Thursday 31 May 2018

गर्भ संवाद गीत

*गर्भ संवाद गीत*

तुम बुद्ध हो, तुम शुद्ध हो,
निरंजन आत्म रूप हो,

हे कर्म योगी! जन्म लेकर,
इस संसार का उद्धार करो,
अपने बुद्धि सामर्थ्य से,
इस संसार का कल्याण करो।

तुम बुद्ध हो, तुम शुद्ध हो,
निरंजन आत्म रूप हो।

तुम युगऋषि प्रज्ञावतार के सहयोगी हो,
तुम हिमालय के एक सिद्ध योगी हो,
सृष्टि के कल्याण हेतु ही,
मेरे गर्भ में आये हो।

तुम बुद्ध हो, तुम शुद्ध हो,
निरंजन आत्म रूप हो।

तुम्हारी माँ बन के आज मैं हर्षित हूँ,
तेरे ज्ञान प्रकाश से मैं आलोकित हूँ,
एक युगनिर्माणि सिद्ध योगी को,
गर्भ में धारण कर मैं पुलकित हूँ।

तुम बुद्ध हो, तुम शुद्ध हो,
निरंजन आत्म रूप हो।

तुम अध्यात्म और विज्ञान में,
सदा सर्वदा सन्तुलन रखना,
तुम सांसारिक सफलता के साथ साथ,
आध्यात्मिकता के शिखर पर चढ़ना।

तुम बुद्ध हो, तुम शुद्ध हो,
निरंजन आत्म रूप हो।

तुम शिव की तरह सदा उदार रहना,
तुम श्रीराम की तरह मर्यादा धारण करना,
तुम कृष्ण की तरह कुशल कूटनीतिज्ञ बनना,
गीता के कर्मयोग सिद्धांत सदा अपनाना।

तुम बुद्ध हो, तुम शुद्ध हो,
निरंजन आत्म रूप हो।

दीप बनकर जलते रहना,
आंधी तूफानों से भी लड़ते रहना,
अपने आत्मज्ञान प्रकाश से,
जहान का अंधकार दूर करना।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

(गर्भ में हाथ रखकर इस गर्भ संवाद गीत को गुनगुनाएं)

पुंसवन है एक सम्पूर्ण गर्भ विज्ञान

*पुंसवन है एक सम्पूर्ण गर्भ विज्ञान*
इसे अपनाकर *आओ गढ़े सुसंस्कारी सन्तान*
माता-पिता की उच्च मनःस्थिति बनाके,
गर्भ से ही निर्मित करो श्रेष्ठ गुण सम्पन्न सन्तान।

मन मष्तिष्क की प्रोग्रामिंग सीखो,
गर्भ में ही इनर इंजीयरिंग अपनाओ,
कुशल गर्भ इंजीनियर बनके,
गर्भ से ही मनचाही सन्तान बनाओ।

चेतना को प्रभावित करने का अनूठा ज्ञान,
अपनाओ पुंसवन एक सम्पूर्ण गर्भ विज्ञान,
आध्यात्मिक वैज्ञानिक युगऋषि की इस रिसर्च से,
भावी पीढ़ी का गर्भ से ही करो निर्माण।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 30 May 2018

*विनाश काले विपरीत बुद्धि* बनाम *उज्ज्वल भविष्य हेतु सद्बुद्धि*

*विनाश काले विपरीत बुद्धि*
बनाम
*उज्ज्वल भविष्य हेतु सद्बुद्धि*

कालिदास जब कालिदास नहीं बने थे तो उसी वृक्ष की डाल को काट रहे थे जिस पर वो स्वयं बैठे थे। यह दृश्य सोचकर सभी बुद्धिमान लोग जो इस पोस्ट को पढ़ रहे हैं हंसी आ रही होगी। कालिदास की मूर्खता पर....

लेकिन अपनी मूर्खता पर हम कब हँसे थे, अपनी मूर्खता का अवलोकन लास्ट बार हमने कब किया था। हम सब थोड़ा अपनी मूर्खता की लिस्ट और विपरीत बुद्धि पर नज़र दौड़ाएं:-

1- प्रकृति का अन्धाधुन्ध दोहन किया लेकिन उसका संरक्षण नहीं किया। अर्थात सामूहिक मौत का स्वयं इंतज़ाम किया। कब चेतेंगे? कब प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण हेतु प्रयासरत होंगे?

2- पता है जल बना नहीं सकते केवल संरक्षित कर सकते हैं। फ़िर भी सभी एकजुट हो वर्षा के जल को संरक्षित करने हेतु प्रयास नहीं कर रहे। जल के बिना जीवन नहीं है, कई राज्यों में गर्मी में सूखे के हालात बनते हैं फिर भी कोई तैयारी नहीं। सामूहिक मौत का इंतज़ार कर रहे हैं। कब एक जुट हो जलसंरक्षण हेतु प्रयासरत होंगे?

3- पता है ऑक्सीजन बना नहीं सकते। केवल वृक्षों से ही प्राप्त कर सकते हैं। फिर भी विकास के नाम पर अंधाधुंध पेड़ की कटाई। कंकरीट के जंगल के निर्माण में लगे हैं। भोजन बिना तो दो दिन जी भी सकते हो, लेकिन ऑक्सीजन बिना दो पल भी जिया नहीं जाएगा। सामूहिक मौत का इंतज़ार कर रहे हैं। कब एकजुट हो वृक्षारोपण के लिए प्रयासरत होंगे?

4- पता है कि जहरीली खाद में उगी फ़सल ज़हरीली ही होगी। ज़हर थाली में परोसा जा रहा है। विभिन्न रोगों से शरीर ग्रसित हो रहा है। फिर भी सब एकजुट होकर इस पर कार्य नहीं कर रहे। दुःखद है, ऑर्गेनिक खाद और गौ सम्वर्धन के लिए प्रयास में तेजी नहीं आयी। कब ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने हेतु किसान मित्र बनने हेतु एकजुट हो प्रयासरत होंगे?

5- पता है कि बच्चे के जन्मने के बाद ज़मीन नहीं बढ़ेंगी, रोड नहीं बढ़ेगी, हवा और जल नहीं बढ़ेगा, नौकरियां नहीं बढ़ेगी और व्यवसाय के अवसर भी दुनियां में नहीं बढेंगे और खेत भी नहीं बढ़ेगा। लेकिन एक बच्चे को बड़ा होने पर उपरोक्त सभी चीज़े जीने के लिए चाहिए। जनसँख्या का बढ़ता दबाव और घटते संसाधन सामूहिक मौत को खुला निमन्त्रण। दुःखद है कि अभी भी सिर्फ़ दो बच्चों का कानून देश मे नहीं बना, वोट के लिए सामूहिक मौत को भी इग्नोर कर रहे हैं। कब जनसँख्या वृद्धि पर रोक लगाने हेतु अपने गली मोहल्ले में जागरूकता फैलाएंगे? गांवों की चौपालों और शहरों में जन जागृति लाएंगे?

6- व्यसन हमारे और हमारे बच्चों के DNA खराब कर रहा है। एक व्यसनी के व्यसन का खामियाजा उसकी आने वाली कई पीढियां भुगतेंगी और विभिन्न रोगों के साथ प्राण ऊर्जा से हीन जनमेंगी। स्वयं भी तिल तिल मर रहा है। फिर भी हाय रे समाज, टीवी में धड़ल्ले से मद्यपान का प्रचार बच्चो के सामने देख रहा है, फिल्मों में ड्रग्स और मद्यपान का दृश्य बच्चो को दिखा रहा है। स्वयं ऑफिस कॉरपोरेट और अन्य सामाजिक जगहों पर आधुनिकता के नाम पर नशा ही नशा को बढ़ावा दे रहा है। ऐसी पढ़ाई लिखाई का क्या फ़ायदा जो अपना और अपने बच्चों का भविष्य नशा करके नष्ट करे, मौत के सामान से युवा पीढ़ी को नष्ट करने की तैयारी चल रही है। सामूहिक रोग-शोक-मौतें फ़िर भी परवाह नहीं। आख़िर क्यों कॉरपोरेट व्यसनमुक्त ऑफिस पार्टी और ऑफिस नहीं करते? आख़िर क्यों पार्टियों को व्यसनमुक्त नहीं मनाते? आखिर क्यों व्यसनमुक्त फ़िल्मे और उसके गाने नहीं बनते। टीवी और न्यूज पेपर घर मे बच्चे भी देखते है आखिर क्यों यह व्यसन के विज्ञापन मुक्त नहीं है? हम कब एक जुट हो व्यसनमुक्ति के लिए प्रयास करेंगे?

7- लड़की होना भारत मे अभिशाप क्यों हो गया है? आखिर मीडिया इतने इंटरेस्टिंग तरीक़े से रेप की घटना को क्यों परोस रहा है? आखिर पोर्न वीडियो बैन क्यों नहीं है? देश की राजधानी भी क्यों सुरक्षित नहीं है? बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ, लेकिन बेटी को पढ़ने के लिए अकेले बाहर भेजने से भी डरो? क्योंकि कोई गारंटी वारंटी नहीं कि बेटी जॉब या पढ़ने को गयी है सकुशल वापस लौट के आएगी?
 शादी के लिए सारी कमाई लुटा दो ख़र्चीली शादी और दहेज में, फिर गारंटी वारंटी नहीं कि ससुराल से जिंदा वापस आएगी?
शर्म नहीं आती हमें कि हमारा समाज लड़कियों के लिए सुरक्षित नहीं है, क्योंकि घर मे सँस्कार दिए नहीं गए लड़को को और उनके अंदर माता-पिता गलती पर डांटेंगे इस बात का डर भी नहीं है। जब माता-पिता की जगह टीवी और फ़िल्म बच्चो को सँस्कार देंगे तो अपराधी, व्यसनी और रेपिस्ट संताने ही गढ़ी जाएंगी। कब आखिर कब हम चेतेंगे? कब एकजुट हो बच्चो को सँस्कार देंगे? कब हिंदुस्तान में लड़की जन्मदेने पर कोई माता-पिता भयभीत नहीं होगा?

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गायत्री परिवार और डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन आपका आह्वाहन करता है, कि आइए एकजुट होकर सद्बुद्धि के साथ यज्ञमय जीवन जियें। जो भी संस्था या ngo लोकहित काम कर रहे हैं उनका सहयोग करें। सन्तानो की संख्या सीमित रखें, अच्छे संस्कार दें, बच्चो को अच्छी  पुस्तकें पढवाये और उन्हें आध्यात्मिक दृष्टिकोण दें, समाजसेवा के कार्यो में उन्हें लगाएं। व्यसनमुक्त स्वयं बने और समाज को बनाएं। पोर्न वीडियो स्वयं न देखें और बच्चो के हाथ मे मोबाइल न दें। इंटरनेट में सभी वेबसाइट ब्लॉक कर दें। जल संरक्षण और अन्न संरक्षण करें। वृक्षारोपण जुलाई में जगह जगह होगा वहां एक्टिव होकर वहां सहयोग करें।

हम चाहें तो एकजुट होकर और मिलकर सद्बुद्धि के साथ उज्ज्वल भविष्य को गढ़ सकते हैं। स्वयं सुधर के स्वयं बदल के दुनियां के सकारात्मक बदलाव का हिस्सा बन सकते हैं।

मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण के लिए एकजुट होना ही पड़ेगा। इसके बिना काम न चलेगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी प्रणाम, मेरी उम्र 21 वर्ष है, इंजीनियरिंग फाइनल ईयर का स्टूडेंट हूँ। मैं "काम विकार" और इससे सम्बन्धित चिंतन से कैसे मुक्ति पाऊँ? कृपया बताएं...साधना पथ पर आगे बढ़ते हुए जीवन कैसे सफल बनाऊं?*

प्रश्न - *दी प्रणाम, मेरी उम्र 21 वर्ष है, इंजीनियरिंग फाइनल ईयर का स्टूडेंट हूँ। मैं "काम विकार" और इससे सम्बन्धित चिंतन से कैसे मुक्ति पाऊँ? कृपया बताएं...साधना पथ पर आगे बढ़ते हुए जीवन कैसे सफल बनाऊं?*

उत्तर - आत्मीय भाई, *यह एक कॉमन समस्या है* जो किशोरावस्था से युवावस्था तक लगभग अधिकतर लोगों को साथ रहती है। कोई कोई व्यक्ति/महिलाएं तो ताउम्र इससे ग्रसित होकर अपना जीवन नष्ट कर लेते हैं।

किसी भी व्यसन से या काम वासना से जबरजस्ती मुक्ति नहीं पाई जा सकती। जिससे ज़बरन मुक्त होना/दमन करना चाहोगे वो और ज्यादा बलवती होकर कई मनोरोग को जन्म देगी। अतः यदि किसी चीज़/आदत/व्यसन को छोड़ना है तो उससे श्रेष्ठ जीवन लक्ष्य हेतु जुनून रखना होगा और उस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु प्रयत्नशील रहना चाहिए...

👉🏼 *उदाहरण* - किसी गरीब व्यक्ति से सायकिल छोड़ने को कहोगे/या मांगोगे तो वो आपका सर फोड़ देगा। लेकिन यदि सायकिल के बदले मोटर सायकिल या कार ऑफर करोगे तो सहर्ष साइकिल छोड़ देगा। बचपन में चमकीले पत्थर का आकर्षण किसी बहुमूल्य वस्तु से कम न था, लेकिन समझ बढ़ी और उससे बहुमूल्य चीज़ मिली तो चमकदार पत्थर सहज़ ही छूट गये। इसी तरह बौद्धिक श्रेष्ठ कार्य करने वाले व्यक्ति कभी *काम विकार* या *काम चिंतन* से ग्रसित नहीं होते। क्योंकि श्रेष्ठ जीवन लक्ष्य में केंद्रित होते हैं। इसी तरह सच्चा भक्त भी कभी *काम भावना ग्रस्त* नहीं होता क्योंकि वो भी आत्मकेंद्रित/भगवान की भक्ति में खोया होता है।

👉🏼 मनुष्य को जिस कार्य को करने से सबसे ज्यादा रोका जाता है, वह उसी ओर ज्यादा आकृष्ट होता है।

 (एक बार बड़े पार्क में फ़्रायड का बच्चा शाम को गुम गया, पत्नी परेशान हो गयी। तो फ़्रायड ने पत्नी से पूँछा ये बताओ बच्चे को तुमने पार्क में कहां जाने से मना किया था। पत्नी ने कहा फाउंटेन के पास जाने से रोका था। फ़्रायड ने कहा वो 100% वहीं मिलेगा। मनुष्य की सहज़ प्रवृत्ति है जिसे बल देकर रोकोगे वो जरूर करेगा। बच्चा वहीं मिला)

घर बाहर और साधु समाज में सबसे ज्यादा काम वासना को रोकने पर बल दिया जाता है, इसलिए बालक-बालिका इस ओर सबसे ज्यादा आकृष्ट होते है, क्योंकि इसे जानने की उत्सुकता बढ़ती है। हर तरफ मिलने वाली भारी भरकम सीख *आपको काम चिंतन नहीं करना चाहिए* ने लोगों पर उल्टा असर कर दिया है। अब केवल लोग इसी *काम विकार के चिंतन में* उलझ गए हैं। पुस्तक *आध्यात्मिक काम विज्ञान* में  इसे गुरुदेब ने विस्तार से समझाया है। काम वासना को उतनी ही छोटी जगह जीवन मे मिलना चाहिए, जितनी उसे मिलना चाहिए। जगत के सभी जीवों के साथ ऐसा ही है। मनुष्य को छोड़कर कोई जीव *काम चिंतन* नहीं करता न ही किसी अन्य जीव का सोच हर वक्त अटका हुआ होता है कि *कौन नर है या कौन मादा है*। आखिर हमने अपने शरीर के सिर्फ एक अंग जननेन्द्रिय को इतना महत्तव क्यों दिया? जो कि इस योग्य भी नहीं है।

मनुष्य को सब जीवों में जो दिमाग़ सर्वश्रेष्ठ बनाता है, महत्त्व तो उसे ज्यादा दिया जाना चाहिए। जिस आत्मा के कारण शरीर मे जीवन है महत्त्व तो इसे सबसे सबसे ज्यादा मिलना चाहिए।

👉🏼 जिस ओर हमारा ध्यान होता है, कल्पनाएं और विचार चुम्बक की तरह हमें उसी ओर तदनुस्वरूप बनाती चली जाती है। जैसे गुरुकुल में बच्चों का ध्यान ज्ञान हेतु आकृष्ट किया जाता है तो वो ज्ञान प्राप्ति को एकरूप हो जुट जाता है। साइंटिस्ट रिसर्च की ध्यान केंद्रित कर उसमें ही खोए रहते हैं। भक्त भक्ति में खोए रहते हैं। जिसे जैसा बालक बनाना है वैसा वातावरण और उसका ध्यान आकृष्ट करने हेतु निर्मित कर दो।

श्रेष्ठ जीवन लक्ष्य न हुआ और आध्यात्मिक दृष्टिकोण न हुआ  तो भटकाव की समुचित व्यवस्था कलियुग में है। टीवी, सीरियल, फ़िल्म, विज्ञापन, न्यूज़ पेपर, फ़िल्मी गाने सर्वत्र *काम वासना* को उद्दीप्त/भड़काने और ध्यान आकर्षित करने हेतु पर्याप्त व्यवस्था है। अतः चाहे अनचाहे यह आज के किशोरों और युवाओं को *काम विकार* की ओर आकृष्ट कर रहा है। निरन्तर इन सबको देखने से मानसिक *काम और भोग* से तदनुस्वरूप बना रहा है।

हमें स्वयं जैसा बनना है वैसा ध्यान हमें करना होगा। किसी चीज़ से ध्यान हटाना तब तक सम्भव नहीं जब तक ध्यान किसी श्रेष्ठ की ओर न लगाया जाय। विचार रोकना सम्भव नहीं लेकिन विचार मोड़ना, उसे सही दिशा धारा देना सम्भव है।

*काम-वासना पर विजय पाने हेतु निम्नलिखित प्रयास करें* -

1- याद रखें मन, प्राण और वीर्य एक ही सर्किट से जुड़े सम्बन्ध है। मन के नियन्त्रण से भी प्राण चार्ज होता है। वासना के नियंत्रण से प्राण चार्ज होता है। दोनों ही विधियों से ऊर्जा निम्न केंद्रों से ऊर्ध्व गमन करती हैं। योग-प्राणायाम-ध्यान-जप-स्वाध्याय से स्वयं पर और अपने मन पर नियंत्रण और प्रबंधन की कुशलता आती है।

2- ईश्वर की भक्ति काम वासना को नियंत्रित करने की अचूक औषधि है। संस्कृत मन्त्रो का सस्वर ज़ोर ज़ोर उच्चारण करके कुछ देर बोलें। भजन गुनगुनाओ और भजन सुनो। प्रेरणादायक प्रज्ञागीत सुनो। भजन भाव शुद्धि का सबसे बढ़िया माध्यम है।

3- मातृ भाव साधना, मां आद्यशक्ति गायत्री और मां भगवती को हर स्त्री में देखना। यज्ञ पिता और परम पूज्य गुरुदेव को हर पुरुष में देखना। केवल अग्नि को साक्षी मानकर जिसे अर्धांग या अर्धागिनी स्वीकार करेंगे केवल उसी के लिए प्रेम भावना विकसित करेंगे।

4- कामोत्तेजक टीवी सीरियल, फ़िल्म, गाने, सीरियल, पोर्न वीडियो, गेम्स, शराब, मादक वस्तुओं, अश्लील साहित्य और कामुक कल्पनाओं से स्वयं को दूर रखें।  याद रखो, मन्दिर में जाकर भक्ति जगेगी ही, और बार व फ़िल्म के वातावरण में काम भावना जगेगी ही। अच्छी पुस्तकें प्रकाशित करेंगी और अच्छाई के लिए प्रेरित करेगी, और इसी तरह अश्लील पुस्तके वासना के दलदल में घसीटेगा ही।

5- खाली मन शैतान का घर होता है, स्लाइड की तरह नीचे आसुरी प्रवृत्ति है और ऊपर दैवीय प्रवृत्ति। जब हम साधना करते है तो ऊर्जा प्रवाह ऊर्ध्व/ऊपर की ओर गमन करता है और हमारे अंदर दैवीय शक्तियों को जागृत करता है। हम ऊपर के शक्ति केंद्रों को जागृत न कर पाएं इसलिए असुर शक्ति हमें व्यसन और कामवासना के खूँटे से बांध देते हैं। काम चिंतन में उलझाए रखता है, और शक्ति के ऊर्ध्व गमन को बाधित कर नर पिशाच तक बना देता है। कुछ पल की ख़ुशी और कुछ क्षण का एंटरटेनमेंट में उलझाए रखता है। देह व्यापार, गैंग रेप, बच्चियों का रेप, मीडिया द्वारा रेप को नमक मिर्च लगाकर परोसना हो ये सब नर की पैशाचिक कुकर्म ही तो हैं। जो शक्ल सूरत से दिखने वाला इंसान होता है लेकिन भीतर से नर पिशाच होता है।

6- जिनके मन मे श्रेष्ठ जीवन लक्ष्य होता है, और बड़े कार्य हेतु समर्पित होते है, उच्च बौद्धिक क्षमता होती है वो काम विकार से ग्रसित नहीं होते। उनके लिए ईश्वर के बाद अविष्कार करने की लगन और कुछ नया या अलग करने की चाह होती है।

7- किसी को स्पर्श न करें और न ही घूरें, किसी के साथ अकेले घूमने न जाएं। कभी पार्टी वगैरह करनी हो तो ग्रुप में करें। कोई समाज सेवा कार्य भी हो तो भी अकेले लड़का लड़की न मिलें। यदि ऑफिस की पार्टी में मजबूरन जाना पड़े तो भी किसी के बहकावे में मद्यपान न करें, उसकी जगह साथ देने हेतु एप्पल या अन्य फलों का जूस पिये।

8- आपको डिलेड ग्रैटीफिकेशन का अभ्यास करना चाहिए जिसका मतलब है ऐसे विचार रखना और ऐसे कामों पर ध्यान देना जिनसे देर से लेकिन बेहतर परिणाम मिलें | काम-वासना क्षणिक सुख- इससे बिलकुल विपरीत तरह की भावना है जिससे आप शीघ्र ऐसा व्यवहार करने के लिए प्रेरित हो जाते हैं जिससे आप अपनी कामेच्छा को संतुष्ट कर सकें | कोई भी व्यक्ति अगर डिलेड ग्रैटीफिकेशन में अभ्यस्त है तो इससे वो जीवन के हर क्षेत्र में लाभ प्राप्त करता है, जैसे भावनात्मक, आर्थिक, नौकरी और व्यवसाय इत्यादि में, और यहाँ तक कि प्रेम के क्षेत्र में भी इसका लाभ मिलता है |

9- अगर लोगों के किसी ग्रुप में होते हुए या गर्मी से भरे किसी दिन में गली में टहलते हुए खुले/छोटे कपड़े पहने हुए लोगों को देखकर आपको वासनामय विचारों से जूझना पड़ रहा हो तो आपके लिए ये आसान सा अभ्यास है: हर व्यक्ति की तरफ 2 सेकंड के लिए देखें – आपको इस बात से फर्क नहीं पड़ना चाहिए कि कौन कैसा दिखता है | इसके बाद अपनी आँखों को लोगों की तरफ से हटाकर किसी और चीज पर टिका दें | सोचें भगवान कितना बड़ा इंजीनियर जो चेतन रोबोट बना सकता है। इंसान के बनाये रोबोट तो मृत-मशीन है। खूबसूरत इंसान को बनाने वाला भगवान कितना सुंदर होगा। इस अभ्यास से आपको ये समझ में आएगा कि हर व्यक्ति की आत्मा और महत्व बराबर ही है | उसे बनाने वाला और आपको बनाने वाला एक ही है।

10- श्रेष्ठ जीवन लक्ष्य बनाएं और आध्यात्मिक दृष्टिकोण अपनाएं, नियमित गायत्री उपासना और अच्छी पुस्तको का स्वाध्याय करें, श्रेष्ठ लक्ष्य को पाने का जुनून पाले और इस ओर ध्यान केंद्रित करें। जिंदगी में भगवान ने अपने बाद सृष्टि संचालन की क्षमता मनुष्य को दी है। बहुत कुछ एक्सप्लोर जीवन में करना है, जीवन मे बहुत कुछ अचीव/प्राप्त करना है। आप अपना जीवन यूँ व्यर्थ नहीं कर सकते।

कुछ निम्नलिखित पुस्तकें पढ़ों:-

1- आध्यात्मिक काम विज्ञान
(युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा)

2- Practice Of BrahmCharya (swami shivanand)

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 29 May 2018

गुरुगीता अनुष्ठान विधि

गुरुगीता अनुष्ठान विधि🙏
👉आध्यात्मिक और सांसारिक सफलता के लिए, गृह क्लेश और बीमारी निवारण के लिए, पाप के शमन के लिए , उच्च आध्यात्मिक सफलता के लिए
🚩गुरुगीता श्री स्कन्द पुराण के उत्तरखंड में भगवान शंकर और माता पार्वती के संवाद के रूप में वर्णित है | इसका स्वाध्याय और अनुष्ठान पथ जन–जन के कल्याण और श्रद्धा संवर्धन के लिए है | गुरुगीता आपको किसी भी गायत्री चेतना केंद्र या शक्तिपीठ से मिल सकती है और इसका संपादन 👉डॉक्टर प्रणव पंड्या जी ने किये है |

👉इसके दो भाग है खंड “अ” और खंड “ब”. इस पुस्तक के खंड 👉ब. में इसकी  शास्त्रोक्त अनुष्ठान पाठ  विधी दी गयी है|

👉इसे क्रमशः 5 दिन, १० दिन, ३० दिन और ४० दिन की अवधी सुविधानुसार ली जा सकती है |
इस अनुष्ठान को किसी भी गुरुवार (Thursday) से प्रारम्भ किया जा सकता है |
👉इसके पाठ के साथ 5, 11, २१, 27 माला गायत्री जप की सुविधानुसार किया जाता है |

👉उदाहरण के तौर पर हम १० दिन के गुरुगीता अनुष्ठान बताते है :-
१-  गुरुवार (Thursday) से प्रारम्भ किया
२- 11 माला गायत्री की और एक पाठ गुरुगीता का
३- षठ (६) कर्म करने के बाद, ईश्वर आवाहन
४- रोज खंड – ब को ही पढना है
५- पहले जल के साथ संकल्प, फिर जल के साथ गायत्री विनियोग,  हृदय न्यास, कर न्यास, आवाहन
६- १० माला गायत्री जप
७-   जल के साथ गुरुगीता विनियोग,  हृदय न्यास, कर न्यास, आवाहन, ध्यान
८- गुरुगीता का पाठ
९- अंतिम में जल के साथ संकल्प, फिर जल के साथ गायत्री विनियोग,  हृदय न्यास, कर न्यास, आवाहन
१०- एक माला गायत्री जप और एक माला गुरु मंत्र – “ॐ एं श्री राम आनंदनाथाय गुरुवे नमः ॐ “
११- विसर्जन , गुरुस्तुती
१२- नियमित १० दिन तक करना है, सिर्फ कम्बल या उन के बने आसन का ही प्रयोग करें |

प्रश्न - *हिंदू धर्म मे बड़ो के पैर छूने के पीछे आध्यात्मिक वैज्ञानिक कारण क्या है? अक्सर लड़के अपने से छोटी बहन का पैर छूते हैं।

प्रश्न - *हिंदू धर्म मे बड़ो के पैर छूने के पीछे आध्यात्मिक वैज्ञानिक कारण क्या है? अक्सर लड़के अपने से छोटी बहन का पैर छूते हैं। माँ-पिता अपनी कन्या से पैर नहीं स्पर्श करवाते। केवल शादी के बाद ही स्त्री अपने बड़ो का चरण स्पर्श करती है। कृपया इसके पीछे का रहस्य समझाएं।*

उत्तर - पैर छूने के संस्कार सिखाते वक्त हमें बस इतना बताया जाता है कि बड़ों के प्रति आदर और सम्मान को व्यक्त करने के लिए हम पैर छूकर आशीर्वाद लिया जाता है। लेकिन साइंस ने जब इस तर्क पर शोध किया तो नतीजे चौकाने वाले थे। हजारों साल पहले से चली आ रही इस परंपरा को वैज्ञानिक ने बहुत ही आधुनिक और साइंटिक माना। जी हां वैज्ञानिक तर्क के मुताबिक हमारा शरीर जिस तंत्रिका तंत्र से बना है उसकी शुरु्आत हमारे मस्तिष्क से होती है। यह तंत्रिकाओं का अंत हमारे हाथों और पैरों की अगुंलियों पर आकर खत्म होता है। जब हम किसी के पैर छूते हैं तो उस वक्त हम अपने बाएं हाथ से उसके दाएं पैर को और अपने दाएं हाथ से उसके बाएं पैर को छूते हैं। इससे एक विद्युत चुंबकीय चक्र पूरा होता है। सामने वाले की ऊर्ज हमारे शरीर में प्रवाहित होने लगती है। इसलिए हम जिनकी तरह बनना चाहते हैं उनके पैर छूने से उनकी ऊर्जा का प्रवाह हमारे अंदर होता है।

इस तर्क को इस तरह से भी समझा जा सकता है कि दुनिया मे सभी चीजें गुरुत्वाकर्षण के नियम से बंधी हैं। हमारे शरीर को अगर एक चुंबक मान लिया जाए और सिर को उत्तरी ध्रुव और पैरों को दक्षिणी ध्रुव तो गुरुत्व या चुंबकीय ऊर्जा हमेशा उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की ओर प्रवाहित होकर अपना चक्र पूरा करती हैं। शरीर के दक्षिणी ध्रुव यानी पैरों में यह ऊर्जा असीमित मात्रा में स्थिर हो जाती है और वहां ऊर्जा का केंद्र बन जाता है। पैरों को हाथों से छूने से इस ऊर्जा का प्रवाह होता है।

*जब कोई आपके पैर छुए तो रखें इन बातों का ध्यान* -

जब कोई आपके पैर छुए तो उस वक्त भगवान का नाम लेने से सामने वाले को साकारात्मक फल मिलते हैं। आशीर्वाद देने से पैर छूने वाले व्यक्ति की समस्याएं खत्म होती हैं। साथ ही हमारे हाथ-पैर और सिर को ऊर्जा का ओपन सोर्स माना जाता है। इसलिए कोई आपके पैर छुए तो उसके सिर पर हाथ रखें। इससे ऊर्जा प्रवाह का एक सर्किट पूरा होता है। और सामने वाले को आपसे सकारात्म ऊर्जा मिलती है।

*क्यों है यह परंपरा* -

पैर छूने से चूकि सामने वाले की सकारात्मक ऊर्जा आपके शरीर में आती है, तो इससे आपको को नकारात्मकता से छुटकारा मिलता है। हिंदू धर्म में माता-पिता और गुरू के पैर छूने का सर्वोच्च फल बताया गया है। इस आधार पर हम वास्तविकता को देखें तो ये ही हैं जो हमारा कभी बुरा नहीं सोच सकते। इसलिए हमारे प्रति दुनिया में ये तीन सबसे सकारात्मक विचार रखते हैं। इनकी यही ऊर्जा हमारी तरक्की में भी मदद करती है। इसलिए इस परंपरा को अपनाएं और खुद अनुभव करें।

*कुँवारी कन्याएं चरण स्पर्श क्यों नहीं करती, जबकि कुँवारे लड़के चरण स्पर्श करते है।*

आध्यात्मिक वैज्ञानिक रिसर्चर ऋषियों को पता था कि किसको क्या कार्य सौंपना चाहिए। शारीरिक श्रम का उत्तरदायित्व लड़कों को सौंपा और आध्यात्मिक श्रम का उत्तरदायित्व लड़कियों को सौंपा। लड़के खेतों में कठिन परिश्रम करते तो लड़कियां घरों में कठिन कठिन तप करती।  जब लड़के श्रम करके अनाज और धन लाते तो सब उपयोग में ले लेते। अब आध्यात्मिक सम्पदा भी बंटनी चाहिए, इसलिए लड़के चरण स्पर्श करके लड़कियों की आध्यात्मिक सम्पदा शक्ति ग्रहण करते थे। माता-पिता भी कन्याओं के चरण स्पर्श करके आध्यात्मिक सम्पदा ग्रहण करते थे।

कुँवारी कन्या की शरीर संरचना कुछ इस प्रकार की है कि 11 वर्ष तक शक्ति का स्वयमेव केंद्र होती है, इसलिए माता भगवती ने कुँवारी कन्याओं से अखण्डदीप के समक्ष तप करवाया। बड़ी जल्दी इनकी साधना सफल होती है। इसलिये इनको नवदुर्गा में पूजा जाता है और इनके चरण स्पर्श करके आध्यात्मिक शक्ति ग्रहण की जाती है। गर्भ धारण के बाद इनकी शक्तियां गर्भ में ट्रांसफर हो जाती है और ये जितनी अधिक सन्तान जन्म देती है उतनी ही इनकी शक्ति क्षीण होती जाती है।

*विवाहित स्त्रियां सास ससुर के पैर क्यों छूती हैं।*

विवाह के बाद स्त्री की समस्त आध्यात्मिक शक्ति का 50% पति के पास चला जाता है ठीक उसी तरह जिस प्रकार पुरुष की अर्थ सम्पदा 50% स्त्री की हो जाती है। सास ससुर अपने पौत्र-पौत्रियों के जन्म में खर्च होने वाली आध्यात्मिक शक्ति की पूर्ति हेतु नित्य यज्ञ-तप करते थे। पुत्र वधु चरण स्पर्श करके उन आध्यात्मिक शक्तियों को ग्रहण करती थी।

यदि कोई साधक नहीं है, और आध्यात्मिक सम्पदा से रिक्त है।तो ऐसे बुजुर्ग, स्त्री या पुरुष, या कुँवारी कन्या के चरण स्पर्श का कोई लाभ नहीं मिलता। देगा वो जिसके पास कुछ होगा।

अत्यंत नकारात्मक, व्यभिचारी, नशाखोर व्यक्ति चाहे बुजुर्ग ही क्यों न हो उसके चरण स्पर्श वर्जित है। ऐसे लोगों के चरण स्पर्श करने पर नकारात्मकता प्रवेश करती है।

हमारे यहां इसलिए अनजान लोगों को नमस्ते करते है हाथ मिलाकर स्पर्श नहीं करते। क्योंकि भरे हुए तालाब का जल जिस तरह कम भरे तालाब में नाली बना देने से प्रवाहित होता है। उसी तरह कम ऊर्जा वाला व्यक्ति अधिक ऊर्जा वाले व्यक्ति की शक्ति स्पर्श के माध्यम से खींचता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday 28 May 2018

*एकांकी नाटक - मेरी तो किस्मत ही ख़राब है(अर्थात मेरा attitude खराब है)।*

*एकांकी नाटक - मेरी तो किस्मत ही ख़राब है(अर्थात मेरा attitude खराब है)।*

(एक कॉलेज में लड़के और लड़कियों का ग्रुप किसी फ़ंक्शन की तैयारी कर रहे थे। उस ग्रुप में ईषना भी थी जो कि गायत्री परिवार की थी जो कि अपनी कोर्स की पढ़ाई के साथ साथ नित्य युगऋषि के साहित्य का स्वाध्याय भी करती थी। उसी ग्रुप में अंकिता नाम की लड़की बहुत डिप्रेशन में रहती थी। उसी ग्रुप में केयरलेस atitude का लड़का मोहन भी था। अंकिता और मोहन दोनों का सेमेस्टर में बैक आया था)

*आकाश* - अंकिता तेरा मुंह हमेशा ही लटका रहता है, क्या हुआ एक सब्जेक्ट में बैक आ गया तो....कई अन्य बच्चो के भी तो बैक आये है वो तो मुंह नहीं लटकाए रहते...

*मोहन* - मेरा भी तो बैक आया है फिर भी मैं मस्त हूँ। अब हर कोई ईषना के जैसा टॉपर तो नहीं हो सकता।

*तृप्ति* - ईषना की किस्मत अच्छी है यार...हमेशा टॉप करती है..

*अंकिता* - मेरी तो क़िस्मत की ख़राब है जो मेरा कभी साथ ही नहीं देती। मेरे साथ तो हमेशा उल्टा ही होता है।

*ईषना* - क़िस्मत नाम की कोई भी चीज़ रेडीमेड नहीं होती जो बिना मेहनत के किसी को परीक्षा पास और जीवन में सफ़ल बना सके। वास्तव में तुम्हारी किस्मत खराब नहीं है तुम्हारा Attitude (दृष्टिकोण/मानसिकता) खराब है। अपना Attitude ठीक कर लो किस्मत अपने आप ठीक हो जाएगी।

*आकाश* - ईषना क्या तुम किस्मत को नहीं मानती?

*ईषना* - क़िस्मत का अर्थ है- जागरूक चैतन्य सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति द्वारा सही मौके को पकड़ना और सही दिशा में कार्य करना है। जो मोह की निद्रा में है, जो जागरुक/चैतन्य नहीं है वो सामने आए सभी मौकों को खोते रहता है और किस्मत का रोना रोते रहता है।

(मोहन ईषना को चिढ़ाते हुए, हाथ जोड़कर)

*मोहन* - ईषना माता जी की जय, क्या ज्ञान दिया है। हमें भी उपाय बताएं कि इस सेमेस्टर में हम सब भी  सभी सब्जेक्ट में पास हो जाएं।

*अंकिता* - ईषना, तुझे नहीं मालूम मेरे साथ क्या चल रहा है? मेरे साथ मेरे घरवाले कैसा व्यवहार करते हैं।

*ईषना* - अंकिता तुम्हारे साथ जो कुछ भी चल रहा हो, परिवार वाले कितना भी बुरा व्यवहार कर रहे हों।  लेकिन यह ग्रेजुएशन पास करने का समय तुम्हे दुबारा नहीं मिलेगा। कब तक दोषरोपन से काम चलाओगी। कभी तो zero complain day मनाओ। हम आज जो भी कुछ है या भविष्य में जो भी कुछ बनेंगे इसके लिए एकमात्र सिर्फ़ हम जिम्मेदार हैं, हम जिम्मेदार थे और हम जिम्मेदार रहेंगें। इतनी नफ़रत और complain घर वालों के लिए, समाज के लिए, परिस्थितियों के लिए मन मे भरे रहोगी तो पढ़ाई भीतर घुसेगी कैसे? मन तो घृणा और complain से भरा है। अशांत है। अब टेंशन भरकर पढ़ नहीं रही और पास नहीं होगी तो किस्मत को दोष दोगी ही। किस्मत अपनी कमज़ोरियों को छुपाने का जरिया है। किस्मत नहीं attitude/नज़रिया ठीक करो मैडम।

*अंकिता* - ईषना कैसे करूँ मन ख़ाली, कैसे मेरे पापा के प्रति मेरी नफ़रत हटाऊँ। जब देखो भैया के लिए सबकुछ करते रहते हैं। मैं तो  जन्म से ही पराया धन घोषित हूँ।

*ईषना* - लड़कियों के या तो दो घर होते है(मायका और ससुराल), जो वो बुद्धिबल से और आत्मीयता प्यार से बनाती है या मूर्खता से वो बेघर होती है।

अच्छा ये बताओ, क्या तुमने कभी अपने दम पर स्वयं को बेस्ट साबित करने की कोशिश की? क्या कभी ऐसा सोचा कि मैं कुछ ऐसा करूंगी कि मेरे पिता को दुनियां मेरे नाम से जाने। मेरे माता-पिता को गर्व होगा मेरे जन्म पर...मैं उनकी क्या दुनियाँ की लड़कियों के लिए सोच बदलकर रख दूंगी...क्या ऐसा सोचा?

*अंकिता* - नहीं ईषना, मैंने ऐसा तो कभी सोचा ही नहीं। मैं तो किस्मत का रोना ही रोती रह गयी। तुम सही कह रही हो...मैं ऐसा भी तो सोच सकती थी...

*ईषना* - अंकिता का अगर नज़रिया नकारात्मक है तो भी नुकसान दायक है। और मोहन तुम्हारा नज़रिया ओवर कान्फिडेंस और केयरलेस नेचर का है यह भी उतना ही नुकसानदायक है।

तुम दोनों को अपने attidude पर काम करना पड़ेगा। अंकिता और मोहन यदि तुम दोनों ख़ुद की मदद नहीं कर सकते, पढ़ नहीं सकते, तो फिर देश समाज के लिए उपयोगी कैसे बनोगे?

मोहन तुम इस नेचर के साथ विवाह और बच्चों की जिम्मेदारी कैसे लोगे?

परिस्थितियां हमेशा ही बद से बदतर बनी रहेंगी, बेरोज़गारी पहले भी थी अब भी है, जितने भी महापुरुष हुए है वो ग़रीबी, भुखमरी, कठिनाइयों और अभावों के बावजूद अपना भविष्य बनाने में सफल रहे। तुम लोग महापुरुषों की जीवनियां पढ़ते नहीं, स्वाध्याय करते नहीं। इसलिए तुम्हारे दिमाग़ में घटिया विचारों का कचड़ा जमा है और उस कचरे के ढेर को बुरी क़िस्मत का नाम तुमने दे दिया है।

*अंकिता* - ईषना तुम्हें लगता है कि मैं जिंदगी में कुछ कर सकती हूँ। मैं अच्छे नम्बरो से पास हो सकती हूँ। जीवन मे कुछ ऐसा कर सकती हूँ जिससे मेरे पिता की पहचान मुझसे हो। मैं मेरी किस्मत अच्छी बना सकती हूँ।

*ईषना* - हां 100% तुम पास हो सकती हो, तुम टॉपर भी बन सकती हो और अच्छा भविष्य अपने लिए गढ़ सकती हो। बस मानसिक कचरा साफ करना होगा। जागरूक चैतन्य बनकर प्रत्येक मौके को हाथ से जाने मत दो।

*मोहन* - क्या सचमुच ऐसा हो सकता है? मैं भी पास हो सकता हूँ।

*ईषना* - हाँजी, सबसे पहले यह स्वीकारो आज तुम्हारा जन्मदिन है। इससे पहले केवल शरीर जन्मा था, आज तुम स्वयं की काबिलियत को जन्म दो, अपने वजूद को जन्म दो। कोई भी आदत 90 दिन में बन जाती है। अतः पॉजिटिव attitude के साथ पढ़ने आओ हम तुम्हारी मदद करेंगे। 90 दिन नो कम्प्लेन डे होगा। केवल अपने विचारों के प्रति जागरूक रहोगे और ईश्वर को जीवन के लिए धन्यवाद दोगे। कड़ी मेहनत करोगे।

*अंकिता* - हम तुम्हारी तरह सोच वाले, positive attitude वाले बन जाएंगे क्या?

*ईषना* - हांजी पॉज़िटिव attitude बन जायेगा।

देखो, गेहूँ डायरेक्ट नहीं खाते, उसे पीसने के बाद आटा बनता है। फिर गूँधा जाता है। फिर बेलन से गोल बनाते हैं, फिर रोटी आग में सेंकी जाती है। तब रोटी बनती है। तब हम खाते है।

इसी तरह पॉजिटिव attitude बनाने के लिए स्वयं को साधना पड़ेगा। रोज़ सुबह उठो और मिरर में देख कर स्वयं को विजेता अनुभव करो और संसार का सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हो यह विश्वास करो। 10 छोटे बड़े लाइफ गोल(लक्ष्य) बनाओ। थोड़ी देर नहाकर गायत्री मंत्र जपो, उगते सूर्य का ध्यान करो और भगवान को जीवन के लिए धन्यवाद। रोज महापुरुषों की जीवनियां पढ़ो, अच्छी पुस्तकें पढो।

(ईषना ने मोबाईल में awgp वेबसाइट को ओपन किया और निम्नलिखित पुस्तके ऑनलाइन पढ़ो:-)

1-दृष्टिकोण ठीक रखें
2-निराशा को पास न फटकने दें
3-आगे बढ़ने की तैयारी
4- अधिकतम अंक कैसे पाएं
5- बुद्धि बढ़ाने की वैज्ञानिक विधि
6- सफ़ल जीवन की दिशा धारा
7- महापुरुषों की जीवनियां
8- सफलता के सात सूत्र
9- धनवान बनने के गुप्त रहस्य

(नादयोग की ऑडियो दी, टेंशन को खाली करने में मदद के लिए।

अंकिता और मोहन ने ईषना के बताए तरीके से मेहनत की, कम्प्लेन मोड बन्द करने पर मन हल्का रहने लगा। महापुरुषों की जीवनियों से उन्हें प्रेरणा मिली। सत्साहित्य से सफलता के सूत्र मिले। ईषना से कोचिंग ली, ईषना ने हर एग्जाम के 5 साल लगातार पुराने पेपर की एनालिसिस करना उन्हें सिखाया उसके आधार पर प्रेक्टिस करवाई । और इस बार सेमेस्टर में दोनों फर्स्ट डिवीजन से पास हुए साथ ही बैक पेपर भी क्लियर कर लिया। दोनों बहुत खुश थे, क्योंकि सकारात्मक जीवन जीना जो उन्हें आ गया था और सकारात्मक सोच के साथ पढ़ना भी आ गया)

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *पूजा करते वक्त जम्हाई और नींद आती है? क्या करें*

प्रश्न - *पूजा करते वक्त जम्हाई और नींद आती है? क्या करें*

उत्तर - इसका अर्थ यह है कि मन मे दोहरी विचारधारा सक्रिय है, अंतर्द्वंद और युद्ध चलता रहता है। विचारों का अनवरत प्रवाह मन को कभी चैन नहीं लेने देता। किसी टेंशन परेशानी से आप जूझ रही हैं, कुछ चीज़ें सम्हल नहीं रही। नींद आपको गहरी नहीं आ रही और मन में चैन नहीं है। थका हुआ मन है, शरीर सोता है मन चलता रहता है।

पूजन के वक्त जब आप विचार प्रवाह शांत करती है, तो मन को सुकून मिलता है और दिमाग़ में आराम आते ही तन्द्रा लगने लगती है।

अतः रोज रात को जिस प्रकार पूजन में मन शांत करके जप करती है वैसे ही बिस्तर पर बैठकर कोई स्वाध्याय कीजिये, फिर पूजन की तरह मन शांत कीजिये मानिए पूजन स्थल में है और सारी टेंशन गुरुदेब माताजी के चरणों मे डालकर ध्यान में वंदनीया माता जी की गोद मे सोने का भाव कीजिये। नादयोग सुनते सुनते सो जाइये। सुबह तरोताज़ा होकर उठेंगी। मन को पर्याप्त विश्राम मिला हुआ होगा और मानसिक कोलाहल कम होगा। तो पूजा में न नींद आयेगी और न हीं जम्हाई। तब सिर्फ परमानन्द में खोएंगी समाधान मिलेगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी प्रणाम! किसी क्रोधी व् अहंकारी व्यक्ति से जो किसी की न सुने उससे कैसे डील किया जाये,कृपया बताइये*

प्रश्न - *दी प्रणाम! किसी क्रोधी व् अहंकारी व्यक्ति से जो किसी की न सुने उससे कैसे डील किया जाये,कृपया बताइये*

उत्तर - क्रोध और अहंकार भावनात्मक दृष्टिहीन और भावनात्मक मूक बधिर बना देता है। मन के समस्त द्वार बंद कर देता है। दूसरे की बात, भाव सम्वेदना, दूसरे का दर्द या तकलीफ़ कुछ भी उस तक नहीं पहुंचता। आंख होते हुए भी सही देख नहीं सकता और कान होते हुए सही सुन नहीं सकता।

क्रोध जब आता है, तो इंसान मल-मूत्र के प्रेशर की तरह महसूस करता है। तो बाथरूम यानि अपने से कमज़ोर व्यक्ति की तलाश करता है, जिस पर वह अपने मानसिक मल को निकाल कर हल्का हो सके।

मल-मूत्र हम कहीं भी नहीं करते उसी तरह क्रोधी व्यक्ति अपने बॉस या व्यवसाय या कस्टमर के लिए उतपन्न क्रोध घर लाता है, और अपने से कमज़ोर पत्नी-बच्चो और अन्य परिवार वालो पर निकालता है। वही सास या वही बहु क्रमशः अपनी बहू या सास को कष्ट दे पाती है जिसके मन मे मानसिक मल-मूत्र का भंडार हो। जिनके मन साफ और हृदय निर्मल होगा वो तो सिर्फ प्यार और खुशी ही बांट सकेगा।

 जिस प्रकार मल-मूत्र के प्रेशर आये हुए व्यक्ति को आप बिठाकर ज्ञान नहीं दे सकते तब तक जब तक वो हल्का न हो जाये, उसी तरह क्रोधी व्यक्ति को ज्ञान नहीं दे सकते जब तक वो हल्का न हो जाये। तो क्रोध का जब प्रचण्ड आवेग हो उस वक्त मौन होकर उसके मानसिक मल के निष्कासन में व्यवधान न डालें। कोई व्यक्ति 24 घण्टे बाथरूम में नहीं रह सकता, उसी तरह कोई व्यक्ति 24 घण्टे क्रोध में नहीं रह सकता। जब पेट खराब हो तो आप उसका इलाज करते हैं उसी तरह मन खराब है तो आपको उसके इलाज की व्यवस्था सोचनी पड़ेगी।

इलाज तो आप तब कर पाएंगे जब वो इलाज लेने को तैयार हो। यदि वो कुछ सुनने समझने को तैयार नहीं तो उसका एकमात्र इलाज यज्ञ की धूम्र और गायत्री मंत्र की ध्वनि तरंग से सम्भव है। घर मे 40 दिनतक नित्य यज्ञ उस व्यक्ति के लिए कीजिये वो सम्मिलित हो या न हो, यज्ञ का धूम्र प्रत्येक कमरे में स्वतः पहुंच जाएगा। यज्ञ पूर्णाहुति के बाद हवनकुंड को सभी कमरों में घुमा दें और कलश के जल से शांतिपाठ कर दें। नित्य बलिवैश्व यज्ञ करें, साधना के बाद सूर्य भगवान को जल चढाकर बचे हुए जल से आटा गूंध कर रोटियां बनाये ।

गायत्री मंत्र बॉक्स बिल्कुल धीमे स्वर में पूजन गृह में बजा दें, आजकल व्हाट्सएप ग्रुप का जमाना है उनसे अनुरोध करके किसी गायत्री परिवार के ग्रुप में उन्हें जोड़ दें। उनके मोबाइल में रोज सुबह एक अच्छा विचार भेज दें।

एक डॉक्टर की तरह उनकी मानसिक पेट खराब होने का इलाज करें, आसपास शक्तिपीठ में यज्ञ आयोजन में साथ चलने हेतु अनुरोध करें।

उनके अहंकार में चोट न मारें, बल्कि उसी अहंकार को अपनी शक्ति बना लें। प्रसंशा कर करके उनसे गुरु कार्य करवाएं। भूलकर भी उन्हें डायरेक्ट ज्ञान देने की गलती न करें।

उनके लिए 24 हज़ार का गायत्री मंत्र अनुष्ठान कर दीजिए या 5 पुस्तिका मन्त्रलेखन कर दीजिए। धीरे धीरे उनके व्यवहार में परिवर्तन आएगा और सब ठीक हो जाएगा। क्रोध और अहंकार मानसिक बीमारी है और व्यक्तित्व की कमज़ोरी है। यदि ध्यान-स्वाध्याय और जप के लिए उन्हें प्रेरित कर सकेंगी तो बहुत अच्छा रहेगा। ज्यों ज्यों अच्छे विचारों की खुराक उनके मन मष्तिष्क में पहुंचेगी त्यों त्यों वो शांत होते चले जायेंगे। इस मनोविकार के इलाज में धैर्य और साहस का परिचय दें। उनके कारण आपके भीतर क्रोध उतपन्न नहीं होना चाहिए। क्योंकि क्रोधाग्नि में शांति का जल चाहिए, कटुवचन का बारूद नहीं।

आप स्वयं जप-स्वाध्याय-ध्यान नित्य स्वयं कीजिये और अपने मजबूत मन से उनका इलाज कीजिये। स्वयं को बुद्ध की तरह शांत करते जाइये, अंगुलिमाल की तरह क्रोधी भी आपके सम्पर्क में अहिंसक बनता चला जायेगा।

निम्नलिखित पुस्तकों का स्वाध्याय कीजिये:-

1- गृहस्थ एक तपोवन
2- मानसिक संतुलन
3- शक्तिसंचय के पथ पर
4- आगे बढ़ने की तैयारी
5- निराशा को पास न फटकने दें

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Sunday 27 May 2018

गुरुकार्य कभी भी बोझ नहीं लगता

माता को अपने गर्भ का वजन नहीं पता चलता, पिता को बच्चे का खर्च बोझ नहीं लगता। प्रेमिका और प्रेमी को एक दूसरे के लिए किया त्याग भी कम लगता है। उसी तरह गुरुभक्त गायत्री परिजनों को गुरुकार्य में लू, गर्मी, धूप, बरसात, ढंड और अनेकों कठिनाइयों का सामना करते हुए गुरुकार्य कभी भी बोझ नहीं लगता। आनन्द ही आनंद मिलता है जब कुछ गुरुकार्य बन पड़ता है।

नाटक - दिमाग़ को सन्तुलित विचार, आराम और व्यायाम चाहिए। नशा नहीं चाहिए।

*नाटक - दिमाग़ को सन्तुलित विचार, आराम और व्यायाम चाहिए। नशा नहीं चाहिए।*

(डॉ रेखा और प्रकाश जी ने अपने पुत्र जतिन को अच्छे सँस्कार देकर बड़ा किया था। डॉक्टर होने के नाते वो अध्यात्म को वैज्ञानिकता के साथ अपने दोनों बच्चों को समझाती थीं। जब बड़ा बेटा वक़ालत की पढ़ाई करने महाराष्ट्र जा रहा था, तो मां ने बच्चे को कुछ साहित्य देते हुए कहा था कि बेटे युगऋषि के यदि साहित्य का नित्य स्वाध्याय करोगे और नित्य गायत्री मंत्र का जप करोगे तो तुम्हारा जीवन चन्दन की तरह सुगन्धित होगा, कुसंस्कारी संताने जो तुम्हारे साथ पढ़ेंगी और हॉस्टल शेयर करेंगी वो तुम्हें कुमार्ग में नहीं धकेल पाएंगी। कुमार्ग और नशे के दल दल में एंट्री आसान है और एग्जिट बहुत मुश्किल। जतिन ने कहा माँ मैं खुद तो नशा नहीं करूंगा लेकिन कोशिस करूँगा कि कम से कम एक दो को तो नशे से मुक्त कर दूं।)

(दृश्य - हॉस्टल का रूम और कुछ  लड़के कमरे में दौड़ते हुए आये)

*कमल* - जतिन तुमने सुना सुनील और उसके अन्य दोस्तों को पुलिस पकड़कर ले गयी। हॉस्टल में पुलिस आयी है। मुझे बहुत डर लग रहा है।

*जतिन* - क्या हुआ? कुछ गलत किया क्या उन्होंने?

*कमल* - वो ड्रग्स लेते पकड़े गए, वार्डन ने सुनील और उसके दोस्तों के मम्मी-पापा को भी फोन अभी किया है।

*जतिन* - देखो, गुरुदेव कहते है कि स्वर्ग-नरक की स्वचालित प्रक्रिया चल रही है। कर्म हम करेंगे तो कर्मफ़ल तो भुगतना ही पड़ेगा। जैसे उल्टा-सीधा खाओगे तो पेट खराब होगा ही।

*कमल* - जतिन भाई, इतना सारा पढ़ने के बाद दिमाग़ का दही बन जाता है। तो कुछ तो चाहिए होता है इसे रिलैक्स करने को...अब तुम तो सिगरेट पीते नहीं...तुम्हें नहीं पता कि दो कश के बाद कितना मस्त लगता है...दिमाग रिलैक्स हो जाता है। पढ़ाई की टेंशन झेलने की अद्भुत दवा है।

*जतिन* - कमल भाई, मेरी माँ डॉक्टर है। तो मुझे इतना पता है कि सिगरेट और अन्य मादक वस्तुएं मात्र दिमाग को बेहोश-मदहोश करती है। थोड़ी देर के लिए टेशन भूला देती है। डोपामिन अनियंत्रित रिलीज़ करती है। लेकिन इससे दिमाग को न सुकून मिलता है और न आराम। बल्कि पूरे शरीर को इस ज़हर से नुकसान पहुंचता है। अतः प्लीज़ मेरे सामने मादक वस्तुओं का प्रचार मत करो।

(आशीष जतीन को चिढ़ाते हुए बोला)

*आशीष* -  ओए होए, तो मम्मी के साथ बेटा भी डॉक्टर बनना था। यहां एडवोकेट बनने क्यों आये भाई? तुम्हारी माँ ने टेंशन का इलाजस्वरूप सीक्रेट दवाईयां देकर भेजी होंगी। हमारी मां ने नहीं दी इसलिए हमें सिगरेट पीनी पड़ती है।

*जतिन* - मुस्कुराते हुए, भाई तुमने मेरी आलमारी चेक की है लगता है। तभी तुमने मेरी सीक्रेट दवाइयां देखी होंगी। लेकिन बिना परमिशन किसी का राज नहीं पता करना चाहिए।

(आशीष और कमल खड़े हो जाते है  उन्हें लगता है उनका तुक्का सही लगा। जतीन के पास कुछ ऐसी दवा है जिसे खाकर वो टेंशन फ्री रहता है। इसलिए सिगरेट भी नहीं पीता और वो आलमारी जतीन को खोलने को कहते है। )

*कमल* - जतिन भाई मुझे भी सीक्रेट दवा दो न , मेरे सर में बहुत दर्द होता है। घण्टे भर भी ठीक से पढ़ाई नहीं हो पाती। ऐसा लगता है मानो हज़ारो लोग मेरे दिमाग मे शोर कर रहे हों।

*आशीष* - भाई, मेरे सर में दर्द तो नही होता लेकिन अजीब अशांति रहती है। पढ़ने में मन नहीं लगता। इसलिए दो चार सिगरेट पीते हुए पढ़ता हूँ। प्लीज़ हमें भी सीक्रेट दवा दो, तुम्हारी तरह हम भी पढ़ सकें।

*जतिन* - ओके ठीक है, उसने आलमारी खोल के कुछ पुस्तके निकाली - व्यसनमुक्ति और मानसिक संतुलन की जिनमें मुख्य थी - *दृष्टिकोण ठीक रखें* , *मन की प्रचण्ड शक्ति* , *मानसिक संतुलन* , *आगे बढ़ने की तैयारी* , *सफल जीवन की दिशा धारा* , *सफलता के सात सूत्र*, *संकल्प शक्ति की प्रचन्ड प्रक्रिया* इत्यादि

*आशीष* - ये तो पुस्तकें है कोई सीक्रेट दवा नहीं...

*जतिन* - भाई जैसे पेट के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही दिमाग के लिए अच्छे विचार जरूरी है। ये साहित्य दिमाग का भोजन है। इससे मेरा दिमाग कुपोषण का शिकार नहीं होता। *दिमाग़ को भोजन मिलेगा तो वो नशे की डिमांड नहीं करेगा*। *दिमाग़ को व्यायाम, सन्तुलित विचार और आराम चाहिए। नशा नहीं।*

*कमल* -ये तो तुम्हारे हिसाब से दिमाग़ का भोजन है तो जो हम कोर्स का पढ़ते है वो फिर क्या है? उसे पढ़कर तो दिमाग बोझिल होता क्यों है?

*जतिन* - एक बात बताओ यदि तुम खड़े खड़े थक जाते हो तो बैठने पर आराम मिलता है या नहीं। या एक जैसे बैठे रहने पर कुछ देर खड़े होकर चलने पर और अंगड़ाई लेने पर आराम मिलता है या नहीं।

*कमल* - आराम मिलता है, लेकिन इससे इस बात का क्या लेना देना।

*जतिन* - क्योंकि दोनों ही स्थिति खड़े या बैठने या टहलने में शरीर बिस्तर पर लेटता नहीं फिर भी शरीर की पोज़िशन चेज करने पर आराम मिलता है। इसी तरह कोर्स के साथ साथ इन पुस्तकों को पढ़ने स्व हमारे दिमाग को सन्तुलित भोजन मिनरल विटामिन की तरह अच्छे विचार मिलते है जो दिमाग को तरोताज़ा करते हैं। ये जब तुम स्वयं करोगे तो अनुभव करोगे।

*कमल* - ये तो ठीक है, लेकिन मेरे सरदर्द और दिमाग को रिलैक्स करने की प्रोसेस बताओ।

*जतिन* - कमल प्लीज़ मेरा मोबाइल देना चार्जिंग में लगा है। और अपने मोबाइल का ब्लूटूथ ऑन करो मैं तुम्हे कुछ शेयर करता हूँ।

(आशीष पुनः जतीन को चिढ़ाते हुए)

*आशीष* - तो कुछ हॉट वीडियो है क्या? दिमाग और दिल के मनोरंजन और आराम के लिए? हमें भी शेयर करो।(हंसने लगा)

*जतिन* - आशीष भाई तुझे निराशा होगी, क्योंकि ये हॉट नहीं वेरी कूल ऑडियो है। जिसे नादयोग कहते हैं।

*कमल* - ये नादयोग भला क्या बला है?

*जतिन* - कमल भाई, यदि तुझे अपने दिमाग़ को सुपर कूल और रिलैक्स करना है तो जैसा हम बोल रहे हैं वैसा करो। नहीं तो भाई लोग आप जाओ और मुझे पढ़ने दो।

*आशीष* - कमल चलो सिगरेट पीने चलते है, जतिन के पास कुछ और देर रहा तो पक जाऊँगा।

*कमल* - जतिन बताओ, तुम जैसा बोलोगे मैं वैसा करूंगा। यदि मैं इस बार एग्जाम में पास हुआ तो तुम्हें हज़ार रुपये की पार्टी दूंगा।

*आशीष* - (हंसते हुए) और यदि कमल पास न हुआ तो हज़ार रुपये हम ज्ञानी जतीन से वसूलेंगे।

*जतिन* - *कमल अध्यात्म के अभ्यास ईंधन देने के साथ गाड़ी चलाने का कौशल देना मात्र हैं। लेकिन ईंधन लेकर और ड्राइविंग सीख कर तुम तबतक कहीं नहीं पहुंच सकते जब तक गाड़ी तुम स्वयं न चलाओ। रास्ते मे गड्ढे भी पड़ेंगे और लोग गलत भी गाड़ी चलाएंगे और रास्ते मे भीड़ भी होगी। फिर भी हिम्मत करके गाड़ी तुम्हे ही चलाना होगा। पढ़ना तुम्हे ही पड़ेगा। कोई भी आध्यात्मिक अभ्यास बिन पढ़े पास नहीं करवा सकता।*

*कमल* - तुम आशीष की बात पर ध्यान मत दो, तुम मुझे बताओ। मैं 100% तुम्हारी बात मानूंगा।

*जतिन* - *सुबह गायत्री मंत्र बोलकर उठना। नहाने के बाद कम से कम 24 बार गायत्री मंत्र जपना। पढ़ने से पहले 5 बार डीप ब्रीदिंग, 5 बार ॐ और 5 बार गायत्री मंत्र जपना। कुछ भी खाने पीने से पहले गायत्री मंत्र जपना। शाम को नादयोग आंखे बंद करके सुनना, और रात को इनमें से कोई भी साहित्य का एक पेज पढ़कर सो जाना। बाकी दिनभर जैसे चाहो वैसे जियो।*

(आशीष और कमल चले गए, चुपके से आशिष ने कमल से नादयोग का ऑडियो और ऑनलाइन वही पुस्तके awgp वेबसाइट से पढ़ने लगा। और बिना कमल और जतीन को बताए वो भी वही दिनचर्या जो जतीन ने बताई थी फॉलो करने लगा)

(रिज़ल्ट आया तो आशीष और कमल दोनों के अच्छे मार्क्स आये। जतीन को कमल ने गले लगाया और हज़ार रुपये जतीन को देते हुए बोला यार तुमने तो मेरी जिंदगी ही बदल दी। मेरे दिमाग का शोर गायब कर दिया। आशीष उस दिन का साक्षी था इसलिए इसे भी साथ लाया हूँ। तभी मुस्कुराते हुए आशीष ने दो हज़ार रुपये जतीन की ओर बढ़ाते हुए कहा, भाई मेरी तरफ से)

*जतिन* - क्या हुआ आशीष भाई, सुर बड़े बदले बदले लग रहे हैं।

*आशीष* - मैंने चुपके से कमल के मोबाइल से नादयोग का ऑडियो लिया और उस रात लगा कर सुनते सुनते सो गया। बता नहीं सकता कितनी अच्छी नींद आयी।सुबह तुम्हारी पुस्तको को नेट पर ढूंढा और पढ़ना शुरू किया। यार, मैंने कई वीडियो भी यूट्यूब पर देखे। मैंने सिगरेट छोड़ दी। मन भी बड़ा शांत रहता है। तुम सही कहते थे - *दिमाग को सन्तुलित विचार, आराम और व्यायाम चाहिए, नशा नहीं चाहिए*। मेरे दिमाग का कुपोषण दूर हुआ और सुर बदल गए।

(तीनो दोस्त हंस दिए, जतीन ने तीन हज़ार रुपये की सत्साहित्य की पुस्तकें खरीदी और तीनों दोस्तो ने कॉलेज में बांट दिया)

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

नाटक - कुछ न कुछ तो देश के लिए करूँगा, और इसकी शुरुआत आज अभी से होगी*🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳

*नाटक - कुछ न कुछ तो देश के लिए करूँगा, और इसकी शुरुआत आज अभी से होगी*🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳

(सुबह सुबह फ़्रिज़ से चार पाँच बोतल बैग में आदित्य डाल रहा था, तभी उसकी माँ ने आवाज दी)

*मां* - आदित्य बेटा, नाश्ता लग गया है खा लो

*रवि* - अभी आया मां

(पापा ने माँ से पूँछा)
*पापा* - आपके साहबज़ादे क्या कर रहे हैं आजकल इतनी सारी बोतल का...क्या बाकी दोस्त पानी नहीं लाते है? ....और आज तो रविवार है कॉलेज और ट्यूशन दोनों नहीं है..फिर तुम जा कहाँ रहे हो?...कहीं मॉल वगैरह में फ़िल्म देखने?...

(पापा बात पूरी भी न हुई थी कि आदित्य के दोस्त कमल जो कि अभी अभी आया था बोल पड़ा)

*कमल* - अंकल जी हम इतने ख़ुश किस्मत नहीं कि हमारे आदित्य जी के हाथों का लाया पानी पी सकें, बल्कि इनके कारण हम सबको भी तीन चार बोतल एक्स्ट्रा ढोनी पड़ती है।

*पापा* - अच्छा, तो इतनी सारा पानी का तुम सब करते क्या हो?

*कमल* - अंकल जी आपके समाजसेवक पुत्र गरीब बच्चों और वृद्ध लोगो को पानी पिलाते हुये चलते हैं।

*पापा* - वाह, मतलब मां के समाजसेवा का असर बेटे पर भी बढ़िया है। और तुम लोग आजकल क्या कर रहे हो? आज रविवार को कहां जा रहे हो?

*आदित्य* - पापा, पास की झुग्गी झोपड़ी में बाल सँस्कार शाला चलाने जा रहे है मम्मी के साथ। इसलिए अपने दोस्तों को बुलाया है।

(बाकी दोस्त भी आ गए)

*दीप्ति* - मैं कुछ बिस्किट बच्चो कर लिए लाई हूँ, साथ मे बच्चो के लिए कुछ ब्रेन  गेम यूट्यूब से नोट करके लाई हूँ ।

*ईषना* - अंकल फ़िल्म देखने मे भी आनन्द नहीं मिलता जो आनन्द हमें बाल सँस्कार शाला के बच्चों के बीच आता है। जो प्यार जो अपनापन और जो उनके आंखों की चमक है वो मुझे सबसे अच्छी लगती है।

*कमल* - सबसे बड़ी बात अंकल जब हम सब आदित्य के साथ बाल सँस्कार शाला चला रहे होते हैं, तो एक गर्व की अनुभूति होती है। कि हम देश के लिए कुछ कर रहे हैं। हम देश का भविष्य गढ़ रहे हैं। अंकल अभी हम जॉब नहीं कर रहे लेकिन समय और अपनी प्रतिभा और ज्ञान का प्रयोग तो कर ही सकते हैं।

(थोड़ी देर में बेल बजती है, मां अंदर से आवाज़ देती है कि तुम्हारे सब दोस्त तो आ गए अब भला कौन आया होगा? तभी सब हतप्रभ रह जाते है, कि उनके प्रोफेशर सर को देखकर जो पत्नी के साथ आये थे)

*आदित्य* - नमस्ते सर, आप मुझे बता देते यदि कोई काम था। आपने आने की तकलीफ क्यों की?

*प्रोफेशर सर* - बेटा, हम तो तुम्हारे माता - पिता से मिलने आये है। उन्हें इतने अच्छे संस्कारवान बच्चा गढ़ने के लिए धन्यवाद देने आया हूँ।

*पापा और मम्मी* - सर ये तो आप सब की दी हुई शिक्षा है।

*प्रोफेशर सर* - जी नहीं, ये आपके सँस्कार है। पूरा कॉलेज आज पाश्चात्य के अंधानुकरण में उपद्रवी बन गया है। अभद्र वस्त्र और व्यसन आम बात है। लेकिन कलियुग में भी सतयुग की झलक आपका बच्चा और उसके दोस्त उसके प्रभाव में दिखाते है। एक दिन एक सवाल के जवाब में उसने कहा - सर, मै कुछ न कुछ तो 🇮🇳अपने देश के लिए करूंगा ही। तथा उसने उस दिन मुझे बाल सँस्कार शाला के बारे में बताया तो मैं और मेरी पत्नी आज वही देखने आए हैं।

(प्रोफेशर सर पत्नी से बोले)
अरे सुनो, बिस्किट के पैकेट दे दो जो हम लाये हैं बच्चो के लिए...तुम्हारी बाल सँस्कार शाला में तो 70 बच्चे है इसलिए हम 100 पैकेट ही ले आये।

(फिर उन्होंने आदित्य के पापा से पूँछा, ये सँस्कार आप लोगों को कहां से मिले)

*आदित्य के पापा*- सर हम लोग गायत्री परिवार से हैं। युवाओं को लोकसेवी और देशभक्ति के गुण हमारे परमपूज्य गुरुदेब युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य ने दिया है। उन्ही से प्रेरणा लेकर पूरे देश मे सप्त आंदोलन और शत सूत्रीय कार्यक्रम में आदित्य की तरह पूरे देश में युवा डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन के नाम से कर रहे हैं। पर्यावरण आंदोलन के तहत नदियों की सफाई के साथ साथ 150 से ज्यादा पहाड़ी हरी भरी कर दी, व्यसनमुक्ति के लिए तो ये युवा संकल्पित हैं। ऐसे अनेक कार्य गायत्री परिवार कर रहा है।

*प्रोफ़ेसर सर* - व्यसनमुक्ति का कोई कार्यक्रम आदित्य तुम लोग अपने कॉलेज में भी करो। हम पूरा सहयोग करेंगे।

*आदित्य* - जी सर जरूर,
(दीप्ति को कहा)
 दीप्ति जो बिस्किट तुम लाई हो मम्मी को दे दो, इसे नेक्स्ट वीक ले जाएंगे। आज तो बच्चो को हमलोग प्रोफेशर सर के लाये बिस्किट ही देंगे।

(सब मुस्कुराते हुए, नज़दीकी झुग्गी बस्ती के पार्क पहुंचते है। जहाँ बच्चे पहले से ही मौजूद थे। )

(फ़टाफ़ट दरी वग़ैरह बिछा के बच्चों को बिठाया गया। और आदित्य ने बच्चो को बोला ..)


*आदित्य* - पता है बच्चो आज आपसे मिलने और आपको पढ़ाने कौन आया है?

*बच्चे* - कौन आया है आचार्य जी?

*आदित्य* - आपके आचार्य जी के आचार्य जी और वो आपके लिए आज गिफ्ट में बिस्किट लाये हैं।

*बच्चे* - मतलब,  (दोनों हाथ फैलाकर एक साथ बोल पड़े) बहुत बड़े वाले आचार्य जी...

(बच्चो के ऐसा बोलने पर आदित्य के सब दोस्त और प्रोफेशर साहब अपनी हंसी रोक न सके😊😊😊 और उनके साथ सभी बच्चे भी खिलखिला के हंस दिए😂😂😂, फ़िर बच्चो ने गायत्री मंत्र, योग, प्राणायाम, कविता और विभिन्न मन्त्र उच्चारण किया। बच्चो को फ्री ट्यूशन के बाद नैतिक शिक्षा भी दी गयी। प्रोफेशर साहब और उनकी पत्नी इस पल में आनंद में डूब रहे थे। घर आकर भी इस पल की यादों में खोए रहे, उन 70 बच्चों की निर्मल हंसी को वो भूल नहीं पा रहे थे। सचमुच देश की सेवा केवल सीमा पर नहीं होती, केवल धन से नहीं होती, बल्कि समय दान और प्रतिभा दान करके भी देश सेवा की जा सकती है।)

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Saturday 26 May 2018

प्रश्न - *स्वाध्याय क्या है? और नित्य क्यों किया जाना चाहिए?*

प्रश्न  - *स्वाध्याय क्या है? और नित्य क्यों किया जाना चाहिए?*

उत्तर - बुद्धिमान व्यक्ति शरीर के साथ साथ दिमाग के भी भोजन की व्यवस्था करता है। शरीर को सन्तुलित भोजन और दिमाग को सन्तुलित विचार देता है। शरीर के व्यायाम के साथ साथ दिमाग के व्यायाम की व्यवस्था करता है। घर के आर्थिक बजट में भोजन और मनोरंजन के साथ साथ सत्साहित्य ख़रीदने का भी बजट रखता है। घर में स्वाध्याय हेतु लाइब्रेरी और ध्यान हेतु पूजन स्थल जरूर होता है। दिन के 24 घण्टे में कम से कम एक घण्टे का स्वाध्याय नित्य करता है। जीते जी अपने लिए स्वर्ग का निर्माण करेंगे और मरने के बाद जिस घर मे जन्मेंगे बुद्धिमान बच्चे के रूप में जन्मेंगे। इसलिए माता पिता इन्हें पाकर धन्य होंगे।

लेकिन मूर्ख व्यक्ति दिमाग़ के महत्त्व को नहीं समझता। अतः उसके घर के बजट सत्साहित्य खरीदने की व्यवस्था नहीं होती। उसके घर लाइब्रेरी नहीं होती। छुट्टी के दिन फ़िल्म जाने का समय पैसा भोजन और मनोरंजन के लिए होता है लेकिन दिमाग़ के भोजन सद्विचार और मनोमन्जन(स्वाध्याय) के लिए वक्त और धन नहीं होता। ऐसे लोग जीते जी नरक का निर्माण करते हैं और मरने के बाद नया जन्म जहां लेंगे अपनी मूर्खता का परिचय वहां देंगे।

ज्ञान जीते जी भी काम आता है और मरने के बाद भी काम आता है। ज्ञान शरीर सदा बना रहता है, बस थोड़े से प्रयास से उसे पुनः संज्ञान में लाया जा सकता है।

*शास्त्र की तीन प्रमुख अनुज्ञाएँ हैं- (१) सत्यं वद, (२) धर्मम् चर, (३) स्वाध्यायानमा प्रमदः। अर्थात् सत्य बोलें, धर्म को धारण करें और स्वाध्याय में प्रमाद न करें। इस निर्धारण के अनुसार सत्य और धर्म के ही समकक्ष स्वाध्याय को भी प्रमुखता दी गई है।*

एक दूसरी गणना पवित्रता क्रम की है। मन, वचन और कर्म तीनों को अधिकाधिक पवित्र रखा जाना चाहिए। इस निर्धारण में मन की पवित्रता को प्रमुख माना गया है। इसके बाद वचन और कर्म है। मन की पवित्रता के लिए स्वाध्याय, वचन की पवित्रता सत्य से और कर्म का वर्चस्व धर्म निखरता है।

सत्य और धर्म की महत्ता के सम्बन्ध में सभी जानते हैं। भले ही उनका परिपालन न करते हो। किन्तु स्वाध्याय के सम्बन्ध में कम लोग ही यह निर्णय करते हैं कि उसकी महत्ता भी सत्य और धर्म के परिपालन से किसी प्रकार कम नहीं है। उसकी उपेक्षा करने पर इतनी ही बडी़ हानि होती है, जितनी कि सत्य और धर्म के सम्बन्ध में उदासीन रहने पर।

जिन दिनों इस धरती पर देव मानवों का बाहुल्य था, उन दिनों सत्य और धर्म का तो ध्यान रखा ही जाता था, पर स्वाध्याय को भी कम महत्त्व का नहीं माना जाता था। उनके लिए प्रत्येक विचारशील अपनी तत्परता बनाये रहता था।

*स्वाध्याय का शब्दार्थ है अपने आप का अध्ययन- यह कार्य शिक्षितों के लिए शास्त्रों के नियमित अध्ययन द्वारा सम्पन्न होता है, शास्त्रों की मदद से स्वयं का अध्ययन और जानने में मदद मिलती है*। शास्त्र उन ग्रन्थों को कहते हैं जो आत्म- सत्ता और उसकी महत्ता का बोध कराये। कर्तव्य पथ की जानकारी एवं प्रेरणा प्रदान करें।

याद रखिये -मात्र मन्त्र जप और चालीसा पाठ से मानसिक सँस्कार नहीं बनेंगे, अच्छे मानसिक सँस्कार हेतु ध्यान और स्वाध्याय आवश्यक है।

जो स्वाध्याय नहीं करते वो जन्म जन्मान्तरों के लिए मानसिक रुग्णता को आमंत्रित करते हैं। स्वयं को ज्ञानी समझना और स्वाध्याय के लिए अच्छी पुस्तकों को न पढ़ना दिमाग़ को सदा सर्वदा के लिए ज्ञान से विमुख कर देना है।

यदि आप ज्ञानमार्ग में स्वाध्याय करके आगे नहीं बढ़ रहे तो आप अज्ञानता की खाई की ओर स्वतः सरक रहे हैं।

स्वाध्याय के सम्बंध में महर्षि पतंजलि ने क्या कहा है जानने कर लिए पढ़े पुस्तक 📖 - *पातंजलि योग का तत्त्व- दर्शन*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *कृष्ण की बहन सुभद्रा और महारथी अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की अल्पायु में मृत्यु क्यो हुई? भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बहन के बेटे को मरने से क्यों नहीं बचाया?

प्रश्न - *कृष्ण की बहन सुभद्रा और महारथी अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की अल्पायु में मृत्यु क्यो हुई? भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बहन के बेटे को मरने से क्यों नहीं बचाया? सुदर्शन चक्र अभिमन्यु की रक्षार्थ क्यों नहीं भेजा, जबकि ब्रह्मास्त्र से अभिमन्यु के पुत्र और अर्जुन के पौत्र की रक्षा उत्तरा के गर्भ में किया? कृपया उत्तर बतायें*

उत्तर - सुभद्रा ने अपने भाई भगवान श्रीकृष्ण से महाभारत युद्ध के बाद पूँछा - हे केशव तुमने अर्जुन को अनेकों बार मौत से बचाया,अस्वस्थामा द्वारा चलाये ब्रह्मास्त्र से हमारे पौत्र परीक्षित की उत्तरा के गर्भ में तुमने रक्षा की। तुम्हारे बिना महाभारत युध्द जीतना असम्भव था, तो तुमने मेरे पुत्र अभिमन्यु को क्यों नहीं बचाया?

श्री कृष्ण ने जवाब दिया, मानता हूँ मैं नियंता विधाता हूँ। लेकिन मैं भी नियमो से बंधा हूँ। जब जब मैं अवतार लेता हूँ मेरे साथ समस्त देवी देवता या उनके पुत्र धर्म की रक्षा हेतु मेरा साथ देने जन्म लेते हैं। चन्द्रमा के पुत्र वर्चा को भी धरती पर मेरे साथ जन्म लेना था। लेकिन वो पुत्रमोह में अपने महापराक्रमी पुत्र वर्चा को को महाभारत के भीषण युद्ध हेतु भेजने को तैयार नहीं हो रहे थे। लेकिन देवताओं के आग्रह और कर्तव्य के कारण भेजने से पूर्व एक शर्त रखी। जैसे ही पुत्र का महाभारत युद्ध मे कार्य खत्म हो जाये तो उसे वापस हमारे पास भेज दिया जाय। साथ ही उसके पुत्र को कौरव वंश का उत्तराधिकारी बनाया जाय। मुझ नियंता ने यह स्वीकार लिया। चक्रव्यूह तोड़ने के बाद अभिमन्यु का कार्यक्षेत्र सम्पन्न हो चुका था, शर्तानुसार उसे वापस चन्द्रमा के पास जाना था, वर्चा भी वापस चन्द्रमा के पास जाना चाहते थे। अतः मैं चाहकर भी उसे नियमो के बंधन के कारण न रोक सका। क्योंकि परीक्षित की आत्मा की जीवन यात्रा शेष थी। इसलिए उसे मैं बचा सकता था।

मैं नियंता उसी आत्मा की रक्षा करके जान बचा सकता हूँ जो आत्मा धरती पर रहना चाहती है।  इसलिए जब दिव्यात्मायें मेरे  लिए मेरे कार्यहेतु जन्म लेती है, अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करके, अल्पायु में विभिन्न दुर्घटनाओं में या बीमारियों में चले जाते हैं। दुर्घटना या बीमारी भी पूर्वजन्मों के कुछ लेखा जोखा को ही कम्प्लीट करती है।

जैसे बहन मैं अपनी मृत्यु के लिए बलि की आत्मा का आह्वान करूंगा, क्योंकि श्रीराम अवतार में मैंने उसे छिपकर बालि रूप में मारा था। मेरा कार्य इस धरती पर समाप्त होते ही वो मुझे विषबुझा तीर मारेगा जिससे मेरी मृत्यु होगी।

सुभद्रा की शंका का समाधान हुआ।

अब हम सब स्वयं की समझते है हम सब भी परमपूज्य गुरुदेव का युगनिर्माण में साथ देने आए हैं। जब जिसका कार्य और दी हुई जिम्मेदारी समाप्त होगी हम सब एक एक करके अपने लोको में चले जायेंगे। जहां से आये है वहां चले जायेंगे। जिंदगी के रंगमंच में कितने मिनट, कितने घण्टों और कितने वर्षों का रोल मिला है बस उस रोल को बेहतर करके इस संसार से विदा लेना होगा।

कोई अल्पायु में छोड़कर हमारे बीच से जाए तो समझ लेना, रंगमंच में उसका रोल/अभिनय खत्म हो गया और अब पर्दा गिर गया और वो अपने घर विश्राम हेतु गया, जहाँ से आया था वहां गया। उसके जाने के बाद उसके बेहतरीन रोल के लिए या तो तालियाँ बजेगी या अच्छा रोल न करने पर जमाने से गालियां पड़ेंगी। रोल/अभिनय/कर्म करने वाला तो गया, अब जमाना उसके रोल/कर्म/अभिनय को ही याद रखेगा।

आत्मा अनन्त यात्री है, एक फ़िल्म/नाटक पूरी होने पर, दूसरी फिल्म/नाटक जब विधाता देगा पुनः ज्वाइन करेगा और अपना बेस्ट अभिनय करेगा।

https://youtu.be/yEeoVA4ePHM

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday 25 May 2018

प्रश्न - *महिला सम्मेलन में विचारक्रांति हेतु उदबोधन के कंटेंट दीजिये*

प्रश्न - *महिला सम्मेलन में विचारक्रांति हेतु उदबोधन के कंटेंट दीजिये*

उत्तर - नज़र का ईलाज हॉस्पिटल में उपलब्ध है, लेकिन नज़रिए का इलाज सिर्फ़ अध्यात्म के पास है। शशक्त विचारों से महिलाशसक्तिकरण के वर्कशॉप में उदबोधन के माध्यम से नज़रिए/दृष्टिकोण की मरम्मत कीजिये। नजरिये बदलते ही नजारे बदल जाएंगे। जामवंत की भूमिका सर्वत्र निभाते हुये निम्नलिखित उदबोधन दीजिये :-

आत्मीय बहनों,

परम् पूज्य गुरुदेव कहते हैं, आध्यात्मिक शास्त्र का यह एक अटल सिद्धान्त है कि जो अपने को जैसा मानता है, उसका बाह्य आचरण भी वैसा ही बनने लगता है। बीज से पौधा उगता है और विचारों से आचरण का निर्माण होता है। जो अपने को दीन, दास, दुखी, दासता मानता है वह वैसा ही बना रहेगा। हमारे देश में दीनता, दद्रिता, दुख, दरिद्रता के विचार फैले और भारतभूमि ठीक वैसी ही बन गई। अपने निवास लोक को जब हम ‘जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ कहते थे तब यह दैव लोक थी, जब ‘भव सागर’ कहने लगे तो वह बद्ध कारागार के रूप में हमारे मौजूद है।

यदि आप अपने को नीच पतित मानते हैं तो विश्वास रखिये आप वैसे ही बने रहेंगे कोई भी आपको ऊँचा या पवित्र न बना सकेगा, किन्तु जिस दिन आपके अन्दर से आत्मगौरव की आध्यात्मिक महत्ता की हुँकार उठने लगेगी उसी दिन से आपका जीवन दूसरे ही ढांचे में ढलना शुरू हो जायेगा संसार में जितने भी महापुरुष हुए हैं उनमें उनके निजी प्रयत्न का ही श्रेय अधिक है। हम मानते कि दूसरों की सहायता से भी उन्नति होती है पर यह सहायता उन्हें ही प्राप्त होती है। जो अपने सहायता खुद करते हैं।

रक्तदान लेकर आपत्तिकाल में जीवन बचाया जा सकता है, जीवन जिया नहीं जा सकता। स्वयं के शरीर में स्वयं की आवश्यकता के लिए रक्त उत्पादन तो करना ही पड़ेगा। स्वाध्याय और ध्यान से नित्य की विचारशक्ति को प्रबल करना ही पड़ेगा। अपनी मदद आपको स्वयं करना ही होगा। स्वयं की योग्यता-पात्रता बढ़ाइये, अपनी वर्तमान परिस्थिति को बेहतर और आनन्दमय बनाने के लिए सत्प्रयास कीजिये। मनःस्थिति बदलते ही परिस्थिति बदलने लगेगी।

आप सभी शक्तियां है, आपके अंदर लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा की शक्ति समाई हुई है। हम मात्र जामवंत जी की तरह आपको आपकी शक्ति से परिचित कराने आये हैं। हनुमान जी शक्ति भूले थे और जामवंत की प्रेरणा से शक्ति याद आते ही श्रीराम कार्य में जुट गए। इसी तरह युगऋषि के संदेशों के माध्यम से हम आपसबकी चेतना शक्ति जगाने आये है आप सबको आपकी शक्ति से परिचित करवाने आये हैं। जागिये एक हाथ से स्वयं का कल्याण कीजिये और दूसरे हाथ से श्रीराम काज युगनिर्माण में जुट जाईये।

स्त्री कभी बेरोजगार नहीं होती, जॉब करने वाली भी कमाती है और घर सम्हालने की जॉब करने वाली स्त्री भी कमाती है। ऑफ़ीस और कस्टमर सम्हालने वाली भी कमाती है और घर, बच्चो और रिश्तेदारों को सम्हालने वाली भी कमाती है। अतः आपके पास दोनों ही स्थिति में महत्त्वपूर्ण जॉब है। अतः सम्मान सहित सर उठा कर  जियें।

स्त्री परिवार की धुरी है, स्त्री के बिना सृष्टि नहीं, स्त्री के बिना परिवार नहीं और स्त्री के बिना जीवन मे रस और सुंदरता नहीं। घर में गृहलक्ष्मी है, पालन पोषण में सरस्वती और जरूरत पड़ने पर दुर्गा बन सकती है। तुम कोमल हो लेकिन कमज़ोर नहीं, बस जरूरत है अपनी शक्तियों के जागरण हेतु प्रयास करने की।

हे नारी शक्तियों साधनात्मक त्रिशूल(उपासना-साधना-आराधना) का धारण करो और अपने जीवन को कंटको से मुक्त करो। गृहस्थ एक तपोवन बनाओ। और लोहे की जंजीर दासता-अज्ञानता-हीनता को काट फेंको और स्वयं को मुक्त करो, साथ ही सोने की जंजीरों फ़ैशन-व्यसन-टीवी इनसे भी स्वयं को मुक्त करो। हे जननी तुम सर्वश्रेष्ठ हो, इसका भान करो। स्वयं को आत्मशक्ति, विचारशक्ति, सादगी और आत्मीयता के सृंगार से सज़ाओं। आत्मनिर्भर बनो। स्वयं को ईश्वर की विशिष्ट कृति मानो, और सर उठा कर आनन्द से जियो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *विचार क्रांति कैसे होगी? पूजा-पाठ और कर्मकांड से?*

प्रश्न - *विचार क्रांति कैसे होगी? पूजा-पाठ और कर्मकांड से?*

उत्तर - विचारक्रांति कैसे होगी यह समझने से पहले विचारक्रांति का वास्तव में क्या अर्थ और प्रयोजन क्या है यह समझते है।

*विचारक्रांति का अर्थ और प्रयोजन* - मनुष्य के आस्था-मान्यताओं और विचार के स्तर को निकृष्टता (स्वार्थ केंद्रित निम्न सोच को)  से विरतकर (दिशाधारा मोड़कर) उत्कृष्टता(आत्मकल्याण और लोककल्याण) की ओर अभिमुख करना है। सरल शब्दों में दुश्चिंतन विचारधारा को सद्चिन्तन विचारधारा में परिवर्तित करना ही विचारक्रांति है।

*विचारक्रांति आज की सबसे बड़ी आवश्यकता क्यों?* - पहले आधुनिक विज्ञान ने इतनी प्रगति नहीं की थी और सत्ता राजाओं-शासकों के हाथ में होती थी। शासक की विचारधारा को बहुसंख्यक प्रजा अपनाती थी। इसलिए शस्त्रबल के प्रयोग से शासक का वध करने पर काम चल जाता था और युगपरिवर्तन हो जाता था, उदाहरण रावणवध-कंसवध-हिरण्यकश्यप वध इत्यादि।

अब विज्ञान प्रगति पर है, सूचना-आदान प्रदान मोबाईल, टीवी, इंटरनेट, ईमेल, व्हाट्सएप, फेसबुक इत्यादि के माध्यम से तुरन्त सर्वत्र फ़ैल जाता है। सत्ता जनता के हाथ में है। आज शस्त्रबल के युध्द से समाधान नहीं निकल सकेगा। प्रथम-द्वितीय युद्ध से कोई समाधान न निकला। तृतीय विश्व युध्द हुआ तो परमाणु अस्त्रों के प्रयोग से मर्ज़ और मरीज सब समाप्त हो जाएंगे। सम्पूर्ण विश्व तबाह हो जाएगा।

केवल विचार परिवर्तन - विचारक्रांति ही एक मात्र समाधान हैं। जनता विचाररहित नहीं है, मनुष्य अभी पूर्ण रूपेण विवेकशून्य नहीं हुआ है। अतः संगठित होकर सामाजिक, नैतिक, बौद्धिक क्रांति को विचार-शक्ति के प्रयोग विचारक्रांति से करना सम्भव हो सकता है। राज-सत्ता और धर्म-आस्था में सकारात्मक विचारों के प्रवेश से सर्वागीण हित साधन सम्भव बनाया जा सकता है। ठीक से सही रीति नीति से जनमानस को वस्तु स्थिति समझा दी जाए तो जनमानस उसे स्वीकार करेगा भी और अपनाएगा भी। यही युगनिर्माण की आधारशिला बनेगा।

*विचारक्रांति होगी कैसे?* - विचारक्रांति तीन माध्यमो से होगी

1- *प्रचारात्मक* - प्रोजेक्ट दृष्टिकोण, बोलती दीवारें, स्वाध्याय हेतु प्रेरित करना, सत्साहित्य विस्तार, झोला पुस्तकालय, साहित्य प्रदर्शनी, वर्कशॉप, काउंसलिंग, प्रेरक प्रज्ञा गीत भजन सन्ध्या, प्रज्ञापुराण कथा आयोजन इत्यादि

2- *रचनात्मक* - साधना आंदोलन,  स्वास्थ्य आंदोलन, बाल सँस्कार शाला, महिला शशक्तिकरण अभियान,  स्वरोजगार, आदर्शग्राम, श्रीरामस्मृति उपवन, जल संरक्षण-जल स्त्रोतों की सफाई, पर्यावरण संरक्षण-वृक्षारोपण, सूक्ष्म परिशोधन - यज्ञ आयोजन इत्यादि

3- *सँघर्षात्मक* - नशसमुक्ति- व्यसनमुक्ति आंदोलन और रैली, रूढ़िवादी परम्पराओं का विरोध, ख़र्चीली शादी और्वदहेज प्रथा का विरोध, कन्याभ्रूण हत्या का विरोध, फैशनपरस्ती का विरोध इत्यादि

पूजा-पाठ और कर्मकांड विचार क्रांति का एक अंश हैं। साधना आंदोलन में हम मुख्यतया उपासना (गायत्री मन्त्र जप और ध्यान) , साधना (आत्मशोधन-योग-प्राणायाम-स्वाध्याय) और आराधना (लोककल्याणार्थ समयदान, अंशदान और प्रतिभादान) के लिए लोगों को प्रेरित करते है। जो साधक होगा वो स्वयंमेव विचारक्रांति का सहायक बन जायेगा।

घर घर यज्ञ हो या सामूहिक यज्ञ, जन्मदिवस, विवाहदिवस इत्यादि सँस्कार सभी कार्यक्रमों में युग्सन्देश द्वारा स्वधर्म का भान करवाया जाता है, सोई चेतना जगाई जाती है, बुराई का त्याग दक्षिणा में और यज्ञ प्रसाद स्वरूप एक अच्छाई का वरण, यह विचारक्रांति अभियान का ही उपक्रम है।

विचारक्रांति को गहराई से समझने के लिए निम्नलिखित तीन पुस्तकें पढ़े:-

1- सामाजिक, नैतिक एवं बौद्धिक क्रांति कैसे?
2- युग निर्माण योजना - दर्शन, स्वरूप एवं कार्यक्रम
3- युग परिवर्तन कब और कैसे?

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Thursday 24 May 2018

प्रश्न - *वेदमाता गायत्री का जो चित्र हम पूजा उपासना में प्रयुक्त करते है, उसका उद्गम एवं इतिहास प्रमाणिकता के साथ बताइये।*

प्रश्न - *वेदमाता गायत्री का जो चित्र हम पूजा उपासना में प्रयुक्त करते है, उसका उद्गम एवं इतिहास प्रमाणिकता के साथ बताइये।*

उत्तर - परम् पूज्य गुरुदेव वेदमूर्ति तपोनिष्ठ युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी मन्त्र दृष्टा और अध्यात्मक वैज्ञानिक थे।

देवी देवताओं की जो आप दुनियाँ भर में मूर्ति देखते हो, वो भक्त द्वारा सोची या देखी या कल्पना की हुई प्रतिमाएं है। उदाहरण साउथ में तिरुपति बालाजी की मूर्ति, बंगाल में मां काली की मूर्ति, उड़ीसा में जगन्नाथ जी की मूर्ति, वृंदावन में भगवान कृष्ण राधा की मूर्ति, समर्थगुरु रामदास जी द्वारा बनाई हनुमान जी की मूर्ति, बुद्ध की मूर्ति, गुरु नानक की फ़ोटो इत्यादि। ये मूर्ति और फ़ोटो साकार साधको को अध्यात्म में प्रवेश करने हेतु श्रद्धा जमाने हेतु श्रध्दा पूर्वक ध्यान के केंद्रीकरण में अत्यंत सहायक हैं। निराकार साधना कठिन है और साकार साधना सुगम।

इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए युगऋषि परम् पूज्य गुरुदेव ने प्राचीनकाल से चली आ रही गायत्री की निराकार साधना को साकार उपासना हेतु सरल सुगम बनाने हेतु माता की फोटो और मूर्ति का पूजन प्रारम्भ किया। मन्त्र दृष्टा और आध्यात्मिक शक्ति से सम्पन्न आध्यात्मिक रिसर्चर ऋषियों ने यह महान उत्तर दायित्व ऋषियों की संसद हिमालय में परमपूज्य गुरुदेव को सौंपा, जिनमें मुख्य गायत्री की दोनों उपासना धाराओं (साकार - निराकार) को जन सामान्य के लिए उपलब्ध करवाना। सभी स्तर के साधको को ध्यान में रखते हुए एक तरफ गायत्री सन्ध्या का सरलीकरण, गायत्री यज्ञ का सरलीकरण, उपासना-ध्यान के सरलीकरण का उत्तरदायित्व सौंपा, तो दूसरी तरफ उच्च स्तरीय साधनाओं, पँचकोशिय साधनाये, चन्द्रायण साधनाएं, सवित्रिकुण्डलनी जागरण साधनाओं को भी उपलब्ध कराने का उत्तरदायित्व सौंपा। गर्भ से मृत्यु तक की सँस्कार परम्पराओं अर्थात human spiritual brain programming का उत्तरदायित्व सौंपा, साथ ही दो नए सँस्कार बनाने को बोला - जन्मदिवस सँस्कार और विवाहदिवस सँस्कार। इन सब जिम्मेदारियों को देने के पीछे प्रमुख उद्देश्य मनुष्य में देवत्व की स्थापना और धरती पर स्वर्ग अवतरण सुनिश्चित करना अर्थात सतयुग की वापसी है। इस पूरे प्रोजेक्ट को युगनिर्माण योजना और विचारक्रांति अभियान का क्रमशः नाम भी दिया गया।

आतिशी सीसा सूर्य नहीं होता, लेकिन सूर्य की रॉशनी को केन्द्रीभूत करके रुई को सूर्य की रौशनी से जलाने में सक्षम होता है। इसी तरह सोलर उपकरण सूर्य की रौशनी से ऊर्जा लेकर अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को चलाने में सक्षम होते हैं। इसी तरह मूर्ति और फ़ोटो की प्राण प्रतिष्ठा से सविता की शक्ति को केन्द्रीभूत पूजन गृह में किया जाता है। साकार साधक सुगमता से अपनी भावना शक्ति को केन्द्रीभूत मूर्ति या फ़ोटो के माध्यम से कर पाता है।

वर्तमान युगीय विकृत चिंतन से उपजी समस्या के समाधान हेतु सद्चिन्तन और दिशानिर्देश-मार्गदर्शन हेतु युगऋषि ने 3200 पुस्तको का विशाल साहित्य खज़ाना विश्व को उपलब्ध करवाया।

 तीनों लोकों में व्याप्त गायत्री-सविता शक्ति(ॐ भूर्भुवः स्व:) का सब वरण (तत्सवितुर्वरेण्यं) अपनी बुद्धि (धीमहि) में करें, उनके दैवीय गुणों को जन जन स्वयं में धारण करें(भर्गो देवस्य) और सत्य मार्ग/सन्मार्ग की ओर अग्रसर हो(प्रचोदयात)। इस शिक्षण की शुरुआत नए साधको के घर वेदमाता गायत्री की प्रतिमा देवस्थापना करवा के परमपूज्य गुरुदेव ने सर्वप्रथम करवाया।  युगऋषि से पूर्व युगनिर्माण योजना जैसे विशाल प्रोजेक्ट-युग बदलने की बात और गायत्री माता की प्रतिमा की स्थापना का उल्लेख कही कोई इतिहास में/पुराणों में नहीं मिलता। कुछ ऋषि आध्यात्मिक इतिहास बनाते है और कुछ ऋषि आध्यात्मिक इतिहास पढ़ते पढ़ाते है। युगऋषि आध्यात्मिक इतिहास बनाने वाले हैं।

उम्मीद है आपको अध्यात्म विज्ञान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और वर्तमान युग की आवश्यकता  का संक्षेप में विवरण और गायत्री माता की प्रतिमा स्थापना की प्रेरणा की प्रमाणिकता पसन्द आएगी।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

कविता - *सृष्टि का रचयिता हुआ परेशान*

*सृष्टि का रचयिता हुआ परेशान*

सृष्टि का रचयिता हुआ परेशान,
जिस दिन से बनाया उसने इंसान,
छोटी छोटी सी बातों के लिए भी,
इंसान करता रहता था उन्हें परेशान।

सृष्टि का रचयिता हुआ परेशान....

देवताओं की सभा बुलाई गई,
इंसानों से उपजी समस्या बताई गई,
पूँछा, कहाँ छुपे परमात्मा,
जहां इंसान उसे आसानी से ढूंढ न सके भाई।

सृष्टि का रचयिता हुआ परेशान....

किसी ने ऊंची पहाड़ियां सुझाई,
किसी ने गहरे समुद्र की राह दिखाई,
परमात्मा ने कहा,
यहाँ तो इंसान,
कभी न कभी पहुंच जाएगा भाई।

सृष्टि का रचयिता हुआ परेशान....

ग्रह नक्षत्रों तक भी,
इंसान पहुंचेगा भाई,
टेक्नोलॉजी और बुद्धिबल से,
कभी न कभी,
सर्वत्र पहुंचना आसान करेगा भाई।

सृष्टि का रचयिता हुआ परेशान...

मनुष्य के हृदय में रहने की,
गुरुवृहस्पति ने युक्ति सुझाई,
परमात्मा को यह युक्ति,
बहुत ही ज्यादा पसन्द आई।

सृष्टि का रचयिता हुआ परेशान..

तबसे मनुष्य सब जगह,
परमात्मा को ढूंढता है,
लेकिन हृदय के भीतर,
कभी नहीं झाँकता है,
कोई बिरला ही,
परमात्मा को ढूंढ पाता है,
जो अंतर्जगत में डूबकर
उस तक पहुंच पाता है।

सृष्टि का रचयिता हुआ परेशान...

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *मुश्लिम कैदियों के मार्गदर्शन और उनकी आत्मशांति के मार्गदर्शन हेतु क्या बोलें?*

प्रश्न - *मुश्लिम कैदियों के मार्गदर्शन और उनकी आत्मशांति के मार्गदर्शन हेतु क्या बोलें?*

उत्तर - सूरह अल फातिहा

1:1  بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ

अल्लाह के नाम से जो अत्यंत कृपाशील तथा दयावान है|

1:2  الْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ

सारी प्रशंसाएँ अल्लाह ही के लिए हैं, जो सारे संसार का रब है।

1:3  الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ

बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान है।

1:4  مَالِكِ يَوْمِ الدِّينِ

बदला दिए जाने के दिन का मालिक है।

1:5  إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ

हम तेरी ही बन्दगी करते हैं और तुझी से मदद माँगते हैं।

1:6  اهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِيمَ

हमें सीधे/सत्य मार्ग पर चला।

1:7  صِرَاطَ الَّذِينَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ غَيْرِ الْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ وَلَا الضَّالِّينَ

उन लोगों के मार्ग पर जो तेरे कृपापात्र हुए, जो न प्रकोप के भागी हुए और न पथभ्रष्ट। श्रेष्ठ लोगों का अनुसरण करें और उनके दिखाए मार्ग पर चलें।

इसे रोज अपनी प्रार्थना में शामिल करें।

गलतियां इंसान से होती है, हम सोचते हैं क्रोध में कि हम दूसरों को दण्ड दे रहे हैं। लेकिन असल में दण्ड के पात्र हम स्वयं बनते चले जाते हैं।

हम बीच में खड़े हैं, जन्नत(स्वर्ग) और दोज़ख(नर्क) के, अल्लाह ने हमें अपने मन मुताबिक जीने की छूट तो दी है, अपने हिसाब से काम करने की छूट दी है लेकिन उसका फ़ल/रिज़ल्ट/परिणाम अपने हाथ में रखा है। इसलिए जो भी करें पहले हमें सोचना समझना चाहिए।

हम जेल में कुछ प्रारब्ध/पिछले जन्म के कर्मफ़ल से बनी परिस्थिति के कारण भी आते है औऱ कुछ परिस्थितियां क्रोध में मन को नियंत्रण न कर पाने की स्थिति में होती है जिसके कारण हम जेल आते है या कुछ मजबूरी में गलती होती है। बहुत कम केस में कोई जानबूझकर प्लान करके अपराध करता है।

जेल जीवन मे अपनी भूलो के प्रायश्चित करने का उत्तम स्थान होता है, जहां हम नित्य *सूरह अल फ़ातिहा* कम से 108 बार पढ़कर इस पर चिंतन करें। इसके एक एक शब्द को स्वयं में अंकित करें और ख़ुदा की बताई नेक राह पर चलने को स्वयं को प्रेरित करें।

सूर्य जो वृक्ष-वनस्पति और जीवों को प्राण देता है उससे हृदय से प्रार्थना करें कि वो भी अपनी रॉशनी से हमारे भीतर का अंधकार दूर करे, ख़ुदा का नूर बरसे, उजाला ही उजाला मन के अंदर हो। बुराइयां जलकर खाक हो जाएं और नेकनीयत हममें आ जाये। हर जीव वनस्पति मनुष्य औऱ कण कण में हमे ख़ुदा दिखे। और हमारे चेहरे पर ख़ुदा का नूर रहे।

इस एकांत का लाभ अपने आपको अच्छा इंसान बनाने में ख़र्चे, उस ख़ुदा की इबादत में समय ख़र्चे, सूरह अल फ़ातिहा का अर्थ चिंतन करते हुए, उस ख़ुदा के ध्यान में खोए रहें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *एक श्रेष्ठ आत्मा को जन्म देना, क्या ये हमारे वश में है? हमारे गर्भ में श्रेष्ठ आत्मा ही आये ये कैसे सुनिश्चित करें.*

प्रश्न - *एक श्रेष्ठ आत्मा को जन्म देना, क्या ये हमारे वश में है? हमारे गर्भ में श्रेष्ठ आत्मा ही आये ये कैसे सुनिश्चित करें...हमारी शादी को एक वर्ष हो गए हैं, हम दोनों साधक है और श्रेष्ठ आत्मा के माता-पिता बनने का सौभाग्य चाहते हैं।...कृपया मार्गदर्शन करें*

उत्तर - श्रेष्ठ आत्मा अर्थात भौरा और बुरी आत्मा अर्थात मक्खी। यदि दोनों उड़ेंगे तो अपनी अपनी पसंद की चीज़ ढूंढेंगे - भौरें को फूल चाहिए तो मक्खी को गन्दगी। हंस को मोती चाहिए और कौवे को रोटी।

श्रेष्ठ आत्मा के स्वागत हेतु श्रेष्ठ गर्भ निर्माण में जुट जाइये। सवा लाख गायत्री मंत्र का अनुष्ठान या 24 हज़ार के तीन लघु अनुष्ठान चन्द्रायण साधना करते हुए आप दोनों करें। जुलाई 2018 में हम लोग चन्द्रायण करते है आप दोनों समूह में चन्द्रायण करेंगे तो अनेकों गुना लाभ मिलेगा।

नियमित पुस्तक *चेतना की शिखर यात्रा* और *अंतर्जगत का ज्ञान विज्ञान* का स्वाध्याय करें। साहसी बच्चा चाहिए तो साथ में वीरों और प्रसिद्ध योगियों की जीवन कथा पढें।

अनुष्ठान के बाद बच्चा प्लान करें, जिस प्रकार की आत्मा चाहते हैं उससे सम्बन्धित गीत या गायत्री मंत्र दिन भर बजने दें। जब आत्मा शरीर धारण को ईश्वरीय आदेश से निकलेगी तो आपके तपस्वी शरीर और उच्च मनोभाव को देख के बुरी आत्माएं निकट नहीं आएंगी। हिमालय की दिव्यात्माओं को दिव्य सन्देश प्रकृति पहुंचा देगी। औऱ श्रेष्ठ दिव्यात्मा आपके गर्भ में प्रवेश करेगी।

पुंसवन सँस्कार कम से कम दो बार करवाना - तीसरे और सातवें महीने में, मन में उच्च भाव बनाएं रखने के लिए नियमित गायत्री जप- उगते हुए सुनहरे सूर्य का गर्भ के अंदर ध्यान, गर्भ में प्रकाश ही प्रकाश का ध्यान करना, नियमित योग-प्राणायाम करना, गर्भावस्था में संस्कृत आती हो या न आती हो पुनः शुरू से संस्कृत सीखना, 6 महीने संस्कृत भाषा में महारत हासिल कर लेना। दिव्य गर्भ संवाद आप और आपके पति देव करना। बलिवैश्व यज्ञ द्वारा संस्कारित भोजन करना। 9 महीने तक घर का बना और शुध्द सात्विक भोजन करना। कुछ भी खाने पीने से पहले गायत्री मंत्र बोलकर खाना। नित्य उगते हुये सूर्य का दर्शन पेट मे हाथ रख के करना। दैनिक साधना के बाद सूर्य को जल चढाकर थोड़ा जल बचा लेना, उस जल को गर्भस्थ पेट के ऊपर लगाना, साथ ही शान्तिकुंज में मिली चुटकी भर यज्ञ भष्म उस जल में मिला के थोड़ा सा जल पी लेना।

हो सके तो कुछ दिन दिव्य साधना लोक - गायत्री तपोभूमि मथुरा या शान्तिकुंज हरिद्वार में रह लेना। जिससे तीर्थ चेतना का लाभ भी गर्भस्थ शिशु को मिले।

रोज रात को महापुरुषों का साहित्य पढ़ना, प्रेरक प्रज्ञा गीत सुनना, जब भी वक्त मिले परमपूज्य गुरुदेव, मां भगवती, श्रद्धेय डॉक्टर साहब, श्रद्धेया जीजी और चिन्मय भैया के वीडियो लेक्चर सुन लेना।

फोन और लैपटॉप को गर्भ के पास न लाना और न रखना। टीवी यदि घर में हो तो 9 महीने उसे न देखना।

नित्य आत्मबोध और तत्त्वबोध की साधना करना और जिस महापुरुष जैसा बच्चा चाहती हो उनके गुणों का निरन्तर चिंतन करना।

*आओ गढ़े संस्कारवान पीढ़ी* पुस्तक में वर्णित पूरी दिनचर्या को नियम से पालन करना।

तुमदोनो को दिव्य सन्तान मिले इसकी हम प्रार्थना करते हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 23 May 2018

प्रश्न - *दी, मेरे जीवन में आध्यात्मिकता की शुरुआत हो गयी है या नहीं? यह कैसे चेक करूं? कृपया मार्गदर्शन करें*

प्रश्न - *दी, मेरे जीवन में आध्यात्मिकता की शुरुआत हो गयी है या नहीं? यह कैसे चेक करूं? कृपया मार्गदर्शन करें*

उत्तर - इस प्रश्न का उत्तर देने से पहले दो कहानी सुनाती हूँ वो सुनो-

1- *पहली कहानी* -

एक व्यक्ति ने एक सन्त से अनुरोध किया कि वो अध्यात्म में प्रवेश चाहता है, अतः उसे शिष्य अपना शिष्य बना लें। पहले तो उसने मना कर दिया, लेकिन जब कई दिनों के अनुरोध के बाद उसने उसे शिष्य बनाने से पूर्व एक परीक्षा की शर्त रखी। उसने शिष्य बनने आये व्यक्ति से कहा तुम आज सुबह से शाम सिर्फ मुझे देखो(observe) करो, लेकिन कुछ बोलना मत और न हीं कोई प्रतिकार करना। यदि ऐसा कर सके तो कल तुम्हें गुरुदीक्षा दूँगा। व्यक्ति तैयार हो गया। सन्त अपने काम में लग गए वो देखता रहा। फिर सन्त दो बाल्टी लेकर कुएं में पानी भरने गए। पहली बाल्टी को कुएं में डाला लेकिन बाल्टी हमेशा खाली आती। क्योंकि उस बाल्टी के पेंदी में कई छेद थे ऊपर आते आते बाल्टी खाली हो जाती। इस तरह सन्त ने कई बार प्रयास किया लेकिन बाल्टी कभी भरकर न आई। वह व्यक्ति देखता रहा, लेकिन कुछ न बोला। अब सन्त ने छेदों वाली बाल्टी खोल के रख दी, दूसरी बाल्टी जो सही थी उससे पानी खींचते फिर छेदों वाली पेंदी की बाल्टी में डालते । लेकिन वो फिर खाली हो जाती। थककर सन्त चूर चूर हो रहे थे, लेकिन छेदों वाली बाल्टी भरती ही न थी। अंततः शिष्य बनने आये व्यक्ति से रहा न गया और वो बोल पड़ा। आप इतने बड़े सन्त होकर एक छोटी सी बात नहीं समझते कि यदि बाल्टी में छेद है तो उसे कोई कभी भर नही सकता चाहे, कितना भी प्रयास क्यों न करे। चाहे कुएं से डायरेक्ट भरो या दूसरी बाल्टी की सहायता से भरो, ये अंततः खाली की खाली ही रहेगी।

सन्त मुस्कुराए और बोले, यह छेदों वाली बाल्टी मनुष्य के मन अर्थात तुम्हारी वर्तमान मन का प्रतीक है, जिसमें वासनाओ, तृष्णाओं, कामनाओं, अहंकार के छेद हैं। जब तक ये छिद्र मन में हैं तब तक अध्यात्म न टिकेगा। अब ये दूसरी सही बाल्टी जिसमें छेद नहीं अर्थात मैं (तुम्हारी नज़र में सन्त जिसे तुम गुरु बनाना चाहते हो, जिसकी कृपा चाहते हो) वो कुएं अर्थात परब्रह्म से आध्यात्मिक शक्तियां प्राप्त करके भी तुममें उड़ेलता जाए तो भी भरेगा ही नहीं। या तुम्हारा मन बिना गुरु के डायरेक्ट परब्रह्म (कुएं) से अध्यात्म स्वयं भी भरना चाहो तो भी ख़ाली ही रहेगा। इन छिद्रों के साथ कई जन्मों तक प्रयास करो तो भी हाथ खाली ही रहेगा।

शर्त के अनुसार तुम फेल हो गए तो तुम्हे मैं शिष्य अभी नहीं बनाऊंगा, लेकिन तुम अब ये जान गए हो कि इन छिद्रों को भरना अनिवार्य है। तो स्वयं को साधने में जुट जाओ, आध्यात्मिक किसान की तरह मनोभूमि तैयार करो। तब मेरे पास आना मैं अध्यात्म के बीज दूंगा।

2- *दूसरी कहानी* -

एक फ़क़ीर बादशाह के दरवाज़े पर एक अजीब भिक्षापात्र लेकर गया, उसने कहा महाराज यह भिक्षा पात्र कभी भरता नहीं। यदि तुम भर सको तो इसे अन्न से भर दो। राजा ने छोटे से भिक्षा पात्र को देख के वज़ीर से कहा, इस पात्र को स्वर्ण मुहरों से भर दो। लेकिन यह क्या सुबह से शाम हो गयी लेकिन वो छोटा सा पात्र न भरा। बादशाह फ़क़ीर के चरणों में झुक गया। बोला इसका राज बताओ, ये भरता क्यों नहीं। फ़क़ीर बोला मेरा भिक्षा पात्र टूट गया था तो श्मशान में मुझे एक खोपड़ी मिली। उसका भिक्षा पात्र बनाया। यह पात्र उस मनुष्य के मन का है। इसलिए कभी भरता ही नहीं।

महाराज जिस तरह तुम दूसरे राज्यों को जीतते जा रहे, महल हज़ारो रानियों और दासियों से भरा पड़ा है, खज़ाना भरते जा रहे हो लेकिन फिर भी अतृप्त हो। वासना भी शांत न हुई, और धन की तृष्णा भी शांत न हुई। क्योंकि वासनाएं-इच्छाएं-कामनाओं-तृष्णाओं और अहंकार की जितनी तृप्ति करोगे ये उतनी ही बढ़ेगी और बलवती रहेगी।

जिनके पास जॉब नहीं वो भी अतृप्त है, जिनके पास जॉब है वो भी अतृप्त हैं। जब कम सैलरी थी, तब भी अतृप्त थे लोग और अब जिनकी सैलरी ज्यादा है वो भी अतृप्त है। जिनकी शादी नहीं हुई वो भी अतृप्त है और जिनकी हो गयी वो भी अतृप्त हैं। जिनके पास धन नहीं वो भी अतृप्त है और जिनके पास है वो भी अतृप्त है। जिनके सन्तान नहीं वो भी अतृप्त है और जिनके पास सन्तान है वो भी अतृप्त है।

🙏🏻हमारे जीवन में आध्यात्मिक शुरुआत हो गयी है यदि हमें यह समझ में आ गया है कि लोभग्रस्त-कामनाग्रस्त मन को कभी भरा नहीं जा सकता। मन में शांति तुष्टि तृप्ति चाहिए तो मन के इन छिद्रों को बंद करना पड़ेगा। इससे कम में बात न बनेगी। इसे समझना और इस पर कार्य करना अनिवार्य है। आत्मिक तृप्ति शांति तुष्टि संसारिक किसी भी रिश्ते या सम्पत्ति से नहीं मिल सकती।

📖 *पुस्तक - अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार* पढो समझो, इस पर चिंतन मनन करके, अध्यात्म में प्रवेश करो यदि अभी प्रवेश न हुआ हो तो, यदि अध्यात्म में प्रवेश हो गया है तो 📖 *पुस्तक - *अंतर्जगत का ज्ञान विज्ञान* पढ़ो। यदि स्वयं में शिष्यत्व जगाना है तो 📖पुस्तक पढो - *शिष्य संजीवनी*

आपके आध्यात्मिक सफर की अग्रिम बधाई स्वीकार करें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *गर्भ संवाद क्या है? क्या गर्भस्थ शिशु से संवाद सम्भव है?*

प्रश्न - *गर्भ संवाद क्या है? क्या गर्भस्थ शिशु से संवाद सम्भव है?*

उत्तर - गर्भस्थ शिशु जिस तरह आहार के लिए मां पर निर्भर है, उसी तरह विचार के लिए भी मां पर निर्भर है।

मां को दिया भोजन, दवाएं और इंजेक्शन गर्भस्थ शिशु  तक पहुंच जाता है। इसी तरह मां से किया संवाद गर्भ तक पहुंच जाता है। माँ की आंख से बच्चा देखता है, मां के कान से सुनता है, मां के मन में उठ रहे विचार बच्चे के अंदर भी वही भाव उतपन्न करते है। माँ जो नया कुछ सीखती है वो बच्चा भी सिखता है।

गर्भावस्था में मां को मधुर संगीत सुनना चाहिए, अच्छे शब्दों वाले गीत गुनगुना चाहिए। महापुरुषों की कहानियां बोलकर पढ़ना चाहिए। गर्भस्थ शिशु से पिता को भी बातें करनी चाहिए, उसे रोज बाल निर्माण की कहानियां सुनाना चाहिए। बच्चे को गर्भ से ही जिंदगी में उसकी उपस्थिति और परिवार का सदस्य होने की अनुभूति करवाइये।

जैसे बेल बजी और पतिदेव घर आये, तो मां पेट पर हाथ रख के बोले बेटा आपके पापा घर आ गए। पिता बोले बेटा मैं घर आ गया। जब भोजन करें तो गायत्री मंत्र बोलने के बाद गर्भस्थ शिशु को बोलें अब मम्मी खाना खाएगी, ये खाना आपको अच्छा स्वास्थ्य देगा। पानी पिएं तो भी बोल के पिये। कोई भी अच्छा कार्य करने के साथ उसे बताते चलें, जिससे सभी गतिविधि सही ढंग से उसके दिमाग़ में रजिस्टर होती रहे। माता-पिता और बच्चे के बीच में सम्बन्ध अच्छे बने।

टीवी-फ़िल्म-सीरियल या घर के लड़ाई झगड़े की आवाज़े और दृश्य गर्भवती मां के सामने न आये। अन्यथा इनका नकारात्मक प्रभाव गर्भस्थ शिशु के दिमाग मे रजिस्टर हो जाएगा।

गर्भ में ही घर के अन्य सदस्य जब बोलें तो माँ बोले ये आवाज तुम्हारी बुआ की ये दादी की आवाज है, ये दादा की आवाज है, ये नाना की आवाज है, ये नानी की आवाज है।

मां को संस्कृत सीखना चाहिए, जोर जोर से संस्कृत के गायत्री  मन्त्र और महामृत्युंजय पढ़ना चाहिए, मन्त्रलेखन करना चाहिए। बच्चे के गर्भ संवाद के दौरान सँस्कार गढ़ने और नई अभिरुचि उसमे पैदा करने का प्रयास करना चाहिए। जिस महापुरुष की तरह बच्चा बनाना चाहते है उनकी जीवनियां पढ़िए। अच्छी नैतिक शिक्षा, मानसिक संतुलन, धार्मिक पुस्तको को बोलकर पढ़िए।

दो मनपसन्द भजन चुन लीजिये, सुबह वाले भजन को सुनते हुए उठिए, और रात वाले भजन को सुनते हुए सो जाइये। जब बच्चा पैदा होगा, तो ज्यो ही उसके कान में सुबह वाला भजन बजेगा वो घड़ी के अलार्म की तरह उसे सुनते ही उठ जाएगा। ज्यों ही रात वाला भजन बजेगा वो लोरी की तरह उसे सुला देगा। क्योंकि जो आदत गर्भ में पड़ती है वो जल्दी छूटती नहीं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *गर्भ सँस्कार क्यों करवाएं?*

प्रश्न - *गर्भ सँस्कार क्यों करवाएं?*

उत्तर - मनुष्य के तीन शरीर होते हैं - स्थूल, सूक्ष्म और कारण। जिसे क्रमशः शारारिक शक्ति/क्रिया शक्ति, प्राण शक्ति और भाव  शक्ति/विचार शक्ति से भी समझ सकते हैं।

डॉक्टर के उपकरण केवल स्थूल शरीर का परीक्षण और उसके स्वास्थ्य को चेक कर सकते हैं।

किस प्रकार की आत्मा है और इसके कैसे सँस्कार-स्वभाव-व्यवहार होगा ये न चेक कर सकते है और न ही बता सकते हैं।

दिमाग़ के निर्माण में सक्रिय तत्वों, मन, अभिरुचि और सोचने का पैटर्न भी न डॉक्टर चेक कर सकते हैं और न ही बता सकते है।

जिस प्रकार सकुशल शारीरिक स्वस्थ बच्चे के जन्म हेतु सन्तुलित आहार, जरूरी मिनरल विटामिन आयरन और फोलिक एसिड, नियमित जरूरी टीके इत्यादि चाहिए साथ ही नियमित डॉक्टर के सम्पर्क में रहना और विजिट करवाना आवश्यक है।

इसी तरह स्वस्थ मानसिकता के साथ उच्च सँस्कार से युक्त बुद्धिमान सन्तान का जन्म सुनिश्चित करने हेतु आध्यात्मिक वैज्ञानिक तकनीक से गर्भ में उच्च मानसिकता के विकास का मार्गदर्शन करने वाले आध्यात्मिक चिकित्सकों और मनोवैज्ञानिकों से सलाह-परामर्श लेना अनिवार्य है। यज्ञ सँस्कार के द्वारा गर्भस्थ शिशु को आध्यात्मिक टीके लगवाना भी अनिवार्य है। साथ मे स्वस्थ सन्तुलित विचारों का भोजन मन को स्वाध्याय द्वारा देना जरूरी है। भावनात्मक विकास के लिए भारतीय राग रागनियों के भजन और संस्कृत मन्त्र उच्चारण जरूरी है।

इसलिए गर्भ सँस्कार  गर्भिणी के लिए अत्यंत जरूरी है।

नजदिकी गायत्री शक्ति पीठ जाएं और फ्री गर्भ सँस्कार द्वारा आध्यात्मिक टीके लगवाएं, अच्छे विचारों की ख़ुराक हेतु *आओ गढ़ें सँस्कार वान पीढ़ी* पुस्तक ले आएं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *क्या गर्भकाल से ही शिशु का प्रशिक्षण सम्भव है ?*

प्रश्न - *क्या गर्भकाल से ही शिशु का प्रशिक्षण सम्भव है ?*

उत्तर - *आयु: कर्म च वित्तं च विद्या निधनमेव च।*  
*पञ्चेतान्यपि सृज्यन्ते गर्भस्थस्यैव देहिन:॥*  

अर्थात्- आयु, कर्म, धन, विद्या और मृत्यु गर्भ में रच जाती है।

हाँ, गर्भ में शिक्षण पूर्णरूप से सम्भव है क्योंकि इसके सशक्त प्रमाण प्राचीन भारत में अनेक स्थानों पर उपलब्ध हैं।

👉🏼 *भारतीय संस्कृति गर्भ से ही प्रशिक्षण को स्वीकारता है।*
माता पिता से केवल शरीर ही नहीं प्राप्त होता, मन और संस्कार भी प्राप्त होते हैं। ऋषियों ने जीवात्मा के जन्म जन्मान्तरों एवं माता पिता के संसर्ग से उत्पन्न दोषों के परिमार्जन तथा शुभ संस्कारों के रोपण का कार्य गर्भाधान के साथ ही सम्पन्न करने का विधान बनाया था। गर्भाधान पुंसवन एवं सीमन्तोन्नयन संस्कार इसी प्रक्रिया के अंग हैं। शिशु के शरीर और मन का संगठन उसके जन्म के उपरांत नहीं अपितु गर्भावस्था से ही आरम्भ हो जाता है।
वैदिक और पौराणिक साहित्य में इस बात के पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध हैं जैसे- शुकदेव और अष्टावक्र को ब्रह्मज्ञान का प्रशिक्षण, माँ सुभद्रा द्वारा पुत्र अभिमन्यु को गर्भकाल में चक्रव्यूह भेदन का ज्ञान, सुनीति द्वारा ध्रुव को, जीजाबाई द्वारा शिवा का लालन-पालन, सीता द्वारा लव कुश का, कयाधु द्वारा प्रहलाद का, शकुन्तला द्वारा भरत का शिक्षण इसी का प्रमाण है।

*विज्ञान भी गर्भ में प्रशिक्षण को स्वीकारता है*
आधुनिक विज्ञान भी भारतीय ऋषियों की परंपरा का पूर्ण समर्थन कर रहा है। इन दिनों यंत्र उपकरणों व विविध गतिविधियों के माध्यम से गर्भिणी के आवेग-संवेग का शिशु पर स्पष्टï प्रभाव देखा जा सकता है। शोधकर्ताओं ने गर्भिणी के साथ किये गये व्यवहार अथवा सुख दुख की परिस्थितियों में शिशु को प्रतिक्रिया व्यक्त करते देखा है। अनेक देशों में इस वैज्ञानिक शोध को आधार बनाकर इच्छित संतति प्राप्त करने हेतु तंत्र खड़े किये गये हैं । 

Tuesday 22 May 2018

प्रश्न - *बलिवैश्व में गायत्री मंत्र की जगह किसी अन्य मन्त्र जैसे महामृत्युंजय मंत्र का प्रयोग क्यों नही करते? बलिवैश्व यज्ञ और गायत्री मंत्र आहुति के पीछे का आध्यात्मिक वैज्ञानिक महत्त्व समझाइए*

प्रश्न - *बलिवैश्व में गायत्री मंत्र की जगह किसी अन्य मन्त्र जैसे महामृत्युंजय मंत्र का प्रयोग क्यों नही करते? बलिवैश्व यज्ञ और गायत्री मंत्र आहुति के पीछे का आध्यात्मिक वैज्ञानिक महत्त्व समझाइए*

उत्तर - मनुष्य के जिस प्रकार तीन शरीर होते हैं - स्थूल, सूक्ष्म और कारण। इसी तरह अन्न के भी तीन शरीर होते हैं स्थूल, सूक्ष्म और कारण।

अन्न के स्थूल से हमारा शरीर बनता है, सूक्ष्म एनर्जी में परिवर्तित होता है जिससे हमें ताकत मिलती है, अन्न के कारण से हमारा मन/भावनायें निर्मित होती है। अतः इसलिए कहा जाता है जैसा खाओ अन्न वैसा होवे मन।

अब अन्न के कारण/भाव पर प्रभाव उस व्यक्ति का होता है जो उगाता है, उसका भी भाव होता है जो पकाता है, उसके भाव भी जुड़ते है जो परोसता है और उसके भाव भी जुड़ते है जो खाता है। इसलिए कहते है जब मन आवेगों क्रोध-ईर्ष्या से भरा हो तब न भोजन बनाना चाहिए, न परोसना चाहिए और नहीं ऐसे मनोभाव लेकर खाना चाहिए। क्योंकि आपके मनोभाव भोजन को विषैला बना देंगे।

इतने सारे भावों से अन्न को खाने से मन के सँस्कार प्रभावित होते है। अतः अन्न को संस्कारित करने की विधि बलिवैश्व कहलाती है। स्थूल रूप में अन्न आप धोते हो, लेकिन सूक्ष्म रूप में उसे संस्कारित करते हो।

गायत्री मंत्र के उपयोग के पीछे वैज्ञानिकता यह है कि गायत्री मंत्र जप  में  1,10,000 vibes कम्पन तरंगों का होता है, ये तरंगे मनुष्य के भीतर 24 दिव्य ऊर्जा केंद्रों को जागृत करता है, उनमें सविता शक्ति को आरोपित करता है। उसी सविता शक्ति को अन्न को संस्कारित करने में भी उपयोग ले रहे हैं। साथ मे क्योंकि मन के सन्तुलन और अच्छे निर्माण हेतु अन्न संस्कारित कर रहे हैं। तो इसके लिए सद्बुद्धि का पोषण जरूरी है। गायत्री मंत्र का *धी* शब्द और *वरेण्यम* दोनों सविता की शक्ति को वरण करके बुद्धि में धारण करवाता है। अतः इसकी उपयोगिता और ज्यादा बढ़ जाती है। लेकिन विचार शक्ति और भावनाओं की शक्ति को यदि क्रिया शक्ति न मिले तो भी लक्ष्य पूरा न होगा। अतः *प्रचोदयात* अर्थात सन्मार्ग और सत्कर्म हेतु प्रेरणा भी जरूरी है।

हम यह भी तो चाहते है कि समस्त सृष्टि हमारे अनुकूल रहे, सभी देव -पितर भी हमसे सन्तुष्ट रहें। तो उन्हें भी भावनात्मक यज्ञ का भाग मिलना चाहिए। इसलिए बलिवैश्व के छोटे से उपक्रम में *देवता प्रकृति को पुष्ट करने वाले, ऋषि लोककल्याण हेतु रिसर्च करने वाले, ब्रह्म में रमने वाले लोक सेवी ब्राह्मण, नर मनुष्यता-इंसानियत की मिशाल बन जनकल्याण करने वाले, भूत समस्त जीवों शरीरधारी और अशरीरी की तुष्टि की व्यवस्था करता है।*

सद्बुद्धि सबको मिले, सब शारीरिक-मानसिक रूप से स्वस्थ रहे और सबका कल्याण हो इस भाव बलिवैश्व आहुति द्वारा अन्न को पांच आहुति से संस्कारित किया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद भोजन प्रसाद बन जाता है, खाने वाला भोजन को प्रसाद समझ के खाता है तो दैवीय गुणों से सम्पन्न मन का निर्माण होता है।

इसलिए गुरुदेव ने बलिवैश्व यज्ञ को गृहणी के हाथ का रिमोट कंट्रोल कहा है।

इसे विस्तार से समझने के लिए वांग्मय पढ़े - *यज्ञ का ज्ञान विज्ञान*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *मेरी दोस्त के 29 वर्ष के बेटे की मृत्यु हो गयी। । उसकी पत्नी और दो छोटे बच्चे हैं। मां और पत्नी को इस असीम कष्ट से कैसे उबारूं?*(मृत्यु शोक)

प्रश्न - *मेरी दोस्त का बेटा 29 वर्ष  का गुज़र गया। उसकी पत्नी और दो छोटे बच्चे हैं। मां और पत्नी को इस असीम कष्ट से कैसे उबारूं?*

उत्तर - दी लम्बी गहरी श्वांस लेकर मन ही मन गायत्री मंत्र जपिये। अकाल मृत्यु और ऐसे व्यक्ति की मृत्यु जो परिवार के लिए उपयोगी और जिस पर आर्थिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ हो उसके जाने का कष्ट असीम होता है। क्योंकि उस पर पूरा परिवार विविध कारणों से डिपेंड/निर्भर करता है।

जबकि घर का वृद्ध, असहाय, लम्बी बीमारी में पड़ा व्यक्ति जो लंबे से समय से परिवार की कोई मदद न कर रहा हो बल्कि परिवार से सेवा ले रहा हो, बीमारी हज़ारी में परिवार का ख़र्च उसके इलाज़ में लग रहा हो, ऐसे व्यक्ति की मौत पर दुःख प्रकटीकरण मात्र फॉर्मेलिटी/शो होता है। मन ही मन सब कहते है अच्छा हुआ उसे मुक्ति मिली और हमें भी।

प्रज्ञापुराण कथामृतम के भाग 2 के पंचम अध्याय में - मृत्यु प्रकरण विस्तार से समझाया है लेकिन कुछ बिंदु हम सारांश हेतु दे रहे हैं:-

1- सभी आत्माएं जन्म अपने अपने कर्मो के फलानुसार/अतृप्त इच्छानुसार/कर्जा चुकाने या कर्जा वसूलने हेतु जन्म लेती है। आत्मा शरीर बदलती है, इसलिए उसका पूर्व जन्म का कर्मभोग इस जन्म में भुगतना पड़ेगा ही। उदाहरण -एक ही सिम के फोन बदलने से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि मोबाइल बदला है नम्बर/सिम नहीं। तो लेनदार/देनदार का फोन आएगा ही। इसी तरह आत्मा का शरीर बदला है आत्मा नहीं, तो लेनदेन तो जो भी शरीर लेगा उसे ही करना और भोगना पड़ेगा।

पहली कहानी -

एक राजा के बच्चे होते और कुछ वर्षों बाद मर जाते, इससे राजा-रानी दुःखी थे। पांचवे बच्चे के जन्म के समय प्रसिद्ध ज्योतिषी को जन्म पत्री दिखा के बच्चे के जीवित रखने का उपाय पूँछा।

ज्योतिषी बोला पिछले चार बच्चों की आत्माओं का कर्ज पिछले जन्म में आपने खाया था, वो अपना कर्जा वसूल के गई। लेकिन पांचवी इस सन्तान को आपका कर्ज चुकाना है। कुछ भी करके ध्यान रखे कि यह आपका कर्ज न चुका पाए। राजा ने ऐसा ही किया बच्चे राजकुमार को अत्यधिक सुख सुविधा दी लेकिन कमाने का या सेवा करने का कोई अवसर न दिया जिससे कर्ज चुक सके। राजकुमार जीवित रहा और राजा खुश था। लेकिन एक दिन राजकुमार राज्य भ्रमण पर निकला, एक युवक को एक्सीडेंट में तड़फते देखा। उसका उपचार करवा के उसे उसके घर छोड़ने गया। वह युवक एक नगरसेठ का इकलौता बेटा था, बेटे की जान बचाने के उपलक्ष्य में उसने राजकुमार को मणियों से जड़ित बहुमूल्य हार दिया। राजकुमार वो हार घर आते ही  रानी मां को भेंट कर दिया, हार की मनमोहक सुंदरता पर मां मुग्ध हुई और उसे स्वीकार करके धारण कर लिया। राजकुमार खाना खाते ही सो गया  और फिर कभी नहीं उठा। राजकुमार की मृत्यु पर राजा क्रोधित हो उठा और ज्योतिषी को बुलवाया। ज्योतिषी ने घर के सभी सदस्यों को बुलाकर पूँछा कि राजकुमार ने कोई बहुमूल्य चीज़ महल के बाहर से लाकर किसी को भेंट की है क्या? रानी ने  वह हार अपने गले से उतारकर महाराज के हाथ मे दे दिया। ज्योतिषी ने कहा, महाराज मैंने आपसे पहले ही कहा था उसका कर्ज उतरते ही वो एक क्षण यहां नहीं ठहरेगा। देखिए राजकुमार ने अपनी मदद से किये गए श्रम से प्राप्त पारितोषिक से कर्ज उतार दिया और चला गया।

दूसरी कहानी - पशु पक्षी रूप में भी कर्ज चुकाने आत्मा आती है। एक सेठ कर्ज देते समय कहता मर्जी हो तो इस जन्म में चुकाओ नहीं तो अगले जन्म में चुका देना। दो ठग पहुंचे उससे कर्ज लेने। कर्ज लेकर रात को वही ठहरे। सोने वाले ही थे कि उनके कान में बैल और गाय के बीच हो रही बात सुनाई दी। गाय बोली भाई कल डेढ़ लीटर दूध देने के बाद मेरा कर्ज चुक जाएगा और मैं मुक्त होते ही शरीर त्याग दूंगी। बैल बोला बहन अभी तो मुझे बहुत दिन लगेंगे कर्ज चुकाने में। सुबह गाय डेढ़ लीटर दूध देकर मर गयीं। यह दृश्य देखकर दोनों ठगों ने कर्ज सेठ को यह कहते हुए लौटा दिया की हम आपके कर्जदार बनके नहीं मरना चाहते।

आपने अपने आसपास रहने वाले लोगों के परिवार को देख के महसूस किया होगा, कोई बेटा माता-पिता की बड़ी सेवा करता है साथ मे परिवार की जिम्मेदारी उठाता है। इसका अर्थ लड़का अपना कर्ज उतार रहा है। जब इसका उल्टा हो माता-पिता बेटे के लिए बहुत कुछ कर रहे हों और बेटा नालायक निकले तो माता-पिता कर्ज चुका रहे होते हैं। इसी तरह दुनियां में समस्त रिश्ते माता-पिता, पति-पत्नी, बेटा-बेटी, दोस्त - नातेदार सबके सब पुराने ऋणानुबन्ध से बंधे है। जिस दिन ऋणमुक्त सबसे हुए शरीर का त्याग कर देते हैं।

बैंक लोन की रकम पूरी होते ही फाइल बन्द कर देता है, इसी तरह हमारे कर्ज मुक्त होते ही फ़ाइल बन्द हो जाती है।

हम वास्तव में किसी की मृत्यु पर दुःखी नहीं होते, क्योंकि भारत, अमेरिका, जापान, चीन इत्यादि विश्व के सभी जगहों पर कोई न कोई जन्म ले रहा है और कोई न कोई मृत्यु को प्राप्त हो रहा है। लाखों लोगों का जन्म और लाखों की मृत्यु। हमारे पूर्वज भी हमारे बीच नहीं है। इसी तरह हम भी एक दिन इस दुनियां को छोड़कर चले जायेंगे।

हम सभी जानते है कि जो जन्मा है वो मरेगा भी, अमर तो यहां कोई भी नहीं। जिस व्यक्ति पर हमारी भावनात्मक या आर्थिक या सामाजिक निर्भरता और रिश्ता होता है, उसके लिए ही हम वास्तव में दुःखी होते हैं। जबकि शरीर की नश्वरता और आत्मा की अमरता से हम सभी परिचित है।

दूसरों को ज्ञान देना आसान होता है लेकिन जब स्वयं पर गुजरती है तब विवेकशून्य हो जाता है इंसान, उस वक्त दूसरे द्वारा दिया सांत्वना और ज्ञान उसे दुःख से उबारता है।

प्रकांड ज्ञानी सेवाभावी पण्डित और वैद्य गुण से सम्पन्न सन्त के आसपास के गांव में महामारी फैली वो सेवा साधना में जुट गए। उन्हें अपने दोनों पुत्रों से अत्यंत मोह था। महामारी विकराल रूप ले रही था कइयों को मौत ने निगल लिया। लेकिन सन्त की ज्ञान वर्धक बाते और सेवा सबको दुख से उबार लेते।

एक दिन जब वो दूसरे गांव में अपनी सेवा दे रहे थे, तो महामारी के कारण उनके दोनों बच्चों की मृत्यु हो गयी। पत्नी भी ज्ञानवान थी, वो जानती थी यदि वैद्य सन्त पिता के रूप में इस दुःख से टूट गए, तो फिर ग्राम वासियों का क्या होगा?

बच्चो की लाश को कफ़न से ढंककर दूसरे कमरे में रख दिया, स्वयं अन्य कमरे में वैद्य जी को भोजन परसा। उन्होंने दोनों पुत्रों को कई दिन से नहीं देखा था क्योंकि वो दूसरे गांव से लौटे थे। आवाज़ दी तो पत्नी ने कहां खेल रहे होंगे गांव में कहीं, थोड़ी देर में आ जाएंगे। पत्नी ने बैद्य जी से कहा ये साड़ी और जेवर पड़ोसन ने रखने को मुझे दिए थे, अब मुझे इन्हें उसे लौटाने का मन नहीं कर रहा। मेरा मोह इससे लग गया है। वैद्य जी ने कहा, भाग्यवान जो अपना नहीं उससे मोह कैसा? जब शरीर ही नश्वर है अपना नहीं इसे भी छोड़ के जाना है। तो तू व्यर्थ इन जेवर साड़ियों का मोह क्यों करती है। जिसका है उसे लौटा दे।

पत्नी वैद्य जी को दूसरे कमरे में पुत्रो की लाश के समीप ले गयी। तो वैद्य जी रो पड़े। पत्नी ने उन्हें समझाते और सांत्वना देते हुए कहा, कि अभी आपने ही कहा शरीर नश्वर है, जो चीज़ जिसकी है उसपर उसका ही अधिकार है। बच्चे भगवान ने हमें दिए थे, अब उन्होंने उन आत्माओ को वापस बुला लिया। अब इसलिए दुःखी मत होइए। यदि आप टूट गए तो ग्राम के अन्य बच्चो के इलाज का क्या होगा। उन्हें सम्हालिये। जीवन किसी के जाने के बाद रुकता नहीं। वैद्य जी ने पुत्रो का दाह संस्कार किया और ग्राम के बच्चों की सेवा में पुनः लग गए।

जाने वाला मृत्यु की गोद मे सो गया। उठते ही नया जन्म लेगा। उसे पुराने रिश्ते और लोग कोई याद नहीं रहेंगे। जैसे हमें अपना पूर्व जन्म याद नहीं। अतः उस आत्मा को याद करके शोक मत कीजिये। जितने पल उसके साथ आनन्द के साथ बीते उन्हें स्मृतियों में रखिये। उसका साथ यहीं तक था, अब शोक न करके उसके बिना जीने की सम्भावनाओ पर विचार कीजिये।आगे अब क्या करना है यह सोचिए। ईश्वर उसकी आत्मा को शांति-सद्गति दें।

 ईश्वर का विधान समझ के जीवन मे आगे बढ़ना ही जिंदगी है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *तनाव क्या है? यह कैसे उतपन्न होता है? इसे कैसे दूर करें? तनावप्रबन्धन समझाएं*

प्रश्न - *तनाव क्या है? यह कैसे उतपन्न होता है? इसे कैसे दूर करें? तनावप्रबन्धन समझाएं*

उत्तर - *तनाव का जनक ही तनाव को आसानी से दूर कर सकता है, वह है हम स्वयं।*

तनाव का अर्थ है एक विचार जो आपने उठाया लेकिन अब रख नहीं पा रहे। जब वो विचार उठाया तब तो वो तनाव नहीं था, लेकिन जब उस विचार के समाधान हेतु विचार न करके उस विचार का रोना रोने लगे तो वो तनाव हो गया।

उदाहरण - हाथ में चाय का कप लिया, यह तनाव नहीं है। लेकिन चाय के कप को अब रख नहीं पा रहे। कई घण्टों से वो हाथ मे पकड़ा हुआ है तो यह तनाव बन गया।

अब जिसने पकड़ा वही तो रखेगा...जिसने विचार उठाया वही तो छोड़ेगा। चाय पीकर कप रख दो, समस्या पर काम करके उस विचार को छोड़ दो/रख दो।

एक गाड़ी है उससे बड़ी महंगी गाड़ी चाहिए, तो उसके लिए लोन लिया। अब उस गाड़ी के मेंटेनेंस और लोन की टेंशन उपजी तो इसके मूल में कौन है। इसी तरह बड़ा औऱ बड़े घर की चाहत और फिर नए घर के साथ नए लोन की टेंशन। फिर सैलरी बढ़ाने की टेंशन। पहले मंहगा घर मे समान लाना, फिर उसके टूट न जाने की टेंशन, कांच का फर्नीचर क्रॉकरी बच्चे वाले घर मे लाना फिर उनके न टूटने हेतु प्रयास करना और टेंशन लेना....इन सबकी जड़ में कौन है? हम स्वयं न.…

छोटी जॉब और सैलरी तो टेंशन, बड़ी जॉब और बड़ी सैलरी के साथ बड़ी जिम्मेदारी वो भी टेंशन । पहले शादी करना फिर बच्चे जन्म देना, अब उनके आने से बढ़े खर्च की टेंशन, उनकी पढ़ाई लिखाई और विवाह की टेंशन। इन सबके जड़ में कौन हैं हम ही हैं न...

पहले बड़ी बड़ी इच्छाओं की पूर्ति न होने की टेंशन, फिर जुगाड़ लगा के उन्हें पाने की टेंशन, फिर उस जुगाड़ के आफ्टर इफेक्ट को सम्हालने की टेंशन..कभी कभी लोग क्या कहेंगे की टेंशन....अर्थात मकड़ी की तरह स्वयं ही टेंशन का जाला अपने लिए बुनते है। फिर उसमें फंस के स्वयं ही चिल्लाते हैं। अब भाई जैसे मकड़ी अपना जाल समेट लेती है, हमें भी अपना टेंशन का जाल समेटना आना चाहिए।

कोई व्यक्ति, कोई घटना और कोई वस्तु हमें टेंशन नहीं देती । टेंशन देता है इन सबके प्रति हमारा नज़रिया/हमारी प्रतिक्रिया । रिश्तेदार घर मे आ गया तो आ गया, जो खिला सकते हो खिलाओ और सो जाओ। ये तो करना ही पड़ेगा अब चाहे टेंशन लेकर करो या बिना टेंशन के....

ऑफीस में काम आ गया तो आ गया, काम के लिए ही तो सैलरी मिलती है। अधिक काम और कम सैलरी यही कम्पनी करती है, यदि आपके काम के बराबर आपको पैसा दे दे और उसे प्रॉफिट मार्जिन न मिले तो कम्पनी एक महीने में बंद हो जाएगी और आप बेरोजगार। तो काम तो करना ही है, यदि सकारात्मक भाव से करेंगे तो टेंशन फ़्री रहेंगे और नकारात्मक सोचा तो टेंशन ही टेंशन में भरे रहेंगे।

अब शादी की और बच्चे आए तो खर्च तो बढ़ेगा ही, अब इसे कुशलता से सम्हालना एकमात्र उपाय है।

बड़ी जॉब नहीं मिल रही तो बेकार बैठने से अच्छा है कुछ दिन छोटी जॉब कर ली जाय। और अधिक मेहनत करके बड़ी जॉब हासिल करने का प्रयास किया जाय। बस परिस्थिति को दोष देने के बजाय मनःस्थिति बदल के प्रयास करें।

हम टेंशन इसलिए लेते है क्योंकि हम प्रत्येक व्यक्ति को अपने निर्देशों/कमांड पर चलने वाला व्यक्ति बनाना चाहते है। प्रत्येक जीवन की घटना के निर्माता निर्देशक स्वयं बनना चाहते हैं। इच्छाएं अपेक्षाएं दूसरों से इसी आधार पर करते है। और जब वो पूरी नहीं होती तो टेंशन लेते है। क्योंकि व्यक्ति रोबोट नहीं बल्कि एक स्वतंत्र जीव है। प्रकृति हमारे नियंत्रण में नहीं है और न कभी होगी। हम क्षुद्र मनुष्य नियंता को अपनी मर्जी से चलाना चाहते है। उसे बताते रहते है पूजा के वक्त के हे नियंता तुम्हे मेरे लिए ये सब काम करना है। स्वयं कभी नहीं पूंछते कि हे नियंता प्रकृति संरक्षण में हम आपकी क्या मदद करें... बस यहीं प्रॉब्लम है।

टेंशनमुक्त होने के लिए सिर्फ जीवन के प्रति नजरिये को बदलने की आवश्यकता है। किसी भी घटना के प्रति सकारात्मक कार्यवाही की आवश्यकता है। *स्वयं के दृष्टिकोण के सुधार की आवश्यकता है। इसमें सहायता करेगा योग-प्राणायाम-जप-ध्यान-स्वाध्याय । अब इन टूल्स के प्रयोग से अपने दृष्टिकोण की मरम्मत करो, सोचने का पैटर्न सही करो और उच्च मनःस्थिति बना के धरती पर ही स्वर्गीय आनन्द अनुभूति में जियो।*

Situation हमारे हाथ मे नहीं और Outcome भी हमारे हाथ मे नहीं लेकिन इन दोनों के बीच में  response किस प्रकार देना है यह हमारे हाथ मे है। समस्या केंद्रित दृष्टिकोण रखेंगे और situation को समस्या समझेंगे तो टेंशन लेने वाले बनेंगे। यदि situation को चुनौती की तरह लेकर समाधान केंद्रित दृष्टिकोण रखेंगे तो विजेता बनेंगे। मोह माया से ऊपर आईए, स्वयं के दृष्टिकोण पर काम कीजिये।

तनावप्रबन्धन से जीवन में समस्या आएगी ही नहीं कोई गारंटी नहीं होती , तनावप्रबन्धन से समस्या को हैंडल कैसे करना है बस यह इंसान सीख जाता है। कुशल जीवन का ड्राइवर बन जाता है, कैसी भी रोड हो मंजिल तक पहुंच जाता है।

पुस्तक *निराशा को पास न फटकने दें* , *सफल जीवन की दिशाधारा* औऱ *दृष्टिकोण ठीक रखें* जरूर पढ़ें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

यज्ञ से जीवन शिक्षण वर्कशॉप

*यज्ञ से जीवन शिक्षण वर्कशॉप
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स्कूल - माध्यमिक स्कूल , बढ़ा, गुरुग्राम, हरियाणा

टॉपिक कवर किये गए-

1- यज्ञ का जीवन मे महत्त्व
2- यज्ञमय जीवन के सूत्र
3- तीन शरीर (स्थूल - कारण - सूक्ष्म)
4- तीन शक्तियां ( क्रिया शक्ति, भाव शक्ति और विचार शक्ति) , इन तीनो के समायोजन से ही जीवन लक्ष्य की प्राप्ति
5- बच्चे सोकर उठें तो पृथ्वी और माता पिता के पैर क्यों छुएं इसके लाभ, उसके बाद उषा पान, ताड़ासन इत्यादि योग, फिर फ्रेश होने जाएं, नहाएं, तीन बार डीप ब्रीदिंग, तीन बार ॐ और गायत्री मंत्र जपकर स्कूल आएं और पढ़ने बैठे। जो बच्चा उषा पान करके फ्रेश होकर पेट साफ करके नही आएगा उसके पेट मे कब्ज होगा और वो बीमारी को पालेगा।
6- जीवन मे समस्त रोगों की जड़ पेट और मन। दोनों यदि साफ और परिष्कृत रहे तो इंसान स्वस्थ रहेगा। साथ ही सन्तुलित भोजन पेट को और अच्छे विचार मन को मिले तो स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन वाला बच्चा तरक्की करेगा।
7- अध्यापक गण को यग्योपैथी, गर्भ सँस्कार और बलिवैश्व यज्ञ के बारे में बताया।
8- मन्त्रलेखन पुस्तिका बच्चो के साथ अध्यापक गण को भी बांटी
9- अच्छी पुस्तको के स्वाध्याय पर बल दिया।

मृत्यु शोक से कैसे दूसरों को सांत्वना दें और उबारें, प्रज्ञापुराण कथामृतम भाग - 2, अध्याय 5, आर्टिकल - मृत्यु प्रकरण

मृत्यु शोक से कैसे दूसरों को सांत्वना दें और उबारें, प्रज्ञापुराण कथामृतम भाग - 2, अध्याय 5, आर्टिकल - मृत्यु प्रकरण

वीडियो पार्ट - 1 (11 मिनट)
https://youtu.be/1IiO3XzHQdc

वीडियो पार्ट -2 (6 मिनट)
https://youtu.be/Tb8YCDqxGME

ऑनलाइन पुस्तक पढ़ें- http://vicharkrantibooks.org/vkp_ecom/Pragyapuran_Kathamrut_Bhag_2(Big)_Hindi

Saturday 19 May 2018

प्रश्न - *प्रणाम दी* *महिलाओं को मासिक शौच में जप करना चाहिए या नहीं ?* *कितने दिन तक नहीं करना चाहिए या कितने दिन बाद करना चाहिए ?*

प्रश्न - *प्रणाम दी*
*महिलाओं को मासिक शौच में जप करना चाहिए या नहीं ?*
*कितने दिन तक नहीं करना चाहिए या कितने दिन बाद करना चाहिए ?*
*क्या मासिक शौच के दिनों में दूसरी माला लेकर जप कर सकते हैं ताकि नियमितता नहीं छूटे इसलिए ?*
 *क्या मासिक शौच के दिनों में यज्ञादि कर सकते हैं ?*
*यज्ञ के कार्यक्रम में सहयोग कर सकते हैं या नहीं ?*
*मन्त्र लेखन करना चाहिए या नहीं ?*
*कृपया समाधान किजिए ।*

उत्तर - महिलाओं के रजोदर्शन काल में भी कई प्रकार के प्रतिबन्ध प्राचीन धर्मग्रन्थों में वर्णित हैं। भोजन आदि नहीं पकाती। उपासनागृह में भी नहीं जातीं।

इसका कारण मात्र अशुद्धि ही नहीं, यह भी है कि उन दिनों उन पर कठोर श्रम का दबाव न पड़े। अधिक विश्राम मिल सके। नस-नाड़ियों में कोमलता बढ़ जाने से उन दिनों अधिक कड़ी मेहनत न करने की व्यवस्था स्वास्थ्य के नियमों को ध्यान में रखते हुए बनी है। नाक की घ्राण शक्तिं कमज़ोर होती है और पूरा शरीर उस वक्त कमज़ोरी झेलता है। पहले आटा चक्की नहीं थी अतः रसोई में भोजन का अर्थ होता था चक्की पीसना और धान कूटना, तब चूल्हे में लकड़ी काटकर भोजन पकाना। अत्यधिक श्रम साध्य होता था भोजन पकाना, अतः विश्राम हेतु भोजन पकाना मना था।

आध्यात्मिक शक्ति को धारण करने के लिए नसों और उपत्यिकाओं का एक्टिव होना अनिवार्य है। कमर सीधी रखना उपासना के दौरान अनिवार्य है। प्राण शक्ति/ ऊर्जा को धारण करने हेतु रजोदर्शन/अशौच के समय शरीर सक्षम नहीं होता। उपासना गृह प्राणऊर्जा को संग्रहित रखता है और सूक्ष्म प्राण ऊर्जा संग्रहित रखता है। अतः दुर्घटना से बचाव हेतु उपासना गृह में जाना और उपासना करना वर्जित है।

स्त्री को यदि मात्र इस कारण अशुद्ध माना जाय कि उनका मेंटिनेंस पीरियड आता है, तो उस मेंटिनेंस के रक्तमांस से बने बच्चे - पुरुष भला किस तरह पवित्र हो सकते हैं? अतः स्त्री प्रकृति की तरह नई सृष्टि को जन्मदेने की क्षमता धारण करने हेतु चन्द्र कलाओं, सूर्य की कलाओं और प्रकृति की कलाओं से 5 दिन तक जुड़कर स्वयं के मेंटेनेंस दौर से गुजरती है। इस दौरान किसी भी कारण से कोई व्यवधान किसी को उतपन्न नहीं करना चाहिए। स्त्री को पर्याप्त विश्राम देना चाहिए।

इन प्रचलनों को जहां माना जाता है वहां कारण को समझते हुए भी प्रतिबन्ध किस सीमा तक रहें इस पर विचार करना चाहिये। रुग्ण व्यक्ति प्रायः स्नान आदि के सामान्य नियमों का निर्वाह नहीं कर पाते और ज्वर, दस्त, खांसी आदि के कारण उनकी शारीरिक स्थिति में अपेक्षाकृत अधिक मलीनता रहती है। रोगी परिचर्या के नियमों से अवगत व्यक्ति जानते हैं कि रोगी की सेवा करने वालों या सम्पर्क में आने वालों को सतर्कता, स्वेच्छा के नियमों का अधिक ध्यान रखना पड़ता है। रोगी को भी दौड़-धूप से बचने और विश्राम करने की सुविधा दी जाती है। उसे कोई चाहे तो छूतछात भी कह सकते हैं। ऐसी ही स्थिति रजोदर्शन के दिनों में समझी जानी चाहिए और उसकी सावधानी बरतनी चाहिए।

तिल को ताड़ बनाने की आवश्यकता नहीं है। कारण और निवारण का बुद्धिसंगत ताल-मेल विवेकपूर्वक बिठाने में ही औचित्य है। शरीर के कतिपय अंग द्रवमल विसर्जन करते रहते हैं। पसीना, मूत्र, नाक, आंख आदि के छिद्रों से निकलने वाले द्रव भी प्रायः उसी स्तर के हैं जैसा कि ऋतुस्राव। चोट लगने पर भी रक्त निकलता रहता है। फोड़े फूटने आदि से भी प्रायः वैसी ही स्थिति होती है। इन अवसरों पर स्वच्छता के आवश्यक नियमों का ध्यान रखा जाना चाहिए। बात का बतंगड़ बना देना अनावश्यक है। प्रथा-प्रचलनों में कई आवश्यक हैं कई अनावश्यक। कइयों को कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए और कइयों की उपेक्षा की जानी चाहिए। सूतक और अशुद्धि के प्रश्न को उसी दृष्टि से देखा जाना चाहिए जिससे कि प्रचलन कर्ताओं ने उसे आरम्भ किया था। उनका उद्देश्य उपासना जैसे आध्यात्मिक नित्यकर्म से किसी को विरत, वंचित करना नहीं वरन् यह था कि अशुद्धता सीमित रहे और स्त्री को उचित शारीरिक-मानसिक विश्राम मिले। आज भी जहां अशौच का वातावरण है वहीं सूतक माना जाय और शरीर से किये जाने वाले कृत्यों पर ही कोई रोकथाम की जाय। मन से उपासना करने पर तो कोई स्थिति बाधक नहीं हो सकती। इसलिए नित्य की उपासना मानसिक रूप से जारी रखी जा सकती है। पूजा-उपकरणों का स्पर्श न करना हो तो न भी करे।

यदि सूतक(10 दिन ब्रेक) या अशौच(5 दिन ब्रेक) के दिनों में अनुष्ठान चल रहा हो तो उसे उतने दिन के लिए बीच में बन्द करके ब्रेक ले लें, 5 दिन की निवृत्ति के बाद, जिस गणना से छोड़ा था, वहीं से फिर आरम्भ किया जा सकता है। बिना माला का मानसिक जप-ध्यान किसी भी स्थिति में करते रहा जा सकता है।

अतः मन्त्र जप, यज्ञ और मन्त्रलेखन भी न करें, केवल मौन मानसिक जप करें। कोई दूसरी माला लेकर भी जप न करें। ज्यादा से ज्यादा चन्द्रमा का ध्यान करें या हिमालय का ध्यान करें और शरीर को पर्याप्त आराम दें।

मोनोपोज़ के दौरान मेंटेनेंस अनियमित होता है, स्त्री से सन्तान उत्पादन सृजन/सृष्टि शक्ति प्रकृति वापस लेती है। अतः मानसिक और शारीरिक कमजोरी से स्त्री गुजरती है। चिड़चिड़ापन आम होता है। अतः पूरे परिवार को स्त्री का ध्यान रखना चाहिए, ख़ासकर पति को स्त्री के इस बिगड़ते स्वभाब को आत्मीयता और प्यार से सम्हालना चाहिए। उपासना का 5 दिन वाला ब्रेक लेते रहना चाहिए। मौन मानसिक जप और ज्यादा से ध्यान करना चाहिए।

Reference Book - गायत्री विषयक शंका समाधान, आर्टिकल - अशौच प्रतिबन्ध

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...