" मैं हैरान हूँ "
-महादेवी वर्मा जी का पति के साथ अनबन हुई और उन्होंने उसे छोड़ दिया। उसके जीवित रहते हुए भी उन्होंने क्रोधवश विधवा का ड्रेस पहनना शुरू किया। उनकी कविताओं में दर्द और उदासी ज्यादा मिलेगी। वो भावनात्मक शून्यता का शिकार हुईं क्योंकि उनके जीवन में प्रेम का आविर्भाव नहीं हुआ।
उनकी कुछ कवितायें इसी दर्द को छलकाती है, क्योंकि पुरुष के अच्छे रूप का कभी उन्हें अनुभव नहीं मिला।
जीवन में मिले दर्द और तकलीफें हमारा दुनियाँ देखने का दृष्टिकोण बदल देते हैं।
नए नवेले प्रेमी युगल को बरसात की बूंदें आनन्द देती है, वहीं तलाकसुदा और विषाद में डूबे युगल को वही वर्षा की बूंदे तकलीफ़ को बढ़ाने वाली महसूस होती हैं। वर्षा की बूंद खेती के लिए उत्तम है तो किसान खुश है, लेकिन कुम्हार को वो बूंदे नहीं सुहाएंगी क्योंकि वो मिट्टी के कच्चे बर्तन गला देंगी।
अतः उनकी निम्नलिखित कविता को उनके दृष्टिकोण से न पढ़कर दूसरे दृष्टिकोण से भी देखिए:-
👇🏻 महादेवी का दृष्टिकोण
मैं हैरान हूं यह सोचकर
किसी औरत ने उंगली नहीं उठाई
तुलसी दास पर ,जिसने कहा :-
"ढोल ,गवार ,शूद्र, पशु, नारी,
ये सब ताड़न के अधिकारी।"
मैं हैरान हूं
किसी औरत ने धिक्कारा नहीं
उस "राम" को
जिसने गर्भवती पत्नी को
जिसने परीक्षा के बाद भी
निकाल दिया घर से बाहर
धक्के मार कर।
मैं हैरान हूं
किसी औरत ने
नहीं जलाई "मनुस्मृति"
जिसने पहनाई उन्हें
गुलामी की बेड़ियां।
👇🏻 हिन्दू स्त्री का दृष्टिकोण:-
धर्म के रक्षार्थ जो धरा पर आए,
एक पत्नी व्रत रख,
मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाये,
राक्षसों का विनाश कर,
मानवता को बचाये,
इस लीला में माँ सीता सहचरी बनी,
राक्षस राज रावण की मौत का कारण बनी,
जो हमारा पति श्रीराम सा महान हो,
तो अग्नि परीक्षा हमें भी स्वीकार्य है।
दीपक के तल में अंधेरा होता है तो क्या उस दीपक का महत्त्व कम हो जाएगा? श्रीरामचरितमानस के हज़ारो दोहे जो स्त्री के सम्मान में लिखे गए उन्हें भूलकर एक दोहे में हम क्यों अटक गये?
हिंदू धर्म में पुरुष के समान और यूँ कहे उनसे ज्यादा ही अधिकार प्राप्त हैं।
👇🏻 महादेवी को मुस्लिम स्त्रियों के दुःख नहीं दिखाई दिए?
हिन्दू धर्म में ट्रिपल तलाक, हलाला(मौलवी या अन्य पुरुष द्वारा रेप किये जाने पर स्त्री शुद्धि), मुताह (कुछ घण्टों का विवाह), फ़तवा - भूख लगी हो तो स्वयं की स्त्री खा सकते हो। कई स्त्रियों से विवाह।
मुस्लिम स्त्री को तो उनका धर्म ही बराबरी का अधिकार नहीं देता।
📯📯📯📯📯📯
👇🏻 महादेवी वर्मा का दृष्टिकोण
किसी औरत ने लानत नहीं भेजी
उन सब को, जिन्होंने
" औरत को समझ कर वस्तु"
लगा दिया था दाव पर
होता रहा "नपुंसक" योद्धाओं के बीच
समूची औरत जाति का चीरहरण।
मै हैरान हूं यह सोचकर
किसी औरत ने किया नहीं
संयोगिता_अंबा - अंबालिका के
दिन दहाड़े, अपहरण का विरोध
आज तक!
और मैं हैरान हूं
इतना कुछ होने के बाद भी
क्यों अपना "श्रद्धेय" मानकर
पूजती है मेरी मां - बहने
उन्हें देवता - भगवान मानकर।
मैं हैरान हूं
उनकी चुप्पी देखकर
इसे उनकी सहनशीलता कहूं या
अंध श्रद्धा , या फिर
मानसिक गुलामी की पराकाष्ठा?
👇🏻 हिंदू स्त्री का दृष्टिकोण
महाभारत काव्य ही लिखा गया था,
लोकशिक्षण के लिए,
धर्म और अधर्म को परिभाषित करने के लिए,
जुआ खेलना बुरा है,
यह बताया गया,
स्त्री को दांव पर लगाना,
सर्वत्र धिक्कारा गया,
जिसने स्त्री के वस्त्र पर हाथ लगाया,
उसको और उसके समर्थकों को,
मृत्यु के घाट उतारा गया।
भीष्म के अम्बा-अम्बालिका के,
अपहरण को भी धिक्कारा गया,
उन्हें भी मृत्यु दंड दिया गया।
हिंदू धर्म में उसी को पूजा जाता है,
जो लोकल्याण के लिए जीवन जीता है,
जो अधर्म का नाश करता है,
जो धर्म की स्थापना करता है,
वही ऋषि मुनि अवतार ही पूजा जाता है।
***
(जिन्हें लगता है कि महादेवी वर्मा जी की यह कविता, किसी भी पाठ्य पुस्तक में नहीं रखी गई है,क्यों कि यह भारतीय (तथाकथि उदात्त) संस्कृति पर गहरी चोट करती है. यह भूल है। क्योंकि इस कविता में हज़ारों महानता और हिन्दू धर्म की अच्छाई की उपेक्षा करके कुछ बातों को उल्लेखित करके हिंदू धर्म को नीचा दिखाने की कोशिश की है।)
प्रत्येक मनुष्य के अंदर अच्छाई और बुराई दोनों होती है। जिसमें जिसका प्रतिशत ज्यादा होता है, यह उसके अच्छे या बुरे होने को तय करता है।
पुरुष ससुर के साथ बहू को जलाने वाली स्त्री सास होती है, बूढ़ी सास को घर से निकालने वाली भी स्त्री बहु होती है। आतंकवादियों में लड़कों की भर्ती है तो लड़कियों की भी कम नहीं है। सूर्पनखा और ताड़का स्त्रियाँ ही थीं। रावण और कंस पुरुष थे।
हमारे हिंदू धर्म में ही भेदभाव नहीं होता। महान स्त्री हो या महान पुरूष दोनों बिना भेदभाव पूजा जाता है।
त्रिदेव - ब्रह्मा, विष्णु, महेश हैं तो त्रिदेवियाँ सरस्वती, लक्ष्मी और काली भी पूजनीय है।
देवता के पुराण है तो देवी पुराण भी हैं।
अतः गलत दृष्टिकोण से हिन्दू धर्म की गलतियां ढूंढने वालो का मैं स्त्री होकर विरोध करती हूँ।
-महादेवी वर्मा जी का पति के साथ अनबन हुई और उन्होंने उसे छोड़ दिया। उसके जीवित रहते हुए भी उन्होंने क्रोधवश विधवा का ड्रेस पहनना शुरू किया। उनकी कविताओं में दर्द और उदासी ज्यादा मिलेगी। वो भावनात्मक शून्यता का शिकार हुईं क्योंकि उनके जीवन में प्रेम का आविर्भाव नहीं हुआ।
उनकी कुछ कवितायें इसी दर्द को छलकाती है, क्योंकि पुरुष के अच्छे रूप का कभी उन्हें अनुभव नहीं मिला।
जीवन में मिले दर्द और तकलीफें हमारा दुनियाँ देखने का दृष्टिकोण बदल देते हैं।
नए नवेले प्रेमी युगल को बरसात की बूंदें आनन्द देती है, वहीं तलाकसुदा और विषाद में डूबे युगल को वही वर्षा की बूंदे तकलीफ़ को बढ़ाने वाली महसूस होती हैं। वर्षा की बूंद खेती के लिए उत्तम है तो किसान खुश है, लेकिन कुम्हार को वो बूंदे नहीं सुहाएंगी क्योंकि वो मिट्टी के कच्चे बर्तन गला देंगी।
अतः उनकी निम्नलिखित कविता को उनके दृष्टिकोण से न पढ़कर दूसरे दृष्टिकोण से भी देखिए:-
👇🏻 महादेवी का दृष्टिकोण
मैं हैरान हूं यह सोचकर
किसी औरत ने उंगली नहीं उठाई
तुलसी दास पर ,जिसने कहा :-
"ढोल ,गवार ,शूद्र, पशु, नारी,
ये सब ताड़न के अधिकारी।"
मैं हैरान हूं
किसी औरत ने धिक्कारा नहीं
उस "राम" को
जिसने गर्भवती पत्नी को
जिसने परीक्षा के बाद भी
निकाल दिया घर से बाहर
धक्के मार कर।
मैं हैरान हूं
किसी औरत ने
नहीं जलाई "मनुस्मृति"
जिसने पहनाई उन्हें
गुलामी की बेड़ियां।
👇🏻 हिन्दू स्त्री का दृष्टिकोण:-
धर्म के रक्षार्थ जो धरा पर आए,
एक पत्नी व्रत रख,
मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाये,
राक्षसों का विनाश कर,
मानवता को बचाये,
इस लीला में माँ सीता सहचरी बनी,
राक्षस राज रावण की मौत का कारण बनी,
जो हमारा पति श्रीराम सा महान हो,
तो अग्नि परीक्षा हमें भी स्वीकार्य है।
दीपक के तल में अंधेरा होता है तो क्या उस दीपक का महत्त्व कम हो जाएगा? श्रीरामचरितमानस के हज़ारो दोहे जो स्त्री के सम्मान में लिखे गए उन्हें भूलकर एक दोहे में हम क्यों अटक गये?
हिंदू धर्म में पुरुष के समान और यूँ कहे उनसे ज्यादा ही अधिकार प्राप्त हैं।
👇🏻 महादेवी को मुस्लिम स्त्रियों के दुःख नहीं दिखाई दिए?
हिन्दू धर्म में ट्रिपल तलाक, हलाला(मौलवी या अन्य पुरुष द्वारा रेप किये जाने पर स्त्री शुद्धि), मुताह (कुछ घण्टों का विवाह), फ़तवा - भूख लगी हो तो स्वयं की स्त्री खा सकते हो। कई स्त्रियों से विवाह।
मुस्लिम स्त्री को तो उनका धर्म ही बराबरी का अधिकार नहीं देता।
📯📯📯📯📯📯
👇🏻 महादेवी वर्मा का दृष्टिकोण
किसी औरत ने लानत नहीं भेजी
उन सब को, जिन्होंने
" औरत को समझ कर वस्तु"
लगा दिया था दाव पर
होता रहा "नपुंसक" योद्धाओं के बीच
समूची औरत जाति का चीरहरण।
मै हैरान हूं यह सोचकर
किसी औरत ने किया नहीं
संयोगिता_अंबा - अंबालिका के
दिन दहाड़े, अपहरण का विरोध
आज तक!
और मैं हैरान हूं
इतना कुछ होने के बाद भी
क्यों अपना "श्रद्धेय" मानकर
पूजती है मेरी मां - बहने
उन्हें देवता - भगवान मानकर।
मैं हैरान हूं
उनकी चुप्पी देखकर
इसे उनकी सहनशीलता कहूं या
अंध श्रद्धा , या फिर
मानसिक गुलामी की पराकाष्ठा?
👇🏻 हिंदू स्त्री का दृष्टिकोण
महाभारत काव्य ही लिखा गया था,
लोकशिक्षण के लिए,
धर्म और अधर्म को परिभाषित करने के लिए,
जुआ खेलना बुरा है,
यह बताया गया,
स्त्री को दांव पर लगाना,
सर्वत्र धिक्कारा गया,
जिसने स्त्री के वस्त्र पर हाथ लगाया,
उसको और उसके समर्थकों को,
मृत्यु के घाट उतारा गया।
भीष्म के अम्बा-अम्बालिका के,
अपहरण को भी धिक्कारा गया,
उन्हें भी मृत्यु दंड दिया गया।
हिंदू धर्म में उसी को पूजा जाता है,
जो लोकल्याण के लिए जीवन जीता है,
जो अधर्म का नाश करता है,
जो धर्म की स्थापना करता है,
वही ऋषि मुनि अवतार ही पूजा जाता है।
***
(जिन्हें लगता है कि महादेवी वर्मा जी की यह कविता, किसी भी पाठ्य पुस्तक में नहीं रखी गई है,क्यों कि यह भारतीय (तथाकथि उदात्त) संस्कृति पर गहरी चोट करती है. यह भूल है। क्योंकि इस कविता में हज़ारों महानता और हिन्दू धर्म की अच्छाई की उपेक्षा करके कुछ बातों को उल्लेखित करके हिंदू धर्म को नीचा दिखाने की कोशिश की है।)
प्रत्येक मनुष्य के अंदर अच्छाई और बुराई दोनों होती है। जिसमें जिसका प्रतिशत ज्यादा होता है, यह उसके अच्छे या बुरे होने को तय करता है।
पुरुष ससुर के साथ बहू को जलाने वाली स्त्री सास होती है, बूढ़ी सास को घर से निकालने वाली भी स्त्री बहु होती है। आतंकवादियों में लड़कों की भर्ती है तो लड़कियों की भी कम नहीं है। सूर्पनखा और ताड़का स्त्रियाँ ही थीं। रावण और कंस पुरुष थे।
हमारे हिंदू धर्म में ही भेदभाव नहीं होता। महान स्त्री हो या महान पुरूष दोनों बिना भेदभाव पूजा जाता है।
त्रिदेव - ब्रह्मा, विष्णु, महेश हैं तो त्रिदेवियाँ सरस्वती, लक्ष्मी और काली भी पूजनीय है।
देवता के पुराण है तो देवी पुराण भी हैं।
अतः गलत दृष्टिकोण से हिन्दू धर्म की गलतियां ढूंढने वालो का मैं स्त्री होकर विरोध करती हूँ।
क्या आप बता सकते है उक्त कविता महादेवी वर्मा जी के किस पुस्तक में लिखी है ? या उन्होंने किस शीर्षक से ये कविता कब लिखी है ?
ReplyDeleteढोल ,गवार ,शूद्र, पशु, नारी,
Deleteये सब ताड़न के अधिकारी।"
ये तो हकीकत हैं ना भले कोई भी ये कविता क्यों नहीं लिखे......... लानत है
भाई कविता लिखते हो लेकिन "ताड़ना" शब्द का मतलब पता नहीं है तुम्हे। हिंदी व्याकरण तो पड़ी होगी तुमने ।
Deleteयहां शब्दों के अर्थ अलग अलग है भाई।
थोड़ा मेहनत करो भाई
भाई कविता लिखते हो लेकिन "ताड़ना" शब्द का मतलब पता नहीं है तुम्हे। हिंदी व्याकरण तो पड़ी होगी तुमने ।
Deleteयहां शब्दों के अर्थ अलग अलग है भाई।
थोड़ा मेहनत करो भाई
ढोर गवार क्षुद्र पशु के साथ नारी को रखा गया, और तू शब्द के अर्थ में लगा हुआ है। शब्द महत्वपूर्ण नही है, लिखने वाले का इरादा मायने रखता है।
Deleteइस चौपाई की व्याख्या करते समय लोग काल, समय, स्थान और संदर्भ को नहीं देखते। बस जैसा मन में आया वैसा व्याख्या कर देते हैं। वैसे भी आजकल की पीढ़ी जो ज्यादातर फेसबुक जैसे मंच पर ज्ञान बांटते नज़र आती है, शायद ही तुलसीदास के इस महाग्रंथ को पूरा पढ़ा और समझा होगा।
Deleteदरअसल ये पूरा का पूरा प्रसंग तब का है जब प्रभु श्रीराम लंका पर चढ़ाई करने हेतु प्रस्थान करते हैं। रास्ते में समुद्र मिल जाता है। उस पार जाने के लिए रास्ता चाहिए था सो भगवान राम समुद्र से तीन दिन तक प्रार्थना करते रहे मगर समुद्र नहीं सुना। तब जाकर भगवान क्रोधित होते हैं और समुद्र को सुखाने के लिए वाण तान देते हैं। भयभीत होकर समुद्र उपस्थित होता है और ये चौपाई कहता है.....
" प्रभु मल किन्ही मोहि सिख दीन्ही।
मरजादा पुनि तुम्हरी किन्हीं। ।
" ढोल गंवार शुद्र पशु नारी।
सकल ताड़ना के अधिकारी "। ।
अर्थात----- प्रभु, आपने अच्छा किया कि मुझे शिक्षा दी और सही रास्ता दिखाया। किंतु मर्यादा ( जीवों का स्वभाव ) भी आपकी ही बनाई हुई है। क्योँकि ढोल, गंवार, शुद्र, पशु और नारी ये सब शिक्षा तथा सही ज्ञान के अधिकारी हैं।
दरअसल ज्यादातर ज्ञानी लोग इस चौपाई में आये "ताड़ना" शब्द का गलत अर्थ निकाल बैठते हैं। मूलतः ताड़ना एक अवधि शब्द है जिसका अर्थ होता है----देखभाल करना, पहचान करना।
अर्थ का अनर्थ निकालने वाले लोगों को ये ध्यान रखना चाहिए कि " रामचरितमानस " की रचना तुलसीदास ने अवधि भाषा में की है न कि संस्कृत या अन्य किसी भाषा में।
अगर समन्दर के कान थे, तो व़ो कान अब कहाँ चले गये हैं। झूठ कभी सच्चाई मे नहीं बदल सकता।
DeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
Deleteतुलसी दास को क्या यहाँ भी ढोल गंवार शुद्र पशु नारी ये सब सिख के अधिकारी, लिखते शर्म आ रही थी
Deleteविष की एक बूंद भी अमृत कलश को विषाक्त कर सकती है, ठीक इसी प्रकार एक नकारात्मक स्त्री और शूद्र विरोधी दोहा, हज़ारों अच्छे दोहों के सकारात्मक प्रभाव को कम कर देता है।
ReplyDeleteYh kvita chahejiski ho kya yha sachhay nahi hay sachhay se kiyu muhchupate ho
ReplyDeleteSahi bat
DeleteHindu stree Ka drishticon ......madam sawalon Ka jawab dijiye Jo Kavita me puche Gaye Hain yu examples dekar justification Mt dijiye aise hazaron examples Kavita ke paksh me bhi hai
ReplyDeleteEk depression me likhi hui poem ka explaition mag rhe ho janab.....ham likh de ek poem jawab doge....
Deleteक्या आप बता सकते है कि यह कविता महादेवी वर्मा जी ने कब तथा किस पुस्तक में लिखी है ?
ReplyDeleteक्रप्या जवाब दे।
यह महादेवी वर्मा की कविता नहीं है?..
Deleteयह कविता सुदेश कुमार तनवर की है, ह्वटसप यूनिवर्सिटी के भरोसे ज्ञान विज्ञान ऐसे ही बे-सिर-पैर पांव पसारते चला जाता है। इसलिए जरूरी है कि "काव्य मेधा" को जानने समझने के लिए लोग किताबों को खरीदें और पढ़ें।
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआदमी के अहंकार को चोट पहुंचती है तो वह सच बातों से मुखरता है और उंगली दस्तकें तरफ दिखाता है।कविता लिखी बातें सही हैं।पुजा तो औरत कि करते हैं यह दिखावा है।
ReplyDeleteयह महादेवी वर्मा की कविता नहीं है। यह महादेवी की भाषा भी नहीं है, न इस प्रकार की कोई भी कविता उन्होंने कभी लिखी है। वे भगवान, राम, सीता आदि की कथा के प्रति भी ऐसी सोच नहीं रखतीं!...
ReplyDeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
DeleteThis poem is from which poet and in which book
ReplyDeletehinduo ki sachhai hi to dikhai hai jo inke grantho me hai...or sirf ye nhi or b bahut kuch hai..yha sirf 1 side dikhai hai...
ReplyDeleteयह कविता की सभी लाईने बिल्कुल सत्य है, क्योंकि उस समय महिलाओं के ऐसा होता था और आज भी होता आ रहा है, भारत को हिन्दू धर्म ने बरबाद कर दिया... जरा सोचो जो देश बौद्ध धर्म को मानता है वहा सभी को एक समान अधिकार है और वह देश आगे आगे चल रहे हैं... आंख खोल के देख लो भक्तो......
ReplyDeleteचलो एक बार को मान लिया कि महादेवी जी गलत है लेकिन यह बताओ कि अपनी गर्भवती पत्नी को रात को घर से बाहर निकालने के बाद राम मर्यादा पुरुषोत्तम कैसे रह गए?
ReplyDeleteअपनी पत्नी को दांव पर लगाने के बाद युधिष्टिर धर्मराज कैसे रह गए?
भाई बाल्मीकि रामायण को पढ़ना जिसमे उत्तर काण्ड है ही नहीं तुलसी दास रामायण में उत्तर काण्ड है जिसे भगवान श्री राम को बदनाम करने के लिए और तुम जैसे कामहीन लोगो के लिए एक काम जोड़ दिया है
DeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
Deleteसही है बिल्कुल ऐसा ही है हिन्दू धर्म औरतो और शूद्रों (obc,sc,st)को नीचा और गुलाम बनाकर उनका शोषण करने का दण्ड विधान है
ReplyDeleteYe mahadevi varma ki ye kavita kis book me h Aaj tum log naye log Dharm pariwartan kar rahe ho Kewal ek baat batao tumhare mata pita kis dharm Ko mante chale aa rahe h aaj tak tum Hindu Dharm ki Devi dewta ki apman kar rahe ho tumhare Devi dewta koun h jo tumko darshan dekar tumhari saari manokamna pura karta h koun h yesa dewta hame bhi batana etna hi acha h to us boudh dharm ka prachar nahi karte log Apne AAP jate ab tak kaha tha tumhara boudh dharm Dharm ke Naam par bhadakane wale chamcho dam h to khud aage bado
ReplyDeleteHindu darm ka sansthapak kon hai jab pta chal jae tab bat karna ok bhai
DeleteHidu dharm hi dhongi aur andhbhakto ke vicharo se pata h hindu mane hi neech h tulsidas ne to neechta pan dikhya h
ReplyDeleteDharm ka matlab jante ho chamcha to tum sab ho jo aisi bante krte ho
ReplyDeleteये कविता चाहे किसी ने भी लिखी हो, अगर हम धर्म से थोड़ा परे होकर केवल स्त्री के परिप्रेक्ष्य से सोचें तो इस कविता में कोई झूठ दिखाई नहीं देता, आखिर ये सब तो हुआ है उनके साथ।
ReplyDeleteआप में से कितने लोग धर्म ग्रन्थों में विश्वास रखते हैं या जो विश्वाश रखते भी हैं उनमें से कितने लोग ऐसे हैं जिन्होंने इन धर्म ग्रन्थों की ओरीजनल बुक पड़ी है। शायद किसी ने नहीं पड़ी होगी, तो मेरे देश बासियों इन पर बहस करने से अच्छा है कि आप वर्तमान की भयावह स्थिति पर चर्चा करें तो ज्यादा बेहतर होगा। धन्यवाद।��
ReplyDeleteये पंक्तिया चाहे जिसने भी लिखी है
ReplyDelete101% सही है,
आज भी समाज मे ये ही हो रहा है,
रोज न्यूज़ में औरतों के साथ बीभत्स होने की घटना आती ही है।
यह कविता महादेवी वर्मा की नहीं। आज के युग के आदर्शों को पुराने युग पर नहीं थोपा जा सकता।
ReplyDeleteदुख की बात यह नहीं है कि भारतीय संस्कृति साहित्य में तुलसी दुबे जैसे पुरुषप्रधान ब्राह्मणवादी लेखक/ कवि भरे पड़े है❓
ReplyDeleteदुख की बात तो यह है कि आज कुछ षडयंत्रकारी उन्हें क्लीन चिट दे रहे हैं.
हिंदू स्त्री का दृष्टिकोण सुविधानुसार पेश करने की ये जो बचकानी कोशिश की जा रही है मनुवादी सोच के आचरण और समर्थन करने वालो द्वारा। इसी से साबित हो जाता है मनुवादी स्त्री स्वय गुलामी से आजाद हो गई है पर जो बाकी समूह की महिलाएं है उन्हे वे हर तरह से गुलाम इस युग में भी बनाए रहना चाहती है। वास्तव में ये सनातन धर्म की विचारधारा है, जिसे हिंदू नाम देकर व्यापक बनानेकी साजिश की जा रही है।
ReplyDeleteक्या मैं किसी अन्य धर्म को नीचा दिखा कर अपने धर्म को ऊपर उठा सकता हूं?
ReplyDeleteमैं हैरान हूं
किसी औरत ने
नहीं जलाई "मनुस्मृति"
जिसने पहनाई उन्हें
गुलामी की बेड़ियां। इस के बारे में आपके विचार वांछनीय हैं।
लिंग भेदभाव तो होता हे आज कम हे तो उस समय मे तो बहुत हुआ ये इतिहास मे देख लो
ReplyDeleteबकवास बन्द करो भाई! 'मैं हैरान हूँ' कविता दलित कवि सुदेश तनवर जी की है!...
ReplyDeletehttps://m.facebook.com/story.php?story_fbid=4520627294662804&id=100001467332790&sfnsn=wiwspwa 'मैं हैरान हूँ!..'
ReplyDeleteमहादेवी वर्मा जी की इस उत्कृष्ट और क्रान्तिकारी रचना तुलसीदास जी की स्त्री और शूद्र विरोधी मानसिकता की परिचायक है। जिस औरत ने उन्हें बताया कि शरीर, कामावसना से आगे भी कुछ है उसी के लिए ऐसी सोच। महादेवी जी को समझना आलेख लिखने वाले की समझ से बाहर है इसलिए उनके ऊपर आक्षेप लगा रहा है । ऐसी महान कवियत्री और लेखिका को नमन।
ReplyDeleteI haven't read much of Hindi literature but have read a few poems of Mahadevi Verma. Clearly this is not her words and work. Read the richness of her thoughts. The simplicity with which she uses even the very complex words and make them not just rhyme but also shine in meaning is her hallmark.
ReplyDeleteWhen i read this writing, i feel it is less of a poem and more of a mediocre act of gaining some popularity by using others name.If someone is using her name to propel his/her agenda then it reflects hollowness of their character.
Dont waste time debating such duplicates with agenda to target selective parts ignoring wealth of goodness.