Monday 30 August 2021

प्रश्न - आपके आध्यात्मिक ज्ञान का क्या स्रोत है? आपके गुरु कौन हैं?

 प्रश्न -  आपके आध्यात्मिक ज्ञान का क्या स्रोत है? आपके गुरु कौन हैं?


उत्तर- हमारे आध्यात्मिक ज्ञान का स्रोत परमपूज्य गुरूदेव वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी के लिखे साहित्य खज़ाना(3200 से ज्यादा आर्टिकल पर लिखी पुस्तक) है। उनकी लिखी  पुस्तकों का स्वाध्याय के साथ साथ हम अनेकों अन्य आध्यात्मिक लेखकों की पुस्तक भी पढ़ते हैं। यूट्यूब पर आध्यात्मिक ज्ञान पर उपलब्ध कंटेंट भी देखते व सुनते हैं।


इस ज्ञान को धारण करने हेतु मानसिक योग्यता चाहिए, यह योग्यता हमें दैनिक ग़ायत्री साधना व दैनिक संक्षिप्त यज्ञ, वर्ष में एक बार चन्द्रायण साधना, दो नवरात्रि अनुष्ठान से मिलती है।  हम उगते सूर्य का ध्यान, पंचतत्वों के ध्यान, चक्रों के ध्यान व भिन्न भिन्न समय पर प्रेरणानुसार ध्यान की अनेक विधियां करते रहते हैं।


हमारे आध्यात्मिक गुरु परमपूज्य गुरूदेव पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी हैं। हमने ग़ायत्री मन्त्र की दीक्षा ली हुई है। 


हमारे गुरु आध्यात्मिक विद्युत के पॉवरहाउस हैं, उनसे कौन शिष्य कितना लाभान्वित होगा यह उस व्यक्ति की श्रद्धा व समर्पण पर निर्भर करेगा। गुरू की बताई साधना करने पर व गुरु द्वारा दिये गए साहित्य खजाने के स्वाध्याय से गुरु चेतना को धारण करने में मदद मिलती है।


ठाकुर रामकृष्ण जी हो या आदिगुरु शंकराचार्य जी या लाहिड़ी महाशय जी या युक्तेश्वर गिरी जी या परम् पूज्य गुरुदेव पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी सबसे मात्र गुरुदीक्षा लेने भर से उनकी गुरु चेतना सभी शिष्य धारण नहीं कर सकते। उनकी चेतना को धारण करने का मूल्य चुकाना पड़ता है - *करिष्ये वचनम तव* - जो कहोगे वही करूंगा । *वन्दे भवानी शंकरौ, श्रद्धा विश्वास रुपिणौ* - भगवान शंकर व आदिशक्ति श्रद्धा व विश्वास से ही पूजे व भजे जाते हैं।


सभी शिष्य विवेकानंद की तरह ठाकुर रामकृष्ण के क्यों न हुए? सभी शिष्य योगानन्द की तरह युक्तेश्वर गिरि जी के  क्यों न हुए? सभी शिष्य शंकराचार्य जी के पद्मपाद की तरह क्यों न हुए? सभी शिष्य परम पूज्य गुरुदेब के श्रद्धेय डॉक्टर प्रणव पंड्या की तरह क्यों न हुए इत्यादि प्रश्नों के उत्तर यदि ढूढ़ना है तो आपको एक पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए - *आध्यात्मिक विद्या का प्रवेश द्वार* . यह पुस्तक पढ़ने के बाद प्रश्न पूंछने की आवश्यकता ही नहीं रह जायेगी। समस्त आध्यात्मिक बेसिक्स आपके क्लियर हो जाएंगे।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न -1. आर्त, अर्थार्थी, जिज्ञाशु और ज्ञानी भक्तों के आचरण में क्या विभेद है? 2. चैतन्य महाप्रभु, तुलसीदास, सूरदास, मीराबाई की गिनती उपरोक्त किस category के भक्त में आते हैं?

 प्रश्न सूची:

प्रश्न -1. आर्त, अर्थार्थी, जिज्ञाशु और ज्ञानी भक्तों के आचरण में क्या विभेद है?

2. चैतन्य महाप्रभु, तुलसीदास, सूरदास, मीराबाई की गिनती उपरोक्त किस category के भक्त में आते हैं?

3.पतंजलि के अष्टांग योग का मार्ग अपनाने वाले किस केटेगरी में आयेंगे?

4- भक्त, ज्ञानी व योगी के आचरण में क्या भेद है?


उत्तर - यह विभिन्न मनोदशा एवं भक्ति के पीछे के लक्ष्य के आधार पर वर्गीकरण हैं।


1- *आर्त* - भक्ति लक्ष्य - दुःख दूर करने हेतु

जब कोई पीड़ित, व्यथित, असंतुष्ट, दुखित, आर्त होता है, तो अपने मात्र दुःख को दूर करने हेतु भगवान की शरण मे आता है व पूजन करता है। तब वह आर्त भक्ति कहलाती है।


2- *अर्थार्थी* - भक्ति लक्ष्य - धन प्राप्ति

जब कोई धन या वैभव , सुख सुविधा प्राप्ति हेतु भक्ति करता है तो उसे अर्थार्थी कहते हैं।


3- *जिज्ञासु* - भक्ति लक्ष्य - ज्ञान प्राप्ति 

जब कोई ज्ञान व जिज्ञासा शांति हेतु आध्यात्मिक पथ पर बढ़ता है उसे जिज्ञासु कहते हैं।


4- *मुमुक्षु* - भक्ति लक्ष्य - मोक्ष प्राप्ति

जब कोई संसार के भवबंधन से मुक्त होने हेतु भक्ति करता है उसे मुमुक्षु कहते हैं।

5- *दास भक्ति* - भक्ति लक्ष्य - भगवान की निःश्वार्थ सेवा, जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए।

तुलसीदास, सूरदास इत्यादि जितने भी भक्त है जो अपने नाम के आगे दास लिखते हैं, वह इस केटेगरी में आते हैं। 


6- *प्रेमाभक्ति* - भक्तिलक्ष्य - भगवान से प्रेमकरना व प्रेम पाना

मीराबाई, चैतन्य महाप्रभु इत्यादि इस केटेगरी के भक्त है, जो भगवान के प्रेमी है। यह भक्ति मार्ग है, यहां कोई विधिविधान नियम बहुत मानने की आवश्यकता नहीं।


6- *योग मार्ग*- भगवान की भक्ति व आध्यात्मिक यात्रा के अनेक मार्ग है, उनमें से एक मार्ग है योग। योग में भी अनेक मार्ग है - हठयोग, क्रियायोग, सहजयोग, सुदर्शन क्रिया योग इत्यादि। योग का अर्थ है जुड़ना, इसमें योगी स्वयं के अस्तित्व को विभिन्न यौगिक क्रियाओं व साधनाओं द्वारा ईश्वर से जोड़ते हैं। योगी निराकार व साकार साधक में कुछ भी हो सकते हैं। पतंजलि का अष्टांग योग इसी केटेगरी में आएगा।


7- *ज्ञान मार्ग* वह होता है जो भगवान को पाने के लिए प्रेम के साथ ज्ञान मार्ग का सहारा लेता है। सत्संग, स्वाध्याय, वेदाध्ययन व अन्य विधियों से वह भगवान को जानना चाहता है। *ज्ञानी भक्त* इसी केटेगरी में आता है।


8- *कर्मकांड मार्ग* - विभिन्न धार्मिक कर्मकांड को करके व विभिन्न आध्यात्मिक प्रयोग ऊर्जा सृजन हेतु करके ईश्वर प्राप्ति का मार्ग है। इसमें यज्ञ व अनुष्ठान इत्यादि आते हैं।


9- *मांत्रिक मार्ग* - विभिन्न मन्त्र जप व अनुष्ठान से ईश्वर प्राप्ति लक्ष्य या मनोकामना पूर्ति लक्ष्य। 


10- *तांत्रिक मार्ग* - तंत्र अर्थात एक व्यवस्था।विभिन्न भिन्न भिन्न मन्त्र का भिन्न भिन्न ऊर्जाओं के मिश्रण व वस्तुओं के प्रयोग से अभीष्ट प्राप्ति करना। अघोर एवं तांत्रिक इसी केटेगरी में आते हैं।


11- *यांत्रिक मार्ग* - इस मार्ग के साधक वस्तुतः इंजीनियर ब्राह्मण के होते हैं।वह जानते हैं *यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे* - जो शरीर मे है वही ब्रह्मांड में है। नव ग्रह, बारह राशि और सत्ताईस नक्षत्र की आकाशीय स्थिति व ज्यामिति को समझ के यंत्र व मन्त्र के संयोजन से अभीष्ट प्राप्ति करते हैं।


भक्त, योगी व ज्ञानी अलग अलग साधना पद्धतियों व लक्ष्य के कारण अलग अलग आचरण करते हैं। भक्त केवल भगवान के जीवन लीला को पढ़कर रस लेगा। भक्ति गीत गायेगा व उनके ध्यान में डूबेगा। ज्ञानी को भगवान के जीवन लीला में रुचि कम होगी, अपितु भगवान ने अपने जीवन व कर्म व वाणी से जो आध्यात्मिक संदेश दिया वह उसका स्वाध्याय करेगा व ध्यान करेगा। योगी भगवान के विराट अस्तित्व को जोड़ने में व्यस्त होगा, उसे भगवान की लीला पढ़ने में व भक्ति गीत गाने में रुचि नहीं होगी।


*कृष्ण भक्त* - रूप, गुण व उनको प्रेम से रिझाने हेतु भक्ति गीत गायेगा व नाचेगा।


*कृष्ण का ज्ञानी भक्त* - भगवान के श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय व जीवन चरित्र के स्वाध्याय से ज्ञानार्जन करेगा। स्वयं की व लोगो के जीवन की समस्या का समाधान करेगा।


*कृष्ण का योगी भक्त* - विभिन्न यौगिक क्रियाओं द्वारा कृष्ण के अस्तित्व से स्वयं को जोड़ेगा। कृष्णमय बनेगा, दो से एक होगा।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Saturday 28 August 2021

प्रश्न- मनुष्य पशु पक्षियों की तरह सुखी क्यों नहीं? मनुष्य चहकता नहीं, प्रफुल्लित नहीं रहता। चिंता करता है व उलझा रहता है..

 प्रश्न- मनुष्य पशु पक्षियों की तरह सुखी क्यों नहीं? मनुष्य चहकता नहीं, प्रफुल्लित नहीं रहता। चिंता करता है व उलझा रहता है..


उत्तर - पहले इस सामान्य से श्लोक का  गूढ़तम सार समझिए, जो बचपन से पढ़ते आ रहे हैं।


त्वमेव माता च पिता त्वमेव,

त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव !

त्वमेव विद्या च द्रविणं त्वमेव,

त्वमेव सर्वम् मम देवदेवं !!


आसन सा मतलब है…   हे भगवान...!


माता तुम्हीं हो… पिता तुम्हीं हो...


बंधु तुम्हीं हो... सखा  तुम्हीं हो...


विद्या तुम्हीं हो... तुम्हीं द्रव्य...


सब कुछ तुम्हीं हो... मेरे देवता भी तुम्ही हो.


जितनी यह सुंदर प्रार्थना है... उतनी ही प्रेरणादायक


इस प्रार्थना का वरीयता क्रम है...


प्रार्थना में सबसे पहले माता का स्थान है...


क्योंकि अगर माता है तो... फिर संसार में किसी की भी आवश्यकता


नहीं ही... इसलिए हे भगवान...! तुम माता हो...


बाद में पिता हो... अतः हे भगवान...! तुम पिता हो...


अगर दोनों ही नहीं हैं... तो फिर... बंधू... भाई मदत को आएंगे.


इसलिए माता – पिता के बाद तीसरे नंबर पर भगवान से बंधू का


नाता जोड़ा है.


जिसकी ना माता रही... ना पिता... ना भाई...


तब मित्र काम आ सकते हैं... अतः सखा त्वमेवं


अगर... वो भी नहीं ... तो आपकी विद्या... आपका ज्ञान ही


काम आना है.


 

अगर जीवन के संघर्ष में नियति ने आपको


बिल्कुल भी अकेला छोड़ दिया है... तब आपकी विद्या...


आपका ज्ञान ही आपका भगवान बन जाएगा... यही इसका इशारा है.


 

और सबसे अंत में द्रविणं अर्थात धन.


जब कोई पास ना हो... तब हे प्रभु...! हे ईश्वर...


आप हीं धन हो...!


थोड़ी – थोड़ी देर में विचार आता है  कि... प्रार्थना के मुख्य क्रम में


जो धन - द्रविणं सबसे पीछे है... हमारे व्यवहार में सबसे ऊपर


क्यों आ जाता है...? इतना कि... उसे ऊपर लाने के लिए


माता से पिता तक... भाई से मित्र तक...


सभी नीचे चले जाते हैं.... और पीछे छूट जाते हैं.


वह कीमती है... परन्तु उससे ज्यादा कीमती और भी हैं...!


उससे बहुत ऊँचे आपके अपने हैं...!


न जाने क्यों... एक अद्भुत भाव क्रम  दिखाती


यह प्रार्थना ... मुझे जीवन के सूत्र


और रिश्ते - नातों के गूढ़  सिखाती रहती है.


 

याद रखिये... संसार में झगड़ा रोटी का नहीं... थाली का है.


वर्ना... वह रोटी तो सबको देता ही है. 


मग़र वही रोटी कोई पेपर में रखकर, कोई स्टील की थाली में, कोई चाँदी में, कोई सोने की थाली में खाने हेतु जद्दोजहद कर रहा है। वही रोटी कोई खुले आसमान के नीचे तो कोई साधारण घर तो आलीशान घर में खाने की जद्दोजहद में है।


दुनियां का प्रत्येक जीव मनुष्य को छोड़कर रोटी अर्थात भोजन की तलाश में है अतः भोजन मिलते ही सुखी व तृप्त होते हैं, मग़र मात्र मनुष्य ही एक ऐसा है जो रोटी पर फोकस नहीं अपितु मनचाही थाली की तलाश में है, अतः भोजन के बाद भी सुखी व तृप्त नहीं होता। इसलिए मनुष्य पशु-पक्षियों की तरह सुखी नहीं है, चहकता प्रफुल्लित नहीं है।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

धार्मिकता के नाम पर विक्षिप्तता-पागलपन से बचें:-

 धार्मिकता के नाम पर विक्षिप्तता-पागलपन से बचें:-


अध्यात्म स्वयं को जानने, आत्मनिर्भर बनने व स्वयं के मूल स्रोत से जुड़ने का नाम है। गुरुदीक्षा में गुरुदेव इसी अध्यात्म से हमें जोड़ते हैं। प्रत्येक नए साधक को पुस्तक "अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार", "सफलता के सात सूत्र साधन" और "मानसिक संतुलन" सबसे पहले पढ़नी चाहिए और जीवन में अमल में लानी चाहिए।


याद रखें - प्रार्थना व पुरुषार्थ दोनो का संतुलन जीवन मे जरूरी है। प्रत्येक अर्जुन को अपना युद्ध स्वयं लड़ना पड़ेगा, आवश्यकता पड़ी तो अनीति के विरुद्ध अपनों के विरुद्ध भी लड़ना पड़ सकता। मोह सभी समस्या की जड़ है। 


नेक्स्ट पुस्तक - सपने सच्चे भी झूठे भी अवश्य पढ़नी चाहिए, व शिष्य संजीवनी पुस्तक भी उसके बाद पढ़े।


गुरुजी स्वप्न में आये अमुक कहे, गुरूदेव को देखकर बहुत रोना आता है। गुरु जी ही सब ठीक करेंगे, हम कुछ नहीं करेंगे। परिस्थिति का रोना रोना। डिप्रेशन व चिंता का समुद्र तभी है जब मन को यह क्लियर नहीं है कि प्रत्येक आत्मा अकेली जन्मी है और अकेली ही शरीर को त्यागकर जाएगी। 


इस जीवन यात्रा में सभी अलग अलग आत्माएं पूर्व जन्म के फल अनुसार सुख या दुःख देने हमारे माता पिता, सन्तान, रिश्तेदार के रूप आएंगी। हमें उन्हें हैंडल करना पड़ेगा। जीवन मे आने वाले सुख व दुख को बहादुरी से हैंडल करना पड़ेगा। बीमारी में इलाज करवाना पड़ेगा।


यदि आप धर्म मार्ग में है तो बरसात व ठंड आपके लिए न होगी ऐसा नहीं है। बीमारी आपको नहीं होगी ऐसा भी नहीं है। भूख आपको नहीं लगेगी ऐसा भी नहीं होगा।


भगवान कृष्ण के साथ जो सैनिक युद्ध मे थे वह भी मरे थे, जो उनके विरोध में थे वह भी मरे थे। भगवान की बहन का पुत्र भी मृत्यु को प्राप्त हुआ। संसार के समस्त नियम भगवान हो या इंसान सबको पालने पड़ते हैं। 


जन्म से लेकर मृत्यु तक भगवान कृष्ण के जीवन मे संकट ही संकट था क्या किसी ने भगवान कृष्ण को डिप्रेशन में देखा? वह सदैव मुस्कुराते रहे। भगवान राम भी संकट में भी शांत व स्थिर रहे। माता सीता हो या माता राधा संकटमय जीवन मे भी हमेशा स्थिरचित्त रही। बड़े बड़े महापुरुष संकट में भी डटे रहते हैं। अध्यात्म जीवन के संकट से भागना नहीं है, अपितु संकटो का स्थिरचित्त होकर सामना करना है।


संसार मे जिस प्रकार गाड़ी चलाने का हुनर ड्राईविंग ट्रेनर सिखाता है, वह आपके लिए न रोड बनाता है और न ही आपको उम्रभर पेट्रोल खरीद के देता है। न ही उम्रभर आपकी गाड़ी चलाता है। वह बस आपको रास्ते पर गाड़ी चलाने योग्य बनाता है। कैसी भी रोड हो गाड़ी चला सको। अध्यात्म के सद्गुरु भी आपको जीवनपथ पर जीवन की गाड़ी चलाना सिखाते हैं। ईंधन कैसे जुटेगा वह बताते हैं। आपके जीवनपथ को वह नहीं बना सकते, क्योंकि वह पथ आपके पूर्वजन्म के फल अनुसार बना है। उसके गड्ढे आपको ही भरने पड़ेंगे। अपनी जीवन गाड़ी के लिए ईंधन आपको ही पुरुषार्थ से जुटाना पड़ेगा।


प्रार्थना व पुरुषार्थ एक दूसरे के पूरक हैं। अतः धर्म के नाम पर विक्षिप्त मत बनिये, अपितु जीवन के संकटो से निपटने के लिए जीवन जीने की कला सीखिए। बहादुरी से जीवन के संकटो का सामना कीजिये।


💐श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Thursday 26 August 2021

प्रश्न- कर्म के सिद्धांतों को समझने के लिए मेरा यह प्रश्न है। अगर हम निर्भया केस लें या फिर पुलवामा की घटना लें जिसमें terorist अटैक से 40 से ज्यादा जवानों की मौत हो गई, तो ईन घटनाओं के ऊपर मेरा निम्न प्रश्न है।

 प्रश्न- कर्म के सिद्धांतों को समझने के लिए मेरा यह प्रश्न है।

अगर हम निर्भया केस लें या फिर पुलवामा की घटना लें जिसमें terorist अटैक से 40 से ज्यादा जवानों की मौत हो गई, तो ईन घटनाओं के ऊपर मेरा निम्न प्रश्न है।

अगर दुर्घटनाग्रस्त लोगों की दर्दनाक मौत उनकी नियति और प्रारब्ध था, पर अपराध करने वाले लोगों का अपराध करना उनकी नियति नही थी, यह उन्होंने अपने free will का दुरुपयोग कर किया। अगर वे वैसा नही  करतें तो फिर दोनो cases में victims अपने प्रारब्ध को कैसे प्राप्त होते?


उत्तर- मनुष्य कर्म करने में स्वतन्त्र है, मग़र उसके परिणाम के फल पर उसका अधिकार नहीं।


👉🏻निर्भया केस - अकेली लड़की रात को देखकर उसकी रक्षा करना व सकुशल घर पहुंचाना भी कर्म है, जो मानवता का धर्म है। उसके साथ दुष्कर्म करना भी एक कर्म है, मानवता विरुद्ध अधर्म है।  कर्म अनुसार फल मिलेगा।


तीन कर्म एक साथ मिले, तीनों के पास चयन का अधिकार था - 

1- लड़की का कर्म

2- साथी मित्र लड़के का कर्म

3- बस में बैठे दुष्कर्म करने वाले लड़कों का कर्म


लड़की व मित्र लड़का - भारत की वर्तमान परिस्थिति व आये दिनों हो रहे रेप केसों को देखते हुए सुरक्षा बरतते हुए अर्ध रात्रि को पार्टी व फ़िल्म का प्रोग्राम या तो स्थगित कर सकते थे, या अपनी गाड़ी या पर्सनल कैब कर सकते थे। दूसरा लापरवाही बरतते हुए जो उन्होंने किया अर्द्ध रात्रि को बस लेना।


बस में बैठे बस कर्मचारी समूह के लड़के - मन यदि चंचल था तो बस उन यात्रियों के लिए रोकते ही नहीं आगे बढ़ जाते। दूसरा वह किया जो नृशंश हत्या व दुष्कर्म था।


हमारा चयन ही हमारी नियति है। हमारा कर्म ही हमारा भाग्य या प्रारब्ध बनाता है। 


विवेक का प्रयोग जो करने से चूकेगा वह विनाश को निमंत्रण देगा। विवेकहीनता ही विनाश का कारक है। ग़लती सबकी है, किसी की थोड़ी तो किसी की अधिक। प्रत्येक ने जो कर्म किये तदनुसार फल भुगते। कुछ इस जन्म में भुगता व कुछ अगले जन्म में भुगतेंगे।


धर्मराज यदि पत्नी सहित जुआ खेलेंगे तो केवल ग़लती दुर्योधन की नहीं है। दुर्योधन ने विवेक का उपयोग किया, स्वयं न खेलकर शकुनि से पासे फिंकवाये, धर्मराज भी स्वयं न खेलकर भगवान कृष्ण को ले जा सकते थे। अगर कृष्ण सभा मे होते तो क्या द्रौपदी चीरहरण होता?


बुद्धि जो लगाएगा वह विजयी होगा, दुर्योधन व शकुनि बुद्धिमान थे, एवं धर्मराज उस समय नहीं थे इसलिए पराजित हुए व षड्यन्त्र के शिकार हुए। धर्म हो या अधर्म हो, जीतेगा वही जो उस समय सही बुद्धि व रणनीति अपनाएगा। कर्म फल का यही विधान है।


धर्मशील का अर्थ बुद्ध होना है, बुद्धू बनना नहीं। धर्म के रक्षण के लिए बुद्धि, बल व योजना तीनो जरूरी है।


👉🏻 पुलवामा की घटना - कोई भी वृक्ष तब तक नहीं कटता जब तक कुल्हाड़ी में अपने ही कुल की लकड़ी न लगी हो। वैसे ही पुलवामा की घटना बिना लोकल कश्मीरियों के हेल्प के सम्भव नहीं थी। प्रत्येक आतंकी हो या सैनिक दोनो ही कर्म करने के लिए स्वतंत्र है।


युद्ध आमने सामने हो, या युद्ध छद्म हो। तबाही दोनो तरफ निश्चित है। एक्शन का रिएक्शन होगा ही। 


दुर्योधन की सेना एवं युधिष्ठिर की सेना  के सदस्य का आपस मे कोई वैर नहीं था। भारतीय सैनिक व आतंकी सैनिक का, आम जनता का आपस मे कोई व्यक्तिगत वैर नहीं। दोनो सेना ने चयन युद्ध का किया है। भारतीय सेना ने धर्म व देश की रक्षा के लिए हथियार उठाये हैं, आतंकी सेना ने आतंकी आकाओं से प्रेरित होकर हथियार उठाये हैं। यहां दोनो तरफ कर्म में पार्टी स्वतन्त्र है, कर्मफ़ल भी तद्नुसार मिलेगा। 


चयन ही नियति तय करेगा, कर्म के पीछे छुपा कर्म का उद्देश्य व भाव कर्मफ़ल को प्रभावित करेगा।


धन लूटने के लिए मर्डर या आत्मरक्षा में हुआ मर्डर यदि सांसारिक जज के पास जाएगा तो वह दोनो को एक नहीं मानेगा। एक को फांसी तो दूसरे को बरी करेगा। तो भला ऊपरवाला भी तो सर्वोत्तम न्यायकारी जज है, वह भी तो न्याय ही करेगा।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - कर्तव्य पालन की क्या उपयोगिता है?

 प्रश्न - कर्तव्य पालन की क्या उपयोगिता है?


उत्तर- प्रेम जो कर्तव्य से न जुड़ा, प्रेम जो त्याग से न जुड़ा, वो प्रेम विष समान कष्टकर होगा, मृत्यु के समान कष्ट और पीड़ा देगा।


कर्तव्य पालन करना व अधिकारों की उपेक्षा करना सन्तो के लक्षण है।


सेना में प्रत्येक व्यक्ति केवल अपनी चौकी को सुरक्षित करता है और पूरी सीमा सुरक्षित हो जाती है। दीपावली में सब केवल अपने घर दिया जलाते है और पूरा देश रौशन हो जाता है। यदि परिवार में सब अपने अपने हिस्से की जिम्मेदारी बखूबी निभा लें तो घर सहज ही सम्हल जाता है। समय पर उठ जाएं, समय पर भोजन, स्वयं अपने बर्तन साफ कर लें और अपना अपना रूम साफ कर लें, समय पर पढ़ाई कर लें और एक दूसरे के सहयोगी बन जाये। एक दूसरे को थोड़ा वक्त दें तो प्रेम और सहकार से भरा घर धरती का स्वर्ग होता है।


देश मे प्रत्येक व्यक्ति अपने हिस्से के कर्तव्य निबाह ले तो देश धरती का स्वर्ग बन जायेगा।


स्वधर्म - क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए यह सबको पता होना चाहिए।


धर्म का अर्थ यह भी होता है कि मानवीय कर्तव्यों की सूची, do and don't की लिस्ट। जो मनुष्य को कर्तव्य करना चाहिए वह धर्म है, जो नहीं करना चाहिए वही अधर्म है।


धर्म की ब्रांडिंग - सम्प्रदाय है। जैसे मधुमख्खी द्वारा बनाये शहद की ब्रांडिंग पतंजलि, डाबर, वैद्यनाथ इत्यादि करते है। वैसे ही सनातन वैदिक धर्म के साल्ट की ब्रांडिंग हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई और बौद्ध में है। जैसे कुछ कम्पनियां शहद मिलावटी बेचती हैं, वैसे ही कुछ सम्प्रदाय धर्म मे  मिलावट करके फैला रहे हैं।


मार्ग बदलने से मंजिल नहीं बदलती।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - सत्संग की क्या उपयोगिता है?

 प्रश्न - सत्संग की क्या उपयोगिता है?

उत्तर- सत्संग अर्थ होता है- सत्य के साथ संगति करना।


👉🏼 *जैसी संगत वैसी रंगत* वाली कहावत आपने सुनी होगी..तो जब आप सत्य का संगत बनाएंगे तो सत्य आपके भीतर प्रवेश करेगा।


👉🏼 *बच्चे को एक प्रयोग घर में सत्संग पर करके दिखाएं - एक सफेद/हल्के पीले मटर के दाने को सौंफ़ वाली डिबिया बन्द करके 15 दिन रख दो। 15वें दिन तक वो मटर हरी हो जाएगी, उसमें सौंफ की खुशबू आएगी। अर्थात जिस तरह सौंफ की संगत ने मटर की रंगत बदल दी, ऐसे ही जिस प्रकार के *व्यक्तियों/दोस्तों के समूह में आप संगत(उठते-बैठते-गपशप)* करते हो, या जिस प्रकार के *टीवी सीरियल फ़िल्म की आप संगत(देखते-सुनते)* करते हो या जिस प्रकार के *साहित्य की आप संगत(पढ़ते)* हो, उनके गुण अच्छे या बुरे स्वतः भीतर प्रवेश करने लगते हैं।


👉🏼 *सत्संग(सत्य की संगत) करने के उपाय* -


1- अच्छी जीवनोपयोगी और सही मार्गदर्शन करने वाली पुस्तको का स्वाध्याय करना।


2- अच्छी सोच और नेक नियत लोगों का समूह ज्वाइन करना, उनके साथ जीवनोपयोगी और समस्या समाधान परक स्वाध्याय करना या कोई एक पढ़े तो बाकी लोग सुनें। अच्छे अच्छे शब्दों और प्रेरणादायक प्रज्ञा गीत गाना। ब्रह्म सत्य है और आत्मज्ञान पाना ही लक्ष्य है इस पर चर्चा परिचर्चा करना।


3- आत्मउत्थान और राष्ट्रचरित्र निर्माण हेतु योजना बनाना और उन पर चर्चा करना।


4- देवपूजन - श्रेष्ठता का वरण करना, सत्संकल्प बोलना और दोहरवाना। भली सोच और नेकनीयत लोगो का संगठन बनाकर आसपास समाज सेवा की गतिविधियां चलाना।


5- सामूहिक योग-ध्यान-प्राणायाम और आयुर्वेदिक ज्ञान की अवेयरनेस बढ़ाना और लोगों को सिखाना।


ऐसे कार्य जो जीवन मे ऊर्जा का संचार करें, किसी के जीवन को सही राह बतायें इनकी चर्चा परिचर्चा को सत्संग कहते हैं।


👉🏼 *सत्संग के फ़ायदे*:-

1- जीवन में भटकोगे नहीं

2- जीवन मे प्रकाश रहेगा

3- तनावमुक्त रहोगे

4- मन हल्का प्रफुल्लति रहेगा

5- उमंग उल्ल्लास जगेगा तो स्वास्थ्य लाभ मिलेगा

6- घर को व्यवस्थित ज्ञान के माध्यम से मैनेज कर सकोगे

7- जीवन प्रबंधन से जीवन सुखमय होगा

8- कभी भी किसी के गलत बहकावे में नहीं आओगे

9- घर के रिश्ते बेहतर बनेंगे

10- मन का सुकून ऑफिस के कार्य को अच्छे से करने में मदद करेगा

11- आध्यात्मिक उन्नति होगी, तो सर्वत्र खुशहाली होगी

12- सत्संग की महिमा यह है कि यह मनुष्य का चरित्र बदलने की क्षमता रखता है।


👉🏼 *क्या सत्संग नहीं है*

1- फ़िल्मी धुनों पर अर्थहीन भजन गाना

2- बेमतलब की बिन सर पैर की धार्मिक कहानियां बोलना

3- जिस बात से किसी को लाभ न हो उसे दोहराना

4- धार्मिक भावना से लोगो को एकजुट करके वहां चुगली चपाटी करना

5- किटी पार्टी करना


सत्संग के जितने फायदे हैं, उतने ही कुसंग(बुरी संगत/असत्य के संगत) से हानि है। अतः संगत अच्छी पुस्तको, अच्छे वेबसाइट, अच्छे यूट्यूब कंटेंट, अच्छे टीवी फ़िल्म और अच्छे लोगों की करें।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - प्रार्थना की उपयोगिता क्या है?

 प्रश्न - प्रार्थना की उपयोगिता क्या है?

उत्तर- प्रार्थना एक प्रकार का चुम्बक है जो चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है। चुम्बकीय क्षेत्र अदृश्य होता है और चुम्बक का प्रमुख गुण - आस-पास की चुम्बकीय पदार्थों को अपनी ओर खींचने एवं दूसरे चुम्बकों को आकर्षित या प्रतिकर्षित करने का गुण है, ठीक इसी तरह प्रार्थना में पूर्ण श्रद्धा-निष्ठा-भावनायुक्त तल्लीनता से ईश्वर के समक्ष निवेदन की गई अर्जी परमात्मा स्वीकार करता है। प्रार्थना असर दिखाती है और वैसा घटने लग जाता है।


प्रार्थना के चुम्बकीय प्रभाव को बढाने के लिए एक ही अनुरोध सामूहिक प्रार्थना में किया जाता है, जिसे रोगी के उपचार में प्रयोग किया जाता है। इसे (Faith Healing) कहते हैं। इसमें देव और गुरु आह्वान के बाद उस व्यक्ति का एक बार नाम लेकर उसका एक पल के लिए ध्यान किया जाता है जिसके लिए प्रार्थना करनी है। फ़िर प्रार्थना की जाती है।


👉🏼👉🏼 *प्रार्थना* – यह शब्द ‘प्र’ और ‘अर्थ’ से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है *पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ तल्लीनता के साथ ईश्वर से निवेदन करना* । दूसरे शब्दों में प्रार्थना से तात्पर्य है, *ईश्‍वर पर पूर्ण विश्वास करते हुए उससे किसी वस्तु या व्यक्ति के लिए आर्त स्वर में तीव्र उत्कंठा से किया गया निवेदन* ।


प्रार्थना में आदर, प्रेम, आवेदन एवं विश्‍वास समाहित हैं । प्रार्थना के माध्यम से भक्त अपनी असमर्थता को स्वीकार करते हुए ईश्‍वर को कर्ता मान लेता है । प्रार्थना में ईश्‍वर को कर्ता मानने से तात्पर्य है कि हमारा अंतर्मन यह स्वीकार कर लेता है कि ईश्‍वर हमारी सहायता कर रहे हैं और कार्य पूर्ति भी करवा रहे हैं । भक्ति के आध्यात्मिक (भक्तियोग के) पथ पर अग्रसर होने हेतु प्रार्थना, साधना का एक महत्त्वपूर्ण साधन है ।


👉🏼👉🏼👉🏼 *प्रार्थना के नियम*


ईश्वर से अपने मन और ह्रदय की बात कहना प्रार्थना है. प्रार्थना के माध्यम से व्यक्ति अपने या दूसरों की इच्छापूर्ति का प्रयास करता है. तंत्र, मंत्र, ध्यान और जप भी प्रार्थना का ही एक रूप हैं. प्रार्थना सूक्ष्म स्तर पर कार्य करती है और प्रकृति को तथा आपके मन को समस्याओं के अनुरूप ढाल देती है. कभी कभी बहुत सारे लोगों द्वारा की गयी प्रार्थना बहुत जल्दी परिणाम पैदा करती है. ऐसी दशा में प्रकृति में तेजी से परिवर्तन होने शुरू हो जाते हैं।


👉🏼👉🏼👉🏼 *कब किस दशा में और क्यों नहीं स्वीकृत होती प्रार्थना?*


- जब व्यवसाय और लेन देन की तरह की प्रार्थना की जाती है तो असफल होती है


- आहार और व्यवहार पर नियंत्रण न रखने से भी प्रार्थना अस्वीकृत होती है


- अपने माता और पिता का सम्मान न करने से भी प्रार्थना अस्वीकृत होती है


- अगर प्रार्थना से आपका नुक्सान हो सकता है तो भी प्रार्थना अस्वीकृत हो जाती है


- अतार्किक प्रार्थना भी अस्वीकृत होती ही है


- जब प्रार्थना करने वाले का ईश्वर पर पूर्ण विश्वास नहीं होता और संदेह के साथ प्रार्थना करता है। तो भी प्रार्थना अस्वीकृत होती है।


👉🏼👉🏼👉🏼 *क्या है प्रार्थना के नियम?*


- पूर्ण श्रद्धा विश्वास के साथ तल्लीनता से की गई प्रार्थना असर दिखाती है।


- सही तरीके से की गयी प्रार्थना जीवन में चमत्कारी बदलाव ला सकती है


- प्रार्थना सरल और साफ़ तरीके से हृदय से की जानी चाहिए


- यह उसी तरीके से होनी चाहिए जैसे आप आसानी से कह सकते हों और जिसमें आपके उच्च भाव बने


- शांत वातावरण में , विशेषकर ब्रह्ममुहूर्त में की गई प्रार्थना जल्दी स्वीकृत होती है


- प्रार्थना एकांत में करें , और निश्चित समय पर करें तो ज्यादा अच्छा होगा


- दूसरे के नुकसान के उद्देश्य से और अतार्किक प्रार्थना न करें


- अगर दूसरे के लिए प्रार्थना करनी हो तो देव आवाहन और गुरु आह्वाहन के बाद, पहले उस व्यक्ति का  नाम लें और चिंतन करें , तब प्रार्थना की शुरुआत करें


- समूह में की गई श्रद्धा विश्वास युक्त प्रार्थना जल्दी फ़लित होती है 



👉🏼👉🏼👉🏼 *कैसे करें प्रार्थना?*


- एकांत स्थान में बैठें


- अपनी रीढ़ की हड्डी को बिलकुल सीधा रखें


- पहले अपने ईष्ट, गुरु, या ईश्वर का ध्यान करें


- फिर जो प्रार्थना करनी है, करें


- अपनी प्रार्थना को गोपनीय रखें.


- बार बार, जब भी मौका मिले, अपनी प्रार्थना दोहराते रहें


- भगवान आपकी प्रार्थना सुन रहे हैं और इसे स्वीकार करेंगे इस पर पूर्ण विश्वास रखें


👉🏼👉🏼👉🏼 *प्रार्थना के चमत्कार*


युगऋषि द्वारा लिखित पुस्तक 📖 *प्रार्थना को जीवंत कैसे बनाएं* अवश्य पढ़ें।


युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव लिखते हैं कि जब दुनियाँ के समस्त राश्ते बन्द हो जाते हैं। तब ईश्वर से की गई हृदय से प्रार्थना नई उम्मीद-उमंग और हौसला देते है। नए रास्ते मिलते हैं।


प्रार्थना की शक्ति अनन्त है। आत्मबल बढ़ाने और आशा की किरण जगाने का बेहतरीन उपाय है।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - ध्यान की उपयोगिता क्या है?

 प्रश्न - ध्यान की उपयोगिता क्या है?


उत्तर- *ईश्वरीय उपासना और ईश्वरीय चेतना से जुड़ने के दो माध्यम है, जप और ध्यान। यहां केवल ध्यान पर चर्चा करेंगे।*


जप के साथ ध्यान जरुरी है, और ध्यान बिना किसी माध्यम या विचार के  निर्विचार भी किया जा सकता है। अब जैसे निराकार उपासना से साकार उपासना सहज़ होती है। वैसे ही मुख्य ध्यान तक पहुंचने के लिए धारणा के जरिये आसान होता है।

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👉🏼 *धारणा* - एक प्रकार का बीजारोपण है, जिसे आप नेत्र बन्द करके शरीर स्थिर करके कल्पना करते हुए सोचते हैं।


👉🏼 *ध्यान* - ध्यान एक तरह से बीज से पौधा निकलने की तरह है, बीज से आप जबरजस्ती पौधा बाहर नहीं निकाल सकते, लेकिन मिट्टी में बोकर समय समय पर खाद पानी देते रहेंगे तो बीज से पौधा स्वतः निकलेगा। ध्यान स्वतः होता है किया नहीं जाता।


👉🏼 *समाधि* - पौधे से फ़ल निकलना ही समाधि है। यह भी स्वतः होगी।


आपके हाथ में न ध्यान करना है और न ही समाधि। केवल धारणा में एक लक्ष्य पर आप कल्पना करते हुये एकाग्र हो सकते है। बाकी स्वतः होगा।


*दही जमाने के लिए जामन डालकर छोड़ देना होता है। इसी तरह एक विचार लक्ष्य पर एकाग्र हो स्वयं को स्थिर कर देना होता है।*


👉🏼 प्रश्न - *कौन से व्यक्ति के लिए कौन सा ध्यान उपयुक्त रहेगा?*


उत्तर - ध्यान व्यक्ति के हिसाब से नहीं बल्कि रुचि या उसकी समस्या के अनुसार किया जाता है, जैसे किसके किचन में क्या पकेगा यह उसकी रुचि पर निर्भर करता है और उसकी समस्या पर निर्भर करता है।


*स्वास्थ्य लाभ के लिए* - जैसे किचन में स्वास्थ्यकर भोजन पकता है, वैसे ही स्वास्थ्य लाभ के लिए प्राणशक्ति वर्धक (रेकी) वाले ध्यान करते हैं, उदाहरण - चक्रों पर ध्यान, ऊर्जा शरीर की सफाई का ध्यान, आकाश-धरती-वायु-अग्नि-जल से ऊर्जा लेने का ध्यान, रोग मुक्ति के भाव और उसमें प्राणशक्ति ब्रह्माण्ड से संचार का ध्यान।


*चेतना की शिखर यात्रा के लिये और भीतर के ख़ज़ानों की खोज के लिए* - पंचकोश जागरण ध्यान, प्राणाकर्षण ध्यान, उगते हुए सूर्य में समाने का ध्यान, ईष्ट देवता या गुरु से जुड़ने का ध्यान।


*Where attention goes, Energy flows* - आप जिधर विचारों को केन्द्रीभूत करेंगे उसी ओर ऊर्जा प्रवाहित भी होती है और उस ऊर्जा की ग्रहणशीलता भी बढ़ती है। *उदाहरण* - सूर्य की धारणा युक्त ध्यान करने पर सूर्य की शक्तियां, तेज़, प्रखरता, गति और गुण आपमें प्रवेश करेंगे। यदि चन्द्र की धारणा युक्त ध्यान करने पर सूर्य की शक्तियां, शीतलता, स्थिरता और गुण आपमें प्रवेश करेंगे। साधारण शब्दो मे जिसका ध्यान करोगे वैसे हो जाओगे।


👉🏼 प्रश्न - *कौन से वक्त ध्यान करना चाहिए?*


उत्तर - जैसे उत्तम नियम के अनुसार किचन में कम से कम सुबह शाम दो वक्त भोजन बनना ही चाहिए। नहीं तो एक वक्त ही सही बने जरूर। इसी तरह कम से कम दो वक्त सुबह- शाम ध्यान करना चाहिए। न बन पड़े तो एक वक्त जरूर करें। किचन में दोपहर या किसी भी वक्त भोजन तो बन ही सकता है, जब भी बनेगा भूख मिटाएगा। इसी तरह ध्यान भी किसी भी वक्त किया जा सकता है, जब भी करोगे लाभ तो मिलेगा ही।


👉🏼 प्रश्न - *कितने समय तक ध्यान करना अनिवार्य है?*


उत्तर - जिस तरह भोजन में कितनी कैलोरी चाहिए, ये मनुष्य की उम्र, मनुष्य की भूख और उसके वज़न पर निर्भर करता है। इसी तरह ध्यान कम से कम कितनी देर करना आवश्यक है - यह मनुष्य की उम्र, शरीर के वज़न, शरीर का स्वास्थ्य पर निर्भर करेगा। *साधारणतया जो भी आपकी उम्र हो उतनी मिनट का ध्यान दो वक्त अनिवार्य है।*


👉🏼 प्रश्न - *ध्यान किस आसन और शारीरिक स्थिति में करना चाहिए?*


उत्तर - ध्यान हमेशा ढीले और आरामदायक वस्त्र पहन कर करना चाहिए। आसन में ऊनि वस्त्र बिछाकर करना चाहिए। दिशा पूर्व और उत्तर सर्वोत्तम है। बैठकर नेत्र बन्द, कमर सीधी और सुखासन या पद्मासन सर्वोत्तम है। दोनों हाथ एक के ऊपर एक गोदी में या ध्यान मुद्रा दोनों अच्छा है।


 लेटकर भी ध्यान किया जा सकता है। बस कमर सीधी और मुंह आसमान की ओर होना चाहिए।


ध्यान में हथेली हमेशा आकाश की ओर होनी चाहिए।


ध्यान हल्के पेट मे होना चाहिए, कम से कम ध्यान से पूर्व एक घण्टे तक कुछ गरिष्ठ न खायें। जितना हल्का पेट होगा उतना बढ़िया ध्यान लगेगा।


ध्यान की जगह शांत होनी चाहिए, शांत जगह न मिले तो कान में ईयर प्लग या हेडफोन लगा के ध्यान कर लें।


अभ्यस्त हो जाने पर चलते फिरते भी ध्यान होने लगता है, चलते फिरते ध्यान शुरू करने के लिए तीन बार गहरी श्वांस के साथ *सो$हम* बोलते हैं। फिर स्वयं से कहते हैं शरीर चैतन्य है और मन चैतन्य है। मन स्थिर है और शांत है। मैं अवेयर/जागरूक हूँ। अब जिसकी चाहे उसकी धारणा/कल्पना करते हुए ध्यान ऑफिस/यात्रा कहीं भी कर सकते है।


दुनियाँ का कोई भी धर्म हो, उसकी साधना की जड़ ध्यान ही है। सूक्ष्म अंतर्जगत में प्रवेश केवल ध्यान के वाहन द्वारा ही किया जा सकता है। गुह्य से गुह्य दिव्यचेतना युक्त साधनाएं, प्राणस्वरूप उच्चस्तरीय साधनाएं, रेकी, ज़ेन योगा, जैन-बौद्ध-क्रिश्चन-सूफ़ी सबका केंद्र ध्यान ही तो है।

प्रश्न - भजन कीर्तन की उपयोगिता क्या है?

 प्रश्न - भजन कीर्तन की उपयोगिता क्या है?


उत्तर- यह जगत नाद के आधीन है। संगीत चिकित्सा को तो वैज्ञानिक भी मान्यता देते हैं। मन के विसाद को दूर करना हो या मन को ऊर्जावान बनाना हो सङ्गीत मददगार है। सङ्गीत जब भक्तिमय होता है तब उसे भजन कहते हैं।


मनुष्य की भावनाओं की शुद्धि का उत्तम मार्ग भजन कीर्तन है। भजन से भाव सम्प्रेषण आसान होता है। भजन कीर्तन से हम अपने ईष्ट के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ते हैं। यह साधना का एक प्रकार है। 


सही साधनामय जीवन के लिए भावों को साधना बहुत महत्त्वपूर्ण है। भगवान की सभी तप की विधियों, कर्मकांड, साधना में भी भाव ही सबसे महत्वपूर्ण है। हमारे भाव बहुत ताकतवर होते हैं। वे हमें और दूसरों के प्रति हमारी सोच को पूरी तरह बदलने की ताकत रखते हैं। अंसत के भाव हमें ठीक वैसे ही डुबो देते हैं, जैसे वर्षा सद्गजगत को। हममें किसी के प्रति क्रोध का भाव हो, तो पहली बार उसका प्रभाव उतना नहीं होता, जितना दूसरी बार। हर बार उसकी तीव्रता बढ़ती जाती है। हम उसके जाल में ऐसे फंस जाते हैं कि उसे काबू करने की जगह उसके काबू में हो जाते हैं। धीरे-धीरे उसका प्रभाव और तीव्रता, हमारे विवेक और व्यक्तित्व पर पूरी तरह छा जाती है। नकारात्मक भाव हमारे मन का सहारा पाकर जीवित रहे आते हैं। पर यह बात यहां खत्म नहीं होती। जो हमारा भाव है, वही अब दूसरे का भी जाता है। जो गुस्सा पैदा हममें हुआ था, वह अब दूसरे का भी हिस्सा बन जाता है। पर हम जो देते हैं, वह वापिस लेना नहीं चाहते। क्योंकि हमें अपना गुस्सा सही और दूसरे का गलत लगता है।


हमारी भगवान की साधना कितनी भी सशक्त क्यों न हो, जब तक यह नकारात्मक भाव पीछा नहीं छोड़ते, तब तक लक्ष्य पर पहुंचना संभव नहीं होगा। हमारा लक्ष्य है आंतरिक सुख और ज्ञानलोक के स्रोत को ढूंढ़ना, पर उसे पाने के लिए भावों को साधना जरूरी होगा।


हमें अपने अंतर में वह भाव जगाने होंगे, जिन्हें हम दूसरों से पाना चाहते हैं। हमें यह मानना पड़ेगा कि जो हम दूसरों को देते हैं, वह हम तक लौटकर जरूर आयेगा।


ब्रह्माण्ड की शक्तियों से जुड़ने के लिए ही भाव ही एक मात्र उपाय है। भावनाएं परिणाम बदल देती हैं।


तुलसीदास जी कहते हैं:-

*जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत तिन देखी तैसी।*


हम सभी एक ही प्रकार के एटम से बनें हैं, आपस में भावों के माध्यम से और घनिष्ठता से जुड़ जाते हैं। मूर्ति पत्थर की भगवान तब बनती है जब मनुष्य में उसके प्रति भगवान की भावना की प्राण प्रतिष्ठा होती है।


चैतन्य महाप्रभु हो या मीरा बाई उन्होंने भजन के माध्यम से ही इष्ट से भावनाएं जोड़कर उनकी चेतना से एकाकार हुए थे।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - मन्त्र जप की उपयोगिता क्या है?

 प्रश्न - मन्त्र जप की उपयोगिता क्या है?


उत्तर- मंत्र पूर्णत: ध्वनि विज्ञान पर आधारित हैं और ध्वनि के चमत्कारों को विज्ञान मान्यता भी दे चुका है। जिस प्रकार से योग और दूरबोध (टेलीपैथी) को विज्ञान सम्मत करार दिया गया हैं, ठीक वैसे ही मंत्र भी विज्ञान सम्मत है। मंत्र की वास्तविक परिभाषा है-'मननात जायते इति मंत्र' यानी जिनके मनन से (जपने से, ध्यान रहे जाप बिना उच्चारण के भी होता है) जन्म-मृत्यु के चक्कर से छुटकारा मिल जाए वही मंत्र है। इसी तरह जिसके उच्चारण से या बोलने से हमारे समस्त कार्य पूरे हो जाएं वही मंत्र है।


मन्त्र के मुख्यतया तीन प्रकार है - वैदिक, तांत्रिक व शाबर मंत्र


वैदिक मन्त्र - वृहद प्रभाव, देर से सिद्धि, लंबे समय तक प्रभाव बना रहता है। दक्षिण मार्गी साधना। उदाहरण - ग़ायत्री मन्त्र


तांत्रिक - कम समय तक प्रभाव, वैदिक की अपेक्षा जल्दी सिद्धि, सृजन कम विनाश ज्यादा। वाममार्गी साधना। उदाहरण - वशीकरण मंत्र


शाबर मंत्र - अत्यंत छोटे विशेष उद्देश्य के लिए साधना, जल्दी सिद्धि व अत्यंत कम व सीमित प्रभाव, उदाहरण - मधुमक्खी उड़ाने का शाबर मंत्र


दक्षिण मार्गी मन्त्र साधना में भी तीन प्रकार के मन्त्र है :-


1- नाम मन्त्र - किसी देवी देवता के नाम का उच्चारण - उदाहरण ॐ नमः शिवाय


2- दैवीय शक्ति को स्वयं में धारण करने के मन्त्र - उदाहरण - गायत्रीमंत्र


3- बीज मंत्र - दैवीय शक्तियों के बीज को जागृत करना - उदाहरण - *क्लीं*


सभी मन्त्र को सिद्ध करने के नियम व विधिव्यवस्था है। ग़ायत्री मन्त्र 24 अक्षर से बना है व 24 लाख जप विधिपूर्वक जप करने पर सिद्ध हो जाता है।


मन्त्र गुरु धारण करने के बाद गुरु के मार्गदर्शन में जपने की सलाह दी जाती है। यहां गुरु अपने तप का एक अंश देकर शिष्य साधक को संरक्षण प्रदान करता है।


मगर बिना गुरु धारण के भी मन्त्र जप किया जा सकता है, यहां साधक को स्वयं का संरक्षण स्वयं करना पड़ता है।


गुरु वशिष्ठ व विश्वामित्र की श्रेणी का होना चाहिए। वशिष्ठ तप में सवाकरोड़  ग़ायत्री मन्त्र जप के बाद गुरु बनता है और पीड़ित मानवता की सेवा व प्रकृति संरक्षण के कार्यो से गुरु विश्वामित्र बनता है।


मन्त्र तभी जीवंत बनता है, जब उसमें श्रद्धा व विश्वास किया जाता है।


दोनो हथेली को लगातार रगड़ो तो गर्म हो जाती है, रगड़ से ऊर्जा उतपन्न होती है। टाइपराइटर की तरह मन्त्र उच्चारण से सूक्ष्म नाड़ियां झंकृत होती है, मंत्रों के निरंतर जप व सूक्ष्म रगड़ से ऊर्जा उतपन्न होती है।


ग़ायत्री मन्त्र जप पर आध्यात्मिक रिसर्चर ऋषियों ने तो बहुत कुछ इसकी महिमा का गुणगान करते हुए लिखा ही है। मग़र आधुनिक जगत के कुछ चिकित्सक समूह की रिसर्च भी इंटरनेट पर मन्त्र के सम्बंध में उपलब्ध है जिसे देखा जा सकता है। यूट्यूब पर डॉक्टर रमा जयसुन्दर की रिसर्च देख सकते हैं।


मुंह का अग्निचक्र उपांशु जप में आध्यात्मिक ऊर्जा का बेहतरीन उत्पादन करता है। मन्त्र जप के समय उगते सूर्य का ध्यान या माता ग़ायत्री का ध्यान लाभ दायक है। ग़ायत्री मन्त्र की निराकार साधना में प्रकाश मात्र के ध्यान का भी उपयोग किया जाता है।


गुरुकुल में शिक्षा से पूर्व ग़ायत्री मन्त्र जप बुद्धिकुशलता बढाने हेतु विद्यार्थियों से करवाया जाता था।


रिसर्च कहती है कि जो विद्यार्थी ब्रह्ममुहूर्त में ग़ायत्री मन्त्र कम से कम 108 मन्त्र बार जपते हैं, उनके दिमाग़ शांत व बुद्धि प्रखर होती है। उन में अच्छे हार्मोन्स का रिसाव होता है व उन्हें स्वास्थ्य लाभ भी मिलता है।


ग़ायत्री मन्त्र की आध्यात्मिक उपलब्धियां अनन्त हैं, असम्भव भी सम्भव कर सकता है जो साधक 24 करोड़ मंत्रों का जप कर लेता है।


छोटा सा प्रयोग खुद भी करके देख सकते हैं- 40 दिन में सवा लाख मन्त्र का ग़ायत्री जप अनुष्ठान करके स्वयं इसकी शक्तियों को अनुभूत कर सकते हैं।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 25 August 2021

प्रश्न - क्या आध्यात्मिक साधना शारिरिक, मानसिक और सांसारिक स्तर पर भी सफलता पाने में सहायक हो सकता है?

 प्रश्न - क्या आध्यात्मिक साधना शारिरिक, मानसिक और सांसारिक स्तर पर भी सफलता पाने में सहायक हो सकता है?


उत्तर - जी हाँ, इसे एक उदाहरण से समझिए:-


मानवीय चेतना के पांच स्तर होते हैं:-


1- देव मानव

2- महामानव

3- मानव

4- पशु मानव

5- मानव पिशाच


मनुष्य जब जन्म लेता है, तब उसकी चेतना बीच में होती है, वह आध्यात्मिक अभ्यास व श्रेष्ठ कार्यो से ऊपर की ओर ऊर्ध्वगमन भी कर सकता है। साथ ही कुसंगति व गलत कार्यो से नीचे की ओर भी लुढ़क सकता है।


मान लीजिए किसी व्यक्ति की गाड़ी का पहिया गड्ढे में फंस गया। चिंता व अवसाद ने उसे घेर लिया।


वह मन को राहत देने के लिए व समस्या के समाधान ढूंढने के लिए या तो दो बोतल दारू पी सकता है या आध्यात्मिक अभ्यास शांत स्थिर ध्यानस्थ हो कुछ योग या मन्त्र जप सकता है। दोनों ही तरीके मन को राहत देंगे, एक का प्रभाव क्षणिक और दूसरे का प्रभाव स्थायी होगा।


दारू पीने से चेतना निम्न स्तर पर होगी और समस्या का बॉटम व्यू मिलेगा। समस्या बड़ी दिखेगी व उलझी हुई दिखेगी।


आध्यात्मिक साधना से चेतना ऊर्ध्वगमन करेगी व समस्या का टॉप व्यू(बर्ड व्यू) मिलेगा। जिससे समस्या हमारी मानसिक स्तर से छोटी व क्लियर दिखेगी। एकाग्रता समस्या का समाधान ढूढ़कर देगी। 


आध्यात्मिक अभ्यास से मिली शक्ति व एकाग्रता से पुरुषार्थ सही दिशा व सही तरीके से करने में मदद मिलेगी। सफलता मिलेगी।


अध्यात्म दिशा देता है, विज्ञान गति देता है। अध्यात्म ईंधन है, विज्ञान इंजन है। जीवन मे दोनो की जरूरत है।


शरीर को मन नियंत्रित व संचालित करता है, मन को आत्मा नियंत्रित व संचालित करती है। 


मन बहुत अच्छा सेवक और बहुत बुरा  मालिक है। मन पर यदि अध्यात्म की लगाम हो तो यही मन सभी क्षेत्रों में सफल बनाता है। अन्यथा बेलगाम यही मन पतन की ओर ले जाएगा।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक तीनों स्तर के संतुलन का सूत्र(फार्मूला) क्या है? यह संतुलन हमारे भीतर है या नहीं इनके मापदंड व संतुलन होने के लक्षण क्या है?

 प्रश्न - शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक तीनों स्तर के संतुलन का सूत्र(फार्मूला) क्या है? यह संतुलन हमारे भीतर है या नहीं इनके मापदंड व संतुलन होने के लक्षण क्या है?


उत्तर- आईए पहले समझते हैं कि शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य व आध्यात्मिक स्वास्थ्य पाने के उपक्रम क्या है? क्योंकि यही उपक्रम संतुलन के कारक हैं।


👉🏻शारीरिक स्वास्थ्य हेतु - अच्छा संतुलित पौष्टिक स्वास्थ्यकर आहार व व्यायाम


👉🏻मानसिक स्वास्थ्य हेतु - अच्छा संतुलित मन को पोषण देने वाले अच्छे विचार व उनका चिंतन, सत्संगति, योग व प्राणायाम


👉🏻 आध्यात्मिक स्वास्थ्य हेतु - ध्यान, अन्तरयोग, मन्त्र जप व विभिन्न अन्य यौगिक पद्धतियां व साधनाएं


उपरोक्त यदि दैनिक जीवन में शामिल है तो संतुलन की व्यवस्था होगी। स्वस्थ शरीर मे स्वस्थ मन का निवास होगा। स्वस्थ मन आध्यात्मिक साधनाओं में मददगार होगा।


जिस साधक के अंदर शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक संतुलन होगा, उसके अंदर निम्नलिखित कुछ मुख्य गुण व लक्षण दिखेंगे:-


1- वह सदा होशपूर्वक जियेगा व साक्षी भाव में रहता हुआ आनन्दित महसूस करेगा।

2- शरीर व मन ऊर्जावान होगा, बच्चों की तरह निश्छल होगा।

3- विपरीत परिस्थिति में विचलित नहीं होगा। स्थिर प्रज्ञ रहेगा।

4- समस्या गिनने वाला नहीं होगा, समस्या का समाधान ढूढने वाला होगा।

5- किसी से कोई द्वेष व ईर्ष्या नहीं होगी, कोई किसी से उम्मीद न होगी। तो उसके भीतर आवश्यक क्रोध नहीं होगा।

6- परिस्थिति जिसे नियंत्रित कर सकेगा उस पर नियंत्रण करेगा, जो उसके हाथ मे नहीँ उसे सहज स्वीकार लेगा।

7- निन्दा-गाली व प्रशंशा-स्तुति दोनो ही उसके लिए समान है।

8- कण कण मे आत्मवत सर्वभूतेषु अनुभव करेगा और उसका कोई शत्रु शेष नहीं होगा। वह पीड़ित मानवता का दुःख व सुखी मनुष्य का सुख दोनो अनुभव कर सकेगा, क्योंकि वह उनसे स्वयं को अलग न कर सकेगा। भाव संवेदना से लबालब होगा।

9- जब जहां वह होगा, बस वहीं उस क्षण व उस पल मे होगा। साधारण मनुष्यो की तरह भूतकाल के खंडहर व भविष्य के झूले झूलने की कल्पना से दूर होगा।

10- मैं आज जो हूँ जैसा हूँ जो भी भाग्य या प्रारब्ध है, उसके लिए एकमात्र मैं ही जिम्मेदार हूँ। मेरी किस्मत मैंने ही लिखी है। मनुष्य जो बोता है वही काटता है। मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है। इस पर अटूट विश्वास होगा।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 24 August 2021

प्रश्न - हमारा existence शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक तीनों स्तरों पर है जो आपस में जुड़े हैं और उन्हें isolation में नहीं देखा जाना चाहिए। एक संतुलित जीवन के लिए तीनों स्तरों पर समन्वय रख कर जीवन जीने की जरूरत है। क्या आप उपरोक्त विचारों से सहमत हैं?

 प्रश्न - हमारा existence शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक तीनों स्तरों पर है जो आपस में जुड़े हैं और उन्हें isolation में नहीं देखा जाना चाहिए। एक संतुलित जीवन के लिए तीनों स्तरों पर समन्वय रख कर जीवन जीने की जरूरत है। क्या आप उपरोक्त विचारों से सहमत हैं?


उत्तर- जी, हम उपरोक्त कथन से सहमत हैं। 


शरीर बिना आत्मा शव है, आत्मा बिना शरीर प्रेतात्मा है जो अक्रिय हो जाती है। केवल वही उच्च स्तर की आत्मा बिना शरीर के सक्रिय हो सकती है जिसका सूक्ष्म शरीर तप द्वारा पूर्णतया निर्मित हो।


अतः संसार मे अस्तित्व के लिए शरीर व आत्मा एक दूसरे के पूरक हैं। अतः शारीरिक स्तर अनिवार्य है।


मनुष्य जीवन पशु से भिन्न मात्र मानसिक विशेषताओं - मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार के कारण ही है। पाषाण युग से वर्तमान टेक्नोलॉजी युग तक का सफ़र इन्ही मानसिक विशेषताओं के कारण है। अन्य पशु पक्षी व जीव पाषाण युग मे जैसे थे आज भी वैसे ही है। पदार्थ का ज्ञान व उपयोग बुद्धि प्रयोग से ही सम्भव है। अतः सांसारिक  सफलता हेतु मानसिक स्तर का विकास अनिवार्य है।


आत्मा का अध्ययन , स्व की खोज ही अध्यात्म है। मैं क्या हूँ? क्यों हूँ? मेरी असली शक्ति व सामर्थ्य क्या है? इत्यादि का ज्ञान अध्यात्म द्वारा ही सम्भव है।  चेतना का ज्ञान व चेतना का प्रयोग अध्यात्म से ही सम्भव है।


मन के वैसे तो कई भाग है, हम यहां मोटे स्तर पर दो में विभाजित कर रहे हैं। बहिर्मन व अंतर्मन। अध्यात्म की यात्रा का प्रारम्भ मन से ही शुरू होता है जो मन से परे जाकर खत्म होता है। जिज्ञासा ब्रह्म व आत्मा को जानने की मन में ही उपजती है, प्रयास मन से ही प्रारम्भ होता है।


वैसे जीवन जिया तो पशुवत केवल शारीरिक स्तर पर भी जा सकता है। लेकिन मानसिक क्षमता के प्रयोग से पशु से ऊपर उठकर मनुष्य श्रेणी में आया जाता है। जिया तो केवल मनुष्य रहकर भी जा सकता है, लेकिन आध्यात्मिक क्षमता के प्रयोग से देवमानव की श्रेणी में आया जा सकता है। व क्रमिक साधना से आत्मज्ञान व परमात्मा का साक्षात्कार भी स्वयं में ही किया जा सकता है। 


🙏🏻 अतः शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक स्तर तीनो एक दूसरे के पूरक है। इनका अलग से कोई अस्तित्व नहीं। इनकेबीच  संतुलन अनिवार्य है।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday 6 August 2021

बालसंस्कारशाला क्लास: 5 - क्या भगवान है? जिसे देखा नहीं जा सकता उसे क्यों माने?

 क्लास: 5 - क्या भगवान है? जिसे देखा नहीं जा सकता उसे क्यों माने?

(युगानुकूल गुरुकुल  - बालसंस्कार शाला)


अध्यापिका महोदया ने ब्लैक बोर्ड पर लिखा - "क्या भगवान हैं? यदि हाँ तो साबित करो और यदि नहीं है तो साबित करो..."


(दो ग्रुप में बच्चे बंट गए, एक जो भगवान के अस्तित्व के समर्थक थे व दूसरा ग्रुप जो भगवान नहीं है मानता है)


आस्तिक ग्रुप - हमारे माता पिता व घर के सभी सदस्य भगवान को मानते हैं, इसलिए हम सब भगवान के अस्तित्व को स्वीकारते हैं।


नास्तिक ग्रुप - हममें से किसी ने भगवान नहीं देखा, फ़िर हम भगवान के अस्तित्व को क्यों माने?


आस्तिक ग्रुप - देखा तो तुमने हवा को भी नहीं और सूक्ष्म रोगाणुओं और जीवाणुओं को भी नहीं। हवा से सांस लेते हो, रोगाणुओं से बीमार पड़ते हो और जीवाणु तुम्हारा भोजन पचाते हैं।


नास्तिक ग्रुप - लेक़िन हवा, रोगाणु व जीवाणु का अस्तित्व वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में सिद्ध किया है.. भगवान को किस वैज्ञानिक ने सिद्ध किया है?


आस्तिक ग्रुप - भगवान के अस्तित्व को आध्यात्मिक वैज्ञानिक ऋषियों ने सिद्ध किया है, उन्हें विभिन्न शास्त्र में भी लिखा है। जिस तरह रोगाणु व कीटाणु तुम आंख से नहीं देख सकते, वैसे ही भगवान इन स्थूल नेत्र से देखे नही जा सकते। उसके लिए आत्मदृष्टि चाहिए ऐसा मेरी मम्मी कहती हैं। शंकर भगवान के तृतीय नेत्र की तरह हम सबके भीतर भी एक अंतर्दृष्टि है जो जन्म से बंद होती है, उसे तप साधना के माध्यम से खोलना पड़ता है। मैडम क्या इसे आप हमें अच्छे से समझा दीजिये।


(अध्यापिका मैडम ने स्कूल गार्ड से दूध, दही व मख्खन मंगवाया, साथ ही थोड़ा चीनी पावडर,  कांच की ग्लास, पानी और चम्मच मंगवाया।)


अध्यापिका महोदया - बच्चों इस ग्लास में तुम्हें क्या दिख रहा है? क्या तुम्हें इसमें मक्खन दिख रहा है?


विद्यार्थी - मैडम, इसमें तो केवल दूध दिख रहा है, मख्खन नहीं..


अध्यापिका महोदया - लेक़िन इस दूध में मुझे तो मख्खन भी दिख रहा है.. क्या तुम बता सकते हो यह दही और मख्खन किससे बना है?


विद्यार्थी - हाँजी मैडम, यह तो दूध से ही बना है। पहले दूध उबलेगा, फिर मलाई जमेगी। दूध से दही बनाकर भी मथकर मख्खन निकाल सकते हैं। और केवल मलाई निकालकर भी मख्खन बनता है।


अध्यापिका महोदय - तो क्या मख्खन दूध में से निकला या बाहर से आया?


विद्यार्थी - मख्खन तो दूध से ही निकला


अध्यापिका महोदय - दूध के कण कण में जैसे मख्खन मौजूद है, लेकिन उसी मख्खन को प्राप्त करने के लिए दूध को उबालने से लेकर मलाई से मख्खन निकालने का उपक्रम अपनाना पड़ता है। वैसे ही भगवान हम सब के अस्तित्व में घुला हुआ है। अपने भीतर के ईश्वर को प्रकट करने व अनुभूत करने के लिए हमें भी तप-साधना करनी पड़ती है। तभी हम स्वयं के भीतर उस परमात्मा को प्राप्त कर सकते हैं।

😊

चलो एक दूसरे प्रयोग से समझते हैं, यह ग्लास पानी है और इसमें मैंने चीनी पावडर घोल दिया। अब यह बताओ क्या चीनी दिख रही है?


विद्यार्थी - नहीं, चीनी नहीं दिख रही


अध्यापिका महोदया- तो जो दिख नहीं रहा उस चीनी का पता लगाने के लिए कि वह इस ग्लास में है या नहीं? हमको क्या करना पड़ेगा?


विद्यार्थी - मैडम हमें पानी पीकर चखना पड़ेगा, यदि मीठा हुआ तो इसमें चीनी है। मिठास अनुभव करनी पड़ेगी।


अध्यापिका महोदया - सही कहा, ऐसे ही ईश्वर जो दिख नहीं रहा और प्रकृति के कण कण में समाया है। उसे हम मन्त्र जप, प्रार्थना और ध्यान के माध्यम से अनुभूत कर सकते हैं। 


यह सृष्टि है तो इसे बनाने व चलाने वाली सत्ता भी है, जिसे हम भले स्थूल नेत्रों से देख न सकें, उसे किसी भी नाम से पुकारे, मग़र वह भगवान है। हम उसे अनुभव आध्यात्मिक प्रयास के द्वारा कर सकते हैं।


सभी विद्यार्थियों ने सहमति में सर हिलाया।


(यह मेरे स्वप्न का गुरुकुल है जो एक न एक दिन जब ईश्वर साथ देंगे व गुरुकृपा होगी तब खोलूँगी - लेखक - श्वेता चक्रवर्ती)


क्रमशः....

Thursday 5 August 2021

बालसंस्कारशाला क्लास -1 :- जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि

 क्लास -1 :- जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि


युगानुकूल गुरुकुल  - बालसंस्कार शाला - जो नज़रिया पढ़ाता है। 


(यह मेरे स्वप्न का गुरुकुल है जो एक न एक दिन जब ईश्वर साथ देंगे व गुरुकृपा होगी तब खोलूँगी - लेखक - श्वेता चक्रवर्ती)


पैरेंट्स टीचर मीटिंग थी व सभी माता पिता व बच्चों को रँग बिरंगे चश्मे पहनने को दिए गए। यह ध्यान रखा गया कि माता पिता व सन्तान अलग अलग रँग के चश्में पहने।  


ऑडिटोरियम में एक बच्ची को सफ़ेद रंग की फ्रॉक पहना कर स्टेज में बुलाया गया। फ़िर सबसे कहा गया कि रँग पहचानों कि किस रँग की फ्रॉक है। जिस रँग का जिसने जो चश्मा पहना था सबको वही रँग का ड्रेस दिख रहा था। काले चश्मे वालो ने काला कहा और हरे वालो ने हरा कहा। बच्चे भी अपने अपने चश्मे अनुसार रँग देख रहे थे। झगड़े होने लगे व सब अपनी बात को सिद्ध करने लगे।


फिर प्रिंसीपल आई व उन्होंने चश्मा उतारने को कहा व बोला अब देखो, सब हतप्रभ थे। अरे यह तो सफ़ेद रंग का ड्रेस है।


प्रिंसिपल मैडम ने कहा - जिसकी जैसी दृष्टि उसकी वैसी सृष्टि, जैसा नजरिया वैसा नज़ारे। 


हम यदि ख़ुश होते हैं तो ख़ुशी का चश्मा लगा होता है तो हम बच्चे की गलती इग्नोर कर देते हैं। लेकिन वही जब हम दुःखी होते हैं तो और आंखों में दुःख का चश्मा होता है, तब बच्चे की छोटी सी गलती पर भी बड़ी प्रतिक्रिया दे देते हैं।


वही बारिश प्रेमी युगल के लिए प्रेम का संदेश है, तो तलाकशुदा के लिए वही बारिश तेजाब से कम कष्टकर नहीं। बारिश तो वही मग़र अनुभव अलग...


अपने अपने पूर्वाग्रह के चश्मे से दुनियां देख रहे हैं, अपने बचपन से मिले संस्कारो के चश्मे से दुनियां देख रहे हैं। यह दुनियां तो इस बच्ची की फ्रॉक की तरह है सबके लिए एक जैसी है, लेकिन आप लोगों की आंख में लगे चश्मे की वजह से सबको अलग अलग महसूस हो रही है।


कोई भी निर्णय लेने से पूर्व, किसी पर भी प्रतिक्रिया देने से पूर्व यह जरूर सोचे कि कहीं यह मेरे पूर्वाग्रह से प्रेरित तो नहीं.. जो जैसा है वह वैसा समझ के बिना पक्षपात के ही निर्णय ले रहे हैं न... तब जो निर्णय होगा सही होगा।


क्रमशः...

बालसंस्कारशाला क्लास: 2 - संगति का असर व लोगों का आपके प्रति उसके कारण बनता दृष्टिकोण

 क्लास: 2 - संगति का असर व लोगों का आपके प्रति उसके कारण बनता दृष्टिकोण


युगानुकूल गुरुकुल  - बालसंस्कार शाला 


(यह मेरे स्वप्न का गुरुकुल है जो एक न एक दिन जब ईश्वर साथ देंगे व गुरुकृपा होगी तब खोलूँगी - लेखक - श्वेता चक्रवर्ती)


ऑडिटोरियम में लाइटिंग की व्यवस्था कुछ ऐसे है कि लाइट नीचे व ऊपर से कुछ इस तरह आ रही है कि वहां खड़ा व्यक्ति व उसकी ड्रेस उसी रँग में रंगी दिखती है।


प्रिंसिपल मैडम ने तीन श्वेत वस्त्र पहने बच्चों को तीन जगह पर लाईट लगी जगह पर खड़ा किया। लाइट के रँग प्रभाव के कारण कोई लाल, कोई नीला व कोई हरा दिख  रहा था।


मैडम ने ऑडिटोरियम के मंच का पर्दा हटाया और वहां बैठे माता-पिता व बच्चों से पूँछा कि तीनों बच्चों के वस्त्र के रँग बताओ। सबने क्रमशः लाल, नीला व हरा रंग बता दिया। प्रिंसिपल मैडम ने उन रंगीन लाइट को बंद करने के निर्देश दिए व सब हतप्रभ थे कि अरे यह तो तीनों के रँग सफेद हैं।


प्रिंसिपल मैडम ने कहा - हम किसके साथ खड़े हैं इस पर निर्भर करता है कि लोग हमारे बारे में क्या राय बनाएंगे व हमारा मन किनके रँग में रंगेगा।


यदि कोई बच्चा किसी ग़लत कार्य करने वाले बच्चों के साथ समय बिताता है, तो वह उनके दुर्गुण में धीरे धीरे रंगने लगेगा व उनके जैसा एक दिन बन जायेगा।


यदि कोई बच्चा किसी अच्छे कार्य करने वाले बच्चों के साथ समय बिताता है, तो वह उनके सद्गुण में धीरे धीरे रंगने लगेगा व उनके जैसा एक दिन बन जायेगा।


आप किस स्थान पर खड़े हैं वह भी आपके बारे में लोगो की राय तय करेगा। आप मन्दिर में हाथ जोड़े खड़े हैं तो लोगो की राय आपके धार्मिक होने ही होगी। आप पब में बैठे हैं तो लोगों की राय आपके शराबी होने की होगी। 


आप कहाँ व किसके साथ हैं, व क्या कर रहे हैं, वह आपकी पहचान बन जाता है। जैसी संगति वैसा रंगत एक न एक दिन चढ़ जाता है।


अतः मित्र समूह सही चुने, शोशल दबाव व मित्रों के दबाव में ग़लत संगति में न पड़े।


क्रमशः....

बालसंस्कारशाला क्लास: 3 - अपनी असली क्षमता की पहचान - बड़ी वज़ह - burning desire

 क्लास: 3 - अपनी असली क्षमता की पहचान - बड़ी वज़ह - burning desire 

(युगानुकूल गुरुकुल  - बालसंस्कार शाला)


स्कूल के मैदान में सभी बच्चे रेस में दौड़ने के लिए खड़े थे, प्रांगण में दर्शक दीर्घा के स्थान पर बच्चों की रेस देखने को माता पिता बैठे थे।


प्रिंसिपल मैडम ने मंच पर माईक से कहा, दौड़ने से पहले यह बताओ बच्चों! तुम व तुम्हारे माता-पिता व अध्यापक क्या तुम्हारी असली स्पीड जानते हैं? कि तुम कितना तेज भाग सकते हो?


सब बच्चों ने सहमति में सर हिलाया..हाँ जानते हैं..


ठीक है, प्रिंसीपल मैडम ने आगे कहा, जो जीतेगा उसे एक सप्ताह की बिना होमवर्क की छुट्टी मिलेगी? अब बताओ तुम्हारी स्पीड दौड़ की पहले से तेज होगी या नहीं।


सब बच्चों ने सहमति में सर हिलाया..बोले हाँजी मैम अब दौड़ने की यह वज़ह हमे और ज़्यादा स्पीड देगी..


ठीक है, प्रिंसीपल मैडम ने आगे कहा, उन्होंने इशारा किया तो कुछ पुलिस वाले कुछ ख़तरनाक भौंकते कुत्ते लेकर मैदान में लेकर आये, जिसे देख बच्चे भयभीत हो गए। बच्चों यदि यह खतरनाक कुत्ते तुम्हारे पीछे छोड़ दिये जायें तो... अपनी जान बचाने के लिए

अब बताओ तुम्हारी स्पीड दौड़ की पहले से तेज होगी या नहीं...


सब बच्चों ने सहमति में सर हिलाया..बोले हाँजी मैम अब दौड़ने की यह वज़ह - जान बचाने के लिए हम जी जान लगाकर दौड़ेंगे, हमे यह वजह पहले से और ज़्यादा स्पीड देगी..


ठीक है, प्रिंसीपल मैडम ने आगे कहा, एक कल्पना करो कि तुम्हारी माता का एक्सीडेंट हो गया और जान बचाने के लिए एक लाख रुपये की जरूरत है। यदि यह रेस जीतोगे तो ही माँ की जान बचेगी, अब बताओ तुम्हारी स्पीड दौड़ की पहले से तेज होगी या नहीं..


सब बच्चों ने सहमति में सर हिलाया..बोले हाँजी मैम अब दौड़ने की यह वज़ह -  माँ की जान बचाने के लिए हम जी जान लगाकर दौड़ेंगे, हमे यह वजह सबसे ज़्यादा स्पीड देगी..


प्रिंसिपल मैडम ने कहा, जिंदगी की रेस हो या यह रेस हमारी स्पीड व क्षमता वह वजह(कारण-लक्ष्य- burning desire) तय करता है, जिसके लिए हम दौड़ रहे हैं। पढ़ाई की स्पीड भी यही वज़ह तय करेगी।


तुममें से जीतने के प्रति जिसके पास बड़ी वज़ह (burning desire) मन मे होगी? जिसे पता होगा कि यह रेस जीतना मेरे लिए क्यों जरूरी है? वही इस रेस को जीतेगा। बिना किसी वजह के हमें अपनी असली क्षमता की पहचान नहीं हो पाती।


अतः आंख बंद करके अपनी असली स्पीड जो छुपी है उसे बाहर निकालो, मन को मजबूत करो और शरीर के साथ मन से भी दौड़ लगाओ। पूरी एकाग्रता से दौड़ो।


भगवान कृष्ण ने कहा - कर्म करो फल की चिंता मत करो


तुम्हारे हाथ में केवल तुम्हारा प्रयास है, तुम्हारा फोकस दौड़ते वक़्त दौड़ पर केंद्रित होना चाहिए, जीत व हार पर नहीं। 


सीटी बजती है और बच्चे दौड़ते हैं, मग़र सारे माता-पिता अपनी जिंदगी की रेस की वजह तलाशते हैं कि उनकी जीवन की रेस की वज़ह (burning desire) क्या है?


बच्चे भी सोचते हैं कि हमारे पढ़ने के पीछे की वज़ह (burning desire)  क्या है?  हम क्यों पढ़ रहे हैं? यह जानेंगे तभी बेहतर परफार्म कर पाएंगे।


(यह मेरे स्वप्न का गुरुकुल है जो एक न एक दिन जब ईश्वर साथ देंगे व गुरुकृपा होगी तब खोलूँगी - लेखक - श्वेता चक्रवर्ती)


क्रमशः....

बालसंस्कारशाला क्लास: 4 - हम सुधरेंगे युग सुधरेगा -यदि परिवर्तन चाहते हो तो परिवर्तन का हिस्सा बनो

 क्लास: 4 - हम सुधरेंगे युग सुधरेगा -यदि परिवर्तन चाहते हो तो परिवर्तन का हिस्सा बनो

(युगानुकूल गुरुकुल  - बालसंस्कार शाला)


अध्यापिका महोदय ने ब्लैकबोर्ड पर युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा का दिया उद्घोष लिखा - "हम सुधरेंगे युग सुधरेगा" इसे लाइव उदाहरण देकर सिद्ध करो..


सभी बच्चे एक दूसरे का मुँह देखने लगे, विचार करने लगे कि कैसे सिद्ध करें?


एक विद्यार्थी ने पूँछा - मैम "युग" से आपका क्या अभिप्राय है?


अध्यापिका महोदय ने कहा - "युग' का अर्थ होता है एक निर्धारित संख्या के वर्षों की काल-अवधि। उदाहरणः कलियुग, द्वापर, सत्ययुग, त्रेतायुग आदि। युग वर्णन का अर्थ होता है कि उस युग में किस प्रकार से व्यक्ति की सोच थी, किस प्रकार के कर्म थे, उनका जीवन व रहन सहन इत्यादि किस प्रकार था।


धर्म का शाब्दिक अर्थ होता है, 'धारण करने योग्य' सबसे उचित धारणा, अच्छी सोच व अच्छे कर्म, अर्थात जिसे सबको अपनाना चाहिए। अधर्म में वह किया जाता है जो धर्म का उल्टा होता है, उदाहरण - धर्म में लोगों का भला किया जाता है और अधर्म में लोगों का बुरा किया जाता है।


सतयुग में  - धर्म 90% और अधर्म 10% 

त्रेता में  - धर्म 75% और अधर्म 25% 

द्वापर में  - धर्म 50% और अधर्म 50% 

कलियुग में  - धर्म 10% और अधर्म 90% 


विद्यार्थी -  वर्तमान में कलियुग चल रहा है सब बोलते है, तो युग सुधारने का अर्थ हुआ कलियुग को सतयुग में बदलना।


अध्यापिका महोदय - बिल्कुल ठीक समझा


विद्यार्थी - मैडम इतने बड़े युग का लाइव डेमो क्लास में कैसे दें?


अध्यापिका महोदय - अच्छा यह बताओ, कि समुद्र के जल का परीक्षण करना हो तो क्या करोगे? क्या पूरा समुद्र लैब में लाओगे या थोड़ा सा जल लाओगे?


विद्यार्थी - थोड़ा पानी लाकर, उसका लैब में परीक्षण करेंगे। जो रूप गुण व थोड़े जल में होगा वही पूरे समुद्र के जल का भी होगा।


अध्यापिका महोदय - इसीतरह इस युग मे हम सब भी तो हैं, तो इस युग का छोटा अंश यह क्लास भी तो हो सकती है। तो युग परिवर्तन का डेमो अपनी क्लास के उदाहरण से दे सकते हैं कि नहीं?


विद्यार्थी - क्रिपया आप ही इस क्लास के माध्यम से हमें युगपरिवर्तन का लाइव डेमो दीजिये।


अध्यापिका महोदय - मान लो यह क्लास युग है, तुम सब इस युग मे रहने वाले लोग हो। अब तुम्हारा धर्म है पढ़ना व इस क्लास को साफ सुथरा रखना। 


विद्यार्थी - जी सही कहा आपने..


अध्यापिका महोदय - तुम सब अपने बैग से रफ पेपर से एक पेज निकालकर छोटे टुकड़े करके अपने आसपास एक दूसरे पर फेंको और आपस मे बातें करो।


(सबने केवल अपने आसपास कचरा किया, लेक़िन दूसरे देखने वालों की नजर में पूरी क्लास गंदी हो गयी, हल्ला मच गया)


अध्यापिका महोदय ने कहा - शांत हो और अपने आसपास देखो, तुमने कचरा फैलाने का अधर्म किया व शोर किया तो पूरी क्लास गंदी व असभ्य बन गयी।


अब सभी अपनी अपनी सीट के आसपास सफाई करें, जो कचरा फैलाया था समेटें। व शांति से ध्यानस्थ हो पढ़ने बैठ जाएं।


(पूरी क्लास साफ़ सुथरी व शांत हो गयी, क्योंकि आपने अपने विद्यार्थी धर्म का पालन किया)


अध्यापिका महोदय - अच्छा बच्चों इस लाईव डेमो से कुछ समझ मे आया।


विद्यार्थी - मैडम, जैसे दीपावली में सब अपने अपने घर दिया जलाते हैं और पूरा देश रौशन हो जाता है। वैसे ही यदि सभी अपने अपने मनुष्य धर्म का पालन करें तो पूरा देश समृद्ध व धर्मयुक्त बन जायेगा। आज की क्लास की एक्टिविटी के उदाहरण में यह पता चला कि यदि प्रत्येक विद्यार्थी केवल स्वयं सुधर जाए व अपने हिस्से का धर्म पालन कर ले, तू पूरी क्लास बदल जाएगी व व्यवस्थित रहेगी। अच्छी बन जाएगी।


*सभी एक साथ बोल उठे, हम सुधरेंगे तो युग सुधरेगा। यदि देश , समाज व परिवार को सुधारना है तो प्रत्येक व्यक्ति को सुधरना होगा। अपने हिस्से का धर्म पालन करना होगा।*


(यह मेरे स्वप्न का गुरुकुल है जो एक न एक दिन जब ईश्वर साथ देंगे व गुरुकृपा होगी तब खोलूँगी - लेखक - श्वेता चक्रवर्ती)


क्रमशः....

Tuesday 3 August 2021

गुरुजी, उनकी पदवी व उनका आसन

 गुरुजी, उनकी पदवी व उनका आसन

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हिमालय की तरहटी में एक गुरु ने तप किया, फिर जनकल्याण हेतु आश्रम खोला। चार शिष्य प्रथम बनाये व उन्हें आश्रम की जिम्मेदारी सौंपी, चारो को उम्मीद थी कि गुरु के जाने के बाद उनमें से ही कोई एक गुरु की पदवी मठाधीश की सम्हालेगा, क्योंकि वही सीनियर/वरिष्ठ थे। धीरे धीरे वह गुरुकुल बहुत बड़ा बन गया। एक व्यक्ति जो तेजस्वी था गुरु से शिक्षा लेने आया, शीघ्र ही वह युवा गुरु की कृपा से और समर्पण से अध्यात्म में उन्नति कर गया। जब वक्त आया तो गुरु ने अपनी पदवी उस युवा सन्यासी को दे दी। इससे चारों क्रोधित हो गए, मग़र तीन ने गुरु आज्ञा शिरोधार्य कर लिया लेकिन एक ने सङ्कल्प लिया कि उस युवा सन्यासी को बाहर करके रहेगा।


उसने षड्यंत्र रचा, हज़ारों मील दूर के गाँव से नगरवधू(वैश्या) को कहा जितना पैसा तुम्हें रोज मिलता है उससे अधिक देंगे। बस तुम्हें एक अनाथ बालक का इंतज़ाम करके हमारे साथ चलना है, हम जिसे तुम्हे बताएंगे उसको सबके समक्ष चरित्रहीन साबित करना है।

नगरवधू एक अनाथ बच्चे को लेकर आई और उसने युवा सन्यासी को चिरित्रहीन साबित कर दिया। उसके निष्कासन की योजना लगभग पूरी हो ही रही थी कि एक दर्शनार्थी उस मठ में आया उस नगरवधू के नगर का आया हुआ था उसने उसे पहचान लिया। बस पोल खुल गयी, व उस युवा सन्यासी का निष्कासन बच गया।


लेक़िन उस षड्यंत्रकर्ता ने हार नहीं मानी। वह युवा सन्यासी जब ध्यानस्थ था तो उसने एक और कुटिल योजना बनाई। अधिकतर जनता स्वार्थी है वह जानता था, अतः उसने नीचे गांव में खबर फैला दी कि युवा सन्यासी को एक तपसिद्धि मिल गयी है जो पूर्णिमा के दिन जब वह दर्शन देने बैठेंगे तब जो उनकी दाढ़ी का एक बाल अपने हाथों से तोड़ेगा व उसे अपनी तिज़ोरी में रखेगा वह छः महीने के अंदर माला माल धनी हो जाएगा। 


सच्चाई के पैर होते हैं और अफवाह के पंख होते है, बात कानो कान आसपास सभी गांव में फैल गई। पूर्णिमा के दिन स्वार्थ में अंधी जनता बाल तोड़ने टूट पड़ी। उनके सर व बाल के समस्त बाल नोच लिए गए और इतना दबाव पड़ा कि वह युवा सन्यासी अत्यधिक रक्त श्राव व पीड़ा, व श्वास अवरुद्ध होने से मर गया। 


षड्यंत्रकर्ता गुरु के पद पर मठाधीश बन बैठा, उधर पाप कर्मों के दण्ड स्वरूप लोगो को अपार क्षति पहुंची व वर्षा नहीं हुई। सभी सज्जन व्यक्तियों ने युवा सन्यासी की मौत के पीछे षड्यंत्र कर्ता की मंशा पता चल गई। उन्होंने षड्यंत्र कर्ता को पीट पीट कर अधमरा करके आश्रम को नष्ट कर दिया। 


लोभ व लालच के युद्ध में गुरु के किये तप व कीर्ति को मिट्टी में उनके स्वार्थी शिष्यों ने मिला दिया। जो बोयेगा वह वही काटेगा, लेकिन कब कोई तय सीमा नहीं है। उस षड्यंत्रकर्ता को दण्ड मिला लेक़िन तब तक सब कुछ नष्ट हो गया था।


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राम - रावण युद्ध दो अज्ञानियों के बीच नहीं हुआ था, यह युद्ध वेदज्ञ तपस्वी और रिद्धि सिद्धि युक्त के बीच हुआ था। रावण जानता था पराई विवाहित स्त्री का बलपूर्वक अपरहण अधर्म है, फिर भी उसने किया। क्योंकि धर्म जानने व आचरण में उतारने में फर्क होता है।


कौरव व पांडव एक ही गुरु के शिष्य थे व समान धर्म का ज्ञान दोनो को था। दुर्योधन जानता था विवाहित कुल की मर्यादा स्त्री जो कि उसकी भाभी थी उसके वस्त्र उतारना अधर्म है, फिर भी उसने किया।  फिर भी एक पक्ष धर्म के विरुद्ध व एक धर्म के पक्ष में लड़ा। 


राजनीति हो या धर्म क्षेत्र, चुनाव सही व गलत के बीच नहीं होता। हमेशा चुनना पड़ता है - अधिक गलत और कम गलत के बीच, अधिक सही और कम सही के बीच।


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जब भी धर्म संकट में हो तो स्वयं की अंतरात्मा की आवाज सुनकर निर्णय लो।  18 दिन श्रीमद्भागवत गीता का पाठ करो और कम से कम एक घण्टे ध्यान करो व उस विषय पर चिंतन करो। जिसकी गवाही आत्मा दे उसे स्वीकार लो। 


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💐श्वेता, DIYA

पाँच लेयर का भावनात्मक सुरक्षा चक्र

 पाँच लेयर का भावनात्मक सुरक्षा चक्र


सभी परिजन सुबह साधना के वक्त पांच लेयर का भावनात्मक सुरक्षा चक्र बनाएं।


ग़ायत्री मन्त्र जपें फिर भावना करें कि


1- माता ग़ायत्री हमें आशीर्वाद, सुरक्षा व ऊर्जा प्रदान कर रही हैं।


2- परम् पूज्य गुरुदेव हमें आशीर्वाद, सुरक्षा व ऊर्जा प्रदान कर रहे हैं।


3- माता वन्दनियाँ हमें आशीर्वाद, सुरक्षा व ऊर्जा प्रदान कर रही हैं।


4- दादा गुरुदेव हमें आशीर्वाद, सुरक्षा व ऊर्जा प्रदान कर रहे हैं।


5- हमारे पूजनीय पितर हमे आशीर्वाद, सुरक्षा व ऊर्जा प्रदान कर रहे हैं।


हम इस पाँच सुरक्षा चक्र में पूर्णतया सुरक्षित हैं।


💐श्वेता, DIYA

Sunday 1 August 2021

तुम्हारा दिमाग़ खराब है, घर मे अशांति है इत्यादि के लिए भगवान को दोष क्यों देते हो भाइयों व बहनों?

 तुम्हारा दिमाग़ खराब है, घर मे अशांति है इत्यादि के लिए भगवान को दोष क्यों देते हो भाइयों व बहनों?


एक युवा लड़का या लड़की घर से निकलकर मन्दिर जाएगा या पब(शराब की दुकान) जाएगा यह निर्णय उसका है, तद्नुसार उसका कर्म का फल मिलेगा।


एक गृहस्थ स्त्री या पुरुष सुबह उठकर घर के मन्दिर में दीपक जलाकर पूजन करेगा या रिमोट दबाकर टीवी खोलेगा यह निर्णय उसका है, तद्नुसार उस कर्म का फल मिलेगा।


भगवान की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता यदि यह कहावत सच्ची होती, तुम परतंत्र जीव हो यह बात सच्ची होती, तुम यदि भगवान के कंट्रोल में होते तो भगवान जबरन हर युवा लड़के लड़की को मन्दिर जाने पर विवश करता और शराब की दुकान पर ताला लगा होता। गृहस्थ के घर कभी सुबह टीवी नहीं चलती, घर के पूजन स्थल में दिया जलता व घण्टी बजती, पूजन होता।


शर्म नहीं आती, वर्तमान परिस्थितियों के लिए भगवान को दोष देते हुए... 


ध्यान करोगे तो लाभ मिलेगा व शराब पियोगे तो हानि होगी यह कर्म का फल है। जो बो रहे हो वही न काट रहे हो भाइयों व बहनों... फ़िर भगवान को दोष क्यों देते हो भला बुरा क्यों कहते हो?


गुलाम बनना नहीं चाहते, स्वतंत्र रहना चाहते हो मगर जिम्मेदारी स्वयं की उठाना नहीं चाहते..यह नाकारापन तुम्हे क्या शोभा देता है? स्वयं विचार करें...


💐श्वेता, DIYA

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...