Friday 15 January 2021

प्रश्न - प्राचीन समय में सर्वप्रथम किसी स्त्री ने यज्ञ का संचालन यज्ञ पुरोहित बन किया था?

 प्रश्न - प्राचीन समय में सर्वप्रथम किसी स्त्री ने यज्ञ का संचालन यज्ञ पुरोहित बन किया था?


उत्तर- सर्वप्रथम राजा मनु की पुत्री इला ने ब्रह्मा जी के यज्ञ का सफ़लता पूर्वक संचालन यज्ञ पुरोहित रूप में   किया था।


प्रश्न - क्या सीता जी का यग्योपवीत एवं गायत्रीमंत्र दीक्षा हुई थी?


उत्तर- हाँजी, महाराजा जनक ने अपनी चारो पुत्रियों का यग्योपवीत करवाया था और उनको गायत्रीमंत्र को विधिवत दीक्षा दिलवाई थी। 


प्रश्न - वेद मंत्रों का पाठ एवं वेदमन्त्र ज्ञाता प्राचीन समय में स्त्रियां थीं?


उत्तर- हाँजी, अपाला, घोषा, विश्वधारा ब्रह्मवादिनी व वेदज्ञानी थीं।

Thursday 14 January 2021

प्रश्न - मुझे सद्गुरु से मिलना है? उन्हें पाने की विधि क्या है?

 प्रश्न - मुझे सद्गुरु से मिलना है? उन्हें पाने की विधि क्या है?


उत्तर- एक बार शान्तिकुंज हरिद्वार जाकर 9 दिन की साधना कीजिये। साधना का लक्ष्य सद्गुरु प्राप्ति रखियेगा, आपके सद्गुरु आपको शीघ्र मिलेंगे।


कभी शिष्य को सद्गुरु ढूढ़ना पड़ता है, तो कभी सद्गुरु स्वयं शिष्य को तलाशता हुआ उस तक पहुंचता है। सद्गुरु शरीरधारी एवं अशरीरी दोनों हो सकते हैं।


जब शिष्य सद्गुरु प्राप्ति की प्रबल इच्छा रखता है, तो सारी कायनात उसे उसके सद्गुरु से मिलाने में मदद करती है।


मन मे प्रबल इच्छा सद्गुरु की कीजिए और नित्य 3 माला (324) गायत्रीमंत्र उगते सूर्य का ध्यान करते हुए कीजिये। जिससे मन सधे व सद्गुरु को पहचान सकें। क्योंकि सद्गुरु को पहचानने की योग्यता आपको स्वयं में विकसित करनी होगी।


संग में पुस्तक - गुरुगीता और शिष्य संजीवनी का स्वाध्याय लाभदायक होगा।

प्रश्न - दीदी, मै कुछ भी नया सीखता हूं तो मुझे समझ नहीं आता या फिर भूल जाता हूं जैसे मै अभी एक्सेल सीखने जा रहा हूं लेकिन घर आकर मैं भूल जाता हूं..

 प्रश्न - दीदी, मै कुछ भी नया सीखता हूं तो मुझे समझ नहीं आता या फिर भूल जाता हूं जैसे मै अभी एक्सेल सीखने जा रहा हूं लेकिन घर आकर मैं भूल जाता हूं..


उत्तर- मष्तिष्क किसी नई चीज को जब तक रुचि न हो सीखना नहीं चाहता। उसे जल्दी भूल जाता है।


उदाहरण - किसी ने आपको गाली दी, वह आप नहीं भूलते जल्दी। किसी ने आपको सम्मान दिया, वह भी आप नहीं भूलोगे। लेकिन यदि किसी ने कोई सामान रखने को दिया तो आप भूल जाओगे।


क्योंकि जिनसे हृदय की भावना नहीं जुड़ी वह जल्दी देर तक मष्तिष्क में याद नहीं रहता। भावना प्रेम भी हो सकता है व नफ़रत भी, दोनो में बात व सीखा हुआ नहीं भूलता।


तो कुछ नया सीखने के लिए, पहले उस विषय के प्रति हृदय में प्रेम उतपन्न कीजिये। उसे सीखकर आप क्या क्या लाभ पाएंगे उसे सोचिए। एक नई टेक्नोलॉजी को सीखने के लिए मन में जुनुन भरिये। स्वयं को उत्साहित कीजिए।


जो सीखा है, उसका प्रैक्टिकल कई बार कीजिये। जो सीखा है उसका नोट्स बनाइये व उसे कई बार दोहराइये। 


सुपर जीनियस मान लो एक बार में याद कर लेता है, तो आम जनता को 7 बार प्रयास में याद होता है। यदि आप दस बार दोहरा के याद कर लें, तो आप सुपर जीनियस से ज्यादा उस विषय को जान लेंगे।


बस सुपर जिनियस से आगे बढ़ने के लिए शरीर से दोगुनी, मन से चौगुनी और हृदय से छः गुनी मेहनत शुरू कर दीजिए। सफ़लता सिर्फ आपकी ही होकर रहेगी।


🙏🏻श्वेता, DIYA

किसी मैनेजर या सहकर्मी ने बेवजह आपकी छोटी गलतियों को बड़ा बताते हुए ईमेल किया है? क्या आपको गुस्सा आ रहा है?

 किसी मैनेजर या सहकर्मी ने बेवजह आपकी छोटी गलतियों को बड़ा बताते हुए ईमेल किया है? क्या आपको गुस्सा आ रहा है? 


जरा ठहरिए! तुरंत गुस्से में प्रतिउत्तर की ईमेल मत लिखिए।


किसी जगह बस बैठकर 5 बार गायत्री मंत्र पढ़िये एवं लंबी गहरी श्वांस लीजिये। चित्त शांत कर समस्या समझिये।


सोचिए.. आपका मैनेजर भी ऊपर से वैसा ही अपने मैनेजर से फीडबैक कठोर पा रहा है, वह भी व्यथित ही होगा/होगी। वह भी गुस्से में उबल रहा/रही है। यदि वह हमारी गलती छोटी हो या बड़ी इंगित ईमेल में कर रहे हैं तो उसे सकारात्मक तरीके से लें, उसे सुधारने में जुटें।


कीचड़ से कीचड़ नहीं धुलता है, इसी तरह कड़वी कठोर वचन युक्त ईमेल का प्रतिउत्तर उसी कठोर भाषा मे देना  समाधान नहीं हो सकता। हाँ युद्ध जरूर हो सकता है।


तो क्या करें, सोचें कि यह खेल का मैदान है। यहां प्रत्येक ईमेल बॉल है जो आपको आउट करने हेतु (आपको क्रोधित करने व कुछ गलत कदम उठाने  विवश करने हेतु) हो सकती है। अतः प्रत्येक बॉल को खेलना आपको आना चाहिए। आउट नहीं होना है, तो क्रोध नहीं करना है। शान्त चित्त व स्थिर रहना है।


शांति से बॉल को समझिए औऱ उस कठोरता को वरदान अपने लिये बनांकर उस पर चौके एवं छक्के लगाइए। 


विनम्रता व धैर्य से ईमेल का प्रतिउत्तर इस तरह लिखिए कि "सांप मरे लेकिन लाठी न टूटे"।


प्रत्येक व्यक्ति अपनी जॉब बचाने और प्रमोशन के लिए जॉब कर रहा है। प्रत्येक खिलाड़ी स्वयं जीतने के लिए खेलता है।


 अतः यह उलझन मन में मत लाइये कि अमुक मुझे समझता नहीं, वो तो मेरे पीछे ही पड़ा रहता है। उसे तो बस एक बहाना चाहिए मुझे कम्पनी से निकालने के लिए...


यहां कोई आपको समझने के लिए नहीं बैठा, कोई आपको ज्यादा छुट्टी फैमिली प्रॉब्लम के लिए नहीं देगा, क्योंकि सबको आपके कार्य से मतलब है। आपके कार्य से कम्पनी एवं मैनेजर को कितना फायदा है, उसे लोग समझना चाहेंगे।


यदि आप बैट्समैन हैं तो प्रत्येक बॉलर खेलभावना से आपको आउट करने के लिए ही बॉल डालेगा, रन तो आप अपनी कुशलता व योग्यता से बना रहे हैं। इसी तरह कॉरपोरेट के खेल में खतरनाक ब्लेम गेम की ईमेल आपको आउट करने के लिए ही लिखी गयी हैं। अब अपनी कुशलता का परिचय देते हुए रन बनाइये एवं मैच में टिके रहिये। कम्पनी में बने रहिये।


इस दुनियाँ में सब परेशान हैं, जैसे यदि  घर में गलती से टीवी के रिमोट में उल्टा सेल डल गया या कप से चाय झलक गयी तो माफी मांग लेने पर छोटे नहीं हो जाते। इसी तरह छोटी या बड़ी गलती पर मैनेजर के बताने पर माफी मांगने से आप छोटे नहीं हो जाएंगे। बस टेंशन खत्म हो जाएगी।


दूसरे ने गलत बॉल डाली इसलिए आउट हुए, ऐसा कहना छोड़ दीजिए। ब्लेम गेम छोड़िए।


अपितु कहिए, मुझे और मेहनत करनी है कि किसी भी बॉल पर रन बना सकूँ। यदि आउट हुआ तो मेरी गलती है। यदि किसी को मेरी गलती बताने का अवसर मिला तो यह मेरी भूल है। 


नाव को छोटा सा छेद भी डूबा सकता है, थोड़ी छोटी लापरवाही भी परेशानी में डाल सकती है। अतः छोटी गलतियां भी न हो, इसलिए सतर्क व चैतन्य रहें।


ज्यादा मेहनत करें, व ठंडे दिमाग से ईमेल के प्रतिउत्तर दें। फोन पर बात कर लें, यदि कोई शक हो। कभी कभी ईमेल में हम भाव नहीं समझ पाते। धैर्य के साथ फोन पर बात मामला सुलझा देता है।


जीवन के लिए जॉब कर रहे हैं, जॉब के लिए नहीं जी रहे हैं। जॉब की टेंशन से जीवन के आनन्द में व्यवधान मत डालिए।  कुशल खिलाड़ी बनिये, कॉरपोरेट के खेल का आनन्द लीजिये। एक मैच जीतने या एक मैच हारने से जीवन समाप्त नहीं होता। 


स्वयं की योग्यता बढाते रहें, स्वयं के जीवन की जिम्मेदारी स्वयं उठाते रहें।


🙏🏻श्वेता, DIYA

Monday 11 January 2021

प्रश्न - मेरी मित्र के घर मे बहुत भजन व पूजन होता है। उसके पिता की अकस्मात मृत्यु हो गयी। वह पूंछ रही है कि वह पूजा क्यों करे?

 प्रश्न - मेरी मित्र के घर मे बहुत भजन व पूजन होता है। उसके पिता की अकस्मात मृत्यु हो गयी। वह पूंछ रही है कि वह पूजा क्यों करे?


उत्तर- अत्यंत दुःखद है, परिवार के साथ हमारी सम्वेदना है।

आइये मृत्यु का विश्लेषण करते हैं:-

एक व्यक्ति भोजन नित्य करता था, एक दिन भोजन की टेबल पर उसकी मृत्यु हो गयी। उसके परिवार के किसी ने भोजन करना नहीं छोड़ा।

एक व्यक्ति का माता - पिता एक्सीडेंट में मर गए, लेकिन उसने व उसके परिवार ने कभी रोड पर निकलना नहीं छोड़ा।

एक व्यक्ति के पिता की अचानक मृत्यु हुई क्योंकि उनकी मृत्यु का कारण ज्ञात नहीं, अति पूजा पाठी परिवार था। लेकिन अब उन्होंने ने निंर्णय लिया कि हम पूजा पाठ नहीं करेंगे।

भोजन व यात्रा के बिना काम न चलेगा। मग़र नास्तिकता के साथ भी जिया जा सकता है।

मनुष्य एक स्वार्थी जीव है, जहां स्वार्थ सधता है वहीं उसका रिश्ता निभता है। स्वार्थ पूर्ति में बाधक जीवनसाथी से तलाक व स्वार्थपुर्ति में बाधक भगवान से तलाक लेने में वह पलभर देर नहीं करता।

आपके परिचित पूजा पाठी होंगे मग़र उनका परिवार आध्यात्मिक नहीं होगा। किसी ने उनके परिवार में श्रीमद्भागवत गीता नहीं पढ़ी होगी । साथ ही कर्मफ़ल के सुनिश्चित विधान को नहीं जाना व समझा होगा।

कर्म(action) पर कर्मफ़ल नहीं मिलता, अपितु किस भावना(intention) से कर्म किया गया उसपर कर्मफल मिलेगा।

अच्छा यह बताओ कि हम सब क्या हो? शरीर या आत्मा? यदि स्वयं को शरीर समझते हो तो संसार दुःखमय है, यदि स्वयं को आत्मा समझते हो तो संसार आनन्दस्वरूप है। क्योंकि आत्मा रूप में हम और तुम उस परमात्मा का ही तो अंश हो। जिस प्रकार पुत्र पिता का अंश हुआ।

अब चलो किसी के मरने पर मर्मान्तक दुःख का एनालिसिस करते है? एक वृद्ध पिता 5 साल से बिस्तर पर पड़ा था, जिसकी कोई कमाई नही थी, उसकी मृत्यु हुई। उसके मृत्यु से परिवार जन सुखी होंगे या दुःखी?

एक बच्चा जो जन्मा था वो मर गया, अब सुखी होंगे या दुःखी?

एक जीवनसाथी जिससे नफरत करते थे, शक्ल देखना पसंद नहीं करते थे, वो मर गया/गयी, तो सुखी होंगे या दुःखी?

एक जीवनसाथी जिससे बेइंतहा प्रेम करते थे, शक्ल देखे बिना चैन नहीं था, वो मर गया/गयी, तो सुखी होंगे या दुःखी?

एक आवारा युवा लड़का जो माता-बाप पर बोझ था, बदनामी का कारण था, निर्लज्ज था। उसकी मौत हो गयी, माता पिता को कितना दुःख होगा?

एक आज्ञा कारी सुशील युवा लड़का जो माता-बाप की सेवा करता था, गर्व का कारण था, सज्जनपुरुष था। उसकी मौत हो गयी, माता पिता को कितना दुःख होगा?

इंसान आये दिन कितने एक्सिडेंट देखता है, कितने क्षण दुःखी होता है? कोरोना में लाखों लोग मर गए।

वास्तव में इंसान स्वार्थी होता है, केवल अपनों की मौत पर शोक ग्रस्त दुःखी होता है। अपनों में भी उसके लिए ज्यादा दुःखी होता है जिसको वो मुहब्बत/प्रेम करता है। जिस पर उसकी उम्मीदें टिकी हो या जिसने उसका कभी भला किया हो, केवल उसी के लिए आँशु बहाता है। एक ही घटना पर समान दुःख नहीं होता, हृदय की भावना और उस व्यक्ति से कितना भावनात्मक लाभ था दुःख का अनुपात उस पर तय करती है।

लेकिन परमात्मा उस मुर्गे बकरी के दर्द और मौत में भी उतना ही दुःखी होता है जितना एक इंसान की मौत और दर्द में। क्योंकि तुम्हारी दृष्टि शरीर तक है, तुम शरीर रूपी वस्त्र से पहचान करते हो, परमात्मा तो आत्मा को देखता है। आत्मा तो इंसान के शरीर मे हो या मुर्गी या बकरे के शरीर में निज कर्मफ़ल ही भुगत रही है। न्यायाधीश परमात्मा जो सभी बच्चो से प्यार करता है, उसे न्याय करना पड़ता है। यह न्याय व्यवस्था आत्मा पर आधारित है।

शरीर को सबकुछ समझने वाले और स्वयं के आत्मस्वरूप होने से अंजान, स्वयं ही भाग्य के विधाता है। यह जो नहीं मानता या जानता, उसके लिए ही यह संसार दुःखमय है। जो स्वयं को आत्मस्वरूप जानकर निज के विधाता स्वरूप को पहचान कर आत्म उत्थान में अग्रसर है। उसके लिए यह संसार आनन्दस्वरूप है। वही कण कण में परमात्मा को अनुभूत कर सकेगा। आध्यात्मिक व्यक्ति शोकग्रस्त नहीं होता क्योंकि वह जानता है, आत्मा का शरीर धारण व त्यागना एक सुनिश्चित विधान है। प्रत्येक यात्री को टिकट में स्टार्ट स्टेशन और उतरने का स्टेशन पहले ही मिल जाता है। इसीतरह आत्मा का हाल है, शरीर धारण के दिन ही मृत्यु का दिन भी निश्चित हो जाता है।

उन परिचित सदस्य को अभी समझाने का कोई फायदा नहीं है, क्योंकि अभी वह क्रोध व शोक में है। थोड़ा वक्त गुजरने दीजिये, स्वतः सब सही हो जाएगा।

एक पुस्तक पढ़ लीजिये - "गहना कर्मणो गति:(कर्मफ़ल का सुनिश्चित सिद्धांत), कर्मफ़ल सिद्धांत क्लियर हो जाएगा।

गहना कर्मणोगतिः :: (All World Gayatri Pariwar)

Friday 8 January 2021

प्रश्न - आनन्द कब व कहाँ मिलता है?

 प्रश्न - आनन्द कब व कहाँ मिलता है?

उत्तर - आनन्द अभी इस पल में शरीर से उपस्थित मन से उपलब्ध व भावना से वर्तमान के इस पल से जुड़ने पर मिलता है। स्वयं के अस्तित्व के अनुभूति में मिलता है। आनन्द भीतर है, वह बाहर नहीं मिलता है।


समस्या यह है कि मन या तो भूतकाल में भटकता है, या भविष्य की चिंता में रत रहता है। भूत व भविष्य में विचरने के चक्कर में वर्तमान में नहीं रह पाता व आंनद से वंचित हो जाता है। स्वयं से दूर भागता है, संसार की अनुभूति करता है। सुविधाओं को अनुभव करता है। 


नारियल का जल व मिठास भीतर है, बाहर नहीं। उसी तरह आत्मा का आनन्द भीतर है, बाहर नहीं है।


बस मनुष्य स्वयं को अनुभव नहीं करता व वर्तमान पल में नहीं रह पाता। इसलिए आनन्द के अभाव में अशांत रहता है।


ध्यान मात्र चेतना को वर्तमान पल में स्थित रखती है। अंतर्जगत में प्रवेश करा कर स्वयं के अस्तित्व की अनुभूति कराता है।


🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - हम दूसरो की उपस्थिति में कोई भी गलत कर्म करने से बचते है लेकिन एकांत में ईश्वर के सर्व्यापाक होने पर भी उनकी उपस्थिति को नजरंदाज कर गलत कर्म करते है। ऐसा क्यों? उत्तर - सीधी सी बात है, हम ईश्वर को मानने का ढोंग करते हैं। ईश्वर को न जानते हैं व न 100% विश्वास करते हैं और न अनुभव करते हैं कि वह देख रहा है।

 प्रश्न - हम दूसरो की उपस्थिति में कोई भी गलत कर्म करने से बचते है लेकिन एकांत में ईश्वर के सर्व्यापाक होने पर भी उनकी उपस्थिति को नजरंदाज कर गलत कर्म करते है। ऐसा क्यों?

उत्तर -  सीधी सी बात है, हम ईश्वर को मानने का ढोंग करते हैं। ईश्वर को न जानते हैं व न 100% विश्वास करते हैं और न अनुभव करते हैं कि वह देख रहा है।

Wednesday 6 January 2021

गायत्री उपासना विधि-

 गायत्री उपासना विधि-


वेदों में उल्लेख आता हैं कि माँ गायत्री की पूजा उपासना कभी भी, किसी भी स्थिति में की जा सकती है । हर स्थिति में यह लाभदायी है, परन्तु विधिपूर्वक श्रद्धा भावना के साथ की गयी उपासना अति फलदायी मानी गयी है । ब्रह्ममुहूर्त में स्नान आदि से निवृत्त होकर या दिन में अन्य समय जब स्नान करें तब गायत्री मंदिर या घर के किसी भी शुद्ध पवित्र स्थान पर पीले कुशा के आसन पर सुखासन में बैठकर इस प्रकार करें पूजा-

 

उपासना का विधि-विधान-

ब्रह्म सन्ध्या - जो शरीर व मन को पवित्र बनाने के लिए की जाती है । इसके अंतर्गत पाँच कृत्य करने होते हैं ।

पवित्रीकरण - बाएँ हाथ में जल लेकर उसे दाहिने हाथ से ढँक लें एवं मंत्रोच्चारण के बाद जल को सिर तथा शरीर पर पवित्रता के भाव से छिड़क लें ।

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा, सर्वावस्थांगतोऽपि वा ।

यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥

ॐ पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु ।

 

आचमन - वाणी, मन व अंतःकरण की शुद्धि के लिए चम्मच से तीन बार जल का आचमन करें । हर मंत्र के साथ एक-एक आचमन करें ।

ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा ।

ॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा ।

ॐ सत्यं यशः श्रीर्मयि श्रीः श्रयतां स्वाहा ।


शिखा स्पर्श एवं वंदन - शिखा के स्थान को स्पर्श करते हुए भावना करें कि गायत्री के इस प्रतीक के माध्यम से सदा सद्विचार ही यहाँ स्थापित रहेंगे । निम्न मंत्र का उच्चारण करें ।

ॐ चिद्रूपिणि महामाये, दिव्यतेजः समन्विते ।

तिष्ठ देवि शिखामध्ये, तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे ॥

 

प्राणायाम - श्वास को धीमी गति से गहरी खींचकर रोकना व बाहर निकालना प्राणायाम के क्रम में आता है । श्वास खींचने के साथ भावना करें कि प्राण शक्ति, श्रेष्ठता श्वास के द्वारा अंदर खींची जा रही है, छोड़ते समय यह भावना करें कि हमारे दुर्गुण, दुष्प्रवृत्तियाँ, बुरे विचार प्रश्वास के साथ बाहर निकल रहे हैं । प्राणायाम निम्न मंत्र के उच्चारण के साथ करें ।

ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः, ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम्। ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। ॐ आपोज्योतीरसोऽमृतं, ब्रह्म भूर्भुवः स्वः ॐ।

 

न्यास - इसका प्रयोजन है- शरीर के सभी महत्त्वपूर्ण अंगों में पवित्रता का समावेश तथा अंतः की चेतना को जगाना ताकि देव-पूजन जैसा श्रेष्ठ कृत्य किया जा सके । बाएँ हाथ की हथेली में जल लेकर दाहिने हाथ की पाँचों उँगलियों को जल में भिगोकर बताए गए स्थान को हर मंत्रोच्चार के साथ स्पर्श करें ।

ॐ वाङ् मे आस्येऽस्तु । (मुख को)

ॐ नसोर्मे प्राणोऽस्तु । (नासिका के दोनों छिद्रों को)

ॐ अक्ष्णोर्मे चक्षुरस्तु । (दोनों नेत्रों को)

ॐ कर्णयोर्मे श्रोत्रमस्तु । (दोनों कानों को)

ॐ बाह्वोर्मे बलमस्तु । (दोनों भुजाओं को)

ॐ ऊर्वोमे ओजोऽस्तु । (दोनों जंघाओं को)

ॐ अरिष्टानि मेऽङ्गानि, तनूस्तन्वा मे सह सन्तु । (समस्त शरीर पर)

 


उपरोक्त पाँचों कृत्यों का भाव यह है कि साधक में पवित्रता एवं प्रखरता की अभिवृद्धि हो तथा मलिनता-अवांछनीयता की निवृत्ति हो । पवित्र-प्रखर व्यक्ति ही भगवान के दरबार में प्रवेश के अधिकारी होते हैं ।


गुरु - गायत्री मंत्र को गुरू मंत्र भी कहा जाता है इसलिए बिना गुरू के साधना का फल देरी से मिलने संभावना रहती हैं इसलिए साधक के जो भी गुरू हो उनकी चेतना का आवाहन उपासना की सफलता पूजा स्थल पर निम्न मंत्र से करें-

ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः, गुरुरेव महेश्वरः।

गुरुरेव परब्रह्म, तस्मै श्रीगुरवे नमः॥

अखण्डमंडलाकारं, व्याप्तं येन चराचरम्।

तत्पदं दर्शितं येन, तस्मै श्रीगुरवे नमः॥

ॐ श्रीगुरवे नमः, आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।


माँ गायत्री का आवाहन

अगर घर में पूजा कर हैं तो महाप्रज्ञा-ऋतम्भरा गायत्री का प्रतीक चित्र सुसज्जित पूजा वेदी पर स्थापित करें, वेदी पर कलश, घी का दीपक भी स्थापित करें । अब निम्न मंत्र के माध्यम से माता का आवाहन करें । भावना करें कि आपकी प्रार्थना, श्रद्धा के अनुरूप माँ गायत्री की शक्ति पूजा स्थल पर अवतरित हो रही है ।


ॐ आयातु वरदे देवि त्र्यक्षरे ब्रह्मवादिनि।

गायत्रिच्छन्दसां मातः! ब्रह्मयोने नमोऽस्तु ते॥

ॐ श्री गायत्र्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि,

ततो नमस्कारं करोमि।

 


गायत्री के इस महामंत्र का करें जप


ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।

जप पूरा होने के बाद यदि सम्भव हो तो दैनिक यज्ञ शुद्ध हवन सामग्री या गाय के घी से गायत्री मंत्र की 24 या 108 आहुति का यज्ञ कर ले।

 

जप व यज्ञ पूर्ण होने पर इस क्रम के साथ विसर्जन करें-


विसर्जन मन्त्र - 

ॐ उत्तमे शिखरे देवी भूम्यां पर्वतमूर्धनि ।

ब्राह्नणेभ्योऽभ्यनुज्ञाता गच्छ देवि यथासुखम् ॥

 

सूर्यार्घ्यदान - विसर्जन - जप समाप्ति के बाद पूजा वेदी पर रखे छोटे कलश का जल सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के भाव से पूर्व दिशा में सूर्य भगवान को र्अघ्य रूप में निम्न मंत्र के उच्चारण के साथ चढ़ायें ।


ॐ सूर्यदेव! सहस्रांशो, तेजोराशे जगत्पते।

अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर॥

ॐ सूर्याय नमः, आदित्याय नमः, भास्कराय नमः॥


इतना सब करने के बाद दान स्वरूप अपनी कमाई के एक अंश कहीं लोककल्याण हेतु दान अवश्य करें ।

सच्चा अध्यात्म

 सच्चा अध्यात्म - कहानी


एक कॉलेज में एक कम्पटीशन एग्जाम आयोजित किया गया, जिसे पास करने वाले को पूरे वर्ष की फ़ीस माफ़ और विदेश ट्रिप 5 दिन की मिलने वाली थी।


सब विद्यार्थी तनावग्रस्त हो गए, हर हालत में पास करके स्कॉलरशिप व विदेश यात्रा की चाह में जुट गए।


एक हिन्दू बहुत पूजा पाठी था, घण्टो भजन पूजन कर्मकांड करता। मग़र कम्पटीशन एग्जाम में पास न हो सका। बहुत दुःखी व व्यथित था। 


ऐसे ही एक मुस्लिम था नित्य दरगाह जाता, कुरान पढ़ता व सभी कर्मकांड किया मग़र वह भी कम्पटीशन पास न कर सका।


ऐसे ही एक ईसाई था नित्य चर्च जाता, बाइबल पढ़ता मग़र वह भी कम्पटीशन का एग्जाम पास न कर सका।


अन्य सिख , पारसी व अन्य धर्म के लोगों ने भी अपने अपने धार्मिक कर्मकांड व प्रार्थनाएं की। मग़र वह भी असफ़ल रहे।


नास्तिक भी दिन भर पढ़ता रहा मग़र वह भी असफ़ल रहा। 


कॉलेज टॉपर असफल हो गए।


एक साधारण किसान का बेटा जो कि पढ़ाई में औसत दर्जे का था। वह  विद्यार्थी पास हुआ। सबके आश्चर्य का ठिकाना न रहा।


अध्यापक ने उससे पूँछा - क्या तुम्हें तनाव नहीं हुआ।


उसने कहा - मैं किसान का पुत्र हूँ। मेरे पिता जब फसल बोते हैं तो उन्हें यह पता नहीं होता कि अपेक्षित वर्षा होगी या नहीं, तूफान व आगजनी होगी या नहीं। फसल बोने का रिस्क वह उठाते हैं व बाकी सब कुछ वह भगवान पर छोड़ देते हैं। उनका कहना है कि कृष्ण भगवान ने गीता में कहा है कि कर्म करो व फल की चिंता मत करो। ईश्वर उसकी मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करता है।


यदि मैं फसल बोउंगा नहीं तो ईश्वर मेरी मदद कैसे करेगा? मेरा कर्म व पुरुषार्थ तो मुझे ही करना होगा। तब ही तो मेरी प्रार्थना पर वह मदद कर सकेगा।


पिता की तरह ही मैं यह जानता था कि यदि मैं पढूँगा नहीं, अपने दिमाग़ में पढ़ाई की खेती करूंगा नहीं तो भला भगवान मेरी मदद कैसे कर सकेगा। मेरी प्रार्थना पर वह आएगा लेक़िन बिना मेरे कर्म के वह प्रतिफल कैसे देगा।


मुझे तो बस मेरे पिता को फीस खर्च से मुक्त करने की अभिलाषा थी, उनकी मदद करने की चाह थी। मुझे विदेश यात्रा की चाह नहीं है। 


मैं नित्य पढ़ने से पहले गुरुकुल परम्परा अनुसार गायत्रीमंत्र जपता व प्रार्थना करता, मुझे पढ़ने की व याद करने की शक्ति दो। एग्जाम के समय पढ़ा हुआ समय पर याद आ जाये व उसे व्यवस्थित लिख सकूँ। इतनी शक्ति दो। बस प्रार्थना करके पढ़ने बैठ जाता।


जो पढा होता दूसरे दिन उसका पेपर स्वयं बनाता और उसे लिखकर चेक कर लेता। पुनः पढ़ने बैठ जाता। जो पढ़ता उसे जरूर लिख भी लेता। 


बीच बीच में आराम हेतु नेत्र बन्द करता व पिता के चेहरे को याद करता, जब फीस माफ होगी तो वह कितना ख़ुश होंगे। बस उनकी खुशी की कल्पना करता। व पुनः पढ़ने बैठ जाता।


जब नकारात्मक विचार सताते तो उनके जवाब में सोचता, यदि असफल हुआ तो भी जैसे वर्तमान में पढ़ रहा हूँ फीस देकर पढ़ लूंगा। चिंता की कोई बात नहीं। मेरे हाथ में कम्पटीशन हेतु पढंकर तैयारी करने का कर्म है, वह तो मैं जरूर करूंगा। पिता जब खेती में रिष्क लेते हैं तो फिर मैं क्यों न रिस्क लूँ।


बस सर यही सोचकर पढ़ा, अपना 100% पुरुषार्थ एग्जाम पास करने में लगाया। व परमात्मा से नित्य प्रार्थना किया कि मुझे सफलता प्रदान करें जिससे पिता की कुछ मदद कर सकूँ।


अध्यापक ने सभी बच्चों को सम्बोधित करते हुए कहा, किस्मत के लॉकर की दो चाबी हैं - पहला पुरुषार्थ(प्रयत्न) और दूसरा प्रार्थना (ईश्वर का ध्यान) ।


किसान बीज से पौधा स्वयं नहीं निकाल सकता। वह बस अपने हिस्से का पुरुषार्थ करता है। उस बीज में से जीवन ईश्वर निकालता है, बरसात-धूप  व हवा ईश्वर देकर पौधा बड़ा करता है। लेकिन बिना बीज बोए मात्र प्रार्थना से फल की अपेक्षा नहीं की जा सकती। अध्यात्म में कोई शोर्टकट नहीं है।


आज बच्चों को असली अध्यात्म समझ आ गया।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *मै आर्य समाज के नियमो पर चलता हूं और मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करता तो क्या मै गायत्री साधना कर सकता हूं।*

 प्रश्न - *मै आर्य समाज के नियमो पर चलता हूं और मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करता तो क्या मै गायत्री साधना कर सकता हूं।*


उत्तर- स्वामी दयानंद सरस्वती को मूर्ति पूजन व कर्मकांड में उलझे लोगों को व अध्यात्म के मर्म को भूले लोगों को सन्मार्ग में लाने हेतु मूर्ति पूजा का खंडन करना पड़ा।


मां की तस्वीर या पूर्वजों की तस्वीर बिना दीवार पर टांगे भी उन्हें याद किया जा सकता है। लेक़िन यदि तस्वीर सामने हो तो उन्हें याद करना और उनका ध्यान करना आसान हो जाता है।


गायत्री साधना बिना मूर्ति व तस्वीर के निराकार गायत्री - सविता सूर्य के उदीयमान प्रकाशित आभा को ध्यान करते हुए किया जा सकता है। 


साथ ही जो गायत्री की तस्वीर माता के रूप में रखकर ध्यान करते हुए करना चाहें वह भी गायत्री साधना सुगमता से कर सकते हैं।


भगवान भाव से जुड़ता है, श्रद्धा व विश्वास रूप ही प्रार्थना में असर दिखाता है।


भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ। 


श्रद्धा व विश्वास ही शंकर व पार्वती के रूप हैं।


त्वमेव माता च पिता त्वमेव,

त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव

त्वमेव विद्या द्रविड़म त्वमेव,

त्वमेव सर्वम् मम् देव देव।।


भगवान को जिस भाव से भजो वही रूप में वह मिलेंगे।


साकार व निराकार जैसा चाहो वैसा जपो।


जो कण कण में है, तो क्या वह मूर्ति की मिट्टी के कण में न होगा? क्या वह तस्वीर के कागज के कण में न होगा?


गायत्रीमंत्र जप तुम अपने भीतर मन मन्दिर में बसे भगवान को ध्यान करते हुए भी जप सकते हो।


जप ऊनि वस्त्र या कुश का आसन में बैठकर व कलश में जल भरकर व प्रज्ववलित दीपक की उपस्थिति में करना श्रेयस्कर होता है। जप के पश्चात जल को सूर्य को अर्घ्य दे दें या तुलसी के पौधे में अर्पित कर दें।


जप से पूर्व आह्वाहन हृदय से करें, व जप के पश्चात विसर्जन मन्त्र बोलकर शांति पाठ करके उठें।


माला लेकर जप नहाने के पश्चात ही करें।मौन मानसिक जप व मन्त्रलेखन बिना नहाए हाथ पैर धोकर किया जा सकता है।


जितनी उम्र है उतने मिनट ध्यान अवश्य करें। जितनी उम्र है उतनी बार अनुलोम विलोम प्राणायाम भी अवश्य करें।


तुम बीज रूप में परमात्मा का ही अंश हो, गायत्री मंत्र जप से तुम्हारे भीतर विद्यमान शक्ति ही बाहर आएंगी। तुम ब्रह्म हो जो उस परम् ब्रह्म का अंश है। इसमें संदेह नहीं है। इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि तुमने किस गुरु से दीक्षा ली है, या किस जाति सम्प्रदाय में जन्में हो। गायत्रीमंत्र जप औषधि की तरह सभी जाति सम्प्रदाय के व्यक्ति के जपने पर समान रूप से असरकारी है। इसके कुछ स्थूल अच्छे प्रभावों को मेडिकली भी चेक कर सकते हैं - जप से पूर्व ब्रेन का EEG, NMR इत्यादि करवा लें। हार्मोनल टेस्ट, ब्लडप्रेशर टेस्ट इत्यादि करवा लें। IQ टेस्ट करवा लें।  छः मास तक ब्रह्मुहुर्त में श्रद्धा विश्वास के साथ नित्य 324 मन्त्र (तीन माला) जप लें। पुनः छः मास के बाद टेस्ट करवा लें। रिजल्ट स्वयं जांच लीजिये। बुद्धिकुशलता गायत्रीमंत्र जप से बढ़ती है यह प्रूवन है। 


सूक्ष्म उपलब्धियां तो अनन्त है, इसे स्थूल मशीन से चेक नहीं किया जा सकता। किंतु यह तो जिसने पाया है वह मात्र अनुभव से ही बता सकता है।


आपका कल्याण हो।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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