Friday 30 November 2018

गायत्री मंत्र औऱ यज्ञ का ज्ञान विज्ञान, भारत विकास परिषद बुद्धजीवी संगोष्ठी, मेरठ, UP

नारी जागरण हेतु दिए युगऋषि के सूत्र, गौ गायत्री यज्ञ, कैथवाड़ी, मेरठ, UP - Part 1
दिनांक - 30 नवम्बर 2018, शुक्रवार, सुबह - 11:30
https://youtu.be/XLUoIeffgjw


नारी जागरण हेतु दिए युगऋषि के सूत्र, गौ गायत्री यज्ञ, कैथवाड़ी, मेरठ, UP - Part 2
https://youtu.be/p3HpNyFxr4M


गायत्री मंत्र औऱ यज्ञ का ज्ञान विज्ञान, भारत विकास परिषद बुद्धजीवी संगोष्ठी, मेरठ, UP
दिनांक - 30 नवम्बर 2018, शुक्रवार, शाम- 7:00
https://youtu.be/cgQ7UlOiMdM

Thursday 29 November 2018

प्रश्न - *क्या तर्क से धार्मिक आस्था सिद्ध की जा सकती है?*

प्रश्न - *क्या तर्क से धार्मिक आस्था सिद्ध की जा सकती है?*

उत्तर - आस्था का सम्बंध मान्यता और feelings है। आस्था में हम किसी धर्म पर श्रद्धा-विश्वास करके उसका अनुपालन करते है। यह एक प्रकार से ट्रेनिग करके मन को अभ्यस्त करने जैसा कुछ होता है।

एक बार शुरू में आस्था बनानी पड़ती है फिर बाद में तो अधिकतम समय यह यंत्रवत होता है।

इसे सिद्ध करने में तर्क कुछ ही अंश तक ही सहायक होता है।

उदाहरण - एक बालक की दृढ़ आस्था माता पर होती है, वह उससे प्रेम की फीलिंग से जुड़ा होता है। बालक गिर गया चोट लग गयी। सभी उसे चुप करवाये वो न हुआ। माता आई गोद मे उठाया, प्यार से पुचकारा और अपने पल्लू से घाव पोंछा। बच्चा चुप हो गया।

अब तर्क से यह कैसे सिद्ध करोगे और कौन सा विज्ञान रिसर्च उपयोग में लाओगे, कि माता की पुचकार में कौन सी मेडिसिन थी, माता के पल्लू में कौन सी दवा लगी थी? जो बच्चा चुप हो गया। क्या वो ही माता वाली साड़ी पड़ोसी स्त्री को पहनाकर वैसा ही नाटक करने को कहा जाता तो क्या बच्चा चुप होता? नहीं न...

मनुष्य जिस चीज़ पर आस्था-विश्वास कर लेता है, वैसा  ही उसके साथ घटने लगता है।

यह सिद्ध करने के लिए वैज्ञानिकों  ने एक प्रयोग किया, एक कैदी के समक्ष नाटक किया गया कि उसे जहरीले सर्प के दंश से उसे मृत्यु दंड दिया जाएगा। सर्प नकली था,  उसके मुंह मे लिखने वाली स्याही लगाई गई। हल्का सा उससे चुभाया गया। नीला पन पैर में आया, डॉक्टर झूठ मूठ का बोलने लगे जहर चढ़ रहा है, ब्लड प्रेशर डाउन हो रहा है। काउंट डाउन दो घण्टे का लगा दिया गया, उसके आसपास ऐसा माहौल बनाया गया कि उसकी आस्था इस बात पर दृढ़ हो गयी कि उसे सचमुच सर्प ने काट लिया है। वो युवक सचमुच मर गया, पोस्टमार्टम में जहर से मृत्यु निकला। वो जहर उसमें कहाँ से आया? क्या तर्क से सिद्ध कर सकते हो?

इसी तरह कोई श्रीराम पर आस्था रखता है कोई शिव पर कोई दुर्गा पर कोई अल्लाह पर कोई नानक पर कोई जीसस पर कोई किसी अन्य पर...जब वो आस्था रखता है...तो श्रद्धा विश्वास से वो उस चेतना से जुड़ता है...वह विश्वास उसका काम करने लगता है...उसे लगता है कि उसका भगवान सबसे शक्तिशाली है...इत्यादि इत्यादि... वास्तव में उसके अंदर का belief system उसे शक्ति प्रदान करता है।

एक ही भगवान सबको समान फल नहीं देता और न ही सबकी समान मनोकामना पूर्ति करता है। जिसकी जितनी दृढ़ आस्था भक्ति विश्वास उसका उतना शक्तिवान भगवान।ठीक वैसे ही जैसे एक ही बिजली कनेक्शन होने के बाबजूद सभी बल्ब एक जैसी रोशनी नहीं देते। जीरो वाट का बल्ब कम रौशनी और 100 वाट का ज्यादा और 40 वाट का मध्यम रौशनी देगा। इसी तरह भगवान के बिजली कनेक्शन और भक्त की भक्ति की शक्ति के वाट का सम्बंध है।

इसी बात को विस्तार से युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने अपनी पुस्तक - *अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार* में विस्तार से समझाया है। भगवान की शक्ति वास्तव में भक्त की भक्ति और आस्था तय करती है। जिसकी जितनी बड़ी भक्ति-आस्था उसका उतना ही शक्तिवान भगवान।

वास्तव में भगवान/शक्ति का नामकरण इंसान ने किया है, भगवान ने नहीं किया है। पानी को कोई जल बोलकर पिये या वाटर बोलकर या पानी बोलकर पिये, इससे पानी को कोई फ़र्क़ नही पड़ेगा और वो पीने वाले को समान लाभ देगा, प्यास बुझायेगा। इसी तरह उस परमशक्ति को भगवान राम बोलकर पूजो या अल्लाह बोलकर पूजो या जीसस बोलो या गुरु नानक बोलो, नाम बदलने से काम नही बदलेगा। जो आस्था विश्वास रखेगा उसे वो स्वयं के भीतर ही पायेगा, लाभान्वित होगा।

जिस प्रकार प्रेम, क्रोध, घृणा इत्यादि भावनाओ को देखने या तौलने का कोई मशीन हमारे पास नहीं, इसी तरह भक्ति-आस्था को भी देखा या तौला नहीं जा सकता। केवल महसूस किया जा सकता है, इसलिए इस पर कोई वैज्ञानिक तर्क द्वारा इसे सिद्ध करने की चेष्टा बच्चो के खिलौने की कार(car) जैसा होगा। जो कार का स्वरूप और थोड़ा बहुत आइडिया तो दे सकता है, लेकिन इस खिलौने की कार पर बैठकर कहीं पहुंच नहीं सकते। इसी तरह तर्क से धार्मिक आस्था का थोड़ा बहुत खिलौने की कार की तरह आइडिया ले सकते हो, लेकिन तर्क के वाहन से न ही आस्था पूरी तरह सिद्ध कर सकते हो और न ही अध्यात्म पा सकते हो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 28 November 2018

प्रश्न - *यदि भगवान है, और वो सर्वशक्तिमान है? फिर उसके रहते हुए भारत में करोड़ो हिंदुओं का बड़े स्तर पर नरसंघार क्योँ हुआ? आतंकवाद क्योँ बढ़ रहा है? अकाल मृत्यु क्योँ हो रही है? लोग बीमार क्यों हो रहे हैं? लोग नाना प्रकार के कष्ट क्यों भोग रहे हैं? कृपया अपने विचार दें...*

प्रश्न - *यदि भगवान है, और वो सर्वशक्तिमान है? फिर उसके रहते हुए भारत में करोड़ो हिंदुओं का बड़े स्तर पर नरसंघार क्योँ हुआ? आतंकवाद क्योँ बढ़ रहा है? अकाल मृत्यु क्योँ हो रही है? लोग बीमार क्यों हो रहे हैं? लोग नाना प्रकार के कष्ट क्यों भोग रहे हैं? कृपया अपने विचार दें...*

उत्तर - भाई यह प्रश्न प्रत्येक मनुष्य के अंदर है। कोई पूँछता है और कोई नहीं...
(पोस्ट लम्बी है क्योंकि प्रश्न गूढ़ है, उत्तर चाहते हो तो जरूर पढ़िये...)

भगवान बुद्ध कहते हैं- *संसार दुःखमय है। ब्रह्म सत्य और जगत मिथ्या।*

नानक जी कहते हैं- *नानक दुखिया सब संसारा है। नश्वर संसार, शाश्वत ब्रह्म।*

तुलसीदास जी कहते है- *कर्मप्रधान विश्व करि राखा, जो जस करई  सो तस फ़ल चाखा।*
दूसरी तरफ़ लिखते है:- *विधिकर लिखा को मेटन हारा*

शंकराचार्य कहते हैं- *संसार आनन्दस्वरूप है, ब्रह्म सत्य है तो उसकी अभिव्यक्ति संसार भी सत्य है।*

युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं- *मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है। और कर्म की गति गहन है। बोया काटा सिद्धांत है।*

कन्फ़्यूज़ हो गए न, यदि आनन्दस्वरूप सत्य है तो संसार दुःखमय कैसे हुआ? यदि कर्म प्रधान विश्व है तो विधि का लिखा को मेटनहारा बात कैसे सत्य है? यदि ब्रह्म सत्य है तो उसकी अभिव्यक्ति संसार मिथ्या कैसे हुआ? सूर्य सत्य है तो उसकी किरण भी सत्य हुई न? अगर हम भाग्य विधाता है, तो फिर परमात्मा क्या रोल हुआ भाई? हम भगवान को क्यों पूजे यदि हम स्वयं ही विधाता है? इत्यादि इत्यादि...Too much confusion...😭😭😭😭

मन चीखता चिल्ल्लाता है अरे कोई तो बताओ सत्य क्या है? सबके सत्य का वर्जन अलग क्यों है? एक हाल के बच्चे जिसके दिल मे छेद है उसने कौन सा कर्म गलत किया? किसी का युवा बेटा मर गया? किसी की बेटी को दहेज के लिए जिंदा जला दिया? गर्भ में बच्चा मर गया या जबरन भ्रूण हत्या? धर्म परिवर्तन के नाम पर करोङो बेगुनाहों का मर्डर, बत्तख, मुर्गी और बकरों के परिवार ने क्या कर्म बुरा किया जो रोज उनका मर्डर किया जाता है और उनकी लाशों को पकाकर खाया जाता है? इत्यादि इत्यादि...अगर यह सब भगवान की लीला है, हरि इच्छा से है.... तो इस लीला में इतना दर्द परेशानी दुःख क्योँ?😭😭😭😭 मैं भगवान की इतनी पूजा करती या करता हूँ फिर भी मेरे दुःखों परेशानियों का अंत नहीं हो रहा....मेरा तो भगवान पर से भरोसा उठ गया इत्यादि इत्यादि भाव अधिकतर लोगों के मन मे आते है..मेरे पापा या मम्मी बहुत पूजा करती थी फिर भी उनकी अकाल मृत्यु हो गयी...बहुत कुछ गुस्सा बहुत हृदय में भरा है??

📖📖📖📖📖📖

अब थोड़ा ठहरो! ज़रा सोचो! यदि तुम्हारे चार पुत्र होते, सभी विपरीत स्वभाव के होते, कोई अच्छा या कोई बुरा भी तो तुम उन सबकी किस्मत कैसी लिखते?

सबकी समान एक जैसी ही लिखते, भले ही कोई सन्तान आपको गाली ही क्यों न देती हो। सही कहा न...सहमत हो न...

लेकिन अब थोड़ा रोल चेंज करते है, बच्चो से प्यार आपका अब भी है, लेकिन आप जज की कुर्सी पर हो। आपके पुत्र के ऊपर मर्डर का अभियोग है, दलील सुनने के बाद उसे फांसी की सजा देनी पड़ी । अब क्या करोगे? दण्ड देना पड़ेगा है न...सहमत हो न मेरी बात से...

क्या जज की कुर्सी पर बैठा पिता पुत्र से प्रेम नहीं करता? क्या वो फाँसी की सज़ा जज रूपी पिता ने उसकी किस्मत में लिखी या उस पुत्र ने अपने कर्मों से फाँसी की सज़ा स्वयं के लिए लिखी?

कन्फ़्यूज़ हो गए? अब यहां मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है, बोया काटा सिद्धांत, कर्म प्रधान जग और पुत्र के लिए संसार दुःखमय सबकुछ सत्य है। विधि का लेखा वाली बात भी सत्य है कि क्योंकि सज़ा का एलान कर्मफ़ल के अनुसार जज ही करेगा।

अब पूजा पाठ या अध्यात्म की शरण क्यों ले?

पापकर्म के एवज़ में उतने ही अमाउंट का पुण्यकर्म अदा करते है तो सज़ा कम होगी कि नहीं? जज विभिन्न कर्मो के अनुसार विभिन्न टाइप की सज़ा देता है। अब मान लो आपके हाथों किसी की गाड़ी डेमेज हो गयी, जज आपका पिता है, जुर्माना भी जज लगाएगा। लेकिन आप के पास इतने पैसे नहीं कि जुर्माना भर सको। तब जज की कुर्सी में बैठा पिता सज़ा देगा। घर आने पर आपके प्रार्थना करने पर वो जुर्माने का पैसा आपको देगा। साथ ही वो पैसा आपको कमा के चुकाना भी पड़ेगा।

कर्म करोगे तो उसका परिणाम भुगतना पड़ेगा। जज पिता प्यार का साग़र होने के बावजूद न्यायकारी होने के कारण दण्ड भी देगा।

कुछ शरीर और जीवों का शरीर केवल कर्मफ़ल भुगतने के लिए मिला है, यहां लिमिटेड जिंदगी का टाइप सेट है। जैसे पशु पक्षी कीट पतंगे, जलचर-नभचर इत्यादि। लेकिन कुछ मनुष्य शरीर कर्मफ़ल भुगतने के साथ साथ नए कर्मफ़ल भी क्रिएट कर सकता है और कुछ मनुष्य शरीर केवल कर्मफ़ल भुगत के विदा हो जाते है।

मनुष्य की तीन उम्र है- एक शरीर की उम्र, एक मानसिकता/बुद्धि की परिपक्वता की उम्र(कोई पचास वर्ष का व्यक्ति बालकबुद्धि हो सकता है, कोई 10 वर्ष का बालक 50 वर्षीय मानसिकता/बुद्धि परिपक्वता रख सकता है) और तीसरी आत्मा की उम्र।

अतः यदि बालक शरीर है और कष्ट उतपन्न है। तो भी आत्मा की उम्र नहीं घटती और न बढ़ती है।

नरसंघार धर्म परिवर्तन के नाम पर जो कर रहे है या जिनका हो रहा है, आपकी दृष्टि में हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई है। लेकिन भगवान की दृष्टि में केवल मर्डर और कुकृत्य है। उतना ही जघन्य अपराध है जितना मुर्गी या बकरे का कत्ल। आत्मा के लेवल पर दोनों समान है। धर्म का बंटवारा और नामकरण इंसान ने किया है भगवान ने नहीं।

अब आप बोलोगे फिर तो शेर को भी शिकार का पाप लगेगा। अगेन आप स्थूल दृष्टि से न्याय को देख रहे हो। उसे भोग शरीर मिला है वो अन्न या घास नहीं खा सकता। वो मांस पकाकर नहीं खाता। बीमार या वृद्ध होने पर कोई सेवा नहीं मिलेगी, भूखे महीनों सड़ सड़कर वृद्ध जीवित शेर मरता है। मनुष्य से उसकी तुलना मत करो, जिसे बुद्धि मिली है, भोग के साथ कर्म शरीर मिला है अनन्त संभावना के साथ मिला है।

यदि खाने को कुछ नहीं,  मौत समक्ष हो तो पशुवत शिकार कर खाने में पाप नहीं लगेगा। क्योंकि कर्म(action) पर दण्ड नहीं मिलता, किस भावना(intention) से कर्म किया गया उसपर फल मिलेगा।

अच्छा यह बताओ कि तुम क्या हो? शरीर या आत्मा? यदि स्वयं को शरीर समझते हो तो संसार दुःखमय है, यदि स्वयं को आत्मा समझते हो तो संसार आनन्दस्वरूप है। क्योंकि आत्मा रूप में तुम उस परमात्मा का ही तो अंश हो। जिस प्रकार पुत्र पिता का अंश हुआ।

अब चलो किसी के मरने पर  दुःख का एनालिसिस करते है? एक वृद्ध पिता 5 साल से बिस्तर पर पड़ा था, जिसकी कोई कमाई नही थी, उसकी मृत्यु हुई। सुखी होंगे या दुःखी?

एक बच्चा जो जन्मा था वो मर गया, अब सुखी होंगे या दुःखी?

एक जीवनसाथी जिससे नफरत करते थे, शक्ल देखना पसंद नहीं करते थे, वो मर गया/गयी, तो सुखी होंगे या दुःखी?

एक जीवनसाथी जिससे बेइंतहा प्रेम करते थे, शक्ल देखे बिना चैन नहीं था, वो मर गया/गयी, तो सुखी होंगे या दुःखी?

एक आवारा युवा लड़का जो माता-बाप पर बोझ था, बदनामी का कारण था,  निर्लज्ज था। उसकी मौत हो गयी, माता पिता को कितना दुःख होगा?

एक आज्ञा कारी सुशील युवा लड़का जो माता-बाप की सेवा करता था, गर्व का कारण था,  सज्जनपुरुष था। उसकी मौत हो गयी, माता पिता को कितना दुःख होगा?

 इंसान आये दिन कितने एक्सिडेंट देखता है, कितने क्षण दुःखी होता है?

वास्तव में इंसान स्वार्थी होता है, केवल अपनों की मौत पर शोक ग्रस्त दुःखी होता है। अपनों में भी उसके लिए ज्यादा दुःखी होता है जिसको वो मुहब्बत/प्रेम करता है। जिस पर उसकी उम्मीदें टिकी हो या जिसने उसका कभी भला किया हो, केवल उसी के लिए आँशु बहाता है। एक ही घटना पर समान दुःख नहीं होता, हृदय की भावना दुःख का अनुपात तय करती है।

लेकिन परमात्मा उस मुर्गे बकरी के दर्द और मौत में भी उतना ही दुःखी होता है जितना एक इंसान की मौत और दर्द में। क्योंकि तुम्हारी दृष्टि शरीर तक है, तुम शरीर रूपी वस्त्र से पहचान करते हो, परमात्मा तो आत्मा को देखता है। आत्मा तो इंसान के शरीर मे हो या मुर्गी या बकरे के शरीर में निज कर्मफ़ल ही भुगत रही है। न्यायाधीश परमात्मा जो सभी बच्चो से प्यार करता है, उसे न्याय करना पड़ता है। यह न्याय व्यवस्था आत्मा पर आधारित है।

शरीर को सबकुछ समझने वाले और स्वयं के आत्मस्वरूप होने से अंजान, स्वयं ही भाग्य के विधाता है। यह जो नहीं मानता या जानता, उसके लिए ही यह संसार दुःखमय है। जो स्वयं को आत्मस्वरूप जानकर निज के विधाता स्वरूप को पहचान कर आत्म उत्थान में अग्रसर है। उसके लिए यह संसार आनन्दस्वरूप है। वही कण कण में परमात्मा को अनुभूत कर सकेगा।

पुस्तक -
📖 - गहना कर्मणो गतिः (कर्मफ़ल का सिद्धांत) जरूर पढ़ें।

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
(हमें भगवान ने अपना वकील नहीं बनाया है, और न ही हम भगवान की पैरवी कर रहे है। हम बस तथ्य तर्क और प्रमाण से पूंछे गए प्रश्नों का जवाब देते है, जो सत्य है वो समक्ष रखते है।)

प्रश्न - *बहनों को कौन से साहित्य गिफ़्ट करने के लिए दूँ?*

प्रश्न - *बहनों को कौन से साहित्य गिफ़्ट करने के लिए दूँ?*

उत्तर:- निम्नलिखित साहित्य नारी जागरण में सहायक है और प्रत्येक स्त्री के लिए उपयोगी है।

1-नारी जागरण का उद्देश्य
2-नारी श्रृंगारिकता नहीं, पवित्रता है;
3-नारी उत्थान की समस्या और समाधान ;
4-प्रबुद्ध नारियाँ आगे आए.
5-नारी जागरण की आवश्यकता
6- नारी की महानता
7- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
8- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
9- हारिये न हिम्मत
10- जीवन जीने की कला
11- निराशा को पास न फटकने दें
12- शक्ति संचय के पथपर
13- मानसिक संतुलन
14- भाव सम्वेदना की गंगोत्री
15- वीरांगनाओं की जीवनियां।

प्रश्न - *युवाओं को कौन से साहित्य गिफ्ट करूँ?*

प्रश्न - *युवाओं को कौन से साहित्य गिफ्ट करूँ?*

उत्तर - निम्नलिखित साहित्य युवा जागरण और प्रत्येक युवा के लिए उपयोगी हैं।

1- महापुरुषों और वीरांगनाओं की जीवनियां
2- निराशा को पास न फटकने दें
3- मानसिक संतुलन
4- हारिये न हिम्मत
5- शक्ति संचय के पथ पर
6- शक्तिवान बनिये
7- हम अशक्त क्यो? शशक्त बने
8- आगे बढ़ने की तैयारी
9- सफल जीवन की दिशा धारा
10 - मित्रभाव बढ़ाने की कला
11- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
12- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
13- सफलता के सात सूत्र साधन
14- दृष्टिकोण ठीक रखिये
15- वर्तमान युवा वर्ग और उनकी चुनौतियां

प्रश्न - *रिश्तेदार के विवाह में कौन से 7 छोटी पुस्तकों का सेट गिफ्ट करूँ?*

प्रश्न - *रिश्तेदार के विवाह में कौन से 7 छोटी पुस्तकों का सेट गिफ्ट करूँ?*

उत्तर - निम्नलिखित साहित्य विवाह में व्याप्त कुरुति उन्मूलन और आदर्श गृहस्थ के महत्तव को समझाने में सहायक है:-

1- विवाह यज्ञ है इसमें दुष्टता और भ्रष्टता न जोड़ें
2- गृहस्थ एक तपोवन
3- मित्रभाव बढ़ाने की कला
4- विवाहोन्माद के लिए बुद्धि बेच क्यो दी जाय?
5- गृहस्थ में प्रवेश से पूर्व उसकी जिम्मेदारी समझें
6- प्रेमोपहार
7- जीवन जीने की कला

रोगमुक्त, प्रदूषण मुक्त, भारत का आधार यज्ञ परम्परा

*रोगमुक्त, प्रदूषण मुक्त, भारत का आधार यज्ञ परम्परा*

प्रदूषण और रोगों से दुनियाँ परेशान है। जिनके समाधान यज्ञ के रूप में विद्यमान है।

Spiritual researcher & scientist जिन्हें हम सनातन धर्म मे ऋषि कहते है, उन्होंने यज्ञ की परंपरा शुरू की। याज्ञवल्क्य ऋषि ने यज्ञ पर कई प्रकार के रिसर्च किये, और इसके multipurpose लाभ को देखते हुए इसे भारतीय संस्कृति के उत्सवों से जोड़ दिया।

यज्ञ द्वारा मुख्यतः चार प्रकार के प्रदूषण को कम करने और इनके शोधन करने के साथ स्वास्थ्य प्रदान करने में मदद मिलती हैं:-

👉🏼वैचारिक चिंतन प्रदूषण,
👉🏼वायु प्रदूषण,
👉🏼जल प्रदूषण,
👉🏼ज़मीन प्रदूषण

यज्ञ के लाभ के कुछ मुख्य बिंदु जिन पर रिसर्च पेपर देवसंस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार, उत्तराखंड की वेबसाइट - http://ijyr.dsvv.ac.in/index.php/ijyr पर मिल जाएगी। जिसे आधुनिक यज्ञ रिसर्चर और यज्ञ पर पीएचडी करने वाले रिसर्चर ने अपने अपने रिसर्च पब्लिश किया है।  ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान, शान्तिकुंज हरिद्वार और देव संस्कृति विश्वविद्यालय में लगातार यज्ञ पर रिसर्च हो रहे हैं। डॉक्टर ममता सक्सेना, डॉक्टर वंदना, डॉक्टर रुचि, डॉक्टर विरल और उनकी यग्योपैथी रिसर्च टीम युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी से प्रेरणा लेकर श्रध्देय डॉक्टर प्रणव पण्ड्या के मार्गदर्शन में लगातार इस पर रिसर्च कर रही है। कुछ महत्त्वपूर्ण लाभ जिन पर रिसर्च सफ़लता पूर्वक किया गया वो इस प्रकार है:-

1- वैचारिक प्रदूषण को दूर करने में मंन्त्र की सकारात्मक तरंगे और औषधीय धूम्र सीधे श्वांस द्वारा मष्तिष्क के कोषों में पहुंचकर उनका शोधन करता है। नकारात्मकता हटा कर स्वास्थ्य और पुष्टि-बल प्रदान करता है। मानसिक बीमारियों में अत्यंत असरकारी है। शारिरिक बीमारियों की जड़ पेट और मन होता है। यग्योपैथी से विभिन्न रोगों का उपचार सफ़लता पूर्वक किया जा रहा है।

2- हवन सामग्री को औषधियों के मिश्रण के साथ साथ सुगंधित द्रव्य और पौष्टिक ड्राई फ्रूट , गाय का घी मिलाकर तैयार किया जाता है। जो मंन्त्र की सकारात्मक ध्वनि तरंगों के साथ औषधीय धूम्र में मिलकर जल- थल-नभ का पॉल्यूशन दूर करता है, रोगाणु नष्ट करता है और स्वास्थ्य प्रदान करता है। डॉक्टर ममता सक्सेना और उनकी टीम ने दिल्ली पॉल्यूशन बोर्ड के साथ मिलकर कई रिसर्च यज्ञ के प्रभाव द्वारा प्रदूषण निवारण और रोगाणु नष्ट करने पर किये जो अत्यधिक सफल रहे।

3- इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन के दुष्प्रभाव तो अनेक है, लेकिन इलेक्ट्रॉनिकस का प्रयोग बंद कर पाना आज के युग मे संभव नहीं। डॉक्टर ममता सक्सेना और उनकी टीम ने यज्ञ पर रिसर्च कर पाया कि यज्ञ का औषधीय धूम्र परमाणु से भी छोटे सेंटिव्यास का होने के कारण और अग्नि(किरण), वायु(गैस) , ध्वनि(मंन्त्र सन्तरण) की रेडियो सी तीव्रता के कारण वो अपने प्रभाव से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन दूर करता है। उपरोक्त वेबसाइट में रिसर्च पेपर उपलब्ध है।

4- दिल्ली जैसे अनेक शहर वायु प्रदूषण की चपेट में है, PM2.5 और PM10 खतरनाक उच्चतम पैमाने पर है। डॉक्टर ममता सक्सेना और उनकी टीम ने इनडोर एयर प्योरिफिकेशन हेतु यज्ञ किया,  PM2.5 और PM10 को अत्यंत कम करने में सफलता पाई। जिसके रिसर्च पेपर भी वेबसाइट पर उपलब्ध है।

5- मौसम परिवर्तन/ऋतु परिवर्तन के समय किये सामूहिक यज्ञ रोग प्रतिरोधक क्षमता शरीर मे बढ़ाते है, एक तरह से मेडिसिनल टीके का कार्य करते जो इतनी इम्यूनिटी शरीर मे बढ़ा देता है कि मौसम परिवर्तन के दौरान होने वाली सम्भावित बीमारियों वायरल फीवर, डेंगू, चिकगुनिया, मौसमी बुखार से रक्षण कर देता है।

6- यज्ञ का धूम्र और मंन्त्र तरंग से यौगिक/आध्यात्मिक खेती से फसलों की गुणवत्ता बढ़ी हुई पाई गई। साथ ही वो फसल रोगमुक्त थे, उनके फल की सेल्फ लाइफ तोड़ने के बाद भी अधिक दिनों तक पाई गई।

7-  डॉक्टर गायत्री शर्मा, डॉक्टर अमिता सक्सेना, डॉक्टर संगीता सारस्वत इत्यादि डॉक्टरों ने युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य की लिखी पुस्तक पुंसवन सँस्कार(गर्भ सँस्कार) और हमारी भावी पीढ़ी और उसका नवनिर्माण से प्रेरणा लेकर गर्भ विज्ञान पर विभिन्न रिसर्च किया, और पाया कि विचारशक्ति विज्ञान के विधिवत प्रयोग से, विभिन्न संस्कारों से हम गर्भ के डीएनए में भी सकारात्मकता ला सकते है, आनुवांशिक रोगों को नई पीढ़ी में ट्रांसफर होने से बचाव कर सकते है।  जिस तरह परमाणु विष्फोट का विषैला विकिरण अत्यंत सूक्ष्म होने के कारण गर्भ के डीएनए को पीढ़ी दर पीढ़ी प्रभावित करता है, वैसे ही विचार तरंग को यज्ञ द्वारा औषधीय यज्ञ से सूक्ष्मीकृत पुष्टिकारक बलवर्धक प्राण पर्जन्य युक्त धूम्र के माध्यम से अनुवांशिक रोगोपचार और वांछित मानसोपचार भी किया जा सकता है। याद रखिये केवल अग्नि(किरण), वायु(गैस) और रेडियो सी तीव्र गति(मंन्त्र सन्तरण) के साथ परमाणु से भी अति सूक्ष्म कण की ही पहुंच जीन को प्रभावित कर सकती है। जो या तो विधिवत विचारशक्ति के सम्प्रेषण या यज्ञ के द्वारा ही सम्भव है। विचार अतिसूक्ष्म होने के कारण उनकी पहुंच भी जीन(gene) तक है और यज्ञीय पुष्टि वर्धक धूम्र भी अति सूक्ष्म होने के कारण उनकी भी पहुंच जीन(gene) तक है।
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 विभिन्न रोगों के उपचार में यज्ञ किस प्रकार सहायता करता है, प्रदूषण को दूर करके स्वास्थ्य सम्वर्धन किस प्रकार करता है, इसे विस्तार से समझने के लिए युगऋषि लिखित निम्नलिखित पुस्तक पढ़े:-

👉🏼 यज्ञ का ज्ञान विज्ञान
👉🏼 यज्ञ एक समग्र उपचार
👉🏼 जीवेम शरद: जीवेम शतः

ऋषि बहुत बुद्धिमान और कुशाग्र बुद्धि थे, अतः सबको एक साथ यज्ञ के लिए एक दिन प्रेरित कर बड़े यज्ञ के प्रभाव को प्राप्त करने के लिए यज्ञ को व्रत-उत्सव में अनिवार्य कर दिया। इससे राज्य सरकार को एक रुपये खर्चा नहीं करना पड़ता था, और सामूहिक स्वास्थ्य सम्वर्धन हो जाता था।

पाक कला विशेषज्ञ और गृहणी जानती है, कि भोजन में स्वाद सही अनुपात में तेल मसाले नमक और पकाने पर आता है। इसी तरह यज्ञ का लाभ भी सही अनुपात में औषधी मिश्रण से बनी हवन सामग्री, सही समिधा(लकड़ी), सही अनुपात में घी, सही अनुपात में सुगंधित द्रव्य मिश्रण से, रोगों के अनुसार मंन्त्र चयन से साइंटिफिक तरीक़े से यज्ञ करने पर अपेक्षित लाभ मिलता है। यदि किसी को खाना न बनाना आये तो भोजन विज्ञान को दोष नहीं दे सकते, उसी तरह यदि किसी को यज्ञ करना न आये तो इसके लिए यज्ञ विज्ञान को दोष नहीं दिया जा सकता है।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 27 November 2018

प्रश्न - *नारी जागरण इतने सारे संगठनों द्वारा किया जा रहा है, हम भी नारी जागरण हेतु गायत्री परिवार से जुड़कर नारी जागरण के लिए कार्य करना चाहते है। मार्गदर्शन करें।*

प्रश्न - *नारी जागरण इतने सारे संगठनों द्वारा किया जा रहा है, हम भी नारी जागरण हेतु गायत्री परिवार से जुड़कर नारी जागरण के लिए कार्य करना चाहते है। मार्गदर्शन करें।*

उत्तर - आत्मीय बहन, आपके शुभ श्रेष्ठ सङ्कल्प के लिए शुभकामनाएं।

आजकल कई संगठन नारी जागरण पर ऐसे कार्य कर रहे है, मानो वृक्ष की पत्तियों को जल देकर, उसकी जड़ में जल दिए बिना उसे हरा भरा रखना चाह रहे हो। खाना पूर्ति के लिए कुछ सिलाई कढ़ाई सेंटर, कुछ जागरूकता रैली, कुछ धरना प्रदर्शन कन्याभ्रूण हत्या, दहेज़ प्रथा इत्यादि पर। यह भी जरूरी है लेकिन यह अधूरा उपक्रम है। भारत में करोड़ों महिलाओं के लिए स्वरोजगार खोल कर देना संभव नहीं, दूसरा मानसिक ग़ुलामी की जंजीर काटे बिना, ख़र्चीली शादी और दहेज प्रथा रोके बिना, सामाजिक सुरक्षा और नैतिक शिक्षा दिए बिना कन्या भ्रूण हत्या रोकना सम्भव नहीं है। भिक्षा देने से भिक्षा वृत्ति नहीं रुकती, कमाने योग्य बनाने से भिक्षा वृत्ति मिटेगी।

आज मनुष्य एक बेहोशी में जी रहा है और यंत्रवत कठपुतली बनकर जी रहा है, स्वयं पर नियंत्रण खोता जा रहा है। एक प्रकार का मानसिक ग़ुलाम बनकर जी रहा है।

अतः यदि आप समस्या की जड़ समझकर उस पर कार्य करने की इच्छुक हैं, स्त्रियों को आत्मसम्मान के साथ जीने का हुनर सिखाइये,  निम्नलिखित तरीक़े अपनाइये:-

👉🏼👧🏻- चिकित्सक बनने के लिए जिस तरह चिकित्सा शास्त्र पढ़ना पड़ता है, उसी तरह नारी जागरण पर कार्य करने हेतु उससे सम्बन्धित निम्नलिखित युग साहित्य इत्यादि पढ़कर समझना पड़ेगा।

1-नारी की महानता
2-नारी श्रृंगारिकता नहीं, पवित्रता है;
3-नारी उत्थान की समस्या और समाधान ;
4-प्रबुद्ध नारियाँ आगे आए.
5-नारी जागरण की आवश्यकता

👉🏼👧🏻- आप स्वयं एक नारी हैं, और आसपास विभिन्न रिश्तेदार रूप में नारियों से घिरी हुई है। अतः स्वयं और सभी के जीवन को गहराई से देखिए, समस्या और समाधान पर चिंतन कीजिये।

👉🏼👧🏻 नारी जागरण की प्रथम सीढ़ी है, आत्मविश्वास जगाना। इसके लिए स्वयं आत्मविश्वास से भरपूर बनना पड़ेगा। दूसरे के बोध को जगाने के लिए स्वयं के बोध को जगाना पड़ेगा। जलता हुआ दिया ही दूसरे को रौशन कर सकेगा। निम्नलिखित पुस्तको को स्वयं पढ़िये और नारियों का भय दूर कीजिये उनमें आत्मविश्वास जगाइए।
👉🏼👧🏻 *वीर भोग्या वसुंधरा अर्थात वीरों के लिए ही धरती के सुख हैं*, *पराधीन सुख सपनेहुँ नाहीं अर्थात मानसिक गुलाम और पराधीन व्यक्ति को सुख कभी नहीं मिलता, वो तो सपने में भी दुःखी ही रहता है* यह हमेशा याद रखना, वीरता जगाने के लिए और मानसिक साहस उपजाने के लिए युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखित निम्नलिखित पुस्तक पढ़ो:-

1- महापुरुषों और वीरांगनाओं की जीवनियां
2- निराशा को पास न फटकने दें
3- मानसिक संतुलन
4- हारिये न हिम्मत
5- शक्ति संचय के पथ पर
6- शक्तिवान बनिये
7- हम अशक्त क्यो? शशक्त बने
8- आगे बढ़ने की तैयारी
9- सफल जीवन की दिशा धारा
10 - मित्रभाव बढ़ाने की कला
11- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
12- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
13- सफलता के सात सूत्र साधन
14- दृष्टिकोण ठीक रखिये
15- मैं क्या हूँ

👉🏼👧🏻 स्त्री के बिना संसार मे न सौंदर्य होगा और न ही सृष्टि बचेगी। *बिन घरनी घर भूत का डेरा अर्थात स्त्री से ही घर घर होता है।* स्त्रियां कभी बेरोजगार नहीं होती, घर का कार्य वो जो करती है यदि उतना ही कार्य किसी अन्य के घर करें तो लगभग दस हज़ार से बीस हज़ार बड़े प्यार से कमा सकती है। करोड़ो रूपये की तो केवल रोटियां ही स्त्री उम्र भर में बेल डालती है। अतः केवल बाहर जाकर कमाने को ही कमाई नहीं कहते, जो घर मे रहकर कार्य करती है वो भी कमाई है।

👉🏼👧🏻 यदि स्त्री घर ख़र्च में हिस्सा बटाती है तो पुरुष को घर के कार्य मे हिस्सा बटाना चाहिए। इसके लिए स्त्री को कर्तव्य के साथ अधिकारों के लिए भी सचेत रहना चाहिए।

👉🏼👧🏻 स्त्री स्वयंमेव पुष्प की तरह सुंदर होती है। कोई भी प्रकृति के अन्य जीव अप्राकृतिक मेकअप नहीं करते, मूल रूप में ही सुंदर होते है। अतः स्त्रियों को केवल प्राकृतिक रूप से सुंदर और वस्त्राभूषण धारण करना चाहिए। अर्धनग्न फैशन पाश्चात्य का अपनाना केवल मूर्खता है, यह  भाँडो और वेश्याओं का कार्य होता है।

👉🏼👧🏻 फ़िल्म सीरियल एक वायरस है जो समाज को रुग्ण और अपराधी बना रहे है। घर बैठे अपराध, शराब और आतंकवाद की ट्रेनिंग दे रहे हैं। अतः इससे जितना दूर रहे उतना अच्छा। यह सीरियल वास्तव में चेतना का मानसिकता का सीरियल कीलर है, यह गुलाम बना देता है।

👉🏼👧🏻 स्त्रियों का अपने क्षेत्र में संगठन बनाइये, उस लड़की को कोई ससुराल वाले दहेज के लिए न जला नहीं सकते और न ही प्रताड़ित कर सकते है जो सामाजिक संगठन से जुड़ी हो और उस शहर के भाई बहन उसका हाल चाल लेने वाले हो। अतः जिस शहर में लड़की का विवाह करें उसकी ससुराल में उसी शहर के शक्तिपीठ के गायत्री परिजन और डिवाइन इंडिया यूथ के सदस्य जरूर लेके जाएं। कम से कम महीने में बेटी दामाद को नजदीकी शक्तिपीठ में जाने को कहें।

👉🏼👧🏻 सामाजिक उत्थान के संगठन डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन के साथ ग्रुप फोटो लड़कियाँ खिंचवा करके अपने फेसबुक, शोशल मीडिया, व्हाट्सएप डीपी में लगाएं। अपने शहर की सामाजिक गतिविधियों में हिस्सा लें, ऐसी बेटियों को कोई लड़का छेड़ने की हिम्मत नहीं करेगा।

👉🏼👧🏻 लड़कियों को उनके कर्तव्यों के साथ साथ कानूनी अधिकारों के प्रशिक्षण का केंद्र चलवाईये।

👉🏼👧🏻 स्वयं सुरक्षा हेतु प्रशिक्षण की व्यवस्था कीजिये। जुडो कराते इत्यादि लड़कियां सेल्फ डिफेंस के लिए सीख सकें।

👉🏼👧🏻 योग अभ्यास लड़कियों को करवाइये जिससे उनके तन और मन दोनों मजबूत बने।

👉🏼👧🏻 अध्यात्म की शक्ति से नेत्रों में तेज और बुद्धि कौशल बढ़ता है। प्राचीन ऋषियों, आधुनिक विज्ञान और आल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन(AIMS) ने यह सिद्ध कर दिया है कि गायत्री मंत्र जप से बौद्धिक क्षमता बढ़ती है और ध्यान से मानसिक कौशल बढ़ता है। अतः गायत्री जप और उगते सूर्य के ध्यान सभी महिलाओं से करवाइये।

👉🏼👧🏻 भावसम्वेदना और सेवा वो सीमेंट है जो घर के समस्त सदस्य रूपी ईंट को जोड़कर घर बनाती है।

निम्नलिखित पुस्तक का स्वाध्याय और अभ्यास करवाइये:-

1- भावसम्वेदना की गंगोत्री
2- मित्रभाव बढ़ाने की कला
3- गृहस्थ एक तपोवन

👉🏼👧🏻 स्त्री के बिना न संसार है और न ही पुरुष के बिना यह संसार का अस्तित्व है। दोनों के दूसरे के पूरक है। अतः यह किसी को अधिकार नहीं कि एक दूसरे को गुलाम बनाये। उत्तम यह है कि एक दूसरे का सम्मान करते हुए प्यार-सहकार से जीवन बिताएं, इस हेतु अवेयरनेस स्कूल कॉलेज में चलाएं।

👉🏼👧🏻 स्त्री ही नौ महीने गर्भ लेकर बालक जन्म दे सकती है, यह ईश्वरीय विधान है, जिसे न कानून बदल सकता है और न ही विज्ञान। अतः यह महान उत्तरदायित्व स्त्री के कंधों पर है। इसलिए सुसन्तति और श्रेष्ठ नागरिक के जन्म और पालन को करने वाली स्त्रियों को गर्भ सँस्कार और बाल संस्कारशाला से जोड़िए।

👉🏼👧🏻 सभी स्त्रियां कुछ न कुछ विशेष गुण लेकर पैदा होती है। सबको आत्म मंथन-विचार मंथन के लिए प्रेरित कीजिये और उन गुणों पर कार्य करके अपनी पहचान बनाने को बोलिये।

👉🏼👧🏻 विवाह एक प्रेम बन्धन है, जो पतंग और डोर की तरह है। डोर से जुड़कर उड़ना है, सफलता का आसमान छूना है। न डोर तोड़ना है और न ही डोर से पतंग को लपेटकर कैद करना है।

👉🏼👧🏻 बेटियों को पढ़ने और बढ़ने का सब समान अवसर दें, इसलिए जागरूकता अभियान चलाइये।

👉🏼👧🏻 लड़की को लड़का नहीं बनाना है, दो लड़के मानसिकता का विवाह नहीं टिकेगा। लड़के और लड़की को दोनों को अदब और सँस्कार देना है। दोनों को समान पलने, पढ़ने, आगे बढ़ने, कुछ करने का समान अवसर देने हेतु जागरूकता फैलानी है।

👉🏼👧🏻 स्वस्थ शरीर के लिए सन्तुलित आहार, स्वस्थ मन के लिए सन्तुलित विचार हेतु जागरूकता लानी है।

👉🏼👧🏻 कुछ संघर्षात्मक आंदोलन जैसे ख़र्चीली शादी और दहेज़ प्रथा का सँगठित होकर विरोध करना है। तभी कन्या भ्रूण हत्या रुकेगा।

👉🏼👧🏻 ज्यादा से ज्यादा महिलामण्डल खोलिए, वहां सबको आत्मनिर्भर बनने की उपरोक्त ट्रेनिंग दीजिये।

👉🏼👧🏻 संगठन में शक्ति है, सँगठित शक्ति ही दुर्गा है। बदलाव का वातावरण तैयार कीजिये, उस बदलाव का स्वयं हिस्सा बनिये। नारी को नारी का मित्र बनाइये, नारी पर कहीं भी अत्याचार हो तो सँगठित होकर उसका सहयोग कीजिये।

अपने शहर के गायत्री शक्तिपीठ और डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन से जुड़कर कार्य कीजिये।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday 26 November 2018

भोजन प्रसाद से पूर्व प्रार्थना

*भोजन प्रसाद से पूर्व प्रार्थना*

धन्यवाद ईश्वर,
जो मुझे यह आहार दिया,
धन्यवाद ईश्वर,
जो मुझे यह भोजन प्रसाद दिया।

इसके सेवन से मुझे,
अतुलित शक्ति, सामर्थ्य और शरीर बल मिले,
इसके पाचन से मुझे,
श्रेष्ठ चिंतन, सद्बुद्धि और मानसिक बल मिले।

मुझमें देवत्व जागे,
मैं प्रकाश का सिपाही बनूँ,
राष्ट्र समाज का रक्षक,
एक समर्थ युगनिर्माणि बनूँ।

धन्यवाद ईश्वर,
जो मुझे यह आहार दिया,
धन्यवाद ईश्वर,
जो मुझे यह भोजन प्रसाद दिया।

ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात।

🙏🏻श्वेता #DIYA

कविता - सतयुग की वापसी कैसे होगी?

*सुना है....*
सतयुग में सब आनन्दित थे,
हृदय में चैन और सुकून था,
भावसम्वेदना से ओतप्रोत,
देवत्व से भरा, परमार्थी हर इंसान था।

*और कलियुग में...*
कलियुग में सब दुःखी है,
अब हृदय में न चैन है और न सुकून है,
भाव सम्वेदना विहीन स्वार्थी इंसान है,
जो अत्यंत दुःखी और संतप्त है।

*यक्ष प्रश्न यह है कि*..
सतयुग की वापसी का,
फ़िर कैसे आग़ाज़ हो?
जीवन संगीत से भरा,
फिर कैसे पुनः समाज हो?

कैसे विकृत चिंतन से उपजी,
समस्या का समाधान हो,
कैसे प्रेम सहकार से भरे,
पुनः वतावरण निर्माण हो?

*चिंतित न हो*...
युगऋषि ने सतयुग की पुनः वापसी हेतु,
विचारक्रांति का स्वरूप तैयार किया है,
सप्त आंदोलन और शत सूत्रीय कार्यक्रम का,
दिव्य युगनिर्माण कार्यक्रम तैयार किया है।

आओ मिलकर हम सब,
युगनिर्माण में अपनी अहम भूमिका निभाएं,
जन जन में देवत्व जगा के,
धरती पर ही स्वर्ग का अवतरण करवाएं।

आओ विकृत चिंतन को,
सद्चिन्तन-स्वाध्याय से श्रेष्ठ बनाये,
स्वच्छ मन, स्वस्थ शरीर से,
सतयुगी सभ्य समाज बनाएं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *कॉलेज में युवा बच्चों को गर्भ सँस्कार के महत्त्व से अवगत कराने के लिए भूमिका हेतु क्या बोलना चाहिए।*

प्रश्न - *कॉलेज में युवा बच्चों को गर्भ सँस्कार के महत्त्व से अवगत कराने के लिए भूमिका हेतु क्या बोलना चाहिए।*

उत्तर - आत्मीय देश के युवा और भारत के भविष्य के कर्ता धर्ता मेरे प्यारे बच्चों,

एक प्रश्न जिसका ईमानदारी से उत्तर दो, क्या आप आज के विकृत चिंतन युक्त, भ्रष्टाचार युक्त, दुराचार युक्त, स्वार्थकेन्द्रित और नशे में डूबते समाज से ख़ुश हो? जिस समाज मे स्त्री-बच्चे सुरक्षित नहीं, जहां फ़िल्मे टीवी सीरियल मुफ़्त घर बैठे अपराध सिखा रहे है? आप खुश है?

यदि नहीं खुश है, तो यह क्लास आपके लिए है। क्योंकि यदि देश मे सकारात्मक बदलाव चाहते है, तो इस बदलाव का हिस्सा हमें और आपको बनना पड़ेगा। If you want the change be the change..

इस देश की महत्तपूर्ण इकाई हमारा परिवार भी है, हम स्वयं इस देश का अंग है। यदि प्रत्येक व्यक्ति स्वयं का श्रेष्ठ निर्माण कर ले, स्वच्छ मन और स्वस्थ शरीर बना ले, स्वयं के परिवार का निर्माण कर ले, प्यार और सहकार जगा ले, नैतिक मूल्यों की स्थापना कर दे, तो 1/देश का निर्माण तो हो ही जायेगा।

अच्छा यह बताइए... फ़सल की उपज को बढ़िया बनाने के लिए किसान क्या करता है?... किसान बीज को संस्कारित और मिट्टी को खर पतवार मुक्त करके शोधित करता है। फ़िर फसल बोता है और खाद पानी देता है।

इसी तरह अच्छे मनुष्यों का यदि निर्माण करना है, तो उसकी शुरुआत हमें अच्छे माता-पिता के निर्माण और गर्भ सँस्कार से शुरू करना पड़ेगा। हम आज भविष्य के माता पिता को Ancient wisdom for woomb science बताने आये हैं।

माता-पिता द्वारा प्रदत्त गुणसूत्रों पर स्थित डी.एन.ए. (D.N.A.) की बनी वो अति सूक्ष्म रचनाएं जो अनुवांशिक लक्षणों का धारण एवं उनका एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानान्तरण करती हैं, जीन (gene) वंशाणु या पित्रैक कहलाती हैं।

जीन आनुवांशिकता की मूलभूत शारीरिक इकाई है। यानि इसी में हमारी आनुवांशिक विशेषताओं की जानकारी होती है जैसे हमारे बालों का रंग कैसा होगा, आंखों का रंग क्या होगा या हमें कौन सी बीमारियां हो सकती हैं, साथ ही इसमें संचित विचार यह तय करते है कि बच्चे का स्वभाव और व्यवहार कैसा होगा, आकृति के साथ प्रकृति भी यह निर्धारित करता है। और यह जानकारी, कोशिकाओं के केन्द्र में मौजूद जिस तत्व में रहती है उसे डी एन ए कहते हैं।

 डॉक्टर गायत्री शर्मा, डॉक्टर अमिता सक्सेना, डॉक्टर संगीता सारस्वत इत्यादि डॉक्टरों ने युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य की लिखी पुस्तक पुंसवन सँस्कार(गर्भ सँस्कार) और हमारी भावी पीढ़ी और उसका नवनिर्माण से प्रेरणा लेकर गर्भ विज्ञान पर विभिन्न रिसर्च किया, और पाया कि विचारशक्ति विज्ञान के विधिवत प्रयोग से, विभिन्न संस्कारों से हम गर्भ के डीएनए में भी सकारात्मक बदलाव ला सकते है।

जिस तरह परमाणु विष्फोट का विषैला विकिरण अत्यंत सूक्ष्म होने के कारण गर्भ के डीएनए को पीढ़ी दर पीढ़ी प्रभावित करता है, वैसे ही देवसंस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार उत्तराखंड से यग्योपैथी में पीएचडी होल्डर एवं चिकित्सक डॉक्टर वंदना, डॉक्टर रुचि और डॉक्टर ममता सक्सेना ने बताया कि विचार तरंग को यज्ञ द्वारा औषधीय यज्ञ से सूक्ष्मीकृत पुष्टिकारक बलवर्धक प्राण पर्जन्य युक्त धूम्र के माध्यम से अनुवांशिक रोगोपचार और वांछित मानसोपचार भी किया जा सकता है। याद रखिये केवल अग्नि(किरण), वायु(गैस) और रेडियो सी तीव्र गति(मंन्त्र सन्तरण) के साथ परमाणु से भी अति सूक्ष्म कण की ही पहुंच जीन को प्रभावित कर सकती है। जो या तो विधिवत विचारशक्ति के सम्प्रेषण या यज्ञ के द्वारा ही सम्भव है। विचार अतिसूक्ष्म होने के कारण उनकी पहुंच भी जीन(gene) तक है और यज्ञीय पुष्टि वर्धक धूम्र भी अति सूक्ष्म होने के कारण उनकी भी पहुंच जीन(gene) तक है।यज्ञ के धूम्र में औषधीय तेल और घी इत्यादि के औषधीय युक्त सूक्ष्म धूम्र कण का व्यास 1/10000 से 1/100000000 सेंटी व्यास तक बारीक/सूक्ष्म होता है।

गर्भ काल में गर्भ का ज्ञान विज्ञान समझकर यदि सावधानी बरती जाए तो हम मनचाही सन्तान प्राप्त कर सकते है। ....माता के शरीर से बच्चे का शरीर, माता-पिता के मन से बच्चे का मन निर्मित होता है...गर्भ काल के दौरान चरित्र-चिंतन-व्यवहार और आसपास का वातावरण वैसा निर्मित करना पड़ता है जैसी सन्तान हम जन्म देना चाहते हैं...सन्तुलित आहार जिस तरह गर्भस्थ शिशु के स्वस्थ शरीर के लिए जरूरी होता है...वैसे ही सन्तुलित विचार गर्भस्थ शिशु के स्वस्थ मानसिकता और कुशाग्र बुद्धि के लिए जरूरी है...सन्तुलित आहार न दिया तो शरीर कुपोषण ग्रस्त होगा और सन्तुलित विचार न दिया तो मानसिक कुपोषण होगा...जरूरी टीके स्वास्थ्य के लिए लगवाने पड़ते है, ज़रूरी आध्यात्मिक टीके सँस्कार के रूप में लगवाने पड़ते हैं।..

तभी हम विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) के मानक के अनुसार शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ सन्तान का जन्म सुनिश्चित कर सकते हैं, जो परिवार के साथ साथ देश समाज के लिए भी उपयोगी हो और अच्छे समाज के निर्माण में सहायक हो।

आइये गर्भ का ज्ञान विज्ञान समझते है...इस भूमिका के बाद...गर्भ सँस्कार की पॉवर पॉइंट प्रेजेंटेशन शुरू कर दें।😇🙏🏻😇

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

कवित्व - आत्मियता न रहीं तो जीवन नफरतों से भर जायेगा

*आत्मियता न रहीं तो जीवन नफरतों से भर जायेगा* - ३
दूर दूर तक नफरतों का सिलसिला नजर आयेगा ...
आत्मियता न रहीं तो ...

जाति पाती की उलझने और सांप्रदायिक हादसे - २
सुख चैन वैन छीन जायेगा, हादसा ही हादसा रह जायेगा ...
आत्मियता न रहीं तो जीवन नफरतों से भर जायेगा ...
जीवन बेरंग उदास हो जाएगा ...

यूं भी होगा पड़ोसी पड़ोसी को  भुला देगा... (२)
ये भी होगा खुद भी नफरत की आग में जल जायेगा ...
आत्मियता न रहीं तो जीवन नफरतों से भर जायेगा ...
जीवन जीते जी नरक बन जायेगा...

जीवन में यूँ न भरो नफ़रतें मायूशियाँ...
मजहबी नफरतों का चश्मा हटा के देखो दुनियाँ ...
फिर कण कण में वो परमात्मा नज़र आएगा...
हर इंसान अपना अपना सा नज़र आएगा...
नफ़रतें न रहीं तो जीवन आत्मियता से भर जायेगा ...
प्यार सहकार भरी दुनियाँ में जीने का बड़ा मज़ा आएगा...

युगऋषि श्रीराम प्रज्ञावतार बन धरा पर आये...
आत्मियता विस्तार का भाव जन जन में जगाए...
भाव सम्वेदना की गंगोत्री में जन जन को नहलाये..(2)
आओ नफ़रतें भुला के आत्मियता बढ़ाये,
प्यार सहकार से भरी एक दुनियाँ बनाएं,
नफ़रतें न रहीं तो जीवन आत्मियता से भर जायेगा ...
प्यार सहकार भरी दुनियाँ में जीने का बड़ा मज़ा आएगा...

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

विवाह के आदर्श और सिद्धान्त

*विवाह के आदर्श और सिद्धान्त*

माता पिता को यह समझना होगा कि विवाह दो व्यक्तियों के बीच साथ जीवन निभाने का स्वेच्छा से समझौता है। इस समझौते को ईश्वर के साक्षी में लिया जाता है। स्त्री पुरूष दोनों को यह विवाह बंधन स्वीकारते वक्त यह ध्यान रखना चाहिए ये प्रेम का बन्धन है, पतंग की तरह डोर से जुड़े भी रहना है और आकाश में उड़ना भी है। डोर से पतंग को बांधकर कैद भी नहीं करना है और न ही डोर काटनी है।

लड़कियों को स्वतंत्रता पढ़ने, आगे बढ़ने और अपनी जिंदगी खुशहाल जीने का उतना ही हक है जितना लड़को का। यदि लड़की को अदब सिखाते हो तो उतना ही अदब लड़को को भी सिखाइये। इसी तरह लड़को को योग्य बनाते हो उसी तरह उतना ही योग्य लड़की को बनाने के लिए धन खर्च कीजिये और स्वतंत्रता दीजिये।

लड़की को हरवक्त विवाहयोग्य हो जाने पर ताने मारकर सिखाना यह अमुक सीख ले, क्योंकि पराए घर जाना है, ससुराल के ताने बार बार मारने पर लड़कियां अंदर ही अंदर चिढ़ जाती है। अच्छे गुणों की लड़के और लड़की दोनों को आवश्यकता है। अच्छा सेवाभावी इंसान बनाइये। तो सब सध जाएगा।

ऊपरवाला भगवान भी बेमेल जोड़े को सफल दाम्पत्य का आशीर्वाद कैसे दे? स्वयं विचार करें,

एक टायर में हवा भरोगे और दूसरे को पंचर रखोगे, फिर भगवान से विवाह की गाड़ी की स्पीड और आनन्दमय सफर की दुआ माँगोगे?

उदाहरण -
जब एक बेअदब और दूसरा अदबदार हो

जब एक योग्य हो औऱ दूसरा अयोग्य हो

जब एक शिक्षित हो और दूसरा अशिक्षित हो

युगऋषि की कुछ पुस्तकें जरूर पढ़ें और पढ़ाये, लोगों का दाम्पत्य जीवन सफल बनायें:-

1- गृहस्थ में प्रवेश से पूर्व उसकी जिम्मेदारी समझें
2- गृहस्थ एक तपोवन
3- विवाह के आदर्श और सिद्धान्त

http://literature.awgp.org/hindi/books/category/family%20relationships

प्रश्न - *जब कोई सीनियर आपको बुरी तरह से बेवजह नीचा दिखाए तो ऐसे में कैसे रेस्पॉन्स करें?*

प्रश्न - *जब कोई सीनियर आपको बुरी तरह से बेवजह नीचा दिखाए तो ऐसे में कैसे रेस्पॉन्स करें?*

उत्तर - जब हमें कोई नीचा दिखाता है और हमारे लिए षड्यंत्र रचता है, तो यह हमारे जीवन की चुनौती होती है। हमें कुछ और बड़ा कर गुजरने को बोलती है।

कुत्ते के भौंकने पर रिस्पांस देना जरूरी नहीं, बल्कि निर्भय होकर उसका सामना करना चाहिए। कुत्ता और दुर्जन व्यक्ति तभी आपको परेशान करेंगे जब आपके अंदर से भय और निराशा के हार्मोन रिलीज़ होंगे। आपके भयमुक्त होते ही यह दोनों ही गधे के सर के सींग की तरह गायब हो जाते हैं।

जो आपका शुभचिंतक नहीं और आपका भला नहीं चाहता, उसकी बातों का बातों से प्रतिक्रिया न दें, उससे उलझने में अपनी ऊर्जा नष्ट न करें। क्योंकि उलझने के लिए ठहरना अर्थात स्वयं की तरक्की रोक देना है।

वह षड्यंत्र में सफल हुआ क्योंकि हमारी स्वयं के प्रति जागरूकता और सुरक्षा में कहीं न कहीं कमी थी। अतः हमें षड्यंत्र कारी की पहुंच से ऊपर उठना है। बैंक को एक चोर से नहीं निपटना होता, बल्कि ऐसी सुरक्षा रखनी होती है कि अन्य कोई चोर भी चोरी न कर सके। इसलिए आपको स्वयं की तरक़्क़ी और सुरक्षा एक षड्यंत्र को विफल बनाने के लिए केवल नहीं करनी चाहिए, बल्कि जीवन मे दोबारा कोई आपके विरुद्ध षड्यंत्र न कर सके और नीचा गिराने का अवसर प्राप्त न कर सके इस हेतु स्वयं को साधना है।

केवल अपने जीवन लक्ष्य और कैरियर पर ध्यान दें और अपनी ऊर्जा इसी पर खर्च करें। कुछ समय बाद आप पाएंगे कि आप ने उस व्यक्ति को जिसने आपको नीचा दिखाने में कोई कसर न छोड़ी थी उसे बिन बोले बहुत पीछे छोड़ दिया है।

पीठ पीछे तो राजा की भी बुराई होती है, अतः पीठ पीछे वाली बुराई इग्नोर करें। जब मुंह पर कोई आपकी बुराई करे, तब भी क्रोध न करें, इस चुनौती का मुस्कुराहट के साथ धैर्यपूर्वक शांत चित्त से विवेक का प्रयोग करते हुए तथ्य तर्क प्रमाण सहित उत्तर दें।

परम पूज्य गुरुदेव युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखित निम्नलिखित पांच पुस्तकें पढ़े और स्वयं की सुरक्षा मजबूत करें:-

1- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
2- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
3- मानसिक संतुलन
4- निराशा को पास न फटकने दे
5- जीवन जीने की कला


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *यदि प्रोफेशनल डिग्री कॉलेज में कोई सीनियर का ग्रुप रैगिंग करे, कोई टीचर्स स्टाफ परेशान करे, तो ऐसी डिप्रेशन की सिचुएशन को कैसे हैंडल करें?

प्रश्न - *यदि प्रोफेशनल डिग्री कॉलेज में कोई सीनियर का ग्रुप रैगिंग करे, कोई टीचर्स स्टाफ परेशान करे, तो ऐसी डिप्रेशन की सिचुएशन को कैसे हैंडल करें? माता पिता इतनी मुश्किल से बड़े कॉलेज में एडमिशन करवाते है, उन्हें पुनः बिना परेशान किये, इस सिचुएशन को कैसे हैंडल करें?*

उत्तर - बेटा, सबसे पहले यह याद रखो कि यह धरती वीरों के लिए बनी है:- *वीर भोग्या वसुंधरा*। प्राचीन ऋषियों और आधुनिक विज्ञान, AIMS की रिसर्च में यह सिद्ध हो गया है कि गायत्री मंत्र जपने से बुद्धि बढ़ती है, निर्णय क्षमता बढ़ती है। अतः उगते हुए सूर्य का ध्यान करते हुए कम से कम 324 बार गायत्री मंत्र जरूर जपो।

फर्स्ट स्टेप रैगिंग क्या है यह समझो, यदि कोई सीनियर तुमसे स्वयं को  सर या मैडम बुलवाता है, बॉस बनने की कोशिश करता है, आंखे नीचे रखने को बोलता है। यह घुटने के नीचे का पानी है। अतः इग्नोर करो, उसे सर बोल दो और आगे बढ़ो। कोई शिकायत करने की जरूरत नहीं है।

लेकिन सेकंड स्टेप रैगिंग:- यदि रैगिंग के नाम पर कोई नशे का सामान मंगवाता है, या अभद्र पोल डांस करने को कहता है, जबजस्ती साथ कहीं चलने को बोलता है, जबजस्ती पोर्न वीडियो दिखाता है, या अभद्र टीका टिप्पणी करता है या तुम्हारी पढ़ाई में व्यवधान उतपन्न करता है तो यह कमर तक पानी आ गया। इस समय यदि तुमने एक्शन नहीं लिया तो डूबने में वक्त नहीं लगेगा।

तो करना क्या है:-

1- यदि सम्भव हो तो मोबाइल के प्रयोग से सीनियर के ख़िलाफ़ कोई वीडियो क्लिप बना लो। उसे कम से कम माता-पिता समेत 5 विश्वास पात्र लोगों को भेज दो, यदि जरूरत पड़े तो सबूत के तौर पर उपयोग कर सको।

2- माता पिता से कोई बात मत छुपाओ, यह मत सोचो कि वो परेशान होंगे। बल्कि यह सोचो कि  तुम उन्हें बताकर उन्हें आगाह कर रहे हो।

3- प्रिंसिपल के पास जाओ तुम्हारे पास सबूत हो तो अच्छी बात है, यदि नहीं सबूत है तो भी जाकर उसकी शिकायत प्रिंसिपल को कर दो। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के हिसाब से प्रिंसिपल बाध्य है एक्शन लेने के लिए।

4- यदि प्रिंसिपल नहीं सुनता तो 100 नम्बर पर बेझिझक फोन करके पुलिस बुला लो।

5- यदि वो बड़े बाप का बेटा है और पुलिस को हैंडल कर लिया तो निम्नलिखित साइट पर जाकर कम्प्लेन रजिस्टर कर दो, ईमेल कर दो और हेल्पलाइन पर कॉल कर दो।

*National Anti Ragging Help Line (UGC Crisis Hotline)*
*24x7 Toll Free Number* 1800-180-5522
*Email*:- helpline@antiragging.in
*Website:* - http://www.antiragging.in

6- उस सीनियर की मिसबिहेव और रैगिंग के सबूत की वीडियो बना के शोशल मीडिया में वायरल कर दो, हमें भी एक भेज देना। तब उसकी खैर नहीं।

याद रखो, पाप और अत्याचार करना जितना बड़ा गुनाह है उससे ज्यादा बड़ा गुनाह पाप और अत्याचार सहना है। कॉलेज कोई भी नौकरी की गारंटी नहीं देता, हमारी योग्यता और काबिलियत ही धनवान हमें बनाती है। कभी भी डिप्रेशन लेना नहीं, बल्कि जो गलत करे उसे डिप्रेशन देना। बड़े घर के लोगो को तो और ज्यादा सामाजिक प्रतिष्ठा और इज्जत की परवाह होती है। अतः पुलिस कम्प्लेन और बात को बढ़ाना वो भी नहीं चाहते। आपके सीनियर को उनके माता पिता ही ठीक कर देंगे। पहले की तरह अब रैगिंग सहने की जरूरत नहीं, अब कानून बड़े सख्त है।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻
यदि टीचर्स स्टाफ में कोई फर्स्ट स्टेप वाली रैगिंग की तरह बेवजह तुम्हे डांटे, तुम्हारी क्रिएटिविटी को न समझे, तो उसे इग्नोर करो। जो सड़े गले पैटर्न पर वो प्रोजेक्ट चाहता है उसे बनाकर दे दो और नम्बर ले लो। अपने क्रिएटिव प्रोजेक्ट को बनाओ और यूट्यूब पर चढ़ा दो दुनियाँ देखेगी। उस टीचर तक स्वतः पहुंच जाएगा।

यदि वो तुम्हारे पढ़ाई में बाधा उतपन्न करे या अनैतिक कुछ करवाने की चेष्टा करे, तो प्रथम माता पिता को सब बताओ, फिर प्रिंसिपल से शिकायत कर दो, उस टीचर/प्रोफेशर की वीडियो बना के वायरल कर दो, पुलिस कम्प्लेन कर दो।

किसी भी हालत में सुसाइड वगैरह करने की मूर्खता नहीं करनी चाहिए। माता पिता को तुम जीवित पहले नम्बर चाहिए पहले, कैरियर दूसरे नम्बर पर चाहिए।

बल्कि योद्धा की तरह विपरीत परिस्थितियों का जमकर डटकर मुकाबला करना चाहिए। याद रखो- *ईश्वर उसकी मदद करता है, जो अपनी मदद स्वयं करता है।*

कॉलेज आते जाते रहते है, जिंदगी हमारी एक ही है, इसे शिवाजी और महाराणा प्रताप की तरह वीरता पूर्वक लड़ते हुए जीना चाहिए, बीरबल और तेनालीराम की तरह बुद्धिबल से जीना चाहिए। जिंदगी रही तो ऐसे कालेज को सबक तुम ठीक से बाद में भी सीखा सकोगे।

वीर भोग्या वसुंधरा याद रखना, वीरता जगाने के लिए और मानसिक साहस उपजाने के लिए युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखित निम्नलिखित पुस्तक पढ़ो:-

1- महापुरुषों की जीवनियां
2- निराशा को पास न फटकने दें
3- मानसिक संतुलन
4- हारिये न हिम्मत
5- शक्ति संचय के पथ पर
6- शक्तिवान बनिये
7- हम अशक्त क्यो? शशक्त बने
8- आगे बढ़ने की तैयारी
9- सफल जीवन की दिशा धारा
10 - मित्रभाव बढ़ाने की कला
11- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
12- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
13- सफलता के सात सूत्र साधन
14- दृष्टिकोण ठीक रखिये
15- मैं क्या हूँ

प्रत्येक शहर में गायत्री शक्तिपीठ और डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन के सदस्य है, जरूरत पड़ने पर उनसे मिलकर मार्गदर्शन ले लो। पुस्तक शक्तिपीठ में मिल जाएगी। या ऑनलाइन www.awgpstore.com  से खरीद सकते हो या ऑनलाइन फ्री http://literature.awgp.org पढ़ सकते हो या फ्री awgp literature मोबाइल एप भी डाऊनलोड कर सकते हो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Sunday 25 November 2018

प्रश्न - *दी, क्या चमत्कार पर आप भरोसा करते हो? क्या चमत्कार होते है?*

प्रश्न - *दी, क्या चमत्कार पर आप भरोसा करते हो? क्या चमत्कार होते है?*

उत्तर - *चमत्कार की परिभाषा* - जो तकनीक और कार्य का परिणाम कैसे आया हमारी बुद्धि को समझ न आये उसे चमत्कार कहते हैं।

किसी भी एक्शन का रिएक्शन जरूर होता है।

जादूगरी की यदि आप शिक्षा ले लो, तो जादूगरी में आपको चमत्कार और जादू दिखना बंद हो जाएगा क्योंकि आपको तकनीक समझ आ गयी।

मोबाईल फोन से वीडियो कॉल आज से सौ वर्ष पूर्व आप किसी को करके दिखा देते तो वो आपका मन्दिर बना के देवता की तरह पूजता। लेकिन आज बच्चे बच्चे को टेक्नोलॉजी पता है इसलिए मोबाईल चमत्कार नहीं है।

मंन्त्र का विज्ञान जो जानते है, उनके लिए मंन्त्र कोई जादू या चमत्कार नहीं है। इसी तरह यज्ञ का विज्ञान जो जानते है उनके लिए यज्ञ कोई चमत्कार नहीं है।

अणुओं को सूर्य विज्ञान का ज्ञाता मंत्र शक्ति से बदल सकता है, जैसे ईंट को मिश्री या सोना में बदल देना इत्यादि। ये कोई चमत्कार नहीं है, यह मंन्त्र विज्ञान की सिद्धि (पोस्ट ग्रेजुएशन) है। इसी विद्या के प्रयोग से सामान्य सा तीर अग्नि बाण, वर्षा का बाण, ब्रह्मास्त्र इत्यादि बन जाता था।

यज्ञ के द्वारा दशरथ को पुत्र प्राप्ति कोई चमत्कार नहीं था, यह यग्योपैथी का विज्ञान था। जिसे मंन्त्र शक्ति और औषधीय हवन द्वारा श्रृंगी ऋषि ने करवाया था।

मनुष्य की छोटी सी बुद्धि जो नहीं समझती उसे चमत्कार कह के इति श्री कर लेती है। वास्तव में चमत्कार कुछ होता ही नहीं, सभी चमत्कार को विधिवत तकनीक अपनाकर किया जाता है।

निम्नलिखित पुस्तक पढ़कर अध्यात्म विज्ञान के चमत्कार के पीछे की तकनीक समझ सकते हो -
👉🏼शब्द ब्रह्म नाद ब्रह्म
👉🏼व्यक्तित्व विकास की
उच्चस्तरीय साधनाएं
👉🏼प्रसुप्ति से जागृति की ओर
👉🏼पंच कोशीय साधना
👉🏼सावित्री कुंडलिनी तंत्र

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - मुझे कोई ऐसा मंन्त्र प्रयोग बताइये जिसे हम आसानी से घर पर करके देख सकें

प्रश्न - *दी, कल आपने चमत्कार को परिभाषित करते हुए बताया था कि जो तकनीक, प्रोसेस और कार्य परिणाम हमारी बुद्धि को समझ नहीं आता उसे चमत्कार कहते है, वास्तव में चमत्कार जैसा कुछ नहीं होता। इसी संदर्भ आपने बताया था कि मंन्त्र भी एक विज्ञान है, इसकी तकनीक समझ के इसे उपयोग में लाया जा सकता है। मुझे कोई ऐसा मंन्त्र प्रयोग बताइये जिसे हम आसानी से घर पर करके देख सकें।*

उत्तर - आत्मीय बहन,

मंत्र, योग साधना का एक ऐसा शब्द और विज्ञान है कि उसका उच्चारण करते ही किसी चमत्कारिक शक्ति का बोध होता है, यह चमत्कार नहीं है अपितु इसका सीधा सम्बन्ध *ध्वनि विज्ञान* से है। आध्यात्मिक साइंटिस्ट और रिसर्चर प्राचीन काल के योगी, ऋषि और तत्वदर्शी महापुरुषों ने मंत्रबल से पृथ्वी, देव-लोक और ब्रह्माण्ड की अनन्त शक्तियों को नियंत्रण करने की शक्ति पाई थी। मंत्र शक्ति के उपयोग में वे इतने समर्थ थे कि इच्छानुसार किसी भी पदार्थ का हस्तान्तरण, शक्ति को पदार्थ और पदार्थ को शक्ति में बदल देते थे। शाप और वरदान मंत्र का ही प्रभाव माना जाता है। एक क्षण में किसी का रोग अच्छा कर देना, एक पल में करोड़ों मील दूर की बात जान लेना एक नक्षत्र से दूसरे नक्षत्र की जानकारी और शरीर की 72 हजार नाड़ियों के एक-एक जोड़ की जानकारी तक मंत्र और ध्वनि विज्ञान की ही शक्ति थी।

एक काम कीजिये, इस उपरोक्त विज्ञान को समझने के लिए गूगल पर दो Key word सर्च कीजिये :- Therapeutic ultrasound या ultrasonic sound therapy

आपको पता चलेगा, भारतीय लोग मंन्त्र की ध्वनि विज्ञान पर भरोसा करें या न करें लेकिन वैज्ञानिक पूरा भरोसा करते है, बस फर्क इतना है कि अब उन्हीं अल्ट्रा ध्वनियों को मशीनों द्वारा उतपन्न कर अल्ट्रासाउंड करके पेट मे पल रहे रोग जानना हो या ऑपेरशन करना हो या ट्रीट करने हेतु कोई थेरेपी करनी हो उपयोग में ले रहे हैं।

समस्त ब्रह्माण्ड ध्वनि का कम्पन मात्र है यह वैज्ञानिक स्वीकार चुके है, ध्वनि स्वयंमेव एक ऊर्जा है, और ऊर्जा का रूपांतरण सम्भव है, इसी पर आधार करके फ़ोन इत्यादि उपकरण चल रहे हैं।

हम मनुष्यों की बुद्धि थोड़ी है, ज्ञान का तो सागर है, जो जितनी गहराई में उतरेगा वो उतना ही जान पायेगा। कम पढ़ा लिखा व्यक्ति स्वयं को बुद्धिमान और सर्वज्ञाता समझता है और आइंस्टीन-न्यूटन जैसे महान वैज्ञानिक स्वयं को अल्पबुद्धि और ज्ञान के समुद्र की कुछ बूंद समझ सकने की योग्यता वाला समझते हैं।

*मंन्त्र विज्ञान प्रयोग पूर्व तैयारी*- लोहे को अग्नि में पिघलाकर से पतला चाकू बनता है, उसमें पुनः धार दी जाती है, तब जाकर वो फ़ल या सब्जी काटने योग्य बनता है।

अतः जीभ को अनुष्ठान, व्रत और तप से तपाकर वाक सिद्ध किया जाता है, पुनः निरन्तर जप और ध्यान द्वारा उसमें धार दी जाती है। तब जाकर उससे जपे मंन्त्र द्वारा अभीष्ट परिणाम प्राप्त किया जाता है।

तलवार, चाकू, आरी, सुई, ऑपेरेशन के लिए उपयुक्त औजार सबके मूल में लोहा है। कहीं लोहे के मूल रूप में उपयोग होता है और कहीं लोहे को प्रोसेस करके स्टील बना के फिर औजार बनता है। इसी तरह मंन्त्र विज्ञान में उपयोग तो जिह्वा का ही होगा मूल रूप में, लेकिन जैसा प्रयोग करना है उस स्तर का तप और अनुष्ठान करना पड़ेगा।

*मंन्त्र प्रयोग का डेमो* - एक काम करो किसी भी नवरात्र में पूर्ण श्रद्धा विश्वास के साथ 9 दिन का गायत्री मंत्र जप अनुष्ठान करो, नमक और चीनी मत खाना, फलाहार लेना और तलाभुना मत खाना, गाय के दूध से बने घी, मक्खन, दूध, छाछ का सेवन करना। गुड़ खा सकते हो, एक वक़्त यदि जरूरी हो तो सेंधा नमक ले लेना, केवल आधा पेट ही फलाहार भी करना। दिन में 30 माला गायत्री मंत्र का जप करना, अधिक समय मौन रहना बहुत जरूरी हो तो ही बोलना। उगते हुए सूर्य में माता गायत्री का ध्यान करना। 7 दिन में तुम्हारे जिह्वा के वाक में धार आ जायेगी। 8 वें दिन यह प्रयोग करें, घर में जिसका दिमाग़ अशांत रहता हो या क्रोधी स्वभाव का व्यक्ति हो, उस पर मंन्त्र शक्ति के प्रयोग से शांति करने हेतु तीन तरीक़े हैं:-

1- तांबा में रखा पानी अल्ट्रा साउंड जिसे हमारे कान नहीं सुन सकते उन मन्त्रों की वाईब्रेशन को मेमोरी कार्ड की तरह सुरक्षित रख लेता है। जब हम बिना उच्चारण किये होठ मात्र हिलाते हुए जप करते है तो मंन्त्र की अल्ट्रासाउंड निकलती है जो तांबे के लोटे में टकराती है उस टकराहट से पानी मे समान्तर कम्पन उतपन्न होता रहता है और स्टोर होता रहता है। अतः पूजा के बाद जल आधा सूर्य भगवान को चढ़ा दीजिये और नीचे वाला बचा आधा जल से कुछ बूंदें उस व्यक्ति पर छिड़क दीजिये और बाकी पिला दीजिये। उसे गुस्सा नहीं आएगा और मंन्त्र की तरंगें दिमाग़ शांत कर देंगी।

2- तुलसी की माला अच्छे से साफ पानी मे धो लें। फिर उसी माला से 29 माला जपने के बाद, अंतिम  एक माला अर्थात 30वीं उस जल में स्पर्श कराते हुए जपें। उस जल को अशांत दिमाग़ और क्रोधी व्यक्ति को पिला दें। वो मंन्त्र शक्ति से शांत हो जाएगा।

3- अपना हाथ अच्छे से डिटॉल इत्यादि लगा के साफ पानी से धो लें, नाखून कटे हुए और नेल पॉलिश नहीं लगी होनी चाहिए। अनुष्ठान के वक्त नाखून अच्छे से साफ धुले होने चाहिए। मंन्त्र जप से हमारे शरीर मे तीव्र सूक्ष्म वाईब्रेशन होती है, 29 माला जप लें, अंतिम माला के जप के वक्त अपना बायाँ हाथ के पांचों उंगलियां एक कटोरी जल में स्पर्श करा दें। उंगली के पोरों से आपके शरीर के अंदर की वाईब्रेशन जल में उतरेगी। वो जल क्रोधी या दिमाग़ से अशांत व्यक्ति को पिला दें। वो शांत और स्वयं को 12 घण्टे के लिए ध्यानावस्था में महसूस करेगा।

मन्त्रशक्ति को अच्छे से समझने के लिए युगऋषि द्वारा लिखित पुस्तक - *शब्द ब्रह्म नाद ब्रह्म* पढ़िये।

यदि कोई चिकित्सक स्वयं को साध कर जिह्वा को वाक शक्ति से भर ले, तो वो दवा में मंन्त्र जपकर हाथ के स्पर्श से मंन्त्र वाईब्रेशन मिला सकता है, रोगी को दोगुनी स्पीड से ठीक कर सकता है।

यग्योपैथी में भेषज यज्ञ में मंन्त्र शक्ति के द्वारा औषधि के कारण प्रभाव को जगाया जाता है, श्वांस द्वारा धूम्र में औषधि और मंन्त्र के अल्ट्रा साउंड वाईब्रेशन को रोगी के भीतर प्रवेश करवा के रोगोपचार किया जाता है।

आध्यात्मिक विधि से खेती में यग्योपैथी के उपयोग से मंन्त्र की वाईब्रेशन पौधों में प्रवेश करवा कर खेती की पैदावार और गुणवत्ता बढ़ाई जा सकती है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 20 November 2018

विचार मंथन - सँस्कार से प्रकृति बदलती है आकृति नहीं, इसलिए परिवर्तन आसानी से समझ नहीं आता, लेकिन व्यक्तित्व दिये हुए सँस्कार ही गढता है ।

*विचार मंथन - सँस्कार से प्रकृति बदलती है आकृति नहीं, इसलिए परिवर्तन आसानी से समझ नहीं आता, लेकिन व्यक्तित्व दिये हुए सँस्कार ही गढता है ।*

कुएं के शुद्ध मीठे पानी, समुद्र के खारे पानी, जहरीले केमिकल भरे पानी में उपजी सब्जियां, फल, नारियल और पल रही मछलियां मूल बीज गुणों के अनुरूप ही बाह्य आकृति लेंगी। लेकिन प्रकृति बदल जाएगी, स्वाद बदल जायेगा, गुण बदल जायेगा। जहां कुएं का पानी गुणवत्ता और स्वाद बढ़ा देगा, वहीं समुद्र का खारापन सब के भीतर प्रवेश करेगा, प्रदूषित जल का जहर सब्जियों में प्रवेश करेगा।

एक ही माँ के जुड़वा बच्चे या एक ही तोते के जुड़वा बच्चे यदि एक को गुरुकुल और दूसरे को दस्यु सँस्कार के बीच पाला जाय तो आकृति दोनों की एक होगी भीतर की प्रकृति बदल जाएगी। एक प्रकृति से सन्त बन जायेगा और दूसरा डाकू बन जायेगा।

युगऋषि परमपूज्य गुरूदेव कहते है, बच्चो को अच्छे सँस्कार देकर पालो जिससे वो देवमानव बन जाएं। अन्यथा एक्सिडेंटल बिना तैयारी के पले तो देवता भी बन सकते है और राक्षस भी।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *श्वेता जी आज मेरे घर में ख़र्चीली शादी को लेकर बहस हो गयी, मेरे जामाता का तर्क है कि इससे कई लोगों को खाना मिलता है और कई लोगों को रोज़गार मिलता है। इस पर अपने विचारों की रौशनी डालें...*

प्रश्न - *श्वेता जी आज मेरे घर में ख़र्चीली शादी को लेकर बहस हो गयी, मेरे जामाता का तर्क है कि इससे कई लोगों को खाना मिलता है और कई लोगों को रोज़गार मिलता है। इस पर अपने विचारों की रौशनी डालें...*

उत्तर- दहेज़ प्रथा और ख़र्चीली शादी, कन्या भ्रूण हत्या के लिए उत्तरदायी कारणों में प्रमुख है।

शरीर सबके अलग अलग है लेकिन जीवन सबका जुड़ा हुआ है, पड़ोसी के घर आग लगी तो आपके घर लगने में देर नहीं लगेगी। हवा में जहर छोड़ोगे अपने घर से लेकिन मरेंगे सब आसपास वाले...

पेड़ की अंधाधुंध कटाई और लकड़ी माफिया में भी लोगों को रोजगार मिलता है, लेकिन क्या यह सही है?

नशे और शराब व्यापार में भी कई लोगो को रोजगार मिलता है, तो क्या यह सही है?

हम सब सामाजिक प्राणी है, यदि हमारे कार्य के कारण समाज मे गलत परम्परा को बढ़ावा मिल रहा है, तो क्या यह सही है?

जब अमीर लोग बिन दहेज सादगी से शादी को बढ़ावा देंगे तो स्वतः उनकी नकल मध्यम वर्गीय और नीचे तबके के लोग करने लगेंगे। फ़िल्मो और टीवी सिरियल में भी बिन दहेज और बिना खर्च की शादी को दिखाया जाने लगेगा।

तब गरीब की लड़की हो या अमीर की लड़की दोनों के विवाह का खर्च ही न रहेगा। जब लड़की के विवाह में दहेज प्रथा और ख़र्चीली शादी का चलन खत्म हो जाएगा तो फिर कोई माता-पिता अपनी लड़की को गर्भ में मारने का पाप नहीं करेगा। क्योंकि लड़की जन्म से आर्थिक बोझ और दहेज जुटाने की परेशानी खत्म हो जाएगी।

युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते है, कि यदि परिवर्तन समाज मे चाहते हो तो उस परिवर्तन का स्वयं हिस्सा बनो।

बच्चो के विवाह के बाद अपने बच्चों के नाम पर निम्नलिखित पुण्य कीजिये और बच्चो को भी आशीर्वाद मिलेगा।

गरीबों को भोजन और गरीबों को रोजगार देना चाहते हो तो मंदिरों में जाकर लंगर दे दो। झुग्गी झोपड़ी में कपड़े बांट दो, गरीब बच्चो को स्कूलों में जाकर कॉपी पुस्तक और पेन पेंसिल बांट दो। रोजगार भी लोगो को मिलेगा और जीवन भी मिलेगा।

जिन पेट भरे अमीर रिश्तेदारों को ख़र्चीली शादी में शानदार दावत देंगे, उनके पेट तो ऑलरेडी भरे है, उनके मुंह से कोई दुआ नहीं निकलती बल्कि चुगली और पीठ पीछे बुराई निकलेगी। भरे पेट में ज्यादा खाने से बदबूदार गैस निकलेगी।

पैसा आपका है लेकिन सम्पत्ति देश की होती है और अन्न भी देश का होता है। शादी व्याह में जो अन्न बर्बाद होता है उससे दुआ नहीं बल्कि अन्न की बद्दुआ मिलेगी। धरती माँ और किसानों का श्राप और बद्दुआ मिलता है, जब धरती को चीर कर निकाला अनाज और खून-पसीने से सींचा अनाज आप मात्र एक दिन के दिखावे के लिए नष्ट करते हो।

लड़की को हीरे जवाहरात से सजा कर गिफ्ट पैक की तरह मंडप पर बिठाने में आप उसका सबसे बड़ा अपमान करते है, क्योंकि एक समान के साथ दूसरा सामान तभी फ्री दिया जाता है जब उसमे कोई कमी हो, या बिक न रहा हो। लड़की को पढा लिखा कर कोहिनूर बनाना और वो जैसी है उसे ओरिजिनल रूप में ससम्मान के साथ विवाह करना ही पुत्री को सम्मान देना है।

आप के दिखावे से प्रेरित होकर लड़के के पिता दूसरी लड़की के पिता पर उतना ही खर्च करने और दिखावा करने का दबाव डालेगा। उस लड़की और उस के पिता की जो आह निकलेगी वो भी आपके कर्म अकाउंट में जुड़ेगी। फिर यदि कोई युवा जोड़ा यह निर्णय किया भाई इतना खर्च करने की हमारी तो औकात नहीं लड़की तो आर्थिक बोझ बनेगी। गर्भ में ही खत्म कर दो। तो उस गर्भ हत्या के लिए प्रेरित-प्रोवोक करने का भी पाप अकाउंट में जुड़ेगा। देश की हज़ारो की संपत्ति एक दिन में स्वाहा करेंगे उसका भी कर्मफ़ल आपके अकाउंट में जुड़ेगा।

जीवन सबका एक है, भगवान एक है, कर्मो की लिंक जुड़ी हुई है। अतः व्यर्थ का तर्क देकर ख़र्चीली शादी की वक़ालत करना बंद कर दीजिए।

बुद्धिजीवी वक़ील तो तर्क के आधार पर रेपिष्ट और मर्डरर को भी कोर्ट से बाइज्जत बरी करवा देता है, तो इससे वो अपराधी अपराधमुक्त नहीं हो जाता। भगवान की नज़र में निर्दोष नहीं हो जाता। अपराध करके कोर्ट और वकील को रोजगार देने से कोई पापमुक्त नहीं हो जाता।

विवाह एक पवित्र बंधन है । दो आत्माओं का मिलन है । इसके माध्यम से नर और नारी मिलकर एक परिपूर्ण व्यक्तित्व की, एक गृहस्थ संस्था की स्थापना करते हैं । किसी भी समाज में वर्जनाओं को बनाए रखने तथा नैतिक मूल्यों का आधार सुदृढ़ बनाने के लिए विवाह एक र्कत्तव्य बंधन के रूप में अनिवार्य माना जाता है । इसे ख़र्चीली शादी और दहेज जैसे उपक्रम जोड़कर बर्बाद न करें।

उम्मीद है गायत्री परिवार ख़र्चीली शादी और दहेज प्रथा का क्यों विरोध कर रहा है, आपको क्लियर हो गया होगा। आगे फारवर्ड यह मैसेज कर दें जिससे उन्हें भी क्लियर हो जाये।

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

http://literature.awgp.org/book/vivahonmad_samasya_aur_samadhan/v1.1

पुस्तक - विवाहोन्मादः समस्या और समाधान

ज्यादा से ज्यादा विवाह में बांटे

मतदान में विवेक का प्रयोग करें

क्या उस व्यक्ति से स्वयं का इलाज और ऑपेरशन करवाना पसद करेंगे? जो कुशल डॉक्टर न हो...
लेक़िन उसके परदादा कुशल डॉक्टर हो..
उसकी दादी कुशल डॉक्टर हो...

नहीं करवाएंगे इलाज न...

फ़िर देश का नेता चुनते वक्त यह ग़लती क्यों करते है?....
उस व्यक्ति की पर्सनल योग्यता चेक क्यों नहीं करते...

यदि कोई अकुशल अपनी जाति का डॉक्टर हो, तो क्या जाति के आधार पर उससे इलाज करवाओगे? या जाति पाती का भेद भुला कर अच्छा डॉक्टर ढूंढोगे?

जब स्वयं के स्वास्थ्य में जाति का विचार नहीं करते, फिर देश के स्वास्थ्य और देखभाल के लिए अकुशल नेता का जाति के आधार पर चुनाव क्यों?

जिस तरह कम्पनी में जॉब देने से पहले योग्यता चेक करते हैं, वैसे ही नेता चुनने से पहले व्यक्ति विशेष की योग्यता चेक करो। केवल फैमिली बैकग्राउंड पर जॉब जब कम्पनी नहीं देती । तो फिर नेता का चुनाव फैमिली बैकग्राउंड के आधार पर ही क्यों? उसकी पर्सनल योग्यता के जांच की उपेक्षा क्यों?

 देश के लिए सही चयन करना प्रत्येक मतदाता की जिम्मेदारी है।

युगऋषि कहते हैं, अच्छा नेता पाने के लिए जनता का जागरूक होना अनिवार्य है...परिवर्तन तो जनता के हाथों में है... जिसकी शुरुआत विचारों में क्रांति से सम्भव होगी।

कैदियों के बीच उद्बोधन

*कैदियों के बीच उद्बोधन*

आत्मीय भाइयों बहनों,

कर्म की गति गहन है, हमारे प्रारब्धवश भूलें होती है, जो जाने अनजाने हमें ऐसी परिस्थिति में लाकर पटक देती है कि हम फंस जाते है। 90% लोग तो केवल भावनात्मक आवेग कामना, मोह, क्रोध इत्यादि के वेग को नियंत्रित नहीं कर पाने के कारण इस समस्या में गलती से इस चक्रव्यूह में फंसते है।

अब जो हो गया सो हो गया, अब वर्तमान परिस्थितियों में जिस मन को नियंत्रण न कर पाने के कारण हम यहां पहुंचे, अब इसी मन को नियंत्रित करके हम शांति प्राप्त कर सकते हैं।

दुनियाँ का कानून केवल शरीर को बन्धन में कैद करके रख सकता है, लेकिन मन तो इन चार दीवारों से बाहर हिमालय और उससे आगे ईश्वर तक भी पहुंच सकता है। रूह/आत्मा को भला कौन कब कैद कर सका है?

आईए इस कैद के दुर्भाग्य को आनंदमय तप के सौभाग्य में कैसे बदले जानते है...समझते है... आइये युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा जी आचार्य के बताए कुछ सूत्र समझते है...

भाइयों बहनों जो शरीर हम और आप एक दूसरे का देख रहे हैं, वो स्थूल शरीर है। इसके अंदर दो और शरीर है वो है सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर।

जब तक चेतना को स्थूल जगत और स्थूल शरीर तक सीमित रखोगे, तो स्थूल जगत के कष्टों से दुःखी और संतप्त रहोगे। जब चेतना को सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर तक ले चलोगे तो कीचड़ में कमल के फूल की तरह ही खिल जाओगे।

फूल के पौधे को कीचड़ में लगाओ या घर के बगीचे में, उसके उल्लास में और पुष्प की रंगत में फर्क नहीं पड़ता। उसी तरह योगी को जेल से बाहर रखो या जेल के अंदर उसे फर्क नहीं पड़ता। वो तो अंतर्जगत में बहते अमृत का पान करता रहता है।

योगी अरविंद को जब जेल हुई तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा, उन्होंने जेल को तप साधना के लिए उत्तम अवसर माना, समस्त जन्मों के प्रारब्ध को काटने और नए तप अर्जन का सुअवसर माना।

जो कम्बल ओढ़ने को मिलता, उस पर बैठकर घण्टों ध्यानस्थ रहते। संसार मे परिवार में जो लोगो द्वारा डिस्टर्ब करने की संभावना होती है, वो यहां नहीं थी। भक्त और भगवान के मिलन में यहां कोई बाधा नहीं थी। कहते है उन्होंने जेल में वो तप साधना कर ली, जिसके लिए लोग हिमालय जाकर तप करते है। हिमालय का एकांत को उन्होंने जेल के एकांत में बदल दिया। जब वो जेल से निकले तो उनके चेहरे में इतनी दिव्य आभा थी कि लोग सहज ही मंत्रमुग्ध हो रहे थे।

जेल रूपी हिमालयीन एकांत का फायदा आप भी तपसाधना हेतु उठा सकते है। जन्म जन्मांतर के प्रारब्ध को नष्ट कर सकते है। तप के द्वारा ध्यान जगत में सूक्ष्म मन से मनचाही जगहों का भ्रमण बिन पैसे का कर सकते हैं।

हम आपके शरीर को तो जेल के बाहर नहीं ले जा सकते, लेकिन आपके मन को और आपकी आत्मा को जेल के बाहर विभिन्न स्थानों में ध्यान द्वारा घुमा सकते है और आनंद की अनुभूति करवा सकते है।

हम आपको गायत्री अनुष्ठान रुपी सौभाग्य की चाबी दे सकते है, जिसके उपयोग से आप अपने अंतर्जगत में पहुंच सकते हो, और जन्मों के प्रारब्ध का सफाया कर सकते हो।

जेल से बाहर निकल कर अमुक से बदला लेना, जिसने आपको फंसाया उसे दंडित करने का विचार मन से त्याग दो, क्योंकि प्रेम और घृणा दोनों ही दिमाग को अपनी ओर खींचती है। यह जो बदले की भावना है यह जन्मजन्मांतर तक भटकाती है, जब जिससे घृणा करते हो उसके साथ दुबारा जन्म के आवागमन में क्यों पड़ना चाहोगे। दुसरो पर कीचड़ उछालने के लिए पुनः हाथ कीचड़ में डालोगे?

सबके कर्मो का हिसाब ऊपरवाला रख रहा है, जो गलत करेगा उसको दण्ड मिलेगा वो चाहे इस जन्म में मिले या अगले जन्म में, मिलेगा जरूर। अतः पुनः उस बदले की भावना के दलदल की ओर मत जाइए।

याद रखिये, इस शरीर से जुड़े रिश्ते चिता के साथ ही जल जाते है, जब हमारे पूर्वज मरे तो भी हमारा जीवन नहीं रुका, तो फिर हमारे न रहने पर भी किसी और का जीवन नहीं रुकने वाला। शरीर सराय है और हम आत्मा है, हम आत्मस्वरूप अनन्त यात्री है।

हिमालय की तरफ चेतना की शिखर यात्रा शुरू कीजिए। चेतना के इस सफर मे हम आपकी पूरी सहायता करेंगे। आत्मा स्वयंमेव आनन्दस्वरूप है, अंतर्जगत में प्रवेश के बाद आनन्द ही आनन्द है।

तो क्या सूक्ष्म मन से चेतना के इस अनूठे दिव्य सफर पर हमारे साथ आप चलने को तैयार है?

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday 19 November 2018

बालसंस्कार शाला में माता-पिता के बीच वर्कशॉप में - उदबोधन

*बालसंस्कार शाला में माता-पिता के बीच वर्कशॉप में - उदबोधन*

आत्मीय देश के भविष्य को सँवारने वाले माता पिता,

हम सबके शरीर अलग अलग है, लेकिन हम सबका जीवन एक है और जुड़ा हुआ है। आप इस जीवन मे बिना किसी के सहयोग से न जन्म ले सकते है, न चिता में जल सकते हैं। जन्म से अंत तक सहयोग चाहिए।

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, सबसे पहले अपने शरीर पर पड़े कपड़े को देखो, यह बताईये क्या यह कपड़ा आपने ख़रीदा होगा... आप तक कैसे पहुंचा? या आपके पेट में जो भोजन है जिस जिसकी ऊर्जा से आप सबके पैरों में खड़े होने की ताकत आई, वो आप तक कैसे पहुंचा?

किसान, व्यापारी, दुकानदार, साइंटिस्ट, डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, धोबी इत्यादि अनेक लोगो का सहयोग और सेवा किसी न किसी रूप में लेते है।

 मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज मनुष्यों से बना हुआ है। यदि समाज अच्छा या बुरा है तो इसके लिए मनुष्यो को ही बदलना होगा। इस देश और समाज की एक इकाई हम भी है और हमारा परिवार भी।

यदि हम स्वयं को बदल लें और स्वयं में सुधार कर लें तो हम समाज की एक इकाई को सुधार लेंगे।

अच्छा यह बताइये, किस दुकानदार से आप सामान ख़रीदना चाहेंगे जो ईमानदार हो या जो बेईमान मिलावट खोर हो? जब जो ईमानदारी आप दूसरों में खोज रहे हो वो क्या दूसरे आपमें नहीं खोजेंगे?

आपकी ईमानदार व्यक्ति ढूंढने की तलाश पूरी हो न हो, लेकिन दूसरे व्यक्ति की तलाश जरूर पूरी हो जाएगी उसे एक ईमानदार सच्चा व्यक्ति आपके रूप में मिल जाएगा।

आज स्कूल अच्छी शिक्षा दे रहा है, लेकिन फ़िर भी समाज का चरित्र दिन ब दिन गिर रहा है। महंगे अस्पताल मृत लाश को 5 दिन तक वेंटिलेटर पर रखकर पैसे वसूल रहे हैं, महंगे वकील झूठ को सच साबित कर रहे हैं, महंगे स्कूल शिक्षा को बेंच रहे है, दुकानदार चावल में कंकड़ और दूधवाले दूध में पानी बेंच रहे है, नेता भारत माता की जय की जगह अपनी पार्टी के नेता की जय बोल रहे हैं, जनता को लूट रहे हैं, मनुष्य ही मनुष्य से डर रहा है, रोड पर लड़कों का समूह खड़ा हो और अकेली लड़की हो तो वो भयग्रस्त हो जाती है, उसे वो मनुष्य नहीं आतंकवादी संगठन नजर आते है जो चील की तरह उसकी इज्जत को नोच नोच के खा जाएंगे?

क्या आप इन बेईमानियों से खुश हो? ऐसे विकृत मानसिकता से ग्रस्त समाज मे जीना एन्जॉय कर रहे हो? नहीं न... क्या आप इसमें बदलाव चाहते हो? यदि हाँ तो इस बदलाव का हिस्सा हमें और आपको बनना पड़ेगा। अपने बच्चों को भी इस बदलाव का हिस्सा बनाना पड़ेगा।

*युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी* कहते हैं कि बच्चों का निर्माण एक टीम वर्क है, जिसमें सबको अपनी अपनी भूमिका निभानी पड़ेगी। हम हमारी भूमिका बाल सँस्कार शाला के रूप में निभा रहे हैं, आपको आपकी भूमिका निभाने  में सहायता हेतु कुछ पुस्तकें दे रहे हैं जिसे आप पढ़े और बच्चों को निर्माण तद्नुसार करें:-

1- सुसन्तति निर्माण की समग्र प्रक्रिया

2- बालकों का भावनात्मक निर्माण (बाल मनोविज्ञान)

3- बाल निर्माण की कहानियां

4- महापुरुषों के जीवनियां

5- हमारी भावी पीढ़ी और उसका नवनिर्माण

निम्नलिखित कुछ जीवनचर्या स्वयं अपनाये फिर बच्चो को सिखाएं।

1- सुबह उठते ही 5 गायत्री मंत्र मन ही मन जपकर, कम से 5 चीज़ों के लिये भगवान को धन्यवाद दें:-

उदाहरण - आप देख सकते है, सुन सकते है, बोल सकते है, चल सकते है, सोच सकते है इत्यादि जो जन्मजात ईश्वर प्रदत्त गिफ्ट है उसके लिए भगवान को धन्यवाद दें।

(कल्पना करें जिसका हाथ या पैर न हो उसके लिए जीवन जीना कितनी बड़ी चुनौती है)

2- बच्चो को देशभक्तों और वीर महापुरुषों की कहानियां पढ़ने के लिए प्रेरित करें।

3- प्राचीन ऋषियों ने जो कहा आज उसे AIMS ने भी रिसर्च में साबित कर दिया कि गायत्री मंत्र जप से बुद्धि बढ़ती है। अतः रोज बच्चो से कम से कम 108 बार गायत्री जप करवाये और 15 मिनट का ध्यान करवाये और स्वयं भी करें।

बच्चे आपको मॉनिटर और ऑब्जर्व कर रहे है, आप जो करोगे उसकी नकल करेंगे। अतः सिखाने से पहले ये उपरोक्त आदत स्वयं में डालनी होगी। परिवर्तन चाहते है तो परिवर्तन का हिस्सा आपको बनना पड़ेगा।

आइये हम सब मिलकर पुनः समाज में सकारात्मक बदलाव लाएं और बच्चो के लिए अच्छे समाज का निर्माण करें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

जब ह्रदय विदारक मौन क्रंदन हो, और कोई मौन आँखो से प्रश्न पूंछे,

जब ह्रदय विदारक मौन क्रंदन हो,
और कोई मौन आँखो से प्रश्न  पूंछे,
तब शब्दों की सामर्थ्य कहाँ,
जो इसका उत्तर दे सके,

जिस माँ ने ९ महीने गर्भ में पाला,
जिसने पुत्र के असमर्थ कदमो को चाल में ढाला,
उसको जब उसका बेटा असहाय मरने को छोड़ जाता है,
उसकी लाश को कन्धा तक देने नहीं आता है?

उसकी मृत देह की,
पुत्र के इंतज़ार में खुली आँखे,
करूँण मौन क्रंदन युक्त लाखो मौन प्रश्न पूंछती है?
भवन अपनी नीव को भूल क्यों गया?

माँ ने तब उसे प्रेम किया जब वो असहाय था,
पत्नी ने उसे तब प्रेम किया जब वो समर्थ था,
माँ ने मल मूत्र साफ़ किया,
कई रातों की नींदो का बलिदान किया,

एक पुत्र पर सर्वस्व वारने वाली माँ को,
उसके प्यार को पुत्र कैसे भूल गया?
जिसने अस्तित्व दिया,
उसे ही कैसे त्याग दिया?

मेरे शब्दों में सामर्थ्य नहीं जो,
इन मौन प्रश्नो का उत्तर दे,
यदि आपके पास हो तो,
आप ही कह दें|

#श्वेता #DIYA

Opposite - अर्थात उल्टा।

Opposite - अर्थात उल्टा।

प्रकाश और अंधेरा, ठंड और गर्म एक दूसरे के Opposite अर्थात उल्टे हैं, उनकी उपस्थिति और कार्य विपरित हैं।

हम प्रकाश को माप सकते है अंधेरे को नहीं। उसी तरह गर्मी नाप सकते हैं ठंड नहीं।

लेकिन स्त्री पुरुष, लड़के लड़की, दिन रात Opposite शव्द नहीं है। ये तो पूरक - complement शब्द   है। एक दूजे के बिना तो अस्तित्व ही नहीं है। जो एक दूसरे को पूर्णता प्रदान करता है, जहां co-operation - सहयोग की आवश्यकता है, वहां अनावश्यक competition - प्रतिस्पर्धा पैदा कर दी है।

अब अंग्रेजो के बनाये सिस्टम में हम लोग लड़की- लड़का, स्त्री- पुरुष और दिन-रात इत्यादि को opposite- उल्टा सिखाते है। आज सब उल्टे ही लटके हुए हैं। लड़ झगड़ रहे हैं।

प्रश्न - *क्या सविता(सूर्य) इंसानों की तरह भावनाएं अभिव्यक्त करता हैं और महसूस करता है?*

प्रश्न - *क्या सविता(सूर्य) इंसानों की तरह भावनाएं अभिव्यक्त करता हैं और महसूस करता है?*

उत्तर - आत्मीय भाई, प्रश्न का उत्तर समझने से पूर्व आइये *सूर्य की सविता शक्ति का विवेचन समझते हैं।*

दृश्यमान सूर्य को ऊर्जा देने वाली शक्ति को सविता कहते हैं, सूर्य का बाह्य स्वरूप शरीर मानो और सूर्य की आत्मा सविता जानो और सूर्यकी शक्ति को सावित्री जानो। सविता और सावित्री का युग्म है। रथ के दो पहियों की तरह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। सावित्री को गायत्री भी कहते हैं। सविता को आदित्य या भर्ग भी। दोनों की संयुक्त शक्ति का आविर्भाव जब होता है, तो उस समन्वय को उपलब्ध करके साधक धन्य बन जाता है। सविता की सर्वोपरि यहाँ तक की ब्रह्म कहा गया है।

*आदित्या-ज्योतिर्जायते। आदित्याद्देवा जायन्ते। आदित्या द्वेदा जायन्ते। असवा दित्यो ब्रह्म।* -सूर्यापनिषद

अर्थात् “आदित्य से प्रकाश उत्पन्न होता है। आदित्य से देवता उत्पन्न हुए हैं। आदित्य से वेद उत्पन्न हुए, यह सूर्य ही प्रत्यक्ष ब्रह्म है।

आगे शास्त्र इसी कथन की पुष्टि करते है।

*एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कंद प्रजापतिः। महेन्द्रो धनदः काले यमः सोमो ह्यषाँ पतिः* -बाल्मिकी. रामा.

अर्थात्- ‘‘यह सूर्य ही ब्रह्मा है। विष्णु है। शिव है। स्कंद है। प्रजापति है। इन्द्र है। कुबेर है। काल है। यम है। सोम है और इन सबका स्वामी भी है।

*संद्यानो देवः सविता साविशद् अमृतानि* -अथर्ववेद

अर्थात्-”वह सविता देव अमृत तत्वों से भरा पूरा है।"

मनुष्य उस परब्रह्म का अंश है, सूर्य भी परब्रह्म का ही स्वरूप है। समुद्र की बूंद में समुद्र के समस्त गुण धर्म होते है। इसी तरह यदि समुद्र की बूंद नमकीन है तो हम जान जाते है कि पूरा समुद्र खारा है। इसी तरह परब्रह्म की बूंद मनुष्य में भावनाएं है तो हम मान लेते है कि परब्रह्म में भी उसका अंश है।

मनुष्य का शरीर को दर्द या आराम तो अनुभव कर सकता है, लेकिन सुख, दुःख, क्रोध, आनंद इत्यादि भावनाएं जो शरीरगत नहीं है वो अनुभव नहीं कर सकता और शरीर से समझा भी नहीं जा सकता। भावनाएं मन से विनिर्मित होती है, अदृश्य भावनाओं को किसी लैब में जांचा परखा नहीं जा सकता लेकिन एक चेतन मनुष्य की भावना उससे जुड़ा दूसरा चेतन मनुष्य महसूस कर सकता है। सूर्य के बाह्य शरीर से उसके सविता द्वारा अभिव्यक्त भावों को देखा-समझा नहीं जा सकता।

वास्तव में सूर्य की सविता शक्ति द्वारा अभिव्यक्त भावनाओ को महसूस करने के लिए उससे चेतना के स्तर पर जुड़ना होगा, जिसे योग कहते है। जब यह कनेक्शन बन जायेगा तब परब्रह्म सविता शक्ति और प्रकृति  की प्यार, क्रोध, नाराज़गी, ख़ुशी इत्यादि भावनाएं महसूस होने लगेगी। प्रत्येक कण कण की भावनाओं महसूस करने की क्षमता निर्मल और श्रद्धापूरित हृदय द्वारा संभव है।

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Reference :-http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1987/May/v2.44

जिस पुत्री का भाग्य धरती के भगवान माता पिता ने बिगाड़ा हो उसका भला ऊपरवाला भी कैसे कर सकेगा?

*जिस पुत्री का भाग्य धरती के भगवान माता पिता ने बिगाड़ा हो उसका भला ऊपरवाला भी कैसे कर सकेगा?*

भगवान बड़ा दुःखी होता है...
जब एक माता-पिता उस पुत्री के सुख सौभाग्य के लिए प्रार्थना करते हैं...
जिसे उन्होंने पढ़ाया नहीं...
जिसे आर्थिक आत्मनिर्भर बनाया नहीं...
जिसे अच्छे संस्कार भी नहीं दिए...
जिसे मानसिक दक्षता नहीं दिया...
जिसे उसके अस्तित्व से परिचय करवा के उच्च मनोबल नहीं दिया...
जिसके अंदर कुछ कर गुजरने का बोध नहीं जगाया...
जिसे मनुष्य होने का भान नहीं करवाया...

ऐसी पुत्री जिसका भाग्य धरती के भगवान माता-पिता ने बिगाड़ा हो, उसे मानसिक गुलाम और पराधीन सोच देकर, उसका उद्धार तो ऊपरवाला भगवान भी नहीं कर सकता।

#श्वेता #DIYA

प्रश्न - *वेदोक्त, उपनिषदों और पुराणोक्त कथन में क्या अंतर है? कृपया अंतर बताने का कष्ट करें।*

प्रश्न - *वेदोक्त, उपनिषदों और पुराणोक्त कथन में क्या अंतर है? कृपया अंतर बताने का कष्ट करें।*

उत्तर - आत्मीय भाई, वेद ईश्वरीय सन्देश है जो ब्रह्मा जी के मुख से निकला था। फिर इन संदेशों को तपशक्ति द्वारा ऋषियों ने अर्जित किया नैमिषारण्य और कुंभ जैसे आयोजनों में सुनाया गया। भोजपत्र में लिखा गया।

वेद केवल मृत्यु के बाद स्वर्ग का खोखला दावा नहीं करते, अपितु जीवित अवस्था में स्वर्गीय सुख शांति युक्त मनःस्थिति के प्राप्ति के भी समस्त आध्यात्मिक वैज्ञानिक सूत्रों को देते हैं।

उपनिषद इन्ही वेदों के ज्ञान को आसान व्याख्या और प्रश्नोत्तरी, छोटी कहानियों के माध्यम से समझाता है।

*हांजी वेद उपनिषद तो 100% प्रामाणिक हैं।*

लेकिन...क्या पुराण अक्षरशः सत्य है....??

पुराण समय समय पर बुद्धिजीवी ऋषियों के द्वारा लिखे गए, जो कल्पना पर आधारित थे। इन काल्पनिक कहानियों के माध्यम से वो गूढ़ बातों को आसानी से जन सामान्य को कंठस्थ करवा देते थे। कृष्ण भगवान की ढेरों मनगढ़ंत कहानियां, देवी देवताओं की काल्पनिक मनगढंत कहानियों से पुराण भरे पड़े हैं। किसी एक इष्ट पर श्रद्धा करके केवल उसका वाला कहानी का पुराण पढोगे तो कन्फ्यूज नहीं होंगे। लेकिन जैसे ही बुद्धि का प्रयोग किया और सभी देवताओं के पुराण पढ़े तो दिमाग चकरा जाएगा और कन्फ्यूज हो जाओगे। हद तो तब होगी जब गोरखपुर प्रेस अर्थात एक ही प्रेस से छपे पुराणों में विरोधाभास पढोगे।

अब जब तुम्हारी बुद्धि चकराई तो इसका फ़ायदा अधर्मी उठाएंगे, वो तरह तरह से तुम्हे बेवकूफ बनाके अपना उल्लू सीधा करेंगे।

*आओ समझते है तुम्हें सो कॉल्ड पढ़े लिखे लोगो को पुराणों के नाम से बुद्धू बनाने का आसान उपाय*:-

उदाहरण में - *पंचतंत्र की एक मनगढंत कहानी जो नैतिक शिक्षा समझाने के उद्देश्य से लिखी गयी थी उससे समझते हैं*, एक कौआ रोटी मुंह मे लेकर डाल पर बैठा, चतुर लोमड़ी ने उसकी झूठी सिंगिग कैपेसिटी और सुंदर आवाज की प्रशंसा की और कौवे ने मुंह खोला। रोटी गिरी लोमड़ी ख़ाकर भाग गई।

*मोरल ऑफ स्टोरी*- झूठी प्रशंशा में नहीं पड़ना चाहिए।

अब इसी सन्देश को पुराणों में कैसे लिखेंगे:- *भगवान शिव से माता पार्वती ने पूँछा, भगवन मनुष्य की विपत्ति का कारण क्या है। शिव मुस्कुराए और बोले हे देवी आपने जगत कल्याण के लिए अति उत्तम प्रश्न पूँछा है। ध्यान से सुनो*:-

एक बार एक ऋषि ने तप किया और अपनी तपस्या से अनेक सिद्धियां पाई। उसे अपने तप का अहंकार हो गया कि वह इंद्रियों को जीत चुका है, अप्सराएं भी उसकी तपस्या भंग न कर सकी। तब भगवान इंद्र ने लीला रची। एक अप्सरा को साधारण वस्त्रों में भोजन इत्यादि लेकर भेजा, झूठी प्रसंसा करने को बोला। वो अप्सरा आती रोज भोजन करवाती उस ऋषि की झूठी झूठी प्रसंशा करती। जिससे उस ऋषि का अहंकार पुष्ट होता। फिर वो स्त्री बोली अब आपको ज्यादा तप करने की क्या आवश्यकता आपके पास तो इतना तप का खजाना है जो कई जन्मों तक चलेगा, आप तो मुझे अपने चरणों मे जगह दें, आपके समान पुत्र प्राप्त करने की इच्छा है। उस लोमड़ी सी चतुर स्त्री की झूठी प्रसंशा के चक्कर मे पड़कर उसने उस स्त्री से विवाह किया, तप छोड़ दिया। धर्म भ्रष्ट ज्यो हुआ और तप का खजाना ख़ाली हुआ। अप्सरा उसे छोड़ के चली गयी। अब वो केवल पछतावे में सिर धुनता रहा।

*मोरल ऑफ स्टोरी* - झूठी प्रशंशा में नहीं पड़ना चाहिए।

अब पुराणों में एक ही मोरल/नैतिक शिक्षा/जीवन मूल्य को समझाने के लिए कभी शिव-पार्वती संवाद गढा गया तो कभी नारद - विष्णु संवाद।

अति बुद्धि वादी बाल की खाल निकालने वाले, बोलेंगे भाई कौवा और लोमड़ी का तो संवाद ही सम्भव नहीं। पंचतंत्र झूठा है। अति बुद्धिवादी कभी भी पोस्ट या कहानी पढ़कर मोरल नहीं समझेंगे। बाल की खाल निकालेंगे।

वीडियो कैमरा और इंटरनेट तो था नहीं कि शंकर पार्वती या नारद-विष्णु का संवाद ऋषि ने देखकर लिखा हो। उन ऋषि ने  पुराण तो लोगो मे अध्यात्म और धर्म की स्थापना और मोरल समझाने के लिए लिखा था। जिस इष्ट को वो मानता था उसे उसने परब्रह्म घोषित किया और कहानी उसे केंद्रित करके लिख दिया। लक्ष्मी पुराण में ब्रह्माण्ड पॉवर शक्ति लक्ष्मी, विष्णु पुराण में भगवान विष्णु में ब्रह्माण्ड पॉवर शक्ति बताया गया, शिव पुराण में शिव ब्रह्माण्ड पॉवर  धारण करते है और शक्ति पुराण में भवानी ब्रह्माण्ड शक्ति धारण करती है।कहानियां एक जैसी ही है, राक्षसों के नाम भी और घटनाएं भी लगभग मिलते जुलते है।

*अतः पुराण को अक्षरशः सत्य और प्रमाणिक मानने वाले भी गलती करेंगे, और पुराणों के महात्म्य को नकारने वाले भी ग़लती करेंगे।*

उत्तम यह होगा कि केवल वेद और उपनिषद को प्रमाणिक माने, और पुराणों से केवल मोरल वैल्यू उठाये। अन्यथा उलझने में कुछ भी हाथ न लगेगा, बाल की खाल तो कभी किसी को नहीं मिलती। कोर्ट जाओगे बड़े वकील को फीस दो तो एक वकील कौए को संगीतज्ञ सिद्ध कर देगा, फिर यदि उसी वकील को लोमड़ी हायर करेगी, तो वो लोमड़ी को महान सिद्ध कर देगा, पैसे के बल पर लोमड़ी के पक्ष में हज़ार गवाह मिल जाएंगे। जिसके पास उत्तम वकील उसका जीतना तय होगा। सत्य कुतर्क में गुम जाएगा। लोग मोरल भूल जाएंगे।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

धार्मिक सम्प्रदाय के नाम पर युद्ध क्यों?

आज पूजा करते हुए एक विचार दिमाग़ में कौंध गया...

*हिंदी कैलेंडर* से आज के दिन को
*कार्तिक शुक्ल दशमी रविवार* विक्रम संवत् 2075।

*इंग्लिश कैलेण्डर में*
*18 नबम्बर 2018, रविवार*

*मुस्लिम हिजरी कैलेंडर में*
 10 Rabiʻ I 1440
Umm-Al-Qura calendar

किसी भी धर्म जाति, संस्कृति, सम्प्रदाय के कैलेंडर से आज के दिन का नामकरण करो, या आज का दिन बेनाम रखो तो भी क्या फ़र्क पड़ेगा?

आज का दिन तो कर्मानुसार ही फल देगा, जो मेहनत करेगा वो कमायेगा, जो आलस्य में पड़ा रहेगा उसके कुछ हाथ न आएगा। जो गलत खायेगा वो पेट दर्द से पीड़ित होगा, जो सही खायेगा वो स्वास्थ्य पायेगा...इत्यादि...

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई पारसी इत्यादि को समय 24 घण्टे ही मिले है, समय के मजहबी नामकरण से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा।

इस आज के दिन की तरह ही वो परमात्मा सर्वशक्तिमान निराकार है वो भी एक ही है, इसका मज़हबी नामकरण इंसानों के द्वारा करने से परमात्मा को कोई फ़र्क नहीं पड़ता। जो जिस जाति धर्म का व्यक्ति ध्यान करेगा वो उससे जुड़ेगा। वो तो कर्मानुसार ही फल देगा।

मरने के बाद हमें नाम से नहीं हमारे काम से ही याद किया जाता है। अगेन कर्म ही प्रमुख हुआ न...

समझ नहीं आता, एक शक्ति के अनेक मजहबी नाम रखकर उसके लिए लड़ना कहाँ की अक्लमंदी है? जो बाहर नहीं स्वयं के भीतर ही है उसे बाहर ढूंढना कहाँ की अक्लमंदी है? धार्मिक सम्प्रदाय के नाम पर युद्ध क्यों?

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

कविता - बेटी पैदा हुई है तो....दहेज़ मत जुटाओ...

बेटी पैदा हुई है तो,

दहेज़ मत जुटाओ,
दुर्गा शक्ति को पहले शिक्षित बनाओ,
अच्छे संस्कारो से उसे गढ़ना,
उसको देश का कोहिनूर बनाना,

बोलो बेटी से,
अपना वर्चस्व बनाओ,
उच्च मनोबल से,
अपनी सफलता का परचम लहराओ,

दहेज़ के लोभी को सबक सिखाना,
कुंवारी रह जाना पर दहेज न देना,

अच्छे लड़कों की संसार मे कमी नहीं है,
जो स्वयं को विवाह में बेचते नहीं है।

भवानी दुर्गा बनकर देवाधिदेव शिव से विवाह रचाना,
स्वयं की रक्षा के साथ साथ अन्य नारियों की रक्षा का भार उठाना।

यदि कभी नर पिशाच से पाला पड़ जाये,
तुम्हारी अस्मिता पर जो हाथ लगाए,
उस पिशाच का वो हाथ उखाड़कर आना,
ताकि फ़िर वो किसी और को परेशान न कर पाए।

#श्वेता #DIYA

प्रिय भाईयों, ईश्वर ने तुम्हें शरीर और मन से मजबूत इसलिए बनाया है कि तुम सृष्टि के सहयोगी रक्षक बन सको

प्रिय भाईयों, ईश्वर ने तुम्हें शरीर और मन से मजबूत इसलिए बनाया है कि तुम सृष्टि के सहयोगी रक्षक बन सको, लेकिन यदि तुम गलत संगत में स्त्रियों के लिए आतंक बनोगे, तुम जैसे कई बेटे जहां साथ खड़े हो उस रास्ते से निकलने में लड़की डरे, तुममें उसे रक्षक नहीं अपितु भक्षक-आतंक दिखाई दे तो क्या ये शर्म की बात नहीं है...इस बिगड़ी छवि को कौन सुधारेगा?

तुम एक स्त्री माँ से जन्मे हो, एक स्त्री बहन के भाई हो, भविष्य में पत्नी, बहु और बेटी के रूप में स्त्री होगी, दादी-नानी-बुआ-मौसी सब स्त्रियां ही है.. बेटे क्या तुम्हें नहीं लगता कि लड़कों की रक्षक छवि को कुछ गन्दे लड़को ने खराब कर दिया है तो कुछ अच्छे लड़को को एकजुट हो इसे ठीक करने की भी आवश्यकता है?

युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते है कि वर्तमान चुनौतियों और समस्याओं के लिए युवावर्ग को संगठित होकर प्रयास करना पड़ेगा। क्या स्त्रियों और बच्चो के लिए यह देश-समाज सुरक्षित बनाने में युवा भाइयों-युवा बेटों मदद करोगे? पुनः धर्म-समाज-सृष्टि रक्षक भूमिका सम्हालोगे? सतयुग की वापसी करोगे?

#श्वेता #DIYA

देवोत्थान एकादशी - तुलसी और शालिग्राम विवाह

*माता तुलसी की*
*और पिता विष्णु भगवान की जय*

भगवान विष्णु ने,
सृष्टि का भार उठाया,
माता तुलसी ने,
सृष्टि के स्वास्थ्य का आधार सम्हाला।

जो भी श्रद्धा भक्ति से,
माँ तुलसी की शरण में आएगा,
बिना किसी भेदभाव के,
आरोग्य लाभ पायेगा।

माता तुलसी,
एक चिकित्सक की भी,
अहम भूमिका निभाती है,
एक दिन पहले,
जिस रोग के लिए प्रार्थना करोगे,
सुबह उसी रोग की,
औषधि का रस पत्तियों में डालती है।

जिस आंगन में,
श्री तुलसी जी विराजती है,
स्वस्थ शरीर में,
उनके चेहरे में सहज़ मुस्कान सजती है।

*पूजन तुलसी गायत्री मंत्र*:-

*ॐ श्री तुलस्यै विद्महे, विष्णुप्रियायै धीमहि, तन्नो वृंदा प्रचोदयात।*

*पूजन विष्णु गायत्री मंत्र*:-

*ॐ नारायणाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि, तन्नो नारायणः प्रचोदयात।*

युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने अपनी पुस्तक - *तुलसी के चमत्कारिक गुण* में माता तुलसी के आरोग्यवर्धक गुणों को विस्तार से बताया है, उसे पढ़े, लाभों को जानें और लाभ लें। यूट्यूब और गूगल पर भी माता तुलसी के औषधीय लाभ की विस्तृत जानकारी मिल जाएगी।

भारतीय सनातन धर्म एक वैज्ञानिक धर्म है। आंगन में तुलसी को प्रत्येक माह नित्य 21 दिन जल चढ़ाने वाली स्त्री को कभी भी गर्भाशय सम्बन्धी रोग नहीं होते, और कम से कम 9 दिन प्रत्येक माह पुरुष द्वारा तुलसी को जल चढ़ाने से उन्हें प्रजनन अंग सम्बन्धी रोग नहीं होते। तुलसी के पत्ते दांतो से डायरेक्ट नहीं चबाना चाहिए उन्हें निगलना चाहिए, या मिश्री में मिलाकर खाना चाहिए। हज़ारो रोगों की एक दवा तुलसी है। तुलसी प्रत्येक समयांतराल में अपना औषधीय अर्क हवा में छोड़ती है, लेकिन ज्यों ही हम झुककर उनकी जड़ो में जल डालते है वो तेज़ी से वो औषधीय अर्क छोड़ती है, जो प्राणवायु में मिलकर हमारी श्वांसों में प्रवेश करता है, और फेफड़े से हृदय तक पहुंचकर, रक्त में मिलकर पूरे शरीर मे पहुंच जाता है। तुलसी का अर्क रोगाणु मारता है, और शरीर के जरूरी जीवाणु को पोषण देता है। इम्म्युनिटी बढ़ाता है।

अगर ध्यान दें तो आप पाएंगे कि प्राचीन समय में तुलसी के पौधे को आंगन के बीच में ऊंचे मिट्टी के आधार पर रोपा जाता था। जिससे जल चढ़ाने पर चेहरा तुलसी के ज्यादा नजदीक रहे। स्त्रियों के चेहरे की चमक, झुर्रियों और स्वास्थ्य का ख़्याल माता तुलसी रखती थीं, एक मित्र की तरह स्त्री अपने सुख दुःख सब उनसे कहती थी। डिप्रेशन कभी नहीं होता था। तुलसी सहज तनाव हर लेती थी।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

जन्मदिन गीत - तुम्हें जन्मदिन की बधाई बधाई,

तुम्हें जन्मदिन की बधाई बधाई,
यही बात इन दीपकों ने बताई।।

किया जो इन पंचतत्वों का पूजन,
इन्ही पंच तत्वों से बना  तन,
अरे! देव दुर्लभ मिला है यह जीवन,
नहीं भोग में तपे यह देह पावन,
यही बात इन दीपकों ने बताई।।

हरेक वर्ष के दीप तुमने जलाए,
तुम्हारा ये जीवन यूँ ही जगमगाये,
स्वयं यह प्रकाशित अंधेरा मिटाए,
भटकते हुओं को यह राह दिखाए,
यही बात इन दीपकों ने बताई।।

नहीं देह तुम हो अमर आत्मा,
नहीं स्वार्थी जीव विश्वात्मा हो,
अधम हो नहीं तुम दिव्य दिव्यात्मा हो,
अगर सोच लो तो परमात्मा हो,
हो स्वामी अरे मत करो सेवकाई।

सुमन सा सुगंधित रहो मुस्कुराओ,
यह जीवन सुमन देवता को चढ़ाओ,
जियो लोकहित और आशीष पाओ,
जीवेम शरदः शतम व्रत निभाओ,
इसी वास्ते पुष्पांजलि चढ़ाई।


यही बात इन दीपकों ने बताई।
तुम्हें जन्मदिन की बधाई बधाई।।
[11/20, 7:34 AM] Sweta - awgpggn.blogspot: जन्मदिन पर सभी हम मिले है,
देखो खुशियों के गुलशन खिले हैं।

नवसुमन से सुगंधित रहो तुम,
मुस्कुराते सदा ही रहो तुम,
जैसे तारे गगन में खिले हैं।

ज्यो बहे पुण्य गंगा की धारा,
त्यों रहे श्रेष्ठ जीवन तुम्हारा,
मां की ममता में हम सब पले है।

सभी मिल करके देते बधाई,
सदा जीवन रहे हर्षदायी,
दीप जीवन के जगमग जले हैं।

दिव्य जीवन बने देवता सा,
स्वर्ग सा हो समय इस धरा का,
सूत्र गुरु के हमें प्रिय मिले हैं।

जन्मदिन पर सभी हम मिले है,
देखो खुशियों के गुलशन खिले हैं।
[11/20, 7:37 AM] Sweta - awgpggn.blogspot: प्यारे पापाजी जी,

 गुरूदेव से आपके शुभ जन्मदिन पर यही प्रार्थना है कि आपकी चेतना को उच्च शिखर पर ले जाये, आपको जीवन को साक्षी भाव से देखने की क्षमता मिले, उच्च मनोबल और दृढ़ संकल्प बल मिले, योगियों सी अंतर्दृष्टि मिले यही गुरूदेव माता जी से प्रार्थना है। संसार मे रहकर भी कमल के फूल की तरह संसार से ऊपर उठने की क्षमता मिले यही प्रार्थना है। यज्ञमय उज्ज्वल भविष्य आपका हो यही प्रार्थना है। मन में सुकून और हिमालय सी शांति मिले, हृदय में भक्ति सागर मिले, भावसम्वेदना की गंगोत्री बहे।

सुरदुर्लभ भक्ति मिले, सुरदुर्लभ ज्ञान मिले।

🌹🌹🌹🌹🌹🌹

जन्मदिन की हार्दिक शुभ कामनाएँ

भवन कैसे भूल जाये अपनी नींव को,
जिस नींव पर खड़ा वो मुस्कुरा रहा है।
वो खड़ा है क्योंकि...
कोई मौन समर्थन बिन बाहर दिखे दे रहा है।

आप वो शक्ति हो जो हम सब की नींव हो, प्रत्येक कामयाब व्यक्ति के पीछे उसके मातापिता का प्यार आशीर्वाद त्याग समर्पण और तप लगा होता है।

हमें अपने प्यार और आशीर्वाद से सींचने के लिए धन्यवाद।

चरण स्पर्श,

Saturday 17 November 2018

किसी भी धर्म जाति, संस्कृति, सम्प्रदाय के कैलेंडर से आज के दिन का नामकरण करो, या आज का दिन बेनाम रखो तो भी क्या फ़र्क पड़ेगा?

आज पूजा करते हुए एक विचार दिमाग़ में कौंध गया...

*हिंदी कैलेंडर* से आज के दिन को
*कार्तिक शुक्ल दशमी रविवार* विक्रम संवत् 2075।

*इंग्लिश कैलेण्डर में*
*18 नबम्बर 2018, रविवार*

*मुस्लिम हिजरी कैलेंडर में*
 10 Rabiʻ I 1440
Umm-Al-Qura calendar

किसी भी धर्म जाति, संस्कृति, सम्प्रदाय के कैलेंडर से आज के दिन का नामकरण करो, या आज का दिन बेनाम रखो तो भी क्या फ़र्क पड़ेगा?

आज का दिन तो कर्मानुसार ही फल देगा, जो मेहनत करेगा वो कमायेगा, जो आलस्य में पड़ा रहेगा उसके कुछ हाथ न आएगा। जो गलत खायेगा वो पेट दर्द से पीड़ित होगा, जो सही खायेगा वो स्वास्थ्य पायेगा...इत्यादि...

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई पारसी इत्यादि को समय 24 घण्टे ही मिले है, समय के मजहबी नामकरण से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा।

इस आज के दिन की तरह ही वो परमात्मा सर्वशक्तिमान निराकार है वो भी एक ही है, इसका मज़हबी नामकरण इंसानों के द्वारा करने से परमात्मा को कोई फ़र्क नहीं पड़ता। जो जिस जाति धर्म का व्यक्ति ध्यान करेगा वो उससे जुड़ेगा। वो तो कर्मानुसार ही फल देगा।

मरने के बाद हमें नाम से नहीं हमारे काम से ही याद किया जाता है। अगेन कर्म ही प्रमुख हुआ न...

समझ नहीं आता, एक शक्ति के अनेक मजहबी नाम रखकर उसके लिए लड़ना कहाँ की अक्लमंदी है? जो बाहर नहीं स्वयं के भीतर ही है उसे बाहर ढूंढना कहाँ की अक्लमंदी है? धार्मिक सम्प्रदाय के नाम पर युद्ध क्यों?

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday 16 November 2018

प्रश्न - *वेदोक्त, उपनिषदों और पुराणोक्त कथन में क्या अंतर है? कृपया अंतर बताने का कष्ट करें।*

प्रश्न - *वेदोक्त, उपनिषदों और पुराणोक्त कथन में क्या अंतर है? कृपया अंतर बताने का कष्ट करें।*

उत्तर - आत्मीय भाई, वेद ईश्वरीय सन्देश है जो ब्रह्मा जी के मुख से निकला था। फिर इन संदेशों को तपशक्ति द्वारा ऋषियों ने अर्जित किया नैमिषारण्य और कुंभ जैसे आयोजनों में सुनाया गया। भोजपत्र में लिखा गया।

वेद केवल मृत्यु के बाद स्वर्ग का खोखला दावा नहीं करते, अपितु जीवित अवस्था में स्वर्गीय सुख शांति युक्त मनःस्थिति के प्राप्ति के भी समस्त आध्यात्मिक वैज्ञानिक सूत्रों को देते हैं।

उपनिषद इन्ही वेदों के ज्ञान को आसान व्याख्या और प्रश्नोत्तरी, छोटी कहानियों के माध्यम से समझाता है।

*हांजी वेद उपनिषद तो 100% प्रामाणिक हैं।*

लेकिन...क्या पुराण अक्षरशः सत्य है....??

पुराण समय समय पर बुद्धिजीवी ऋषियों के द्वारा लिखे गए, जो कल्पना पर आधारित थे। इन काल्पनिक कहानियों के माध्यम से वो गूढ़ बातों को आसानी से जन सामान्य को कंठस्थ करवा देते थे। कृष्ण भगवान की ढेरों मनगढ़ंत कहानियां, देवी देवताओं की काल्पनिक मनगढंत कहानियों से पुराण भरे पड़े हैं। किसी एक इष्ट पर श्रद्धा करके केवल उसका वाला कहानी का पुराण पढोगे तो कन्फ्यूज नहीं होंगे। लेकिन जैसे ही बुद्धि का प्रयोग किया और सभी देवताओं के पुराण पढ़े तो दिमाग चकरा जाएगा और कन्फ्यूज हो जाओगे। हद तो तब होगी जब गोरखपुर प्रेस अर्थात एक ही प्रेस से छपे पुराणों में विरोधाभास पढोगे।

अब जब तुम्हारी बुद्धि चकराई तो इसका फ़ायदा अधर्मी उठाएंगे, वो तरह तरह से तुम्हे बेवकूफ बनाके अपना उल्लू सीधा करेंगे।

*आओ समझते है तुम्हें सो कॉल्ड पढ़े लिखे लोगो को पुराणों के नाम से बुद्धू बनाने का आसान उपाय*:-

उदाहरण में - *पंचतंत्र की एक मनगढंत कहानी जो नैतिक शिक्षा समझाने के उद्देश्य से लिखी गयी थी उससे समझते हैं*, एक कौआ रोटी मुंह मे लेकर डाल पर बैठा, चतुर लोमड़ी ने उसकी झूठी सिंगिग कैपेसिटी और सुंदर आवाज की प्रशंसा की और कौवे ने मुंह खोला। रोटी गिरी लोमड़ी ख़ाकर भाग गई।

*मोरल ऑफ स्टोरी*- झूठी प्रशंशा में नहीं पड़ना चाहिए।

अब इसी सन्देश को पुराणों में कैसे लिखेंगे:- *भगवान शिव से माता पार्वती ने पूँछा, भगवन मनुष्य की विपत्ति का कारण क्या है। शिव मुस्कुराए और बोले हे देवी आपने जगत कल्याण के लिए अति उत्तम प्रश्न पूँछा है। ध्यान से सुनो*:-

एक बार एक ऋषि ने तप किया और अपनी तपस्या से अनेक सिद्धियां पाई। उसे अपने तप का अहंकार हो गया कि वह इंद्रियों को जीत चुका है, अप्सराएं भी उसकी तपस्या भंग न कर सकी। तब भगवान इंद्र ने लीला रची। एक अप्सरा को साधारण वस्त्रों में भोजन इत्यादि लेकर भेजा, झूठी प्रसंसा करने को बोला। वो अप्सरा आती रोज भोजन करवाती उस ऋषि की झूठी झूठी प्रसंशा करती। जिससे उस ऋषि का अहंकार पुष्ट होता। फिर वो स्त्री बोली अब आपको ज्यादा तप करने की क्या आवश्यकता आपके पास तो इतना तप का खजाना है जो कई जन्मों तक चलेगा, आप तो मुझे अपने चरणों मे जगह दें, आपके समान पुत्र प्राप्त करने की इच्छा है। उस लोमड़ी सी चतुर स्त्री की झूठी प्रसंशा के चक्कर मे पड़कर उसने उस स्त्री से विवाह किया, तप छोड़ दिया। धर्म भ्रष्ट ज्यो हुआ और तप का खजाना ख़ाली हुआ। अप्सरा उसे छोड़ के चली गयी। अब वो केवल पछतावे में सिर धुनता रहा।

*मोरल ऑफ स्टोरी* - झूठी प्रशंशा में नहीं पड़ना चाहिए।

अब पुराणों में एक ही मोरल/नैतिक शिक्षा/जीवन मूल्य को समझाने के लिए कभी शिव-पार्वती संवाद गढा गया तो कभी नारद - विष्णु संवाद।

अति बुद्धि वादी बाल की खाल निकालने वाले, बोलेंगे भाई कौवा और लोमड़ी का तो संवाद ही सम्भव नहीं। पंचतंत्र झूठा है। अति बुद्धिवादी कभी भी पोस्ट या कहानी पढ़कर मोरल नहीं समझेंगे। बाल की खाल निकालेंगे।

वीडियो कैमरा और इंटरनेट तो था नहीं कि शंकर पार्वती या नारद-विष्णु का संवाद ऋषि ने देखकर लिखा हो। उन ऋषि ने  पुराण तो लोगो मे अध्यात्म और धर्म की स्थापना और मोरल समझाने के लिए लिखा था। जिस इष्ट को वो मानता था उसे उसने परब्रह्म घोषित किया और कहानी उसे केंद्रित करके लिख दिया। लक्ष्मी पुराण में ब्रह्माण्ड पॉवर शक्ति लक्ष्मी, विष्णु पुराण में भगवान विष्णु में ब्रह्माण्ड पॉवर शक्ति बताया गया, शिव पुराण में शिव ब्रह्माण्ड पॉवर  धारण करते है और शक्ति पुराण में भवानी ब्रह्माण्ड शक्ति धारण करती है।कहानियां एक जैसी ही है, राक्षसों के नाम भी और घटनाएं भी लगभग मिलते जुलते है।

*अतः पुराण को अक्षरशः सत्य और प्रमाणिक मानने वाले भी गलती करेंगे, और पुराणों के महात्म्य को नकारने वाले भी ग़लती करेंगे।*

उत्तम यह होगा कि केवल वेद और उपनिषद को प्रमाणिक माने, और पुराणों से केवल मोरल वैल्यू उठाये। अन्यथा उलझने में कुछ भी हाथ न लगेगा, बाल की खाल तो कभी किसी को नहीं मिलती। कोर्ट जाओगे बड़े वकील को फीस दो तो एक वकील कौए को संगीतज्ञ सिद्ध कर देगा, फिर यदि उसी वकील को लोमड़ी हायर करेगी, तो वो लोमड़ी को महान सिद्ध कर देगा, पैसे के बल पर लोमड़ी के पक्ष में हज़ार गवाह मिल जाएंगे। जिसके पास उत्तम वकील उसका जीतना तय होगा। सत्य कुतर्क में गुम जाएगा। लोग मोरल भूल जाएंगे।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

युगनिर्माण के तीन मुख्य कार्यक्रम- गर्भसँस्कार, बालसंस्कार शाला और जन्मदिन सँस्कार

*युगनिर्माण के तीन मुख्य कार्यक्रम- गर्भसँस्कार, बालसंस्कार शाला और जन्मदिन सँस्कार*

हमारे आत्मीय बंधुओं,

काल अर्थात समयानुसार युग को चार भागों में बांटा गया है:-

युग अर्थात जिस समयावधि में अधिकतर लोगों की सोच स्थूल और सूक्ष्म पुण्यात्मक या पापात्मक होती है। उसी के आधार पर युग बांटा जाता है। एक तरह से संसद समझो, चुनाव में दो पार्टी खड़ी है पुण्य और पाप। उनके समर्थक पुण्यात्मा और पापात्मा। जिसका बहुमत उसकी सरकार।

सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग

👉🏼 *सतयुग में 90% से 80% लोग पुण्यात्मक सोच वाले लोगों का राज़*, सर्वत्र लोककल्याण का भाव और सुख शांति। यहां देवत्व स्वर्ग और धरती में राज करता था। पापी पाताल लोक में भय से छुपे रहते थे।

👉🏼 *त्रेता में 80% से 70% लोग पुण्यात्मक सोच* वाले लोगों का राज़, सर्वत्र लोककल्याण का भाव और सुख शांति। यहां देवत्व स्वर्ग और धरती में राज करता था। पापी पाताल लोक से बाहर आकर धरती पर रहने लगें। उन्हें पुनः खदेड़ कर पाताल भेज दिया गया। वो पुनः आये लेकिन फिर भी देशों में बंटे थे।

👉🏼 *द्वापर में 60% से 40% लोग पुण्यात्मक सोच* वाले लोगों का राज़, सर्वत्र लोककल्याण का भाव और सुख शांति में बाधा पहुंचने लगी। यहां देवत्व स्वर्ग और धरती में राज उखड़ने लगा था। पापी पाताल लोक से बाहर आकर अब पापी और पुण्यात्मा एक ही परिवार में मिलने लगे। अब अपनों के बीच ही महाभारत शुरू हो गयी। बड़ी कठिनाई से पुनः धर्म स्थापना संभव हुई।

👉🏼 *कलियुग में 40% से 20% लोग पुण्यात्मक सोच वाले लोग बचे*, सर्वत्र लोककल्याण का अभाव और सुख शांति का अभाव दृष्टिगोचर हो रहा है। अब पाप मन मे भी छाने लगा, मन मे ही महाभारत शुरू हो गया। विकृत चिंतन का बोलबाला हो गया, घर मे ही बहन बेटी असुरक्षित हो गयी, अब तो नन्ही कन्या का भी रेप की घटना आम हो गयी। भ्र्ष्टाचार और पाप का साम्राज्य चल रहा है।

🙏🏻 *भगवान ने प्रॉमिस/वादा किया है, कि मनुष्यता जब जब भी संकट में होगी वो अंशावतार लेकर उसे उबारेंगे*। 🙏🏻

इस बार भी वादा निभाया और प्रज्ञावतार के रूप में अवतरित हुए। सतयुग, त्रेता और द्वापर में, राजा के आधार पर प्रजा चलती थी। दुष्ट राजा मार दो, नए अच्छे राजा के आते ही युगनिर्माण हो जाता था।

लेकिन कलियुग में सत्ता को चुनने का अधिकार जनता के हाथ मे है। पाप बाहर नहीं मन के भीतर है। एक रावण को मारने के लिए एक राम काफी है। लेकिन करोड़ो रावण बुद्धि है, कितने करोड़ राम जन्मेंगे, तो परिवर्तन हेतु सद्बुद्धि की स्थापना हेतु सद विचारो का प्रवेश जन जन में करवाना होगा।

भगवान कभी अकेले नहीं जन्मते, उनके अनुचर भी साथ जन्मते है। *प्रज्ञावतार युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने युगसाहित्य का भंडार दिया और शत सूत्रीय मानसिक देवासुर संग्राम हेतु दिए। उनके अनुचर देवतागण/ऋषिसत्ताएँ युगनिर्माणियो के रूप में कार्य कर रहे हैं*।

*बाल मन की दीवार कोरी होती है,  लेकिन वयस्क मन विभिन्न आस्थाओं और मान्यताओं से मन की दीवार भर देता है। अतः वयस्क में युगनिर्माण में अतिरिक्त मेहनत पुरानी रूढ़िवादी मान्यताओं और आस्थाओं को मिटाने में खर्च होता है*।

इसलिए युगनिर्माण, सतयुग की वापसी और युगपरिवर्तन का मुख्य कार्य गर्भ से ही प्रारम्भ होगा। *जब गर्भ में मन की दीवार का निर्माण प्रारम्भ होता है, तभी उसके मन मे देवत्व की स्थापना का सही वक्त होता है। गर्भसंस्कार द्वारा माइंड प्रोग्रामिंग देवत्व के लिए शुरू कर दी जाती है।*

*सारे विद्यालय और स्कूल का पाठ्यक्रम बदलना जो कि धर्म निरपेक्ष (अर्थात धर्म विहीन) है, जहां केवल शरीर विज्ञान और शिक्षा मिलती है। मन प्रबंधन और आत्मा की प्योरिटी को आत्मसात नहीं करवाया जाता। शिक्षित व्यक्ति शिक्षा को आतंक फैलाने, भ्र्ष्टाचार में उपयोग करेगा या सृजन में कोई गारण्टी वारण्टी स्कूल नहीं दे सकता।*

उन्हें सम्पूर्ण बदलना आसान नहीं। अतः समानांतर वैकल्पिक व्यवस्था बालसंस्कार शाला को शुरू किया गया। जो मन की गुणवत्ता बढ़ाते हुए देवत्व की स्थापना के लिए चलाया जा रहा है।

*जन्मदिन सँस्कार के माध्यम से सबको मनुष्यता से अवगत करवा कर उन्हें श्रेष्ठता की ओर मोड़ने की मांइड प्रोग्रामिंग की जाती है।* यह छोटा सा सँस्कार एक तरह से मनुष्य के मन में देवत्व का बीजारोपण करने हेतु उपयोग किया जाता है।

देवत्व विचार धारा को सूक्ष्म स्तर पर प्रेषित करने के लिए गायत्री मंत्र और यज्ञ रूपी आध्यात्मिक विधिव्यवस्था और उपकरणों की सहायता ली जा रही है। आध्यात्मिक विचारो के हथियार रूप में सत्साहित्य का विस्तार कर रहे हैं।

सभी देवात्माये जो अंगअवयव है देवदूत है, वो जुट गए है मिशन सतयुग की वापसी और युगनिर्माण में, यह अभियान अवश्य सफल होगा।

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...