Wednesday 31 October 2018

प्रश्न - *संस्कार परम्परा क्यों आवश्यक है? सन्तान को श्रेष्ठ कैसे गढ़े?*

प्रश्न - *संस्कार परम्परा क्यों आवश्यक है? सन्तान को श्रेष्ठ कैसे गढ़े?*

उत्तर - आत्मीय बहन  जीवात्मा को यदि गर्भ से ही सम्हाला और सँवारा न जाये, तो मनुष्य अपनी अस्मिता का अर्थ समझना तो दूर, पीड़ा और पतन की ओर निरंतर अग्रसर होता हुआ नरकीटक, नर−वानर, बनता चला जाता है ।। जीवात्मा का प्रशिक्षण गर्भ में ही शुरू हो जाता है, जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त चलता है।। यही सँस्कार परम्परा है।। जीवन के महत्त्वपूर्ण मोड़ों पर सजग- सावधान करने और उँगली पकड़कर सही रास्ता दिखाने के लिए हमारे तत्त्ववेत्ता, मनीषियों ने षोडश संस्कारों का प्रचलन किया था ।। चिन्ह- पूजा के रूप में प्रचलन तो उनका अभी भी है पर वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक बोध और प्रशिक्षण के अभाव वे मात्र कर्मकाण्ड और फिजूलखर्ची बनकर रह गये हैं ।।

कुछ संस्कार तो रस के कुपित हो जाने पर उसके विष बन जाने की तरह उलटी कुत्सा भड़काने का माध्यम बन गये हैं ।। विशेष रूप से विवाहों में तो आज यही हो रहा है, भौंडे प्रदर्शन, ख़र्चीली शादी, दहेज प्रथा और नशा इत्यादि से युक्त विवाह विवाह संस्कार नहीं है।। यों मनुष्य माटी का खिलौना है ।। पाश्चात्य सभ्यता तो उसे 'सोशल एनिमल' अर्थात् 'सामाजिक पशु' तक स्वीकार करने में संकोच नहीं करती, पर जिस जीवन को जीन्स और क्रोमोज़ोम समुच्चय के रूप में वैज्ञानिकों ने भी अजर- अमर और विराट् यात्रा के रूप में स्वीकार कर लिया हो, उसे उपेक्षा और उपहास में टालना किसी भी तरह की समझदारी नहीं है ।। कम से कम जीवन ऐसा तो हो, जिसे गरिमापूर्ण कहा जा सके ।। जिससे लोग प्रसन्न हों, जिसे लोग याद करें, जिससे आने वाली पीढ़ियाँ प्रेरणा लें, ऐसे व्यक्तित्व जो जन्म- जात संस्कार और प्रतिभा- सम्पन्न हों, उँगलियों में गिनने लायक होते हैं ।। अधिकांश तो अपने जन्मदाताओं पर वे अच्छे या बुरे जैसे भी हों, उन पर निर्भर करते हैं, वे चाहे उन्हें शिक्षा दें, संस्कार दें, मार्गदर्शन दें, या फिर उपेक्षा के गर्त में झोंक दें, पीड़ा और पतन में कराहने दें ।।

प्राचीनकाल में यह महान दायित्व कुटुम्बियों के साथ- साथ संत, पुरोहित और परिव्राजकों को सौंपा गया था ।। वे *आने वाली पीढ़ियों को सोलह- सोलह अग्नि पुटों से गुजार कर खरे सोने जैसे व्यक्तित्व में ढालते थे ।। इस परम्परा का नाम ही संस्कार परम्परा है ।। जिस तरह अभ्रक, लोहा, सोना, पारस जैसी सर्वथा विषैली धातुएँ शोधने के बाद अमृत तुल्य औषधियाँ बन जाती हैं, उसी तरह किसी समय इस देश में मानवेत्तर योनियों में से घूमकर आई हेय स्तर की आत्माओं को भी संस्कारों की भट्ठी में तपाकर प्रतिभा- सम्पन्न व्यक्तित्व के रूप में ढाल दिया जाता था ।।* यह क्रम लाखों वर्ष चलता रहा उसी के फलस्वरूप यह देश 'स्वर्गादपि गरीयसी' बना रहा, आज संस्कारों को प्रचलन समाप्त हो गया, तो पथ भूले बनजारे की तरह हमारी पीढ़ियाँ कितना भटक गयीं और भटकती जा रही हैं, यह सबके सामने है ।। आज के समय में जो व्यावहारिक नहीं है या नहीं जिनकी उपयोगिता नहीं रही, उन्हें छोड़ दें, तो शेष सभी संस्कार अपनी वैज्ञानिक महत्ता से सारे समाज को नई दिशा दे सकते हैं ।। इस दृष्टि से इन्हें क्रान्तिधर्मी अभियान बनाने की आवश्यकता है ।।

भारत को पुनः एक महान राष्ट्र बनना है, विश्व गुरु का स्थान प्राप्त करना है ।। उसके लिए जिन श्रेष्ठ व्यक्तियों की आवश्यकता बड़ी संख्या में पड़ती है, उनके विकसित करने के लिए यह संस्कार प्रक्रिया अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकती है ।। ।। प्रत्येक विचारशील एवं भावनाशील को इससे जुड़ना चाहिए ।। युगतीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार, गायत्री तपोभूमि मथुरा सहित तमाम गायत्री शक्तिपीठों , गायत्री चेतना केन्द्रों, प्रज्ञापीठों, प्रज्ञा केन्द्रों में इसकी व्यवस्था बनाई गई है ।। हर वर्ग में युग पुरोहित विकसित किए जा रहे हैं ।। आशा की जाती है कि विज्ञजन, श्रद्धालु जन इसका लाभ उठाने एवं जन- जन तक पहुँचाने में पूरी तत्परता बरतेंगे ।। डॉक्टर और बुद्धिजीवियों की टीम युगपुरोहित बनकर गर्भ का ज्ञान विज्ञान जन जन तक पहुंचा रहे है।। हमारे युवा युग पुरोहित जन्मदिवस और विवाह दिवस के उपलक्ष्य में घर घर जाकर अलख जगा रहे हैं।। सँस्कार के प्रति जागरूकता फैला रहे हैं।।

युग ऋषि (वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य) ने युग की तमाम समस्याओं का अध्ययन किया और उनके समयोचित समाधान भी निकाले । इसी क्रम में उन्होंने संस्कार प्रक्रिया के पुनर्जीवन का भी अभियान चलाया ।। उन्होंने संस्कारों को विवेक एवं विज्ञान सम्मत स्वरूप बना दिया है।। मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है।। मनचाही सन्तान सही दिशा में प्रयत्न करके विविध संस्कारो के माध्यम से विचारो में क्रांति उतपन्न करके गढ़ सकता है।।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *आजकल की सन्तान माता पिता की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ अपनी मनमर्ज़ी से शादी करके उनके साथ बेवफ़ाई करते है, ये कैसे सुनिश्चित करें कि बच्चे बड़े होकर मनमर्ज़ी और बेफ़वाई न करें?*

प्रश्न - *आजकल की सन्तान माता पिता की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ अपनी मनमर्ज़ी से शादी करके उनके साथ बेवफ़ाई करते है, ये कैसे सुनिश्चित करें कि बच्चे बड़े होकर मनमर्ज़ी और बेफ़वाई न करें?*

उत्तर - आत्मीय बहन,

विवाह में दो लोग शामिल होते है एक लड़का और एक लड़की।

ये दोनों ही जीवित मनुष्य है और इनके अंदर मन बुद्धि चित्त अहंकार होता है। कामना - वासना- इच्छाये होती है।

फ़िल्मे टीवी सीरियल फ़िल्मी गाने और मीडिया सुबह से शाम मुहब्बत करना सिखाते है और जमाना प्यार का दुश्मन है यह बताते हैं। मुहब्बत के लिए आग का दरिया पास कर लो। इश्क़ और जंग में सब जायज़ है। बच्चो को बचपन से कुसंस्कार ये माध्यम दे रहे हैं।

आजकल कमाने में माता-पिता इतने व्यस्त है कि गिफ्ट का ढेर बच्चो को देते है, खूब धन खर्च करते हैं। केवल क़्वालिटी वक्त उन्हें नहीं देते। माता-पिता भूल जाते हैं कि - *प्यार का मतलब ही है वक्त, जो प्रेम करेगा वो उसे वक्त तो देना ही पड़ेगा*।

मनमर्ज़ी से विवाह में यदि लड़की ने अपने माता-पिता से बेवफ़ाई की तो लड़के ने भी अपने माता-पिता से बेवफ़ाई की। तो इसमें लिंगभेद न करें कि मेरी लड़की तो   भोलीभाली है उसे लड़के ने फंसाया या मेरा बेटा तो भोलाभाला है उसे लड़की ने फंसाया। ये सब बक़वास न सोचें, अपनी सन्तान को बेगुनाह और दूसरे की सन्तान को गुनाहगार घोषित न करें। कभी एक हाथ से ताली नहीं बजती, प्रेम विवाह में दोनों की मर्जी शामिल होती है।

सन्तान जन्म लेने से पूर्व आपके घर अनुरोध एप्लिकेशन नहीं भेजती, कि मैं भटक रहा/रही हूँ, मुझे जन्म दो। सन्तान प्राप्ति हेतु भावी माता-पिता प्रयत्न करते है। लेकिन मनचाही आत्मा को सन्तान रूप में आप चुन नहीं सकते है और न ही सन्तान अपने लिए मनचाहे माता-पिता और घर चुन सकती है। ऑनलाइन/ऑफलाइन सन्तान की रेडीमेड शॉपिंग उपलब्ध नहीं है। लेकिन युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं कि - *गर्भ सँस्कार से लेकर विभिन्न संस्कारो के माध्यम से मनचाही सन्तान आप गढ़ जरूर सकते है।*

संतानों की बेवफाई से बचने के कुछ उपाय बता रही हूँ, जो पसन्द आये वो अपना लें:-

1- सन्तान ही उतपन्न मत करो, बाजार से रोबोट लाओ और अपनी मर्जी से रिमोट से चलाओ। जीवित सन्तान का रिमोट नहीं होता।

2- सन्तान को घर से बाहर मत जाने दो, गुलाम की तरह रखो, गुलाम मानसिकता का बना दो और फिर मन मर्जी से उनका विवाह करो। क्योंकि ग़ुलाम को मन मर्जी से किसी को भी गिफ्ट/विवाह किया जा सकता है। स्वतन्त्र सोच के सन्तान को काबू में करना मुश्किल है।

3- घर से टीवी रेडियो फ़िल्मे और इंटरनेट सबकुछ हटा दो, जो बच्चा कभी फ़िल्म और टीवी सीरियल में इश्क होता हुआ न देखेगा और कभी इश्क के बारे में न जानेगा। वो मनमर्जी से शादी करने की कल्पना भी नहीं करेगा।

4- बच्चे को बचपन से किसी बड़े जीवन लक्ष्य से जोड़ दो। उस लक्ष्य के प्रति जुनून भर दो। वो अपने काम मे ही इतना मशगूल होगा कि इश्क करने की फुर्सत ही नहीं मिलेगी।

5- बच्चो से निःश्वार्थ प्यार करो, और अच्छे संस्कार गर्भ से जीवन पर्यन्त दो, कि वो अपनी मर्ज़ी को आपकी मर्जी के लिए त्याग दें।  उनके साथ मित्रवत हो जाओ और उन्हें इतना विश्वास दिला दो कि आप प्रत्येक उनके निर्णय में साथ हो, बशर्ते वह उनके भले के लिए हो। ऐसे में बच्चा आपके लिए इश्क की तो बात ही क्या वो अपनी जान और सर्वस्व भी आपके लिए देने को तैयार रहेगा। बच्चे के हृदय में आपके लिए सम्मान हो ऐसा अपना चरित्र चिंतन व्यवहार बना लो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

बक़रीद पर संविधान का उल्लंघन - संविधान अनुच्छेद 15(A) के अनुसार मांस को लेकर निर्देश के अनुसार कोई भी पशु (मुर्गी समेत) सिर्फ बूचड़खाने में ही काटा जाएगा.

बक़रीद के अवसर पर कानून की अवहेलना खुले आम होती है, उदाहरण संविधान अनुच्छेद 15(A) के अनुसार मांस को लेकर निर्देश के अनुसार कोई भी पशु (मुर्गी समेत) सिर्फ बूचड़खाने में ही काटा जाएगा. बीमार और गर्भ धारण कर चुके पशु को मारा नहीं जाएगा. प्रिवेंशन ऑफ क्रुएलिटी ऑन एनिमल्स एक्ट और फूड सेफ्टी रेगुलेशन में इस बात पर स्पष्ट नियम हैं। लेकिन बक़रीद के दिन खुले आम संविधान का उलंघन होता है। स्लॉटरहाउस रूल्स 2001 के मुताबिक देश के किसी भी हिस्से में पशु बलि देना गैरकानूनी है।

Tuesday 30 October 2018

प्रश्न - *हेलोवीन क्या है ? हेलोवीन दिवस का इतिहास व कहानी बतायें।*

प्रश्न - *हेलोवीन क्या है ? हेलोवीन दिवस का इतिहास व कहानी बतायें।* ( Halloween kya hai? Day 2018, History and Story In Hindi) बच्चे आज़कल इस दिन सोसायटी में बड़े अजीबोगरीब तरीक़े से मनाते है। ये है क्या...

उत्तर - आत्मीय बहन, यदि आप हिन्दू रीति रिवाज को समझते है तो नवरात्र के पहले पितृपक्ष को समझते ही होंगे और उसके बाद के नवदुर्गा पूजन को करते होंगे। अर्थात पहले पितर(मृतात्माओं) को भोजन 15 दिन श्राध्द देना होता है। उसके बाद 9 दिन दुर्गा देवी का पूजा होती है। पितृ पक्ष के बाद नवरात्र पूजन न हो तो आत्माएं वापस नहीं जा पाती और वो घर परेशानी उठाता है।


हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार पितर(मृतात्माओं) का ड्रेस सफ़ेद वस्त्र और शांत ड्रेस होता है। वो शांति पसन्द है। इसलिए 15 दिन वो नई वस्तु नहीं खरीदते और घर में चमक धमक हल्ला गुल्ला नहीं करते। ईसाई धर्म की मान्यता के अनुसार उनके पूर्वज की आत्माएं डरावनी और भयावह होती है और हल्ला गुल्ला पसन्द करती है। इसलिए ईसाई डरावने वस्त्र और मेकअप करके हल्ला गुल्ला मचाते है। सबका त्योहार उनकी अपनी कल्पना शक्ति के आधार पर है।

*इसी हिंदू पर्व का ईसाई में बना शॉर्टकट रूप पितृपक्ष श्राद्ध - हेलोवीन है। और नवदुर्गा पूजन-मूर्ति पूजन - आल सेट्स डे है।*

हिंदू में अध्यात्म पूजन कर्मकांड के साथ साथ भावना प्रधान होता है। साथ ही स्थान के अनुसार भोजन और मिठाई तय होता है। इसाई धर्म के प्रत्येक त्योहार उनके पसंदीदा भोजन केक, पेस्ट्री, कैंडी और उपलब्ध सब्जी कद्दू इत्यादि के आइटम होते है।

हेलोवीन दिवस ईसाईयों का एक त्यौहार होता है, जोकि अक्टूबर के आखिरी रविवार को मनाया जाता है. अलग – अलग धर्मों के त्यौहार अलग – अलग प्रकार के होते है जैसे हिन्दुओं में होली, राखी, दशहरा एवं दिवाली, राष्ट्रीय त्यौहार के रूप में स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस आदि और भी कई त्यौहार मनाये जाते है, इस्लाम में ईद – उल – फितर, बकरीद, मुहर्रम आदि और सिख में वैसाखी, गुरुनानक जयंती आदि उसी प्रकार ईसाईयों में भी कई प्रकार के त्यौहार मनाये जाते है जैसे क्रिसमस, गुडफ्राइडे और इस्टर और उन्हीं का एक त्यौहार हेलोवीन दिवस भी है. इस त्यौहार को ज्यादातार अमेरिका, इंग्लैंड व यूरोपीय देशों के लोग मनाते है, लेकिन इस त्यौहार की शुरुआत आयरलैंड एवं स्कॉटलैंड से हुई है|

अक्टूबर के अंत के दो दिन 30 और 31, कहीं पर केवल लास्ट दिन 31 अक्टूबर मनाया जाता है। कहीं कहीं पर यह 31 को हेलोवीन और 1 को आल सेट्स डे के रूप में मनाया जाता है।

ईसाई लोग अपने पूर्वजो की मृतात्माओं और भूतों के आह्वाहन हेतु डरावने और भयावह कपड़े पहनते है, यह एक प्रकार का सिग्नल होता है कि हम आपसे मिलने को तैयार है, आप आ जाओ। उनके जैसी हरकत करते हैं। लोगों को डरवाते है। भूतों वाली पार्टी करते है। एक तरह का संदेश होता है कि - *एक दिन सबको मरना है, मरने के बाद भी जीवन है। शरीर नश्वर है आत्मा अमर है। पूर्वजो को याद करने का यह दिन है।* ईसाइयों का मानना है उनके पूर्वजो को गॉड ये दो दिन उनसे मिलने भेजता है। आत्माएं अपने वसँजो मिलती है और केक पेस्ट्री यहाँ एन्जॉय करती है। हेलोवीन मनाया तो आल सेट्स डे जरूर मनाएं।


शाम को पूर्वजो की प्रेयर के बाद विदाई कर दी जाती है। 1 नवम्बर को आल सेट्स डे के दिन मूर्ति पूजा करके भगवान/गॉड को पुनः बुलाया जाता है। पुनः सब व्यवस्था गॉड के अधीन कर दी जाती है।

यदि कोई हेलोवीन डे त्यौहार की नकल करते हुए मना रहा है। बच्चे डरावने वस्त्र पहन रहे हैं। तो अक्ल जरूर उपयोग करते हुए दूसरे दिन घर मे यज्ञादि द्वारा पूजन करके विदाई जरूर दे दें और भगवान का आह्वाहन जरूर कर लें। प्रेतात्मा हो या देवात्मा आह्वाहन पर आवाहित शरीर पर अपना असर जरूर छोड़ जाती है। प्रत्येक त्योहार के पीछे का भाव, कृत्य और सिस्टम समझे बिना नकल महंगी साबित होगी। आह्वाहन के बाद विसर्जन जरूरी है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

आत्मियता विस्तार ही सच्चा धर्म है। लोकसेवा ही तपस्वी योगी की पहचान है।

धर्म-तप से जब सँस्कार जुड़ा,
तो सृजन हुआ, लोकसेवी बने,
धर्म-तप से जब अहंकार जुड़ा,
तो विध्वंस हुआ, आतंकी बने।

सँस्कार से बने लोकसेवी,
आत्मियता प्रेम भाव से लोकसेवा में जुटे,
अहंकार से बने आतंकी,
वैमनस्यता घृणा भाव से जीवन छिनने में जुटे।

आत्मियता विस्तार ही सच्चा धर्म है।
लोकसेवा ही तपस्वी योगी की पहचान है।

श्वेता, DIYA

प्रेम जो कर्तव्य से न जुड़ा तो...

प्रेम जो कर्तव्य से न जुड़ा, प्रेम जो त्याग से न जुड़ा, वो प्रेम विष समान कष्टकर होगा, मृत्यु के समान कष्ट और पीड़ा देगा। ~श्वेता, DIYA

#MeToo नाना के किये अच्छे समाजसेवा के कार्यो और हज़ारो किसानों को आत्महत्या से बचाने के कार्य को इग्नोर करके, उस पर लगे 10 साल से ज्यादा पुराने मामले पर, बिना सबूत बेवजह उस पर शक करना क्या जायज़ है?

#MeToo नाना के किये अच्छे समाजसेवा के कार्यो और हज़ारो किसानों को आत्महत्या से बचाने के कार्य  को इग्नोर करके, उस पर लगे 10 साल से ज्यादा पुराने मामले पर, बिना सबूत बेवजह उस पर शक करना क्या जायज़ है? यह खबर 2016 की है, लेकिन नाना के अच्छे कार्यो की लंबी सूची है। स्वयं विचार करें और अपने कमेंट दें।
Nana Patekar Has Donated Almost 90% Of His Earnings To Charity! https://www.indiatimes.com/entertainment/celebs/nana-patekar-has-donated-almost-90-of-his-earnings-to-charity-8-facts-that-ll-make-you-respect-him-even-more-257741.html

पूजा और ध्यान में मन नहीं लगता, मन मेरी सुनता नहीं

*पूजा और ध्यान में मन नहीं लगता, मन मेरी सुनता नहीं*

अच्छा मन नहीं सुनता, लेकिन तन तो सुनता है न। जहाँ जाना चाहो जाता है कि नहीं , ग्लास उठाने को बोलो उठाता है कि नहीं।

हांजी तन तो सुनता है। अब एक काम करिये 15 दिन तक शरीर को भोजन पानी मत दीजिये। फिर 16वे दिन पैर को चलने को बोलो और हाथ को उठाना चाहो। तन सुनेगा। नहीं न।

इसी तरह मन को भी भोजन चाहिए। अच्छे विचारों, सत्संग, स्वाध्याय का, यदि मन को नियमित यह आहार नहीं दोगे। तो मन विद्रोह करेगा और आपकी कभी नहीं सुनेगा।

तन को सन्तुलित आहार दो,
मन को सन्तुलित विचार दो,
 जीवन को सन्तुलित विहार दो,
आनन्दमय जीवन की बहार लो।

🙏🏻श्वेता, DIYA

युगनिर्माण - आत्मियता विस्तार

*युगनिर्माण - आत्मियता विस्तार*

दिल्ली एनसीआर को पूरे भारत देश मे क्रांति लानी है। हम सब गुरुदेब के अंग अवयव हैं। इसमें हमारी महत्त्वपूर्ण है।

आत्मियता विस्तार से ही युगनिर्माण सम्भव है। भाव सम्वेदना की गंगोत्री पुस्तक में गुरुदेव ने यही मूलमंत्र दिया है।

यदि आप गुरु से प्रेम करते है, तो सबसे पहले उनके विचारों से प्रेम करना होगा।

गुरूदेव का संदेश रोज क्या सुनते है, क्या नित्य 30 मिनट गुरुदेब का ध्यान करते हैं? उनकी सुनते है?

क्या क्रांतिधर्मी साहित्य का सेट आपके घर है? क्या कम से कम 30 मिनट रोज गुरुदेब के साथ समय व्यतीत कर रहे हैं? उनके साहित्य का स्वाध्याय करके उनसे मिलते है? क्योंकि गुरु का सान्निध्य उनके विचारों से ही मिलेगा।

युगनिर्माण हेतु सप्ताह में कम से कम एक बार किसी नए व्यक्ति से युगनिर्माण की चर्चा करते है। क्या उन्हें अपने मिशन और गतिविधियों की सूचना देते हैं।

आप जलता हुआ दिया है, लेकिन दिया यदि एक जगह से हिलेगा नहीं दूसरे दिए तक पहुंचेगा नहीं तो दूसरा दिया जला न सकेगा।

किसी से प्रेम करते हो तो समय देना पड़ेगा। बिन समय कोई प्रेम नहीं होता।

गुरु से प्रेम है तो गुरु के विचारों को कम से कम एक नए व्यक्ति तक सप्ताह में एक बार तो पहुंचाओ।

अपने परिजनों को आत्मियता विस्तार से आगे बढ़ाओ। गुरुदेब का यह परिवार का वृक्ष आत्मियता से सींचा गया है। इस वृक्ष को अपने क्षेत्रों में ले गए हो तो वहां गुरु की तरह आत्मियता विस्तार करके इसे सींचो। आत्मियता का विस्तार न हुआ तो वृक्ष सूख जाएगा।

भाव सम्वेदना से और आत्मीयता विस्तार से ही युगनिर्माण संभव है।

*एक दिन की वर्षा में बाढ़ नहीं आती। अनवरत प्रयास से ही अच्छा या बुरा परिणाम मिलता है। 40 दिनों के अनवरत प्रयास का बड़ा महत्त्व है।*

*एक दिन की वर्षा में बाढ़ नहीं आती। अनवरत प्रयास से ही अच्छा या बुरा परिणाम मिलता है। 40 दिनों के अनवरत प्रयास का बड़ा महत्त्व है।*


40 दिन नियमित गांजे इत्यादि नशे के सेवन से सोचने समझने की शक्ति डिस्टर्ब हो जाती है जिससे जीवन मे निर्णय क्षमता काम नहीं करती। अक्ल पर पर्दा पड़ जाता है। विवेक नष्ट हो जाता है। गलत दिशा से जीवन दशा बिगड़ जाती है भविष्य अंधकार मय बन जाता है।

40 दिन नियमित अश्लील फ़िल्म और साहित्य पढ़ने से इंसान में देवत्व कमजोर हो जाता है और भीतर का  नर पिशाच पुर्णतया अट्टहास करता हुआ उसे व्यभिचारी बना देता है। अक्ल पर पर्दा पड़ जाता है। विवेक नष्ट हो जाता है। गलत दिशा से जीवन दशा बिगड़ जाती है भविष्य अंधकार मय बन जाता है।

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40 दिन नियमित क्रांति धर्मी साहित्य पढ़ने से भीतर का योद्धा शिवाजी की तरह जग जाता है। कायरता दब जाती है, वीरता जग जाती है। अक्ल का पर्दा उठ जाता है। कुछ कर गुजरने का जोश उमड़ पड़ता है।

40 दिन नियमित योग प्राणायाम करने पर बिगड़ा स्वास्थ्य संवर जाता है। शरीर की रिपेयरिंग हो जाती है। मन और तन हल्का लगता है।

40 दिन नियमित गायत्री मंत्र जपने से बुद्धि में तीक्ष्णता आती है। जीवन को देखने का एरियल व्यू(ऊपर से साक्षी भाव से जीवन देखने की क्षमता) बढ़ जाती है। अक्ल पर पड़ा पर्दा उठ जाता है। विवेक दृष्टि मिलती है। व्यक्ति की निर्णय क्षमता बढ़ जाती है। क्या जीवन मे सही है या क्या गलत समझने लगता है। सही दिशा में सन्मार्ग पर चलने लगता है जिसके कारण जीवन दशा सुधर जाती है। भविष्य उज्ज्वल बन जाता है।

40 दिन नियमित ध्यान का अभ्यास करने से 41 दिन से अत्यंत कम प्रयास से ही ध्यान स्वतः लगने लगता है।

40 दिन के महत्त्व को समझें जीवन को मनचाहा मोड़ दें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

*मिशन/ट्रस्ट/प्रज्ञामण्डल/महिलामण्डल/जगत को चलाने का भ्रम*

*मिशन/ट्रस्ट/प्रज्ञामण्डल/महिलामण्डल/जगत को चलाने का भ्रम*

गुरुदेब अपना कार्य कंकड़ पत्थर से करवा लेंगे। अगर हम अभिमान किये तो हमारा अपना ही पतन निश्चित है। यह हमारा सौभाग्य है कि दयालु गुरु हमसे अपना कार्य करवा रहा है। हमे अपनी सेवा के सौभाग्य का सुअवसर युगनिर्माण के कार्य के रूप में दे रहा है।

इसे एक कहानी के माध्यम से समझे:-

*एक घर के मुखिया को यह अभिमान हो गया कि उसके बिना उसके परिवार का काम नहीं चल सकता।*
*उसकी छोटी सी दुकान थी।*
*उससे जो आय होती थी, उसी से उसके परिवार का गुजारा चलता था।चूंकि कमाने वाला वह अकेला ही था इसलिए उसे लगता था कि उसके बगैर कुछ नहीं हो सकता।*
*वह लोगों के सामने डींग हांका करता था।*
*एक दिन वह एक संत के सत्संग में पहुंचा। संत कह रहे थे,*
*दुनिया में किसी के बिना किसी का काम नहीं रुकता। यह अभिमान व्यर्थ है कि मेरे बिना परिवार या समाज ठहर जाएगा।सभी को अपने भाग्य के अनुसार प्राप्त होता है।”*
*सत्संग समाप्त होने के बाद मुखिया ने संत से कहा,*
*मैं दिन भर कमाकर जो पैसे लाता हूं उसी से मेरे घर का खर्च चलता है।मेरे बिना तो मेरे परिवार के लोग भूखे मर जाएंगे।”*
*संत बोले,*
*यह तुम्हारा भ्रम है। हर कोई अपने भाग्य का खाता है।”*
*इस पर मुखिया ने कहा,*
*आप इसे प्रमाणित करके दिखाइए।"*
*संत ने कहा,*
*ठीक है।तुम बिना किसी को बताए घर से एक महीने के लिए गायब हो जाओ।"*
*उसने ऐसा ही किया।*
*संत ने यह बात फैला दी कि उसे बाघ ने अपना भोजन बना लिया है।*
*मुखिया के परिवार वाले कई दिनों तक शोक संतप्त रहे।*
*गांव वाले आखिरकार उनकी मदद के लिए सामने आए।*
*एक सेठ ने उसके बड़े लड़के को अपने यहां नौकरी दे दी। गांव वालों ने मिलकर लड़की की शादी कर दी।*
*एक व्यक्ति छोटे बेटे की पढ़ाई का खर्च देने को तैयार हो गया और उनके दिन फिर मजे में गुजरने लगे।*
*एक महीने बाद मुखिया छिपता -छिपाता रात के वक्त अपने घर आया।*
*घर वालों ने भूत समझकर दरवाजा नहीं खोला। जब वह बहुत गिड़गिड़ाया और उसने सारी बातें बताईं ।*
*जब उसकी पत्नी ने बताया क़ि अब हम पहले से ज्यादा सुखी हैं।’*
*उस व्यक्ति का सारा अभिमान चूर-चूर हो गया। संसार किसी के लिए भी नही रुकता!*
*यहाँ सभी के बिना काम चल सकता है संसार सदा से चला आ रहा है और चलता रहेगा। जगत को चलाने की हामी भरने वाले बड़े- बड़े सम्राट मिट्टी हो गए।* *जगत उनके बिना भी चला है और आगे भी चलता रहेगा। फिर किस बात पर अभिमान करना।*
*इसीलिए अपने बल का, अपने धन का, अपने कार्यों का, अपने ज्ञान का गर्व व्यर्थ है*

🙏🙏

जैसी मनःस्थिति वैसी ही परिस्थिति का अनुभव होगा। नजरिया बदलो नज़ारे बदल जाएंगे।

*भक्त के साथ भगवान होते है, उसके साथ जो भी होता है कमाल होता है, क्योंकि वो प्रत्येक विपत्ति के पीछे भी भगवत कृपा का संकेत पा ही जाता है।*

युगऋषि परमपूज्य गुरुदेब पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते है कि मनुष्य के दुनियाँ देखने के नजरिये पर उसका जीवन निर्भर करता है। जैसी मनःस्थिति वैसी ही परिस्थिति का अनुभव।

आधी ग्लास भरी - *सकारात्मक दृष्टि कोण*(सुखी इंसान)
आधी ग्लास ख़ाली- *नकारात्मक दृष्टि कोण*(दुःखी इंसान)
आधी ग्लास पानी से भरी और आधी ग्लास हवा से भरी - *भक्त का दृष्टिकोण*(आनन्दित मस्तमौला इंसान)

दृष्टिकोण के अनुसार परिणाम मिलता है, जैसा सोचते है वैसे ही ब्रेन में संकेत पहुँचता है। Mental focus strengthens the neural pathways. कहावत भी है- जिस दिशा में सोचोगे उस दिशा में ऊर्जा जाएगी और वैसा ही आपके जीवन मे घटित होगा। where attention goes energy flows... यही सुखी और दुःखी होने का फार्मूला है।

आइये इसे दो कहानियों के माध्यम से समझते हैं:-

*कहानी - 1*
एक मंत्री बहुत भक्त था, कुछ भी होता कहता, कहता भगवत कृपा हो गयी। एक दिन राजा की तलवार साफ करते हुये उंगली कट गई। आदतानुसार मंत्री बोल पड़ा भगवत कृपा हो गयी। गुस्से में बौखलाया राजा और उसे जेल में डलवा दिया। करीब दो महीने बाद राजा शिकार पर गया, सैनिक पीछे छूट गए और आदिवासियों ने उसे पकड़ लिया। ज्यों ही बलि देने वाले थे, त्यों ही पुजारी को राजा की उंगली कटी दिखी। पुजारी आदिवासी के मुखिया से बोला नारियल जिस प्रकार टूटा नहीं चढ़ता वैसे ही अंग भंग अपूर्ण व्यक्ति की बलि भी नहीं चढ़ती। राजा को मुक्त कर दिया गया, राजा के मुंह से निकला आज तो मुझ पर भगवत कृपा हो गई। महल आकर उसने मंत्री को मुक्त किया और बोला तुम सही थे। उस दिन उंगली कटने की भगवत कृपा मुझ पर न होती तो आज मेरी गर्दन कट गयी होती। लेकिन ये बताओ तुम पर भला किस प्रकार भगवत कृपा हुई। मंत्री मुस्कुराया और बोला महराज हम और आप हमेशा संग रहते है। आपसे ज्यादा तो भगवत कृपा मुझ पर हुई, क्योंकि आप तो अपूर्ण थे लेकिन मैं तो पूर्ण था। यदि मैं जेल में न होता तो निश्चयतः मृत्यु को प्राप्त होता। अतः मुझपर आपसे ज्यादा भगवत कृपा हुई।

*कहानी 2* -

एक बगीचे का माली राजा से मिलने जा रहा था। बगीचे में आम, अमरूद, नारियल, पपीते, अंगूर सबकुछ उपलब्ध थे। उसके हृदय में केवल अंगूर ले जाने की प्रेरणा हुई। वह अंगूर ले जाकर राजा को भेंट किया, और बोला महराज आप पर सदा भगवत कृपा बनी रहे।

पत्नी रानी से लड़कर क्रुद्ध तमतमाया राजा बैठा था। गुस्से में अंगूर उठा उठा कर उस पर फेंकने लगा। जब भी राजा अंगूर उस फेंके वो मुस्कुराता हुआ आसमान देखकर बोले। मुझ पर भगवत कृपा बरस रही है। कुछ देर बाद जब अंगूर की टोकरी ख़ाली हो गयी। राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। मैं इस पर अंगूर फेंक कर मारकर बेइज्जती कर रहा हूँ। और यह मुस्कुराते हुए भगवत कृपा कह रहा है। आखिर पूँछ ही लिया कि भाई तेरे ऊपर ऐसी कौन सी भगवत कृपा हुई भाई बेइज्जती पाकर भी।

माली बोला महराज, मैं आज आपके पास आ रहा था तब मुझे यह मालूम नहीं था कि आप क्रोध में होंगे और मुझे फल उठा उठाकर मारेंगे। यदि मुझपर आज भगवत कृपा न हुई होती और मैं अंगूर की जगह नारियल या बड़े फल लाता तो आज मेरी मृत्यु निश्चित थी या मेरा उन फलों से अंगभंग निश्चित था। तो हुई न मुझपर भगवत कृपा।

हे भक्तों, सुखी, दुःखी और आनन्दित रहने का फार्मूला युगऋषि परमपूज्य गुरुदेब ने अपनी पांच छोटी पुस्तकों में दिया है:-
1- दृष्टिकोण ठीक रखें
2- सफल जीवन की दिशा धारा
3- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
4- अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
5- विचारो की सृजनात्मक शक्ति

मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है। यदि इन पुस्तकों को पढ़ चुके हो तो भी इस पोस्ट को पढ़ने के बाद दुबारा पढ़ ले। धरती पर ही आनन्दमय स्वर्ग में जिये।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Sunday 28 October 2018

*कविता - स्वयं की रक्षा का भार स्वयं सम्हालो*

*कविता - स्वयं की रक्षा का भार स्वयं सम्हालो*

उठो द्रौपदी शस्त्र उठाओ,
स्वयं की रक्षा का भार, स्वयं सम्हालो,
नारी से नारायणी बनने का उपक्रम अपनाओ,
अपनी अस्मिता स्वयं बचाओ।

उठो द्रौपदी गीता शास्त्र उठा लो,
अर्जुन बनने का दायित्वबोध जगा लो ,
भविष्य में होने वाले वैचारिक महाभारत की,
आज से ही तैयारी कर डालो।

अब शासक अंधे के साथ साथ,
गूंगा बहरा लूला लंगड़ा भी है,
कानून मीडिया राजतंत्र की,
हालत बुरी और खस्ता भी है।

कन्या अब न गर्भ में सुरक्षित,
न ही है घर परिवार और समाज मे रक्षित,
उठो द्रौपदी शस्त्र उठा लो,
अपनी रक्षा का भार स्वयं उठा लो।

सिंहनी सी हुंकार भरो,
व्यक्तित्व में सँस्कार गढ़ो,
एक हाथ से आत्मियता से घर सम्हालो,
दूजे हाथ से स्वयं की रक्षा का भार सम्हालो।

कभी आततायी से जो मुठभेड़ हो जाए,
मरकर आना या मारकर आना,
रणभूमि में पीठ न दिखाना,
ख़बरों में अब अबला न कहलाना।

 उठो द्रौपदी शस्त्र उठा लो,
अपनी रक्षा का भार स्वयं उठा लो,
महिषासुर मर्दिनी दुर्गा कहलाना,
अब कभी अबला न कहलाना।

स्वाध्याय से विचारों में क्रांति जगाओ,
साधना से आत्मशक्ति बढ़ाओ,
स्वयं की अस्मिता स्वयं बचाओ,
नारी से नारायणी बन जाओ..

उठो द्रौपदी शस्त्र उठाओ,
अपनी अस्मिता स्वयं बचाओ,
उठो द्रौपदी शास्त्र उठाओ,
अपना आत्मगौरव स्वयं जगाओ।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
महिला शशक्तिकरण अभियान

Thursday 25 October 2018

प्रश्न - *लोग कहते हैं कि जोड़ियां ऊपर से बनकर आती है, सभी आत्माओं(Soul) के लिए कोई न कोई भगवान बना के (Soulmate) भेजता है? सबकुछ पहले से ही क़िस्मत में लिखा है। इस सम्बंध में आपकी क्या रॉय है...*

प्रश्न - *लोग कहते हैं कि जोड़ियां ऊपर से बनकर आती है, सभी आत्माओं(Soul) के लिए कोई न कोई भगवान बना के (Soulmate) भेजता है? सबकुछ पहले से ही क़िस्मत में लिखा है। इस सम्बंध में आपकी क्या रॉय है...*

उत्तर - आत्मीय बहन, कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना। अतः लोगों के कहने पर धारणा मत बनाओ। विवाह सम्बन्धी बुढ़िया पुराण और पाश्चात्य ज्ञान बड़ा ख़तरनाक हैआ। बुढ़िया लोग कहती है जो पुत्र पैदा करके सुहागिन मरता है वो स्वर्ग जाता है। यह भ्रामक और बिन सर पैर का ज्ञान है।

इस सम्बंध में सत्य समझना है तो सुनो, तुलसीदास जी कहते हैं:-

*कर्म प्रधान विश्व करि राखा,*
*जो जस करत सो तस फल चाखा।*

पूरा विश्व भगवान ने कर्म प्रधान रखा है, यहां बोया काटा सिद्धांत चलता है। जैसा करोगे वैसा भरोगे। यही कर्म प्रधान ज्ञान श्रीमद्भागवत गीता और सभी धर्म  ग्रन्थों में लिखा है। स्त्री हो या पुरुष दोनों की आत्मा की यात्रा अलग है, क्योंकि दोनों साथ साथ एक गर्भ से जन्म नहीं लेते, अतः दोनों को आत्म पुरुषार्थ करना होगा, आत्मतृप्ति के अपने अपने प्रयास करने पड़ेंगे। शरीर तृप्ति और आत्म तृप्ति दोनो अलग है।

अतः विवाह करना या न करना भी मनुष्य के कर्मफ़ल पर आधारित विधिव्यवस्था है, मनुष्य पूर्णरूपेण स्वतन्त्र है।

Soulmate शब्द स्त्री-पुरुष के सम्बंध में अमेरिका से आया है, भारतीय धर्म ग्रन्थ *विज्ञान भैरव तंत्र के अनुसार* जीवात्मा अर्थात प्राण का Soulmate केवल परमात्मा अर्थात महाप्राण होता है। आत्मा को शरीर के सम्बंध से कोई लेना देना ही नहीं है तो भला वो इंसानी रिश्ते में आत्मिक रिश्ता क्यों ढूंढेगा? आत्मा तो केवल परमात्मा को ही ढूंढेंगी, स्वयं विचार करें।

भगवान न आपको विवाह करने के लिए विवश करता है और न ही वह आपको विवाह न करने के लिए कहता है। कर्म करने के लिए आप स्वतन्त्र है। विवेक से निर्णय लेने के लिए आप स्वतन्त्र है। मनुष्य के पास सोचने विचारने की शक्ति उपलब्ध है।

पाश्चात्य देश शरीर को सबकुछ समझते हैं, वहां शरीर तृप्ति को आत्मतृप्ति समझने की मूर्खता की जाती है। अतः शारीरिक-भावनात्मक इच्छाओं को पूर्ति करने वाले अन्य शरीर को Soulmate कहने की मूर्खता करता है। फिर अमेरिका में तो एक व्यक्ति अनेक सम्बन्ध रखता है तो क्या भगवान एक के लिए अनेक soulmate बना ने की गलती कर रहा है???? स्वयं विचार करें..

जो युवा पाश्चात्य का अंधानुकरण करेगा और एक दूसरे शरीर को soulmate मानेगा। शरीर तृप्ति में ही जीवन खपा देगा। वो अंतः खड्डे/गड्ढे में गिरेगा, भटकती प्रेतात्मा की तरह जीवन जियेगा और अतृप्त आत्म भिखारी की तरह मरेगा। शरीर तृप्ति से आत्म तृप्ति  संभव ही नहीं।

जो युवा आत्मा के अमरत्व और शरीर की नश्वरता को समझेगा। असली soulmate परमात्मा को ढूंढेगा। वो तृप्त सन्तुष्ट और शांतचित्त होकर जियेगा और अंत मे शांतचित्त तृप्ति के साथ महाप्रयाण करेगा। शरीर त्यागेगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *यदि पति धोखेबाज हो और किसी अन्य विवाहित स्त्री के साथ सम्बन्ध में हो तो ऐसे में एक गृहस्थ जॉब न करने वाली स्त्री को क्या करना चाहिए। जिसके दो बच्चे हों। मार्गदर्शन करें

प्रश्न - *यदि पति धोखेबाज हो और किसी अन्य विवाहित स्त्री के साथ सम्बन्ध में हो तो ऐसे में एक गृहस्थ जॉब न करने वाली स्त्री को क्या करना चाहिए। जिसके दो बच्चे हों। मार्गदर्शन करें, क्या उस पति को भगवान सज़ा देगा? क्या भारतीय कानून में व्यभिचार के लिए कोई सज़ा का प्रावधान है?*

उत्तर- आत्मीय बहन, प्राचीन गृहस्थ तपोवन और मर्यादित घर गृहस्थी को पाश्चात्य और आधुनिकता के प्रभाव ने नष्ट भ्रष्ट कर दिया है।

भगवान व्यभिचारी को दण्ड तो जरूर देता है, लेकिन भारतीय क़ानून न्यायव्यवस्था दण्ड नहीं देता। पुलिस कोर्ट कचहरी में आपको कोई हेल्प नहीं मिलेगी।

क्योंकि इसी वर्ष सुप्रीम कोर्ट ने एडल्ट्री (व्यभिचार) संबंधी कानून की धारा 497 को खारिज कर दिया। शीर्ष अदालत के इस फैसले के बाद अब एडल्ट्री(व्यभिचार-अवैध सम्बन्ध) अपराध नहीं है घोषित कर दिया है।

आज टीवी सीरियल फ़िल्म, समाचार, पत्र, कानून व्यवस्था और शोशल मीडिया सब घर गृहस्थी तोड़ने और पशुवत जीने हेतु प्रेरित कर रहे हैं। नशा तो इसमें आग में घी का कार्य कर रहा है। विकृत चिंतन और संस्कारों के अभाव ने समाज को विकृत और कुत्सित कर दिया है।

अब भारत देश में चरित्रवान स्त्री-पुरुष की तीन केटेगरी हो गयी है:-

1- जिन्हें घर मे बचपन से शुभ सँस्कार मिले और आध्यात्मिक है। ऐसे लोग अपने चरित्र चिंतन व्यवहार पर कड़ी नज़र रखते है औऱ वास्तव में मन वचन कर्म से चरित्रवान होते है। ये जाति अब लुप्तप्राय और अल्पसंख्यक हो रही है मात्र 10% ऐसे लोग भारत मे बचे हैं।

2- दूसरे टाइप के चरित्रवान लोग बाह्य चरित्र से चरित्रवान होते है और मानसिक व्यभिचारी होते है। अश्लील साहित्य और अश्लील चिंतन में निरत रहते हैं। अतः यदि मौका मिलेगा इन्हें तो चरित्र से गिरने में वक्त नहीं लगेगा।

3- तीसरे टाइप के चरित्रवान वो लोग है जो अभी तक व्यभिचार करते पकड़े नहीं गए। घरवाली/घरवाला के साथ साथ साथ बाहरवाली/बाहरवाला दोनों ही चल रहा है।

व्यभिचारी तो हम उन्हें घोषित करते है जिनका गुनाह पकड़ा गया। अन्यथा भारत देश मे व्यभिचार का ग्राफ़ बढ़ ही रहा है।

उन बहन को बोलिये, कि ठंडे दिमाग़ से घटना का एनालिसिस करें, उन विवाहित स्त्री के पति तक भी इस समस्या का संदेश पहुंचा दें कही से गुमनाम फोन या मेसेज के माध्यम से...

पति के व्यभिचार के सबूत व्हाट्सएप, मेसेज कॉल इत्यादि रेकॉर्ड करके अपने सास ससुर को सबूत के साथ बतायें। क्योंकि सास ससुर लड़के का ही पक्ष लेंगे यदि आप बिना सबूत के इल्जाम लगाएंगी।

पति से क्लियर बात करें और उन्हें समझाये कि गलत का परिणाम गलत ही निकलेगा। बच्चों का भविष्य बिगड़ेगा। उस स्त्री का पुरुष यदि हथियार उठाया तो जीवन भी जाएगा।

घर में लड़ाई झगड़ा न करें, इससे बच्चों पर बुरा असर होगा। लड़ाई-झगड़े से व्यभिचार की आदत नहीं छूटती।

केवल बिना शर्त प्रेम और आत्मीयता से ही पति के व्यवहार में आवश्यक सुधार लाया जा सकता है। विवाह एक पवित्र बंधन है और आध्यात्मिक-सामाजिक समझौता भी। अतः घर के बड़े बुजुर्ग को विश्वास में लेकर पति को समझाने हेतु बोलें।

*व्यवहारात्मक उपाय* - झगड़ा तुरन्त बन्द कर दें कोई फायदा नहीं है। प्रेमपूर्वक ऐसे रहें कि जैसे कुछ हुआ ही न हो। रोज रोज प्यार और आत्मीयता से समझाये और घर गृहस्थी अपनी बचाएं। क्रोध और घृणा का कोई फायदा नहीं है।

*आध्यात्मिक उपाय* - जीवन मे जीवनसाथी हमारे पूर्व जन्म के पाप पुण्य का फल होता है। अतः यदि जीवनसाथी से कष्ट मिल रहा है तो तप करके पूर्व जन्म के संचित प्रारब्ध को नष्ट करने की आवश्यकता है। सुखी जीवन हेतु पुण्यार्जन करना होगा।

श्रद्धा और विश्वास के साथ सवा लाख गायत्री मंत्र का जप अनुष्ठान करें, पतिदेव जिस तकिया में सोते हैं उसके ऊपर गायत्री मन्त्रलेखन की पुस्तिका रख कर लिखें। घर मे सुबह शाम बलिवैश्व यज्ञ करें। बलिवैश्व यज्ञ की एक चुटकी भष्म को पानी मे मिलाकर घर में सर्वत्र छिड़क दें। सभी बाथरूम की नालियों में एक चुटकी नमक डाल दें, और घर मे नमक चुटकी भर मिला कर पोछा मारे। अनुष्ठान के जप करते वक्त कलश के लोटे में दो दाना मिश्री का डालकर जप करें। सूर्य को वही कलश जल अर्घ्य दें, फिर थोड़ा जल बचा ले। उस बचे जल की कुछ बूंदे रोटी या चावल बनाते समय उपयोग में लेवेँ। मंन्त्र जपते हुए सकारात्मक विचार से भोजन बनाये। और बड़ी आत्मियता और प्यार से भोजन करवाएं।

रोज ध्यान में पति की आत्मा का आह्वाहन करें और शान्तिकुंजं ले जाएं। ध्यान में भावना करें कि गुरूदेव माता जी पति को और आपको सद्बुद्धि दे रहे है। भावना कीजिये कि आप दोनों को अच्छी घर गृहस्थी के लिए गुरुदेब माताजी आशीर्वाद दे रहे हैं।

पुस्तक
📖गृहस्थ एक तपोवन,
📖मित्रभाब बढ़ाने की कला,
📖गहना कर्मणोगति: और
📖दृष्टिकोण ठीक रखें जरूर पढ़िये।

निःश्वार्थ और श्रद्धायुक्त प्रेम से भगवान को भी वश में कर सकते हैं, तो वैसे भी पति तो एक इंसान ही है। निःश्वार्थ और श्रद्धायुक्त प्रेम से पति को वश में करना तो और भी ज्यादा आसान है।

बस सबसे पहले पति के कुकृत्य के लिए उनसे घृणा न करें। जैसे वायरल फ़ीवर होने पर मरीज़ से घृणा न करके उपचार किया जाता है। वैसे ही व्यभिचार रूपी मानसिक बीमारी होने पर दूसरी स्त्री को वायरस माने, और पति को रोगी माने, और मन्त्रशक्ति और यग्योपैथी से उपचार करने में जुट जाएं।

*गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय भारत के उत्तराखण्ड राज्य के हरिद्वार शहर में स्थित है। इसकी स्थापना सन् १९०२ में स्वामी श्रद्धानन्द ने की थी। स्वामी श्रद्धानन्द ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि वो गलत संगत में पड़कर नशा करते थे और कोठे में जाया करते थे। लेकिन उनकी पत्नी के निःस्वार्थ श्रद्धायुक्त प्रेम ने उनके कुकर्मो के नरक से बाहर निकाल दिया। न सिर्फ़ व्यवहार में बदलाव लाया। बल्कि एक सच्चरित्र महापुरुष बना दिया। अगर स्वामी श्रद्धानन्द की पत्नी का त्याग और प्रेम न होता तो आज भारत को गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय कभी नहीं मिलता।*

यदि पत्नी व्यभिचारी हो तो पति को उपरोक्त उपाय अपनाना चाहिए। प्रारब्ध का शमन करना चाहिए।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

आत्म बोध कथा

*आत्म बोध कथा*

प्राचीन समय की बात है एक गुरुकुल के आचार्य अपने शिष्य की सेवा भावना से बहुत प्रभावित हुए। शिक्षा पूरी होने के बाद शिष्य को विदा करने का समय आया, तब गुरु ने शिष्य को आशीर्वाद के रूप में एक ऐसा दर्पण दिया, जिसमें व्यक्ति के मन के छिपे हुए भाव दिखाई देते थे।

शिष्य उस दर्पण को पाकर बहुत प्रसन्न हुआ। शिष्य ने परीक्षा लेने के लिए दर्पण का मुंह सबसे पहले गुरुजी की ओर ही कर दिया। शिष्य ने दर्पण में देखा कि उसके गुरुजी के मन में मोह, अहंकार, क्रोध आदि बुरी बातें हैं। यह देखकर शिष्य को दुख हुआ, क्योंकि वह अपने गुरुजी को सभी बुराइयों से रहित समझता था।

शिष्य दर्पण लेकर गुरुकुल से रवाना हुआ। उसने अपने मित्रों और परिचितों के सामने दर्पण रखकर परीक्षा ली। शिष्य को सभी के मन में कोई न कोई बुराई दिखाई दी। उसने अपने माता-पिता की भी दर्पण से ली। माता-पिता के मन में भी उसे कुछ बुराइयां दिखाई दीं। यह देखकर शिष्य को बहुत दुख हुआ और इसके बाद वह एक बार फिर गुरुकुल पहुंचा।
गुरुकुल में शिष्य ने गुरुजी से कहा कि गुरुदेव मैंने इस दर्पण की मदद से देखा कि सभी के मन में कुछ न कुछ बुराई जरूर है। तब गुरुजी ने दर्पण का रुख शिष्य की ओर कर दिया। शिष्य ने दर्पण में देखा कि उसके मन में भी अहंकार, क्रोध जैसी बुराइयां है।
: गुरुजी ने शिष्य को समझाते हुए कहा कि यह दर्पण मैंने तुम्हें अपनी बुराइयां देखकर खुद में सुधार करने के लिए दिया था, दूसरों की बुराइयां देखने के लिए नहीं। जितना समय दूसरों की बुराइयों देखने में लगाया, उतना समय खुद को सुधारने में लगाया होता तो अब तक तुम्हारा व्यक्तित्व बदल चुका होता।

हमारी सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि हम दूसरों की बुराइयां जानने में ज्यादा रुचि दिखाते हैं। जबकि खुद को सुधारने के बारे में नहीं सोचते हैं। हमें दूसरों की बुराइयों को नहीं, बल्कि खुद की बुराइयों को खोजकर सुधारना चाहिए। तभी जीवन सुखी हो सकता है।
🙏🙏🌹🌹🔥🔥

अपनी संतान को आज गीता पढ़ाईये ताकि कल किसी कोर्ट में गीता पर हाथ न रखना पड़े

*अपनी संतान को आज गीता पढ़ाईये ताकि कल किसी कोर्ट में गीता पर हाथ न रखना पड़े।*

*संस्कार ही अपराध रोक सकते हैं, प्रशासन नहीं।*

युगसाहित्य औऱ गायत्री साधना रूपी खाद बालक मन रूपी वृक्ष को देंगे तभी भविष्य में उसके मन रूपी वृक्ष की छाया में आराम कर सकेंगे। अन्यथा पछतावे के अलावा कुछ हाथ न लगेगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *हमारे शहर में एक प्राचीन छोटा सा कृष्ण राधा मन्दिर था। जिसका जीर्णोद्धार हमारी सोसायटी के सभी लोगों ने अंशदान समयदान के माध्यम से किया। अब उस मन्दिर की व्यवस्था के लिए ट्रस्ट का गठन हो रहा है। एक भाई का सुझाव है कि मन्दिर ट्रस्ट में केवल लोकल वाशिन्दे ही ट्रस्टी बनना चाहिए, अन्य राज्यों से आये लोगों को ट्रस्ट व्यवस्था में प्रवेश वर्जित है। जबकि जब धन और समय सभी राज्यों के बहन भाईयों

प्रश्न - *हमारे शहर में एक प्राचीन छोटा सा कृष्ण राधा मन्दिर था। जिसका जीर्णोद्धार हमारी सोसायटी के सभी लोगों ने अंशदान समयदान के माध्यम से किया। अब उस मन्दिर की व्यवस्था के लिए ट्रस्ट का गठन हो रहा है। एक भाई का सुझाव है कि मन्दिर ट्रस्ट में केवल लोकल वाशिन्दे ही ट्रस्टी बनना चाहिए, अन्य राज्यों से आये लोगों को ट्रस्ट व्यवस्था में प्रवेश वर्जित है। जबकि जब धन और समय सभी राज्यों के बहन भाईयों ने लगाया, हमारी सोसायटी में सभी राज्यो के लोग रहते हैं। इस सम्बंध में आपकी क्या राय है?*

उत्तर - आत्मीय भाई, यह समस्या कॉमन है। कोई नई बात नहीं महाराष्ट्र का उदाहरण आपके समक्ष है।

मंदिर का भगवान लोकल नेता नहीं होता, जिसे केवल उसी की जाति या लोकल क्षेत्र के लोगों के बीच राजनीतिक पैठ बनानी होती है। भगवान कृष्ण यादवकुल राजवंश और मथुरा में जन्मे थे लेकिन उनके मन्दिर इस देश के विभिन्न राज्यों के साथ साथ पूरे विश्व मे है। जब दूसरे राज्य के भगवान को पूजते हो। जब दूसरे जाति में जन्मे भगवान को पूजते हो तो फ़िर दूसरे राज्य और जाति के भक्तों के साथ भेदभाव करने का हक कोई कैसे ले सकता है?

शबरी के बेर और सुदामा के तन्दुल, विदुर के घर शाक खाने वाले भगवान श्रीकृष्ण को केवल प्रेम से रिझाया जा सकता है। भक्ति और धन के अहंकार प्रदर्शन से उन्हें प्रशन्न नहीं किया जा सकता। भगवान कृष्ण के भक्त के बीच मे यदि भेदभाव करेंगे तो भगवान की कोप दृष्टि झेलनी पड़ेगी।

मन्दिर पर्सनल लोकल लोग पर्सनल खर्च से बनवाते तो कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन यदि उन्होंने सबसे पैसे एकत्रित करके मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया हैं तो 10 रुपये देने वाले और 10 लाख रुपये देने वाले दोनों लोगों का मंदिर पर पूर्ण अधिकार है। किसी ने ज्यादा मेहनत की किसी ने कम की लेकिन अपना 100% दिया तो भगवान भावना पर नम्बर देगा।भगवान Action(कर्म) नहीं देखता, भगवान Intention(कर्म के पीछे की भावना) देखता है।

न पैसे के आधार पर भेदभाव करना उचित है, और न ही जाति पाती के आधार पर भेदभाव करना उचित है और न हीं अन्य राज्यो के आधार पर भेदभाव करना उचित है। जब ईष्ट और सद्गुरु दूसरे राज्य का स्वीकार करते हो फिर दूसरे राज्य के भक्तों से भेदभाव क्यूँ?

समस्त सोसायटी के लोगों को एक मंच पर लाकर कहिये, व्यवस्था में उन लोगों को शामिल किया जाय जो वर्षों से अनवरत लोककल्याणार्थ कार्य कर रहे हैं। आप पुस्तक लोकसेवियो के लिए दिशाबोध अपने सोसायटी में बांटिए और पढ़ने को बोलिये, और तीन स्तर पर व्यवस्था बनाइये:-

1- मन्दिर संसद सदस्य- मन्दिर संसद में वो समस्त व्यक्ति को शामिल कीजिये जो नियमित या साप्ताहिक मन्दिर में भजन कीर्तन, यज्ञ, पूजन में आते हैं या विभिन्न एक्टिविटी में समयदान-अंशदान करते हैं। ( सेवक )

जो केवल कभी कभार पण्डित बुलवा के यज्ञ और भजन कीर्तन करवाते है वो मन्दिर सेवक संसद के सदस्य नहीं कहलाते।

2- मन्दिर संसद के सदस्यों को मताधिकार का प्रयोग करवा के मुख्य व्यवस्था के सदस्य का चयन करवाइये। (मंत्रिमंडल - सेवक मंडल)

3- फिर मुख्य व्यवस्था के सदस्य मतदान से मुख्य ट्रस्टी का चुनाव करें। (प्रधानमंत्री - प्रधान सेवक)

4- अंशदान के साथ साथ वस्तुदान की भी रसीद बनाएं, इससे कार्बन कॉपी आपके पास रेफरेन्स के लिए रहेगी। कोरे कागज में पेन से लिखकर कोई भी लेन देंन अप्रमाणिक होता है।

5- मासिक आय व्यय की रिपोर्ट मन्दिर संसद को भेजे।

6- मन्दिर संसद को यदि आप विश्वास में रखेंगे तो कभी भी धन और समय की कमी नहीं पड़ेगी। विरोध नहीं उपजेगा।

7- मन्दिर के छोटे से लेकर बड़े खर्च का वाउचर रखें। कोई भी कैश लेनदेन का वाउचर दोनों द्वारा साइन होना चाहिए। चेक लेनदेन में भी चेक नम्बर और अमाउंट नोट करें।

प्रत्येक 3 या 5 वर्ष में पुनर्गठन करते रहिए। मन्दिर जनजागृति का केंद्र बने इस हेतु प्रयास कीजिये। बाल सँस्कार शाला, युवा सँस्कार शाला, महिला सँस्कार शाला इत्यादि चलवाईये। वैज्ञानिक अध्यात्मवाद की पुस्तक युगसाहित्य वहां उपलब्ध करवाइये। श्रीमद्भागवत गीता का साप्ताहिक स्वाध्याय सत्संग ग्रुप चलाइये। कृष्ण की भक्ति बिन गीता के स्वाध्याय के अधूरी है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 24 October 2018

प्रश्न - *आप शबरीमाला वाले विवाद पर क्या कहना चाहती है?क्या आप मानती है कि स्त्रियों को यँहा जाना चाहिए?या ये सब एक साजिश है?*

प्रश्न - *आप शबरीमाला वाले विवाद पर क्या कहना चाहती है?क्या आप मानती है कि स्त्रियों को यँहा जाना चाहिए?या ये सब एक साजिश है?*

उत्तर - आत्मीय भाई, मैं स्वयं एक स्त्री हूँ, फिर भी बिना पक्षपात के इस विषय पर अपना मत देना चाहूंगी।

मन्दिर बनाने के पीछे एक उद्देश्य होता है कि मन्दिर तांत्रिक होगा या मांत्रिक? साधारणतया मांत्रिक मन्दिर में किसी के भी प्रवेश को प्रतिबंधित नहीं किया जाता है।

तांत्रिक और गुह्य साधना के लिए बनाए साधनात्मक गर्भ ग्रह सबके लिए उपलब्ध नहीं होते।

शबरीमला मन्दिर भगवान अयप्पा का है। धार्मिक कथा के मुताबिक समुद्र मंथन के दौरान भोलेनाथ भगवान विष्णु के मोहिनी रूप पर मोहित हो गए थे और इसी के प्रभाव से एक बच्चे का जन्म हुआ जिसे उन्होंने पंपा नदी के तट पर छोड़ दिया। शंकर और हरि से जन्मे इस पुत्र को हरिहर पुत्र भी कहते हैं। इस दौरान राजा राजशेखरा ने उन्हें 12 सालों तक पाला। बाद में अपनी माता के लिए शेरनी का दूध लाने जंगल गए अयप्पा ने राक्षसी महिषि का भी वध किया।

यह मंदिर पश्चिमी घाटी में पहाड़ियों की श्रृंखला सह्याद्रि के बीच में स्थित है। घने जंगलों, ऊंची पहाड़ियों और तरह-तरह के जानवरों को पार करके यहां पहुंचना होता है इसीलिए यहां अधिक दिनों तक कोई ठहरता नहीं है। यहां आने का एक खास मौसम और समय होता है। जो लोग *यहां तीर्थयात्रा के उद्देश्य से आते हैं उन्हें इकतालीस दिनों का कठिन वृहताम का पालन करना होता है*। तीर्थयात्रा में श्रद्धालुओं को ऑक्सीजन से लेकर प्रसाद के प्रीपेड कूपन तक उपलब्ध कराए जाते हैं। दरअसल, मंदिर नौ सौ चौदह मीटर की ऊंचाई पर है और केवल पैदल ही वहां पहुंचा जा सकता है।

पंद्रह नवंबर का मंडलम और चौदह जनवरी की मकर विलक्कू, ये सबरीमाला के प्रमुख उत्सव हैं। मलयालम पंचांग के पहले पांच दिनों और विशु माह यानी अप्रैल में ही इस मंदिर के पट खोले जाते हैं। इस मंदिर में सभी जाति के लोग जा सकते हैं, लेकिन *दस साल से पचास साल की उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर मनाही है।* सबरीमाला में स्थित इस मंदिर प्रबंधन का कार्य इस समय त्रावणकोर देवास्वोम बोर्ड देखती है। अतः *इस मंदिर में 50 वर्ष से ऊपर की महिलाएं इकतालीस दिनों का कठिन वृहताम व्रत अनुष्ठान करके मन्दिर में प्रवेश कर सकती है।*
 
18 पावन सीढ़ियां
चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ यह मंदिर केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 किलोमीटर दूर पहाड़ियों पर स्थित है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 18 पावन सीढ़ियों को पार करना पड़ता है, जिनके अलग-अलग अर्थ भी बताए गए हैं। पहली पांच सीढ़ियों को मनुष्य की पांच इन्द्रियों से जोड़ा जाता है। इसके बाद वाली 8 सीढ़ियों को मानवीय भावनाओं से जोड़ा जाता है। अगली तीन सीढ़ियों को मानवीय गुण और आखिर दो सीढ़ियों को ज्ञान और अज्ञान का प्रतीक माना जाता है।

इस मंदिर में प्रवेश हेतु कोर्ट जाना, फिर सुप्रीम कोर्ट का आदेश आना घटनाक्रम एक राजनीति से प्रेरित साजिश का हिस्सा है। धर्मान्तरण केरल में तेजी से चल रहा है। हिंदू मंदिरों को विवादों में डालकर बचे खुचे हिंदुओ को व्यथित करके की सुनियोजित योजना है। जो संगठन मंदिर में प्रवेश हेतु कोर्ट की लड़ाई लड़ रहा है, उनके घर जाइये तो आप पाएंगे वो लोग त्रिकाल संध्या और जप-तप करते ही नहीं है।

मन्दिर में प्रवेश हेतू उन्हें ही लड़ाई लड़नी करने का अधिकार है, जो हिन्दू धर्म की वसीयत विरासत के साथ धर्म के मर्म की समझ रखता हो, जिसका जीवन लोककल्याणार्थ और परपीड़ा निवारण में लगा हो।

व्यर्थ में टाइम पास हेतु किसी की भी धर्म आस्था पर राजनीति करना सर्वथा अनुचित है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

शबरीमाला मंदिर और तथ्य

यह महिला लिबी सी.एस एक मीडियाकर्मी है जो की न्यूज़गिल डॉट कॉम नामक मलयाली वेबसाइट चलाती है इस समय यह सुर्खियों में है क्योंकि इन्होंने सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने का प्रयास किया था और अन्य भक्तों ने इन्हें प्रवेश नहीं करने दिया,

यह सुनकर तो आपको बुरा भी लग रहा होगा कि, बताओ एक महिला दर्शन करना चाहती थी और उसे प्रवेश नहीं करने दिया, सम्भवतः आपको ये लैंगिक भेदभाव भी लग रहा होगा,

वैसे अंग्रेजी में दो कहावतें है कि
🔺"नेवर जज अ बुक बाय इट्स कवर"
🔺" डेविल लाइज़ इन डिटेल्स"

तो चलिए इस विषय को भी डीटेल में समझते हैं, और इस घटना की डिटेल में छिपे "डेविल" को सबके सामने लाते हैं,

इस महिला का सत्य यह है कि ये वास्तव में एक वामपन्थी विचारधारा कि इसाई है जो कि स्वयं को नास्तिक बताकर लोगों को भ्रमित करती है, यानी कि यह एक क्रिप्टो क्रिश्चियन है, और पूर्व में भगवान अयप्पा पर अपने एक लेख में अमर्यादित टिप्पडी भी कर चुकी है, जिसमे इसने कहा था कि
"यदि सबरीमाला मन्दिर में महिलाओं के प्रवेश से भगवान अयप्पा की हवस जाग गयी तो हम उन्हें दवाई प्रिस्क्राइब करेंगे"

इस वक्तव्य से आप इसके मन मे भगवान अयप्पा के प्रति भरी हुई तिरस्कार, घृणा व् अपमान की भावना का अनुमान लगा सकते हैं,

अब सबरीमाला मंदिर पर कोर्ट के निर्णय के बाद इन्होंने तुरंत बिना किसी आस्था के मंदिर में प्रवेश कर वहां कि प्राचीन मान्यताओं पर आघात करने का विचार किया और यह पूरा प्रपंच रच डाला,  वास्तव में इस महिला के लिए यह सब एक फैंसी ड्रेस नौटंकी थी,
कम्युनिस्ट, लिबरल बुद्धिजीवी, प्रगतिशील समाज, पुलिस और प्रशासन का इस महिला को भरपूर सहयोग मिला, किंतु वहां उपस्थित भक्तों के विरोध  के कारण यह मंदिर में प्रवेश से वंचित ही रही,

भगवान अयप्पा के भक्तों ने इसका विरोध इसलिए किया क्योंकि सबरीमाला मंदिर के विषय में कहते हैं कि भगवान अयप्पा एक ब्रह्मचारी हैं और उनके दर्शन से पूर्व 41 दिन का कठोर तप करना पड़ता है, और यह महिला बिना आवश्यक नियमों का पालन किए लोगों की आस्था का उपहास उड़ाने और उनकी मान्यताओं को आघात पहुंचाने के लिए और उन्हें नीचा दिखाने हेतु मंदिर में घुसने का प्रयास कर रही थी,
जबकि वास्तव में यह एक इसाई है जिसे ना हिंदू धर्म में आस्था है ना ही भगवान अय्यप्पा में, क्योंकि यदि इसे भगवान अयप्पा में आस्था होती तो यह भी वही 41 दिन का कठोर तप कर मंदिर में प्रवेश करने के लिए आती जैसे भगवान अयप्पा के अन्य भक्त आते हैं, किंतु इसे तो मीडिया में हाईलाइट पानी थी,तो बस घर से निकली फैंसी ड्रेस पहनी और पहुंच गई नौटंकी करने,

यहां विषय लैंगिक भेदभाव का नहीं अपितु प्राचीन सनातनी मान्यताओं और भावनाओं को आघात पहुंचाने का है, आप स्वयं कल्पना करिए की जो भक्त 41 दिन का कठोर तप कर मंदिर में प्रवेश हेतु प्रतीक्षा कर रहे हो उनके सामने एक विधर्मी महिला बिना नियमों का पालन करे सिर्फ उनकी आस्थाओं को नीचा दिखाने हेतु जबरदस्ती फैंसी ड्रेस पहनकर मंदिर में प्रवेश का प्रयास करें उन भक्तों को कितना बुरा लगा होगा ?

वास्तविकता ये है कि मुश्किल से 4-5 सेक्युलर लिब्रल महिलाएं सबरीमाला में प्रवेश के नाम पर आडंबर करने सामने आईं हैं, जबकि भगवान अयप्पा में आस्था रखने वाली लाखों महिलाएं सड़कों पर उतरकर कोर्ट के निर्णय का विरोध कर रही हैं,

विडंबना देखिए कि हमारा सेक्युलर, लिब्रल बुद्धिजीवी  वर्ग उन 4-5 आडंबरकारी महिलाओं को तो नायिका बनाकर प्रस्तुत कर रहा है जिनकी आस्था ना तो सनातन धर्म में है, ना सनातन संस्कृति में, ना भगवान अयप्पा में, किन्तु भगवान अयप्पा की लाखों महिला भक्त जो कोर्ट के इस निर्णय के विरुद्ध प्रदर्शन कर रही हैं उनको हमारा सेक्युलर, लिब्रल बुद्धिजीवी वर्ग एक रूढ़िवादी, कट्टरपंथी उग्रवादी साबित करने में लगा हुआ है, यही इन लोगों का पाखण्ड उजागर कर देता है,

और ऐसा मैं इस आधार पर कह रहा हूँ कि सबरीमाला मन्दिर में प्रवेश हेतु अड़ी हुई किसी भी महिला ने दर्शनपूर्व निर्धारित नियमों, व्रत व् तप का पालन ही नही किया है, और यह सब केवल एक मीडिया में हंगामा करने व् भगवान अयप्पा के भक्तों को नीचा दिखाने का एक प्रयास मात्र है।

वहीं यदि मैं कोर्ट की बात करूं तो सुन्नी मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश हेतु भी एक याचिका डाली गई थी, किंतु कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया और उसे इस्लाम के धार्मिक मामलों में दखल करार दिया, और उस विषय पर किसी भी सेक्युलर लिब्रल बुद्धिजीवी प्रगतिशील व्यक्ति की ओर से कोई प्रतिक्रिया ही नही आई, न्यायपालिका और हमारी सेकुलर समाज का यह विरोधाभासी आचरण यह प्रमाणित करने हेतु पर्याप्त है कि यह सभी एक उद्देश्य के अंतर्गत हिंदुओं, उनकी आस्थाओं, उनकी परंपराओं और उनकी संस्कृति को योजनाबद्ध रूप से निशाने पर लेकर उन्हें नष्ट करने पर तुले हुए हैं।

🇮🇳Rohan Sharma🇮🇳

🌙 *वैदिक करवाचौथ पूजन विधि* 🌙 शनिवार , 27 अक्टूबर 2018

🌙 *वैदिक करवा चौथ पूजन विधि* 🌙 शनिवार , 27 अक्टूबर 2018

कार्तिक कृष्णा चौथ जिसे करवा चौथ कहते हैं, उस दिन का उपवास दाम्पत्य प्रेम बढ़ाने वाला होता है क्योंकि उस दिन की गोलार्द्ध स्थिति, चन्द्रकलायें, रोहणी नक्षत्र प्रभाव एवं सूर्य मार्ग का सम्मिश्रण परिणाम शरीरगत अग्नि के साथ समन्वित होकर शरीर एवं मन की स्थिति को ऐसा उपयुक्त बना देता है, जो दाम्पत्य सुख को सुदृढ़ और चिरस्थायी बनाने में बड़ा सहायक होता है।

सुखमय दाम्पत्य की इच्छाओं और आवश्यकताओं को पूरा करने में तथा बहुत से दाम्पत्य जीवन के अनिष्टों को टालने में यह व्रत उपयोगी सिद्ध होता हैं।

इस पूजन में माता पार्वती, भगवान शंकर और चन्द्रमा जी के साथ माता रोहणी की पूजा की जाती है। सुबह से निर्जला, या जलाहर या रसाहार लेकर यह पुनीत व्रत स्त्री पुरुष दोनों कर सकते हैं। कोई ठोस आहार लेना वर्जित है।


इस दिन सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए तीन बार पूजन करना चाहिए, सुबह सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए तीन माला गायत्री मन्त्र की, एक माला महामृत्युंजय मन्त्र की और एक माला चन्द्र गायत्री मन्त्र की करनी चाहिए और उसके बाद आरती।

शाम को क़रीब 6 बजे से 8 बजे के बीच  दीपयज्ञ करना चाहिए। साथ में कलश में जल भरकर रखें। पूजन में फ़ल फूल प्रसाद और जो एक थाल भोजन का अर्पित करना चाहिए। दीपयज्ञ में 24 गायत्री मन्त्र, 11 महामृत्युंजय मन्त्र और 11 चन्द्र गायत्री मन्त्र की आहुति दें, फ़िर चन्द्रोदय का इंतज़ार करें।

लगभग 8:30 से 9 बजे के बीच चन्द्र दर्शन सर्वत्र हो जाते हैं, पति पत्नी साथ में चन्द्र दर्शन करें। दोनों साथ में पांच बार गायत्री मन्त्र, 3 बार महामृत्युंजय मन्त्र, 3 बार चन्द्रमाँ का मन्त्र पढ़कर चन्द्रमा को कलश के जल से अर्घ्य देंवें। शांति पाठ करें।

ये optional है, स्टील की चलनी से चाँद को देखें और तिलक चन्दन चलनी में करें और आरती उतारें, फ़िर उसी चलनी से पति का चेहरा देंखें और उन्हें तिलक चन्दन कर आरती उतारें। यहां भाव करें क़ि हम चलनी की तरह अपने भीतर की बुराइयों को त्याग के अच्छाईयां ग्रहण करेंगे। साथ में हम पति की अच्छाइयों पर फ़ोकस करेंगे न क़ि उनकी बुराईयों पर। फ़िर पति पत्नी को मीठा खिलाकर जल पिलाएंगे। भावना करेंगे मन वचन कर्म से पत्नी के जीवन में माधुर्य और शीतलता बनी रहे ऐसा हर सम्भव प्रयास करेंगे। पत्नी पति के चरण स्पर्श करेगी और पति उसे सौभाग्य का आशीर्वाद देंगें।

फ़िर जो दीपयज्ञ के वक्त एक थाली भोजन भगवान को प्रसाद में चढ़ाया था उसी थाली में पति पत्नी एक साथ भोजन करते हैं ऐसा वैदिक विधान कहता है, इस दिन एक दूसरे का जूठा खाने से दाम्पत्य जीवन सुखमय बनता है।

गायत्री मन्त्र- ॐ भूर्भूवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्।

महामृत्युंजय मन्त्र- ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टि वर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।

चंद्र मन्त्र - ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे, अमृत तत्वाय धीमहि, तन्नो चन्द्रः प्रचोदयात्।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 23 October 2018

प्रेम तो जीवन देने वाला है, बहादुर बनाता है, प्राण देने की क्या आवश्यकता है? कायर बनकर आत्महत्या प्रेम के लिए क्यों?

*प्रेम तो जीवन देने वाला है, बहादुर बनाता है, प्राण  देने की क्या आवश्यकता है? कायर बनकर आत्महत्या प्रेम के लिए क्यों?*

बिजली विभाग में मेधावी युवक ने असिस्टेंट जूनियर इंजीनियर की सरकारी नौकरी पाया और आवास पाया। उस मेधावी युवक ने सब डिविजनल ऑफिसर बनने हेतु एग्जाम भी दिया और सफल भी हुआ।

पिता ने उसके लिए सपने संजोए, माता ने उसके लिए सपने संजोए। लेकिन किसी ने उसके ख़ुद के सपने के बारे में कभी सोचा ही नहीं। क्योंकि पिता ने बड़ी मुश्किलों से उसे पढ़ाया लिखाया था। माता ने उसके लिए कष्ट सहे थे। अब पुत्र से अपने हिसाब का सुख पाने की आकांक्षा रखते थे।

उस युवक को प्रेम हो गया। लड़की वाले भी अंतर्जातीय विवाह हेतु तैयार न हुए। मानसिक प्रेशर दोनों तरह बढ़ता गया। जो युवक ताउम्र पढ़ाई में फ़ेल नही हुआ। वो प्रेम में फ़ेल होना झेल नहीं सका। असफ़ल प्रेम के साथ जिंदगी जीना गंवारा नहीं समझा और आत्महत्या ट्रेन से कटकर लड़की और लड़के ने कर ली।

घर वालों को लड़के और लड़की की लाश भी पूरी नहीं मिली, टुकड़ों में ले गए बैग में भरकर....

ये क्यो हुआ? किसकी ग़लती थी? कौन जिम्मेदार है?

आज के युवक और युवतियां सफ़लता के लिए तो तैयारी करते हैं, असफ़लता को झेलने और उससे उबरने का उनके पास कोई प्लान नहीं होता। इसलिए आज लोग भूख से कम मर रहे है, आज ज़्यादातर मौतें विकृत चिंतन और कमज़ोर मनोबल के कारण हो रही हैं।

कहीं ऑनर कीलिंग जैसी घृणित प्रथा झूठी शान के लिए तो कहीं आत्महत्या स्वयं की इच्छाओं की पूर्ति न होने के कारण की जाती है। धैर्य तो कहीं है ही नहीं। क्या हो गया है समाज को...कोई समष्टिगत सोच दूसरों के लाभ की सोच नहीं रहा। सब केवल और केवल व्यक्तिगत स्वार्थप्रेरित होकर ही सन्तानोत्पत्ति, बालक का पालन पोषण और उनका निर्माण कर रहे हैं। जब माता-पिता ने ही परमार्थ जगत कल्याण और राष्ट्र सेवा नहीं सोचा तो उनकी स्वार्थप्रेरित भावना से जन्मी सन्तान भी भला उनके बारे में कैसे सोचती? वो भी भला केवल अपने बारे में क्यों नहीं सोचेगी?

माता-पिता और सन्तान के साथ साथ पूरे समाज को इस दिशा में गम्भीर सोच विचार करने की आवश्यकता है। भविष्य में होने वाली लाखों मौतों को रोकना सम्भव हो सकेगा, केवल सद्चिन्तन, लोककल्याण की भावना, भावसम्वेदना और आत्मीयता के विस्तार से....स्वयं विचार करें...

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday 22 October 2018

क्या सोचा था और क्या हो गया? शिष्यत्व छोड़ लोग नेता बन गए....सेवा छोड़कर सम्मान प्राप्ति के मेवा में जुट गए.

*क्या सोचा था और क्या हो गया? शिष्यत्व छोड़ लोग नेता बन गए....सेवा छोड़कर सम्मान प्राप्ति के मेवा में जुट गए.*

एक ऋषि ने तपस्या की, ज्ञान प्राप्त किया। ग्राम जाकर ज्ञान को बांटा तो कई शिष्य बन गए। उन्होंने जनपीड़ा निवारण हेतु कई प्रयास किये, जिसके कारण ग्राम के ग्राम समृद्ध होते चले गए। शरीरगत रोगों के उपचार के लिए आयुर्वेद और यज्ञचिकित्सा बताई, मनोगत रोगों के उपचार हेतु अच्छे विचार दिए, रिश्तों में सुधार हेतु बिना शर्त प्रेम एक दूसरे से करना सिखाया, और भगवत कृपा प्राप्ति हेतु निर्मल भक्ति सिखाई। कई हज़ार शिष्य उनके बने, और उनसे प्रेरणा लेकर जनसेवा में लग गए। सबकुछ अच्छा चल रहा था।

लोगों ने गुरुजी से कहा समस्त दूर गांव के लोगो को यहां लाना संभव नहीं है, अतः अपना एक मठ हमारे यहां भी खोल दीजिये। गुरूदेव दया के साग़र थे। अतः उन्होंने दूर दूर गांवों में शिष्य भेज दिए लोकल लोगों ने जमीन इत्यादि की व्यवस्था कर दी। सब व्यवस्थित चल रहा था, गुरुदेव ने कहा बच्चो अब तुम लोग सब सम्हाल सकने में सक्षम हो। अब मैं हिमालय पुनः तपलीन होने जा रहा हूँ।

कुछ वर्ष बाद जब गुरूदेव आये, तो उनसे मिलने समस्त शिष्य पहुंचे। लेकिन अधिकतर खिन्न और अप्रश्नन थे और एक दूसरे की शिकायत लेकर आये थे। अमुक फला मठ में अहंकारी बनकर मनमानी कर रहा है, उसे हटाओ इत्यादि इत्यादि। सबके अंदर शिकायतों का भण्डार था। गुरूदेव व्यथित हो रो पड़े। बोले बिना शर्त प्रेम और निःश्वार्थ जन सेवा के लिए मठ बनाया था। पीड़ा पतन निवारण के लिए मठ बनाया था। जब तुम स्वयं ही झगड़ रहे हो तो तुम्हारी बातों का जन समुदाय पर कोई असर नहीं हो रहा होगा। जो शिष्य ख़ुद एक उद्देश्य, एक लक्ष्य के लिए, गुरु आदेश पर सँगठित नहीं रह सकते, ऐसे लोगों के मुँह से परिवार निर्माण, रिश्तों में प्रेम और भगवत भक्ति की बात क्या शोभा देगी?

मुझे मेरे कार्य के लिए प्रभु सेवक और प्रभु के दास चाहिए। मठाधीश नही चाहिए। अच्छा होगा तुम लोग मठ अपने क्षेत्रों के बन्द कर दो, क्योंकि जो ज्ञान तुम्हारे आचरण में ही नहीं उतरा उसे बांटकर कोई फ़ायदा नहीं। दुबारा अपनी शक्ल मुझे मत दिखाना, मुझे कोई मठ नहीं खोलना और न चलाना है।

शिष्य बनकर सेवा कार्य के लिए पद प्रतिष्ठा की जरूरत नहीं पड़ती। हां नेता और मठाधीश बनने के लिए लिए जरूर पद प्रतिष्ठा चाहिए।

गुरु श्राप से ये शिष्य जीवनभर अशांत और व्यथित रहे, मरने के बाद पुनः संसार के आवागमन और नारकीय यातना को भोगते रहे।

कुछ शिष्य मौन अपनी प्रतीक्षा में थे, गुरूदेव ने उनसे पूँछा तुम्हे किसी से शिकायत नहीं। उन्होंने गुरुदेव से कहा, प्रभु हम तो यह जानने आये है कि आगे हमारे लिए आपका क्या निर्देश है, हम अपनी योग्यता पात्रता कैसे बढ़ाएं। इस बार आप क्या ब्रह्मज्ञान लेकर आये हैं? हमें परमज्ञान देकर अनुग्रहित करें। गुरुदेव प्रशन्न हुए और इन शिष्यों को ब्रह्मज्ञान देकर और मुक्ति का मार्ग बतलाकर चले गए। जाओ अपने अपने मठों को विस्तार दो। ध्यान रखो गुरु की प्रथम पहचान गुरु का शिष्य ही होता है।

 मेरी तपस्या और ज्ञान के सच्चे उत्तराधिकारी तुम हो मेरे बच्चो। ढेर सारे गुरु के आशीर्वाद से शिष्य कृतकृत्य हो गए। जीवन भर परमानन्द में जन सेवा की और मरने के बाद ये शिष्य ब्रह्मलीन हुए और बैकुंठ गए।

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जिस प्रकार गंदे शीशे पर सूर्य की रोशनी नही ठहरती, ठीक उसी प्रकार गंदे मन वालों पर ईश्वर और सद्गुरु के आशीर्वाद का प्रकाश नही पड़ सकता है ।
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🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

छठ महापर्व - सूर्योपासना का महापर्व* - *तत्सवितुर्वरेण्यं-सूर्य की सविता शक्ति का पूजन* (11 नवम्बर से 14 नवम्बर 2018)

*छठ महापर्व - सूर्योपासना का महापर्व* - *तत्सवितुर्वरेण्यं-सूर्य की सविता शक्ति का पूजन*
(11 नवम्बर से 14 नवम्बर 2018)
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लोक आस्था के महापर्व के रूप में प्रसिद्ध महापर्व छठ पूजा 2018 दिवाली के 6 दिन बाद मनाया जाता है. पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में छठ पूजा बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. ये त्योहार साल में दो बार आता है. इस व्रत को पारिवारिक सुख और समृद्धि के लिए किया जाता है. ये त्योहार चार दिन तक मनाया जाता है. इस दौरान महिलाएं नदी या तालाब में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देती हैं. इस साल छठ पूजा 13 नवम्बर 2018 को है।

👉🏻 *छठ की शुरुआत* - ऐसी मान्यता है कि जब पांडव जुए में अपना सारा राज-पाट हार गए, तब द्रौपदी बहुत दुःखी थीं। तब श्रीकृष्ण भगवान ने उन्हें सूर्योपासना गायत्री मन्त्र अनुष्ठान के साथ करने की सलाह दी। इसी सूर्य उपासना से उन्हें अक्षय भोजन पात्र मिला जिसमे भोजन कभी कम नहीं पड़ता था। सूर्य की सविता शक्ति गायत्री को ही छठी मईया भी कहा जाता है। गायत्री कल्पवृक्ष है, इससे असम्भव भी सम्भव है।  सर्वप्रथम दौपदी ने छठ का व्रत किया, तब से मान्यता है कि व्रत के साथ गायत्री अनुष्ठान और सूर्योपासना  करने से दौपद्री की तरह सभी व्रती की मनोकामना पूरी हो होती है, तभी से इस व्रत को करने प्रथा चली आ रही है।

👉🏻 *छठ पूजा विधि*

छठ पूजा 4  दिनों तक की जाती है, इस व्रत की शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को और कार्तिक शुक्ल सप्तमी तक चलता है। इस दौरान व्रत करने वाले लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं, इस दौरान वे अन्न नहीं ग्रहण करते है, जिससे प्राणवायु अन्न पचाने में ख़र्च न हो और प्राण ऊर्जा ज्यादा से ज्यादा शरीर के 24 शक्ति केंद्रों तक पहुंचे और उन्हें जागृत कर शक्ति का संचार करे। जल प्रत्येक एक एक घण्टे में पीते रहना चाहिए जिससे पेट की सफ़ाई हो, और आंते दूषित और पेट में जमा हुआ अन्न और चर्बी उपयोग में न ले सकें। जो लोग जल नहीं पीते उनकी आंते उनकी शरीर की चर्बी पचाते हैं, और पेट में संचित मल और अपच भोजन से शक्ति लेते है, उससे प्राणवायु शक्ति केन्द्रो तक नहीं पहुंचती।

यदि जलाहार में असुविधा हो रही हो तो एक या दो वक़्त रसाहार अर्थात् फ़ल के जूस ले लेवें। कोई तलाभुना या ठोस आहार लेना वर्जित है।

👉🏻 *छठ महापर्व पर अनुष्ठान मन्त्र एवं विधि*

व्रत के दौरान ब्रह्मचर्य के पालन के साथ भूमि पर शयन अनिवार्य है। कम से कम सोयें और उगते हुए सूर्य का ध्यान करें।

दिन में तीन बार पूजन होगा, पहला पूजन सूर्योदय के समय, सूर्य के समक्ष जप करने के बाद अर्ध्य देना होगा।

दूसरा समय दोपहर का, गायत्री जप के बाद तुलसी को अर्घ्य देना होगा।

शाम के गायत्री जप के बाद नित्य शाम को पांच दीपकों के साथ दीपयज्ञ होगा।

इन चार दिनों में 108 माला गायत्री जप की पूरी करनी होती है। अर्थात् 27 माला रोज जप करना होगा। इसे अपनी सुविधानुसार दिनभर में जप लें।

पूजन के वक़्त पीला कपड़ा पहनना अनिवार्य है, उपवस्त्र गायत्री मन्त्र का दुपट्टा ओढ़े। आसन में ऊनी कम्बल या शॉल उपयोग में लें।

👉🏻सूर्योपासना अनुष्ठान मन्त्र - *ॐ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्*

👉🏻दीपदान के समय महामृत्युंजय मन्त्र-
*ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टि वर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्*

सूर्य गायत्री मन्त्र - *ॐ भाष्कराय विद्महे, दिवाकराय धीमहि, तन्नो सूर्यः प्रचोदयात्*

 👉🏻 *सूर्य अर्घ्य देने की विधि*

यदि घर के आसपास नदी तलाब या कोई जलाशय हो तो पानी में कमर तक पानी में खड़े होकर अर्घ्य दें, यदि नहीं है तो घर की छत पर या ऐसी जगह अर्घ्य दें जहाँ से सूर्य दिखें।  सूर्योदय के प्रथम किरण में अर्घ्य देना सबसे उत्तम माना गया है।सर्वप्रथम प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व  नित्य-क्रिया से निवृत्त्य होकर स्नान करें।उसके बाद उगते हुए सूर्य के सामने आसन लगाए।पुनः आसन पर खड़े होकर तांबे के पात्र में पवित्र जल लें।रक्तचंदन आदि से युक्त लाल पुष्प, चावल आदि तांबे के पात्र में रखे जल या हाथ की अंजुलि से तीन बार जल में ही मंत्र पढ़ते हुए जल अर्पण करना चाहिए।जैसे ही पूर्व दिशा में  सूर्योदय दिखाई दे आप दोनों हाथों से तांबे के पात्र को पकड़कर इस तरह जल अर्पण करे की सूर्य तथा सूर्य की किरण जल की धार से दिखाई दें।ध्यान रखें जल अर्पण करते समय जो जल सूर्यदेव को अर्पण कर रहें है वह जल पैरों को स्पर्श न करे।सम्भव हो तो आप एक पात्र रख लीजिये ताकि जो जल आप अर्पण कर रहे है उसका स्पर्श आपके पैर से न हो पात्र में जमा जल को पुनः किसी पौधे में डाल दे।यदि सूर्य भगवान दिखाई नहीं दे रहे है तो कोई बात नहीं आप प्रतीक रूप में पूर्वाभिमुख होकर किसी ऐसे स्थान पर ही जल दे जो स्थान शुद्ध और पवित्र हो।जो रास्ता आने जाने का हो भूलकर भी वैसे स्थान पर अर्घ्य (जल अर्पण) नहीं करना चाहिए।

👉🏻 *सूर्य अर्घ्य मन्त्र* -

*‘ॐ सूर्य देव सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते। अनुकंपये माम भक्त्या गृहणार्घ्यं दिवाकर:।।*
*ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय, सहस्त्रकिरणाय। मनोवांछित फलं देहि देहि स्वाहा :।।ऊँ सूर्याय नमः।ऊँ घृणि सूर्याय नमः।*
*‘ऊं भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात।*

👉🏻 *छठ पूजा 2018 का प्रसाद*

छठ पूजा में कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं. इस दौरान छठी मैया को लड्डू, खीर, ठेकुआ, फल और कष्ठा जैसे व्यंजन के भोग लगाए जाते हैं. छठ पर कई प्रकार के पारंपरिक मिठाई भी बनाई जाती हैं. प्रसाद में लहसुन और प्याज का उपयोग नहीं किया जाता है.

*छठ पूजा व्रत आरंभ*
नहा खा – 11 नवम्बर 2018
खरना । लोहंडा - 12 नवम्बर 2018
सांझा अर्घ्य- 13 नवम्बर 2018
सूर्योदय अर्घ्य - 14 नवम्बर 2018

👉🏻 *छठ पूजा 2018 : शुभ पूजन मुहूर्त*

*13 नवंबर*
*छठ पूजा के दिन सूर्योदय* – 06:41
*छठ पूजा के दिन सूर्यास्त* – 17:28
*षष्ठी तिथि आरंभ* – 01:50 (13 नवंबर 2018)
*षष्ठी तिथि समाप्त* – 04:22 (14 नवंबर 2018)


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन

प्रश्न - *दी हस्त रेखा विज्ञान को जीवन मे कितना महत्त्व देना चाहिए? मार्गदर्शन करें*

प्रश्न - *दी हस्त रेखा विज्ञान को जीवन मे कितना महत्त्व देना चाहिए? मार्गदर्शन करें*

उत्तर - आत्मीय बहन, हस्तरेखा विज्ञान को बिल्कुल महत्व नहीं देना चाहिए।

 मानवीय चेतना किस स्तर पर है उस पर भविष्य निर्भर करता है।

चेतना तीन स्तर/तल पर विचरण करती है:-

👉🏼शारीरिक स्तर (केवल खाना-पीना-सोना, प्रजनन, घर की व्यवस्था में जिंदगी गुजार देना)

👉🏼 मानसिक स्तर (बुद्धिबल के प्रयोग से मानसिक क्षमता का उच्चतम प्रयोग संगीत, कला, विज्ञान, चिकित्सा, रिसर्च इत्यादि में जुटना)

👉🏼 आत्मिक स्तर (आत्मबल-ब्रह्मबल के प्रयोग से स्वयं की क्षमता का पूर्ण विकास करना, स्वयं को जानना और ब्रह्मांडीय दैवीय चेतना से सम्पर्क स्थापित करना। परमानन्द में डूबना और लोकहित जीना)

हाथों की लकीरों से वही मनुष्य बंधा है जिसकी चेतना पशुवत केवल शरीर तल/स्तर पर ही है। शरीर से जुड़ी आवश्यकताओं के अतिरिक्त उसे और कुछ नहीं सूझता। अंधाधुंध खाना और प्रजनन करना।

जब मनुष्य की चेतना इससे ऊपर उठ जाती है अर्थात मानसिक तल/बुद्धिबल का प्रयोग करने लगता है वो हाथों की लकीरों को मनचाहा फेरबदल कर सकता है। विद्या हाथ की लकीर में न भी हो तो भी महाज्ञानी बन सकता है, निरन्तर मेहनत से असम्भव भी सम्भव है।

जब मनुष्य की चेतना मानसिक स्तर से भी ऊपर आत्म चेतना तक पहुंच जाती है। तब मनुष्य स्वयं का भाग्य विधाता बन जाता है। उसकी चेतना शिखर पर होती है और साक्षी भाव से वो जीता है।  ब्रह्मानन्द में डूबे ऐसे योगी सूखे नारियल की तरह हो जाते है, शरीर मे रहकर भी शरीर भाव से परे होते है। अतः इनपर हाथों की लकीरों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

फिर बहन हाथों की लकीरों से ही केवल तक़दीर/भाग्य/किस्मत नहीं बनता, क्योंकि तक़दीर तो उनकी भी होती है जिनके हाथ भी नहीं होते।

अतः अपनी चेतना को गायत्री साधना, ज्ञानार्जन और मेहनत से चेतना के शिखर पर, आत्म स्तर पर ले जाओ। और स्वयं की भाग्य विधाता बनो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

गर्भसंस्कार के साथ गर्भ दुबारा जल्दी न ठहरे इसकी सलाह देना भी अनिवार्य है।

*गर्भसंस्कार के साथ गर्भ दुबारा जल्दी न ठहरे इसकी सलाह देना भी अनिवार्य है।*

प्रश्न-उत्तर और शंका-समाधान में अभी तक कई सारे भाई बहनों की समस्या और प्रश्न आया कि बच्चा सिजेरियन हुआ और 5 महीने के अंदर गर्भ दुबारा ठहर गया और लड़की को पता नहीं चला। अब ऐसा भी नहीं है कि पति पत्नी दोनों शिक्षित नहीं है, या मार्किट में उपलब्ध गर्भ निरोधक संसाधनों से अंजान है। उनसे बातचीत करने पर तीन बातें सामने आई:-

1- डॉक्टर ने कहा था कि पीरियड तीन चार महीने से पहले नहीं आएगा। अतः लड़की ने सोचा तो गर्भ ठहरने का सवाल ही नहीं है और लापरवाही बरती। अब गर्भ ठहरने पर पश्चाताप हो रहा है।

2- लड़के ने मन पर नियंत्रण खोया और साथ ही विवेक दृष्टि और दूरदर्शिता भी खो दिया। जब होश आया और गर्भ का पता चला तो पश्चाताप हुआ। गर्भ गिराए या रखें, मन पाप-पुण्य में झूल रहा है। अनिश्चितता बनी हुई है।

3- लड़के-लड़की को गर्भ निरोधक समान खरीदने में शर्म महसूस होती है, मन पर नियन्त्रण नहीं है और बाह्य नियंत्रण बुढ़िया पुराण के अनुसार शर्म के कारण नहीं अपना रहे।  गर्भ ठहर गया दुबारा इतनी जल्दी उसमे भी शर्म आ रही है। कुछ समझ नहीं आ रहा कि गर्भ गिरवाये या नहीं। पाप-पुण्य का उलझन। घर मे कैसे बताये इसमें भी शर्म..

कई सारे भाई बहन के घर जब यज्ञ करवाने जाओ तो बच्चे जुड़वा लगते है, पूंछने पर पता चलता है कि दोनों बच्चो में मात्र 11 या 12 महीने का अंतर है बस। भूलवश या अज्ञानतावश हो गया। परेशानी सिजेरियन पेट का दो बार वो भी 11 महीने या 12 महीने बाद। फिर दो बच्चों को सम्हालने में शरीर की दुर्दशा और मन का अस्थिर होना इत्यादि।

इन समस्याओं से कई जिंदगियां बच सकती है, यदि गर्भ सँस्कार के साथ साथ हम गर्भिणी को इन बातों को समझा दें कि गर्भ पीरियड आये न आये सिजेरियन के बाद ठहर सकता है। सावधानी बरतें। बहुत जिंदगियां बच जाएंगी। बहुत सारे गर्भपात होने से बच जाएंगे।

अशिक्षित गरीब स्त्रियों का तो इससे भी बुरा हाल है। यदि हम इन्हें परेशानी में पड़ने से बचा सकें तो बेहतर होगा। क्योंकि इनके सिजेरियन वैसे तो बहुत कम ही होता है लेकिन जिनका होता है उनकी तो ढंग से केयर भी नहीं होती। फिर जल्दी दूसरा बच्चा उन्हें बीमारियों का घर बना देता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

शरद पूर्णिमा- 23 अक्टूबर 2018

*शरद पूर्णिमा- 23 अक्टूबर 2018*

चन्द्र किरणों से अमृत झरता है, विभिन्न औषधियां चन्द्रमा की रौशनी से ही बल प्राप्त करती हैं।

शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा की रौशनी में स्वयं को नहलाएं, चावल की खीर बना के ठण्डी कर लें और उसे इस तरह रखें क़ि चन्द्रमा की रौशनि उस पर पड़े। घर में चांदी या स्टील के बर्तन में ही खीर रखें। स्टील के बर्तन में खीर रखकर उसमे चांदी की चम्मच या चांदी की साफ़ धुली अंगूठी भी डाल कर रख सकते हैं।

जिनके पास छोटा चांदी का बर्तन हो वो उस बर्तन में कच्चा गाय का दूध भरकर उसका अर्घ्य/चढ़ा दें। सौभाग्य की वृद्धि होती है।

हो सके तो मध्य रात्रि 11:30 से 12:30 तक चन्द्रमा को खुली आँखों से देखते हुए चन्द्रमा में अपने ईष्ट आराध्य का ध्यान करें। आपको चश्मा भी लगता हो तो भी खुली आँखों से ही चन्द्रमा देखें और अपने नेत्र की नसों के माध्यम से चन्द्र की रौशनि को आँखों  और मष्तिष्क तक पहुंचने दें।

दस माला गायत्री का जप और एक माला चन्द्र गायत्री का मन्त्र चन्द्रमा में अपने ईष्ट आराध्य की कल्पना करते हुए जपें। और चन्द्रमा में ईष्ट आराध्य का ध्यान करते हुए उनके ध्यान में खो जाएँ।

*उदाहरण- हम युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव का ध्यान चन्द्रमा में शरद पूर्णिमा के दिन करते हैं। लगातार चन्द्र को देखते रहते हैं, लगभग 15 से 20 मिनट के अंदर ही गुरुदेव का चेहरा हमारा मष्तिष्क कल्पनाओ के और ध्यान के तीव्र स्पंदन में दिखाने लगता है। चन्द्रमा में ही कल्पना शक्ति और ध्यान की एकाग्रता में ब्लैक एन्ड व्हाईट चांदी सा चमकता हुआ अपने ईष्ट आराध्य के दर्शन किये जा सकते हैं।*

गायत्री मन्त्र - *ॐ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्*

चन्द्र गायत्री मन्त्र - *ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे, अमृततत्वाय धीमहि। तन्नो चन्द्रः प्रचोदयात्*

महामृत्युंजय मन्त्र- *ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टि वर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।*

*शरद पूर्णिमा का महत्त्व श्रद्धेय डॉक्टर साहब के श्रीमुख से स्वयं सुने-यूट्यूब की इस लिंक पर-*
https://youtu.be/HMX4spaTCms

*पूर्णिमा के चन्द्रमा का ध्यान और इसका महत्व श्रद्धेय डॉक्टर साहब के श्रीमुख से स्वयं सुने और चन्द्रमा का ध्यान करें-यूट्यूब की इस लिंक पर-*
https://youtu.be/umAfVbaGWhw

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Sunday 21 October 2018

ज्ञानरथ से जुड़े जीवंत अनुभव - आत्महत्या से बचाव

*ज्ञानरथ से जुड़े जीवंत अनुभव*

एक लड़की अपनी तीन वर्षीय बेटी को लेकर रेलवे ट्रैक में आत्महत्या कर रही थी। एक 82 वर्ष के वृद्ध साधु ने उसे बचाया और शान्तिकुंज लेकर आ गया।

गेट पर ज्ञानरथ चलाने वाले द्विवेदी बाबूजी को परेशान लड़की  को वो बृद्ध साधु समझाते हुए दिखे। बाबूजी ने साधु और उस लड़की को बिठाया और चाय पानी पिलाया। हाल चाल और परेशानी पूँछी।

फ़िर लड़की की काउंसलिंग की, और गृहस्थ एक तपोवन पुस्तक उसे देकर के सफल गृहस्थी और मित्रभाव बढ़ाने के सूत्र समझाये।

बोला बेटी, आजकल हम मनुष्य इसलिए दुःखी है क्योंकि हम किसी को बिना शर्त प्रेम नहीं करते। हम हमेशा तराजू हाथ मे लिए फिरते है कि उसने इतने ग्राम/परसेंटेज हमें प्रेम किया तो बदले में हम भी उतना ही प्रेम उसे बदले में करेंगे।

इस नाप तौल और व्यापार में गृहस्थी बिखर रही है। बेटी तू आज यही इसी वक्त इस नाप तौल के तराजू को जीवन से विदा कर दें। जैसे माँ रूप में अपनी बेटी से बिना शर्त प्यार करती है, उसी तरह पति से बिना शर्त, बिना किसी उम्मीद के प्रेम कर, उसकी सेवा निःश्वार्थ करो।

बेटा, जॉब में परेशान होकर वो क्रुद्ध हुआ होगा, गलत सँस्कार तुम्हारे पति को बचपन से मिले है, इसलिए वो हाथ उठाता है। अतः तुम्हें उसके व्यवहार-स्वभाव में समझदारी से परिवर्तन लाना होगा। इस पुस्तक में समस्त सूत्र है पढो और बुद्धिमान बनो।

जीवन अमूल्य है, इसे नष्ट मत करो। गुस्सा में इंसान अंधा हो जाता है वो आगे पीछे और आने वाला भविष्य नहीं देख पाता। स्त्री के तप में इतनी ताकत है कि वो यमराज से पति वापस ला सकती है। पति को बीमारी हो जाये और यदि सिंहनी के दूध से वो बीमारी ठीक होने वाली हो तो पत्नी सिंहनी तक को वश में करके उपाय करके पति ठीक कर लेगी। बेटी जहाँ चाह वहां राह है। गुरूदेव की समाधि में प्रार्थना करके हमारी बात मानकर दिल्ली अपने घर लौट जाओ। बुद्धि से काम लो और अपना घर सम्हालो।

द्विवेदी बाबूजी और उस साधु महराज ने उस लड़की को काफ़ी समझाया और साधु महराज ने उस लड़की को दिल्ली उसके घर तक पहुंचाया।

लगभग 20 दिनों बाद वही लड़की अपने पति के साथ शान्तिकुंज आयी। जीवन बचाने, काउंसलिंग करने और उस लड़की को सकुशल घर पहुंचवाने में मदद के लिए, उसके पति ने भी बाबूजी को धन्यवाद दिया। उसके पति ने और उसने गुरुदीक्षा शान्तिकुंज में ली, और ढेर सारा युगसाहित्य खरीद कर पाथेय के रूप में ले गए।

ज्ञानरथ जीवन सन्देश देता है,
यह चलता फिरता आर्ट ऑफ लिविंग की कार्यशाला है। ज्ञानरथ से अर्थ नहीं अपितु जीवन कमाया जाता है।

क्रमशः...


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

ज्ञानरथ के जीवंत अनुभव - स्थान आगरा, योगेश भाई

*ज्ञानरथ के जीवंत अनुभव - स्थान आगरा*

एक दिन सर्दी के मौसम में योगेश भैया ज्ञानरथ लेकर घूम रहे थे। रात को परतापपुरा आगरा मे  करीब 8:30 का समय था, बिक्री कम हुई थी अतः बैठे बैठे मन उधेड़बुन में लग गया।

ज्ञानरथ में दिनभर हुए कम बिक्री और समय की बर्बादी मन मान रहा था। रुपये और खर्च का हिसाब लगाने लगे और सोचने लगे कि ज्ञानरथ में भी आज कुछ ख़ास विक्री नहीं हुई। और यह भी सोचने लगे कि गायत्री शक्ति पीठ तो बन गया है करोड़ो खर्च भी हो गए। लेकिन पूरे दिन मे केवल दस बीस लोग ही रोज आते है और भी तरह तरह के निगेटिव विचार उनके दिमाग़ में आने लगे।

थोड़ी देर इसी उधेड़बुन में थे कि  एक व्यक्ति खादी का कुर्ता और जैकेट पहने आया। पुस्तक देखने लगा और कुछ पुस्तकें खरीदी।

 और कहने लगा कि बहुत शानदार और जीवनोपयोगी काम कर रहे हो भैया,  बहुत बढ़िया गाड़ी बनाई है आपने। आज के ज़माने में विकृत चिंतन ने पूरे समाज को खोखला और मन को रुग्ण बना दिया है। रुग्ण मन और खोखले समाज का इलाज़ आप लोगों को मुहैया करवा रहे हो।

पूरे आगरा मे लगभग 30 लाख की आबादी है, ऐसे में अकेले तुम इतने लोगों के भला करने हेतु दिन रात बिना किसी लोभ लालच के काम कर रहे हो। आपकी तो किताबें इतनी अमूल्य है और जीवनोपयोगी है, फ़िर भी इतनी सस्ती है। मुझे लगता है वास्तव में ये तो प्रिंटिंग मूल्य ही है, क्योंकि इस ज्ञान का तो कोई मूल्य दे नहीं सकता। मैं आपकी प्रशंशा करता हूँ कि इस अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य को आप कर रहे हैं।

योगेश भैया की निगेटिव सोच को बदल कर वो व्यक्ति चला गया, उसकी बातें योगेश भैया के दिलो दिमाग को झकझोर के चली गयी। उसका खादी का कुर्ता खादी की धोती और जैकेट् याद आ रहा था।

उस दिन से आज़तक फिर कभी योगेश भैया ने ज्ञानरथ के फ़ायदे और नुकसान के बारे में नहीं सोचा। जो भी उनके ज्ञानरथ में आता उसे जीवन जीने और तनावप्रबन्धन के सूत्र देते है। उनका उत्साहवर्धन करके साहित्य देते हैं। न जाने कितनों की उलझने अब योगेश भैया सुलझाते है, अब खुद कभी नहीं उलझते।

योगेश भैया मानते है, कि मेरी निगेटिव सोच को बदलने शायद गुरुदेव स्वयं हिमालय से आये या किसी अन्य को प्रेरित करके भेज दिया। मेरी सोच बदलकर चले गए।

ज्ञानरथ के जीवंत अनुभव के एपिसोड जो मैं लोगों के संग्रह करके आप तक पहुंचा रही हूँ कैसे लग रहे हैं, इसका फ़ीडबैक मुझे व्हाट्सएप और फेसबुक पर कमेंट करके जरूर दें।साथ ही यदि आप ज्ञानरथ चलाते है और ऐसे ही कुछ अनुभव आपके है तो मुझे शेयर करें या फोन करके बतायें।

क्रमशः....

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Saturday 20 October 2018

गर्भ संवाद - पंचतत्वों का ध्यान

*गर्भ संवाद* - 1 जल तत्व का ध्यान
 *नादयोग या मधुर बाँसुरी की धुन बजा लें, और गर्भ पर हाथ रख के भावना/कल्पना करें और मुंह से बोलते जाएं*

मेरे बच्चे, पंच तत्वों से तुम्हारा शरीर बना है, आज हम उनमें से एक तत्व जल का ध्यान करेंगे और उसे अनुभव करेंगे।

मेरे बच्चे आओ हम तुम अनुभव करें कि हम तुम गहरे नीले आकाश के नीचे बैठे हैं और हमारे  ऊपर प्राण पर्जन्य की वर्षा रूपी जल गिर रहा है, बरस रहा है। आओ स्वयं पर गिरती एक एक बूंद को गहराई से अनुभव करें, इस प्राण पर्जन्य के जल के स्पर्श से हमारे शरीर का जल तत्व सन्तुलित और शक्ति सम्पन्न बन रहा है।

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*गर्भ संवाद* - 2 वायु तत्व का ध्यान
 *नादयोग या मधुर बाँसुरी की धुन बजा लें, और गर्भ पर हाथ रख के भावना/कल्पना करें और मुंह से बोलते जाएं*

मेरे बच्चे, पंच तत्वों से तुम्हारा शरीर बना है, आज हम उनमें से एक तत्व वायु का ध्यान करेंगे और उसे अनुभव करेंगे।

मेरे बच्चे आओ हम हिमालय में स्वयं को अनुभव करें, नदी के किनारे गहरे नीले आकाश के नीचे बैठे हैं एक तरफ जंगल है और दूसरी तरफ नदी बह रही है और हिमालय से आती हुई शीतल हवा ढ़ेरों सुगन्धित वायु- प्राण पर्जन्य भरी वायु आपको स्पर्श कर रही है, हमारे केश/बाल और कपड़े हवा से हिल  रहे है। स्वयं पर हवा को प्रवेश करता हुआ अनुभव करें, वायु शरीर को वायु तत्व से सन्तुलित और शक्ति सम्पन्न और चार्ज होता हुआ अनुभव करें। प्रवेश करती प्राणवायु हमारे श्वांसों में ढेर सारा प्राण लेकर आ रही है, हमे प्राणवान ऊर्जावान बना रही है। हमारे शरीर से बाहर जाती श्वांस समस्त विकारों को दूर बहुत दूर हमसे ले जा रही है।

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*गर्भ संवाद* - 3 मिट्टी तत्व का ध्यान
 *नादयोग या मधुर बाँसुरी की धुन बजा लें, और गर्भ पर हाथ रख के भावना/कल्पना करें और मुंह से बोलते जाएं*

मेरे बच्चे, पंच तत्वों से तुम्हारा शरीर बना है, आज हम उनमें से एक तत्व मिट्टी/पृथ्वी का ध्यान करेंगे और उसे अनुभव करेंगे।

आओ मेरे बच्चे हम तुम अनुभव करें कि नदी के किनारे गहरे नीले आकाश के नीचे बैठे हैं एक तरफ जंगल है और दूसरी तरफ नदी बह रही है और हिमालय से आती हुई शीतल हवा ढ़ेरों सुगन्धित वायु- प्राण पर्जन्य भरी वायु आपको स्पर्श कर रही है, वहीं नदी के जल से मिट्टी गीली हुई है। हम तुम उस गीली मिट्टी से स्नान कर रहे है। हमारे केश/बाल और समस्त शरीर पर मिट्टी का आवरण चढ़ गया है, हम दोनों अत्यंत शीतलता अनुभव कर  रहे है। पृथ्वी से बने शरीर को पृथ्वी/मिट्टी तत्व से सन्तुलित और शक्ति सम्पन्न और चार्ज कर रहा है। आओ इस दिव्य ध्यान में खो जाएं।


☁☁☁☁☁☁
*गर्भ संवाद* - 4 आकाश तत्व का ध्यान
 *नादयोग या मधुर बाँसुरी की धुन बजा लें, और गर्भ पर हाथ रख के भावना/कल्पना करें और मुंह से बोलते जाएं*

मेरे बच्चे, पंच तत्वों से तुम्हारा शरीर बना है, आज हम उनमें से एक तत्व आकाश का ध्यान करेंगे और उसे अनुभव करेंगे।

आओ मेरे बच्चे हम तुम अनुभव करें कि नदी के किनारे गहरे नीले आकाश के नीचे लेटे हैं एक तरफ जंगल है और दूसरी तरफ नदी बह रही है और हिमालय से आती हुई शीतल हवा ढ़ेरों सुगन्धित वायु- प्राण पर्जन्य भरी वायु हमको और तुमको स्पर्श कर रही है, हमारे केश/बाल और कपड़े हवा से हिल  रहे है। स्वयं पर हवा को प्रवेश करता हुआ अनुभव करो, देखो बेटा हम तुम बादल के जैसे हल्के हो गए है और बदलो के साथ साथ उड़ रहे हैं। आकाश और हम आपस में स्पर्श कर रहे है, आकाश और हम एक हो गए हैं। आकाश शरीर को आकाश तत्व से सन्तुलित और शक्ति सम्पन्न और चार्ज कर रहा है। हम आनन्दित और असीम प्रशन्नता का अनुभव कर रहे हैं।

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*गर्भ संवाद* - 5 अग्नि तत्व का ध्यान
 *नादयोग या मधुर बाँसुरी की धुन बजा लें, और गर्भ पर हाथ रख के भावना/कल्पना करें और मुंह से बोलते जाएं*

मेरे बच्चे, पंच तत्वों से तुम्हारा शरीर बना है, आज हम उनमें से एक तत्व अग्नि का ध्यान करेंगे और उसे अनुभव करेंगे।

मेरे बच्चे आओ अनुभव करें, भावना करें कि हम हिमालय में हैं, यहां हज़ारो कुंडीय यज्ञ हो रहा है। हम तुम पीले वस्त्र और गायत्री मंत्र दुप्पटा धारण कर यज्ञ कर रहे हैं। चारों ओर कर्णप्रिय वेद मंत्रों के गुंजार हो रहे हैं। फिर बच्चे हम और तुम स्वयं को समिधा की तरह देखो और आओ स्वयं को यज्ञ में प्रवेश करता हुआ अनुभव करें, अब स्वयं को यज्ञ अनुभव करें। आओ हम तुम अग्नि शरीर को अग्नि तत्व से सन्तुलित और शक्ति सम्पन्न और चार्ज होता हुआ अनुभव करें। अब कल्पना करो मेरे बच्चे जिस प्रकार दौपदी और प्रदुम्न अग्नि से जन्मे थे, उसी प्रकार तुम स्वयं अग्नि स्नान के बाद अग्नि से बाहर प्रकट हो रहे हो और मेरे गर्भ में प्रवेश कर रहे हो। तुम अग्नि के समान ऊर्जावान हो गए हो। तुम्हे गर्भ में धारण कर मैं भी ऊर्जा वान हो गयी हूँ।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday 19 October 2018

*गर्भसंवाद* - *गर्भ के शिल्प का विज्ञान विचारशक्ति विज्ञान और भावशक्ति विज्ञान पर आधारित है।*

*गर्भसंवाद* - *गर्भ के शिल्प का विज्ञान विचारशक्ति विज्ञान और भावशक्ति विज्ञान पर आधारित है।*

शिल्पकार छोटी सी छैनी और हथौड़ी जैसे साधारण से दिखने वाले उपकरण की सहायता से अनवरत मेहनत से पहाड़ के छोटे से लेकर बड़े पत्थर को मनचाहा शिल्प उभार सकता है, मूर्ति बना सकता है।

इसी तरह माता रूपी शिल्पकार गर्भस्थ शिशु के मन को मनचाहा आकार - सँस्कार दे सकती है, इसके लिए वो दो उपकरण उपयोग करती है पहला - शब्द शक्ति और दूसरा भाव शक्ति।

सन्तुलित शरीर के निर्माण में जिस तरह सन्तुलित अन्न और जल सहायता करता है, उसी तरह सन्तुलित मन के निर्माण में सन्तुलित विचार और भावनाएं सहायता करती हैं।

गर्भस्थ शिशु जिस तरह आहार के लिए मां पर निर्भर है, उसी तरह विचार के लिए भी मां पर निर्भर है।

मां को दिया भोजन, दवाएं और इंजेक्शन गर्भस्थ शिशु  तक पहुंच जाता है। इसी तरह मां से किया संवाद गर्भ तक पहुंच जाता है। माँ की आंख से बच्चा देखता है, मां के कान से सुनता है, मां के मन में उठ रहे विचार बच्चे के अंदर भी वही भाव उतपन्न करते है। माँ जो नया कुछ सीखती है वो बच्चा भी सिखता है।

गर्भावस्था में मां को मधुर संगीत सुनना चाहिए, अच्छे शब्दों वाले गीत गुनगुना चाहिए। महापुरुषों की कहानियां बोलकर पढ़ना चाहिए। गर्भस्थ शिशु से पिता को भी बातें करनी चाहिए, उसे रोज बाल निर्माण की कहानियां सुनाना चाहिए। बच्चे को गर्भ से ही जिंदगी में उसकी उपस्थिति और परिवार का सदस्य होने की अनुभूति करवाइये।

जैसे बेल बजी और पतिदेव घर आये, तो मां पेट पर हाथ रख के बोले बेटा आपके पापा घर आ गए। पिता बोले बेटा मैं घर आ गया। जब भोजन करें तो गायत्री मंत्र बोलने के बाद गर्भस्थ शिशु को बोलें अब मम्मी खाना खाएगी, ये खाना आपको अच्छा स्वास्थ्य देगा। पानी पिएं तो भी बोल के पिये। कोई भी अच्छा कार्य करने के साथ उसे बताते चलें, जिससे सभी गतिविधि सही ढंग से उसके दिमाग़ में रजिस्टर होती रहे। माता-पिता और बच्चे के बीच में सम्बन्ध अच्छे बने।

टीवी-फ़िल्म-सीरियल या घर के लड़ाई झगड़े की आवाज़े और दृश्य गर्भवती मां के सामने न आये। अन्यथा इनका नकारात्मक प्रभाव गर्भस्थ शिशु के दिमाग मे रजिस्टर हो जाएगा।

गर्भ में ही घर के अन्य सदस्य जब बोलें तो माँ बोले ये आवाज तुम्हारी बुआ की ये दादी की आवाज है, ये दादा की आवाज है, ये नाना की आवाज है, ये नानी की आवाज है।

मां को संस्कृत सीखना चाहिए, जोर जोर से संस्कृत के गायत्री  मन्त्र और महामृत्युंजय पढ़ना चाहिए, मन्त्रलेखन करना चाहिए। बच्चे के गर्भ संवाद के दौरान सँस्कार गढ़ने और नई अभिरुचि उसमे पैदा करने का प्रयास करना चाहिए। जिस महापुरुष की तरह बच्चा बनाना चाहते है उनकी जीवनियां पढ़िए। अच्छी नैतिक शिक्षा, मानसिक संतुलन, धार्मिक पुस्तको को बोलकर पढ़िए।

दो मनपसन्द भजन चुन लीजिये, सुबह वाले भजन को सुनते हुए उठिए, और रात वाले भजन को सुनते हुए सो जाइये। जब बच्चा पैदा होगा, तो ज्यो ही उसके कान में सुबह वाला भजन बजेगा वो घड़ी के अलार्म की तरह उसे सुनते ही उठ जाएगा। ज्यों ही रात वाला भजन बजेगा वो लोरी की तरह उसे सुला देगा। क्योंकि जो आदत गर्भ में पड़ती है वो जल्दी छूटती नहीं।

Thursday 18 October 2018

प्रश्न - *दी, मैं ऐसा का करूँ या ऐसा क्या बनूँ कि हमेशा ख़ुश-आनन्दित रहूँ? आप जो बोलोगे वो मैं करने को तैयार हूँ, बस मेरे हृदय में सच्चा सुकून और चेहरे पर आनन्द और शांति की आभा हो

प्रश्न - *दी, मैं ऐसा का करूँ या ऐसा क्या बनूँ कि हमेशा ख़ुश-आनन्दित रहूँ? आप जो बोलोगे वो मैं करने को तैयार हूँ, बस मेरे हृदय में सच्चा सुकून और चेहरे पर आनन्द और शांति की आभा हो...मेरा मार्गदर्शन करें...*

उत्तर - आत्मीय भाई, प्रश्न उत्तम और अत्यंत जटिल  है, लेकिन इसका समाधान बड़ा सहज और सरल भी है।

आजकल विज्ञापन एजेंसी, मीडिया लोग मनुष्य की सुख की चाह का भ्रामक समाधान दे रहे हैं:- कुछ कहते है शॉपिंग करो ये खरीदो वो खरीदो सुख मिलेगा, कोई कहता है अमुक बनो सुख मिलेगा, कोई कहता है नशा और पार्टी करो सुख मिलेगा इत्यादि इत्यादि।

ये कुछ ऐसी सलाह है जैसे कस्तूरी मृग का कस्तूरी की गन्ध बाहर ढूंढना या रेगिस्तान में जल के भ्रम के पीछे भागना।

 आपके प्रश्न का उत्तर है कि आपको सरल और सहज़ बनना है, निर्मल मन का बनना है। लेकिन सबसे बड़ी कठिनाई आज के ज़माने में सरल और सहज़ बनना ही है। इतने सरल सहज बन जाओ कि हिंसक पशु हो जा अन्य जीव आपके पालतू हो जाएं।

आनंदित होने को साधारण शब्दो मे मनुष्य के पसीने से तुलना करके देखो।

उदाहरण - पसीना दो प्रकार से आता है, यदि गर्मी ज़्यादा हो। दूसरा या आप कड़ी मेहनत कर रहे हो तो ठंडे मौसम में भी पसीना आता है... पसीना स्टोर करके नहीं रख सकते। उसी तरह आनन्द स्टोर नहीं कर सकते। पसीना शरीर की रसायनिक क्रिया है और आनन्द मन की रसायनिक क्रिया है।

 पसीना निकालना है तो निरन्तर मेहनत चाहिए, आनन्द का स्रोत भीतर से निकालना है तो भी तप रूपी मेहनत करनी पड़ेगी।

जीवन को एरियल व्यू/बर्ड व्यू से देखना सीखना होगा। अर्थात जो कर रहे हो उसे होशपूर्वक करते हुए देखो। अब आप कहोगे कि मैं स्वयं को ऊपर से/एरियल व्यू से कैसे देख सकता हूँ?

भाई हम आत्मा है और यह शरीर हमने पहन रखा है। पुराना होते ही यह शरीर छोड़ के नया धारण कर लेंगे।

 अच्छा एक दिन मेरा बताया नियम ट्राई करो, जैसा बोल रही हूँ वैसा मन मे बोलते हुए कल्पना करना:-

कल जब सुबह उठना तो स्वयं को देखते हुए अनुभव करना यह शरीर उठ रहा है। जो भी कार्य करना उसके साक्षी बनना और उसे देखना। तुम रोज जो भी दिनचर्या पालन करते हो, कार्य करते वो ही करो। बस उसे होशपूर्वक करो, और उसे देखो। जैसे चाय पी रहे हो तो अनुभव करो यह शरीर चाय पी रहा है, यह चाय मुंह से पेट मे गयी और अब पाचन चल रहा है। दिन में प्रत्येक घण्टे कम से कम 1 मिनट अपनी श्वांस के आने जाने को देखो अनुभव करो यह शरीर श्वांस ले रहा है। जब सोना तो अनुभव करना यह शरीर सो रहा है। अनुभव करो कि तुम इस शरीर से परे-पृथक सत्ता हो। न तुम शरीर हो और न ही यह मन बुद्धि तुम हो। तुम तो शरीर और मन-बुद्धि उपकरण को चलाने वाली ऊर्जा आत्मा हो।

देखो शुरू शुरू में हर कार्य बोरिंग और कठिन लगता है। लेकिन निरन्तर लंबे समय तक अभ्यास से वही सरल हो जाता है। जैसे किचन में रोटी बनाना हो या रोड पर गाड़ी चलाना हो, जो शुरू में कठिन था अभ्यस्त होने पर वह सरल हो गया।

इसी तरह बर्ड व्यू/एरियल व्यू से साक्षी भाव से स्वयं को नोटिस करते हुए होशपूर्वक जीना आ जायेगा। तब आनन्द ही आनंद मन मे होगा।

दो पुस्तक - *अंतर्जगत का ज्ञान विज्ञान* और *व्यक्तित्व विकास की उच्चस्तरीय साधनाएं* अवश्य पढो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday 17 October 2018

ज्ञानरथ - के जीवंत अनुभव - हारिये न हिम्मत

*ज्ञानरथ - के जीवंत अनुभव*

गुरूदेव का प्रिय कार्य है साहित्य विस्तार, अतः ए के द्विवेदी बाबूजी 81 वर्ष की उम्र में भी ज्ञानरथ चलाते हैं। एक सहयोगी भाई भी उनके साथ रहते है, 4 से 5 चेयर साथ रखते है ताकि कुछ लोग बैठ के वहीं साहित्य पढ़ सकें।

एक दिन की घटना है कि एक लगभग 30 से 35 वर्ष का हैरान परेशान युवक वहां आकर चेयर पर बैठ गया। बाबूजी ने आत्मियता से उससे पूँछा बेटे कोई परेशानी है क्या, उस युवक ने कोई जवाब नहीं दिया। उसकी परेशानी भांपते हुए उसे पॉकेट पुस्तक - *हारिये न हिम्मत* दे दी। बोला बेटे पुस्तक पढ़ने के कोई चार्जेज़ नहीं है। वह युवक पुस्तक पढ़ता रहा फ़िर उठा और उस पुस्तक का मूल्य 4 रुपये देकर खरीद लिया और वहां से चला गया।

लगभग 15 दिन बाद वही युवक आया और बाबूजी के पांव पकड़ कर रोने लगा। बाबूजी ने पूँछा बेटा क्या हुआ क्यों रो रहे हो?

उस युवक ने बताया कि 15 दिन पहले मैं गंगा जी मे कूदकर आत्महत्या करने के लिए गंगा के पुल जा रहा था। ऑटो के इंतज़ार के लिए आपके पास बैठ गया और आपने मुझे *हारिये न हिम्मत* पुस्तक दे दी। उसे पढ़कर न जाने मुझे कैसे भीतर से जीवन को नए सिरे से जीने की आवाज आई। मैं घर लौट गया और मरने का विचार छोड़कर अपने जीवन की विकट परिस्थितियों को सुलझाने में लग गया। समस्या तो खत्म नहीं हुई है लेकिन इन समस्याओं से जूझने की शक्ति मिल गयी है।

आपने न केवल मेरी जान बचाई, अपितु मेरे तीन छोटे बच्चों और मेरी पत्नी की भी जान बचाई, मेरी पत्नी पढ़ी लिखी नहीं है और डरपोक भी है, वो बच्चो की जिम्मेदारी अकेले नहीं उठा पाती, वो भी जान दे देती। एक साथ पांच जान आपकी दी इस पुस्तक ने बचा दी।

81 वर्ष की उम्र में जहां लोग रिटायर होकर घर बैठते हैं और मौत का इंतज़ार करते है, वहां 81 वर्ष की उम्र में ज्ञानरथ चलाकर युगसाहित्य से प्रेरणा देकर ए के द्विवेदी बाबूजी लोगों को जीवन जीना सीखा रहे हैं।

ज्ञानरथ रथ अर्थ कमाने के लिए नहीं चलता, ज्ञानरथ जीवन बचाने के लिए चलता है।

ज्ञानरथ रथ युगसाहित्य के रूप में लोगों में प्राण संचार करने के लिए चलता है।

ऐसी ही जीवंत प्रेरणाओं को लेकर पुनः मिलेंगे🙏🏻 तबतक के लिए नमस्कार।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, एक महंत जी है जो लोगों को भड़का रहे थे कि ब्राह्मणों में एकता होती तो आज भी राज करते, गायत्री का अधिकार किसी को नहीं मिलता। अन्य जातियाँ और स्त्रियां जिन्हें गायत्री जप का अधिकार तक न था वो आज अनुष्ठान और यज्ञ करवा रही है।

प्रश्न - *दी, एक महंत जी है जो लोगों को भड़का रहे थे कि ब्राह्मणों में एकता होती तो आज भी राज करते, गायत्री का अधिकार किसी को नहीं मिलता। अन्य जातियाँ और स्त्रियां जिन्हें गायत्री जप का अधिकार तक न था वो आज अनुष्ठान और यज्ञ करवा रही है। गायत्री गुप्त है, इसे उच्चारित माइक पर कर रहे हैं घोर अनर्थ कर रहे हैं। केवल ब्राह्मण पुरुष ही जप और यज्ञ कर सकता है, स्त्रियां विषबेल है। स्त्रियों को तप से मुक्ति का अधिकार नहीं है...इत्यादि इत्यादि। इन्हें क्या जवाब दूँ, मार्गदर्शन करें।*

उत्तर - आत्मीय बहन, समझाया समझदारों को जाता है। विक्षिप्त कुत्सित कुतार्किक को नहीं।

व्याकरण में व्यक्ति से स्त्री-पुरुष दोनों को सम्बोधित करके बोला जाता है।

उदाहरण - व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति का सम्मान करना चाहिए। व्यक्ति को सत्य बोलना चाहिए। (यह स्त्री पुरुष दोनों के लिए सम्बोधन है)

👉🏼 गायत्री ब्राह्मण की कामधेनु गौ है।(यहां ब्राह्मण एक ब्राह्मणत्व की अवस्था है जो स्त्री पुरूष दोनों को ही अर्जित करनी पड़ती है) जो सदाचारी है, संयमी, है, परोपकारी है निर्लोभी और निस्वार्थ है ऐसा ब्रह्मपरायण व्यक्ति गायत्री उपासना के समस्त लाभों को प्राप्त कर सकता है।

इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि जो जन्म से ब्राह्मण कुल में पैदा हुए हैं वे ही गायत्री जप करें, अन्य वर्ण के लोग गायत्री उपासना न करें। यह महामंत्र तो मानव मात्र का उपासना मन्त्र है। जिस तरह पंच तत्वों से ब्राह्मण पुरुष बना है, रक्त मांस मज्जा का ढांचा है, और प्राण ऊर्जा से जीवित है। वैसे ही अन्य जाति और स्त्रियां भी है। सूर्य-चन्द्र-धरती-आकाश-जल पंचतत्वों, समस्त देवी देवताओं और गायत्री जप का अधिकार, जनेऊ का अधिकार सबको है जो ब्रह्म में रमने को तैयार है। ब्राह्मणत्व जन्मजात नहीं होता कर्म प्रधान है। जीवन शैली है। धर्म है।

गायत्री जप का अधिकार उन्हें नहीं है - जिनका मन तमसाच्छन्न होता है उन्हें उपासना की बात भी उन्हें बुरी लगती है, उसका उपहास करते हैं, अविश्वास ग्रस्त होने के कारण उन्हें इसके लिए न तो अभिरुचि होती है और न अवकाश ही मिलता है। ऐसे लोग जिन्होंने उपासना और वास्तविकता का बहिष्कार कर रखा है अन्त्यज या चाण्डाल कहे जाते हैं। उनका अधिकार गायत्री में नहीं है। यह अधिकार कोई बाहर का आदमी देता या रोकता नहीं है वरन् उसकी अंतःवृत्ति ही प्रतिबंध लगा देती है। आज भी ऐसे अनेकों व्यक्ति हैं जो उपासना की कितनी ही उपयोगिता बताने पर भी उस ओर आकर्षित नहीं होते। ऐसे लोगों को अनाधिकारी ही कहा जायेगा।

अनुष्ठान के वक्त - उपांशु अर्थात होठ हिलते है और अत्यंत धीमे स्वर में जप किया जाता है।

लेकिन यज्ञ के समय मंन्त्र जोर से बोले जाते है और मंन्त्र शक्ति विज्ञान से औषधियों के कारण को उभारा जाता है। साउंड एनर्जी और हीट एनर्जी मिलकर इच्छित परिणाम देती है। अतः मंन्त्र जोर से बोला जाता है।

*उसने सच कहा है- स्त्री विषबेल है और पुरुष उस विषबेल का फ़ल विषफल है। जैसे वो और उसकी माता जी इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।*😇🙏🏻😇

जो लोग स्त्री को अमृत बेल मानेंगे तो उस अमृत बेल माँ का  पुत्र  अमृतफल होगा।

*पुरुष का तो शरीर भी स्त्री अर्थात उसकी माँ के ही रक्त मांस मज्जा से निर्मित है। तो अपवित्र स्त्री से पवित्र पुरुष जन्मने का तो प्रश्न ही नहीं उठता।* 😂

कुछ लोग कहते हैं जब पूर्ण पवित्र मन हों जाए तभी गायत्री जप करें, ये तो लगभग वैसा हो गया कि जब पूर्ण ज्ञान हो जाये तब स्कूल में एडमिशन लेना।

गायत्री जपोगे तो विवेक जगेगा, विवेक जगेगा तो सही गलत का फर्क करने वाली हंस बुद्धि मिलेगी। मन धीरे धीरे पवित्र स्वतः होता जाएगा। उपासना-साधना-आराधना की निरंतरता साधक को निखारती चली जायेगी।

यदि आपसे कोई कहे गायत्री मंत्र जपने से अनर्थ होगा तो उससे पूँछो तो ज्ञानी जी ऐसा मंन्त्र गारण्टी-वारण्टी के साथ बताओ जिसके जपने से किसी का कभी भी अनर्थ नहीं होगा।

स्त्री पुरुष एक दूसरे के विरोधी नहीं बल्कि पूरक हैं। वर्ण व्यवस्था कर्म प्रधान है, डॉक्टर का बेटा जन्म से डॉक्टर नहीं हो सकता, उसे स्वयं पढ़ना पड़ेगा। उसी तरह ब्राह्मण का बेटा जन्म से ब्राह्मणत्व नहीं प्राप्त कर सकता। उसे ब्राह्मणत्व अर्जित करने के लिए स्वयं को साधना होगा।

जो व्यक्ति ब्राह्मणत्व हेतु स्वयं को साधेगा वो ब्राह्मणत्व पायेगा इसमें कोई संदेह नहीं है। ऐसे ब्राह्मणत्व चेतना से सम्पन्न व्यक्ति (स्त्री-पुरूष) की गायत्री कामधेनु की तरह समस्त मनोकामना पूरी करेगी इसमें भी कोई सन्देह नहीं है। ऐसे साधक को मुक्ति तो स्वतः ही मिल जाएगी।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, हम सभी MBA के स्टूडेंट है और आपके प्रश्नोत्तरी पढ़ते है। हम सबके बीच युवाओं में बढ़ती अश्लीलता, रोड-पार्क-मॉल में चूमते और प्रेम प्रदर्शन करते युवा और जरूरी पवित्रता पर डिबेट हो रहा था,

प्रश्न - *दी, हम सभी MBA के स्टूडेंट है और आपके प्रश्नोत्तरी पढ़ते है। हम सबके बीच युवाओं में बढ़ती अश्लीलता, रोड-पार्क-मॉल में चूमते और प्रेम प्रदर्शन करते युवा और जरूरी पवित्रता पर डिबेट हो रहा था, तो हम सब एक सहमति में नहीं आ पाए, कुछ कहते है प्रेम नेचुरल है इसे बन्धन में रखना अनुचित है, तो कोई कहता है प्रेम प्रदर्शन खुले में अनुचित है। इसलिए हम सब इस पर आपकी राय जानना चाहते हैं?*

उत्तर - आत्मीय युवा भाईयों और बहनों,

सबसे पहले यह समझो कि पवित्रता और अश्लीलता दोनों ही मानव मन का दृष्टिकोण हैं। दोनों ही मानव मन की मनोदशा है। पवित्रता(व्यवस्थित मन) और अश्लीलता(अव्यवस्थित मन) का प्रतीक है।

मनुष्य और पशु में अंतर बुद्धि का विकास करता है, बेचारे पशु केवल अपनी शारीरिक क्षमता का ही उपयोग कर सके है। लेकिन मनुष्य ने बुद्धि के प्रयोग से, मानसिक आध्यात्मिक शक्ति के प्रयोग से अपनी क्षमता को हज़ार गुना बढ़ा लिया। चलने-दौड़ने की क्षमता को बाइक-गाड़ी के रूप में बढ़ाया, तो देखने, सुनने, सोचने और कम्युनिकेट करने की क्षमता को मोबाइल, इंटरनेट, टीवी, लेपटॉप, कम्प्यूटर इत्यादि के रूप में बढ़ाया, कच्चे भोजन को पकाने में उसने पूरा का पूरा होटल मैनेजमेंट बना दिया।  इत्यादि इत्यादि.... मछली उड़ नहीं सकती पक्षी तैर नहीं सकता...लेकिन मनुष्य बुद्धि प्रयोग से हवाई जहाज से उड़ सकता है और जल जहाज में सफर कर सकता है।

मनुष्य इसी तरह चेतन ऊर्जा के प्रयोग से ब्रह्माण्ड की पॉवर उपयोग करके अपनी क्षमता को हज़ार गुना आध्यात्मिक शक्ति और योग से बढ़ा सकता है।

अब जब सभ्यता का विकास बुद्धि की ऊर्जा से हुआ और चेतना की उन्नत अवस्था से हुआ तो मनुष्य पशु से भिन्न हो गया। अब जो पशु के लिए नेचुरल है वो मनुष्य के लिए नेचुरल नहीं रह गया।

उदाहरण - कुत्ता बिल्ली को जब जिस वक़्त पॉटी या सुसु आएगा वो बिना स्थान-समय-लोगो की परवाह किये बिना टांग उठा के कर देते हैं। ये उनके लिए नेचुरल है। लेकिन जब देश की राजधानी दिल्ली में कुत्ते बिल्ली की तरह मनुष्यो को रोड किनारे मूत्र विसर्जन करते या रेलवे पटरी पर मल विसर्जन करते आप देखते है तो आप उसे नेचुरली नहीं लेते। आप कहते है यह असभ्य है, इन्हें वॉशरूम उपयोग करना चाहिए। भारत सरकार को मनुष्य रूपी कुत्ते बिल्लियों के लिए खुले में शौच न करें के लिए अभियान चलाना पड़ रहा है।

इसी तरह पशु के रिलेशनशिप में मौसम के अनुसार सन्तानोत्पत्ति हेतु यौन इच्छा(SEX) जागृत होता है, वो मल विसर्जन(पॉटी) या मूत्रविसर्जन(सुसु) की तरह ही  बिना स्थान-समय-लोगो की परवाह किये बिना खुले में ही प्रेम प्रदर्शन और सेक्स कर लेते हैं।

मनुष्य को खुले में पॉटी-सुसु करने पर असभ्य शब्द से सम्बोधित किया जाता है, और खुले में प्रेम प्रदर्शन-सेक्स को अश्लील हरकत शब्द से सम्बोधित किया जाता है।

जो पशु के लिए नेचुरल है वो नेचुरल कार्य मनुष्य सभ्य रूप में शारीरिक पॉटी बाथरूम में और मानसिक पॉटी बेडरूम में करता है। तो उसे क्रमशः सभ्य और पवित्र समझा जाता है।

मनुष्य बुद्धिमान है, अतः मनुष्य को बच्चे के पालन पोषण और समाज की सुचारू व्यवस्था हेतु क्रमशः मकान और विवाह की व्यवस्था बनाई। जिससे जिसके बच्चे वो परवरिश करे और उनका उत्तरदायित्य उठाये। पशुओं में जायज़ और नाजायज सन्तान नहीं होती, लेकिन मनुष्यों में होती है।  अतः विवाह अनिवार्य कर दिया गया।

जब हम शारीरिक पॉटी करके हल्के हो रहे है तो उसके प्रदर्शन की आवश्यकता नहीं, उसी तरह दो लोग जब मानसिक पॉटी करके हल्के हो रहे हैं तो उसके भी सामूहिक प्रदर्शन की आवश्यकता नहीं है।

आजकल के युवा पाश्चात्य देशों का अंधानुकरण कर रहे हैं, और अपनी मानसिक गुलामी को आधुनिकता का नाम दे रहे हैं।

उनकी शारीरिक अश्लीलता की कॉपी तो कर रहे हैं, लेकिन उनके देश की आर्थिक मज़बूती, टेक्नोलॉजी में उनके राज, इत्यादि अच्छे गुणों को कॉपी नहीं कर रहे। एक ईस्ट इंडिया कम्पनी ने पूरे देश को गुलाम कर लिया। अब तो देश मे वाल मार्ट, अमेज़न, बिग बास्केट, एप्पल, ओप्पो, माइक्रोसॉफ्ट इत्यादि विदेशी ब्रांड और कम्पनियों की भरमार है। ग़ुलाम बनने में कितना वक्त लगेगा।

हमारे देश के युवा मिलकर स्वयं के लिए भारतीय कम्प्यूटर ऑपरेटिंग सिस्टम नहीं बना सके, खुद को इनोवेशन में टॉप में नहीं ले जा सके, ओलम्पिक में मेडल में हमसे छोटे देश टॉप में होते है, हम न खेल में टॉप में है, न बिजनेश में टॉप में है, न हमारा देश विदेशों की तरह साफ स्वच्छ है। विश्व पटल में 16% लोग भारत देश के जॉब देने योग्य हैं। बाक़ी क्या????

जो देश पशु समान बिल्ली कुत्ते जैसे लोगों का सार्वजनिक मूत्रविसर्जन और मल विसर्जन का गवाह है, जो देश पढ़े लिखे युवाओं का कैंसर की वार्निंग पढ़कर भी नशे में डूबने के गवाह है, जो पशुवत कुत्ता बिल्ली समान जनसँख्या वृद्धि करते देशवासियों का गवाह है, जिस देश में अभी भी पढ़े लिखे युवाओं के दो बच्चों के बीच मात्र साल भर का अंतर देखने को मिलता हो, जिस देश मे नंन्ही कन्या का रेप युवक करता हो, जिस देश मे रेप का ग्राफ दिन ब दिन बढ़ता हो, जहां बेटी गर्भ में सुरक्षित न हो, जिस देश मे जीवन का उद्देश्य केवल जॉब पेट प्रजनन तक सीमित हो जाये फिर उस देश का पतन कौन रोक सकता है?

आओ हम सब मिलकर पुनः ऋषि परम्परा का पालन करें, अपनी ऊर्जा को यूं व्यर्थ न करें।

पवित्रता को दूसरे शब्दों में मनुष्य जीवन की प्रबन्ध व्यवस्था कहते हैं। मनुष्य जीवन की प्रबन्ध व्यवस्था के दो माध्यम है एक धर्म तंत्र और दूसरा राज तंत्र। दुर्घटना होने ही न देना धर्म तंत्र का कार्य है, दुर्घटना होने के बाद आगे क्या करना है और किसे कैसे क्या दण्ड देना है यह राजतंत्र का कार्य है। यदि धर्म तंत्र मजबूत हो जाये तो कानून की आवश्यकता ही न पड़ेगी।

अतः पुस्तक - *आध्यात्मिक काम विज्ञान* आप सभी युवाओं को पढ़ना चाहिए। तभी आप पवित्रता और अश्लीलता को बेहतर तरीके से समझ पाएंगे।

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Tuesday 16 October 2018

प्रश्न - *दी, मेरी उम्र 21 वर्ष है, मेरी पढ़ाई चल रही है। पिछले चार महीनों से विभिन्न स्वास्थ्य कारणों से परेशान हूँ। कईं सारे डॉक्टर को दिखाया मगर आराम नहीं हुआ। अब बहुत डिप्रेशन में हूँ

प्रश्न - *दी, मेरी उम्र 21 वर्ष है, मेरी पढ़ाई चल रही है। पिछले चार महीनों से विभिन्न स्वास्थ्य कारणों से परेशान हूँ। कईं सारे डॉक्टर को दिखाया मगर आराम नहीं हुआ। अब बहुत डिप्रेशन में हूँ और पेट भी हमेशा अपसेट रहता है। समझ नहीं आ रहा क्या करूँ, मेरा मार्गदर्शन करें।*

उत्तर - आत्मीय भाई,

कुछ महापुरुषों के स्वास्थ्य के सत्य से तुम्हे अवगत करवाना चाहती हूँ, इसे पूरा ध्यान से पढो:-

*महर्षि रमण* ने अपने आपको शरीर तक ही सीमित नहीं मानने, उससे तादात्म्य पूरी तरह तोड़ लेने और कायाक्लेश से रत्तीभर प्रभावित न होने पर भी उन्होंने दूसरों का कष्ट दूर करने के लिए जोखिम उठाई। कर्मफल को ब्रह्म की तरह सत्य और अटल मानते हुए भी *महर्षि रमण कहते थे कि दूसरों के कष्ट अपने ऊपर लिए जा सकते हैं। आशीर्वाद वरदान देने से ही काम नहीं चलता। जो आशीर्वाद दे रहा है, उसे अपने पुण्य का एक अंश भी पीड़ित व्यक्ति को देना होता है। न्यायालय ने किसी अपराध के लिए अर्थदंड दिया है, तो जुर्माना भरना ही पड़ेगा। दंडित व्यक्ति जुर्माना दे अथवा अनुरूप, सजा तो भुगतनी ही पड़ेगी। कष्टमुक्ति के लिए पुण्य तो चुकाना ही पड़ेगा। इस नियम का निर्वाह करते हुए उन्होंने कितने ही भक्तों के कष्ट अपने ऊपर लिए और उन्हें पीड़ामुक्त किया।*

लोगों को कष्टमुक्त करते रहने के कारण महर्षि रतण पर कल्मषों का बोझ इतना बढ़ गया कि उसका विग्रह करने के लिए प्रकृति ने *उनकी बायीं भुजा में कैंसर रोप दिया। इससे पहले वे गठिया और शरीरक्षय जैसे रोगों-विकृतियों को आमंत्रित कर चुके थे।* उनके जीवनीकार आर्थर आँसबोर्न ने लिखा है कि वे रोगी थे। बहुत दुर्बल दिखाई देते थे, लेकिन उन्हें इसकी चिंता नहीं थी।

धर्म-अध्यात्म के इतिहास में इस तरह के अनेक उदाहरण मिलते हैं। *भगवान बुद्ध की मृत्यु विषूचिका रोग के कारण हुई, भगवान शंकराचार्य अंत तक भगंदर रोग से पीड़ित रहे। इसी युग में स्वामी रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु भी इसी वजह से कैंसर रोग के कारण हुई। स्वामी विवेकानंद 31 गम्भीर बीमारी से ग्रस्त थे।*

महर्षि रमण ने अपनी पहली आध्यात्मिक अनुभूति के बारे में कहा है कि वह मृत्यु के भय के रूप में थी। इस भय पर विजय पा लेने के बाद कोई कारण नहीं बचा, जिसने उन्हें विचलित(डिप्रेशन-तनाव) किया हो। महापुरुष न मृत्यु से विचलित होते है न रोग से...

 अच्छा ये बताओ जब यह महापुरुष इतनी बड़ी बीमारियों के साथ इतने बड़े बड़े कार्य कर सकते है, धर्म विजय अभियान को चला सकते हैं, आनन्द में रह सकते हैं, तो फ़िर तुम मात्र 4 महीने की बीमारी से भयभीत क्यों हो। डिप्रेशन में क्यों हो?

यह तो ऋषि थे तुम कहोगे, तो पर्वतारोही अरुणिमा जो एक नकली पैर से पर्वत चढ़ गई, और पाकिस्तानी एंकर मुनिबा मज़ारी जिसका कमर से नीचे का हिस्सा पैरालाइज है। जब यह हिम्मत से जीवन जी सकते है, तो तुम भला कैसे हार मान सकते हो?

जो कर सकते हो इलाज के उपाय करो, लेकिन शरीर के रोग के कारण मन को रोगी बनाना कहाँ की अक्लमंदी है?

पढ़ाई मन को करनी है, अतः मन डिस्टर्ब होगा तो पढ़ाई कैसे होगी? मन डिस्टर्ब होगा तो पाचन 100% डिस्टर्ब होगा। अतः मेरे भाई संघर्ष ही जीवन है, अतः मनोबल बढ़ाओ और अग्निपरीक्षा पास करते चले जाओ।

*आध्यात्मिक उपाय* - नौ दिन की छुट्टी लेकर युगतीर्थ शान्तिकुंज हरिद्वार चले जाओ। 9 दिन की संजीवनी साधना वहां करो। वहां चिकित्सालय में डॉक्टरों से परामर्श लो। सुबह प्रणाम की लाइन में लग के जीजी और डॉक्टर साहब से अपनी परेशानी बता देना। विभूति(यज्ञ भष्म) मिलेगी वो सम्हाल के रख लेना। 9 दिन तक सुबह शाम दोपहर 3 बार एक चुटकी यज्ञ भष्म मिलाकर गायत्री मंत्र पढ़ते हुए जल पीना। भावना करना यह जल गौमुख की गंगा का है जो मेरे शरीर को रोगमुक्त करेगी। वहां तुलसी का वृक्ष होगा, उससे रोज शाम को प्रणाम करके, बाते करके अपनी व्यथा बताना और रोज सुबह केवल तीन पत्ती तोड़कर खा लेना। 9 दिन तक जो भी आश्रम में माता भगवती भोजनालय में भोजन मिले वही खाना। कुछ भी बाहर से खरीद के मत खाना। समाधि पर अपनी समस्त व्यथा लिख के कागज में चढ़ा देना। समाधि, सप्तर्षि, गायत्री मन्दिर, अखण्डदीप सर्वत्र उत्तम स्वास्थ्य और उज्ज्वल भविष्य की प्रार्थना करना।

9 दिन संजीवनी साधना के लिए शान्तिकुंज ऑनलाइन साइट से अनुमति लेना अनिवार्य है।

वहाँ 5 वरिष्ठ गायत्री साधको से अपनी व्यथा डिसकस करना। वहां लाइब्रेरी में कुछ पुस्तके नित्य पढ़ लेना - *निराशा को पास न फटकने दें* , *विचारों की सृजनात्मक शक्ति* , *स्वस्थ रहने के सरल उपाय* इत्यादि।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

करवा चौथ विषेश

*करवा चौथ विषेश*  

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*मैं करवाचौथ पर व्रत क्यों रखूंगी ?*    
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यह दिन शुभ है, और चन्द्रमा के रोहणी नक्षत्र में होने के कारण इस दिन व्रत का आध्यात्मिक महत्त्व कई गुना बढ़ जाता है। प्राचीन समय से अर्थ व्यवस्था(धन कमाने का) का उत्तरदायित्य पुरुष वहन करते थे और धर्म व्यवस्था(पुण्य कमाने का) का उत्तरदायित्य स्त्रियां वहन करती थीं। आज की तरह स्वार्थी लोग न थे, पति पत्नी दो शरीर एक प्राण की तरह एक दूसरे के पूरक थे। मेरा इस भारतीय संस्कृति और धर्म व्यवस्था पर पूर्ण विश्वास है। इसलिए व्रत रखूंगी। अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति हेतु इस दिन जप तप व्रत करूंगी। पति प्रेम के प्रति आभार व्यक्त करने हेतु व्रत रखूंगी।

*अन्न त्याग क्यों ?*
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भोजन पचाने में प्राणऊर्जा यदि खर्च हुई तो आध्यात्मिक ऊर्जा के  संग्रह में बाधा उतपन्न होती है। अन्न को पचाने में 90% प्राण ऊर्जा ख़र्च हो जाती है। अतः क्योंकि इस दिन सर्वाधिक तपशक्ति अर्जन करने की आवश्यकता है, इसलिए मैं अन्न का त्याग करूंगी। पूरा ध्यान जप तप व्रत पर एकाग्र करूंगी।


🎷🎷🎷
*सजना सवरना क्यों ?*

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सोलह श्रृंगार भारतीय परंपरा के सोलह सँस्कार का प्रतीक हैं। समस्त आभूषण मुझे मेरे पति, मेरे परिवार के प्रति मेरे उत्तरदायित्य का भान कराते हैं। मैं इस घर की गृहलक्ष्मी हूँ साथ ही परिवार निर्मात्री का उत्तरदायित्य याद दिलाते है। गृहस्थ जीवन मे प्रवेश के वक्त के वचन याद दिलाते हैं, और उन यादों को ताज़ा करते है कि कैसे इस घर में मेरा गृह प्रवेश हुआ था। यह एक तरह से हम दोनों का आध्यात्मिक विवाह वर्ष गांठ है। हम दोनों को अपने अपने कर्तव्य और प्रेम का परिचय यह व्रत करवाता है। इसलिए आज के दिन मैं दुल्हन की तरह और मेरे पति दूल्हे की तरह सजेंगे। चन्द्र और ग्रह नक्षत्र को साक्षी मानकर पुनः अपने रिश्ते में अमृतमय प्रेम और शीतलता का संचार करेंगे।

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*व्रत की कथा का क्या सन्देश है?*
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तपबल रचइ प्रपंचु बिधाता।
 तपबल बिष्नु सकल जग त्राता॥
 तपबल संभु करहिं संघारा।
 तपबल सेषु धरइ महिभारा॥2॥

*भावार्थ*:-तप के बल से ही ब्रह्मा संसार को रचते हैं और तप के बल से ही बिष्णु सारे जगत का पालन करते हैं। तपबल से शिव शंकर संघार करते हैं। तपबल से ही शेषनाग धरती का भार अपने ऊपर रखे हुए है।।

तप की शक्ति से किसी भी प्रारब्ध का शमन किया जा सकता है। तपबल से जीवन मे नए प्राण का संचार किया जा सकता है। तपबल से असम्भव भी संभव हो जाता है।
 
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*मेरे पति को भी व्रत करना चाहिए ?*  

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जिस तरह आज के समय मे स्त्री अर्थ व्यवस्था भी सम्हाल रही है। दोनों यदि जॉब कर रहे हैं, तो प्रेम वश पति भी व्रत कर सकते हैं। व्रत उपवास स्वेच्छा से कर सकते हैं। एक समय फलाहार और एक समय भोजन के साथ। जिस प्रकार स्त्री का शरीर पुरुषों से ज्यादा आंतरिक रूप से मजबूत है, इसलिए सन्तान उतपत्ति का महान उत्तरदायित्य पत्नी वहन करती है। लेकिन पत्नी यदि शरीर से गर्भ को धारण करती है तो पुरूष दिमाग़ में गर्भ धारण करता है। दोनों अपनी अपनी क्षमतानुसार पालक की भूमिका निभाते है। किसी की भी भूमिका कम महत्त्वपूर्ण नहीं। यदि पति शरीर से व्रत न रख सके तो कोई बात नहीं। प्रेमपूर्वक जप तप में अभिन्न सहयोगी की भूमिका निभाते ही है।

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*भूख  कैसे नियंत्रित करोगी ?*
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स्त्री प्रेम और त्याग की मूर्ति होती है। वो पति और सन्तान के लिए एक दिन तो क्या कई दिन व्रत रख सकती है। प्रेम में वह स्वयं के अस्तित्व को भूल जाती है। वह शरीर से परे चली जाती है और ईश्वरीय शरण में पति के उज्ज्वल भविष्य हेतु प्रार्थना रत रहती है। इसलिए पति के उज्ज्वल भविष्य और दीर्घायु के लिए भूख बर्दास्त करना कोई बड़ी बात नहीं है।

🌜🌛
*चन्द्रमा की प्रतीक्षा क्यों ?*
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चन्द्र दर्शन और अर्घ्य का विशेष महत्त्व है।

👉🏼पति और स्वयं की सद्बुद्धि के लिए पहले गायत्री मंत्र जप किया जाता है।

गायत्री मंत्र - *ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।*

👉🏼 पति के उज्ज्वल भविष्य और दीर्घायु के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप किया जाता है।

महामृत्युंजय मंत्र - *ॐ त्र्यम्‍बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्* *उर्वारुकमिव बन्‍धनान् मृत्‍योर्मुक्षीय मामृतात्*

👉🏼 वैवाहिक जीवन मे प्रेम, सुख शांति और अमृत के लिए चन्द्र गायत्री मंत्र का जप करेंगे, फिर चन्द्र गायत्री मंन्त्र पढ़ते हुए अर्घ्य चांदी के लोटे या स्टील के लोटे या मिट्टी के लोटे जल चढ़ाएंगे:-

चन्द्र गायत्री मंत्र - *ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृतत्त्वाय धीमहि। तन्नो चन्द्र: प्रचोदयात्।*

दीप दर्शन चंद्रदेव को करवाऊंगी।

*चलनी से चन्द्र और पति को क्यों देखते है?*

प्रत्येक मनुष्य में गुण-अवगुण दोनों होते हैं। चलनी सन्देश देती है कि पति के गुणों पर फोकस करके उन्हें बढ़ाओ और अवगुणों की उपेक्षा करो।

आधी ग्लास खाली और आधी भरी बात तो दोनों सत्य है, जो आधी भरी देखेगा, जो जीवन मे जो मिला है उस पर ध्यान फोकस करेगा सुखी रहेगा।

*जल पिलाने और मीठा खिलाने का क्या प्रयोजन है?*

स्त्री के प्रति प्रेम और अपने उत्तरदायित्य हो वहन करने का संकल्प है, कि आजीवन हम तुम्हें जल जैसा शीतल प्रेम देंगे और मिठाई जैसा तुम्हारा जीवन मधुर रखेंगे। तुम्हारा ख्याल रखेंगे।

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 अध्यात्म विज्ञान बहुत गूढ़ है, अतः कुतर्क न करें। यह भावना विज्ञान और शब्द शक्ति विज्ञान पर आधारित विधिव्यवस्था है। ईश्वर कण कण में है, और उस Wifi की तरह है जिसमें श्रद्धा-विश्वास का सही पासवर्ड डालें तो उस परमात्म चेतना से कनेक्ट होना सम्भव है।

अब जिसने कभी कंप्यूटर देखा और सुना नहीं उसे कम्प्यूटर जगत और सॉफ्टवेयर प्रोग्रामिंग समझाना असम्भव है, उसे सॉफ्टवेयर कैसे बनता है यह समझाना असम्भव है। अतः जिन्होंने कभी प्रार्थना भगवान के आगे नहीं की और जो कुतर्की नास्तिक है उन्हें भी अध्यात्म समझाना असम्भव ही है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...