Thursday 30 January 2020

तीर्थचेतना क्या होती है? तीर्थ ऊर्जा क्या होती है? उसे महसूस करने एक बार 5 दिवसीय या 9 दिवसीय साधना हेतु शान्तिकुंज अवश्य जाएं।

https://youtu.be/8-JZkhLgyXg

तीर्थचेतना क्या होती है? तीर्थ ऊर्जा क्या होती है? उसे महसूस करने एक बार 5 दिवसीय या 9 दिवसीय साधना हेतु शान्तिकुंज अवश्य जाएं। इनदिनों में केवल आश्रम के भोजनालय में ही भोजन कीजिये। स्वयं में बहुत ऊर्जा महसूस करेंगे, यह हमारा प्रत्यक्ष अनुभव है।

Location :-
https://g.co/kgs/5Uwo5v
Shantikunj, Sapt Rishi Rd, Motichur, Haridwar, Uttarakhand 249411

जाने से पूर्व ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करके अनुमति प्राप्त कर लें:-
http://www.awgp.org/social_initiative/shivir

- SHIVIR AT A GLANCE
VIEW SHIVIR CALENDAR

Email:- shivir@awgp.in

Call: 01334-260602 Ext: 187 or 188
Mob: 09258360655 / 9258369749

आश्रम में पूर्व सूचना देकर व अनुमति प्राप्त करने बाद ही साधना करने के लिए रुक सकते हैं। साधना के दौरान रहना, भोजन व साधना की व्यवस्था निःशुल्क है। जितने दिन की अनुमति मिली है केवल उतने दिन ही आप वहाँ रह सकते हैं।

दर्शनार्थी के रूप में दर्शन कभी भी कर सकते हैं।

 यदि आपकी इच्छा हो तो स्वेच्छा से वहाँ के डोनेशन काउंटर परदान दे सकते हैं।

युगऋषि व माताजी की तपशक्ति, अरबों खरबों गायत्री मन्त्रों की ऊर्जा व यज्ञीय ऊर्जा को महसूस करने व तीर्थ का सेवन करने शान्तिकुंज अवश्य जाएं।

🙏🏻 हम भी शान्तिकुंज, हरिद्वार जा रहे हैं, वहाँ की ऊर्जा से स्वयं को चार्ज करने के लिए, शाम (31 जनवरी 2020) तक शान्तिकुंज पहुंच जाएंगे।🙏🏻

शान्तिकुंज की झलक👇🏻
https://youtu.be/5BkosktAaPA.

🙏🏻श्वेता, DIYA

Tuesday 28 January 2020

प्रश्न - *वसंत पर्व का महत्त्व बच्चों के कैसे समझाएँ? पूजन से पूर्व उसकी भूमिका हेतु स्कूल में क्या बोलें?*

प्रश्न - *वसंत पर्व का महत्त्व बच्चों के कैसे समझाएँ? पूजन से पूर्व उसकी भूमिका हेतु स्कूल में क्या बोलें?*

उत्तर- सर्वप्रथम देव मंच इत्यादि सजा दें व पूजन की पूर्व व्यवस्था बना लें। प्रारंभिक गायत्रीमंत्र बोलकर और व्यास पीठ के मन्त्र बोल लें। स्वयं को मन ही मन गुरुदेव का निमित्त मानकर गुरुचेतना का निज जिह्वा में, विचारों में और हृदय में मन ही मन आह्वाहन करें।

*फिर वसन्तपर्व भूमिका में बच्चों को निम्नलिखित बातें एक कथा के माध्यम से बोलें:-*

एक बार भगवान कृष्ण समस्त रानियों, दरबारियों, ऋषिमुनियों, देवताओं सहित एक बगीचे में धर्म चर्चा कर रहे थे। वसंत का मौसम था, पुराने पत्ते झड़ने के बाद नए नए पत्ते व हरियाली मन मोहक थी।

नारद जी ने भगवान कृष्ण से प्रार्थना करते हुए कहा, प्रभु मनुष्य के जीवन में भी वसंत आये व वह भी आनन्द को प्राप्त हो इसलिए कोई उपाय बताइये।

तब श्री भगवान बोले:- मनुष्य की मनुष्यता बुद्धि के सही प्रयोग से ही प्राप्त होती है। मनुष्य का वसंत उसके ज्ञान प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहने से ही सम्भव होगा। मनुष्य के दुःखों का कारण अज्ञानता ही है। अतः आइये हम सभी माता सरस्वती का आह्वाहन करें। तब निम्नलिखित मंत्रो से भगवान श्रीकृष्ण ने देवी सरस्वती को धर्मचर्चा के स्थान पर वसंत पंचमी को बुलाया।

ॐ पावका नः सरस्वती, वाजेभिर्वाजिनीवती। यज्ञं वष्टु धियावसुः॥ ॐ सरस्वत्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि ध्यायामि। - २०.८४

पुनः उनकी स्तुति में समस्त उपस्थित लोगों ने भगवान श्रीकृष्ण के साथ सरस्वती माता की स्तुति की:-

ॐ मोहान्धकारभरिते हृदये मदीये, मातः सदैव कुरुवासमुदारभावे।

स्वीयाखिलावयव- निर्मल, शीघ्रं विनाशय मनोगतमन्धकारम्॥

सरस्वति महाभागे, विद्ये कमललोचने। विद्यारूपे विशालाक्षि, विद्यां देहि नमोऽस्तु ते॥

वीणाधरे विपुलमंगलदानशीले, भक्तार्तिनाशिनि विरंचिहरीशवन्द्ये। कीर्तिप्रदेऽखिल- मनोरथदे महार्हे,
विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम्॥

*माता सरस्वती ने प्रकट होकर भगवान श्री कृष्ण को प्रणाम किया और कहा - प्रभु आदेश करें क्या आज्ञा है?*

भगवान श्रीकृष्ण बोले - हे माता हम आपके जन्मोत्सव को *वसन्तपंचमी उत्सव के नाम से मनाना चाहते हैं।*

*हे सरस्वती माते, मनुष्य के जीवन में वसंत और खुशियाँ  ज्ञान से ही सम्भव है। जीवन में मधुर संगीत जीवन जीने की कला सीखने से ही सम्भव है। ज्ञान से मनुष्य जैसी चाहे वैसी स्वयं के लिए सृष्टि कर सकता है, अपने आसपास के वातारण को बदल सकता है। ज्ञान से अपने जीवन मे वसंत ला सकता है।*

आज से वसन्त पंचमी पर्व शिक्षा, साक्षरता, विद्या और विनय का पर्व होगा। ज्ञान, कला, विविध गुण, विद्या को- साधना को बढ़ाने, उन्हें प्रोत्साहित करने का पर्व है- वसन्त पंचमी पर्व होगा। हे माते, मनुष्यों में सांसारिक, व्यक्तिगत जीवन का सौष्ठव, सौन्दर्य, मधुरता उसकी सुव्यवस्था यह सब विद्या, शिक्षा तथा गुणों के ऊपर ही निर्भर करते हैं। अशिक्षित, गुणहीन, बलहीन व्यक्ति को हमारे यहाँ पशुतुल्य माना गया हैं। ज्ञानहीन व्यक्ति स्वयं दुःख का सृजन करता है। ज्ञानवान व्यक्ति स्वयं भी सुखी रहता है और लोगों का भी मार्गदर्शन करता है। साहित्य सङ्गीत कलाविहीनः, साक्षात् पशुः पुच्छविषाणहीनः। इसलिए इस धरती के सभी मनुष्य अपने जीवन को इस पशुता से ऊपर उठाकर विद्या- सम्पन्न, गुण सम्पन्न- गुणवान् बनाएँगे यही प्रेरणा वसन्त पंचमी त्यौहार देगा।

हे माते, आज के दिन जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक आपकी आराधना करें और ज्ञान क्षेत्र में बढ़ने के लिए संकल्पित हो, हे माते मुझे वचन दीजिये कि आप उसकी सहायता करेंगी।

*माता सरस्वती ने प्रशन्न होकर वचन भगवान श्री कृष्ण को दिया कि - जो मनुष्य श्रद्धा भाव से मुझे आज के दिन आह्वाहित करेगा, ज्ञानवान बनने के लिए संकल्पित होगा, ज्ञानयज्ञ करेगा मैं उसकी सहायता करूंगी।*

द्वापर के उस दिन से आजतक प्रत्येक वर्ष हम सभी वसन्तपंचमी के दिन अपनी बुद्धि में माता सरस्वती का आह्वाहन करते हैं, अनवरत ज्ञान प्राप्ति हेतु संकल्पित होते हैं। इन्हीं संकल्पों का पुनः लेखा जोखा अगले वर्ष वसन्तपंचमी में करते हैं और पुनः प्रति वर्ष संकल्पित होते हैं।

*वसन्तपर्व सत्संकल्प - माता सरस्वती के साथ ज्ञानवान बनने का अनुबन्ध*

1- हे माता सरस्वती, हम आपका अपनी बुद्धि में, जिह्वा में और हृदय में आह्वाहन करते हैं।

2- ज्ञानवान बनने के लिए अनवरत प्रयास करेंगे। कुछ न कुछ बुद्धि बढाने के लिए करेंगे।

3- प्रतिदिन कम से कम <1 से 2> पेज़ अपने ज्ञान को बढ़ाने हेतु अवश्य कुछ  सम्बन्धित विषय व अध्यात्म साहित्य पढ़ेंगे।

4- प्रतिदिन कम से कम <1 से 2> पेज जरूर लिखेंगे।

5- प्रतिदिन कुछ न कुछ नया सीखेंगे।

6- बुद्धि पॉवर बढाने के लिए गायत्रीमंत्र का 108 बार जप करेंगे।

7- बुद्धि को व मन को स्थिर करने के लिए 10 मिनट उगते सूर्य का ध्यान करेंगे।

8- बुद्धि के व्यायाम व बुद्धि को ऊंचाई  पर ले जाने के लिए भ्रामरी प्राणायाम और गणेश योग (सुपर ब्रेन योग) करेंगे।

9- मैं बुद्धि पर समय साधन इन्वेस्ट करूंगा। गर्दन से नीचे भोजन वस्त्र व शयन हेतु जो भी समय व धन ख़र्च करता हूँ उसी के बराबर समय व धन बुद्धि के निर्माण व ज्ञान प्राप्ति में करूंगा।

10- मैं मनुष्य हूँ, पशुवत जीवन - खाना, पीना, सोना और प्रजनन में ही लिप्त नहीं रहूँगा। अपितु मानव जीवन की गरिमा अनुसार स्वयं के शरीर को भगवान का मंदिर मानकर इसके आरोग्य की रक्षा व रखरखाव करूंगा और साथ ही ज्ञान में दिन दूनी रात चौगनी उन्नति के लिए प्रयत्नशील रहूँगा।

उपरोक्त सङ्कल्प दिलवा कर आगे का पूजन क्रम करवाएं।

🙏🏻 इतनी भूमिका व सङ्कल्प वसन्तपर्व की गरिमा व मान को बढाने के लिए पर्याप्त है। सरस्वती माता को उनका भगवान श्रीकृष्ण को दिया वचन याद दिला दिया गया और मनुष्य को माता सरस्वती के साथ ज्ञान प्राप्ति के अनुबंध संकल्पों से बांध दिया गया।🙏🏻

रघुकुल रीति सदा चली आई, प्राण जाई पर वचन न जाई। अतः सभी सरस्वती भक्त जो वचन लें उसका निष्ठा पूर्वक पालन करें। यदि किसी दिन न पढ़ या लिख पाएं तो दूसरे दिन उतना लिख व पढ़ लें। यदि मनुष्य अपने सङ्कल्प तोड़ेगा तो स्वतः भगवान की कृपा का अनुबंध टूट जाएगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

वसन्तपर्व पूजन हेतु यज्ञके सामानकीलिस्ट

👉🏼📯 *वसन्तपर्व पूजन हेतु यज्ञ के सामान की लिस्ट*

👉🏼  इसे पढ़कर पूर्व व्यवस्था बना लें


*1. एक मीटर पीला कपड़ा(देव आसन )*
*2. छोटी चौकी एक*
*3. देव स्थापना चित्र (सरस्वती माता की फोटो या मूर्ति)*
*4. आम की लकड़ी 3 किलो*
*5. हवन सामग्री 1 किलो*
*6. हवन कुण्ड या तसला एक*
*7. गाय का घी 250 ग्राम*
*8. जटावाला नारियल एक*
*9. गोला एक*
*10. कलश या लोटा एक* (तांबे का कलश उत्तम है, न मिलने पर स्टील का कलश बना लें)
*11. आम या अशोक के पत्ते 5-7*
*12. गंगाजल*(गंगा जल न मिलने पर कलश में मॉ गंगा का ध्यान कर लें)
*13. पान पत्ता एक*
*14. सुपारी दो , लौंग 5 , हरी इलायची 5 ,मिश्री दाना 100 ग्राम*
*15. रोली एक पैकेट , कलावा दो गुच्छे , जनेऊ एक*
*16. कपूर एक डिब्बा , धूप कपूर या अगरबत्ती एक पैकेट  ,  गोल वाली रुई की बत्ती 8-10 , माचिस एक*
*17. दीपक दो - एक बड़ा, एक छोटा (पीतल या स्टील या मिट्टी का घर में जो भी हो )*
*18. पीले चावल 100 ग्राम (साबुत कच्चा चावल हल्दी लगा )*

*20. फल स्वेच्छानुसार*
*21. मिष्ठान्न्र प्रसाद स्वेच्छानुसार* (घर में हलवा या खीर बनाये तो श्रद्धा भाव और शुद्धता बनी रहेगी। होटल में मजदूर नहाधोकर मिठाई नहीं बनाते)
*22. फूलमाला 2*
*23.* - हाथ का पंखा हो तो अच्छी बात नहीं तो पेपर से पंखे का काम ले लें।
*24.* कलम दावात पूजन के लिए नए पेन मंगवा के रख लें।
*25.* स्कूल में बात कर लें व यदि वह तैयार हों तो मन्त्रलेखन पुस्तिका जितनी बच्चों की संख्या हो उतना मंगवा लें और उतने ही पेन। सरस्वती पूजन के बाद प्रथम ॐ लिख कर और  स्वास्तिक बनवाकर सामूहिक विद्यारम्भ करवा दें।
*26.* - पूजन शुरू होने से पूर्व सभी बच्चों के पास दो कलावे का टुकड़ा, थोड़े फूल, थोड़ा पीला अक्षत दे दें। बच्चों से कहें एक कलावा गायत्रीमंत्र बोलकर पेन को बाँधना होगा जब मंच से बोलेंगे और एक दूसरे के हाथ मे भी कलावा बांधना होगा।
*27.* - एक बच्चे की ड्यूटी दे दें कि वह समस्त गुरुजनों व विद्यार्थियों को तिलक लगा दे।


*घर का सामान*
*बड़ी दो थाली + चार कटोरी व चार चम्मच + दो मध्यम आकार की प्लेट*

काष्ठ पात्र हो तो अच्छा है, नहीं तो उसकी जगह स्टील की चम्मच उपयोग में लें।

*नोट:*- 150 रुपये वाला पूजा के घी बोलकर नकली घी मार्किट में बिकता है जो मृत पशुओं को गर्म करके बनता, उसे पूजन में प्रयोग कदापि न करें। अच्छा देशी घी गांव से मंगवाए, यदि न मिले तो पातंजलि या अमूल का गोघृत ले लें।

यज्ञकर्ता के बैठने के लिए कम्बल, ऊनी शॉल का प्रयोग सर्वोत्तम है। इसके न मिलने पर साधारण आसन भी उपयोग में ले लें।

सरस्वती ज्ञान की देवी हैं, अतः ज्ञान प्रसाद में युगसाहित्य जरूर बांटे।

पुस्तक - कर्मकाण्ड भाष्कर में वसंत पर्व पूजन कैसे करवाना है? वर्णित है, उसे पढ़कर जाएं व स्कूलों में वसंत पर्व उत्सव व सरस्वती पूजन करवाएं।

Monday 27 January 2020

प्रश्न - *विपत्ति का क्या कोई लाभ भी है?*

प्रश्न - *विपत्ति का क्या कोई लाभ भी है?*

उत्तर- विपत्ति हमेशा कल्याण के लिए आती है, व व्यक्तित्व को निखारने हेतु प्रेरित करती है। विपत्ति एक जीवन का एग्जाम है? कोई पास होकर इतिहास रचता है, कोई मन से हारकर विपत्ति में टूट जाता है।

In life you will have challenges, it can either make you or break you. Overcome those challenges it only makes you stronger.

कभी कभी माँ की डांट फ़टकार की तरह विपत्ति हमें सुधारने आती है, भूले लोगों को परमात्मा की याद दिलाती है।

👇🏻 - *एक कहानी के माध्यम से इसे समझें*
सुख में सुमिरन सब करें, दुःख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे तो, दुःख काहे को होय।।

एक धर्मात्मा और प्रतापी राजा ने एक राज्य जीता। नए राज्य के लोग आलसी, बिगड़ैल व धर्म विरुद्ध आचरण करने वाले लापरवाह थे। झगड़ालू व असंगठित थे। महामारी, अकाल व दुर्भिक्ष पड़ने की नौबत आ गयी। राजा ने बड़ी कोशिश की उन्हें धर्म मार्ग पर लाने की सभी प्रयत्न बेकार चला गया। विविध पुरस्कार की तकनीक भी काम न आई। लोगों को दी हुई सुख सुविधा से उनके व्यवहार में सुधार नहीं आया। पता चला कि कुछ अड़ियल और दुष्ट व्यक्ति लोगों को भड़का कर राज्य की सुनीति व योजना चलने ही नहीं देते थे, बच्चों को स्कूल तक जाने को मना कर देते। जनता इन्हें अपना और राजा को पराया समझती थी।

तब एक मंत्री ने सलाह दी कि - *मूर्ख बिना दण्ड के नहीं सुधरेंगे*

राजा ने उस राज्य में जगह जगह आग लगवा दी, आग के भय ने सभी जनता को व्यथित कर दिया। कुछ लोग राजा से मदद मांगने गए, राजा ने उल्टा उन्हें कोल्हू के बैल की जगह जुतवा दिया और कुछ अड़ियल व गुमराह करने वाले लोगों को कारागार में भेज दिया। राजा के बेरूखी व विपत्ति ने लोगों को अंदर तक भयभीत कर दिया।

जब विपत्ति आती है तो ही भगवान की याद आती है। लोग भगवान को पुकारने लगे। मन्दिर जाने लगे और उपाय पूंछने लगे। राजा के पण्डित जो मंदिरों में तैनात थे उन्होंने उपाय बताया कि  सुबह ब्रह्म मुहूर्त में साधना में मंत्रजप-तप-योग-ध्यान-प्राणायाम-स्वाध्याय व सामूहिक यज्ञादि करो। भगवान मदद करेंगे।
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*40 दिन की साधना लोगों ने समूह में किया* और राजा ने सभी को बताया कि भगवान ने आदेश दिया है कि अगले छः महीने तक अत्याचार जनता परनहीं कर सकते। लोग बड़े ख़ुश हुए व और ज्यादा साधना करने लगे। *रोज़ धर्म ग्रन्थों का श्रवण करते, ब्रह्ममुहूर्त में साधना करते व साफ सफाई से रहते। यज्ञ में औषधियाँ डालकर यज्ञ होता। लोग स्वस्थ व प्रशन्न रहने लगे*। झगड़े कम हो गए। अपने अपने कर्तव्य पथ पर लौटने लगे। राजा ने छः महीने बाद पुनः घोषणा की कि भगवान ने स्वप्न में आकर पुनः छः महीने की और मोहलत जनता को दी है। हम अत्याचार नहीं करेंगे।

जनता वर्ष भर में सुधर गयी, महामारी मिट गई और सामूहिक स्वास्थ्य लौट आया। नगर मौहल्ले स्वच्छ हो गए। यज्ञादि से वर्षा अच्छी हुई, खेती अच्छी हुई तो अकाल व दुर्भिक्ष टल गया। बच्चे स्कूल जाने लगे।

अड़ियल व गुमराह करने वाले तो जेल में थे, अतः जनता सुधरती चली गयी। सुव्यवस्था व सुनीति चलने लगी। अराजकता समाप्त हो गयी।

जब सारी जनता सुखी हो गयी व राज्य फलने फूलने लगा। तब राजा ने बंदी लोगों को छोड़ दिया। व आगजनी में जिनकी सम्पत्ति का नुक्सान हुआ था। व्याज सहित लौटा दिया।

राजा ने बताया, आप सभी को सुधारने के लिए यह कठोर कदम उठाया। अन्यथा यह राज्य दुर्भिक्ष व महामारी में खत्म हो जाता। आज जो आप लोग स्वास्थ्य व सुख शांति का आनन्द ले रहे हैं, इसलिए यह कठोर कदम उठाया।

राज्य के यह अड़ियल और दुष्ट बंदी जिन्हें हम छोड़ रहे हैं, अब इन्हें सुधारने की जिम्मेदारी हम आप पर छोड़ते है।  पुनः यह राज्य को खराब न कर सकें इसका ध्यान रखें।

अब जनता समझ चुकी थी, धर्म का मार्ग चुन चुकी थी।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

गुरुचेतना को स्वयं में धारण करने का ध्यान

*गुरूदेव को अनुभव करने का स्थान*
*- उगता हुआ सूर्य*
*गुरुचेतना को स्वयं में धारण करने का ध्यान*
 *- उगता हुआ सूर्य*
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एक दिन हम (डा. ए.के. दत्ता) लोग उनके पास बैठे थे, तो वे बोले, ‘‘मैं शरीर छोड़ने पर कुछ ऐसा करूँगा जैसे कोई कुर्ता उतारता है, पर फिर मैं तीन स्थानों पर रहूँगा एक माताजी के पास, दूसरा सजल-श्रद्धा प्रखर-प्रज्ञा तीसरा अखंड दीपक।’’ हमारे साथ अमेरिका के एक परिजन भी बैठे थे। उन्होंने कहा, ‘‘गुरुजी, ये तीनों स्थान तो शान्तिकुञ्ज में हैं और हम लोग तो बहुत दूर हैं।’’ इस पर गुरुजी बोले, ‘‘बेटा! मेरा चौथा स्थान उगता हुआ सूर्य होगा।’’

*माताजी का सूर्यार्घ्य*

सन् 1981-82 की बात है एक दिन मैंने (श्रीमती अपर्णा दत्ता) माताजी को सूर्य भगवान् को अर्घ्य देते हुए देखा। मैंने देखा सूर्य की गहरी प्रकाश किरणों का एक समूह उनके चरणों में आ रहा है। फिर यह प्रकाश किरणें बिखर कर शान्तिकुञ्ज के परिसर द्वारा सोखी जा रही हैं। मैंने गुरुजी से पूछा, ‘‘गुरुजी, आज मैंने माताजी का विलक्षण स्वरूप देखा। यह क्या है?’’ तो गुरुजी ने कहा, ‘‘ *माताजी के इसी दिव्य प्रकाश और शक्ति से शान्तिकुञ्ज और युग निर्माण योजना संचालित है*।’’

*उगते हुए सूर्य का संक्षिप्त ध्यान*

षट कर्म व देवावाहन के बाद शांत चित्त होकर सुखासन पर कमर सीधी कर  के बैठ जाएं। कम्बल या ऊनि वस्त्र के आसन में बैठें। सर थोड़ा सा हल्का उठा हुआ आकाश की ओर होना चाहिए। नेत्र बन्द हों और श्वांस सहज व गहरी हो।

सांस लेते व छोड़ते हुए मन ही मन निम्नलिखित बातें एक बार दोहराएं

1- मैं शरीर नहीं हूँ, शरीर तो मात्र मेरा वस्त्र है, जिसे मैंने धारण किया है।यह मेरी उपस्थिति में ही सक्रिय है, मैं नहीं तो मेरा शरीर भी नहीं, मेरी अनुपस्थिति में यह मात्र शव है।
2- मैं मन नहीं हूँ, यह तो मुझसे ही उतपन्न होते विचारों, मेरे अनुभवो का संग्रह है, यह मेरी उपस्थिति में ही सक्रिय है, मैं नहीं तो मेरा मन भी नहीं।
3- मैं अनन्त यात्री हूँ, मैं आत्मा हूँ, इस जन्म से पहले भी मेरा अस्तित्व है, अभी इस शरीर मे भी मैं हूँ, इस शरीर के न रहने पर भी मेरा अस्तित्व रहेगा। मैं अजर अमर आत्मा हूँ। मैं परम पिता का अंश हूँ। मैं पवित्र हूँ, मैं निर्मल हूँ, मैं शांत हूँ, मैं आनन्द में हूँ।

अब भावना करें कि आत्मा में परमात्मा की शक्तियों का प्रवेश हो रहा है। ध्यान करें:-

1- सूर्य उदीयमान है, सुनहरे रंग के प्रकाश से आकाश रौशन हो रहा है, लालिमा छाई हुई है। उदीयमान सूर्य के भीतर गुरुदेव व माताजी विराजमान हैं।

2- आप शरीर को पूजन स्थल में छोड़कर सूर्य की ओर उड़ रहे हैं। आपकी आत्मज्योति सूर्य में विलीन हो गयी है। सूर्य यज्ञ में आत्म ज्योति की आहुति डल गयी है। साधक एवं सविता एक हो गए हैं।
3- आप गुरु में समाहित हो गए है, गुरु व शिष्य एक हो गए हो।
4- पुनः गुरुदेव माता जी आपकी आत्म ज्योति में ऊर्जा का अनन्त प्रवाह प्रवेश करवा रहे हैं। पुनः सूर्य की अग्नि व ऊर्जा से ओतप्रोत आपकी आत्म ज्योति को धरती में आपके शरीर की ओर अपने आशीर्वाद के साथ भेज रहे हैं।
5- आप इतने प्रकाशित है कि शरीर मे प्रवेश करते ही, शरीर प्रकाशित व ऊर्जावान हो गया। प्राणों की ऊर्जा तरंग आसपास भी लहलहा रही है। आप तेजोमय बन गए हैं।

इस ध्यान में जितना आपके पास वक्त हो 5 या 10 या 15 या 20 या 30 मिनट इसी ध्यान में खोए रहें। स्वयं को ऊर्जा पुंज महसूस करते रहें।

फ़िर विलंबित स्वर में ॐ का 5 बार उच्चारण करें, फिर गायत्री मंत्र बोलते हुए दोनों हाथ रगड़े और चेहरे पर हाथ रखें और धीरे धीरे आंख खोलकर पहले हथेली को देखें। फिर हथेली को चेहरे पर जैसे क्रीम लगाते हैं घुमाएं।

अन्य मंत्रजप या यज्ञादि जो करना हो करें , जब उठें तो शांति मन्त्र बोलकर ही उठें।

🙏🏻श्वेता, DIYA

वसंतपंचमी (29 एवं 30 जनवरी 2019, रविवार) पर्व की शुभकामनाएं एवं पूजन विधि

*।।वसंतपंचमी (29 एवं 30 जनवरी 2019, रविवार) पर्व की शुभकामनाएं एवं पूजन विधि।।*

*वसंत पंचमी मुहूर्त ( Vasant Panchami Muhurat 2020)*:
*पञ्चमी तिथि का प्रारम्भ* – 29 जनवरी 2020 को 10:45 AM बजे से होगा।
*पञ्चमी तिथि की समाप्ति* – 30 जनवरी 2020 को 01:19 PM बजे पर होगी।
*वसन्त पञ्चमी मध्याह्न का क्षण (पूजा मुहूर्त)* – 10:47 AM से 12:34 PM तक रहेगा।
पूजा के मुहूर्त की कुल अवधि – 01 घण्टा 49 मिनट्स की है।
ब्रह्ममुहूर्त पूजन के लिए सर्वोत्तम होता है, जिस तिथि में सूर्योदय हो व्रत उसी तिथि में किया जाता है। अतः जो व्रत रखते हैं वह व्रत 30 जनवरी को ही रखें।

अनुरोध - इस पूजनविधि को अधिक से अधिक फारवर्ड करें।

*||वसन्त पंचमी माहात्म्यबोध||*

वसन्त पंचमी शिक्षा, साक्षरता, विद्या और विनय का पर्व है। कला, विविध गुण, विद्या को- साधना को बढ़ाने, उन्हें प्रोत्साहित करने का पर्व है- वसन्त पंचमी। मनुष्यों में सांसारिक, व्यक्तिगत जीवन का सौष्ठव, सौन्दर्य, मधुरता उसकी सुव्यवस्था यह सब विद्या, शिक्षा तथा गुणों के ऊपर ही निर्भर करते हैं। अशिक्षित, गुणहीन, बलहीन व्यक्ति को हमारे यहाँ पशुतुल्य माना गया हैं। अशिक्षित, गुणहीन बलहीन व्यक्ति को हमारे यहाँ पशुतुल्य माना गया है। साहित्य सङ्गीत कलाविहीनः, साक्षात् पशुः पुच्छविषाणहीनः। इसलिए हम अपने जीवन को इस पशुता से ऊपर उठाकर विद्या- सम्पन्न, गुण सम्पन्न- गुणवान् बनाएँ वसन्त पंचमी इसी की प्रेरणा का त्यौहार है।

भगवती सरस्वती के जन्म दिन पर उनके अनुग्रह के लिए कृतज्ञता भरा अभिनन्दन करें- उनकी अनुकम्पा का वरदान प्राप्त होने की पुण्यतिथि पर हर्षोल्लास मनाएँ, यह उचित ही है। दिव्य शक्तियों को मानवी आकृति में चित्रित करके ही उनके प्रति भावनाओं की अभिव्यक्ति सम्भव है। भावोद्दीपन मनुष्य की निज की महती आवश्यकता है। शक्तियाँ सूक्ष्म, निराकार होने से उनकी महत्ता तो समझी जा सकती है, शरीर और मस्तिष्क द्वारा उनसे लाभ उठाया जा सकता है, पर अन्तःकरण की मानस चेतना जगाने के लिए दिव्यतत्त्वों को भी मानवी आकृति में संवेदनायुक्त मनःस्थिति में मानना और प्रतिष्ठापित करना पड़ता है। इसी चेतना विज्ञान को ध्यान में रखते हुए भारतीय तत्त्ववेत्ताओं ने प्रत्येक दिव्य शक्तियों को मानुषी आकृति और भाव गरिमा में सँजोया है। इनकी पूजा, अर्चना, वन्दना, धारणा हमारी अपनी चेतना को उसी प्रतिष्ठापित देव गरिमा के समतुल्य उठा देती है, साधना विज्ञान का सारा ढाँचा इसी आधार पर खड़ा है।

पूर्व व्यवस्था में अन्य पर्वों की तरह पूजन मंच तथा श्रद्धालुओं के बैठने की व्यवस्था पर ध्यान दिया जाना चाहिए। मंच पर माता सरस्वती का चित्र, वाद्ययन्त्र सजाकर रखना चाहिए। चित्र में मयूर न हो, तो मयूरपंख रखना पर्याप्त है। पूजन की सामग्री तथा अक्षत, पुष्प, चन्दन, कलावा, प्रसाद आदि उपस्थिति के अनुसार रखें।

षठ कर्म - पवित्रीकरण, आचमन, शिखावन्धन, प्राणायाम, न्यास और पृथ्वीपूजन कर लें। चंदन धारण और कलावा/रक्षासूत्र बांध लें। इस लेख के लिए संदर्भ 📖 पुस्तक *कर्मकांड भाष्कर, गायत्री परिवार शान्तिकुंज हरिद्वार* से लिया गया है।

*।।गुरु आह्वाहन।।*

ॐ अखण्डमण्डलाकारं, व्यापतं येन चरचराम,
तत्पदम् दर्शितं येन:, तस्मै श्री गुरुवे नमः।
यथा सूर्यस्य कांतिस्तु, श्रीरामे विद्यते ही या,
सर्वशक्तिस्वरूपायै, देव्यै भगवत्यै नमः।।
ॐ श्री गुरुवे नमः, आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।

*॥ पूर्व पूजन क्रम॥*

पर्व पूजन के प्रारम्भिक उपचार षट्कर्म से रक्षाविधान तक सभी पर्वों की तरह करते हैं। विशेष पूजन क्रम में माँ सरस्वती का षोडशोपचार पूजन करके उनके उपकरण, वाहन तथा वसन्त पूजन का क्रम चलता है।

युग निर्माण मिशन के सूत्र संचालक का युगऋषि परम् पूज्य गुरुदेव का आध्यात्मिक जन्मदिन  है, तो वसन्त पूजन के बाद उस क्रम को जोड़ा जाना चाहिए। सङ्कल्प में नवसृजन सङ्कल्प की संगति दोनों ही समारोहों के साथ ठीक- ठीक बैठती है। नवसृजन के लिए अपने समय, प्रभाव ज्ञान, पुरुषार्थ एवं साधनों के अंश लगाने की सुनिश्चित रूपरेखा बनाकर ही सङ्कल्प किया जाना उचित है।

समापन क्रम अन्य पर्वों की तरह ही पूरे किये जाते हैं।

*॥ सरस्वती आवाहन॥*

माँ सरस्वती शिक्षा, साक्षरता तथा भौतिक ज्ञान की देवी हैं। चूँकि वसन्त पंचमी भी शिक्षा- साक्षरता का पर्व है, इसलिए इस अवसर पर प्रधान रूप से देवी सरस्वती का पूजन किया जाता है। सरस्वती का चित्र अथवा प्रतिमा स्थापित कर देवी सरस्वती का आवाहन करना चाहिए।

ॐ पावका नः सरस्वती, वाजेभिर्वाजिनीवती। यज्ञं वष्टु धियावसुः॥ ॐ सरस्वत्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि ध्यायामि। - २०.८४

तदुपरान्त षोडशोपचार पूजन (पृष्ठ ९६) करके प्रार्थना करें-

ॐ मोहान्धकारभरिते हृदये मदीये, मातः सदैव कुरुवासमुदारभावे।

स्वीयाखिलावयव- निर्मल, शीघ्रं विनाशय मनोगतमन्धकारम्॥

सरस्वति महाभागे, विद्ये कमललोचने। विद्यारूपे विशालाक्षि, विद्यां देहि नमोऽस्तु ते॥

वीणाधरे विपुलमंगलदानशीले, भक्तार्तिनाशिनि विरंचिहरीशवन्द्ये। कीर्तिप्रदेऽखिल- मनोरथदे महार्हे,

विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम्॥

*॥ वाद्ययन्त्र पूजन॥*

वाद्य सङ्गीत मनुष्य की उदात्त भावनाओं और उसकी हृदय तरंगों को व्यक्त करने के सहयोगी साधन हैं। इसलिए इन साधनों का पूजन करना, उनके प्रति अपनी हार्दिक श्रद्धा- भावना प्रकट करना है। स्मरण रहे, स्थूल और जड़ पदार्थ भी चेतनायुक्त तरंगो से स्वर लहरियों के संयोग से सूक्ष्म रूप में एक विशेष प्रकार की चेतना से युक्त हो जाते हैं, इसलिए वाद्य केवल स्थूल वस्तु नहीं; प्रत्युत् उनमें मानव हृदय की सी तरंगो को समझकर उनकी पूजा करनी चाहिए। चर्मरहित जो वाद्ययंत्र उपलब्ध हों, उन्हें एक चौकी पर सजाकर रखें। पुष्प, अक्षत आदि समर्पित कर पूजन करें।

ॐ सरस्वती योन्यां गर्भमन्तरश्विभ्यां, पत्नी सुकृतं बिभर्ति।

अपा  रसेन वरुणो न साम्नेन्द्र , श्रियै जनयन्नप्सु राजा॥- १९.९४

*॥ मयूरपूजन॥*

मयूर- मधुर गान तथा प्रसन्नता का सर्वोत्कृष्ट प्रतीक प्राणी है। मनुष्य मयूर की भाँति अपनी वाणी, व्यवहार तथा जीवन को मधुरतायुक्त आनन्ददायी बनाए, इसके लिए मयूर की पूजा की जाती है।

सरस्वती के चित्र में अंकित अथवा प्रतीक रूप में स्थापित मयूर का पूजन करें। अक्सर चित्रों में मयूर का चित्र होता ही है। यदि कहीं ऐसा चित्र सुलभ न हो, तो मयूर पंख को पूजा के लिए प्रयुक्त कर लेना चाहिए। निम्न मन्त्र से मयूर का पूजन किया जाए।

ॐ मधु वाताऽऋतायते, मधु क्षरन्ति सिन्धवः।

माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः॥ - १३.२७

*॥ वसन्त पूजा॥*

पुष्प प्रसन्नता, उल्लास और नवजीवन के खिलखिलाते रूप के मूर्त प्रतीक होते हैं। प्रकृति के गोद में पुष्पों की महक, उनका हँसना, खेलना, घूमना मनुष्य के लिए उल्लास, प्रफुल्लता का जीवन बिताने के लिए मूक सन्देश है। इसी सन्देश को हृदयंगम करने, जीवन में उतारने के लिए पुष्प का पूजन किया जाता है। खेतों में सर्षप (सरसों) पुष्प जो वासन्ती रंग के हों अथवा बाग आदि से फूल पहले ही मँगवाकर एक गुलदस्ता बना लेना चाहिए। वसन्त का प्रतीक मानकर इसका पूजन करें।

ॐ वसन्ताय कपिंजलानालभते, ग्रीष्माय कलविङ्कान्, वर्षाभ्यस्तित्तिरीञ्छरते, वर्त्तिका हेमन्ताय, ककराञ्छिशिराय विककरान्॥- २४.२०

सभी फूल का गुच्छा सरस्वती माता को अर्पित करें।

*||दीपयज्ञ||*

गायत्री मंत्र बोलते हुए दीपक सभी जलाएँ। जितने लोग उतने दीपक लें या 7 दीपक लें।

*||मानसिक आहुति||*

*गायत्री मंत्र(7 बार)* - ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् स्वाहा ।। इदं गायत्र्यै इदं नमः

*सरस्वती गायत्री मंत्र(3 बार)* - ऊँ सरस्वत्यै विद्महे ब्रह्मपुत्र्यै धीमहि। तन्नो देवी प्रचोदयात् स्वाहा ।। इदं सरस्वत्यै इदं नमः

*गणेश गायत्री मंत्र(3 बार)* - ॐ एक दंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय
धीमहि। तन्नो दंतिः प्रचोदयात् स्वाहा ।। इदं गणेशाय इदं नमः

*महामृत्युंजय मंत्र(3 बार)* - ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥स्वाहा ।। इदं महामृत्युंजयाय इदं नमः

*॥संकल्प ॥*
अक्षत पुष्प लेकर सङ्कल्प बोलें और भगवान की पूजन थाली में अर्पित कर दें।

<. *अपना नाम यहां बोलें*.>..नामाहं वसन्तपर्वणि नवसृजन- ईश्वरीय योजनां अनुसरन् आत्मनिर्माण- परिवारनिर्माण त्रिविधसाधनासु नियमनिष्ठापूर्वकं सहयोगप्रदानाय संकल्पम् अहं करिष्ये॥

*।।शांति पाठ।।*

कलश का जल सभी के ऊपर छिड़कें और अंत मे सूर्य भगवान को जल अर्पित कर दें।

ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:,
पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,
सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥

ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:।।

पुस्तक कर्मकाण्ड भाष्कर में *वसंत पर्व पूजन* विस्तार से दिया है। उसे पढ़ें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday 24 January 2020

ज़हर जो पियेगा, तो मरेगा भी तो वही..

ज़हर जो पियेगा, तो मरेगा भी तो वही..

लेकिन...बड़े आश्चर्य की बात यह है कि...

ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, घृणा, नफ़रत, बदले की भावना रूपी ज़हर पीते तो हम स्वयं हैं...

 लेकिन चाहते हैं कि ये जहर पियें हम और मरे दूसरा...भाई यह कैसे सम्भव है?

स्वयं विचार करें...

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *दीदी त्रिपुंड का महत्व बताइए त्रिपुंड कैसे लगाना चाहिए।*

प्रश्न - *दीदी त्रिपुंड का महत्व बताइए त्रिपुंड कैसे लगाना चाहिए।*


उत्तर- साधू-संतों, तपस्वियों और पंडितों के माथे पर चन्दन या भस्म से बना तीन रेखाएं कोई साधारण रेखाएं नहीं होती है। *ललाट पर बना तीन रेखाओं को त्रिपुण्ड कहते है*।

हथेली पर चन्दन या भस्म को रखकर तीन उंगुलियों की मदद से माथे पर त्रिपुण्ड को लगाई जाती है। इन तीन रेखाओं में 27 देवताओं का वास होता है। यानी प्रत्येक रेखाओं में 9 देवताओं का वास होता हैं। 

*त्रिपुण्ड के देवताओं का नाम*
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ललाट पर लगा त्रिपुंड की पहली रेखा में नौ देवताओं का नाम इस प्रकार है। अकार, गार्हपत्य अग्नि, पृथ्वी, धर्म, रजोगुण, ऋग्वेद, क्रिया शक्ति, प्रात:स्वन, महादेव।
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इसी प्रकार त्रिपुंड की दूसरी रेखा में, ऊंकार, दक्षिणाग्नि, आकाश, सत्वगुण, यजुर्वेद, मध्यंदिनसवन, इच्छाशक्ति, अंतरात्मा, महेश्वर जी का नाम आता है.
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अंत में त्रिपुंड की तीसरी रेखा में मकार, आहवनीय अग्नि, परमात्मा, तमोगुण, द्युलोक, ज्ञानशक्ति, सामवेद, तृतीयसवन, शिव जी वास करते हैं।

*त्रिपुण्ड धारण करने के तरीके*:-

यह विचार मन में न रखें कि त्रिपुण्ड केवल माथे पर ही लगाया जाता है। त्रिपुण्ड हमारे शरीर के कुल 32 अंगों पर लगाया जाता है। इन अंगों में मस्तक, ललाट, दोनों कान, दोनों नेत्र, दोनों कोहनी, दोनों कलाई, ह्रदय, दोनों पाश्र्व भाग, नाभि, दोनों अण्डकोष, दोनों अरु, दोनों गुल्फ, दोनों घुटने, दोनों पिंडली और दोनों पैर शामिल हैं। इनमें अग्नि, जल, पृथ्वी, वायु, दस दिक्प्रदेश, दस दिक्पाल और आठ वसुओं वास करते हैं। सभी अंगों का नाम लेकर इनके उचित स्थानों में ही त्रिपुण्ड लगना उचित होता है।

सभी अंगों पर अलग-अलग देवताओं का वास होता है। जैसे- मस्तक में शिव, केश में चंद्रमा, दोनों कानों में रुद्र और ब्रह्मा, मुख में गणेश, दोनों भुजाओं में विष्णु और लक्ष्मी, ह्रदय में शंभू, नाभि में प्रजापति, दोनों उरुओं में नाग और नागकन्याएं, दोनों घुटनों में ऋषिकन्याएं, दोनों पैरों में समुद्र और विशाल पुष्ठभाग में सभी तीर्थ देवता रूप में रहते हैं।

वैज्ञानिक की नजर में त्रिपुण्ड
विज्ञान ने त्रिपुण्ड को लगाने या धारण करने के लाभ बताएं हैं। विज्ञान कहता है कि त्रिपुण्ड चंदन या भस्म से लगाया जाता है। चंदन और भस्म माथे को शीतलता प्रदान करता है। अधिक मानसिक श्रम करने से विचारक केंद्र में पीड़ा होने लगती है। ऐसे में त्रिपुण्ड ज्ञान-तंतुओं को शीतलता प्रदान करता है।

त्रिपुण्ड एक तरह का कवच - न्यास है, जो चन्दन या भष्म से सम्बंधित अंगों पर मन्त्र पढ़ते हुए लगाया जाता है। उन अंगों पर सम्बन्धित देवताओं का वास करके स्वयं को सुरक्षा चक्र प्रदान किया जाता है।

कवच व न्यास बिना चन्दन व भष्म के मात्र ध्यान द्वारा उस अंग का ध्यान व देवता का ध्यान करते हुए किया जा सकता है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Thursday 23 January 2020

यही प्रेममय ध्यान योग ही सर्वोत्तम है।

*यही प्रेममय ध्यान योग ही सर्वोत्तम है।*

ध्यान करना सीखना है तो एक ग़रीब मज़दूर हाल ही के जन्मे बच्चे की माँ से सीखो- बच्चे की भूख शांत करने के लिए दिन भर मेहनत करती है, लेक़िन ध्यान - बच्चे पर केंद्रित रहता है।

बच्चे के भूखा होने पर दूध उतर जाता, बच्चे के बिन बोले सब समझ जाती है। उसे भाषा व शब्दो की जरूरत ही नहीं पड़ती वह तो बच्चे का मौन सम्वाद दूर रहकर भी समझ लेती है। वह प्रेम तन्मयता तल्लीनता से सोते जागते उठते बैठते बच्चे के ध्यान में खोई रहती है। बाहर देखने पर ऐसा लगता है कि वह रोड बनाने में मजदूरी कर रही है, यहां उपस्थित है। लेक़िन भीतर झांकोगे तो पाओगे वह अपने बच्चे के साथ ही ध्यानस्थ है।

गीता में कृष्ण भगवान जी ने जो कर्मयोग वर्णित किया है - मुझे समर्पित कर मेरे निमित्त कर्म करो। यही तो माँ भी करती है बच्चे के लिए उसके निमित्त बन कर्म करती है।

यही हमें करना है, बस उस परमात्मा के प्रेम में खोना है, पूरा जीवन ही ध्यानमय करना है। बाह्य रूप में कहीं भी उपस्थिति दर्ज हो रही हो, कुछ भी कर रहे हो। भीतर अंतर्जगत में तो प्यारे परमात्मा के संग ही उपलब्ध हो। यही प्रेममय ध्यान योग ही सर्वोत्तम है। यही ध्यान में चेतना परमात्म चेतना से  मिलती है, स्पर्श करती है, उसे धारण करती है।

👏श्वेता, DIYA

महिलाओं को मासिक शौच में 40 दिवसीय अनुष्ठान में व्रत व जप करना चाहिए या नहीं ?

प्रश्न - *प्रणाम दी*
*महिलाओं को मासिक शौच में 40 दिवसीय अनुष्ठान में व्रत व जप करना चाहिए या नहीं ?*
*कितने दिन तक नहीं करना चाहिए या कितने दिन बाद करना चाहिए ?*
*क्या मासिक शौच के दिनों में दूसरी माला लेकर जप कर सकते हैं ताकि नियमितता नहीं छूटे इसलिए ?*
*क्या मासिक शौच के दिनों में यज्ञादि कर सकते हैं?*
*यज्ञ के कार्यक्रम में सहयोग कर सकते हैं या नहीं ?*
*मन्त्र लेखन करना चाहिए या नहीं ?*
*कृपया समाधान किजिए।*

उत्तर - महिलाओं के रजोदर्शन काल में भी कई प्रकार के प्रतिबन्ध प्राचीन धर्मग्रन्थों में वर्णित हैं। भोजन आदि नहीं पकाती। उपासनागृह में भी नहीं जातीं।

इसका कारण मात्र अशुद्धि ही नहीं, यह भी है कि उन दिनों उन पर कठोर श्रम का दबाव न पड़े। अधिक विश्राम मिल सके। नस-नाड़ियों में कोमलता बढ़ जाने से उन दिनों अधिक कड़ी मेहनत न करने की व्यवस्था स्वास्थ्य के नियमों को ध्यान में रखते हुए बनी है। नाक की घ्राण शक्तिं कमज़ोर होती है और पूरा शरीर उस वक्त कमज़ोरी झेलता है। पहले आटा चक्की नहीं थी अतः रसोई में भोजन का अर्थ होता था चक्की पीसना और धान कूटना, तब चूल्हे में लकड़ी काटकर भोजन पकाना। अत्यधिक श्रम साध्य होता था भोजन पकाना, अतः विश्राम हेतु भोजन पकाना मना था।

आध्यात्मिक शक्ति को धारण करने के लिए नसों और उपत्यिकाओं का एक्टिव होना अनिवार्य है। कमर सीधी रखना उपासना के दौरान अनिवार्य है। प्राण शक्ति/ ऊर्जा को धारण करने हेतु रजोदर्शन/अशौच के समय शरीर सक्षम नहीं होता। उपासना गृह प्राणऊर्जा को संग्रहित रखता है और सूक्ष्म प्राण ऊर्जा संग्रहित रखता है। अतः दुर्घटना से बचाव हेतु उपासना गृह में जाना और उपासना करना वर्जित है।

स्त्री को यदि मात्र इस कारण अशुद्ध माना जाय कि उनका मेंटिनेंस पीरियड आता है, तो उस मेंटिनेंस के रक्तमांस से बने बच्चे - पुरुष भला किस तरह पवित्र हो सकते हैं? अतः स्त्री प्रकृति की तरह नई सृष्टि को जन्मदेने की क्षमता धारण करने हेतु चन्द्र कलाओं, सूर्य की कलाओं और प्रकृति की कलाओं से 5 दिन तक जुड़कर स्वयं के मेंटेनेंस दौर से गुजरती है। इस दौरान किसी भी कारण से कोई व्यवधान किसी को उतपन्न नहीं करना चाहिए। स्त्री को पर्याप्त विश्राम देना चाहिए।

इन प्रचलनों को जहां माना जाता है वहां कारण को समझते हुए भी प्रतिबन्ध किस सीमा तक रहें इस पर विचार करना चाहिये। रुग्ण व्यक्ति प्रायः स्नान आदि के सामान्य नियमों का निर्वाह नहीं कर पाते और ज्वर, दस्त, खांसी आदि के कारण उनकी शारीरिक स्थिति में अपेक्षाकृत अधिक मलीनता रहती है। रोगी परिचर्या के नियमों से अवगत व्यक्ति जानते हैं कि रोगी की सेवा करने वालों या सम्पर्क में आने वालों को सतर्कता, स्वेच्छा के नियमों का अधिक ध्यान रखना पड़ता है। रोगी को भी दौड़-धूप से बचने और विश्राम करने की सुविधा दी जाती है। उसे कोई चाहे तो छूतछात भी कह सकते हैं। ऐसी ही स्थिति रजोदर्शन के दिनों में समझी जानी चाहिए और उसकी सावधानी बरतनी चाहिए।

तिल को ताड़ बनाने की आवश्यकता नहीं है। कारण और निवारण का बुद्धिसंगत ताल-मेल विवेकपूर्वक बिठाने में ही औचित्य है। शरीर के कतिपय अंग द्रवमल विसर्जन करते रहते हैं। पसीना, मूत्र, नाक, आंख आदि के छिद्रों से निकलने वाले द्रव भी प्रायः उसी स्तर के हैं जैसा कि ऋतुस्राव। चोट लगने पर भी रक्त निकलता रहता है। फोड़े फूटने आदि से भी प्रायः वैसी ही स्थिति होती है। इन अवसरों पर स्वच्छता के आवश्यक नियमों का ध्यान रखा जाना चाहिए। बात का बतंगड़ बना देना अनावश्यक है। प्रथा-प्रचलनों में कई आवश्यक हैं कई अनावश्यक। कइयों को कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए और कइयों की उपेक्षा की जानी चाहिए। सूतक और अशुद्धि के प्रश्न को उसी दृष्टि से देखा जाना चाहिए जिससे कि प्रचलन कर्ताओं ने उसे आरम्भ किया था। उनका उद्देश्य उपासना जैसे आध्यात्मिक नित्यकर्म से किसी को विरत, वंचित करना नहीं वरन् यह था कि अशुद्धता सीमित रहे और स्त्री को उचित शारीरिक-मानसिक विश्राम मिले। आज भी जहां अशौच का वातावरण है वहीं सूतक माना जाय और शरीर से किये जाने वाले कृत्यों पर ही कोई रोकथाम की जाय। मन से उपासना करने पर तो कोई स्थिति बाधक नहीं हो सकती। इसलिए नित्य की उपासना मानसिक रूप से जारी रखी जा सकती है। पूजा-उपकरणों का स्पर्श न करना हो तो न भी करे।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
*40 दिवसीय अनुष्ठान के यदि प्रारम्भ में ही मासिक आशौच है तो अनुष्ठान का संकल्प मानसिक ले लें व मानसिक स्तर पर शान्तिकुंज में रखे शक्ति कलश का ध्यान करके मौन मानसिक जप प्रारम्भ कर दें। यदि 40 दिवसीय अनुष्ठान  के अंत में मासिक आशौच है तो उतने दिन का ब्रेक समझें, मानसिक एक पूर्णाहुति शान्तिकुंज यज्ञ स्थल पर कर लें। स्वच्छता के बाद किसी भी दिन घर पर यज्ञ द्वारा पूर्णाहुति कर लें। व्रत इत्यादि नियम पालन के 40 ही दिन करना है चाहे मासिक आशौच हो या नहीं। बचा हुआ जप पूर्णाहुति के बाद अवश्य कर लें। यदि मासिक असौच एक साइकल(5 दिन) या दो बार साइकल(10 दिन) इन 40 दिनों में पड़ रहा है, तो उतने दिन का स्थूल पूजन ब्रेक(छुट्टी) होगी। गायत्री माता जी ने यह सिस्टम स्त्री को दिया है अतः वह सब जानती हैं। आपको टेंशन लेने की जरूरत नहीं है।*

*मासिक अशौच(5 दिन ब्रेक) के दिनों में अनुष्ठान चल रहा हो तो उसे उतने दिन के लिए स्थूल पूजन व माला जो बन्द करके ब्रेक(छुट्टी) ले लें, 5 दिन की निवृत्ति के बाद, जिस गणना से छोड़ा था, वहीं से फिर आरम्भ किया जा सकता है। कलश भी शुद्धि के बाद बीच में भी स्थापित किया जा सकता है, और निवृत्ति  के बाद भी उठाया जा सकता है।  बिना माला का मानसिक जप-ध्यान किसी भी स्थिति में करते रहा जा सकता है, तो मासिक अशौच में भी कर सकते हैं, बस ट्विस्ट यह है कि यह अनुष्ठान की संकल्पित संख्या में काउंट नहीं होगा, क्योंकि अनुष्ठान के लिए उपांशु जप(होठ हिलते रहें मग़र शब्द बाहर न निकले) और घृत दीपक के समक्ष देवाहवाहन के साथ किया मान्य होता है।*

*माता भगवती ने ही सृष्टि की रचना की है, स्त्री के कॉम्प्लेक्स प्रजनन सिस्टम का सॉफ्टवेयर उन्होंने ही स्थापित किया है, जिससे सृजन चलता रहे। अतः उन्हें आपकी मनःस्थिति व परिस्थितियों का भान है। आप से तो माता चेतन स्तर पर स्वयं जुड़ी हैं, शरीर पर आशौच लागू होता है, मन व आत्मस्तर पर नहीं। आत्म स्तर पर किया मौन मानसिक जप आपके कल्याण में सहायक होगा।*

अतः मन्त्र जप, यज्ञ और मन्त्रलेखन भी न करें, केवल मौन मानसिक जप करें। कोई दूसरी माला लेकर भी जप न करें। ज्यादा से ज्यादा चन्द्रमा का ध्यान करें या हिमालय का ध्यान करें और शरीर को पर्याप्त आराम दें।

मोनोपोज़ के दौरान मेंटेनेंस अनियमित होता है, स्त्री से सन्तान उत्पादन सृजन/सृष्टि शक्ति प्रकृति वापस लेती है। अतः मानसिक और शारीरिक कमजोरी से स्त्री गुजरती है। चिड़चिड़ापन आम होता है। अतः पूरे परिवार को स्त्री का ध्यान रखना चाहिए, ख़ासकर पति को स्त्री के इस बिगड़ते स्वभाब को आत्मीयता और प्यार से सम्हालना चाहिए। उपासना का 5 दिन वाला ब्रेक लेते रहना चाहिए। मौन मानसिक जप और ज्यादा से ध्यान करना चाहिए।

Reference Book - गायत्री विषयक शंका समाधान, आर्टिकल - अशौच प्रतिबन्ध

👇🏻👇🏻👇🏻 *यदि 40 दिवसीय अनुष्ठान के बीच में एक बार मासिक असौच पड़ रहा और आप जप को 40 दिन के भीतर ही पूरा करने की इच्छुक है तो*
👇🏻
जिनको अनुष्ठान के बीच मे केवल एक बार 5 दिन की छुट्टी लेनी पड़ेगी वो 36 माला रोज कर लें व 5 दिन उन दिनों की छुट्टी से परेशान न हों। 36 माला से 35 दिन में 1 लाख 26 हज़ार जप हो जाएगा

👇🏻👇🏻 *यदि 40 दिन के बीच दो बार  मासिक अशौच पड़ने की संभावना है तो*

जिनको अनुष्ठान के बीच मे दो बार 5 - 5 दिन की छुट्टी लेनी पड़ेगी, अर्थात टोटल 10 दिन की छुट्टी, वो 42 माला रोज कर लें व 10 दिन उन दिनों की छुट्टी से परेशान न हों। 42 माला से 30 दिन के जप में 1 लाख 26 हज़ार जप हो जाएगा।

यदि कुछ जप बच जाए किन्ही कारण वश तो उतना जप गुरुदेव से उधार लेकर पूर्णाहुति के दिन पूर्णाहुति कर लें। पूर्णाहुति के बाद उतना जप करके गुरुदेव को समर्पित कर लोन चुका दें। बैंक सिस्टम की तरह तीन माला एक्स्ट्रा का ब्याज भी जपकर दे दीजियेगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 22 January 2020

सुबह उठते ही निर्णय लें कि आज ख़ुश रहने की कोशिश करेंगे या दुःखी रहने की

*सुबह उठते ही निर्णय लें कि आज ख़ुश रहने की कोशिश करेंगे या दुःखी रहने की?*

अब निर्णय ले लिया तो मदद कर देती हूँ आपके चयन अनुसार आपका दिन बिताने में:-
😰😭👇🏻
*दुःखी रहने का निर्णय लिया है तो यह करें:-*

1- कहिए भगवान ने आज तक मुझे दिया क्या है कुछ भी तो नहीं..
2- लिस्ट बनाइये मेरे पास क्या नहीं है जिसका रोना रो सकें..
3- अगर जीवन मे 100 में 99 समाधान हो तो भी खोज़ी दृष्टि 1 समस्या पर केंद्रित कीजिये।नकारात्मक रवैया (Negative Attitude) रखिये।
4- कभी भी आधा भरी ग्लास कभी मत बोलना और सोचना, बोलना ग्लास आधी ख़ाली है।
5- जहां हैं बस वहीं मत रहना, यदि चाय पी रहे हो तो भोजन में क्या खाना है वह सोचो। घर पर हो तो ऑफिस सोचो और ऑफिस में हो तो घर के बारे में सोचो
6- अपने वर्तमान जीवन के लिए दूसरे को दोषी बताइये
7- दूसरे के घर, मकान, गाड़ी को देखकर जलिये, ईर्ष्या करिये
8- किसी से स्वयं के लिए अधिक से अधिक अपेक्षा-उम्मीद कीजिये। सबमें कोई न कोई बुराई अवश्य होती ही है बस उसकी चुगली-निंदा दिन में एक दो बार कम से कम उनका किसी अन्य से  करिये।
9- भाग्य भरोसे जियो, अस्तव्यस्त व बदहवास जियें।

😇👇🏻

*सुखी रहने का निर्णय लिया है तो यह करें:-*

1- भगवान को मनुष्य जीवन के लिए धन्यवाद दीजिये, मैं और मेरे प्रियजन जीवित है इसके लिए धन्यवाद दिजिये। सुनने, बोलने, चलने, बोलने,सूंघने व सोचने की शक्ति देने के लिए धन्यवाद दीजिये। अनमोल बुद्धि देने के लिए धन्यवाद दीजिये।
2- लिस्ट बनाइये मेरे पास क्या है, जिसके लिए खुश हो सकें...
3- अगर जीवन मे 100 में 99 समस्या हो तो भी खोज़ी दृष्टि 1 समाधान पर केंद्रित कीजिये, साथ ही उन 99 समस्याओं को भी एक एक करके कैसे हल कर सकते हो सोचो व प्रयास करो। सकारात्मक रवैया (Positive Attitude) रखिये।
4- हमेशा आधा भरी ग्लास बोलना और सोचना, बोलना।
5- जहां हैं बस वहीं रहना, यदि चाय पी रहे हो तो चाय के साथ मन से उपलब्ध रहो। भोजन कर रहे हो तो बस वह सोचो। घर पर हो तो घर को सोचो और ऑफिस में हो तो केवल ऑफिस के बारे में सोचो
6- अपने वर्तमान जीवन के लिए दूसरे को स्वयं को जिम्मेदार मानिए, कर्मफ़ल के सिद्धांत पर भरोसा रखिये
7- दूसरे के घर, मकान, गाड़ी को देखकर मत जलिये, मत ईर्ष्या करिये। अपने लक्ष्य बनाइये और उन्हें हासिल कीजिये।
8- किसी से स्वयं के लिए अधिक अपेक्षा-उम्मीद मत कीजिये। सबमें कोई न कोई अच्छाई जरूर होती ही है बस उसकी प्रसंशा दिन में एक दो बार कम से कम उनका किसी अन्य से  करिये।
9- भगवान उसी की मदद करता है जो   स्वयं की मदद करता हैं। स्वयं सङ्कल्प लीजिये कि आज मैं सतर्क व प्रयत्नशील रहूँगा, होशपूर्वक जियूँगा।

🙏🏻 भगवान से प्रार्थना है, आपने जो स्वयं के लिए चयन किया है वह आपके साथ घटित हो🙏🏻

🙏🏻श्वेता, DIYA

किस्मत तो हमारे हाथ में ही है


वह नहीं बदल सकता,

जो बदलना ही न चाहे,
वह नहीं सुधर सकता,
जो सुधरना ही न चाहे,

वर्षा उसे भर नहीं सकती,
जो घड़ा नीचे मुख कर ले,
रौशनी उसके कमरे तक पहुंच नहीं सकती,
जो खिड़की दरवाज़े सब बन्द कर ले।

सुअवसर भी व्यर्थ चले जायेंगे,
जो सतर्क नहीं है,
क़िस्मत भी उसकी रूठ जाएगी,
जो प्रयत्नशील नहीं है।

किसी ने क्या खूब *किस्मत की परिभाषा* लिखी है,
*सतर्क व पुरुषार्थी व्यक्ति और सुअवसर के मिलन के पॉइंट को किस्मत कहते हैं।*

 क़िस्मत के भरोसे बैठे लोगों के हाथ बस वही जूठन आता है जो प्रयत्न करने वाले जो जूठन छोड़ देते हैं।

किस्मत बदलना है, तो विचार बदलो, उन विचारों से अपना दृष्टिकोण बदलो, तत्संबंधी आदतें बदलो, आदतें बदलते ही किस्मत स्वतः बदल जाएगी।

समस्या क़िस्मत में नहीं जनाब आपकी आदतों और जीवन के प्रति अपनाए आपके रवैये में है। 

पता सबको है कि किन आदतों को बदलने से जीवन बदल जायेगा, मग़र अफ़सोस उसे बदलने की फुर्सत नहीं।

दुनियाँ का कोई भी मोटिवेटर उस व्यक्ति को मोटिवेट नहीं कर सकता, जिसने अपने कान ही बन्द कर रखे हों, जिसने स्वयं को भाग्य भरोसे छोड़ रखा हो।

 हम जैसे मोटिवेटर तो उसकी सेवा में जुटते हैं जो बदलने के लिए तैयार खड़ा है, जो कुछ कर गुजरने को तैयार बैठा है, जो स्वयं का उत्थान चाहता है, जो स्वयं को अपने भाग्य का निर्माता मानता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *बेहतरीन(Excellent) शिक्षक और औसत शिक्षक(Average) में क्या अंतर है?*

प्रश्न - *बेहतरीन(Excellent) शिक्षक और औसत शिक्षक(Average) में क्या अंतर है?*

उत्तर - एक ही इंस्टिट्यूट से पढ़े व एक समान एजुकेशनल डिग्री रखने वाले, एक समान अंक स्कोर करने वाले में भी कोई औसत दर्जे का शिक्षक बनता है और कोई बेहतरीन शिक्षक बनता है।

*बेहतरीन(Excellent) शिक्षक और औसत शिक्षक(Average) में अंतर*:-

*औसत शिक्षक(Average) :-*

1- नकारात्मक दृष्टिकोण (Negative Attitude)
2- शिक्षण को जॉब की तरह कमाई का जरिया मानना
3- नित्य जो पढ़ाना है उसके बारे में और जानकारी न हासिल करना
4- नई नई शिक्षण तकनीक का अनुसंधान न करना, उसके बारे में सोचना
5- व्यवहार कुशल न होना, व हाव भाव, व्यक्तित्व और प्रेजेंटेशन स्किल एवरेज़ होना।
6- घर की समस्या का चिन्तन स्कूल में करना
7- क़िस्मत में जो लिखा है वही होगा। यह मानना। एक ढर्रे में मशीनवत स्कूल आना, पढ़ाना व जीना।
8- यह स्वयं को कोर्स पूरा कराने में बिजी रखते हैं, खाना पूर्ति इनका ध्येय है। यह स्वयं को विषय का टीचर समझते हैं।
9- जिम्मेदारी लेने से कतराते हैं।

👇🏻
*बेहतरीन(Excellent) शिक्षक:-*

1- सकारात्मक दृष्टिकोण (Positive Attitude)
2- शिक्षण को सेवा मानना, देशभक्ति की भावना से शिक्षण को गौरवशाली कार्य समझ के करना
3- नित्य जो पढ़ाना है उसके बारे में और नई नई जानकारी हासिल करना, इंटरनेट पर और नई नई खोज़ों को पढ़ना।
4- नई नई शिक्षण तकनीक का अनुसंधान करना, उसके बारे में सोचना, इसे यदि ऐसे किया जाय तो कैसा रहेगा।
5- व्यवहार कुशल होना, व अपने हाव भाव, व्यक्तित्व और प्रेजेंटेशन स्किल पर काम करना। स्वयं को नित्य बेहतर और बेहतर बनाने के लिए प्रयत्नशील रहना।
6- घर की समस्या को घर में छोड़कर आना। स्कूल में केवल स्कूल के उत्थान व बालको के कल्याण को सोचना व प्रयत्नशील रहना।
7- कर्मफ़ल के सिद्धांत पर विश्वास करना, जो बोयेंगे वही काटेंगे यह गहराई से समझना। अपनी किस्मत ख़ुद लिखना व बालको को भी अपनी किस्मत अच्छी बनाने के लिए प्रेरित करना। रोज उत्साह उमंग व उल्लास से पढ़ाने के कार्य को करना।
8- यह स्वयं को विद्यार्थी का शिक्षक समझते हैं, अतः उनके समग्र व्यक्तित्व विकास पर सम्बन्धित विषय पढ़ाने के साथ साथ ध्यान रखते हैं।
9- जिम्मेदारी लेते हैं, निभाते हैं।

🙏🏻 विजेता और बेहतरीन शिक्षक कोई अलग कार्य नहीं करते, बल्कि उसी कार्य को अलग तरीक़े से करने की कोशिश करते हैं।नित्य नए जीवन युद्ध को विजेता की तरह चुनौती के रूप मे स्वीकार करते हैं।🙏🏻

*शिक्षक व चिकित्सक दोनो ही जीवित व्यक्तियों पर कार्य करते हैं। दोनों का कठिन व नोबल कार्य है। इन्हें इनके अच्छे कार्य के लिए कोई पुरस्कृत करे या न करे, यह स्वयंमेव विद्यार्थियों और मरीज़ों की दुआओं में शामिल हो जाते हैं। यही इनका नोबल प्राइज़ है।*

इनकी लापरवाही से जिंदा लाश इंसान बन जाता है। डॉक्टर की गलती तो कब्र में दफ़न या चिता में जल जाती है। लेकिन शिक्षक की गलती से बने गलत मानसिकता के बच्चे समाज में तबाही मचाते हैं। शिक्षक की अच्छाई हो या बुराई दोनों छुप नहीं सकती, उसकी अभिव्यक्ति उनके विद्यार्थी कर ही देते हैं।

शिक्षक तो साल भर में कुछ बार ही विद्यार्थियों का एग्जाम लेते हैं, मग़र विद्यार्थी तो शिक्षकों का हर घड़ी एग्जाम लेते हैं। सतर्कता साथ हर घड़ी इंटरव्यू व एग्जाम देने के लिए शिक्षको को तैयार रहना चाहिए।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 21 January 2020

प्रश्न - *क्या शिक्षकों के लिए भी ड्रेस कोड होना चाहिए?*

प्रश्न - *क्या शिक्षकों के लिए भी ड्रेस कोड होना चाहिए?*

उत्तर- शिक्षकों का व्यवस्थित और भव्य दिखना उतना ही अनिवार्य है जितना एक चिकित्सक का रोगोपचार के लिए जाने से पहले साफ सुथरा अप टू डेट दिखना अनिवार्य है। ख़ुद से प्रश्न पूँछिये क्या आप अस्तव्यस्त वस्त्र और परेशान अपियरेंस देने वाले और ढंग से बात व व्यवहार न कर सकने वाले चिकित्सक से उपचार कराना पसन्द करेंगे? नहीं न... फिर अस्तव्यस्त दिखने वाले व अकुशल व्यवहार करने वाले शिक्षक से कौन सा बच्चा पढ़ना पसन्द करेगा?

उत्तम तो यह है कि सभी शिक्षकों का एक अच्छा ड्रेस कोड हो जिसमें व्यवस्थित लुक एंड फील आये। साथ ही उन्हें उठना बैठना और व्यवस्थित बोलने का ढंग भी सिखाया जाना चाहिए। कुशल व्यवहार करना भी सिखाया जाना चाहिए।

विद्यार्थी सबसे पहले सुबह सुबह स्कूल में आपको आकर देखते हैं, फ़िर  आपके व्यवहार को महसूस करते हैं। आपसे ज्ञान तो तीसरे चरण में लेते हैं।

यदि शिक्षकों के सभ्य शालीन चाल ढाल व्यवहार, चुस्त दुरुस्त कुशल व्यवहार, बॉडी लैंग्वेज में आवश्यक सुधार न लाया गया तो स्कूल का ब्यूटीफिकेशन अधूरा है।

एक महान शिक्षक ने कहा - *अब भगवान की अलग से पूजा करने की आवश्यकता ही न रही, जब से मुझे अहसास हुआ कि वह बाल रूप में इन विद्यार्थियों के रूप में स्वयं मेरे समक्ष हैं, मुझे अपनी सेवा का सौभाग्य दे रहा है, भगवान तो प्रत्येक मनुष्य के हृदय में बसता है। जितनी पवित्रता व साफ सफाई से मैं पूजन गृह में प्रवेश करती हूँ अब बस उतनी ही व्यवस्थित मैं शिक्षा के मंदिर में पहुंचती हूँ। मेरा शिक्षण कार्य ही मेरी पूजा है मेरी देशभक्ति है। यह कार्य ही मेरी आत्मोन्नति का मार्ग है। मैं दुनियाँ का सर्वश्रेष्ठ कार्य शिक्षण कर रही हूँ, मुझे गर्व हैं। शिक्षण ही मेरी पूजा है यही मेरी भक्ति है।*

*मेरा भाव बदल गया, मेरी चाल ढाल बदल गई। अब यह स्कूल ही मेरा कर्मक्षेत्र और यह स्कूल ही मेरा पूजन गृह बन गया।*

ज्ञान कभी मीठा तो कभी अत्यंत करेले सा कड़वा और बोरिंग होता है, उसे शहद रूपी आत्मियता व व्यवहार कुशलता के साथ बच्चों को परोसा जा सकता है। उन्हें ज्ञानवान बनने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।

विद्यार्थी व शिक्षक दोनों का स्कूल में व्यवस्थित साफ सुथरा और खुशनुमा अपीयरेंस के साथ आना जरूरी है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday 20 January 2020

प्रश्न - *मेरे मात्र सुधरने, बदलने, अच्छा शिक्षक बनने व ज्ञानवान होने से शिक्षण जगत में बदलाव कैसे आएगा?*

प्रश्न - *मेरे मात्र सुधरने, बदलने, अच्छा शिक्षक बनने व ज्ञानवान होने से शिक्षण जगत में बदलाव कैसे आएगा?*

उत्तर- एक दिए के रौशन होने से वह दिया जहां रौशन है वहाँ का अँधेरा छटने लगता है।

आपके सुधरने, बदलने, साधक बनने और ज्ञानवान होने से सुधार व बदलाव आपके पास घटित होना शुरू होगा।

जैसे दूध के पतीले में एक तरफ ही गर्मी दी जाती है और कुछ वक़्त बाद पूरा दूध उबल जाता है।

ऐसे ही आपके तप की शक्ति से आसपास वाले लोगों की चेतना में भी गर्मी पहुंचेगी शनै: शनै: वह सुधरने लगेंगे, बदलने लगेंगे।

स्वयं का सुधार और बदलाव ही संसार की सबसे बड़ी सेवा है। कम से कम 1/शिक्षण समाज तो सुधर व बदल ही जायेगा।

आपके सम्पर्क में आने के बाद किसी विद्यार्थी की तो तलाश पूरी होगी कि - *संसार में अच्छे शिक्षक आज भी हैं। धरती श्रेष्ठ शिक्षक से रिक्त नहीं हुई है, अंधेरे का साम्राज्य किसी ने रोक रखा है। एक जलता हुआ दिया आपके रूप में किसी को मिला तो क्या यह आपके लिये गौरव की बात नहीं होगी?*

धीरे धीरे दीपावली बन ही जाएगी। खरबूजे को देखकर खरबूजा रँग बदलता है, आपकी अच्छी संगति से भावनाशील लोग बदलेंगे और आपका अनुसरण करेंगे।

अपने प्रयास से लोगों को दिशाधारा देने के लिए पढ़े:-

📖 मैं क्या हूँ?
📖 अपना सुधार ही संसार की सबसे बड़ी सेवा
📖 भाव सम्वेदना की गंगोत्री

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *मेरे मात्र सुधरने, बदलने, साधक बनने व ज्ञानवान होने से समाज में बदलाव कैसे आएगा?*

प्रश्न - *मेरे मात्र सुधरने, बदलने, साधक बनने व ज्ञानवान होने से समाज में बदलाव कैसे आएगा?*

उत्तर- एक दिए के रौशन होने से वह दिया जहां रौशन है वहाँ का अँधेरा छटने लगता है।

आपके सुधरने, बदलने, साधक बनने और ज्ञानवान होने से सुधार व बदलाव आपके पास घटित होना शुरू होगा।

जैसे दूध के पतीले में एक तरफ ही गर्मी दी जाती है और कुछ वक़्त बाद पूरा दूध उबल जाता है।

ऐसे ही आपके तप की शक्ति से आसपास वाले लोगों की चेतना में भी गर्मी पहुंचेगी शनै: शनै: वह सुधरने लगेंगे, बदलने लगेंगे।

स्वयं का सुधार और बदलाव ही संसार की सबसे बड़ी सेवा है। कम से कम 1/समाज तो सुधर व बदल ही जायेगा।

आपके सम्पर्क में आने के बाद किसी की तो तलाश पूरी होगी कि - *संसार में अच्छे लोग आज भी हैं। धरती श्रेष्ठ लोगों से रिक्त नहीं हुई है, अंधेरे का साम्राज्य किसी ने रोक रखा है। एक जलता हुआ दिया आपके रूप में किसी को मिला तो क्या यह आपके लिये गौरव की बात नहीं होगी?*

धीरे धीरे दीपावली बन ही जाएगी। खरबूजे को देखकर खरबूजा रँग बदलता है, आपकी अच्छी संगति से भावनाशील लोग बदलेंगे और आपका अनुसरण करेंगे।

अपने प्रयास से लोगों को दिशाधारा देने के लिए पढ़े:-

📖 मैं क्या हूँ?
📖 अपना सुधार ही संसार की सबसे बड़ी सेवा
📖 भाव सम्वेदना की गंगोत्री

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

आत्मसंतुष्टि व आनन्द पाने के दो उपाय

*आत्मसंतुष्टि व आनन्द पाने के दो उपाय*

1-  किसी से बदले में कुछ न चाहना और पीड़ित मानवता की देवता बन निःश्वार्थ सेवा करना।

2- भगवान से भी कुछ न चाहना बस केवल उनके प्रेम में डूबकर समर्पित हो उनमें ही खो जाना। उनसे कहना- हे ईश्वर, तेरी इच्छा हो पूर्ण हो, मुझसे जो चाहे वो सेवा ले लो।

🙏🏻श्वेता, DIYA

परामनोविज्ञान (Parapsychology) आधारित आकर्षण का सिद्धांत(Law of attraction)

*परामनोविज्ञान (Parapsychology) आधारित आकर्षण का सिद्धांत(Law of attraction)*

 *विचारों और भाव भरे हृदय से की प्रार्थना के माध्यम से सूक्ष्म जगत से सम्पर्क, भगवान से सम्पर्क व ब्रह्माण्ड से मनचाही वस्तु चाहना।*

👉🏻शिक्षकों के लिए👈🏻

जैसा हम सोचते हैं हम वैसे ही बन जाते हैं आपके विचार ही आपकी जिंदगी को बनातें हैं और इसका जवाब छुपा हैं तीन आसान शब्दों में
👉🏻 *विचार बनायें जिंदगी* 👈🏻

हमेशा उसके बारें में सोचों जो आप पाना चाहते हो ,उसके बारें में नहीं जों आप नहीं चाहतें |

हम हर चीज को अपनी और आकर्षित करते हैं ,चाहें वों कुछ भी हो और कितना भी मुश्किल क्यों ना हों |
अपना हर दिन भगवान को धन्यवाद देते हुए एक खुशनुमा अहसास के साथ शुरू करें फिर देखिए आपका पुरा दिन कितना खुशनुमा गुजरता हैं |
आपकी हर इच्छा पुरी होती हैं |

*ब्रह्माण्ड से अपने भगवान से माँगें कि आप उनकी सृष्टि को संवारना चाहते हैं, इसलिए कुशल शिक्षक बनकर श्रेष्ठ विद्यार्थियों को गढ़ना चाहते हैं | हे परमात्मा मुझे कुशल शिक्षक बनने हेतु बुद्धि, सामर्थ्य, पुरुषार्थ एवं धैर्य दीजिये। मुझे एक अच्छा शिक्षक बना दीजिये। मुझे बच्चों की चेतना से कनेक्ट कर दीजिए।*

Rule.1 प्रश्न करें माँगें जो आप चाहते हैं |
आखिर आप चाहते क्या हैं ?
आप जो भी चाहते हैं उसे कागज पर लिख डालें |
आपकों लिखना हैं कि आपकी जिंदगी कैसी हो ?
आपको कैसा शिक्षक बनना है?
आप जो भी चाहते हैं उसे लिख डालें ,
बिलकुल स्पष्ट लिखें हो सके तो उसको लिख कर अपनी pocket में रखें,
आप जो भी चाहते हो उसकी list बना लिजिए |यहां तक कि इसमें यह भी लिख दें कि आपको यह कब तक चाहिए date लिखें यहाँ तक कि time भी लिख दें |
सृष्टि को अपने menu card की तरह use करें
पहले लिख दें जो भी आप चाहते हो, फिर आदेश दें
Rule.2 विश्वास ………|
विश्वास करें कि जो आप चाहते है ,वो आपको मिल चुका है |
विश्वास अटूट होना चाहिए।
एक फिर दौराना चाहता हुँ ,अटूट विश्वास |
वो कहते हैं ना कि अगर आप कुछ भी किसी को भी पूरी सिद्धत से चाहते है, तो पूरा ब्रह्माण्ड आपको उससे मिलाने कि कोशिश करता है |
यह ब्रह्माण्ड सब अपने आप कर देगा |
शक करने की कोशिश ना करें |
अपने शक को अपने अटूट विश्वास में बदल दें|

Rule.3 प्राप्त करना ………|
महसूस करे कि वो आपको मिल चुका है,
महसूस करें कि आप चाणक्य की तरह कुशल शिक्षक बन गए हैं,
महसूस करें कि महान शिक्षक के समस्त गुण आपके भीतर उभर रहे हैं,
जब हम कल्पना को वास्तविकता में बदलतें हैं ,तो और भी बेहतर कल्पनाएँ जन्म लेती हैं |
जो आप चाहतें है, उसका अहसास जगाएँ |

जब अन्तर आत्मा कुछ करने को कहती है तो करियें
विश्वास के पहले पायदान पर चढें ,आपकों पुरी सीढी चढनें की जरूरत नहीं हैं |
सिर्फ पहली सीढी चढें !

पूर्ण लगन व विश्वास से कुशल व श्रेष्ठ शिक्षक के गुणों के बारे में सोचिये, उन गुणों को स्वयं के भीतर महसूस कीजिये। भावना कीजिये कि परमात्मा वह समस्त श्रेष्ठ गुणों से आपको भर रहा है। आप विद्यार्थियों से कनेक्ट करने में कुशल बन रहे हैं। उन्हें अपनी बात समझाने में सफल हो रहे हैं, इत्यादि सोचिये, महसूस कीजिये, अनुभव कीजिये।

यह घटित होगा, परमात्मा आपको श्रेष्ठ शिक्षक बना देगा। आपको ज्ञान का सूर्य बना देगा, जो हज़ारो विद्यार्थियों के जीवन को रौशन करने में सफल होगा।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Sunday 19 January 2020

प्रश्न - *बड़े बड़े आयोजन में वर्कशॉप में संकल्पित कार्य बाद में प्रशिक्षण लेने वाले क्यों नहीं करते हैं, वह अमल में क्यों नहीं आ पाता है?*

प्रश्न - *बड़े बड़े आयोजन में वर्कशॉप में संकल्पित कार्य बाद में प्रशिक्षण लेने वाले क्यों नहीं करते हैं, वह अमल में क्यों नहीं आ पाता है?*

उत्तर- वर्कशॉप ट्रेनिंग दो तरह की होती है, एक प्रोडक्ट बेस्ड और दूसरी सॉल्यूशन बेस्ड।

प्रोडक्ट बेस्ड में हाई फाई टॉपिक व कंटेंट होते हैं। जिसको सुनने के बाद तालियाँ बजती हैं। यह दर्शनीय व सॉफिस्टिकेटेड है।

सॉल्यूशन बेस्ड में सिम्पल दैनिक यूज में काम आने वाली विषय वस्तु होती है, जिसे सुनकर दिल व दिमाग उसे अपनाने में जुट जाता है। यह वैल्युएबल और सरल हृदय ग्राह्य है।

गुरुकुल शिक्षा और आधुनिक शिक्षा में यही अंतर है। गुरुकुल सॉल्यूशन बेस्ड है और आधुनिक शिक्षा प्रोडक्ट बेस्ड है।

प्रोडक्ट बेस्ड में आप लेक्चर व प्रेजेंटेशन का सहारा ले सकते हैं। इसमे बन्दा मोटिवेट होता है, पर करेगा कैसे क्लियर नहीं होता।

सॉल्यूशन बेस्ड में दैनिक जीवन मे  की समस्या, उस समस्या की जड़, उसका सॉल्यूशन, उस समस्या को सॉल्व करने के लिए मोटिवेशन के साथ समस्या सॉल्व कैसे होगी यह क्लियर होता है। समस्या का समाधान कैसे ढूँढना है और उसका समाधान कैसे करना है यह क्लियर होता है।

व्यक्तित्व व चरित्र गुणवत्ता सुधार ट्रेनिंग - सॉल्यूशन बेस्ड होनी चाहिए।

उलझे लोगों की मनःस्थिति को सुलझाने में मददगार होनी चाहिए, सोया हुआ आत्मविश्वास जगाने की तकनीक होनी चाहिए। घर व जॉब के बीच संतुलन ला सकें वह विधिव्यस्था व सूत्र उन्हें ट्रेनिंग से मिले।

विचारों को एकत्रित करके पुनः नए तरीके से सोचने की कला मिले।

लेकिन सबसे ज़रूरी चीज़ - इस आयोजन का मक़सद(प्रयोजन) व्यक्ति निर्माण, परिवार निर्माण व समाज निर्माण हेतु स्वयं में श्रेष्ठ गुण कर्म स्वभाव व चरित्र युक्त देशभक्त नागरिक गढ़ने का कार्य स्वयं द्वारा जो करवाना है उसके लिए उन्हें इनिशियल गाइड लाइन देना व उसके लिए प्रेरित करना है।

देश में दुनियाँ में सर्वत्र बहुत बड़े बड़े वर्कशॉप ट्रेनिंग आयोजित होती है, सब ट्रेनिंग के समय मोटिवेट भी हो जाते हैं। लेकिन कुछ दिन बाद सब पुराने ढर्रे पर लौट जाते हैं, क्योंकि यह मोटिवेशन बाह्य था, जिसका असर महंगे परफ्यूम की तरह कुछ दिनों में उड़ गया।

जब ट्रेनिंग व वर्कशॉप में कुछ रिमाइंडर सेल्फ के लिए सेट करने व फॉलोअप की विधिव्यस्था होती है तभी बात बनती है।

साथ ही जो समझ मे आ गया उसे करने के लिए जो आत्मबल चाहिए उसे अर्जित करने के लिए ज़रूरी साधना की गाइडलाइंस भी चाहिए:-

1- विपश्यना ध्यान
2- नाड़ी शोधन व भ्रामरी प्राणायाम
3- नित्य गायत्रीमंत्र जप उगते हुए सूर्य का ध्यान करते हुए
4- नित्य अच्छी पुस्तकों जैसे *जीवन जीने की कला* और *सफल जीवन की दिशा धारा* इत्यादि का स्वाध्याय जरूरी है।
5- नित्य आत्मबोध(भगवान को धन्यवाद, नया जन्म, सुबह क्या करना है उसको तय करना) - तत्त्वबोध(रात को क्या हुआ और क्या रह गया उसका लेखा जोखा, एक दिन का जीवन समाप्त, भगवान को धन्यवाद) साधना ।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Saturday 18 January 2020

प्रश्न - *विवाह के लिए दो रिश्ते आएं हैं कौन सा मेरे लिए बेहतर होगा, समझ नहीं आ रहा। मार्गदर्शन करें?*

उत्तर - कोई भी रिश्ता परफेक्ट नहीं होता, उसे परफेक्ट बनाना पड़ता है।

पहले निर्णय लो, फिर उस निर्णय को सही साबित करने के लिए तन मन धन से प्रयास करो।

व्यक्ति चुन रहे हो स्वर्ण नहीं, अतः व्यक्ति परिवर्तनशील है। एक बार की परख कार्य नहीं करेगी।

अच्छी रोड में अकुशल ड्राइवर एक्सीडेंट करता है।

अच्छे रिश्ते के बाद भी रिलेशन को अकुशल लोग बिगाड़ते हैं।

कुशल ड्राइवर कैसी भी रोड को गाड़ी चला लेता है और सफर का आनन्द लेता है।

कुशल लोग कैसा भी रिश्ता मिले विवाह के बाद उसे सम्हाल लेते हैं और आनन्दित जीवन जीते हैं।

कलियुग में कुछ भी पका पकाया नहीं मिलता, रोटियां खेत से नहीं उगती।

गेंहू उगता और उसे रोटी तक का सफर कराना पड़ता है।

*वैवाहिक जीवन में सुखी रहने के उपाय:-*

1- बिन मांगें सलाह न दें
2- जीवनसाथी को प्रधानमंत्री की तरह महत्त्वपूर्ण माने, बिना तथ्य तर्क और प्रमाण के कोई भी प्रपोजल जीवनसाथी के समक्ष न ले जाएं।
3- जीवनसाथी एक मनुष्य है, उसका रिमोट कंट्रोल ढूंढने का प्रयास न करें। उसे नियंत्रित करने की कोशिश न करें। बीवी मिली है टीवी नहीं, अतः मनचाहा चैनल देखने की उम्मीद न करें। पति मिला है कोई रोबोट नहीं, अतः मनचाहे कार्य ही करेगा उम्मीद न करें।
4- आपने मनुष्य से शादी की है, तो उसमें देवी-देवताओं जैसे परफेक्ट गुण-स्वभाव-कर्म न तलाशें।
5- जीवनसाथी अन्तर्यामी परमात्मा नहीं है, जो आपकी भावनाओं को बिन बोले समझ लेगा। मनुष्य है अतः उसे बोलकर अपनी भावनाएं जताएं और समझाएं।
6- अपने जीवनसाथी की तुलना अन्य पुरुष/स्त्री से करने की भूल न करें।
7- जो मिला है उसी के साथ खुश रहें। लेन-देन प्रकृति का नियम है,समझौता विवाह की प्रथम शर्त है। यह याद रखें।

कुछ निम्नलिखित पुस्तक पढ़ लीजिये, वैवाहिक जीवन को सम्हालने का हुनर सीख लीजिये:-

📖 दाम्पत्य में प्रवेश से पूर्व जिम्मेदारी समझें
📖 गृहस्थ एक तपोवन
📖 भाव सम्वेदना की गंगोत्री
📖 मित्रभाव बढ़ाने की कला
📖 मनःस्थिति बदले तो परिस्थिति बदले
📖 शक्ति संचय के पथ पर
📖 सफल जीवन की दिशाधारा
📖 स्वस्थ रहने के सरल उपाय

😊 श्वेता, DIYA

नोट:- उपरोक्त कंडीशन स्त्री और पुरूष दोनों पर अप्पलाई करती है।

क्या माता-पिता के रूप में बच्चे से क़्वालिटी सम्वाद करते हैं? क्या उन्हें यथार्थ जीवन से परिचय करवा रहे हैं?

*क्या माता-पिता  के रूप में बच्चे से क़्वालिटी सम्वाद करते हैं? क्या उन्हें यथार्थ जीवन से परिचय करवा रहे हैं?*

क्या आपने अपने बच्चों को घर में आ रहे आटे, दाल, चावल और सब्जी का रेट बताया है? साथ यह बताया है कि कितनी कठिन परिश्रम से किसान अन्न उपजाता है, फ़िर खेत से अनाज मंडी, फिर दुकानों और फिर घर तक कैसे आता है? आपकी थाली तक पहुंचने से पहले किचन में कितनी मेहनत से बनता है? अतः जूठन क्यों नहीं छोड़ना चाहिए?

क्या आपने अपने बच्चे को घर का प्रत्येक दिन का होने वाला ख़र्च गिनाया है? एक उम्र के बाद दादा दादी नहीं कमा रहे, अब उनके दायित्व वर्तमान में मम्मी पापा उठा रहे हैं, भविष्य में बच्चे आपको यही खर्च उठाना है? बच्चे आपकी क्या तैयारी है?

क्या आपने अपने बच्चे को माता-पिता की मेहनत समझाई है? उनकी घर ख़र्च चलाने के पीछे दैनिक कितने घण्टे कठिन परिश्रम जॉब, व्यवसाय इत्यादि को समझाया है? घर की व्यवस्था सम्हालने में कितने घण्टे की मेहनत माता-पिता को करनी पड़ती है? माता-पिता द्वारा किये जा रहे परिश्रम को क्या आपका बच्चा समझता है?

क्या आपने अपने बच्चे को एक मोबाईल जिससे लोग बात करते हैं, उसके पीछे कितने हज़ार लोगों की मेहनत, उनकी शिक्षा व दिमाग, बड़ी बड़ी मशीनरी से कैसे सबकुछ सम्भव हो रहा है यह समझाया है?

क्या आपने अपने बच्चे को टीवी वह जो देखता है, उसके पीछे कितने हज़ार लोगों की मेहनत, उनकी शिक्षा व दिमाग, बड़ी बड़ी मशीनरी से कैसे सबकुछ सम्भव हो रहा है यह समझाया है? एक्टर तो मात्र अभिनय करते हैं, लेक़िन पीछे कितनी बड़ी मेहनत चलती है यह सब समझाया है?

क्या आपने अपने बच्चे को नज़दीकी पॉवर हाउस घुमाया है, कैसे घर घर बिजली पहुंचाने के लिए पूरे देश में लाखों लोग मेहनत करते हैं, बड़ी बड़ी मशीनरी कार्य करती है तब घर मे रौशनी आती है यह सब समझाया है?

घर में यदि माता स्वयं बर्तन साफ करती है तो या काम करने वाली बाई की मेहनत समझाई है, कभी एक दिन ठण्ड की सुबह ठंडे/गर्म पानी जिससे मेड बर्तन धोती है उससे बर्तन धोने को बच्चे से कहा है? उस कष्ट व मेहनत को अनुभूत करवाया है?

कभी किसी एक दिन झाड़ू पोछा बच्चे से करवाया है? उन्हें घर की साफ सफाई के पीछे हो रहे श्रम व्यवस्था को समझाया है?

प्रत्येक पशु पक्षी को जीवन निर्वहन के लिए नित्य मेहनत करनी पड़ती है, कभी इसे डिटेल में समझाया है? पशु बीमार हो तो भी भोजन जुटाना उसे ही पड़ेगा अन्यथा भूखा मरता है? सभी जीवों के कष्ट को समझाया है?

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी क्यों है? आप किन किन चीज़ों पर समाज पर निर्भर हो? अन्न, कपड़े, जूते तथा सभी वस्तुएं किस तरह समाज से आती हैं समझाया है?

चिकित्सक वक़ील इंजीनियर पुलिस सेना व्यवसायी इत्यादि सभी लोगों की मेहनत, उनका समाज के लिए योगदान सबकुछ समझाया है?

बच्चे से उपरोक्त बातें कौन करेगा? उन्हें कौन परिवार व समाज से जोड़ेगा? कौन उन्हें उनके उत्तरदायित्व को याद दिलाएगा? कभी सोचा है?

अध्यात्म का जीवन मे क्या रोल है? पूजा पाठ क्यों होता है? योग प्राणायाम व ध्यान की महत्ता समझाई है? स्वस्थ रहने के सरल उपाय समझाए हैं?

*निम्नलिखित चार पुस्तक पढ़िये और बच्चे के निर्माण में अपनी भूमिका सही से निभाइये। आपका बच्चा पशु नहीं है कि मात्र खाने, पीने, रहने व पढ़ने की व्यवस्था करवा देने मात्र से आपकी जिम्मेदारी पूरी हो गयी। वह एक सामाजिक प्राणी है, उसे समाज से और उसके उत्तरदायित्व से जोड़ना आपकी जिम्मेदारी है।*

📖 बच्चों का भावनात्मक विकास (बच्चों का बाल मनोविज्ञान)
📖 सफल जीवन की दिशा धारा
📖 स्वस्थ रहने के सरल उपाय
📖 अपना सुधार ही संसार की सबसे बड़ी सेवा है

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

बाल मनोविज्ञान प्रश्नोत्तर

"बेटा! थोड़ा खाना खाकर जा ..!! दो दिन से तुने कुछ खाया नहीं है।" लाचार माता के शब्द है अपने बेटे को समझाने के लिये।

"देख मम्मी! मैंने मेरी बारहवीं बोर्ड की परीक्षा के बाद वेकेशन में सेकेंड हैंड बाइक मांगी थी, और पापा ने प्रोमिस किया था। आज मेरे आखरी पेपर के बाद दीदी को कह देना कि जैसे ही मैं परीक्षा खंड से बाहर आऊंगा तब पैसा लेकर बाहर खडी रहे। मेरे दोस्त की पुरानी बाइक आज ही मुझे लेनी है। और हाँ, यदि दीदी वहाँ पैसे लेकर नहीं आयी तो मैं घर वापस नहीं आऊंगा।"

एक गरीब घर में बेटे मोहन की जिद्द और माता की लाचारी आमने सामने टकरा रही थी।

"बेटा! तेरे पापा तुझे बाइक लेकर देने ही वाले थे, लेकिन पिछले महीने हुए एक्सिडेंट ..

मम्मी कुछ बोले उसके पहले मोहन बोला "मैं कुछ नहीं जानता .. मुझे तो बाइक चाहिये ही चाहिये ..!!"

ऐसा बोलकर मोहन अपनी मम्मी को गरीबी एवं लाचारी की मझधार में छोड़ कर घर से बाहर निकल गया।

12वीं बोर्ड की परीक्षा के बाद भागवत 'सर एक अनोखी परीक्षा का आयोजन करते थे।
हालांकि भागवत सर का विषय गणित था, किन्तु विद्यार्थियों को जीवन का भी गणित भी समझाते थे और उनके सभी विद्यार्थी विविधतासभर ये परीक्षा अचूक देने जाते थे।

इस साल परीक्षा का विषय था *मेरी पारिवारिक भूमिका*

मोहन परीक्षा खंड में आकर बैठ गया।
उसने मन में गांठ बांध ली थी कि यदि मुझे बाइक लेकर देंगे तो मैं घर नहीं जाऊंगा।

भागवत सर के क्लास में सभी को पेपर वितरित हो गया। पेपर में 10 प्रश्न थे। उत्तर देने के लिये एक घंटे का समय दिया गया था।

मोहन ने पहला प्रश्न पढा और जवाब लिखने की शुरुआत की।

प्रश्न नंबर १ :-  आपके घर में आपके पिताजी, माताजी, बहन, भाई और आप कितने घंटे काम करते हो? सविस्तर बताइये?

मोहन ने त्वरा से जवाब लिखना शुरू कर दिया।

जवाबः
पापा सुबह छह बजे टिफिन के साथ अपनी ओटोरिक्षा लेकर निकल जाते हैं। और रात को नौ बजे वापस आते हैं। कभी कभार वर्धी में जाना पड़ता है। ऐसे में लगभग पंद्रह घंटे।

मम्मी सुबह चार बजे उठकर पापा का टिफिन तैयार कर, बाद में घर का सारा काम करती हैं। दोपहर को सिलाई का काम करती है। और सभी लोगों के सो
जाने के बाद वह सोती हैं। लगभग रोज के सोलह घंटे।

दीदी सुबह कालेज जाती हैं, शाम को 4 से 8 पार्ट टाइम जोब करती हैं। और रात्रि को मम्मी को काम में मदद करती हैं। लगभग बारह से तेरह घंटे।

मैं, सुबह छह बजे उठता हूँ, और दोपहर स्कूल से आकर खाना खाकर सो जाता हूँ। शाम को अपने दोस्तों के साथ टहलता हूँ। रात्रि को ग्यारह बजे तक पढता हूँ। लगभग दस घंटे।

(इससे मोहन को मन ही मन लगा, कि उनका कामकाज में औसत सबसे कम है।)

पहले सवाल के जवाब के बाद मोहन ने दूसरा प्रश्न पढा ..

प्रश्न नंबर २ :-  आपके घर की मासिक कुल आमदनी कितनी है?

जवाबः
पापा की आमदनी लगभग दस हजार हैं। मम्मी एवं दीदी मिलकर पांंच हजार
जोडते हैं। कुल आमदनी पंद्रह हजार।

प्रश्न नंबर ३ :-  मोबाइल रिचार्ज प्लान, आपकी मनपसंद टीवी पर आ रही तीन सीरियल के नाम, शहर के एक सिनेमा होल का पता और अभी वहां चल रही मूवी का नाम बताइये?

सभी प्रश्नों के जवाब आसान होने से फटाफट दो मिनट में लिख दिये ..

प्रश्न नंबर ४ :-  एक किलो आलू और भिन्डी के अभी हाल की कीमत क्या है? एक किलो गेहूं, चावल और तेल की कीमत बताइये? और जहाँ पर घर का गेहूं पिसाने जाते हो उस आटा चक्की का पता  दीजिये।

मोहनभाई को इस सवाल का जवाब नहीं आया। उसे समझ में आया कि हमारी दैनिक आवश्यक जरुरतों की चीजों के बारे में तो उसे लेशमात्र भी ज्ञान नहीं है। मम्मी जब भी कोई काम बताती थी तो मना कर देता था। आज उसे ज्ञान हुआ कि अनावश्यक चीजें मोबाइल रिचार्ज, मुवी का ज्ञान इतना उपयोगी नहीं है। अपने घर के काम की
जवाबदेही लेने से या तो हाथ बटोर कर साथ देने से हम कतराते रहे हैं।

प्रश्न नंबर ५ :- आप अपने घर में भोजन को लेकर कभी तकरार या गुस्सा करते हो?

जवाबः हां, मुझे आलू के सिवा कोई भी सब्जी पसंद नहीं है। यदि मम्मी और कोई सब्जी बनायें तो, मेरे घर में झगड़ा होता है। कभी मैं बगैर खाना खायें उठ खडा हो जाता हूँ।
(इतना लिखते ही मोहन को याद आया कि आलू की सब्जी से मम्मी को गैस की तकलीफ होती हैं। पेट में दर्द होता है, अपनी सब्जी में एक बडी चम्मच वो अजवाइन डालकर खाती हैं। एक दिन मैंने गलती से मम्मी की सब्जी खा ली, और फिर मैंने थूक दिया था। और फिर पूछा कि मम्मी तुम ऐसा क्यों खाती हो? तब दीदी ने बताया था कि हमारे घर की स्थिति ऐसी अच्छी नहीं है कि हम दो सब्जी बनाकर खायें। तुम्हारी जिद के कारण मम्मी बेचारी क्या करें?)
मोहन ने अपनी यादों से बाहर आकर
अगले प्रश्न को पढा

प्रश्न नंबर ६ :- आपने अपने घर में की हुई आखरी जिद के बारे में लिखिये ..

मोहन ने जवाब लिखना शुरू किया। मेरी बोर्ड की परीक्षा पूर्ण होने के बाद दूसरे ही दिन बाइक के लिये जीद्द की थी। पापा ने कोई जवाब नहीं दिया था, मम्मी ने समझाया कि घर में पैसे नहीं है। लेकिन मैं नहीं माना! मैंने दो दिन से घर में खाना खाना भी छोड़ दिया है। जबतक बाइक नहीं लेकर दोगे मैं खाना नहीं खाऊंगा। और आज तो मैं वापस घर नहीं जाऊंगा कहके निकला
हूँ।
अपनी जिद का प्रामाणिकता से मोहन ने जवाब लिखा।

प्रश्न नंबर ७ :- आपको अपने घर से मिल रही पोकेट मनी का आप क्या करते हो? आपके भाई-बहन कैसे खर्च करते हैं?

जवाब: हर महीने पापा मुझे सौ रुपये देते हैं। उसमें से मैं, मनपसंद पर्फ्यूम, गोगल्स लेता हूं, या अपने दोस्तों की छोटीमोटी पार्टियों में खर्च करता हूँ।

मेरी दीदी को भी पापा सौ रुपये देते हैं। वो खुद कमाती हैं और पगार के पैसे से मम्मी को आर्थिक मदद करती हैं। हां,  उसको दिये गये पोकेटमनी को वो गल्ले में डालकर बचत करती हैं। उसे कोई मौजशौख नहीं है, क्योंकि वो कंजूस भी हैं।

प्रश्न नंबर ८ :- आप अपनी खुद की पारिवारिक भूमिका को समझते हो?

प्रश्न अटपटा और जटिल होने के बाद भी मोहन ने जवाब लिखा।
परिवार के साथ जुड़े रहना, एकदूसरे के प्रति समझदारी से व्यवहार करना एवं मददरूप होना चाहिये और ऐसे अपनी जवाबदेही निभानी चाहिये।

यह लिखते लिखते ही अंतरात्मासे आवाज आयी कि अरे मोहन! तुम खुद अपनी पारिवारिक भूमिका को योग्य रूप से निभा रहे हो? और अंतरात्मा से जवाब आया कि ना बिल्कुल नहीं ..!!

प्रश्न नंबर ९ :- आपके परिणाम से
आपके माता-पिता खुश हैं? क्या वह अच्छे परिणाम के लिये आपसे जिद करते हैं? आपको डांटते रहते हैं?

(इस प्रश्न का जवाब लिखने से पहले हुए मोहन की आंखें भर आयी। अब वह परिवार के प्रति अपनी भूमिका बराबर समझ चुका था।)
लिखने की शुरुआत की ..

वैसे तो मैं कभी भी मेरे माता-पिता को आजतक संतोषजनक परिणाम नहीं दे पाया हूँ। लेकिन इसके लिये उन्होंने कभी भी जिद नहीं की है। मैंने बहुत बार अच्छे रिजल्ट के प्रोमिस तोडे हैं।
 फिर भी हल्की सी डांट के बाद वही प्रेम और वात्सल्य बना रहता था।

प्रश्न नंबर १० :- पारिवारिक जीवन में असरकारक भूमिका निभाने के लिये इस वेकेशन में आप कैसे परिवार को मददरूप होंगें?

जवाब में मोहन की कलम चले इससे पहले उनकी आंखों से आंसू बहने लगे, और जवाब लिखने से पहले ही कलम रुक गई .. बेंच के निचे मुंह रखकर रोने लगा। फिर से कलम उठायी तब भी वो कुछ भी न लिख पाया। अनुत्तर दसवां प्रश्न छोड़कर पेपर सबमिट कर दिया।

स्कूल के दरवाजे पर दीदी को देखकर उसकी ओर दौड़ पडा।

"भैया! ये ले आठ हजार रुपये, मम्मी ने कहा है कि बाइक लेकर ही घर आना।"
दीदी ने मोहन के सामने पैसे धर दिये।

"कहाँ से लायी ये पैसे?" मोहन ने पूछा।

दीदी ने बताया
"मैंने मेरी ओफिस से एक महीने की सेलेरी एडवांस मांग ली। मम्मी भी जहां काम करती हैं वहीं से उधार ले लिया, और मेरी पोकेटमनी की बचत से निकाल लिये। ऐसा करके तुम्हारी बाइक के पैसे की व्यवस्था हो गई हैं।

मोहन की दृष्टि पैसे पर स्थिर हो गई।

दीदी फिर बोली " भाई, तुम मम्मी को बोलकर निकले थे कि पैसे नहीं दोगे तो, मैं घर पर नहीं आऊंगा! अब तुम्हें समझना चाहिये कि तुम्हारी भी घर के प्रति जिम्मेदारी है। मुझे भी बहुत से शौक हैं, लेकिन अपने शौख से अपने परिवार को मैं सबसे ज्यादा महत्व देती हूं। तुम हमारे परिवार के सबसे लाडले हो, पापा को पैर की तकलीफ हैं फिर भी तेरी बाइक के लिये पैसे कमाने और तुम्हें दिये प्रोमिस को पूरा करने अपने फ्रेक्चर वाले पैर होने के बावजूद काम किये जा रहे हैं। तेरी बाइक के लिये। यदि तुम समझ सको तो अच्छा है, कल रात को अपने प्रोमिस को पूरा नहीं कर सकने के कारण बहुत दुःखी थे। और इसके पीछे उनकी मजबूरी है।
बाकी तुमने तो अनेकों बार अपने प्रोमिस तोडे ही है न?
मेरे हाथ में पैसे थमाकर दीदी घर की ओर चल निकली।

उसी समय उनका दोस्त वहां अपनी बाइक लेकर आ गया, अच्छे से चमका कर ले आया था।
"ले .. मोहन आज से ये बाइक तुम्हारी, सब बारह हजार में मांग रहे हैं, मगर ये तुम्हारे लिये आठ हजार ।"

मोहन बाइक की ओर टगर टगर देख रहा था। और थोड़ी देर के बाद बोला
"दोस्त तुम अपनी बाइक उस बारह हजार वाले को ही दे देना! मेरे पास पैसे की व्यवस्था नहीं हो पायी हैं और होने की हाल संभावना भी नहीं है।"

और वो सीधा भागवत सर की केबिन में जा पहूंचा।

"अरे मोहन! कैसा लिखा है पेपर में?
भागवत सर ने मोहन की ओर देख कर पूछा।

"सर ..!!, यह कोई पेपर नहीं था, ये तो मेरे जीवन के लिये दिशानिर्देश था। मैंने एक प्रश्न का जवाब छोड़ दिया है। किन्तु ये जवाब लिखकर नहीं अपने जीवन की जवाबदेही निभाकर दूंगा और भागवत सर को चरणस्पर्श कर अपने घर की ओर निकल पडा।

घर पहुंचते ही, मम्मी पापा दीदी सब उसकी राह देखकर खडे थे।
"बेटा! बाइक कहाँ हैं?" मम्मी ने पूछा। मोहन ने दीदी के हाथों में पैसे थमा दिये और कहा कि सोरी! मुझे बाइक नहीं चाहिये। और पापा मुझे ओटो की चाभी दो, आज से मैं पूरे वेकेशन तक ओटो चलाऊंगा और आप थोड़े दिन आराम करेंगे, और मम्मी आज मैं मेरी पहली कमाई शुरू होगी। इसलिये तुम अपनी पसंद की मैथी की भाजी और बैगन ले आना, रात को हम सब साथ मिलकर के खाना खायेंगे।

मोहन के स्वभाव में आये परिवर्तन को देखकर मम्मी उसको गले लगा लिया और कहा कि "बेटा! सुबह जो कहकर तुम गये थे वो बात मैंने तुम्हारे पापा को बतायी थी, और इसलिये वो दुःखी हो गये, काम छोड़ कर वापस घर आ गये। भले ही मुझे पेट में दर्द होता हो लेकिन आज तो मैं तेरी पसंद की ही सब्जी बनाऊंगी।" मोहन ने कहा
"नहीं मम्मी! अब मेरी समझ गया हूँ कि मेरे घरपरिवार में मेरी भूमिका क्या है? मैं रात को बैंगन मैथी की सब्जी ही खाऊंगा, परीक्षा में मैंने आखरी जवाब नहीं लिखा हैं, वह प्रेक्टिकल करके ही दिखाना है। और हाँ मम्मी हम गेहूं को पिसाने कहां जाते हैं, उस आटा चक्की का नाम और पता भी मुझे दे दो"और उसी समय भागवत सर ने घर में प्रवेश किया। और बोले "वाह! मोहन जो जवाब तुमनें लिखकर नहीं दिये वे प्रेक्टिकल जीवन जीकर कर दोगे

"सर! आप और यहाँ?" मोहन भागवत सर को देख कर आश्चर्य चकित हो गया।

"मुझे मिलकर तुम चले गये, उसके बाद मैंने तुम्हारा पेपर पढा इसलिये तुम्हारे घर की ओर निकल पडा। मैं बहुत देर से तुम्हारे अंदर आये परिवर्तन को सुन रहा था। मेरी अनोखी परीक्षा सफल रही
और इस परीक्षा में तुमने पहला नंबर पाया है।"
ऐसा बोलकर भागवत सर ने मोहन के सर पर हाथ रखा।

मोहन ने तुरंत ही भागवत सर के पैर छुए और ऑटो रिक्शा चलाने के लिये निकल पडा....
(व्हाट्सएप पोस्ट)
*यह पोस्ट अपने बच्चों को अवश्य पढ़ाएं*
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Friday 17 January 2020

प्रश्न - *दीदी असल में ब्रम्हमुहूर्त कितने बजे से कितने बजे तक होता है?*

प्रश्न - *दीदी असल में ब्रम्हमुहूर्त कितने बजे से कितने बजे तक होता है?*

*कोई 3:30 से बताता है कोई 4 बजे से बताता है सही में ये कब से शुरू होता है?*

उत्तर - हमारे ऋषि मुनियों ने ब्रह्म मुहूर्त का विशेष महत्व बताया है। उनके अनुसार नींद का त्याग करने के लिए ये 3:20 से 3:40 समय सर्वश्रेष्ठ है। व्यावहारिक रूप से अच्छी सेहत, ताजगी और ऊर्जा पाने के लिए पूजन, ध्यान, पढ़ाई  इत्यादि के लिए ब्रह्ममुहूर्त सबसे बेहतर समय है। क्योंकि रात की नींद के बाद पिछले दिन की शारीरिक और मानसिक थकान उतर जाने पर दिमाग शांत और स्थिर रहता है। वातावरण और हवा भी स्वच्छ होती है। ऐसे समय की गई देव उपासना, ध्यान, योग और पूजा से तन, मन और बुद्धि पवित्र होती है। सूर्योदय से चार घड़ी (लगभग डेढ़ घण्टे)पहले ब्रह्म-मुहूर्त में ही जागना चाहिये। शास्त्रों में इस समय सोना निषिद्ध है।

इसलिए कहा भी गया है -
“ब्रह्ममुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी”
अर्थ - ब्रह्ममुहूर्त की निद्रा पुण्य का नाश करने वाली होती है।

-👉🏻 *ब्रह्म-मुहूर्त का सही समय और महत्त्व* -👈🏻
ब्रह्म-मुहूर्त अनेक कारणों से हमारे लिए महत्त्वपूर्ण है। व्यावहारिक रूप से यह समय सुबह सूर्योदय से पहले चार या पांच बजे के बीच माना जाता है। किंतु शास्त्रों में स्पष्ट बताया गया है कि रात के आखिरी प्रहर का तीसरा हिस्सा या सूर्योदय से चार घड़ी पहले यानी सूर्योदय से लगभग डेढ़ घण्टे पूर्व तड़के ही ब्रह्ममुहूर्त होता है।

*क्या है इसका धार्मिक महत्व* - मान्यता है कि इस वक्त जागकर भगवान की पूजा, ध्यान और पवित्र कर्म करना बहुत शुभ होता है। ऐसा करने से ज्ञान, विवेक, शांति, ताजगी, निरोग और सुंदर शरीर, सुख और ऊर्जा मिलती है। प्रमुख मंदिरों के पट भी ब्रह्म मुहूर्त में खोल दिए जाते हैं तथा भगवान का श्रृंगार व पूजन भी ब्रह्म-मुहूर्त में किए जाने का विधान है।वाल्मीकि रामायण के मुताबिक माता सीता को ढूंढते हुए श्री हनुमान ब्रह्ममुहूर्त में ही अशोक वाटिका पहुंचे। जहां उन्होंने वेद व यज्ञ के ज्ञाताओं के मंत्र उच्चारण की आवाज सुनी।भगवान की पूजा या ध्यान के बाद दही, घी, आईना, सफेद सरसों, बैल, फूलमाला के दर्शन करने से भी पुण्य मिलता है।

*वैज्ञानिक महत्त्व* - वैज्ञानिक शोध से पताा चला है कि ब्रह्म-मुहुर्त में वायु मंडल प्रदूषण रहित होता है। इसी समय वायु मंडल में ऑक्सीजन (प्राण वायु) की मात्रा सबसे ज्यादा (41 प्रतिशत) होती है, जो फेफड़ों की शुद्धि के लिए महत्वपूर्ण होती है। शुद्ध वायु मिलने से मन, मस्तिष्क भी स्वस्थ रहता है। इस समय ली गई सांस से उम्र बढ़ती है और बीमारियां दूर होती हैं।

*आयुर्वेदिक महत्त्व* - आयुर्वेद के अनुसार ब्रह्म-मुहूर्त में उठकर टहलने से शरीर में संजीवनी शक्ति बढ़ती है। यही कारण है कि इस समय बहने वाली हवा को अमृत के बराबर माना गया है। इसके अलावा यह समय पढ़ाई के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण माना गया है क्योंकि रात को आराम करने के बाद सुबह जब हम उठते हैं तो शरीर तथा मस्तिष्क में भी स्फूर्ति व ताजगी बनी रहती है।

वृक्ष वनस्पति भी ब्रह्ममुहूर्त में ही बढ़ते हैं।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Thursday 16 January 2020

प्रश्न - *विपश्यना ध्यान क्या है? यह तनावमुक्ति व मनोरोगों को दूरकरने में किस प्रकार सहायक है? यह कार्यकुशलता कैसे बढ़ाता है? इसकी विधि क्या है?*

प्रश्न - *विपश्यना ध्यान क्या है? यह तनावमुक्ति व मनोरोगों को दूरकरने में किस प्रकार सहायक है? यह कार्यकुशलता कैसे बढ़ाता है? इसकी विधि क्या है?*

उत्तर- *विपश्यना (संस्कृत) या विपस्सना (पालि) यह गौतम बुद्ध द्वारा बताई गई भगवान बुद्ध द्वारा बताई एक बौद्ध ध्यान योग साधना हैं।*
👉🏻 *विपश्यना का अर्थ है - विशेष प्रकार से देखना (वि + पश्य + ना)।*

योग साधना के तीन मार्ग प्रचलित हैं - विपश्यना, भावातीत ध्यान और हठयोग।

भगवान बुद्ध ने ध्यान की 'विपश्यना-साधना' द्वारा बुद्धत्व प्राप्त किया था। महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं में से एक विपश्यना भी है। यह वास्तव में सत्य की उपासना है। सत्य में होशपूर्वक जीने का अभ्यास है।

 विपश्यना इसी क्षण में यानी तत्काल में जीने की कला है। भूत की चिंताएं और भविष्य की आशंकाओं में जीने की जगह भगवान बुद्ध ने अपने शिष्यों को आज के बारे में सोचने केलिए कहा। *विपश्यना सम्यक् ज्ञान है। जो जैसा है, उसे ठीक वैसा ही देख-समझकर जो आचरण होगा, वही सही और कल्याणकारी सम्यक आचरण होगा। विपश्यना जीवन की सच्चाई से भागने की शिक्षा नहीं देता है, बल्कि यह जीवन की सच्चाई को उसके वास्तविक रूप में स्वीकारने की प्रेरणा देता है।*

आत्मनिरीक्षण द्वारा आत्मशुद्धि की साधना-विधि है। जिसका मतलब है की जो जैसा है, उसे ठीक वैसा ही देखना-समझना विपश्यना है।

भगवान गौतम बुद्ध ने लगभग 2500 वर्ष पूर्व विलुप्त हुई इस पद्धति का पुन: अनुसंधान कर इसे सार्वजनीन रोग के सार्वजनीन इलाज, जीवन जीने की कला, के रूप में सर्वसुलभ बनाया।

इस साधना-विधि का प्रमुख लक्ष्य मनोविकारों  का निर्मूलन एवं आनन्दमय की अवस्था को हासिल करना है।  इस साधना के द्वारा हम अपने भीतर शांति और सामंजस्य की अनुभूति कर सकते हैं।

विपश्यना मन की वास्तविक शांति प्राप्त करने और एक सुखी एवं उपयोगी जीवन जीने का एक सरल, व्यवहारिक तरीका है। *यह स्व-अवलोकन के माध्यम से मानसिक शुद्धि की एक तार्किक प्रक्रिया है| विपस्सना हमें शांति और सामंजस्य का अनुभव करने में सक्षम बनाता है|*


*विपश्यना ध्यान विधि और फायदे*

*विपश्यना ध्यान कैसे करे?*
👇🏻
श्रद्धेय डॉक्टर प्रणव पण्ड्याजी के निम्नलिखित वीडियो से यह ध्यान सहज सीखें:-

https://youtu.be/ZR8DIUERxwM

👉🏻ध्यान करने के लिए एक रूम का चुनाव करे लेकिन ध्यान रहे की यह न तो ज्यादा सुविधाजनक होना चाहिए और न ही ज्यादा असहज|

👉🏻साधारण और आरामदायक वस्त्रो का चयन करे।

👉🏻विपस्सना ध्यान को करने के लिए लोटस पॉजिशन में आये| सुखासन कमर सीधी कर सहजता से बैठें।

👉🏻पहले अपनी दाईं हथेली को सीधा अपनी गोद में अपने बाएँ ओर शीर्ष पर रखे।

👉🏻अपनी आँखें बंद कर अपने आकृति का एक पहलू पर ध्यान केंद्रित करने की प्रयास करे।

👉🏻ज्यादातर साधक उगते हुए सूर्य को सोलर प्लैक्सस(स्नायु गुच्छ) या नाभि के ऊपर की जगह का चयन करते है।

👉🏻इस चक्र को करने में आपकी ऊर्जा लगती है और यह माध्यम एक बढ़िया चुनाव है।

👉🏻जब आप साँस अंदर लेते है तब आपका सोलर प्लेक्सस तब विकसित होता है और जब आप साँस बाहर छोड़ते है, तब संकुचित होता है|

👉🏻आपको गहरी साँस लेने की कोई आवश्यकता नहीं है।

👉🏻सिर्फ अपनी सांस को प्राकृतिक रूप से लेने पर ध्यान दे और यह स्वतः ही धीमी और गहरी होती जाएगी। श्वांस को चौकीदार की तरह आते जाते देखें व उसे गहराई से महसूस करें। आती जाती श्वांस की निगरानी करें।

👉🏻 ध्यान के वक्त चेहरा हल्का सा आकाश की ओर होना चाहिए। सहज होना चाहिए।

👉🏻 यह नेत्रबन्द कर होशपूर्वक श्वांस लेनी की प्रक्रिया है। विशेष रूप से श्वांस पर ध्यान देकर उसे देखना व महसूस करना है।
👇🏻
*विपश्यना ध्यान के फायदे*

👉🏻यह भावनात्मक संतुलन को बनाए रखते हुए तनाव और क्रोध को कम करता है|

👉🏻 इससे कार्यकुशलता बढ़ती है।

👉🏻इससे बुद्धि क्षमता बढ़ जाती है। और रोग प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है|

👉🏻यह रक्तचाप को कम करता है और एंटी -इंफ्लेमेटरी तत्व की तरह कार्य करता है।

👉🏻शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य के लिए ध्यान महत्वपूर्ण है।

👉🏻वर्तमान की चुनौती पूर्ण युग में कार्य जॉब व्यवसाय के दौरान मानसिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए भी यह बहुत लाभदायक होता है।

👇🏻
*विपश्यना ध्यान  में सावधानी*

ध्यान हमेशा ऊनि वस्त्र का आसन या शॉल या कम्बल बिछाकर उस पर बैठकर ही करें।

कमर दर्द की शिकायत वाले लोग चेयर पर बैठकर तकिए की सहायता से कमर सीधी करके ध्यान करें।

ध्यान शुरू करने से पहले डीप ब्रीदिंग करते हुए स्वयं को सहज कर लेना चाहिए।

ध्यान करते वक्त पेट हल्का व खाली होना चाहिए। तुरन्त भोजन करके कभी ध्यान नहीं करना चाहिए।

जिसने कभी ध्यान न किया हो उसे कभी कभी कुछ केस में मेडिटेशन करते समय आप को सर में खुजली, चींटी जैसा चलने सा कुछ हल्की सी हलचल या हल्का सर दर्द हो सकता है। जो धीरे धीरे सामान्य और ठीक हो जाता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

हम किस प्रकार के शिक्षक हैं, स्वयं जाँचने की चेक लिस्ट व प्रश्नोत्तर

*हम किस प्रकार के शिक्षक हैं, स्वयं जाँचने की चेक लिस्ट व प्रश्नोत्तर*
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
*आकृति से सभी मनुष्य है, किन्तु प्रकृति से मनुष्य के निम्नलिखित भेद है:-*

मानव पिशाच (दानवर)
मानव पशु (मानवर)
मनुष्य (इन्सान)
महापुरुष
देवता

*शिक्षक स्वयं से निम्नलिखित प्रश्न पूँछकर स्वयं की प्रकृति पहचान सकते हैं*

१- क्या भक्षक बनकर धोखाधड़ी पसंद है? दूसरों बच्चो को नुकसान देकर अपना भला करना पसंद है? सैलरी लेकर कर्तव्यों की उपेक्षा करना पसंद है? – यदि इस प्रश्न का उत्तर हां में है – *तो मानव पिशाच है*

२- क्या खाओ पियो ऐश करो, कमाने के लिए कुछ तो जॉब करनी थी, पापी पेट का सवाल था तो शिक्षक बन गये, पशु की तरह डयूटी बजाओ और घर आकर खा पीकर सो जाओ? -- यदि इस प्रश्न का उत्तर हाँ है तो --- *मानव पशु हैं*

३- क्या हम ईमानदारी से अपने विषय पढ़ा रहे हैं, कोर्स समय से पूरा कर रहे हैं, जिस चीज़ की सैलरी ले  रहे हैं उसे कर रहे है? स्वयं को विषय का शिक्षक समझ रहें है? – यदि इसका उत्तर हाँ है --- *तो मनुष्य (इन्सान) हैं*

४- क्या हम जानते हैं शिक्षा वह जो मानव के व्यक्तित्व और चरित्र को गढ़े? शिक्षा का सदुपयोग करना सिखाये? कष्ट सहकर भी मानव धर्म  और सन्मार्ग पर चलाये? स्वयं की उन्नति के साथ साथ समाज की उन्नति में जो भागीदारी कर सके ऐसे नागरिकों को गढने की टकसाल विद्यालय है? क्या  मै नित्य अपनी ४५ मिनट की क्लास में ५ मिनट नैतिक शिक्षा के सूत्र और ४० मिनट विषय पढ़ाता हूँ? क्या मै स्वयं को बच्चो के भविष्य के लिए उत्तरदायी मानता हूँ? मै मात्र सब्जेक्ट टीचर नहीं हूँ मै बच्चो का शिक्षक हूँ? सब्जेक्ट पढ़ाने के लिए शिक्षक की भूमिका में हूँ और इन्सान गढ़ने में गुरु की भूमिका में हूँ? --- यदि इसका उत्तर हाँ में है --- *तो महापुरुष हैं*

५- क्या मैं मानता हूँ कि शिक्षण शब्दों से नहीं बल्कि आचरण से दिया जाता है? क्या मैं स्वयं को साधने के लिए नित्य उपासना, साधना, आराधना करता हूँ? क्या मै मानता हूँ सूर्य बनकर चमकने के लिए मुझे तपना होगा? गुरु की जिम्मेदारी उठाने के लिए अतिरिक्त जिम्मेदारी और कष्ट उठाना होगा? मै अपने विद्यार्थियों में देवत्व जगाऊंगा? उन्हें अच्छा इन्सान बनाऊंगा? उनका चरित्र व् व्यक्तित्व ऐसा गढ़ूंगा कि वह डॉक्टर, इंजीनियर, वकील व् व्यापारी जो भी बने नेक राह पर चले और उनमे  सेवा भाव हो, पीड़ित मानवता का उद्धार कर सकें? मै पूरी कोशिश करूंगा? – यदि इसका उत्तर हाँ है तो --- *आप देवता है देव मानव है|*


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *शिक्षक और गुरु मे क्या अंतर है?*

प्रश्न - *शिक्षक और गुरु मे क्या अंतर है?*

उत्तर - *शिक्षक* वह होता है जो जॉब करने योग्य पाठ्यक्रम की पुस्तकों को पढ़ाये और सांसारिक योग्यता बच्चों के भीतर लाये।

*गुरु* वह होता है जो शिष्यों के जीवन का अंधेरा मिटाये, उनकी आत्म चेतना को रौशन करे। उन्हें शिक्षा के सदुपयोग हेतु तैयार करे, उन्हें बुद्धि के सही प्रयोग बताये, उनके  श्रेष्ठ व्यक्तित्व व चरित्र को गढ़े और संसार के प्रबंधन के साथ साथ मन प्रबन्धन भी सिखाये।

शिक्षक *साक्षर* बनाता है और इन्फॉर्मेशन भरता है, शिक्षा का वह सदुपयोग करेगा या दुरुपयोग करेगा यह शिक्षक नहीं बताता।

गुरु श्रेष्ठ *व्यक्तित्व व चरित्र* गढ़ता है और सद्बुद्धि देकर सन्मार्ग की ओर प्रेरित करता है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Tuesday 14 January 2020

12 Principles of thinking wisely -12 सोच के सिद्धांत --

आज की बाल सँस्कारशाला

12 Principles of thinking wisely
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1- Always be constructive
2- Think slowly and try to make things as simple as possible
3- Detach your ego from your thinking and be able to stand back to look at your thinking
4- At this moment, what I am trying to do? What is the “focus and purpose” of my thinking?
5- Be able to “switch gears” in your thinking. Know when to use logic, when to use creativity, when to seek information.
6- What is outcome of my thinking – why do I believe that it will work?
7- Feelings and emotions are important parts of thinking but their place is after exploration and not before.
8- Always try to look for alternatives, for new perceptions and for new ideas.
9- Be able to move back and forth between ”broad –level thinking” and “detail level thinking”
10- Is this a matter of “may be” or matter of “must be”? Logic is only as good as the perception and information on which it is based.
11- Differing views may all be soundly based on differing perception.
12- All action have consequences and an impact on values, people and the world around.
 
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12 सोच के सिद्धांत
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1- हमेशा रचनात्मक बनें
2- धीरे-धीरे सोचें और चीजों को यथासंभव सरल बनाने की कोशिश करें
3- अपनी सोच से अपने अहंकार को दूर करें और अपनी सोच को देखने के लिए पीछे खड़े होने में सक्षम हों
4- इस समय, मैं क्या करने की कोशिश कर रहा हूं? मेरी सोच का "ध्यान और उद्देश्य" क्या है?
5- अपनी सोच में "गियर स्विच" करने में सक्षम हो। पता है कि कब तर्क का उपयोग करना है, कब रचनात्मकता का उपयोग करना है, कब जानकारी लेनी है।
6- मेरी सोच का नतीजा क्या है - मुझे क्यों विश्वास है कि यह काम करेगा?
7- भावनाएं और भावनाएं सोच का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं लेकिन उनकी जगह अन्वेषण के बाद है और पहले नहीं है।
8- हमेशा विकल्पों की तलाश करने की कोशिश करें, नई धारणाओं के लिए और नए विचारों के लिए।
9- "व्यापक-स्तरीय सोच" और "विस्तार स्तर की सोच" के बीच आगे और पीछे जाने में सक्षम हो
10- क्या यह "हो सकता है" या "होना चाहिए" की बात है? लॉजिक केवल उस धारणा और जानकारी के रूप में अच्छा है जिस पर वह आधारित है।
11- अलग-अलग विचार सभी अलग-अलग धारणा पर आधारित हो सकते हैं।
12- सभी क्रियाओं के परिणाम और मूल्य, लोगों और दुनिया पर प्रभाव पड़ता है।

प्रत्येक शिक्षक हनुमान स्तर के लोगों को भी समय समय पर ट्रेनिंग की जरूरत पड़ती है

प्रत्येक हनुमान को जामवंत की जरूरत पड़ती है, भूले हुए बल को याद दिलाने के लिए...

इसी तरह प्रत्येक शिक्षक हनुमान स्तर के लोगों को भी समय समय पर ट्रेनिंग की जरूरत पड़ती है, भूले हुए बल और सङ्कल्प को याद दिलाने के लिए...

ट्रेनर व काउंसलर एक चिंगारी की तरह होता है जो आपके भीतर भरे ज्ञान के बारूद को जलाने के लिए होता है...हर बारूद को चिंगारी चाहिए ...

हे शिक्षकों तुम ही भारत के भाग्य विधाता के निर्माता हो...तुम जॉब करने हेतु शिक्षक मत बनो... वही शिक्षक बने जो देशभक्त हो...जो राष्ट्र के निर्माता को गढ़ सके..इस महान कार्य को करने के लिए जो स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की तरह जोश व जस्बा रखे, कष्ट उठा सके...

यह जॉब शिक्षक की आपने पूरे होशोहवास में अपनी मर्जी से चुनी है, किसी ने कनपटी पर गोली नहीं लगाई थी शिक्षक बनने के लिए... महत्तपूर्ण पद है शिक्षक...बलिदान मांगता है...

सैनिक को बहुत ज्यादा सैलरी नहीं मिलती, फिर भी घर पर बीबी बच्चे छोड़कर जंग के मैदान में जान की बाजी लगाता है, क्योंकि वह देश से प्रेम करता है।

जो शिक्षक देश से प्रेम करेगा, वह अपने बच्चों की तरह देश के प्रत्येक बच्चों को देखेगा, और बड़ी शिद्दत व लगन से देश के बच्चों की मानसिकता गढ़ेगा।

याद रखिये, आप मात्र सब्जेक्ट टीचर और जॉब के लिए मदद करने वाले फैसिलिटेटर बनकर न रह जाना। आप बच्चों के शिक्षक बनना, उन्हें देशभक्त व समर्थ नागरिक गढ़ने में जुट जाना।

45 मिनट बच्चों के साथ आपकी सरकार होती है, कोई कानून व सरकार डिस्टर्ब नहीं करता। कैसे व क्या बोलना है, कैसे पढ़ाना है वह आप तय कर सकते हों। गुरु बनकर शिष्यों को भवसागर से उबार सकते हो, उन्हें प्रेरित कर सकते हो।

जहां चाह हो वहां राह मिल ही जाती है।

शिक्षक के प्रशिक्षण शिविर में जरूर आएं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday 13 January 2020

मकरसंक्रांति पर्व शुभकामनाएं

🌺 *मकरसंक्रांति पर्व - 15 जनवरी 2020* की शुभकामनाएं🌺
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प्रश्न - *कब है मकर संक्रांति 2020? (Makar Sankranti Kab Hai)*

उत्तर - ज्योतिषीय गणना के अनुसार, इस बार सूर्य, मकर राशि में 14 जनवरी की रात 02:07 बजे प्रवेश करेगा. इसलिए संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जाएगी। मकर संक्रांति से अग्नि तत्त्व की शुरुआत होती है और कर्क संक्रांति से जल तत्त्व की। इस समय सूर्य उत्तरायण होता है, इस समय किए जप, तप, यज्ञ और दान का फल अनंत गुना होता है।

हिंदू धर्म में सूर्य जिस तिथि में उदय होता है वही तिथि मान्य होती है। रात में हुए खगोलीय परिवर्तन का उत्सव  दूसरे दिन सूर्योदय पश्चात मनाया जाएगा।

प्रश्न - *मकर संक्रांति को कैसे मनाएँ?*

उत्तर - मकर संक्रांति को सूर्योदय के पूर्व निम्नलिखित मन्त्र बोलते हुए और गंगा जी का ध्यान करते हुए नहाएं, इससे तीर्थस्थान का पुण्य मिलेगा:-*

*गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ।*
*नर्मदे सिन्धु कावेरि जलऽस्मिन्सन्निधिं कुरु ।।*

गायत्रीमंत्र व निम्नलिखित मन्त्र बोलते हुए तिल, गुड़ एवं उड़द दाल को दान करने हेतु  बर्तन या लिफ़ाफ़े में डालें। नज़दीकी मन्दिर या गौशाला में दान दे दें।


ॐ दृते दृन्द मा मित्रस्य मा,
चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षन्ताम्।
‘मित्रस्याहं चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे।
मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे।’

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।


(यजुर्वेद 36/18 )

‘हमें विश्व के सारे प्राणी मित्र दृष्टि से नित देखें,
और सभी जीवों को हम भी मित्र दृष्टि से नित पेखें।
प्रभो!आप ऐसी सद्बुद्धि व विवेक हमें  प्रदान करने की कृपा करें कि हम समस्त विश्व को अपना गुरु बना सकें।

*मकरसंक्रांति के दिन तिल व गुड़ मिलाकर दैनिक यज्ञ या बलिवैश्व यज्ञ अवश्य करें।*

पूजन के वक़्त पीला कपड़ा पहनना अनिवार्य है, यदि पीला वस्त्र नहीं है तो उपवस्त्र गायत्री मन्त्र का दुपट्टा ओढ़े। आसन में ऊनी कम्बल या शॉल उपयोग में लें।

👉🏻मकरसंक्रांति सूर्योपासना गायत्री मन्त्र जप 5 माला अवश्य करें - *ॐ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्*

👉🏻5 दीपक शाम को जलाकर दीपदान के समय महामृत्युंजय मन्त्र भी जपें-
*ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टि वर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्*

सूर्य गायत्री मन्त्र - *ॐ भाष्कराय विद्महे, दिवाकराय धीमहि, तन्नो सूर्यः प्रचोदयात्*

 👉🏻 *मकर संक्रांति में सुबह सूर्य को अर्घ्य देने की विधि*

यदि घर के आसपास नदी तलाब या कोई जलाशय हो तो पानी में कमर तक पानी में खड़े होकर अर्घ्य दें, यदि नहीं है तो घर की छत पर या ऐसी जगह अर्घ्य दें जहाँ से सूर्य दिखें।  सूर्योदय के प्रथम किरण में अर्घ्य देना सबसे उत्तम माना गया है।सर्वप्रथम प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व  नित्य-क्रिया से निवृत्त्य होकर स्नान करें।उसके बाद उगते हुए सूर्य के सामने आसन लगाए।पुनः आसन पर खड़े होकर तांबे के पात्र में पवित्र जल लें।रक्तचंदन आदि से युक्त लाल पुष्प, चावल आदि तांबे के पात्र में रखे जल या हाथ की अंजुलि से तीन बार जल में ही मंत्र पढ़ते हुए जल अर्पण करना चाहिए।जैसे ही पूर्व दिशा में  सूर्योदय दिखाई दे आप दोनों हाथों से तांबे के पात्र को पकड़कर इस तरह जल अर्पण करे की सूर्य तथा सूर्य की किरण जल की धार से दिखाई दें। जल में थोड़ा काला तिल व थोड़ा गुड़ भी डालकर अर्घ्य दें।ध्यान रखें जल अर्पण करते समय जो जल सूर्यदेव को अर्पण कर रहें है वह जल पैरों को स्पर्श न करे।सम्भव हो तो आप एक पात्र रख लीजिये ताकि जो जल आप अर्पण कर रहे है उसका स्पर्श आपके पैर से न हो पात्र में जमा जल को पुनः किसी पौधे में डाल दे।यदि सूर्य भगवान दिखाई नहीं दे रहे है तो कोई बात नहीं आप प्रतीक रूप में पूर्वाभिमुख होकर किसी ऐसे स्थान पर ही जल दे जो स्थान शुद्ध और पवित्र हो।जो रास्ता आने जाने का हो भूलकर भी वैसे स्थान पर अर्घ्य (जल अर्पण) नहीं करना चाहिए।

👉🏻 *सूर्य अर्घ्य मन्त्र* -

*‘ॐ सूर्य देव सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते। अनुकंपये माम भक्त्या गृहणार्घ्यं दिवाकर:।।*
*ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय, सहस्त्रकिरणाय। मनोवांछित फलं देहि देहि स्वाहा :।।ऊँ सूर्याय नमः।ऊँ घृणि सूर्याय नमः।*
*‘ऊं भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात।*

👉🏻 *मकरसंक्रांति का प्रसाद*

सुबह व शाम भगवान को भोग में तिल, गुड़, मूँगफली, शकरकंद इन्हीं चीज़ों का भोग लगेगा। सभी प्रसाद में यह खाएंगे।

मकरसंक्रांति के दिन गुरु गोरखनाथ जी की याद में खिचड़ी उड़द के दाल, चावल, हरी सब्जियां मिलाकर खिचड़ी बनाकर घी, पापड़ या अचार के साथ अवश्य खाएँ।

धूप में सपरिवार बैठें व आकाश की ओर देखें। बच्चे व बड़े पतंग उड़ायें।

🙏🏻 *मकर संक्रांति पर्व की बधाई*🙏🏻

आसपड़ोस के भाई बहनों को भी तिल व मूंगफली की बनी स्वादिष्ट चीज़ें खिलाएं, खुशियों का पर्व मकरसंक्रांति मनाएँ।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

संकष्टी चतुर्थी व्रत की शुभकामनाएं

*संकष्टी चतुर्थी व्रत की शुभकामनाएं - 13 जनवरी 2020*

*संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा* - एक कुम्हार का नन्हा बच्चा खेलता हुआ आँवे में प्रवेश कर गया और वहीं सो गया। इस बात से बेख़बर कुम्हार ने आँवे में आग लगा दिया। कुम्हारिन बहुत व्यथित व परेशान हुई, विलाप करती हुई बच्चे को ढूँढने लगी। तभी उसने कुछ लोगों को संकष्टी चतुर्थी का व्रत व पूजन करते देखा। वह भी पूजन में बैठ गयी और भगवान गणेश से पुत्र के सकुशल होने की प्रार्थना करने लगी। भगवत कृपा से वर्षा हो गयी व आग बुझ गयी। पानी पड़ने से बच्चा जग गया और रोने लगा। उसकी आवाज़ सुनकर उसी दिशा में कुम्हार गया और उसे बच्चा मिल गया। भगवान गणेश ने उसके संकट दूर किये।

आज के दिन अधिकतर महिलाएँ निर्जल व्रत करती हैं और कुछ महिलाएँ फलाहार लेकर श्रद्धा पूर्वक व्रत रखती है।

तीन माला गायत्रीमंत्र व एक माला गणेश मन्त्र का जप करती हैं। व शाम को दीपयज्ञ करती हैं व चन्द्रोदय के समय अर्घ्य देती हैं।

आज गणेश भगवान को तिल व गुड़ से बने भोग के साथ साथ शकरकंद का भी भोग लगता है।

👉🏻॥ *गणेश आवाहन*॥

गणेश जी को विघ्ननाशक और बुद्धि- विवेक का देवता माना गया है।

*ॐ एकदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि।*
*तन्नो दन्ती प्रचोदयात्॥* - गु०गा०
*ॐ विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय,*
*लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय।*
*नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय,*
*गौरीसुताय गणनाथ! नमो नमस्ते॥*
*ॐ श्री गणेशाय नमः॥ आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।*

👉🏻॥ *दीपयज्ञ से गणेश चतुर्थी पूजन व दीपदान*॥

दीप, ज्ञान के- प्रकाश के प्रतीक हैं। ज्ञान और प्रकाश के वातावरण में ही लक्ष्मी बढ़ती है, फलती- फूलती है। अज्ञान और अन्धकार में वह नष्ट हो जाती है, इसलिए प्रकाश और ज्ञान के प्रतीक साधन दीप जलाये जाते हैं।
एक थाल में कम से कम ५ या ११ घृत- दीप जलाकर उसका निम्न मन्त्र से विधिवत् पूजन करें।

*ॐ अग्निर्ज्योतिर्ज्योतिरग्निः स्वाहा। सूर्यो ज्योतिर्ज्योतिः सूर्यः स्वाहा। अग्निर्वर्च्चो ज्योतिर्वर्च्चः स्वाहा। सूर्यो वर्च्चो ज्योतिर्वर्च्चः स्वाहा। ज्योतिः सूर्यः सूर्यो ज्योतिः स्वाहा*॥ ३.९

घर के सभी के हाथ मे अक्षत पुष्प देकर नेत्र बन्द कर भावनात्मक आहुति देने को बोलिये।

*गायत्री मन्त्र*- ॐ भूर्भूवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्।

*गणेश गायत्री मन्त्र*- ॐ एकदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।

*दुर्गा गायत्री मन्त्र*- गिरिजायै विद्महे शिवप्रियायै धीमहि। तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्।

*रुद्र गायत्री मन्त्र*- ॐ पञ्चवक्त्राय विद्महे, महाकालाय धीमहि, तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्

*चन्द्र गायत्री मन्त्र*- ॐ क्षीरपुत्राय    विद्महे, अमृतत्वाय धीमहि, तन्न: चन्द्र:  प्रचोदयात्।

*महामृत्युंजय मन्त्र*- ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टि वर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।
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*||गणेश जी की आरती||*

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
एकदन्त दयावन्त चारभुजाधारी। माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी॥

पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा। लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा॥
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

अन्धे को आँख देत, कोढ़िन को काया। बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥
‘सूर’ श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

*||शान्तिपाठ||*

ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्षं शान्तिः
पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः ।
वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः
सर्वं शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

।। *चन्द्र अर्घ्य* ।।

निम्नलिखित मन्त्र बोलते हुए चन्द्र को अर्घ्य दें:- (अर्घ्य में जल के लोटे में थोड़ा सा गंगाजल, गुड़ व तिल डालकर आज के दिन अर्घ्य दें)

*चन्द्र गायत्री मन्त्र*- ॐ क्षीरपुत्राय    विद्महे, अमृतत्वाय धीमहि, तन्न: चन्द्र:  प्रचोदयात्।

इसके पश्चात फलाहार कर लें।

🙏🏻 *स्त्री वैसे भूख सहन नहीं कर सकती, लेक़िन जब पूजन के उद्देश्य में पति व सन्तान के उज्ज्वल भविष्य की बात हो तो व्रत उपवास रखने में पीछे नहीं हटती। धन्य है भारत भूमि जहां माता व पत्नी के रूप में धर्म परायण देवितुल्य स्त्रियां है। स्त्री यदि इतना ही प्रेम भगवान से कर ले तो वह उसे भी प्राप्त कर सकती है, वह भगवान को प्राप्त करने के लिए कोई भी कठोरतम जप व तप कर सकती है।🙏🏻

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती, DIYA

लोहड़ी पर्व की ढेर सारी शुभकामनाएं, मौसम परिवर्तन से उपजें रोगों को सामूहिक यज्ञ से दूर भगाएं

*लोहड़ी पर्व की ढेर सारी शुभकामनाएं, मौसम परिवर्तन से उपजें रोगों को सामूहिक यज्ञ से दूर भगाएं*
- 13 जनवरी 2020
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*लोहड़ी का अर्थ है*- ल (लकड़ी), ओह (गोहा यानी सूखे उपले), ड़ी (रेवड़ी)। लोहड़ी के पावन अवसर पर लोग मूंगफली, तिल व रेवड़ी को इकट्ठठा कर प्रसाद के रूप में इसे तैयार करते हैं और आग में अर्पित करने के बाद आपस मे बांट लेते हैं। जिस घर में नई शादी हुई हो या फ‍िर बच्‍चे का जन्‍म हुआ हो वहां यह त्‍योहार काफी उत्‍साह व नाच-गाने के साथ मनाया जाता है।

 भगवान कृष्ण द्वारा लोहिता राक्षसी का वध भी आज के दिन किया गया था उस खुशी के उपलक्ष में  यह पर्व मनाया जाता है।

कालांतर में अकबर के शासन के दौरान दुल्ला भट्टी की वीरगाथा से जोड़ा गया उसके जीवन की  विशेषताओं में से एक यह है कि उसने मुगलों द्वारा प्रकारांतर से उठाई गई हिंदू लड़कियों को वापस छीन कर उनका विवाह हिंदू  युवकों के साथ कराया गया। आज लोहड़ी पर्व पर दुल्ला भटी की देशभक्ति और वीरता को याद करना चाहिए।

वैदिक परंपरा मौसम परिवर्तन और मौसम परिवर्तन के दौरान सक्रमण व रोगों की रोकथाम के लिए एक सामूहिक यज्ञ हवन लोहड़ी पर्व में करने की सदियों पुरानी एक प्रक्रिया है, परम्परा है।

 सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने से 1 दिन पहले पूरे भारत  में प्रकारांतर से यह पर्व मनाया जाता है। सब जगह किसी न किसी प्रकार का हवन करने की परंपरा रही है। तीन चार महीने की सर्दी के कारण शरीर में आलस्य का भरना और उससे मन में नकारात्मकता के कुहासे को दूर करने के लिए क्षेत्र के सभी लोग एक जगह एकत्र होकर हवन करते थे। उसमें अन्य  सामग्री के अलावा काले तिल की आहुति दी जाती है।

काले तिल नकारात्मकता का अंत दर्शाते है। पूजन, लोहड़ी की आग और हवन में काले तिलों का उपयोग करना जीवन में नकारात्मकता खत्म होने का संकेत देते हैं।
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सामूहिक यज्ञ के लिए गोबर के उपलों, आम की लकड़ी, चिरायता औषधि की सुखी झाड़, गिलोय की सुखी बेलें व लकड़ी, सुखी तुलसी की लकड़ियाँ एकत्रित करके यज्ञ कुंड प्रज्वलित करें।

हवन सामग्री में *शान्तिकुंज हरिद्वार की 11 औषधियों के मिश्रण से बनी कॉमन हवन सामग्री या आर्य समाज द्वारा बनाई हवन सामग्री लें*। इसमें तिल, गुड़, अक्षत, जौ और कर्पूर मिलाकर निम्नलिखित मन्त्रो से सामूहिक हवन करें:-

*गायत्री मन्त्र*- ॐ भूर्भूवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्। स्वाहा  इदं गायत्र्यै इदं न मम्।

*गणेश गायत्री मन्त्र*- ॐ एकदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।स्वाहा  इदं गणेशाय इदं न मम्।

*चन्द्र गायत्री मन्त्र*- ॐ क्षीरपुत्राय    विद्महे, अमृतत्वाय धीमहि, तन्न: चन्द्र:  प्रचोदयात्। स्वाहा  इदं चन्द्राय इदं न मम्।

*महामृत्युंजय मन्त्र*- ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टि वर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्। स्वाहा  इदं महामृत्युंजयाय इदं न मम्।

*पुर्णाहुति से पूर्व एक बुरी आदत त्यागने व एक अच्छी आदत अपनाने का संकल्प लें*

सामूहिक भजन कीर्तन प्रेरणादायक गीत, क्रांतिकारी गीत, व नुक्क्ड़ नाटक इत्यादि का आयोजन करें। खूब आनन्द मनाएं और तिल गुड़ से बने प्रसाद को खाएं व आनन्द उठाएं।


*||शान्तिपाठ||*

ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्षं शान्तिः
पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः ।
वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः
सर्वं शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती, DIYA

Thursday 9 January 2020

प्रारब्ध शमन व जीवन लक्ष्य की प्राप्ति के लिए गायत्री महामंत्र जप और सही दिशा में पुरुषार्थ करें।

*प्रारब्ध शमन व जीवन लक्ष्य की प्राप्ति के लिए गायत्री महामंत्र जप और सही दिशा में पुरुषार्थ करें।*

शास्त्रों में,पुराणों में और हिन्दू धर्म में  महामंत्र गायत्री मंत्र का बहुत ही ज्यादा महत्त्व वर्णित है| इस महामंत्र के जप से सभी संकटों से मुक्ति मिलती है और सकारात्मकता प्राणऊर्जा से मन भर जाता है|

मन्त्र शक्ति है और पुरुषार्थ शिव है,  जिस प्रकार पूर्णता के लिए शिव को शक्ति का साथ चाहिए, वैसे ही मनुष्य को जीवन लक्ष्य प्राप्ति व प्रारब्ध शमन के लिए मन्त्र जप के साथ साथ सांसारिक पुरुषार्थ भी करना चाहिए। *उदाहरण* - यदि परीक्षा में सफ़ल बनना है तो बुद्धि की शक्ति व क्षमता के विकास लिए गायत्री मन्त्र जप करें व उगते सूर्य का ध्यान करें, और बुद्धि में जानकारियों के प्रवेश के लिए सम्बन्धित विषय की पुस्तकों की पढ़ाई भी करें।

*भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।*
*याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्‌॥*

*भावार्थ:*-श्रद्धा और विश्वास के स्वरूप श्री पार्वतीजी और श्री शंकरजी की मैं वंदना करता हूँ, जिनके बिना सिद्धजन अपने अन्तःकरण में स्थित ईश्वर को नहीं देख सकते॥

श्रद्धा-विश्वास के बिना कोई भी मन्त्र फ़लित नहीं होता। अतः श्रद्धा-विश्वास से उपरोक्त में से पूर्ण या संक्षिप्त में से जो जप सकें, जप करें। भगवान शंकर व माता गायत्री की कृपा बनी रहेगी। रोगों से मुक्ति मिलेगी।

👉🏻🙏🏻 *आदरणीय चिन्मय भैया का उद्बोधन सुने - "मन्त्र में कैसे लाएं विलक्षण शक्ति"*
👇🏻
https://youtu.be/TGqd_Er8oPA


अखंडज्योति 1966, में युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं कि👇🏻
*प्रारब्ध शमन के लिए गायत्री मंत्र का जप और यज्ञकरना चाहिए*
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       *ऋषियों की मान्यता है कि गायत्री मंत्र जप और यज्ञ सघन प्रारब्ध को काटने, मिटाने का सर्वोत्तम साधन है* ।
      *यदि गायत्री मंत्र का उपासक लम्बे समय से गायत्री मंत्र का जप या अनुष्ठान ,यज्ञ करता है तो उसके जीवन में आने वाले दुर्भाग्य का ताप ( प्रभाव ) कम हो जाता है और वह दुर्भाग्य छोटी-छोटी घटनाओं में परिवर्तित होकर समाप्त हो जाता है।*
     *गायत्री साधक को जीवन में दुर्योग स्पर्श भी नहीं कर पाता है। क्योंकि भगवत चेतना ढ़ाल बनकर साधक के साथ खड़ी हो जाती है।*

तुलसीदास जी कहते हैं कि👇🏻

*कर्म प्रधान विश्व रचि राखा ।*
 *जो जस करहि सो तस फल चाखा ॥*
 *सकल पदारथ हैं जग मांही।*
 *कर्महीन नर पावत नाहीं ॥*

मनुष्य के जीवन में कर्म की प्रधानता से। चाहें रामचरित मानस हो या गीता, दोनों में ही कर्म को ही प्रधान बताया गया है। *हम अपने कर्मो से ही अपने भाग्य को बनाते और बिगाड़ते हैं। हमें कर्म के आधार पर ही उसका फल प्राप्त होता है। कर्म सिर्फ शरीर की क्रियाओं से ही संपन्न नहीं होता बल्कि मन से, विचारों से एवं भावनाओं से भी कर्म संपन्न होता है।*

मंत्रजप भावनात्मक कर्म है, यज्ञ, जप, तप, ध्यान सभी चेतना स्तर के कर्म है। जिस तरह कमाया पैसा जीवन को एशोआराम देता है, वैसे ही कमाया गया पुण्य जीवन में सुख-शांति देता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...