Sunday 30 December 2018

प्रश्न - *दी, धार्मिक और सामाजिक अनुष्ठानों में अत्यधिक मैकअप, डार्क लिपस्टिक और भड़काऊ वस्त्र पहन के आना क्या उचित है? कृपया अपने विचार दीजिये...*

प्रश्न - *दी, धार्मिक और सामाजिक अनुष्ठानों में अत्यधिक मैकअप, डार्क लिपस्टिक और भड़काऊ वस्त्र पहन के आना क्या उचित है? कृपया अपने विचार दीजिये...*

उत्तर - आत्मीय बहन, स्कूल में हम विभिन्न कलर और विभिन्न वस्त्र की जगह एक यूनिफॉर्म रखते हैं, यही पुलिस सेना और अस्पताल में भी होता है। यही नियम धार्मिक और सामाजिक अनुष्ठान का भी होता है। वहां पर भी ड्रेस कोड और आचार संहिता लागू होनी चाहिए। कॉरपोरेट में भी ड्रेसकोड फॉर्मल और लाइट कलर का होता है।

केवल पार्टी, फैमिली शादी-व्याह रिसेप्शन, प्रदर्शनी, मेला और मॉल इत्यादि जगहों पर जो कि लक्ष्यविहीन होता है, वहां मल्टीकलर और मैकअप स्वीकृत होता है।

क्योंकि यदि किसी लक्ष्य और महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए आप एकत्र हो रहे हों, यदि वहां सभी मल्टीकलर बनकर आएंगे तो वहां उस लक्ष्य से ध्यान बंट जाता है। एकाग्रता और लक्ष्यपूर्ति हेतु सादगी और ड्रेसकोड आचार्य संहिता अनिवार्य है।

यज्ञादि अनुष्ठान, मन्दिर दर्शन, प्रवचन और सत्संग, साहित्य प्रदर्शनी, आंदोलनों में एक ही ड्रेसकोड और सादगी के साथ सबका एकजुट होना अनिवार्य है, क्योंकि यहां लक्ष्य निश्चित है और ग्रहणशील और कर्तव्य परायण बनकर जुटना है। यदि कोई रूल तोड़े और भड़काऊ मेकअप करके आये तो  उसे ऐसे लक्ष्य युक्त समारोह में शामिल न करें।

जब भी प्रोग्राम का मैसेज बनाएं ड्रेसकोड और सादगी मेंशन अवश्य कर दें।

वैसे भी सुअर, भैंसे और गैंडे के मांस से ही लिपस्टिक का ग्लॉसी लिक्विड बनता है। कॉस्मेटिक्स कंपनी अपने प्रोडक्ट में एनिमल फैट का प्रयोग कर रही है या नहीं इसके लिए ग्राहक को कोई जानकारी नहीं देती। मेनका गांधी ने इस पर आवाज़ भी उठाई थी, जिसका विरोध कॉस्मेटिक कम्पनियां कर रही है। तो यदि कोई स्त्री वेजिटेरियन है और लिपस्टिक लगाकर भोजन या जल ग्रहण कर रही है तो वो नॉनवेज सीधे सीधे लिपस्टिक के माध्यम से ले रही है।

निम्नलिखित लिंक पर विस्तृत जानकारी लीजिये
https://m.patrika.com/lucknow-news/is-your-cosmetic-product-vegiterian-menka-gandhi-want-to-know-8082/

https://www.google.co.in/amp/wahgazab.com/now-test-will-be-conducted-on-your-lipstick-to-ascertain-whether-it-is-veg-or-non-veg/amp/

अतः लिपस्टिक की शौकीन महिलाओं को सावधान होने की आवश्यकता है।

काजल भी घर का देशी घी से बना उपयोग करें, अन्यथा बाज़ार वाले तो सस्ता मांस को गर्म करके निकाले प्रोसेस्ड एनिमल फैट को उपयोग में लेते है जो अत्यंत हानिकारक है।

जो जितना मैच्योर, बुद्धिमान, शांत और स्थिर होता है वो उतने ही शांत और सादगी के साथ हल्के कलर के वस्त्र पहनता है, जो जितना भीतर से चाइल्डिश, कम बुद्धिमान, अशांत और अस्थिर होगा वो उतने ही चटकीले और भड़कदार वस्त्र और मेकअप को पसन्द करता है।  जो जितना अर्धनग्न और खुले वस्त्र पहनता है वो भीतर से उतना ही कूप मण्डूक होता है।

जो बहुत मैचिंग मैचिंग करके एक जैसे कलर का श्रृंगार करते है, उनका मन वास्तव में कहीं मैच नहीं कर रहा होता, इनका अन्तःकरण अस्तव्यस्त होता है।

बल्ब की सुंदरता रौशनी से होती है, उस बल्ब के श्रृंगार से नहीं। इसी तरह स्त्री और पुरुषों की असली सुंदरता उनके मन का उल्लास, उत्साह, उमंग और कुछ कर गुजरने की चाहत और श्रेष्ठ व्यक्तित्व से होती है। पार्लर या घर मे किया रंग बिरंगा मैकअप केवल एक झूठा मुखौटा देता है, यदि इस मुखौटे को कोई सुंदर कह भी दे तो वो आपको सुंदर नहीं बोल रहा बल्कि वो उस मुखौटे को सुंदर बोल रहा है।

महान ज्योतिषाचार्य और मनोवैज्ञानिक कहते है कि व्यक्ति का वस्त्र और मैकअप उसके आंतरिक स्थिरता और अस्थिरता को बयान करती है।

अतः बहन स्थान, परिस्थिति और कार्य की समझ रखते हुए मेकअप और वस्त्र आभूषण पहन कर जाना चाहिए।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

अंग्रेजी नववर्ष 2019 की शुभकामनाएं एवं इसे कैसे मनाएं

*अंग्रेजी नववर्ष 2019 की शुभकामनाएं एवं इसे कैसे मनाएं*
Happy New Year 2019

 विश्व में अधिकतर देशों में नववर्ष  1 जनवरी को मनाया जाता है, क्योंकि अंग्रेजो ने हमारे देश पर शासन किया और यहां शासन व्यवस्था, स्कूल और कॉरपोरेट में  इंग्लिश प्रमुख भाषा बनी, तो हम सबको अंग्रेजी कैलेंडर ही मानना होता है। अतः नववर्ष 1 जनवरी को हम सबको भी मनाना होता है। लेकिन इस दिन न कोई खगोलीय घटना घटती है, न मौसम परिवर्तन होता है।

भारतीय लोग चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन नववर्ष मनाते हैं।
आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टि से भी सृष्टि की उत्पति का समय एक अरब वर्ष से अधिक बता रहे हैं। भारत में कई प्रकार से कालगणना की जाती है। युगाब्द (कलियुग का प्रारंभ) श्रीकृष्ण संवत,  विक्रमी संवत्, शक संवत आदि। वर्ष चैत्र प्रतिपदा का दिन एक प्रकार से मौसम परिवर्तन का भी प्रतीक है। बसंत ऋतु का आरम्भ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है। यह उल्लास , उमंग, खुशी तथा चारों ओर पीले पुष्पों की सुगन्ध  से भरी होती है। इस समय नई फसलें भी पककर तैयार हो जाती हैं। सूर्य मेष राशि में होता है, नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं, इस खगोलीय घटना के कारण किसी भी कार्य को प्रारम्भ करने का शुभ समय  चैत्र शुक्ल प्रतिपदा ही होता है। नवरात्र का प्रथम दिन यह होता है।

अतः दोनों नववर्ष मनाइए, लेकिन होशपूर्वक मनाईये।

31 दिसम्बर की शाम को 5 दीपक जला कर दीपयज्ञ कीजिये और नए वर्ष के आगमन की तैयारी कीजिये और निम्नलिखित कार्य कीजिये:-

नए वर्ष 2019 के लिए लक्ष्य निर्धारण कीजिये, लक्ष्य बनाते समय निम्नलिखित मुख्य प्रश्न स्वयं से पूँछिये:-

1- क्या करना है?
2- क्यों करना है?
3- कैसे करना है?
4- कब तक करना है? पूरे वर्ष के अंत तक जो हासिल करना है, उस लक्ष्य के माइल स्टोन प्रत्येक महीने क्या होंगे? रिव्यू डेट क्या होगी? अपना रिपोर्ट कार्ड वर्क प्रोग्रेस का कैसे ट्रैक करोगे?
5- लक्ष्य प्राप्ति में क्या क्या साधन लगेंगे?
6- कौन कहाँ कैसे सहायक होगा?
7- लक्ष्य की क़्वालिटी क्या होगी?
8- लक्ष्य प्राप्ति के बाद आपका अगला कदम क्या होगा?

👉🏼 वार्षिक लक्ष्य पूरा करने हेतु समय प्रबंधन कैसे करोगे? इसके लिए दिनचर्या में काम की प्रायोरिटी लिस्ट बनाओ उसके अनुसार कार्य करो:-

1- Important & Urgent (जरूरी और तुरन्त करने वाले कार्य को पहले करें)
2- Important but not Urgent (जरूरी कार्य भले ही वो अर्जेन्ट न हो उसे दूसरे नम्बर पर करें।
3- Urgent but not important (तीसरे नम्बर पर अर्जेन्ट कार्य जो भले महत्त्वपूर्ण न हो उसे करें)
4- Not urgent & not important (ऐसे कार्य करना ही क्यों है जो न जरूरी है और न ही अर्जेन्ट है। अच्छा यही होगा कि इसे न करें। Entertainment हेतु टीवी, मोबाइल गेम, फ़िल्म इत्यादि समय की बर्बादी है, अतः जितना सब्जी में नमक जरूरी है, लेकिन थोड़ा डालते है, केवल उसी अनुपात में उतना थोड़ा ही इन सबमें समय खर्चना चाहिए।)

👉🏼 अमीर ग़रीब सबको 24 घण्टे ही एक दिन में मिलते है, यदि इन 24 घण्टों को विवेकपूर्वक साध लिया जाय तो नववर्ष मंगलमय अवश्य होगा।

👉🏼 एक युगनिर्माण योजना का मशाल का चित्र अपने बेडरूम में लगा लें। सुबह शाम जब भी उस पर नजर पड़े, स्वयं से कहें यह आत्म जागरण की मशाल है। मुझे अपनी आत्मा को प्रकाशित करके ज्ञान की मशाल बनना है। स्वयं भी प्रकाशित होना है और दूसरों को भी प्रकाशित करना है।

👉🏼 हाथ में कलावा जरूर पहने, यह भगवान के साथ साझेदारी का प्रतीक है, आधुनिक भाषा मे यह फ्रेंडशिप बैंड है, यह रिमाइंडर है। अतः जब भी इस पर नजर पड़े मन ही मन बोलें, I am aware(मैं जागरूक हूँ), Enlightenment is light( आत्मबोध ही प्रकाश है)। अपने शरीर(body), मन(mind) और आत्मा (soul) के प्रति अवेयर रहें।

👉🏼 जल की यादाश्त (water memory) होती है, अतः जो व्यक्ति पानी दे रहा है या जिस घर मे पानी है उस व्यक्ति और घर के अच्छे-बुरे विचार उसमें प्रवेश कर जाते है। अतः जिस प्रकार फ़ल और सब्जियों को धोकर प्रयोग में लेते है, उसी प्रकार जल की मेमोरी, वाईब्रेशन और एनर्जी को साफ़ कर लें। हाथ मे लेकर जल का ग्लास गायत्री मंत्र पढ़े और भावना करें कि यह गंगा जल है और यह मुझे अनन्त ऊर्जा देगा। इसी तरह भोजन की एनर्जी, वाईब्रेशन गायत्री मंत्र बोलकर शुद्ध करके ही ग्रहण करें।

🙏🏻 नशा नाश की जड़ है, नशा गम/समस्या भुलाता है, वो भी कुछ घण्टों के लिए, लेकिन गम/समस्या का समाधान नहीं करता। नशे से आनन्द पाने की जो सोच है वो गलत है, क्योंकि नशा स्वप्न में आपको खुश दिखाता है, हक़ीक़त में नहीं। अतः जिस नशे से अपार हानि है उसे छोड़ने में ही भलाई है।🙏🏻

🙏🏻😇 *आत्मा में प्रकाश, बुद्धि के विकास और जीवन में प्रत्येक समस्याओं के समाधान हेतु गायत्री मंत्रजप, ध्यान और अच्छी पुस्तको का स्वाध्याय करें। आत्मा के प्रकाश में प्रत्येक नववर्ष मंगलमय ही होगा।* 😇🙏🏻

Happy New Year 2019

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

सरस्वती शिविर में युवाओं के प्रश्नों का समाधान, गायत्री तपोभूमि,मथुरा 30 दिसम्बर 2018

*सरस्वती शिविर में युवाओं के प्रश्नों का समाधान, गायत्री तपोभूमि,मथुरा 30 दिसम्बर 2018, Part 1*

👉🏼 https://youtu.be/yPxFwxXY_m4

*सरस्वती शिविर में युवाओं के प्रश्नों का समाधान, गायत्री तपोभूमि,मथुरा 30 दिसम्बर 2018, Part 2*

👉🏼 https://youtu.be/gUhzbRjkO6o

*सरस्वती शिविर में युवाओं के प्रश्नों का समाधान, गायत्री तपोभूमि,मथुरा 30 दिसम्बर 2018, Part 3*

👉🏼 https://youtu.be/6MaNrm2fAsQ

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

*सरस्वती युवा शिविर,गायत्री तपोभूमि मथुरा 29 दिसम्बर 2018, पार्ट 1*

👉🏼https://youtu.be/dQKxpBll710

*सरस्वती युवा शिविर,गायत्री तपोभूमि मथुरा 29 दिसम्बर 2018, पार्ट 2*

👉🏼https://youtu.be/AgEnvEXQkkI

Saturday 29 December 2018

प्रश्न - *श्वेता बेटी , जप तीन तरह से होता है , पहला होठ धीरे धीरे हिलते रहते है व हल्की आवाज निकलती है , दूसरा, होठ बन्द रहते है मगर जिव्हा हिलती रहती है , तीसरा , जिव्हा भी बन्द रहती है मगर जप होता है मगर धीरे धीरे । कौन सा सही है ?*

प्रश्न - *श्वेता बेटी , जप तीन तरह से होता है , पहला होठ धीरे धीरे हिलते रहते है व हल्की आवाज निकलती है , दूसरा, होठ बन्द रहते है मगर जिव्हा हिलती रहती है , तीसरा , जिव्हा भी बन्द रहती है मगर जप होता है मगर धीरे धीरे । कौन सा सही है ?*

उत्तर - बाबूजी चरण स्पर्श कर प्रणाम,

जप तीन प्रकार के होते हैं - मानसिक, वाचिक एवं उपांशु जप

इनमें ध्वनियों के हलके भारी किये जाने की प्रक्रिया काम में लाई जाती है। वेद मन्त्रों के अक्षरों के साथ-साथ उदात्त-अनुदात्त और त्वरित क्रम से उनका उच्चारण नीचे ऊंचे तथा मध्यवर्ती उतार-चढ़ाव के साथ किया जाता है। उनके सस्वर उच्चारण की परम्परा है।

*वाचिक जप* - यज्ञ के वक़्त आहुति क्रम में वाचिक उच्च स्वर में उच्चारण होता है।

*मानसिक जप* - मौन मानसिक जप में होठ बन्द होते है, ध्वनि बाहर नहीं निकलती। इस तरह के जप कभी भी कहीं भी किये जा सकते हैं। कोई नियम पालन की आवश्यकता नहीं होती।।अशौच और सूतक के वक्त भी मौन मानसिक जप कर सकते हैं।

*उपांशु जप* - गायत्री जप दैनिक उपासना के वक्त या अनुष्ठान के वक्त जब भी माला लेकर किया जाता है तब केवल उपांशु जप किया जाता है, जिसमें होंठ, कण्ठ मुख हिलते रहें या आवाज इतनी मंद हो कि दूसरे पास में बैठा व्यक्ति भी उच्चारण को सुन न सकें। नियम पालन करने पड़ते है। आसन जिस पर बैठकर जप किया जाएगा वो ऊनी या कुश का होना चाहिए।

मुख में स्थित अग्निचक्र से जब उपांशु जप होता है तो इससे उत्पन्न शक्ति प्रवाह नाड़ी तन्तुओं की तीलियों के सहारे सूक्ष्म चक्रों और दिव्य ग्रन्थियों तक पहुंचता है और उन्हें झकझोर कर जगाने, खड़ा करने में संलग्न होता है।  जो इन जागृत चक्रों द्वारा रहस्यमयी सिद्धियों के रूप में साधक को मिलती है। यह एक सुनिश्चित तथ्य है कि यदि जपयोग को विधिवत् साधा गया होगा तो उसका सत्परिणाम उत्पन्न होगा ही। जप में शब्दों की पुनरावृत्ति होते रहने से उच्चारण का एक चक्र-व्यूह—सर्किल बनता है। जो दिव्य उर्जा उतपन्न करता है।

गायत्री जप के साथ ध्यान अनिवार्य है, ध्यान में जप के वक्त या तो मंन्त्र का अर्थ चिंतन करें या उगते हुए सूर्य का ध्यान करें या अपने इष्ट आराध्य का उगते हुए सूर्य में ध्यान करें।

तुलसी की माला दाहिने हाथ में लेकर जप आरम्भ करना चाहिए। तर्जनी उँगली को अलग रखना चाहिए। अनामिका, मध्यमा और अंगूठे की सहायता से जप किया जाता है। एक माला पूरी हो जाने पर मालाको मस्तक से लगाकर प्रणाम करना चाहिए और बीच की केन्द्र मणी सुमेरू को छोड़कर दूसरा क्रम आरंभ करना चाहिए।लगातार केन्द्रमणि को भी जपते हुए सुमेरू का उल्लंघन करते हुए जप करना ठीक नहीं सुमेरू को मस्तक पर लगाने के उपरान्त प्रारम्भ वाला दाना फेरना आरम्भ कर देना चाहिए। कई जप करने वाले सुमेरू पर से माला को वापिस लौटा देते हैं और एक बार सीधी दूसरी बार उलटी इस क्रम से जपते रहते हैं पर वह क्रम ठीक नहीं।

गायत्री जप प्रक्रिया कषाय- कल्मषों, कुसंस्कारों को धोने के लिए पूरी की जाती है। साथ ही स्वास्थ्य वर्धक और बौद्धिक कौशल बढ़ाता है। सर्व संकट का नाश कर के सुख समृद्धि की वृद्धि करता है। गायत्री कलियुग की कामधेनु है, इसके जप से लाभ ही लाभ है।

आल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन के डॉक्टर और आई आई टी के सदस्य ने रिसर्च करके यह साबित किया है कि गायत्री जप से बौद्धिक कुशलता बढ़ती है, दिमाग़ सन्तुलित रहता है, मन को सुकून देने वाला गाबा केमिकल रिलीज़ होता है। तनाव दूर करता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday 28 December 2018

प्रश्न - *दी, शराब समर्थक कहते हैं कि देवता सोमरस पीते थे, वो वास्तव में शराब होती थी? क्या यह सत्य है या उनका मतिभ्रम? कृपया बताएं*

प्रश्न - *दी, शराब समर्थक कहते हैं कि देवता सोमरस पीते थे, वो वास्तव में शराब होती थी? क्या यह सत्य है या उनका मतिभ्रम? कृपया बताएं*

उत्तर - आत्मीय बहन, वेदों में सुरापान को मादक और शराब तुल्य माना है। और सोमरस को च्यवनप्राश की तरह औषधीय पेय माना गया है।

क्योंकि सोमरस पान और सुरापान वैदिक संस्कृत शब्द हैं तो  लोग कन्फ़्यूज़ हो जाते हैं।

अक्सर शराब के समर्थक यह कहते सुने गए हैं कि देवता भी तो शराब पीते थे? सोमरस क्या था, शराब ही तो थी। प्राचीन वैदिक काल में भी सोमरस के रूप में शराब का प्रचलन था? या शराब जैसी किसी नशीली वस्तु का उपयोग करते थे देवता? कहीं वे सभी भांग तो नहीं पीते थे, जैसा कि शिव के बारे में प्रचलित है कि वे भांग पीते थे। लेकिन किसी भी पुराण या शास्त्र में उल्लेख नहीं मिलता है कि शिवजी भांग पीते थे। इसी तरह की कई भ्रांत धारणाएं हिन्दू धर्म में प्रचलित कर दी गई हैं जिसके दुष्परिणाम देखने को मिल भी रहे हैं।
*दरअसल, सोमरस, मदिरा और सुरापान तीनों में फर्क है*। ऋग्वेद में शराब की घोर निंदा करते हुए कहा गया है-

।।हृत्सु पीतासो युध्यन्ते दुर्मदासो न सुरायाम्।।

अर्थात : सुरापान करने या नशीले पदार्थों को पीने वाले अक्सर युद्ध, मार-पिटाई या उत्पात मचाया करते हैं।

यदि सोमरस शराब नहीं थी तो फिर क्या था? जानिए अगले पन्ने पर...

सोम वेदों में वर्णित एक विषय है जिसका( वैदिक संस्कृत में) प्रमुख अर्थ उल्लास, सौम्यता और चन्द्रमा है। ऋग्वेद और सामवेद में इसका बार-बार उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद के 'सोम मण्डल' में ११४ सूक्त हैं, जिनमे १०९७ मंत्र हैं - जो सोम के ऊर्जादायी गुण का वर्णन करते हैं। पाश्चात्य विद्वानों ने इस सोम को अवेस्ता-भाषा में लिखे, 'होम' से जोड़ा है जो प्राचीन ईरानी-आर्य लोगों का पेय था।

सनातन परंपरा में वेदों के व्याखान के लिए प्रयुक्त निरुक्त में सोम को दो अर्थों बताया गया है [1]। पहले सोम को एक औषधि कहा गया है जो स्वादिष्ट और मदिष्ट (नंदप्रद) है, और दूसरे इसको चन्द्रमा कहा गया है। इन दोनो अर्थों को दर्शाने के लिए ये दो मंत्र हैं:

स्वादिष्ठया मदिष्ठया पवस्व सोम धारया। इन्द्राय पातवे सुतः॥ (ऋक् ९.१.१, सामवेद १)
सोमं मन्यते पपिवान्यत्सम्पिषन्त्योषधिम्। सोमं यं ब्रह्माणो विदुर्न तस्याश्नाति कश्चन॥ (ऋक् १०.८५.३)'
निरूक्त में ही ओषधि का अर्थ 'उष्मा धोने वाला' यानि 'क्लेश धोने वाला' है।

वेदों की इन ऋचाओं से जाना जा सकता है कि सोमरस क्या था। ऋग्वेद की एक ऋचा में लिखा गया है कि 'यह निचोड़ा हुआ शुद्ध दधिमिश्रित सोमरस, सोमपान की प्रबल इच्छा रखने वाले इन्द्रदेव को प्राप्त हो।।


(ऋग्वेद-1/5/5) ...हे वायुदेव! यह निचोड़ा हुआ सोमरस तीखा होने के कारण दुग्ध में मिश्रित करके तैयार किया गया है। आइए और इसका पान कीजिए।। (ऋग्वेद-1/23/1)

।।शतं वा य: शुचीनां सहस्रं वा समाशिराम्। एदुनिम्नं न रीयते।। (ऋग्वेद-1/30/2)... अर्थात नीचे की ओर बहते हुए जल के समान प्रवाहित होते सैकड़ों घड़े सोमरस में मिले हुए हजारों घड़े दुग्ध मिल करके इन्द्रदेव को प्राप्त हों।

इन सभी मंत्रों में सोम में दही और दूध को मिलाने की बात कही गई है, जबकि यह सभी जानते हैं कि शराब में दूध और दही नहीं मिलाया जा सकता। भांग में दूध तो मिलाया जा सकता है लेकिन दही नहीं, लेकिन यहां यह एक ऐसे पदार्थ का वर्णन किया जा रहा है जिसमें दही भी मिलाया जा सकता है।  अर्थात वह हानिकारक वस्तु तो नहीं थी। देवताओं के लिए समर्पण का यह मुख्य पदार्थ था और अनेक यज्ञों में इसका बहुविध उपयोग होता था। सबसे अधिक सोमरस पीने वाले इन्द्र और वायु हैं। पूषा आदि को भी यदा-कदा सोम अर्पित किया जाता है, जैसे वर्तमान में पंचामृत अर्पण किया जाता है।

अगले पन्ने पर आखिर सोम शराब नहीं है तो फिर क्या और कहां है...

सोम नाम से एक लता होती थी : मान्यता है कि सोम नाम की लताएं पर्वत श्रृंखलाओं में पाई जाती हैं। राजस्थान के अर्बुद, उड़ीसा के महेन्द्र गिरी, हिमाचल की पहाड़ियों, विंध्याचल, मलय आदि अनेक पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी लताओं के पाए जाने का उल्लेख मिलता है। कुछ विद्वान मानते हैं कि अफगानिस्तान की पहाड़ियों पर ही सोम का पौधा पाया जाता है। यह बिना पत्तियों का गहरे बादामी रंग का पौधा है।

'संजीवनी बूटी' : कुछ विद्वान इसे ही 'संजीवनी बूटी' कहते हैं। सोम को न पहचान पाने की विवशता का वर्णन रामायण में मिलता है। हनुमान दो बार हिमालय जाते हैं, एक बार राम और लक्ष्मण दोनों की मूर्छा पर और एक बार केवल लक्ष्मण की मूर्छा पर, मगर 'सोम' की पहचान न होने पर पूरा पर्वत ही उखाड़ लाते हैं। दोनों बार लंका के वैद्य सुषेण ही असली सोम की पहचान कर पाते हैं।

यदि हम ऋग्वेद के नौवें 'सोम मंडल' में वर्णित सोम के गुणों को पढ़ें तो यह संजीवनी बूटी के गुणों से मिलते हैं इससे यह सिद्ध होता है कि सोम ही संजीवनी बूटी रही होगी। ऋग्वेद में सोमरस के बारे में कई जगह वर्णन है। एक जगह पर सोम की इतनी उपलब्धता और प्रचलन दिखाया गया है कि इंसानों के साथ-साथ गायों तक को सोमरस भरपेट खिलाए और पिलाए जाने की बात कही गई है।

ईरान और आर्यावर्त : माना जाता है कि सोमपान की प्रथा केवल ईरान और भारत के वह इलाके जिन्हें अब पाकिस्तान और अफगानिस्तान कहा जाता है यहीं के लोगों में ही प्रचलित थी। इसका मतलब पारसी और वैदिक लोगों में ही इसके रसपान करने का प्रचलन था। इस समूचे इलाके में वैदिक धर्म का पालन करने वाले लोग ही रहते थे। 'स' का उच्चारण 'ह' में बदल जाने के कारण अवेस्ता में सोम के बदले होम शब्द का प्रयोग होता था और इधर भारत में सोम का।

वेदों में 'सोम' शब्द पेय के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है, पौधे के रूप में प्रयुक्त हुआ है और देवता के अर्थ में भी यही शब्द प्रयुक्त हुआ है। सोमपान से अमरता की प्राप्ति होती है (अमृता, ऋग्वेद ८.४८.३)। इन्द्र और अग्नि को प्रचुर मात्रा में सोमपान करते हुए बताया गया है। वेदों में मानव के लिए भी सोमपान की स्वीकृति है-

अपाम सोमममृता अभूमागन्म ज्योतिरविदाम देवान् ।
किं नूनमस्मान्कृणवदरातिः किमु धूर्तिरमृत मर्त्यस्य ॥ऋग्वेद ८.४८.३॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती ने इसका अर्थ इस प्रकार किया है-

सोम (अच्छा फल जो खाद्य है किन्तु मादक नहीं है) अपाम (हम तुम्हारा पान करते हैं)
अमृता अभूम् (आप जीवन के अमृत हो) ज्योतिर् आगन्म (भगवान का प्रकाश या शारीरिक शक्ति पाते हैं)
अविदाम देवान् (अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करते हैं)
किं नूनं अस्मान् कृणवद् अरातिः (इस अवस्था में, हमारा आन्तरिक शत्रु मेरा क्या बिगाड़ सकता है?)
किमु धूर्तिरमृत मर्त्यस्य (भगवन्! हिंसक लोग भी मेरा क्या बिगाड़ सकते हैं?)

*कुछ विद्वानों का मानना है, सोम चंद्रमा का दूसरा नाम है, चन्द्रमा अमृत तत्व देता है, सोम अर्थात अमृत, और अमृत लता अर्थात अमृता जिसका दूसरा नाम गिलोय है, वास्तव में सोम लता है अमृता लता है।*

अमृता औषधिराज है, इसके विभिन्न प्रयोग है।

इसकी पत्तियों से बना अमृत रस ही सोम रस है, जो समस्त क्लेश (ज्वर) नाशक है।

*बहुवर्षायु, दीर्घायु कारी तथा अमृत के समान गुणकारी होने से इसका नाम अमृता है।*

इसका नियमित सेवन करने पर कोई व्यक्ति जीवन मे कभी बीमार नहीं हो सकता, दुनियाँ में जितने प्रकार के ज्वर, डेंगू, चिंगनगुनियाँ और खांसी जुकाम है सबकी काट यह अमृता/सोम लता है।

चिकित्सक के परामर्श से ज्वर होने पर 5 दिन के कोर्स में दो-दो गोली सुबह शाम दोपहर इस औषधिराज को लेकर स्वस्थ हो सकते हैं।

इस औषधि को चन्द्र/सोम मंन्त्र से होमने/आहुति देने पर पूरे घर की शारीरिक मानसिक रोगों से रक्षा होती है:-

*ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे, अमृत तत्वाय धीमहि। तन्नो चन्द्रः प्रचोदयात।।*

यह अमृत औषधि रोकप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है, यदि बच्चे और बड़े जब मौसम बदलता है और बीमारियों का प्रकोप बढ़ता है, उस समय सुबह शाम इसका सेवन करते है, तो पूरे वर्ष बीमार नहीं पड़ते, कभी अन्य एंटीबायोटिक की जरूरत नहीं पड़ती।

*अमृता वटी के नाम से यह औषधि दवाई के रूप में शान्तिकुंज फ़ार्मेसी हरिद्वार में भी उपलब्ध है।* इस अमृता की लता गमले में घर मे लगाया जा सकता है, इसकी पत्तियों की चाय या रस पिया जा सकता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *प्रणाम दीदी। आज एक बच्चे ने एक प्रश्न पूछा- उसने दीक्षा का प्रोसेस देखा था यज्ञ के दौरान । उसका सवाल था कि क्यों हम अंगूठे पर गुरुदेव और माता जी का ध्यान दीक्षा के दौरान करते हैं?

प्रश्न - *प्रणाम दीदी। आज एक बच्चे ने एक प्रश्न पूछा-  उसने दीक्षा का प्रोसेस देखा था यज्ञ के दौरान । उसका सवाल था कि क्यों हम अंगूठे पर गुरुदेव और माता जी का ध्यान दीक्षा के दौरान करते हैं?  इसका क्या महत्व है और ऐसा क्यों किया जाता है? वह बच्चा 12 वर्ष का है , गायत्री जप नियमित रूप से करता है।*

उत्तर - आत्मीय दी, इस प्रश्न के उत्तर में बच्चे से कहिए:-

आत्मीय बेटे, ज्योतिषाचार्यों के अनुसार *हाथ का अंगूठा भविष्य के प्राण के समान है*। अगर किसी व्यक्ति को हाथ के अंगूठे को पढ़ना आता है तो वह संबंधित व्यक्ति के व्यक्तित्व की तह तक खोल सकता है।

*चार अंगुलियों के सामने अंगूठा अकेला होता है, लेकिन एक अंगूठे के बिना उन चार अंगुलियों का भी कोई मोल नहीं है*। अलग-अलग भावों में अंगूठे की अपनी अलग और विशेष भूमिका है।

*अंगूठे की सहायता के बिना मुट्ठी बंद नहीं की जा सकती और यह बात तो सभी जानते हैं कि बंद मुट्ठी में ही इंसान की तकदीर होती है।*

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार अंगूठा स्वत: ही आपके निर्णय को सही या गलत साबित कर सकता है। *महान हस्तरेखा विज्ञानी कीरो का कहना था कि अंगूठा ही स्वयं ईश्वर का प्रतिनिधि है। न्यूटन ने तो यहां तक कहा था कि ईश्वर से साक्षात्कार के लिए अंगूठा ही काफी है।*

सदगुरु हमारे लिए ईश्वर के समान होते हैं, कहा भी गया है:-

गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

 अतः हम अंगूठे में गुरूदेव और माता जी का प्रतीक पूजन करते हैं, दोनों अंगूठों को पास रखकर शिष्य का सद्गुरु के साथ एकत्व का भाव भी रखते हैं। अंगूठा मनुष्य के व्यक्तित्व को बताता है, तो यहां भाव यह होता है कि अब हमारे व्यक्तित्व में सद्गुरु की झलक दिखे। जिस प्रकार  हाथ में अंगूठे का महत्त्वपूर्ण स्थान है, ठीक उसी प्रकार  सद्गुरु का हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। अंगूठे से हाथ को पकड़ और मजबूती मिलती है, उसी तरह सद्गुरु से शिष्य के जीवन मे मज़बूती आती है। लिखने में भी अंगूठे का महत्त्वपूर्ण योगदान है, उसी तरह  सद्गुरु शिष्य की किस्मत लिखते हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Thursday 27 December 2018

प्रश्न - *दी, 50 वर्ष की उम्र हो गयी है, अब मुझे जीवनचर्या में ऐसे कौन से अनुभूत उपाय अपनाना चाहिए, जिससे बुढ़ापे का कष्ट मुझे कम से कम हो।*

प्रश्न - *दी, 50 वर्ष की उम्र हो गयी है, अब मुझे जीवनचर्या में ऐसे कौन से अनुभूत उपाय अपनाना चाहिए, जिससे बुढ़ापे का कष्ट मुझे कम से कम हो।*

उत्तर - आत्मीय भाई, सबसे पहले  हम तीनों शरीर के तीनों आयाम की उम्र समझते हैं:-

1- *शारीरिक उम्र* - यह प्रकृति के नियमों के अनुसार वृद्ध होगी। लेकिन मानसिक ताकत से इसे सम्हाला जा सकता है। स्वास्थ्यकर भोजन, उचित विश्राम, और व्यायाम से शरीरबल बढ़ाया जा सकता है।

2- *मानसिक उम्र*- यदि जागरूकता(अवेयरनेस) जीवन मूल्यों के प्रति नहीं है, तो यह कभी भी बूढ़ी हो जाती है। यदि अवेयरनेस है, तो जीवनभर जवान, कुशाग्र, शांत, उल्लासपूर्ण, होशपूर्वक, और एक्टिव जोशीला रहा जा सकता है। उदाहरण स्वरूप एक शरीर से युवक को भी वृद्धों जैसी मानसिकता का देख सकते हो और एक वृद्ध शरीर में भी युवकों जैसा उल्लास उमंग जोश देख सकते हो। योग-प्राणायाम और स्वाध्याय से मनोबल बढ़ता है।

3- *आत्मिक उम्र-* निःश्वार्थ जनसेवा और भक्तिभाव से आत्मबल बढ़ाया जा सकता है। उपासना(आत्मकल्याण हेतु जप और ध्यान) और आराधना(लोककल्याण हेतु समयदान और अंशदान) दोनों यदि नियमितता से होते रहे तो आत्मा सदा प्रकाशित रहेगी।

*ध्यान रखें, आत्मा को उपासना-आराधना से प्रकाशित रखें, मन को साधना से उमंग उल्लास से भरें और शरीर को व्यायाम का अभ्यस्त करें, वृद्धावस्था के कष्टों को स्वयं से दूर रखें। आइये बुढ़ापे से बचने के लिए कुछ दिनचर्या को समझ लेते हैं:-*

1- सुबह उठते ही, स्वयं को शरीर से अलग आत्मा समझते हुए, अपने शरीर को देखें, बोले यह शरीर उठ गया है।
2- इस शरीर में जो भी अंग व्यवस्थित काम कर रहे हैं, उदाहरण आंख-कान-मुंह-दिमाग़-हाथ-पैर इत्यादि, उसके लिए ईश्वर को धन्यवाद दीजिये। शरीर को भी धन्यवाद दीजिये।
3- मन ही मन गायत्री मंत्र जपकर  प्राणवान होने का भाव कीजिये और पृथिवी माता को प्रणाम करके उठ जाइये।
4- सुबह हल्के गर्म पानी में चूना लगभग दो सरसों के दाने के बराबर का मिला कर पी लीजिये। हड्डियाँ मजबूत होंगी।
5- मनुष्य हो या मशीन चलेगी तो ही बचेगी, अन्यथा जंग लग जायेगा। सुबह -शाम 2 से 3 किलोमीटर टहलिए।
6- चबाकर खाना भूख से आधा खाइये, खाने के बाद थोड़ा देशी गुड़ जरूर खाएं। आंतो को स्वास्थ्यलाभ मिलेगा, एनर्जी बनी रहेगी।  यदि सम्भव हो तो जब दाहिना स्वर(सांस) चल रही हो तब भोजन करें, जल्दी पचेगा। अंकुरित भोजन आयु में वृद्धि करता है। फलों के जूस स्वास्थ्य बढ़ाते है।
7- भोजन में कम से कम दिन में एक बार आधा चम्मच देशी घी खायें, हड्डियों और मांसपेशियों के लिए अच्छा है।
8- पानी या पेय पदार्थ घूँट घूँट कर पीना जिससे वो सहज पचे।
9- सरसों के तेल को गर्म करके या मालिश के तेल से अपने हाथ-पैर-कमर सर्वत्र मालिश करें। सोते वक्त तलवे और नाभि में तेल लगाकर सोएं। सप्ताह में दो बार देशी गाय के घी की दो-दो बूंद नाक में डालें। जो हाथ वृद्धावस्था में कम्पकपाता है वो कभी आपको नहीं होगा, आपके दिमाग और हाथ का कंट्रोल बना रहेगा।
10- हाथ में कलावा बांधे एक रिमांडर की तौर पर, जब भी हाथ पर नज़र जाए गहरी श्वांस लें, लेते वक्त *सो* बोलें और छोड़ते वक्त *हम* बोलें, *सो$हम* साधना स्वांस से करें। मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दें, फिर शरीर को धन्यवाद दें, मन को धन्यवाद दें। मैं अवेयर हूँ, मैं जागरूक हूँ, मैं प्राणवान हूँ।
11- योग-प्राणायाम-आसान नित्य करें
12- कम से कम आधे घण्टे का गायत्री जप उगते हुए सूर्य का ध्यान करते हुए जपें। आधे घण्टे बिना मोबाइल, बिना टीवी, बिना बोले जस्ट नेत्र बन्द करके बैठें अपने आती जाती श्वास पर ध्यान दें।
13- रोज कम से कम 30 मिनट स्वाध्याय अच्छी पुस्तकों का करें।
14- सोते वक़्त बाएं करवट सोएं, हृदय, पाचन और दिमाग के लिए अच्छा है।
15- यादों के खंडहर में न घूमें, निर्विचार होकर भगवान को धन्यवाद देकर उनकी शरण मे सो जाएं। प्रत्येक दिन को नया जन्म और प्रत्येक रात को एक मौत समझें। ऐसे जिये मानो केवल आज का ही दिन बेहतर जीना है।
16- अपने ज्यादा से ज्यादा कार्य स्वयं करें।
17- खुशियां बांटे, महीने या सप्ताह में एक बार नज़दीकी सरकारी स्कूल में प्राइमरी के बच्चो अच्छी अच्छी कहानी सुनाएं, कम्पटीशन करवाएं, चॉकलेट, रबर, पेंसिल और कॉपियां गिफ्ट में बांटे। उनके साथ खिलखिला कर हंसे।
18- जो बोवोगे वही काटोगे, जो दूसरों को दोगे वही प्रकृति से पाओगे। खुशियां बांटने निकलोगे तो खुशियां ही पाओगे। व्यस्त रहो, मस्त रहो।
19- किसी के लिए भी मन में गुस्सा मत रखो, सबको क्षमा कर दो। केवल हृदय में ईश्वर को रखो।
20- यदि ग़लती हो जाये तो माफ़ी मांग लो, सामने वाला माफ करेगा या नहीं इसकी परवाह मत करो।

युगऋषि के कुछ अनमोल साहित्य जरूर पढ़ें:-

1- भावसम्वेदना की गंगोत्री
2- दृष्टिकोण ठीक रखें
3- उनके जो पचास के हो चले
4- मित्रभाव बढ़ाने की कला
5- बुढ़ापे से टक्कर लें

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 25 December 2018

प्रश्न - *स्थूल शरीर में तेजस, सूक्ष्म शरीर में ओजस और कारण शरीर में वर्चस पाने का सिद्धांत क्या है?*

प्रश्न - *स्थूल शरीर में तेजस, सूक्ष्म शरीर में ओजस और कारण शरीर में वर्चस पाने का सिद्धांत क्या है?*

उत्तर - आत्मीय भाई, यह सृष्टि त्रिगुणात्मक है - *जिस प्रकार परमाणु(Atom) मुख्यता तीन मूल कणों इलेक्ट्रान , प्रोटोन व न्युट्रान से मिलकर बना होता है वैसे ही यह सृष्टि भी सत, रज, तम से बनी है। त्रिदेव - ब्रह्मा(निर्माण), विष्णु(सन्तुलन-पालन), शंकर(विध्वंस) इसी को इंगित करते है। इन तीनो कर बिना तो सृष्टि ही नहीं है।* परमात्मा त्रिगुणातीत अर्थात इन तीनों से परे है।

इस संसार में सभी प्रवृत्तियां या वस्तुएं अच्छी या बुरी कुछ नहीं है, वो केवल प्रवृत्तियां है या वस्तुएं है। उसे अच्छा या बुरा हम उपयोग से बनाते हैं।

उदाहरण - *आग(अग्नि)* - भोजन पकाना और नित्य दैनिक कर्म में प्रयोग करना आग का अच्छा प्रयोग है, लेकिन किसी को आग से जलाना या किसी का घर आग से जलाना या सामान में आग लगा देना बुरा प्रयोग है। इसी तरह काम क्रोध मद लोभ दम्भ इत्यादि प्रवृतियां केवल प्रवृत्तियां ही हैं, इनका प्रयोग कैसे और कहां हो रहा है इस पर सारा परिणाम निर्भर करता है।

स्थूल शरीर में तेजस, सूक्ष्म में ओजस, और कारण में वर्चस तब बढ़ता है जब स्थूल शरीर एक्टिव रहे, मन अवेयर और एक्टिव रहे और आत्म उत्थान के लिए अवेयर और सक्रीय रहे।  इन्हें घटाने या बढ़ाने के निम्नलिखित उपाय अपनाएं:-

👉🏼 *स्थूल शरीर का तेजस(स्वास्थ्य, एक्टिवनेस, अवेयरनेस) घटाने का उपाय*:-

सुबह से शाम तक टीवी या मोबाइल पर गेम खेलते और वीडियो देखते समय बिताएं और पशुओं की तरह गपागप खाएं। शरीर का तेजस घट जाएगा, शाम को शरीर आलस्य से भर जाएगा, मन भी बोझिल हो जाएगा।

👉🏼 *स्थूल शरीर का तेजस(स्वास्थ्य, एक्टिवनेस, अवेयरनेस) बढ़ाने का उपाय*:-

सुबह उठकर उषा पान करें, योग-प्राणायाम-व्यायाम किया, स्वास्थ्यकर खाये, दिन का व्यवस्थित उपयोग करे। शरीर के स्वास्थ्य और गतिविधि के प्रति अवेयर रहे, साक्षी भाव बनाये रखें। जो करे होशपूर्वक करें। स्थूल शरीर का तेजस बढ़ जाएगा। स्वयंमेव इसे शाम को महसूस कर सकेंगे।

👉🏼 *सूक्ष्म शरीर का ओजस(स्वास्थ्य, एक्टिवनेस, अवेयरनेस) घटाने का उपाय*:-
विकृत चिंतन करें, तनाव लें, जीवन की समस्याओं को गिने,  ऐसे साहित्य और टीवी इत्यादि देखें जो तनाव में वृद्धि करे या कुत्सित भावनाओ को भड़काए।दोषारोपण में व्यस्त रहें, मेरे साथ ही ऐसा क्यों घट रहा है? मैं ही क्यों फर्श पर गिरा, फर्श पर पानी न गिरा होता तो मैं न गिरता? पृथ्वी में गुरुत्वाकर्षण मुझे गिराने के लिए जिम्मेदार है। शरीर जहां हो वहां से मन दूर रखें। अर्थात भोजन कर रहे हो तो ऑफिस के बारे में सोचो, ऑफिस में हो तो घर के बारे में सोचो, पत्नी के साथ हो तो बॉस के साथ हुई झड़प सोचो, बॉस के साथ हो तो पत्नी के साथ हुई झड़प सोचो। जहां शरीर वहां से दूर तुम हो जाओ, घर पर ऑफिस और ऑफिस में घर सोचो। शरीर और मन की जितनी ज्यादा दूरी होगी , उतने ही उलझे हुए विचार होंगे, सूक्ष्म शरीर का ओजस उतना ही घटता जाएगा।

*सूक्ष्म शरीर का ओजस(स्वास्थ्य, एक्टिवनेस, अवेयरनेस) बढाने का उपाय*:-
सद्चिन्तन करें, जीवन का आनन्द लें, जीवन की समस्याओं का समाधान ढूंढे, आत्मशोधन में व्यस्त रहें। ऐसे साहित्य और टीवी इत्यादि देखें जो आनन्द में वृद्धि करे या अच्छी भावनाओ के साथ विवेक को जगाए। मेरे साथ जो घट रहा है उसके लिए केवल मैं जिम्मेदार हूँ, यदि फर्श पर मैं गिरा तो इसके लिए मेरी असावधानी जिम्मेदार है, फर्श पर गिरा पानी जिम्मेदार नहीं है और न मुझे गिराने में पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण जिम्मेदार है। शरीर जहां है वहीं  मन है। अर्थात भोजन कर रहे हो तो भोजन की टेबल पर मन है और पूरे होश से अवेयरनेस के साथ भोजन कर रहे हैं, ऑफिस में हैं तो ऑफिस के बारे में सोच रहे हैं और पूरी अवेयरनेस के साथ काम कर रहे हैं, पत्नी के साथ है तो केवल घर की सोच है, बॉस के साथ हैं तो केवल ऑफिस की सोच है। घर पर ऑफिस नहीं, और ऑफिस मे घर की सोच नहीं। जहां शरीर वहां ही मन। शरीर और मन की जितनी ज्यादा नजदीकी और सामंजस्य होगा, विचार सुलझे हुए होंगे,  उतना ही सूक्ष्म शरीर का ओजस बढ़ता जाएगा।

*कारण शरीर का वर्चस(स्वास्थ्य, एक्टिवनेस, अवेयरनेस) घटाने का उपाय*:-
स्वयं की चेतना के प्रति जागरूक मत रहो, केवल स्वयं को शरीर समझो। कभी ईश्वर के पास उपासना के लिये मत बैठो। जीवन के प्रति साक्षी भाव विकसित मत करो, बदहवास जियो। कभी भूलकर भी ध्यान मत करो, थाली की बैंगन की तरह कभी इधर कभी उधर लुढको। सोचो कि यह शरीर कभी नष्ट नहीं होगा, इसे ही सजाने, मेकअप करने, और इंद्रियसुख सुख में लिप्त रहो। सोचो कि तुम कोई भी गुनाह करो तुम्हें कोई नहीं देख रहा। लोकसेवा और आत्मियता विस्तार तो बिल्कुल मत करो। जहां स्वार्थ सधे बस वही करो। जिस वृक्ष की छाया में सुरक्षित हो उसी को काटो, प्रकृति का अंधाधुंध दोहन करो और लोगो को प्रताड़ित करो। स्वयंमेव कारण शरीर का वर्चस घट जाएगा और अंधेरे की ओर जीवन यात्रा चलने लगेगी।

*कारण शरीर का वर्चस(स्वास्थ्य, एक्टिवनेस, अवेयरनेस) बढाने/जगाने का उपाय*:-
स्वयं की चेतना के प्रति जागरूक रहो, केवल स्वयं को परमात्मा का अंश जानो और इस शरीर को आत्मा का वस्त्र मानो। संसार नश्वर है आत्मा शाश्वत है। नित्य ईश्वर के पास उपासना के लिये बैठो, ध्यान द्वारा परमात्म चेतना से जुड़ो। जीवन के प्रति साक्षी भाव विकसित करो। कभी भूलकर भी ध्यान भटकने मत दो, प्रत्येक पल होश में रहो, जीवन के रंगमंच पर तुम अभिनय कर रहे हो और ईश्वरीय कैमरे रिकॉर्ड कर रहे हैं, ईश्वर सब देख रहा है। लोकसेवा और आत्मियता विस्तार करो। कण कण में परमात्मा है इसे मानते हुए प्रकृति के कण कण से प्रेम करो।जिस वृक्ष की छाया में सुरक्षित हो उसी को पोषित करो, प्रकृति का संरक्षण करो और लोगो में खुशियां बाँटो। स्वयंमेव कारण शरीर का वर्चस बढ़ जाएगा और प्रकाश की ओर जीवन यात्रा बढ़ने लगेगी। आत्मा प्रकाशित होने लगेगी।

🙏🏻 *केवल तम में रमे तो सांसारिक और नर्क में जाओगे, तम और रज में सन्तुलन किये तो साधु बनोगे और स्वर्ग जाओगे और सत-रज-तम में सन्तुलन किये तो सन्त बन जाओगे और बैकुंठ जाओगे। जब इन तीनों से परे चले जाओगे तो मोक्ष मिल जाएगा - प्रकाश फिर प्रकाश में मिल जाएगा। फिर नर नारायण एक हो जाएंगे। बीज मिट जाएगा और वृक्ष बन जायेगा।*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न:- *दीदी मेरी उम्र 24 साल है अभी अविवाहित हूँ भारत की जनसंख्या के आकंड़े पर जब भी नजर पड़ती है मन बहुत दुःखी होता है

प्रश्न:-  *दीदी मेरी उम्र 24 साल है अभी अविवाहित हूँ भारत की जनसंख्या के आकंड़े पर जब भी नजर पड़ती है मन बहुत दुःखी होता है  चाहे हम या भारत सरकार कितनी भी योजनाये बना ले अगर जनसँख्या नियंत्रण नही की गयी तो सारी योजनाये किसी काम की नही रहेंगी सब व्यर्थ है। मैं अपने लेवल पर इसमें क्या योगदान दे सकता हूँ ? मार्गदर्शन करें।*

उत्तर - आत्मीय भाई, श्रेष्ठ आत्माएं ही श्रेष्ठ प्रश्न पूँछती है।

अब मानव जाति के विनाश के लिए प्रलय की आवश्यकता नहीं और न हीं युद्ध के गोली बारूद की आवश्यकता है। जनसंख्या विष्फोट स्वतः विनाश ले आएगा।

हमारे ग्राम में एक फ़ैमिली है, एक समय उनके पास 50 बीघे जमीन थी। उन्होंने पाँच पुत्र जन्म दिए और एक पुत्री। पुत्री को तो जमीन जायजाद में हिस्सा मिलता नहीं, अतः 10 - 10 बीघे जमीन पांचों बच्चो में बांट दिया। उन सबके भी  4 से 6 बच्चे हुए। अब उनके पोतों के भी बच्चे हो गए। अब आलम यह है कि उनके किसी भी बच्चे के पास खेती को जमीन ही नहीं बची और अब घर बनाने को भी जमीन हेतु झगड़े हो रहे हैं। शहर की तरफ़ कमाने गए, अब कुछ एक ठीक ठाक पोस्ट पर हैं लेकिन बाकियों में से अधिकतर मजदूर या ड्राइवर की जॉब कर रहे हैं।

अन्न ही नहीं होगा तो खरीदोगे कहाँ से? कृषि के बिना जीवन बचेगा कहाँ? जो कंकरीट के जंगल घर-मकान-फ्लैट बन रहे हैं, यह न छाया देंगे, न ऑक्सीज़न देंगे और न ही फ़ल फूल। बढ़ती आबादी, बढ़ता प्रदूषण, घटते संसाधन और कटते वृक्ष जीने के लिए श्वांस भी न मिलेगी। बेतहाशा जनसँख्या विष्फोट से भूख प्यास और बिना श्वांस वैसे भी सब सामूहिक मौत मरेंगे।

100 पदों की जॉब ओपनिंग के लिए लाख उम्मीदवार भारत मे अप्पलाई करते हैं। अगर 1000 भी 99% से 100% लाएं तो भी जॉब तो केवल 100 को ही मिलेगी। जॉब नहीं होगी, खेती भी नहीं होगी और काम भी न मिलेगा तो जीवन मे भोजन कैसे जुटेगा?

तुम व्यक्तिगत तौर पर लोगों में अवेयरनेस जगा सकते हो, जो बात तुम्हें समझ आ गयी है लोगों को समझा सकते हो।शादी के बाद केवल एक सन्तान रख कर अपने जीवन से लोगो के लिए आदर्श प्रस्तुत कर सकते हो।

सामूहिक तौर पर *जनसँख्या वृद्धि रोको कानून पास करवाने* हेतु मुहिम चला सकते हो। पम्पलेट छपवा के हस्ताक्षर अभियान स्कूल कॉलेज और कॉरपोरेट में चलाओ। *हमारे दो तो सबके दो*, सरकार  बाध्य होगी दो बच्चों से अधिक को गैर कानूनी बना देगी, यह तभी सम्भव होगा जब लगभग 5 करोड़ युवा लोगों के सिग्नेचर मिल जाएं। जिस ओर जवानी चलती है उस ओर जमाना चलता है।

युवा को जगाना होगा, आने वाली विभीषिका को मिलकर रोकना होगा। सामूहिक मौत को रोकने के लिए व्यक्तिगत सङ्कल्प, सामूहिक प्रयास चाहिए और ठोस कानून चाहिए।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *आध्यात्म और भौतिक को साधने का सरल उपाय क्या है?*गरुण पुराण का मृतक भोज सम्बन्धी क्या महत्व है?किसी कर्म के सार्थकता या सिद्धी में क्या अन्तर होता है?

प्रश्न - *आध्यात्म और भौतिक को साधने का सरल उपाय क्या है?*

उत्तर - आत्मीय बहन आपके तीनो प्रश्नों का उत्तर इसी पोस्ट में दे रही हूँ।

*आध्यात्म और भौतिक को साधने का सरल उपाय* - संसार की नश्वरता और आत्मा के अमरत्व का हमेशा भान रखना। हम इस संसार मे एक निश्चित अवधि के लिए आये है और हमें वापस भी जाना है। दुनियाँ के रंगमंच में अभिनय करते वक़्त अभिनय बेहतर करना है लेकिन स्वयं को एक अभिनेता समझना है, उस रोल के  चरित्र को स्वयं नहीं समझना है। जिस प्रकार रंगमंच पर सीन कोई भी चल रहा हो, निर्देशक देख रहा होता है और कैमरा रिकॉर्ड कर रहा होता है। उसी तरह हम जिस भी कार्य को कर रहे हैं ईश्वर देख रहा है और कर्म के कैमरे में रिकॉर्ड हो रहा है। ईश्वरीय निर्देशन में उनके निमित्त बनकर साक्षी भाव से जीना है और सांसारिक कार्य करने हैं, जो कुछ करें प्रभु को अर्पित करते चले।

तन संसार को और मन भगवान को समर्पित करके जीवन को साक्षी भाव से होशपूर्वक जीना ही जीवन को सार्थक बनाता है। स्वस्थ शरीर के लिए स्वास्थ्यवर्धक सन्तुलित आहार लें और योग-व्यायाम करें। स्वच्छ और स्वस्थ मन के लिए अच्छी पुस्तको स्वाध्याय करें और ध्यान करें। आत्मा के लिए ईश्वरीय उपासना से आत्मकल्याण और लोकसेवा से ईश्वरीय आराधना करें।

प्रश्न -  *गरुण पुराण का मृतक भोज सम्बन्धी क्या महत्व है? Please explain.*

उत्तर - *तपस्वी और लोकसेवी ब्राह्मण जो अपरिग्रही होते हैं। ऐसे लोग जिनके तप भण्डार अकूत भरे होते हैं*। इनके द्वारा जप प्रार्थना और यज्ञादि करवाने के बाद गृह में इन्हें भोजन कराने से मृतक आत्मा को शांति मिलती है और पुण्यलाभ मिलता है। इसे ऐसे समझें कि अमेरिका में इंडियन करेंसी नहीं चलती, ठीक इसी तरह सांसारिक मुद्रा मृत्यु के बाद नहीं चलती। अब इंडियन रुपये को एक्सचेंज करवाना हो तो किसी वैलिड फॉरेक्स एक्सचेंज ऑफिस में जाओगे, सहमत हो कि नहीं? इसी तरह तपस्वी जिसके पास पुण्य संग्रह हो और तप की एक अंश शक्ति जो मृतक को दे सके उसे ही मृतक भोज कराने का फ़ायदा है, सहमत हो.. तो मृतक भोज में उन लोगों को खिलाने का क्या फ़ायदा जो तपशक्ति विहीन है.. रिश्तेदार और स्वजातीय लोगों को मृतक भोज पैसे की बर्बादी ही हुई न...सहमत हो कि नहीं... *जो स्वयं तप का कंगाल है उसका दिया खोखला आशीर्वाद भला मृतक को क्या फ़ल देगा, ऐसा ही होगा मानो खा-पीकर गिफ्ट में ख़ाली लिफ़ाफ़ा कोई दे गया*? पुराणों में लिखे विधान सही हैं, क्योंकि उस वक्त *सभी तीन समय की ब्रह्म गायत्री संध्या, दो नवरात्र में 24 हज़ार गायत्री के अनुष्ठान और वर्ष में एक चंद्रायण व्रत के साथ सवा लाख गायत्री का जप अनुष्ठान करते थे। दैनिक यज्ञ करते थे, लोककल्याण में निःश्वार्थ लगे रहते थे। तप की पूंजी से लबालब भरे होते थे, इनके आशीर्वाद तप बल और ब्रह्म गायत्री बल युक्त होते थे*। इसलिए फलीभूत होते थे। यदि इतना तप करने वाले रिश्ते नातेदार, स्वजयीय या ब्राह्मण मिले उन्हें अवश्य मृतक भोज करवाये, अन्यथा पैसे मृतक भोज में बर्बाद न करें।

प्रश्न - *किसी कर्म के सार्थकता या सिद्धी में क्या अन्तर होता है?*

उत्तर - प्रत्येक कर्म का कर्म फ़ल होता है, वो अच्छा या बुरा दोनों होता है। तप कर्म करते हुए श्रेष्ठ तपस्वी आत्मज्ञानी बनना भी सिद्धि है, और चोरी करते हुए कुशल चोर बन जाना भी सिद्धि है। तप सार्थक/अच्छा कर्म है, और चोरी निर्रथक/पाप कर्म है।

कर्म का प्रकार सार्थकता है, अर्थात यदि आप किसी गरीब बालक को शिक्षा दान किये। यह हुआ कर्म की सार्थकता। यदि आप सेवा की भावना लेकर डॉक्टर की पढ़ाई कर रहे है, तो यह एक सार्थक कर्म हुआ। आत्मकल्याण हेतु नित्य उपासना-साधना-आराधना कर रहे है तो यह सार्थक कर्म हुआ। इत्यादि...यह रास्ता है।

सिद्धि अर्थात उस कार्य में कुशल हो जाना। पूर्णता प्राप्त कर लेना। वो गरीब बालक यदि पढ़लिख के योग्य बन गया तो वो आपके कर्म की सिद्धि है। यदि आप पढ़लिख कर कुशल डॉक्टर बन गए तो यह  कर्म की सिद्धि हुई। यदि नित्य उपासना जप-ध्यान से समाधि लग गयी और आत्मज्ञान मिल गया तो यह कर्म की सिद्धि हुई। इत्यादि...यह मंजिल है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *मृतक भोज से क्या मृतात्मा को सद्गति मिलती है? इस पर कोई सदवाक्य हो तो भेजिए*

प्रश्न -  *मृतक भोज से क्या मृतात्मा को सद्गति मिलती है? इस पर कोई सदवाक्य हो तो भेजिए*

उत्तर- मृतक भोज एक कुरीति है, बड़ी बड़ी दावत मृतक भोज के नाम पर सजातीय लोगों और इष्टमित्रों को खिलाने से आत्मा की मुक्ति का कोई लेना देना नहीं होता। जब अन्य के भोजन करने से हमारा पेट नहीं भरता तो अन्य के भोजन से हमे सद्गति भला कैसे मिलेगी? स्वयं विचार करें..

कुछ सदवाक्य:-

1- मृतक भोज एक कुरीति है, जिसका उन्मूलन अनिवार्य है।

2- मृतक के जाने के बाद उसके परिवार वाले शोकग्रस्त होते है, ऐसे में उन पर मृतक भोज का अतिरिक्त खर्च डालना एक अनुचित परम्परा है।

3- जिस आंगन में पुत्र शोक से,
 विलख रही हो माता,
वहां पहुंचकर मृतक भोज,
तुमको कैसे भाता?

4- जिस घर मे अपनो को,
 छोड़ गया हो पालनहारा,
आगे परिवार कैसे चलेगा,
वहां न कोई ठौर ठिकाना,
उस घर मे तेरहवीं का भोजन,
परिवार खुद भूखा रह के खिलाये,
ऐसी मृतक भोज की अंधी परम्परा,
बोलो क्या तुम्हें भाए?

5- मृतक भोज खाने से,
तप ऊर्जा नष्ट होगी,
मृतक परिवार पर,
मृतक भोज का,
अतिरिक्त बोझ डालने से,
प्राण ऊर्जा क्षीण होगी।

6- दूसरों के साथ वैसा व्यवहार मत करो, जैसा तुम्हें स्वयं के लिए पसन्द न हो।

7- किसी के दुःख में जब शामिल हो, तो उस पर मृतक भोज का अतिरिक्त भार मत डालो।

8- किसी की मृत्यु पर जब उसके परिवार को सांत्वना देने जाओ, तो उस घर पर मेहमान बनकर मेहमानी का भार मत डालो।

9- शोक संतप्त परिवार पर मृतक बोझ का अतिरिक्त भार डालना पाप है।

10- वर्तमान समय में मृतात्मा की सद्गति के लिए सात्विक दान-पुण्य के शास्त्रीय विधान के बजाय लोगों में मृतकभोज की ऐसी प्रथा का प्रचलन हो गया है जो प्राचीन या नवीन किसी सिद्धांत के अनुकूल नहीं है और जिससे मृतक की सद्गति का कुछ भी सम्बन्ध नहीं माना जा सकता। भूखे ग़रीब दरिद्र को भोजन खिलाने पर पुण्य मिलता है, सजातीय लोगों को मृतक भोज कर नाम पर दावत खिलाने से कोई पुण्य नहीं मिलता।

11- मृतक भोज प्रायः बड़ी-बड़ी दावतों के रूप में होते हैं जिनमे एक एक हज़ार, पांच पांच सौ तक सजातीय व्यक्ति और परिचित ईष्ट मित्र पूरी मिठाई पकवान खाने को लाए जाते हैं। उस अवसर पर ऐसा जान पड़ता है। मानो इस घर में कोई बड़ा हर्षोत्सव है किसी बच्चे का जन्म या विवाहोत्सव है, जिसके उपलक्ष्य में इतनी बड़ी संख्या में लोगों को खिलाया-पिलाया जा रहा है। लेकिन जो व्यक्ति मृतक भोज दे रहा होता है, वो शोकसंतप्त होता है और उसके ऊपर आर्थिक बोझ पड़ता है। साथ ही यह हल्ला गुल्ला लोगो का उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता।

12- मृतक परिवार की सहायता करें, उनकी परेशानी का सबब न बनें। इस महंगाई के जमाने मे उन्हें दोहरा कष्ट न दें, कर्ज़े में न डुबोएं।

13- आत्मविश्वास बढ़ाने वाला प्रोत्साहन मृतक के परिवार को दें, उन्हें सही राह बताकर दुःख से उबारें।

14- मृत्यु अटल सत्य है, जन्म के साथ ही मृत्यु का दिन निश्चित हो जाता है। अतः शोक न करें। जिसे हम जन्म और मृत्यु कहते है वो वास्तव में आत्मा की यात्रा है, शरीर रूपी वस्त्र बदलना है।

15- जब हमें अपने पिछले जन्म का कुछ याद नहीं, पिछले जन्म के माता पिता जीवन साथी पुत्र पौत्री कुछ भी याद नहीं, इसी तरह वो आत्मा जो चली गयी शरीर छूटने के बाद उसे हम याद नहीं है, वो जब जन्म लेगी तो हमारी तरह ही सबकुछ भूल जाएगी। अतः शोक न करें।

16- मृत्यु कोई न कोई बहाना लेकर ही आती है, एक्सीडेंट-बीमारी इत्यादि बहाने है शरीर छोड़ने के, अतः समय जो आत्मा को संसार मे रहने का जितना मिला था वो उतने वर्ष ही संसार मे रह सकेगी।

17- लाखों लोग रोज जन्मते है और लाखो लोग रोज मरते है, हम उनके जन्म पर न हर्षित होते हैं और न ही मृत्यु पर शोकाकुल होते है। हम केवल उस व्यक्ति की मौत पर शोकाकुल होते है जिनसे हमारा भावनात्मक लगाव होता है।

18- कर्म की गति गहन है, दूसरे के पढ़ने पर हमें ज्ञान नहीं होता, दूसरे के खाना खाने से हमारा पेट नही भरता, दूसरा कोई हमारे शरीर का दर्द नहीं सह सकता। तो फिर हमारी मृत्यु के बाद दूसरे के भोजन करने से मुझे मुक्ति कैसे मिलेगी? मृतक भोज से सद्गति नहीं मिलती बल्कि स्वयं जीवन मे अच्छे कर्म करने से मिलती है।

19- ज्ञान दान महादान है, पुस्तक लिस्ट जो ऐसे समय मे देनी चाहिए और पढ़नी चाहिए:-

1- मृतक भोज की क्या आवश्यकता ?
2- मरणोत्तर जीवन
3- मरने के बाद क्या होता है?
4- गहना कर्मणो गतिः(कर्म फल का सिद्धांत)
5- मैं क्या हूँ?

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday 24 December 2018

प्रश्न - * महापुरषों का अनुकरण नही अनुसरण करना चाहिए। Plz explain this*

प्रश्न - *बहन राम राम, महापुरषों का अनुकरण नही अनुसरण  करना चाहिए। Plz explain this*

उत्तर - आत्मीय भाई, पहले दोनों शब्दों के शाब्दिक अर्थ समझते है फ़िर इसका दर्शन समझेंगे:-

*अनुकरण* - अर्थात नकल, आकृति का नकल और अभिनय

*अनुसरण*- अर्थात उनके मार्गदर्शन, ज्ञान और आदेश के अनुसार निज चरित्र चिंतन व्यवहार बनाना और जीवन जीना। प्रकृति महापुरुषों की समझना और उनके जैसा जीवन जीना।

अनुकरण एक तरह से नक़लची बंदर की तरह कृत्य है, महापुरुष के शारीरिक हाव् भाव और मेकअप की नकल करना। महापुरुष गांधी जी का अनुकरण करते हुए एक धोती के दो टुकड़े करके पहनना, चरखा चलाना, बिना बालों के रहना, गोल चश्मे पहनना। अर्थात बाह्य आकृति और रहन सहन की हूबहू नकल करना *अनुकरण* कहलाता है।

गांधी जी की प्रकृति - देशभक्ति, दुःखी पीड़ितो की सेवा करना, सत्य बोलना और तपस्वी जीवन जीना, सत्य-अहिंसा का पालन करना ही उनका *अनुसरण* करना हुआ।

इसलिए कहा जाता है कि महापुरुषों का *अनुसरण* करना चाहिए।

महापुरुषों का *अनुकरण* करके खाना पूर्ति नहीं करना चाहिए, अभिनय नहीं करना चाहिए।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, हम हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं, यहां आए दिन लोग दारू पार्टी करते हैं, और पीने को मना करो तो तरह तरह के डायलॉग बोलते हैं। कभी कभी तो मन करता है कि पी कर देखूँ आख़िर लोग इसके पीछे पागल क्यों है? बहुत सारे द्वंद मन में उठते है, मार्गदर्शन करें..*

प्रश्न - *दी, हम हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं, यहां आए दिन लोग दारू पार्टी करते हैं, और पीने को मना करो तो तरह तरह के डायलॉग बोलते हैं। कभी कभी तो मन करता है कि पी कर देखूँ आख़िर लोग इसके पीछे पागल क्यों है? बहुत सारे द्वंद मन में उठते है, मार्गदर्शन करें..*

उत्तर - मेरे प्यारे और आत्मीय देश के भविष्य युवाओं, नशेड़ी शिकारी नशे का जाल फैलाएं है, तुम्हें उसमें नहीं फँसना है:-

सबसे पहले एक कहानी सुनो, एक आदमी दूसरे एक सैनिक के पत्नी के साथ व्यभिचार करते पकड़ा गया, उस स्त्री के सैनिक पति ने क्रोध में उसकी नाक काट दी। अब वो नककटा आदमी बड़ा घबराया और सोचा लोग मेरा मज़ाक उड़ाएँगे। मुँह ढँककर पीछे बैठकर एक धर्मसभा में सन्देश सुन रहा था, देखा लोग महंत जी का स्वागत कर रहे हैं, महंत की सारी बातें उसने एक महीने जा जाकर नोट कर ली। एक वृक्ष के नीचे गड्ढा करके फल इत्यादि खाने का सामान छुपा के बगुला भगत बनकर ध्यानस्थ होकर बैठ गया। एक बन्दे को नौकरी पर रख लिया, दोनों धूर्तों ने खेल शुरू किया। नौकर धूर्त शिष्य ने तरह तरह की कहानियां मनगढ़ंत सिद्धांत बताना शुरू किया, लोग जुटने लगे। वो धूर्त नककटा आंखे खोलता महंत वाली रटी रटाई बातें मिर्च मसाले लगाकर बताता और अंत मे कहता मित्रों भगवान को पाने में यह नाक बाधक है, इसे कटाने के बाद भगवान और भक्त दोनों एकाकार हो जातें है। उसकी चिकनी चुपड़ी बातों में लोग आते गए, उसने लोगो की नाक काटना शुरू कर दिया। जब लोग कहते भगवान नहीं दिखे, तो वो बोलता तुम ज्यादा पापी हो पराई स्त्री पर नजर रखते हो, यदि तुमने किसी से यह कहा कि तुम्हे भगवान नहीं दिखे तो लोग तुम्हे पापी समझ कर अपमानित करेंगे। अतः यदि अपमान से बचना चाहते हो तो चुप रहो मेरी हां में हां मिलाओ। इस तरह नक कटो का पूरा सम्प्रदाय बन गया। भांग चरस विभूति और प्रसाद में बंटने लगा। लड़कियों को भक्ति गीत में नचाने लगा, पूरा का पूरा ऐशोआराम का इंतज़ाम हो गया।

उसकी प्रसिद्धि राजा के कान में गयी, राजा भी उसकी बातों में आकर नाक कटवाने ही वाला था कि उसका चतुर मंत्री और पुरोहितं बोला,महराज जब आप भोजन करने से पहले मुझे चखाते है तो भगवान को पहले हम देखते है, ऐसा तो नहीं यह कोई और भगवान से मिला दे। पुरोहितं की नाक काट दी गयी, पुरोहितं पूरी तैयारी से आया था जब भगवान के दर्शन न होने पर उसने वही चाल चली कि तुम पापी हो तो उसने उस धूर्त की खूब पिटाई करवाई, उस सैनिक और उस स्त्री को भी पुरोहितं ने ढूंढ निकाला। सबकी गवाही हुई। उस धूर्त को दंडित किया गया।

यही हाल नक कटो नशेड़ियों का है, जो कॉरपोरेट, स्कूल, कॉलेज में ऐसे ज्ञान बांटते रहते है, अपने जैसे नशेड़ियों को तैयार करते हैं।

*फ़िल्म, मीडिया, टीवी सीरियल में  नशीले ब्रांड के सीन जानबूझकर कम्पनियां डलवाती है, और फंडिंग फ़िल्मो और टीवी सीरियल की करती है। बड़े बड़े लोकप्रिय हीरो हिरोइन बड़े बड़े बुद्धिजीवी को नौकरी देकर उनसे काम करवाया जाता है। इन नक कटे नशेड़ी का मानना है कि होश में रहना बेवकूफी है, नशा करने से भगवान की तरह परम ज्ञान और आनन्द की प्राप्ति होती है। अतः आओ बेहोशी मदहोशी में जियो और नककटे हाई फाई कहलाओ। आपको आश्चर्य होगा ड्रग्स बेचने वाले ख़ुद ड्रग्स नहीं लेते, बल्कि सबके सामने ग्लुकोज़ पावडर खाते है।*

देश के 80% शासक खुद नक कटे नशेड़ी है, वो भला इस धूर्तता को बंद करने का कानून क्यों बनाएंगे भला? इनका कुतर्क है कि लोग अपनी मर्जी से पी रहे है अतः इस नशे के व्यापार से हुए टैक्स से विकास होगा। ठीक वैसे ही कि एक देश के नागरिक के लाश पर दूसरे नागरिक को विकास का स्वप्न दिखाना।

*जब देश के युवा नशे की बदहवासी बेहोशी मदहोशी में अपने पैरों पर खड़े नहीं हो सकेंगे, तो विकास की सड़क पर चलेगा कौन?*

ये नक कटे नशेड़ी नए युवाओं को कुछ इस तरह बोलते है, जिनके सटीक जवाब दे सको, तो नककटे नशेड़ी आपकी राह में कभी परेशानी खड़ी नहीं करेंगे:-

1- यह लड़कियों को बोलेंगे तुम तो बड़ी बहन जी टाइप हो, तुम हाई फाई (नक कटी) सोसायटी नहीं समझोगी। कम कपड़े के साथ अंग प्रदर्शन और हाथ मे शराब का जाम ही आधुनिकता है।

उत्तर - बोलो बहन, *आपने दुनियाँ की किस पुस्तक में पढ़ा है और बड़े विचारक से सुना है यह ज्ञान? जिन फ़िल्मो और टीवी सिरियल से आपने नशे की दुनियां को नशे से हाई फाई होना सीखा है। वो तो रुपये देने पर भाँडो की तरह कहीं भी नाचने और अंगप्रदर्शन को तैयार हो जाते है। ये मदहोश और वेश्याओं जैसी हरकत आपका आदर्श हो सकती है, हमारा नहीं। भई हम तो बहनजी ही ठीक है।*

2- जो नशा नहीं करता वो कूल मर्द नहीं होता। नशा मर्दानगी की निशानी है? तुम तो बच्चे हो, अले अले छोटे बेटे के लिए दूध की बोतल लाओ।

उत्तर - *भाई, न तुम साइंटिस्ट हो और न ही डॉक्टर हो? मर्दानगी का सर्टिफिकेट किस आधार पर दे रहे हो? जिस फ़िल्मी पढ़ाई को करके नक कटी मर्दांनगी- नशे से समझा रहे हो। नशा करके कोई super cool नहीं बनता बल्कि super fool जरूर बनता है, तो भाई यह तुम्हे मुबारक हो। तुम्हारी माता ने शायद तुम्हें दारू का महत्त्व बताया होगा, हमारी माता ने दूध को ही शक्ति का श्रोत बताया है। हमारे हरियाणा के पहलवान भी दूध पीकर ही पहलवानी करते है, दारू से नहीं।*

3- कॉरपोरेट में रहना है तो पीना पड़ेगा।

उत्तर- *यदि दारू इतनी इम्पोर्टेन्ट है और प्रमोशन इस पर निर्भर है। तो काम करना बंद कर देते है और दारू पीना शुरू कर देते है, बस स्टाम्प पेपर पर लिखित गारण्टी दे दो, कि कॉरपोरेट के लिए काम की नहीं दारू की आवश्यकता है। भाई हमारे 11 करोड़ गायत्री परिवार में हज़ारो लोग कॉरपोरेट में विभिन्न पदों पर है। बिना ड्रिंक के शान से काम कर रहे है। मुझे यह बताओ यह उल्टी खोपड़ी का नककटा ज्ञान - कॉरपोरेट में रहना है तो पीना पड़ेगा आपको किसने दिया?*

4- कोई दोस्ती नहीं करेगा, अकेले रह जाओगे।

उत्तर - *नक कटे नशेड़ियों की ज़हरीली दोस्ती से अकेला रहना बेहतर है। कम से कम चेहरे पर हंसी और सम्मानित नाक तो रहेगी।*

5- पण्डित जी आ गए चलो भाई फिर से ज्ञान परोसेंगे। हमे आपके ज्ञान की जरूरत नहीं।

उत्तर - *अच्छी बात है, कम से कम यह तो मानते हो हम ज्ञानी पण्डित है तभी शराब नहीं पीते, तुम शराब पीकर अज्ञानता कर रहे हो।*

6- चार दिन की जिंदगी है, ऐश कर लो

उत्तर - *नशे से जिंदगी कितने दिन चलेगी और कितनी जल्दी ऐश(राख) बनेगी, यह तो समय बता ही देगा।*

7- होश वालो को खबर क्या मदहोशी क्या चीज़ है?

उत्तर - *सच बात है, हमें मदहोशी का नहीं पता और तुम्हें होश का नहीं पता। क्योंकि सूर्य को नहीं पता कि अंधेरा क्या चीज़ है। हंस को नहीं पता कि पॉटी का स्वाद क्या चीज़ है?*

8- एक बार पीकर देखो, तब आनन्द क्या है पता चलेगा।

उत्तर - *ध्यान करके अभ्यस्त होकर देखो, रियल आनन्द क्या है पता चलेगा। तुम्हारा नशा वाला आनन्द जादूगर का हथेली पर सरसों उगाना है, जिससे तेल नहीं निकलता सब्जी नहीं बनती। केवल सरसो के पौधे का भ्रम है। हमारे ध्यान किसान की खेती की तरह है, वक्त लगेगा लेकिन असली सरसों निकलेगा। जिससे तेल निकलेगा और सब्जी भी बनेगी। स्थाई आनन्द। बस 6 महीने गायत्री मंत्र जप और ध्यान करके देखो। इसे प्राचीन ऋषि और आल इंडिया मेडिकल असोसिएशन भी प्रमाणित कर चुके है। तुम्हारी नशा से आनन्द की बातों का तो कोई प्रमाण भी उपलब्ध नहीं। मेडिकल साइंस तो इसके नुकसान ही गिनाता है।*

नित्य गायत्री मंत्र जप, ध्यान और स्वाध्याय कीजिये, प्राण ऊर्जा जगाकर शक्तिमान बनिये और इन  नककटे अंधेरे की ताकत का तथ्य तर्क प्रमाण और उच्च मनोबल से मुकाबला कीजिये।

पुस्तक - मद्यपान से अपार हानि दोस्तो को बाँटिये।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Sunday 23 December 2018

प्रश्न - *दी, सद्चिन्तन की क्यों आवश्यकता है? चलित युगसाहित्य पुस्तकालय क्यों चलायें, मनुष्य में सद्चिन्तन जगाने में यह कैसे सहायक है? अपने विचार दें..*

प्रश्न - *दी, सद्चिन्तन की क्यों आवश्यकता है? चलित युगसाहित्य पुस्तकालय क्यों चलायें, मनुष्य में सद्चिन्तन जगाने में यह कैसे सहायक है? अपने विचार दें..*

उत्तर - आत्मीय भाई, आपके प्रश्न का उत्तर देने से पहले मेरे चार प्रश्न का उत्तर आप दीजिये:-

1- *यदि मुझे मेरे आंगन में कॉकरोच, कीड़े-मकोड़े, रोगाणु-विषाणु, फंगस को बुलाना है तो मुझे क्या करना होगा?*

2- *चींटी बुलाना है तो मुझे क्या करना होगा?*

3- *तितलियों और भौंरो को बुलाना है तो मुझे क्या करना होगा?*

4- *पक्षियों को बुलाने के लिए क्या करना होगा?*

अब तुम बोलोगे ये कैसा प्रश्न है दी, इसके उत्तर तो बड़े आसान है, कोई इनविटेशन कार्ड छपवा के प्रिंट करने की जरूरत नहीं है, कोई फोन या ईमेल करने की जरूरत नहीं निम्नलिखित उपाय काफी होंगे।

👉🏼 पहले केस में गन्दगी, सड़ी-सब्जी, कूड़ा करकट रख तो स्वतः कॉकरोच, कीड़े-मकोड़े, रोगाणु-विषाणु, फंगस आ जाएंगे।

👉🏼 दूसरे केस में गुड़ या मिठाई रख दो स्वतः चींटी आ जायेगी।

👉🏼 तीसरे केस में सुंदर सुंदर रतग बिरंगे पुष्प के पौधे लगा दो स्वतः तितली भौरें आ जाएंगे।

👉🏼 चौथे केस में रोज दाने डालो पक्षी आ जाएंगे।

हाँजी, आपने सही उत्तर दिया, इसी में आपके प्रश्न युगसाहित्य के  चलित पुस्तकालय का उत्तर छिपा है।

हम सभी मनुष्य आकृति से मनुष्य और प्रकृति से भिन्न भिन्न है- जैसे कोई कॉकरोच है, तो कोई चींटी, कोई चूहा, कोई बिल्ली, कोई कुत्ता, कोई पक्षी, कोई पशु और कोई मनुष्य प्रकृति का होता है इत्यादि। जन्म से मनुष्य की आकृति मिलती है और पशु की प्रकृति मिलती है। मनुष्य की प्रकृति - मनुष्यता/इंसानियत जीवन साधना द्वारा प्राप्त की जाती है।

जैसे ही आप चलित पुस्तकालय/ज्ञान रथ/ झोला पुस्तकालय लेकर युगसाहित्य की साहित्य प्रदर्शनी करते हैं, जो मनुष्य प्रकृति के ज्ञान पिपासु होंगें वो स्वतः आप तक आएंगे। उनके लिए कोई कार्ड छपवाने या फोन-ईमेल कर बुलाने की आपको जरूरत नहीं पड़ेगी। जो समस्या में उलझे होंगे और समाधान ढूंढ रहे होंगे वो स्वतः आएंगे। जिनके अंदर मनुष्यता का बीज होगा, देवत्व का बीज होगा वो आपतक आएंगे। युगसाहित्य से स्वयं का निर्माण करेंगे, फिर परिवार निर्माण और अंत मे समाजनिर्माण में सहभागी होंगे।

मन्दिर में केवल उसी धर्म और देवी-देवता को पूजने वाले लोग ही आते हैं। लेकिन चलित पुस्तकालय ज्ञान मन्दिर में सभी जाति धर्म के ज्ञान पिपासु और समाधान चाहने वाले लोग आएंगे।

शक्तिपीठ का वजूद ज्ञान मन्दिर से ही है, साहित्य स्टॉल शक्तिपीठ में तो होना ही चाहिए साथ में प्रत्येक शक्तिपीठ कम से कम दो ज्ञानरथ, करीब दस से बीस चलित पुस्तकालय ज्ञान मन्दिर, करीब दस से बीस छोटे बड़े साहित्य स्टॉल और क़रीब 50 से 60 झोला पुस्तकालय चलाएगा तब जाकर उस क्षेत्र में युगनिर्माण नज़र आएगा। युगनिर्माण का आधार ही विचारों में क्रांति है, विचारों में क्रांति तो युगसाहित्य के स्वाध्याय से ही सम्भव होगी।

*आज समाज में उतपन्न समस्याओं और बीमारियों की जड़ की गहराई में जाओगे तो पाओगे कि मनुष्य का विकृत चिंतन ही समस्याओं की जड़ है। इसका समाधान सद्चिन्तन रूप में युगसाहित्य स्वाध्याय से ही मिलेगा।*

उपरोक्त जो प्रश्न पूँछा था उसे मन  के आँगन से सम्बन्ध कर सोचे तो पाओगे कि...

🐝 कचरा युक्त विकृत चिंतन मन मे करो स्वतः व्यक्तित्व कचरा बन जायेगा, मन अशांत हो जाएगा और आसपास विकृत घटनाएं स्वतः घटने लगेंगी, मनुष्य के विचारों की दुर्गंध उसके कार्य तक पहुंच के समाज को विकृत और अशांत करेगी।

*योग-प्राणायाम, गायत्री मंन्त्र जप- ध्यान -स्वाध्याय मत करो, पशुओं की तरह खाओ, टीवी सीरियल हिंसक, नशा और व्यभिचार को प्रेरित करने वाला नित्य देखो, नशा करो,  बुरी संगत में रहो, इतना काफ़ी है दिमाग़ में विकृत चिंतन उपजाने के लिए, जिससे जीवन स्वतः नर्क बन जाएगा, मन अशांत होगा, शरीर बीमार होगा, विकृत भ्रष्ट चिंतन घर को नरक और समाज को भ्रष्ट बना देगा।*

😇अच्छे विचारों युक्त सदचिंतन मन मे करो स्वतः व्यक्तित्व अच्छा बन जायेगा, मन शांत हो जाएगा और आसपास अच्छी घटनाएं स्वतः घटने लगेंगी, मनुष्य के विचारों की सुगंध उसके कार्य तक पहुंच के समाज को व्यवस्थित, समृद्ध और  शांत करेगी।

*योग-प्राणायाम, गायत्री मंत्रजप-ध्यान -स्वाध्याय नित्य करो, स्वास्थ्य कर मनुष्य की तरह खाओ, टीवी सीरियल हिंसक, नशा और व्यभिचार को प्रेरित करने वाले अनावश्यक मत देखो, नशा मत करो, अच्छी संगत में रहो, इतना काफ़ी है दिमाग़ में सद्चिन्तन  उपजाने के लिए, जिससे जीवन स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन के साथ स्वतः सुंदर बन जाएगा,  सद्चिन्तन से घर धरती का स्वर्ग बनेगा और समाज को श्रेष्ठ बना देगा।*

यह सद्चिन्तन देने का महान कार्य युगसाहित्य द्वारा जो भी करेगा वो पुण्य का भागीदार बनेगा।  किसी क्राइम को प्रेरित करने के लिए भी दण्ड मिलता है, ठीक उसी तरह अच्छे कार्य करने के लिए प्रेरित करने हेतु भी पुण्य मिलता है।

उन सभी भाई बहनों के चरणों मे नमन वंदन जो चलित पुस्तकालय, ज्ञानरथ, साहित्य स्टॉल और झोला पुस्तकालय चला कर समयदान कर रहे हैं , उनके चरणों मे भी प्रणाम जो अंशदान देकर इन कार्यो को गति दे रहे हैं। आप सब युगनिर्माण योजना- मनुष्य में देवत्व जगाने हेतु और धरती पर स्वर्ग अवतरण हेतु सबसे बड़ा कार्य कर रहे हैं। शत शत नमन चरण वंदन🙏🏻

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
https://awgpggn.blogspot.com

प्रश्न - *ठंड के मौसम में 45+ लोगों का या ज्यादा वृद्ध लोगों का ठंड से बचाव कैसे करें? ख़ासकर जिन्हें जोड़ो, पैरों और शरीर में दर्द है। मार्गदर्शन करें।*

प्रश्न - *ठंड के मौसम में 45+  लोगों का या ज्यादा वृद्ध लोगों का ठंड से बचाव कैसे करें? ख़ासकर जिन्हें जोड़ो, पैरों और शरीर में दर्द है। मार्गदर्शन करें।*

उत्तर - आत्मीय बहन, ठंड के मौसम में कुछ निम्नलिखित उपाय 45+ उम्र के लोगो के लिए अपनाएं:-

1- लौंग को मिक्सी में बारीक पीस लें और एक चुटकी लौंग पावडर(करीब 2 से 3 लौंग का अंदाज से) एक कप या ग्लास में हल्के गर्म पानी मे डालकर सुबह और रात को सोने से पहले पियें।

2- लहसन देशी को अत्यंत बारीक काट के गर्म पानी से सुबह एक बार दवा की तरह ले लें।

3-  जिसे भी सर्दी ज्यादा लग रही है या सर्दीसे तबियत ठीक नहीं; या स्वस्थ भी हो वो भी ठंड के समय केवल *सूर्य भेदी प्राणायाम नित्य करें;*(कम से कम 10 से 20 बार)

*दाहिनी नासिका से श्वांस गहरी लेनी है (inhale) और बाईं, नासिका से धीरे धीरे श्वांस छोडना है(exhale)*।

4- हमारे शरीर को 1% कैल्शियम की जरूरत होती है, शरीर के दैनिक कार्य हेतु। यदि यह आपूर्ति आप बाहर कैल्शियम युक्त भोजन से नहीं करेंगे, तो शरीर आपकी हड्डियों से वो कैल्शियम लेता जाएगा। कैल्शियम की कमी जोड़ो और पैर में दर्द का कारण बनेगी। दुनियाँ में जितनी भी कैल्शियम की दवाई है उसके मूल में चूना ही होता है। पान की दुकान से चूना ले आइये। सरसों के दो दाने बराबर (अत्यंत थोड़ा) नित्य गर्म पानी मे मिलाकर या दाल के पानी मे मिलाकर पीने को दीजिये।  पैर स्वस्थ हो जाएंगे।

5- सरसों के तेल को हल्का गर्म करके या अन्य जोड़ो की मालिश वाले तेल से पैरों की हल्के हाथों से स्वयँ मसाज करके, थोड़ा तेल नाभि में लगाकर सोएं।

6- सुबह प्रज्ञा योग में जो भी आसानी से हो जाये कर लें, गणेश योगा (सुपर ब्रेन योगा) कम से कम 10 बार करें।

7- नई मशीन हो या पुरानी मशीन यदि नित्य नहीं चलेगी तो जंग लगेगा ही।इसी तरह युवा हों या वृद्ध जो कम से कम 3 किलोमीटर रोज नहीं चलेंगे उनके पैर जंग खाएंगे ही। अतः जब भी धूप निकली हो आसपास टहलने जाएं। नहीं तो घर मे ही दस बीस चक्कर लगा लें।

8- शरीर के रोगों की जड़ पेट और मन मे होती है, अतः दोनों को साफ़ रखें। पेट के लिए सन्तुलित आहार लें, और मन के लिए सन्तुलित विचार(स्वाध्याय) द्वारा लें। नित्य स्वाध्याय अवश्य करें। रात को सोने से पूर्व गुनगुना पानी पीकर और अच्छे विचार स्वाध्याय द्वारा पढ़कर सोएं। सुबह पेट और मन दोनों हल्का रहेगा। पेट में कब्ज ज्यादा हो तो त्रिफला वटी या लघु हरीतकी वटी दो गोली रात को लेकर सोएं।

9- दिन में कम से कम 324 बार अर्थात 3 माला गायत्री की जरूर जपें। प्राचीन ऋषि, आधुनिक विज्ञान और ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन ने सिद्ध कर दिया है, बौद्धिक कुशलता और मानसिक संतुलन में गायत्री मंत्र बहुत उपयोगी है। यह प्राण ऊर्जा शरीर की बढ़ाता है। प्राण ऊर्जा घटने से ठंड ज्यादा लगती है, प्राण ऊर्जा बढ़ने पर ठंड कम लगती है।

10- सुबह उठते ही बिस्तर पर बैठे बैठे 5 चीज़ों के लिए ईश्वर को धन्यवाद दीजिये, जो ईश्वर की कृपा से आपको मिली है। कोई यदि अंगूठी दे तो उसको कई बार धन्यवाद देते हो, लेकिन जिस ईश्वर ने तुम्हें हाथ और उंगली दिया उसे धन्यवाद देना भूल जाते हो। मोबाईल गिफ्ट करने वाले को धन्यवाद देते हो, लेकिन जिस मोबाइल को चलाने के लिए उंगली, देखने के लिए आंख, सुनने के लिए कान, बात करने के लिए मुंह देने वाले उस ईश्वर को रोज धन्यवाद देना क्यों भूल जाते हो? अतः ईश्वर को धन्यवाद दो, जो उसने दिया उसे खरीदने की औकात हम सबकी नहीं है। रात को सोते वक्त भी उसे धन्यवाद देना न भूलें क्योंकि बिस्तर आपका है लेकिन नींद परमात्मा ही देगा। उसे हमेशा याद रखें।

11- खुशियां बांटने से बढ़ती है, ख़ुशी की गर्मी हो तो ठंड नहीं लगती।

12- स्वयं के साथ एकांत में एक घण्टे बिताएं, बिना फ़ोन और टीवी के, स्वयं के भीतर जगत को समझने की कोशिश करें। युगऋषि कहते हैं कि अंतर्जगत की ऊर्जा से जुड़ने के बाद ज़ीरो डिग्री ठंड में भी योगियों की तरह रहना सम्भव होगा।

दवाओं पर जितनी निर्भरता कम रखेंगे उतना सुखी रहेंगे। मन के हारे हार है मन के जीते जीत।

कुछ पुस्तकें जो आपकी मदद करेंगी:-

1- बिना औषधि के कायाकल्प
2- स्वस्थ रहने के सरल उपाय
3- प्रज्ञा योग
4- व्यक्तित्व विकास की उच्चस्तरीय साधनाएं
5- जीवेम शरदः जीवेम शतम

सभी वरिष्ठों तक यह मैसेज पहुंचाए। जब स्वस्थ हो जाये तो मुझे फीडबैक जरूर दें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday 21 December 2018

प्रश्न - *कुत्ते, बिल्ली, चूहे, सर्प या अन्य जहरीले जीव के काटने पर उपचार का सर्वोत्तम तरीका कौन सा है? एलोपैथी, आयुर्वेद या होमियोपैथी?*

प्रश्न - *कुत्ते, बिल्ली, चूहे, सर्प या अन्य जहरीले जीव के काटने पर उपचार का सर्वोत्तम तरीका कौन सा है? एलोपैथी, आयुर्वेद या होमियोपैथी?*

उत्तर - ज़हरीला जीव वो चाहे कोई भी हो जैसे ही काटेगा तो वो सीधा रक्त में प्रवेश करेगा, बड़ी तेजी से वो हृदय तक पहुंच के समस्त शरीर मे पहुंच कर स्नायुतन्त्र को पैरालाइज करेगा और दिमाग़ में पहुँचकर मति भ्रम (फ़ोबिया) विभिन्न प्रकार के उतपन्न करेगा। दिमाग़ के डिस्टर्ब होते है, शरीर पर से कंट्रोल खत्म होने लगता है।

जहर को जहर की काटता है ठीक वैसे ही  जैसे लोहा ही लोहे को काटता है।

👉🏼 बिना देरी किया जहां जहरीले जीव ने काटा है ठीक उसके ऊपर जोर से कोई कपड़े या रस्सी से बांध दें, जिससे रक्त ऊपर की ओर न बढ़े और तुरन्त नज़दीकी *एलोपैथी के डॉक्टर* के पास जाएं। चिकित्सक की सलाह से उपचार करवाये। कुत्ते के काटने पहले 5 इंजेक्शन लगते थे अब केवल तीन 3 डोज़ के इंजेक्शन से काम हो जाता है। विभिन्न कम्पनियां इसे बनाती है, सबसे सस्ता Rabipur का 350 रुपये का एक इंजेक्शन होता है और करीब 2000 रुपये में ट्रीटमेंट हो जाता है महंगा करीब 5000 के आसपास आता है।

👉🏼 *आयुर्वेद की दवाएं पाचनतंत्र में पचती है*, तब पहले रस👉🏼 फिर रक्त बनता है और हृदय तक पहुंचता है। यह प्रक्रिया वक्त लेती है। अतः जहरीले जीव के काटने पर कम उपयोगी है।

👉🏼 होमियोपैथी जहरीले जीव के काटने के इलाज में सबसे तेजी से काम करता है। सबसे सस्ता उपचार भी है।  Hydrophobinum (200) नामक औषधि 125 रुपये में आती है,  इसका रेफरेन्स जर्मन होमियोपैथी के डॉक्टर रिक्वेज( Dr Reckeweg ) की साइट पर भी है।

यह औषधि बावले/पागल कुत्ते की राल से शक्तिकृत/शोधित की गई है। लुइस पैस्टियर ( Louis Pastuer जिनके नाम से कसौली आदि स्थान में बावले कुत्तों के काटे हुए मनुष्यों की चिकित्सा होती है ) द्वारा इस विष की परीक्षा होने के 50 वर्ष पूर्व, 1833 साल में होमियोपैथिक चिकित्सक डॉक्टर हेरिंग ने इसके गुण की परीक्षा करके चिकित्सा जगत में इसका प्रचार किया था। इस औषधि का प्रभाव बहुत ही गम्भीर, दीर्घकाल, स्थाई और निश्चित है।

यह औषधि की ड्रॉप्स जिह्वा पर लेते ही बड़ी स्पीड से स्नायुतन्त्र को प्रभावित करती है, और जहर के प्रभाव को खत्म करने के साथ साथ उसके कारण उपजे अन्य बीमारियों को भी ठीक करती है:-

यह औषधि बावले कुत्ते की राल से शक्तिकृत की गई है। लुइस पैस्टियर ( Louis Pastuer जिनके नाम से कसौली आदि स्थान में बावले कुत्तों के काटे हुए मनुष्यों की चिकित्सा होती है ) द्वारा इस विष की परीक्षा होने के 50 वर्ष पूर्व, 1833 साल में होमियोपैथिक चिकित्सक डॉक्टर हेरिंग ने इसके गुण की परीक्षा करके चिकित्सा जगत में इसका प्रचार किया था। इस औषधि का प्रभाव बहुत ही गम्भीर, दीर्घकाल, स्थाई और निश्चित है।

*हाइड्रोफोबीनम  द्वारा निम्न मुख्य लक्षण का उपचार होता है*:-

💉पानी उबलने या बहने का शब्द सुनने या बहता हुआ पानी देखने से सारी तकलीफों का बढ़ जाना इसका सर्व प्रधान लक्षण है।
💉पानी देखकर डर जाने पर बावले कुत्ते के काटे से पागल हो जाने के डर पर, इस औषधि का प्रयोग करने से विशेष लाभ होता है।
💉सिर दर्द – कुत्ते के काटने से चाहे कुत्ता पगला हो या न हो, बहते हुए पानी की आवाज या चमकीली रौशनी से सिर-दर्द की वृद्धि होती है।
💉बहता हुआ पानी देखने पर बार-बार पेशाब करने की प्रबल इच्छा इसका एक अदभुद लक्षण है। पेशाब थोड़ा और धुंधले रंग का होता है, पेशाब में शक़्कर रहती है।
💉सूरज की गर्मी सहन नहीं होता।
💉ऐंठन – पानी या आइना पर चकाचोंध या अक्स पड़ी हुई रौशनी से, पानी के समान किसी पतले पदार्थ के बारे में सोचने से, जरा भी छू जाने या हवा की झोंक से ऐंठन होने पर, लाइसीन से फायदा होगा।
💉पानी या पतले पदार्थ के निगलने में तकलीफ। बार-बार निगलने की इच्छा रहती है और हलक में दर्द होता है।
💉मन उत्तेजक और दुःखदाई खबर से हमेशा सब तकलीफें बढ़ जाती है।
💉घाव के रंग में कुछ नीलापन।
💉यौन रोगों की विक्षप्तता का उपचार।
💉 पागल कुत्ता, सर्प, बिल्ली, चूहा इत्यादि ज़हरीले जीवो के काटने का उपचार

Reference Site - [12/21, 4:25 PM] Sweta - awgpggn.blogspot: https://www.myupchar.com/medicine/hydrophobinum-dr-reckeweg-p37125116#use_dose

 http://www.jkhealthworld.com/hindi/हाइड्रोफोबीनम
 https://www.google.co.in/amp/s/www.homeopathicmedicine.info/lyssin-hydrophobinum/amp/

यूट्यूब लिंक - राजीव दीक्षित ने भी होमियोपैथी की इस दवा से कुत्ते बिल्ली चूहे सर्प के काटने से जहर मुक्ति बताया है।-
https://youtu.be/ox49i-K9iHU

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *जीवन जीने का सबसे बेहतर बुद्धिमानी युक्त तरीका क्या है? और जीवन जीने का सबसे घटिया और मूर्खता पूर्ण तरीका क्या है?*

प्रश्न - *जीवन जीने का सबसे बेहतर बुद्धिमानी युक्त तरीका क्या है? और जीवन जीने का सबसे घटिया और मूर्खता पूर्ण तरीका क्या है?*

उत्तर - आत्मीय भाई, बहुत अच्छा प्रश्न है।


*जीवन जीने का सबसे बेहतर बुद्धिमानी युक्त तरीका*:-

जीवन के प्रति समझ विकसित करना, मनुष्य जीवन की गरिमा समझना, दृष्टिकोण जीवन के प्रति सकारात्मक रखना। हमारे पास जो है उसे सम्हालना और उसके लिए ईश्वर को धन्यवाद बोलना। उदाहरण - आंखों को धन्यवाद दो दृश्य दिखाने के लिए और ईश्वर को धन्यवाद दो आंखों में रौशनी देने के लिए, आंखे देने के लिए धन्यवाद देने के साथ साथ आंखों की केयर नियमित करना। इसी तरह जो कुछ भी हमारे पास है उसका ज्ञान होना भी जरूरी है, उसे व्यवस्थित रखना भी जरूरी है, जिसने दिया उसे धन्यवाद देना भी जरूरी है।🙏🏻

 हंसबुद्धि रखना अर्थात जैसे हंस की मृत्यु भले हो जाये लेकिन जीवन हेतु मल-मूत्र नहीं खाता। उसी तरह कितनी भी टेंशन या विपरीत परिस्थिति आ जाये लेकिन फिर भी गलत राह न चुने, नशे इत्यादि के कुचक्र में न फंसे।

क्या कहेंगे लोग इसकी परवाह न करते हुए सूर्य की तरह अपना कर्तव्य निभाना।

 एक श्रेष्ठ जीवन लक्ष्य चुनना, उस लक्ष्य प्राप्ति हेतु अपनी योग्यता-पात्रता बढ़ाना और उसे प्राप्त करने के लिए प्लानिंग के साथ प्रयास करना ही बेहतर और बुद्धिमत्तापूर्ण जीवन जीने का तरीका है।

ऐसे लोग आधी ग्लास खाली और आधी ग्लास जल से भरी हो, तो भी यह समझ रखते है कि वास्तव में ग्लास आधी जल से और आधी हवा से भरी है। इस संसार में कही भी कोई ख़ालीपन नहीं है। यह अपनी जिंदगी के लिए केवल स्वयं को जिम्मेदार मानते हैं।  मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है, इस पर दृढ़ विश्वास रखते है। अच्छा नज़रिया रखते ही नज़ारे अच्छे दिखते हैं।

👉🏼 *जीवन जीने का सबसे घटिया और मूर्खता पूर्ण तरीका* -

जीवन की उपेक्षा करना, क्या नहीं मिला है उसे सोचते रहना- जैसे आधी ग्लास भरी और आधी ग्लास खाली हो, तो केवल खाली ग्लास का इतना रोना रोने में व्यस्त रहे कि आधी ग्लास जल को भी जमीन और गिरा कर प्यासे रह गए।

जीवन लक्ष्य होता नहीं है, जो पाना चाहते है उसके लिए योग्यता है भी या नहीं चेक नहीं करते, योग्य बनने का प्रयास नहीं करते, लकीर के फ़कीर बनकर सबसे सफल होने का शेखचिल्ली सा ख्वाब देखते है, स्वयं को सबसे ज्यादा बुद्धिमान मानते है।

पैसा पैसा करने में अमूल्य स्वास्थ्य की पहले अवहेलना करते है, फिर स्वास्थ्य पाने के लिए पैसा पानी की तरह बहाते है।

ख़ुशी की बात हो तो भी खुलकर हंस नही सकते खुशी नहीं होते। इस वर्ष प्रमोशन मिल भी गया तो अगले वर्ष मिलेगा की नहीं उसकी टेंशन शुरू कर देते है। जो इन्हें मिल गया उसे कभी एन्जॉय ही नहीं करते बस जो नहीं मिला उसका रोना रोते रहते है।

दूसरों के प्लेट के भोजन की ईर्ष्या में स्वयं की प्लेट का भोजन ठीक से नहीं कर पाते, हमेशा अशांत और अतृप्त रहते है।

न यह स्वयं चैन से रहते है और न दूसरों को चैन से बैठने देते है। चील की तरह आकाश में उड़ते हुए भी दृष्टि मृत पशु की लाश और मांस पर ही केंद्रित रहती है।

मन के गुलाम ऐसे लोगो को ईश्वर से सदा शिकायत रहती है, पानी बरसे तो शिकायत और न बरसे तो शिकायत, ठंड में भी शिकायत और गर्मी में भी शिकायत। ऐसे लोग यदि क्रिकेट के मैदान में हों तो मैच हारने के लिए अंपायर, टीम सदस्य, पिच, गेंद, और जनता सबको जिम्मेदार ठहरा देंगे, बस केवल खुद भी जिम्मेदार है यह भूल जाते है।

नशे द्वारा जीवन को भूलना चाहते है। या अन्य उपाय से इंद्रियों की तृप्ति में लगे रहते है।

ऐसे लोग अपनी जिंदगी के लिए दूसरों को जिम्मेदार मानते है। नज़रिया घटिया रखते है इसलिए कभी नज़ारा बढ़िया देख नहीं पाते। यही जीवन जीने का जीवन जीने का सबसे घटिया और मूर्खता पूर्ण तरीका  है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

*जीवन जीने की कला सीखने के लिए पढ़ें युगऋषि लिखित पुस्तक - 📖जीवन जीने की कला और 📖दृष्टिकोण ठीक रखें।*

Wednesday 19 December 2018

प्रश्न - *युवाओं में बढ़ती नशे की लत के पीछे कारण क्या है? इससे बचाव के उपाय बताएं?*

प्रश्न - *युवाओं में बढ़ती नशे की लत के पीछे कारण क्या है? इससे बचाव के उपाय बताएं?*

उत्तर - आत्मीय भाई, कुछ निम्नलिखित कारण युवाओं को नशे की ओर खींचते हैं:-

👉🏼मनुष्य की प्रकृति कुछ इस तरह बनी हुई है कि वो सुख की चाह करता है और दुःख से छुटकारा पाना चाहता है, जब भी वो असफ़ल होता है या दुःखी होता है, तो वर्तमान परिस्थिति से पलायन करना चाहता है भूलना चाहता है। दो मार्ग है उसे दुःख को कुछ क्षण भुलाने का एक है अध्यात्म और दूसरा नशा।   अध्यात्म तो समस्या का समाधान देता है, लेकिन यदि बच्चा अध्यात्म की शरण मे नहीं है तो वो नशा चुनेगा।

नशे से वो कुछ क्षणों के लिए वर्तमान से दूर हो जाता है, अतः बार बार भूलने के लिए बार बार नशा करता है। बच्चे के घर मे माता पिता जब अत्यधिक झगड़ते हो या उन्हें समय नही देते तो भी बच्चे नशे की तरफ झुकते है।

👉🏼 मनुष्य के अंदर बंदर के समान नक़लची स्वभाव होता है, मन जिसे पसन्द करता है उसका नकल करने लगता है। उदाहरण माता के चाल चलन और साज सृंगार की नकल लड़कियां और पिता के चाल चलन व्यवहार और नशे की नकल बच्चे स्वयंमेव करने लग जाते है। प्रिय दोस्त की नकल करते हुए भी नशे के प्रति झुकाव होता है।

👉🏼 फिल्में और टीवी सीरियल नशे की ओर युवाओं को प्रेरित करते हैं। वो बच्चों को सिखाते है कि दुःख है तो नशा करो, ख़ुश हो तो नशा करो, पार्टी है तो नशा करो, कोई भी अवसर हो नशा करो। बच्चो को लगता है हीरो बोल रहा है और हीरोइन बोल रहे है तो यह ज़िंदगी जीने का सबसे बेहतर तरीका होगा। लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य कोकोकोला पेप्सी का विज्ञापन देने वाले इसे नहीं पीते, शराब और नशे का विज्ञापन करने वाले खुद इसका सेवन नहीं करते। नशे का व्यापारी और कार्यकर्ता इनका सेवन नहीं करते।

👉🏼 बच्चे बुरी संगति में पड़कर भी दोस्तों के दबाव में नशा करना शुरू कर देते है।

👉🏼 कभी कभी बच्चो के अंदर की जिज्ञासा और कौतूहल भी उन्हें नशे के प्रति आकर्षित करता है।

👉🏼कुछ पढ़े लिखे मूर्खो ने नशे को हाई फाई सोसायटी का स्टेटस सिंबल मान लिया है। कॉरपोरेट में बैठे नशेड़ियों ने इसे और ज्यादा बढ़ावा दिया है।

🙏🏻 *नशा युवा पीढ़ी को बर्बाद कर रहा है, सरकार इसे रोकती क्यों नहीं।* 🙏🏻

👉🏼 देश के 80% कानून बनाने वाले नेता और नौकरशाह स्वयं नशेड़ी है, अतः जो ख़ुद ही गलत कर रहा है वो भला उसे रोकने का प्रावधान क्यूँ लाएगा? जनता मरती है तो मरने दो। नोट छापने में व्यस्त है।

👉🏼 नशे के समान से  टैक्स सरकार को जितना मिलता है, उससे दुगुना-तिगुना नशे के कारण लोगो के मरने, विभिन्न बीमारियों और एक्सीडेंट्स में सरकार का खर्च होता है। फिर भी सरकार टैक्स की लालच में नशा बन्द नहीं करती।

👉🏼 नशे के व्यापारी विभिन्न राजनीतिक पार्टियों को चुनाव लड़ने के लिए मोटा फंड सिर्फ इसलिए देते है, जिससे नशे के व्यापार में सरकार रोक न लगा सके।

👉🏼 नशे के व्यापारी समस्त नौकरशाहों को भी भरपूर पैसा खिलाते है, जिससे उनका धंधा चलता रहे।

🙏🏻 *फ़िर नशा रुकेगा कैसे?* 🙏🏻

👉🏼 जनजागृति से नशा रुकेगा, बचपन से घर मे बच्चो को अध्यात्म से जोड़कर अच्छे संस्कार दिए जाएं, उनके मन मजबूत बनाये जाएं। जिससे समाजिक दबाव को वो झेल सकें, और नशा न करें। सँस्कार से मनुष्य चंदन बन जाता है- *चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग*। कुसंग का प्रभाव आध्यात्मिक संस्कारी व्यक्ति पर नहीं पड़ता।

👉🏼 जगह जगह यज्ञादि अनुष्ठान और जनजागृति कैम्प लगाकर योग प्राणायाम मंन्त्र चिकित्सा से लोगों का मनोबल मजबूत करें जिससे नशा उनका छूट जाए।

👉🏼 बच्चे घर पर हड़ताल कर दें, माता पिता को नशा न करने दें।

👉🏼 जब डिमांड ही नहीं होगी तो सप्पलाई करने वाले स्वतः गायब हो जाएंगे। जैसे गधे के सर पर से सींग।

👉🏼 केवल जनजागृति से मतदाता जागरूक होकर सही नेता चुने और उसे तभी वोट दे जब नशे की दुकानें बंद हो। तो राम राज्य आ जायेगा।

🙏🏻 *हमारे देश मे प्रति वर्ष हज़ारों मौतें नशे के कारण हो रही है, प्रति दिन नशे के कारण कई जाने जाती है।* अखिलविश्व गायत्री परिवार के व्यसनमुक्ति अभियान से जुड़िये और व्यसनमुक्त और योगयुक्त भारत बनाइये 🙏🏻

अखिलविश्व गायत्री परिवार
 व्यसनमुक्ति अभियान
यूट्यूब लिंक:-https://youtu.be/_m98pZ1JW8A

https://youtu.be/G2MON3WVhnI

प्रश्न - *अध्यात्म में जुड़ने के बाद भी पुरुषार्थ क्यों करना पड़ता है?*

प्रश्न - *अध्यात्म में जुड़ने के बाद भी पुरुषार्थ क्यों करना पड़ता है?*

उत्तर - अध्यात्म और पुरुषार्थ एक दूसरे के पूरक है, मानो कि बैंक के लॉकर की दो चाबियां है, जिनसे किस्मत का लॉकर खुलता है। मानो जिंदगी की गाड़ी के दो पहिये है जिन पर सफर करके मनचाही मंजिल मिल सकती है।

उदाहरण :- गाड़ी गड्ढे में फंसी तो चाहे एक बोतल दारू पियो या एक माला जपो, बिना पुरुषार्थ के गाड़ी गड्ढे से बाहर नहीं निकलेगी।

मंन्त्र जप से चेतना ऊपर उठेगी और समस्या का एरियल व्यू/टॉप व्यू मिलेगा और दिमाग चलेगा और आइडिया मिलेगा कि गाड़ी को गड्ढे से बाहर कैसे निकाले...शरीर में प्राण भरेगा बल बढ़ेगा। बुद्धि बल और शरीर बल से गाड़ी गड्ढे से बाहर निकालने में सफलता मिलेगी।

दारू पियोगे तो चेतना निम्न गामी होगी, समस्या का कोई व्यू नहीं मिलेगा और दारू के कारण दिमाग़ भ्रमित होगा। समस्या से उबरने की राह नहीं मिलती। मन भ्रमित और लड़खड़ाते शरीर से स्वयं को खड़ा नहीं रख पाओगे तो भला गाड़ी गड्ढे से कैसे निकाल पाओगे?

अध्यात्म जलती हुई मोमबत्ती की तरह होता है, जो विपत्ति के अंधेरे में राह दिखाता है, अध्यात्म की रौशनी में समस्या के ताले की चाबी ढूंढने में आसानी होती है। अध्यात्म की मोमबत्ती अंधेरे में केवल राह सुझाती है और अंधेरे में समाधान ढूंढने मदद करती है। मंजिल तक पहुंचने का और चाबी ढूढने का पुरुषार्थ मनुष्य को ही करना पड़ता है। मंन्त्र जप से बुद्धि की कुशलता बढ़ती है, तेजी से याद करने की क्षमता बढ़ती है, याददाश्त अच्छी होगी, मानसिक संतुलन बनेगा। लेकिन पास होने के लिए सम्बन्धित पुस्तक पढ़ने का पुरुषार्थ तो स्वयं को ही पड़ेगा।

उम्मीद है यह समझ आ गया होगा कि अध्यात्म और पुरुषार्थ दोनों जीवन मे सफ़लता के लिए जरूरी है। एक दूसरे के पूरक है।

#श्वेता #DIYA

श्रद्धेया शैल जीजी के जन्मदिन की बधाई

*श्रद्धेया शैल जीजी के जन्मदिन की बधाई*

स्नेह प्यार से भरी माँ,
तुम मीठा सागर हो,
ममता के आंचल से बनी,
तुम एक बादल हो।

तुम ही ज्ञान गंगा,
तुम ही पवित्र यमुना हो,
तुम गीता जयंती के दिन जन्मी,
हमारी श्रद्धेया बहना हो।

युगऋषि की,
प्रखरता की झलक तुम हो,
माँ भगवती की,
सजल श्रद्धा का निर्झर तुम हो।

गायत्री परिवार जिससे बंधा,
वो स्नेह डोरी तुम हो,
गायत्री परिवार जिससे सम्हला,
वो मीठी बोली तुम हो।

स्नेहसलिला माँ,
आनन्दमयी तुम हो,
करुणा की साग़र माँ,
ममतामयी तुम हो,

जन्मदिन की तुम्हारे हम सबको बधाई है,
तुम्हारा जन्म सबके लिए शुभ फलदाई है।
*श्वेता* तुम्हारे चरणों में नमन करती है,
तुम्हारी कृपा दृष्टि की सदा आस रखती है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, क्या सभी को खुश किया जा सकता है? यदि हाँ तो कैसे?*

प्रश्न - *दी, क्या सभी को खुश किया जा सकता है? यदि हाँ तो कैसे?*

उत्तर - नहीं, इस संसार में सबको ख़ुश करना किसी के लिए संभव नहीं है, ठीक उसी तरह जैसे सूर्य समस्त पृथ्वी को एक साथ प्रकाशित नहीं कर सकता। पृथ्वी के एक तरफ़ उजाला होगा तो दूसरी तरफ अंधेरा। यदि जिस तरफ उजाला भी हो तो कोई अपनी खिड़की दरवाज़े बन्द कर ले तो सूर्य की रौशनी प्रवेश नहीं कर सकती। सूर्य के अधिकार में केवल प्रकाशित होना है, उसकी ऊर्जा का उपयोग कोई सोलर सिस्टम लगा के ज्यादा कर ले, या कोई धूप सेक ले या कोई कपड़े सुखा लें या कोई खिड़की दरवाज़े बन्द कर ले। यह तो उपयोग कर्ता का अधिकार है।

संगीतकार बेस्ट धुन बना सकता है, वह धुन सबको समान पसन्द आएगी यह सम्भव नहीं है। रसोईया भोजन बना सकता है लेकिन सबको एक जैसा पसन्द आये यह सम्भव नहीं है। इसी तरह तुमसे सब ख़ुश हों तुम्हारे घर परिवार मित्र और ऑफिस वाले यह सम्भव नहीं है।

तो करना क्या है?

जैसे सूर्य प्रकाशित होता है, वैसे ही ईमानदारी से सत्कर्म करो, सन्मार्ग पर चलो। लोगों के उद्धार हेतु प्रयत्नशील रहो, उतनी ही उदारता बरतो जितनी सूरज बरतता है। अब कौन कितना सुखी होना चाहता है या कोई तुमसे नाराज होना चाहता है यह उसका अधिकार क्षेत्र है। तुमने अपना कर्तव्य कर दिया अब उस कर्तव्य के परिणाम को सोच सोच कर चिंतित मत हो। तुमने मुस्कुरा के अभिवादन किया और कोई मुंह फेर कर चला गया या कोई बदले में अभिवादन किया। दोनों ही परिस्थिति में तुम कुछ नहीं कर सकते। केवल तुम सूर्य की तरह अपने हिस्से का कर्तव्य पूरी ईमानदारी से निभाओ, जिससे तुम्हारे मन मे कोई ग्लानि न हो और आत्मसंतुष्टि रहे।

युगऋषि लिखित कुछ पुस्तकें जो तुम्हें जीवन जीने की कला सिखाएंगी, इन्हें पढो:-

1- अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
2- जीवन जीने की कला
3- गहना कर्मणो गतिः(कर्म का सिद्धान्त)
4- दृष्टिकोण ठीक रखें
5- मित्रभाव बढ़ाने की कला
6- भाव सम्वेदना की गंगोत्री
7- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
8- प्रबन्धव्यवस्था एक विभूति एक कौशल
9- सफलता के सात सूत्र साधन
10- आगे बढ़ने की तैयारी

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, मैं सदा अनायास भावी भविष्य को लेकर आशंकित रहता हूँ, अजीब सा भय हरवक्त मेरे भीतर रहता है। जब किसी का भला करने की कोशिश करता हूँ, उसका भला तो होता नहीं उल्टा मैं मुसीबत में पड़ जाता हूँ। मेरा मार्गदर्शन करें।*

प्रश्न - *दी, मैं सदा अनायास भावी भविष्य को लेकर आशंकित रहता हूँ, अजीब सा भय हरवक्त मेरे भीतर रहता है। जब किसी का भला करने की कोशिश करता हूँ, उसका भला तो होता नहीं उल्टा मैं मुसीबत में पड़ जाता हूँ। मेरा मार्गदर्शन करें।*

उत्तर - आत्मीय भाई, पुष्प खिलने से पहले यह नहीं सोचता कि उसे कौन तोड़ेगा या पेड़ में लगा रहने देगा? कोई प्रेयसी के पास ले जाएगा या किसी की कब्र में या चिता में सजेगा। कोई भगवान को चढायेगा या गुलुकन्द बना के मसलकर खा जाएगा। पुष्प केवल अपना कर्तव्य खिलने का और खुशबू बिखेरने का करता है। वो तो पूरे उल्लास और उत्साह से खिलता है और जहां जिस परिस्थिति में भी हो खुशबू बिखेरता रहता है।

यही जिंदगी में हमें पुष्प से सीखना है। भविष्य में क्या होगा? यह सोच सोच कर टेंशन लेना हमारे लिए उचित नहीं। हम कितने दिन जिएंगे इससे ज्यादा जरूरी है कि हम कैसे जी रहे है यह सोचना।

संघर्ष और जिंदगी दोनों एक दूसरे के पूरक है, गर्भ में पहुंचने के लिए लाखों के साथ दौड़े, गर्भ में संघर्ष किया बाहर आने में, गिरे पड़े फिर खड़े हुए, कभी कम्पटीशन कभी जॉब हर पल संघर्ष चल रहा है। इस संघर्ष को खिलाड़ी की तरह एन्जॉय करो। हार - जीत की परवाह किये बिना प्रत्येक मैच में अपना 100% बेस्ट करने की कोशिश करो। जिस दिन जन्मे थे उसी दिन तुम्हारी मृत्यु का दिन भी लिख दिया गया है, जिस प्रकार सांसारिक प्रोडक्ट की एक्सपायरी डेट है उसी तरह हम सबकी एक्सपायरी डेट है। अतः जो समय बीच का है इसे अपनी तरफ से बेहतर जीने का प्रयास करो।

मन कमज़ोर है तो उसका इलाज़ करो, जैसे अगर शरीर में कमजोरी होती है तो तुम पौष्टिक आहार और एनर्जी ड्रिंक लेते हो, वैसे ही कमज़ोर मन को मजबूत करने के लिए वीरों और वीरांगनाओं की कहानियां/जीवनियां पढो, समझो कि कैसे उन्होंने ने वीरता पूर्वक संघर्षों को झेला।

जब तुम कहानी पढोगे, तो प्रत्येक कहानी के वीरों के विचार तुम्हारे दिमाग़ में प्रवेश करेंगे, वो तुम्हारे कमज़ोर विचारों को मजबूत विचारो से रिप्लेस कर देंगे। तुम्हें एनर्जी से भर देंगे। अकबर बीरबल की कहानी में स्वयं को बीरबल महसूस करते हुए घटना को सोचो और बुद्धि की चतुराई सीखो।

गायत्री मंत्र मन को मजबूत बनाता है इसे प्राचीन ऋषि, आधुनिक विज्ञान और आल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन सिद्ध कर चुका है। कम से कम 108 बार धीरे धीरे उगते हुए सूर्य का ध्यान कर उसका अर्थ चिंतन करते हुए जपो - मन ही मन सोचो, वह प्राणस्वरूप परमात्मा तुम्हे प्राणवान बना रहा है, वह दुःखनाशक परमात्मा तुम्हे दुख दूर करने वाला बना रहा है, वह तुम्हें श्रेष्ठ तेजस्वी ओजस्वी वर्चस्वी साहसी और महान बना रहा है।  सुबह सूर्य भगवान को जल चढ़ाओ, थोड़ा जल बचा कर माथे में लगाओ, हाथ को सूर्य की तरफ ऐसे रखो मानो आग ताप रहे हो और निम्नलिखित तरीक़े से 12 या 24 बार गायत्री मंत्र हल्के गीले माथे से पढो।
*ॐ भूर्भुवः स्व: ॐ ॐ ॐ तत स्वितुर्वरेण्यम भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात ॐ ॐ ॐ*

जपने के बाद दोनों हाथ तेजी से रगड़ो और चेहरे पर क्रीम जैसे लगाते है उस तरह चेहरे पर हाथ घुमाओ। भाव करो सविता शक्ति और आत्मविश्वास की शक्ति तुम्हे मिल गयी है।

कांपते हुए हाथ से किसी को गर्म चाय देने की कोशिश करोगे तो चाय उस पर भी गिरेगी और तुम पर भी दोनों जलोगे। भलाई की जगह बुराई मिलेगी। तुम्हारा मन भयाक्रांत और कांपते हुए किसी की मदद करने की कोशिश करेगा तो ऐसा ही विपरीत परिणाम मिलेगा। अतः किसी की मदद करते वक्त गृहणी की तरह सोचो, कि आग पर खाना तो बने लेकिन हाथ न जले। उस व्यक्ति की मदद तो हो लेकिन तुम भावावेश में न उलझो। मदद में असावधानी नहीं होनी चाहिए, बरगद के पेड़ की तरह मदद करो, कोई आये मदद मांगने छाया दो। लेकिन स्वयं की जड़ मजबूती से मिट्टी में गाड़े रहो। स्वयं को उखाड़कर किसी को छाया देने जाओगे तो वृक्ष सूखेगा और किसी को छाया न दे सकेगा।

इसे एक कहानी के माध्यम से समझो, एक राजा एक नौकर की जॉब के लिए इंटरव्यू ले रहा था। सबसे प्रश्न पूँछता कि मान लो मेरे और तुम्हारे दोनों की दाढ़ी में एक साथ आग लग जाये तो क्या करोगे, अधिकतर उत्तर देते मालिक दोनों हाथ से आपकी आग बुझाएंगे। कुछ कहते दोनों हाथ से अपनी पहले बुझाएंगे।

जिसे उसने चुना - उसका उत्तर था मालिक दाहिने हाथ से आपकी दाढ़ी बुझाऊंगा और बाएं हाथ से अपनी। क्योंकि दाहिना हाथ मजबूत है और दूसरों की बेहतर मदद कर सकता है, बाया हाथ स्वयं के लिए उत्तम है क्योंकि अपने चेहरे का पता उसे है। उसे चुन लिया गया।

फ्लाइट में सफर करो, तो वहां भी यही कहते है स्वयं का मास्क सम्हाल कर दूसरे के मास्क लगाने में मदद करे। बस यही तरीका आपको अपनी जिंदगी में अपनाना है। दुसरो की मदद भी करनी है और अपना नुकसान भी नहीं करना है।

क्या कहेंगे लोग या लोग क्या सोचेंगे इसकी परवाह मत करो।

भविष्य में क्या होगा- भाई बिल्कुल वैसा ही कुछ होगा जैसे पेट का हाल दूसरे दिन होता है, आज अच्छा सुपाच्य स्वास्थ्यकर खाओगे तो कल के दिन का भविष्य रूप में स्वस्थ शरीर और मन मिलेगा। आज चटपटा मसाले दार उल्टा सीधा खाओगे तो कल के भविष्य के रूप में पेट दर्द उल्टी गैस और तबियत खराब होगी, घर दुर्गंध से पेट की गैस बनने से भर जाएगा। तो कल क्या होगा यह आज क्या कर रहे हो उस पर निर्भर है। अतः केवल आज को बेहतर जियो कल स्वतः बेहतर बन जायेगा।

कुछ युगऋषि की लिखी पुस्तक रोज सोने से पूर्व पढ़िये, और भयमुक्त जीवन जियें:-

1- निर्भय रहे शांत रहे
2- शक्तिवान बनिये
3- दृष्टिकोण ठीक रखें
4- सफलता आत्मविश्वासी को मिलती है
5- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
6- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
7- मन के हारे हार है मन के जीते जीत
8- मनः स्थिति बदले तो परिस्थिति बदले
9- निराशा को पास न फटकने दें

अनुलोम विलोम प्राणायाम और भ्रामरी प्राणायाम मन को मजबूत बनाता है, गणेश योगा( सुपर ब्रेन योगा) दिमाग़ को मजबूत बनाता है। गुरुवार का व्रत प्राणवान बनाता है। व्रत में एक वक्त फलाहार और एक वक्त भोजन कर लें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 18 December 2018

यदि कोई आपको पर्सनल या ग्रुप में ऐसा मेसेज भेजे जिसमे लिखा हो कि *अमुक मेसेज फारवर्ड करने पर लक्ष्मी की कृपा मिलेगी या किसी अन्य देवी देवता की कृपा मिलेगी*,

यदि कोई आपको पर्सनल या ग्रुप में ऐसा मेसेज भेजे जिसमे लिखा हो कि *अमुक मेसेज फारवर्ड करने पर लक्ष्मी की कृपा मिलेगी या किसी अन्य देवी देवता की कृपा मिलेगी*,

तो रिप्लाई में 🍪 "रोटी" के साथ यह लिखकर भेज दें कि यह मैसेज फारवर्ड करने पर आपका पेट स्वतः भर जाएगा। और भविष्य में कभी किचन में खाना-पकाना नहीं पड़ेगा, दांतो को और आंतों को भोजन पचाना नहीं पड़ेगा, इसे कमाने के लिए मेहनत भी नहीं करनी पड़ेगी।

बस "रोटी" वाला मेसेज फारवर्ड करते चले पेट स्वतः भर जाएगा ठीक वैसे ही जैसे मैसेज फारवर्ड करने पर कृपा मिल जाती है।

😊😊😊😊😂😂😂😂

#श्वेता #DIYA

कुछ कड़वे सत्य - जिसे जानबूझकर अनदेखा कर रहे हैं लोग, समझकर भी नहीं समझना चाहते हैं लोग*

*कुछ कड़वे सत्य - जिसे जानबूझकर अनदेखा कर रहे हैं लोग, समझकर भी नहीं समझना चाहते हैं लोग*

1- चरण के बिना चल न सकोगे,
आचरण के बिना सम्हल न सकोगे,
चरण से मंजिल मिलेगी,
आचरण से जिंदगी बनेगी।
चरण पर शरीर का भार है,
आचरण पर पूरे वजूद का भार है।

2- जिह्वा राजा को रंक और रंक को राजा बना सकती है, मीठे बोल से किसी को भी अपना बना सकती है, कड़वे बोल से कोई भी अच्छा भला रिश्ता बिगाड़ सकती है। जिह्वा सध गयी तो स्वास्थ्य बन जायेगा, जिह्वा जो न सधी तो अच्छा भला स्वास्थ्य बिगड़ जाएगा। कब्र भी जिह्वा खोद सकती है, उम्र भी जिह्वा बढ़ा सकती है।

3- मन के राजा हो या मन के ग़ुलाम हो? मन के घोड़े पर तुम सवार हो या मन का घोड़ा तुम पर चढ़ा है? तुम मन को नियंत्रित कर रहे हो या मन तुम्हे नियंत्रित कर रहा है? यदि यह समझ सको और मन को चेतना का गुलाम बना सको तो तुम्हारी विजय निश्चित है।

4- आजकल लड़के - पढ़ी लिखी कमाने वाली लड़की से विवाह करना चाहते है, जो साथ मे दहेज़ लाये और चूल्हा चौका सम्हाले और सर पर घूंघट भी डाले? आज्ञाकारी हो और मुंह न चलाये???????

5- आजकल लड़कियां कमाने वाला लड़का चाहती है, जो शादी के बाद माता-पिता से तलाक लेकर पत्नी का ग़ुलाम बन जाये, कमाकर खिलाये और उसकी हां में हां मिलाए????

6- आजकल बच्चे चिराग के जिन्न की तरह माता पिता चाहते है, जो उनकी हर ख्वाइशें पूरी करे, केवल आदेश माने और कोई आदेश दे नहीं। उन्हें उनकी मनमर्जी करने दें।

7- आजकल के माता पिता सन्तान के रूप में रोबोट चाहते है, जो अपनी स्वतन्त्र रॉय न रखता हो, जो माता-पिता की मर्जी से पढ़े, जॉब करे, विवाह करे, कमा कर दे।

8- आजकल सब इसलिए दुःखी हैं, क्योंकि सब केवल दुसरों को अपने हिसाब से बदलना चाहते हैं, स्वयं बदलने की कोई इच्छा नहीं रखते है। एक तरफ दूसरे को गुलाम और रोबोट की तरह मन मर्ज़ी से चलाना चाहते है, दूसरी तरफ़ बिना कुछ किये रिश्ते में प्यार और सम्मान भी चाहते है।

9- जो नजरिया घटिया लेकर नज़ारा बढ़िया देखना चाहते हैं, जो कड़वी जबान लेकर रिश्ता मधुर चाहते है,
जीवनसाथी से रोबोट सा काम और प्रेम भावना भी चाहते हो, उन्हें आप क्या कहोगे?????

10- जो तुम्हारा कार्य नहीं करता तो तुम उसका कार्य नहीं करते, फिर जब तुम भगवान के लिए कार्य नहीं करते, फिर भगवान तुम्हारे लिये कार्य क्यों करे?तुम भगवान को वक्त नहीं देते, तो फिर भगवान तुम्हें वक्त क्यों दे?

11- मालिक की फ़ोटो पर पूजा-आरती करने पर सैलरी नहीं मिलती, उस का कार्य करना पड़ता है,फिर भगवान का काम किये बिना उसकी कृपा की उम्मीद क्यो?

12- ढोंगी बाबाओं के जाल में वही मूर्ख लोग फँसते है, जो भगवत कृपा का शॉर्टकट ढूंढते हैं। जो बिन जप तप साधना के मुक्तिमार्ग और वैभव चाहते है। बिना श्रीराम काज के राम राज्य चाहते है।

13- भगवत गीता स्कूल और घर में पढ़ा देते तो कोर्ट में भगवत गीता पर हाथ रखने की जरूरत नहीं पड़ती।

14- इंसान को इंसान समझ लेते और जो जैसा है वैसा स्वीकार लेते तो कभी तलाक की नौबत नहीं आती।

15- बच्चो को प्यार और सँस्कार देकर पीड़ित मानवता की सेवा भावना से जोड़ देते तो वृद्धाश्रम की देश मे आवश्यकता न रह जाती।

16- जिसको वक्त सबसे ज्यादा दे रहे हो, बस उससे ही तुम प्रेम कर रहे हो।

17- यदि स्वयं में पूर्ण नहीं हो तो दुनियाँ का कोई व्यक्ति तुम्हारा खालीपन दूर नहीं कर सकता, तुम्हें सुखी नहीं कर सकता।

18- मन का कोलाहल शांत कर लो, मन को समझ लो, मनःस्थिति बदल लो, संसार रूपी कीचड़ में कमल की तरह खिल जाओ। हंस बुद्धि बना लो और सन्मार्ग का चयन कर लो, माता गायत्री सदा सर्वदा के लिए तुम्हारे हृदय में विराजमान हो जाएगी।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
https://awgpggn.blogspot.com

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Monday 17 December 2018

गायत्री मन्त्रलेखन एक महान साधना

*गायत्री मन्त्रलेखन एक महान साधना*

मंत्र जप के समय हाथ की माला के मनके फिराने वाली उँगलियाँ और उच्चारण करने वाली जिह्वा ही प्रयुक्त होती है किन्तु मन्त्र लेखन में हाथ, आँख, मन, मस्तिष्क आदि अवयव व्यस्त रहने से चित्त वृत्तियाँ अधिक एकाग्र रहती हैं तथा मन भटकने की सम्भावनायें अपेक्षाकृत कम होती हैं। मन को वश में करके चित्त को एकाग्र करके मंत्रलेखन किया जाय तो अनुपम लाभ मिलता है। इसी कारण मंत्र लेखन को बहुत महत्त्व मिला है।

मंत्र लेखन साधना में जप की अपेक्षा कुछ सुविधा रहती है। इसमें षट्कर्म आदि नहीं करने पड़ते। किये जायें तो विशेष लाभ होता है, किन्तु किसी भी स्वच्छ स्थान पर हाथ मुँह धोकर, धरती पर तखत या मेज- कुर्सी पर बैठ कर भी मंत्र लेखन का क्रम चलाया जा सकता है। स्थूल रूप कुछ भी बने पर किया जाना चाहिए परिपूर्ण श्रद्धा के साथ। पूजा स्थली पर आसन पर बैठ कर मंत्र लेखन जप की तरह करना सबसे अच्छा है। मंत्र लेखन की कॉपी की तरह यदि उस कार्य के लिए कलम भी पूज उपकरण की तरह अलग रखी जाय तो अच्छा है। सामान्य क्रम भी लाभकारी तो होता ही है।
संक्षेप में गायत्री मंत्र लेखन के नियम निम्न प्रकार हैं-

१. गायत्री मंत्र लेखन करते समय गायत्री मंत्र के अर्थ का चिन्तन करना चाहिए।
२. मंत्र लेखन में शीघ्रता नहीं करनी चाहिए।
३. स्पष्ट व शुद्ध मंत्र लेखन करना चाहिए।
४. मंत्र लेखन पुस्तिका को स्वच्छता में रखना चाहिए। साथ ही उपयुक्त स्थान पर ही रखना चाहिए।
५. मंत्र लेखन किसी भी समय किसी भी स्थिति में व्यस्त एवं अस्वस्थ व्यक्ति भी कर सकते हैं।

गायत्री मंत्र लेखन से लाभ-

१. मंत्र् लेखन में हाथ, मन, आँख एवं मस्तिष्क रम जाते हैं। जिससे चित्त एकाग्र हो जाता है और एकाग्रता बढ़ती चली जाती है।
२. मंत्र लेखन में भाव चिन्तन से मन की तन्मयता पैदा होती है इससे मन की उच्छृंखलता समाप्त होकर उसे वशवर्ती बनाने की क्षमता बढ़ती है। इससे आध्यात्मिक एवं भौतिक कार्यों में व्यवस्था व सफलता की सम्भावना बढ़ती है।
३. मंत्र के माध्यम से ईश्वर के असंख्य आघात होने से मन पर चिर स्थाई आध्यात्मिक संस्कार जम जाते हैं जिनसे साधना में प्रगति व सफलता की सम्भावना सुनिश्चित होती जाती है।
४. जिस स्थान पर नियमित मंत्र लेखन किया जाता है उस स्थान पर साधक के श्रम और चिन्तन के समन्वय से उत्पन्न सूक्ष्म शक्ति के प्रभाव से एक दिव्य वातावरण पैदा हो जाता है जो साधना के क्षेत्र में सफलता का सेतु सिद्ध होता है।
५. मानसिक अशान्ति चिन्तायें मिट कर शान्ति का द्वार स्थायी रूप से खुलता है।
६. मंत्र योग का यह प्रकार मंत्र जप की अपेक्षा सुगम है। इससे मंत्र सिद्धि में अग्रसर होने में सफलता मिलती है।
७. इससे ध्यान करने का अभ्यास सुगम हो जाता है।
८. मंत्र लेखन का महत्त्व बहुत है। इसे जप की तुलना में दस गुना अधिक पुण्य फलदायक माना गया है।

साधारण कापी और साधारण कलम स्याही से गायत्री मंत्र लिखने का नियम उसी प्रकार बनाया जा सकता है जैसा कि दैनिक जप एवं अनुष्ठान का व्रत लिया जाता है। सरलता यह है कि नियत समय पर- नियत मात्रा में करने का उसमें बन्धन नहीं है और न यही नियम है कि इसे स्नान करने के उपरान्त ही किया जाय। इन सरलताओं के कारण कोई भी व्यक्ति अत्यन्त सरलता पूर्वक इस साधना को करता रह सकता है।

मंत्र लेखन में सबसे बड़ी अच्छाई यह है कि उसमें सब ओर से ध्यान एकाग्र रहने की व्यवस्था रहने से अधिक लाभ होता है। जप में केवल जिह्वा का ही उपयोग होता है और यदि माला जपनी है तो उंगलियों को काम करना होता है। ध्यान साथ- साथ न चल रहा हो तो पन इधर- उधर भटकने लगता है ।। किन्तु मंत्र लेखन से सहज ही कई इन्द्रियों का संयम निग्रह बन पड़ता है ।। हाथों से लिखना पड़ता है। आंखें लेखन पर टिकी रहती हैं। मस्तिष्क का उपयोग भी इस क्रिया में होता है। ध्यान न रहेगा तो पंक्तियाँ टेढ़ी एवं अक्षर सघन विरत एवं नीचे- ऊँचे, छोटे- बड़े होने का डर रहेगा। ध्यान न टिकेगा तो मंत्र अशुद्ध लिखा जाने लगेगा। अक्षर कुछ से कुछ बनने लगेंगे। लेखन में सहज ही ध्यान का समावेश अधिक होने लगता है। जप और ध्यान के समन्वय से ही उपासना का समुचित फल मिलने की बात कही गई है। यह प्रयोजन मंत्र लिखने में अनायास ही पूरा होता रहता है।  

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

गायत्री मन्त्रलेखन के मनोवैज्ञानिक लाभ

📚🖌  *गायत्री मन्त्र लेखन के मनोवैज्ञानिक लाभ* 🖌📚

बच्चों से कहें यदि हैण्ड राईटिंग सुन्दर प्रभावशाली और व्यवस्थित बनानी है, तथा साथ ही गायत्री मन्त्र की ध्यान धारणा द्वारा दिमाग़ भी एक जगह फ़ोकस करके मानसिक व्यायाम करना है कुशाग्र बुद्धि के लिए तो रोज़ दो पेज मन्त्र लेखन करें।

जो व्यक्ति रोज मन्त्र लेखन करता है उसे मन्त्र जप से तीन गुना ज्यादा लाभ मिलता है।

जॉब करने वाले युवा कभी डिप्रेशन का शिकार नहीं होंगे यदि नियमित मन्त्र लेखन करेंगे। गर्भवती महिला के बच्चे का दिमाग़ सन्तुलित और प्रभावशाली ढंग से विकसित होगा यदि नियमित मन्त्र लेखन करेगी। गृहणी यदि नियमित मन्त्र लेखन करेंगी तो कभी झुंझलाहट और मानसिक अस्थिरता की शिकार नहीं होंगी।

वृद्धावस्था की कॉमन भूलने की और अस्थिर चित्त होने की बीमारी से यदि मुक्ति चाहते हो तो मन्त्र लेखन नियमित करें। यह मन्त्र लेखन प्रक्रिया मानसिक शारीरिक लिंक बनाये रखती है। और हाथ कप कंपाने वाली प्रॉब्लम भी नही  होगी यदि रोज मन्त्र लेखन जीवन में होगा। सर के पीछे के भाग से मेरुदण्ड और हाथ का संयोजन नियमित मन्त्र लेखन वालों का कभी डिस्टर्ब नहीं होता।

🙏🏻विचारक्रांति

गायत्री मन्त्रलेखन के अनेक लाभ

*गायत्री मन्त्रलेखन के अनेक लाभ*

गायत्री मन्त्रलेखन मानसिक शक्तियों के केंद्रीकरण, ध्यान, मंत्रजप और लेखन का अद्भुत संयोजन है। दोनों हाथ से गायत्री मंत्र लेखन करने पर दोनों ब्रेन एक्टिव होते हैं जो दिमाग के सन्तुलन में अति सहायक सिद्ध होते हैं।

आप यदि पढ़ाई कर रहे है या जॉब, अत्यधिक मानसिक मेहनत करने वालों के लिए तो यह राम बाण औषधि है दिमाग को चुस्त दुरुस्त रखने की। नित्य एक पेज मन्त्रलेखन और मानसिक मांसपेशियों की मजबूती प्रदान करता है। पढ़ाई में मन लगने लगेगा, और यादाश्त बढ़ेगी।

गायत्री मन्त्रलेखन मन्त्र जप से दस गुना ज्यादा फ़लदायी है, मनुष्य के अंदर की 24 केंद्रों में स्पंदन कर उनमें प्राण संचार कर उन्हें जागृत करता है। बस इतना ध्यान रखे मन्त्र लेखन करते वक्त सिर्फ मन्त्र लेखन करें और मन ही मन बोलते और मन ही मन बोले मन्त्र को सुनते हुए लिखे। आश्चर्यजनक सुखद परिणाम मिलेंगे।

सुबह चाय से जो तरोताजगी ढूंढते है उससे ज्यादा तरोताज़गी सुबह एक ग्लास जल पीने के बाद मन्त्रलेखन से मिलती है।

नशा से जो लोग मुक्ति चाहते है, मन्त्रलेखन करने से उनमें संकल्पबल बढ़ेगा और वो नशा स्वयं की संकल्प शक्ति से छोड़ पाएंगे।

जो लोग अच्छी नींद को तरसते हैं, वो रात को एक ग्लास पानी पीने के बाद मन्त्रलेखन करके सोने की आदत डालें। गहरी और मीठी नींद मिलेगी। माइग्रेन के मरीजों को भी मन्त्रलेखन से सरदर्द में राहत मिलेगी।

विद्यार्थी, व्यवसायी, गृहणी और जॉब वाले लोग किसी को भी जब भी टेंशन अनुभव करने लगे, तो एक ग्लास पानी लें उसे ध्यान से देखें। भावना करें कि देवाधिदेव महादेव शिव के जटाओं से निकलती मां गंगे ने अपने गंगा जल से यह ग्लास भरी है। यह गंगा जल समस्त शारीरिक मानसिक थकावट को दूर करेगा। मुझे शक्ति सामर्थ्य और परमशान्ति देगा। यह सोचते हुए एक बार गायत्री मंत्र जप कर लम्बी गहरी श्वांस लें और जल को देखते हुए घूंट घूंट करके भावनात्मक निर्मित गंगा जल पिये। यदि सम्भव हो तो 5 बार मन्त्रलेखन कर लें या मौन मानसिक गायत्री मंत्र जप लें और फिर नई शक्ति ऊर्जा से पुनः कार्य मे जुट जाएं।

निरन्तर अभ्यास से टेंशन क्या होता भूल जाएंगे। संसार के कोलाहल के बीच भी अद्भुत अंदरूनी शांति महसूस करेंगे।

*गायत्री मन्त्रलेखन*

 अपनाए और जन जन तक पहुंचाए।

जेलों में गायत्री मन्त्रलेखन अभियान*

*जेलों में गायत्री मन्त्रलेखन अभियान*

जब व्यक्ति अपराध करता है तो 50% केस में वो अपने क्रोध को नियंत्रण में न रख पाने के कारण होता है या नशे में वो अपने ऊपर नियंत्रण खो देता है।  वो क्रोध में न होकर, नशे में न होकर यदि शांत स्थिर मनोदशा में होता तो शायद वो अपराध करता ही नहीं।

40% केस में अपराध इंसान किसी न किसी मजबूरी में आकर करता है, अभावग्रस्त मजबूरी उसे अपराधी बना देती है।

केवल 10% अपराधी ही जानबूझकर प्लान करके होश में अपराध करते हैं।

इन 90% लोगों को गायत्री जप ध्यान और मन्त्र लेखन साधना, सत्साहित्य के स्वाध्याय और प्रायश्चित विधान से उबारा जा सकता है। इनकी मनोदशा का इलाज कर इन्हें समाज की मुख्य धारा में जोड़ा जा सकता है।

दण्ड व्यवस्था में यदि अपराधी को पश्चाताप न हुआ और अपराधमुक्त होने की भावना न पनपी तो अपराधी को जेल भेजना अधूरी व्यवस्था ही रहेगी। जब अपराधी के व्यवहार और स्वभाव में, मनोदशा में सकारात्मक परिवर्तन हो तभी जेलों में अपराधी लाने का कार्य पूर्ण होगा।

जेल एक प्रकार का हॉस्पिटल है, जैसे हॉस्पिटल में रोगों का इलाज होता है वैसे ही जेलों में अपराध का इलाज होता है। हॉस्पिटल से निकला व्यक्ति समाज की मुख्य धारा में जुड़ता है वैसे ही जेलों से निकलकर अपराधी अपराध भाव से मुक्त हो समाज की मुख्यधारा में जुड़े।

इस दशा में बेहतरीन प्रयास और इस प्रोजेक्ट को लीड गायत्री परिवार की समर्पित कार्यकर्ता विनीता खण्डेलवाल जी, मध्यप्रदेश ने किया है। ढाई लाख मन्त्रलेखन विभिन्न जेलों में करवाया। इसी तरह के अनेकों प्रयास देश के विभिन्न प्रांतों और जिलों में गायत्री परिवार के परिजन निःस्वार्थ भाव से कर रहे हैं। जेलों से बहुत अच्छा रिस्पॉन्स सर्वत्र मिल रहे है, उनके व्यवहार में परिवर्तन सहज ही देखा जा सकता है।

गायत्री परिवार आप सभी का आह्वान करता है कि अपराध भाव चिकित्सा के महत पूण्य कार्य मे अपना सहयोग दें। और अपराधियों की मनःस्थिति सुधारने में साथ मिलकर प्रयास करें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Sunday 16 December 2018

प्रश्न - *सन 1980 से 2000 तक को युगसंधि काल कहा गया है। ऐसा क्या विलक्षण घटित हुआ जिससे ये माना जाए कि यह युगसंधि काल था, और एक बहुत बड़ा यू टर्न पूरे विश्व का हुआ?*

प्रश्न - *सन 1980 से 2000 तक को युगसंधि काल कहा गया है। ऐसा क्या विलक्षण घटित हुआ जिससे ये माना जाए कि यह युगसंधि काल था, और एक बहुत बड़ा यू टर्न पूरे विश्व का हुआ?*

उत्तर - आत्मीय भाई, जिस प्रकार दिन के अंत और रात के शुरू के बीच के समय को सायंकाल(शाम) कहते है, वैसे ही दो युगों के बीच का समय संधि काल या युग संधि नाम से जाना जाता है|

*युगसंधि काल की गणना, अखण्डज्योति मार्च 1980 के अनुसार 20 वर्ष की बताई गई है जो 1980 से 2000 तक है।*

अतः आपके प्रश्न में 1990 से शुरुआत की सूचना आपको कहाँ से मिली है? जिसका विवरण मुझे नहीं पता।

Visit Online reference:- http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1980/March/v2.3

ज्योतिष के अनुसार - जब एक युग समाप्त होकर दूसरे युग का प्रारम्भ होने को होता है; तब संसार में संघर्ष और तीव्र हलचल उत्पन्न हो जाती हैं। जब चन्द्र, सूर्य, बृहसपति तथा पुष्य नक्षत्र एक राशि पर आयेंगे तब सतयुग का शुभारम्भ होगा। इसके बाद शुभ नक्षत्रों की कृपा वर्षा होती है। पदार्थों की वृद्धि से सुख-समृद्धि बढ़ती हैं।

ज्योतिष गणनाओं के अनुसार हिसाब फैलाने से पता चलता है कि वर्तमान समय संक्रमण काल है। प्राचीन ग्रन्थों में हमारे इतिहास को पाँच कल्पों में बाँटा गया है। (1) महत् कल्प 1 लाख 9 हजार 8सौ वर्ष विक्रमीय पूर्व से आरम्भ होकर 85800 वर्ष पूर्व तक (2) हिरण्य गर्भ 85800 विक्रमीय पूर्व से 61800 वर्ष पूर्व तक (3) ब्राह्म कल्प 60800 विक्रमीय पूर्व से 37800 वर्ष पूर्व तक (4) पाद्म कल्प 37800 वर्ष तक और (5) वाराह कल्प 13800 विक्रम पूर्व से आरम्भ होकर अब तक चल रहा है।

युग संधि प्रसव पीड़ा जैसा समय है। शिशु जन्म के समय जननी पर क्या बीतती है, इसे सभी जानते हैं, पर पुत्र रत्न को पाकर उसकी खुशी का ठिकाना भी नहीं रहता। फसल, जिन दिनों पकने को होती है उन्हीं दिनों खेतों में पक्षियों के झुण्ड टूटते हैं। युग सन्धि की इस वेला में जहां पके फोड़े को फूटने और दुर्गन्ध भरी मवाद निकलने की सम्भावना है, वहां यह भी निश्चित है कि आपरेशन के बाद दर्द घटेगा, घाव भरेगा और संचित विकारों से छुटकारा मिलेगा।

अतः युगऋषि कहते है - पतझड़ के बाद बसन्त आता है। तपती गर्मी के बाद बरसाती घटायें जल थल कर करतीं और हरीतिमा का मखमली फर्श बिछाती है। अंधेरी रात का भी अन्त होती है और प्रभात का अरुणोदय सर्वत्र उल्लास भरी उमंगें बिखेरता है। लम्बी अवधि आतंक और असमंजस के बीच गुजर जाने के बाद अब निकट भविष्य में ऐसी सम्भावनायें बन रही है, जिसमें चैन की सांस ली जा सके। इसे एक प्रकार से सतयुग की वापसी, या नव युग के अवतरण के नाम से भी जाना जा सकता है।

भूतकाल की भूलों और वर्तमान की भ्रान्तियों को गम्भीरता पूर्वक देखा जाय तो आश्चर्य होता है कि समझदार कहलाने वाले मनुष्य ने क्यों इतनी नासमझी बरती और क्यों अपने लिए सबके लिए विपत्ति न्यौत बुलायी? फिर भी-इतना निश्चय है कि विपत्ति भूलों को सुधारने के लिए मजबूर करती है। भटकाव के बाद भी सही राह और रोग पता होने पर उपचार की विधि खोज ही ली जाती है। लम्बा समय दुखद-दुर्भाग्य में बोता; पर वह स्थिति सदा क्यों बनी रहेगी? शांति और प्रगति सदैव प्रतीक्षा सूची में ही रहे ऐसा तो नहीं हो सकता। इक्कीसवीं सदी सन्निकट है। इसमें हम सब सुखद परिस्थितियों का आनन्द ले सकेंगे ऐसी आशा की जानी चाहिए।

Reference :- http://literature.awgp.org/book/yug_sandhi_purshcharan_prayojan_aur_prayas/v1.1

भगवान जब जब धर्म की हानि होती है जन्म लेता है, तो देवी देवता और हिमालय में तपलीन आत्माएं मनुष्य के रूप में जन्म लेती है। सहयोगी बनती है। हम सभी प्रज्ञावतार महाकाल युगऋषि के अंग अवयव बनकर जन्मे है, जो उनकी इस योजना में सहयोगी बनने आए है। भविष्य उज्ज्वल है और सतयुग की वापसी होकर रहेगी। ऐसा हम सबका विश्वास है, क्योंकि हमें हमारे युगऋषि के कथन पर पूरा विश्वास है।

यूटर्न मंजिल की ओर मोडता है, मंजिल तक नहीं पहुंचाता, अतः यूटर्न पर मंजिल दर्शन नहीं होता। युगसंधि काल मे विलक्षणता का बीजारोपण होता है, अतः विलक्षणता का वृक्ष और फ़ल युगसंधि काल मे नहीं दिखता।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
Https://awgpggn.blogspot.com

प्रश्न - *दी, हम IAS की तैयारी कर रहे हैं, युगऋषि परम पूज्य गुरुदेव में मेरी पूर्ण आस्था है और मैं उनके बताए आदर्शों पर चलना चाहती हूँ, और युगनिर्माण में IAS बनकर सेवा देना चाहती हूँ, मेरा मार्गदर्शन करें कि कैसे मैं योगियों की तरह उच्च आदर्शों में बंधकर श्रेष्ठ जीवन जियूँ और मन को नियंत्रित करूँ।*

प्रश्न - *दी, हम IAS की तैयारी कर रहे हैं, युगऋषि परम पूज्य गुरुदेव में मेरी पूर्ण आस्था है और मैं उनके बताए आदर्शों पर चलना चाहती हूँ, और युगनिर्माण में IAS बनकर सेवा देना चाहती हूँ, मेरा मार्गदर्शन करें कि कैसे मैं योगियों की तरह उच्च आदर्शों में बंधकर श्रेष्ठ जीवन जियूँ और मन को नियंत्रित करूँ।*

उत्तर - आत्मीय प्यारी बेटी, तुम पिछले जन्म की उच्च आत्मा हो जो श्रेष्ठ सँस्कार लेकर ही इस दुनियां में जन्मी है। तुम पिछले जन्म में भी युगऋषि की सहयोगी थी, अब उसी कार्य को आगे बढाने की उत्कंठा जाग रही है।

संसार और अध्यात्म के बीच संतुलन अनिवार्य है। मन के नियंत्रण हेतु इंद्रियों पर नियंत्रण अनिवार्य है। इंद्रियां - अच्छे स्वाद, अच्छे स्पर्श,  मनभावन दृश्य-संगीत, कामना-वासना की ओर तुम्हें खींचेंगी। इन पर कड़ी नजर तुम्हें रखनी पड़ेगी। शरीर आलस्य में सोने की डिमांड रखेगा, इसे भी  तुम्हे साधना पड़ेगा।

IAS बनने के लिए पढ़ना बहुत ज्यादा पड़ता है, समस्या यह है कि जिसे हम पढ़ना कह रहे है वस्तुतः वो बहुत सारा रटना ही है,  क्योंकि दुर्भाग्यवश हमारे देश की शिक्षा प्रणाली ही कुछ ऐसी है।

अतः जिस तरह घोड़े को हर्डल रेस के लिए तैयार किया जाता है, वैसे ही तुम्हें मन को तैयार करना है। 24 घण्टे में 4 घण्टे रात को सोना और दोपहर खाने के बाद 1 घण्टे जरूर सोना। स्वयं को समय  से बांध दो।

प्रज्ञा युवा प्रकोष्ठ बिहार का सप्ताह में एक बार कोई एक वीडियो जरूर सुन लेना, मनीष भैया सिविल की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों को ही सम्बोधित करते है, मन को खुराक मिल जाएगी।
https://youtu.be/wHKhM_2e2jc

CIVIL BEINGS - यूट्यूब चैनल में बहुत सारे अच्छे अच्छे टिप्स और टेक्निक बताता है, IAS की तैयारी के लिए, साथ ही संदीप माहेश्वरी के वीडियो भी मोटिवेशनल बहुत अच्छे है:-

https://www.youtube.com/channel/UCdwscvaT7CufLY_fpiH4A1A

कभी कभी कोई बात हमें पता तो होती है लेकिन जब कोई और बताता है तो वो पुनः वो यादे ताज़ा होकर अधिक गहराई से हमे समझ आ जाती है। रोज का टाइम टेबल पता होना चाहिए कि आज क्या करना है, कितना और कब कब पढ़ना है?

मन को बलिष्ठ और पोषण देने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाओ जिससे दिमाग़ की थकान रोज की रोज उतर जाए, एक्टिव होकर वो तुम्हारा पढ़ाई करने में सहयोग करे:-

एक कहानी पहले सुनो कि मानसिक थकान उतारने और पोषण देने की आवश्यकता क्यों है? दो बलिष्ठ लड़के थे(श्याम औऱ बलि) दोनो में कम्पटीशन हुआ, कि कौन सबसे ज्यादा लकड़ी काट सकता है? दोनों को नई कुल्हाड़ी मिली। बलि बिना रुके पेड़ काट रहा था, श्याम प्रत्येक घण्टे रुकता पानी पीता और कुल्हाड़ी में धार देता, फिर काटने लगता। रिजल्ट जब आया तो श्याम विजयी हुआ। क्योंकि बलि रुककर कुल्हाड़ी को धार नही दिया तो बलप्रयोग ज्यादा करना पड़ा और थकान भी ज्यादा हुई।

इसी तरह मॉय डियर, दिमाग़ को धार देकर तेज बनाने के लिए निम्नलिखित उपाय करो:-

👉🏼- सुबह उठकर प्रथम गायत्री मंत्र बोलते हुए माथे पर जैसे तिलक लगाते है वैसे अंगूठे से दोनों भौंहों के बीच लगाओ। पूरे सर में हल्के हाथों से मसाज कर लो। और भगवान को 5 चीज़ों के लिए धन्यवाद बिस्तर पर ही बैठे बैठे दो, उदाहरण - तुम जो बोल-सुन-सोच-चल-देख सकती हो इसके लिए, इस जीवन के लिए ।

👉🏼 फ़िर स्वयं से बोलो-  I am the best. 2. I can learn IAS course, yes I can do it. 3. God is always with me. 4. I am a winner, I will be IAS. 5. Today is my day.

3- नित्यकर्म और जो भी शेड्यूल बनाया है उसके हिसाब से कार्य करो।

4- जब भी नहाओ, भगवान के समक्ष बैठकर षठ-कर्म के साथ प्राणायाम करो, उगते सूर्य का ध्यान करते हुए कम से कम 108 बार गायत्री जप करो, एक बार इस वीडियो को देखकर श्रद्धेय की बताई विधि सीख लो:-
https://youtu.be/04Dl89YWTYU

प्राचीन ऋषियों और आधुनिक विज्ञान, आल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन(AIMS) ने यह सिद्ध कर दिया है कि बुद्धि कौशल(Intellect power) और याददाश्त(Memory power) के लिए गायत्री मंत्र जप अत्यंत सहायक है।

5- जब भी पढ़ाई में ब्रेक लो गायत्री मंत्र जप कर पानी पियो, भावना करो यह ब्रेन टॉनिक है जिसे गंगा माता ने दिया है। यह जल तुम्हारे दिमाग़ को रिलैक्स्ड और एक्टिव बनाएगा। तीन बार डीप ब्रीदिंग करो, सांस लेते समय *सो* मन ही मन बोलो और छोड़ते समय *हम* बोलो। यह *सो$हम* गायत्री का अजपा जप है। यह प्राणों को चार्ज करता है।

6- कुछ भी खाओ या पियो गायत्री मंत्र मन ही मन बोलते हुए उसे स्पर्श करके खाओ, इससे उस भोजन की ऊर्जा बढ़ जाएगी तुम्हे शक्ति सामर्थ्य देगा।

7- रात को सोते वक्त गायत्री मंत्र जपो, गुरुदेव से प्रार्थना करो, परमात्मा हमें अपने आदर्शों पर चला दो, आप गूंगे को बुलवा सकते हो लँगड़े को दौड़ा सकते हो, कंकड़ पत्थर से भी युगनिर्माण करवा सकते हो, आप सर्वसमर्थ हो, तो हे परमपिता मुझसे भी युगनिर्माण करवा लो, मुझे IAS युगनिर्माण हेतु बना दो, मुझसे अपना कार्य करवा लो। आप सर्वसमर्थ हो मुझे अपनी शरण में लो। मुझे सुबह जल्दी ** इस समय उठा देना। फ़िर स्वयं को बालिका की तरह महसूस करते हुए गुरूदेव माता जी के गोद मे सोने का भाव करो, आंख बंद करके गोदी में सो जाओ। एक बात और - हथेलियों, पैर और नाभि में सरसों या नारियल का तेल लगाकर सोना। इससे सुबह तरोताज़ा उठोगी।

तुम सच्चे दिल से पूर्ण समर्पण के साथ प्रार्थना करो, वो स्वयं तुम्हें अपने आदर्शों पर चला लेंगे, निश्चिंत रहो। अंतर्जगत में बैठी गुरु सत्ता तुम्हारा सतत मार्गदर्शन करेगी।

कुछ साहित्य जो लक्ष्य प्राप्ति में सहायक है इन्हें पढो:-

1- सफलता आत्मविश्वासी को मिलती है
2- दृष्टिकोण ठीक रखे
3- सफलता के सात सूत्र साधन
4- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
5- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
6- सफल जीवन की दिशा धारा
7- आगे बढ़ने की तैयारी
8- अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
9- सङ्कल्प शक्ति की प्रचंड प्रक्रिया

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...