओं से नफ़रत का दुहरा चरित्र छोड़ दीजिए।

*दामाद* -  यदि सास व ससुर से नफरत है तो पत्नी से भी नफ़रत कीजिये। क्योंकि पत्नी सास ससुर के दिये रक्त-मांस पिंड से बनी है। वह आज जो कुछ भी है सास-ससुर द्वारा बनाया गया है। पत्नी से प्यार और उनके जन्मदाताओं से नफ़रत का दुहरा चरित्र छोड़ दीजिए।

*बेटे का माता-पिता - सास व ससुर जी* - बेटा दूध है और बहू दही रूपी जामन, और पोते व पोती उनसे निर्मित मक्ख़न। स्वयं भी कभी बहु बनकर घर आई थीं। जब बेटे में बहु रूपी जामन पड़ गया तो वह दूध नहीं रहेगा, उसका स्वभाव बदलेगा अब खीर नहीं बन सकती लेकिन मीठी दही बन सकती है। जैसे आपके आने से आपके पति बदले थे बेटा भी बदलेगा। यदि पोते पोती और बेटे से प्यार है तो बहु से भी प्यार कीजिये, अन्यथा सबसे नफरत कीजिये। अपने ज़माने की दुहाई बिल्कुल मत दीजिये क्योंकि आपके जमाने की टेक्नोलॉजी आप यूज नहीं कर रहे, जब आधुनिक टेक्नोलॉजी चाहिए तो फिर आधुनिक बहु से परहेज़ क्यों? स्वयं का शरीर जब ढीला हो गया तो रिश्तों को कसकर रखने की उम्मीद क्यों? स्वयं परिवार के लिए उपयोगी बनिये, आपके दिए अच्छे संस्कार ही आपकी मदद करेंगे। बहु व बेटे की घर गृहस्थी में बेवजह दखल मत दीजिये, कोच(गुरु) की भूमिका सिखाने में है लेकिन खेल के मैदान में हस्तक्षेप अनुचित है। उन की घर गृहस्थी में हस्तक्षेप अनुचित है। आपको जन्म से लेकर 18 वर्ष तक वक़्त सिखाने के लिए पर्याप्त वक्त मिला था न? अब उसे उस पर अमल करने दीजिए।

*बेटी के माता-पिता - सास व ससुर जी* - बेटी दूध है और दामाद दही रूपी जामन, और नाती व नातिन उनसे निर्मित मक्ख़न। स्वयं भी कभी बहु बनकर घर आई थीं और आप भी बहु व दामाद के रूप में रह चुके हो। जब बेटी में दामाद रूपी जामन पड़ गया तो वह दूध नहीं रहेगी, उसका स्वभाव बदलेगा अब खीर नहीं बन सकती लेकिन मीठी दही बन सकती है। जैसे आपके आने से आपके पति बदले थे आपका दामाद भी बदलेगा, जैसे आप बदली थी वैसे बेटी भी बदलेगी। यदि बेटी से और उसके बच्चों से प्यार है तो दामाद व उसके घर वालों से भी प्यार कीजिये, अन्यथा सबसे नफरत कीजिये। अपने ज़माने की दुहाई बिल्कुल मत दीजिये क्योंकि आपके जमाने की टेक्नोलॉजी आप यूज नहीं कर रहे, जब आधुनिक टेक्नोलॉजी चाहिए तो फिर आधुनिक दामाद से परहेज़ क्यों? स्वयं का शरीर जब ढीला हो गया तो रिश्तों को कसकर रखने की उम्मीद क्यों? स्वयं परिवार के लिए उपयोगी बनिये, आपके दिए अच्छे संस्कार ही आपकी मदद करेंगे। बेटी की घर गृहस्थी में बेवजह दखल मत दीजिये, कोच(गुरु) की भूमिका सिखाने में है लेकिन खेल के मैदान में हस्तक्षेप अनुचित है। किसी की घर गृहस्थी में हस्तक्षेप अनुचित है। आपको जन्म से लेकर 18 वर्ष तक वक़्त सिखाने के लिए पर्याप्त वक्त मिला था न? अब उसे उस पर अमल करने दीजिए।

*पति - पत्नी* - अनाथ लड़के या लड़की से शादी नहीं हुई है तो एक दूसरे के घर वाले जिन्होनें पाला है उनकी इज्ज़त करें। विवाह एक अनुबन्ध है, समाज की महत्त्वपूर्ण इकाई है इसे बुद्धिकुशलता से सम्हाले। एक दूसरे से आगे जीवन कैसे जीना है उस पर क्लियर बातचीत करें। मिस्टर परफेक्ट और मिस परफेक्ट नामक प्रजाति पृथ्वी पर नहीं पाई जाती इसलिए इसे ढूंढने में वक्त नष्ट न करें। पति व पत्नी जो जैसा है उसे उसके अस्तित्व के साथ स्वीकारें। कमल को गुलाब और गुलाब को कमल बनाने में समय जिस प्रकार व्यर्थ नहीं करते वैसे ही पति को अपने पिता जैसा और पत्नी को अपनी  माँ जैसा बनाने की चाहत छोड़ दें। आपको अपनी माँ जरूर परफेक्ट लग रही होगी लेकिन वह आपके पिता को पत्नी रूप में आपकी मां परफेक्ट नहीं लगती। इसीतरह जिस तरह पिता आपको परफेक्ट लगते हैं वैसे आपकी माता को पति रूप में आपके पिता परफेक्ट नहीं लगते। अतः बेवकूफ़ी छोड़िए पति को पिता से और पत्नी को माँ से तुलना मत कीजिये। पत्नी पत्नी में प्यार व सम्मान एक दूसरे के पूरक हैं, प्यार बिना सम्मान अधूरा है, सम्मान बिना प्यार लंगड़ा व लूला है।

👉🏻 गणित तो पढ़ी होगी, आइये जीवन गणित में आपको अंकित मूल्य और स्थान का मूल्य (face value and place value) ।

5 अंकित मूल्य
151 यहां 5 की कीमत स्थान बदलने से 50 हो गयी है।

 जब तक बेटी या बेटे रूप में है आप अंकित मूल्य पर है, ऑफिस में आप अंकित मूल्य(face value) अनुसार व्यवहार करेंगे। लेक़िन रिश्ते बदलते ही आप वही होंगे किंतु व्यवहार स्थान मूल्य (Place value) अनुसार होगा।  जीवन गणित जितनी जल्दी समझ जाएं उतना अच्छा और जीवन को बनाये सरल व सच्चा। प्रत्येक स्थान के अनुसार व्यवहार व जिम्मेदारी उठाइये।

जीवन के प्रति दृष्टिकोण ठीक रखें, बेटी की तरह बहु से प्यार, बेटे की तरह दामाद से प्यार, अपने माता पिता की तरह सास ससुर से प्यार करो। बुद्धिकुशलता से रिश्ते सम्हालो और धरती में ही स्वर्ग सा सुंदर परिवार बसाओ।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *श्वेता बहन... किसी ने मुझे कहा कि चंद्र ग्रहण में हम जो नियम मानते हैं कि जैसे चाकू से कुछ नहीं काटना, खाना नहीं खाना, खुली आंखों से नहीं देखना ग्रह, गर्भवती को नियम पालन करना आदि का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं, विज्ञान सहमती नहीं देता अंधविश्वास है....*

प्रश्न - *श्वेता बहन... किसी ने मुझे कहा कि चंद्र ग्रहण में हम जो नियम मानते हैं कि जैसे चाकू से कुछ नहीं काटना, खाना नहीं खाना, खुली आंखों से नहीं देखना ग्रह, गर्भवती को नियम पालन करना आदि का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं, विज्ञान सहमती नहीं देता अंधविश्वास है....*

उत्तर - उन बहन को कहिए बिल्कुल मत मानिए सूर्य ग्रहण व चन्द्र ग्रहण का महत्त्व हमारे कहने पर, अपितु हम चाहते हैं स्वयं देखो व जांचों परखो फिर मन करे तो मान लेना, न मन करे तो रहने देना।

अब ऐसा है, कि अंग्रेजो ने मानसिक गुलामी की आदत डाल दी है, भारतीय ज्योतिष व खगोलीय ज्ञान आज के मानसिक गुलाम तब तक नहीं मानते जब तक वह कोई पाश्चत्य का कोई व्यक्ति बोल न दे।

गौ मूत्र पर अमेरिका ने जब पेटेंट ली तब लोग चेते, उपवास पर जब लोगों ने नोबल पुरस्कार जीता तब लोगों को उपवास का महत्त्व समझ आया। नासा ने जब कहा - सूर्य ॐ साउंड देता है तब गुलामो ने माना। हमारे वेद पुराणों में तो सब गणना व ज्ञान पहले से ही है। हमारा बनारस में बैठा पण्डित पूरे वर्ष का चन्द्र व सूर्यग्रहण कब होगा एक वर्ष पूर्व बिना मशीनों के बता देता है।

प्रकृति मानती है, पशुपक्षी मानते है, और मनुष्य के रक्तकण मानते है। क्योंकि सूर्य व चन्द्र समुद्र में ज्वार भाँटे के साथ साथ, जहां जहां भी जल है उसे सीधे सीधे प्रभावित करते हैं। मनुष्य का शरीर 75% जल से ही निर्मित है।

हम सभी के अंदर भी अन्य पशु पक्षी की तरह अतीन्द्रिय क्षमता है, सूर्य ग्रहण व चन्द्र ग्रहण से लेकर मौसम के बदलाव को जानने की, अफसोस यह है कि उन सभी लोगों ने खो दिया है जो गहन ध्यान नहीं करते।

सूर्यचिकित्सा विज्ञान रेफरेंस के लिए पढ़े।

स्त्रियों का रक्त मासिक धर्म एवं बच्चे के समय पतला होता है, लेकिन पुरुषों का रक्त कभी पतला नहीं होता। लेकिन आश्चर्यजनक बात यह है कि पुरुषों का रक्त सूर्य ग्रहण के वक्त वैसे ही पतला होता है, जैसा स्त्री का मासिक धर्म के वक्त होता है। पुरुष के रक्त पर सूर्य ग्रहण का प्रभाव सीधा सीधा नोट किया जा सकता है।

एक काम करें, उन बहन को कुछ प्रयोग खुद करके देख लेंने को बोलिये:-

1- पति का रक्तपरिक्षण साधारण दिनों में करा लें व थिकनेस जांच लें और जिस दिन पूर्ण सूर्य ग्रहण हो उस दिन रक्त परीक्षण करवा लें व रक्त कितना पतला हुआ नोट कर लें।

2- जंगल आम दिनों पर चली जाएँ औऱ पक्षी व बंदरो का हल्ला गुल्ला नोट कर लें। जिस दिन पूर्ण सूर्य ग्रहण हो नोट करें कि आख़िर चहचहाहट चिड़ियों की कम क्यों हो गयी और बंदर अधिकतर जमीन पर क्यों है?

3- मासिक धर्म या गर्भवती स्त्री का EEG व ECG नॉर्मल दिनों में करवा लें और सूर्यग्रहण व चन्द्रग्रहण के दिन रीडिंग नोट कर लें। अंतर नोट कर लें।

4- अपनी सहेली से कहो पिछले 700 साल में हुई महामारी और बड़े युद्ध के वर्ष नोट करें और फिर सूर्य के नाभिक केंद्र में प्रत्येक 11 वर्ष उठने वाले आण्विक तूफानों का वर्ष नोट कर लें। स्वयं से पूँछे युद्ध व महामारी का सूर्य से सम्बन्ध क्यों है?

5- अपनी सहेली से कहो कि ऊर्जा मापक यन्त्र बोविस मीटर आता है और एक क्रिलियन फोटोग्राफी होती है। या कुछ नहीं है तो असली रुद्राक्ष जिसे उपयोग कर कम से कम 10 हज़ार मन्त्र जपा गया है उसे ले लो। साधारण दिन में खाना बनाकर एक घण्टे के बाद उसकी ऊर्जा चेक कर लो और सूर्य ग्रहण के दिन ठीक वैसा ही कर लेना। रिजल्ट नकारात्मक ऊर्जा का जांच लेना। ऊर्जा विज्ञान पर अंग्रेजी पुस्तकें उपलब्ध हैं, कृपया पढ़े।

विज्ञान का अर्थ होता है - विशेष ज्ञान।  वह विशेष ज्ञान प्रत्येक चीज़ों का भारतीय ऋषियों के पास तप से उपलब्ध था। वैदिक रश्मि थ्योरी पुस्तक पढ़ लीजिये ज्ञान नेत्र खुल जाएंगे।

विज्ञान आपने कितना पढ़ा है मैडम? टीवी, मीडिया, फेसबुक और व्हाट्सएप से विज्ञान पढ़ने वाले आधुनिक अंग्रेज मानसिक गुलाम बहन भाइयों थोड़ा रिसर्च करो, अंग्रेजो की लिखी पुस्तक भी इस विषय पर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।

अपनी सहेली से कहिए, कोई वैज्ञानिक किसी बात को इनकार करने से पहले हज़ारो परीक्षण करता है, वैसे ही आप भी उपरोक्त परीक्षण करके डंके की चोट कहिए - सूर्यग्रहण व चन्द्रग्रहण का प्रभाव मनुष्यो पर नहीं पड़ता व अंधविश्वास है।

एक विनती मेरी तरफ से...
*दो बातों पर नियंत्रण होना जरूरी है...*
*आमदनी प्रर्याप्त ना हो...*
*तो खर्चों पर*
*और...*
*जानकारी प्रर्याप्त न हो...*
*तो शब्दों पर।*

साहित्य व रिसर्च न पढ़ी हो तो भारतीय ज्ञान परम्परा पर प्रश्न मत करना व गलती से भी अंधविश्वास बिना आधार के मत कहना। हमें बहुत बुरा लगता है जब बिन विज्ञान पढ़े कोई विज्ञान की दुहाई देकर हमारे भारतीय आध्यात्मिक विज्ञान को चैलेंज करता है।

वैसे गर्भवती महिलाएं ग्रहण के दौरान चाकू, छुरी, ब्लेड, कैंची जैसी काटने की किसी भी वस्तु का प्रयोग न करें। इससे गर्भ में पल रहे बच्चे के अंगों पर बुरा असर पड़ सकता है। इस दौरान सुई धागे का प्रयोग भी वर्जित है। धातु   नकारात्मक ऊर्जा के लिए सुचालक का कार्य करता है। अतः आप ज्यों ही कोई धातु हाथ मे लेंगे वो नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करके आपके मानवीय विद्युत ऊर्जा में प्रवेश करा देगी। नकारात्मक ऊर्जा को यदि गर्भ में पल रहा बालक न सह पाया तो अपाहिज भी हो सकता है। या मानसिक रूप से डिस्टर्ब हो सकता है।

मानवीय विद्युत के बारे में पढ़ना पड़ेगा तब उपरोक्त कथन समझ आएगा। मीडिया व शोशल मीडिया स्टोर पर यह ज्ञान नहीं मिलेगा इसके लिए रिसर्च गेट वेबसाइट पर जाना होगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday 10 February 2020

बुद्धू और बुद्ध में फ़र्क़ समझें

*बुद्धू और बुद्ध में फ़र्क़ समझें*

कुछ रोज पहले,
चाचा जी गुज़र गए,
उनके के लिए,
नजदीकी श्मशान में,
कफ़न इत्यादि ख़रीदने गया,
अंतिम क्रिया का सामान,
भारी मन से ख़रीदने गया।

एक वृद्ध बहन जी,
दुकान पर बैठी थीं,
जाते ही पूँछा,
मरने वाला पुरुष है? या महिला?
उसकी कद काठी क्या थी?
उन्हें न कोई मृतक के प्रति सम्वेदना थी,
न कोई चेहरे पर प्रतिक्रिया थी।

जानकारी दी कि,
मरने वाला पुरुष था,
बस फ़िर क्या सहजता से उन्होंने,
समान समस्त ऐसे दे दिया,
मानो वह पहले से सेट बनाकर रखा हो,
अन्य किराने वाले जैसे सामान देते हैं,
बस वैसे ही सहजता से वो सामान दे रही थीं।

वृद्ध बहन से पूँछा,
आप यह अंतिम क्रिया की दुकान,
कब से चला रही हो?
बेटा, बहुत वर्ष हो गए,
यह हमारी पुस्तैनी दुकान है,
पति के जाने के बाद से,
मैं ही चला रही हूँ।

क्या आपको यहाँ भय नहीं लगता,
हरियाणा में तो स्त्रियां श्मशान नहीं जाती,
आप स्त्री होकर यहाँ अंतिम क्रिया की दुकान चलाती हो,

वह हँसी और मेरी ओर देखा,
बोली जिंदा इंसान हानिकारक हैं,
मुर्दा इंसान नहीं,
जो ख़ुद दूसरों के कंधे पर आ रहा हो,
जो स्वयं जलकर खाक होने आ रहा हो,
वो भला किसी को क्या नुकसान पहुंचाएगा?

जी वह तो सत्य है,
लेक़िन लोग कहते हैं कि,
श्मशान में भूत होते हैं,
तो क्या आपको उससे डर नहीं लगता,
क्या आपको स्वप्न में यह सब नहीं दिखता।

वह हँसी और पुनः मेरी ओर देखा,
बोली बेटा,
क्या तुम समझते हो भगवान का  बही-खाता,
यहां कोई भी आत्मा किसी को बेवज़ह नहीं सताता,
कोई न कोई कर्मफ़ल का जब तक टकराव न हो,
तो कोई आत्मा किसी को नज़र भी नहीं आता,
शिव आज्ञा लेकर ही,
लेनदेन हेतु ही आत्मा किसी जीवित से सम्पर्क करता।

श्मशान में आने वाली,
इन हज़ारों-लाखों आत्माओं से,
जब मेरा इनसे कोई नाता नहीं है,
जब इनके कर्मफ़ल और मेरे कर्मफ़ल का कोई अनुबंध नहीं है,
इसलिए यह मुझे बेवज़ह नही सता सकते,
अतः इनसे मुझे कोई भय नहीं है।

गहन सोच सोचते हुए,
जब अंतिम क्रिया का,
सामान लेकर श्मशान आ रहा था,
दोनों तरफ़ कई ढेर सारी लाशें जल रही थी,
उनकी लपटें व तपन महसूस कर रहा था,
उन सबके स्वजनों के भीतर,
जगता वैराग्य भाव देख रहा था।

फ़िर पुनः सन्त कबीर की बात याद आ गयी,
चेहरे पर व्यंग्य मिश्रित मुस्कान छा गयी,
इनकी तरह मुझमें भी,
अभी इस वक्त वैराग्य जगा हुआ है,
आत्मा अमर और शरीर नश्वर का,
अश्रुपूरित अहसास जगा हुआ है,
मग़र अफ़सोस यह वैराग्य क्षणिक सा है,
परफ्यूम की तरह यह वैराग्य भी उड़ जाएगा,
यह लोग और मैं पुनः संसार में लौट कर,
बीस से तीस दिनों में सब भूल जाएंगे,
पुनः आत्मा का अहसास मिट जाएगा,
मात्र देहाभिमान और देह से जुड़े कर्म ही,
बस याद रह जायेगा।

मैं पुनः जुट जाऊँगा,
समाज में धौस ज़माने और वर्चस्व लहराने में,
ऐसे धन एकत्र करूंगा मानो हमेशा अमर रहूँगा,
या यह सब साथ ले जाऊँगा,
सब भूलकर पुनः मूवी का टिकट लूंगा,
परिवार सहित पॉपकॉर्न के साथ फ़िल्म देखूँगा,
यह वैराग्य पुनः तब ही जगेगा,
जब या तो मैं स्वयं मर रहा होऊंगा,
या पुनः किसी की अंतिम यात्रा देखूँगा।

घोर आश्चर्य है न,
मृत पूर्वजों की टँगी तस्वीरें भी,
हममें वैराग्य नहीं जगाती,
नित्य मरते हुए लोग देखते व सुनते हैं,
फ़िर भी कुछ नहीं चेताती,
भगवान बुद्ध ने तो सिर्फ,
एक रोगी वृद्ध और एक लाश देखी,
बुद्धत्व पाने में जुट गए,
हम तो कैंसर में मरते रोगियों से भरा,
कोई अस्पताल घूम आएं,
या हज़ारो जलती हो जहां लाशें,
वह श्मशान घूम आयें,
हम बुद्धुओं को कोई फ़र्क़ न पड़ेगा,
हममें ज्ञान व वैराग्य का भाव कभी स्थिर न रहेगा।

क्योंकि हम बुद्धू से बुद्ध बनना ही नहीं चाहते,
हम मदहोशी में जीने वाले जगना ही नहीं चाहते,
जीवन को समझना ही नहीं चाहते,
ज्ञानामृत पीना ही नहीं चाहते,
अपने कर्मो को सुधारना ही नहीं चाहते,
लोभ मोह तृष्णा से पीछा छुड़ाना ही नहीं चाहते।

हम बुद्धू हैं बुद्ध बनना नहीं चाहते,
पैसे, मान, सम्मान की हवस में जीना चाहते हैं,
रिश्तों को स्वार्थ में निचोड़ना चाहते हैं,
हम बुद्धू की तरह ही जीना चाहते हैं,
हम बुद्धु तरह ही मरना चाहते हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

सर्व बाधा निवारण हेतु

[11/02, 10:07] Sweta: *गायत्रीमंत्र जप* (नित्य 324 बार(तीन माला))

ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योन: प्रचोदयात

*सर्व बाधा निवारण हेतु* (नित्य 24 बार)-

सर्वा बाधा विनिर्मुक्तो धन-धान्य सुतान्वितः। मनुष्यो मत्प्रसादेन, भविष्यति न शंसयः॥

*सुखसौभाग्य जागरण हेतु* (नित्य 24 बार)

ॐ जूं स: माम् भाग्योदयम् कुरु कुरु स: जूं ॐ
[11/02, 10:07] Sweta: लक्ष्मी जी की प्राप्ति हेतु जब भी वक्त मिले चलते फिरते यह मन्त्र पढ़ लें, अपने ऑफिस में पढ़ लें

दिंवगत आत्मा की शांति हेतु आहुति

दिंवगत आत्मा की शांति हेतु यज्ञ आहुति

*🙏वेद वाणी*🙏
 *शं नो मित्रः शं वरुणः शं नो भवत्वर्यमा।*
*शं न इन्द्रो बृहस्पतिः शं नो विष्णुरुरुक्रमः॥*
स्वाहा इदम् दिंवगतात्मानाम् शानत्यर्थम इदम् न मम्


ऋग्वेद १-९०-९।*

🌹🌹🌹🌹
१) *मित्र, सबको स्नेह करने वाला प्रभु हमें भी स्नेह करने वाला बनाए। २) वरुण, किसी से द्वेष ना करने वाला प्रभु हमें भी द्वेष रहित बनाए। ३) आर्यमा, सबके साथ न्याय करने वाला प्रभु हमें भी न्याय प्रिय बनाए। ४) इंद्र, परमैश्वर्य देने वाला प्रभु हमें भी सुख कारी बनाए। ५) बृहस्पति, सर्वोच्च ज्ञान देने वाला प्रभु हमें भी ज्ञानवान बनाए। ६) विष्णु, सर्वव्यापक सब को शांति देने वाला प्रभु हमें भी शांति प्रदान करें। ७) उरुक्रम,  सबको पराक्रम देने वाला प्रभु हमें भी इंद्रियों को नियंत्रित करने का पराक्रम दे। परमेश्वर हमें सभी प्रकार की जीवन में शांति प्रदान करें। (ऋग्वेद १-९०-९)*

गणित की क्लास - माता पिता के लिए

💫 *गणित की क्लास - माता पिता के लिए* 💫

*+ जोड़ना (योग)* 👉🏻 बच्चे को क्या परमात्मा से जोड़ा है? क्या नित्य प्रार्थना आपका बच्चा और आप लोग करते हो? अच्छी आदतों को व्यक्तित्व में जोड़ रहे हो?

*- घटाना* 👉🏻 बुरी आदतों को क्या नित्य जीवन से घटा रहे हो?

*x गुणा* 👉🏻 खुशियों को कई गुना बढाने के लिए नित नया कुछ इनोवेटिव कर रहे हो?

*÷ भाग* 👉🏻 समस्याओं से कहीं भाग तो नहीं रहे? समस्या के समाधान में अपनी योग्यता-क्षमता के अनुसार भाग तो ले रहे हो न?

*औसत(Average)* - दिनभर की दिनचर्या का औसत तो आत्मबोध-तत्त्वबोध करके निकाल रहे हो न? जीवन का अमूल्य समय औसतन कहाँ खर्च कर रहे हो? यह पता तो है न?

औसतन बच्चों को दिन में कितनी बार डांटते हो और कितनी बार प्यार करते हो इसका पता है न? प्यार का औसत ज्यादा है या गुस्से का?

क्या बच्चों के लिए स्वयं के जीवन से कोई प्रेरणा दे रहे हो?
💫💫💫💫💫
अरे अरे कहीं स्वयं को बच्चे का जन्मदाता मानकर कहीं घमंड तो नहीं कर रहे? या बच्चे को जन्म देकर कोई  उस पर अहसान किया है?

भाइयों एवं बहनों, यदि हम किसी को कपड़े गिफ्ट करते हैं तो यह तो नहीं कहते कि इस व्यक्ति का अस्तित्व मेरे कपड़े की वजह से है?

तो फ़िर यह क्यों नहीं मानते कि यह जो आत्मा आपके सन्तान रूप में जन्मी है इसे शरीर रूपी वस्त्र मात्र आपने दिया है। इस आत्मा को आपने नहीं बनाया। वह तो परमात्मा ने बनाया है न?

आपको तो इस आत्मा के सर्वांगीण विकास के निमित्त चुना गया है। आपको अपना कर्तव्यपालन करना है, परमात्मा के लिए इसे पालना है।

पिछले जन्म में भी यह किसी की सन्तान थी व अगले अन्य जन्मों में भी यह किसी की सन्तान होगी। जिस तरह हम सब पिछले जन्म के माता पिता को भूल गए वैसे ही यह भी भूल गयी है। इस पर भी संसार की माया व्याप्त है और हम पर भी संसार की माया व्याप्त है। मगर इससे सत्य तो नहीं बदलता कि हम सब एक ही परमात्मा की सन्तान हैं।

आज के जीवन के गणित का ज्ञान समाप्त कल पुनः मिलेंगे।

आपकी बहन
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Sunday 9 February 2020

*प्यार और सम्मान* के बीच फर्क समझें, *व्यवहार कुशल बनकर* रिश्ते बचाएं व रिश्तों में नया स्वास्थ्य पाएं।

*प्यार और सम्मान* के बीच फर्क समझें, *व्यवहार कुशल बनकर* रिश्ते बचाएं व रिश्तों में नया स्वास्थ्य पाएं।

🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

पिछले 7 साल से काउंसलिंग कर रही हूँ, यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि परिवार में लोग एक दूसरे को प्यार तो देते हैं मग़र सम्मान नहीं देते। वस्तुतः हममें से कई लोग - *प्यार और सम्मान* के बीच फर्क नहीं जानते और एक के बिना दूसरे का अस्तित्व नहीं दिखता यह समझ नहीं पाते हैं।

स्त्री व पुरुष कोई किसी भी उम्र का परिवार में हो चाहे वो बालक, किशोर, युवा या वृद्ध हो। आप उसके अहंकार पर चोट कभी भी सार्वजनिक तौर पर नहीं करेंगे। तब जब वह अपने मित्र सर्कल में हो, तब उसे अतिरिक्त सम्मान देकर बात करें। एकांत में ही टीका टिप्पणी करें।

विश्वास मानिए 90% झगड़े घर के समाप्त हो जाएंगे जब आप रिश्तों में छोटे व बड़े सबको सम्मान देना सीख जाएंगे। प्रत्येक व्यक्ति में कुछ आदतें अच्छी व कुछ बुरी होती हैं। यदि अच्छी आदतों की प्रसंशा नहीं करते तो आपको हक नहीं है कि बुरी आदत पर टीका टिप्पणी करें। अच्छी आदत सूक्ष्मदर्शी रूपी सूक्ष्म अवलोकन से दिखती है, बुरी आदत पहाड़ सी दिखती है।

किसी भी व्यक्ति की तुलना किसी अन्य से करके न समझाएँ, यदि किसी व्यवहारगत समस्या को सुलझाना भी है तो समस्या व समाधान की बात करें, ऐसा बिल्कुल न कहें कि देख तेरे इस दोस्त में यह क़्वालिटी है जो तुझमे नही है।  अपितु यह कहें कि यह क़्वालिटी यदि आप अपने भीतर ला लें तो आपका सम्मान हमारी नज़रों में बढ़ जाएगा। सभी आपको ज्यादा पसंद करेंगे।

शब्दों को पैसे की तरह खर्च करें, कम बोलें लेकिन जो भी बोलें वह सधे हुए अच्छे बोल होने चाहिए। चाकू के बिना किचन की कल्पना नहीं की जा सकती, सब्जियों को वही काटती है, लेकिन यही चाकू असावधानी में उंगली भी काटती है और घाव भी देती है। मुँह में विद्यमान यह जिह्वा चाकू से अधिक धारदार है, जितनी उपयोगी है, उतनी ही असावधानी में घातक है।

चाकू का घाव भर जाएगा लेकिन शब्दो का घाव जो कि हृदय में लगा है जल्दी नहीं भरता। अतः हृदय से सम्मान व प्यार देने के साथ साथ जिह्वा से मीठे शब्दों से भी प्यार व सम्मान की अभिव्यक्ति करें।

मैं तो ऐसा ही हूँ या मैं तो ऐसी ही हूँ वाले सनकी एटीट्यूड से जितनी जल्दी बाहर आ जाएं, उतना भला हो जाएगा। यह सनक आपको अकेला कर देगी।

व्यवहार कुशलता सीखें व सुखी रहें, तीन छोटी पुस्तक आपकी सहायता करेंगी इन्हें पढ़िये:-

1- भावसम्वेदना की गंगोत्री
2- मित्रभाव बढाने की कला
3- दृष्टिकोण ठीक रखिये

*ब्रह्मवाक्य सन्देश* -  प्यार और सम्मान भीख में नहीं मिलता, इसे कमाना पड़ता है। साथ ही प्यार और सम्मान दिए बिना कभी स्वयं को प्राप्त नहीं हो सकता। प्यार बिना सम्मान कभी पूर्णता प्राप्त नहीं करता।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उपरोक्त पुस्तक www.awgpstore.com पर उपलब्ध है।

माता-पिता ध्यान दें* *क्या आप यह सोचते हैं कि जन्म देकर, पैसा खर्च कर रहे हैं और उनकी देखरेख कर रहे हैं, तो सिर्फ इसलिए आप बच्चों के प्यार व सम्मान के हकदार हैं

*माता-पिता ध्यान दें*

*क्या आप यह सोचते हैं कि जन्म देकर, पैसा खर्च कर रहे हैं और उनकी देखरेख कर रहे हैं, तो सिर्फ इसलिए आप बच्चों के प्यार व सम्मान के हकदार हैं तो आप गलत सोच रहे हैं...  बच्चे आपको प्यार व सम्मान तब देंगे जब यही प्यार व सम्मान आप उनको देंगे। प्यार व सम्मान में फ़र्क़ समझिए, प्यार के साथ साथ सम्मान भी उन्हें आपसे चाहिए।*

 कोई बच्चा दिन भर अपनी आलोचना माता पिता से सुनता है, तो वह निंदा करना सीखता है।
यदि कोई बच्चा दुश्मनी के सहता है, तो वह लड़ना सीखता है।
यदि कोई बच्चा उपहास के सहता है, तो वह शर्मीला होना सीखता है।
यदि कोई बच्चा बात बात पर डराया जाता है, तो वह आशंकित होना सीखता है।
यदि कोई बच्चा शर्म से रहता है, तो वह दोषी महसूस करना सीखता है।
 यदि कोई बच्चा सहनशीलता के साथ रहता है, तो वह धैर्य रखना सीखता है।
यदि कोई बच्चा प्रोत्साहन के साथ रहता है तो वह आश्वस्त होना सीखता है।
यदि बच्चा स्वीकृति के साथ रहता है, तो वह प्यार करना सीखता है।
 यदि कोई बच्चा मान्यता के साथ रहता है, तो वह सीखता है कि लक्ष्य रखना अच्छा है।
अगर कोई बच्चा ईमानदारी के साथ रहता है तो उसे पता चलता है कि सच्चाई क्या है।
यदि बच्चा निष्पक्षता के साथ रहता है, तो वह न्याय सीखता है।
यदि कोई बच्चा सुरक्षा के साथ रहता है, तो वह अपने आप में और उसके बारे में विश्वास रखना सीखता है।
यदि कोई बच्चा मित्रता के साथ रहता है, तो वह सीखता है कि दुनिया एक अच्छी जगह है जिसमें प्यार करना और प्यार करना है।

👇
If a child lives with criticism, he learns to condemn.
 If a child lives with hostility, he learns to fight.
If a child lives with ridicule, he learns to be shy.
If a child lives with fear, he learns to be apprehensive.
 If a child lives with shame, he learns to feel guilty.
If a child lives with tolerance, he learns to be patient.
If a child lives with encouragement he learns to be confident.
If a child lives with acceptance, he learns to love.
If a child lives with recognition, he learns it is good to have a goal.
If a child lives with honesty he learns what truth is.
If a child lives with fairness, he learns justice.
If a child lives with security, he learns to have faith in himself and those about him.
If a child lives with friendliness, he learns the world is a nice place in which to live to love and be loved.

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *लाइब्रेरी में आकर बच्चों को सत्साहित्य-अच्छी पुस्तकों को पढ़ने के लिए कैसे प्रेरित करें?*

प्रश्न - *लाइब्रेरी में आकर बच्चों को सत्साहित्य-अच्छी पुस्तकों को पढ़ने के लिए कैसे प्रेरित करें?*

उत्तर , आत्मीय बेटे, *लाइब्रेरी* - की पुस्तकों में से कोई एक पुस्तक स्वयं पढंकर उनके प्रश्नोत्तर बनाओ। लाइब्रेरी में उस पर डिबेट व प्रश्नोत्तर करवाओ जीतने वाले का नाम एक बोर्ड में विनर की तरह लगवाओ, बाकी लोग मिलकर विनर को चाय बिस्किट या जूस की पार्टी दो। विनर बनना एक सुख की अनुभूति है, यह काम करती है।

प्रत्येक सप्ताह एक पुस्तक उठाओ और उस पर प्रतियोगिता करवाओ।

रुचिकर एक्टिविटी सोचो, जहां चाह वहाँ राह है। अध्यापकगण भी सहायता करेंगे🙏🏻

लाइब्रेरी तक बच्चे आएं इसके लिए कठिन परिश्रम करना पड़ेगा। क्योंकि उनकी आत्मा को ज्ञान की प्यास है और उनके शरीर को नहीं। अतः जो स्वयं की पहचान शरीर मान रखा है उसके लिए अतिरिक्त प्रयास की जरूरत है। जो जानते हैं कि मैं शरीर नहीं आत्मा हूँ और पुण्य की तरह ज्ञान भी जन्म जन्मांतर तक - कई जन्मों तक साथ चलता है, वह सत्साहित्य पढ़ने स्वतः आएंगे।

🙏🏻 अमेरिका और यूरोप में लोगो के अंदर पढ़ने का इतना क्रेज है कि लाइब्रेरी हर गली नुक्कड़ पर है। भारत में यह अवेयरनेस हमें और आपको मिलकर करनी होगी।🙏🏻

*ध्यान रखिये बेटे* - शराब ज़हर है, उसके विज्ञापन और वितरण के लिये घर घर नहीं जाना पड़ता। दूध अमृत है और जीवनदायी है, लेकिन दूध वाले को घर घर जाना पड़ता है।

तुम गन्दी पुस्तको की जीवन में ज़हर बांटने वाली लाइब्रेरी खोलो, लोग मख्खी की तरह लाइब्रेरी में आएंगे। मग़र तुमने तो अच्छी पुस्तको की जीवन में अमृत और खुशियाँ देने वाली लाइब्रेरी खोली है तो तुम्हें अतिरिक्त प्रयास करना पड़ेगा। मधुमक्खियाँ यदि जानेंगी तो स्वतः ज्ञान का परागकण लेने लाइब्रेरी आएंगी।

कर्म करो फल की चिंता मत करो, जब हम सच्चे दिल से प्रयास करते हैं, तो परमात्मा स्वतः हमारा साथ देते हैं। प्रतियोगिता जीवन अमृत साहित्य की आयोजित करो, कुछ रुचिकर करो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Saturday 8 February 2020

मधुमक्खी बनाम मक्खी-मच्छर प्रकृति

🌸🐝 *मधुमक्खी बनाम मक्खी-मच्छर प्रकृति* 🦟

मधुमक्खी से उम्मीद करो कि वह पुष्प पर बैठेगी और उसका चयन करेगी। लेकिन मक्खी से से उम्मीद मत करो कि कचड़ा छोड़कर वह पुष्प चुनेगी, वह तो कचड़े पर ही बैठेगी। गाय व घोड़े साफ स्थान पर चारा चरेंगे व बैठेंगे। सुअर और भैंस से उम्मीद मत करो कि वह कीचड़ में नहीं लौटेंगे।

 तुम्हारे भाषण व ज्ञान देने से मक्खी, सुअर व भैस कचड़ा व कीचड़ नहीं छोड़ेंगे। जैसे भगवान कृष्ण के ज्ञान देने से दुर्योधन ने अधर्म नहीं छोड़ा।

अतः इसीप्रकार अपने मक्खी, सुअर, भैंस की प्रवृत्ति के पड़ोसी, रिश्तेदार से यह उम्मीद मत करो कि वह तुम्हारी निंदा, चुगली नहीं करेंगे और तुम पर अपशब्दों व तानों के कीचड़ नहीं फेंकेंगे। अतः उन्हें इग्नोर करें और अपने लक्ष्य की ओर बढ़े।

साथ ही स्वयं पर भी चेकलिस्ट लगाएं कि हम स्वयं मख्खी है या मधुमक्खी?  निंदा-चुगली का कचड़ा पसन्द है? या ध्यान-स्वाध्याय-भजन-सत्संग का पुष्प?

मक्खी रोग उत्तपन्न करती है और मधुमक्खी मीठा शहद उतपन्न करती है। स्वयं के व्यवहार व स्वभाव की चेकलिस्ट चेक कीजिये कि आपका शहद से मीठा व्यवहार है या  कड़वा, दुःख-विषाद व रोग उतपन्न करने वाला मक्खी-मच्छर सा व्यवहार है?

स्वयं विचार करिये.. यदि परिवर्तन चाहते तो परिवर्तन का हिस्सा बनो...स्वयं का सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है...

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

आपका मन मन्दिर है या कूड़ा घर? आप स्वाधीन(स्वतंत्र) हैं या पराधीन(परतंत्र) हैं?

*आपका मन मन्दिर है या कूड़ा घर? आप स्वाधीन(स्वतंत्र) हैं या पराधीन(परतंत्र) हैं?*


तुलसीदास जी कहते हैं,

पराधीन सुख सपनेहुँ नाहीं

जो पराधीन है, वह कभी सुखी नहीं हो सकता।

पराधीनता यदि विचारों की हो तो भी सुखी नहीं रहा जा सकता।

यदि तुम स्वयं का सम्मान व प्रशंशा दूसरों से चाहते हो तो तुम पराधीन बन रहे हो...

यदि तुम्हें कोई गाली देता व अपमानित करता है, और तुम उन बातों को मन में सुरक्षित कर के कड़वी यादों के रूप में हमेशा याद रखते हो, तो तुम मानसिक पराधीन बनते हो..

तुम खुश रहोगे या दुःखी जब दूसरे तय करते हैं तब तुम मानसिक पराधीन बनते हो...

जो स्वयं को स्वयं ख़ुश रखने की जिम्मेदारी उठाता है, वह ही केवल सुखी रहने का अधिकारी होता है...

कोई मुझे गाली दो या कोई मेरी प्रसंशा करे यह उसकी मर्ज़ी है, लेक़िन मैं यह तय कर सकती हूँ कि उसकी बातों को मुझे सिरियसली लेना भी है या नहीं, मेरी ख़ुशी वस्तुतः मेरे हाथ में है। कोई दूसरा कैसे तय कर सकता है कि मैं खुश रहूँगी या दुःखी?

जिसे मेरी खुशियों की परवाह हो और जिसने मुझे मेरे जीवन में ऊंचाई तक ले जाने में योगदान किया हो, जो मेरा भला चाहता है, मैं केवल उसी की बातों को हृदय में प्रवेश देती हूँ।

जिसे मेरी परवाह नहीं, उसकी परवाह मैं क्यों करूँ? उसकी बातों से सूखी या दुःखी क्यों हूँ? उसकी कोई भी याद मन मष्तिष्क में क्यों रखूं?

मेरा दिमाग़ कूड़ाघर नहीं है जहां मैं बुरी व कड़वी यादों को स्टोर करूँ।

मेरा मन तो मन्दिर है, यहाँ भजन गूंजते है, उसकी कृपा गूंजती है, उसका नाम गूंजता है। मेरे मन में सत चित आनन्द रूप परमात्मा रहता है। मैं उसके सान्निध्य में आनन्द में हूँ।

परमात्मा को याद करेंगे तो मन मन्दिर बनेगा, कड़वी यादों को याद करेंगे तो कूड़ाघर मन बनेगा। अंधकार को अस्त्र-शस्त्र से लड़कर नहीं भगाया जाता, अपितु केवल एक छोटे से दिए को जलाकर अंधकार भगाया जा सकता है। इसी तरह नकारात्मक विचारों को उससे लड़कर नहीं भगाया जा सकता, अपितु केवल सकारात्मक विचारों को पढंकर-सुनकर-सोचकर नकारात्मक विचारों को हटाया जा सकता है। प्रकाश का अभाव अँधेरा है, सकारात्मक विचारों का अभाव नकारात्मक विचार हैं।

हम स्वयं तय कर सकते हैं कि मन कूड़ाघर बनेगा या मन मन्दिर बनेगा...हम स्वाधीन होंगे या पराधीन होंगे..जो चयन करेंगे वैसा हमारे साथ घटेगा..

🙏🏻श्वेता, DIYA

Thursday 6 February 2020

एक पहेली, बूझो तो जाने, वो कौन जो सो रहे हैं?

*एक पहेली, बूझो तो जाने*

दिन ब दिन घट रहे हैं,
फ़िर भी सो रहे हैं,
दिन ब दिन वजूद खो रहे हैं,
फिर भी मदहोशी में जी रहे हैं।

आर्यावर्त विशाल था जिसके पास,
उनके खाली हैं आज हाथ,
एक भी देश उनके धर्म का नहीं अब,
फ़िर भी सो रहे हैं,
जात पात को लेकर रो रहे हैं।

पूरे विश्व में अल्पसंख्यक बन गए हैं,
कुछ परसेंट भी नहीं रह गए हैं,
जो विश्वगुरु थे कभी,
वो अज्ञानता में जी रहे हैं,
वो अभी सो रहे हैं।

देश यही था व पार्लियामेंट भी यही था,
वादियों में 6 लाख से मात्र 600 रह गए,
फ़िर संगठित न हो रहे हैं,
जातपात को रो रहे हैं,
वो अभी सो रहे हैं।

जब तक पड़ोस में आग है,
वो चद्दर ताने सो रहे हैं,
वो अपनों की चद्दर में आग लगने का,
वो इंतज़ार कर रहे हैं,
ख़ुद के लिए चिता सज़ा रहे हैं,
वो अभी सो रहे हैं।

जात पात हेतु वोट कर रहे,
फ़्री बिजली पानी चाह रहे,
मुफ़्त की बसों में सफ़र कर रहे,
सस्ते टमाटर-प्याज़ चाह रहे,
देश रहे न रहे,
वो चादर ताने सो रहे,
हकीकत भूले,
वो तो सो रहे।

विश्व के अल्पसंख्यक,
अब गायब होने की राह देख रहे,
पाकिस्तान, बंग्लादेश, अफगानिस्तान में,
अपनों के हाल को देख के भी न चेत रहे,
वो तो सो रहे हैं,
बेफिक्र जी रहे हैं।

बूझो तो जाने,
पहचानो तो माने,
यह हैं कौन जो अपने अस्तित्व को,
लावरवाही में खो रहे,
वो कौन जो धर्मनिरपेक्षता के भ्रम में जी रहे हैं,
वह कौन जो सो रहे?

🙏🏻श्वेता, DIYA

Wednesday 5 February 2020

सार्वजनिक जीवन में मर्यादा से रहें

*सार्वजनिक जीवन में मर्यादा से रहें*

जिस प्रकार किसी को मनचाही स्पीड में गाड़ी चलाने का अधिकार नहीं है, क्योंकि रोड सार्वजनिक है। ठीक उसी प्रकार किसी भी लड़की को मनचाही अर्धनग्नता युक्त वस्त्र पहनने का अधिकार नहीं है क्योंकि जीवन सार्वजनिक है। एकांत रोड में स्पीड चलाओ, एकांत जगह में अर्द्धनग्न रहो। मगर सार्वजनिक जीवन में नियम मानने पड़ते हैं।

भोजन जब स्वयं के पेट मे जा रहा हो तो केवल स्वयं की रुचि अनुसार बनेगा, लेकिन जब वह भोजन परिवार खायेगा तो सबकी रुचि व मान्यता देखनी पड़ेगी।

लड़कियों का अर्धनग्न वस्त्र पहनने का मुद्दा उठाना उतना ही जरूरी है, जितना लड़को का शराब पीकर गाड़ी चलाने का मुद्दा उठाना जरूरी है। दोनों में एक्सीडेंट होगा ही।

अपनी इच्छा केवल घर की चहारदीवारी में उचित है। घर से बाहर सार्वजनिक जीवन मे कदम रखते ही सामाजिक मर्यादा लड़का हो या लड़की उसे रखनी ही होगी।

बुर्का और घूंघट जितना गलत है, उतना ही गलत अर्धनग्नता युक्त वस्त्र गलत है। बड़ी उम्र की लड़कियों का बच्चों की सी फ़टी निक्कर पहनकर छोटी टॉप पहनकर फैशन के नाम पर घूमना भारतीय संस्कृति का अंग नहीं है।

जीवन भी गिटार या वीणा जैसा वाद्य यंत्र हो, ज्यादा कसना भी गलत है और ज्यादा ढील छोड़ना भी गलत है।

सँस्कार की जरूरत स्त्री व पुरुष दोनों को है, गाड़ी के दोनों पहिये में सँस्कार की हवा चाहिए, एक भी पंचर हुआ तो जीवन डिस्टर्ब होगा।

नग्नता यदि मॉडर्न होने की निशानी है, तो सबसे मॉडर्न जानवर है जिनके संस्कृति में कपड़े ही नही है। अतः जानवर से रेस न करें, सभ्यता व संस्कृति को स्वीकारें। कुत्ते को अधिकार है कि वह कहीं भी यूरिंन पास कर सकता है, सभ्य इंसान को यह अधिकार नहीं है। उसे सभ्यता से बन्द टॉयलेट उपयोग करना होगा। इसी तरह पशु को अधिकार है नग्न घूमने का, लेकिन सभ्य स्त्री को सभ्य वस्त्र का उपयोग सार्वजनिक जीवन मे करना ही होगा।

अतः विनम्र अनुरोध है, सार्वजनिक जीवन मे मर्यादा न लांघें, सभ्यता से रहें।

👏श्वेता, DIYA

Parent/Child Communication Technique

*Parent/Child Communication Technique*

बच्चों को सँस्कार तब ही दे सकेंगे जब वो आपको सुनेंगे। केवल आप माता पिता है और जन्म दिया है तो जो आप बोलोगे वह वही मानेगा यह सोचना भ्रम है। इस भ्रम से जितनी जल्दी बाहर आ जाएं उतना अच्छा होगा।

Rejection/Denial Mode से पहले बच्चे को Listening Mode सुनने की परिस्थिति में लाना। तब जो आप कहना चाहते हैं उसे वह सुनेगा।

उसे तथ्य-तर्क-प्रमाण से Information देना। बच्चे की कोई भी उम्र हो, उसे Respect देते हुए हर एक पहलू से अवगत कराना। Explain in detail, Why you want this will be good for you my son/daughter? जब हम क्या(What) और क्यों(Why) बच्चों को समझा देते हैं, तब यदि वो हाँ या ना कहेंगे तो इसके Response में उन्हें भी यह बताना होगा कि वो ऐसा क्यों नहीं चाहते? या वो क्या चाहते हैं?

हमें पता है कि माता-पिता जॉब में व्यस्त हैं। बच्चे बहुत सारी एक्टिविटी और पढ़ाई के लोड में दबे हैं। फिर भी माता-पिता और बच्चों के रिश्तों में दरार को हम रोक सकते हैं, यदि हम Communication skill बाल सम्वाद हेतु सीख लें।

एक बार एक मनोचिकित्सक ने Happy Parenting Workshop आयोजित की, दो ग्रुप में लोगों से टेबल बजाकर धुन निकालने को कहा, सामने ग्रुप को गाना बताना था। 99% लोग फेल हो गए। तब ट्रेनर ने कहा- जो बजा रहा था उसे मन में क्लियर था कि वह कौन सा गाना बजा रहा है। किंतु सामने वाला अनभिज्ञ था, तब जो बजा रहा व्व झल्ला रहा था कि इतनी आसान धुन भी यह समझ न पाया। अब दूसरी बार गाना पहले बताकर या उसका हिंट देकर टेबल बजाने को कहा, इस बार 70% से 80% लोग धुन समझ सके।

तब ट्रेनर ने कहा, माता पिता के रूप में आपको पता होता कि आप क्यों चिल्ला व झल्ला रहे हैं, पर बच्चा उसके पीछे के क्या(What) और (Why) उसे क्लियर जब नहीं होता तो वह कन्फ्यूज़ हो जाता है।

बच्चों से कभी यह मत कहिए - *I know what is right for you, discussion over* - बहस मत करो, मैं जानता हूँ क्या तुम्हारे लिए सही है।

अपितु कहिए - मेरा अनुभव कहता है कि जो मैं कह रहा हूँ यह आपकी समस्या का समाधान करेगा। हम इस पर डिस्कशन करके इसे बेहतर से और समझ सकते हैं, एक दूसरे का point of view इस पर क्या और क्यों है समझ सकते हैं। एक और एक ग्यारह होते हैं, हमारा और आपका दिमाग मिलकर ज्यादा बेहतरीन तरीके से समस्या समझ सकेगा। बोलो क्या कहते हो?

बच्चे को समझाएँ और उसे कन्फ्यूज न करें। उसे लाभ व हानि क्लियर समझने दें। छोटे प्रयास कारगर है, जब हम रोज थोड़ा ही सही उनसे सम्वाद करें, ज़रा पूँछे आज के दिन में क्या विशेष अनुभव रहा? क्या कुछ बात आज के दिन की आप हमसे शेयर करना चाहेंगे? दोस्त पहले बनिये और साथ मे माता पिता की जिम्मेदारी निभाइये। हम नहीं कहते बहुत समय दीजिये, थोड़ा ही सही क़्वालिटी वक्त पूर्ण अटेंशन के साथ बच्चों को दीजिये।

Think on paper तकनीक और Opposite Chair Communication तकनीक अपनाकर उनका नजरिया जीवन के प्रति व आपके प्रति क्या है, यह समझिये और तदनुसार व्यवहार कीजिये।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 4 February 2020

अपनों से महाभारत लड़ने से बचो, एक दूसरे के अस्तित्व को स्वीकार करो

*एक दूसरे के अस्तित्व को स्वीकार करो*

एक बार दो बच्चों ने निर्णय लिया,
चलो टिफ़िन शेयर करेंगे,
मिलकर खाएंगे,
कुछ दिन ख़ुशी हुई,
मग़र यह ख़ुशी,
चंद रोज ही टिक सकी।

झगड़े शुरू हुए,
तुम्हारी मम्मी,
बहुत सादा खाना टिफ़िन में देती है,
और तुम्हारी मम्मी,
बहुत तीखा खाना टिफ़िन में देती है।

अरे मुझे तो तीखा पसन्द है,
अरे मुझे तो सादा पसन्द है,
क़रार टिफ़िन शेयर का भूल गया,
दोनों का मन रूठ गया,
क्या तुम्हारी मम्मा थोड़ा चटपटा नहीं बना सकती,
क्या तुम्हारी मम्मा थोड़ा मिर्च मसाला कम नहीं कर सकती,
फ़िर दोनो पुनः लड़ने लगे,
अपनी अपनी मम्मी को,
बेहतर साबित करने लगे।

झगड़ा सुन टीचर आई,
दोनों के मुद्दों की हुई सुनवाई,
टीचर ने कहा,
जैसे तुम दोनों की मम्मी है,
वैसे ही तुम्हारी नानियाँ,
तुम्हारी मम्मियों की मम्मी है,
उन्होंने जैसा बेटियों को,
खाना बनाना सिखाया,
जैसा खाना उन्हें बचपन से खिलाया,
वो ही सँस्कार व आहार उनमें रचबस गया,
अब वह उनके जीवन का अंग बन गया,
अतः जिसका टिफ़िन जैसा है,
वैसा स्वीकार करो,
अच्छा लगे तो खाओ,
वरना प्यार से इंकार करो,
कोई भी मम्मी,
तुम्हारे टिफ़िन शेयर के लिए,
अपने भोजन की आदत को नहीं बदलेगी,
अतः दोस्ती के लिए,
दोनों के अलग अस्तित्व, सँस्कार व आहार को स्वीकार करो,
पसन्द आये तो खाओ,
नहीं तो प्यार से इंकार करो,
टिफ़िन के लिए,
दोस्ती मत तोड़ो,
दोस्ती के लिए,
टिफ़िन को छोड़ो।

👇
शादी के बाद टिफ़िन की तरह,
जीवन दो बड़े युवा शेयर करते हैं,
कुछ दिन तो सब अच्छा लगता है,
फिर बच्चों की तरह झगड़ते हैं।

दोनों के मम्मियों के संस्कारों के बीच,
फिर महाभारत होता है,
एक दूसरे के सुधारने का,
फ़िर कवायद होता है,
भूल जाते हैं,
दोनों अपनी जगह सही हैं,
वो जो हैं,
वह अपनी मम्मियों की मात्र परवरिश है।

समझौता विवाह की प्रथम शर्त है,
समझौते में तो लड़ना ही व्यर्थ है,
जो जैसा है उसे वैसा स्वीकारना है,
खुद को दूसरे के साथ,
कैसे एडजस्ट करना है,
यह गहराई से सोचना है,
कब कितना किसको हावी होने देना है?
कब किसे किस हद के बाद "No" बोलना है,
स्वयं के अस्तित्व के साथ,
दूसरे के अस्तित्व को स्वीकारना है,
किसी को किसी के अस्तित्व को,
कभी मिटाने नहीं देना है।

टीचर स्कूल में आती है,
असली जिंदगी में सदगुरु आता है,
उसे पुकारो और ध्यानस्थ हो,
उससे जीवन की समस्या का समाधान मांगो,
स्वयं के अस्तित्व और जीवनसाथी के अस्तित्व में,
सूझबूझ से सामंजस्य बिठा लो।

जब गुलाब को कमल बनने के लिए नहीं कहते,
जब सेब को संतरा बनने के लिए नहीं कहते,
फिर जीवनसाथी को उसके घर के सँस्कार को छोड़,
अपने सँस्कार में बदलने की जिद क्यों करते हो?

जो जैसा है उसे वैसा स्वीकार करो,
उसकी प्रकृति समझो व व्यवहार करो,
दोस्ती भरे रिश्ते नींव डालो,
अलग अलग अस्तित्व स्वीकार लो,
जीवन भर एक साथ चलो,
एक दूसरे को समझो,
तद्नुसार व्यवहार करो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

महाभारत जब घर में अपनों से हो तो, लड़ना कठिन हो जाता है

*महाभारत जब घर में अपनों से हो तो, लड़ना कठिन हो जाता है।*

पूर्व जन्म के दुश्मन और मित्र,
विभिन्न रिश्तों के रूप में संग आते हैं,
मित्र रिश्ते प्यार लुटाते हैं,
दुश्मन रिश्ते खून के आँशु रुलाते हैं।

मोह बन्धन में हम यूँ उलझ जाते हैं,
निर्णय लेना कठिन हो जाता है,
महाभारत जब घर में अपनों से हो तो,
हर रिश्ता उलझ जाता है,
निर्णय लेना बहुत कठिन होता है।

क्या सही है क्या गलत है,
कुछ भी समझ नहीं आता है,
तब मोह में ग्रस्त अर्जुन की तरह,
व्यक्ति किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है।

जब समझ नहीं आता,
अपनों से ही कैसे लड़ूँ,
तब लगता है स्वयं को ही,
क्यों न समाप्त कर लूँ?

दो अपनों के बीच,
किसका चयन करूँ,
दो अपनों में से,
किस एक को छोड़ दूँ?

ऐसी विकट परिस्थिति पर,
जब भी स्वयं को पाएँ,
कुछ दिन की छुट्टी लेकर,
गुरुधाम - तीर्थ स्थल चले जाएं।

खुले आसमान के नीचे,
श्रीमद्भागवत गीता का पाठ करें,
स्वयं को अर्जुन मानकर,
भगवान कृष्ण से मदद की गुहार करें।

खुले आसमान की तरफ़,
सर ऊंचा कर एकटक निहारो,
स्वयं के अस्तित्व को और इसे बनाने वाले को,
पूरी शक्ति से पुकारो।

जब समस्या पर ध्यान केंद्रित करोगे,
तब समाधान नहीं दिखेगा,
जब समाधान पर ध्यान केंद्रित करोगे,
तब समस्या का अस्तित्व ही नहीं बचेगा।

जीवन युद्ध है,
लड़ना तो पड़ेगा,
फोड़ा हुआ है,
तो ऑपरेशन करना पड़ेगा।

ज़िंदगी में निर्णय,
सही गलत के बीच नहीं लेना होता है,
जिंदगी में तो निर्णय,
दो ग़लत में से कोई एक कम गलत चुनना होता है,
दो सही में से कोई एक ज्यादा सही चुनना होता है।

अनिर्णय में रहोगे तो,
हैरान व परेशान रहोगे,
कुछ न कुछ निर्णय ले लोगे तो,
जीवन के पथ पर बढ़ सकोगे।

कायरता छोड़कर,
स्वयं में साहस व शक्ति का संचार करो,
हिम्मत व सूझबूझ से,
अपनी समस्याओं का समाधान करो।

मनुष्यो को उनकी आकृति से नहीं,
उनकी अंतः प्रकृति से पहचानो,
भीतर से वो सिंह है या वह लोमड़ी है या अन्य जीव है,
उसे समझो और तद्नुसार ही व्यवहार करो।

जो स्वयं की मदद करता है,
ईश्वर भी उसी की मदद कर सकता है,
जन्मजन्मांतर के प्रारब्ध का शमन,
इंसान स्वयं इस जन्म में ही कर सकता है।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

बेटे बेटियों दोनों में शुभ सँस्कार जगाएं

*बेटे बेटियों दोनों में शुभ सँस्कार जगाएं*
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
अगर बेटी से है सचमुच का प्यार,
उसको भी दो उच्च शिक्षा का अधिकार,
यदि बेटी से है सचमुच का प्यार,
सेल्फ डिफेंस हेतु उसे करो तैयार।

दुश्मनों का भी संघार कर सके,
मुसीबत में दुर्गा अवतार ले सके,
घर को भी प्रेम-सेवा से सम्हाल सके,
शुभ सँस्कार युक्त व्यवहार कर सके।

यदि बेटों से है सचमुच प्यार,
उन्हें भी सिखा दो बेटियों का सम्मान,
बेटों को भी दो शुभ सँस्कार,
उन्हें भी सिखाओ आत्मियता युक्त व्यवहार।

बेटे - बेटी का भेद मिटा दो,
दोनों को जीने का समान अवसर दे दो,
दोनों को उच्च मनोबल दो,
दोनों को पढ़ने और आगे बढ़ने दो।

घर के काम में भी दोनों हाथ बंटाये,
कमाई व्यवसाय में भी साथ निभाएं,
गृहस्थ एक तपोवन बनाएं,
बेटे बेटियों दोनों में शुभ सँस्कार जगाएं।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Monday 3 February 2020

प्रश्न - *आयुर्वेद व यज्ञ-चिकित्सा(यग्योपैथी) में क्या सम्बंध है?*

प्रश्न - *आयुर्वेद व यज्ञ-चिकित्सा(यग्योपैथी) में क्या सम्बंध है?*

उत्तर - *‘‘यज्ञो वै विश्वस्य भुवनस्य नाभि:।’’ (ऋग्वेद)*

ब्रह्माण्ड की धुरी यज्ञ है।

गीता में भगवान कृष्ण ने यज्ञ को मनुष्य का जुड़वा भाई कहा है।

‘सहयज्ञा: प्रजा सृष्टा पुरोवाच: प्रजापति:। (गीता 3/10)

*यज्ञ का स्वरूप*

यज्ञ का वास्तविक स्वरूप बतलाते हुए  *युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी*  कहते हैं कि  *‘‘अध्यात्म और विज्ञान का प्रत्यक्ष समन्वय का माध्यम यज्ञ है। आत्मसंयम की तपश्चर्या और भावनात्मक केंन्द्रीकरण की योग-साधना का समन्वय जिस प्रकार ब्रह्मविद्या कहलाता है। उसे अध्यात्म विज्ञान का भावपक्ष कह सकते हैं। द्वितीय इसी ब्रह्मविद्या का क्रिया पक्ष यज्ञ है।’’*

‘यज्ञ विश्व बह्माण्ड’ की नाभि है- इसका तात्पर्य है कि *ब्रह्माण्ड के सूक्ष्म तत्वों का पोषण एवं विकास यज्ञ से ही सम्भव है।*

👉🏻 *आयुर्वेद* (आयुः + वेद = आयुर्वेद) विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा प्रणालियों में से एक है। *यह विज्ञान, कला और दर्शन का मिश्रण है*। *‘आयुर्वेद’ नाम का अर्थ है, ‘जीवन का अमृत रूपी ज्ञान’ और यही संक्षेप में आयुर्वेद का सार है।* आयुर्वेद, भारतीय आयुर्विज्ञान है। आयुर्विज्ञान, विज्ञान की वह शाखा है जिसका सम्बन्ध मानव शरीर को निरोग रखने, रोग हो जाने पर रोग से मुक्त करने अथवा उसका शमन करने तथा आयु बढ़ाने से है।
हिताहितं सुखं दुःखमायुस्तस्य हिताहितम्।मानं च तच्च यत्रोक्तमायुर्वेदः स उच्यते॥ -(चरक संहिता १/४०)
(अर्थात जिस ग्रंथ में - हित आयु (जीवन के अनुकूल), अहित आयु (जीवन के प्रतिकूल), सुख आयु (स्वस्थ जीवन), एवं दुःख आयु (रोग अवस्था) - इनका वर्णन हो उसे आयुर्वेद कहते हैं।)
आयुर्वेद की परिभाषा एवं व्याख्या
आयुर्वेद विश्व में विद्यमान वह साहित्य है, जिसके अध्ययन पश्चात हम अपने ही निरोगी व सुखी जीवन शैली का निर्धारण कर सकते है।

आयुर्वेद में औषधियों का विस्तृत विज्ञान है। इन औषधियों के सेवन के कई माध्यम बनाये गए - मुख मार्ग से औषधियों के अर्क, वटी, शरीर पर लेपन और श्वांस मार्ग से नस्य (धूपन विधि)

चरक और सुश्रुत ने तो विधिवत नस्य विभाग(नाक से औषधीय धूम्र का सेवन) स्थापित किये थे। धन्वंतरि ने जटिलतम रोगों की इस प्रक्रिया द्वारा ठीक किया, ऐसे वर्णन पढ़ने को मिलते हैं। वनौषधियों को देवोपम महत्ता देकर उनका सदुपयोग का जैसा वर्णन अध्यात्म ग्रंथों में किया गया है, उसे देखते हुए भारत के पुरातन गौरव के प्रति नतमस्तक हो जाना पड़ता है।

👉🏻 *यज्ञ-चिकित्सा में मन्त्र की भूमिका अहम है, औषधियों की पोटेंसी को अत्यंत उच्च लेवल पर प्राप्त करने की विधिव्यवस्था है।*

मननात् त्रायते इति मन्त्रः .............. जिसके मनन से त्राण(जीवन रक्षण) मिले वह मन्त्र है। यह अक्षरों का ऐसा दुर्लभ एवं विशिष्ट संयोग है , जो ब्रह्माण्ड के किसी भी जीव, वनस्पति, औषधि इत्यादि के आन्तरिक और बाह्य चेतना जगत को आंदोलित, आलोड़ित एवं उद्वेलित कर देता है।

*मन्त्र के चिकित्सा के दौरान उपयोग के प्रमुख तत्व*

मन्त्र उपचार में चार तथ्य सम्मिश्रित रूप से काम करते है। इन चारों तथ्यों का जहाँ जितने अंश में समावेश होगा वहां उतने ही अनुपात में मन्त्र शक्ति का प्रतिफल , स्वास्थ्य लाभ और सिद्धि दृष्टिगत होगी:-
 1) ध्वनि विज्ञान के आधार पर विनिर्मित शब्द श्रृंखला का चयन और उसका विधिवत उच्चारण
2)साधक की संचित प्राणशक्ति और मानसिक एकाग्रता का संयुक्त समावेश
3) मन्त्र-जाप में प्रयुक्त होने वाली भौतिक उपकरणों की सूक्ष्म शक्ति
 4) साधक की अपनी भावना, आस्था, श्रद्धा, विश्वास और उच्चस्तरीय लक्ष्य

यज्ञ-चिकित्सा के शोध के अनेकानेक आयाम हैं हविष्य धूम्र, यज्ञावशिष्ट, मंत्रोच्चार में सन्निहित शब्दशक्ति, याजक गणों का व्यक्तित्व एवं उपवास, मौन प्रायश्चित आदि रोगोपचार से जुड़ी तपश्चर्याएं। इन प्रयोजनों का शास्त्रों में उल्लेख तो है, पर उनके विधानों, अनुपातों और सतर्कताओं का वैसा उल्लेख नहीं मिलता, जिसके आधार पर समग्र उपचार बन पड़ने की निश्चतता रह सके। यज्ञ-विद्या को सांगोपांग बनाने के लिए शास्त्रों के सांकेतिक विधानों को वैज्ञानिक एंव सर्वांणपूर्ण बनाना होगा। यह कार्य पुरातन के आधुनिक शोध द्वारा ही संभव है।

ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान में यज्ञ- चिकित्सा विज्ञान की अनुसंधान प्रक्रिया का शुभारंभ जिन पक्षों से किया गया है वे हैं यज्ञ से रोग निवारण, स्वास्थ्य, सवर्द्धन, प्रकृति संतुलन एवं वनस्पति संवर्द्धन, दैवी अनुकूलन, समाज, शिक्षण शक्ति जागरण तथा यज्ञ की विकृतियों एवं विसंगतियों में सुधार। शोध की परिधि असीम है, परन्तु प्रारम्भिक प्रयास के रूप में यज्ञ विज्ञान के इन्हीं प्रमुख आठ पक्षों को प्रयोग-परीक्षण की कसौटी पर रखा गया है। इन्हीं आधारों पर अनुसंधान परक पीएचडी देवसंस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार में प्रारम्भ किया गया।

*आयुर्वेद में भी औषधियों की पोटेंसी बढाने के लिए ऋषि मंत्रों का प्रयोग करते थे, वैसे ही यज्ञ में भी मन्त्र प्रयोग से औषधियों की पोटेंसी बढ़ाई जाती है। आयुर्वेद के रचयिता सभी ऋषि तपस्वी व साधक थे। वे यज्ञ की महत्ता जानते थे। हम यह भी कह सकते हैं कि आयुर्वेद का ही एक अंग - यज्ञ चिकित्सा विज्ञान है, या यज्ञ चिकित्सा विज्ञान का एक अंग आयुर्वेद है, दोनों कथन सही है क्योंकि आयुर्वेद व यज्ञ एक दूसरे के पूरक हैं। आयुर्वेद की ही रोग विशेष औषधियों को यज्ञाग्नि में मंत्रो सहित आहुति देकर औषधीय धूम्र तरङ्ग का निर्माण किया जाता है जो एकल चिकित्सा व सामूहिक चिकित्सा दोनों के लिए लाभप्रद है। यज्ञ ही मात्र एक ऐसा माध्यम है जिससे सामूहिक उपचार मनुष्य, जीव, वनस्पति एवं प्रकृति का उपचार सम्भव है। संक्रमण फ़ैलाने वाले वायरस को वातावरण से जड़ से नष्ट करने में यज्ञ ही एक मात्र सहायक है।*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Sunday 2 February 2020

गुरुकुल परम्परा - एक हाथ में शास्त्र एवं दूसरे हाथ में शस्त्र*

*गुरुकुल परम्परा - एक हाथ में शास्त्र एवं दूसरे हाथ में शस्त्र*

पता नहीं आप में से कितने लोगों ने धर्म साहित्यों का गहराई से अध्ययन किया है व कितने लोगों ने सनातन धर्म मे पूजे जाने वाले देवी देवताओं के प्रतीक चित्रों के रहस्य को समझा है व कितने लोगों को वैदिक गुरुकुल परम्परा के बारे में जानकारी है।

हम यहाँ मात्र उन तथ्यों व तर्को को प्रस्तुत कर रहे हैं, जो हमारी दृष्टि में अध्ययन के दौरान आये:-

1- प्राचीन वैदिक समय में स्त्री पुरुषों को समान शिक्षा का अधिकार था।
2- गुरुकुल शिक्षा दीक्षा के केंद्र थे जो आवासीय(हॉस्टल सुविधा) और बिना आवास के दोनों तरह से सन्चालित थे।
3- गुरुकुल केवल ऋषियों व तपस्वियों द्वारा चलाया जाता था जो गृहस्थ या सन्यासी हो सकते थे। जो ज्ञान दाता शास्त्रों के विशेषज्ञ थे साथ ही शस्त्र के ज्ञाता व युद्ध कला प्रवीण थे।
4- विद्यार्थियों को शास्त्र(Information of knowledge) पढ़ाने से पूर्व उनके मन की पात्रता उसे ज्ञान को ग्रहण करने योग्य बनाई जाती थी। इसलिए उनकी चेतना को उर्ध्वगामी व सुपात्र बनाने हेतु उन्हें विभिन्न साधनाये करवाई जाती थी - जिसमें मन को साधने हेतु ध्यान, मन को ऊर्जावान बनाने हेतु गायत्री मन्त्र जप, मन की मजबूती के लिए विभिन्न प्राणायाम जैसे - भ्रामरी, नाड़ीशोधन, गणेश योग  इत्यादि प्रमुख थे।
5- जब बच्चे का मन सध जाता था तब उसे शास्त्र (विभिन्न ज्ञान परक पुस्तके) पढ़ाई जाती थी।
6- बच्चे को शस्त्र व युद्ध कला सिखाने से पूर्व उनके शरीर को मजबूत बनाया जाता था - इसके लिए सूर्य नमस्कार, दण्ड बैठक, भार वहन, योग इत्यादि तकनीक उपयोग में लाई जाती थी।
7- जब शरीर मजबूत हो जाता था तो युद्ध कला पहले बांस से बने हथियारों, फिर लट्ठ, फिर लोहे के अस्त्र शस्त्र से युद्ध कला सिखाई जाती थी।
8- जब युवावस्था में उच्च पढ़ाई(ग्रेजुएशन) की अवस्था आती थी तब उन्हें मन्त्र प्रयोग से अस्त्र को ब्रह्मांडीय ऊर्जा के साथ विभिन्न देव शक्तियों की शक्ति के साथ चलाना सिखाते थे।
9- उन्हें आयुर्वेद की शिक्षा बचपन से अनिवार्य थी। आयुर्वेद - दो शब्दों से मिलकर बना है - आयु + वेद। वेद का अर्थ होता है ज्ञान। आयु का अर्थ है जीवनी शक्ति व स्वास्थ्य भरी उम्र। ऐसा ज्ञान जो समग्र स्वास्थ्य के साथ जीने की कला सिखाये। आयुर्वेद की एक शाखा - उपनिषद - यज्ञ एक समग्र उपचार सिखाया जाता था।
10- दैनिक गायत्री मंत्र जप, उगते सूर्य का ध्यान, धार्मिक पुस्तकों का स्वाध्याय एवं यज्ञ प्रत्येक विद्यार्थी को उम्रभर करने के लिए निर्देशित किया जाता था।
11- किसी एक ईष्ट देवी देवता को आदर्श रूप में चुनने को कहा जाता था। जिसे चुना उसके गुण स्वयं में धारण करने की प्रेरणा दी जाती थी। सभी देवी देवता अस्त्र, शस्त्र एवं शास्त्रों से सुसज्जित होते हैं। माता पार्वती साधारण समय मे तपलीन शिव के साथ नॉर्मल गृहणी है। युद्ध के समय दुर्गा व काली हैं। शिव साधारण समय में भोलेनाथ हैं, युद्ध के समय महाकाल है। गणेश, कार्तिकेय, रिद्धि-सिद्धि व संतोषी माता समस्त परिवार साधारण समय गृहस्थ हैं, युद्ध के वक्त सभी असुरों को नष्ट करने में सक्षम हैं। अतः शिव परिवार की तरह कुशल गृहस्थ बनने की प्रेरणा दी जाती थी। गृहस्थ होते हुये भी योगी व योद्धा दोनों बनने को कहा जाता था।

इसी गुरुकुल परम्परा का कमाल था कि भारत सोने की चिड़िया था और विश्व व्यापार में 23% मार्किट पर राज करता था। टेक्नोलॉजी व चिकित्सा व्यवस्था उच्च थी।

इस गुरुकुल परम्परा को तोड़े बिना, कोई कैसे भारत को गुलाम बना सकता था। इसलिए जब जब भी कोई राक्षस शक्ति सम्पन्न बनकर भारत वर्ष को गुलाम बनाना चाहता, उसका पहला टारगेट गुरुकुल ही होते थे।

प्राचीन समय के राक्षस हों या मुगल हो या अंग्रेज सभी ने गुरुकुल ही ध्वस्त किये। परिणाम आपके सामने है। सब पुनः ठीक करना है और भारत को पुनः विश्वगुरु बनाना है तो पुनः शस्त्र व शास्त्र युक्त गुरुकुल परम्परा को विद्यालयों में लाना होगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...