Sunday 31 May 2020

दुःख में दुःखी होने की जगह, दुःख दूर करने में जुटो, यही युगऋषि सत्ताओं का सन्देश है।

*दुःख में दुःखी होने की जगह, दुःख दूर करने में जुटो, यही युगऋषि सत्ताओं का सन्देश है।*

दुःख प्रारब्धवश है, सेवा मानव कर्म है।

यह मत गिनो, कि कितने लोग दुःखी हैं।

यह देखो कि तुम कितनो की मदद कर सकते हो।

हम जनसेवक हैं, यदि हम सङ्कल्प पूर्वक सेवा में जुटते हैं तो ईश्वर हमारी मदद प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप में करता है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *दूरस्थ या निकटतम प्रियजन जो सुनने को तैयार न हों, उन तक ऊर्जा का संचार, नशा छुड़वाना एवं मानसोपचार प्राणिक चिकित्सा/टेलीपैथी/रेकी/प्रार्थना द्वारा कैसे करें?*

प्रश्न - *दूरस्थ या निकटतम प्रियजन जो सुनने को तैयार न हों, उन तक ऊर्जा का संचार एवं मानसोपचार  प्राणिक चिकित्सा/टेलीपैथी/रेकी/प्रार्थना द्वारा कैसे करें?*

उत्तर - आत्मीय बहन, सबसे पहले हमें यह समझना होगा ....की हमारा शरीर किस तरह काम करता है ? मनुष्य का शरीर कई तरह की उर्जाओ यानी एनर्जी का सोत्र है और हम जीवन निर्वाह के लिए इन एनेर्जी को भिन्न भिन्न तरीको से जाने अनजाने ग्रहण करते है .....

इक एनर्जी का दूसरी एनर्जी में बदलाव ...हमारे शरीर में निरंतर होता रहता है.... जिसे साइंस की भाषा में एनर्जी ट्रांसफॉर्मेशन या रुपंतार्ण कहते है ....

मनुष्य के शरीर में मैकेनिकल , इलेक्ट्रिकल ,चुम्बकीय ,बायो केमिकल ,प्रकाश ,ध्वनि , हीट और कॉस्मिक उर्जा का प्रवेश, रुपंतार्ण और निर्माण अलग लग तरीको से और शरीर की भिन्न  भिन्न अंगो द्वारा होता है ....


एक दिन में ....इक आम इन्सान भोजन,पानी ,वायु ,ध्वनि और प्रकाश का ग्रहण खाने, देखने, सुनना, सूंघना , सोचना और महसूस करना आदि भिन्न भिन्न कार्य द्वारा करता है.....

भोजन शरीर में जाकर अलग अलग उर्जा का निर्माण करता है ...जिससे शरीर सुचारू रूप से चलता रहे ...भोजन के अलावा बाकी क्रियाये भी हमारे शरीर पे अपना प्रभाव डालती है ....जिसे हम अधिकतर हलके तौर पे लेते है ....पर कभी कभी इनके आकस्मिक प्रभाव भी हमारे मन , मस्तिष्क पर पड़ते है ...

जैसे किसी सड़े-मरे हुए जानवर को देख उलटी का जी होना या किसी आम आदमी का ऑपरेशन थिएटर में बेहोस हो जाना या किसी बहुत ही सुन्दर स्त्री को देख किसी व्यक्ति का अपना होस-हवास खो देना... या सिनेमा हाल में किसी पे अत्याचार देख खून का खौलना या किसी की दयनीय दशा देख आंसू आना आदि ....

ऐसा ही कुछ असर हमारे शरीर में कुछ सुनने और सूंघने से भी होता है ...इन सब क्रियाओं में मष्तिष्क का इक अहम् रोल है ..जो मानव शरीर को सिग्नल भेज उसे निर्देश देता है ...की उसकी प्रतिक्रिया क्या हो ....जैसे शरीर में कम्पन , हाई/लो ब्लड प्रेशर , दिमाग का कुंद होना और शरीर का जडवत हो जाना आदि शामिल है .....

ऐसा ही कुछ प्रभाव हम तब महसूस करते है ..जब कोई आपको छूता है .... इसे समझाने की जरूरत नहीं ...ऐसे ही इक बच्चे के लिए माँ का स्पर्श दोनों के बीच में इक मजबूत बंधन का निर्माण करता है ...जिसे दोनों बिना भाषा के समझ लेते है ....

स्पर्श की महत्ता तो हम सब जानते है ..पर यह किसी रोग को ठीक कर दे ..यह समझना थोडा टेढ़ा काम है और उससे भी कठिन यह समझना की कोई व्यक्ति कंही दूर दराज से ऐसी कोई उर्जा भेज दे...जो किसी रोगी को ठीक कर दे...किसी के मानसिक और शारिरिक पीड़ा को दूर करना...मनोबल बढ़ाना..इत्यादि

मानव शरीर के इर्द गिर्द कई तरह की एनेर्जी उपस्थित होती है जिन्हें हम आम अवस्था में महसूस नहीं कर पाते...यह एनेर्जी पूरे ब्रह्मांड से... या..दुसरे ग्रहों से उत्सर्जित उर्जा... किसी साधक मनुष्य के शरीर से उत्सर्जित ऊर्जा... या अत्यंत सूक्ष्म (ना दिखने वाले) जीवो से या इंसानी शरीर को ना सुनने , दिखाई औए महसूस होने वाली धाराओ के प्रवाह के कारण होती है....पर हमारी इन्द्रिया इन्हें संचित करती रहती है ...

 ऊर्जा का संचार प्राणिक हिंलिंग चिकित्सा/टेलीपैथी/रेकी/प्रार्थना द्वारा की हीलिंग में साधक/मास्टर इक खास तरीके से अपने आस पास की धारायो को इकटठा कर उनको इक दिशा दे कर सम्बन्धित व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कराता है ... इसके लिए साधक/मास्टर को पहले उस व्यक्ति का नाम लेकर या उस व्यक्ति के स्थान के कोण का या किसी भी तरह उसका स्मरण तीव्र भावनाओ द्वारा करना होता है ...

जैसे मेने ऊपर लिखा कि ..हमारे शरीर में भीं भिन्न प्रकार की उर्जाओ का निर्माण होता है ...अगर इसे हम ऐसे समझे जैसे की हमारा शरीर इक ऑफिस है ..जिसमे कई डिपार्टमेंट है और उनके काम करना का अपना इक तरीका..उसी तरह शरीर की अलग अलग क्रियाएं भीं एनर्जी का उपयोग ,रुपंतार्ण या निर्माण करती है ...

अतः ऊनी वस्त्र या कम्बल के आसन पर कमर सीधी और नेत्र बन्द कर शांत चित्त दोनों हाथ गोद में रखकर बैठ जायें...

🙏🏻🇮🇳मौन मानसिक देववाहन और गुरु का आह्वाहन करें। प्राणायाम करें। मौन मानसिक 24 गायत्री मंत्र, पाँच महाकाली गायत्री मंत्र और 5 महामृत्युंजय मंत्र जपें।

🇮🇳👉🏼भावना करें कि कण कण में व्यापतं ब्राह्मण शक्ति नीले बादल के रूप में आपके सर के ऊपर एकत्रित हो गयी है। अब वो सहस्त्रार से रीढ़ की हड्डी के आस पास स्थित इड़ा-पिंगला नाड़ी से समस्त चक्रों में प्रवेश कर गयी है। अब स्वयं को ऊर्जा का ट्रांसफॉर्मर सा महसूस करें।

👉🏼🇮🇳अब उस प्रियजन का  ध्यान करें और बाएं हाथ की हथेली को कंधे से ऊपर आसमान की तरफ ऐसे रखें मानो ऊर्जा ग्रहण कर रहे हैं, दूसरे  हाथ को  आशीर्वाद की मुद्रा में ऐसे रखें जैसे देवता आशीर्वाद देते हैं। अब भावना करें कि उस प्रियजन को आप अपने दाहिने हाथ से ऊर्जा भेज रहे हैं। आकाशवाणी जैसे ध्वनि को ईथर में ब्रॉडकास्ट करता है, वैसे ही आप ऊर्जा और आशीर्वाद की ऊर्जा किरणों उस प्रियजन तक भेज रहे हैं। वह उसके दोनों भौंहों के मध्य आज्ञाचक्र जहाँ तिलक लगाते है वहां से प्रवेश कर रहा है। वह ऊर्जावान और प्रकाशवान बन रहा है। शारीरिक और मानसिक पीड़ा मिट रही है। उसके अंदर वीर शिवाजी, विवेकानंद, लक्ष्मीबाई और महाराणा प्रताप की तरह साहस व वीरता  हिलोरें ले रही है। उसका विवेक जग रहा है,  वह नशा इत्यादि छोड़  रहा है, धर्म मार्ग का अनुसरण कर रहा है। वह सत्य मार्ग का चयन कर रहा है। उसके जीवन मे आत्मज्ञान प्रवेश कर रहा है।

👉🏼🇮🇳निम्नलिखित बातें मन ही मन दोहराएं:-

1- हे मेरे प्रियजन(उनका नाम लें), तुम यशस्वी हो, यशस्वी हो, यशस्वी हो।

2- तुम दीर्घायु हो, दीर्घायु हो, दीर्घायु हो।

3-तुम चिरंजीवी हो, चिरंजीवी हो, चिरंजीवी  हो।

4- तुम नशा मुक्त हो नशा मुक्त हो,

5- तुम विवेकवान हो विवेकवान हो,

तुम्हारा उज्ज्वल भविष्य हो, तुममें देशभक्ति आलोकित रहे, तुम्हारा तन और मन मजबूत रहे, तुम्हारा मनोबल बढ़ता रहे। तुम्हारे भीतर रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती रहे। विजेता की तरह जीवन जियो।

स्वस्थ हो, स्वस्थ हो, स्वस्थ हो
विजयी भव, विजयी भव, विजयी भव
मन शांत भव, मन शांत भव, मन शांत भव

ॐ शांति

फ़िर शांतिपाठ करें और दोनों हाथों को रगड़े और चेहरे पर लगा लें। कुछ क्षण रुककर नेत्र खोले और फिर उठ जाएं।

इसमें समस्त प्रक्रिया मौनमानसिक और नेत्रबन्द करके होगी। केवल हाथों का मूवमेंट उपरोक्त नियमानुसार होगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

गायत्री मंत्र - *ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात*

महाकाली दुर्गा गायत्री मंत्र - *ॐ भूर्भुवः स्व: क्लीं क्लीं क्लीं तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात क्लीं क्लीं क्लीं ॐ*

महामृत्युंजय मंत्र - *ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥*

शांतिपाठ - *ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:,*

*पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।*

*वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,*

*सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥*

*ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥*

नशा प्रियजन का छुड़वाना चाहते तो सब हैं, लेकिन इसकी सफलता जो नशा छुड़वाने की मदद आत्मबल और साधना बल पर निर्भर करेगी।

जैसे दरवाजा तोड़ने की सफ़लता मनुष्य के बल पर निर्भर करती है। वैसे ही किसी प्रियजन की गलत मानसिकता तोड़ने का बल न हो तो उसे तोड़कर नई व सही मानसिकता स्थापित नहीं की जा सकेगी।

Saturday 30 May 2020

हनुमान गायत्री व उसका भावार्थ

हनुमान गायत्री व उसका भावार्थ

ॐ अंजनीसुताय विद्महे, वायुपुत्राय धीमहि, तन्नो मारुति: प्रचोदयात्।।

👉🏼 *ॐ* - सर्वशक्तिमान कण कण में व्यापत परमात्मा
👉🏼 *विद्महे(विद + महे)* - विद्  अर्थात जानते हैं व उनकी उपस्थिति मानते हैं।
👉🏼 *धीमहि(धी + महि)* - धी - अर्थात बुद्धि, मन । महि अर्थात ध्यान। तो अर्थ हुआ हम उनका मन में ध्यान करते है, बुद्धि में आह्वाहन करते हैं।
👉🏼 *तन्नो* - वह हमारे लिए
👉🏼 *प्रचोदयात* - प्रकाशित करें, प्रेरणा दें, बुद्धि को प्रेरित करें।

*हनुमान गायत्री मंत्र का अर्थ हुआ* - हम हनुमानजी को सर्वशक्तिमान जानते और मानते हैं। ऐसे सर्वशक्तिमान हनुमानजी का हम मन में ध्यान करते हैं। हनुमानजी हमारी बुद्धि को प्रेरणा दें और सन्मार्ग को बढ़ाने हेतु हमारा पथ प्रदर्शन करें।

Friday 29 May 2020

BoycottMadeinChina

*#BoycottMadeinChina*

*Give up all Chinese software in a week, all Chinese hardware in ... " Boycott Made in China"*

🇮🇳 हम भारतीय नागरिक यह शपथ लेते हैं कि कोई भी सॉफ्टवेयर जो चाईनीज़ मेड है, उसे देशहित तुरन्त मोबाइल से अनइंस्टॉल कर देंगे।

🇮🇳 हम भारतीय नागरिक यह शपथ लेते हैं कि कोई भी प्रोडक्ट मार्किट में खरीदने जाएंगे तो भारतीय प्रोडक्ट को वरीयता देंगे। चाईनीज़ सामान बिल्कुल नहीं खरीदेंगे।

🇮🇳 हम भारतीय नागरिक शपथ लेते हैं कि भारतीय लोकल सामान की मार्केटिंग हम स्वयं करेंगे। खुद प्रयोग करेंगे और दूसरों को भी प्रेरित करेंगे।

🇮🇳 चाइना के साथ बॉर्डर पर केवल सेना नहीं लड़ेगी, अब यह युद्ध प्रत्येक भारतिय लड़ेगा। इस युद्ध मे बुलेट नहीं वॉलेट से लड़ाई होगी। हम भारतीयों की जेब से आज के बाद कभी किसी तरह से कोई पैसा चीन तक नहीं पहुंचेगा।

🇮🇳 भारत को आत्मनिर्भर और चाइना की आर्थिक कमर तोड़ने में हम लोग कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।

Must watch 👇🇮🇳
Sonam Wangchuk - hope we all know him (3 idiots!) his credentials ?😊Google him.

Have a look at this appeal of his (don't miss it plz) 🙏

https://youtu.be/7Zt4fB1lwIo

Thursday 28 May 2020

प्रश्न - *विचारों में पवित्रता व हृदय की निर्मलता बढाने के लिए क्या उपाय करें? साधना में क्या सम्मिलित करें?*

प्रश्न - *विचारों में पवित्रता व हृदय की निर्मलता बढाने के लिए क्या उपाय करें? साधना में क्या सम्मिलित करें?*

उत्तर - आत्मीय दी,

युगऋषि की पुस्तक भाव संवेदना की गंगोत्री को पढ़िये व उसके सूत्र दैनिक जीवन में अपनाइए।

मन को निर्मल और विचारों को पवित्र करने के बारे में कबीर साहब के दो दोहे प्रचलित हैं जो आज भी जन सामान्य के लिए उपयोगी हैं।

1) *सब ही भूमि बनारसी, सब नीर गंगा तोय।*
    *ज्ञानी आतम राम है, जो निर्मल घट होय ॥*
अर्थ:  जिसका मन निर्मल है, उसके लिए सभी स्थान बनारस की पावन भूमि की तरह ही पवित्र हैं। जिसका मन निर्मल है, उसके लिए सभी जल गंगा की तरह निर्मल है। जिसका मन निर्मल है, वही राम रहते है। अगर आप का मन निर्मल नहीं है तो वहाँ राम नहीं रह सकते । अपने मन को निर्मल बनाना इस बातको कबीर साहब ने सबसे जादा महत्व दिया है। अगर आपका मन निर्मल है तो फिर आपको तीरथ यात्रा करना, गंगा में डुबकी लगाना, मंदिर में जाकर राम को ढूंढने की जरुरत नहीं है। अगर आप का मन निर्मल नहीं है और आप मन को निर्मल बनाना छोड़कर केवल तीरथ यात्रा करना, गंगा में डुबकी लगाना, मंदिर में जाकर राम को ढूंढ़ते तो तो फिर उसका कुछ लाभ नहीं होगा।

कबीर साहब एक और दोहे में यही बात कहते है।
2) *कबीर मन निर्मल भया,जैसे गंगा नीर।*
    *तो फिर पीछे हरी लागे, कहत कबीर कबीर।*

अर्थ - अगर आपने अपने मन को पवित्र बनाया तो फिर आपको खुद भगवान ढूंढेगा, आपको फिर भगवान को ढूंढ़ने की जरुरत नहीं है। आपका मन अगर पवित्र रहेगा तो भगवान आपके पीछे आयेगा। मन को निर्मल और पवित्र रखने के बारे में ये दो दोहे है।

*ऊधौ मन चंगा तो कठवत में गंगा* -  मन निर्मल हो तो हाथ में रखा लोटे का जल भी गंगा जल सा पवित्र हो जाएगा।

दी, यदि उपासना बढ़ाने से मन निर्मल होना होता तो रावण इत्यादि राक्षस से ज्यादा उपासना किसी ने की ही नहीं और कर सकता भी नहीं। परन्तु उनका मन न निर्मल हुआ और न ही विचार पवित्र हुए। क्योंकि उपासना के पीछे का उद्देश्य ही दूषित व अहंकार के पोषण के लिए था। उपासना की ऊर्जा का नियोजन कहाँ करना है? ऊर्जा से हीटर जलाना है या एयरकंडीशनर यह तो मनुष्य ही तय करता है।

साधना - आत्मशोधन व आत्मीयता के विस्तार से ही मन निर्मल व विचारों में पवित्रता आती है।

*जब कोई भी उपासना, साधना कार्य या मानव सेवा कार्य कर्ता भाव से, आशक्ति व सम्मान पाने के भाव से किया जाएगा, तब वह मन, हृदय, स्वभाव को दूषित करेगा व अहंकार जगाएगा।*

*जब कोई भी उपासना, साधना कार्य या मानव सेवा कार्य ईश्वर निमित्त बनकर सेवा भाव से, ईश्वर के प्रेम में, विरक्ति व वैराग्य भाव से, बिना किसी चाह के किया जाएगा, तब वह हृदय, स्वभाव व मन में निर्मलता और विचारों में पवित्रता लाएगा।*

दी, गंगा की पवित्रता को भागीरथ के तप ने तब और बढ़ा दिया, जब यह तप लोककल्याण के निमित्त और सेवा भाव से किया गया। गंगा जब धरती पर आई तो मात्र प्यार लुटाने व निर्मलता पवित्रता देने आई। यदि यही भागीरथ स्वार्थ भाव से केवल अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए करते तो गंगा मात्र कुंड में अवतरित होती और सगर पुत्रो को मुक्त कर लुप्त हो जाती या कुंड में ही रह जाती तो निर्मलता व पवित्रता खो देती।

जब जब मानव अहंकार पोषण के लिए स्वार्थकेन्द्रित कर्म करेगा, कूपमण्डूक बनेगा और पवित्रता खोकर दूषित हो जाएगा, अहंकारी बन जायेगा। इसके विपरीत जैसे ही परमार्थ केंद्रित व ईश्वर के प्रेम में ईश्वर निमित्त कर्म करेगा गंगा की तरह विस्तार लेगा, उसका हृदय, मन, स्वभाव व विचार गंगा की तरह पवित्र बन जाएंगे।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Tuesday 26 May 2020

निर्णय पर सफलता निर्भर नहीं करती। जो भी निर्णय लिया है उसे सही निर्णय साबित करने हेतु प्रयत्न पर सफलता निर्भर करती है।

युगऋषि कहते हैं - परिस्थति मनुष्य के हाथ मे नहीं है। मनुष्य के हाथ मे मनःस्थिति व पुरुषार्थ है। सही मनःस्थिति से सही दिशा में किया पुरुषार्थ सफलता दिलाता है।

रतन टाटा कहते हैं - निर्णय पर सफलता निर्भर नहीं करती। जो भी निर्णय लिया है उसे सही निर्णय साबित करने हेतु प्रयत्न पर सफलता निर्भर करती है।

सफ़ल व्यक्ति कोई अलग कार्य नहीं करता, अपितु साधारण से साधारण कार्य को बेहतरीन ढंग से करने में जुटता है।

क़िस्मत और पुरुषार्थ एक दूसरे के पूरक हैं, किस्मत में लिखा प्रारब्ध पुरुषार्थ काट सकता है, किस्मत में लिखा खज़ाना भी पुरुषार्थ ही ढूढता  है।

उद्यमी पुरुष: बपुत: लक्ष्मी, लक्ष्मी उद्यमी पुरुषार्थी व्यक्ति के पास स्वयं चलकर पहुँचती है।

स्वयं की योग्यता का मूल्यांकन स्वयं ही किया जा सकता है, खुद से बेहतर खुद को दूसरा नहीं जान सकता। गहन ध्यान व चिंतन कीजिये, जो निर्णय उभरे उसे ले लीजिए। फिर उस निर्णय को सही साबित करने के लिए पुरुषार्थ कीजिये।

🙏🏻श्वेता, DIYA

गोमयकुण्ड से सूक्ष्म यज्ञ विधि


🔥 *गोमयकुण्ड से सूक्ष्म यज्ञ विधि* 🔥
जिनके घर गाय के गोबर से बने ऊर्जा दीपक हैं, वह इस तरह वीडियो में बताई विधि से यज्ञ कर सकते  हैं।
गोमयकुण्ड  और अन्य गो उत्पाद कोरियर से मंगवाने के लिए प्राणेश भैया से सम्पर्क करें - +91 78693 51476, +919755885711, हम स्वयं इनसे कोरियर से मंगवाते हैं।
https://youtu.be/6DFurMnpjMU

दीपयज्ञ विधि- 🔥भारत देश व समस्त भारतीयों के उज्ज्वल भविष्य, स्वस्थ-समर्थ-शक्तिशाली राष्ट्र निर्माण हेतु गृहे गृहे यज्ञ विधि

*दीपयज्ञ विधि- 🔥भारत देश व समस्त भारतीयों के उज्ज्वल भविष्य, स्वस्थ-समर्थ-शक्तिशाली राष्ट्र निर्माण हेतु गृहे गृहे यज्ञ विधि*

कलियुग में संगठन में ही शक्ति है, युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव कहते हैं, समूह द्वारा एक उद्देश्य के लिए की गई प्रार्थना बहुत प्रभावशाली व असरकारक होती है। एक उद्देश्य एक लक्ष्य एक सी प्रार्थना - *समर्थ, शशक्त और समृद्ध भारत बने, भारत विश्वगुरु बने*, *समस्त भारतवासी स्वस्थ, शशक्त व समृद्ध बने, सबका उज्ज्वल भविष्य हो*
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लाकडाउन में किन्हीं कारण वश जो यज्ञ नहीं कर पा रहें है, इसलिए सरल दीपयज्ञ यज्ञ घर मे मौजूद सामग्री से बता रही हूँ।

*विधि* - सुबह के वक़्त साधारण नमक को पानी मे डालकर माँ गंगा का ध्यान करते हुए निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए उस जल से नहाएं।

मन्त्र - *ॐ ह्रीं गंगायै ॐ ह्रीं स्वाहा*

नहाने के बाद ऊर्जा बढाने व शांति के लिए पीले या श्वेत या नीला या आसमानी रँग का कपड़ा पहनें। पूजन के वक्त लाल या काले कलर का वस्त्र न पहनें। गायत्री मंत्र दुपट्टा हो तो उसे जरूर धारण करें।

भगवान को प्रसाद में घर में बनी खीर या मीठे चावल या हलवा बनाकर भोग लगाएं।

घर मे कम्बल का ऊनि शाल का आसन बिछा लें और उस पर बैठ जाएं,  पवित्रीकरण, गुरु, गायत्री या जो भी इष्ट भगवान हों उनका  आह्वाहन करके पाँच घी का दीपक जलाएं। दीप पूजन करें। यदि मिट्टी के दीपक नहीं है तो पांच स्टील की कटोरी में दीपक जला लें, या आटे के दीपक बनाकर जला लें।

दीपक को देखते हुए 5 मिनट प्राणायाम करें।

घर मे रूम फ्रेशनर हो तो कमरे में छिड़क दें, मोबाइल में बांसुरी या ॐ की मधुर ध्वनि हल्के आवाज में चला लें।

दो कटोरी लें, एक में अक्षत(साबुत चावल) और दूसरी ख़ाली लें।

अब निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भरी कटोरी से अत्यंत थोड़े अक्षत जैसे यज्ञ में आहुति उठाते हैं वैसे ही मध्यमा, अनामिका और अंगूठे की सहायता से उठाएं और स्वाहा के साथ खाली कटोरी में डालते जाएं।

*24 आहुति गायत्री मंत्र की - शरीर मे अच्छे हार्मोन्स रिलीज़ होते है, मन शांत होता है, बुद्धि बल और आत्मविश्वास बढ़ता है*

*ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योन: प्रचोदयात।। स्वाहा इदं गायत्र्यै इदं न मम्*

*11 आहुति महामृत्युंजय मंत्र की, इससे स्वास्थ्य लाभ व शक्ति-सामर्थ्य मिलती है*

*ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।।इदं महामृत्युंजयाय इदं न मम्*

*5 आहुति चन्द्र गायत्री मन्त्र* से
चन्द्र गायत्री: -  यह मंत्र निराशा से मुक्ति दिलाता है और मानसिकता भी प्रबल होती है ।
मंत्र-

*ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृतत्त्वाय धीमहि। तन्नो चन्द्र: प्रचोदयात् ।।इदं चन्द्रायै इदं न मम्।*

*5 आहुति सूर्य गायत्री मन्त्र से:-* इस मंत्र से शरीर के सभी रोगों से मुक्ति मिलती है ।
मंत्र-
*।। ॐ भास्कराय विद्महे दिवाकराय धीमहि । तन्नो सूर्य: प्रचोदयात् ।।इदं सूर्यायै इदं न मम्।*

भजन कीर्तन स्तुति जो करना चाहे कर लें, फिर पूर्णिमा के चंद्रमा का ध्यान नेत्र बन्द करके करें।

कुछ देर पुनः पांच जलते हुए दीपकों देखें, भावना करे कि यह पांच दीपक पँच तत्वों के प्रतीक हैं, यह हमारे पँच प्राणों को चार्ज कर रहे हैं।

पुनः दीपक को देखते हुए 5 मिनट प्राणायाम करें।

शांतिपाठ करके उठ जाएं, अक्षत चिड़िया को डाल दें या किसी भूखे को चावल दान करते समय उन अक्षतों का भी प्रयोग कर लें।

🙏🏻यदि चाहें तो अपने अनुभव शेयर जरूर करें, ऑडियो या टेक्स्ट मेसेज भेज सकते हैं। 🙏🏻

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

🔥 *भारत देश व समस्त भारतीयों के उज्ज्वल भविष्य, स्वस्थ-समर्थ-शक्तिशाली राष्ट्र निर्माण हेतु गृहे गृहे यज्ञ* 🔥

🔥 *भारत देश व समस्त भारतीयों के उज्ज्वल भविष्य, स्वस्थ-समर्थ-शक्तिशाली राष्ट्र निर्माण  हेतु गृहे गृहे यज्ञ* 🔥

आत्मीय बहन भाईयों,

*अयं यज्ञो भुवनस्य नाभिः* ॥ यजु—23-62 अर्थात् इस संसार का अन्त वेदि है और यह यज्ञ इस ब्रह्माण्ड की नाभि है। यज्ञ से प्राण पर्जन्य व दैवीय अनुकम्पा प्राप्त होती है।

*कम से कम 24 गायत्रीमन्त्र और 5 महामृत्युंजय मंत्र की आहुति सभी अर्पित अवश्य करें।*

*दिनांक* -  31 मई 2020
*दिन* - रविवार
*समय* - सुबह 8 से 12 के बीच

सुबह नहाते वक्त -  .. *ॐ ह्रीं गंगायै ॐ ह्रीं स्वाहा* बोलकर गंगा जी का स्मरण करें। इस भावनात्मक गंगा स्नान से तन व मन की पवित्रता की मां गंगा से प्रार्थना करें।

आपसे अनुरोध है कि अपने घर पर सुबह 8 से 12 के बीच यज्ञ करके इस महाअभियान में जुड़े। अपने नजदीकी शक्तिपीठ के परिजनों को अपना नाम नोट करवा दें। यदि आपको पता नहीं कि अपने क्षेत्र में किसे नाम नोट करवाएं, तो आप मुझे भी अपना नाम, मोबाइल, शहर का नाम और किस माध्यम से यज्ञ कर रहे हैं नोट करवा सकते हैं। मेरा व्हाट्सएप नम्बर ( 9810893335) , Email - sweta.awgp@gmail.com

कलियुग में संगठन में ही शक्ति है, युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव कहते हैं, समूह द्वारा एक उद्देश्य के लिए की गई प्रार्थना बहुत प्रभावशाली व असरकारक होती है। एक उद्देश्य एक लक्ष्य एक सी प्रार्थना - *समर्थ, शशक्त और समृद्ध भारत बने, भारत विश्वगुरु बने*, *समस्त भारतवासी स्वस्थ, शशक्त व समृद्ध बने, सबका उज्ज्वल भविष्य हो*

यज्ञ का समस्त सामान उपलब्ध हो तो यज्ञ अवश्य करें, यदि किन्ही कारणवश यज्ञ का समस्त सामान उपलब्ध नहीं है, तो निम्नलिखित विधि से यज्ञ में जुड़े:-

याज्ञवल्क्य जी यज्ञ के प्रणेता ऋषि हैं, उन्होंने यज्ञ के समस्त सामान उपलब्ध न होने पर किस प्रकार यज्ञ कर सकते हैं यह बताया है।

1- यज्ञ हेतु आम की लकड़ी न मिले तो सूखे नारियल के टुकड़ों को समिधा की तरह उपयोग कर यज्ञ करें। या गोमयकुण्ड (गोबर से बने उर्जादीपकों) में सूक्ष्म यज्ञ करें।

2- हवन सामग्री न उपलब्ध तो गुड़ व घी को हवन सामग्री की तरह उपयोग करें।

3- यदि यज्ञ की सुविधा नहीं बन पा रही तो पाँच दीपक जलाकर दीपयज्ञ करें। मिट्टी के दीपक उपलब्ध न हों तो आटे के दीपक बना लें।

4- हॉस्टल में रहने वाले बच्चों को यदि रुई व घी भी किन्ही कारणवश उपलब्ध न हों तो पांच कपूर जलाकर कर्पूर यज्ञ कर लें।

5- हॉस्टल में रहने वाले बच्चों को यदि रुई व घी, कर्पूर कुछ भी किन्ही कारणवश उपलब्ध न हों तो एक खाली कटोरी लें और उसमें दूसरी कटोरी से चम्मच से जल डालते हुए जल से जल में यज्ञ अवश्य कर लें।

6- सैनिक व पुलिस ड्यूटी करने वाले भाई बहन, सुबह घर पर यज्ञ करके ड्यूटी के लिए निकल सकते हैं। यदि किन्ही कारणवश घर पर यज्ञ नहीं हो पाया और आप सुबह 8 से 12 ड्यूटी पर हो तो सूर्य को यज्ञकुंड मानकर उनका आह्वाहन करे, ड्यूटी पर खड़े खड़े मौन मानसिक 24 गायत्री मंत्र और 5 महामृत्युंजय मंत्र जपकर आहुति दे दें। मौन मानसिक यज्ञ में जूते उतारने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इसमें शरीर कोई कार्य नहीं करता। मन से यज्ञ होगा।

7- जो कोरोना या अन्य कारणों से हॉस्पिटल में भर्ती हैं, या जिनके परिजन भर्ती हैं और वह अस्पताल में ड्यूटी दे रहे हैं, वह हॉस्पिटल में बैठे बैठे सूर्य का नेत्र बन्द करके ध्यान कर लें, या भावनात्मक रूप से ध्यान में पहले हरिद्वार में गंगा स्नान करें, फिर वहां से शान्तिकुंज हरिद्वार के यज्ञ स्थल आकर, ध्यान में यज्ञ कर लें।

🔥 सभी यज्ञ अवश्य करें, माध्यम चाहे कोई भी चुने, देशहित-समाजहित इस महाअभियान - *गृहे गृहे यज्ञ - 31  मई* से अवश्य जुड़े। 🔥


🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *दी, आप नित्य साधना में क्या क्या करती हैं?*

प्रश्न - *दी, आप नित्य साधना में क्या क्या करती हैं?*

उत्तर - आत्मीय बहन

*नित्य गायत्री जप विधि जो हम करते हैं, वह क्रम इस प्रकार है।*

1-  षट्कर्म (पवित्रीकरण से न्यास तक, कर्मकाण्ड भाष्कर)
2- देव आह्वाहन गुरुदेव और माँ गायत्री और पूजन,कलश में जल और दो दाना मिश्री डालकर, गाय के घी का दीपक
3- गायत्री जप से पहले विनियोग, हृदय न्यास इत्यादि गुरुगीता वाला जो निम्नलिखित है:-

🙏🏻 *गायत्री जप विनियोग*
(निम्नलिखित मन्त्र पढ़कर हाथ में या चम्मच में जल लेकर एक दूसरी कटोरी में अर्पित कर/डाल  दें।

    *ॐ कारस्य परब्रह्म ऋषिर्दैवी गायत्री छन्दः परमात्मा देवता, तिसृणां महाव्याहृतीनां प्रजापतिऋर्षिर्गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छन्दांस्यग्निवायुसूर्या देवताः तत्सवितुरिति विश्वामित्रऋषिर्गायत्री छन्दः सविता देवता जपे विनियोगः।*

*न्यास-करन्यास*
🙏🏻
*ॐ अंगुष्ठाभ्यां नमः।*
(दोनों हाथों की तर्जनी अँगुलियों से दोनों अँगूठों का स्पर्श)।
*ॐ भूः तर्जनीभ्यां नमः।*
(दोनों हाथों के अँगूठों से दोनों तर्जनी अँगुलियों का स्पर्श)।
*ॐ भुवः मध्यमाभ्यां नमः।*
(अँगूठों से मध्यमा अँगुलियों का स्पर्श)।
*ॐ स्वः अनामिकाभ्यां नमः।*
(अनामिका अँगुलियों का स्पर्श)।
*ॐ भूर्भुवः कनिष्ठिकाभ्यां नमः।*
(कनिष्ठिका अँगुलियों का स्पर्श)।
*ॐ भूर्भुवः स्वः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।*
(हथेलियों और उनके पृष्ठभागों का परस्पर स्पर्श)।

*हृदयादिन्यास*
🙏🏻
    इसमें दाहिने हाथ की पाँचों अँगुलियों से ‘हृदय’ आदि अंगों का स्पर्श किया जाता है।
*ॐ हृदयाय नमः।* (दाहिने हाथ की पाँचों अंगुलियों से हृदय का स्पर्श)।
*ॐ भूः शिरसे स्वाहा।* (सिर का स्पर्श)।
*ॐ भुवः शिखायै वषट्।* (शिखा का स्पर्श)।
*ॐ स्वः कवचाय हुम्।* (दाहिने हाथ की अँगुलियों से बायें कंधे का और बायें हाथ की अँगुलियों से दाहिने कंधे का एक साथ स्पर्श)।
*ॐ भूर्भुवः नेत्राभ्यां वौषट्।* (दाहिने हाथ की अँगुलियों के अग्रभाग से दोनों नेत्रों और ललाट के मध्यभाग का स्पर्श)।
*ॐ भूर्भुवः स्वः अस्त्राय फट्।* (यह वाक्य पढ़कर दाहिने हाथ को सिर के ऊपर से बायीं ओर से पीछे की ओर ले जाकर दाहिनी ओर से आगे की ओर ले आयें और तर्जनी तथा मध्यमा अँगुलियों से बायें हाथ की हथेली पर ताली बजायें)।

*हाथ जोड़कर और गहरी श्वांस लेकर माँ का ध्यान मन्त्र द्वारा पुनः*

    ॐ आयातु वरदे देवि! त्र्यक्षरे ब्रह्मवादिनि।
    गायत्रिच्छन्दसां मातः ब्रह्मयोने नमोऽस्तु ते॥--

*एक माला गुरु मन्त्र*

*ॐ ऐं श्रीराम आन्दनाथाय गुरुवे नमः ॐ*

*फिर 5 माला गायत्री मंत्र जप उगते हुए सूर्य में गुरुदेव का ध्यान*
    ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

नित्य सूक्ष्म यज्ञ (गोमयकुण्ड) में 24 गायत्री मंत्र आहुति और 5 महामृत्युंजय मंत्र आहुति, 1 रुद्र, 1 सूर्य और 1 चन्द्र मन्त्र आहुति।

इसके बाद आरती, प्रत्येक रविवार को दैनिक यज्ञ, और यदि समय मिला तो सप्ताह में भी बड़ा यज्ञ करती हूँ।

शांतिपाठ और क्षमा प्रार्थना, विसर्जन

फिर कलश का जल सूर्य मन्त्र बोलते हुए तुलसी के गमले में डालती हूँ। थोड़ा सा जल बचा के माथे में लगाने के बाद जितने भी पानी वाली बॉटल घर में है सबमें मिला देती हूँ, साथ में दूध में भी डाल देती हूँ।

शाम को 6 बजे नाद योग और 24 मन्त्र गुरुदेव की आवाज में। इसके बाद ओफ़ीस की नाईट ड्यूटी। घर से ही काम अधिकतर करती हूँ, जब ऑफिस जाती हूँ तो उस दिन नाद योग सोते वक़्त करती हूँ। केवल दो व्रत - मंगलवार और गुरुवार करती हूँ। केवल गुरुवार व्रत के दिन गुरुगीता का पाठ करती हूँ। यूट्यूब पर जब भी वक़्त मिलता है श्रद्धेय डॉक्टर साहब के गीता और ध्यान वाले वीडियो सुनती हूँ और उनके साथ ही ध्यान करती हूँ। ये नित्य नहीं हो पाता।

स्वाध्याय दिन रात चलता है, जब भी वक़्त मिलता है, या तो मन ही मन गायत्री मन्त्र जपति हूँ या युगसाहित्य पढ़ती हूँ। जब आप की तरह कोई भाई बहन प्रश्न पूंछते है तो जिज्ञासा का समाधान पोस्ट करती हूँ। मेरे ब्लॉग awgpggn blogspot और फेसबुक में आपको समस्त नई पुरानी पोस्ट मिल जायेगी।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इंडिया यूथ एसोसिएशन

प्रश्न- *गुरुगीता श्लोक १३४- गुरूगीता की मंत्र माला का क्या अर्थ है?*

प्रश्न- *गुरुगीता श्लोक १३४- गुरूगीता की मंत्र माला का क्या अर्थ है?*

उत्तर- आत्मीय भाई, गुरुगीता का प्रत्येक अक्षर को भगवान शंकर ने मंत्रराज की संज्ञा दी है। प्रत्येक श्लोक एक मन्त्रमाला है। 1 से लेकर 182 श्लोक का पाठ अनुष्ठान 182 माला के जप के बराबर पुण्य फल देगा।

यदि एक सौ 182 श्लोक का श्रद्धापूर्वक पाठ, श्रवण व लेखन करते हैं तो साधक को 24 हज़ार जप का पुण्यफल मिलता है। ऐसे अनेक पाठ करके अनन्त फल को प्राप्त किया जा सकता है। गुरुतत्व को धारण किया जा सकता है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न- *गुरुगीता श्लोक १३१ vs १७८,१७९ - एक ओर गुरूगीता को दूसरों से बाँटने कहा गया है दूसरी ओर इसे किसी के सामने (देवों को भी) प्रकट ना करने कहा गया है ।*

प्रश्न- *गुरुगीता श्लोक १३१ vs  १७८,१७९ - एक ओर  गुरूगीता को दूसरों से बाँटने कहा गया है दूसरी ओर इसे किसी के सामने (देवों को भी) प्रकट ना करने कहा गया है ।*

उत्तर - आत्मीय भाई, स्वयं के शरीर की चिकित्सा करने व ऑपरेशन करने का अधिकार किसी भी अयोग्य चिकित्सक को कोई नहीं देता। पहले चिकित्सक की योग्यता व पात्रता की जानकारी लेता है, तब सौंपता है।

इसीतरह बैंक के कई सारे एम्प्लॉई में से केवल योग्य व सुपात्र को ही बैंक लॉकर की चाबी दी जाती है।

गुरुगीता जैसे महत्त्वपूर्ण साधना अनुष्ठान का ज्ञान अयोग्य व अनअधिकारियों को देने से भगवान शंकर ने मना किया है।

उन देवों के समक्ष भी गुरुगीता नहीं कहनी चाहिए जो इसका महत्त्व नहीं समझते व इसका आदर नहीं करते।

लेकिन योग्य व सुपात्र शिष्य को जिस प्रकार गुरु स्वयं ढूढ़कर शिष्य बनाता है, ऐसे ही योग्य व सुपात्र लोगों तक गुरुगीता अनुष्ठान को पहुंचाना और उनके भीतर के शिष्यत्व को जगाने में मदद हेतु गुरुगीता उन तक निःशुल्क पहुंचाना अत्यंत पुण्यफलदायी है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न- *गुरुगीता श्लोक १२९,१३० vs १३२, १३४,१३५,१३६- गुरूगीता का उपयोग लौकिक कार्य के लिए नहीं करना चाहिए कहा गया है। अन्य श्लोको में इसके विधिपूर्वक जप से लौकिक उपलब्धियों का वर्णन है।*

प्रश्न- *गुरुगीता श्लोक १२९,१३० vs  १३२, १३४,१३५,१३६- गुरूगीता का उपयोग लौकिक कार्य के लिए नहीं करना चाहिए कहा गया है। अन्य श्लोको में  इसके विधिपूर्वक जप से लौकिक उपलब्धियों का वर्णन है।*

उत्तर - आत्मीय भाई, भगवान शंकर कहते हैं केवल स्वार्थप्रेरित उच्च महत्वाकांक्षा और अश्रेयस्कर लौकिक इच्छाओं की पूर्ति हेतु गुरुगीता का पाठ अनुष्ठान नहीं करना चाहिए।

लेकिन ऐसे लौकिक कार्य जो परमार्थ प्रेरित हो, उपयोगी हों, श्रेष्ठ हों, जनकल्याण व आत्मकल्याण निमित्त हों, उस हेतु गुरुगीता का पाठ अनुष्ठान अवश्य करना चाहिए।

इसे और स्पष्टीकरण से समझने हेतु कर्मकांड भाष्कर में जन्मदिन सँस्कार में वर्णित तीन जीवन सूत्र समझिए :-

1- *ॐ श्रेयसां पथे चरिष्यामि*। (जीवन को कल्याणकारी मार्ग पर चलाएंगे)
2- *ॐ परमार्थ मेव स्वार्थ मनिष्ये* - परमार्थ को ही स्वार्थ मानेंगे।
3- *ॐ महत्त्वाकांक्षा सिमितं विधास्यामि*- हम महत्त्वाकांक्षा को सिमित रखेंगे।

ऋषि भागीरथ का तप गंगा अवतरण का मात्र निज पूर्वजों के मुक्ति हेतु तक सिमित नहीं था, अपितु वह परमार्थ भावना से भर उठे जब उन्हें पता चला कि गंगा जल इतना पावन है कि इसके आचमन व स्नान से, रुद्राभिषेक से मुक्ति सम्भव है। चाहिए तो गंगा को एक कुंड में आवाहित कर मात्र पूर्वजो पर छिड़ककर इतिश्री कर लेते। मग़र उन्होंने गंगा को जन साधारण के लिए उपलब्ध करवाया, धरती पर सदा सर्वदा के लिए उपलब्ध करवाया।

ऐसे ही परमार्थ प्रेरित लौकिक कार्य हेतु गुरुगीता पाठ अनुष्ठान अवश्य करना चाहिए।

सन्त-साधक-शिष्य का स्वार्थ वस्तुतः परमार्थ प्रेरित होता है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Monday 25 May 2020

प्रश्न- *गुरुगीता श्लोक १२४-१२५-आसक्तियों से रहित हो जाने पर तो कोई (लौकिक ) अभीष्ट तो शेष ही नहीं रहेंगे?*

प्रश्न- *गुरुगीता श्लोक १२४-१२५-आसक्तियों से रहित हो जाने पर तो कोई (लौकिक ) अभीष्ट तो शेष ही नहीं रहेंगे?*

उत्तर - आत्मीय भाई, गुरुगीता में भगवान शंकर और श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण एक ही बात कर रहे हैं, मोहदृष्टि त्यागकर तत्वदृष्टि विकसित करो- *कर्म करो मग़र उसमें कर्ता भाव त्याग दो, आसक्ति त्याग दो, मुक्त होकर कर्म करो, निमित्त बनकर कर्म करो, सभी कर्मो को श्रीगुरु अर्पणमस्तु या श्रीकृष्ण अर्पणमस्तु करके करो। तब कर्मबन्धन व भवबन्धन में नहीं फँसोगे।*

लौकिक कार्य और उत्तरदायित्व का वहन तो करना ही पड़ेगा। 

स्थितप्रज्ञ व तत्वदृष्टि वाला व्यक्ति न बालक के जन्म पर अतिहर्षित होगा और न ही बालक की मृत्यु पर अतिशोकाकुल होगा। क्योंकि वह तत्वदृष्टि - आत्मज्ञान से जानता है कि यह तो आत्मा के शरीर रूपी वस्त्र धारण और त्याग की एक प्रक्रिया मात्र है। वह किसी भी रिश्ते के मोह में नहीं बंधेगा, क्योंकि वह जानता है कि वह एक यात्रा में है, जिसका यह जीवन एक पड़ाव मात्र है। संसार की नश्वरता और आत्मा की अमरता का जिसे हर पल हर क्षण अनुभूति हो वह भला मोह के दलदल और कर्म की आसक्ति में क्यों पड़ेगा।

उदाहारण - शवदाह करने गए व्यक्ति सामने जलते प्रियजन के शरीर को देखते हुए वैराग्य भाव से उस क्षण भर उठते हैं। कोई लौकिक इच्छा उस पल मन में जन्म नहीं लेती। *प्रज्ञा यहां भी जगती है मगर अस्थिर है।*

*समस्या यह है कि श्मशान से बाहर आते ही माया पुनः हावी चित्त पर हो जाती है। इंसान में जगा वैराग्य भाव डस्टबिन में चला जाता है।*

लेकिन *जब गुरु आदेश पर शिष्य साधक बनकर परमतत्व का अवलोकन कर लेता है, तब जो प्रज्ञा(विशेष तत्व ज्ञान) जागती है वह स्थिर हो जाती है। तब इंसान स्थितप्रज्ञ हो जाता है।*

ऐसा शिष्य-साधक आशक्ति रहित, एकाकी(एकांत वासी संसार में रहकर भी संसार से परे), निस्पृह, शांत व स्थिर हो जाता है। फिर कोई लौकिक इच्छा शेष नहीं तो कुछ मिले या न मिले उसे कोई फर्क नहीं पड़ता।  जब कोई कामना ही नहीं तो चित्त में असंतुष्टि होगी नहीं।

उदाहरण - *पति ऑफिस से घर आते वक़्त एक विशेष भोजन की कामना और स्वागत की पत्नी से अपेक्षा रखकर आएगा। और यदि अपेक्षित स्वागत व भोजन मिला तो सुखी होगा और न मिला मिला तो क्रोधित व असंतुष्ट होगा।*

*लेकिन यदि वह स्थितप्रज्ञ हुआ और बिना किसी कामना व पूर्वाग्रह से घर आया तो न सुख की सृष्टि होगी न दुःख की। न ही असंतुष्ट का कोई भाव जगेगा। जो मिला वह पत्नी की इच्छा, बस उसमें ही संतुष्ट रहा। ऐसा नहीं कि भोजन यहां नहीं मिलेगा, भोजन मिलेगा भूख भी मिटेगी। मग़र कोई आसक्ति नहीं होगी।*

यही भक्त करता है, जो मिला प्रभु की इच्छा, गुरु इच्छा और उसी में संतुष्ट रहता है। आसक्ति रहित।

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न- * गुरुगीता श्लोक ११६ - ब्रह्म की प्राप्ति सब भाँति अगम्य है तो उसके प्राप्ति के लिए इतने साधन -साधना का विवेचन अन्य कई श्लोक में क्यों? चूँकि वह तो अनुभूति जन्य है?*

प्रश्न- *गुरुगीता श्लोक ११६ - ब्रह्म की प्राप्ति सब भाँति अगम्य है तो उसके प्राप्ति के लिए इतने साधन -साधना का विवेचन अन्य कई श्लोक में क्यों? चूँकि वह तो अनुभूति जन्य है?*

उत्तर- श्रीमद्भगवद्गीता में अर्जुन द्वारा विराट स्वरूप के दर्शन की इच्छा पर भगवान ने कहा कि इन स्थूल चक्षुओं से तुम मुझे नहीं देख सकते। क्योंकि मैं अगम्य व अगोचर हूँ।

तब भगवान ने अर्जुन को भाव दृष्टि-ज्ञान दृष्टि-दिव्य दृष्टि दी, जिससे वह प्रभु की विराटता को समझ सके।

इसीलिए वेदों ने नेति नेति कहा, वेद तो ब्रह्म की ओर इशारा मात्र है, वह तो वेदों से भी परे है।

जो कहता है, वह ब्रह्म को पूर्णरूपेण जानता है वह वस्तुतः झूठ बोलता है। भला कोई पात्र निज पात्रता से अधिक जब जल नहीं भर सकता, तो मनुष्य जो कि स्वयं एक अंश है परमात्मा का वह निज पात्रता से अधिक कैसे उसे जान सकता है। क्या कोई गोताखोर समुद्र की गहराई माप सकता भला?

ब्रह्म में विलीन होकर ब्रह्म को पाया जा सकता है।

जिस प्रकार जल में मछली है और  मछली के भीतर भी जल है। उसी तरह हम मनुष्य ब्रह्म के भीतर हैं और हम मनुष्यों के भीतर वह ब्रह्म है। हमें बस उसे भीतर जाकर पहचानना ही तो है। ढूंढना नहीं है मात्र पहचानना है, चाहे बाहर पहचान लो-जान लो या भीतर पहचान लो-जान लो।

इसी कथन को गुरुगीता के श्लोक 116 में कहा गया है:-

अगोचरं तथा S गम्यं नाम रूप विवर्जितं।
निःशब्दम् तद्विजानीयात् स्वभावं ब्रह्म पार्वती।।

जिस प्रकार अथाह समुद्र पर रिसर्च करने के लिए उसे प्रयोगशाला में लाकर रिसर्च सम्भव नहीं है। लेकिन उसकी कुछ बूंदों को बीकर में डालकर रिसर्च किया जा सकता है। जल के गुण कर्म स्वभाव को समझा जा सकता है।

इसी तरह वह अगोचर अगम्य व बुद्धि की सीमा से परे ब्रह्म को पूरा का पूरा जानना सम्भव नहीं, लेकिन उस ब्रह्म की कुछ बूंदे हमारी आत्मा स्वयं है।स्वयं के शरीर को ऋषि मुनि प्रयोगशाला बनाकर विभीन्न तप साधनों से स्वयं की आत्मा जो कि परमात्मा का ही अंश है को जानने में जुटते हैं और ब्रह्म को जानने में उन्हें मदद मिलने लगती है।

*तद्विजानीयात् स्वभावं ब्रह्म* - उस  ब्रह्म को जानना है तो पहले स्वयं को जानो, क्योंकि उस तक पहुंचने का मार्ग तुम्हारे भीतर ही है। आत्मा व परमात्मा एक दूसरे से जुड़े हैं। समुद्र की बूंद के गुण कर्म स्वभाव, पूरे समुद्र  के जल के गुण कर्म स्वभाव की जानकारी दे देते हैं।जब स्वयं की आत्मा का ज्ञान साधक पा लेता है तो वह ब्रह्म के अस्तित्व को भी समझने लगता है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

गुरुगीता प्रश्नोत्तरी - स्कन्दपुराण - उत्तराखंड - शिवपार्वती सम्वाद* प्रश्न- *श्लोक 106

*गुरुगीता प्रश्नोत्तरी - स्कन्दपुराण - उत्तराखंड - शिवपार्वती सम्वाद*

प्रश्न- *श्लोक 106- गुरु शिष्य संबंध का विवेचन किन अर्थों में है ?  क्योंकि आध्यात्मिक संबंध में विषम स्थिति  प्रस्तुत होना लगभग नामुमकिन है*


 उत्तर - आत्मीय भाई,

आपने श्रीरामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में कागभुशुण्डि द्वारा गुरु का अपमान करने पर श्राप मिलने की कथा पढ़ी होगी। यदि नहीं पढ़ी हो तो एक बार जरूर पढ़े। तब यह निम्नलिखित श्लोक 106 स्पष्ट हो जाएगा:-

अशक्ता हि सुराद्याश्च अशक्ता मुनय स्तथा।
गुरु शापेन ते शीघ्रं क्षयं यान्ति न शंशय:।।

देवता, यक्ष, किन्नर, मुनि इत्यादि के श्राप से गुरु त्राण(रक्षण करने में) समर्थ है। मग़र यदि गुरु अपमान व गुरुद्रोह में गुरु श्राप मिले व्यक्ति का त्राण (रक्षण करने में) कोई देवता, यक्ष, किन्नर, मुनि समर्थ नहीं है।

कागभुशुण्डि ने गुरु का अपमान कर दिया था अभिमान-अहंकार वश, उन्हें रौरवनर्क झेलना पड़ा था।

गुरुदेव दया के सागर हैं, मग़र दया के सागर मे भी सुनामी आती है, जब पाप अक्षम्य हो जाता है, तब शिष्य को श्राप मिलता है। तब उसका पतन निश्चयत: होता है। गुरुश्राप से केवल गुरु ही मुक्त कर सकता है। तीनो लोक के अधिपति देवता हस्तक्षेप नहीं करते।

🙏🏻श्वेता, DIYA

गुरुगीता प्रश्नोत्तरी* - *स्कन्दपुराण- उत्तराखंड*-शिव पार्वती सम्वाद प्रश्न -- *श्लोक 49

*गुरुगीता प्रश्नोत्तरी* - *स्कन्दपुराण- उत्तराखंड*-शिव पार्वती सम्वाद

प्रश्न -- *श्लोक 49 -  विवेकी मनुष्य की तुलना में अविवेकी मनुष्य को  गुरु तत्त्व  की  प्राप्ति ना हो,  यह ठीक है पर मंद भाग्य को भी विवेक के सहारे गुरु तत्व की प्राप्ति हो सकती है.  किंतु यहां मंद भाग्य को गुरु तत्व प्राप्ति नहीं होती यह अर्थ बताया गया है. श्लोक 134 मैं यह भी बताया गया है गुरु गीता सभी   पापों  का नाश हो जाता है  तो फिर व्यक्ति के मंद भाग्य क्यों कर ठीक नहीं हो सकते.*

*श्लोक  49  एवं 73  -  प्रथम में मंद भाग्य गुरु के अमृत तुल्य रूप को नहीं देख पाता है यह लिखा है दूसरे में गुरु शिष्य के अनेक जन्मों से संचित सभी कर्मों को  भस्मसात  कर देते हैं  ऐसा अर्थ लिखा है.  दोनों में विरोधाभास लगता है*

उत्तर- आत्मीय भाई, सद्गुरु की शरण में चार तरह के लोग शिष्य बनने आते हैं -अर्थार्थी, आर्त, जिज्ञासु और ज्ञानी। सांसारिक लाभ हेतु ज्ञानार्जन अर्थार्थी करता है, आर्त अर्थात दुःखी व्यक्ति दुःख से मुक्ति हेतु सद्गुरु शरण मे आता है, कुछ लोगों को ज्ञान की प्यास होती है, वह ज्ञान प्राप्ति के लिए सद्गुरु शरण में आते हैं। ज्ञानी वस्तुतः  मुमुक्षु होता है मोक्ष व मुक्ति हेतु वैराग्य  भाव से सद्गुरु की शरण मे आता है। ज्ञानी को ही विवेकी पुरुष और सौभाग्यशाली शिष्य कहा जाता है, जो जानता है कि मुक्ति व मोक्ष क्या है? परमात्मा से मिलन की उत्कंठा क्या होती है। सद्गुरु गंगा की तरह है, जो शिष्य जिस भाव-उद्देश्य व योग्यता-पात्रता लेकर आएगा, बस उसे वही व उतना ही मिलेगा।

एक ही गुरु के समस्त शिष्य एक से समर्थ नहीं बनते, इनका मात्र यही कारण होता है।

समस्त पापों व तापों का नाश समर्थ सद्गुरु करता जरूर है, लेकिन केवल सुपात्र शिष्य पर अपनी तपस्या लुटाता है। जिसका समर्पण विसर्जन विलय दास भाव से गुरु के प्रति जितना होगा वह उतना ही लाभ पाता है। निज इच्छाओं का त्याग करके गुरु की इच्छाओं को ही जीवन उद्देश्य मान ले वही भव बन्धन से तरता है।

मंदभाग्य - हतभाग्य शिष्य सद्गुरु के स्वरूप व ज्ञान की विशालता को न समझ पाने के कारण मात्र सांसारिक अर्थ लाभ हेतु गुण सीख कर ही संतुष्ट हो जाता है। इसलिए वह मुक्ति व मोक्ष से वंचित रहता है।

एक बार एक राजा ने एक किसान को मदद के बदले कुछ भी मांगने को कहा, उस मंदभाग्य किसान ने अच्छी क़्वालिटी के कद्दू मांगें। यदि कोई बुद्धिमान होता तो क्या वह मात्र कद्दू मांगता?

युगऋषि के दर्शन को लोग आते थे, तो क्या मांगते थे, बेटी की शादी हो जाए, बेटे की नौकरी लग जाये, फसल अच्छी हो। कितने शिष्यों ने युगऋषि से मांगा - हमें अपनी शरण मे ले लो हमसे अपना कार्य करवा लो। हमारी सांस सांस पर अधिकार कर लो, अपना अंग अवयव बना लो???

उम्मीद है मंदभाग्य और विवेकी शिष्यों का अंतर स्पष्ट हो गया होगा।

मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र है, सद्गुरु हो या भगवान बिना आह्वाहन और पात्रता चेक किये किसी के जीवन में अपेक्षित अनुदान वरदान नहीं लुटा सकते हैं। यह नियति का विधि विधान है।

 श्रद्धा-विश्वास, समर्पण के साथ पात्रता के विकास हेतु प्रथम क्रम में प्रयास तो शिष्य को करना होगा, अपना उद्देश्य स्पष्ट करना होगा, तब द्वितीय क्रम में सद्गुरु के उद्धारक स्वरूप का साक्षात्कार शिष्य कर पायेगा। गुरु के अनुदान वरदान से वह जुड़ पायेगा।


🙏🏻श्वेता, DIYA

*गुरुगीता प्रश्नोत्तरी - स्कन्दपुराण - उत्तराखंड - शिवपार्वती सम्वाद* प्रश्न- *श्लोक 102

*गुरुगीता प्रश्नोत्तरी - स्कन्दपुराण - उत्तराखंड - शिवपार्वती सम्वाद*

प्रश्न- *श्लोक 102-  मुक्त होने का अर्थ क्या है...    'विलय'  या  अन्य कुछ..   यदि विलय हो जाए  स्मरण कैसे हो?*

उत्तर - आत्मीय भाई, श्लोक व उसका  भावार्थ स्पष्ट कर रही हूँ।

श्लोक - 102
यावलकल्पताको देहस्तावदेव गुरुं स्मरेत।
गुरुलोपो न कर्तव्य: स्वछन्दों यदि वा भवेत।।

जब तक देह है, तब तक अंतिम श्वांस तक गुरुदेव का स्मरण करते रहना चाहिए। जब देह से मुक्त हो या पंच तत्वों में यह शरीर विलीन हो जाये, तब भी सूक्ष्म शरीर मे भी गुरु का स्मरण करते रहना चाहिए।

अब प्रश्न यह उठता है कि देहत्याग( देहमुक्त या पंचतत्वों में शरीर के विलय) के बाद क्या गुरुदेव का स्मरण सम्भव है?

तो उत्तर है, हाँजी। प्रेत शरीर - सूक्ष्म शरीर बिल्कुल वैसे ही जप-तप व स्मरण कर सकता है, जैसे स्थूल शरीर मे जप-तप व स्मरण सम्भव है।

हिमालयीन ऋषि सत्ताएं सूक्ष्म शरीर मे तप कर रही हैं। जब देह रहते निरन्तर गुरुदेव का स्मरण करते रहोगे तो वह स्मरण अवचेतन मन में प्रवेश कर जाएगा। सूक्ष्म शरीर को व चित्त के संस्कारो में वह स्मरण प्रगाढ़ता के साथ संयुक्त हो जाएगा। तब देह छूटने के बाद गुरुलोक में गमन होगा व सूक्ष्म शरीर रूपी शिष्य को सूक्ष्म शरीर में सूक्ष्म लोकों में गुरु सान्निध्य का लाभ मिलेगा।

आत्मा की शिखर यात्रा निर्बाध रूप से अनवरत होती रहेगी, भले शरीर रहे या  छूट जाए।

🙏🏻श्वेता, DIYA

गुरुगीता प्रश्नोत्तरी - स्कन्दपुराण - उत्तराखंड - शिवपार्वती सम्वाद* प्रश्न- *श्लोक 84

*गुरुगीता प्रश्नोत्तरी - स्कन्दपुराण - उत्तराखंड - शिवपार्वती सम्वाद*

प्रश्न-  *श्लोक  84 एवं 86-  प्रथम में गुरु सेवा की ठीक-ठीक विधि कोई नहीं जानता ऐसा लिखा है दूसरे में गुरु सेवा से विमुख  होने पर मोक्ष नहीं मिल सकता ऐसा लिखा है.   अतः  सही विधि  की जानकारी  ना होने पर  गुरु सेवा  से विपरीत    या  विमुख कोई  कार्य या विचार है यह कैसे ज्ञात हो?*

उत्तर - आत्मीय भाई,

गुरुसेवा की ठीक ठीक विधि न जानना एक अलग बात है, और गुरुसेवा का प्रयास न करना दूसरी बात है।

ॐ आवाहनं न जानामि, नैव जानामि पूजनम् । विसर्जनं न जानामि, क्षमस्व परमेश्वर....

यह मन्त्र यज्ञ में सुना होगा, ठीक ठीक विधि नहीं आती, फिर भी यज्ञ पूरी श्रद्धा निष्ठा से किया है। इसे स्वीकार लीजिये। इसी तरह गुरुसेवा की ठीक विधि ज्ञात न होने पर भी भक्ति भावना व समर्पण से किया गुरुकार्य गुरुसेवा फ़लित होती है।

कृष्ण विष्णु ज्ञानी कहे, किशन-बिशन अज्ञान,
ज्यो बालक टोटी कहे, माता रोटी जान।।
भूल चूक क्षमा करो भगवान।

भगवान व सद्गुरु माता की तरह होते हैं, ठीक ठाक विधि गुरुसेवा की न जानने  के कारण भी यदि शिष्य निर्मल मन से गुरुसेवा का अनवरत प्रयास कर रहा है, तो गुरु माता की तरह प्रशन्न हो उठता है। व लाड़ प्यार व अनुदान वरदान शिष्य पर लुटाता रहता है।

मग़र जो अहंकार वश गुरुसेवा से ही विमुख हो जाये। दीक्षा तो ले ली मग़र गुरुसेवा हेतु उनके बताए गुरु अनुशासन और शत सूत्रीय कार्यक्रम में से कुछ भी न करे, कोई मिशन का कार्य न करे। गुरु की न सुने, गुरु सेवा से विमुख हो जाये तो भला उसका कल्याण कैसे होगा?

जो शिष्य निर्मल भाव से प्रयास जो करता है वह लाभान्वित होता है। जो गुरु का साहित्य पढ़ता है, जो गुरु निर्देशो को सुनता है, जो गुरु के ध्यान में डूबता है उसे गुरु क्या चाहता है, निर्देश स्पष्ट मिलने लगता है।



🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *मन्त्र और ध्यान में से किसी एक को चुनना हो तो कौन सा अनिवार्य है?*

प्रश्न - *मन्त्र और ध्यान में से किसी एक को चुनना हो तो कौन सा अनिवार्य है?*

उत्तर - आत्मीय भाई, उपासना के दो चरण है - जप और ध्यान। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।

लेकिन फ़िर भी यदि आप किसी एक को ही चुनना चाहते हैं तो ध्यान चुनिए।

ध्यान और मन्त्र जप में ध्यान की ज्यादा वरिष्ठता है, क्योंकि ध्यान मार्ग है और मन्त्र वाहन है, जप के साथ ध्यान अनिवार्य है। वाहन को मार्ग की आवश्यकता है, मार्ग को वाहन मिले न मिले फ़र्क़ नहीं पड़ता।

लेकिन इंसान को आध्यात्मिक उन्नति और चेतना की शिखर यात्रा हेतु मार्ग के साथ साथ वाहन भी चाहिए। अध्यात्म में मंजिल तक पहुंचने के लिए ध्यान व गायत्री मंत्र जप दोनों अनिवार्य है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *गुरुगीता के श्लोक 155 में श्मशान, भय भूमि, भयानक स्थान को गुरुगीता पाठ के लिए श्रेष्ठ और श्लोक 175 में अधम स्थान को निषेध बताया है। कृपया भयानक और अधम स्थान को स्पष्ट करें?*

प्रश्न - *गुरुगीता के श्लोक 155 में श्मशान, भय भूमि, भयानक स्थान को गुरुगीता पाठ के लिए श्रेष्ठ और श्लोक 175 में अधम स्थान को निषेध बताया है। कृपया भयानक और अधम स्थान को स्पष्ट करें?*

उत्तर - आत्मीय भाई,

*भयानक स्थान* अर्थात भय भूमि उसे कहते हैं जहाँ श्मशान होता है, जहां लाशें जलती हैं और मृत्यु और जीवन दोनों के बीच कोई भेद नहीं होता। ऐसे स्थान को आम जनता भयानक (भय भूमि या डरावनी भूमि) मानती है, वह इसे मृतात्माओं का वास मानती है। लेकिन तपस्वियों, सन्यासियों और साधकों के लिए जीवन की नश्वरता और आत्मा की शाश्वत स्थिति को जानने और वैराग्य भाव जगाने के लिए यह स्थान उत्तम माना गया है। भगवान शिव की प्रिय तप:स्थली है, तो उनके भक्तों के लिए भी ऐसे आम जन  के लिए भयानक स्थान है साधना के लिए उत्तम है। मैं दो बार श्मशान जा चुकी हूँ दाह सँस्कार में, और यह निश्चित रूप से कह सकती हूँ वैराग्य भाव जगाने का उत्तम स्थान श्मशान है। कोई मोह शेष नहीं रहता। गुरु गीता के लिए श्रेष्ठ है।

*अधम स्थान* - अर्थात ऐसे स्थान जहाँ अधर्म होते हों, कत्लगाह (जहाँ स्वार्थ हेतु ज़बरन तड़फाकर जीव हत्या की जा रही हो) , देहव्यापार के अड्डे( जहाँ  ज़बरन मजबूर गरीब कन्याओं के अपहरण करके उनका शोषण हो रहा हो) , अश्लील फ़िल्म का थियेटर  या मद्यपान का स्थल जहां शब्दो, दृश्यों और जहरीले मादक पेय से लोगों में कामुकता व वहसिपन नरपिशाच बनाने का उपक्रम चल रहा हो। ऐसे स्थान अधम है, यहां का सूक्ष्म वातावरण दूषित है। ऐसे स्थानों का त्याग कर देना चाहिए। ऐसे स्थानों में की साधना निष्फल होती है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *गुरु गीता के श्लोक 156 का भावार्थ समझा दीजिये* गुरुपुत्रो वरं मूर्खस्तस्य सिद्धयन्ति नान्यथा। शुभकर्माणि सर्वाणि दीक्षाव्रत तपांसि च।।

प्रश्न - *गुरु गीता के श्लोक 156 का भावार्थ समझा दीजिये*

गुरुपुत्रो वरं मूर्खस्तस्य सिद्धयन्ति नान्यथा।
शुभकर्माणि सर्वाणि दीक्षाव्रत तपांसि च।।

उत्तर - आत्मीय भाई, यहां सदगुरु पुत्र के ज्ञान की तुलना सद्गुरु के ज्ञान से की गई है। हमारे और आपके ज्ञान से नहीं की गई है।

श्लोक - 156, सद्गुरु के घर जन्म लेने वाली आत्मा कभी भी साधारण नहीं होती। उसका शरीर जिन तत्वों से बना है उसमें सद्गुरु का अंश विद्यमान है। सद्गुरु के सान्निध्य में रहने व बहुत कुछ सीखने का उसे अवसर मिलता है।

वह मूर्ख किन अर्थों में कही गयी है यह समझना बहुत आवश्यक है। यदि वह अज्ञानी होगी व अनपढ़ होगी तो उसे संस्कृत का ज्ञान नहीं हो तो दीक्षा व्रत तप इत्यादि वो करवा हिबनहीं पाएगी। क्या कोई सद्गुरु अपने बच्चे को अनपढ़ रहने देगा क्या?

अतः गुरुपुत्र की मूर्खता तुलनात्मक है, अर्थात गुरु के समान बुद्धिमान न होना। गुरु से कम योग्य होना। अर्थात गुरु महान ज्ञान के सामने उनके पुत्र का ज्ञान तुच्छ होना व मूर्ख प्रतीत होना।

कुशल नाविक और रेस में जितने वाले नाविक का बेटा बाप के समान भले न हो, कोई रेस भले जीत न सके।  मग़र वो इतना कुशल जरूर होता है कि तुम्हें डूबने से बचा सके और किनारे तक पहुंचा सके। नदी पार करवा सके।

मग़र वह गुरुपुत्र हमसे और आपसे अधिक बुद्धिमान होगा। गुरु के समान न होते हुए भी वह इतनी क्षमता रखता है कि आपको सन्मार्ग दिखा दे, आपके व्रत तप को पूर्णता तक पहुंचा दें। वह पिता के ज्ञान और तप के सामने तुच्छ प्रतीत भले हो रहा हो, मग़र वह हमसे और आपसे बहुत श्रेष्ठ है, हमसे और आपसे ज्यादा ज्ञान व तप की धरोहर रखता है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Sunday 24 May 2020

प्रश्न - *दी, बेटे का अन्नप्राशन करना है, लाकडाउन में स्वयं घर पर स्वयं बच्चे का अन्नप्राशन दीपयज्ञ से कैसे करें? इस समय कोई किसी के घर आ जा नहीं रहा है।*

प्रश्न - *दी, बेटे का अन्नप्राशन करना है, लाकडाउन में स्वयं घर पर स्वयं बच्चे का अन्नप्राशन दीपयज्ञ से कैसे करें? इस समय कोई किसी के घर आ जा नहीं रहा है।*

उत्तर- आत्मीय भाई,

दीपयज्ञ के माध्यम से बच्चे का अन्नप्राशन आसानी से घर पर कर लीजिए।

चावल और दूध की खीर बनाएं, खीर बनाते समय गायत्री मंत्र जपें और निम्नलिखित मन्त्र बोलें।

*ॐ पयः पृथिव्यां पयऽओषधीषु, पयो दिव्यन्तरिक्षे पयोधाः। पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम्॥*

लाकडाउन में बड़े यज्ञ सम्भव नहीं है, इसलिए सरल दीपयज्ञ यज्ञ घर मे मौजूद सामग्री से बता रही हूँ। पुस्तक - युगसँस्कार पद्धति और कर्मकांड भाष्कर में अन्नप्राशन सँस्कार के मन्त्र है। यदि यह पुस्तक हो तो इससे करें। यदि पुस्तक नहीं है तो निम्नलिखित सरल विधि से कर लें।

*विधि* - सुबह के वक़्त साधारण नमक को पानी मे डालकर माँ गंगा का ध्यान करते हुए निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए उस जल से बच्चे को नहलाएं। सभी परिजन इन्ही मन्त्र को पढ़ते हुए नहाए।

मन्त्र - *ॐ ह्रीं गंगायै ॐ ह्रीं स्वाहा*

बच्चे सहित समस्त परिवार जन नहाने के बाद ऊर्जा बढाने व शांति के लिए पीले या श्वेत या नीला या आसमानी रँग का कपड़ा पहनें। पूजन के वक्त लाल या काले कलर का वस्त्र न पहनें। गायत्री मंत्र दुपट्टा हो तो उसे जरूर धारण करें। बच्चे को गायत्रीमंत्र का दुप्पटा ऊपर से डाल दें।

भगवान को प्रसाद में घर में बनी खीर ही चढ़ेगी।

घर मे रूम फ्रेशनर हो तो कमरे में छिड़क दें, मोबाइल में बांसुरी या ॐ की मधुर ध्वनि हल्के आवाज में चला लें।

घर मे कम्बल का ऊनि शाल का आसन बिछा लें और उस पर बैठ जाएं,  पवित्रीकरण, गुरु, गायत्री या जो भी इष्ट भगवान हों उनका  आह्वाहन करलें, कलश पूजन कर लें। बच्चे को तिलक करके उसके हाथ में कलावा(मौली) बांध दें। माता-पिता मिलकर पाँच घी के दीपक जलाएँ। दीप पूजन करें। यदि मिट्टी के दीपक नहीं है तो पांच स्टील की कटोरी में दीपक जला लें, या आटे के दीपक बनाकर जला लें।

पँच दीपकों का पूजन अक्षत(चावल) --पुष्प(यदि मिल जाये तो उत्तम है नहीं हो तो भी कोई बात नहीं) से करें।

माता पिता निम्नलिखित मन्त्र दोहरायें, थोड़े थोड़े अक्षत पुष्प सभी पँच दीपकों पर अर्पित कर दें और हाथ जोड़कर बोलें:-

*ॐ श्रेयसां पथे चरिष्यामि*। (बच्चे और स्वयं के जीवन को कल्याणकारी मार्ग पर चलाएंगे)

पांचों दीपकों को एक एक पंचतत्वों का प्रतीक मानते हुए उनसे बच्चे के पँच प्राणों को ऊर्जावान बनाने हेतु प्रार्थना करें।

*ॐ पृथिव्यै नम:* - पृथ्वी माता हमारे बच्चे को उर्वरता व शहनशीलता दें।

*ॐ वरुणाय नमः* - वरुण देवता हमारे बच्चे को शीतलता व सरसता दें।

*ॐ अग्नयै नम:* - अग्नि देवता हमारे बच्चे को तेजस व वर्चस प्रदान करें।

*ॐ वायवे नम:* - वायु देवता हमारे बच्चे को गतिशीलता व जीवनी शक्ति प्रदान करें।

*ॐ आकाशायै नम:* - आकाश देवता हमारे बच्चे को उदात्त व महान बनाएं।

दीपक को देखते हुए 5 मिनट माता पिता प्राणायाम करें।

💫 *पात्र पूजन*

खीर की कटोरी के बाहर वाले हिस्से में रोली या चंदन से स्वस्तिक बनाते हुए निम्नलिखित मन्त्र बोलें।

*ॐ परमार्थ मेव स्वार्थ मनिष्ये* - हम परमार्थ को ही स्वार्थ मानेंगे। यदि शिक्षण बच्चे को देंगे।

*ॐ सुपात्रतां प्रदास्यामि* - अपने शिशु में दैवीय गुणों के विकास हेतु सुपात्रता का विकास करेंगे।

*ॐ स्वस्ति न S इन्द्रो वृद्धश्रवाः। स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः। स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो S अरिष्टनेमिः। स्वस्तिनो बृहस्पतिर्दधातु।।*

💫 *अन्न सँस्कार*

प्रतिनिधि खीर के पात्र को लेकर पहले गायत्री मंत्र बोलकर अभिमंत्रित करें, फिर निम्नलिखित मन्त्र बोलें:-

*ॐ कुसंस्कारा: दूरीभूयासु:* - अन्न को शुद्ध करते हुए इसके पूर्व संस्कारो का निवारण करते हैं।

इसके बाद खीर पर कलश के जल का छिड़काव करते हुए निम्नलिखित मन्त्र बोलें।

*मंगलम भगवान विष्णु, मंगलम गरुड़ ध्वज।*
*मंगलम पुण्डरीकाक्ष, मंगलाय तनो हरि।*

प्रतिनिधि पुनः तुलसी की पत्ती खीर में डालते हुए निम्नलिखित मन्त्र बोलें:-

*ॐ सुसंस्कारा: स्थिरिभूयासु:।* - इस खीर में दिव्य सात्विक सुसंस्कारों की स्थापना करते हैं।

🔥अब खीर रख दें व दीपयज्ञ प्रारम्भ करें🔥

 प्रार्थना करे कि हे अग्नि देवता अपनी तरह हमारे शिशु को अखंड पात्रता दीजिये, अक्षय स्नेह दीजिये, हमारे शिशु की निष्ठा ऊर्ध्व मुखी बनाइये।

हमारा शिशु बड़ा होकर परिवार के संरक्षक बनें, समाज का उद्धारक बनें,देश का  रक्षक बनें।

दो कटोरी लें, एक में अक्षत(साबुत चावल) और दूसरी ख़ाली लें।

अब निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भरी कटोरी से अत्यंत थोड़े अक्षत जैसे यज्ञ में आहुति उठाते हैं वैसे ही मध्यमा, अनामिका और अंगूठे की सहायता से उठाएं और स्वाहा के साथ खाली कटोरी में डालते जाएं।

*24 आहुति गायत्री मंत्र की - शरीर मे अच्छे हार्मोन्स रिलीज़ होते है, मन शांत होता है, बुद्धि बल और आत्मविश्वास बढ़ता है*

*ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योन: प्रचोदयात।। स्वाहा इदं गायत्र्यै इदं न मम्*

*11 आहुति महामृत्युंजय मंत्र की, इसे करने से आरोग्य लाभ मिलता है*

*ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।।इदं महामृत्युंजयाय इदं न मम्*

*5 आहुति चन्द्र गायत्री मन्त्र* से
चन्द्र गायत्री: -  यह मंत्र निराशा से मुक्ति दिलाता है और मानसिकता भी प्रबल होती है ।
मंत्र-

*ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृतत्त्वाय धीमहि। तन्नो चन्द्र: प्रचोदयात् ।।इदं चन्द्रायै इदं न मम्।*

*5 आहुति सूर्य गायत्री मन्त्र से:-* इस मंत्र से शरीर के सभी रोगों से मुक्ति मिलती है ।
मंत्र-
*।। ॐ भास्कराय विद्महे दिवाकराय धीमहि । तन्नो सूर्य: प्रचोदयात् ।।इदं सूर्यायै इदं न मम्।*

भजन कीर्तन स्तुति जो करना चाहे कर लें, फिर उगते हुए सूर्य का ध्यान नेत्र बन्द करके करें।

कुछ देर पुनः पांच जलते हुए दीपकों देखें, भावना करे कि यह पांच दीपक पँच तत्वों के प्रतीक हैं, यह हमारे शिशु के पँच प्राणों को चार्ज कर रहे हैं।

पुनः दीपक को देखते हुए 5 मिनट प्राणायाम करें।

आरती व भजन कीर्तन का क्रम कर लें।

💫 *अन्नप्राशन* - प्रतिनिधि भगवान सूर्य, माता गायत्री व गुरु का मन ही मन ध्यान करते हुए, सविता के तेज को खीर में अनुभव करते हुए, गायत्री मंत्र बोलते हुए बच्चे को तीन बार खीर चम्मच से चटाये (खीर चांदी या स्टील की चम्मच से ही चटाये)

💫 *सङ्कल्प व पूर्णाहुति* - बच्चे के उज्ज्वल भविष्य के लिए गुरु अनुसाशन में जीवन जीने का सङ्कल्प लें और एक अच्छी आदत अपनाए और एक बुरी आदत का त्याग करें।

हाथ मे सभी अक्षत पुष्प लेकर मन में उभरे शुभ सङ्कल्प दोहराएं और भगवान के समक्ष अक्षत पुष्प अर्पित कर दें।

शांतिपाठ करके उठ जाएं, अक्षत चिड़िया को डाल दें या किसी भूखे को चावल दान करते समय उन अक्षतों का भी प्रयोग कर लें।

बच्चे के वजन का अनाज किसी गरीब को या गौशाला में दान करवा दें।

Online donation - गायत्री तीर्थ शान्तिकुंज में कर दें।

https://www.awgp.org/contribute/online_donation

PayTm या गूगल पे से भी डोनेशन कर सकते हैं।

निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए बच्चे पर  पुष्प छिड़कर सभी बड़े आशीर्वाद दें:-

*मंगलम भगवान विष्णु, मंगलम गरुड़ ध्वज।*
*मंगलम पुण्डरीकाक्ष, मंगलाय तनो हरि।*

बच्चे का नाम लेकर उसे यशश्वी, दीर्घायु और चिरंजीवी होने का आशीर्वाद दें।

🙏🏻यदि चाहें तो अपने अनुभव शेयर जरूर करें, ऑडियो या टेक्स्ट मेसेज भेज सकते हैं। 🙏🏻

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न- *एक पुस्तक में पढ़ा कि आत्मा पहले पिता चुनती है, वहीं दूसरी पुस्तक में पढ़ा आत्मा पहले मां का चयन करती है, एक पुस्तक में पढ़ा आत्मा का जन्म कर्मफ़ल व प्रारब्ध के आधीन है। कृपया बताएं कि इनमें से क्या सही है।*

प्रश्न- *एक पुस्तक में पढ़ा कि आत्मा पहले पिता चुनती है, वहीं दूसरी पुस्तक में पढ़ा आत्मा पहले मां का चयन करती है, एक पुस्तक में पढ़ा आत्मा का जन्म कर्मफ़ल व प्रारब्ध के आधीन है। कृपया बताएं कि इनमें से क्या सही है।*

उत्तर - आत्मीय बहन, युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव की लिखी तीन पुस्तकों में आपको अपने प्रश्न के उत्तर को विस्तार से समझने में मदद मिलेगी।

1- गहना कर्मणो गति: (कर्मफ़ल का सिद्धांत)
2- पुनर्जन्म : एक ध्रुव सत्य
3- मरणोत्तर जीवन

आत्मा कब और कहाँ किस कारण से किस उद्देश्य हेतु जन्म लेगी यह पहले निर्धारित होता है?

जब उद्देश्य क्लियर हो जाता है, तब उस आत्मा के सहयोगी आत्मा का चयन माता-पिता के रूप में होता है।

आत्मा किसी विशेष उद्देश्य के लिए जन्म लेने वाली उच्च कोटि की आत्मा होगी तो परमात्मा उसे माता-पिता के चयन का अधिकार देते हैं। पूर्व जन्मों के ऋणानुबंध के आधार पर या किसी विशेष उद्देश्य को साझा करने के लिए चित परिचित आत्मा का चुनाव माता पिता के रूप में होता है।

आत्मा यदि भोग शरीर में आ रही है व प्रतिशोध को पूरा करने अमुक आत्मा में से आ रही है तो वह रुग्ण शरीर लेकर जन्मेगी व माता-पिता को कष्ट देते हुए अकाल मृत्यु को प्राप्त होगी।

कोई सन्त दिव्यात्मा मुक्ति मार्ग में बाधक कुछ गहन प्रारब्ध कष्टों का शीघ्रता से भोग कर मुक्ति चाहती है। अब उसको किसी से प्रतिशोध नहीं लेना, वह अनुरोध करती है कि वह रुग्ण व अपाहिज़ जन्मेगी तो कोई स्वेच्छा से इस भोग में साथ दे दे। उनके ही शिष्यों में से जो इस हेतु वचन देते हैं या उनके गुरु भाई-बहन जो स्वेच्छा से मदद का वचन देते हैं, कि वह गुरु या मित्र की मदद करेंगे। तब अगले जन्म में जब शिष्य या मित्र जब जन्मता है और विवाह करता है, तब उसका वही दिव्यात्मा सन्त रुग्ण व अपाहिज़ जन्म लेता है। कष्ट भोगते हुए शरीर त्याग कर मोक्ष प्राप्त करता है। सन्त प्रकृति के बहुत ही साधक स्तर के अच्छे लोगों के घर जन्मी अपाहिज़ रूग्ण आत्मा सन्तान के रूप में देखी जा सकती हैं। ऐसे सन्त को जन्म देकर रुग्णता व अपाहिज में सेवा करके वह सन्त माता-पिता भी मोक्ष प्राप्त करते हैं।

आत्मा यदि किसी का ऋण उतारने के लिए आ रही है तो सेवाभावी सन्तान के रूप में जन्म लेगी और ताउम्र सेवा करके ऋण उतारेगी।

जन्म का निर्धारण कई सारे तथ्यों व ऋणानुबंध पर निर्भर करता है, प्रारब्ध व जन्म उद्देश्यों पर निर्भर करता है।

साधारण तौर पर यदि कोई ऋणानुबंध न हों और फ़िर भी माता-पिता गर्भ में मनचाही सन्तान चाहते हों और उन्मुक्त आत्मा को जब गर्भ चुनने का अधिकार हो तब जैसी आत्मा की मनोवृत्ति होती है वह वैसा घर व गर्भ अपनी संस्कारो के वशवर्ती होकर चुनती है।

मधुमक्खी पुष्प पर बैठती है, और मक्खी कचरे पर बैठती है, वैसे ही जैसी आत्मा वैसा गर्भ चुनती है।

हिमालयीन ऋषि स्तर की आत्माएं उस गर्भ का चयन करती है जहाँ नित्य साधना व शुभसँकल्प से जन सेवा हो रही हो। दुष्ट आत्माएं उस गर्भ का चयन करती हैं जहाँ उन्हें उनके मनोनुकूल दुष्ट भाव माता-पिता की मनोवृत्ति में मिले।

कभी कभी किसी साधारण आत्मा को कोई फिल्मी गीत बहुत पसंद था, वह मरणोपरांत नए जन्म हेतु गर्भ चयन का अधिकार मिला तो वह उस गर्भ में प्रवेश कर जाती है जो माता वह गीत सुन रही होती है। गर्भ पहले बनता है, आत्मा बाद में प्रवेश करती है। यह गर्भोपनिषद में वर्णित है। अतः आत्मा  द्वारा चयन किस माता पिता द्वारा तैयार गर्भ में होगा यह उस पर निर्भर करता है।

अब गर्भ का चुम्बकत्व किस प्रकार की आत्मा को प्रवेश हेतु आकर्षित करेगा यह माता-पिता के मनोभाव निर्मित करते है। दिव्य गर्भ का निर्माण साधना से हुआ तो उसमें असुर/निम्न आत्मा प्रवेश नहीं कर पाती।

कभी कभी किसी तैयार गर्भ में प्रवेश को कोई आत्मा नहीं मिलती, तब ऐसी स्थिति में गर्भपात हो जाता है।

कभी कभी कोई आत्मा को कुछ दिनों या महीनों का ही प्रारब्ध भोगना होता है, तो गर्भ में उतने दिनों या महीने व्यतीत कर गर्भ त्याग देती हैं। तब भी गर्भपात हो जाता है।

अतः कोई एक कारण व एक नियम गर्भ में आत्मा के प्रवेश का नहीं तय किया जा सकता। गर्भ में आत्मा के प्रवेश के लिए बहुत सारे नियम व विधिव्यवस्था हैं , इसलिए किसी एक कारण में मत उलझिए। एक नियम को सम्पूर्ण मत मानिए।

अलग अलग लेखक ने जिस कारण को जाना उसे लिख दिया, लेकिन केवल एक रिसर्च को ही पूरा मानना न्याय संगत नहीं है। ठीक वैसे ही जैसे गुरुग्राम से दिल्ली पहुंचने के कई मार्ग, कई साधन-वाहन इत्यादि है। किसी एक मार्ग को खोजने वाले को ही सम्पूर्ण व एकमात्र मार्ग मान लेना भूल ही कही जाएगी। केवल एक वाहन से ही यात्रा सम्भव है यह भी मानना भूल है।

हम मनचाही सन्तान के लिए उपयुक्त मनःस्थिति, मनोवृत्ति, उपयुक्त साधना और परिस्थिति का निर्माण कर गर्भ का निर्माण कर सकते हैं, जिससे अशुभ आत्मा प्रवेश न कर सके, व अच्छी आत्मा को प्रवेश करने में हिचकिचाहट न हो। बाकी यदि अन्य प्रारब्ध व ऋणानुबंध के कारण कोई आत्मा जन्मे तो भी पूर्ण निष्ठा से उसके उचित लालन पालन की व्यवस्था करना हमारा उत्तरदायित्व है।अपने कर्तव्य पथ पर डटे रहिये, जो मिले उसे स्विकारिये।

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *भगवान साकार है या निराकार? साकार है तो कैसे? निराकार है तो कैसे?*

प्रश्न - *भगवान साकार है या निराकार? साकार है तो कैसे? निराकार है तो कैसे?*

उत्तर- आत्मीय दी,

अग्नि निराकार है, मग़र दीप या मोमबत्ती में जलते हुए एक विशेष आकार की प्रतीत तो होती है।

अग्नि की तरह परमात्मा सर्वव्यापक व निराकार है, लेकिन जब वह अवतार लेता है तो वह अपना कभी 10 अंशो का अवतार राम रूप में कभी 16 अंशो का अवतार कृष्ण रूप में लेता है।

जब अर्जुन ने भगवान कृष्ण के विराट स्वरूप के दर्शन का हठ किया तो भगवान ने कहा- अर्जुन स्थूल चमड़ी के नेत्रों से तुम मेरे विराट स्वरूप के दर्शन नहीँ कर सकते। कृष्ण भगवान ने अर्जुन को ज्ञान चक्षु-भाव चक्षु दिए, तब उसने कण कण में व्याप्त परमात्मा को अनुभूत किया व दिव्य ज्ञान से समझा।

क्योंकि जो परमात्मा सर्वव्यापक है वह भला किसी एक आकार में सीमाबद्ध कैसे हो सकता है?

जल के तीन रूप तरल(जल), ठोस(बर्फ), गैस(वाष्प) है। जल की कुछ बूंदे बर्फ़ रूप में आकार लेती हैं, तो वह विराट जल का कुछ अंशावतार ही हुई न? लेक़िन क्या बर्फ़ साकार है? या निराकार है? क्या जल साकार है या निराकार है? क्या जल वाष्प साकार है या निराकार है?

परमात्मा जल की बूंदों के बर्फ़ के टुकड़ों में बदलने की तरह कुछ अंशो में स्वयं को साकार रूप में दृश्य आवश्यकता पड़ने पर करवा सकता है, आवश्यकता समाप्त होने पर पुनः वायुभूत जल वाष्प की तरह हो जाता है। उस निराकार ब्रह्म को एक आकार में केवल उतना ही समझना भूल ही है।

इस सम्बंध में एक बहुत सुंदर लेख अखण्डज्योति अगस्त 1985 में दिया है। इसे निम्नलिखित लिंक पर जाकर देखें। क्या कोई यह ठीक ठीक बता सकता है कि समुद्र में कुल कितना जल है? पूरे विश्व मे कुल कितना जल वाष्प है? पूरे हिमालय में कुल कितना बर्फ है? टोटल कितना जल स्रोत है? जब जल का ही अनुमान नहीं लग सकता और न ही उसे एक साथ देखा जा सकता है? तो सोचो इसे बनाने वाले और पूरे विश्व ब्रह्माण्ड को बनाने वाले को पूरा देखना व जानना क्या सम्भव किसी के लिए भी हो पायेगा?

इसीलिए वेदों ने नेति नेति कहा, वेद तो ब्रह्म की ओर इशारा मात्र है, वह तो वेदों से भी परे है।

जो कहता है, वह ब्रह्म को पूर्णरूपेण जानता है वह वस्तुतः झूठ बोलता है। भला कोई पात्र निज पात्रता से अधिक जब जल नहीं भर सकता, तो मनुष्य जो कि स्वयं एक अंश है परमात्मा का वह निज पात्रता से अधिक कैसे उसे जान सकता है।

ब्रह्म में विलीन होकर ब्रह्म को पाया जा सकता है।

जिस प्रकार जल में मछली है और  मछली के भीतर भी जल है। उसी तरह हम मनुष्य ब्रह्म के भीतर हैं और हम मनुष्यों के भीतर वह ब्रह्म है। हमें बस उसे भीतर जाकर पहचानना ही तो है। ढूंढना नहीं है मात्र पहचानना है, चाहे बाहर पहचान लो-जान लो या भीतर पहचान लो-जान लो।



🙏🏻श्वेता, DIYA

Saturday 23 May 2020

प्रश्न - *दी, बेटी का जन्मदिन मनाना है, लाकडाउन में स्वयं घर पर स्वयं बच्चे का जन्मदिन दीपयज्ञ से कैसे मनाएँ? इस समय कोई किसी के घर आ जा नहीं रहा है।*

प्रश्न - *दी, बेटी का जन्मदिन मनाना है, लाकडाउन में स्वयं घर पर स्वयं बच्चे का जन्मदिन दीपयज्ञ से कैसे मनाएँ? इस समय कोई किसी के घर आ जा नहीं रहा है।*

उत्तर- आत्मीय बहन,

दीपयज्ञ के माध्यम से बच्चे का जन्मदिन आसानी से घर मनाइए। बच्चे से कहिए कलर पेंसिल से पँच तत्वों का एक पेज में चित्र बना ले, आप उसकी सहायता कीजिये। पांच गोले और उनमें रँग इस प्रकार भरवाईये।

1- *पृथ्वी* - हरा रँग
2- *वरुण* - काला रँग
3- *अग्नि* - लाल रंग
4- *वायु* -पीला रंग
5- *आकाश* - सफेद रँग

लाकडाउन में बड़े यज्ञ सम्भव नहीं है, इसलिए सरल दीपयज्ञ यज्ञ घर मे मौजूद सामग्री से बता रही हूँ। पुस्तक - युगसँस्कार पद्धति और कर्मकांड भाष्कर में जन्मदिन के मन्त्र है। यदि यह पुस्तक हो तो इससे करें। यदि पुस्तक नहीं है तो निम्नलिखित सरल विधि से कर लें।

*विधि* - सुबह के वक़्त साधारण नमक को पानी मे डालकर माँ गंगा का ध्यान करते हुए निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए उस जल से बच्चे को नहाएं। सभी परिजन इन्ही मन्त्र को पढ़ते हुए नहाए।

मन्त्र - *ॐ ह्रीं गंगायै ॐ ह्रीं स्वाहा*

बच्चे सहित समस्त परिवार जन नहाने के बाद ऊर्जा बढाने व शांति के लिए पीले या श्वेत या नीला या आसमानी रँग का कपड़ा पहनें। पूजन के वक्त लाल या काले कलर का वस्त्र न पहनें। गायत्री मंत्र दुपट्टा हो तो उसे जरूर धारण करें।

भगवान को प्रसाद में घर में बनी खीर या मीठे चावल या हलवा बनाकर भोग लगाएं।

घर मे कम्बल का ऊनि शाल का आसन बिछा लें और उस पर बैठ जाएं,  पवित्रीकरण, गुरु, गायत्री या जो भी इष्ट भगवान हों उनका  आह्वाहन करलें। बच्चे को तिलक करके उसके हाथ में कलावा(मौली) बांध दें। उसके हाथ से पाँच घी का दीपक जलवाएँ। दीप पूजन करें। यदि मिट्टी के दीपक नहीं है तो पांच स्टील की कटोरी में दीपक जला लें, या आटे के दीपक बनाकर जला लें।

पँच तत्वों का पूजन अक्षत(चावल) --पुष्प(यदि मिल जाये तो उत्तम है नहीं हो तो भी कोई बात नहीं) से करें।

बच्चे को निम्नलिखित मन्त्र दोहराने को बोलें, थोड़े थोड़े अक्षत पुष्प सभी पँच तँत्वो के चित्र पर अर्पित कर दें और हाथ जोड़कर बोलें:-

*ॐ श्रेयसां पथे चरिष्यामि*। (जीवन को कल्याणकारी मार्ग पर चलाएंगे)

*ॐ पृथिव्यै नम:* - पृथ्वी माता हमें उर्वरता व शहनशीलता दें।

*ॐ वरुणाय नमः* - वरुण देवता हमें शीतलता व सरसता दें।

*ॐ अग्नयै नम:* - अग्नि देवता हमें तेजस व वर्चस प्रदान करें।

*ॐ वायवे नम:* - वायु देवता हमें गतिशीलता व जीवनी शक्ति प्रदान करें।

*ॐ आकाशायै नम:* - आकाश देवता हमें उदात्त व महान बनाएं।

दीपक को देखते हुए 5 मिनट प्राणायाम करें।

दीपक को अक्षत पुष्प चढ़ाते हुए निम्नलिखित मन्त्र हाथ जोड़कर बच्चे से दोहराने को बोलें।

*ॐ परमार्थ मेव स्वार्थ मनिष्ये* - परमार्थ को ही स्वार्थ मानेंगे।

 हे अग्नि देवता तरह अखंड पात्रता दीजिये, अक्षय स्नेह दीजिये, हमारी निष्ठा ऊर्ध्व मुखी बनाइये।

घर मे रूम फ्रेशनर हो तो कमरे में छिड़क दें, मोबाइल में बांसुरी या ॐ की मधुर ध्वनि हल्के आवाज में चला लें।

दो कटोरी लें, एक में अक्षत(साबुत चावल) और दूसरी ख़ाली लें।

अब निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भरी कटोरी से अत्यंत थोड़े अक्षत जैसे यज्ञ में आहुति उठाते हैं वैसे ही मध्यमा, अनामिका और अंगूठे की सहायता से उठाएं और स्वाहा के साथ खाली कटोरी में डालते जाएं।

*24 आहुति गायत्री मंत्र की - शरीर मे अच्छे हार्मोन्स रिलीज़ होते है, मन शांत होता है, बुद्धि बल और आत्मविश्वास बढ़ता है*

*ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योन: प्रचोदयात।। स्वाहा इदं गायत्र्यै इदं न मम्*

*11 आहुति महामृत्युंजय मंत्र की, इसे करने से आरोग्य लाभ मिलता है*

*ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।।इदं महामृत्युंजयाय इदं न मम्*

*5 आहुति चन्द्र गायत्री मन्त्र* से
चन्द्र गायत्री: -  यह मंत्र निराशा से मुक्ति दिलाता है और मानसिकता भी प्रबल होती है ।
मंत्र-

*ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृतत्त्वाय धीमहि। तन्नो चन्द्र: प्रचोदयात् ।।इदं चन्द्रायै इदं न मम्।*

*5 आहुति सूर्य गायत्री मन्त्र से:-* इस मंत्र से शरीर के सभी रोगों से मुक्ति मिलती है ।
मंत्र-
*।। ॐ भास्कराय विद्महे दिवाकराय धीमहि । तन्नो सूर्य: प्रचोदयात् ।।इदं सूर्यायै इदं न मम्।*

भजन कीर्तन स्तुति जो करना चाहे कर लें, फिर पूर्णिमा के चंद्रमा का ध्यान नेत्र बन्द करके करें।

कुछ देर पुनः पांच जलते हुए दीपकों देखें, भावना करे कि यह पांच दीपक पँच तत्वों के प्रतीक हैं, यह हमारे पँच प्राणों को चार्ज कर रहे हैं।

पुनः दीपक को देखते हुए 5 मिनट प्राणायाम करें।

निम्नलिखित मन्त्र हाथ जोड़कर बच्चे से दोहराने को बोलिये।

*ॐ महत्त्वाकांक्षा सिमितं विधास्यामि*- हम महत्त्वाकांक्षा को सिमित रखेंगे।

हम परिवार के संरक्षक बनेंगे,
हम समाज के उद्धारक बनेंगे,
हम देश के रक्षक बनेंगे।

जिस देश व समाज में जन्म लिया है सदा उसके कल्याण हेतु प्रयास करेंगे।

आरती व भजन कीर्तन का क्रम कर लें।

शांतिपाठ करके उठ जाएं, अक्षत चिड़िया को डाल दें या किसी भूखे को चावल दान करते समय उन अक्षतों का भी प्रयोग कर लें।

बच्चे के वजन का अनाज किसी गरीब को या गौशाला में दान करवा दें।

निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए बच्चे पर अक्षत पुष्प छिड़कर आशीर्वाद दें:-

*मंगलम भगवान विष्णु, मंगलम गरुड़ ध्वज।*
*मंगलम पुण्डरीकाक्ष, मंगलाय तनो हरि।*

🙏🏻यदि चाहें तो अपने अनुभव शेयर जरूर करें, ऑडियो या टेक्स्ट मेसेज भेज सकते हैं। 🙏🏻

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday 22 May 2020

प्रश्न - *दी, मुझे वह मन्त्र जप बताइये, जिससे मैं उस व्यक्ति को दण्ड दे सकूँ जिसकी वजह से मेरी जॉब चली गयी?*


प्रश्न - *दी, मुझे वह मन्त्र जप बताइये, जिससे मैं उस व्यक्ति को दण्ड दे सकूँ जिसकी वजह से मेरी जॉब चली गयी?*

उत्तर- आत्मीय भाई, दण्ड देने व प्रतिशोध की भावना जीवन की प्रगति की बाधक है। किसी ने स्टीव जॉब्स की भी जॉब छीनी थी तब वह प्रतिशोध में विध्वंस की जगह नई कम्पनी के सृजन में जुट गए। कोई आपकी जॉब छीन सकता है, लेकिन आपका बुद्धिबल, हुनर, योग्यता, पात्रता और पर्सनालिटी कोई छीन नहीं सकता।

कोई हमें यदि पत्थर मारे तो हमें उन पत्थरों से घर बना लेना चाहिए, पत्थर उसे मारकर टाइम वेस्ट नहीं करना चाहिए।
निर्णय तुम्हारा है कि 24 घण्टे स्वनिर्माण में लगोगे या दूसरों के विध्वंस में लगोगे।

यदि मेरी सलाह मानते हो तो, सृजन में लगो और 24 घण्टे अपनी योग्यता को इतनी ऊंचाई पर ले जाओ कि तुम्हारे विरोधी तुम्हारी तरक्की देखकर तुमसे ईर्ष्या करके ही जलते-कुढ़ते-मरते रहें।

अपनी अच्छी जॉब और उज्ज्वल भविष्य के सवा लाख गायत्री मंत्र जप का दो महीने के अंदर करो, नित्य उगते सूर्य का ध्यान करो, जिस भी क्षेत्र में जॉब चाहते हो, उस क्षेत्र के सबसे अधिक ज्ञान अर्जित करो। स्वयं को बेहतरीन बनाओ।
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती, लहरों से डरकर नौका कभी पार नहीं होती।

भगवान उसकी मदद करता है, जो अपनी मदद स्वयं करता है।
कुछ पुस्तक का स्वाध्याय उज्जवल भविष्य के लिए करो:-
1- हारिये न हिम्मत
2- शक्ति संचय के पथ पर
3- सफल जीवन की दिशा धारा
4- आगे बढ़ने की तैयारी
5- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
6- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
7- सफलता के सात सूत्र साधन
💐 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

आज क्या नई गाली मिलेगी? या पुरानी गालियां ही दोहरायी जाएंगी?🌹☺️

*आज क्या नई गाली मिलेगी? या पुरानी गालियां ही दोहरायी जाएंगी?🌹☺️🌹*

एक पढ़ीलिखी लड़की की शादी एक बड़े संभ्रांत परिवार में हुई। बड़े अमीर लोगों के सँस्कार बड़े निम्नकोटि के से थे। वस्तुतः उनके ससुर जी टायर पंचर बनाते थे, झुग्गी झोपड़ी में पहले रहते थे। एक बार उन्होंने एक सेठ की जान बचाई थी, सेठ ने कुछ धन दिया और बिजनेस चल निकला। वर्तमान में बाहर से तो बड़े बढ़िया व सभ्य लगते थे। मग़र जब गुस्सा होते तो झुग्गी झोपड़ियों में जैसे लोग लड़ते हैं, वैसा लड़ते और गन्दी गन्दी गालियाँ निकालते।

लड़की को सब सुख था मग़र गन्दी गन्दी गालियों को सुन सुन वह दुःखी हो गयी थी। घर में बिना गाली कोई बोलता ही नहीं था। उसने पति से तलाक़ लेने का निश्चय किया, यह बात उसने मायके में अपनी बुआ को बताई।

बुद्धिमान बुआ ने कहा, तुम एक काम करो कि एक कॉपी लो, और एक बिजनेसमैन की तरह अपने ससुराल व  पति की अच्छाइयां और बुराइयां को दो अलग पन्नो में लिख डालो।

फिर एक पन्ने में तुम्हारी मन पसन्द ससुराल व पति कैसा होना चाहिए लिख डालो।

फ़िर स्वयं से पूँछो कि क्या जो दूसरी शादी तुम करोगी, वहाँ तुम्हारी मन पसन्द का सबकुछ मिलेगा? गारण्टी वारंटी है? हाँ यह भी ध्यान रखना अब तुम एक कुंवारी कन्या नहीं कहलाओगी, एक तलाकशुदा लड़की कहलाओगी। जब भी नई ससुराल में युद्ध होगा तो हो सकता है गालियों का स्वरूप भिन्न हो, लेक़िन उन गालियों में पुराने विवाह पर कटाक्ष करते हुए शब्द भी होंगे।

लड़की बुआ की बात सुनकर सोच में पड़ गई। बोली बुआ मैं क्या करूँ? मेरी सन्तान भी पिता की तरह गाली गलौज करेगी, जो मुझे बिल्कुल पसन्द नहीं होगा।

बुआ ने कहा, बेटा कश्यप ऋषि की दो पत्नियों दिति व अदिति की सन्तान में एक ही पिता का रक्त होने के बावजूद दिति के पुत्र राक्षस व अदिति के पुत्र देवता बने। पिता शरीर देता है, माता तन व मन दोनों का निर्माण करती है। तुम कुशलता अपनाओगी तो तुम्हारी सन्तान गाली गलौज नहीं करेगी।

लड़की बोली, बुआ यह बताओ कि पति की और ससुराल वालों की गालियों को कैसे हैंडल करूँ?

बुआ ने हंसते हुए मज़ाक में कहा:-

पढ़ी लिखी हो ससुराल वालों व पति की गालियों का एक शब्दकोश तैयार करो। कि किसके शब्दकोश में ज्यादा गन्दी गाली है? नोट करो और इसे फन(मज़ाक़) में लो। दिनांक और गाली नित्य नोट कर लेना।

मुस्कुराते हुए मन में सोचो कि आज क्या कोई नई गाली मिलेगी? या पुराने शब्दकोश ही दोहराए जाएंगे😇😂😂😂😂। तुम्हारे पति को अपनी कॉपी मत दिखाना और छुपाने की एक्टिंग करना। किसी दिन यदि वह पढ़ लेंगे तो स्वयंमेव गाली देने से पहले 10 बार सोचेंगे☺️☺️☺️

फ़िर बुआ ने गम्भीर होते हुए कहा:-

एक हाथ से ताली नहीं बजती, यदि कोई गुस्से में हो और उसके सामने से हट जाओ और उसे जवाब न दो तो कुछ देर में उसका गुस्सा ठंडा हो ही जाता है। जब वह अच्छे मूड में हो तो गुस्सा न करने के टिप्स दिए जा सकते हैं।

स्त्री के तप, तितिक्षा, प्रेम, सेवा, सहकार व मित्रता में जादुई ताकत होती है, किसी भी व्यक्ति के मन को शनै: शनै: बदल सकती है।

बेटी, तुम्हारा पति कुसंग में गाली गलौज सीखा है, यदि उसको अच्छी पुस्तकों का स्वाध्याय व अच्छे व्यवहार का तुम सत्संग दोगी तो वह धीरे धीरे तुम्हारी संगत में बदलने लगेगा। वक्त लगेगा मग़र असर दिखेगा।

बेटा, भगवान को जब पत्थर की मूर्ति में आह्वाहन कर सकती हो, तो फ़िर उसी भगवान का आह्वाहन जीवित इंसान के भीतर क्यों नहीं कर सकती? सतत हृदय से पति के भीतर भगवान का आह्वाहन करके तो देखो? उसके भीतर के देवत्व को जगाने में जुटकर तो देखो। निःश्वार्थ प्रेम व सेवा प्रभु की भक्ति समझ के करके तो देखो। असर दिखेगा।

अब निर्णय तुम्हारा है कि समस्या के समाधान में जुटना है, या समस्या से भागना है और तलाक लेना है?

लड़की ने सोचकर कहा, बुआ एक बार  समस्या के समाधान में जुटना चाहूंगी।  नहीं भागना चाहती। रिश्ते को एक और मौका देना चाहती हूँ।

लड़की को बुआ ने सात छोटी पुस्तक गिफ्ट में दी, और कहा यह पुस्तक तुम्हें जीवन की समस्या के समाधान खोजने में मदद करेंगी:-

1- भाव संवेदना की गंगोत्री
2- मित्रभाव बढाने की कला
3- गृहस्थ एक तपोवन
4- जीवन जीने की कला
5- हारिये न हिम्मत
6- गायत्री की सर्वसमर्थ साधना
7- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल

लड़की एक नए दृष्टिकोण व कार्ययोजना लेकर ससुराल गयी, एक आत्मविश्वास से भरी लड़की अब समाधान केंद्रित सोच रही थी, अब वह समस्या को गिनने और उलाहना देने की जगह उनके समाधान के चिंतन में व्यस्त हो गयी।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Thursday 21 May 2020

प्रश्न:- *गुरुदेव जब स्थूल शरीर मे थे तो परिजन अपनी बात उन से करते थे । परन्तु अब कैसे उन से बात करें एवं उनका कार्य को कैसे करें, उनका युगपीड़ा का दर्द को कैसे दूर करे। कृपया मार्गदर्शन करें🙏*

प्रश्न:- *गुरुदेव जब स्थूल शरीर मे थे तो परिजन अपनी बात उन से करते थे । परन्तु अब कैसे उन से  बात करें  एवं उनका कार्य को कैसे करें, उनका युगपीड़ा का दर्द को कैसे दूर करे। कृपया मार्गदर्शन करें🙏*

उत्तर- आत्मीय भाई,

स्थूल शरीर में जब गुरुदेव थे तब भी वही दर्शन उनका कर सका जो निर्मल मन और शुद्ध अंतःकरण से मिला। वही उनसे जुड़ सका।

बाकी सबने थी उनके पँच तत्वों से बने शरीर को देखा, दर्शन तो मन से मन का होता है। दर्शन सभी नहीं कर सके। नाई जिन्होंने बाल बनाये या दर्जी जिसने उन्हें स्पर्श कर कपड़े सिले वह सिद्ध योगी नहीं बने, क्योंकि उन्होंने देह देखा गुरुदर्शन नहीं किया।

गंगा के पास रहने वाले लोग नहीं तरते, वही तरते हैं जो निर्मल मन से गंगा के स्पर्श से जुड़ते हैं, जो तन के साथ गंगा में मन और हृदय को स्नान करवाते हैं।

संसार हो या अध्यात्म, जॉब तो सुपात्र को ही मिलती है। योग्यता व पात्रता विकसित करनी पड़ती है, संकल्पित होना होता है, स्वयं के निर्माण में जुटना पड़ता है।

हमने भी गुरुदेव व माताजी के पंचतत्वों से निर्मित स्थूल शरीर के दर्शन नहीं किये हैं। लेकिन हमने गुरुदेव के विचारों के दर्शन उनके 20 पुस्तकों के क्रांतिधर्मी साहित्य में और उनके दर्शन अंतःकरण में अवश्य किये हैं।

अध्यात्म जगत में उनके सहयोगी अंग अवयव बनने के लिए अनवरत प्रार्थना की। उनसे कहा, हे महाकाल! तुम तो कंकर पत्थर से भी अपना कार्य करवा सकते हो। तुम तो कीड़े मकोड़े और पशु पक्षी से भी अपना कार्य करवा सकते हो। तुम्हारे आह्वाहन से पत्थर भी शंकर बनकर मनोकामना पूरी करता है। जहां भी तुम्हारा आह्वाहन करो वहीं दिव्यता अनुभव होती है।

हे महाकाल! युगनिर्माण एक दैवीय योजना है, मुझे भी इसमें कार्य दे दो। मुझसे भी अपना कार्य करवा लो। मैं आपका आह्वाहन मन, बुद्धि, चित्त व हृदय में करती हूँ। मेरी बुद्धि रथ को अपने नियंत्रण में ले लीजिए। सर्वस्व मेरा आपके श्री चरणों मे अर्पित है। मेरे जीवन में मेरा नियंत्रण समाप्त करके अपना नियंत्रण स्थापित कर दीजिए। अब केवल आपकी इच्छा पूरी हो। आप जो चाहे वो घटित हो। जो चाहें वो करवा लें। जैसा चाहे वैसा रखें। अपने श्री चरणों का दास बना लीजिए।

कण कण में तुम ही तुम हो, बस तुम्हारा स्मरण मन मे रहे और गिलहरी सा ही सही योगदान ले लो। यह जीवन आपको समर्पित करती हूँ। यह जीवन दान स्वीकार लीजिये।

न मुझे मोक्ष चाहिए, न मुझे मुक्ति चाहिए, न मुझे स्वर्ग चाहिए,  न ही मुझे नर्क का भय है, न मुझे बन्धन की चिंता है।

बस मुझे आपके निर्देशन में जीवन आपके लिए जीना है। बस आपकी ख़ुशी के लिए कुछ कर सकूं बस मेरा जीवन धन्य हो जाएगा।

🙏🏻यही प्रार्थना हम करते हैं, बस उन्हीं का ध्यान करते हैं। हमें कभी स्थूल दर्शन की आवश्यकता महसूस नहीं हुई। हमें कभी भी भगवान से बात करने में कोई असुविधा नहीं हुई। बस उनके समक्ष प्रार्थना करके बैठ जाते हैं, उनके बताये समाधान मन में उभर जाते हैं। गुरुदेव माता जी की तस्वीर को बस एक टक देखते रहते हैं, उनसे सम्वाद हो जाता है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

वट-सावित्री-व्रत

*वट सावित्री व्रत*

वट सावित्री व्रत शुभ मुहूर्त-
*अमावस्या तिथि प्रारम्भ – मई 21, 2020 को रात 09:35 बजे*
अमावस्या तिथि समाप्त – *मई 22, 2020 को रात 11:08 बजे*

*वट सावित्री*

हर साल वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को मनाया जाता है। इस व्रत के दिन आध्यात्मिक शक्ति पति और परिवार के सरंक्षण के लिए अर्जित किया जाता है। सावित्री( भौतिकता) यदि शरीर है तो गायत्री(आध्यात्मिकता) इसकी आत्मा है। आत्मा  शरीर में जितने वर्ष तक है उसी को दीर्घायु कहते हैं। वट के वृक्ष को यदि आप सरंक्षित करते हैं और इसका रोपण करते हैं इसके बढ़ने में वृक्ष के पालन पोषण में धन और समय ख़र्च करेंगे तो आपके परिवार को सुरक्षा मिलेगी। यही इस व्रत का सन्देश है।

*इस व्रत को करने के नियम* - सुबह उठकर नहा धोकर स्वच्छ वस्त्र पहने। पूजन की थाली तैयार कर लें। सर्वप्रथम  घर पर कलश स्थापित करें, फ़िर 10 माला गायत्री की और एक माला महामृत्युंजय मन्त्र की पति की लम्बी आयु और निरोगी जीवन के लिए करें। उसके पश्चात उसी कलश को लेकर नजदीकी बट वृक्ष के पास पूजन हेतु जाएँ। वट वृक्ष भगवान शंकर का प्रतीक है जिस प्रकार पीपल भगवान विष्णु का प्रतीक है। वट वृक्ष की जड़े भगवान शंकर की जटाओं का प्रतीक हैं। कलश का जल वट वृक्ष में चढ़ा दें और थोड़ा सा जल बचा लें, फ़िर पूजन करें। कच्चे सूत के 3 या 5 या 7 वृक्ष पर लपेटते हुए निम्नलिखित मन्त्र ध्यान से पढ़े (महामृत्युंजय मन्त्र दो तरह के होते हैं, ये पति के लिए जपा जाता है, जिसमें पति के साथ प्रेम बन्धन माँगा जाता है)-


*ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे, सुगन्धिम् पतिवेदनम्,*
*उर्वारुकमिव बंधनादितो, मुक्षीय मामुतः।*

*ॐ जूँ सः माम् भाग्योदयम्, कुरु कुरु सः जूँ ॐ।*

*ॐ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्।*

पुजन के पश्चात् लोटे के बचे हुए जल को घर में शांतिपाठ मन्त्र के साथ छिड़क दें साथ ही पति को वट वृक्ष का चरणामृत स्वरूप पीने को दे दें। शाम को भी पूजन करें और पांच दिए द्वारा दीपयज्ञ करें और अपने सौभाग्य और पति की लम्बी उम्र के लिए प्रार्थना करें।और शाम को दो बाल्टी पानी बड़े वट वृक्ष की जड़ में डालें।

शाम को घर में पाँच दीपक जलाकर दीपयज्ञ करें।

सुबह यदि व्यवस्था हो तो घर में गायत्री यज्ञ भी कर लें।

यदि सम्भव हो तो आज के दिन पतिपत्नी एक थाली में ही भोजन करें। भोजन का से पूर्व रूद्र देव को भोजन को समर्पित करने का मन ही मन भाव करें, और साथ भोजन करें।

भोजन मन्त्र भोजन से पूर्व पढंकर भोजन को प्रणाम करें। दो शरीर एक प्राण होने की भावना करें। एक दूसरे के पूरक बने।

*ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु ।*
*सह वीर्यं करवावहै, तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै* ।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

सम्भव हो तो नज़दीकी पार्क या मन्दिर या रोड के किनारे वट बृक्ष लगाएं। और उसका संरक्षण करें।

जो स्त्री व पुरूष जीवन में वट वृक्ष लगाते हैं उनके जीवन में सुख समृद्धि आती है। अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। वट वृक्ष अक्षय प्रेम का प्रतीक माना जाता है।

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इण्डिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 20 May 2020

कुशल गृहणी व मातृसत्ता की पहचान

*कुशल गृहणी व मातृसत्ता की पहचान*

बुद्धि में कुशलता व हृदय में निर्मलता,
सेवा की भावना व आत्मसम्मान से जीना,
एक कुशल गृहणी की पहचान है,
एक मातृ सत्ता की पहचान है।

सहज गृहणी में गौरा पार्वती सी सुंदर,
विपत्ति में दुर्गा रूप में अस्त्र शस्त्र सुसज्जित,
एक कुशल गृहणी की पहचान है,
एक मातृ सत्ता की पहचान है।

ज्ञान में सरस्वती व गृह सम्हालने में लक्ष्मी,
संकट मिटाने में जो बन जाये काली,
एक कुशल गृहणी की पहचान है,
एक मातृ सत्ता की पहचान है।

स्वरक्षण में समर्थ व गृहस्थी में कुशल,
वाणी से मधुर व व्यवहार कुशल,
एक कुशल गृहणी की पहचान है,
एक मातृ सत्ता की पहचान है।

बुद्धि अर्जन में सतत प्रयत्नशील,
प्रेममयी, सेवाभावी और सुशील,
एक कुशल गृहणी की पहचान है,
एक मातृ सत्ता की पहचान है।

चाणक्य सी बुद्धि रखने वाली,
करुणा और प्यार लुटाने वाली,
एक कुशल गृहणी की पहचान है,
एक मातृ सत्ता की पहचान है।

जो स्त्री मात्र बाह्य सौंदर्यीकरण पर ध्यान देती है,
बुद्धिचातुर्य हेतु प्रयत्नशील नहीं रहती है,
वह अकुशल गृहणी सदा रहती परेशान है,
वह मातृ सत्ता के उत्तरदायित्व से अनजान है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *मेरे पति क्रोध में मुझे बहुत मारते हैं? क्या करूँ?*घरेलूहिंसा, मारपीट

प्रश्न - *मेरे पति क्रोध में मुझे बहुत मारते हैं? क्या करूँ?*

उत्तर- आत्मीय बहन, आइये पहले घरेलू हिंसा-पत्नी को पीटने के पीछे के कुछ मनोवैज्ञानिक कारण समझते हैं:-

*महिलाओं के साथ हिंसा के कारण*

1- हिंसा काम करती है, भयग्रस्त स्त्री नियंत्रण में रहती हैं, मुँह नहीं खोलती।
2- कमजोर मानसिकता का व्यक्ति समाज मे अपमानित होता है, पत्नी को पीटकर उसकी मर्दानगी संतुष्ट होती है कि किसी से तो वह श्रेष्ठ है, पत्नी पीटकर वह वस्तुतः अपनी कुंठाओं से मुक्ति पाने का प्रयत्न करता है।
3- बुद्धि की कमी या लापरवाही के चलते वास्तविक परेशानी को पहचाने या कोई उसका कोई व्यवहारिक समाधान ढूंढने के बजाय, पुरुष हिंसा का सहारा लेकर पत्नी की असहमति को उसे पीटकर जल्दी से समाप्त करना चाहता है।
4- किसी पुरुष को लड़ना बेहद रोमांचक लगता है और उससे उसे नई स्फूर्ति मिलती है । वह इस रोमांच को बार बार पाना चाहता है। मनोवैज्ञानिक समस्या होती है, इसे सैडिस्ट मनोवृत्ति कहते हैं, पीड़ा पहुंचाकर सुख प्राप्त होना।
5- अगर कोई पुरुष हिंसा का प्रयोग करता है कि वह जीत गया है और अपनी बात मनवाने का प्रयत्न करता है हिंसा की शिकार, चोट व अपमान से बचने के लिए, अगली स्थिति में, उसका विरोध करने से बचती है। पहली बार जब पति हाथ उठाता है वह पत्नी कड़ा विरोध नहीं करती व भयग्रस्त हो जाती है, तो ऐसे में पुरुष को और भी शह मिलती है। वह सदा के लिए पति को पीटने की स्वतंत्रता दे देती है।
6- पुरुष को मर्द होने के बारे में गलत धारणा है। जब घर के बड़े बुजुर्ग द्वारा अपनी पत्नी को कंट्रोल करने के लिए पीटने का कुकृत्य देखकर जब बच्चा बड़ा होता है। तो उसके लिए पत्नी पीटना मर्दानगी होती है।
7- अगर पुरुष यह मानता है कि मर्द होने का अर्थ है महिला के उपर पूरा नियंत्रण होना तो हो सकता है कि वह महिला के साथ हिंसा करने को भी उचित मानने लगता है। पशु को पीटने व स्त्री को पीटने में कोई भेद ही नहीं दिखता।
8- कुछ पुरुष यह समझते हैं कि मर्द होने के कारण उन्हें कुछ चीजों का हक है जैसे कि अच्छी पत्नी, बेटों की प्राप्ति, परिवार के सारे फैसले करने का हक। यह कुसंस्कार उन्हें उनके परिवार से मिले होते हैं, क्योंकि उसके पिता ने उसकी माता को पशुवत रखा होता है।
9- पुरुष के लगता है कि महिला  उसकी सम्पत्ति है, पशु धन समान है, उसकी इच्छा मायने नहीं रखती, उसे उपभोग मनचाहा करने हेतु वह स्वतंत्र है।
10- यदि महिला सशक्त है तो पुरुष को यह  लग सकता है कि वह उसे खो देगा या महिला को उसकी जरुरत नहीं है । वह कुछ ऐसे कार्य करगे जिससे महिला उस पर अधिक निर्भर हो जाए। उसे अन्य किसी और तरीके के व्यवहार करना आता ही नहीं है सामाजिक परम्परा के अनुकूलन व मर्दानगी स्थापना हेतु शशक्त पत्नी को पीटता है)
11- अगर पुरुष ने अपने पिता या अन्य लोगों के तनाव व परशानी की स्थिति में हिंसा का सहारा लेते हुए देखा है तो केवल ऐसा व्यवहार करना ही सही लगता है । उसे कोई अन्य व्यवहार करना ही सही लगता है ।उसे कोई अन्य व्यवहार का पता ही नहीं है।
12- समाज स्त्री को पीटना सहज लेता है, मायके वाले भी बेटी को पीटने का इस डर से विरोध नहीं करते कहीं ससुराल वाले उसका त्याग न कर दें।बड़ी मुश्किल से दान-दहेज देकर विवाह किया था, अगर वापस लौट आई तो एक मुसीबत होगी। फिर लोग क्या कहेंगे? अपने पति को सम्हाल नहीं सकी, इसी में कोई समस्या होगी। पुरूष प्रधान समाज में स्त्री का पीटना कोई नई बात तो नहीं, फिर इसका क्या बुरा मानना। इत्यादि इत्यादि।

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*अब आइये स्त्री पशुवत पीटने के बावजूद घर में क्यों रहती है?*

1- 90% लड़की के जन्मते ही उसे पराए घर का टैग उसके माथे में चिपका दिया जाता है। यह दूसरे घर जाएगी। लड़की को जन्म से बालमन में यह फीडिंग मिल जाती है, कि मायका उसका अपना घर नहीं।
2- ससुराल वाले मायके के ताने देते रहते हैं, और उसे बताते रहते हैं कि यह ससुराल जिसे बचपन से उसे मायके वालोंने बताया था उसका घर होगा। वस्तुतः नहीं है। यह तो पुत्र का एहसान है जो उसने विवाह किया। अतः लड़की वस्तुतः बेघर होती है।
3- माता पिता लड़की को दूसरे घर में एडजस्ट करना सिखाते हैं, उसे आत्मनिर्भर पुत्र के समान बनाते नहीं।  उसे स्वाभिमान से निर्भय होकर जीना सिखाते नहीं। लड़की जब मायके में बेटे बेटी का भेद-भाव और पिता द्वारा माता को नियंत्रित किया जाना देखती है, तो वह इस अत्याचार को जीवन का अंग मानकर स्वीकार लेती है।

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*समस्या कब उत्तपन्न होती है?*

1- जब अत्याचार सर के ऊपर गुज़र जाता, पति पीटने का आदी बन चुका है और पत्नी अब और पीटना नहीं चाहती।
2- बच्चा छोटा है, मायके वाले सपोर्ट नहीं करेंगे। पति का अत्याचार चरम पर है। पति को छोड़ेगी तो बच्चा भी छूट जाएगा, यदि बच्चे की कस्टडी मिल गयी तो उसका पालन पोषण कैसे करेगी?इत्यादि समस्याओं के कारण बेबस है।
3- पूजा पाठ व आध्यात्मिक उपायों से पति के सुधरने की प्रार्थना करने की कोशिश करती है।
4- समाज, ससुराल व मायका साथ देगा नहीं। कानून न्याय तो दे देगा लेकिन उस न्याय को पाने में वर्षो लग जाएंगे, पति पैसेवाला हुआ तो उससे लड़ना और भी डेंजरस है। पुलिस का साथ व अच्छा वक़ील पैसे के बल पर पति ने ले लिया तो दिक़्क़त ही दिक़्क़त होगी।

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*घरेलू हिंसा के तहत एक महिला के अधिकार*

हमारे देश में इस अधिनियम को लागू करने की ज़िम्मेदारी पुलिस अधिकारी, संरक्षण अधिकारी, सेवा प्रदाता या मजिस्ट्रेट की होती है, जो कि महिला को उसके अधिकार दिलवाने में मदद करते हैं। घरेलु हिंसा से पीड़ित एक महिला के अधिकार निमंलिखित हैं, नज़दीकी थाने में जाकर शिकायत अवश्य करें, एक वक़ील की सहायता लेना अनिवार्य है।

1. पीड़ित महिला इस कानून के तहत किसी भी राहत के लिए आवेदन कर सकती है, जैसे कि संरक्षण आदेश,आर्थिक राहत, बच्चों के अस्थाई संरक्षण (कस्टडी) का आदेश, निवास आदेश या मुआवजे का आदेश आदि।
2. पीड़ित महिला आधिकारिक सेवा प्रदाताओं की सहायता भी ले सकती है।
3. पीड़ित महिला संरक्षण अधिकारी से संपर्क भी कर सकती है।
4. पीड़ित महिला निशुल्क क़ानूनी सहायता की मांग भी कर सकती है।
5. यदि पीड़ित महिला के साथ किसी व्यक्ति ने गंभीर शोषण किया है, तो वह महिला भारतीय दंड संहिता (आई. पी. सी.) के तहत क्रिमिनल याचिका भी दाखिल कर सकती है, इसके तहत प्रतिवादी को तीन साल तक की जेल हो सकती है।
6- स्त्री स्वयं आत्मनिर्भर बने और मजबूती से अपनी बात पति के समक्ष रखे।
7- भय के कारण - आर्थिक आत्मनिर्भर नहीं है तो जीवन कैसे जियेगी? बच्चे छूट जाएंगे? लोग क्या कहेंगे? इत्यादि हैं। गृह युद्ध जब बाहर जाएगा तो इन पहलुओं को हैंडल करने हेतु पूर्व मनःस्थिति तैयार करनी पड़ती है। पति कोर्ट द्वारा पत्नी व बच्चों का खर्च उठाने हेतु बाध्य है, लेकिन जब तक यह शुरू न हो पत्नी को स्वयं का खर्च व कानूनी कार्यवाही का ख़र्च उठाने की व्यवस्था करनी पड़ेगी।

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*आध्यात्मिक मनोवैज्ञानिक समाधान क्या है? सांप मरे व लाठी भी न टूटे...पति सुधर जाए मग़र घर भी न टूटे...*

1- सबसे पहले स्वयं का अवलोकन करें, कि मुझमें ऐसी कौन सी कमज़ोरी है जिसके कारण मेरे पति को लग रहा है मैं पीटने योग्य हूँ?

2- क्या मैं आत्मनिर्भर नहीं हूँ? तो यदि मुझे मजबूरी में कमाना पड़े तो मैं क्या क्या कर सकती हूँ? लिस्ट बनाएं...

3- भगवान उसकी मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करते हैं। हाथ पर हाथ रखकर दैव दैव आलसी पुकारते हैं। अक्ल हो तो हाथी से बलवान को एक छोटा अंकुश नियंत्रित कर सकता है। अतः पति को हैंडल करने के लिए जो बुद्धि की कमी स्वयं में है उस पर कार्य करने की जरूरत है।

4- युद्ध बाह्य हो या गृहयुद्ध हो सभी युद्ध के समय मार्गदर्शन श्रीमद्भागवत गीता देती है।मोहभंग और बुद्धि चातुर्य हेतु श्रीमद्भागवत गीता का स्वाध्याय अनवरत 120 दिन बोलकर करें। साथ ही 120 दिनों के अंदर सवा लाख गायत्री मंत्र का जप पति को हैंडल करने के लिए बुद्धि बल- बाहुबल मांगने हेतु करें। गलती से भी पूजा में पति के सुधरने या परिस्थिति सुधरने की मांग न करें। अपितु प्रार्थना में यह मांगे कि पति को हैंडल करने के लिए सद्बुद्धि, कूटनीतिक बुद्धिबल और परिस्थिति को सम्हालने के लिए मनोबल परमात्मा दीजिये।

5- स्वयं दर्पण के समक्ष खड़े होकर स्वसंकेत और स्व-सम्मोहन कीजिये। कि आप अर्जुन की तरह सामर्थ्यवान बन रही हैं। आपकी बुद्धि चाणक्य व बीरबल की तरह शार्प बन रही है। आपका स्वयं पर नियंत्रण बढ़ रहा है।

6- यूट्यूब पर अकबर-बीरबल, तेनालीराम इत्यादि के बुद्धि कौशल के सीरियल देखिये। कैसे बुद्धिबल से यह राजाओं को हैंडल करते थे? वह कुशलता सीखिए।

7- दिन के 24 घण्टे बुद्धि के विकास में लगा दीजिये, बुद्धिप्रयोग हेतु पहेलियां, मैथ कैलकुलेशन, उगते सूर्य का ध्यान और प्राणायाम कीजिये। भगवान का आह्वाहन मूर्ति में नहीं, अपितु स्वयं की बुद्धि, चित्त और हृदय में कीजिये।

याद रखना डॉक्टर बनकर पति की मनोवृत्ति का उपचार करना। पति के दुर्व्यवहार को ठीक करना, लेकिन प्रेम-सेवा-सहकार  की मूल प्रवृत्ति का त्याग कभी मत करना। एक हाथ से बुद्धिप्रयोग से हैंडल करना और दूसरे हाथ से प्यार-सम्मान देना मत भूलना।

यदि आप घरेलू हिंसा के शिकार हो, तो इसका अर्थ यह है कि बुद्धि के विकास हेतु आपने प्रयत्न नहीं किया गया है। यदि बुद्धिप्रयोग में चूकोगे तो जीवन भर परेशान अवश्य रहोगे। निःश्वार्थ प्रेम व सेवा करने से चूकोगे तो कभी अच्छी गृहस्थी न बसेगी। बुद्धि व प्रेमभाव दोनो का संतुलन जरूरी है।


🙏🏻श्वेता, DIYA

Tuesday 19 May 2020

प्रश्न - *मेरी बुआ की लड़की अत्यंत जॉली व फ्रेंक नेचर की बेबाक़ लड़की है। उसकी शादी अत्यंत कम बोलने वाले धीर गम्भीर व्यक्ति से हुई है। फोन पर जब भी विदेश जाते हैं बात कर लेते हैं, जब भी पति सामने होते हैं दस बात बोलो तो एक शब्द में जवाब देते है। वह नर्वस हो जाती है, समझ नहीं आता क्या करे? मार्गदर्शन करें*

प्रश्न - *मेरी बुआ की लड़की अत्यंत जॉली व फ्रेंक नेचर की बेबाक़ लड़की है। उसकी शादी अत्यंत कम बोलने वाले धीर गम्भीर व्यक्ति से हुई है। फोन पर जब भी विदेश जाते हैं बात कर लेते हैं, जब भी पति सामने होते हैं  दस बात बोलो तो एक शब्द में जवाब देते है। वह नर्वस हो जाती है, समझ नहीं आता क्या करे? मार्गदर्शन करें*

उत्तर - आत्मीय बहन, अपनी उन बहन को बोलो, प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति भिन्न होती है। कमल के फूल का अपना महत्त्व है और गुलाब का अपना महत्त्व है। जॉली नेचर का भी महत्त्व है और धीर-गम्भीर नेचर का भी महत्त्व है।

उनसे कहो, अपने जॉली व फ्रैंक नेचर को पति में ढूंढने की गलती न करे। जैसा है वैसा स्वीकारे और गृहस्थी में एडजस्ट करे। ज़रा सोचो, उनके पति भी यदि पत्नी में गम्भीर नेचर ढूढ़े तो समस्या बढ़ न जाएगी????

पांच उंगलियां बराबर नहीं, दो आंख हूबहू एक नहीं, दो हाथों के फिंगरप्रिंट एक जैसे नहीं होते तो भला दो इंसान के स्वभाव व व्यवहार एक जैसे कैसे हो सकते हैं?

बिजली भी तब जलती है, जब एक "+" और दूसरा "-" होता है।

अतः दो लोगों के स्वभाव की भिन्नता में इसमें नर्वस होने जैसी तो कोई बात नहीं है। अपितु एक दूसरे को समझ के व्यवहार करने की जरूरत है।

अतः जीवनसाथी को अपने जैसा बनाने की इच्छा त्यागें जो जैसा है उसे समझ के व्यवहार करें। जो मिला है वह ईश्वर की कृपा है। मित्रवत रहें व उनके एक शब्द के उत्तर में से दस सम्वाद के प्रश्न के उत्तर समझने की कला विकसित करें।

मनुष्य की प्रकृति समझना और तद्नुसार व्यवहार करना ही जीवन जीने का उत्तम उपाय है।

एक दूसरे को बदलने की जगह एक दूसरे को समझने की जरूरत उत्तम गृहस्थी की प्राथमिकता है। दोस्त बने, एक दूसरे के मन को समझें, तब शब्दों की आवश्यकता ही न रह जायेगी।

विवाह *देवता* बनकर किसी के जीवन को सुखमय करने हेतु करें, यदि *लेवता* बनकर सुख मनचाहा पाने की इच्छा करेंगे तो दुःख निश्चयत: मिलेगा।

*निःश्वार्थ सुख* व सेवा देने वाले को सुख व सेवा स्वयंमेव मिलता है। प्रकृति यज्ञ स्वरूप है, यहां जिस भावना से जीवन जियोगी वह तुम तक वैसा अवश्य लौटेगा। पत्थर की मूर्ति में भगवान  का आह्वान तो सब करते हैं, तुम जीवित इंसान की मूर्ति पति में भी ईश्वर का आह्वाहन करके सती अनुसुइया जैसे गृहस्थ सुख के साथ तपस्या का फल भी प्राप्त कर सकती हो। भाव बदलो और जीवन में फर्क स्वयंमेव दिखेगा।

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *What is the meaning of living life to the fullest?* *जीवन को पूर्णता से जीने का अर्थ क्या है?*

प्रश्न - *What is the meaning of living life to the fullest?*
*जीवन को पूर्णता से जीने का अर्थ क्या है?*

उत्तर - आत्मीय भाई यज्ञ में पूर्णाहुति के वक्त आपने यह मंन्त्र सुना होगा।

ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् , पूर्ण मुदच्यते,
पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्ण मेवा वशिष्यते।

वह भी पूर्ण है और यह भी पूर्ण है। उस पूर्ण से इस पूर्ण की उत्पत्ति होती है लेकिन फिर भी उस पूर्ण की पूर्णता कम नहीं होती (अर्थाय उसका शेष फिर भी पूर्ण ही रह जाता है!)

जीव विज्ञान - *स्त्री पूर्ण है, सन्तान को जन्म देती है वो भी पूर्ण होता है*। उसके बाद भी वह पूर्ण ही शेष रहती है। इसी तरह वृक्ष से फ़ल निकलता है, उससे बीज निकलता है, उस बीज से पुनः वृक्ष निकलता है।

गणित के अनुसार - *संख्याओं में केवल शून्य ही पूर्ण है और यदि आप शून्य में से शून्य घटा दें तो शून्य ही शेष रह जाता है।*

*विज्ञान* - *आइंस्टाइन ने E=mc2 के ज़रिए सिद्ध किया है* कि ऊर्जा पदार्थ में और पदार्थ ऊर्जा में बदल सकता है। ऊर्जा से जब पदार्थ बनता है तब भी ऊर्जा पूर्ण रह जाती है (यानी जितनी पदार्थ के बनने से पहले थी) और पदार्थ भी अपने आप में पूर्ण होता है।

*सर्वत्र सृष्टि में पूर्णता है। मनुष्य स्वयंमेव पूर्ण है। बस समस्या यह है कि वह निज पूर्णता को भूला हुआ है।*

*सो$हम* - वह मैं ही हूँ। जिस दिन बीज को यह ज्ञात हो जाये कि वह वृक्ष मैं ही हूँ, अतः वो गलकर वृक्ष बनने को तैयार हो जाये। इसी तरह मानव यदि अहंकार को गला दे, लोग क्या कहेंगे भूला दे, स्वयं का "मैं" भूलकर उस पूर्ण अस्तित्व से जुड़ जाए तो पूर्णता का अनुभव कर सकेगा। "मैं" शरीर नहीं हूँ, और न हीं यह "मन" हूँ, जब यह पूर्णता से अनुभव हो जाएगा, तब पूर्णता से जीवन भर जाएगा।

जब हम शरीर और मन है ही नहीं, तो शरीर और मन की तुष्टिकरण के सांसारिक संसाधन हमें पूर्ण आनन्द दे ही नहीं सकते। आत्मसंतुष्टि के बिना पूर्णता आएगी ही नहीं। जीवन आनन्दमय आत्म अनुभूति से ही बनेगा।

एक बूँद पेट्रोल में भी अपार शक्ति है, उसके प्रत्येक परमाणुओं की शक्ति का उपयोग कर सकें तो महीने भर गाड़ी एक बूंद पेट्रोल से चल सकती हैं। इसी तरह एक पल जीवन को पूर्णता से जी सकें तो असम्भव भी संभव है।

इसी तरह मनुष्य यदि अपने प्रत्येक जीवन के क्षण का उपयोग पूर्णता से कर सके तो वह हज़ारो वर्ष का लंबा जीवन एक दिन में जी सकता है।

स्वयं के अंतर्जगत में प्रवेश कीजिये, पूर्णता का अनुभव आत्मज्योति के प्रकाश में कीजिये।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

चैन की नींद का राज़

*चैन की नींद का राज़*
💫✨💫✨💫✨💫

कब तक चिन्ता का कबाड़ लेकर,
सोने का व्यर्थ प्रयास करोगे,
कब तक कूड़े व मरे चूहों के दुर्गंध पर,
सेंट छिड़कर दुर्गंध से बचने की राह ढूँढोगे?

कब तक मन की खिड़की बन्द करके रखोगे,
कब तक मन में,
चिंता कर मकड़ियों के जालों को बुनने दोगे,
कब तक मन को कूड़ाघर बनाओगे,
औऱ फ़िर मन में शांति ढूंढने का व्यर्थ प्रयास करोगे...

परिस्थिति को नियंत्रण करने में,
मनमुताबिक रिश्तों के भविष्य चुनने में,
उम्र भर भी जुटे रहोगे,
तब भी यह कर न सकोगे।

परिस्थिति तो सबके लिए एक सी होती है,
लेकिन अंतर तो मनःस्थिति में होता है,
कोई उन परिस्थितियों में टूट कर बिखर जाता है,
कोई उन्हीं परिस्थितियों में कुछ बनकर संवर जाता है।

कभी तो मन की सफ़ाई कर लो,
कभी तो कूड़ो को बाहर फेंक दो,
कभी तो सद्विचारों के दिये से मन रौशन कर लो,
कभी तो भक्ति भाव की सुगंध भर लो।

परिस्थिति को नियंत्रण करने की जगह,
मनःस्थिति को सम्हालने में जुट जाओ,
दूसरों को सुधारने की जगह,
उन्हें हैंडल करने के तरीकों पर नज़र दौड़ाओ।

जीवनसाथी या जीवनसंगिनी,
जो जैसा है वैसा स्वीकारो,
उन्हें बदलने की व्यर्थ चेष्टा न करो,
ससुराल वाले या ऑफिस वाले,
जो जैसा हैं वैसा स्वीकारो,
बस उनके साथ एडजस्ट करो।

सोचो यह ज़िंदगी का सफ़र है,
यह शरीर गाड़ी है,
और मन ड्राईवर है,
अब रोड सुंदर है,
 तो ईश्वर को धन्यवाद दो,
और गाड़ी चलाने का हुनर मांगो,
अगर रोड गड्ढ़े भरी हो,
तो भी ईश्वर को धन्यवाद दो,
और उनसे गाड़ी चलाने का हुनर मांगो,
हर हाल में ज़िंदगी के सफ़र में,
गाते गुनगुनाते रहो,
रोड के गड्ढों को रोड में रहने दो,
उन्हें मन के भीतर मत लाओ,
मंज़िल पर पहुंचने के लिए,
बस अनवरत चलते जाओ।

अब जंगल में जाकर,
तपस्या करने की जरूरत नहीं,
जंगली खूँखार प्रकृति के लोगों से,
यह दुनियाँ भर गई है,
इनके बीच ही ध्यानस्थ रहो,
जंगल में मङ्गल प्रभु स्मरण से करो।

कलियुग है - यह कलह युग है,
कलह झगड़ो और मन मुटावो का युग है,
तुम इनमें मत उलझो,
इन्हें बाहर रहने दो,
इन्हें मन के भीतर मत लाओ,
कौवे से कोयल की मधुर बोली न मिलेगी,
कौवे की कांव काव भी निर्लिप्त सुनो,
कोयल की मधुर आवाज़ का भी निर्लिप्त हो सुनो,
रिश्तेदार में कौवा मिले या कोयल,
दोनों में समभाव रखो,
उनकी कटुता हो या मधुरता,
दोनों से स्वयं को मुक्त रखो।

मन में तुम सतयुग लाओ,
मन:स्थिति सतयुगी बनाओ,
यह कलियुग - कलह युग,
तुम्हारा कुछ बिगाड़ न सकेगा,
कीचड़ में खिले क़मल की तरह,
तुम्हारा व्यक्तित्व निखरेगा,
ईश्वर जिसे गाड़ी चलाने का हुनर देगा,
वह दुर्गम पहाड़ी हो या गड्ढे भरी सड़क,
उसमें भी गाड़ी चला ही लेगा,
हर परिस्थिति में,
स्वयं को सम्हाल ही लेगा।

जो आत्मबोध-तत्त्वबोध की साधना करेगा,
वह ही बंधनमुक्त कर्मयोगी की तरह जियेगा,
जो नित्य स्वाध्याय करेगा,
वह ही मन को साफ़ रख सकेगा।

जिसके मन में भक्ति दीप जलेगा,
वह ही कलियुग के अंधेरे से लड़ पायेगा,
ईश्वर पर जो विश्वास रखेगा,
उसके मन में ही आशा का दीप जलेगा,
जो नित्य जप-तप-भजन करेगा,
उसके भीतर ही आत्मविश्वास जगेगा,
जो नित्य पुरुषार्थ करेगा,
वह ही अपना भाग्य लिख सकेगा,
जो प्रत्येक रात मौत,
और प्रत्येक दिन एक नया जीवन मानेगा,
वह ही चैन की नींद रात में सोएगा,
जो स्वयं की शाश्वत आत्मा को जानेगा,
जो शरीर और इससे जुड़े रिश्तों को नश्वर मानेगा,
वह ही चिंता मुक्त रह सकेगा,
मन के मकड़जाल से मुक्ति पा सकेगा,
वह ही चैन की नींद सो सकेगा।


🙏🏻श्वेता, DIYA

Saturday 16 May 2020

जब भगवान श्रीकृष्ण पर दुश्मनों द्वारा लगाया कलंक का टीका ( स्यमन्तक मणि कथा)


*॥जब भगवान श्रीकृष्ण पर दुश्मनों द्वारा लगाया कलंक का टीका ( स्यमन्तक मणि कथा ) ॥*
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             सत्राजित नामक यादव को भगवान सूर्य ने उसकी कठिन तपस्या से प्रशन्न होकर  "🧊स्यमन्तक मणि" दे रखी थी, *" , सत्राजित की वह मणि प्रतिदिन आठ भार सवर्ण स्वतः प्रदान करती थी, उसकी सुरक्षा हेतु वह नित्य चिंतित रहता था । एक दिन सत्राजित का भाई प्रसेन उस मणि को अपने कण्ठ में बाँधकर अश्व पर आरूढ़ ही शिकार खेलने के लिये वन में विचरने लगा । वहाँ एक सिंह ने प्रसेन को मार डाला । फिर उस उस सिंहको भी जाम्बवान ने मार डाला और तत्काल उस मणि को लेकर जाम्बवान अपनी गुफा में चले गये । सत्राजित श्रीकृष्ण से वैर भाव रखते थे, उन्होंने लोगों के बीच में यह प्रचार करने लगे कि 'मेरा भाई प्रसेन मणि को कण्ठ में धारण करके वन में गया था , परन्तु श्रीकृष्ण ने वहाँ मणि की लालच में उसका वध कर दिया ; इसलिये आज वह सभा भवन में नहीँ आया  '। " *भगवान श्रीकृष्ण पर यह कलंक का टीका लग गया*  " ।
                भगवान श्रीकृष्ण कुछ द्वारका वासियो को लेकर वन में गये । वहाँ उन्होंने पहले घोड़े सहित मरे हुये प्रसेन को देखा और फिर किसी दुसरेके द्वारा मारे गये सिंह के शव को पड़ा देखा । यह देखकर पदचिन्हों से पता लगाते हुए वे *' ऋक्षराज जाम्बवान की गुफा तक जा पहुँचे । वह उस गुफामें प्रवेश कर गये, जहाँ उन्होंने अठाइस दिनों तक उस मणि को लाने के लिये  जाम्बवान से युद्ध किया,   ( रामावतार में भगवान श्रीरामजी ने जाम्बवान को कहा था,, किसी वजह से मेरा औऱ तुम्हारा युद्ध होगा ) तथा आखिर अठाइस दिन पश्चात ऋक्षराज पर विजय पायीं । " जाम्बवान ने अपनी कन्या ' जाम्बवन्ती ' को उस स्यमन्तक मणि के साथ श्रीहरि ( श्रीकृष्ण ) को विवाह कर दिया । जिसे लेकर भगवान श्रीकृष्ण द्वारका लौट आये । '*
                  भगवान श्रीकृष्ण ने सभा मे सत्राजित को वह मणि देदी । स्त्राजीत को अपने कृत्यपर बड़ी लज्जा आयी, और वह मुँह नीचे किये भयभीत से रहने लगे  । उन्होंने आत्मग्लानि और यादव परिवार में शान्ति रखने के लिये, *" अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह श्रीकृष्ण से कर दिया और उस समयन्तक मणि को भी भगवान श्रीकृष्णको कन्यादान स्वरूप भगवान को अर्पित कर दिया । "*
                 
जब कलंक लगाने वाले व दोषारोपण करने वाले मनगढ़ंत आरोप लगा सकते हैं, उन्हें मात्र दो दिन लगते हैं। लेकिन सत्यान्वेषण और सत्य को बाहर लाने में अधिक वक़्त लगता है। आग लगाने के लिए एक तीली काफी है, आग बुझाने में वक़्त लगता है।
तब भी कुछ द्वारिकावासियों ने भगवान श्रीकृष्ण को संदेह की दृष्टि से देखा था, और बहुत से द्वारिकावासियों और भगवान श्रीकृष्ण के भक्तों ने इन आरोपों को सिरे से नकार दिया था। वर्तमान में भी हृदय की सुनना चाहिए, अफवाहों को नकार देना चाहिए। सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं। सत्यान्वेषण में वक्त लगता है। धैर्य पूर्वक श्रद्धा व विश्वास बनाये रखने की आवश्यकता होती है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

उसमें विलीन होकर, उसे पाया जा सकता है।

*उसमें विलीन होकर, उसे पाया जा सकता है।*

सरसों में तेल है,
चकमक पत्थर में आग है,
बिना प्रयास के,
बिना अस्तित्व के मिटे,
न सरसों से तेल निकलेगा,
न चकमक से आग निकलेगा।

लकड़ी में आग है,
लेकिन लकड़ी आग नहीं,
जन जन में भगवान है,
लेकिन प्रत्येक जन भगवान नहीं,
प्रत्येक बूँद सागर से उपजी,
मग़र प्रत्येक बूँद सागर नहीं।

लकड़ी को जलना होगा,
आग को आग से मिलना होगा,
जन जन को तपना होगा,
आत्मा से परमात्मा को मिलना होगा,
बूँद को सागर में विलीन होना होगा,
स्वयं के अस्तित्व को खोकर ही उसे पाना होगा।

जब मैं मिटेगा,
तब ही वह शेष बचेगा,
स्वयं के अस्तित्व में,
तब ही वह उभरेगा,
ख़ुद में उसको पाना होगा,
उसे बाहर नहीं भीतर ही जानना होगा।

ध्यान जब कुछ पाने के लिए नहीं,
उसमें खोने के लिए करेंगे,
जब ध्यान में समय का पता न रहेगा,
संसार का आभास न रहेगा,
तब ही स्वयं में वह मिलेगा,
तब ही वह अनुभूत होगा,
क्योंकि जब मैं मिटेगा,
तब ही वह शेष बचेगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday 15 May 2020

प्रश्न - *गायत्री का अनुष्ठान करते समय माला का उपयोग करना अनिवार्य है या हम समय सीमा के अनुसार जाप कर सकते हैं, माला-जप-के-लाभ बताएं, कृपया बताएं धन्यवाद*

प्रश्न -  *गायत्री का अनुष्ठान करते समय माला का उपयोग करना अनिवार्य है या हम समय सीमा के अनुसार जाप कर सकते हैं कृपया बताएं धन्यवाद*

उत्तर- आत्मीय भाई,

मन को संकल्पों से बांधकर, एक निश्चित विधिव्यवस्था अपनाकर, एक निश्चित समय सीमा तयकर, एक निश्चित संख्या में जप करके, एक निश्चित ऊर्जा का उत्पादन अनुष्ठान द्वारा किया जाता है।

इस उद्देश्य पूर्ति में हमें अपने हाथ की अनामिका उंगली की सहायता भी चाहिए होती है जो शरीर में हृदय तक और हृदय से ब्रहमांड तक का ऊर्जा चैनल बनाने व सम्बन्धित ऊर्जा को ब्रह्माण्ड से आकर्षित करने हेतु चाहिए होता है। वर वधु एक दूसरे के हृदय स्पर्श के लिए इसी अंगुली में अंगूठी पहनाते हैं।  भक्त भी भगवान के हृदय स्पर्श व उनकी अनुभूति के ब्रह्स्पंदन हेतु इसी उंगली का प्रयोग करता है।

जो ब्रह्मांड में है, वही आपके पिंड में है, इस मानव तंत्र में है। एक तरह से अनामिका उंगली इस मानव तंत्र को कई संभावनाओं के लिए खोल सकती है।  इसलिए ऋषि माला जप के दौरान इस खास अनामिका उंगली का इस्तेमाल करते थे। अनामिका उंगली पर धातु पहनने का एक और पहलू यह था कि इससे शरीर का सिस्टम स्थिर होता है। तुलसी, रुद्राक्ष, स्फटिक इत्यादि धातु के स्पर्श व घर्षण से मानव तंत्र को स्थिरता प्रदान करने का   उपक्रम है। इसके कई और आयाम और लाभ भी हैं मगर सामान्य तौर पर देखें तो यह अनामिका उंगली एक ऐसा रिमोट है जो आपके शरीर के कई ऊर्जा आयामों को खोलता है।
इस मानव तंत्र को खोले बिना आप किसी ब्रह्मांड तक नहीं पहुंच सकते। अनामिका उंगली रूपी रिमोट का संबंध वास्तव में  शरीर के हृदय से, इंसानी तंत्र से है। अगर आप इसे खोलते हैं, फिर वहां ब्रह्मांड होता है। ब्रह्मांड हमेशा से ही भीतर मौजूद रहा है। बस उसे खोला नहीं जा सका तो मनुष्य अधूरा रहता है।

पवित्र तुलसी या रुद्राक्ष का अनवरत स्पर्श व घर्षण से तुलसी और रुद्राक्ष की सूक्ष्म ऊर्जा अनामिका उंगली के माध्यम से हृदय तक पहुंचता है और मन्त्र जप के दौरान मुंह के अग्नि चक्र का एक्टिवेशन, मन्त्र के शब्दों के घर्षण से उतपन्न ऊर्जा का नस नाड़ियो में स्पंदन एक विशेष ऊर्जा  का एक प्रायोगिक उत्पादन व सम्प्रेषण है।  सम्बन्धित ऊर्जा को आकर्षित करने के लिए चुम्बकत्व का निर्माण है।

अतः पूर्ण लाभ चाहिए तो अनुष्ठान के वक्त तुलसी माला से गायत्री जप अवश्य करें।

जो किन्ही कारण से माला जप नहीं कर सकते वह घड़ी देखकर जप कर सकते हैं।

🙏🏻माला जप के दौरान कम्बल या ऊनि वस्त्र या कुश का आसन प्रयोग करें। इष्ट देवता के समक्ष घी का जलता दीपक समक्ष हो। एक लोटे में जल भरा अवश्य होना चाहिए। कमर सीधी जितनी देर रख सकें उतना है। 🙏🏻


🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...