Thursday, 29 November 2018

प्रश्न - *क्या तर्क से धार्मिक आस्था सिद्ध की जा सकती है?*

प्रश्न - *क्या तर्क से धार्मिक आस्था सिद्ध की जा सकती है?*

उत्तर - आस्था का सम्बंध मान्यता और feelings है। आस्था में हम किसी धर्म पर श्रद्धा-विश्वास करके उसका अनुपालन करते है। यह एक प्रकार से ट्रेनिग करके मन को अभ्यस्त करने जैसा कुछ होता है।

एक बार शुरू में आस्था बनानी पड़ती है फिर बाद में तो अधिकतम समय यह यंत्रवत होता है।

इसे सिद्ध करने में तर्क कुछ ही अंश तक ही सहायक होता है।

उदाहरण - एक बालक की दृढ़ आस्था माता पर होती है, वह उससे प्रेम की फीलिंग से जुड़ा होता है। बालक गिर गया चोट लग गयी। सभी उसे चुप करवाये वो न हुआ। माता आई गोद मे उठाया, प्यार से पुचकारा और अपने पल्लू से घाव पोंछा। बच्चा चुप हो गया।

अब तर्क से यह कैसे सिद्ध करोगे और कौन सा विज्ञान रिसर्च उपयोग में लाओगे, कि माता की पुचकार में कौन सी मेडिसिन थी, माता के पल्लू में कौन सी दवा लगी थी? जो बच्चा चुप हो गया। क्या वो ही माता वाली साड़ी पड़ोसी स्त्री को पहनाकर वैसा ही नाटक करने को कहा जाता तो क्या बच्चा चुप होता? नहीं न...

मनुष्य जिस चीज़ पर आस्था-विश्वास कर लेता है, वैसा  ही उसके साथ घटने लगता है।

यह सिद्ध करने के लिए वैज्ञानिकों  ने एक प्रयोग किया, एक कैदी के समक्ष नाटक किया गया कि उसे जहरीले सर्प के दंश से उसे मृत्यु दंड दिया जाएगा। सर्प नकली था,  उसके मुंह मे लिखने वाली स्याही लगाई गई। हल्का सा उससे चुभाया गया। नीला पन पैर में आया, डॉक्टर झूठ मूठ का बोलने लगे जहर चढ़ रहा है, ब्लड प्रेशर डाउन हो रहा है। काउंट डाउन दो घण्टे का लगा दिया गया, उसके आसपास ऐसा माहौल बनाया गया कि उसकी आस्था इस बात पर दृढ़ हो गयी कि उसे सचमुच सर्प ने काट लिया है। वो युवक सचमुच मर गया, पोस्टमार्टम में जहर से मृत्यु निकला। वो जहर उसमें कहाँ से आया? क्या तर्क से सिद्ध कर सकते हो?

इसी तरह कोई श्रीराम पर आस्था रखता है कोई शिव पर कोई दुर्गा पर कोई अल्लाह पर कोई नानक पर कोई जीसस पर कोई किसी अन्य पर...जब वो आस्था रखता है...तो श्रद्धा विश्वास से वो उस चेतना से जुड़ता है...वह विश्वास उसका काम करने लगता है...उसे लगता है कि उसका भगवान सबसे शक्तिशाली है...इत्यादि इत्यादि... वास्तव में उसके अंदर का belief system उसे शक्ति प्रदान करता है।

एक ही भगवान सबको समान फल नहीं देता और न ही सबकी समान मनोकामना पूर्ति करता है। जिसकी जितनी दृढ़ आस्था भक्ति विश्वास उसका उतना शक्तिवान भगवान।ठीक वैसे ही जैसे एक ही बिजली कनेक्शन होने के बाबजूद सभी बल्ब एक जैसी रोशनी नहीं देते। जीरो वाट का बल्ब कम रौशनी और 100 वाट का ज्यादा और 40 वाट का मध्यम रौशनी देगा। इसी तरह भगवान के बिजली कनेक्शन और भक्त की भक्ति की शक्ति के वाट का सम्बंध है।

इसी बात को विस्तार से युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने अपनी पुस्तक - *अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार* में विस्तार से समझाया है। भगवान की शक्ति वास्तव में भक्त की भक्ति और आस्था तय करती है। जिसकी जितनी बड़ी भक्ति-आस्था उसका उतना ही शक्तिवान भगवान।

वास्तव में भगवान/शक्ति का नामकरण इंसान ने किया है, भगवान ने नहीं किया है। पानी को कोई जल बोलकर पिये या वाटर बोलकर या पानी बोलकर पिये, इससे पानी को कोई फ़र्क़ नही पड़ेगा और वो पीने वाले को समान लाभ देगा, प्यास बुझायेगा। इसी तरह उस परमशक्ति को भगवान राम बोलकर पूजो या अल्लाह बोलकर पूजो या जीसस बोलो या गुरु नानक बोलो, नाम बदलने से काम नही बदलेगा। जो आस्था विश्वास रखेगा उसे वो स्वयं के भीतर ही पायेगा, लाभान्वित होगा।

जिस प्रकार प्रेम, क्रोध, घृणा इत्यादि भावनाओ को देखने या तौलने का कोई मशीन हमारे पास नहीं, इसी तरह भक्ति-आस्था को भी देखा या तौला नहीं जा सकता। केवल महसूस किया जा सकता है, इसलिए इस पर कोई वैज्ञानिक तर्क द्वारा इसे सिद्ध करने की चेष्टा बच्चो के खिलौने की कार(car) जैसा होगा। जो कार का स्वरूप और थोड़ा बहुत आइडिया तो दे सकता है, लेकिन इस खिलौने की कार पर बैठकर कहीं पहुंच नहीं सकते। इसी तरह तर्क से धार्मिक आस्था का थोड़ा बहुत खिलौने की कार की तरह आइडिया ले सकते हो, लेकिन तर्क के वाहन से न ही आस्था पूरी तरह सिद्ध कर सकते हो और न ही अध्यात्म पा सकते हो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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