Monday 28 September 2020

प्रश्न - "किसी को कैसे पता चले कि कोनसा ध्यान उसके लिए सबसे उपयुक्त है??"

 प्रश्न - "किसी को कैसे पता चले कि कोनसा ध्यान उसके लिए सबसे उपयुक्त है??"


उत्तर- आत्मीय भाई, इस संसार में बहुत से व्यंजन है जिनसे भूख मिट जाती है।


इसीतरह इस संसार में बहुत से धारणा के माध्यम हैं जिनसे ध्यान घट जाता है।


या तो बुद्ध की तरह सम्यक ध्यान - विपश्यना अपना लें, या शंकराचार्य की तरह समाधिस्थ शंकर के ध्यान में खो जायें।


लाखों विधियां मार्ग है, लक्ष्य यह है कि   किसी एक पर एकाग्र हो ध्यान का घटना।


मन को किसी एक विचार पर केंद्रित करना फिर उस विचार को भी छोड़ देना। 


ध्यान घटने का साक्षी बन प्रतीक्षा करना। दूध में दही का जामन किसी भी गाय का डालो, वह जमेगा ही। मन रूपी दूध में ध्यान हेतु धारणा(जामन) किसी भी ईष्ट की डालो। ध्यान घटेगा और लाभ अवश्य मिलेगा।


शंकर पर ध्यान एकाग्र करो या चंद्रमा पर या गुरु पर या सूर्य पर या मात्र स्वयं की आती जाती श्वांसों पर, ध्यान की धारणा कोई भी चुनो। बस इतना ख्याल रहे कि विचारों के समूह घटकर कोई एक विचार मन में शेष रहे जिसे आपने चुना है।


अतः इस प्रश्न में उलझने में समय बर्बाद करना कि "मेरे लिए कौन सा ध्यान उत्तम है?" ठीक नहीं। अपितु इस पर विचार करें कि मैं मन को किसी एक विचार पर या किसी एक मनपसंद ईष्ट पर या आतिजाती श्वांस पर आधे से एक घण्टे स्थिर करने का प्रयास करूंगा।


ठहरो, जैसे हिलती हुई ग्लास में जल स्थिर न हो सकेगा, वैसे ही हिलते शरीर में ध्यान कैसे स्थिर होगा? अतः मन साधने से पूर्व शरीर को बिना हिले डुले एक जगह बैठने का अभ्यस्त कीजिये। फिर किसी एक विचार पर मन एकाग्र कीजिये। इतना कर लेने पर स्वतः पता चल जाएगा कि ध्यान क्या है? व कैसे घटेगा व कौन सा उत्तम है।


💐श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Saturday 26 September 2020

प्रिय बेटे जीवन लक्ष्य बनाओ

 प्रिय बेटे,


लक्ष्यविहीन जीवन हो,

या मंजिलहीन यात्रा,

दोनों कहीं नहीं पहुँचती,

दोनो में भटकाव निश्चित है,

अस्थिरता सम्भावित है।


सर्वप्रथम सोचो,

तुम्हारी सांसारिक जीवन की मूलभूत आवश्यकता क्या है?

वह है रोटी, कपड़ा और मकान।

इसे अर्जित करने के लिए,

सांसारिक कमाई का साधन क्या चुनोगे?

किन माध्यमों से इन मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करोगे?


द्वितीय सोचो,

मानसिक जीवन की मूलभूत आवश्यकता क्या है?

ज्ञान, ध्यान, मानसिक कुशलता, खुशी व मन की मज़बूती,

इसे अर्जित करने के लिए,

ज्ञानार्जन का कौन सा साधन चुनोगे?

किन माध्यमों से मन की इन मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करोगे?


तृतीय सोचो,

आत्मिक मूलभूत आवश्यकता क्या है?

स्वयं को जानना - मैं क्या हूँ?

शांति, सुकून, आनन्द व स्थितप्रज्ञता पाना,

इस आध्यात्मिक सम्पदा को अर्जित करने के लिए,

कौन सा जप, तप, ध्यान, योग मार्ग चुनोगे?

किन माध्यमों से आत्मा की इन मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करोगे?


सोचो सोचो मेरे बच्चे,

सोचोगे तभी तो कुछ सीखने की चाह जगेगी,

कुछ कर गुजरने की आस जगेगी,

कुछ अन्तः ज्ञान श्रोत खुलेंगे,

कुछ महान जीवन के जीवन लक्ष्य मिलेंगे।


बड़ी सफलता की शुरुआत,

बड़ी सोच से होती है,

साहस भरे कदमों से,

बड़े लक्ष्य की पूर्ति होती है।


जब सही जीवन लक्ष्य मिलेगा,

तब तुम उसे प्राप्त करने हेतु योजना बना सकोगे,

कब क्या क्यों कैसे पर विचार कर सकोगे,

कुछ न कुछ जीवन मे बेहतर कर सकोगे।


🙏🏻तुम्हारी माँ,

श्वेता चक्रवर्ती

सास, ससुर, बहु, बेटे के नाम पत्र

 ---> प्रिय बहु रानी,

अगर तुम्हें लगता है, सास-ससुर के कारण तुम सुखी नहीं रह पा रही हो। उन्हें घर से निकालने का उपक्रम सोच रही हो, तो बहुत बड़ी भूल कर रही हो। जिनके सास-ससुर नहीं है वह कोई बड़े सुखी नहीं है। एकल परिवार सुख नहीं देता, अपितु मित्रवत व्यवहार व अन्तःज्ञान ही सुख की पूंजी है। एकल परिवार के अपने फायदे व नुकसान हैं, बड़े परिवारों में समूह में रहने के अपने फायदे नुकसान है। जिन सास ससुर को आज घर से निकालने की सोच रही हो, वह न होते तो तुम्हारा पति भी न होता। तुमने अपने पति को जन्म नहीं दिया है, न ही पाल पोष कर बड़ा किया है, न ही उसे पढ़ा लिखाकर योग्य बनाया है। यदि तुम अपने सास ससुर के साथ दुर्व्यवहार करोगी तो वह पाप तुम्हें भविष्य में अवश्य मिलेगा, तुम्हारी सन्तान भी तुम्हें घर से निकालेगी। कर्म फल का अटल सिद्धांत है, जो बोओगी वही काटोगी। 


सास ससुर को उनके कर्मों की सज़ा या वरदान देने के लिए परमात्मा है। तुम उन्हें दंडित करके अपना भाग्य मत बिगाड़ो।


सुख का सृजन प्रत्येक परिस्थिति में मनःस्थिति ठीक करके किया जा सकता है।

---> प्रिय बेटे,

अगर तुम्हें लगता है, माता पिता के कारण तुम और तुम्हारी पत्नी सुखी नहीं रह पा रही। पत्नी को खुश करने के लिए उन्हें घर से निकालने का उपक्रम सोच रहे हो, तो बहुत बड़ी भूल कर रहे हो। जिन बहु के सास-ससुर नहीं है वह कोई बड़े सुखी नहीं है। एकल परिवार सुख नहीं देता, अपितु मित्रवत व्यवहार व अन्तःज्ञान ही सुख की पूंजी है। एकल परिवार के अपने फायदे व नुकसान हैं, बड़े परिवारों में समूह में रहने के अपने फायदे नुकसान है। जिन माता पिता को पत्नी को सुखी रखने के लिए आज घर से निकालने की सोच रहे हो, वह न होते तो तुम्हारा अस्तित्व भी न होता। तुम्हारी पत्नी ने तुम को जन्म नहीं दिया है, न ही पाल पोष कर बड़ा किया है, न ही तुम्हें पढ़ा लिखाकर योग्य बनाया है। यदि तुम अपने माता पिता के साथ दुर्व्यवहार करोगे तो वह पाप तुम्हें भविष्य में अवश्य मिलेगा, तुम्हारी सन्तान भी तुम्हें घर से निकालेगी। कर्म फल का अटल सिद्धांत है, जो बोओगे वही काटोगे। 


माता पिता के कारण पत्नी को प्रताड़ित करना, उसे उसके अपेक्षित सम्मान व अधिकार से वंचित रखना भी सर्वथा अनुचित है। वह अपना घर व परिवार छोड़कर तुम्हारा परिवार व सन्तान सम्हालने आयी है। 


अतः बैलेंस बनाना तुम्हारा उत्तरदायित्व है। दोनो पक्षो को सम्हालो।


सास ससुर हो या पत्नी उनके कर्मों की सज़ा या वरदान देने के लिए परमात्मा है। तुम उन्हें दंडित करके अपना भाग्य मत बिगाड़ो।


सुख का सृजन प्रत्येक परिस्थिति में मनःस्थिति ठीक करके किया जा सकता है।

----> प्रिय सास-ससुर जी,

यदि यह भ्रम है कि बहु को आपका आज्ञाकारी होना चाहिए, बहु के कारण घर में अशांति है। तो यह भ्रम जितनी जल्दी मन से निकाल दो उतना अच्छा है। ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती। केवल बहु की ही हमेशा गलती नहीं होती। बेटे के विवाह की जल्दी आपको थी, बेटे रूपी दूध में बहु रूपी दही का जामन डल गया। तो बेटा आपका पूर्वत दूध से व्यवहार का कैसे रह सकता है। अब  बहु-बेटे में दूध के गुण क्यों तलाश रहे हो? दही मीठी करने के लिए अतिरिक्त व्यवहार में मिठास व बुद्धिप्रयोग करना पड़ेगा। वह दूसरे गर्भ से जन्मी व पली बढ़ी लड़की है, उसके व्यवहार आपके मन मुताबिक नहीं होंगे। बेटे के जीवन मे अब उसका आधा अधिकार है। 


बहु बेटे के जीवन मे बेवज़ह दखल मत दो, बिना मांगे सलाह मत दो। उन्हें गलतियां करके गिरकर सम्हलने दो। आपके पास जन्म से 21 वर्ष तक का समय बेटे को स्व-इच्छित सँस्कार देने का था। अब उसे सलाह देने का समय व्यतीत हो गया है। अब मौन हो जाएं।


मानसिक सन्यास लेकर स्वयं को ईश्वरीय आराधना व स्व उद्धार हेतु नियोजित करें। समाज कल्याण के कार्य मे जुटे। व्यस्त रह सकें ऐसी दिनचर्या बनाएं। जब आप जॉब करते थे तो आप व्यस्त थे अब वो व्यस्त हैं। आप फुर्सत में आ गए तो वह अपनी व्यस्तता आपके लिए छोड़ दें, एसी उम्मीद न करें। आत्म निर्भर बने, उपयोगी बने। लड़ाई झगड़े से बचे, परिवार की लड़ाई में जीतना भी हारना ही होता है।

Friday 4 September 2020

विचार से मन्त्र किस तरह बनता है?

मोटे भोथरे लोहे के टुकड़े से सब्जी नहीं काटी जा सकती, पेड़ नहीं कट सकता, दुश्मनों से रक्षा नहीं हो सकती। लेक़िन यदि लोहे को लुहार अग्नि में तपाकर चाकू, कुल्हाड़ी व तलवार बना दे तो यह इच्छित परिणाम हेतु उपयोग हो सकेंगे। इसी तरह किसी भी सामान्य असंगत विचार से नकारात्मक ऊर्जा का शमन नहीं होता। लुहार की तरह ऋषि भी विचारों को तपाकर मन्त्र बनाते हैं, जिसके जप से इच्छित परिणाम जन सामान्य पाते हैं।

बारबरा फे्रडरिक के अनुसार, अपनी सकारात्मक ऊर्जा को अगर आप बढ़ाना चाहते हैं, तो रोज तयशुदा समय पर नियमित रूप से ध्यान करें या कुछ रचनात्मक लेखन कार्य करें या फिर कोई गेम खेलें

 जो अपने पास है, लोग अक्सर उसे भूल जाते हैं, जो नहीं है, उसके लिए बेचैन रहते हैं। उसके बारे में सोच-सोचकर परेशान रहते हैं। कुछ लोग जब भी कुछ सोचते हैं, तो सोचने के नाम पर सिर्फ चिंता करते हैं। कुछ की सोच किसी ईर्ष्या की मंजिल पर जाकर खत्म होती है। सोचना जरूरी है, पर जरूरी नहीं कि हर तरह की सोच आपको सकारात्मक दिशा में ले जाए। तो फिर कैसे सोचा जाए? मनोवैज्ञानिक शोधकर्ता बारबरा फ्रेडरिक का मानना है कि सोचना एक कला है। उन्होंने सकारात्मक सोच और उसके प्रभाव पर लंबा शोध किया है। यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलीना में किए गए इस शोध के दौरान उन्होंने पाया कि जब कोई अच्छी तस्वीर या फिल्म देखता है, तब उसके दिमाग पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उस समय वह अपने मन में खुशी और संतुष्टि का अनुभव करता है। ऐसे में, व्यक्ति जिंदगी में संभावनाओं का वैकल्पिक संसार देखता है और उस समय उसकी कार्यक्षमता और कार्य-कुशलता, दोनों खुद-ब-खुद बढ़ जाते हैं। बारबरा फे्रडरिक के अनुसार, अपनी सकारात्मक ऊर्जा को अगर आप बढ़ाना चाहते हैं, तो रोज तयशुदा समय पर नियमित रूप से ध्यान करें या कुछ रचनात्मक लेखन कार्य करें या फिर कोई गेम खेलें। अगर आप अपने चिंतन में लचीलापन, संतुलन, सहजता, आशावादिता रखते हैं, तो आपकी सोच सकारात्मक होगी। आग्रह, आवेश या उपेक्षा वाला चिंतन मन में नकारात्मक भाव पैदा करता है। सकारात्मक सोच आपके दिमाग को समाधान और नकारात्मक सोच समस्या के रास्ते पर ले जाती है। यह आप खुद तय कर सकते हैं कि आप किस राह पर जाना चाहते हैं? इस बारे में रस्किन का कहना है कि आप किसी इंसान से मिलें, तो उसकी विशेषताओं, सद्गुणों का अनुकरण करने की कोशिश कीजिए। इससे आपके दोष अपने आप दूर होते जाएंगे, जैसे पेड़ के सूखे पत्ते अपने आप झड़ जाते हैं।

अच्छा निर्णायक कौन है?

 अच्छा विचारक व निर्णायक वही है - जो प्रत्येक घटना के अच्छे, बुरे, रुचिकर व अरुचिकर समस्त पहलुओं पर विचार कर निर्णय ले।

नियम की आवश्यकता क्यों?

 बिना नियम के यदि ट्रैफिक हो तो एक्सीडेंट की संभावना बढ़ जाती है। बिना नियम का यदि खेल हो तो खेल में झगड़ो की सम्भावना बढ़ जाती है व खेल में जीत व हार का निर्णय नहीं सम्भव होता। जिन मनुष्यो के जीवन मे व परिवार में कोई रूल-नियम नहीं होते, वहाँ अस्त व्यस्त दिनचर्या व लक्ष्य विहीनता के साथ लड़ाई-झगड़े स्वभाविक है।

आर्ट ऑफ थिंकिंग - सोचने की कला में माहिर बनिये।

 मन विचारों, अनुभवों और यादों से निर्मित होता है। यदि मन को दूषित करना है तो भी विचारों का ही सहारा लेना पड़ेगा, यदि मन को शुद्ध करना है तो भी विचार ही मदद करेंगे। मन के बल मनोबल को तोड़ना है तो भी विचार ही सहायक हैं, मन के बल मनोबल को बढ़ाना है मजबूत बनाना है तो भी विचार ही सहायक होंगे। विचारों की सृजनात्मक शक्ति को समझिए, स्वयं के जीवन को मनचाही दिशा विचारों के प्रयोग से दीजिये। आर्ट ऑफ थिंकिंग - सोचने की कला में माहिर बनिये।

Wednesday 2 September 2020

प्रश्न - *मेरे पति मुस्लिम हैं व प्रेमवश उन्होंने मुझसे झूठ बोलकर कि वो हिन्दू हैं विवाह कर लिया। हमारी सन्तान भी हो गयी है। अब शादी के इतने वर्षों बाद बताया कि वह मुस्लिम हैं अब मैं क्या करूँ, कुछ समझ नहीं आ रहा...*

 प्रश्न - *मेरे पति मुस्लिम हैं व प्रेमवश उन्होंने मुझसे झूठ बोलकर कि वो हिन्दू हैं विवाह कर लिया। हमारी सन्तान भी हो गयी है। अब शादी के इतने वर्षों बाद बताया कि वह मुस्लिम हैं अब मैं क्या करूँ, कुछ समझ नहीं आ रहा...*


उत्तर- आत्मीय बेटी, असत्य की नींव पर तुम्हारा विवाह हुआ है। यह हृदय विदारक व अत्यंत कष्टदायी है। दुखद है।


किंतु अब तुम्हारा विवाह हो चुका है व बच्चा भी हो गया है, वर्तमान में वैवाहिक जीवन में इससे क्या क्या समस्या है उस को बताओ।


काउंसलिंग में पुरानी घटनाओं को ठीक नहीं किया जा सकता, क्योंकि जो हो चुका है उसे बदला नहीं जा सकता। अब वर्तमान में क्या समस्या है उस पर ही हमारी चर्चा होगी व भविष्य में क्या करना है उसे तुम्हें सोचना है।


अपने पति को बोलो, तुम्हारे असत्य ने मुझे भीतर से तोड़ दिया है। व मैं दुःखी भी हूँ। लेकिन अब मैं केवल स्त्री नहीं अपितु तुम्हारे बच्चे की माँ हूँ। अतः लड़की की तरह नहीं सोच सकती। अब माता की तरह अपने बच्चे के भविष्य को सम्हालते हुए सोचना है।


यदि प्रेम करते हो तो मेरे साथ हिन्दू बनकर ही रहो जैसे अब तक प्रेमवश इतने वर्षों तक मेरे साथ रहे। उसी तरह रहो जैसे शहंशाह अकबर जोधा के साथ था।


जैसे शहनशाह अकबर ने जोधा के लिए कृष्ण मंदिर बनवाया। यज्ञ व पूजन करने दिया, उसके अध्यात्म मार्ग को स्वतंत्र रखा वैसे ही आज़ादी दो। भोजन इत्यादि व रहन सहन में कभी बाध्य जोधा को नहीं किया। तुम भी मत करो। आजीवन मेरे साथ वैसे ही रहो जैसे तुमने मुझे पाने के लिए हिंदुत्व को अपनाया था।  तुम मेरे अकबर और मैं तुम्हारी जोधा हूँ। 


जो हो गया वो अब बदला नहीं जा सकता। मग़र जिस सत्य को तुम्हे विवाह पूर्व बताना था वह अब बताने से अपना अर्थ खो चुका है। अब यह उम्मीद कदापि मत रखना कि तुमने सत्य बता दिया है, तो अब इस गृहस्थी में मुस्लिम रीतिरिवाजों का पालन होगा। अपितु तुमने सत्य बताकर अपने हृदय का बोझ हल्का किया है।


जब सृष्टि बनी थी तब कोई धर्म-सम्प्रदाय इस धरा पर नहीं था। प्रजातंत्र था सभी अपनी पसंद के आराध्य की आराधना कर सकते थे। एक ही घर के सभी सदस्य अलग अलग आराध्य व पूजा पद्धति चुन सकते थे। क्योंकि आत्म उन्नति व आत्म शांति अंतर्जगत का विषय है। वह बिना शब्दों के भी सम्भव है। साकार भी सम्भव है निराकार भी सम्भव है।


स्वर्ग(जन्नत) व नर्क(दोखज़) यह मनुष्य की कल्पना आधारित कोरा काल्पनिक है। रेगिस्तानियो के स्वर्ग में बर्फ़ होगी, हिमालयवासियों के स्वर्ग में गर्म धूप होगी। व्यभिचारियों के स्वर्ग में हूरें व अप्सराएं व्यभिचार पूर्ति के लिए होंगी। शराबियों के स्वर्ग में शराब पार्टी होगी। भूखे नंगो के स्वर्ग में स्वादिष्ट भोजन होंगे। इसी तरह सबके स्वर्ग वस्तुतः उनकी अपूर्ण इच्छाओं व वासनाओं की पूर्ति की जगह होते हैं। क्योंकि स्वर्ग का स्थान जांचा परखा नहीं जा सकता तो सब अपना अपना राग बजा रहे हैं, अपने अपने ख्वाब को जन्नत बता रहे हैं। यह बताइये मृत्यु के बाद जब शरीर ही नहीं होगा तो स्वादिष्ट भोजन का क्या फायदा? शहद की नदी का क्या फायदा? अमृत हो या शराब बिन शरीर उपभोग होगा कैसे? व्यभिचार के लिए भी शरीर चाहिए, बिना शरीर हूरों का क्या फायदा? विचार कीजिये।


यदि जीते जी मन में शांति व जीवन मे सुकून मिल गया तो वही जन्नत है। मन की शांति पाने व ध्यान के ढेर सारे मार्ग व साधन हैं। जिसमे जिसकी रुचि हो उसे उसी विधि से आध्यात्मिक उन्नति व मन की शांति व स्थिरता प्राप्त करनी चाहिये।


हम ब्रह्म(अल्लाह) के भीतर हैं व ब्रह्म हमारे भीतर है। जैसे जल मछली के भीतर व मछली जल के भीतर है। सूर्य , चंद्रमा, पृथ्वी, अग्नि, वायु, जल व आकाश सबके लिये समान है। 


जो हो गया वो बदला नहीं जा सकता। अब वक्त है स्वयं की आध्यात्मिक स्वतंत्रता को बरकरार रखते हुए जीवन निर्वहन करना।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...