Sunday 23 July 2023

जागो

 बेहोशी का जीवन 

बनाम 

होश का जीवन


ख़ुद के जीवन के प्रति,

बेहोश था, उदासीन था,

मेरे सुख दुःख के अनुभव के लिए भी,

दूसरों पर आश्रित था,

कोई भी मुझे सुखी या दुःखी,

आसानी से,

अपनी मीठी या कड़वी बातों से कर देता था,

मानसिक दुनियां का गुलाम था,

दूसरों को दोष देता रहता था,

न बसंत का आनन्द लिया,

न प्रकृति को कभी अपलक निहारा,

बस अपने दुःखों को गिनने में,

दिन रात गुजारा,

यंत्रवत जीवन जीता रहा,

पेट प्रजनन अर्जन को ही,

जीवन का उद्देश्य समझता रहा...


एक मित्र मुझे बेहोशी से जगाने के लिए,

और मानसिक ग़ुलामी से आज़ाद करवाने के लिए,

मुझे एक गायत्री यज्ञ में ले गया...

वहाँ प्रवचन चल रहा था,

'मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है',

'मनुष्य जैसा सोचता है, वैसा करने लगता है, एक दिन वैसा ही बन जाता है'

'मनुष्य बीज रूप में देवता है, जीवन साधना से वह नर से नारायण बन सकता है',

'ईश्वर उसकी मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करता है',

'देखने के लिए दृष्टि और रौशनी दोनो चाहिए, पुरुषार्थ और प्रार्थना जीवन मे सफल होने हेतु चाहिए।'


यज्ञ प्रसाद में तीन पुस्तक क्रमशः 'अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार,,'गहना कर्मणो गति:' और 'कलात्मक जीवन जियें' उपहार में मिली।


यज्ञ के प्रवचनों और इन तीन पुस्तको के स्वाध्याय ने मुझे झकझोर के जगा दिया,

मेरे मानसिक गुलामी की जंजीरों को तोड़ दिया,

मेरे व्यक्तित्व पर यज्ञ की ऊर्जा का प्रभाव हुआ,

स्वाध्याय से मैं मानसिक ग़ुलामी से आज़ाद हुआ,


अब दूसरों को दोष देना बंद कर दिया,

खुद पर काम करना शुरू कर दिया,

अपनी किस्मत अपने हाथों से लिखने लगा,

मैं होशपूर्वक अब जीने लगा,

पहली बार बसंत को अनुभव किया,

प्रकृति को अपलक निहारा,

अपने जीवन का रिमोट अपने हाथों में लिया,

अपने आनन्द के स्रोत को ढूढ़ लिया।


🙏🏻श्वेता, Diya Mujgahan Dhamtri

हम युगऋषि का आह्वाहन पत्र हैं

 *हम युगऋषि का आह्वाहन पत्र हैं*


जानती हूँ दुनियां में कई लोग,

हमारी तरह जरूर होंगे,

पेट प्रजनन और अर्जन से ऊपर भी,

कुछ लोग सोच रहे होंगे...


उन्हें भी कुछ न कुछ,

लोकहित करने की चाह होगी,

उनकी आत्मा को भी,

सत्य धर्म के मार्ग की तलाश होगी...


बस उन्हीं लोगों के लिए,

हम रोज लिखते हैं,

बस उन्ही लोगों के लिए,

यूट्यूब चैनल चलाते हैं...


गुरुदेव के साहित्य के ख़ज़ाने से,

उन्हें ही पुस्तकों नाम बताते हैं,

उन्हीं के लिए 50% डिस्काउंट में,

ब्रह्मभोज में साहित्य दिलाते हैं...


हमें पता है यह परिवर्तन की बेला है,

कलियुग का अंत और सतयुग की प्रभात बेला है,

कई श्रेष्ठ आत्माओं ने जन्म ले लिया है,

कुछ श्रेष्ठ आत्माएं जन्म लेने वाली हैं,

युगऋषि गुरुदेव ने,

जिनका हाथ पहले ही थाम लिया है...


हम तो युगऋषि के निमित्त मात्र हैं,

उन आत्माओं के लिए युगऋषि की चिट्ठी मात्र हैं,

जो श्रीराम के कार्य के लिए ही जन्मी हैं,

उन आत्माओं के लिए आह्वाहन पत्र मात्र हैं...


आओ मिलकर अध्यात्म के मर्म को जाने,

अध्यात्म की रौशनी से कलियुग के अंधकार को भगाएं,

ख़ुद जागें लोगों को जगाएं,

सतयुग की वापसी का माहौल बनाएं...


सप्त आंदोलन और शत सूत्रीय कार्यक्रम को जाने,

जिसमे भी योगदान दे सकें उसको अपनाएं,

तन मन धन से युगनिर्माण में जुट जाएं,

सृजन सैनिक की योग्यता स्वयं में लाएं।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

बेरोजगार युवा से सेठ बनने की यात्रा

 वह ग्रामीण युवा आर्ट से ग्रेजुएट था,

मगर बेरोजगार था,

पढ़े लिखे होने का उसे अहंकार था,

बड़ी नौकरी की तलाश में था.....


कुछ पैसे लेकर वह गाँव से शहर आया,

स्वप्नों के ऊंचे ऊंचे पहाड़ बनाया,

मगर ज़मीनी हक़ीक़त ने,

उसे खूब रुलाया,

हिंदी भाषा में उसकी बोली ठीक न थी,

इंग्लिश भाषा बोलने में उसे कठिनाई बहोत थी,

वह जो जॉब चाहता था,

शहर के हिसाब से वह उसमें योग्य न था..


कई महीनों की जॉब तलाश में,

गांव से लाये सब पैसे खर्च हो गए,

उसके अरमानों और स्वप्नों के महल,

कुछ महीनों की जॉब सर्च में ही ढह गए..


पेट में जलती भूख की आग थी,

पर ठंडी चूल्हे की आग थी,

भूख जान ले रही थी,

एक मुट्ठी अनाज को तरस रही थी...


किस्मत को शायद उस पर तरस आया,

एक पांच रुपये का सिक्का,

उसे रोड पर मिला,

उसे लेकर चाय की टपरी पर आया,

पारले जी बिस्कुट पानी में भिगो के खाया....


सोचा रोज़ सिक्के रोड पर पड़े नहीं मिलेंगे,

मगर भूख के अंगारे पेट में रोज़ जलेंगे,

कुछ न कुछ तो अब करना होगा,

कुछ भी करके पेट भरना होगा...


लेबर चौक में खड़ा हो गया,

ईंटे ढोने का उसे काम मिल गया,

कमाई में से कुछ खाया कुछ बचाया,

कुछ महीनों की बचत के पैसों से,

 उसने चाय की टपरी बनाया..


चाय की टपरी के साथ नाश्ते का जुगाड़ बैठाया,

चाय नाश्ते का काम खूब मन से चलाया,

काम बढ़ा तो कुछ नौकर रखे,

बिजनेस को बढ़ाने के कुछ और तरकीबें सोचे..


काम मांगने वाला ग्रामीण ग्रेजुएट,

आज रोजगार देने वाला बन गया,

जो एक समय भूख से व्याकुल था,

आज लोगों को खिलाने वाला बन गया..


कुछ वर्षों की बचत से उसने बड़ी दुकान खोला,

फ़िर बाद के कुछ वर्षों में कई दुकान खोला,

घर द्वार मकान सब बन गया,

अनवरत मेहनत से वह बड़ा सेठ बन गया..


🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...