Sunday 29 November 2020

प्रश्न - गुरु व शिष्य में क्या अंतर है, शिक्षक व शिक्षार्थी में क्या अंतर है?

 प्रश्न - गुरु व शिष्य में क्या अंतर है, शिक्षक व शिक्षार्थी में क्या अंतर है?


शिक्षक - सम्बंधित विषय का ज्ञान देने वाला होता है और शिक्षार्थी मूल्य चुकाकर(फीस देकर) उस विषय का ज्ञान लेने वाला होता है।

शिक्षक केवल विषय का मार्गदर्शन करता है, गुरु विद्यार्थी को विषय के साथ साथ उसके जीवन हेतु भी मार्गदर्शन करता है।

शिक्षक विद्यार्थी लेन देन पर आधारित हैं, फीस नहीं तो शिक्षा नहीं। उन्हें धन जोड़ता है। गुरु व विद्यार्थी प्रेम व समर्पण से जुड़ते है, गुरु दक्षिणा शिष्य स्व रुचि से देता है।

जीवात्मा को मायाजाल व अज्ञानता के अन्धकार से निकालने वाला व्यक्ति गुरु कहलाता है । गु का अर्थ अंधकार होता है और रू का अर्थ होता है -मिटाना या निवारण करना। इस तरह अंधकार मिटाने वाला गुरू कहलाता है।

गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि गढ़ि काढ़ै खोट ।

अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट ।।

गुरु कुम्हार है, और शिष्य घड़ा है; गुरु भीतर से हाथ का सहारा देकर और बाहर से चोट मार मार कर तथा गढ़-गढ़ कर शिष्य की बुराई को निकालते हैं।

जिस तरह से कुम्हार अनगढ मिट्टी को तराशकर उसे सुंदर घडे की शक्ल दे देता है, उसी तरह गुरु भी अपने शिष्य को हर तरह का ज्ञान देकर उसे विद्वान और सम्मानीय बनाता है। हां, ऐसा करते हुए गुरु अपने शिष्यों के साथ कभी-कभी कडाई से भी पेश आ सकता है, लेकिन जैसे एक कुम्हार घडा बनाते समय मिट्टी को कडे हाथों से गूंथना जरूरी समझता है, ठीक वैसे ही गुरु को भी ऐसा करना पडता है। वैसे, यदि आपने किसी कुम्हार को घडा बनाते समय ध्यान से देखा होगा, तो यह जरूर गौर किया होगा कि वह बाहर से उसे थपथपाता जरूर है, लेकिन भीतर से उसे बहुत प्यार से सहारा भी देता है।

गुरु से ज्ञान प्राप्त होता है। आजकल भारत में सांसारिक अथवा पारमार्थिक ज्ञान देने वाले व्यक्ति को गुरु कहा जाता है। इनकी पांच श्रेणिया हैं।

१.शिक्षक - जो स्कूलों में शिक्षा देता है।

२.आचार्य - जो अपने आचरण से शिक्षा देता है। 

३.कुलगुरु - जो वर्णाश्रम धर्म के अनुसार संस्कार ज्ञान देता है। 

४.दीक्षा गुरु - जो परम्परा का अनुसरण करते हुए अपने गुरु के आदेश पर आध्यात्मिक उन्नति के लिए मंत्र दीक्षा देते हैं।

५. सदगुरु -वास्तव में यह शब्द समर्थ गुरु अथवा परम गुरु के लिए आया है। जो शिष्य को बलपूर्वक सन्मार्ग पर ले जाता है और उसकी आत्म उन्नति सुनिश्चित करता है।

गुरु का अर्थ है भारी, ज्ञान सभी से भारी है अर्थात महान है अतः पूर्ण ज्ञानी चेतन्य रूप पुरुष के लिए गुरु शब्द प्रयुक्त होता है, उसकी ही स्तुति की जाती है।

पर्सनल बातों को किसके साथ शेयर करना चाहिए?

 

पर्सनल बातों को किसके साथ शेयर करना चाहिए?

अपने जीवन के राज जो कि गोपनीय रखने में ही भलाई है वह किसी से भी शेयर नहीं करना चाहिए। यदि वह व्यक्तिगत बात मन मे तनाव उत्तपन्न कर रही है तो किसी मनोचिकित्सक से सेशन लेकर उसके समक्ष व्यक्त करें या किसी आध्यात्मिक मार्गदर्शक जिस पर आपका अटूट विश्वास है व जिसे आप जानते हैं उससे डिस्कस कर लें।

कोई ऐसा मित्र जो आपका फेमिली मित्र नहीं है, व स्कूल व कॉलेज से घनिष्ठ मित्रता है। जो आपको समझता है व अत्यंत विश्वासपात्र है, उससे डिस्कस कर लें।

माता पिता यदि मित्रवत एवं सुलझे हुए व्यक्तित्व के हैं, जो आपको समझते हैं, उनसे भी डिस्कस कर सकते हैं।

पति या पत्नी एक दूसरे से विवाह पूर्व की या मायके पक्ष की कोई भी व्यक्तिगत बात आपस में डिसकस न करें। जिस दिन विवाह हुआ उससे पूर्व का जीवन वर्तमान जीवन को प्रभावित नहीं करना चाहिए, पूर्व की चर्चा न करें तो उत्तम है। अतः जिस दिन विवाह हुआ वह नया जन्म है व नया जीवन है, इस विवाह दिन के बाद की बातों को ही आपस मे डिसकस करें। उसके बाद का ही सबकुछ एक दूसरे से शेयर करें। एक दूसरे का विश्वास इस विवाह के बाद मिले नए जन्म के बाद कभी न तोड़े। मित्रवत रहें।

यदि कोई न मिले व बात पेट मे दर्द और मन के तनाव उतपन्न कर रही हो, तो पूजन गृह में घी का दीपक जलाएं। पूरी बात लिख डाले फिर उसे दीपक की लौ में जला दें। लंबी गहरी श्वांस लें व कुछ क्षण नेत्र बन्द कर मौन बैठें। तनाव चला जायेगा। अच्छा महसूस होगा।

कोई भी चीज शुरू करने से पहले धड़कन बढ़ क्यों जाती है? भावनात्मक उफान प्रेम, भय, क्रोध इत्यादि किसी का भी हो वह रक्त संचरण को उद्वेलित करता है, अतः धड़कन बढ़ जाती है।

 

कोई भी चीज शुरू करने से पहले धड़कन बढ़ क्यों जाती है?

भावनात्मक उफान प्रेम, भय, क्रोध इत्यादि किसी का भी हो वह रक्त संचरण को उद्वेलित करता है, अतः धड़कन बढ़ जाती है।

जिस किसी कार्य को शुरू करने से पहले भय की भावना मन मे उठेगी तो दिल की धड़कन बढ़ेगी।

जब इंसान किसी कार्य को शुरू के दौरान मन में भय या प्रेम की अधिकता पर पहुंचता है तब उसके दिल की धड़कन काफी तेज हो जाती है। इस दौरान ब्लड प्रेशर कभी-कभी 120 से बढ़ कर 240 तक पहुंच सकता है। इसी तरह पल्स रेट भी दोगुना हो सकता है। साथ में सांस भी फूलने लगती है। बात साफ है कि यह भय कुछ क्षण ही रहता है और यदि एक बार काम करना शुरू कर दो तो वह नॉर्मल हो जाता है। यदि कार्य शुरू करने के दौरान अगर कुछ वक्त के लिए दिल तेजी से धड़कने लगे तो घबराने की बात नहीं। यह नॉर्मल है। ज्यादा भय से थोड़ी बहुत कमजोरी भी लग सकती है क्योंकि भय से उपजे तनाव से उस वक्त शरीर से कार्टिसोल हॉरमोन के रिसाव के कारण सारे मसल्स में एक खास तरह की ऐंठन होती है, जिसकी वजह से कई बार थकान महसूस होती है। लेकिन याद रहे कार्य शुरू होंने व पूर्णता के बाद एक ताजगी की लहर जरूर आ जाती है।

मानसिक कमज़ोरी व भावनात्मक वेग को नियंत्रित करने के लिए 11 बार गहरी श्वांस के साथ पूर्णिमा के चांद का ध्यान लाभप्रद है। गायत्री मंत्र या महामृत्युंजय मंत्र का जप अच्छे हार्मोन के रिसाव में मदद करते हैं जो तनाव जनित बुरे हार्मोन्स कार्टिसोल के प्रभाव को नियंत्रित करता है।

यदि गाय के गुनगुने दूध में हल्दी व थोड़ा देशी गाय का घी मिलाकर रोज रात को पियेंगे तो तन व मन दोनो मजबूत होगा। सुबह नित्य मन्त्रजप, ध्यान, प्राणायाम व महापुरुषों की वीरता की जीवनियां पढ़ने पर और उन सूत्रों को जीवन मे उतारने से मन इतना मजबूत हो जाएगा कि भय कभी उतपन्न नहीं होगा। साहस से मन भर उठेगा।

क्या हमें गायत्री मंत्र का जप रोजाना करना चाहिए? इसके क्या कुछ लाभ हैं?

 क्या हमें गायत्री मंत्र का जप रोजाना करना चाहिए? इसके क्या कुछ लाभ हैं?


बीज से पौधा निकलता है, लेक़िन सही समय पर सही अनुपात में और सही देखरेख में तैयार भूमि में बीज बोने व समय समय पर खाद पानी देने पर, खर पतवार की निराई गुनाई के बाद फ़सल मिलती है।


गायत्रीमंत्र जप या किसी भी मन्त्र जप से पूर्व अध्यात्म के बेसिक्स समझ लें, इसके लिये एक छोटी सी पुस्तक है - "अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार" अवश्य पढ़ लें।


गायत्रीमंत्र जप के अनेक लाभ है। जिस प्रकार विद्युत से गाड़ी या मशीन चलाई जा सकती है, घर रौशन किया जा सकता है और कोई भी इलेक्ट्रिकल उपकरण चलाया जा सकता । वैसे ही गायत्री मंत्र जप की ऊर्जा को सांसारिक लाभ एवं आध्यात्मिक लाभ व उद्देश्य की पूर्ति के लिए नियोजित किया जा सकता है।


ब्रह्मुहुर्त में गायत्री जप बुद्धि की शक्ति को बढ़ाता है, इसलिए गुरुकुल शिक्षा पद्धति में गायत्री जप अनिवार्य था।


गायत्रीमंत्र पर लेटेस्ट रिसर्च डॉक्टर रमा जय सुंदर, AIIMS की इंटरनेट व यूट्यूब पर उपलब्ध है।


डॉक्टर चिन्मय पण्डया - मन्त्र का ज्ञान विज्ञान यूट्यूब पर उपलब्ध है।


6 महीने जप का प्रयोग स्वयं करके देखें व लाभ को स्वयं अपने श्रीमुख से लोगों को इसका लाभ बताएं। कम से कम 324 मन्त्र जप ब्रह्ममुहूर्त में प्रयोग हेतु कम्बल के आसन पर बैठकर जलते हुए घी के दीपक के समक्ष करें। सुबह नहीं उठ सकते तो कोई बात नहीं जब भी उठते हों एक निश्चित समय पर नित्य करें।


गायत्री मंत्र जप से पूर्व षट्कर्म से शुद्धि करें। सम्भव हो तो घी का दीपक जला कर व एक लोटे या ग्लास में जल समक्ष रखकर ही जप करें। देववाहन व देव पूजन के बाद निम्नलिखित भावना करके मन्त्र जप प्रारम्भ करें, जप हमेशा कम्बल के आसन में बैठकर एवं पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके जपें। यदि जगह की समस्या है तो पश्चिम की ओर मुंह भी किया जा सकता है।


गायत्रीमंत्र जप सूर्योदय से दो घण्टे पूर्व से सूर्योदय तक जिसे ब्रह्मुहुर्त कहते हैं और सूर्यास्त के दो घण्टे बाद तक का समय जिसे संध्या कहते हैं। उत्तम माना गया है। वैसे जप माला लेकर नहाकर करना है। बिना माला मौन मानसिक जप कभी भी कहीं भी कर सकते हैं।


जप से पूर्व भावना करें :-


"मेरे रक्त का रंग खूब लाल है, यह मेरे उत्तम स्वास्थ्य का द्योतक है। इसमें अपूर्व ताजापन है। इसमें कोई विजातीय तत्व नहीं है, इस रक्त में प्राण तत्व प्रवाहित हो रहा है। मैं स्वस्थ व सुडौल हूँ और मेरे शरीर के अणु अणु से जीवन रश्मियाँ नीली नीली रौशनी के रूप में निकल रही है। मेरे नेत्रों से तेज और ओज निकल रहा है, जिससे मेरी तेजस्विता, मनस्विता, प्रखरता व सामर्थ्य प्रकाशित हो रहा है। मेरे फेफड़े बलवान व स्वस्थ हैं, मैं गहरी श्वांस ले रहा हूँ, मेरी श्वांस से ब्रह्मांड में व्याप्त प्राणतत्व खीचा जा रहा है, यह मुझे नित्य रोग मुक्त कर रहा है। मुझे किसी भी प्रकार का रोग नहीं है, मैं मेरे स्वास्थ्य को दिन प्रति दिन निखरता महसूस कर रहा हूँ। यह मेरी प्रत्यक्ष अनुभूति है कि मेरा अंग अंग मजबूत व प्राणवान हो रहा है। मैं शक्तिशाली हूँ। आरोग्य-रक्षिणी शक्ति मेरे रक्त के अंदर प्रचुर मात्रा में मौजूद है।"


"मैं शुद्ध आत्मतेज को धारण कर रहा हूँ, अपनी शक्ति व स्वास्थ्य की वृद्धि करना मेरा परम् लक्ष्य है। मैं आधिकारिक शक्ति प्राप्त करूंगा, स्वस्थ बनूँगा, ऊंचा उठूँगा। समस्त बीमारी और कमज़ोरियों को परास्त कर दूंगा। मेरे भीतर की चेतन व गुप्त शक्तियां जागृत हो उठी हैं। मेरी बुद्धि का उच्चतर विकास हो रहा है। मैं बुद्धिकुशल बन रहा हूँ, बुद्धिबल व आत्मबल प्राप्त कर रहा हूँ।"


"अब मैं एक बलवान शक्ति पिंड हूँ, एक ऊर्जा पुंज हूँ। अब मैं जीवन तत्वों का भंडार हूँ। अब मैं स्वस्थ, बलवान और प्रशन्न हूँ।"


निम्नलिखित सङ्कल्प मन में पूर्ण विश्वास से दोहराईये:-


1- मैं त्रिपदा गायत्री की सर्वशक्तिमान पुत्री/पुत्र हूँ।

2- मैं बुद्धिमान, ऐश्वर्यवान व बलवान परमात्मा का बुद्धिमान, ऐश्वर्यवान व बलवान पुत्री/पुत्र हूँ।

3- मैं गायत्री की गर्भनाल से जुड़ी/जुड़ा हूँ और माता गायत्री मेरा पोषण कर रही हैं। मुझे बुद्धि, स्वास्थ्य, सौंदर्य व बल प्रदान कर रही है।

4- मैं वेदमाता का वेददूत पुत्री/पुत्र हूँ। मुझमें ज्ञान जग रहा है।

5- जो गुण माता के हैं वो समस्त गुण मुझमें है।

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फिर गायत्रीमंत्र जप करना शुरू करे - *ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं। भर्गोदेवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।*


जप के बाद शांतिपाठ करके उठें।

Saturday 28 November 2020

सफलता का मूलमंत्र क्या है ?

 

सफलता का मूलमंत्र क्या है ?

खेती के अपने नियम है, कि अमुक समय अमुक टाइप की भूमि पर अमुक फसल अमुक नियमावली से बोवोगे तो फसल मिलेगी।

वैसे ही मात्र सफल होने के विचार सोचने से अपेक्षित परिवर्तन नहीं होता। विचार तो मात्र बीज है। बीज को देखकर उसके भीतर के बड़े वृक्ष की कल्पना की जाती है। परंतु उस बीज को पौधे में परिवर्तित होने व फलदार वृक्ष बनाने में एक माली का अथक परिश्रम व समय साधन लगता है।

परिवार वालों के समक्ष तुम अपनी इच्छा का बीज लेकर पहुंचते हो, व उनके समझाने का प्रयास करते हो। परिवार वाले अपने पिछले अनुभव अनुसार तुम्हे सलाह देते हैं। भाई जो इच्छा का बीज लेकर आये हो बड़ी मेहनत है,दूसरे के बहकावे में मत आओ। सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग इत्यादि इत्यादि।

तुम यदि अपनी इच्छा के बीज के बारे में संकल्पित हो तो योजना पर कार्य करो, सबसे पहले यह जानो कि तुम किस क्षेत्र में अच्छा मुकाम व सफलता चाहते हो।

एक प्रयोग 100 दिन का करके देखो:-

1- सर्वप्रथम जिस क्षेत्र का विचार प्रबुद्ध - अच्छा मुकाम बनाना है, सफलता पानी है, उस क्षेत्र व कार्य को चुनो।

2- उससे सम्बंधित 10 किताबों को खरीद लो व उनके नोट्स बनाओ, उनसे सम्बंधित छोटी से छोटी, बड़ी से बड़ी जानकारी इकट्ठी करो।

3- उस लक्ष्य से सम्बंधित क्षेत्र के 20 प्रसिद्ध लोगों के बारे में इंटरनेट पर जानकारी ढूढों। वह उस क्षेत्र में कैंसे सफल हुए यह जानो।

4- सम्बंधित विषय व क्षेत्र के सफल लोगों की जीवनियां, आर्टिकल, भाषण जो कुछ भी नेट पर उपलब्ध हो पढ़ना शुरू करो।

5- नित्य 324 बार गायत्री मंत्र ब्रह्म मुहूर्त (सूर्योदय के एक घण्टे पहले) में उगते सूर्य का ध्यान करते हुए जपो। भावना करो कि तुम्हारे मष्तिष्क में सूर्य के ज्ञान का प्रकाश प्रवेश कर रहा है।

6- जब भी बाथरूम में जाओ या किसी भी एकांत क्षण में जाओ जहां कोई न हो, सम्बंधित विषय को सोचो। तुम्हारे दिमाग़ में तुम्हारा लक्ष्य क्लियर व स्पष्ट होना चाहिए। मन उस विषय से हटना नहीं चाहिए। अपने लक्ष्य के प्रति जुनून भीतर पैदा करो।

7- रात को सोते वक्त सम्बन्धी विषय के कुछ नोट्स बनाओ, उन्हें लिखकर तकिए के नीचे रखकर सो जाओ। तुम्हारा जागृत मन व स्वप्न जगत व समस्त इंद्रियां सोते जागते उस लक्ष्य पर केंद्रित हो। उसे पाने में जुट जाएं।

8- समस्त जानकारी इकट्ठा करने के बाद पूरी योजना को बड़े लक्ष्य में कन्वर्ट करो। फिर उसके छोटे छोटे माइल स्टोन निर्धारित करो। तुम्हारे पास वर्ष में क्या हासिल करना है यह भी पता हो और प्रत्येक दिन में क्या हासिल करना है यह भी क्लियर होना चाहिए।

9- प्रत्येक रात दिन की समीक्षा करो, व अगले दिन की तैयारी करो। प्रत्येक सप्ताह में अपनी सप्ताहिक समीक्षा करो। फिर मासिक समीक्षा, वार्षिक समीक्षा इत्यादि। स्वयं के लिए चंद्रगुप्त व चाणक्य दोनो की भूमिका निभाओ। स्वयं के जीवन के लिए स्वयं गुरु समान कठोरता व नियमावली निश्चित करो।

10- याद रखो, यदि किसी के समक्ष कुछ भी बोलने से पहले पूरी तैयारी के साथ बोलना। अधूरी तैयारी हो तो मौन रहना। कुछ करके दिखाओगे तो परिवार व संसार स्वतः तुम्हारे आगे नतमस्तक होगा।

हवा में बात करना व हवा में योजना बनाना मूर्खता है। जो सोचा है उसे करके दिखाने हेतु योजना what, when, how - क्या कब और कैसे करना है यह दिमाग मे क्लियर होंना चाहिए।

Friday 27 November 2020

इंसान स्वयं के द्वारा की गई जिन बातों पर गुस्सा नहीं करता है, दूसरों के द्वारा की गई उन्हीं बातों के लिए क्यों करता है?

 

इंसान स्वयं के द्वारा की गई जिन बातों पर गुस्सा नहीं करता है, दूसरों के द्वारा की गई उन्हीं बातों के लिए क्यों करता है?

दो आँखे बाहर की ओर एवं एक आंख अंतर्दृष्टि भीतर की ओर होती है।

जन्म के बाद बाह्य दृष्टि खुल जाती है, मगर भीतरी दृष्टि को ध्यान- साधना के द्वारा खोलना पड़ता है। जब यह तीसरी दृष्टि खुलती है तो मनुष्य दुसरो के साथ वह व्यवहार नहीं करता जो उसे स्वयं के लिए पसन्द नहीं। यदि जिस गलती के लिए स्वयं को क्षमा कर सकता है वह दूसरे को भी क्षमा कर देता है। मग़र अफसोस यह है कि अंतर्दृष्टि न खुली होने के कारण दूसरे के दोष देखता है, मग़र स्वयं के दोष नहीं देख पाता।

दर्पण की मदद से हम स्वयं का चेहरा देख सकते हैं। उसी प्रकार स्वयं के दोषों को देखने के लिए आत्म दर्पण की जरूरत है। स्वयं के भीतर झांकना होगा।

दो लोग यदि गिर जायें, दोनो के चेहरे पर मिट्टी हो तो एक दूसरे का मुँह देखकर हँसेंगे। क्योंकि बिना दर्पण स्वयं का मुख दिखेगा नहीं। इसीतरह दो लोग एक जैसी गलती कर रहे हों तो एक दूसरे की गलती पर गुस्सा करेंगे, क्योंकि स्वयं की गलतियों को आत्मदर्पण में देखा नहीं है।

क्या आप अपनी जिंदगी से संतुष्ट हैं?

 

क्या आप अपनी जिंदगी से संतुष्ट हैं?

जीवन मे असंतुष्टि का कारण अनियंत्रित इच्छाएँ होती है। इच्छाएँ-वासनाएँ दुष्पूर(कभी पूर्ण न होने वाली) हैं। रक्तबीज राक्षस की तरह है एक के पूरे होने पर कई जन्म लेती हैं।

प्यासे को जल पीने हेतु चाहिए, वह जल मिट्टी के बर्तन में दो या स्टील ग्लास में दो या चांदी ग्लास में दो या स्वर्ण ग्लास में दो फर्क नहीं पड़ता।

पीना तो जल ही है।

मग़र मूर्खतावश असंतुष्टि का कारण बनता है, जल के महत्त्व की उपेक्षा करके ग्लास को महत्त्व देना।

इसी तरह जीवन का आनन्द अपनों के साथ बिताए अच्छे पलों में है, लोगो की दुआओं में शामिल होने से है, किसी के जीवन मे मुस्कुराहट भरने से है। महल व ऐशोआराम तो ग्लास है असली जल तो अपनो का साथ व विश्वास है।

इसलिए मैं जीवन ऊर्जा से भरी हूँ और ऐशो आराम व सुविधाओं की अपेक्षा जीवन को महत्त्व देती हूँ इसलिए संतुष्ट हूँ।

जब छोटे बच्चे गुस्से में अपने बड़े भाई, बहन को दीदी, भैया की बजाय नाम से पुकारते हैं, तो वे कैसा महसूस करते हैं?

 

जब छोटे बच्चे गुस्से में अपने बड़े भाई, बहन को दीदी, भैया की बजाय नाम से पुकारते हैं, तो वे कैसा महसूस करते हैं?

अत्यंत क्रोध व अत्यंत प्रेम में कोई किसी का सही नाम नहीं लेता, कुछ और ही कहेगा, कुछ अन्य उपनाम से सम्बोधित करेगा।

छोटे बच्चे क्योंकि सामान्य अवस्था में बड़े भाई या बड़ी बहन को भैया दीदी बोलते हैं, उनके मष्तिष्क को पता है कि क्रोध में सम्मान नहीं देना है। ऐसा कुछ बोलना है जिससे जितना कष्ट व क्रोध उनके भीतर है, वही क्रोध व पीड़ा वह बड़े भाई व बड़े बहन के अंदर पहुंचा सकें।

जो मन में होगा वही तो दूसरे को देंगे। प्यार होगा तो प्यार देंगे, सम्मान होगा तो सम्मान देंगे, क्रोध होगा तो क्रोध देंगे।

अब समझते हैं कि छोटा बच्चा क्रोधित क्यों हुआ?

प्यार बिना सम्मान अधूरा व अपाहिज है। हम बच्चों को प्यार करते हैं मगर उन्हें सम्मान नहीं देते। अपितु स्वयं के मजे के लिए उन्हें चिढ़ाकर आनन्द लेते हैं। या अत्यधिक टोंक कर यह जताते हैं कि तुम यह मत करो वो मत करो, तुम छोटे हो बड़ो की बात मानो। उनके आत्म सम्मान की धज्जियाँ उड़ाते रहते हैं। जब सम्मान दिया नहीं बच्चे को तो सम्मान वापस भी नहीं मिलेगा।

आप बड़े हो तो उनकी परेशानी को समझों, यदि वह गलत कर रहे हैं तो गलत क्यों कर रहे हैं? उन्हें यह बताए व समझाइये कि ऐसा क्यों नहीं करना चाहिए, इसके लाभ व हानि क्या हैं? उनकी जिज्ञासा शांत कीजिये। वे ज़िद करेंगे, आप भी जिद्दी थे। वो नासमझ हैं तो उन्हें समझदार बनाना आपकी जिम्मेदारी है।

स्वयं के मान सम्मान में मत उलझिए, अपितु उन्हें सही राह दिखाइए व अच्छा इंसान बनाइये। उन्हें गिरकर सम्हलने दीजिये, अत्यधिक सहारा भी बच्चों को कमज़ोर बनाता है। उन्हें सहारा दीजिये मग़र अपाहिज़ मत बनाइये। उन्हें उनके पैरों पर ससम्मान सिखाइये।

भारतीय संस्कृति में परोपकार का कितना महत्व है?

 

भारतीय संस्कृति में परोपकार का कितना महत्व है?

बेटे, भारतीय संस्कृति के आध्यात्मिक मनोवैज्ञानिक रिसर्चर ऋषि जानते थे कि हम सब उस विराट अस्तित्व से जुड़े हैं, व एक दूसरे में होने वाले सुख दुःख से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते।

जैसे जो बॉल आकाश में फेंकोगे वही लौटकर तुम तक आएगी। जो ध्वनि बोलेंगे वही प्रतिध्वनि लौटकर तुम तक आएगी। अच्छा करोगे तो तुम्हारे साथ भी अच्छा होगा, बुरा करोगे तो तुम्हारे साथ भी बुरा होगा।

जब हम परोपकार में दूसरे का कल्याण करते हैं तो वस्तुतः हम स्वयं का ही कल्याण कर रहे होते हैं। क्योंकि वह उपकार लौटकर किसी अन्य रूप में हम तक ही आता है।

उदाहरण -

1- बॉस ने बेवजह एम्प्लॉयी को डाँटा, एम्प्लॉयी ने वह गुस्सा बीबी पर निकाला। बीबी ने वह गुस्सा बच्चे पर निकाला। बच्चे ने वही गुस्सा रोड पर खड़े कुत्ते पर पत्थर फेंक कर निकाला। दर्द में परेशान कुत्ते ने एक बच्चे को काट लिया जो कि उसी बॉस का बच्चा था। उस बच्चे का दर्द देखकर बॉस बहुत व्यथित हुआ। उससे भी ज्यादा जितना उसका एम्प्लॉयी उसके डांटने पर हुआ था। व्याज सहित वह व्यथा बॉस तक पुनः पहुंच गई।

2- एक मजदूर ने देखा एक बच्चा खेलते हुए गिर गया, गाड़ी आ रही थी तो उस मजदूर ने उसे जल्दी से उठाया व सम्हाला व रोड के किनारे छोड़ दिया। बच्चे ने उसे धन्यवाद कहा, तभी उसके मन मे इंसानियत जगी व उसने एक बूढ़ी औरत का सामान उठाकर रोड के दूसरी तरह पहुँचाया। उस बूढ़ी औरत ने एक परेशान लड़की को सिक्के दिए जो उसे पब्लिक बूथ में फोन के लिए चाहिए था। उस लड़की ने एक लड़के के गिरे पर्स को उठाकर दिया। उस लड़के ने फिर कुछ पैसों से एक गरीब की मदद की, उस गरीब ने एक बूढ़े व्यक्ति का सामान उठाया व उसे फूल दिया। उस बूढ़े व्यक्ति ने एक वेटर की मदद की। उस वेटर ने एक परेशान मजदूर को देखा जो प्यासा था। उसने उसे पानी व बिस्किट दिया। यह वही मजदूर था जिसने लड़के की मदद की थी। जो मदद व परोपकार उसने किया था वह व्याज सहित उसके पास लौटकर आ गया।

क्या भगवान हमें इस काल में मिल सकते हैं?

 क्या भगवान हमें इस काल में मिल सकते हैं?

जिस प्रकार जल में विद्युत है और दूध में छिपा घी है। वैसे ही हमारे अस्तित्व में घुला हुआ वह ईश्वर है। जल से विद्युत पाने के लिए एक विधिव्यवस्था से उपकरणों के उपयोग से पाया जा सकता है। दूध में छिपे घी को भी विधिव्यवस्था अपनाकर दूध से दही व दही को मथकर मक्खन और फिर मक्खन गर्म करके घी, या दूध की मलाई को डायरेक्ट प्रोसेस करके घी निकाला जा सकता है।


बीज यह पूँछे कि क्या मुझे पौधा मिल सकता है? तो उत्तर यही है कि भाई धरती मे बोने की प्रक्रिया से गुजरना होगा। स्वयं गलकर बीज से पौधा बनना पड़ेगा।


वेदों में बताई व उपनिषदों में बताई साधना पद्धतियों से स्वयं के अंतर्जगत में उतरकर भगवान को प्रत्येक काल में मिल सकते हैं।


इंटेलेक्चुअल आतंकी PK जैसी फिल्मों में कहते हैं कि भगवान कहाँ है? जल में विद्युत कहाँ है? दूध में घी कहाँ है? बीज में पौधा कहाँ है? दिखाओ, जिसे देखा नहीं उसे माने कैसे? यह आतंकी कप जैसी बुद्धि में सागर भरने की कोशिश करते हैं। आजकल की पाश्चात्य प्रेरित जनता को मूर्ख बनाते हैं।


हमें यह समझना होगा कि सृष्टि के नियम पर चलती है। जिस प्रकार जो उपकरण विद्युत सुचालक होगा उसमें ही विद्युत उतरेगी, वैसे ही जो भगवान से जुड़ने हेतु भगवान को स्वयं में धारण करने योग्य सरल सहज सेवाभावी बनेगा, उसी के अंदर ईश्वर की अनुभूति उसी मात्रा में उतरेगी। देवत्व स्वयं में जगायेंगे तो ही देवताओं से मिलने योग्य बनेंगे।

आप किसी का बूरा नहीं करते फिर भी रोज आपको कोई ना कोई इतनी टेंशन क्यों देता है?

 

आप किसी का बूरा नहीं करते फिर भी रोज आपको कोई ना कोई इतनी टेंशन क्यों देता है?

सफ़ेद झूठ - हम किसी का बुरा नहीं करते।

बेटे, सबसे ज्यादा बुरा तो हम स्वयं का करते हैं।

1- आलस्य प्रमाद में हम स्वयं के स्वास्थ्य का ख्याल नहीं रखते। स्वस्थ व सात्विक भोजन नहीं करते।

2- मन को मजबूत करने के लिए नित्य ध्यान व स्वाध्याय नहीं करते। श्रीमद्भगवद्गीता जैसे मन प्रबंधन की आध्यात्मिक पुस्तक नहीं पढ़ते। मन को ऊर्जा देने के लिए गायत्री मंत्र इत्यादि नहीं जपते।

3- स्वयं की योग्यता व पात्रता बढाने के लिए नित्य कुछ न कुछ नहीं सीखते।

4- जीवन एक संघर्ष है यह नहीं समझते, एक योद्धा की तरह स्वयं की मनोभूमि तैयार नहीं करते। महापुरुषों की जीवनियां नहीं पढ़ते।

5- जानते हैं कि मनुष्य टीवी नहीं जिसका रिमोट लेकर उसे मनचाहा संचालित कर सकें। मनुष्य बोतल नहीं जिसका मुंह बंद कर सकें। फिर भी लोगों के मुंह बंद करने की कुचेस्टा करते हैं व उनमें मनचाहा सुधार लाने की व्यर्थ कोशिश करते हैं।

अतः जो स्वयं का बुरा कर रहा है, उसका दूसरा बुरा अवश्य करेंगे। जहां कचरा पहले से होगा वहां दूसरे कचरा अवश्य फेंकेंगे।

डरपोक बच्चे को ही दूसरे बच्चे डराते है। बहादुर बच्चे को डराने की कोई हिम्मत नहीं करता।

जीवन के खेल में स्वयं की बैटिंग पर ध्यान दो, दूसरे रिश्तेदार, घरवाले, आस पड़ोस वाले, ऑफिस वाले सब समस्या व टेंशन की बॉलिंग एक एक करके करेंगे। अब तुम्हे जीवन का खेल नहीं आता तो टेंशन होगी। यदि खेलना आता है तो जीवन का आनन्द लोगी।

बेटे, हिरण ने किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा होता है। फिर मांसाहारी जीव शेर, लकड़बग्घे, जंगली सुअर इत्यादि नित्य उसे शिकार बनाने हेतु आते हैं। हिरण को उन सबसे तेज दौड़ना है, जिस दिन वह तेज न दौड़ा तो उनका शिकार बनेगा व मृत्यु को प्राप्त होगा।।

बेटे, इसी तरह यदि बुद्धिकुशल व आतम्बल के धनी नहीं बने, तो टेंशन देने वाले जीव तुम्हारा शिकार अवश्य करेंगे।

मात्र हिरण की तरह दिल का अच्छा होना काफी नहीं है, जीवन रक्षण हेतु हिरण की तरह दौड़ना भी आना चाहिए। इसीतरह मात्र अच्छा इंसान व भोला होना काफी नहीं, स्व रक्षण के लिए भोलेनाथ को महाकाल बनने की योग्यता भी होनी चाहिए। यह संसार है, यहां आतम्बल रूपी ऊर्जा व बुद्धि रूपी हथियार के साथ स्ट्रेंथ(शक्ति), स्टेमिना(दमख़म) व स्पीड(गति) अनिवार्य है।

Thursday 26 November 2020

प्रश्न -क्या एक गलती के कारण पूरा जीवन बर्बाद हो जाता है, मुझसे एक गलती हो गई है और वही में दिन रात सोचता रहता हूँ, क्या करूं?

 प्रश्न -क्या एक गलती के कारण पूरा जीवन बर्बाद हो जाता है, मुझसे एक गलती हो गई है और वही में दिन रात सोचता रहता हूँ, क्या करूं?


उत्तर - नाव में छेद किस जगह है उस पर निर्भर करता है कि नाव डूबेगा या नहीं। ऊपर छेद होगा तो नाव नहीं डूबेगा, लेकिन तली में छेद होगा तो नाव डूबेगी।


उसी तरह आपने जो गलती की वह गलती के प्रकार व जगह पर निर्भर करेगा कि उससे जीवन आपका बर्बाद होगा या नहीं।


अच्छी जीवनोपयोगी पुस्तको का नियमित स्वाध्याय और उपासना-साधना करने वाले साधक को अन्तर्दृष्टि मिलती है। वो जानता है मेरे साथ जो कुछ हो रहा है उसके लिए एकमात्र मैं जिम्मेदार हूँ। मुझे कोई दोषी तब तक नहीं बना सकता,जब तक कहीं न कहीं उस दोष का बीज मेरे अंदर न हो। बहकाने वाला मात्र दोष का पोषण कर सकता है, बीजारोपण नहीं कर सकता।


बहकावे अर्थात् शिकारी का ज़ाल, कोई भी चिड़िया दुनियां के समस्त शिकारी को खत्म नहीं कर सकती। लेकिन चिड़िया स्वयं की सुरक्षा हेतु सही-ग़लत के विवेक को जागृत अवश्य कर सकती है। जाल में न फंसे इस हेतु जागरूक/चैतन्य रह सकती है। इसलिए ही हम सुधरेंगे युग सुधरेगा वाला कॉन्सेप्ट गुरुदेव ने दिया है।


धर्मराज युधिष्ठिर भी दुर्योधन के बहकावे में जुआ खेले, द्रौपदी चीरहरण हुआ, महाभारत हुआ। दुर्योधन का समूल वंश नाश हुआ तो युधिष्ठिर का भी लगभग समूल नाश ही हुआ। मात्र उत्तरा के गर्भ ही बचाया जा सका। लेकिन यदि युधिष्ठिर की जुआ खेलने में रूचि ही न होती तो क्या दुर्योधन बहका पाता? दुर्योधन ने तो उनकी इस कमी का फ़ायदा उठाया।


महर्षि विश्वामित्र की गायत्री सिद्ध करने की तपस्या मेनका नाम की अप्सरा ने भँग कर दिया। क्यूंकि वो राजा रह चुके थे, कहीं न कहीं वासना का बीज पड़ा था। मेनका ने तो दुर्योधन की तरह उसका चारित्रिक कमी का फ़ायदा उठाया। लेकिन जिस् क्षण युधिष्ठिर को भूल का अहसास हुआ जीवन में पुनः जुआ के खेल की ईच्छा का समूल नाश कर दिया। जीवन में फ़िर कभी जुआ न खेला।


इसी तरह महर्षि ने क्या किया, जिस क्षण माँ गायत्री की कृपा से बोध हुआ, अरे करने क्या आया था और मैं बहक गया। तत्क्षण मोहबन्धन और वासना के बीज का भीतर से समूल नाश करके, चन्द्रायण व्रत प्रायश्चित विधान किया। पुनः मेहनत और कठोर तप किया और गायत्री सिद्ध कर लिया।


ग़लत मार्ग चयन का बोध होते ही यू टर्न लेकर सही मार्ग में दोबारा आ जाएँ, मनुष्य जीवन में यदि ग़लती/भूल हो जाए तो बोध आते ही उसका प्रायश्चित करना चाहिए। पुनः योगी और महर्षि विश्वामित्र की तरह साधना में जुट कर जीबन लक्ष्यप्राप्ति करनी चाहिए।


जितनी बड़ी क्षति/भूल/गलती उतनी ज्यादा कठोर साधना करें।


उदाहरण - राश्ते में जाते समय कीचड़ के छींटे आ जाएँ तो ये सोचना मूर्खता होगी। अब तो कीचड़ लग ही गया तो क्यों न कीचड़ में लोट पोट लिया जाय। बुध्दिमानी यह है कि कीचड़ धो लिया जाय। आत्मचिंतन करके यह सुनिश्चित किया जाय क़ि पुनः कीचड़ न लगे इस हेतु हमें क्या करना चाहिए?


आत्मसमीक्षा में स्वयं को पत्र लिखें - क़ि ऐसा क्यूँ हुआ? बहकावे में मैं क्यूँ आया? दुबारा ऐसा मेरे साथ न हो इसके लिए कौन सी सावधानी बरतना चाहिए मुझे? मुझे ग्लानि में समय व्यर्थ नहीं करना। यदि एक एग्जाम में फ़ेल हो गया तो क्या और ज्यादा पढ़कर मेहनत करके दूसरे एग्जाम में पास होना है। मैं कायर नहीं हूँ मैं फ़ेलियर को सफ़लता में बदलूंगा।


यदि बड़े केक को खाना हो तो उसके टुकड़े टुकड़े करके ही खाया जा सकता है उसी तरह अपने बड़े महान् जीवन लक्ष्य को छोटे छोटे मॉड्यूल लक्ष्य में बाँट दो। यदि एक वर्ष में मुझे यह हांसिल करना है तो प्रत्येक महीने मुझे क्या अचीव करना होगा? फिर प्रत्येक सप्ताह क्या अचीव करना होगा? फिर प्रत्येक दिन क्या अचीव करना होगा?


इस तरह नित्य गोल/साप्ताहिक गोल/मासिक गोल और वार्षिक गोल होगा तो नित्य गोल अचीव करने की ख़ुशी नित्य मिलेगी। स्वयं को ट्रैक करना आसान होगा। जीवन लक्ष्य महान् चुनना चाहिए।


कुछ पुस्तकें अवश्य पढ़े :-


1- जीवन लक्ष्य और उसकी प्राप्ति

2- हारिये न हिम्मत

3- दृष्टिकोण ठीक रखें

4- स्वर्ग-नर्क की स्वचालित प्रक्रिया

5- चन्द्रायण कल्प साधना


सुबह का भूला अग़र शाम को घर लौट आये तो उसे भूला नहीं कहते। यदि ग़लती/फ़ेलियर का समुचित प्रायश्चित कर पुनः प्रयास किया जाय सही करने का तो उसे कोई फ़ेलियर नहीं कहता।


महापुरूषो के जीवन चरित्र पढ़ेंगे तो आप पाएंगे क़ि भूलों को उन्होंने सुधारा है। और संकल्प बल और अथक प्रयास से सफ़ल बनकर दिखाया है।


आपकी सद्बुद्धि और आपके उज्जवल भविष्य की हम प्रार्थना करते हैं। आप अपने आपको पुनः सन्मार्ग व उज्ज्वल भविष्य की ओर ले जाएं यही प्रार्थना है।

Friday 20 November 2020

पतिव्रता/पत्नीव्रता के भेदों का वर्णन / लक्षण -

 पतिव्रता/पत्नीव्रता के भेदों का वर्णन / लक्षण -


पतिव्रता नारियाँ/पत्नीव्रत धारक पति के उत्तमा आदि भेद से चार प्रकार की बताये गयी है, जो जिनका स्मरण करनेवाले पुरुषो/स्त्रियों का सारा पाप हर लेते है | उत्तमा, मध्यमा, निकृष्टा और अतिनिकृष्टा – ये पतिव्रता/पत्नीव्रत के चार भेद है |


जिस स्त्री का मन सदा स्वप्न में भी अपने पति को ही देखता है, दूसरे किसी परपुरुष को नहीं, वह स्त्री उत्तमा या उत्तम श्रेणी की पतिव्रता कही गयी है | जिस पुरुष का मन सदा स्वप्न में भी अपने पत्नी को ही देखता है, दूसरे किसी परस्त्री को नहीं, वह पुरुष उत्तमा या उत्तम श्रेणी की पत्नीव्रत धारक कहा गया है |


जो स्त्री दूसरे पुरुष को उत्तम बुद्धि से पिता, भाई एवं पुत्र के समान देखती है, उसे मध्यम श्रेणी की पतिव्रता कहा गया है | जो पुरुष दूसरी स्त्री को उत्तम बुद्धि से माता से, बहन एवं पुत्री के समान देखती है, उसे मध्यम श्रेणी की पत्नी व्रत धारक कहा गया है |


जो मन से अपने धर्म का विचार करके व्यभिचार नहीं करती, सदाचार में ही स्थित रहती है, उसे निकृष्टा अथवा निम्नश्रेणी की पतिव्रता कहा गया है | जो मन से अपने धर्म का विचार करके व्यभिचार नहीं करता, सदाचार में ही स्थित रहता है, उसे निकृष्टा अथवा निम्नश्रेणी की पत्नीव्रत धारक कहा गया है |


जो पति व समाज के भय से तथा कुल में कलंक लगने के डर से व्यभिचार से बचने का प्रयत्न करती है, उसे पूर्वकाल के विद्वानों ने अतिनिकृष्टा अथवा निम्नतम कोटि की पतिव्रता बताया है | जो पत्नी व समाज के भय से तथा कुल में कलंक लगने के डर से व्यभिचार से बचने का प्रयत्न करता है, उसे पूर्वकाल के विद्वानों ने अतिनिकृष्टा अथवा निम्नतम कोटि की पत्नीव्रत धारक बताया है |


पतिव्रता स्त्री व पत्नीव्रत धारक पति देवता तुल्य होते हैं।

एक सच्ची कहानी से इसे समझें कि क्यों अमीर की तुलना में गरीब ज्यादा खुशी से जी लेते हैं:-

 एक सच्ची कहानी से इसे समझें कि क्यों अमीर की तुलना में गरीब ज्यादा खुशी से जी लेते हैं:-

एक सेठ जी को नींद नहीं आती थी बड़े बैचेन रहते थे तो हाथ में दूरबीन लेकर दूर देखते रहते थे। उनके विशाल भवन से कुछ दूरी पर एक परिवार रहता था, जो अत्यंत गरीब था। वो रूखी सुखी खाते व परिवार के साथ हंसी ठिठोली करते। सब चैन से सो जाते।

उस परिवार की ख़ुशी गरीबी में और खुद का कलह युक्त दुःखी परिवार अमीरी में भी समझ नहीं आया। उन्होंने मुनीम जी को बुलाया और पूँछा कि ऐसा क्यों? मेरे पास धन होने पर भी चैन की नींद नहीं, यह गरीब परिवार चैन से सोता है व हंसता मुस्कुराता रहता है।

मुनीम जी ने कहा, कि सेठ जी बुरा न माने। आप निन्यानबे के फेर में जीते हैं और यह फेर (बीमारी) उन गरीबो को नहीं हुई है। सेठ ने कहा तो उन तक यह बीमारी पहुंचाने को क्या करें?

मुनीम जी ने कहा 99 स्वर्ण मुद्रा दे दीजिए, कुछ दिनों में वह परिवार भी आपकी बीमारी से ग्रसित व दुःखी हो जाएगा। सेठ से 99 स्वर्ण मुद्रा लेकर उसे चुपचाप उस गरीब के घर डाल आया। पूरा परिवार खुशी से उछल पड़ा। सबने बार बार गिना लेकिन 100 में एक कम क्यों है समझ नहीं आया, पति ने पत्नी से कहा यदि हम मेहनत करें तो 99 मुहर को 100 में बदल सकते हैं। बस पूरा परिवार महीने भर मेहनत किया तो दो स्वर्ण मुहर कमा लिए। उनकी खुशी का ठिकाना न रहा अब 100 से 1 ज्यादा अर्थात 101 स्वर्ण मुहर हो गए। अब पुनः पति, पत्नी व बच्चे सोचने लगे यदि हम 99 से 101 स्वर्ण मुहर तक पहुंच सकते हैं तो यदि हम और अधिक मेहनत करे तो 99 मोहर कमाकर इसे 200 तक कर सकते हैं। अब साथ ही उन्हें स्वर्ण मुद्रा के चोरी होने का डर सताने लगा। इस तरह वह परिवार 99 के फेर में पड़ गया, जब भी सेठ दूरबीन से उस परिवार को देखता तो उन्हें भी बेचैन व परेशान पाता। और अधिक अमीर बनने का लोभ अब उस परिवार के भीतर प्रवेश कर गया।

अतः जो परिवार अमीर हो या गरीब यदि वह निन्यानबे के फेर में पड़ेगा तो दुःखी रहेगा। दुःख का कारण अनियंत्रित इच्छाओं और वासनाओं का पूर्ण न होना ही है। 

Thursday 19 November 2020

दस दिमाग़ हिला देने वाली बातें, जो जानते सब हैं पर इग्नोर करते हैं 1-

 दस दिमाग़ हिला देने वाली बातें, जो जानते सब हैं पर इग्नोर करते हैं

1- मृत पूर्वज की टँगी फोटो यह सबको याद दिलाती है कि मृत्यु अटल सत्य है कुछ साथ न जाएगा। पर फिर भी संग्रह में जुटे रहते हैं।

2- नशा नाश की जड़ है, शरीर नष्ट होगा। सभी नशा करने वाला जानता है, मग़र फिर भी करता है।

3- दूध में दही पड़ने पर दूध दही बन जाता है, ऐसे ही विवाह के बाद बेटे की दूध के जीवन मे बहु की जामन पड़ेगी तो माता पिता के साथ सम्बन्धों में खटास थोड़ी बहुत जरूर आएगी। तब चीनी अर्थात अतिरिक्त प्रयास सम्बन्ध ठीक रखने हेतु चाहिए । जानते सब हैं मगर इग्नोर करते हैं। बेटे से पुनः विवाह पूर्व का व्यवहार चाहते हैं।

4- प्यासे व्यक्ति को पानी चाहिए, चाहे वह मिट्टी के बर्तन में दो, या स्टील के बर्तन में या सोने की ग्लास में दो। प्यास तो जल से ही बुझेगी न कि ग्लास से…जीवन भी ऐसा ही है, कच्चे घर मे रहो, पक्के घर मे या महल में…जीवन का आनन्द तो अपनों के साथ ही है। 

5- प्रत्येक विद्यार्थी को 6 माह पूर्व ही किताबें मिल जाती है और टेंटेटिव एग्जाम डेट भी, लेकीन अधिकतर विद्यार्थी पूरे समय को नष्ट कर एग्जाम के दो दिन पहले पढ़कर पास होने के जुटते हैं। ऐसे ही अटल मृत्यु सबको पता है, मरने के बाद भगवान जीवन मे क्या किया का हिसाब किताब लेगा, विद्यार्थी की तरह मनुष्य जवानी के समय को नष्ट कर मात्र वृद्धावस्था के अंतिम दिनों में पूजा पाठ करके जीवन का एग्जाम पास करने की कोशिश करता है।

6- सब जानते हैं योग व व्यायाम से शरीर स्वस्थ होगा। लेकिन हममें से अधिकतर योग व्यायाम नहीं करते।

7- सुबह उठना और टहलना जीवन ऊर्जा से भर देता है, जानते सब हैं मगर अधिकतर को सुबह नींद प्यारी है।

8- स्वास्थ्यकर खाना चाहिए, मग़र स्वाद की पीछे भागते सब हैं।

9- प्रदूषण सामूहिक मौत है, जानते सब हैं मगर मिलकर प्रदूषण दूर करने का प्रयास करने को तैयार नहीं है।

10- भारत व दुनियाँ में सकारात्मक परिवर्तन चाहते सब हैं मगर परिवर्तन का हिस्सा बनकर खुद कुछ करने को तैयार नहीं। भगत सिंह, सुभाष व लक्ष्मी बाई चाहिए सबको लेकिन पड़ोसी के घर में…अपने घर तो इंजीनियर, डॉक्टर वकील इत्यादि द्वारा कमाकर घर गृहस्थी सम्हालने वाला चाहिए।

जीवन अनमोल है, इसे बेहतरीन तरीके से जीने हेतु निम्नलिखित कुछ चीज़ों को जीवन में अपना लें:-

 जीवन अनमोल है, इसे बेहतरीन तरीके से जीने हेतु निम्नलिखित कुछ चीज़ों को जीवन में अपना लें:-

1- जीवन के प्रति सकारात्मक नज़रिया रखें

2- सुबह सोकर उठने पर बिस्तर पर बैठे बैठे ही 5 मिनट गायत्री मंत्र या जो कोई ईष्ट भगवान/अल्लाह/गॉड जिस को भी मानते हैं उनका मन्त्र व प्रार्थना पढ़ें। ईश्वर को जीवन देने के लिए धन्यवाद दें। जो आपको चलने,बोलने, सुनने, कार्यकरने, सोचने व समझने की क्षमता ईश्वर ने दी है उसके लिए ईश्वर का आभार व्यक्त करें.

3- पाँच सकारात्मक ऊर्जा से भरे वाक्य स्वयं के लिए बोलें

* आज मेरा दिन शुभ रहेगा

* मैं बहुत सौभाग्यशाली हूँ

* मैं अपने कार्य क्षेत्र में कुशल हूँ

* आज का दिन में मेरा है

* मैं बहुत खुश हूँ क्योंकि मैं दुनियाँ का सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति हूँ

4-  नित्य योग-व्यायाम से तन मन तन्दरुस्त रखें। शरीर को अच्छा भोजन, मन को अच्छे विचार और आत्मा को ऊर्जा ध्यान व भक्ति से दें।

5- मन व जिह्वा को समझाएं - कि भोजन जीने के लिए खाया जाता है। हम मनुष्य खाने के लिए नहीं जीते। अतः स्वास्थ्यकर खाओ। व जंक फूड से दूर रहो।

6- सभी के जीवन मे कुछ कमियां व कुछ अच्छी चीजें होती है। अर्थात आधी ग्लास खाली व आधी भरी है। तो सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाएं आधी ग्लास भरी की ओर देखें।

7- जीवनसाथी और बच्चे इंसान हैं रोबोट नहीं। अतः उन्हें अपनी मर्ज़ी से चलाने की कोशिश न करें, उनकी भी बात सुने व अपनी बात भी तथ्य तर्क प्रमाण के साथ रखें। किसी की गलती होने पर उसे क्षमा कर दें, स्वयं की गलती होने पर क्षमा मांग ले। अहम(ego) घर तोड़ता है, क्षमा-प्रेम-सेवा व समर्पण से घर जुड़ता है।

8- जिसे प्रेम करते हैं उसे सम्मान व अपना थोड़ा कीमती समय भी अवश्य दें। उनके साथ क़्वालिटी वक्त बिताएं।

9- टेक्नोलॉजी को आप उपयोग करें, लेकिन टेक्नोलॉजी के मानसिक गुलाम मत बनो।

10- महंगी गाड़ी में पेट्रोल की जगह मिट्टी तेल नहीं डालते, वैसे ही महंगे शरीर में नशा का जहर मत डालिये।

11- मन बहुत अच्छा सेवक है और बहुत बुरा मालिक है। अतः मन को अपना सेवक बनाने के लिए उस पर नजर रखें व 15 मिनट ध्यान अवश्य करें।

12- कुछ न कुछ अपने कार्य क्षेत्र का अवश्य सीखें। उससे सम्बंधित पढ़ाई करते रहें। ज्ञान बांटने से बढ़ता है, मदद करने से भविष्य में मदद मिलने की संभावना बढ़ती है। अतः मदद थोड़ी बहुत करने का जब भी अवसर मिले तो अवश्य करें, ज्ञान भी बांटते चलें।

13- माता पिता व प्रियजनों जिनकी वजह से आपका वजूद बना उनके अहसानमंद रहें और उनसे मिलते-जुलते रहें।

14- अच्छा जल प्यास बुझाता है, गंदा जल प्यास भले न बुझाए लेकिन आग बुझा सकता है। अतः रिश्ते अच्छे हो या बुरे बनाये रखें।

15- रात को सोने से पूर्व भगवान को धन्यवाद दें, कुछ अच्छे विचार पढ़कर सोएं।

16- सुबह जो कार्य सूची दिनभर करने के लिए बनाई थी उसमें कितना हुआ व कितना बाकी रहा उसका भी ध्यान कर लें। कल क्या क्या करना है रात को एक बार सोच लें।

17- सोने से तीन घण्टे पूर्व खा लें, सुबह का भोजन गरिष्ठ हो तो हो लेकिन रात का भोजन हल्का सुपाच्य ही हो इसका ध्यान रखें।

18- नाभि व पैर के तलवों में नारियल या सरसों तेल से हल्की मालिश कर ले या केवल यूँ ही लगा लें। सरपर अपने प्यार से हाथ फेरें व उंगलियों से हल्की बिना तेल की मसाज कर रिलेक्स कर लें। व जगन्माता की गोद मे शिशु की तरह निश्छल भाव से सो जाएं।

देवत्व जगाने का मन्त्र - गायत्रीमंत्र एवं सूरह अल फ़ातिहा

 हिंदुओ में देवता बनने और देवत्व जगाने का मन्त्र - *गायत्री मंत्र* है। विवेकानंद जी व युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं कि भगवान से जुड़ने के लिए व उनकी कृपा प्राप्ति के लिए उनके जैसा बनना पड़ता है, उनकी बताई राह पर नेकनीयत व सच्चाई के साथ चलना पड़ता है।


ॐ भुर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि, धियो योन: प्रचोदयात।


उस प्राणस्वरूप दुःख नाशक, सुख स्वरूप श्रेष्ठ तेजस्वी, पाप नाशक , देवस्वरूप, परमात्मा को हम अपनी अंतरात्मा में धारण करते हैं। वह हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करें।


सूर्य - सविता का प्रकाश हमारे भीतर का अंधकार दूर करें, हमे स्वस्थ बनाए।


मुश्लिम में इसी अल्लाह के बन्दे व नेकनीयत बनने का भाव बनाने वाले *सूरह अल फातिहा* है। सूफी संत हसन व राबिया कहते हैं कि अल्लाह की कृपा उसपर बरसती है, जो नेकनीयत होते हैं व सच्चाई की राह पर चलते हैं।


1:1 بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ


अल्लाह के नाम से जो अत्यंत कृपाशील तथा दयावान है|


1:2 الْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ


सारी प्रशंसाएँ अल्लाह ही के लिए हैं, जो सारे संसार का रब है।


1:3 الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ


बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान है।


1:4 مَالِكِ يَوْمِ الدِّينِ


बदला दिए जाने के दिन का मालिक है।


1:5 إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ


हम तेरी ही बन्दगी करते हैं और तुझी से मदद माँगते हैं।


1:6 اهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِيمَ


हमें सीधे/सत्य मार्ग पर चला।


1:7 صِرَاطَ الَّذِينَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ غَيْرِ الْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ وَلَا الضَّالِّينَ


उन लोगों के मार्ग पर जो तेरे कृपापात्र हुए, जो न प्रकोप के भागी हुए और न पथभ्रष्ट। श्रेष्ठ लोगों का अनुसरण करें और उनके दिखाए मार्ग पर चलें।


इसे रोज अपनी प्रार्थना में शामिल करें। जितनी बार कर सकें उतना अच्छा है।


गलतियां इंसान से होती है, हम सोचते हैं क्रोध में कि हम दूसरों को दण्ड दे रहे हैं। लेकिन असल में दण्ड के पात्र हम स्वयं बनते चले जाते हैं।


हम बीच में खड़े हैं, जन्नत(स्वर्ग) और दोज़ख(नर्क) के, अल्लाह ने हमें अपने मन मुताबिक जीने की छूट तो दी है, अपने हिसाब से काम करने की छूट दी है लेकिन उसका फ़ल/रिज़ल्ट/परिणाम अपने हाथ में रखा है। इसलिए जो भी करें पहले हमें सोचना समझना चाहिए।


हमें रोग कुछ प्रारब्ध/पिछले जन्म के कर्मफ़ल से बनी परिस्थिति के कारण भी होते है ।


रोग हमे जीवन मे अपनी भूलो के प्रायश्चित करने का तरीका मात्र होता है, जहां हम नित्य *गायत्रीमंत्र* या *सूरह अल फ़ातिहा* पढ़कर इस पर चिंतन करें। इसके एक एक शब्द को स्वयं में अंकित करें और ख़ुदा की बताई/ईश्वर की दिखाई नेक राह पर चलने को स्वयं को प्रेरित करें।


सूर्य जो वृक्ष-वनस्पति और जीवों को प्राण देता है उससे हृदय से प्रार्थना करें कि वो भी अपनी रॉशनी से हमारे भीतर का अंधकार दूर करे, ख़ुदा का नूर बरसे, उजाला ही उजाला मन के अंदर हो। बुराइयां जलकर खाक हो जाएं और नेकनीयत हममें आ जाये। हर जीव वनस्पति मनुष्य औऱ कण कण में हमे ख़ुदा दिखे। और हमारे चेहरे पर ख़ुदा का नूर/ईश्वर की कृपा दृष्टि की रौशनी रहे।


इस ध्यान का लाभ अपने आपको अच्छा इंसान बनाने में ख़र्चे, उस ख़ुदा की इबादत/ईश्वर की प्रार्थना में समय ख़र्चे, गायत्रीमंत्र/सूरह अल फ़ातिहा का अर्थ चिंतन करते हुए, उस ख़ुदा/ईश्वर के ध्यान में खोए रहें।

Monday 16 November 2020

लवजिहाद का शशक्त प्रचारक - फिल्मजगत

 हिन्दू लड़कों का विवाह हिन्दू लड़की से भविष्य में नहीं हो पायेगा, क्योंकि बॉलीवुड फिल्म जगत हिन्दू लड़कियों के मन में हिन्दू लड़को के प्रति ज़हर और मुश्लिम लड़को के लिए प्रेम गढ़ देगा। लवजिहाद का शशक्त प्रचारक - फिल्मजगत 


#boycottlaxmibomb #धर्मान्तरणजिहाद #WeSupportArnabGoswami #BoycottBollywoodMovies #zeenews #RepublicBharat


वॉलीवुड मात्र कचरा पेटी नहीं है, यह एक शशक्त इंटलेक्चुअल आतंकवाद का भी माध्यम है।


आजकल कुछ कॉमन आतंकी पॉइंट्स:-


1- मुस्लिम लड़के शरीफ व हिन्दू लड़के जुआरी


2- मुस्लिम लड़कियां अदब से व हिन्दू लड़कियां शराबी, लेटेस्ट उदाहरण लक्ष्मी में मां शराबी, व छलांग में कम्प्यूटर स्कूल टीचर शराबी


3- हिन्दू अत्याचारी व शरीफ़ मात्र खान चाचा, पिछले दस वषों की फिल्में और वर्तमान की लक्ष्मी फ़िल्म देख लो।


4- पाखण्डी सारे बाबा हिन्दू धर्म के व मौलवी मज़ार वाले शरीफ़


5- फिल्मों में हलाला, मुताह, मस्जिदों में लगने वाले झाड़े के पाखण्ड व ताबीजों का कोई ज़िक्र नहीं।


6- वेब सीरीज़ में हिंदू लड़को को भगवा वस्त्र व जनेऊ चढ़ाकर गंदे सीन करते दिखाया जाता है, मौलवी को हरे वस्त्रों में पाखण्ड करते नहीं दिखाते।


7- हिन्दू त्योहारों व देवी देवता का जमकर मज़ाक उड़ाते है, लेकिन कभी कुरान पर या मुहम्मद साहब पर एक भी लाइन नहीं बोलते


इत्यादि इत्यादि बड़ी लंबी दास्तान है। जो लड़की हिंदी फिल्में देखेगी व 100% लव ज़िहाद का शिकार होगी। इसके लिए जिम्मेदार हिन्दू लड़के भी हैं जो मर्दानगी दिखाते हुए एकजुट होकर ऐसी फिल्मों की बैड नहीं बजाते, इनका बायकॉट नहीं करते।


सत्य यह है कि आज़ादी से जीने का अधिकार जितना हिन्दू लड़की को है मुस्लिम लड़की को नहीं। क्योंकि एक मुस्लिम युवक चार बीबी और मनमानी सन्तान उतपन्न कर सकता है। जब चाहे तलाक ले सकता है। यह सब फिल्मों में और वेब सीरीज में नहीं दिख रहा।


यदि जागरूक हिन्दू लड़के व जागरूक हिन्दू लड़कियां इस पोस्ट को पढ़ रही हैं तो कम से कम रोड पर आकर प्रदर्शन नहीं कर सकते तो ट्विटर, quora, facebook इत्यादि शोशल मीडिया प्लेटफॉर्म में तो कम से कम आवाज बुलंद करो। एकजुटता दिखाओ।

मेरे पिता द्वारा दी गयी अमूल्य सीख :-

 मेरे पिता द्वारा दी गयी अमूल्य सीख :-

डर दूर है तो डर सकते हो और मग़र डर पास आये तो मुकाबला करना चाहिए। आत्मबल से बड़ा कोई अन्य बल नहीं।

मुझे बचपन मे रात के अंधेरे में हिलती झाड़ियों में भूत दिखते थे। पिताजी ने मुझे अंधेरी रात में घर के बाहर सभी लाइट बन्द कर रात 11 से 1 बजे तक बाहर खड़ा रखा और बोला भूत मिले तो उससे मुकाबला करना। दो घण्टे डरते हुए खड़ी रही, भूत नहीं आया मेरा डर समाप्त हो गया।

एक लड़की का पिता अक्सर जमाने से भयग्रस्त देखा जाता है, लेकिन मेरे पिता कभी भयग्रस्त न होते और न ही हमें भयग्रस्त होने देते थे। मेरे पिता कहते थे स्कूल व कॉलेज जाओ और यदि कोई लड़का परेशान करे तो उसका मुंह तोड़कर आना। पुलिस थाना हम देख लेंगे। विपत्ति में बुद्धिबल का प्रयोग करो। अक्ल भैस से बड़ी होती है। तुम बुद्धि के प्रयोग से कोई भी जंग जीत सकती हो। आत्मबल से हमेशा विजयी रह सकती हो।

प्रवास में ज्ञान की रौशनी मार्गदर्शन करती है, वह मुझे अक्सर वीरांगनाओं के जीवन के संघर्ष की कहानियां पढ़ने को कहते व उनके जीवन से प्रेरणा लेने को कहते। सैनिकों की वीरता की कहानी पढ़ाते। साथ ही तेनालीराम, चाणक्य व बीरबल की कहानियों को पढ़ने को कहते और उनकी तरह सोचने को कहते। बोला जीवन में या जीत कर आना या शहीद होकर आना। पीठ दिखाकर कभी मत आना।

मुझे हमेशा सुबह उठकर गायत्रीमंत्र मन्त्र जपने और उगते हुए सूर्य का ध्यान करने को कहते। इससे आत्मबल मिलता है। बोलते थे बेटे गायत्रीमंत्र वह प्राण विद्युत है जो तुम्हें हमेशा चैतन्य रखेगी एवं उगते हुए सूर्य के ध्यान से तुम्हारी बुद्धि प्रखर बनेगी। हर क्षेत्र में सफलता के लिए हमेशा गायत्री मंत्र जप एवं उगते सूर्य का ध्यान करना। संघर्ष के लिए व हर चुनौतियों के लिए तैयार रहना। जब कोई तुम्हे हतोत्साहित करे कि "तुमसे न होगा" तब मन ही मन कहना "यह मुझसे ही होगा" और करके दिखा देना।

कभी प्रेम में कोई वचन मत देना, कभी क्रोध में कोई निर्णय मत लेना। जीवन के महत्त्वपूर्ण व बड़े निर्णय हमेशा सुबह या शाम पूजन, मंत्रजप व ध्यान के बाद ही घर पर लेना।

प्रश्न - अकेलेपन में इंसान अवसादग्रस्त क्यों होता है?

 प्रश्न - अकेलेपन में इंसान अवसादग्रस्त क्यों होता है?

उत्तर - एक होता है व्रत-उपवास अर्थात भोजन न करने का आज निर्णय हमने स्वयं लिया है। तब मनःस्थिति प्रशन्न होती है।

दूसरा होता है किसी दण्ड स्वरूप भोजन न मिलना, दूसरे द्वारा हमें भूखा रखना। तब मनःस्थिति खिन्न (अवसादग्रस्त) होती है।

अकेलापन भी इसी तरह है, 

जब विवेकशील व्यक्ति द्वारा किसी विशेष उद्देश्य के लिए एकांत व अकेलेपन में रहने का निर्णय लिया जाता है। तब वह उस एकांत के पलों में प्रशन्न होता है। उदाहरण - लेखक, वैज्ञानिक और तपस्वी

जब सामान्य जन बिना उद्देष्य के मजबूरी में एकांतवास करता है व अकेले पन में रहने को विवश होता है। तब वह उन एकांत के पलों में खिन्न(अवसादग्रस्त) हो जाता है। उदाहरण - विद्यार्थी को पढ़ने का मन न हो व जबरन पढ़ने हेतु अकेले रूम में माता पिता रख दें, घर से बाहर अकेले रूम में जॉब सर्च हेतु विवशता में रहना।

प्रश्न - मुझे एक्सीडेंट के बुरे सपने आते हैं, मैं क्या करूँ?

 प्रश्न - मुझे एक्सीडेंट के बुरे सपने आते हैं, मैं क्या करूँ?

 मुझे काफी दिनों से बहुत बुरे सपने आ रहे हैं, जैसे मेरे दोनों हाथ कट गए हैं, मैं छत से गिर गया हूँ, मेरा चेहरा जल गया, मैं मर गया हूँ आदि, तो मुझे क्या करना चाहिए?

उत्तर - पूर्वजन्म में आपकी मृत्यु किसी कार दुर्घटना में ब्लास्ट से हुई है या किसी प्रिय की ऐसी मृत्यु के आप साक्षी रहे हैं। अतः चित्त में जमी पूर्व स्मृतियां आपको बार बार स्वप्न में दिख रही हैं।


पहला उपाय - आप मनोचिकित्सक से कुछ शेषन करवा लें, वह मन की परतों से यह स्वप्न की जड़ को धूमिल करने में मदद करेंगे।


दूसरा उपाय - आप ब्रह्ममुहूर्त में या जब सोकर उठें और जब सोने जाएं। दो वक्त स्वयं के मानसिक उपचार हेतु निम्नलिखित प्रयोग करें:-


1- उगते सूर्य का ध्यान करें व भावना करें कि सूर्य की किरणें आप मन में चित्त में प्रवेश करके सभी अप्रिय यादों को जलाकर भष्म कर रही हैं। पुरानी पूर्वजन्म की यादें नष्ट हो गयी हैं।


2- सपने को पूरा विस्तार से कागज में लिखकर जलते हुए घी के दीपक की लौ में जलाकर नष्ट कर दें। भावना करें स्वप्न नष्ट हुआ।


3- ध्यान कीजिये, ध्यान में स्वयं के शरीर से बाहर निकलकर शरीर को देखिए। भावना कीजिये कि आप ने यह शरीर वस्त्र की तरह पहना हुआ है। आप शरीर नहीं है, आप मन नहीं है। आप तो शाश्वत अनन्त आत्मा है। उस परमात्मा का अंश हैं। आप सर्वशक्तिमान हैं।


4- लंबी गहरी श्वांस लेते हुए गायत्री का अजपा जप "सो$हम" जपिये। मन ही मन सांस लेते समय "सो" और छोड़ते हुए "हम" जपिये। वह शाश्वत सत्य परब्रह्म का अंश मैं हूँ अर्थात वह मैं हूँ।


5- एक बार दिन में हनुमान चालीसा हनुमानजी का ध्यान करते हुए कर लें।


6- अच्छी पुस्तक से अच्छे विचार पढंकर सोएं।


7- तलवों व नाभि में सरसों या नारियल का तेल लगाकर चैन से सोएं।


मनोचिकित्सक के पास जाना है या घर पर स्वयं का उपचार करना यह निर्णय आपको स्वयं लेंना होगा।

सफ़ल व्यक्ति बनने के कुछ संकेत

 सफ़ल व्यक्ति बनने के कुछ संकेत :-

1- समय का सही उपयोग

2- आज का काम कल पर नहीं टालना

3- जो बनना है उसका क्लियर रोडमैप बनांकर उसपर चलना

4- सम्बंधित विषय की छोटी बड़ी जानकारी एकत्रित करना

5- स्वयं को स्वयंमेव मोटिवेट करना

6- Triple "S" for success- Speed, Strength & Stemina

7- Four "D" for success - Desire, Determination, Dedication, Discipline

चेहरे के चैतन्य सौंदर्य की तीन लेयर हैं

 चेहरे का चैतन्य सौंदर्य एक जरूरत भी है, क्योंकि पुष्प भी सुंदर है क्योंकि वह खिलता है व आत्मिक सौंदर्य बिखेरता है।:-


चेहरे के चैतन्य सौंदर्य की तीन लेयर हैं:-


।- "स्थूल परत" - 

सबसे पहले सुबह प्राणयाम करें व कुछ हल्के फुल्के व्यायाम कर लें।


नहाने से पूर्व पहले हल्के हाथों से नारियल के तेल से हल्की मालिश चेहरे की करें। फिर उसे धोकर

चेहरे पर शांतिकुंज फार्मेसी की मुल्तानी मिट्टी फेसपैक या अन्य कम्पनी की ले लें उसमें गुलाब जल या  नॉर्मल पानी डालकर पेस्ट बनाकर लगा लें। सुख जाने पर अच्छी तरह धो लें। गीले चेहरे पर नॉर्मल फिटकरी जो कि बाज़ार में आसानी से उपलब्ध है उसे गीला कर हल्के हाथों से पूरे चेहरे पर घुमाएं। फिर चेहरे को अच्छे से धोकर नहा लें। 

नहाने के बाद कोई भी अच्छा मॉइश्चराइजर चेहरे पर लगा लें। इससे चमकता निखरता चेहरा आपको मिलेगा।


।।- "मानसिक परत" - सुबह उठकर कुछ सकारात्मक वाक्य स्वयं के आत्मविश्वास को बढाने के लिए दर्पण देखकर बोलें:-


1- मैं संसार का महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हूँ

2- आज का दिन शुभ है

3- मैं बेस्ट हूँ अपनी फील्ड का मास्टर हूँ

4- मैं वीर योद्धा हूँ हर चुनौती के लिए तैयार हूँ

5- आज मैं अपना सर्वश्रेष्ठ हर कार्य क्षेत्र में दूंगा


नित्य सोने से पूर्व अच्छी पुस्तको का स्वाध्याय करके सोएं।


।।। - "आध्यात्मिक परत" - उगते सूर्य का ध्यान करें, गायत्रीमंत्र जप करें व स्वयं को बुद्धिमान अनुभव करें।


कुछ ब्रह्म वाक्य दोहराएं

मैं शरीर नहीं हूँ, मैं मन भी नहीं हूँ, मैं शाश्वत चैतन्य आत्मा हूँ।

ईश्वर को बहुत बहुत आभार जो उन्होंने मुझे अच्छा शरीर उपहार में दिया, जो चल, बोल, सुन, देख, स्पर्श व सोच सकता है। 

मुझे मानव शरीर देने केलिए धन्यवाद।

मैं उसी परमात्मा का अंश हूँ - सो$हम


तीनो लेयर पर कार्य करें और उत्साह उमंग से भरे चैतन्य सौंदर्य का आनन्द लें।


आपकी शुभाकांक्षी बहन

श्वेता चक्रवर्ती


भाई दूज की शुभकामनाएं

Saturday 14 November 2020

प्रश्न - कोई किसी पर झूठा केस कर दे तो क्या करना चाहिए?

 प्रश्न - कोई किसी पर झूठा केस कर दे तो क्या करना चाहिए?

उत्तर- कोई झूठा केस करता है या कोई सच्चा केस करता है। कोर्ट को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता।

कोर्ट में रखी कानून की मूर्ति में पट्टी बंधी है, तराजू हाथ मे लटका है। जिस पक्ष सबूत,गवाह और दलील होगी वही जीतेगा।

अतः यदि किसी ने केस किया तो यह सोचने में समय व्यर्थ न करें कि मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ। मैं तो सच्चाई पर हूँ। उसकी जगह इस पर कार्य करें कि मुझे सच्चाई को जिताने के लिए हर सम्भव प्रयास करना है। मुझे दुगुनी मेहनत करके उस झूठे को दण्ड देना है।

मन को मज़बूत कीजिये। व युद्ध स्वयं का लड़िये। अर्जुन को अपना युद्ध लड़ना पड़ा था, जबकि वह सच्चाई पर था। आपकी महाभारत कोर्ट में होगी, मग़र यह महाभारत आपको लड़नी पड़ेगी।

सवा लाख गायत्री मंत्र का अनुष्ठान आपके प्रारब्ध का शमन करेगा व तप की ऊर्जा कोर्ट केस जीतने में मदद करेगा।

Wednesday 11 November 2020

हाय स्त्री तेरी यही कहानी...

 हाय स्त्री तेरी यही कहानी...

जिन बच्चियों के जीवन मे कोई लक्ष्य नहीं है, व जिनके दिमाग़ में बचपन से यह भर दिया गया है कि तुम पराया धन हो व दूसरे के घर जाना है। वस्तुतः तुम्हारे पति का घर ही तुम्हारा घर है, गृहकार्य सीखो व विवाह कर अपने पति के घर जाओ। ऐसी लड़की अपने सम्मान व गौरव का विषय विवाह समझती है, व मनोवैज्ञानिक दबाव के कारण विवाह जल्दी करना चाहती है।

इन बच्चियों की दुर्गति तब होती है, जब ससुराल वाले यह अहसास करवाते हैं कि यह घर तुम्हारा नहीं। तुम दहेज में क्या लेकर आई। तुम बाहर वाली हो।

तब इन्हें पता चलता है कि इनका वस्तुतः कोई घर नहीं है, मायका पिता का घर, ससुराल पति का घर। 

टूटकर बिखरा आत्म सम्मान से अधिकतर लड़कियां समझौता कर लेती हैं क्योंकि वह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं होती। माता पिता पहले ही क्लियर कर देते हैं डोली में जा रही हो अर्थी में वहाँ से निकलना। कदापि वापस मायके मत लौटना, क्योंकि दहेज देकर बड़ी मुश्किल से विवाह किया है।

जो लड़की बुद्धिकुशल व आत्मनिर्भर होती है, वस्तुतः उसे ही अपना घर मिलता है। पति व पिता दोनो से सम्मान मिलता है।

हमारे देश में 70% से अधिक स्त्रियों के नाम पर उनका घर नहीं है। वह पहले पिता, फिर पति व अंत मे पुत्र व पोते के रहमोकरम में रहती हैं। 

कुछ % स्त्रियां ही आत्म सम्मान के साथ गौरवपूर्ण जीवन अपनी मर्जी का जी रही हैं। यह कड़वा है, मग़र सत्य है।


मध्यकालीन युग में जब स्त्रियां असुरक्षित थीं, कानून व्यवस्था इतनी सुदृढ नहीं थी कि उन्हें संरक्षण प्रदान कर सकें। तब मात्र पति ही सुरक्षा गार्ड पुरुष प्रधान समाज मे हुआ करता था। स्त्री को पुरुषों के समान जीने व समाज मे बराबरी के अधिकार प्राप्त नहीं थे, आर्थिक रूप से स्त्री अक्षम थी। घूंघट में चार दीवार के अंदर बन्द होकर रहना पड़ता है, खुलकर जीने की आज़ादी नहीं है।

विधवा स्त्री को भोजन पानी व सुरक्षा देने का उत्तरदायित्व परिवार वाले उठाना नहीं चाहते थे, अतः सती प्रथा का जन्म हुआ व जिंदा स्त्री को क्रूरता पूर्वक मृत पुरुष के साथ जला दिया जाता था।

मुस्लिमों में भी जो स्त्रियां आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं है, उनके पास उनकी मर्जी से जीने के अधिकार नहीं है। पशु की तरह वह हैं। एक पुरुष जिस प्रकार कई पशु रख सकता है, वैसे ही एक पुरुष कई स्त्री रख सकता है। तलाक पति देगा तो भी हलाला(मौलवी से रेप के बाद शुद्धि) से स्त्री को गुज़रना होगा। आर्थिक रूप से जो स्त्री आत्म निर्भर नहीं है उस की कोई मर्जी नहीं चलती, हलाला के नाम पर एक स्त्री एक ही परिवार में कइयों के साथ सम्बन्ध बनाने को मजबूर होती है। बुर्क़े से स्वयं को ढंककर चलना पड़ता है, खुलकर जीने पर पाबंदी है। मौलवी के खिलाफ तो केस भी नहीं कर सकते।

ईसाई समुदाय में भी स्त्रियों की स्थिति पहले अच्छी नहीं थी, समान कार्य करने पर भी एक सा वेतन नहीं मिलता था। गुलाम स्त्रियां समान की तरह उपयोग में ली जाती थीं। उनपर क्रूरता की हद पार होती थी। नन की तो हालत बहुत खराब है, देवदासी प्रथा आज भी कायम है। हज़ारो केस कोर्ट में लंबित है।

स्त्रियां व अच्छे पुरुष जब एक जुट होकर स्त्री अधिकार के लिए एक जुट हुए हैं, तभी जाकर आज स्त्रियों की कुछ हालत सुधरी है, उनके लिए कानून बने। उन्हें मतदान व समान वेतन का अधिकार मिला। अभी भी बहुत कार्य बाकी है।

Tuesday 10 November 2020

प्रश्न - गंदी आदत कैसे छोड़े?

 प्रश्न - गंदी आदत कैसे छोड़े?

उत्तर - अच्छी हो या बुरी आदत उसके बनने में वक्त लगता है। 

सबसे पहले कहीं से प्रेरणा रूप में विचार मिलता है, फिर हम उसे दैनिक जीवन में अपनाते हैं। बार बार दोहराते हैं। फिर वह मष्तिष्क के ऑटो पायलट मोड (स्वतः संचालित प्रक्रिया) में चला जाता है। तब आदत बनती है।

उदाहरण - 

1- मम्मी ने पूजा करने को कहा, बार बार प्रेरित किया व हमने बार बार पूजा की, अब पूजन हमारी आदत बन गयी। बिना पूजा अच्छा नहीं लगता।

2- दोस्तों ने सिगरेट पीने को कहा, बार बार सिगरेट पीने को कहा, हमने बार बार पिया। अब सिगरेट पीना हमारी आदत बन गयी। बिना सिगरेट पिये अच्छा नहीं लगता।

आदत छुड़वाने के लिए - सबसे पहले उन लोगों की संगति छोड़नी पड़ेगी जो आपको उस आदत को याद दिलाते हैं।

स्वयं को बार बार प्रेरित करना होगा कि मैं यह आदत छोड़ना चाहता हूँ।

सङ्कल्प लेना होगा व मन को बार बार इस सङ्कल्प को याद दिलाना होगा कि मुझे यह आदत छोड़नी है। 

ध्यान व प्राणायाम द्वारा मन को मजबूती देनी होगी। अच्छे लोगों की संगति करनी होगी। अच्छे साहित्य पढ़ने होंगे। जो आदत छोड़नी है उसके विपरीत के विचारों की शशक्त विचार सेना मन में खड़ी करनी होगी।

जब तुम ठान लोगे, संकल्पित हो जाओगे। तो स्वतः आदत से मुक्ति पा जाओगे।

गंदी आदत छोड़ने के लिए उसे एक अच्छी आदत से बदल दीजिये। अन्यथा खाली स्पेस पुनः गंदी आदत को आकृष्ट करेगा।

उदाहरण - यदि दिन में 4 बार सिगरेट की तलब जब लगती है, ठीक उसी समय कुछ ऐसे अच्छे कार्य कीजिये कि आपका ध्यान डाइवर्ट हो जाये। स्वयं के ध्यान को दूसरी अच्छी आदत की ओर मोड़ दीजिये।

Monday 9 November 2020

भगवान अपना कार्य करवा लो, देवदूत बनने का अवसर दो। गंगा अपार्टमेंट की घटना

 ✨दिल को छूने वाली कहानी- भगवान आज तो भोजन दे दो✨


हम उस समय गंगा अपार्टमेंट बस स्टैंड गुड़गांव के पास रहते थे, मेरी नाईट शिफ़्ट होती है, मैं सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल हूँ, अक्सर घर से ही अमेरिकन MNC के लिए काम करती हूँ, रात को पौने दस पर मुझे एलर्जी हो गयी और घर पर दवाई नहीं थी, ड्राईवर भी अपने घर जा चुका था और बाहर हल्की बारिश की बूंदे जुलाई महीने के कारण बरस रही थी। दवा की दुकान ज्यादा दूर नहीं थी पैदल जा सकते थे लेकिन बारिश की वज़ह से मैंने रिक्शा लेना उचित समझा। बगल में राम मन्दिर बन रहा था एक रिक्शा वाला भगवान की प्रार्थना कर रहा था। मैंने उससे पूंछा चलोगे तो उसने सहमति में सर हिलाया और हम बैठ गए। काफ़ी बीमार लग रहा था और उसकी आँखों में आँशु भी थे। 


मैंने पूंछा क्या हुआ भैया रो क्यूँ रहे हो और तुम्हारी तबियत भी ठीक नहीं लग रही, उसने बताया बारिश की वजह से तीन दिन से सवारी नहीं मिली और वह भूखा है बदन दर्द कर रहा है, अभी भगवान से प्रार्थना कर रहा था क़ि मुझे आज भोजन दे दो, मेरे रिक्शे के लिए सवारी भेज दो।


मैं बिना कुछ बोले रिक्शा रोककर दवा की दूकान पर चली गयी, खड़े खड़े सोच रही थी कहीं मुझे भगवान ने तो इसकी मदद के लिए नहीं भेजा। क्योंकि यदि यही एलर्जी आधे घण्टे पहले उठती तो मैं ड्राइवर से दवा मंगाती, रात को बाहर निकलने की मुझे कोई ज़रूरत भी नहीं थी, और पानी न बरसता तो रिक्शे पर भी न बैठती। मन ही मन गुरुदेव को याद किया और कहा मुझे बताइये क्या आपने रिक्शे वाले की मदद के लिए भेजा है। मन में जवाब मिला हाँ। मैंने गुरुदेव को धन्यवाद् दिया, अपनी दवाई के साथ क्रोसीन की टेबलेट भी ली, बगल की दुकान से छोले भटूरे ख़रीदे और रिक्शे पर आकर बैठ गयी। जिस मन्दिर के पास से रिक्शा लिया था वहीँ पहुंचने पर मैंने रिक्शा रोकने को कहा। 


उसके हाथ में रिक्शे के 20 रुपये दिए, गर्म छोले भटूरे दिए और दवा देकर बोली। खाना खा के ये दवा खा लेना, एक गोली आज और एक कल। मन्दिर में नीचे सो जाना। 


वो रोते हुए बोला, मैंने तो भगवान से दो रोटी मांगी थी मग़र भगवान ने तो मुझे छोले भटूरे दे दिए। कई महीनों से इसे खाने की  इच्छा थी। आज भगवान ने मेरी प्रार्थना सुन ली।और जो मन्दिर के पास उसका बन्दा रहता था उसको मेरी मदद के लिए भेज दिया। कई बातें वो बोलता रहा और मैं स्तब्ध हो सुनती रही।


घर आकर सोचा क़ि उस मिठाई की दुकान में बहुत सारी चीज़े थीं, मैं कुछ और भी ले सकती थी समोसा या खाने की थाली पर मैंने छोले भटूरे ही क्यों लिए? क्या भगवान ने मुझे रात को अपने भक्त की मदद के लिए भेजा था? 


हम जब किसी की मदद करने सही वक्त पर पहुँचते हैं तो इसका मतलब उस व्यक्ति की भगवान ने प्रार्थना सुन ली और आपको अपना प्रतिनिधि बना, देवदूत बना उसकी मदद के लिए भेज दिया।


श्वेता चक्रवर्ती

डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन

गुरुग्राम हरियाणा

Sunday 8 November 2020

अंधेरे का कोई वजूद नहीं है, वह तो वस्तुतः प्रकाश का अभाव है।

 अंधेरे का कोई वजूद नहीं है, वह तो वस्तुतः प्रकाश का अभाव है।

इसीतरह नकारात्मक आदतों का कोई वजूद नहीं है, वह तो वस्तुतः अच्छी आदतों का अभाव है।

अंधेरे को भगाने के लिए अंधेरे से लड़ने की जरूरत नहीं है, बस प्रकाश का एक छोटा दिया या लाइट ही पर्याप्त है।

नकारात्मक आदतों को भगाने के लिए उनसे जूझने की जरूरत नहीं है, अपितु अच्छी आदतें अपनाने की जरूरत है।

नकारात्मक विचारों से जूझने की जरूरत नहीं है, अपितु अच्छे विचारों को नित्य पढ़ने की जरूरत है।

अतः इस सिद्धांत को समझें व अतः अच्छी आदतों के निर्माण में सक्रिय रहें।

Saturday 7 November 2020

प्रश्न - क्या मात्र प्रार्थना से कोई धनवान बन सकता है?

 प्रश्न - क्या मात्र प्रार्थना से कोई धनवान बन सकता है?

उत्तर- कर्मप्रधान विश्व रचि राखा, को करि तर्क बढावै साखा।

उद्यमी पुरुष: बपुत: लक्ष्मी: ।

यह सृष्टि कर्म प्रधान है, जो बोवोगे वही काटोगे। उद्यम पुरुषार्थ व बुद्धि प्रयोग करोगे तो ही धनवान बनोगे।

केवल किस्मत से धनी घर मे जन्म मिल सकता है, बाकी धन वैभव तो उद्यम पुरुषार्थ व बुद्धि प्रयोग से ही अर्जित करना पड़ता है।

प्रार्थना से बुद्धिकुशल व्यक्ति बनता है, प्रार्थना से दिमाग मे आइडिया जन्मता है। पुरुषार्थ से उस बुद्धि का प्रयोग होता है और आइडिया इम्प्लीमेंट होता है। ततपश्चात परिणाम मिलता है।

एक के बिना दूसरा अधूरा है। प्रार्थना चेतन है व पुरुषार्थ जड़ पदार्थ है, जब दोनो मिलेंगे तो ही परिणाम दिखेंगे।

बिना पढ़े पास न होंगे (पुरुषार्थ), लेक़िन अच्छी याददाश्त व एकाग्रता(प्रार्थना) से प्राप्त करके अच्छी सफलता सुनिश्चित कर सकते हो।

बिना धरती पर बीज बोए(पुरुषार्थ) धन-धान्य न मिलेगा, लेकिन अच्छी समय पर वर्षा व जलवायु हेतु प्रार्थना करके अच्छी खेती सुनिश्चित कर सकते हो।

प्रश्न - नकल कोई क्यों करता है?

 प्रश्न - नकल कोई क्यों करता है?

उत्तर - प्रत्येक व्यक्ति नकलची नहीं होता।

नकल + अक्ल = सफल

नकल + बेअक्ल = विफ़ल (असफल)

जब मनुष्य के अंदर आत्मविश्वास व बुद्धिकुशलता की कमी होती है तब वह नकल करता है।

बचपन मे सभी बड़ो की नकल करते हैं, पर ज्यों ज्यों बुद्धि बढ़ती है नकल बन्द हो जाती है।

बड़े होने पर भी कोई नकलची बंदर है तो इसका अर्थ है वह बुद्धि विकास में पीछे हैं।

एग्जाम में वही नकल करेगा जिसकी एग्जाम की तैयारी न होगी।जीवन में वही नकल करेगा जिसके जीवन की समझ न होगी।

जिंदगी खूबसूरत उनके लिए है, जो जीवन जीने की कला जानते हैं,

 जिंदगी खूबसूरत उनके लिए है,

जो जीवन जीने की कला जानते हैं,

जीवन यात्रा उनकी सुखद है,

जो पुरुषार्थ व बुद्धिकुशल है।

जिंदगी मात्र बोझ उनके लिए है,

जो जीवन अनगढ़ अस्तव्यस्त जी रहे हैं,

जीवन यात्रा उनकी दुःखद है,

जो मन की ग़ुलामी कर रहे है।


जीवन जिससे है जो उस आत्मतत्व को जो जान गया,

उसका जीवन तो अनन्त ऊर्जा व परमाननंद से भर गया।


~श्वेता चक्रवर्ती,

अखिलविश्व गायत्री परिवार

प्रश्न - मनुष्य का शरीर आजकल रोगों का घर क्यों बन गया है?

 प्रश्न - मनुष्य का शरीर आजकल रोगों का घर क्यों बन गया है?

उत्तर - शारिरिक श्रम मनुष्य आजकल कम करता है और दिनचर्या अस्तव्यस्त है। साथ ही तलाभुना अप्राकृतिक भोजन व फ़ास्ट फूड खाता है। नियमित व्यायाम भी नहीं करता। अतः कमज़ोर इम्युनिटी है।साथ ही मनुष्य ने अपने दुष्कर्मों से प्रकृति को प्रदूषित कर दिया है। न साफ पीने को जल है, न साफ श्वांस लेने को हवा है, न खाने को ऑर्गेनिक फ़ूड है। तो ऐसे में कमजोरी व भयंकर बीमारियां स्वभाविक हैं।

पुनः अच्छा स्वास्थ्य पाना है तो पुनः ऋषि परम्पराओं की ओर लौटना होगा। योग व्यायाम करना होगा। स्वास्थ्य कर प्राकृतिक भोजन खाना होगा। ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाना होगा और प्रदूषण को कम करना होगा। जनसंख्या नियंत्रित करनी होगी।

Tuesday 3 November 2020

प्रश्न - हर समय खुश रहने के लिए क्या करें?

 प्रश्न - हर समय खुश रहने के लिए क्या करें?


उत्तर - कुछ प्रश्न पूँछिये स्वयं से :-

1- पता कीजिए ख़ुश कौन रहना चाहता है? शरीर, मन या आत्मा?

2- तुम क्या हो? शरीर, मन या आत्मा?

3- क्या इच्छाओं व वासनाओं की पूर्ति को तुम ख़ुशी मानते हो?

4- खुश रहने से तुम्हारा तातपर्य क्या है? खुश रहने का मतलब क्या है? अच्छी सैलरी, मनपसंद जीवनसाथी, आज्ञाकारी सन्तान व जीवनसाथी, धन सम्पदा? यदि इसे ख़ुशी मानते हो तो तुम्हारा भ्रम है। यह सुविधा है, सुख नहीं। जीवनसाथी व सन्तान रोबोट नहीं है जो आपके रिमोट पर चलेंगे। धन की गति निराली है, जब तक शारीरिक मेहनत अन्य से दोगुनी और मानसिक मेहनत अन्य से चौगुनी करोगे तब तक ही साथ है। थोड़ी सी चूक धन गया।

5- इच्छाएं  रक्त बीज राक्षस की तरह है, एक के पूरी होने पर अनेक जन्मेगी। सुख इच्छाओं वाला कभी ठहरेगा ही नहीं।

6- स्वयं के भीतर के आनन्द श्रोत को ढूँढिये, अपने अस्तित्व को पहचानिये। जो व्यक्ति जीवन की समझ नहीं रखता, जिसे यह न पता हो कि जीवन क्या है? वह जीवन मे आनन्द कैसे ले सकेगा?

7- आनन्द भीख में नहीं मिलेगा, अर्जित करना पड़ेगा। इसके लिए प्रयास जितना बाहर करते हो उतना ही भीतर अंतर्जगत में करना पड़ेगा। तब जंगल मे मङ्गल होगा, प्रत्येक परिस्थिति में मनःस्थिति ठीक रखके जीवन का आनन्द उठा सकते है।

कुछ प्रश्न पूँछिये स्वयं से कभी प्यार हुआ है या नहीं पता चल जाएगा

 कुछ प्रश्न पूँछिये स्वयं से कभी प्यार हुआ है या नहीं पता चल जाएगा :-

1- क्या जन्म देने वाली माता से प्यार हुआ, जिसके रक्त मांस मज्जा से शरीर बना है, जिसने तुम्हारे वात्सल्य में अपने रक्त को दूध में परिवर्तित कर तुम्हारी भूख शान्त की। न जाने कितनी रात तुम्हारे लिए सोई नहीं। नौ महीने तो गर्भ में उसके रहकर आ रहे हो।

2- क्या कभी जन्मदाता पिता से प्यार हुआ, जो तुम्हें व तुम्हारी माता के लिए दिन रात मेहनत करके सम्हाला। जिस के साथ तुम सुरक्षित महसूस किए।

3- तुम युवा हो और उम्र के इस मोड़ पर हार्मोन्स शरीर में बदलते हैं, काम वासना जागृत होती है। भूखा व्यक्ति भोजन से प्रेम नहीं करता, क्योंकि वह भूखा है इसलिए भोजन की ओर आकृष्ट होता है। इसीतरह वासना की भूख है व किसी के प्रति आकर्षित हो रहे हो यह प्रेम नहीं है।

4- प्रेम - प्यार में आपको किसी का साथ अच्छा लगता है, उससे आपकी वासना पूर्ति हो या न हो। मग़र उसकी उपस्थिति मन को सुकून देती है। उसको याद करना करना मन को ऊर्जा से भर देता है। उसका साथ जीवन को पूर्ण बनाता है। जब मन उसकी ख़ुशी के लिए स्वयं कष्ट सहने को तैयार हो जाता है। तभी वस्तुतः असली प्यार होता है।

Monday 2 November 2020

प्रश्न - जीवन मे अच्छा मुकाम हासिल कैसे करें?

 प्रश्न - जीवन मे अच्छा मुकाम हासिल कैसे करें?


उत्तर - बेटे, मात्र सोचने से अपेक्षित परिवर्तन नहीं होता। विचार तो मात्र बीज है। बीज को देखकर उसके भीतर के बड़े वृक्ष की कल्पना की जाती है। परंतु उस बीज को पौधे में परिवर्तित होने व फलदार वृक्ष बनाने में एक माली का अथक परिश्रम व समय साधन लगता है।

परिवार वालों के समक्ष तुम अपनी इच्छा का बीज लेकर पहुंचते हो, व उनके समझाने का प्रयास करते हो। परिवार वाले अपने पिछले अनुभव अनुसार तुम्हे सलाह देते हैं। भाई जो इच्छा का बीज लेकर आये हो बड़ी मेहनत है,दूसरे के बहकावे में मत आओ। सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग इत्यादि इत्यादि। 

तुम यदि अपनी इच्छा के बीज के बारे में संकल्पित हो तो योजना पर कार्य करो, सबसे पहले यह जानो कि तुम किस क्षेत्र में अच्छा मुकाम व सफलता चाहते हो। 

एक प्रयोग 100 दिन का करके देखो:-

1- सर्वप्रथम जिस क्षेत्र का विचार प्रबुद्ध - अच्छा मुकाम बनाना है, उस क्षेत्र व कार्य को चुनो।

2- उससे सम्बंधित 10 किताबों को खरीद लो, उनसे सम्बंधित छोटी से छोटी, बड़ी से बड़ी जानकारी इकट्ठी करो।

3- उस लक्ष्य से सम्बंधित क्षेत्र के 20 प्रसिद्ध लोगों के बारे में इंटरनेट पर जानकारी ढूढों। वह उस क्षेत्र में कैंसे सफल हुए यह जानो।

4- सम्बंधित विषय व क्षेत्र के सफल लोगों की जीवनियां, आर्टिकल, भाषण जो कुछ भी नेट पर उपलब्ध हो पढ़ना शुरू करो।

5- नित्य 324 बार गायत्री मंत्र ब्रह्म मुहूर्त (सूर्योदय के एक घण्टे पहले) में उगते सूर्य का ध्यान करते हुए जपो। भावना करो कि तुम्हारे मष्तिष्क में सूर्य के ज्ञान का प्रकाश प्रवेश कर रहा है।

6- जब भी बाथरूम में जाओ या किसी भी एकांत क्षण में जाओ जहां कोई न हो, सम्बंधित विषय को सोचो। तुम्हारे दिमाग़ में तुम्हारा लक्ष्य क्लियर व स्पष्ट होना चाहिए। मन उस विषय से हटना नहीं चाहिए। अपने लक्ष्य के प्रति जुनून भीतर पैदा करो।

7- रात को सोते वक्त सम्बन्धी विषय के कुछ नोट्स बनाओ, उन्हें लिखकर तकिए के नीचे रखकर सो जाओ। तुम्हारा जागृत मन व स्वप्न जगत व समस्त इंद्रियां सोते जागते उस लक्ष्य पर केंद्रित हो। उसे पाने में जुट जाएं।

8- समस्त जानकारी इकट्ठा करने के बाद पूरी योजना को बड़े लक्ष्य में कन्वर्ट करो। फिर उसके छोटे छोटे माइल स्टोन निर्धारित करो। तुम्हारे पास वर्ष में क्या हासिल करना है यह भी पता हो और प्रत्येक दिन में क्या हासिल करना है यह भी क्लियर होना चाहिए।

9- प्रत्येक रात दिन की समीक्षा करो, व अगले दिन की तैयारी करो। प्रत्येक सप्ताह में अपनी सप्ताहिक समीक्षा करो। फिर मासिक समीक्षा, वार्षिक समीक्षा इत्यादि। स्वयं के लिए चंद्रगुप्त व चाणक्य दोनो की भूमिका निभाओ। स्वयं के जीवन के लिए स्वयं गुरु समान कठोरता व नियमावली निश्चित करो।

10- याद रखो, यदि किसी के समक्ष कुछ भी बोलने से पहले पूरी तैयारी के साथ बोलना। अधूरी तैयारी हो तो मौन रहना। कुछ करके दिखाओगे तो परिवार व संसार स्वतः तुम्हारे आगे नतमस्तक होगा।

हवा में बात करना व हवा में योजना बनाना मूर्खता है।

Sunday 1 November 2020

प्रश्न - किसी भी क्षेत्र के विचार प्रबुद्ध - आइडिया मैन कैसे बनें?

 प्रश्न - किसी भी क्षेत्र के विचार  प्रबुद्ध - आइडिया मैन कैसे बनें?

उत्तर - विचार प्रबुद्ध - आइडिया के मैन बनने के लिए हैंडपम्प की तकनीक अपनानी पड़ेगी।

जब हमें पृथ्वी से जल निकालना हो तो गहरे पहले खुदाई करनी पड़ती है। उसमें शुरू में बाहर से जल डालना पड़ता है, एक बार वह भीतर के जल स्रोत से जब बाहर का जल कनेक्ट हो जाता है, फिर जितना चाहो उतना जल हैंड पम्प चलाकर निकाल लो और प्यास बुझा लो।

तुम्हें भी स्वयं के भीतर के ज्ञान श्रोत से जुड़ने व आइडिया का हैंडपम्प लगाने के लिए गहरे ध्यान में उतरना पड़ेगा साथ ही कुछ सम्बंधित विषय की पुस्तकों का स्वाध्याय रूपी जल अपने भीतर नित्य डालना पड़ेगा। जब तुम्हारा योग अन्तःज्ञान श्रोत से जुड़ जाएगा तब तुम स्वयं की जिज्ञासा शांत करने के साथ साथ दुसरो की भी ज्ञान पिपासा को बुझा सकोगे। 

एक प्रयोग 100 दिन का करके देखो:-

1- सर्वप्रथम जिस क्षेत्र का विचार प्रबुद्ध - आइडिया मैन बनना है, उस विषय को चुनो।

2- उससे सम्बंधित 10 किताबों को खरीद लो

3- उस विषय से सम्बंधित क्षेत्र के 20 प्रसिद्ध लोगों के बारे में इंटरनेट पर जानकारी ढूढों।

4- सम्बंधित विषय के सफल लोगों की जीवनियां, आर्टिकल, भाषण जो कुछ भी नेट पर उपलब्ध हो पढ़ना शुरू करो।

5- नित्य 324 बार गायत्री मंत्र ब्रह्म मुहूर्त (सूर्योदय के एक घण्टे पहले) में उगते सूर्य का ध्यान करते हुए जपो। भावना करो कि तुम्हारे मष्तिष्क में सूर्य के ज्ञान का प्रकाश प्रवेश कर रहा है।

6- जब भी बाथरूम में जाओ या किसी भी एकांत क्षण में जाओ जहां कोई न हो, सम्बंधित विषय को सोचो।

7- रात को सोते वक्त सम्बन्धी विषय के कुछ नोट्स बनाओ, उन्हें लिखकर तकिए के नीचे रखकर सो जाओ।

100 दिन के इस प्रयोग में तुम्हरा मष्तिष्क इतना योग्य बन जायेगा कि तुम अपनी जिज्ञासा शांत कर सकोगे। यदि दुसरो के लिए मार्गदर्शन करने की इच्छा है तो यह प्रयोग 500 दिनों तक अनवरत करते रहो। इस क्षेत्र के पथ प्रदर्शक बन जाओगे।

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...