Monday 29 March 2021

प्रश्न - पूर्वजन्म के कर्मो के फल अनुसार हमारे जीवन में सुख व दुःख का सृजन भाग्य-प्रारब्धवश होता है, लोग हमारे साथ अच्छा या बुरा व्यवहार करते हैं। किसी ने मेरे साथ बुरा किया और मैं बदला लूँ या कोई मुझसे पिछले जन्म का बदला ले रहा है, इत्यादि इन कर्मो का सिलसिला बन्द कैसे होगा। मुझे किसी से बदला नहीं लेना अगले जन्म में यह कैसे सुनिश्चित करूँ?

 प्रश्न - पूर्वजन्म के कर्मो के फल अनुसार हमारे जीवन में सुख व दुःख का सृजन भाग्य-प्रारब्धवश होता है, लोग हमारे साथ अच्छा या बुरा व्यवहार करते हैं। किसी ने मेरे साथ बुरा किया और मैं बदला लूँ या कोई मुझसे पिछले जन्म का बदला ले रहा है, इत्यादि इन कर्मो का सिलसिला बन्द कैसे होगा। मुझे किसी से बदला नहीं लेना अगले जन्म में यह कैसे सुनिश्चित करूँ?


उत्तर - दी, श्रीमद्भागवत गीता में भगवान कृष्ण ने कर्मयोग बहुत अच्छे से समझाया है। उसका सारांश आधुनिक भाषा मे हम यहां आपके प्रश्नों के उत्तर में बता रहे हैं।


हमारी आत्मा के कर्मो का ब्रह्माण्ड के बैंक अकाउंट और सामाजिक लेन-देन भी हमारे पैसों के बैंक अकाउंट और सामाजिक लेन-देन जैसा है।


शरीर के वस्त्र बदलने से बैंक अकाउंट व सामाजिक लेनदेन में कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि सांसारिक अकाउंट का रिश्ता आपसे है आपके वस्त्रों से नहीं..


इसीतरह शरीर रूपी वस्त्र बदलने से ब्रह्माण्ड के कर्मों के बैंक अकाउंट को कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि ब्रह्मांड का रिश्ता आत्मा से है शरीर से नहीं..


संचित कर्मफ़ल में पुण्य आपकी "सेविंग्स" है, जिसे आप विभिन्न सुखों के माध्यम से उपभोग करते हैं। संचित कर्मफ़ल में पाप आपके "लोन" है जिनका विभिन्न कष्ट के रूप में आप भोग करते हैं।


कर्म तो प्रत्येक पल व प्रत्येक क्षण भी हो रहा है, वह पुण्य हुआ तो पुण्य की सेविंग्स को बढ़ा रहा है और पाप के लोन को घटा रहा होगा। यदि पाप हुआ तो पुण्य की सेविंग्स को घटा रहा होगा और लोन को बढ़ा रहा होगा।


केवल पाप से मुक्ति या केवल पुण्य से मुक्ति नहीं हो सकती। दोनों से मुक्त होंगे तभी कर्मबंधन कटेगा।


यदि आप पाप व पुण्य दोनों से मुक्ति चाहते हैं, सुख व दुःख दोनो से मुक्ति चाहते हैं तो कर्म के पीछे के भाव को बदलना होगा। क्योंकि कर्मफल(Result) का आधार कर्म(Action) नहीं होता अपितु कर्म करने के पीछे जो भावना (Intention)  होता है वही मुख्य कारक है।


भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं यदि तू कर्म को मुझे अर्पित करता है व कर्म के पीछे मात्र परमार्थ व लोकहित का भाव होता है, तो ऐसा कर्म बन्धन में नहीं बांधता। ईश्वर या गुरु को समर्पित होकर उसके लिए उसकी इच्छा व प्रेरणा से किया निमित्त बन कार्य भी कर्मबन्धन में नहीं बांधता। 


आपके कर्मफ़ल के अकाउंट को ईश्वर तभी null and void (नष्ट) करेगा, जब आप स्वयं के "मैं" अहंकार को नष्ट कर स्वयं को खाली करके समर्पण से उससे जुड़ जाएंगे। तब "मैं" की जगह "वह परमात्मा" शेष रह जायेगा।


जब तक कोई भी कार्य में कर्ताभाव "मैं" होगा तब तक बंधन व कर्मफ़ल का बैंक अकाउंट अस्तित्व में होगा।


किसी से अगले जन्म में बदला नहीं लेना चाहती, पुनः कोई सामाजिक पाप-पुण्य का लेन देंन नहीं चाहती। तो एक ही उपाय है - "मैं" का त्याग , और उस ईश्वर व गुरु के निमित्त जीवन जीने का भाव। कोई दुःख दे तो बोलें यह ईश्वर की इच्छा से है, कोई सुख दे तो ईश्वर की इच्छा से है। किसी का भला करें तो सोचें ईश्वर ने मुझे सेवा का सौभाग्य दिया, किसी को जाने-अनजाने में दुःखी किया तो बोले हे ईश्वर मुझे माफ़ करो और मेरा मार्गदर्शन करो कि पुनः ऐसा न हो। हे ईश्वर तुम्हारा अंश हूँ तुम्हारे लिए ही जीना चाहता हूँ, तेरी इच्छा पूर्ण हो बस यही चाहत है।


 कण कण में प्रत्येक व्यक्ति में उसी ब्रह्म के दर्शन करो। जैसे लकड़ी(काष्ठ) से बनी प्रत्येक वस्तु (दरवाजा, कुर्सी, मेज, विभिन्न फर्नीचर इत्यादि) वस्तुतः लकड़ी ही है उसका रूप रंग कैसा भी क्यों न हो? इसीतरह पर ब्रह्म के अंश व उसकी इच्छा से बनी समस्त सृष्टि वस्तुतः ब्रह्म ही है। तत्वदृष्टि से संसार को देखना शुरू कीजिए और "मैं की माया" से मुक्त हो जाइए। प्रत्येक कर्म को ईश्वर निमित्त बन कीजिये और उसे अर्पित करते चलिए। "मैं" व कर्ताभाव से मुक्त हो जाइए तो कर्मबन्धन से मुक्त स्वतः हो जाएंगे।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - गर्भस्थ शिशु के रूप रंग व गुण किन किन कारकों पर निर्भर करते हैं?

 प्रश्न - गर्भस्थ शिशु के रूप रंग व गुण किन किन कारकों पर निर्भर करते हैं?


उत्तर- बालक की आकृति, रूप-रंग व स्वास्थ्य का आधार मात्र मातापिता द्वारा प्रदत्त शारीरिक जीन्स पर ही आधारित नहीं होता, अपितु माता पिता की मानसिक सोच व उनका भावनात्मक लगाव गर्भावस्था में किससे अधिक उस पर भी निर्भर करता है।


कैसा भोजन, आहार-विहार ले रहे हो उस पर निर्भर करता है साथ ही कैसे विचार व भावनाएं मन में पोषित कर रहे हो उस पर भी निर्भर करता है।


अक्सर साधारण अवस्था में गर्भवती या तो ससुराल वालों के चिंतन में खोई रहती है  या मायके वालों के चिंतन में खोई रहती है। इस चिंतन का कारण प्रेमवश हो या नफ़रत के कारण हो या गुस्से के कारण हो, बालक का रूप रंग व गुण उसी पर जाएगा जिसका चिंतन मन में सर्वाधिक होगा, जिसके चिंतन पर उसका स्पष्ट चेहरा मन मे बन रहा होगा। तद्नुसार बच्चे का चेहरा व गुण मायके या ससुराल वालों पर पड़ता है।


लेक़िन यदि गर्भवती माता के चिंतन में कोई खिलाड़ी या कोई फिल्मी हीरो/हिरोइन या कोई महान हस्ती या देवी-देवता का चिंतन अत्यधिक भावनात्मक जुड़ाव के साथ हो, घण्टों उन्ही के चिंतन व उन्हीं के चित्र को देखेगी तो गर्भस्थ शिशु का रूप रंग व गुण उसके जैसे अवश्य होंगें।


भावनात्मक गहराई से जुड़े वैचारिक चिंतन चुम्बक की तरह होते हैं, जो ब्रह्माण्ड से अच्छा या बुरा जो चाहे आकृष्ट कर सकते हैं, एवं गर्भस्थ शिशु  के रूप-रंग व गुण को प्रभावित कर सकते हैं।


अतः सावधान रहें, व मन में उठ रहे विचारों और भाव पर नज़र रखें।


🙏🏻श्वेता, DIYA

Friday 19 March 2021

जिज्ञासा - "नादयोग ध्यान के बारे में विस्तार से बताएं।"

 जिज्ञासा - "नादयोग ध्यान के बारे में विस्तार से बताएं।"


समाधान - *नाद आधीनम जगत सर्वम्*


यह समस्त जगत नाद के आधीन है। विज्ञान भी वेद के कथन को मानता है कि यह समस्त ब्रह्माण्ड ध्वनि का कम्पन मात्र है।


यदि जीवन को मधुर सकारात्मक संगीत लहरियों से वंचित रखोगे तो डिप्रेशन को स्वतः आमंत्रित करोगे। 


The impact of musical sounds


वाद्यस्य शब्देन हि यान्ति नाशं बिषाणि घोराण्यपि यानि सन्ति।


 By the musical sounds, the terrible poisonous elements get killed. - Sushruta-samhita


ध्वनि ही ब्रह्म है, ब्रह्मांड का प्रकट स्वरुप है, ध्वनि अपने आप को सभी प्रकार के जीवन के रूप में प्रकट करती है, ध्वनि ही कर्म है, ध्वनि ही धर्म है, ध्वनि ही बंधन है, ध्वनि ही मुक्ति है, ध्वनि ही सब कुछ देने वाली है, ध्वनि ही हर चीज़ में मौजूद ऊर्जा है, ध्वनि ही सब कुछ है।


ध्वनियों को एक ख़ास पैटर्न या ढांचे में रखें,तो उनका एक ख़ास प्रभाव पड़ता है। 

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*नाद का सामान्य अर्थ है* - शब्द या ध्वनि संगीत शास्त्र के अनुशार आकाशस्थ अग्नि और मरुत (वायु) के संयोग से नाद उत्तपन होता है। सम्पूर्ण जगत नाद से भरा हुआ है। इसे "नाद ब्रह्म" कहा गया है।

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नाद दो प्रकार का माना गया है:


1.आहत

2. अनाहत


 नाद के साथ संबंध जोड़ना- यह अनुसंधान या खोज तो स्वयंके आंतरिक जगत की है। नाद योग का उद्येश्य है आहद से अनाहद की ओर ले जाना। ब्रह्मांड और शरीर दोनों में अनाहद ध्वनि गूंज रही हैं अर्थात् ब्रह्मांड में गूंज रहे अनाहद से शरीर में गूंज रहे अनाहद से जोड़ना ताकि अपने बाहरी मन को आंतरिक मन की ओर ले जा सके यही नादयोग का उद्देश्य हैं, अनाहत नाद की ध्वनि का अनुसंधान करना ही नाद योग या नादानुसंधान कहलाता है।


*नादयोग* साधना 


नादयोग या लययोग से अर्थ मन को लय कर देने से है।


मन को लय करने के लिये साधक अपनी चेतना को बाह्य वृत्तियों से समेट कर अन्तर्मुख करके


भीतर होने वाले शब्दों को सुनने की चेष्टा करता है, जिसे ‘नाद’ कहते हैं।


‘नादबिन्दु उपनिषद्’ में इसकी पूरी साधन प्रक्रिया बतलाई गई है।


प्रचलित साधन पद्धतियों में थोड़ा बहुत अन्तर भी दिखलायी पड़ता है।


जिस तरह सूखे पड़े हैण्डपम्प में बाहर से थोड़ा पानी डालकर भीतर के जल के स्त्रोत को बाहर लाया जाता है, इसीतरह बाह्य नादयोग की ध्वनि को सुनते सुनते इतने लयबद्ध व तन्मय होते हैं कि भीतर के अनाहत नाद से जुड़ जाते है। तब परिवर्तन घटता है।


क्रमशः आँख, नाक और होठों को बन्द कर बाहर से वृत्तियों को समेट कर अन्दर में ‘नाद’ को श्रवण करने के लिए केन्द्रित करते हैं।


शिव संहिता में विभिन्न प्रकार के अनहद ‘नाद’ बतलाये गये हैं।


नाद जब सिद्ध होने लगता है तब श्रवण की साधना के प्रारम्भ में मधुमक्खी की भन-भनाहट, इसके बाद वीणा तब सहनाई और तत्पश्चात् घण्टे की ध्वनि और अनन्तः मेघ गर्जन आदि की ध्वनियाँ साधक को सुनाई पड़ती है।


इस नाद-श्रवण में पूरी तरह लीन होने से मन लय हो जाता है और समाधि की अवस्था प्राप्त हो जाती है!


इसी तरह कुछ साधक सिद्धासन में बैठ कर योनि मुद्रा धारण करके अनाहत ध्वनि को दाँये सुनने का प्रयास करते हैं।


इस ‘लययोग या नादयोग’ की साधना से बाहर की ध्वनियाँ स्वतः मिटने लगती है और साधक ‘अकार’ और ‘मकार’ के दोनों पक्षों पर विजय प्राप्त करते हुए धीरे-धीरे प्रणव को पीने लगते हैं!


प्रारम्भ में ‘नाद’ की ध्वनि समुद्र, मेघ-गर्जन, भेरी तथा झरने की तरह तीव्र होती है, मगर इसके पश्चात् यह ध्वनि मृदु होने लगती है


और क्रमशः घण्टे की ध्वनि, किंकिणी, वीणा आदि जैसी धीमी होती जाती है।

यह अनुभव हर साधक के साथ अलग अलग हो सकते हैँ !


इस प्रकार के अभ्यास से चित्त की चंचलता मिटने लगती है और एकाग्रता बढ़ने लगती है।


नाद के प्रणव में संलग्न होने पर साधक ज्योतिर्मय हो जाता है और उस स्थिति में उसका मन लय हो जाता है।उसके अन्दर आनंद का झरना फूट पड़ता है ! उसका मन निर्मल और शांत हो जाता है !


इसके निरन्तर अभ्यास से साधक मन की सब ओर से खींच कर परम तत्व में लीन कर लेता है,


यही नादयोग या लययोग कहलाता है। इसे ही नादयोग या लययोग की परम उपलब्धि बतलाया जाता है।


कुछ लोग ‘नाद योग’ से अर्थ समझते हैं, वह ध्वनि जो सबके अन्दर विद्यमान है तथा


जिससे सृष्टि के सभी आयाम प्राण तथा गति प्राप्त करते हैं, उसकी अनुभूति प्राप्त करना।


इस ‘नाद’ को चार श्रेणियों बैखरी, मध्यमा, पश्यन्ति और परा रूप में विभाजित करते हैं


और इसे साधना की विभिन्न सीढ़ियाँ बतलाते हैं।


कहीं-कहीं इस ‘नाद’ को चक्र-साधना से भी जोड़ दिया जाता है।


इसके अन्तर्गत यह मान्यता है कि जैसे-जैसे चक्र जाग्रत होते है ‘नाद योग’ में सूक्ष्म ध्वनियों का अनुभव होता है।


मूलधार चक्र से आगे बढ़ने पर क्रमशः ध्वनियां सूक्ष्म होती जाती हैं और यह अभ्यास ‘बिन्दु’ पर जाकर समाप्त होता है।


ऐसी मान्यता है कि ‘बिन्दु’ पर जो नाद प्रकट होता है उसकी पकड़ मन से परे होती है।


कुछ लोग संगीत के सात स्वरों (सा, रे, ग, म, प, ध, नि, सा) को आँखें बन्द करके क्रमशः


मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूरक, अनाहत, विशुद्धि, बिन्दु (आज्ञा) तथा सहस्त्रार के साथ जोड़कर


आत्म-चेतना को ऊपर उठाने का प्रयास करते हैँ !


भारतीय शास्त्रीय संगीत मानव तन्त्र या सिस्टम की गहरी समझ से पैदा हुआ है, क्योंकि जीवन के सारे अनुभव, मूल रूप से, हमारे अंदर ही पैदा होते हैं। प्रकाश और अंधकार, ध्वनि एवं मौन, प्रसन्नता एवं दुःख, ये सब हमारे अंदर ही होते हैं। हरेक मानवीय अनुभव अंदर ही होता है, कभी भी हमारे बाहर नहीं होता। अपने अनुभवों के आधार, हम खुद हैं। इस वजह से हमने मानवीय शरीर के कुछ आयामों को पहचाना जो ध्वनि के प्रति संवेदनशील होते हैं। अगर आप जानते हैं कि ध्वनियों का उपयोग कैसे करें तो ध्वनियों की एक उपयुक्त व्यवस्था अद्भुत काम कर सकती है।


मानवीय शरीर को संगीत से सक्रिय करने का तरीका


योग में, हम मानव शरीर को पांच कोषों या सतहों का बना हुआ देखते हैं -- अन्नमय कोष, मनोमय कोष, प्राणमय कोष, विज्ञानमय कोष तथा आनंदमय कोष।

प्राणमय कोष या ऊर्जा शरीर बहुत महत्वपूर्ण है। इसमें 72000 नाड़ियाँ होती हैं, जो ऊर्जा मार्ग हैं और जिनमें से हो कर ऊर्जा सारे शरीर में बहती है। ये नाड़ियाँ, मानवीय शारीरिक व्यवस्था में 114 स्थानों या केंद्रों या चक्रों पर एक दूसरे से मिलती हैं, और फिर से बंट जाती हैं। इन 114 में से 2 केंद्र भौतिक शरीर से बाहर होते हैं तथा 112 शरीर के अंदर होते हैं, जिनमें से 4 अधिकाँश रूप से निष्क्रिय होते हैं।

तो शरीर में 108 सक्रिय ऊर्जा केंद्र रह जाते हैं। ये 108 स्थान शरीर के दायें और बायें भाग में समान रूप से बंटे हैं अर्थात दोनों तरफ 54, और ये इड़ा एवं पिंगला कहलाते हैं। इसी आधार पर हमने संस्कृत की 54 ध्वनियां बनायीं, प्रत्येक को एक पुरुष और एक स्त्री रूप में।


इन 108 ध्वनियों से परम संभावना तक पहुँचना नाद योग कहलाता है


भारतीय शास्त्रीय संगीत में, गणितीय सूक्ष्मता और शुद्धता से यह देखा गया है कि कौन-सी ध्वनियां इन 108 केंद्रों को सक्रिय कर सकती हैं, जिससे मनुष्य का स्वाभाविक उत्थान जागरूकता के ज्यादा ऊँचे स्तर की तरफ हो सके। भारतीय शास्त्रीय संगीत कभी भी सिर्फ मनोरंजन का माध्यम नहीं रहा है। यह, एक मनुष्य को ब्रह्मांडीय स्तर तक विकसित करने की एक प्रणाली रहा है। इस संस्कृति में हम संगीत, नृत्य, जो कुछ भी करते हैं वे सिर्फ मनोरंजन के लिये नहीं होते, वे आध्यात्मिक प्रक्रियायें भी हैं। हमारे जीवन में मनोरंजन का दृष्टिकोण कभी नहीं था, सब कुछ जागरूकता के उच्च स्तर पर जाने की एक साधना ही था।


इन 108 ध्वनियों का उपयोग कर के मानवीय सिस्टम को सक्रिय करना तथा इसे इसकी उच्चतम संभावना तक उठाना 'नाद योग' कहलाता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत नाद योग की इस मूल प्रक्रिया का विकसित स्तर है। जब कोई आवश्यक भागीदारी के साथ भारतीय संगीत सुनता है या कोई शास्त्रीय संगीत की प्रक्रिया में स्वयं पूर्ण रूप से भाग लेता है तो उसे सिर्फ शरीर या भावनाओं के आनंद का ही लाभ नहीं मिलता परंतु यह जीवन के मजबूर करने वाले चक्रों से बाहर आने का एक तरीका हो जाता है। यह एक मार्ग बन जाता है जिससे आप जीवन की उन चक्रीय गतियों से ऊपर उठ कर स्वतंत्रता एवं मुक्ति को प्राप्त करते हैं।


आप नादयोग साधना हेतु शान्त चित्त कमर सीधी कर बैठें व अपना समस्त ध्यान नादयोग की ध्वनियों को सुनने व उसमें खो जाइये। इतने लयबद्ध व तल्लीन हो जाइए कि बाहर की दुनियां का भान ही न रहे व इस माध्यम से अंतर्जगत में प्रवेश कर जाइये।


निम्नलिखित शांतिकुंज की नादयोग ऑडियो वीडियो भी नादयोग हेतु उपयोग में ले सकते हैं:-


https://youtu.be/vgrXskQMLPM


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - मन्त्र का आकर्षक होना जरुरी है या तकनीकी रूप सही व प्रभावी होना ज्यादा जरूरी है? गायत्री मंत्र की ध्वनि रचना किस तरह का प्रभाव मानव जीवन में डालती है?

 प्रश्न - मन्त्र का आकर्षक होना जरुरी है या तकनीकी रूप सही व प्रभावी होना ज्यादा जरूरी है? गायत्री मंत्र की ध्वनि रचना किस तरह का प्रभाव मानव जीवन में डालती है?


उत्तर-  अगर आप ध्वनियों को एक ख़ास पैटर्न या ढांचे में रखें,तो उनका एक ख़ास प्रभाव पड़ता है। हमारी संस्कृति में, हमने ऐसे अलग अलग ढांचों को खोजा और मन्त्र बनाये। मन्त्र, ध्वनि की एक तकनीकी रूप से सही व्यवस्था है, लेकिन इसका सुंदरता की दृष्टि से आकर्षक होना जरुरी नहीं है। एक मन्त्र का सुंदरता की दृष्टि से आकर्षक होने की बजाय, आध्यात्मिक तौर पर तकनीकी रूप से सही होना ज्यादा महत्वपूर्ण है। मन्त्र किसी धर्म या संप्रदाय का नहीं होता, वह पूजा की कोई पद्धति भी नहीं होता। वे बस महत्वपूर्ण ध्वनियां हैं जो आप के लिये ब्रह्माण्ड का हर आयाम खोल सकती हैं। यौगिक विज्ञान में कुछ पद्धतियां हैं, जिनसे आप अपने अंदर ही किसी मन्त्र को थामते हैं और उसे विकसित करते हैं। बहुत से योगी अपना सारा जीवन, बस अपने अंदर एक ही मन्त्र को विकसित या सिद्ध करने में लगा देते हैं। तो, मन्त्र कोई ऐसी वस्तु नहीं है जो आप कहते हैं, मन्त्र वो है जो आप बनना चाहते हैं। अगर आप स्वयं एक चाबी की तरह हो जायें, तो इससे आप के अंदर जीवन का एक नया आयाम तथा अनुभव खुल जाएगा।


ॐ भूर्भुवः स्वः, तत् सवितुर्वरेण्यं,

भर्गो देवस्य धीमहि,

धियो यो नः प्रचोदयात् ॥

-- ( विश्वामित्र )

हिन्दी में भावार्थ

उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अन्तरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।


मंत्र जप के लाभ


गायत्री मंत्र का नियमित रुप से तीन माला जप करने से व्यक्ति के आसपास नकारात्मक शक्तियाँ बिलकुल नहीं आती। 


गायत्री मंत्र जप करते करते साधक मन्त्र के अनुसार इस तादात्म्य एक रूप होकर तरह रूपांतरित होंने लगता है कि वह स्वयं प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप बनने लगता है और एक दिन बन जाता है। नर से नारायण बनने की ओर अग्रसर होने लगता है, देवमानव बन जाता है।


जप से कई प्रकार के लाभ होते हैं, व्यक्ति का तेज बढ़ता है और मानसिक चिंताओं से मुक्ति मिलती है। बौद्धिक क्षमता और मेधाशक्ति यानी स्मरणशक्ति बढ़ती है।


गायत्री मंत्र में चौबीस अक्षर होते हैं, यह 24 अक्षर चौबीस शक्तियों-सिद्धियों के प्रतीक हैं।


इसी कारण ऋषियों ने गायत्री मंत्र को सभी प्रकार की मनोकामना को पूर्ण करने वाला बताया है।

Saturday 13 March 2021

डिप्रेशन ग्रस्त एक सज्जन जब पचास साल की उम्र से ज्यादा के हुए तो उनकी पत्नी ने एक काउंसलर का अपॉइंटमेंट लिया जो ज्योतिषी भी थे।

 डिप्रेशन ग्रस्त एक सज्जन जब पचास साल की उम्र से ज्यादा के हुए तो उनकी पत्नी ने एक काउंसलर का अपॉइंटमेंट लिया जो ज्योतिषी भी थे। 


पत्नी बोली - ये भयंकर डिप्रेशन में हैं, कुंडली भी देखिये इनकी...और बताया कि इन सब के कारण मैं भी ठीक नही हूँ।


ज्योतिषी ने कुंडली देखी सब सही पाया।


अब उन्होनें काउंसलिंग शुरू की, फिर कुछ पर्सनल बातें भी पूछीं और सज्जन की पत्नी को बाहर बैठने को कहा।


सज्जन बोलते गए...बहुत परेशान हूँ... चिंताओं से दब गया हूँ...नौकरी का प्रेशर... बच्चों के एजूकेशन और जॉब की टेंशन... घर का लोन...कार का लोन... कुछ मन नही करता...!!


दुनियाँ मुझे तोप समझती है...पर मेरे पास कारतूस जितना भी सामान नही....मैं डिप्रेशन में हूँ...कहते हुए पूरे जीवन की किताब खोल दी।


तब विद्वान काउंसलर ने कुछ सोचा और पूछा...दसवीं (Class-10) में किस स्कूल में पढ़ते थे....?


सज्जन ने उन्हे स्कूल का नाम बता दिया।


काउंसलर ने कहा आपको उस स्कूल में जाना होगा...वहाँ से आपकी दसवीं क्लास के सारे रजिस्टर लेकर आना। 


सज्जन स्कूल गए... रजिस्टर लाये...काउंसलर ने कहा कि अपने साथियों के नाम लिखो और उन्हें ढूंढो और उनके वर्तमान हालचाल की जानकारी लाने की कोशिश करो। सारी जानकारी को डायरी में लिखना और एक माह बाद मिलना।


कुल 4 रजिस्टर...जिसमें 200 नाम थे...और महीना भर दिन रात घूमे...बमुश्किल अपने 120 सहपाठियों के बारे में जानकारी एकत्रित कर पाए।


आश्चर्य उसमें से 20% लोग मर चुके थे...

7% लड़कियाँ विधवा और 

13 तलाकशुदा या सेपरेटेड थीं

15% नशेड़ी निकले जो बात करने के भी लायक नहीं थे

20% का पता ही नहीं चला कि अब वो कहाँ हैं....!!

5% इतने ग़रीब निकले की पूछो मत... 

5% इतने अमीर निकले की यकीन नही।


कुछ केंसर ग्रस्त, 6-7% लकवा, डायबिटीज़, अस्थमा या दिल के रोगी निकले, 3-4% का एक्सीडेंट्स में हाथ/पाँव या रीढ़ की हड्डी में चोट से बिस्तर पर थे।


2 से 3% के बच्चे पागल...वेगाबॉण्ड या निकम्मे  निकले...1 जेल में था...और एक 50 की उम्र में सैटल हुआ था इसलिए अब शादी करना चाहता था।


1 अभी भी सैटल नहीं था पर दो तलाक़ के बावजूद तीसरी शादी की फिराक में था।


महीने भर में... दसवीं कक्षा के सारे रजिस्टर भाग्य की व्यथा ख़ुद सुना रहे थे।


काउंसलर ने पूछा कि अब बताओ डिप्रेशन कैसा है....?


इन सज्जन को समझ आ गया कि उसे कोई बीमारी नहीं है... वो भूखा नहीं मर रहा, दिमाग एकदम सही है, कचहरी पुलिस-वकीलों से उसका पाला नही पड़ा... उसके बीवी-बच्चे बहुत अच्छे हैं, स्वस्थ हैं, वो भी स्वस्थ है। डाक्टर अस्पताल से पाला नहीं पड़ा।


उन्होंने रियलाइज किया कि दुनियाँ में वाक़ई बहुत दुख: हैं...और मैं बहुत सुखी और भाग्यशाली हूँ...!!


दो बात तय हुईं आज कि...धीरूभाई अम्बानी बनें या न बनें न सही...और भूखा नहीं मरे...बीमार बिस्तर पर न गुजारें...कोर्ट कचहरी में दिन न गिनना पड़े तो इस सुंदर जीवन के लिए ऊपर वाले को धन्यवाद देना ही सर्वोत्तमः है।


क्या आपको भी लगता है कि आप डिप्रेशन में हैं...?


अगर आप को भी ऐसा लगता है तो आप भी अपने स्कूल जाकर दसवीं कक्षा का रजिस्टर ले आयें। 

धन्यवाद 🙏 🙏

✍️  😑


साभार लेखक अज्ञात

Sunday 7 March 2021

महिला दिवस

 महिला दिवस


संसार में उन्हीं जीवों को संरक्षण दिया जाता है जो घट रहे हैं, उन्ही का दिवस मनाया जाता है जिनका वजूद याद करवाने की आवश्यकता आन पड़ती है।


जीवन दायी पर्यावरण खतरे में पड़ा व उसके बिना जीवन नहीं इसलिए पर्यावरण दिवस मनाया जाने लगा। योग लोग भूल रहे थे जिसके बिना स्वास्थ्य नहीं, इसलिए योगदिवस शुरू हुआ। महिलाएं जिनके बिना जीवन नहीं है, जिनके अधिकारों का हनन रोकने व उनके सम्मान को पुन:स्थापित करने के लिए महिला दिवस की शुरुआत हुई। कन्या भ्रूण हत्या भारत जैसे देशों के लिए आज भी बहुत बड़ी समस्या है।


अब प्रश्न यह उठता है कि महिला दिवस को क्या प्रतीकात्मक रूप से मनाकर खानापूर्ति पर्याप्त है या कुछ ठोस कदम भी उठाने अवश्यक है?


पर्यावरण मनाने से पर्यावरण संरक्षित होगा या इस दिन नए सङ्कल्प व कार्ययोजना वृक्षारोपण, जलस्त्रोत की सफाई व वृक्षो के कटाव रोककर पर्यावरण सरंक्षित होगा? स्वयं विचार करें...


इसीतरह महिलादिवस मनाने से महिलाशशक्तिकरण होगा या इस दिन नए संकल्पों के साथ महिलाओं की शिक्षा, आत्मविश्वास बढ़ाने की कार्यशाला, स्व-सुरक्षा हेतु कार्यशाला, आत्मनिर्भर बनने हेतु कार्यशाला व यथासम्भव मदद करने से महिलाशशक्तिकरण होगा।


एक जागरूकता की शुरुआत हमारे घरों से ही शुरू करें, बराबरी का अधिकार घर में बच्चों व परिवार में शुरू करें। आसपास मनोबल बढ़ाने हेतु अच्छी पुस्तकों - वीरांगनाओं के जीवन चरित्र पढ़े और पढ़ाएं। सफल महिलाओं के संघर्षों से प्रेरणा लें व दूसरों को प्रेरित करें।


स्त्री एक दूसरी स्त्री की मददगार बने, भाई लोग भी मदद को आगे आएं। मिलकर एक बेहतर समाज बनाने हेतु कुछ कार्य करें। 


मात्र आर्थिक रूप से सक्षम बनने से महिला शशक्तिकरण नहीं होगा, महिला की स्थिति में सुधार समाज की महिलाओं के प्रति सोच बदलने से होगा। जिस दिन विवाह के खर्च के लिए दहेज़ की जरूरत न पड़े, परिवारों में बुर्के व घूंघट हट जायें, जब सब साथ एक साथ भोजन करे, दोनो  मिलकर घर व बाहर सम्हाले, लड़कियां समाज मे सुरक्षित हों और कोई कन्या जन्म लेने से पहले ही गर्भ में न मारी जाए। तब ही महिला दिवस की सार्थकता सिद्ध होगी।


सम्मान भीख में नहीं मिलता, इसलिये अपने आसपास की कन्याओं को इतना योग्य बनाओ कि वह सम्मान को अर्जित कर सकें। स्वाभिमान से सर उठा के जियें।


गायत्री परिवार में परमपूज्य गुरुदेव ने महिलाओं को बराबरी का अधिकार दिया, गायत्री मंत्र जप अनुष्ठान के साथ साथ यज्ञ पुरोहित बनने का अधिकार दिया। 65% महिलाएं यज्ञ करवाने की कुशलता रखती हैं। यह है जीवंत नारी शशक्तिकरण का उदाहरण।



🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

एक यक्ष प्रश्न-

 एक यक्ष प्रश्न-

🤔🤔🤔🤔🤔

माता पार्वती की रसोई में खाने वाले, शिव-शक्ति जी के साक्षात दर्शन व उनकी साधना करने वाले, उनसे वरदान प्राप्त करने वाले, कुछ वर्ष कैलाश के दिव्य वातावरण में रहने वाला रावण पतित व मानवता का दुश्मन षड्यंत्रकर्ता कैसे बन गया?


ऐसे ही माता वन्दिनियाँ के हाथों की रसोई खाने वाले, गुरु के साक्षात दर्शन करने वाले व साधना करने वाले वरिष्ठ साधक षड्यंत्रकर्ता कैसे बन गए? क्या इनकी साधना से मुक्ति सम्भव है? क्या इनकी साधना फलित होगी?


उत्तर-  जिस तरह मनुष्य का स्वास्थ्य वर्तमान समय में वह कितना स्वास्थ्यकर खा रहा है व कितना योग व्यायाम कर रहा है तय करता है। उसी तरह वर्तमान के पाप पुण्य पिछले कर्मो को प्रभावित करेंगे।


 मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है, जो जैसा जिस मार्ग का चयन होगा, उस ओर ही अच्छा या बुरा चयनानुसार परिणाम होगा।


अंगुलिमाल और डाकू रत्नाकर हिंसा व पाप मार्ग छोड़कर जिस क्षण से सन्मार्ग की ओर बढ़े उनका जीवन बदलने लगा व वह सन्त बन गए। उनके नए पुण्य कर्मो ने उनके पुराने पापों को नष्ट करना शुरू कर दिया।


इसीतरह रावण व भीष्म ने साक्षात ईश्वर की शरण मे साधना की वरदान प्राप्त किये। जिस क्षण रावण ने माता कैकसी और नाना के बहकावे में कुमार्ग चुना, जिस क्षण भीष्म पितामह ने पिता के मोह में अधर्म को भी वचनबद्ध होकर संरक्षण देने का वचन दे डाला। उस क्षण से उनके नए कर्मो ने पुण्य कर्मों को क्षीण करना शुरू कर दिया। द्रोण पुत्र मोह में फंसकर अधर्म के साथी बने, तो उनकी पुण्य कीर्ति नष्ट हो गयी।


एक लख पूत सवा लख नाती, ता रावण घर दिया न बाती। विनाश ही विनाश रावण का हुआ। इसी तरह भीष्म ने वचनबद्ध होकर मत्स्यगंधा, धृतराष्ट्र व उनके पुत्रों के अनीति को संरक्षण देकर विनाश को आमंत्रित किया व महाभारत के युद्ध मे बाणों की शैय्या प्राप्त किये।


इसी तरह माता जी की रसोई का खाने वाले और गुरु के साक्षात दर्शन करने वाले, प्राण दीक्षा लिए हुए जो साधक अनीति मार्ग पर किसी के बहकावे में चल पड़े हैं।उनके नए कर्म पुराने पुण्य कर्मों को क्षीण कर देंगे। वर्तमान गुरुद्रोह प्राचीन गुरुभक्ति के पुण्य को नष्ट कर देगा। वर्षों की संचित साधना कालनेमि का साथ देने के कारण पाप क्षिद्र से ख़ाली हो जाएगा। अब यह पतित होने पर नरकगामी होंगे।


भटका हुआ साधक ही राक्षस बनता है, उसका प्रथम कार्य होता है सेना का विस्तार करना। अतः वह पुरानी साधक की इमेज का (रावण द्वारा लिए साधु वेष) की तरह दुरूपयोग करेगा। जगह जगह भ्रमण करके मीटिंग करके लोगों को गुरु परिवार के ख़िलाफ़ भड़काने का कार्य करेगा। जिसका चित्त भ्रमित हुआ और जो लक्ष्मण रेखा पार किया वह षड्यंत्रकर्ता की मायाजाल में ग्रसित हो जाएगा। कालनेमि की सेना का हिस्सा बन जायेगा।


सतर्क व चैतन्य रहें, अन्यथा उनकी चिकनी चुपड़ी कालनेमि युक्त बुद्धि चातुर्य के जाल में फंस जाएंगे। पतन की गर्त में गिर जाएंगे।


देवता की आराधना करके अनुदान वरदान प्राप्त करने वाले राक्षस ही बाद में लोगों से देवताओं की पूजा बन्द करवाते हैं। ऐसे ही गुरु व उनके परिवार से लाभ प्राप्त करने वाले भटके साधक ही उनके परिवार का समर्थन लोगों से बन्द करने की अपील करते हैं।


समस्या वही प्राचीन है, अब निर्णय तो आपको ही करना है कि आपको भ्रमित होना है इनसे मीटिंग करके या इनसे दूरी बनानी है। 


हम इन समस्त कालनेमी साधक से दूरी बनाने में ही अपना भला समझते हैं, चाहे पहले हम उनके चरण वंदन ही क्यों न करते हों। अब उनकी नीयत जानने के बाद अब उनसे सोशल डिस्टेंसिग ही बचाव का उपाय है।


महाभारत में मेरा पक्ष क्लियर कर दिया है, मैं सत्य के साथ हूँ, गुरु व उनके मिशन के साथ हूँ। गुरु परिवार के साथ हूँ। अतः साधक के वेश में आये षड्यंत्रकर्ता से दूरी बनाए रखूँगी। 


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

कविता - मैं अंतर्मन हूँ

 *मैं अंतर्मन हूँ*


मैं अंतर्मन हूँ,

तुझसे पूँछता हूँ,

तू मुझे क्यों सुनता नहीं?

तू मेरी कही क्यों करता नहीं?


जब जब मैं तुझे धिक्कारता हूँ,

तेरी मक्कारी तुझे याद दिलाता हूँ,

तू मेरी परवाह करता नहीं,

जब तू मुझे सुनता नहीं,

तब तब तू अशांत रहता है,

बेचैन अतृप्त रहता है।


जब तू मेरी उपेक्षा करता है,

मुझे अनसुना करता है, 

तब धीरे धीरे मैं,

मौन होने लगता हूँ,

आवाज़ देना भी,

बन्द कर देता हूँ।


तू शनै: शनैः पशु बनता है,

पशु से पिशाच बनने की ओर बढ़ता है,

मैं मूक दर्शक बन देखता हूँ,

बस तेरे कर्मों का हिसाब रखता हूँ,

मृत्यु के बाद यम के समक्ष,

अपनी फरियाद सुनाता हूँ,

तेरे दण्ड का फिर साक्षी बनता हूँ,

मौन हो सब देखता हूँ।


💐💐💐💐💐💐

मैं अंतर्मन हूँ,

बहुत ख़ुश होता हूँ,

जब तू मेरी सुनता है,

मेरी कही करता है।


जब जब मैं तुझे शाबासी देता हूँ,

तेरे पुण्य कर्मो की याद दिलाता हूँ,

जब जब तू मेरी परवाह करता,

तब तब मैं तेरे अंदर सुकून भरता हूँ।


जब तू मुझे सुनता है,

मेरी कही करता है,

तब धीरे धीरे मैं,

और ज़्यादा मुखरित होने लगता हूँ,

तेरा मार्गदर्शक बनने में,

गौरव अनुभव करता हूँ।


तू शनै: शनैः महा मानव बनता है,

महामानव से देवमानव बनने की ओर बढ़ता है,

मैं तेरा मार्गदर्शन करता हूँ,

तेरे शुभ कर्मों का हिसाब रखता हूँ,

मृत्यु के बाद यम के समक्ष,

तेरे लिए तेरे पक्ष में दलील करता हूँ,

तेरे पुरस्कार का फिर साक्षी बनता हूँ,

तेरा अंतर्मन बनने का गौरव अनुभव करता हूँ।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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