Monday 28 March 2022

प्रश्न- जब कोई हमारी सादगी व हमारे रूप रंग का मज़ाक उड़ाए तो हम क्या करें? कैसे हैंडल करें?

 प्रश्न- जब कोई हमारी सादगी व हमारे रूप रंग का मज़ाक उड़ाए तो हम क्या करें? कैसे हैंडल करें?


उत्तर- प्रत्येक जीव ने स्वयं को नहीं बनाया, उसको बनाने वाला वह ईश्वर है और उसके पूर्व जन्म के प्रारब्ध व कर्म है।


जो भी शरीर मिला हो हिरन का या शेर का, लड़की का या लड़के का, गोरी का या काली का फर्क नहीं पड़ता। परन्तु प्रत्येक व्यक्ति को अपना युद्ध स्वयं लड़ना पड़ता है,


तुम अहिंसक हिरण की तरह निष्पाप हो तो इसका अर्थ यह नहीं कि तुम्हारा हिंसक शेर शिकार नहीं करेंगे, तुम किसी का उपहास नहीं करती तो इसका अर्थ यह नहीं कि तुम्हारा उपहास न उड़ाया जाएगा।


तुम कृष्ण की मित्र हो तो इसका अर्थ यह नहीं कि दूर्योधन तुम्हारे साथ छल नहीं करेगा।


वीर भोग्या वसुंधरा, यह धरती उन्ही के लिए सुरक्षित है जो वीर हो,


जहां रहती हो वह किराए का घर है, बदल दो और नई सुरक्षित जगह जाओ।


या


स्वयं के अंदर इतना आत्मबल जगाओ कि उपहास करने वाली लड़कियों के साथ खुद भी स्वयं पर ठहाका लगाओ जैसे कि अष्टावक्र ने राजा जनक के दरबार पर ठहाका लगाया था।


अष्टावक्र जब दरबार मे गए तो लोग उनको देखकर उपहास उड़ाते हुए हंसने लगे। अष्टावक्र भी जोर जोर स्वयं का उपहास उड़ाते हुए हंसने लगे।


तब जनक ने उनसे पूंछा कि आप क्यों हंसे? तब अष्टावक्र ने कहा यह शरीर मैं नहीं हूँ, इसे ईश्वर ने बनाया है और मुझे इस जन्म में रहने के लिए दिया है। यह मेरा भोग शरीर है। यह जो उपहास उड़ा रहे हैं मेरा नहीं अपितु मुझे बनाने वाले उस परमात्मा का मज़ाक उड़ा रहे हैं। तो मैं क्यों बुरा मानू, वह बुरा माने व इन्हें दण्ड दे जो मेरे इस शरीर का रचना कार है।


मेरे शरीर रूपी घड़े का मैं आत्मा रूपी जल हूँ, इस घड़े का कुम्हार वह परमात्मा है।


बहन, दूसरा कोई तुम्हें न हींन बना सकता है और न ही श्रेष्ठ। तुम्हारे विचार और साधना ही तुम्हे श्रेष्ठ बना सकती है और तुम्हारी सोच ही तुम्हे हीन बना सकती है।


स्वयं की शक्तियों को पहचानो, शरीर की पहचान से ऊपर उठो और अपने आत्मबल से अपना युद्ध लड़ो। बेचारी बनना छोड़ दो, क्योंकि बेचारी वह लड़कियाँ है जिन्हें गुणों व शिक्षा के अभाव में शरीर  को सजा धजा कर लोगो का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करना पड़ रहा है, यह लड़कियां अपना यह जन्म भी बर्बाद करेंगी आगे विवाह व घर गृहस्थी में दिक्कत होगी। अपना अगला जन्म भी बर्बाद करेंगी। उन पर दया करो व उनकी आत्म दरिद्रता को समझो।


💐श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday 14 March 2022

प्रश्न - "मेरी पढ़ाई कुछ दिन ठीक चलती है, फिर फ़ोकस हट के मन ईधर उधर डाइवर्ट हो जाता है। फिर बड़ी मुश्किल से फ़िर दुबारा लगाना पड़ता है। क्या करें कि मन पढ़ने में लगे और ऊबे नहीं..."

 प्रश्न - "मेरी पढ़ाई कुछ दिन ठीक चलती है, फिर फ़ोकस हट के मन ईधर उधर डाइवर्ट हो जाता है। फिर बड़ी मुश्किल से फ़िर दुबारा लगाना पड़ता है। क्या करें कि मन पढ़ने में लगे और ऊबे नहीं..."


उत्तर - मन की गति है आनन्द का रस लेना, और किसी भी चीज़ के मिलने से ऊब भी जाना और फिर कुछ नया तलाश करना...


आइसक्रीम खाने का मन हो, तो कई दिन आइसक्रीम खानी पड़ जाए तो मन ऊब जाता है, वही यदि आइसक्रीम न मिले तो उसी ओर ललचाता रहेगा।


जिन बच्चों को पढ़ने का अवसर नहीं मिलता व गरीबी के कारण व फीस न भर पाने के कारण पढ़ाई से वंचित है। वह बच्चे स्कूल यूनिफॉर्म और पुस्तको को देखकर ललचाते रहते हैं। पढ़ने के लिए बेकरार रहते हैं।


अब तुम्हें पुस्तक भी मिल गयी व यूनिफार्म भी, पेट में भोजन भी है और स्कूल की फीस की कोई टेंशन भी नहीं। जीवन में वर्तमान में जरूरत की सब व्यवस्था है, तो मन को पढ़ने की जरूरत महसूस नहीं हो रही व वह पढ़कर ऊब रहा है। ईधर उधर भटक रहा है।


मन मोटरसाइकिल की तरह दिखता तो है नहीं, उसे स्पर्श भी नहीं किया जा सकता। तो तुम्हारे मन को पकड़कर मैकेनिक के पास ले जाकर उसकी मरम्मत करवाना भी सम्भव नहीं।


तो फिर क्या करें? मन को कैसे सम्हालें?


मन को नियंत्रित करने का कुछ उपाय है ग़ायत्री मन्त्र जप, ध्यान, प्राणायाम और उसको नित्य समझाना-बुझाना। 


अब प्रश्न यह उठता है कि तुम्हारे मन को समझायेगा व बुझायेगा कौन? तुम्हे ध्यान में लगाएगा कौन? तुम्हारे मन से प्राणायाम करवाएगा कौन? तुमसे ग़ायत्री मन्त्र जपवायेगा कौन?


यह तो वही बात हो गयी कि तुम्हारे लिए खायेगा कौन? तुम्हारे खाये भोजन का पाचन करेगा कौन? फिर उसे अंततः टॉयलेट में निकालने जाएगा कौन?


डियर, यह सब आपको स्वयं ही करना है। नित्य 21 बार गणेश योग और अनुलोम विलोम प्राणायाम आपको ही करने है। मन को साधने हेतु 15 मिनट उगते सूर्य का ध्यान और 15 मिनट ग़ायत्री मन्त्र जप आपको स्वयं करना होगा। नित्य दोनो हाथों से बारी बारी 5-5 लाइन ग़ायत्री मन्त्रलेखन भी करें, इससे मन का भटकाव कम होता है। अच्छी महापुरुषों के संघर्षमय जीवनी पढ़े इससे मनोबल बढ़ता है।


 मन को निम्नलिखित बाते रोज आपको समझानी होगी:-


वर्तमान जीवन की सुख सुविधा मुझे मिली क्योंकि मेरे माता-पिता ने पढ़ाई की, पापा यदि न कमाते तो हम भूखों मरते। वृद्धावस्था में दादा-दादी नहीं कमा रहे, ऐसे ही माता-पिता वृद्ध होने के बाद नहीं कमाएंगे। फिर घर खर्च व अपने जीवन को हमे स्वयं सम्हालना है। जनसँख्या अधिक है व कम्पटीशन कठिन है। मुझे अच्छा कैरियर बनाना है तो सबसे ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी। मुझे मेरे मन को पढ़ने में लगाना ही होगा। ज्ञान एक मात्र मेरे जीवन को सम्हालेगा, बिना ज्ञान मैं समाज मे स्वयं को प्रतिष्ठित नहीं कर पाऊंगा/पाऊंगी। मुझे सब तभी सम्मान देंगे जब मैं सफल बनूंगा/बनूंगी।मुझे मेहनत करनी है, मैं कर सकता हूँ/सकती हूँ। 


मन बार बार भटकेगा, इसे पुनः सही राह पर हम लाएंगे, इसे पढ़ने में लगाएगें। मन को पढ़ने में लगाना हमारी जिम्मेदारी है। स्वयं को योग्य बनाना हमारी जिम्मेदारी है। हमें पढ़ना ही पड़ेगा, हम पढ़ेंगे और मन को पढ़ाई का महत्त्व समझाएंगे। 


जब मन किसी सब्जेक्ट से ऊब जाए, तो लिखने लग जाये। जब लिखने से थक जाए तो दूसरा सब्जेक्ट पढ़ने लग जाये। बीच बीच मे 2 मिनट से 5 मिनट का प्रत्येक 40 मिनट बाद स्वयं को पढ़ाई से ब्रेक दें।


मन यदि पढ़ने में लगे तो उसे शाबाशी देने के लिए उसकी पसन्द का कुछ खाएं या कुछ खेल कर लें। यदि मन पढ़ने में न लगे तो उसे दण्ड देने हेतु नापसंद चीज़ करेले, नीम व मिर्च को कच्चा खाएं। 


मन के टीचर/मालिक स्वयं बने, उपरोक्त विधियों से मन को सम्हाले समझाये और पढ़ाई में लगाये। मन आपका है तो इसे सही राह पर लाने की जिम्मेदारी भी आपकी है। यह जीवन आपका है तो इसे सफल बनाने की जिम्मेदारी भी आपकी ही है।


कोशिश करने वालो की कभी हार नहीं होती,

लहरों से डरकर नौका कभी पार नहीं होती।


जो अनवरत प्रयास करता है, वही सफलता का स्वाद चखता है।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - मृत्यु भोज क्या कुप्रथा-कुरीति है? या कुछ आध्यात्मिक वैज्ञानिक लाभ भी है?

 प्रश्न - मृत्यु भोज क्या कुप्रथा-कुरीति है? या कुछ आध्यात्मिक वैज्ञानिक लाभ भी है?


उत्तर- 

*आध्यात्मिक लाभ एवं उचित रीति रिवाज* - श्राद्ध तर्पण एवं तपस्वी अनुष्ठान करने वाले ब्राह्मण से यज्ञ करवाना और उसके बाद उनको भोजन करवाना - यह उचित रीति रिवाज है। जिनके पास तप की पूंजी है उन तपस्वियों के आशीर्वाद से आत्मा को शांति मिलती है।


*रूढ़िवादी कुरीति - कुप्रथा* :- सारे आस पास के गांव और रिश्तेदार-नातेदार भैवाद को मृत्यु भोज करवाना। आम जन जिनके पास तप की पूंजी नहीं उन्हें भोजन करवा के कोई लाभ नहीं। जो मृतक के प्रति संवेदनशील नहीं औऱ जिनके हृदय में मृतक के लिए सच्चा प्रेम व निष्ठा नहीं, उन्हें मात्र दिखावे व रूढ़िवादी परंपरा के निर्वहन के लिए भोजन करवाना कुप्रथा है।


💐💐💐💐

देवतुल्य और तपस्वी ब्राह्मणों के अभाव में 12 वर्ष की कम उम्र की कन्याओं को भोजन करवा दें। या किसी विवाह योग्य गरीब कन्या के विवाह हेतु या पढ़ाई की इच्छुक कन्या के पढ़ाई हेतु धन खर्च करें। पुण्यलाभ होगा।


🌲🌲🌲🌲🌲

मृतक के नाम पर वृक्षारोपण अक्षय पुण्य देता है। यह पशु पक्षियों को भोजन और घर दान करता है और इंसानों को सतत ऑक्सीजन दान करता है। अक्षय पुण्य हेतु मृतक के नाम पर वृक्ष लगाएं।


🐮🐮🐮🐮🐮

गौ सेवा व गौ दान और श्रीमद्भागवत के सातवें अध्याय का पाठ भी मृतक की आत्मा को शांति देता है।


🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 9 March 2022

गर्भस्थ से प्रार्थना

 गर्भस्थ से प्रार्थना


हे गर्भ में विद्यमान आत्मा,

आप हमारे पूर्वज हो या मित्र हो तो,

हमें अपने माता पिता के रूप में स्वीकार करो,

इस नए अनुबंध में हमारा साथ दो...


हे गर्भ में विद्यमान आत्मा,

यदि आप हमारे पूर्वजन्म के शत्रु हो तो,

इस जन्म में समस्त शत्रुता का अंत करो,

नई मित्रता स्वीकार करो,

हमें अपने माता पिता के रूप में स्वीकार करो,

इस नए अनुबंध में हमारा साथ दो...


हमसे जाने अनजाने में,

इस जन्म में या पूर्वजन्म में,

आपके साथ कोई दुर्व्यवहार हुआ हो तो,

हमें क्षमा कर दो,

हमने यदि आपको कोई क्षति पहुंचाई हो तो,

हमें क्षमा कर दो,

हमें अपने माता पिता के रूप में स्वीकार करो,

इस नए अनुबंध में हमारा साथ दो...


हम अपनी भूलों के लिए प्रायश्चित करने को तैयार हैं,

हमारा स्वप्न या ध्यान में संकेत के माध्यम से मार्गदर्शन करें,

हमें क्षमा कर,

हमारी मित्रता स्वीकार करें,

हमें अपने माता पिता के रूप में स्वीकार करो,

इस नए अनुबंध में हमारा साथ दो...


स्वस्थ व प्रशन्नचित्त जन्म लो,

इस नए जन्म को सार्थक करो,

श्रेष्ठ जीवन जियो,

और हमारे साथ प्रेमपूर्वक रहो।


हम आपका आगे बढ़ने व पढ़ने में,

यथासम्भव सहयोग करेंगे,

आप भी स्वयं को उच्च शिक्षित व सफल बनने हेतु,

यथासम्भव प्रयास करें...


आपसे प्रार्थना है कि,

आप स्वयं का उत्थान करें,

परिवार के संरक्षक बने,

समाज के उद्धारक बने,

और इस राष्ट्र के रक्षक बने,

स्वयं भी आनन्दित रहें,

व हमें भी आनन्द दें।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

गर्भस्थ की पाठशाला, गर्भ में ही माता पिता द्वारा,

 गर्भस्थ की पाठशाला,

गर्भ में ही माता पिता द्वारा,

यह अनूठी पाठशाला,

जहां शिक्षण मिलेगा निज माता पिता द्वारा..


माता द्वारा मिलेगा गर्भ में ही,

आकार व संस्कार एक साथ,

पिता द्वारा मिलेगा गर्भ में ही,

ज्ञान व प्यार एक साथ...


मंत्रजप की तपशक्ति से,

गर्भस्थ ऊर्जावान बनेगा,

गहन ध्यान के तपकर्षण से,

गर्भस्थ प्राणवान बनेगा...


व्यक्तित्व निर्माण के सूत्र,

छोटी छोटी कहानियों से मिलेंगे,

महापुरुषों के जीवन चरित्र,

गर्भस्थ को प्रेरित करेंगे...


गर्भसंवाद के माध्यम से,

गर्भस्थ व माता पिता बात करेंगे,

भावनाओ के आदान प्रदान से,

एक दूसरे को और समझेंगे जानेंगे...


युगऋषि श्रीराम शर्मा आचार्य जी की,

यह है अद्भुत प्रयोगशाला,

आओ गढ़े संस्कारवान पीढ़ी मुहिम में,

गर्भ ही बन जाये गर्भस्थ की प्रथम पाठशाला...


💐श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...