Wednesday 28 November 2018

रोगमुक्त, प्रदूषण मुक्त, भारत का आधार यज्ञ परम्परा

*रोगमुक्त, प्रदूषण मुक्त, भारत का आधार यज्ञ परम्परा*

प्रदूषण और रोगों से दुनियाँ परेशान है। जिनके समाधान यज्ञ के रूप में विद्यमान है।

Spiritual researcher & scientist जिन्हें हम सनातन धर्म मे ऋषि कहते है, उन्होंने यज्ञ की परंपरा शुरू की। याज्ञवल्क्य ऋषि ने यज्ञ पर कई प्रकार के रिसर्च किये, और इसके multipurpose लाभ को देखते हुए इसे भारतीय संस्कृति के उत्सवों से जोड़ दिया।

यज्ञ द्वारा मुख्यतः चार प्रकार के प्रदूषण को कम करने और इनके शोधन करने के साथ स्वास्थ्य प्रदान करने में मदद मिलती हैं:-

👉🏼वैचारिक चिंतन प्रदूषण,
👉🏼वायु प्रदूषण,
👉🏼जल प्रदूषण,
👉🏼ज़मीन प्रदूषण

यज्ञ के लाभ के कुछ मुख्य बिंदु जिन पर रिसर्च पेपर देवसंस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार, उत्तराखंड की वेबसाइट - http://ijyr.dsvv.ac.in/index.php/ijyr पर मिल जाएगी। जिसे आधुनिक यज्ञ रिसर्चर और यज्ञ पर पीएचडी करने वाले रिसर्चर ने अपने अपने रिसर्च पब्लिश किया है।  ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान, शान्तिकुंज हरिद्वार और देव संस्कृति विश्वविद्यालय में लगातार यज्ञ पर रिसर्च हो रहे हैं। डॉक्टर ममता सक्सेना, डॉक्टर वंदना, डॉक्टर रुचि, डॉक्टर विरल और उनकी यग्योपैथी रिसर्च टीम युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी से प्रेरणा लेकर श्रध्देय डॉक्टर प्रणव पण्ड्या के मार्गदर्शन में लगातार इस पर रिसर्च कर रही है। कुछ महत्त्वपूर्ण लाभ जिन पर रिसर्च सफ़लता पूर्वक किया गया वो इस प्रकार है:-

1- वैचारिक प्रदूषण को दूर करने में मंन्त्र की सकारात्मक तरंगे और औषधीय धूम्र सीधे श्वांस द्वारा मष्तिष्क के कोषों में पहुंचकर उनका शोधन करता है। नकारात्मकता हटा कर स्वास्थ्य और पुष्टि-बल प्रदान करता है। मानसिक बीमारियों में अत्यंत असरकारी है। शारिरिक बीमारियों की जड़ पेट और मन होता है। यग्योपैथी से विभिन्न रोगों का उपचार सफ़लता पूर्वक किया जा रहा है।

2- हवन सामग्री को औषधियों के मिश्रण के साथ साथ सुगंधित द्रव्य और पौष्टिक ड्राई फ्रूट , गाय का घी मिलाकर तैयार किया जाता है। जो मंन्त्र की सकारात्मक ध्वनि तरंगों के साथ औषधीय धूम्र में मिलकर जल- थल-नभ का पॉल्यूशन दूर करता है, रोगाणु नष्ट करता है और स्वास्थ्य प्रदान करता है। डॉक्टर ममता सक्सेना और उनकी टीम ने दिल्ली पॉल्यूशन बोर्ड के साथ मिलकर कई रिसर्च यज्ञ के प्रभाव द्वारा प्रदूषण निवारण और रोगाणु नष्ट करने पर किये जो अत्यधिक सफल रहे।

3- इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन के दुष्प्रभाव तो अनेक है, लेकिन इलेक्ट्रॉनिकस का प्रयोग बंद कर पाना आज के युग मे संभव नहीं। डॉक्टर ममता सक्सेना और उनकी टीम ने यज्ञ पर रिसर्च कर पाया कि यज्ञ का औषधीय धूम्र परमाणु से भी छोटे सेंटिव्यास का होने के कारण और अग्नि(किरण), वायु(गैस) , ध्वनि(मंन्त्र सन्तरण) की रेडियो सी तीव्रता के कारण वो अपने प्रभाव से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन दूर करता है। उपरोक्त वेबसाइट में रिसर्च पेपर उपलब्ध है।

4- दिल्ली जैसे अनेक शहर वायु प्रदूषण की चपेट में है, PM2.5 और PM10 खतरनाक उच्चतम पैमाने पर है। डॉक्टर ममता सक्सेना और उनकी टीम ने इनडोर एयर प्योरिफिकेशन हेतु यज्ञ किया,  PM2.5 और PM10 को अत्यंत कम करने में सफलता पाई। जिसके रिसर्च पेपर भी वेबसाइट पर उपलब्ध है।

5- मौसम परिवर्तन/ऋतु परिवर्तन के समय किये सामूहिक यज्ञ रोग प्रतिरोधक क्षमता शरीर मे बढ़ाते है, एक तरह से मेडिसिनल टीके का कार्य करते जो इतनी इम्यूनिटी शरीर मे बढ़ा देता है कि मौसम परिवर्तन के दौरान होने वाली सम्भावित बीमारियों वायरल फीवर, डेंगू, चिकगुनिया, मौसमी बुखार से रक्षण कर देता है।

6- यज्ञ का धूम्र और मंन्त्र तरंग से यौगिक/आध्यात्मिक खेती से फसलों की गुणवत्ता बढ़ी हुई पाई गई। साथ ही वो फसल रोगमुक्त थे, उनके फल की सेल्फ लाइफ तोड़ने के बाद भी अधिक दिनों तक पाई गई।

7-  डॉक्टर गायत्री शर्मा, डॉक्टर अमिता सक्सेना, डॉक्टर संगीता सारस्वत इत्यादि डॉक्टरों ने युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य की लिखी पुस्तक पुंसवन सँस्कार(गर्भ सँस्कार) और हमारी भावी पीढ़ी और उसका नवनिर्माण से प्रेरणा लेकर गर्भ विज्ञान पर विभिन्न रिसर्च किया, और पाया कि विचारशक्ति विज्ञान के विधिवत प्रयोग से, विभिन्न संस्कारों से हम गर्भ के डीएनए में भी सकारात्मकता ला सकते है, आनुवांशिक रोगों को नई पीढ़ी में ट्रांसफर होने से बचाव कर सकते है।  जिस तरह परमाणु विष्फोट का विषैला विकिरण अत्यंत सूक्ष्म होने के कारण गर्भ के डीएनए को पीढ़ी दर पीढ़ी प्रभावित करता है, वैसे ही विचार तरंग को यज्ञ द्वारा औषधीय यज्ञ से सूक्ष्मीकृत पुष्टिकारक बलवर्धक प्राण पर्जन्य युक्त धूम्र के माध्यम से अनुवांशिक रोगोपचार और वांछित मानसोपचार भी किया जा सकता है। याद रखिये केवल अग्नि(किरण), वायु(गैस) और रेडियो सी तीव्र गति(मंन्त्र सन्तरण) के साथ परमाणु से भी अति सूक्ष्म कण की ही पहुंच जीन को प्रभावित कर सकती है। जो या तो विधिवत विचारशक्ति के सम्प्रेषण या यज्ञ के द्वारा ही सम्भव है। विचार अतिसूक्ष्म होने के कारण उनकी पहुंच भी जीन(gene) तक है और यज्ञीय पुष्टि वर्धक धूम्र भी अति सूक्ष्म होने के कारण उनकी भी पहुंच जीन(gene) तक है।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
 विभिन्न रोगों के उपचार में यज्ञ किस प्रकार सहायता करता है, प्रदूषण को दूर करके स्वास्थ्य सम्वर्धन किस प्रकार करता है, इसे विस्तार से समझने के लिए युगऋषि लिखित निम्नलिखित पुस्तक पढ़े:-

👉🏼 यज्ञ का ज्ञान विज्ञान
👉🏼 यज्ञ एक समग्र उपचार
👉🏼 जीवेम शरद: जीवेम शतः

ऋषि बहुत बुद्धिमान और कुशाग्र बुद्धि थे, अतः सबको एक साथ यज्ञ के लिए एक दिन प्रेरित कर बड़े यज्ञ के प्रभाव को प्राप्त करने के लिए यज्ञ को व्रत-उत्सव में अनिवार्य कर दिया। इससे राज्य सरकार को एक रुपये खर्चा नहीं करना पड़ता था, और सामूहिक स्वास्थ्य सम्वर्धन हो जाता था।

पाक कला विशेषज्ञ और गृहणी जानती है, कि भोजन में स्वाद सही अनुपात में तेल मसाले नमक और पकाने पर आता है। इसी तरह यज्ञ का लाभ भी सही अनुपात में औषधी मिश्रण से बनी हवन सामग्री, सही समिधा(लकड़ी), सही अनुपात में घी, सही अनुपात में सुगंधित द्रव्य मिश्रण से, रोगों के अनुसार मंन्त्र चयन से साइंटिफिक तरीक़े से यज्ञ करने पर अपेक्षित लाभ मिलता है। यदि किसी को खाना न बनाना आये तो भोजन विज्ञान को दोष नहीं दे सकते, उसी तरह यदि किसी को यज्ञ करना न आये तो इसके लिए यज्ञ विज्ञान को दोष नहीं दिया जा सकता है।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

No comments:

Post a Comment

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...