Saturday 31 October 2020

प्रश्न - क्या क्रोध पर नियंत्रण मुश्किल है?

 प्रश्न - क्या क्रोध पर नियंत्रण मुश्किल है?

उत्तर - क्रोध एक भावना है, अन्य भावनाओं की तरह यह भी मन में उठती है। बस समस्या यह कि इसकी अभिव्यक्ति जिस पर होती है उसे अप्रिय लगती है।

विचार प्रबंधन से क्रोध प्रबंधन सम्भव है, ध्यानस्थ हो बोलने से पहले सोच समझने के लिए धैर्य विकसित करने से क्रोध पर नियंत्रण सम्भव है।

क्रोध हमेशा अपने से बलवान व्यक्ति पर हम व्यक्त नहीं करते, अपितु क्रोध को निकालने के लिए हम अपने से कमज़ोर व्यक्ति को तलाशते हैं। उदाहरण - ऑफिस में बॉस के सामने चुप रहना व घर आकर वही गुस्सा बच्चे व पत्नी पर निकालना।

कुछ करने व कुछ पाने की चाह बलवती हो, मग़र अपेक्षित चाहते पूरी न हों तो इंसान चिड़चिड़ा हो जाता है, गुस्सा करने लगता है।

स्वास्थ्य खराब हो और हालत साथ न दे, फिर मजबूरी में कुछ करना पड़े तो भी इंसान चिड़चिड़ा हो जाता है, गुस्सा व भड़ास निकालता है।

योग्यता कम हो ख्वाईशें बड़ी हों, तो भी इंसान चिड़चिड़ा हो जाता है, बात बात पर गुस्सा करता है।

जब कोई चाहता है, सामने वाला उसकी समस्या व उलझन समझे, मग़र जब कोई समझता नहीं तो इंसान चिड़चिड़ा हो जाता है, गुस्सा करता है।

चिड़चिड़ापन क्रोध का एक अलग रूप होता है, इसमे व्यक्ति अशक्तता अनुभव करता है। इसलिए क्रोध का दावानल नहीं निकाल सकता, अतः भीतर दबे क्रोध व हताशा-निराशा को चिड़चिड़ापन की चिंगारी निकाल के व्यक्त करता है।

क्रोध से मुक्ति का उपाय है - अपनी जीवन की समस्या के समाधान में जुटना, अपनी ख्वाईशो से बड़ी योग्यता बनाना। ध्यान, प्राणयाम व अच्छी पुस्तको का स्वाध्याय करना। 

याद रखिये, इंसान के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है। यदि ठान ले व सतत प्रयास करे तो मन पर नियंत्रण कर सकता है। क्रोध पर नियंत्रण स्वतः हो जाएगा। 

क्रोध को होश पूर्वक कीजिये, तो होश क्रोध में कुछ गलत होने न देगा।

प्रश्न - नाम में क्या रखा है?

 प्रश्न  - क्या किसी के नाम का उस इंसान के जीवन में प्रभाव पड़ता है? इस सम्बन्ध में आपके क्या विचार हैं?


उत्तर - एक दमयंती नाम की लड़की का विवाह एक धनी व्यक्ति जिसका नाम "ठनठन पाल" था, उसे बहुत बुरा लगा। यह भी कोई नाम है। उसने पति को छोड़ने का निश्चय कर लिया। पति समझ गया उसने उससे कहा चलो घूमने चलते हैं।


मार्ग में एक स्त्री मिली जो मजदूर थी व घास खोदकर निकाल रही थी, उसका नाम पूँछा - उसने बताया कि उसका नाम लक्ष्मी है।


आगे बढ़े तो एक किसान मिला उसका नाम पूंछने पर उसने बताया - मेरा नाम धनपाल है।


मार्ग में आगे बढ़े तो कुछ लोग एक चिता लेकर जा रहे थे, पूछने पर पता चला कि अमरसिंह जी की मृत्यु हो गयी।


दमयंती का दिमाग अचानक ठनका - वह मन ही मन सोचने लगी, कि नाम इन सबके बड़े और काम विपरीत है।


तब वह बोल पड़ी,


घास खोदे लक्ष्मी, हल जोते धनपाल।


अमर सिंह मुर्दा भये, अब तो अच्छे लगें हमारे ठनठन पाल।


पति ने समझाया। नाम माता पिता रखते हैं, लेकिन पहचान व्यक्ति के कर्म बनाते हैं। व्यक्ति वस्तुतः अपने कार्यो से जाना जाता है।


माता पिता को भी समझदारी दिखाते हुए अच्छा नाम बच्चों का रखना चाहिए।

Wednesday 28 October 2020

प्रश्न - मेरे पिता नहीं है, मेरे बड़े भाई ने अपनी शादी के बाद घर बनवाया। मग़र मुझे एक रूम तक नहीं दिया, व कहा सब अपना देख लो। मैं क्या करूं?

 प्रश्न - मेरे पिता नहीं है, मेरे बड़े भाई ने अपनी शादी के बाद घर बनवाया। मग़र मुझे एक रूम तक नहीं दिया, व कहा सब अपना देख लो। मैं क्या करूं?

उत्तर - यह कलियुग है, जहां स्वार्थ सधता है वहीं रिश्ता निभता है।

तुम युवा हो और तुम्हारे पास सम्भावना का भंडार है। अपनी ऊर्जा भाई से लड़ने में व्यर्थ मत करो, उसके बनाये घर में रूम मत ढूढों। अपना आलीशान मकान भाई से भी बड़ा बनाने हेतु बड़ी मेहनत करो। एक दिन बड़े आलीशान मकान में पार्टी रखना और अपनी गाड़ी भेजकर बड़े भाई व भाभी को बुलाना। कहना, यदि आप घर मे मुझे रूम देते तो शायद मैं आज इतनी तरक्की नहीं करता। आपके द्वारा किये अपमान ने मुझे आज वह शक्ति दी कि मैं अपने आपको तरक्की की ऊंचाई पर ले जाऊँ और स्वयं के लिए आलीशान मकान बनाऊं।

सौ सफल लोगों की जीवनी पढ़ो या यूट्यूब में देखो, उनके जीवन से सीखो, सँघर्ष करना सीखो। स्वयं से बोलो मैं सफल बनूँगा। मैं मेरे इस अपमान की अग्नि से सृजन करूंगा, विध्वंस नहीं करूंगा। मैं मेरी ऊर्जा व्यर्थ में उलझने में खर्च नहीं करूंगा, मैं स्वयं के निर्माण में जुट जाऊंगा।

Tuesday 27 October 2020

प्रश्न - विद्यार्थी को क्या नहीं करना चाहिए?

 विद्यार्थी को जीवन में होशपूर्वक रहना चाहिए, नशे के गर्त में डूबने से बचना चाहिए।

हमेशा लक्ष्य प्राप्ति के लिए एक से अधिक मार्ग का ज्ञान होना चाहिए, यदि एक लक्ष्य बन्द हो जाये तो दूसरे को चुन सकें।

विद्यार्थी को कभी हार नहीं मारनी चाहिए।

एक रोटी जलने का रोना मत रोओ(एक हार पर मत रोओ), अभी तवा गरम(युवा हो खून गर्म है) है और आटा बाकी(उम्र बाकी है) है पुनः रोटियां बनाओ(पुनः प्रयास करो) और भोजन का आनन्द लो (जीवन का आनन्द लो)।........

इंटरव्यू में जॉब की नीलामी होती है, जो सबसे अधिक योग्यता की बोली लगाता है, वह जॉब ले जाता है। अतः ऊँची बोली योग्यता की लगाओ, मन पसन्द जॉब व व्यवसाय को हासिल करो।

जंगल मे शेर के आने पर उसी हिरण की जान बचती है, जो अन्य हिरणों से तेज दौड़ता है। किसी भी कार्य क्षेत्र में वही व्यक्ति सफल होता है, जो अपने कार्यक्षेत्र के कर्मियों से अधिक योग्य और जानकर होता है, साथ ही दोगुनी मेहनत करता है। दोगुनी मेहनत करो, सफल बनो।

एक हार पर मत रोओ

 एक रोटी जलने का रोना मत रोओ(एक हार पर मत रोओ), अभी तवा गरम(युवा हो खून गर्म है) है और आटा बाकी(उम्र बाकी है) है पुनः रोटियां बनाओ(पुनः प्रयास करो) और भोजन का आनन्द लो (जीवन का आनन्द लो)।........

Sunday 25 October 2020

प्रश्न - माता को किशोर कन्या को कौन सी सात प्रमुख सलाह देनी चाहिए।

 प्रश्न - माता को किशोर कन्या को कौन सी सात प्रमुख सलाह देनी चाहिए।

उत्तर - माता को 7 प्रमुख सलाह अपनी कन्या को देना चाहिए :-

1- तुम दुर्गा के समान शक्तिशाली बनो, स्वयं की सुरक्षा करो व अन्य अबलाओं की रक्षा करो। बल व बुद्धि के युद्ध मे विजयी बुद्धि होती है। अतः बुद्धि प्रयोग से युद्ध जीतना।

2- कभी भी कायरों की तरह मत जीना, कभी भी कोई तुम्हारी अस्मिता पर हाथ डाले तो मारकर आना या मरकर आना। यह धरती दुर्गा, काली देवियों और लक्ष्मीबाई, दुर्गावती, किरण बेदी जैसी वीरांगनाओं के गौरवशाली इतिहास से भरी है। महिषासुर मर्दिनी बनकर आत्मसुरक्षा हेतु वध को हमारा कानून सही मानता है।

3- कभी ग़लत मत करना कि स्वयं की नज़रों में गिर जाओ। हमेशा स्वयं की नज़रों में श्रेष्ठ बनो ऐसी योजना पर कार्य करो। तुम्हारा कम्पटीशन सिर्फ तुमसे है। हृदय की भावनाओं को निर्मल रखना।

4- किसी माता पिता के लड़की सन्तान पैदा करना गौरव की बात हो यह तुम अपने जीवन से उदाहरण प्रस्तुत करो। प्रत्येक माता पिता के लिए तुम प्रेरणा स्त्रोत बनो।

5- आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनो। मग़र किसी को साबित करने की अंधी दौड़ में मत दौड़ना।

6- हम शादी से पहले व शादी के बाद भी तुम्हारे सहयोगी व मित्र हैं। अतः कुछ भी हमसे शेयर कर सकते हो। हम तुम्हारे लिए हमेशा मददगार रहेंगे। तुम भी हमेशा हमारा ख्याल रखना।

7 - स्त्री व पुरुष एक दूसरे के सहयोगी हैं, प्रतिद्वंद्वी नहीं है। अतः कुछ दुष्ट पुरुषों के कर्मो की सज़ा पूरे पुरुष समाज को मत देना। पाप से घृणा करना पापी से नहीं। अच्छे सभ्य पुरुष समाज की उतनी ही कद्र व सम्मान करना जितना तुम अच्छी व सभ्य स्त्रियों की करती हो।

प्रश्न - आलस्य मुझपर हावी है, क्या करूँ?

 प्रश्न - आलस्य मुझपर हावी है, क्या करूँ?

उत्तर- आलस्य अंधकार की तरह है, जिसे उससे लड़कर या उसके बारे में सोचकर दूर नहीं किया जा सकता।

अंधकार को दूर करने के लिए प्रकाश चाहिए, और आलस्य को दूर करने के लिए ऐसा मनपसंद लक्ष्य चाहिए जिसे पूर्ण करने के लिए मन मचल उठे।

यदि लक्ष्य न मिला तो सभी प्रयास आलस्य को दूर करने के विफल हो जाएंगे। 

लक्ष्य या तो स्वतः बना लो, या कामयाब लोगों के 100 दिन उनकी वीडियो में बायोग्राफी देख लो। किसी न किसी की क़ामयाबी तो मन मे हलचल उतपन्न करेगी ही, कोई कोई कामयाब व्यक्ति की योग्यता व तुम्हारी योग्यता मैच करेगी ही। फिर लक्ष्य मिलते ही आलस्य स्वयमेव विदा हो जाएगा।

शरीर व मन का आलस्य को दूर करने के लिए योग, व्यायाम, प्राणायाम, ध्यान व स्वाध्याय करो।

एक जलते हुए घी के दीपक को कुछ क्षण अनवरत देखो, और स्वयं के जीवन लक्ष्य पर विचार करो कि तुम्हारा मन क्या चाहता है?:-

1- स्वयं के लिए क्या चाहता है?

2- माता पिता के लिए क्या करना चाहता है?

3- समाज के लिए क्या योगदान करना चाहता है?

4- जो भी जीवन में लक्ष्य बनाया है उसके दो हिस्से क्या हैं? उसका कैरियर लक्ष्य क्या है? उसका मनचाहा कैरियर बनने के बाद उसके आगे जीवन लक्ष्य क्या होगा?

5- उसकी आत्मसंतुष्टि व आत्मसमृद्धि के लिए वह क्या करेगा?

किस श्रेणी का इंसान बनना चाहता है?

1-देवमानव (देवता जैसा मनुष्य, लोककल्याण करने वाला)

2- महामानव (महान इंसान, अच्छे कार्य करने वाला)

3-मानव (इंसानियत व मानवतावा से युक्त इंसान)

4- मानव पशु (नर पशु - पेट प्रजनन के लिए जीने वाला)

5- दानव(नर पिशाच - दुनियाँ का उत्पीड़न व शोषण करने वाला)

निर्णय ले लो, तो आलस्य को मन में रहने की जगह नहीं मिलेगी। वह स्वतः चला जायेगा।

प्रश्न - मैं 31 साल का हूँ और जीवन से हार गया हूँ, क्या करूँ?

 प्रश्न - मैं 31 साल का हूँ और जीवन से हार गया हूँ, क्या करूँ?

उत्तर - आइये सबसे पहले समझते हैं कि यह सोच आपके अंदर जन्मी क्यों कि आप हार गए हैं?

आपने कुछ इच्छाएं की होंगी, जो पूरी होती नहीं दिख रही। आपके समस्त प्रयास उस ओर विफ़ल रहे। वस्तुतः आप नहीं हारे अपितु एक लक्ष्य था जो पूर्ण न हुआ।

नेपोलियन बोनापार्ट लेखक बनना चाहता था, उसने कई प्रकाशन में ट्राइ किया व विफ़ल रहा। हार गया व उसका मन टूट गया, तब उसके मित्र ने उसे कहा कि इच्छा व योग्यता में अंतर होता है। तुम्हारी इच्छा के अनुसार योग्यता नहीं है। अतः अब योग्यता के अनुसार इच्छा उतपन्न करो और उस दिशा में प्रयास करो सफलता जरूर मिलेगी। उसने ऐसा किया व वह सफल रहा।

अतः तुम भी अपने भीतर झाँको और तलाशो कि तुम और क्या बेहतर कर सकते हो, किन चीज़ों की योग्यता रखते हो। दूसरा मार्ग चुनो और आगे बढ़ो।

प्रश्न - "अति सर्वत्र वर्जयेत" इसे समझा दीजिये..

 प्रश्न - "अति सर्वत्र वर्जयेत" इसे समझा दीजिये..

उत्तर - अति सभी जगह वर्जित है। इसे एक कहानी के माध्यम से समझते हैं।

एक बार एक राजकुमार सन्यासी-भिक्षुक बनने आया व स्वयं को अत्यंत कठोर अनुसाशन में ढालने पर बीमार हो गया। तब बुद्ध उसके पास एक वीणा वाद्य यंत्र लेकर गए। बोले सुना है तुम इसे अच्छा बजा लेते हो। तार ढीले थे, तो राजकुमार ने कहा तारों को कसना पड़ेगा, अन्यथा सुर नहीं निकलेंगे। तब बुद्ध उसे बड़े जोर से कसने लगे, तब राजकुमार बोला अरे अरे अत्यधिक कसने पर तार टूट जाएंगे। सङ्गीत भी न निकलेगा। भगवन वीणा के तार न ज्यादा ढीले होने चाहिए और न ही अत्यधिक कसे होने चाहिए। मध्यम मार्ग उचित है।

तब भगवान बुद्ध ने कहा, अति सर्वत्र वर्जयेत। यह तुम पर भी लागू होता है, तुम मेरी दृष्टि में सर्वश्रेष्ठ बनने के चक्कर मे अत्यधिक कठोर अनुशासन व तप कर रहे हो। लेकिन क्या इससे जीवन सङ्गीत के तार टूट न जाएंगे? अतः सम्यक (संतुलित) तप साधो। तुम्हारा कम्पटीशन दुसरो से नहीं है, न तुम्हे मात्र मेरी दृष्टि में श्रेष्ठ बनना है। तुम्हारा कम्पटीशन केवल तुमसे है, कल से आज कितना बेहतर बने यह तुम्हारी उपलब्धि है। तुम्हें स्वयं की व उस परमात्मा की दृष्टि में श्रेष्ठ बनना है।

Saturday 24 October 2020

मन एक महाशक्ति विद्युत की तरह है

 मन एक महाशक्ति विद्युत की तरह है, उसे नियन्त्रित विधि से सही दिशा में उपयोग किया तो जीवन के सभी उपयोगी उपकरण व कार्य को चलाकर जीवन रौशन कर देगा। यदि यह महाशक्ति अनियंत्रित हुई तो यह पूरे जीवन को जलाकर ख़ाक कर देगा। मन की विद्युत शक्ति को हैंडल करने हेतु मन के इंजीनियर बनिये, मन को गायत्री मंत्र जप, उगते सूर्य का ध्यान, प्राणाकर्षण प्राणायाम व अच्छी पुस्तको के स्वाध्याय से नियंत्रित कीजिये। मन के इंजीनियर बनिये।

प्रश्न - किस विचार ने आपकी दुनियाँ बदल दी?

 प्रश्न - किस विचार ने आपकी दुनियाँ बदल दी?

उत्तर - हाँजी, एक विचार ने मेरी जिंदगी बदल दी - "अपना सुधार ही संसार की सबसे बड़ी सेवा है।" इसने मेरा जीवन देखने के प्रति नजरिया बदल दिया।


जैसे ही हमने दुनियाँ देखने का नज़रिया बदला हमारा तो जीवन ही बदल गया। तृतीय दृष्टि - ज्ञान दृष्टि से दुनियाँ देखने पर दुनियाँ खूबसूरत हो गयी है। मन शांत हो गया है।

पहले ऑफिस में थोड़ी थोड़ी बात पर तनाव ले लेते थे, झल्ला जाते थे। अब उन्हीं घटनाओं को बड़े आराम से हैंडल कर लेते थे।

पहले खराब बैट्समैन की तरह पिच, बॉलर, मैदान सबको दोष देते थे, बस स्वयं की गलती नहीं देखते थे। स्वयं को नहीं सुधारते थे, दुनियाँ को दोष देते रहते थे।

एक दिन युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी की लिखी पुस्तक - "दृष्टिकोण ठीक रखें" पढ़ी, समझ आया कि स्वयं पर काम करने की जरूरत है। जीवन संघर्ष है, यहां दुसरो को दोष देने की जगह स्वयं की बैटिंग सुधारो। 

समस्या को मत कहो - why me

समस्या को कहो - try me

यह मत कहो - समस्या बड़ी है,

यह कहो - इस समस्या से बड़ा मेरा ईश्वर विश्वास है, और भगवान की दी हुई मेरी बुद्धि है। मैं मेरी बुद्धिकुशलता को निरन्तर बढ़ाऊँगा। समस्या से बड़ी मेरी बुद्धिकुशलता बनाऊंगा।

मैं मनुष्य हूँ, ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति हूँ। वीडियो गेम की तरह ही जीवन की समस्याओं का गेम है। एक चरण पार करो तो दूसरे चरण की कठिनाई मिलती है।

जैसे स्वस्थ मन से बच्चा खेल खेलता है, वैसे ही मैं यह जीवन को खिलाड़ी के नजरिये से खेलूंगा। प्रत्येक समस्या का बहादुरी से सामना कर उसका समाधान करूंगा।

इस समस्या को मुझसे बेहतर कोई हल नहीं कर सकता। मैं इसे हल कर सकता हूँ। ईश्वर मेरे साथ मेरे पास है। मैं अर्जुन हूँ, अपना युद्ध अवश्य लड़ूंगा।

चाहे कुछ भी हो जाये, हार नहीं मानूंगा,

काल के कपाल पर, अपनी विजय गाथा अवश्य लिखूंगा।

मैं विजेता था, विजेता हूँ, विजेता रहूंगा।

कभी भी मन से हार नहीं मानूंगा,

हार जीत की परवाह किये बिना,

प्रत्येक जीवन अवश्य युद्ध लड़ूंगा।

एक विचार ने मेरी जिंदगी बदल दी - "अपना सुधार ही संसार की सबसे बड़ी सेवा है।"

सात अटल सत्य जो जान ले तो जीवन धन्य हो जायेगा :-

 सात अटल सत्य जो जान ले तो जीवन धन्य हो जायेगा :-

1- सृष्टि के आरंभ की स्टोरी सभी धर्मों की जो भी हो, सत्य यह है कि सृष्टि का प्रारम्भ जैसे भी हुआ हो, सृष्टि का अंत मनुष्य की दुर्बुद्धि और स्वार्थ के कारण फैले प्रदूषण व जनसंख्या विस्फोट से ही होगा।

2- प्रत्येक धर्म के नाम पर बने सम्प्रदाय जहाँ यह बताया जाता हो कि वह दूसरे धर्म वाला व्यक्ति हेय व तुच्छ है तो जान लो वह धर्म-सम्प्रदाय झूठा है। क्योंकि जो भगवान(अल्लाह , गॉड इत्यादि जो भी कहो) वह मनुष्यों जैसा मूर्ख कतई नहीं है। जो प्रत्येक पशु पक्षी वृक्षो की हज़ारों प्रजातियां बना सकता है, यदि उसे मनुष्य को जाति-धर्म में विभक्त करना होता तो वह उन्हें अलग बना सकता था। अतः जो धर्म के नाम पर अलगाव करते हैं वह झूठे है। मनुष्य की एक ही जाति है - मनुष्य जाति, एक धर्म है मानवता।

3- जो स्वर्ग (जन्नत , हैवन इत्यादि) जाने का शॉर्टकट ढूढंते हैं उन्हें ही धर्म व्यापारी साधु (मौलवी, फ़ादर इत्यादि) के रूप में बेफकूफ बनाते हैं। 

4- स्वर्ग (जन्नत , हैवन इत्यादि) काल्पनिक है, भिखारी यदि धार्मिक बुक लिखेगा तो स्वर्ग (जन्नत , हैवन इत्यादि) के बारे में लिखते वक्त अच्छी अच्छी भोजन की वस्तु को लिखेगा। शराबी अपनी धार्मिक पुस्तक में स्वर्ग (जन्नत , हैवन इत्यादि) विभिन्न शराबों का उल्लेख करेगा। व्यभिचारी व काम भावना से ग्रसित की धार्मिक पुस्तक में अप्सराएं, हूरें, ब्यूटीफुल गर्ल्स का वर्णन होगा। रेगिस्तान के व्यक्ति की धार्मिक पुस्तक में स्वर्ग (जन्नत , हैवन इत्यादि) में ठंडक होगा, और ठंडे प्रदेशो के स्वर्ग (जन्नत , हैवन इत्यादि) में गर्मी होगी। साथ ही जिन लोगों के बीच धर्म का प्रचार करना है उनकी रुचियों को भी ध्यान रखते हुए उनके काल्पनिक सुख स्वर्ग (जन्नत , हैवन इत्यादि) में लिखे जाएंगे। तभी तो धंधा चलेगा।

5- यदि सही मानवता धर्म बता दिया गया कि देखो सभी मनुष्य जाति एक है। डॉक्टर की लैब में चार अलग धर्म के व्यक्ति के हाल के जन्मे बच्चे का रक्त परीक्षण व एक्सरे करके यह नहीं बताया जा सकता कि यह अमुक धर्म का बच्चा है। अतः नकली धार्मिक अलगाव जन्म के बाद मनुष्य करता है।

6- सूर्य, चंद्रमा, तारे, जल स्त्रोत, हवा प्रकृति इत्यादि साझा रिसोर्स हैं, इनका धार्मिक नामकरण से यह बदल नहीं जाते। इनकी कद्र नहीं की और मिलकर इनका संरक्षण नहीं किया तो सामूहिक मौत मरने हेतु तैयार हो जाओ।

7- मेरी उपरोक्त बातों को पढ़कर व सोफासेट पर बैठकर या बिस्तर पर लेकर लंबी गहरी श्वांस लेते हुए इस पर विचार करो। अपनी आती जाती श्वांस पर ध्यान केंद्रित करो और सोचो कि कैसे विनाश की ओर बढ़ती मानवजाति को सही दिशा दें। कैसे सामूहिक मौत मरने से दुनियां को बचाये। यदि हम सब साथ मिलकर प्रयास करे तो विश्वास मानिए सभी धर्म व्यापारी रास्ते पर आ जाएंगे। आतंकवाद मिट जाएगा। धरती पुनः हरी भरी हो जाएगी।

Friday 23 October 2020

प्रश्न - झूठ कब और कहां बोलना श्रेयस्कर है?

 प्रश्न - झूठ कब और कहां बोलना श्रेयस्कर है?

उत्तर - जिस सत्य से किसी को लाभ न पहुंचे, जिस सत्य से जीव हत्या की सम्भावना हो उसे नहीं बोलना चाहिए। सत्य हमेशा हितकर बोलना चाहिए।

उदाहरण - कसाई अगर गाय का पता पूँछे तो झूठ बोलकर गाय के प्राण बचाना श्रेयस्कर है। गुंडे - बदमाश किसी निर्बल की हत्या हेतु उसके घर का पता पूँछे तो झूठ बोलकर उस व्यक्ति की प्राण रक्षा श्रेयस्कर है।

प्रश्न - असल में हमारा सबसे बड़ा शत्रु और सबसे बड़ा मित्र कौन है?

 प्रश्न - असल में हमारा सबसे बड़ा शत्रु और सबसे बड़ा मित्र कौन है?

उत्तर - अनियंत्रित बेकाबू हमारा मन सबसे बड़ा शत्रु है,

नियंत्रित सधा हुआ मन सबसे बड़ा मित्र है।

मन के पास ही स्वर्ग व नरक दोनों की चाबी है। मन ही जीवन की सफलता व असफलता के लिए उत्तरदायी है।


गायत्रीमंत्र जप, उगते सूर्य का ध्यान, प्रणाकर्षण प्राणायाम, अच्छी पुस्तको का नित्य स्वाध्याय मन को मित्र बनाने में सहायक है।

प्रश्न - क्या शिक्षा का उद्देश्य मात्र नौकरी करना है?

 प्रश्न - क्या शिक्षा का उद्देश्य मात्र नौकरी करना है?

उत्तर - "शिक्षा(पढ़ाई)" एक चाकू की तरह है, यह उपयोग करने वाले पर निर्भर करता है कि वह इसका उपयोग फल की सलाद काटकर बेचने के लिए प्रयोग करेगा, या घर में सब्जी काटेगा, या चाकू दिखाकर लूटपाट मर्डर करेगा, या इसकी मदद अस्पताल में मरीज के उपचार हेतु करेगा।

एक बेचारा अशिक्षित छोटी मोटी चोरी व लूटपाट कर सकता है, लेकिन एक शिक्षित तो बड़े बड़े स्कैम व बड़े बड़े घोटाले करता है।

कोई मात्र इसलिए शिक्षा लेता है, कि वह पेट, प्रजनन, आवास व जरूरी आवश्यकता की पूर्ति हेतु इसका उपयोग कर सके। अतः कमाने हेतु शिक्षा का उपयोग कर नौकरी ढूंढता है व पशुवत पूरा जीवन जीता है।

कोई शिक्षा का उपयोग स्वयं के कल्याण के साथ साथ समाज व राष्ट्र के उत्थान हेतु करता है। शिक्षा के उपयोग से भगवान की बनाई सृष्टि को और ज्यादा व्यवस्थित व सुंदर बनाने की कोशिश करता है।

मनुष्य की पांच श्रेणी है, जो उसे चुने हुए जीवन लक्ष्य अनुसार शिक्षा के प्रयोग को दर्शाती है:-

देवमानव (देवता जैसा मनुष्य, लोककल्याण करने वाला)

महामानव (महान इंसान, अच्छे कार्य करने वाला)

मानव (इंसानियत व मानवतावा से युक्त इंसान)

मानव पशु (नर पशु - पेट प्रजनन के लिए जीने वाला)

दानव(नर पिशाच - दुनियाँ का उत्पीड़न व शोषण करने वाला)

निर्णय के अनुसार परिणाम होगा।

सदगृहस्थ परिवार को दीपावली उपहार हेतु युगऋषि परमपूज्य पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा सृजित सत्साहित्य सेट भेंट स्वरूप दें:-

 सदगृहस्थ परिवार को दीपावली उपहार हेतु युगऋषि परमपूज्य पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा सृजित सत्साहित्य सेट भेंट स्वरूप दें:-

सबसे बड़ा उपहार - साहित्य व सद्विचार


बड़ो के लिए :-

1- प्रगयोपनिषद

2- मैं क्या हूँ?

3- गायत्री की सर्वसमर्थ साधना


युवाओं के लिए:-


4- आगे बढ़ने की तैयारी

5- सफलता के सात सूत्र साधन

6- मन के हारे हार है मन के जीते जीत

7- हारिये न हिम्मत

8- सफ़ल जीवन की दिशाधारा

9- प्रबंध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल

10 - व्यवस्था बुद्धि की गरिमा


बच्चों के लिए :-

11- गायत्री मंत्रलेखन

12 - सचित्र कहानियां 

💫- कल्याण पथ

💫 अमृत कण

💫 संतोष का फल

💫 अच्छे विचार

💫 विद्या की सम्पदा

13 - बुद्धि बढ़ाने की वैज्ञानिक विधि

14- अधिकतम अंक कैसे पाएं


समस्त परिवार के लिए :-


15 - बलिवैश्व यज्ञ किट

16- भाव सम्वेदना की गंगोत्री

17- मित्रभाव बढाने की कला


वयोवृद्ध के लिए :-


18- उनसे जो पचास के हो चले

19- गायत्री महाविज्ञान


सबके स्वास्थ्य लाभ के लिए :-


20 - तुलसी के चमत्कारिक गुण

21- गमलों में स्वास्थ्य

22- घरेलू चिकित्सा

23- निरोग जीवन का राज मार्ग

24- रोग: औषधि आहार विहार और उपवास

25- स्वस्थ रहने के सरल उपाय


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🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Thursday 22 October 2020

जीवन एक संघर्ष है।

 जंगल हो या वर्तमान समाज सभी जगह एक बात कॉमन है कि स्वयं के अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ता है।


सुबह जंगल में शेर भी उठता है और हिरण भी, दौड़ना दोनों को पड़ता है, शेर तेज़ दौड़ा तो भोजन मिलेगा। हिरन तेज दौड़ा तो जान बचेगा। जो हिरण अन्य हिरणों से दौड़ में पीछे रह जाता है, वह ही शेर का भोजन बनता है।


भगवान भोजन सबको देता है, लेकिन उसे सभी को प्रयत्न करके पाना होता है। चिड़िया हो घोसले में और शेर को उसकी मांद में होम डिलीवरी नहीं मिलती। प्रयत्न पुरुषार्थ सभी को भोजन हेतु करना पड़ेगा।


दो वक़्त की रोटी उन्ही को नहीं मिल पा रही जो सही दिशा में सही प्रयत्न आर्थिक उपार्जन हेतु नहीं कर पा रहे हैं। दिन ब दिन जनसंख्या का दबाव बढ़ रहा है और संसाधन घट रहें है, अतः भोजन के लिए संघर्ष मानवजाति को झेलना पड़ेगा।

प्रश्न - ध्यान के वक्त हम बांया हाथ नीचे और दाहिना हाथ ऊपर क्यों रखते हैं?

 प्रश्न - ध्यान के वक्त हम बांया हाथ नीचे और दाहिना हाथ ऊपर क्यों रखते हैं?


उत्तर - हमारा मस्तिष्क दो भागों में बंटा होता है, चेतन अवस्था और अवचेतन अवस्था। हमारा बायां हाथ अवचेतन मन को बताता है तो दायां हाथ चेतन मन की अवस्था बताता है। बायां मस्तिष्क-चेतन है तो दायां मस्तिष्क अवचेतन है। इस प्रकार से दाएं हाथ का संबंध बाएं मस्तिष्क से होता है और बाएं हाथ का संबंध दाएं मस्तिष्क से होता है।


हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार बांया हाथ व्यक्ति की संभावनाओं को प्रदर्शित करता है और दाहिना सही व्यक्तित्व का प्रदर्शक होता है। "दाहिने हाथ से भविष्य और बाएं से अतीत देखा जाता है।" "बायां हाथ बताता है कि हम क्या-क्या लेकर पैदा हुए हैं और दाहिना दिखाता है कि हमने इसे क्या बनाया है।" "दाहिना हाथ पुरुषों का पढ़ा जाता है, जबकि महिलाओं का बायां हाथ पढ़ा जाता है।" "बांया हाथ बताता है कि ईश्वर ने आपको क्या दिया है और दायां बताता है कि आपको इस संबंध में क्या करना है।"


शिव की तरह प्रत्येक मनुष्य अर्द्धनारीश्वर है, स्त्रैण और पौरुषत्व दोनों गुण हैं।


वाम हाथ को दाहिने मस्तिष्क द्वारा नियंत्रित होने के लिए छोड़ दें, (नमूने की पहचान, संबंधों की समझ-बूझ) जिससे व्यक्ति की आंतरिक खासियतों, उसकी प्रकृति, आत्म, स्त्रैण गुण और समस्याओं के निदान का सोच प्रतिबिंबित होता है। इसे एक व्यक्ति के आध्यात्मिक और व्यक्तिगत विकास का एक हिस्सा माना जा सकता है। यह व्यक्तित्व का "स्त्रैण" हिस्सा (स्त्रैण और ग्रहणशील) है।


इसके विपरीत दाहिना हाथ बाईं मस्तिष्क (तर्क, बुद्धि और भाषा) द्वारा नियंत्रित होता है, जो बाहरी व्यक्तित्व, आत्म उद्देश्य, सामाजिक माहौल का प्रभाव, शिक्षा और अनुभव को प्रतिबिंबित करता है। यह रैखिक सोच का प्रतिनिधित्व करता है। यह व्यक्तित्व के "स्त्रैण" पहलू (पुरुष और जावक) से मेल खाता है।


अध्यात्म में प्रत्येक साधना को समर कहा गया है, ध्यान भी एक ऐसा समर जिसमें स्वयं के आंतरिक दस शत्रु (काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, घृणा, ईर्ष्या, द्वेष एवं भय) से युद्ध करना पड़ता है। आंतरिक अवांछनीयता को हटाकर उस स्थान पर उत्कृष्टता की स्थापना हेतु साहस, सङ्कल्प व उच्च चैतन्यता चाहिए। इसीलिए ध्यान साधना में दोनों हाथ गोदी में रखते समय स्त्रैण गुणों भावना, ग्रहणशीलता के प्रतीक बाँये हाथ को नीचे और सङ्कल्प, साहस, चैतन्यता के प्रतीक  दाहिने हाथ को ऊपर रखा जाता है। स्वयं को साधना समर के लिए प्रस्तुत किया जाता है। ध्यान साधना में हम जो आपने आत्मस्वरूप को भूल बैठें है, विस्मृति में हैं, उन्हें स्मृति में बदलना होता है। स्वयं के अस्तित्व को पहचानना है तो मानसिक असंतुलन को सन्तुलन में बदलना ही होगा । अतः आत्मशांति और ईश्वर प्राप्ति हेतु   नाभिचक्र(मणिपुर चक्र) के पास दोनों हाथों को बाएं के ऊपर दाहिने हाथ को आकाश की ओर हथेली को रखते हैं जिससे चित्तशक्ति का केंद्रीकरण करने में आसानी हो, और ध्यान रखते हैं कि ध्यान के वक्त श्वांस गहरी व आरामदायक नाभि तक पहुंचती हुई हो। जिससे प्रत्येक श्वांस में नाभिचक्र स्पर्श हो।


मन के द्वार आँख, कान, स्पर्श अनुभव, और मुँह को बन्द करके उन्हें अंतर्मुखी करते हैं और श्वांस को लयबद्ध गहरी श्वांस से नाभि चक्र से जोड़ देते हैं। अंतर्जगत की यात्रा प्रारंभ करते हैं।


🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - व्यक्ति के जीवन का पहला अहसास व विचार समूह क्या होंना चाहिए?

 प्रश्न - व्यक्ति के जीवन का पहला अहसास व विचार समूह क्या होंना चाहिए?

उत्तर - पहला अहसास कि हम जीवित हैं, हम मनुष्य हैं, अन्य जानवरों से श्रेष्ठ हैं, क्योंकि हमारे पास बुद्धि, भावनाएं व सोचने समझने की शक्ति है। हमारे भीतर नर से नारायण बनने की क्षमता है। हमें स्वयं को श्रेष्ठ बनाने में जुटना चाहिए।

युगऋषि कहते हैं कि मनुष्य को जीवन लक्ष्य बनांकर उस ओर अग्रसर होना चाहिए, आपको क्या बनना है जीवन लक्ष्य निम्नलिखित में से तय कर लें -

मानवपशु (पशु जैसा आचरण करने वाला नर पशु)

दानव (हैवानियत करने वाला नर पिशाच)

मानव (इंसानियत से भरा इंसान)

महामानव (अच्छे व समाज उत्थान हेतु कार्य करने वाला महापुरुष)

देवमानव (लोगों की भलाई व जनकल्याण में लगा देवता तुल्य मनुष्य)

प्रश्न - कलियुग में घर भी सुरक्षित न रहे, बाहर तो खतरा है ही घर में भी इज्जत सुरक्षित न रहने की न्यूज आती रहती है? इसका क्या कारण है?

 प्रश्न - कलियुग में घर भी सुरक्षित न रहे, बाहर तो खतरा है ही घर में भी इज्जत सुरक्षित न रहने की न्यूज आती रहती है? इसका क्या कारण है?

उत्तर - एक युवा बहन और युवा पत्नी के बीच अंतर हमारे सँस्कार करते हैं, किसे किस दृष्टि से व किस भाव से देखना है यह सँस्कार तय करते हैं। दूसरी युवा लड़कियों को कुदृष्टि व अशलील दृष्टि से देखना है या बहन-बेटी की नज़र से देखना यह भी हमारे सँस्कार तय करते हैं। 

एक युवा भाई और युवा पति के बीच अंतर हमारे सँस्कार करते हैं, किसे किस दृष्टि से व किस भाव से देखना है यह सँस्कार तय करते हैं। दूसरी युवा लड़को को कुदृष्टि व अशलील दृष्टि से देखना है या भाई व पुत्र की नज़र से देखना यह भी हमारे सँस्कार तय करते हैं। 

पहले घर में सँस्कार गढ़ने का कार्य माता-पिता, गुरुकुल, व आसपास का समाज करता था। तो परिस्थिति नियंत्रण में थी।

अब सँस्कार गढ़ने का कार्य न्यूज चैनल, विज्ञापन, फ़िल्म, टीवी सीरियल,इंटरनेट व शोशल मीडिया भी कर रहे हैं। अतः अब सब अनियंत्रित है। आपके बच्चे के दिमाग़ में कैसे कैसे विचार किन माध्यमो से पहुंच रहे हैं व किस प्रकार के सँस्कार गढ़ रहे हैं पता नहीं है।

अतः कुंस्कार पशुवत जहां भी विद्यमान हैं, वहाँ पशुवत शारिरिक सम्बन्ध व हैवानियत भाई-बहन, बाप-बेटी, माता-पुत्र के बीच में हो तक कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

प्रश्न - ऐसा क्या करें कि जीवन में पछतावा न हो?

 प्रश्न - ऐसा क्या करें कि जीवन में पछतावा न हो?

उत्तर - एक आदत बना लो कि सोचविचार के ही बोलो या कुछ करो।

बुद्धिमान सोचविचार कर बोलता व सोचविचार कर ही कुछ करता है, 

साधारण इंसान बोलते हुए सोचते हैं, करते हुए सोचते हैं।

मूर्ख पहले बोलता है, बाद में सोचता है। करने के बाद सोचता है।

अतः यदि पछताना नहीं चाहते तो बुद्धिकुशल व दूरदर्शी बनो, कुछ भी बोलने और करने से पहले सोचविचार करो। जहां कन्फ्यूजन हो मन में पुनः विचार केंद्र बनाओ, निर्णय 6 घण्टे बाद लंबी गहरी श्वांस तीन बार लेकर, पांच बार गायत्री मंत्र पढंकर शांत हो, पुनः विचार कर लो फिर निर्णय लो।

प्रश्न - क्या आप मानते हैं सबकुछ भाग्य पर निर्भर है?

 प्रश्न - क्या आप मानते हैं सबकुछ भाग्य पर निर्भर है?

उत्तर- जन्म व मृत्यु दो ऐसी व्यक्तिगत चीज़ें हैं जो भाग्य आधारित है। लेकिन मृत्यु में आप कुछ हद तक हस्तक्षेप कर सकते हैं, जैसे नशा करके स्वयं की आत्महत्या करना, समय से पूर्व शरीर को नष्ट करना।

रिश्तेदार कुछ भाग्य से कुछ पुरुषार्थ से बनते हैं। उनसे रिश्ता बनाना या तोड़ना भाग्य आधारित है।

प्राकृतिक बहुत सी चीज़े भाग्य आधारित है, जैसे वर्षा व आंधी-तूफ़ान। लेकिन कुछ हद तक मनुष्य का इस पर भी नियंत्रण हव। जैसे कम वर्षा क्षेत्र में जंगल उगाकर और यज्ञ करके बादलों को आकर्षित करके वर्षा करवाना। जहां हरियाली हो वहाँ जंगल की कटाई करके उस भूमि को बंजर बनाना। प्रदूषण फैलाकर प्रकृति चक्र को बाधित करना व ग्लोबल वार्मिंग करवाना। यह सब मनुष्य के  कर्म द्वारा नियंत्रित है।

पाषण युग की चिड़िया हो या पशु उनका जीवन कम्प्यूटर युग मे नहीं बदला, वही भोजन व वही रहन सहन। मनुष्य पाषण युग मे पशुओं की तरह प्राकृतिक गुफाओं में रहता था व प्रकृति से जो मिल जाये उसे पशुवत कच्चा खाता था। पाषण युग से वर्तमान युग तक सवकुछ मनुष्य ने बदल डाला। बड़े छोटे भवन, कपड़े आभूषण, रहन सहन, विभिन्न पकवान यह सब मनुष्य ने स्वयं निर्मित किया। भगवान ने मनुष्य को केवल बुद्धि दी थी। 

यदि यह परिवर्तन भगवान करता तो पशुओं व पक्षियों के लिए भी करता, वह किसी से पक्षपात नहीं करता। सबको कुछ न कुछ विशेष गुण मिला है, कोई उड़ सकता है तो कोई जल में रह सकता है। मनुष्य को बुद्धि मिली। वह हवाई जहाज से उड़ा, जल जहाज से जल पर अधिकार किया। मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र है।

अतः कुछ भाग्य आधारित है और बहुत कुछ कर्म आधारित है, निर्भर है।

💐श्वेता,DIYA

प्रश्न - क्या हमें दुसरो के अनुभव से सीख लेनी चाहिए? क्या सफल लोगों के साथ साथ असफल लोगों को भी पढना चाहिये?

 प्रश्न - क्या हमें दुसरो के अनुभव से सीख लेनी चाहिए? क्या सफल लोगों के साथ साथ असफल लोगों को भी पढना चाहिये?

 

उत्तर - प्रत्येक मनुष्य यदि मात्र स्वयं के अनुभव से सीख लेगा तो मुश्किल में पड़ जायेगा। जहर को ख़ाकर अनुभव करेंगे तो अनुभव बताने के लिए बचेंगे ही नहीं।

अतः बुद्धिकुशल मनुष्य वह है जो दुसरों की गलतियों से सीखे।

 हमें सफल लोगों की जिंदगी के बारे में पढ़ने से यह पता चलता है कि उनकी सफलता के फार्मूले क्या थे जिन्हें अपनाकर हम सफल हो सकते हैं।

उदाहरण - पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी, वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी जी, मुकेश अम्बानी जी बिजनेसमैन (यह सब अपने क्षेत्र में उम्मीद से बढ़कर प्रदर्शन किए)


हमें असफल लोगों की जिंदगी के बारे में पढ़ने से यह पता चलता है कि उनकी असफ़लता का कारण क्या था? जिन्हें हमारे जीवन मे नहीं होना देना है। उससे सीख ले सकते हैं। 

उदाहरण - राहुल गाँधी जी नेता,  अनिल अंबानी जी बिजनेसमैन, हर्षद मेहता ब्रोकर (यह सब वैसे धनी, नाम व पहचान वाले हैं, मग़र अपने प्रतिद्वंद्वी से पीछे जिन कारणों से रह गए वह उनकी असफ़लता कहलाएगी)

प्रश्न - विद्यार्थी को कब किस समय पढ़ना चाहिए कि उसका मन पढ़ाई में लगे?

 प्रश्न - विद्यार्थी को कब किस समय पढ़ना चाहिए कि उसका मन पढ़ाई में लगे?

उत्तर - उत्तम ब्रह्ममुहूर्त पढ़ाई के लिए होता है, इस वक्त दिमाग बड़ी तेजी से सीखता है। मध्यम गहन रात्रि का समय होता है जब सब सो रहे होते हैं। भीड़ व शोरगुल दिन में जहां होता है वहाँ पढ़ना मुश्किल होता है।

लक्ष्यविहीन विद्यार्थी किसी भी समय पढ़े लाभ न होगा, जिस विद्यार्थी के पास एक लक्ष्य है, उसे पता हो कि उसे क्यों पढ़ना है, तब वह किसी भी समय पढ़ेगा उसे लाभ मिलेगा।

समय में तन नहीं अपितु मन गति करता है। पढ़ाई तन को नहीं मन को करनी है। मन तभी पढ़ाई के लिए उपलब्ध होगा जब उसे पढ़ाई की आवश्यकता क्लियर होगी।

जब विद्यार्थी एक लक्ष्य का चुनाव करने में सफल होता है, कि मुझे कुछ बनना है। कुछ अलग करना है। मुझे इन करोड़ों इंसानों के बीच एक अपनी अलग पहचान बनानी है। लोग मुझे मेरे नाम से जाने। मेरे मरने के बाद भी मेरा नाम लोग याद करें। जब कुछ इस तरह का भाव और कल्पना विद्यार्थी करता है, उस कल्पना को करके आनन्द की अनुभूति करता है। जैसे कॉमर्स चुना तो, चाणक्य की तरह देश की अर्थव्यवस्था को बेस्ट बनाने के लिए कुछ करूँगा। भ्रष्टाचार मिटा दूंगा। कुछ ऐसा मेथड डेवलप करूंगा कि मेरे देश की अर्थव्यवस्था दुनियां में सर्वश्रेष्ठ हो जाये।

या मैं वकील बनूँगा, कानून की उन बारीक़ विधाओं में एक्सपर्ट बनूँगा, कि जो केस मेरे पास आये उसमें विजय सुनिश्चित हो। विश्व मे जाना माना वकील बनूँगा।

या मैं डॉक्टर बनूँगा, ऐसा सिस्टम बनाऊंगा कि चिकित्सा सस्ती और बेहतर बने, देश का सर्वश्रेष्ठ चिकित्सक बनूँगा। या देश का सर्वश्रेष्ठ साइंटिस्ट बनूँगा या सफ़ल व्यवसायी बनूँगा।

जो भी बनूँगा, बेस्ट बनूँगा। ये पुस्तकें मेरे जीवन लक्ष्य का मार्ग है इनसे गुज़र कर मंजिल तक पहुंचूंगा।

यदि खिलाड़ी बनूँगा, तो देश को गोल्ड मेडल से भर दूंगा, ये कठिन परिश्रम मेरे लक्ष्य का मार्ग है, बिना कठिन दर्द सहे मेरी माँ मुझे जन्म नहीं दे सकी तो, सफ़लता को जन्म देने हेतु सदबुद्धि से प्लान करके कठिन परिश्रम से लक्ष्य तक पहुंचूंगा।

बिना लक्ष्य मोटिवेशन नहीं मिलेगा और फोकस भी नहीं आएगा।अतः लक्ष्य निर्धारण सबसे जरूरी है।

लक्ष्य क्लियर है तो बड़े लक्ष्य के छोटे छोटे मॉड्यूल बनाने पड़ेंगे। उन छोटे छोटे मॉड्यूल के भी स्टेप्स बनाने पड़ेंगे।

जैसे किसी को खिलाड़ी बनना है तो पहले उस खेल की बारीकी समझ के, उसके लिए स्वयं को तैयार करना। पहले अपने स्कूल में चैंपियन बनें, फिर शहर , फिर राज्य, फिर देश, फिर दुनियां में बेस्ट बनने की प्लानिंग कर क्रमशः सरल से कठिन और कठिनतम मेहनत बुद्धि लेवल पर और शरीर लेवल पर करें।

यदि पढ़कर कुछ बनना है। तो उस सब्जेक्ट की बारीकी समझें कि यह सब्जेक्ट पढ़कर क्या हासिल करने जा रहे हैं। यह विषय बनाया क्यों गया। इसका फ़ायदा एनालिसिस करें। फ़िर क्रमशः वर्तमान क्लास के एग्जाम के दिन को नोट कर लें। जितने सब्जेक्ट हैं उन्हें यदि एग्जाम में 100 दिन शेष हैं, तो स्वयं के लिए मात्र 50 दिन माने। पहले पुस्तक के इंडेक्स को पढ़े कि इसमें क्या क्या है। फिर पिछले 7 वर्षों के प्रश्न पत्र बैंक उठा लें। औऱ उस प्रश्न बैंक को कम से कम 10 बार पढ़ें केवल प्रश्न। अब कॉमन प्रश्न जो पिछले 7 वर्षों के छाँट ले। प्रश्न पत्र के पैटर्न समझें कि किस तरह के प्रश्न आते हैं। फ़िर उन सभी पांच वर्षों के प्रश्नों को याद करके उनके उत्तर नोट कर लें। पढ़ लें। ये सोच के पढ़ाई करें कि स्वयं के कोचिंग टीचर आप स्वयँ ही हैं। क्यूंकि प्रश्न बैंक पिछले 7 वर्ष के आपको आइडिया दे देगा कि वास्तव में एग्जाम में होगा क्या आपका दिमाग चुम्बक/मैगनेट बनके उन प्रश्नों के उत्तर आपके दिमाग में फीड कर देगा।

समय को पहले पकड़ा जा सकता है बाद में नहीं। सुबह 3 से 6 बजे के बीच पौधा बढ़ता है और इंसान का दिमाग़ भी बढ़ता है। जो बच्चा 5 बार गायत्री मंत्र पढ़कर इस समय पढ़ने में उपयोग करता है वो कम समय मे ज्यादा पढ़ सकता हैं। रात को जल्दी सोए।

बच्चे लक्ष्य दो तरह से निर्धारित होता है, या तो स्वयं के लिए लक्ष्य चुन लो या स्वयं पर विश्वास न हो तो माता पिता के सुझाये लक्ष्य को अपना 100% प्रयास दे दो।

यदि ख़ुद का जीवन लक्ष्य चुनना है, स्वयं की लाइफ़ किक चाहिए तो स्वयं के भीतर उतरना होगा। कम से कम 3 महीने रोज आधे घण्टे ध्यान करना होगा। पूजा स्थल पर करो या सोफासेट पर बैठ के, कहीं भी कर सकते हो। जो भगवान पसन्द हों उनसे जीवन लक्ष्य ढूंढने में मदद मांगो, 15 मिनट गायत्री मंत्र उगते हुए सूर्य का ध्यान करते हुए मन ही मन जपो। अब बिना मन्त्र जपे शांत चित्त से फोन और टीवी बन्द करके, आती जाती श्वांस को बिल्डिंग के चौकीदार जैसे गाड़ियों पर नज़र रखता है वैसे ही आपको अपनी श्वांस पर नज़र रखना है।

इसके बाद एक पेन पेपर पर रोज़ 10 चीज़े लिखो जिसे करने पर आप ख़ुश होते हो, और 10 चीज़े वो लिखो जिसे करने पर आप दुःखी होते हो।

आधे घण्टे का यह नियमित क्रम तीन महीने में आपके भीतर जमे सभी कचरे को साफ करके अंतर्दृष्टि दृष्टि देगा। आप जान जाएंगे कि वास्तव में आप क्या बनना चाहते हैं?, और क्यूँ चाहते हैं?, और लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु प्लान कैसे बनाओगे?

एक बात याद रखो, सफ़लता का कोई शॉर्टकट नहीं होता। बल्कि सफ़लता के लिए स्मार्ट और प्रॉपर प्लानिंग(Smart & Proper Planning), एक्सीक्यूशन(Execution) और हार्ड वर्क(Hard Work) की जरूरत होती है।

एक बात और, कोई माता पिता अपने बच्चे को घर मकान और बना बनाया व्यवसाय वसीयत में दे सकते हैं, लेकिन ज्ञान की विरासत (Skill Set) योग्यता पात्रता वो दान नहीं दे सकते, मार्गदर्शन वो कर सकते हैं कोच की भूमिका निभा सकते है, लेकिन ज्ञानार्जन, योग्यता पात्रता बच्चे को स्वयं अर्जित करनी पड़ती है।

💐श्वेता, DIYA

Wednesday 21 October 2020

प्रश्न - मुझे मात्र 7 दिन का आध्यात्मिक कोर्स बताएं, जिसे करने से मेरा नजरिया संसार व अन्य व्यक्तियों को देखने का बदल जाये?

 प्रश्न - मुझे मात्र 7 दिन का आध्यात्मिक कोर्स बताएं, जिसे करने से मेरा नजरिया संसार व अन्य व्यक्तियों को देखने का बदल जाये?

उत्तर - जीवन को देखने की तीसरी दृष्टि ज्ञान दृष्टि विकसित करो।  मुझे इससे बहुत लाभ हुआ है, तुम्हे भी होगा।

सात दिन तत्व दृष्टि साधना कीजिये। निर्देशित कल्पना के आधार ध्यान कीजिये और गहराई से इसी पर चिंतन करके अपना दृष्टिकोण/नज़रिया उस दिन का तय कीजिये। एक तरह का निर्देशित विचारो का चश्मा लगाइए।

रंगीन चश्मे से दुनियाँ रंगीन दिखती है, जैसा नज़रिया तय करेंगे वैसे नज़ारे दिखने लगेंगे।

"नूतन दृष्टि-योग दृष्टि-तत्व दृष्टि साधना - 7 दिन"

जैसा नज़रिया वैसे नज़ारे, जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि, तत्वदृष्टि के लिए दृष्टिकोण और विचारों के सोचने के स्तर पर निर्भर करेगी। उथले विचार व चिंतन होंगे तो उथले दृश्य होंगे। गहन विचार व चिंतन होंगे तो गहराई से विवेचन करते दृश्य होंगे।

चिंता न करें कोई व्रत वगैरह नहीं रहना है। केवल 7 दिन लगातार निर्देशित दृष्टि साधना करनी है वो भी भावात्मक और विचारों से युक्त। रविवार से रविवार तक यह साधना चलेगी। आठवें दिन प्रथम दिन वाला ध्यान केवल दोपहर 12 बजे तक दोहराना होगा।

बिस्तर से उठते ही नेत्र को सबसे पहले अपने हाथ पर केंद्रित कीजिये। भगवान को 5 चीज़ों के लिए धन्यवाद दीजिये।  फिंर धरती माता को प्रणाम करके ...

जिस प्रकार भवन छोटा हो या बड़ा वह तत्वदृष्टि से देखो तो पता चलता है ईंट, सीमेंट, बालू, जल और लोहे की सरिया इन पाँच से निर्मित है। इसी तरह तत्वदृष्टि से देखो तो यह शरीर कोशिकाओं ( Cells) से बना है। प्रत्येक कोशिका पँच तत्व से बनी है जो क्रमशः धरती, आकाश, जल, वायु और अग्नि से बना है। तत्व दृष्टि में हम भवन किससे बना उसे गहरे विचारों की तत्वदृष्टि से देखेंगे, इसी तरह प्रत्येक जीव जिससे बना है उस तत्वदृष्टि से उसे व स्वयं को देखेंगे।

"प्रथम दिन" - ईश्वर का पृथ्वी रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिए और मिट्टी के कण  को दोनों भौं के बीच  बिंदी/तिलक जैसा ध्यान/कल्पना कीजिये। सुबह से लेकर शाम तक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सबमें वही मिट्टी तत्व की कल्पना दोनों भौं के बीच मष्तिष्क में कीजिये। परमात्मा के मिट्टी तत्व का आभास/कल्पना वृक्षों में पत्तो के बीच मे कीजिये। स्वयं को मिट्टी से बना पुतला महसूस कीजिये, स्वयं के माटी के शरीर का ध्यान कीजिए।

"द्वितीय दिन" - ईश्वर का समुद्र रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिए और उस परमात्मा रूपी समुद्र की एक बूंद जल(आत्मा) का दोनों भौं के बीच जल की बूँद की बिंदी/तिलक जैसा ध्यान/कल्पना कीजिये। सुबह से लेकर शाम तक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सबमें वही जल की बूँद की कल्पना दोनों भौं के बीच मष्तिष्क में कीजिये। परमात्मा की बूँद का आभास/कल्पना वृक्षों में पत्तो के बीच मे कीजिये।स्वयं को जल सा तरल महसूस कीजिये, स्वयं के जल शरीर का ध्यान कीजिए।

"तृतीय दिन" - ईश्वर का हवा रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिए और उस हवा के प्रवाह को दोनों भौं के बीच प्रकाश की बिंदी/तिलक जैसा ध्यान/कल्पना कीजिये। सुबह से लेकर शाम तक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सबमें वही हवा(आत्मा) की कल्पना दोनों भौं के बीच मष्तिष्क में कीजिये। परमात्मा का हवा के प्रवाह का आभास/कल्पना वृक्षों में पत्तो के बीच मे कीजिये। स्वयं को वायु सा हल्का व वेगवान महसूस कीजिये, स्वयं के वायु शरीर का ध्यान कीजिए।

"चतुर्थ दिन" - ईश्वर का अग्नि रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिए और उस परमात्मा रूपी अग्नि की एक ज्योति(आत्मा) का दोनों भौं के बीच अग्निवत बिंदी/तिलक जैसा ध्यान/कल्पना कीजिये। सुबह से लेकर शाम तक प्रत्येक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सबमें वही अग्निवत ज्योति की कल्पना दोनों भौं के बीच मष्तिष्क में कीजिये। परमात्मा की अग्निवत कण का आभास/कल्पना वृक्षों में पत्तो के बीच मे कीजिये। स्वयं को अग्नि सा प्रकाशित महसूस कीजिये, स्वयं के अग्नि रूपी प्रकाश शरीर का ध्यान कीजिए।

"पांचवा दिन" - ईश्वर का आकाश रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिये और अपने मष्तिष्क के भीतर झाँकने का प्रयास कीजिये, विचारो का प्रवाह आकाश तत्व है एसा ध्यान/कल्पना कीजिये। सुबह से लेकर शाम तक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सबके बीच आकाश तत्व को महसूस कीजिये। स्वयं को आकाश सा महसूस कीजिये, स्वयं के आकाश शरीर का ध्यान कीजिए।

"छठा दिन" - ईश्वर का तेजस्वी किरणों के रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिए, अपनी आँखों को देखिए और दोनों भौं के बीच तृतीय नेत्र के खुलने का ध्यान/कल्पना कीजिये। स्वयं के चेहरे को देखिए, फ़िर बिना मांस के हड्डियों की खोपड़ी के स्ट्रक्चर को देखिए। फ़िर उन हड्डियों को कैल्शियम के कणों से बना महसूस कीजिये। कल्पना कीजिये कि आपका तृतीय नेत्र X-ray मशीन की तरह व्यवहार कर रहा है और भीतर के हड्डियों के ढाँचे दिखा रहा है। सबके भीतर के कंकाल देखिये।

सुबह से लेकर शाम तक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सबको X-ray की दृष्टि से देखिए। आज के दिन आपको किसी के वस्त्र, आभूषण, सुंदरता कुछ नहीं देख पाएंगे। सर्वत्र चलते फिरते कंकाल आपके अंदर वैराग्य जगायेंगे।

"सातवां दिन' - ईश्वर को एक प्रकाशित कण/परमाणु(एटम) के रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिए। अरे यह क्या जिस परमाणु से मैं बना हूँ उसी से यह दर्पण बना है। सुबह से लेकर शाम तक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सभी उसी एटम से बने हैं। सजीव तो सजीव और सभी निर्जीव भी तो उसी एटम से बनी है। हम सब तो एक ही तत्व हैं। सबको अणुवत देखिये।

🙏🏻 परिणामस्वरूप, सात दिनों में आपको यह अनुभूति होगी कि कण कण में परमात्मा है। हम सब एक हैं। इन 7 दिनों तक चिंता, वासना और कामना समाधि ले लेंगी, वैराग्य जग जाएगा और 7 दिन तक तत्व दृष्टि से जगत देखने का आनन्द मिलेगा। जितना विश्वास पूर्वक गहन गहराई से विचार पूर्वक प्रयास करेंगे, उतनी शीघ्रता से सफ़लता मिलेगी।🙏🏻

सकल पदारथ हैं जग माहीं,

करम हीन नर पावत नाहिं।

आध्यात्मिक तत्वदृष्टि के उपाय उपलब्ध हैं, वही तत्वदृष्टि विकसित करेगा जो इसे विकसित करने का कर्म करेगा।

संसार हो या अध्यात्म सर्वत्र जिस क्षेत्र में पुरुषार्थ करेंगे सफलता निश्चित: मिलेगी। हर घटना का तीसरा आयाम देखोगी तो कभी जीवन में भूल नहीं करोगी।

प्रश्न - हमें किन लोगों के बीच नहीं जाना चाहिए?

 प्रश्न - हमें किन लोगों के बीच नहीं जाना चाहिए?

उत्तर - आवत ही हर्षे नहीं, नैनन नहीं सनेह।

तुलसी तहां न जाइये, चाहे कंचन वर्षे मेह। ~ तुलसीदास

तुलसीदास जी कहते हैं कि उस स्थान पर कभी नहीं जाना चाहिए, जहां किसी को आपके आने से खुशी महसूस न हो, आपके लिए जहां आखों में स्नेह न हो।

नशेड़ी दोस्त काल समान हैं, ले लेंगे प्राण,

उनकी संगत छोड़िए, बनिये ज्ञान सुजान। ~ श्वेता

'श्वेता' कहती है कि नशेड़ी दोस्त नशा करवा कर आपके प्राण ले लेते हैं, उनकी संगत छोड़कर ज्ञानवान बनिये।

जीवन में अमीर बनने का शोर्टकट जो बताए,

बर्बाद होने से बचना है तो उनसे दूरी बनाएं। ~ श्वेता

'श्वेता' कहती है कि जो अमीर बनने का शॉर्टकट बता रहा है उससे दूरी बना लें, क्योंकि वह आपको लूटकर बर्बाद कर देगा।

प्रश्न - सबकुछ है फिर भी संतोष, संतुष्टि व शांति नहीं है? कोई उपाय बताएं।

 प्रश्न - सबकुछ है फिर भी संतोष, संतुष्टि व शांति नहीं है? कोई उपाय बताएं।

उत्तर- जब तक मन में इच्छाओं-वासनाओं की झाड़ियां व जाल रहेगा तब तक संतोष व संतुष्टि नहीं हो सकती।

इच्छाओं व वासनाओं की पूर्ति में बाधा को दुःख कहते हैं। इच्छाओं व वासनाओं की पूर्ति को सुख कहते हैं। यही संतुष्टि व असंतुष्टि है।

लेकिन जो इच्छाओं व वासनाओं के जाल से मुक्त हो जाये, सुख व दुःख से परे हो जाये उसे मुक्ति व आनन्द कहते हैं।

उदाहरण - यदि समोसे खाने की इच्छा मन में जगी, मिल गया तो सुख और न मिला तो दुःख। 

सन्तान की इच्छा है - सन्तान मिली तो सुख और बांझ हुए व सन्तान न हुई तो दुःख

अमुक लड़की/लड़के को को अमुक लड़के/लड़की से प्रेम हुआ व विवाह की इच्छा जगी - विवाह हो गया तो सुख न हुआ तो दुःख

इसी तरह धन , पद, प्रतिष्ठा इत्यादि की इच्छाओं के अनन्त जाल हैं, यह रक्तबीज राक्षस की तरह है, एक के पूरी होने पर दूसरी व तीसरी इच्छाएं उतपन्न होती रहेंगी। सुख-दुःख का अनुभव चलता रहेगा। यही भव सागर है। इससे मुक्त होना ही मोक्ष व आनन्द है।

अध्यात्म मार्ग में आगे बढ़ो, जो पाया है उसे थोड़ा तो जरूरतमंद में बांटो। देखना आत्मा जब तृप्त होगी तो संतोष मन मे मिलेगा।

एक प्रयोग करके देखो:-

इस बार ठंड में आधी रात को जीवनसाथी के साथ अपनी गाड़ी में 10 कम्बल, 10 बोतल पानी, 10 पैकेट मीठा क्रीम बिस्किट और 10 पैकेट ब्रेड का पैकेट लेकर निकलना। चुपके से जो भिखारी रोड के किनारे या पुल के नीचे सो रहे हों, उन्हें बिना जगाए कम्बल ओढ़ा देना, व उस कम्बल के नीचे सीलबंद पानी की बोतल, बिस्किट और ब्रेड रख देना। सुबह जब वह भिखारी उठेंगे तो वह भगवान को धन्यवाद देंगे। तब तुम्हारे अंदर असीम संतुष्टि अनुभव होगी, क्योंकि तुम उनके लिए अदृश्य देवदूत बन गए।

Tuesday 20 October 2020

प्रश्न - क्या सभी प्रेत शक्तिशाली होते हैं?

 प्रश्न - क्या सभी प्रेत शक्तिशाली होते हैं?

उत्तर - मृत्यु के बाद मोह ही व्यक्ति को प्रेत योनि में बांधता है, या उसके भीतर विद्यमान बदले की भावना उसे प्रेतयोनि में भटकाती है।

जीवित व्यक्ति भी प्राण ऊर्जा, शरीरबल, बुद्धि व ज्ञान बल के आधार पर शशक्त या निर्बल होते हैं। वैसे ही मृत्यु के बाद भी प्रेतयोनि में शक्तिशाली प्रेत या निर्बल प्रेत उस प्रेत के सूक्ष्म प्राण ऊर्जा, बुद्धि व ज्ञान बल के आधार पर ही निर्धारित होता है।

हिन्दू धर्म अनुसार ब्रह्मराक्षस (अर्थात शक्तिशाली प्रेत) और मुस्लिम में जिसे शक्तिशाली जिन्न या ईसाई धर्म मे पावरफुल घोस्ट वह बनता है, जिसने जीवन में आध्यात्मिक या तो साधनायें की हो या उच्च मनोबल का हो।

अतः सभी प्रेत/जिन्न/मृतआत्मा शक्तिशाली नहीं होते, मात्र वही मरने पर शक्तिशाली प्रेत बनते हैं जो जीवित रहते हुए भी पावर फुल व्यक्तित्व रखते थे।

प्रश्न - हिन्दू विवाहित स्त्रियां सिंदूर क्यों लगाती हैं? इसके पीछे का आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक, वैज्ञानिक कारण क्या है?

 प्रश्न - हिन्दू विवाहित स्त्रियां सिंदूर क्यों लगाती हैं? इसके पीछे का आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक, वैज्ञानिक कारण क्या है?

उत्तर - विवाहित महिलाओं का सिन्दूर लगाना 

भारत में महिलाएं शादी के उपरांत माथे के बीच में सिंदूर लगाती हैं, जो उनके श्रंगार का एक हिस्सा होता है। यह विवाह की एक निशानी होती है। सिन्दूर हल्दी-चूने और पारा धातु के मिश्रण से बना होता है इसलिए इसे लगाने से शरीर में ब्लड प्रेशर बना रहता है। सिन्दूर में पारा मिला होने के कारण यह शरीर को दबाव और तनाव से मुक्त रखने में मदद रखता है।


सिंदूर का लाल रंग हमारी इंद्रियों तथा भाव-भंगिमाओं को उत्तेजित करता है। यह शक्ति ऊर्जा तथा जीवन के प्रति उत्साह को दर्शाता है। सकारात्मक स्तर पर यह जीवन में ताकत, खुशी-सुख एवं प्रेम को देने वाला होता है, अग्नि का प्रमुख गहरा लाल रंग, मनुष्य की हृदयगत भावनाओं को जाग्रत कर देता है।


पति जब पत्नी के सिंदूर को देखता है, तो उसे जिम्मेदारी का अहसास भी होता है कि यह सिंदूर उसने भरा है, अतः यह पत्नी के जीवन में उत्साह, उमंग, उल्लास उसने बनाये रखने का सङ्कल्प याद दिलाता है।


यह लाल रंग कुदृष्टि रखने वालों को यह भी संकेत देता है कि विवाहित स्त्री पर कुदृष्टि तुम्हें भष्म कर सकती है।

प्रश्न - दिन में 24 घण्टे क्यों होते हैं?भारतीय पञ्चाङ्ग किसे प्रमुखता देता है? सूर्य या चन्द्र की गति को?

 प्रश्न - दिन में 24 घण्टे क्यों होते हैं?भारतीय पञ्चाङ्ग किसे प्रमुखता देता है? सूर्य या चन्द्र की गति को?

उत्तर- यह पृथ्वी की स्पीड पर निर्भर करता कि वह अपनी धुरी पर घूमने में कितना वक्त लेती है। हमारी पृथ्वी अपनी धूरी पर घूमती है। यह धूरी एक काल्पनिक रेखा है जो उत्तर ध्रुव (North pole) से दक्षिण ध्रुव (South Pole) तक गुजरती हैं। हमें पृथ्वी के घूमने का एहसासा नहीं होता क्योंकि यह हमेशा एक ही गति से घूमती रहती है। नासा की वेबसाइट के अनुसार पृथ्वी के घूमने की गति है 1037 मील प्रति घंटा यानी 1670 किमी प्रति घंटा है। आप इस बात को ऐसे भी समझ सकते हैं कि भूमध्य रेखा (Equator) के किसी बिंदु पर खड़ा व्यक्ति 24 घंटे ( वास्तव में 23 घंटे 56 मिनट 4 सेकंड) में 40, 075 किमी का सफर कर लेता है। दिन-रात होने के संबंध में एक बात यह भी ध्यान देने योग्य है कि, धरती की जो धूरी है वह थोड़ी झुकी हुई है। भारतीय पञ्चाङ्ग चन्द्र व सूर्य दोनो के आधार पर समय गणना करता है। अंग्रजों का पञ्चाङ्ग सूर्य को मात्र वरीयता देता है। मुस्लिमों का पञ्चाङ्ग केवल चन्द्र को मात्र वरीयता देता है।

प्रश्न - सफर में या समारोह में कोई अंजान अपना या किसी को देखकर बुरा क्यों महसूस होता है? जबकि हमने उनसे बात भी नहीं की और हम उन्हें जानते भी नहीं।

 प्रश्न - सफर में या समारोह में कोई अंजान अपना या किसी को देखकर बुरा क्यों महसूस होता है? जबकि हमने उनसे बात भी नहीं की और हम उन्हें जानते भी नहीं।


उत्तर - हम केवल स्थूल इंद्रियों मुंह व कान से सम्वाद नहीं करते, अपितु हमारी सूक्ष्म इंद्रियां भी सम्वाद करती हैं जो नज़र तो नहीं आता मग़र सम्वाद होता है। हमारा औरा दूसरे के औरा के सम्पर्क में आते ही हृदय को सन्देश देता है। आत्मा पूर्वजन्म के सम्बन्धियो को महसूस कर लेती है।

उदाहरण - जब आप ट्रेन में यात्रा कर रहे हो या किसी अनजान से किसी विवाह - समारोह में मिल रहे हो। जिसकी हृदयगत भावनाएं व  औरा आपसे मेलजोल खाता होगा या जो आपका पूर्वजन्म का मित्र होगा। वह आपको अपना सा लगेगा।

जो पिछले जन्म का शत्रु होगा या आपके लिए मन मे दुर्भाव रखता होगा। वह अंजान आपको बिल्कुल अच्छा न लगेगा। उसके समीप कुछ बेचैनी महसूस होगी।

बाकी सामान्य लोगो को देखकर कुछ अच्छा या बुरा, अपना या पराया जैसा कोई भाव नहीं जगेगा।

प्रश्न - अंधविश्वास क्या है?

 प्रश्न - अंधविश्वास क्या है?

उत्तर- विश्वास व अंधविश्वास में प्रमुख अंतर यह है कि विश्वास विवेक-बुद्धि आधारित होता है, और अंधविश्वास का कोई लॉजिकल आधार नहीं होता।

उदाहरण - शकुन -अपशकुन शास्त्र बहुत सारे सांख्यकीय व धटना के उस व्यक्त का एनालिसिस के आधार पर लिखा गया था। वह पशु पक्षी व प्रकृति के संकेतों को समझकर मौसम या घटना का पूर्वानुमान लगा लेते थे। जो 90% सही होते थे। अब वर्तमान समय मे लोगों ने शास्त्र पढ़ा नहीं, व पूरा ज्ञान है नहीं। किसी ने उस पुस्तक के किसी अंश का अधूरा ज्ञान लिया। व उसे अपनी पीढ़ियों में मौखिक पहुंचा दिया। अब यदि उनके परिवार वाले उसे बिना जाने अनुपालन करेंगे तो यह अंधविश्वास कहलाता है।

दूसरा उदाहरण - एक अंधे दम्पत्ति रोटी को कुत्ते से बचाने के लिए पत्नी रोटी बनाती तो पति दरवाजे पर लकड़ी बजाता। कुत्ता भाग जाता। उनका बेटा जो कि आंख वाला था, बचपन से यह देख रहा था, उसकी भी पत्नी जब आयी तो वह भी लकड़ी द्वार पर बजाता, पत्नी ने जब पूँछा तो उसने कहा यह हमारे घर की परंपरा है। एक दिन उनके घर साली आयी व उसने यह कृत्य देखा। तो वह जीजा जी से बोली तुम्हारे पिता अंधे थे कुत्ता नहीं देख सकते थे, सो लाठी बजाते थे वह तो सही था। लेकिन तुम तो आंख वाले हो कुत्ता देख भी सकते हो और दौड़ा के भगा भी सकते हो। 

परंपरा जब बनी थी तब उसका अर्थ था, वर्तमान समय मे उपयोगी है या नहीं उसे यदि अंधविश्वास में अपनाया गया तो घातक है। विवेक से परीक्षण कर विश्वास के साथ अपनाया तो लाभप्रद है।

प्रश्न - मेरे आसपास के लोग ईर्ष्या मुझसे क्यों करते हैं?

 प्रश्न - मेरे आसपास के लोग ईर्ष्या मुझसे क्यों करते हैं?

उत्तर- कोई आपसे ईर्ष्या करता है तो इसका अर्थ यह है कि तुम इतने योग्य हो कि तुम्हें बल व बुद्धि, योग्यता व पात्रता के टक्कर से तुम्हारे साथी हरा नहीं पाए। इसीलिए वह तुमसे ईर्ष्या कर रहे हैं व उन्हें षड्यंत्र करने को मजबूर होना पड़ा.. तुम्हे तो खुश होना चाहिए कि लोग तुम्हें हरा नहीं पा रहे, इसलिए तुमसे ईर्ष्या कर रहे हैं, तुम्हे बदनाम करने का षड्यंत्र कर रहे हैं।

जिसका नाम होता है, लोग उसी से ईर्ष्या करते हैं, व षड्यंत्र करके उसे ही बदनाम करते हैं। जिसका कोई नाम ही नहीं, उसे बदनाम करके कोई अपना समय व्यर्थ क्यों करेगा?

भगवान कृष्ण को जब लोगों ने बदनाम करने की कोशिश की और स्मयन्तक मणि की चोरी का आरोप लगाया। तब तुम तो भगवान भी नहीं, फिर तुम्हे कैसे बख़्श देंगे?

अतः ईर्ष्यालु आपके बढ़ रहे हैं, आनन्दित होइए कि आप कुछ विशेष अन्य से बेहतर कर रहे हैं। उन्हें ईर्ष्या का अवसर देते रहिये तरक्की करते रहिए।


💐श्वेता, DIYA

प्रश्न - इंसान चिड़चिड़ा स्वभाव से क्यों हो जाता है?

 प्रश्न - इंसान चिड़चिड़ा स्वभाव से क्यों हो जाता है?

उत्तर- कुछ करने व कुछ पाने की चाह बलवती हो, मग़र अपेक्षित चाहते पूरी न हों तो इंसान चिड़चिड़ा हो जाता है।

स्वास्थ्य खराब हो और हालत साथ न दे, फिर मजबूरी में कुछ करना पड़े तो भी इंसान चिड़चिड़ा हो जाता है।

योग्यता कम हो ख्वाईशें बड़ी हों, तो भी इंसान चिड़चिड़ा हो जाता है।

जब कोई चाहता है, सामने वाला उसकी समस्या व उलझन समझे, मग़र जब कोई समझता नहीं तो इंसान चिड़चिड़ा हो जाता है।

चिड़चिड़ापन क्रोध का एक अलग रूप होता है, इसमे व्यक्ति अशक्तता अनुभव करता है। इसलिए क्रोध का दावानल नहीं निकाल सकता, अतः भीतर दबे क्रोध व हताशा-निराशा को चिड़चिड़ापन की चिंगारी निकाल के व्यक्त करता है।

चिड़चिड़ापन से मुक्ति का उपाय है - अपनी जीवन की समस्या के समाधान में जुटना, अपनी ख्वाईशो से बड़ी योग्यता बनाना। ध्यान, प्राणयाम व अच्छी पुस्तको का स्वाध्याय करना।

💐श्वेता, DIYA

प्रश्न - मरने के बाद साथ क्या जाता है?

 प्रश्न - मरने के बाद साथ क्या जाता है?

उत्तर - मनुष्य के तीन कलेवर(शरीर) होते हैं। स्थूल, सूक्ष्म और कारण।

स्थूल शरीर - मरने के बाद यहीं छूट जाता है जो कि या तो जला दिया जाता है या दफना दिया जाता है। स्थूल अर्थात जो शरीर दिखता है।

सूक्ष्म शरीर - जिसमें मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार समाहित है। यह मरने के बाद साथ जाता है। चित्त में हमारे सभी पाप-पुण्य का रिकॉर्ड सुरक्षित होता है, जिसके आधार पर ईश्वर हमें कर्मफ़ल देता है। इस जन्म में मिले सँस्कार और ज्ञान भी मरने के बाद साथ जाता है। इसका उदाहरण होता है कि कुछ बच्चे जन्म से मेधावी होते हैं, तो कुछ सामान्य और कुछ मंदबुद्धि यह सब पूर्वजन्म के ज्ञान व सँस्कार का प्रभाव होता है। 

कारण शरीर - जिसमें अंतरात्मा की आवाज़ और भावनाएं समाहित होती है। मनुष्य मरने के बाद कारण शरीर भी साथ जाता है। इसलिए मृत्यु के बाद भी निज भावनाओं के अनुसार ही आत्माएं देवलोक में देवात्मा बनती हैं या पितरलोक में पितर या संसार मे भटकती प्रेतात्मा बनती हैं। 

अतः मरने के बाद केवल समस्त स्थूल पदार्थ जो देखे, सुने व स्पर्श किये जाते हैं, जैसे धन, सम्पदा, घर, मकान, बन्धु, बांधव इत्यादि साथ नहीं ले जाया जा सकता।

मरने के बाद समस्त सूक्ष्म चीज़े जैसे विचार, भावना, सँस्कार, ज्ञान, पाप, पुण्य सबकुछ मरने के बाद साथ जाता है।


💐श्वेता, DIYA

तितली या मनुष्य कौन स्वप्न देख रहा है

 एक बार मैंने तितली पकड़ी। उसकी याद इतनी मन में बसी की रात को स्वप्न में देखा कि हम स्वयं तितली हैं, याद ही नहीं रहा की मनुष्य हैं। समस्त अनुभव तितली के थे। सुबह उठी तो स्वयं को मनुष्य पाया।

लेकिन एक प्रश्न मन में उठा - एक मनुष्य कल स्वप्न देख रहा था कि वह तितली है? या एक तितली आज स्वप्न देख रही है कि वह मनुष्य है?

स्वप्न में मुझे मनुष्य होने का भान नहीं था, इस संसार के स्वप्न में तितली को भी मनुष्य होने का भान नहीं है।

वेदों में कहा गया है कि यह संसार स्वप्न है। सत्य ही तो है, एक दिन स्वप्न टूटेगा और संसार से हम विदा होंगे।

प्रश्न - छोटे भाई की अकस्मात हार्ट अटैक से मृत्यु हो गयी। समझ नहीं आ रहा क्या करूँ?

 प्रश्न - छोटे भाई की अकस्मात हार्ट अटैक से मृत्यु हो गयी। समझ नहीं आ रहा क्या करूँ?

उत्तर - हमारे आत्मीय,


आपके भाई की अकस्मात हार्टअटैक से मृत्यु का शोक हृदयविदारक है, हमारी पूरी संवेदना आपके साथ है। इस शोक से अपने हृदय को मुक्त कीजिये। प्रत्येक आत्मा कितने दिन हमारे साथ रहेगी यह पूर्वनिर्धारित होता है, हम सब तय नहीं कर सकते किसी का जीवन कितना होगा और वह कब शरीर त्यागेगा।


अब देखो, कोरोना महामारी में लाखों लोग मर गए, न तुम किसी के जन्म के लिए जिम्मेदार बन सकते हो और न ही किसी की मृत्यु के लिए जिम्मेदार बन सकते। प्रत्येक पिता जीवन बचाने का प्रयास करता है, लेकिन जिस आत्मा के जाने का वक्त आ जाता है, उसे करोड़पति पिता भी नहीं बचा सकता। हम सब पूर्व जन्म में किसी के रिश्तेदार थे, वहां मरे तभी तो इस जन्म में जन्में। तुम्हारा छोटे भाई की आत्मा तुम्हारे लिए शोक का कारण बनी हुई है लेकिन वर्तमान में किसी के गर्भ में प्रवेश कर अपने नए माता पिता के सुख का कारण बन रही होगी। जैसे हमें और आपको पूर्व जन्म की याद नहीं तो उसे भी आप याद नहीं होंगे। अब उसे जब आप याद नहीं तो आप उसे याद करके परेशान मत होइए। नए जीवन व नए शरीर मे उसे नई जिंदगी जीने की शुभकामनाएं दीजिये।


कोई इस संसार मे न मरता हैं न ही जन्म लेता है। आत्मा तो वस्तुतः सिर्फ शरीर बदलती है।


सुख और दुःख जुड़े हुए हैं, कोई कहीं मृत्यु के कारण सुख देगा, वही कहीं जन्म के कारण सुख देगा।


अतः शोक मत कीजिये, स्वयं को सम्हालिये। संसार की नश्वरता और आत्मा की अमरता को समझते हुए स्वयं व परिवार जन को शोक से उबारिये।


उसके नाम पर कुछ दान पुण्य कर दीजिए, गरीब बच्चों में बिस्किट के पैकेट बांट दीजिये। उसकी याद को स्मृति चिन्ह में बदलने व उसे अक्षय पुण्य देने हेतु उसके नाम पर एक वृक्ष लगा दीजिये। सत्साहित्य वितरित कर दीजिए, उसकी मुक्ति के लिए श्रीमद्भागवत गीता का 18 दिन तक पाठ कर लीजिए। रोज एक अध्याय कर लीजिए।


💐श्वेता, DIYA

Monday 19 October 2020

प्रश्न - कुछ लोग खुशी मनाने से डरते क्यों हैं?

 प्रश्न - कुछ लोग खुशी मनाने से डरते क्यों हैं?

उत्तर - बचपन से मिले सँस्कार बच्चे के मन की प्रोग्रामिंग करते हैं। नकारात्मक दृष्टिकोण व भयग्रस्त माता पिता के बच्चे जब बड़े होते हैं तो उनमें भी नकारात्मक दृष्टिकोण और भय उनके मन मे पनप जाता है। वह ज्यादा खुश होने से इसलिए डरते हैं क्योंकि उनका ध्यान खुशी पर केंद्रित नहीं हो पाता। जो होगा देखा जाएगा जैसे बहादुरी वाली सोच नहीं अपना पाते। कुआं आधा खाली व आधी भरा है तो वह आधी का रोना रोयेंगे और आधी भरी की ख़ुशी न मनायेंग। उन्हें डर लगा रहता है कि कुएं से पानी पियेंगे तो वह खाली हो जाएगा। जबकि सत्य यह है कि वह कुंआ कभी नहीं सूखता जिसका जल लोग पीते व खर्चते रहते हैं। इसतरह ही उनके जीवन मे खुशी कभी कम नहीं होती जो खुशियाँ मनाते रहते हैं और खुशियां बांटते रहते हैं। मन की प्रोग्रामिंग हम बदल सकते हैं, बस अच्छी पुस्तको का स्वाध्याय करना होगा। युगऋषि पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी की पुस्तक - 'विचारों की सृजनात्मक शक्ति' पढ़िये, मदद मिलेगी।

💐श्वेता, DIYA

प्रश्न - नकारात्मक विचारों को कैसे हैंडल(नियंत्रित) करें?

 प्रश्न - नकारात्मक विचारों को कैसे हैंडल(नियंत्रित) करें?

उत्तर - नकारात्मक विचार अंधेरे की तरह होता है, चाहे जितना गहन अंधकार हो उसे भगाने के लिए छोटा जलता दीपक भी काफी होता है, उसी तरह नकारात्मक विचारो को भगाने हेतु एक शशक्त सकारात्मक विचारों की सेना में स्वाध्याय द्वारा खड़ी कीजिये। जिस प्रकार अंधेरे से लड़कर कोई फायदा नहीं, लड़कर उसे नहीं हरा सकते, वैसे ही नकारात्मक विचारों से लड़कर उसे नहीं दूर किया जा सकता।

अतः अंधेरे को भगाने के लिए दीपक जलाएं, नकारात्मक विचारों को भगाने के लिए सकारात्मक विचारों को मन में प्रवेश करवाएं।

एक छोटा प्रयोग करके देखें:-

मन भयग्रस्त हो तो साहस के विचारों को मन में सोचो या किसी साहसी व्यक्ति के बारे में सोचो। विश्व का सर्वाधिक साहसी सुपर हीरो हनुमानजी की चालीसा मन में साहस का संचार करती है।

यदि मन तनावग्रस्त हो तो उसके विपरीत मन को रिलैक्स करने वाले विचार मन को दो। कोई अच्छा साहित्य पढ़ो या वीडियो देखो। मन ही मन गायत्री मंत्र जपो।

जब मन थोड़ा रिलैक्स हो जाये तब गहरी श्वांस लो और स्वयं से प्रश्न करो कि भय की जड़ क्या है? या तनाव की जड़ क्या है? इनकी जड़ को उखाड़ने हेतु ठोस प्लान ऑफ़ एक्शन क्या होगा?

चाणक्य को कांटा चुभा तो उन्होंने कंटीली झाड़ी को काटा नहीं, क्योंकि वो जानते थे आज काटूँगा कल फिर उग आएगा। उन्होंने कँटीली झाड़ी की जड़ को थोड़ा खोद कर उसमें गुड़ और मट्ठा घोलकर डाल दिया। जिससे चींटियां उसकी जड़ को खा जाएं और उस कँटीली झाड़ी का अस्तित्व मिट जाए। 

चाणक्य बुद्धि आपके भीतर ही है, बस ध्यान में बैठकर शांत चित्त से समस्या का समाधान मन मे ढूँढिये। हर समाधान मिलेगा।

💐श्वेता,DIYA

प्रश्न - वर्तमान युग में महिलाओं के लिए नॉर्मल डिलीवरी सही है या सिजेरियन?

 प्रश्न - वर्तमान युग में महिलाओं के लिए नॉर्मल डिलीवरी सही है या सिजेरियन?

उत्तर - हम चिकित्सक नहीं है, अतः इतना अवश्य कह सकते हैं कि यदि लड़की शारीरिक श्रम अधिक करती है और स्वस्थ व शरीर लचीला है, साथ ही भारतीय भोजन करती हो तो उसके लिए नॉर्मल डिलीवरी उत्तम है।

यदि लड़की के घर का कार्य मेड करती हो, कोई शारीरिक श्रम नहीं करती, शरीर मे कुछ कॉम्प्लेसिटी है। शरीर लचीला नहीं है और भोजन में फ़ास्ट फ़ूड सम्मिलित है तो ऐसी परिस्थिति में सिजेरियन उत्तम है।


बाकी विश्वस्त चिकित्सक की सलाह अनुसार ही कार्य करें।

प्रश्न - वास्तव में सुख व दुःख क्या होता है?

 प्रश्न - वास्तव में सुख व दुःख क्या होता है?

उत्तर - इच्छाओं व वासनाओं की पूर्ति में बाधा को दुःख कहते हैं। इच्छाओं व वासनाओं की पूर्ति को सुख कहते हैं।

लेकिन जो इच्छाओं व वासनाओं के जाल से मुक्त हो जाये, सुख व दुःख से परे हो जाये उसे मुक्ति व आनन्द कहते हैं।

उदाहरण - यदि समोसे खाने की इच्छा मन में जगी, मिल गया तो सुख और न मिला तो दुःख।

सन्तान की इच्छा है - सन्तान मिली तो सुख और बांझ हुए व सन्तान न हुई तो दुःख

अमुक लड़की/लड़के को को अमुक लड़के/लड़की से प्रेम हुआ व विवाह की इच्छा जगी - विवाह हो गया तो सुख न हुआ तो दुःख

इसी तरह धन , पद, प्रतिष्ठा इत्यादि की इच्छाओं के अनन्त जाल हैं, यह रक्तबीज राक्षस की तरह है, एक के पूरी होने पर दूसरी व तीसरी इच्छाएं उतपन्न होती रहेंगी। सुख-दुःख का अनुभव चलता रहेगा। यही भव सागर है। इससे मुक्त होना ही मोक्ष व आनन्द है।

💐श्वेता, DIYA

प्रश्न - क्या स्त्रियों को प्रजनन का उत्तरदायित्व देकर कष्ट देकर भगवान ने अन्याय नही किया? स्त्रियों को पुरूषों से अधिक कष्ट क्यों दिया?

 प्रश्न - क्या स्त्रियों को प्रजनन का उत्तरदायित्व देकर कष्ट देकर भगवान ने अन्याय नही किया? स्त्रियों को पुरूषों से अधिक कष्ट क्यों दिया?

उत्तर - भगवान बहुत सुंदर सृष्टि बनाई है, जहाँ स्त्री पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं। जब तक वह एक दूसरे के लिए समर्पित होकर जीते हैं परिवार धरती का स्वर्ग होता है। विद्युत भी धनात्मक व ऋणात्मक ऊर्जा के संयोजन से निकलती है, ऐसे ही पृथ्वी के समस्त जीव वनस्पतियों और मनुष्यों में नर और मादा दोनों का अस्तित्व है। भगवान ने सृष्टि में सन्तुलन रखा हुआ है, यहां किसी को कम या किसी को ज्यादा दुःख नहीं मिला हुआ है।

पुरुषों को कठोरता शरीर में दी गयी ताकि परिवार के लिए संरक्षक व पोषण कर्ता बन सके, जो भी तूफान व कठिनाई आये उसे आगे बढ़कर झेलें। परिवार को सुरक्षा चक्र दें। स्त्रियों का शरीर कोमल, लचीला और इस तरह बनाया गया कि वह पृथ्वी की तरह सृष्टि में योगदान दे सकें। गर्भधारण कर सकें, अपने प्यार और ममता की भावनाओं से रक्त को दूध में बदल सकें, शिशु को पोषण दे सकें। कोमलता व कठोरता का संयोजन स्त्री व पुरुष हैं। एक बच्चा हो या बड़ा व्यक्ति जब छोटे कष्ट में होता है तो कहता है - "ओ माँ" और जब बड़ी दुर्घटना हो तो कहता है- "बाप रे बाप"। 

मनुष्य को छोड़कर किसी भी जीव वनस्पति को कोई आपत्ति नहीं है कि स्त्रियां/मादा ही क्यों गर्भ व बालक के जन्म के असीम कष्ट को सहती हैं? 

पुरुषों की भी अपनी कई समस्याएं हैं जैसे रोज सुबह उस्तरे/रेजर से दिन की शुरुआत दाढ़ी बनांकर करना, वो भी सोचते होंगे हमारे साथ ही ऐसा क्यों? स्त्रियों  की कमाई शौक है, लेकिन लड़कों के लिये कमाना मजबूरी होती है। उन्हें तो कमाना ही पड़ेगा। घर के लिए अपने पैरों पर खड़ा होना ही होगा। हमारे समाज में तो लड़के बेचारे तो रो भी नहीं सकते और यह कह नहीं सकते कि मुझे घर में ही गृहकार्य करने दो और मेरा व्याह उस लड़की से कर दो जो कमाए। हमारे समाज मे कमाने वाली लड़की बेरोजगार का हाथ नहीं थामती, उसे अपने बराबर या उससे ज्यादा कमाने वाला पति चाहिए। फैक्ट्री में जितने भी कठोर कार्य है, वह पुरुषों को ही दिए जाते हैं। 

कुछ परसेंट दुष्ट प्रकृति के पुरुष व स्त्रियों को यदि छोड़ दें, तो आप पाएंगे जिन घरों में पति पत्नी का आपस मे प्रेम है और एक दूसरे के लिए समर्पित हैं, वहाँ भगवान की बनाई सृष्टि उनके लिए वरदान है। एक घर को सम्हाल रहा है और दूसरा घर के लिए कमा रहा है, कष्ट उठा रहा है। कहीं कही पति और पति दोनों कमा रहे हैं। एक दूसरे के लिए समर्पण के साथ घर गृहस्थी निभा रहे हैं।

अहंकारी स्त्री व पुरुषों को ही भगवान की बनाई सृष्टि से आपत्ति है, क्योंकि वह एक दूसरे के पूरक नहीं बनना चाहते, अपितु प्रतिद्वंदी है। वह एक दूसरे के विरुद्ध अनदेखा मानसिक युद्ध लड़ रहे हैं। 

बुद्धि स्तर पर लड़के व लड़की बराबर हैं, मात्र शरीर से एक कोमल और एक कठोर है। ऐसा कोई कार्य नहीं जो बुद्धि स्तर पर दोनो न कर सकें। 

अभ्यास से व चिकित्सा की मदद से कोई भी अपना शरीर मर्दाना या औरत का कर सकता है। लेकिन क्या इससे उसे प्रशन्नता मिल जाएगी?

माता न होती तो क्या जन्म सम्भव है? यदि पिता न हो तो क्या जन्म सम्भव है? 

पाषाण युग से वर्तमान कम्प्यूटर युग तक परिवर्तन मनुष्य ने किया, अन्य जीव वनस्पतियों ने नहीं किया। क्योंकि भगवान ने मनुष्य को बुद्धि दी है। अक्ल बड़ी की भैंस सबने कहावत सुनी है। अतः यदि भगवान ने स्त्रियों को पुरुषों के बराबर अक्ल दी है, उसे नित्य पढंकर और बढ़ाया जा सकता। जो पढ़ेगा और अभ्यास करेगा वह लड़की हो या लड़का बुद्धिमान बनेगा। अतः इससे सिद्ध होता है कि भगवान ने किसी के साथ अन्याय नहीं किया। मानव जाति को केवल अन्य पशु पक्षी से केवल बुद्धि अधिक दी है, और बुद्धि स्त्री व पुरुष को समान मिली है।

💐श्वेता, DIYA

Sunday 18 October 2020

प्रश्न - जिंदगी में आवश्यक सुधार कैसे करें?

 प्रश्न - जिंदगी में आवश्यक सुधार कैसे करें?

उत्तर - जिस मैकेनिक को गाड़ी की समझ न हो, वह गाड़ी सुधार नहीं सकता। वैसे ही व्यक्ति को जब तक जीवन की समझ नहीं होगी, वह जीवन में सुधार भी न कर सकेगा।

ज़िंदगी के लिए तीन आधार पर कार्य करना पड़ता है:-

1- शारिरिक

2- मानसिक

3- आत्मिक

यदि जीवन में सुधार चाहते हो तो -

शरीर को स्वस्थ रखने हेतु आवश्यक योग-व्यायाम करो। पौष्टिक आहार दो।

मन को स्वस्थ रखने हेतु आवश्यक ध्यान-प्राणयाम करो। अच्छे विचारों का भोजन अच्छी पुस्तकें पढंकर दो।

आत्मा को स्वस्थ रखने हेतु आवश्यक जप-तप और ध्यान करो। स्वयं के मूल अस्तित्व को जानने का प्रयास करो।

मन एक जिन्न की तरह है, यदि इसे मनपसंद कार्य और भोजन न दिया जाए तो यह आपको विचलित कर देगा। जीवन में निराशा भर देगा।

जीवन मे उत्साह के लिए, मन में उत्साह उमंग जगाना होगा। मन को साधना होगा।

एक छोटा प्रयोग 40 दिन करके देखिए:-

1- पेन कॉपी उठाइये व अपनी पसंद और नापसंद नोट कर लीजिए।

2- फ़िर नापसन्द की लिस्ट में से वह पॉइंट उठाइये जो नापसन्द तो है लेकिन अत्यंत लाभदायक है।

3- नेक्स्ट पसन्द की लिस्ट में से वह पॉइंट उठाइये जो पसन्द तो है लेकिन अत्यंत नुकसानदेह है।

4- अब फाइनल वह लिस्ट बनाइये जो जीवन के लिए लाभदायक है।

5- नेक्स्ट लाभदायक पॉइंट्स के कार्यो में रुचि कैसे जगाई जाए इस पर गहन चिंतन मनन कीजिये।

6- यूट्यूब और इंटरनेट पर कामयाब लोगों की जीवनी 40 दिन देखिए। 40 दिन में आपको 40 सफल लोगो के बारे में पता चलेगा।

7- प्रत्येक व्यक्ति की सफलता के 5 मुख्य पॉइंट्स बना लें। इस तरह 40x5 = 200 पॉइंट्स आपके पास होंगे।

8- अब कॉमन 20 पॉइंट्स जो प्रत्येक व्यक्ति के जीवन मे था उसे नोट करें।

9- अब सोचे कि इन्हें अपने जीवन मे कैसे लागू करें, गहन चिंतन कीजिये।

10 - जीवन लक्ष्य बनाइये व उनमें इन 20 पॉइंट्स को लक्ष्य प्राप्ति हेतु जोड़ लीजिये।

11- तेनालीराम और चाणक्य सीरियल के वीडियो यूट्यूब पर उपलब्ध है, 40 वीडियो इनकी देख लें और समस्या आने पर यह कैसे सोचते हैं, उसे सीख लें।

12- कम से कम 324 गायत्री मंत्र 40 दिन तक उगते सूर्य का ध्यान कर जप लीजिये।

विश्वास मानिए यह 40 दिन का छोटा प्रयोग लाभप्रद है।

जिंदगी के ड्राइवर आप हैं। मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है। अतः सांसारिक व आध्यात्मिक प्रयास तो जीवन को सफल बनाने हेतु करना ही पड़ेगा।


💐श्वेता, DIYA

प्रश्न - क्या तर्क से जीवन समझा जा सकता है?

 प्रश्न - क्या तर्क से जीवन समझा जा सकता है?

उत्तर- तर्क जीवन को समझने में थोड़ी बहुत मदद कर सकता है, तर्क से जीवन समझा नहीं जा सकता।

उदाहरण -1 -  गुलाब के पुष्प की जीवंतता और उसकी खूबसूरती व महक को समझना

तर्क कैंची की तरह और वैज्ञानिक औजारों की तरह है। यदि किसी वैज्ञानिक लैब को गुलाब का पुष्प दो तो उसे काटकर, विभिन्न कैमिकल में डालकर उसके प्रोपर्टी और परिभाषा बता देंगे। उपयोग बता देंगे। मग़र अब उस गुलाब में जीवंतता न बची, खूबसूरती न बची, वह जीवंत महक न बची, वह आकर्षण न बचा। क्योंकि लैब में गुलाब का जीवन मर चुका है। जिसका विश्लेषण किया गया वह तो गुलाब का जड़ व मृत पार्टिकल है।

उदाहरण - 2- माता के प्रेम को तर्क या विज्ञान से नहीं समझा जा सकता। छोटा बच्चा गिर गया, लोग उठा के हॉस्पिटल ले गए मग़र वह चुप न हुआ। माँ आयी हृदय से लगाया, आँचल से मुंह पोंछा बच्चा चुप हो गया।

जीवन के जड़ स्तर को तर्क से बताया जा सकता है - यदि सांसे चल रही हैं, चल उठ बैठ व कार्य कर सकता है, खा पी सकता है। अर्थात व्यक्ति जीवित है। लेकिन क्या यही जीवन हैं? नहीं न..

अच्छा यह बताओ किन तर्क व वैज्ञानिक उपकरणों से नापोगे - उत्साह, उमंग, उल्लास, रसमय जीवन, प्राणवान व्यक्तित्व, जीवन जीने की कला और जीवन उद्देश्य को। जब यह जीवन के दूसरे चरण मन को पूर्णतयः समझने में ही तर्क फेल हो गया।

तो जीवन का तीसरा चरण चेतना के आयाम, आत्मा का अस्तित्व व आत्मा का उस विराट से जुड़कर स्पंदित होना। यहां तक तर्क कैसे पहुंचेगा।

स्थूल नेत्र दिन में आसमान से ऊपर व धरती के नीचे नहीं देख सकते, तो इसका अर्थ यह नहीं कि ब्रह्मांड का अस्तित्व नहीं है। मनुष्य की छोटे से कप जैसी बुद्धि में सागर भरने में असफल हो जाओगे। अतः सागर को समझना है तो उसमें प्रवेश करो। तर्क व शब्द बड़े तुच्छ हैं इनसे से जीवन समझा जा सकता है और न ही समझाया जा सकता है।

💐श्वेता, DIYA

प्रश्न - क्या लक्ष्मी जी का वाहन उल्लू देखना शुभ है?

 

प्रश्न - क्या लक्ष्मी जी का वाहन उल्लू देखना शुभ है?
उत्तर - न लक्ष्मी वाहन उल्लू देखना शुभ है और न हीं उनका आसन कमल देखना शुभ है।
लक्ष्मी का स्वरूप उद्यम - पुरुषार्थ को समझना व पुरुषार्थियों की सँगत करना शुभ है। पुरुषार्थ व कर्मठ लोग लक्ष्मी जी के वाहन हैं, वही उनके सच्चे भक्त हैं।
यदि शुभ जीवन मे लाना चाहते हो तो इस महावाक्य को कंठस्थ कर लो -
उद्यमी पुरुष: बपुत: लक्ष्मी: - उद्यमी पुरुषार्थी व्यक्ति के घर लक्ष्मी स्वयं चलकर जाती हैं।
एक छोटा 40 दिन का प्रयोग करो, 40 दिन नित्य कामयाब लोगों की कामयाबी के किस्से यूट्यूब पर देखो व समझो। उनकी सफलता के 20 कॉमन बातें नोट करो कि क्यों उनपर लक्ष्मी जी की कृपा है। कैसे वह अमीर बने। उन्हें जीवन मे अप्पलाई करो। कुछ ऐसा करो कि दुनियां बनना चाहे तुम्हारे जैसा। तुमसे प्रेरणा ले।

💐श्वेता, DIYA

अहंकार से निजात हेतु छोटा ध्यान प्रयोग

 अहंकार से निजात हेतु छोटा ध्यान प्रयोग

मनुष्य जब स्वयं को शरीर व स्वयं को माता पिता द्वारा दिये नाम से 'मैं' सम्बोधित करता है। तब वह अहंकार से ग्रसित हो जाता है। तब उसका सम्बन्ध समूह चेतना (collective consciousnes) से टूट जाता है। तब वह मतभेद को मनभेद के स्तर तक ले जाता है। मनभेद स्वयं को श्रेष्ठ व दूसरे को गौंड़ समझकर नफरत हेतु प्रेरित करता है।

इस अहंकार(ego) की समस्या से निजात-छुटकारा पाना चाहते हैं तो एक छोटा ध्यान प्रयोग कीजिये:-

गुलाब के पौधे में खिले गुलाब को देखिए, अब गुलाब का स्वतंत्र अस्तित्व तो है नहीं, वह डालियों से जुड़ा हुआ है। तो सूक्ष्म मानसिक चेतना द्वारा गुलाब के भीतर ध्यानस्थ हो प्रवेश कीजिये। गुलाब के फूल से उसकी डालियों में प्रवेश कीजिये, फिर उसकी जड़ो तक पहुंचिए। अरे यह क्या गुलाब के पौधे का अस्तित्व बिना जड़ो के नहीं है। अब जड़ो का अस्तित्व बिना मिट्टी के नहीं है। पौधे का वस्तुतः अस्तित्व जल, मिट्टी, हवा, आकाश और प्रकाश से है। अब पुनः चेतना को अपनी विराट अस्तित्व से जोड़िए। फिर समस्त मनुष्यो और स्वयं को देखिए - उनमें भी जल, मिट्टी, हवा, आकाश और प्रकाश सब मौजूद है। वस्तुतः कोई अलग नहीं है, सब एक जैसे तत्वों से बने हैं। सबके अंतर जो आत्म तत्व भरा है जिससे वह जीवित हैं, वह भी वस्तुतः एक ही परमात्मा से प्राप्त है। हम ब्रह्म के अंदर हैं वह ब्रह्म हमारे अंदर है। इसे कुछ क्षण महसूस शरीर से परे जाकर कीजिये।


पुनः अपनी चेतना को विराट से मिट्टी, फिर गुलाब की जड़ व टहनियों से होते हुए गुलाब तक ले आइये। अब आपको पता है कि आप और गुलाब वस्तुतः एक ही चेतना से जुड़े हो। आप और हर मनुष्य एक ही महाचेतना से जुड़े हो। आपका अस्तित्व उस महाअस्तित्व का अंग है।

विश्वास मानिए यह प्रयोग 40 दिन करके देखिए, फिर आप किसी से नफरत कर नहीं पाएंगे। प्रकृति के कण कण से जुड़ाव महसूस करेंगे। सबसे प्रेम करेंगे।

श्वेता, DIYA

Saturday 17 October 2020

प्रश्न - लड़की व लड़को में कौन अधिक अच्छे दिल व अच्छी भावना का होता है?

 प्रश्न - लड़की व लड़को में कौन अधिक अच्छे दिल व अच्छी भावना का होता है?

उत्तर - स्त्री पुरुष दोनों एक दूसरे के पूरक हैं, प्रतिद्वंद्वी नहीं है। एक स्त्री पिता, भाई, मित्र, पति व अन्य रिश्तेदारों के रूप में पुरुषों को ही पाती है। एक पुरुष माता, बहन, मित्र, पत्नी व अन्य रिश्तेदारों के रूप में स्त्री को ही पाता है।

दिल से अच्छे लड़के या लड़की तब बनते हैं, जब उन्हें घर में शुभ सँस्कार मिलते हैं। तो जिन बच्चों के माता पिता बचपन से उन्हें दया, धर्म, मर्यादा और प्रकृति से प्रेम करना सिखाते हैं, वह बच्चे लड़के हो या लड़की अच्छे दिल व भावना के बनते हैं।

कुसंस्कारी परिवार के बच्चे जिन्हें बचपन से स्वार्थ सिद्धि हेतु किसी का भी नुकसान पहुंचाने की सीख दी जाती है, वह लड़के हों या लड़की बुरे दिल व भावना के होते हैं।

प्रश्न - जीवन मे उत्साह उमंग बनाये रखने के लिए क्या करें?

 प्रश्न - जीवन मे उत्साह उमंग बनाये रखने के लिए क्या करें?

उत्तर - मन एक जिन्न की तरह है, यदि इसे मनपसंद कार्य और भोजन न दिया जाए तो यह आपको विचलित कर देगा। जीवन में निराशा भर देगा।

जीवन मे उत्साह के लिए, मन में उत्साह उमंग जगाना होगा। मन को साधना होगा।

एक छोटा प्रयोग 40 दिन करके देखिए:-

1- पेन कॉपी उठाइये व अपनी पसंद और नापसंद नोट कर लीजिए।

2- फ़िर नापसन्द की लिस्ट में से वह पॉइंट उठाइये जो नापसन्द तो है लेकिन अत्यंत लाभदायक है।

3- नेक्स्ट पसन्द की लिस्ट में से वह पॉइंट उठाइये जो पसन्द तो है लेकिन अत्यंत नुकसानदेह है।

4- अब फाइनल वह लिस्ट बनाइये जो जीवन के लिए लाभदायक है।

5- नेक्स्ट लाभदायक पॉइंट्स के कार्यो में रुचि कैसे जगाई जाए इस पर गहन चिंतन मनन कीजिये।

6- यूट्यूब और इंटरनेट पर कामयाब लोगों की जीवनी 40 दिन देखिए। 40 दिन में आपको 40 सफल लोगो के बारे में पता चलेगा।

7- प्रत्येक व्यक्ति की सफलता के 5 मुख्य पॉइंट्स बना लें। इस तरह 40x5 = 200 पॉइंट्स आपके पास होंगे।

8- अब कॉमन 20 पॉइंट्स जो प्रत्येक व्यक्ति के जीवन मे था उसे नोट करें।

9- अब सोचे कि इन्हें अपने जीवन मे कैसे लागू करें, गहन चिंतन कीजिये।

10 - जीवन लक्ष्य बनाइये व उनमें इन 20 पॉइंट्स को लक्ष्य प्राप्ति हेतु जोड़ लीजिये।

11- तेनालीराम और चाणक्य सीरियल के वीडियो यूट्यूब पर उपलब्ध है, 40 वीडियो इनकी देख लें और समस्या आने पर यह कैसे सोचते हैं, उसे सीख लें।

12- कम से कम 324 गायत्री मंत्र 40 दिन तक उगते सूर्य का ध्यान कर जप लीजिये।

विश्वास मानिए यह 40 दिन का छोटा

💐श्वेता, DIYA

प्रश्न - जब जीवन दिशाहीन लगे तो क्या करें?

 प्रश्न - जब जीवन दिशाहीन लगे तो क्या करें?


उत्तर - ध्यान दीजिए, प्रश्न जहां है उत्तर भी वहीं होता है। शरीर को भोजन नहीं दोगे तो वह साधारण कार्य भी न कर सकेगा, यदि उत्तम पौष्टिक भोजन व व्यायाम करोगे तो शरीर से असाधारण कार्य भी करवा सकोगे। इसी तरह मन है, मन को भी नित्य भोजन चाहिए। अच्छे विचारों का और अच्छी संगत का भोजन उसे दीजिये और ध्यान के माध्यम से मन का व्यायाम कीजिए। फिर देखिए आपका मन स्वतः आपको सही दिशा देगा, समस्त समस्या का समाधान आपके भीतर ही उभरेगा।

एक छोटा सा 40 दिन का आध्यात्मिक मनोवैज्ञानिक प्रयोग करके देखिए, फिर अपना अनुभव साझा कीजिये:-

1- नित्य एक अध्याय श्रीमद्भागवत गीता का पढ़िये, यह 40 दिन तक करना है। स्वयं को अर्जुन समझिए व कृष्ण भगवान के समक्ष अपनी उलझन, दिशाहीनता, व समस्या को मन ही मन रखिये।

2- गीता पढ़ते हुए ऐसा महसूस कीजिये, जैसे वर्तमान जीवन युद्ध हेतु आपकी बुद्धि एक रथ है और जगतगुरू भगवान कृष्ण उसके सारथी।

3- सुबह नहाकर जब भी पूजा करें ,तो दो आध्यात्मिक गवाह जल और अग्नि की उपस्थिति में कम से कम 324 गायत्री मंत्र(3 माला जपें) । जल देवता कलश में विराजमान होंगे, अग्निदेव दीपक में आएंगे। घी का दीपक ही जलाएं।

40 दिनों के इस प्रयोग से आपका मन अर्जुन की तरह प्रोग्रामिंग करने लगेगा। एकाग्र होकर किसी भी लक्ष्य को भेदने में सक्षम बनेगा। स्वयं के जीवन की उलझन तो सुलझेगी ही, स्वयं तो जीवन की दिशा मिलेगी ही, दूसरों का भी मार्गदर्शन कर सकेंगे। 

💐श्वेता, DIYA

Friday 16 October 2020

किराये का आशियाना, यह शरीर है हमारा,

 किराये का आशियाना,

यह शरीर है हमारा,

कुछ पल यहां ठहर के,

हमें आगे है बढ़ जाना।


वो मालिक है हमारा,

उसने दिया है ये ठिकाना,

जब चाहे कह दे हमसे,

इसे छोड़के अब पड़ेगा हमें जाना।


आये थे अकेले,

अकेले ही है हमें वापस जाना।

जो कुछ यहां मिला है,

सब यहीं छोड़ के पड़ेगा जाना।


इस अनवरत यात्रा में,

मिलेंगे कई ठौर और ठिकाने,

कुछ मिलेंगें जाने पहचाने,

कुछ होंगे बिल्कुल अंजाने।


मोह छोड़ के यहां का,

हमें ईश्वरीय कार्य है निबटाना,

आगे की सुखद यात्रा के लिए,

अच्छे कर्मफ़ल का पाथेय है कमाना।


जितनी साँसे मिली हैं,

उन्हें व्यर्थ न गंवाना,

उपासना साधना आराधना से,

नित्य आत्मा का आहार जुटाना।


किराये का आशियाना,

यह शरीर है हमारा,

कुछ पल यहां ठहर के,

हमें आगे है बढ़ जाना।


श्वेता, DIYA

मनुष्य जीवन का सही मूल्यांकन क्या है?

 मनुष्य जीवन का सही मूल्यांकन क्या है?


मनुष्य का जीवन अनमोल महंगे बेशकीमती रत्न की तरह है, मनुष्य की अवेयरनेस और योग्यता पर निर्भर करता है कि वह इसका मूल्यांकन करने योग्य है भी नहीं।

वेशकीमती रत्न को धोबी, किसान, किराना वाले, डॉक्टर, इंजीनियर, वकील के समक्ष रखो तो क्या वह उसका सही मूल्यांकन कर पाएंगे, नहीं न… रत्न के सही मूल्यांकन के लिए जौहरी सी योग्यता चाहिए।

अतः जो जीवन का जौहरी है और फुल अवेयरनेस जीवन के प्रति रखता है, वही जीवन का सही मूल्यांकन कर सकेगा। बाकी अन्य अयोग्यों द्वारा किया मूल्यांकन अर्थहीन होगा।


नर से नारायण बनने की योग्यता मनुष्य रखता है, बस सही दिशा में सही मेहनत की अनवरत आवश्यकता है।


श्वेता, DIYA

Thursday 15 October 2020

आखिर मौत क्यों होती है?

 आख़िर कपड़ा क्यों फटता है? आखिर फल क्यों सड़ता है? आखिर मौत क्यों होती है?

एक ही उत्तर है, प्रत्येक निर्माण का विध्वंस सुनिश्चित है। आत्मा का वस्त्र शरीर है, जो हमारे वस्त्रों की तरह कभी न कभी फटेगा ही। हम जैसे पुराने कपड़े छोड़ नए वस्त्र धारण करते हैं। ऐसे ही आत्मा भी पुराने शरीर को छोड़ नया धारण करती है।

दिखावा करने की आदत मनोव्याधि है।

 दिखावा करने की आदत मनोव्याधि है।


महिला हो या पुरूष वही दिखावा करता है, जो हीनता की भावना से ग्रसित होता है या किसी न किसी से ईर्ष्या करता है।

दिखावा अर्थात जो अस्तित्व में नहीं है उसे कृतिम रूप से प्रदर्शित करना। कोई स्त्री बिना मेकअप सुंदर नहीं दिखती तो मेकअप कर सुंदरता का दिखावा करती है। कोई पुरुष धनी नहीं है, फिर भी रिश्तेदारों के समक्ष धनी होने का कृतिम दिखावा करता है।

किसी भी समस्या की जड़ मानसिक होती है, दिखावापन भी वस्तुतः मनोरोग ही है। मानसिक रूप से स्वस्थ स्त्री पुरुष लोग क्या कहेंगे परवाह नहीं करते। ओरिजिनल व सच्चाई से रहते हैं।


श्वेता, DIYA

भयमुक्त होने का आध्यात्मिक मनोवैज्ञानिक प्रयोग:-

 भयमुक्त होने का आध्यात्मिक मनोवैज्ञानिक प्रयोग:-


जिस प्रकार डरावना स्वप्न से जागने पर भय मुक्त हो जाया जाता है, वैसे ही दिन में मन द्वारा बुने डरावनी कल्पनाओं से मुक्ति होश में और अवेयरनेस स्टेज में आते ही हो जाती है। 

डर अर्थात जो अभी घटित नहीं हुआ है, उसकी कल्पना करना। क्योंकि जो घटित हो जाता है वह तथ्य है।

डर की कल्पना मन कर रहा है, डर से मुक्ति भी मन ही देगा। डरावने विचार भय उतपन्न करते हैं, तो साहस भरे विचार भय से मुक्ति दे देते हैं।

एक प्रयोग कीजिये, मन की कल्पनाओं पर नज़र रखिये, जैसे ही मन नकारात्मक व भययुक्त कल्पना करें तुरंत हनुमानजी का स्मरण कीजिए। इस विश्व के आध्यात्मिक सुपर हिरो भगवान हनुमानजी की चालीसा पढ़िये, उनकी साहस गाथा चालीस पदों की चालीसा रूप में तुलसीदास जी ने लिखी है। मन में साहस की प्रोग्रामिंग करने हेतु 108 दिन तक स्वयं में हनुमानजी का आह्वाहन कीजिये, ध्यान धारणा कीजिये कि आप में हनुमानजी की शक्ति प्रवेश कर गयी है। यह आध्यात्मिक मनोवैज्ञानिक प्रयोग मन को भयमुक्त कर देगा। 


💐श्वेता, DIYA

आध्यात्मिक दृष्टिकोण अपनाओ, जीवन जीना आसान बनाओ।

 आध्यात्मिक दृष्टिकोण अपनाओ, जीवन जीना आसान बनाओ।


जिंदगी जीना न पहले कठिन था न अब कठिन है। समस्या की जड़ मनुष्य की अनन्त इच्छाओं का जाल है, जिनकी पूर्ति में इंसान दूसरे मनुष्य को और प्रकृति को नुकसान पहुंचा रहा है।

सरल सहज जीवन मन को नियंत्रित करके जंगल मे भी मंगल मनाते हुए जिया जा सकता है, संसार मे भी आनन्द में जिया जा सकता है।

इच्छाएं अनन्त हैं, मरने वाला चंद सांसें चाहता है, लंगड़ा को पैर चाहिए, पैर वाले को साइकिल, साइकिक वाले को बाइक, बाइक वाले को कार, और कार वाले को प्राइवेट जेट इसीतरह जो जिसके पास नहीं बस वही उसे चाहिये। जो है उसका कोई मोल नहीं, जो ईश्वर ने दिया उसका कभी आभार व्यक्त नहीं किया।

आधी ग्लास भरी व आधी खाली है, सकारात्मक दृष्टिकोण से आधा भरा है, नकारात्मक दृष्टिकोण से आधा खाली है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से आधा जल से व आधा हवा से भरा है।


नजरिया बदलो, नजारे स्वतः बदल जाएंगे।

Wednesday 14 October 2020

मनुष्य जन्म का आधार कर्मफ़ल

 मनुष्य जन्म का आधार कर्मफ़ल

भारतीय सनातन धर्मग्रंथ कहते हैं कि मनुष्य का जन्म हमारे कर्मफ़ल की देन है। बड़ी किस्मत से मनुष्य जन्म मिलता है, क्योंकि मनुष्य ही बुद्धि होने के कारण सोच समझ सकता है।

हड़प्पा युग से वर्तमान युग तक पशु-पक्षी का जीवन नहीं बदला, मात्र मनुष्यों का बदला। इसका मुख्य कारण है मनुष्य द्वारा बुद्धि प्रयोग। 

मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है, जैसा चाहे वर्तमान समय में प्रयत्न पुरुषार्थ से अपना जीवन बना सकता है।

अगले जन्म में किस योनि में जन्म लेना है, यह भी मनुष्य स्वयं अपने कर्मो और सोच के द्वारा तय करता है। यदि जीवन भर पशुवत आचरण करेगा और पशु ही चित्त में बसेगा तो अगले जन्म में पशु योनि में जन्म मिलेगा। यदि मनुष्य मानवीय गरिमा में कार्य करेगा और चित्त में इंसानियत बसेगा तो अगले जन्म में मनुष्य योनि में ही जन्म लेगा।

पूर्वाभास - अर्थात जो घटने वाला है उसके संकेत घटने से पूर्व ही मिल जाना।

 पूर्वाभास - अर्थात जो घटने वाला है उसके संकेत घटने से पूर्व ही मिल जाना।

जैसे स्थूल नेत्र स्थूल जगत देख सकते हैं, वैसे ही मनुष्य के भीतर के सूक्ष्म नेत्र - जिसे तृतीय नेत्र या छठी इन्द्रिय कहते हैं वह सूक्ष्म जगत की हलचल को देख व महसूस कर सकती है। समय से परे भी देख सकती है और भविष्य दर्शन भी कर सकती है।

कोई भी घटना स्थूल में घटने से पूर्व सूक्ष्म जगत में घट जाती है। जैसे फ़िल्म बनने से पूर्व उसकी स्क्रिप्ट लिखी जाती है, वैसे ही स्थूल में घटने वाली घटना की स्क्रिप्ट सूक्ष्म जगत में पहले ही लिख जाती है।

पूर्वाभास उसी व्यक्ति को अधिक होता है, जिसका चित्त एकाग्र होने की क्षमता रखता है। जो पूर्व जन्म में या वर्तमान जन्म में ध्यान व योग का अभ्यास किया हो या कर रहा हो। ध्यान व योग से मनुष्य की अतीन्द्रिय क्षमता विकसित होती है, वह समय से परे सूक्ष्म जगत की हलचल महसूस करके घटना का पूर्व संकेत समझ पूर्वाभास कर सकता है।

ध्यान रहे, अतींद्रिय (छठी इन्द्रिय या तृतीय नेत्र) स्थूल शरीर का अंग नहीं है, यह मनुष्य के सूक्ष्म शरीर मे स्थित है। अतः यदि पूर्व जन्म में साधना द्वारा किसी ने इसका कुछ परसेंट जागृत किया होगा तो वर्तमान जन्म में भी उसके सूक्ष्म नेत्र व अतींद्रिय क्षमता कार्य करेगी। इस जन्म साधना की तो इस जन्म में अतींद्रिय क्षमता विकसित होगी वह इस जन्म के साथ साथ अगले जन्म में लाभ देगी।

श्वेता चक्रवर्ती, डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहाँ गौ माता व वृषभ(बैल) पिता स्वरूप हैं, जो पालन पोषण व जीवन जीने में सहायक होते हैं।

 भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहाँ गौ माता व वृषभ(बैल) पिता स्वरूप हैं, जो पालन पोषण व जीवन जीने में सहायक होते हैं।


माता - अर्थात जीवन देने वाली और प्राणों की रक्षा करने वाली। जन्मदात्री माता के पश्चात बालक/"मनुष्य जिसका दूध पीकर जीवन का रक्षण करता है वह गाय होती है।


गौमाता पूरे मानवजाति को दूध पिलाती है, अपितु एक गाय से निकला गोबर, गौ मूत्र से बना खाद धरती को पोषण देता है व ऑर्गेनिक व पोषकदायी जहरमुक्त अन्न उपज में मदद करता है। गौ मूत्र कई रोगों की दवा है।


बैल जब ट्रैक्टर नहीं था तो कृषि व्यवसाय और वाहन में उपयोग में लिए जाते थे। अतः वृषभ को शंकर जी का वाहन मानते हुए पूजन भी होता था।

Tuesday 13 October 2020

जीवित रहने और जीवन जीने में बहुत फर्क होता है। जीवन जीने और जीवन को भार स्वरूप ढोने में फर्क होता है।

 जीवित रहने और जीवन जीने में बहुत फर्क होता है। जीवन जीने और जीवन को भार स्वरूप ढोने में फर्क होता है।

95% लोग तो जीवन भारस्वरूप ढोते है, कुछ 5% लोग ही वस्तुतः जीवन जीते हैं।

हमें जन्म लेने मात्र से जीना नहीं आता। जैसे गाड़ी खरीदने मात्र से गाड़ी चलाना नहीं आ जाता। जीवन जीना एक विज्ञान भी है और एक कला भी है। यह गाड़ी तभी बेहतरीन चलती है, जब इसके चारों पहियों में सन्तुलन हो।

पहला पहिया — सांसारिक जरूरतें (रोटी कपड़ा मकान व्यवसाय)

दूसरा पहिया - मानसिक जरुरतें (स्वाध्याय, शांति, सुकून व मनोरंजन की आवश्यकता)

तृतीय पहिया - आत्मिक जरुरतें(ध्यान, मन्त्र जप, आत्म ऊर्जा का उत्पादन, आत्मज्ञान)

चौथा पहिया - परमात्मा से जुड़ने की जरूरतें(ईश्वर भक्ति, पुण्य- परमार्थ, ईश्वर स्मरण)

जब होशपूर्वक हम जीवन का मूल्य समझते हैं, हर पल हर क्षण इस जीवन को महसूस करते हैं। संसार व अध्यात्म जगत में सन्तुलन रखते हैं, मन को नियंत्रित कर चलाना सीख जाते हैं। तभी वास्तव में हम जीवन जीते हैं।

श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

माता अपने गर्भस्थ शिशु या दुग्धपान कर रहे शिशु के, या बड़े बच्चे के शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य प्राप्त करने हेतु और उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए निम्नलिखित अनुष्ठान शारदीय नवरात्रि में करें-

 *माता अपने गर्भस्थ शिशु या दुग्धपान कर रहे शिशु के, या बड़े बच्चे के शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य प्राप्त करने हेतु और उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए निम्नलिखित अनुष्ठान शारदीय नवरात्रि में करें-*


दीर्घायु चिरंजीवी तेजस्वी ओजस्वी वर्चस्वी सन्तान के निर्माण के लिए 9 दिन तक 9 माला नित्य गायत्री मन्त्र जप व एक-एक माला निम्नलिखित दुर्गा मन्त्र की जप लें। बच्चे के जीवन के संकट दूर हो जाएंगे। कुल 12 माला जपनी होगी (9 + 1 + 1 + 1)


नौ माला नित्य गायत्री मंत्र जप - 


👉🏻 *ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योन: प्रचोदयात।* 👈🏻


एक माला मृत्युंजय सौभाग्य मन्त्र -

👉🏻 *ॐ जूं सः माम् सन्तान भाग्योदयं कुरु कुरु स: जूं ॐ* 👈🏻


*बच्चे के जीवन की सर्व बाधा निवारण हेतु और सुख समृद्धि हेतु नित्य एक माला मन्त्र* -


👉🏻 *सर्वा बाधा विनिर्मुक्तो धन-धान्य सुतान्वितः। मनुष्यो मत्प्रसादेन, भविष्यति न शंसयः॥* 👈🏻



एक माला महामृत्युंजय मंत्र की रोगमुक्ति और आरोग्यता लाभ हेतु -

👉🏻 *ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।*

*उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥*👈🏻


कुछ क्षण ईश्वर का ध्यान कीजिये, फिर भावना मन्त्र के एक एक वाक्यों को ध्यान से बोलिये व महसूस कीजिये। गर्भिणी गर्भ में हाथ रखकर बोलें, छोटे बच्चों की माताएं बच्चे को गोद मे रखकर बोलें। बड़े बच्चे की माताएं बच्चे को बग़ल में बैठाकर उसके सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोलें :-


👉🏻🌹🌹 *ध्यानस्थ होकर निम्नलिखित भावना मन्त्र एक बार बोलिये* 🌹🌹👈🏻

निम्नलिखित याद कर लें, आंखे बंद करके सोचते हुए मन ही मन दोहराने से अधिक लाभ मिलेगा।


"मेरी सन्तान का रक्त का रंग खूब लाल है, यह इसके उत्तम स्वास्थ्य का द्योतक है। इसमें अपूर्व ताजापन है। इसमें कोई विजातीय तत्व नहीं है, इसके रक्त में प्राण तत्व प्रवाहित हो रहा है। मेरी सन्तान स्वस्थ व सुडौल है, इसके सभी अंग पूर्ण विकसित हैं। और इसके शरीर के अणु अणु से जीवन रश्मियाँ नीली नीली रौशनी के रूप में निकल रही है। इसके नेत्रों से तेज और ओज निकल रहा है, जिससे इसकी तेजस्विता, मनस्विता, प्रखरता व सामर्थ्य प्रकाशित हो रहा है। इसके फेफड़े बलवान व स्वस्थ हैं, यह गहरी श्वांस ले रहा है, इसकी श्वांस से ब्रह्मांड में व्याप्त प्राणतत्व खीचा जा रहा है, यह इसे नित्य रोग मुक्त कर रहा है। मेरी सन्तान को किसी भी प्रकार का रोग नहीं है, यह सुंदर स्वास्थ्य को दिन प्रति दिन निखरता महसूस कर रहा है। यह इसकी प्रत्यक्ष अनुभूति है कि इसका अंग अंग मजबूत व प्राणवान हो रहा है। यह शक्तिशाली है। आरोग्य-रक्षिणी शक्ति इसके रक्त के अंदर प्रचुर मात्रा में मौजूद है।"


"यह मेरी सन्तान शुद्ध आत्मतेज को धारण कर रहा है, अपनी शक्ति व स्वास्थ्य की वृद्धि करना इसका परम् लक्ष्य है। यह आधिकारिक शक्ति प्राप्त करेगा, स्वस्थ बनेगा, ऊंचा उठेगा। अब यह जीवन की समस्त बाधाओं और कमज़ोरियों को परास्त कर देगा। इसके भीतर की चेतन व गुप्त शक्तियां जागृत हो उठी हैं। यह अपने जीवन में सफ़लता के मार्गपर अग्रसर होगा। यह अपनी समस्त समस्याओं के समाधान हेतु सक्षम बन गया है। यह विजेता बन गया है।"


"अब यह एक आत्मउर्जा से ओतप्रोत बलवान शक्ति पिंड बन गया है, यह अब एक ऊर्जा पुंज है। अब यह जीवन तत्वों का भंडार बन गया है। अब यह स्वस्थ, बलवान और प्रशन्न है।"


निम्नलिखित सङ्कल्प मन में पूर्ण विश्वास से दोहराईये:-


1- यह त्रिपदा गायत्री की सर्वशक्तिमान सन्तान है इसे मुझपर कृपा कर माता ने दिया है।

2- यह बुद्धिमान, ऐश्वर्यवान व बलवान परमात्मा का बुद्धिमान, ऐश्वर्यवान व बलवान है।

3- मैं भी गायत्री माता की गर्भनाल से जुड़ा/जुड़ी हूँ और माता गायत्री मेरा बहु पोषण कर रही हैं और मेरी सन्तान का भी पोषण कर रही हैं। मुझे और मेरी सन्तान को माता गायत्री बुद्धि, स्वास्थ्य, सौंदर्य व बल प्रदान कर रही है।

4- मैं वेदमाता का वेददूत पुत्र/पुत्री हूँ। मुझमें ज्ञान जग रहा/रही है। मैं अपनी सन्तान को भी वेददूत बनाउंगी।

5- जो गुण माता गायत्री के हैं वो समस्त गुण मुझमें है, और मेरी सन्तान में भी हैं।

👇🏻👇🏻

फिर गायत्रीमंत्र - *ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं। भर्गोदेवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।* बोलते हुए दोनों हाथ को आपस मे रगड़िये। हाथ की हथेलियों को आंखों के उपर रखिये धीरे धीरे आंख खोलकर हथेलियों को देखिए। फिर हाथ को पहले बच्चे के चेहरे पर ऐसे घुमाइए मानो प्राणतत्व की औषधीय क्रीम उसके चेहरे पर लगा रहे हो। यदि गर्भिणी हैं तो गर्भ में हाथ घुमाइए, फिर हाथ को समस्त शरीर मे ऐसे घुमाइए मानो क्रीम लगा रही हो।।


शांति मन्त्र नित्य मात्र तीन बार  बोलिये,  सबके स्वास्थ्य और आरोग्य के लिए दोहराइये:-


*सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः,*

*सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।*

*ॐ शांतिः शांतिः शांतिः*


सभी मुझे और मेरी सन्तान को मित्रवत देखें, और मैं और मेरी सन्तान सबको मित्रवत देखूँ। मैं और मेरी सन्तान जिसे देखें उसका कल्याण हो, जो हमें देखे तो हमारा भी कल्याण हो। हम सब सपरिवार सभी सुखी हों, सबका उज्ज्वल भविष्य हो।


मैं और मेरी सन्तान के मन में किसी के लिए कोई राग, द्वेष और वैर भाव नहीं है। मेरी और मेरे सन्तान के सभी मित्र हैं, मैं आत्मा हूँ और मेरी सन्तान भी एक आत्मा है, मैं सबका मित्र हूँ, मेरी सन्तान भी सबकी मित्र है।

ॐ शांति

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

गायत्री मंत्र 9 से अधिक भी जप सकते हैं। 24 हज़ार के अनुष्ठान हेतु 27 माला रोज जप सकते हैं, 9 दिन तक।


पूर्णाहुति यज्ञ या दीपयज्ञ के माध्यम से कर लें।

रोग से परेशान लोग शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य प्राप्त करने हेतु निम्नलिखित अनुष्ठान शारदीय नवरात्रि में करें

 *रोग से परेशान लोग शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य प्राप्त करने हेतु निम्नलिखित अनुष्ठान शारदीय नवरात्रि में करें-*


स्वास्थ्यलाभ के लिए 9 दिन तक 9 माला नित्य गायत्री मन्त्र जप व एक-एक माला निम्नलिखित दुर्गा मन्त्र की जप लें। समस्त स्वास्थ्य के संकट दूर हो जाएंगे। कुल 12 माला जपनी होगी (9 + 1 + 1 + 1)


नौ माला नित्य गायत्री मंत्र जप - 


👉🏻 *ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योन: प्रचोदयात।* 👈🏻


एक माला मृत्युंजय सौभाग्य मन्त्र -

👉🏻 *ॐ जूं सः माम् भाग्योदयं कुरु कुरु स: जूं ॐ* 👈🏻


*स्वास्थ्य मार्ग की सर्व बाधा निवारण हेतु नित्य एक माला मन्त्र* -


👉🏻 *सर्वा बाधा विनिर्मुक्तो धन-धान्य सुतान्वितः। मनुष्यो मत्प्रसादेन, भविष्यति न शंसयः॥* 👈🏻



एक माला महामृत्युंजय मंत्र की रोगमुक्ति हेतु - 

*ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।*

*उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥*


कुछ क्षण ईश्वर का ध्यान कीजिये, फिर भावना मन्त्र के एक एक वाक्यों को ध्यान से बोलिये व महसूस कीजिये।


👉🏻🌹🌹 *ध्यानस्थ होकर निम्नलिखित भावना मन्त्र एक बार बोलिये* 🌹🌹👈🏻

निम्नलिखित याद कर लें, आंखे बंद करके सोचते हुए मन ही मन दोहराने से अधिक लाभ मिलेगा।


"मेरे रक्त का रंग खूब लाल है, यह मेरे उत्तम स्वास्थ्य का द्योतक है। इसमें अपूर्व ताजापन है। इसमें कोई विजातीय तत्व नहीं है, इस रक्त में प्राण तत्व प्रवाहित हो रहा है। मैं स्वस्थ व सुडौल हूँ और मेरे शरीर के अणु अणु से जीवन रश्मियाँ नीली नीली रौशनी के रूप में निकल रही है। मेरे नेत्रों से तेज और ओज निकल रहा है, जिससे मेरी तेजस्विता, मनस्विता, प्रखरता व सामर्थ्य प्रकाशित हो रहा है। मेरे फेफड़े बलवान व स्वस्थ हैं, मैं गहरी श्वांस ले रहा हूँ, मेरी श्वांस से ब्रह्मांड में व्याप्त प्राणतत्व खीचा जा रहा है, यह मुझे नित्य रोग मुक्त कर रहा है। मुझे किसी भी प्रकार का रोग नहीं है, मैं मेरे स्वास्थ्य को दिन प्रति दिन निखरता महसूस कर रहा हूँ। यह मेरी प्रत्यक्ष अनुभूति है कि मेरा अंग अंग मजबूत व प्राणवान हो रहा है। मैं शक्तिशाली हूँ। आरोग्य-रक्षिणी शक्ति मेरे रक्त के अंदर प्रचुर मात्रा में मौजूद है।"


"मैं शुद्ध आत्मतेज को धारण कर रहा हूँ, अपनी शक्ति व स्वास्थ्य की वृद्धि करना मेरा परम् लक्ष्य है। मैं आधिकारिक शक्ति प्राप्त करूंगा, स्वस्थ बनूँगा, ऊंचा उठूँगा। अब मैं समस्त बीमारी और कमज़ोरियों को परास्त कर दूंगा। मेरे भीतर की चेतन व गुप्त शक्तियां जागृत हो उठी हैं। मैं अपने जीवन में सफ़लता के मार्गपर अग्रसर हूँ। मैं अपनी समस्त समस्याओं के समाधान हेतु सक्षम बन गया हूँ।"


"अब मैं एक बलवान शक्ति पिंड हूँ, एक ऊर्जा पुंज हूँ। अब मैं जीवन तत्वों का भंडार हूँ। अब मैं स्वस्थ, बलवान और प्रशन्न हूँ।"


निम्नलिखित सङ्कल्प मन में पूर्ण विश्वास से दोहराईये:-


1- मैं त्रिपदा गायत्री की सर्वशक्तिमान पुत्र/पुत्री हूँ।

2- मैं बुद्धिमान, ऐश्वर्यवान व बलवान परमात्मा का बुद्धिमान, ऐश्वर्यवान व बलवान पुत्र/पुत्री हूँ।

3- मैं गायत्री की गर्भनाल से जुड़ा/जुड़ी हूँ और माता गायत्री मेरा पोषण कर रही हैं। मुझे बुद्धि, स्वास्थ्य, सौंदर्य व बल प्रदान कर रही है।

4- मैं वेदमाता का वेददूत पुत्र/पुत्री हूँ। मुझमें ज्ञान जग रहा/रही है।

5- जो गुण माता के हैं वो समस्त गुण मुझमें है।

👇🏻👇🏻

फिर गायत्रीमंत्र - *ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं। भर्गोदेवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।* बोलते हुए दोनों हाथ को आपस मे रगड़िये। हाथ की हथेलियों को आंखों के उपर रखिये धीरे धीरे आंख खोलकर हथेलियों को देखिए। फिर हाथ को पहले चेहरे पर ऐसे घुमाइए मानो प्राणतत्व की औषधीय क्रीम चेहरे पर लगा रहे हो। फिर हाथ को समस्त शरीर मे घुमाइए।


शांति मन्त्र नित्य मात्र तीन बार  बोलिये,  सबके स्वास्थ्य और आरोग्य के लिए दोहराइये:-


*सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः,*

*सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।*

*ॐ शांतिः शांतिः शांतिः*


सभी मुझे मित्रवत देखें, और मैं सबको मित्रवत देखूँ। मैं जिसे देखूँ उसका कल्याण हो, जो मुझे देखे तो मेरा भी कल्याण हो। सभी सुखी हों, सबका उज्ज्वल भविष्य हो।


मेरे मन में किसी के लिए कोई राग, द्वेष और वैर भाव नहीं है। मेरे सभी मित्र हैं, मैं आत्मा हूँ, मैं सबका मित्र हूँ।

ॐ शांति

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

गायत्री मंत्र 9 से अधिक भी जप सकते हैं। 24 हज़ार के अनुष्ठान हेतु 27 माला रोज जप सकते हैं, 9 दिन तक।


पूर्णाहुति यज्ञ या दीपयज्ञ के माध्यम से कर लें।

विवाह के इच्छुक योग्य कन्या कलियुग में सतयुगी अच्छा पति प्राप्त करने हेतु निम्नलिखित अनुष्ठान शारदीय नवरात्रि में करें

 

*विवाह के इच्छुक योग्य कन्या कलियुग में सतयुगी अच्छा पति प्राप्त करने हेतु निम्नलिखित अनुष्ठान शारदीय नवरात्रि में करें-*

विवाह के लिए 9 दिन तक 9 माला नित्य गायत्री मन्त्र जप व एक-एक माला निम्नलिखित दुर्गा मन्त्र की जप लें। समस्त विवाह के संकट दूर हो जाएंगे। कुल 12 माला जपनी होगी (9 + 1 + 1 + 1)

नौ माला नित्य गायत्री मंत्र जप -

👉🏻 *ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योन: प्रचोदयात।* 👈🏻

एक माला मृत्युंजय सौभाग्य मन्त्र -
👉🏻 *ॐ जूं सः माम् भाग्योदयं कुरु कुरु स: जूं ॐ* 👈🏻

*विवाह व जीवन मार्ग की सर्व बाधा निवारण हेतु नित्य एक माला मन्त्र* -

👉🏻 *सर्वा बाधा विनिर्मुक्तो धन-धान्य सुतान्वितः। मनुष्यो मत्प्रसादेन, भविष्यति न शंसयः॥* 👈🏻

अच्छा पति प्राप्त करने हेतु नित्य एक माला निम्नलिखित मंन्त्र जप-
👉🏻 *हे गौरि शंकरार्धांगि यथा त्वं शंकरप्रिया ।*
*तथा मां कुरु कल्याणि कान्तकातां सुदुर्लभाम ॥* 👈🏻

भावार्थ - हे शिव की अर्द्धांगिनी गौरी माता, जिस प्रकार आप और शिव आदर्श गृहस्थ है। आप दोनों में प्रेम है। अपनी जैसी गृहस्थी हमारी भी बसाने की कृपा करें।हमारा भी विवाह करवा कर कल्याण करें।

गायत्री मंत्र 9 से अधिक भी जप सकते हैं। 24 हज़ार के अनुष्ठान हेतु 27 माला रोज जप सकते हैं, 9 दिन तक।

पूर्णाहुति यज्ञ या दीपयज्ञ के माध्यम से कर लें।

विवाह के इच्छुक योग्य युवक कलियुग में सतयुगी अच्छी पत्नी प्राप्त करने हेतु निम्नलिखित अनुष्ठान शारदीय नवरात्रि में करें-*

 *विवाह के इच्छुक योग्य युवक कलियुग में सतयुगी अच्छी पत्नी प्राप्त करने हेतु निम्नलिखित अनुष्ठान शारदीय नवरात्रि में करें-*


विवाह के लिए 9 दिन तक 9 माला नित्य गायत्री मन्त्र जप व एक-एक माला निम्नलिखित दुर्गा मन्त्र की जप लें। समस्त विवाह के संकट दूर हो जाएंगे। कुल 12 माला जपनी होगी (9 + 1 + 1 + 1)


नौ माला नित्य गायत्री मंत्र जप - 


👉🏻 *ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योन: प्रचोदयात।* 👈🏻


एक माला मृत्युंजय सौभाग्य मन्त्र -

👉🏻 *ॐ जूं सः माम् भाग्योदयं कुरु कुरु स: जूं ॐ* 👈🏻


*विवाह व जीवन मार्ग की सर्व बाधा निवारण हेतु नित्य एक माला मन्त्र* -


👉🏻 *सर्वा बाधा विनिर्मुक्तो धन-धान्य सुतान्वितः। मनुष्यो मत्प्रसादेन, भविष्यति न शंसयः॥* 👈🏻


*अच्छी पत्नी प्राप्ति हेतु एक माला नित्य - मन्त्र* 

👉🏻 *पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानु सारिणीम्। तारिणींदुर्गसंसार सागरस्य कुलोद्भवाम्॥* 👈🏻


*भावार्थ* - हे देवी, मुझे मेरी मन पसन्द मनोहर पत्‍‌नी प्रदान करो, जिसके साथ मेरा हृदय मिले, जो दुर्गम संसार सागर से तारने वाली हो, सुख-दुःख मेरे साथ रहे तथा उत्तम कुल की उत्तम स्वभाव वाली हो।


गायत्री मंत्र 9 से अधिक भी जप सकते हैं। 24 हज़ार के अनुष्ठान हेतु 27 माला रोज जप सकते हैं, 9 दिन तक।


पूर्णाहुति यज्ञ या दीपयज्ञ के माध्यम से कर लें।

Monday 12 October 2020

अहंकार #Ahankar

 @ अहंकार @


आहंकार एक खुला घाव है, जो मन में होता है। जब कोई प्रसंशा करता है तब जैसे घाव में खुजली करने जैसा सुख मिलता है। जब कोई अपमान करता है, तब जैसे घाव को किसी ने छू दिया हो वैसा दर्द करता है।

घाव को खुजलाने से घाव और बढ़ता है, घाव को सहलाने से वह ठीक भी नहीं होता।

अहंकार का घाव हमें उस विराट अस्तित्व(परब्रह्म) और सामूहिक चेतना(collective consciousness) से अलग कर देता है। ऐसी परिस्थिति में अहंकार के घाव से ग्रसित व्यक्ति आत्मीयता को न अनुभव कर सकता है और न ही विस्तारित कर पाता है। अलग थलग पड़ने लगता है।


दूसरे का मुँह है, वह अपने मुँह से प्रसंशा करे या अपमान इससे हमें क्या लेना देना? यह हम तभी सोच सकेंगे जब हम अहंकार मुक्त होंगे। मुँह उसका, शब्द उसके, मर्ज़ी उसकी जो करे सो करे। हमें तो प्रशंशा व अपमान दोनों को महत्त्व नहीं देना चाहिए। हमें तो ईश्वरीय अनुशासन में रहते हुए कर्तव्य पालन करना चाहिए। अहंकार का घाव बहुत दर्द देता है, जब यह नासूर बन जाता है तब रावण व दुर्योधन की तरह इंसान को अहंकारी बना देता है, ऐसी परिस्थिति में विधाता राम या कृष्ण रूप में समक्ष खड़े  हो तो भी उसे पहचान नहीं पाता। स्वयं का विनाश अहंकारी पुरुष करके ही दम लेता है।


💐श्वेता, DIYA

Saturday 10 October 2020

भगवान से शिकायत क्यों?

 भगवान से शिकायत क्यों?


व्यथित पुत्र तनावग्रस्त बैठा था, शाम की आरती माँ करके प्रज्ज्वलित दिया लेके उसकी की पवित्रता को पूरे कमरों में जा कर फैला रही थी। बेटे ने झल्लाते हुए कहा, क्या फ़ायदा आपकी पूजा का जो मुझे जॉब भी नहीं दिलवा सकती। कितने इंटरव्यू दिए किसी में भी सेलेक्ट नहीं हुआ...पुत्र बड़बड़ाता रहा। माता ने पूजन पूरा कर दो कप चाय बनाकर लाई, बेटे को चाय थमाते हुए बोली..


बेटे जानते हो, ईश्वर कभी पक्षपात नहीं करता। जंगल में नित्य शेर व हिरण दोनों जागते हैं। दोनों को रोज़ सुबह दौड़ना पड़ता है, शेर तेज़ दौड़ा तो उसको भोजन हेतु हिरण का शिकार मिलेगा। हिरण तेज दौड़ा तो उसकी जान बचेगी। हिरण के झुण्ड में सभी हिरण शेर को देखकर दौड़ते हैं, जो हिरण सभी हिरणों से पिछड़ता है वह शेर का भोजन बनता है।


तुम्हारी जॉब की तैयारी स्वयं जैसे हिरणों के झुंड से है, यदि अपने साथियों से तेज़ दौड़ोगे, उनसे बेहतर बनोगे, जिस फील्ड में जॉब लेने जा रहे हो उसके ज्ञान में उत्तम बनोगे तो जॉब अवश्य मिलेगी।


हड़प्पा युग/पाषाण युग की चिड़िया व वर्तमान युग की चिड़िया के घोसले व जीवन में कोई परिवर्तन न हुआ। हड़प्पा युग/पाषाण युग से वर्तमान कम्प्यूटर युग तक इंसान के जीवन में आमूल चूल परिवर्तन हो गया। यह किसने किया भगवान ने? नहीं न.. भगवान ने मनुष्य को बुद्धि दी, मनुष्य ने उस बुद्धि का प्रयोग करके अपना सांसारिक जीवनक्रम व सिस्टम बनाया। क्या भगवान ने तुम्हें बुद्धि नहीं दी? क्या पशुवत मूर्ख जड़बुद्धि बनाया है? यदि नहीं तो फिर भगवान से तुम्हारी नाराजगी उचित नहीं है।


भगवान से बुद्धि मांगो, कार्यकुशलता मांगो और तीक्ष्ण दृष्टि मांगों। धैर्यपूर्वक स्वयं को चुनौतियों के लिए तैयार करो। 

भगवान कृष्ण ने अर्जुन से यह नहीं कहा, कि तुम मेरा नाम जपो, तुम्हारे लिए युद्ध मैं लड़ लूंगा। अपितु उन्होंने कहा कि यह तुम्हारा युद्ध है, इसे तुम्हें ही लड़ना होगा। हाँ  मैं तुम्हारा सहयोग व मार्गदर्शन अवश्य करूँगा। सभी जानते हैं कि बिना कृष्ण की सहायता के अर्जुन युद्ध नहीं जीत सकता था। अजेय योद्धा भीष्म, कर्ण, द्रोणाचार्य, जयद्रथ इत्यादि बिना कृष्ण की सहायता के नहीं जीते जा सकते थे। लेकिन यह भी सत्य है कृष्ण ने महाभारत में हथियार नहीं उठाया था।


तुम भगवान की जप-ध्यान-पूजा करो या न करो इससे भगवान को कोई फर्क नहीं पड़ता। लेक़िन तुम्हारे जीवन में जप-ध्यान-पूजा करने से फ़र्क अवश्य पड़ेगा, न करने से नुकसान अवश्य होगा। 

कृष्ण को अर्जुन की जरूरत नहीं सृष्टि चलाने के लिए, लेकिन अर्जुन को जरूरत है कृष्ण की युद्ध जिताने के लिए...


बेटा, अर्जुन बनो व नित्य गायत्री मंत्र जप, ध्यान व श्रीमद्भागवत गीता का स्वाध्याय करो। स्वयं को श्रेष्ठ बनाने में जुट जाओ। जगतगुरु श्रीकृष्ण का आह्वाहन अपने बुद्धिरथ पर करो और उन्हें अपना मित्र व सारथी बना लो। कुछ समझे जो मैं समझा रही हूँ...


पुत्र समझ गया था, वह शांत स्वर में अपनी उद्दंडता के लिए व उच्च स्वर में माता के ऊपर झल्लाने के लिए क्षमा मांगने लगा। माता ने प्यार से पुत्र के सर पर हाथ फेरा और उसकी सद्बुद्धि के लिए माता गायत्री से मन ही मन प्रार्थना की।


💐श्वेता चक्रवर्ती,

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

उठो! अपनी मदद स्वयं करो।

 उठो! अपनी मदद स्वयं करो।


बैसाखी का सहारा मत ढूढों,

अपने मन को मजबूत करो,

उठो! अपने पैरों पर चलो।


दूसरों से मदद की अपेक्षा मत रखो,

स्वयं ही स्वयं की मदद करो,

उठो! तन मन धन से सच्चा प्रयत्न करो।


विवेकानंद विदेशी धरती पर,

अकेले जाने से नहीं डरे,

लोगों के अपमान व गलियों से,

वह बिल्कुल नहीं डिगे,

स्वयं ही स्वयं को सम्हालकर,

विदेशी धरती पर गुरु के सन्देश वाहक बने।


याद रखो, मंजिलें उन्हें मिलती है,

जो स्वयं पर भरोसा रखते हैं,

किसी भी परिस्थिति से मुकाबले के लिए,

स्वयं को तैयार करते हैं।


भगवान भी मदद उनकी करता है,

जो स्वयं पहले अपनी मदद करते हैं,

जो अनवरत स्वयं को,

ईश्वरीय अनुशासन में ढालते हैं।


अपनी सफ़लता -असफ़लता की,

जिम्मेदारी ख़ुद उठाओ,

स्वयं को ऊंचा उठाने के लिए,

स्वयं संकल्पित हो जाओ।


💐श्वेता चक्रवर्ती, DIYA

Friday 9 October 2020

एक गम्भीर चिंतन वाले योग्य व्यक्ति को गिफ्ट के लिए पुस्तक :-

 एक गम्भीर चिंतन वाले योग्य व्यक्ति को गिफ्ट के लिए पुस्तक :-


छोटी पुस्तक -

1- अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार

2- मैं क्या हूँ?

3- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा

4- प्रबंध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल

5- आद्य शक्ति गायत्री की सर्वसमर्थ साधना

6- भाव संवेदना की गंगोत्री

7- सतयुग की वापसी


बड़ी पुस्तक(वाङ्गमय) :-

1- साधना से सिद्धि भाग 1 एवं 2

2- प्रज्ञाउपनिषद


जो भाई बहन उपरोक्त इन पुस्तकों को 50% डिस्काउंट में रजिस्टर्ड डाक से मंगवाना चाहते हैं, वह हमें सम्पर्क कर सकते हैं।


इन पुस्तकों का कुल मूल्य 520 रुपए है। 50% छूट से 260 रुपए + 47 रुपए डाक खर्च कुल 307 रुपए में यह सेट मिलेगा (राउंड फिगर करके 300 ₹ में)। रजिस्टर्ड डाक से भेजा जाएगा।


श्वेता चक्रवर्ती

Email :- sweta.awgp@gmail.com

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...