प्रश्न - *"तन्नो" और "तन्नः" में क्या फर्क है? कहाँ कब किस देवता के मन्त्र में "तन्नो" लगेगा या किसमें कब "तन्न:" लगेगा कृपया बताएं? किसी भी देवता के गायत्री मंत्र का रहस्य क्या है?*
उत्तर - आत्मीय बहन, संस्कृत में कुछ में भेद नहीं होता भले उच्चारण में भेद हो, उदाहरण
यकारो ( *य*) और जकारो ( *ज*) भेदम नास्ति
जादव और यादव दोनों एक ही है। यथा व जथा दोनो एक ही अर्थ देते हैं।
इसी तरह *तन्न:* व *तन्नो* भेदम नास्ति
*तन्न:* और *तन्नो* दोनो का अर्थ है *वह (आवाहित देवता/देवी) हमारे लिए या हमको*
उदाहरण - पुस्तक - *गायत्री महाविज्ञान* में *चन्द्र मन्त्र*
(ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे, अमृततत्वाय धीमहि *तन्न: चन्द्र:* प्रचोदयात)
में *तन्न:* प्रयुक्त हुआ है। वहीं पुस्तक - *गायत्री का हर अक्षर शक्ति श्रोत* (ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे, अमृततत्वाय धीमहि *तन्नो चन्द्र:* प्रचोदयात) में *तन्नो* लिखा है।
अब पाठक परिजन कन्फ्यूज़ हो जाते हैं किसे सही माने और कौन सा उपयोग में लें? कहीं यह जेंडर के आधार पर तो नहीं इत्यादि इत्यादि सोचते है..
तो टेंशन लेने की जरूरत नहीं, दोनो में कोई फ़र्क़ नहीं। आपमंत्र उच्चारण मे जो आपको सधे उसे बोल लें।
👉🏼 *रहस्य-(किसी देवता की शक्ति को बुद्धि में धारण करने हेतु उस देवता के गायत्री मंत्र बनाने का सूत्र/फार्मूला)* - देवताओं के गायत्री मंत्र बनाने के लिए सम्बन्धित देवता के दो या तीन नाम लिए जाते हैं। *उदाहरण विष्णु जी के नाम* - नारायण, वासुदेवाय, विष्णु । हम उस आवाहित देवता की शक्ति को जब अपनी बुद्धि में धारण करते हैं।
अब इसे क्रमशः ॐ, विद्महे, धीमहि, तन्नो, प्रचोदयात के बीच मे जोड़ा जाएगा।
ॐ *नारायणाय* विद्महे, *वासुदेवाय* धीमहि, तन्नो *नारायण:* प्रचोदयात
या
ॐ *नारायणाय* विद्महे, *वासुदेवाय* धीमहि, तन्नो *विष्णु:* प्रचोदयात
👉🏼 *ॐ* - सर्वशक्तिमान कण कण में व्यापत परमात्मा
👉🏼 *विद्महे(विद + महे)* - विद् अर्थात जानते हैं व उनकी उपस्थिति मानते हैं।
👉🏼 *धीमहि(धी + महि)* - धी - अर्थात बुद्धि, मन । महि अर्थात ध्यान। तो अर्थ हुआ हम उनका मन में ध्यान करते है, बुद्धि में आह्वाहन करते हैं।
👉🏼 *तन्नो या तन्न:* - वह (आवाहित देवता या देवी) हमारे लिए/हमको
👉🏼 *प्रचोदयात* - प्रकाशित करें, प्रेरणा दें, बुद्धि को प्रेरित करें।
*नारायण गायत्री मंत्र का अर्थ हुआ* - हम नारायण को सर्वशक्तिमान जानते और मानते हैं। ऐसे सर्वशक्तिमान नारायण वासुदेव का हम मन में ध्यान करते हैं। वह भगवान विष्णु हमारी बुद्धि को प्रेरणा दें और सन्मार्ग में कदम बढ़ाने हेतु हमारा पथ प्रदर्शन करें।
ऐसे ही समस्त देवताओं के गायत्री मन्त्रों का अर्थ होगा। उदाहरण
*चन्द्र गायत्री मंत्र का अर्थ हुआ* - हम क्षीरपुत्राय (जो कि चन्द्र देवता का ही एक और नाम है) को सर्वशक्तिमान जानते और मानते हैं। ऐसे सर्वशक्तिमान अमृतत्त्वाय( चन्द्रमा से अमृत झरता है और औषधियों को बल मिलता है इसलिए इन्हें अमृतत्त्वाय भी कहते हैं) का हम मन में ध्यान करते हैं। वह चन्द्र देवता हमारी बुद्धि को प्रेरणा दें और सन्मार्ग पर कदम बढ़ाने हेतु हमारा पथ प्रदर्शन करें।
🙏🏻 उम्मीद है अब कभी भी तन्नो व तन्न: में कन्फ्यूजन नहीं होगी। गायन की सुविधा के लिए उच्चारण कर्ता तन्न: या तन्नो उपयोग में ले सकते हैं। दोनो का एक ही अर्थ है (वह आवाहित देवता हमारे लिए/हमको) 🙏🏻
उपरोक्त में सूत्र/फार्मूला बता दिया है तो यदि कोई सूर्य गायत्रीमंत्र निम्नलिखित में कैसे भी पढ़े तो दोनो सही है व समान लाभकारी हैं:-
*सूर्य गायत्री*–ॐ आदित्याय विद्महे सहस्त्रकिरणाय धीमहि। तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्।
या
*सूर्य गायत्री*–ॐ भाष्कराये विद्महे दिवाकराय धीमहि। तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्।
इसीतरह रुद्र गायत्रीमंत्र में निम्नलिखित दोनो सही हैं व समान लाभकारी हैं:
*रुद्र गायत्री*—ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्।
या
*रुद्र गायत्री* - ॐ पञ्चवक्तत्राय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्।
पंचवक्त्राय (panch-vaktray) पांच मुंह से बोलने वाला(वक्ता) अर्थात पंचमुखी रुद्र । कुछ परिजन गलत उच्चारण करते है पंचवक्त्राय को पँचवक्राय(panch-vakray) अर्थात पांच जगह से टेढ़ा (वक्र) अर्थात पांच जगह से टेढ़े मुंह वाला देवता। जब कोई गलत उच्चारण करता है रुद्र गायत्रीमंत्र का मन्त्र का अनर्थ हो जाता है ।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय बहन, संस्कृत में कुछ में भेद नहीं होता भले उच्चारण में भेद हो, उदाहरण
यकारो ( *य*) और जकारो ( *ज*) भेदम नास्ति
जादव और यादव दोनों एक ही है। यथा व जथा दोनो एक ही अर्थ देते हैं।
इसी तरह *तन्न:* व *तन्नो* भेदम नास्ति
*तन्न:* और *तन्नो* दोनो का अर्थ है *वह (आवाहित देवता/देवी) हमारे लिए या हमको*
उदाहरण - पुस्तक - *गायत्री महाविज्ञान* में *चन्द्र मन्त्र*
(ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे, अमृततत्वाय धीमहि *तन्न: चन्द्र:* प्रचोदयात)
में *तन्न:* प्रयुक्त हुआ है। वहीं पुस्तक - *गायत्री का हर अक्षर शक्ति श्रोत* (ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे, अमृततत्वाय धीमहि *तन्नो चन्द्र:* प्रचोदयात) में *तन्नो* लिखा है।
अब पाठक परिजन कन्फ्यूज़ हो जाते हैं किसे सही माने और कौन सा उपयोग में लें? कहीं यह जेंडर के आधार पर तो नहीं इत्यादि इत्यादि सोचते है..
तो टेंशन लेने की जरूरत नहीं, दोनो में कोई फ़र्क़ नहीं। आपमंत्र उच्चारण मे जो आपको सधे उसे बोल लें।
👉🏼 *रहस्य-(किसी देवता की शक्ति को बुद्धि में धारण करने हेतु उस देवता के गायत्री मंत्र बनाने का सूत्र/फार्मूला)* - देवताओं के गायत्री मंत्र बनाने के लिए सम्बन्धित देवता के दो या तीन नाम लिए जाते हैं। *उदाहरण विष्णु जी के नाम* - नारायण, वासुदेवाय, विष्णु । हम उस आवाहित देवता की शक्ति को जब अपनी बुद्धि में धारण करते हैं।
अब इसे क्रमशः ॐ, विद्महे, धीमहि, तन्नो, प्रचोदयात के बीच मे जोड़ा जाएगा।
ॐ *नारायणाय* विद्महे, *वासुदेवाय* धीमहि, तन्नो *नारायण:* प्रचोदयात
या
ॐ *नारायणाय* विद्महे, *वासुदेवाय* धीमहि, तन्नो *विष्णु:* प्रचोदयात
👉🏼 *ॐ* - सर्वशक्तिमान कण कण में व्यापत परमात्मा
👉🏼 *विद्महे(विद + महे)* - विद् अर्थात जानते हैं व उनकी उपस्थिति मानते हैं।
👉🏼 *धीमहि(धी + महि)* - धी - अर्थात बुद्धि, मन । महि अर्थात ध्यान। तो अर्थ हुआ हम उनका मन में ध्यान करते है, बुद्धि में आह्वाहन करते हैं।
👉🏼 *तन्नो या तन्न:* - वह (आवाहित देवता या देवी) हमारे लिए/हमको
👉🏼 *प्रचोदयात* - प्रकाशित करें, प्रेरणा दें, बुद्धि को प्रेरित करें।
*नारायण गायत्री मंत्र का अर्थ हुआ* - हम नारायण को सर्वशक्तिमान जानते और मानते हैं। ऐसे सर्वशक्तिमान नारायण वासुदेव का हम मन में ध्यान करते हैं। वह भगवान विष्णु हमारी बुद्धि को प्रेरणा दें और सन्मार्ग में कदम बढ़ाने हेतु हमारा पथ प्रदर्शन करें।
ऐसे ही समस्त देवताओं के गायत्री मन्त्रों का अर्थ होगा। उदाहरण
*चन्द्र गायत्री मंत्र का अर्थ हुआ* - हम क्षीरपुत्राय (जो कि चन्द्र देवता का ही एक और नाम है) को सर्वशक्तिमान जानते और मानते हैं। ऐसे सर्वशक्तिमान अमृतत्त्वाय( चन्द्रमा से अमृत झरता है और औषधियों को बल मिलता है इसलिए इन्हें अमृतत्त्वाय भी कहते हैं) का हम मन में ध्यान करते हैं। वह चन्द्र देवता हमारी बुद्धि को प्रेरणा दें और सन्मार्ग पर कदम बढ़ाने हेतु हमारा पथ प्रदर्शन करें।
🙏🏻 उम्मीद है अब कभी भी तन्नो व तन्न: में कन्फ्यूजन नहीं होगी। गायन की सुविधा के लिए उच्चारण कर्ता तन्न: या तन्नो उपयोग में ले सकते हैं। दोनो का एक ही अर्थ है (वह आवाहित देवता हमारे लिए/हमको) 🙏🏻
उपरोक्त में सूत्र/फार्मूला बता दिया है तो यदि कोई सूर्य गायत्रीमंत्र निम्नलिखित में कैसे भी पढ़े तो दोनो सही है व समान लाभकारी हैं:-
*सूर्य गायत्री*–ॐ आदित्याय विद्महे सहस्त्रकिरणाय धीमहि। तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्।
या
*सूर्य गायत्री*–ॐ भाष्कराये विद्महे दिवाकराय धीमहि। तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्।
इसीतरह रुद्र गायत्रीमंत्र में निम्नलिखित दोनो सही हैं व समान लाभकारी हैं:
*रुद्र गायत्री*—ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्।
या
*रुद्र गायत्री* - ॐ पञ्चवक्तत्राय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्।
पंचवक्त्राय (panch-vaktray) पांच मुंह से बोलने वाला(वक्ता) अर्थात पंचमुखी रुद्र । कुछ परिजन गलत उच्चारण करते है पंचवक्त्राय को पँचवक्राय(panch-vakray) अर्थात पांच जगह से टेढ़ा (वक्र) अर्थात पांच जगह से टेढ़े मुंह वाला देवता। जब कोई गलत उच्चारण करता है रुद्र गायत्रीमंत्र का मन्त्र का अनर्थ हो जाता है ।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
Thanks for the sweet and clear cut explanation.
ReplyDeleteधन्यवाद। आप ने ज्ञान दिया
Delete thanks
ReplyDeleteगिरीजायैच
ReplyDeleteवृषभानुजायैच का अर्थ क्या है!
Thanks for sharing knowledge. Jai Bhole Nath
ReplyDeleteश्वेता जी बहुत बहुत धन्यवाद, जय श्री कृष्णा 🙏
ReplyDeleteThnks sir
ReplyDeleteDhanywad...saral bhasha me samzane ke liye
ReplyDeleteउत्तम कार्य ,बहुत बहुत धन्यवाद।
ReplyDelete🙏🙏🙏
ReplyDelete🙏
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