Monday 30 September 2019

प्रश्न - *दी, मुझे युग निर्माण सत्संकल्प 17 वे सूत्र की व्याख्या बता दीजिए।*

प्रश्न - *दी, मुझे युग निर्माण सत्संकल्प 17 वे सूत्र की व्याख्या बता दीजिए।*

उत्तर-
युग निर्माण सत्संकल्प 17 वे सूत्र की व्याख्या:-

17- *मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है, इस विश्वास के आधार पर हमारी मान्यता है कि हम उत्कृष्ट बनेंगे और दूसरों को श्रेष्ठ बनाएँगे, तो युग अवश्य बदलेगा।*

युगऋषि कहते हैं कि मनुष्य कुछ इस तरह की धातु का बना होता है जिसकी संकल्प भरी शक्ति और साहसिकता के आगे कोई भी अवरोध टिक नहीं पाता है और न भविष्य में टिक पायेगा। मनुष्य बुद्धिकुशलता से कर्म द्वारा टेक्नोलॉजी उपयोग से पक्षियों की तरह उड़ सकता है, मछलियों की तरह तैर सकता है, कुछ भी सम्भव हैं। वह भोगी, रोगी व योगी जो चाहे बन सकता है। वो स्वयं के लिए योग व अध्यात्म से आनन्दित वातावरण या भोग व नशे के उपभोग से स्वयं के लिए असह्य पीड़ा व रोग जो चाहे उसका सृजन कर सकता है। इस तरह से यह कहा जा सकता है की *मनुष्य अपने भाग्य का स्वयं निर्माता है*।दुनिया में मनुष्य के आगे असंभव कुछ भी नहीं है। आदमी के अच्छे या बुरे होने का निर्धारण स्वयं उसके कर्म करते हैं।

व्यक्ति कर्म करने में स्वतंत्र है लेकिन उसका परिणाम कर्म अनुसार होगा व्यक्ति की इच्छानुसार नहीं। स्वतंत्र किसको कहते हैं, जो अपनी इच्छा से काम करे या दूसरे के दबाव से काम करे? जो अपनी इच्छा से काम करे, वह स्वतंत्र है। तो आपका भविष्य पहले से कोई कैसे लिख देगा? अगर पहले से लिखा है, और वही होना है, तो आप परतंत्र हो गए।  सच तो यह है कि आप जब चाहे, अपनी योजना बदल सकते हैं, जब चाहे बना सकते हैं। हमारी मर्जी है। हम कर्म करने में स्वतंत्र हैं। अपने भविष्य के निर्माता हम स्वयं हैं। एक-एक मिनट में हम अपना भविष्य बनाते हैं। ज्योतिष ने आपकी जो भी उम्र बताई हो आप कर्म द्वारा ज़हर खाइए तुरंत मरेंगे, मृत्यु कर्मफ़ल बनेगा। ज्योतिष ने अल्पायु बताया है कोई बात नहीं आप योगियों सा परोपकारी जीवन जीना शुरू कर दीजिए, दीर्घायु होने से कोई रोक नहीं सकता। डॉक्टर इंजीनियर वक़ील पढ़कर बन जाइये, नर से नारायण या नर से पशु जो चाहें कर्म से बन जाइये। आपकी क्रिया ठीक-ठीक चल रही है, आपका भविष्य अच्छा है। आप गलत क्रिया शुरु करो, देखो आपका भविष्य तुरंत बिगड़ जाएगा। इस प्रकार अपना भविष्य बनाना-बिगाड़ना हमारे हाथ में है। एक-दो मिनट में हम अपना भविष्य बना सकते हैं या बिगाड़ सकते हैं।आपको एक कहानी के माध्यम से बताने का प्रयास करती हूँ –

एक राजा बड़ा न्यायप्रिय था, अपनी प्रजा का बड़ा ध्यान रखता था।
उसकी तीन पुत्रियां थी, वो जो देखता, जो सोचता उसको सच मानता उसको लगता था,
अपने राज्य के लिए वो जो नियम बनाता वही उस राज्य का नियति होता।
वह अपने आप को प्रजा के भाग्य का निर्माता समझता था।
जब उसकी  पुत्रियां विवाह योग्य हुई
तो तीनों को बुला उसने कहा -मुझसे ही तुम्हे जीवन मिला है,

तुम तीनो को ही मेरी सम्पति मिलेगी और तुम्हारा विवाह, भविष्य के सारे निर्णय मेरी मर्जी से होंगे ,
दो पुत्रियो ने उसकी मर्जी मान ली , पर तीसरी पुत्री ने कहा-आप राजा है
मेरे पिता है, आप की आज्ञा मानना मेरा फर्ज है और कानून भी है।

*पर आप मेरे भविष्य निर्माता नही हो सकते। प्रत्येक मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है।*

एक पिता को अपने पुत्री से और एक राजा को अपनी प्रजा से ये उम्मीद नही थी। उसके इस जवाब से क्रोधित पिता ने उसे करागार में डलवा दिया।

इस उम्मीद से की जेल की ज़िन्दगी उसे तोड़ देगी। पर ऐसा नही हुआ ।पुत्री अपनी बात पर अडिक रही।

पिता ने हार न मानी और अपनी पुत्री को राज्य के बाहर डरावने जंगल में डलवा दिया, जहाँ जंगली जानवर के साथ-साथ, राज्य से निकाले लोग रहते थे।

पर जंगल की वो आज़ादी राजकुमारी को बहुत पसंद आयी, युद्ध कला व बुद्धिबल में वो निष्णात थी। वो पेड़ के ताजे फल ,सोने के थाल के भोजन से बहुत अच्छे  थे। आदिवासी व निष्काषित लोगों की निष्काम भाव से सेवा व मदद करती। सबने उसे अपनी रानी स्वीकार लिया। उसने सबको शिकार हेतु विभिन्न युद्ध कलाएं सिखाई, तथा व्यापार हेतु जंगल की सम्पदा को बाहरी राज्यों में बेंचना सिखाया। चन्दन व जंगल की औषधियों से खूब आमदनी हुई। जंगल की महारानी बनकर राज्य सुख से रहने लगी।

और एक दिन समुद्री मार्ग से भटकता हुआ घायल एक युवक उसी जंगल में आ पंहुचा। शेर से राजकुमारी ने उसे बचाया व उसका उपचार किया।
फिर वह युवक उस राज कुमारी की सुंदरता, वीरता व बुद्धिमत्ता के कारण प्रेम में पड़ गया और विवाह कर राजकुमारी को अपने देश ले गया।

वह युवक अपने देश का राजकुमार था ,अपने साम्राज्य को फैलाने के उद्देश्य से अपने पड़ोस के राज्यो पर आक्रमण करता

वो उसी राज्य पर आक्रमण करने पंहुचा (जो उसकी पत्नी के पिता का राज्य था) राजकुमार ने राजा से कहा-

तुम अपनी मर्ज़ी से अपना राज्य मुझे दे दो या मुझसे युद्ध कर मुझे पराजित करो।

राजा अब शक्तिहीन हो चूका था

उसकी आहंकारिता और भाग्य निर्माता ही उसकी प्रजा और उसके बीच असंतोष  का कारण था।

और प्रजा नए राजा की तलाश में थी। अंततः राजा ने हथियार डाल दिया।

तभी राजा के कानों में एक ध्वनि सुनाई पड़ती है, जो उसकी पुत्री का होता है।  “पिताजी अब तो आप मानेंगे, प्रत्येक मनुष्य की अपनी नियति होती है, वो स्वयं अपने भाग्य का निर्माता होता है।”

हर मनुष्य की अपनी नियति है, अपना चुनाव है। कल जो भी होगा वो हमारे आज के निर्णय पर निर्भर करता है।हम अपना  कल(अतीत) तो नही बदल सकते है, पर अपने आज के निर्णय से अपना कल बेहतर कर सकते है।आप मूल्यवान है

एक दार्शनिक का मत है कि संसार एक निष्प्राण वस्तु है। इसे हम जैसा बनाना चाहते हैं, यह वैसा ही बन जाता है। जीव चैतन्य है और कर्त्ता है। संसार पदार्थ है और जड़ है। चैतन्य कर्ता में यह योग्यता होती है कि वह जड़ पदार्थ की इच्छा और आवश्यकता का उपयोग कर सके। कुम्हार के सामने मिट्टी रखी हुई है, वह उससे घड़ा भी बना सकता है और दीपक भी। सुनार के सामने सोना रखा हुआ है, वह उससे मनचाहा आभूषण बना सकता है। दर्जी के हाथ में सुई है और कपड़ा भी। वह चाहे तो कुर्ता सी सकता है।

हम सभी को यह जानने की उत्सुकता बराबर रहती है कि आखिर मनुष्य के भाग्य का फैसला कौन करता है?

अगर भगवान किस्मत/भाग्य बनाता तो सबको एक जैसी किस्मत देता। जैसे पिता यदि बच्चों का भविष्य लिखता तो सबको एक जैसा अच्छा सुंदर भाग्य देता।

क्योंकि मनुष्य जन्मजन्मांतर से अपने कर्मो से अपनी किस्मत लिख रहा है, इसलिए सबकी क़िस्मत अलग अलग है। भगवान बस यह तय करता है जो कर्म मार्ग आपने चुना है वही कर्मफ़ल आपको मिले। जिस प्रकार अध्यापक यह तय करता है कि उत्तरपुस्तिका में परीक्षा के वक्त जो आपने उत्तर लिखे हैं वैसे ही आपको मार्क्स मिलें।

अतः यह कर्मफ़ल का सिद्धांत - *मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता है, हम स्वयं अपने कर्मों से अपनी किस्मत लिख रहे हैं।* इस पर स्वयं भरोसा करें व दुसरो को भी समझाएं। उज्ज्वल भविष्य और अच्छे युग के निर्माण के लिए हम सबको उत्कृष्ट बनना होगा। देवता जैसा बनना होगा। तभी स्वर्ग सा सुंदर जहान हमें रहने को मिलेगा।

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *दी, मुझे युग निर्माण निम्नलिखित सत्संकल्प 15 और 16 वे सूत्र की व्याख्या बता दीजिए।*

प्रश्न - *दी, मुझे युग निर्माण निम्नलिखित सत्संकल्प 15 और 16 वे सूत्र की व्याख्या बता दीजिए।*

उत्तर- युगनिर्माण सत्संकल्प के सूत्रों की व्याख्या:-

15- *सज्जनों को संगठित करने, अनीति से लोहा लेने और नव- सृजन की गतिविधियों में पूरी रुचि लेंगे।*

*व्याख्या:-* अँधेरा तब तक ही अस्तित्व में होता है जब तक प्रकाश की उपस्थिति न हो। उसी तरह अनाचार का अस्तित्व तब तक रहता है जब तक सदाचारी संगठित न हो। अनाचार बढ़ता है तब, सदाचार मौन रहता है जब।

भवन को विध्वंस एक व्यक्ति एक बम की सहायता से कर सकता है, लेकिन उसी भवन के निर्माण में अनेकों लोगों का संगठित प्रयास लगता है। अब यहां तो समाज के नवसृजन की बात हो रही है तो अत्यधिक *अच्छी सोच व भली नियत* के लोग *नव-सृजन हेतु* चाहिए। सृजन सैनिक अनीति से लोहा लेने के लिए चाहिए तो संगठित तो उन्हें करना ही होगा। देश को दुश्मनों से बचाने के लिए सेना चाहिए, इसीतरह देश को अनाचार से बचाने के लिए सृजन सैनिक चाहिए। सृजन सैनिक की योग्यता पात्रता उसके सज्जन व्यवहार के साथ अनीति से लोहा लेने के लिए तत्परता ही है।

युगनिर्माण यज्ञ हेतु सबको साथ एक साथ आना होगा, समिधाओं को युगनिर्माण में आहुत होना होगा। अपनी प्रतिभा क्षमता लगानी होगी।

कहानी - *एक बार Porcupine( पोर्क्युपाइन - साही) जानवर जिसके शरीर मे काँटे होते हैं, एक ठंडे प्रदेश में रहते थे।* अत्यधिक ठंड से वो बेहाल हो रहे थे, मीटिंग बुलाई गयी कि ठंड से कैसे बचें और जीवित रहें?

तभी मीटिंग के दौरान सबने अनुभव किया कि वो गर्मी महसूस कर रहे है। क्योंकि सबके शरीर की गर्मी से माहौल गर्म महसूस हो रहा था। सब ख़ुश हो गए उनका जीवन बच जाएगा यदि वो साथ रहे तो ये जानकर। लेकिन एक समस्या थी, जब वो साथ होते तो कांटे एक दूसरे के एक दुसरो को चुभते। जो यह सह सकता वही साथ रह सकता, यदि अलग रहें तो जीवन पर संकट मंडराएगा। एक *साही* को चुभन बर्दास्त न हुई वो अकेले रहने निकल गया। ठंडक ने उसे बेहाल कर दिया और वो जमकर बेहोश हो गया। तभी सभी साही उसे उठाकर ले आये और उसके चारों ओर इकट्ठा हो गए। उन सबकी शरीर की गर्मी से पुनः उसकी चेतना लौटी तो उसे अहसास हुआ, *यदि जान बचाना है तो संगठित रहना पड़ेगा। जीना है तो कांटे सहने पड़ेंगे। एक दूसरे को श्रेष्ठ उद्देश्य के लिए बर्दाश्त करना ही पड़ेगा।*

कलियुग में संगठन ही शक्ति है, देवताओ की सम्मिलित शक्ति ही दुर्गा है। यदि अनाचार व असुरत्व को परास्त करना है तो सदाचारियों को आपसी मतभेद बुलाकर संगठित होना ही होगा।


16- *राष्ट्रीय एकता एवं समता के प्रति निष्ठावान् रहेंगे। जाति, लिंग, भाषा, प्रांत, सम्प्रदाय आदि के कारण परस्पर कोई भेदभाव न बरतेंगे।*

व्याख्या:- *कर्म प्रधान विश्व रचि राखा* - तुलसीदास जी कहते हैं कि विधाता ने यह सृष्टि कर्म प्रधान रखी है, जन्म प्रधान नहीं। जिस प्रकार संयुक्त बड़े  एक ही परिवार में कार्य का बंटवारा घर की सुव्यवस्था के लिए होता है। कोई भोजन बनाता है, तो झाड़ू-पोछा करता है, कोई टॉयलेट साफ करता है तो कोई मंदिर की साफ सफ़ाई करता है, कोई खेतों में काम करता है तो कोई कम्पनी में काम करता है, कोई बच्चे सम्हालता है तो कोई बच्चों को पढ़ाता है। यह कर्मप्रधान कार्य का बंटवारा है, तो कोई श्रेष्ठ व कोई गौण कैसे हुआ?

इसीतरह समाज को चलाने के लिए कर्मो के वर्ग (वर्ण) बने जिनके मुख्य चार डिपार्टमेंट(नाम) थे- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र । पिता को जो कार्य अच्छे से आता था उसने पुत्र को सिखा दिया। इस तरह लोगों को भ्रम हो गया कि यह व्यवस्था जन्म पर आधारित है, जो कि सर्वथा गलत है।

चार वेद, अठारह पुराण व प्राचीन ग्रन्थ किसी मे भी जाति का उल्लेख है ही नहीं। जाति तो मनुष्यों के वह गांव या स्थान के नाम है जहां वो लोग रहते थे। जब वो कहीं बाहर कमाने गए तो उनकी यूनिक आईडेन्टिटी के लिए उनके नाम के साथ ग्राम का नाम जोड़ दिया गया। जैसे देश से बाहर जाने पर हम इंडियन(भारतीय) कहलाते हैं।

पहले इंटरनेट टीवी मोबाईल व यातायात के साधन नहीं थे अतः यूनिक भाषा हो ही नहीं सकती थी। जिसे जो समझ मे आया उसने भाषा बना ली। जिसे जो समझ आया उसने वो पूजन पद्धति अपना ली। जिसे जिस साधना पद्धति से लाभ हुआ उसने उसे लोगों को बता दिया। वह गुरु हुए व उनके अनुयाइयो का संगठन सम्प्रदाय बन गया।

मेडिकल तौर पर ब्लड व अन्य स्तर पर आप जांच करके देखें तो कोई अंतर न पाएंगे क्योंकि मनुष्य की संरचना विधाता ने एक सी की है।

डीएनए - व्यक्ति के सोच, चिंतन, आदतों व कर्मो के निरन्तर अभ्यास से प्रभावित होता है।

यह बोध ज्ञान लोगों को करवा के उन्हें समझाना साथ ही खुद समझना कि जाति, लिंग, भाषा, प्रांत, सम्प्रदाय आदि के कारण परस्पर कोई भेदभाव न करें, राष्ट्रीय एकता एवं समता के प्रति निष्ठावान् रहें। श्रेष्ठ उद्देश्यों के लिए एकजुट रहें।

🙏🏻श्वेता, DIYA

गायत्री महामंत्र के 9 शब्दों में समायी नवदुर्गा शक्ति व्याख़्या

✨गायत्री महामंत्र के 9 शब्दों में समायी नवदुर्गा शक्ति व्याख़्या ✨

माँ भगवती तेरे नौ रूप,
गायत्री मंत्र नवदुर्गा स्वरुप।

प्रथम स्वरुप "तत्" मे समाहित,
करता तन मन को व्यवस्थित।
हिमालय पुत्री का लिया है रुप,
यही "शैलपुत्री" माँ का स्वरुप ।।

द्वितिय स्वरुप "सवितुः" नामी,
चेतना जो करती उर्ध्वगामी।
सचिदानंदमय  ब्रह्म स्वरुप,
वह "ब्रह्मचारिणी" माँ का रूप।।

तृतिय स्वरुप "वरेण्यम्"समाहित,
साधक की करें प्रज्ञा प्रकाशित।
आह्लारकारी चंद्र धण्टा स्वरुप,
वह "चन्द्रघण्टा" माँ का रूप।।

चतुर्थ रुप में "भर्गो" मे समाया,
साधक में दिव्यता ले आया।
त्रिविध तापयुक्त उदर स्वरुप,
वह "कुष्मांडा" माँ का रूप।।

पंचम रुप "देवस्य" कहलाती,
साधक में जो देवत्व लाती।
छान्दोग्योपनिषद स्कंध स्वरुप,
वह "स्कंदमाता" माँ का रूप।।

षष्ठी रुप में "धीमहि" बन विचरती,
साधना के अवरोध दूर करती।
कात्यायन ऋषि की पुत्री का रुप,
वह "कात्यायनी" माँ का स्वरूप।

सप्तम रुप "धियो" का प्रकाश,
तमस् का करती पूर्ण विनाश।
काल-रुप विनाशक स्वरुप,
वह "कालरात्रि " माँ का रूप।।

अष्टम रुप "योनः" समाहित,
साधक की करें चेतना प्रकाशित।
तपस्विनी महा गौर स्वरुप,
वह "महागौरी" माँ का रूप।।

नवम रुप "प्रचोदयात्" को जान,
साधक को करती पूर्णता प्रदान।
सिद्धिदात्री वह मोक्ष स्वरुप,
वह "सिद्धिदात्री" माँ का रूप।।

साधक को देती सद्बुद्धि और उज्जवल भविष्य,
गायत्री मन्त्र के नौ शब्द मातृ शक्ति स्वरुप।।

🙏🏻श्वेता, DIYA

कविता - *पक्षी को पता होता है, आसमान में बैठने की जगह नहीं होती*

कविता - *पक्षी को पता होता है, आसमान में बैठने की जगह नहीं होती*

मेरे बेटे,
नाविक को पता होता है,
लहरें शांत नहीं होती,
पक्षी को पता होता है,
आसमान में बैठने की जगह नहीं होती।

फ़िर भी नाविक,
नाव समुद्र में उतारता है,
फिर भी पक्षी,
उड़ने को पंख फैलता है।

गृहणी को पता होता है,
आग व चाकू से सामना होगा,
सैनिक को पता होता है,
बारूद व गोले का सामना होगा।

फ़िर भी गृहणी,
रोज़ रसोईघर में खाना पकाती है,
फ़िर भी सैनिक,
रोज़ दुश्मनों के बीच ड्यूटी निभाता है।

मेरे बेटे,
ख़तरा कहाँ नहीं है?
मृत्यु का भय कहाँ नहीं है?
जैसे दाँतो के बीच जीभ रहती है,
वैसे ही मृत्यु के बीच जीव रहता है।

भय को त्याग,
सैनिक जैसे साहसी बनो,
बहादुरी और धैर्य से,
हर परिस्थिति का मुकाबला करो।

मृत्यु जब आयेगी,
तब उसे भी हँस के स्वीकारना,
जब तक जीवन है,
उसे भयमुक्त होकर गुजारना।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Sunday 29 September 2019

प्रश्न 1- *गुरु की चेतना से हम कैसे जुड़ते हैं?*


प्रश्न 1- *गुरु की चेतना से हम कैसे जुड़ते हैं?*
उत्तर- जब गुरु को हम व्यक्ति नहीं अपितु शक्ति समझते व विश्वास करते हैं। तब हम गुरुचेतना से जुड़ते हैं।

प्रश्न -2 *गुरु आह्वाहन कैसे कार्य करता है?*
उत्तर- जब गुरु आह्वाहन में हम अपनी चेतना को गुरुचेतना से जुड़ा हुआ अनुभूत करते हैं। तब चेतन स्तर पर उनके सुरक्षा चक्र के भीतर उनके समक्ष ही हम जप करते हैं।

प्रश्न 3- *क्या केवल गुरु आह्वाहन पर्याप्त है?*
उत्तर- गुरु के साथ माता गायत्री का आह्वाहन जरूरी है। साधना के माध्यम से गुरुचेतना से जुड़कर परमात्म चेतना तक पहुंचा जाता है। गुरु ही वह माध्यम है जो आत्मा व परमात्मा का कनेक्शन व्यवस्थित करता है।
🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *जिन्होंने गुरु धारण नहीं किया क्या वो गायत्री अनुष्ठान कर सकते हैं? क्या वो सफल होगी?*

*नवरात्रि अनुष्ठान सम्बन्धी जिज्ञासा व समाधान*

प्रश्न - *जिन्होंने गुरु धारण नहीं किया क्या वो गायत्री अनुष्ठान कर सकते हैं?  क्या वो सफल होगी?*

उत्तर- युगऋषि ने यह घोषणा की है कि उन्होंने गायत्रीमंत्र को शापमुक्त सभी लोकहित चाहने वाले लोगों के लिए कर दिया है।

आप भगवान सूर्य या लाल मशाल को गुरुरूप में मानसिक रूप से वरण करके गायत्री मंत्र अनुष्ठान साधना कर सकते हैं।

सभी निश्चिन्त होकर आत्मकल्याण, परिवार कल्याण व लोकल्याण के लिए गायत्रीमंत्र साधना कर सकते हैं। यह गायत्रीमंत्र वह औषधि की तरह है, जो सबके लिए समान रूप से लाभप्रद है। सबकी साधना अच्छे उद्देश्यों के लिए सफल होगी।

केवल उनकी साधना जो किसी को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से करेंगे वो विफल होगी।

प्रत्येक गायत्रीमंत्र की उपासना करने वाले का आत्मबल साधनात्मक दिनों में निश्चयत: बढ़ेगा व विवेक जागृत होगा।

स्त्री, पुरुष, बालक, वृद्ध सभी को समान रूप से गायत्रीमंत्र जपने का अधिकार है। सभी के लिए कलियुग की कामधेनु गायत्री है।

Reference Article:- http://literature.awgp.org/book/Gayatri_Ki_Gupt_Shaktiyan/v2.1

Reference Book:-
1- गायत्री विषयक शंका समाधान
2- गायत्री महाविज्ञान
3- गायत्री की गुप्त शक्तियाँ

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *दी, क्या नवरात्रि अनुष्ठान में नित्य शाप विमोचन करना अनिवार्य है? क्योंकि सुना है बिना शाप विमोचन के गायत्री साधना सफ़ल नहीं होती।*

*नवरात्रि अनुष्ठान सम्बन्धी जिज्ञासा व समाधान*

प्रश्न - *दी, क्या नवरात्रि अनुष्ठान में नित्य शाप विमोचन करना अनिवार्य है? क्योंकि सुना है बिना शाप विमोचन के गायत्री साधना सफ़ल नहीं होती।*

उत्तर- आत्मीय बहन,

यह सत्य है कि जो शाप- विमोचन की विधि पूरी करके गायत्री साधना करेगा, उसका प्रयत्न सफल होगा और शेष लोगों का श्रम निरर्थक जाएगा।

लेकिन इस पौराणिक उपाख्यान में एक भारी रहस्य छिपा हुआ है, जिसे न जानने वाले केवल ‘शापमुक्ताभव’२ मन्त्रों को दुहराकर यह मान लेते हैं कि हमारी साधना शापमुक्त हो गयी।२(परम्परागत साधना में गायत्री मन्त्र- साधना करने वालों को उत्कीलन करने की सलाह दी गई है। उसमें साधक निर्धारित मन्त्र पढक़र ‘शापमुक्ताभव’ कहता है।)
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*वसिष्ठ का अर्थ है*- ‘विशेष रूप से श्रेष्ठ गायत्री साधना में जिन्होंने विशेष रूप से श्रम किया है, जिसने सवा करोड़ जप किया होता है, उसे वसिष्ठ पदवी दी जाती है। रधुवंशियों के कुल गुरु सदा ऐसे ही वसिष्ठ पदवीधारी होते थे। रघु, अज, दिलीप, दशरथ, राम, लव- कुश आदि इन छ: पीढिय़ों के गुरु एक वसिष्ठ नहीं बल्कि अलग- अलग थे, पर उपासना के आधार पर इन सभी ने वसिष्ठ पदवी को पाया था। वसिष्ठ का शाप मोचन करने का तात्पर्य यह है कि इस प्रकार के वसिष्ठ से गायत्री साधना की शिक्षा लेनी चाहिए, उसे अपना पथ- प्रदर्शक नियुक्त करना चाहिए।
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*विश्वामित्र का अर्थ है*- संसार की भलाई करने वाला, परमार्थी, उदार, सत्पुरुष, कर्त्तव्यनिष्ठ। गायत्री का शिक्षक केवल वसिष्ठ गुण वाला होना ही पर्याप्त नहीं है, वरन् उसे विश्वामित्र गुण वाला भी होना चाहिए। कठोर साधना और तपश्चर्या द्वारा बुरे स्वभाव के लोग भी सिद्धि प्राप्त कर लेते हैं। रावण वेदपाठी था, उसने बड़ी- बड़ी तपश्चर्याएँ करके आश्चर्यजनक सिद्धियाँ प्राप्त की थीं। इस प्रकार वह वसिष्ठ पदवीधारी तो कहा जा सकता है, पर विश्वामित्र नहीं; क्योंकि संसार की भलाई के, धर्माचार्य एवं परमार्थ के गुण उनमें नहीं थे। स्वार्थी, लालची तथा संकीर्ण मनोवृत्ति के लोग चाहे कितने ही बड़े सिद्ध क्यों न हों, शिक्षण किये जाने योग्य नहीं, यही दुहरा शाप विमोचन है।

 जिसने वसिष्ठ और विश्वामित्र गुण वाला पर्थ- प्रदर्शक, गायत्री- गुरु प्राप्त कर लिया, उसने दोनों शापों से गायत्री को छुड़ा लिया। उनकी साधना वैसा ही फल उपस्थित करेगी, जैसा कि शास्त्रों में वर्णित है।यह कार्य सरल नहीं है, क्योंकि एक तो ऐसे व्यक्ति मुश्किल से मिलते हैं जो वसिष्ठ और विश्वामित्र के गुणों से सम्पन्न हों। यदि मिलें भी तो हर किसी का उत्तरदायित्व अपने ऊपर लेने को तैयार नहीं होते, क्योंकि उनकी शक्ति और सामर्थ्य सीमित होती है और उससे वे कुछ थोड़े ही लोगों की सेवा कर सकते हैं।

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हम सबका सौभाग्य यह है कि हमारे सद्गुरु युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य - *वशिष्ठ भी है क्योंकि उन्होंने 24 लाख के 24 महापुरश्चरण किये हैं, तो टोटल 5 करोड़ 76 हज़ार तो अनुष्ठान में जप किया है। तथा अश्वमेध यज्ञ श्रृंखला व अनेक कुंडीय यज्ञ में लाखों यज्ञ आहुतियां भी।* वशिष्ठ की उपाधि तो सवा करोड़ गायत्री जप से ही मिल जाती है, लेकिन गुरुदेव ने तो कई करोड़ जप एक ही जीवन मे किया।

*वो विश्वामित्र भी हैं - क्योंकि पूरा जीवन लोककल्याण के लिए जिया। स्वयं तपकर 3200 से ज्यादा लोकहित युगसाहित्य का सृजन किया।*

*वो ब्रह्मऋषि भी हैं - क्योंकि सृजन कर रहे हैं, युगनिर्माण सप्त आंदोलन व शत सूत्रीय कार्यक्रम के माध्यम से जन जन का कल्याण कर रहे हैं।*

*सबसे बड़ा सौभाग्य उन्होंने समर्पित निर्मल शिष्यों की साधना को सम्हालने का वचन दिया है।*

🙏🏻 *अतः यदि गुरु से दीक्षित हैं और जप से पूर्व श्रद्धा भरे अन्तःकरण से गुरु आह्वाहन करते हैं, लोकहित भावना मन मे है तो शाप विमोचन गुरु आह्वाहन व उनके श्री चरणों के ध्यान से स्वतः हो जाएगा। षट कर्म, गुरु आह्वाहन व माँ गायत्री के आह्वाहन व पंचोपचार पूजन के बाद जप कर लें। नवरात्रि समेत समस्त अनुष्ठान निश्चयत: सफल होगा।*

यदि गुरु से दीक्षित नहीं है, तो एक तरह से आप बिना मार्गदर्शक के समुद्र में तैरना स्वयं के प्रयास से शुरू कर रहे हैं। अतः विशेष सावधानी बरतें। समस्त तर्पण, मार्जन, शाप विमोचन करने के बाद ही जप करें।

नोट:- आपको जानकर सुखद आश्चर्य होगा कि केवल गायत्री हो नहीं, दुनियाँ की समस्त देवियों व देवताओं की शक्ति साधना ब्रह्मा, वशिष्ठ व विश्वामित्र जी द्वारा शापित व कीलित है, सर्वत्र इनका विमोचन, उत्कीलन करना अनिवार्य है, रिफरेंस के लिए दुर्गाशप्तशती व अन्य देवी देवता के पाठ अनुष्ठान विधि को देखें।

🙏🏻श्वेता, DIYA

*Reference Article*: http://literature.awgp.org/book/Super_Science_of_Gayatri/v9.16

कविता - *जीवन में कुछ पाना है,* *तो दर्द व संघर्ष से गुजरना होगा।*

कविता - *जीवन में कुछ पाना है,*
 *तो दर्द व संघर्ष से गुजरना होगा।*

मेरे बेटे,
पेंसिल से कुछ लिखना है,
तो पेंसिल को कटर के दर्द से गुज़रना होगा,
जीवन में हमें भी कुछ पाना है,
तो हमें भी दर्द व संघर्ष से गुज़रना होगा।

तुम्हें जन्म देने में,
मैं भी दर्द व संघर्ष से गुजरी,
प्रसवपीड़ा सहकर ही,
तुम्हें गोद में पा सकी।

महापुरुषों की जीवनियाँ पढ़ोगे,
तो उन्हें भी दर्द सहते व संघर्ष करते पाओगे,
वर्तमान के सफ़ल लोगों के जीवन में झांकोगे,
तो उन्हें भी दर्द सहते व संघर्ष करते ही पाओगे।

दर्द व संघर्ष ही,
मानव जीवन का कटु सत्य है,
बिन दर्द व संघर्ष के,
यह सृष्टि ही नहीं सम्भव है।

मेरे बेटे,
संघर्ष से कभी न डरना,
दर्द सहने से पीछे न हटना,
कुछ कर गुज़रने के लिए,
हर पल संघर्षरत रहना।

ध्यान रखो मेरे बच्चे,
वीर भोग्या वसुंधरा है,
वीरों के लिए ही बनी,
यह सुंदर दिव्य धरा है।

भगवान से कभी,
फूलों भरी राह मत माँगना,
भगवान से सदा,
लोहे के मजबूत जूते माँगना।

भगवान से कभी,
धन धान्य व सुख मत माँगना,
भगवान से सदा,
अतुलित बल माँगना,
धन धान्य कमाने के लिए,
बुद्धि व सामर्थ्य माँगना,
संघर्ष व दर्द सहने के लिए,
साहस व धैर्य माँगना,
अपना भाग्य अच्छा लिखने के लिए,
कर्म में कुशलता माँगना।

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *युगऋषि परम्पपूज्य गुरुदेव गीता के संदर्भ में क्या कहते हैं?*

प्रश्न - *युगऋषि परम्पपूज्य गुरुदेव गीता के संदर्भ में क्या कहते हैं?*

उत्तर- परमपूज्य गुरुदेव *पुस्तक - वांग्मय - 31 - संस्कृति संजीवनी श्रीमद्भागवत एवं गीता* पृष्ठ 1.4 में लिखते हैं कि *राष्ट्र के भावनात्मक नवजागरण के लिए गीता ज्ञान से बढ़कर और कोई माध्यम नहीं हो सकता। सच्ची प्रगति वही है जो भावनात्मक स्तर पर हो, भौतिक प्रगति अस्थिर है।*

दुनियाँ की सबसे बड़ी प्रबन्धन पुस्तक गीता है, लोक शिक्षण की सरल प्रक्रिया गीता के माध्यम से आसान है, जनमानस का परिष्कार व कर्तव्यों का भान गीता के माध्यम से आसानी से किया जा सकता है। गीता प्रत्येक बालक युवा वृद्ध के लिए, गृहणी व व्यवसायी के लिए सबके लिए अनिवार्य है, सभी क्षेत्रों की उलझन मिटा सकती है।

योगी को योग हेतु मार्गदर्शन कर सकती है और गृहस्थ को गृहस्थी के  गुण सिखा सकती है। नेता का भी मार्गदर्शन करती है और जनता का भी मार्गदर्शन करती है।

स्वतन्त्रता संग्राम की आधार में गीता को ही प्रसिद्ध स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियो ने अपनाया था।

गीता जो पढ़ेगा उसे कभी कोर्ट में गीता पर हाथ रखकर बोलने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी।

भारतीय सांस्कृति के चार महत्वपूर्ण स्तम्भ 4G - गौ, गंगा, गीता व गायत्री हैं, उनमें से एक प्रमुख *गीता* है।

इस संदर्भ में और विस्तार से पढ़ने के लिए उपरोक्त वांग्मय पढ़े।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Saturday 28 September 2019

नवरात्रि में निम्नलिखित कार्य करें

*नवरात्रि में निम्नलिखित कार्य करें:-*
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1- किसी का दिमाग़ न खाएं व बकबक न करें, घर के बच्चों व जीवनसाथी पर 9 दिन बेवजह गुस्सा न निकालें, क्योंकि दिमाग़ खाना व नॉनवेज खाना बराबर है।

2- व्रत के दिनों भूख कुछ लोगों को सहन नहीं होती, जो स्वतः क्रोध के रूप में अभिव्यक्त होती है। व्रत करके आप किसी पर अहसान नहीं कर रहे, स्वयं के आत्म उत्थान के लिए व्रत कर रहे हैं।तो आत्म पतन के कारण क्रोध का त्याग करें।

3- इन नौ दिनों भाषण, प्रवचन, सलाह देने से जितना सम्भव बचें क्योंकि बिना मांगे सलाह देने पर वह आपकी ऊर्जा को व्यर्थ करेगा। जीवन मे जो कुछ घट रहा है उसके लिए स्वयं के कर्मफ़ल को स्वीकारे। व शांत रहें।

4- जीवनसाथी को सुधारने की प्रक्रिया 9 दिनों तक स्थगित कर दें। व इन 9 दिनों स्वयं को सुधारने में लगा दें।

5- मातृसत्ता भगवती को स्वयं में धारण कर लें, घर में बुजुर्ग हो या बच्चा सबको मातृवत दृष्टि से देखें, उनके दोषों को क्षमा कर दें। माता की तरह आत्मियता व सम्वेदना का विस्तार कीजिये।

6- अगर कोई घर में आपके गुरु व ईष्ट को गाली दे तो भी उसे क्षमा कर दें, क्योंकि उसकी शरीर की उम्र बढ़ी है व शरीर की आकृति से वो इंसान है। मगर प्रकृति से अभी वो पशुवत व बालबुद्धि है। उसकी सद्बुद्धि की प्रार्थना करके उसे इग्नोर कर दें। अब जिस प्रकार पशु प्रधानमंत्री व आम इंसान में फर्क नहीं कर सकता वैसे ही मूर्ख, पशु चेतना युक्त व बाल बुद्धि गुरुचेतना व आम इंसान में फर्क नहीं कर सकता।

7- साधना के दौरान नित्य के लौकिक कर्तव्यों की उपेक्षा न करें। नित्य लौकिक गृहकार्य व जिम्मेदारियों को भी निभाते चलें।

8- यदि भोजन आप पकाती हैं तो प्रार्थना करें कि यह भोजन प्रसाद करके मेरे परिवार को सद्बुद्धि मिले, स्वास्थ्य मिले, शांति मिले व तृप्ति मिले।

9- यदि आप कमाने वाले हैं तो प्रार्थना करें कि प्रभु आपकी कृपा से कमा रहा हूँ, इस कमाई पर पलने वाले घर परिवार के सदस्यों को सद्बुद्धि मिले, स्वास्थ्य मिले, शांति मिले व तृप्ति मिले।

10- रोज़ भगवान को धन्यवाद जीवन के लिए कहना न भूलें, व स्वयं को नित्य अहसास दें कि आप सर्वशक्तिमान माता भगवती के गर्भ में नौ दिन साधना कर रहे है। माता आपके स्थूल, सूक्ष्म व कारण शरीर को बलवान व शक्ति सम्पन्न बना रही हैं। अब आप क्योंकि माता आद्यशक्ति की सन्तान है तो उनके समस्त गुण आपके भीतर जागृत हो रहे हैं। आप देवता बन रहे हैं।

🙏🏻 श्वेता, DIYA

प्रश्न - *नवरात्रि उपासना में सूतक का व्यवधान हो और उस दौरान क्या करना चाहिए या नहीं स्पष्ट कीजिए*

प्रश्न - *नवरात्रि उपासना में सूतक का व्यवधान हो और उस दौरान क्या करना चाहिए या नहीं स्पष्ट कीजिए*

उत्तर - यदि बच्चे का जन्म या किसी की मृत्यु आप जिस घर में रहते हैं उस घर में नहीं हुआ है। आपके रक्तसम्बन्धी यदि आपके घर के 5 किलोमीटर के दायरे में भी नहीं रहते, साथ ही आप अपने सम्बन्धी के बच्चे जन्म के समय हॉस्पिटल में नहीं थे। या किसी की मृत्यु के बाद उनकी अंतिम यात्रा में शामिल नहीं हुए है, तो आप पर सूतक नहीं अप्पलाई होता। अतः नवरात्रि के अनुष्ठान में कोई बाधा नहीं है।

सूतक स्थान पर लगता है और उन रक्तसम्बन्धियों पर भी लगता है जो जन्म व मृत्यु के कार्यक्रम में सम्मिलित होते हैं।

लेक़िन जो रक्तसम्बन्धी जन्म व मृत्यु के स्थान पर नहीं रहते हैं, अन्य शहर में रहते हैं व कार्यक्रम में सम्मिलित भी नहीं हुए उनपर सूतक नहीं लगता।

 *साधारणतया घर में किसी आत्मा का शरीर से जन्म लेना और गर्भ से बाहर आने पर दस दिन का सूतक लगता है। इसी प्रकार आत्मा के शरीर त्याग करने पर भी दस दिन तक सूतक लगता है।* सूतक किसको लगा, किसको नहीं लगा, इसका निर्णय इसी आधार पर किया जा सकता है कि जिस घर में बच्चे का जन्म या किसी का मरण हुआ है, उसमें निवास करने वाले प्रायः सभी लोगों को सूतक लगा हुआ माना जाय। वे भले ही अपने जाति-गोत्र के हों या नहीं। पर उस घर से अन्यत्र रहने वाले—निरन्तर सम्पर्क में न आने वालों पर सूतक का कोई प्रभाव नहीं हो सकता, भले ही वे एक कुटुम्ब-परम्परा या वंश, कुल के क्यों न हों। वस्तुतः सूतक एक प्रकार की अशुद्धि-जन्य छूत है, जिसमें संक्रामक रोगों की तरह सम्पर्क में आने वालों को लगने की बात सोची जा सकती है यों अस्पतालों में भी छूत या अशुद्धि का वातावरण रहता है, पर सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों अथवा साधनों को उससे बचाने की सतर्कता रखने पर भी सम्पर्क और सामंजस्य बना ही रहता है। इतना भर होता है कि अशुद्धि के सम्पर्क के समय विशेष सतर्कता रखी जाय। जन्म-मरण के सूतकों के विषय में भी इसी दृष्टिकोण से विचार किया जाना चाहिए। पूजापरक कृत्यों में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखने का नियम है। *इसी से सूतक के दिनों नियमित पूजा-उपचार में प्रतिमा, उपकरण आदि का स्पर्श न करने की प्रथा चली होगी।* इसलिए देव प्रतिमा का पूजन, यज्ञ, माला लेकर जप, मुंह से मन्त्र बोलना वर्जित होता है।

 उस प्रचलन का निर्वाह न करने पर भी *मौन-मानसिक जप, ध्यान आदि व्यक्तिगत उपासना का नित्यकर्म करने में किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं पड़ता*। भावनात्मक और मौनमानसिक उपसनाक्रम जप-ध्याम और स्वाध्याय सूतक में किया जाना चाहिए।

यदि किसी की मृत्यु सूतक व्यवधान आ जाये तो नवरात्रि में व्रत व मौन मानसिक जप करके उस मृतक आत्मा की मुक्ति, सद्गति व शांति के लिए उस व्रत का फल अर्पित कर दें।

यदि किसी नन्हें मेहमान नवागन्तुक के सूतक व्यवधान आ जाये तो नवरात्रि में व्रत व मौन मानसिक जप करके उस नवागन्तुक बच्चे के उज्जवल भविष्य व उत्तम स्वास्थ्य के लिए उस व्रत का फल अर्पित कर दें।

Reference - पुस्तक - गायत्री विषयक शंका समाधान, आर्टिकल अशौच प्रतिबन्ध

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *प्रणाम दी* *महिलाओं को मासिक शौच में नवरात्रि व्रत या जप करना चाहिए या नहीं ?*

प्रश्न - *प्रणाम दी*
*महिलाओं को मासिक शौच में नवरात्रि व्रत या जप करना चाहिए या नहीं ?*
*कितने दिन तक नहीं करना चाहिए या कितने दिन बाद करना चाहिए ?*
*क्या मासिक शौच के दिनों में दूसरी माला लेकर जप कर सकते हैं ताकि नियमितता नहीं छूटे इसलिए ?*
*क्या मासिक शौच के दिनों में यज्ञादि कर सकते हैं?*
*यज्ञ के कार्यक्रम में सहयोग कर सकते हैं या नहीं ?*
*मन्त्र लेखन करना चाहिए या नहीं ?*
*कृपया समाधान किजिए।*

उत्तर - महिलाओं के रजोदर्शन काल में भी कई प्रकार के प्रतिबन्ध प्राचीन धर्मग्रन्थों में वर्णित हैं। भोजन आदि नहीं पकाती। उपासनागृह में भी नहीं जातीं।

इसका कारण मात्र अशुद्धि ही नहीं, यह भी है कि उन दिनों उन पर कठोर श्रम का दबाव न पड़े। अधिक विश्राम मिल सके। नस-नाड़ियों में कोमलता बढ़ जाने से उन दिनों अधिक कड़ी मेहनत न करने की व्यवस्था स्वास्थ्य के नियमों को ध्यान में रखते हुए बनी है। नाक की घ्राण शक्तिं कमज़ोर होती है और पूरा शरीर उस वक्त कमज़ोरी झेलता है। पहले आटा चक्की नहीं थी अतः रसोई में भोजन का अर्थ होता था चक्की पीसना और धान कूटना, तब चूल्हे में लकड़ी काटकर भोजन पकाना। अत्यधिक श्रम साध्य होता था भोजन पकाना, अतः विश्राम हेतु भोजन पकाना मना था।

आध्यात्मिक शक्ति को धारण करने के लिए नसों और उपत्यिकाओं का एक्टिव होना अनिवार्य है। कमर सीधी रखना उपासना के दौरान अनिवार्य है। प्राण शक्ति/ ऊर्जा को धारण करने हेतु रजोदर्शन/अशौच के समय शरीर सक्षम नहीं होता। उपासना गृह प्राणऊर्जा को संग्रहित रखता है और सूक्ष्म प्राण ऊर्जा संग्रहित रखता है। अतः दुर्घटना से बचाव हेतु उपासना गृह में जाना और उपासना करना वर्जित है।

स्त्री को यदि मात्र इस कारण अशुद्ध माना जाय कि उनका मेंटिनेंस पीरियड आता है, तो उस मेंटिनेंस के रक्तमांस से बने बच्चे - पुरुष भला किस तरह पवित्र हो सकते हैं? अतः स्त्री प्रकृति की तरह नई सृष्टि को जन्मदेने की क्षमता धारण करने हेतु चन्द्र कलाओं, सूर्य की कलाओं और प्रकृति की कलाओं से 5 दिन तक जुड़कर स्वयं के मेंटेनेंस दौर से गुजरती है। इस दौरान किसी भी कारण से कोई व्यवधान किसी को उतपन्न नहीं करना चाहिए। स्त्री को पर्याप्त विश्राम देना चाहिए।

इन प्रचलनों को जहां माना जाता है वहां कारण को समझते हुए भी प्रतिबन्ध किस सीमा तक रहें इस पर विचार करना चाहिये। रुग्ण व्यक्ति प्रायः स्नान आदि के सामान्य नियमों का निर्वाह नहीं कर पाते और ज्वर, दस्त, खांसी आदि के कारण उनकी शारीरिक स्थिति में अपेक्षाकृत अधिक मलीनता रहती है। रोगी परिचर्या के नियमों से अवगत व्यक्ति जानते हैं कि रोगी की सेवा करने वालों या सम्पर्क में आने वालों को सतर्कता, स्वेच्छा के नियमों का अधिक ध्यान रखना पड़ता है। रोगी को भी दौड़-धूप से बचने और विश्राम करने की सुविधा दी जाती है। उसे कोई चाहे तो छूतछात भी कह सकते हैं। ऐसी ही स्थिति रजोदर्शन के दिनों में समझी जानी चाहिए और उसकी सावधानी बरतनी चाहिए।

तिल को ताड़ बनाने की आवश्यकता नहीं है। कारण और निवारण का बुद्धिसंगत ताल-मेल विवेकपूर्वक बिठाने में ही औचित्य है। शरीर के कतिपय अंग द्रवमल विसर्जन करते रहते हैं। पसीना, मूत्र, नाक, आंख आदि के छिद्रों से निकलने वाले द्रव भी प्रायः उसी स्तर के हैं जैसा कि ऋतुस्राव। चोट लगने पर भी रक्त निकलता रहता है। फोड़े फूटने आदि से भी प्रायः वैसी ही स्थिति होती है। इन अवसरों पर स्वच्छता के आवश्यक नियमों का ध्यान रखा जाना चाहिए। बात का बतंगड़ बना देना अनावश्यक है। प्रथा-प्रचलनों में कई आवश्यक हैं कई अनावश्यक। कइयों को कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए और कइयों की उपेक्षा की जानी चाहिए। सूतक और अशुद्धि के प्रश्न को उसी दृष्टि से देखा जाना चाहिए जिससे कि प्रचलन कर्ताओं ने उसे आरम्भ किया था। उनका उद्देश्य उपासना जैसे आध्यात्मिक नित्यकर्म से किसी को विरत, वंचित करना नहीं वरन् यह था कि अशुद्धता सीमित रहे और स्त्री को उचित शारीरिक-मानसिक विश्राम मिले। आज भी जहां अशौच का वातावरण है वहीं सूतक माना जाय और शरीर से किये जाने वाले कृत्यों पर ही कोई रोकथाम की जाय। मन से उपासना करने पर तो कोई स्थिति बाधक नहीं हो सकती। इसलिए नित्य की उपासना मानसिक रूप से जारी रखी जा सकती है। पूजा-उपकरणों का स्पर्श न करना हो तो न भी करे।
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*नवरात्रि के अनुष्ठान में यदि प्रारम्भ में ही मासिक आशौच है तो अनुष्ठान का संकल्प मानसिक ले लें व मानसिक स्तर पर शान्तिकुंज में रखे शक्ति कलश का ध्यान करके मौन मानसिक जप प्रारम्भ कर दें। यदि नवरात्रि के अंत में मासिक आशौच है तो उतने दिन का ब्रेक समझें, मानसिक एक पूर्णाहुति शान्तिकुंज यज्ञ स्थल पर कर लें। स्वच्छता के बाद किसी भी दिन घर पर यज्ञ द्वारा पूर्णाहुति कर लें। व्रत नवरात्रि के 9 ही दिन करना है चाहे मासिक आशौच हो या नहीं। बचा हुआ जप पूर्णाहुति के बाद अवश्य कर लें।*

*मासिक अशौच(5 दिन ब्रेक) के दिनों में अनुष्ठान चल रहा हो तो उसे उतने दिन के लिए बीच में बन्द करके ब्रेक ले लें, 5 दिन की निवृत्ति के बाद, जिस गणना से छोड़ा था, वहीं से फिर आरम्भ किया जा सकता है। कलश भी नवरात्रि के बीच स्थापित किया जा सकता है, और निवृत्ति के बाद नवरात्रि के बाद भी उठाया जा सकता है।  बिना माला का मानसिक जप-ध्यान किसी भी स्थिति में करते रहा जा सकता है।*

*माता भगवती ने ही सृष्टि की रचना की है, स्त्री के कॉम्प्लेक्स प्रजनन सिस्टम का सॉफ्टवेयर उन्होंने ही स्थापित किया है, जिससे सृजन चलता रहे। अतः उन्हें आपकी मनःस्थिति व परिस्थितियों का भान है। आप से तो माता चेतन स्तर पर स्वयं जुड़ी हैं, शरीर पर आशौच लागू होता है, मन व आत्मस्तर पर नहीं।*

अतः मन्त्र जप, यज्ञ और मन्त्रलेखन भी न करें, केवल मौन मानसिक जप करें। कोई दूसरी माला लेकर भी जप न करें। ज्यादा से ज्यादा चन्द्रमा का ध्यान करें या हिमालय का ध्यान करें और शरीर को पर्याप्त आराम दें।

मोनोपोज़ के दौरान मेंटेनेंस अनियमित होता है, स्त्री से सन्तान उत्पादन सृजन/सृष्टि शक्ति प्रकृति वापस लेती है। अतः मानसिक और शारीरिक कमजोरी से स्त्री गुजरती है। चिड़चिड़ापन आम होता है। अतः पूरे परिवार को स्त्री का ध्यान रखना चाहिए, ख़ासकर पति को स्त्री के इस बिगड़ते स्वभाब को आत्मीयता और प्यार से सम्हालना चाहिए। उपासना का 5 दिन वाला ब्रेक लेते रहना चाहिए। मौन मानसिक जप और ज्यादा से ध्यान करना चाहिए।

Reference Book - गायत्री विषयक शंका समाधान, आर्टिकल - अशौच प्रतिबन्ध

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday 27 September 2019

प्रश्न - *घर के बच्चों को या गर्भस्थ शिशु को नवरात्रि का आध्यात्मिक, वैज्ञानिक व चिकित्सीय महत्त्व कैसे और क्या बताएं और उन्हें सरल विधि से 9 दिनों में क्या साधना करवाएं?*

प्रश्न - *घर के बच्चों को या गर्भस्थ शिशु को नवरात्रि का आध्यात्मिक, वैज्ञानिक व चिकित्सीय महत्त्व कैसे और क्या बताएं और उन्हें सरल विधि से 9 दिनों में क्या साधना करवाएं?*

उत्तर - प्रिय बच्चों, क्या आप *प्रकृति के सन्तुलन व आपदा निवारण हेतु सामूहिक नवरात्रि साधना 29 सितम्बर से 7 अक्टूबर में अपना योगदान देना चाहते हो?*

*पहले आओ समझते हैं कि नवरात्रि में 9 दिन हम क्यों व्रत तप रखते हैं?*

*आध्यात्मिक कारण* - नवरात्रियों में कुछ ऐसा वातावरण रहता है जिसमें आत्मिक प्रगति के लिए प्रेरणा और अनुकूलता की सहज शुभेच्छा बनते देखी जाती है।  *सूर्य के उदय और अस्त होते समय आकाश में लालिमा छाई रहती है और उस अवधि के समाप्त होते ही वह दृश्य भी तिरोहित होते दीखता है। इसे काल प्रवाह का उत्पादन कह सकते हैं। ज्वार भाटे हर रोज नहीं अमावस्या पूर्णमासी को ही आते हैं।*

उमंगों के सम्बन्ध में भी ऐसी ही बात है कि वे मनुष्य की स्व उपार्जित ही नहीं होतीं वरन् कभी- कभी उनके पीछे किसी अविज्ञात उभार का ऐसा दौर काम करता पाया गया है कि चिन्तन ही नहीं कर्म भी किसी ऐसी दशा में बहने लगता है जिसकी इससे पूर्व वैसी आशा या तैयारी जैसी कोई बात नहीं थी। *ऐसे अप्रत्याशित अवसर तो यदा- कदा ही आते हैं पर नवरात्रि के दिनों अनायास ही अन्तराल में ऐसी हलचलें उठती हैं जिनका अनुसरण करने पर आत्मिक प्रगति की व्यवस्था बनने में ही नहीं सफलता मिलने में भी ऐसा कुछ बन पड़ता है मानो अदृश्य से अप्रत्याशित अनुदान बरसा हो।  ऐसे ही अनेक तथ्यों को ध्यान में रखते हुए तत्वदर्शी ऋषियों, मनीषियों ने नवरात्रि में साधना का अधिक माहात्म्य बताया
है इस बात पर जोर दिया है कि अन्य अवसरों पर न बन पड़े सही पर *नवरात्रि में आध्यात्मिक तप साधना का सुयोग बिठाने का प्रयत्न तो करना ही चाहिए।*

*आयुर्वेद क्या कहता है?* - ऋतु परिवर्तन रोगों को निमंत्रण देता है। इस वक्त शरीर को तन व मन की इम्युनिटी बढाने के लिए जप-तप-यज्ञ करके आध्यात्मिक उपचार करने की आवश्यकता है। फलों के उपवास से त्रिदोष वात-कफ-पित्त नियंत्रित होते हैं साथ ही संचित मल की सफाई होती है। बॉडी डिटॉक्स होती है। शरीर बीमारियों से लड़ने के तैयार होता है।

*यग्योपैथी* - नवरात्र में सामूहिक अधिक से अधिक औषधीय यज्ञ पूर्णाहुति हेतु होते हैं। जो लोगो का सामूहिक इलाज करते हैं। पर्यावरण संतुलन, प्रकृति संवर्धन, प्रदूषण नियंत्रण व रोगाणुओं के शमन में सहायक होते हैं।

*मन्त्र द्वारा मानसिक व आध्यात्मिक उपचार* - समस्त रोगों की जड़ पेट व मन होता है। पेट की सफाई व्रत से व मन की सफाई जप से की जाती है।

हम सब के शरीर लगभग 50 ट्रिलियन कोशो से बने हैं।प्रत्येक शरीर का नन्हा अति सूक्ष्म सेल 1.4 वोल्ट की ऊर्जा रखता है। टोटल 700 ट्रिलियन वोल्ट ऊर्जा हम सबके पास है। ब्रेन हमारा इस ऊर्जा को नियंत्रित करने वाली सरकार है। हमारे विचार कर्मचारी है जो इस ऊर्जा को जैसे विचार हैं उस दिशा में प्रवाहित करते हैं।

ऋषि आध्यात्मिक वैज्ञानिक रिसर्चर हममें विद्यमान इस ऊर्जा को जागृत करके सही दिशा में नियोजन का एक प्रोजेक्ट बनाया जिसे अनुष्ठान कहते हैं।

जैसे माता की फोटो देख के हमें उनसे जुड़ी याद आती है, जैसे रेस्टोरेंट में भोजन की तस्वीर देखकर भूख लगने लगती है, उसे पचाने के रस वन लार अंतःस्रावी ग्रन्थियां निकालने लगती है। इसी तरह जब दुर्गा ने नवरुपों का दर्शन हम करते हैं तो हमें आत्मस्वरूप का भान होता है, हमारी आत्म चेतना शक्ति जागृत करने की भूख को उद्वेलित करता है। दिमाग़ में शक्ति के विचार तदनुसार प्रत्येक सेल की ऊर्जा लगभग 700 ट्रिलियन ऊर्जा को शक्ति संचार के लिए उपयोग करने लगते हैं। प्रत्येक शरीर प्राणवान महसूस होता है।

24000 गायत्री मन्त्र का दोहराव(रिपीटीशन) एक एक दिव्य ग्रन्थियों को जागृत करता है। 72 हज़ार सूक्ष्म नाड़ियां झंकृत होती हैं। 114 नाड़ियों के जोड़ में से 2 बाहर हैं और 112  के ज्वाइंट जो शरीर के भीतर हैं जिसे ऊर्जा चक्र कहते हैं को उद्वेलित करती हैं।

मन्त्र द्वारा दिमाग़ समस्त शरीर को आदेश देता है:-

उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंत:करण में धारण करें,

और जिसप्रकार यज्ञ अग्नि में मिलकर समिधा अग्निवत हो जाती है, वैसे ही हम भी उस सर्वशक्तिमान परमात्मा को धारण कर उसके जैसे ही उससे जुड़कर हम भी प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप इंसान बन जाएं।

👉🏻 नवदुर्गा के नवरुपों में छिपे शक्ति श्रोत व योगसाधना के विभिन्न सौपान है इन्हें समझो व जुड़ जाओ:-

*नौ देवियां और उनके दिन*
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*प्रथम - माँ शैलपुत्री* - इसका अर्थ- पहाड़ों की पुत्री होता है।

*मन्त्र* -
या देवी सर्वभूतेषु *माँ शैलपुत्री* रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

*ध्यान* -  इस दिन साधक का मन 'मूलाधार' चक्र में प्रविष्ट होता है। ध्यान के माध्यम से मूलाधार के सेल्स को ऊर्जावान कर एक्टिवेट करता है।
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*द्वितीय -मां ब्रह्मचारिणी* - इसका अर्थ- ब्रह्म का आचरण व तप में लीन।

*मन्त्र* -
या देवी सर्वभूतेषु *माँ ब्रह्मचारिणी* रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

*ध्यान* -  इस दिन साधक का मन 'स्वाधिष्ठान' चक्र में प्रविष्ट होता है। ध्यान के माध्यम से स्वाधिष्ठान चक्र के सेल्स को ऊर्जावान कर एक्टिवेट करता है।
👇🏻
*तृतीय - माँ चंद्रघंटा* - इसका अर्थ- चाँद की तरह शीतलता व अमृत देने वाली।

*मन्त्र* -
या देवी सर्वभूतेषु *माँ चन्द्रघण्टा* रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

*ध्यान* -  इस दिन साधक का मन 'मणिपुर' चक्र में प्रविष्ट होता है। ध्यान के माध्यम से मणिपुर चक्र के सेल्स को ऊर्जावान कर एक्टिवेट करता है।
👇🏻
*चतुर्थ - कूष्माण्डा* - इसका अर्थ- पूरा जगत उनके पैर में है।

*मन्त्र* -
या देवी सर्वभूतेषु *माँ कुष्मांडा* रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

*ध्यान* -  इस दिन साधक का मन 'अनाहत' चक्र में प्रविष्ट होता है। ध्यान के माध्यम से अनाहत चक्र के सेल्स को ऊर्जावान कर एक्टिवेट करता है।
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*पंचमी - माँ स्कंदमाता* - इसका अर्थ- कार्तिक स्वामी की माता।

*मन्त्र* -
या देवी सर्वभूतेषु *माँ स्कन्दमाता* रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

*ध्यान* -  इस दिन साधक का मन 'विशुद्ध' चक्र में प्रविष्ट होता है। ध्यान के माध्यम से विशुद्ध चक्र के सेल्स को ऊर्जावान कर एक्टिवेट करता है।
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*षष्ठी - मां कात्यायनी* - इसका अर्थ- कात्यायन आश्रम में जन्मि।

*मन्त्र* -
या देवी सर्वभूतेषु *माँ कात्यायनी* रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

*ध्यान* -  इस दिन साधक का मन 'आज्ञाचक्र' चक्र में प्रविष्ट होता है। ध्यान के माध्यम से आज्ञाचक्र के सेल्स को ऊर्जावान कर एक्टिवेट करता है।

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*सप्तमी - माँ कालरात्रि* - इसका अर्थ- काल का नाश करने वाली।

*मन्त्र* -
या देवी सर्वभूतेषु *माँ कालरात्रि* रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

*ध्यान* -  इस दिन साधक का मन 'सहस्रार' दल में प्रविष्ट होता है। ध्यान के माध्यम से सहस्रार दल के सेल्स को ऊर्जावान कर एक्टिवेट करता है।
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*अष्टमी - माँ महागौरी* - इसका अर्थ- सफेद रंग वाली मां।(रविवार 6 अक्टूबर )

*मन्त्र* -
या देवी सर्वभूतेषु *माँ महागौरी* रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

*ध्यान* -  इस दिन साधक का मन स्थूल शरीर से बाहर आकर सूक्ष्म शरीर में प्रविष्ट होता है। ध्यान के माध्यम से सूक्ष्म शरीर को ऊर्जावान कर एक्टिवेट करता है।
👇🏻
*नवमी - माँ सिद्धिदात्री* - इसका अर्थ- सर्व सिद्धि देने वाली(सोमवार 7 अक्टूबर)

*मन्त्र* -
या देवी सर्वभूतेषु *माँ सिद्धिदात्री* रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

*ध्यान* -  इस दिन साधक का मन निज 'कारण शरीर' में प्रविष्ट होता है। ध्यान के माध्यम से कारण शरीर को ऊर्जावान कर एक्टिवेट करता है।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
बेटे, पदार्थ उसे कहते हैं जिसका भार होता है जो स्थान घेरता है। 99% विज्ञान इसी पदार्थ में उलझा है। लेकिन चेतन जो भारहीन है और स्थान नहीं घेरता लेकिन पदार्थ को जो गति देता है। उसे विज्ञान जगत अभी तक नहीं समझ सका। क्यों जीवित आदमी पानी मे डूब जाता है? क्यों मृत होते ही उसी वजन की लाश तैरने लगती है। वह प्राण ही क्या वजनी था, जिसे विज्ञान अभी तक तौल न सका?  इस चेतन जगत की समझ व पढ़ाई करनी है तो अध्यात्म में ही प्रवेश करना होगा।😇😇

प्रत्येक बच्चा 9 दिन तक एक माला गायत्री मंत्र की और जो पढ़ सकता है वो नित्य एक पेज मन्त्रलेखन करेगा। एक गायत्री चालीसा पढ़ेगा।

इस पोस्ट के दिए चित्र अनुसार सम्बंधित चक्र के स्थान को सोचेगा। मन स्थिर करेगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन


प्रश्न - *दीदी, नये परिजन जो मिशन से अभी अभी जुड़े है जॉब करते है जिस कारण वो 24000 मंत्र(27 माला रोज) का लघु अनुष्ठान नही कर पा रहे है उन्हें नवरात्रि में अनुष्ठान की कोई सरल (छोटी) विधि बता दीजिए।*

प्रश्न - *दीदी, नये परिजन जो मिशन से अभी अभी जुड़े है जॉब करते है जिस कारण वो 24000 मंत्र(27 माला रोज) का लघु अनुष्ठान नही कर पा रहे है उन्हें नवरात्रि में अनुष्ठान की कोई सरल (छोटी) विधि बता दीजिए।*

उत्तर - आत्मीय बहन, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती। अतः हॉस्टल की परेशानियों से मत डरो, और हिम्मत करके निम्नलिखित विधि जप तप अनुष्ठान करो। यह नौ दिन की साधना अवश्य करो।

*नवरात्र व्रत के सरल नियम* - दो समय फलाहार, या एक समय फलाहार व एक समय भोजन, या दो समय भूख से आधा भोजन दो रोटी व दाल या एक सब्जी। सेन्धा नमक, हल्दी व बिना मसाले की। पेट को ज्यादा से ज्यादा आराम दें, कोई तला-भुना न खाए।

*जप माला संख्या जो आराम से भावना पूर्वक सधे* - 3 माला या 5 माला या 11 माला या 15 माला या 27 माला या 30 माला नित्य कर लो।

*बिना माला के घड़ी सामने रखकर बिना माला के भी* 15 मिनट या 20 मिनट या 30 मिनट या 40 मिनट या 60 मिनट जो भी भावना पूर्वक सधे जप लो।

*नवरात्र में तीन संध्या अर्थात सुबह, दोपहर, शाम कम से कम तीन बार अवश्य करें। अगर यह जॉब व्यवसाय के साथ सम्भव न हो तो दोपहर को जहाँ है वहीं कुछ क्षण आंख बंद करके गायत्रीमंत्र जपते हुए ध्यान दोपहर को अवश्य करें। प्रतीक रूप में ही सही दोपहर को पूजन अवश्य करें।

*सुबह बिस्तर से उठते ही बोलें, कि हम माता गायत्री के तेजस्वी, ओजस्वी, वर्चस्वी सन्तान है। हमारा पोषण माता गायत्री कर रही है, माता को धन्यवाद दें। हर रोज सुबह नया जन्म माने।*

*शाम को माता गायत्री को मन ही मन धन्यवाद दें, उन्हें जप तप कार्य की मन ही मन रिपोर्ट दें। भावना में माता की गोद मे सर रख के सोएं। हर रात को नई मौत समझें।*

*ध्यान* - उगते हुए सूर्य का ध्यान कीजिये। भावना कीजिये कि सूर्य एक यज्ञ स्वरूप है, और आप एक आहुति। सूर्य में मिलकर आप सूर्य बन गए। सूर्य के समान ओजस्वी, तेजस्वी व वर्चस्वी बन रहे हैं।

या

भावना कीजिये कि आप नन्हे बालक हैं और माता भगवती के गोद मे बैठे माता का प्यार प्राप्त कर रहे हैं या माता के गर्भ में है। माता से पोषण गर्भनाल से प्राप्त कर रहे हैं या पयपान कर रहे हैं। ओजस्वी तेजस्वी व वर्चस्वी बन रहे हैं।

9 दिन कड़ाई से स्वयं को नियम से बांधिए। व्रत के साथ यदि जप निरन्तर होता रहा तो आपको स्वयं में ऊर्जा महसूस होगी।

एक जुट हो जाइए, *प्रकृति के सन्तुलन व आपदा निवारण हेतु सामूहिक नवरात्रि साधना 29 सितम्बर से 7 अक्टूबर में अपनी भागीदारी अवश्य सुनिश्चित कीजिये*

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🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न- *दी, नवरात्र व्रत अनुष्ठान गर्भवती महिलाएं व जिनके बच्चे अभी दूध पी रहे हैं, जिन्हें टाइम नहीं मिल पाता। वो आसानी सरल व्रत विधि व कम से कम कितनी माला के साथ करें?*

प्रश्न- *दी, नवरात्र व्रत अनुष्ठान गर्भवती महिलाएं व जिनके बच्चे अभी दूध पी रहे हैं, जिन्हें टाइम नहीं मिल पाता। वो आसानी सरल व्रत विधि व कम से कम कितनी माला के साथ करें?*

उत्तर- आत्मीय बहन,

भक्ति व अनुष्ठान भाव पूर्वक किये जाते हैं, तुम स्वयं को माता भगवती की सन्तान मानो, व जो आसानी से सधे उसे करो।

बच्चा छोटा है दुग्ध पर आधारित है, या गर्भवती हो, तो आप चाहो तो व्रत मत करो और चाहो तो व्रत एक वक्त करके और एक वक्त पूर्ण भोजन ले लो। व्रत में नित्य एक वक्त साबूदाना की खिचड़ी सेंधा नमक के साथ व फलों के रस पर्याप्त मात्रा में लेने पर बिल्कुल कमज़ोरी नहीं लगती, शाम को भोजन कर लोगी  तो पेट का अनिवार्य कोटा पूरा हो जाएगा।
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*जप संख्या जो आराम से भावना पूर्वक सधे* - 3 माला या 5 माला या 11 माला या 15 माला या 27 माला या 30 माला नित्य कर लो।
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*बच्चे को गोद में लेकर*, गर्भ पर हाथ रख के या बच्चा छोटा हो तो उसे दूध पिलाते हुए या बच्चे को गोद में सुलाते हुए - घड़ी सामने रखकर बिना माला के भी 15 मिनट या 20 मिनट या 30 मिनट या 40 मिनट या 60 मिनट जो भी भावना पूर्वक सधे जप लो।
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केवल गायत्री मंत्रलेखन निश्चित संख्या में करके भी अनुष्ठान सम्भव है।
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पूजन के पास जप के दौरान घी का दीपक जलता रहना चाहिए, एक जल का कलश नारियल के साथ रखा हुआ होना चाहिए। नारियल की जटा ऊपर की ओर होनी चाहिए। जप में उगते हुए सूर्य का ध्यान करें।

*गायत्री मंत्र* - ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

*भावार्थ:*- उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

*महामृत्युंजय मंत्र* - ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

स्वयं को बालक और माता आदिशक्ति को माता मानो, नवरात्रि अनुष्ठान पूर्ण श्रद्धा व निष्ठा से करो।

सुबह नवरात्र से पहले कई दिन उगता हुआ सूर्य ध्यान से देख लें, तभी नवरात्र में सूर्य ध्यान में आएगा। आप नारंगी कलर की कलर पेंसिल से कुछ दिन नवरात्र से पूर्व सूर्य भगवान को पेपर में बनाइये। इससे भी सूर्य का ध्यान करना आसान हो जाता है।

व्रत नहीं रख पा रहे तो भी विना व्रत के भी जप संख्या निश्चित कर गायत्री जप अनुष्ठान कर लें। नित्य गुरु आह्वाहन व शान्तिपाठ अवश्य करें।

नित्य सूर्य को तांबे के लोटे से जल चढ़ाएं जिसे अर्घ्य कहते हैं, बचे हुए जल को स्वयं के व बेटी के मष्तिष्क में लगाएं।

सूर्य अर्घ्य मन्त्र -

*‘ॐ सूर्य देव सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते। अनुकंपये माम भक्त्या गृहणार्घ्यं दिवाकर:।।*

*साबूदाने की खिचड़ी मुख्यत: व्रत उपवास में बनाकर खाई जाती है*
इसको उपवास के लिये बना रहे हैं तो  सैंधा नमक का प्रयोग करें. साबूदाना दो तरह के होते हैं एक बड़े और एक सामान्य आकार के. यदि आप बड़े साबूदाना प्रयोग कर रहे हैं तो इसे 1 घंटा भिगोने के बजाय लगभग 8 घंटे भिगोये रखें. बाहर एशियाई स्टोर्स में यह साबूदाना Tapioca के नाम से उपलब्ध हो जाता है।
छोटे आकार के साबूदाने आपस में हल्के से चिपके चिपके रहते हैं लेकिन बड़े साबूदाने की खिचड़ी एकदम अलग बिखरी होती है। मुझे छोटे साबूदाने की अपेक्षा बड़े साबूदाने की खिचड़ी अधिक अच्छी लगती है लेकिन बड़े साबूदाने आस पास की किराना दुकानों में नहीं मिलते.

*आवश्यक सामग्री*

साबूदाना - 100 ग्राम
तेल या घी - 1.5 टेबल स्पून
जीरा - आधा छोटी चम्मच
हरी मिर्च - 2-3 (बारीक कतरी हुई)
मूंगफली के दाने - आधा छोटी कटोरी)
पनीर - 50 ग्राम (यदि आप चाहें)
आलू - 1 मीडियम आकार का
काली मिर्च - एक चौथाई छोटी चम्मच
नमक - स्वादानुसार
कसा हुआ नारियल - 1 टेबल स्पून (यदि आप चाहें)
हरा धनियां - 1 टेबल स्पून (बारीक कतरा हुआ)

*बनाने की विधि*

साबूदाने को धो कर, 1 घंटे के लिये पानी में भीगने दीजिये. भीगने के बाद अतिरिक्त पानी निकाल दीजिये. यदि आप बड़े साबूदाना प्रयोग कर रहे हैं तो इसे 1 घंटा भिगोने के बजाय लगभग 8 घंटे भिगोये रखें.
आलू को छील कर धोइये और छोटे छोटे क्यूब्स में काट लीजिये. पनीर को भी छोटे छोटे क्यूब्स में काट लीजिये.
भारी तले की कढ़ाई में घी डाल कर गरम कीजिये. आलू के क्यूब्स गरम घी में डाल कर हल्के ब्राउन होने तक तल कर निकाल कर प्लेट में रख लीजिये. आलू के क्यूब्स तलने के बाद पनीर के क्यूब्स डाल कर हल्के ब्राउन तल कर उसी प्लेट में निकाल कर रखिये.
मूंगफली के दाने को मोटा चूरा कर लीजिये इसे दरेरा करें एकदम बारीक चूरा न करें
बचे हुये गरम घी में जीरा डाल दीजिये. जीरा भुनने के बाद, हरी मिर्च डाल दीजिये और चमचे से मसाले को चलाइये, इस मसाले मे मुंगफली का चूरा डाल कर एक मिनिट तक भूनिये. अब साबूदाना, नमक और काली मिर्च डाल कर अच्छी तरह 2 मिनिट चमचे से चला कर भूनिये. 2 टेबल स्पून पानी डाल कर धीमी गैस पर 7-8 मिनिट तक पकाइये,
ढक्कन खोलिये और देखिये कि साबूदाने नरम हो गये है। यदि नहीं हुये हैं और आपको मह्सूस हो कि अभी साबूदाने पकने के लिये और पानी चाहिये, तब 1 या 2 टेबल स्पून पानी डाल कर 4-5 मिनिट धीमी गैस पर और पकने दीजिये. आलू और पनीर के क्यूब्स मिला दीजिये. और चलाकर कढ़ाई को गैस से उतार लीजिये साबूदाना की खिचड़ी को बाउल या प्लेट में निकालिये. हरा धनियां नारियल ऊपर से डाल कर सजाइये. और खाइए। ये जच्चा व बच्चा दोनो के लिए उत्तम व स्वास्थ्यकर खिचड़ी है।

यह खिचड़ी वृद्ध भी व्रत के दौरान खा सकते हैं, और व्रत कर सकते हैं।

गर्भवती बहने भी उपरोक्त विधि से व्रत कर सकती हैं।

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *दी, हॉस्टल में रहने वाले हम लोग "नवरात्रि व्रत अनुष्ठान (अश्वनी शुक्लपक्ष 29 सितम्बर से अश्वनी शुक्ल नवमी 7 अक्टुबर)" कैसे करें? यहां मेस में सबकुछ बनता है, सफाई औऱ शुद्धता कैसे होगी? कमरों में बेड शेयरिंग में है, लेक़िन नीचे बैठ के पूजन की व्यवस्था नहीं है। यहां माला व दीपक की भी व्यवस्था नहीं है। कृपया मार्गदर्शन करें।*

प्रश्न - *दी, हॉस्टल में रहने वाले हम लोग "नवरात्रि व्रत अनुष्ठान (अश्वनी शुक्लपक्ष 29 सितम्बर से अश्वनी शुक्ल नवमी 7 अक्टुबर)" कैसे करें? यहां मेस में सबकुछ बनता है, सफाई औऱ शुद्धता कैसे होगी? कमरों में बेड शेयरिंग में है, लेक़िन नीचे बैठ के पूजन की व्यवस्था नहीं है। यहां माला व दीपक की भी व्यवस्था नहीं है। कृपया मार्गदर्शन करें।*

उत्तर - बेटा, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती। अतः हॉस्टल की परेशानियों से मत डरो, और हिम्मत करके निम्नलिखित विधि जप तप अनुष्ठान करो। यह नौ दिन की साधना अवश्य करो।

*तुम मानसिक रूप से नवरात्रि व्रत के अनुष्ठान का सङ्कल्प लो। परमपूज्य गुरूदेव का उगते सूर्य में ध्यान कीजिए, तीन बार गायत्री मंत्र बोलकर गुरु का आह्वाहन कीजिये*। उनका उगते सूर्य में ध्यान करते हुए मन ही मन प्रार्थना व  सङ्कल्प लो कि भगवान आप मेरी वर्तमान कठिनाई जानते हैं। मैं श्रद्धा विश्वास के साथ *नवरात्रि अनुष्ठान का संकल्प* कर रहा/रही हूँ। मुझे शक्ति दीजिये कि इसे सफलता पूर्वक *अश्वनी शुक्लपक्ष 29 सितम्बर से अश्वनी शुक्ल नवमी 7 अक्टुबर* तक कर सकूं। मेरी सहायता कीजिये, मेरा मार्गदर्शन कीजिये।

व्रत रह सको तो एक वक्त फलाहार कर लो और एक वक्त भोजन कर लो, रोटी या चावल में से यदि चयन की सुविधा है तो नौ दिन के लिए निर्धारित तीन रोटी केवल दाल के साथ खाने का सङ्कल्प लो। दाल कोई भी बनी हो खा लेना। भोजन से पूर्व तीन बार गायत्री मंत्र जप लेना। यदि एक समय भी व्रत रहने में असुविधा हो तो सुबह शाम दो बार भोजन कर लेना और सुबह नाश्ते में केवल दूध एवं फल खाना।

कोई स्वेटर या शाल या कम्बल धो कर सुखा लो, 29 सितम्बर से नहाधोकर जप करते वक़्त बिस्तर पर वही बिछा कर उसपर बैठकर उगते हुए सूर्य का ध्यान करते हुए जप करना। एक साफ ग्लास माँज धोकर उसमें जल लेकर पवित्रीकरण इत्यादि षट कर्म कर लेना। गायत्री जप के बाद उस ऊनि या कम्बल आसन उठाकर रख देना। माला नहीं है तो कोई बात नहीं, मोबाइल में एक घण्टे पर अलार्म लगाकर जप में बैठ जाओ। अलार्म बजे तो जप पूर्ण औऱ दोनों हाथ रगड़कर चेहरे पर लगा लो।  एक घण्टे अर्थात 10 माला होती है। बाकी चलते फिरते उठते बैठते मन ही मन जब भी वक्त मिले गायत्री मंत्र जपते रहो। सूर्य को जल चढ़ाने की सुविधा हो तो नित्य जल चढ़ा दो, यदि सूर्य नहीं दिखते तो सूर्य का ध्यान करते हुए तुलसी या अन्य किसी वृक्ष की जड़ में जल चढ़ा दो।

एक घण्टे गायत्री मंन्त्र जप को एक बार मे भी कर सकते हो, या आधे आधे घण्टे में दो बार भी कर सकते हो। टोटल 9 दिन में तुम्हे कम से कम 9 घण्टे जप करने हैं। किसी दिन न कर पाओ तो उसकी पूर्ति अगले दिन कर लो। दिन में 24 महामृत्युंजय मंत्र भी जप लेना।

स्कूली पुस्तक और अच्छी पुस्तकों का नित्य स्वाध्याय करो। नौ दिन तक कोई वीडियो गेम, फ़िल्म, सीरियल नही देखना है। अनावश्यक इंटरनेट सर्फ़िंग नहीं करनी है। गन्दे, वासनात्मक और कुत्सा भड़काने वाले पब, बार, रेस्तरां में कोई पार्टी वगैरह नहीं करनी है। किसी के जन्मदिन की पार्टी में यदि मजबूरी में जाना पड़े तो सलाद खा कर, पानी और जुस पी कर आ जाना।

ज्यादा से ज़्यादा आतिजाती श्वांस पर ध्यान देते हुए ध्यान करना। सुबह भगवान को धन्यवाद दे कर उठना और रात को धन्यवाद बोलकर उनका ध्यान करते हुए सोना। 9 दिन स्वयं को माता भगवती के गर्भ में महसूस करना।

7 अक्टूबर के बाद नज़दीकी किसी मंदिर में यज्ञ करके नारियल चढ़ा देना। यदि मन्दिर जाना संभव न हो, तो एक खाली कटोरी में दूसरी कटोरी से चम्मच से जल डालते हुए गायत्री मंत्र की 24 एवं महामृत्युंजय मंत्र की 5 आहुति दे देना। जल फिंर किसी वृक्ष की जड़ में डाल देना। यह जल से जल में यज्ञ नित्य भी कर सकते हो।

*गायत्री मंत्र* - ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

*भावार्थ:*- उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

*महामृत्युंजय मंत्र* - ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

स्वयं को बालक और माता आदिशक्ति को माता मानो, नवरात्रि अनुष्ठान पूर्ण श्रद्धा व निष्ठा से करो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

मेरे बेटे, अच्छा सोचो मगर बुरे वक्त के लिए तैयार रहना*

*मेरे बेटे, अच्छा सोचो मगर बुरे वक्त के लिए तैयार रहना*

मेरे बेटे,
आज मेरा मन तुम्हें कुछ सीखना चाहता है,
तुम्हारे भीतर के,
सफ़लता - असफ़लता का अंतर्द्वंद्व मिटाना चाहता है।

चाहती हूँ,
तुम्हारी दृष्टि,
सफ़लता के लिए केंद्रित हो,
सफलता पाने को,
तुम पूर्णतया एकाग्रचित्त हो,
मग़र यदि असफ़लता का तूफान आये,
तो क्या करना है?
यह तुम्हें पता रहे,
सफलता के साथ साथ,
असफ़लता सम्हालने को,
तुम्हारा मन पूर्णतया तैयार रहे,
सफ़लता कैसे पाना है यह तो जरूर सीखो,
असफ़लता को कैसे सम्हालना है यह भी सीखो।

सूर्य पर भी ग्रहण आता है,
चन्द्र पर भी ग्रहण छाता है,
मग़र न सूर्य डरता है,
न चन्द्र डरता है,
वह ग्रहण का वक़्त भी,
कहाँ देर तक ठहरता है,
पुनः चन्द्र खिलता है,
पुनः सूर्य निकलता है,
पुनः सब ठीक हो जाता है।

जब कभी जीवन में,
यदि असफ़लता का ग्रहण आ जाये,
मुस्कुरा के उसे भी देखना तुम,
उससे निकलने का मार्ग,
सहजता से सोचना तुम,
भगवान से कुछ इस तरह,
हृदय से प्रार्थना करना तुम।

हे प्रभु! मुझे इससे उबरने की शक्ति दो,
अपने चरणों में मुझे दृढ़ भक्ति दो,
जो ठीक हो सके,
उसे ठीक करने की शक्ति दो,
जो ठीक न हो सके,
उसे सहने की शक्ति दो,
पुनः मेरे अस्तित्व में इक नई शक्ति दो,
पुनः नए सफ़र में बढ़ने के लिए,
उत्साह उमंग उल्लास से भरी जिंदगी दो।

सफ़लता-असफ़लता,
दिन व रात की तरह है,
समुद्र में उठते ज्वार भाटे की तरह है,
सफ़लता के मद में कभी न फूलना,
असफ़लता के दर्द में कभी न रोना,
दोनों के प्रति समान दृष्टि रखना।

जिंदगी का हर मैच,
जीतने के लिए खेलना,
केवल अपने प्रयास व रणनीति को सोचना,
परिणाम जो भी हो परवाह मत करना,
हर दिन नई जिंदगी समझना,
और हर रात इक नई मौत समझना,
रोज़ सुबह ज़िन्दगी के मैच जीतने के लिए,
पूरी ईमानदारी से अभ्यास करना।

मेरे बेटे,
योग्य वह नहीं,
जिसने जीवन में कभी,
असफ़लता देखा ही नहीं,
योग्य वह है,
जिसने असफ़लता को,
चुनौती रूप में लिया,
अपने नए सफ़ल लक्ष्य का श्रेय भी,
जीवन में मिली उस असफ़लता को दे दिया।

जॉब-व्यवसाय व धन-सम्मान,
यह सब जीवन के लिए हैं,
इनके लिए जीवन नहीं हैं,
हमारे लिए सदैव,
आपका जीवन मायने रखता है,
आपकी एक मुस्कुराहट मायने रखती है,
आपका  सच्चा प्रयास मायने रखता है,
आपका हमें माँ बुलाना मायने रखता है,
आपका आपके पापा को,
पापा बुलाना मायने रखता है,
हमारा साथ मिलकर,
जीवन जीना मायने रखता है।


🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न- *ध्यान धारणा करते हैं, तो मन भटकता है? ध्यान सिद्ध कैसे हो?*

प्रश्न- *ध्यान धारणा करते हैं, तो मन भटकता है? ध्यान सिद्ध कैसे हो?*

उत्तर- ध्यान की धारणा में मात्र क्रमबद्ध कल्पना करना पर्याप्त नहीं है, प्रयत्न करना होगा कि कल्पना के साथ साथ सदृश्य भावनाएं मन में उठें, व अनुभूत हों।

उदाहरण - यदि माता गायत्री के माता स्वरूप का ध्यान कर रहे हो तो स्वयं को नंन्हे बालक स्वरूप में सोचो, कल्पना करो व अनुभूत करो। भले ही वर्तमान में आपकी उम्र प्रौढ़ ही क्यों न हो, नाती पोते ही क्यों न हो।

स्वयं के वर्तमान अस्तित्व को *मैं* को भूलकर ध्यान धारणा की कल्पित उम्र को ही अनुभूत होगी। फिर बच्चे को जैसे माँ के प्यार के अतिरिक्त कुछ नहीं चाहिए, वैसे ही आपको गायत्री माता की ममता की छांव के अतिरिक्त कुछ न चाहिए होगा। माँ में ही मन खो जाएगा, मन नहीं भटकेगा।

निज प्रौढ़ता को भुलाकर शैशव का शरीर और भावना स्तर पर अनुभूत कर सकना सम्भव हुआ तो ही माता गायत्री भी अनुभूति भी होगी। ध्यान सधेगा व सिद्धि तक पहुंचेगा।

Reference - साधना से सिद्धि-2 , 10.8

🙏🏻श्वेता, DIYA

Thursday 26 September 2019

कविता: मेरे बेटे - बस चलते रहना

*कविता: मेरे बेटे - बस चलते रहना*

मेरे बेटे,
तुम अपने पथ पर अडिग रहना,
अपने पैरों में अनवरत गति रखना,
जब तक मंजिल मिल न जाये,
बस तुम यूं ही पथ पर चलते रहना।

मेरे बेटे! बस अनवरत चलते रहना,
मंज़िल से पहले कभी मत रुकना।

प्रलय के झकोरों से तुम मत डरना,
बाढ़ के हलकोरों से तुम मत डरना,
उत्साह भरे वचनों को मन में दोहराते रहना,
आत्मविश्वास से भरे कदम बढ़ाते रहना।

मेरे बेटे! स्वयं पर विश्वास बनाये रखना,
और ईश्वर पर ध्यान लगाए रखना।

यदि थक कर तू लौट पड़ेगा,
यदि अंधड काल बवंडर से तू डरेगा,
तो जग हसाई का तू पात्र बनेगा,
आत्मा पर तेरी कायरता का बोझ चढ़ेगा,

मेरे बेटे! कायर बनकर कभी मत जीना,
आंधी तूफानों से कभी मत डरना।

यदि तू मिट गया चलते चलते,
मंजिल पथ तय करते करते,
तब तुझमें आत्म संतोष झलकेगा,
दुनियाँ के लिये तू मिशाल बनेगा,

मेरे बेटे! बस अनवरत चलते रहना,
मंज़िल से पहले कभी मत रुकना।

भगवान से,
स्वयं का युद्ध लड़ने की प्रार्थना मत करना,
उनसे धैर्य, साहस, वीरता व गीता का ज्ञान माँगना,
निज जीवन समर में स्वयं अर्जुन बन लड़ना,
बस सदा कृष्ण का केवल साथ माँगना।

मेरे बेटे! बस जीवन समर में डटे रहना,
कभी युद्ध में पीठ मत दिखाना,
जीवन समर छोड़ मत भागना,
बस जीवन समर में डटे रहना।

यदि मंज़िल मिल गयी तो विजयी होगे,
यदि राह में मिट गए तो शहीद होगे,
दोनों ही परिस्थितियों में वीर रहोगे,
दुनियाँ के लिए एक मिशाल बनोगे।

मेरे बेटे! बस अनवरत चलते रहना,
मंज़िल से पहले कभी मत रुकना।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Wednesday 25 September 2019

प्रश्न - *जय गुरूदेव बेटी , शांतिकुंज व घर का मंदिर के अलावा कही भी जप मे मन क्यो नही लगता ? दो चार दिनो के लिए बाहर जाओ तो जप ,ध्यान छूट ही जाता है। ऐसे में क्या करें?

प्रश्न - *जय गुरूदेव बेटी , शांतिकुंज व घर का मंदिर के अलावा कही भी जप मे मन क्यो नही लगता ? दो चार दिनो के लिए बाहर जाओ तो जप ,ध्यान छूट ही जाता है। ऐसे में क्या करें?*

उत्तर- आत्मीय बाबूजी, ब्रह्माण्ड त्रिगुणात्मक है- सत, रज व तम ऊर्जा सर्वत्र है। साथ ही बड़ी सुंदर व्यवस्था यह है कि किसी भी स्थान को किसी विशेष ऊर्जा से जोड़ सकते हैं।

*उदाहरण* - मंदिर में स्वतः भक्ति भाव से मन जुड़ जाता है, मन ध्यानस्थ होने लगता है। इसीतरह पब बार व थियेटर में स्वतः मन विकृति को आकृष्ट करने लग जाता है और पैर थिरकने लगते हैं।

महाभारत युद्ध में भगवान कृष्ण ने उस स्थान कुरुक्षेत्र को चुना जहाँ बड़े भाई ने खेत की मेड़ के झगड़े में छोटे भाई का  गला काटकर बहते पानी को रोका था। क्योंकि युद्ध के लिए द्वेष व वैमनस्य के भाव की आवश्यकता थी।

इसी तरह शान्तिकुंज जिस स्थान पर है उसे ख़रीदने के पीछे युगऋषि परमपूज्य का उद्देश्य यह है कि यह सप्तऋषियों की तप से सिद्ध भूमि है।

पुराने जमाने मे पूजन के लिए मंदिर व क्रोध व्यक्त करने के लिए कोप भवन होते थे। रामायण में आपने पढ़ा होगा कि कैकेयी ने कोपभवन जाकर क्रोध किया था।

दुर्भाग्य यह है कि जमीन इत्यादि कम होने की वजह से बैडरूम व ड्राइंगरूम ही क्रोध अभिव्यक्ति की जगह बन गए हैं। अतः प्रशन्न व्यक्ति भी ऐसे घरों में घुसते ही क्रोध व चिड़चिड़ेपन से भर उठता है।

🙏🏻 शान्तिकुंज व आपका पूजन गृह सत ईश्वरीय ऊर्जा से कनेक्टेड है, अतः मन ध्यानस्थ हो जाता है। अन्यत्र  यह सुविधा नहीं तो मन नहीं लगता।

*उपाय* - कुछ कल्पना की निम्नलिखित धारणा बनाइये। आराम से बैठ के षट कर्म व देववाहन के बाद स्वयं को कल्पना में सोचिये कि सूक्ष्म शरीर से निकलकर बादलों से होते हुए आकाश मार्ग से आप शान्तिकुंज या शिवधाम कैलाश पर्वत पहुंच गए हैं। अब समक्ष साक्षात परमपूज्य गुरुदेव माता भगवती के साथ विराजमान हैं। अब उनका ध्यान धारणा की कल्पना में पूजन कीजिये। उनके समक्ष बैठकर जप करने का भाव कीजिये। इस तरह आप बाह्य स्थान की ऊर्जा के गुरुत्वाकर्षण से ऊपर उठकर अपनी सूक्ष्म चेतना से गुरुचेतना से जुड़ जाएंगे। फ़िर स्थूल शरीर तो बाह्य स्थान में होगा मगर चेतन स्तर पर आप गुरुचेतना के समक्ष होंगे। मन नहीं भटकेगा।

हम बाहर कहीं जाते हैं तो यही उपाय अपनाते हैं।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Tuesday 24 September 2019

प्रश्न- *दी, जिन लोगों ने अपने पूर्वजों का "गया" तीर्थ में पिंडदान कर दिया है, क्या उन्हें पितृपक्ष में "श्राद्ध-तर्पण करना चाहिए या नहीं?*

प्रश्न- *दी, जिन लोगों ने अपने पूर्वजों का "गया" तीर्थ में पिंडदान कर दिया है, क्या उन्हें पितृपक्ष में "श्राद्ध-तर्पण करना चाहिए या नहीं?*

उत्तर - आत्मीय बहन, युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव ने वाङ्मय 16 - *मरणोत्तर जीवन: तथ्य एवं सत्य* में इस पर विस्तृत चर्चा की है। कि श्राद्ध शब्द श्रध्दा से बना है, जो श्रद्धा पूर्वक पूर्वजो की तृप्ति हेतु उपाय किये जाते हैं, उसे *श्राद्ध-तर्पण* कहते हैं।

हिन्दू धर्म मे किसी की मृत्यु के बाद क्रमशः उसी दिन चितारोहण,👉🏻 दसवें दिन शुद्धि,👉🏻 तेरहवें दिन तेरहवीं-अंत्येष्टि यज्ञ 👉🏻 मासिक उसी तिथि में दान पुण्य व वार्षिक मृत्यु तिथि पर बरखी/बरसी/प्रयाण दिवस मनाया जाता है। दिवंगत की मुक्ति के लिए हवन पूजन पिंडदान होता है।

जो व्यक्ति अपने पूर्वजों का पिंडदान *गया तीर्थ* या *शान्तिकुंज गायत्री तीर्थ* में करके आ जाता है। *उसे दिवंगत आत्मा की बरसी/वार्षिक मृत्यु तिथि पर होने वाले विधि-विधान को करने की आवश्यकता नहीं है*। ऐसी मान्यता है कि *गया तीर्थ* में भगवान जनार्दन के आशीर्वाद से व गयासुर राक्षस के तप से व *गायत्री तीर्थ शान्तिकुंज* में माता गायत्री की कृपा से व युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव के तप से वह सामर्थ्य पितरों को मिल जाती है जिससे वो शोक मुक्त व तृप्त होकर पितर लोक तक जाने व वहाँ रहने हेतू स्थान प्राप्त कर लेती है। तब वह मृतक प्रेतात्मा से पितर बन जाती हैं। *बरसी(मृतक के मृत्युदिन) व पितृपक्ष दो अलग तिथि व विधान हैं उन्हें एक न समझें*। बरसी के दिन केवल उसी मृतक पितर को याद किया जाता है। केवल एक के लिये पूजन श्राद्ध तर्पण होता है।

पितृपक्ष के 15 दिन पितरों की तृप्ति, मुक्ति सद्गति की प्रार्थना के साथ  श्रद्धा अर्पित करने की है। वो हमारे अदृश्य सहायक बनते है।

लोग कन्फ्यूज़ हो जाते हैं पितर व मृतक में, इसलिए यह प्रश्न उठता है। मृतक का वार्षिक बरसी होती है, पितर की नहीं। मृतक को गया में या युग गायत्री तीर्थ में पिंडदान देते हैं, पितर को नहीं। चाहे उन्हें नया शरीर मिल गया हो या नहीं। दोनों ही कंडीशन में उनकी आत्मा के अकाउंट में पुण्य लाभ मिलेगा।

पितर में आपकी कई पीढ़ियों के पूर्वज है जो पितर लोक में निवास करते हैं। जिनकी मृत्यु तिथि भी आपको याद नहीं। 7 पीढ़ी के पितर तो डायरेक्ट असर दिखाते हैं, तीन पिता, तीन माता व एक आपके पितर।

अतः अशरीरी 7 पीढ़ियों के पितर की पितृपक्ष में पूजा व श्राद्ध-तर्पण अवश्य होगा, चाहे आपने या आपके पूर्वजो ने उनका गया तीर्थ या शान्तिकुंज तीर्थ में तर्पण किया हो या नहीँ।

पितृपक्ष की कृतयज्ञता की भावना से किया हुआ श्राद्ध व सूक्ष्म भाव तरंग तृप्तिदायक व शांतिकारक होती हैं। जो प्रकृति के कण कण को शांत व तुष्ट करती हैं। यह जीवित व मृत सबको तृप्त करती हैं, लेकिन अधिकांश भाग उनतक पहुँचता है जिनके नाम पर किया जाता है।

श्राद्ध-तर्पण के बाद ही नवरात्र पूजा फलवती होती है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Monday 23 September 2019

गर्भसंवाद - गर्भस्थ शिशु के विकास के दोहे व प्रार्थना

*गर्भसंवाद - गर्भस्थ शिशु के विकास के दोहे व प्रार्थना*

🌹👉🏻 1

मेरे बच्चे,

स्थूल सूक्ष्म कारण की,
तीनों गर्भ नाल से तुम्हें पोषण दे रही हूँ ,
तीनों से सही पोषण मिले,
इसलिए भोजन, स्वाध्याय व भजन कर रही हूँ।

तुम्हारी स्थूल माता मैं हूँ,
तुम्हारी देवमाता गायत्री है,
ओजस, वर्चस, तेजस का पोषण,
माता गायत्री ही तुम्हें दे रही है।

🌹👉🏻 2

मेरे बच्चे,

तुम्हारी स्थूल काया,
मेरे किये भोजन से बनेगी,
तुम्हारी सूक्ष्म काया,
मेरे चिंतन से बनेगी,
तुम्हारी कारण काया,
मेरे अंदर के भावों से बनेगी,
तुम्हारे भीतर की आकृति व प्रकृति में,
मेरे चिंतन ही अहम रोल अदा करेंगे।

🌹👉🏻 3

मेरे बच्चे,

तुम बुद्ध हो, तुम शुद्ध हो,
निरंजन आत्मस्वरूप हो,
नित्य इसका ध्यान रखना,
अपने दिव्य आत्मस्वरूप को,
सदैव याद रखना, कभी न भुलाना।

🌹👉🏻 4

मेरे बच्चे,

यह संसार नश्वर है,
जो आज है वो कल न होगा,
बनना मिटना इसकी प्रकृति है,
इसकी बदलती रहती आकृति है,
अतः कुछ पाने पर अभिमान न करना,
और कुछ खोने पर शोक न करना।

🌹👉🏻 5

मेरे बच्चे,

देवता उसी की सहायता करते हैं,
जो देवता बन देने का भाव रखता है,
अपने बुद्धि व पुरुषार्थ से,
जो जगत को लोहा मनवाने में जुटता है।

🌹👉🏻 6

मेरे बच्चे,

समुद्र की लहरें,
कभी शांत नहीं होती,
जीवन में भी समस्याएं,
कभी खत्म नहीं होती,
कुशल नाविक लहरों में भी,
जहाज चला लेता है,
कुशल व्यक्ति भी,
समस्याओं के बीच भी,
आनन्द से जीवन जी लेता है,
तुम भी आनन्द में जीना,
जीवन के उतार-चढ़ाव को,
बहादुरी से सम्हालना।

🌹👉🏻 7

मेरे बच्चे,

भगवान से प्रार्थना,
कुछ इस तरह करना,
जो बदल सकूँ,
उसे बदलने की शक्ति देना,
जो बदला न जा सके,
उसे सहने की शक्ति देना,
हर परिस्थिति में,
मेरा चित्त स्थिर रहे ऐसी मुझे शक्ति-सामर्थ्य देना।

🌹👉🏻 8

मेरे बच्चे,
भगवान से कुछ इस तरह प्रार्थना करना,

हे भगवान! मेरे नए जीवन में,
हर पल मेरे साथ रहना,
अर्जुन हूँ मैं मेरी बुद्धिरथ पर प्रभु,
बैठकर मेरा मार्गदर्शन करना।

🌹👉🏻 9

मेरे बच्चे,
भगवान से कुछ इस तरह प्रार्थना करना,

मेरे जन्म के उद्देश्य को,
प्रभु मुझे स्मरण कराते रहना,
इस भवसागर में तैरने की,
सतत मुझे प्रशिक्षण देते रहना।

🌹👉🏻 10
मेरे बच्चे,
सद्गुरु से कुछ इस तरह प्रार्थना करना,


मेरे सद्गुरु मुझे भी युगनिर्माणि बना दो,
जन्म से ही मुझे अपना अंग अवयव बना लो,
आवागमन में पुनः आया हूँ तुम्हारे लिए,
इस जन्म को भी मेरा सार्थक बना दो।

🙏🏻श्वेता, DIYA

सङ्कल्प का कोई विकल्प नहीं होता

*सङ्कल्प का कोई विकल्प नहीं होता*


*ब्रह्मचर्य* - का अर्थ यह नहीं कि संसार की समस्त स्त्रियाँ नज़र न आये, उन्हें बुर्के में ढँक दिया जाय या उनका कत्ल कर दिया जाय।

ब्रह्मचर्य का अर्थ है कामुक दृष्टि बदल दी जाय, व प्रत्येक स्त्री माता का भाव आ जाये।

*ध्यान* - का अर्थ यह नहीं कि संसार  से शोर मिटा दिया जाय। ध्यान का अर्थ है भीतर का कोलाहल शांत कर दिया जाय। भीतर के कर्ण बन्द करने की सामर्थ्य आ जाये। भीड़ में भी ध्यानस्थ गहन मौन व शांति अनुभव की जाय।

*पढ़ने में मन लगने* - का अर्थ यह नहीं कि कोई डिस्टर्ब ही न करे और सब सहयोग करें। पढ़ने में मन लगने का अर्थ यह कि दुनियाँ विरोध करे, हर कोई डिस्टर्ब करे, फिर भी आपका मन पढ़ाई से न डिगे। क्योंकि ज्ञान का महत्त्व आपको हृदय से समझ मे आ गया है।

*नशा छोड़ने* - का अर्थ यह नहीं कि आप कॉरपोरेट पार्टी में न जाएं या कॉलेज पार्टी में न जाएं। दुनियाँ की समस्त नशेड़ी को मार गिराएँ। दुनियाँ पिये फ़िर भी आपके मन में उसके प्रति कोई लगावन जगे। आपको हृदय से समझ आ जाये कि यह सर्वनाश व असुरत्व का मार्ग है,मैंने इसे त्याग दिया है।मुझे आत्मज्ञान इसकी तबाही का हो गया है। यह मुझे विचलित नहीं कर सकता।

*योगी* - बनने का अर्थ यह नहीं कि लौकिक जिम्मेदारी से भाग जाएं। अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करें। योगी बनने का अर्थ कमल बनकर सांसारिक कामना वासना के कीचड़ से ऊपर उठना। चेतना को उर्ध्वगामी बनाना। इनका कोई असर स्वयं प्रण होना। इनमें लिप्त न होना।जीने के लिए स्वास्थ्यकर खाना, स्वयं के कल्याण व संसार के कल्याण के लिए निरत हो जाना।

अब तप के लिए जंगल जाने की जरूरत नहीं, और हिंसक जीवों से भय समाप्त करके स्वयं की जांच पूरी करने के लिए जंगल में भटकने की जरूरत नहीं।, सभी हिंसक जीव मानव रूप में इर्दगिर्द है, यत्र तत्र सर्वत्र हैं। अतः घर गृहस्थी व जॉब में पर्याप्त पशु उपलब्ध हैं। यहीं तप करके स्वयं को साध के अपनी चेकिंग कर सकते हैं, कि कितने सिद्ध हुए? या अभी और तप करना बाकी है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न- *जब बिन पढ़ें हम पास नहीं हो सकते, फ़िर हम जप, ध्यान और स्वाध्याय क्यों करें?*

प्रश्न- *जब बिन पढ़ें हम पास नहीं हो सकते, फ़िर हम जप, ध्यान और स्वाध्याय क्यों करें?*
*जब हमारे तप करने से, हमारा जीवनसाथी सुधर नहीं सकता, तो फ़िर हम जप, ध्यान और स्वाध्याय क्यों करें?*
*जब हमारे जप-तप-ध्यान से हमारा जॉब व्यवसाय स्वतः चल नहीं सकता, तो फ़िर हम-जप-ध्यान-स्वाध्याय क्यों करें?*

उत्तर- आत्मीय बहन, मेरे कुछ प्रश्नों का उत्तर दो:-

जल की बूंदों को तुमने घर की दीवारों में देखा है? नहीं न.. जल से घर नहीं बनता फिर घर के निर्माण में जल की आवश्यकता क्यों?...जल ने ही सीमेंट को जोड़ने में मदद की है न...

बिन गाड़ी के गूगल मैप या स्थान का मैप  किसी को मंजिल तक नहीं पहुंचा सकता है?.. फ़िर मैप की आवश्यकता क्यों? दोनो जरूरी है न..

बिजली कनेक्शन लेने भर से घर ठंडा नहीं होता, एयरकंडीशनर भी लगाना पड़ता है। दोनों जरूरी है..है न...

जब कृष्ण भगवान पूरे महाभारत युद्ध में हथियार न उठाने का संकल्प लिया, युद्ध न लड़ने का संकल्प लिया, फिर  भी अर्जुन ने उन्हें क्यों चुना?...क्या बिना कृष्ण की सहायता के अर्जुन युद्ध जीत सकता था क्या?..

अर्जुन यह भी तो कह सकता था, कृष्ण यदि तुम भगवान हो तो दुर्योधन व शकुनि को मेरे लिए सुधार दो। जब तुम शांति दूत में असफल रहे, दुर्योधन को सुधार न सके, तो मैं तुम्हें भगवान क्यों मानू?

मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र है, यह स्वतन्त्रता अर्जुन के पास जितनी है उतनी ही दुर्योधन के पास भी है। भगवान की गीता जो समर्पित होकर सुनने को तैयार होगा, उसी तक यह ज्ञानमृत पहुंचेगा। दुर्योधन ने अपने अधिकारों का प्रयोग कर मना कर दिया तो भगवान ने वह ज्ञान वहाँ नहीं दिया।

आप भी अर्जुन व दुर्योधन की तरह स्वतंत्र हैं। चयन कर सकते हैं।

जीवन में सफलता के लिए अध्यात्म(जप-तप-ध्यान-स्वाध्याय) व पुरुषार्थ(विभिन्न कार्य) दोनो जरूरी है।

यह सब समझने के लिये जिस बुद्धि की आवश्यकता है, उस सद्बुद्धि के लिए जप-तप-ध्यान-स्वाध्याय किया जाता है। भगवान से अर्जुन की तरह ज्ञान माँगा जाता है जिससे मोह में बुद्धि न फंसे और जीवन समर व्यक्ति बुद्धिप्रयोग से जीत सके। पढ़ाई में मन न भटके, और पढ़ाई में मन लगे, बुद्धि तेज हो जिससे पढ़ने में मदद मिले। जीवनसाथी को हैंडल करने के लिए सद्बुद्धि मिले, गृहस्थ जीवन मे जीवन साथी की आकृति नहीं उसकी प्रकृति समझ सकें, उसको समझ के उसे सम्हाल सकें व उसके अंगारों के वचनों से स्वयं को बचा सकें इसलिए जप-तप-ध्यान-स्वाध्याय करें। अतः बुद्धिरथ का सारथी परमात्मा को बनाना है तो जप-तप-ध्यान-स्वाध्याय जरूर करें, साथ ही यह स्मरण रखें अर्जुन की तरह अपना जीवन युद्ध स्वयं के पुरुषार्थ से आपको स्वयं ही लड़ना होगा। अध्यात्म शक्ति देगा, उसका उपयोग पुरुषार्थ में स्वयं को ही करना पड़ेगा। बुद्धि से भैंस नियंत्रित होती है बल से नहीं। बुद्धि तेज कीजिये।

 युगऋषि के साहित्य का स्वाध्याय आपका जीवन युद्ध नहीं लड़ेगा, युद्ध तो अर्जुन की तरह अपना आपको ही लड़ना है, यह स्वाध्याय भगवान कृष्ण की तरह आपके जीवन मे सहायक होगा, मोह से निकालेगा, मार्गदर्शन करेगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

कविता - *बचा लो घर परिवार*

कविता - *बचा लो घर परिवार*

अहंकार की खटाई,
जहाँ रिश्तों में समाई,
वहाँ रिश्तों में मिठास,
न ढूंढने से मिलेगी भाई।

लड़की जब न थी कमाने वाली,
आर्थिक वज़ह थी तब सर झुकाने वाली,
लेकिन अब तो वो कमा रही हैं भाई,
फ़िर क्यों आर्थिक वज़ह से,
उसका सर झुकेगा भाई?

पहले क़ानून व्यवस्था थी अस्तव्यस्त,
मायके में भाई व ससुराल में पति था रक्षक,
अब कानून सर्वत्र है भाई,
अब स्त्री कानून मजबूर नहीं है भाई,
फिर क्यों सुरक्षा की वजह से,
उसका सर झुकेगा भाई?

पहले स्त्री की कोई पहचान नहीं थी,
जन्मी तब अमुक पिता की पुत्री,
व्याही तब अमुक की पत्नी,
सन्तान जन्मते ही अमुक की माता,
तब उसका अस्तित्व नहीं था भाई,
बिना अस्तित्व के मरती थी भाई,
अब नए जमाने मे,
उसका एक नाम व अस्तित्व है भाई,
फ़िर पहचान के लिए,
क्यों उसका सर झुकेगा भाई?

पुरुष को जन्म से मिले वही पुराने कुसंस्कार,
पत्नी पर तुम्हारा है जन्म सिद्ध  अधिकार,
मांगो दहेज़ सिर्फ इसलिए कि तुम पुरुष हो,
दिखाओ रौब सिर्फ़ इसलिए कि तुम जन्मे पुरुष हो,
घर बसाने में पुराने नियम न चलेंगे,
नए नियमों को हम कब समझेंगे?
भूल गए कि जमाना बदल गया है भाई,
फ़िर पुराने कुसंस्कारो से कैसे घर बसेगा भाई?

लड़कियों को मिलने लगी है मंथरा से नसीहतें,
घर तोड़ने व तबाह करने वाली नसीहतें,
पुरूष ने सदा से नारी पर अत्याचार किया है,
उन अत्याचारों का बदला लेने को तूने जन्म लिया है।

भूल जा प्रेम प्यार,
मत कर अपने बच्चों की परवाह,
बन कर बला,
कर दे ससुराल वालों को तबाह।

रिश्तों में पुराने व नए सोच की,
एक कोल्ड वार चल रही है,
वर्चस्व दिखाने की,
एक अंधी दौड़ चल रही है।

सास पुराने ज़माने वाली,
दुहाई दे रही है,
हम सब सहते थे,
बहुएं लेकिन मुँह खोल रही हैं।

बेटे माता व पत्नी के बीच पीस रहे हैं,
स्वयं की सोच को नहीं अपग्रेड कर रहे हैं,
पत्नियां पुरूष के प्रति हृदय में ज़हर पाल रही हैं,
न जाने क्यों विरोधाभास के बहकावे में आ रही हैं।

त्याग दो पतियों परिवार के दिए कुसंस्कार,
त्याग दो पत्नियों मन्थरा के दी हुई सलाह,
बन जाओ मित्र व एक दूसरे के पूरक,
जो जैसा है उसे वैसा स्वीकार करने में करो पहल,
त्याग के अहंकार, अपना के मधुर व्यवहार,
बसा लो अपना प्यारा - सुनहरा घर परिवार।

*पुस्तक- "भाव सम्वेदना की गंगोत्री" पढ़ लो,*
*पुस्तक- "गृहस्थ एक तपोवन"* से,
 गृहस्थी के सूत्र सीख लो,
धरती पर एक ऐसा आदर्श परिवार बसाये,
जो धरती का सुखमय-प्रेममय स्वर्ग कहलाये।

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न- *दी,घर के बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि पितृपक्ष व श्राद्ध में नया कपड़ा नहीं पहनते। कोइ नया काम भी नही करते क्या ये सही है?*

प्रश्न- *दी,घर के बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि पितृपक्ष व श्राद्ध में नया कपड़ा नहीं पहनते। कोइ नया काम भी नही करते क्या ये सही है?*

उत्तर- आत्मीय बहन, किसी भी धर्मग्रंथ में नहीं लिखा कि पितृ पक्ष में नया सामान, वस्त्र नहीं खरीदना चाहिए या कोई नया काम नहीं करना चाहिए। यदि कोई पितरों व देवताओं का पूजन करके उनका भोजन अंश निकाल कर कोई नया कार्य करता है या नया वस्त्र पहनता है, तो न पितृ नाराज़ होते हैं न देवता।

नया वस्त्र व नया कार्य इसलिए लोग मना करते हैं क्योंकि इस समय आप स्वयं की इच्छापूर्ति में न लगें, अपितु जो पितर हैं उनकी मुक्ति, सद्गति व शांति हेतु उन्हें प्रशन्न करने हेतु आध्यात्मिक जप तप में लगे। क्योंकि नए कार्य में लगने पर अतिव्यस्तता में पितरों की संतुष्टि के लिए आध्यात्मिक क्रम छूट सकता है। यदि आप देवपूजन, पितर पूजन व नया कार्य सभी समान व व्यवस्थित रूप से कर सकते हैं तो करें। पितरो के आशीर्वाद से और देवताओं के आशीर्वाद वो नया कार्य फलेगा। सफल होगा।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Saturday 21 September 2019

कविता - रेसिपी 😈असुरत्व व 😇देवत्व की

*कविता - रेसिपी 😈असुरत्व व 😇देवत्व की*

😈 *असुरत्व रेसिपी - नरपिशाच बनने की*

कुछ पल नित्य विकृत चिंतन से,
धीरे धीरे पनपता है  पागलपन,
काम क्रोध मद लोभ दम्भ का
धीरे धीरे अखाड़ा बनता है बैचेन मन।

रक्त नयन की क्रोध अभिव्यक्ति से
कभी झलकता है वो पागलपन
कामना वासना की कुदृष्टि से
कभी झलकता है वो वहसीपन।

विकृत चिंतन की अशांति से
चैन की नींद कभी आती नहीं,
विकृत चिन्तन की कालीमा से
घर-परिवार में भी सुख-शांति रहती नहीं।

क्रोधाग्नि की ज्वाला बन कर
अंगारों से कर्णभेदी वचन बोलते,
आवेश ईर्ष्या व द्वेष भर कर,
दूसरे के मन में भी पीड़ा भरते।

मानव से नर पिशाच बनना हो तो,
नित्य अश्लील साहित्य पढ़िए,
नित्य अश्लील टीवी यूट्यूब देखिये,
इस पर पुनः नशा करते हुए कुसंग में,
विस्तृत विकृत चिंतन में करिये,
स्वयं में असुरत्व जगाकर,
इस धरती को नर्क सा बदतर बना दीजिये।

😇 *देवत्व रेसिपी - देव मानव बनने की* 😇🙏🏻

कुछ पल नित्य सद चिंतन से,
धीरे धीरे पनपता है दिव्य ज्ञान,
प्रकृति के कण कण से जुड़कर,
धीरे धीरे ध्यानस्थ होता है मन।

शान्त नयन की शांत अभिव्यक्ति से
कभी झलकता है वो दिव्य ध्यान,
परमार्थ भाव व साधु दृष्टि से
कभी झलकता है वो दिव्य भाव।

सदचिंतन से उपजी शांति से
मन शांत व हृदय में सुकून उपजता।
परमार्थ चिन्तन की अरुणिमा से
घर-परिवार ही धरती का स्वर्ग बनता।

आत्मियता विस्तार के भाव से
फूलों से कर्णप्रिय वचन बोलते,
प्रेम प्यार सहकार सेवा भाव से,
दूसरे के मन ही सहज पीड़ा हर लेते।

मानव से देव मानव बनना हो तो,
नित्य अच्छे साहित्य पढ़िए,
नित्य अच्छे यूट्यूब देखिये,
इन पर पुनः भजन करते हुए सत्संग में,
विस्तृत सद चिंतन करिये,
स्वयं में देवत्व जगाकर,
इस धरती को स्वर्ग सा सुंदर बना दीजिये।

🙏🏻 श्वेता, DIYA

कविता - क्या मन की सुरक्षा हेतु सेना है आपके पास?

*कविता - क्या मन की सुरक्षा हेतु सेना है आपके पास?*

राष्ट्र की सुरक्षा हेतु,
सेना रखनी पड़ती है,
युद्ध हो न हो,
बॉर्डर पर चौकसी,
फिर भी बरतनी पड़ती है।

मन की सुरक्षा हेतु,
सुविचारों की सेना,
प्रत्येक मन को रखनी चाहिए,
मुसीबत में हो न हो,
मन की पहरेदारी,
हमेशा ही करनी चाहिए।

जिस राष्ट्र के पास,
सशक्त सेना न हो,
उसका युद्ध में,
तबाह होना तय होता है,
जिस व्यक्ति के पास,
सशक्त विचारों की सेना न हो,
उसका मुसीबत में,
तबाह होना तय होता है।

बाढ़, आगज़नी, आतंक,
इत्यादि आपदा में,
सैनिकों की जितनी जरूरत,
प्रत्येक राष्ट्र को है,
वैसे ही रिश्तों की अनबन,
दोस्तों द्वारा नशे के जहर परोसने पर,
ऑफिस इत्यादि की टेंशन झेलने,
इत्यादि विपदा में,
स्वयं को उबारने के लिए,
सुविचारों की सशक्त सेना की,
जरूरत मानव मन को है।

आज से ही नित्य,
युगसाहित्य पढ़िये,
गहन स्वाध्याय कीजिये,
अच्छे सुविचारों की सेना को,
मन में तैयार कीजिये,
सशक्त विचारों से,
दुश्मन नकारात्मकता को,
परास्त कीजिये,
स्वयं के व्यक्तित्व की,
अनवरत सुरक्षा कीजिये।

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *सवा लाख के जप के साथ चन्द्रायण करना चाहती हूँ। मेरा मार्गदर्शन करो क्या खाना है, कितना जप करना है, कौन सा ध्यान व कौन सी पुस्तक का स्वाध्याय करना है।*

प्रश्न - *सवा लाख के जप के साथ चन्द्रायण करना चाहती हूँ। मेरा मार्गदर्शन करो क्या खाना है, कितना जप करना है, कौन सा ध्यान व कौन सी पुस्तक का स्वाध्याय करना है।*

उत्तर -जीवन को साधनामय बनाने के शुभ सङ्कल्प के लिए बधाई स्वीकार करें।

तप की ऊर्जा यदि भावनात्मक विकारों का शमन नहीं किया तो विकारों को बढ़ा देगी। जैसे बिजली से हीटर भी चलता है और एयरकंडीशनर भी, उसी तरह तप भी एक ऊर्जा है। अतः यदि आप स्वभावतः क्रोधी हुई तो यह क्रोध की पॉवर बढ़ा देगा। यदि आप घृणा से भरकर किसी को गाली देंगी तो यह उसकी पावर भी बढा देगा। तब फ़ायदा कम व नुकसान ज्यादा होगा।

ऐसा होगा मानो *अंधी आटा पीसे मेहनत करके व कुत्ता खाये जाए* , तप की मेहनत क्रोध व घृणा रूपी कुत्ता खा जाएगा।

🙏🏻 अतः पहले जल लेकर सङ्कल्प पूर्वक सन्यास लीजिये। जिनका बुरा आपने जाने अनजाने में किया है उन आत्माओ से गुरुदेव की सूक्ष्म उपस्थिति व साक्षी में क्षमा माँगिये। जिन्होंने आपको जाने अनजाने में दुःख कष्ट पीड़ा दी है उन्हें आप क्षमा कर दीजिए। सभी रिश्तों के भावनात्मक लगाव से मानसिक मुक्ति ले लीजिए। आज से पड़ोसी के बेटे व आपके बेटे में फर्क नहीं हो। बहु, बेटे, पति के कुवचन व गालियां भी आपको विचलित न करें। गली के कुत्ते के भोंकने व इन सब के गाली में फर्क समझ नहीं आना चाहिए। कुत्ते को क्षमा करें व इनको भी क्षमा करें। स्वयं कुत्तो की तरह कोई भी अपशब्द मुंह से न निकाले। क्योंकि वह नर-पशु है और आप नर से नारायण बनने की चेतना की शिखर यात्रा शुरू करने जा रही हैं। नर-नारायण गाली नहीं देते, अपशब्द नहीं बोलते। वो तो बुद्ध की तरह प्रेम, सेवा व करुणा बरसाते हैं।

परमहंस बालक योगी बनिये, जो मिल जाये खा लीजिये, जिह्वा पर विजय प्राप्त कीजिये।

यदि उपरोक्त शर्त क्षमा की मंजूर हो तभी यह तप फलित होगा, अन्यथा सब व्यर्थ जाएगा।

आइए *मैं* को मिटाकर *ईश्वर* बनने के लिए बढ़े, भगवान *भक्ति-भाव, श्रद्धा-विश्वास* में मिलते हैं। अतः उनपर विश्वास कर यह यात्रा प्रारंभ कीजिये। जो आसानी से सधे वह नियम अपना लीजिये।

*अनुष्ठान का नाम - *चांद्रायण साधना*🙏

*पूर्णिमा से पूर्णिमा तक*🙏

*पापों के प्रायश्चित्त के लिए जिन तपों का शास्त्रों में वर्णन हैं उनमें चांद्रायण व्रत का महत्व सर्वोपरि वर्णन किया गया है*।

प्रायश्रित्त शब्द प्रायः+चित्त शब्दों से मिल कर बना है। इसके दो अर्थ होते है।

प्रायः पापं विजानीयात् चित्तं वै तद्विशोभनम्।

प्रायोनाम तपः प्रोक्तं चित्तं निश्चय उच्यते॥

(1) प्रायः का अर्थ है पाप और चित्त का अर्थ है शुद्धि। प्रायश्चित अर्थात् पाप की शुद्धि।

(2) प्रायः का अर्थ है पाप और चित्त का अर्थ है निश्चय। प्रायश्चित अर्थात् तप करने का निश्चय।

दोनों अर्थों का समन्वय किया जाये तो यों कह सकते हैं कि तपश्चर्या द्वारा पाप कर्मों का प्रक्षालन करके आत्मा को निर्मल बनाना। तप का यही उद्देश्य भी है। चान्द्रायण तप की महिमा और साथ ही कठोरता सर्व विदित है। चांद्रायण का सामान्य क्रम यह है कि जितना सामान्य आहार हो, उसे धीरे धीरे कम करते जाना और फिर निराहार तक पहुँचना। इस महाव्रत के कई भेद है जो नीचे दिये जाते हैं -

(1) *पिपीलिका मध्य चान्द्रायण*।

एकैकं ह्रासयेत पिण्डं कृष्ण शुलेच वर्धवेत।

उपस्पृशंस्त्रिषवणमेतच्चान्द्रायणं स्मृतम्॥

अर्थात्- पूर्णमासी को 15ग्रास भोजन करे फिर प्रतिदिन क्रमशः एक एक ग्रास कृष्ण पक्ष में घटाता जाए। चतुर्दशी को एक ग्रास भोजन करे फिर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से एक एक ग्रास बढ़ता हुआ पूर्णमासी को 15 ग्रास पर पहुँच जावे। इस व्रत में पूरे एक मास में कुल 240 ग्रास ग्रहण होते हैं।

*माला जप संख्या* - 42 माला रोज या 27 माला रोज या 15 माला रोज

(2) *यव मध्य चान्द्रायण* -

प्तमेव विधि कृत्स्न माचरेद्यवमध्यमे।

शक्ल पक्षादि नियतश्चरंश्चान्द्रायणं व्रतम्॥

अर्थात्- शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को एक ग्रास नित्य बढ़ाता हुआ पूर्णमासी को 15 ग्रास खावें। फिर क्रमशः एक एक ग्रास घटाता हुआ चतुर्दशी को 1 ग्रास खावें और अमावस को पूर्ण निराहार रहे। इस प्रकार एक मास में 240 ग्रास खावें।

*माला जप संख्या* - 42 माला रोज या 27 माला रोज या 15 माला रोज


(3) *यति चान्द्रायण*

अष्टौ अष्टौ समश्नीयात् पिण्डन् माध्यन्दिने स्थिते।

नियतात्मा हविष्याशी यति चान्द्रायणं स्मृतम्॥

अर्थात्- प्रतिदिन मध्यान्हकाल में आठ ग्रास खाकर रहें। इसे यति चांद्रायण कहते है। इससे भी एक मास में 240 ग्रास ही खाये जाते हैं।

*माला जप संख्या* - 42 माला रोज या 27 माला रोज या 15 माला रोज

(4) *शिशु चान्द्रायण*

बतुरः प्रातरश्नीयात् पिण्डान् विप्रः समाहितः।

चतुरोऽख्त मिते सूर्ये शुशुचान्द्रायणं स्मृतम्॥

अर्थात्- चार ग्रास प्रातः काल और चार ग्रास साँय काल खावें। इस प्रकार प्रतिदिन आठ ग्रास खाता हुआ एक मास में 240 ग्रास पूरे करे।

*माला जप संख्या* - 42 माला रोज या 27 माला रोज या 15 माला रोज

(5) *मासपरायण* - चन्द्रायण की कठोरता न सध पा रही हो तो अतिव्यस्त जॉब करने वाले एक खाने का और एक लगाने का(दाल या सब्जी) को एक माह के लिए तय कर लें। भूख से आधा उदाहरण- चार रोटी खाते हो तो दो रोटी सुबह और दो शाम को खा कर मासपरायण रह सकते है।

*माला जप संख्या* - 42 माला रोज या 27 माला रोज या 15 माला रोज या 10 माला या 5 माला रोज

👇🏻तिथि की वृद्धि तथा क्षय हो जाने पर ग्रास की भी बुद्धि तथा कमी हो जाती है। ग्रास का प्रमाण मोर के अड्डे, मुर्गी के अड्डे, तथा बड़े आँवले के बराबर माना गया है। बड़ा आँवला और मुर्गी के अंडे के बराबर प्रमाण तो साधारण बड़े ग्रास जैसा ही है। परन्तु मोर का अंडा काफी बड़ा होता है। एक अच्छी बाटी एक मोर के अंडे के बराबर ही होती है। इतना आहार लेकर तो आसानी से रहा जा सकता है। पिण्ड शब्द का अर्थ ग्रास भी किया जाता है और गोला भी। गोला से रोटी बनाने की लोई से अर्थ लिया जाता हैं यह बड़ी लोई या मोर के अंडे क प्रमाण निर्बल मन वाले लोगों के लिए भले ही ठीक हो। पर साधारणतः पिण्ड का अर्थ ग्रास ही लिया जाता है।

शाम को रोटी के साथ लौकी की सब्जी या दाल लें। सब्जी एवं दाल में केवल शुद्ध घी, सेंधा नमक, जीरा, धनिया और टमाटर डाल सकते हैं। एक वक़्त यदि ग्रास वाला भोजन ले रहे हैं दो दूसरे समय किसी एक फ़ल का रसाहार लें या दूध लें या छाछ लें।

जल कम से कम 6 से 8 ग्लास घूंट घूंट करके बैठ कर दिन भर में पीना ही है। अन्यथा कब्ज की शिकायत हो जाएगी।

चान्द्रायण व्रत के दिनों में सन्ध्या, स्वाध्याय, देव पूजा, गायत्री जप, हवन आदि धार्मिक कृत्यों का नित्य नियम रखना चाहिए। ब्रह्मचर्य का विधान आवश्यक है। मन्त्र जप एक बार मे पूरा नहीं जपना है, कई बार में बैठ बैठ कर सुविधानुसार जप लें।

यदि वृद्ध हैं तो कुर्सी में साफ कम्बल बिछा को ऐसे बिछाए कि कुर्सी से नीचे पैर तक फैला हो। उस पर बैठने से पूर्व कमर में छोटी सोफे की साफ तकिया का सहारा ले लें। कुर्सी में बैठकर कमर सीधी करके जप कर लें। पैर कम्बल पर ही होना चाहिए।

बाथरूम या अन्य कारण से उठना पड़े तो अच्छे से हाथ पैर धोकर पुनः बैठे।

*ध्यान* - *ध्यान में नित्य सुबह गंगा नदी में स्नान करें, उगते हुए सूर्य को गंगा जल का अर्घ्य दें, गंगा जी के किनारे शंकर भगवान को गंगा जल का अर्घ्य दें, फ़िर थोड़ी देर वहीं बैठ कर जप करें। उसके ततपश्चात शान्तिकुंज गुरुधाम आएं व समाधि के दर्शन करें, फिर यज्ञ में सम्मिलित हों। ततपश्चात सप्तर्षि मंदिर के दर्शन करें और उनका आशीर्वाद लें। फिर माता गायत्री के दर्शन करें, वहाँ बैठी बहनों से चरणामृत रूपी आशीर्वाद लें व उसे पी लें। नल में हाथ धोएं व तुलसी माता को मंदिर के पास प्रणाम करें। आगे अखण्डज्योति दर्शन को जाएं वहाँ दर्शन करके फिर गुरुदेव के कमरे में उनके दर्शन हेतु प्रवेश करें। नीली दिव्य रौशनी और कमल की दिव्य खुशबु से रूम भरा है। गुरुदेव अखण्डज्योति लिख रहे हैं और बेड पर बैठी माता जी लोगो के प्रश्नों के उत्तर लिख रही हैं। आप माता के चरणों मे प्रणाम करते हैं तो माता आपके सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए आपका हालचाल लेती हैं। आप अपना दुःख दर्द उन्हें सुनाते हो वो समाधान देती हैं। फिर आप गुरुदेव के चरणों मे प्रणाम करते हो, गुरुदेव अपने दाहिने चरण से आपके मष्तिष्क भूमध्य जहां तिलक व बिंदी लगाते हैं वहाँ स्पर्श करते हैं गुरु की प्राण चेतना आपके भीतर प्रवेश कर जाती है। आपके भीतर एक दिव्य साधक का जन्म होता है। इस ध्यान में खो जाइये, आगे कल्पना जोड़ते जाइये।*

*पुस्तक का नाम स्वाध्याय के लिए* -
📖 अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार,
📖 ईश्वर कौन है कहां है और कैसा है
📖 उपासना के दो चरण- जप और ध्यान
📖साधना में प्राण आ जाये तो कमाल हो जाये
📖 भाव सम्वेदना की गंगोत्री

*अनुष्ठान* - *एक मास* में एक *सवा लाख गायत्री मंत्र जप* अनुष्ठान करें या *कम से कम तीन 24 हज़ार* के अनुष्ठान करें तो उत्तम है। इतना न सधे तो कम से *कम दो 24 हज़ार के* या *एक 24 हज़ार का अनुष्ठान एक महीने के अंदर कर ही लें।*

यदि जप तप ध्यान प्राणायाम योग और स्वाध्याय सन्तुलित हुआ तो कमज़ोरी लगने का कोई सवाल ही उतपन्न न होगा। लेकिन यदि इसमें व्यतिक्रम हुआ अर्थात व्रत हुआ बाकी न हुआ किसी कारण वश किसी दिन तो कमज़ोरी आ सकती है। तो ऐसी अवस्था मे ग्लूकोज़ पानी पी लें या किसी फल का रसाहार ले लें। फलों के रसों का सेवन आवश्यकतानुसार कर लें।

प्रत्येक ग्रास का प्रथम गायत्री से अनुमंत्रण करे फिर ॐ। भूः। भूवः। स्वः। महः। जनः। तपः। सत्यं। यशः। श्रीः। अर्क। ईट। ओजः । तेजः। पुरुष। धर्म। शिवः इनके प्रारम्भ में ‘ॐ’ और अन्तः ‘नमः स्वाहा’ संयुक्त करके उस मंत्र का उच्चारण करते हुए ग्रास का भक्षण करें यथा- ‘ॐ सत्यं नमः स्वाहा’। ऊपर पंद्रह मंत्र लिखे हैं। इसमें से उतने ही प्रयोग होंगे जितने कि ग्रास भक्षण किये जायेंगे, जैसे चतुर्थी तिथि को चार ग्रास लेने हैं तो (1) ॐ नमः स्वाहा (2) ॐ भूः नमः स्वाहा (2) ॐ भूः नमः स्वाहा (3) ॐ भुवः नमः स्वाहा (4) ॐ स्वः नमः स्वाहा इन चार मंत्रों के साथ एक एक ग्रास ग्रहण किया जायगा।

व्रत की समाप्ति पर *मां भगवती भोजनालय में दान दें* तथा सत्साहित्य में *हारिये न हिम्मत* और *मन्त्रलेखन पुस्तिका* ज्ञान दान में बांटे है।

*Reference Article* - http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1951/November/v2.14

🙏🏻श्वेता, DIYA

Thursday 19 September 2019

कविता - उसके जाने का शोक क्यों?* *जिसे अब हम याद तक नहीं

*कविता - उसके जाने का शोक क्यों?*
*जिसे अब हम याद तक नहीं*

उसके जानें का शोक क्यों?
जिसे अब हम याद तक नहीं,
उसके लिए अब मोह क्यों?
जिसे हमारे होने का अहसास तक नहीं।

पिछले जन्म में जब हम मरे थे,
हम भी तो कई परिवार जन से जुड़े थे,
चिता की अग्नि में हमारा देह जला था,
उसी आग में रिश्तों का अस्तित्व भी मिटा था।

जब हमें पूर्वजन्म के परिवार जन याद नहीं,
तो जो हमें छोड़ गया उसे हम भला याद क्यों होंगे?
जिस रिश्ते का अस्तित्व ही जल गया,
जिस रिश्ते का वजूद ही मिट गया।
उसके लिए हमारी आंखों में आँसू क्यों?
जो पंचतत्वों में मिल गया उसके लिए अब मोह क्यों?

माना कठिन है,
एक माँ के लिए सन्तान को भुलाना,
एक पत्नी के लिए पति को भुलाना,
एक पति के लिए पत्नी को भुलाना,
एक बच्चे के लिए माता-पिता को भुलाना,
लेकिन भुलाना तो पड़ेगा,
क्योंकि याद करने से भी,
जो गया वो लौट के नहीं आने वाला।

जिस दिन जन्म हुआ,
उसी दिन मौत का दिन भी तय हुआ,
शरीर रूपी सराय को,
छोड़ने का दिन तय हुआ,
अनन्त यात्रा में बढ़ने का,
एक दिन पुनः तय हुआ।

माना ब्रह्म ज्ञान से,
जाने वाला नहीं लौटेगा,
उसकी क्षति की पूर्ति,
यह ब्रह्म ज्ञान नहीं करेगा।

यह ब्रह्मज्ञान,
बस एक मरहम है,
जो हृदय के घावों को,
जल्दी ठीक करेगा,
जो मोह में पड़े मन को,
पुनः सम्हाल देगा।

हम नहीं चाहेंगे,
जिसे हम छोड़ आये पिछले जन्मों में,
वो हमारे लिए शोक करे,
हम नही चाहेंगे,
जिसे हम छोड़ जाए इस जन्मों में,
वो हमारे लिए शोक करे,
हम चाहेंगे सब ब्रह्म ज्ञानी बने,
आत्मा की अमरता को समझें,
न हम पिछले जन्म में मरे,
न इस जन्म में जन्में,
हम तो अमर यात्री है,
पिछले जन्म की शरीर की सराय खाली करके,
कुछ पल इस शरीर की सराय में ठहरे है,
यह भी खाली करके इक दिन,
नए सफ़र में फिर बढ़ जाएंगे,
बस जो हम समझ गए,
वही समझाना चाहते हैं,
आपको स्वजन बिछोह की,
असह्य पीड़ा से उबारना चाहते हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *गर्भावस्था के दौरान "भावना मन्त्र" जप द्वारा स्वास्थ्य लाभ करने का उपक्रम व नियम विधि दे दीजिए।*

प्रश्न - *गर्भावस्था के दौरान "भावना मन्त्र" जप द्वारा स्वास्थ्य लाभ करने का उपक्रम व नियम विधि दे दीजिए।*

उत्तर- आत्मीय दी, *युगऋषि* पुस्तक 📖 *पँच तत्वों द्वारा सम्पूर्ण रोगों का निवारण* में गर्भावस्था के स्वास्थ्य सम्हालने व  स्वास्थ्य में आशातीत सुधार हेतु *भावना मन्त्र* को विस्तार से बताया है।

अच्छे सकारात्मक विचार से 👉🏻 अच्छी भावनाएं 👉🏻 अच्छी भावनाओं से 👉🏻 स्वास्थ्यकर अच्छे हार्मोन्स स्राव 👉🏻 जिससे स्वास्थ्य लाभ मिलता है।

प्रतिदिन प्रातःकाल या सायं काल एकांत स्थान पर शांत चित्त होकर, नेत्र बन्द करके बैठ जाइए। शरीर को शिथिल व आरामदायक मुद्रा में रखिये। सब ओर से ध्यान हटाकर शरीर को निम्नलिखित *भावना मन्त्र* पर मन-चित्त को ध्यानस्थ कीजिये। दृढ़ता से यह विश्वास कीजिये कि *भावना मन्त्र* में कहे गए *दिव्य शक्ति युक्त वचन* से आपके स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है। आप स्वस्थ हो रहे हैं।

सर्वप्रथम मन ही मन 5 बार गायत्रीमंत्र जपिये व 3 बार महामृत्युंजय मंत्र जपिये:-

गायत्रीमंत्र - *ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं। भर्गोदेवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।*

महामृत्युंजय मंत्र - *ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।*
*उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥*

कुछ क्षण ईश्वर का ध्यान कीजिये, फिर भावना मन्त्र के एक एक वाक्यों को ध्यान से बोलिये व महसूस कीजिये।

👉🏻🌹🌹 *भावना मन्त्र* 🌹🌹👈🏻

"मेरे रक्त का रंग खूब लाल है, यह मेरे उत्तम स्वास्थ्य का द्योतक है। इसमें अपूर्व ताजापन है। इसमें कोई विजातीय तत्व नहीं है, इस रक्त में प्राण तत्व प्रवाहित हो रहा है। मैं स्वस्थ व सुडौल हूँ और मेरे शरीर के अणु अणु से जीवन रश्मियाँ नीली नीली रौशनी के रूप में निकल रही है। मेरे नेत्रों से तेज और ओज निकल रहा है, जिससे मेरी तेजस्विता, मनस्विता, प्रखरता व सामर्थ्य प्रकाशित हो रहा है। मेरे फेफड़े बलवान व स्वस्थ हैं, मैं गहरी श्वांस ले रहा हूँ, मेरी श्वांस से ब्रह्मांड में व्याप्त प्राणतत्व खीचा जा रहा है, यह मुझे नित्य रोग मुक्त कर रहा है। मुझे किसी भी प्रकार का रोग नहीं है, मैं मेरे स्वास्थ्य को दिन प्रति दिन निखरता महसूस कर रहा हूँ। यह मेरी प्रत्यक्ष अनुभूति है कि मेरा अंग अंग मजबूत व प्राणवान हो रहा है। मैं शक्तिशाली हूँ। आरोग्य-रक्षिणी शक्ति मेरे रक्त के अंदर प्रचुर मात्रा में मौजूद है।"

"मैं शुद्ध आत्मतेज को धारण कर रहा हूँ, अपनी शक्ति व स्वास्थ्य की वृद्धि करना मेरा परम् लक्ष्य है। मैं आधिकारिक शक्ति प्राप्त करूंगा, स्वस्थ बनूँगा, ऊंचा उठूँगा। समस्त बीमारी और कमज़ोरियों को परास्त कर दूंगा। मेरे भीतर की चेतन व गुप्त शक्तियां जागृत हो उठी हैं।"

"अब मैं व मेरी सन्तान बलवान शक्ति पिंड है, हम दोनों ऊर्जा का पुंज है। अब दोनो जीवन तत्वों का भंडार है। अब हम मां बच्चे स्वस्थ, बलवान और प्रशन्न हैं।"

*मेरे गर्भ में एक दिव्य ओजस्वी, तेजस्वी, वर्चस्वी सन्तान है। वह पूर्णतया स्वस्थ व प्रशन्न है।*

निम्नलिखित सङ्कल्प मन में पूर्ण विश्वास से दोहराईये:-

1- मैं त्रिपदा गायत्री की सर्वशक्तिमान पुत्री हूँ।
2- मैं बुद्धिमान, ऐश्वर्यवान व बलवान परमात्मा का बुद्धिमान, ऐश्वर्यवान व बलवान पुत्री हूँ।
3- मैं गायत्री की गर्भनाल से जुड़ी हूँ और माता गायत्री मेरा पोषण कर रही हैं। मुझे बुद्धि, स्वास्थ्य, सौंदर्य व बल प्रदान कर रही है।
4- मैं वेदमाता का वेददूत पुत्री हूँ। मुझमें ज्ञान जग रहा है।
5- जो गुण माता के हैं वो समस्त गुण मुझमें है।
👇🏻👇🏻
फिर गायत्रीमंत्र - *ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं। भर्गोदेवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।* बोलते हुए दोनों हाथ को आपस मे रगड़िये। हाथ की हथेलियों को आंखों के उपर रखिये धीरे धीरे आंख खोलकर हथेलियों को देखिए। फिर हाथ को पहले चेहरे पर ऐसे घुमाइए मानो प्राणतत्व की औषधीय क्रीम चेहरे पर लगा रहे हो। फिर हाथ को समस्त शरीर मे घुमाइए।

शांति तीन पाठ निम्नलिखित मन्त्र द्वारा बोलिये सबके स्वास्थ्य और आरोग्य के लिए दोहराइये:-

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *रोगोपचार के दौरान "भावना मन्त्र" जप द्वारा शीघ्रता से स्वास्थ्य उपचार करने का उपक्रम व नियम विधि दे दीजिए।*

प्रश्न - *रोगोपचार के दौरान "भावना मन्त्र" जप द्वारा शीघ्रता से स्वास्थ्य उपचार करने का उपक्रम व नियम विधि दे दीजिए।*

उत्तर- आत्मीय दी, *युगऋषि* पुस्तक 📖 *पँच तत्वों द्वारा सम्पूर्ण रोगों का निवारण* में गिरा हुआ स्वास्थ्य सम्हालने व रोगी के स्वास्थ्य में आशातीत सुधार हेतु *भावना मन्त्र* को विस्तार से बताया है।

अच्छे सकारात्मक विचार से 👉🏻 अच्छी भावनाएं 👉🏻 अच्छी भावनाओं से 👉🏻 स्वास्थ्यकर अच्छे हार्मोन्स स्राव 👉🏻 जिससे स्वास्थ्य लाभ मिलता है।

प्रतिदिन प्रातःकाल या सायं काल एकांत स्थान पर शांत चित्त होकर, नेत्र बन्द करके बैठ जाइए। शरीर को शिथिल व आरामदायक मुद्रा में रखिये। सब ओर से ध्यान हटाकर शरीर को निम्नलिखित *भावना मन्त्र* पर मन-चित्त को ध्यानस्थ कीजिये। दृढ़ता से यह विश्वास कीजिये कि *भावना मन्त्र* में कहे गए *दिव्य शक्ति युक्त वचन* से आपके स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है। आप स्वस्थ हो रहे हैं।

सर्वप्रथम मन ही मन 5 बार गायत्रीमंत्र जपिये व 3 बार महामृत्युंजय मंत्र जपिये:-

गायत्रीमंत्र - *ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं। भर्गोदेवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।*

महामृत्युंजय मंत्र - *ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।*
*उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥*

कुछ क्षण ईश्वर का ध्यान कीजिये, फिर भावना मन्त्र के एक एक वाक्यों को ध्यान से बोलिये व महसूस कीजिये।

👉🏻🌹🌹 *भावना मन्त्र* 🌹🌹👈🏻

"मेरे रक्त का रंग खूब लाल है, यह मेरे उत्तम स्वास्थ्य का द्योतक है। इसमें अपूर्व ताजापन है। इसमें कोई विजातीय तत्व नहीं है, इस रक्त में प्राण तत्व प्रवाहित हो रहा है। मैं स्वस्थ व सुडौल हूँ और मेरे शरीर के अणु अणु से जीवन रश्मियाँ नीली नीली रौशनी के रूप में निकल रही है। मेरे नेत्रों से तेज और ओज निकल रहा है, जिससे मेरी तेजस्विता, मनस्विता, प्रखरता व सामर्थ्य प्रकाशित हो रहा है। मेरे फेफड़े बलवान व स्वस्थ हैं, मैं गहरी श्वांस ले रहा हूँ, मेरी श्वांस से ब्रह्मांड में व्याप्त प्राणतत्व खीचा जा रहा है, यह मुझे नित्य रोग मुक्त कर रहा है। मुझे किसी भी प्रकार का रोग नहीं है, मैं मेरे स्वास्थ्य को दिन प्रति दिन निखरता महसूस कर रहा हूँ। यह मेरी प्रत्यक्ष अनुभूति है कि मेरा अंग अंग मजबूत व प्राणवान हो रहा है। मैं शक्तिशाली हूँ। आरोग्य-रक्षिणी शक्ति मेरे रक्त के अंदर प्रचुर मात्रा में मौजूद है।"

"मैं शुद्ध आत्मतेज को धारण कर रहा हूँ, अपनी शक्ति व स्वास्थ्य की वृद्धि करना मेरा परम् लक्ष्य है। मैं आधिकारिक शक्ति प्राप्त करूंगा, स्वस्थ बनूँगा, ऊंचा उठूँगा। समस्त बीमारी और कमज़ोरियों को परास्त कर दूंगा। मेरे भीतर की चेतन व गुप्त शक्तियां जागृत हो उठी हैं।"

"अब मैं एक बलवान शक्ति पिंड हूँ, एक ऊर्जा पुंज हूँ। अब मैं जीवन तत्वों का भंडार हूँ। अब मैं स्वस्थ, बलवान और प्रशन्न हूँ।"

निम्नलिखित सङ्कल्प मन में पूर्ण विश्वास से दोहराईये:-

1- मैं त्रिपदा गायत्री की सर्वशक्तिमान पुत्री हूँ।
2- मैं बुद्धिमान, ऐश्वर्यवान व बलवान परमात्मा का बुद्धिमान, ऐश्वर्यवान व बलवान पुत्री हूँ।
3- मैं गायत्री की गर्भनाल से जुड़ी हूँ और माता गायत्री मेरा पोषण कर रही हैं। मुझे बुद्धि, स्वास्थ्य, सौंदर्य व बल प्रदान कर रही है।
4- मैं वेदमाता का वेददूत पुत्री हूँ। मुझमें ज्ञान जग रहा है।
5- जो गुण माता के हैं वो समस्त गुण मुझमें है।
👇🏻👇🏻
फिर गायत्रीमंत्र - *ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं। भर्गोदेवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।* बोलते हुए दोनों हाथ को आपस मे रगड़िये। हाथ की हथेलियों को आंखों के उपर रखिये धीरे धीरे आंख खोलकर हथेलियों को देखिए। फिर हाथ को पहले चेहरे पर ऐसे घुमाइए मानो प्राणतत्व की औषधीय क्रीम चेहरे पर लगा रहे हो। फिर हाथ को समस्त शरीर मे घुमाइए।

शांति तीन पाठ निम्नलिखित मन्त्र द्वारा बोलिये सबके स्वास्थ्य और आरोग्य के लिए दोहराइये:-

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः

🙏🏻श्वेता, DIYA

Wednesday 18 September 2019

प्रश्न- *क्या केवल यज्ञोपवीत संस्कार/शिखा/चोटी धारण करनेवाले ही केवल गायत्रीमंत्र जप सकते हैं? क्या गुरुदीक्षा के बिना गायत्री मंत्र नहीं जपा जा सकता?*

प्रश्न- *क्या केवल यज्ञोपवीत संस्कार/शिखा/चोटी धारण करनेवाले ही केवल गायत्रीमंत्र जप सकते हैं? क्या गुरुदीक्षा के बिना गायत्री मंत्र नहीं जपा जा सकता?*

उत्तर- आत्मीय भाई,

जिस प्रकार पढ़ाई विद्यालय में प्रवेश ले कर या बिना प्रवेश लिए हो सकती है, साथ ही अध्यापक के मार्गदर्शन में और बिना अध्यापक के मार्गदर्शन की हो सकती है। यूनिफॉर्म या बिना यूनिफॉर्म के हो सकती है।

ठीक इसी तरह गायत्रीमंत्र की  साकार व निराकार दोनों साधना हो सकता है, गायत्रीमंत्र साधना सद्गुरु के मार्गदर्शन के साथ व बिना मार्गदर्शन के भी हो सकता है।

बस जैसे बिना विद्यालय व अध्यात्मक के पढ़ने पर कठिनाई ज्यादा होती है, वैसे ही बिना सद्गुरु के मार्गदर्शन के और साकार त्रिपदा गायत्री की धागे की मूर्ति को शरीर में धारण किये बिना कठिनाई ज्यादा हो सकती है।

अतः निर्णय आपको करना है कि विद्यालय व शिक्षक के मार्गदर्शन में पढ़ना है या नहीं। चेतना के महाविद्यालय में गुरुदीक्षा के माध्यम से प्रवेश लेकर सद्गुरु के मार्गदर्शन में साधना करनी है या नहीं।

गायत्रीमंत्र की साधना बिना सद्गुरु के फलित नहीं होती जो यह कहते हैं वो गलत कहते हैं।

फ़लित बिना गुरु के भी गायत्रीमंत्र साधना होती है, लेकिन कठिनाई बहुत सहनी पड़ती है, जप से पूर्व गुरुआह्वाहन के वक्त जो कार्य गुरुचेतना स्वतः कर देती है, वो समस्त कार्य बिना गुरु वाले साधक को स्वतः करना पड़ता है। गुरु संरक्षण नहीं मिला होता तो बिना संरक्षण की आध्यात्मिक जगत की कठिनाई से स्वयं उबरना होगा।

🙏🏻श्वेता, DIYA

कविता - *आज का यह पल, आनन्द से जियो*

कविता - *आज का यह पल, आनन्द से जियो*

विवाद से बचो,
वर्तमान में जियो,
कल की यादों के खण्डहरों में मत घूमों,
वर्तमान में जियो,
आज का यह पल,
आनन्द से जियो।

किसने क्या कब कहा,
किसने दिल दिया था दुःखा,
यह सोच सोच के,
वक़्त बर्बाद मत करो,
आज का यह पल,
आनन्द से जियो।

भविष्य में क्या होगा,
यह सोच सोच के चिंतित मत रहो,
वर्तमान में सत्कर्मों के,
बीज नित्य बोते चलो,
आज का यह पल,
आनन्द से जियो।

जो तुम्हारा भला नहीं चाहता,
उसकी तीखी बातों-टिप्पणियों की,
तुम परवाह मत करो,
उनके दिए तानों को,
तुम बिसार दो,
आज का यह पल,
आनन्द से जियो।

नदी का जल जो बह गया,
वो लौट के नहीं आएगा,
हमारा जो समय बीत गया,
वो भी लौट के नहीं आएगा,
अच्छा होगा तुम,
गड़े मुर्दो को न उखाड़ो,
जो बात बीत गई,
उसे शीघ्रता बिसारो,
आज का यह पल,
आनन्द से जियो।

रिश्तों की उलझनों के,
चक्रव्यूह में न उलझो,
किसी को सुधारने के,
चक्कर में न पड़ो,
स्वयं को कुशल बनाने में जुटो,
अपने हाथ से अपनी किस्मत लिखो,
निज दुःख के लिए,
किसी को दोष मत दो,
स्वयं के सुख के लिए,
स्वयं ही प्रयास करो,
आज का यह पल,
आनन्द से जियो।

इस प्रकृति में देखो,
सभी यज्ञ कर रहे,
परमार्थ भाव से,
सभी कर्म रहे,
बादल व नदी,
जल स्वयं नहीं पीते,
वृक्ष वनस्पति भी,
देखो दूसरों के लिए ही जीते,
वही मनुष्य इस धरा पर,
 इनकी तरह सुखी रह सकेगा,
जो निःश्वार्थ भाव से,
प्रेम-आत्मियता बाँट सकेगा,
जो निःस्वार्थ भाव से,
कर्म यज्ञ लोकहित कर सकेगा,
आज से ही मन से,
स्वार्थ भाव त्याग दो,
आज का यह पल,
आनन्द से जियो।

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...