Wednesday 27 June 2018

शक्ति संरक्षण सामूहिक चांद्रायण साधना

अनुष्ठान का नाम - *शक्ति संरक्षण सामूहिक चांद्रायण साधना*🙏

साधना माह - *गुरु पूणिर्मा 27.7.18 से 26.8.18  श्रावणी पूणिर्मा तक*

*पापों के प्रायश्चित्त के लिए जिन तपों का शास्त्रों में वर्णन हैं उनमें चांद्रायण व्रत का महत्व सर्वोपरि वर्णन किया गया है*।

प्रायश्रित्त शब्द प्रायः+चित्त शब्दों से मिल कर बना है। इसके दो अर्थ होते है।

प्रायः पापं विजानीयात् चित्तं वै तद्विशोभनम्।

प्रायोनाम तपः प्रोक्तं चित्तं निश्चय उच्यते॥

(1) प्रायः का अर्थ है पाप और चित्त का अर्थ है शुद्धि। प्रायश्चित अर्थात् पाप की शुद्धि।

(2) प्रायः का अर्थ है पाप और चित्त का अर्थ है निश्चय। प्रायश्चित अर्थात् तप करने का निश्चय।

दोनों अर्थों का समन्वय किया जाये तो यों कह सकते हैं कि तपश्चर्या द्वारा पाप कर्मों का प्रक्षालन करके आत्मा को निर्मल बनाना। तप का यही उद्देश्य भी है। चान्द्रायण तप की महिमा और साथ ही कठोरता सर्व विदित है। चांद्रायण का सामान्य क्रम यह है कि जितना सामान्य आहार हो, उसे धीरे धीरे कम करते जाना और फिर निराहार तक पहुँचना। इस महाव्रत के कई भेद है जो नीचे दिये जाते हैं -

(1) पिपीलिका मध्य चान्द्रायण।

एकैकं ह्रासयेत पिण्डं कृष्ण शुलेच वर्धवेत।

उपस्पृशंस्त्रिषवणमेतच्चान्द्रायणं स्मृतम्॥

अर्थात्- पूर्णमासी को 15ग्रास भोजन करे फिर प्रतिदिन क्रमशः एक एक ग्रास कृष्ण पक्ष में घटाता जाए। चतुर्दशी को एक ग्रास भोजन करे फिर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से एक एक ग्रास बढ़ता हुआ पूर्णमासी को 15 ग्रास पर पहुँच जावे। इस व्रत में पूरे एक मास में कुल 240 ग्रास ग्रहण होते हैं।

(2) यव मध्य चान्द्रायण -

प्तमेव विधि कृत्स्न माचरेद्यवमध्यमे।

शक्ल पक्षादि नियतश्चरंश्चान्द्रायणं व्रतम्॥

अर्थात्- शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को एक ग्रास नित्य बढ़ाता हुआ पूर्णमासी को 15 ग्रास खावें। फिर क्रमशः एक एक ग्रास घटाता हुआ चतुर्दशी को 1 ग्रास खावें और अमावस को पूर्ण निराहार रहे। इस प्रकार एक मास में 240 ग्रास खावें।

(3) यति चान्द्रायण

अष्टौ अष्टौ समश्नीयात् पिण्डन् माध्यन्दिने स्थिते।

नियतात्मा हविष्याशी यति चान्द्रायणं स्मृतम्॥

अर्थात्- प्रतिदिन मध्यान्हकाल में आठ ग्रास खाकर रहें। इसे यति चांद्रायण कहते है। इससे भी एक मास में 240 ग्रास ही खाये जाते हैं।

(4) शिशु चान्द्रायण

बतुरः प्रातरश्नीयात् पिण्डान् विप्रः समाहितः।

चतुरोऽख्त मिते सूर्ये शुशुचान्द्रायणं स्मृतम्॥

अर्थात्- चार ग्रास प्रातः काल और चार ग्रास साँय काल खावें। इस प्रकार प्रतिदिन आठ ग्रास खाता हुआ एक मास में 240 ग्रास पूरे करे।

(5) मासपरायण - चन्द्रायण की कठोरता न सध पा रही हो तो अतिव्यस्त जॉब करने वाले एक खाने का और एक लगाने का(दाल या सब्जी) को एक माह के लिए तय कर लें। भूख से आधा उदाहरण- चार रोटी खाते हो तो दो रोटी सुबह और दो शाम को खा कर मासपरायण रह सकते है।

तिथि की वृद्धि तथा क्षय हो जाने पर ग्रास की भी बुद्धि तथा कमी हो जाती है। ग्रास का प्रमाण मोर के अड्डे, मुर्गी के अड्डे, तथा बड़े आँवले के बराबर माना गया है। बड़ा आँवला और मुर्गी के अंडे के बराबर प्रमाण तो साधारण बड़े ग्रास जैसा ही है। परन्तु मोर का अंडा काफी बड़ा होता है। एक अच्छी बाटी एक मोर के अंडे के बराबर ही होती है। इतना आहार लेकर तो आसानी से रहा जा सकता है। पिण्ड शब्द का अर्थ ग्रास भी किया जाता है और गोला भी। गोला से रोटी बनाने की लोई से अर्थ लिया जाता हैं यह बड़ी लोई या मोर के अंडे क प्रमाण निर्बल मन वाले लोगों के लिए भले ही ठीक हो। पर साधारणतः पिण्ड का अर्थ ग्रास ही लिया जाता है।

जल कम से कम 6 से 8 ग्लास घूंट घूंट करके बैठ कर दिन भर में पीना ही है। अन्यथा कब्ज की शिकायत हो जाएगी।

चान्द्रायण व्रत के दिनों में सन्ध्या, स्वाध्याय, देव पूजा, गायत्री जप, हवन आदि धार्मिक कृत्यों का नित्य नियम रखना चाहिए। भूमि शयन, एवं ब्रह्मचर्य का विधान आवश्यक है।

अनुष्ठान - एक मास में एक सवा लाख जप अनुष्ठान करें या कम से कम तीन 24 हज़ार के अनुष्ठान करें तो उत्तम है। इतना न सधे तो कम से कम दो 24 हज़ार के या एक 24 हज़ार का अनुष्ठान एक महीने के अंदर कर ही लें।

यदि जप तप ध्यान प्राणायाम योग और स्वाध्याय सन्तुलित हुआ तो कमज़ोरी लगने का कोई सवाल ही उतपन्न न होगा। लेकिन यदि इसमें व्यतिक्रम हुआ अर्थात व्रत हुआ बाकी न हुआ किसी कारण वश किसी दिन तो कमज़ोरी आ सकती है। तो ऐसी अवस्था मे ग्लूकोज़ पानी पी लें या किसी फल का रसाहार ले लें।

प्रत्येक ग्रास का प्रथम गायत्री से अनुमंत्रण करे फिर ॐ। भूः। भूवः। स्वः। महः। जनः। तपः। सत्यं। यशः। श्रीः। अर्क। ईट। ओजः । तेजः। पुरुष। धर्म। शिवः इनके प्रारम्भ में ‘ॐ’ और अन्तः ‘नमः स्वाहा’ संयुक्त करके उस मंत्र का उच्चारण करते हुए ग्रास का भक्षण करें यथा- ‘ॐ सत्यं नमः स्वाहा’। ऊपर पंद्रह मंत्र लिखे हैं। इसमें से उतने ही प्रयोग होंगे जितने कि ग्रास भक्षण किये जायेंगे, जैसे चतुर्थी तिथि को चार ग्रास लेने हैं तो (1) ॐ नमः स्वाहा (2) ॐ भूः नमः स्वाहा (2) ॐ भूः नमः स्वाहा (3) ॐ भुवः नमः स्वाहा (4) ॐ स्वः नमः स्वाहा इन चार मंत्रों के साथ एक एक ग्रास ग्रहण किया जायगा।

व्रत की समाप्ति पर *मां भगवती भोजनालय में दान दें* तथा सत्साहित्य और मन्त्रलेखन पुस्तिका ज्ञान दान में बांटे है।

Reference Article - http:// literature .awgp. org/akhandjyoti/1951/November/v2.14

निर्भय बने शांत रहें

जितना भय दिन में है उतना ही रात में है, जितनी निर्भयता दिन में है उतनी ही रात में है।

गृहणियां बच्चे और बड़े वही रात में डरते है जो कल्पनायें बढ़िया वाली करते है। वो कभी नहीं डरते जो चीज़ों को जैसा है वैसा ही देखते हैं।

निर्भय बने शांत रहें, व्यर्थ की कुकल्पनाओं से बचें। रस्सी में सांप की कल्पना करो तो रस्सी चलती हुई प्रतीत होगी ही।

डर दूर है तो डरो लेकिन पास आये तो मुकाबला करो।

जो लोग ध्यान नही करते उनके मन कुकल्पनाओं में स्वतः एक्सपर्ट हो जाते हैं। जो ध्यान करता है उसकी विवेकदृष्टि जागृत हो जाती है। वह निर्भय होकर सर्वत्र विचरता है। सुकून से जीता है।

बच्चे के मन से अंधेरे के प्रति भय हटाएं उसे समझाए रात को जो जैसा छोड़ते हैं सुबह वैसा ही मिलता है। कुर्सी चेयर सब। एक दिन पूरा परिवार रात को जागरण कर उसका परिवार सहित एनालिसिस करें। स्वयं ध्यान करें- निर्भय बने और अपने परिवार को ध्यान करवाएं और निर्भय बनाएं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

शक्ति सम्वर्धन चन्द्रायण समूह साधना

*शक्ति सम्वर्धन चन्द्रायण समूह साधना*

कामना मानव मन की एक सहज स्वाभाविक वृत्ति है ।। यही वह वृत्ति है जो मनुष्य को निरंतर कर्मशील बनाए रखती है ।। यों लौकिक कामनाएँ तो हर व्यक्ति करता है पर पारमार्थिक पारलौकिक या बहुजन हिताय बहुजनसुखाय के लिए अपनी योग्यता, प्रतिभा व शक्ति को नियोजित करते हुए एक महान ध्येय को पा लेने की दैवी अभिलाषाएँ भी कइयों के मन में उठा करती हैं ।। कुछ व्यक्ति उन भावनाओं, अभिलाषाओं को पूर्ण नहीं पाते और कुछ पूर्ण कर लेते हैं ।। इसके पीछे उन लोगों की व्यावहारिक सूझ- बूझ व ध्येयनिष्ठा की प्रखरता जुड़ी रहती है ।।

समूह साधना में भावनाएं प्रबल होती हैं, और इच्छित परिणाम लोककल्याणार्थ समूह में जल्दी मिलता है।

*भंडारा आयोजित हो रहा हो तो कोई 10 रुपये दान दे या कोई लाख रुपये दान दे, समूह में प्रसाद का बराबर लाभ सबको मिलता है।*

समूह साधना के इस शुभ अवसर पर वैसे तो सबको अपनी क्षमता से थोड़ा सा ज्यादा जप करना चाहिए, यदि 10 माला की क्षमता सधी हुई है तो दो या 5 और बढ़ा लें।

लेकिन याद रखें सितार में संगीत तभी बजता है जब वो ज्यादा न कसा और और न ही ढीला छोड़ा हो। साधना में भी भावावेश में अधिक कड़ाई करना या स्वयं को ज़्यादा आराम देने की सोचना दोनों ही सही नहीं है।

केवल जप से काम न चलेगा, अन्यथा तोते रटन्त की तरह हमें भी फल न मिलेगा। जप के साथ अर्थ चिंतन और ध्यान जरुरी है। ध्यान की प्रगाढ़ता ही अभीष्ट सिद्धि देगी।

जितनी उपासना उससे दूनी साधना भी जरूरी है। तो स्वाध्याय में सत्साहित्य पढ़ना और उसे गुनना अर्थात चिंतन करना। फ़िर उसके मुख्य बिंदु को डायरी में नोट करना अनिवार्य है।

योग व्यायाम का उचित समागम साधक के लिए अनिवार्य है। सबसे बड़ा सुख निरोगी काया। साधना हेतू निरोगी काया का निर्माण करें।

आराधना हेतु मनःस्थिति, परिस्थिति प्लानिंग यह सब करें, और समयदान अंशदान प्रतिभादान की सुनिश्चित व्यवस्था करें।

मन चन्द्र का प्रतीक है, मन को नियंत्रण करने में चन्द्र की कलाएं और उसके अनुसार घटते बढ़ते क्रम में आहार अत्यंत लाभ प्रद है।

Monday 25 June 2018

Art of Giving

*मनुष्य में देवत्व उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण*

कल्पना करें यदि श्वांस ली तो जाए लेकिन छोड़ी न जाये तो क्या जीवन बचेगा?

जब लेंन-देंन का सिस्टम श्वांस के माध्यम से भगवान हमें निरन्तर याद दिलाता है। तो फ़िर प्रकृति से लेकर उसे पुनः लौटाने का क्रम क्यों पूरा नहीं किया जा रहा?

समाज से लेकर पुनः समाज के उद्धार की व्यवस्था क्यों न की गई?

लेवता बनने में व्यस्त हो गए और देवता बनने में क्यों पीछे रह गए।

देवता(Givers) बहुत कम मिलते हैं, लेकिन लेवता(Takers) बहुतायत हैं, इसीलिए तो कलियुग का प्रभाव बढ़ा हुआ है।

जानते हैं, Takers can eat well,
Givers can sleep well।
लेवता खाता मस्त है लेकिन चैन की नींद को तरसता है। देवता हमेशा आत्म संतुष्टि के कारण चैन की नींद सोता है।

Takers can have a great time,
Givers can have great life,

लेवता  कुछ समय के लिए अपना समय अच्छा एन्जॉय कर सकता है। वहीं देवता का सारा जीवन श्रेष्ठ, अच्छा औऱ सुकून भरा होता है, हर पल आनन्द में होता है।

Art of giving - देवता बन यदि देने का भाव बना लिया जाय, अधिकारों की उपेक्षा कर कर्तव्यों का निर्वहन किया जाय तो जीवन धन्य बन जायेगा।

यह समाज सुधर जाएगा जब सभी कुछ न कुछ समाज कल्याण के लिए करने में जुट जाएंगे। सभी वृक्षारोपण, स्वच्छता इत्यादि में लग गए तो प्रकृति में सन्तुलन हो जाएगा। दहेज़ और ख़र्चीली शादी लेने का भाव त्यागते ही बन्द हो जाएगा। भाव सम्वेदना का विस्तार सहज़ ही देवता बनते हो जाएगा। लड़की लड़का का भेद मिट जाएगा और दोनों को आगे बढ़ने का समान अवसर मिलेगा, गृह कलह देवता बनते ही खत्म हो जाएगा। घर स्वर्ग सा सुंदर बन जायेगा।

देवता बनकर उनको भी क्षमा कर दें जिसने आपको कष्ट दिया। तो मन स्वतः हल्का हो जाएगा।

देवता बनने हेतु नित्य उपासना, साधना और आराधना का क्रम अपनाए, उच्च मनःस्थिति और सुकून भरे हृदय का निर्माण करके और धरती पर ही स्वर्ग एन्जॉय करें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Sunday 24 June 2018

वायरल फ़ीवर" से निपटने की पूर्व तैयारी

*बरसात का स्वागत कीजिये और बदलते मौसम में होने वाले "वायरल फ़ीवर" से निपटने की पूर्व तैयारी रखें।* -

बदलता मौसम सर्दी खाँसी और वायरल फ़ीवर की सौगात साथ लाता है। पूर्व तैयारी न हुई तो परेशानी निश्चित है।

एलोपैथी में दी जाने वाली एंटीबायोटिक दवाएँ मर्ज़ के साथ मरीज़ को भी नुकसान पहुंचाती हैं। लेटेस्ट सर्वे के अनुसार अत्यधिक एंटीबायोटिक दवाओं के सेवन से शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता नष्ट हो जाती है।

👉🏼 *उपाय* -

1- सुबह खाली पेट 3 ग्लास गुनगुना पानी पिएं, ताड़ासन और योग करके नित्यकर्म करें, घर में प्रज्ञापेय में हल्का सा दालचीनी पावडर, तुलसी पत्र, कालीमिर्च औऱ अदरक डालकर चाय की तरह बनाकर सपरिवार पियें।

2- बच्चों को नहाने के बाद 5 तुलसीपत्र खिला दें, खाना बनाने में थोड़ी काली मिर्च पावडर का प्रयोग करें। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी

3- यदि आसपास वायरल फ़ैलने की सूचना आ गयी तो 10 वर्ष से कम बच्चो को आधी - आधी टेबलेट गिलोय की सुबह शाम दे दें या गिलोय के ताजे हरे पत्तो की चटनी खिलाएं, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी।

👉🏼 *यग्योपैथी*
4- घर मे किसी को वायरल न हो इसलिए साप्ताहिक *डेंगू, वायरल, ज्वर नाशक* हवन सामग्री से हवन करें:-

एक भाग कॉमन हवन सामग्री शान्तिकुंज फार्मेसी की लें और एक भाग निम्नलिखित ज्वर की लें:-

(निम्नलिखित सभी वनौषधियाँ समान मात्रा में लें)

1- चिरायता, 2- कालमेघ, 3- आर्टिमिसिया एनुआ, 4- कपूर तुलसी, 5- शरपुंखा, 6- सप्तपर्णी, 7- मुलहठी, 8- गिलोय, 9- सारिवा, 10- विजया, 11- कुटकी, 12- करंज गिरी, 13- पटोल पत्र, 14- निबौली या नीम छाल

उपरोक्त ज्वर हवन सामग्री को कॉमन हवन सामग्री में मिलाकर यज्ञ करने पर लाभ होता है।

साथ ही ज्वर से पीड़ित मरीज़ को  ज्वर की हवन सामग्री को सूती बारीक कपड़े से छानकर बनाये पावडर की एक चम्मच सुबह और एक चम्मच शाम को गुनगुने पानी के साथ दें। इससे शीघ्र लाभ मिलेगा।

यदि अपने गांव या शहर को वायरल के प्रभाव से मुक्त करवाना चाहते है तो थोड़ी थोड़ी दूर में लगभग सभी जगहों, मंदिरों और आसपास के क्षेत्रों को इस हवन सामग्री से यज्ञ करने को प्रेरित करें। गाँव शहर गली मोहल्लों में पनप रहे रोगाणुओं को नष्ट करें। हवन में समिधा रूप में गाय के गोबर के कंडे या आम की सूखी लकड़ी प्रयोग में लेवें।

हवन में औषधियों के कारण प्रभाव को जागृत करने हेतु सूर्य गायत्री मंत्र से 24 आहुतियां उपरोक्त ज्वर और कॉमन हवन सामग्री की देशी घी में मिलाकर दें।

*सूर्य गायत्री मंत्र* - ॐ भाष्कराये विद्महे, दिवाकराय धीमहि। तन्नो सूर्य: प्रचोदयात स्वाहा, इदं सूर्याय इदं न मम।

🙏🏻रोगमुक्त स्वस्थ भारत बने यही अखिलविश्व गायत्री परिवार की यग्योपैथी टीम प्रयास कर रही है।

आप सभी का रोगमुक्त भारत और स्वस्थ भारत बनाने में सहयोग का आह्वाहन करते हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
यग्योपैथी टीम, अखिलविश्व गायत्री परिवार

Reference Book - यज्ञ चिकित्सा, पेज नम्बर 46 से 48

(प्रज्ञा पेय, पीपल की पांच पत्तीयाँ, बेल की पांच पत्तियाँ, और गिलोय, तुलसी पत्र पांच, थोड़ा सा गुड़, ये काढ़ा ईस सीजन मे सभी बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करता है👏👏🌹🙏🙏)

Saturday 23 June 2018

Kartik Rajaram - This man was programmed for success but he was not trained, how to handle failure

*👉🏼Kartik Rajaram - This man was programmed for success but he was not trained, how to handle failure.*

एक लड़का था। बहुत brilliant था। सारी जिंदगी फर्स्ट आया। साइंस में हमेशा 100% स्कोर किया। ऐसे बच्चे आमतौर पर इंजिनियर बनने चले जाते हैं, सो उसका भी सिलेक्शन हो गया IIT चेन्नई  में। वहाँ से B Tech किया और आगे पढने अमेरिका चला गया। वहाँ आगे की पढ़ाई पूरी की। M.Tech बगैरह कुछ किया होगा फिर उसने यूनिवर्सिटी ऑफ़ केलिफ़ोर्निआ से MBA किया।
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अब इतना पढने के बाद तो वहाँ अच्छी नौकरी मिल ही जाती है। सुनते हैं कि वहाँ भी हमेशा टॉप ही किया, और  वहीं अमेरिका में नौकरी करने लगा। बताया जाता है कि 05 बेडरूम का घर था उसके पास।
शादी भी वहीं, चेन्नई की ही एक बेहद खूबसूरत लड़की से हो गई। बताते हैं कि ससुर साहब भी कोई बड़े आदमी ही थे, कई किलो सोना दिया उन्होंने अपनी लड़की को दहेज़ में।
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अब हमारे यहाँ आजकल के हिन्दुस्तान में इससे आदर्श जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। एक मनुष्य को और क्या चाहिए अपने जीवन में? पढ़ लिख के इंजिनियर बन गए, अमेरिका में सेटल हो गए, मोटी तनख्वाह की नौकरी, बीवी-बच्चे, सुख ही सुख, इसके बाद हीरो-हेरोइन के मानिंद सुखपूर्वक वहाँ की साफ़-सुथरी सड़कों पर भ्रष्टाचार मुक्त माहौल में सुखपूर्वक विचरने लगे...

.दूसरा परिदृश्य:
अब एक दोस्त हैं हमारे, भाई नीरज जाट जी। एक नंबर के घुमक्कड़ हैं, घर कम रहते हैं, सफ़र में ज्यादा रहते हैं।  ऐसी-ऐसी जगह घूमने चल पड़ते हैं पैदल ही कि बता नहीं सकते, 04-06 दिन पहाड़ों पर घूमना, trekking करना आदि उनके लिए आम बात है। एक से बढ़कर एक दुर्गम स्थानों पर जाते हैं, और फिर आके किस्से सुनाते हैं, ब्लॉग लिखते हैं। उनका ब्लॉग पढ़ के मुझे थकावट हो जाती है, न रहने का ठिकाना न खाने का ठिकाना (मानों जिंदगी ही सफ़र में हो), फिर भी कोई टेंशन नहीं। चल पड़ते हैं घूमने, बैग कंधे पर लाद के। मेरी बीवी अक्सर मुझसे कहती है कि एक तो तुम पहले ही आवारा थे ऊपर से ऐसे दोस्त पाल लिए, नीरज जाट जैसे! जो न खुद घर रहते हैं और न दूसरों को रहने देते हैं!! बहला-फुसला के ले जाते हैं अपने साथ!!!
पर मुझे उनकी घुमक्कड़ी देख सुनके रश्क होता है, कितना रफ एंड टफ है यार ये आदमी! कितना जीवट है! बड़ी सख्त जान है!
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आइए अब जरा कहानी के पहले पात्र पर दुबारा आ जाते हैं। तो आप उस इंजिनियर लड़के का क्या फ्यूचर देखते हैं लाइफ में?
क्यों, सब बढ़िया ही दीखता है? पर नहीं, आज से तीन साल पहले उसने वहीं अमेरिका में, सपरिवार आत्महत्या कर ली! अपनी पत्नी और बच्चों को गोली मारकर खुद को भी गोली मार ली! What went wrong? आखिर ऐसा क्या हुआ, गड़बड़ कहाँ हुई???
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ये कदम उठाने से पहले उसने बाकायदा अपनी wife से discuss किया, फिर एक लम्बा suicide नोट लिखा और उसमें बाकायदा justify किया अपने इस कदम को और यहाँ तक लिखा कि यही सबसे श्रेष्ठ रास्ता था इन परिस्थितयों में! उनके इस केस को और उस suicide नोट को California Institute of Clinical Psychology ने study किया है! What went wrong?
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हुआ यूँ था कि अमेरिका की आर्थिक मंदी के दौर में उसकी नौकरी चली गई! बहुत दिन खाली बैठे रहे! नौकरियाँ ढूँढते रहे! फिर अपनी तनख्वाह कम करते गए और फिर भी जब नौकरी न मिली... मकान की किश्त भी टूट गयी... तो सड़क पे आने की नौबत आ गई! बताते हैं, कुछ दिन किसी पेट्रोल पम्प पे तेल भरा! साल भर ये सब बर्दाश्त किया और फिर अंत में ख़ुदकुशी कर ली...
ख़ुशी-ख़ुशी!  उसकी बीवी भी इसके लिए राज़ी हो गई, ख़ुशी ख़ुशी!! जी हाँ लिखा है उन्होंने- हम सब लोग बहुत खुश हैं, कि अब सब-कुछ ठीक हो जाएगा, सब कष्ट ख़त्म हो जाएँगे!!!
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*इस case study को ऐसे conclude किया है experts ने :*

 This man was programmed for success but he was not trained, how to handle failure.
यह व्यक्ति सफलता के लिए तो तैयार था, पर इसे जीवन में ये नहीं सिखाया गया कि असफलता का सामना कैसे किया जाए!
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आइए ज़रा उसके जीवन पर शुरु से नज़र डालते हैं! बहुत तेज़ था पढने में, हमेशा फर्स्ट ही आया! ऐसे बहुत से Parents को मैं जानता हूँ जो यही चाहते हैं कि बस उनका बच्चा हमेशा फर्स्ट ही आए, कोई गलती न हो उस से! गलती करना तो यूँ- मानो कोई बहुत बड़ा पाप कर दिया!!! और हमेशा फर्स्ट आने के लिए वो "सब-कुछ" करने को तत्पर रहते हैं,
फिर ऐसे बच्चे चूँकि पढ़ाकू कुछ ज्यादा होते हैं सो खेलकूद, घूमना फिरना, लड़ाई-झगडा, मार-पीट, ऐसे पंगों का मौका कम मिलता है इन बेचारों को!
12 th करके निकले तो इंजीनियरिंग कॉलेज का बोझ लद गया बेचारों पर, वहाँ से निकले तो MBA और अभी पढ़ ही रहे थे की मोटी तनख्वाह की नौकरी! अब तनख्वाह मोटी तो जिम्मेवारी भी उतनी ही विशाल! यानि बड़े-बड़े targets...
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कमबख्त ये दुनिया, बड़ी कठोर है और ये जिंदगी, अलग से इम्तहान लेती है! आपकी कॉलेज की डिग्री और मार्कशीट से कोई मतलब नहीं उसे! वहाँ कितने नंबर लिए कोई फर्क नहीं पड़ता! ये जिंदगी अपना अलग question paper सेट करती है! और सवाल साले,सब out ऑफ़ syllabus होते हैं, टेढ़े मेढ़े, ऊट-पटाँग और रोज़ इम्तहान लेती है, कोई date sheet नहीं!
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एक बार एक बहुत बड़े स्कूल में हम लोग summer camp ले रहे थे दिल्ली में। Mercedeze और BMW में आते थे बच्चे वहाँ। तभी एक लड़की, रही होगी यही कोई 7-8 साल की, अचानक जोर-जोर से रोने लगी! हम लोग दौड़े, क्या हुआ भैया, देखा तो वो लड़की हल्का सा गिर गई थी। वहाँ ज़मीन कुछ गीली थी सो उसके हाथ में ज़रा सी गीली मिटटी लग गई थी और थोड़ी उसकी frock में भी!! बस!!! सो वो जार-जार रोए जा रही थी! खैर हमने उसके हाथ धोए और ये बताया कि कुछ नहीं हुआ बेटा, ये देखो, धुल गयी मिटटी  खैर साहब, थोड़ी देर में high heels पहने उसकी माँ आ गई... और उसने हमारी बड़ी क्लास लगाई कि आप लोग ठीक से काम नहीं करते हो, लापरवाही करते हो, कैसे गिर गया बच्चा, अगर कुछ हो जाता तो? इतना बड़ा हादसा, भगवान न करे किसी और के साथ हो जीवन में...!!!
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एक और आँखों देखी घटना बताता हूँ कि कैसे माँ-बाप स्वयं अपने बच्चों को spoil करते हैं!
हम लोग एक स्कूल में एक और कैंप लगा रहे थे, बच्चे स्कूल बस से आते थे। ड्राईवर ने जोर से ब्रेक मारी तो एक बच्चा गिर गया और उसके माथे पे हल्की सी चोट लग गई, यही कोई एक सेन्टीमीटर का हल्का सा कट! अब वो बच्चा जोर-जोर से रोने लगा, बस यूँ समझ लीजे, चिंघाड़-चिंघाड़ के, क्योंकि उसने वो खून देख लिया अपने हाथ पे! खैर मामूली सी बात थी, हमने उसे फर्स्ट ऐड दे के बैठा दिया! तभी, यही कोई 10 मिनट बीते होंगे, उस बच्चे के माँ बाप पहुँच गए स्कूल... और फिर वहाँ जो रोआ-राट मची... वो बच्चा जितनी जोर से रोता, उसकी माँ उससे भी ज्यादा जोर से चिंघाड़ती और एक तरफ़ उसका बाप जोर-जोर से चिल्ला रहा था, पागलों की तरह! मेरे बच्चे को सर में चोट लगी है, आप लोग अभी तक हॉस्पिटल ले के नहीं गए? अरे ये तो न्यूरो का केस है सर में चोट लगी है!!!
मेरा एक दोस्त जो वहाँ PTI था उसके साथ हम उसे एक स्थानीय neurology के हॉस्पिटल में ले गए। अब अस्पताल वालों को तो बकरा चाहिए काटने के लिए! वहाँ पर भी उस लड़के का बाप CT Scan, Plastic surgery न जाने क्या-क्या बक रहा था! पर finally उस अस्पताल के doctors ने एक BANDAID लगा के भेज दिया।
              एक और किस्सा उसी स्कूल का, एक श्रीमान जी सुबह-सुबह आ के लड़ रहे थे, क्या हुआ भैया, स्कूल बस नहीं आई, हमें आना पड़ा छोड़ने! बाद में पता चला श्रीमानजी का घर स्कूल से बमुश्किल 200 मीटर दूर, उसी कालोनी में तीन सड़क छोड़ के था और लड़का उनका 10 साल का था!!

क्या बनाना चाहते हैं आजकल के माँ-बाप अपने बच्चों को? ये spoon fed बच्चे जीवन के संघर्षों को कैसे या कितना झेल पाएँगे?

अगले परिदृश्य पर गौर फरमाएँ-
                आज से लगभग 15 साल पहले, मेरा बड़ा बेटा 4-5 साल का था, अपने खेत पे जा रहे थे हम। बरसात का season था, धान के खेतों में पानी भरा था। मेरे बेटे ने मुझसे कहा, पापा, मुझे गोदी उठा लो. मैंने कहा कुछ नहीं होता बेटा, पैदल चलो और वो चलने लगा और थोड़ी ही देर बाद पानी में गिर गया! कपडे सब कीचड में सन गए! अब वो रोने लगा, मैंने फिर कहा कुछ नहीं हुआ बेटा, उठो, वो वहीं बैठा-बैठा रो रहा था! उसने मेरी तरफ हाथ बढाए, मैंने कहा अरे पहले उठो तो और वो उठ खड़ा हुआ! मैंने उसे सिर्फ अपनी ऊँगली थमाई और वो उसे पकड़ के ऊपर आ गया। हम फिर चल पड़े। थोड़ी देर बाद वो फिर गिर गया, पर अबकी बार उसकी प्रतिक्रिया बिलकुल अलग थी। उसने सिर्फ इतना ही कहा, अर्रे... और हम सब हँस दिए, वो भी हँसने लगा... फिर अपने आप उठा और ऊपर आ गया। मुझे याद है उस साल हम दोनों बाप-बेटे बीसों बार उस खेत पे गए होंगे, वो उसके बाद वहाँ से आते-जाते कभी नहीं गिरा!

                कल मैं मेरे वह मित्र, नीरज जाट जी की करेरी झील की trekking वाली पोस्ट पढ़ रहा था। 04 दिन उस सुनसान बियाबान में रहे, जिसमें रास्ता तक का पता नहीं चलता, और वो भी  इतनी बारिश और ओला वृष्टि में, ऊपर से लेकर नीचे तक भीगे हुए, भूखे/प्यासे, न रहने का आसरा न सोने का ठिकाना!!! उस कीचड भरे मंदिर के कमरे में, उस बिना chain वाले स्लीपिंग बैग में, रात बिता के भी, कितने खुश थे वो। इतना संघर्षशील आदमी भला क्या जीवन में कभी हार मानेगा?

             कार्तिक राजाराम! जीहाँ, यही नाम था उस लड़के का। काश उसे भी बचपन में गिरने की, गिर-गिर के उठने की, बार-बार हारने की, और हार के बार-बार जीतने की ट्रेनिंग मिली होती!!!

          कठोपनिषद में एक मंत्र है, उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत। उठो जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक आगे बढ़ते रहो। शुरू से ही अपने बच्चों को इतना कोमल, इतना सुकुमार मत बनाइए कि वो इस ज़ालिम दुनिया के झटके बर्दाश्त ही ना कर सके!!

             एक अंग्रेजी उपन्यास में एक किस्सा पढ़ा था- एक मेमना अपनी माँ से दूर निकल गया। आगे जाकर पहले तो भैंसों के झुण्ड से घिर गया, उनके पैरों तले कुचले जाने से बचा किसी तरह! अभी थोड़ा ही आगे बढ़ा था कि एक सियार उसकी तरफ झपटा! किसी तरह झाड़ियों में घुस के जान बचाई तो सामने से भेड़िए आते दिखे!! वह बहुत देर तक वहीं झाड़ियों में दुबका रहा, फिर किसी तरह माँ के पास वापस पहुँचा तो बोला, माँ, वहाँ तो बहुत खतरनाक जंगल है!!!
Mom, there is a jungle out there.

"इस खतरनाक जंगल में जिंदा बचे रहने की ट्रेनिंग अभी से अपने बच्चों को दीजिए।"

(किसी अन्य की पोस्ट जो मुझे खूब भायी)
साभार

आत्महत्या की कायरता न करें, जीवन के प्रति आशावान बने

*😔निराशा को पास न फटकने दे, आनन्द उत्साह उल्लास और उमंग से जीवन जियें😇*

निराशा के अंधेरे में मत भटको,
बस इक आशा का दीप जला लो,
उत्साह उमंग और उल्लास में झूम के,
एक बार पुनः सोया आत्मबल जगा लो।

थोड़ा अपनी सम्पत्ति का लेखा जोखा कर लो,
और अपने भीतर के बहुमूल्य अंगों को देख लो,
कितना कीमती मानव तन मिला है,
थोड़ा इसका भी लेखा जोखा कर लो।

किडनी लीवर हार्ट और रक्त इत्यादि,
करोड़ो का सामान भीतर भरा पड़ा है,
सब जीवों में श्रेष्ठ बुद्धिबल लेकर,
केवल मानव ही सर्वश्रेष्ठ बना है।

आओ कुछ ख़ुशी मनाने के कारण देखें,
जीवन को एक नूतन दृष्टि से जांचे परखें,
हम जिंदा है क्या ये खुशी की बात नहीं?
हम बोल देख सुन चल और सोच-समझ सकते है,
क्या ये सब ख़ुशी के कारण पर्याप्त नहीं?

दिल की धड़कन का संगीत सुनो,
अंतर्जगत में बज रहा ब्रह्म नाद सुनो,
आओ थोड़ा नेत्र बंद कर ध्यान करो,
और अंतर्जगत के उत्सव का भान करो।

तुम उस ईश्वरीय चेतना का अंश हो,
अपनी पूर्ण शक्ति का भान करो,
सोए आत्मबल को पुनः जागृत कर,
विपरीत परिस्थितियों का बहादुरी से सामना करो।

मरना तो सबको एक दिन है,
लेकिन आत्महत्या की कायरता न करो,
वीर सैनिक की तरह जीवन संग्राम में,
अनवरत युद्ध करते हुए लड़ते हुए मरो।

जब बेघर और कठिन परिस्थितियों में,
रहते हुए जीव जंतु,
आत्महत्या कभी नहीं करते,
फ़िर तुम तो उस ब्रह्म का अंश हो,
और बुद्धिबल सम्पन्न हो,
अतः हे नर रत्न,
आत्महत्या जैसी कायरता का,
मन से पूर्णतया त्याग करो,
स्वयं में आशा का संचार करो।

जब तक जियो वीर सैनिकों की तरह जियो,
हर पल उत्साह उमंग और उल्लास से जियो,
निराशा को पास मत फटकने दो,
और हर पल जीवन के प्रति आशावान रहो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

पुस्तक - *निराशा को पास न फटकने दें, निम्नलिखित लिंक पर जाकर पढ़ें*

http:// literature. awgp. org/ book/Nirasha_Ko_Pass_Na_Fatakane_De/v1

चेस के खेल से शिक्षण

*चेस के खेल से शिक्षण*

जिंदगी चेस का खेल है, जो मनःस्थिति और परिस्थिति दो के बीच खेला जाता है।

मनःस्थिति को हर हालत में राजा आत्मा को आत्मबल रूपी वज़ीर की मदद से बचाना होता है।

ये एक ऐसा खेल है जो चाहो या न चाहो खेलना ही पड़ेगा। अतः चैतन्य जागरूक होना पड़ता है। मनःस्थिति के सभी प्यादे बुद्धि, चित्त, अहंकार, अच्छी या बुरी भावनाएं, अहसास, अनुभूति, अनुभव इत्यादि सबकुछ के प्रति जागरुक रहते हुए वज़ीर आत्मबल से परिस्थिति की चालों का सामना करना पड़ता है।

उदाहरण - कुशल गृहणी बरसात के मौसम में वर्षा का अंदाजा लगते ही बाहर के कपड़े अंदर रख लेती है, वर्षा से कम नुकसान हो ऐसी व्यवस्था करती है। घर वालो को पकौड़े भी बना के खिला देती है। अर्थात परिस्थिति की चाल को समझ के मनःस्थिति की चाल को पहले ही चल देती है।

इसी तरह कुशल किसान और सिद्ध साधक करते है।

परिस्थिति रूप में अंगुलिमाल की चाल से पहले ही भगवान बुद्ध ने अपने को एकाग्र करके अपनी विचारशक्ति और आत्मबल का सूक्ष्म प्रहार अंगुलिमाल पर कर दिया।

जो चैतन्य जागरूक मनःस्थिति के लिए है वो विजेता है।

चेस में दोनों तरफ उतने ही घोड़े हाथी ऊंट और वज़ीर होते है, लेकिन जो कुशल है वो ही जीतता है, जो दूसरे की अगली चाल को समझ के अपनी चाल चलता है।

गुरुदेब की पुस्तक - *मन के हारे हार है और मन के जीते जीत* इसी हेतु है।

चन्द्रायण साधना आत्मबल के संग्रहण में सहायक है और युगऋषि के साहित्य का स्वाध्याय जीवन में परिस्थिति की चालों को समझने में सहायता करता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday 22 June 2018

गायत्री जयंती एवं दशहरा की शुभकामनाएं

*गायत्री जयंती एवं दशहरा की शुभकामनाएं*

*गंगा* का जल और कृपा स्वर्ग में देवताओं के पास थी, *भागीरथी* के तपबल से ही जनसामान्य को गंगा जी का जल मिला और कृपा मिली। इसी तरह *गायत्री की शक्ति* और कृपा भी देवताओं और विशिष्ठ ऋषियों के पास थी, *युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी के तपबल और अथक प्रयास से* वो जनसामान्य को लाभ मिला और महिलाओं को गायत्री जप का अधिकार मिला।

आध्यात्मिक वैज्ञानिक युगऋषि ने  गायत्री मंत्र रूपी आध्यात्मिक फ़ार्मूले को देकर जीवन की समस्त समस्याओं के समाधान के साथ साथ आंतरिक सुकून, शांति और आनन्द की कुंजी भी दे दी।

गायत्री मंत्र के भावार्थ में ही छुपा जीवन रहस्य बता दिया। गायत्री योग और यज्ञ का मर्म भी समझा दिया।

*ॐ भूर्भुवः स्व: तत सवितुर्वरेण्य भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात।*

इस मंत्र का भावार्थ बताते हुए परम् पूज्य गुरुदेव ने कहा- *तत्सवितुर्वरेण्यं* उस सविता शक्ति को वरण कर अपनी चेतना में धारण करो। जिस प्रकार विवाह के बाद स्त्री पुरुष दो शरीर एक जान हो जाते है। वैसे ही आत्मा का परमात्मा से विवाह जानो। भक्त भगवान एक, साधक सविता एक। समिधा की तरह यज्ञ में आहूत हो यज्ञ बन जाओ, जब एक बन गए तो अब नेक्स्ट क्या करना है। *भर्गो देवस्य धीमहि* - जब सविता का तेज धारण करलो तो उस तेज से अपने समस्त विकारों को नष्ट कर दो। और दैवीय गुणों से सम्पन्न स्वयं को बना लो। *धियो योनः प्रचोदयात* - सविता का तेज आत्मा में वरण कर, दैवीय गुणों को धारण कर, सन्मार्ग की ओर कदम बढ़ाओ, और दूसरे भूले भटको को भी राह दिखाओ।

गायत्री मन्त्र भावार्थ और सन्देश कविता में भी प्रस्तुत है:-

*प्राणस्वरूप* परमात्मा के,
*प्राणवान सन्तान* बनो,
*तेजस्वरूप* परमात्मा के,
*तेजस्वी सन्तान* बनो।

*दुःख नाशक* परमात्मा के,
*दुःख दूर करने वाली सन्तान* बनो,
*सुख स्वरूप* परमात्मा के,
*आत्मीयता विस्तार करने वाली सन्तान* बनो।
,

*श्रेष्ठ दिव्य* परमात्मा के,
*श्रेष्ठ गुण सम्पन्न* पुत्र बनो,
*तेजस्वी* परमात्मा के,
*तेजस्वी वर्चस्वी* पुत्र बनो।

*पापनाशक* परमात्मा के,
*अनीति से लोहा लेने वाले पुत्र* बनो,
*देवस्वरूप* परमात्मा के,
*दैवीय गुण धारण करने वाले* पुत्र बनो।

*जैसा परम् पिता है*,
*वैसा ही बनने का प्रयास करो*,
उसकी सृष्टि संचालन में,
तन मन धन से सहयोग करो।

उसको हृदय में धारण कर,
सन्मार्ग का चयन करो,
मनुष्य में देवत्व उदय,
और धरती में स्वर्ग अवतरण हेतु,
हर सम्भव प्रयास करो।

कण कण में संव्याप्त यज्ञमय सृष्टि में,
सत्कर्मो को आहुत करो,
सूर्य न बन सको तो कोई बात नहीं,
दीप बन कर ही जलने का प्रयास करो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 20 June 2018

योग चरित्र-चिंतन-व्यवहार से सुदृढ और श्रेष्ठ बनने का ज्ञान विज्ञान है। भीतर से प्रकाशित होने की प्रक्रिया है।

*योग चरित्र-चिंतन-व्यवहार से सुदृढ और श्रेष्ठ बनने का ज्ञान विज्ञान है। भीतर से प्रकाशित होने की प्रक्रिया है।*

हमारे आत्मीय भाइयो एवं बहनों,

वर्षों के बाद एक ऐसा अवसर आया है कि हम योगदिवस के माध्यम से भारतीय विरासत का गौरव अनुभव कर रहे हैं। घर घर योग पहुंचे यही शुभकामनाएं है, विश्व स्तर पर योग की पहचान हो गयी है अब घर घर भी पहुंचे, एक नित्य अभ्यास में आ जाये।

भारतीय संस्कृति की दृष्टि में हम युवा किसे कहते हैं? संघर्षो के सौपानो पर चढ़कर सफ़लता प्राप्त करने वाले युवा कहलाते है। लाखों वर्षों तक कोयला घिसा जाता है तब हीरा बनता है, सोना भी भट्टी में पिघलकर तपकर ही निखरता है। पेंसिल भी कटर के दर्द को सहकर ही लिखने योग्य बनती है। धाराओं की चीरने वाला ही तैराक बन पाता है। ये सारे उदाहरण युवा व्यक्तित्व और युवा सोच के उदाहरण हैं।

*संघर्षो को सौभाग्य की तरह वरण करने वाले युवा कहलाते हैं। क्योंकि हमारे देश मे युवा उम्र से नहीं दृष्टिकोण(attitude) से तौले जाते हैं। हमारा देश अद्भुत देश है।*

जिनका जीवन ठहर गया है, जिनका उत्साह ठंडा हो गया है।जिनके अंदर क्रांति की सम्भावनाये जन्म नहीं लेती , जिनके मन मे समाज को बदलने की, संस्कृति को उठाने की, राष्ट्र को बढ़ाने की सोच करवटे नहीं लेती, जिनकी सोच ठहर गयी है। वो युवा नहीं हैं।

युवा वो हैं जिनके मन में उमंग उल्लास और कुछ कर गुजरने की चाह है, जो संस्कृति को उठाने, समाज को बनाने और राष्ट्र को आगे बढ़ाने में प्रयासरत हैं, वो चाहे किसी भी उम्र के हों युवा हैं।

*देश का सौभाग्य है कि हमारे देश के 65 से 70% युवा हैं। लेकिन इस सौभाग्य को दुर्भाग्य बनते देर न लगेगी यदि इस यौवन को सही दिशा धारा न मिली।*

तो इस यौवन को सही दिशा धारा देने में सहायक योग है।

जो तिल माहीं तेल है जो चकमक में आग,
तेरा साईं तुझमें है, जाग सके तो जाग।

*अंतर की आंखों को खोलने का विज्ञान योग है, स्वयं के पूर्ण अस्तित्व को जानने का नाम योग है, अंतर से बदलने का नाम योग है, स्वयं को श्रेष्ठता से जोड़ना योग है, चेतना के परिष्कार का नाम योग है। मात्र शरीर के स्वास्थ्य हेतु योग नहीं होता वो तो मात्र एक अंग है। योग मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य प्राप्त करके पूर्णता प्राप्त करने का नाम है।*

*संसार मे हम सभी जीव चार प्रकार की यात्राएं कर रहे हैं:-*

*अंधेरे से अंधेरे की ओर* -  वर्तमान में भी दुःखी हैरान परेशान है और उस पर भी नशे और बुरी प्रवृत्तियों में लिप्त है। वर्तमान तो अंधकारमय है ही लेकिन भविष्य को और गहन अंधकारमय बना रहे हैं।

*प्रकाश से अंधेरे की ओर* - वर्तमान प्रकाशित है, सब सुख सुविधा और स्वास्थ्य मिला है लेकिन नशे और बुरी प्रवृत्तियों को अपनाया हुआ है। तो भविष्य को अंधकारमय बनाने की पूरी तैयारी है।

*अंधेरे से प्रकाश की ओर* -  वर्तमान में भी दुःखी हैरान परेशान है। अतः योग के द्वारा अपनी आत्मचेतना के विकास द्वारा और अच्छी प्रवृत्तियों और अच्छे कार्य द्वारा अच्छे भविष्य के निर्माण में सक्रिय हैं। वर्तमान तो अंधकारमय है ही लेकिन भविष्य को प्रकाशमय और उज्ज्वल बनाने हेतु प्रयत्नशील  हैं।

*प्रकाश से अंधेरे की ओर* - वर्तमान प्रकाशित है, सब सुख सुविधा और स्वास्थ्य मिला है । अतः योग के द्वारा अपनी आत्मचेतना के विकास द्वारा और अच्छी प्रवृत्तियों और अच्छे कार्य द्वारा अच्छे भविष्य के और बेहतर निर्माण में सक्रिय हैं। वर्तमान तो अंधकारमय है ही लेकिन भविष्य को और ज्यादा प्रकाशमय और ज्यादा उज्ज्वल बनाने हेतु प्रयत्नशील  हैं।

*योग - अंधेरे से प्रकाश की ओर और प्रकाश से प्रकाश की ओर गमन है श्रेष्ठता का वरण है। भीतर से प्रकाशित होने का ज्ञान विज्ञान है। चरित्र-चिंतन-व्यवहार से सुदृढ बनने का ज्ञान विज्ञान है।*

आदरणीय चिन्मय पण्ड्या द्वारा तालकटोरा स्टेडियम में दिया वक्तव्य योग पर सुनिए:-

https://youtu.be/JpIFrUy_hKg

*अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की शुभकामनाएं, अपनाए योग रहें निरोग, भगाएं अंतर का अंधकार और लाएं ज्ञान का प्रकाश।*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 19 June 2018

सद्-बुद्धि सद्भाव दीपयज्ञ – सबके उत्तम स्वास्थ्य और उज्जवल भविष्य के लिए


|| सद्-बुद्धि सद्भाव दीपयज्ञ – सबके उत्तम स्वास्थ्य और उज्जवल भविष्य के लिए  ||
22 jun - गंगा दशहरा / गायत्री जयंती के उपलक्ष्य में
दीपयज्ञ एक कम खर्चीला भावपूर्ण स्वचालित सुगम आहुति सिस्टम है। जिसमें यज्ञ का पूर्ण लाभ मिलता है। गायत्री मंत्रों के साथ भावपूर्ण इदं न मम की भावना के साथ आहुती दी जाती है । आज संसार में हर तरफ़ स्वार्थ का यह मेरा है का भाव है।  गायत्री परिवार  परमार्थ का सूत्र दे रहा है इदं न मम अर्थात् यह मेरा नही ईश्वर तुम्हारा है| दीपयज्ञ के लाभ - प्रदूषण को भी कम करता है और नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करता है, गाय का घी रोगाणुओं को भगाता है और वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाता है|तीन प्रमुख नाड़ियां है – चंद्र नाड़ी, सूर्य नाड़ी तथा सुषुम्ना नाड़ी। शरीर में चंद्र नाड़ी से ऊर्जा प्राप्त होने पर मनुष्य तन एवं मन की शांति को महसूस करता है घी से जलाया हुआ दीपक शरीर की तीनों प्रमुख नाड़ियों को जागृत करता है|

मध्यप्रदेश में तो ५१ हजार घरों में एक साथ एक समय पर यह दीप् यज्ञ होगा |
दिल्ली एनसीआर में भी घर घ दीप यज्ञ किये जायेंगे |   आप इस मेसेज को प्रिंट करके या फारवर्ड करके अपने क्षेत्र में भी यह श्रंखला अपने क्षेत्रों में चलायें और अपने नजदीकी शक्तिपीठ में सब अपने नाम नोट करवा दें | फिर समस्त दीपयज्ञ की संख्या शांतिकुंज यूथ सेल को ईमेल कर दें | इस अभियान की सफलता में सहयोग करें |

 ch। दीपयज्ञ हेतु व्यवस्था –सामग्री – एक थाली में पांच दिया, पांच अगरबत्ती और स्टैंड, रोली (तिलक), चावल(अक्षत जो टूटे न हों), एक लोटे/ कटोरी/ गिलास में जल व चम्मच, पुष्प (व्यवस्था न हों तो अक्षत को हल्दी से पीला कर के रख लें) व प्रसाद में (मिश्री, गुड़ या जो भी सम्भव हो)|

दीप यज्ञ विधि (दीप यज्ञ में समय/अवधि : शाम ७ से ७:१५ पूजन, ७:१५ से ७:३० सामूहिक गायत्री जप, रात्रि ७:३० से ८:०० बजे तक दीप यज्ञ )

१-      सुबह नहा धो लें और मन में भक्तिभाव का संचार करें

२-      सपरिवार और अन्य ईष्ट मित्रों के साथ बताई गयी सामग्री के साथ पूजन स्थल जो तय किया हुआ हो वहाँ आसन/दरी/चटाई पर बैठ जाएँ|

३-      छोटी सी भगवान की फोटो एक चौकी में रख लें और उसके समक्ष भगवान का ध्यान रखते हुए गायत्री मन्त्र बोलते हुए घी का दीपक जला लें| 

४-      पवित्रीकरण – सभी सदस्य अपने हाथ में जल लें, एक व्यक्ति निम्नलिखित पढ़कर बोलें  बाकी सब दोहराएँ

“हमारा शरीर, मन एवं अन्तःकरण धुल रहा है, जिससे हमारे आचरण, विचार व भावनाएं पवित्र हो रही हैं|”

पवित्रता की भावना करते हुए सभी अपने शरीर पर छिड़क लें |  

५-       तिलक रोली को गीला कर लें और अनामिका अंगुली में लगा कर रख लें

“हमारा मस्तिष्क शांत रहे, इसमें विवेक सदैव बना रहे|”

यह भाव रखते हुए एक दुसरे के मष्तिष्क पर स्नेह एवं सम्मान के साथ रोली/चन्दन लगायें |

६-      देव आवाहन – सभी हाथ जोड़कर भावना पूर्वक सभी देव शक्तियों का आवाहन करे व सर झुककर प्रणाम करे| एक व्यक्ति पढ़कर निम्नलिखित सूत्र सभी दोहराएँ :-

ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः / आवाहयामि/ स्थापयामि/ ध्यायामि| ततो नमस्कारं करोमि| 

देवप्रतिमा को तिलक चन्दन करके पुष्प और अक्षत समर्पित करें

७-      दीप  प्रज्ज्वलन –गायत्री मंत्र बोलते हुए २४  दीपकों को जला लें/प्रज्ज्वलित कर लें| २४ दीपक का इंतजाम न हो तो ५ दीपक ही जला लें | कोई छोटा सा माता गायत्री का भजन गा लें|

८-      प्राण पर्जन्य की वर्षा के लिए ,  विश्व में शांति के लिए, सबकी सद्बुद्धि और उज्जवल भविष्य के लिए  और सबके जीवन में ख़ुशहाली के लिए ५ या ११ या २४  बार गायत्री मन्त्र से और ५ या ११ या २४ बार महामृत्युन्जय मन्त्र जपें और भावनात्मक आहुतियाँ  अर्पित/आहूत करें

गायत्री मन्त्र “ॐ भूर्भुवः स्वः तत्  सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्”

महामृत्युन्जय मन्त्र – “ॐ त्र्यम्‍बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्‍धनान् मृत्‍योर्मुक्षीय मामृतात्”  

९-      पूर्णाहुति:- अक्षत  लेकर निम्नलिखित मंत्र बोलकर दीपक की थाली में आहुति दे देवें, और आरती गा लें |

“ॐ सर्वं वै पूर्ण ग्वंग स्वाहा|

१०-  शांति पाठ : लोटे के जल को सभी के उपर छिडकें और हाथ जोड़कर सभी निम्न प्रार्थना दोहराएँ   

“ॐ शांतिः शांतिः शांतिः| सर्वारिष्ट सुशान्तिर्भवतु||

११-  सूर्य अर्घ्य ध्यानं- शेष बचा हुआ जल सूर्य भगवान को अर्घ्य के रूप में चढ़ा/समर्पित कर दे और सूर्य भगवान से विश्व  के पोषण और   विश्व की रक्षा हेतु प्रार्थना करें|

“ॐ सूर्यायै नमः | आदित्यायै नमः | भाष्करायै नमः || 

१२-  भावनात्मक देवशक्तियों को प्रणाम – अभिवादन करते हुए विदाई दे दें | सभी को प्रसाद वितरित कर दें |

 

कोई अच्छी ज्ञान वर्धक साहित्य जैसे अखंडज्योति पत्रिका, युगनिर्माण, प्रज्ञा पुराण का सामूहिक स्वाध्याय भी कर लें| अच्छे प्रेरक प्रज्ञा गीतों का सामूहिक भजन करें |

 

यज्ञ विस्तार से करने हेतु – पुस्तक युगयज्ञ पद्धति का प्रयोग करें

 (http://literature.awgp.org/book/deep_yagya/v6.1 ) 

गृहे गृहे यज्ञ अभियान - वातावरण शोधन अभियान

*गृहे गृहे यज्ञ अभियान*

वातावरण के परिशोधन हेतु सबसे शसक्त माध्यम यज्ञ है। यदि आत्मबल शसक्त न हो तो वातावरण मति प्रभावित कर बदल देता है।

उदाहरण - स्वरूप आप मन्दिर जाएंगे तो मन्दिर का वातारण आपकी मति/बुद्धि को भक्ति हेतु प्रेरित करेगा। मन्दिर का गर्भ गृह का वातावरण तो मन मे असीम शांति से भर देगा और ध्यानस्थ तक कर देगा।

लेकिन इसके विपरीत फ़िल्म हाल, पब और पार्टी स्थल और मॉल का वातावरण वासना, तृष्णा और कुत्सित भावनाओ का जागरण कर देगा।

दुकानों के बाहर घूमो कुछ न कुछ खरीदने को वहां का वातावरण प्रेरित कर देगा, होटल के पास घूमने पर कुछ न कुछ खाने को होटल का वातारण प्रेरित कर देगा।

ऐसा ही कुछ श्रवण कुमार के साथ घटा जब वो ऐसी जगह पहुंचे जहां एक कुपुत्र ने माता-पिता की हत्या की थी, करुण क्रंदन चीत्कार से युक्त वो वातावरण था। वहां पहुंचते ही उन्होंने ने माता पिता को कँधे से उतार दिया और बोले तीर्थ यात्रा करनी है तो पैदल चलो मेरे कंधे पर क्यों चढ़े हो। पिता ने ध्यान लगाया तो वातारण का प्रभाव समझ आया। उन्होंने कहा श्रवण हमें यहां से कुछ दूर छोड़ दो वहां से हम पैदल चले जाएंगे। कुछ दूर जाते ही वातावरण का प्रभाव हटा और श्रवण की बुद्धि पुनः शुद्ध हो गयी। क्षमा मांगी माता-पिता से और आगे मार्ग में बढ़ गए।

रावण वध के बाद तुरंत श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ की घोषणा की क्योंकि रावण तो मर गया, लेकिन असुरता का वातावरण जो उसने बनाया था वो आज भी लोगो को असुरत्व की ओर धकेल रहा था। तो रावण के बनाये असुरत्व को कोई अस्त्र-शस्त्र नष्ट नहीं कर सकते थे केवल और केवल यज्ञ से ही रावण के बनाये वातावरण को नष्ट करके श्रीराम के मर्यादा और सम्वेदना का वातावरण बनाना सम्भव हुआ। क्योंकि राम राज्य का धोबी और अन्य प्रजा भी असुरत्व के वातावरण से प्रभावित हुई।

अश्वेमेध यज्ञ से ही राम राज्य की स्थापना हुई। यदि यज्ञ पहले हो जाता तो धोबी की बुद्धि से विकृति निकल जाती और माते सीता को वन न जाना पड़ता।

*गायत्री परिवार कलियुगी वातावरण के प्रभाव को नष्ट करने के लिये आपका आह्वाहन कर रहा है। घर घर यज्ञ से सविता के तेजयुक्त वातावरण को विनिर्मित करने हेतु आपका सहयोग चाहता है।*

प्रत्येक रविवार को एक साथ एक समय सुबह 9 से दोपहर 12 बजे के बीच यज्ञ घर घर करें और यज्ञ सृंखला बनाये। इसकी सूचना नज़दीकी शक्तिपीठ में दें। ग्यारह करोड़ गायत्री परिवार मिलकर प्रत्येक रविवार को ग्यारह करोड़ घरों में यज्ञ करवा दे। ऐसे 40 यज्ञ श्रृंखला पूरे विश्व के वातावरण को  मथ देगा। सतयुग के आगमन में फिर देरी न लगेगी। लोगों के ह्रदय में परिवर्तन दिखने लग जाएगा। घर के बच्चे और बड़ो में देवत्व उदीयमान होगा, उनका व्यक्तित्व सुदृढ होगा।

स्कूलों में यज्ञ करवाने से समूह के समूह में बच्चो का हृदय परिवर्तित होगा। स्कूल का वातावरण शुद्ध होगा।

यज्ञ के ज्ञान विज्ञान के विविध आयाम आदरणीय चिन्मय भैया के उद्बोधन को सुनकर समझें:-

https://youtu.be/geanqDavuhM

नज़दीकी शक्तिपीठ का अड्र्स निम्नलिखित लिंक पर जाकर प्राप्त करें:-

For India Click here:-

http://www.awgp.org/contact_us/india_contacts

For Global Click Here:-

http://www.awgp.org/contact_us/global_contacts

To Learn Yagya Process/Book for Yagya...Click here

http://vicharkrantibooks.org/vkp_ecom/Hindi_Books/Science_Of_Yagya_in_Hindi

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

कविता - पेंसिल से शिक्षण

*पेंसिल से शिक्षण*

सुनो पेंसिल क्या कहती,
करो वो जो पेंसिल कहती।

पेंसिल बाहर से हो सुंदर रंगबिरंगा,
या बिल्कुल हो प्लेन-सादा,
इससे फ़र्क नहीं पड़ता है,
लिखने का असली काम तो,
भीतर का काला लीड ही करता है।

इसी तरह शरीर से कोई भी हो,
सुंदर- गोरा -काला या भद्दा,
इससे ज्यादा फ़र्क नहीं पड़ता,
अन्तःकरण के गुणों, प्रतिभा और क्षमता से ही,
मनुष्य का असली व्यक्तित्व है निखरता,
उसी से वो सफ़ल या असफ़ल है बनता।

कटर की ब्लेड से छिलकर,
दर्द की असीम इंतहा झेलकर,
तभी पेंसिल की नोक बाहर आ पाती,
कागज़ पर अपनी छाप छोड़ पाती।

विपरीत परिस्थितियों और कठिनाइयों से ही,
मनुष्य का असली व्यक्तित्व निखरता,
अनगढ़ से व्यक्तित्व सुगढ़ बनता,
जीवन पर अपनी छाप छोड़ पाता।

गलतियां ही न हो,
ऐसा हो नहीं सकता,
पूर्ण परफ़ेक्ट इस जगत में,
कोई हो नहीं सकता,
पेंसिल कहती सदा रबर रखो साथ,
अपनी भूल सुधार के,
आगे बढ़ने का रास्ता करो साफ़।

शरीरबल को ही सबकुछ  न समझो,
आत्मबल को भी तप से उभार लो,
रूप से ज्यादा गुण को निखार लो,
जीवन को मनचाहा सुंदर आकार दो।

असम्भव को सम्भव करके दिखाओ,
अपनी प्रतिभा-निखार हेतु कष्ट उठाओ,
श्रेष्ठ व्यक्तित्व और कृतित्व अपनाओ,
कठिनाइयों में भी आगे बढ़ते जाओ।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

कविता - जीवन एक सुअवसर है सम्भावनाओ से भरा है।

*जीवन एक सुअवसर है सम्भावनाओ से भरा है।*

जीवन में...
सिर्फ तर्क पर मत अटक जाना,
भाव साग़र में भी जरा गोते लगाना,
दृष्टि सिर्फ़ शरीर तक मत अटकाना,
आत्मा के अस्तित्व को भी ढूंढ निकालना,
हे यात्री केवल बाहर यात्रा मत करना,
अंतर्जगत की यात्रा भी करते रहना।

जीवन एक अवसर जानना,
सम्भावनाओ से भरा मानना,
मन में देवत्व के बीज को बोना,
उपासना-साधना से इसका सिंचन करना,
तर्क से बीज के टुकड़े मत कर देना,
अन्यथा विघटित व्यक्तित्व का दंश पड़ेगा झेलना,
मनोभूमि में देवत्व का बीज बो देना,
धैय से उसके पौधे बनने का इंतज़ार करना।

जीवन को एक कला जानना,
कलात्मक ढंग से इसे संवारना,
कुतर्क से इसमें कचड़ा मत भरना,
संयम के तारों से जीवन संगीत गूंजाना,
आत्म गीत में स्वयं को खोने देना,
सच्चे आनन्द को अनुभूत करना।

क्षणिक मदहोशी को,
आनन्द समझने की भूल मत करना,
नशे की लत को कुतर्क से सही साबित मत करना,
युवा हो तो सत्य ज्ञान से यौवन को निखारना,
अंतर्जगत में सच्चे आनंद के मोती ढूँढ़ना,
हमेशा विचारों की दौड़ मत लगाना,
थोड़ा भीतर भी विचारों को ठहराना,
शरीर को निद्रा से आराम देना,
मन को ध्यान से आराम देना।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday 18 June 2018

प्रश्न - *परमपूज्य गुरुदेव की आवाज़ में 24 मन्त्रजप से 2400 मंत्रजप का लाभ है, तो फ़िर अनुष्ठान या नित्य उपसनाक्रम में गायत्री मंत्रजप माला से करने की आवश्यकता है क्या? मार्गदर्शन करें..*

प्रश्न - *परमपूज्य गुरुदेव की आवाज़ में 24 मन्त्रजप से 2400  मंत्रजप का लाभ है, तो फ़िर अनुष्ठान या नित्य उपसनाक्रम में गायत्री मंत्रजप माला से करने की आवश्यकता है क्या? मार्गदर्शन करें..*

उत्तर - जिस प्रकार यज्ञ से पोषण मिलता है, यज्ञ में औषधि, मन्त्र, देशी घी और ड्राई फ्रूट्स डालने से स्वास्थ्य लाभ डायरेक्ट खाने से अनेकगुणा मिलता है, लेकिन भोजन तो फिर भी करना जरूरी है। यज्ञ और भोजन दोनों जरूरी है, इसी तरह यज्ञीय सूक्ष्म लाभ हेतु यज्ञ स्वरूप गुरुदेव की आवाज़ में मंत्रजप भी जरूरी है औऱ स्थूल भोजन की तरह लाभ हेतु नित्य उपासनाक्रम या अनुष्ठान में माला लेकर गायत्री मंत्र भी जरूरी है।

*गायत्री मंत्र जप से प्राणऊर्जा तभी चार्ज होगी, जब जप के साथ साथ ध्यान भी किया जाएगा।*

निम्नलिखित यूट्यूब लिंक में विजिट कर इसे समझें:-

https://youtu.be/pYTiwan_0y8

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Ask a fresh mechanical engineer, can s/he design a simple frame?

*Dr  Sunil Jejit HR L&T*

Just because I am holding a senior position in HR with L&T , I have been getting many requests from my relatives, friends,  acquaintances, to help their sons or daughters ,who have freshly passed out from engineering college, to get  job in L&T. The number of requests are huge. So many fresh  engineers are unemployed, I could hardly helped only few of them to get job in L&T or in some other companies where I have contacts. I feel bad to say NO to many of the requests or for those whom I can't help. They get disappointed. I can understand. Parents invest their life time earned money just to see their sons or daughters getting degree in engineering. They think that jobs are easily available for engineers. After interviewing many of them , I can't even tell them  that your son or daughter do not even have minimum required technical knowledge. Getting first class or distinction has become so easy without having fundamental knowledge of engineering. It's high time for parents to stop running behind engineering degrees.

USA produces around 1 lakh Engineers per year for a $ 16 Trillion Economy.

India produces 15 lakhs Engineers for a $ 2 Trillion Economy.

The earlier mass recruiting sector was Manufacturing. It used to recruit from the core branches like Electrical Mechanical, Civil etc. But, Manufacturing is relatively stagnant at 17% of the GDP. So the core branch placements have become very difficult.

The more recent mass recruiter was the IT sector. It grew from scratch to almost 5% of the GDP in a short time. IT Employed millions of engineers.

Now, IT is also saturating. Only good, skilled IT Engineers are in demand.

If you look at the sectoral composition of Indian economy, most of the sectors do not need engineers. Tourism is 10% of the GDP, does not require engineers. Financial sector, Trade, Hotels and Restaurants do not require engineers. Requirement of engineers in Health, education, Agriculture is also negligible.

More than 50% of the GDP has no role for Engineers. Still most of Indian youth are becoming Engineers. The situation is not sustainable .

Demand is low while supply is high. Over and above this, skill level of an average engineer is poor, almost its non-existent in many cases. If we leave aside the top 100–200 colleges, most fresh engineers have no idea of what they studied. Ask a fresh mechanical engineer, can s/he design a simple frame?

Today the situation is that most engineers are working in a field that has no connection to what they have studied in the college. This is a waste of resources.

Engineering degree does not come cheap. It costs about 10-15 lakhs. For poor parents, its a huge burden. When their son / daughter is not able to secure a job, they are devastated.

For the nation, you can calculate the loss. Leave around 1 lakh engineers that NASSCOM says are employable. The rest 14 lakhs have each wasted 10 lakhs of fees. That totals to around $ 20 Billion. Almost equal to the Government’s spending on healthcare. Over this, there is loss of human capital.

India need to replan the whole engineering education system. Goverment need to  cut down on the number of colleges and improve the quality in the rest.

Also students should explore other career options than everyone becoming Engineers.

When it comes to education, a multitude of options are available today! From Aviation, to Hotel Management, Short Term Programs to big movie production courses , Data science, cyber security, Information Security, Cloud Technology Designing, Indian Armed Forces, Animation and VFX, Digital Marketing, Film Making, Technology Courses like SQL, PHP, Big Data, C, C++, etc. and much more!
For a majority of courses like these, there are entrance exams too, such as the NATA, CEED, NID entrance, NIFT entrance, NDA entrance, MBA Entrance, Hotel Management entrance, CET, NEET and many more! Here, the right training goes a long way in getting your child admission to their dream institute! Do you know what are the top career Tracks of 2018 other than  engineering ?? See the following list.

1. Animation, VFX and Multimedia
2. Fashion Design, Event Management and Interior decoration.
3. Aeronautical and Aviation
4.  Film making, Script Writing and Acting.
5. Engineering computer, IT, cloud and data science.
6. Networking, information security.
7. Beauty, Modelling and Cosmetology
8. Fitness, dietitian and nutritionist
9. Foreign languages.
10. Music and Dance.

 So, plesse share this with your relatives/friends/12th pass students and help them in planning their education and carrer appropriately than madly running after engineering admissions !!!

Thursday 14 June 2018

यज्ञ के मन्त्र अशिव विचार धारा को ध्वस्त कर, सकारात्मकता की वृद्धि करते हैं



*यज्ञ के मन्त्र अशिव विचार धारा को ध्वस्त कर, सकारात्मकता की वृद्धि करते हैं। मन्त्र गुम्फ़न और शब्द शक्ति सामर्थ्य अग्नि की ऊर्जा और औषधियों के तत्व लेकर रोगी के स्वास्थ्य को ठीक करने में अन्य सभी पैथियों से बेस्ट - सुपर बेस्ट है।*

क्योंकि मनोवैज्ञानिकों तथा चिकित्सा शास्त्रियों का कहना है कि आज रोगियों की बड़ी संख्या में ऐसे लोग बहुत कम होते हैं, जो वास्तव में किसी रोग से पीड़ित हों। अन्य या बहुतायत ऐसे ही रोगियों की होती है, जो किसी न किसी काल्पनिक रोग के शिकार होते हैं। आरोग्य का विचारों से बहुत बड़ा सम्बन्ध होता है। जो व्यक्ति अपने प्रति रोगी होने, निर्बल और असमर्थ होने का भाव रखते हैं और सोचते रहते हैं कि उनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता। उन्हें आँख, नाक, कान, पेट, पीठ का कोई न कोई रोग लगा ही रहता है। बहुत कुछ उपाय करने पर भी वे पूरी तरह स्वस्थ नहीं रह पाते। ऐसे अशिव विचारों को धारण करने वाले वास्तव में कभी भी स्वस्थ नहीं रह पाते। यदि उनको कोई रोग नहीं भी होता है तो भी उनकी इस अशिव विचार साधना के फलस्वरूप कोई न कोई रोग उत्पन्न हो जाता है और वे वास्तव में रोगी बन जाते।

इसके विपरीत जो स्वास्थ्य सम्बन्धी सद्विचारों की साधना करते हैं, वे रोगी होने पर भी शीघ्र चंगे हो जाया करते हैं। रोगी इस प्रकार सोचने के अभ्यस्त होते हैं। वे उपचार के अभाव में भी स्वास्थ्य लाभ कर लेते हैं। मेरा रोग साधारण है, मेरा उपचार ठीक- ठीक पर्याप्त ढंग से हो रहा है, दिन- दिन मेरा रोग घटता जाता है और मैं अपने अन्दर एक स्फूर्ति, चेतना और आरोग्य की तरंग अनुभव करता हूँ। मेरे पूरी तरह स्वस्थ हो जाने में अब ज्यादा देर नहीं है। इसी प्रकार जो निरोग व्यक्ति भूलकर भी रोगों की शंका नहीं करता और अपने स्वास्थ्य से प्रसन्न रहता है। जो कुछ खाने को मिलता है, खाता और ईश्वर को धन्यवाद देता है, वह न केवल आजीवन निरोग ही रहता है, बल्कि दिन- दिन उसकी शक्ति और सामर्थ्य भी बढ़ती जाती है।

सकारात्मक सोच यज्ञ के दिव्य वातारण में श्रद्धा और विश्वास से स्वतः विनिर्मित होती है। जो अशिव चिंतन का शमन करता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

उपासना, साधना, आराधना

*उपासना, साधना, आराधना*

*उपासना* में उपासना की चक्की में ध्यान प्रोसेस करना, इस चक्की को इस तरह समझें, शरीर स्थिर चक्की का नीचे का हिस्सा, मन्त्र जप चक्की का ऊपरी हिस्सा, और ध्यान जिसका करेंगें वो चक्की में प्रोसेस होगा।

अब चक्की में गेहूँ डालोगे तो आटा प्रोसेस होकर बनेगा, चना डालोगे तो बेसन प्रोसेस होकर निकलेगा।

अब यदि मन्त्र जप के वक्त सूर्य का ध्यान करते हैं तो सूर्य की सविता शक्ति का अंतर्चेतना में वरण होता चला जायेगा।

लेकिन यदि मन्त्र जप के समय मन्दिर के बाहर रखी चप्पल का ध्यान किया तो चप्पल अंतर्चेतना में प्रोसेस होकर प्रवेश करेगा।

इसलिए उपासना के फलवती होने में जप के साथ ध्यान का अत्यंत महत्त्व है।

*लेकिन साधना की क्या जरूरत फिर?* अंधी पीसे कुत्ता खाय वाली कहावत सुनी होगी, या छेद वाले घड़े में जल कैसे भरेंगे।

कुत्ता और छेद हमारे मनोविकार - काम क्रोध मद लोभ दम्भ दुर्भाव द्वेष हैं। इनसे बिना मुक्त हुए चरित्र में छेद बना रहेगा, और उपासना की शक्ति एक मार्ग से आकर इन छिद्रों से निकल जायेगी। तो इन मनोविकार छिद्रों/कुत्तों से उपासना की शक्ति को बचाना ही साधना है।

*आराधना क्यों?* - जो आध्यात्मिक सम्पदा कमाया वो लोकहित लगाया तो अनेकगुना पुण्यफलदायी होगा।

*तत्सवितुर्वरेण्यं* उस सर्वशक्तिमान से जुड़ने भर से काम नहीं चलता, इसके आगे *भर्गो देवस्य धीमहि* उसके गुणों को धारण करना और *प्रचोदयात* सत्कर्म करना और सन्मार्ग पर चलना भी अनिवार्य है। उसकी बनाई सृष्टि के सुसंचालन में सहयोगी बनना भी अनिवार्य है।

मान लो हॉस्पिटल से जुड़े तो चिकित्सा में सहयोगी बनना होगा कि नहीं, जिससे जुड़े हो उसकी सर्विस भी तो करनी पड़ेगी। मान लो डॉक्टर बनकर नहीं सर्विस हो रही तो एडमिनिस्ट्रेशन में सहयोग करो, नर्सिंग में करो कुछ न कुछ तो करना पड़ेगा। नहीं तो असोसिएशन/जॉब रद्द हो जाएगी। सर्विस दिया तो सैलरी 100% आएगी।

*तत्सवितुर्वरेण्यं* - उस सविता से जुड़े हो तो उसकी सर्विस करनी होगी, कुछ न कुछ तो करना पड़ेगा।

वेदमूर्ति के वेददूत तो बन ही सकते हैं,

*उस प्राणस्वरूप* - प्राणवान कार्यकर्ता,
*दुःख नाशक* - लोगो को सद्चिन्तन से दुःख मिटाने वाले, उत्साह भरने वाले,
*सुख स्वरूप* - आत्मीयता का विस्तार करने वाले,
*श्रेष्ठ तेजस्वी* - नित्य उपासना-साधना और आराधना से श्रेष्ठ तेजस्वी व्यक्ति बनने का प्रयास करना, गर्भ सँस्कार- बाल सँस्कार इत्यादि माध्यम से श्रेष्ठ तेजस्वी मानव रत्न गढ़ना
*पापनाशक* - कुरीतियों-रूढ़िवादी परम्पराओं, व्यसनमुक्ति, दहेजप्रथा, कन्या भ्रूणहत्या के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन, सँघर्षात्मक आंदोलन करना,
*देवस्वरूप परमात्मा* - देवता बनना, देने का भाव रखना, लोककल्याणार्थ जुटना
*को हम अपनी अंतरात्मा में धारण करते हैं* - अन्तर्मन परमात्मा के परमज्ञान से आलोकित रखना, भूले भटको को राह दिखाना, जन सम्पर्क
*वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करे* - जब सन्मार्ग मिल जाये तो औरों को भी सन्मार्ग पर चलने हेतु प्रेरित करना, राह दिखाना।

मन्त्र के भावार्थ से साथ क्या करना है, वह भी विचारणा होगा।

जब जुड़ गए उनसे तो उनके बनकर रहना,
सविता से जुड़कर, आलोकित रहना,
स्वयं दिया बन जलना,
भूले भटको को राह दिखाना,
उपासना साधना और आराधना का मर्म,
जन जन तक पहुंचाना।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

जय माँ गायत्री - गायत्री जयंती

*जय माँ गायत्री - गायत्री जयंती*

पल पल मेरा साथ, मां तुम देती हो,
अपने आँचल की छाया में, सदा रखती हो..
पल पल....

मां मेरे सर पर तेरा यूँ, आँचल लहराए,
मेरा मन मन्दिर तेरा ही, आभास कराये,
मेरी श्वांस श्वांस भी मां, तेरा नाम जपती है,
मेरे रोम रोम में मां, बस तू ही तू बसती है,
मेरे दिल की धड़कन भी, तेरा भजन गाती है,
मेरे लाल रक्त में मां, तेरी भक्ति ही बहती है,
पल पल मेरे पास, तुम रहती हो..

तुम सविता शक्ति हो,
तुम ही गायत्री शक्ति हो,
धरती आकाश पाताल में मां,
तुम ही विचरण करती हो,
तेरी सविता शक्ति को,
मन बुद्धि वरण करता है,
तेरी भर्ग शक्ति को,
हृदय में धारण करता है,
तेरी उंगली पकड़कर ही मां,
मेरा कदम सन्मार्ग की ओर बढ़ता है,
तेरे सहारे ही मां,
यह जीवन चलता है।
पल पल मेरे साथ, तुम रहती हो...

असत्य से हमें बचाती हो,
सत्य का ज्ञान कराती हो,
मृत्यु भय से मुक्त कर के माँ,
आत्मा का अमरत्व समझाती हो,
अंधेरे जीवन में,
प्रकाश प्रकाश भर देती हो,
भवसागर में भी माँ,
तुम ही नैया खेती हो,
पल पल मेरे पास,
मां गायत्री तुम रहती हो...

वेदों का समस्त ज्ञान,
सब गायत्री मंत्र जप से देती हो,
गायत्री साधक की चेतना को,
मां तुम आलोकित करती हो,
गायत्री रूप में मां तुम,
कलियुग की कामधेनु बनती हो,
ब्रह्म में रमने वाले भक्तों का,
सर्वविधि कल्याण करती हो,
कमण्डल और वेद के साथ मां,
बुद्धि हंस पर सदा सवार रहती हो,
पल पल मेरे साथ, मां तुम रहती हो...

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 13 June 2018

जूठन छोड़ना अपराध है*

*जूठन छोड़ना अपराध है*
🍪🍪🍪🍪🍪🍪
प्रिय बच्चों,

रोटी, स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी है,
रोटी, स्वास्थ्य की एक प्रहरी है।

लेकिन जानते हो,
कितनी मेहनत के बाद,
कितने लोगों से जुड़े श्रम के बाद,
हज़ारो मीलों की यात्रा कर,
कितना डीज़ल-पेट्रोल ख़र्चा कर,
तुम्हारे प्लेट तक पहुंचती है,
और तुम्हारी क्षुधा शान्त करती है।

सर्वप्रथम किसान की मेहनत,
और धन इसमें लगता है,
धरती का सीना चीर कर,
बीज गलकर पौधा बनता है,
घण्टों की निराई गुड़ाई और खाद-पानी,
फ़िर कुछ महीनों मे दिखती है गेहूं की बाली।

फ़सल पकती है,
और तब कटती है,
गेहूँ लेकर किसान मंडी पहुंचता है,
मंडी से गेहूं कई मील दूर,
विभिन्न गाड़ियों से अन्य दुकानों तक पहुंचता।

वहां से गेंहू फ़िर चक्की मिल तक पहुंचता,
बड़े बड़े पत्थरों के बीच पिसता है,
गेंहू का रूप बदल जाता है,
फिर वो गेंहू की जगह आटा कहलाता है,
पिताजी मेहनत की कमाई उसे ख़रीदते हैं,
मां ने अपने प्यार औऱ जल से उसे  गूंधती है,
चकले बेलन पर लोइयां घुमाई जाती है,
गोल गोल सुंदर रोटियां बनाई जाती है,
गैस चूल्हे पर उसे पकाया जाता है,
तब कहीं जाकर,
तुम्हें प्यार से उसे परोसा जाता है।

पर ये क्या,😱😱😱😱
इतनी सारे लोगों की मेहनत,
तुमने बेकार कर दिया,
जूठन में रोटी का टुकड़ा फेंक दिया,
देश की सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाया,
धरती और किसान के हृदय को आघात पहुंचाया।

जानते नहीं...
जूठन छोड़ना पाप है,
ये अन्न का अपमान है,
यह एक नैतिक अपराध है,
किसानों के साथ किया अन्याय है।

इतने सारे लोगों की मेहनत से मिला अन्न,
धन से ज्यादा अनमोल है,
धरती माता के हृदय चीरकर उपजा अन्न,
माता के दूध सा अनमोल है।

👉🏼ध्यान रखो....👈🏻
इतना ही लो थाली में कि,
व्यर्थ न जाये नाली में,
अन्न का सम्मान करो,
केवल जितना जरूरत है,
उतना ही उपभोग करो,
स्वयं भी जूठा न छोड़ने का संकल्प लो,
और घर में सबको इसके लिए प्रेरित करो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 12 June 2018

कविता - विचारों में क्रांति हेतु -धन्यवाद गुरुदेव

*विचारों में क्रांति हेतु -धन्यवाद गुरुदेव*

गुरुवर तुम्हारी गूढ़ बातें,
मैं अज्ञानी थी जो समझ न पाई,
जीवन जीने की कला का सूत्र,
मैं अज्ञानी थी जो समझ न पाई।

दूसरों को सुधारने में,
स्वयं ही उलझती रही,
व्यर्थ के झमेलों में,
बेवजह फंसती रही
जिस दिन से तुम्हारा बतलाया,
*स्वयं सुधार का सूत्र* अपनाया,
मेरी सारी उलझने,
स्वतः सुलझती गयी।
मेरी जिन्दगीं में खुशियां,
स्वतः बढ़ती गयी।

जब तक दूसरों से,
बहुत सारी अपेक्षाये रखती रही,
दूसरों को अपने अनुसार,
चलाने की कुचेष्टा करती रही,
सारे रिश्ते बिखरते गए,
रेत की तरह फ़िसलते गए,
जिस दिन से तुम्हारा बतलाया,
*स्वयं के व्यवहार में बदलाव का सूत्र* अपनाया,
केवल स्वयं से की अपेक्षा,
*जो जैसा था उसे वैसा स्वीकारा*
मेरे सारे बिगड़े रिश्ते,
स्वतः बनते चले गए,
मन में सुकून के पल,
नित बढ़ते चले गए।

जब तक परिस्थिति को दोष देती रही,
और दूसरों पर दोष मढ़ती रही,
परिस्थितियां बद से बदतर बनती गयी,
मन में कुढ़न सड़न बढ़ती गयी,
असफलताएं मिलती रहीं,
दुष्चिंताएं बढ़ती रही,
जिस दिन से तुम्हारा बतलाया,
*दृष्टिकोण ठीक रखने का सूत्र*,
और *मनःस्थिति बदलने का सूत्र* अपनाया,
केवल स्वयं को ही,
अपनी असफलता -सफलता के लिए,
जिम्मेदार ठहराया,
स्वयं के उद्धार का बेड़ा,
संकल्प बल से उठाया,
अपनी योग्यता-पात्रता बढ़ाने में,
पूरा ध्यान लगाया,
मनःस्थिति बदलते ही,
परिस्थितियां बदलने लगी,
नज़रें बदलते ही,
नज़ारे बदलने लगे,
सूझबूझ सामर्थ्य बढ़ने लगा,
हर मंजिल आसान लगने लगी,
ज्यों ज्यों  मन मे आत्मिविश्वास बढ़ता गया,
त्यों त्यों मन में आनंद का सागर भरता गया।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday 11 June 2018

प्रश्न - *अपने विवाहित जीवन में सुख, शांति और अखण्ड सौभाग्य के लिए कौन सी साधना करूँ? कृपया मार्गदर्शन करें*

प्रश्न - *अपने विवाहित जीवन में सुख, शांति और अखण्ड सौभाग्य के लिए कौन सी साधना करूँ? कृपया मार्गदर्शन करें*

उत्तर - गायत्री महाविज्ञान में युगऋषि परमपूज्य गुरुदेब द्वारा बताई निम्नलिखित साधना श्रद्धा,  विश्वास और समर्पण के साथ करें, निश्चयतः लाभ होगा।
*विवाहित जीवन मे सौभाग्य प्राप्ति साधना*

अपने पतियों को सुखी, समृद्ध, स्वस्थ, सम्पन्न, प्रसन्न, दीर्घजीवी बनाने के लिए सधवा स्त्रियों को गायत्री की शरण लेनी चाहिये। *इससे पतियों के बिगड़े हुए स्वभाव, विचार और आचरण शुद्ध होकर इनमें ऐसी  सात्त्विक बुद्धि आती है कि वे अपने गृहस्थ जीवन के कर्त्तव्य- धर्मों को तत्परता एवं प्रसन्नतापूर्वक पालन कर सकें। इस साधना से स्त्रियों के स्वास्थ्य तथा स्वभाव में एक ऐसा आकर्षण पैदा होता है, जिससे वे सभी को परमप्रिय लगती हैं और उनका समुचित सत्कार होता है।* अपना बिगड़ा हुआ स्वास्थ्य, घर के अन्य लोगों का बिगड़ा हुआ स्वास्थ्य, आर्थिक तंगी, दरिद्रता, बढ़ा हुआ खर्च, आमदनी की कमी, पारिवारिक क्लेश, मनमुटाव, आपसी राग- द्वेष एवं बुरे दिनों के उपद्रव को शान्त करने के लिये महिलाओं को गायत्री उपासना करनी चाहिये। पिता के कुल एवं पति के कुल दोनों ही कुलों के लिये यह साधना उपयोगी है, पर सधवाओं की उपासना विशेष रूप से पतिकुल के लिये ही लाभदायक होती है।

प्रात:काल से लेकर मध्याह्नकाल तक उपासना कर लेनी चाहिये। जब तक साधना न की जाए, भोजन नहीं करना चाहिये। हाँ, जल पिया जा सकता है। शुद्ध शरीर, मन और शुद्ध वस्त्र से पूर्व की ओर मुँह करके बैठना चाहिये। केशर डालकर चन्दन अपने हाथ से घिसें और मस्तक, हृदय तथा कण्ठ पर तिलक छापे के रूप मे लगायें। तिलक छोटे से छोटा भी लगाया जा सकता है। गायत्री की मूर्ति अथवा चित्र की स्थापना करके उनकी विधिवत् पूजा करें। पीले रंग का पूजा के सब कार्यों में प्रयोग करें। प्रतिमा का आवरण पीले वस्त्रों का रखें। पीले पुष्प, पीले चावल, बेसन के लड्डू आदि पीले पदार्थ का भोग, केशर मिले चन्दन का तिलक, आरती के लिए पीला गो- घृत, गो- घृत न मिले तो उपलब्ध शुद्ध घृत में केशर मिलाकर पीला कर लेना, चन्दन का चूरा, धूप। इस प्रकार पूजा में पीले रंग का अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिये। नेत्र बन्द करके पीतवर्ण आकाश में पीले सिंह पर सवार पीतवस्त्र पहने गायत्री का ध्यान करना चाहिये ।। पूजा के समय सब वस्त्र पीले न हो सकें, तो कम से कम एक वस्त्र पीला अवश्य होना चाहिये। इस प्रकार पीतवर्ण गायत्री का ध्यान करते हुए कम से कम तीन माला गायत्री मन्त्र की जपने चाहिए। जब अवसर मिले, तभी मन ही मन भगवती का ध्यान करती रहें। महीने की हर एक पूर्णमासी को व्रत रखना चाहिये। कच्चे दूध से चन्द्रमा को स्टील की ग्लास या चांदी के बर्तन से अर्घ्य दें। अपने नित्य आहार में एक चीज पीले रंग की अवश्य लें। शरीर पर कभी- कभी हल्दी का उबटन कर लेना अच्छा है। यह पीतवर्ण साधना दाम्पत्य जीवन को सुखी बनाने के लिये परम उत्तम है।

कुशल गृहणी कड़वे करेले को भी मस्त मसाला डाल के स्वादिष्ट बना के खा लेती है। इसी तरह कुशल बुद्धिमान गृहणी करेले के समान कड़वे व्यवहार के पति को भी चला लेती है। बस इस कड़वे व्यवहार को हैंडल करना सीख ले, और अपने मन की शांति से उनको भी शांत कर दे। बुद्ध की शांति जल से अंगुलिमाल का क्रोध का जल शांत हो जाता है। यूट्यूब की नीचे लिंक दी गयी है उसके अनुसार पूर्ण शीतल चन्द्रमा का ध्यान कीजिये और हृदय में गहन अंदरूनी शांति लाइये, कि भयंकर क्रोधी भी आपके सम्मुख क्रोध कर ही न सके।आपके सम्पर्क में शीतल शांत हो जाये।

24 बार राधा गायत्री मंत्र जप और 24 बार चन्द्र गायत्री मंत्रजप से रिश्तों में मधुरता आती है:-

गायत्री मंत्र - *ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्य भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात*


*कृष्ण गायत्री मन्त्र*–ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो कृष्ण: प्रचोदयात्।

*राधा गायत्री मन्त्र* –ॐ वृषभानुजायै विद्महे कृष्णप्रियायै धीमहि। तन्नो राधा प्रचोदयात्।

*चन्द्र गायत्री मंत्र* :- ॐ क्षीर पुत्राय विद्महे अमृततत्वाय धीमहि ! तन्नो चन्द्र: प्रचोदयात !

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Reference Book - गायत्री महाविज्ञान

http:// literature .awgp. org/book/Super_Science_of_Gayatri/v9.26

Youtube link - https ://youtu. be/ umAfVbaGWhw

मन की साफ सफाई - बाल सँस्कार शाला

*बाल सँस्कार शाला*

*टॉपिक- मन की साफ सफाई, मन के व्यायाम, भोजन और उचित आराम की व्यवस्था तो कर रहे हो न?*

एक दर्जी था, वो बड़े अच्छे अच्छे कपड़ें सिलता था। उसने अपने व्यवसाय की शुरुआत उस सिलाई मशीन से की थी जो उसकी माँ ने दिया था। एक दिन उसे लगा कि मैंने मां की दी हुई मशीन से बहुत काम ले लिया इसे आराम देना चाहिए। और उसने उस सिलाई मशीन को बन्द करके रख दिया। कुछ महीनों बाद उसी मां तीर्थ यात्रा से लौटी तो बोली बेटा मेरे हाथों दी गयी मशीन कहाँ है? बेटा ले आया, मां ने ज्यों ही मशीन चलाने की कोशिश की वो मशीन ज़ाम हो गई और चली ही नहीं। माँ ने पूछा बेटे इतनी अच्छी मशीन का बुरा हाल क्यो हुआ। तो बेटे ने बताया कि मैंने तो इस मशीन के भले के लिए इसे कुछ महीनों का आराम दिया था।

माँ ने कहा, बेटा सिलाई मशीन हो या अपना दिमाग़ इससे काम न लोगे और इसका नियमित रख रखाव नहीं करोगे तो इसमें जंग लग जायेगा और ये खराब हो जाएगा किसी काम का नहीं रहेगा। बेटे को अपनी भूल का अहसास हुआ।

*अब ये बताओ कहीं ये दर्जी वाली गलती तुम लोग तो नहीं कर रहे, मन की साफ सफाई, मन के व्यायाम, भोजन और आराम की व्यवस्था तो कर रहे हो न???*

बच्चों दिमाग़ के नियमित रखरखाव के लिए युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव ने कुछ नियम बतायें हैं। यदि ये आप अपनाओगे तो आपका दिमाग हमेशा चुस्त दुरुस्त और एक्टिव रहेगा।

सबसे पहले दिमाग़ की क्लिनिग/साफ़ सफ़ाई का तरीका सीखते हैं। गायत्री मंत्र का जप और उगते हुए सूर्य का ध्यान कीजिये। इससे न सिर्फ़ दिमाग का कचरा साफ होगा, बल्कि इससे दिमाग चार्ज भी होगा। शक्ति भी मिलेगी।

दिमाग़ की सफाई तो हो गयी, अब उसे कुछ खाने को दो। अच्छा पेट को यदि खाना न मिले तो क्या होगा, शक्ति नहीं रहेगी शरीर में, सुस्ती आएगी। ऐसा ही होगा न...बिल्कुल ऐसा होगा...

पेट के खाने से दिमाग़ के हार्डवेयर को भोजन मिलता है, लेकिन दिमाग का सॉफ्टवेयर पार्ट मन जो कि देखा नहीं जा सकता उसे भोजन तो विचारों से ही मिलेगा। वो तो विचार ही भोजन में ग्रहण करता है। तो अच्छी अच्छी पुस्तकें, बाल निर्माण की कहानियां इत्यादि पढ़िए और दिमाग-मन को भोजन दो। जिसमे यह पहलवान की तरह स्ट्रांग हो जाये।

अब मन को आराम कैसे दोगे। अब आप सोचोगे सोकर, न हीं। सोने से तो शरीर सोता है मन नहीं सोता। वो तो और ज्यादा मेहनत करता है, क्योंकि उसे आपको सपने पूरी रात दिखाना पड़ता है।

जिस प्रकार शरीर का भोजन पेट मे जाता है, उससे मन को भोजन नहीं मिलता। मन को भोजन स्वाध्याय से मिलता है। इसी तरह मन का आराम प्रक्रिया अलग है। केवल ध्यान की गहराई से मन को आराम मिलता है, मन की थकान दूर होती है।


तो आइये बच्चो आज की बाल सँस्कार शाला में हम दिमाग़ व मन के लिए निम्नलिखित विधियां सीखेंगे:-

1- दिमाग/मन की सफाई और चार्जिंग हेतु गायत्री मंत्र जप और ध्यान
2- मन के व्यायाम हेतु योग-प्राणायाम
3- मन के भोजन हेतु स्वाध्याय
4- मन को आराम देने हेतु ध्यान, योगनिद्रा और शिथलीकरण

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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