Monday 30 April 2018

प्रश्न - *"गृहस्थ साधक के लिए दायित्व की सीमा का स्वरुप क्या है?"*

प्रश्न - *"गृहस्थ साधक के लिए दायित्व की सीमा का स्वरुप क्या है?"*

उत्तर - गृहस्थाश्रम धन्य है और सर्वश्रेष्ठ सभी आश्रम में है। ब्रह्मचर्य आश्रम(जन्म से किशोरावस्था और पूर्व युवावस्था) तक यहीं पलता-बढ़ता है। आश्रित है।

वानप्रस्थ और सन्याश्रम का भरण-पोषण का उत्तरदायित्व भी गृहस्थाश्रम पर ही है।

देश-समाज की अर्थव्यवस्था भी गृहस्थ द्वारा दिये कर (tax) पर निर्भर है। आध्यात्मिक गतिविधियों के हेतु अर्थव्यवस्था गृहस्थ द्वारा दिये दान(donation) पर निर्भर है।

देश की महत्त्वपूर्ण इकाई परिवार गृहस्थाश्रम ही है, यदि परिवार अच्छे संस्कार बच्चो में गढ़ने से चूके तो संस्कारविहीन समाज खड़ा हो जाता है। युवा शिक्षक जॉब करने वाले भी गृहस्थ होते हैं, उनका दायित्व गुरुरूप में बच्चो में संस्कार गढ़ने का माता पिता के बाद सबसे ज़्यादा होता है।

गृहस्थ ही समाज मे सर्वत्र विभिन्न जॉब में कार्यरत हैं।

अतः गृहस्थ का साधक होना बहुत जरूरी है, यदि वो साधक न हुआ तो सर्वत्र बाधक बनता है।

*गृहस्थ के ऊपर उपरोक्त इतने सारे उत्तरदायित्व होते है कि उसकी थोड़ी सी साधना भी सन्यासी की अधिक साधना से ज़्यादा फलवती होती है।*

गृहस्थ द्वारा की एक मासीय पापनाशिनी और तितिक्षा साधना चन्द्रायण व्रत सन्यासी के चतुर्मास व्रत से ज़्यादा फ़ल देता है। क्यूंकि भोजन बनाना और ख़ुद न खाना, सबकुछ उपलब्ध होते हुए भी जिह्वा पर नियंत्रण रख व्रत रखना, जॉब करते हुए भी चित्त गुरुदेव के चरणों मे रखना। यह सब कम कठिन नहीं है।

यदि जंगल के तपस्वियों के लिए शेर-भालू-सर्प-बिच्छू  ख़तरनाक है तो गृहस्थ के लिए ऑफीस में बॉस और गला-काट राजनीति है। घर में नाते-रिश्तेदार के ताने, और रिश्तों की उलझने किसी भी जंगल की लताओं और दुष्कर मार्ग से कम नहीं है।

गृहस्थ साधक का जीवन एक वीणा/सितार की तरह होना चाहिए। यदि विलासता में इसे ढीला छोड़ा तो जीवन बेसुरा हो जाएगा। इसी तरह यदि इसे हठ-योग और कठिन साधना से ज्यादा कसा तो टूटने की संभावना बन जाएगी और जीवन संगीत न निकलेगा।

गृहस्थ साधक के जीवन मे उपासना(जप-ध्यान), साधना(योग-प्राणायाम-स्वाध्याय), आराधना(यज्ञमय जीवन, समयदान-अंशदान) में संतुलन-संयमित होना चाहिए। संसार और अध्यात्म में संतुलन होना चाहिए। किसी भी एक पक्ष की उपेक्षा गृहस्थ को अधूरा कर देगी।

गृहस्थ की गाड़ी के दो पहिये है, एक अध्यात्म और दूसरा संसार। दोनों में संतुलन और हवा बराबर होनी चाहिए। गृहस्थ साधक को यह हमेशा याद रखना चाहिए कि मनुष्यों की उपज खेत मे नहीं बल्कि मां के गर्भ और फिर परिवार में होती है। तो लौकिक जिम्मेदारियों की उपेक्षा करके अध्यात्म क्षेत्र में प्रवेश वर्जित है। ईश्वर अपने बच्चों और जीवनसाथी को भूखा रखने वाले और अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ कर भाग कर किसी आश्रम में शरण लेने वाले भगोड़े की पूजा-अर्चना स्वीकार नहीं करता। जीवन की कठिनाइयों और संघर्ष मय जीवन मे गृहस्थ जिम्मेदारियों के निर्वहन करने वाले का थोड़ा सा समयदान और अंशदान भी ईश्वर को प्रिय है। क्योंकि भगवान की सृष्टि के सुचारू संचालन में गृहस्थ ही सबसे ज्यादा योगदान देता है।

यदि सन्तान उतपत्ति नहीं कर रहे और पति-पत्नी दोनों की सहमति है तो ही पूर्णरूपेण वानप्रस्थी होकर अध्यात्म में युवावस्था में ही प्रवेश करें। ब्रह्मचारी और अविवाहित भी सन्यास लेकर लोककल्याण हेतु स्वयं को आहूत कर सकते है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *बेटे या बेटी में से कौन माता-पिता की सबसे ज्यादा सेवा करता है?*

प्रश्न - *बेटे या बेटी में से कौन माता-पिता की सबसे ज्यादा सेवा करता है?*

उत्तर - अच्छे संस्कार, सम्वेदना और सद्बुद्धि हो तो ही लड़का भी हृदय से पास होता है और लड़की भी हृदय के पास होती है, दोनों से सेवा मिलती है, अच्छे संस्कार, आध्यात्मिकता और सेवाभाव नही हुआ तो न लडक़ी सेवा करती है न ही लड़का सेवा करता है।

लड़की किसी की बहू भी बनती है, माता-पिता के लिए जो प्रेम होता है वो सास-ससुर के लिए नहीं होता।  लड़का भी दामाद बनता है, उसके हृदय में भी सास-ससुर के लिए अपना पन नहीं होता। जब बच्चों को बचपन से आत्मीयता विस्तार से जोड़ा नहीं, आध्यात्मिकता सिखाई नहीं, अच्छे संस्कार दिये नहीं तो जब बच्चो के व्यवहार-संस्कार में बोया पेड़ बबूल का तो मीठे आम के फल आएंगे कहाँ से?

जब पिता किसी अपनी संस्कार विहीन लड़की के घर रहने लगता है तो लड़की भी बेटों की तरह ही रूखा व्यवहार करने लगती हैं।

दूर से प्यार सब दिखाते है। जिसके पास भी बूढ़े माता-पिता के अंतिम दिनों की अति कष्टसाध्य सेवा लगती है, वो झल्लाता ही है, यदि उसमें सेवा भाव और आध्यात्मिकता का अभाव हुआ तो....

हमारे देश मे लड़कों से केवल यह उम्मीद होती है कि बस वो किसी तरह पैदा हो जायें। उसके बाद उन्हें राजा-महाराजा की तरह पाला पोसा जाता है,  उनसे कभी मां के घर के कामो में मदद की उम्मीद या सेवा की उम्मीद तक नहीं की जाती, लड़कों को किसी से सामंजस्य(adjustment) बिठाना सिखाया ही नहीं जाता। बल्कि घर वाले लड़को के हिसाब से चलते हैं।

वहीं लड़कियों को पराये घर जाने की धमकियों के बीच पाला जाता है। सभी परिस्थितियों के लिए उन्हें मन से तैयार किया जाता है कि पता नहीं कैसा ससुराल मिलेगा वहां सामंजस्य बिठाना पड़ेगा। लड़की को घर वालों के हिसाब से चलना पड़ता है।

लड़का उद्दंड और उच्चख्रिल मानसिकता और दूसरी तरफ़ लड़की के अंदर घुटन वाली मानसिकता दोनों ही परिस्थिति घातक है।

लड़का हो या लड़की दोनों को अच्छे संस्कार की जरूरत है, दोनों को समान आगे बढ़ने का अवसर दीजिये और सेवा-आध्यात्मिकता के गुण उनमें गढ़िए। वृद्ध कोई भी हो माता-पिता हो या सास-ससुर दोनों को ही युवा बच्चो की सेवा की आवश्यकता है। एक दिन युवा भी वृद्ध होंगे। युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं - यदि गृहस्थ तपोवन बना और अच्छे संस्कार गढ़ने की और सेवा परम्परा परिवारों में बनी रही तो वृद्धाश्रम की जरूरत नहीं पड़ेगी और घर में ही सेवा मिलेगी, प्यार-सेवा-सहकार से बना परिवार धरती का स्वर्ग है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, मैं युगनिर्माण और गुरुसेवा में जीवन समर्पित करना चाहता हूँ। क्या करूँ?

प्रश्न - *दी, मैं युगनिर्माण और गुरुसेवा में जीवन समर्पित करना चाहता हूँ। क्या करूँ?कैसे करूँ? पिछले 8 महीनों से जॉब कर रहा हूँ, मेरी उम्र 23 वर्ष है और अविवाहित हूँ। मार्गदर्शन करें.*

उत्तर - अतिउत्तम प्रश्न, तुम्हारी जैसे श्रेष्ठ जीवात्मा के प्रश्न का उत्तर देने में पहली बार परमानन्द आ रहा है।

साधारणतया ईश्वर बिना आह्वान के नहीं आता औऱ आह्वान पर भी अपना कार्य योग्य-सुपात्र को ही देता है। क्यूंकि भगवान की बनाई प्रकृति भी नियम पर आधारित है। सूर्य-चन्द्र-ग्रह-नक्षत्र-पूरी सृष्टि-जन्म-मरण इत्यादि सबके पीछे एक नियम काम करता है। कण कण में भगवान है, भीतर और बाहर सर्वत्र भगवान है ठीक उसी तरह जैसे शरीर के भीतर भी हवा है और हवा में हम रह रहे हैं। फिर भी हवा में विद्यमान प्राण एनर्जी हो या हवा के प्रवाह में विद्यमान विद्युत को उपयोग हेतु कुशल माध्यम चाहिए, जिससे  उस विद्युत को निकालकर सही जगह उपयोग किया जा सके।

कभी कभार ही कृपा के चमत्कार बिना नियम के हो सकते हैं। भीख मिल भी सकती है और नहीं भी, लेकिन मज़दूरी निश्चयतः मिलती है। भीख(चमत्कार) का कोई नियम नहीं है, लेकिन मजदूरी(गुरुकार्य) का सुनिश्चित नियम है।

मनुष्य में भावना प्रमुख है कर्मकांड सहयोगी है। जब भगवान का आह्वान मूर्ति में करके उसकी पूजा हो सकती है तो उसी भगवान का अन्तःकरण में आह्वान हम क्यों नहीं करते। अपने तन-मन-धन का मालिक उसे बना दें और *करिष्ये वचनम तव* हृदय की गहराई से बोल के स्वयं को समर्पित कर दें। ईश्वरीय कार्य करने हेतु स्वयं को नित्य योग्य-सुपात्र भी बनाते चलें।

निरन्तर एक स्थान पर जमीन पर खोदने पर अंततः जल निकलता है, इसी तरह निरंतर भाव विह्वलता से सद्गुरु को पुकारने पर अन्तःकरण गुरुमय बनने लगता है।
*रोज़ उपासना भी गुरुमय करो:-*

पवित्रीकरण में भाव करो मैं भीतर और बाहर से पवित्र और गुरुमय हो रहा हूँ। अन्तःकरण और शरीर गुरुकार्य के योग्य बन रहा है।

आचमनम में भाव करो सूक्ष्म-स्थूल-कारण शरीर गुरुमय हो रहे हैं, तीनों गुरुकार्य के योग्य बन रहे है।

शिखा स्पर्श करते समय भाव करो कि अब इस शरीर से गुरुदेव के आदेश का ही पालन होगा, उनसे सम्बन्धित विचारों का ही प्रवेश होगा।

प्राणायाम करते समय भाव करो गुरुचेतना का प्राण तुम्हारे अंदर प्रवेश कर रहा है, हृदय में मिलकर पूरे रक्त धमनियों में गुरुचेतना ही प्रवाहित हो रही है। श्वांस छोड़ते समय भाव करो सभी विजातीय विचार निकल गए है।

न्यास के समय मुख्य अंगों को स्पर्श करते हुए भाव करो, जिह्वा गुरु आदेश पर चलेगी, श्वांस सिर्फ़ गुरु के लिए ही जियूँगा, नेत्र गुरु आदेश से देखेंगे, कर्ण गुरुआज्ञा सुनेंगे, हाथों से गुरुकार्य ही होगा, पैर गुरु द्वारा दिखाए सन्मार्ग की ओर बढ़ेंगे।

चन्दन - सदगुरु मेरे आज्ञा चक्र में मां भगवती के साथ विद्यमान है, उनकी आज्ञा से यह जीवन चलेगा।

कलावा- सदगुरु कार्य के लिए संकल्प बद्ध हूँ।

आह्वान- गुरुदेव हम आपका आह्वान इस शरीर मे करते है, आप हमारे बुद्धि रथ पर विराजमान हो जाइए। जिस प्रकार हे जगतगुरु आप अर्जुन के सारथी बने थे मेरे जीवन के सारथी मित्र बन जाइये। मेरे जीवन के मालिक बन जाइए। मुझे अपना दास स्वीकार कीजिये, मुझ शरणागत को अपनी शरण मे लीजिये। इस तन मन धन से अपना कार्यं करवा लीजिये🙏🏻🙏🏻

जप के समय भी उगते हुए सूर्य का हृदय क्षेत्र में ध्यान करो और सूर्य में गुरुदेव का ध्यान। *20 छोटी पुस्तकों का क्रांतिधर्मी साहित्य का स्वाध्याय अनवरत करो,* जिस प्रकार साधारण खेती में वक्त लगता है किसान धैर्य के साथ फसल पकने का इंतज़ार करता है। उसी तरह आध्यात्मिक खेती में भी धैर्य से सही समय का इंतज़ार करिये।

सांसारिक समस्त कर्मो को गुरु को अर्पण करते चलो, सद्गुरु से प्रार्थना करो कि विवाह गुरुदेव आप करवा रहे हो, जो गुरूपथ पर साथ चले सके ऐसी धर्म पत्नी देना। जो गुरुकार्य कर सके ऐसी सन्तान देना। जिस जॉब के साथ गुरुकार्य अनवरत चलता रहे वो जॉब देना। जिस जगह गुरुकार्य कर सकूं वहां रहने को स्थान देना। गुरुभक्तों की अच्छी संगति देना। जीवन की अंतिम श्वांस तक गुरुयन्त्र बन गुरुकार्य कर सकूं ऐसी बुद्धि, बल और आत्मविश्वास देना। अपनी कृपा दृष्टि सदैव बनाये रखना, गुरुकार्य करवाते रहना।

चलते फिरते जब भी वक्त मिले मौन मानसिक जप करना, गुरु विचारो से लोगो को जोड़ते चलना। आपके गुरुमय उज्ज्वल भविष्य की हम प्रार्थना करते हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *किसी भी शुभ अवसर पर यज्ञ क्यों करवाया जाता है? कृपया मार्गदर्शन करें*

प्रश्न - *किसी भी शुभ अवसर पर यज्ञ क्यों करवाया जाता है? कृपया मार्गदर्शन करें*

उत्तर - धार्मिक कर्मकांड की यूँ तो अनेक विधियां है। लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण यज्ञ है।

1- यज्ञ केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं अपितु अध्यात्म का विधिवत विज्ञान है।
2- यज्ञ अर्थात जीव और आत्मा के योग की क्रिया या जीव का आत्मा में विलय की क्रिया है।
3-यज्ञ शब्द के तीन अर्थ हैं- १- देवपूजा, २-दान, ३-संगतिकरण।

👉🏼 देव पूजन- अर्थात स्वयं के भीतर श्रेष्ठता का वरण करना।
👉🏼 दान - समाज की उन्नति कर(टैक्स) और दान(डोनेशन) पर ही निर्भर है। अतः श्रेष्ठ प्रयोजनों के निमित्त दान देने पर पुण्य मिलता है और देवता इंसान कहलाता है।
👉🏼 संगतिकरण का अर्थ है-संगठन। यज्ञ का एक प्रमुख उद्देश्य धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों को सत्प्रयोजन के लिए संगठित करना भी है।
इस युग में संघ शक्ति ही सबसे प्रमुख है। मानवजाति की समस्या का हल सामूहिक शक्ति एवं संघबद्धता पर निर्भर है।
4- *यज्ञ का तात्पर्य है*- त्याग, बलिदान, शुभ कर्म।
5-  अपने प्रिय खाद्य पदार्थों एवं मूल्यवान् सुगंधित पौष्टिक द्रव्यों को अग्नि एवं वायु के माध्यम से समस्त संसार के कल्याण के लिए यज्ञ द्वारा वितरित किया जाता है
6- पर्यावरण के समग्र उपचार की व्यवस्था यज्ञ से सम्भव है, औषधियों और गाय के घी से हवन करने पर :-
👉🏼पर्यावरण प्रदूषण नष्ट होता है।
👉🏼 वायु शुद्ध होती है और औषधियुक्त प्राणवायु फेफड़ो को साफ कर रक्त शुद्धि में भी सहायक है।
👉🏼 बादलों का निर्माण होता है, प्राण पर्जन्य की वर्षा होती है।
👉🏼 सम्बन्धित औषधियुक्त और मन्त्रशक्ति से सम्पन्न धूम्र के सेवन से रोगों से मुक्ति मिलती है, इस उपचार पद्धति को *यग्योपैथी* कहते है। *शांतिकुंज हरिद्वार में यग्योपैथी की ओपीडी* भी है जहां रोगियों का इलाज इसके माध्यम से होता है।
👉🏼 औषधियुक्त और मन्त्रशक्ति से सम्पन्न धूम्र ग्रहण करने से वृक्ष वनस्पतियों को पोषण मिलता है।
👉🏼 यज्ञ की भष्म भी औषधीय गुणों और मन्त्र अभिमन्त्रित होती है, जो अत्यंत उपयोगी है। जिसका नित्य एक चुटकी सेवन पेट के कीटाणुओ को नष्ट करता है। खेतो में डालने से मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाता है। मष्तिष्क पर लगाने से नकारात्मक विचारों का शमन करता है।
👉🏼 मन्त्र से उतपन्न साउंड एनर्जी, यज्ञ की अग्नि से उतपन्न हीट एनर्जी, औषधियों के स्थूल तथा कारण एनर्जी और गौ घृत से  चुम्बकीय(मैगनेट) औरा का निर्माण होता है जिसका असर 7 दिनों तक रहता है। उस क्षेत्र की नकारात्मक एनर्जी को या तो नष्ट कर देता है या दूर भगा देता है।
👉🏼 निगेटिव आयन जो मनुष्य के लिए जरूरी है उनमें वृद्धि कई गुना कर देता है।
👉🏼 मानसिक तरंगों को फ़ाईन ट्यून यज्ञ के दौरान करता है। विश्व मे मानसिक रोगों का एकमात्र सफ़ल इलाज़ यज्ञ से ही सम्भव है।

इत्यादि अनेक फ़ायदे हैं, जिनके कारण प्रत्येक शुभ कार्य की शुरुआत यज्ञ द्वारा करवाने की विधि व्यवस्था आध्यात्मिक वैज्ञानिक रिसर्चर ऋषियों ने दी। यज्ञमय जीवन जीने वाला और नित्य यज्ञ करने वाला कभी रोगी नहीं होता। जिस घर मे नित्य यज्ञ होता है वहां कोई मानसिक रोगी नहीं होता। जिस घर मे नित्य यज्ञ होता है वहां धन - धान्य की कभी कमी नहीं होती। जहां यज्ञ होता है वो स्थान सिद्ध मन्दिर की तरह प्राणवान और मनोकामना पूर्ति करने वाला हो जाता है।

सामूहिक कई कुंडीय यज्ञ उपरोक्त लाभ को कई गुना बढ़ा देते है। यज्ञ एक समग्र उपचार पद्धति है। गायत्री मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र के साथ यज्ञ अनेक गुना लाभकारी है।

यज्ञ एक समग्र उपचार(यग्योपैथी)  को यूनिवर्सिटी कोर्स की तरह देवसंस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार में पढ़ाया जाता है। यहीं से यग्योपैथी पर पीएचडी की हुई डॉक्टर ममता सक्सेना ने दिल्ली पॉल्यूशन बोर्ड के साथ किये रिसर्च पर यह सिद्ध किया कि मन्त्रोच्चारण के साथ औषधीय हवन से प्रदूषण दूर होता है तथा हवा में व्याप्त रोगाणु नष्ट होते है।

यज्ञ से सम्बंधित ज्ञान विज्ञान वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पण्डित युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा लिखित निम्नलिखित पुस्तकों में पढ़ें, इनकी पुस्तकों के आधार पर कई यूनिवर्सिटी में यज्ञ पर रिसर्च हुए हैं:-

1- यज्ञ एक समग्र उपचार
2- यज्ञ का ज्ञान विज्ञान
3- यज्ञ चिकित्सा
4- हमारा यज्ञ अभियान
5- Applied Science of Yagya for health & Environment
6- Reviving vedic the Vedik culture of Yagya

समस्त पुस्तकें ऑनलाइन फ्री पढ़ने के लिए निम्लिखित साइट विजिट करें:-

http://vicharkrantibooks.org

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

कृषि बचाओ!, भारत बचाओ

https://youtu.be/64RLBgD-Cck

Sunday 29 April 2018

मैं ना होता तो क्या होता" पर एक प्रसंग ।

*"मैं ना होता तो क्या होता" पर एक प्रसंग ।*                        

एक बार हनुमानजी ने प्रभु श्रीराम से कहा कि अशोक वाटिका में जिस समय रावण क्रोध में भरकर तलवार लेकर सीता माँ को मारने के लिए दौड़ा, तब मुझे लगा कि इसकी तलवार छीन कर इसका सिर काट लेना चाहिये, किन्तु अगले ही क्षण मैंने देखा कि मंदोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया, यह देखकर मैं गदगद हो गया ! यदि मैं कूद पड़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि यदि मै न होता तो क्या होता ?
बहुधा हमको ऐसा ही भ्रम हो जाता है, मुझे भी लगता कि यदि मै न होता तो सीताजी को कौन बचाता ? परन्तु आज आपने उन्हें बचाया ही नहीं बल्कि बचाने का काम रावण की पत्नी को ही सौंप दिया। तब मै समझ गया कि आप जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं, किसी का कोई महत्व नहीं है !

आगे चलकर जब त्रिजटा ने कहा कि लंका में बंदर आया हुआ है और वह लंका जलायेगा तो मै बड़ी चिंता मे पड़ गया कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा ही नही है और त्रिजटा कह रही है तो मै क्या करुं ?
पर जब रावण के सैनिक तलवार लेकर मुझे मारने के लिये दौड़े तो मैंने अपने को बचाने की तनिक भी चेष्टा नहीं की, और जब विभीषण ने आकर कहा कि दूत को मारना अनीति है, तो मै समझ गया कि मुझे बचाने के लिये प्रभु ने यह उपाय कर दिया !
आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि बंदर को मारा नही जायेगा पर पूंछ मे कपड़ा लपेट कर घी डालकर आग लगाई जाये तो मैं गदगद् हो गया कि उस लंका वाली संत त्रिजटा की ही बात सच थी, वरना लंका को जलाने के लिए मै कहां से घी, तेल, कपड़ा लाता और कहां आग ढूंढता, पर वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा दिया, जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं तो मुझसे करा लेने में आश्चर्य की क्या बात है !

इसलिये हमेशा याद रखें कि संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह सब ईश्वरीय विधान है, हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं, इसीलिये कभी भी ये भ्रम न पालें कि...

       *"मै न होता तो क्या होता ?"*

        🙏🙏🙏🙏🙏🙏

प्रश्न - *क्या विद्यार्थी जीवन मे सादगी और विनम्रता सफ़लता की कुंजी है? उदाहरण सहित समझाएं।*

प्रश्न - *क्या विद्यार्थी जीवन मे सादगी और विनम्रता सफ़लता की कुंजी है? उदाहरण सहित समझाएं।*

उत्तर - सादगी और विनम्रता न सिर्फ़ विद्यार्थी के लिए अपितु उम्र के किसी भी मोड़ पर सफ़लता की कुंजी है।

विनम्रता बिना मोल मिलती है, लेकिन विश्व मे इससे बहुत कुछ खरीदा जा सकता है।

सादगी से बेहतर कोई सृंगार नहीं जो दुनियां में हमें सबसे खूबसूरत बनाता है।

अहंकार और दिखावा, भड़कीला वेशभूषा यह सिद्ध करता है कि हम अपूर्ण है, असुंदर है और  सुंदरता के अपाहिज़ है और इसीलिए हमें भड़कीले मैकअप रूपी बैसाखी की जरूरत है। इनकी नज़र में रूप की गुण से ज्यादा जरूरत है, अतः ये अपना समय-साधन-श्रम रूप सज्जा में खर्च करते हैं।फ़ूहड़ और फ़टे जीन्स अंग प्रदर्शन वाले वस्त्र फैशन के नाम पर पहनने वाले कभी भी आपको उच्च पद पर नहीं मिलेंगे और न ही ऐसे लोग कभी भी कुछ श्रेष्ठ जीवन मे कर पाते हैं।

सादगी और विनम्रता यह आत्मविश्वास जगाती है, कि हम ओरिजिनल रूप में ही सुंदर ईश्वर की कृति है। रूप से गुण का महत्त्व अधिक है, इसलिए गुणों, ज्ञान, शक्ति,सामर्थ्य की अभिवृद्धि में समय-साधन खर्च करने चाहिए। इसीलिए सफलता ऐसे लोगों के कदम चूमतीं है। सफलता इनके चरणों की दासी होती है।

उदाहरण मैं हनुमान जी का यहां देना चाहूंगी। भगवान सूर्य से समस्त वेदों का ज्ञान और अस्त्र विद्या उनके साथ विनम्रता से चलते हुए ग्रहण की।  यदि आप में से किसी ने भी रामायण पढ़ी हो तो आप पाएंगे सबसे ज़्यादा शक्तिशाली, बुद्धिमान और सफ़ल यदि श्रीराम सेना में कोई था तो वो श्री हनुमान जी थे। दूसरी तरफ़ आप यह भी पाएंगे कि सबसे बड़ा भक्त, विनम्र, सादगी युक्त कोई था तो वो भी श्री हनुमान जी ही थे।

वो बल का प्रदर्शन भी आवश्यकता पड़ने पर ही करते थे, बुद्धिबल से ही अधिकतर कार्य सम्पन्न करते थे। सुरसा को बुद्धिबल से मार्ग से हटाया, तो परछाई पकड़ने वाले राक्षस को बुद्धिबल और शक्ति से मार गिराया। गेट पर लंकिनी राक्षसी को मृत्युदंड नहीं दिया, विभीषण को समझ के विनम्रता और सादगी से मिले। माता सीता के समक्ष भी लघु रूप में विनम्रता से मिले। उनके अनुरोध पर ही शक्तिशाली रूप प्रकट किया। राक्षस पुत्र अच्छ कुमार को मारा और रावण की पूरी की पूरी लंका निर्भय होकर जला दी, फिर लौटकर उसी विनम्रता और सादगी से मां सीता विदाई ली और आकर उसी विनम्रता से श्रीराम के चरणों मे प्रणाम किया और मिले जैसे कुछ बड़ा किया ही न हो।

पूरे राम-रावण युद्ध मे कई जगह श्रीराम-श्रीलक्ष्मण के प्राण बचाये, फिर भी विनम्र होकर उनके चरणों मे बैठे। किसी रिस्की काम करने से पीछे नहीं हटे।

आज श्रीराम जी से ज्यादा हनुमान जी के मंदिर हैं, और भगवान राम जी का मंदिर हो या फ़ोटो बिना भक्त हनुमान के नहीं होती।

सादगी के आकर्षण के साथ, विनम्रता का आभूषण धारण करने वाला, सद्बुद्धि और सामर्थ्य के पंखों पर अपनी निश्चित जीवन लक्ष्य की ओर उड़ने वाले विद्यार्थी का जीवन सफल होता है।

सादगी और विनम्र रहने से प्रचण्ड आत्मविश्वास में वृद्धि होती है, यह आत्मविश्वास विद्यार्थी को जीवनलक्ष्य तक पहुँचाता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Thursday 26 April 2018

प्रश्न - *दी, मेरा बिज़नेस में लगातार घाटे हो रहे हैं, हमेशा सर में दर्द बना रहता है।

प्रश्न - *दी, मेरा बिज़नेस में लगातार घाटे हो रहे हैं, हमेशा सर में दर्द बना रहता है। एक समय सफ़ल बिजनेस मैंन हुआ करता था, अब असफ़लता से परेशान हूँ। घर में भी कलह का वातावरण है।*

उत्तर - *सुख के सब साथी, दुःख का न कोय।* सफ़ल व्यक्ति उगते हुए सूर्य की तरह पूजा जाता है, असफ़ल व्यक्ति अस्त होता सूर्य होता है। सूर्य एक ही है लेकिन उनकी स्टेट अलग अलग है।

👉🏻 गाड़ी अच्छी चल भी रही हो तो भी मेंटेनेंस मांगती है, लेकिन सफ़लता के समय तुमने बुद्धि और बिज़नेस दोनों का मेंटेनेंस नहीं किया। ईंधन की भी व्यवस्था नहीं की, जिसके कारण असफ़ल हो रहे हो।

👉🏻 अब उठो! जागो और तब तक मत रुकना जब तक सफ़ल न बन जाओ! तुम सफ़ल थे सफ़ल हो और सदा रहोगे। वर्तमान का समय कठिन परीक्षा हैं जिसमे तुम्हे मेहनत लगन सद्बुद्धि और सामर्थ्य से अच्छे अंको से पास होना है।

👉🏻 सबसे पहले बुद्धि को शुद्ध करने का उपाय करो, और बुद्धि और भाग्य में जमा कचरा साफ़ करो। कम से कम 5 माला गायत्री मन्त्र,एक माला गुरु गायत्री मन्त्र, एक माला लक्ष्मी गायत्री मन्त्र और एक माला गणेश गायत्री मन्त्र की जपो। साथ में 24 महामृत्युंजय मन्त्र। जप के वक़्त उगते हुए सूर्य का ध्यान करो और विश्वास करो क़ि अब तुम्हारा भाग्योदय निश्चयतः होगा। सूर्य भगवान को जल चढ़ाओ।

👉🏻 परिवार में सबसे अच्छे से बात करो, ताना/अपशब्द एक कान से सुनो और दूसरे कान से बाहर निकाल दो। सफ़ल बनते ही यही लोग पुनः तुम्हारे आगे पीछे दौड़ेंगे। क्यूंकि ये सफ़लता के साथी हैं।

👉🏻 गुरुदेव की लिखी 📖पुस्तक *व्यवस्था बुद्धि की गरिमा* एवं *प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति  एक कौशल* कम से कम 5 बार पूरी पढ़ो। यह पुस्तक बिजनेस करने वालों के लिए अनिवार्य है। दो ख़रीद लो एक ओफ़ीस और दुसरी घर पर रखो। साथ में एक एक बार पुस्तक निम्नलिखित पुस्तकें जरूर पढ़ लें -
*आगे बढ़ने की तैयारी*
 *सफ़ल जीवन की दिशा धारा*
*दृष्टिकोण ठीक रखें*
*निराशा को पास न फटकने दें*

http: //literature. awgp.org/book/vyavastha_buddhi_ki_garima/v3

👉🏻 *आपके बिजनेस की सफ़लता के 12 सूत्र पढ़कर अपनाये, इस पर गहन चिंतन कर इस को मूर्त रूप में बिजनेस में अपनाए*ं:-

1- कस्टमर आपके शॉप या बिजनेस से क्या और क्यों ख़रीदेगा? कस्टमर को अपनी शॉप/बिजनेस तक लाने के लिए कोई इनोवेटिव आईडिया क्या आपके पास है? कस्टमर आपसे जुड़कर क्या फ़ायदा मिलेगा? कस्टमर कैसे खुश होगा?

2- आप क्या आसपास रहने वाले कस्टमर की आवश्यकता  को समझ के अपनी शॉप/बिज़नेस में सोल्युशन बेंच रहे हैं?

3- नक़द कैश फ्लो कितना है? बिजनेस को सपोर्ट करने के लिए बैकअप पैसा है?

4- स्वयं को सैलरी दीजिये, घर परिवार का ख़र्च सैलरी से निकालिये। बिज़नेस का प्रॉफ़िट बिजनेस को बढ़ाने में लगाइये। घर की दुकान है तो भी स्वयं को उधार दीजिये यदि सैलरी कम पड़ गयी किसी महीने तो, और वो पैसा पुनः बिजनेस में लौटा दीजिये। नक़द लीजिये, उधार किसी को कम से कम दीजिये। पेमेंट या तो अड्वान्स लें या समय पर लें। बिजनेस को बिजनेस की तरह करें।

5- प्रॉफिट मार्जिन बिज़नेस की हमेशा मेंटेन रखें, वो बिजनेस ही क्या जिसमें प्रॉफिट ही न हों। शुरू से ही बिजनेस में प्रॉफ़िट का प्लान बना के चलिए। कभी भी प्रॉफिट निगेटिव में नहीं जाना चाहिए।

6- बिजनेस के लिए मैनपॉवर कुशल लोगों का होना चाहिए। अकुशल एम्प्लॉयी दीमक की तरह बिज़नेस को खत्म कर देंगें। स्वयं भी बिजनेस में कुशलता हांसिल कीजिये साथ ही कुशल लोगों को ही एम्प्लॉयी रखिये, हेल्पर को भी कुशल बनाते चलिए। अकबर अकबर तब बना जब नव रत्न कुशल दरबारियों/एम्प्लॉयी थे उसके पास। ऐसे अच्छे एम्प्लोयी ढूँढो जो कदम से कदम उत्साह, लगन और कुशलता के साथ आपके साथ काम कर सकें, बिजनेस कभी अकेले नहीं किया जा सकता।

7- बिज़नेस को ग्रोथ देने का आईडिया आपके पास है? अभी जो भी स्थिति है बिजनेस की उसे अगले 5 साल में कितना ग्रोथ दे सकेंगे? अगले पांच साल का प्लान रेडी है? कस्टमर को रेगुलर बना पा रहे हो? नए कस्टमर का विश्वास अर्जित करने के लिए क्या कर रहे हो, और पुराने कस्टमर हमेशा साथ बने रहे इसके लिए क्या कर रहे हो?

8- अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग से पहले कस्टमर की नीड समझ के अपना प्रोडक्ट स्ट्रेटजी के साथ सोल्युशन बना के बेंच पा रहे हो या नहीं? प्रोडक्ट की प्लानिंग, कस्टमर प्लानिंग, फ़्यूचर में कस्टमर को और ज्यादा अपने पास खींचने की प्लानिंग बनाई है? साथ में धन और मैंनपॉवर है जो इसे एक्सीक्यूट कर सकें?

9- अपने बिज़नेस की आइडेंटिटी पता कीजिये। किस चीज़ में आप बेस्ट हो? समय पर कस्टमर को डिलिवरी दे रहे हो?

10- अपने बिजनेस की स्ट्रेटजी कम्पटीटर को पता न लगने दें। सफ़लता का कुछ यूनिक फ़ार्मूला बनाएं।

11- कस्टमर से फ़ीडबैक लें और जो सम्भव हो उसमें सुधार करते चलें, जो सम्भव न हो उसे छोड़ दें। कम्प्लेन हमेशा गिफ़्ट की तरह लें, वो आपको नए चेंज की दिशा देगा।

12- जीव-जीवस्य-जीवनम् (ecosystem), एक जीव दूसरे जीव पर निर्भर है। कुछ ऐसा करो क़ि लोग आपके बिजनेस पर निर्भर करें, आपके बिज़नेस से उन्हें फ़र्क पड़े। लोगों को अपना जीवन आप के बिजनेस से आसान लगे।


उपरोक्त एक वर्ष की कार्ययोजना है, जिस विश्वास से प्रश्न पूंछा है उसी विश्वास से इस पर अमल भी कर लो। सफ़लता जरूर मिलेगी। प्रारब्ध को मात्र गायत्री साधना(जप-ध्यान) से ही नष्ट किया जा सकता है और बुद्धि में प्रखरता मात्र स्वाध्याय से ही प्राप्त की जा सकती है। अतः जप-ध्यान- स्वाध्याय ईंधन है जो नियमित बुद्धि को दिया तो बुद्धि शार्प बनेगी और सफ़लता के नए आयाम देगी।

आपके व्यवसाय और परिवार में सफ़लता हेतु हम महाकाल से प्रार्थना करते हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन

गायत्री मन्त्र - *ॐ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्*

गुरु गायत्री मन्त्र - *ॐ ऐं श्रीराम आनन्दनाथाय गुरुवे नमः ॐ*

लक्ष्मी गायत्री मन्त्र - *ॐ महालक्ष्म्यै विद्महे, विष्णुप्रियायै धीमहि। तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्।*

गणेश गायत्री - *ॐ एक दन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो बुद्धिः प्रचोदयात्।*

महामृत्युंजय मन्त्र - *ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टि वर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्*

Wednesday 25 April 2018

प्रश्न - *तितिक्षा का अध्यात्म में क्या अर्थ है? तितिक्षा तप का मर्म क्या है?*

प्रश्न - *तितिक्षा का अध्यात्म में क्या अर्थ है? तितिक्षा तप का मर्म क्या है?*

उत्तर- शरीर को कष्टसाध्य तप द्वारा, संयम द्वारा साधना तितिक्षा तप कहलाता है।

तितिक्षा का एक अर्थ सहनशीलता भी होता है। कठिन हठयोग द्वारा देहानुभूति से परे जाना।

और अधिक गहराई से समझने के लिए अखण्डज्योति मई 1991 यह आर्टिकल पढ़ें:-

May 1991

*तप तितिक्षा का मर्म*

“जहाँ दो कोस तक चारों ओर जनशून्य स्थान मिले, वही आसन लगा।” अपने समर्थ शिष्य को दीक्षा देने के बाद मत्स्येन्द्रनाथ जी ने आदेश दिया। यह हिम प्रान्त जनशून्य क्या, प्राणी शून्य था। नेपाल में मुक्ति से काफी आगे दुर्गम पर्वत मालाओं में स्थित है यह शालिग्राम क्षेत्र। दामोदर कुण्ड के पास की इस भूमि को बर्फ ने अपनी लम्बी चौड़ी सफेद चादर से ढक रखा था।

कितना कठिन है देहाभ्यास। आज भी जहाँ जाने के लिए विशेष पोशाक, विशेष जूते और अनेकों औषधियाँ जरूरी पड़ती हैं। जहाँ आंखों पर चश्मे का नीलावरण न हो तो बर्फ पर प्रतिबिम्बित सूर्य की किरणें आधे क्षण में अन्धा बना दें। नासिका किसी चिकने लेप से ढकी न हो तो हिमदंश ने उसे कब गला दिया, पता ही न लगे। ऐसे विकट क्षेत्र में उन दिनों जो केवल काली कौपीन लपेटे नग्नदेह नंगे पाँव जा पहुंचा हो, उसकी कठिनाइयों का क्या ठिकाना?

“बहुत बाधक है देह की अनुभूति।” उन जैसे के लिए भी मन को देह से हटा कर एकाग्र कर पाना कठिन हो रहा था। प्राणायाम से प्राप्त ऊष्मा थोड़ी देर में चुक जाती। तब, ऐसा लगने लगता कि सर्दी हड्डी में बलात् घुस कर उन्हें टुकड़े-टुकड़े कर देगी। नाड़ियों को फटने की असह्य वेदना मन को चंचल होने के लिए विवश कर देती। पुनः प्राणायाम का सहारा लेना पड़ता।

“देह जब लक्ष्य की ओर जाने नहीं देती तब क्यों न देह को ही लक्ष्य बनाकर पहले उस ओर से निश्चित हो लिया जाए।” सर्वथा नया नहीं था यह तर्क। अवधूत गुरु दत्तात्रेय ने रसेश्वर - सम्प्रदाय की स्थापना इसीलिए की थी और वह सिद्ध रसेन्द्र, प्रक्रिया से अपरिचित न थे।

शुभ्र शशाँक धवल विप्र पारा आज अप्राप्य है और सुलभ कभी था भी नहीं। किन्तु महायोगी के लिए दुष्प्राप्य क्या? रस प्रक्रिया आरम्भ कर दी गयी। आधि दैविक शक्तियों ने स्वयं को असमर्थ पाया उस महासाधक के सामने। जहाँ छिद्र होता है, विघ्न वही आते हैं। प्रमाद रहित पूर्व जागरुक गोरखनाथ के समीप विघ्न कहाँ से जाते?

सहसा वह आसन से उठ खड़े हुए। उन्होंने जल और बिल्व पत्र हाथ में लिया। धरती और गगन को अपने पदाघात से पीड़ित करती भगवती छिन्नमस्ता दौड़ती आ रही थी। ‘गोरखनाथ जी अत्यन्त विनीत स्वर में बोले “माता। आप कोई रूप ले लें, अपने शिशु पर निष्करुण नहीं हो सकती।

क्षण भर में चारों ओर शांति छा गई। महादेवी का हस्त स्थिती मस्तक गले पर आ गया। उनके बगल में खड़ी दोनों मूर्तियाँ उनमें लीन हो गई। वे दिगम्बरा निरूपा अब पाटल अरुण वस्त्रों में किंचित श्याम रंग लिए त्रिपुर भैरवी बन चुकी थी।

“शंकर हृदि स्थिता करुणामयी अम्बे।” गोरखनाथ ने सविधि स्तवन किया। किन्तु वह रूप त्रिपुर सुन्दरी नहीं बना। कोई चिन्ता की बात नहीं थी। त्रिपुर भैरवी महाकाल शिव के हृदय में स्थित होने से अतिशय करुणामयी है। साधक के लिए सिद्धिप्रदा है।

“तुमने महाशक्ति की अर्चना के बिना ही यह कर्म प्रारम्भ कर दिया। यह भी याद है तुम्हें की समय कौन सा है। इस समय रस सिद्धि कदाचित ही होती है। तुम केवल इसे अपने तीन शिष्यों को दे सकोगे।” भगवती सीमा निर्धारित कर अन्तर्ध्यान हो गयी।

रस को संस्कारित करने का श्रम तथा संकट को जिसने स्वीकारा उस कौमारी शक्ति को तो वंचित नहीं किया जा सकता। सिद्ध रस के सेवन ने उन्हें अमर योगिनी बना दिया। विभिन्न योग सम्प्रदाय के अनेक ग्रन्थों में अनेक नामों से उल्लेख है। रसेन्द्र का सेवन करके देह सिद्ध हो गई। अब उन्होंने फिर से दामोदर कुण्ड के पास एक हिमशिला पर आसन जमाया। प्रकृति की शक्तियाँ अब उनकी देह पर अपना प्रभाव छोड़ने में असमर्थ थी। ध्यान में अब देह की बाधा नहीं थी।

“दम्भी कहीं का?”एक प्रबल अट्टहास के बीच गूँजते इन शब्दों ने उनका ध्यान तोड़ दिया। बिखरी जटाएँ, अंगार जैसी आंखें दिगम्बर, मलिन काय भारी भरकम डील-डौल वाला पागल इस निर्जन में कहाँ से आ गया। सबसे बड़ा आश्चर्य यह था की वह अपना ध्यान किसी भी तरह नहीं जमा पा रहे थे। सैकड़ों वज्र ध्वनियाँ करते शिलाखण्ड, जहाँ थोड़ी-थोड़ी देर में टूटते हो, उस प्रचण्ड कोलाहल में सर्वथा अप्रभावित रहने वाले इस योगी को इस पागल के अट्टहास ने विचलित कर दिया था। उसे लगता था किसी ने उसके मन को बलपूर्वक बाहर निकाल कर पटक दिया है।

“आप कौन हैं?” गोरखनाथ जी ने पूछा। वे अपनी आंखों की पलकें भी नहीं झपका पा रहे थे।

“अपने बाप का परिचय पूछता है, मूर्ख कहीं का।” पागल ने हाथ की तलवार से उन पर वार किया। किन्तु योगी जी की सिद्ध देह से टकराकर तलवार एक तीव्र झंकार ध्वनि के साथ पागल के हाथ से छूट कर दूर जा गिरी। उनके शरीर पर कोई चिन्ह नहीं बना था।

“दम्भी तेरा गुरु.... “ यह पागल गुरु को पता नहीं क्या अपशब्द कहेगा। गुरु के अपमान की संभावना को वह सहन नहीं कर पाये। उसने झपट कर तलवार उठाई और पूरी ताकत से पागल पर चोट की। पर यह क्या? आघात के वेग ने उन्हें स्वयं एक हिमशिला पर पटक दिया। पागल के शरीर से तलवार ऐसे निकल गयी जैसे हवा में चलाई गयी हो।

“आप कौन?” वह हतप्रभ थे, ऐसा कौन है जो उनकी सर्वज्ञ दृष्टि की पकड़ में नहीं आ रहा। “मैं झूठ नहीं कहता। अपने दम्भ के कारण तू अविश्वासी बन गया है।” पागल का स्वरूप बदल गया और वह अपने गुरु को पहचान कर उनके चरणों में गिर पड़े।

“आपको छोड़ कर ऐसा शक्ति संपन्न धरती पर और कोई नहीं।” उनकी आंखों से झरती अश्रुधारा गुरु के चरणों को धो रही थी।” वज्रदेह पाने का मेरा गर्व गल गया। मुझ पर अनुग्रह करें देव। मेरा दम्भी।” माँ को अपने अबोध शिशु की चिन्ता रहती है और गुरु का हृदय माँ से कही ज्यादा ममत्व लिए होता है। तू क्या समझता है मत्स्येन्द्र को, अपना कर्तव्य भूल गया। एक बार जिसे शिष्य स्वीकार किया उसे परम सिद्धि तक पहुँचाना तो मेरा कर्तव्य था। तेरे हर क्रियाकलाप पर मेरी दृष्टि रही है। छिन्नमस्ता को तूने प्रसन्न कर लिया पर यदि चामुण्डा आती तो?” सचमुच आना तो चामुंडा को था। उनकी वज्र देह पीपल के पत्ते की तरह काँप उठी। शिववत् ताण्डव करने वाली उग्र भैरवी को वे कैसे शान्त करते? वे तो कोई मर्यादा नहीं मानती।

Tuesday 24 April 2018

Server Failover Plan & Failback plan* से जीवन शिक्षण और सीख

*Server Failover Plan & Failback plan* से जीवन शिक्षण और सीख

भगवान दत्तात्रेय प्रत्येक जीव से शिक्षण लेते थे, इसी तरह हम भी प्रत्येक जीव, ऑफिस कार्य और गृह कार्य से मिलते जीवन शिक्षण को बारीकी से समझने का प्रयास करते हैं:-

हम सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल हैं। तो सर्वर failover करते वक़्त अभी एक विचार आया जो शेयर कर रही हूँ। प्रत्येक बैंक और बड़ी कम्पनियों की वेबसाईट हमेशा दो डेटा सेंटर पर होस्ट होती है। जिससे किन्हीं कारणवश यदि एक में कोई समस्या आ जाए तो दूसरे डेटा सेंटर के सर्वर के उपयोग से वेबसाईट चलती रहे।

इसी तरह कैरियर प्लान करते वक़्त/आर्थिक प्लान करते वक़्त यदि हम सब भी अपने जीवन में दो option उपलब्ध रखें तो कभी भी परेशान नहीं होंगें। जब गाड़ी में हम एक एक्स्ट्रा टायर लेकर चलते हैं क़ि यदि कोई टायर पंचर हुआ तो उसे उपयोग में लेंगें। तो जिंदगी के सफ़र में कैरियर की गाड़ी/व्यवसाय की गाड़ी में Failover plan क्यों नहीं होता? 

कोटा और अन्य कोचिंग इंस्टिट्यूट के विद्यार्थी जिन्होंने आत्महत्या की या विचार जिनके मन में आ रहा है, उनके पास कम्पटीशन एग्जाम में सफ़ल न होने पर दूसरा कैरियर लाइफ का फेलओवर प्लान नहीं था या नहीं है। माता-पिता और शिक्षकों को ओपन माइंडेड बनकर विद्यार्थीयों से जीवन के मल्टिपल फेलओवर प्लान डिसकस करने चाहिए।

युगऋषि कहते हैं सोचो हमेशा अच्छा लेकिन बुरे वक़्त के लिए भी फ़ौजी की तरह हर वक़्त फेलओवर प्लान के साथ तैयार रहो।

Life Failover Plan को विस्तार से समझने के लिए और सफ़ल जीवन के लिए निम्नलिखित 📚📖साहित्य पढ़े और बेहतर जिंदगी जियें और कैसी भी परिस्थिति के लिए तैयार रहें।

1- आगे बढ़ने की तैयारी
2- सफ़ल जीवन की दिशा धारा
3- निराशा को पास न फटकने दें
4- शक्ति संचय के पथ पर/शक्तिवान बनिए
5- दृष्टिकोण ठीक रखें
6- मनःस्थिति बदले तो परिस्थिति बदले
7- जीवन जीने की कला

ये समस्त साहित्य नज़दीकी शक्तिपीठ से ख़रीदें या ऑनलाइन फ्री पढ़ें:-

http:// www. vicharkrantibooks. org

*"उनके लिये सवेरे  नही होते ...,*
 *जो जिन्दगी मे कुछ भी पाने की*
         *उम्मीद छोड चुके है....,*

     *उजाला  तो उनका होता है....,*
*जो  बार  बार  हारने  के बाद कुछ*
       *पाने की उम्मीद रखते है...!* !

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इंडिया यूथ एसोसिएशन

गुरुकार्य के लिए बाहर निकलने से पूर्व...

जब गुरुकार्य के लिए बाहर निकले, उसके लिए विशेस 5 गायत्री मन्त्र की माला जप लें।

प्रार्थना-

हे महाकाल! यह शरीर, मन, बुद्धि सब आपका वाहन है, इसे जहाँ चाहो अपने कार्य के लिए उपयोग ले लो। जो कार्य आपने सौंपा है उसमें सफ़लता मिले।

जहाँ आप हमें भेज रहे हो, हम वहां गुरुदेव माताजी आप ही विभिन्न रूपों में मिलना।

हम सबको मित्रवत् देखें, सब हमें मित्रवत् देखें।

इस कार्य की सफ़लता-असफलता सब कुछ आपको समर्पित। आप तो कंकड़-पत्थर से भी युगनिर्माण करवा सकते हो, लेकिन आपने हमें गुरुकार्य में निमित्त बनने का अवसर देने के लिए धन्यवाद् और आभार🙏🏻

हे जगतगुरु बुद्धिरथ पर सवार होकर सतत् यूँ ही मार्गदर्शन करते रहना। हम आपका आह्वाहन करते हैं साथ चलिए और यह कार्य पूर्ण करवा दीजिये।

यज्ञ का तातपर्य

*यज्ञ का तात्पर्य है* - त्याग, बलिदान, शुभ कर्म। अपने प्रिय खाद्य पदार्थों एवं मूल्यवान् सुगंधित पौष्टिक द्रव्यों को अग्नि एवं वायु के माध्यम से समस्त संसार के कल्याण के लिए यज्ञ द्वारा वितरित किया जाता है। वायु शोधन से सबको आरोग्यवर्धक साँस लेने का अवसर मिलता है। हवन हुए पदार्थ् वायुभूत होकर प्राणिमात्र को प्राप्त होते हैं और उनके स्वास्थ्यवर्धन, रोग निवारण में सहायक होते हैं। यज्ञ काल में उच्चरित वेद मंत्रों की पुनीत शब्द ध्वनि आकाश में व्याप्त होकर लोगों के अंतःकरण को सात्विक एवं शुद्ध बनाती है। इस प्रकार थोड़े ही खर्च एवं प्रयतन से यज्ञकर्ताओं द्वारा संसार की बड़ी सेवा बन पड़ती है। [1][2] l[3] वैयक्तिक उन्नति और सामाजिक प्रगति का सारा आधार सहकारिता, त्याग, परोपकार आदि प्रवृत्तियों पर निर्भर है। यदि माता अपने रक्त-मांस में से एक भाग नये शिशु का निर्माण करने के लिए न त्यागे, प्रसव की वेदना न सहे, अपना शरीर निचोड़कर उसे दूध न पिलाए, पालन-पोषण में कष्ट न उठाए और यह सब कुछ नितान्त निःस्वार्थ भाव से न करे, तो फिर मनुष्य का जीवन-धारण कर सकना भी संभव न हो। इसलिए कहा जाता है कि मनुष्य का जन्म यज्ञ भावना के द्वारा या उसके कारण ही संभव होता है। गीताकार ने इसी तथ्य को इस प्रकार कहा है कि प्रजापति ने यज्ञ को मनुष्य के साथ जुड़वा भाई की तरह पैदा किया और यह व्यवस्था की, कि एक दूसरे का अभिवर्धन करते हुए दोनों फलें-फूलें।

Monday 23 April 2018

पंचोपचार पूजन

 *पंचोपचार पूजन*

मजनूं का प्रसंग -  लैला की दासी ने असल मजनूं की पहचान के लिए उन मजनुओं की भीड़ के पास जाकर लैला के स्वस्थ होने के लिए एक कटोरे खून की आवश्यकता बताई,अधिकांश मजनूं यहां-वहां हो गये उनमें से केवल एक अपना खून देने को तैयार हुआ।इस प्रसंग से गुरूजी का तात्पर्य उनके उन करोड़ों शिष्यों से है जो मजनूं तो बनना चाहते किंतु आवश्यकता पड़ने पर अपना खूनरूपी योगदान नहीं देना चाहते जो गुरूकार्य में सहायक हो गुरूजी भी ऐसे ही शिष्य की तलाश कर रहे हैं जो सच्चे अर्थों मे उनके शिष्य हों।
पंचोपचार पूजा को गुरूदेव ने बहुत ही गहन रूप से हमें समझाने का प्रयास किया है, वे कहते हैं यदि हमने ये पंचोपचार पूजा कर ली तो देवता निश्चित रूप से प्रशन्न होंगे भक्ति केवल दान, अनुदान और सेवाभाव चाहती है। पंचोपचार के इन पांच चरणों को हम निम्न प्रकार समझेंगे-
(१)जल अर्पण-जल को गुरूदेव ने हमारे पसीने के तुल्य बताया है,अर्थात श्रम,मेहनत,समय जो हमें लोककल्याण के लिए समर्पित करना है।प्रत्येक व्यक्ति के पास एक दिन में २४ घंटे होते हैं किसी को भी ईश्वर ने एक क्षण कम ज्यादा नहीं दिया व्यक्ति के विवेक  पर निर्भर करता है कि वह इस समय का  उपयोग कैसे करता है।
(२)अक्षत्-हमारे  जीवन को गुरूदेव ने सांझेदारी की दुकान कहा है जिसमें हमें यदि ईश्वर से कुछ पाना है तो उन्हें कुछ देना भी होगा।अक्षत् को उन्होंने अंशदान के तुल्य बताया है।ईश्वरचंद विद्यासागर के बारे में बताते हुए गुरूदेव कहते हैं कि उन्हें ५०० रू. महीने मिलता था जिसमें से मात्र ५० रू. अपने लिए रखकर शेष राशि गरीब छात्रों की पढ़ाई के लिए दिया करते थे।
(३) चंदन- चंदन को अर्पण करना हमें यह सिखाता है कि सदैव सुगंध बिखेरते रहो और जिस तरह चंदन पर विषैले सर्पों का प्रभाव नहीं पड़ता ठीक उसी प्रकार बुराईयों के बीच रहकर भी हमें निर्मल रहना है।
(४) पुष्प- जिस प्रकार पुष्प खिलकर खुशियाँ बिखेरता है वैसे ही हमें भी अपने व्यक्तित्व से जनमानस को प्रशन्नता देनी होगी लोगों के कष्टों को दूर कर उन्हें।पुष्प की तरह खिलाना होगा।
(५) दीपक - दीपक प्रज्वलित करने का अर्थ है तिमिर को नष्ट कर प्रकाश की ओर बढ़ना। ग्यान और प्रेम से भरा हमारा ह्रदय और पात्रता से भरा हमारा कलेवर होना चाहिए।बिहार में एक हजारी नाम का किसान रहता था जिसने आम का एक बगीचा लगाया जब देखा कि उसके लगाए हुए वृक्षों से अनेक पशु-पक्षी आश्रय पाते हैं तब उसने कई जगह आम के बगीचे लगाना शुरू कर दिया उन बगीचों को हजारी बाग के नाम से जाना जाता है।ऐसे ही मथुरा में एक स्त्री पिसनहारी थी उसने भी अपनी जमापूँजी लोक कल्साण हेतु दान कर दी।
गुरूदेव कहते हैं कि यह जरूरी नहीं की आप केवल धन का दान करें आपके पास जो श्रेष्ठ और पर्याप्त है आप उसका दान कीजिए।
देवताओं की कृपादृष्टि पाने के लिए यही पंचोपचार पूजा करनी होगी। जय गुरूदेव🙏

प्रश्न - ओफ़ीस पार्टी में अपना दिमाग़ सुस्थिर कैसे रखूँ?

प्रश्न - *दी, मैं आई टी सेक्टर में जॉब करता हूँ। मल्टिनेशनल कम्पनी में इसी वर्ष प्रोजेक्ट मैनेजर प्रमोट हुआ हूँ। अब मैनेजर की ग्रुप पार्टी हो या क्लाइंट विजिट पार्टी मुझे जाना पड़ता है। वहां शराब मुख्यतः पार्टी का आकर्षण होती है। मैं शराब नहीं पीता। लेकिन स्वयं की मानसिकता ऐसे समय कैसे सुस्थिर रखूँ? सभी तरह तरह के ज्ञान देकर मुझे शराब पीने के लिए उकसाते रहते हैं...मार्गदर्शन करें बिना इनसे उलझे स्वयं को कैसे सन्मार्ग पर रखूँ..*

उत्तर - पार्टी में तो जाना ही पड़ेगा, और पढ़े लिखों की नासमझी भी झेलनी पड़ेगी। ज्ञान हम किसी को तभी दे सकते हैं जब वो होश में हो और reciever mode अर्थात् सुनने को इच्छुक हो। या वो आपका जूनियर हो। इसलिए ऐसी जगहों में इन्हें ज्ञान देने में समय व्यर्थ नहीं करना चाहिए।

स्वयं की मानसिकता सुस्थिर रखने के लिए घर से निकलते वक़्त थोड़ा सा कम से कम 15 मिनट का अखण्डज्योति या निम्नलिखित पुस्तकों का स्वाध्याय करें ये ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं।

1- मैं क्या हूँ?
2- अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
3- दृष्टिकोण ठीक रखें
4- सफ़ल जीवन की दिशा धारा
5- ऋषि युग्म की झलक झांकी

फ़िर गुरुदेव का आह्वाहन करें, शरीर मेरा आपका वाहन है और आपके निमित्त है। कृपया मेरे साथ पार्टी में चलिए, मुझसे अपना कार्य करवा लीजिये और मेरा ध्यान आपके चरणों में बना रहे ऐसी कृपा कीजिए।

अब शान से पार्टी में जाइये, न सिर्फ आपका दिमाग़ सुस्थिर रहेगा, बल्कि आप स्वयं को आत्मविश्वास से भरा हुआ निर्भय और स्मार्ट महसूस करेंगे। बड़ा सुकून और शांति पार्टी के शोरगुल में भी महसूस करेंगे।

युधिष्ठिर द्युत सभा में जाने से पूर्व यदि भगवान कृष्ण का आह्वाहन कर लेते तो कोई अनहोनी न घटती। द्रौपदी ने पहले ही कृष्ण का आह्वाहन किया होता तो चीर तक किसी का हाथ भी न पहुंचता। द्रौपदी ने पहले अपने रिश्तेदारों से मदद मांगी और अंत में श्रीकृष्ण का आह्वाहन किया। लेकिन जिस क्षण श्री कृष्ण का आह्वाहन हृदय की घहराई से किया उस क्षण से मदद शुरू हो गयी। अर्जुन ने श्रीकृष्ण का साथ और मार्गदर्शन युद्ध में माँगा तो साथ और मार्गदर्शन मिला। बस सच्चे मन से *करिष्ये वचनम् तव* का भाव पूर्ण समर्पण के साथ रखें।

परमात्मा सुषुप्त रूप में कण कण में व्याप्त है, प्रत्येक घटना का साक्षी हैं। लेकिन बिना आह्वाहन वो आपकी एक्टिविटी में हस्तक्षेप नहीं करता। इसलिए पूजन के वक़्त आह्वाहन और विसर्जन दोनों होता है।

कभी भी किसी भी वक़्त ऑफिस मीटिंग हो या घर में पति-पत्नी का कोई झगड़ा हो या बच्चों से कोई विवाद हो या आसपड़ोस से कोई समस्या हो। हृदय की गहराई से गुरुदेव/ईष्ट का आह्वाहन अपने किसी भी रिश्ते के बीच, कभी भी करें तो आप पाएंगे क़ि आपके विचार तत्क्षण बदल जायेंगे और विवेक जागृत होगा। विकट से विकट परिस्थिति सम्हलती चली जायेगी जब ईश्वर आपके साथ होगा।

ये tried & tested formula हैं, सभी गायत्री परिजन जो जॉब करते हैं इसे अपनाते हैं और इसके लाभ से स्वयं के दिमाग़ को सुस्थिर रख पाते हैं। मैं और मेरे पतिदेव दोनों ही पिछले 16 वर्षों से आई टी फ़ील्ड में ही कार्यरत हैं, हम पार्टी जाने से पूर्व स्वाध्याय और पार्टी में गुरुआवाहन करके बड़े आराम से शराबियों पढ़े-लिखे नासमझों को हैंडल करते हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इंडिया यूथ एसोसिएशन

प्रश्न - *गायत्री मंत्र को लाल पेन से लिखना महत्वपूर्ण क्यों है?

प्रश्न - *गायत्री मंत्र को लाल पेन से लिखना महत्वपूर्ण कार्यों है? अन्य किन कलर से और भी लिखा जा सकता है?मन्त्र लेखन के लिए काले रंग के स्याही के पेन को अशुभ क्यों माना जाता है?*

उत्तर - प्रणाम भाई, *पहले रंग क्‍या है?* यह समझते हैं:-

इस जगत में किसी भी चीज में रंग नहीं है। पानी, हवा, अंतरिक्ष और पूरा जगत ही रंगहीन है। यहां तक कि जिन चीजों को आप देखते हैं, वे भी रंगहीन हैं। रंग केवल प्रकाश में होता है।

रंग वह नहीं है, जो वो दिखता है, बल्कि वह है जो वो त्यागता है। आप जो भी रंग बिखेरते हैं, वही आपका रंग हो जाएगा। आप जो अपने पास रख लेंगे, वह आपका रंग नहीं होगा। ठीक इसी तरह से जीवन में जो कुछ भी आप देते हैं, वही आपका गुण हो जाता है। अगर आप आनंद देंगे तो लोग कहेंगे कि आप एक आनंदित इंसान हैं।

*रंगों का मानव जीवन में असर*

रंगों में तीन रंग सबसे प्रमुख हैं- लाल, हरा और नीला। इस जगत में मौजूद बाकी सारे रंग इन्हीं तीन रंगों से पैदा किए जा सकते हैं।हर रंग का आपके ऊपर एक खास प्रभाव होता है। आपको पता ही होगा कि कुछ लोग रंग-चिकित्सा यानी कलर-थेरेपी भी कर रहे हैं। वे इलाज के लिए अलग-अलग रंगों के पानी की बोतलों का प्रयोग करते हैं, क्योंकि रंगों का आपके ऊपर एक खास किस्म का प्रभाव होता है।

*लाल रंग का महत्त्व*

जो रंग सबसे ज्यादा आपका ध्यान अपनी ओर खींचता है वो है लाला रंग, क्योंकि सबसे ज्यादा चमकीला लाल रंग ही है।बहुत सी चीजें जो आपके लिए महत्वपूर्ण होती हैं, वे लाल ही होती हैं। रक्त का रंग लाल होता है।

उगते सूरज का रंग भी लाल होता है। मानवीय चेतना में अधिकतम कंपन लाल रंग ही पैदा करता है। जोश और उल्लास का रंग लाल ही है। आप कैसे भी व्यक्ति हों, लेकिन अगर आप लाल कपड़े पहनकर आते हैं तो लोगों को यही लगेगा कि आप जोश से भरपूर हैं, भले ही आप हकीकत में ऐसे न हों। इस तरह लाल रंग के कपड़े आपको अचानक जोशीला बना देते है।

देवी (चैतन्य का नारी स्वरूप) इसी जोश और उल्लास का प्रतीक हैं। उनकी ऊर्जा में भरपूर कंपन और उल्लास होता है। देवी से संबंधित कुछ खास किस्म की साधना करने के लिए लाल रंग की जरूरत होती है। इसलिए गायत्री मन्त्र लेखन के वक़्त लाल रंग के पेन/स्याही से लिखने को वरीयता दी जाती है।


*नीला रंग का महत्त्व*

नीला रंग सबको समाहित करके चलने का रंग है। आप देखेंगे कि इस जगत में जो कोई भी चीज बेहद विशाल और आपकी समझ से परे है, उसका रंग आमतौर पर नीला है, चाहे वह आकाश हो या समुंदर।

जो कुछ भी आपकी समझ से बड़ा है, वह नीला होगा, क्योंकि नीला रंग सब को शामिल करने का आधार है। आपको पता ही है कि कृष्ण के शरीर का रंग नीला माना जाता है। इस नीलेपन का मतलब जरूरी नहीं है कि उनकी त्वचा का रंग नीला था। हो सकता है, वे श्याम रंग के हों, लेकिन जो लोग जागरूक थे, उन्होंने उनकी ऊर्जा के नीलेपन को देखा और उनका वर्णन नीले वर्ण वाले के तौर पर किया। कृष्ण की प्रकृति के बारे में की गई सभी व्याख्‍याओं में नीला रंग आम है, क्योंकि सभी को साथ लेकर चलना उनका एक ऐसा गुण था, जिससे कोई भी इनकार नहीं कर सकता। वह कौन थे, वह क्या थे, इस बात को लेकर तमाम विवाद हैं, लेकिन इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि उनका स्वभाव सभी को साथ लेकर चलने वाला था। इसलिए मन्त्र लेखन हेतु नीले रंग के पेन का भी उपयोग करते हैं।

*काला रंग मन्त्र लेखन में उपयोग क्यों नहीं करते?*

कोई चीज आपको काली प्रतीत होती है, इसकी वजह यह है कि यह कुछ भी परावर्तित नहीं करती, सब कुछ सोख लेती है।


अगर आप लगातार लंबे समय तक  काले रंग के कपड़े पहनते हैं और तरह-तरह की स्थितियों के संपर्क में आते हैं तो आप देखेंगे कि आपकी ऊर्जा कुछ ऐसे घटने-बढऩे लगेगी कि वह आपके भीतर के सभी भावों को सोख लेगी और आपकी मानसिक हालत को बेहद अस्थिर और असंतुलित कर देगी।

इसलिए काले रंग के पेन/स्याही का प्रयोग मन्त्र लेखन हेतु नहीं करते।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन

Sunday 22 April 2018

प्रश्न - *दीदी हमारे घर के मंदिर में बहुत सारी मुर्तिया रखी है सभी की पूजा संभव नही है उनका क्या किया जाए*

प्रश्न - *दीदी हमारे घर के मंदिर में बहुत सारी मुर्तिया रखी है सभी की पूजा संभव नही है उनका क्या किया जाए*

उत्तर - मूर्तियां और फ़ोटो एक प्रकार का देवताओं की चेयर है, जिसे हम उनके लिए निर्धारित करते हैं। जब आह्वाहन करते हैं तो उस मूर्ति या फ़ोटो में वो विराजमान होते है और विसर्जन के बाद चले जाते हैं। ईष्ट आराध्य हेतु हम एक देवस्थापना की फ़ोटो या मूर्ती दैनिक पूजन हेतु रखते है और बाकि यज्ञ के विशेष समय कलश में हम देवताओं का आह्वाहन करते हैं। सभी देवी देवता कलश में वास् करते हैं।

बिना आह्वाहन के मूर्ती सिर्फ मूर्ती है, फ़ोटो सिर्फ फोटो है, चेयर केवल चेयर है। अतः बिना देवता के आह्वाहन के पूजन स्थल में भगवान सूक्ष्म रूप में उपस्थित नहीं होते। नित्य जिनका पूजन होता है केवल वही देवशक्ति की प्राण-प्रतिष्ठा होती है।

तुलसीदास जी ने कहा है - एक साधे सब सधत् हैं, सब साधे सब जाय।

अतः जो ईष्ट उपास्य हैं और जिनके मन्त्र नित्य आप जपते हैं उनकी फ़ोटो या मूर्ती पूजन स्थल में रखे। बाक़ी अन्य मूर्तियों और फ़ोटो को आप या तो किसी अलमारी में सुरक्षित रख दें और पर्व पूजन के समय केवल सम्बंधित देवता लाएं पूजन करें और विसर्जन के बाद पुनः उसे आलमारी में सुरक्षित रख दें। या पर्व के समय भी सम्बंधित देवता कलश में ही आह्वाहन करके पूजन कर सकते हैं।

अत्यधिक देवी देवता की मूर्ती या फ़ोटो केवल रखने का कोई फ़ायदा नहीं है और इससे पूजन में मन भी नहीं लगता और ध्यान भटकता है।

ध्याता, ध्येय और ध्यान कभी भी एक नहीं हो पायेगा, यदि ध्यान विभिन्न देवताओं में भटकेगा।

बुद्धिमान् साधक वो है क़ि वो एक ही जगह गड्ढा खोदे शक्ति श्रोत का कुआँ खोदने हेतु और अपनी अनन्त जन्मों की प्यास बुझाए।  एक ईष्ट चुने और देवपूजन जप और ध्यान नित्य उसी का करें।

लेकिन भटकता हुआ साधक वह है जो कभी एक जगह गड्ढा खोदता है कभी दूसरी जगह। कई गड्ढे ख़ुद जाते है लेकिन प्यासा का प्यासा रह जाएगा। कई देवताओं के पूजन में भटकता है, कभी ये तो कभी वो, ईष्ट निर्धारित नहीं कर पाता। साधना अधूरी रहती है।

तो प्रश्न यह भी उठता है क़ि यज्ञ में इतने सारे देवताओं का आह्वाहन यज्ञ में क्यों?

घर में हम परिवार के साथ रहते हैं, लेकिन फ़ैमिली फंक्शन में विवाहदिवस, जन्मदिवस इत्यादि अवसर पर ईष्ट-मित्रो और रिश्तेदारों को बुलाते हैं। इसी तरह यज्ञ एक समग्र उपचार है, पूरी प्रकृति और मनुष्य जाति का इलाज़ होता है, इसमें सभी देवशक्तियों को यज्ञ का भाग दिया जाता है।

लेकिन फ़िर भी हम *एतद् कर्म प्रधान - श्री गायत्रयै नमः* ये वचन कह कर यज्ञ का मुखिया/प्रधान माँ गायत्री को बताते है स्वागत तो सबका है, यज्ञ का भाग भी सबको मिलेगा लेकिन इस यज्ञ का प्रधान हमारा ईष्ट - गायत्री ही है। और व्यासपीठ पर गुरुदेव का आह्वाहन करते हैं। तो व्यास गुरुदेव, प्रधान देवता गायत्री, यज्ञ भाग बाँटेगा कौन माँ-गायत्री और गुरुदेव। निमित्त कौन हम, सबकुछ उन्हें समर्पित, और हमारा ध्यान गायत्री माता और गुरुदेव रखेंगे।

अतः कोई वहम न पालते हुए, माँ गायत्री और परमपूज्य गुरुदेव का ध्यान कर, घर में विद्यमान की अन्य भगवान की मूर्तियों/फ़ोटो का विसर्जन कर दें और उन्हें अलमारी या अन्य सुरक्षित जगह पर रख दें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन

प्रश्न - किसी के बहकावे में की गयी भूल को कैसे सुधारें?

प्रश्न - *यदि जीवन में प्रारब्ध वश या किसी के बहकावे में हमसे ऐसी भूल हो जाए जो हमें नहीं करनी चाहिए थी तो क्या करें? जीवन में ग्लानि से कैसे  बचें? जीवन को पुनः मूल धारा में वापस कैसे लाएं?*

उत्तर - युगऋषि के साहित्य का नियमित स्वाध्याय और उपासना-साधना करने वाले साधक को अन्तर्दृष्टि मिलती है। वो जानता है मेरे साथ जो कुछ हो रहा है उसके लिए एकमात्र मैं जिम्मेदार हूँ। मुझे कोई दोषी तब तक नहीं बना सकता,जब तक कहीं न कहीं उस दोष का बीज मेरे अंदर न हो। बहकाने वाला मात्र दोष का पोषण कर सकता है, बीजारोपण नहीं कर सकता।

बहकावे अर्थात् शिकारी का ज़ाल, कोई भी चिड़िया दुनियां के समस्त शिकारी को खत्म नहीं कर सकती। लेकिन चिड़िया स्वयं की सुरक्षा हेतु सही-ग़लत के विवेक को जागृत अवश्य कर सकती है। जाल में न फंसे इस हेतु जागरूक/चैतन्य रह सकती है।  इसलिए ही हम सुधरेंगे युग सुधरेगा वाला कॉन्सेप्ट गुरुदेव ने दिया है।

धर्मराज युधिष्ठिर भी दुर्योधन के बहकावे में जुआ खेले, द्रौपदी चीरहरण हुआ, महाभारत हुआ। दुर्योधन का समूल वंश नाश हुआ तो युधिष्ठिर का भी लगभग समूल नाश ही हुआ। मात्र उत्तरा के गर्भ ही बचाया जा सका। लेकिन यदि युधिष्ठिर की जुआ खेलने में रूचि ही न होती तो क्या दुर्योधन बहका पाता? दुर्योधन ने तो उनकी इस कमी का फ़ायदा उठाया।

महर्षि विश्वामित्र की गायत्री सिद्ध करने की तपस्या मेनका नाम की अप्सरा ने भँग कर दिया। क्यूंकि वो राजा रह चुके थे, कहीं न कहीं वासना का बीज पड़ा था। मेनका ने तो दुर्योधन की तरह उसका चारित्रिक कमी का फ़ायदा उठाया। लेकिन जिस् क्षण युधिष्ठिर को भूल का अहसास हुआ जीवन में पुनः जुआ के खेल की ईच्छा का समूल नाश कर दिया। जीवन में फ़िर कभी जुआ न खेला।

इसी तरह महर्षि ने क्या किया, जिस क्षण माँ गायत्री की कृपा से बोध हुआ, अरे करने क्या आया था और मैं बहक गया। तत्क्षण मोहबन्धन और वासना के बीज का भीतर से समूल नाश करके, चन्द्रायण व्रत प्रायश्चित विधान किया। पुनः मेहनत और कठोर तप किया और गायत्री सिद्ध कर लिया।

ग़लत मार्ग चयन का बोध होते ही यू टर्न लेकर सही मार्ग में दोबारा आ जाएँ, मनुष्य जीवन में यदि ग़लती/भूल हो जाए तो बोध आते ही उसका प्रायश्चित करना चाहिए। पुनः योगी और महर्षि विश्वामित्र की तरह साधना में जुट कर जीबन लक्ष्यप्राप्ति करनी चाहिए।

जितनी बड़ी क्षति/भूल उतनी ज्यादा कठोर साधना करें।

उदाहरण - राश्ते में जाते समय कीचड़ के छींटे आ जाएँ तो ये सोचना मूर्खता होगी। अब तो कीचड़ लग ही गया तो क्यों न कीचड़ में लोट पोट लिया जाय। बुध्दिमानी यह है कि कीचड़ धो लिया जाय। आत्मचिंतन करके यह सुनिश्चित किया जाय क़ि पुनः कीचड़ न लगे इस हेतु हमें क्या करना चाहिए?

आत्मसमीक्षा में स्वयं को पत्र लिखें - क़ि ऐसा क्यूँ हुआ? बहकावे में मैं क्यूँ आया? दुबारा ऐसा मेरे साथ न हो इसके लिए कौन सी सावधानी बरतना चाहिए मुझे? मुझे ग्लानि में समय व्यर्थ नहीं करना। यदि एक एग्जाम में फ़ेल हो गया तो क्या और ज्यादा पढ़कर मेहनत करके दूसरे एग्जाम में पास होना है। मैं कायर नहीं हूँ मैं फ़ेलियर को सफ़लता में बदलूंगा।

यदि बड़े केक को खाना हो तो उसके टुकड़े टुकड़े करके ही खाया जा सकता है उसी तरह अपने बड़े महान् जीवन लक्ष्य को छोटे छोटे मॉड्यूल लक्ष्य में बाँट दो। यदि एक वर्ष में मुझे यह हांसिल करना है तो प्रत्येक महीने मुझे क्या अचीव करना होगा? फिर प्रत्येक सप्ताह क्या अचीव करना होगा? फिर प्रत्येक दिन क्या अचीव करना होगा?

इस तरह नित्य गोल/साप्ताहिक गोल/मासिक गोल और वार्षिक गोल होगा तो नित्य गोल अचीव करने की ख़ुशी नित्य मिलेगी।  स्वयं को ट्रैक करना आसान होगा। जीवन लक्ष्य महान् चुनना चाहिए।

कुछ पुस्तकें अवश्य पढ़े :-

1- जीवन लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
2- हारिये न हिम्मत
3- दृष्टिकोण ठीक रखें
4- स्वर्ग-नर्क की स्वचालित प्रक्रिया
5- चन्द्रायण कल्प साधना

सुबह का भूला अग़र शाम को घर लौट आये तो उसे भूला नहीं कहते। यदि ग़लती/फ़ेलियर का समुचित प्रायश्चित कर पुनः प्रयास किया जाय सही करने का तो उसे कोई फ़ेलियर नहीं कहता।

महापुरूषो के जीवन चरित्र पढ़ेंगे तो आप पाएंगे क़ि भूलों को उन्होंने सुधारा है। और संकल्प बल और अथक प्रयास से सफ़ल बनकर दिखाया है।

आपकी सद्बुद्धि और   आपके उज्जवल भविष्य की हम प्रार्थना करते हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन

Saturday 21 April 2018

प्रश्न - वृद्ध ताई की हेल्प कैसे करूँ

प्रश्न - *हमारी एक ताई जी है.... जिनके पास हमारा हमेशा उठना बैठना होता है....और वो भी अपने परिवार की एक कर्मठ कार्यकर्ता रहीं हैं...ताऊजी के जाने के बाद वो एकदम अकेली हैं , कोई संतान भी नही है...पैसा अमाने का कोई जरिया नही है , एक छोटी सी दुकान है जो दिनभर मैं 10-20 रूपया देती है , थोड़ी पैंशन मिल जाती है , घर परिवार मैं ढेर सारी समस्याऐ हैं.... उनके दुःख से दुःखी हूँ ....आप थोड़ा मार्गदर्शन करें .....आपका भाई*

उत्तर - सन्तान न होना कोई समस्या नहीं है, क्योंकि सन्तान वाले लोगों को भी प्रारब्धवश कष्ट भोगते हमने देखा है। सन्तानें उन्हें बेसहारा छोड़ देती हैं। अच्छी किस्मत हो तो सन्तानहीन की भी सेवा दूसरे नाते-रिश्तेदार कर ही देते हैं।

गांव के लोगों से बात करके उनसे अनुरोध करो कि उस बृद्धा के यहां से कुछ न कुछ रोज़ ख़रीद लें। कोई न कोई उनसे मिलकर हफ्ते में हालचाल पूंछने चला जाय। वृद्धावस्था में मीठा या कुछ अलग खाने का बड़ा मन करता है। तो जब आप मिलें कुछ न कुछ अच्छे साहित्य पढ़ने को दें और कुछ खिला-पिला दें, एक ऐसा अहसास दें कि आपको उनकी फिक्र है। छोटी पेंशन और छोटी दुकान भी चल पड़ेगी यदि भगवान की कृपा और आसपास के लोगों का सहयोग मिल जाये तो।

प्रारब्ध से निपटने के दो ही उपाय हैं, पहला उसे भोग लिया जाय और दूसरा गायत्री मंत्र अनुष्ठान से जलाकर भष्म कर दिया जाय।

घर-परिवार जिन देवर/ज्येष्ठ या अन्य किसी न किसी परिवार के साथ वो रह ही रहीं होंगी तो उनके साथ उन्हें सामंजस्य बिठाना पड़ेगा। मृत्यु और विवाह तो निश्चित है, जिसका बुलावा पहले आएगा उसे तो जाना ही पड़ेगा। दूसरे को लम्बी प्रतीक्षा और वियोग प्रारब्धवश झेलना ही पड़ेगा। पिछले जन्म के प्रारब्ध को जब वो स्वयं चाहेंगी तो ही साधना के माध्यम से नष्ट कर सकेंगी।

आप उनके लिए बस उनके आसपास के लोगों के अंदर सम्वेदना जगाने का काम कर सकते है, स्वयं जितनी मदद उनकी कर सकते हैं उतनी मदद कर दें। पूजा में रोज उनके उद्धार की अर्जी लगा दीजिये। रोज उनके लिए कम से कम एक माला गायत्री की जप दीजिये। वो अपनी सद्बुद्धि, सदचिन्तन और सद्व्यवहार से बहुत कुछ ठीक कर सकेंगी, इसलिए उनके स्वाध्याय और सत्संग की व्यवस्था होनी चाहिए।
वृद्धावस्था में अपनी यादों से बाहर निकल सकेंगी, तप्त परिस्थिति में भी स्वयं को सम्हाल सकेंगी।

घर-परिवार में सबकी ढेर सारी समस्याएं होती है, सभी जॉब-व्यवसाय भी समस्याओं से भरे पड़े हैं। इसमें से ही निकलने का मार्ग जिंदगी है। शरीर है तो कोई न कोई बीमारी लगी ही रहती है। सोई भावसम्वेदना लोगों की जनसम्पर्क करके आसपास की जगाएं अच्छे लोगों की संसार मे कमी नहीं है, कोई न कोई साथ उस वृद्धा की मदद को मिल ही जायेगा। नेक उद्देश्य से किये उपाय ईश्वर की इच्छा से जरूर पूरे होते हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday 20 April 2018

प्रश्न - ऑफिस टेंशन को कैसे झेलें?

ऑफिस को धरती में ही रहने दीजिए, मन में ऑफिस मत बनाइये। वरना ऑफिस बड़ा कष्ट देगा। चलो घर तक लाये तो जूतों की तरह ऑफिस की टेंशन शू रेक में रख देना, सुबह जाते वक्त पुनः पहन लेना।

जब तक पैर में जूते हों ऑफिस की खूब टेंशन लो, जूतों को उतार के टेंशन उतार दो। परिवार के साथ समय बिता लो, कुछ अच्छी पुस्तकों उदाहरण अखण्डज्योति से मिनरल, विटामिन रूपी सद्विचार लेकर मन की मरम्मत कर लो। एक नयापन ला लो, फिर जूते पहनो और एक नई ऊर्जा के साथ ऑफिस का काम सम्हालने निकलो।

प्रश्न -कुछ लोग व्यक्तित्व निर्माण की कार्यशाला(Workshop) के पैसे लेते हैं और कुछ फ्री सेवा देते हैं..

प्रश्न - *दी, कुछ लोग व्यक्तित्व निर्माण की कार्यशाला(Workshop) के पैसे लेते हैं और कुछ फ्री सेवा देते हैं...अपने ज्ञान को जन जन तक फ्री पहुंचाते हैं..फ्री कार्यशाला(Workshop) लेते है...दोनो में अंतर क्या है?*

उत्तर - चिकित्सक को दुआ और पैसे दोनो मिल भी सकते हैं और नहीं भी। यदि वो फ्री इलाज़ करता है लोगों का भला होता है, तो 100% दुआ मिलेगी, 100% पुण्यकर्म उसके अकाउंट में ईश्वर डालेगा। अब यदि चिकित्सक पैसा लेकर इलाज़ करता है, तो 100% पैसा मिलेगा। दुआ मिलेगी या नहीं कोई गारंटी नहीं, पुण्यकर्म मिला या नहीं कोई गारंटी नहीं। लेकिन यदि चिकित्सक मूल्य कम लेकर सेवा ज्यादा देता है, उत्तम सेवा देता है। तो दुआ भी मिलेगा और पुण्यकर्म भी।

तो मूल्य कम और सेवा ज्यादा का भाव लेकर कार्यशाला(Workshop)    ली जाती है, तो पुण्य और दुआ दोनो मिलेगा।

यहां सही गलत कुछ कह नहीं सकते है, एक चिकित्सक की तरह ही अध्यात्म चिकित्सक के पास चयन का मार्ग है। कर्म उसके हाथ मे है फ़ल परमात्मा के हाथ में है।

तो कभी रोजी रोटी के लिए कमा लो तो कभी दुआओं के लिए कमा लो। सन्तुलन ही अध्यात्म है। सन्तुलन कमाई और दान के बीच न हुआ तो गड़बड़ शुरू होगी। प्रतिभा/ज्ञान दान की महिमा अनन्त है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Thursday 19 April 2018

प्रश्न - *श्वेता बेटा, ये बताओ परमात्मा के राज्य का योग्य उत्तराधिकारी कौन बनता है?

प्रश्न - *श्वेता बेटा, ये बताओ परमात्मा के राज्य का योग्य उत्तराधिकारी कौन बनता है? परमात्मा अनुदान-वरदान किसपे लुटाता है?उपासना-साधना के साथ आराधना क्यों जरूरी है?*

बेटे, मैं पिछले 35 सालों से साधनारत हूँ, दिव्य अनुभूतियां हुई हैं। जब मैं मेरे मित्रों को आराधना-लोकसेवा-प्रचार प्रसार हेतु कहता हूँ तो वो बोलते है, भाई साहब घर में बैठकर साधना हम कर रहे हैं भगवान स्वतः सब अच्छा करेंगें। उन्हें प्रेरित करने का उपाय बताओ।

उत्तर - प्रणाम बाबूजी चरण स्पर्श🙏🏻, आप एक कहानी के माध्यम से उन्हें अपनी बात समझा सकते हैं।

एक राजा के तीन योग्य पुत्र थे, सभी एग्जाम में एक समान नम्बर लाते थे, एक से बढ़कर एक साधक थे, एक से बढ़कर एक योद्धा थे, एक से बढ़कर एक राजनीतिज्ञ थे। लेकिन राज्य किसके हाथ मे सौंपा जाय, यह तो अनुभव और जीवन जीने की कला पर निर्णय होना था। राजा ने सबसे सलाह ली, जिनमें एक बुद्धिमान किसान की युक्ति राजा को पसन्द आयी।

तीनो राजकुमार को बुलाकर एक एक बोरा गेहूँ का दाना दिया। बोला मैं तीर्थ यात्रा में जा रहा हूँ कुछ वर्षों में लौटूंगा। मुझे मेरे गेहूँ तुमसे वापस चाहिए होगा।

पहले राजकुमार ने पिता की अमानत तिज़ोरी में बन्द कर दी, पहरेदार सैनिक लगवा दिए।

दूसरे ने सैनिक बुलाये और बोरी को  खाली जमीन में फिकवा दिया, और भगवान से प्रार्थना कि हे भगवान जैसे आप प्रत्येक जीव का ख्याल रखते हो, इन बीजों का भी रखना। मैं तुम्हारी पूजा करता हूँ इसलिए तुम इन बीजों को पौधे बना देना और खाद-पानी दे देना। न जमीन के खर-पतवार हटाये और न ही स्वयं खाद पानी दिया, सब कुछ भगवान भरोसे छोड़के साधना में लग गया।

तीसरा राजकुमार किसानों को बुलवाया, उनसे खेती के गुण धर्म समझा। उचित भूमि का चयन किया, स्वयं किसान-मज़दूरों के साथ लगकर जमीन तैयार की, गेहूं बोया और नियमित खाद पानी दिया। रोज यज्ञ गायत्री मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र से खेत पर करता, बची हुई राख खेत मे छिड़कर भगवान से प्रार्थना करता भगवान मेरे खेत की रक्षा करना और पिता के गेंहू मैं लौटा सकूँ इस योग्य बनाना। फ़सल अच्छी हुई और गेहूं अन्य किसानों से उत्तम क़्वालिटी का निकला। अन्य किसानों ने बीज मांगा तो उसने सहर्ष भेंट कर दिए, साथ में बीजो में प्राण भरे इस हेतु साधना और यज्ञ सिखा दिया। सभी किसानों की खेती अच्छी हुई तो आसपास के समस्त गांवों में भी खेती के गुण, साधना-स्वाध्याय के गुण, यज्ञ इत्यादि सिखा दिया। खेतों में अनाज के साथ साथ लोगों के हृदय में अध्यात्म की खेती लहलहा उठी। सर्वत्र राजकुमार की जय हो उठी।
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पांच वर्ष बाद राजा लौटा, बड़े पुत्र को बुलाया और गेहूं मांगा तो तिज़ोरी खोली गयी। घुन ने गेंहू को राख कर दिया था। राजा बोला जिसने जीवित सम्भवनाओ के बीज को मृत कर दिया। वो इस राज्य को भी मृत कर देगा। तुम अयोग्य उत्तराधिकारी साबित हुए।
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दूसरे को बुलाया, तो भगवान को कोसने लगा। बोला गुरुजी झूठे है, भगवान पक्षपाती है। गुरुजी ने कहा था भगवान भक्त की रक्षा करता है, लेकिन भगवान ने मेरे गेंहू के बीजो की रक्षा नहीं की और न हीं उन्हें पौधा बनाया। जो प्रकृति का निर्माता है उसने मेरे बीजों के साथ पक्षपात किया। राजा पिता ने कहा, तूने तो जीवन की शिक्षा पाई ही नहीं केवल पुस्तको का कोरा ज्ञान अर्जित किया। *कर्मप्रधान सृष्टि को समझा ही नहीं, ईश्वर उसकी मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करता हैं।* उपासना के साथ साधना और आराधना भी करनी होती है ये समझा ही नहीं। उपासना रूपी सम्भावना को साधना -आत्मशोधन/मिट्टी की परख/निराई-गुणाई की ही नहीं। तू अयोग्य है। तू मेरा राज्य भी भगवान भरोसे चलाएगा। तूने तो धर्म का मर्म ही नहीं समझा, तू अयोग्य साबित हुआ।
👉🏽👉🏽👉🏽
तीसरे पुत्र को बुलाया, लेकिन यह क्या कई सारे ग्रामवासी बैलगाड़ियों में गेहूँ लिए आये चले जा रहे हैं। राजकुमार और राजा जी की जय बोलते हुए। राजा ने कहा, बेटा मुझे केवल मेरा गेहूँ वापस चाहिए गांव वालों से नहीं।

राजुकमार ने मुस्कुरा के पिता को प्रणाम करके कहा- पिताजी आपके द्वारा दिये सम्भवनाओ के बीज अत्यंत उच्च कोटि के थे, हम सबने मेहनत करके उसको विस्तारित कर दिया। ये इतनी सारी बोरियां उसी सम्भवनाओ/गेंहू के बीज से उपजी है। यह सब आपकी ही है, इन्होंने ने लाखों लोगों की क्षुधा भी शांत की। धन्यवाद पिताश्री आपने मुझे सेवा का सौभाग्य दिया।

पिता पुत्र पर गौरान्वित हुआ, हृदय से लगा लिया और अपने राज्य का उत्तराधिकार सहर्ष सौंप दिया।

उपासना-साधना और आराधना का यही मर्म है। ज्ञान हो या धन उपयोग न हुआ तो सड़ ही जाता है, सदुपयोग हुआ तो वृद्धि होती है। मनुष्य जीवन अनन्त सम्भवनाओ के बीज लेकर मिला है, अब तय हमें करना है कि तिज़ोरी में अपने तक सीमित रखना है, भगवान भरोसे छोड़ना है या इसे विस्तारित करना है। आराधना का मर्म समझे बिना उपासना-साधना अधूरी है। उत्तम बीज भी जरूरी है(उपासना के दो चरण जप और ध्यान), खेत की निराई गुणाई और खाद-पानी(साधना के तीन चरण आत्मशोधन-योगप्राणायाम-स्वाध्याय) और अन्य किसानों तक बीज, खेती के गुण पहुंचाना(आराधना - समाजसेवा, पर्यावरण संरक्षण, वैचारिक प्रदूषण दूर करना, युगसाहित्य पढ़ना और दूसरों को पढ़ने के लिए प्रेरित करना)
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻😇😇😇🙏🏻🙏🏻🙏🏻
बाबूजी, यह बात बच्चो को जरूर कहिएगा, कि युगनिर्माण रिटायरमेंट प्लान या फुर्सत में करने की चीज़ नहीं है। यह सीमा पर छिड़े युद्ध और किसान की खेती तरह है, जिसमें युवाओं के जोश और प्रौढ़ के होश की जरूर है। दोनो को मिलकर आज अभी इसी वक्त से युगनिर्माण में उम्रभर मेहनत-श्रम करना है, जिससे सतयुग की वापसी तय हो सके। मनुष्य में देवत्व और धरती पर स्वर्ग का अवतरण हो सके।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 18 April 2018

कविता- सपनों की दुनियां में अपनो को शामिल कर लें

*सपनों की दुनियां में अपनो को शामिल कर लें*

सपनो की दुनियां में,
अपनो की दुनियां भूल गए,
फेसबुक के चक्कर में,
अपनों के चेहरे देखना भूल गए।

सपनों की दुनियां में...........

Whatsapp के चक्कर में,
अपनो से हालचाल पूंछना भूल गए,
Email के चक्कर में,
अपनों से मेल मिलाप भूल गए।

सपनों की दुनियां में...........

World Wide Web के चक्कर में,
वसुधैव कुटुम्बकम भूल गए,
लैपटॉप-मोबाईल के चक्कर में,
आसपड़ोस को जानना भूल गए।

सपनों की दुनियां में...........

सपनों की मंजिल पर चढ़ने के चक्कर में,
अपनो की नज़रों में गिरते चले गए,
बाहरी अमीरी के चक्कर में,
अंतर में ग़रीबी गढ़ते चले गए।

सपनों की दुनियां में...........

सब ठीक हो जाएगा,
सद्बुद्धि विवेक स्वाध्याय से,
इंटरनेट सर्फ़िंग के साथ साथ,
बस अन्तर्मन की भी सर्फ़िंग कर लें।

बाह्य मैकअप के साथ साथ,
आंतरिक कायाकल्प भी कर लें,
फेसबुक-व्हाट्सएप के साथ साथ,
सहज आत्मीयता विस्तार भी कर लें।

सपनों की दुनियां में,
अपनों को भी शामिल कर लें,
अध्यात्म की टेक लेकर,
संसार की भी सवारी कर लें।

विज्ञान और इंटरनेट का,
भरपूर सदुपयोग कर लें,
सपनों की दुनियां में,
अपनों को भी शामिल कर लें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 17 April 2018

प्रश्न - ध्यान साधना में 20-25 दिन से अभ्यास में जुड़ा हूँ, सर दर्द होता है क्या करूं?

प्रश्न - *अभी अभी 20-25 दिन से ध्यान साधना के अभ्यास से जुड़े हैं। सर में दर्द होने लगा है। क्या करें? ध्यान साधना करना छोड़ दें क्या?*

उत्तर - शरीर हो या मन, यदि अभ्यस्त नहीं तो जब भी अभ्यास शुरू करेंगे दर्द होगा।

उदाहरण - एक लड़का जिम शुरू करता है तो कई दिन तक शरीर में भयंकर पीड़ा होती है। यदि वो डरकर छोड़ देगा तो कभी शरीर अभ्यस्त न होगा। लेकिन यदि डटा रहा और शरीर अभ्यस्त होते ही शरीर का दर्द गायब हो जाएगा।

यदि हाल मन और शरीर का है। मन की जिम में भी गुरुदेव सरल साधना से साधक की शुरूआत करवाते है फिर उच्चस्तरीय साधना बताते हैं। शरीर की जिम इंस्ट्रुक्टर के सामने और मार्गदर्शन में करना चाहिए, उसी तरह मानसिक जिम अध्यात्म में भी गुरु आह्वाहन के बाद और उनके सूक्ष्म मार्गदर्शन में साधना करना चाहिए।

सर में दर्द अधिक हो तो चन्द्रमा का ध्यान करें जप के वक्त, और ध्यान के अभ्यास हेतु यूट्यूब पर श्रद्धेय के वीडियो जरूर देख ले और जो सधे वही करे और धीरे धीरे मन को अभ्यस्त करें।

मन एक जंगली घोड़ा है, शरीर तो शव है ज्यादा से ज्यादा दर्द करेगा लेकिन और कुछ न कहेगा। लेकिन मन आपके दांत खट्टे कर देगा। उठा पटक मचाएगा। मन मे अदालत लगा देगा। चतुर वकील की तरह ध्यान न करने के 1001 तर्क देगा। अंतरात्मा को बोलने का वैसे ही अवसर न देगा जैसे अरनब गोस्वामी और चौरसिया न्यूज़ चैनल वाले होते है, बार बार कहेगा जनता जवाब चाहती है, लेकिन अंतर्मन को बोलने न देगा। चतुर मन और बेवकूफ शरीर है। अतः इतना आसान नहीं होगा ध्यान और जप में अनभ्यस्त मन को लगाना। उसे मानसिक स्वास्थ्य की ओर लगाना और तृष्ना-वासना-कामना के रसास्वादन से छुड़ाना। अगर हज़ार बहाने है ध्यान न करने के तो कोई एक स्ट्रांग वजह ढूढो औऱ विश्वास ढूढो ध्यान करने का। समय स्वतः मिलता नहीं निकालना पड़ता है, मन स्वतः लगता नहीं लगाना पड़ता है, शरीर स्वयं सधता नहीं साधना पड़ता है। ध्यान-स्वाध्याय जरूर करें मन लगे या न लगे, निरन्तर स्वाध्याय जरूर करें। कबीरदास जी का दोहा याद रखें-

*करत करत अभ्यास से, जड़मति होत सुजान,*
*रसरी आवत जात ही, सिल पर पड़त निसान।।*

https://www.youtube.com/user/shantikunjvideo

साधना जल्दबाजी में कोई बड़ी नहीं उठानी चाहिए, शनैः शनैः आगे बढ़ना चाहिए।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती, दिया

प्रश्न - कोई प्रसंशा तो करता नहीं, फिर मेहनत क्यों करूं?

*कोई प्रसंशा तो करता नहीं*

नन्ही सी बच्ची ने रोते हुए अपनी दादी से कहा,
कोई मेरे काम की प्रसंशा तो करता नहीं,
तो मैं इतनी मेहनत क्यों करूँ?
तो मैं अच्छा काम क्यों करूँ?

ऑफिस से घर लौटे बेटे ने कहा,
कोई मेरे काम की प्रसंशा तो करता नहीं,
कोई ढंग का प्रमोशन भी कभी मिलता नहीं,
तो मैं इतनी मेहनत क्यों करूँ?
तो मैं अच्छा काम क्यों करूं?

किचन में बहु ने भी बड़बड़ाते हुए कहा,
मेरी मेहनत का फल तो मुझे मिलता नहीं,
कोई मेरे खाने की प्रसंशा तो करता नहीं,
तो मैं इतनी मेहनत क्यों करूँ?
तो मैं अच्छा काम क्यों करूँ?

बेटे-बहु और नन्ही पोती को,
सुबह दादी ने प्यार से बुलाया,
उगते हुए सूर्य को बड़े प्यार से दिखाया,
और पूंछा यह रोज क्यों निकलता है?
तुम लोग तो इसकी प्रसंशा करते नहीं,
इसके निकलने पर खुशी भी ज़ाहिर करते नहीं,
फिर ये रोज मेहनत रोज क्यों करता है,
फिर ये लोकहित क्यों जलता है?

कोई जल चढाये या न चढ़ाए,
कोई पूजा करे न करे,
यह अपने कर्तव्य से पीछे कभी  हटता नहीं,
हर रोज निकलना कभी भूलता नहीं,
आख़िर क्यों यह इतनी मेहनत करता है,
समस्त जीवों में क्यों प्राण भरता है?
बिन भेद-भाव के क्यों सबको,
एक जैसी रौशनी देता है?

दादी ने प्यार से कहा,
मेरे बच्चों..अब समझे,
क्या मैं समझाना चाहती हूँ,
क्या सन्मार्ग सुझाना चाहती हूँ,
कोई प्रसंसा करे न करे,
सूर्य जैसे कर्तव्य पथ पर डटे रहो,
मेहनत और लगन से अच्छे कार्य करते रहो,
स्वयं में नित्य सुधार करते रहो,
स्वयं बदलाव का हिस्सा बनते रहो।
कोई साथ दे तो ठीक,
न दे तो भी,
नित्य सन्मार्ग पर चलते रहो,
दीप बन जलते रहो,
जहान को रौशन करते रहो।

किसी से प्रसंशा पाने के लिए कार्य मत करो,
कार्य को बेहतर और बेहतर बनाने के लिए जुटो,
कोई इंसान आपके कार्य की प्रसंशा करे न करें,
श्रम देवता आपके अच्छे कार्यों का,
अच्छा कर्मफ़ल जरूर देते रहेंगे।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - विवाह को लेकर टेंशन में हूँ,

प्रश्न - *दी, मैं ख़ुश रहना चाहती हूँ, लेकिन कोई न कोई व्यक्ति या परिस्थिति के कारण मूड ख़राब हो जाता है। पिछले तीन साल से जॉब कर रही हूँ और मेरी शादी होने वाली है। अरेंज मैरिज हो रही है, लड़के से मिल चुकी हूँ। मेरे हाँ करने पर ही ये शादी हो रही है लेकिन फ़िर भी अंजाने भय से ग्रसित हूँ। क्या करूँ?*

उत्तर - पहले लम्बी गहरी श्वांस लो और गायत्री मंत्र एक बार बोलो, अब एक बात बताओ कभी बचपन मे अंधेरे से डर लगा था, हवा से झाड़ियों का हिलना भूत लगा था? इत्यादि बचपन के अनुभव याद करो, हंसी आयी अपनी उन बातों और यादों पर😊..

मन कल्पना करके भय या आनन्द दोनों उतपन्न कर सकता है, तो क्यों न मन से कहो जब कल्पना करना ही है तो कुछ अच्छी कल्पना करो, जैसे झाड़ियों में भगवान की कल्पना इत्यादि...तो इसी तरह वैवाहिक जीवन की कल्पना करनी ही है तो मन को बोलो सुनहरे भविष्य और सुंदर ससुराल की करें न कि डरावने/भय उतपन्न करने वाले रिश्तों और ससुराल की... अच्छा सोचने की आदत डालो..अभ्यास से सम्भव होगा....गन्दा सोचने वाली गन्दी आदत एक दिन में न बदलेगी😔 एक दिन में तुमने पढ़ना-लिखना जब नहीं सीखा तो भला एक दिन में अच्छा सोचना कैसे सीखोगी?...लेकिन अभ्यास से दोनों सम्भव है....

अच्छा ये बताओ, तुम्हारे घर मे टीवी है...होगी ही😇... तुम टीवी देखने बैठो लेकिन रिमोट तुम किसी बच्चे या किसी और के हाथ मे दे दो तो क्या तुम अपना पसंदीदा कार्यक्रम देख पाओगी? नहीं न दूसरा रिमोट में उसकी पसन्द का कार्यक्रम लगाएगा तो तुम्हारा मूड ख़राब हो ही जायेगा। तो यदि कार्यक्रम पसंदीदा देखना है तो रिमोट अपने नियंत्रण में रखो। इसी तरह मन की टीवी में आनन्द उत्सव चलाना है तो रिमोट अपने पास रखो। परिस्थिति या व्यक्ति के हाथ मे अपना रिमोट मत दो कि वो तुम्हारे मन का चैनल बदल सकें। तुम्हारा मन तुम्हारे कंट्रोल में होना चाहिए। तो अपने मन का रिमोट कंट्रोल अपने हाथ मे रखने हेतु नित्य गायत्री जप, प्राणायाम, स्वाध्याय और ध्यान अनिवार्य है।

अब शादी के बाद, परिवर्तन तो होगा ही। दूध से दही जैसा परिवर्तन, वापसी पुनः पुराने जीवन मे सम्भव नहीं। लेकिन दही से मख्खन और मक्खन से घी के उच्च शिखर प्राप्त किया जा सकता है। तो शादी के बाद पुरानी यादों के खंडहर में प्रवेश मत करना, और न हीं ससुराल की तुलना मायके वालों से करना। दूध और दही की तुलना व्यर्थ है। जो जैसा है उसे वैसा स्वीकार कर लेना, किसी भी रिश्ते में उलझना मत, और किसी दूसरे को सुधारने में अपनी एनर्जी खराब मत करना। पूरे ससुराल के वातावरण में सुख-शांति हेतु घर मे बलिवैश्व यज्ञ (गैस चूल्हे पर तांबे के पात्र को रखकर पांच गायत्री मंत्र के साथ आहुति) करना।

जिंदगी का सफ़र बहुत लंबा है, विवाह एक समझौते का सफर है जहाँ दो हमसफ़र के लिए दो सीट बैठने की नहीं होती। एक वक्त पर कोई एक ही बैठ सकता है अर्थात जीवन का नेतृत्व कर सकता है। तो मिल बांटकर समय और कार्य निश्चित कर लो आपस की समझबूझ से कि इतनी देर मैं चेयर पे बैठूँगी और इतनी देर तक तुम बैठोगे। यदि दोनों को अपने अपने क्षेत्र में स्वतंत्रता और पर्याप्त वक्त बैठने को मिलेगा तो कभी झगड़ा नहीं होगा। लेकिन यदि कोई ज्यादा बैठने और नेतृत्व का लालच करेगा तो महाभारत जरूर होगी, और भारी नुकसान दोनो को होगा। केवल कौरव के वंश का युद्ध मे नाश नहीं हुआ था, पांडवो के वंश का भी समूल नाश हुआ था, दोनो की प्रजाओं के वंश का नाश हुआ था और आर्थिक क्षति भी। भगवान कृष्ण न होते तो उत्तरा का गर्भ भी न बचता। अतः यदि पति पत्नी का युध्द हुआ तो क्षति दोनो को होगी। इसलिए सन्तुलित, आनन्दमय और व्यवस्थित जीवन के लिए निम्नलिखित पुस्तको का स्वाध्याय तुम दोनों करो 📖 *गृहस्थ एक तपोवन* , *मित्रता बढ़ाने की कला*, *सफल जीवन की दिशा धारा*, *दृष्टिकोण ठीक रखें*, *भाव सम्वेदना की गंगोत्री* इत्यादि। हो सके तो शादी से पहले इन सभी को पढ़ लो😇।

जिस प्रकार इलेक्ट्रॉनिक्स सामान खरीदते हो तो मैनुअल पढ़ते हो, साथ मे इंजीनयर डेमो देता है तब सामान उपयोग में लाते हो। तो इसी तरह माता-पिता बनने से पहले सन्तान के लालन-पालन और श्रेष्ठ सन्तान की उतपत्ति का मेनुअल पढ़ना। गर्भ संस्कार(पुंसवन) के लिए गायत्री परिजन को घर बुलाना या नज़दीकी शक्ति पीठ चली जाना। 📖  *आओ गढ़े संस्कारवान पीढ़ी* और 📖 *हमारी भावी पीढ़ी और उसका नवनिर्माण* पुस्तक के साथ अन्य सम्बन्धी साहित्य पढ़ लें, फिर माता-पिता बने।

मन के प्रबंधन ( मन मे सुकून और आनंद का उत्पादन, तनाव प्रबंधन और समाधान केंद्रित दृष्टिकोण )  के उपाय मॉल या ऑनलाइन शॉपिंग से नहीं मंगवाए जा सकते न हीं धन से खरीदे जा सकते है। और न ही आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ऑपरेशन या दवा/इंजेक्शन द्वारा हमारे अंदर ये क्षमता उतपन्न कर सकता है। इसका एक मात्र हल वैज्ञानिक अध्यात्म के पास है जिसे निरन्तर अभ्यास और वैराग्य से पाया जा सकता है। आध्यात्मिक अभ्यास (Spiritual practice) - (जप-ध्यान-प्राणायाम और स्वाध्याय) द्वारा मन प्रबंधन (Mind Management) सीख के प्रत्येक परिस्थितियों में आनंद का मार्ग खोज कर ख़ुशी रह सकती हो।

और अपनी सदा आनन्द में रहने की इच्छा पूर्ण कर सकती हो, जिंदगी के हर पल हर क्षण में आनन्दित रह सकती हो।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - पत्नी और मां के रोज रोज के झगड़ो से बहुत परेशान हूँ...

समस्या - *दी मेरी एक गहन समस्या है, जो दिन ब दिन बड़ी होती चली जा रही है। जिसके कारण मैं डिप्रेशन में रहता हूँ। अकेला घर मे कमाने वाला हूँ, प्राइवेट नौकरी है, सॉफ्टवेयर इंजीनियर हूँ। शादी को डेढ़ साल हो चुके है। पत्नी जॉब ढूढ़ रही है पोस्ट ग्रेजुएट है। मेरे पिता सरकारी ऑफिसर थे, चार वर्ष पहले रिटायर हुए हैं। मां और पिता खाने पीने के अत्यंत शौकीन हैं, सुबह से शाम तक भोजन में क्या बनेगा इसी पर चर्चा होती है। दो वक्त स्वादिष्ट भोजन, दो वक्त नाश्ता और दो वक्त चाय और वो भी समय पर चाहिए ही, टीवी में भी अपनी अपनी पसन्द के प्रोग्राम हेतु भी लड़ पड़ते है। पत्नी खाना बनाने की शौकीन नहीं है और कैरियर बनाने में उलझी है। सास बहू की बिल्कुल नहीं बनती। ऑफिस से शाम को घर आने का मन नहीं करता। घर से बाहर ऑफिस की टेंशन, घर के अंदर मम्मी बहु की बुराई और गलतियां गिनाती है, और रूम के अंदर पत्नी मां की गलतियां गिनाती रहती हैं। सैलरी इतनी नहीं कि नौकर रख सकूँ, या प्रत्येक सप्ताह बाहर मॉल वगैरह घूमा सकूं, क्या करूँ? कृपया मार्गदर्शन दीजिये।*

समाधान - *गहन समस्या है, लेकिन निराकरण आसान है।* 😇😇😇 *एक कुशल आध्यात्मिक चिकित्सक बनो और सबके दिमाग से दुश्चिंतन का ऑपेरशन करो*।😇😇😇 सबसे पहले दो सप्ताह तक अपने शरीर को ऊर्जावान बनाओ, नित्य गायत्री जप कम से कक 324 टाइम(तीन माला) जपो, तीन बार नाड़ी शोधन प्राणायाम करो, 15 मिनट नादयोग लगा के ध्यान करो। प्रत्येक गुरुवार व्रत रखो और प्रत्येक शुक्रवार चावल की मीठी खीर से बलिवैश्व यज्ञ करो। मां गायत्री के समक्ष घी का दीपक जलाओ। सूर्य भगवान को  पूजा के बाद जल चढ़ाओ और बचे जल को स्वयं के माथे में लगाओ। घर के दूध में वो बचा हुआ जल की कुछ बूंदे डाल दो। गायत्री मंत्रलेखन रोज एक पेज करो। रात को सोने से पूर्व अखण्डज्योति पढ़कर सोना।

सॉफ्टवेयर फील्ड बुद्धिबल पर टिकी जॉब है, अतः उपरोक्त विधि से तुम्हारा दिमाग सन्तुलित होगा और बुद्धि शार्प, तो ऑफिस की टेंशन में भी आनन्दित रहने का राजमार्ग तुम्हारे पास आ जायेगा।

अब आओ घर की प्रॉब्लम से निपटने के लिए गांधी जी वाला सत्याग्रह बुद्धि प्रयोग से करते है। दो सप्ताह में उपरोक्त उपासना-साधना-स्वाध्याय से मन-मष्तिष्क-शरीर ऊर्जावान बन जायेगा, और अनशन करने के लिए तैयार हो जाएगा। घर में किसी को बिना बताए सोमवार या शुक्रवार में से कोई दिन छुट्टी ले लो जिस दिन वर्कलोड ज्यादा न हो। लैपटॉप बैग से लैपटॉप और जरूरी सामान पहले ही निकाल के कहीं रख दो। अपने कपड़े की अलमारी में कुछ दिन पहले कुछ बिस्किट के पैकेट छुपा के रख लो। अब जब घर मे झगड़ा शुरू हो सोफे में जोर से लैपटॉप बैग फेंकों, और ऊँचे स्वर में बोलो मेरी गलती यह है कि मैं अपने माता-पिता को प्यार सम्मान देता हूँ साथ ही पत्नी को भी प्यार सम्मान देता हूँ। इसलिए रहूंगा तो दोनों के साथ, या नहीं रहूंगा तो किसी के साथ भी नहीं। रोज रोज की कीच कीच से तंग आ गया हूँ। अब मैं अन्न का त्याग कर रहा हूँ जब तक आपके बीच सुलह नहीं हो जाती मैं खाना ही नहीं खाऊंगा, और न ही ऑफिस जाऊंगा, न ही किसी से बात करूंगा।  गुस्से में मुंह फुलाओ और जाकर सो जाओ, मन ही मन गायत्री मंत्र जपो घर मे सबकी सद्बुद्धि के लिए, चेहरे में हंसी बिल्कुल नहीं आनी चाहिए। थोड़ा दुःखी बेचारा चेहरा बना लो, दाढ़ी दो दिन न बनाना और न ही बाल बनाना वैसे ही बेचारे लगोगे। तबियत खराब लगे तो बिस्किट कमरा बन्द करके खा लेना और पानी पी लेना। बिस्किट के पैकेट का छिलका या कागज डस्ट बिन में भी मत फेंकना। दो दिन सब तुम्हें मनाने में लगेंगें, मानना तब जब नियम कानून घर के निम्नलिखित बना लो। ख़ाली दिमाग शैतान का घर होता है, अतः सबको काम बांटो। जब सब झगड़ा न करने का संकल्प लें तो भोजन करो शान से।

1- सुबह का नाश्ता और रात का भोजन पत्नी को बनाने को कहो, और दोपहर का भोजन और शाम का नाश्ता मां बनाएगी। इससे पत्नी को पूरा वक्त मिल जाएगा पढ़ने और जॉब ढूंढने के लिए दिन में बाहर जाने का। पिताजी को बोलो मां की किचन में मदद करें, इच्छित किचन का सामान लाएं, सब्जियाँ काटे और मदद करें। जो बिल आये सामान का वो तुम बिल लेकर उतना पैसा उन्हें दे देना। सुबह अंकुरित सबके नाश्ते में जरूर हो, स्वास्थ्य को वरीयता दो।

2- सास, बहु और ससुर कम से कम एक पेज मन्त्रलेखन दिन में करें और तुम्हे रात को एक दूसरे की बुराई बताने से पहले दिखाएं। थोड़ा अटपटा तरीका है लेकिन काम का है। तुम गुस्से में हो तो जो बोलोगे वो होगा।

3- कभी भी गलती से किसी के लिए स्वयं शॉपिंग मत करना, मां और पत्नी दोनों को पैसा देना। जिसका जो मन खरीद ले।

4- किसी के सामने किसी को ज्यादा किसी को कम प्यार मत करना।

5- यदि चाहते हो कि पत्नी मां की सेवा करे, तो ख़ुद शनिवार-रविवार माता-पिता के पैर दबाओ। सेवा करो। लेकिन पत्नी से मत बोलना सेवा करने को, वो खुद ब खुद करेगी जब तुम करोगे। रोज सुबह ऑफिस जाने से पहले माता-पिता के पैर छूकर जाओ, संस्कार निर्मल भाव बनाएंगे। जानती हूँ आधुनिक जमाने मे ये अटपटा है लेकिन पुराना रामबाण फार्मूला है।

6- अपनी असली कमाई किसी के साथ भी घर मे शेयर मत करो, जितना कमाते हो उसका हमेशा 60% घर लोगों को पता होना चाहिए, बाकी बचत में डालो। ईमानदारी से 1% अपनी कमाई का समाजहित लोककल्याणार्थ खर्च करो।

इस अखण्डज्योति आर्टिकल को पढो जो ज़रूरत-आराम और अय्याशी के जीवन के अंतर को समझायेगा और सही राह सुझाएगा

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1950/January/v2.4

7- नज़दीकी शक्तिपीठ में सुबह पूरे परिवार को ले जाकर निःशुल्क यज्ञ में सम्मिलित हो, वहां निःशुल्क भोजन प्रसाद के बाद निःशुल्क साहित्य का एक घण्टे स्वाध्याय करो। फ़िर घर आ जाओ। वहां इतनी अच्छे जीवन जीने की कला के सूत्र समझाए जाते है कि तो स्वयं आपके, माता-पिता औऱ पत्नी के  स्वभाब में परिवर्तन ला देते हैं।

8- सुबह सबको मॉर्निंग वॉक में भेजिए, ध्यान-प्राणायाम-स्वाध्याय से जोड़िए, घर मे सब स्वस्थ रहेंगे तो अस्पताल का खर्च बचेगा। पहले प्यार से समझाइये, जब कोई न समझे तो एक पांच सौ का नोट लेकर उनके समक्ष जाइये बोलिये यदि स्वस्थ रहने में किसी की इच्छा नहीं तो पैसे बर्बाद करने है तो ये ही सही, एक पांच सौ का नोट दिल मे पत्थर रख के उनके समक्ष फाड़ दीजिये। बोलिये यदि सुबह मोर्निंग वॉक नहीं हुई तो रोज नोट फटेगा। पूरा घर लाइन पर आ जायेगा। घर सुंदर सुखी और धरती का स्वर्ग बन जायेगा। माता-पिता एवं पत्नी सोचेंगे कि तुम टेंशन में पागल हो गए हो, डर के मारे सुबह वाक और स्वाध्याय शुरू करेंगे लेकिन 21 दिन रोज करने के बाद वो इसके अभ्यस्त हो जाएंगे। लड़ना भूल जाएंगे। खुश रहना शुरू कर देंगे।

9- बच्चे को संसार में लाने से पहले यह सुनिश्चित करो कि श्रेष्ठ आत्मा तुम्हारे घर मे जन्म ले, इस हेतु घर मे शक्तिपीठ से मन्त्रबॉक्स खरीद के पूजन घर मे बहुत धीमी आवाज में बजा दो, दिन भर बजना चाहिए। दूसरा पति -पत्नी गायत्री साधना करो, गर्भ संस्कार की पुस्तकें पत्नी के गर्भधारण से पहले तुम दोनों पढ़ लो - 📖 आओ गढ़े संस्कारवान पीढ़ी भाग 1 एवं 2, 📖 प्रतिभा परिष्कार भाग 1 एवं 2, 📖 हमारी भावी पीढ़ी और उसका नवनिर्माण

जब बच्चा गर्भ में आ जाये, तो पत्नी का शक्तिपीठ में या घर पर गर्भ संस्कार करवाना। रोज रात को गर्भ को अखण्डज्योति के आर्टिकल पढ़ के सुनाना। गर्भ से ही बच्चे के अंदर संस्कार विकसित कर देना। पत्नी से अनुरोध करके कम से कम 9 महीने कोई भी हिंसक फ़िल्म या सीरियल मत देखना। स्वयं के लिए और मातृभूमि के लिए एक श्रेष्ठ नागरिक को जन्म देना।

आधुनिक समाज व्यक्तित्व को खोखला और मानसिक दुर्बलताओं को जन्म दे रहा है। टीवी सीरियल का सत्संग घर मे गृह कलह का बीजारोपण कर रहा है। तनाव का उपाय न आधुनिक विज्ञान के पास है और न ही चिकित्सक के पास। अध्यात्म एक मात्र उपाय है। इस अध्यात्म की चाबी से मन मे सुकून, सुनहरे भविष्य का सन्मार्ग और धरती पर स्वर्ग पाया जा सकता है।

🙏🏻 तुम्हारी थोड़ी सी एक्टिंग, तुम्हारा आध्यात्मिक प्रयास माता-पिता की वृद्धावस्था आनन्दमय बना देगा, पत्नी के सुखमय भविष्य की नींव रखेगा। और सुखी परिवार बनेगा।🙏🏻

*अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर सबके उज्ज्वल भविष्य, सद्बुद्धि और उत्तम स्वास्थ्य की प्रार्थना करती हूँ।*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday 16 April 2018

धर्म परिवर्तन के उपाय

दूसरे धर्म पर अपने धर्म को श्रेष्ठ बताने के लिए तीन उपाय हैं:-

1- लोककल्याणार्थ सेवा तर्क तथ्य प्रमाण देकर स्वयं के धर्म को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध कर दिया जाय, विचारपरिवर्तन (भारतीय सनातन धर्म)

2- सेवा, हॉस्पिटल और अन्य आर्थिक उपक्रम से लाभ और लालच देकर धर्म परिवर्तन (...... धर्म)

3- तर्क तथ्य प्रमाण और ज्ञान का अभाव हो और पर्याप्त धन भी लालच देने हेतु न हो तो आतंकवाद द्वारा भय उतपन्न करो और दूसरे धर्म के धार्मिक स्थान पर कुकृत्य करके बदनाम करो (..........धर्म)

वैसे आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता लेकिन रिक्त स्थानों की पूर्ति में सभी धर्म का नाम लिख सकते हैं।

Sunday 15 April 2018

प्रश्न ,- नहीं एक ईच्छा है कि मैं अस्पताल में रोगी बनके नहीं मरना चाहता।

प्रश्न - *श्वेता बेटा, मैं रोज तुम्हारी पोस्ट फेसबुक में पढ़ता हूँ। मेरा प्रश्न नहीं एक ईच्छा है कि मैं अस्पताल में रोगी बनके नहीं मरना चाहता। और न ही मैं अपने बेटे बहू पर बोझ बनना चाहता हूँ। इस वर्ष दिसम्बर 2018 में मैं रिटायर हो रहा हूँ। मेरा मार्गदर्शन करो कि मेरी यह ईच्छा पूरी हो कि अब्दुल कलाम की तरह मैं कार्य करते हुए मरूँ। तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं, के मेरी पत्नी का स्वर्गवास हो चुका है और मैं बैंक में जॉब करता हूँ।*

उत्तर - चरण स्पर्श बाबूजी, हम जो दिल की गहराई से चाहते हैं उस इच्छा को पूरा करने के लिए पूरी क़ायनात हमारी मदद करती है। ईश्वर उसकी मदद जरूर करता है जो अपनी मदद आप करता है। आप तो मुझसे बड़े है, आपकी सेवा का सौभाग्य और मार्गदर्शन का सौभाग्य देने के लिए धन्यवाद। कुछ युगऋषि के मार्गदर्शन पॉइंट्स आपके लिए:-

1- बाबूजी आत्मा कभी बूढ़ी नहीं होती, लेकिन आत्मा तेजवान और सुसुप्त दोनो अवस्था मे जाती है। यदि आप नित्य - गायत्री जप, ध्यान, प्राणायाम, योग और स्वाध्याय करेंगे तो आपके प्राण की अग्नि प्रखर रहेगी। मुख में तेज और शरीर मे ऊर्जा अनवरत बनी रहेगी।

2- बाबूजी मनोविज्ञान कहता है, मनुष्य की बीमारी का जड़ मन होता है। मन एक जंगली घोड़ा है इसे निरन्तर अभ्यास से साधना पड़ता है, जब यह साध लिया जाता है तो हर वक्त आनन्द देने लगता है। तो इसके लिए यूट्यूब में श्रद्धेय डॉक्टर प्रणव पंड्या के देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में दिए ध्यान के लेक्चर रोज़ सुनिये। जो वाला ध्यान आनन्द दे बस उसे रोज कीजिये, कल्पना शक्ति बढाइये एक ही दिशा में और आनन्द में खो जाइये।

3- बाबूजी मस्तिष्क उस व्यक्ति का कभी रिटायर नहीं होगा जो नियमित अखण्डज्योति का एक पेज का स्वाध्याय और नियमित दोनों हाथों से मन्त्रलेखन करेगा। कभी भी पैरालिसिस का अटैक उस पर नहीं हो सकता जिसके मष्तिष्क में ज्ञान का प्रकाश हो और हाथ जिसके नित्य मन्त्रलेखन कर रहे हों।

4- शान्तिकुंज प्रकाशन की पुस्तक 📖 स्वस्थ रहने के सरल उपाय के साथ अन्य स्वास्थ्यपरक साहित्य पढ़ लीजिये। और उसके अनुसार जीवनचर्या निर्धारित कर लीजिए।

5- बाबूजी जैसे प्रत्येक पढ़ाई के दिनों में जो बच्चा वर्षभर मन लगाकर पढ़ता हैं वो तो अच्छे से पास हो ही जाता है लेकिन जो बच्चा अंतिम एग्जाम के कुछ दिनों में भी ठीक से पढ़ ले तो अच्छे अंक भले न ला पाये पास तो हो ही जाता है। इसी तरह वैसे तो वृद्धावस्था रूपी एग्जाम की तैयारी 21 वर्ष की आयु में ही शुरू कर देनी चाहिए, लेकिन 54-55 वर्ष में भी जो वृद्धावस्था की तैयारी में जुट जाएं वो पास हो ही जायेगा। कुछ पुस्तके जरूर पढ़ लीजिये 📖 जो पचपन के हो चले, बुढ़ापे से टक्कर लें इत्यादि।

6- बाबूजी कभी भी पुरानी यादों के खंडहर में प्रवेश मत करना वो शरीर को जर्जर बनाती है। इसलिए नई ऊर्जा और नई कल्पना से जुड़ना जो शरीर मे नई ऊर्जा का संचार करेगी। इसलिए अपनी पेंशन का एक अंश से अच्छी बाल निर्माण की कहानियां और कुछ चोकलेट खरीद लेना। किसी भी सरकारी स्कूल में पहले अच्छी कहानियां सुनाना, छोटे बच्चों के साथ हंसना खिलखिलाकर और उन्हें अच्छी अच्छी बातें सिखाना। बड़े बच्चो को फ्री में कॉमर्स की और बैंकिंग की तैयारी करवाना।

7- बाबूजी कोई ऐसा शौक जो पारिवारिक जिम्मेदारियों में पूरा नहीं कर पाए जैसे गायक बनना, कोई वाद्य यंत्र बजाना, पेंटिंग करना, कोई नई भाषा सीखना इत्यादि को पुनः शुरू करके इसी जीवन में उसका आनन्द उठाइये।

8- रिटायरमेंट के बाद खुद को सन्यासी समझना जिसने मोह-माया से सन्यास ले लिया है। तो घर में प्रवेश करने पर जो बना हो वो खा लेना, अपनी पसंद के अंकुरित और खीरा ककड़ी काला नमक चाट मसाला नींबू इत्यादि समान घर आते वक्त खुद ही ले आना। सुबह उषापान अर्थात बैठ के पहले दो ग्लास पानी पी लेना, फिर ब्रश करते जाने से पूर्व अंकुरित फ्रिज से निकाल के पानी मे डाल देना। नित्य क्रिया और पूजा ध्यान पाठ करके पानी निकाल के उसमें सभी सलाद का सामान स्वयं गायत्री मंत्र जपते हुए काटना, बढ़िया सलाद बना के खा लेना। और वाक पर निकल जाना, जो हमउम्र मिले उनके पुस्तक जीवन जीने की कला के कुछ सूत्र जरूर बता देना।

9- कोई छोटी पुस्तक युगऋषि की साथ मे रखना पढ़कर वो आगे किसी और को पढ़ने को दे देना। भूल के भी स्वयं को वृद्ध मत मानना। युवावस्था में जिस उमंग को लेकर चलते थे उसी उमंग को लेकर चलते रहना।

10- बहु-बेटे यदि कुछ उच्च स्वर में बोले तो एक कान से सुनना और दूसरे कान से निकाल देना। गृहकार्य जो आसानी से हो सके उसमें मदद कर देना। पोता-पोती की होमवर्क में मदद हेतु पहले उस सब्जेक्ट को खुद पढ़ लेना, कुछ समझ न आये तो यूट्यूब से उससे सम्बन्धित वीडियो देख लेना, फिर उसे आसान तरीके से उन्हें पढ़ा देना। उपयोगिता अपनी चहुँ ओर स्थापित करने का प्रयास करना लेकिन परिणाम को मत सोचना। कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन- गीता के अनुसार कर्म करना लेकिन फल की चिंता मत करना।

11- अपने नजदीकी शक्तिपीठ पर साप्ताहिक यज्ञ और सामाजिक लोककल्याणार्थ मिशन गतिविधियों में भाग लेना। अखण्डज्योति पत्रिका स्वयं साइकिल चलकर बांटने जाना, चाहे भले आपके घर चार चार गाड़ियां क्यों न हो साइकिल दिन में कुछ देर के लिए जरूर चलना।

12- शरीर है तो बीमारी हजारी तो लगी रहती है, एक स्पोर्ट्स पर्सन की तरह बीमारी के चौके छक्के छुड़ाते रहिये, दवा करवा के पुनः जिंदगी के खेल में जुट जाईये। प्रत्येक फ़ूड प्रोडक्ट और इलेक्ट्रॉनिक सामान की तरह हमारी भी Expiry निश्चित है। तो जब बुलावा आएगा तब चल देंगे। जब तक जिंदगी के मैच का ओवर खत्म नहीं होता बैटिंग करते रहेंगे। जिंदगी हंसते मुस्कुराते जीते रहेंगे।

विश्वास मानिए बाबूजी जो निरन्तर जप-ध्यान-प्राणायाम-योग के साथ साथ अच्छी पुस्तको को पढ़ता-लिखता रहता है, समाज की गतिविधियों से जुड़ा रहता है। उसके पास टेंशन लेने का वक्त नहीं बचता और न हीं उसके पास पुराने खंडहरों में घूमने का वक्त होता है। अतः उपरोक्त युगसाहित्य के अध्ययन से उपजे विचारअनुसार हमने आपको बताया है।

वैसे भी रिटायर का अर्थ है - टायर बदलना,  नए मानसिक टायर लगाएं और जीवन के सफर का आनंद लें। सुनहरे उम्र (Golden Age) में सुहाना जीवन का सफर हो ऐसी शुभकामनाएं और प्रार्थना महाकाल से करते हैं।

समस्त पुस्तके आप फ्री निम्नलखित वेबसाइट से डाउनलोड करके पढ़ सकते हैं:-

http://vicharkrantibooks.org

यूट्यूब वीडियो इस लिंक पर जाकर देखें

https://www.youtube.com/user/shantikunjvideo

अपने शहर के नजदीकी शक्तिपीठ का अड्र्स इस लिंक पर प्राप्त करे -

For india
http://www.awgp.org/contact_us/india_contacts

For abroad/Global Contact
http://www.awgp.org/contact_us/global_contacts

बाबूजी एक विनम्र अनुरोध है 9 दिवसीय या एक मासीय साधना कार्यशाला रिटारमेंट के पहले शान्तिकुंज या तपोभूमि मथुरा में कर लें, इससे शरीर और मन साधनात्मक कार्य हेतु सध जाएगा:- अड्र्स:-

Address & Contact

1). Gayatri Teerth Shantikunj
Haridwar, Uttaranchal, India – 249411
Phone no : 91-1334- 260602, 260403, 260309, 261955, 261485
Fax no : 91-1334-260866
E-mail : shantikunj@awgp.org

2). Yug Nirman Yojana
Gayatri Tapobhumi
Mathura, Uttar Pradesh, India – 281003
Phone no : 91-0565-2530115, 2530128, 2530399
Mobile no : +91 99270 86287
E-mail : yugnirman@awgp.org

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Saturday 14 April 2018

महिला शसक्तीकरण मानसिक विकास कार्यशाला

महिला शसक्तीकरण मानसिक विकास कार्यशाला (Women Empowerment  Mind Skill Development Workshop) पोस्ट जरूरत से ज्यादा बड़ी है... धैर्य का परिचय देते हुए पढ़ लें...

मानव जीवन सुनहरे भविष्य की सम्भावनाओं को अपने सद्बुद्धि, पुरुषार्थ, उद्यमी, मेहनत, लगन से साकार करने के लिए मिला है। इस खूबसूरत जीवन की खूबसूरती परिस्थिति पर निर्भर नहीं करती वरन मजबूत आत्मविश्वास से भरी मनःस्थिति पर निर्भर करती है। आप हनुमान से शक्तिशाली है, हम तो यहां जाम्बवान की तरह आपके अंदर छुपी शक्ति से परिचय करवाने आये है। आप सभी शक्तिसम्पन्न हनुमान को बस आपका बल याद दिलाने आये है।

अक्ल बड़ी की भैंस? वाली कहावत सबने सुनी होगी। शरीर बल से जो कार्य नहीं हो सकता उसे बुद्धि बल के प्रयोग से आसानी से किया जा सकता है। बुद्धिबल में स्त्री पुरुषों से किसी भी क्षेत्र में कमज़ोर नहीं हैं। अतः आर्थिक रूप से आत्म निर्भर बने तो बहुत अच्छा है, लेकिन यदि होम मेकर बन रहे हो तो पति को पता होना चाहिए कि ये महान उत्तरदायित्व आप उठा रहे हो तो आप आत्मनिर्भर हो। क्योंकि घर सम्हालना भी रोजगार है।

जब किसी मशीन का लम्बे वक्त तक उपयोग न करो तो उसमें जंग लग जाता है, इसी तरह बुद्धि का प्रयोग लम्बे समय से न करने पर उसमे भी जंग लग जाता है। जिस तरह मशीनों को साफ़ करके ग्रीस और तेल डालकर उसे चलाते रहने से उसकी गुणवत्ता बनी रहती है, उसी तरह मानव दिमाग को नित्य जप-ध्यान-प्राणायाम-स्वाध्याय द्वारा चुस्त दुरुस्त एक्टिव और शार्प बनाया जा सकता है। दोनो हाथों से नित्य एक पेज भी गायत्री मन्त्रलेखन बुद्धि की शार्पनेस को बढ़ाता है।

गाड़ी खरीदो लेकिन चलाओ न तो क्या फ़ायदा? इसी तरह बुद्धि होकर भी उसका प्रयोग सृजन हेतु न करो तो क्या फ़ायदा?

देवत्व और असुरत्व दोनों विचारधारा के बीज मानव मष्तिष्क में मौजूद है। देवत्व के पोषण के लिए असुरत्व के विचारों का शमन आत्मशोधन द्वारा अति अनिवार्य है। जागरूक चैतन्य रहकर ही इस पर कार्य किया जा सकता है।

असुरतत्व विचारधारा के व्यक्ति अपनी बुद्धि का विध्वंस हेतु प्रयोग करते हैं, आजकल आतंकवाद इतना बड़ा विश्व के लिये संकट और सरदर्द बना हुआ है, क्योंकि आतंकवाद में सुपर ब्रेन लगे हुए हैं। इस आतंकवाद को रोकने हेतु भी देवत्व विचारधारा के उच्च गुणवत्ता वाले सुपर ब्रेन ही चाहिए।

विकृत चिंतन से उपजी समस्या सदचिन्तन से ही रोकी जा सकेगी। विचारपरिवर्तन/विचारक्रांति ही एक मात्र समाधान है:-

स्वयं के मन को देखो समझो ध्यान से तो पाओगे कि मन जो स्वास्थ्यकर नहीं है उस ओर भागता है, स्वाद और चटोरापन कितना शरीर को नुकसान देता है कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति यह समझ सकता है। इसी तरह व्यसन, केमिकल मैकअप और फ़ैशन त्वचा के लिए और स्वास्थ्य के लिए कितने हानिकारक है, फिर भी असुरत्व विचारधारा हमें इस ओर प्रेरित करती है।

मान लो यदि आप एक कम्पनी के मालिक हो और एक बहुत बहुमूल्य सामान है जिसे  अत्यंत सावधानी से एक जगह से दूसरी जगह ले जाना है या उपयोग करना है, तो आप ये जिम्मेदारी किसको सौंपेंगे? आप सबका उत्तर होगा जो सबसे योग्य एम्प्लोयी होगा उसे सौंपेंगे ये जिम्मेदारी, सही कहा न...

सन्तान उत्पादन एक महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी है, बहुमूल्य जीवन को शरीर देना और उसे अपने रक्त मांस से विनिर्मित करना, रक्त को प्रेम से दूध बना कर पिलाना और उसे पाल पोस के बड़ा करना यह काम हम स्त्रियों को भगवान ने दिया। इसका अर्थ यह है कि हम भगवान की सबसे योग्य एम्प्लोयी हैं। और भगवान ने जो भरोसा हम पर दिखाया है उस जिम्मेदारी का कुशलता पूर्वक निर्वहन करने में हमे खुशी होनी चाहिए और गर्व भी। जब भगवान की दृष्टि में हम योग्य है तो फ़िर स्त्री होने में गर्व होना चाहिए न कि हींन भावना होनी चाहिए।

अब दूसरा उदाहरण, मान लो आपने कुत्ता पाला, और उस कुत्ते ने किसी अन्य आम नागरिक को काट दिया तो सज़ा किसको मिलेगी। FIR कुत्ते पर होगी या मालिक पर? मालिक पर यही उत्तर है न आपका..

तो सन्तान को जन्म हमने दिया तो यदि वो गलत राह पर चलके किसी को नुकसान पहुंचाता है तो उसके लिए भी जिम्मेदारी हमारी बनेगी। अतः बच्चो को अच्छे संस्कार और भारतीय संस्कृति से जोड़ना हमारा कर्तव्य है।

स्त्री को स्त्री की मदद करनी होगी आगे बढ़ने में, यदि किसी लड़की को कोई लड़का परेशान करता है। तो उस लड़की को 20-25 लड़कियों का समूह लेकर उस लड़के को सबक सिखाना चाहिए। संगठन में शक्ति होती है, संगठित रहिये और महिला मंडल बनाइये। कोई लड़का हिम्मत भी न कर सकेगा संगठन की लड़की को देखने की।

अपने महिला मंडल की 20-25 बहनों को स्वयं सुरक्षा हेतु कुछ तकनीक सिखाइये और स्वयं भी अपनाईये:-

1- पहला नित्य जप-ध्यान-प्राणायाम-स्वाध्याय से आत्मबल एकत्रित कीजिये। स्वयं के मन को अच्छे संस्कारो और विचारों से विनिर्मित करें।

2- जुडो-कराते-ताइक्वांडो इत्यादि की ट्रेनिंग स्वयं करिए और अपने ग्रुप जो करवाइये।

3- जेब मे लाल मिर्च का पावडर, मिर्च स्प्रे, पेपर कटर वाली नाइफ, पेन हमेशा साथ रखिये।

4- यदि कभी इज्जत या जान पर बन आये तो स्वयं शहीद होने से पहले दुष्ट का विनाश करके मरना। जिससे वो किसी अन्य स्त्री के साथ दुराचार करने योग्य न बचे।

5- कोई परेशान करे या छेड़े तो आंखों से घूरते वक्त मन ही मन गायत्री मंत्र पढ़कर पूरे आत्मबल से दृष्टिपात उस पर करना जिससे वो भयभीत हो जाये आत्मविश्वास देख के।

6- जब तक जरूरत न हो बेवजह कहीं अकेले उलझना मत। लेकिन यदि कोई मजबूर करे तो पीछे उसे छोड़ना मत। रानी लक्ष्मीबाई भी एक स्त्री ही थी लेकिन अंग्रेजो के दांत खट्टे कर डाले थे।

7- कभी भी जरूरत पड़ने पर पुलिस कम्प्लेन करने अकेले मत जाना किसी न किसी के साथ जाना। धैर्य के साथ मोबाइल ऑन रख के ऑडियो रिकॉर्ड कर लेना। सबूत जरूरी होता है।

8- कभी भी ऑफिस में बॉस बदतमीज़ी करें, तो पहले धैर्य के साथ उसके खिलाफ, ऑडियो, वीडियो सबूत बत्तमीज़ी के एकत्र करो और उसकी पत्नी को या घर वालो को किसी दूसरे नम्बर से भेज दो। साथ मे डेटा सुरक्षित रखो।

9- ऑफिस में एक सदवाक्य गुरुदेव का लगाओ, लैपटॉप की स्क्रीन में भी सदवाक्य लगाओ। अच्छे साहित्य सबको जन्मदिन या अन्य अवसर पर भेंट करो। कभी भी अपनी शोशल मीडिया में अपने अकेले की फ़ोटो डीपी में न लगाएं। जिससे कोई उसका दुरुयोग करे  उसे एडिट करके तो, आप उस ग्रुप फोटो को दिखा सकें। अच्छा तो यही होगा एक सदवाक्य डीपी में लगाएं।

10- इंटरनेट की दुनियां बहुत असुरक्षित है, अतः अपने मोबाइल, लैपटॉप, जरूरी वेबसाइट या ईमेल का पासवर्ड किसी के सामने टाइप न करें। सुरक्षित डेटा रखें। साइट उपयोग के बाद हिस्ट्री हमेशा डिलीट कर दें।

11- पब्लिक मॉल या शॉप या होटल में बाथरूम या चेंजिंग रूम उपयोग से पहले वहां लगे सीसे/दर्पण को चेक करें फिंगर उस पर रख के, यदि उनमे दूरी है तो ठीक है। यदि नहीं तो दूसरा व्यक्ति कांच के उस पार से आपको देख रहा है। छुपे हुए कैमरे पर भी दृष्टि दौड़ाए। जब सबकुछ सेफ लगे तभी वाशरूम या चेंजिंग रूम प्रयोग में ले।

12. घर से निकलते वक्त माता-पिता या पति या बहन को सूचित कर दें, और लौटने का वक्त, जिससे यदि कोई दुर्घटना भगवान न करे कभी हो तो उस वक्त सही समय पर आपको मदद मिल सके।

13. जब साधू सन्तो की भी अप्सरायें अभद्र ड्रेस और नृत्य से उनकी तपस्या भंग कर देती हैं। तो आम इंसान पुरुष तो और भी ज्यादा कमज़ोर मानसिकता के हैं। यदि कॉलेज, ऑफिस, पार्टी में कम वस्त्रों में डांस करेंगी तो इनका चरित्र गिरना तय होता है। शराब/ड्रग्स पीने के बाद देवत्व विदा हो जाता है और असुरत्व/पिशाच बाहर चरित्र में आ जाता है। अतः जहां शराब/ड्रग्स पार्टी हो वहां कोशिस करें न जाएं। यदि जाना भी पड़े ऑफ़िस कार्य मे मजबूरी में तो सुरक्षा हेतु पर्स में लाल मिर्च ,  पेन और पेपर कटर जरूर साथ रखें।

14. जमाना कितना भी आधुनिक हो जाये, घोड़े और घास की दोस्ती सम्भव नहीं है। उसी तरह लडक़ी(घास) है और लड़के(घोड़े), एकांत मिलते ही मुंह मारने की कोशिश करेंगे। अतः एकांत में किसी भी जान पहचान या अनजान किसी से भी न मिले। मजबूरी में ऑफिस कार्य मे मिलना भी पड़े तो गुरुदेव-माताजी का आह्वाहन करके उन्हें साथ ले लें।

15. अपना सुधार ही संसार की सबसे बड़ी सेवा है, अपनी सुरक्षा अपने हाथ है। मन से मन की राह होती है। मन हमेशा मजबूत रखे, सब मेरे साथ अच्छा ही होगा ये विश्वास रखे। गुरुदेव-माताजी मेरे साथ है इसपर दिल से यकीन रखे।

16. बच्चो के समक्ष कभी भी जीवनसाथी से वाद-विवाद न करें। जो भी विवाद हो एकांत में निपटारण करें।

17. पति-पत्नी एक दूसरे के सहयोगी है, पूरक है। विरोधी नहीं है, अतः विवाह के बाद मित्रवत रहें, एक दूसरे का सम्मान करें। गृहस्थ एक तपोवन बनाये और सुखपूर्वक रहें, बच्चो के उत्तदायित्व का मिलकर निर्वहन करें। यदि आप पति की आर्थिक कमाई कर मदद कर रहे है तो घर में पति से गृह कार्य मे निःसंकोच हो मदद लें। समाज सेवा हेतु भी अंशदान-समयदान करें।समाज के निर्माण का दायित्व भी पूरा करें।

18. भगवान उनकी मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करते है। भगवान सही समय पर सही बुद्धि देता है, यदि भगवान से लिंक बनाये रखोगे, अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनोगे, गायत्री मंत्र का GPS साथ रखोगे तो जीवन मे कभी नहीं भटकोगे। 18 सत्संकल्प रोज पढ़े, और अखण्डज्योति के स्वाध्याय के बाद ही सोएं। बिन पूजन भोजन नहीं, और बिन स्वाध्याय शयन नहीं , इस जीवन मन्त्र को कभी न भूलें।

आप सभी बच्चियों के उज्ज्वल भविष्य की हम प्रार्थना करते हैं।

ॐ शांति

कोई प्रश्न हो तो पूंछे।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

संकल्प - अखण्डजप

*सभी को प्रणाम*,

*कल (16 अप्रैल सोमवार) अपने नियत समय पर जप से पूर्व सभी साधक निम्नलिखित मंत्र को ऑडियो के साथ साथ पढ़ते हुए संकल्प ले--*

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*संकल्प - सभी के लिए सदबुद्धि,  सभी का उज्ज्वल भविष्य ,की प्रार्थना के साथ अखंड जप*   🙏🙏
 *वयम् राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः*         
*हमारे प्रिय आत्मीय भाई बहनों, हम सब एक आध्यात्मिक साधना यात्रा के पथिक है, हम सब सबके ह्रदय में प्रेम का बीज जगाने  हेतु- *सामूहिक अखंड जप* *करने जा रहे है*।

*सभी साधक जप पे बैठने से पहले पवित्रता को ध्यान में रखते हुए स्नान या धूलेस्वच्छ वस्त्र पहने । देव मंदिर में दिया जलाए व् अखण्ड जप के निम्मित संकल्प लेने हेतु अपने दाहिने हाथ की हथेली में एक आचमनी जल अक्षत -पुष्प रखे कमर सीधी मन को संकल्प पर एकाग्र करते हुए निचे लिखे संकल्प को दोहराएं*।। 🙏🙏
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विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य, अद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीये प्ररार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे, वैवस्वतमन्वन्तरे, भूर्लोके, जम्बूद्वीपे, भारतवर्षे, भरतखण्डे, आर्यावर्त्तैकदेशान्तर्गते, < *अपने अपने देश का नाम यदि कोई इस संकल्प में भारत के बाहर से भी जो साधक भाई बहन जुड़ रहे हो। फिर उस राज्य (स्टेट)फिर क्षेत्र का स्थान नाम यहां जोड़ें*> क्षेत्रे,  स्थले 2075 विक्रमसंवत्सरे मासानां मासोत्तमेमासे *वैसाखमासे* *शुक्ल पक्षे ..  पतिप्रदा तिथौ . सोमवार शुभवासरे .....अब अपना नाम गोत्र (गुरुगौत्र भरद्वाज) के साथ बोलें*>..... गोत्रोत्पन्नः .. < *अपना नाम बोलें*>........ नामाऽहं सत्प्रवृत्ति- संवर्द्धनाय, दुष्प्रवृत्ति- उन्मूलनाय, लोककल्याणाय, आत्मकल्याणाय, वातावरण -परिष्काराय,  उज्ज्वलभविष्यकामनापूर्तये च प्रबलपुरुषार्थं करिष्ये, अस्मै प्रयोजनाय च कलशादि- आवाहितदेवता- पूजनपूर्वकम् ...                *सबको सद्बुद्धि ,सबका उज्ज्वलभविष्य निमित्तकम* *अखंड जप* >जिसने जितना समय जप किया हो .. बोले...... कर्मसम्पादनार्थं सङ्कल्पम् अहं करिष्ये।
*व देव मन्दिर में अपने इष्ट के समक्ष रखे पात्र में (श्री सद्गुरु अर्पणमस्तु /श्री हरीअर्पण मस्तु )बोल के समर्पित कर दें*🙏

भगवान और सद्गुरु को काम बताने वाले बहुत लोग हैं उनपर मनोकामना का बोझ लादने वाले बहुत हैं। भाग्यशाली हैं हम कि भगवान से काम मांगने वाले, उनका हाथ बंटाने वाले, अपना तप दान करने वाले लोगों में हमारी गिनती है। जो  हमारे लिए अभिमान व सौभाग्य की बात है।🙏🙏

*नोट:सभी साधक अपने नियत समय से 5 मिनट पूर्व जप के लिए तैयार रहे*

प्रश्न - पति के न कमाने और उनके दुर्व्यवहार से दुःखी हूँ, बार बार आत्महत्या का विचार आ रहा है।

प्रश्न - *दीदी मुझे counselling की जरूरत है ,,,मेरे पापा का अभी कुछ दिन पहले देहांत हुआ है और मेरे पति के साथ संबंध ठीक नही है...ऊपर से जली कटी सुनाते रहते है...अपशब्द भी गुस्से में बोल देते है...,,क्यूंकि वो कुछ कमाते नहीं..वक़ालत करके बैठे हैं...कहते कोशिश कर रहा हूँ....सारा घर खर्च अध्यापक की जॉब करके मैं चलाती हूँ...मेरे दो छोटे बच्चे भी है...गुस्से में मेरे दोनो बच्चे लेकर अपने माता-पिता के पास चले गए है..वहां उनका एडमिशन स्कूल का करवा दिया है....,सब अस्त व्यस्त हो चुका है जीबन में कृपया मेरी मदद करे मेरा मन आत्म हत्या ,,,गृह त्याग जैसे चीज़ों के लिए कर रहा है ,,मैं भटक चुकी हूँ,,, कृपया मुझे रास्ता दिखाए*।

उत्तर - सबसे पहले शांत होकर गायत्री मंत्र जपिये। अपनी वर्तमान विचारधारा से बाहर आकर अपने विचारों को बदलिए।

📖पुस्तक निराशा को पास फटकने मत दो और गृहस्थ एक तपोवन का स्वाध्याय नित्य कीजिये।

👉🏽पहली निराशा पिता की मृत्यु से बाहर आइये। जो जन्मा है वो 100% मरेगा भी, उदाहरण जो स्कूल में एडमिशन लिया है एक न एक दिन पढ़ाई पूरी करके निकलेगा भी। दूध के पैकेट और फ़ूड प्रोडक्ट में भी expiry date होती है, इसी तरह सभी जीव वनस्पति इंसानों की expiry date निश्चित है। इसमें शोक करके निराश होना आप जैसी अक्लमंद अध्यापिका को शोभा नहीं देता।

निराशा और निरन्तर याद से आत्मा भटकते हुए घर मे प्रवेश कर जाती है, और घर पितृ दोष से ग्रसित हो जाता है। प्रेत पितरों का आह्वाहन आसान है विदाई सम्भव नहीं। क्योंकि शरीर के मिटते ही सम्बन्ध शरीरगत उसके जहन से मिट जाता है। फिर वही आत्मा परेशानी का सबब बनता है। अतः यादों से बाहर आकर आत्मा का तर्पण-श्राद्ध करके आत्मा का सम्पर्क ईश्वर से जोड़ कर स्वयं उससे मुक्त हो जाइए|

👉🏽 *दूसरी समस्या पति के दुर्व्यवहार और न कमाने की समस्या।*

पति सिर्फ पति नहीं है अब वो आपके अंश का पिता है। तो उससे नफरत करना अर्थात अपने बच्चों से नफरत करना। इससे परिवार बिखरेगा।

जब एक अध्यापक पति पत्नी को होममेकर की तरह रख के पूरा जीवन व्यतीत कर सकता है। तो एक अध्यापिका पत्नी पति को होममेकर बना के जीवन व्यतीत क्यों नहीं कर सकती।

पति को होममेकर की तरह अंतर्मन से स्वीकार कर लीजिए। प्रेम से उन्हें गृहकार्य में लगा दीजिये, बच्चो को घर मे पढ़ाने और घर सम्हालने की जिम्मेदारी में व्यस्त कर दीजिए। कभी भी कमाने वाले जीवनसाथी को न कमाने वाले जीवनसाथी को पूर्ण कमाई कभी नहीं बतानी चाहिए। सिर्फ़ पति के हाथ में घर खर्च के पैसे दीजिये। स्कूल फीस, बिजली का बिल इत्यादि ख़ुद भरिये। उन्हें गृहणी समझिए और स्वयं को पुरुषार्थी पुरूष और चीज़ों को मैनेज कीजिये।

प्रत्येक शुक्रवार को घर में दूध की खीर बना के उससे बलिवैश्व यज्ञ कीजिये।

आसपड़ोसी, आपके बच्चे और रिश्तेदार यदि पति के न कमाने पर प्रश्न करें तो मुस्कुरा के कहिए, आप किस पुराने जमाने की बात कर रही है। आज स्त्रियां पुरुष से किस क्षेत्र में कम है, विदेशो में जो जीवनसाथी ज्यादा कमाता है वो जॉब करता है और कम कमाने वाला घर मे बच्चे सम्हालता है। प्रसिद्ध उपन्यास लेखक - *चेतन भगत* भी होममेकर है। क्योंकि मैं ज्यादा कमाने की योग्यता रखती हूं इस हेतु मेरे महान पति ने मुझे कमाने हेतु प्रेरित किया और स्वयं घर सम्हालने का उत्तरदायित्व लिया। वो स्त्री को बहुत सम्मान देते है। बस इस डायलॉग के बाद कोई कुछ न बोलेगा  सबके मुंह मे ताला लग जायेगा।

पति को प्रेम से हैंडल करें, सुनो जी मैं समझती हूँ कि आप कमाने की बहुत कोशिश कर रहे है। आप कोशिश करिए हम आपके साथ है। यह प्यारा परिवार हमारा है और हम दोनों को मिलकर बच्चो को सुनहरा भविष्य देंगे।

जब तुम कमाने लग जाओगे तब एक मेड रख लेंगे, लेकिन अभी एक  की ही कमाई है, इसलिए जबतक घर मे हो प्लीज़ घर का काम सम्हाल लो। भूल से भी मूंह से उनके न कमाने और उनकी अयोग्यता पर कोई कमेंट पास न करें।

शादी के नौ साल हो गए है तो जितना आप कमाने के लिए उन्हें प्रेरित कर सकती थी आपने ने सबकुछ try कर लिया है। अतः अब आपके समझाने या लड़ने झगड़ने से वो कमाएंगे नहीं। अतः उन्हें बच्चो के ख़ातिर जैसे हैं वैसा स्वीकार कर लीजिये।

कुशल गृहणी कड़वे करेले को भी मस्त मसाला डाल के स्वादिष्ट बना के खा लेती है। इसी तरह कुशल बुद्धिमान गृहणी करेले के समान कड़वे व्यवहार के पति को भी चला लेती है। आप दूसरा विवाह करके दूसरा पति प्राप्त कर लोगे लेकिन बच्चो को कभी दूसरा पिता नहीं मिलेगा उन्हें कमाने वाला और उनसे घृणा करने वाला तीसरा-चौथा सौतेला बाप मिलेगा।

उपरोक्त बताई पुस्तको के स्वाध्याय के साथ साथ कम से कम तीन माला गायत्री मंत्र और एक माला कृष्ण गायत्री और एक माला राधा गायत्री मंत्र जपिये। सुबह ऑफिस जाती है तो नियमित घर मे शाम को ही सही बलिवैश्व यज्ञ कीजिये। इससे घर मे सबको  सद्बुद्धि मिलेगी और घर में सुख शांति आएगी। घर मे सामूहिक अखण्डज्योति का स्वाध्याय कीजिये।

गायत्री मंत्र - *ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात*

*कृष्ण गायत्री मन्त्र*–ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो कृष्ण: प्रचोदयात्।

*राधा गायत्री मन्त्र* –ॐ वृषभानुजायै विद्महे कृष्णप्रियायै धीमहि। तन्नो राधा प्रचोदयात्।

मरने के बाद भी आत्मा को शांति न मिलेगी यदि जिन बच्चों ने आपके गर्भ से जन्मलिया है यदि वो दुःखी रहेंगे। जिम्मेदारी से भागकर मरना कायरता है, लक्ष्मीबाई-दुर्गा शक्ति बनके वीरता का परिचय देते हुए साहस-धैर्य-सद्बुद्धि और उत्साह के साथ जीवन के सफर को एन्जॉय कीजिये। धन्यवाद कीजिये उस ईश्वर का जिसने आपको बुद्धि देकर कमाने योग्य बनाया। कभी सोचा है पति भी न कमाता और आप भी कमाने योग्य न होती, दो वक्त के भोजन के लाले होते तो क्या होता?

अपनी कमाने की योग्यता पर गर्व कीजिये, पूरे परिवार को अपनी क्लास के स्टूडेंट समझ के सूझबूझ से परिस्थिति हैंडल कीजिये। मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। मनःस्थिति बदलते ही परिस्थिति बदल जाएगी, नजरिया बदलते ही नज़ारे बदल जाएंगे। गृहणी पति को समझते ही उनपर गुस्सा नहीं आएगा😂😂😂😂😂😂😂

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...