*गीता सार - जीवन जीने की कला*
भगवान श्री कृष्ण,
गीता के अठारह अध्याय में,
समझाते मानव जीवन सार,
देते समस्त समस्याओं का समाधान।
ग़लत सोच और ग़लत ज्ञान से,
उपजती जीवन मे समस्या,
सही सोच और सही ज्ञान से,
सुलझती जीवन की हर समस्या।
परमार्थ और परोपकार है,
आनंदमय जीवन की आधारशिला,
स्वार्थ और अहंकार है,
दुःखमय जीवन की आधारशिला।
कर्मबन्धन से अच्छे कर्म ही,
बन्धन मुक्त कर सकता है,
निष्काम कर्म से ही,
जीव भवबन्धन मुक्त बन सकता है।
ईश्वर को अर्पित कर,
अच्छे कर्म करना ही,
सच्ची ईश प्रार्थना है,
स्वाध्याय-सेवा-संयम ही,
सच्ची देव आराधना है।
अहंकार को त्याग के ही,
ईश्वरीय चेतना से,
जुड़ना सम्भव है,
निर्मल मन से ही,
ईश्वरीय चेतना को,
कण कण में,
देखना सम्भव है।
ईश्वरिय मदद का,
अधिकारी वो बन पाता है,
जो अपनी मदद,
स्वयं ही कर पाता है।
सफलता के शिखर पर,
वो पहुंच पाता है,
जो निज सामर्थ्य और पुरुषार्थ पर,
यकीन रख पाता है।
जो शरीर को रथ,
स्वयं को रथी समझता है,
नित्य आत्मभाव में,
जो स्थिर रहता है,
उसके भीतर ही,
आनंद का महासागर,
हिलोरे लेता है।
जो परोपकार की भावना से,
नित्य निष्काम कर्म करता है,
ईश्वरीय निमित्त बन,
जो जन सेवा करता है,
वो कर्मयोगी,
कर्म में कुशल बनता है,
वो भवबन्धन मुक्त हो,
सशरीर देवमानव बनता है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
http://vicharkrantibooks.org/vkp_ecom/Jivan_Jine_Ki_Kala_Hindi
भगवान श्री कृष्ण,
गीता के अठारह अध्याय में,
समझाते मानव जीवन सार,
देते समस्त समस्याओं का समाधान।
ग़लत सोच और ग़लत ज्ञान से,
उपजती जीवन मे समस्या,
सही सोच और सही ज्ञान से,
सुलझती जीवन की हर समस्या।
परमार्थ और परोपकार है,
आनंदमय जीवन की आधारशिला,
स्वार्थ और अहंकार है,
दुःखमय जीवन की आधारशिला।
कर्मबन्धन से अच्छे कर्म ही,
बन्धन मुक्त कर सकता है,
निष्काम कर्म से ही,
जीव भवबन्धन मुक्त बन सकता है।
ईश्वर को अर्पित कर,
अच्छे कर्म करना ही,
सच्ची ईश प्रार्थना है,
स्वाध्याय-सेवा-संयम ही,
सच्ची देव आराधना है।
अहंकार को त्याग के ही,
ईश्वरीय चेतना से,
जुड़ना सम्भव है,
निर्मल मन से ही,
ईश्वरीय चेतना को,
कण कण में,
देखना सम्भव है।
ईश्वरिय मदद का,
अधिकारी वो बन पाता है,
जो अपनी मदद,
स्वयं ही कर पाता है।
सफलता के शिखर पर,
वो पहुंच पाता है,
जो निज सामर्थ्य और पुरुषार्थ पर,
यकीन रख पाता है।
जो शरीर को रथ,
स्वयं को रथी समझता है,
नित्य आत्मभाव में,
जो स्थिर रहता है,
उसके भीतर ही,
आनंद का महासागर,
हिलोरे लेता है।
जो परोपकार की भावना से,
नित्य निष्काम कर्म करता है,
ईश्वरीय निमित्त बन,
जो जन सेवा करता है,
वो कर्मयोगी,
कर्म में कुशल बनता है,
वो भवबन्धन मुक्त हो,
सशरीर देवमानव बनता है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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